दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 2
हम अंदर गए तो वहां ब्रिगेडियर बैठा था, हम ने उसे अपना परिचय दिया तो उस ने तपाक से हमारा स्वागत किया और बोला, ‘‘मुझे पता है कि आप हत्या के केस की जांच कर रहे हैं.’’
मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हमारी जांच की लाइन बदल गई है. हमें पता लगा है कि मृतका का बाप और चाचा जासूसी में पकडे़ गए हैं.’’
वह चौंक कर बोला, ‘‘आप को कैसे पता लगा?’’
मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हम स्पैशल स्टाफ के अधिकारी हैं, किसी की गिरफ्तारी को हम गुप्त रख सकते हैं. आप निश्चिंत रहें, हम से कोई गलत काम नहीं होगा. हम यहां यह पता करने आए हैं कि मृतका की उस के ही गिरोह के किसी आदमी ने हत्या कर दी है.’’
उस ने कहा, ‘‘यह इंटेलिजेंस का मामला है, जो गुप्त होता है.’’
हम ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम किसी को नहीं बताएंगे.
उस ने बताया, ‘‘कर्नल डाक्टर के भाई पर हमें पहले से शक था. कलकत्ता की सीआईडी उस के पीछे लगी थी. उसे भी पता लग गया और वह चौकस हो गया. हमें उस की कुछ बातें पता लग चुकी थीं. हम ने उस लड़की की निगरानी शुरू कर दी. 2 मेजरों को उस के पीछे लगा दिया.’’
हम ने उस से कहा आप उन के नाम बता सकते हैं?
उस ने कहा कि एक तो डोगरा मेजर है और दूसरा एक मुसलमान मेजर है. ब्रिगेडियर ने हमें इजाजत दे दी कि इन दोनों का सहयोग ले सकते हैं.
जब हम अपने औफिस आए तो मिलिट्री औफिस के वारंट औफिसर ने हमें एक नोट दिया जिस में एक कार का नंबर लिखा गया था, लेकिन वह कार दिल्ली से बाहर की थी. हम तुरंत डोगरा मेजर और उस वारंट औफिसर को ले कर उस शहर की ओर चल दिए. उस शहर में पहुंच कर उस हवेली पर गए.
वहां वह कार खड़ी थी. डोगरा मेजर ने पहचान कर कहा कि यही कार है. हम ने दरवाजे पर दस्तक दी, 2 आदमी बाहर आए. जिन में एक की उम्र 30 और दूसरे की 35 होगी. ये दोनों जागीरदार लग रहे थे.
मैं ने उन से पूछा, ‘‘यह कार किस की है?’’
वह बोला, ‘‘हमारी है.’’
उन में से एक ने कहा, ‘‘यह चोरी की तो नहीं है.’’
मैं ने आगे बढ़ कर धीरे से कहा, ‘‘अभी हम ने आप से कुछ नहीं कहा और आप चोरी की कहने लगे. मैं पुलिस अधिकारी हूं, यह अंगरेज अधिकारी हैं. वह फौज का मेजर है और इस के साथ सेना पुलिस का अधिकारी है. तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है कि तुम हमें अंदर बैठने को कहो. अगर तुम यही चाहते हो तो हम जिस काम के लिए आए हैं, वह यही सब के सामने शुरू कर दें.’’
ये भी पढ़ें- आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 1
उस ने हमें अंदर बिठाया. मैं डोगरा मेजर के साथ बाहर आ कर कार को देखने लगा. डोगरा ने मडगार्ड के किनारे पर अंगुली रख कर देखने के लिए कहा. मैं ने देखा वहां से एक गोली की तरह चिपका हुआ लग रहा था. मैं ने टायर को देखा, एक जगह टायर के ऊपरी भाग में एक निशान था, जैसे गोल रेती से रगड़ा गया हो. यह गोली का निशान लग रहा था.
मैं ने डोगरा मेजर से कहा, ‘‘गाड़ी को थोड़ा पीछे धकेलो.’’
हम दोनों धक्का लगा कर गाड़ी को उस पिचके हुए निशान के बराबर में ले आए जो मडगार्ड पर था. मैं ने पीछे खड़े हो कर देखा, वहां से मुझे मडगार्ड का वह भाग दिखाई दिया जो टायर के सामने होता है.
वहां कीचड़ जमा हुआ था. वहां मुझे एक चमकती हुई चीज दिखाई दी. मैं ने हाथ अंदर कर के देखा तो गोली का खोखा धंसा हुआ मिला. उसे देख कर मैं उछल पड़ा, जैसे मैं अपनी जांच में सफल हो गया हूं.
मैं दौड़ता हुआ अंदर गया और सब से कहा, ‘‘बाहर आओ और ऐसी कोई चीज लाओ, जिस से मडगार्ड की मिट्टी हटाई जा सके.’’
