जब छात्र जिंदगी में खुदकुशी के बन जाए चश्मदीद

वैसे तो हिंदी वैब सीरीज ‘फ्लेम्स’ जवान होते स्कूली छात्रों के पहले प्यार और रोमांस पर बनी है, पर इस में एक सीन बड़ा झकझोर देने वाला है, जिस में मेन किरदार रजत उर्फ रज्जो का बड़ा भाई इंजीनियरिंग के अपने एक सैमेस्टर के बीच में ही घर आ जाता है और जब उस के सब्र का बांध टूट जाता है, तब वह अपने पिता को बताता है कि उस के खास दोस्त ने होस्टल में खुदकुशी कर ली है और यह बात उस के दिमाग से निकल नहीं रही है.
ऐसा नहीं है कि होस्टल में किसी छात्र की खुदकुशी कोई नई बात हो, बल्कि आएदिन हम असली जिंदगी में भी खबरें पढ़ते रहते हैं कि तनाव के चलते फलां कालेज के लड़के या लड़की ने खुदकुशी कर ली.
साल 2022 के आखिरी महीने में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कमलापुर कसबे में बने राजा बहादुर सूर्य बख्श सिंह इंटर कालेज की 3 छात्राओं द्वारा एक हफ्ते के अंदर खुदकुशी किए जाने के मामले से पूरे इलाके में सनसनी मच गई थी.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में देश में 11,396 बच्चों ने खुदकुशी की थी, जो साल 2019 के मुकाबले 18 फीसदी ज्यादा थी. साल 2019 में 9,613 जबकि साल 2018 में 9,413 बच्चों ने खुदकुशी की थी.
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन बतौर आम आदमी पहले तो हम सब लोग उस इनसान के प्रति हमदर्दी जताते हैं, जो अपनी जान अपनी नासमझी की वजह से गंवा देता है और फिर उस के परिवार के लिए अफसोस करते हैं कि उन की जिंदगी तो जीतेजी नरक हो गई, पर हमारा ध्यान कभी उन हमउम्र छात्रों की तरफ नहीं जाता है, जो इस तरह की बेदर्द मौत के चश्मदीद बनते हैं.
ऐसे बच्चों पर क्या बीतती होगी, जो अपने रूम पार्टनर को फांसी से झूलते या हाथ की कटी नस से बेसुध बिस्तर पर पड़े या फिर इमारत की छत से छलांग लगाते देख लेते हैं?
एक ऐसे ही छात्र की आपबीती सुनते हैं. हरियाणा के फरीदाबाद शहर में रहने वाले दीपक (बदला नाम) कुरुक्षेत्र से अपनी पढ़ाई कर रहे थे. वहां उन के होस्टल के सामने एक तिमंजिला इमारत में भी कई छात्र किराए पर रहते थे.
दीपक ने उस खौफनाक मंजर के बारे में बताया, ‘‘एक दिन हम कुछ छात्र अपने होस्टल की छत पर बैठे थे. सामने उस इमारत की छत के किनारे एक लड़का खड़ा था, जिस ने देखते ही देखते छलांग लगा दी. यह देख कर हमारी तो ऐसीतैसी हो गई कि अभी तो अच्छाभला खड़ा था और एकदम से कूद गया.
‘‘हम सब ने हल्ला मचा दिया कि ‘सुसाइड कर लिया, सुसाइड कर लिया’. फिर उसे अस्पताल ले जाया गया, पर उसे बचाया नहीं जा सका. इसी बीच उस लड़के के एक दोस्त ने बताया कि वह डिप्रैशन में था. उस के कुछ पेपर क्लियर नहीं हुए थे और पैसे के मामले में भी वह एक गरीब घर का लड़का था.
‘‘सच कहूं, तो वह कांड देख कर मैं ने सोच लिया था कि अब कालेज नहीं जाऊंगा. उसी समय मैं ने अपने मम्मीपापा को फोन कर के बताया कि मैं अभी घर आ रहा हूं, पर उन्होंने कहा कि घबराओ मत और कल आ जाना.
‘‘मैं रुक तो गया, पर अगले 2 दिन तक होश सा खो दिया था. बारबार उस लड़के की सड़क पर पड़ी लाश ही मेरे दिमाग में घूम रही थी. घर आने के बाद ही मैं अपने घर वालों की मदद से यह बात भूल पाया.’’
कालेज लाइफ में छात्र अपनी उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं, जहां उन्हें अच्छेबुरे की उतनी समझ नहीं होती है. घर से दूर वे अपने अकेलेपन को दूर करने या पढ़ाई के बोझ के चलते कई बार नशे के चक्कर में पड़ जाते हैं और अपनी जिंदगी को और मुश्किल कर लेते हैं. गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से रिलेशनशिप टूटने को वे इस कदर दिल से लगा लेते हैं कि उन्हें अपनी जान भी बोझ लगने लगती है.
बहुत से छात्र तो पढ़ाई ढंग से न कर पाने या पैसे की कमी या फिर जातिवाद की वजह से इतने ज्यादा तनाव में आ जाते हैं कि खुदकुशी करना ही उन्हें सब से बेहतर लगता है.
वजह कोई भी हो, पर खुदकुशी करना किसी समस्या का हल नहीं है. लेकिन कोई अगर ऐसा कर लेता है, तो वह तो इस दुनिया से चला जाता है, पर उन दूसरे लोगों को अनचाहा दुख दे जाता है, जो उस की मौत के चश्मदीद होते हैं.
दीपक ने अपने हालात के बारे में बताया, ‘‘मैं ने खुद को अपने दोस्तों के साथ रह कर संभाला. आप पार्टी कर के, कोई गेम खेल कर या कहीं घूम कर अपनेआप को संभाल सकते हैं.’’
यह सच है कि इस तरह के भयानक हादसों को भूलना आसान नहीं होता है, पर जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है.
मनोवैज्ञानिक डाक्टर पुलकित शर्मा ने इस सिलसिले में बताया, ‘‘जब हम छात्र जीवन में अपने आसपास किसी और छात्र को खुदकुशी करते देखते हैं, तो हमारा मन बहुत ही ज्यादा डर और दुख से भर जाता है. डर यह नहीं होता कि उस का भूत वहां पर घूमेगा, जैसे कि लोग कहते हैं, पर डर इस चीज से होता है कि जब हमारी उम्र का कोई हिम्मत हार गया तो कहीं हम भी हिम्मत न हार जाएं.
‘‘छात्र जीवन में तो दुख, तकलीफ, दबाव, पढ़ाई ठीक से न कर पाना, प्यार में धोखा खाना, यह सब तो चलता ही रहता है, लेकिन कभी हौसला नहीं हारना चाहिए.
‘‘लेकिन, जब कोई ऐसे हादसों को अपनी आंखों से देख लेता है, तो उसे अपने मन में उठने वाली डर की भावनाओं को अपने अच्छे दोस्त या परिवार वालों से शेयर करना चाहिए. बातचीत से मन हलका होता है, जबकि मन में ऐसी बातें रखने से और ज्यादा घबराहट होगी.
‘‘अपनी जिंदगी को कभी शौर्ट टर्म विजन से मत देखिए. छात्र जीवन तो हमारी जिंदगी का एक छोटा सा हिस्सा है. अगले 10-15 साल के बाद तो याद भी नहीं रहेगा कि पढ़ाई के दौरान क्या हुआ था. अगर छात्र जीवन में आप
को कभी हारना भी पड़ जाता है, तो
उसे मुसकराहट के साथ स्वीकार करें. हम इनसान हैं और हम से गलती हो सकती है.
‘‘इस के अलावा आप एक बैलेंस्ड लाइफ जिएं. ज्यादा देर तक मत जागें. नशे से दूर रहें. साथ ही, अपने खानेपीने का भी ध्यान रखें. खुद को दिमागी तौर पर मजबूत करें. अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ें. अपनी पसंद का कोई काम जरूर करें. दोस्तों से मिलें. परिवार और वार्डन को अपनी समस्या जरूर बताएं और धीरेधीरे उस कांड को भूलने की कोशिश करें.’’

