शादी के लिए जब कर दी 6 हत्याएं

पंजाब के जिला होशियारपुर का रहने वाला रघुवीर 18 साल का हो चुका था. उस की शादी की बात भी चलने लगी थी, लेकिन शादी के पहले उसे यह साबित करना था कि वह इस के काबिल हो गया है. इस के लिए उसे लूटपाट करने वाले गैंग में शामिल होना था. क्योंकि वह जिस बिरादरी से था, उस में शादी से पहले लूट की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. दरअसल, रघुवीर बेडि़या जाति से था, जिस में रोजीरोजगार के साधन कम ही होते हैं, जिस की वजह से ज्यादातर पुरुष चोरी और लूट जैसी वारदातें करते हैं. इस के लिए वे गिरोह बना कर अपने इलाके से काफी दूर निकल जाते हैं और लूटपाट करते हैं. ये जिस इलाके में वारदात करने जाते हैं, लोकल लोगों को अपने गिरोह में शामिल कर के ही लूटपाट की वारदात को अंजाम देते हैं.

लूट के दौरान हत्या जैसे जघन्य अपराध करने से लोकल बदमाश घबराते हैं, जबकि ये जरूरत पड़ने पर ही नहीं, आसपास सनसनी फैलाने और लूट में कोई परेशानी न हो, इस के लिए भी घर के किसी न किसी सदस्य की हत्या जरूर करते हैं. इस का मकसद होता है गिरोह के नए सदस्यों में हिम्मत पैदा करना, जिस से वह लूट के दौरान किसी भी तरह से घबराएं न. गिरोह के वरिष्ठ सदस्य इसे शादी और घरगृहस्थी से भी जोड़ देते हैं.

कहते हैं कि बेडि़यों के गिरोह आज भी कबीला संस्कृति का पालन करते हैं, जिस में हत्या करना कोई कठिन काम नहीं माना जाता. गिरोह के वरिष्ठ लोग अपने नए साथी के मन से डर निकालने के लिए इस तरह का काम करने को उकसाते ही नहीं, बल्कि हर हालत में करवाते हैं. शादी के जोश में इस तरह के अपराध करने के लिए किशोर उम्र के लड़के तैयार भी हो जाते हैं.

गिरोह चलाने वाले यानी गिरोह के सरगनाओं का मानना है कि हत्या जैसी घटना को अंजाम देने के बाद किशोर अपराध के दलदल में इस तरह फंस जाते हैं कि चाह कर भी अपराध के इस दलदल से निकल नहीं पाते. वे दूसरों की पोल भी नहीं खोल सकते. किसी को भी जघन्य अपराधी बनाने के लिए उस के हाथ से हत्या कराना कबीला गिरोहों का मुख्य काम होता था. एक तरह से अपराध के साथ यह कुप्रथा भी थी. इन का यह कृत्य सभ्य समाज के लिए खतरा था.

गिरोह चलाने वाले सरगना को सब से ताकतवर माना जाता है. वह एक दो, नहीं कईकई हत्याएं यानी कम से कम 6 हत्याएं कर चुका होता है. इसी वजह से इन के गिरोह को छैमार गिरोह कहा जाता है.

दरअसल, ये लोग अपना खौफ पैदा करने के लिए भी इस तरह के नाम रख लेते हैं, जिस से कोई लूट का विरोध करने की हिम्मत न कर सके. हिम्मत करने वाले को पता होता है कि उस की हत्या हो सकती है. इस डर से जल्दी कोई लूट का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाता. अपने नाम का खौफ पैदा करने के बाद ये अपरध करने में सफल रहते हैं.

अपराध कर के ये लोग वह इलाका छोड़ देते हैं. इस के बाद पुलिस के हाथ गिरोह के वही सदस्य लगते हैं, जो नए होते हैं और आमतौर पर वे लोकल लोग होते हैं. चूंकि लोकल अपराधियों को मुख्य अपराधियों के बारे में जानकारी नहीं होती, इसलिए पुलिस कभी भी मुख्य अपराधियों तक पहुंच नहीं पाती.

कुप्रथाएं अपराधी भी बनाती हैं, लखनऊ पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर इस बात का परदाफाश कर सब को चौंका दिया है. इस से पता चलता है कि समाज अभी भी कितना पीछे है. लखनऊ पुलिस ने एक ऐसे लुटेरे गिरोह के कुछ लोगों को गिरफ्तार कर के परदाफाश किया है कि बेडि़या गिरोह के लोग शादी के लिए 6 हत्याएं करते हैं.

पंजाब के उस गिरोह को इसी वजह से ‘छैमार गैंग’ के नाम से जाना जाता है. इस गैंग में शामिल सदस्य अपनी शादी से पहले 6 हत्याएं जरूर करते हैं. पंजाब का यह गिरोह लूट के दौरान विरोध करने पर तुरंत हत्या कर देता है. यह गैंग उत्तर प्रदेश में ही नहीं, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में भी डकैती डालने का काम करता था.

लखनऊ पुलिस ने पंजाब से आए इस गिरोह के 4 सदस्यों को एसटीएफ के सहयोग से मडियांव थानाक्षेत्र में पकड़ा था. इन के पास से 2 तमंचे, चाकू, नकदी और गहने बरामद किए थे. 3 साल पहले इस गिरोह ने जौनपुर के शाहगंज इलाके में डकैती डाली थी. जौनपुर पुलिस ने इन के 2 सदस्यों पर 2-2 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया था.

लखनऊ के एएसपी (ट्रांसगोमती) दुर्गेश कुमार ने बताया कि रात को पुलिस को सूचना मिली थी कि पंजाब के छैमार गिरोह के कुछ डकैत घैला पुल के पास मौजूद हैं. एसटीएफ के एसआई विनय कुमार और इंसपेक्टर मडियांव नागेश मिश्रा ने फोर्स के साथ इन की घेराबंदी की.

पुलिस को देखते ही गिरोह के सदस्यों ने गोली चलाना शुरू कर दिया. जवाबी फायरिंग में वे भागने लगे, लेकिन पुलिस ने 4 लोगों को पकड़ लिया, जिन की पहचान कदीम उर्फ पहलवान, अली उर्फ हनीफ, मुन्ना उर्फ बग्गा और सलमान उर्फ अजीम के रूप में हुई. इन के पास से जौनपुर में हुई लूट का सामान भी बरामद हुआ.

दरअसल, ये छैमार गिरोह के सदस्य थे. यह छैमार गिरोह पंजाब के बदमाशों द्वारा तैयार किया गया था. ये लोकल अपराधियों को अपने साथ रैकी के लिए रखते थे, जो उस घर की तलाश करते थे, जहां डकैती डालनी होती थी. इस के बाद का काम छैमार गिरोह का होता था.

लोकल अपराधी कत्ल करने में पीछे हट जाता था, जबकि छैमार गिरोह के क्रूर सदस्य लूट के दौरान कत्ल करने से जरा भी नहीं घबराते थे. ये अपना ठिकाना बदलते रहते थे, जिस से इन की शिनाख्त नहीं हो पाती थी.

6 कत्ल करने के बाद डकैत अपनी शादी कर के गृहस्थी बसा सकता था. लूट के पैसे से ये अपना खर्च चलाते थे. दरअसल आज भी बहुत सारे लोग हत्या जैसे अपराध को बाहुबल से जोड़ कर देखते हैं, जिस की वजह से ऐसी प्रथाएं चल पड़ी हैं. अपराधी खुद का दामन बचाने के लिए ऐसी प्रथाओं का हवाला देता है. ये अपने नाम और गैंग का नाम बदल कर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं.

दोस्त को गोली मार कर की खुदकुशी

सेना में लांसनायक संतोष कुमार ने मंगलम कालोनी में किराए के मकान में अपने दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी. उस के बाद संतोष ने भी गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

धायं… धायं… धायं… एक के बाद एक 3 गोलियां चलीं और आसपास के लोगों को कुछ पता ही नहीं चल सका. हैरानी की बात तो यह भी थी कि मकान में रहने वाले मकान मालिक और बाकी किराएदारों को भी गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं पड़ी.

24 सितंबर, 2017 को पटना के दानापुर ब्लौक में हुई इस वारदात में किसी ‘तीसरे’ के होने के संकेत ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है.

दानापुर थाने के बेली रोड पर बसी मंगलम कालोनी में सेना के 32 साला लांसनायक संतोष कुमार सिंह ने लाइसैंसी राइफल से 22 साला दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी और उस के बाद खुद को भी गोली मार ली.

संतोष किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहता था. मकान के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि हत्या वाले दिन रिकेश कुमार के अलावा एक और आदमी संतोष के घर पर था. किसी ने उस तीसरे शख्स को बाहर निकलते नहीं देखा. पुलिस को उस का कोई अतापता नहीं मिल पा रहा है.

कुछ महीने पहले ही संतोष का तबादला अरुणाचल प्रदेश में हो गया था. उस के बाद दोनों फोन पर ही लंबी बातें किया करते थे. संतोष छुट्टी में घर आता, तो रिकेश से मिलता था.

24 सितंबर, 2017 को संतोष ने रिकेश को फोन कर अपने घर बुलाया. रिकेश ने आने से मना किया और कहा कि घर में काफी काम है. उस के बाद संतोष ने उस से कहा कि उस ने घर पर ही उस के लिए खाना बनवाया हुआ है.

खाने के नाम पर रिकेश ने उस के घर आने के लिए हामी भरी. कुछ देर बाद रिकेश संतोष के घर पहुंच गया और कमरे में बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. उसी दौरान वे दोनों बातचीत भी करते रहे. किसी बात को ले कर दोनों में तीखी झड़प शुरू हो गई. कुछ ही देर में संतोष चिल्लाने लगा, पर रिकेश उस की बातों को अनसुना कर टैलीविजन देखता रहा.

संतोष शादीशुदा था और रिकेश की शादी नहीं हुई थी. घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे.

संतोष कुछ महीने पहले तक बिहार में ही पोस्टैड था. वह बिहार रैजीमैंट के ट्रेनिंग सैंटर में इंस्ट्रक्टर था. रिकेश की भी सेना में सिपाही के पद पर बहाली हुई थी और वह ट्रेनिंग सैंटर में ही ट्रेनिंग ले रहा था. उसी दौरान उस की मुलाकात संतोष से हुई और कुछ ही समय में वे दोनों गहरे दोस्त बन गए.

पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल फोन का रिकौर्ड खंगाला, तो दोनों के बीच की बातचीत को सुन कर लगा कि उन की दोस्ती हदें पार कर चुकी थी. दोनों हर तरह की बातें खुल कर किया करते थे.

पुलिस के मुताबिक, रिकेश के एक दोस्त ने बताया कि रिकेश किसी को कुछ बताए बगैर ही बैरक से बाहर निकल गया था. देर तक जब वह बैरक में नहीं पहुंचा, तो उस के साथी जवानों ने रिकेश की मां को फोन कर मामले की जानकारी दी.

रिकेश की मां उस समय भोपाल में थीं. उन्होंने पटना से सटे दानापुर इलाके में रहने वाली अपनी बेटी पिंकी को रिकेश के बारे में पता करने को कहा.

पिंकी अपने पति मनोज को साथ ले कर देर रात संतोष के घर पहुंची. उस ने मकान मालिक राजेंद्र सिंह से संतोष और रिकेश के बारे में पूछा. मकान मालिक ने उन को घर में नहीं घुसने दिया और सुबह आने को कहा.

दूसरे दिन सुबह पिंकी अपने ससुर जगेश्वर सिंह के साथ संतोष के घर पहुंची. पिंकी ने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. उस के बाद उस ने जोर से चिल्ला कर आवाज लगाई. काफी कोशिश के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो उस ने मकान मालिक को मामले की जानकारी दी.

मकान मालिक की सहमति के बाद संतोष के मकान का दरवाजा तोड़ा गया. दरवाजा टूटने के बाद जब वे लोग अंदर गए, तो सभी के मुंह से चीखें निकल पड़ीं. कमरे के अंदर संतोष और रिकेश की खून से सनी लाशें पड़ी हुई थीं.

संतोष और रिकेश के परिवार समेत पुलिस भी इस बात से हैरान है कि राइफल की 3 गोलियां चलीं, पर मकान मालिक को उस की आवाज कैसे नहीं सुनाई दी?

हैरानी की बात यह भी है कि मकान में रहने वाले बाकी किराएदारों को भी आवाज नहीं सुनाई पड़ी.

कमरे में संतोष की राइफल के साथ 3 जिंदा कारतूस और 3 खोखे बरामद हुए. कमरे में लगा टैलीविजन चल रहा था. कमरे से पुलिस ने संतोष और रिकेश के मोबाइल फोन बरामद किए.

22 सितंबर को संतोष अपनी बीवी रिंकी देवी और 10 साल के बेटे आयुष को सारण जिले के चकिया थाना के दुरघौली गांव में छोड़ आया था. दुरघौली उस का पुश्तैनी घर है. उस के पिता धर्मदेव सिंह किसान हैं.

रिकेश आरा के दोबाहा गांव का रहने वाला था और उस के पिता का नाम विजय कुमार सिंह है.

रिकेश की बहन पिंकी और बाकी घर वालों ने बताया कि संतोष अपनी बहन से रिकेश की शादी करवाना चाहता था. उस ने अपनी बहन से रिकेश को मिलवाया भी था. उस के बाद रिकेश उस से फोन पर अकसर बातें करने लगा था.

रिकेश के घर वाले संतोष की बहन को पसंद नहीं करते थे और शादी के लिए राजी नहीं हो रहे थे. संतोष लगातार रिकेश पर शादी का दबाव बना रहा था और रिकेश यह कह कर शादी टाल रहा था कि उस के घर वालों को लड़की पसंद नहीं है.

संतोष की बीवी रिंकी देवी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उस ने किसी से किसी तरह का झगड़ा होने की बात से साफ इनकार किया.

संतोष के कमरे में टंगे संतोष और रिकेश के हंसतेमुसकराते कई फोटो देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दोनों के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

रिकेश का सिर बाथरूम के अंदर था और जिस्म का बाकी हिस्सा कमरे में था. ऐसा लग रहा था कि उसे मारने के बाद उस की लाश को घसीट कर बाथरूम की ओर ले जाया गया था.

रिकेश के पैर के पास ही संतोष की लाश पड़ी हुई थी. उस के पेट के ऊपर राइफल रखी हुई थी और उस की नली के आगे के हिस्से में खून के दाग थे.

रिकेश के शरीर में 2 गोलियों के निशान थे और संतोष की ठुड्डी पर गोली का निशान था. उस के सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरा जख्म था.

संतोष के गले में रस्सी भी बंधी हुई थी और उस का दूसरा छोर सीलिंग पंखे से बंधा हुआ था. इस से यह पता चलता है कि संतोष ने पहले गले में फंदा डाल कर पंखे से लटक कर जान देने की कोशिश की होगी. उस में कामयाबी नहीं मिलने के बाद उस ने गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

प्यार में हत्या का पागलपन

लखनऊ के पारा इलाके की रामविहार कालोनी में रिटायर्ड सूबेदार लालबहादुर सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा 2 बेटियां आरती, अंतिमा और बेटा आशुतोष था. वैसे वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले थे. 24 साल का आशुतोष रामस्वरूप कालेज से बीबीए करने के बाद बाराबंकी जिले में एल एंड टी कंपनी में नौकरी करता था. 26 साल की आरती बीटेक की पढ़ाई पूरी कर के बीटीसी के दूसरे साल में पढ़ रही थी. जबकि 17 साल की अंतिमा सेंट मैरी स्कूल में इंटरमीडिएट की छात्रा थी.

लालबहादुर सिंह आर्मी में सूबेदार के पद से एक महीने पहले ही रिटायर हुए थे. वह राजस्थान के जोधपुर छावनी में तैनात थे. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सब से पहले बड़ी बेटी की शादी करने की योजना बनाई.

9 मई, 2017 को सुबह 8 बजे के करीब लालबहादुर सिंह की पत्नी रेनू की तबीयत अचानक खराब हो गई. वह उन्हें ले कर कैंट एरिया स्थित कमांड अस्पताल गए. दोनों बेटियों को वह घर पर ही छोड़ गए थे. डाक्टर ने रेनू का सीटी स्कैन कराने की सलाह दी, पर उस दिन अस्पताल में सीटी स्कैन की मशीन खराब थी. वह एकडेढ़ घंटे में ही घर आ गए.

करीब साढ़े 9 बजे जब वह पत्नी के साथ घर पहुंचे तो घर का मेनगेट खुला था. अंदर दाखिल होते हुए वह बड़बड़ाए, ‘बच्चियां कितनी लापरवाह हैं, गेट भी बंद नहीं किया.’ जब वे अंदर पहुंचे तो घर में खून ही खून फैला दिखाई दिया. खून देख कर पतिपत्नी घबरा गए.

बेटियों को आवाज देते हुए लालबहादुर सिंह आगे बढे तो उन्होंने देखा ड्राइंगरूम से गैलरी तक खून ही खून फैला है. सहमे हुए वह किचन की ओर बढे़ तो पता चला आरती और अंतिमा किचन में खून से लथपथ घायल पड़ी थीं.

बेटियों की हालत देख कर रेनू चीख पड़ीं, जबकि लालबहादुर सिंह घर से बाहर आ कर मदद के लिए चिल्लाने लगे. पड़ोस में रहने वाला रवि सब से पहले उन की आवाज सुन कर अपने घर से निकला तो उन्होंने उस से रोते हुए कहा, ‘मेरा तो सब कुछ तबाह हो गया.’

