Hindi Story : दिल वालों का दर्द

Hindi Story : उस दिन मनोज फटी आंखों से उसे एकटक देखता रह गया. उस के होंठ खुले के खुले रह गए. इस से पहले उस ने ऐसा हसीन चेहरा कभी नहीं देखा था.

मनोज ने डाक्टर की डिगरी हासिल कर के न तो किसी अस्पताल में नौकरी करनी चाही और न ही प्राइवेट प्रैक्टिस की ओर ध्यान दिया, क्योंकि पढ़ाई और डाक्टरी के पेशे से उस का मन भर गया था.

किसी के कहने पर मनोज एक फैक्टरी में मुलाजिम हो गया. वहां के दूसरे लोग मिलनसार थे. औरतें और लड़कियां भी लगन से काम करती थीं. कइयों ने मनोज के साथ निकट संबंध बनाने चाहे, पर उन्हें निराशा ही मिली. वजह, मनोज शादी, प्यारमुहब्बत वगैरह से हमेशा भागता रहा और उस की उम्र बढ़ती गई.

उसी फैक्टरी में एक कुंआरी अफसर मिस सैलिना विलियम भी थीं, जिन्होंने कह रखा था कि मनोज के लिए उन के घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे. शराब पीना उन की सब से बड़ी कमजोरी थी, जो मनोज को नापसंद था.

दूसरी मारिया थीं, जो मनोज को अकसर होटल ले जातीं. वहीं खानापीना होता, खूब बातें भी होतीं. वे शादीशुदा थीं या नहीं, उन का घर कहां था, न मनोज ने जानने की कोशिश की और न ही उन्होंने बताया.

इसी तरह दिन गुजरतेगुजरते 15 साल का समय निकल गया. न मनोज ने शादी करने के लिए सोचा और न इश्कमुहब्बत करने के लिए आगे बढ़ा.

यारदोस्तों ने उसे चेताया, ‘कब तक कुंआरा बैठा रहेगा. किसी को तो बुढ़ापे का सहारा बना ले, वरना दुनिया में आ कर ऐसी जिंदगी से क्या मिलेगा…’

दोस्तों की बातों का मनोज पर गहरा असर पड़ा. उस ने आननफानन एक दैनिक अखबार व विदेशी पत्रिका में अपनी शादी का इश्तिहार निकलवा दिया. यह भी लिखवा दिया कि फोन पर रात 10 बजे के बाद ही बात करें या अपना पूरा पता लिख कर ब्योरा भेजें.

4 दिन के बाद रात के 10 बजे से 2 बजे तक लगातार फोन आने शुरू हुए, तो फोन की घंटी ने मनोज का सोना मुश्किल कर दिया.

पहला फोन इंगलैंड के बर्मिंघम शहर से एक औरत का आया, ‘मैं हिंदुस्तानी हो कर भी विदेशी बन गई हूं. मेरा हाथ पकड़ोगे, तो सारी दौलत तुम्हारी होगी. तुम्हें खाना खिला कर खुश रखूंगी. मैं होटल चलाती हूं.

‘मैं विदेश में ब्याही गई केवल नाम के लिए. चंद सालों में मेरा मर्द चल बसा और सारी दौलत छोड़ गया. सदमा पहुंचा, फिर शादी नहीं की. अब मन हुआ, तो तुम्हारा इश्तिहार पसंद आया.’

‘‘मैं विचार करूंगा,’’ मनोज ने कहा.

दूसरा फोन मनोज की फैक्टरी की अफसर मिस सैलिना विलियम का था, ‘अजी, मैं तो कब से रट लगाए हुए हूं, तुम ने हां नहीं की और अब अखबार में शादी का इश्तिहार दे डाला. मेरी 42 की उम्र कोई ज्यादा तो नहीं. मेरे साथ इतनी बेरुखी मत दिखाओ. तुम अपनी मस्त नजरों से एक बार देख लोगे, तो मैं शराब पीना छोड़ दूंगी.’

‘‘ऐसा करना तुम्हारे लिए नामुमकिन है.’’

‘मुझ से स्टांप पेपर पर लिखा लो.’

‘‘सोचने के लिए कुछ समय तो दो,’’ मनोज ने कहा.

4 दिन बाद निलंजना का फोन आया, ‘मेरी उम्र 40 साल है. मेरी लंबाई 5 फुट, 7 इंच है. मैं ने कंप्यूटर का डिप्लोमा कोर्स किया है.’

‘‘आप ने इतने साल तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘मुझे पढ़ाई के आगे कुछ नहीं सूझा. जब फुरसत मिली, तो लड़के पसंद नहीं आए. अब आप से मन लग जाएगा…’

‘‘ठीक है. मैं आप से बाद में बात करूंगा.’’

आगरा से यामिनी ने फोन किया, ‘मैं आटोरिकशा चलाती हूं. मैं हर तरह के आदमी से वाकिफ हो चुकी हूं, इसीलिए सोचा कि अब शादी कर लूं. आप का इश्तिहार पसंद आया.’

‘‘कभी मिलने का मौका मिला, तो सोचूंगा.’’

‘मेरा पता नोट कर लीजिए.’

‘‘ठीक है.’’

मुमताज का फोन रात 3 बजे आया. वह कुछकुछ कहती रही. मनोज नींद में था, सो टाल गया. बाद में उस की एक लंबी चिट्ठी मिली. उस ने गुस्से में लिखा था, ‘मेरी फरियाद नहीं सुनी गई. कब तक ऐसा करोगे? मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी. मैं ख्वाबों में आ कर तुम्हें जगा दूंगी. इस तरह सजा दूंगी.

‘मैं पढ़ीलिखी हूं. यह तो तुम पर मेरा मन आ गया, इसलिए शादी को तैयार हो गई, वरना कितने लड़के मुझे पाने के लिए मेरे घर के चक्कर लगाते रहे. मैं ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. मेरी फोटो चिट्ठी के साथ है. उम्र में तुम से थोड़ी कम हूं, दिल की हसरतें पूरी करने में एकदम ऐक्सपर्ट हूं.’

नूरजहां ने तो हद पार कर दी, जब सिसकती हुई रात के 1 बजे बहुत सारी बातें करने के बाद वह बोली, ‘अब तो यह हालत है कि कोई मेरे दरवाजे पर दस्तक देने नहीं आता. कभी लोगों की लाइन लगी रहती थी. अब तो कभी खटका हुआ, तो पता चलता है कि हवा का झोंका था.

‘जिंदगी का एक वह दौर था कि लोग हर सूरत में ब्याहने चले आते. जितनी मांग की जाए, उन के लिए कम थी और एक आज मायूसी का दिन है. खामोशी का ऐसा दौर चल पड़ा, जो सन्नाटा बन कर खाए जाता है. हर समय की कीमत होती है.’

‘‘क्या आप तवायफ हैं?’’

‘अजी, यों कहिए मशहूर नर्तकी. मेरा मुजरा सुनने के लिए दूरदूर से लोग आते हैं और पैसे लुटा जाते हैं.’

‘‘तो आप कोठे वाली हैं?’’

‘अब वह जमाना नहीं रहा. पुलिस वालों ने सब बंद करा दिया. तुम से मिलने कब आऊं मैं?’

‘‘थोड़ा सोचने का वक्त दो.’’

फूलमती तो घर पर ही मिलने चली आई. मैं फैक्टरी में था. वह लौट गई, फिर रात को फोन किया, ‘मैं पीसीओ बूथ से बोल रही हूं. मैं फूलमती हूं. बड़े खानदान वाले लोग नीची जाति वालों को फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करते, जैसे हम लोग उन के द्वारा बेइज्जत होने के लिए पैदा हुए हैं.

‘सब के सामने हमें छू कर उन का धर्म खराब होता है, लेकिन जब रात को दिल की प्यास बुझाने के लिए वे हमारे जिस्म को छूते हैं, तब उन का धर्म, जाति खराब नहीं होती…

एक दिन एक हताश सरदारनी का फोन आया, ‘मैं जालंधर से मोहिनी कौर बोल रही हूं. शादी के एक साल बाद मेरा तलाक हो गया. मुझे वह सरदार पसंद नहीं आया. मैं ने ही उसे तलाक दे दिया.

‘वह ऐयाश था. ट्रक चलाता था और लड़कियों का सौदा करता था. फिर मैं ने शादी नहीं की. उम्र ढलने लगी और 40 से ऊपर हो चली, तो दिल में तूफान उठने लगा. बेकरारी और बेसब्री बढ़ने लगी. तुम्हारे जैसा कुंआरा मर्द पा कर मैं निहाल हो जाऊंगी.’

‘‘तुम्हें पंजाब में ही रिश्ता ढूंढ़ना चाहिए.’’

‘अजी, यही करना होता, तो तुम से इतने किलोमीटर दूर से क्यों बातें करती?’

‘‘थोड़ा सब्र करो, मैं खुद फोन करूंगा.’’

‘अजी, मेरा फोन नंबर तो लो, तभी तो फोन करोगे.’

‘‘बता दो,’’ मनोज बोला.

एक दिन फोन आया, ‘मैं पौप सिंगर विशाखा हूं. मेरा चेहरा ताजगी का एहसास कराता है. कभी किशोरों के दिल की धड़कन रही, अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं, मैं ने इसलिए गायकी छोड़ दी और आरामतलब हो गई. इस की भी एक बड़ी वजह थी. मेरे गले की आवाज गायब हो गई. इलाज कराने पर भी फायदा न हुआ. तुम अगर साथी बना लोगे, तो मेरा गला ठीक हो जाएगा. मेरी उम्र 40 साल है.’

‘‘तुम्हारा मामला गंभीर है, फिर भी मैं सोचूंगा.’’

‘कब उम्मीद करूं?’

‘‘बहुत जल्दी.’’

एक फोन वहीदा खान का आया. वह लाहौर से बोली, ‘मेरे पास काफी पैसा है, लेकिन मुझे यहां पर कोई पसंद नहीं आया. मैं चाहती हूं कि आप हमारा धर्म अपना लें और यहां आ जाएं, तो मेरा सारा कारोबार आप का हो जाएगा.

‘मैं रईस नवाब की एकलौती बेटी हूं. न मेरे अब्बा जिंदा बचे हैं और न अम्मी. मेरी उम्र 40 साल है.’

‘‘आप के देश में आना मुमकिन नहीं होगा.’’

‘क्यों? जब आप को शादी में सबकुछ मिलने वाला हो, तो मना नहीं करना चाहिए.’

‘‘क्योंकि मुझे अपना देश पसंद है.’’

इस के बाद मुंबई से अंजलि का फोन आया. वह बोली, ‘मैं इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हूं और एमबीए भी कर रही हूं. मेरी उम्र 35 साल है. मैं ने अभी तक शादी नहीं की. पर अब शादी करने की दिली ख्वाहिश है.

‘इस उम्र में भी मुझे लौन टैनिस और गोल्फ खेलने का शौक है. आप अपने बारे में बताइए?’

‘‘मैं रमी का खिलाड़ी हूं और बैडमिंटन खेलने का शौक रखता हूं.’’

‘मैं भी वही सीख लूंगी. एक दिन आप मिलिए. बहुत सी बातें होंगी. मुझे भरोसा है कि हम दोनों एकदूसरे को जरूर पसंद करेंगे. मुझे आप की उम्र पर शक है. आप 40 साल से ज्यादा के हो ही नहीं सकते.’

‘‘आप ने ऐसा अंदाजा कैसे लगा लिया?’’

‘आप के बोलने के ढंग से.’

‘‘अगर मैं आप को सर्टिफिकेट दिखा दूं, तो यकीन करेंगी?’’

‘नहीं.’

‘‘क्यों?’’

‘वह भी बनवा लिया होगा. जो लोग 45 से ऊपर हो चुके हों, वे ऐसा इश्तिहार नहीं निकलवाते. या तो आप ने औरतों का दिल आजमाने के लिए इश्तिहार दिया है या फिर कोई खूबसूरत औरत आप के दिमाग में बसी होगी, जिसे अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा किया.’

मनोज ठहाका मार कर हंस पड़ा. वह भी फोन पर जोर से हंस पड़ी और बोली, ‘लगता है, मैं ने आप की चोरी पकड़ ली है.’

मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘आप की उम्र कुछ भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता. क्या आप मुझ से हैंगिंग गार्डन में आ कर मिलना चाहेंगे?’

