Family Story: अतीत के झरोखे – क्या राधा ने जूही को बहू के रूप में स्वीकार किया?

Family Story: राधा और अविनाश न्यूयौर्क एअरपोर्ट से ज्योंही बाहर निकले आकाश उन से लिपट गया. इतने दिनों के बाद बेटे को देख कर दोनों की आंखें भर आईं. तभी उन के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. आकाश ने उन का सामान डिक्की में रखा और उन दोनों को बैठने को कह आगे जा बैठा. जूही ने पीछे मुड़ कर अपनी मोहिनी मुसकान बिखेरते हुए उन दोनों का आंखों से ही अभिवादन किया तो राधा को ऐसा लगा मानों कोई परी धरती पर उतर आई हो. राधा ने मन ही मन बेटे के पसंद की दाद दी. करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद गाड़ी एक अपार्टमैंट के सामने रुकी. उतरते ही जूही का उन दोनों का पैर छू कर प्रणाम करना राधा का मन मोह गया. बड़े प्यार से उन्होंने जूही को गले लगा लिया. आकाश का 1 कमरे का घर अच्छा ही लगा उन्हें. जूही और आकाश दोनों मिल कर सामान अंदर ले आए. जब वे दोनों फ्रैश हो गए, तो जूही चाय बना लाई. चाय पीते हुए राधा जूही को निहारती रहीं. लंच कर अविनाश और राधा सो गए.

‘‘उठिए न मम्मी… आप के उठने का इंतजार कर के जूही चली गई.’’

उठने की इच्छा न होते हुए भी राधा को उठना पड़ा. फिर बड़े दुलार से बेटे का माथा सहलाती हुई बोलीं, ‘‘अरे, चिंता क्यों कर रहा है? मुझे और तेरे पापा को तेरी जूही बहुत पसंद है… सब कुछ अपने जैसा ही तो है उस में… अमेरिका में भी तुम ने अपनी बिरादरी की लड़की ढूंढ़ी यही क्या कम है हमारे लिए? अब जल्दी से उस के परिवार वालों से मिलवा दे. जब यहीं पर शादी करनी है, तो फिर इंतजार क्यों?’’

राधा की बातों से आकाश उत्साहित हो उठा. बोला, ‘‘उस के परिवार में केवल उस के पापा हैं. अपनी मां को तो वह बचपन में ही खो चुकी है. उस के पापा ने फिर शादी नहीं की. जूही को उस की नानी ने ही पाला है. उस के पापा चाहते हैं कि शादी के बाद हम उन्हीं के साथ रहें. लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. जिस घर में हम शिफ्ट करने वाले हैं वह उसी एरिया में है. कल चल कर देख लीजिएगा.’’

बेटे की बातों से राधा भावविभोर हो रही थीं. उन के अमेरिका आने से पहले आकाश की पसंद को ले कर सभी ने उन्हें कितना भड़काया था. आकाश तो वैसा ही है… कहीं कोई बदलाव नहीं है उस में… दूसरों की खुशी देख कर लोग जलते भी तो हैं. ऐसे भी आकाश स्कूल से ले कर इंजीनियरिंग करने तक टौप ही तो करता रहा था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आ रहा था तो भी लोगों को कितनी जलन हुई थी. शादी के बाद जूही को ले कर जब इंडिया जाऊंगी तो उस के रूपरंग को देख कर सभी ईर्ष्या करेंगे, ऐसा सोचते ही राधा मुसकरा उठीं.

‘‘क्या सोच कर मुसकरा रही हैं मां?’’ आकाश के पूछने पर राधा वर्तमान में लौट आईं.

‘‘कुछ भी तो नहीं रे… सब कुछ ठीक हो जाए तो सियाटल से अनीता और आदित्य भी आ जाएंगे… सारा इंतजाम कर के मैं आई ही हूं,’’ राधा बोलीं.

आकाश ने फोन पर ही जूही को बता दिया कि वह मम्मी को बहुत पसंद है. दूसरे दिन सवेरे ही जूही पहुंच गई. देखते ही राधा ने उसे गले लगा लिया. फिर उस के घर के बारे में पूछने लगीं.

जूही भी उन से कुछ खुल गई. उस ने उन से पूछा, ‘‘आकाश की तरह क्या मैं भी आप दोनों को मम्मीपापा कह सकती हूं?’’

राधा खुशी से बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? अब आकाश से तुम अलग थोड़े ही हो,’’ कुछ ही दिनों की बात है जब तुम भी पूरी तरह से हमारी हो जाओगी.’’

राधा की बात पर जूही ने शरमा कर सिर झुका लिया. ‘‘अच्छा तो मम्मीजी आप लोग पापा और नानी से मिलने कब चल रहे हैं? वे दोनों आप से मिलने के लिए उत्सुक हैं.’’ फिर अगले दिन का करार ले कर ही जूही मानी. दूसरे दिन सुबह से ही राधा को जूही के घर जाने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साहित देख कर अविनाश उन से छेड़खानी कर रहे थे. इसी बीच जूही गाड़ी ले कर आ गई. तैयार हो कर राधा और अविनाश कमरे से बाहर निकले. ‘एक युवा बेटे की मां भी इस उम्र में इतनी कमनीय हो सकती है?’ सोच जूही मुसकरा उठी. रास्ते में सड़क के दोनों ओर की प्राकृतिक सुंदरता देख कर राधा मुग्ध हो उठीं कि सच में अमेरिका परियों और फूलों का देश है.

1 घंटे के बाद फूलों से सजे एक बड़े से घर के सामने गाड़ी रुकी तो उतरते ही एक बड़ी उम्र की संभ्रांत महिला ने सौम्य मुसकान के साथ उन का स्वागत किया, जो जूही की नानी थीं. लिविंगरूम में जूही के पापा अविनाश के पास आ कर बैठ गए. राधा की ओर मुड़े ही थे कि वे चौंक  गए और उन के अभिवादन में उठे हाथ हवा में झूल गए. उधर राधा के जुड़े हाथ भी उन की गोद में गिर गए, जिसे अविनाश के सिवा और कोई न देख सका. राधा के चेहरे पर स्तब्धता थी. सारी खुशियां काफूर हो गई थीं. उन की महीनों की चहचहाट पर अचानक चुप्पी का कुहरा छा गया था. वे असहज हो कर सिर को इधरउधर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को मसल रही थीं.

जूही की नानी ही बोले जा रही थीं. माहौल गरम हो गया था जिसे सहज बनाने का अविनाश अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे थे. लंच के समय भी अनमनी सी राधा को देख कर आकाश और जूही हैरान थे कि अचानक इन्हें क्या हो गया? आखिर जूही की नानी ने राधा को टोक ही दिया, ‘‘क्या बात है राधाजी, क्या मैं और आशीष आप को पसंद नहीं आए? हमें देखते ही चुप हो गईं… छोडि़ए, आप को हमारी जूही तो पसंद है न?’’

यह सुनते ही राधा सकुचा तो गईं, लेकिन बड़े ही रूखे शब्दों में कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है… अचानक सिरदर्द होने लगा.’’

‘‘कुछ भी कहिए, लेकिन अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद जूही की परवरिश बेमिसाल है. इस का सारा श्रेय आप लोगों को जाता है. जूही हम दोनों को बहुत पसंद है… शायद इंडिया में भी हम आकाश के लिए ऐसी लड़की नहीं ढूंढ़ पाते… क्यों राधा ठीक कहा न मैं ने?’’

राधा ने उन की बातें अनसुनी कर दीं. अविनाश की बातों से आशीष थोड़ा मुखर हो उठे. बोले, ‘‘तो अब बताइए कि कैसे आगे का कार्यक्रम रखा जाए?’’

जवाब में राधा ने कहा, ‘‘हम आप को सूचित कर देंगे… अब हम चलना चाहेंगे. आकाश, उठो और टैक्सी बुलाओ… मुझे मानहट्टन होते हुए जाना है… क्यों न हम नीति से मिलते चलें. मामा मामी के आने से वह भी बड़ी उत्साहित है. इन सब बातों के लिए जूही को तकलीफ देना ठीक नहीं है.’’

राधा की बातों से सभी चौंक गए.  ‘‘इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है,’’ आशीषजी बोले, ‘‘अविनाशजी, अगर आप की इजाजत हो तो 2 मिनट मैं अकेले में आप की पत्नीजी से कुछ बातें करना चाहूंगा… जूही जब मात्र 10 साल की थी तभी उस की मां गुजर गईं. अपने कुछ किए गलत कामों का प्रायश्चित्त करने के लिए सभी के आग्रह करने के बावजूद मैं ने दूसरी शादी नहीं की… मैं ने अकेले ही मांबाप दोनों का प्यार, संस्कार दे कर उसे पाला है… जब तक मैं राधाजी की सहमति से पूर्ण संतुष्ट नहीं हो जाता इस रिश्ते के लिए स्वयं को कैसे तैयार कर पाऊंगा?

जवाब में अविनाश का हंसना ही सहमति दे गया. फिर आशीषजी और राधा को छोड़ कर बाकी सभी बाहर निकल गए. आशीष राधा के समक्ष जा कर खड़े हो गए और फिर भर आए गले से बोले, ‘‘राधा, तुम से छल करने वाला, तुम्हें रुसवा करने वाला तुम्हारे सामाने खड़ा है… जो भी सजा दोगी मुझे मंजूर होगी… मेरी बेटी का कोई कुसूर नहीं है इस में… तुम से मेरी यही प्रार्थना है कि जूही और आकाश को कभी अलग नहीं करना वरना दोनों टूट जाएंगे. एकदूसरे के बगैर वे जी नहीं पाएंगे… सभी की खुशियां अब तुम्हारे हाथ में हैं. जूही ही तुम लोगों को छोड़ने जाएगी. इतनी ही देर में उस का चेहरा उदास हो कर कुम्हला गया है,’’ कह कर आशीष बाहर निकल आए और फिर जूही को इन सब के साथ जाने को कहा तो जूही और आकाश के मुरझाए चेहरे खिल उठे. पूरा रास्ता राधा आंखें बंद किए चुप रहीं. लौटने के बाद भी वे अनमनी सी लेट गईं, जबकि बाहर से आ कर बिना चेंज किए बैड पर जाना उन्हें कतई पसंद नहीं था.

अविनाश लिविंग रूम में बैठ कर टीवी देखते रहे. शाम हो गई थी. राधा उठ गई थीं. बोलीं, ‘‘सुनिए मैं सामने ही घूम रही हूं. आकाश आ जाए तो आप भी आ जाइएगा,’’ और फिर चप्पलें पहनते हुए सीढि़यां उतर गईं. बच्चों के पार्क में रखी बैंच पर जा बैठीं. आंखें बंद करते ही 32 साल से बंद अतीत चलचित्र की तरह आंखों के आगे घूम गया… बड़ी ही धूमधाम से राधा की मंगनी आशीष के साथ हुई थी. किसी फंक्शन में आशीष ने उन्हें देखा था और फिर उस की नजरों में बस गई थीं. मंगनी होने के बाद वे आशीष से कुछ ज्यादा ही खुल गई थीं. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. सब के सो जाने के बाद धीरे से वे फोन को उठा कर अपने कमरे में ले जाती. और फिर शुरू होता प्यार भरी बातों का सिलसिला जो देर रात तक चलता. 2 महीने बाद ही शादी का मुहूर्त्त निकला था. इसी बीच अचानक आशीष को किसी प्रोजैक्ट वर्क के सिलसिले में 6 महीने के लिए न्यूयौर्क जाना पड़ा.

शादी नवंबर तक के लिए टल गई. वे मन मसोस कर रह गईं. लेकिन आशीष उज्ज्वल भविष्य के सपनों को आंखों में लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गया. फिर राधा अपनी एम.एससी. की परीक्षा की तैयारी में लग गईं. आशीष फिर कभी नहीं लौटा. अमेरिका जाने पर आशीष एक गुजराती परिवार में पेइंगगैस्ट बन कर रहने लगे. अमेरिका उन्हें इतना भाया कि वह वहां से न लौटने का निश्चय कर किसी कीमत पर वहां रहने का जुगाड़ बैठाता रहा. यहां तक कि अपनी कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी. सब से सरल उपाय यही था कि वह वहां की किसी नागरिकता प्राप्त लड़की से ब्याह कर ले. फिर आशीष ने उसी गुजराती परिवार की इकलौती लड़की से शादी कर ली. उस के इस धोखे से राधा टूट गई थी. उन्हें ब्याह नाम से चिढ़ सी हो गई थी.

फिर कुछ महीने बाद अविनाश के घर से आए रिश्ते के लिए न नहीं की. सब कुछ भुला अविनाश की पत्नी बन गईं. समय के साथ 2 बच्चों की मां भी बन गईं. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की. पढ़नेलिखने में ही नहीं, बल्कि सारी गतिविधियों में दोनों बड़े काबिल निकले. बी.टैक करते ही बेटी की शादी सुयोग्य पात्र से कर दी. बेटी यहीं सियाट्टल में है. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. बड़े अरमान के साथ बेटे की शादी का सपना आंखों में लिए यहां आई थीं. टैनिस टूरनामैंट में आकाश और जूही पार्टनर बने और विजयी हुए. ऐसे ही मिलतेजुलते दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. आकाश ने फेसबुक पर मां यानी राधा से जूही का परिचय करा दिया था. राधा को जूही में कोई कमी नजर नहीं आई. इसलिए उन के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. अब तक के जीवन में सभी प्रमुख निर्णय राधा ही लेती आई थीं, तो अविनाश को क्यों ऐतराज होता? राधा की खुशी ही उन के लिए सर्वोपरि थी. चूंकि जूही की मां नहीं थी और उसे नानी ने ही पाला था और वे इंडिया आने में लाचार थे, इसलिए निर्णय यही हुआ था कि अगर सब कुछ ठीकठाक हुआ तो वहीं शादी कर देंगे. इस निर्णय से उन की बेटी और दामाद दोनों बहुत खुश हुए. जूही के पिता के परिवार के बारे में उन्होंने ज्यादा छानबीन नहीं की और यहीं धोखा खा गईं. कितना सुंदर सब कुछ हो रहा था कि इस मोड़ पर वे आशीष से टकरा गईं और बंद स्मृतियों के कपाट खुल कर उन्हें विचलित कर गए… बेटे से भी नहीं कह सकतीं कि इस स्वार्थी, धोखेबाज की बेटी के साथ रिश्ता न जोड़ो… सिर से पैर तक उस के प्यार में डूबा हुआ है. वह भी क्यों मानने लगा अपनी मां की बात. दर्द से फटते माथे को दोनों हाथों से थाम वे सिसक उठीं.

तभी अचानक कंधों पर किसी का स्पर्श पा कर मुड़ीं तो पीछे अविनाश को खड़ा पाया. राधा के हाथों को सहलाते हुए वे उन की बगल में बैठ गए और बड़े सधे स्वर में कहने लगे, ‘‘राधा, अंदर से तुम इतनी कमजोर हो, मैं ने कभी सोचा न था. इतनी छोटी बात को दिल से लगाए बैठी हो. कुछ सुना था और कुछ अनुमान लगा लिया. अरे, आशीष ने तुम्हारे साथ जो किया वह कोई नई बात थोड़े है. यह देश उसे सपनों की मंजिल लगा. जूही की सुंदरता से साफ पता चलता है कि उस की मां कितनी सुंदर रही होगी… वीजा, फिर नागरिकता, रहने को घर, सुंदर पत्नी, सारी सुखसुविधाएं जब उसे इतनी सहजता से मिल गईं तो वह क्या पागल था कि देश लौट आता सिर्फ इसलिए कि उस की मंगनी हुई है? फिर जीवन में सब कुछ होना पहले से ही निर्धारित रहता है तुम्हारी ही तो ऐसी सोच है. तुम्हें मेरी बनना था तो ये महाशय तुम्हें कैसे ले जाते? माना कि बहुत सारी सुखसुविधाएं तुम्हें नहीं दे पाया लेकिन मन में संचित सारे प्यार को अब तक उड़ेलता रहा हूं. अचानक कल से मम्मी को हो क्या गया है, पापा? आकाश का यह पूछना मुझे पसोपेश में डाल गया है. हो सकता है वह सब कुछ समझ भी रहा हो. इतना नासमझ भी तो नहीं है.’’

राधा की आंखों से बहते आंसुओं ने अविनाश को आगे और कुछ नहीं कहने दिया. कुछ देर बाद आंचल से अपने आंसुओं को पोंछती हुई राधा ने कहा, ‘‘मैं कल से सोच रही हूं कि अगर जूही का जैनेटिक्स भी अपने बाप जैसा हुआ तो यह हमारे बेटे को हम से छीन लेगी… कितनी निर्ममता से आशीष अपनों को भूल गया था… उसे देखने के लिए मांबाप की आंखें सारी उम्र तरसती रह गईं और वह घरजमाई बन कर रह गया. इस की बेटी ने कहीं मेरे सीधेसादे बेटे को घरजमाई बना लिया तो हम भी बेटे को देखने को तरसते रह जाएंगे.’’ राधा की बातें सुन कर अविनाश को हंसी आ गई. तभी आकाश भी उन दोनों को खोजते हुए वहां आ गया. सकुचाई हुई मम्मी और हंसते हुए पापा को देख कर प्रश्न भरी आंखों से उन्हें देखा. अविनाश अपनेआप को अब रोक नहीं सके और सारी बात बता दी.

