अगर आप भी घिरे रहते हैं गैजेट्स से, तो हो जाइए सावधान

किशोरों की सुबह मोबाइल अलार्म से शुरू हो कर आईपैड व वीडियो गेम्स, कंप्यूटर और वीडियो चैट, मूवी, लैपटौप आदि के इर्दगिर्द गुजरती है. दिनभर वे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप जैसी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर बिजी रहते हैं. इन्हें नएनए गैजेट्स अपने जीवन में सब से अहम लगते हैं. इन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन अगर इन का उपयोग जरूरत से ज्यादा होने लगे तो यह एक संकेत है कि आप अपनी सेहत के साथ खुद ही खिलवाड़ कर रहे हैं.

कैलाश हौस्पिटल, नोएडा के डाक्टर संदीप सहाय का कहना है कि देर रात तक स्मार्टफोन, टैब या लैपटौप का इस्तेमाल करने से नींद पर असर पड़ सकता है. इस से न सिर्फ गहरी नींद में खलल पड़ेगा बल्कि अगली सुबह थकावट का एहसास भी होगा. यदि हम एकदो रात अच्छी तरह से न सोएं तो थकावट का एहसास होने लगता है और चुस्ती कम हो जाती है. यह बात सही है कि इस से हमें शारीरिक या मानसिक तौर पर कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यदि कईर् रातों तक नींद उड़ी रहे तो न सिर्फ शरीर पर थकान हावी रहेगी बल्कि एकाग्रता और सोचने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा. लंबे समय में इस से उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

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गरदन में दर्द : लैपटौप में स्क्रीन और कीबोर्ड काफी नजदीक होते हैं. इस कारण इस पर काम करने वाले को झुकना पड़ता है. इसे गोद में रख कर इस्तेमाल करने पर गरदन को झुकाने की आवश्यकता पड़ती है. इस से गरदन में खिंचाव पैदा होता है, जिस से दर्द होता है. कभी कभी तो डिस्क भी अपनी जगह से खिसक जाती है. लैपटौप पर ज्यादा समय तक काम करने से शरीर का पौश्चर बिगड़ जाता है. लैपटौप में कीबोर्ड कम जगह में बनाया जाता है. इसलिए इस में उंगलियों को अलग स्थितियों में काम करना पड़ता है. इस से उंगलियों में दर्द होता है. चमकती स्क्रीन देखने पर आंखों में चुभन हो सकती है. आंखें लाल होना, उन में खुजली होना और धुंधला दिखाई देना सामान्य समस्याएं हैं.

स्पाइन, नर्व व मांसपेशियों में दिक्कत : दिन का अधिकतर समय लैपटौप पर बिताने से स्पाइन मुड़ जाती है. इस से स्प्रिंग की तरह काम करने की गरदन की जो कार्यप्रणाली है वह भी प्रभावित होती है. इस से तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त भी हो सकती हैं. अधिकतर लोग लैपटौप को पैरों पर रख कर काम करते हैं. इस से भी मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है.

ज्यादा टीवी देखना भी है हानिकारक : ब्रिटिश जर्नल औफ मैडिसन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 25 या उस से अधिक उम्र के लोगों द्वारा हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. हर भारतीय एक सप्ताह में औसतन 15-20 घंटे टीवी देखता है. कई शोधों से यह बात भी सामने आई है कि हर घंटे देखे गए टीवी से उन का जीवनकाल 22 सैकंड कम हो जाता है. रोज 2 घंटे टीवी केसामने बिताने से टाइप 2 डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा 20त्न बढ़ जाता है.

पढ़ाई से ध्यान हटना :  जो युवा अपना अधिकतर समय कंप्यूटर व गैजेट्स के सामने बिताते हैं उन की पढ़ने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है और धीरेधीरे उन का मन पढ़ाई में कम और गैजेट्स में ज्यादा लगने लगता है. उन को घंटों बैठ कर पढ़ाई करने से ज्यादा अच्छा गेम खेलना लगता है. वे अगर किताबें ले कर बैठ भी जाते हैं तो भी उन का सारा ध्यान कंप्यूटर पर ही टिका रहता है, जो उन की पर्सनैलिटी को नैगेटिव बनाने के साथसाथ उन का कैरियर तक चौपट कर देता है.

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असामाजिक होना : वर्चुअल दुनिया का साथ मिलने पर युवा अकसर असामाजिक होने लगते हैं, क्योंकि वे उस दुनिया में अपनी मनमानी करते हैं. वहां उन्हें कोई रोकने वाला नहीं होता है.

लड़कों में नपुंसकता बढ़ती है : देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में किए जा रहे अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन और उस के टावर्स से निकलने वाली रेडिएशन पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर असर डालने के अलावा शरीर की कोशिकाओं के डिफैंस मैकेनिज्म को नुकसान पहुंचाती हैं.

क्यों होता है सेहत को नुकसान : एक शोध के अनुसार इलैक्ट्रौनिक उपकरणों के प्रयोग से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. ये उपकरण इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशन छोड़ते हैं, जिन में मोबाइल फोन, लैपटौप, टैबलेर्ट्स वाईफाई वायरलैस उपकरण शामिल हैं.

शोध के मुताबिक वायरलैस उपकरणों के ज्यादा उपयोग से इलैक्ट्रोमैग्नैटिक हाईपरसैंसेटिविटी की शिकायत हो जाती है, जिसे गैजेट एलर्जी भी कहा जा सकता है.

डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मोबाइल फोन की रेडियो फ्रीक्वैंसी फील्ड शरीर के ऊतकों को प्रभावित करती है. हालांकि शरीर का ऐनर्जी कंट्रोल मैकेनिज्म आरएफ ऐनर्जी के कारण पैदा गरमी को बाहर निकालता है, पर शोध साबित करते हैं कि यह फालतू ऐनर्जी ही अनेक बीमारियों की जड़ है. हम जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं उस के नुकसान को अनदेखा करते हैं. मोबाइल फोन, लैपटौप, एयरकंडीशनर, ब्लूटूथ, कंप्यूटर, एमपी3 प्लेयर आदि की रेडिएशंस से नुकसान होता है.

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ईएनटी विशेषज्ञ का कहना है कि नुकसान करने वाली रेडिएशंस हमारे स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करती हैं और हमारी कार्यक्षमता को कम करती हैं. हम पूरे दिन लगभग 500 बार इलैक्ट्रोमैग्नैटिक रेडिएशंस से प्रभावित होते हैं. ये हमारी एकाग्रता को प्रभावित करती हैं. हमें चिड़चिड़ा बनाती हैं और थके होने का एहसास कराती हैं. हमारी स्मरणशक्ति को कमजोर करती हैं, प्रतिरोधक क्षमता को कम करती हैं और सिरदर्द जैसी समस्या पैदा करती हैं.

यही स्थिति मोबाइल की भी है अधिकांश लोग कम से कम 30 मिनट तक मोबाइल पर बात करते हैं. इस तरह एक साल में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले को 11 हजार मिनट का रेडिएशन ऐक्सपोजर का सामना करना पड़ता है. मोबाइल फोन के रेडिएशन के खतरे बढ़ते जा रहे हैं.

क्या कहती है रिसर्च

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो किशोर कंप्यूटर या टीवी के सामने ज्यादा वक्त बिताते हैं उन किशोरों की हड्डियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिस की वजह से वे गंभीर स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं. नौर्वे में हुई एक रिसर्च में कहा गया है कि किशोरों में हड्डियों की समस्या बढ़ती जा रही है, जिस की वजह कंप्यूटर पर देर तक बैठ कर काम करना है.

अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया. आर्कटिक विश्वविद्यालय औफ नौर्वे की एनी विंथर ने स्थानीय जर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित कराई है, जिस में कंप्यूटर के सामने बैठने की वजह से शारीरिक नुकसान का आकलन किया गया है. इस रिपोर्ट के साथ ही अमेरिकन एकैडमी औफ पीडियाट्रिक्स ने किशोरों के लिए कंप्यूटर के इस्तेमाल का समय भी बताया है.

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मोबाइल फोन, लैपटौप आदि के ज्यादा इस्तेमाल से आप की उम्र तेजी से बढ़ रही है, जिस से आप जल्दी बूढ़े हो सकते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस स्थिति को टैकनैक कहते हैं. इस में इंसान की त्वचा ढीली हो जाती है. गाल लटक जाते हैं और झुर्रियां पड़ जाती हैं. इन सब के कारण इंसान का चेहरा उम्र से पहले ही बूढ़ा लगने लगता है. इस के अलावा आंखों के नीचे काले घेरे बनने लगते हैं और गरदन व माथे पर उम्र से पहले ही गहरी लकीरें दिखने लगती हैं.

मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के कौस्मैटिक सर्जन विनोद विज ने बताया कि मोबाइल फोन का लंबे वक्त तक झुक कर इस्तेमाल करने से गरदन, पीठ और कंधे का दर्द हो सकता है. इस के अलावा सिरदर्द, सुन्न, ऊपरी अंग में झुनझुनी के साथ आप को हाथ, बांह, कुहनी और कलाई में दर्द हो सकता है.

ऐसे बचें गैजेट्स की लत से

इंटरनैट और मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में 37 करोड़ 10 लाख मोबाइल इंटरनैट यूजर्स होने का अनुमान है, जिन में 40 फीसदी मोबाइल इंटरनैट यूजर्स 19 से 30 वर्ष के हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने के लिए कई बार आगे की ओर झुकने से रीढ़ की हड्डी, मांसपेशियों और हड्डियों की प्रकृति में बदलाव होने लगता है.

कौस्मैटिक सर्जरी इंस्टिट्यूट के सीनियर कौस्मैटिक सर्जन मोहन थामस कहते हैं कि लोगों को अभी इस बात का एहसास नहीं है कि उन की त्वचा गरदन और रीढ़ की हड्डी को कितना नुकसान पहुंच रहा है. तकनीक के इस्तेमाल के आदी लोगों को इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स की लत से बचने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण गरदन की मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं. इस के अलावा त्वचा का गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव भी बढ़ जाता है. इस के कारण त्वचा का ढीलापन, दोहरी ठुड्डी और जबड़ों के लटकने की समस्या हो जाती है.