‘‘वहां आने के लिए मुझे एक महीने पहले ट्रेन या हवाईजहाज से रिजर्वेशन कराना पड़ेगा.’’

‘तारीख बता दीजिए, मैं यहीं से आप का टिकट करा कर पोस्ट कर दूंगी. मेरे जानने वाले रेलवे और एयरपोर्ट में हैं.’

‘‘आप जिद करती हैं, तो अगले हफ्ते की किसी भी तारीख पर बुला लें. मुझे देखते ही आप को निराश होना पड़ेगा,’’ कह कर मनोज फिर हंस पड़ा.

‘मैं बाद में फोन करूंगी.’

‘‘गुडबाय.’’

‘बाय.’

मनोज की फैक्टरी की मुलाजिम मारिया बहुत खूबसूरत थी, जो अकसर मनोज को अपने साथ होटल ले जाती थी. उसे खिलातीपिलाती और चहकते हुए हंसतीमसखरी करती. उस ने कभी अपने बारे में नहीं बताया कि वह कहां रहती है. शादीशुदा है या कुंआरी या फिर तलाकशुदा.

मनोज ने ज्यादा जानने में दिलचस्पी नहीं ली. उस की उम्र ज्यादा नहीं थी. मनोज के इश्तिहार पर उस की नजर नहीं पड़ी, लेकिन उसे किसी ने शादी करने की इच्छा बता दी.

बहुत दिनों बाद मारिया मनोज को होटल में ले गई और बोली, ‘‘क्या तुम शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्यों? अभी तो सोचा नहीं.’’

‘‘झूठ बोलते हो. तुम ने अखबार में इश्तिहार दिया है.’’

मनोज की चोरी पकड़ी जा चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘मेरी उम्र बढ़ने लगी थी. एकाएक मन में आया कि शायद कोई पसंद कर ले. अखबार में यों ही इश्तिहार दे दिया. तमाम दिलवालियों से फोन पर बात हुई और चिट्ठियां भी आईं.’’

‘‘तो किसे पसंद किया?’’

‘‘किसी को नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें बताने लगूंगा, तो समय कम पड़ जाएगा. इसे अभी राज रहने दो.’’

‘‘नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हारे साथ उठनाबैठना बंद कर दूंगी. तुम मुझे अपना जीवनसाथी बना लो, दोनों को शांति मिलेगी.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो मारिया.’’

‘‘मुझे भी उस लिस्ट में रख लो. मैं ने अभी तक किसी से रिश्ता नहीं जोड़ा. मैं अकेली रहती हूं.’’

‘‘मैं ने तो समझा था कि तुम शादीशुदा हो.’’

‘‘नहीं. मेरा भी ध्यान रखना.’’

मारिया की उम्र 35 साल से कुछ ज्यादा थी.

मनोज को डाक से अंजलि का लिफाफा मिला. उस के अंदर एक चिट्ठी, मिलने की जगह और लखनऊ से मुंबई तक हवाईजहाज का रिजर्वेशन टिकट था. ताज होटल के कमरा नंबर 210 में ठहरने व खानेपीने का इंतजाम भी उसी की ओर से किया गया था.

अंजलि ने अपना कोई फोटो भी नहीं भेजा, जिसे मुंबई पहुंच कर वह पहचान लेता. एयरपोर्ट से ताज होटल तक के लिए जो कार भेजी जाने वाली थी, उस का नंबर भी लिखा था. कहां खड़ी मिलेगी, वह भी जगह बताई गई थी.

जब मनोज मुंबई पहुंचा, तो उसे उस जगह पहुंचा दिया गया. वह बेसब्री से अंजलि का इंतजार करने लगा, जिस ने इस तरह न्योता भेजा था.

मिलने पर अंजलि ने खुद अपना परिचय दिया. उसे देखने पर मनोज को ऐसा लगा, मानो कोई हुस्न की परी सामने खड़ी हो. वह कुछ देर तक उसे देखता रह गया.

अंजलि मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरा अंदाजा सही निकला कि आप 30-40 से ऊपर नहीं हो सकते. आप का इश्तिहार महज एक ढकोसला था, जो औरतों को लुभाने का न्योता था.’’

मनोज को उस की बातों पर हंसी आ गई. उस ने शायद उस के झूठ को पकड़ लिया था.

‘‘क्या आप ने सचमुच अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘मेरी झूठ बोलने की आदत नहीं है. मैं शादी करना ही नहीं चाहता था. मुझे मस्तमौला रहना पसंद है.’’

‘‘अब कैसे रास्ते पर आ गए?’’

‘‘यह भी एक इत्तिफाक समझिए. लोगों ने मजबूर किया, तो सोचा कि देखूं किस तरह की औरतें मुझे पसंद करेंगी, इसलिए इश्तिहार दे दिया.’’

‘‘क्या अभी भी शादी करने का कोई इरादा नहीं है?’’

‘‘ऐसा कुछ होता, तो यहां तक दौड़ लगाने की जरूरत नहीं थी. आप अपना परिचय देना चाहेंगी?’’

‘‘मैं ने अपने मांबाप को कभी नहीं देखा. मैं अनाथालय में पलीबढ़ी हूं. एक शख्स ने खुश हो कर मुझे गोद ले लिया. मैं अनाथालय छोड़ कर उन के साथ रहने लगी. मुझे शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया गया. वह मेरी पसंदनापसंद पर छोड़ दिया गया.

‘‘उस शख्स के कोई औलाद न थी. उस ने शादी नहीं की, लेकिन एक बेटी पालने का शौक था, इसलिए मुझे ले आया. मैं ने भी उसे एक बेटी की तरह पूरी मदद देते हुए खुश रखा.

‘‘मैं ने शादी का जिक्र किया, तो वह खुश भी हुआ और उदास भी. खुश इसलिए कि उसे कन्यादान करने का मौका मिलेगा, दुखी इसलिए कि सालों का साथ एक ही पल में छूट जाएगा.’’

‘‘तो क्या सोचा है आप ने?’’

‘‘मैं इतना जानती हूं कि सात फेरे लेने के बाद पतिपत्नी का हर सुखदुख समझा जाता है. लंबी जिंदगी कैदी के पैर से बंधी हुई वह बेड़ी है, जिस का वजन बदन से ज्यादा होता है. बंधनों के बोझ से शरीर की मुक्ति ज्यादा बड़ा वरदान है. मैं आप को इतना प्यार दूंगी, जो कभी नहीं मिलेगा.’’

उन दोनों में काफी देर तक इधरउधर की बातें हुईं. उस ने इजाजत मांगी और चली गई.

अगले दिन वह मनोज से फिर मिली. उस के चेहरे की ताजगी सुबह घास पर गिरी ओस की तरह लग रही थी. उस की नजरों में ऐसी शोखी थी,

जो उस के पढ़ेलिखे होने की सूचना दे रही थी.

अंजलि को कोई काम था. उस ने जल्दी जाने की इजाजत मांगी. मनोज उसे जाते हुए देखता रहा, जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

शाम का धुंधलका गहराने लगा था. मनोज बोझिल पलकों और भारी कदमों से उठा और लौटने के लिए एयरपोर्ट की ओर चल दिया.

जिंदगी में किसी न किसी से एक बार प्यार जरूर होता है, चाहे वह लंबा चले या पलों में सिकुड़ जाए, लेकिन पहला प्यार एक ऐसा एहसास है, जिसे कभी भूला नहीं जा सकता. उस की यादें मन को तरोताजा जरूर बना देती हैं.

Hindi Story : पिछवाड़े की डायन – क्या था उस रात का सच

Hindi Story : इस वीरान घाटी में रहते हुए मुझे तकरीबन एक साल हो गया था. वहां तरहतरह के किस्से सुनने को मिलते थे. घाटी के लोग तमाम अंधविश्वासों को ढोते हुए जी रहे थे. तांत्रिक और पाखंडी लोग अपने हिसाब से तरहतरह की कहानियां गढ़ कर लोगों को डराते रहते थे. वह घाटी ओझाओं और पुजारियों की ऐशगाह थी. पढ़ाईलिखाई का वहां माहौल ही नहीं था.

जब मैं घाटी में आया था, तो लोगों द्वारा मुझे तमाम तरह की चेतावनियां दी गईं. मुझे बताया गया कि मधुगंगा के किनारे दिन में पिशाच नाचते रहते हैं और रात में भूत सड़क पर खुलेआम बरात निकालते हैं.

एकबारगी तो मैं बुरी तरह से डर गया था, लेकिन नौकरी की मजबूरी थी, इसलिए मुझे वहां रुकना पड़ा. बस्ती से तकरीबन सौ मीटर दूर मेरा सरकारी मकान था. वहां से मधुगंगा साफ नजर आती थी. मेरे घर और मधुगंगा के बीच 2 सौ मीटर चौड़ा बंजर खेत था, जिस में बस्ती के जानवर घास चरते थे.

मेरे घर से एकदम लगी कच्ची सड़क आगे जा कर पक्की सड़क से जुड़ती थी. अस्पताल भी मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर था. मैं एक डाक्टर की हैसियत से वहां पहुंचा था. जाते ही डरावनी कहानियां सुन कर मेरे होश उड़ गए. कुछ दिनों तक मैं वहां पर अकेला रहा, लेकिन मुझे देर रात तक नींद नहीं आती थी.

विज्ञान पढ़ने के बावजूद वहां का माहौल देख कर मैं भी डरने लगा था. रात को जब खिड़की से मधुगंगा की लहरोें की आवाज सुनाई देती, तो मेरी घिग्घी बंध जाती थी.

आखिरकार मैं ने गांव के ही एक नौजवान को नौकर रख लिया. वह भग्गू था. बस्ती के तमाम लोगों की तरह वह भी घोर अंधविश्वासी निकला.

मेरे मना करने के बावजूद वह उन्हीं बातों को छेड़ता रहता, जो भूतप्रेतों और तांत्रिकों के चमत्कारों से जुड़ी होती थीं. भग्गू के आने से मुझे बड़ा सुकून मिला था. वह मजेदार खाना बनाता था और घर के तमाम काम सलीके से करता था. वह रहता भी मेरे साथ ही था. उसे साथ रखना मेरी मजबूरी भी थी. उस बड़े घर में अकेले रहना ठीक नहीं था.

कहीसुनी बातों से कोई खौफ न भी हो, तो भी बात करने के लिए एक सहारा तो चाहिए ही था. भग्गू ने मेरा अकेलापन दूर कर दिया था.

वहां नौकरी करते हुए एक साल बीत गया. इस बीच मैं ने पिशाचों की कहानियां तो खूब सुनीं, पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी भूतपिशाच या चुड़ैल का सामना करना पड़ा हो. अब तो मैं वहां रहने का आदी हो गया था. इलाके के लोग मुझ से खुश रहते थे. दिन हो या रात, मैं मरीजों को हर समय देखने के लिए तैयार रहता था. मुझे इन गरीब लोगों की सेवा करने में बड़ा सुकून मिलता था.

आमतौर पर मेरे पास मरीज तब आते थे, जब बहुत देर हो चुकी होती थी. पहले वे लोग झाड़फूंक कराते थे, फिर तंत्रमंत्र आजमाते थे और आखिर में अस्पताल आते थे. इसी वजह से कई लोग भयानक बीमारियों की चपेट में आ गए थे.

मैं ने महसूस किया था कि तांत्रिक, ओझा और नीमहकीम जानबूझ कर लोगों का सही इलाज न कर अपने जाल में फंसा लेते हैं और फिर उन का जम कर शोषण करते हैं.

घाटी में मैं इलाज के लिए मशहूर हो गया था. मुझ से उन पाखंडी लोगों को बेहद चिढ़ होती थी. स्वोंगड़ शास्त्री की अगुआई में उन्होंने मेरी खिलाफत भी की, लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए. यहां तक कि उन्होंने मुझे नीचा दिखाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए. आखिरकार उन्होंने हार मान ली.

स्वोंगड़ शास्त्री के लिए मेरे मन में ऐसी नफरत भर गई थी कि मैं ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था. उस धूर्त से शायद मैं कभी नहीं बोलता, मगर एक घटना ने मेरा मुंह खुलवा दिया.

