गुनहगार पति: भाग 2

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अब तक पुलिस टीम को दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक दिव्या की मौत सिर में गंभीर चोट लगने से हुई थी. उस का गला भी कसा गया था. बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई थी, फिर भी स्लाइड बना ली गई थी.

पुलिस टीम को मृतका के पति पर शक था. अत: पुलिस टीम ने अजितेश और दिव्या के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहनता से छानबीन की तो पता चला अजितेश 4 मोबाइल नंबरों पर ज्यादा बातें करता था, जिस में एक नंबर उस की पत्नी दिव्या का था, दूसरा उस के पिता प्रमोद मिश्रा का था. तीसरे और चौथे नंबर संदिग्ध थे.

इन संदिग्ध नंबरों के विषय में पूछने पर अजितेश ने बताया कि ये नंबर एफएम टीवी न्यूज चैनल में उस के साथ काम करने वाली भावना आर्या तथा दोस्त अखिल कुमार के हैं. इस में भावना आर्या के फोन पर अजितेश की लगभग हर रोज बातें होती थीं.

टीवी चैनल की मेकअप आर्टिस्ट से था चक्कर

कहीं भावना व अजितेश के बीच नाजायज संबंधों का मकड़जाल तो नहीं? इस की जानकारी करने पुलिस टीम 16 अक्तूबर, 2019 को एफएम टीवी न्यूज चैनल के सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस पहुंची और कई लोगों से पूछताछ की. पता चला कि भावना आर्या और अजितेश के बीच कुछ ज्यादा ही गहरे प्रेम संबंध हैं.

इन संबंधों के कारण पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ गया था. अखिल दोनों के प्यार की धुरी बना हुआ था. यह जानकारी भी मिली कि अजितेश की पत्नी दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उसे राखी बांधती थी.

यह पता चलते ही पुलिस टीम ने भावना आर्या और अखिल कुमार को उन के कार्यालय से हिरासत में ले लिया और उन्हें ले कर इटावा आ गई. पुलिस ने सिविल लाइंस कोतवाली में अजितेश को भी बुलवा लिया. अजितेश का सामना भावना आर्या और अखिल से हुआ तो उस का चेहरा फीका पड़ गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले अखिल से पूछताछ की. अखिल पहले तो पुलिस टीम को बरगलाता रहा और कहता रहा कि दिव्या उस की मुंहबोली बहन थी. भला एक भाई अपनी बहन की हत्या कैसे कर सकता है.

लेकिन जब पुलिस टीम ने उस पर सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने दिव्या की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि हत्या का षडयंत्र अजितेश और उस की प्रेमिका भावना आर्या ने रचा था. पैसों का लालच दे कर उसे दिव्या की हत्या के लिए इटावा भेजा गया था. अखिल ने स्वीकार कर लिया कि दिव्या की हत्या उस ने ही की थी.

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अखिल के बाद अजितेश और भावना ने भी जुर्म कबूल कर लिया. भावना ने बताया कि वह अजितेश से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन अजितेश की पत्नी दिव्या उस के प्यार में बाधक थी, इसलिए षडयंत्र रच कर उस को मरवा दिया.

अजितेश ने बताया कि उस की शादी को 3 वर्ष बीत चुके थे, लेकिन दिव्या संतान सुख नहीं दे पाई, जिस से वह उस से दूर भागने लगा. इसी बीच साथ काम करने वाली भावना से उस की दोस्ती हुई. दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों शादी करने को राजी हो गए. लेकिन इस में पत्नी दिव्या दीवार बन गई थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया.

न्यूज एंकर और उस की प्रेमिका ने स्वीकारा जुर्म

पुलिस टीम ने दिव्या हत्याकांड का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. मिश्राजी ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अभियुक्तों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. प्रैसवार्ता में एसएसपी ने घटना का खुलासा करने वाली टीम को 15 हजार रुपए पुरस्कार देने की भी घोषणा की.

चूंकि कातिलों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत अजितेश मिश्रा, भावना आर्या तथा अखिल कुमार सिंह को नामजद कर के उन्हें विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच से पति द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना अंतर्गत एक मोहल्ला कटरा बलसिंह पड़ता है. शहर के बीचोंबीच स्थित इस मोहल्ले में प्रमोद कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे थे, जिस में अजितेश सब से छोटा था. प्रमोद कुमार मिश्रा कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, किंतु अब रिटायर हो चुके थे. मोहल्ले में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. उन का अपना 3 मंजिला मकान था. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

प्रमोद कुमार मिश्रा स्वयं उच्चशिक्षा प्राप्त थे, अत: उन्होंने तीनों बेटों को उच्चशिक्षा दिलाई थी. उन के 2 बेटे पढ़लिख कर नासिक में नौकरी करने लगे थे. उन्होंने दोनों बेटों की शादी भी अच्छे घरानों में की थी. होली दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों पर बेटेबहू इटावा आते थे और घर में खुशियां मनाते थे.

अजितेश अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा ज्यादा स्मार्ट तथा तेजतर्रार था. अजितेश पढ़लिख कर एफएम टीवी न्यूज चैनल नोएडा में काम करने लगा था. वह वहां न्यूज एंकर था. अजितेश कमाने लगा तो प्रमोद मिश्रा ने उस की शादी इटावा की ही फ्रैंड्स कालोनी निवासी राजीव तिवारी की बेटी दिव्या से सन 2015 में कर दी. दिव्या एमए की पढ़ाई कर रही थी. दिव्या बेहद खूबसूरत थी.

खूबसूरत पत्नी पा कर जहां अजितेश खुश था, वहीं उस के मातापिता भी फूले नहीं समा रहे थे. दिव्या ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. वह पति का तो खयाल रखती ही थी, सासससुर की सेवा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी. वह अपनी ददिया सास का भी पूरा खयाल रखती थी.

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दिव्या कुछ महीने ससुराल में रही, उस के बाद नोएडा चली गई और पति अजितेश के साथ रहने लगी. दिव्या और अजितेश का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतने लगा. अजितेश को जब समय मिलता, वह दिव्या को सैरसपाटे के लिए भी ले जाता था.

दिव्या अखिल को मानती थी भाई

दिव्या के नोएडा स्थित घर पर अखिल कुमार सिंह का आनाजाना लगा रहता था. अखिल कुमार दिव्या के पति अजितेश के साथ चैनल में काम करता था. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.

अखिल दिव्या को बहन मानता था. दिव्या ने भी उसे मुंहबोला भाई बना लिया था. अखिल मूलरूप से अमर नगर, फरीदाबाद का रहने वाला था और अजनारा हाउस, ग्रेटर नोएडा में रहता था. दिव्या अखिल को अपना विश्वासपात्र मानती थी.

सुखमय जीवन व्यतीत करते 3 साल कब बीत गए, इस का अजितेश और दिव्या को पता ही नहीं चला. लेकिन इन 3 सालों में दिव्या मां नहीं बन सकी थी. जहां दिव्या के मन में गोद सूनी होने का दर्द था तो वहीं अजितेश के मन में भी मलाल था कि वह अभी तक बाप नहीं बन सका.

ऐसा नहीं था कि दिव्या ने अपना इलाज न कराया हो पर वह संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकी थी. दिव्या जब भी ससुराल जाती तो सास उसे टोकती, ‘‘बहू, तू खुशखबरी कब देगी. खुशखबरी सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं.’’

दिव्या लजातेसकुचाते हुए सास को जवाब दे देती. धीरेधीरे अजितेश के मन में यह बात घर कर गई कि शायद दिव्या अब कभी मां नहीं बन पाएगी. इस टीस ने दोनों के प्यार में दरार पैदा कर दी. अब अजितेश दिव्या से दूर भागने लगा. मन ही मन वह उस से नफरत करने लगा.

अजितेश और भावना इस तरह आए नजदीक

उन्हीं दिनों अजितेश की नजर खूबसूरत भावना आर्या पर पड़ी. भावना आर्या के पिता ललित नारायण आर्या नई दिल्ली स्थित नैशनल स्टेडियम में नौकरी करते थे. भावना आर्या उन की लाडली बेटी थी. वह पढ़ीलिखी और तेजतर्रार थी. भावना भी एमएम टीवी न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट थी. अजितेश और भावना एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. अकसर दोनों के बीच बातें होती रहती थीं.

इन्हीं बातों के चलते अजितेश भावना को चाहने लगा. वैसे तो वह कई सालों से उसे देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में भावना के प्रति प्यार तब जागा, जब संतान न होने पर पत्नी से उस की दूरियां बढ़ीं.

टीवी चैनल में मेकअप आर्टिस्ट होने की वजह से भावना का रहनसहन और व्यवहार उसी तरह का हो गया था. वह बनसंवर कर घर से आती थी तो देर रात को ही घर लौटती.

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भावना की खूबसूरती अजितेश को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर अजितेश भावना का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह भावना से नजदीकियां बढ़ाने लगा था, लेकिन वह उस से दिल की बात कह नहीं पा रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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गुनहगार पति: भाग 1

उस दिन अक्तूबर 2019 की 14 तारीख थी. इटावा कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अनिलमणि त्रिपाठी अपने कार्यालय में बैठे थे. शाम करीब 4 बजे एक उम्रदराज व्यक्ति उन के पास आया. उस के चेहरे से भय व दुख साफ झलक रहा था. त्रिपाठी ने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. बताइए, क्या बात है?’’

‘‘सर, मेरा नाम प्रमोद कुमार मिश्रा है और मैं शहर के कटरा बलसिंह मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बहू दिव्या मिश्रा की किसी ने हत्या कर दी है.’’ उस ने बताया.