इतना सुनना था कि आकाश छोटे बच्चे की तरह राधा से लिपट गया. बोला, ‘‘मम्मी, आप के लिए जूही तो क्या पूरी दुनिया को छोड़ सकता हूं… इतना ही जाना है आप ने अपने बेटे को? फिर आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना है… आप दोनों के लिए ही तो इतना बड़ा घर लिया है… ऐसे भी इंडिया में है ही कौन आप दोनों का…. एक घर ही तो है? आराम से अब मेरे पास रहें. बीचबीच में दीदी से भी मिलते रहें.’’ आकाश की बातों से राधा के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और फिर से 2 हफ्ते बाद ही बड़ी धूमधाम के साथ आकाश और जूही शादी के बंधन में बंध कर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड चले गए. 1 महीने बाद आने का वादा ले कर बेटी, दामाद एवं नाती सियाट्टल चले गए तो अविनाश ने भी हंसते हुए राधा से कहा, ‘‘क्यों न हम भी हनीमून मना लें… हमारी शादी के बाद तो हमारे साथ हमारे पूरे परिवार ने भी हनीमून मनाया था… याद तो होगा तुम्हें… तुम से मिलने को भी हम तरस कर रह जाते थे. अब बेटे ने विदेश में अवसर दिया है तो हम क्यों चूकें और फिर अभी हम इतने बूढ़े भी तो नहीं हुए हैं.’’ अविनाश की बातें सुन राधा मुसकरा दीं और फिर शरमा कर अविनाश से लिपटते हुए अपनी सहमति जता दी.

Family Story: चित और पट – नीरा को उसकी सहेली वर्तिका ने क्या पट्टी पढ़ाई?

Family Story: आधी रात को नीरा की आंख खुली तो विपिन को खिड़की से झांकते पाया. ‘‘अब क्या हुआ? मैं ने कहा था न कि वक्तबेवक्त की कौल्स अटैंड न किया करें. अब जिस ने कौल की वह तो तुम्हें अपनी प्रौब्लम ट्रांसफर कर आराम से सो गया होगा… अब तुम जागो,’’ नीरा गुस्से से बोलीं.

‘‘तुम सो जाओ प्रिय… मैं जरा लौन में टहल कर आता हूं.’’ ‘‘अब इतनी रात में लौन में टहल कर क्या नींद आएगी? इधर आओ, मैं हैडमसाज कर देती हूं. तुरंत नींद आ जाएगी.’’

थोड़ी देर बाद विपिन तो सो गए, पर नीरा की नींद उड़ चुकी थी. विपिन की इन्हीं आदतों से वे दुखी रहती थीं. कितनी कोशिश करती थीं कि घर में तनाव की स्थिति पैदा न हो. घरेलू कार्यों के अलावा बैंकिंग, शौपिंग, रिश्तेदारी आदि सभी मोरचों पर अकेले जूझती रहतीं. गृहस्थी के शुरुआती दौर में प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर घर में आर्थिक योगदान भी किया. विपिन का हर 2-3 साल में ट्रांसफर होने के कारण उन्हें हमेशा अपनी जौब छोड़नी पड़ी. उन्होंने अपनी तरक्की की न सोच कर घर के हितों को सर्वोपरि रखा. आज जब बच्चे भी अपनीअपनी जौब में व्यस्त हो गए हैं, तो विपिन घर के प्रति और भी बेफिक्र हो गए हैं. अब ज्यादा से ज्यादा वक्त समाजसेवा को देने लगे हैं… और अनजाने में ही नीरा की अनदेखी करने लगे हैं.

हर वक्त दिमाग में दूसरों की परेशानियों का टोकरा उठाए घूमते रहते. रमेशजी की बेटी

का विवाह बिना दहेज के कैसे संपन्न होगा, दिनेश के निकम्मे बेटे की नौकरी कब लगेगी, उस के पिता दिनरात घरबाहर अकेले खटते रहते हैं, शराबी पड़ोसी जो दिनरात अपनी बीवी से पी कर झगड़ा करता है उसे कैसे नशामुक्ति केंद्र ले जाया जाए आदिआदि. नीरा समझासमझा कर थक जातीं कि क्या तुम समाजसुधारक हो? अरे, जो मदद मांगे उसी की किया करो… सब के पीछे क्यों भागते हो? मगर विपिन पर कोई असर न पड़ता.

‘‘नीरा, आज का क्या प्रोग्राम है?’’ यह वर्तिका थी. नए शहर की नई मित्र. ‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर सुन हम दोनों फिल्म देखने चलेंगी आज,’’ कह वर्तिका ने फोन काट दिया. वर्तिका कितनी जिंदादिल है. उसी की हमउम्र पर कुंआरी, ऊंचे ओहदे पर. मगर जमीन से जुड़ी, सादगीपसंद. एक दिन कालोनी के पार्क में मौर्निंग वाक करते समय फोन नंबरों का आदानप्रदान भी हो गया.

फिल्म देखने के बाद भी नीरा चुपचाप सी थीं.

‘‘भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ वर्तिका ने छेड़ा. ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है… तू नहीं समझ पाएगी,’’ नीरा ने टालना चाहा.

‘‘क्योंकि मेरी शादी नहीं हुई है, इसलिए कह रही हो… अरे, मर्दों से तो मेरा रोज ही पाला पड़ता है. इन की फितरत को मैं खूब समझती हूं.’’ ‘‘अरे, तुम तो सीरियस हो गई मेरी प्रगतिशील मैडम… ऐसा कुछ भी नहीं है. दरअसल, मैं विपिन की तनाव उधार लेने की आदत से परेशान हूं… उन्हें कभी किसी के लिए अस्पताल जाना होता है, कभी किसी की औफिस वर्क में मदद करनी होती है,’’ नीरा उसे विस्तार से बताती चली गईं.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि क्या विवाह के शुरुआती दिनों से ही विपिन ऐसे हैं या फिर अब ऐसे हुए?’’ कौफी शौप में बैठते हुए वर्तिका ने पूछा. ‘‘शादी के 10-15 साल तो घरेलू जिम्मेदारियां ही इतनी अधिक थीं. बच्चे छोटे थे, किंतु जैसेजैसे बच्चे अपने पैरों पर खड़े होते गए, विपिन की जिम्मेदारियां कम होती गईं. अब तो विवाह के 26 वर्ष बीत चुके हैं. बच्चे भी अलग शहरों में हैं. अब तो इन्हें घर से बाहर रहने के

10 बहाने आते हैं,’’ नीरा उकता कर बोलीं. ‘‘तुम्हारे आपसी संबंधों पर इस का असर तो नहीं पड़ रहा है?’’ वर्तिका ने पूछा.

‘‘मैं ने पहले इस विषय पर नहीं सोचा था. मगर अब लगता है कि हमारे संबंधों के बीच भी परदा सा खिंच गया है.’’ ‘‘तो मैडम, अपने बीच का परदा उठा कर खिड़कियों में सजाओ… अपने संबंध सामान्य करो… उन्हें इतनी फुरसत ही क्यों देती हो कि वे इधरउधर उलझे रहें,’’ वर्तिका दार्शनिकों की तरह बोली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. अब यह कर के भी देखती हूं,’’ और फिर नीरा शरारत से मुसकराईं तो वर्तिका भी हंस पड़ी. आज विपिन को घर कुछ ज्यादा ही साफ व सजा नजर आया. बैडरूम में भी ताजे गुलाबों का गुलदस्ता सजा मिला. ‘आज नीरा का जन्मदिन तो नहीं या फिर किसी बेटे का?’ विपिन ने सोचा पर कोई कारण न मिला तो रसोई की तरफ बढ़ गए. वहां उन्हें नीरा सजीधजी उन की मनपसंद डिशेज तैयार करती मिलीं.

‘‘क्या बात है प्रिय, बड़े अच्छे मूड में दिख रही हो आज?’’ विपिन नीरा के पीछे खड़े हो बोले. ‘‘अजी, ये सब आप की और अपनी खुशी के लिए कर रही हूं… कहा जाता है कि बड़ीबड़ी खुशियों की तलाश में छोटीछोटी खुशियों को नहीं भूल जाना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है… आई एम इंप्रैस्ड.’’ रात नीरा ने गुलाबी रंग का साटन का गाउन निकाला और स्नानघर में घुस गईं.

‘‘तुम नहा रही हो… देखो मुझे रोहित ने बुलाया है. मैं एकाध घंटे में लौट आऊंगा,’’ विपिन ने जोर से स्नानघर का दरवाजा खटका कर कहा. नीरा ने एक झटके में दरवाजा खोल दिया. वे विपिन को अपनी अदा दिखा कर रोकने के मूड में थीं. मगर विपिन अपनी धुन में बाय कर चलते बने.

2 घंटे इंतजार के बाद नीरा का सब्र का बांध टूट गया. वे अपनी बेकद्री पर फूटफूट कर रो पड़ीं. आज उन्हें महसूस हुआ जैसे उन की अहमियत अब विपिन की जिंदगी में कुछ भी नहीं रह गई है. दूसरे दिन नीरा का उखड़ा मूड देख कर जब विपिन को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने रात में नीरा को अपनी बांहों में भर कर सारी कसक दूर करने की ठान ली. मगर आक्रोषित नीरा उन की बांहें झटक कर बोलीं, ‘‘हर वक्त तुम्हारी मरजी नहीं चलेगी.’’

विपिन सोचते ही रह गए कि खुद ही आमंत्रण देती हो और फिर खुद ही झटक देती हो, औरतों का यह तिरियाचरित्तर कोई नहीं समझ सकता. उधर पीठ पलट कर लेटी नीरा की आंखें डबडबाई हुई थीं. वे सोच रही थीं कि क्या वे सिर्फ हांड़मांस की पुतला भर हैं… उन के अंदर दिल नहीं है क्या? जब दिल ही घायल हो, तो तन से क्या सुख मिलेगा?

2 महीने के बाद वर्तिका और नीरा फिर उसी कौफी शौप में बैठी थीं. ‘‘नीरा, तुम्हारी हालत देख कर तो यह नहीं लग रहा है कि तुम्हारी जिंदगी में कोई बदलाव आया है. तुम ने शायद मेरे सुझाव पर अमल नहीं किया.’’

‘‘सब किया, लेकिन लगता है विपिन नहीं सुधरने वाले. वे अपने पुराने ढर्रे पर

लौट गए हैं. कभी अस्पताल, कभी औफिस का बहाना, लेटलतीफी, फोन पर लगे रहना, समाजसेवा के नाम पर देर रात लौटना… मुझे तो अपनी जिंदगी में अब तनाव ही तनाव दिखने लगा है. बच्चे बड़े हो गए हैं. उन की अपनी व्यस्तताएं हैं और पति की अपनी, सिर्फ एक मैं ही बिलकुल बेकार हो गई हूं, जिस की किसी को भी जरूरत नहीं रह गई है,’’ नीरा के मन का गुबार फूट पड़ा. ‘‘मुझे देख, मेरे पास न तो पति हैं और न ही बच्चे?’’ वर्तिका बोल पड़ी.

‘‘पर तेरे जीवन का लक्ष्य तो है… औफिस में तो तेरे मातहत पुरुष भी हैं, जो तेरे इशारों पर काम करते हैं. मुझे तो घर पर काम वालियों की भी चिरौरी करनी पड़ती है,’’ नीरा रोंआसी हो उठी. ‘‘अच्छा दुखी न हो. सुन एक उपाय बताती हूं. उसे करने पर विपिन तेरे पीछेपीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ‘‘मतलब एकदम साफ है. तू ने अपने घर को इतना व्यवस्थित और सुविधायुक्त कर रखा है कि विपिन घर और तेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियों से निश्चिंत हैं और अपना वक्त दूसरों के संग बांटते हैं… तेरे लिए सोचते हैं कि घर की मुरगी है जब चाहे हलाल कर लो.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया,’’ नीरा उलझन में पड़ कर बोलीं. ‘‘तो बस इतना समझ ले विपिन को तनाव लेना पसंद है, तो तू ही उन्हें तनाव देना शुरू कर दे… तब वे तेरे पीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘सच में?’’ ‘‘एकदम सच.’’

‘‘तो फिर यही सही,’’ कह नीरा ने एक बार फिर से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर लाने को कमर कस ली. ‘‘सुनो, यह 105 नंबर वाले दिनेशजी हैं न उन की पत्नी तो विवाह के 5 वर्ष बाद ही गुजर गई थीं, फिर भी उन्होंने अपनी पत्नी के गम में दूसरी शादी नहीं की. अपनी इकलौती औलाद को सीने से लगाए दिन काट लिए. अब देखो न बेटा भी हायर ऐजुकेशन के लिए विदेश चला गया.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब से कालोनीवासियों की खबरें मिलने लगीं… तुम तो अपनी ही गृहस्थी में मग्न रहती हो,’’ विपिन को नीरा के मुख से यह बात सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ. ‘‘अरे, कल घर आए थे न उत्सव पार्टी का निमंत्रण देने. मैं ने भी चाय औफर कर दी. देर तक बैठे रहे… अपनी बीवी और बेटे को बहुत मिस कर रहे थे.’’

‘‘ज्यादा मुंह न लगाना. ये विधुर बड़े काइयां होते हैं. एक आंख से अपनी बीवी का रोना रोते हैं और दूसरी से दूसरे की बीवी को ताड़ते हैं.’’ ‘‘तुम पुरुष होते ही ऐसे हो… दूसरे मर्द की तारीफ सुन ही नहीं सकते. कितने सरल हृदय के हैं वे. बेचारे तुम्हारी ही उम्र के होंगे, पर देखो अपने को कितना मैंटेन कर रखा है. एकदम युवा लगते हैं.’’

‘‘तुम कुछ ज्यादा ही फिदा तो नहीं हो रही हो उन पर… अच्छा छोड़ो, मेरा टिफिन दो फटाफट. मैं लेट हो रहा हूं. और हां हो सकता है आज मैं घर देर से आऊं.’’ ‘‘तो इस में नई बात क्या है?’’ नीरा ने चिढ़ कर कहा, तो विपिन सोच में पड़ गए.

शाम को जल्दी पर घर पहुंच कर उन्होंने नीरा को चौंका दिया, ‘‘अरे, मैडम इतना सजधज कर कहां जाने की तैयारी हो रही है?’’ ‘‘यों ही जरा पार्क का एक चक्कर लगाने की सोच रही थी. वहां सभी से मुलाकात भी हो जाती है और कालोनी के हालचाल भी मिल जाते हैं.’’

विपिन हाथमुंह धोने गए तो नीरा ने उन का मोबाइल चैक किया कि आज जल्दी आने का कोई सुराग मिल जाए. पर ऐसा कुछ नहीं मिला. ‘‘आज क्या खिलाने वाली हो नीरा? बहुत दिन हुए तुम ने दालकचौरी नहीं बनाई.’’

‘‘शुक्र है, तुम्हें कुछ घर की भी याद है,’’ नीरा के चेहरे पर उदासी थी. ‘‘यहां आओ नीरा, मेरे पास बैठो. तुम ने पूछा ही नहीं कि आज मैं जल्दी घर कैसे आ

गया जबकि मैं ने बोला था कि मैं देरी से आऊंगा याद है?’’ ‘‘हां, मुझे सब याद है. पर पूछा नहीं तुम से.’’

‘‘मैं अपने सहकर्मी रोहित के साथ हर दिन कहीं न कहीं व्यस्त हो जाता था… आज सुबह उस ने बताया कि उस की पत्नी अवसाद में आ गई थी जिस पर उस ने ध्यान ही नहीं दिया था. कल रात वह अचानक चक्कर खा कर गिर पड़ी, तो अस्पताल ले कर भागा. वहीं पता चला कि स्त्रियों में मेनोपौज के बाद ऐसा दौर आता है जब उन की उचित देखभाल न हो तो वे डिप्रैशन में भी चली जाती हैं. डाक्टर का कहना है कि कुछ महिलाओं में अति भावुकता व अपने परिवार में पकड़ बनाए रखने की आदत होती है और उम्र के इस पड़ाव में जब पति और बच्चे इग्नोर करने लगते हैं तो वे बहुत हर्ट हो जाती हैं. अत: ऐसे समय में उन के पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य का खयाल रखना चाहिए वरना वे डिप्रैशन में जा सकती हैं.’’ ‘‘मुझे क्यों बता रहे हो?’’ नीरा पलट

कर बोलीं. ‘‘सीधी सी बात है मैं तुम्हें समय देना चाहता हूं ताकि तुम खुद को उपेक्षित महसूस न करो. तुम भी तो उम्र के इसी दौर से गुजर रही हो. अब शाम का वक्त तुम्हारे नाम… हम साथ मिल कर सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करेंगे.’’

Family Story: मन बहुत प्यासा है – मीरा क्यों शेखर से अलग हो गई?

Family Story: शाम बहुत उदास थी. सूरज पहाडि़यों के पीछे छिप गया था और सुरमई अंधेरा अपनी चादर फैला रहा था. घर में सभी लोग टीवी के सामने बैठे समाचार सुन रहे थे. तभी न्यूज ऐंकर ने बताया कि सुबह दिल्ली से चली एक डीलक्स बस अलकनंदा में जा गिरी है. यह खबर सुनते ही सब के चेहरे का रंग उड़ गया और टीवी का स्विच औफ कर दिया गया. मैं नवीन की कमीज थामे सन्न सी खड़ी रह गई. ढेर सारे खयाल दिलोदिमाग में हलचल मचाते रहे. क्या सचमुच नवीन इज नो मोर? मां का विलाप सुन कर आंगन में आसपास की औरतें जुड़ने लगीं. उन में से कुछ रो रही थीं तो कुछ उन्हें सही सूचना आने तक तसल्ली रखने की सलाह दे रही थीं. बाबूजी ने मेरे डैडी को फोन किया और तुरंत घटनास्थल पर चलने को कहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? क्या मैं सचमुच… इस के आगे सोचने से दिल घबराने लगा.