वह पूर्णिमा की रात थी. धरती चांदनी की दूधिया रोशनी में नहा रही थी. घर के पिछवाड़े की खिड़की से मैं मधुगंगा की मचलती लहरों को साफ देख सकता था. धरती का यह रूप कभीकभार ही देखने को मिलता था. उस रात को मैं ने जो कुछ भी देखा, वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला था.

रात के 10 बज चुके थे. बस्ती के लोग गहरी नींद में सो रहे थे. पिछली रात भयंकर तूफान आया था, इसलिए बिजली गुल थी. मैं चारपाई पर बैठा पिछवाड़े की खिड़की से बाहर का नजारा देख रहा था.

अभी मैं मस्ती में डूबा ही था कि सामने बंजर खेत में झाडि़यों के बीच एक चेहरा दिखाई दिया. सफेद धोती में लिपटी एक औरत घुटनों के बल बैठी थी. उस के सिर का पल्लू पूरे मुंह को ढके हुए था. उस का दायां हाथ नहीं हिल रहा था, लेकिन बायां हाथ लगातार हिलता जा रहा था. ऐसा लगता था, मानो अपना हाथ हिला कर वह मुझे अपनी तरफ बुला रही है.

मेरी रगों में दौड़ता खून जैसे जम कर बर्फ बन गया. मेरे माथे पर पसीने की बूंदें निकल आईं. काफी देर तक मैं उस चेहरे को देखता रहा. वह अपनी जगह उसी तरह बैठी हाथ हिला रही थी. मैं टौर्च जला कर भग्गू के कमरे की ओर गया. वह सो रहा था. मैं ने उसे जोर से हिला कर जगाना चाहा, पर वह बारबार ‘घूंघूं’ करता और करवट बदल कर मुंह फेर लेता था.

हार कर मैं ने उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘उठो भग्गू, पिछवाड़े में देखो तो क्या है?’’

‘‘क्या है…?’’ उस की नींद उड़ गई. वह सकपका कर उठ बैठा.

‘‘चलो मेरे साथ… अपनी आंखों से देख लो…’’ कहते हुए मैं भग्गू को अपने कमरे तक ले आया.

भग्गू ने ज्यों ही उस चेहरे को देखा, वह कांपता हुआ मुझ से लिपट गया. सामने का नजारा देखते ही वह देर तक हांफता रहा और फिर बोला, ‘‘आज तो मौत सामने आ गई, साहब. डायन है वह. उस ने हमें देख लिया है, इसलिए हाथ हिला कर बुला रही है.

‘‘अब स्वोंगड़ शास्त्री ही हमें बचा सकते हैं. पर उन के घर जाएं कैसे? बाहर निकलते ही दुष्ट डायन हमारा खून पी जाएगी. मर गए आज…’’

अचानक बाहर सड़क से खांसी की आवाज सुनाई दी. मेरी जान लौट आई. जान बचाने को आतुर भग्गू ने लपक कर दरवाजा खोला और बाहर झांका. अचानक उस का चेहरा खिल उठा. कंधे पर झोला लटकाए स्वोंगड़ शास्त्री आते हुए दिखे.

उन्हें देखते ही भग्गू जोर से चिल्लाया, ‘‘बचाओबचाओ… शास्त्रीजी, इस दुष्ट डायन से हमें बचाओ…’’ मैं ने पिछवाड़े की ओर देखा. वह डायन अभी भी हाथ हिला कर हमें बुला रही थी. इसी बीच स्वोंगड़ शास्त्री भी वहां आ गया.

डरा हुआ भग्गू उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘किस्मत से ही आप इतनी रात को दिख गए, शास्त्रीजी. आप नहीं आते, तो डायन हमें मार डालती…’’

‘‘मैं तो पास वाले गांव से पूजा कर के लौट रहा था, भग्गू. तू चिल्लाया तो चला आया, वरना साहबों की चौखट लांघना मेरे जैसे तांत्रिक की हैसियत में कहां…?’’

शास्त्री मुझे ही सुना रहा था, लेकिन मेरी समस्या यह थी कि उस समय मुझे उस की मदद चाहिए थी. मैं ने मुड़ कर पिछवाड़े की ओर देखा. डायन अभी भी हाथ हिलाए जा रही थी.

मैं डर गया और माफी मांगते हुए बोला, ‘‘माफ करना, शास्त्रीजी. भूलचूक हो ही जाती है. इस समय आप ही हमें बचा सकते हैं. वह देखिए पिछवाड़े में. 2 घंटे बीत गए, पर वह डायन अभी भी वहीं बैठी है. आप कुछ कीजिए.’’

पिछवाड़े में बैठी डायन का चेहरा देख कर एकबारगी स्वोंगड़ शास्त्री भी डर गया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. डर के मारे उस का हलक सूख गया. भग्गू से एक लोटा पानी मांग कर उस ने पूरा लोटा गटक लिया.

फिर स्वोंगड़ शास्त्री बोला, ‘‘पहली बार मैं इतनी अनाड़ी चुड़ैल को देख रहा हूं. आज यह यहां तक आ पहुंची है. बहुत भयंकर है यह… लेकिन, तुम चिंता न करो. मैं मंत्र पढ़ता हूं.’’

स्वोंगड़ शास्त्री मंत्र पढ़ने लगा. मंत्र पढ़ते हुए उस का चेहरा इतना भयानक हो रहा था कि डायन से कम, उस से ज्यादा डर लग रहा था. उस ने आंखें मूंद ली थीं और मंत्रों की आवाज के साथ हाथों से अजीबअजीब इशारे भी कर रहा था.

अचानक जोर की हवा चली और पिछवाड़े में बैठी डायन ने दिशा बदल ली. उस ने सिर झुका लिया और उस का हिलता हाथ भी थम गया. भग्गू के चेहरे पर मुसकान तैर गई, लेकिन मेरा माथा ठनक गया.

‘‘धन्यवाद शास्त्रीजी, आप ने बहुत मंत्र पढ़ लिए, लेकिन यह डायन अपनी जगह से हिल नहीं रही है. अब मैं खुद जा कर इस से निबटता हूं,’’ कहते हुए मैं बाहर को लपका.

‘‘पगला गया है क्या? खून चूस डालेगी वह तेरा…’’ शास्त्री ने गुस्से में आ कर कहा, लेकिन मैं बाहर निकल कर डायन की ओर बढ़ा.

‘‘रुक जाओ साहब…’’ भग्गू चिल्लाया, मगर तब तक मैं डायन के एकदम सामने जा पहुंचा था. एक सूखी झाड़ी पर पुरानी धोती कुछ इस तरह से लिपटी थी कि दूर से देखने पर वह घुटनों के बल बैठी किसी औरत की तरह लगती थी. टहनी पर लटका पल्लू जब हवा के झोंकों से डोलता, तो ऐसा लगता था जैसे वह हाथ हिला कर किसी को बुला रही हो.

सचाई जान कर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी आने लगी. मैं ने झाड़ी पर लिपटी वह पुरानी धोती समेटी और वापस लौट आया. मुझे देखते ही स्वोंगड़ शास्त्री का चेहरा उतर गया. सिर झुकाए चुपचाप वह अपने घर को चल दिया.

‘‘इस निगोड़ी झाड़ी ने कितना डराया साहब, मैं तो डर के मारे अकड़ ही गया था,’’ भग्गू ने कहा.

‘‘तुम ने अपने मन को इस तरह की किस्सेकहानियां सुनसुन कर इतना डरा लिया है कि तुम्हारी नजर भूतप्रेतों के अलावा अब कुछ देखती ही नहीं. तुम्हारे इसी डर के सहारे स्वोंगड़ शास्त्री जैसे लोग चांदी काट रहे हैं,’’ मैं ने भग्गू को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो साहब…’’ घड़ी की ओर देख कर भग्गू ने कहा.

रात के 12 बज चुके थे. मैं रातभर यही सोचता रहा कि भूतों का भूत इन सीधेसादे लोगों के दिमाग से कब भागेगा? स्वोंगड़ शास्त्री जैसे तांत्रिकों की दुकानदारी आखिर कब तक चलती रहेगी.

Hindi Kahani : अहसास – रामनाथ ने थामा डांसर रेखा का हाथ

Hindi Kahani : 31 दिसंबर की रात को प्रेम पैलेस लौज का बीयर बार लोगों से खचाखच भरा हुआ था. गीत ‘कांटा लगा….’ के रीमिक्स पर बारबाला डांसर भाग्यवती ने जैसे ही लहरा कर डांस शुरू किया, तो वहां बैठे लोगों की वाहवाही व तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूंज उठा.

लोग अपनीअपनी कुरसी पर बैठे अलगअलग ब्रांड की महंगी से महंगी शराब पीने का लुत्फ उठा रहे थे और लहरातीबलखाती हसीनाओं का आंखों से मजा ले रहे थे. पूरा बीयरबार रंगबिरंगी हलकी रोशनी में डूबा हुआ था.

रामनाथ पुलिसिया अंदाज में उस बार में दबंगता से दाखिल हुए. उन्होंने एक निगाह खुफिया तौर पर पूरे बार व वहां बैठे लोगों पर दौड़ाई. उन्हें सूचना मिली थी कि वहां आतंकवादियों को आना है, लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया.

रामनाथ सीआईडी इंस्पैक्टर थे. किसी ने उन्हें पहचाना नहीं था, क्योंकि वे सादा कपड़ों में थे. जब कोई संदिग्ध नजर नहीं आया, तो रामनाथ बेफिक्र हो कर एक ओर कोने में रखी खाली कुरसी पर बैठ गए और बैरे को एक ठंडी बीयर लाने का और्डर दिया. वे भी औरों की तरह बार डांसर भाग्यवती को घूर कर देखने लगे.

बार डांसर भाग्यवती खूबसूरत तो यकीनन थी, तभी तो सभी उस की देह पर लट्टू थे. एक मंत्री, जो बार में आला जगह पर बैठे थे, टकटकी लगाए भाग्यवती के बदन के साथ ऐश करना चाहते थे. वह भी चंद नोटों के बदले आसानी से मुहैया थी.

मंत्री महोदय भाग्यवती की जवानी और लचकती कमर पर पागल हुए जा रहे थे, मगर वहां एक सच्चा मर्द ऐसा भी था, जिसे भाग्यवती की यह बेहूदगी पसंद नहीं थी.

रामनाथ का न जाने क्यों जी चाह रहा था कि वह उसे 2 तमाचे जड़ कर कह दे कि बंद करो यह गंदा नाच. पर वे ऐसा नहीं कर सकते थे. आखिर किस हक से उसे डांटते? वे तो अपने केस के सिलसिले में यहां आए थे. शायद यह सवाल उन के दिमाग में दौड़ गया और वे गंभीरता से सोचने लगे कि जिस लड़की के सैक्सी डांस व अदाओं पर पूरा बार झूम रहा है, उस की अदाएं उन्हें क्यों इतनी बुरी लग रही थीं? तभी बैरा रामनाथ के और्डर के मुताबिक चीजें ले आया. उन्होंने बीयर का एक घूंट लिया और फिर भाग्यवती को ताकने लगे.

भाग्यवती का मासूम चेहरा रामनाथ के दिलोदिमाग में उतरता जा रहा था. उन्होंने कयास लगाया कि हो न हो, यह लड़की मुसीबत की मारी है.

बार डांसर रेखा रामनाथ को बहुत देर से देख रही थी. कूल्हे मटका कर उस ने रामनाथ की ओर इशारा करते हुए भाग्यवती से कहा, ‘‘देख, तेरा नया मजनू आ गया. वह जाम पी रहा है. तुझ पर उस की निगाहें काफी देर से टिकी हैं. कहीं ले न उड़े… दाम अच्छे लेना, नया बकरा है.’’

‘‘पता है…’’ मुसकरा कर भाग्यवती ने कहा.

भाग्यवती थिरकथिरक कर रामनाथ की ओर कनखियों से देखे जा रही थी कि तभी रामनाथ के सामने वाले आदमी ने कुछ नोटों को हाथ में निकाल कर भाग्यवती की ओर इशारा किया.

भाग्यवती इठलातेइतराते हुए उस कालेकलूटे मोटे आदमी के करीब जा कर खड़ी हो गई और मुसकरा कर नोट लेने लगी.

इस दौरान रामनाथ ने कई बार भाग्यवती को देखा. दोनों की निगाहें टकराईं, फिर रामनाथ ने भाग्यवती की बेशर्मी को देख कर सिर झुका लिया.