शहर के बीचोंबीच स्थित मोहल्ले में दिनदहाड़े महिला की हत्या की बात सुन कर कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी चौंक पड़े. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस के साथ कटरा बलसिंह मोहल्ला स्थित प्रमोद कुमार मिश्रा के मकान पर पहुंच गए.

उस समय घर के बाहर भीड़ जुटी थी. प्रमोद कुमार मिश्रा कोतवाल को तीसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में ले गए, जहां उन की बहू दिव्या की लाश पड़ी थी. लाश खून से लथपथ थी.

उस के सिर के पिछले भाग में चोट का गहरा निशान था. लाश के पास ही चीनी मिट्टी का बना फूलदान टूटा पड़ा था. संभवत: उसी गुलदस्ते से प्रहार कर उस की हत्या की गई थी. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. देखने से प्रतीत होता था कि दिव्या ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा सीओ चंद्रपाल सिंह वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इसी दौरान अधिकारियों ने मृतका की देह में कुछ हरकत महसूस की. जीवित होने की संभावना पर दिव्या को आननफानन में जिला अस्पताल भेजा गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

फोरैंसिक टीम ने जहां घटनास्थल की गहन जांच कर फिंगरप्रिंट लिए, वहीं खोजी कुत्ता घटनास्थल पर पड़े खून को सूंघ कर कमरे में चक्कर लगाता रहा फिर मकान के नीचे उतरा और लडैती भवन तक गया. उस के बाद वापस आ गया. खोजी कुत्ता मददगार साबित नहीं हुआ.

पुलिस अधिकारियों को पूछताछ से पता चला कि दिव्या मिश्रा, टीवी एंकर अजितेश मिश्रा की पत्नी थी. घटना के समय अजितेश मिश्रा नोएडा में था. पिता प्रमोद मिश्रा ने फोन कर के उसे दिव्या की मौत की सूचना दे दी.

प्रमोद ने दिव्या के मायके वालों को भी उस की मौत की खबर दे दी थी. खबर पा कर दिव्या का भाई, पिता, नानी आदि जिला अस्पताल पहुंच गए. सब दिव्या की मौत पर आंसू बहा रहे थे.

जिला अस्पताल में सिटी मजिस्ट्रैट सत्येंद्र नाथ पांडेय की उपस्थिति में दिव्या के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. रात 10 बजे शव का पोस्टमार्टम डा. पल्लवी दीक्षित, डा. उदय प्रताप तथा डा. ऋषि यादव ने किया. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया. क्योंकि पुलिस को अभी कुछ और जांच करनी थी. हालांकि शव लेने मृतका का पति अजितेश आ गया था.

दरअसल, उस दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा विभाग की लखनऊ में आयोजित की गई क्राइम मीटिंग में गए थे. वापस आने पर उन्हें हत्याकांड की जानकारी हुई तो वह रात 10 बजे घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने पुन: फोरैंसिक टीम को बुलाया और जांच कराई.

मिश्रा रात 2 बजे तक घटनास्थल पर रहे और एकएक बिंदु की बारीकी से जांच की. जांच प्रभावित न हो इसलिए दिव्या का शव परिजनों को नहीं सौंपा गया था. उन के द्वारा जांच कराए जाने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.

शव का दाह संस्कार करने के बाद प्रमोद कुमार मिश्रा सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचे और अज्ञात के खिलाफ बहू की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी ने इस हाईप्रोफाइल केस की जांच के लिए सीओ (सिटी) चंद्रपाल सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई. विशेष टीम में कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी, स्वाट टीम प्रभारी सत्येंद्र सिंह यादव के अलावा तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का एक बार फिर से निरीक्षण किया, फिर घर के मुखिया प्रमोद कुमार मिश्रा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वह कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, जहां से एक साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे. घर में पत्नी के अलावा बहू दिव्या मिश्रा तथा बूढ़ी मां रहती थी. पत्नी कुछ दिन पहले बड़े बेटे के पास चली गई थी.

स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रमोद कुमार सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने लगे थे. वह सुबह 11 बजे नाश्ता कर के घर से निकलते, फिर डेढ़दो बजे तक घर वापस आते थे. शाम को फिर 5 बजे घर से निकलते और रात 8 बजे घर वापस आ जाते थे. उन के कमरे का दरवाजा बाहर की ओर खुलता था. उसी से वह आतेजाते थे. मकान के मुख्य दरवाजे से उन का ज्यादा वास्ता नहीं रहता था.

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14 अक्तूबर, 2019 को वह 11 बजे नाश्ता कर के घर से कर्वा खेड़ा स्कूल जाने को निकले. स्कूल स्टाफ ने उन्हें किसी जरूरी काम के लिए बुलाया था. स्कूल का काम निपटा कर वह अपराह्न लगभग 2 बजे घर आए. उन्होंने खाना देने हेतु बहू दिव्या को आवाज लगाई, लेकिन बहू ने कोई जवाब नहीं दिया. फिर उन्होंने उस से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने मोबाइल रिसीव नहीं किया. इस से उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. वह भी आराम करने लगे.

लगभग 3 बजे उन की आंखें खुलीं तो निगाह मेनगेट पर चली गई, जो खुला हुआ था. वह समझ गए कि घर में किसी का आनाजाना हुआ है. घर में कौन आयागया, यह पता लगाने के लिए वह तीसरी मंजिल पर पहुंचे. बहू दिव्या का कमरा खुला था. उन्होंने आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. बहू दिव्या फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. फूलदान टूटा हुआ था. चिल्लाते हुए वह बाहर आए और पड़ोसियों को जानकारी दी. उस के बाद वह थाने पहुंचे.

प्रमोद मिश्रा की बात सुनने के बाद सीओ चंद्रपाल सिंह ने पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है? या फिर आप के घर किसी विशेष व्यक्ति का आनाजाना था?’’

‘‘सर, दिव्या किसी अनजान व्यक्ति के लिए गेट नहीं खोलती थी. मेरी गैरमौजूदगी में अगर कोई आता भी था तो वह यह कह कर वापस कर देती थी कि पापा घर पर नहीं हैं.’’

‘‘हत्या कहीं लूट के इरादे से तो नहीं की गई?’’ सीओ चंद्रपाल सिंह ने उन से पूछा.

‘‘नहीं सर, घर में लूट नहीं हुई. घर का कीमती सामान, आभूषण तथा नकदी सब सुरक्षित है. मैं ने सब चैक कर लिया है.’’ प्रमोद मिश्रा ने बताया.

पति आया शक के दायरे में घर में घटना के समय प्रमोद मिश्रा की वृद्ध मां मौजूद थीं. वह चलनेफिरने और बोलनेचालने में भी लाचार थीं. उन्हें दिखाई भी कम देता था. ऐसी स्थिति में पुलिस ने उन से पूछताछ करना उचित नहीं समझा.

पुलिस टीम ने प्रमोद मिश्रा के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. लेकिन हत्या के संबंध में वह कोई जानकारी नहीं दे सके. टीम ने मृतका दिव्या के भाई सचिन कुमार तथा अन्य परिजनों से पूछताछ की, लेकिन वह भी कोई खास जानकारी नहीं दे पाए.

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दिव्या का पति अजितेश मिश्रा पुलिस टीम को जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. टीम के सदस्य जब भी उस से पूछताछ करने की कोशिश करते, वह बेहोश हो जाने का नाटक करता. उस के इस नाटक से पुलिस टीम को शक हुआ. वैसे भी पुलिस टीम को किसी करीबी पर ही शक था.

अत: पुलिस टीम ने कुछ सख्त रुख अपनाया. तब वह बोला, ‘‘सर, दिव्या को मैं बेहद प्यार करता था. वह भी मुझे बहुत चाहती थी. वह मेरे साथ नोएडा में ही रहती थी. कुछ दिनों पहले मेरी मां जब बड़े भाई के पास नासिक चली गईं, तब मैं ने ही दिव्या को अपनी दादी और पापा की देखभाल के लिए नोएडा से घर भेज दिया था. पता नहीं मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरी पत्नी को मुझ से छीन लिया. पत्नी के जाने के बाद मेरा तो जीवन ही बरबाद हो गया.’’

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खिलाड़ी बहन का दांव : भाग 3

बंटी नादान बच्चा नहीं था. दोनों हाथों में लड्डू देख वह खुद पर काबू नहीं रख सका. उस ने सुनयना के साथ शादी करने की हामी भर ली. बबीता भी यही चाह रही थी कि उस के गले में फंसी हड्डी किसी तरह से निकल जाए. बंटी उस के कब्जे में आ गया तो फिर उस के लिए एक रास्ता बन जाएगा.

बंटी जानता था कि घर के हालात के मद्देनजर उस की शादी होना इतना आसान नहीं है. सुनयना के साथ शादी की बात सुन कर बंटी फूला नहीं समा रहा था. उसी शाम उस ने यह शादी वाली बात अपने पिता को बताई, तो अजय यादव को कुछ अजीब सा लगा.

अजय यादव यह तो पहले ही जानता था कि बबीता ने उस के लड़के पर अपना कब्जा जमा रखा है. अब वह अपनी बहन से बंटी की शादी करा कर कौन सा नाटक करने जा रही है. उसे मालूम था कि बबीता तेजतर्रार औरत है जरूर उस के मन में कोई षडयंत्र चल रहा होगा. यही सोच कर अजय यादव ने बंटी को समझाते हुए उन लोगों से दूरी बनाए रखने की सलाह दी. लेकिन बंटी तो जैसे बबीता के प्यार में पागल हो चुका था.

