चोरी छिपे शादी, बनी बरबादी

भरेपूरे परिवार की 28 साला प्रीति रघुवंशी को अपने ही कसबे उदयपुरा के 30 साला गिरजेश प्रताप सिंह से तकरीबन 6 साल पहले प्यार हो गया था. उन के घर भी आमने सामने थे.

प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी खातेपीते किसान हैं और उदयपुरा में उन की अच्छी पूछपरख है. गिरजेश के पिता ठाकुर रामपाल सिंह मध्य प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं.

कर ली शादी

दोनों को मालूम था कि घर वाले आसानी से उन की शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, लिहाजा उन्होंने पिछले साल 20 जून, 2017 की चिलचिलाती गरमी में भोपाल आ कर नेहरू नगर के आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. मंदिर के कर्ताधर्ता प्रमोद वर्मा ने शादी कराई और गिरजेश को शादी का सर्टिफिकेट भी दे दिया.

प्रीति घर वालों से इलाज की कह कर भोपाल आई थी. उस के साथ उस का छोटा भाई नीरज सिंह भी था जो शादी में भी शामिल हुआ था.

नीरज को प्रीति ने भरोसे में ले कर सारी बात बता दी थी. गिरजेश की तरफ से शादी में उस के कुछ नजदीकी दोस्त शामिल हुए थे.

शादी के बाद प्रीति घर वापस आ गई और उस दिन का इंतजार करने लगी जब गिरजेश और उस के घर वाले उसे लेने आएंगे.

नीरज ज्यादा देर तक अपनी बहन की शादी की बात पचा नहीं पाया और उस ने घर में यह बात बता दी. इस पर पूरा घर सनाके में आ गया. पर वे सभी मुनासिब वक्त का इंतजार करने लगे.

बेवफाई बनी फंदा

उदयपुरा में प्रीति का एकएक दिन एकएक साल के बराबर गुजर रहा था. कभीकभार गिरजेश से फोन पर बात होती थी तो वह खुश और बेचैन भी हो उठती थी. गिरजेश हमेशा की तरह उसे हिम्मत बंधाता था कि बस कुछ दिन की बात और है, फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा.

लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. अलबत्ता, होली के बाद कहीं से प्रीति को खबर लगी कि गिरजेश की सगाई उस के घर वालों ने कहीं और कर दी है. खबर गलत नहीं थी. वाकई गिरजेश की सगाई टीकमगढ़ जिले में हो चुकी थी और फलदान भी हो चुका था.

16 मार्च, 2018 की रात गिरजेश उदयपुरा आया तो प्रीति की बांछें खिल उठीं. रात में ही उस ने गिरजेश से फोन पर बात की जो ठीक उस के घर के सामने रुका था. क्या बातें हुईं थीं, यह बताने के लिए प्रीति तो अब जिंदा नहीं है और गिरजेश मुंह छिपाता फिर रहा है. सुबह 5 बजे प्रीति ने अपने गले में फांसी का फंदा डाल कर खुदकुशी कर ली.

सियासत तले मुहब्बत

सुबह के तकरीबन 10 बजे सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल हुआ कि उदयपुरा में प्रीति रघुवंशी नाम की लड़की ने खुदकुशी कर ली है और वह राज्य के रसूखदार मंत्री ठाकुर रामपाल सिंह की बहू है, तो हड़कंप मच गया.

जल्द ही सारी कहानी सामने आ गई. प्रीति का लिखा सुसाइड नोट भी वायरल हुआ जिस में उस ने अपनी गलती के बाबत बारबार मम्मीपापा से माफी मांगते हुए किसी को परेशान न किए जाने की बात लिखी थी. अपने आशिक या शौहर गिरजेश का उस ने अपने सुसाइड नोट में जिक्र तक नहीं किया था.

8 महीने से सब्र कर रहे प्रीति के घर वाले भी अब खामोश नहीं रह पाए और उन्होंने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश पर इलजाम लगाया कि ये दोनों प्रीति को दिमागी तौर पर परेशान कर रहे थे, इसलिए प्रीति ने खुदकुशी कर ली.

बात चूंकि ठाकुर रामपाल सिंह सरीखे रसूखदार और दिग्गज मंत्री के बेटे की थी, इसलिए कांग्रेसियों ने मौका भुनाने की भूल नहीं की और गिरजेश की गिरफ्तारी और रामपाल सिंह को मंत्रिमंडल से बरखास्त करने की मांग पर वे अड़ गए.

चौतरफा समर्थन मिलता देख कर प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी इस जिद पर अड़ गए कि ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा दें और गिरजेश उस का अंतिम संस्कार करे तभी वे प्रीति की लाश लेंगे नहीं तो प्रीति की लाश नैशनल हाईवे पर रख कर प्रदर्शन किया जाएगा.

चंदन सिंह रघुवंशी ने ठाकुर रामपाल सिंह और गिरजेश के खिलाफ उदयपुरा थाने में शिकायत भी दर्ज कराई.

उधर ठाकुर रामपाल सिंह ने दोटूक कह दिया कि उन के बेटे गिरजेश को फंसाया जा रहा है और प्रीति उन की बहू नहीं है तो पूरा रघुवंशी समाज उदयपुरा में इकट्ठा हो कर विरोध करने लगा.

बात इतनी बिगड़ी कि उदयपुरा छावनी में तबदील हो गया और रायसेन की कलक्टर और एसपी समेत दूसरे आला अफसर मामला सुलझाने की कोशिश में जुट गए.

जैसेतैसे बड़ेबूढ़ों के समझाने पर प्रीति के घर वालों ने उस का दाह संस्कार किया लेकिन जांच की मांग नहीं छोड़ी तो पाला बदलते ठाकुर रामपाल सिंह प्रीति को बहू का दर्जा देने के लिए तैयार हो गए.

इस से बात सुलझती नजर आई लेकिन फिर जल्द ही बिगड़ भी गई क्योंकि जांच के नाम पर पुलिस प्रीति के घर वालों को ही परेशान करने लगी थी और गिरजेश के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिख रही थी.

25 मार्च, 2018 को जैसेतैसे प्रीति के पिता चंदन सिंह रघुवंशी के बयान दर्ज हुए, पर तब तक भी पुलिस ने गिरजेश के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की थी.

जातपांत का फेर

गिरजेश ने सरासर बुजदिली दिखाई और भोलीभाली प्रीति को धोखा दिया. उस की शादी की खबर ठाकुर रामपाल सिंह को थी लेकिन वे जातिगत ठसक और जिद के चलते बेटे की चोरीछिपे की शादी को मंजूरी नहीं दे पाए.

प्रीति की गलती यह थी कि उस ने गिरजेश पर आंखें मूंद कर भरोसा किया और चोरी से शादी भी कर ली. लेकिन गिरजेश वादे से मुकर गया तो वह घबरा उठी.

प्रीति अगर मरने के बजाय दिलेरी से अपनी शादी का राज खोल कर अपना हक मांगती तो नजारा कुछ और होता.

प्रीति की मौत एक सबक है कि आशिक पर भरोसा कर उस से चोरीछिपे शादी करना जिंदगी दांव पर लगाने जैसी बात है. वजह, जो शख्स चोरी से शादी कर रहा हो उस के पास मुकरने और धोखा देने का पूरा मौका रहता है.

कई लड़कियां तो चोरी से शादी कर पेट से हो आती हैं और दोहरी परेशानी और जिल्लत झेलती हैं. वे शादी का सुबूत दें तो भी उस पर कोई तवज्जुह नहीं देता.

यह भी साफ दिख रहा है कि जातपांत में जकड़ा समाज कहने भर को मौडर्न हुआ है, नहीं तो हकीकत प्रीति के मामले से सामने है कि बदला कुछ खास नहीं है.

बेवफाई का सिला कुछ ऐसा मिला

26 जनवरी, 2017 को इलाहाबाद के यमुनानगर इलाके के थाना नैनी में गणतंत्र दिवस के ध्वजारोहण की तैयारी चल रही थी. इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह एवं अन्य पुलिसकर्मी सीओ अलका भटनागर के आने का इंतजार कर रहे थे. उसी समय एक दुबलापतला युवक आया और एक सिपाही के पास जा कर बोला, ‘‘स…स… साहब, बड़े साहब कहां हैं, मुझे उन से कुछ कहना है.’’

इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह वहीं मौजूद थे. उस युवक की आवाज उन के कानों तक पहुंची तो उन्होंने उसे अपने पास बुला कर पूछा, ‘‘कहो, क्या बात है?’’

‘‘साहब, मेरा नाम इंद्रकुमार साहू है. मैं चक गरीबदास मोहल्ले में मामाभांजा तालाब के पास रहता हूं. मैं ने अपनी पत्नी और उस के प्रेमी को मार डाला है.’’

इंद्रकुमार के मुंह से 2 हत्याओं की बात सुन कर अवधेश प्रताप सिंह दंग रह गए. उन्होंने उस के ऊपर एक नजर डाली, उस के उलझे बाल, लाललाल आंखों से वह पागल जैसा नजर आ रहा था. चेहरे के हावभाव देख लग रहा था कि वह रात भर नहीं सोया था.

वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी इंद्रकुमार को हैरानी से देख रहे थे. थाना पुलिस कुछ करने का सोच रही थी, तभी सीओ अलका भटनागर भी थाना आ पहुंचीं. इंद्रकुमार द्वारा दो हत्याएं करने की बात सुन वह भी दंग रह गईं. सीओ के इशारे पर अवधेश प्रताप सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया.

ध्वजारोहण की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अवधेश प्रताप सिंह इंद्रकुमार को अपनी जीप में बैठा कर उस के घर ले गए. अलका भटनागर भी साथ गईं. इंद्रकुमार पुलिस को उस कमरे में ले गया, जहां पत्नी गीता साहू और उस के प्रेमी रीतेश सोनी की लाशें पड़ी थीं.

पुलिस के पहुंचने पर इस दोहरे हत्याकांड की खबर पासपड़ोस वालों को मिली तो सभी इकट्ठा हो गए. पुलिस दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण करने लगी. पुलिस अधिकारी यह देख कर हतप्रभ थे कि दोनों लाशों पर नोचखसोट या चोट के कोई निशान नहीं थे. गीता के गले पर लाल धारियां जरूर पड़ी थीं. रीतेश के गले पर भी वैसे ही निशान देख कर लग रह था कि उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मोहल्ले वालों से खबर पा कर उस के घर वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए थे. मौके की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद इंद्रकुमार को थाने ला कर उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो उस ने पत्नी की बेवफाई की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इंद्रकुमार साहू उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला गरीबदास में अपनी 32 साल की पत्नी गीता और 4 बच्चों के साथ रहता था. उस की बड़ी बेटी 15 साल की थी. इंद्रकुमार ने अपने मकान के आगे वाले हिस्से में किराना और चायनाश्ता की दुकान खोल रखी थी. उस का काम अच्छा चल रहा था. घर के काम से फारिग होने के बाद गीता भी दुकानदारी के काम में उस का हाथ बंटाती थी.

इंद्रकुमार के घर से कुछ दूरी पर बनारसीलाल सोनी रहता था. उस का बेटा रीतेश सोनी सिगरेट और गुटखा का शौकीन था. इसी वजह से उस का इंद्रकुमार की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था. मोहल्ले के रिश्ते से गीता उस की भाभी लगती थी. इसी नाते वह अकसर उस से इंद्रकुमार के सामने ही हंसीमजाक कर लिया करता था.

अपने से 9 साल छोटे रीतेश की बातों का गीता भी हंस कर जवाब दे दिया करती थी. स्वभाव से सीधा और सरल इंद्रकुमार इस का कतई बुरा नहीं मानता था. इंद्रकुमार दुकान का सामान लेने अकसर इलाहाबाद शहर जाता रहता था. ऐसे में गीता ही दुकान संभालती थी.

इस बीच रीतेश गीता को रिझाने के लिए उस की तारीफ किया करता था. एक बार उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि तुम 4 बच्चों की मां हो. तुम तो अभी भी जवान दिखती हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता गदगद हो गई थी. इस के बाद एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम में गजब का आकर्षण है. कहां तुम और कहां इंदर भाई. दोनों की कदकाठी, रंगरूप और उम्र में जमीनआसमान का अंतर है. तुम्हारे सामने तो वह कुछ भी नहीं है.’’

अपनी तारीफ सुन कर गीता अंदर ही अंदर जहां एक ओर फूली नहीं समाई, वहीं दिखावे के लिए उस ने मंदमंद मुसकराते हुए रीतेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘झूठे कहीं के, तुम जरूरत से ज्यादा तारीफ कर रहे हो? मुझे तुम्हारी इस तारीफ में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है, तुम्हारे भैया जो मरियल से दिखते हैं, आने दो बताती हूं उन से.’’

इतना कह कर वह जोरजोर से हंसने लगी. हकीकत यह थी कि गीता रीतेश को मन ही मन चाहती थी. उस ने केवल दिखावे के लिए यह बात कही थी. रीतेश हर हाल में उसे पाना चाहता था. गीता के हावभाव से वह समझ चुका था कि गीता भी उसे पसंद करती है. लेकिन वह इजहार नहीं कर पा रही है.

एक दिन दोपहर को गीता के बच्चे स्कूल गए थे. इंद्रकुमार बाजार गया हुआ था. गरमी के दिन थे. दुकान पर सन्नाटा था. रीतेश ऐसे ही मौके की तलाश में था. वह गीता की दुकान पर पहुंच गया. इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच रीतेश ने गीता का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

गीता ने इस का विरोध नहीं किया. चेहरेमोहरे से गोरेचिट्टे गबरू जवान रीतेश के हाथों का स्पर्श कुछ अलग था. गीता का हाथ अपने हाथ में ले कर रीतेश सुधबुध खो कर एकटक उस के चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा. अचानक रीतेश की तंद्रा भंग करते हुए गीता ने कहा, ‘‘अरे ओ देवरजी, किस दुनिया में सो गए. छोड़ो मेरा हाथ. अगर किसी ने देख लिया तो जानते हो कितनी बड़ी बेइज्जती होगी?’’

गीता की बात सुन कर रीतेश ने कहा, ‘‘यहां बाहर कोई देख लेगा तो अंदर कमरे में चलें?’’

‘‘नहीं…नहीं… आज नहीं, अभी उन के आने का समय हो गया है. वह किसी भी समय आ सकते हैं. फिर कभी अंदर चलेंगे.’’ गीता ने कहा तो रीतेश ने उस का हाथ छोड़ दिया.

लेकिन वह मन ही मन बहुत खुश था, क्योंकि उसे गीता की तरफ से हरी झंडी मिल गई थी. इस के बाद मौका मिलते ही दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली. इस के बाद इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंक कर गीता रीतेश के साथ मौजमस्ती करने लगी. अवैधसंबंधों का यह सिलसिला करीब 3 सालों तक चलता रहा.

अवैध संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को गीता और रीतेश के अवैध संबंधों की भनक लग गई. इंद्रकुमार के दोस्तों ने कई बार उसे उस की पत्नी और रीतेश के संबंधों की बात बताई, लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने दोस्तों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उसे पत्नी पर पूरा विश्वास था. जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. सही बात तो यह थी कि गीता पति को कुछ समझती ही नहीं थी. आखिर 6 महीने पहले एक दिन इंद्रकुमार ने अपनी पत्नी और रीतेश को अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. रीतेश ने जब इंद्रकुमार को देखा तो वह फुरती से वहां से भाग गया. उस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. पर उस ने गीता को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक रीतेश का गीता के यहां आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से इंद्रकुमार की आंखों में धूल झोंकने लगे. पर अब वे काफी सावधानी बरत रहे थे. गीता ने अपने दोनों बड़े बच्चों बेटी और बेटे को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया था.

रीतेश भी बच्चों को पैसे और खानेपीने की चीजें ला कर देता रहता था, जिस से बच्चे रीतेश के घर में आने की बात अपने पिता को नहीं बताते थे. इस के बावजूद इंद्रकुमार ने दोनों की चोरी दोबारा पकड़ ली. इस बार उस ने गीता की जम कर धुनाई की और बच्चों को भी डांटाफटकारा.

अब वह गीता पर और ज्यादा निगाह रखने लगा. मगर गीता पर इस का विपरीत असर हुआ. वैसे भी वह पहले ही पति की परवाह नहीं करती थी. अब उस का डर बिलकुल मन से निकल गया था. वह पूरी तरह बेशर्मी पर उतर आई. पति की मौजूदगी में ही वह प्रेमी रीतेश से खुलेआम मिलने लगी.

इंद्रकुमार दुकान पर बैठा रहता तो रीतेश उस के सामने ही घर के अंदर उस की पत्नी के पास चला जाता. वह जानता था कि रीतेश और गीता उस से ज्यादा ताकतवर हैं, इसलिए वह चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था. लाचार सा वह दुकान पर ही बैठा रहता था.

पत्नी पर अब उस का कोई वश नहीं रह गया था. वह 15 साल की बड़ी बेटी की दुहाई देते हुए पत्नी को समझाता, पर पत्नी पर उस के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ता था. बल्कि वह और भी ज्यादा मनमानी करने लगी थी.

अपनी आंखों के सामने अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख उस का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसी सब का नतीजा था कि उस ने मन ही मन एक खतरनाक मंसूबा पाल लिया. वह मंसूबा था रीतेश और बेवफा पत्नी की हत्या का.

घटना से 8-10 दिन पहले से ही वह अपने मंसूबे को अमलीजामा पहनाने में लग गया था. मसलन दोनों को मौत के आगोश में सुलाने की उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी. अपनी इस योजना के तहत वह खुद भी पत्नी के प्रेमी रीतेश से ऐसे बातें करने लगा, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.

योजना के अनुसार, 25 जनवरी, 2017 को वह एक मैडिकल स्टोर से नींद की 20 गोलियां खरीद लाया. दोनों बड़े बच्चों को वह उन की मौसी के घर छोड़ आया. जबकि छोटे दोनों बच्चे घर में ही थे.

