काले इल्म का काला कारोबार, कितना खतरनाक

Crime News in Hindi: भोपाल, मध्य प्रदेश के पिपलानी इलाके में रहने वाली ममता बाई (बदला नाम) की शादी को 10 साल हो चुके थे. उस के कोई औलाद नहीं थी. एक दिन वह अखबार में छपे गारंटी व मनचाही औलाद देने का दावा करने वाले एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी समस्या बताई. अगले दिन ही तांत्रिक उस के घर आया और पूजापाठ, तंत्रमंत्र का पाखंड कर के ममता से बोला, ‘‘घर में रखे जेवरों में खराबी आ गई है. उन में खतरनाक ब्रह्म राक्षस का वास हो गया है. उन्हें शुद्ध करना पड़ेगा.’’

तांत्रिक के कहने पर ममता घर में रखे सारे जेवर ले आई. जेवर देख कर तांत्रिक ने कहा, ‘‘घर में और भी जेवर रखे हैं, उन्हें भी ले आओ.’’

ममता ने बताया, ‘‘वे जेवर तो मेरी सास के हैं.’’ लेकिन तांत्रिक ने उन जेवरों को भी लाने के लिए कहा.

ममता ने सास के जेवरों का बौक्स ला कर तांत्रिक के सामने रख दिया. तांत्रिक ने जेवरों की पूजा की, जिस से कमरे में धुआं हो गया.

पूजा करने के बाद तांत्रिक ने जेवरों का बौक्स लौटाते हुए कहा, ‘‘3 दिन बाद तुम इस डब्बे को खोलना.’’

3 दिन बाद जब ममता ने जेवरों का बौक्स खोला, तो देखा कि उस में जेवर नहीं थे. वह तांत्रिक 6 लाख रुपए के जेवर ले कर चलता बना था.

मुंबई के एक तांत्रिक ने खुद को काले इल्म का जानकार बताया और एक तलाकशुदा औरत की परेशानी दूर करने के बहाने उस से रुपए ऐंठता रहा. इस के साथ ही वह उस का जिस्मानी शोषण भी करता रहा.

यही नहीं, उस तांत्रिक ने उस औरत की 2 बेटियों को भी नहीं छोड़ा. जब वे नाबालिग बेटियां पेट से हो गईं, तो वह वहां से फरार हो गया.

पुलिस ने जब उसे पकड़ा, तो पता चला कि वह करोड़ों रुपयों का मालिक है. मुंबई, सूरत और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में उस की आलीशान कोठियां हैं, जिन की कीमत करोड़ों रुपए में है.

आज के जमाने में भी लोगों का  वशीकरण व काला जादू जैसी बातों पर यकीन है. इस के चलते काले इल्म का कारोबार काफी बढ़ रहा है.

भारत के छोटेबड़े शहरों से निकलने वाले अखबारों, पत्रिकाओं और टैलीविजन में टोनाटोटका करने वाले बाबाओं के इश्तिहार सब से ज्यादा छपते हैं.

ऐसे इश्तिहारों में सौ फीसदी गारंटी, तुरंत असर, काम न होने पर पैसा वापस करने जैसी बातें कही जाती हैं. इन बातों को पढ़ कर लोग तांत्रिकों के पास दौड़ेदौड़े पहुंच जाते हैं. एक बार जो इन के पास पहुंच गया, तो समझो वह बरबाद हो गया.

बाबा समस्या दूर करने के बजाय उस की जिंदगी में नई समस्या पैदा कर देते हैं. वे पूजापाठ के नाम पर लोगों से पैसा वसूलते हैं.

समस्या का समाधान न होने पर बड़ी समस्या बता कर बड़ी पूजा यानी बड़ा खर्च बताते हैं. पूजा न करवाने पर उलटा लोगों पर असर होने का डर दिखा कर पैसा ऐंठते हैं.

ये तथाकथित बाबा अपने नाम के आगे मुल्ला, फकीर, तांत्रिक, पंडित, भक्त, उपासक, सूफी, काले इल्म के माहिर, आलिमों के आलिम, सच्चा फकीर, पहुंचे हुए तांत्रिक, खानदानी मियां जैसी बातें लिखते हैं.

इस के अलावा मुठमारन विशेषज्ञ, काली शक्ति के उपासक, बाबा सम्राट जैसी बातें लिखी होती हैं. इन्हें पढ़ कर लगता है, जैसे ये उन की डिगरियां हैं.

अब तो ये बाबा 100 परसैंट की गारंटी नहीं, बल्कि 5000-11000 परसैंट की गारंटी देते हैं. मेरे से पहले जो काम कर के दिखाएगा, उसे

51 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. और तो और एक तांत्रिक ने तो 54 टाइम गोल्ड मैडल विजेता लिख रखा था. पता नहीं, इन्हें कौन गोल्ड मैडल बांट रहा है.

एक बाबा ने दावा किया है कि अब तक वह 76,586 केस हल कर चुका है. उस की बात पर यकीन करें, तो कह सकते हैं कि उस के पास इतने बेवकूफ पहुंच चुके हैं.

इन बाबाओं के चेले शहर या महल्ले में घूमघूम कर प्रचार करते हैं. पान की गुमटी, चाय की दुकान वगैरह जगहों पर इन बाबाओं की झठी खूबियों का बखान कर के वे लोगों को अपनी ओर करते हैं.

इन बाबाओं का टारगेट ज्यादातर ऐसे लोग होते हैं, जिन के पास खूब पैसा होता है, पर परेशान रहते हैं. जो  पति से परेशान हैं, प्यार में नाकाम हैं,  जिस लड़की की शादी नहीं हो रही है,  उन्हें अपनी बातों में ले कर वे बाबाओं तक पहुंचा देते हैं.

बाबा धीरेधीरे उसे अपने असर में लेने लगता है. इन बाबाओं की बातों के जाल में फंसा शख्स अगर इन्हें छोड़ने की कोशिश भी करता है, तो वे इतना डरा देते हैं कि उन से अलग होने की वह सोच भी नहीं सकता है.

ऐसे बाबाओं की नजर उस शख्स की जमीनजायदाद और औरतों के जिस्म पर भी होती है. अनेक बाबा तो मांबेटी के जिस्म लूटते पाए गए हैं.

काले इल्म की काट व पलट के बेताज बादशाह, बुखरी खानदान की खिदमत में 163 साल, बुजुर्गों के ताबे (काबू) में लिए हुए जिन्नात (जिन) के जरीए एक खास अमल (सिद्ध क्रिया) करता है, जिस में जीत के तमाम रास्ते खुल जाते हैं.

मेरी अमल से संगदिल से संगदिल महबूब बेपनाह मुहब्बत करने वाला बन जाएगा. आलिमों के आलिम, जिन्नात द्वारा मनचाहा काम करवाने की बात लिखी होती है. उन का दावा है कि किसी की आवाज, हाथ से लिखा परचा, पहना हुआ कपड़ा, शरीर के किसी भी हिस्से के बाल या नाखून, फोटो होने पर उस के ऊपर कोई भी काम किया जा सकता है.

कहा जाता है, बेवकूफ बनने के लिए लोग तैयार बैठे हैं. बस, उन्हें बेवकूफ बनाने वाला चाहिए. इस की वजह से काले इल्म वाले बाबाओं की काली दुकानदारी जम कर चल रही है.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

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सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

रूपाली का घिनौना रूप, कौन बना उस का शिकार

Crime News in Hindi: 13 जून, 2017 को पुलिस कंट्रोलरूप (Control Room) द्वारा उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर (Jaunpur) की कोतवाली मड़िया हूं पुलिस को गांव सुभाषपुर में एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार सिंह पुलिस बल के साथ सुभाषपुर गांव (Subhashpur Village) स्थित उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. घटनास्थल केडीएस स्कूल के पीछे था. अब तक वहां गांव वालों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. लेकिन पुलिस को देखते ही लोग एक किनारे हो गए थे. नरेंद्र कुमार सिंह ने लाश का निरीक्षण शुरू किया. मृतक की हत्या किसी धारदार हथियार से बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस की उम्र यही कोई 27-28 साल थी. देखने से ही वह गांव का रहने वाला लग रहा था.

