एक अनूठी खूनी साजिश

Crime News in Hindi: 6 भाईबहनों में गोपाल सेजाणी सब से छोटा था. कुछ समय पहले एक दुर्घटना में उस के पिता की मौत के बाद मां ने दूसरी शादी कर ली थी. बच्चों को छोड़ कर वह दूसरे पति के साथ कहीं और जा कर रहने लगी थी. बच्चे अकेले पड़ गए तो उन की देखभाल के लिए उन के मौसा हरसुख पटेल आगे आए. उन्होंने बच्चों को सहारा दिया. उस समय गोपाल की उम्र यही कोई 11 साल थी. हरसुख अपने बच्चों की तरह उन की भी देखभाल कर रहे थे. सब ठीकठाक चल रहा था, लेकिन 8 फरवरी, 2017 को एक अनहोनी घट गई. शाम को हरसुख अपने स्कूटर पर गोपाल को बिठा कर गांव की तरफ आ रहे थे. उन का दोस्त महादेव भी उन के साथ था.

गांव के बाहर उन की मुलाकात नितेश मंड से हो गई. वह एनआरआई था, जो स्थाई रूप से लंदन में रहता था. उन दिनों वह भारत आया हुआ था. हरसुख को रोक कर वह उन से बातें करने लगा. उन्हें बातचीत करते हुए कुछ ही मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और पास खड़े गोपाल को उठा कर भागने लगे.

नितेश ने उन का विरोध किया. जबकि हरसुख ने जान पर खेल कर गोपाल को बचाने की कोशिश की. लेकिन दोनों लड़कों के पास हथियार थे, जिस की वजह से वह उन का मुकाबला नहीं कर सके. वे लड़के हरसुख को घायल कर गोपाल को अपने साथ ले जाने में सफल हो गए. शोरशराबा सुन कर वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. हरसुख गंभीर रूप से घायल थे, इसलिए उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी ए.वी. टिल्वा पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने मुख्य मार्गों की नाकेबंदी करवा दी. वह भी अपहर्त्ताओं को तलाशने लगे, पर उन का पता नहीं चल सका.

अगले दिन औटोचालक श्यामण अपने औटो से केशोड़ हाईवे से गुजर रहा था, तभी उस की निगाह अचानक एक गड्ढे की तरफ चली गई. उस गड्ढे में उसे एक छोटा लड़का जख्मी हालत में पड़ा दिखाई दिया. श्यामण ने औटो रोक कर देखा तो वह खून से लथपथ था. उस की सांस अभी चल रही थी. श्यामण उसे अपने औटो से केशोड़ अस्पताल ले गया.

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डाक्टरों ने बच्चे को बचाने की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन उस की मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना पुलिस को दी गई तो थानाप्रभारी ए.वी. टिल्वा हरसुख को साथ ले कर केशोड़ अस्पताल पहुंच गए. हरसुख ने उस की शिनाख्त गोपाल सेजाणी के रूप में कर दी.

चलती सड़क पर सरेराह एक बच्चे के इस तरह अपहृत हो जाने से लोगों में डर बैठ गया था. जब उस की मौत की बात सामने आई तो मामला और उछल गया. पुलिस ने इस मामले को भादंवि की धारा 361 के तहत दर्ज कर लिया. बाद में इस में भादंवि की धाराएं 364 और 302 और जोड़ दी गईं. जूनागढ़ के एसपी निलेश जिगाडि़या ने इस सनसनीखेज मामले की जांच के लिए एक स्पैशल टीम गठित कर दी थी.

हरसुख पटेल ने अपनी शिकायत में किसी को आरोपी नहीं बनाया था और न ही किसी पर शंका जाहिर की थी. एसपी जिगाडि़या ने उन से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की. उन्होंने सीधेसीधे बताया कि साजिश रच कर गोपाल का अपहरण कर के उस की हत्या की गई है. अपहरण फिरौती के लिए नहीं, बल्कि किसी अन्य मकसद से किया गया है. इस के पीछे नितेश मंड के अलावा एनआरआई आरती का हाथ है.

एसपी ने आरती के बारे में पूछा तो हरसुख पटेल ने उन्हें आरती के बारे में विस्तार से बता दिया. 53 वर्षीया आरती लोकनाथ धार बरसों पहले भारत से लंदन गई थी और वहीं बस गई थी. कभीकभी वह भारत भी आती रहती थी. उन्होंने लंदन में अपना एक अपार्टमेंट बनवा लिया था, जिस में कई किराएदार रहते थे. उन्हीं में एक नितेश मंड भी था. नितेश से आरती की खासी बनती थी.

मूलरूप से नितेश पंजाब का रहने वाला था, लंदन जाने से पहले वह गुजरात में जा कर कारोबार करने लगा था. गुजरात के कई लोग उस के संपर्क में थे. उन्हीं में हरसुख पटेल भी थे. वह जूनागढ़ के पास मालियाहाटिन गांव में रहते थे. नितेश का भी वहां पर एक मकान था.

नितेश मंड से हरसुख की जानपहचान थी. करीब एक साल पहले की बात है. एक दिन नितेश हरसुख के पास आया. इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने कहा, ‘‘हरसुख भाई, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां, कहो.’’ हरसुख ने सहज भाव से कहा.

‘‘आप ने अपनी साली के बच्चों की जो जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी है, यह बहुत बड़ी बात है.’’ नितेश ने कहा.

‘‘पता नहीं यह बड़ी बात है या छोटी, पर इतना जरूर जानता हूं कि मैं अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं. एक तरह से वे भी मेरे ही बच्चे हैं.’’

‘‘यह तो आप की महानता है हरसुख भाई, वरना आज के महंगाई के जमाने में अपने परिवार की गुजर करना ही मुश्किल हो रहा है, ऐसे में आप… इस बारे में मेरा मन आप की मदद करने को कर रहा है.’’

‘‘कैसी मदद?’’ हरसुख पटेल ने हैरानी से पूछा.

‘‘कुछ ऐसी मदद, जिस से आप के कंधे का बोझ थोड़ा हलका हो जाए और आप के सब से छोटे भांजे गोपाल का भविष्य भी संवर जाए.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं, जो कुछ कहना चाहते हो, खुल कर कहो.’’ हरसुख ने नितेश के चेहरे को सवालिया नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘ऐसा है हरसुख भाई, लंदन में जहां मैं रहता हूं, उस अपार्टमेंट की मालकिन एक सज्जन महिला हैं. वह मूलरूप से हिंदुस्तानी हैं. उन के पास बहुत कुछ है. इसलिए वह सब की मदद करती रहती हैं. वह बहुत ही नेकदिल औरत हैं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. लेकिन उन के बारे में आप मुझे क्यों बता रहे हैं?’’ हरसुख ने पूछा.

‘‘मैं उन के बारे में इसलिए बता रहा हूं क्योंकि इतनी भलाई का काम करने के बावजूद उन्हें संतान सुख नहीं मिला. एक बच्चे की मां कहलाने को तरसती हैं वह. मैं चाहता हूं कि…’’

‘‘…यानी कि मैं अपना गोपाल उन के हवाले कर दूं.’’ हरसुख ने नितेश की बात बीच में ही काट कर कहा.

‘‘अरे नहीं भाई, ऐसा नहीं है. उन्हें औलाद पैदा नहीं हुई तो इस का मतलब यह नहीं है कि वह किसी का बच्चा छीनना चाहती हैं.’’

‘‘तो क्या चाहती हैं वह?’’

‘‘दरअसल, वह एक भारतीय बच्चा कानून के अनुसार गोद लेना चाहती हैं. मैं सोचता हूं कि अगर आप के छोटे भांजे को उन का दत्तक पुत्र बना दिया जाए तो उस की जिंदगी बन जाएगी. आप इस बारे में सोच लीजिए.’’ नितेश ने कहा.

हरसुख सचमुच सोचने लगे. आखिर उन्होंने नितेश से कह दिया कि वह इस बारे में उसे कल बताएंगे. भांजे के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए हरसुख ने नितेश का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इस के बाद नितेश एडौप्शन पेपर तैयार कराने लगा. उस ने आरती को भी भारत आने के लिए फोन कर दिया था. आरती भी लंदन से हिंदुस्तान आ गई.

हरसुख को हर तरह से आश्वस्त कर आरती ने बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली. उस के बाद हरसुख को समझाया कि वह बच्चे का पासपोर्ट बनवा कर रखें, जल्दी ही वीजा लगवा कर वह उसे अपने पास लंदन बुला लेगी. इस के बाद वह लंदन चली गई. नितेश भी उस के साथ चला गया था. यह सन 2015 की बात है.

हरसुख ने एसपी निलेश जिगाडि़या को बताया कि इस के बाद उन लोगों ने गोपाल के नाम से लंदन में ही जीवन बीमा करवा लिया था. इंडियन करेंसी के मुताबिक उस पौलिसी की वैल्यू एक करोड़ रुपए से भी ज्यादा थी. बीमा कराने के बाद वह उस से बच्चे का पासपोर्ट जल्द बनवाने को कहते रहे. लेकिन काफी कोशिश के बाद भी बच्चे का पासपोर्ट नहीं बन सका, जिस से वह लंदन नहीं जा सका.

हरसुख की बात सुन कर एसपी सारा माजरा समझ गए. नितेश को संदेह के आधार पर हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एनआरआई होने के नाते वह पुलिस को ही धमकाने लगा. पुलिस उस की धमकी में नहीं आई. उस से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तो उस ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए.

उस ने गोपाल की हत्या कराने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने 13 फरवरी, 2017 को उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के 6 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि में उस से सघन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने पुलिस को गोपाल की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह एक अनोखी अपराध कथा थी—

लंदन में आरती धार के अपार्टमेंट में किराए पर रहते हुए नितेश मंड उस से काफी घुलमिल गया था. उम्र में अच्छाखासा अंतर होने की वजह से दोनों के बीच मांबेटे जैसा रिश्ता कायम हो गया था. दोनों आपस में सुखदुख भी साझा करने लगे थे.

एक दिन बातें करतेकरते दोनों ने अपनीअपनी आर्थिक परेशानियां बयान कर दीं. नितेश के पास जहां ढंग की नौकरी नहीं थी, वहीं आरती का कहना था कि भले ही उस ने ठीकठाक प्रौपर्टी बना ली थी, लेकिन उस के ऊपर बहुत कर्ज चढ़ गया था. वह कर्ज उतार पाना उस के लिए कठिन हो रहा था. लेनदार कंपनियां उसे परेशान कर रही थीं.

एक दिन सुबह दोनों बैठे चाय पी रहे थे, तभी अपनीअपनी परेशानियों का रोना रोने लगे. रोना रोतेरोते वे योजना बनाने लगे कि किस तरह एक ही झटके में मोटे पैसों का जुगाड़ किया जाए. इस बारे में बात करते हुए दोनों ने कई मुद्दों पर विचार किया.

आखिर नितेश ने एक तरकीब सुझाते हुए आरती को सुझाव दिया कि किसी गरीब बच्चे को गोद ले कर उस का मोटा लाइफ इंश्योरेंस करवा दिया जाए. कुछ दिनों बाद उस बच्चे की हत्या कर के इंश्योरेंस का क्लेम ले लिया जाएगा.

आरती को बात जंच गई. यह भी तय हो गया कि गोद लेने वाला बच्चा हिंदुस्तानी हो. लेकिन मोटा बीमा करवाने को प्रीमियम अदा करने के लिए उस के पास ज्यादा पैसा नहीं था. जब बीमा करोड़ रुपए से अधिक का होगा तो जाहिर है, उस का प्रीमियम भी बड़ा होगा. इसलिए आरती ने कहा कि उस के पास प्रीमियम देने के पैसे नहीं हैं.

नितेश ने कहा कि भारत में बच्चे को तलाश करने का काम वह भारत के ही रहने वाले अपने एक दोस्त पर छोड़ देता है. इस काम को वह जल्दी पूरा कर देगा. उसे भी इस योजना में शामिल कर लिया जाएगा. बीमा का प्रीमियम तीनों मिल कर बराबरबराबर अदा कर देंगे. बच्चे को लंदन ला कर कुछ दिनों तक उस का खूब ध्यान रखेंगे, ताकि किसी को पर शक न हो. उस के बाद बच्चे की रहस्यमय तरीके से हत्या कर इंश्योरेंस का क्लेम ले लिया जाएगा.

आरती ने खुश हो कर हामी भर दी. इस के बाद नितेश ने अपना काम करना शुरू कर दिया. उस ने अपने दोस्त कंवलजीत सिंह रायजादा से बात की तो उस ने योजना में शामिल होने की हामी भर दी. 28 वर्षीय कंवलजीत सिंह जूनागढ़ के कस्बा मालिया का रहने वाला था.

कंवलजीत किसी बच्चे की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस ने मालियाहाटिना के रहने वाले हरसुख पटेल के भांजे गोपाल सेजाणी के बारे में जानकारी हासिल कर ली. उस ने यह बात फोन द्वारा नितेश को बताते हुए कहा कि अगर वह या आरती भारत आ कर गोद लेने वाले बच्चे गोपाल के मौसा से बात कर लें तो काम हो सकता है. नितेश ने ऐसा ही किया. पहले वह भारत आया और हरसुख से बात की. बाद में बात फाइनल हो गई तो आरती भी भारत आ गई.

दोनों ने गोपाल सेजाणी को गोद लेने की काररवाई पूरी कर ली. इस के बाद आरती और नितेश लंदन चले गए. वहां उन्होंने गोपाल का भारतीय मुद्रा के हिसाब से 1.30 करोड़ रुपए का जीवन बीमा करवा दिया. इस के लिए बीमा कंपनी को 13 लाख का प्रीमियम देना पड़ा, जो आरती, नितेश और कंवलजीत ने मिल कर दिया.

गोपाल को लंदन ले जा कर मौत के घाट उतारने का काम पहले ही साल में कर दिया जाना था. लेकिन पासपोर्ट न बन पाने की वजह से उसे लंदन नहीं ले जाया जा सका. देखतेदेखते एक साल का समय निकल गया. इस बीच बीमा कंपनी का 13 लाख का आगामी प्रीमियम ड्यू हो गया. इस बार इन लोगों को यह रकम अदा करने में काफी परेशानी हुई.

इस के बाद तय किया गया कि आगामी प्रीमियम ड्यू होने से पहले ही गोपाल का काम तमाम कर दिया जाए. वह लंदन नहीं आ पाता तो इंडिया में इस की व्यवस्था की जाए. इस की जिम्मेदारी कंवलजीत को सौंपी गई. कंवलजीत अकेला काम को अंजाम नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने एक बदमाश से बात की.

नितेश भी लंदन से इंडिया आ गया. योजना बना कर कंवलजीत और उस के साथी ने 8 फरवरी, 2017 को गोपाल का अपहरण कर के उसे चाकुओं से गोद डाला. अगले दिन अस्पताल में उस की मौत हो गई.

नितेश मंड के बाद पुलिस ने गोपाल की हत्या के आरोप में कंवलजीत को भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उस का साथी फरार हो गया था. अभी तक आरती को डिपोर्ट नहीं किया जा सका है.

कथा तैयार होने तक जूनागढ़ पुलिस ने नितेश और कंवलजीत के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया था. केस के अन्य वांछित आरोपियों के गिरफ्तार होने पर सप्लीमेंट चालान तैयार कर के अदालत में दाखिल कर दिया जाएगा.