रात 9 बजे के आसपास उस ने दुकान बंद की. घर के भीतर गया तो देखा गीता खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. उस का प्रेमी रीतेश कमरे में बैठा टीवी देख रहा था. उसे देख कर अंदर ही अंदर उस का खून खौल रहा था. हत्या के इरादे से इंद्रकुमार ने खुद ही चाय बनाई और पत्नी तथा रीतेश की चाय में नींद की दवा मिला कर चाय उन्हें दे दी. एक कप में ले कर वह खुद भी चाय पीने लगा.

चाय पीने के बाद भी दोनों बेहोश नहीं हुए तो इंद्रकुमार अवाक रह गया. क्योंकि उस दिन उस ने दोनों को मौत के घाट उतारने की पूरी तैयारी कर ली थी. जब उन दोनों पर नींद की गोलियों का कोई असर नहीं हुआ तो उस ने रीतेश से कहा, ‘‘भाई रितेश कल 26 जनवरी है. कल शराब की सारी दुकानें बंद रहेंगी. आज मेरा मन शराब पीने का कर रहा है. क्यों न आज हम 3-3 पैग लगा लें.’’

इंद्रकुमार की बात पर रीतेश खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. जब तक गीता भाभी खाना बना रही हैं, तब तक हम दोनों अपना काम कर लेते हैं.’’ इस के बाद दोनों शराब की दुकान पर गए और वहां से एक बोतल खरीद कर लौट आए. उन के बीच शराब का दौर शुरू हुआ. अब तक गीता और रीतेश पर गोलियों का असर होने लगा था.

बातोंबातों में इंद्रकुमार ने रीतेश को ज्यादा शराब पिला दी. बिना खाएपिए दोनों आधी रात तक शराब पीते रहे. इस बीच गीता को नींद आने लगी. दोनों बच्चों के साथ गीता ने खाना खा लिया. उस ने रीतेश और पति को कई बार खाने को कहा. लेकिन जब उस ने देखा कि दोनों पीने में मस्त हैं तो वह बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. थोड़ी देर बाद नशा हावी होते ही रीतेश भी वहीं पसर गया.

इंद्रकुमार को इसी मौके का इंतजार था. वह रीतेश को खींच कर दुकान के पीछे वाले कमरे में ले गया और पूरी ताकत से उस का गला दबा दिया. थोड़ी देर में उस का शरीर हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया.

इस के बाद वह गीता को भी उसी कमरे में खींच लाया. लेकिन गीता पूरी तरह बेहोश नहीं थी. उस ने इंद्रकुमार से बचने की भरपूर कोशिश की, विरोध भी किया, लेकिन इंद्रकुमार ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. जिस के चलते उस के भी त्रियाचरित्र का अध्याय हमेशा के लिए समाप्त हो गया.

इंद्रकुमार साहू से विस्तार से पूछताछ कर के पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 308 के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फेसबुकिया प्यार के चक्कर में न पड़ जाना

रात को घर के सारे काम निपटा कर रीतू फेसबुक खोल कर चैटिंग करने बैठती तो दूसरी ओर विनोद औनलाइन मिलता, जैसे वह पहले से ही रीतू का इंतजार कर रहा होता. उस से चैटिंग करने में विनोद को भी बड़ा आनंद आता था. रीतू की प्यार भरी बातों से विनोद की दिन भर की थकान दूर हो जाती थी. वह एक प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक था. वहां छोटेछोटे बच्चों को पढ़ाने में उस का दिमाग व शरीर थक जाता था, रीतू से चैटिंग कर के वह तरोताजा महसूस करता था.

विनोद की पत्नी मायके गई हुई थी, इसलिए घर की तनहाई उसे काटने दौड़ती थी. ऐसे में उसे रीतू से भरपूर चैटिंग करने का समय मिल जाता था. रीतू भी चैटिंग द्वारा एक हफ्ते में ही विनोद से काफी घुलमिल गई थी. उस दिन भी वह उस से चैटिंग कर रहा था, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने पूछा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘हैलो…विनोदजी, मैं रीतू बोल रही हूं. वही रीतू, जिस से आप चैट कर रहे हो.’’ दूसरी तरफ से कहा गया.

‘‘अरे रीतूजी आप, आप को मेरा नंबर कहां से मिल गया?’’ खुश हो कर विनोद ने पूछा.

‘‘लगन सच्ची हो और दिल में प्यार हो तो सब कुछ मिल जाता है, नंबर क्या चीज है.’’ रीतू ने कहा.

बड़ी मीठी आवाज थी रीतू की. उस से बातें करते हुए विनोद को बहुत अच्छा लग रहा था, इसलिए उस ने चैटिंग बंद कर के पूछा, ‘‘रीतूजी, आप रहती कहां हैं?’’

‘‘वाराणसी में.’’ रीतू ने कहा.

‘‘वाराणसी में आप कहां रहती हैं?’’

‘‘सिगरा में.’’

‘‘रीतूजी, आप करती क्या हैं?’’

‘‘मैं एक नर्सिंगहोम में नर्स हूं.’’

‘‘आप तो नौकरी के साथ समाजसेवा भी कर रही हैं. आप मैरिड हैं या..?’’

‘‘हां, मैं मैरिड हूं और आप..?’’ रीतू ने पूछा.

‘‘शादी तो मेरी भी हो चुकी है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘कुछ खास नहीं, दरअसल पत्नी मायके गई है, इसलिए घर में उदासी छाई है.’’

‘‘ओह, मैं तो अनहोनी समझ कर घबरा गई थी. विनोदजी, सही बात तो यह है कि मेरी शादी हुई जरूर है, पर पति के होते हुए भी मैं अकेली हूं. मेरी स्थिति तो उस धोबी की तरह है, जो पानी में खड़ा होते हुए भी प्यासा रहता है.’’ कहतेकहते रीतू उदास हो गई.

रीतू की वेदना सुन कर विनोद का भी अंतरमन आहत सा हो गया था. बातचीत के बाद दोनों ने वाट्सऐप से एकदूसरे को अपनेअपने फोटो भेज दिए. रीतू बहुत सुंदर थी. गोलमटोल चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, पतलेपतले होंठ, लंबेघने घुंघराले केश. उस की मोहिनी सूरत पर विनोद मुग्ध हो गया.

अब वह रोजाना रीतू से बातें करने के लिए बेचैन रहने लगा था. मोबाइल पर जो बात वह उस से खुल कर नहीं कह पाता था, उसे फेसबुक पर चैटिंग के दौरान कह देता था. विनोद को रीतू ने बताया था कि उस का पति मनोहरलाल शराबी है.

वह जुआ भी खेलता है और शराबियों के साथ आवारागर्दी करता है. रात को नशे में झूमता हुआ घर आ कर झगड़ा और गालीगलौज कर के सो जाता है.

रीतू को जो वेतन मिलता, उसे भी वह छीन लेता था. न देने पर उसे मारतापीटता था. मार के डर से वह अपना सारा वेतन उसे दे देती थी.

रीतू विनोद से अपनी कोई बात नहीं छिपाती थी. इस तरह विनोद को रीतू से अपनापन सा हो गया था. एक रात विनोद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘तुम्हारी याद में बेचैन हूं और तुम से मिलने के लिए तड़प रही हूं. और तुम..?’’ उस ने भी विनोद से पूछा.

‘‘मेरी भी वही हालत है.’’ विनोद ने कहा.

‘‘जब ऐसी बात है तो मेरे पास आ जाओ न, दोनों का ही अकेलापन दूर हो जाएगा.’’

रीतू की बात सुन कर विनोद के शरीर में तरंग सी उठने लगी. मन की बेचैनी बढ़ गई. उस ने कहा, ‘‘मेरे आने का क्या फायदा, घर पर तुम्हारा पति मनोहर जो है.’’

‘‘तो क्या हुआ, तुम आओ तो सही. मैं कह दूंगी कि तुम मेरे मौसेरे भाई हो. वैसे भी वह कल गांव जा रहा है. गांव से लौटने में उसे 2-4 दिन तो लग ही जाएंगे. परसों इतवार है. तुम कल जरूर आ जाओ. ऐसा मौका जल्दी नहीं मिलेगा. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

रीतू का फोन कटा तो विनोद की बेचैनी बढ़ गई. वह रात भर करवटें बदलता रहा. जबकि पत्नी से उस की रोज ही बातें होती थीं. वह भी आने के लिए उसे बारबार फोन कर रही थी. पत्नी की मां सीरियस बीमार न होती तो वह कब की आ गई होती.

विनोद की स्थिति उस चटोरे जैसी हो गई थी, जिसे बाहर के भोजन के सामने घर का भोजन फीका लगता है. फिर रीतू का मदभरा अतृप्त यौवन कहां हमेशा मिलने वाला था. विनोद की यही सोच उसे मदहोश किए जा रही थी. लिहाजा मन बना कर वह रविवार को रीतू से मिलने वाराणसी पहुंच गया. रीतू के बताए पते पर पहुंचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. थोड़ीबहुत परेशानी हुई तो उस ने रीतू से फोन कर के रास्ता पूछ लिया.

रीतू के घर आते हुए विनोद के मन में जो डर और झिझक थी, वह उस से मिल कर खत्म हो गई. उस समय उस के मन में एक सवाल यह था कि न जान न पहचान, केवल फेसबुक की दोस्ती ही तो है, कहीं उस के साथ कोई छलकपट न हो. उसी पल उस ने यह भी सोचा कि यदि ऐसा होता तो इस तरह खुल कर रीतू अपनी वेदना उस से न कहती.

इन्हीं सब उलझनों में पड़े विनोद ने जब रीतू के घर की घंटी बजाई तो रीतू न केवल तुरंत बाहर आई, बल्कि स्वागत करती हुई वह उस का हाथ पकड़ कर अंदर ले गई. उस के इस व्यवहार से उस के मन में जो डर था, वह पूरी तरह से दूर हो गया.

दूसरी मंजिल पर जहां रीतू रहती थी, वह 2 कमरों का सैट था. पूरा मकान करीने से सजा हुआ था, जिसे देख कर विनोद का मन खिल उठा. रीतू उस से मिल कर आनंदविभोर हो उठी थी. घर में रीतू को अकेली पा कर उस से आलिंगनबद्ध कर वह निहाल हो गया था. खातिरदारी और उस से लिपट कर बात करतेकरते दिन ढलने लगा तो विनोद ने इशारा करते हुए कहा, ‘‘रीतू, चलो अब बैडरूम में चलते हैं. क्योंकि मुझे वापस भी जाना है.’’

‘‘कहां वापस जाना है. आज रात तुम्हें मेरे साथ रहना होगा. फिर पता नहीं कब मिलना हो?’’ कह कर विनोद को आलिंगनबद्ध किए हुए रीतू उसे बैडरूम में ले गई.

डबलबैड पर दोनों सट कर लेट गए. विनोद उस के अंगों से खेलने लगा. वह उसे निर्वस्त्र करने लगा तो रीतू ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘इतनी भी क्या जल्दी है.’’

कमरा ट्यूबलाइट की दूधिया रौशनी से भरा हुआ था. इस से पहले कि विनोद कुछ और करता, पता नहीं कहां से मनोहर उस कमरे में आ टपका. उसे देखते ही विनोद सकपका गया. वह विनोद को घूरते हुए बोला, ‘‘तू कौन है रे, जो मेरे घर में आ कर मेरी पत्नी के साथ दुष्कर्म कर रहा है.’’

विनोद की तो जैसे सिट्टीपिट्टी बंध गई, उस का सारा रोमांस गायब हो गया. रीतू अपनी साड़ी ओढ़ कर एक कोने में सिमट गई. मनोहर ने पहले तो विनोद को खूब लताड़ा. फिर लातघूंसों से उस की पिटाई करते हुए पुलिस को फोन लगाने लगा.

विनोद उस के पैर पकड़ कर पुलिस न बुलाने की भीख मांगते हुए बोला, ‘‘मनोहरजी, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. रीतू ने ही फेसबुक पर मुझ से दोस्ती कर के यहां बुलाया था.’’

‘‘चुप कमीने, मैं कुछ नहीं जानता. फेसबुक पर दोस्ती कर औरतों को प्रेमजाल में फांस कर रंगरलियां मनाने वाले, आज तेरी खैर नहीं है. जब पुलिस का डंडा पड़ेगा, तब सारा नशा उतर जाएगा.’’ कह कर वह फिर फोन मिलाने लगा.

‘‘नहीं मनोहरजी, मुझे छोड़ दो. मेरा भी परिवार है. मेरी सरकारी नौकरी है. मुझे पुलिस के हवाले करोगे तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ कह कर वह उस के पैरों पर गिर पड़ा.

विनोद के काफी हाथपैर जोड़ने पर मनोहर ने कहा, ‘‘अपनी इज्जत और नौकरी बचाना चाहता है तो अभी 2 लाख रुपए देने होंगे. नहीं तो मैं तुझे पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

कह कर मनोहर ने कमरे में लगा वीडियो कैमरा हाथ में ले कर उसे दिखाते हुआ कहा, ‘‘तेरी सारी हरकत इस कैमरे में कैद है, इसलिए पैसे जल्द दे दे, नहीं तो…’’

‘‘इतने पैसे मैं अभी कहां से लाऊं. मेरे पास तो अभी केवल 70 हजार रुपए हैं.’’ कह कर 2-2 हजार के 35 नोट पर्स से निकाल कर उस ने मनोहर के सामने रख दिए.

क्रोध से लाल होता हुआ मनोहर बोला, ‘‘70 हजार..? यह भी रख ले. 2 लाख कह दिया तो उतने ही चाहिए. नहीं तो जेल जाने की तैयारी कर ले.’’

विनोद गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘आप मुझ पर दया कीजिए भैया, मैं घर जा कर बैंक से पैसे निकाल कर कल आप को दे दूंगा.’’

‘‘बहाना कर के भागना चाहता है तू, मुझे मूर्ख समझता है क्या. अभी मेरे साथ एटीएम चल.’’ कह कर वह पास की मार्केट स्थित एटीएम बूथ पर ले गया और 24 हजार रुपए निकलवा लिए. इस से ज्यादा वह निकाल नहीं सकता था, क्योंकि नोटबंदी के बाद बैंकों ने नियम ही ऐसा बना दिया था.

24 हजार रुपए अपने पास रख कर मनोहर ने विनोद को चेतावनी दी, ‘‘1 लाख 6 हजार रुपए तू जल्द दे जाना, वरना यह वीडियो मेरे पास है. यह तुझे कभी भी जेल पहुंचा सकता है.’’

विनोद वहां से चला गया और अगले दिन अपने दोस्त से 1 लाख 6 हजार रुपए उधार ला कर उस ने मनोहर को दिए, तब मनोहर ने कैमरे से वह वीडियो डिलीट की.

वीडियो डिलीट होने पर विनोद ने राहत की सांस ली. इस फेसबुकिया प्यार ने विनोद को मानसिक रूप से तो परेशान किया ही, साथ ही 2 लाख रुपए भी पल्ले से देने पड़े. इस फेसबुकिया प्यार को वह जिंदगी भर नहीं भुला पाएगा.

जान लेने वाली पत्नियां

प्राणों की प्यारी अब प्राणों की प्यासी हो चली हैं. शादी के बाद बहुत सी लड़कियां घरेलू हिंसा डीवी ऐक्ट 2005 के ब्रह्मास्त्र से लैस हो कर अपनी ससुराल पहुंचने लगी हैं. 498 की धारा का गुणगान आज तकरीबन हर लड़की वाला करता है और लड़के वाले चुप रहते हैं, उदास भी.

जहां वर पक्ष सीधासरल होता है, लड़के वाले शरीफ होते हैं, वहां लड़के के सीधेपन को तेज लड़की कई तरह से अस्त्र बना कर हालात को अपने हक में मोड़ लेती है.

कुछ लड़कियां जिन के मायके में अफेयर होते हैं, वे ससुराल में एक पल भी नहीं रहना चाहती हैं और बिना वजह ससुराल वालों को घरेलू हिंसा व दहेज को ले कर सताने का इलजाम लगा कर अपने मायके की राह पकड़ लेती हैं.

कुछ लड़कियों को मां के बिना रहना नहीं भाता. मां के संग सोने वाली लड़कियां हर चौथे दिन मायके चली जाती हैं. वे हनीमून मना कर मायके लौटे जाती हैं. उन का शादी के प्रति इतना ही शौक होता है जो 1-2 बार ससुराल आ कर पूरा हो जाता है.

बहुत सी लड़कियां अपने मायके के पड़ोस से इतनी रमी होती हैं कि ससुराल का माहौल उन्हें अकेलापन ही देता है. वे किसी भी हालात में मायके की ओर दौड़ लगाती हैं. उन्हें ससुराल या पति से कभी कोई मोह नहीं होता.

कुसुम शादी ही नहीं करना चाहती थी. वजह, उसे अपने भाई के बेटे रिंकू से लगाव था. शादी में देरी हो चुकी थी और कुसुम पूरी तरह से भतीजे की मां बन गई थी.

भाई ने कुसुम के इसी सम्मोहन का फायदा उठा कर उसे उस के पति के खिलाफ कर के हमेशा के लिए उस की गृहस्थी तोड़ दी.

महज 7 महीने के छोटे से वैवाहिक जीवन में कुसुम ने 14-15 बार मायके की ओर दौड़ लगाई थी. जब वह ससुराल में होती थी तो उस की मां रातदिन अपने नाती रिंकू के रोने की बात फोन पर बता कर उस को ससुराल में नहीं रहने देती थी. कुसुम को उस की मां हमेशा अपनी तबीयत का दुखड़ा बता कर बुलाती थी. कुसुम की गोद में रिंकू को डाल कर वह उस का भावनात्मक शोषण करती थी.

इस तरह से मां ने एक पल भी कुसुम को ससुराल में चैन से अपने पति विनीत के साथ नहीं रहने दिया. इस से विनीत डिप्रैशन में चले गया तो मां ने नई चाल चली. वह कुसुम को सिखाने लगी कि तेरा आदमी नामर्द है, उसे छोड़ दे.

इसी बीच विनीत की मां ने कुसुम की मां को उस का घर मरम्मत कराने के लिए कुछ पैसा दे दिया. रिश्तों के बीच पैसा आते ही नए रिश्ते में खटास आ गई.