रवि समझ गया कि जरूर इन के घर कोई अनहोनी हुई है. कमरे से उन की पत्नी के रोने की आवाज आ रही थी. रवि उन के घर के अंदर गया तो देखा, दोनों बेटियां लहूलुहान पड़ी हैं. तब तक मोहल्ले के और लोग भी आ गए थे. रवि के पास स्विफ्ट डिजायर कार थी. लोगों की सहायता से उस ने दोनों बहनों को अपनी कार में डाला और लालबहादुर सिंह को साथ ले कर कमांड अस्पताल गया.

अस्पताल में डाक्टरों ने अंतिमा को तुरंत मृत घोषित कर दिया, जबकि आरती का इलाज शुरू कर दिया. पर इलाज के दौरान ही उस की भी मौत हो गई. पुलिस केस देखते हुए अस्पताल प्रशासन की तरफ से पुलिस को इत्तिला दी गई. सूचना पा कर तालकटोरा थाने की पुलिस कमांड अस्पताल पहुंच गई.

मामला 2 सगी बहनों की हत्या का था, इसलिए खबर मिलने पर आईजी सतीश गणेश, डीआईजी प्रवीण कुमार, एसएसपी दीपक कुमार भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो लालबहादुर सिंह और आरती के कमरे का सामान बिखरा पड़ा था. लग रहा था कि हत्याएं लूट के लिए की गई थीं. लेकिन जब लालबहादुर सिंह और उन की पत्नी ने घर का सामान देखा तो वहां से कुछ भी गायब नहीं था.

घटनास्थल को देखने से ही लग रहा था कि दोनों बहनों ने मरने से पहले हत्यारे के साथ जम कर मुकाबला किया था. किचन में भगौना, परात और गिलास जमीन पर गिरे पड़े थे. आरती चश्मा लगाती थी, उस का चश्मा टूटा पड़ा था. उस की मुट्ठी में किसी पुरुष के बाल भी मिले थे. आरती और अंतिमा को जिस तरह से शिकार बनाया गया था, उस से साफ लग रहा था कि हमलावर केवल उन की हत्या करने के इरादे से ही आया था.

दोनों ही बहनों की कनपटी और गरदन के पास धारदार हथियार से वार किए गए थे. अंतिमा के हाथ की नस भी काटी गई थी. हत्यारे ने बाथरूम में जा कर अपने हाथ आदि पर लगा खून साफ किया था, जिस से वहां के फर्श और दीवार पर भी खून लग गया था.

पुलिस को वहां मिले दोनों मोबाइल फोन चालू हालत में थे, पर उन पर भी खून लगा था. एक मोबाइल से एसएमएस, काल लौग्स और वाट्सऐप मैसेज डिलीट किए गए थे, जिस से साफ लग रहा था कि हमलावर दोनों का परिचित था.

आरती की शादी तय हो चुकी थी. इस बात को भी ध्यान में रखा गया. लालबहादुर सिंह के मकान के निचले हिस्से में 2 छात्र किराए पर रहते थे. पुलिस ने डौग स्क्वायड के जरिए कुछ सुराग तलाशने की कोशिश की, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा. इस दोहरी हत्या से बौखलाए लोगों ने स्थानीय विधायक सुरेशचंद्र श्रीवास्तव के घर पर प्रदर्शन भी किया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली थी. एसएसपी दीपक कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए एक टीम बनाई, जिस में थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया गया. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसपी संजय कुमार, सीओ (आलमबाग) मीनाक्षी गुप्ता, स्वाट टीम के प्रभारी फजलुर्रहमान, सर्विलांस प्रभारी अमरेश त्रिपाठी, एसआई संजय कुमार द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस कई ऐंगल से जांच कर रही थी. एएसपी क्राइम संजय कुमार ने हर पहलू को पैनी नजरों से देखना शुरू किया. आरती के फोन की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर वह देर तक बातें करती थी. उस नंबर की जांच की गई तो वह नंबर किसी इंद्रजीत का था. पता चला कि उस से ही आरती की शादी होने वाली थी.

हत्या के कुछ देर पहले आरती की जिस नंबर पर बात हुई थी, वह अखिलेश यादव का था. पुलिस ने अखिलेश से बात की तो उस ने आरती से दोस्ती की बात तो स्वीकारी, लेकिन किसी तरह के झगड़े या विवाद से इनकार कर दिया.

अखिलेश ने पुलिस को बताया कि आरती का अपने घर के सामने रहने वाले सौरभ शर्मा से विवाद हुआ था. उस ने कई बार इस का जिक्र उस से किया था. इस से पहले आरती के भाई आशुतोष ने भी सौरभ पर अपना शक जताया था.

क्राइम ब्रांच की टीम सौरभ शर्मा को रात में उस के घर से उठा लाई. पुलिस को उस के लंबे बाल देख कर शक हुआ. उस के हाथ में वैसी ही चोट लगी थी, जैसी उन दोनों बहनों के हाथ में लगी थी. पुलिस ने सौरभ से पूछताछ शुरू की तो पहले वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन जब पुलिस ने उस के कपड़े उतार कर देखा तो उस के शरीर पर कई चोटें लगी दिखीं. सिर के पिछले हिस्से के बाल भी उखड़े मिले. ऐसे में पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की तो वह टूट गया. फिर उस ने दोनों बहनों की हत्या की बात स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

सौरभ और आरती आमनेसामने के मकानों में रहते थे. इसी वजह से दोनों का एकदूसरे के यहां उठनाबैठना था. दोनों पढ़ाई में एकदूसरे का सहयोग भी लेते थे. दोनों साथ ही कोचिंग भी जाते थे, जिस से उन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी.

बीटेक सैकेंड सेमेस्टर परीक्षा के दौरान आरती के हाथ में चोट लग गई थी, जिस की वजह से आरती एग्जाम में लिखने में असमर्थ थी. ऐसे में सौरभ उस का राइटर बना था. कालेज से अनुमति के बाद सौरभ ने उस का पेपर दिया था.

आरती सौरभ को अपना अच्छा दोस्त मानती थी. जबकि सौरभ इस दोस्ती को प्यार मान बैठा था. सौरभ पर इश्क का ऐसा भूत सवार हुआ कि उसे आरती का किसी के साथ घूमना या बातचीत करना अच्छा नहीं लगता था. सौरभ के अलावा आरती की दोस्ती इंद्रजीत और अखिलेश से भी थी. सौरभ ने जब उसे उन के साथ बातचीत करते देखा तो उसे बहुत बुरा लगा. इस बात को ले कर आरती और सौरभ के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ, जिस से दोनों के बीच होने वाली बातचीत भी बंद हो गई.

इस के बाद भी सौरभ ने कई बार आरती को इंद्रजीत और अखिलेश के साथ अलगअलग देखा. इस से उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. सोमवार 8 मई को शाम के समय आरती और अखिलेश को सौरभ ने फीनिक्स मौल में देख लिया. दोनों ही बाहुबली-2 देख कर निकले थे. उसी समय सौरभ के मन में आरती से बदला लेने का खयाल आ गया.

सौरभ ने बीकौम की पढ़ाई की थी और बैंक औफिसर बनने की तैयारी कर रहा था. रात भर सौरभ गुस्से में जलता रहा. सुबह के समय जब उस ने देखा कि आरती के मातापिता घर से बाहर चले गए हैं तो वह उस के घर जा धमका. सौरभ को पता था कि आरती की छोटी बहन अंतिमा सुबह 7 बजे स्कूल चली गई होगी, इसलिए आरती घर में अकेली होगी.

यही सोच कर उस ने उस दिन आरती को सबक सिखाने की ठान ली. इस के लिए उस ने अपने पास एक कैंची रख ली थी. आरती के घर पर पहुंच कर उस ने कालबैल बजाई तो आरती की छोटी बहन अंतिमा ने दरवाजा खोला. वह उस से बोली कि मम्मीपापा अस्पताल गए हैं और दीदी बाथरूम में हैं.

सौरभ ने बिना कुछ बोले अंतिमा पर कैंची से हमला कर दिया. वह चीखती हुई किचन की तरफ भागी. बहन की चीख सुन कर आरती ने फटाफट कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर  आ गई. तब तक सौरभ ने अंतिमा पर अनगिनत वार कर दिए थे.

सौरभ ने जैसे ही आरती को देखा, वह उस पर टूट पड़ा. आरती ने अपना बचाव करने की कोशिश भी की, पर उस की कोशिश सफल नहीं हो सकी. जब उसे लगा कि आरती मर चुकी है तो उस ने खून के निशान आरती के पिता की शर्ट पर लगा दिए, जिस से लोग यह शक करें कि लालबहादुर सिंह ने ही अपनी बेटियों को मार दिया होगा. इस के बाद बाथरूम में हाथ धो कर वह अपने घर चला गया.

लालबहादुर सिंह घर आए और बेटियों को ले कर अस्पताल गए तो उन के साथ सौरभ भी अस्पताल गया था. वह लोगों से ऐसे पेश आ रहा था, जैसे उसे कुछ पता ही न हो. हत्याकांड के बाद विधायक सुरेशचंद्र श्रीवास्तव के घर पर लोग नारेबाजी करने गए तो सौरभ भी उस में था. वह इस बात की भी मोहल्ले में हवा दे रहा था कि दोनों बहनों में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ होगा, जिस से यह घटना घट गई.

सौरभ ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि आरती की जान लेने का उसे कोई पछतावा नहीं है. आरती के लिए उस ने क्याक्या नहीं किया. वह छिपछिप कर उसे देखा करता था. कालेज और कोचिंग साथ जाता था. उस के  आनेजाने का इंतजार करता था. इस के बावजूद भी उस ने किसी और से शादी करने का फैसला कर लिया था.

सौरभ का परिवार दबंग किस्म का था. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने बताया कि सौरभ के पिता मुकुंदीलाल शर्मा ट्रांसपोर्टर हैं. घर पर उस के चाचा भी रहते हैं. इन की दबंगई की वजह से मोहल्ले वाले उन से दूर रहते हैं.

एएसपी क्राइम डा. संजय कुमार ने बताया कि सौरभ को कोर्ट में गुनहगार साबित करने के लिए पुलिस के पास पुख्ता सबूत हैं. आरती की मुट्ठी में बाल और नाखूनों में सौरभ की स्किन के टुकड़े मिले हैं. उन्हें डीएनए टेस्ट के लिए भेजा जाएगा.

इस के अलावा हत्या में प्रयुक्त कैंची और खून सने कपड़े व तमाम वैज्ञानिक साक्ष्य उसे गुनहगार साबित करने के लिए काफी हैं. पुलिस टीम ने तत्परता दिखाते हुए 2 दिन में ही इस दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. एसएसपी दीपक कुमार ने केस को खोलने वाली पुलिस टीम की सराहना की है. पुलिस ने सौरभ से पूछताछ कर उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपहरण के चक्कर में फंस गया मुंबई का किंग

15 मई, 2017 की सुबह की बात है. समय 11-साढ़े 11 बजे सीकर जिले के शहर फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार अपनी ज्वैलरी की दुकान पर थे. उन की पत्नी पार्वती और बेटा ध्रुव ही घर पर थे. बेटी वर्षा किसी काम से बाजार गई थी. उसी समय अच्छी कदकाठी का एक सुदर्शन युवक उन के घर पहुंचा. उस के हाथ में शादी के कुछ कार्ड थे. युवक ने ललित के घर के बाहर लगी डोरबेल बजाई तो पार्वती ने बाहर आ कर दरवाजा खोला. युवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘नमस्ते आंटीजी, पोद्दार अंकल घर पर हैं?’’

पार्वती ने शालीनता से जवाब देते हुए कहा, ‘‘नमस्ते भैया, पोद्दारजी तो इस समय दुकान पर हैं. बताइए क्या काम है?’’

‘‘आंटीजी, हमारे घर में शादी है. मैं कार्ड देने आया था.’’ युवक ने उसी शालीनता से कहा.

युवक के हाथ में शादी के कार्ड देख कर पार्वती ने उसे अंदर बुला लिया. युवक ने सोफे पर बैठ कर एक कार्ड पार्वती की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटीजी, यह कार्ड पोद्दार अंकल को दे दीजिएगा. आप लोगों को शादी में जरूर आना है. बच्चों को भी साथ लाइएगा.’’

पार्वती ने शादी का कार्ड देख कर कहा, ‘‘भैया आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आंटीजी, आप नहीं पहचानतीं, लेकिन पोद्दार अंकल मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं.’’ युवक ने कहा.

पार्वती ने घर आए, उस मेहमान से चायपानी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘चायपानी के तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है, आंटीजी. अभी एक कार्ड आप के भांजे अश्विनी को भी देना है. मैं उन का घर नहीं जानता. आप अपने बेटे को मेरे साथ भेज देतीं तो वह उन का घर बता देता. कार्ड दे कर मैं आप के बेटे को छोड़ जाऊंगा.’’

बाहर तेज धूप थी. इसलिए पार्वती बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आप कार्ड हमें दे दीजिए. शाम को अश्विनी हमारे घर आएगा तो हम कार्ड दे देंगे.’’

पार्वती की बात सुन कर युवक ने मायूस होते हुए कहा, ‘‘कार्ड तो मैं आप को दे दूं, लेकिन पापा मुझे डांटेंगे. उन्होंने कहा है कि खुद ही जा कर अश्विनी को कार्ड देना.’’

युवक की बातें सुन कर पार्वती ने ड्राइंगरूम में ही वीडियो गेम खेल रहे अपने 13 साल के बेटे ध्रुव से कहा, ‘‘बेटा, अंकल के साथ जा कर इन्हें अश्विनी का घर बता दे.’’

ध्रुव मां का कहना टालना नहीं चाहता था, इसलिए वह अनमने मन से जाने को तैयार हो गया. वह युवक ध्रुव के साथ घर से निकलते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू आंटीजी.’’

ध्रुव और उस युवक के जाने के बाद पार्वती घर के कामों में लग गईं. काम से जैसे ही फुरसत मिली उन्होंने घड़ी देखी. दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. ध्रुव को कब का घर आ जाना चाहिए था. लेकिन वह अभी तक नहीं आया था. पार्वती ने सोचा कि ध्रुव वहां जा कर खेलने या चायपानी पीने में लग गया होगा. हो सकता है, अश्विनी ने उसे किसी काम से भेज दिया हो. यह सोच कर वह फिर काम में लग गईं.

थोड़ी देर बाद उन्हें जब फिर ध्रुव का ध्यान आया, तब दोपहर का सवा बज रहा था. ध्रुव को घर से गए हुए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो गया था. पार्वती को चिंता होने लगी. 10-5 मिनट वह सेचती रहीं कि क्या करें. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने पति ललित पोद्दार को फोन कर के सारी बात बता दी. पत्नी की बात सुन कर ललित को भी चिंता हुई. उन्होंने पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘ध्रुव कोई छोटा बच्चा नहीं है कि कहीं खो जाए या इधरउधर भटक जाए. फिर भी मैं अश्विनी को फोन कर के पता करता हूं.’’

ललित ने अश्विनी को फोन कर के ध्रुव के बारे में पूछा तो अश्विनी ने जवाब दिया, ‘‘मामाजी, मेरे यहां न तो ध्रुव आया था और ना ही कोई आदमी शादी का कार्ड देने आया था.’’

अश्विनी का जवाब सुन कर ललित भी चिंता में पड़ गए. वह तुरंत घर पहुंचे और पार्वती से सारी बातें पूछीं. उन्होंने वह शादी का कार्ड भी देखा, जो वह युवक दे गया था. कार्ड पर लियाकत सिवासर का नाम लिखा था. ललित को वह शादी का कार्ड अपने किसी परिचित का नहीं लगा. उन्होंने कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबरों पर फोन किया तो वे नंबर फरजी निकले.

ललित को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन के मन में बुरे ख्याल आने लगे. उन्हें आशंका इस बात की थी कि कहीं किसी ने पैसों के लालच में ध्रुव का अपहरण न कर लिया हो. इस की वजह यह थी कि वह फतेहपुर के नामीगिरामी ज्वैलर थे. राजस्थान के शेखावटी इलाके में उन का अच्छाखासा रसूख था. बेटे के घर न आने से पार्वती का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

ललित ने अपने कुछ परिचितों से बात की तो सभी ने यही सलाह दी कि इस मामले की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए. इस के बाद दोपहर करीब ढाई बजे ललित ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. पार्वती से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच से यही नतीजा निकला कि ध्रुव का अपहरण किया गया है.

अपहर्त्ता प्रोफेशनल अपराधी हो सकते थे. क्योंकि रात तक फिरौती के लिए किसी अपहर्त्ता का फोन नहीं आया था. पुलिस को अनुमान हो गया था कि अपहर्त्ता ने ध्रुव के अपहरण का जो तरीका अपनाया था, उस से साफ लगता था कि उन्होंने रेकी कर के ललित पोद्दार के बारे में जानकारियां जुटाई थीं.

पुलिस ने फिरौती मांगे जाने की आशंका के मद्देनजर पोद्दार परिवार के सारे मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिए. लेकिन उस दिन रात तक ना तो किसी अपहर्त्ता का फोन आया और ना ही ध्रुव को साथ ले जाने वाले उस युवक के बारे में कोई जानकारी मिली. पुलिस ने ललित के घर के आसपास और लक्ष्मीनारायण मंदिर के करीब स्थित उस की दुकान के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, लेकिन उन से पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ.