वह मोटा भद्दी शक्लसूरत वाला आदमी सफेदपोश नेता था. वह नई जवां लड़कियों का शौकीन था. उस के आसपास ही उस का पीए, 2-4 चमचे जीहुजूरी में वहां हाजिर थे.

मंत्री धीरेधीरे भाग्यवती को नोट थमाता रहा. जब वह अपने हाथ का आखिरी नोट उसे पकड़ाने लगा, तो शराब के नशे में उस का हाथ भी पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. उस की छातियों पर हाथ फेरा, गालों को चूमा और बोला, ‘‘तुझे मेरे प्राइवेट बंगले पर आना है. बाहर सरकारी गाड़ी खड़ी है. उस में बैठ कर आ जाना. मेरे आदमी सारा इंतजाम कर देंगे. मगर हां, एक बात का ध्यान रखना कि इस बात का पता किसीको न लगे.’’

भाग्यवती मंत्री को हां बोल कर वहां से हट गई. यह देख कर रामनाथ के तनबदन में आग लग गई और वे अपने घर आ गए. उन की आंखों में भाग्यवती का मासूम चेहरा छा गया और वे तरहतरह के खयालों में डूब गए.

दूसरे दिन डांस शुरू होने के पहले कमरे में बैठी रेखा भाग्यवती से बोली, ‘‘तेरा मजनू तो एकदम भिखारी निकला. उस की जेब से एक रुपया भी नहीं निकला.’’

भाग्यवती ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तो बस उसी का चेहरा देख रही थी. जब वह मंत्री मुझे नोट दे रहा था, तब वह एकदम सिटपिटा सा गया था.’’

बार डांसर रेखा बोली, ‘‘शायद तू ने एक चीज नहीं देखी. जब तू उस मंत्री की गोद में बैठी थी और वह तेरी छातियों की नापतोल कर रहा था, तब उस के चेहरे का रंग ही बदल गया था. देखना, आज फिर वह आएगा. हमें तो सिर्फ पैसा चाहिए, अपने खूबसूरत बदन को नुचवाने का.’’

तभी डांस का समय हो गया. वे दोनों बीयर बार में आ कर गीत ‘अंगूर का दाना हूं….’ पर थिरकने लगी थीं. रामनाथ अभी तक बार में नहीं आए थे. भाग्यवती की निगाहें बेताबी से उन्हें ढूंढ़ रही थीं. नए ग्राहक जो थे, उन से मोटी रकम लेनी थी.

कुछ देर बाद जब रामनाथ आए, तो उन्हें देख कर भाग्यवती को अजीब सी खुशी का अहसास हुआ, पर जब वे खापी कर चलते बने, तो वह सोच में पड़ गई कि यह तो बड़ा अजीब आदमी है… आज भी एक रुपया नहीं लुटाया उस पर.

भाग्यवती का दिमाग रामनाथ के बारे में सोचतेसोचते दुखने लगा. वह उन्हें जाननेसमझने के लिए बेचैन हो उठी. जब वे तीसरेचौथे दिन नहीं आए, तो परेशान हो गई.

एक दिन अचानक ही एक पैट्रोल पंप के पास वाली गली के कोने पर खड़ी भाग्यवती पर रामनाथ की नजर पड़ी.

कार में बैठा एक आदमी भाग्यवती से कह रहा था, ‘‘चल. जल्दी चल. मंत्रीजी के पास भोपाल. ये ले 10 हजार रुपए. कार में जल्दी से बैठ जा.’’

भाग्यवती ने पूछा, ‘‘मुझे वहां कितने दिन तक रहना पड़ेगा?’’

‘‘कम से कम 4-5 दिन.’’

‘‘मुझे उस के पास मत भेज. वह मेरे साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है,’’ गिड़गिड़ाते हुए भाग्यवती बोली.

इस पर वह आदमी एकदम भड़क कर कहने लगा, ‘‘तो क्या हुआ, पैसा भी तो अच्छा देता है,’’ और वह डांट कर वहां से चलता बना. इस भरोसे पर कि मंत्री को खुश करने वह भोपाल जरूर जाएगी.

यह सारा तमाशा रामनाथ चुपचाप खड़े देख रहे थे. वे जल्दी से भाग्यवती के पीछे लपक कर गए और बोले ‘‘सुनो, रुकना तो…’’

भाग्यवती ने पीछे मुड़ कर देखा और रामनाथ को पहचानते हुए बोली, ‘‘अरे आप… आप तो बार में आए ही नहीं…’’

‘‘वह आदमी कौन था?’’ रामनाथ ने भाग्यवती के सवाल को अनसुना करते हुए सवाल किया.

‘‘क्या बताऊं साहब, मंत्री का खास आदमी था. बार मालिक का हुक्म था कि मैं भोपाल में मंत्रीजी के प्राइवेट बंगले पर जाऊं,’’ भाग्यवती ने रामनाथ से कहा.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती हो ऐसे धंधे को?’’ रामनाथ ने सवाल किया.

‘‘छोड़ने को मैं छोड़ देती साहब… उन को मेरे जैसी और लड़कियां मिल जाएंगी, पर मुझे सहारा कौन देगा? मुझ जैसी बदनाम औरत के बदन से खेलने वाले तो बहुत हैं साहब, पर अपनाने वाला कोई नहीं,’’ कह कर वह रामनाथ के चेहरे की तरफ देखने लगी.

रामनाथ पलभर को न जाने क्या सोचते रहे. समाज में उन के काम से कैसा संदेश जाएगा. एक कालगर्ल ही मिली उन को? लेकिन पुलिस महकमा तो तारीफ करेगा. समाज के लोग एक मिसाल मानेंगे. भाग्यवती थी तो एक मजबूर गरीब लड़की. उस को सामाजिक इज्जत देना एक महान काम है.

रामनाथ ने भाग्यवती से गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हें सहारा चाहिए? चलो, मेरे साथ. मैं तुम्हें सहारा दूंगा.’’ भाग्यवती हां में सिर हिला कर रामनाथ के साथ ऐसे चल पड़ी, जैसे वह इस बात के लिए पहले से ही तैयार थी. वह रामनाथ के साथ उन की मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर चुपचाप जा कर बैठ गई.

रामनाथ के घर वालों ने भाग्यवती का स्वागत किया. खुशीखुशी गृह प्रवेश कराया. उस का अलग कमरा दिखाया. इसी बीच भाग्यवती पर मानो वज्रपात हुआ. टेबल पर रखी रामनाथ की एक तसवीर देख कर वह घबरा गई, ‘‘साहब, आप पुलिस वाले हैं? मैं ने तो सोचा भी नहीं था.’’

‘‘हां, मैं सीबीआई इंस्पैक्टर रामनाथ हूं,’’ उन्होंने गंभीरता से जवाब दिया, ‘‘क्यों, क्या हुआ? पुलिस वाले इनसान नहीं होते हैं क्या?’’

‘‘जी, कुछ नहीं, ऐसा तो नहीं है,’’ वह बोल कर चुप हो गई और सोचने लगी कि पता नहीं अब क्या होगा? ‘‘भाग्यवती, तुम कुछ सोचो मत. आज से यह घर तुम्हारा है और तुम मेरी पत्नी हो.’’

‘‘क्या,’’ हैरान हो कर अपने खयालों से जागते हुए भाग्यवती हैरत से बोली.

‘‘हां भाग्यवती, क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं हूं?’’ उसे हैरान देख कर रामनाथ ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. आप मुझे बहुत पसंद हैं. मैं सोच रही थी कि हमारी शादी… न कोई रस्मोरिवाज…’’ भाग्यवती बोली.

‘‘देखो भाग्यवती, मैं नहीं मानता ऐसे ढकोसलों को. जब लोग शादी के बाद अपनी बीवी को छोड़ सकते हैं, जला सकते हैं, मार सकते हैं, उस से गिरा हुआ काम करा सकते हैं, तो फिर ऐसे रिवाजों का क्या फायदा? ‘‘मैं ने तुम्हें तुम्हारी सारी बुराइयों को दरकिनार करते हुए सच्चे मन से अपनी पत्नी माना है. तुम चाहो तो मुझे अपना पति मान कर मेरे साथ इज्जत की जिंदगी गुजार सकती हो,’’ रामनाथ ने जज्बाती होते हुए कहा.

यह सुन कर भाग्यवती खुशी से हैरान रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस जिंदगी में उसे सामाजिक इज्जत मिलेगी.अगले दिन जब रामनाथ के आला पुलिस अफसरों ने आ कर भाग्यवती को शादी की बधाइयां दीं व भेंट दीं, तो उस की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा.

भाग्यवती को उस नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाल कर रामनाथ ने उसे दूसरी जिंदगी दी थी. प्यार के इस खूबसूरत अहसास से वे दोनों बहुत खुश थे.

Hindi Story : जलन – रमा को अपनी बहू से क्यों दुश्मनी थी?

Hindi Story : पिछले कुछ दिनों से सरपंच का बिगड़ैल बेटा सुरेंद्र रमा के पीछे पड़ा हुआ था. जब वह खेत पर जाती, तब मुंडे़र पर बैठ कर उसे देखता रहता था. रमा को यह अच्छा लगता था और वह जानबूझ कर अपने कपड़े इस तरह ढीले छोड़ देती थी, जिस से उस के उभार दिखने लगते थे. लेकिन गांव और समाज की लाज के चलते वह उसे अनदेखा करती थी. सुरेंद्र को दीवाना करने के लिए इतना ही काफी था. रातभर रमेश के साथ कमरे में रह कर रमा की बहू सुषमा जब बाहर निकलती, तब अपनी सास रमा को ऐसी निगाह से देखती थी, जैसे वह एक तरसती हुई औरत है.

रमा विधवा थी. उस की उम्र 40-42 साल की थी. उस का बदन सुडौल था. कभीकभी उस के दिल में भी एक कसक सी उठती थी कि किसी मर्द की मजबूत बांहें उसे जकड़ लें, जिस से उस के बदन का अंगअंग चटक जाए, इसी वजह से वह अपनी बहू सुषमा से जलती भी थी.

शाम का समय था. हलकी फुहार शुरू हो गई थी. रमा सोच रही थी कि जमींदार के खेत की बोआई पूरी कर के ही वह घर जाए. उसे सुरेंद्र का इंतजार तो था ही. सुरेंद्र भी ऐसे ही मौके के इंतजार में था. उस ने पीछे से आ कर रमा को जकड़ लिया.

रमा कसमसाई और उस ने चिल्लाने की भी कोशिश की, लेकिन फिर उस का बदन, जो लंबे समय से इस जकड़न का इंतजार कर रहा था, निढाल हो गया.

सुरेंद्र जब उस से अलग हुआ, तब रमा को लोकलाज की चिंता हुई. उस ने जैसेतैसे अपने को समेटा और जोरजोर से रोते हुए सरपंच के घर पहुंच गई और आपबीती सुनाने लगी. लेकिन सुरेंद्र की दबंगई के आगे कोई मुंह नहीं खोल रहा था.

इधर बेटा रमेश और बहू सुषमा भी सरपंच के यहां पहुंच गए. रमा रो रही थी, लेकिन सुषमा से आंखें मिलाते ही एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर फैल गई.

गांव में चौपाल बैठ गई थी. सरपंच और 3 पंच इकट्ठा हो गए थे. एक तरफ रमा खड़ी थी, तो दूसरी तरफ सुरेंद्र था. गांव के और भी लोग वहां मौजूद थे.

रामू ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जो हुआ सो हुआ. अब रमा  जो बोलेगी वही सब को मंजूर होगा.’’

तभी दीपू ने कहा, ‘‘हां, रमा बोल, कितना पैसा लेगी? बात को यहीं खत्म कर देते हैं.’’

पैसे की बात सुनते ही बहू सुषमा खुश हो गई कि सास 2-4 लाख रुपए मांग ले, तो घर की गरीबी दूर हो जाए. लेकिन रमा बिना कुछ बोले रोते ही जा रही थी.

जब सब ने जोर दिया, तब रमा ने कहा, ‘‘मेरी समझ में सरपंचजी सुरेंद्र का जल्दी से ब्याह रचा दें, जिस से यह इधरउधर मुंह मारना बंद कर दे.’’

रमा की बात पर सहमत तो सभी थे, पर सुरेंद्र की हरकतों और बदनामी को देखते हुए भला कौन इसे अपनी बेटी देगा. इस बात पर सरपंच भी चुप हो गए.