कुसुम का भाई विमल जुआ खेलता था. वह हर महीने विनीत के सीधेपन का फायदा उठा कर उस की मां से पैसे की मांग करता था. वैसे तो लड़के वाले मांग करते हैं, पर यहां विनीत की मां से कुसुम का भाई पैसे की डिमांड करने लगा था.

आखिर में हार कर विनीत की मां ने पैसे की डिमांड बाबत विमल के खिलाफ शिकायत कर दी तो विमल ने कुसुम को मायके बुला लिया और विनीत व उस के मांबाप पर फर्जी डीवी ऐक्ट लगा कर उन का जीना दूभर कर दिया.

खुद ही पैसा दे कर अपने ऊपर लगाए गए इस झूठे इलजाम का तोड़ विनीत की मां इसलिए नहीं ढूंढ़ पा रही थीं कि बिना लिखापढ़ी किए उन्होंने बहू के मायके वालों को रुपए दे दिए थे. अब वे घरेलू हिंसा के फर्जी मामले में फंसी हैं. कोर्ट हमेशा लड़की की बात सुनती है. लड़के वालों को कुसूरवार समझा जाता है. इन्हीं बातों व कानून का फायदा उठा कर कुसुम का जुआरी भाई अब ठहाके लगा रहा है.

इस तरह की बातों से आज कितने ही परिवार बस नहीं पा रहे हैं. लड़की के लालची भाइयों की नजर अब बहन की ससुराल की जायदाद पर टिकी होती है. जो सीधेसादे ससुराल वाले होते हैं उन को लड़की के भाई ब्लैकमेल कर लेते हैं.

इसी तरह ग्वालियर का एक परिवार भी तब सांसत में आ गया था जब बहू ने अपने पति से कहा कि वह सासससुर से अलग रहेगी. बेचारा मनीष मांबाप पर ही निर्भर था और उन का लाड़ला भी था.

नई बीवी ने मनीष पर जब ज्यादा दबाव बनाया तो वह कुछ भी नहीं कर सका. बीवी मायके जा कर रहने लगी और पति व सासससुर पर दहेज के नाम पर सताने का मामला दायर कर दिया.

बेचारे मांबाप की जान सांसत में देख कर मनीष ने एक सुसाइड नोट लिखा और अपनी जान दे दी. वह खुदकुशी कर के अपनी छोटी सी वैवाहिक जिंदगी का अंत कर गया. उसे लगा कि उस की पत्नी को उस में या उस के मातापिता में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे लोग कब तक उस की पत्नी को मनाएंगे.

एक तरफ तो मातापिता का प्यार, दूसरी तरफ नई बीवी का हठ, तीसरी तरफ 498 की हिटलरशाही धारा, जिस से निकलने की राह सीधेसादे मनीष को नहीं सूझी और उस ने अपनी जिंदगी खत्म कर के ऐसी शादी व कानूनी आतंक को विराम दे दिया जिस में फंसने के बाद बाहर निकलने की राह उस मासूम लड़के के पास नहीं थी.

धरा गया चैक क्लोनिंग का मास्टरमाइंड

साइप्रस में वह नूरुद्दीन के नाम से जाना जाता था, तो जौर्डन में चार्ल्स ब्रोकलिन. माल्टा में उस की पहचान बिट्टू के रूप में थी, तो दुबई में रेहान खान. तुर्की में वह सफी अहमद के नाम से जाना जाता था. वह इन देशों में बेरोकटोक आताजाता था.

लेकिन उस शख्स का असली नाम प्रसन्नजीत था और वह चैक क्लोनिंग का माहिर खिलाड़ी था. चैक क्लोनिंग कर के उस ने कई कंपनियों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया और उस पैसों से वह विदेशों में ऐशमौज करता रहता था.

प्रसन्नजीत की धोखाधड़ी का खुलासा 4 जून, 2017 को तब हुआ, जब पटना के कदमकुआं थाना क्षेत्र के कारोबारी अजीत कुमार जगनानी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उन के खाते से एक लाख, 95 हजार रुपए फर्जी तरीके से निकाल लिए गए हैं. पुलिस ने जब मामले की जांच शुरू की, तो एक के बाद एक खुलासे होने लगे.

अजीत कुमार जगनानी के खाते से निकाली गई रकम चार्ल्स ब्रोकलिन के यूनियन बैंक के खाते में जमा हुई थी. उस के बाद उस रकम को नैटबैंकिंग के जरीए लोहानीपुर की रहने वाली नरगिस के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया था.

पुलिस ने नरगिस को दबोचा, तो उस की निशानदेही पर पहले कदमकुआं इलाके से पिंटू को गिरफ्तार किया गया. उस के बाद पिंटू और नरगिस ने प्रसन्नजीत के नाम का खुलासा कर उसे भी पुलिस के जाल में फंसा दिया.

चैक की क्लोनिंग कर बैंकों से करोड़ों रुपए निकालने वाले प्रसन्नजीत को 5 जुलाई, 2017 को गर्दनीबाग थाना पुलिस ने रात को सरिस्ताबाद इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उस के गिरोह के

3 लोगों को भी धरदबोचा गया.

उन के पास से 4 सौ एटीएम कार्ड, 150 सिम कार्ड, अलगअलग बैंकों की 150 मुहरें बरामद की गईं.

इस के अलावा 6 देशों की करंसी, पासपोर्ट और दर्जनों बैंकों की चैकबुक और पासबुक जब्त की गईं. प्रसन्नजीत के खिलाफ पटना के कई थानों में पहले से ही कई केस दर्ज हैं.

पुलिस ने प्रसन्नजीत के मोबाइल फोन को खंगाला, तो किसी इरफान का नंबर मिला. प्रसन्नजीत उस के साथ चैटिंग भी किया करता था.

इरफान साइप्रस का रहने वाला है और प्रसन्नजीत ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि इरफान पिछले कुछ दिनों से भारत में ही है.

इरफान को ही इस कारिस्तानी का मास्टरमाइंड माना जा रहा है. पटना में प्रसन्नजीत ने अपने असली नाम के अलावा नूरुद्दीन, चार्ल्स ब्रोकलिन, बिट्टू, रेहान खान और सफी अहमद के नाम से कई सरकारी बैंकों के अलावा प्राइवेट बैंकों में खाते खुलवा रखे हैं. उन्हीं खातों के जरीए वह चैक क्लोनिंग का खेल खेलता रहा.

पटना के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि प्रसन्नजीत से पूछताछ के बाद कई बैंकों के मुलाजिमों के भी इस जालसाजी में फंसने के पूरे आसार हैं.

चैक क्लोनिंग के जरीए करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले प्रसन्नजीत के पास से जब्त लैपटौप को पुलिस ने एफएसएल की जांच के लिए भेजा है.

पटना से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर मसौढ़ी ब्लौक के रहने वाले प्रसन्नजीत ने पुलिस को भरमाने के लिए पहले बताया था कि वह केवल मुहरा है, असली सरगना कंकड़बाग का रहने वाला शाह नाम का आदमी है.

पुलिस प्रसन्नजीत के बताए पते पर गई, तो पता चला कि वहां शाह नाम का कोई आदमी नहीं रहता है. पुलिस अब उसे ही मास्टरमाइंड मान कर छानबीन कर रही है.

शुरुआती जांच में ही पता चला है कि प्रसन्नजीत ने तकरीबन 2 सौ लोगों के नाम से बैंक खाते खुलवा रखे हैं. चैक से उड़ाई गई रकम को इन्हीं खातों में डाला जाता रहा है. अकाउंट में रुपए ट्रांसफर होने के बाद एटीएम कार्ड के जरीए उन्हें निकाल लिया जाता था.

प्रसन्नजीत ने बताया कि 3 साल पहले उसे एक चिट्ठी मिली थी. उस चिट्ठी में लिखा था कि धर्म प्रवचन और धर्म की बातों को कहने के लिए उसे साइप्रस से बुलावा आया है.

चिट्ठी पढ़ने के बाद वह साइप्रस जाने के लिए तैयार हो गया. उसे गिरजाघर जाना था, इसलिए उस ने अपना नाम चार्ल्स ब्रोकलिन रख लिया. उस नाम से उस ने फर्जी आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस और पहचानपत्र भी बनवा लिया. गिरजाघर जा कर उस ने प्रवचन देना चालू कर दिया. इतना ही नहीं, मोहम्मद नूरुद्दीन के नाम से वह साइप्रस की एक मसजिद में भी जाने लगा था.

प्रसन्नजीत के घर वाले उसे ‘गुड्डू’ कह कर बुलाते हैं. उस ने साल 2010 और साल 2013 में पासपोर्ट बनवाया और दोनों में उस का नाम प्रसन्नजीत दर्ज है. वह पटना के साइंस कालेज में पढ़ता था. कालेज में पढ़ने वाली एक लड़की रानी से उसे इश्क हुआ. कुछ दिन बाद उस ने प्रेमिका रानी को बताया कि उस ने अपना धर्म बदल लिया है और अपना नाम रेहान खान रख लिया है.

प्रेमिका को यकीन दिलाने के लिए प्रसन्नजीत ने रेहान खान के नाम का आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसैंस और पहचानपत्र भी बनवा लिया था.

प्रेमिका से वह कहता था कि वह बहुत बड़ा आदमी बन गया है. काम के सिलसिले में वह कई देशों का दौरा कर चुका है.

पुलिस की जांच में पाया गया कि प्रसन्नजीत ने 2 पासपोर्ट बना रखे थे. एक पासपोर्ट उस ने साल 2007 में बनवाया था और दूसरा साल 2010 में. पुलिस ने जब इस बारे में पूछताछ की, तो उस ने बताया कि उस का पासपोर्ट खो गया था, इसलिए दूसरा पासपोर्ट बनवाना पड़ा.

पुलिस ने उस की इस दलील को खारिज कर दिया कि अगर गुम होने के बाद पासपोर्ट बनाया है, तो दोनों पासपोर्ट के नंबर अलगअलग कैसे हो गए? पुलिस ने क्षेत्रीय पासपोर्ट दफ्तर से इस बारे में पता किया, तो प्रसन्नजीत पूरी तरह झूठा साबित हुआ.

ठगी का खेल शुरू करने से पहले प्रसन्नजीत एक प्राइवेट बैंक में नौकरी भी कर चुका था. इस वजह से उसे बैंक की सारी तकनीकों और नियमों के बारे में पता है.

पुलिस ने बताया कि उस के टारगेट पर कंपनी का अकाउंटैंट होता था. बैंक मुलाजिम की मिलीभगत से किसी भी बड़ी कंपनी के खाते का चैक वह आसानी से कैश करवा लेता था.

वह अपने घर से सारी करतूतों को अंजाम देता रहता था. वह चैक की क्लोनिंग करता और बैंक के मुलाजिम को मिला कर उसे भुना लेता.

प्रसन्नजीत के पास तकरीबन हर बैंक की पासबुक और चैकबुक थी. उस के गिरोह में 25 लोग शामिल थे. उस ने सभी लोगों के 8-10 बैंक खाते खुलवा रखे थे. किसी कंपनी को चूना लगाने के बाद वह रुपयों को फर्जी खातों में ही डालता था. इस के लिए वह बैंक मुलाजिम को मोटी रकम देता था.

बैंक मुलाजिम का यह भी काम होता था कि अगर किसी कंपनी का मुलाजिम पैसे गायब होने की शिकायत करे, तो उसे कैसे चलता करना है. फर्जी दस्तखत और चैक दिखा कर कंपनी के मुलाजिमों को भगा दिया जाता था.

पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा ने बताया कि चैक क्लोनिंग कर बैंकों से रुपए निकालने वाले गिरोह को पकड़ लिया गया है. गिरोह का साथ देने वाले कई बैंकों के मुलाजिमों की पहचान की जा रही है.

प्रसन्नजीत ने जब बैंकों के चैक क्लोनिंग के तरीके के बारे में बताया, तो पुलिस की आंखें भी फटी रह गईं. जब किसी कंपनी का स्टाफ अपनी कंपनी की चैकबुक ले कर बैंक के काउंटर पर पहुंचता, तो काउंटर पर बैठा बैंक मुलाजिम उस चैक का फोटो ले कर गिरोह के सरगना प्रसन्नजीत को दे देता था.

चैक पर किए गए दस्तखत को देख कर प्रसन्नजीत उस की नकल करता था. कई दफा प्रैक्टिस करने के बाद वह दस्तखत की हूबहू नकल कर लेता था. उस के बाद पहले से अपने पास रखी गई अलगअलग बैंकों की चैकबुक का सीरियल नंबर फोटो वाले चैक नंबर एकदो डिजिट आगे की डालता.

चैक पर कंपनी के मुलाजिम का दस्तखत कर लेता और चैक नंबर बदल कर अपने फर्जी नाम वाले खाते में डाल देता था. चैक क्लियर होने के बाद वह एटीएम कार्ड से पैसे निकाल लेता था.

पुलिस की जांच में यह भी पता चला है कि प्रसन्नजीत के हर फर्जी खाते से लाखों रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ है. उस की प्रेमिका रानी और उस के दोस्तों के खातों को भी खंगाला जा रहा है.

अपनी प्रेमिका का बैंक खाता प्रसन्नजीत ही चलाया करता था. वह साल 2011 में 2 बार और साल 2013 में एक बार साइप्रस घूम चुका है.

आईबी ने प्रसन्नजीत से पूछताछ के बाद यह शक जताया है कि प्रसन्नजीत का आईएसआई से कनैक्शन भी हो सकता है.

शातिर प्रसन्नजीत गिरोह के 2 सौ बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया है. उस के और उस के साथियों के पटना समेत दिल्ली, ओडिशा, हैदराबाद, मैसूर, मुंबई, कोलकाता समेत कई शहरों में बैंक अकाउंट हैं.

पुलिस यह जानकारी जुटा रही है कि किसकिस खाते में कबकब कितनी रकम किस खाते से ट्रांसफर की गई और उसे कब निकाला गया.

प्रसन्नजीत के सरिस्ताबाद के घर से सैकड़ों सीडियां भी मिली हैं, जिन में से ज्यादातर ब्लू फिल्मों की हैं.

पटना के सुलतानगंज इलाके की रहने वाली प्रसन्नजीत की प्रेमिका

शैली उर्फ शफकत फाखरा ने पूछताछ के दौरान पुलिस को ऐसी बातें

बताई हैं, जिस से पुलिस के कान खड़े हो गए हैं. आईबी के बाद एटीएस और एनआईए भी उस से पूछताछ कर सकती है.

खातों से धोखाधड़ी पर 10 दिनों में रकम वापस

भारतीय रिजर्व बैंक ने ग्राहकों को यकीन दिलाया है कि अगर वे औनलाइन बैंकिंग की धोखाधड़ी के शिकार होने के 3 दिनों के अंदर शिकायत दर्ज कराते हैं, तो उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक ने 6 जुलाई, 2017 को साफ किया कि समय सीमा के अंदर शिकायत करने पर 10 दिनों के भीतर रकम वापस कर दी जाएगी. गैरकानूनी लेनदेन में अगर सूचना देने के 4 से 7 दिन की देरी होती है, तो ग्राहकों को 25 हजार रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ेगा.

साथ ही, यह भी कहा गया है कि ग्राहक गोपनीय बैंकिंग जानकारी किसी से साझा करता है यानी खाताधारक की गलती से नुकसान हुआ हो और वह बैंक को सूचना भी नहीं देता है, तो उसे पूरा नुकसान उठाना पड़ेगा.

डेबिटक्रेडिट कार्ड के गैरकानूनी लेनदेन की बढ़ती शिकायतों के बाद आरबीआई ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.

किसने सोचा था सुहाग पर भारी पड़ेगा प्यार

उस महिला की शक्ल देख कर ही उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना झूंसी के थानाप्रभारी विजय प्रताप सिंह को लगा कि यह किसी भारी मुसीबत में है. उन्होंने उसे बैठा कर उस की परेशानी पूछी तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, कल रात से मेरे पति का कुछ पता नहीं है.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा, तुम रहती कहां हो?’’ विजय प्रताप सिंह ने पूछा तो महिला ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम आरती है और मैं यहीं पड़ोस में शिवगंगा विहार कालोनी में रहती हूं.’’

‘‘अपने पति के बारे में पूरी बात बताओ. वह कब घर से गए, कहां गए और कब तक रोज घर आते थे? वह करते क्या हैं, उन का नाम क्या है?’’

‘‘साहब, उन का नाम विजयशंकर पांडेय है. वह कल दोपहर बाद घर से निकले थे. शाम तक घर नहीं आए तो मैं ने उन के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन बात नहीं हो सकी, क्योंकि उन का फोन बंद था. एक तो पानी बरस रहा था, दूसरे बात नहीं हो पा रही थी, इसलिए मुझे चिंता हो रही थी. घर के पिछले हिस्से में बाढ़ का पानी भी भरा था, ऐसे में उन का न आना परेशान कर रहा था. बरसात की वजह से मैं उन्हें कहीं खोजने भी नहीं जा सकी. जब वह सवेरे भी नहीं आए और बात भी नहीं हो सकी तो मैं थाने आ गई.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे पति की गुमशुदगी दर्ज करा कर आगे की काररवाई करता हूं.’’ विजय प्रताप सिंह ने कहा और विजयशंकर पांडेय की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

लेकिन जब उन्होंने आरती से आगे पूछताछ की तो उन्हें उस की विरोधाभासी बातों से उसी पर ही संदेह हुआ, क्योंकि उस ने उन के तमाम सवालों के जवाब इस तरह दिए थे, जो पहले दिए जवाबों से मेल नहीं खा रहे थे. इस से उन्हें लगा कि यह कुछ छिपा रही है.

कुछ दिशानिर्देश दे कर विजयप्रताप सिंह ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी एसआई काशीप्रसाद कुशवाहा को सौंप दी. उन्होंने कहा था कि पहले वह आरती के बारे में पता करें कि उस का चरित्र कैसा है? काशीप्रसाद कुशवाहा सिपाहियों को ले कर शिवगंगा विहार कालोनी जाने की तैयारी कर रहे थे कि उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली पति की गुमशुदगी दर्ज कराने वाली आरती के घर से थोड़ी दूरी पर बाढ़ के पानी में एक लाश तैर रही है.