पुलिस कंट्रोलरूम से इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी. उसी सूचना के आधार पर एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. काफी प्रयास के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में भी कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी, तभी कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार सिंह एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से करने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लाश से कुछ दूरी पर उन्हें एक टूटा हुआ सिम मिला. इस से जांच में मदद मिल सकती थी, इसलिए उन्होंने उसे सुरक्षित रख लिया.

एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का आदेश दे कर चले गए थे. इस के बाद नरेंद्र कुमार सिंह भी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने में उन्होंने अपराध संख्या 461/2017 पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय ने थाना पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. जांच को आगे बढ़ाते हुए नरेंद्र कुमार सिंह ने घटनास्थल से मिले सिमकार्ड पर लिखे नंबर के आधार पर संबंधित कंपनी से पता किया तो जानकारी मिली कि वह सिम महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी के रहने वाले पंकज का था. वह सिम महाराष्ट्र से खरीदा गया था.

इस का मतलब यह हुआ कि मृतक का आसपास के रहने वाले किसी से कोई संबंध था या फिर वह यहां घूमने आया था. उस का किस से क्या संबंध था, यह पता करने के लिए पुलिस ने नंबर पता कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से अंतिम नंबर पर जिस से बात हुई थी, उस का नाम सत्यम था.

13 जून को सत्यम की पंकज से कई बार बात हुई थी. यही नहीं, उस के नंबर की लोकेशन भी 13 जून को घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. नरेंद्र कुमार सिंह ने सत्यम के नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर उस की लोकेशन पता कराई, क्योंकि फोन करने पर उसे शक हो जाता और फरार हो सकता था.

सर्विलांस के आधार पर ही उन्होंने 24 जुलाई, 2017 की सुबह इटाए बाजार के आगे नहर की पुलिया के पास से सत्यम और उस के साथ एक युवक तथा एक युवती को गिरफ्तार कर लिया. तीनों एक मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे. बाद में पूछताछ में पता चला कि तीनों कहीं दूर भाग जाना चाहते थे, जिस से पुलिस उन्हें पकड़ न सके.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम सत्यम उर्फ छोटू गौड़, सचिन गौड़ उर्फ चिंटू और रूपाली बताए. इन में सत्यम और सचिन वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव के रहने वाले थे. युवती का नाम रूपाली था. वह मृतक पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू की पत्नी थी. वह महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी की रहने वाली थी.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ शुरू की तो थोड़ी हीलाहवाली के बाद उन्होंने पंकज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने उन की मोटरसाइकिल संख्या यूपी65बी क्यू 7062 जब्त कर ली थी. इस के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, दस्ताने भी बरामद कर लिए गए थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने पंकज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी का रहने वाला 28 साल का पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव में आ कर रह रहा था. वह यहां शादीविवाहों या किसी अन्य कार्यक्रमों में डांस करता था. इसी से होने वाली आमदनी से उस का और उस के परिवार वालों का भरणपोषण हो रहा था. वह डांस कर के इतना कमा लेता था कि उस का और उस के परिवार का गुजारा आराम से हो रहा था.

करियांव में ही सत्यम उर्फ छोटू गौड़ भी रहता था. पंकज से उस की दोस्ती हो गई तो वह उस के घर भी आनेजाने लगा, घर आनेजाने से उन की दोस्ती तो गहरी हुई ही, पंकज की पत्नी रूपाली से भी उस की अच्छी पटने लगी. वह उसे भाभी कहता था. चूंकि सत्यम की शादी नहीं हुई थी, इसलिए जल्दी ही रूपाली पर उस का दिल आ गया. इस के बाद वह पंकज की अनुपस्थिति में भी उस के घर जाने लगा, क्योंकि उस के सामने वह दिल की बात नहीं कह सकता था.

आखिर एक दिन पंकज की अनुपस्थिति में सत्यम ने रूपाली से दिल की बात कह ही नहीं दी, बल्कि दिल की मुराद भी पूरी कर ली. एक बार मर्यादा भंग हुई तो सिलसिला चल निकला. दोनों को जब भी मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. पंकज इस सब से अंजान था. जिस पत्नी को ले कर वह अपने घरपरिवार से इतनी दूर आ गया था, उसी पत्नी ने उस से बेवफाई करने में जरा भी संकोच नहीं किया था.

पंकज की गैरमौजूदगी में सत्यम का आनाजाना कुछ ज्यादा बढ़ गया तो लोगों की नजरों में यह बात खटकने लगी. लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया तो उन्हें मामला गड़बढ़ लगा. लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे तो यह बात पंकज के कानों तक पहुंची. पहले तो उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब लोगों ने टोकाटाकी शुरू की तो उस ने सच्चाई का पता करना चाहा. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई.

एक दिन वह रूपाली से कार्यक्रम में जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक वापस आ गया. अचानक पंकज को देख कर रूपाली घबरा गई. इस की वजह यह थी कि उस समय सत्यम उस के घर में ही मौजूद था. पंकज को देख कर सत्यम तो पिछवाड़े से भाग निकला, लेकिन रूपाली पकड़ी गई. उस की हालत ने सच्चाई उजागर कर दी. पंकज ने उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, इतने से मन नहीं माना तो पिटाई भी कर दी.

रूपाली ने उस समय वादा किया कि अब वह फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगी. पंकज ने भी उस की बात पर विश्वास कर लिया. माफ करना उस की मजबूरी भी थी. आखिर उसे भी तो अपना घर बचाना था. उसे लगा कि गलती सभी से हो जाती है, रूपाली से भी हो गई. अब संभल जाएगी.

लेकिन रूपाली संभली नहीं, कुछ दिनों तक तो वह सत्यम से बिलकुल नहीं मिली. लेकिन धीरेधीरे दोनों लोगों की नजरें बचा कर फिर चोरीचुपके मिलने लगे. रूपाली पंकज से ऊब चुकी थी. वह पूरी तरह से सत्यम की हो कर रहना चाहती थी, इसलिए वह जब भी सत्यम से मिलती, एक ही बात कहती, ‘‘सत्यम, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. इस तरह छिपछिप कर मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. मैं पूरी तरह तुम्हारी हो कर रहना चाहती हूं. चलो, हम कहीं भाग चलते हैं.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रूपाली, लेकिन थोड़ा शांति से काम लो. देखो, मैं कोई उपाय करता हूं.’’ जवाब में सत्यम कहता.

सत्यम उपाय सोचने लगा. उस ने जो उपाय सोचा, उस के बारे में एक दिन रूपाली से कहा, ‘‘रूपाली, क्यों न हम पंकज को हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दें. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’

रूपाली पहले तो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘कहीं हम पकड़े न जाएं?’’

‘‘इस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. उसे तो मैं ऐसा निपटा दूंगा कि किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ सत्यम ने कहा.

इस के बाद सत्यम ऐसा मौका ढूंढने लगा, जब वह अपना काम कर सके. 12 जून, 2017 को पंकज को कार्यक्रम में डांस करने के लिए थाना मडि़याहूं के गांव सुभाषपुर जाना था. वह अपनी पार्टी के साथ निकल भी गया.

पंकज के घर से निकलते ही रूपाली ने सत्यम को बता दिया. चूंकि वाराणसी और जौनपुर की सीमा सटी हुई है और मडि़याहूं तथा फूलपुर के बीच की दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है, इसलिए सत्यम रूपाली के सूचना देते ही अपने साथी सचिन के साथ सुभाषपुर गांव के लिए निकल पड़ा.