सुरेंद्र भी अब 45 साल के आसपास हो चला था, इसलिए चाहता था कि घरवाली मिल जाए, तो जिंदगी सुकून से कट जाए.

रामू ने कहा, ‘‘रमा, तुम्हारी बात सही है, लेकिन इसे कौन देगा अपनी बेटी?’’

कांटा फंसता जा रहा था और चौपाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी. इस का सीधा मतलब होता कि सुरेंद्र को या तो गांव से निकाले जाने की सजा होती या उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होती.

मामले की गंभीरता को देखते हुए अब सुरेंद्र ने ही कहा, ‘‘मैं यह मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है और मैं शर्मिंदा भी हूं. अगर रमा चाहे, तो मैं इस से ब्याह रचाने को तैयार हूं.’’

रमा को तो मनमानी मुराद मिल गई थी, लेकिन तभी बहू सुषमा ने कहा, ‘‘सरपंचजी, यह कैसे हो सकता है? आप के बेटे की सजा मेरी सासू मां क्यों भुगतें? आप तो बस पैसा लेदे कर मामले को सुलझाएं.’’

तब दीपू ने कहा, ‘‘हम रमा की बात सुन कर ही अपनी बात कहेंगे.’’

रमा ने कहा, ‘‘गांव की बात गांव में ही रहे, इसलिए मैं दिल से तो नहीं लेकिन गांव की खातिर सुरेंद्र का हाथ थामने को तैयार हूं.’’

सरपंच और चौपाल ने चैन की सांस ली.

बहू सुषमा अपना सिर पकड़ कर वहीं बैठ गई. वहीं बेटा रमेश खुश था, क्योंकि उस की मां को सहारा मिल गया था. अब मां का अकेलापन दूर हो जाएगा. थोड़े दिनों के बाद ही उन दोनों की चुपचाप शादी करा दी गई. पहली रात रमा सुरेंद्र के सीने से लगते हुए कह रही थी, ‘‘विधवा होते ही औरत को अधूरी बना दिया जाता है. वह घुटघुट कर जीने को मजबूर होती है. अरे, अरमान तो उस के भी होते हैं.

‘‘और फिर मेरी बहू सुषमा की निगाहों ने हमेशा मेरी बेइज्जती की है. उस के लिए मेरी जलन ने ही हम दोनों को एक करने का काम किया है.’’

खुशी में सराबोर सुरेंद्र की मजबूत होती पकड़ रमा को जीने का संबल दे रही थी. जो खेत में हुआ वही अब हुआ, पर अब दोनों को चिंता नहीं थी, क्योंकि रमा सुरेंद्र की ब्याहता जो थी.

Hindi Kahani : बरसात की रात

Hindi Kahani : चमेली उन से बच कर भाग रही थी. गीली मिट्टी होने की वजह से पीछा करने वालों के पैरों की आहट आ रही थी. कीचड़ के छींटों से उस की साड़ी सन गई थी. उस ने अपने कंधे पर बच्चे को लाद रखा था. तभी बूंदाबांदी शुरू हो गई.

चमेली ने पल्लू से बच्चे के मुंह को ढक दिया. पगडंडी खत्म हुई. वह कुछ देर के लिए रुकी. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. अंधेरे में कहीं भी कोई नजर नहीं आ रहा था. बहुत दूरी पर स्ट्रीट लाइट टिमटिमा रही थी.

चमेली ने मुड़ कर देखा. अंधेरे में उसे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. कोई आहट न थी. उस की जान में जान आई. वे लोग उस का पीछा नहीं कर सके थे.

बारिश कुछ तेज हुई. उसे रुकने का कोई ठिकाना नहीं दिखाई दिया. बहुत दूर कुछ दुकानें थीं, पर उस के पैर जवाब दे चुके थे. बच्चा भीगने के चलते रोने लगा था. उस ने थपकियां दे कर उसे चुप कराने की कोशिश की, मगर वह चुप नहीं हुआ.

अचानक हुई तेज बारिश की वजह से भागना मुश्किल था. थोड़ा दूरी पर एक मकान दिखाई दिया, तो चमेली ने उस का दरवाजा खटखटा दिया.

‘‘कौन है?’’ अंदर से आवाज आई.

चमेली ने देखा, उस आवाज में सख्ती थी, तो कलेजा मुंह को आ गया. वह मंगू दादा का घर था, जिस से सभी डरते थे. वह आसमान से गिरी और खजूर पर अटक गई थी. घबराहट के मारे उस की आवाज नहीं निकली.

‘‘कौन है?’’ मंगू दादा दहाड़ा.

‘‘म… म… मैं हूं,’’ बच्चे को कस कर पकड़ते हुए चमेली ने कहा.

‘‘अरे तू? इस समय यहां? क्या बात है?’’ मंगू ने पूछा.

‘‘नहींनहीं… कुछ नहीं.’’

‘‘घर से लड़ कर आई हो?’’

‘‘हां… मर्द दारू पी कर दंगा कर रहा था,’’ चमेली रोते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘रामनगर… मां के पास. सुबह मैं पहली बस से चली जाऊंगी,’’ चमेली धीमी आवाज में बोली.

‘‘रामनगर? इतनी दूर तुम बच्चे के साथ कैसे जाओगी?’’

‘‘जाना ही पड़ेगा… चली जाऊंगी,’’ आवाज सुन कर बच्चा रोने लगा. जवाब का इंतजार किए बिना वह जाने लगी.

‘‘क्या बेवकूफी करती हो? दिमाग खराब है क्या? फूल सा बच्चा लिए बरसात में भीगती हुई जाओगी. वह भी इतनी रात में. चुपचाप अंदर चलो.

‘‘रात भर ठहर जाओ. सुबह चली जाना…’’ वह बोला, ‘‘मुझ पर भरोसा है तो अंदर आओ, नहीं तो इस बारिश में डूब मरो.’’

वह अनमनी सी वहीं खड़ी रही, तो मंगू ने उस के हाथों से बच्चा छीन लिया और अपने कंधे से लगा कर सहलाने लगा.

‘‘तुम्हें शौक है तो मरो, पर इस बच्चे को यहीं छोड़ जाओ. सुबह ले जाना,’’ मंगू उसे लताड़ते हुए बोला.

अब क्या चारा था? जाल में फंसी मछली की तरह वह तड़प उठी. मजबूर हो कर मंगू के घर में घुस गई.

मंगू के पास से गुजरते समय सस्ती शराब की गंध से उस के नथुने भर गए. घर के अंदर भी वही सड़ांध… वही बदबू छाई थी.

‘‘यह लो, बच्चे के कपड़े बदल दो और खुद भी कपड़े पहन लो,’’ मंगू उसे तौलिया देते हुए बोला.

‘‘घर में लड़ाई क्यों हुई?’’ मंगू ने सख्ती से पूछा.

‘‘दारू पीना तो उस की रोज की आदत है. आज वह नशे में धुत्त हो कर 2 आदमियों को भी साथ लाया था. वे दोनों मुझे दबोचने के लिए आगे बढ़े, तो मैं बच्चे को ले कर पिछवाड़े से भाग निकली…’’ चमेली सिसकते हुए बोली.

‘‘दोनों ने मेरा पीछा भी किया, पर मैं किसी तरह से बच गई.’’

मंगू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर कोने में रखे बक्से के पास गया. ढक्कन खोलते ही शराब की बदबू चारों ओर फैल गई.

‘‘शराब…’’ आगे के शब्द चमेली के गले में ही अटक गए.

‘‘इस के बिना मैं नहीं रह सकता,’’ कहते हुए मंगू ने बोतल मुंह से लगाई और गटागट पी गया.

‘‘अकेले डर तो नहीं लगेगा न?’’

‘‘और… आप?’’ उस ने हिचकते हुए पूछा.

‘‘मेरे कई ठिकाने हैं, कहीं भी चला जाऊंगा. दरवाजा ठीक से बंद कर लो,’’ मंगू ने कहा.

मंगू दरवाजा धकेल कर मूसलाधार बारिश में चल पड़ा. उस अंधेरे में चमेली न जाने क्या देखती रही.

Hindi Kahani : तिनका तिनका घोंसला

Hindi Kahani : हलीमा का सिर दर्द से फटा जा रहा था, लेकिन काम पर तो जाना ही था वरना नाजिया मैडम झट से उस की पगार काट लेतीं, और दस बातें सुनातीं अलग से. कल रात फिर से उस का शौहर अकरम आधी रात के बाद शराब पी कर लौटा था और आते ही हलीमा से बिना बात मारपीट करने लगा था. अब तो ये आए दिन की बात हो गई थी.

अकरम दिनभर रिकशा चला कर जो कमाता उस का एक बड़ा हिस्सा जुए में हार आता और कभी कुछ पैसे बच जाते तो अपने दोस्तों के साथ शराब पी लेता.

5 साल पहले वे जब अपने गांव कराल से दिल्ली आए थे तो वह कितनी खुश थी. दिल्ली में ज्यादा कमाई होगी, बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ सकेंगे, और एक बेहतर जिंदगी के सपने देखे, लेकिन दिल्ली आते ही वह मानो आसमान से सीधे जमीन पर आ गिरी हो. रेलवे लाइन के किनारे बसी एक बस्ती में एक बेहद ही छोटी सी झुग्गी में पूरे परिवार को रहना था.

गांव के ही करीम चाचा ने अकरम को एक रिकशा किराए पर दिला दिया था. शुरूशुरू में अकरम बहुत मेहनत करता था. करीम चाचा ने ही उस को बताया था कि जैतपुर में काफी सस्ती जमीन मिल सकती है. हलीमा अपना घर बनाने के सपने देखने लगी और बड़ी मुश्किल से उस ने अकरम को इस बात के लिए मनाया कि वह बराबर वाली कालोनी में 1-2 घरों में काम करने लगे, ताकि वह भी कुछ पैसे जोड़ सके.

दोनों ने खूब मेहनत कर कुछ पैसे जोड़ भी लिए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद अकरम का उठनाबैठना कुछ गलत लोगों के साथ हो गया. ज्यादा पैसे कमाने के लालच में अकरम ने उन के साथ जुआ खेलना शुरू कर दिया और इस चक्कर में अपनी सारी जमापूंजी भी लुटा बैठा. इतना ही नहीं, कभीकभी वह शराब भी पी लेता. हलीमा कितना रोई थी, कितना लड़ी थी उस से. शुरूशुरू में अकरम कसमें खाता कि अब जुए और शराब से दूर रहेगा, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वही सब शुरू हो जाता.

सुबहसवेरे निकल कर हलीमा कई घरों में काम करती और शाम को थक कर चूर हो जाने के बाद भी उस को कोई आराम नहीं था. घर आ कर सब के लिए खाना बनाना और बाकी काम भी करने होते थे. अब तो हाल यह था कि घर का खर्चा भी बस हलीमा ही चलाती थी. कभी कुछ पैसे बच जाते तो अकरम छीन कर उन को भी जुए में हार आता.

उस दिन उस का छोटा बेटा माजिद बारिश में भीगने की वजह से बीमार पड़ गया. बस्ती में ही रहने वाले एक झोलाछाप डाक्टर से उस की दवा भी कराई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, बल्कि बीमारी और बढ़ गई. फिर उस को ओखला में एक डाक्टर को दिखाया गया. इस सब में उस के पास बचे सारे पैसे खत्म हो गए और कितना ही उधार उस के सिर चढ़ गया था.

कितना रोई थी वह अकरम के सामने, लेकिन वह तो करवट बदल कर खर्राटें भरने लगा था.

“सुनो हलीमा, क्या तुम एक और घर में काम करोगी? पड़ोस में ही मेरी एक सहेली रहने आई हैं. अकेली रहती

हैं, बैंक में नौकरी करती हैं,” एक दिन शबाना मैडम ने हलीमा से पूछा.

“मैडमजी, मुझे तो दम लेने की भी फुरसत नहीं है. एक घर और काम करने लगी तो बीमार ही पड़ जाऊंगी… और मुझे तो बीमार पड़ने की भी फुरसत नहीं है,” हलीमा ने बेचारगी से कहा.

“देख लो, वह तुम्हें 1,000 रुपए दे सकती हैं. उन का काम ज्यादा नहीं है, तुम्हें बस आधा घंटा ही लगेगा उन के घर.