काशीप्रसाद ने तुरंत यह जानकारी थानाप्रभारी को दी और खुद मोटरवोट तथा गोताखोरों की व्यवस्था कर के घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश को निकलवा कर बाहर लाया गया तो पता चला कि वह लाश आरती के पति विजयशंकर पांडेय की थी, जिस की कुछ देर पहले ही उस ने गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

लाश मिलने की सूचना पा कर कालोनी वाले तो इकट्ठा थे ही, आरती भी अपने तीनों बच्चों और कुछ शुभचिंतकों के साथ वहां पहुंच गई थी. सूचना पा कर विजय प्रताप सिंह भी आ गए थे.

लाश की शिनाख्त हो ही चुकी थी. पुलिस लाश का निरीक्षण करने लगी तो मृतक के सिर में एक बड़ा सा घाव दिखाई दिया. इस का मतलब था कि मृतक पानी में डूब कर नहीं मरा था, उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर के उसे मारा गया था. उस के गले पर भी कसने के निशान थे.

इन बातों से साफ हो गया था कि यह हत्या का मामला था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो पता चला कि विजयशंकर की कनपटी और सिर के पिछले हिस्से पर किसी भारी चीज से कई वार किए गए थे, इस के अलावा उस के गले में कोई चीज लपेट कर कसा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि यह हत्या का मामला था. इस के बाद विजय प्रताप सिंह ने विजयशंकर की गुमशुदगी को हत्या में तब्दील कर आगे की जांच शुरू कर दी. चूंकि उन्हें मृतक की पत्नी आरती पर संदेह था, इसलिए उन्होंने पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया.

आरती से पूछताछ की जाने लगी, लेकिन वह कुछ भी बताने को राजी नहीं थी. वह अपने पहले वाले बयान को ही बारबार दोहराती रही. जबकि पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या उसी ने कराई है या खुद ही की है, इसलिए पुलिस ने उस के पिछले बयान पर विश्वास न कर के जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि प्रेमी रामेंद्र सिंह उर्फ मिंटू और उस के दोस्त चंद्रमा सिंह उर्फ चंदन के साथ मिल कर उसी ने पति विजयशंकर पांडेय की हत्या की थी. इस के बाद उस ने पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

कौशांबी का रहने वाला विजयशंकर पांडेय 8-10 साल पहले परिवार सहित इलाहाबाद आ कर वाराणसी की ओर जाने वाले रोड पर स्थित झूंसी में इलाहाबाद प्राधिकरण द्वारा बनवाई गई शिवगंगा विहार कालोनी में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी आरती के अलावा 3 बच्चे थे.

गुजरबसर के लिए विजयशंकर ने मकान में ही किराए पर फिल्मों की सीडी देने की दुकान खोल ली थी. इस के अलावा वह थोड़ाबहुत प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम कर लेता था. जब कभी वह बाहर चला जाता था, दुकान पर उस की पत्नी आरती बैठ जाती थी.

विजयशंकर दुकान पर अश्लील फिल्मों की भी सीडी रखता था. इस बात की जानकारी आरती को भी थी. मनचले उन्हें लेने आते थे तो वह उन्हें देती भी थी. जो महिलाएं इस का शौक रखती थीं, वे आरती से ही ऐसी फिल्मों की सीडी ले जाती थीं.

विजयशंकर का पड़ोसी रामेंद्र सिंह उर्फ मिंटू भी अश्लील फिल्मों का शौकीन था. चूंकि वह आरती को भाभी कहता था, इसलिए दोनों में हंसीमजाक भी होता रहता था. इसलिए रामेंद्र को आरती से अश्लील सीडी मांगने में संकोच भी नहीं होता था. एक दिन रामेंद्र सीडी लेने आया तो आरती ने कहा, ‘‘देवरजी, कब तक इस तरह की फिल्में देख कर दिन काटोगे? अरे कहीं से घर वाली ले आओ.’’

‘‘भाभी, घरवाली मिलती तो जरूर ले आता. जब तक कोई नहीं मिल रही, फिल्में देख कर ही संतोष करना पड़ रहा है.’’ रामेंद्र ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जब तक घरवाली नहीं मिल रही, इधरउधर से व्यवस्था कर लो.’’ आरती ने रामेंद्र की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘कौन पूछता है भाभी. भूखे को कोई भोजन नहीं देता. जिस का पेट भरा रहता है, उसी को सब पूछते हैं.’’ रामेंद्र ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘कभी किसी से अपनी परेशानी कही है?’’

‘‘कोई फायदा नहीं भाभी, लोग हंसी ही उड़ाएंगे.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं, कोई तुम्हारी मदद कैसे करेगा?’’ आरती ने कहा.

‘‘आप से कहूं तो क्या आप मेरी मदद करेंगी? 4 गालियां जरूर दे देंगी.’’ रामेंद्र ने आरती के चेहरे पर नजरें गड़ा कर कहा.

आरती ने चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान ला कर कहा, ‘‘एक बार कह कर तो देखो. अरे मैं तुम्हारी पड़ोसन हूं. पड़ोसी पड़ोसी की मदद नहीं करेगा तो क्या दूर वाला मदद करने आएगा.’’

अब इस से ज्यादा आरती क्या कहती. रामेंद्र भी बेवकूफ नहीं था. वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस समय न विजयशंकर घर में था और न बच्चे. रामेंद्र आरती के घर में घुस गया. उस के बाद निकला तो बहुत खुश था. पत्नी की मौत के कई सालों बाद उस दिन उसे स्त्रीसुख मिला था.

दूसरी ओर आरती भी खुश थी. रामेंद्र ने उसे पूरी तरह खुश कर दिया था. एक बार दूरी मिटी तो सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. दोनों अगलबगल रहते थे, इसलिए उन्हें मिलने में परेशानी भी नहीं होती थी.

आरती और रामेंद्र के बीच अवैध संबंध बने तो उन के बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया. अब आरती उस का खयाल भी खूब रखने लगी, इसलिए आसपड़ोस वालों को संदेह होने लगा तो लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे. नतीता यह निकला कि इस बात की जानकारी विजयशंकर को भी हो गई.

विजयशंकर को पत्नी पर पूरा विश्वास था, इसलिए उस ने चर्चा पर विश्वास न कर के खुद सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया. वह जानता था कि अगर वह इस बारे में पत्नी से पूछेगा तो वह सच्चाई बताएगी नहीं, बल्कि उस के पूछने से होशियार हो जाएगी. सच्चाई का पता लगाने के लिए वह बाहर जाने के बहाने घर से निकलता और छिप कर पत्नी तथा रामेंद्र पर नजर रखता.

उस की इस मेहनत का उसे जल्दी ही फल मिल गया. एक दिन दोपहर को उस ने आरती और रामेंद्र को रंगेहाथों पकड़ लिया. गुस्से में आरती को वह लातघूंसों से पीटने लगा. आरती के पास सफाई देने को कुछ नहीं था, इसलिए वह गलती के लिए माफी मांगते हुए भविष्य में फ

अपहरण का ऊंचा खेल

डा. श्रीकांत गौड़ पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार स्थित मैट्रो अस्पताल में नौकरी करते थे. 6 जुलाई, 2017 को वह ड्यूटी पूरी कर प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन पर पहुंचे. वहीं से मैट्रो पकड़ कर वह दक्षिणी दिल्ली के गौतमनगर स्थित अपने घर जाते थे. लेकिन उस दिन रात के साढ़े 11 बज चुके थे और आखिरी मैट्रो ट्रेन भी जा चुकी थी. अब घर जाने के लिए औटोरिक्शा या टैक्सी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने टैक्सी से जाना उचित समझा.

उन्होंने गौतमनगर जाने के लिए फोन से ओला कैब बुक की तो कुछ ही देर में ओला कैब प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास आ कर खड़ी हो गई. कैब में बैठ कर डा. श्रीकांत ने अपने साथ काम करने वाले डा. राकेश कुमार को फोन कर के बता दिया कि वह ओला कैब से अपने घर जा रहे हैं. डा. राकेश ही उन्हें अपनी कार से प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन छोड़ कर गए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को डा. श्रीकांत गौड़ अपनी ड्यूटी नहीं पहुंचे तो डा. राकेश ने उन्हें फोन किया. उन का फोन स्विच्ड औफ था. दिन में उन का फोन कभी बंद नहीं रहता था. श्रीकांत को हैल्थ प्रौब्लम या कोई काम होता तो वह अस्पताल में फोन कर देते. लेकिन उस दिन उन का अस्पताल में कोई फोन भी नहीं आया था. डा. राकेश ने उन्हें कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

डा. राकेश को डा. श्रीकांत की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से फोन किया. इस बार उन के फोन पर घंटी बजी तो फोन रिसीव होते ही राकेश ने कहा, ‘‘श्रीकांत भाई, कहां हो, फोन भी बंद कर रखा है. मैं कब से परेशान हो रहा हूं.’’

दूसरी ओर से जो आवाज आई, उसे सुन कर वह चौंके. आवाज उन के दोस्त श्रीकांत के बजाय किसी और की थी. उस ने उन से सीधे बात करने के बजाय गालियों की बौछार कर दी. राकेश ने उस से पूछना चाहा कि कौन बोल रहे हैं और इस तरह बात क्यों कर रहे हैं तो उस ने फोन काट दिया.

उस आदमी की टपोरी जैसी बातों से डा. राकेश को लगा कि श्रीकांत कहीं गलत लोगों के चंगुल में तो नहीं फंस गए हैं? उन्होंने यह बात अपने साथियों को बताई तो उन्हें भी लगा कि डा. श्रीकांत किसी मुसीबत में फंस गए हैं. उन सब की सलाह पर डा. राकेश ने थाना प्रीत विहार जा कर थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को सारी बात बताई तो थानाप्रभारी ने 29 वर्षीय डा. श्रीकांत गौड़ की गुमशुदगी दर्ज कर इस की जांच एएसआई तेजवीर सिंह को सौंप दी.

एएसआई तेजवीर सिंह ने इस मामले में वह सारी काररवाई की, जो गुमशुदगी के मामले में की जाती है. 7 जुलाई को ओला कैब के कस्टमर केयर पर सुबह 4 बजे के करीब किसी ने फोन कर के कहा, ‘‘मैं ने आप के एक कस्टमर का अपहरण कर लिया है, आप अपने मालिक से बात कराइए.’’

कस्टमर केयर की जिस युवती ने काल रिसीव की थी, एक बार तो वह असमंजस में पड़ गई कि पता नहीं यह कौन है, जो सुबहसुबह इस तरह की बात कर रहा है. उस ने सोचा कि फोन करने वाला नशे में होगा, जो इस तरह की बात कर रहा है. इसलिए उस ने भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.

उसी दिन ओला के कस्टमर केयर सैंटर पर उसी व्यक्ति ने एक बार फिर फोन किया, ‘‘मैडम, मैं ओला कैब का ड्राइवर रामवीर बोल रहा हूं. मेरी कैब नंबर डीएल 1आर टीसी 1611 कंपनी में लगी हुई. यह कैब कल रात दिल्ली के डाक्टर ने प्रीत विहार से गौतम नगर के लिए बुक की थी. मैं ने इन का अपहरण कर लिया है. आप का कस्टमर अब मेरे कब्जे में है, अगर इस की सुरक्षित रिहाई चाहती हैं तो मुझे 5 करोड़ रुपए चाहिए.’’

उस व्यक्ति ने अपनी कैब का जो नंबर बताया था, कस्टमर केयर सैंटर कर्मी ने जब उसे चैक किया तो वास्तव में कैब रामवीर कुमार के नाम से ओला कंपनी में लगी थी. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने यह जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी. इस के बाद खबर कंपनी की लीगल सेल को दे दी गई. लीगल सेल ने जांच की तो पाया कि 6 जुलाई की रात 11 बज कर 38 मिनट पर रामवीर की कैब डा. श्रीकांत को प्रीत विहार से ले कर चली तो थी, पर डिफेंस एनक्लेव, स्वास्थ्य विहार के पास से उस का जीपीएस डिसकनेक्ट हो गया था.

रामवीर ने कंपनी में अपना मोबाइल नंबर लिखवा रखा था. लीगल सेल के अधिकारियों ने उस का वह नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. उस ने कस्टमर केयर सैंटर में जिस नंबर से बात की थी, वह डा. श्रीकांत का था. उन्होंने अपने उसी नंबर से कैब बुक कराई थी. मामला गंभीर था, इसलिए लीगल सेल द्वारा यह जानकारी थाना प्रीत विहार पुलिस को दे दी गई.

थाने में डा. राकेश ने श्रीकांत की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. ओला कंपनी के अधिकारियों से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी मनिंदर सिंह ने डा. श्रीकांत की गुमशुदगी लिखवाने वाले उन के दोस्त डा. राकेश को थाने बुला लिया. अपने दोस्त के अपहरण की जानकारी पा कर वह सन्न रह गए. पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और सूचना डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई को दे दी.

डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस केस को खुलासे के लिए एसीपी हेमंत तिवारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी मनिंदर सिंह, इंसपेक्टर रूपेश खत्री के अलावा थाने के कई एसआई, हैडकांस्टेबल और कांस्टेबलों को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले यह पता लगाया कि फिरौती के लिए फोन किन जगहों से किए गए थे? उन की लोकेशन खतौली और मेरठ की मिल रही थी. 2 पुलिस टीमें इन जगहों पर भेज दी गईं. फोन डा. श्रीकांत गौड़ के मोबाइल से किए गए थे और फोन करने के बाद मोबाइल बंद कर दिया जाता था. इसलिए वह मोबाइल फोन कहां है, इस का पता लगाना आसान नहीं था.

रामवीर नाम के जिस ड्राइवर ने डा. श्रीकांत का अपहरण किया था, पता चला कि उस की कैब 2 दिन पहले ही ओला कंपनी में लगी थी और डा. श्रीकांत गौड़ उस की पहली सवारी थे. पुलिस ने ओला कंपनी से उस कैब के सभी कागजात निकलवा कर उन की जांच की. वह वैगनआर कार नंबर डीएल 1 आर टीसी 1611 उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग की रहने वाली विनीता देवी के नाम से खरीदी गई थी.

पुलिस शालीमार बाग के उस पते पर पहुंची तो पता चला कि वहां इस नाम की कोई महिला नहीं रहती थी. यानी कार की मालिक का नामपता फरजी था. कंपनी में विनीता के नाम का पैन कार्ड और महाराष्ट्रा बैंक, इंदिरापुरम (गाजियाबाद) में खुले खाते की पासबुक की फोटोकौपी और चैक भी जमा किए गए थे.

विनीता का पैन कार्ड फरजी पाया गया. बैंक से संपर्क किया गया तो पता चला कि विनीता के नाम से वहां बचत खाता तो था, पर वह कोई दूसरी विनीता थी. उस के पिता का नाम भी दूसरा था. खाताधारी असली विनीता अनपढ़ थी, इसलिए उस के नाम से चैकबुक भी जारी नहीं हुई थी. यानी पहले से ही योजना बना कर सब कुछ फरजी तरीके से किया गया था.

ड्राइवर रामवीर ने अपने जो डाक्यूमेंट्स जमा किए थे, पुलिस ने उन की जांच की. उस के आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस पर मयूर विहार का पता लिखा था. वे दोनों भी फरजी पाए गए.

कागजों में जो फोटो लगे थे, बीट कांस्टेबल उन्हें ले कर मयूर विहार में घूमते रहे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इतना ही नहीं, गाड़ी का परमिट, फिटनेस सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सारी चीजें फरजी पाई गईं. ड्राइवर रामवीर ने कंपनी को अपना जो फोन नंबर दिया था, पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि वह नंबर भी हाल ही में लिया गया था और उस से उस ने 1-2 लोगों से ही बात की थी. जिन लोगों से उस ने बात की थी, उन से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वे रामवीर को नहीं जानते. न ही उस से कभी उन की मुलाकात हुई. वहां से भी पुलिस खाली हाथ लौट आई.

इतनी माथापच्ची के बाद पुलिस की जांच जहां से शुरू हुई थी, वहीं रुक गई. कागजों की जांच के बाद पुलिस इतना तो जान गई कि अपहर्त्ता बेहद शातिर हैं, उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है.

उधर अपहर्त्ता ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर में बारबार फोन कर के फिरौती की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने डा. श्रीकांत की 3 वीडियो भी ओला कंपनी में भेज दीं, जिन में वह खुद को छुड़ाने की विनती कर रहे थे. अपनी साख को देखते हुए ओला कंपनी के अधिकारियों ने फैसला ले लिया कि वह अपने कस्टमर को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए 5 करोड़ रुपए दे देंगे.

जबकि पुलिस इस बात को ले कर परेशान थी कि अपहर्त्ता कहीं डा. श्रीकांत को नुकसान न पहुंचा दें, इसलिए पुलिस ने ओला कंपनी के अधिकारियों से कह दिया कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए, वह उन से प्यार से बातें करें.

मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस मामले में एसीपी अंकित सिंह, राहुल अलवल, इंसपेक्टर संजीव वर्मा, डी.पी. सिंह, विदेश सिंघल, प्रशांत यादव, अजय कुमार डंगवाल, मनीष जोशी और कुछ तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को भी लगा दिया.

एडिशनल डीसीपी साथिया सुंदरम और एन. के. मीणा टीम का नेतृत्व कर रहे थे. डीसीपी के निर्देश पर समस्त पुलिस अधिकारी अलगअलग तरीके से अपहर्त्ताओं का पता लगाने में जुट गए.

पुलिस को यह तक पता नहीं लग पा रहा था कि अपहर्त्ताओं ने डा. श्रीकांत को कहां बंधक बना कर रखा है. क्योंकि वे कभी मुरादनगर से फोन कर रहे थे तो कभी मेरठ से. उन की मूवमेंट हरिद्वार और मुजफ्फरनगर की भी पाई गई. बागपत, बड़ौत, बिजनौर, खतौली आदि जगहों से भी उन्होंने फोन किया था. लिहाजा इन सभी जगहों पर दिल्ली पुलिस की टीमें पहुंच गईं.