पुलिस को अब तक केवल यही पता चला था कि ललित पोद्दार के घर जो युवक शादी का कार्ड देने आया था, उस की उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. वह सफेद शर्ट पहने हुए था. अगले दिन सीकर के एसपी राठौड़ विनीत कुमार त्रिकमलाल ने ध्रुव का पता लगाने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस के बाद पुलिस ने उस शादी के कार्ड को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

परेशानी यह थी कि शादी के कार्ड पर किसी प्रिंटिंग प्रैस का नाम नहीं लिखा था, जबकि हर शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रैस का नाम जरूरी होता है. इस की वजह यह है कि राजस्थान सरकार ने बालविवाह की रोकथाम के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी कर दिया है. पुलिस ने शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रैस मालिकों से बात की तो पता चला कि उस कार्ड में औफसेट पेंट का इस्तेमाल किया गया था.

उस पेंट का उपयोग फतेहपुर में नहीं होता था. सीकर में प्रिंटिंग प्रैस वाले उस का उपयोग करते थे. इस के बाद पुलिस ने सीकर, चुरू और झुंझुनूं के करीब डेढ़ सौ प्रैस वालों से पूछताछ की. इस जांच के दौरान एक नया तथ्य यह सामने आया कि ध्रुव के अपहरण से 4 दिन पहले से उसी के स्कूल में पढ़ने वाला छात्र अंकित भी लापता था. अंकित चुरू जिले के रतनगढ़ शहर का रहने वाला था. वह फतेहपुर के विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ता था और हौस्टल में रहता था. गर्मी की छुट्टी में वह रतनगढ़ अपने घर गया था. वह 12 मई को दोपहर करीब सवा बारह बजे बाल कटवाने के लिए घर से निकला था, तब से लौट कर घर नहीं आया था.

तीसरे दिन आईजी हेमंत प्रियदर्शी एवं एसपी राठौड़ विनीत कुमार ने ध्रुव के घर वालों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ध्रुव का जल्द से जल्द पता लगा लिया जाएगा. उसी दिन यानी 17 मई को अपहर्त्ता ने ललित पोद्दार को फोन कर के बताया कि उन के बेटे ध्रुव का अपहरण कर लिया गया है. उन्होंने ध्रुव की उन से बात करा कर 70 लाख रुपए की फिरौती मांगी.

उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर पुलिस को बताया तो बच्चे को मार दिया जाएगा. ललित ने समझदारी से बातें करते हुए अपहर्त्ता से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि नोटबंदी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. भाइयों, परिवार वालों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने के लिए समय चाहिए. चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 70 लाख रुपए इकट्ठे नहीं हो पाएंगे. बैंक से एक साथ ज्यादा पैसा निकाला तो पुलिस को शक हो जाएगा.

ललित ने अपहर्ता को अपनी मजबूरियां बता कर यह जता दिया कि वह 70 लाख रुपए नहीं दे सकते. बाद में अपहर्ता 45 लाख रुपए ले कर ध्रुव को सकुशल छोड़ने को राजी हो गए. अपहर्ताओं ने फिरौती की यह रकम कोलकाता में हावड़ा ब्रिज पर पहुंचाने को कहा. लेकिन बाद में वे फिरौती की रकम मुंबई में लेने को तैयार हो गए.

ललित का मोबाइल पहले से ही पुलिस सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को अपहर्ता और ललित के बीच हुई बातचीत का पता चल गया. इसी के साथ पुलिस को वह मोबाइल नंबर भी मिल गया, जिस से ललित को फोन किया गया था.

इसी बीच पुलिस ने शादी के उस कार्ड की जांच एक्सपर्ट से कराई तो पता चला कि वह एविडेक प्रिंटर से छपा था. शेखावटी के सीकर, चुरू व झुंझुनूं जिले में करीब 60 एविडेक प्रिंटर थे. इन प्रिंटर मालिकों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह कार्ड नवलगढ़ के एक प्रिंटर से छपवाया गया था. उस प्रिंटर के मालिक से पूछताछ में पता चला कि वह कार्ड फतेहपुर के किसी आदमी ने उस के प्रिंटर पर छपवाया था. उस आदमी से पूछताछ में पुलिस को अपहर्त्ता युवक के बारे में कुछ सुराग मिले.

इस के अलावा पुलिस ने 15 मई को ललित पोद्दार के मकान के आसपास घटना के समय हुई सभी मोबाइल कौल को ट्रेस किया. इस में मुंबई का एक नंबर मिला. यह नंबर साजिद बेग का था. काल डिटेल्स के आधार पर यह भी पता चल गया कि साजिद के तार फतेहपुर के रहने वाले अयाज से जुड़े थे.

जांच में यह बात भी सामने आ गई कि अपहर्ता मुंबई से जुड़ा है. इस पर पुलिस ने फतेहपुर से ले कर विभिन्न राज्यों के टोल नाकों पर जांच की और उन नाकों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस में सब से पहले शोभासर के टोल पर सफेद रंग की एसेंट कार पर जयपुर का नंबर मिला. अगले टोल नाके मौलासर पर इसी कार पर महाराष्ट्र की नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. आगे के टोल नाकों पर उसी कार पर अलगअलग नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. जांच में ये सारे नंबर फरजी पाए गए.

सीकर के एसपी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से बात कर के ध्रुव के अपहरण की पूरी जानकारी दे कर अपराधियों को पकड़ने में सहायता करने का आग्रह किया. इसी के साथ एसपी के दिशानिर्देश पर एडिशनल एसपी तेजपाल सिंह ने 3 टीमें गठित कर के 3 राज्यों में भेजी. सब से पहले रामगढ़ शेखावाटी के थानाप्रभारी रमेशचंद्र को टीम के साथ मुंबई भेजा गया. यह टीम मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ मिल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह ने लगातार जांच कर के ध्रुव के अपहरण में साजिद बेग और फतेहपुर के रहने वाले अयाज के साथ उस के संबंधों के बारे में पता लगाया.

एसपी ध्रुव के घर वालों को सांत्वना देने के साथ यह भी बताते रहे कि उन्हें अपहर्ता को किस तरह बातों में उलझा कर रखना है, ताकि पुलिस बच्चे तक पहुंच सके. पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश और एक टीम पश्चिम बंगाल भी भेजी गई. पुलिस को संकेत मिले थे कि अपहर्ता धु्रुव को ले कर मुंबई, कोलकाता या कानपुर जा सकते हैं.

लगातार भागदौड़ के बाद सीकर पुलिस ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की मदद से 21 मई की आधी रात के बाद मुंबई के बांद्रा  इलाके से ध्रुव को सकुशल बरामद कर लिया. पुलिस ने उस के अपहरण के आरोप में साजिद बेग को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था. इस के अलावा उस की 2 गर्लफ्रैंड्स को भी गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने वह एसेंट कार भी बरामद कर ली, जिस से ध्रुव का अपहरण किया गया था. सीकर पुलिस 22 मई की रात ध्रुव और आरोपियों को ले कर मुंबई से रवाना हुई और 23 मई को फतेहपुर आ गई.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में मुंबई से साजिद बेग और उस की गर्लफ्रैंड्स यास्मीन जान और हालिमा मंडल को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के बाद फतेहपुर के रहने वाले अयाज उल हसन उर्फ हयाज को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में ध्रुव के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

साजिद बेग पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह बांद्रा, मुंबई में मछली बाजार में रहता था. उसे हिंदी, अंग्रेजी व मारवाड़ी का अच्छा ज्ञान था. वह मूलरूप से फतेहपुर का ही रहने वाला था. उस के दादा और घर के अन्य लोग मुंबई जा कर बस गए थे. फतेहपुर में साजिद का 2 मंजिला आलीशान मकान था. वह फतेहपुर आताजाता रहता था. उस की पत्नी भी पढ़ीलिखी है. उस का एक बच्चा भी है.

मुंबई स्थित उस के घर पर नौकरचाकर काम करते हैं. उस के पिता के भाई और अन्य रिश्तेदार भी मुंबई में ही रहते हैं. इन के लोखंडवाला, बोरीवली सहित कई पौश इलाकों में आलीशान बंगले हैं. वह मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करता था. मौजमस्ती के गलत शौक और व्यापार में घाटा होने की वजह से साजिद कई महीनों से आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. इसलिए वह जल्द से जल्द किसी भी तरीके से पैसे कमा कर अपना कर्ज उतारना चाहता था.

करीब 2 महीने पहले साजिद ने फतेहपुर के रहने वाले अपने बचपन के दोस्त अयाज उल हसन उर्फ हयाज को मुंबई बुलाया. वह 5 दिनों  तक मुंबई में रहा. इस बीच साजिद ने उस से पैसे कमाने के तौर तरीकों के बारे में बात की. इस पर अयाज ने कहा कि फतेहपुर में किसी का अपहरण कर के उस के बदले में अच्छीखासी फिरौती वसूली जा सकती है. हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था कि अपहरण किस का किया जाएगा.

साजिद ने अयाज को यह कह कर फतेहपुर वापस भेज दिया कि वह किसी ऐसी पार्टी का चयन करे, जिस से मोटी रकम वसूली जा सके. अयाज फतेहपुर आ कर योजना बनाने लगा. अयाज ने पिछले साल फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार के मकान पर पेंट का काम किया था. इसलिए उसे ललित के घरपरिवार की सारी जानकारी थी. उस ने साजिद को ललित के बारे में बताया.

इस के बाद दोनों ने ललित के बेटे ध्रुव के अपहण की योजना बना ली. उसी योजना के तहत शादी का फरजी कार्ड नवलगढ़ से छपवाया गया. इस के बाद कार्ड से कैमिकल द्वारा प्रिंटिंग प्रैस का नाम हटा दिया गया. योजनानुसार साजिद 10 मई को मुंबई से कार ले कर फतेहपुर आ गया और दरगाह एरिया में रहने वाले अपने दोस्त अयाज से मिला. इस के बाद ध्रुव के अपहरण की योजना को अंतिम रूप दिया गया.

15 मई को शादी का कार्ड देने के बहाने साजिद ललित के घर से उस के बेटे धु्रव को अश्विनी के घर ले जाने की बात कह कर साथ ले गया और उसे घर के बाहर खड़ी एसेंट कार में बैठा लिया. उस ने धु्रव से कहा कि गाड़ी में पैट्रोल नहीं है, इसलिए पहले पैट्रोल भरवा लें, फिर अश्विनी के घर चलेंगे.

फतेहपुर में पैट्रोल पंप से पहले ही साजिद ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी तो ध्रुव को शक हुआ. वह शीशा खोल कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगा. इस पर साजिद ने उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गया.

ध्रुव को बेहोशी की हालत में पीछे की सीट पर सुला कर साजिद अपनी कार से मुंबई ले गया. बीचबीच में टोलनाकों से पहले उस ने 5 बार कार की नंबर प्लेट बदलीं.

साजिद ने अपहृत ध्रुव को मुंबई में अपनी 2 गर्लफ्रैंड्स के पास रखा. इन में एक गर्लफ्रैंड यास्मीन जान मुंबई के चैंबूर में लोखंड मार्ग पर रहती थी. तलाकशुदा यास्मीन को साजिद ने बता रखा था कि वह कुंवारा है. उस ने उसे शादी करने का झांसा भी दे रखा था. साजिद ने यास्मीन को धु्रव के अपहरण के बारे में बता दिया था. यास्मीन फिरौती में मिलने वाली मोटी रकम से साजिद के साथ ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी. इसलिए उस ने साजिद की मदद की और धु्रव को अपने पास रखा.

साजिद की दूसरी गर्लफ्रैंड हालिमा मंडल मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. वह पिछले कई सालों से बांद्रा इलाके में बाजा रोड पर रहती थी. उस के 2 बच्चे हैं. साजिद मुंबई पहुंच कर ध्रुव को सीधे हलिमा के घर ले गया था. उस ने उसे ध्रुव के अपहरण के बारे में बता दिया था. हालिमा ने भी फिरौती में मोटी रकम मिलने के लालच में साजिद का साथ दिया और ध्रुव को अपने पास रखा. वह ध्रुव को नींद की गोलियां देती रही, ताकि वह शोर न मचा सके.

फेसबुक पर एक पोस्ट में खुद को मुंबई का किंग बताने वाला साजिद इतना शातिर था कि ललित पोद्दार से या अयाज से बात करने के बाद मोबाइल स्विच औफ कर लेता था, ताकि पुलिस उसे ट्रेस न कर सके. ध्रुव को जहां रखा गया था, वहां से वह करीब सौ किलोमीटर दूर जा कर नए सिम से फोन करता था, ताकि अगर किसी तरह पुलिस मोबाइल नंबर ट्रेस भी कर ले तो उसी लोकेशन पर बच्चे को खोजती रहे.

साजिद के बताए अनुसार, टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने ध्रुव के अपहरण की साजिश रची थी. सीरियलों को देख कर ही उस ने हर कदम पर सावधानी बरती, लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. जबकि उस ने पुलिस से बचने के तमाम उपाय किए थे.

23 मई को पुलिस ध्रुव को ले कर फतेहपुर पहुंची तो पूरा शहर खुशी से नाच उठा. पुष्पवर्षा और आतिशबाजी की गई. 9 दिनों बाद बेटे को सकुशल देख कर पार्वती की आंखों से आंसू बह निकले. पिता ललित पोद्दार ने बेटे को गले से लगा कर माथा चूम लिया. सालासर मंदिर में लोगों ने फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह का सम्मान किया.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में साजिद के अलावा यास्मीन जान, हालिमा मंडल और फतेहपुर निवासी अयाज को गिरफ्तार किया था. फतेहपुर के एक अन्य युवक की भी इस मामले में भूमिका संदिग्ध पाई गई. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर नसरत उर्फ नागा उर्फ चाचा का नाम भी ध्रुव के अपहरण में सहयोगी के रूप में सामने आया है.

नसरत उर्फ नागा उत्तर प्रदेश के सिमौनी का रहने वाला था. वह फिलहाल मुंबई के गौरी खानपुर में रहता है. साजिद काफी समय से उस के संपर्क में था. उस के साथ नागा भी आया था. उस ने नागा को सीकर में ही छोड़ दिया था.

ध्रुव के अपहरण के बाद नागा साजिद के साथ हो गया था. दोनों ध्रुव को ले कर मुंबई गए थे. नागा पर उत्तर प्रदेश और मुंबई में हत्या के 3 मामले और लूट, चाकूबाजी, हथियार तस्करी, गुंडा एक्ट आदि के दर्जनों मामले दर्ज हैं. वह हिस्ट्रीशीटर है. कथा लिखे जाने तक सीकर पुलिस इस मामले में नागा की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तांत्रिकों के मायाजाल से रहें सावधान

सौतन से छुटकारा पाएं, पति या प्रेमी को वश में करें. गृहक्लेश, व्यापार में घाटा, संतान न होना आदि समस्याओं से समाधान’ के स्टीकर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपके दिख जाते हैं. इतना ही नहीं, इस तरह के विज्ञापन विभिन्न समाचारपत्रों में भी छपते रहते हैं.

विज्ञापन छपवाने वाले तथाकथित तांत्रिक खुद को बाबा हुसैनजी, बाबा बंगाली, बाबा मिर्जा, बाबा अमित सूफी आदि बताते हुए चंद घंटों में समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं. कुछ तो खुद को गोल्ड मैडलिस्ट, वशीकरण स्पैशलिस्ट बताते हैं. इंसानी जीवन की कोई ऐसी समस्या नहीं होगी, जिस के समाधान का दावा ये तांत्रिक न करते हों.

गाजियाबाद के विजयनगर का रहने वाला मिथुन सिंह पेशे से ट्रक ड्राइवर था. एक दिन वह ट्रक ले कर मेरठ जा रहा था तो गाजियाबाद में ही एक लालबत्ती पर उसे अपना ट्रक रोकना पड़ा. लालबत्ती होते ही चौराहे पर सामान बेचने वाले वहां रुकी गाडि़यों के पास जाजा कर सामान बेचते हैं.

उन्हीं में 18-19 साल का एक लड़का वहां रुकी हर गाड़ी में विजिटिंग कार्ड फेंक रहा था. जिस कार के खिड़कियों के शीशे बंद मिलते, वह विजिटिंग कार्ड कार के आगे के वाइपर में फंसा देता. लड़का अपना काम बड़ी फुरती से कर रहा था. ट्रक में बैठा मिथुन सिंह उसे देख रहा था.

वह लड़का मिथुन के ट्रक के पास आया और एक विजिटिंग कार्ड उस की केबिन में फेंक कर चला गया. उसी वक्त हरी बत्ती जल गई तो मिथुन ने अपना ट्रक आगे बढ़ा दिया. इस से पहले उस ने उस लड़के द्वारा फेंका गया विजिटिंग कार्ड उठा कर अपनी जेब में रख लिया था.

करीब घंटे भर बाद मिथुन ने कुछ खानेपीने के लिए ट्रक एक ढाबे पर रोका. खाने के लिए आता, उस के पहले वह शर्ट की जेब से वह विजिटिंग कार्ड निकाल कर देखा. वह कार्ड बाबा आमिल सूफी नाम के किसी तांत्रिक का था. उस में उस ने हर तरह की समस्या का समाधान करने की बात कही थी.