“दरअसल, उन को एक अच्छी मेड चाहिए और मैं ने उन को तुम्हारा नाम बता दिया है,” शबाना मैडम ने उस को समझाते हुए कहा, तो हलीमा सोच में पड़ गई.

अगर वह आधा घंटा निकाल पाए तो 1,000 रुपए ज्यादा कमा सकती है. फिर उस ने यह सोच कर हां कर दी कि वह सुबह आधा घंटा पहले उठ जाया करेगी.

शांति मैडम से मिल कर उस को काफी अच्छा लगा. इत्तेफाक से वे भी उस के ही जिला बिजनौर की रहने वाली थीं.

हलीमा उन से मिल कर काफी खुश हो गई. हलीमा काम तो बड़ी साफसफाई से करती ही थी, खाना भी अच्छा बनाती थी. एक बार शांति मैडम ने ही उस को घर पर अचार, चटनी वगैरह बनाने का सुझाव दिया.

हलीमा ने 2-3 तरह के अचार बना कर शांति मैडम को दिए, तो उन्होंने अपने बैंक में ही 1-2 लोगों से हलीमा के लिए और्डर ले लिए. इस से हलीमा को कुछ अतिरिक्त आय भी होने लगी.

“मैं तुम्हारे पैसे बैंक में डाल दूं या तुम्हें कैश चाहिए,” एक महीने बाद शांति मैडम ने उस की पगार देने के लिए पूछा, तो हलीमा की हंसी निकल गई.

“क्या मैडमजी, हम गरीबों के भी कोई बैंक में खाते होते हैं?” हलीमा ने हंसते हुए कहा.

“क्या तुम्हारा किसी बैंक में अकाउंट नहीं है,” शांति ने हैरानी से पूछा.

“नहीं मैडमजी,” हलीमा ने गंभीरता से जवाब दिया.

“अगर तुम चाहो तो मैं अपने बैंक में ही तुम्हारा खाता खुलवा दूं. अगर किसी बैंक में तुम्हारा खाता नहीं है, तो तुम चार पैसे कैसे बचा पाओगी?” शांति ने उस को समझाया.

बात कुछकुछ हलीमा की समझ में आ रही थी. फिर उस ने यह सोच कर शांति से बैंक में खाता खुलवाने के लिए हां कर दी कि वह किसी को भी इन पैसों के बारे में नहीं बताएगी. इन पैसों को वह अपने बच्चों के भविष्य के लिए सुरक्षित रखेगी. और सचमुच उस ने किसी को इन पैसों के बारे में नहीं बताया और न ही इन पैसों को खर्च किए.

फिर एक दिन जब शांति ने उस को बताया कि उस के खाते में 10,000 से भी ज्यादा रुपए हो गए हैं, तो उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.

पर, यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी. उस दिन पूरी रात भी जब अकरम घर नहीं आया, तो उस को कुछ फिक्र हुई. वह चाहे कितना भी जुआ या शराब करे, रात में घर जरूर आता था. फिर सुबहसुबह करीम चाचा ने उस को बताया कि कल रात पुलिस अकरम और कुछ लोगों को उठा कर थाने ले गई है.

सुनते ही मानो उस के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई. करीम चाचा के साथ वह पुलिस थाने गई. उन को देखते ही अकरम दहाड़ें मार मार कर रोने लगा.

“मुझे बचा ले हलीमा. ये पुलिस वाले मुझे बिना बात पकड़ लाए. अरे, मैं तो राजेंदर और अनीस के साथ ठेके से घर ही आ रहा था, इन्होंने मुझे रास्ते में उठा लिया,” अकरम रोतेरोते बता रहा था.

“कितनी बार कहा तुम से कि ये सब छोड़ दो. न तुम्हें घर वालों की फिक्र है, न अल्लाह का डर, और अब पुलिस थाने भी शुरू हो गए. क्या करूंगी. मैं कहां जाऊंगी बच्चों को ले कर,” हलीमा भी जोरजोर से रो रही थी.

“बस, इस बार मुझे बचा ले. तेरी कसम… आगे से सब बुरे काम छोड़ दूंगा,” अकरम उस के आगे हाथ जोड़ रहा था.

“मैं इंस्पेक्टर साब से बात कर के देखता हूं,” करीम चाचा ने हलीमा से कहा, तो वह भी उन के साथ चल दी.

“साहब, मेरे आदमी को छोड़ दो. आगे से कभी जुआ नहीं खेलेगा,” हलीमा ने इंस्पेक्टर के आगे हाथ जोड़े.

“शराब पी कर ये सारे लोग चौक पर दंगा कर रहे थे और एक दुकान का ताला तोड़ रहे थे. ये तो जाएगा 2-3 साल के लिए अंदर,” इंस्पेक्टर ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

“साहब, ये जुआरी और शराबी जरूर है, मगर चोर नहीं है. आप को कोई गलतफहमी हुई है,” हलीमा ने हाथ जोड़ेजोड़े विनती की.

“हम तो उधर से आ रहे थे. चोर तो पहले ही भाग गए थे. कोई नहीं मिला तो मुझे ही पकड़ लाए,” पीछे से अकरम की रोती हुई आवाज आई.

“अरे शहजाद, जरा लगा इस के दो हाथ… हमें हमारा काम सिखाता है,” इंस्पेक्टर ने भद्दी सी गाली देते हुए अपने कांस्टेबल से कहा, तो कांस्टेबल ने दो डंडे अकरम की कमर पर जड़ दिए. अकरम की चीखें पूरे थाने में गूंज गईं.

“अरे साहब, जाने दो न. गरीब आदमी है. आगे से ऐसा नहीं करेगा. कुछ सेवापानी कर देंगे,” करीम चाचा ने इंस्पेक्टर के आगे हाथ जोड़ कर कहा, तो इंस्पेक्टर ने उन को ऐसे घूरा मानो कच्चा ही चबा जाएगा.

“ठीक है, 10,000 रुपयों का इंतजाम कर लो, छोड़ देंगे इसे,” इंस्पेक्टर ने कुछ सोचते हुए कहा.

“10,000 रुपए…? इतने सारे रुपए कहां से लाएंगे सरकार. हम तो रोज कमानेखाने वाले लोग हैं. इतने सारे पैसे तो हम ने कभी एकसाथ देखे भी नहीं,” हलीमा ने रोते हुए इंस्पेक्टर से कहा.

“नहीं देखे तो अब इस को भी मत देखना कई साल. जा… जा कर कोई वकील कर, उस को हजारों रुपए फीस दे, अदालत में रिश्वत खिला, तब शायद ये 10 साल में घर वापस आ जाए,” इंस्पेक्टर दहाड़ा.

इतना सुन कर ही हलीमा की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. अकरम कैसा भी था, था तो उस का शौहर ही.

“ठीक है, साहब. मैं पैसों का इंतजाम कर के लाती हूं,” हलीमा ने हार कर कहा.

हलीमा ने शांति से कह कर अपने खाते में पड़े 10,000 रुपए निकलवाए और इंस्पेक्टर को ला कर दिए.

रास्तेभर उस ने अकरम से कोई बात नहीं की. आंखों में आंसू भरे वह अपने बच्चों का भविष्य बरबाद होते देख रही थी.

अकरम रोरो कर उस से माफी मांग रहा था, लेकिन हलीमा ने उस से एक लफ्ज भी नहीं बोला. अकरम बच्चों के सिर पर हाथ रख कर कसमें खा रहा था, लेकिन हलीमा को उन कसमों पर जरा भी यकीन नहीं था.

लेकिन इस बार अकरम सचमुच बदल गया था. हवालात में बिताए कुछ घंटों ने उस की आंखें खोल दी थीं. आज वह हलीमा का कर्जदार हो गया था. दिनभर उस ने जीतोड़ मेहनत कर के जितने भी पैसे कमाए, सारे के सारे हलीमा के हाथ पर रख दिए.

“मुझे माफ कर दे हलीमा… मैं बुरी संगत में पड़ कर ये भी भूल गया था कि मेरे ऊपर तुम सब की जिम्मेदारी भी है. मेरा यकीन कर आगे से मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगा, जिस से तेरी आंखों में आंसू आएं,” अकरम ने हलीमा के आगे हाथ जोड़ दिए.

“याद करो, हम गांव से दिल्ली किसलिए आए थे. अपने बच्चों के अच्छे कल के लिए, लेकिन हम उन को कैसा कल दे रहे हैं. जरा सोचो,” हलीमा की आंखें डबडबा आईं.

“तू सच कह रही है. मैं तुम सब का गुनाहगार हूं. मुझे एक मौका दे दे, मैं अपने बच्चों के लिए खूब मेहनत करूंगा और उन को एक अच्छी जिंदगी दूंगा,” अकरम ने हलीमा के हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा.

“आ जाओ मेरे बच्चो, अब तुम्हें अपने अब्बा से डरने की कोई जरूरत नहीं है,” अकरम ने बच्चों से कहा, जो दूर कोने में डरेसहमे से खड़े थे.

फिर अकरम ने उन सब को अपने गले लगा लिया. हलीमा को भी उम्मीद की एक नई किरण नजर आ रही थी. मन ही मन वह शांति मैडम की भी शुक्रगुजार थी, जिन की वजह से वह कुछ पैसे बचा पाई थी और आज उस का परिवार फिर से एक हो गया था.

Hindi Kahani : अभिलाषा – रूपी क्यों भागकर शादी करना चाहती थी?

Hindi Kahani : एक दिन रूपी मोहल्ले के ही रामू के साथ भाग गई. इस के बाद तो जितने लोग, उतनी तरह की बातें होने लगीं. अधिकतर लोग रूपी  के मातापिता को ही इस का दोष दे रहे थे. मामला लड़की के भागने का था, इसलिए रूपी के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

करीब एक महीना बीत गया. काफी दौड़धूप और खोजबीन के बाद भी उन दोनों का कुछ पता नहीं चला. सब हैरान थे. आश्चर्य की बात तो यह थी कि रामू शादीशुदा था, इस के बावजूद भी उस ने ऐसा काम किया था.

रामू और रूपी शहर से दूर चले गए थे. वे कहां चले गए, यह बात मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था. बेटी की हरकत से रूपी के मातापिता अपने संबंधियों, मोहल्ले वालों और समाज की दृष्टि में गिर चुके थे. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं थे.

लोग उन के सामने ही उन्हें ताने देते थे. इस से उन का घर से निकलना दूभर हो गया था. ऐसे में वे बेचारे कर भी क्या सकते थे? लोगों की तरहतरह की बातें सुनने को वे लाचार थे.

अचानक एक दिन सुनने में आया कि रामू और रूपी जयपुर में पकड़े गए हैं. मोहल्ले के एक प्रोफेसर माथुर ने जयपुर में अपने रिश्तेदार भरत माथुर के घर रामू और रूपी को देख लिया था. फिर क्या था, उन्होंने इस बात की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने रामू और रूपी को पकड़ लिया था.

पुलिस ने रूपी को तो उस के मातापिता के घर पहुंचा दिया, जबकि रामू को हिरासत में ले लिया. रामू को उम्मीद थी कि रूपी कभी भी उस के खिलाफ बयान नहीं देगी, क्योंकि वह उस के साथ करीब 6 महीने पत्नी की तरह रही थी. पर बात एकदम इस के विपरीत निकली. रूपी ने अपने मातापिता की भावनाओं और दबाव में आ कर कोर्ट में अपने प्रेमी रामू के खिलाफ ही बयान दिया था. रूपी नाबालिग थी, इसलिए कोर्ट ने रामू को एक नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में 3 साल की सजा सुनाई.

इस बीच रूपी की शादी एक आवारा लड़के से कर दी गई, क्योंकि समाज में कोई भी शरीफ लड़का उस से शादी करने को तैयार नहीं था. 3 साल की सजा काट कर रामू घर आया तो मेरे दिमाग में तरहतरह की शंकाओं के बीच वही प्रश्न बारबार आ रहा था कि शादीशुदा रामू ने ऐसा क्यों किया?

मुझे उस पर रहरह कर गुस्सा भी आ रहा था, क्योंकि रामू को मैं बचपन से जानता था. वह एक चरित्रवान और शरीफ लड़का था. सब उस का सम्मान करते थे. फिर उस ने ऐसा नीच कार्य क्यों किया? यह हकीकत जानने के लिए एक दिन मैं उस के घर चला गया.