डा. श्रीकांत का अपहरण हुए कई दिन हो चुके थे. तेलंगाना में डा. गौड़ के घर वालों को भी अपहर्त्ताओं ने उन के वीडियो भेज दिए थे. उन के रिश्तेदार और परिवार वाले भी दिल्ली पहुंच गए थे. मैट्रो अस्पताल के डाक्टरों के साथ वे भी थाना प्रीत विहार पहुंच गए थे.

डीसीपी मामले की अपडेट पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को दे रहे थे. अपहर्त्ताओं की काल डिटेल्स आदि से यही लग रहा था कि बदमाश मेरठ रेंज में ही कहीं हैं, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने मेरठ रेंज के आईजी से बात की. आईजी ने डाक्टर को रिहा कराने में हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया. उन्होंने मेरठ की एसएसपी मंजिल सैनी और एसटीएफ के एसपी आलोक प्रियदर्शी को दिल्ली पुलिस की मदद के लिए लगा दिया.

पुलिस कमिश्नर के आदेश पर स्पैशल सेल के इंसपेक्टर भूषण, उत्तरपूर्वी दिल्ली के वाहन चोर निरोधी दस्ते के इंसपेक्टर विनय यादव, ऐशवीर सिंह, शाहदरा क्षेत्र के एसीपी मनोज पंत भी अपनीअपनी टीम के साथ इस मामले की जांच में लग गए थे. करीब 100 पुलिसकर्मियों की अलगअलग टीमें केस को सुलझाने में लग गईं.

जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण किया गया था, उस की फोटो गाड़ी के पेपरों के साथ ओला कंपनी के औफिस में जमा थी. उस फोटो को ध्यान से देखा गया तो उस पर तान्या मोटर्स, मेरठ का स्टीकर लगा था.

पुलिस की एक टीम मेरठ स्थित मारुति के डीलर तान्या मोटर्स पर पहुंची. स्टीकर देख कर यही लग रहा था कि वह वैगनआर उसी शोरूम से खरीदी गई होगी. पुलिस टीम ने उस शोरूम से पता किया कि पिछले एकडेढ़ साल में सफेद रंग की कितनी वैगनआर बेची गईं. पता चला कि करीब 700 कारें सफेद रंग की बेची गई थीं. पुलिस ने उन सभी कारों के रजिस्ट्रेशन नंबर हसिल कर लिए. इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण हुआ था, उस पर फरजी नंबर लगा था. पुलिस को तान्या मोटर्स से जिन सफेद रंग की वैगनआर कारों की डिटेल्स मिली थी, उन में से यह पता लगाना आसान नहीं था कि उन में अपहर्त्ता की कार थी या नहीं?

पुलिस टीम ने सफेद रंग की सभी कारों की लिस्ट ओला कंपनी को देते हुए यह जानकारी मांगी कि पिछले 2 सालों के अंदर इन कारों में से कोई कार ओला में कैब के रूप में लगी थी या नहीं, साथ ही यह भी जानकारी निकलवाई कि इन 700 कारों में से किसी कार को किसी भी वजह से ओला कंपनी से हटाया तो नहीं गया था.

ओला अधिकारियों ने सभी 700 नंबरों को वेरिफाई किया. इस से पता चला कि 12 मार्च, 2017 को एक ड्राइवर सुशील को कस्टमर्स के साथ अभद्र व्यवहार करने, कंपनी के हिसाब में हेराफेरी करने जैसी शिकायतों के चलते कार सहित ओला से हटाया गया था.

पुलिस ने सुशील कुमार का पता मालूम किया तो जानकारी मिली कि वह खतौली मेरठ रोड पर स्थित गांव दादरी का रहने वाला था. एक पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. पुलिस को जानकारी मिली कि वह वसुंधरा में रहता है. दिल्ली पुलिस की एक टीम तुरंत वसुंधरा में उस का पता लगाने पहुंच गई.

पर वह वहां भी नहीं मिला. मुखबिर द्वारा सुशील के छोटे भाई अनुज का फोन नंबर मिल गया. अब तक दिल्ली पुलिस की टीमें खतौली, हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मीरापुर, बिजनौर, बागपत, बड़ौत आदि जगहों पर पहुंच चुकी थीं. हापुड़ में सुशील की ससुराल थी तो एक टीम हापुड़ में भी तैनात हो गई. पुलिस ने सुशील के भाई अनुज का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस उस के औन होने का इंतजार कर रही थी.

अपहर्त्ता अभी भी ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर पर फोन कर के 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे थे. ओला कंपनी के कारपोरेट प्रेसीडेंट जौय बांदेकर ने 5 करोड़ रुपए पुलिस को दे कर अपने कस्टमर को छुड़ाने की मांग की. अपहर्त्ता वाट्सऐप के अलावा एसएमएस भी कर रहे थे. उन्होंने 5 करोड़ रुपयों के फोटो वाट्सऐप से भेजने को कहा तो पुलिस ने 500-500 रुपए के नोटों के बंडलों की फोटो खींच कर उन्हें भेज दी.

अपहर्त्ताओं ने कहा कि वे यह चिल्लर नहीं लेंगे. उन्होंने 2-2 हजार के नोटों की मांग की. ओला कंपनी के पास उस समय 2-2 हजार के इतने नोट नहीं थे, लिहाजा उन्होंने किसी तरह उन की व्यवस्था की.

15 जुलाई को अपहर्त्ताओं ने कहा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बताएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि रकम मिल जाने के 4-5 घंटे बाद डाक्टर को छोड़ दिया जाएगा. ओला कंपनी के अधिकारी ने इतनी देर बाद रिहा करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि फिरौती की रकम को पहले गिनेंगे. इस पर ओला के अधिकरी ने कहा कि भले ही आप डाक्टर को 4 घंटे बाद छोड़ें, पर जब हम रकम पूरी दे रहे हैं तो हमें डाक्टर सुरक्षित चाहिए.

‘‘पैसे पूरे हुए तो डाक्टर भी सुरक्षित मिलेगा.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

इस फोन की लोकेशन बागपत के पास की ही थी. पुलिस आयुक्त के निर्देश पर पूर्वी जिले के डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई टीम के साथ बागपत पहुंच गए. डाक्टर की जान को कोई खतरा न हो, इस के लिए पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी.

16 जुलाई को दोपहर के समय अनुज का फोन औन हुआ तो उस की लोकेशन खतौली की मिली. दिल्ली पुलिस की सूचना पर वहां की लोकल पुलिस और एसटीएफ भी वहां पहुंच गई. तभी दौराला के पास वैगनआर कार दिखाई दी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह कार को दौड़ाते हुए सकौती बाजार की तरफ ले गया.

सादे कपड़ों में पुलिस प्राइवेट गाडि़यों में थी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह तेजी से रेलवे फाटक पार कर गई, जबकि पुलिस भीड़ में फंस गई. रास्ते में कई लोगों को टक्कर लगतेलगते बची. इसी बीच पीरपुर गांव के पास वैगनआर का टायर पंक्चर हो गया तो चालक कार को वहीं छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया.

कुछ ही देर में वहां भारी तादाद में पीएसी पहुंच गई. पुलिस ने कई घंटे तक वहां कौंबिंग की, लेकिन कार का ड्राइवर पुलिस के हाथ नहीं लगा. पुलिस ने वह कार बरामद कर ली. उस समय उस पर वही नंबर लिखा था, जो ओला के कागजों में दर्ज था. इस के बाद पुलिस ने सुशील के घर वालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाया.

16 जुलाई की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि सुशील का एक साथी है प्रमोद, जो मुजफ्फरनगर के मीरापुर गांव में रहता है. उस के पास दिल्ली के नंबर की एक अल्टो कार है. किसी तरह प्रमोद को भनक लग गई थी कि दिल्ली पुलिस इलाके में डेरा डाले हुए है. इसलिए पुलिस के मीरापुर पहुंचने से पहले ही वह घर से फरार हो गया.

17 जुलाई को पुलिस को सुशील के साथी गौरव के बारे में जानकारी मिली, जो मेरठ शहर में सुभारती अस्पताल के पास रहता है. करीब 2 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस ने उस का कमरा ढूंढ लिया. पर वह भी कमरे पर नहीं मिला. लोगों ने बताया कि वह यहां किराए पर रहता था और 2 दिन पहले जा चुका है.

दिल्ली पुलिस की टीमें वहां डेरा जमाए हुए थीं. 19 जुलाई को मुखबिर से पता चला कि प्रमोद मीरापुर के रहने वाले अमित के साथ 3-4 दिनों से घूम रहा है. किसी तरह से अमित पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने जब उस से डा. श्रीकांत के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि डाक्टर अभी ठीक है. प्रमोद ही डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रख रहा है. इस समय वह परतापुर के शताब्दीनगर में है.

पुलिस उसे ले कर शताब्दीनगर पहुंची तो पता चला कि वे सोहनवीर के मकान में हैं. पुलिस ने उस घर को चारों ओर से घेर लिया. भारी संख्या में हथियारबंद पुलिस को देख कर इलाके के लोग हैरान रह गए. पुलिस ने लोगों को हिदायत दी कि काररवाई चलने तक कोई भी अपने घर से बाहर न निकले.

इस के बाद पुलिस ने औपरेशन डाक्टर शुरू किया. सोहनवीर के घर में मौजूद बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. काफी देर तक दोनों ओर से फायरिंग होती रही.

पुलिस की गोली से प्रमोद घायल हो गया. किसी तरह पुलिस उस मकान में घुस गई, जहां डा. श्रीकांत को बंधक बना कर रखा गया था. पुलिस ने डाक्टर को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. मौके से पुलिस ने नेपाल, विवेक उर्फ मोदी और प्रमोद को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोद ने कांवडि़यों जैसे कपड़े पहन रखे थे. पुलिस ने उसे पास के अस्पताल में भरती करा दिया. मकान मालिक सोहनवीर को भी हिरासत में ले लिया गया.

डा. गौड़ की सुरक्षित बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली. डाक्टर के घर वालों और मैट्रो अस्पताल में डा. श्रीकांत गौड़ के सुरक्षित रिहा कराने की जानकारी मिली तो सभी खुश हुए. गिरफ्तार बदमाशों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि किडनैपिंग की पूरी वारदात को सुशील, उस के भाई अनुज, गौरव पंडित और विवेक उर्फ मोदी ने अंजाम दिया था. सुशील और अनुज दादरी के रहने वाले थे, जबकि अन्य सभी दौराला के.

पुलिस ने डाक्टर को तो सुरक्षित बरामद कर लिया था, लेकिन योजना को अंजाम देने वाले मुख्य अभियुक्तों सुशील और अनुज का गिरफ्तार होना जरूरी था. पुलिस टीमें इन दोनों अभियुक्तों की तलाश में जुट गईं, पर उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. तब दिल्ली पुलिस ने इन दोनों भाइयों की गिरफ्तारी पर 50-50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

दिल्ली पुलिस मुख्य अभियुक्तों को तलाश रही थी तो मेरठ पुलिस भी इन्हें तत्परता से खोज रही थी. इस में सफलता मिली मेरठ की एसटीएफ को. एक सूचना के आधार पर एसटीएफ ने 4 अगस्त, 2017 को सुशील और अनुज को मेरठ में एक मुठभेड़ के बाद नगली गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया. प्रीत विहार के थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को जब उन की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह 10 अगस्त को पूछताछ के लिए उन्हें दिल्ली ले आए.

दिल्ली पुलिस ने सुशील और अनुज से पूछताछ की तो उन्होंने डा. श्रीकांत के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुशील कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के दौराला थाने के दादरी गांव के रहने वाले सतबीर का बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. किसी दोस्त ने उसे बताया कि ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में गाड़ी लगा देने पर महीने में अच्छीखासी कमाई हो जाती है. दोस्त की सलाह उसे पसंद आ गई. उस ने मेरठ की तान्या मोटर्स से एक वैगनआर कार खरीदी और ओला कंपनी में कैब के रूप में लगा दी.

यह सन 2014 की बात है. दिल्ली से रोजाना गांव जाना आसान नहीं था, इसलिए वह वसुंधरा में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. ओला कंपनी से सुशील को हर महीने अच्छी कमाई होने लगी तो उस ने अपने छोटे भाई अनुज के नाम से भी एक और कार ओला में लगवा दी. दोनों भाई वहां काम कर के खुश थे.

कंपनी ने ड्राइवरों को प्रोत्साहन देने के लिए बोनस देने की योजना चला रखी थी. यह बोनस निर्धारित राइड से ज्यादा राइड पर था.  इसलिए दोनों भाई ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने की कोशिश करते. इसी दौरान सुशील के दिमाग में लालच आ गया. उस ने फरजी आईडी पर रोजाना 20 बुकिंग करनी शुरू कर दीं. इस से उसे रोजाना 20 हजार रुपए की आमदनी होने लगी.

सुशील मोटी कमाई करने लगा तो उसे घमंड भी गया, जिस से वह ग्राहकों से भी दुर्व्यवहार करने लगा. ये शिकायतें ओला कंपनी तक पहुंची तो उन्होंने जांच कराई. जांच में फरजी आईडी पर बुकिंग करने की बात सामने आ गई.

इस के बाद उस की दोनों गाडि़यां ओला कंपनी से हटा दी गईं. ओला कंपनी से गाडि़यां हटने के बाद दोनों को बहुत बड़ा झटका लगा. उन्होंने तय कर लिया कि वे ओला कंपनी को सबक सिखाएंगे.

दोनों भाई दबंग प्रवृत्ति के तो थे ही, बताया जाता है कि उन्होंने सन 2011 में नोएडा के एक बिजनैसमैन का अपहरण कर के उस के घर वालों से 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. फिरौती के 5 करोड़ तो नहीं मिले थे, पर एक करोड़ रुपए में बात फाइनल हो गई थी और रुपए ले कर ही उसे छोड़ा था.

एक बार उन्होंने अखबार में एक खबर पढ़ी थी, ‘दुष्कर्म पीडि़ता ने ऊबर पर ठोका केस’. यह खबर पढ़ने के बाद सुशील के दिमाग में आइडिया आया कि अगर ओला के किसी कस्टमर का अपहरण कर लिया जाए तो उस की फिरौती ओला से मांगी जा सकती है. क्योंकि सवारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की हो जाती है. ओला को सबक सिखाने का यह तरीका सुशील को पसंद आया. यह 5 महीने पहले की बात है.

इस के बाद सुशील अपने भाई अनुज के साथ योजना बनाने लगा. चूंकि उन की गाडि़यां ओला से निकाली जा चुकी थीं, इसलिए गाडि़यां उन के नाम से फिर से कंपनी में नहीं लग सकती थीं. यह काम फरजी कागजों द्वारा ही संभव था. एक दिन सुशील को इंदिरापुरम इलाके में महाराष्ट्रा बैंक की एक पासबुक सड़क किनारे मिल गई. वह विनीता देवी की थी. अब सुशील ने अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए.

उस ने विनीता के नाम से अपनी वैगनआर कार के फरजी कागज बनवा लिए, जिस में उस ने गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर भी बदल दिया. विनीता के नाम से एक पैन कार्ड और आधार कार्ड भी बनवा लिया. गाड़ी के कागजों के साथ ड्राइवर के कागज भी ओला कंपनी में जमा होने थे.

लिहाजा रामवीर के नाम एक फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, आधार कार्ड आदि बनवा लिया. इतना ही नहीं, उस ने एक निजी कंपनी के नाम से गाड़ी के इंश्योरेंस के कागज भी तैयार करा लिए. जिस तरह से फरजी कागज तैयार हुए, उसी तरह से गाड़ी के फिटनेस पेपर भी तैयार हो गए.

सारे कागज तैयार करा कर वसुंधरा में ओला के एक वेंडर को 1500 रुपए दे कर वे फरजी कागज वैरिफाई करा लिए. इस तरह 4 जुलाई, 2017 को वह अपनी कार ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में लगाने में सफल हो गया. दोनों भाइयों ने पहले ही तय कर रखा था कि जो भी पहली अकेली सवारी उन की गाड़ी में बैठगी, वह उसी का अपहरण कर ओला कंपनी से 5 करोड़ की फिरौती मांगेंगे.

सवारी को किडनैप कर के कहां ले जाना है, यह योजना उस ने मेरठ के रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद कुमार, मुजफ्फरनगर के गांव खादी के अमित कुमार, सहारनपुर के गांव शब्बीरपुर के नेपाल उर्फ गोवर्द्धन, विवेक उर्फ मोदी और गौरव के साथ मिल कर पहले ही बना ली थी.

अब उन्हें पहली सवारी या कहिए शिकार का इंतजार था. इत्तफाक से 4 जुलाई को सुशील को बुकिंग मिल गई. सुशील ने कस्टमर से पूछा कि कितनी सवारी हैं. जब कस्टमर ने बताया कि 3 सवारियां हैं तो उस ने बहाना बना कर जाने से मना कर दिया.

5 जुलाई को उसे कोई बुकिंग नहीं मिली. फिर 6 जुलाई को उसे डा. श्रीकांत गौड़ की बुकिंग मिली. सुशील ने डा. गौड़ से पूछा कि साथ में कितनी सवारियां हैं. जब पता चला कि वह अकेले हैं तो सुशील ने अपने साथियों को अलर्ट कर दिया.

डा. गौड़ को प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास से ले कर चलने के बाद कुछ दूरी चलने पर उस ने गाड़ी में लगा जीपीएस डिसकनेक्ट कर दिया. वह लक्ष्मीनगर की ओर बढ़ा. आगे सैंट्रो कार मिली, जिस में उस का भाई अनुज अपने साथियों गौरव और विवेक उर्फ मोदी के साथ बैठा था.

सैंट्रो कार के पास सुशील ने कैब रोक दी. उस में से अनुज और गौरव उतर कर सुशील की कैब में बैठ गए.

डा. गौड़ ने पूछा कि ये लोग कौन हैं और इन्हें गाड़ी में क्यों बिठाया तो उन बदमाशों ने उन्हें डराधमका कर चुप रहने को कहा. उन का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर उन्हें नशे का इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद वे डाक्टर को वसुंधरा ले गए, जहां उन्होंने सैंट्रो कार छोड़ दी. इस के बाद वे डाक्टर को दौराला ले गए.