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वह  बबीता के साथ संबंध बनाए रखने के लिए सुनयना के साथ शादी करने पर अड़ गया. बंटी ने यह बात बबीता को बताई कि उस के घर वाले सुनयना के साथ शादी करने के लिए राजी नहीं हैं. सुन कर बबीता को गुस्सा आ गया. वह तुरंत अजय यादव से मिली.

बबीता ने अजय यादव को धमकाया कि शायद तुम्हें बलात्कार की सजा मालूम नहीं है. तुम्हारे बेटे ने मेरी बहन के साथ बलात्कार किया है. इस बात को मैं और तुम्हारा बेटा ही जानता है.

बलात्कार वाली बात सुनते ही अजय यादव का गला सूख गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि बबीता जो कह रही है वह कहां तक सच है. उस ने उसी समय बंटी से पूछा तो उस ने चुप्पी साध ली. वह जानता था कि  बबीता जो भी कर रही है उसी के हित में है. उस दिन के बाद अजय यादव ने बंटी और बबीता के बीच दखलअंदाजी करना बंद कर दिया.

घटना से लगभग 7 महीने पहले अजय यादव ने अपनी बेटी लक्ष्मी का बर्थ डे मनाने का मन बनाया. उसी दिन बबीता अपनी बहन सुनयना को साथ ले कर अजय यादव के घर पहुंच गई. उस दिन सुनयना दुलहन के कपड़ों में थी. इस से पहले अजय यादव कुछ समझ पाता बबीता ने उस से शादी की तैयारी करने को कहा.

शादी वाली बात सुनते ही अजय यादव हक्काबक्का रह गया. लेकिन उस समय अजय में बबीता की बात का विरोध करने का साहस नहीं था. इसीलिए उस ने आननफानन में एक पंडित को बुलवा कर बंटी के साथ सुनयना की शादी करा दी. सुनयना की शादी का कन्यादान भी शंभू गिरि ने ही किया.

बंटी और सुनयना की शादी हो जाने के बाद बबीता अपने पति शंभू गिरि को साथ ले कर अपने कमरे पर आ गई. उस के बाद बबीता जब भी चाहती, अपनी बहन की खैरखबर लेने के बहाने बिना किसी रोकटोक के बंटी के घर आनेजाने लगी. अब अजय का मुंह भी पूरी तरह बंद हो गया था.

शादी वाली रात ही बंटी सुनयना की हकीकत समझ गया था. जब उसे मालूम हुआ कि सुनयना मंदबुद्धि है तो उसे बहुत दुख हुआ. लेकिन वह बबीता के प्यार में पागल था. उस ने सोचा कि वह घर का थोड़ा बहुत काम तो करती ही रहेगी. बाकी उस के तन की प्यास बुझाने के लिए बबीता है ही.

लेकिन सुनयना की हकीकत पता चलते ही अजय को झटका लगा. उस ने सोचा भी नहीं था कि वह अपने बेटे की जिद के आगे ऐसी मुश्किल में फंस जाएगा. उस की बीवी पहले से ही कम सुनती थी, घर में बहू आई तो वह भी पागल जैसी.

जैसेजैसे वक्त आगे बढ़ता गया, सुनयना का पागलपन खुल कर सामने आता गया. कभीकभी तो वह रात में ही दीवार पर लगी रेलिंग को फांद कर घर से गायब हो जाती थी. फिर उसे ढूंढ कर लाना पड़ता था.

सुनयना की हरकतों से आजिज आने के बाद बंटी ने बबीता से शिकायत करते हुए कहा कि तुम ने अपनी पागल बहन के साथ शादी करा के मुझे किस मुसीबत में डाल दिया.

बंटी ने बबीता से कहा कि इस से पहले वह हमें किसी मुश्किल में डाले उसे तुम अपने घर ले जाओ. बबीता ने बड़ी मुश्किल से उस की शादी कर पीछा छुड़ाया था, अब यह बात बबीता के पति शंभू गिरि के सामने आई तो उस ने उसे बिहार छोड़ आने को कहा. लेकिन बबीता उसे बिहार छोड़ने को तैयार न थी.

उसे दुविधा थी तो इस बात की कि अगर वह बिहार चली गई तो उस का बंटी से मिलनाजुलना बंद हो जाएगा. वह किसी भी कीमत पर बंटी से संबंध खत्म करना नहीं चाहती थी.

जिस समय की यह बात है उस समय पूरे देश में कोरोना कहर ढा रहा था. देश में लौकडाउन लगने के कारण सब लोग घर से निकलने से बचते थे. दिन के 12 बजतेबजते पूरा शहर सुनसान नजर आने लगता था.

उसी लौकडाउन का लाभ उठाने के लिए बबीता ने बंटी के साथ मिल कर एक षडयंत्र रचा. जिस के तहत सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे यानी दोनों ने सुनयना को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

योजना के तहत 24 मई, 2020 को बबीता सुनयना को साथ ले कर घर से निकली और फिर उसे सरकारी अस्पताल के पास बैठा कर बंटी के कमरे पर पहुंच गई. पूर्व नियोजित योजनानुसार दोनों सुनयना को काशीपुर की गड्ढा कालोनी में कमरा दिखाने की बात कह कर रामनगर रेलवे ट्रैक की ओर निकल गए. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था.

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फिरोजपुर गांव के पास पहुंचतेपहुंचते सुनयना ने पानी पीने की इच्छा जाहिर की तो बंटी ने उसे पास में खड़े एक हैंडपंप से पानी पिलाया. उस के बाद उन्होंने सुनयना से कहा कि गड्ढा कालोनी पास ही है. सुनयना ने कभी गड्ढा कालोनी का नाम तक नहीं सुना था. फिर भी वह उन्हीं दोनों पर विश्वास कर के आगे बढ़ती गई.

जंगल के पास पहुंचते ही बबीता वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गई. उस के बाद मौका पाते ही बंटी ने सुनयना को कब्जे में कर के उस का गला दबाने की कोशिश की. लेकिन सुनयना उस के चंगुल से छूट कर भाग गई. जब बंटी को लगा कि अगर वह वहां से भागने में कामयाब हो गई तो उन का सारा खेल सामने आ जाएगा.

बंटी ने फिर से कोशिश की और पूरा जोर लगाते हुऐ उसे 50 मीटर की दूरी पर धर दबोचा. उसी समय अपना बचाव करते हुए सुनयना ने बंटी के चेहरे पर नाखून भी मारे. लेकिन बंटी ने दरिंदगी दिखाते हुए सुनयना का गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

सुनयना की हत्या करने के दौरान उस का और बंटी का मास्क भी टूट गया था. जिसे बंटी ने वहीं पर फेंक दिया था. घर से निकलने से पहले ही पूर्व योजनानुसार बबीता एक थैले में सुनयना के कपड़े भी रख लाई थी. ताकि उस के खत्म होने के बाद बहाना बनाया जा सके कि सुनयना अकसर अपने कपड़े साथ ले कर घर से गायब हो जाती थी. उस की हत्या का आरोप उन पर न आने पाए.

बबीता ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह जो खेल अपनी बहन की जिंदगी के साथ खेल रही है वही उस के जी का जंजाल बन जाएगा. इस वारदात का खुलासा करते ही एएसपी राजेश भट्ट ने इस केस के खुलासे में लगी पुलिस टीम को डेढ़ हजार रुपए का ईनाम दिया.

इस केस के खुलने पर पुलिस ने 30 मई, 2020 भादंवि की धारा 302/201 के तहत बंटी यादव और बबीता को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

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खिलाड़ी बहन का दांव : भाग 2

शंभू गिरि अपनी बीवी को बिहार में ही छोड़ कर आया था. उस की बीवी बबीता देखने भालने में जितनी सुंदर थी उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार भी थी. काशीपुर आने के बाद जब शंभू गिरि का काम ठीकठाक चलने लगा तो बबीता उस के साथ रहने की जिद करने लगी.

शंभू गिरि ने उसे समझाया कि जिस फैक्ट्री में वह काम करता है वहीं एक छोटे से कमरे में रहता है. जहां अन्य मजदूर भी रहते हैं, उस का रहना ठीक नहीं है. लेकिन बबीता नहीं मानी.

बीवी की जिद के आगे शंभू गिरि की नहीं चली तो उस ने काशीपुर में ही किराए का एक कमरा ले लिया. वह फैक्ट्री का कमरा छोड़ कर पत्नी के साथ किराए के कमरे में रहने लगा. किराए के कमरे में आते ही उस के खर्चों में बढ़ोत्तरी हो गई.

बबीता पहले ही शौकीन मिजाज युवती थी. सजसंवर कर रहना उस का पहला शौक था. शंभू गिरि सुबह होते ही तैयार हो कर फैक्ट्री चला जाता था. उस के जाने के बाद कमरे पर बबीता अकेली रह जाती थी. बिहार से काशीपुर आने के बाद काशीपुर की आबोहवा ऐसी लगी कि कुछ ही दिनों में उस के रूपरंग में काफी तब्दीली आ गई.

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बबीता बनठन कर निकलती और शहर में काफी देर तक इधरउधर घूमने के बाद घर वापस आ जाती थी. समय के साथ बबीता 2 बच्चों की मां बन गई. सीमित आय, ऊपर से किराए का मकान और 2 बच्चे, सो शंभू गिरि का बजट गड़बड़ाने लगा था. उस के बावजूद बबीता फिजूलखर्ची से बाज नहीं आती थी. घर के खर्च बढ़े तो शंभू ने बबीता को समझा कि वह खुद भी कहीं काम करे.

बबीता देखनेभालने में सुंदर और तेजतर्रार थी, जिस की वजह से उसे एक प्रौपर्टी डीलर के घर पर घरेलू और कपड़े धोने का काम मिल गया.