3 दिन तक जीनेमरने जैसी स्थिति रही. चौथे दिन हारे हुए जुआरी की तरह बाबूजी और डैडी वापस लौट आए. अलकनंदा में उफान के कारण लाशें तक निकाली नहीं जा सकी थीं. पता कर के आए मर्दों के चेहरों पर हताशा को पढ़ कर औरतें चीखचीख कर रोने लगीं. कुछ उस घड़ी को कोस रही थीं, जिस घड़ी नवीन ने घर से बाहर कदम निकाला था. एक बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और मुझे घसीटती हुई बाहर ले आई. कुछ औरतों ने आंखों ही आंखों में सरगोशियां कीं और मेरा चूडि़यों से भरा हाथ फर्श पर दे मारा. चूडि़यां टूटने के साथ खून की कुछ बूंदें मेरी कलाई पर छलक आईं पर इस की परवाह किस को थी. भरी जवानी में मेरे विधवा हो जाने से जैसे सब दुखी थीं और मुझे गले लगा कर रोना चाहती थीं. मैं पत्थर की शिला सी हो गई थी. मेरी आंखों में बूंद भर पानी भी नहीं था.

अपने विफल हो रहे प्रयासों से औरतों में खीज सी पैदा हो गई. कुछ मुझे घूरते हुए एकदूसरे से कुछ कह रही थीं, तो महल्ले की थुलथुली बहुएं, जो मेरी स्मार्टनैस से कुंठित थीं अपनी भड़ास निकालने की कोशिश कर रही थीं. मेरा लंबा कद, स्याह घने बाल, हिरनी जैसी आंखें और शादी में लाया गया ढेर सारा दहेज, जिस के कारण महल्ले की सासें अपनी बहुओं को ताने दिया करती थीं, आज बेमानी बन कर रह गया, तो मेरी सुंदर काया का मूल्य पल भर में कौडि़यों का हो गया. मेरी उड़ती नजर आंगन के कोने में खड़ी मोटरसाइकिल पर गई.इसी मोटरसाइकिल के लिए मझे 4 दिन तक भूखा रखा गया था और 6 महीने तक मैं मायके में पड़ी रही थी. आखिर पापा ने अपने फंड में से पैसा निकाल कर नवीन को मोटरसाइकिल ले दी थी. अब कौन चलाएगा इसे? नवीन की मौत से हट कर मेरा मन हर राउंड में लाई गई चीजों की फेहरिस्त बना रहा था.

कुल 2 साल ही तो हुए थे हमारी शादी को और हमारी बेटी मिनी साल भर की है. खुद को कर्ज में डुबो कर बेटी का घर भर दिया था पापा ने. क्या मैं उस आदमी के लिए रोऊं जो हर वक्त कुछ न कुछ मांगता ही रहता था और हर चौथे दिन रुई की तरह धुन देता था. तभी औरतों की खींचातानी से मिनी रोई तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं उसे औरतों की भीड़ से निकाल कर कमरे में ले आई. औरतों का आनाजाना कई दिनों तक लगा रहा. कुछ मुझ कुलच्छनी बहू को घूरघूर कर एकदूसरे से बतियाती हुई आंसू बहातीं तो कुछ मेरे न रोनेधोने के कारण किसी रहस्य को सूंघने की कोशिश करतीं. पर मुझे उन की परवाह नहीं थी.

मां जो शेरनी की तरह दहाड़ती रहती थीं अब भीगी बिल्ली सी आंसू बहाती रहतीं. मेरी ननद गीता और उस के पति रजनीश भी आगए थे. गीता मेरे कमरे के फेरे मारती रहती और एकएक कीमती चीज के दाम पूछती रहती. रजनीश की नजर मोटरसाइकिल पर थी. गीता को वापस जाना था. रजनीश ने खिसियानी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘भाभी, अब इस मोटरसाइकिल का यहां क्या होगा? कहो तो मैं ले जाऊं. डीटीसी बसों में आतेजाते मैं तो तंग आ गया हूं. रोज देर हो जाती है तो बौस की डांट खानी पड़ती है.’’ फिर मोटरसाइकिल पर बैठ कर ट्रायल लेने लगा.

गीता भी पीछे नहीं रही, ‘‘भाभी, इस कौस्मैटिक बौक्स का अब आप क्या करेंगी? आप के लिए तो बेकार है. मैं ले जाती हूं इसे. कितने सारे तो परफ्यूम्स हैं. इतनी अच्छी चीजें इंडिया में कहां बनती हैं. आप के पापा का भी जवाब नहीं. हर चीज कीमती दी है आप को.’’

क्या संबंध स्वार्थ की कागजी नींव पर टिके होते हैं? यह सोचते हुए संबंधों पर से मेरी आस्था हटने लगी. यह वही गीता है, जो बारबार गश खा कर गिर रही थी और भाई की मौत को अभी 4 दिन भी नहीं गुजरे इस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. गीता और रजनीश की नजर तो मेरे लैपटौप और महंगे मोबाइलों पर भी थी, क्योंकि बाबूजी ने कह दिया था कि मोटरसाइकिल वगैरह अभी यहीं रहने दो. बाद में देखेंगे. गीता ने एक बार झिझकते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप के पास तो 2 मोबाइल हैं. वाऊ, कितने खूबसूरत हैं.’’

मैं ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘मैं तो ऐसे ही कह रही थी.’’

गीता और रजनीश के जाने के बाद घर में गहरा सन्नाटा छा गया. मां और बाबूजी दोनों ही शंकित थे कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. पर अब कहां जाना था मुझे. हालांकि पापा ने मुझे साथ चलने को कहा था पर मैं ने मना कर दिया. बाबूजी का दुलार तो मुझे हमेशा ही मिलता रहा था पर मां और नवीन के सामने उन की चलती ही नहीं थी. पर अब कितना कुछ बदल गया था. थोड़ी भागदौड़ के बाद मुझे नवीन की जगह नौकरी भी मिल गई. रसोईघर जहां मैं दिन भर खटती रहती थी, को मां ने संभाल लिया था. नौकरी पर आतेजाते मुझे लगता था कि कई आंखें मुझे घूर रही हैं. दरअसल, वे औरतें, जिन्हें मुझे ले कर निंदासुख मिलता था अब अजीब नजरों से मुझे देखती थीं. एक अभी हुई विधवा रोज नईनई पोशाकें पहन कर दफ्तर जाए यह बात उन के गले से नहीं उतरती थी. मां का भी अब महल्ले की चौपाल पर बैठना लगभग बंद हो गया था, तो पड़ोसिनों का आनाजाना भी कम हो गया था.

मेरी नौकरी ने जैसे मुझे नया जीवन दे दिया था. ऐसा लगता था जैसे मरुस्थल में बरसाती बादल उमड़नेघुमड़ने लगे हों. इस से बेचैनी और भी बढ़ जाती, तो मैं सोचती कि मैं विधवा हो गई तो इस में मेरा क्या कुसूर? दहेज में मिली कई कीमती साडि़यों की तह अभी तक नहीं खुली थीं. मैं जब उन में से कोई साड़ी निकाल कर पहनती तो मां प्रश्नवाचक नजरों से चुपचाप देखती रहतीं और मैं जानबूझ कर अनजान बनी रहती. कालोनी की जवान लड़कियों को मेरा कलर कौंबिनेशन बहुत पसंद आता. वे प्रशंसनीय नजरों से मुझे देखतीं पर मैं इस सब से तटस्थ रहती.

दफ्तर में मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करता था शेखर. वह मेरे काम में मेरी मदद करता. फिर कभीकभी बाहर किसी रेस्तरां में कौफी पीने भी हम चले जाते. गपशप के दौरान कब वह मेरे करीब आता चला गया मुझे पता ही नहीं चला. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. एक दिन इतवार को दोपहर के समय जब मैं मिनी को गोद में लिए बाहर निकली तो मां ने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा. मुझे लगा जैसे मैं कोई अपराध करने जा रही हूं. पर अब मैं ने नजरों की भाषा को पढ़ना छोड़ दिया था. मन में एक अजीब सी प्यास थी और मैं मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रही थी.

देर शाम को जब घर लौटी तो मां की नजर में कई सवाल थे. वे मिनी को उठा कर बाहर ले गईं और लौटीं तो पूछा, ‘‘यह शेखर अंकल कौन है?’’ मैं सन्न रह गई. मां मुझ से ऐसा सीधा सवाल करेंगी यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मगर जल्दी ही मैं ने खुद को संभाला ओर बोली, ‘‘शेखर मेरे दफ्तर में काम करता है. मौल में मिल गया था.’’ मां ने हुंकार भरा और अपने कमरे में चली गईं. देर रात तक मां और बाबूजी की आवाजें कटकट कर मेरे कानों में आती रहीं और मैं दमसाधे सुनती रही. साथ में यह भी सोचती रही कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग? क्या मैं सारी उम्र यों ही गुजार दूं?

मुझे अकसर औफिस से आतेआते देर हो जाती. तब बाबूजी मुझे बस स्टौप पर खड़े मिलते. मुझे देखते ही कहते, ‘‘मैं यों ही टहलता हुआ इधर निकल आया था. सोचा, तुम आ रही होगी.’’ फिर सिर झुकाए साथसाथ चलने लगते. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कांच के मकान में रह रही हूं, जरा सी ठोकर लगते ही टूट जाएगा. मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर बाबूजी और मां का बुढ़ापा कैसे कटेगा यह सवाल मुझे सालता था. मैं शेयर के साथ अपनी तनहाई शेखर करना चाहती पर मां और बाबूजी का बुढ़ापा बीच में आ जाता था उन की आंखों का डर मुझे खुल कर जीने नहीं दे रहा था. शेखर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर गया था. मैं सोच रही थी कि जब वह वापस आएगा तो उस से खुल कर बात करूंगी. उस ने वादा किया था कि वह अपने मांबाप को मना लेगा इसलिए मैं आश्वस्त थी.

लेकिन एक दिन औफिस में मैं ने अपनी मेज पर एक लंबा लिफाफा रखा देखा. लिफाफा खुला ही था. अंदर से कागज निकाला तो देखा तो लगा छनाक से कुछ टूट गया हो. एक वैडिंग कार्ड था- शेखर विद सरोज. साथ में एक चिट्ठी भी थी जिस में लिखा था- मीरा, एक विधवा के साथ विवाह करने की बात मेरे मम्मीडैडी के गले नहीं उतरी. विधवा, उस पर एक बच्ची की मां. सच मानो मीरा मैं ने मम्मीडैडी को समझाने की बहुत कोशिश की पर अपने अविवाहित बेटे के लिए उन के दिल में बड़ेबड़े अरमान हैं. कैसे तोड़ दूं उन्हें… मुझे क्षमा कर देना, मीरा. अगले दिन मैं ने निगाह घुमा कर देखा, शेखर मोटीमोटी फाइलों में गुम होने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं ने खत सहित वैडिंग कार्ड को टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाला तो उस ने घूर कर मुझे देखा. मैं रोई नहीं. रोना मेरी आदत नहीं है. मैं तेजी से टाइप करती रही और मैं ने चपरासी को पंखा तेज करने को कहा, क्योंकि मन की तपिश और बढ़ गई थी.

शाम को जब औफिस से निकली तो खुली हवा के झोंके मन को सहलाने लगे मेरे कदम अपनेआप ही न्यू औप्टिकल स्टोर की ओर बढ़ गए. बाबूजी के लिए नया चश्मा बनवा कर जब निकली तो याद आया कि मां कई दिन से एक साड़ी लाने को कह रही थीं. एक ही क्षण में दुनिया कितनी बदल गई थी. बाबूजी डेढ़ महीने से नया चश्मा बनवाने को कह रहे थे पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था. उन्हें पढ़नेलिखने में कितनी परेशानी हो रही थी, आज याद आया तो मन में अपराधबोध सा जागने लगा था. लगता है बाबूजी को शेखर के विवाह की बात पता चल गई थी. वे बस स्टौप पर भी नहीं आए. अगली सुबह देखा तो वे मोटरसाइकिल साफ कर रहे थे. मुझे लगा इसे बेचने की तैयारी है. मन में कसैलापन भर गया. पर तभी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें तो मोटरसाइकिल चलानी आती है न. चलो जरा डाक्टर की दुकान तक ले चलो. बसों में जाने में दिक्कत होती है.’’ मैं मुंह खोले उन्हें देखती रह गई और फिर उन के सीने से जा लगी, ‘‘बाबूजी…’’ मुझ से बोला नहीं जा रहा था.

तभी मां की आवाज आई, ‘‘और हां, लौटते हुए बेकरी से एक केक लेती आना. आज तेरा जन्मदिन है न…’’

Family Story: नारीवाद – जननी के व्यक्तित्व और सोच में कैसा था विरोधाभास

Family Story: मैं पत्रकार हूं. मशहूर लोगों से भेंटवार्त्ता कर उन के बारे में लिखना मेरा पेशा है. जब भी हम मशहूर लोगों के इंटरव्यू लेने के लिए जाते हैं उस वक्त यदि उन के बीवीबच्चे साथ में हैं तो उन से भी बात कर के उन के बारे में लिखने से हमारी स्टोरी और भी दिलचस्प बन जाती है.

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं मशहूर गायक मधुसूधन से भेंटवार्त्ता के लिए जिस समय उन के पास गया उस समय उन की पत्नी जननी भी वहां बैठ कर हम से घुलमिल कर बातें कर रही थीं. जननी से मैं ने कोई खास सवाल नहीं पूछा, बस, यही जो हर पत्रकार पूछता है, जैसे ‘मधुसूधन की पसंद का खाना और उन का पसंदीदा रंग क्या है? कौनकौन सी चीजें मधुसूधन को गुस्सा दिलाती हैं. गुस्से के दौरान आप क्या करती हैं?’ जननी ने हंस कर इन सवालों के जवाब दिए. जननी से बात करते वक्त न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि बाहर से सीधीसादी दिखने वाली वह औरत कुछ ज्यादा ही चतुरचालाक है.

लिविंगरूम में मधुसूधन का गाते हुए पैंसिल से बना चित्र दीवार पर सजा था.

उस से आकर्षित हो कर मैं ने पूछा, ‘‘यह चित्र किसी फैन ने आप को तोहफे में दिया है क्या,’’ इस सवाल के जवाब में जननी ने मुसकराते हुए कहा, ‘हां.’

‘‘क्या मैं जान सकता हूं वह फैन कौन था,’’ मैं ने भी हंसते हुए पूछा. मधुसूधन एक अच्छे गायक होने के साथसाथ एक हैंडसम नौजवान भी हैं, इसलिए मैं ने जानबूझ कर यह सवाल किया.

‘‘वह फैन एक महिला थी. वह महिला कोई और नहीं, बल्कि मैं ही हूं,’’ यह कहते हुए जननी मुसकराईं.

‘‘अच्छा है,’’ मैं ने कहा और इस के जवाब में जननी बोलीं, ‘‘चित्र बनाना मेरी हौबी है?’’

‘‘अच्छा, मैं भी एक चित्रकार हूं,’’ मैं ने अपने बारे में बताया.

‘‘रियली, एक पत्रकार चित्रकार भी हो सकता है, यह मैं पहली बार सुन रही हूं,’’ जननी ने बड़ी उत्सुकता से कहा.

उस के बाद हम ने बहुत देर तक बातें कीं? जननी ने बातोंबातों में खुद के बारे में भी बताया और मेरे बारे में जानने की इच्छा भी प्रकट की? इसी कारण जननी मेरी खास दोस्त बन गईं.

जननी कई कलाओं में माहिर थीं. चित्रकार होने के साथ ही वे एक अच्छी गायिका भी थीं, लेकिन पति मधुसूधन की तरह संगीत में निपुण नहीं थीं. वे कई संगीत कार्यक्रमों में गा चुकी थीं. इस के अलावा अंगरेजी फर्राटे से बोलती थीं और हिंदी साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था. अंगरेजी साहित्य में एम. फिल कर के दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी करते समय मधुसूधन से उन की शादी तय हो गई. शादी के बाद भी जननी ने अपनी किसी पसंद को नहीं छोड़ा. अब वे अंगरेजी में कविताएं और कहानियां लिखती हैं.

उन के इतने सारे हुनर देख कर मुझ से रहा नहीं गया. ‘आप के पास इतनी सारी खूबियां हैं, आप उन्हें क्यों बाहर नहीं दिखाती हैं?’ अनजाने में ही सही, बातोंबातों में मैं ने उन से एक बार पूछा. जननी ने तुरंत जवाब नहीं दिया. दो पल के लिए वे चुप रहीं.

अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने मुसकराहट के साथ कहा, ‘आप मुझ से यह  सवाल एक दोस्त की हैसियत से पूछ रहे हैं या पत्रकार की हैसियत से?’’

जननी के इस सवाल को सुन कर मैं अवाक रह गया क्योंकि उन का यह सवाल बिलकुल जायज था. अपनी भावनाओं को छिपा कर मैं ने उन से पूछा, ‘‘इन दोनों में कोई फर्क है क्या?’’

‘‘हां जी, बिलकुल,’’ जननी ने कहा.

‘‘आप ने इन दोनों के बीच ऐसा क्या फर्क देखा,’’ मैं ने सवाल पर सवाल किया.

‘‘आमतौर पर हमारे देश में अखबार और कहानियों से ऐसा प्रतीत होता है कि एक मर्द ही औरत को आगे नहीं बढ़ने देता. आप ने भी यह सोच कर कि मधु ही मेरे हुनर को दबा देते हैं, यह सवाल पूछ लिया होगा?’’