सुबह 4 बजे के करीब सुशील ने ओला कंपनी के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर के कस्टमर डा. श्रीकांत का अपहरण करने की सूचना दे दी. इस के बाद सुशील का साथी प्रमोद अपहृत डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रखने की व्यवस्था करता रहा. एक जगह पर उन्हें केवल 2-3 दिन ही रखा जाता था. प्रमोद कांवडि़यों की तरह गेरुए रंग के कपड़े पहने रहता था, ताकि उस पर कोई शक न करे.

सुशील अलगअलग जगहों पर जा कर डाक्टर के घर वालों और ओला कंपनी में फोन कर के फिरौती की 5 करोड़ की रकम की डिमांड करता रहा. इतना ही नहीं, डाक्टर के 3 वीडियो भी बना कर भेजे. सुशील ने ओला कंपनी के अधिकारियों को इतना डरा दिया था कि वे 5 करोड़ रुपए देने को तैयार हो गए थे.

सादे कपड़ों में दिल्ली पुलिस 5 करोड़ रुपए ले कर बागपत के पास पहुंची भी थी. पैसे लेने अनुज वैगनआर कार से आया भी था, पर पुलिस की शंका होने पर वह कार छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया. इस के बाद सुशील को जब पता चला कि उस के कुछ साथी पकड़े जा चुके हैं तो वह खुद अंडरग्राउंड हो गया.

पुलिस ने सुशील और अनुज की पत्नी सहित परिवार के अन्य लोगों को हिरासत में लिया तो वे परेशान हो गए. बाद में मुखबिर की सूचना पर मेरठ के नगली गेट इलाके से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सुशील और अनुज से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अब मामले की जांच इंसपेक्टर रूपेश खत्री कर रहे हैं.

पिता का हत्यारा बेटा

15 जून, 2017 की रात 10 बजे रिटायर्ड एएसआई मदनलाल   अपने घर वालों से यह कह कर मोटरसाइकिल ले निकले थे कि दरवाजा बंद कर लें, वह थोड़ी देर में वापस आ रहे हैं. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. उन के वापस न आने से घर वालों को चिंता हुई. 65 वर्षीय मदनलाल पंजाब के जिला होशियारपुर राज्यमार्ग पर शामचौरासी-पंडोरी लिंक रोड पर स्थित थाना बुल्लेवाल के गांव लंबेकाने के रहने वाले थे.

मदनलाल सीआईएसएफ से लगभग 5 साल पहले रिटायर हुए थे. उन्हें पेंशन के रूप में एक मोटी रकम तो मिलती ही थी, इस के अलावा उन के 3 बेटे विदेश में रह कर कमा रहे थे. इसलिए उन की गिनती गांव के संपन्न लोगों में होती थी. उन के पास खेती की भी 8 किल्ला जमीन थी.

मदनलाल के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 3 बेटे दीपक सिंह उर्फ राजू, प्रिंसपाल सिंह, संदीप सिंह और एक बेटी थी, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. दीपक और प्रिंसपाल कुवैत में रहते थे, जबकि संदीप ग्रीस में रहता था. उन के चारों बच्चों में से अभी एक की भी शादी नहीं हुई थी. बेटे कमा ही रहे थे, इसलिए मदनलाल को अब जरा भी चिंता नहीं थी.

मदनलाल सुबह जल्दी और रात में अपने खेतों का चक्कर जरूर लगाते थे. उस दिन भी 10 बजे वह अपने खेतों का चक्कर लगाने गए थे, लेकिन लौट कर नहीं आए थे. उन का बेटा दीपक एक सप्ताह पहले ही 8 जून को एक महीने की छुट्टी ले कर घर आया था.

सुबह जब दीपक को पिता के रात को घर न लौटने की जानकारी हुई तो वह मां निर्मल कौर के साथ उन की तलाश में खेतों पर पहुंचा. दरअसल उन्हें चिंता इस बात की थी कि रात में पिता कहीं मोटरसाइकिल से गिर न गए हों और उठ न पाने की वजह से वहीं पड़े हों.

खेतों पर काम करने वाले मजदूरों ने जब बताया कि वह रात को खेतों पर आए ही नहीं थे तो मांबेटे परेशान हो गए. वे सोचने लगे कि अगर मदनलाल खेतों पर नहीं गए तो फिर गए कहां  निर्मल कौर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं. दीपक ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मां, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि वह अपनी मरजी के मालिक हैं. हो सकता है, किसी दोस्त के यहां या फिर बगल वाले गांव में चाचाजी के यहां चले गए हों ’’

crime

जबकि सच्चाई यह थी कि दीपक खुद भी पिता के लिए परेशान था. जब खेतों पर मदनलाल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वह मां के साथ घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे बगल के गांव में रहने वाले चाचा ओंकार सिंह और हरदीप मिल गए. उन के मिलने से पता चला कि मदनलाल उन के यहां भी नहीं गए थे. सभी मदनलाल के बारे में पता करते हुए शामचौरासी-पंडोरी फांगुडि़या लिंक रोड के पास पहुंचे तो वहां उन्होंने एक जगह भीड़ लगी देखी. सभी सोच रहे थे कि आखिर वहां क्यों लगी है, तभी किसी ने आ कर बताया कि वहां सड़क पर मदनलाल की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही सभी भाग कर वहां पहुंचे. सचमुच वहां खून से लथपथ मदनलाल की लाश पड़ी थी. लाश देख कर सभी सन्न रह गए. मदनलाल के सिर, गरदन, दोनों टांगों और बाजू पर तेजधार हथियार के गहरे घाव थे.

इस घटना की सूचना तुरंत थाना बुल्लेवाल पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. भीड़ को किनारे कर के उन्होंने लाश का मुआयना किया. इस के बाद अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर क्राइम टीम और एंबुलेंस बुलवा ली. उन्हीं की सूचना पर डीएसपी स्पैशल ब्रांच हरजिंदर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे.

मामला एक रिटायर एएसआई की हत्या का था, इसलिए एसपी अमरीक सिंह भी आ पहुंचे थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर दिशानिर्देश दे कर पुलिस अधिकारी चले गए. मृतक मदनलाल का परिवार मौके पर मौजूद था, इसलिए सुखविंदर सिंह ने उन की पत्नी निर्मल कौर और बेटे दीपक से पूछताछ की. इस के बाद निर्मल कौर के बयान के आधार पर मदनलाल की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 80/2017 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक मदनलाल की पत्नी और बेटे दीपक ने शुरुआती पूछताछ में जो बताया था, उस से हत्यारों तक बिलकुल नहीं पहुंचा जा सकता था. पूछताछ में पता चला था कि मदनलाल की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. गांव वाले उन का काफी सम्मान करते थे. इस की वजह यह थी कि वह हर किसी की परेशानी में खड़े रहते थे. अब तक मिली जानकारी में पुलिस को कोई ऐसी वजह नजर नहीं आ रही थी कि कोई उन की हत्या करता.

इस मामले में लूट की भी कोई संभावना नहीं थी. वह घर में पहनने वाले कपड़ों में थे और मोटरसाइकिल भी लाश के पास ही पड़ी मिली थी. गांव वालों से भी पूछताछ में सुखविंदर सिंह के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. घर वालों ने जो बता दिया था, उस से अधिक कुछ बताने को तैयार नहीं थे.

चूंकि यह एक पुलिस वाले की हत्या का मामला था, इसलिए इस मामले पर एसएसपी हरचरण सिंह की भी नजर थी. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब कोई नतीजा सामने नहीं आया तो उन्होंने डीएसपी हरजिंदर सिंह के नेतृत्व में एक स्पैशल टीम का गठन कर दिया, जिस में थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह के अलावा सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह को भी शामिल किया था.

टीम ने नए एंगल से जांच शुरू की. सुखविंदर सिंह ने अपने मुखबिरों को मदनलाल के घरपरिवार के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था. इस के अलावा मदनलाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तलवार जैसे किसी हथियार से गले पर लगे घाव की वजह से सांस नली कट गई थी, जिस से उन की मौत हो गई थी. इस के अलावा शरीर पर 8 अन्य गंभीर घाव थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलते ही घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.

मुखबिरों से सुखविंदर सिंह को जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. मुखबिरों के बताए अनुसार, मृतक के घर में हर समय क्लेश रहता था. घरपरिवार में जैसा माहौल होना चाहिए था, मृतक के घरपरिवार में बिलकुल नहीं था. ऐसा एक भी दिन नहीं होता था, जिस दिन पतिपत्नी में मारपीट न होती रही हो. मदनलाल पत्नी ही नहीं, जवान बेटी को भी लगभग रोज मारतापीटता था.

सुखविंदर सिंह ने सारी बातें एसएसपी और एसपी को बता कर आगे के लिए दिशानिर्देश मांगे. अधिकारियों के ही निर्देश पर सुखविंदर सिंह और सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह ने गांव जा कर मृतक के घर वालों से एक बार फिर अलगअलग पूछताछ की. घर वालों ने इन बातों को झूठा बता कर ऐसेऐसे किस्से सुनाए कि पूछताछ करने गए सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह को यही लगा कि शायद मुखबिर को ही झूठी खबर मिली है.

लेकिन मदनलाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स आई तो निराश हो चुकी पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी. काल डिटेल्स के अनुसार, 15 जून की रात पौने 10 बजे मदनलाल को उन के बेटे दीपक ने फोन किया था. जबकि दीपक ने पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं बताई थी. इस का मतलब था कि घर वालों ने झूठ बोला था और वे कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

एसएसपी और एसपी से निर्देश ले कर सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह ने डीएसपी हरजिंदर सिंह की उपस्थिति में मदनलाल के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. तीनों से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई. दीपक से जब पिता को फोन करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना करते हुए कहा, ‘‘सर, आप लोगों को गलतफहमी हो रही है. उस रात मैं घर पर ही नहीं था. एक जरूरी काम से मैं होशियारपुर गया हुआ था. अगर मैं गांव में होता तो पापा को खेतों पर जाने ही न देता.’’

‘‘हम वह सब नहीं पूछ रहे हैं, जो तुम हमें बता रहे हो. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम ने उस रात अपने पिता को फोन किया था या नहीं ’’ सुखविंदर सिंह ने पूछा.

‘‘आप भी कमाल करते हैं साहब, मेरे पापा की हत्या हुई है और आप कातिलों को पकड़ने के बजाय हमें ही थाने बुला कर परेशान कर रहे हैं.’’ दीपक ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘अब मैं आप के किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझता. मैं अपनी मां और बहन को ले कर घर जा रहा हूं. कल मैं आप लोगों की शिकायत एसपी साहब से करूंगा. आप ने मुझे समझ क्या रखा है. मैं भी एक पुलिस अधिकारी का बेटा और एनआरआई हूं.’’

दीपक की धमकी सुन कर एकबारगी तो पुलिस अधिकारी खामोश रह गए. लेकिन डीएसपी साहब ने इशारा किया तो दीपक को अलग ले जा कर थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई. फिर तो उस ने जो बताया, सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. पता चला, घर वालों ने ही सुपारी दे कर मदनलाल की हत्या करवाई थी, जिस में मदनलाल की निर्मल कौर ही नहीं, विदेश में रह रहे उस के दोनों बेटे भी शामिल थे. इस तरह 72 घंटे में इस केस का खुलासा हो गया.

पुलिस ने दीपक और उस की मां निर्मल कौर को हिरासत में ले लिया. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान सब से पहले दीपक की निशानदेही पर इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापा मारा गया.

इस छापेमारी में अहिराना कला-मोहितयाना निवासी सतपाल के बेटे सुखदीप को तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन दूसरा अभियुक्त सोहनलाल का बेटा रछपाल फरार हो गया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में मदनलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

यह बात सही थी कि मदनलाल का परिवार रुपएपैसे से काफी सुखी था, लेकिन यह बात भी सही है कि रुपएपैसे से इंसान को वह सुख नहीं मिलता, जिस के लिए वह जीवन भर भागता रहता है. ऐसा ही कुछ मदनलाल के घर भी था. 5 साल पहले रिटायर हो कर वह अपने घर आए तो 2 साल तो बहुत अच्छे से गुजरे. घर का माहौल भी काफी अच्छा रहा.

लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मदनलाल डिप्रेशन में रहने लगे. धीरेधीरे उन की यह बीमारी बढ़ती गई. फिर एक समय ऐसा आ गया, जब छोटीछोटी बातों पर वह उत्तेजित हो उठते और आपे से बाहर हो कर घर वालों से मारपीट करने लगते. इस में हैरानी वाली बात यह थी कि मदनलाल का यह व्यवहार केवल घर वालों तक ही सीमित था. बाहर वालों के साथ उन का व्यवहार सामान्य रहता था.

बेटे जब भी छुट्टी पर आते, पिता को समझाते. उन के रहने तक तो वह ठीक रहते, उन के जाते ही वह पहले की ही तरह व्यवहार करने लगते. मदनलाल लगभग रोज ही पत्नी और बेटी के साथ मारपीट तो करते ही थे, इस से भी ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह उन्हें घर से भी निकाल देते थे. ऐसे में निर्मल कौर अपनी जवान बेटी को ले कर डरीसहमी रात में किसी के घर छिपी रहती थीं.

अपनी परेशानी निर्मल कौर फोन द्वारा बेटों को बताती रहती थीं. पिता के इस व्यवहार से विदेश में रह रहे बेटे भी परेशान रहते थे. कभीकभी की बात होती तो बरदाश्त भी की जा सकती थी, लेकिन लगभग 3 सालों से यही सिलसिला चला रहा था.

पिता सुधर जाएंगे, तीनों बेटे इस बात का इंतजार करते रहे. लेकिन सुधरने के बजाय वह दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे थे. घर से हजारों मील दूर बैठे बेटे हर समय मां और बहन के लिए परेशान रहते थे. आखिर जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो तीनों भाइयों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. यह योजना थी पिता के वजूद को ही खत्म करने की.

इस योजना में निर्मल कौर भी शामिल थी. हां, बेटी जरूर मना करती रही थी, पर उसे सभी ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह पराया धन है, उसे आज नहीं तो कल इस घर से चली जाना है. वे सब कब तक इस तरह घुटघुट कर जीते रहेंगे  कल शादियां होने पर उन की पत्नियां आएंगी, तब वे क्या करेंगे.

भाइयों का भी कहना अपनी जगह ठीक था, इसलिए बहन खामोश रह गई. अब जो करना था, दीपक और निर्मल कौर को करना था. योजना के अनुसार, 9 जून, 2017 को दीपक कुवैत से घर आ गया. घर आते ही वह अपने दोस्तों सुखदीप सिंह और रछपाल से मिला और उन्हें पिता को रास्ते से हटाने की सुपारी 2 लाख रुपए में दे दी, साथ ही यह भी वादा किया कि वह उन्हें कुवैत में सैटल करा देगा.

इस के बाद दीपक के भाई प्रिंसपाल ने कुवैत से दीपक के खाते में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए, जिस में से दीपक ने 1 लाख रुपए सुखदीप और रछपाल को दे दिए. बाकी पैसा उस ने काम होने के बाद देने को कहा.

दीपक के दोस्तों में सुखदीप तो सीधासादा युवक था, लेकिन रछपाल पेशेवर अपराधी था. उस पर सन 2011 से दोहरे हत्याकांड का केस चल रहा है. वह इन दिनों पैरोल पर जेल से बाहर आया हुआ था.

योजना के अनुसार, 15 जून की रात 9 बजे दीपक, सुखदीप और रछपाल शामचौरासी-पंडोरी रोड पर इकट्ठा हुए. वहीं से दीपक ने मदनलाल को फोन किया, ‘‘पापाजी, मेरी गाड़ी पंडोरी के पास खराब हो गई है. आप अपनी मोटरसाइकिल ले कर आ जाइए तो मैं आप के साथ आराम से चला चलूं.’’

मदनलाल किसी समस्या की वजह से मानसिक बीमारी से जरूर परेशान थे, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था या वह अपना भलाबुरा नहीं समझते था. वह सिर्फ निर्मल कौर को ही देख कर उत्तेजित होते थे. वह ऐसा क्यों करते थे, इस बात को जानने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की.

बहरहाल, दीपक का फोन आने के बाद मदनलाल ने कहा कि वह चिंता न करे, मोटरसाइकिल ले कर वह पहुंच रहे हैं. जबकि उस दिन उन की तबीयत ठीक नहीं थी और वह खेतों पर भी नहीं जाना चाहते थे. पर बेटे की परेशानी सुन कर उन्होंने मोटरसाइकिल उठाई और दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए.

दीपक, रछपाल और सुखदीप तलवारें लिए वहां छिपे बैठे थे. मदनलाल के पहुंचते ही तीनों उन पर इस तरह टूट पड़े कि उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला. पलभर में ही मदनलाल सड़क पर गिर कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस तरह बेटे के हाथों मानसिक रूप से बीमार पिता का अंत हो गया.

मदनलाल की हत्या कर सभी अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन दीपक ने मां के साथ मिल कर पिता को खोजने का नाटक शुरू किया. लेकिन उस का यह नाटक जल्दी ही पुलिस ने पकड़ लिया.

पुलिस ने दीपक और सुखदीप की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तलवारें बरामद कर ली थीं. निर्मल कौर और उस के कुवैत में रहने वाले बेटे प्रिंसपाल सिंह पर भी पुलिस ने धारा 120 लगाई है. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने निर्मल कौर, दीपक तथा सुखदीप को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. तीसरा अभियुक्त रछपाल सिंह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपराध, कानून, सजा : कातिलों को मिली सजा

दुनिया के खूबसूरत माने जाने वाले केंद्रशासित आधुनिक शहर चंडीगढ़ के सैक्टर-22 में एक जानामाना रेस्टोरेंट है नुक्कड़ ढाबा. इस रेस्टोरेंट का खाना इतना लजीज है कि दूरदूर से लोग यहां खाना खाने आते हैं, जिस की वजह से वहां हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है.