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फ्रांस में अदालत का खटखटाया दरवाजा

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के नए आंकड़ों के मुताबिक भारत की 125 करोड़ की आबादी के पास 98 करोड़ मोबाइल कनैक्शन हैं. हाल ही में फ्रांस की एक अदालत ने इएचएस से पीडि़त एक महिला को विकलांगता भत्ता दे कर वाईफाई और इंटरनैट की पहुंच से दूर शहर छोड़ गांव में रहने का आदेश दिया. हालांकि ऐसा मामला अब तक भारत में नहीं आया, लेकिन अगर आप को भी शारीरिक कमजोरी हो तो डाक्टर को दिखाने के साथसाथ आप भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

साधारण छाती का दर्द हो सकता है एनजाइना, जानें कैसे

छाती का दर्द सभी को अमूमन होता ही है और इस को हम बहेत आसानी से गैस या अपच के दर्द से जोड़ देता है. अगर आप भी ज्यादातर छाती के दर्द से परेशान है तो जितनी जल्जी हो सके आप डाक्टर से संपर्क करें क्योंकि ये दर्द समान्य नही बल्कि एनजाइना को  एनजाइना पेक्टोरिस भी कहते है हो सकता है. एनजाइना एक प्रकार का छाती का दर्द है जो हृदय में रक्त के प्रवाह में कमी के कारण होता है. एनजाइना कोरोनरी धमनी (coronary artery) की बीमारी का एक लक्षण है. एनजाइना देखा जाए तो सामान्य है, फिर भी यह अन्य प्रकार के सीने में दर्द, जैसे कि अपच के दर्द या परेशानी से अलग करना मुश्किल हो सकता है. अगर आपको छाती में दर्द होता है, तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें, इसमें बिल्कुल देरी ना करें.

पेशेंट कैसे महसूस करते है एनजाइमा को

अगर आप किसी एनजाइना पेशेंट से पहुछेंगे तो वो कहेगा-  कि उनके सीने को निचोड़ा जा रहा है या ऐसा महसूस कर रहा है जैसे उनके सीने पर भारी वजन रखा गया है. एनजाइना एक नए प्रकार का दर्द है जिसे केवल डौक्टर ही पहचान सकता है.

कैसे पहचाने एनजाइना

सीने में दर्द या बेचैनी, जो संभवतः दबाव, निचोड़ और जलन होना.

सीने में दर्द के साथ आपकी बाहों, गर्दन, जबड़े, कंधे या पीठ में दर्द होना.

जी मिचलाना.

थकान.

सांसों की कमी.

पसीना आना.

सिर चकराना.

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क्या है एनजाइना के कारण

एनजाइना आपके हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह में कमी के कारण होता है. आपके रक्त में औक्सीजन होता है, जिसे आपके हृदय की मांसपेशियों को जीवित रहने की आवश्यकता होती है. जब आपके हृदय की मांसपेशियों को पर्याप्त औक्सीजन नहीं मिलता, तो यह इस्किमिया नामक एक स्थिति का कारण बनता है. आपके हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह में कमी का सबसे आम कारण कोरोनरी धमनी रोग (सीएडी) है.

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एंजाइना का खतरा होता है इन कारण से

ये बीमारी आमतौर पर पुरुषों में ज्‍यादा पाई जाती है. खासकर, जो लोग तम्‍बाकू या धूम्रपान करते हैं. डायबिटीज के कारण भी इस बीमारी के होने की आशंका ज्‍यादा रहती है. हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्‍ट्रौल इस बीमारी को बढ़ावा देती है. एक्‍सरसाइज न करने वालों को भी एंजाइना का खतरा रहता है. इसके अलावा अधिक उम्र में और जेनेटिक कारणों से ये बीमारी हो सकती है.

जानें क्यों आता है लड़कों के यूरीन में खून

पुरुषों से जुड़ी कुछ बीमारीयां ऐसी भी होती हैं जिसे लेकर ना तो आप जानकारी रखते हैं और इसके होने पर डर के साए में खो जाते है. इन्हीं में से एक हैं पुरुषों की यूरीन में आने वाला खून. यूरीन में खून आने को डौक्टर हेमाट्यूरिया की स्थिति बताते हैं. ये किसी उम्र में हो सकता है और किसी को भी. यह स्थिति अचानक ही आपके सामने आती है शायद यही कारण हैं की पुरुष इस स्थिति को देखकर डर जाते हैं. सोचिए अगर आप सुबह सोकर उठते हैं और अचानक वौशरूम में जाते हैं तो देखते हैं कि आपके यूरीन का रंग लाल हो गया है, जिसे देखकर मन में भय होना स्वभाविक है. इस स्थिति के कारणों का पता लगा पाना शुरुआत में थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि हम खुद इसके कारणों को नहीं पहचान पाते हैं. इसलिए आज हम आपको इस स्थिति से जुड़े कुछ कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिससे आप इस बचाव कर सकते हैं.

यूरीन में होने वाला इंफेक्शन  

इस स्थिति को यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन यानी की यूटीआई भी कहते हैं. यूटीआई यूरीन में खून आने का एक आम कारण है. हालांकि यह महिलाओं में अधिक होता है, लेकिन पुरुष भी स्थिति का शिकार होते हैं. पुरुषों में यूटीआई के जोखिम कारकों में प्रोस्टेट समस्याएं और हालिया कैथीटेराइजेशन शामिल है. यूटीआई तब होता है जब बैक्टीरिया  मूत्रमार्ग में प्रवेश कर जाता है. यह वह ट्यूब है, जो मूत्राशय से मूत्र को शरीर से बाहर निकालती है. अगर यूटीआई किडनी को प्रभावित करता है तो इससे कमर और पीठ में दर्द होता है.