आधी रात के बाद लोगों की नजरें बचा कर सत्यम ने बहाने से पंकज को गांव के बाहर केडीएस स्कूल के पीछे बुलाया और सचिन की मदद से चाकू से उस की हत्या कर दी. इस के बाद पंकज के मोबाइल से उस का सिम निकाल कर तोड़ कर झाडि़यों में फेंक दिया और मोबाइल ले कर चला गया.

पंकज के अचानक गायब होने से उस के साथियों ने सोचा, शायद किसी बात से नाराज हो कर वह घर चला गया होगा और अपना मोबाइल भी बंद कर लिया होगा. पति के इस तरह गायब होने से रूपाली रोनेधोने का नाटक करती रही. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस हत्यारों तक नहीं पहुंची तो उचित मौका देख कर उस ने सत्यम के साथ भाग जाने की योजना बना डाली.

संयोग से पुलिस ने उन्हें उसी दिन पकड़ लिया, जिस दिन सत्यम और रूपाली भाग रहे थे. मामले का त्या कर रूपाली और सत्यम को मिला क्या? पंकज तो जान से गया, लेकिन अब उन दोनों की जिंदगी भी अबखुलासा होने के बाद पुलिस ने अज्ञात की जगह सत्यम, सचिन और रूपाली को नामजद कर तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. सोचने वाली बात तो यह है कि पंकज की ह जेल में ही कटेगी?

खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो, लाखों कमाओ, पर जरा संभल कर जनाब

Crime News in Hindi: आज सोशल मीडिया (Social Media) हमारी जिंदगी पर इतना ज्यादा हावी हो गया है कि हम उस पर आंख मूंद कर भरोसा (Trust) करने लगे हैं, फिर भले हमें ही चूना क्यों न लग जाए. लेकिन अगर किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट (Pregnant) कर के लाखों कमाने की बात आए, तो बांके नौजवानों की तो यह सुन कर ही बांछें खिल जाएंगी. पर अगर आप को भी यह ललचाता औफर आया है, तो सावधान हो जाएं. अगर यकीन नहीं होता तो चलो आप को बताते हैं एक ऐसा ही मामला जहां ठगों ने लोगों के सामने एक ऐसा जोरदार आइटम पेश किया है कि कहने ही क्या. हद तो यह है कि ऐसे शातिरों ने ठगी के इस नएनवेले कांड को एक और्गेनाइजेशन का नाम दिया हुआ था.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, बिहार में एक ऐसा स्कैम चल रहा है कि किसी खूबसूरत औरत को प्रैग्नैंट करो और उस के बदले में लाखों रुपए कमाओ. मामला बेशक बिहार का लग रहा है, पर इस गिरोह का जाल पूरे देश में फैला है.

एक जानकारी के मुताबिक, बिहार में नवादा पुलिस ने साइबर अपराधियों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही की है. पुलिस ने जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में छापेमारी की और 8 साइबर ठगों को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से 9 मोबाइल फोन और एक प्रिंटर मिला.

इस मामले पर पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए आरोपी ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब (बेबी बर्थ सर्विस)’ के नाम पर पैसों का लालच देते थे और लोगों को ठगी का शिकार बनाते थे.

शातिरों का यह ग्रुप लोगों को फंसाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा था. ठगों ने मर्दों को इस लच्छेदार स्कीम के बारे में बता कर उन्हें फंसाया, इस के बाद उन से रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसे वसूले.

इन ठगों ने मर्दों से कहा कि ‘बेबी बर्थ सर्विस’ में आप को बेऔलाद औरतों को प्रैग्नैंट करना होगा, जिस के लिए आप को बड़ी रकम मिलेगी. झांसे में आए मर्दों से शुरू में 799 रुपए लिए गए. इस के बाद उन से बतौर सिक्योरिटी मनी 5,000 से 20,00 रुपए मांगे जाते थे.

नवादा पुलिस की एसआईटी ने मुन्ना कुमार नाम के शख्स के यहां छापा मारा. पुलिस के मुताबिक, मुन्ना कुमार ही इस पूरे गिरोह का सरगना है. दरअसल, आज से तकरीबन 5 साल पहले नवादा के गांव गुरम्हा का रहने वाला मुन्ना कुमार नौकरी के लिए राजस्थान के मेवाड़ में गया था. वहां उस की मुलाकात जामताड़ा जैसे कुछ गिरोहबाजों से हुई, जहां उस ने बाकायदा साइबर ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

गांव लौट कर मुन्ना कुमार ने अपना दफ्तर खोला. इसी बीच उस ने गांव के 20-30 लड़कों को चुपचाप से ट्रेनिंग दी ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस ने कंपनी शुरू की और सोशल मीडिया की मदद से ‘आल इंडिया प्रैग्नैंट जौब’ के इश्तिहार जारी किए, जिन में लिखा होता था कि कुछ ऐसी औरतें हैं, जो शादी के बरसों बाद भी मां नहीं बन पा रही हैं. वे मां बनना चाहती हैं.

हमारी संस्था ऐसी औरतों के लिए काम करती है. यह सारा काम कानूनी होता है. जो भी इच्छुक हैं, वे ऐसी औरतों को प्रैग्नैंट कर उन्हें मां बनने का सुख दे सकते हैं. इस के लिए उन्हें बाकायदा पैसे भी मिलेंगे. यह रकम 10 से 13 लाख की होगी. अगर औरत प्रैग्नैंट नहीं हो पाती, तो भी 5 लाख रुपए तो मिलेंगे ही.

क्यों फंसते हैं नौजवान

आज देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि नौजवान किसी भी खबर पर बिना सोचेसमझे यकीन कर लेते हैं और अगर उन्हें किसी खूबसूरत औरत से मजे ले कर उसे मां बनाने का औफर मिले तो वे लार टपकाने लगते हैं. उन्हें लगता है कि यह तो पैसे कमाने का गरमागरम तरीका है. फिर सरकार भी तो किसी को रोजगार नहीं दे पा रही है, यहीं पर ही अपनी भड़ास निकाल लेते हैं.

ठग बेरोजगार लोगों की इसी दुखती नस पर हाथ रखते हैं और रोजगार देना तो दूर, उन्हें ही अपना शिकार बना लेते हैं. इस तरह उन्हें न तो देह सुख मिलता है और न ही वे पैसा कमा पाते हैं. लुट भले ही जाते हैं.

शादी जो मौत बन कर आई, कौन लाया यह तबाही

Crime News in Hindi: किसी परिवार में विवाह की तैयारियां चल रही हों तो खुशियां देखते ही बनती है. लियाकत का परिवार भी ऐसी ही खुशियों से सराबोर था. क्योंकि उस ने अपने बेटे आदिल का रिश्ता न सिर्फ पक्का कर दिया था, बल्कि चंद रोज बाद वह बारात ले कर भी जाने वाला था. लियाकत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सहारनपुर जिले के कस्बा मिर्जापुर (Mirzapur) में परिवार के साथ रहता था. उस के पास गुजारे लायक खेती की जमीन थी. बेटे आदिल की शादी उत्तराखंड (Uttrakhand) के देहरादून (Dehradun) के थाना विकासनगर (Vikas Nagar) के गांव कुंजाग्रांट की हिना से तय हुई थी.

14 मार्च, 2017 को उन के निकाह की तारीख भी तय कर दी गई थी. 19 फरवरी को हिना के लिए शादी का जोड़ा भी जाना था. इन खुशियों से हर कोई खुश था, लेकिन खुशियां किसी की मोहताज नहीं होतीं. वक्त कब कौन सी करवट ले ले, इस बात को कोई नहीं जानता. दुलहन के जोड़ा खुलने की रश्म पूरी हो पाती उस से पहले ही लियाकत का परिवार एक नाउम्मीद मुसीबत में फंस गया.