इसी रेस्टोरेंट के मालिक जोगिंदर सिंह की 20 साल की बेटी मनीषा सिंह सैक्टर-34 के एक इंस्टीट्यूट से आर्किटैक्चर का कोर्स कर रही थी. पढ़ने में वह ठीकठाक थी, इसलिए वह एक अच्छी आर्किटैक्ट बनना चाहती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन मनीषा काफी खूबसूरत थी. पिता जोगिंदर सिंह को अपनी इस एकलौती बेटी से लगाव तो था ही, साथ ही नाज भी था कि आगे चल कर वह खानदान का नाम रौशन करेगी.

लेकिन यह सोच कर उन का मन उदास भी हो जाता था कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मनीषा की शादी कर देंगे तो वह उन्हें छोड़ कर अपनी ससुराल चली जाएगी.

खैर, रोज की तरह 18 अक्तूबर, 2014 की सुबह मनीषा इंस्टीट्यूट जाने के लिए घर से निकली. उस दिन शनिवार था, इसलिए दोपहर तक उसे घर वापस आ जाना था. लेकिन वह शाम तक भी नहीं लौटी तो घर में सभी को उस की चिंता हुई. चिंता की वजह यह थी कि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

जोगिंदर सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ गुमशुदगी एवं किडनैपिंग की आशंका संबंधी एक लिखित शिकायत सैक्टर-22 की पुलिस चौकी जा कर दे दी. यह चौकी सैक्टर-17 स्थित थाना सैंट्रल के अंतर्गत आती थी, इसलिए थाना सैंट्रल में इस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस रात भर मनीषा की तलाश करती रही. जब सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने अगले दिन उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. इस से पता चला कि वह शनिवार को सुबह से ही रजत के संपर्क में थी. 21 वर्षीय रजत बेनीवाल चंडीगढ़ के सैक्टर-51ए में रहता था और पंजाब यूनिवर्सिटी के इवनिंग कालेज में बीए द्वितीय वर्ष का छात्र था.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रजत को हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ तो की ही, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन भी निकलवाई. इस से पता चला कि उस के और मनीषा के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इसी जानकारी के आधार पर पुलिस ने रजत को विधिवत गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को बहकाने की कोशिश करता रहा, लेकिन 2 घंटे की सघन पूछताछ में आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि मनीषा ने किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर लिया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. डर की वजह से उस ने उस की लाश को चंडीगढ़ से 40 किलोमीटर दूर ले जा कर राजपुरा रोड के एक गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस को रजत के इस बयान में पूरी तरह से सच्चाई नजर नहीं आ रही थी. इस के बावजूद डीएसपी सैंट्रल डा. गुरइकबाल सिंह सिद्धू के नेतृत्व में सैंट्रल थाना के कार्यकारी थानाप्रभारी इंसपेक्टर जसबीर सिंह और सैक्टर-22 चौकीप्रभारी देशराज सिंह के अलावा एक विशेष टीम रजत को ले कर राजपुरा रोड पर कस्बे बनूड़ से होते हुए शंभु बैरियर के समीप स्थित गांव टेपला पहुंची, जहां वह बदबूदार गंदा नाला था.

रजत की निशानदेही पर आधे घंटे की कोशिश के बाद गंदे नाले के पास से मनीषा की लाश बरामद की ली गई. लाश पूरी तरह से कीचड़ से सनी थी. पुलिस ने मनीषा के घर वालों को फोन कर के वहीं बुला कर लाश की शिनाख्त करा ली. शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए चंडीगढ़ के सैक्टर-16 स्थित जनरल अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पुलिस का मानना था कि रजत ने मनीषा की मौत की जो वजह बताई थी, वह सही नहीं हो सकती. इस मामले में अकेला रजत ही नहीं शामिल था, बल्कि कुछ अन्य लोग भी उस के साथ थे. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मनीषा की मौत का रहस्य काफी गहरा है.

चंडीगढ़ लौट कर रात में एक बार फिर रजत से गहन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया, उस के अनुसार, इस वारदात में उस के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. वे थे— चंडीगढ़ के सैक्टर-56 का रहने वाला कमल सिंह और मोहाली के फेज-10 का रहने वाला दिलप्रीत सिंह. 29 साल का कमल सिंह एक रेस्तरां का मालिक होने के साथसाथ शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. 22 साल का दिलप्रीत सिंह इंटीरियर डिजाइनिंग का डिप्लोमा कर रहा था.

पुलिस ने उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया था. दोनों से हुई पूछताछ में पता चला कि दिलप्रीत मृतका मनीषा का बौयफ्रैंड था. उसी ने उस की जानपहचान अपने दोस्तों रजत और कमल से कराई थी. पुलिस को दिए अपने बयानों में उन्होंने बताया था कि 18 अक्तूबर, 2014 को चारों एक पार्टी में गए थे, जहां सब ने ड्रग्स लिया और शराब भी पी.

सभी आ कर गाड़ी में बैठे थे, तभी अचानक मनीषा की मौत हो गई. इस के बाद वे उस की लाश को ले कर पहले पल्सौरा गांव गए. वहां उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो वे लाश को ले कर राजपुरा रोड पर स्थित गंदे नाले पर पहुंचे और वहीं लाश को एक कपड़े में लपेट कर फेंक दिया.

20 अक्तूबर, 2014 को तीनों अभियुक्तों को जिला अदालत में पेश कर के एक दिन के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उसी दिन सैक्टर-16 के जीएमएसएच अस्पताल में मनीषा की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. लाश पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस समय मौत की वजह भी स्पष्ट नहीं हो सकी थी. सीएफएसएल जांच के लिए मृतका के शरीर के कुछ हिस्सों के अलावा विसरा सुरक्षित कर लिया गया था.

21 अक्तूबर को सैक्टर-25 के श्मशानगृह में मनीषा के घर वालों ने उस का दाहसंस्कार कर दिया. उस समय वहां कुछ पत्रकार भी मौजूद थे, जिन से मनीषा के घर वालों ने कहा था कि पुलिस वाले कुछ भी कहें, पर साफ है कि मनीषा की हत्या की गई है, वह भी रंजिशन एवं योजनाबद्ध तरीके से.

क्योंकि मनीषा किसी भी तरह का नशा नहीं करती थी. वह इस तरह के लड़कों के साथ कहीं जाती भी नहीं थी. कमल ने योजनाबद्ध तरीके से उन से बदला लेने के लिए मनीषा की हत्या की थी. क्योंकि एक साल पहले वह उन के ढाबे पर खाना खाने आया था.

तब उस ने बिल न अदा करते हुए उन के ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के के साथ मारपीट की थी. उस के बाद उन लोगों ने भी उसे उस की बदतमीजी का थोड़ा सबक सिखाया था. उस ने उस समय काफी बेइज्जती महसूस की थी. अपनी उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने योजना बना कर दिलप्रीत, जो मनीषा के इंस्टीट्यूट में पढ़ता था, के जरिए मनीषा का अपहरण कर योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या कर दी थी.

दूसरी ओर पुलिस ने जो जांच की थी, उस के अनुसार, रजत, कमल और दिलप्रीत ड्रग्स के आदी थे. मोबाइल पर संदेश भेज कर किसी जिंदर नामक शख्स से उन्होंने ड्रग्स मंगवाया था. जिंदर के बारे में इन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. हां, पूछताछ में यह जरूर पता चला है कि अभियुक्त कमल पर थाना सैक्टर-39 में हत्या का एक मुकदमा दर्ज था, जो अदालत में विचाराधीन है.

अभियुक्तों का कहना था कि मनीषा भी कभीकभी ड्रग्स लेती थी. उस दिन भी उन चारों ने नशे के लिए एक साथ ड्रग्स लिया था. तभी ओवरडोज की वजह से मनीषा की मौत हो गई थी. उस के बाद डर की वजह से उन्होंने उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस की इस कहानी से मनीषा के घर वाले कतई सहमत नहीं थे. उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से पुलिस के सामने सवाल खड़े किए थे कि क्या पुलिस ने इस बात की जांच की है कि जिसे ड्रग्स की ओवरडोज से मौत माना जा रहा है, कहीं वह ड्रग्स दे कर हत्या करने का मामला तो नहीं है?

नशेबाजों ने उस की 2 लाख रुपए की ज्वैलरी हथियाने के लिए तो उस की हत्या नहीं की, जो उस ने उस दिन पहन रखी थी? योजना बना कर मनीषा का अपहरण तो नहीं किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रभावी परिवारों के लड़कों के पकड़े जाने से पूरी कहानी बदल दी गई हो?

चंडीगढ़ में आम चर्चा थी कि वहां ड्रग पैडलर्स का पूरा रैकेट सक्रिय है. ड्रग्स ओवरडोज मामलों में पहले भी वहां कुछ मौतें हो चुकी थीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा को उस रैकेट की जानकारी हो गई थी और इसी वजह से उसे मौत की नींद सुला दिया गया हो? लगातार हो रही इस तरह की मौतों के बाद भी पुलिस नशे के सौदागरों की धरपकड़ कर उन के खिलाफ सख्त काररवाई क्यों नहीं कर रही?

चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित संस्था है फौसवेक (फेडरेशन औफ सेक्टर वेलफेयर एसोसिएशंज). इस संस्था के सदस्यों ने साफ कहा था कि वे नशे से जुड़े लोगों को पकड़ कर पुलिस के पास ले जाते हैं और पुलिस वाले अकसर उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं.

मनीषा के मामले को ले कर शहर में प्रदर्शन होते रहे, कैंडल मार्च निकाले जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने अपने ढंग से काररवाई करते हुए मनीषा की मौत के ठीक 81 दिनों बाद 8 जनवरी, 2015 को रजत, कमल और दिलप्रीत के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया. यह चार्जशीट नशे की अहम धाराओं के तहत दाखिल की गई थी.

लेकिन अदालती काररवाई अपने ढंग से चली. मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए अदालत ने तीनों आरोपियों के खिलाफ 4 फरवरी, 2015 को गैरइरादतन हत्या, सबूतों से छेड़छाड़ और किडनैपिंग की धाराओं के आरोप तय कर दिए. सुनवाई की अगली तारीख 24 फरवरी तय की गई.

उस दिन चंडीगढ़ की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंशु शुक्ला की अदालत में केस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के पहले दिन मृतका के भाई 25 वर्षीय ऋषभ सिंह ने अपना बयान दर्ज कराया कि घटना वाले दिन सुबह कार से उस की बहन को लिवाने दिलप्रीत आया था. घर के बाहर मनीषा ने कुछ देर उस से बातचीत की और फिर वह इंस्टीट्यूट जाने की बात कह कर गाड़ी में बैठ गई. कार में पहले से ही 2 अन्य लोग मौजूद थे.

इस के बाद अदालत में मौजूद तीनों अभियुक्तों की उस ने पहचान भी की. इस के बाद केस की तारीख पड़ी 12 मार्च, 2015 को. उस दिन आरोपी दिलप्रीत के वकील तरमिंदर सिंह ने अदालत में अरजी दायर कर के मनीषा के फोन की जांच कराने की मांग की, जो स्वीकार कर ली गई.

लेकिन अगले दिन जब मनीषा का मोबाइल फोन कोर्ट में पेश किया गया तो उस का लौक नहीं खोला जा सका. इस पर मुकदमा 20 मार्च तक के लिए टल गया. कोर्ट ने सीएफएसएल को मोबाइल फोन भेज कर उस की जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा.

20 मार्च को यह रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी तो अगली तारीख 31 मार्च की पड़ी. उस दिन केस के जांच अधिकारी ने सीएफएसएल की ओर से 5 सीडीज में दिया गया मोबाइल का डाटा कोर्ट को सौंपा. इस के बाद लगातार कई पेशियों तक अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के अलावा उन का क्रौस एग्जामिनेशन हुआ.

6 जून, 2015 को सीएफएसएल ने मनीषा की जनरल विसरा रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी, जिस में बताया गया था कि मौत से पहले उस के साथ रेप और अननैचुरल सैक्स किया गया था. वहीं विसरा से एक आरोपी का सीमन भी बरामद कर प्रिजर्व किया गया था. अब आगे तीनों आरोपियों से इस का मिलान कराया जाना था. इस के अलावा सीएफएसएल ने मनीषा के जिस्म के कुछ हिस्सों की गहन जांच के आधार पर अपनी एक विशेष रिपोर्ट भी तैयार की थी.

इस रिपोर्ट के आने के बाद पुलिस की आरोपियों से मिलीभगत अथवा पूछताछ में की गई ढील अब पूरी तरह से सामने आ गई थी. इन तमाम मुद्दों पर बहस होने के बाद 24 जुलाई, 2015 को मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने इस केस में सामूहिक दुराचार और आपराधिक दुराचार के अलावा आपराधिक साजिश रचने की धाराएं क्रमश: 376डी, 377 एवं 120बी जोड़ने की अपील अदालत से की. तीनों आरोपियों का डीएनए सैंपल लेने की भी बात कही गई.

इस विशेष रिपोर्ट में मनीषा की मौत का कारण इंट्राक्रैनियल हैमरेज बताया गया था. सेरोलौजिकल जांच में उस के गुप्तांगों में वीर्य मिला था. विसरा जांच के रासायनिक विश्लेषण में मनीषा के शरीर में 85.57 प्रतिशत इथाइल अल्कोहल की मात्रा पाई गई थी. वहीं नार्पसेयूडोफिड्राइन नामक साइकोट्रोपिक सब्सटांस (नशीला पदार्थ) के मौजूद होने की बात भी कही गई थी. इस सब के अलावा हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट में ब्रौंकोन्यूमोनिया एवं माइक्रोवेसिकुलर स्टीटोसिस मिलने की बात भी पता चली थी.

सरकारी वकील ने जो नई धाराएं इस केस में जोड़ने की दरख्वास्त अदालत से की थी, उस का विरोध करते हुए बचाव पक्ष के वकील इंदरजीत बस्सी ने अदालत से कहा कि धाराओं में संशोधन अथवा बढ़ोत्तरी की अरजी मान्य नहीं है. केस की जांच करने वालों ने अपनी जांच पूरी कर के चार्जशीट दायर की है और इस समय केस गवाहियों की स्टेज पर है.

अपने इस विरोध के संबंध में बचावपक्ष के वकील ने अपने ये नुक्ते अदालत के सामने रखे थे—

मृतका के साथ यौन प्रताड़ना के मुद्दे पर किसी भी गवाह ने अभी तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है. अभियोजन पक्ष की कहानी के हिसाब से कहीं भी इस का जिक्र नहीं किया गया कि आरोपियों के पीडि़ता के साथ यौनसंबंध बने थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतका खुद आरोपियों के साथ गई थी, जिस में कहीं भी जबरदस्ती का कोई आरोप नहीं लगाया गया है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के जिस्म पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे, जिस से उस के साथ जबरदस्ती की बात साबित नहीं होती. सीएफएसएल रिपोर्ट और चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि यौनसंबंध कब और किस समय बने थे? डीएनए प्रोफाइल के तहत अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के ब्लड सैंपल लेने के लिए अरजी दायर की है, ताकि वीर्य से इस का मिलान किया जा सके. ऐसे में यह प्रतीत होता है कि अभियोजन पक्ष खुद इस बात को ले कर संशय में है कि यह वीर्य किस का है?

यह बहस भी कुछ दिनों तक चलती रही. 29 जुलाई को विद्वान जज अंशु शुक्ला ने इस मुद्दे पर और्डर पास किया कि दुराचार और कुकर्म की अतिरिक्त धाराएं जोड़ने पर फैसला अभियुक्तों की ब्लड सैंपल रिपोर्ट और डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट के आने के बाद होगा. इस के लिए तारीख दी गई 29 अक्तूबर, 2015. लेकिन उस दिन रिपोर्ट न आने की वजह से सुनवाई टल गई.

बाद में रिपोर्ट आई तो नई धाराएं जोड़ कर अदालत की काररवाई फिर से शुरू हुई. देखतेदेखते एक साल से अधिक का समय गुजर गया. 31 जनवरी, 2017 को अदालत ने अपनी काररवाई मुकम्मल कर के इस केस के तीनों अभियुक्तों को दोषी करार दे कर सजा सुनाने की तारीख 4 फरवरी, 2017 तय कर दी.

इस तरह सक्षम एडीजे अंशु शुक्ला ने केस से जुड़े 17 गवाहों के बयान एवं साक्ष्यों के आधार पर अपने 160 पृष्ठों के फैसले में 4 फरवरी, 2017 को मनीषा सिंह केस के तीनों अभियुक्तों रजत बेनीवाल, कमल सिंह और दिलप्रीत सिंह को सामूहिक दुष्कर्म, अप्राकृतिक यौनसंबंध, गैरइरादतन हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में 20-20 साल की कैद के अलावा तीनों को 5 लाख 22 हजार रुपए प्रति दोषी जुरमाने की सजा सुनाई. अदालत के इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने समयावधि के भीतर हाईकोर्ट में अपील की है, जो विचाराधीन है.

बहरहाल, मनीषा के पिता द्वारा जारी किया गया यह संदेश काबिलेगौर है कि अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मातापिता कोशिश तो करें, लेकिन बच्चे किसी के बहकावे में न आ सकें, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है. अगर उन की आदतों या व्यवहार में जरा भी बदलाव नजर आए तो बच्चों को एक दोस्त की तरह समझा कर किसी के बहकावे में आने से रोकें. आप का बच्चा कितना भी सही क्यों न हो, उसे बहकाने वाले तब तक उस का पीछा नहीं छोड़ते, जब तक वह उन के जाल में फंस नहीं जाता.

एकतरफा प्यार में पागल प्रेमी

दिल्ली से लगा नोएडा भले ही हाईटेक सिटी के रूप में विकसित हो रहा है, लेकिन आए दिन होने वाले अपराध इस औद्योगिक नगरी के माथे पर कलंक की तरह हैं. 31 मई, 2017 की सुबह नोएडा के सेक्टर-62 स्थित पौश सोसाइटी शताब्दी रेल विहार को भी एक ऐसे आपराधिक कलंक से दोचार होना पड़ा, जो इस सोसायटी के रहवासियों की कल्पना से भी परे था.