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किडनी और मूत्राशय की पथरी (Bladder stones)…

अगर खून में तरलता बहुत कम और वेस्ट बहुत ज्यादा हो तो वेस्ट यूरीन में कैमिकल के साथ बंध सकता है, जिससे किडनी या मूत्राशय में पथरी हो सकती है. अक्सर, पथरी यूरीन के रास्ते गुजरने में काफी छोटी होती है. बड़ी पथरी किडनी या मूत्राशय में रह जाती है, जो मूत्रमार्ग में कहीं भी अटक सकती है. बड़ी पथरी के आमतौर पर दिखाई देने वाले लक्षण होते हैं.

क्या हे इसके कारण…

  • खून में यूरीन आना
  • कमर के निचले हिस्से में दर्द होना
  • पेट में बार-बार दर्द होना
  • उल्टी आना
  • यूरीन से जोरदार बदबू आना
  • प्रोस्टेट का बढ़ जाना

प्रोस्टेट किसे कहते है?

प्रोस्टेट एक ग्रंथि है, जो कि पुरुष प्रजनन प्रणाली का एक हिस्सा होती है और वीर्य (Sperm)के उत्पादन में मदद करती है. यह मूत्राशय के नीचे और मलाशय के सामने होती है. प्रोस्टेट बढ़ जाने से मूत्रमार्ग पर दबाव बनता है, जिससे यूरीन करने में दिक्कत होती है. यूरीन करने में ज्यादा दम लगाने से नुकसान पहुंचता है, जिससे रक्तस्राव हो सकता है. इस स्थिति से 51 से 60 साल की उम्र के 50 फीसदी पुरुष परेशान होते हैं.

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किडनी में चोट के कारण

ग्लोमेरुली, किडनी के भीतर की छोटी संरचनाएं हैं, जो रक्त को छानने और साफ करने में मदद करती हैं. ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (जीएन) उन रोगों के समूह के लिए एक शब्द है, जो इन संरचनाओं को नुकसान पहुंचाती है. जीएन से पीड़ित लोगों में घायल गुर्दे शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को नहीं निकाल पाते. बिना उपचार के जीएन किडनी फेलियर का कारण बन सकता है. युवाओं में लंबे समय तक जीएन रहने से सुनने और देखने की शक्ति प्रभावित होती है और वह दोनों शक्तियां खो भी सकते हैं.

तो ये है वो कारण जिसके चलते यूरीन में खून आमे की समस्या पेदा होती हैं.

वजन कम करने के लिए डाइट में नींबू का ऐसे करें इस्तेमाल

नींबू  आपके हेल्द के लिए काफी फायदेमंद है. अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो इसके लिए भी नींबू बहुत ज्यादा लाभदायक है. यह बौडी में कौलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है. तो चलिए जानते हैं, आप अपने डाइट में नींबू का कैसे इस्तेमाल करें कि आपका वजन झट से कम हो जाए.

  1. नींबू में एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है. जिससे यह आपके बौडी के विकारों पर कई प्रभाव डालता है. अच्छी त्वचा और अच्छे पाचन के लिए गुनगुने पानी में नींबू का रस सुबह-सुबह डाल कर पी सकते हैं.

2. अगर आप नौनवेज के शौकिन हैं तो  चिकन को लिए टेस्टी बनाने के लिए  रेसिपी में नींबू के रस का जरूर इस्तेमाल करें. यह फिटनेस फ्रीक लोगों के लिए फायदेमंद है और इसमें निश्चित रूप से कम कैलोरी होती है.

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3. नींबू की चाय वजन घटाने के लिए फायदेमंद है. एक कप चाय में 2-3 नींबू की बूंदें डालकर पीने से ये आपके बौडी को टोन करेगा.

4.सैलेड में नींबू का रस का इस्तेमाल अवश्य करें. अपने सलाद में पर्याप्त मात्रा में नींबू का रस निचोड़ें. यह न केवल आपको एक स्वादिष्ट और चटपटा स्वाद देता है, बल्कि वजन घटाने में भी तेजी से मदद करता है.

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अंडरवियर भी हो सकती है सेहत के लिए खतरनाक

नीलेश सिंह सिसोदिया

अंडरवियर यूं तो पैंट के नीचे पहनी जाती है. जिस पर पहले कोई खास ध्यान नहीं देता था. पर समय बदला और बदला कपड़ों का फैशन जिसने अंडरवियर को खास जगह दे डाली. अब पेंट और शर्ट की तरह ही अंडरवियर अलग-अलग स्टाइल और डिजाइन में मार्किट में मौजूद है. इस ग्लैमराइज होते समाज में अंडरवियर की एक अगल इंमपोर्टेंस  हो गई है. पर इस इंपोर्टेंस के चलते हम कही अपनी सेहत के साथ तो संझौता तो नही कर रहे?

अंडरवियर कुछ मायनों में स्वास्थ से भी जुड़ी है. एक रिसर्च के मुताबिक अंडरवियर का चुनाव पुरुष प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है. लेकिन क्या पुरुषों की जेब और उनके जांघे के बीच भी कोई रिश्ता हो सकता है? अमरीका के दिग्गज अर्थशास्त्री ‘एलन ग्रीनस्पैन ने कभी कहा था कि अर्थव्यवस्था की सेहत का अंदाजा पुरुषों के जांघिये की बिक्री से लगाया जा सकता है. खैर जो भी हो अंडरवियर का आज के दौर में एक विशेष महत्व है, जिससे जुड़े कई पहलुओं की हमें जानकारी होनी चाहिए.