बबीता सुबह जल्द खाना बना कर पति को फैक्ट्री भेजने के बाद बच्चों को घर पर छोड़ कर काम पर निकल जाती थी. बीवी को काम मिलने से शंभू को काफी राहत मिली.

बबीता जिस घर में काम करती थी, उसे वहां से पैसों के अलावा कई चीजों की काफी सहायता मिलने लगी. कभीकभी मालिक के घर से वह खाना, कपड़े और घर का सामान भी ले आती थी. जिस के कारण शंभू गिरि की घरगृहस्थी फिर से पटरी पर आ गई. कुछ सालों के बाद बबीता ने तीसरे बच्चे यानी एक बेटी को जन्म दिया.

लोगों के घरों में काम करने वाली औरतें भले ही कितनी भी चरित्रवान हों, लेकिन समाज की नजरों में उन की कोई इज्जत नहीं होती.

हालांकि बबीता 40 वर्ष की उम्र पार कर चुकी थी. साथ ही 3 बच्चों की मां भी थी. इस के बावजूद उस का गदराया शरीर आकर्षक लगता था. बबीता कामुक प्रवृत्ति की औरत थी. लेकिन अब उस के बच्चे भी जवान हो चुके थे.

सभी किराए के एक कमरे में रहते थे, जिस से उसे पति के पास जाने का मौका नहीं मिल पाता था. बबीता का मन भटकने लगा था, घरों में काम करते हुए बबीता इतनी खुल गई थी कि किसी भी अंजान आदमी से जल्दी ही जानपहचान बढ़ा लेती थी.

बबीता जिस मालिक के घर में काम करती थी, उसी मालिक के यहां अजय यादव भी माली का काम करता था. एक दिन अजय का बेटा बंटी उसे खाना देने के लिए आया. उसी दौरान उस की मुलाकात बबीता से हुई.

अजय ने खाना खाते समय बंटी का परिचय बबीता से करा दिया था. बबीता और अजय यादव दोनों ही बिहार से थे, इसलिए दोनों में ठीकठाक ही बात हो जाती थी. हालांकि बंटी अभी कम उम्र का ही था. लेकिन वह बोलनेचालने में बहुत ही तेजतर्रार था.

उस दिन बबीता घर का काम खत्म कर के बंटी के साथ निकल गई थी. उस ने बंटी के घर की सारी जानकारी हासिल कर के उस से उस का मोबाइल नंबर ले लिया था.

अब वह वक्तबेवक्त बंटी से फोन पर बात करने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने बंटी से पक्की दोस्ती गांठ ली. उसी दोस्ती के सहारे उस ने बंटी के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया था.

अजय यादव के 4 छोटेछोटे बच्चे थे बंटी, राजा, रोहित और बेटी लक्ष्मी. अजय यादव की बीवी कम सुनती थी. अजय परिवार जिस मकान में रहता था, हालांकि वह किराए का ही था. लेकिन उस में कई कमरे थे. एक कमरा तो दरबाजे के पास ही था. जिस का अंदर वाले हिस्से से कोई मतलब नहीं था. उसी का लाभ उठाते हुए बबीता बंटी के साथ घर चली आती. जिस के आने का बंटी की मम्मी को भी पता नहीं चल पाता था.

बंटी और बबीता उसी कमरे में बैठ कर बतियाने लगते थे. अजय यादव शाम तक ही घर वापस आता था. उसी का लाभ उठा कर उस ने बंटी के साथ शारीरिक संबंध बना लिए. इस की भनक न तो बबीता के घर वालों को लगी और न ही बंटी के. जैसे अजय यादव सीधासादा इंसान था वैसे ही उस की बीवी भी थी.

बबीता बंटी के मुकाबले दोगुनी उम्र की महिला थी. यही बात बंटी की मम्मी रामकली को अखर रही थी. दोनों के टाइमबेटाइम मिलने वाली बात रामकली ने अपने पति अजय यादव को बताई.

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अजय ने बबीता को समझाया कि तुम उम्रदराज भी हो, समझदार भी, जबकि बंटी अभी बच्चा है. तुम्हारा इस तरह उस के साथ उठनाबैठना ठीक नहीं है. तुम दोनों को साथ आतेजाते देख मोहल्ले वाले बात बनाने लगे हैं. इसलिए तुम हमारे यहां आनाजाना कम कर दो.

बबीता के दिलोदिमाग पर बंटी का भूत सवार हो चुका था. वह किसी भी हालत में उस के बिना नहीं रह सकती थी. इस उम्र में बंटी के प्रति उस के दिलोदिमाग में जो पागलपन था उसे प्रेम तो कतई नहीं कहा जा सकता. वह उस की कामवासना शांत करने का एक रास्ता था.

जब अजय यादव ने उन दोनों के बीच रोड़ा बनने की कोशिश की तो दोनों ने एक अलग रास्ता निकाल लिया. बबीता ने अपनी जानपहचान की बदौलत बंटी को काशीपुर के मोहल्ला टांडा में किराए का कमरा दिला दिया. उस के बाद इसी कमरे पर दोनों बिना रोकटोक के मिलने लगे थे.

बबीता की एक छोटी बहन थी सुनयना, जो बिहार में ही रहती थी. उस की उम्र लगभग 20 साल थी. मानसिक रूप से कमजोर सुनयना घरवालों के लिए सिरदर्द बनी हुई थी. जब उस का मन होता, बिना बताए ही बाहर निकल जाती थी.

काफी समय से बबीता के मांबाप काशीपुर में किसी के साथ उस की शादी कराने की कह रहे थे. बबीता उस की शादी के चक्कर में लगी थी. काफी कोशिश के बाद उस ने किसी से बात चलाई. फिर बिहार से सुनयना को बुलवा लिया. लेकिन लड़की की हालत देखते ही उस लड़के ने शादी से इंकार कर दिया. उस के बाद से सुनयना बबीता के साथ ही रह रही थी.

शंभू गिरि का परिवार काशीपुर की विजय नगर, नई बस्ती कालोनी के जिस मकान में रहता था, वह किराए का था. उस का किराया लगभग साढ़े 3 हजार रुपए महीना था, जो शंभू गिरि के बजट से बाहर था. इस के बावजूद बबीता ने अपनी बहन को बुला लिया था. शंभू गिरि ने कई बार बबीता से उसे बिहार भेजने की बात कही. लेकिन उस ने नहीं सुनी. तब तक बबीता ने बंटी को प्रेम प्रसंग में फंसा लिया था. जिसे वह किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं थी.

बबीता के बंटी के घर आनेजाने पर पाबंदी लगी तो उस ने उस का भी रास्ता निकाल लिया. उस ने एक गहरी चाल चलते हुए एक दिन बंटी को अपनी बहन सुनयना से मिलवा दिया. सुनयना देखनेभालने में ठीकठाक थी. लेकिन बंटी को यह पता नहीं था कि सुनयना मंदबुद्धि है.

सुनयना से मिलवाने के बाद बबीता ने बंटी को बताया कि अगर वह चाहे तो सुनयना से शादी कर सकता है. अगर वह उसे पसंद है तो उस की शादी सुनयना से करा देगी.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

खिलाड़ी बहन का दांव : भाग 1

24 मई 2020 को दिन के कोई 4 बजे का समय रहा होगा. काशीपुर (उत्तराखंड) से तकरीबन 5 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित गांव फिरोजपुर गांव की कुछ औरतें हेमपुर डिपो के जंगल में घास काटने गई हुई थीं.

उन औरतों की नजर झाडि़यों में एक युवती की लाश पर पड़ी. लाश देख कर औरतों की हिम्मत जबाव दे गई. एक तो देश में महामारी कोरोना के चलते देश भर में लौकडाउन था. ऊपर से 10 तरह के डर. खुद तो एक पहर भूखे रह लें, लेकिन बेजुबान पशुओं को तो भूखा नहीं रखा जा सकता था.

दूरदूर तक इंसान नजर नहीं आ रहा था. औरतें घास काटना छोड़ कर गांव की ओर चली आईं. गांव आती उन औरतों ने जंगल में एक युवती की लाश पड़ी होने की बात ग्राम प्रधान मथुरी लाल गौतम को बता दी.

जंगल में युवती की लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही ग्राम प्रधान मथुरी लाल गौतम ने फोन कर के यह बात काशीपुर कोतवाली को बता दी. फिर ग्राम प्रधान 10-12 लोगों को साथ ले कर उस जंगल की ओर चले गए.

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यह सूचना मिलते ही काशीपुर कोतवाली निरीक्षक चंद्रमोहन सिंह, सीओ मनोज ठाकुर, एसएसआई सतीश चंद्र कापड़ी, आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी, एसआई गणेश पांडे आदि घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. कुछ ही देर में पुलिस ग्राम प्रधान द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई.

देश में कोरोना महामारी के चलते लोगों के मन में इस कदर डर बैठा था कि कोई भी उस युवती की लाश के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने सब से पहले उस लाश के आस पास वाले क्षेत्र को पूरी तरह सैनेटाइज कराया. फिर पुलिस ने महिला के शव का निरीक्षण किया.

निरीक्षण में युवती के गले और ठुडडी पर नील के निशान दिख रहे थे. जिस से लग रहा था कि युवती की गला दबा कर हत्या की गई थी. शक यह भी था कि कहीं किसी ने उस के साथ दुराचार करने के बाद तो हत्या नहीं कर दी.

युवती के शरीर पर काले रंग का कुरता और पीले रंग की सलवार थी. उस की उम्र भी 19-20 वर्ष के आसपास थी. युवती की लाश और घटनास्थल को देख अनुमान लगाया गया कि उस की हत्या कहीं और कर के लाश यहां ठिकाने लगाई गई है. चेहरे के मेकअप से मृतका शादीशुदा लग रही थी.