उस दिन सुबहसुबह रेलविहार सोसाइटी के पार्किंग के पास एक युवती खून से लथपथ पड़ी मिली. उस के सिर से काफी खून बह चुका था. सोसाइटी में जिस ने भी सुना सन्न रह गया. जरा सी देर में वहां काफी लोग एकत्र हो गए. आननफानन में कुछ लोग उस युवती को नजदीकी अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. वहीं पता चला कि मृतका के सिर में गोली मारी गई थी.

सोसायटी में लोगों की भीड़ लग चुकी थी. उन्हीं में से किसी ने इस वारदात की सूचना थाना सैक्टर-58 को दे दी थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दिलीप सिंह बिष्ट और सीओ अजय कुमार वहां आ पहुंचे. पुलिस ने मौका मुआयना किया तो वहां पिस्टल का एक खाली कारतूस पड़ा मिला, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुलवाया, लेकिन उस से कोई खास मदद नहीं मिली.

अलबत्ता इस बीच मृतका की शिनाख्त जरूर हो गई. उस का नाम अंजली राठौर था. 22 वर्षीया अंजली उर्फ अन्नू मूलरूप से हरियाणा के यमुनानगर निवासी तेजपाल सिंह की बेटी थी और नोएडा के सैक्टर-64 स्थित लावा मोबाइल कंपनी में बतौर इंजीनियर नौकरी करती थी.

अंजली सोसाइटी के एक टावर में तीसरी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रूममेट युवतियों के साथ रहती थी. पुलिस ने अंजली के मोबाइल से नंबर तलाश कर उस के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी.

हैरानी की बात यह थी कि इस दुस्साहसिक वारदात का किसी को पता तक नहीं चल सका था. घटना का पता तब चला, जब 7 बजे एक युवती बैंक की कोचिंग क्लास में जाने के लिए निकली. सब से पहले उसी ने अंजली को ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग के पास पड़ी देखा. उसे लगा कि अंजली सीढि़यों से गिरी होगी. इस के बाद ही वहां लोग एकत्र हुए और अंजली को अस्पताल ले गए.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि इतनी बड़ी घटना आखिर क्यों और कैसे हुई? जाहिर था हत्यारा बाहर से ही आया होगा. सोसायटी के गेट पर सिक्योरिटी गार्ड रहते थे, वहां सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे. पुलिस ने गार्डों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह 6 बजे के थोड़ा बाद कंधे पर बैग लटकाए एक युवक आया था और कुछ मिनट बाद ही वापस चला गया था.

उस की गतिविधियों पर कोई शक नहीं हुआ, इसलिए किसी ने भी उसे नहीं रोका. उस ने गेट के रजिसटर में एंट्री भी की थी. पुलिस ने रजिस्टर चैक किया तो उस में सन्नू के नाम से एंट्री थी. युवक का मोबाइल नंबर भी लिखा था. उस नंबर पर काल की गई तो वह स्विच्ड औफ मिला.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की रिकौर्डिंग देखनी चाही तो पता चला कि मुख्य गेट के कैमरे का फोकस बिगड़ा हुआ था, जिस की वजह से वह युवक आतेजाते उस की जद में नहीं आ पाया था. अच्छी बात यह थी कि पार्किंग साइड का कैमरा सही था.

उस की रिकौडिंग की जांच की गई तो दो पिलर के बीच की रिकौर्डिंग में दिखाई दिया कि युवती बचाव की मुद्रा में भाग रही थी, जबकि हाथ में हथियार लिए वह युवक उस के पीछे दौड़ रहा था.

युवक के कंधे पर बैग था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह वही युवक था, जिस का जिक्र गार्ड ने किया था. कैमरे की रिकौर्डिंग से युवक की पहचान साफ नहीं हो पा रही थी.

इस बीच मृतका के घर वाले और नाते रिश्तेदार भी आ गए थे. उन का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने अंजली के शव का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि उस युवक की अंजली से आखिर क्या दुश्मनी रही होगी.

मामला प्रेमप्रसंग का भी लग रहा था, क्योंकि वह युवक अंजली की हत्या के इरादे से ही आया था. अंजली भी अपनी मर्जी से उस से मिलने फ्लैट से नीचे आई थी. पुलिस ने अंजली के घर वालों से पूछताछ की, लेकिन उन से कोई सुराग नहीं मिल सका.

अंजली के मोबाइल की जांच से पता चला कि सुबह उस के मोबाइल पर अश्वनी यादव नाम के किसी युवक की काल आई थी. अश्वनी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चल सका. पुलिस ने गेट रजिस्टर में लिखे मोबाइल नंबर की जांच कराई तो वह अश्वनी के नाम पर ही निकला. पुलिस ने अंजली के पिता तेजपाल सिंह की तहरीर पर अश्वनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बड़ा सवाल यह भी था कि ऐसे कौन से हालात थे कि अश्वनी अंजली का हत्यारा बन गया?

मामला सनसनीखेज भी था और एक इंजीनियर की हत्या का भी. एसएसपी लव कुमार ने अपने अधीनस्थ अफसरों को इस मामले में शीघ्र काररवाई करने के निर्देश दिए. हत्या के खुलासे के लिए एसपी सिटी अरुण कुमार सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. अगले दिन पुलिस ने अश्वनी व अंजली के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उन के बीच बातें होती रहती थीं.

मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया. पता दिल्ली का ही था. पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो जानकारी मिली कि वह पता उस के एक जानने वाले का था, जिस पर उस ने सिमकार्ड लिया था. गनीमत यह रही कि वहां से पुलिस को अश्वनी का पता मिल गया.

वह उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गांव भावलपुर के रहने वाले शैलेंद्र का बेटा था. उस का मोबाइल भले ही बंद था, लेकिन वारदात के समय और उस के आधे घंटे बाद तक उस की लोकेशन घटनास्थल के आसपास ही थी. इस से यह बात पक्के तौर पर साफ हो गई कि अंजली की हत्या उसी ने की थी.

अगले दिन थानाप्रभारी दिलीप कुमार के नेतृत्व में एक टीम इटावा जा पहुंची. अश्वनी के घर वालों से पूछताछ में पता चला कि वह घटना के बाद घर तो आया था, लेकिन थोड़ी देर रुक कर चला गया था. आशंका थी कि अश्वनी अपने किसी नातेरिश्तेदारों के यहां शरण ले सकता है.

पुलिस ने उस के मोबाइल नंबर हासिल कर के सर्विलांस पर लगा दिए. इस से पुलिस को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर अश्वनी के मैनपुरी जिले के गांव अंधियारी में अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपे होने की सूचना मिली. पुलिस टीम वहां गई तो 2 जून को वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

उसे पकड़ कर नोएडा लाया गया. प्राथमिक पूछताछ में ही उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. पुलिस ने उस से विस्तृत पूछताछ की तो एकतरफा प्यार में पड़े एक ऐसे जुनूनी आशिक की कहानी निकल कर सामने आई, जो हर हाल में अंजली को अपना बनाना चाहता था.

दरअसल अंजली और अश्वनी ने पंजाब के जालंधर स्थित लवली यूनिवर्सिटी में एक साथ पढ़ाई की थी. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. अश्वनी ने बीसीए किया था, जबकि अंजली ने बीटेक. सन 2016 में दोनों ने अपना कोर्स पूरा किया. बीटेक करते ही अंजली की नौकरी लावा कंपनी में लग गई.

दूसरी ओर अश्वनी के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. उस के पिता साधारण किसान थे. उन्होंने मुश्किलों से बेटे को पढ़ाया था और उसे अच्छा इंसान बनाना चाहते थे. यह बात अलग थी कि काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दिल्ली के लाजपतनगर में कपड़े के एक शोरूम में काम करना शुरू कर दिया. वह और अंजली फोन पर बातें किया करते थे. अश्वनी उस का अच्छा दोस्त था, लिहाजा वह उसे अच्छी नौकरी के लिए प्रयास करते रहने की सलाह देती थी.

अंजली को उस की फिक्र है, यह बात अश्वनी को गुदगुदाती थी. वह अपने कैरियर से ज्यादा अंजली के बारे में सोचता रहता था. जबकि अंजली अपनी नई नौकरी से खुश थी और मन लगा कर काम कर रही थी. अंजली को इस की खबर भी नहीं थी कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है. हालांकि कई बार बातों और इशारों में उस ने अंजली के सामने जाहिर करने का प्रयास तो किया था, लेकिन वह समझ नहीं सकी. अश्वनी मन की बात खुल कर इसलिए नहीं कह पाता था कि कहीं अंजली नाराज हो कर उस से दूर न हो जाए.

अंजली के कुछ शुभचिंतक छात्रछात्राओं को पता चला कि अश्वनी उसे एकतरफा प्यार करता है तो उन्होंने उसे उस से सावधान रहने को कहा. बहरहाल, समय अपनी गति से चलता रहा. काम की व्यस्तता में अब अंजली की अश्वनी से बातचीत कम होने लगी.

इसी साल जनवरी, 2017 में अश्वनी की नौकरी छूट गई, जिस के बाद वह अपने गांव चला गया. गांव जा कर उस का दिमाग और भी खाली हो गया. उस ने अपने दिल की बात अंजली को बता कर उसे हासिल करने की सोची. उस ने फोन पर अंजली से प्यारभरी बातें कीं तो उस ने उसे समझा दिया, ‘‘अश्विनी, मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त मानती हूं, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

इस से अश्वनी को झटका लगा. अंजली से उस की बातचीत पहले ही कम हो गई थी. जब किसी इंसान की अपेक्षाओं को चोट पहुंचती है तो कई बार गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं और इंसान बातों का मतलब अपने हिसाब से खोजने लगता है. अश्वनी के साथ भी ऐसा ही हुआ. उसे लगा कि अंजली का नोएडा में किसी युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा है, इसलिए अब वह उस से बात नहीं करती. यह सोच कर उस के सिर पर अंजली को पाने का फितूर सवार हो गया. उस के दिल में अंजली के लिए इतना प्यार था कि उस के बिना वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था. अंजली के व्यवहार से उसे लगा कि वह अपने नए प्रेमी के चक्कर में उस से दूर हो रही है, इसलिए वह उस प्रेमी को ही रास्ते से हटा देगा.

लेकिन परेशानी यह थी कि वह अंजली के किसी प्रेमी को नहीं जानता था. ऐसी स्थिति में यह जानकारी अंजली ही दे सकती थी. उस ने सोच लिया कि वह नोएडा जा कर अंजली के प्रेमी को तो रास्ते से हटाएगा ही, साथ ही अंजली के सामने भी अपने प्यार का खुल कर इजहार करेगा.

अश्वनी के ही गांव का उस का एक दोस्त था विपुल. उस ने विपुल को सारी बातें बताईं तो वह दोस्ती की खातिर उस का साथ देने को तैयार हो गया. विपुल ने आपराधिक किस्म के एक व्यक्ति कोरा से संपर्क कर के एक सप्ताह के लिए 3 हजार रुपए में किराए पर .32 बोर की पिस्टल ले ली. उस ने अंजली को भी फोन कर दिया कि वह उस से मिलने के लिए आएगा.

30 मई को वह अपने दोस्त के साथ नोएडा पहुंच गया. उस ने अंजली को फोन किया और उस से मिलने की जिद की तो औफिस टाइम के बाद उस ने उसे सोसाइटी में आ कर मिलने को कहा. करीब 8 बजे वह सोसाइटी में उस से मिलने आ गया. दोनों के बीच काफी देर तक बातें हुईं.

अश्वनी ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं अंजली. यही बात तुम्हें समझाना चाहता हूं, लेकिन तुम समझने को तैयार नहीं हो.’’

बदले में अंजली ने हलके गुस्से का इजहार किया, ‘‘क्योंकि तुम ऐसी बात समझाना चाहते हो, जो मैं समझना नहीं चाहती. मेरे सामने कैरियर है अश्वनी. तुम्हें भी इन बातों को छोड़ कर अपना ध्यान अपने कैरियर पर लगाना चाहिए.’’

‘‘दिल को समझाना इतना आसान होता तो मैं कब का संभल गया होता, लेकिन मेरे लिए यह मुमकिन नहीं है. मैं ने दिल से तुम्हें चाहा है.’’ गंभीरता से कही गई उस की बातें सुन कर अंजली हैरान रह गई.

‘‘मैं तुम्हें किस तरह समझाऊं अश्वनी? प्लीज, ऐसी बातों को भूल जाओ. तुम ऐसे ही रहे तो मैं तुम से दोस्ती भी नहीं रख पाऊंगी.’’

अश्वनी को अंजली की एकएक बात कांटे की तरह चुभ रही थी. मन ही मन उस ने जो ढेरों ख्वाब सजाए थे, वे कांच की तरह टूट रहे थे. उसे पक्का यकीन हो गया था कि अंजली जरूर किसी के प्यार में पड़ी है.

‘‘अच्छा, मैं तुम्हें एक रात और सोचने का मौका देता हूं. अच्छी तरह सोच कर सुबह जवाब दे देना, साथ ही अपने जवाब से पहले मुझे उस लड़के का नाम भी बता देना, जिस से तुम प्यार करती हो.’’

अंजली को चूंकि इस मुद्दे पर कुछ सोचना ही नहीं था, इसलिए उस ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अब जाओ.’’  इस के बाद वह चला गया.

रात उस ने एक गेस्टहाउस में करवटें बदल कर बिताईं. उस की जिंदगी का एक ही उद्देश्य था अंजली को प्यार के लिए तैयार करना और उस के साथ दुनिया बसाना. दिन निकलते ही 6 बज कर 5 मिनट पर उस ने अंजली को फोन मिला कर कहा, ‘‘मैं आ रहा हूं अंजली.’’

‘‘क्या करोगे आ कर. मैं निर्णय ले चुकी हूं.’’

‘‘क्या?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा तो अंजली ने बेरुखी से जवाब दिया, ‘‘यही कि तुम्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए. एक और बात, मैं तुम से दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

कहने के साथ ही अंजली ने फोन काट दिया तो अश्वनी तड़प उठा. फिर भी उस ने सोसायटी जाने की ठान ली. वह खतरनाक इरादा बना चुका था कि अंजली से आखिरी बार बात जरूर करेगा और अगर उस ने अब भी इनकार किया तो वह उसे गोली मार कर खुद को भी खत्म कर लेगा.

इसी इरादे के साथ वह शताब्दी रेलविहार सोसायटी पहुंच गया. उस का दोस्त विपुल बाहर ही खड़ा रहा. सोसायटी के गेट पर एंट्री रजिस्टर में उस ने सन्नू नाम से एंट्री की और अंदर चला गया. यह उस के घर का नाम था. उस ने अंजली को फोन कर के आखिरी बार नीचे आ कर मिलने को कहा. वह नीचे आ गई. दोनों पार्किंग में सीढि़यों के पास खड़े हो गए.

‘‘तुम किसी और से प्यार करती हो अंजली? मुझे अपने उस प्रेमी का नाम बता दो. मैं उसे खत्म कर दूंगा, ताकि तुम मेरी हो सको.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है अश्वनी. प्लीज, तुम जाओ. और हां, आइंदा मुझे परेशान करने की कोशिश मत करना.’’

अंजली की बात सुन कर अश्वनी बुरी तरह हताश हो गया. उस की हालत हारे हुए जुआरी जैसी हो गई.

‘‘नहीं, मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं. उस का नाम बता दो और मेरा दिल मत तोड़ो.’’ उस ने कठोर लहजे में जिद की तो अंजली ने भी वैसा ही रुख अपनाया, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम. मुझे कोई बात नहीं करनी.’’

यह सुनते ही अश्वनी गुस्से में बोला, ‘‘बात तो तुम्हें करनी होगी.’’ गुस्से से तिलमिलाते हुए उस ने बैग से पिस्टल निकाल कर अंजली पर तान दी, ‘‘आज मैं तुम्हारा किस्सा ही खत्म कर दूंगा. तुम मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं हो सकती.’’

उस के खतरनाक इरादे भांप कर अंजली के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह जल्दी में बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो अश्वनी?’’

‘‘हां, मैं पागल हो गया हूं.’’

स्थिति ऐसी बन गई थी कि एकाएक अंजली की समझ में कुछ नहीं आया. कुछ नहीं सूझा तो वह मुड़ कर तेजी से भागी और एक पिलर की आड़ में छिपने की कोशिश करने लगी. अश्वनी भी उस के पीछे दौड़ा और उस के सिर को टारगेट बना कर उस पर गोली चला दी. गोली लगते ही अंजली गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अश्वनी ने खुद की कनपटी पर पिस्टल तान कर ट्रिगर दबाया, लेकिन गोली नहीं चली. इस पर पिस्टल बैग में रख कर वह वहां से निकल गया.

रास्ते में उस ने सैक्टर-62 स्थित बी ब्लाक की झाडि़यों में पिस्टल फेंक दी. अपना मोबाइल भी उस ने स्विच्ड औफ कर दिया. वह और उस का दोस्त वहां से औटो पकड़ कर सीधे आनंद विहार बसअड्डे पहुंचे और बस से गांव चले गए.

अश्वनी को पता था कि पुलिस उस की तलाश जरूर करेगी, इसलिए वह अपने रिश्तेदारों के यहां छिप कर घूमता रहा. घर वालों से वह दूसरे नंबरों से बात करता था. आखिर वह पुलिस की पकड़ में आ ही गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर 2 कारतूस सहित हत्या में प्रयुक्त .32 बोर की पिस्टल बरामद कर ली.

3 जून को पुलिस अधिकारियों ने प्रेसवार्ता कर के पत्रकारों को उस की करतूत बताई और उसी दिन उसे माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

अश्वनी की जिद व जुनून ने दोस्ती के रिश्ते को भयानक अंजाम पर पहुंचा दिया. 2 लोगों के बीच दोस्ती हो जाना कोई बात नहीं, लेकिन अश्वनी की उग्र प्रवृत्ति ने अंजली को असमय मौत दे कर उस के परिवार को तो गम दिया ही, साथ ही उस ने उस के खून से हाथ रंग कर अपना भविष्य भी चौपट कर लिया. अश्वनी ने हसरतों को लगाम दे कर विवेक से काम लिया होता या अंजली उस के सनकी मिजाज को भांप गई होती तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.

कथा लिखे जाने तक अश्वनी की जमानत नहीं हो सकी थी. अश्वनी का दोस्त विपुल फरार है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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