विजिटिंग कार्ड पढ़ कर कुछ देर तक मिथुन सोचता रहा. उस की भी एक समस्या थी, जिस की वजह से वह काफी परेशान था. दरअसल, मिथुन की अपनी पत्नी से पट नहीं रही थी. कई ऐसी वजहें थीं, जिन की वजह से पतिपत्नी में मतभेद थे. मिथुन थोड़ा जिद्दी स्वभाव का था, इसलिए पत्नी की हर बात को गंभीरता से नहीं लेता था.

मिथुन समझ नहीं पा रहा था कि उस के घर में शांति कैसे आए? विजिटिंग कार्ड पढ़ कर उसे लगा कि बाबा आमिल सूफी उस की समस्या का समाधान कर देंगे. कार्ड में बाबा के मिलने का कोई पता तो नहीं था, केवल 2 मोबाइल नंबर 8447703333 और 9891413333 लिखे थे.

मिथुन ने उसी समय अपने मोबाइल से कार्ड पर लिखा एक नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से किसी ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘मैं गाजियाबाद से मिथुन सिंह बोल रहा हूं. मुझे बाबा आमिल सूफीजी से बात करनी थी.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘देखिए, बाबा तो अभीअभी बाहर से आए हैं. वह 2-3 भक्तों की समस्या का समाधान करने में लगे हैं. मैं रिसैप्शन से बोल रहा हूं. आप की क्या समस्या है, मुझे बता दीजिए.’’ दूसरी तरफ से कहा गया.

मिथुन ने रिसैप्शनिस्ट को बताया कि उस का पत्नी से अकसर झगड़ा होता रहता है, जिस की वजह से घर में अकसर कलह बनी रहती है. वह घर में शांति चाहता है.

‘‘बाबा आप की समस्या का समाधान अवश्य कर देंगे. मैं उन से आप की बात करा दूंगा, पर इस के लिए पहले आप को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के लिए 251 रुपए आप को बैंक एकाउंट में जमा कराने होंगे.’’ उस व्यक्ति ने कहा.

‘‘अभी तो मैं कहीं जा रहा हूं, आप एकाउंट नंबर दे दीजिए, जब भी समय मिलेगा, मैं पैसे जमा करा दूंगा.’’ मिथुन ने कहा.

मोबाइल पर चल रही बातचीत खत्म होते ही मिथुन के मोबाइल पर एक मैसेज आ गया, जिस में बैंक का खाता नंबर दिया हुआ था. वहां आसपास कोई बैंक भी नहीं था और न ही उस समय उस के पास पैसे जमा करने का समय था, इसलिए ढाबे से ट्रक ले कर आगे बढ़ गया.

मेरठ से लौटने के बाद उस ने उस खाते में 251 रुपए रजिस्ट्रेशन के जमा करा दिए. इस के बाद उस ने तांत्रिक के फोन नंबर पर फोन कर के पैसे जमा कराने की जानकारी दी. तब रिसैप्शन पर बैठे व्यक्ति ने बाबा से बात कराने के लिए 2 घंटे बाद का समय दे दिया.

2 घंटे बाद मिथुन ने बाबा आमिल सूफी को अपने गृहक्लेश की सारी बात बता कर कहा, ‘‘बाबा, काफी दिनों से पत्नी से मेरी बन नहीं रही है.’’

उस की बात सुन कर बाबा ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस समस्या का समाधान हो जाएगा, पर इस के लिए पूजा करनी पड़ेगी. उस पूजा में करीब 5200 रुपए का खर्च आएगा.’’

मिथुन को बाबा की बातों पर भरोसा था, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘बाबा, पूजा हमारे घर में करेंगे या फिर कहीं और?’’

‘‘हम पूजा अपने यहां ही करेंगे. यहीं से उस का असर हो जाएगा, तुम उसे खुद महसूस करोगे. जितनी जल्दी तुम पैसे भेज दोगे, उतनी जल्दी हम पूजा शुरू कर देंगे.’’ बाबा ने कहा.

‘‘बाबा, मैं पैसे अभी भेज देता हूं. उसी एकाउंट में जमा करा दूं, जिस में पहले जमा कराए थे?’’ मिथुन ने पूछा.

‘‘नहीं, उस में नहीं. तुम खाता नंबर 34241983333 में जमा करा दो.’’ बाबा ने कहा.

मिथुन ने उसी दिन बाबा द्वारा दिए गए एकाउंट नंबर में 5200 रुपए जमा करा दिए और फोन कर के उन्हें बता दिया. पैसे जमा कराने के बाद मिथुन को तसल्ली हो गई कि अब उस के घर के सारे क्लेश दूर हो जाएंगे. पर 15 दिन बाद भी घर के माहौल में कोई फर्क नहीं पड़ा. पत्नी का व्यवहार पहले की तरह ही रहा तो मिथुन ने बाबा आमिल सूफी से इस बारे में बात की.

बाबा आमिल सूफी ने कहा, ‘‘दरअसल, तुम्हारी समस्या बड़ी विकट है. इस का निवारण अब बड़ी पूजा से होगा. एक पूजा और करनी पड़ेगी. उस पूजा का खर्च 5100 रुपए आएगा. तुम्हारे नाम की एक पूजा हो ही चुकी है. यह पूजा और करा लोगे तो जल्द लाभ मिल सकता है.’’

मिथुन और पैसे जमा करने को तैयार हो गया. तब बाबा ने उसे पंजाब नेशनल बैंक का एकाउंट नंबर 4021000100173333 दे कर 5100 रुपए जमा कराने को कहा. मिथुन ने फटाफट रुपए जमा करा दिए.

ये पैसे जमा कराने के महीने भर बाद भी मिथुन के हालात जस के तस रहे. न तो पत्नी के स्वभाव में कोई अंतर आया और न ही उस के घर की कलह दूर हुई. मिथुन ने बाबा से फिर बात की. उस ने कहा कि अभी तक की गई पूजा से घर में कोई फर्क नहीं पड़ा है. पत्नी का स्वभाव आज भी पहले की ही तरह है. चूंकि वह बाबा द्वारा बताए गए खातों में 10 हजार से ज्यादा रुपए जमा कर चुका था, इसलिए उस की बातों में कुछ गुस्सा भी था.

बाबा ने उसे शांति से समझा कर गुस्सा न करने को कहा. बाबा ने उस से कहा कि 4 रातें जागजाग कर उस ने खुद पूजा की है. पूजा का परिणाम कोई इंजेक्शन की तरह तो होता नहीं है, धीरेधीरे होगा. और यदि जल्दी परिणाम चाहते हो तो महाकाल की पूजा करानी होगी. इस में तुम्हारा 5100 रुपए का खर्च और आएगा. आज अमावस्या है. पैसे आज ही जमा करा दोगे तो आज रात ही पूजा शुरू कर दूंगा.

मिथुन सिंह बाबा को 10 हजार रुपए से ज्यादा दे चुका था और फादा उसे रत्ती भर नहीं हुआ था. अगर उसे इस का थोड़ा सा भी लाभ मिल गया होता तो वह फिर से पैसे जमा करने की बात एक बार सोचता. उस ने पैसे जमा न करने की बात तो नहीं कही, पर अभी पास में पैसे न होने का बहाना कर दिया.

मिथुन को लगा कि बाबा आमिल सूफी ने समस्या दूर करने के नाम पर उस से ठगी की है. वह एक बार बाबा से मिल कर यह देखना चाहता था कि वह बाबा है भी या नहीं? इसलिए उस ने फिर से बाबा को फोन किया. तभी बाबा ने उस से 5100 रुपए जमा कराने की बात कही.

‘‘बाबा, मैं आप के दर्शन करना चाहता हूं. पैसे मैं उसी समय नकद दे दूंगा. आप बस अपना पता बता दीजिए.’’ मिथुन ने कहा.

‘‘हम से मुलाकात नहीं होगी, क्योंकि हमारा कोई निश्चित ठिकाना नहीं है. हम इधरउधर आतेजाते रहते हैं. आप का काम जब घर बैठे हो रहा है तो मिलने की क्या जरूरत है?’’ बाबा ने कहा.

‘‘बाबा, आप के दर्शन करने की मेरी अभिलाषा है.’’ मिथुन ने कहा तो बाबा ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने बाबा के नंबर पर कई बार फोन किया, पर बात नहीं हो सकी. बाबा ने शायद उस का नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल दिया था.

मिथुन ने अगले दिन भी बाबा से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस के किसी भी नंबर पर बात नहीं हो सकी. अब उसे पूरा विश्वास हो गया कि उस के साथ ठगी हुई है. उस ने इस बात की शिकायत गाजियाबाद के एसपी से की. मिथुन ने तांत्रिक बाबा आमिल सूफी के जिन मोबाइल नंबरों पर बात की थी, एसपी ने उन नंबरों की जांच सर्विलांस टीम से कराई.

इस जांच में पता चला कि वे फोन नंबर साहिबाबाद थाने के अंतर्गत अर्थला में एक्टिव हैं. लिहाजा मिथुन सिंह की शिकायत पर 15 मई, 2017 को थाना साहिबाबाद में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 417 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी सुधीर कुमार त्यागी के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई, जिस में एसएसआई अखिलेश गौड़, एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल छीतर सिंह, कांस्टेबल मंगत सिंह, पंकज शर्मा, सुनील कुमार, विपिन सिंह, नारायण राय आदि को शामिल किया गया.

तथाकथित तांत्रिक के फोन नंबरों की जांच में उन की लोकेशन अर्थला की मिल रही थी. अर्थला थाने से पूरब दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था. उसी लोकेशन के सहारे पुलिस ने एक मकान में छापा मारा तो ग्राउंड फ्लोर पर एक औफिस बना मिला, जिस में 8 युवक बैठे थे.

औफिस का जो बौस था, उस की मेज पर 20 मोबाइल फोन रखे थे. पुलिस ने उन युवकों से सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि वह तांत्रिक दिलशाद का कालसेंटर था. औफिस की तलाशी में तथाकथित तांत्रिक के तमाम विजिटिंग कार्ड, स्टीकर आदि मिले. इस के अलावा दिलशाद की केबिन से 6 लाख 72 हजार 3 सौ रुपए नकद बरामद हुए.

पुलिस की मौजूदगी में ही वहां रखे मोबाइल फोनों पर कई समस्याग्रस्त लोगों के फोन आए. पुलिस ने फोन रिसीव किए तो फोन करने वाले लोग तांत्रिक से अपनी समस्या का निदान पूछ रहे थे. पुलिस सभी को थाने ले आई.

थाने में उन सभी से पूछताछ की गई तो पता चला कि दिलशाद योजनाबद्ध तरीके से कालसैंटर चला कर उस के जरिए पूरे देश में ठगी का अपना धंधा चला रहा था.

मिथुन से जो 10 हजार रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी, वह दिलशाद और उस के साथियों ने ही की थी. इसी कालसैंटर के जरिए लोगों को बेवकूफ बना कर ये लोग महीने में लगभग 20 लाख रुपए की ठगी कर रहे थे. आखिर एक मामूली सा पढ़ालिखा दिलशाद तथाकथित तांत्रिक कैसे बना और उस ने पूरे देश में अपना नेटवर्क कैसे तैयार किया? इस की एक दिलचस्प कहानी है.

गाजियाबाद के थाना साहिबाबाद के अंतर्गत आती है अर्थला कालोनी. दिलशाद इसी कालोनी के रहने वाली अल्लानूर का बेटा था. वह जूनियर हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका तो पिता ने उसे एक दुकान पर लगवा दिया. साल, दो साल नौकरी करने के बाद वह घर बैठ गया.

वह पढ़ालिखा भले ज्यादा नहीं था, लेकिन खूब पैसे कमाने के सपने देखता था, इसलिए उसे दुकान पर काम करना पसंद नहीं आया. दिलशाद के घर बैठने पर उस के पिता को जो पैसे मिलते थे, वे बंद हो गए. इसलिए उन्हें उस का घर बैठना पसंद नहीं आया.

उन्होंने किसी से कह कर उस की नौकरी एक फैक्ट्री में लगवा दी. वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, पर ख्वाब अमीरों के देखता था. वह चाहता था कि उस के पास भी सभी तरह की सुखसुविधाएं हों. इन्हीं ख्वाबों की वजह से फैक्ट्री में भी वह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका.

फैक्ट्री की नौकरी छोड़ कर वह अपने यारदोस्तों के साथ घूमता रहता. उस का खाली घूमना उस के पिता को अच्छा नहीं लगा. वह बारबार उसे कोई न कोई काम करने को कहते. काम तो दिलशाद भी करना चाहता था, पर उसे उस के मन के मुताबिक काम नहीं मिल रहा था.

उसी दौरान वह अपने एक परिचित के साथ मेरठ चला गया. वह परिचित मेरठ में तथाकथित तांत्रिक बन कर अपना धंधा चला रहा था. दिलशाद उस के औफिस में बैठने लगा. वहां पर दिलशाद का मन लगने लगा. वह बड़े गौर से देखता था कि ग्राहक से कैसे बात की जाती है और किस तरह से उन की जेब से पैसा निकाला जाता है. एकएक कर के सारा काम वह एक साल के अंदर सीख गया.

अब वह खुद का सैंटर चलाना चाहता था, ताकि मोटी कमाई की जा सके. घर लौट कर दिलशाद ने सब से पहले विजिटिंग कार्ड्स छपवाए. विजिटिंग कार्ड में उस ने सभी तरह की समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हुए अपने 2 मोबाइल नंबर लिख दिए और खुद को बाबा आमिल सूफी बताया. कार्ड में पता नहीं लिखा था, केवल फोन पर ही समस्या बताने को कहा गया था.

आजकल ज्यादातर लोग किसी न किसी वजह से परेशान हैं. इसी का फायदा यह तथाकथित तांत्रिक उठाते हैं. कुछ ही दिनों में दिलशाद उर्फ बाबा आमिल सूफी के पास लोगों के फोन आने लगे. वह उन लोगों से रजिस्ट्रेशन के 251 रुपए अपने एकाउंट में जमा कराने को कहता. रजिस्ट्रेशन के पैसे जमा कराने के बाद वह पूजा आदि के नाम पर 5100 या ज्यादा रुपए खाते में जमा करा लेता.

जो लोग खाते में पैसे जमा कराते, उन में से कुछ की समस्याएं खुदबखुद कम या खत्म हो जातीं तो वे बाबा का खुद ही प्रचार करते और जिन की समस्या जस की तस रहती, वे उसे दोबारा फोन करते तो दिलशाद उस का फोन नंबर रिजेक्ट लिस्ट में डाल देता.

इस तरह दिलशाद का धंधा चलने लगा तो उस ने बाबा आमिल सूफी, बाबा हुसैनजी, बाबा मिर्जा, बाबा बंगाली आदि कई फरजी नामों से आकर्षक स्टीकर छपवा कर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों, बसों आदि में चिपकवा दिए. इस का उसे अच्छा रेस्पांस मिलना शुरू हुआ. उस की कमाई बढ़ी तो उस ने अपने भाई इरशाद को भी अपने साथ जोड़ लिया. दिलशाद लोगों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा कर उन से मोटी कमाई करने लगा. उसी कमाई से उस ने अर्थला में ही अपना तीनमंजिला आलीशान घर बनवा लिया.

अब दिलशाद इस क्षेत्र का माहिर खिलाड़ी बन चुका था. हिंदी के अलावा उस ने देश की विभिन्न भाषाओं में अपने स्टीकर छपवाने शुरू कर विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि उस के पास सैकड़ों फोन आने लगे. इस के बाद दिलशाद अपने गांव के ही रहने वाले शाहरुख, नासिर, आसिफ, नसीरुद्दीन, शाहरुख पुत्र मंसूर और आसिफ को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. ये सभी युवक कुछ ही दिनों में इतने ट्रेंड हो गए कि कस्टमर की दुखती रग पर बातों का मरहम लगा कर उस की जेब ढीली करा लेते.

अलगअलग बैंकों में इन्होंने 20 एकाउंट खुलवा रखे थे. जैसे ही कस्टमर पैसा जमा करता, दिलशाद तुरंत ही एटीएम से पैसे निकलवा लेता. चूंकि दिलशाद अखबारों, केबल टीवी आदि पर दिए जाने वाले विज्ञापन पर मोटा पैसा खर्च करता था, इसलिए गोविंदपुरम, गाजियाबाद और नोएडा के रहने वाले जयवीर और शीतला प्रसाद ने दिलशाद से संपर्क किया. ये दोनों विज्ञापन एजेंसी चलाते थे. बातचीत के बाद जयवीर और शीतला प्रसाद ने ही दिलशाद के धंधे के विज्ञापन की जिम्मेदारी ले ली.

दिलशाद की महीने भर में जो भी कमाई होती थी, उस का आधा वह विज्ञापन पर खर्च करता था. दिलशाद के कालसैंटर में काम करने वाले सभी लोग दिन भर व्यस्त रहते थे. रोजाना ही उस के कालसैंटर में करीब एक हजार फोन आते थे, जिन से उसे लगभग 20 लाख रुपए की आमदनी होती थी. इस में से 10 लाख रुपए वह विज्ञापन पर खर्च करता था. इस तरह उस का धंधा दिनोंदिन फलफूल रहा था. मिथुन सिंह की तरह ज्यादा घरों में लोग किसी न किसी वजह से परेशान रहते हैं, ऐसे ही लोग तथाकथित तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं.