शाम ढल गई थी. चारों तरफ अंधेरा छाने लगा था. दूसरे लौकडाउन के चलते हर शख्स घर से बाहर निकलते डरता था. फलस्वरूप, उस समय युवती की शिनाख्त नहीं हो सकी. काशीपुर पुलिस ने उस की लाश मोर्चरी में रखवा दी. इस मामले में एसएसआई सतीश चंद्र कापड़ी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करा दिया. साथ ही इस की सूचना पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई.

पुलिस ने मृतका के फोटो वाट्सऐप पर प्रसारित किए तो उस की शिनाख्त हो गई. मृतका की शिनाख्त अलीगंज रोड स्थित कुसुम वाटिका, निवासी सुनयना के रूप में हुई थी. काशीपुर के विजय नगर, नई बस्ती निवासी बबीता पत्नी शंभू गिरि ने उस की शिनाख्त अपनी छोटी बहन सुनयना के रूप में की. शिनाख्त हो जाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. 27 मई को डा. कैलाश राणा ने सुनयना के शव का पोस्टमार्टम किया. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी.

गले के साथसाथ उस के चेहरे पर भी नाखूनों के निशान थे. इस के साथ ही पुलिस की बलात्कार के बाद हत्या की शंका भी खत्म हो गई. लेकिन पुलिस को अभी भी शक था कि मृतका की हत्या घटना स्थल पर नहीं गई थी.

शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने सब से पहले उस की बहन बबीता से पूछताछ की. बबीता ने बताया कि लगभग 7 महीने पहले ही सुनयना की शादी अलीगंज रोड निवासी बंटी के साथ हुई थी. बबीता ने बताया कि बंटी उस का पूर्व परिचित था.

बबीता शहर में ही किसी के घर पर काम करती थी. बंटी के पिता भी उसी मालिक के यहां पर माली का काम करते थे. बंटी अपने पिता को खाना देने वहां अकसर जाता रहता था. उसी दौरान उस की बबीता से जानपहचान हुई थी.

बबीता को लगा कि बंटी सुनयना के लिए ठीक रहेगा, इसलिए उस ने बंटी के पिता से सुनयना और बंटी की शादी के बारे में बात की. पिता ने सुनयना का फोटो देखा तो वह राजी हो गया. फिर बंटी और सुनयना की शादी सामाजिक रीतिरिवाज से हो गई.

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बबीता ने पुलिस को बताया कि 23 मई को वह सुनयना को अपने घर ले आई थी. अगले ही दिन बंटी उसे गड्ढा कालोनी में किराए का कमरा दिखाने की बात कह कर अपने साथ ले गया था. इस के बाद उसी शाम सुनयना की जंगल में लाश मिली.

सुनयना फिरोजपुर के जंगल में कैसे पहुंची यह बात उस की समझ से भी बाहर थी. बबीता का बयान लेने के बाद पुलिस ने मृतका के पति बंटी यादव को भी पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ में बंटी से भी सुनयना की हत्या के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

पुलिस पूछताछ में बंटी ने बताया कि वह उसे किराए का मकान दिखाने के बाद सीधा घर ले आया था. उस के बाद वह किसी काम से शहर चला गया. उसी दौरान सुनयना घर में किसी को बिना कुछ बताए ही घर से चली गई थी. उस की हत्या किस ने की, इस की उसे कोई जानकारी नहीं थी.

यह बात तो सुनयना की बहन बबीता भी पुलिस को बता चुकी थी कि उस का मानसिक संतुलन सही नहीं था. जिस की वजह से वह कभी भी चुपचाप घर से निकल जाती थी.

मृतका की बहन और उस की ससुराल वालों से पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने इस केस की तह तक जाने के लिए 4 टीमों का गठन किया.

काशीपुर कोतवाली प्रभारी निरीक्षक चंद्रमोहन सिंह के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने शहर में अलगअलग जगहों पर लगे लगभग 40 सीसीटीवी कैमरों की फुटेजों की गहन पड़ताल की.

इस के अलावा घटनास्थल के आसपास, उस की ससुराल वालों के निवास, व मृतका की बहन बबीता के घर के पास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को देखा. कई संदिग्ध लोगों से भी पूछताछ की गई.

इसी दौरान 23 मई, 2020 को दढि़याल रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरे से ली गई एक फुटेज में सुनयना एक संस्था द्वारा गरीबों को बांटा जा रहा खाना लेती हुई देखी गई. इस से साफ जाहिर हो गया कि 23 मई को सुनयना काशीपुर टांडा चौराहे के आसपास ही थी. पूछताछ में बबीता भी पुलिस को बता चुकी थी कि 23 मई को वह सुनयना को अपने घर ले गई थी.

पुलिस द्वारा ली गई अलगअलग सीसीटीवी कैमरों की फुटेजों की गहन पड़ताल में पुलिस को बहुत बड़ी कामयाबी मिली. एक सीसीटीवी फुटेज में सुनयना के साथ उस का पति बंटी और बहन बबीता घटना वाले दिन 24 मई, 2020 को एक साथ रामनगर रोड की ओर जाते दिखाई पड़े.

यह जानकारी मिलते ही जांच में लगी पुलिस टीम ने उसी दिशा में बढ़ते हुए लोगों से जानकारी हासिल की. पता चला कि फिरोजपुर गांव से रामनगर जाने वाली ट्रेन की पटरी पर दोपहर के समय एक लड़की और एक लड़के को साथसाथ जाते देखा गया था.

इस से यह साफ  हो गया कि सुनयना की हत्या उस के पति बंटी ने ही की है. इस के बावजूद पुलिस इस केस के पुख्ता सबूत जुटाने में लगी रही थी.

पुलिस ने फिर से बंटी और बबीता को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई. दोनों पुलिस के सामने ज्यादा समय तक टिकने की हिम्मत नहीं कर पाए. बंटी और बबीता ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार करते हुए हत्या का खुलासा कर दिया. उन्होंने बताया कि प्रेमप्रसंग के चलते दोनों ने सुनयना को योजनानुसार गला दबा कर मार डाला था.

उन से पूछताछ के बाद पुलिस ने बंटी की निशानदेही पर सुनयना का थैला, उस की चप्पलें और मास्क रामनगर रोड स्थित ट्रांसफार्मर के पास से बरामद कर लें. बंटी ने पुलिस को बताया कि उस ने बबीता के कहने पर ही सुनयना की हत्या की थी.

बंटी और बबीता की उम्र में लगभग 20 वर्ष का अंतर था. बंटी 20 वर्ष और बबीता लगभग 40 साल की थी. इस समय बबीता का बड़ा लड़का भी बंटी से लगभग 4 साल बड़ा था. आखिर बबीता ने बंटी से कैसे दोस्ती गांठी और दोस्ती की आड़ में अपनी बहन की शादी उस के साथ करा दी.

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पुलिस तहकीकात में इस केस की जो सच्चाई सामने आई वह रोचक कहानी थी—

थाना मलाई टोला, जिला गोपालगंज बिहार निवासी शंभू गिरि की शादी सालों पहले तमकनी रोड ठकाना बाजार, सुनाभवानी निवासी हीरामन गिरि की बबीता के साथ हुई थी. शादी के कुछ ही दिनों बाद शंभू गिरि रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गया था. काशीपुर में शंभू गिरि को एक फैक्ट्री में काम मिल गया. वह उसी फैक्ट्री में काम करते हुए वहीं पर बने कमरे में रहने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

खिलाड़ी बहन का दांव

आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 1

घटना दिल्ली के एक थाने की थी, जो मुझ पर थोपी गई थी, जबकि वहां का थानेदार पहले ही जांच कर रहा था.

मुझे आदेश मिला कि 2 सप्ताह में पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचो, वहां का एक पुलिस इंसपेक्टर जांच में तुम्हारा साथ देगा. दोनों को एक एंग्लोइंडियन लड़की की हत्या की जांच करनी है. वह विश्वयुद्ध का समय था. अंगरेजों का फौजी हैडक्वार्टर और एयर हैडक्वार्टर दिल्ली में ही थे. इस केस का संबंध सेना से था, जो मेरे लिए एक नया अनुभव था.

दिल्ली में एक एंग्लोइंडियन लड़की की हत्या हुई थी. थाना पुलिस ने जांच की, लेकिन 2 सप्ताह बीतने पर भी हत्यारे का पता नहीं लगा. अंगरेज सरकार में वायसराय के औफिस ने इस केस की जांच थाने से हटा कर स्पैशल स्टाफ को दे दी थी और हत्यारे का शीघ्र पता लगा कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया था.

मैं हैडक्वार्टर पहुंचा तो मेरा परिचय इंसपेक्टर मैक्डोनाल्ड से कराया गया, जिस के साथ मुझे काम करना था. मृतका के बारे में बताया गया कि उस का पिता आर्मी मैडिकल कोर में कर्नल है, जो डाक्टर भी है. उन दिनों वह कलकत्ता में था जबकि उस की मृतका बेटी दिल्ली में सेना में लेफ्टिनेंट थी.

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युद्ध के दौरान औरतों की एक सेना बनाई गई थी, जो डब्ल्यूसीए (वूमन औक्सिलियरी कौर्प्स औफ इंडिया) के नाम से जानी जाती थी. उसे वीकी या विकाई कहते थे. विकाई की अधिकतर औरतें जवान होती थीं, जो सैनिक कार्यालयों में काम करती थीं.