कुछ पलों के लिए मैं चुप था, क्योंकि मुझे भी लगा कि जननी सच ही कह रही हैं. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘आप सच कहती हैं, जननी. मैं ने सुना था कि आप की पीएचडी आप की शादी की वजह से ही रुक गई, इसलिए मैं ने यह सवाल पूछा.’’

‘‘आप की बातों में कहीं न कहीं तो सचाई है. मेरी पढ़ाई आधे में रुक जाने का कारण मेरी शादी भी है, मगर वह एक मात्र कारण नहीं,’’ जननी का यह जवाब मुझे एक पहेली सा लगा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जब मैं रिसर्च स्कौलर बनी थी, ठीक उसी वक्त मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन की इकलौती संतान होने के नाते उन के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी मेरी बन गई थी. सच कहें तो अपने पिताजी के व्यवसाय को चलातेचलाते न जाने कब मुझे उस में दिलचस्पी हो गई. और मैं अपनी पीएचडी को बिलकुल भूल गई. और अपने बिजनैस में तल्लीन हो गई. 2 वर्षों बाद जब मेरे पिताजी स्वस्थ हुए तो उन्होंने मेरी शादी तय कर दी,’’ जननी ने अपनी पढ़ाई छोड़ने का कारण बताया.

‘‘अच्छा, सच में?’’

जननी आगे कहने लगी, ‘‘और एक बात, मेरी शादी के समय मेरे पिताजी पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे. मधु के घर वालों से यह साफ कह दिया कि जब तक मेरे पिताजी अपना कारोबार संभालने के लायक नहीं हो जाते तब तक मैं काम पर जाऊंगी और उन्होंने मुझे उस के लिए छूट दी.’’

मैं चुपचाप जननी की बातें सुनता रहा.

‘‘मेरी शादी के एक साल बाद मेरे पिता बिलकुल ठीक हो गए और उसी समय मैं मां बनने वाली थी. उस वक्त मेरा पूरा ध्यान गर्भ में पल रहे बच्चे और उस की परवरिश पर था. काम और बच्चा दोनों के बीच में किसी एक को चुनना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन मैं ने अपने बच्चे को चुना.’’

‘‘मगर जननी, बच्चे के पालनपोषण की जिम्मेदारी आप अपनी सासूमां पर छोड़ सकती थीं न? अकसर कामकाजी औरतें ऐसा ही करती हैं. आप ही अकेली ऐसी स्त्री हैं, जिन्होंने अपने बच्चे की परवरिश के लिए अपने काम को छोड़ दिया.’’

जननी ने मुसकराते हुए अपना सिर हिलाया.

‘‘नहीं शंकर, यह सही नहीं है. जैसे आप कहते हैं उस तरह अगर मैं ने अपनी सासूमां से पूछ लिया होता तो वे भी मेरी बात मान कर मदद करतीं, हो सकता है मना भी कर देतीं. लेकिन खास बात यह थी कि हर औरत के लिए अपने बच्चे की परवरिश करना एक गरिमामयी बात है. आप मेरी इस बात से सहमत हैं न?’’ जननी ने मुझ से पूछा.

मैं ने सिर हिला कर सहमति दी.

‘‘एक मां के लिए अपनी बच्ची का कदमकदम पर साथ देना जरूरी है. मैं अपनी बेटी की हर एक हरकत को देखना चाहती थी. मेरी बेटी की पहली हंसी, उस की पहली बोली, इस तरह बच्चे से जुड़े हर एक विषय को मैं देखना चाहती थी. इस के अलावा मैं खुद अपनी बेटी को खाना खिलाना चाहती थी और उस की उंगली पकड़ कर उसे चलना सिखाना चाहती थी.

‘‘मेरे खयाल से हर मां की जिंदगी में ये बहुत ही अहम बातें हैं. मैं इन पलों को जीना चाहती थी. अपनी बच्ची की जिंदगी के हर एक लमहे में मैं उस के साथ रहना चाहती थी. यदि मैं काम पर चली जाती तो इन खूबसूरत पलों को खो देती.

‘‘काम कभी भी मिल सकता है, मगर मेरी बेटी पूजा की जिंदगी के वे पल कभी वापस नहीं आएंगे? मैं ने सोचा कि मेरे लिए क्या महत्त्वपूर्ण है-कारोबार, पीएचडी या बच्ची के साथ वक्त बिताना. मेरी अंदर की मां की ही जीत हुई और मैं ने सबकुछ छोड़ कर अपनी बच्ची के साथ रहने का निर्णय लिया और उस के लिए मैं बहुत खुश हूं,’’ जननी ने सफाई दी.

मगर मैं भी हार मानने वाला नहीं था. मैं ने उन से पूछा, ‘‘तो आप के मुताबिक अपने बच्चे को अपनी मां या सासूमां के पास छोड़ कर काम पर जाने वाली औरतें अपना फर्ज नहीं निभाती हैं?’’

मेरे इस सवाल के बदले में जननी मुसकराईं, ‘‘मैं बाकी औरतों के बारे में अपनी राय नहीं बताना चाहती हूं. यह तो हरेक औरत का निजी मामला है और हरेक का अपना अलग नजरिया होता है. यह मेरा फैसला था और मैं अपने फैसले से बहुत खुश हूं.’’

जननी की बातें सुन कर मैं सच में दंग रह गया, क्योंकि आजकल औरतों को अपने काम और बच्चे दोनों को संभालते हुए मैं ने देखा था और किसी ने भी जननी जैसा सोचा नहीं.

‘‘आप क्या सोच रहे हैं, वह मैं समझ सकती हूं, शंकर. अगले महीने से मैं एक जानेमाने अखबार में स्तंभ लिखने वाली हूं. लिखना भी मेरा पसंदीदा काम है. अब तो आप खुश हैं न, शंकर?’’ जननी ने हंसते हुए पूछा.

मैं ने भी हंस कर कहा, ‘‘जी, बिलकुल. आप जैसी हुनरमंद औरतों का घर में बैठना गलत है. आप की विनम्रता, आप की गहरी सोच, आप की राय, आप का फैसला लेने में दृढ़ संकल्प होना देख कर मैं हैरान भी होता हूं और सच कहूं तो मुझे थोड़ी सी ईर्ष्या भी हो रही है.’’

मेरी ये बातें सुन कर जननी ने हंस कर कहा, ‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’

मैं भी जननी के साथ उस वक्त हंस दिया मगर उस की खुद्दारी को देख कर हैरान रह गया था. जननी के बारे में जो बातें मैं ने सुनी थीं वे कुछ और थीं. जननी अपनी जिंदगी में बहुत सारी कुरबानियां दे चुकी थीं. पिता के गलत फैसले से नुकसान में चल रहे कारोबार को अपनी मेहनत से फिर से आगे बढ़ाया जननी ने. मां की बीमारी से एक लंबी लड़ाई लड़ कर अपने पिता की खातिर अपने प्यार की बलि चढ़ा कर मधुसूधन से शादी की और अपने पति के अभिमान के आगे झुक कर, अपनी ससुराल वालों के ताने सह कर भी अपने ससुराल का साथ देने वाली जननी सच में एक अजीब भारतीय नारी है. मेरे खयाल से यह भी एक तरह का नारीवाद ही है.

‘‘और हां, मधुसूधनजी, आप सोच रहे होंगे कि जननी के बारे में यह सब जानते हुए भी मैं ने क्यों उन से ऐसे सवाल पूछे. दरअसल, मैं भी एक पत्रकार हूं और आप जैसे मशहूर लोगों की सचाई सामने लाना मेरा पेशा है न?’’

अंत में एक बात कहना चाहता हूं, उस के बाद जननी को मैं ने नहीं देखा. इस संवाद के ठीक 2 वर्षों बाद मधुसूदन और जननी ने आपसी समझौते पर तलाक लेने का फैसला ले लिया.

Family Story: क्रंदन – पीयूष की शराब की लत छुड़वा पाई कोकिला

Family Story: पीयूष ने दोनों बैग्स प्लेन में चैकइन कर स्वयं अपनी नवविवाहित पत्नी कोकिला का हाथ थामे उसे सीट पर बैठाया. हनीमून पर सब कुछ कितना प्रेम से सराबोर होता है. कहो तो पति हाथ में पत्नी का पर्स भी उठा कर चल पड़े, पत्नी थक जाए तो गोदी में उठा ले और कुछ उदास दिखे तो उसे खुश करने हेतु चुटकुलों का पिटारा खोल दे.

भले अरेंज्ड मैरिज थी, किंतु थी तो नईनई शादी. सो दोनों मंदमंद मुसकराहट भरे अधर लिए, शरारत और झिझक भरे नयन लिए, एकदूसरे के गलबहियां डाले चल दिए थे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने. हनीमून को भरपूर जिया दोनों ने. न केवल एकदूसरे से प्यार निभाया, अपितु एकदूसरे की आदतों, इच्छाओं, अभिलाषाओं को भी पहचाना, एकदूसरे के परिवारजनों के बारे में भी जाना और एक सुदृढ़ पारिवारिक जीवन जीने के वादे भी किए.

हनीमून को इस समझदारी से निभाने का श्रेय पीयूष को जाता है कि किस तरह उस ने कोकिला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया. एक सुखीसशक्त परिवार बनाने हेतु और क्या चाहिए भला? पीयूष अपने काम पर पूरा ध्यान देने लगा. रातदिन एक कर के उस ने अपना कारोबार जमाया था. अपने आरंभ किए स्टार्टअप के लिए वैंचर कैपिटलिस्ट्स खोजे थे. न समयबंधन देखा न थकावट. सिर्फ मेहनत करता गया. उधर कोकिला भी घरगृहस्थी को सही पथ पर ले चली.

‘‘आज फिर देर से आई लीला. क्या हो गया आज?’’ कामवाली के देर से आने पर कोकिला ने उसे टोका.

इस पर कामवाली ने अपना मुंह दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, कल रात मेरे मर्द ने फिर से पी कर दंगा किया मेरे साथ. कलमुंहा न खुद कमाता है और न मेरा पैसा जुड़ने देता है. रोजरोज मेरा पैसा छीन कर दारू पी आता है और फिर मुझे ही पीटता है.’’

‘‘तो क्यों सहती है? तुम लोग भी न… तभी कहते हैं पढ़लिख लिया करो. बस आदमी, बेटे के आगे झुकती रहती हो… कमाती भी हो फिर भी पिटती हो…,’’ कोकिला आज के समय की स्त्री थी. असहाय व दयनीय स्थिति से समझौते के बजाय उस का हल खोजना चाहती थी.

शाम को घर लौटे पीयूष के हाथ में पानी का गिलास थमाते हुए कोकिला ने हौले से उस का हाथ अपने पेट पर रख दिया.

‘‘सच? कोकी, तुम ने मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर दिए हैं. हमारी गृहस्थी में एक और सदस्य का जुड़ना मुझे कितनी प्रसन्नता दे रहा है, मैं बयां नहीं कर सकता. बोलो, इस खुशी के अवसर पर तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘मुझे जो चाहिए वह आप सब मुझे पहले ही दे चुके हैं,’’ कोकिला भी बहुत खुश थी.

‘‘पर अब तुम्हें पूरी देखभाल की आवश्यकता है.’’ पीयूष उसे मायके ले गया जो पास ही था.

इस खुशी के अवसर पर कोकिला के मायके में उस के और पीयूष के स्वागत में खानेपीने की ए वन तैयारी थी. उन के पहुंचते ही कोकिला की मम्मी उन्हें गरमगरम स्नैक्स जोर दे कर खिलाने लगीं और उधर कोकिला के पापा पीयूष और अपने लिए 2 गिलासों में शराब ले आए.

‘‘पापा यह आप क्या कर रहे हैं?’’ उन की इस हरकत से कोकिला अचंभित भी थी और परेशान भी. उसे अपने पापा की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

किंतु पीयूष को बुरा नहीं लगा. बोला, ‘‘तुम्हारे पापा ने इस मौके को सैलिब्रेट करने हेतु ड्रिंक बनाया है, तो इस में इतना बुरा मानने की क्या बात है?’’

फिर तो यह क्रम बन गया. जब भी कोकिला मायके जाती, पीयूष और उस के पापा पीने बैठ जाते. कोकिला अपने मायके जाने से कतराने लगी. किंतु उस की स्थिति ऐसी थी कि वहां आनाजाना उस की मजबूरी थी.

समय बीतने के साथ पीयूष और कोकिला के घर में जुड़वां बच्चों का आगमन हुआ. दोनों की प्रसन्नता नए आयाम छू रही थी. शिशुओं की देखभाल करने में दोनों उलझे रहते. शुरूशुरू में बच्चों की नित नई बातें तथा बालक्रीड़ाएं दोनों को खुशी से व्यस्त रखतीं. रोज शाम घर लौटने पर कोकिला पीयूष को कभी हृदय की तो कभी मान्या की बातें सुनाती. दोनों इसी बहाने अपना बचपन एक बार फिर जी रहे थे.

एक शाम घर लौटे पीयूष से आ रही गंध ने कोकिला को चौंकाया, ‘‘तुम शराब पी कर घर आए हो?’’

‘‘अरे, वह मोहित है न. आज उस ने पार्टी दी थी. दरअसल, उस की प्रमोशन हो गई है. सब दोस्तयार पीछे पड़ गए तो थोड़ी पीनी पड़ी,’’ कह पीयूष फौरन कमरे में चला गया.

1-2 दिन की बात होती तो शायद कोकिला को इतनी परेशानी न होती, किंतु पीयूष तो रोज शाम पी कर घर आने लगा.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, पीयूष? तुम तो रोज ही पी कर घर आने लगे हो. पूछने पर कभी कहते हो फलां दोस्त ने पिला दी, कभी फलां के घर पार्टी थी, कभी किसी दोस्त की शादी तय होने की खुशी में तो कभी किसी दोस्त की परेशानी बांटने में साथ देने हेतु. शायद तुम

देख नहीं पा रहे हो कि तुम किस राह निकल पड़े हो. तुम्हारी सारी मेहनत, इतने परिश्रम से खड़ा किया तुम्हारा कारोबार, हमारी गृहस्थी सब बरबाद हो जाएगा. शराब किसी को नहीं छोड़ती,’’ कोकिला को भविष्य की चिंता खाए जा रही थी.

‘‘तुम्हारा नाम भले ही कोकिला है पर तुम्हारी वाणी अब कौए समान हो गई,’’ पीयूष झल्ला कर बोला.

‘‘तो क्या रोजरोज पी कर घर आने पर टोकना गलत है?’’ कोकिला भी चिल्लाई.

गृहकलह को शांत करने का उपाय भी पीयूष ने ही खोजा. अगली सुबह सब से पहले उठ कर चाय बना उस ने कोकिला को जगाया और फिर हाथ जोड़ कर उस से क्षमायाचना की, ‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. देखो, यदि तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो मैं आज से नहीं पीऊंगा. अब तो खुश?’’

और वाकई पीयूष ने शराब त्यागने का भरपूर प्रयास शुरू कर दिया. वे दोस्त छोड़ दिए जिन के साथ वह पीता था. जब उन के फोन आते तब पीयूष कोई न कोई बहाना बना देता. कोकिला बहुत खुश हुई कि अब इन की यह लत छूट जाएगी.

अभी 1 हफ्ता ही बीता था कि पीयूष के चाचाजी जो अमेरिका में रहते थे, 1 हफ्ते के लिए उन के घर रहने आए. वे अपने साथ एक महंगी शराब की बोतल लाए. किसी लत से लड़ते हुए इनसान के सामने उसी लत का स्रोत रख दिया जाए तो क्या होगा? ऐसा नहीं था कि पीयूष ने बचने का प्रयास नहीं किया.

‘‘चाचाजी, मैं ने शराब पीनी छोड़ दी है… मुझे कुछ परेशानी होने लगी है लगातार पीने से,’’ पीयूष ने चाचा को समझाने की कोशिश की.

किंतु चाचाजी ने एक न सुनी, ‘‘अरे क्या यार, इतनी सस्ती शराब पीता है, इसलिए तुझे परेशानी हो रही है. अच्छी, महंगी शराब पी, फिर देख. हमारे अमेरिका में तो रोज पीते हैं और कभी कुछ नहीं होता.’’

चाचाजी इस बात पर ध्यान देना भूल गए कि बुरी चीज बुरी होती है. फिर उस की क्वालिटी कैसी भी हो. जब रोज पूरीपूरी बोतल गटकेंगे तो नुकसान तो होगा ही न.

बस, फिर क्या था. पीयूष की आदत फिर शुरू हो गई. कोकिला के मना करने, हाथ जोड़ने, प्रार्थना करने और लड़ने का भी कोई असर नहीं.

‘‘तो क्या चाहती हो तुम? चाचाजी के सामने कह दूं कि आप अकेले पियो, मैं आप का साथ नहीं दूंगा? तुम समझती क्यों नहीं हो… मैं साथ ही तो दे रहा हूं. अब घर आए मेहमान का अपमान करूं क्या? चिंता न करो, जब चाचाजी लौट जाएंगे तब मैं बिलकुल नहीं पीऊंगा. मैं वादा करता हूं.’’

कुछ समय बिता कर चाचाजी चले गए. किंतु पीयूष की लत नहीं गई. वह पी कर घर आता रहा. एक रात कोकिला ने दरवाजा नहीं खोला, ‘‘तुम अपने सारे वादे भूल जाते हो, किंतु मुझे याद हैं. अब से जब भी पी कर आओगे, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी.’’