दिलशाद और उस के 7 साथियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने गाजियाबाद के गोविंदपुरम से जयवीर और सैक्टर-25 नोएडा से शीतला प्रसाद को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी 10 अभियुक्तों से व्यापक पूछताछ के बाद 18 जुलाई, 2017 को उन्हें गाजियाबाद के सीजेएम की अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया.  मामले की आगे की विवेचना एसआई मनोज बालियान को सौंप दी गई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरजी थानेदारनी ने लगाया वर्दी के नाम पर चूना

हमेशा की तरह 25 जुलाई, 2016 की सुबह कंवलजीत कौर तैयार हो कर घर से निकली और कलानौर से बस पकड़ कर गुरदासपुर पहुंच गई. उस ने को फोन कर के राजीव बुला रखा था, इसलिए बसअड्डे पर बस के रुकते ही वह उतर कर सीधे उस गेट पर पहुंच गई थी, जहां वह मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. उस के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘जल्दी करो, पहले पुलिस लाइंस चल कर हाजिरी लगवा लूं, उस के बाद कहीं घूमने चलेंगे. अगर एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल होगी.’’ मोटरसाइकिल स्टार्ट ही थी, कंवलजीत के पिछली सीट पर बैठते ही राजीव ने मोटरसाइकिल पुलिस लाइंस की ओर बढ़ा दी. जिला गुरदासपुर के कस्बा कलानौर के मोहल्ला नवांकटड़ा निवासी मेहर सिंह की बेटी कंवलजीत कौर ने सब को यकीन दिला दिया था कि उसे सरकारी नौकरी मिल गई है, वह भी कोई साधारण नहीं, पंजाब पुलिस में थानेदार की यानी असिस्टैंट सबइंसपेक्टर (एएसआई) की. सितारों वाली लकदक खाकी वरदी पहन कर वह 2 सालों से शहर में घूम कर रौब जमा रही थी. पिछले 2 सालों से कंवलजीत कौर गुरदासपुर में ही तैनात थी. इधर वह लोगों से कहने लगी थी कि अब कभी भी उस का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में हो सकता है. अगर उस का तबादला हो गया तो उस के लिए मुश्किल हो जाएगी. अभी तो वह घर में ही है, इसलिए उस के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.

कंवलजीत कौर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से पैदल ही कलानौर बसअड्डे पर आती थी और वहां से बस पकड़ कर  गुरदासपुर पहुंच जाती थी. जानने वालों को उस ने बता रखा था कि गुरदासपुर में उसे सरकारी गाड़ी मिल जाती है, जिस से वह ड्यूटी करती है. उस का कहना था कि उस का इलाके में ऐसा दबदबा है कि बदमाश उस के नाम से कांपते हैं. न जाने कितने गुंडों की पिटाई कर के उस ने उन्हें जेल भिजवा दिया है. यही वजह थी कि बड़े अफसर भी उस के बारे में चर्चा करने लगे हैं कि पुलिस डिपार्टमेंट में यह लड़की काफी तरक्की करेगी.

राजेश के साथ कंवलजीत कौर पुलिस लाइंस पहुंची तो पता चला कि वहां आने वाले स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली पुलिस परेड की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. अंदर रिहर्सल हो रहा था. गेट पर काफी भीड़ थी. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिसकर्मियों को भी पूरी जांचपड़ताल के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा था.

कंवलजीत कौर पहले भी वहां कई बार आ चुकी थी. लेकिन कभी किसी ने कोई रोकटोक नहीं की थी. इत्मीनान से अंदर जा कर पूरी पुलिस लाइंस घूम कर वह आराम से बाहर आ गई थी, लेकिन उस दिन तो वहां की स्थिति ही एकदम अलग थी. कंवलजीत कौर बाहर ही रुक कर सोचने लगी कि इस स्थिति में अंदर जाना चाहिए या नहीं?

दूसरी ओर राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि बसअड्डे पर पुलिस लाइंस पहुंचने की जल्दी मचाने वाली कंवलजीत कौर अब अंदर क्यों नहीं जा रही है? उस ने इस बारे में कंवलजीत कौर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रही हूं कि आज अंदर न जाऊं. क्योंकि अंदर जाने पर फरलो (अनाधिकृत छुट्टी) पर मैं जल्दी बाहर नहीं निकल पाऊंगी. उस के बाद हमारा घूमनेफिरने का प्रोग्राम बेकार जाएगा.’’

‘‘कंवल, हमारा घूमनाफिरना इतना जरूरी नहीं है, जितना ड्यूटी. कहीं तुम्हारी नौकरी न खतरे में पड़ जाए. पहले भी कई बार तुम इस तरह हाजिरी लगवा कर मेरे साथ घूमने जा चुकी हो. बसस्टैंड पर तुम कह भी रही थी कि एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी.’’ राजीव ने कहा.

‘‘वही तो सोच रही हूं. अगर एब्सैंट लग गई तो मुश्किल और अंदर चली गई तो बाहर आने में मुश्किल. मैं बाहर नहीं आ सकी तो मेरे इंतजार में खड़ेखड़े तुम बोर होते रहोगे. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘मेरी समझ से तो यही ठीक रहेगा कि मैं लौट जाऊं और तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. खाली होने के बाद फोन कर देना, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘अगर मैं अंदर चली गई तो शाम से पहले नहीं निकल पाऊंगी. ऐसे में आज हम ने जो घूमनेफिरने का प्रोग्राम बनाया है, वह चौपट हो जाएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. मैं गुरदासपुर में ही रहूंगा. तुम्हारा फोन आते ही मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’

राजीव और कंवलजीत आपस में बातें कर रहे थे, तभी अधिकारियों की गाडि़यां आ गईं. उन के लिए गेट खोलने के साथ ही वहां खड़े सिपाहियों ने गेट के पास खड़े तमाम लोगों को अंदर धकेल दिया. उन में कंवलजीत और राजीव भी थे.

दोनों असमंजस की स्थिति में थे कि अब क्या करें, तभी वहां मौजूद एक थानेदार ने उन के पास आ कर कंवलजीत कौर से कहा, ‘‘मैडम, जल्दी करो, एंट्री करवा कर परेड ग्राउंड में पहुंच जाओ.’’ इस के बाद उस ने राजीव से कहा, ‘‘तुम बिना वरदी के ही आ गए. किस रैंक पर हो और क्या नाम है तुम्हारा?’’

राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही कंवलजीत कौर ने कहा, ‘‘सर, यह मिस्टर राजीव मेरे साथ आए हैं. यह नौकरी नहीं करते. इन की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है और उस की आज शादी है. इसलिए मैं इन्हें साथ ले कर आज की छुट्टी लेने आई हूं.’’

‘‘छुट्टियां तो आजकल बिलकुल नहीं मिल रही हैं मैडम. फिर जिस काम के लिए तुम्हें छुट्टी लेनी है, उस के लिए तो पहले ही सैंक्शन करवा लेना चाहिए था. वह देखिए, उस तरफ लाइंस इंसपेक्टर बैठे हैं. चलिए, मैं उन से तुम्हारी बात करवा देता हूं.’’

कंवलजीत कौर आनाकानी करने लगी तो राजीव खीझ कर बोला, ‘‘तुम तो आज एकदम बच्चों जैसा व्यवहार कर रही हो.’’ राजीव का इतना कहना था कि कंवलजीत कौर नाराज हो कर अनापशनाप बकने लगी. उस का कहना था कि उस के प्यार में पड़ कर उस ने जो कुछ किया है, वह उसे बिलकुल नहीं करना चाहिए था. क्योंकि अब वह उस की भावना की कदर न कर के उसे उसी के विभाग वालों के सामने जलील करने की कोशिश कर रहा है.

दूसरी ओर राजीव का कहना था कि उस ने जो कुछ भी कहा है, उस की भलाई के लिए कहा है. लेकिन कंवलजीत कौर का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह राजीव को जलील करने लगी तो वहां मौजूद थानेदार उन्हें चुप कराने का प्रयास करते हुए दोनों को लाइंस इंसपेक्टर दलबीर सिंह के पास ले गया.

थानेदार की बात सुन कर दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर को सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘जी…जी यहीं है.’’ कंवलजीत कौर ने हकलाते हुए कहा.

‘‘यहां…कहां? यहां तो मैं ने पहले कभी नहीं देखा. आज पहली बार देख रहा हूं, वह भी बदतमीजी करते हुए.’’

‘‘नहीं सर, बदतमीजी नहीं, वह तो सर यह राजीव…’’

‘‘कौन है यह? पुलिस का आदमी तो नहीं लग रहा?’’

‘‘नहीं सर, यह पुलिस में नहीं है. ये लोग तो जमींदार हैं, बहुत जमीनजायदाद है इन के पास.’’

‘‘तो फिर यहां क्या लेने आया है यह?’’

‘‘यह मेरे साथ आया है सर. इस की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. आज उस की शादी है, जिस में शामिल होने के लिए मैं छुट्टी लेने आई थी.’’

‘‘छुट्टी लेने आई थी तो वरदी पहन कर आने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘सर, इसलिए कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो ड्यूटी कर लूंगी.’’

‘‘हां, इस तरह छुट्टी मिलने वाली नहीं, तुम्हें ड्यूटी करनी पड़ेगी. चलो, अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

‘‘आईकार्ड, मतलब पहचानपत्र सर?’’

‘‘बड़ी अंजान बन रही हो, कह तो रही हो सीधे एएसआई भरती हुई हो?’’

दरअसल, 2-3 दिनों पहले दलबीर सिंह को उन के किसी मुखबिर ने बताया था कि एएसआई की वरदी पहन कर एक लड़की गुरदासपुर में घूम रही है. वह पैसे तो किसी से नहीं ऐंठती, पर थानेदारनी होने का रौब खूब दिखाती है. उस के रौब की वजह से कुछ दुकानदार उसे स्वेच्छा से नियमित रूप से पैसे दे रहे हैं. उस नकली थानेदारनी का हुलिया भी उस ने उन्हें बताया था. इस बारे में दलबीर सिंह काररवाई करने की योजना बना रहे थे. लेकिन कंवलजीत कौर को देख कर उन्हें लगा कि कहीं यही वह नकली थानेदारनी तो नहीं, जिस के बारे में मुखबिर ने बताया था. क्योंकि उस का हुलिया मुखबिर द्वारा बताए हुलिए से काफी हद तक मिल रहा था.

दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर से परिचय पत्र मांगा तो इधरउधर की बातें करते हुए अंत में उस ने कहा कि उस का आइडेंटिटी कार्ड खो गया है. इस से वह संदेह के दायरे में आ गई. दलबीर सिंह ने इस विषय पर अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि फिलहाल लड़की को एक किनारे कर के पहले उस के साथ आए लड़के से विस्तार से पूछताछ करो. संभव है, वह भी उस के साथ शामिल हो. वहां की बदलती स्थिति को देख कर लड़का यानी राजीव काफी घबरा गया था. पुलिस ने उसे अलग ले जा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो वह बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि इस के पहले उस का पुलिस से कभी वास्ता नहीं पड़ा था.

पूछताछ में उस ने अपना नाम राजीव कुमार बताया. वह नई आबादी, कलानौर, जिला गुरदासपुर के रहने वाले सुरेश कुमार का बेटा था. उस के पिता इलाके के खातेपीते जमींदार थे. वह मांबाप की अकेली औलाद था. 3 साल पहले वह फिल्म देखने गया था, तभी उस की मुलाकात कंवलजीत कौर से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में दोनों में प्यार हो गया था, जो जल्दी ही परवान चढ़ गया. कंवलजीत कौर ने उसे बताया था कि वह साधारण परिवार से संबंध रखती है, पर अपनी मेहनत से जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहती है. उस ने बीसीए कर रखा था. वह काफी खूबसूरत थी और भाईबहनों में सब से बड़ी थी.

राजीव ने जब उस के बारे में अपने घर वालों से बात की तो पिता ने कहा कि उन के पास सब कुछ है, वह बिना दानदहेज के उस से शादी कर लेंगे. लेकिन अंतिम निर्णय उस की मां को लेना है. राजीव की मां किरनबाला ने सब कुछ तो मान लिया, लेकिन एक शर्त रख दी कि लड़की सरकारी नौकरी में होनी चाहिए. अगर पुलिस अफसर हुई तो और भी अच्छा होगा. राजीव ने सारी बात कंवलजीत कौर को बताई तो वह काफी मायूस हुई. लेकिन उस ने राजीव से संबंध बनाए रखे. फिर एक दिन उस ने राजीव को फोन कर के बताया कि उसे पंजाब पुलिस में एएसआई की नौकरी मिल गई है. उस ने अपनी तैनाती भी गुरदासपुर की ही बताई. इस के बाद वह जब भी राजीव से मिली, एएसआई की वरदी में ही मिली.

कंवलजीत कौर से उस का चक्कर चल ही रहा था कि उसी बीच उस के घर वालों ने उस की शादी कौलेज की एक लैक्चरर से तय कर दी. वह कंवलजीत कौर को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मम्मीपापा को मनाने की कोशिश में लगा था. वह कंवलजीत को दिल से पसंद करता था और उसी से शादी करना चाहता था. इसीलिए वह जब भी उसे जहां बुलाती थी, वह काम छोड़ कर उस से मिलने पहुंच जाता था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. राजीव से पूछताछ चल ही रही थी, उसी के साथ पुलिस ने कंवलजीत कौर के बारे में पता कराया तो उस का झूठ खुल कर सामने आ गया. वह कभी भी पुलिस में भरती नहीं हुई थी. पुलिस की वरदी पहन कर वह सब को बेवकूफ बना रही थी. इस के बाद उस के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर एएसआई की वरदी में ही गिरफ्तार कर के चेहरा ढांप कर उसे पत्रकारों के सामने पेश किया गया. उस ने स्वीकार किया कि प्रेमी राजीव से शादी करने के लिए वह फरजी दारोगा बनी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने कंवलजीत कौर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.   कथा लिखे जाने तक उस की जमानत हो चुकी थी. पुलिस ने राजीव को बेकसूर मानते हुए इस मामले में गवाह बना लिया था. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने कंवलजीत कौर के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी की खूनी साजिश

22 अप्रैल, 2017 की रात करीब 2 बजे की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला हादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर 1 के रहने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह अपने घर में सो रहे थे. अचानक घर की डोलबेल बजी तो वह बड़बड़ाते हुए दरवाजे पर पहुंचे कि इतनी रात को किसे क्या जरूरत पड़ गई? चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस वालों को देख कर उन्होंने हैरानी से पूछा, ‘‘जी बताइए, क्या बात है?’’

‘‘माफ कीजिए भाईसाहब, बात ही कुछ ऐसी थी कि मुझे आप को तकलीफ देनी पड़ी.’’ सामने खड़े थाना कैंट के इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

‘‘जी बताएं, क्या बात है?’’ देवेंद्र प्रताप ने पूछा.

‘‘आप की बहू और बेटा कहां है?’’

‘‘ऊपर अपने कमरे में पोते के साथ सो रहे हैं.’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा.

अब तक परिवार के बाकी लोग भी नीचे आ गए थे. लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह का बेटा विवेक प्रताप सिंह आया था और न ही बहू सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने थोड़ा तल्खी से कहा, ‘‘आप को पता भी है, आप के बेटे विवेक प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई है?’’

‘‘क्याऽऽ, आप यह क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर साहब?’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘वह हम सब के साथ रात का खाना खा कर पत्नी और बेटे के साथ ऊपर वाले कमरे में सोने गया था. अब आप कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई है? ऐसा कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, वह भी सही है और मैं जो कह रहा हूं वह भी. आप जरा अपनी बहू को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को बिलकुल यकीन नहीं हुआ था. उन्होंने वहीं से बहू सुषमा को आवाज दी. 3-4 बार बुलाने के बाद ऊपर से सुषमा की आवाज आई. उन्होंने सुषमा को फौरन नीचे आने को कहा. कपड़े संभालती सुषमा नीचे आई तो वहां सब को इस तरह देख कर परेशान हो उठी. उस की यह परेशानी तब और बढ़ गई, जब उस की नजर पुलिस और उन के साथ खड़े एक युवक पर पड़ी. उस युवक को आगे कर के इसंपेक्टर ओमहरि ने कहा, ‘‘सुषमा, तुम इसे पहचानती हो?’’

उस युवक को सुषमा ने ही नहीं, सभी ने पहचान लिया. उस का नाम कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू था. वह सुषमा के मायके का रहने वाला था और अकसर सुषमा से मिलने आता रहता था. सभी उसे हैरानी से देख रहे थे.

सुषमा कुछ नहीं बोली तो इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा, ‘‘तुम नहीं पहचान पा रही हो तो चलो मैं ही इस के बारे में बताए देता हूं. यह तुम्हारा प्रेमी डब्लू है. अभी थोड़ी देर पहले यह तुम्हारे पति की हत्या कर के लाश को मोटरसाइकिल से ठिकाने लगाने के लिए ले जा रहा था, तभी रास्ते में इसे हमारे 2 सिपाही मिल गए. उन्होंने इसे और इस के एक साथी को पकड़ लिया. अब ये कह रहे हैं कि पति को मरवाने में तुम भी शामिल थी?’’

ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को अभी भी विश्वास नहीं हुआ था. वह तेजतेज कदमों से सीढि़यां चढ़ कर बेटे के कमरे में पहुंचे. बैड के एक कोने में 5 साल का आयुष डरासहमा बैठा था. दादा को देख कर वह झट से उठा और उन के सीने से जा चिपका. वह जिस बेटे को खोजने आए थे, वह कमरे में नहीं था. देवेंद्र पोते को ले कर नीचे आ गए. अब साफ हो गया था कि विवेक के साथ अनहोनी घट चुकी थी.