इन में अधिकतर महिलाएं ईसाई होती थीं. उन का काम सेना के अधिकारियों को हर तरह से खुश करना होता था. जो अधिक सुंदर होती थीं, उन की पहुंच जनरलों तक होती थी. वे क्लबों में जाती थीं, औफिसर्स मेस में शराब और डांस में भाग लेती थीं.

मृतका भी जवान और सुंदर थी. उस की हत्या की बात सुन कर उस का पिता कलकत्ता से दिल्ली आया. उस ने जांच को देखा तो अनुमान लगाया कि यह काम थाने के वश का नहीं है. उस ने ही जीएचक्यू में अपनी पहुंच का प्रयोग कर के इस घटना की जांच स्पैशल स्टाफ को दिलवाई थी.

मैं और मैक्डोनाल्ड संबंधित थाने गए. थानेदार को हम ने बताया कि इस केस की जांच हम करेंगे, तो वह बहुत खुश हुआ. थाने में उस लड़की की फोटो देख कर मैक्डोनाल्ड बोला कि इस लड़की के लिए मैं वायसराय तक की हत्या कर सकता हूं.

मैं ने फोटो को ध्यान से देख कर कहा, ‘‘हत्यारा पागल था या लड़की ने उसे अस्थाई रूप से पागल कर दिया था. मुझे हैरानी है कि इस के साथ एक और आदमी की हत्या क्यों नहीं हुई.’’

थानेदार बोला, ‘‘हत्या 40 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ती जीप कार में हुई थी और फायर उसी रफ्तार से दौड़ती कार से किया गया था. लड़की अगली सीट पर बैठी थी. जीप एक हिंदुस्तानी मेजर चला रहा था. पीछे से एक कार आई, उस में से रिवौल्वर की 2 गोलियां चलीं. गोलियां चलने के बाद कार आगे निकल गई.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘दूसरी गोली शायद उस ने मेजर पर चलाई थी, लेकिन दोनों गोलियां लड़की को लग गईं.’’

थानेदार ने हमें उस मेजर का बयान भी सुनाया. हम ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देखी और पूरा केस समझने के बाद कहा, ‘‘इस केस की जांच कोई हिंदुस्तानी थानेदार नहीं कर सकता, क्योंकि इस केस में फौजी अधिकारियों से मिलना होगा, जो हिंदुस्तानियों को अपना गुलाम समझते हैं. वे लोग केस में सहयोग भी नहीं कर रहे.

रौयल एयर फोर्स के अधिकारी ने थानेदार को डांट भी लगा दी थी. जीएचक्यू ने थानेदार को 2 गोरे दे दिए थे, जिस में एक सार्जेंट और दूसरा कारपोरल था. लेकिन भाषा की समस्या की वजह से वे भी सहयोग नहीं कर रहे थे. क्योंकि थानेदार अंगरेजी समझ तो लेता था, लेकिन बोल नहीं सकता था.’’

हत्या से संबंधित जो चीजें थाने में रखी थीं, उन में एक जीप, रिवौल्वर के 2 बुलेट जो मृतका के शरीर से पार हो कर जीप में गिरे थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, मृतका को बाईं ओर 2 गोलियां लगीं थीं और पार निकल गई थीं, जिस से उस की मौत हो गई थी. हत्या से पहले उस के साथ कोई मारपीट नहीं हुई थी. वह शराब पिए हुए थी, खाना उस ने 2 घंटे पहले खाया था.

हम ने थानेदार से जरूरी बातें पूछीं और तय किया कि हम थानेदार की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं देंगे बल्कि अपनी अलग जांच करेंगे.

मैक्डोनाल्ड ने स्कौटलैंड यार्ड की ट्रेनिंग ली थी. मैं ने भी उस से बहुत कुछ सीखा. हम ने मिलिट्री पुलिस का सहयोग लिया और उन से कहा, ‘‘हमें एक ऐसा आदमी चाहिए जो होशियार हो और रातों को भी जाग सके.’’

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प्रोवोस्ट मार्शल ने हमें एक अंगरेज वारंट औफिसर दिया, जो मेहनती और बुद्धिमान था. इस के अतिरिक्त हमें फौजी छावनी में मिलिट्री पुलिस का एक अलग कमरा दिया गया, जिसे हम ने अपना औफिस बना लिया.

हम ने सब से पहले जीप अपने कब्जे में ले कर उस मेजर को बुलाया. जो घटना के समय जीप चला रहा था. मौके का गवाह वही था. मिलिट्री इंटेलिजेंस का वह अधिकारी मेजर डोगरा था. मैं अब तक देहातियों से पूछताछ करता रहा था, यह पहला अवसर था कि एक मिलिट्री इंटेलिजेंस अधिकारी से पूछताछ करनी थी. मेरे साथी इंसपेक्टर ने उस डोगरा मेजर से कहा, ‘‘आप मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारी हैं. घटना की कहानी इस तरह सुनाएं, जैसी आप किसी अपराधी से उम्मीद रखते हैं.’’

उस ने मृतका के बारे में बताया कि वह आजाद विचारों वाली अतिसुंदर एंग्लोइंडियन लड़की थी. वह अंगरेजी फौजी अधिकारियों में बहुत मशहूर थी. उस की रातें किसी न किसी क्लब या औफिसर्स मेस में गुजरती थीं. निर्लज्जता के साथसाथ वह चालाक भी थी.

हत्या की रात मृतका एक क्लब में किसी पार्टी में थी, वहां पर ज्यादातर अंगरेज और सिविल अफसर थे. डोगरा भी उसी पार्टी में था. शराब के साथ डांस चल रहा था. आधी रात के समय डोगरा मेजर बाहर निकला. अंदर चहलपहल थी, बाहर वीराना. उस ने देखा मृतका तेज चलती हुई उसी की ओर आ रही थी. तभी एक कमरे से रौयल एयर फोर्स का एक अफसर निकला, जो लड़की के पीछे आ रहा था.

लड़की डोगरा मेजर के पास आ कर बोली, ‘‘एक अफसर बातोंबातों में मुझे कमरे में ले गया और बोला मैं तुम्हारे साथ शादी करना चाहता हूं. मैं ने इनकार किया तो उस ने मुझे सोफे पर गिरा दिया. लेकिन मैं जैसेतैसे उस से बच कर निकल आई. वह बहुत शराब पिए हुए था.’’

मृतका डोगरा को कहानी सुना रही थी कि वह अफसर लड़खड़ाता हुआ आ गया और बोला, ‘‘तुम इंडियन हो, इस लड़की को मुझ से बचाने की कोशिश मत करो, नहीं तो मेरे हाथों मारे जाओगे. मैं यहां का सर्वेसर्वा हूं.’’

डोगरा ने कहा, ‘‘तुम इस समय इंडिया के राजा नहीं, पूरी दुनिया के राजा हो. यह लड़की सेना में लेफ्टिनेंट है, तुम इस के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते.’’

वह बोला, ‘‘अगर यह आर्मी में फील्ड मार्शल भी होती तो मेरा मुकाबला नहीं कर पाती. हम इंडिया के मालिक हैं.’’

लड़की बोली, ‘‘मैं तुम्हारे मुंह पर थूकती हूं. तुम्हारी यूनिट के बड़ेबड़े अफसर मेरे दोस्त हैं. तुम तो साधारण स्क्वाड्रन लीडर हो.’’

डोगरा ने उसे समझाया कि एक अधिकारी को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, मैं इंग्लैंड से इंडिया को जापान से बचाने आया हूं. मैं इस देश के लिए मरने आया हूं लेकिन यहां की लड़की मुझे दुत्कार रही है. मैं इसे जान से मार दूंगा.’’

उस ने डोगरा के मुंह पर घूंसा मारा, फिर दोनों में हाथापाई शुरू हो गई. लड़की ने कहा, ‘‘तुम यहां से निकल जाओ, यह अंगरेज है, तुम्हारे ऊपर मनगढ़ंत आरोप लगा देगा.’’

डोगरा ने कहा, ‘‘तुम भी चली जाओ.’’

वह बोली, ‘‘मेरे पास गाड़ी नहीं है.’’

डोगरा मेजर ने जीप में लड़की को अगली सीट पर बिठाया और जीप को खुद ही ड्राइव कर के ले गया.

चलती जीप से उस ने पीछे देखा, एक गाड़ी उस का पीछा करती हुई आ रही थी. वह गाड़ी जीप के पास आ गई. उस गाड़ी की लाइट बुझ गई, इसी के साथ 2 गोलियां चलीं. लड़की की चीख सुनाई दी. वह बोली, ‘‘ही हैज शाट मी.’’

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इतनी देर में गाड़ी की लाइटें जलीं और वह आगे निकल गई. मेजर ने देखा वह प्राइवेट कार थी. उस ने कार के नंबर देखे आखिर के 2 नंबर याद थे जो 66 थे. पहले 2 नंबर उसे याद नहीं रहे. शायद 23 थे या 83. वह लड़की को ले कर तुरंत अस्पताल पहुंचा, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सेना पुलिस आई. लेकिन उस ने कोई सहायता नहीं की. उस ने केस सिविल पुलिस को दे दिया. थानेदार ने स्क्वाड्रन लीडर से कोई बयान नहीं लिया, क्योंकि उस ने थानेदार को डांट कर भगा दिया था.

हम ने डोगरा से पूछा, ‘‘क्या उस लीडर के पास रिवौल्वर था? उस ने आखिरी शब्द क्या बोले थे.’’

मेजर ने कहा, ‘‘मैं ने देखा नहीं कि उस के पास रिवौल्वर था. उस ने कहा था कि तुम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘आप जब अपनी जीप की ओर आ रहे थे तो वह स्क्वाड्रन लीडर आप के पीछे था?’’