‘‘सुनो तो कोकिला, बस इस बार घर में आने दो. आइंदा से बाहर से पी कर घर नहीं आया करूंगा. घर में ही पी लिया करूं तो इस में तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है न?’’

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे पीयूष?’’

‘‘तो ठीक है, मैं बाहर गैरेज में बैठ कर पी लिया करूंगा.’’

वह कहते हैं न कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, जिसे पीने की लत लग जाए, वह कैसे न कैसे पीने के अवसर ढूंढ़ ही लाता है. घर में सहर्ष स्वीकृति न मिलने पर पीयूष ने गैरेज में पीना आरंभ कर दिया. रोज शाम गैरेज में दरवाजा बंद कर शराब पीता और फिर सोने के लिए लड़खड़ाता घर चला आता. ‘‘कल रात फिर तुम ने पूरी बोतल पी? कुछ तो खयाल करो, पीयूष. तुम शराबी बनते जा रहे हो,’’ कोकिला नाराज होती.

‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. आज से बस 2 पैग लिया करूंगा,’’ सुबह होते ही पीयूष फौरन क्षमा मांगने लगता. लेकिन शाम ढलते ही उसे सिर्फ बोतल नजर आती.

उस रात जब फिर पीयूष लड़खड़ाता हुआ घर में दाखिल हुआ तो कोकिला का पारा 7वें आसमान पर था. उस ने पीयूष को कमरे में घुसने से साफ मना कर दिया, ‘‘मेरे और लीला के पति में इतना ही अंतर है कि वह उस के पैसे से पी कर उसे ही मारता है और तुम अपने पैसे से पी कर चुपचाप सो जाते हो, लेकिन गृहस्थियां तो दोनों ही उलझ कर रह गई हैं न… कल से पी कर आए, तो कमरे में आने की जरूरत नहीं है.’’

कोकिला के इस अल्टीमेटम के चलते दोनों में बहस छिड़ गई और फिर दोनों अलगअलग कमरे में सोने लगे. धीरेधीरे पीयूष और कोकिला एकदूसरे से और भी दूर होते चले गए. कोकिला पीयूष से नाराज रहने लगी. बारबार पीयूष के झूठ के कारण वह उस की ओर से हताश हो चुकी थी. हार कर उस ने उसे समझाना ही छोड़ दिया.

अब पीयूष की तबीयत अकसर खराब रहने लगी. वह बहुत कमजोर होता जा रहा था. जब तक डाक्टर के पास पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पता चला कि पीयूष को शराब के कारण गैलपिंग सिरोसिस औफ लिवर हो गया है. अस्पताल वालों ने टैस्टों की लंबी सूची थमा दी. रातदिन डाक्टरों के चक्कर काटती कोकिला बेहाल लगने लगी थी. बच्चे भी कभी किसी रिश्तेदार के सहारे तो कभी किसी मित्र के घर अपना समय काट रहे थे.

देखते ही देखते अस्पताल वालोें ने क्व18 लाख का बिल बना दिया. कोकिला और पीयूष दोनों ही कांप उठे. कहां से लाएंगे इतनी रकम… इतना बड़ा बिल चुकाने हेतु सब बिक जाना पक्का था. जमीन, शेयर, म्यूचुअल बौंड, यहां तक कि घर भी.

एक शाम पैसों का इंतजाम करने हेतु पने निवेश के दस्तावेज ले कर पीयूष और कोकिला गाड़ी से घर लौट रहे थे. कोकिला बेहद उदास थी. उस की आंखें बरस रही थीं, ‘‘यह क्या हो गया है, पीयूष? हमारी गृहस्थी कहां से कहां आ पहुंची है… काश, तुम पहले ही होश में आ जाते.’’

कोकिला की बातें सुन, उस की हालत देख पीयूष की आंखें भी डबडबा गईं कि काश, उस ने पहले सुध ली होती. अपनी पत्नी, बच्चों के बारे में जिम्मेदारी से सोचा होता. डबडबाई आंखों से राह धुंधला जाती है. गाड़ी चलाते हुए आंखें पोंछने को जैसे ही पीयूष ने नीचे मुंह झुकाया सामने से अचानक तेजी से आते एक ट्रक ने उन की गाड़ी को टक्कर मार दी. पीयूष और कोकिला की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

नन्हे हृदय और मान्या अब इस संसार में बिलकुल अकेले रह गए. कौन सुध लेगा इन नन्ही जानों की? जब नाविक ही नैया को डुबोने पर उतारू हो तो उस नाव में सवार अन्य लोगों की जिंदगी डोलना लाजिम है.

Hindi Story: एक गुनाह और सही – क्या था मेरा गुनाह

Hindi Story: सच तो यह है कि मैं ने कोई गुनाह नहीं किया. मैं ने बहुत सोचसमझ कर फैसला किया था और मैं अपने फैसले पर बहुत खुश हूं. मुझे बिलकुल भी पछतावा नहीं है.

मांबाप के घर गई थी. मां ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा भी नहीं. उसी मां ने जो कैलेंडर में छपी खूबसूरत लड़की को देख कर कहती थी कि ये मेरी चंद्रा जैसी है. पापा ने चेहरे के सामने से अखबार भी नहीं हटाया.

‘‘क्या मैं चली जाऊं? साधारण शिष्टाचार भी नहीं निभाया जाएगा?’’ सब्जी काटती मां के हाथ रुक गए.

‘‘अब क्या करने आई हो? मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखा. हमारा घर से निकलना भी मुश्किल कर दिया है. लोग तरहतरह के सवाल करते हैं.’’

‘‘कैसे सवाल, मम्मी?’’

‘‘यही कि तुम्हारे पति ने तुम्हें निकाल दिया है. तुम्हारा तलाक हो गया है. तुम बदचलन हो, इसलिए तुम्हारा पति तलाक देने को खुशी से तैयार हो गया.’’

‘‘बदचलन होने के लिए वक्त किस के पास था, मम्मी? सवेरे से शाम तक नौकरी करती थी, फिर घर का सारा काम करना पड़ता था. तुम तो समझ सकती हो?’’

पापा ने कहा, ‘‘तुम ने हमारी राय जानने की कोई परवा नहीं की, सबकुछ अपनेआप ही कर लिया.’’

‘‘इसलिए कि आप लोग केवल गलत राय देते जबकि हर सूरत में मैं राजीव से तलाक लेने का फैसला कर चुकी थी. फैसला जब मेरे और राजीव के बीच में होना था तो आप को किसलिए परेशान करती. मैं नौकरी करतेकरते तंग आ गई थी. हर औरत की ख्वाहिश होती है कि वह अपना घर संभाले. 1-2 बच्चे हों. मां बनने की इच्छा करना किसी औरत के लिए गुनाह तो नहीं है पर राजीव के पास रह कर मैं कुछ भी नहीं बन सकती थी. मैं सिर्फ रुपया कमाने वाली मशीन बन कर रह गई थी.’’

‘‘किसकिस को समझाएं, कुछ समझ नहीं आता.’’

‘‘लोगों को कुछ काम नहीं है. दूसरों पर उंगली उठाना उन की आदत है. उन की अपनी जिंदगी इतनी नीरस है कि वे दूसरों की जिंदगी में ताकझांक कर के अपना मनोरंजन करना चाहते हैं. खैर, मैं ने जो ठीक समझा, वही किया है. नौकरी राजीव के साथ रह कर भी कर रही थी, अब भी करूंगी और शादी से पहले भी करती थी.’’

‘‘शादी से पहले तुम अपनी खुशी से वक्त काटने के लिए नौकरी करती थी.’’

‘‘दूसरों को कहने के लिए ये बातें अच्छी हैं. आप भी जानते हैं और मैं भी जानती हूं कि मेरी शादी से पहले नौकरी कर के लाया हुआ रुपया व्यर्थ नहीं गया, सिर्फ मेरी खुशी पर ही खर्च नहीं हुआ. मेरा रुपया कम से कम एक भाई की इंजीनियरिंग और दूसरे की डाक्टरी की फीस देने के काम आ गया. मैं आप को दोष नहीं दे रही हूं, क्योंकि हम मध्यवर्ग के लोग हैं और यह सच है कि हर एक के शासन में मध्यवर्ग ही पिसा है.

‘‘गरीबों को फायदा हुआ. उन की मजदूरी बढ़ गई. उन की तनख्वाह बढ़ गई पर मध्यवर्ग के लोग बढ़ी हुई महंगाई और बच्चों की शिक्षा के खर्च के बीच पिसते रहे, अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहे. सब ने गरीबों की बात की पर कभी किसी ने भी मध्यवर्गीय लोगों की बात नहीं की. फिर भी आप लोग यह बात कह रहे हैं कि मैं ने सिर्फ अपनी खुशी के लिए, वक्त काटने के लिए नौकरी की. आप की तनख्वाह से सिर्फ घर का खर्च आसानी से चलता था और कुछ नहीं.’’

मैं रुक गई और मैं ने पापा की ओर देखा. उन के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. मां ने जोश में आ कर अपनी उंगली काट ली थी.

‘‘यह वही मध्यवर्ग है जो देश को एक वक्त भूखे रह कर भी, अध्यापक, डाक्टर्स, इंजीनियर्स और वैज्ञानिक देता रहा है. देश की आजादी कायम रखने के लिए भी अपने बेटे फौज में ज्यादातर मध्यवर्गीय लोगों ने ही दिए हैं. यह वही पढ़ालिखा शिक्षित वर्ग है, जो चुपचाप बिना विद्रोह किए सबकुछ सहता आया है.’’

मैं और कुछ कहूं इस के पहले ही पापा ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘शाबाश, स्पीच अच्छी देती हो. मैं देख रहा हूं कि तुम्हें ऊंची शिक्षा दिलाना बेकार नहीं गया.’’ और वे हंसने लगे. मां के चेहरे पर भी मुसकराहट आ गई. वातावरण कुछ हलका होता लगा.

‘‘नौकरी अब मजबूरन करूंगी, अपना पेट भरने के लिए. खैर जो होना था, हो चुका है. तलाक हम दोनों की रजामंदी से हुआ है. हम दोनों ही समझ चुके थे कि अब साथ रहना नहीं हो सकेगा. मैं जा रही हूं, मम्मी. अगर आप लोग इजाजत देंगे तो कभीकभी देखने आ जाया करूंगी.’’

मेरी बात सुन कर जैसे मम्मी होश में आ गईं, बोलीं, ‘‘खाना खा कर जाओ.’’

‘‘नहीं, मम्मी, बहुत थकी हुई हूं, घर जा कर आराम करूंगी.’’

रास्ते में सरला मिल गई. वह बाजार से सामान खरीद कर लौट रही थी. कार रोक कर मैं ने सरला से साथ चलने को कहा.

‘‘दीदी, अभी तो मुझे और भी सामान लेना है.’’

‘‘फिर ले लेना,’’ मैं ने कहा और सरला को कार के भीतर घसीट लिया. कार थोड़ी पुरानी है. मेरे चाचा अमेरिका में बस गए थे और अपनी पुरानी कार मुझे शादी में भेंट दे गए थे.

सरला और मैं ने मिल कर एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया था. सरला मेरे ही दफ्तर में एक कंप्यूटर औपरेटर थी.

रात को अपने कमरे में पलंग पर लेटते ही मम्मीपापा का व्यवहार याद आ गया. उन लोगों ने तो मेरी जिंदगी को नहीं जिया है, फिर नाराज होने का भी उन्हें क्या हक है? जिंदगी के बारे में सोचते ही राजीव का चेहरा आंखों के सामने आ गया.

‘क्यों छोड़ी नौकरी? मैं ने तुम से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि मुझे एक कमाने वाली पत्नी मिलने वाली थी. मेरे लिए लड़कियों की क्या कमी थी?’

‘औफिस का काम और ऊपर से घर का काम, दोनों मैं नहीं कर पा रही थी. आप की हर जरूरत नौकरी करने पर मैं कैसे पूरी कर सकती थी? बहुत थक जाती हूं, इसलिए इस्तीफा दे आई हूं.’

‘कल जा कर अपना इस्तीफा वापस ले लेना, तभी मेरे साथ रहना हो सकेगा.’

‘अच्छी बात है, जैसा आप कहेंगे वही करूंगी.’

‘तुम समझती क्यों नहीं, चंद्रा. दो लोगों के कमाने से हम लोग ठीक से रह तो सकते हैं? दूसरों की तरह एकएक चीज के लिए किसी का मुंह तो नहीं देखना पड़ता है? तुम जब चाहती हो साडि़यां खरीद लेती हो, इसलिए कि हम दोनों कमाते हैं. ऊपर से महंगाई भी कितनी है.’

‘क्या शराब और सिगरेट के दाम बहुत बढ़ गए हैं? मैं ने सिर्फ इसलिए पूछा कि आप को गृहस्थी की और चीजों से तो कोई मतलब नहीं है.’

‘ठीक समझती हो,’ राजीव ने हंसते हुए कहा था.

‘मैं सिर्फ आप की तनख्वाह में भी रह सकती हूं अगर आप शराब, जुए और दोस्तों के खर्च में कुछ कटौती कर दें.’

‘नहीं, नहीं. मैं ऐसी ऊबभरी जिंदगी नहीं जी सकूंगा.’

‘मैं भी फिर इतनी थकानभरी जिंदगी कब तक जी सकूंगी?’

‘सुनो, घर के कामों को जरा आसानी से लिया करो. औफिस से आने पर अगर देर हो जाए तो किसी होटल में भी खाना खाया जा सकता है. तुम घर के कामों को बेवजह बहुत महत्त्व दे रही हो.’

‘हम दोनों ने नौकरी कर के कितना रुपया जमा कर लिया है? आमदनी के साथ खर्च बढ़ता गया है.’

‘जोड़ने को तो सारी उम्र पड़ी है. और फिर क्या मैं ही खर्च करता हूं? तुम्हारा खर्च नहीं है?’

‘जरूर है. अन्य औरतों के मुकाबले में ज्यादा भी है. इसलिए कि मुझे नौकरी करने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है. घर में तो कैसे भी, कुछ भी पहन कर रहा जा सकता है.’

‘इतनी काबिल औरत हो, तुम्हारे बौस भी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं. एक साधारण औरत की तरह रसोई और घर के कामों में समय बरबाद करना चाहती हो? कल ही जा कर अपना इस्तीफा वापस ले लेना. बड़े ताज्जुब की बात है कि इतना बड़ा कदम उठाने से पहले तुम ने मुझ से पूछा तक भी नहीं.’

‘राजीव, मैं ने निश्चय कर लिया है कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी.’

‘क्या मतलब?’

‘मतलब साफ है. हम दोनों अपनी रजामंदी से तलाक का फैसला ले लें तो अच्छा रहेगा. खर्च भी कम होगा.’

‘सवेरे बात करेंगे. इस समय तुम किसी वजह से परेशान हो या थकी हुई हो.’

‘शादी के बाद से मैं ने आराम किया ही कब है? बात सवेरे नहीं, अभी होगी, क्योंकि मैं कल इस घर को छोड़ कर जा रही हूं. मेरा निश्चय नहीं बदलेगा. तलाक के बाद तुम फिर आराम से दूसरी कमाने वाली लड़की से शादी कर लेना.’

‘अच्छी बात है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा, पर मुझे अपनी बहन की शादी में कम से कम 4-5 लाख रुपए देने होंगे. अगर तुम 4-5 साल रुक जातीं तो इतने रुपए हम दोनों मिल कर जमा कर लेते. मैं ने सिगरेट और शराब वगैरा का खर्च कम करने का निश्चय कर लिया था.’

‘तब भी नहीं.’

‘मैं तुम्हारी हर बात मानने के लिए तैयार हो गया हूं और तुम मेरी इतनी सी बात भी नहीं मान रही हो. सिर्फ 4-5 लाख रुपयों का ही तो सवाल है.’

‘आप को मालूम पड़ गया है कि मेरे पास बैंक में कितने रुपए हैं. इसीलिए यह सौदेबाजी हो रही है. अगर मुझे आजाद करने की कीमत 5 लाख रुपए है तो दे दूंगी. मेरी दिवंगत दादी के रुपए कुछ काम तो आ जाएंगे.’ और फिर एक दिन तलाक भी हो गया और मैं सरला के साथ अलग फ्लैट में रहने लगी.

अभी मैं राजीव को ले कर पुरानी बातों में ही उलझी हुई थी कि सरला ने आ कर कहा, ‘‘हर समय क्या सोचती रहती हैं, दीदी? आप का खाना टेबल पर रखा है, खा लीजिएगा. मैं बाजार जा रही हूं. घर में सब्जी कुछ भी नहीं है. सवेरे लंच के लिए क्या ले कर जाएंगे?’’

‘‘अरे छोड़ो भी, सरला, कैंटीन से लंच ले लेंगे.’’

‘‘नहीं, नहीं. आप को कैंटीन का खाना अच्छा नहीं लगता है. कल लंच में आलूमटर की सब्जी और कचौडि़यां होंगी. क्यों, दीदी, ठीक है न? आप को उड़द की दाल की कचौडि़यां बहुत अच्छी लगती हैं. मैं ने तो दाल भी पीस कर रख दी है.’’

‘‘सरला, क्यों मेरा इतना ध्यान रखती हो? आज तक तो किसी ने भी नहीं रखा.’’

‘‘दीदी, सुन लो. आप ऐसी बात फिर कभी मुंह से मत निकालिएगा.’’

‘‘कौन से जनम का रिश्ता निभा रही हो, सरला? मांबाप ने तो इस जनम का भी नहीं निभाया. तुम इतने सारे रिश्ते कहां से समेट कर बैठ गई हो?’’