वह मोबाइल ऐप पर चलाती थी जिस्म का कारोबार

Crime News in Hindi: धारा 370 हटने और स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में लगी दिल्ली में हाई अलर्ट था.पुलिस चाकचौबंद और मुस्तैद थी. 14 अगस्त को दिल्ली महिला आयोग की हेल्पलाइन पर एक महिला की घबराई सी आवाज आई,”हमारी सहायता कीजिए, हम कहीं के नहीं रहेंगे.मेरी 20 साल की बेटी घर से गायब है…” महिला आयोग की टीम तुरंत हरकत में आई और उस महिला की तहरीर पर कृष्णा नगर थाने में मामला दर्ज कराया गया.चूंकि दिल्ली में हाई अलर्ट था और पुलिस प्रशासन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी लिहाजा कृष्णा नगर थाने की एक टीम लङकी के घर गई तो वहां उस की छोटी बहन ने पूछताछ में बताया कि उस की बहन की एक दोस्त है, जो ‘कुछ’ जानती है पर बता नहीं रही.पुलिस की टीम तुरंत उस लङकी से मिली. पहले तो उस ने कुछ भी बताने से इनकार किया पर पुलिस के समझानेबुझाने पर उस ने राज पर से परदा हटाया तो पुलिस भी सन्न रह गई.

लड़की ने क्या बताया

उस लड़की ने बताया,”नंद नगरी में एक औनलाइन सैक्स रैकेट चल रहा है, जहां तकरीबन 20-22 लङकियों से जिस्मफरोशी का काम कराया जाता है ” उस ने बताया,”वह तकरीबन 2-3 सप्ताह वहां थी और उस से सोशल मीडिया पर रात 10 से सुबह 6 बजे तक वीडियो कौल करवाई जाती थी”

पुलिस ने बिछाया जाल

पूछताछ के बाद हरकत में आई पुलिस ने तुरंत जाल बिछा दिया.तफ्तीश के बाद जो खुलासा हुआ उस  से पुलिस वाले भी एकबारगी चक्कर खा गए. सैक्स रैकेट एक घर में चलाया जा रहा था, जिसे अंजाम दे रही थी एक महिला.उस के इस काम में साथ दे रहा था उस का पति असगर जो जरूरतमंद अथवा जल्दी पैसा कमाने और ऐश की जिंदगी जीना चाहने वाली लङकियों को अपने जाल में फांसता था.

मोबाइल ऐप्स पर चलाते थे धंधा

धंधा तेज चले इस के लिए यह दंपति मोबाइल फोन पर ऐप्स भी रजिस्टर्ड करवा रखा था.इस ऐप के माध्यम से ग्राहक उन से संपर्क करते थे और फिर चलता था सैक्स और जिस्म की नुमाइश का खेल.

पकड़ में आए आरोपी

पुलिस ने आरोपियों की पहचान 27 वर्षीय नजमा, उस का पति असगर (30) व कमर रजा (30) के तौर पर की. पुलिस ने इन के पास से कई मोबाइल और सिमकार्ड भी बरामद किए हैं.

आरोपियों ने पुलिसिया दबिश और पूछताछ में बताया कि जिस्म की चाहत लिए ग्राहकों को ऐप्स के द्वारा ही लड़कियों की तसवीरें दिखाई जाती थीं.जिस की बोली अधिक होती उसे वैसी ही लङकी का साथ मिलता था.

दिनरात के इस धंधे में ग्राहकों को न्यूड वीडियो कौल भी करवाई जाती थी, जिस का समय होता था रात के 10 बजे से सुबह के 6 बजे तक.इस दौरान लङकी अपने ग्राहक की डिमांड पर न सिर्फ अश्लील बातें करती थी, पूरी तरह न्यूड भी हो जाती थीय

आरोपी अब हिरासत में

अब सभी आरोपियों पर पुलिस ने धाराएं लगा कर जेल भेज दिया है. पर सवाल यह उठता है कि पुलिस तफ्तीश में जिस राज पर से परदा हटा वह हैरान करने वाला जरूर है, क्योंकि इस धंधे में शामिल ज्यादातर लड़कियां तकरीबन 20-22 साल की उम्र की थीं.अगर इन के पास पैसों की दिक्कत थी तो फिर उन के पास कीमती स्मार्ट फोन और महंगे सामान कहां से आए, यह जाननेसमझने की जिम्मेदारी उन के अभिभावकों पर भी थी.

औरतों के साथ घिनौनी वारदात जारी, वजह है हैरतअंगेज

Crime News in Hindi: इस वारदात को अंजाम देने में गांव के वार्ड सदस्य और सरपंच भी शामिल थे. मांबेटी ने स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया जहां वार्ड पार्षद मोहम्मद खुर्शीद, सरपंच मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद शकील, मोहम्मद इश्तेखार, मोहम्मद शमशुल हक, मोहम्मद कलीम के साथसाथ दशरथ ठाकुर को मुलजिम बनाया गया. वैसे, पुलिस सुपरिंटैंडैंट मानवजीत सिंह ढिल्लों के मुताबिक मोहम्मद शकील और दशरथ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था. महिला आयोग (Women’s Commission) की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा (Dilmani Mishra) ने उस इलाके का दौरा किया. और वे पीड़िता से मिल कर उस की हरमुमकिन मदद करने और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही हैं. केंद्रीय महिला आयोग को भी इस मामले की जानकारी दी गई है. डीएम राजीव रोशन ने इस वारदात की निंदा करते हुए कहा है कि यह घिनौना अपराध है. कुसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा. हर हाल में कड़ी कार्यवाही होगी.

पत्थरदिल होते लोग

इस तरह की वारदातें जब कहीं होती हैं तो अच्छेखासे जागरूक लोग भी चुप्पी साध लेते हैं. अगर लोकल लोग इस का विरोध करते तो शायद इस तरह की वारदात नहीं घटती. अगर दबंगों का मनोबल इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब निहायत कमजोर लोगों की जिंदगी हमआप जैसों की चुप्पी की वजह से दूभर हो जाएगी.

आज हमारे समाज में इतनी गिरावट आती जा रही है कि किसी औरत को नंगा कर के घुमाना, उस के साथ छेड़छाड़ करना और रेप तक करते हुए उस का वीडियो वायरल करना आम बात हो गई है.

समाज को धार्मिक और संस्कारी बनाने का ठेका लेने वाले साधुसंन्यासी और मौलाना इन वारदातों पर चुप्पी साधे रहते हैं. अभी हाल के दिनों में वैशाली, आरा, रोहतास, जहानाबाद, कैमूर, मधुबनी, गया और नालंदा में औरतों को नंगा कर के सरेआम सड़कोंगलियों में घुमाए, पीटे और सताए जाने की कई वारदातें हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है. अगर हम हाल के कुछ सालों की वारदातें देखें तो वर्तमान समाज की नंगी तसवीरें हमारे सामने दिखाई पड़ती हैं:

* 20 अगस्त, 2018. बिहार के आरा जिले के बिहियां इलाके में एक नौजवान की हत्या में शामिल होने के शक में उग्र भीड़ ने एक औरत को नंगा कर के उसे पीटते हुए सरेआम पूरे बाजार में घुमाया.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के इटावा में दबंगों ने औरतों को पीटते हुए नंगा किया.

* 9 अगस्त, 2017. महाराष्ट्र में एक औरत को नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत की गलती यह थी कि उस ने एक प्रेमी जोड़े को आपस में मिलाने का काम किया था.

* 22 अप्रैल, 2017. एक पिता ने प्रेम करने के एवज में अपनी ही बेटी को नंगा कर के घुमाया.

* 1 मई, 2014. बैतूल के चुनाहजुरि गांव में एक औरत के बाल मूंड़ कर उसे नंगा कर के पीटते हुए पूरे गांव में घुमाया. उस औरत का गुनाह यह था कि उस की छोटी बहन ने दूसरी जाति के लड़के के साथ शादी कर ली थी.

* 19 दिसंबर, 2010. पश्चिम बंगाल में एक औरत को पंचायत के फैसले के मुताबिक उस की पिटाई करते हुए नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत पर आरोप था कि उस का किसी के साथ नाजायज रिश्ता था.

* खड़गपुर के पास मथकथ गांव में एक औरत को नाजायज रिश्ता बनाने के आरोप में उस की नंगा कर के पिटाई की गई.

इन वारदातों में ज्यादातर नौजवान शामिल रहते हैं जो औरतों के साथ बदतमीजी करने से ले कर उन के बेहूदा वीडियो बनाने तक में शामिल होते हैं. हमारे समाज के इन नौजवानों को क्या हो गया है जो ये अपने गुरु और अपने मातापिता की इज्जत तक का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखते हैं? मातापिता भी इस में बराबर के कुसूरवार हैं जो लड़कियों को तो बातबात पर तमीज सिखाते रहते हैं, लेकिन लड़कों को नहीं.

क्या यह सब बढ़ती धार्मिक  पाखंडीबाजी का नतीजा नहीं है जिस के मुताबिक औरतों को पैर की जूती माना गया है? राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2015 तक औरतों के विरुद्ध अपराधों की तादाद में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश 4,391, महाराष्ट्र 4,144, राजस्थान 3,644, उत्तर प्रदेश 3,025, ओडिशा 2,251, दिल्ली 2,199, असम 1,733, छत्तीसगढ़ 1,560, केरल 1,256, पश्चिम बंगाल 1,129 के आंकड़े चौंकाते हैं. निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज की तसवीर तो नहीं हो सकती.

सवाल यह है कि धर्म, नैतिकता और शर्मिंदगी क्या सिर्फ लड़कियों के लिए है? जन्म से ले कर मरने तक किसी औरत के अपने मातापिता, पति और बेटे के अधीन ही जिंदगी बिताने की परंपरा आज भी सदियों से चली आ रही है.

यह ठीक है कि अब लड़कियों की जिंदगी में बदलाव आया है. आज वे भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं, लेकिन आज भी उन के साथ दोयम दर्जे का ही बरताव होता है. जब एक लड़की के साथ बलात्कार की वारदात होती है तो परिवार और समाज द्वारा इज्जत के नाम पर उस की चर्चा और मुकदमा तक नहीं किया जाता है, जिस की वजह से बलात्कारी का मनोबल बढ़ जाता है.

इस से दुनियाभर में हमारे देश की कैसी इमेज बन रही है, क्या हमारे नेताओं को इस पर चिंता करने की जरूरत महसूस नहीं होती है? भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन क्या हम 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप कर के विश्व गुरु बन जाएंगे या रेप के बाद विचारधारा और धर्म पर राजनीति कर के?

जिस देश में स्कूलों और कालेजों में टीचरों की घोर कमी हो, अस्पतालों के हालात देख कर ही लोग बीमार दिखने लगते हों, बेरोजगारों की एक लंबी भीड़ हो और क्वालिटी ऐजुकेशन के नाम पर खिचड़ी खिला कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हो, क्या हम ऐसे माहौल में विश्व गुरु बनने के हकदार हैं?

जिस देश में वोट पाने के लिए नेता हेट स्पीच देने में वर्ल्ड रिकौर्ड बना चुके हों, जिस देश के नेता धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हों और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर नौजवानों की बलि चढ़ा देते हों, क्या ऐसी करतूतों से भारत की छवि विश्व जगत में खराब नहीं हुई है?

भारत में हो रही बलात्कार की वारदातें, चौकचौराहे पर गुस्साई भीड़ द्वारा लगातार की जा रही हत्याएं व सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रैस कौंफ्रैंस कर के लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाना, क्या संचार क्रांति के इस दौर में हमारे देश के लिए इस सब पर सोचविचार करने का यह सही समय नहीं है? कई देशों ने अपने नागरिकों को अकेले भारत आने के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है.

भीड़ आखिर इतनी अराजक क्यों हो रही है? कानून को हाथ में लेने के लिए उसे कौन बोल या उकसा रहा है? शक के आधार पर या पंचायत के फैसले पर किसी औरत को नंगा कर के उस को पीटा जाना किसी लिहाज से जायज नहीं है, क्योंकि सरकार के तथाकथित समर्थकों को सोशल मीडिया पर मांबहन की गालियां देने का जो लाइसैंस दिया गया है वह अब सड़कों पर अपना असली रंग दिखाने लगा है.

यह सब इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. ऐसी वारदातों में कभीकभार ऐसी औरतें भी निशाने पर ले ली जाती हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं होता है. वे ऐसे लोगों के गुस्से की भेंट चढ़ जाती हैं, जो उन्हें जानते तक नहीं हैं. औरत को देवी का रूप बताने और उस की पूजा का ढोंग करने वाले इस देश के लोगों का यही चरित्र है.

रेव पार्टी: ऐसे लगता है डांस, ड्रग्स और सैक्स का तड़का

Crime News in Hindi: शनिवार, 5 मई, 2019 की रात. जश्न का माहौल. तेज म्यूजिक पर नाचते लड़केलड़कियां. रात जैसेजैसे गहराती जा रही थी, डीजे पर म्यूजिक तेज होता जा रहा था. थिरकते कदम रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. नोएडा में हो रही एक रेव पार्टी (Rave Party) में यह सब चल रहा था. अमीर घरों के बच्चे, कारोबारी घराने के लोग, नेता वगैरह इस पार्टी की शान थे. उन के साथ आई हुईं लड़कियां भी किसी से पीछे नहीं थीं. इस पार्टी में क्या नहीं था, हुक्का (Hookah), बीयर (Beer), ड्रग्स(Drugs), तंबाकू का नशा, शराब (Hard Drinks), कबाब, शबाब. लड़केलड़कियां नशे की हालत में डीजे की धुनों पर मस्त हो कर थिरक रहे थे. तेज रोशनी उन की आंखों को चौंधिया रही थीं. बाहरी दुनिया से अलगथलग थी यह रंगीन दुनिया.

इतनी बड़ी रेव पार्टी हो रही थी और पुलिस को पता न हो, ऐसा कैसे हो सकता है. पुलिस को पता था, पर उसे मोटा चढ़ावा पहले ही चढ़ाया जा चुका था. फिर भी छापामारी हो गई. बाहरी पुलिस ही इलाके की पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई. इसलिए अब तो पुलिस की मिलीभगत भी चर्चा का विषय हो गई है. जांच चल रही है. इस पार्टी में एक-दो पुलिस वाले भी थे.

वे अपना चेहरा छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. अमीर घरों के तमाम बच्चे, कारोबारी, राजनीतिक लोग जो इस पार्टी में मौजूद थे, धरे गए और न्यायिक हिरासत में हैं.

यह मामला नोएडा के यमुना किनारे बसे सैक्टर-135 का है. यहां इको फार्महाउस पर हर वीकेंड पर महफिलें सजती थीं. इन पार्टियों के लिए खासमखास लोगों को बुलाया जाता था. बुलाने का तरीका व्हाट्सएप और फेसबुक पर बने क्लोज्ड ग्रुप को हिंट के जरीए होता था. इस महफिल में शरीक होने वाले इस हिंट को आसानी से समझ जाते थे. लड़केलड़कियों को पूरी रात डांस, म्यूजिक, ड्रग्स और सैक्स का कौकटेल मिलता. रातभर लुत्फ उठाने के बाद वे अपनी गाड़ियों से अगले दिन घर लौट जाते.

रेव यानी पैशन, एक्साइटमैंट और पागलपन. यह सैक्स, म्यूजिक और ड्रग्स का कौकटेल है. पार्टी शुरू हो चुकी थी. बड़े से ओपेन स्पेस में बजता तेज म्यूजिक और इलैक्ट्रौनिक लाइटिंग का फ्यूजन और ड्रग्स का असर. वहां मौजूद लड़केलड़कियों को पागल करने के लिए काफी था.

‘फुल सैटरडे नाइट विद डीजे ईशू एंड आशू’ के नाम से चल रही इस पार्टी में तमाम लड़केलड़कियों का हुजूम था. ज्यादातर लड़के दिल्ली, हरियाणा के अलावा नोएडा के थे. पार्टी में लड़कियों की मौजूदगी ठीकठाक रहे, इसलिए उन की एंट्री फ्री थी जबकि लड़कों से 10,000 रुपए एंट्री फीस वसूली गई थी.
लड़कों का भरपूर मनोरंजन करने के लिए ऐस्कौर्ट सर्विस की लड़कियां बुलाई गई थीं. ऐस्कौर्ट लड़कियों को प्रति इवैंट 1,000 रुपए की फीस पर लाया गया था. भड़कीले कपड़े पहने इन लड़कियों का काम अपनी सैक्सी अदाओं से इन लड़कों का मनोरंजन करना और उन्हें वहां जुए व दूसरी नशीली चीजों की खरीदारी के लिए तैयार करना था. पर्सनल एंजौयमैंट के लिए फार्महाउस में 3 कमरे भी थे.