18 फरवरी की शाम आदिल अचानक लापता हो गया. वह शाम को घर से कुछ देर में आने की बात कह कर गया था, लेकिन वापस नहीं आ सका. उस का मोबाइल फोन भी स्विच औफ आ रहा था. वह इस तरह अचानक कहां लापता हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रहा थी.

घर वालों ने अपने स्तर से उसे बहुत खोजा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. थकहार कर उन्होंने इस की सूचना थाना मिर्जापुर को दे दी. थानाप्रभारी पंकज त्यागी ने उस के बारे में पूरी जानकारी ले कर पूछा, ‘‘किसी से कोई झगड़ा या रंजिश तो नहीं थी?’’

‘‘नहीं साहब, हम सीधेसादे लोग हैं. आदिल का स्वभाव भी ऐसा नहीं था.’’ जवाब में लियाकत ने कहा.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस लड़की से तुम आदिल की शादी कर रहे हो, वह लड़की उसे पसंद न हो.’’ थानाप्रभारी ने अगला सवाल किया.

‘‘बिलकुल नहीं साहब. उस ने ऐसा कभी जाहिर नहीं किया. वह तो बहुत खुश था. वह खुद भी शादी का जोड़ा खुलने की रस्म की तैयारियों में लगा था.’’ लियाकत ने कहा.

‘‘फिर तुम लोगों को क्या लगता है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, लगता है, हमारे बेटे का अपहरण किया गया है.’’ लियाकत ने आशंका जताई.

‘‘यह अंदाजा किस बात से लगाया?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, हमें कुछ लोगों ने बताया है कि आदिल को 2 लोगों के साथ मोटरसाइकिल पर जाते देखा गया है.’’

‘‘कौन थे वे लोग?’’

‘‘यह पता नहीं साहब.’’ लियाकत ने कहा.

आदिल के दोस्तों आदि के बारे में जानकारी ले कर थानाप्रभारी ने लियाकत को जरूरी काररवाई का आश्वासन दे कर घर भेज दिया.

लियाकत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि फिरौती के लिए आदिल का अपहरण करता. जांच में पता चला कि आदिल जिस मोटरसाइकिल पर गया था, उस पर स्पोर्ट्स लिखा था. गांव वालों से पूछा गया तो लोगों ने बताया कि पूरे गांव में किसी के पास ऐसी मोटरसाइकिल नहीं है.

आदिल के लापता होने से लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा था. एसएसपी लव कुमार को इस की जानकारी हुई तो उन्होंने केस के खुलासे के लिए अपराध शाखा की टीम को भी थाना पुलिस के साथ लगा दिया.

पुलिस ने आदिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन हासिल कर ली थी. उस की अंतिम लोकेशन नजदीकी गांव सोफीपुर की पाई गई थी. इस के बाद उस का मोबाइल औन नहीं हुआ था.

आदिल की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. पुलिस अभी माथापच्ची कर ही रही थी कि सी ने बताया कि स्पोर्ट्स लिखी मोटरसाइकिल गांव के एक व्यक्ति के रिश्तेदार अफरोज की थी, जो देहरादून के पास स्थित गांव कुंजाग्रांट में रहता था. वह गांव आताजाता भी रहता था. कुंजाग्रांट की ही हिना से आदिल की शादी होने वाली थी.

अब पुलिस को यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा लगने लगा. पुलिस ने किसी तरह अफरोज का मोबाइल नंबर हासिल कर के काल डिटेल्स निकलवा ली. जिस दिन आदिल लापता हुआ था, उस दिन अफरोज की 2 नंबरों पर बातें हुई थीं. खास बात यह थी कि वे दोनों नंबर अफरोज के ही गांव के शाकिर और मारुफ के थे. इतना ही नहीं, उन की लोकेशन भी उस शाम मिर्जापुर गांव की पाई गई.

सुराग और सबूत पुख्ता होते ही अगले दिन यानी 20 फरवरी, 2017 को एक पुलिस टीम कुंजा ग्रांट के लिए रवाना हो गई और अफरोज, शाकिर तथा मारुफ को शक के आधार पर हिरासत में ले कर थाने आ गई. उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 18 फरवरी को वे मिर्जापुर आए ही नहीं थे.

पुलिस के पास उन के फोन नंबरों की लोकेशन और डिटेल्स थी. इस से साफ था कि वे झूठ बोल रहे थे. पुलिस ने सख्त रुख अख्तियार किया तो अफरोज टूट गया. उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. क्योंकि वे तीनों आदिल के खून से अपने हाथ रंग चुके थे.

तीनों ने आदिल की हत्या कर के उस के शव को सफीपुरा गांव के जंगल के एक गड्ढे में छिपा दिया था. पुलिस ने उन की निशानदेही पर आदिल का शव बरामद कर लिया. उस के सिर व चेहरे पर घावों के निशान थे. शव के नजदीक ही खून से सने पत्थर पड़े थे. पुलिस ने बतौर सबूत उन्हें कब्जे में ले लिया.

आदिल की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया. पुलिस ने उस के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही तीनों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे प्रेमी की कहानी निकल कर सामने आई, जो नहीं चाहता था कि उस की प्रेमिका किसी और के नाम का शादी का जोड़ा पहने. उस की प्रेमिका भी मौत के इस षडयंत्र में शामिल थी.

करीब 2 साल पहले अफरोज और हिना की आंखें चार हुईं तो दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. दोनों ने प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत कर दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. जब कोई इंसान किसी को प्यार करे तो उस के लिए ढेरों सुनहरे ख्वाब सजाता है. उन्होंने भी ख्वाबों का एक महल बना लिया था.

जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिरा दी और हमेशा एक होने का फैसला भी कर लिया. दोनों ही अक्सर एकदूसरे का हमसफर होने की कसमें खाते थे. एक दिन दोनों मिले तो अफरोज ने हिना से पूछा, ‘‘हिना यह बताओ कि तुम कभी मेरा सथ तो नहीं छोड़ दोगी?’’

‘‘कैसी बात करते हो अफरोज, तुम तो मेरी सांसों में बसे हो. मैं कभी बुरे ख्वाबों में भी ऐसा नहीं सोच सकती. एक दिन मुझे पूरी तरह तुम्हारी होना है.’’ हिना ने कहा.

‘‘लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे डर लगता है कि वक्त आने पर तुम बदल न जाओ.’’ अफरोज ने कहा.

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. मैं तुम से सच्चा प्यार करती हूं.’’ हिना ने उस की आंखों में हसरतों से देखते हुए जवाब दिया तो अफरोज बेहद खुश हुआ.

जनवरी, 2017 में हिना का रिश्ता सहारनपुर के कस्बा मिर्जापुर के आदिल के साथ तय हो गया. घर वालों से वह इस रिश्ते का विरोध करने का साहस नहीं कर सकी. उस की मरजी के खिलाफ रिश्ता तो पक्का हो गया, पर वह दिल से इस रिश्ते के लिए खुश नहीं थी.

रिश्ता तय होने पर हिना और अफरोज दोनों ही परेशान थे. अब अफरोज को अपने ख्वाब टूटते नजर आने लगे. वह परेशान रहने लगा. हिना के घर वालों के सामने हकीकत बयां करने की हिम्मत उस में भी नहीं थी. बावजूद इस के वह किसी भी सूरत में हिना को खोना नहीं चाहता था. इस मुद्दे पर एक दिन उस ने हिना से बात की, ‘‘यह सब क्या हो गया हिना? हम दोनों ने तो साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं.’’

‘‘मैं खुद भी परेशान हूं अफरोज. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’ हिना बोली, ‘‘कुछ तो करना ही पड़ेगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे दिल में अपने मंगेतर के लिए जगह बन गई हो?’’ अफरोज ने मायूसी के साथ कहा.