एक रिसर्च बताती है कि बहुत उच्च तापमान शुक्राणु के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. इसी कारण हाल ही में पुरुषों को शुक्राणुओं की संख्या या एकाग्रता में कमी के डर से अंडरवीयर पहनने से बचने के लिए कहा गया. हालांकि, हाल ही के दो अध्ययनों के अनुसार, अंडरवियर का चुनाव से इस बात पर कोई फर्क नही पड़ता.

फ्रांस में हुए एक शोध में बताया गया था कि 1990 के दशक के बाद से पूरे विश्‍व में स्‍पर्म काउंट यानी प्रति मि‍लीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्‍या घट गई है. इतना ही नहीं इस दौरान शुक्राणुओं की गुणवत्‍ता में भी कमी आयी. इस शोध में पाया गया है कि 1985 से 2005 के बीच पुरुषों में स्‍पर्म काउंट में 30 प्रतिशत तक की कमी दर्ज हुई है. सोध के अनुसार स्‍वस्‍थ शुक्राणु भी वर्तमान में आसानी से नहीं मिल पा रहे हैं.

सिन्‍थेटिक अंडरवियर

हम सभी जानते हैं कि जननांगो की स्वच्छता बेहतर स्वास्थ्य के लिए बहुत मायने रखती है. क्योंकि सिन्‍थेटिक अंडरवियर जल्‍दी सूखती नहीं है, जिससे पसीने की वजह से वहां यीस्‍ट इंफेक्‍शन, गीलेपन की वजह से खुजली होना तथा बदबू आने का डर हमेशा रहता है.

सूती अंडरवियर

कुल मिलाकर बात इतनी है कि सूती अंडरवियर सेहत के दृष्टि से भी और पहनने में भी आरामदाय होते हैं तो पुरुषों को चाहिए की वे आमतौर पर रोजमर्रा में सूती अंडरवियर ही पहनें. हां कभी -कभार विशेष मौकों पर स्टाइलिश सिन्‍थेटिक अंडरवियर पहनने में कोई गुरहेज नहीं.

अंडरवियर की ये जानकारी के साथ हम आपको पता दे की अगर आप भी गुप्त अंग में किसी स्किन प्रॉब्लम से परेशान है तो जल्द से जल्द डाक्टर की सलाह ले साथ ही जरुरी साफ सफाई भी रखे.

कैंसर से लड़ने के लिए विशेष आहार की जरूरत

Writer- मीनू वालिया

कैंसर ऐसा रोग है जिस का नाम सुनते ही मरीज के हाथपांव फूल जाते हैं और उसे अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई देने लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाइफस्टाइल में बदलाव करने से कैंसर को रोका जा सकता है. कैंसर के 5 फीसदी मामलों का सीधा संबंध खानपान से होता है. दैनिक जीवन में खानपान में बदलाव कर के कैंसर से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं कैंसर से लड़ने के लिए आहार के विशेष टिप्स.

अधिक फलों से युक्त आहार का सेवन करने से पेट और फेफड़ों के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

कैरोटिनौएड्स, जैसे गाजर आदि सब्जियों का सेवन करने से फेफड़े, मुह, गले और गरदन के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

स्टौर्चरहित सब्जियों, जैसे ब्रोकली, पालक और फलियों का सेवन करने से पेट और गले  (इसोफेजियल) के कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है.

संतरे, बैरी, मटर, शिमलामिर्च, गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों तथा विटामिन सी से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने से आप अपनेआप को गले का कैंसर होने से बचा सकते हैं.

लाइकोपिन युक्त फलों व सब्जियों, जैसे टमाटर, अमरूद और तरबूज का सेवन करने से प्रोस्टैट कैंसर होने की आशंका को कम किया जा सकता है.

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फाइबर का सेवन

अधिक मात्रा में फाइबरयुक्त आहार का सेवन करने से आप अपनेआप को कोलोरैक्टल कैंसर तथा पाचनतंत्र के अन्य हिस्सों, जैसे पेट, मुख और गरदन के कैंसर से बचा सकते हैं.

फाइबर का पर्याप्त मात्रा में सेवन आप को कब्ज से भी बचाता है. फाइबर फलों, सब्जियों और पूर्ण अनाज में पाया जाता है. आमतौर पर भोजन जितना ज्यादा प्राकृतिक और अनप्रोसैस्ड होगा, उतना ही उस में फाइबर की मात्रा अधिक होगी. मांस, डेयरी उत्पादों, चीनी या सफेद भोजन, जैसे ब्रैड, सफेद चावल और पैस्ट्री में फाइबर बिलकुल नहीं होता है.

सफेद चावल के बजाय भूरे चावल यानी ब्राउन राइस का इस्तेमाल करें.

सफेद ब्रैड के बजाय होलग्रेन संपूर्ण अनाज की ब्रैड या मल्टीग्रेन ब्रैड का इस्तेमाल करें.

पेस्ट्री के बजाय ब्राउन मफिन खाएं.

आलू के चिप्स या सूखे मेवों के बजाय पौपकौर्न बेहतर और स्वास्थ्यप्रद पोषक स्नैक है.

सैंडविच, पकौड़ा या बर्गर में मीट के बजाय बींस का इस्तेमाल करें.