ऐस्कौर्ट लड़कियों  की अमीर घरों के लड़कों के साथ टेबल पर बैठने के साथ शराब पिलाने तक की कीमत तय थी. टेबल पर बैठने, गिलास देने, शराब देने, खाना परोसने, साथ में शराब पीने समेत दूसरी चीजों का ऐस्कौर्ट लड़कियां अलग से चार्ज लेती थीं. टेबल पर बैठा युवक जितना पैसा खर्च करता था, उस का 10 फीसदी कमीशन इन लड़कियों को मिलता था. बाकी लड़कियां अपने बौयफ्रैंड के साथ पार्टी में आई थीं. ज्यादातर सभी लड़कियां हाईप्रोफाइल घरों की थीं.

आयोजकों ने रेव पार्टी का प्रचारप्रसार फेसबुक, व्हाट्सएप समेत अन्य सोशल मीडिया के जरीए किया था. प्रवेश शुल्क को आयोजक नकद के साथ पेटीएम वालेट या दूसरे साधनों से लेते हैं. मौके से एक रजिस्टर बरामद हुआ, जिस में पूरा हिसाब लिखा हुआ था.

पुलिस को किसी ने सूचना दी. उसी को आधार मानते हुए पुलिस ने पहले घेरा बनाया गया, तब दबिश दी. जब पुलिस अंदर घुसी तो वहां तमाम लड़केलड़कियां नशे में डीजे पर झूम रहे थे. कई लड़के टेबल और पूल में घुस कर हुक्के का कश लगा रहे थे. पुलिस ने मौके से पार्टी के आयोजक व फार्महाउस मालिक अमित त्यागी को उस के साथियों कपिल सिंह भाटी, पंकज शर्मा, अदनान और बालेश कोहली के साथ पकड़ा है.

आरोप है कि अमित त्यागी वहां पर पहले भी 40- 50 ऐसी पार्टियों को करवा चुका है. हर पार्टी से पहले वह इलाके की पुलिस को मोटा चढ़ावा देता था. फार्महाउस पर अवैध रूप से चल रही रेव पार्टी पर छापेमारी कर 192 लड़केलड़कियोंको गिरफ्तार किया. इस में आयोजक व मनोरंजन के लिए लाई गई लड़कियां भी शामिल थीं या यों कहें कि पार्टी में 161 लड़के और 31 लड़कियां पकड़ी गई थीं. इन में से 8 ऐस्कौर्ट से बुलाई गई लड़कियां शामिल थीं जबकि बाकी अपने बौयफ्रैंड के साथ आईं थीं.

दूसरी ओर फार्महाउस में बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थ और आपत्तिजनक सामान बरामद किया गया. इस के अलावा पुलिस ने फार्महाउस से 39 कारों के अलावा 9 महंगी मोटर बाइकों को भी अपने कब्जे में लिया. इन में कई लग्जरी कारें भी थीं. ज्यादातर लड़केलड़कियां 10वीं व 12वीं के स्टूडेंट्स थे. वे सभी कारोबारी, नौकरशाहों, बड़े घरानों, प्रभावशाली परिवारों से ताल्लुक रखते थे. ज्यादातर घर से झूठ बोल कर पार्टी में शरीक होने आए थे.

रेव पार्टी में बड़ी तादाद में लड़केलड़कियों के पकड़े जाने के बाद पूरी रात पुलिस अफसरों के फोन घनघनाते रहे. अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य का हवाला दे कर उन्हें माफ कर छोड़ देने की गुहार करते रहे. बाद में पुलिस ने छात्रछात्राओं के भविष्य को देखते हुए उन के नामपते बताने से इनकार कर दिया. रविवार, 5 मई की सुबह 6 बजे पुलिस की बसें मंगवा कर सभी को फार्महाउस से पुलिस लाइन भेजा गया. वहीं से पुलिस ने आरोपितों को जिला न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

जांच में यह भी सामने आया है कि एक सप्ताह तक चलने वाली रेव पार्टी की एंट्री फीस एक से डेढ़ लाख रुपए, वहीं 2 दिनों के लिए 20,000-22,000 रुपए थी. वीकेंड पर एक पार्टी कर के आयोजक 15 से 20 लाख रुपए कमा लेते थे. इन में से 2-3 लाख रुपए लोकल पुलिस को जाते थे और बाकी पार्टनर आपस में बांट लेते थे. रेव पार्टी में आने के लिए इन बच्चों ने झूठ का सहारा लिया. क्यों? क्योंकि मांबाप सच से वाकिफ नहीं होना चाहते. अगर हो गए तो मनमानी करने नहीं देंगे.

अमीरजादों को अपने बच्चों को सुधारना जरूरी है, डांटफटकार से बात नहीं बनने वाली. पैसे दे देना किसी समस्या का हल नहीं, उन पैसों का हिसाबकिताब भी पूछना चाहिए. बच्चों के साथ बैठें, बात करें, उन की परेशानी को बढ़ाने के बजाय दूर करने की कोशिश करें. तभी सही माने में आपका बच्चा ठीक दिशा में चल सकता है अन्यथा बच्चों के बिगड़ते देर नहीं लगती, इसलिए जरूरी है बच्चों पर नजर रखना, ताकि बाद में पछताना न पड़े.

सोशल मीडिया की दोस्ती और अनजाना क्राइम

Crime News in Hindi: अपना समय गुजारने के लिए कुछ महिलाएं सोशल मीडिया (Soical Media) से जुड़ जाती हैं, जो धीरेधीरे उन्हें अच्छा लगने लगता है. मीनू जैन के साथ भी ऐसा ही हुआ. लेकिन यह… मीनू जैन अपने पति रिटायर्ड विंग कमांडर वी.के. जैन (Retired Wing Commander V.K. Jain) के साथ दिल्ली में द्वारका के सेक्टर-7 स्थित एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट में रहती थीं. उन के परिवार में पति के अलावा एक बेटा आलोक और बेटी नेहा है. आलोक नोएडा स्थित एक मल्टीनैशनल कंपनी (Multinational company) में काम करता है, जबकि शादीशुदा नेहा गोवा में डाक्टर है. विंग कमांडर वी.के. जैन एयरफोर्स से रिटायर होने के बाद इन दिनों इंडिगो एयरलाइंस (Indigo Airlines) में कमर्शियल पायलट हैं.

25 अप्रैल, 2019 को वी.के. जैन अपनी ड्यूटी पर थे. फ्लैट में मीनू जैन अकेली थीं. शाम को मीनू जैन को उन के पिता एच.पी. गर्ग ने फोन किया तो बातचीत के दौरान मीनू ने उन्हें बताया कि आज उस की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, इसलिए वह आराम कर रही है. दरअसल, उन के पिता उन से मिलने आना चाहते थे. लेकिन जब मीनू ने उन से आराम करने की बात कही तो उन्होंने वहां से जाने का इरादा स्थगित कर दिया.

अगले दिन सुबह एच.पी. गर्ग ने बेटी की खैरियत जानने के लिए उस के मोबाइल पर फोन किया. काफी देर तक घंटी बजने के बाद भी जब मीनू ने उन का फोन रिसीव नहीं किया तो वे परेशान हो गए. कुछ देर बाद वह अपने बेटे अजीत के साथ बेटी के फ्लैट की ओर रवाना हो गए.

मीनू का फ्लैट तीसरे फ्लोर पर था. उन्होंने वहां पहुंच कर देखा तो दरवाजा अंदर से बंद था. कई बार डोरबेल बजाने के बाद भी जब फ्लैट के अंदर से मीनू ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि मीनू को ऐसा क्या हो गया, जो दरवाजा नहीं खोल रही.

इस के बाद एच.पी. गर्ग ने पड़ोसी योगेश के फ्लैट की घंटी बजाई. योगेश ने दरवाजा खोला तो एच.पी. गर्ग ने उन्हें पूरी बात बताई. स्थिति गंभीर थी, इसलिए उन्होंने अजीत और उस के पिता को अपने फ्लैट में बुला लिया. इस के बाद योगेश की बालकनी में पहुंच कर अजीत अपनी बहन मीनू के फ्लैट की खिड़की के रास्ते अंदर पहुंच गया.

जब वह बैडरूम में पहुंचा तो वहां बैड के नीचे मीनू अचेतावस्था में पड़ी थी. पास में एक तकिया पड़ा था, जिस पर खून लगा हुआ था. यह मंजर देख कर वह घबरा गया. उस ने अंदर से फ्लैट का दरवाजा खोल कर यह जानकारी अपने पिता को दी.

एच.पी. गर्ग और योगेश ने फ्लैट में जा कर मीनू को देखा तो वह भी चौंक गए कि मीनू को यह क्या हो गया. चूंकि वह क्षेत्र थाना द्वारका (दक्षिण) के अंतर्गत आता है, इसलिए पीसीआर की सूचना पर थानाप्रभारी रामनिवास इंसपेक्टर सी.एल. मीणा के साथ मौके पर पहुंच गए.

मौके पर उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुलाने के बाद उच्चाधिकारियों को भी सूचना दे दी. डीसीपी एंटो अलफोंस भी घटनास्थल पर पहुंच गए. चूंकि मामला एयरफोर्स के रिटायर्ड अधिकारी के परिवार का था, इसलिए उन्होंने स्पैशल स्टाफ की टीम को भी बुला लिया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी रामनिवास और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. मीनू की हालत और तकिए पर लगे खून को देख कर लग रहा था कि मीनू की हत्या तकिए से सांस रोक कर की गई है.

मीनू का मोबाइल फोन और उस की कीमती अंगूठी गायब थी. इस के बाद जब फ्लैट की तलाशी ली गई तो रोशनदान का शीशा टूटा हुआ मिला. फ्लैट के बाकी कमरों का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कुछ अलमारियां खुली हुई थीं और उन में रखे सामान बिखरे हुए थे. किचन के वाश बेसिन में चाय के कुछ कप रखे थे. एक कप में थोड़ी चाय बची हुई थी.

यह सब देख कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि हत्यारे जो कोई भी हैं, मीनू जैन उन से न केवल अच्छी तरह परिचित थीं, बल्कि हत्यारों के साथ उन के आत्मीय संबंध भी रहे होंगे. क्योंकि किचन में रखे चाय के कप इस ओर इशारा कर रहे थे. थाना पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फिर एच.पी. गर्ग की शिकायत पर हत्या तथा लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया गया.

द्वारका जिले के डीसीपी एंटो अलफोंस ने इस सनसनीखेज हाईप्रोफाइल मामले की तफ्तीश के लिए एसीपी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में इंसपेक्टर नवीन कुमार, इंसपेक्टर रामनिवास तथा इंसपेक्टर सी.एल. मीणा, एसआई अरविंद कुमार आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन मृतका मीनू के पति वी.के. जैन ड्यूटी से वापस लौटे तो पत्नी की हत्या की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने फ्लैट में रखी सेफ आदि का मुआयना किया तो उस में रखी ज्वैलरी और कैश गायब था. उन्होंने पुलिस को बताया कि उन के फ्लैट से करीब 35 लाख रुपए के कीमती जेवर और कुछ कैश गायब है. इस के अलावा मीनू के दोनों मोबाइल फोन भी गायब थे.

स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर नवीन कुमार ने एसीपी राजेंद्र सिंह के निर्देशन में काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने मीनू के दोनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा एयरफोर्स ऐंड नेवल औफिसर्स अपार्टमेंट सोसायटी के गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली.

सीसीटीवी फुटेज में 2 कारें संदिग्ध नजर आईं, जिन में एक स्विफ्ट डिजायर थी. दोनों कारों की जांच की गई तो पता चला स्विफ्ट डिजायर कार का नंबर फरजी है. टीम को इसी कार पर शक हो गया. जब गेट पर मौजूद गार्ड से स्विफ्ट डिजायर कार के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 25 अप्रैल, 2019 की दोपहर को करीब 2 बजे एक अधेड़ आदमी मीनू जैन से मिलने आया था. जब उस से रजिस्टर में एंट्री करने के लिए कहा गया तो उस ने तुरंत मीनू जैन को फोन मिला दिया. मीनू ने बिना एंट्री किए उसे अंदर भेजने को कहा.

इस पर गार्ड ने उस व्यक्ति को मीनू के फ्लैट का पता बता कर उन के पास भेज दिया. शाम को दोनों घूमने के लिए सोसायटी से बाहर भी गए थे. यह सुन कर उन्होंने अनुमान लगाया कि मीनू जैन की हत्या में इसी आदमी का हाथ रहा होगा.

फोन की लोकेशन जयपुर की आ रही थी

मीनू जैन के दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उन का एक फोन घटना वाली रात की सुबह तक चालू था, उस के बाद उसे स्विच्ड औफ कर दिया गया था. जबकि दूसरा फोन चालू था, जिस की लोकेशन जयपुर की आ रही थी.

पुलिस के लिए यह अच्छी बात थी. पुलिस टीम गूगल मैप की मदद से 29 अप्रैल को जयपुर पहुंच गई. फिर दिल्ली पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से जयपुर के मुरलीपुरा इलाके में स्थित स्काइवे अपार्टमेंट में छापा मारा. वहां से दिनेश दीक्षित नाम के एक शख्स को हिरासत में ले लिया. उस के पास से सफेद रंग की वह स्विफ्ट डिजायर कार भी बरामद हो गई जो उस अपार्टमेंट के बाहर खड़ी थी.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने 25 अप्रैल, 2019 की देर रात दिल्ली में मीनू जैन की हत्या और उस के फ्लैट में लूटपाट करने की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस की तहकीकात और आरोपी दिनेश दीक्षित के बयान के अनुसार, मीनू जैन की हत्या के पीछे जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

52 वर्षीय मीनू जैन के पति वी.के. जैन एयरफोर्स में विंग कमांडर पद से रिटायर होने के बाद इंडिगो एयरलाइंस में बतौर पायलट तैनात थे. वह कामकाज के सिलसिले में ज्यादातर बाहर ही रहते थे. उन के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे.

बेटा नोएडा में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता था, जो वीकेंड में अपने मम्मीपापा से मिलने द्वारका आ जाता था. बेटी मोना (काल्पनिक नाम) डाक्टर थी, जो गोवा में रहती थी. ऐसे में मीनू जैन घर पर अकेली रहती थीं. वह अपना समय बिताने के लिए सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहती थीं.

सोशल मीडिया में बने प्रोफाइल पसंद आने पर बड़ी आसानी से नए दोस्त बन जाते हैं. बाद में दोस्ती बढ़ जाने के बाद आप उन से अपने विचार शेयर कर सकते हैं. अगर बात बन जाती है तो चैटिंग करने वाले आपस में अपने पर्सनल मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर लेते हैं. इस प्रकार दोस्ती का सिलसिला आगे बढ़ जाता है. मीनू जैन और दिनेश दीक्षित के मामले में भी ऐसा ही हुआ.

खिलाड़ी था दिनेश दीक्षित

जयपुर निवासी 56 वर्षीय दिनेश दीक्षित बेहद रंगीनमिजाज व्यक्ति था. उस ने 2 शादियां कर रखी थीं. उस की एक बीवी अपने 2 बेटों के साथ गांव में रहती थी, जबकि दूसरी बीवी के साथ वह जयपुर में किराए के एक फ्लैट में रहता था. बताया जाता है कि सन 2015 में ठगी के एक मामले में वह जेल भी जा चुका है. 2 साल जेल में रहने के बाद वह सन 2017 में जेल से बाहर आया था. इस के बाद वह अच्छी नस्ल के कुत्ते बेचने का बिजनैस करने लगा था.