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो, क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रहे हो?’’ हिना ने नाराजगी जाहिर की.

उधर रिश्ता तय हो जाने पर आदिल हिना के ख्वाब देखने लगा था. वह बेहद खुश था और अक्सर हिना से फोन पर बातें किया करता था. हिना के दिल में अफरोज की तसवीर थी. वह नाखुशी से आदिल से बात करती थी. उस ने आदिल को जरा भी शक नहीं होने दिया था कि वह उस के बजाय किसी और से प्यार करती है.

जैसे जैसे समय बीत रहा था, अफरोज और हिना की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. अफरोज के कई दिन इसी उधेड़बुन में बीत गए कि वह इस रिश्ते को कैसे तुड़वाए. उसे सीधा कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मन ही मन उस ने खतरनाक निर्णय ले लिया.

एक दिन उस ने अपने दिल की बात हिना से भी जाहिर कर दी, ‘‘हिना मैं ने सोच लिया है कि अब क्या करना है?’’

‘‘क्या?’’ वह चौंकी.

‘‘मैं आदिल को रास्ते से हटा दूंगा.’’

‘‘इस में खतरा हो सकता है?’’ हिना ने आशंका जाहिर की.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं काम पूरी प्लानिंग से करूंगा.’’ अफरोज ने आत्मविश्वास से कहा.

हिना इस कदर बहक चुकी थी कि उसे अंदाजा भी नहीं था कि किस खतरनाक षडयंत्र का हिस्सा बन रही है और बाद में उसे इस की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने अफरोज से कहा, ‘‘अफरोज, मुझे नहीं लगता कि अब हम कभी एक हो पाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ अफरोज ने पूछा.

‘‘देखो, चंद दिनों बाद 20 तारीख को मेरी  शादी का जोड़ा खुलने की रश्म होने जा रही है.’’ हिना मायूस हो कर बोली.

यह सुन कर अफरोज आगबबूला हो गया. उस ने तिलमिला कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं जल्दी ही कुछ करता हूं. मेरा तुम से वादा है कि मैं तुम्हें किसी और के नाम का शादी का जोड़ा नहीं पहनने दूंगा.’’

अफरोज आदिल को रास्ते से हटाने का फैसला तो कर चुका था, लेकिन यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था. गांव में ही उस के रिश्ते का मामा शाकिर और दोस्त मारुफ रहते थे. उस ने उन दोनों को अपना इरादा बता कर उन से आदिल को रास्ते से हटाने में मदद मांगी. वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

अफरोज की आदिल के गांव में रिश्तेदारी थी. वह वहां अपनी मोटरसाइकिल से आताजाता रहता था. इस नाते उस की आदिल से भी अच्छी जानपहचान थी. कई बार ऐसा भी हुआ था कि दोनों ने साथ बैठ कर शराब भी पी थी. फरवरी के दूसरे सप्ताह में वह मिर्जापुर गया तो रास्ते में उस की मुलाकात आदिल से हो गई. वह उस से काफी खुशमिजाज अंदाज में मिला, ‘‘मुबारक हो आदिल भाई, तुम्हारा निकाह हमारे ही गांव में होने जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया भाईजान.’’ आदिल मुसकरा दिया.

‘‘चलो अच्छा है इस बहाने मुलाकात होती रहेगी. किसी दिन फुरसत में आऊंगा तो साथ बैठ कर दावत करेंगे.’’ अफरोज ने कहा तो वह खुश हो गया.

यह अफरोज की योजना का एक हिस्सा था. वह नहीं चाहता था कि अचानक साथ बैठने में आदिल उस पर शक करे. योजना के मुताबिक 18 फरवरी की शाम ढले अफरोज शाकिर और मारुफ अलगअलग मोटरसाइकिलों से मिर्जापुर पहुंच गए. इत्तेफाक से उन्हें सड़क पर ही आदिल मिल गया. शराब की दावत के बहाने उन्होंने उसे अपने साथ ले लिया.

आदिल आसानी से उन के झांसे में आ गया. ठेके से उन्होंने शराब तथा दुकान से सोडे की बोतल आदि सामान लिया और सफीपुर गांव के जंगल में पहुंच गए. वहां सभी ने बैठ कर शराब पी. उन्होंने जानबूझ कर आदिल को ज्यादा शराब पिलाई थी. उसे पता नहीं था कि जिन्हें वह अपना दोस्त समझ रहा है, वास्तव में वे उस के दुश्मन हैं.

अधिक शराब पीने से वह नशे में हो गया. अफरोज बहाने से उठा और एक पत्थर उठा कर आदिल के सिर पर पीछे से दे मारा. अचानक हुए हमले से आदिल चीख कर  लुढ़क गया. इस के बाद बाकी ने भी उस के सिर व मुंह पर पत्थरों से प्रहार किए.

आदिल लहूलुहान हो गया. वह जिंदा न बच सके, इस के लिए उन्होंने उस का गला भी दबा दिया. कुछ ही देर में आदिल की सांसों की डोर टूट गई. जब उन्हें विश्वास हो गया कि उस की मौत हो चुकी है तो उन्होंने उस के शव को गड्डे में ठिकाने लगा दिया. उस का मोबाइल भी स्विच औफ कर के फेंक दिया.

इस के बाद तीनों देहरादून चले गए. अफरोज ने सोचा था कि उस की राह का कांटा आदिल हमेशा के लिए हट गया. मामला शांत होने के बाद वह मौका देख कर हिना के परिवार वालों से अपने रिश्ते की बात कर के अपने प्यार की दुनिया आबाद करेगा. उस की सोच थी कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा.

लेकिन पुलिस के पहुंचते ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद उस की प्रेमिका हिना को भी गिरफ्तार कर लिया. अपने प्यार को पाने की गरज में अफरोज का कदम सरासर गलत था. प्यार को पाने का यह कोई तरीका नहीं था. जबकि आदिल तो हर हकीकत से पूरी तरह अंजान था. न उस का कोई गुनाह था न कोई अफरोज से सीधी रंजिश.

अफरोज के गलत निर्णय से न सिर्फ एक घर का चिराग हमेशा के लिए बुझ गया, बल्कि खुद उस का और हिना का भविष्य भी खराब हो गया. दोनों भविष्य में एक हो भी जाएं तो भी यह कसक दिलों से कहां जाएगी कि उन के हाथ किसी निर्दोष के खून से रंगे हैं.

विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हो सकी थी. आदिल के परिवार वाले उन्हें सख्त सजा दिलाए जाने की मांग कर रहे थे.

हिजड़ों की गुंडागीरी, हो जाएं सावधान

हिजड़ा समाज सभी जगह अपनी मनमानी करने के लिए बहुत बदनाम है. अंधश्रद्धा में डूबा हमारा समाज भी न जाने क्यों इन से इतना डरता है कि जानेअनजाने में ही इन की हर बात चुपचाप सहन कर लेता है. शायद लोगों को डर रहता है कि कहीं इन का दिया हुआ शाप लग गया, तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी. यही वजह है कि हिजड़े भी इसी बात का भरपूर फायदा उठाने लगे हैं.

ये हर जगह दादागीरी करते दिखाई देते हैं. ये कभी सिगनल पर पैसा मांगते खड़े मिल जाते हैं, कभी बसों में, तो कभी ट्रेन में. कभीकभी तो ये घरों में घुस कर तीजत्योहार पर पैसा मांगने चले आते हैं.

अगर इन को न कह दिया जाए, तो ये गालीगलौज पर उतर आते हैं. रास्ते में ये उलटीसीधी व बेहूदा हरकतें करने लगते हैं और लोग डर के मारे इन की बात मान कर खिसकने में ही अपनी भलाई समझते हैं.