जवाब में सरला ने पास आ कर मेरे गले में बांहें डाल दीं, ‘‘दीदी, मेरा इस दुनिया में आप के सिवा कोई नहीं है. फिर ऐसी बात मत कहिएगा.’’

सरला सब्जी लेने चली गई थी. टेबल पर खाना सजा हुआ रखा था. अकेले खाने को दिल नहीं कर रहा था, पर सरला का मन रखने के लिए खाना जरूरी था. न जाने क्या हुआ कि खातेखाते एकाएक समीर का ध्यानहो आया. समीर हमारी कंपनी में कानूनी मामलों की देखभाल के लिए रखा गया एक वकील था. जवान और काफी खूबसूरत.

एक दिन बसस्टौप पर मेरे बराबर कार रोक कर खड़ा हो गया और बैठने की खुशामद करने लगा. मैं ने मना कर दिया.

‘‘मुझे आप से कुछ पूछना है.’’

‘‘कहिए.’’

‘‘क्या आप कुछ रोमांटिक डायलौग बतला सकती हैं, जो एक आदमी किसी औरत से कह सकता है?’’

‘‘किस औरत से?’’

‘‘जिसे वह बहुत प्यार करता है और जिस से शादी करना चाहता है,’’ समीर ने डरतेडरते कहा.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मैं ने इस तरह के डायलौग कभी नहीं सुने हैं. क्यों नहीं आप जा कर कोई हिंदी फिल्म देख लेते हैं, आप की समस्या आसानी से हल हो जाएगी,’’ मैं ने कहा और आगे बढ़ गई.

एक दिन फिर उस ने मुझे रोक  लिया, ‘‘चंद्राजी, इन अंधेरों से  निकल कर बाहर आ जाइए. बाहर का आसमान बहुत खुलाखुला है और साफ है. चारों तरफ रोशनी फैली हुई है. आप बेवजह अंधेरों में भटक रही हैं.’’

‘‘मुझे इन अंधेरों में ही रहने की आदत है. मेरी ये आंखें रोशनी सह न सकेंगी,’’ मैं ने भी मजाक में कह दिया. ‘‘आओ, मेरा हाथ पकड़ लो, मैं आहिस्ताआहिस्ता तुम्हें इन अंधेरों से बाहर ले आऊंगा,’’ समीर ने गंभीर सा चेहरा बनाते हुए कहा.

समीर का डायलौग सुन हंसतेहंसते मेरा बुरा हाल हो गया. समीर भी हंसने लगा.

‘‘ये कौन सी फिल्म के डायलौग हैं, समीर?’’

‘‘बड़ी मुश्किल से याद किए थे, चंद्रा. छोड़ो डायलौग की बात, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. तुम्हें बेहद प्यार करता हूं.’’

‘‘समीर, तुम्हें मेरे बारे में कुछ भी नहीं मालूम है. तुम सिर्फ इतना जानते हो कि मैं बौस की प्राइवेट सैक्रेटरी हूं.’’

‘‘मैं कुछ जानना भी नहीं चाहता. जितना जानता हूं, उतना ही काफी है. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हारी पिछली जिंदगी के बारे में कभी भी कोई बात नहीं करूंगा.’’

‘‘करनी है तो अभी कर लो.’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना ही जानता हूं कि मेरी मां घर के दरवाजे पर मेरी होने वाली पत्नी और मेरे होने वाले बच्चों के लिए आंखें बिछाए बैठी रहती हैं.’’

‘‘ले चलो अपनी मां के पास. रोजरोज मेरे रास्ते पर खड़े रहते हो, अब मुझे तुम्हारी इस हरकत से उलझन होने लगी है.’’

और जब समीर मुझे अपनी मां के पास ले गया तो उन्होंने मुझे देखते ही अपने सीने से लगा लिया, ‘‘हर समय समीर बस तेरी ही बातें करता है. मैं तुझे देखने को तरस रही थी.’’

मैं ने मांजी की गोद में सिर रख दिया. समीर से शादी के बाद फिर एक बार मम्मीपापा से मिलने गई. मां ने चौंक कर मेरी ओर देखा जैसे विश्वास नहीं आ रहा हो. गुलाबी रंग की बनारसी साड़ी, मांग में सिंदूर और उंगली में बड़ेबड़े हीरों की अंगूठी पहने बेटी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई थी.

‘‘मां, मैं ने शादी कर ली है. समीर हमारी कंपनी में ही कानूनी सलाह देने के लिए नियुक्त एक वकील हैं.’’

‘‘दूसरी शादी? पहले पति को छोड़ा, वही बड़ा भारी अधर्म का काम किया था और अब…’’

‘‘एक गुनाह और कर लिया, मम्मी. अगर आप लोग इजाजत देंगे तो किसी दिन समीर को आप लोगों से मिलाने के लिए ले आऊंगी.’’

मम्मी कुछ नहीं बोलीं. मुझे लगा कि पापा अपने चेहरे के सामने से अखबार हटाना चाहते हैं, पर हटा नहीं पा रहे हैं. मैं देख रही थी कि अखबार पकड़े हुए उन की बूढ़ी उंगलियां कांप रही हैं.

‘‘अच्छा, मम्मी, अब मैं चलती हूं. समीर इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘बेटी, खाना खा कर नहीं जाओगी?’’ पापा ने अखबार हटाते हुए कहा और न जाने कब उन की आंखों से दो आंसू टप से कांपते हुए अखबार पर गिर पड़े.

Family Story: मैं चुप ही रहूंगा – आपसी कलह में पिसता गया सुधीर का परिवार

Family Story: ‘‘मां, कल रश्मि का बर्थडे है. उसे रात को 12 बजे केक काटने का बहुत शौक है, इसलिए आज आप को थोड़ा ऐडजस्ट करना पड़ेगा. मैं औफिस से आता हुआ केक ले आऊंगा, आप उसे फ्रिज में छिपा देना. आज शायद आप को सोने में थोड़ी देर हो जाए. उसे रात को सरप्राइज देंगे,’’ पवन की आवाज में जो उत्साह था, वह एक पल में ही खत्म हो गया जब माया ने कहा, ‘‘यह 12 बजे केक काटने का नाटक मुझे बिलकुल पसंद नहीं है. दिन में भी तो बर्थडे मना सकते हो. यह सब नहीं चलेगा. बेवजह मेरी नींद खराब होगी.’’

वहीं बैठे हुए सुधीर ने कहा, ‘‘माया, बहू का पहला बर्थडे है हमारे साथ, बच्चों को अच्छी तरह से जन्मदिन मनाने दो. एक दिन थोड़ी देर से सोएंगे, तो क्या हो जाएगा.’’ माया दहाड़ी, ‘‘तुम तो चुप ही रहो. खुद तो सो जाओगे, मेरी नींद डिस्टर्ब होती है. नहीं, यह सब शुरू ही मत करो वरना हर साल यह ड्रामा होगा.’’ पवन को बहुत बुरा लगा. वह बोला, ‘‘ठीक है मां, फिर मैं शाम को ही रश्मि को बाहर ले जाता हूं. बाहर ही डिनर कर के वहीं केक भी काट लेंगे. आप सो जाना अपने टाइम पर.’’

माया को झटका लगा, बोली, ‘‘साल भी नहीं हुआ शादी हुए, इतने गुलाम बन गए हो.’’ पवन को गुस्सा आ गया, ‘‘आप क्या समझेंगी पतिपत्नी की आपसी समझ को?’’

माया चिल्लाई, ‘‘क्यों नहीं समझूंगी, मैं क्या पत्नी नहीं हूं तुम्हारे पिता की, इतने सालों से मैं क्या झक मार रही हूं?’’

‘‘आप कैसी पत्नी हैं, आप अच्छी तरह जानती होंगी?’’

माया के गुस्से का ठिकाना नहीं था. पर बेटा कहीं हाथ से न निकल जाए, इस बात का ध्यान गुस्से में भी था. स्वर को संयत करते हुए बोली, ‘‘ठीक है, जैसी मरजी हो, कर लो, हम ने कभी घर में न यह सब नाटक किया, न देखा, इसलिए हमारे लिए थोड़ा नया ही है यह सब. खैर, ले आना केक.’’ सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे. रश्मि औफिस के लिए जल्दी निकलती थी. वह जा चुकी थी. सुधीर ने कहा, ‘‘पवन, रश्मि की पसंद का ‘ब्लू बेरी चीज’ केक लाओगे न? उसे यही फ्लेवर पसंद है.’’ पवन मुसकरा दिया, ‘‘वाह पापा, आप को याद है?’’

‘‘हां, मेरे बर्थडे पर वह यही लाई थी, तभी उस ने बताया था. बहुत प्यारी बच्ची है.’’

माया को बहू की तारीफ सुन कर गुस्सा आ गया, ‘‘तुम चुप नहीं रह सकते. चुपचाप नाश्ता करो. तुम से किसी ने उस की तारीफ का सर्टिफिकेट मांगा है क्या.’’ कर्कशा, मुंहफट पत्नी को देखते हुए सुधीर ने दुख से कहा, ‘‘चुप ही तो हूं सालों से.’’

‘‘पापा, अब मैं चलता हूं, बाय,’’ कह कर पवन भी औफिस के लिए निकल गया. सुधीर सब से बाद में निकलते थे. उन का औफिस घर के पास ही था. वे चुपचाप अपना बैग ले कर निकल रहे थे. माया का बड़बड़ाना उन के कानों में पड़ ही रहा था, ‘सालभर नहीं हुआ है घर में आए हुए, पता नहीं यह लड़की क्या जादू जानती है, पति को पहले दिन से ही गुलाम बना कर रखा है.’

सुधीर चले गए, सामान इधर से उधर रखती हुई माया गुस्से में तपी घूम रही थी. इकलौता बेटा है पवन, उस से उलझना भी नहीं चाहती. कहीं बहू को ले कर अलग हो गया तो क्या करेगी. बेटे को भी दूर नहीं होने देना है, बहू को भी दबा कर रखना है. क्या करे, यह लड़की तो हाथ ही नहीं आती. सुबह ही निकल जाती है, शाम को लगभग सुधीर के साथ ही आती है. पवन भी तभी आ जाता है. घर में काम के लिए कोई क्लेश न हो, यह सोच कर बहूरानी ने पहले दिन से कुक रख ली है. दलील दी थी, ‘मां, औफिस के काम के चक्कर में किचन में आप का हाथ ज्यादा नहीं बंटा पाऊंगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि आप पर ही सब काम रहे. यह लता अच्छी कुक है. दोनों टाइम जो खाना बनवाना हो, इस से बनवा लेना. आप को भी आराम मिलेगा.’ सुधीर और पवन ने भी इस बात का समर्थन किया था. माया जब अकेली पड़ गई तो तीनों के सामने क्या कहती. बात माननी पड़ी. सफाईबरतन का काम राधा कर ही जाती थी. अब बचा क्या जिसे ले कर रश्मि की क्लास ले. मौका ही नहीं देती. मांमां करती घर में घुसती है, सुबह मांमां करती निकल जाती है.

आज सुधीर भी औफिस में माया के बारे में ही सोच रहे थे. इतने सुशिक्षित, सभ्य इंसान हो कर भी कैसी कर्कशा, क्लेशप्रिया पत्नी मिली है उन्हें. नारी के हृदय की कोमलता तो उसे छू कर भी नहीं गुजरी कभी. यह उन के पिता ने कैसी लड़की उन के पल्ले बांध दी जिस के साथ निभातेनिभाते वे थक गए हैं. वह तो अब उन के घर में रश्मि बहू बन कर ताजी हवा के झोंके की तरह आई है, तो घर, घर लगने लगा है. कितनी अच्छी बच्ची है. कितनी पढ़ीलिखी, कितनी शालीन पर माया के स्वभाव के कारण किसी दिन बेटेबहू दूर न हो जाएं, यह बात उन के मन को अकसर उदास कर देती थी.

शाम को रश्मि औफिस से आई. पवन को आज आने में थोड़ा टाइम था. उसे रश्मि के बर्थडे के लिए केक और गिफ्ट लेना था. रश्मि ने पूछा, ‘‘पापा, डिनर लगा दूं?’’

‘‘पवन को आने दो.’’

‘‘उन्हें थोड़ी देर होगी, कहा है सब लोग खाना खा लेना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘ठीक है, फिर लगा दो.’’ रश्मि डिनर लगाने लगी, माया वहीं बैठी टैलीविजन देख रही थी. रश्मि ने खाना लगाते हुए कहा, ‘‘मां, आप ने फिर कोफ्ते बनवाए हैं? अभी तो बने थे.’’

‘‘हां, मुझे बहुत पसंद हैं, लता अच्छे बनाती है.’’

‘‘पर मां, पापा ने तो कल दाल और करेले बनवाने के लिए कहा था.’’

‘‘मेरा मन नहीं था वह सब खाने का.’’

‘‘ठीक है मां, पर कल जरा पापा की पसंद का खाना बनवा लेना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, जो बना है ठीक है.’’

माया ने फटकार लगाई, ‘‘तुम चुप रहो. ज्यादा शरीफ बन कर दिखाने की जरूरत नहीं है.’’ सुधीर के चेहरे का रंग अपमान से काला पड़ गया. वे पत्नी का मुंह देखते रह गए. क्या यह औरत कभी नहीं सुधरेगी. वह उन की शराफत, शालीनता का सारी उम्र फायदा उठाती रही है. अब बेटेबहू के सामने भी क्या उन का अपमान करती रहेगी? क्या वही अच्छा रहता कि इस की बदतमीजी पर एक थप्पड़ शुरू में ही लगा देता? क्या ऐसी औरतें तभी ठीक रहती हैं. क्या उन का अपने क्रोध पर संयम रखना ही उन की कमजोरी बन गया है? घर में, बेटे के जीवन में सुखशांति के लिए हमेशा चुप रहना ही क्या उन की नियति है? रश्मि ने सुधीर का उदास चेहरा देखा तो सब समझ गई. उसे बहुत दुख हुआ. वह बहुत ही समझदार लड़की थी. कई बार उस ने पवन से अकेले में मजाक भी किया था, ‘पुरानी ब्लैक ऐंड व्हाइट फिल्में ज्यादा तो नहीं देखीं पर जितनी भी देखी और सुनी हैं, मां को देख कर ललिता पवार याद आ जाती है.’ पवन ने घूरने के बाद फिर स्वीकारा था, ‘हां, रश्मि, पापा जितने शांत हैं, मां उतना ही गुस्से वाली. बेचारे पापा, मैं ने उन्हें ही हमेशा सामंजस्य बिठाते देखा है.’

रश्मि ने खूब उत्साह से 12 बजे केक काटा. पवन उस के लिए एक सुंदर साड़ी भी लाया था. सुधीर ने भी एक लिफाफा रश्मि को देते हुए सिर पर प्यारभरा हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, हमारी तरफ से अपनी पसंद का कुछ ले लेना कल.’’ इस पर माया चौंकी, पर बोली कुछ नहीं. रश्मि बहुत खुश हुई. पवन ने कहा, ‘‘मां, कल हम दोनों ने छुट्टी ली है. कल सब मूवी देखने चलेंगे.’’ सुधीर को फिल्मों का बहुत शौक था, उत्साह से पूछा, ‘‘हांहां, बिलकुल, कौनसी?’’

रश्मि ने कहा, ‘‘जो आप कहें, पापा.’’

माया ने कहा, ‘‘मेरा मन नहीं है, मुझे नहीं जाना.’’

सुधीर ने कहा, ‘‘चलो न माया, बच्चों के साथ तो कभी गए ही नहीं अब तक.’’

‘‘नहीं, मेरा मूड नहीं है.’’

पवन ने कहा, ‘‘मां, मूवी देखेंगे, डिनर करेंगे, कल खूब एंजौय करेंगे सब.’’

रश्मि तो बहुत ही उत्साहित थी, बोली, ‘‘हां मां, बर्थडे है मेरा, खूब मजा आएगा, चलिए न.’’

‘‘नहीं, अब मुझे नींद आ रही है. पहले ही इतनी देर हो गई सोने में,’’ कह कर माया बैडरूम में चली गई तो सुधीर भी एक ठंडी सांस ले कर ‘गुडनाइट’ कह कर सोने चले गए. रश्मि ने बैडरूम में पवन से कहा, ‘‘पवन, बुरा मत मानना, मुझे मां की कई बातें पसंद नहीं हैं.’’

‘‘हां, रश्मि, मां शुरू से ही ऐसी हैं. मुझे भी बहुत दुख होता है.’’

‘‘पर मैं मां का यह व्यवहार ज्यादा सहन नहीं करूंगी, अभी बता देती हूं.’’ पवन चुप ही रहा, वह तो बचपन से ही मां का जिद्दी, गुस्सैल स्वभाव देखता आ रहा था. सुबह जब रश्मि सो कर उठी तो देखा सुधीर ड्राइंगरूम में रखे दीवान पर सो रहे थे. आहट से उठे तो रश्मि ने पूछा, ‘‘पापा, आप यहां क्यों सोए?’’

‘‘सोने में माया को देर हो गई तो वह मेरे करवट बदलने से डिस्टर्ब हो रही थी, उसे परेशानी हो रही थी.’’

‘‘पर इस गद्दे पर सोने से आप को गरदन में दर्द होता है न.’’

‘‘हां, पर ठीक है, कोई बात नहीं.’’