दोस्ती के दम पर कर डाला गंदा काम

महेश उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा बिंदकी का एक दबंग किसान था. स्थानीय राजनीति में भी उस की अच्छी पकड़ थी. वह एक बार का प्रधान भी रह चुका था. उस की 4 बेटियां थीं, जिन में नीलम सब से छोटी थी. नीलम के अलावा वह तीनों बेटियों का विवाह कर चुका था. सब से छोटी होने की वजह से थोड़ा चंचल स्वभाव की नीलम घर में सब की लाडली थी. वह शादी लायक हुई तो महेश ने सन 2006 में जिला कानपुर के गांव रघुनाथपुर के रहने वाले जगदेव कुशवाहा के बेटे पिंटू से उस की शादी कर दी. पिंटू अपने पिता के साथ खेतीकिसानी करता था.

पिंटू खूबसूरत पत्नी पा कर खुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था. जबकि नीलम दुबलेपतले और सांवले रंग के पिंटू को पा कर अपने को बदकिस्मत समझ रही थी. नीलम सुंदर होने के साथ तेजतर्रार भी थी, इसलिए पिंटू उस से दबादबा सा रहता था और उस की हर बात मानता था. कुछ ही दिनों बाद नीलम पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी.

पिंटू बहुत मेहनती था. वह सुबह 8-9 बजे खेतों पर चला जाता था तो शाम को ही घर लौटता था. वह नीलम को खुश रखने की हरसंभव कोशिश करता था, लेकिन तुनकमिजाज नीलम उस से खुश नहीं रहती थी. कभी वह कम कमाई का रोना रोती तो कभी अपने भाग्य को कोसती. दरअसल, नीलम ने हृष्टपुष्ट, सुंदरसजीले पति के सपने संजोए थे, लेकिन मिला उस के एकदम उलट था. वह उसे किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाता था. इस तरह जैसेजैसे उस के साथ नीलम की जिंदगी कट रही थी.

पिंटू का एक दोस्त था इंद्रपाल. वह पड़ोसी गांव लालपुर का रहने वाला था और वह हैंडपंप लगवाने के ठेके लेता था. हृष्टपुष्ट शरीर का इंद्रपाल मजाकिया स्वभाव का था. पिंटू को जब भी फुरसत मिलती तो वह इंद्रपाल के गांव पहुंच जाता. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. पहले पिंटू शराब नहीं पीता था, लेकिन नीलम के बर्ताव से दुखी हो कर वह शराब पीने लगा था. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया था. एक दिन पिंटू के घर का हैंडपंप खराब हो गया तो मरम्मत के लिए उस ने इंद्रपाल को बुला लिया. पिंटू की शादी के बाद इंद्रपाल उस दिन पहली बार पिंटू के घर आया था. शादी के बाद नीलम के रूपरंग में और निखार आ गया था. इंद्रपाल ने नीलम को देखा तो वह उस की आंखों में रचबस गई.

हैंडपंप ठीक होने के बाद नीलम इंद्रपाल को पैसे देने लगी तो इंद्रपाल ने पैसे नहीं लिए. उस ने कहा, ‘‘भाभी, पिंटू मेरा दोस्त है, फिर पैसे किस बात के. आप बहुत सुंदर हैं. एक बार देख कर मुसकरा देंगी तो हम समझेंगे कि पैसा मिल गया.’’

अपने रूप की तारीफ सुन कर नीलम इंद्रपाल को गौर से निहारने लगी. फिर मुसकरा कर अपना सिर नीचे कर लिया. दिल में नीलम को बसा कर इंद्रपाल भी वहां से चला गया. इस के बाद इंद्रपाल और पिंटू जब कभी मिलते, पिंटू उसे घर ले आता. इंद्रपाल चाहता भी यही था.

नीलम को आकर्षित करने के लिए वह कभी उस के लिए साड़ी ले आता तो कभी साजशृंगार का सामान. थोड़ी नानुकुर के बाद नीलम यह स्वीकार कर लेती. पिंटू को खुश करने के लिए वह उस के साथ शराब पार्टी करता था. इंद्रपाल की आमदनी अच्छी थी इसलिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह नीलम को भी हजार-5 सौ रुपए दे देता था. इस तरह नीलम का झुकाव उस की तरफ होता गया. इंद्रपाल अब पिंटू की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा.