हैरानी की बात यह थी कि विवेक के कमरे के बगल वाले कमरे में उस के चाचा कृष्णप्रताप सिंह और चाची दुर्गा सिंह सोई थीं. हत्या कब और कैसे हुई, उन्हें पता ही नहीं चला था. सभी यह सोच कर हैरान थे कि घर में सब के रहते हुए सुषमा ने इतनी बड़ी घटना को कैसे अंजाम दे दिया? मजे की बात यह थी कि इतना सब होने के बावजूद सुषमा के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी.

सुषमा की खामोशी से साफ हो गया था कि यह सब उस की मरजी से हुआ था. उस के पास अब अपना अपराध स्वीकार कर लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने घर वालों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सच्चाई जान कर घर में कोहराम मच गया. देवेंद्र प्रताप सिंह के घर से अचानक रोने की आवाजें सुन कर पड़ोसी उन के यहां पहुंचे तो विवेक की हत्या के बारे में सुन कर हैरान रह गए. उन की हैरानी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि यह काम विवेक की पत्नी सुषमा ने ही कराया था.

पुलिस सुषमा को साथ ले कर थाना कैंट आ गई. कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के एक साथी राधेश्याम पकड़े जा चुके थे. पता चला कि उस के 2 साथी अनिल मौर्य और सुनील भागने में कामयाब हो गए थे.

ओमहरि वाजपेयी ने रात होने की वजह से सुषमा सिंह को महिला थाने भिजवा दिया. रात में कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के साथी राधेश्याम मौर्य से पुलिस ने पूछताछ शुरू की. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

अगले दिन यानी 23 अप्रैल, 2017 की सुबह मृतक विवेक प्रताप सिंह के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह ने थाना कैंट में बेटे की हत्या का नामजद मुकदमा 6 लोगों कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू, राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य, सुनील तेली, सुषमा सिंह और मुकेश गौड़ के खिलाफ दर्ज कराया.

पुलिस ने यह मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 147, 149 के तहत दर्ज किया था. इस मामले में 3 लोग पकड़े जा चुके थे, बाकी की तलाश में पुलिस निकल पड़ी. पूछताछ में गिरफ्तार किए गए कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू ने विवेक की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

32 साल की सुषमा सिंह मूलरूप से जिला देवरिया के थाना गौरीबाजार के गांव पथरहट के रहने वाले सुरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी थी. उन की संतानों में वही सब से बड़ी थी. बात उन दिनों की है, जब सुषमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. सुषमा काफी खूबसूरत थी, इसलिए उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. उस के चाहने वालों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन वह किसी के दिल की रानी नहीं बन पाई थी. इस मामले में अगर किसी का भाग्य जागा तो वह था कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू.

32 साल का कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू उसी गांव के रहने वाले दीपनारायण सिंह का बेटा था. उन की गांव में तूती बोलती थी. गांव का कोई भी आदमी दीपनारायण से कोई संबंध नहीं रखता था. उस के किसी कामकाज में भी कोई नहीं आताजाता था. डब्लू 18-19 साल का था, तभी वह भी पिता के नक्शेकदम पर चल निकला था. वह भी अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था.

पुलिस सूत्रों के अनुसार, कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू इंटर तक ही पढ़ पाया था. इस के बाद वह अपराध में डूब गया. जल्दी ही आसपास के ही नहीं, पूरे जिले के लोग उस से खौफ खाने लगे. डब्लू का बड़ा भाई बबलू पुलिस विभाग में सिपाही था. वह शराब पीने का आदी था. उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

सन 2010 में गांव के बाहर एक तालाब में पुलिस वर्दी में बबलू की लाश तैरती मिली थी. लोगों का कहना था कि शराब के नशे में वह डूब कर मर गया था. लेकिन डब्लू और उस के घर वालों का मानना था उस की हत्या की गई थी. यह हत्या किसी और ने नहीं, गांव के ही उस के विरोधी रमेश सिंह ने की थी. लेकिन यह बात उन लोगों ने रमेश सिंह से ही नहीं, गांव के भी किसी आदमी से नहीं कही थी.

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.

डब्लू के लिए किसी की जान लेना मुश्किल काम नहीं था. सुषमा के कहने के बाद वह विवेक की हत्या की योजना बनाने लगा. सुषमा भी योजना में शामिल थी. दोनों विवेक की हत्या इस तरह करना चाहते थे कि उन का काम भी हो जाए और उन का बाल भी बांका न हो. यानी वे पकड़े न जाएं. वे विवेक की हत्या को एक्सीडेंट दिखाना चाहते थे. इस के लिए डब्लू ने टाटा सफारी कार की व्यवस्था कर ली थी. यह कार उस के पिता की थी. इस के बाद वे घटना को अंजाम देने का मौका तलाशने लगे.

22-23 मई, 2017 की रात सुषमा सिंह ने योजना के तहत डब्लू को बुला लिया. डब्लू टाटा सफारी कार यूपी52ए के5990 से अपने 3 साथियों राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य और सुनील तेली के साथ विशुनपुरा पहुंच गया. उन्होंने कार घर से कुछ दूरी पर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस के सामने खड़ी कर दी. कार का ड्राइवर अशोक उसी में बैठा था.

डब्लू अपने साथियों के साथ विवेक के घर पहुंचा तो सुषमा दरवाजा खोल कर सभी को बैडरूम में ले गई. बैड पर विवेक बेटे के साथ सो रहा था. विवेक की हत्या के लिए सुषमा ने एक ईंट पहले से ही ला कर कमरे में रख ली थी. कमरे में पहुंचते ही डब्लू ने विवेक का गला दबोच लिया. विवेक छटपटाया तो उस के साथियों ने उसे काबू कर लिया. उन्हीं में से किसी ने सुषमा द्वारा रखी ईंट से सिर पर प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया.

धक्कामुक्की और छीनाझपटी में पिता के बगल में सो रहे आयुष की आंखें खुल गईं. उस ने देखा कि कुछ लोग उस के पापा को पकड़े हैं तो वह चिल्ला उठा. उस के चीखने पर सब डर गए. डब्लू ने उसे डांटा तो उस की आवाज गले में फंस कर रह गई. इस के बाद वह आंखें मूंद कर लेट गया. एक बार सभी ने विवेक को हिलाडुला कर देखा, जब उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो सब समझ गए कि यह मर चुका है.

इस के बाद उन्होंने लाश उठाई और ऊपर से ही नीचे फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से नीचे आ गए. डब्लू ने बरामदे में खड़ी विवेक की मोटरसाइकिल निकाली और खुद चलाने के लिए बैठ गया. जबकि राधेश्याम विवेक की लाश को ले कर इस तरह बैठ गया, जैसे वह बीच में बैठा है. बाकी के उस के 2 साथी अनिल और सुनील पैदल ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस की ओर चल पड़े. क्योंकि  उन की कार वहीं खड़ी थी.

लेकिन जब वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पहुंचे तो कार वहां नहीं थी. सभी परेशान हो उठे. दरअसल हुआ यह था कि उन के जाने के कुछ ही देर बाद गश्त करते हुए 2 सिपाही वहां आ पहुंचे थे. उन्होंने आधी रात को कार खड़ी देखी तो ड्राइवर अशोक से पूछताछ करने लगे. घबरा कर ड्राइवर अशोक कार ले कर भाग गया. ड्राइवर डब्लू को फोन करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई.

डब्लू के आने पर वहां कार नहीं मिली तो उसे चिंता हुई. वह ड्राइवर को फोन करने ही जा रहा था कि पुलिस चौकी रामगढ़ताल के 2 सिपाही वहां आ पहुंचे. उन्होंने उन से पूछताछ शुरू की तो वे सही जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों ने थाना कैंट फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी को इस की सूचना दे दी.

ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने बीच में बैठे विवेक को हिलाडुला कर देखा तो पता चला कि वह तो लाश है. डब्लू और राधेश्याम से सख्ती से पूछताछ की गई तो विवेक की हत्या का राज खुल गया.

दूसरी ओर जब सभी विवेक की लाश ले कर चले गए तो सुषमा कमरे में फैला खून साफ करने लगी. उस ने जल्दी से चादर और तकिए भी बदल दिए थे. उस ने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की थी. तब शायद उसे पता नहीं था कि उस ने जो किया है, उस का राज तुरंत ही खुलने वाला है.

आयुष अपने पापा विवेक प्रताप सिंह की हत्या का चश्मदीद गवाह है. उस ने पुलिस को बताया कि जब अंकल लोग उस के पापा को पकड़े हुए थे तो वह चीखा था. तब एक अंकल ने उस का मुंह दबा कर डांट दिया था. उन लोगों ने पापा का गला तो दबाया ही, उन्हें ईंट से भी मारा था.

वे पापा को ले कर चले गए तो मम्मी कमरे में फैला खून साफ करने लगी थीं. वे उसे भी मारना चाहते थे, तब मम्मी ने एक अंकल से कहा था, ‘यह तो तुम्हारा ही बेटा है, इसे मत मारो.’ इस के बाद अंकल ने उसे छोड़ दिया था.

विवेक की लाश उस की मोटरसाइकिल से इसलिए ला रहे थे, ताकि उसे सड़क पर उस की मोटरसाइकिल सहित कहीं फेंक कर यह दिखाया जा सके कि उस की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

पुलिस ने अनिल और सुनील को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन ड्राइवर अशोक अभी पकड़ा नहीं जा सका है. टाटा सफारी कार बरामद हो चुकी है. पुलिस ने विवेक की हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट, खून सने कपड़े आदि भी बरामद कर लिए थे. विवेक की मोटरसाइकिल तो पहले ही बरामद हो चुकी थी.

सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने अदालत में सभी को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मजे की बात यह है कि सुषमा को पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. वह जेल से बाहर आने के बाद अब भी अपने प्रेमी डब्लू के साथ जीवन बिताने के सपने देख रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौत का खेल खेलने वाला मास्टर

4 मार्च, 2017 की रात लैंडलाइन फोन की घंटी बजी तो नाइट ड्यूटी पर तैनात एसआई सुरेश कसवां ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘कहिए, हम आप की क्या सेवा कर सकते हैं?’’

‘‘साहब, मैं खेरूवाला से यूनुस खान बोल रहा हूं. मेरे दोस्त जसवंत मेघवाल पर अज्ञात लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया है. साहब, कुछ करिए, उस के साथ महिलाएं और बच्चा भी है.’’ डरेसहमे स्वर में यूनुस खान ने कहा था.

‘‘ठीक है, अपने दोस्त की लोकेशन बताओ, पुलिस हरसंभव मदद करेगी.’’ सुरेश कसवां ने कहा.

यूनुस खान ने लोकेशन बताई तो 5 मिनट में ही सुरेश कसवां सिपाहियों के साथ हाथियांवाला खैरूवाला मार्ग स्थित घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस की गाड़ी को देख कर सरसों के खेत में छिपा एक आदमी भागता हुआ सुरेश कसवां के सामने आ कर खड़ा हो गया. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, हमें बचा लीजिए. वे दोनों मेरे परिवार को खत्म कर देना चाहते हैं. उन्होंने हमारे ऊपर बरछीतलवारों से हमला कर दिया है. मैं तो उन्हें चकमा दे कर भाग आया, पर मेरी सास, पत्नी और बेटा उन के कब्जे में है.’’

इतना कह कर डरेसहमे उस आदमी ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर एसआई सुरेश कसवां के सामने किए तो चांदनी रात में उस के हाथों से टपकता हुआ खून उन्हें साफ दिखाई दे गया.

मामला काफी गंभीर था. पुलिस फोर्स के सामने 2 महिलाओं और एक बच्चे की सकुशल बरामदगी चुनौती बन गई. एक पल गंवाए बिना सुरेश कसवां ने उसी मार्ग पर खड़ी कार ढूंढ निकाली, जिस में पीछे की सीट पर 28-29 साल की एक युवती गंभीर हालत में घायल पड़ी थी. अगली सीट पर दो-ढाई साल का एक बच्चा गुमसुम बैठा था. उस की भरी हुई आंखें बता रही थीं कि कुछ देर पहले तक वह जारजार रोया था.

सुरेश कसवां ने घायल युवती की नब्ज टटोली तो उन्हें लगा कि इस की सांसें चल रही हैं. घायल आदमी और युवती को ले कर पुलिस टीम तुरंत स्वास्थ्य केंद्र पहुंची, जहां डाक्टरों ने उस घायल युवती की जांच की तो पता चला कि वह मर चुकी है. घायल व्यक्ति को भरती कर के उस का इलाज शुरू कर दिया गया.

यह घटना राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर की सादुल शहर तहसील में 4 मार्च, 2017 की आधी रात को घटी थी. घायल व्यक्ति का नाम जसवंत मेघवाल था और जो महिला मर गई थी, वह उस की पत्नी राजबाला थी. कार में मिला बच्चा उसी का बेटा रुद्र था.

इस के बाद थाना सादुल शहर के थानाप्रभारी भूपेंद्र सोनी के निर्देश पर जसवंत मेघवाल के बयान के आधार पर अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध संख्या 56/17 पर भादंवि की धाराओं 302, 307, 323, 342 हरिजन उत्पीड़न और धारा 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. जसवंत की सास परमेश्वरी का अभी तक कुछ अतापता नहीं था. सुबह उस की तलाश में पुलिस टीम घटनास्थल पर पुन: पहुंची तो सड़क पर खड़ी कार से लगभग 200 मीटर दूर परमेश्वरी का लहूलुहान शव पुलिस को मिल गया. इस के बाद अपनी काररवाई कर पुलिस ने परमेश्वरी और उस की बेटी राजबाला की लाश को पोस्टमार्टम करा कर दोनों शव घर वालों को सौंप दिए गए.

दोनों हत्याओं की जानकारी पा कर श्रीगंगानगर के एसपी राहुल कोटकी सादुल शहर पहुंच गए थे. चूंकि इस मामले में हरिजन एक्ट लगा था, इसलिए इस मामले की जांच डीएसपी दिनेश मीणा को सौंपी गई.

स्वास्थ्य केंद्र में उपचार करा रहे जसवंत मेघवाल ने अपने बयान में बताया था कि उस ने सालासर बालाजी धाम में बेटे रुद्र मेघवाल का मुंडन कराने की मन्नत मांगी थी. इसीलिए 2 मार्च की सुबह उस ने अपनी सास परमेश्वरी से फोन पर इस बारे में बात की तो उन्होंने चलने के लिए हामी भर दी. तब वह 3 मार्च की रात अपनी कार से सास परमेश्वरी, पत्नी राजबाला और बेटे रुद्र को ले कर निकल पड़ा.

लगभग 10 किलोमीटर चलने पर 2 लोगों ने हाथ का इशारा कर कार रोकने को कहा तो उस की सास ने उन लोगों को अपना परिचित बता कर कार रुकवा दी. उस की सास ने उन दोनों को भी पिछली सीट पर अपने पास बैठा लिया. वह कुछ दूर ही गया था कि उन अज्ञात लोगों ने खंजर निकाला और उस पर तथा उस की पत्नी राजबाला पर हमला कर दिया.

अचानक हुए हमले से वह घबरा गया और ड्राइविंग सीट से कूद कर नजदीक के खेत में जा छिपा. इस के बाद उस ने अपने मित्र यूनुस खान को मोबाइल से फोन कर के इस घटना के बारे में बता कर मदद मांगी.

उस ने रोते हुए कहा था, ‘‘साहब, कुछ दिनों पहले भी मेरी सास ने मुझ पर हमला करवाया था, तब मैं बच गया था. कल रात हुआ हमला भी मेरी सास द्वारा करवाया गया था. वह मेरी जायदाद हड़पने के लिए मुझे मरवाना चाहती थी.’’

जांच अधिकारी दिनेश मीणा ने जसवंत के बयान पर गौर किया तो उन्हें संदेह हुआ. जसवंत हमले को सास की साजिश बता रहा था, जबकि सास खुद मारी गई थी. इस से उन्हें जसवंत के आरोप बेबुनियाद लगे थे. उन की नजर में वही संदिग्ध हो गया. उस के दाहिने हाथ पर मामूली खरोंच थी, जबकि बाएं हाथ पर थोड़ा आड़ेतिरछे गहरे घाव थे.

दिनेश मीणा ने जसवंत के हाथों के जख्मों के बारे में डाक्टरों से राय ली तो उन का संदेह यकीन में बदलने लगा. डाक्टरों का कहना था कि खंजर के वार आड़ेतिरछे थे, जो मात्र बाएं हाथ पर थे. दाहिने हाथ पर मात्र खरोंच के निशान थे. अगर कोई वार करता तो गहरे घाव होते. घावों को देख कर यही लगता है कि खुद ही वार किए गए थे.

दिनेश मीणा ने हमले को जर, जोरू और जमीन के तराजू पर तौला तो उद्देश्य भी सामने आ गया. कत्ल के पीछे परमेश्वरी की बेशकीमती खेती की जमीन थी. राजबाला के कत्ल की वजह उस का अनपढ़, साधारण रंगरूप और फूहड़ होना था. पढ़ालिखा जसवंत राजबाला की मौत के बाद किसी सुंदर पढ़ीलिखी युवती से विवाह करना चाहता था.