‘‘कोई बात कैसे नहीं पापा, आप को तकलीफ होगी तो यह क्या अच्छी बात है?’’ सुधीर बिना कुछ बोले फ्रैश होने चले गए. सुधीर की इच्छा देखते हुए भी माया मूवी देखने नहीं गई. सुधीर ने ही पवन और रश्मि को भेजते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, हम तुम्हें डिनर पर जौइन करेंगे, बता देना, कहां आना है.’’ डिनर पर माया आराम से तैयार हो कर गई. चारों ने अच्छे मूड में डिनर किया और लौट आए. आज रश्मि मन ही मन बहुत सारी बातें सोच चुकी थी. घर आते ही सुधीर का मोबाइल बजा. बात करने के बाद उन्होंने बताया, ‘‘माया, अगले महीने मुग्धा आ रही है, संजीव भी साथ आएगा.’’

माया गुर्राई, ‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उस के भाई का घर है, एक ही तो बहन है मेरी, उस का रश्मि से मिलने का मन है.’’

रश्मि खुश हुई, ‘‘वाह, बूआजी आ रही हैं. मजा आएगा. विवाह के समय भी वे मुझे बहुत अच्छी लगी थीं.’’

‘‘हां, बहुत खुशमिजाज है मेरी बहन.’’

‘‘तुम तो चुप ही रहो,’’ माया चिढ़ गई, ‘‘क्या मजा आएगा. गरमी में किसी के आने पर कितनी परेशानी होती है, तुम्हें क्या पता.’’ रश्मि आज चुप नहीं रह पाई, बोली, ‘‘मां, पापा ही हमेशा क्यों चुप रहें. उन की बहन है, अपनी बहन के आने पर वे खुश क्यों न हों?’’

माया ने रश्मि को डांट दिया, ‘‘मुझ से बहस करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हो रही है?’’

‘‘मां, बहस कहां कर रही हूं. जब से आई हूं यही तो देख रही हूं कि पापा कुछ बोल ही नहीं सकते.’’

माया के गुस्से की सीमा नहीं थी, ‘‘पवन, देख रहा है? इस की इतनी हिम्मत?’’

रश्मि ने बहुत मधुर स्वर में कहा, ‘‘मां, मुझे अच्छा नहीं लगता आप पापा को बोलने ही नहीं देतीं. मैं ने अपने घर में अपने मम्मीपापा का एकदूसरे के लिए बहुत ही प्यार और आदरभरा रिश्ता देखा है और वैसे ही पवन के साथ रहने की इच्छा है. यहां मुझे और कोई कमी नहीं है, बस, आप का पापा के साथ जो रवैया है, वह खटकता है. पापा का स्वभाव कितना अच्छा है.’’ पवन ने रश्मि के कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत रहने का इशारा किया तो माया ने तेज आवाज में कहा, ‘‘सुन रहा है इस की बातें?’’

‘‘मां, रश्मि ठीक ही तो कह रही है. मैं और पापा सालों से आप का जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव सहते आ रहे हैं पर अपने घर का अच्छा माहौल देख कर आने वाली लड़की को तो आप का स्वभाव अजीब ही लगेगा.’’ माया को तो आज झटके पर झटके लग रहे थे. उस ने सुधीर से कहा, ‘‘मेरी शक्ल क्या देख रहे हो, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?’’ सुधीर का चेहरा तो बच्चों की बातें सुन कर अलग ही खुशी से चमक रहा था. हंसते हुए बोले, ‘‘भई, मैं तो आज भी चुप ही रहूंगा.’’ पवन और रश्मि ने भी खुल कर उन की उन्मुक्त हंसी में उन का साथ दिया तो माया का चेहरा देखने लायक था.

Family Story: कब जाओगे प्रिय – क्या कविता गलत संगत में पड़ गई थी?

Family Story: अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’ कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया. कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं, सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था. कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ. मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’ मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’ नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं. सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’

‘‘मम्मी प्लीज… मम्मी प्लीज,’’ दोनों बच्चे कहने लगे, ‘‘पापा को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’ सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है. शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई. अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है  कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे. अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

Family Story: बस इतनी सी बात थी – आखिर कैसे बदल गई मौज

Family Story: ‘‘साहिल,मेरी किट्टी पार्टी 11 बजे की थी… मैं लेट हो गई. जाती हूं, तुम लंच कर लेना. सब तैयार है… ओके बाय जानू्,’’ कह मौज ने साहिल को फ्लाइंग किस किया और फिर तुरंत दरवाजा खोल चली गई.

‘‘एक दिन तो मुझे बड़ी मुश्किल से मिलता है… उस में भी यह कर लो वह कर लो… चैन से सोने भी नहीं देती यह और इस की किट्टी,’’ साहिल ने बड़बड़ाते हुए उठ कर दरवाजा बंद किया और फिर औंधे मुंह बिस्तर पर जा गिरा.

‘‘उफ यह तेज परफ्यूम,’’ उस ने पिलो को अपने चेहरे के नीचे दबा लिया. शादी के पहले जिस परफ्यूम ने उसे दीवाना बना रखा था आज वही सोने में बाधा बन रहा था.

शाम 5 बजे मौज लौटी तो अपनी ही मौज में थी. किट्टी में की गई मस्ती की ढेर सारी बातें वह जल्दीजल्दी साहिल से शेयर करना चाहती थी.

‘‘अरे सुनो न साहिल… तरहतरह के फ्लेवर्ड ड्रिंक पी कर आई हूं वहां से… कितनी रईस हैं राखी… कितनी तरह की डिशेज व स्नैक्स थे वहां… कितने गेम्स खेले हम ने तुम्हें पता है?’’

‘‘अरे यार मुझे कहां से पता होगा… तुम भी कमाल करती हो,’’ साहिल ने चुटकी ली.

‘‘हम सब ने रैंप वाक भी किया… मेरी स्टाइलिंग को बैस्ट प्राइज मिला.’’

‘‘अच्छा… उन के घर में रैंप भी बना हुआ है?’’ वह मुसकराया.

‘‘घर में कहां थी पार्टी… इंटरनैशनल क्लब में थी.’’

‘‘अरे तो इतनी दूर गाड़ी ले कर गई थीं? नईनई तो चलानी सीखी है… कहीं ठोंक आती तो?’’

‘‘माई डियर, अपनी गाड़ी से मैं सिर्फ राखी के घर तक ही गई थी. वहां से सब उन की औडी में गए थे. क्या गाड़ी है. मजा आ गया… काश, हम भी औडी ले सकते तो क्या शान होती हमारी भी… पर तुम्हारी क्व40-50 हजार की सैलरी में कहां संभव है,’’ मौज थोड़ी उदास हो गई.

उधर साहिल थोड़ा आहत. मौज जबतब, जानेअनजाने ऐसी बातों से साहिल का दिल दुखा दिया करती. वह हमेशा पैसों की चकाचौंध से बावली हो जाती है, साहिल यह अच्छी तरह जानने लगा था. कभीकभी वह कह भी देता है, ‘‘तुम्हें शादी करने से पहले अपने पापा से मेरी सैलरी पूछ ली होती तो आज यह अफसोस न करना पड़़ता.’’

‘‘सौरीसौरी साहिल मेरा यह मतलब बिलकुल नहीं था. तुम्हें तो मालूम ही है कि मैं हमेशा बिना सोचेसमझे उलटासीधा बोल जाती हूं… आगापीछा कुछ नहीं सोचती हूं… सौरी साहिल माफ कर दो,’’ कह वह आंखों में आंसू भर कान पकड़ कर उठकबैठक लगाने लगी तो साहिल को उस की मासूमियत पर हंसी आ गई. बोला, ‘‘अरे यार रोनाधोना बंद करो. तुम भी कमाल हो… दिलदिमाग से बच्ची ही हो अभी. जाओ अभी सपनों की दुनिया में थोड़ा आराम कर लो… मेरा मैच आने वाला है… शाम को ड्रैगन किंग में डिनर करने चलेंगे.’’

‘‘सच?’’ कह मौज ने आंसू पोंछ साहिल को अपनी बांहों में भर लिया.

साहिल ने मौज को ड्रैगन किंग में डिनर खिला दिया, पर मन ही मन सोचने लगा कि हर तीसरे दिन इसी तरह चलता रहा तो उस के लिए हर महीने घर चलाना मुश्किल हो जाएगा… क्या करूं किसी और तरीके से खुश भी तो नहीं होती… सिर्फ पैसा और कीमती चीजें ही उसे भाती हैं… साल भर भी तो नहीं हुआ शादी हुए… अकाउंट बैलेंस बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा… एक ड्रैस खरीद लेती तो उस से मैचिंग के झुमके, कंगन, सैंडल, जूतियां सभी कुछ चाहिए उसे वरना उस की सब सहेलियां मजाक बनाएंगी… भला ऐसी कैसी सहेलियां जो दोस्त का ही मजाक बनाएं… तो उन से दोस्ती ही क्यों रखनी? कुछ समझ नहीं आता… इन औरतों का क्या दिमाग है… कामधाम कुछ नहीं खाली पतियों के पैसों पर मौजमस्ती. वह कैसे मौज को समझाए कि उन के पति ऊंची नौकरी वाले या फिर बिजनैसमैन हैं… वह कैसे पीछा छुड़वाए मौज का इन गौसिप वाली औरतों से… इसे भी बिगाड़ रही हैं… कुछ तो करना पड़ेगा…

‘‘अरे साहिल क्यों मुंह लटकाए बैठा है. अभी तो साल भर भी नहीं हुआ शादी को… घर आ कभी… मौज को नीलम भी याद कर रही थी,’’ कह कर मुसकराते हुए उस का सीनियर अमन कैंटीन में साहिल की बगल में बैठ गया और फिर पूछा, ‘‘कुछ और्डर किया क्या?’’

‘‘नहीं, बस किसी का फोन था,’’ कह साहिल, समोसों और चाय का और्डर दे दिया.

‘‘और बता मौज कैसी है? कहीं घुमानेफिराने भी ले जाता है या नहीं… छुट्टी ले कहीं घूम क्यों नहीं आता… दूर नहीं जयपुर या आगरा ही हो आ. मैं हफ्ता भर पहले गायब था न तो मैं और नीलम किसी शादी में जयपुर गए थे. वहां फिर 3 दिन रुक कर खूब घूमे… नीलम ने खूब ऐंजौय किया.’’

‘‘हां मैं भी सही सोच रहा हूं कि उस की बोरियत कैसे अपने बजट से दूर की जाए.’’

‘‘अरे यार, क्या बात कर रहा है… सस्तेमहंगे हर तरह के होटल हैं वहां… अबे इतनी कंजूसी भी कैसी… अभी तो तुम 2 ही हो… न बच्चा न उस की पढ़ाई का खर्च…’’

‘‘हां यह तो है पर…’’ तभी वेटर समोसे व चाय रख गया.

‘‘छोड़ परवर यह देख पिक्स पिंक सिटी की… कितनी बढि़या हैं… एक बार दिखा ला मौज को.’’

‘‘अमन यह बताओ, नीलम भाभी क्या इतनी सिंपल ही रहती हैं… ज्यादातर वही जूतेचप्पल, टीशर्ट, ट्राउजर… बाल कभी रबड़बैंड से बंधे तो कभी खुले… न गहरा मेकअप, न तरहतरह की ज्वैलरी…. मौज को तो भाभी से ट्रेनिंग लेनी चाहिए… उस की सोच का स्टैंडर्ड कुछ ज्यादा ही ऊंचा व खर्चीला हो गया है.’’

‘‘मतलब?’’ चाय का सिप लेते हुए अमन ने पूछा.

‘‘मतलब, जाएगी तो गोवा, सिंगापुर, बैंकौक इस से कम नहीं. हर तीसरे दिन नई ड्रैस के साथ सब कुछ मैचिंग चाहिए… उन के साथ जाने कौनकौन से मेकअप से लिपेपुते चेहरे में वह मेरी पत्नी कम शोकेस में सजी गुडि़या अधिक लगने लगी है अपनी कई रईस सहेलियों जैसी… वह सादगी भरी सुंदर सौम्य प्रतिमा जाने कहां खो गई… महीने में 5-6 बार तो उसे ड्रैगन किंग में खाना खाना है. अब आप समझ लो, यह सब से महंगा रैस्टोरैंट है. एक बार के खाने के क्व2-3 हजार से नीचे का तो बिल बनने से रहा… अब बताओ अब भी कंजूस कहोगे?’’

‘‘तो यार इतनी रईस सहेलियां कहां से बना लीं मौज ने?’’

‘‘बात समझो. मौज ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया हुआ है. अत: अपना ज्ञान जता कर इतराने का शौक है… बस वे चिपक जाती हैं. इस से फ्री में टिप्स मिल जाते हैं उन्हें. उस पर उसे गाने का भी शौक है. बस अपनी सुरीली आवाज से सब की जान बन चुकी है. उन के हर लेडीज संगीत, पार्टी का उसे आएदिन निमंत्रण मिल जाता है. अब हाई सोसायटी में जाना है तो उन्हीं के स्टैंडर्ड का दिखना भी है. अब तो गाड़ी भी औडी ही पसंद आ रही है… इसी सब में मेरी सारी सैलरी स्वाहा हो रही है.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है… अरे तो तू भी तो पागल ही है,’’ कह अमन हंसने लगा, ‘‘अरे अक्लमंद आदमी पहले मेरी बात सुन… मुझे तो लगता है मौज का स्किल जिस में है इस के लिए उसे खुद को तैयार हो कर रहना ही चाहिए… दूसरा मौज बाहर काम करना चाहती है… तूने काम करने को मना किया है क्या?’’

‘‘नहीं… उसे बस शौक है, ऐसा ही लगता है. फिर 2 व्यक्तियों के लिए अभी क्व40-50 हजार मुझे मिल रहे हैं… काफी नहीं हैं क्या? फिर कल को बेबी होगा तो उस की देखभाल कौन करेगा? मांपापा भी नहीं रहे.’’

‘‘कैसी नासमझों वाली बातें कर रहा है… बेबी होगा तो जानता नहीं उस के सौ खर्चे होंगे. आजकल अकेले की सैलरी कितनी भी बढ़ जाए कम ही रहती है… फिर कुछ सीखा है तो वह दूसरों तक पहुंचे तो भला ही है… खाली बैठने से दिमाग को खुश भी कैसे रखेगा कोई?

‘‘वैसे भी खाली दिमाग शैतान का घर सुना ही है तूने… तू तो सुबह 9 बजे घर से निकल शाम को 6-7 बजे घर पहुंचता है… सारा वक्त तो काम होता नहीं घर का फिर वह क्या करे, यह क्यों नहीं सोचता तू. खाली घर काटने को दौड़ता होगा… किसी से बात तो करना चाहेगी… आफ्टर आल मैन इज सोशल ऐनिमल…’’

‘‘मैं ने उसे मिलने को मना नहीं कर रखा है, पर उन का उलटीसीधी आदतें तो न अपनाए. असर तो न ले. बनावटी लोगों से नहीं सही लोगों से मिले.’’

‘‘अरे उसे शौक है तो उसे चार्ज करने की सलाह दे. जो उस के स्किल से वाकई फायदा उठाना चाहती हैं वे उस के लिए पे करेंगी… इस फील्ड में बहुत पैसा है समझे… नीलम भी कभीकभी कहती है कि काश, उस ने भी टीचिंग सैंटर की जगह ब्यूटीपार्लर खोल लिया होता तो बढि़या रहता.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘और क्या… अब तो वे दिन दूर नहीं, जब तुम दोनों जल्द ही अपनी औडी में हम दोस्तों के साथ ड्रैगन किंग में दावतें किया करोगे… और गोवा क्या सीधे बैंकौक जाएंगे,’’ कह अमन हंसते हुए उठ खड़ा हुआ.

‘‘मौज, आगे वाला कमरा मां के जाने के बाद से खाली पड़ा है. तुम उस में चाहो तो ब्यूटीपार्लर खोल सकती हो.’’

‘‘सच?’’ मौज खुशी से उछल पड़ी, ‘‘मैं भी कब से तुम से यही कहना चाहती थी, पर डरती थी तुम्हें बुरा लगेगा… आखिर मांबाबूजी की यादें बसी हैं उस में.’’

‘‘अच्छी यादें तो दिल में बसी हैं मौज. वे हमेशा हमारे साथ रहती हैं… छोड़ो ये सब तुम घर पर अपना शौक पूरा कर सकोगी और तुम्हारी इनकम भी होगी. सुंदर दिखने की शौकीन लड़कियां, औरतें चल कर खुद तुम्हारे पास आएंगी… बातें करने को कोई होगा तो खुश भी बहुत रहोगी. और तो और जल्दी आने वाले नन्हे मेहमान का भी ध्यान रख सकोगी… उस के साथ भी रह सकोगी… मुझे भी कोई चिंता नहीं होगी,’’ कह साहिल ने मौज के गाल को चूम लिया.

थोड़ी देर बाद साहिल फिर बोला, ‘‘तुम्हारी आसपास रईस महिलाओं से इतनी दोस्ती हो गई है… अपना शौक पूरा करने के लिए तुम्हें उन के पास नहीं उन्हें ही तुम्हारे पास आना होगा. खूब चलेगा तुम्हारा पार्लर… उन के काम से जाना भी हो तो विजिटिंग चार्ज लिया करना… तुम्हारा दिल भी लगेगा और इनकम भी होगी… यह समझो, थोड़ी मेहनत करोगी तो बस तुम्हारी भी औडी आ सकती है. तुम भी गोवा, बैंकौक घूमने जा सकती हो.’’

‘‘औडी, बैंकौक… सच में साहिल ऐसा होगा?’’ मौज आंखें फाड़े साहिल को देखने लगी.

जवाब में साहिल ने पलकें झपकाईं तो वह बेहोशी का नाटक करते हुए साहिल की बांहों में झूल कर मुसकरा उठी. आज साहिल को सादगी भरी सुंदर, सौम्य मौज दिखाई दे रही थी आठखेलियां करती बच्चों जैसी मासूम.