जून की तपती दोपहर में एक दिन इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा. नीलम उस समय कमरे में सो रही थी. गरमी अधिक होने की वजह से नीलम सिर्फ पेटीकोटब्लाउज पहने हुए थी. आसपास सन्नाटा पा कर इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा तो उस का कमरा बंद था, मगर खिड़की खुली हुई थी.

अविवाहित इंद्रपाल ने खिड़की से कमरे में झांका तो अस्तव्यस्त कपड़े में सो रही नीलम को देख कर वह बेकाबू हो उठा. पेटीकोट से बाहर झांकती नीलम की अधखुली टांगें तथा उफनते वक्षस्थल देख कर इंद्रपाल की धड़कनें बढ़ गई. उस ने दरवाजा खटखटाया तो नीलम की आंख खुल गईं.

नीलम ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने मंदमंद मुसकराते इंद्रपाल को देख कर वह शर्म की वजह से चारपाई की तरफ बढ़ी. उस ने चारपाई पर रखी साड़ी लपेटनी चाही पर इंद्रपाल ने उस की साड़ी एक तरफ फेंक कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया. इस के बाद उस ने नीलम को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘कब तक तरसाओगी भाभी?’’

इस के बाद इंद्रपाल ने नीलम के बदन को चूमना शुरू कर दिया. नीलम ने उस का कोई विरोध नहीं किया तो इंद्रपाल ने उस के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए. नीलम भी उस से लिपट गई और चंद मिनटों में उन्होंने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं. इस के बाद अवैध संबंधों का यह खेल आए दिन खेला जाने लगा.

पिंटू अपनी पत्नी के प्रेमप्रसंग से बिलकुल अनजान था. लेकिन पासपड़ोस के लोगों में इंद्रपाल और नीलम के नाजायज संबंधों को ले कर चर्चा होने लगी थी. पर उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. इंद्रपाल नीलम का दीवाना था तो नीलम उस की मुरीद. धीरेधीरे इंद्रपाल उस पर अपना अधिकार समझने लगा.

एक दिन पिंटू ने नीलम से कहा कि वह बीजखाद के लिए कानपुर जा रहा है. वह रात में नहीं आ पाएगा. अगले दिन शाम तक ही लौट सकेगा. उसे किसी चीज की जरूरत हो तो बता दे, वह इंतजाम कर जाएगा.

नीलम बोली, ‘‘घर पर सब सामान है. तुम चिंता मत करो. अगर सिद्धनाथ मंदिर जाओ तो वहां से हमारे लिए प्रसाद जरूर ले आना.’’

पिंटू चला गया. उस के जाते ही उस ने इंद्रपाल को फोन कर के पति के कानपुर जाने की बात कह कर उसे रात में घर आने को कह दिया. पर पिंटू कानपुर गया ही नहीं था. दरअसल जब वह घाटमपुर स्टेशन पर पहुंचा तो उसे गांव का गिरिंदपाल मिल गया.

उस ने बताया कि वह खाद लेने कानपुर गया था, लेकिन गोदाम में स्टाक नहीं है. 2-4 दिनों बाद ही खादबीज आएगा. गिरिंद की बात सुन कर पिंटू ने कानपुर जाने का इरादा छोड़ दिया और घाटमपुर स्थित ऐतिहासिक शिवमंदिर चला गया. वहां दर्शन कर के वह प्रसाद ले आया.

पिंटू रात 9 बजे घर पहुंचा, उस समय नीलम इंद्रपाल की बांहों में समाई बेसुध पड़ी थी. पिंटू ने खिड़की से यह सब देखा तो आगबबूला हो उठा. उसे अपने दोस्त से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. लेकिन सोचविचार के बाद उस ने खून का घूंट पी कर चुप रहना ही उचित समझा. उस ने सोचा कि इतनी रात को वह घर में कलह करेगा तो पूरा मोहल्ला जाग जाएगा, जिस से बदनामी उसी की होगी.

पिंटू पंचायत घर गया और वहां पड़े तख्त पर लेट गया. रात भर वह सो नहीं सका. सारी रात करवटें बदलता रहा. सवेरे वह उठा और इंद्रपाल के घर पहुंच गया. इंद्रपाल उस का तमतमाया चेहरा देख कर समझ तो गया कि शायद उसे उस पर शक हो गया है लेकिन खुद को सामान्य रखते हुए उस ने पूछा, ‘‘पिंटू भैया, आज सवेरेसवेरे?’’

‘‘हां इंद्रपाल, बात ही ऐसी है कि आना पड़ा.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘मेरे लायक कोई काम?’’ इंद्रपाल ने पूछा.

‘‘आओ, मेरे साथ चलो, कहीं एकांत में बैठ कर बातें करते हैं.’’ पिंटू ने कहा.

इंद्रपाल उस के साथ चल पड़ा. गांव से बाहर निकल कर दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए तो पिंटू ने पूछा, ‘‘आजकल मेरी पत्नी तुम पर काफी मेहरबान है?’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’ इंद्रपाल ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘इतना नाराज क्यों हो रहे हो भैया?’’

‘‘कल रात तुम कहां थे?’’

‘‘अपने घर पर.’’

‘‘सफेद झूठ.’’

इंद्रपाल ने सिर झुका कर मौन साध लिया. उसे इस तरह देख कर पिंटू होंठ चबाते हुए बोला, ‘‘तू मेरा दोस्त नहीं होता तो मैं तुझे कल रात तब ही कुल्हाड़ी से काट डालता, जब तू नीलम के साथ था. अब तू अगर अपनी खैर चाहता है तो ध्यान रखना कि फिर कभी मेरे घर की ओर भूल कर भी कदम मत रखना, वरना मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

इंद्रपाल को खरीखोटी सुना कर पिंटू अपने घर पहुंचा और पत्नी की जम कर पिटाई की. नीलम और इंद्रपाल को चेतावनी देने के बाद पिंटू शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. पत्नी की बेवफाई से वह बुरी तरह टूट गया. उस ने दाढ़ीमूंछ बढ़ा ली और नशे का लती बन गया.