इसी दौरान उस की मुलाकात दिल्ली के एक सट्टेबाज से हुई, जिस की बातों से प्रभावित हो कर वह क्रिकेट के आईपीएल मैचों में सट्टा लगाने लगा. इस धंधे की शुरुआत में उसे कुछ फायदा तो हुआ लेकिन बाद में उसे काफी नुकसान हुआ. वह कई लोगों का कर्जदार हो गया. इस कर्ज से उबरने के लिए उस ने अमीर औरतों को अपने जाल में फंसा कर उन से रुपए ऐंठने की योजना बनाई.

इस के बाद उस ने एक सोशल साइट के माध्यम से खूबसूरत और मालदार शादीशुदा औरतों से दोस्ती करनी शुरू कर दी. जल्द ही उस की दोस्ती कई ऐसी औरतों से हो गई, जो खाली समय में सोशल साइट पर दोस्तों के साथ अपना टाइमपास किया करती थीं.

करीब 5 महीने पहले सोशल साइट पर दिनेश दीक्षित और मीनू जैन दोस्त बन गए. अब जब भी खाली वक्त मिलता, दोनों सोशल साइट पर चैटिंग करते रहते थे. इस से उन का मन बहल जाता था और बोरियत महसूस नहीं होती थी. शीघ्र ही उन की दोस्ती गहरी हो गई.

मीनू जैन के पति चूंकि इंडिगो एयरलाइंस में पायलट थे, इसलिए वह घर से अकसर बाहर ही रहते थे. इस बात का फायदा उठा कर मीनू जैन ने पति की अनुपस्थिति में दिनेश दीक्षित को अपने फ्लैट में बुलाना शुरू कर दिया.

भोलीभाली मीनू जैन फंस गईं दिनेश दीक्षित के जाल में

दिनेश ने देखा कि मीनू जैन साफ दिल की भोलीभाली औरत हैं तो वह मन ही मन उन्हें लूटने की योजना बनाने लगा. करीब 5 महीने की दोस्ती के दौरान मीनू जैन को दिनेश दीक्षित पर इस कदर विश्वास हो गया कि जब भी उन के पति और बच्चे घर पर नहीं रहते, वह उसे मैसेज कर के अपने पास बुला लेतीं और फिर दोनों अपने दिल की तमाम हसरतें पूरी कर लिया करते थे.

25 अप्रैल, 2019 को भी वी.के. जैन अपने फ्लैट पर नहीं थे. पति की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए मीनू जैन ने दिनेश दीक्षित को फ्लैट पर आने का मैसेज भेजा तो वह अपनी सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार से दोपहर के वक्त सोसायटी के गेट पर पहुंच गया.

जब सोसायटी के गेट पर मौजूद गार्ड ने उस का पता पूछा तो उस ने मीनू जैन को फोन कर गार्ड से उन की बात करा दी. मीनू जैन के कहने पर गार्ड ने उस की कार का नंबर रजिस्टर में नोट करने के बाद उसे अंदर जाने को कह दिया.

दिनेश दीक्षित मीनू जैन के फ्लैट में पहुंचा तो उसे सामने देख कर वह बहुत खुश हुईं. चाय और नमकीन लेने के बाद दोनों ही बातों में मशगूल हो गए. लगभग पौने 9 बजे मीनू और दिनेश दोनों डिनर के लिए कार से सोसायटी के बाहर निकले.

करीब आधे घंटे के बाद लौटते समय दिनेश ने मूड बनाने के लिए वोदका की एक बोतल और कुछ स्नैक्स खरीद लिए. सोसायटी में पहुंच कर दोनों ने ड्रिंक करनी शुरू कर दी. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए दिनेश दीक्षित ने मीनू जैन को अधिक मात्रा में वोदका पिलाई और खुद कम पी.

रात करीब 2 बजे मीनू जैन शराब के नशे में धुत हो कर शिथिल पड़ गईं तो दिनेश दीक्षित ने मौका देख कर तकिए से उन का मुंह दबा दिया. जब मीनू ने छटपटा कर दम तोड़ दिया तो उस ने बड़े इत्मीनान से उन की सेफ में रखे करीब 50 लाख रुपए के आभूषण और नकदी निकाल ली.

मीनू जैन की अंगुली में एक बेशकीमती अंगूठी थी. उस ने वह अंगूठी भी उतार कर अपने पास रख ली. इस के अलावा उन के दोनों मोबाइल फोन भी उठा लिए. रात भर वह मीनू की लाश के पास बैठ कर शराब पीता रहा और तड़के 5 बजे फ्लैट से सारा लूट का सामान ले कर रोशनदान से बाहर निकल गया. फिर अपनी स्विफ्ट कार से जयपुर के लिए रवाना हो गया.

गुड़गांव के टोल टैक्स से आगे निकलने के बाद उस ने मीनू जैन के एक मोबाइल फोन को स्विच्ड औफ कर दिया. जबकि दूसरे फोन को वह स्विच्ड औफ करना भूल गया. जयपुर पहुंचने के बाद वह पूरी तरह निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन 29 अप्रैल, 2019 को इंसपेक्टर नवीन कुमार की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से मीनू जैन के यहां से लूटा गया सारा सामान बरामद कर लिया गया.

दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे द्वारका (साउथ) थाने के थानाप्रभारी रामनिवास को सौंप दिया. थाना पुलिस ने दिनेश दीक्षित से पूछताछ के बाद उसे द्वारका कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद उसे फिर से द्वारका कोर्ट में पेश कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखने तक दिनेश दीक्षित जेल में बंद था. केस की विवेचना थानाप्रभारी रामनिवास कर रहे थे.  द्य

—घटना में शामिल कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

हरप्रीत कौर तेजाब कांड: बदला लेने की ये थी अजीब सनक

Crime News in Hindi: हरप्रीत कौर तेजाब कांड (Harpreet Kaur Acid Attack Case) के नाम से मशहूर मामले का फैसला सुनाया जाना था, इसलिए लुधियाना (Ludhiana) के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (Additional District And Session Judge) श्री संदीप कुमार सिंगला की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी. इस की वजह यह थी कि अपने समय का यह काफी चर्चित मामला था. इस की वजह यह थी कि यह तेजाब कांड उस समय घटित हुआ था, जिस दिन हरप्रीत कौर की शादी होने वाली थी. दुख की बात यह थी कि इस मामले में दोष किसी और का था, दुश्मनी किसी और से थी और सजा भुगतनी पड़ी थी निर्दोष हरप्रीत कौर को. तमाम पीड़ा सहने के बाद उस की असमय मौत भी हो गई थी. इस मामले में क्या सजा सुनाई गई, उस से पहले आइए इस पूरे मामले के बारे में जान लें. पंजाब (Punjab) के जिला बरनाला (Barnala) के ढनोला रोड पर स्थित है बस्ती फत्तहनगर. जसवंत सिंह यहीं के रहने वाले थे. उन्होंने अपने घर के एक हिस्से में सैलून खोल रखा था. उसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी.

बेटी पढ़लिख कर शादी लायक हुई तो जसवंत सिंह ने उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. लुधियाना में उन की बहन रहती थी भोली. उसी के माध्यम से हरप्रीत कौर की शादी की बात कोलकाता के रहने वाले रंजीत  सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली.

रंजीत सिंह मूलरूप से दोराहा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन अपनी जवानी में वह कोलकाता जा कर बस गए थे. वहां उन का होटल एंड रेस्टोरैंट का बहुत बड़ा कारोबार था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी.

वह बहू के रूप में गरीब और शरीफ परिवार की प्रतिभाशाली लड़की चाहते थे. इसीलिए उन्होंने ही नहीं, उन के बेटे हरप्रीत सिंह ने भी हरप्रीत कौर को देख कर पसंद कर लिया था. यह मार्च, 2013 की बात थी. बातचीत के बाद शादी की तारीख 7 दिसंबर, 2013 रख दी गई थी.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था. शादी तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह को फोन कर के धमकी दी जाने लगी कि वह यह रिश्ता तोड़ दें अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें. जसवंत सिंह ने यह बात रंजीत सिंह को बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश हैं, शायद वही फोन कर के आप को धमका रहे हैं. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारी तरफ से कोई बात नहीं है. आप शादी की तैयारी करें.’’

इस के बाद भी जसवंत सिंह के पास धमकी भरे फोन आते रहे. कुछ अंजान युवकों ने बरनाला स्थित उन के घर आ कर भी शादी तोड़ने को कहा, लेकिन जसवंत सिंह परवाह किए बिना बेटी की शादी की तैयारी करते रहे.

शादी की तारीख नजदीक आ गई तो जसवंत सिंह परिवार सहित लुधियाना के जनता  नगर की गली नंबर 16 में रहने वाले अपने रिश्तेदार रजिंदर सिंह बगा के घर आ गए. दूसरी ओर रंजीत सिंह का परिवार भी बेटे की शादी के लिए कोलकाता से लुधियाना आ गया था. विवाह के लिए उन्होंने परवोवाल रोड स्थित शहर का सब से महंगा स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा रखा था.

7 दिसंबर, 2013 को शादी वाले दिन हरप्रीत कौर अपनी मां, पिता और 2 सहेलियों के साथ सजने के लिए सुबह 7 बजे कार से सराभानगर स्थित लैक्मे ब्यूटी सैलून॒ पहुंची. मातापिता बाहर कार में ही बैठे रहे, जबकि हरप्रीत कौर सहेलियों के साथ सैलून में चली गई. चूंकि सैलून पहले से ही बुक कराया गया था, इसलिए उस के पहुंचते ही उस का मेकअप करना शुरू कर दिया गया.

ठीक साढ़े 7 बजे एक युवक हाथ में प्लास्टिक का डिब्बा लिए सैलून में दाखिल हुआ. उस ने अपना चेहरा ढक रखा था. सैलून में दाखिल होते ही उस ने हरप्रीत कौर को इस तरह पुकारा, जैसे वह उस का परिचित हो. हरप्रीत कौर के बोलते ही वह वहां गया, जहां हरप्रीत कौर का मेकअप हो रहा था. सैलून में काम करने वाले कर्मचारियों ने उसे अंदर आते देखा जरूर था, पर किसी ने उसे रोका नहीं. क्योंकि युवक जिस आत्मविश्वास के साथ अंदर आया था, सब ने यही समझा कि वह दुलहन का मेकअप करा रही हरप्रीत कौर का कोई रिश्तेदार है.

हरप्रीत कौर के पास पहुंच कर युवक ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुझ से ही नहीं, तेरे घर वालों से भी कितनी बार कहा था न कि मैं यह शादी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद उस ने प्लास्टिक का डिब्बा खोला, जिस में वह तेजाब ले कर आया था. उस ने डिब्बे का सारा तेजाब हरप्रीत कौर के ऊपर उडे़ल दिया. इसी के साथ वह एक कागज फेंक कर जिस तरह तेजी से आया था उस से भी ज्यादा तेजी से बाहर निकल गया. तेजाब ऊपर पड़ते ही हरप्रीत चीखनेचिल्लाने लगी. उस के चीखनेचिल्लाने से वहां काम करने वाले कर्मचारियों को जब घटना का भान हुआ तो सभी डर के मारे चीखनेचिल्लाने लगे. शोरशराबा सुन कर सैलून के मैनेजर संजीव गोयल तुरंत आ गए. वह उस युवक के पीछे दौड़े भी, पर उन के बाहर आने तक वह बाहर खड़ी कार में सवार हो भाग गया था.

कार में शायद कुछ और लोग भी बैठे थे. हरप्रीत कौर के अलावा उस के बगल वाली सीट पर मेकअप करवा रही अमृतपाल कौर तथा 2 ब्यूटीशियनों पर भी तेजाब पड़ गया था. हरप्रीत कौर की हालत सब से ज्यादा खराब थी. मैनेजर संजीव गोयल ने थाना सराभानगर पुलिस को घटना की सूचना देने के साथ हरप्रीत कौर सहित सभी घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया.

प्राथमिक उपचार के बाद अन्य सभी घायलों को तो छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन हरप्रीत कौर का पूरा चेहरा एवं छाती बुरी तरह जल गई थी, इसलिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया था.

मैनेजर संजीव गोयल, मेकअप करवाने वाली अमृतपाल कौर, 2 ब्यूटीशियनों के अलावा हरप्रीत कौर के मातापिता इस घटना के चश्मदीद थे. हरप्रीत कौर के पिता जसवंत सिंह की ओर से थाना सराभानगर में इस तेजाब कांड का मुकदमा दर्ज हुआ. घटनास्थल के निरीक्षण में इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल को सैलून से युवक द्वारा फेंका गया कागज मिला तो पता चला कि वह प्रेमपत्र था.

उन्होंने सैलून के अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली थी. बाद में जांच में पता चला कि युवक ने सैलून में जो प्रेमपत्र फेंका था, वह पुलिस की जांच को गुमराह करने के लिए फेंका था. हरप्रीत कौर का किसी से कोई प्रेमसंबंध नहीं था.

जब स्पष्ट हो गया कि मामला प्रेमसंबंधों का या एकतरफा प्रेम का नहीं था तो पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर दुलहन पर तेजाब क्यों फेंका गया, वह भी फेरों से मात्र एक घंटे पहले? यह बात मामले की जांच कर रहे हरपाल सिंह ग्रेवाल की समझ में नहीं आ रही थी. हरप्रीत कौर बयान देने की स्थिति में नहीं थी. तेजाब पड़ने के बाद वह बेहोश हुई तो फिर होश में नहीं आई. उस की हालत दिनोंदिन नाजुक ही होती जा रही थी.

जब डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने हरप्रीत कौर के इलाज से हाथ खड़े कर दिए तो लुधियाना के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निर्मल सिंह ढिल्लो और इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने खुद और कुछ पुलिस फंड से मदद कर के इलाज के लिए दिसंबर, 2013 को विशेष विमान द्वारा उसे मुंबई भिजवाया.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने रंजीत सिंह और उन के बेटे हरप्रीत सिंह, जिस से हरप्रीत कौर की शादी हो रही थी, दोनों लोगों से विस्तार से पूछताछ करते हुए उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में गहराई से छानबीन की तो आखिर पूरा मामला उन की समझ में आ गया.

इस के बाद अपने अधिकारियों से रायमशविरा कर के उन्होंने सबइंसपेक्टर मनजीत सिंह को साथ ले कर एक पुलिस टीम बनाई और पटियाला के रंजीतनगर स्थित एक कोठी पर छापा मारा. उन के छापा मारने पर भागने के लिए एक युवक कोठी की छत से कूदा, जिस से उस की एक टांग टूट गई और वह पकड़ा गया. उस का नाम पलविंदर सिंह उर्फ पवन था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के अलावा 30-32 साल की एक महिला को गिरफ्तार किया गया, जिस का नाम अमृतपाल कौर था.

दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ला कर पूछताछ की गई तो पता चला कि इस तेजाब कांड की मुख्य अभियुक्ता अमृतपाल कौर थी, जो हरप्रीत सिंह की भाभी थी.

उस का हरप्रीत सिंह के भाई से तलाक हो चुका था. उसी ने अपने ससुर रंजीत सिंह और उन के घर वालों से बदला लेने के लिए हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाया था. अमृतपाल कौर से पूछताछ में इस तेजाब कांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

अमृतपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ हनी उर्फ परी, लुधियाना के दुगड़ी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. आधुनिक विचारों वाली अमृतपाल कौर अपनी मरजी से जिंदगी जीने में विश्वास करती थी, जिस से उस की तमाम लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की होने की वजह से मांबाप भी उसे नहीं रोक पाए.

सन 2003 में रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से अमृतपाल कौर का विवाह हो गया तो वह कोलकाता आ गई थी. ससुराल आ कर जब उसे पता चला कि तरनजीत सिंह नपुंसक है तो वह सन्न रह गई. पति का साथ न मिलने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई.