पानी का जादू

फाइबर पानी को अवशोषित करता है, इसलिए आप अपने आहार में जितना ज्यादा फाइबर का सेवन करते हैं, उतना ज्यादा आप को पानी पीना चाहिए. पानी कैंसर से लड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

यह आप की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है, शरीर में से व्यर्थ और विषैले पदार्थों को निकालता है, और आप के सभी अंगों तक पोषक पदार्थों को पहुंचाता है.

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मांस का सेवन कम

अधिक मांस से युक्त आहार आप के लिए अच्छा नहीं है, खासकर तब जबकि आप की जीवनशैली गतिहीन है. इस के अलावा लाल मांस के सेवन से आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. आप जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन को कम कर के और आहार के पोषक विकल्प चुन कर कैंसर होने की आशंका को काफी हद तक कम कर सकते हैं.

आप के आहार में मांस की कुल मात्रा आप की कुल कैलोरीज की

15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए. 10 फीसदी बेहतर है.

लाल मांस का सेवन कभीकभी करें. लाल मांस में संतृप्त वसा की पर्याप्त मात्रा होती है, इसलिए इस के सेवन से बचना आप के स्वास्थ्य के लिए अच्छा विकल्प होगा.

हर आहार में मांस की मात्रा कम करें. यह मात्रा आप के हाथ की हथेली के बराबर होनी चाहिए.

मांस का सेवन मुख्य भोजन के रूप में न करें, आप भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए कम मात्रा में इस का सेवन कर सकते हैं.

अपने भोजन में पौधों से मिलने वाले प्रोटीन स्रोतों, जैसे बींस आदि का इस्तेमाल करें.

लीनर मीट, जैसे चिकन, फिश और टर्की को प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रोसैस्ड मांस, जैसे हौट डौग, या रेडी टू ईट मांस उत्पादों के सेवन से बचें.

अगर हो सके तो और्गेनिक मांस का सेवन करें. और्गेनिक जानवरों को जीएमओ से रहित और्गेनिक भोजन ही दिया जाना चाहिए. उन्हें एंटीबायोटिक, हार्मोन या अन्य उपउत्पाद नहीं दिए जाने चाहिए.

वसा का सेवन सोचसमझ कर

अधिक वसा से युक्त आहार का सेवन करने से न केवल कैंसर बल्कि कई प्रकार के कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. इस से कौलैस्ट्रौल बढ़ने का भी खतरा होता है. वसा का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना इस का समाधान नहीं है. वास्तव में कुछ प्रकार की वसा आप को कैंसर और कोलैस्ट्रौल से बचाती हैं. वसा का चुनाव सोचसमझ कर करें और बहुत ज्यादा मात्रा में न करें.

इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए ये हैं 9 खास टिप्स

लेखक- हरीश भंडारी

शरीर कई तरह की बीमारियों के जीवाणुओं का हमला झेलता रहता है और कई बार इन की चपेट में आ जाता है. इन हमलों को नाकाम तभी किया जा सकता है, जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो यानी इम्यून सिस्टम सौलिड होना जरूरी है. इसे मजबूत करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. तो आइए, देखते हैं कि किस तरह हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत बना सकते हैं, कुछ खास टिप्स :

  1. चोकरयुक्त अनाजः गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे अनाज का सेवन चोकर सहित करें. इस से आप को कब्ज नहीं होगी तथा आप की रोग प्रतिरोध क्षमता चुस्तदुरुस्त रहेगी.

2. पानीः पानी भी प्राकृतिक औषधि है. प्रचुर मात्रा में शुद्ध पानी पीने से शरीर में जमा कई तरह के विषैले तत्त्व बाहर निकल जाते हैं और इस से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. पानी सामान्य या फिर थोड़ा कुनकुना हो तो ज्यादा लाभदायक रहता है. फ्रिज का ठंडा पानी पीने से बचें.

3. तुलसीः तुलसी एंटीबायोटिक, दर्द निवारक और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी फायदेमंद है. रोजाना सुबह तुलसी के 3-4 पत्तों का सेवन करें, काफी फायदा मिलेगा.

4. योगः योग व प्राणायाम भी शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. रोजाना घर पर इन का अभ्यास किया जा सकता है.

सर्दियों का मौसम साथ लाता है कई तरह की एलर्जी, जानें उपाय

5. जोर से हंसनाः जोर से हंसने से रक्त संचार सुचारु होता है व शरीर अधिक मात्रा में औक्सीजन लेता है. तनावमुक्त हो कर हंसने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने में मदद मिलती है.

6. रसदार फलः संतरा, मौसमी, कीनू आदि रसदार फलों में भरपूर मात्रा में खनिज लवण तथा विटामिन सी होता है. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में ये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. आप चाहें तो साबुत फल खाएं और चाहें तो इन का रस निकाल कर सेवन करें ध्यान रखें रस में चीनी या नमक न मिलाएं.

7. गिरीदार फलः सर्दी के मौसम में गिरीदार फलों जैसे बादाम, काजू, अखरोट का सेवन बहुत फायदेमंद है. इन्हें रात भर भिगो कर रखने व सुबह चाय या दूध के साथ आधा घंटा पहले खाने से बहुत लाभ होता है.