उस ने बताया, ‘‘वह बरामदे में खड़ा था और वहां 2-3 बैरे खड़े थे.’’

‘‘आप उस लड़की को अच्छी तरह जानते थे. उस लड़की से कोई शादी के लिए कहता होगा.’’

वह बोला, ‘‘ऐसी लड़कियों से कौन शादी करेगा. सब को पता है कि ये चरित्रहीन होती हैं.’’

‘‘आप इंटेलिजेंस अफसर हैं. आप ने ध्यान दिया होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है.’’

वह बोला, ‘‘स्क्वाड्रन लीडर के अलावा और कोई नहीं हो सकता.’’

‘‘आप जरा दिमाग पर जोर दे कर बताएं, कोई ऐसा विवाहित जोड़ा है, जिन में पुरुष मृतका को चाहता हो और पत्नी ने उस की हत्या करवा दी हो.’

वह बोला, ‘‘ऐसा हो सकता है लेकिन मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता.’’

अगले दिन हम ने पुलिस हैडक्वार्टर से कहा कि पूरे शहर की कारों के नंबर देखे, जिस के आखिर में 66 हो, उस के मालिक का नाम और घर का पता नोट कर लें. डोगरा मेजर ने बताया था कि कार फोर्ड थी, लेकिन मौडल उसे याद नहीं रहा.

दूसरा काम हम ने यह किया कि एयर हैडक्वार्टर से उस स्क्वाड्रन लीडर का पता लिया, बताया गया कि वह पालम एयरपोर्ट के उस भाग में मिलेगा, जहां एयरफोर्स के जहाज रखे जाते हैं. हम एयर हैडक्वार्टर गए. वहां पता लगा कि वह स्क्वाड्रन लीडर अभी एक महीने पहले ही आया है लेकिन उसे कोई काम नहीं दिया गया. क्योंकि वह मानसिक रोग से पीडि़त है और एक अंगरेज डाक्टर उस का इलाज कर रहा है.

हम पहले उस डाक्टर से मिले और बताया कि हम एक लड़की की हत्या की जांच कर रहे हैं जो सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर थी. वह डाक्टर अपना काम छोड़ कर हमारे पास बैठ गया. मैक्डोनाल्ड ने उसे डोगरा मेजर का बयान सुना कर स्क्वाड्रन लीडर के इलाज के बारे में पूछा.

डाक्टर से पता चला कि वह स्क्वाड्रन लीडर लंदन में एक लड़ाका स्क्वाड्रन का कमांडिंग औफिसर था और उस ने अनगिनत जरमन जहाज गिराए थे. आखिरी लड़ाई में उस के जहाज में गोली लगी और उस जहाज से निकल नहीं सका. संयोग से उस का जहाज पानी में गिरा पर डूबा नहीं. लेकिन वह जहाज पानी में इतने तेज झटके से गिरा कि उस के दिमाग में चोट आ गई और वह जहाज से निकल कर तैरने लगा.

अगले दिन उसे एक ब्रिटिश गश्ती नाव ने बचा लिया. लंदन के एक अस्पताल में उस का इलाज हुआ. अस्पताल में कुछ दिन इलाज के बाद उस की यह कह कर छुट्टी कर दी गई कि यह शारीरिक तौर पर तो ठीक है, लेकिन कभीकभी उस का दिमाग थोड़ी देर के लिए अपना नियंत्रण खो देता है.

जब वह अपने घर गया तो उस का मकान खंडहर हो चुका था. उस की पत्नी और बच्चा मारे गए थे. वह अपनी यूनिट में नौकरी पर वापस आ गया, वहां उस ने कुछ ऐसे गलत काम किए जो अनदेखे नहीं किए जा सकते थे. पूछने पर उस ने बताया कि उस का दिमाग थोड़ी देर के लिए खराब हो जाता है.

मानसिक रोगों के डाक्टर ने कुछ दिन उस का इलाज किया फिर कह दिया कि कुछ देर के लिए उस का दिमाग काम नहीं करता, उसे यह भी पता नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है.

इस का कारण घरेलू समस्या थी. उसे इलाज के लिए भारत भेजा गया. लेकिन यहां उसे कोई काम नहीं दिया गया, उसे मौजमस्ती की खुली छूट दी गई, लेकिन यहां भी कुछ देर के लिए उस का दिमाग खराब रहने लगा.

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हम ने पूछा, ‘‘क्या बिगड़ी हालत में हत्या भी कर सकता है?’’

उस ने कहा, ‘‘कुछ कह नहीं सकते. लेकिन इस हालत में उसे अगर गुस्सा दिला दिया जाए तो वह हत्या भी कर सकता है.’’

‘‘औरत के मामले में उस का रवैया कैसा है?’’

‘‘जितने हवाबाज होते हैं, जब छुट्टी पर आते हैं तो शारीरिक संबंध बहुत बनाते हैं और इस में भी यह आदत है.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हम उस से मिल रहे हैं. आप से अनुरोध है कि आप उस से इस तरीके से बात करें कि वह हत्या के बारे में कुछ बता दे.’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं उस से हत्या का पता लगा लूंगा और अगर उस ने हत्या की है तो मैं उसे बचा भी लूंगा.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 3

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हम अंदर गए तो वहां ब्रिगेडियर बैठा था, हम ने उसे अपना परिचय दिया तो उस ने तपाक से हमारा स्वागत किया और बोला, ‘‘मुझे पता है कि आप हत्या के केस की जांच कर रहे हैं.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हमारी जांच की लाइन बदल गई है. हमें पता लगा है कि मृतका का बाप और चाचा जासूसी में पकडे़ गए हैं.’’

वह चौंक कर बोला, ‘‘आप को कैसे पता लगा?’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हम स्पैशल स्टाफ के अधिकारी हैं, किसी की गिरफ्तारी को हम गुप्त रख सकते हैं. आप निश्चिंत रहें, हम से कोई गलत काम नहीं होगा. हम यहां यह पता करने आए हैं कि मृतका की उस के ही गिरोह के किसी आदमी ने हत्या कर दी है.’’

उस ने कहा, ‘‘यह इंटेलिजेंस का मामला है, जो गुप्त होता है.’’

हम ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम किसी को नहीं बताएंगे.

उस ने बताया, ‘‘कर्नल डाक्टर के भाई पर हमें पहले से शक था. कलकत्ता की सीआईडी उस के पीछे लगी थी. उसे भी पता लग गया और वह चौकस हो गया. हमें उस की कुछ बातें पता लग चुकी थीं. हम ने उस लड़की की निगरानी शुरू कर दी. 2 मेजरों को उस के पीछे लगा दिया.’’

हम ने उस से कहा आप उन के नाम बता सकते हैं?

उस ने कहा कि एक तो डोगरा मेजर है और दूसरा एक मुसलमान मेजर है. ब्रिगेडियर ने हमें इजाजत दे दी कि इन दोनों का सहयोग ले सकते हैं.

जब हम अपने औफिस आए तो मिलिट्री औफिस के वारंट औफिसर ने हमें एक नोट दिया जिस में एक कार का नंबर लिखा गया था, लेकिन वह कार दिल्ली से बाहर की थी. हम तुरंत डोगरा मेजर और उस वारंट औफिसर को ले कर उस शहर की ओर चल दिए. उस शहर में पहुंच कर उस हवेली पर गए.

वहां वह कार खड़ी थी. डोगरा मेजर ने पहचान कर कहा कि यही कार है. हम ने दरवाजे पर दस्तक दी, 2 आदमी बाहर आए. जिन में एक की उम्र 30 और दूसरे की 35 होगी. ये दोनों जागीरदार लग रहे थे.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘यह कार किस की है?’’

वह बोला, ‘‘हमारी है.’’

उन में से एक ने कहा, ‘‘यह चोरी की तो नहीं है.’’

मैं ने आगे बढ़ कर धीरे से कहा, ‘‘अभी हम ने आप से कुछ नहीं कहा और आप चोरी की कहने लगे. मैं पुलिस अधिकारी हूं, यह अंगरेज अधिकारी हैं. वह फौज का मेजर है और इस के साथ सेना पुलिस का अधिकारी है. तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है कि तुम हमें अंदर बैठने को कहो. अगर तुम यही चाहते हो तो हम जिस काम के लिए आए हैं, वह यही सब के सामने शुरू कर दें.’’

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उस ने हमें अंदर बिठाया. मैं डोगरा मेजर के साथ बाहर आ कर कार को देखने लगा. डोगरा ने मडगार्ड के किनारे पर अंगुली रख कर देखने के लिए कहा. मैं ने देखा वहां से एक गोली की तरह चिपका हुआ लग रहा था. मैं ने टायर को देखा, एक जगह टायर के ऊपरी भाग में एक निशान था, जैसे गोल रेती से रगड़ा गया हो. यह गोली का निशान लग रहा था.

मैं ने डोगरा मेजर से कहा, ‘‘गाड़ी को थोड़ा पीछे धकेलो.’’

हम दोनों धक्का लगा कर गाड़ी को उस पिचके हुए निशान के बराबर में ले आए जो मडगार्ड पर था. मैं ने पीछे खड़े हो कर देखा, वहां से मुझे मडगार्ड का वह भाग दिखाई दिया जो टायर के सामने होता है.

वहां कीचड़ जमा हुआ था. वहां मुझे एक चमकती हुई चीज दिखाई दी. मैं ने हाथ अंदर कर के देखा तो गोली का खोखा धंसा हुआ मिला. उसे देख कर मैं उछल पड़ा, जैसे मैं अपनी जांच में सफल हो गया हूं.