इस के बाद घर में क्लेश शुरू हो गया. बातबात पर अमृतपाल कौर ससुर और पति को ताने देने लगी. धीरेधीरे वह परिवार पर हावी होती गई. शारीरिक कमजोरी और समाज में बदनामी के डर से तरनजीत सिंह ही नहीं, घर का कोई भी सदस्य उस के सामने कुछ नहीं कह पाता था.

इस क्लेश से बचने के लिए तरनजीत सिंह अमृतपाल कौर को ले कर विदेश चला गया, जहां उस ने जुड़वा बेटों अनंत और मिरर को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद दोनों कोलकाता आ गए. विदेश से लौटने के बाद घर में क्लेश कम होने के बजाए इतना बढ़ गया कि अमृतपाल कौर ने दोनों बेटों को पति को सौंप कर उस से तलाक ले लिया. इस तलाक में अमृतपाल कौर ने 70 लाख रुपए नकद और लुधियाना के दोहरा में एक प्लौट लिया था.

तलाक के बाद अमृतपाल कौर  पूरी तरह से आजाद हो गई. पैसों की उस के पास कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी की मालिक थी. सन 2013 में उस ने एक एनआरआई अमेंदर सिंह के शादी कर ली. वह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के कुछ दिनों बाद वह लंदन चला गया तो अमृतपाल कौर मायके में रहने लगी. पति के विदेश जाने के बाद उस की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. वह आपराधिक प्रवृति का था, जिस की वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था.

अमृतपाल कौर को सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने उस से नजदीकियां बढ़ाईं. पलविंदर से उस के संबंध बन गए तो वह उस के इशारे पर नाचने लगा. अमृतपाल कौर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रही थी. लेकिन तलाक के बाद उस की ससुराल वालों ने चैन की सांस ली थी.

अमृतपाल कौर को पता चला कि उस के पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत सिंह की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की हरप्रीत कौर से हो रही है तो उसे जैसे सनक सी चढ़ गई कि कुछ भी हो, वह उस परिवार के किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देगी. उस ने तुरंत अपने ससुर रंजीत सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘रंजीत सिंह, तुम कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हारे घर में अब कभी शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’

रंजीत सिंह ने उस की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और वह बेटे की शादी की तैयारी करते रहे. अमृतपाल कौर के पास ना तो शैतानी दिमाग की कभी थी और ना ही दौलत की. उस ने अपने मन की बात पलविंदर को बता कर उस के साथ योजना बनाई गई कि कोलकाता जा कर रंजीत सिंह के परिवार का कुछ ऐसा अनिष्ट किया जाए कि शादी करने की हिम्मत न कर सके.

पर उन के लिए यह काम इतना आसान नहीं था. इसलिए अमृतपाल कौर ने विचार किया कि जिस लड़की के साथ हरप्रीत सिंह की शादी होने वाली है, अगर उस लड़की की सुंदरता खराब कर दी जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी. पलविंदर को भी उस का यह विचार उचित लगा. उस ने कहा कि अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी.

इस योजना पर सहमति बन गई तो अमृतपाल कौर ने यह काम करने के लिए पलविंदर को 10 लाख रुपए दिए. पलविंदर ने अपनी इस योजना में अपने चचेरे भाई सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी को भी शामिल कर लिया. यह काम सिर्फ 2 लोगों से नहीं हो सकता था, इसलिए सन्नी ने अपने दोस्तों, राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत सिंह और गुरसेवक को शामिल कर लिया. पलविंदर और सन्नी हरप्रीत कौर पर तेजाब डालने के लिए 3 बार बरनाला स्थित उस के घर गए, पर वहां मौका नहीं मिला.

इस के बाद अमृतपाल कौर ने पलविंदर को लुधियाना बुला लिया. क्योंकि उसे पता चल गया था कि 5 दिसंबर को हरप्रीत कौर का परिवार लुधियाना आ गया है. 6 दिसंबर, 2013 को पलविंदर भी अपने साथियों के साथ लुधियाना आ गया था. उस ने अपने फूफा की मारुति जेन कार यह कह कर मांग ली थी कि उसे अपने दोस्त की शादी में जाना है. इसी कार में पलविंदर ने फरजी नंबर पीबी11जेड-9090 की प्लेट लगा कर घटना को अंजाम दिया था.

पलविंदर सिंह ने तेजाब पटियाला के एक मोटर मैकेनिक अश्विनी कुमार से लिया था. अमृतपाल कौर ने अपने सूत्रों से पता कर लिया था कि हरप्रीत कौर सजने के लिए लैक्मे ब्यूटी सैलून जाएगी. इसलिए पलविंदर ने एक दिन पहले रेकी कर के हरप्रीत कौर पर तेजाब फेंक कर भागने का रास्ता देख लिया था.

अमृतपाल कौर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने तेजाब कांड से जुड़े अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के 9 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर के सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में सारे सबूत जुटा कर सभी अभियुक्तों को पुन: अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. मुंबई के नैशनल बर्न अस्पताल में भरती हरप्रीत कौर ने 27 दिसंबर की सुबह 5 बजे दम तोड़ दिया था. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के हरपाल सिंह उस की लाश विमान द्वारा मुंबई से दिल्ली और वहां से सड़क मार्ग से बरनाला ले आए थे.

पुलिस ने इस मामले में अमृतपाल कौर उर्फ परी, परविंदर सिंह उर्फ पवन, सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार प्रेमी, गुरुसेवक सिंह, अश्विनी कुमार और जसप्रीत सिंह को अभियुक्त बनाया था. इस मामले में लैक्मे ब्यूटी सैलून की ब्यूटीशियनों एवं मैनेजर संजीव गोयल सहित 38 गवाह थे. घटनास्थल से बरामद सीसीटीवी फुटेज भी अदालत में पेश की गई थी.

अभियोजन पक्ष की ओर से सीनियर पब्लिक प्रौसीक्यूटर एस.एम. हैदर ने जबरदस्त तरीके से दलीलें देते हुए माननीय जज से सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की थी. जबकि बचाव पक्ष के वकील ने सजा में नरमी बरतने का आग्रह किया था. लंबी सुनवाई और बहस के बाद अदालत ने 6 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए 20 दिसंबर, 2016 को सजा की तारीख तय कर दी थी.

तय तारीख पर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप कुमार सिंगला ने अपना फैसला सुनाया. माननीय न्यायाधीश ने अमृतपाल कौर और पलविंदर सिंह उर्फ पवन के इस कृत्य को अमानवीय मानते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

लेकिन उन्होंने इस सजा में एक शर्त यह रख दी थी कि दोनों दोषी पूरे 25 साल तक जेल में रहेंगे. इस के अलावा उन पर 9 लाख 60 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया था.

जुरमाने की इस राशि से 6 लाख रुपए मृतका हरप्रीत कौर के घर वालों को दिए जाएंगे. 1 लाख रुपया ब्यूटीपार्लर में घायल अमृतपाल कौर को तथा 50-50 हजार रुपए ब्यूटीपार्लर की घायल दोनों ब्यूटीशियनों को दिए जाएंगे.

इस तेजाब कांड में शामिल अन्य अभियुक्तों सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार, गुरुसेवक सिंह और जसप्रीत सिंह को भी दोषी करार देते हुए अदालत ने इन्हें उम्रकैद की सजा के साथ सवासवा लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. अभियुक्त अश्विनी कुमार को सबूतों के अभाव में दोष मुक्त कर दिया गया था.

इन अभियुक्तों की वजह से एक बेकसूर को उस समय मौत के मुंह में जाना पड़ा, जब वह अपने जीवन के हसीन पल जीने जा रही थी. इसलिए इन्हें जो सजा मिली, शायद वह कम ही कही जाएगी.

बीच रास्ते में दुल्हन का अपहरण

40साल पहले सन 1979 में बौलीवुड की एक हौरर थ्रिलर फिल्म आई थी ‘जानी दुश्मन’. निर्देशक राजकुमार कोहली की इस फिल्म में उस जमाने के फिल्मी सितारों की पूरी फौज थी. ‘जानी दुश्मन’ में संजीव कुमार, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, विनोद मेहरा, अमरीश पुरी और प्रेमनाथ के अलावा 4 हीरोइनें थीं रीना राय, रेखा, नीतू सिंह और योगिता बाली.

इस सुपरहिट फिल्म में सस्पेंस भी था और भयावह दृश्य भी. कहानी के अनुसार फिल्म में ज्वाला प्रसाद का करेक्टर प्ले करने वाले रजा मुराद ने अपने सपनों की शहजादी से शादी की थी. लेकिन उस दुलहन ने सुहागरात को ही ज्वाला प्रसाद को जहर मिला दूध पिला कर उस की जान ले ली.

मृत्यु के बाद ज्वाला प्रसाद ने दैत्य का रूप धारण कर लिया. उसे लाल जोड़े में सजी दुलहनों से नफरत हो गई. वह दूसरों के शरीर में समा कर लाल जोड़े में सजी दुलहनों को डोली से उठा ले जाता था. इस फिल्म का गीत ‘चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की ऋतु आई…’ आज भी शादियों में दुलहन की विदाई के समय बजाया जाता है.

जानी दुश्मन नाम से बाद में भी कई फिल्में बनीं. राजकुमार कोहली ने ही 2002 में ‘जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी’ नाम से फिल्म बनाई. इस में राज बब्बर, सनी देओल, रजत बेदी, शरद कपूर, मनीषा कोइराला, आदित्य पंचोली, अमरीश पुरी आदि कलाकार थे. लेकिन यह फिल्म 1979 वाली फिल्म जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर सकी.

फिल्म ‘जानी दुश्मन’ का जिक्र हम ने इसलिए किया क्योंकि इस कहानी का घटनाक्रम भी काफी कुछ ऐसा ही है. दुलहन को डोली से उठा ले जाने की यह कहानी राजस्थान के सीकर जिले की है.

बीते 16-17 अप्रैल की आधी रात के बाद सात फेरे लेने के बाद ढाई पौने 3 बजे नागवा गांव में गिरधारी सिंह के घर से 2 बेटियों की बारातें विदा हुईं. ये बारातें मोरडूंगा गांव से आई थीं. मोरडूंगा निवासी भंवर सिंह की शादी गिरधारी सिंह की बड़ी बेटी सोनू कंवर से हुई थी और राजेंद्र सिंह की शादी छोटी बेटी हंसा कंवर से.

दोनों दुलहनें और उन के दूल्हे एक सजीधजी इनोवा कार में सवार थे. कार में दूल्हों के रिश्तेदार कृष्ण सिंह, शानू और दुलहन का भाई करण सिंह भी थे. ये लोग धोद हो कर मोरडूंगा जा रहे थे. बारात में आए अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग पहले ही दूसरे वाहनों से जा चुके थे. केवल दूल्हादुलहन और उन के 3 रिश्तेदार ही वैवाहिक रस्में पूरी कराने के लिए रुके रहे थे.

दूल्हादुलहन विदा हो कर नागवा गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर ही आए थे, तभी रामबक्सपुरा स्टैंड के पास एक बोलेरो और पिकअप में आए बदमाशों ने अपनी गाडि़यां दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार के आगेपीछे लगा दीं. इनोवा में सवार दोनों दूल्हे और उन के रिश्तेदार कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बोलेरो और पिकअप से 7-8 लोग लाठीसरिए ले कर उतरे. इन्होंने इनोवा कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी.

कार से दुलहन का अपहरण

मायके से विदा होने पर जैसा कि होता है दोनों बहनें घूंघट में सुबक रही थीं. उन्होंने तोड़फोड़ की आवाज सुन कर अपने चेहरे से घूंघट उठाया, लेकिन अंधेरा होने की वजह से उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. इनोवा कार के अंदर जल रही मद्धिम रोशनी में बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था. तोड़फोड़ होती देख दोनों दुलहन बहनें सहम कर अपनेअपने दूल्हों के हाथ पकड़ कर बैठ गईं.

इनोवा के शीशे तोड़ने के बाद हमलावरों में से एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर हवा में लहराते हुए कहा, ‘‘कोई भी हरकत की तो गोली मार देंगे.’’ इस के बाद वे कार में बैठे पुरुषों से मारपीट करने लगे. दोनों दूल्हों भंवर सिंह और राजेंद्र सिंह ने बदमाशों से मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद बदमाशों के आगे उन के हौसले पस्त हो गए.

इस बीच एक बदमाश ने इनोवा का दरवाजा खोल कर दुलहन हंसा कंवर को बाहर खींच लिया. हंसा चीखनेचिल्लाने लगी. यह देख हंसा की बहन सोनू ने बदमाशों से उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वह उन से मुकाबला नहीं कर सकी. बदमाशों ने नईनवेली दुलहन सोनू कंवर से भी मारपीट की.

दूल्हों के रिश्तेदार मौसेरे भाई करण सिंह ने मोबाइल निकाल कर फोन करने की कोशिश की तो बदमाशों ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. बदमाशों ने हंसा कंवर को अपनी गाड़ी में बैठाया और दूल्हों व दुलहन सोनू कंवर के साथ उन के रिश्तेदारों को पिस्तौल दिखा कर धमकी दी. बदमाशों ने इनोवा कार की चाबी भी निकाल ली थी. इस के बाद बदमाश अपनी दोनों गाडि़यां दौड़ाते हुए वहां से चले गए.

यह सब मुश्किल से 10 मिनट के अंदर हो गया. बदमाशों के जाने के बाद दूल्हों ने मोबाइल फोन से नागवा गांव में अपनी ससुराल वालों को सूचना दी. कुछ ही देर में नागवा के कई लोग मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंच गए. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर बाद धोद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने आसपास के इलाके में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का कोई पता नहीं चला.

दुलहन को डोली से उठा ले जाने की खबर कुछ ही घंटों में आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जिस ने भी इस वारदात के बारे में सुना, सहम गया. ससुराल पहुंचने से पहले ही दुलहन को डोली से उठा ले जाने की ऐसी वारदात किसी ने न तो देखी थी और न सुनी थी. अलबत्ता लोगों ने फिल्मों में ऐसी घटनाएं जरूर देखी थीं.

इस घटना को ले कर 17 अप्रैल को सुबह से ही राजपूत समाज के लोगों में आक्रोश छा गया. नागवा गांव के कृष्ण सिंह ने धोद पुलिस थाने में अपने ही गांव के अंकित सेवदा और भड़कासली गांव के रहने वाले मुकेश रेवाड़ को नामजद करते हुए 5-6 अन्य लोगों के खिलाफ हंसा कंवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा गया कि हंसा कंवर ने करीब 5 लाख रुपए के गहने पहन रखे थे, साथ ही उस के पास कन्यादान के 20 हजार रुपए नकद भी थे. आरोपी हंसा कंवर के साथ उस के गहने और नकदी भी ले गए. डोली से दुलहन को उठा ले जाने का मामला गंभीर था. पुलिस ने नामजद आरोपियों के परिजनों से पूछताछ की. उन से कुछ जानकारियां मिलने पर पुलिस ने 2 टीमें बना कर जयपुर और गाजियाबाद के लिए रवाना कर दीं.

पूरा राजपूत समाज एक साथ खड़ा हो गया

पुलिस की टीमें अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गईं. मुख्य आरोपी चूंकि नागवा गांव का था, इसलिए गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अनहोनी न हो. इस बीच यह मामला सीकर से ले कर जयपुर तक गरमा गया. दुलहन के अपहरण की सूचना मिलने पर उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा सीकर के राजपूत छात्रावास आ गए. वहां राजपूत समाज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई.

इस के बाद लोगों ने सीकर कलेक्टर सी.आर. मीणा को ज्ञापन दे कर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दे कर कहा कि अगर काररवाई नहीं हुई तो पूरा राजपूत समाज कलेक्ट्रैट के सामने धरने पर बैठ जाएगा. साथ ही लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने सीकर में कलेक्टर और एसपी के बंगले के सामने प्रदर्शन किया. लोगों ने कहा कि 18 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों का पता नहीं लगा सकी है.