‘‘कहो, भाई क्या हालचाल है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हाल तो ठीक है, पर चाल खराब हो गई है.’’ उस ने टूटे दिल से कहा, ‘‘तुम अपना हाल बताओ.’’

‘‘मेरा हाल तो ठीक है. तुम्हारा हाल जानने आया हूं.’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरा हाल तो एक खुली किताब की तरह है, जिसे दुनिया ने पढ़ा है, तुम ने भी पढ़ा होगा.’’ एक मायूसी मिश्रित लंबी आह भर कर रामू ने कहा और शून्य में न जाने क्या खोजने लगा.

रामू की इस ‘आह’ में कितनी विवशता, कितनी कसक और कितनी दुखभरी वेदना थी, यह मैं खुद देख रहा था. वह आंखों में छलक आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने लगा. उस के छलकते आंसू रूमाल के धागों में विलीन हो गए.

‘‘छोड़ो बीती बातों को.’’ मैं ने सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘यह भी एक संयोग है.’’ उस ने आगे कहा, ‘‘तुम तो जानते ही हो कि मेरी शादी हुए करीब 6 साल हो गए हैं, परंतु हम दोनों के जीवन में कोई फूल नहीं खिला. तुम्हारी भाभी के प्यार का साथ ही मेरे जीवन का सर्वस्व था. मैं सुखी था, प्रसन्न था, परंतु वह न जाने क्यों अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. उस का सौंदर्य, उस का स्वास्थ्य धीरेधीरे उस से दामन छुड़ाने लगा था.

‘‘मैं ने इस राज को जानने का बहुत प्रयत्न किया. एक दिन तुम्हारी भाभी ने विनीत भाव से कहा, ‘कितना अच्छा होता कि हमारे आंगन में भी बच्चा होता.’

‘‘यह सुन कर उस दिन से मुझे भी अपने घर में बच्चे का अभाव अखरने लगा. डाक्टर ने तुम्हारी भाभी का परीक्षण करने के बाद बताया कि यह कभी मां नहीं बन सकती. इस बात से वह बड़ी दुखी हुई. उस ने मुझे दूसरी शादी के लिए प्रेरित किया. लेकिन मैं ने शादी करने से साफ मना कर दिया.

‘‘उस दिन से मैं उसे और अधिक प्रेम करने लगा. जिस से वह इस मानसिक दुख से छुटकारा पा सके. लेकिन वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. उन्हीं दिनों हमारे पड़ोस में रहने वाली रूपी तुम्हारी भाभी के पास आनेजाने लगी. दोनों एकांत में घंटों बैठी न जाने क्याक्या बातें करती रहतीं. एक दिन रात को सोने से पहले तुम्हारी भाभी ने मुझ से कहा, ‘रूपी कितनी सुशील और सुंदर लड़की है. तुम रूपी से शादी क्यों नहीं कर लेते.’

‘‘पागल हो गई हो क्या? ऐसा कभी हो सकता है?’’ मैं ने उसे बांहों में कसते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं, क्या आप एक बच्चे के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’ कह कर वह फूटफूट रोने लगी.

‘‘मैं ने तुम्हारी भाभी को बहुत समझाया कि एक विवाहित व्यक्ति के साथ कोई भी पिता अपनी लड़की का विवाह नहीं करेगा. यह असंभव है. मैं तुम्हारी सौत नहीं ला सकता. पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही. वह फफकफफक कर रोने लगी. दूसरे दिन जब रूपी हमारे घर आई तो मैं उसे निहारने लगा.

‘‘रूपी की शोख जवानी और सुंदरता ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि तनमन से मैं उस की ओर खिंचता चला गया. तुम्हारी भाभी ने हमें संरक्षण दिया और हमारे प्रेम को पलने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया.’’

इतना कह कर रामू न जाने किन स्वप्नों में खो गया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर कहने लगा, ‘‘रूपी मुझ से शादी करने के लिए तैयार थी, लेकिन मैं उस के मातापिता से यह सब कहने का साहस नहीं कर सका. रूपी मुझ से जिद करती रही और मैं टालता रहा.

‘‘एक दिन शाम के समय रूपी जब हमारे घर आई तो उस ने कहा, ‘रामू, ऐसे कब तक चलेगा. चलो, हम कहीं भाग चलें.’ यह सुन कर मैं कांप उठा. रूपी मुझे देखती रही और हंसती रही.

‘‘उस ने फिर कहा, ‘बस, एक साल की बात है. एक बच्चा हो जाएगा तो हम लौट आएंगे. उस के बाद पिताजी भी मजबूर हो कर मेरी शादी तुम्हारे साथ कर देंगे.’ कह कर उस ने अपना चेहरा मेरे सीने पर रख दिया.’’

रामू न जाने किन खयालों में खो गया. मैं भी कहीं खो चुका था. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए रामू ने आगे कहा, ‘‘लेकिन स्वप्न साकार नहीं हुए. हम दोनों जोधपुर छोड़ कर जयपुर भाग गए और दोस्त भरत के यहां रहने लगे. 6 महीने बाद हम पुलिस द्वारा पकड़े गए. तुम्हारी भाभी की चिरपोषित अभिलाषा भी एक स्वप्न बन कर रह गई.’’ इतना कह कर वह चुप हो गया.

मैं ने भी इस से अधिक पूछताछ करनी उचित नहीं समझी और उस से विदा ले कर अपने घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में सोचता रहा कि क्या रामू दोषी है, जो समाज के ताने सहन न कर सका और संतान की चाह ने उसे अंधा बना दिया. शादीशुदा होते हुए भी वह नाबालिग रूपी के साथ भाग गया.

क्या रामू की पत्नी दोषी है, जिस ने अपने पति को गलत राह पर चलने की सलाह दी? या फिर रूपी का पिता दोषी है, जिस ने 2 प्रेमियों को मिलने से रोक कर अपनी लड़की का किसी आवारा लड़के के साथ ब्याह रचा दिया? मैं अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि आखिर दोषी कौन है?

Hindi Story : एक थी मालती

Hindi Story : यकीन करना मुश्किल था कि बीस साल पहले मैं उस कमरे में रहता था. पर बात तो सच थी. सन 1990 से 1993 तक छपरा में पढ़ाई के दौरान मैने रहने के कई ठिकाने बदले पर जो लगाव शिव शंकर पंडित के मकान से हुआ वो बहुत हद तक आज भी कायम है. छोटे छोटे आठ दस खपरैल कमरों का वो लाॅज था. उन्हीं में से एक में मैं रहता था. किराया 70 रूपये से शुरू होकर मेरे वहां से हटते हटते 110 तक पहुंचा था. यह बात दीगर है कि मैने कभी समय पर किराया दिया नहीं. पंडित का वश चले तो आज भी सूद समेत मुझसे कुछ उगाही कर लें. एक बार तो पंडित ने मेरे कुछ मित्रों से आग्रह किया था कि भाई उनसे कहिए कि उल्टा हमसे दो महीने का किराया ले लें और हमारा मकान खाली कर दें.

पंडित का होटल भी था जहां पांच रुपये में भर पेट खाने का प्रावधान था. मेरा खाना भी अक्सर वहीं होता था. पंडिताइन लगभग आधा दिन गोबर और मिट्टी में ही लगी रहती. कभी उपले बनाती कभी मिट्टी के बर्तन. जब खाने जाओ, झट से हाथ धोती और चावल परोसने लगती. सच कहूं उस वक्त बिल्कुल घृणा नहीं होती थी. बल्कि गोबर और मिट्टी की खुशबु से खाने में और स्वाद आ जाता.

उनकी एक बेटी थी.. मालती.

1993 उधर उसकी शादी हुई, इधर मैने उसका मकान खाली किया. वैसे मालती से मेरा कोई खास अंतरंग रिश्ता नहीं था. मगर उसके जाने के बाद एक अजीब सा सूनापन नजर आ रहा था. मन उचट सा गया था. इसलिए मैंने वहां से हटने का निश्चय किया. इसके पहले कि दुसरा ठिकाना खोजता, नौकरी लग गई और मैंने छपरा को अलविदा कह दिया.

बीस साल बाद छपरा में एक दिन मैं बारिश में घिर गया और मेरी मोटरसाइकिल बंद हो गई. सोचा क्यों न बाइक को पंडित के घर रख दें। कल फिर आकर ले जाएंगे.

मै बाइक को धकेलते और बारिश में भीगते वहां पहुंचा. पंडित का होटल अब मिठाई की दुकान में तब्दील हो गया था.

पंडिताइन मुझे देखते ही पहचान गयी. चाय बनाने लगी. मैंने उनसे कहा- भौजी आप चाय बनाइए तब तक मैं अपना कमरा देखकर आता हूँ जहाँ मैं रहता था.

पीछे लाॅज की ओर गया. सारे कमरे लगभग गिर चुके थे. अपने कमरे के दरवाजे को मैं आत्मीयता से सहलाने लगा. तभी मेरी नजर एक चित्र पर गयी. दिल का रेखाचित्र और बीच में अंग्रेजी का एम. यादें ताजी हो गयी. एक दिन मैंने मालती से कहा था- अबे वो बौनी, नकचढी, नाक से बोलने वाली लडकी, तेरा ये मकान मैं तभी खाली करूंगा जब तू ससुराल चली जाएगी.

इसपर वो बनावटी गुस्से में बोली- ये मेरा मकान है। जब चाहें तब निकाल दे तुम्हे, ये लो, और उसने खुरपी से दरवाजे पर दिल का रेखाचित्र बनाया और बीच में एम लिख दिया.

मालती का कद काफी छोटा था. लाॅज के सारे लडके उसे बौनी कहते थे मगर उसके पीछे. वो जानते थे कि मालती खूंखार है, सुन लेगी तो खूरपी चला देगी. ये हिम्मत मैने की. एक दिन उससे कहा- ऐ तीनफुटिया, जरा अपनी दुकान से चाय लाकर तो दे.

उसने कहा –  चाय नहीं, जहर लाकर दूंगी भालू.

नहाने का कार्यक्रम खुले में होता था नल के नीचे और मालती ने बालों से भरा मेरा बदन देख लिया था, इसलिए मुझे वो भालू कहती थी.

मैं समझ गया कि उसे बुरा नहीं लगा था. कुछ मस्ती मै कर रहा था, कुछ वो। फिर तो मस्ती का सिलसिला चल पड़ा.

पंडित के घर के पिछले हिस्से में लाॅज था. अगले हिस्से में वो रहते थे। बीच में एक पतली गली थी.

मालती हम लोगों के लिए अलार्म का काम भी करती थी.

सुबह सुबह गाय लेकर उस गली से  गुजरती तो जोर से आवाज लगाती.. कौन कौन जिन्दा है? जो जिन्दा है, वो उठ जाए, जो मर गया उसका राम नाम सत्य.

मै जानता था कि मरने वाली बात वो मेरे लिए बोलती थी क्योंकि मैं सुबह देर तक सोता था. खैर उसके इसी डायलॉग से मेरी नींद खुलती थी। फिर भी कभी अगर नींद नहीं खुलती तो मारटन टाफी चलाकर मारती.

उन दिनों बिहार में मारटन टाफी का खूब प्रचलन था. उनका एक राशन दुकान भी था जहां उनका बेटा यानि मालती का बड़ा भाई बैठता था. उस समय मैं महज उन्नीस का था. इतनी मैच्योरिटी नहीं थी. मैंने मालती के राशन दुकान का भरपूर फायदा उठाया. जब कभी वो गली से गुजरती में अपने आप से ही जोर जोर से कहता.. यार कोलगेट खत्म हो गया, पैसे भी नहीं, मालती बहुत अच्छी लडकी है, उससे कह दो तो कोलगेट क्या पूरी दुकान लाकर दे दे. फिर क्या थोड़ी देर बाद दरवाजे पर कोलगेट पड़ा मिलता. फिर तो कभी साबुन कभी कभी चीनी कभी कुछ मै अपनी जुगत से हासिल करने लगा.

एक दिन वो गली में टकरा गयी. बोली- तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो? दिन रात जो तारीफ करते हो. क्या सचमुच मैं उतनी अच्छी और सुंदर हूँ?