जवानी में तो हर तरह की दादागीरी से हर हिजड़े का काम हो जाता है, लेकिन ढलती उम्र में जिंदगी दोजख सी हो जाती है. अपने गुजारे के लिए तो इन्हें भीख मांगने तक की नौबत आ जाती है. अपने ही समाज से ये दुत्कार दिए जाते हैं. इन्हें नौजवान हिजड़ों की दया पर जीना पड़ता है.

इस के नतीजे में इन के द्वारा सैक्स, चोरी, लूटपाट, अपहरण जैसे किस्से ज्यादा बढ़ने लगे हैं.

हाल ही में भावनगर के तलाजा तालुका के सोसिया और कठवा गांव में हिजड़ों ने 2 नौजवानों को बहलाफुसला कर उन का अपहरण कर लिया. बाद में उन्हें भुज ले जा कर प्राइवेट अस्पताल में हिजड़ा बना दिया.

पूरे भावनगर इलाके में चर्चा का मुद्दा बनी इस वारदात में सोसिया गांव के 18 साला लालजी बाबूभाई वेगड और कठवा गांव के 18 साला मुकेश भगवानभाई सरवैया को रामदेवपीर व्याख्यान मंडल के सदस्य जतीन चीथरभाई गोहिल ने रामदेवपीर के आख्यान के बहाने भुज चलने को कहा. साथ में भावनगर से फिरोज और कड़ला नाम के 2 और हिजड़ों को भी ले लिया.

भुज ले जा कर उन्हें कैद में रखा. वहां से सानिया नाम के एक दूसरे हिजड़े की मदद से किसी प्राइवेट अस्पताल में डाक्टर से उन को हिजड़ा बनवा दिया. बाद में जोरजबरदस्ती से सौ रुपए के स्टांप पेपर पर उन दोनों से लिखवा लिया कि वे खुद अपनी मरजी से हिजड़े बने हैं.

15 दिनों तक उन की कैद में बंद दोनों नौजवान जैसेतैसे इन के चंगुल से भाग कर भावनगर लौट आए. परिवार के लोग इन दोनों को इलाज के लिए भावनगर के सर टी. अस्पताल ले कर गए, तब जा कर बात का भांड़ा फूटा.

भावनगर की पुलिस गुनाहगारों को पकड़ने में नाकाम रही, तब जा कर केस भुज ट्रांसफर किया गया.

भुज पुलिस ने सानिया हिजड़े को गिरफ्तार कर लिया है. इस मामले की तहकीकात अभी चल रही है. पुलिस को इस मामले में और लोगों के भी शामिल होने का शक है. पुलिस जानना चाहती है कि इन लोगों के अंगों को कहां रखा गया है? अस्पताल और डाक्टर के बारे में भी पता लगाना बाकी है.

यह समाज में किसी भी शख्स का दिल दहला देने वाली घटना है. पुलिस की लापरवाही और ढीली कार्यवाही से ही ऐसे असामाजिक लोगों को खुली छूट मिलती है.

गुजरात में चोरी, बलात्कार, अपहरण, हत्या, गुंडागीरी के किस्से रोजाना बढ़ते जा रहे हैं. केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेने वाले मुख्यमंत्री अपने राज्य की तरफ कब देखेंगे?

तंत्रमंत्र से पत्नी की मौत

कई बार कोई जानलेवा बीमारी किसी इनसान को तंत्रमंत्र के रास्ते पर ले जाती है. आज हम भले ही मौडर्न जमाने में जीने की बातें करते हों, फिर भी समाज में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि लोग कई बार इलाज कराने के बदले तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ जाते हैं और आखिर में नतीजा उन की बरबादी के रूप में ही सामने आता है.

एक ऐसे ही मामले में गरीब आटोरिकशा ड्राइवर को पैर की बीमारी से पीडि़त अपनी पत्नी का 6 महीने तक इलाज कराने पर भी जब कोई नतीजा हाथ न लगा, तो उस ने तंत्रमंत्र का सहारा लिया, जो उस की पत्नी के लिए जानलेवा साबित हुआ.

दरअसल, आनंदनगर चार रास्ता के कृष्ण अपार्टमैंट्स में रहने वाले देशराजभाई सरोज की पत्नी खुशियाल

6 महीने से पैर के दर्द से परेशान थी. पहले तो फैमिली डाक्टर से दवा ली, बाद में प्राइवेट अस्पताल मेें इलाज कराया, लेकिन पैर के दर्द से राहत न मिली.

इस से देशराज और खुशियाल बहुत परेशान हो गए. इस दौरान उन को किसी ने बताया कि शायद गठिया का दर्द होगा. उन को पता चला कि जूना वाडज में गठिया की बीमारी का इलाज होता है.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को रविवार के दिन सुबह जूना वाडज में गठिया के इलाज के लिए ले गया. वहां मिले आदमी ने खुशियाल को शाहपुर में कालू शहीद की दरगाह पर ले जाने की सलाह दी.

देशराज और खुशियाल को तो जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया. कालू शहीद की दरगाह पर खुशियाल के ऊपर तंत्रमंत्र का काम शुरू हो गया.

खुशियाल को एक कमरे में ले जाया गया. कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया. बाद में अंदर जलते कोयले में लाल रंग का कोई पाउडर डाल कर इलाज  शुरू हुआ.

इस दौरान खुशियाल बेहोश हो गई. थोड़ी देर बाद उस आदमी ने खुशियाल को घर ले जाने को कहा और यह भी कहा कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

देशराज अपनी पत्नी खुशियाल को आटोरिकशा में घर ले जा रहा था, तब रास्ते में ही उस की हालत बिगड़ने लगी.

खुशियाल का इलाज पहले जिस अस्पताल में चल रहा था, उसे वहां ले जाया गया, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने खुशियाल को मरा हुआ बता दिया.

यह सुन कर देशराज की तो मानो दुनिया ही लुट गई. अपनी पत्नी की मौत से दुखी और गुस्साए देशराज ने आनंदनगर पुलिस स्टेशन में तंत्रमंत्र करने वाले शख्स के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई.

देशराज को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन उस ने तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ कर अपनी पत्नी को जरूर खो दिया.

4 साल के बच्चे का कत्ल, कातिल जान कर उड़ जाएंगे होश

Crime News in Hindi: 39 साल की सूचना सेठ 6 जनवरी को गोवा के सोल बनयान ग्रांडे होटल में अपने 4 साल के बेटे के साथ आई थीं. 8 जनवरी को जब उन्होंने होटल से चैकआउट किया, तब उन का बेटा साथ नहीं था. होटल स्टाफ ने बेटे के बारे में पूछा तो सूचना सेठ ने कहा कि वह गोवा के फातोर्डा में एक रिश्तेदार के घर पर है. इस के बाद सूचना सेठ ने रिसैप्शनिस्ट से कहा कि वह उन के लिए बैंगलुरु जाने के लिए कोई टैक्सी बुक करवा दे. रिसैप्शनिस्ट ने कहा कि टैक्सी महंगी पड़ेगी, आप फ्लाइट ले कर चली जाइए, वह सस्ती होगी.

मगर सूचना सेठ ने बाई रोड जाने पर ही जोर दिया तो उन के लिए एक कैब बुक करा दी गई. सूचना सेठ अपना सामान ले कर निकलीं. उधर हाउसकीपिंग स्टाफ जब उन का छोड़ा गया कमरा साफ करने पहुंचा, तो उस को वहां खून के धब्बे मिले.

स्टाफ ने इस की सूचना होटल के मालिक को दी और मालिक ने तुरंत पुलिस को बता दिया. पुलिस ने उस कैब ड्राइवर को फोन लगाया और कोंकणी भाषा में बात करते हुए उस से कहा कि जिन मैडम को वह ले कर जा रहा है उन्हें बताए बिना वह कैब को कर्नाटक के चित्रदुर्ग पुलिस स्टेशन ले जाए.