‘‘बस इतनी सी बात थी… क्यों नहीं यह पहले समझ आया,’’ उस ने अपने माथे पर हाथ मारा.

Family Story: अवगुण चित न धरो – कैसा था मयंक का अंतर्मन

Family Story: समुद्र के किनारे बैठ कर वह घंटों आकाश और सागर को निहारता रहता. मन के गलियारे में घुटन की आंधी सरसराती रहती. ऐसा बारबार क्यों होता है. वह चाहता तो नहीं है अपना नियंत्रण खोना पर जाने कौन से पल उस की यादों से बाहर निकल कर चुपके- चुपके मस्तिष्क की संकरी गली में मचलने लगते हैं. कदाचित इसीलिए उस से वह सब हो जाता है जो होना नहीं चाहिए.

सुबह से 5 बार उसे फोन कर चुका है पर फौरन काट देती है. 2 बार गेट तक गया पर गेटकीपर ने कहा कि छोटी मेम साहिबा ने मना किया है गेट खोलने को.

वह हताश हो समुद्र के किनारे चल पड़ा था. अपनी मंगेतर का ऐसा व्यवहार उसे तोड़ रहा था. घर पहुंच कर बड़बड़ाने लगा, ‘क्या समझती है अपनेआप को. जरा सी सुंदर है और बैंक में आफिसर बन गई है तो हवा में उड़ी जा रही है.’

मयंक के कारण ही अब उन का ऊंचे घराने से नाता जुड़ा था. जब विवाह तय हुआ था तब तो साक्षी ऐसी न थी. सीधीसादी सी हंसमुख साक्षी एकाएक इतनी बदल क्यों गई है?

मां ने मयंक की बड़बड़ाहट पर कुछ देर तो चुप्पी साधे रखी फिर उस के सामने चाय का प्याला रख कर कहा, ‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से समझते हो.’’

‘‘आप क्या कहना चाह रही हैं,’’ वह झुंझला उठा था.

मम्मी उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘पिछले हफ्ते चिरंजीव के विवाह में तुम्हारे बुलाने पर साक्षी भी आई थी. जब तक वह तुम से चिपकी रही तुम बहुत खुश थे पर जैसे ही उस ने अपने कुछ दूसरे मित्रों से बात करना शुरू किया तुम उस पर फालतू में बिगड़ उठे. वह छोटी बच्ची नहीं है. तुम्हारा यह शक्की स्वभाव उसे दुखी कर गया होगा तभी वह बात नहीं कर रही है.’’

मयंक सोच में पड़ गया. क्या मम्मी ठीक कह रही हैं? क्या सचमुच मैं शक्की स्वभाव का हूं?

दफ्तर से निकल कर साक्षी धीरेधीरे गाड़ी चला रही थी. फरवरी की शाम ठंडी हो चली थी. वह इधरउधर देखने लगी. उस का मन बहुत बेचैन था. शायद मयंक को याद कर रहा था.

पापा ने कितने शौक से यह विवाह तय किया था. मयंक पढ़ालिखा नौजवान था. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर था. कंपनी ने उसे रहने के लिए बड़ा फ्लैट, गाड़ी आदि की सुविधा दे रखी थी. बहुत खुश थी साक्षी. पर घड़ीघड़ी उस का चिड़चिड़ापन, शक्की स्वभाव उस के मन को बहुत उद्वेलित कर रहा था. मयंक के अलगअलग स्वभाव के रंगों में कैसे घुलेमिले वह. लाल बत्ती पर कार रोकी तो इधरउधर देखती आंखें एक जगह जा कर ठहर गईं. ठंडी हवा से सिकुड़ते हुए एक वृद्ध को मयंक अपना कोट उतार कर पहना रहा था.

कुछ देर अपलक साक्षी उधर ही देखती रही. फिर अचानक ही मुसकरा उठी. अब इसे देख कर कौन कहेगा कि यह कितना चिड़चिड़ा और शक्की इनसान है. इस का क्रोध जाने किधर गायब हो गया. वह कार सड़क के किनारे पार्क कर के धीरेधीरे वहां जा पहुंची. मयंक जाने को मुड़ा तो उस ने अपने सामने साक्षी को खड़ा मुसकराता पाया. इस समय साक्षी को उस पर क्रोध नहीं बल्कि मीठा सा प्यार आ रहा था.

मयंक का हाथ पकड़ कर साक्षी बोली, ‘‘मैं ने सोचा फोन पर क्यों मनाना- रूठना, आमनेसामने ही दोनों काम कर डालते हैं.’’

पहले मनाने का कार्य मयंक कर रहा था पर अब साक्षी को देखते ही उस ने रूठने की ओढ़नी ओढ़ ली और बोला, ‘‘अभी से बातबेबात नाराज होने का इतना शौक है तो आगे क्या करोगी?’’

साक्षी मन को शांत रखते हुए बोली, ‘‘चलो, कहां ले जाना चाहते थे. 2 घंटे आप के साथ ही बिताने वाली हूं.’’

मयंक अकड़ कर चलते हुए अपनी कार तक पहुंचा और अंदर बैठ कर दरवाजा खोल साक्षी के आने की प्रतीक्षा करने लगा. साक्षी बगल में बैठते हुए बोली, ‘‘वापसी में आप को मुझे यहीं छोड़ना होगा क्योंकि अपनी गाड़ी मैं ने यहीं पार्क की है. ’’

कार चलाते हुए मयंक ने पूछा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं अच्छा इनसान नहीं हूं?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने कभी नहीं कहा.’’

‘‘पर तुम्हारी बेरुखी से मुझे ऐसा ही लगता है.’’

‘‘देखो मयंक,’’ साक्षी बोली, ‘‘हमें गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए.’’

मयंक एक अस्पताल के सामने रुका तो साक्षी अचरज से उस के साथ चल दी. कुछ दूर जा कर पूछ बैठी, ‘‘क्या कोई अस्वस्थ है?’’

मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘नहीं,’’ और वह सीधा अस्पताल के इंचार्ज डाक्टर के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने देखते ही प्यार से उसे बैठने को कहा. लगा जैसे वह मयंक को भलीभांति पहचानते हैं. मयंक ने एक चेक जेब से निकाल कर डाक्टर के सामने रख दिया.

‘‘आप लोगों की यह सहृदयता हमारे मरीजों के बहुत से दुख दूर करती है,’’ डाक्टर ने मयंक से कहा, ‘‘आप को देख कर कुछ और लोग भी हमारी सहायता को आगे आए हैं. बहुत जल्द हम कैंसर पीडि़तों के लिए एक नया और सुविधाजनक वार्ड आरंभ करने जा रहे हैं.’’

मयंक ने चलने की आज्ञा ली और साक्षी को चलने का संकेत किया. कार में बैठ कर बोला, ‘‘तुम परेशान हो कि मैं यहां क्यों आता हूं.’’

‘‘नहीं. एक नेक कार्य के लिए आते हो यह तुरंत समझ में आ गया,’’ साक्षी मुसकरा दी.

मयंक चुपचाप गाड़ी चलातेचलाते अचानक बोल पड़ा, ‘‘साक्षी, क्या तुम्हें मैं शक्की स्वभाव का लगता हूं?’’

साक्षी चौंक कर सोच में पड़ गई कि यह व्यक्ति एक ही समय में विचारों के कितने गलियारे पार कर लेता है. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘क्या मैं ने कभी कहा?’’

‘‘यही तो बुरी बात है. कहती नहीं हो…बस, नाराज हो कर बैठ जाती हो.’’

‘‘ठीक है. अब नाराज होने से पहले तुम्हें बता दिया करूंगी.’’

‘‘मजाक कर रही हो.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मुझे तुम्हारे रूठने से बहुत कष्ट होता है.’’

साक्षी को उस की गाड़ी तक छोड़ कर मयंक बोला, ‘‘क्लब जा रहा हूं, चलोगी?’’

‘‘आज नहीं, फिर कभी,’’ साक्षी बाय कर के चल दी.

विवाह की तारीख तय हो चुकी थी. दोनों तरफ विवाह की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. एक दिन साक्षी की सास का फोन आया कि नलिनी यानी साक्षी की होने वाली ननद ने अपने घर पर पार्टी रखी है और उसे भी वहां आना है. यह भी कहा कि मयंक उसे लेने आ जाएगा. उस दिन नलिनी के पति विराट की वर्षगांठ थी.

साक्षी खूब जतन से तैयार हुई. ननद की ससुराल जाना था अत: सजधज कर तो जाना ही था. मयंक ने देखा तो खुश हो कर बोला, ‘‘आज तो बिजली गिरा रही हो जानम.’’

पार्टी आरंभ हुई तो साक्षी को नलिनी ने सब से मिलवाया. बहुत से लोग उस की शालीनता और सौंदर्य से प्रभावित थे. विराट के एक मित्र ने उस से कहा, ‘‘बहुत अच्छी बहू ला रहे हो अपने साले की.’’

‘‘मेरा साला भी तो कुछ कम नहीं है,’’ विराट ने हंस कर कहा. मयंक ने दूर से सुना और मुसकरा दिया. मां ने कहा था कि पार्टी में कोई तमाशा न करना और उन की यह नसीहत उसे याद थी. इसलिए भी मयंक की कोशिश थी कि अधिक से अधिक वह साक्षी के निकट रहे.

डांस फ्लोर पर जैसे ही लोग थिरकने लगे तो मयंक ने झट से साक्षी को थाम लिया. साक्षी भी प्रसन्न थी. काफी समय से मयंक उसे खुश रखने के लिए कुछ न कुछ नया करता रहा था. कभी उपहार ला कर, कभी सिनेमा या क्लब ले जा कर. एक दिन साक्षी ने अपनी होने वाली सासू मां से कहा, ‘‘मम्मीजी, मयंक बचपन से ही ऐसे हैं क्या? एकदम मूडी?’’

मम्मी ने सुनते ही एक गहरी सांस भरी थी. कुछ पल अतीत में डूबतेउतराते व्यतीत कर दिए फिर बोलीं, ‘‘यह हमेशा से ऐसा नहीं था.’’

‘‘फिर?’’

‘‘क्या बताऊं साक्षी…सब को अपना मानने व प्यार करने के स्वभाव ने इसे ऐसा बना दिया.’’

साक्षी ने उत्सुकता से सासू मां को देखा…वह धीरेधीरे अतीत में पूरी तरह डूब गईं.

पहले वे लोग इतने बड़े घर व इतनी हाई सोसायटी वाली कालोनी में नहीं रहते थे. मयंक को शानदार घर मिला तो वे यहां आए.

उस कालोनी में हर प्रकार के लोग थे और आपस में सभी का बहुत गहरा प्यार था. मयंक बंगाली बाबू मकरंद राय के यहां बहुत खेलता था. उन का बेटा पवन और बेटी वैदेही पढ़ते भी इस के साथ ही थे. वैदेही कत्थक सीखा करती थी. कभीकभी मयंक भी उस का नृत्य देखता और खुश होता रहता.

उस दिन राय साहब ने वैदेही की वर्षगांठ की एक छोटी सी पार्टी रखी थी. आम घरेलू पार्टी जैसी थी. महल्ले की औरतों ने मिलजुल कर कुछ न कुछ बनाया था और बच्चों ने गुब्बारे टांग दिए थे. इतने में ही वहां खुशी की मधुर बयार फैल गई थी.

राय साहब बंगाली गीत गाने लगे तो माहौल बहुत मोहक हो गया. तभी किसी ने कहा, ‘वैदेही का डांस तो होना ही चाहिए. आज उस की वर्षगांठ है.’

सभी ने हां कही तो वैदेही भी तैयार हो गई. वह तुरंत चूड़ीदार पायजामा और फ्राक पहन कर आ गई. उसे देखते ही उस के चाचा के बच्चे मुंह पर हाथ रख कर हंसने लगे. मयंक बोला, ‘क्यों हंस रहे हो?’

‘कैसी दिख रही है बड़ी दीदी.’

‘इतनी प्यारी तो लग रही है,’ मयंक ने खुश हो कर कहा.

नृत्य आरंभ हुआ तो उस के बालों में गुंथे गजरे से फूल टूट कर बिखरने लगे. वे दोनों बच्चे फिर ताली बजाने लगे.

‘अभी वैदेही दीदी भी गिरेंगी.’

मयंक को उन का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा. इसीलिए वह दोनों बच्चों को बराबर चुप रहने को कह रहा था. अचानक वैदेही सचमुच फिसल कर गिर गई और उस के माथे पर चोट लग गई जिस में से खून बहने लगा था.

मयंक को पता नहीं क्या सूझा कि उठ कर उन दोनों बच्चों को पीट दिया.

‘तुम्हारे हंसने से वह गिर गई और उसे चोट लग गई.’

मयंक का यह कोहराम शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आया… खासकर वैदेही को. वह संभल कर उठी और मयंक को चांटा मार दिया. साथ में यह भी बोली, ‘क्यों मारा हमारे भाई को.’

सबकुछ इतनी तीव्रता से हुआ था कि सभी अचंभित से थे. वातावरण को शीघ्र संभालना आवश्यक था. अत: मैं ने ही मयंक से कहा, ‘माफी मांगो.’ मेरे कई बार कहने पर उस ने बुझे मन से माफी मांग ली पर शीघ्र ही वह चुपके से घर चला गया. हम बड़ों ने स्थिति संभाली तो पार्टी पूरी हो गई.

उस छोटी सी घटना ने मयंक को बहुत बदल दिया था पर वैदेही ने मित्रता को रिश्तेदारी के सामने नकार दिया था. शायद तब से ही मयंक का दृष्टिकोण भरोसे को ले कर टूट गया और वह शक्की…

‘‘मैं समझ गई, मम्मीजी,’’ साक्षी के बीच में बोलते ही मम्मी अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गईं.

विराट हमेशा बहुत बड़े पैमाने पर पार्टी देता था. उस दिन भी उस की काकटेल पार्टी जोरशोर से चल रही थी. साक्षी उस दिन पूरी तरह से सतर्क थी कि मयंक का मन किसी भी कारण से न दुखे.

जैसे ही शराब का दौर चला वह पार्टी से हट कर एक कोने में चली गई ताकि कोई उसे मजबूर न करे एक पैग लेने को. मयंक वहीं पहुंच गया और बोला, ‘‘क्या हुआ? यहां क्यों आ गईं?’’

‘‘कुछ नहीं, मयंक, शराब से मुझे घबराहट हो रही है.’’

‘‘ठीक है. कुछ देर आराम कर लो,’’ कह कर वह प्रसन्नचित्त पार्टी में सम्मिलित हो गया.

विराट के आफिस की एक महिला कर्मचारी के साथ वह फ्लोर पर नृत्य करने लगा. उस कर्मचारी का पति शराब का गिलास थाम कर साक्षी की बगल में आ बैठा और बोला, ‘‘आप डांस नहीं करतीं?’’

‘‘मुझे इस का खास शौक नहीं है,’’ साक्षी ने जवाब में कहा.

‘‘मेरी पत्नी तो ऐसी पार्टीज की बहुत शौकीन है. देखिए, कैसे वह मयंकजी के साथ डांस कर रही है.’’

प्रतिउत्तर में साक्षी केवल मुसकरा दी.

‘‘आप ने कुछ लिया नहीं. यह गिलास मैं आप के लिए ही लाया हूं.’’

‘‘अगर यह सब मुझे पसंद होता तो मयंक सब से पहले मेरा गिलास ले आते,’’ साक्षी को कुछ गुस्सा सा आने लगा.

‘‘लेकिन भाभीजी, यह तो काकटेल पार्टी का चलन है. यहां आ कर आप इन चीजों से बच नहीं सकतीं,’’ वह जबरन साक्षी को शराब पिलाने की कोशिश करने लगा.

साक्षी निरंतर बच रही थी. मयंक ने दूर से देख लिया और पलक झपकते ही उस व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया.

‘‘अरे, वाह, ऐसा क्या किया मैं ने. अकेली बैठी थीं आप की मंगेतर तो उन्हें कंपनी दे रहा था.’’

‘‘अगर उसे साथ चाहिए होगा तो वह स्वयं मेरे पास आ जाएगी,’’ मयंक क्रोध से बोला.

‘‘वाह साहब, खुद दूसरों की पत्नी के साथ डांस कर रहे हैं. मैं जरा पास में बैठ गया तो आप को इतना बुरा लग गया. कैसे दोगले इनसान हैं आप.’’

‘‘चुप रहिए श्रीमान,’’ अचानक साक्षी उठ कर चिल्ला पड़ी, ‘‘मेरे मयंक को मुसीबतों से मुझे बचाना अच्छी तरह आता है और अपनी पत्नी से मेरी तुलना करने की कोशिश भी मत करिएगा.’’

वह तुरंत हौल से बाहर निकल गई. पार्टी में सन्नाटा छा गया था.

मयंक भी स्तब्ध हो उठा था. धीरेधीरे उसे खोजते हुए बाहर गया तो साक्षी गाड़ी में बैठी उस की प्रतीक्षा कर रही थी. वह चुपचाप उस की बगल में बैठ गया तो साक्षी ने उस के कंधे पर सिर टिका दिया. उस की हिचकी ने अचानक मयंक को बहुत द्रवित कर दिया था. उस का सिर थपकते हुए बोला, ‘‘चलें.’’

साक्षी ने आंसू पोंछ अपनी गरदन हिला दी. कार स्टार्ट करते मयंक ने सोचा, ‘शुक्र है, साक्षी मुझे समझ गई है.’

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