दिनेश मीणा ने स्वास्थ्य केंद्र में उपचार करा रहे जसवंत के पास जा कर पूछा, ‘‘कहो जसवंत, कैसे हो? तुम्हारी तबीयत कैसी है?’’

‘‘साहब, हमलावरों ने अपनी समझ से तो मुझे मार ही डाला था, पर संयोग से मैं बच गया. हाथ में हुए घाव बहुत गहरे हैं. असहनीय पीड़ा हो रही है.’’ जसवंत ने कहा.

‘‘भई, तुम्हारी सास तो बड़ी शातिर निकली. अपने ही दामाद पर हमला करवा दिया. खैर, घबराने की कोई बात नहीं है, 2 दिनों में घाव ठीक हो जाएंगे. पूरा पुलिस विभाग तुम्हारी सुरक्षा में लगा है. मुझे आशंका है कि परमेश्वरी के गुंडे तुम पर यहां भी हमला कर सकते हैं, इसलिए मैं ने तुम्हारी सुरक्षा के लिए यहां गनमैन तैनात कर दिए हैं.’’

दिनेश मीणा ने घायल पड़े जसवंत के चेहरे पर गौर किया तो उन्हें जसवंत के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैरती नजर आई. शायद वह सोच रहा था कि उस की समझ व सोच के अनुरूप ही पुलिस ने उस की कहानी पर विश्वास कर लिया है. उस की सुरक्षा की व्यवस्था भी कर दी है.

दूसरी तरफ दिनेश मीणा के होंठों पर भी मुसकराहट तैर रही थी कि पुलिस ने डबल मर्डर के आरोपी जसवंत की खुराफात बेपरदा कर उसे निगरानी में ले लिया है. अगले दिन जसवंत को स्वास्थ्य केंद्र से डिस्चार्ज करा कर थाने लाया गया. दिनेश मीणा ने उस से गंभीरता से पूछताछ की तो आखिर उस ने बिना हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद जसवंत को सादुल शहर के एसीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे पूछताछ के लिए 8 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. थाने में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह जसवंत मेघवाल का नाम दर्ज कर लिया गया था.

रिमांड के दौरान जसवंत मेघवाल से की गई विस्तृत पूछताछ में उस का ऐसा वीभत्स कृत्य सामने आया कि जान कर हर कोई दंग रह गया. उस ने अपनी सास की जमीन हड़पने और अनपढ़ पत्नी से छुटकारा पाने के लिए अपनों के ही खून से हाथ रंग लिए थे. टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने घटना का तानाबाना बुना था.

सादुल शहर तहसील के 2 गांव अलीपुरा और नूरपुरा आसपास बसे हैं. अलीपुरा में जसवंत रहता था तो नूरपुरा में परमेश्वरी. दोनों गांवों के बीच लगभग 5 किलोमीटर की दूरी है. जसवंत 20 बीघा सिंचित खेती की जमीन का एकलौता मालिक था तो वहीं परमेश्वरी भी 35 बीघा सिंचित खेती की जमीन की मालकिन थी.

दोनों ही परिवार भले ही हरिजन वर्ग से  आते थे, पर दोनों ही परिवारों की गिनती धनाढ्य और रसूखदार परिवारों में होती थी. परमेश्वरी की एकलौती संतान राजबाला थी. लाड़प्यार में पली राजबाला का प्राथमिक शिक्षा के बाद शिक्षा से मोह भंग हो गया था, वहीं जसवंत के दिल में शिक्षा के प्रति गहरा लगाव था. यही वजह थी कि उस ने एमए, बीएड तक की पढ़ाई की थी.

विधवा परमेश्वरी जवान हो चुकी बेटी राजबाला के लिए वर की तलाश में जुटी थी, पर उस की जातिबिरादरी में उस की हैसियत का घर व वर नहीं मिल रहा था. किसी रिश्तेदार ने अलीपुरा निवासी उच्चशिक्षित जसवंत का नाम सुझाया तो यह रिश्ता उसे जंच गया.

बात चली तो राजबाला के अनपढ़ होने की बात कह कर जसवंत नानुकुर करने लगा. पर बिचौलिए रिश्तेदारों ने कार सहित लाखों का दहेज मिलने का लालच दे कर जसवंत को शादी के लिए तैयार कर लिया.

इस के बाद मार्च, 2012 में राजबाला और जसवंत की शादी हो गई. राजबाला के आने के साथ ही जसवंत का घर दहेज में मिले सामान से भर गया था. घर के दालान में खड़ी नईनवेली कार ने तो जसवंत के रुतबे में चारचांद लगा दिया था.

शादी के बाद जसवंत पैरा टीचर के रूप में नियुक्त हो गया तो खेतों को बटाई पर उठा दिया. कार और ठीकठाक पैसा होने की वजह से जसवंत के दोस्तों का दायरा बढ़ गया. कभी दोस्तों को अपने घर पर तो कभी दोस्तों के यहां होने वाली पार्टियों में वह पत्नी के साथ शामिल होता. दोस्तों की बीवियों के सामने उसे अपनी अनपढ़ पत्नी राजबाला फूहड़ नजर आती.

सच्चाई यह थी कि उच्च और शिक्षित समाज की होने वाली पार्टियों में सामंजस्य बिठा पाना राजबाला के बूते में नहीं था. उस का अनपढ़ और फूहड़ होना जसवंत के दिमाग पर हावी होने लगा. अब वह उस से ऊब चुका था, जिस की वजह से घर में रोजरोज किचकिच होने लगी.

उसी बीच राजबाला ने पहली संतान के रूप में बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रुद्र रखा गया. इस के बाद जसवंत राजबाला की उपेक्षा करने लगा. पति के प्यार व अपनत्व से वंचित राजबाला विद्रोही बन गई. उस ने अपनी मां को फोन कर के जसवंत के खिलाफ भर दिया.

कहा जाता है कि राजबाला ने मां से कहा था कि जसवंत किसी बाजारू लड़की के चक्कर में फंस कर न केवल पैसे बरबाद कर रहा है बल्कि उस की गृहस्थी उजाड़ रहा है. यह जान कर परमेश्वरी आगबबूला हो उठी और जसवंत के घर आ धमकी. आते ही उस ने कहा, ‘‘जवाईंराजा, क्यों पराई औरतों के चक्कर में पड़ कर अपना घर उजाड़ रहे हो? तुम यह जो कर रहे हो, ठीक नहीं है.’’

‘‘नहीं मांजी, ऐसी कोई बात नहीं है. जिस ने भी यह कहा है, सरासर झूठ है.’’ सफाई में जसवंत ने कहा.

पति की इस सफाई पर नाराज राजबाला भी बीच में कूद पड़ी. इस के बाद पतिपत्नी में लड़ाई होने लगी. परमेश्वरी भी बेटी का पक्ष ले कर लड़ रही थी.

‘‘मांजी, राजबाला अनपढ़ है, इसलिए मेरी पढ़ाई और रहनसहन को ले कर जलती है. आप इसे समझाने के बजाए मुझ पर ही आरोप लगा रही हैं.’’ मामले को संभालने की कोशिश करते हुए जसवंत ने कहा, ‘‘इस से ब्याह कर के तो मेरा भाग्य ही फूट गया है.’’

‘‘बेटा, यह तो तुम्हें शादी से पहले सोचना चाहिए था. मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं की थी.’’ परमेश्वरी ने कहा.

‘‘तुम लोगों ने मेरे साथ धोखा किया है. कार और दहेज का लालज दे कर मुझे फंसा दिया.’’ कह कर जसवंत घर से बाहर निकल गया.

इस झगड़े ने जसवंत का दिमाग खराब कर दिया. अब राजबाला के साथ उस की मां परमेश्वरी भी उस के दिमाग में खटकने लगी. फिर क्या था, खुराफाती और उग्र दिमाग के जसवंत ने मांबेटी का अस्तित्व ही मिटाने का खतरनाक निर्णय ले लिया. अपने इस निर्णय को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस ने हर पहलू को नफेनुकसान के तराजू पर तौला. इस के बाद किसी पेशेवर बदमाश से दोनों को सुपारी दे कर मरवाने का विचार किया. जसवंत का सोचना था कि अगर वह दोनों को मरवा देता है तो न केवल सुंदर और शिक्षित लड़की से शादी कर सकेगा, बल्कि परमेश्वरी की 35 बीघा बेशकीमती जमीन भी उस के बेटे रुद्र को मिल जाएगी.

अगर वह पकड़ा भी गया तो हत्या के आरोप में होने वाली 18 साल की जेल काटने के बाद बाहर आने पर बाकी की जिंदगी बेशुमार दौलत के सहारे ऐशोआराम से काटेगा. तब तक बालिग होने वाला बेटा रुद्र सोनेचांदी में खेलेगा. जसवंत को लगा कि उस के दोनों हाथों में लड्डू हैं.

महत्त्वाकांक्षी और ऐशोआराम की जिंदगी जीने की चाहत रखने वाला जसवंत अपने इस निर्णय पर बहुत खुश हुआ. उस ने पेशेवर हत्यारे की तलाश शुरू कर दी. काफी दिनों बाद नूरपुर का रहने वाला जसवंत का खास मित्र तुफैल खां मिला तो उस ने कहा, ‘‘अरे जसवंत भैया, बड़े परेशान दिख रहे हो? आज फिर भाभी से झगड़ा हो गया है क्या?’’

‘‘भाई, आप से क्या छिपाना, मांबेटी ने मेरा जीना हराम कर दिया है. मन करता है, आत्महत्या कर लूं. पर बेटे के मोह के आगे बेबस हूं. लगता है, मांबेटी को ही मारना पड़ेगा.’’ जसवंत ने कहा, ‘‘तुफैल भाई, तुम कोई ऐसा आदमी ढूंढो, जो पैसे ले कर मेरा यह काम कर दे.’’

‘‘जसवंत भाई, बहुत ही गंभीर मामला है. फंस गए तो जिंदगी तबाह हो जाएगी. सारी जिंदगी जेल में पड़े रहेंगे.’’

‘‘इतना घबराते क्यों हो, मैं हूं न. फंस भी गए तो पैसा पानी की तरह बहा दूंगा.’’ जसवंत ने कहा.

तुफैल 2 दिनों बाद कीकरवाली निवासी हैदर अली को साथ ले कर जसवंत से मिला. तीनों के बीच पैसों को ले कर बात चली तो हैदर और तुफैल ने 3 लाख रुपए मांगे. जबकि जसवंत एक लाख रुपए देने को तैयार था. आखिर डेढ़ लाख में सौदा तय हो गया. लेकिन उस समय पैसे की व्यवस्था न होने से जसवंत ने डेढ़ लाख रुपए का चैक तुफैल और हैदर को दे दिया. काम होने के बाद जसवंत को नकद पैसे देने थे.

व्यवस्था के लिए हैदर अली ने जसवंत से 20 हजार रुपए लिए. काम कब करना है, यह जसवंत को तय करना था. इस के बाद हनुमानगढ़ की एक दुकान से जसवंत ने 2 खंजर खरीद कर उन की धार तेज करवाई और हैदर अली को सौंप दिए.

इस के बाद जसवंत का ज्यादातर समय टीवी पर चलने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देखने में बीतने लगा. जसवंत का सोचना था कि अपराधी अपनी गलती की वजह से पकड़े जाते हैं, पर वह इस तरह काम करेगा कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी.

आखिरकार जसवंत ने पत्नी और सास की हत्या की योजना बना डाली. इस के बाद उस पर खूब सोचाविचारा. उस की नजर में योजना फूलप्रूफ लगी. अपनी इसी योजना के अनुसार, 3 मार्च की सुबह चिकनीचुपड़ी बातें कर के उस ने अपनी सास को सालासर जाने के बहाने अपने घर बुला लिया.

जब सारी तैयारी हो गई तो जसवंत ने फोन कर के तुफैल को रात 10 बजे सालासर जाने की बात बता कर मुख्य सड़क पर काम निपटाने को कह दिया. तय समय पर जसवंत पत्नी राजबाला, सास परमेश्वरी और बेटे रुद्र को ले कर कार से चल पड़ा.

मुख्य सड़क पर मोटरसाइकिल से आए तुफैल और हैदर अली मिल गए. दोनों ने हाथ के इशारे से जसवंत की कार रुकवाई और कार में बैठ गए. कुछ दूर जाने के बाद हैदर और तुफैल ने खंजर निकाल कर परमेश्वरी पर वार किए तो जान बचाने के लिए वह दरवाजा खोल कर कूद पड़ी.

जसवंत ने भी कार रोक दी. तुफैल और हैदर अली ने नीचे उतर कर उस का काम तमाम कर दिया. इस के बाद राजबाला का भी काम तमाम कर दिया गया. दोनों को मार कर जसवंत ने अपने दोस्त युनुस को फोन कर के मनगढं़त कहानी सुना कर पुलिस से मदद की गुहार लगाई.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने जसवंत के दोनों साथियों तुफैल और हैदर अली को गिरफ्तार कर खंजर, कार और चैक बरामद कर लिया था. रिमांड अवधि समाप्त होने पर तीनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया गया.

ग्लैमर की चकाचौंध में फंसे जसवंत ने खुद ही अपनी गृहस्थी और जिंदगी बरबाद कर ली, साथ ही 2 भोलेभाले लोगों को भी हत्या जैसे अपराध में जेल भिजवा दिया. आखिर परमेश्वरी के मरने के बाद उस की सारी जायदाद उसे ही मिलनी थी. तीनों आरोपियों का भविष्य अब अदालत का निर्णय ही तय करेगा.?

– कथा पुलिस सूत्रों के आधार पर

तांत्रिक की हैवानियत के शिकार दो मासूम

देश की राजधानी दिल्ली के जामियानगर में स्थित है जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी. उर्दू में जामिया का मतलब है यूनिवर्सिटी और मिलिया का मतलब है मिल्लत यानी समूह. ब्रिटिश शासन में स्थापित इस यूनिवर्सिटी को एक साल पहले भारत की बेस्ट यूनिवर्सिटी सर्वे में 8वां स्थान हासिल हुआ था.

इस यूनिवर्सिटी में देश के अलगअलग हिस्सों से छात्र तालीम हासिल करने आते हैं. युवा सद्दाम और बाबर उर्फ हैदर ने भी एक साल पहले यहां पढ़ने के लिए दाखिला लिया था. दोनों ही पढ़ने में होशियार थे.

सद्दाम और बाबर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना मुंडाली के गांव जिसौरा के रहने वाले थे. उन के गांव के कुछ और लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे, इस लिहाज से उन्हें वहां दाखिला ले कर रहने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी. 19 साल के बाबर और 18 साल के सद्दाम के पिता मोहम्मद मुन्नर और कलवा गांव के आर्थिक रूप से समृद्ध किसानों में थे.

वे चाहते थे कि बच्चे तालीम से ऊंचा दर्जा हासिल करें. बाबर डौक्टर बनना चाहता था और सद्दाम इंजीनियर. साप्ताहिक अवकाश पर सद्दाम और बाबर अपने घर आ जाया करते थे. 8 अप्रैल, 2017 को दोनों गांव आए थे. अगले दिन रविवार था. छुट्टी का पूरा दिन घर में बिता कर 10 तारीख की दोपहर करीब 3 बजे दोनों घर से दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे.

दोनों के ही परिवारों में अच्छे संबंध थे. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि वे दोनों दिल्ली एक साथ गए थे, बल्कि हर बार वे इसी तरह आतेजाते थे. हर बार दोनों दिल्ली पहुंच कर घर वालों को फोन कर के कमरे पर पहुंचने की बात बता देते थे.

लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ तो दोनों के ही घर वालों को चिंता हुई. यह चिंता इस बात से और भी बढ़ गई थी कि दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ बता रहे थे. हौस्टल में उन के साथ रहने वाले लड़कों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि दोनों वहां पहुंचे ही नहीं हैं.

बाबर और सद्दाम को ज्यादा से ज्यादा 3 घंटे में अपने कमरे पर पहुंच जाना चाहिए था. देर रात तक दोनों कमरे पर नहीं पहुंचे तो आखिर कहां लापता हो गए. जब सद्दाम और बाबर के बारे में कुछ नहीं पता चला तो रात में ही उन के घर वाले दिल्ली पहुंच गए.

रास्ते में भी वे पूछताछ करते रहे कि कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हुई थी. लेकिन ऐसा कुछ पता नहीं चला. थकहार कर वे लौट गए. नातेरिश्तेदारों से भी पता किया गया, लेकिन कुछ पता नहीं चला. अगले दिन भी किसी की चिंता कम नहीं हुई, क्योंकि दोनों के मोबाइल अभी तक बंद थे.

सभी को रहरह कर अनहोनी की आशंका सता रही थी. कोई नहीं जानता था कि आखिर दोनों के साथ हुआ क्या है? दिन के 11 बज रहे थे, बाबर के पिता मुन्नर के पास फोन आया. मोबाइल स्क्रीन पर नंबर बाबर का ही दिखाई दिया था, इसलिए उन्होंने तुरंत फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो बेटा, कहां हो तुम?’’

उन्हें झटका तब लगा, जब दूसरी ओर से बाबर के बजाय किसी अन्य की गुर्राहट भरी आवाज उभरी, ‘‘ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है मियां, बाबर हमारे कब्जे में है.’’

गुर्राहट भरी आवाज सुन कर मुन्नर के पैरों तले से जमीन खिसक गई. डरते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘तुम कौन बोल रहे हो भाई?’’