मैं दौड़ता हुआ अंदर गया और सब से कहा, ‘‘बाहर आओ और ऐसी कोई चीज लाओ, जिस से मडगार्ड की मिट्टी हटाई जा सके.’’

उन में से एक जाने लगा तो मैं ने उसे बाजू से पकड़ कर रोक लिया और उस से कहा, ‘‘तुम यहीं रहो, नौकर को आवाज दो.’’

नौकर खुरपा लाया. मैं ने धीरेधीरे मडगार्ड की मिट्टी हटाई. वह चीज साफ दिखाई देने लगी. मैं ने मैक्डोनाल्ड से देखने के लिए कहा. उस ने छू कर देखा और मेजर की ओर देख कर कहा, ‘‘आप का निशाना ठीक था. टायर को आप ने मिस नहीं किया. एक इंच का अंतर रह गया था.’’

मैं ने कार के मालिकों से कहा, ‘‘तुम्हें पता नहीं था कि जीप से तुम्हारी कार पर फायर किया गया था.’’

दोनों के रंग उड़ गए और कोई जवाब नहीं दे पाए. मैं ने उन दोनों को वे निशान दिखाए. वे फिर भी चुप रहे, मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों थे?’’

मैं ने वहां एक सम्मानित व्यक्ति को बुला कर वे निशान दिखाए और कहा कि आप को इस की गवाही देनी है. दूसरा गवाह मैं ने डोगरा मेजर को बनाया. मैं ने कार वालों से पूछा, ‘‘तुम्हारा रिवौल्वर कहां है?’’

छोटा बोला, ‘‘हमारे पास रिवौल्वर नहीं है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं मकान की तलाशी लूं, इस से पहले तुम खुद ही निकाल दो.’’

उन में से एक बोला, ‘‘चलो, अंदर चलो. बाकी लोग बाहर ही रहें.’’

मैं अंदर चला गया. मेरी पैंट में रिवौल्वर था. मैं ने अपनी जेब में हाथ डाल कर रिवौल्वर अपने हाथ में ले लिया. लेकिन उस ने अंदर जाते ही कहा, ‘‘आप जितनी रकम चाहो, ले लो और इन लोगों को वापस ले जाओ. अगर तुम ने इधरउधर किया तो बाहर वालों की लाशें भी नहीं मिलेंगी. बोलो, क्या चाहते हो?’’

कमरे में एक पलंग था, उस पर सुंदर चादर पड़ी थी. छोटे भाई ने चादर हटाई तो उस के नीचे एक रिवौल्वर दिखाई दिया. वह उठाने के लिए हाथ बढ़ा ही रहा था, मैं ने एक गोली चला दी, जो पलंग पर लगी और दूसरी गोली मैं ने उस के पैर पर मारी.

बाहर वालों ने गोली चलने की आवाज सुनी तो वे दौड़ कर अंदर आ गए. सब के हाथों में रिवौल्वर थे. मेरी गोलियों ने दोनों अपराधियों को वश में कर लिया. मैं ने कांस्टेबलों से कहा, ‘‘इन्हें हथकड़ी लगाओ.’’

मैं ने कागज तैयार किए और गवाहों में डोगरा मेजर और उस सम्मानित व्यक्ति के हस्ताक्षर करा लिए. डोगरा ने कहा, ‘‘ये जासूस गिरोह के लोग हो सकते हैं, इसलिए मकान की तुरंत तलाशी ले कर सील करना जरूरी है.’’

मैं पुलिस स्टेशन गया और वहां से दिल्ली इंटेलिजेंस के ब्रिगेडियर को फोन कर सूचना दी, पुलिस हैडक्वार्टर को भी बता दिया. पुलिस स्टेशन से मुझे 2-3 कांस्टेबल मिल गए, जिन्हें मैं ने मकान के अंदर और बाहर खड़ा कर दिया. वहां की पुलिस ने मेरी यह सहायता की कि एक मजिस्ट्रैट को भेज दिया.

यह केस इसलिए विशेष हो गया था कि इस में जासूसी का मामला था. कुछ ही देर में दिल्ली पुलिस की नफरी आ गई. साथ में ब्रिगेडियर भी था. मजिस्ट्रैट के सामने मकान की तलाशी ली गई लेकिन गहन तलाशी पर भी कुछ नहीं मिला.

मैं ने दोनों अपराधियों से पूछा, ‘‘तुम दोनों अपराधी हो या दोनों में से एक.’’

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वे बोले दोनों हैं. दिल्ली ला कर दोनों को सेना के क्वार्टर गार्ड में बंद कर दिया. अपने कमरे पर जा कर आराम करने के लिए मैं लेटा ही था कि डोगरा मेजर एक व्यक्ति को ले कर आया. वह इंटेलिजेंस का मुसलमान मेजर था. उस ने बताया कि मेरे से ज्यादा उस लड़की को यह जानते हैं.

उस ने कहा, ‘‘मृतका मुझे बरबाद कर गई. आप ने जिन 2 आदमियों को गिरफ्तार किया है, वे मेरे साले हैं. मैं ने उन से क्वार्टर गार्ड में मिल कर कहा है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.

लेकिन जासूसी के मामले में उन का दूर का भी वास्ता नहीं है. वे दोनों अपनी कहानी खुद सुनाएंगे, मैं तो आप को उस केस की मोटी बातें सुना देता हूं.’’

उस ने बताया कि मैं भी उसी जगह का रहने वाला हूं, जहां के ये लोग हैं. मेरी शादी उन के घराने में हुई है. मैं चूंकि इंटेलिजेंस में हूं, इसलिए मैं घर से कईकई दिनों तक गायब रहता था. मेरी पत्नी मेरे ऊपर शक करने लगी.

मैं ने उस का शक दूर करने की बहुत कोशिश की लेकिन उस का शक दूर नहीं हुआ. घर में क्लेश रहने लगा. पत्नी कहती थी कि आप बड़े अधिकारी हो, सुंदर लड़कियां आप के पास आती होंगी. मैं ने बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. उस के भाइयों ने भी मुझे धमकियां दीं.

एक दिन मैं ने ससुराल में कहला दिया कि अगर पत्नी का यही व्यवहार रहा तो मैं उसे छोड़ दूंगा. इस पर तो ससुराल वालों ने कहा कि अगर छोड़ोगे तो तुम्हारी हत्या हो जाएगी.

लेकिन मैं उसे वास्तव में छोड़ना नहीं चाहता, क्योंकि मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्यार था. इसी बीच मुझे मेरे हैडक्वार्टर से आदेश मिला कि मृतका लड़की का ध्यान रखो, बल्कि उस से दोस्ती का संबंध बनाओ. मेरा यह डोगरा मेजर दोस्त उस से पहले ही संबंध बना चुका था. बाद में पता चला कि वह लड़की जासूस गिरोह की है.

हमें उस लड़की के खानपान के लिए औफिस से अच्छी रकम मिलती थी. मैं उसे ऊंचे होटलों में ले गया, शिमला की सैर कराई, उस से जासूसी की बातें भी कीं लेकिन उस ने अपना भेद नहीं दिया. एक दिन दिल्ली में उस लड़की के साथ मेरे सालों ने मुझे देख लिया और मेरे घर आ कर मुझे धमकी दी.

मैं ने उन्हें बहुत समझाया कि उस लड़की से संबंध मैं ने सरकार के कहने पर बनाए हैं और उस के साथ रहना मेरी ड्यूटी में शामिल है. लेकिन उन की समझ में नहीं आया. मैं जानता था कि यह लड़की जो जनरलों तक को अपनी अंगुली पर नचाती है, मेरे इतने करीब क्यों आ रही है. वह जानती थी कि मैं इंटेलिजेंस का अधिकारी हूं, इसलिए वह मुझे अंधेरे में रखना चाहती थी.

डोगरा और मैं आगे की काररवाई के बारे में सोच ही रहे थे कि उस लड़की की हत्या हो गई. लेकिन मैं समझ रहा था कि हत्या किस ने की है.

उस के बाद से मेरे साले दिखाई नहीं दिए. मैं ने यह बात डोगरा मेजर को भी नहीं बताई. मैं ने उस की हत्या की बात अपनी पत्नी से भी नहीं की. मैं ने आप को पूरी बात बता दी है और अपने सालों से भी कह दिया है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.

उन दोनों भाइयों ने अपराध स्वीकार कर लिया और वही कहानी सुनाई जो इंटेलिजेंस अफसर ने सुनाई थी. उन्होंने अपने बयान में यह भी बताया कि अगर इंटेलिजेंस अधिकारी उन की बहन को तलाक देता, तो उस लड़की की और अपने जीजा की हत्या कर देते. लेकिन उन्होंने यह तय किया कि लड़की की हत्या कर दें तो उन की बहन का घर उजड़ने से बच जाएगा.

हत्या कर के जब वे घर आए तो उन्होंने कार को अच्छी तरह से देखा कि उस पर कहीं कोई गोली का निशान तो नहीं है, लेकिन इतनी बारीकी से नहीं देखा, जितना मैं ने देखा था. काफी दिन बीतने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो वे समझे मामला खत्म हो गया है. इस की खुशी तो थी लेकिन साथ में इस बात की भी खुशी थी कि अगर उन्हें फांसी भी हो गई तो उन की बहन का सुहाग तो बना रहेगा.

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इंटेलिजेंस ने बहुत छानबीन की लेकिन वे जासूसी का केस साबित नहीं कर सके. हत्या के मामले में उन दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुई. उन के जीजा मेजर ने दिल्ली का एक योग्य वकील कर लिया, जिस ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी और उस ने संदेह का लाभ दिला कर दोनों को दोषमुक्त करा लिया.

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