8. अंकुरित अनाजः अंकुरित अनाज (जैसे मूंग, मोठ, चना आदि) तथा भीगी हुई दालों का भरपूर मात्रा में सेवन करें. अनाज को अंकुरित करने से उन में मौजूद पोषक तत्त्वों की क्षमता बढ़ जाती है. ये पचाने में आसान, पौष्टिक और स्वादिष्ठ होते हैं.

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9. सलादः  भोजन के साथ सलाद का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें. भोजन का पाचन पूर्ण रूप से हो, इस के लिए सलाद का सेवन जरूरी होता है. ककड़ी, टमाटर, मूली, गाजर, पत्तागोभी, प्याज, चुकंदर आदि को सलाद में जरूर शामिल करें. इन में प्राकृतिक रूप से मौजूद नमक हमारे लिए पर्याप्त होता है. अलग से नमक न डालें.

जानिए, सेक्सुअल एलर्जी के क्या कारण है

लेखक- डा. ऋषिकेश डी पाई

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

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इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चल कर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया : यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज : यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. य-पि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

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एचआईवी या एड्स : ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज : पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी : इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी : यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

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वीर्य से एलर्जी : बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं. इस का लक्षण है- योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्र्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुईर्, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्र्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर् बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

(लेखक ब्लूम आईवीएफ ग्रुप के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)

सेक्स करने का ये फायदा शायद ही कोई जानता हो

आज के जमाने में लोग अपनी सेहत को लेकर काफी जागरुक हो गए हैं और महिला और पुरुष अपने वजन को लेकर चौकन्ने रहते हैं. इसके लिए वे न सिर्फ अपने खानपान पर खास ध्यान देते हैं बल्कि फिट रहने के लिए हजारों रुपये भी खर्च करते हैं. लेकिन एक नए शोध के अनुसार अब आपको वजन कम करने के लिए न तो घंटों जिम में जाकर पसीना बहाने की जरूरत है और न ही घंटों जॉगिंग की. सेक्स एक ऐसा जरिया है जो आपको वजन बढ़ने की परेशानी से बचा सकता है.

कई शोधों से यह बात साबित हो चुकी है कि सेक्स करके आसानी से वजन कम किया जा सकता है. सेक्स करने से तेजी से कैलोरी बर्न होती है जिससे वजन कम होता है. हम यहां आपको बता रहे हैं कैसे सेक्स मददगार होता है वजन घटाने में.

एक शोध में यह सामने आया है कि अगर पुरुष 25 मिनट तक सेक्स करे तो इससे वह 101 कैलोरी जला सकता है जबकि इतने ही समय तक सेक्स करके महिला 70 कैलोरी बर्न करती है. इस अध्ययन के मुताबिक जवान और स्वस्थ पुरुष औसतन सेक्स के दौरान एक मिनट में 4.2 कैलोरीज बर्न करते हैं, जबकि ट्रेडमिल में 9.2 कैलोरीज बर्न होती हैं. वहीं महिलाएं सेक्स के दौरान एक मिनट में 3.1 कैलोरीज बर्न करती हैं.

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जॉगिंग ही नहीं सेक्स भी जलाती है कैलोरीज

सेक्स करके भी आप अपनी कैलोरी बर्न कर सकते हैं. अपने पार्टनर के साथ एक घंटे तक मस्ती करके आप 70 कैलोरी जलाते हैं. इस एक घंटे में फोरप्ले करके यौन संबंध को मस्ती के साथ और भी रोचक बना सकते हैं. अगर अधिक कैलोरी बर्न करना चाहते हैं तो अपने सेक्स के तरीकों को बदलें.

सेक्स कम करता है चर्बी

नियमित रूप से सेक्स संबंध बनाने से कार्टिसोल का स्तर सामान्य रहता है. कार्टिसोल ऐसा हार्मोन है जो आपकी भूख बढ़ाता है. इस हार्मोन के अधिक स्राव होने के कारण भूख अधिक लगती है. जबकि कार्टिसोल का स्तर कम रहने से शरीर से अतिरिक्त फैट जलता है.

बेहतर सेक्स और खानपान

सेक्स के मामले में अगर आप अपनी इमेज अच्छी रखना चाहते हैं और चाहते हैं कि आपका पार्टनर आपसे खुश रहे तो अपना खानपान जरूर सुधारें. आपको तले हुए खाने से बचना चाहिए और ऐसा भोजन लेना चाहिए जिससे वसा न बढ़ता हो. इसके अलावा फिटनेस पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

सेक्स करता है बीमारियों से बचाव

सेक्स करने से न केवल वजन कम होता है बल्कि कई सामान्य और गंभीर बीमारियों से भी बचाव होता है. सेक्स से हार्ट अटैक की संभावनाएं कम होती हैं और ब्लड प्रेशर भी काबू में रहता है. महिलाओं में मासिक धर्म में परेशानी नहीं होती.

तो अब आप वजन कम करने के लिए बाहर जाने की बजाय अपने पार्टनर को प्यार करें और अपने वजन को काबू में रखें, इससे आपकी सेक्स लाइफ भी खुशहाल रहेगी और आप सेहतमंद भी रहेंगे.