प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जाम लगा कर नारेबाजी की. इस दौरान उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पैट्रोल छिड़क कर आत्मदाह करने का प्रयास किया. लेकिन समाज के लोगों ने विधायक को बचा लिया.

सूचना मिलने पर डीएसपी सौरभ तिवाड़ी, कोतवाल श्रीचंद सिंह और उद्योग नगर थानाप्रभारी वीरेंद्र शर्मा मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने विधायक को समझाया. राजपूत समाज के लोगों ने सीकर कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की शर्त पुलिस को भी बता दी कि अगर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो कलेक्ट्रैट के बाहर धरनाप्रदर्शन किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद लोगों ने जाम हटाया और प्रदर्शन समाप्त कर दिया.

दुलहन के अपहरण का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान हुई इस वारदात ने पुलिस के सामने चुनौती खड़ी कर दी थी. पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि पूरा राजपूत समाज इस घटना को ले कर लामबंद होने लगा था.

पुलिस के सामने एक समस्या यह भी थी कि दुलहन के अपरहण का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस तरह की वारदात किसी पुरानी रंजिश, लूट, दुष्कर्म या प्रेम प्रसंग के लिए की जाती हैं.

लेकिन इस मामले में स्पष्ट रूप से ऐसा कारण उभर कर सामने नहीं आ रहा था. पुलिस को जांचपड़ताल में इतना जरूर पता चला कि आरोपी अंकित सेवदा और दुलहन हंसा कंवर के परिवार के खेत आसपास हैं. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग जैसा कोई सबूत सामने नहीं आया.

वारदात का तरीका भयावह था. पुलिस ने कई जगह दबिश दे कर 2-4 लोगों को हिरासत में लिया. दरजनों लोगों से पूछताछ की गई. इस के अलावा आरोपी अंकित सेवदा के मोबाइल नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

18 अप्रैल को सीकर में सुबह से ही भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. अपहृत दुलहन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज राजपूत समाज के लोगों ने सुबह 10 बजे सड़क पर जाम लगा दिया और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर के बंगले के बाहर एकत्र हो गए.

सुबह से शाम तक करीब 7 घंटे प्रदर्शन जारी रहा. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजपूत समाज के नेता पहले बैरीकेड्स पर चढ़ कर अपनी मांग करते रहे. बाद में वे जेसीबी मशीन पर चढ़ कर लोगों को संबोधित करने लगे. एकत्र लोग सड़क पर बैठ गए. एडीएम जयप्रकाश और एडीशनल एसपी देवेंद्र शास्त्री व तेजपाल सिंह ने उन्हें समझायाबुझाया.

इस दौरान जिला प्रशासन और पुलिस ने राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बात कर के आरोपियों को पकड़ने और दुलहन को बरामद करने के लिए 3 दिन का समय मांगा.

प्रदर्शन में उदयपुरवाटी के विधायक

राजेंद्र गुढ़ा, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत समाज के अनेक गणमान्य लोग शामिल रहे.

हालात पर नजर रखने के लिए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर पहुंच गए थे. वे रानोली थाने में बैठ कर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों पर नजर रखते रहे. बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने राजपूत छात्रावास के पास टेंट लगा कर धरना देना शुरू कर दिया.

पुलिस पूरी कोशिश में जुटी थी

राजपूत समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने दुलहन की बरामदगी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस की 5 टीमें 3 राज्यों में भेजी गईं. इस बीच पुलिस ने दुलहन का अपहरण करने के मामले में एक नामजद आरोपी भड़कासली निवासी मुकेश जाट के अलावा नेतड़वास के महेंद्र सिंह जाट, दुगोली निवासी राजेश बगडि़या उर्फ धौलिया और भड़कासली निवासी अशोक रेवाड़ को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में पता चला कि दुलहन का अपहरण करने के बाद वे लोग अंकित और उस के साथियों से अलग हो गए थे. ये चारों धोद में छिपे थे. पुलिस ने इन से मुख्य आरोपी अंकित सेवदा के छिपने के संभावित ठिकानों के बारे में पूछताछ की. इसी के आधार पर पुलिस की टीमें विभिन्न स्थानों पर भेजी गईं.
19 अप्रैल को भी पुलिस अपहृत दुलहन की बरामदगी और आरोपियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर राजपूत समाज के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. सीकर शहर के सभी प्रवेश मार्गों पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.

पुलिस को जांचपड़ताल में यह बात साफ हो गई थी कि दुलहन हंसा कंवर के अपहरण की साजिश उसी के गांव नागवा के अंकित ने रची थी. उस ने हंसा और उस की बड़ी बहन की शादी के दिन 16 अप्रैल की शाम अपने दोस्तों मुकेश रेवाड़, विकास भामू, महेंद्र फौजी, राजेश व अशोक आदि को तलाई पर बुलाया था. वहां उस ने सभी दोस्तों को शराब पिलाई.

योजनानुसार अंकित ने अपने एक साथी को गिरधारी सिंह के घर के बाहर बैठा दिया था. वह मोबाइल पर अंकित को शादी के हर कार्यक्रम की जानकारी दे रहा था. फेरे लेने के बाद रात ढाई पौने 3 बजे जैसे ही सोनू कंवर और हंसा कंवर अपने दूल्हों के साथ घर से विदा हुईं तो अंकित के साथी ने मोबाइल पर उसे यह खबर दे दी.

इस के बाद तलाई पर बैठे अंकित और उस के दोस्तों ने बोलेरो और पिकअप से दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार का पीछा किया. रामबक्स स्टैंड पर इन लोगों ने उन की इनोवा को आगेपीछा गाड़ी लगा कर घेर लिया गया. अंकित ने हंसा को बाहर निकाला और वे सभी साथी बोलेरो में उस का अपहरण कर ले गए.

जांच में पुलिस को पता चला कि हंसा का अपहरण करने के बाद अंकित के दोस्त रास्ते में उतरते गए. अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू हंसा को साथ ले कर नागौर जिले के जायल गांव गए. वहां से वे छोटी खाटू पहुंचे. फिर उन्होंने एक व्यक्ति से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए इनोवा गाड़ी किराए पर मांगी.
लेकिन उस दिन ज्यादा शादियां होने के कारण इनोवा नहीं मिली. इस के बाद हंसा कंवर को साथ ले कर अंकित और विकास भामू छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर चले गए. महेंद्र फौजी बोलेरो ले कर नागवा आ गया था.

पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों मुकेश रेवाड़, महेंद्र सिंह, राजेश बगडि़या और अशोक रेवाड़ को अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

बिना लड़े आमनेसामने थे राजपूत समाज के नेता और पुलिस

दुलहन के अपहरण की घटना को ले कर राजपूत समाज तीसरे दिन भी आंदोलित रहा. कलेक्टर के बंगले के सामने लगातार दूसरे दिन भी राजपूत समाज के लोग धरना देते रहे. समाज के नेताओं ने कहा कि धरना आरपार की लड़ाई तक जारी रहेगा.

विधायक राजेंद्र गुढ़ा के अलावा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत महासभा व करणी सेना के तमाम नेता धरने पर बैठे रहे. उधर दुलहन के अपहरण को ले कर नागवा गांव और उस की ससुराल मोरडूंगा में दोनों परिवारों में घटना के बाद से ही सन्नाटा पसरा रहा. दोनों परिवारों की शादियों की खुशियां काफूर हो गई थीं. नागवा में दुलहन के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. दुलहन की मां बारबार बेहोश हो जाती थी.

पूरे परिवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया. दुलहन के पिता गिरधारी सिंह ने संदेह जताया कि आरोपी उस की बेटी की हत्या कर सकते हैं. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों ने नागवा में पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिया.

इस बीच एक हिस्ट्रीशीटर कुलदीप झाझड़ ने दुलहन के अपहरण के मामले में एक वीडियो जारी कर प्रशासन को धमकी दे डाली. कई आपराधिक मामलों में फरार कुलदीप ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती है. अगर पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकती तो वह खुद उन्हें तलाश कर गोली मार देगा. उस के कई साथी आरोपियों की तलाश कर रहे हैं.

राजपूत समाज के आक्रोश को देखते हुए कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 20 अप्रैल को सीकर में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं. हालांकि इस की सूचना मीडिया के माध्यम से पुलिस व प्रशासन ने एक दिन पहले ही दे दी थी. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन के अधिकारी राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बराबर संपर्क में रहे.

इंटरनेट बंद होने से दिन भर बवाल मचता रहा. पुलिस ने राजपूत छात्रावास की बिजली बंद करा दी. इस से माइक बंद हो गया तो राजपूत युवा भड़क गए. इस के बाद विधायक गुढ़ा ने कलेक्टर आवास में घुस कर वहां कब्जा करने की चेतावनी दे दी. इस से पुलिस के हाथपैर फूल गए.

पुलिस ने वहां घेराबंदी कर बड़ी तादाद में सशस्त्र बल तैनात कर दिया. इस बीच विधायक गुढ़ा युवाओं के साथ मौन जुलूस निकालने लगे तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सख्ती से रोक दिया. दिन भर आंदोलनकारी और पुलिस आमनेसामने होते रहे.

आईजी एस. सेंगाथिर ने मोर्चा संभाल कर प्रदर्शनकारियों को बताया कि जयपुर से एटीएस और एसओजी सहित 11 टीमें जांच में जुटी हुई हैं. पुलिस अपराधियों के निकट पहुंच चुकी है और जल्द से जल्द हंसा कंवर को बरामद कर लिया जाएगा.

चौथे दिन 20 अप्रैल की शाम तक यह सूचना सीकर पहुंच गई कि पुलिस ने देहरादून से दुलहन हंसा कंवर को बरामद कर लिया है और 2 आरोपी पकड़े गए हैं. इस के बाद राजपूत समाज ने आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी.

दुलहन हंसा को देहरादून से बरामद करने की कहानी बड़ी रोचक है. हंसा का अपहरण कर अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू जायल हो कर छोटी खाटू पहुंचे. वहां वे आरिफ से मिले. आरिफ किराए पर गाडि़यां चलाता है.

अंकित ने आरिफ से देहरादून जाने के लिए किराए की गाड़ी मांगी, लेकिन उस समय उस की सभी गाडि़यां शादियों की बुकिंग में गई हुई थीं. आरिफ ने अंकित को शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में बताया था. पुलिस को आरिफ से ही यह सुराग मिला कि अंकित दुलहन हंसा को ले कर देहरादून जा सकता है.

अंकित अपने दोस्त विकास भामू और दुलहन हंसा के साथ छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर पहुंचा और जयपुर से सीधे देहरादून चला गया. देहरादून में ये लोग एक गेस्टहाउस में रुके. ये लोग गेस्टहाउस पर बाहर से ताला लगवा देते थे.

जानकारी मिलने पर सीकर से सबइंसपेक्टर सवाई सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. पुलिस दोनों आरोपियों और दुलहन हंसा की फोटो ले कर होटल और गेस्टहाउसों में तलाश कर रही थी. 19 अप्रैल को पुलिस उस गेस्टहाउस पर भी पहुंची, जहां अंकित और विकास ने हंसा को ठहरा रखा था, लेकिन वहां बाहर ताला लगा देख कर पुलिस लौट गई.

कैसे पता लगा हंसा कंवर का

इस बीच पुलिस टीम ने हाथों में मेहंदी लगी लड़की के दिखाई देने पर सूचना देने की बात कह कर काफी लोगों को अपने मोबाइल नंबर दिए. 20 अप्रैल को एक वकील ने पुलिस टीम को फोन कर बताया कि एक युवती के हाथों में मेहंदी लगी हुई है और उस के साथ 2 युवक हैं.

पुलिस टीम ने वाट्सऐप पर वकील को दुलहन और आरोपियों की फोटो भेजी, तो कंफर्म हो गया कि हंसा उन्हीं युवकों के साथ है. वकील ने बताया कि ये लोग कोर्ट के पास हैं और एक वकील उन की शादी के कागजात बनवाने गया है.

सीकर से गई पुलिस टीम ने एक मिनट की देरी करना भी उचित नहीं समझा. वे गाड़ी ले कर पूछते हुए कोर्ट की तरफ भाग लिए. लेकिन रास्ते में निकलती एक शोभायात्रा की वजह से सीकर पुलिस की गाड़ी जाम में फंस गई. इस पर पुलिसकर्मी मोटरसाइकिलों पर लिफ्ट ले कर कोर्ट के पास पहुंचे.

वहां सादे कपड़ों में गए पुलिसकर्मियों ने अंकित और उस के साथी विकास भामू को फोटो से पहचान कर दबोच लिया. दुलहन हंसा कंवर भी वहीं मिल गई. इस पर देहरादून के वकील एकत्र हो कर सीकर पुलिस से बहस करने लगे. हाथ में आई बाजी पलटती देख सबइंसपेक्टर सवाई सिंह ने जयपुर आईजी सेंगाथिर को फोन पर सारी बात बताई. जयपुर आईजी ने राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बी.एल. सोनी से बात की. सोनी ने देहरादून के पुलिस अधिकारियों से फोन कर बात कर पूरी घटना बता दी.

इस के करीब डेढ़ घंटे बाद देहरादून पुलिस वहां पहुंची. देहरादून पुलिस ने वकीलों को दुलहन हंसा के अपहरण की घटना के बारे में बताया. इस के बाद सीकर पुलिस हंसा और दोनों आरोपियों को कोर्ट से बाहर ले आई.

देहरादून से 20 अप्रैल की रात को पुलिस दल तीनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हुआ. पुलिस को आरोपियों पर हमले या दुलहन के दोबारा अपहरण की आशंका थी इसलिए कई रास्ते बदल कर और कई जगह एस्कार्ट ले कर पुलिस टीम 21 अप्रैल को उन्हें ले कर सीकर पहुंची.

सीकर में पुलिस ने दुलहन हंसा कंवर से पूछताछ के आधार पर अंकित सेवदा और उस के दोस्त विकास भामू को गिरफ्तार कर लिया. दुलहन हंसा कंवर ने पुलिस और मजिस्ट्रैट को दिए बयान में मां के साथ बुआ के घर जाने की इच्छा जताई.

इस के बाद हंसा को उस के घर वालों को सौंप दिया. हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथी उस का अपहरण कर ले गए थे. अंकित देहरादून में उस से जबरन शादी करना चाहता था. इसीलिए वह कोर्ट पहुंचा था और वकील के माध्यम से कागजात तैयार करवा रहा था. पुलिस ने 22 अप्रैल को आरोपी अंकित और विकास का मैडिकल कराया. इस के बाद दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सच्चाई नहीं आई सामने

बरामद दुलहन हंसा ने प्रारंभिक बयानों में अंकित और उस के साथियों पर जबरन अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया है. गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी अंकित सेवदा ने भी पुलिस को हंसा के अपहरण का स्पष्ट कारण नहीं बताया.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि हंसा और अंकित एक ही गांव के हैं और उन के खेत भी आसपास हैं. गांव के नाते अंकित पहले से ही हंसा को जानता था. अंकित मन ही मन हंसा से प्यार करता था. यह उस का एकतरफा प्यार था. न तो उस ने कभी हंसा से यह बात कही और न ही हंसा ने कभी इस बारे में सोचा. अंकित जबरन उस से शादी करना चाहता था.

एक कारण और सामने आया. इस में अंकित के विदेश में रहने वाले दोस्त गंगाधर से बातचीत के दो औडियो वायरल हो रहे हैं. इस में कहा गया है कि अंकित का हंसा के परिवार से कुछ समय पहले झगड़ा हुआ था. इसलिए अंकित बदला लेना चाहता था. बदला लेने के लिए उस ने हंसा का अपहरण करने की योजना बनाई.

अंकित का मकसद लूट का भी हो सकता है, क्योंकि हंसा या अंकित के पास से पुलिस को कोई भी जेवर या नकदी नहीं मिले हैं. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक हंसा ने शादी में विदाई के समय 5 लाख रुपए के जेवर पहन रखे थे. उस के पास 20 हजार रुपए नकद भी थे.

हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथियों ने उस के जेवर व रुपए ले लिए थे. पुलिस के सामने भी यह बात आई है कि अपहरण में शामिल अंकित के दोस्तों ने हंसा के जेवर बेच दिए.

पुलिस इन गहनों को खरीदने वालों की तलाश कर उन्हें बरामद करने का प्रयास कर रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी कडि़यों को जोड़ कर हंसा के अपहरण के असली मकसद का पता लगाने में जुटी थी.

चाहे पुलिस हो, चाहे हंसा के परिवार वाले या फिर अंकित सेवदा, इस मामले का सच अभी तक सामने नहीं आया है. आएगा ऐसा भी नहीं लगता. अगर आम आदमी की तरह सोचें तो एक इज्जतदार परिवार और उस परिवार की लड़की के लिए ऐसे किसी भी सच का सामने आना ठीक नहीं है, जो उन्हें प्रभावित करे.
हां, यह जरूर कह सकते हैं कि अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जो किया, वह बड़ा अपराध तो है ही.

इसी बीच जाट समुदाय के लोगों ने गिरफ्तार किए गए लड़कों को छोड़ने और अपहरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए 25 अप्रैल को कलक्टे्रट पर धारना दिया.

‘स्पेशल 26’ की तर्ज पर बने फर्जी आयकर अफसर

Crime News in Hindi: मध्य प्रदेश के इंदौर (Indore) की एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र से एक युवक मिलने पहुंचा. उस ने अपना नाम शुभम साहू और पता राजनगर एक्सटेंशन (Rajnagar Extension) का बताया. युवक ने झिझकते हुए एसएसपी से कहा, ‘‘मैडम, मैं परेशान हूं. आप को एक महत्त्वपूर्ण सूचना देना चाहता हूं.’’ एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने युवक को सामने रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘शुभम, तुम क्या बताना चाहते हो, खुल कर बताओ. हम से जो मदद हो सकेगी, करेंगे.’ ‘‘मैडम, बात दरअसल यह है कि कुछ लोग फरजी आयकर अफसर (Income Tax Officer) बन कर लोगों को नौकरी दिलाने के नाम पर बेवकूफ बना रहे हैं. इस के एवज में वे मोटी रकम लेते हैं.’’ शुभम ने डरतेडरते बताया. ‘‘तुम्हें यह बात कैसे पता चली कि वे फरजी तरीके से आयकर विभाग में नौकरी लगवा रहे हैं.’’ एसएसपी ने सवाल किया.

एसएसपी के सवाल पर शुभम चुप हो गया. इस पर एसएसपी ने उसे भरोसा दिलाते हुए पूछा, ‘‘वे कौन लोग हैं और कहां रहते हैं.’’

‘‘मैडम, मैं जौब की तलाश में था. इस बीच मेरे दोस्त पवन सोलंकी ने एक दिन मेरी मुलाकात देवेंद्र डाबर से करवाई.’’ शुभम ने धीरेधीरे कहा, ‘‘देवेंद्र डाबर ने खुद को इनकम टैक्स का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताया था.’’

आयकर विभाग के चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर की बात सुन कर इस मामले में एसएसपी की भी दिलचस्पी बढ़ गई. उन्होंने अर्दली से कह कर शुभम के लिए पानी मंगवाया. शुभम ने पानी पी लिया तो एसएसपी ने उस से कहा, ‘‘देवेंद्र डाबर से मुलाकात में आप की क्या बात हुई?’’

एसएसपी के प्यार भरे व्यवहार से शुभम की झिझक कम हो गई थी. उस ने कहा, ‘‘मैडम, देवेंद्र का शानदार औफिस है. उस के पास खाकी वरदीधारी चपरासी, ड्राइवर, सरकारी गाड़ी और कई लोगों का स्टाफ है.’’

‘‘अरे वाह, इतना सारा स्टाफ, सरकारी गाड़ी वगैरह सब कुछ है.’’ एससपी ने शुभम की बातों पर शंका जताते हुए कहा, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि जिसे तुम फरजी आयकर अफसर बता रहे हो, वह वास्तव में ही सरकारी अफसर हो?’’

‘‘नहीं मैडम, देवेंद्र डाबर पूरी तरह फरजी है.’’ शुभम ने अपनी बात मजबूती से रखते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस से जौब के बारे में कहा, तो उस ने मेरी 10वीं और 12वीं की मार्कशीट तथा 4 पासपोर्ट साइज की फोटो ले लीं. देवेंद्र ने मुझे फील्ड अफसर की नौकरी देने की बात कही थी.

‘‘मैं नौकरी करने लगा. कई महीने नौकरी करने के बाद भी मुझे वेतन नहीं मिला. मैं ने देवेंद्र से इस बारे में कई बार कहा तो उस ने भारत सरकार से बजट नहीं आने की बात कही.’’ शुभम ने बताया, ‘‘वेतन नहीं मिलने से मैं परेशान हो गया. फिर मैं ने अपने स्तर पर जानकारी जुटाई, तो पता चला कि देवेंद्र ने इसी तरह आयकर विभाग में नौकरी देने के नाम पर कई लोगों से लाखों रुपए ले रखे हैं.’’

शुभम की सारी बातें सुनने के बाद एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र कुछ देर सोचती रहीं. फिर उन्होंने शुभम से लिखित में एक शिकायत देने को कहा. इसी के साथ उन्होंने देवेंद्र के औफिस और कामकाज के बारे में सवाल कर शुभम से कई जानकारियां लीं.

एसएसपी ने ये जानकारियां अपनी डायरी में नोट कर लीं. फिर शुभम को आश्वस्त किया कि हम इस मामले की जांच कराएंगे. अगर देवेंद्र डाबर फरजी आयकर अफसर बन कर लोगों से इस तरह की धोखाधड़ी कर रहा है तो उस पर काररवाई जरूर की जाएगी. एसएसपी को लिखित शिकायत दे कर शुभम वहां से चला आया.

शुभम के जाने के बाद एसएसपी ने पूरे मामले पर गंभीरता से विचार किया. फिर एएसपी अमरेंद्र सिंह को देवेंद्र डाबर के बारे में बता कर सूचनाएं जुटाने को कहा.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने थाना राजेंद्र नगर के टीआई सुनील शर्मा को इस मामले की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी. टीआई ने अपने सहयोगियों के साथ कई दिनों तक जांचपड़ताल कर देवेंद्र डाबर के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटा लीं.

देवेंद्र के संबंध में जुटाई जानकारियां जब एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र तक पहुंचीं तो वे भी चौंकी. उन्होंने एएसपी अमरेंद्र सिंह को देवेंद्र डाबर के कार्यालय पर तुरंत छापा मारने को कहा.

पुलिस टीम ने 23 अप्रैल को इंदौर शहर के सिलिकौन सिटी में एक मकान पर छापा मारा. इस मकान को आयकर विभाग का कार्यालय बनाया हुआ था. मकान के बाहर सफेद रंग की एक सफारी गाड़ी खड़ी थी. गाड़ी पर भारत सरकार के लोगो सहित आयकर विभाग की प्लेट लगी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. लोगों ने पुलिस अधिकारियों को अपने अधिकारी देवेंद्र डाबर से मिलवा दिया. देवेंद्र डाबर अपने शानदार औफिस में बैठा था. बाहर चपरासी खड़ा था. उस के कमरे के बाहर चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर की नेमप्लेट लगी हुई थी.

अधिकारियों ने पूछताछ की तो देवेंद्र ने खुद को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी के इंटेलिजेंस ऐंड क्रिमिनल इनवैस्टीगेशन डिपार्टमेंट का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताया. उस ने पुलिस टीम को अपना पहचानपत्र भी दिखाया. पुलिस ने उस से सवालजवाब किए तो उस का फरजीवाड़ा सामने आ गया. न तो वह ठीक ढंग से अंगरेजी में बात कर सका और न ही सीबीडीटी या आयकर विभाग के बारे में गहराई की बातें बता सका.

देवेंद्र डाबर से पूछताछ में उस का फरजीवाड़ा सामने आ गया. फिर भी पुलिस अधिकारियों ने सावधानी के तौर पर आयकर विभाग के कार्यालय में फोन कर यह जानना चाहा कि देवेंद्र डाबर नाम का कोई अधिकारी विभाग में कार्यरत है या नहीं. पता चला कि विभाग में न तो इस नाम का कोई अधिकारी है और न ही विभाग में इस तरह की कोई पोस्ट है.

पुलिस ने देवेंद्र डाबर के अलावा वहां काम कर रहे 4 अन्य कर्मचारियों सुनील मंडलोई, रवि सोलंकी, दुर्गेश गहलोत और सतीश गावड़े को गिरफ्तार कर लिया.

कई घंटे की जांचपड़ताल और तलाशी के बाद वहां से लैपटाप, प्रिंटर, सफारी गाड़ी, एयरगन, भारत सरकार लिखी आईडी, आयकर विभाग की फरजी सील, सिक्के, नियुक्ति पत्र, आदेश पत्र, बड़ी संख्या में गोपनीय लिखे रजिस्टर, दस्तावेज, खाकी वर्दियां, भारत सरकार लिखी नेम प्लेट आदि जब्त की गईं.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों से अलगअलग पूछताछ की. इस में पता चला कि केवल 12वीं पास देवेंद्र डाबर चर्चित फिल्म ‘स्पैशल-26’ की तर्ज पर 5 साल से आयकर विभाग का फरजी कार्यालय चला रहा था. देवेंद्र ही इस गिरोह का सरगना था. सुनील मंडलोई उस का दोस्त है. वह बीई की तैयारी कर रहा था. देवेंद्र ने सुनील को सीनियर फील्ड औफिसर बना रखा था.

लोगों को आयकर विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर देवेंद्र के कहने पर वह भी पैसे लेता था. रवि सोलंकी देवेंद्र का रिश्तेदार निकला. उसे देवेंद्र ने सीनियर इनवैस्टीगेशन औफिसर बना रखा था. वह कार्यालय के अन्य कर्मचारियों की ओर से व्यापारियों और आयकर चोरों से संबंधित तैयार रिपोर्ट को सत्यापित कर उन की फाइलों पर हस्ताक्षर करता था.

दुर्गेश गहलोत देवेंद्र का पीए था. उस के पास कार्यालय का अधिकांश रिकौर्ड रहता था. कर्मचारियों के हाजिरी रजिस्टर भी वही रखता था.

सतीश गावड़े देवेंद्र का वाहन चालक और पर्सनल गनमैन था. वह एयरगन रखता था और देवेंद्र डाबर को आयकर विभाग का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताता था.

देवेंद्र और अन्य गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में फिल्म ‘स्पैशल-26’ की तर्ज पर आयकर विभाग की फरजी टीम बनाने की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

लरूप से कुक्षी धार और फिलहाल इंदौर में भील कालोनी मूसाखेड़ी के रहने वाले देवेंद्र डाबर के पिता माधव लाल सरकारी नौकरी से रिटायर्ड क्लर्क हैं. देवेंद्र ने 12वीं पास करने के बाद नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू की. लेकिन अधिकांश जगह उसे निराशा मिली. इस का कारण यह था कि वह केवल 12वीं पास था. उसे कंप्यूटर का अच्छा ज्ञान जरूर था, लेकिन केवल कंप्यूटर के ज्ञान के आधार पर उसे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी नहीं मिल सकती थी.

देवेंद्र भले ही ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन उस के सपने बड़े थे. वह अफसरों की तरह रुतबे और शानोशौकत से रहना चाहता था. यह उस के लिए किसी भी तरह से संभव नहीं था. इसी दौरान एक बार उस ने अखबारों में आयकर विभाग का एक विज्ञापन पढ़ा. इस विज्ञापन में बताया गया था कि बेनामी संपत्ति की जानकारी देने पर आयकर विभाग 10 प्रतिशत कमीशन देता है.

यह सूचना पढ़ने के बाद देवेंद्र के दिमाग में आयकर विभाग के जरिए पैसा कमाने का विचार आया. यह संयोग रहा कि उसी दौरान एक दिन देवेंद्र ने अक्षय कुमार और अनुपम खेर अभिनीत फिल्म ‘स्पैशल-26’ देखी. यह फिल्म देख कर उस ने आयकर विभाग के समानांतर अपनी टीम खड़ी करने का फैसला कर लिया.

देवेंद्र ने सब से पहले इंटरनेट के माध्यम से आयकर विभाग के सेटअप और पूरी कार्यप्रणाली को समझा. इस के बाद आयकर विभाग के अधिकारियों के पदनाम, विभाग की अलगअलग विंग और उन के काम करने के तरीकों की जानकारी जुटाई.

उस ने आयकर विभाग के पत्राचार के तरीके भी समझ लिए. अखबारों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया पर आयकर विभाग के छापे और सर्वे से संबंधित रोजाना आने वाली खबरों को वह ध्यान से देखने लगा.
आयकर विभाग में किसकिस तरह के टैक्स वसूले जाते हैं और किन लोगों से वसूले जाते हैं, ये बातें जानने और समझाने के लिए उस ने बाजार से आयकर संबंधी किताबें खरीद कर पढ़ीं. आयकर रिटर्न के बारे में भी देवेंद्र ने जानकारी हासिल की.

इस के बाद देवेंद्र ने सब से पहले आयकर विभाग का परिचयपत्र बनाया, जिस में उस ने खुद को चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर दर्शाया. उस ने भारत सरकार के वाटर मार्क वाले लोगो के लेटरपैड भी तैयार करवा लिए.

सन 2014 में उस ने इंदौर के मूसाखेड़ी में आयकर विभाग का अपना कार्यालय बनाया. इसी के साथ उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच खुद को आयकर विभाग का अफसर बता कर उन्हें नौकरी दे दी. देवेंद्र ने इन लोगों को अलगअलग पदनाम दे कर जिम्मेदारियां सौंप दीं. फिर इन्हीं रिश्तेदारों और दोस्तों के माध्यम से वह बेरोजगार युवाओं को आयकर विभाग में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगने लगा.

देवेंद्र बेरोजगार युवाओं से 50 हजार से एक लाख रुपए तक ले कर आयकर विभाग में अलगअलग पदनाम से नौकरी देने लगा. इन युवाओं को वह बाकायदा भारत सरकार का लोगो लगा नियुक्तिपत्र देता था. यह पत्र देते समय वह कहता था कि हमारा काम बेहद गोपनीय है, इसलिए अपने काम के बारे में किसी को मत बताना.

इसी के साथ वह नौकरी जौइन करने वाले को गोपनीयता की शपथ भी दिलवाता था. वह अपने कर्मचारियों से शपथपत्र भी भरवाता था. इस में यह शर्त लिखी होती थी कि अगर विभाग की गोपनीयता भंग की तो आयकर कानून के तहत 50 हजार रुपए जुरमाना और एक साल की सजा हो सकती है.
जुरमाने और सजा के डर से देवेंद्र के कर्मचारी किसी से अपनी असलियत नहीं बताते थे. किसी को यह भी नहीं बताते थे कि वे आयकर विभाग में काम करते हैं या उन का औफिस कहां है.

अपने कर्मचारियों के माध्यम से देवेंद्र आयकर चोरी के नाम पर धन्ना सेठों और काले धंधे करने वाले कारोबारियों की सूचनाएं जुटाता था. ऐसे लोगों की सूचनाएं जुटा कर वह फाइलों में उन का पूरा ब्यौरा दर्ज करवाता था. ऐसी ही सूचनाओं के आधार पर 4 साल पहले देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों के साथ बुरहानपुर में एक व्यक्ति के घर पर आयकर विभाग की फरजी रेड मारी थी. इस रेड में देवेंद्र को क्या मिला, इस का पूरी तरह खुलासा नहीं हो सका.