मैने उससे मुस्करा कर कहा-  तुम तो बहुत सुंदर हो. सिर्फ थोड़ा कद छोटा है, नाक थोड़ी टेढ़ी है, दांत खुरपी जैसे हैं और गर्दन कबूतर जैसी. बाकी कोई कमी नहीं. सर्वांग सुंदरी हो.

वह लपकी.. तुम किसी दिन मेरी खुरपी से कटोगे. अब खा लेना मारटन टाफी.

शरारतों का सिलसिला यूंही चलता रहा. एक दिन उसका रिश्ता आया. बाद में पता चला कि लडके वालों ने उसे नापसंद कर दिया.

यह मालती के लिए सदमे जैसा था. कई दिनों तक वो घर से निकली नहीं और जब निकली तो बदल चुकी थी. वो वाचाल और चंचल लडकी अब मूक गुडिया बन चुकी थी।. उसका ये शांत रूप मुझे विचलित करने लगा. एक दिन मैंने उसे गली में घेर लिया। पूछा-  तू आजकल इतनी शांत कैसे हो गई?

वो बोली-  तुम झूठे हो। कहते थे कि मालती सुंदरी है. लडके वाले रिजेक्ट करके चले गये.

मैने उसे समझाया- धत पगली वो लडका ही तेरे लायक नहीं था। तेरे नसीब में तो कोई राजकुमार है.

वो भोली भाली मालती फिर से मेरी बातों का यकीन कर बैठी. अब फिर वो पहले की तरह चहकने लगी और कुछ दिनों बाद सचमुच उसकी शादी तय हो गई.

उसने मुझसे पूछा- तुम मेरी शादी में आओगे न?

मैने चिर परिचित अंदाज में जवाब दिया- चाहे धरती इधर की उधर हो जाये, मैं तेरी शादी जरूर अटेंड करूंगा.

उसकी शादी हो गई. संयोग देखिए, जिस दिन शादी थी उसी दिन मेरा पटना में इम्तिहान था. मैं अटेंड नहीं कर सका. मालती चली गई थी अपने साथ समस्त उर्जा लेकर.

मालती के जाने के बाद, कुछ खाली खाली सा लगने लगा था. समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. कहां चली गई उर्जा. ऐसा कबतक चल सकता था?

कुछ दिनों बाद मैने भी वो कमरा खाली कर दिया.

भौजी की चाय तैयार थी. मै चाय पी ही रहा था कि पंडित जी भी आ गए. बातों बातों में मैंने उनसे पूछा.. मालती कैसी है? कहां है आजकल?

तब पंडिताइन ने बताया-  मालती…. वो अब दुनिया में नहीं.

मेरे पैर तले जमीन खिसक गई. कांपते स्वर में पूछा-  कब हुआ ये सब?

पंडिताइन ने आंखें पोंछते हुए कहा-  शादी के दो साल बाद ही. डिलीवरी के दौरान जच्चा बच्चा दोनों.

ओह…… तब मैंने सोचा कितना बदनसीब हूँ मैं. एक लड़की जो मुझे बेइंतहा चाहती थी, न मैं उसकी शादी में शामिल हो सका न जनाजे में.

और तो और उसकी मौत की खबर भी मिली उसके मरने के 15 साल बाद.

लेखक- दीपक कुमार

Short Story : जीने की राह

Short Story : मैंचांद साधारण घर से थी. मुझे याद है कि मेरे पापा के पास हम 6 बहनभाई को अच्छा खिलाने और पहनाने के बाद कोई खास पूंजी नहीं बचती थी. जैसे ही मैं ने कालेज किया, लोगों ने मेरी शादी के बारे में बात करना शुरू कर दिया. मैं इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी. मुझे अभी भी पढ़ना था और मेरा परिवार भी अभी शादी करने के बारे में ज्यादा नहीं सोच रहा था. वजह न जाने क्या थी, पर वे लोग तैयार नहीं थे.

मेरी जिंदगी गुजरती जा रही थी. मैं ट्यूशन क्लास दे कर जो भी कमाती थी, सब खानेपहनने पर ही खर्च कर देती थी. नौकरी करने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि मुसलिम लड़कियां नौकरी नहीं करतीं.

मैं देखने में कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी. मेरा रंग थोड़ा गहरा था. वैसे भी मैं दुबलीपतली थी और सोने पर सुहागा यह कि मेरे दांत भी थोड़े आगे निकले हुए थे. सब लोग मुझे ‘काली’, ‘दांतों’ और न जाने क्याक्या कह कर बुलाते. किसी को कभी मेरी ऐजूकेशनल क्वालिटी नजर न आती.

इन बातों को सुन कर कभी मैं भावुक हो कर रोती, तो कभी गुस्से में आ कर बहस करती, ‘‘जाओ, ऊपर वाले से जा कर लड़ो, जिस ने मुझे ऐसा बनाया.’’

मैं अपनी मां से कहती, ‘‘मां, मुझे काली क्यों पैदा किया? मुझे भी खूबसूरत पैदा करती…’’

मेरी मां कभी मुझे शांत हो कर देखती रह जातीं और कभी समझातीं. मैं ने 26 साल का आंकड़ा पार कर लिया था. इन सालों में मैं ने डबल सब्जैक्ट्स में मास्टर्स की डिगरी हासिल की थी.

मैं ने अपनी ऐजूकेशन के लिए सब गहने बेच दिए, क्योंकि मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं प्रोफैशनल कोर्स करूं, तो उन्होंने कोई सपोर्ट नहीं किया. मुझे नौकरी की इजाजत नहीं मिली. हर कोई पूछा करता था कि शादी नहीं हुई? रिश्ता नहीं हुआ? मैं थक गई थी सुनसुन कर. अब और नहीं. शादी करने के लिए ही मजबूर हो गई.

रिश्तों के आने का एक सिलसिला शुरू हुआ. रिश्ते एक तो आते बहुत मुश्किल से थे और अगर आते भी थे  तो वे मुझे नापसंद कर जाते.

पहली बार में मुझे बहुत गुस्सा आया, लेकिन फिर आदत हो गई. वजह, मेरे नैननक्श से ज्यादा हमारी माली हालत थी. मेरा परिवार लड़की दे सकता था, पर कार कैसे देता? और वह एक गोरी बहू भी नहीं दे सकता था.

मां और मेरी छोटी बहन बिलकुल टूट चुकी थीं. मुझे मेरी मां की उदासी अंदर तक तोड़ देती थी. जब कोई परिवार आता और बिना कोई जवाब दिए उठ कर चला जाता, तो मेरी हिम्मत नहीं होती थी उन का चेहरा देखने की.

अब मैं ने सोच लिया था कि बस बहुत हुआ, अब यह सब अब और नहीं. मैं ने रूढि़वाद को खत्म करने की सोच ली. मैं ने अच्छा कोर्स किया. मैं ने टीचर बन कर पढ़ाना शुरू किया. साथ में पढ़ाई भी करती रही. दिनभर पढ़ाना और रात को पढ़ना मेरा रूटीन बन गया.

मैं ने सब की मरजी न होते हुए भी आईसीएस एग्जाम दिया और टौप किया. बस, अब मेरे खराब दिन खत्म हुए और ऐसी रोशनी आई, जिस ने सब तरफ का अंधेरा मिटा दिया. सब लोग मेरे बारे में अच्छे तरीके से बात कर रहे थे. हर कोई मेरी काबिलीयत को सलाम कर रहा था. कई लोग मुझ से शादी करना चाहते थे, लेकिन अब मुझे शादी नहीं करनी थी.

मैं ने अपने मांबाप को सपोर्ट किया. अपनी 4 बहनों की शादी की. खुद के बारे में भी सोचना था मुझे और मैं ने सोचा भी. एक प्यारी सी बेटी को गोद लिया और उस का नाम रखा ‘चांदनी’.

अब मेरी जिंदगी में कुछ बुरा नहीं है. मैं खुश हूं. मैं अगर बुरे वक्त में जिंदगी से हार कर खुदकुशी कर लेती तो क्या होता? कुछ नहीं, इसलिए निराश न हों परेशानी से, बल्कि प्रेरणा बनें दूसरों की.

लेखक- इरफना परवीन

Short Story : बीरा ने बढ़ाया अपने गांव का मान-सम्मान

Short Story : आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

इसी बीच बीरा की मां की मौत हो गई. अब तो बीरा की परेशानियों को दुनिया में समझने वाला भी कोई नहीं रहा. बीरा की मां उसे एक लड़की की तरह जिंदगी जीने का सलीका सिखाने आई थी. खाना बनाना, बरतन धोना, लड़की की तरह सिंगार करना, सबकुछ उस ने अपनी मां से सीखा था.

बीरा के पिता को लोग चिढ़ाने लगे. खुलेआम मजाक उड़ाने लगे, ‘तेरी बेटी किन्नर है. इस ने तो गांव की नाक कटवा दी है. आज तक इस गांव में कोई किन्नर पैदा नहीं हुआ है.’

बीरा के पिता का भी बरताव बदलने लगा. जैसेजैसे बीरा के कदम जवानी की तरफ बढ़ने लगे, गांव के लड़के उस की तरफ खिंचने लगे और मौका मिलते ही और ज्यादा छेड़ने लगे. बीरा इन हरकतों से तंग आ चुकी थी.

एक दिन बीरा के पिता ने कहा, ‘‘तुम घर से निकल जाओ. रोजरोज के झगड़ों से मैं तंग आ चुका हूं.’’

बीरा भी अपने परिवार वालों का रुख देख कर घर से निकल गई और बिना मंजिल के एक ट्रेन पकड़ ली. उसे मालूम नहीं था कि कहां जाना है.

बीरा आसनसोल स्टेशन पहुंची, जहां किन्नरों की हैड से उस की मुलाकात हुई. उस ने खाना खिलाया, प्यार से बातें कीं और ट्रेन में ही गाने गा कर लोगों से पैसा वसूलने का हुनर सिखाया.

बीरा अब पैसा तो कमाती थी, लेकिन उस का सुख नहीं भोगती थी, क्योंकि सारा पैसा किन्नर की हैड ले लेती. वह 4 महीने तक आसनसोल में रही. वह वहां की जिंदगी से भी तंग आ चुकी थी.

एक दिन किसी को बिना बताए बीरा पटना चली आई. वहां उस की रेशमा नामक समाजसेवी किन्नर से मुलाकात हुई. रेशमा ने बीरा के दर्द को समझने की कोशिश की.

बीरा पढ़ना चाहती थी. रेशमा ने उस का बीए में दाखिला करा दिया. वह मन लगा कर पढ़ने लगी. अपना खर्च निकालने के लिए वह शादीब्याह और पर्वत्योहार के मौके पर आरकैस्ट्रा में नाचगाने का काम भी करने लगी.

बीए करने के बाद बीरा ने कोचिंग की और बीपीएससी की तैयारी करने लगी. पहली बार में वह नाकाम हुई, पर दूसरी बार बीपीएससी पास कर गई. उस की बहाली बीडीओ के पद पर हुई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपने साथियों को जम कर पार्टी दी.

बीरा के पिता को जब गांव वालों से मालूम हुआ तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वे और गांव वाले हिकारत की नजर से देखते थे, वह बीरा पढ़लिख कर अफसर बन जाएगी.

गांव वालों द्वारा यह सूचना भी उन्हें चिढ़ाने जैसी ही लगी. पर उन के गांव का ही एक लड़का बीरा से मिलवाने के लिए उन्हें ब्लौक दफ्तर ले गया. पिता को गलती का एहसास हुआ.

बीरा ने अपने पिता से गांव का हालचाल पूछा और यह भी बोली, ‘‘पिताजी, अब आप को गांव के लोग यह कह कर नीचा नहीं दिखाएंगे कि आप की बेटी किन्नर है.’’

बीरा ने यह भी पूछा कि गांव की मुख्य समस्या क्या है? पिता ने कहा, ‘‘गांव में स्कूल नहीं है.’’

बीरा ने अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाने का वादा किया. 6 महीने के अंदर बीरा ने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चे मुफ्त में पढ़ने लगे.

गांव वालों ने बीरा से माफी मांगते हुए उसे सम्मानित किया. सम्मान समारोह में लोगों ने यही कहा कि उन के गांव में आज तक कोई ऐसा लड़का या लड़की नहीं पैदा हुई, जो हमारे गांव का नाम रोशन कर सके. बीरा ने इस गांव का मानसम्मान बढ़ाया है.

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