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Top 10 Best Health Tips in Hindi: हेल्थ से जुड़ी टॉप 10 खबरें हिंदी में

Top 10 Best Health Tips in Hindi: भागदौड़ भरी जिंदगी में आप अपने हेल्थ का केयर करना भूल जाते है लेकिन उम्र बढ़ने के बाद किसी खतरनाक बीमारी से सामना करना पड़ता है तो आपको अपने हेल्थ की चिंता सताती है. इस आर्टिकल में हम आपको 10 Best Health Tips के बारे में बताएंगे. जिसे आप अपनाकर फिट एंड फाइन रह सकते हैं. तो यहां पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Best Health Tips in Hindi.

  1. Piles की बीमारी से इस तरह मिलेगा छुटकारा

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गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

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2. घर पर कैसे रहें फिट

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कोरोनाकाल में युवाओं की फिटनैस काफी प्रभावित हुई है. जिम बंद हुए तो अधिकतर का शरीर ढीला पड़ता गया. लेकिन अब चिंता की जरूरत नहीं क्योंकि यहां फिटनैस मंत्र जो उपलब्ध है जो आप को बिन जिम के भी फिट रखेगा.

कोरोनाकाल में लोगों को भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहने की खास हिदायत दी गई है, क्योंकि कोविड-19 का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी तेजी से फैलता है. जिस के प्रसार का माध्यम छींकने, खांसने, पसीने और बातचीत के आम व्यवहार से हो सकता है.   यही कारण है कि समयसमय पर ऐसी जगहों पर सरकार द्वारा कड़े प्रतिबंध लगाने की नौबत आई जहां संक्रमण फैलने का अधिक खतरा बना रहता है और उन स्थानों में से एक ‘जिम’ रहा.

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3. अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

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आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

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4. जोड़ों के दर्द को न करें अनदेखा

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कुछ तरह के गठिया में जोड़ों का बहुत ज्यादा नुकसान होता है. गठिया यानी जोड़ों की सूजन, जो एक या एक से ज्यादा जोड़ों पर असर डाल सकती है. डाक्टरों की मानें, तो हमारे शरीर में 10 से ज्यादा तरह का गठिया होता है.

गठिया जोड़ों के ऊतकों में जलन और टूटफूट के चलते पैदा होता है. जलन के चलते ही ऊतक लाल, गरम, सूजन और दर्द से भर जाते हैं. गठिया के लक्षण आमतौर पर बुढ़ापे में दिखते हैं, लेकिन आजकल ये लक्षण बच्चों और नौजवानों में भी देखे जा रहे हैं.

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5. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए ये हैं 9 खास टिप्स

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शरीर कई तरह की बीमारियों के जीवाणुओं का हमला झेलता रहता है और कई बार इन की चपेट में आ जाता है. इन हमलों को नाकाम तभी किया जा सकता है, जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो यानी इम्यून सिस्टम सौलिड होना जरूरी है. इसे मजबूत करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. तो आइए, देखते हैं कि किस तरह हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत बना सकते हैं.

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6. पैनक्रियाटिक रोगों की बड़ी वजहें

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युवा कामकाजी प्रोफैशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गालस्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर सम झ व अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इस से जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित व स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

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7. अगर आप भी करते हैं तंबाकू का सेवन तो हो जाइए सावधान

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तंबाकू से बनी बीड़ी व सिगरेट में कार्बन मोनोऔक्साइड, थायोसाइनेट, हाइड्रोजन साइनाइड व निकोटिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं, जो न केवल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देते हैं, बल्कि शरीर को भी कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेलते हैं. जो लोग तंबाकू या तंबाकू से बनी चीजों का सेवन नहीं करते हैं, वे भी तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों खासकर बीड़ीसिगरेट पीने वालों की संगत में बैठ कर यह बीमारी मोल ले लेते हैं. इसे अंगरेजी भाषा में ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहते हैं.

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8. वजन कम करने के लिए डाइट में नींबू का ऐसे करें इस्तेमाल

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नींबू  आपके हेल्द के लिए काफी फायदेमंद है. अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो इसके लिए भी नींबू बहुत ज्यादा लाभदायक है. यह बौडी में कौलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है. तो चलिए जानते हैं, आप अपने डाइट में नींबू का कैसे इस्तेमाल करें कि आपका वजन झट से कम हो जाए.

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9. क्या आप पेनकिलर एडिक्टेड हैं तो पढ़ें ये खबर

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आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में हमारे पास आराम करने का बिलकुल भी समय नहीं है. ऐसे में भीषण दर्द की वजह से हमें बैठना पड़े तो उस से बड़ी मुसीबत कोई नहीं लगती है. कोई भी दर्द से लड़ने के लिए न तो अपनी एनर्जी लगाना चाहता है और न ही समय. इसलिए पेनकिलर टैबलेट खाना बहुत आसान विकल्प लगता है. बाजार में हर तरह के दर्द जैसे बदनदर्द, सिरदर्द, पेटदर्द आदि के लिए कई तरह के पेनकिलर मौजूद हैं.

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10. क्या पुरुषों को भी होता है मोनोपौज?

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मेनोपोज, यानी एक उम्र के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंज और कुछ शारीरिक क्रियाओं में आने वाली कमी. अधेड़ावस्था की शुरुआत है मेनोपोज. मेनोपोजसे उत्पन्न कुछ शारीरिक समस्याओं की चर्चा अब तक स्त्रियों के सम्बन्ध में ही की जाती रही हैं, लेकिन यह चर्चा बहुत कम होती है कि मेनोपोज की स्थिति और इससे उत्पन्न समस्याओं से पुरुष भी जूझते हैं.

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