दूसरी ओर नीलम और इंद्रपाल ने एकदूसरे से मिलनाजुलना तथा बोलना बंद कर दिया. पिंटू और इंद्रपाल की दोस्ती में दरार पड़ गई थी. लेकिन यह दरार ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. वजह यह कि पिंटू को पीनेखाने की दिक्कत होने लगी थी क्योंकि उस के पीनेखाने पर इंद्रपाल ही खर्च करता था.

अपनी इन्हीं मजबूरियों के चलते पिंटू ने इंद्रपाल से फिर से दोस्ती कर ली. दोनों साथ बैठ कर फिर खानेपीने लगे. इंद्रपाल ने वादा किया कि वह नीलम को अब कभी बुरी नीयत से नहीं देखेगा. लेकिन वह ज्यादा दिनों तक अपना वादा नहीं निभा सका और नीलम से लुकछिप कर मिलने लगा.

लेकिन सावधानी बरतने के बावजूद नीलम का कारनामा छिपा न रह सका. इस बार नीलम और इंद्रपाल को पड़ोसन सावित्री ने रंगेहाथों पकड़ लिया. सावित्री ने यह बात पिंटू को बताई तो उस का खून खौल उठा. उस ने नीलम की जम कर पिटाई कर दी.

पिंटू एक तरफ अपने गद्दार दोस्त से परेशान था तो दूसरी ओर पत्नी से, जो उस की आंखों में धूल झोंक कर रंगरलियां मना रही थी. आखिर जब बात पिंटू की बरदाश्त के बाहर हो गई तो उस ने गद्दार दोस्त इंद्रपाल को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

इंद्रपाल को सबक सिखाने के लिए पिंटू ने लालपुर गांव निवासी मोहनलाल गुप्ता से बात की. मोहनलाल ने पहले तो नानुकुर की, लेकिन बाद में पिंटू का साथ देने को तैयार हो गया. दरअसल, मोहनलाल का झगड़ा अपने भाई राजेंद्र से होता रहता था. वह झगड़ा पैतृक संपत्ति के बंटवारे को ले कर था.

इस झगड़े में इंद्रपाल राजेंद्र का साथ देता था, जिस से मोहनलाल इंद्रपाल से रंजिश रखता था. इसी कारण पिंटू ने जब इंद्रपाल को ठिकाने लगाने की बात मोहनलाल से की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गया.

पहले से तैयार योजना के तहत पिंटू 12 फरवरी, 2017 की शाम इंद्रपाल से मिला. उस ने कहा, ‘‘इंद्रपाल, आज मेरा मूड ठीक नहीं है. सिर और बदन में दर्द हो रहा है. मन में अजीब सी बेचैनी है.’’

इंद्रपाल खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘दोस्त, तुम्हारे मर्ज की दवा मेरे पास है. उस से सिरदर्द भी गायब हो जाएगा और मूड भी ठीक हो जाएगा. 2 पैग लगाते ही हवा में उड़ने लगोगे.’’

इस के बाद इंद्रपाल ने पिंटू के साथ शराब पी. वहां से वापस लौटते समय दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए. उसी समय मोहनलाल आ गया. मोहनलाल ने इंद्रपाल से तो बात नहीं की, लेकिन पिंटू से बातें करने लगा. इसी बीच मौका पा कर पिंटू ने इंद्रपाल को दबोच लिया.

इंद्रपाल ने छूटने की कोशिश की तो मोहनलाल उस पर टूट पड़ा और लातघूंसों से मारमार कर उसे पस्त कर दिया. हिम्मत कर के इंद्रपाल जान बचा कर भागा, लेकिन कदमों ने उस का साथ नहीं दिया और सरसों के खेत में गिर पड़ा. उसी समय मोहनलाल ने इंद्रपाल को दबोच लिया तो पिंटू ने तेज धार वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. उन्होंने इंद्रपाल का धड़ तो वहीं खेत में छोड़ दिया, लेकिन उस के सिर को ले जा कर एक किलोमीटर दूर रायपुर गांव निवासी राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

सुबह लालपुर का रामू तेली अपने खेत पर पहुंचा तो उसे पड़ोसी के खेत में किसी का धड़ पड़ा दिखाई दिया. उस ने यह जानकारी गांव वालों को दी तो गांव के तमाम लोग इकट्ठा हो गए. इसी बीच किसी ने थाना घाटमपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अजय कुमार यादव पुलिस फोर्स के साथ लालपुर पहुंच गए.

अजय कुमार यादव ने वारदात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी और जांच में जुट गए. सरसों के खेत में एक युवक की सिरविहीन लाश पड़ी थी. उस के सिर का पता नहीं था. थानाप्रभारी सिर की तलाश में जुट गए. वहां मौजूद गांव के कुछ लड़के भी सिर खोजने लगे.

दोपहर 12 बजे के करीब अजय कुमार यादव को सूचना मिली कि पड़ोसी गांव रायपुर में राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में किसी का कटा सिर पड़ा है. सूचना पाते ही वह रायपुर पहुंचे और राकेश वाजपेयी के मटर के खेत से कटा सिर बरामद कर लिया. सिर और धड़ को जोड़ा गया तो लालपुर गांव के लोग चौंके. वहां मौजूद रामपाल फूटफूट कर रोने लगा. उस ने बताया कि यह लाश उस के भाई इंद्रपाल की है.

उसी समय एसपी ग्रामीण राजेश कुमार सिंह भी आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतक के घर वालों से बात की. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. अजय कुमार यादव ने मृतक के भाई रामपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव का मोहनलाल गुप्ता इंद्रपाल से रंजिश रखता था. शक है कि उसी ने इंद्रपाल की हत्या की है. शक के आधार पर पुलिस ने मोहनलाल गुप्ता को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई लेकिन उस ने हत्या से साफ इनकार कर दिया.

16 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पुन: मोहनलाल से सख्ती से पूछताछ की. इस बार पुलिस की सख्ती से मोहनलाल टूट गया और इंद्रपाल की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि रघुनाथपुर निवासी पिंटू की पत्नी नीलम से इंद्रपाल के नाजायज संबंध थे. पिंटू के कहने पर उस ने उस की हत्या की थी.