उन में से एक जाने लगा तो मैं ने उसे बाजू से पकड़ कर रोक लिया और उस से कहा, ‘‘तुम यहीं रहो, नौकर को आवाज दो.’’
नौकर खुरपा लाया. मैं ने धीरेधीरे मडगार्ड की मिट्टी हटाई. वह चीज साफ दिखाई देने लगी. मैं ने मैक्डोनाल्ड से देखने के लिए कहा. उस ने छू कर देखा और मेजर की ओर देख कर कहा, ‘‘आप का निशाना ठीक था. टायर को आप ने मिस नहीं किया. एक इंच का अंतर रह गया था.’’
मैं ने कार के मालिकों से कहा, ‘‘तुम्हें पता नहीं था कि जीप से तुम्हारी कार पर फायर किया गया था.’’
दोनों के रंग उड़ गए और कोई जवाब नहीं दे पाए. मैं ने उन दोनों को वे निशान दिखाए. वे फिर भी चुप रहे, मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों थे?’’
मैं ने वहां एक सम्मानित व्यक्ति को बुला कर वे निशान दिखाए और कहा कि आप को इस की गवाही देनी है. दूसरा गवाह मैं ने डोगरा मेजर को बनाया. मैं ने कार वालों से पूछा, ‘‘तुम्हारा रिवौल्वर कहां है?’’
छोटा बोला, ‘‘हमारे पास रिवौल्वर नहीं है.’’
मैं ने कहा, ‘‘मैं मकान की तलाशी लूं, इस से पहले तुम खुद ही निकाल दो.’’
उन में से एक बोला, ‘‘चलो, अंदर चलो. बाकी लोग बाहर ही रहें.’’
मैं अंदर चला गया. मेरी पैंट में रिवौल्वर था. मैं ने अपनी जेब में हाथ डाल कर रिवौल्वर अपने हाथ में ले लिया. लेकिन उस ने अंदर जाते ही कहा, ‘‘आप जितनी रकम चाहो, ले लो और इन लोगों को वापस ले जाओ. अगर तुम ने इधरउधर किया तो बाहर वालों की लाशें भी नहीं मिलेंगी. बोलो, क्या चाहते हो?’’
कमरे में एक पलंग था, उस पर सुंदर चादर पड़ी थी. छोटे भाई ने चादर हटाई तो उस के नीचे एक रिवौल्वर दिखाई दिया. वह उठाने के लिए हाथ बढ़ा ही रहा था, मैं ने एक गोली चला दी, जो पलंग पर लगी और दूसरी गोली मैं ने उस के पैर पर मारी.
बाहर वालों ने गोली चलने की आवाज सुनी तो वे दौड़ कर अंदर आ गए. सब के हाथों में रिवौल्वर थे. मेरी गोलियों ने दोनों अपराधियों को वश में कर लिया. मैं ने कांस्टेबलों से कहा, ‘‘इन्हें हथकड़ी लगाओ.’’
मैं ने कागज तैयार किए और गवाहों में डोगरा मेजर और उस सम्मानित व्यक्ति के हस्ताक्षर करा लिए. डोगरा ने कहा, ‘‘ये जासूस गिरोह के लोग हो सकते हैं, इसलिए मकान की तुरंत तलाशी ले कर सील करना जरूरी है.’’
मैं पुलिस स्टेशन गया और वहां से दिल्ली इंटेलिजेंस के ब्रिगेडियर को फोन कर सूचना दी, पुलिस हैडक्वार्टर को भी बता दिया. पुलिस स्टेशन से मुझे 2-3 कांस्टेबल मिल गए, जिन्हें मैं ने मकान के अंदर और बाहर खड़ा कर दिया. वहां की पुलिस ने मेरी यह सहायता की कि एक मजिस्ट्रैट को भेज दिया.
यह केस इसलिए विशेष हो गया था कि इस में जासूसी का मामला था. कुछ ही देर में दिल्ली पुलिस की नफरी आ गई. साथ में ब्रिगेडियर भी था. मजिस्ट्रैट के सामने मकान की तलाशी ली गई लेकिन गहन तलाशी पर भी कुछ नहीं मिला.
मैं ने दोनों अपराधियों से पूछा, ‘‘तुम दोनों अपराधी हो या दोनों में से एक.’’
ये भी पढ़ें- जब सुहागरात पर आशिक ने भेज दिया बीवी का
वे बोले दोनों हैं. दिल्ली ला कर दोनों को सेना के क्वार्टर गार्ड में बंद कर दिया. अपने कमरे पर जा कर आराम करने के लिए मैं लेटा ही था कि डोगरा मेजर एक व्यक्ति को ले कर आया. वह इंटेलिजेंस का मुसलमान मेजर था. उस ने बताया कि मेरे से ज्यादा उस लड़की को यह जानते हैं.
उस ने कहा, ‘‘मृतका मुझे बरबाद कर गई. आप ने जिन 2 आदमियों को गिरफ्तार किया है, वे मेरे साले हैं. मैं ने उन से क्वार्टर गार्ड में मिल कर कहा है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.