‘‘यह जान कर तुम क्या करोगे? बस इतना समझ लो कि हम अच्छे लोग नहीं हैं. तुम्हारा बेटा हमारे कब्जे में हैं. उसे सकुशल वापस पाना चाहते हो तो फटाफट 80 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. अगर ऐसा नहीं किया तो अंजाम भुगतने को तैयार रहो.’’

‘‘लेकिन…’’ मुन्नर ने कुछ कहना चाहा तो फोन करने वाले ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘हमें ज्यादा सवाल सुनने की आदत नहीं है. रकम भी हम ने सोचसमझ कर मांगी है. अब यह तुम्हें तय करना है कि बेटा चाहिए या दौलत?’’

इस के बाद एक लंबी सांस ले कर फोन करने वाले ने आगे कहा, ‘‘और हां, किसी तरह की चालाकी करने की कोशिश मत करना, वरना बेटा नहीं, उस के शरीर के टुकड़े मिलेंगे. तुम रकम का इंतजाम करो, हम तुम्हें दोबारा फोन करेंगे.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. फोन करने वाला कौन था? यह तो वह नहीं जानते थे, लेकिन उस की बातों में ऐसी धमक थी, जिस ने मुन्नर को अंदर तक दहला कर रख दिया था. वह समझ गए कि सद्दाम और बाबर का फिरौती के लिए किसी ने अपहरण कर लिया है.

मुन्नर सद्दाम के पिता से मिलने उन के घर पहुंचे तो वह सिर थामे बैठे थे. क्योंकि तब तक उन के पास भी 80 लाख रुपए की फिरौती के लिए उन के बेटे के ही मोबाइल से फोन आ चुका था. घर वालों ने मोबाइल नंबरों पर पलट कर फोन करने की कोशिश की, लेकिन वे स्विच्ड औफ हो चुके थे. घर वालों ने देर किए बगैर इस की सूचना पुलिस को देना उचित समझा.

बाबर और सद्दाम के पिता कुछ लोगों को साथ ले कर एसपी (देहात) श्रवण कुमार सिंह से जा कर मिले और उन्हें घटना के बारे में बताया. श्रवण कुमार सिंह के आदेश पर थाना मुंडाली में अज्ञात लोगों के खिलाफ दोनों छात्रों सद्दाम और बाबर के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मामला गंभीर था, इसलिए पुलिस तुरंत काररवाई में लग गई. थानाप्रभारी अजब सिंह ने तुरंत इस मामले की जांच शुरू कर दी.

एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने श्रवण कुमार सिंह के निर्देशन और सीओ विनोद सिरोही के नेतृत्व में पुलिस टीमें गठित कर अपहरण के खुलासे के लिए लगा दीं. विनोद सिरोही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले भी तैनात रहे हैं, इसलिए अपराध और अपराधियों पर उन की गहरी पकड़ थी. अगले दिन एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना हुई, जहां दोनों छात्रों के साथियों अब्दुल कादिर और मेहरात से पूछताछ की गई.

लेकिन उन से कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच पुलिस ने दोनों छात्रों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स और अंतिम लोकेशन हासिल कर ली थी. मोबाइल नंबरों के रिकौर्ड के अनुसार, सद्दाम और बाबर की लापता होने वाले दिन की अंतिम लोकेशन नोएडा शहर की पाई गई थी. फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे नोएडा से ही किए गए थे.

अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास मोबाइल ही एकमात्र जरिया था. अपहर्त्ता काफी चालाक थे. वे बात करने के लिए सद्दाम और बाबर के ही मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे थे. पुलिस टीमें संदिग्ध स्थानों के लिए रवाना हो गई थीं.

12 अप्रैल की सुबह अपहर्त्ता ने मुन्नर को एक बार फिर फोन किया. इस बार फोन किसी अन्य नंबर से किया गया था. उस ने सीधे मतलब की बात कही, ‘‘रकम तैयार रखना, डील होते ही तुम्हारे बच्चों को छोड़ दिया जाएगा.’’

‘‘हम तैयार हैं, बताओ रकम कहां पहुंचानी है?’’

‘‘इस बारे में हम तुम्हें दोपहर को फोन कर के बताएंगे.’’ कह कर अपहर्त्ता ने फोन काट दिया.

यह नंबर भी पुलिस को दे दिया गया था. 4 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. अपहर्त्ता फोन कर के तुरंत मोबाइल फोन बंद कर देते थे, इसलिए पुलिस को उन की सटीक लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. लेकिन यह जरूर पता चल गया था कि मोबाइल फोन से जो फोन किए जा रहे हैं, वे नोएडा के सैक्टर-63 से किए जा रहे हैं.

पुलिस ने बाबर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की लापता होने से पहले बातें हुई थीं. उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर नोएडा के छिजारसी गांव के रहने वाले मौलाना अयूब का निकला. उस के बारे में पता किया गया तो पता चला कि वह एक मदरसे में बच्चों को दीनी तालीम दिया करता था, साथ ही वह तंत्रमंत्र भी करता था.

अयूब उसी जिसौरा गांव का रहने वाला था, जहां के बाबर और सद्दाम रहने वाले थे. कुछ सालों पहले अयूब नोएडा जा कर बस गया था. उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक की गई तो पता चला कि उस का संपर्क हैदर नामक एक युवक से था.

इस के बाद पुलिस ने हैदर के बारे में पता किया तो पता चला कि वह भी जिसौरा गांव का ही रहने वाला था. वह गाजियाबाद में टैंपो चलाता था. खास बात यह थी कि अयूब और हैदर की लोकेशन सद्दाम और बाबर के लापता होने वाली शाम को एक साथ थी.

इन सभी तथ्यों के हाथ में आने से पुलिस समझ गई कि दोनों छात्रों के लापता होने के तार अयूब और हैदर से जुड़े हुए हैं. युवकों के बारे में पता न चलने से गांव के लोगों में नाराजगी बढ़ रही थी. इस बात की जानकारी होने पर सीओ विनोद सिरोही ने गांव जा कर लोगों की नाराजगी को शांत कर के उन्हें पुलिस की काररवाई से अवगत कराया.

15 अप्रैल को एक पुलिस टीम अयूब की तलाश में निकल पड़ी. छिजारसी गांव नोएडा के सैक्टर-63 में ही आता था. पुलिस टीम ने नोएडा पुलिस की मदद से उसे हिरासत में ले लिया. पहले तो उस ने धर्म का डर दिखा कर पुलिस को धमकाने की कोशिश की, लेकिन सबूतों के आगे उस ने हथियार डाल दिए.

पुलिस दोनों लड़कों को सकुशल बरामद करना चाहती थी. जब अयूब से उन के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, वे दोनों अब नहीं हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मुझे माफ कर दीजिए साहब, मैं ने और हैदर ने उन की हत्या कर के शव फेंक दिए हैं.’’

अयूब की हैवानियत भरी बातें सुन कर पुलिस सकते में आ गई. पुलिस ने लाशों के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘हम ने दोनों लाशें ले जा कर गाजियाबाद जिले की डासना-मसूरी नहर में फेंक दी थीं.’’

पुलिस अयूब को ले कर तुरंत वहां पहुंची, जहां उन्होंने लाशें फेंकी थीं. उस की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों में अटकी सद्दाम और बाबर की लाशें बरामद कर लीं. उन के घर वालों को इस बात की सूचना दी गई तो उन के यहां कोहराम मच गया. मौके पर पहुंच कर उन्होंने लाशों की शिनाख्त कर दी.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. हत्या की बात से जिसौरा गांव में तनाव फैल गया, जिस की वजह से गांव में पुलिस बल तैनात करना पड़ा. पुलिस ने दूसरे आरोपी हैदर की तलाश शुरू की, लेकिन वह हाथ नहीं आया.

पुलिस ने अयूब से विस्तार से पूछताछ की तो दोनों लड़कों की हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. धर्म की आड़ में कमाई के लिए ढोंग रचने वाले अयूब के चेहरे से तो नकाब उतरा ही, साथ ही हैदर की भी हकीकत खुल गई.

हैदर ने अपनी प्रेमिका से बाबर को दूर करने के लिए मौत की ऐसी खौफनाक साजिश रची, जिस में अयूब भी शामिल हो गया था. तंत्रमंत्र पर बाबर का नासमझी भरा अंधविश्वास उसे मौत की चौखट तक ले गया. उसी के साथ निर्दोष सद्दाम भी मारा गया. इस तरह नासमझी में 2 घरों के चिराग बुझ गए.

दरअसल, टैंपो चालक हैदर का गांव की ही एक लड़की से प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था कि उसी बीच हैदर को पता चला कि उस की प्रेमिका का बाबर से भी चक्कर चल रहा है. इस से उस का दिमाग घूम गया. उस ने अपने स्तर से इस बारे में पता किया तो बात सच निकली.

हैदर को यह बात काफी नागवार गुजरी. उस ने अपनी प्रेमिका को भी समझाया और बाबर को भी. उस का सोचना था कि दोनों अब कभी बात नहीं करेंगे, लेकिन उस की यह खुशफहमी जल्द ही खत्म हो गई, जब उसे पता चला कि उस की बातों का दोनों पर कोई असर नहीं हुआ है. हैदर लड़की पर अपना हक समझने लगा था. उसे यह कतई मंजूर नहीं था कि वह किसी और से बातें करे, इसलिए एक दिन उस ने बाबर को समझाते हुए कहा, ‘‘बाबर, मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी होने वाली बीवी से बात करो.’’

‘‘तुम क्या उस से निकाह करने वाले हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो फिर मुझे रोकने से अच्छा है कि उसे समझाओ. अब मुझ से कोई बात करेगा तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं.’’

‘‘जो भी हो, मैं तुम्हें समझा रहा हूं. अगर तुम नहीं माने तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’ हैदर ने धमकी भरे लहजे में कहा तो दोनों में बहस हो गई.

दूसरी ओर हैदर ने प्रेमिका से बात की तो वह मुकर गई. हैदर उस पर भरोसा करता था. उस का अहित करने की वह सोच भी नहीं सकता था. वक्त के साथ हैदर के दिमाग में यह बात घर कर गई कि हो न हो, उस की प्रेमिका को बाबर ही अपने जाल में फंसा रहा हो. उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि अगर उस ने कुछ नहीं किया तो उसे एक दिन प्रेमिका से हाथ धोना पड़ेगा.

ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो किसी भी मसले का हल निकल आता है, लेकिन हैदर ऐसी फितरत का इंसान नहीं था. कई दिनों की दिमागी उधेड़बुन के बाद उस ने बाबर को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

बाबर की बातें तांत्रिक अयूब से भी हुआ करती थीं. इस बात की जानकारी हैदर को थी. अयूब से उस के भी अच्छे रिश्ते थे. उस की प्रेमिका की बातें कई बार अयूब ने ही उसे बताई थीं, इसलिए हैदर ने अयूब के जरिए ही बाबर को रास्ते से हटाने की सोची.

मौलाना अयूब लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाने का ढोंग करता था, धर्म की आड़ में तंत्रमंत्र के बल पर सभी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का दावा करता था. अंधविश्वासियों की चूंकि समाज में कोई कमी नहीं है, इसलिए उस का यह धंधा ठीकठाक चल रहा था. एक दिन हैदर अयूब के पास पहुंचा. अयूब ने आने की वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘अयूब भाई, मैं एक काम में आप की मदद चाहता हूं.’’

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘एक लड़के को रास्ते से हटाना है. इस काम में तुम मेरी बेहतर मदद कर सकते हो.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो हैदर मियां?’’ हैदर की बात सुन कर अयूब एकदम से चौंका तो हैदर ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस में इतना चौंकने की क्या बात है? कब तक तुम लोगों के लिए ताबीज बना कर हजार, 5 सौ रुपए कमाते रहोगे. मैं तुम्हें 10 लाख रुपए के साथ एक प्लौट भी दिला दूंगा. मैं जानता हूं कि तुम किराए पर रहते हो. ऐसे में तो तुम अपना घर बनाने से रहे. सोच लो, मौका बारबार नहीं आता.’’

हैदर की इस बात पर अयूब सोच में डूब गया. उस का दिया लालच वाकई मोटा था. थोड़ी ही देर में अयूब धर्म और इंसानियत को भूल गया. उस ने साथ देने का वादा किया तो हैदर ने उसे बाबर का नाम बता दिया.

‘‘तुम उसे क्यों मारना चाहते हो?’’

‘‘वह मेरी प्रेमिका को हथियाने की कोशिश कर रहा है, इसलिए उस का मरना जरूरी है.’’

इस के बाद हैदर और अयूब ने बाबर की हत्या कर उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इसी योजना के तहत अयूब ने 9 अप्रैल की शाम बाबर को फोन किया, ‘‘बाबर, मेरे पास एक ऐसी आयतों की ताबीज है, जिस लड़की का भी नाम ले कर पहनोगे, वह हमेशा के लिए तुम्हारी दीवानी हो जाएगी.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां, अगर तुम्हें वह ताबीज चाहिए तो मैं तुम्हें वह ताबीज दे सकता हूं. लेकिन एक शर्त होगी.’’

‘‘क्या?’’ बाबर ने उत्सुकता से पूछा तो उस ने राजदाराना अंदाज में कहा, ‘‘इस के बारे में तुम किसी से जिक्र नहीं करोगे. एक बात और, उसे मेरे पास आ कर ही लेना होगा.’’

‘‘ठीक है, मैं गांव आया हूं. मुझे कल जामिया जाना है. तुम्हारे पास से होता हुआ चला जाऊंगा.’’

बाबर आने के लिए तैयार हुआ तो अयूब ने यह बात हैदर को बता दी. अगले दिन शाम के वक्त बाबर अपने साथी सद्दाम के साथ छिजारसी पहुंचा. हैदर वहां पहले से ही मौजूद था. हैदर को देख कर हालांकि बाबर को झटका लगा, लेकिन उस ने उस के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हुए कहा, ‘‘हैदर, तुम यहां..?’’

‘‘मैं अयूब भाई से यूं ही मिलने चला आया था.’’ हैदर ने कहा.

बाबर उम्र के लिहाज से इतना समझदार नहीं था कि उन की चाल को समझ पाता. सद्दाम सिर्फ दोस्ती की वजह से उस के साथ आया था. कुछ देर की बातचीत के बाद अयूब ने बाबर और सद्दाम को कोल्डड्रिंक पीने के लिए दी. कोल्डड्रिंक पी कर दोनों बेहोश हो गए. अयूब ने उस में पहले से ही नशीली दवा मिला रखी थी.

बाबर और सद्दाम के बेहोश होते ही हैदर और अयूब ने मिल कर उन की गला दबा कर हत्या कर दी. तब तक रात हो चुकी थी. उन के मोबाइल उन्होंने स्विच औफ कर दिए. इस के बाद दोनों की लाशों को चादरों में बांध कर टैंपो में रखा और गाजियाबाद के मसूरी की ओर चल पड़े.

रास्ते में कई जगह उन्हें पीसीआर वैन और पुलिस की गाडि़यां मिलीं, लेकिन संयोग से टैंपो को किसी ने चैक नहीं किया. मसूरी नहर की पटरी पर सुनसान जगह देख कर हैदर ने टैंपो रोका. इस के बाद दोनों ने मिल कर लाशों को नहर में फेंक दिया. लेकिन जल्दबाजी में लाशें झाडि़यों में अटक गई थीं, जबकि उन्होंने सोचा था कि लाशें नहर में बह गई होंगी. अंधेरा होने की वजह से वे देख नहीं सके थे.

लाशों को ठिकाने लगा कर दोनों छिजारसी चले गए. अगले दिन अयूब ने आवाज बदल कर बारीबारी से बाबर और सद्दाम के घर वालों को फिरौती के लिए फोन कर के मोबाइल बंद कर दिए. हैदर को लगा कि बारबार उन के नंबर इस्तेमाल करना ठीक नहीं है, इसलिए वह फर्जी पते पर नया सिमकार्ड खरीद लाया, जिस से बाद में दोनों लड़कों के घर वालों को फोन किए जाते रहे.

हैदर और अयूब को पूरी उम्मीद थी कि अपने बेटों के बदले घर वाले फिरौती जरूर देंगे, जिस से उन की किस्मत बदल जाएगी. लेकिन उन की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई थी.

विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने अयूब को अदालत में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के जेल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद बाबर और सद्दाम के शवों को घर वालों के हवाले कर दिया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, दोनों की मौत गला दबाने से हुई थी. गमगीन माहौल में दोनों लड़कों के शवों को पुलिस की मौजूदगी में दफना दिया गया.

20 अप्रैल को पुलिस ने फरार चल रहे हैदर को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. हैदर ने जो कदम उठाया, वह कोई नासमझी नहीं, बल्कि जानबूझ कर उठाया गया सरासर गलत कदम था. 2 युवाओं की जान ले कर वह खुद भी नहीं बच सका.

वहीं धर्म का पाठ पढ़ाने वाले अयूब ने भी लालच में आ कर गलत राह पकड़ ली. जबकि उस ने हैदर को समझा कर सही राह दिखाई होती तो शायद यह नौबत न आती. लालच में आ कर वह खुद भी 2 हत्याओं का गुनहगार बन गया. कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उन के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं.

4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’

दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे.

दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने.

दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला.

ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं.

महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’

बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं. बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे.

पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरीगोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरीगोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं.

इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’

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