मोहनलाल के बयानों के आधार पर पुलिस ने पिंटू को भी हिरासत में ले लिया. पिंटू ने जब थाने में मोहनलाल को देखा तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया. चूंकि दोनों ने अपराध स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रामपाल की ओर से इंद्रपाल की हत्या का मुकदमा मोहनलाल और पिंटू के खिलाफ दर्ज कर लिया और पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद करा लिया, जिसे उस ने अपने खेत में छिपा दिया था.

17 फरवरी, 2017 को थाना घाटमपुर पुलिस ने पिंटू और मोहनलाल को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हिम्मत ने दिलाई वरदी वालों को सजा

बीकौम की छात्रा स्मिता भादुड़ी न तो कोई पेशेवर अपराधी थी और न ही किसी थाने में उस के खिलाफ कोई केस दर्ज था. उस का गुनाह महज इतना था कि वह अपने दोस्त के साथ कार में बैठ कर बातें कर रही थी. बदमाशों की सूचना पर वहां पहुंचे तथाकथित बहादुर पुलिस वालों ने जोश में आ कर सरकारी असलहे से गोलियां दाग दीं. एक गोली ने स्मिता का सीना चीर दिया.

पुलिस वालों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन के सिर पर ऐनकाउंटर के बदले मैडल और प्रमोशन पाने का जुनून सवार था. बेगुनाह छात्रा की हत्या का मामला सीबीआई को दिया गया. आखिरकार 3 पुलिस वालों को कुसूरवार मान कर उन्हें माली जुर्माने के साथसाथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

इसे लाचारी, इंसाफ की राह में कानूनी दांवपेंच की चाल कहें या कुछ और, अपनी होनहार बेटी स्मिता को खो चुके परिवार को इंसाफ के लिए 15 साल का लंबा, थकाऊ और पीड़ा देने वाला इंतजार करना पड़ा.

ऐनकाउंटर में शामिल पुलिस वाले इस दौरान न केवल आजाद रहे, बल्कि बचने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाते रहे. इतना ही नहीं, लंबे वक्त में मजे से नौकरी कर के वे अपने पदों से रिटायर भी हो गए.

पुलिस के डरावने चेहरे से रूबरू हुए स्मिता के परिवार के दर्द का हिसाब शायद कोई कानून नहीं दे सकता है. कुसूरवार पुलिस वाले अब सलाखों के पीछे हैं.

इस मामले से सीख भी मिलती है कि किसी की जान की कीमत पर मैडल व प्रमोशन पाने की ख्वाहिश देरसवेर सलाखों के पीछे पहुंचा कर भविष्य अंधकारमय भी कर देती है.

-यों मारी गई होनहार छात्रा

स्मिता ऐनकाउंटर मामला रोंगटे खड़े कर देता है. स्मिता भादुड़ी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की मोदी कालोनी में रहती थी. उस के पिता एसके भादुड़ी मोदी कंपनी में बतौर इंजीनियर थे. उन के परिवार में पत्नी प्रतिमा के अलावा 2 बेटियां थीं, बड़ी प्रीति और छोटी स्मिता. उन का एक बेटा सुप्रियो भी था.

21 साला स्मिता बीकौम के आखिरी साल की छात्रा थी. स्मिता की दोस्ती मोहित त्योगी से थी. दोनों के बीच मुलाकातें होती रहती थीं. साल 2000 में 14 जनवरी की सर्द शाम थी वह. स्मिता अपने घर से मोहित से मिलने के लिए निकली. वे दोनों कार नंबर यूपी15जे-0898 से घूमने निकल गए.

दिल्लीदेहरादून हाईवे से सटे गांव सिवाया की कच्ची सड़क पर कार रोक कर वे बातें करने लगे. वहां कार खड़ी देख किसी ने बदमाश होने के शक में पुलिस को खबर दे दी.

इसी बीच शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे इलाकाई थाना दौराला इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के साथ जीप ले कर वहां पहुंच गए. उन्होंने सोचा कि कोई बड़ा गैंग होगा. अपने पीछे पुलिस की गाड़ी देख मोहित ने कार आगे बढ़ा दी. इस पर पुलिस वालों ने पीछा करते हुए एकसाथ 11 गालियां दाग दीं. गोलियां कार पर भी लगीं और एक गोली ने स्मिता के सीने को चीर दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

बुरी तरह घबराया मोहित कार रोक कर सरैंडर करने की मुद्रा में फौरन बाहर आ गया. पुलिस वालों ने उसे पीटपीट कर दोहरा कर दिया. इस बीच इंस्पैक्टर अरुण कौशिक ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी थी कि बदमाशों से मुठभेड़ हो गई है और दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही है.

मौके पर पहुंचे तब के एसएसपी आरपी सिंह को भी गुमराह करने की कोशिश की गई, लेकिन दहशतजदा मोहित की जबानी हकीकत खुलते ही सभी के होश उड़ गए.

छींटदार सलवारसूट व सफेद रंग का कार्डिगन पहने खून से लथपथ स्मिता कार की सीट पर पड़ी थी. नासमझी का परिचय दे कर इंस्पैक्टर ने खून से अपने हाथ रंग लिए थे. बेगुनाह छात्रा की मौत पर तीनों पुलिस वालों को फौरन सस्पैंड कर दिया गया.

जिन दिनों यह ऐनकाउंटर हुआ था, उन दिनों पुलिस वालों के सिर पर जुनून सवार था कि ऐनकाउंटर करो और प्रमोशन पाओ. दरअसल, पुलिस की नौकरी में थोड़ी बहादुरी से प्रमोशन पा लिया जाता था. इंस्पैक्टर अरुण कौशिक भी इसी फोबिया के शिकार थे. पुलिस ने समझदारी दिखाई होती, तो स्मिता आज जिंदा होती.

चश्मदीद गवाह मोहित की तरफ से इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. खाकी पर खून के छींटे लगने का मामला तूल पकड़ गया. तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

-इंसाफ की लंबी लड़ाई

यह मामला उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचा, तो केस सीबीआई को चला गया. सीबीआई 3 साल तक जांच करती रही. इस बीच तीनों आरोपी जेल से छूट गए और बहाली पा कर नौकरी करने लगे. इतना ही नहीं, इंस्पैक्टर अरुण कौशिक सीओ भी बन गए.