लेकिन जासूसी के मामले में उन का दूर का भी वास्ता नहीं है. वे दोनों अपनी कहानी खुद सुनाएंगे, मैं तो आप को उस केस की मोटी बातें सुना देता हूं.’’
उस ने बताया कि मैं भी उसी जगह का रहने वाला हूं, जहां के ये लोग हैं. मेरी शादी उन के घराने में हुई है. मैं चूंकि इंटेलिजेंस में हूं, इसलिए मैं घर से कईकई दिनों तक गायब रहता था. मेरी पत्नी मेरे ऊपर शक करने लगी.
मैं ने उस का शक दूर करने की बहुत कोशिश की लेकिन उस का शक दूर नहीं हुआ. घर में क्लेश रहने लगा. पत्नी कहती थी कि आप बड़े अधिकारी हो, सुंदर लड़कियां आप के पास आती होंगी. मैं ने बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. उस के भाइयों ने भी मुझे धमकियां दीं.
एक दिन मैं ने ससुराल में कहला दिया कि अगर पत्नी का यही व्यवहार रहा तो मैं उसे छोड़ दूंगा. इस पर तो ससुराल वालों ने कहा कि अगर छोड़ोगे तो तुम्हारी हत्या हो जाएगी.
लेकिन मैं उसे वास्तव में छोड़ना नहीं चाहता, क्योंकि मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्यार था. इसी बीच मुझे मेरे हैडक्वार्टर से आदेश मिला कि मृतका लड़की का ध्यान रखो, बल्कि उस से दोस्ती का संबंध बनाओ. मेरा यह डोगरा मेजर दोस्त उस से पहले ही संबंध बना चुका था. बाद में पता चला कि वह लड़की जासूस गिरोह की है.
हमें उस लड़की के खानपान के लिए औफिस से अच्छी रकम मिलती थी. मैं उसे ऊंचे होटलों में ले गया, शिमला की सैर कराई, उस से जासूसी की बातें भी कीं लेकिन उस ने अपना भेद नहीं दिया. एक दिन दिल्ली में उस लड़की के साथ मेरे सालों ने मुझे देख लिया और मेरे घर आ कर मुझे धमकी दी.
मैं ने उन्हें बहुत समझाया कि उस लड़की से संबंध मैं ने सरकार के कहने पर बनाए हैं और उस के साथ रहना मेरी ड्यूटी में शामिल है. लेकिन उन की समझ में नहीं आया. मैं जानता था कि यह लड़की जो जनरलों तक को अपनी अंगुली पर नचाती है, मेरे इतने करीब क्यों आ रही है. वह जानती थी कि मैं इंटेलिजेंस का अधिकारी हूं, इसलिए वह मुझे अंधेरे में रखना चाहती थी.
डोगरा और मैं आगे की काररवाई के बारे में सोच ही रहे थे कि उस लड़की की हत्या हो गई. लेकिन मैं समझ रहा था कि हत्या किस ने की है.
उस के बाद से मेरे साले दिखाई नहीं दिए. मैं ने यह बात डोगरा मेजर को भी नहीं बताई. मैं ने उस की हत्या की बात अपनी पत्नी से भी नहीं की. मैं ने आप को पूरी बात बता दी है और अपने सालों से भी कह दिया है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.
उन दोनों भाइयों ने अपराध स्वीकार कर लिया और वही कहानी सुनाई जो इंटेलिजेंस अफसर ने सुनाई थी. उन्होंने अपने बयान में यह भी बताया कि अगर इंटेलिजेंस अधिकारी उन की बहन को तलाक देता, तो उस लड़की की और अपने जीजा की हत्या कर देते. लेकिन उन्होंने यह तय किया कि लड़की की हत्या कर दें तो उन की बहन का घर उजड़ने से बच जाएगा.
हत्या कर के जब वे घर आए तो उन्होंने कार को अच्छी तरह से देखा कि उस पर कहीं कोई गोली का निशान तो नहीं है, लेकिन इतनी बारीकी से नहीं देखा, जितना मैं ने देखा था. काफी दिन बीतने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो वे समझे मामला खत्म हो गया है. इस की खुशी तो थी लेकिन साथ में इस बात की भी खुशी थी कि अगर उन्हें फांसी भी हो गई तो उन की बहन का सुहाग तो बना रहेगा.
ये भी पढ़ें- ऐसा भी होता है प्यार : भाग 2
इंटेलिजेंस ने बहुत छानबीन की लेकिन वे जासूसी का केस साबित नहीं कर सके. हत्या के मामले में उन दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुई. उन के जीजा मेजर ने दिल्ली का एक योग्य वकील कर लिया, जिस ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी और उस ने संदेह का लाभ दिला कर दोनों को दोषमुक्त करा लिया.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां



