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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

‘‘भाभी, भैया कहां हैं? दिन ढल गया, दिखाई नहीं दे रहे. किसी काम से गए हैं क्या?’’ राकेश सिंह ने अपनी भाभी रानी से पूछा.

‘‘दोपहर में किसी का फोन आया था, फोन पर बात करते हुए थोड़ी देर में आने को कह कर घर से निकले. लेकिन सांझ हो गई है, अभी तक नहीं लौटे. मुझे चिंता हो रही है.’’ परेशान रानी ने देवर राकेश से कहा.

‘‘मैं भैया को ढूंढने जा रहा हूं. अगर कुछ पता नहीं चला तो मैं पहासू थाने चला जाऊंगा और गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगा.’’

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‘‘आप के जो समझ में आए, करो. किसी भी तरह उन का का पता लगाओ.’’ रानी बोली.

‘‘जी छोटा मत करो भाभी.’’ राकेश ने भाभी को समझाया.

राकेश भाई को ढूंढने निकल गया. उस समय शाम के करीब साढ़े 6 बज रहे थे. तारीख थी 9 जुलाई 2020.

जितना संभव था, राकेश ने बड़े भाई बलवीर सिंह को ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. बलवीर सिंह न तो किसी दोस्त के यहां गया था और न ही किसी परिचित के यहां. राकेश भी परेशान था कि बाइक ले कर वह कहां गया होगा. बलवीर का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. फोन बंद होने से राकेश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. जब बलवीर का कहीं पता नहीं चला तो राकेश पहासू थाने पहुंच गया.

थाने के दीवान अशोक कुमार को अपनी परेशानी बता कर उस ने भाई की गुमशुदगी की तहरीर उन्हें दे दी. अशोक कुमार ने राकेश को विश्वास दिलाया कि बड़े साहब के आते ही आवश्यक काररवाई हो जाएगी. रात काफी हो गई है, अभी अपने घर जाओ.

दीवान के आश्वासन पर राकेश घर लौट आया. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे.

घर वालों की बढ़ी चिंता

रानी और राकेश ने किसी तरह रात काटी. बलवीर की पत्नी रानी दरवाजे पर इस आस से टकटकी लगाए रही कि वह अब घर लौटेंगे तो दरवाजा कौन खोलेगा.

बलवीर सिंह को घर से गए 24 घंटे हो गए. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. समझ नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया? इस बात को ले कर घर वालों को चिंता सताने लगी. डर था कि उस के साथ कहीं कोई अप्रिय घटना तो नहीं घट गई, क्योंकि उस का फोन अब भी बंद आ रहा था. उस के फोन का बंद आना, घर वालों की चिंता बढ़ा रहा था. पहासू थाने के थानाप्रभारी आर.के. यादव ने राकेश की तहरीर पर बलवीर की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी थी.

गुमशुदगी के तीसरे दिन यानी 11 जुलाई को पुलिस को दिन के करीब 11 बजे सूचना मिली कि थाने से करीब 6 किलोमीटर दूर गंगावली नहर के किनारे झाड़ी में एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश पड़ी है. लाश बुरी तरह झुलसी हुई है और उस के पास एक लावारिस बाइक खड़ी है.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की जानकारी राकेश को भी दे दी थी और उसे लाश की शिनाख्त के लिए मौके पर पहुंचने को कह दिया.

जानकारी मिलते ही राकेश घटनास्थल पहुंच गया. लाश की कदकाठी और कपड़ों से उस ने लाश की पहचान अपने भाई बलवीर सिंह के रूप में कर ली.

पुलिस ने लाश झाड़ी के अंदर से बाहर निकलवाई. उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. हत्यारों ने बलवीर की हत्या करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ उड़ेल कर आग लगा दी थी. शव के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई, वह भी बलवीर की ही थी.

पुलिस ने लाश और बाइक दोनों को अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर मौके से कोई अन्य चीज बरामद नहीं हुई थी.

घटनास्थल की काररवाई कर पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. थाने लौट कर पुलिस ने राकेश सिंह की तहरीर पर धारा 302 भादंसं के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी.

बलवीर सिंह की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मृतक की पत्नी रानी, बेटी खुशबू और राकेश का रोरो कर बुरा हाल था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बलवीर की हत्या किस ने और क्यों की? जबकि उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. वह सीधासादा किसान था, अपने काम से काम रखने वाला.

बलवीर सिंह की हत्या ब्लांइड मर्डर थी. पुलिस के लिए चुनौती. पुलिस को बलवीर का मोबाइल नंबर मिल गया था. नंबर ही एक ऐसा आधार था जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच सकती थी. यह भी पता चल सकता था कि उस के फोन पर आखिरी बार किस ने काल की थी.

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2 दिनों बाद पुलिस को बलवीर के मोबाइल की कालडिटेल्स मिल गई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि उस के नंबर पर आखिरी काल दोपहर एक बजे के करीब आई थी. फिर एक घंटे बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया था.

इस से एक बात साफ हो गई कि बलवीर के साथ जो कुछ हुआ, वह इसी एक घंटे के बीच में हुआ था. हत्यारों ने इसी एक घंटे के भीतर अपना काम कर के लाश ठिकाने लगा दी होगी.

पुलिस को मिली अहम जानकारी

पुलिस को जांचपड़ताल से पता चला कि बलवीर के फोन पर आखिरी बार जिस नंबर से काल आई थी, वह नंबर हेमंत का था. हेमंत पहासू थाने के जाटोला का रहने वाला था. मृतक भी पहासू का रहने वाला था और फोन करने वाला भी. इस का मतलब बलवीर और हेमंत के बीच जरूर कोई संबंध था.

बलवीर और हेमंत के बीच की बिखरी कडि़यों को जोड़ते हुए पुलिस को मुखबिर के जरिए ऐसी चौंकाने वाली जानकारी मिली कि पुलिस भौचक रह गई. मृतक की बेटी खुशबू और गांव के हेमंत के बीच कई सालों से अफेयर था. इतना ही नहीं, बलवीर की पत्नी रानी के भी गांव के ही एक युवक से मधुर संबंध थे.

मां-बेटी का अफेयर गांव के 2 अलगअलग युवकों से चल रहा था. बलवीर सिंह को मांबेटी के अनैतिक संबंधों की जानकारी हो गई थी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच काफी समय से विवाद चल रहा था.

पुलिस के लिए यह जानकारी काफी थी. उस की हत्या प्रेम में बाधा बनने के कारण हुई थी. लेकिन पुलिस के पास इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं था, जिस से वह मांबेटी को गिरफ्तार कर सके. मांबेटी तक पहुंचने के लिए पुलिस को दोनों के मोबाइल नंबरों की जरूरत थी.

पुलिस चाहती थी कि मांबेटी को इस की भनक तक न लगे. बहरहाल, किसी तरह पुलिस ने मांबेटी के फोन नंबर हासिल कर लिए. नंबर मिल जाने के बाद दोनों नंबर सर्विलांस पर लगा दिए गए. साथ ही दोनों नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली गई. इस से पता चला कि खुशबू की काल डिटेल्स में हेमंत का वही नंबर था जो नंबर मृतक बलवीर सिंह की काल डिटेल्स में मिला था.

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हेमंत और खुशबू के बीच घटना वाले दिन और उस से पहले कई बार बातचीत हुई थी. घटना के बाद भी खुशबू और हेमंत फोन पर बातचीत कर रहे थे. दोनों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पुलिस उन के नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर उन की बातचीत सुन रही है.

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