केस वापस लेने के लिए सीबीआई ने 26 फरवरी, 2004 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. अदालत में सुनवाई कई साल चलती रही. आरोपी पुलिस वालों ने पीडि़त परिवार पर कई तरह से दबाव बनाया. मोहित को डरायाधमकाया गया, लेकिन इंसाफ की आस में उस ने हार नहीं मानी. तीनों आरोपियों ने मामले को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और मजे से नौकरी की.

आरोपियों ने कानूनी हथकंडे अपना कर अदालत बदलने की मांग की और कई सुनवाई पर पेश नहीं हुए. नौकरी कर के तीनों रिटायर भी हो गए.

सालों चले केस में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या, जानलेवा हमले व मारपीट का कुसूरवार करार देते हुए आखिरकार 14 दिसंबर, 2015 को तीनों आरोपियों को उम्रकैद व डेढ़डेढ़ लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई.

जज नवनीत कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मामला विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है. वरिष्ठ लोक अभियोजन अधिकारी कुलदीप पुष्कर की इस मामले में अदालत में दी गई यह दलील माने रखती है कि पुलिस का काम कानून का पालन करना और कराना है. अगर पुलिस ही कानून का पालन न करे और कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की हत्या कर दे, तो ऐसे हालात में समाज में दहशत फैलती है.

कुसूरवार पुलिस वालों पर आरोप साबित होने में 15 साल, 9 महीने और 16 दिन लग गए. सजा होते ही तीनों को डासना जेल भेज दिया गया.

-दर्द से गुजरा परिवार

बेटी की मौत से दुखी भादुड़ी परिवार जिस गम, दहशत और दर्द के दरिया से गुजरा, उस की भरपाई कानून की कोई धारा नहीं करती. पुलिस का घिनौना रूप आज भी उन्हें डराने का काम करता है. उन चंद लफ्जों ने इंजीनियर एसके भादुड़ी की दुनिया हिला दी थी, जब एक पुलिस अफसर ने उन से कहा, ‘आप की बेटी को पुलिस ने गलती से गोली मार दी है और उस की मौत हो गई है.’

उस रात की यादें कोई नहीं भुला पाता. सिरफिरे पुलिस वालों की करतूत से हंसतेखेलते परिवार पर स्मिता की मौत के साथ ही गम व मुसीबतों का पहाड़ टूट गया.

बेटी स्मिता की मौत के गम में मां प्रतिमा भादुड़ी डिप्रैशन में आ गईं. लाख समझाने पर भी वे बेटी का दर्द नहीं भुला सकीं. ज्यादा दवाओं के सेवन से उन का लिवर खराब हो गया. वे बीमार हुईं, तो इलाज कराया गया. परिवार माली रूप से परेशान हो गया. बाद में साल 2011 में उन की मौत हो गई.

स्मिता का भाई सुप्रियो ग्राफिक डिजाइनर है. दोनों बापबेटे अकेले रहते हैं. अदालत के फैसले से वे खुश तो हैं, लेकिन कहते हैं कि ऐसा करने वालों को फांसी होनी चाहिए थी.

-क्या सबक लेगी पुलिस

स्मिता का मामला उन पुलिस वालों के लिए एक सबक है, जो वरदी की हनक में बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में अव्वल दर्जा हासिल कर रही उत्तर प्रदेश पुलिस में ऐसे पुलिस वालों की एक बड़ी जमात है, जो गंभीर आरोपों से दामन दागदार किए हुए है. उन के कारनामे जनता में डर पैदा करते हैं.

पुलिस से आम आदमी कितना सुरक्षित महसूस करता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी थाने में आने से डरते हैं. पुलिस अगर बेगुनाहों के खून से हाथ रंगने लगे, तो बात सोचने वाली हो जाती है. स्मिता का मामला सबक जरूर देता है कि गलत कामों की सजा देरसवेर मिलती जरूर है. इस मामले में पुलिस वाकई सबक लेगी, इस में शक है.

फिर वही अपराध : हैवानियत की इंतहा

26 नवंबर, 2016 की बात है. दोपहर के ढाई बजे थे. घड़ी पर जैसे ही मनोज कुमार की नजर पड़ी, उस के मुंह से ‘ओफ्फ…काफी देर हो गई’ की आवाज निकली. उसे कहीं जाना था, इसलिए वह फटाफट घर से निकल कर सवारी पकड़ने के लिए गांव से बाहर सड़क पर आ गया. सड़क पर पहुंच कर वह वाहन का इंतजार कर ही रहा था कि अचानक उस की नजर सड़क के बाईं पटरी पर सरपतों की झाड़ी में पहुंची. वहां पर एक लड़की की लाश पड़ी थी.

चूंकि मनोज केराकत कोतवाली का चौकीदार भी था, इसलिए वह जिज्ञासावश उस जगह पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी.

उस लड़की की उम्र 10-12 साल लग रही थी. वह बैंगनी रंग का कढ़ाईदार सलवारसूट पहने हुई थी. उस का गला कटा हुआ था. लाश मिलने की सूचना कोतवाली में देना उस की जिम्मेदारी थी, इसलिए जिस जगह उसे जाना था, वहां न जा कर वह सीधे केराकत कोतवाली पहुंच गया. कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार को उस ने लड़की की लाश मिलने की जानकारी दे दी. उस ने यह भी बता दिया कि लाश गांव शिवरामपुर खुर्द के रहने वाले भीम सिंह के खेत के किनारे पर है.

मनोज की सूचना पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार फौरन पुलिस टीम के साथ मौके की तरफ रवाना हो गए. इस की जानकारी उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. घटनास्थल की दूरी केराकत कोतवाली से महज 12 किलोमीटर थी, इसलिए कुछ ही देर में वह मौके पर पहुंच गए.

तब तक लाश मिलने की जानकारी आसपास के क्षेत्रों में भी फैल गई थी, इसलिए वहां काफी संख्या में ग्रामीणों की भीड़ भी जुट गई थी. कोतवाली प्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया तो लग रहा था कि उस के साथ शायद दुराचार किया गया है. उसी दौरान क्षेत्राधिकारी (केराकत) राकेश पांडेय, उपजिलाधिकारी सहदेव मिश्रा भी वहां पहुंच गए. जितने लोग वहां खड़े थे, पुलिस ने उन सब से उस लड़की की शिनाख्त करानी चाही पर कोई भी उसे नहीं पहचान सका. तब पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

चौकीदार मनोज कुमार की तहरीर पर भादंसं की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मौके से मृतका या हत्यारे के बारे में कोई ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस के जरिए पुलिस आगे बढ़ सके. इस के बावजूद पुलिस अपने स्तर से ही केस की जांच करने लगी.

कोतवाली प्रभारी मृतका की पहचान को ले कर उलझे हुए थे. दूसरे दिन समाचारपत्रों में यह खबर प्रमुखता से छपी तो 28 नवंबर की शाम को वाराणसी के जैतपुरा थाना क्षेत्र से कुछ लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. उन्हें जब वह लाश दिखाई गई तो आजाद कुरैशी नाम के एक शख्स ने उस की पुष्टि अपनी बेटी मुसकान के रूप में की. कोतवाली पहुंच कर उस ने अपनी बेटी के कपडे़ भी पहचान लिए.

29 नवंबर को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में दुष्कर्म की भी पुष्टि हो गई. चूंकि मुसकान की रिपोर्ट भादंवि की धारा 363 के तहत जैतपुरा थाने में 26 नवंबर को दर्ज हुई थी. इसलिए एसएसपी नितिन तिवारी के निर्देश पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार ने यह केस थाना जैतपुरा को स्थानांतरित कर दिया.

अब जैतपुरा थानाप्रभारी रमेश यादव यह जानने में लग गए कि मुसकान का हत्यारा कौन है. इस संबंध में उन्होंने मुसकान के मातापिता से बात की तो मां रजिया सुलतान ने बताया कि पड़ोस के एक आदमी ने मोहल्ले के ही पप्पू गुप्ता के साथ मुसकान को मल्लाही बगीचे की तरफ जाते देखा था. पप्पू को गांव के सभी लोग जानते थे कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का है. इसलिए उन्हें बेटी को ले कर चिंता हुई. जब वह पप्पू के घर गईं तो वह नहीं मिला.

रजिया से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी पप्पू पर ही शक हो गया. पुलिस ने उस की तलाश के लिए मुखबिर भी सक्रिय कर दिए. पुलिस ने 29 नवंबर को ही मुखबिर की सूचना पर 30 वर्षीय पप्पू गुप्ता को दबोच लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

जब पुलिस ने उस से मुसकान के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह बहुत देर तक टिक नहीं पाया और उस ने स्वीकार कर लिया कि मुसकान की हत्या उस ने ही की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह मानवता को शर्मसार करने वाली निकली. उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के जैतपुरा के अंतर्गत एक मोहल्ला है शक्कर तालाब. यहीं पर आजाद कुरैशी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रजिया सुलतान के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. आजाद कुरैशी मोहल्ले में ही चिकन की दुकान चलाता था.

घर के काम निपटाने के बाद रजिया घर में खाली रहती तो उस ने अखबार की थैलियां बनानी शुरू कर दीं. उस के पास थैलियों की मांग बढ़ने लगी तो कभीकभार बच्चे भी उस के काम में शरीक हो जाते थे. इस तरह इस काम से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

26 नवंबर का दिन था. सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. रजिया घर के कामकाज में लगी हुई थी कि तभी उसी के मोहल्ले का पप्पू गुप्ता उस के दरवाजे पर आया. वह गली में घूमघूम कर हाथ ठेले पर मूंगफली के दाने, चने आदि बेचता था. उस के लिए वह थैलियां रजिया से ही ले जाता था. उस दिन भी वह थैलियां लेने आया था. जैसे ही पप्पू ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजे पर रजिया की ननद रेशमा आई. वह उस से बोली, ‘‘अभी थैलियां तैयार नहीं हैं. थोड़ी देर में हो जाएंगी.’’

इस पर वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 मिनट रुक जाता हूं. तैयार कर के दे दीजिए.’’ इतना कह कर वह वहीं रुक गया, जबकि रेशमा घर के अंदर चली गई. इतने में रजिया की 10 वर्षीय बेटी मुसकान घर का कूड़ा फेंकने के लिए बाहर निकली तो पप्पू ने उसे 10 रुपए दे कर नजदीक की दुकान से पान लाने को कहा.

पैसे ले कर मुसकान पान की दुकान की ओर गई तभी पीछेपीछे पप्पू भी हो लिया. चूंकि पप्पू के मन में कुछ और ही था, इसलिए वह मुसकान को पान की दुकान से बहलाफुसला कर अपनी स्कूटी पर बिठा कर वाराणसी से करीबन 45 किलोमीटर दूर जौनपुर जिले की केराकत कोतवाली क्षेत्र के एक खेत में ले गया. वहां डराधमका कर उस ने उस मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया फिर बाद में ब्लेड से उस का गला भी रेत डाला.

उस की हत्या करने के बाद वह स्कूटी से वाराणसी लौट आया था और छिपछिप कर लोगों पर नजर रखने लगा. जब उसे पता चला कि पुलिस उस के पीछे पड़ी है तो उसे वहां से कहीं भागना ही उचित लगा. लेकिन उस से पहले ही वह पुलिस के हाथ लग गया.

उधर मुसकान कूड़ा फेंकने के बाद भी घर नहीं आई तो रजिया उसे घर से बाहर देखने निकली. पर वह नहीं दिखी और न ही वहां पप्पू गुप्ता दिखा जो थैलियां लेने के इंतजार में दरवाजे के बाहर खड़ा था.

रजिया उसे पड़ोसियों के यहां खोजने गई, पर वह वहां भी नहीं मिली. बेटी की चिंता में रजिया की धड़कनें तेज होने लगीं. खबर मिलने पर रजिया का पति आजाद कुरैशी भी दुकान से घर चला आया.