देवेंद्र का आयकर विभाग के फरजीवाड़े का काम अच्छे तरीके से चल रहा था. इस बीच देवेंद्र ने बड़ा हाथ मारने के मकसद से करीब एक साल पहले इंदौर की सिलिकौन सिटी में 14 हजार रुपए महीने का एक मकान किराए पर ले लिया. इस मकान में उस ने शानदार औफिस बनाया.

इस औफिस में देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ा ली. कई युवाओं को पैसे ले कर फील्ड औफिसर की नौकरी दे दी. कई चपरासी भी रख लिए. पूरे व्यवस्थित तरीके से उस ने कार्यालय बना लिया. इस औफिस में वह खुद सब से बड़ा अफसर था. दुर्गेश गहलोत उस का पीए था.

देवेंद्र भारत सरकार लिखी सफारी गाड़ी में आताजाता था. साथ में वह गनमैन रखता था. सतीश गावड़े उस का गनमैन भी था और वाहन चालक भी. सतीश ही एयरगन रखता था. देवेंद्र फरजी नौकरी देने के बाद आयकर विभाग का कामकाज समझाने के लिए होटलों में नवनियुक्त कर्मचारियों को ट्रेनिंग भी देता था. सुनील मंडलोई और रवि सोलंकी इन कर्मचारियों को ट्रेनिंग देते थे.

अपने कर्मचारियों को आयकर विभाग की नौकरी का विश्वास दिलाने के लिए कई प्रपंच रचता था. देवेंद्र अपने एकदो कर्मचारियों को आयकर विभाग के कार्यालय ले जाता. वहां वह अपने कर्मचारियों को गनमैन सतीश गावड़े की निगरानी में बाहर ही छोड़ देता. फिर चीफ कमिश्नर साहब के पास जाने की बात कह कर बड़े अधिकारी की तरह डायरी हाथ में ले कर तेज कदमों से चलते हुए आयकर विभाग की बिल्डिंग में चला जाता. थोड़ी देर बाद बाहर आ कर वह अपने कर्मचारियों के साथ अपने दफ्तर चला जाता.

नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान देवेंद्र डाबर ने फरजी आदेश जारी कर अपने कर्मचारियों की विधानसभा चुनाव में ड्यूटी लगा दी.

यह ड्यूटी इसलिए लगाई ताकि कर्मचारियों को यह भरोसा रहे कि सरकारी कर्मचारी ही हैं, क्योंकि चुनावों में आमतौर पर सभी सरकारी विभागों के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है. देवेंद्र ने अपने कर्मचारियों की ड्यूटी पीथमपुर में वाहनों की जांच के लिए लगाई ताकि चुनाव में अवैध और कालेधन की आवाजाही न हो सके.

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर देवेंद्र अपने कार्यालय में तिरंगा झंडा भी फहराता था. इस मौके पर वह कर्मचारियों को भी बुलाता था. उस के औफिस में स्टाफ खाकी वरदी में रहता था. ये कर्मचारी देवेंद्र को सैल्यूट करते थे. देवेंद्र इन कर्मियों के साथ सेल्फी भी लेता था.

देवेंद्र ने फील्ड अफसर और खबरी के पद पर लगाए युवाओं को रईस लोगों की चलअचल संपत्तियों की जानकारी हासिल करने की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. ये कर्मचारी बड़े व्यापारियों, बिल्डरों, प्रौपर्टी कारोबारियों, ब्याज पर पैसा देने वालों और काला धंधा करने वाले लोगों की संपत्तियों, उन की गाडि़यों और कारोबार के बारे में आसपास के लोगों से जानकारी जुटाते थे.

ये कर्मचारी अपने अधिकारी सीनियर फील्ड औफिसर सुनील मंडलोई और सीनियर इनवैस्टीगेशन औफिसर रवि सोलंकी को रिपोर्ट करते. यह रिपोर्ट रजिस्टर में दर्ज कर के अलग से फाइल बनाई जाती और उस पर लिखा जाता कि अगर इस व्यक्ति के यहां इनकम टैक्स की रेड डाली जाए तो बड़ी मात्रा में आयकर चोरी का खुलासा हो सकता है.

मास्टरमाइंड देवेंद्र ने खरगोन, कुक्षी, खंडवा, मनावर, देवास, झाबुआ, आलीराजपुर, उदय नगर, बेटम, देपालपुर, पीथमपुर, धार व बड़वानी सहित कई शहरों में रहने वाले रईसों की इस तरह की फाइलें बना रखी थीं.

उस ने कुछ नेताओं की भी इस तरह की फाइलें बना रखी थीं. सभी फाइलों और रजिस्टरों के प्रत्येक पेज पर सरकारी विभागों की तरह मोहर व दस्तखत होते थे. देवेंद्र के कर्मचारियों ने अपनी रिपोर्ट में किसी को 50 और किसी को 30 करोड़ की आसामी बता रखा था.

देवेंद्र के कार्यालय से मिले रजिस्टर और फाइलों में जिन लोगों के यहां इनकम टैक्स रेड की सिफारिश की गई थी, पुलिस उन के बयान लेने के बारे में विचार कर रही है ताकि पता चल सके कि देवेंद्र की टीम ने कहीं फरजी रेड तो नहीं डाली थी.

जांच में यह बात भी सामने आई कि आरोपी देवेंद्र का मकसद ऐसे लोगों की जानकारी जुटा कर आयकर विभाग को देना था ताकि आयकर विभाग रेड मारे और उसे 10 प्रतिशत कमीशन मिल जाए. इस के विपरीत यह भी सच है कि देवेंद्र ने आयकर विभाग को ऐसी एक भी जानकारी नहीं दी.

यह तय है कि देवेंद्र डाबर की टीम का खुलासा हो गया अन्यथा शातिर दिमाग देवेंद्र अपनी टीम के साथ धन्ना सेठों के यहां इनकम टैक्स की फरजी रेड डाल सकता था.

आयकर विभाग भी समानांतर आयकर विभाग चलाने वाले इस गिरोह का खुलासा होने पर चौंक गया. इंदौर की एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आयकर विभाग के प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर ए.के. चौहान से मुलाकात कर इस पूरे मामले की जानकारी दी. पुलिस इस गिरोह के बारे में पूरी जांचपड़ताल में जुटी हुई है.

गिरोह का खुलासा होने के बाद कई युवाओं ने पुलिस को शिकायत की है कि देवेंद्र डाबर ने नौकरी के नाम पर उन से 60-60 हजार रुपए लिए. जांच में सामने आया है कि देवेंद्र ने आयकर विभाग के नाम पर करीब 80 लोगों की टीम बना रखी थी.

मोटे तौर पर माना जा रहा है कि देवेंद्र ने युवाओं को नौकरी देने के नाम पर ही 60 से 80 लाख रुपए की ठगी की थी. ठगी के पैसों से ही कभीकभी वह कर्मचारियों को वेतन दे देता था. कभी कोई वेतन की बारबार मांग करता तो कहता कि भारत सरकार से अभी बजट नहीं आया है.

वह गोपनीयता के नाम पर लोगों में सजा और जुरमाने का भय बनाए रखता था, इसलिए पीडि़त युवा अपनी समस्या किसी को बता भी नहीं पाते थे. वे सरकारी नौकरी होने का भ्रम पाल कर कभी न कभी पूरी तनख्वाह मिलने का ख्वाब संजोए थे.

पुलिस को देवेंद्र के बैंक खातों की जानकारी भी मिली है. इन खातों में हुए लेनदेन की डिटेल बैंक से मांगी गई है. देवेंद्र भले ही खुद को आयकर विभाग का चीफ इनवैस्टीगेशन औफिसर बताता था, लेकिन उस की पत्नी एक साधारण सी आशा कार्यकर्ता है. उस से देवेंद्र ने प्रेम विवाह किया था.

यह विडंबना है कि 12वीं पास युवक 5 साल तक फिल्म ‘स्पैशल 26’ की तर्ज पर ‘स्पैशल 80’ टीम बना कर फरजी तरीके से आयकर विभाग के समानांतर काम करता रहा. वह पैसे ले कर युवाओं को आयकर विभाग में फरजी नौकरी देता रहा, बड़े व्यापारियों और रईसों की चलअचल संपत्तियों की जानकारी जुटाता रहा. इनकम टैक्स की फरजी रेड भी मारता रहा, लेकिन किसी भी सरकारी एजेंसी को इस फरजीवाड़े का पता नहीं चल सका.

अंधविश्वास में मासूम की बलि : तांंत्रिक का खूनी खेल

Crime News in Hindi: ज्योंज्यों अंधेरा घिरता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश की परेशानी बढ़ती जा रही थी. वह कभी दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखता तो कभी टिकटिक करती घड़ी की सुइयों को निहारने लगता. दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी जिस से मुकेश परेशान था. उस की 2 साल की बेटी कंचन अचानक गायब हो गई थी. शाम को वह घर के बाहर खेल रही थी. पर वह वहां से अचानक कहां गुम हो गई, किसी को पता न चला. यह बात 21 मार्च, 2019 की है. उस दिन होली(Holi) का त्यौहार था. नंदापुर गांव के लोग रंगों से सराबोर थे. फाग गाने वालों की टोली अपना जलवा अलग से बिखेर रही थी. कई लोग ऐसे भी थे, जो नशे में झूम रहे थे. कंचन का पिता मुकेश भी फाग गाता था. फाग गा कर मुकेश जब घर लौटा, तब उसे मासूम कंचन के गुम होने की जानकारी हुई थी. उस के बाद वह कंचन को ढूंढने निकल गया.

लेकिन उस का कुछ भी पता न चल पा रहा था. धीरेधीरे गांव में जब कंचन के गुम होने की खबर फैली तो लोग स्तब्ध रह गए. आज भी अनेक गांवों में ऐसी परंपरा है कि किसी के दुखतकलीफ में लोग एकदूसरे की मदद करते हैं. फाग गाने वाली टोलियों को जब मुकेश की बेटी के गायब होने की जानकारी मिली तो टोलियों ने फाग गाना बंद कर दिया. इस के बाद वे मुकेश के घर पहुंच गए.

घर पर मुकेश की पत्नी संध्या का रोरो कर बुरा हाल था. परिवार की महिलाएं उसे सांत्वना दे रही थीं. लेकिन संध्या का हाल बेहाल था. उस के मन में तमाम तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

उधर कंचन की खोज के लिए पूरा गांव एकजुट हो गया था. मुकेश के चाचा रामखेलावन ने 10-10 लोगों की टीमें बनाईं. चारों टीमों ने टौर्च व लालटेन की रोशनी में अलगअलग दिशाओं में कंचन की खोज शुरू कर दी. गांव के हर खेत, बागबगीचे, नदीनाले व झुरमुटों के बीच टीमों ने कंचन की खोज की लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

एक आशंका यह भी थी कि कहीं कंचन भटक कर गांव के बाहर न पहुंच गई हो और कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया हो. अत: इस दिशा में भी गांव के आसपास के जंगल व ऊंचीनीची जमीन के बीच कंचन की खोज की गई, लेकिन ऐसा कोई सबूत नही मिला. रात भर कंचन की खोज हुई. परंतु कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

जब मासूम कंचन का कुछ भी पता नहीं चला तो मुकेश अपने चाचा रामखेलावन के साथ थाना बिंदकी पहुंच गया. थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को उस ने अपनी 2 वर्षीय बेटी कंचन के लापता होने की जानकारी दे दी.

थानाप्रभारी ने कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने फतेहपुर के समस्त थानों को वायरलैस से 2 साल की कंचन के गुम होने की खबर भेजवा दी. थानाप्रभारी को लगा कि जब कंचन तलाश करने के बाद भी कहीं नहीं मिली है तो जरूर उस का किसी ने अपहरण कर लिया होगा और अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि किसी रंजिश या दूसरे किसी इरादे से किया होगा.

इस की 2 वजह थीं. पहली यह कि मुकेश कुशवाहा की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि कोई फिरौती के लिए उस की बेटी का अपहरण करे. दूसरी वजह यह थी कि 2 दिन बीत जाने के बाद भी मुकेश के पास किसी का फिरौती के लिए फोन नहीं आया था. रंजिश का पता लगाने के लिए थानाप्रभारी चंदेल, मुकेश के गांव नंदापुर पहुंचे.

वहां उन्होंने मुकेश से कुछ देर तक रंजिश के संबंध में पूछताछ की. मुकेश ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई रंजिश नहीं है. रुपयों के लेनदेन तथा जमीन से जुड़ा कोई विवाद भी नहीं है.

इस के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को शक हुआ कि कहीं मासूम का अपहरण किसी सिरफिरे या नशेबाज ने दुष्कर्म के इरादे से तो नहीं कर लिया. फिर दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी हो और शव को किसी नदीनाले या झाडि़यों में छिपा दिया हो. इस प्रकार का शक उन्हें इसलिए हुआ, क्योंकि होली का त्यौहार था. नशेबाजी जम कर हो रही थी. हो सकता है कि किसी नशेबाज की नजर बच्ची पर पड़ी हो और वह उसे गलत इरादे से उठा कर ले गया हो. शक के आधार पर उन्होंने पुलिस टीम के साथ नदीनालों, जंगल, झाडि़यों आदि में कंचन की खोज की. लेकिन कंचन का सुराग नहीं मिला.

इधर कंचन के लापता होने से कुशवाहा परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि कंचन पता नहीं कहां और किस हाल में होगी. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों मुकेश व उस की पत्नी संध्या की चिंता बढ़ती जा रही थी.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक कंचन का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. तब मुकेश अपने सहयोगियों के साथ फतेहपुर के एसपी कैलाश सिंह से मिलने गया. लेकिन एसपी से उस की मुलाकात नहीं हो सकी. तब मुकेश ने एसपी कपिलदेव मिश्रा से मुलाकात की और अपनी व्यथा व्यक्त की.

एएसपी ने उसी समय थाना बिंदकी के थानाप्रभारी से बात की और कंचन को हर हाल में खोजने का आदेश दिया. इस के बाद थानाप्रभारी जीजान से कंचन को ढूंढने में जुट गए. उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. पुलिस टीम ने क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को उन के घरों से उठा लिया और थाने  ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन से कंचन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्हें छोड़ना पड़ा.

नाले में मिला कंचन का शव 25 मार्च, 2019 की शाम 4 बजे चरवाहे सैमसी नाले के पास बकरियां चरा रहे थे. तभी उन की निगाह नाले में उतराते हुए एक सफेद रंग के कपड़े पर पड़ी. लग रहा था उस में किसी बच्चे की लाश हो.

चरवाहे नंदापुर व सैमसी गांव के थे, अत: उन्होंने भाग कर गांव वालों को यह बात बता दी. यह खबर मिलते ही सैमसी व नंदापुर गांव के लोग नाले की ओर दौड़ पड़े. मुकेश भी बदहवास हालत में वहां पहुंचा. उसी दौरान किसी ने फोन कर के यह सूचना बिंदकी थाने में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थाना प्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.

मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आलाकत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.

हेमराज का मन न तो खेतीकिसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचारप्रसार के लिए उस ने कुछ युवकयुवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने क ा निश्चय कर लिया.

हर होलीदिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.

21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएंबाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी.

गोलियों की तड़तड़ाहट : भारी पड़ी सिरफिरे से आशिकी

Crime News in Hindi: दिल्ली (Delhi) से सटे गाजियाबाद (Gaziabad) में हिंडन नदी (Hindon River) किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर (Sai Temple) में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट या दिखने वाला युवक वहां पहुंचे. स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवकयुवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसतेमुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवकयुवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोतेबिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.
हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था. 2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.
इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था. लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था.

यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं. जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था. उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला. इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था.

वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.
प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायजनाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.
गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया.

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