ड्राइवर ने पुलिस के कहे मुताबिक गाड़ी पुलिस स्टेशन पर ला कर खड़ी कर दी, जहां सूचना सेठ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन के सामान की तलाशी लेने पर उस के बच्चे की लाश पुलिस को उस के एक बैग में मिली.

सूचना सेठ ने अपने बच्चे की हत्या क्यों की? इस सवाल के जवाब में जो कहानी निकल कर आई वह एक ऐसी औरत को सामने लाती है जो एक तरफ बहुत पढ़ीलिखी, मेहनती और समाज में अपनी हैसियत रखने वाली औरत है, तो वहीं दूसरी तरफ वह सामाजिक और पारिवारिक चक्रव्यूह में फंसी, टूटन, तनाव, गुस्से, बेइज्जती, नफरत, झगड़े, कानूनी पचड़े में घिरी औरत, जिस के अंदर अपने पति से बदला लेने का लावा उबाल मार रहा था, जिस के चलते उन्होंने अपने बेटे को मौत की नींद सुला दिया.

हत्या की वजह जानने से पहले सूचना सेठ की पढ़ाईलिखाई पर एक नजर डालते हैं. वे एक एथिक ऐक्सपर्ट (नैतिकता विशेषज्ञ) और डाटा वैज्ञानिक है, जिन के पास डाटा विज्ञान टीमों को सलाह देने और स्टार्टअप व उद्योग अनुसंधान प्रयोगशालाओं में मशीन लर्निंग समाधानों को स्केल करने का 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. वे एआई ऐथिक्स लिस्ट में 100 प्रतिभाशाली महिलाओं में से एक हैं. वे डाटा ऐंड सोसाइटी में मोजिला फैलो, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बर्कमैन क्लेन सैंटर में फैलो और रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट में रिसर्च फैलो रही हैं और उन के पास प्राकृतिक भाषा (नैचुरल लैंग्वेज) प्रसंस्करण में पेटेंट भी है. ऐसी प्रतिभाशाली लड़की की शादी साल 2010 में वेंकटरमन से हुई थी, जो एक एआई डैवलपर हैं.

शादी के बाद दोनों में वैसी ही नोकझोंक चलती रही जैसी आमतौर पर भारतीय घरों में होती है. शादी के 9 साल बाद 2019 में सूचना सेठ ने एक बेटे को जन्म दिया. मगर बेटे के जन्म के बाद से पतिपत्नी में झगड़े काफी बढ़ गए. साल 2020 से सूचना सेठ और उस के पति के वेंकटरमन के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों ने तलाक ले लिया.

कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी सूचना सेठ को दी और आदेश दिया था कि वेंकटरमन अपने बच्चे से हर रविवार को मिल सकते हैं. मगर सूचना अपने पति वेंकटरमन से इतनी नफरत करने लगी थीं कि वे नहीं चाहती थीं कि वेंकटरमन अपने बेटे से मिलने आएं और उन की नजरों के सामने पड़ें.

इस नफरत ने सूचना सेठ की अक्ल बंद कर दी और वे एक ऐसे घिनौने अपराध की तरफ बढ़ गईं, जिस को सुन कर एकदम मुंह से यही निकलता है कि यह कैसी मां है?

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी कहावत को सच साबित करते हुए सूचना सेठ ने बच्चे को ही खत्म करने का भयावह प्लान बना डाला. उन्होंने अपने बेटे को गोवा घुमाने का लालच दिया. 4 साल का मासूम बच्चा घूमने की बात सुन कर खुश हो उठा.

सूचना सेठ बेटे को साथ ले कर गोवा गईं और वहां होटल के कमरे में उस का कत्ल कर के लाश ठिकाने लगाने के मकसद से बैग में भर कर टैक्सी से बैंगलुरु के लिए रवाना हो गईं. यह तो होटल स्टाफ की तेजतर्रारी काम आ गई और सूचना सेठ को बीच राह में ही पुलिस ने लाश के साथ दबोच लिया.

यह आपराधिक वारदात भारतीय समाज में विवाह संस्था में भर चुकी सड़ांध, इनसान की नैतिक गिरावट और आपसी टकराव को उजागर करती है. ऐसी तमाम बातें भारतीय समाज में बहुत तेजी से बढ़ रही हैं जहां मांबाप के बीच चल रहे झगड़े का खमियाजा उन के मासूम बच्चों को उठाना पड़ रहा है.

मांबाप की रोजरोज की लड़ाइयों का ही असर है कि उन के बच्चे उग्र स्वभाव के और आपराधिक हरकतों से जुड़ जाते हैं. घर के सदस्यों के बीच का तनाव बच्चों को शराब और ड्रग्स की तरफ धकेल रहा है.

भ्रष्ट पटवारी सब पर भारी

इस सामूहिक हत्याकांड ने एक नई बहस खड़ी कर दी है कि क्या इनसान के जान की कीमत जमीन के टुकड़े से भी कम है? लेकिन इस से बड़ा एक सवाल यह है कि गांवदेहात में जमीन से जुड़े विवाद पैदा ही क्यों होते हैं?

इन विवादों के पीछे ज्यादातर जमीनों का हिसाबकिताब रखने वाला वह मुलाजिम होता है जिसे अलगअलग जगहों पर लेखपाल या पटवारी के नाम से जाना जाता है. ये पटवारी चंद रुपयों के लालच में दबंगों और पहुंच वालों के साथ मिल कर किसी भी जमीन को विवादित बना देते हैं. एक बार जमीन के विवादित होने की दशा में किसान की कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते चप्पलें घिस जाती हैं. पटवारियों द्वारा विवादित की गई जमीन के चक्कर में पीढि़यां दर पीढि़यां मुकदमे झेलने को मजबूर होती हैं. कई बार तो बेकुसूरों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.

चंद रुपयों के लिए पटवारी किसी भी जमीन को कैसे विवादित बना देते हैं, इस की बानगी हम सिद्धार्थनगर के डंडवा पांडेय गांव की 2 बहनों के मामले में देख सकते हैं.

अनीता और सरिता नाम की इन 2 बहनों के मांबाप की मौत पहले ही हो चुकी थी. एक भाई था जिस की मौत भी बाद में गंभीर बीमारी के चलते हो गई. ऐसे में कानूनी रूप से मांबाप की सारी जायदाद इन दोनों बहनों को मिलनी थी, लेकिन जो काम आसानी से होना था उसे यहां के 2 पटवारियों ने पैसों के लालच में विवादित बना दिया.

छोटी बहन अनीता के ससुर रवींद्रनाथ तिवारी ने जब पटवारी से दोनों बहनों के नाम उन जमीनों को करने की बात कही तो पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने इस के एवज में पैसे की मांग की. लेकिन इन दोनों बहनों की तरफ से पैसे नहीं मिलने की दशा में उस ने पड़ोसियों से पैसे ले कर जमीन उन के नाम करने का लालच दिया और जमीन को विवादित बना दिया.

ससुर रवींद्रनाथ तिवारी ने बताया कि पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने उन से एक लाख रुपए की मांग की थी लेकिन उतने पैसे न होने के चलते उस ने जमीन को विवादित बना दिया. अब उन्हें आएदिन कोर्ट और तहसील के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

दूसरे पटवारी रत्नाकर को इन लड़कियों के नाम घर करना था. उस ने इन से 2,000 रुपए वरासत के ले लिए. उस के बावजूद उस पटवारी द्वारा वरासत नहीं की गई, जबकि मांबाप की मौत के बाद कानूनन यह जमीन इन दोनों लड़कियों को मिलनी है.

नहीं रहता डर

जमीनों का हिसाबकिताब रखने वाले पटवारियों को अपने से बड़े अफसरों का भी डर नहीं होता है. ये उन के आदेश को भी ठेंगा दिखा देते हैं. जब कभी बड़े अफसर इन पटवारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटाते भी हैं तो पटवारियों की यूनियन धरने पर बैठ जाती है, इसलिए कामकाज ठप होने के चलते बड़े अफसर भी कार्यवाही करने से बचते हैं.

सरिता और अनीता ने जब सभी जरूरी कागजात के आधार पर वरासत न होने पर स्थानीय एसडीएम से मिल कर शिकायत की तो एसडीएम ने वरासत किए जाने का आदेश भी दिया लेकिन पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने एसडीएम के आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया.

मजबूत है गठजोड़

अनीता और सरिता का मामला बानगीभर है. पटवारियों द्वारा रिश्वत के लालच में भोलेभाले लोगों को परेशान करना अब आम बात होती जा रही है. ये पटवारी किसी भी आम इनसान की जमीन के भूमाफिया से गठजोड़ कर मोटी रिश्वत के लालच में फर्जी कागजात तैयार कर डालते हैं और फिर उन कागजात के दम पर भूमाफिया दूसरे की जमीनों पर कब्जा कर बैठते हैं.

रिश्वतखोरी बिना काम नहीं

किसी का फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाना हो, जमीन से जुड़े कागजात लेने हों, जमीन की पैमाइश करानी हो तो लेखपाल यानी पटवारी बिना रिश्वत के कोई भी काम नहीं करते हैं. ऐसे कई मामले हैं जिन में नियमकानून को ताक पर रख कर रिश्वत के दम पर काम किया जाता है.

ऐसा ही एक मामला बस्ती जिले की हरैया तहसील के पटवारी घनश्याम चौधरी द्वारा किया गया, जिस ने शासनादेश की आड़ में 3 अनुसूचित जाति के और 2 पिछड़ी जातियों के लोगों को अनुसूचित जनजाति के होने की फर्जी रिपोर्ट लगा कर तहसील में भेज दी.

पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर आंख मूंद कर जिम्मेदारों ने अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया. इस मामले की जानकारी जन सूचना अधिकार कानून से मिली.

इसी तरह पटवारी रानी वर्मा द्वारा किसान सम्मान निधि योजना की पत्रावली बनाने के नाम पर हरैया तहसील के ही अमारी बाजार के किसानों से खुलेआम पैसा वसूले जाने के मामले का वीडियो वायरल हुआ. इस की जांच की गई तो मामला सही पाया गया. इस के बाद पटवारी रानी वर्मा को निलंबित कर दिया गया.

जिंदा को बना दें मुरदा

अगर किसी जिंदा को मुरदा साबित करना हो तो पटवारी से बढि़या उदाहरण कोई नहीं हो सकता है. ऐसा ही एक मामला बस्ती जिले के गौर ब्लौक के बुढ़ौवा गांव का है. यहां के रहने वाले छोटेलाल कई महीने से अफसरों की चौखट पर सिर पटक रहे हैं. इस का कारण बस इतना है कि उन्हें उसी गांव के पटवारी ने मरा दिखा कर उन की गाटा संख्या 47 की तकरीबन 40 बीघा जमीन गांव के ही रविंद्र कुमार, विधाराम यादव व सीतापति के नाम कर दी.

यही नहीं, इस जमीन का दाखिल और खारिज भी 22 अक्तूबर, 2018 में हो चुका है. इस मामले की जानकारी छोटेलाल को उस समय लगी जब वे खतौनी लेने पहुंचे. जमीन किसी दूसरे के नाम दर्ज होने पर उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. तकरीबन 8 महीने से जमीन वापस अपने नाम कराने और खुद को जिंदा साबित करने के लिए वे पटवारी से ले कर तहसील तक के चक्कर लगा रहे हैं.

बिना रिश्वत नहीं काम रिपोर्ट

गांवदेहात लैवल पर अगर किसी किसान की किसी आपदा से मौत हो जाए, आपदा से माली नुकसान हो, शादीब्याह का अनुदान हो, इन सभी मामलों में जिला प्रशासन को रिपोर्ट सौंपने की जिम्मेदारी पटवारी की होती है. उस की रिपोर्ट के आधार पर ही तय किया जाता है कि जिसे सरकारी सहायता यानी अनुदान दिया जाना है, वह शख्स सरकारी सहायता हासिल करने की श्रेणी में है भी या नहीं.

लेकिन पटवारी सरकारी सहायता हासिल करने योग्य पात्र लोगों से भी बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करते हैं. ऐसे में जो लोग पटवारियों को रिश्वत देने में सक्षम नहीं होते हैं, वे पात्र होते हुए भी सरकारी सहायता हासिल नहीं कर पाते हैं.

पीड़ितों की सुनें

डाक्टर एसके सिंह ने बताया कि बस्ती जिले की रुधौली तहसील में एक पटवारी अंजनी नंदन, जो तकरीबन 13 साल से तहसील में जमा हुआ है, उसे अभी तक रिलीव नहीं किया गया है जबकि उस का ट्रांसफर दूसरी जगह किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि भूमाफिया को अवैधानिक कब्जा कराने के आरोपी व विवादित चल रहे पटवारी के साथ ही तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है.

अंजनी नंदन नाम के इस पटवारी के ऊपर कई गंभीर आरोप भी हैं, जिन में भूमाफिया की मिलीभगत से जमीनों के नक्शे में फेरबदल करने से ले कर अवैध कब्जा कराने तक की कई लिखित शिकायतें शामिल हैं.

इस पटवारी को तहसील प्रशासन व स्थानीय स्तर की राजनीतिक इकाइयां बचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं. पटवारी के ट्रांसफर को रोकने के पीछे का बड़ा मकसद भ्रष्ट अफसर और स्थानीय नेताओं की आमदनी में कमी हो जाना बताया जाता है.

रुधौली तहसील में पटवारी द्वारा जमीनों के अभिलेखों में फेरबदल कर के मोटी रकम की कमाई करने के भी आरोप लग चुके हैं.

रुधौली तहसील क्षेत्र के गांव कैडिहा के गाटा संख्या 38 के नक्शे में संशोधन व बटा कटाने की अवैधानिक प्रक्रिया के तहत व्यापक धांधली कर के भूमाफिया को गैरकानूनी कब्जा कराने का काम भी इसी लेखपाल के समय में हो चुका है, जिस की शिकायत तहसील समाधान दिवस पर की गई थी.

भदोही जिले के रहने वाले रमेश दुबे ने बताया कि जमुनीपुर अठगवां मोढ़, भदोही का पटवारी शुभम ओझा ने मोटी रिश्वत न मिलने के चक्कर में पूरे गांव के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. अभी वह नयानया पटवारी नियुक्त हुआ है, इस के बावजूद उस ने गरीबों का जीना मुश्किल किया हुआ है.

इस मसले में रमेश दुबे ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से ले कर सभी बड़े अफसरों से इस पटवारी की शिकायत की है, जिस के बाद उस पटवारी ने पूरे गांव को सरकारी जमीन पर बसा होने का आरोप लगाते हुए एकतरफा आरसी जारी करा दिया.

जमीनी मामलों में हत्याओं पर अगर नजर डाली जाए तो इस विवाद की शुरुआत पटवारी द्वारा रिश्वत ले कर किए गए जमीनी कागजात में हेरफेर का नतीजा होता है.

सोनभद्र जिले के गांव उभ्भा में जमीन के पीछे हुई 10 हत्याओं में अगर पटवारी ने सही भूमिका निभाई होती तो आज 10 लोग जिंदा होते.

लेखपालों यानी पटवारियों की रिश्वतखोरी व बढ़ते जमीनी विवादों को अगर रोकना है तो सरकार को राजस्व से जुड़े कानूनों में बदलाव करना चाहिए और कुसूरवार पाए जाने वाले पटवारियों को नौकरी से बरखास्त कर उन्हें सख्त सजा देनी चाहिए, तभी आम जनता इन रिश्वतखोरों से नजात पाएगी.

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