वह भी परिवार और मोहल्ले के लोगों को ले कर आसपास बेटी की खोज में जुट गया लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चल पाया. उसी दौरान मोहल्ले के ही एक आदमी ने बताया कि मुसकान पप्पू के साथ कुछ देर पहले मल्लाही बगीचे की ओर जाते दिखी थी.

यह खबर मिलते ही रजिया और उस के पति ने पप्पू के घर का रुख किया. घर पर पप्पू तो नहीं मिला बल्कि उस की पत्नी नेहा (काल्पनिक नाम) मिली. उस ने बताया कि पप्पू घर पर नहीं है. वह सुबह से ही निकले हैं

पप्पू आपराधिक प्रवृत्ति का था. मोहल्ले के सभी लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. सन 2004 में उस ने एक 7 साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या की कोशिश की थी.

उस बच्ची के बयान के बाद उसे 10 साल की सजा हुई थी. वह 10 साल की सजा काट कर जेल से हाल ही में बाहर आया था. ऐसे में उस के साथ मुसकान के गायब होने से उस के परिवार वाले ही नहीं, बल्कि मोहल्ले के लोग भी परेशान और आशंकित थे.

अंत में सभी लोग एक राय हो कर सीधे जैतपुरा थाना पहुंच गए, जहां थानाप्रभारी रमेश यादव को पूरी बात बताने के साथ बेटी मुसकान का पता लगाने की गुहार लगाई. तब पुलिस ने 26 नवंबर को ही अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मामला दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद जैतपुरा थाना पुलिस मुसकान और पप्पू को तलाशने लगी. पर दोनों का ही पता नहीं लगा. मुसकान का पता न लगने पर मोहल्ले के लोगों में भी आक्रोश भर गया. लोगों ने पुलिस को आंदोलन करने की भी धमकी दे डाली.

तीसरे दिन सोमवार 29 नवंबर, 2016 को जैसे ही अखबारों के माध्यम से जौनपुर में बच्ची का शव पाए जाने की खबर आजाद कुरैशी को हुई तो वह परिजनों के साथ जौनपुर पहुंच गए. तब पता चला कि वह लाश किसी और की नहीं, बल्कि मुसकान की ही थी.

पप्पू गुप्ता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 363, 366, 367(च), 302, आईपीसी व पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जहां उस की जमानत नहीं हो पाई थी, वहीं उस के किए पर उस के 2 छोटे भाई और पत्नी भी शर्मसार हैं. उन्हें मोहल्ले वालों के तानों से दोचार होना पड़ रहा है.

एटीएम क्लोनिंग : लोग ठगे जा रहे हैं

पिछले दिनों खबर आई थी कि क्लोनिंग के डर से कई बैंकों ने अपने लाखों ग्राहकों के एटीएम कार्ड ब्लौक कर दिए हैं. खबर सुन कर हम ने भी एटीएम का रुख किया. पत्नी का कार्ड बच गया था, मगर अपना कार्ड ब्लौक मिला.

फिर क्या था, भागदौड़ शुरू हो गई. बैंक में जा कर नए एटीएम कार्ड के लिए अर्जी दी. इन पंक्तियों के लिखने तक तो नया एटीएम कार्ड मिल नहीं पाया था. बैंक वाले कह रहे हैं कि जल्द ही मिल जाएगा.

इस परेशानी के दौरान यों ही एटीएम क्लोनिंग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई, तो जो जानकारी मिली, उस से बड़ी हैरानी हुई. हैरानी इसलिए, क्योंकि एटीएम क्लोनिंग करने वालों को पकड़ना भले ही मुश्किल हो, लेकिन एटीएम क्लोनिंग को ध्वस्त करना ज्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन फिर भी देशभर में हल्ला मचा हुआ है और लोग परेशान हैं.

साइबर माहिरों के मुताबिक, कोई भी जालसाज या हैकर एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के लिए 2 जगहों पर काम करता है. ये जगह हैं:

1. एटीएम कार्ड मशीन के अंदर डालने वाली जगह.

2. एटीएम मशीन में कीबोर्ड के ऊपर वाली जगह.

साइबर माहिरों के मुताबिक, कार्ड की नकल बनाने के लिए जालसाज एटीएम कार्ड ऐंटर करने वाली जगह पर पोर्टेबल स्कैनर लगा देते हैं. ये स्कैनर इस तरह से बने होते हैं कि इन की बनावट एटीएम मशीन के कार्ड ऐंटर करने वाले हिस्से से बिलकुल मिलतीजुलती होती है, जिस से ज्यादातर लोग अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि वहां कोई स्कैनर भी लगा हुआ है.

जैसे ही कोई शख्स अपना कार्ड अंदर डालता है, वैसे ही उस का फोटो स्कैन हो जाता है, जिसे जालसाज एडीशनल ट्रैपिंग उपकरण के जरीए हासिल कर लेते हैं.

हम सभी जानते हैं कि एटीएम कार्ड का इस्तेमाल उस के पिन नंबर के बिना नहीं किया जा सकता है, इसलिए एटीएम पिन के बिना स्कैन किए गए फोटो की कोई अहमियत नहीं है, इसीलिए जालसाज एटीएम मशीन के कीबोर्ड के ठीक ऊपर कैमरा लगा देते हैं.

यह कैमरा भी ऐसा होता है, जिस के बारे में आम आदमी आसानी से नहीं पता कर पाता है. यह कैमरा पिन नंबर डालते ही उसे अपने अंदर दर्ज कर लेता है. इस तरह से एटीएम कार्ड समेत पूरा डाटा जालसाजों के पास पहुंच जाता है.

अब सवाल यह उठता है कि एटीएम मशीन बैंक की है और उस में स्कैनर या कैमरा कोई और लगा गया, तो क्या बैंकों को नियमित रूप से अपनी मशीनों की जांच नहीं करानी चाहिए?

निश्चित रूप से कोई आम आदमी स्नैकर या कैमरे का पता नहीं लगा सकता, लेकिन बैंक तो नियमित निरीक्षण से ऐसा कर सकता है. पूरा मामला मशीन के बाहरी हिस्से में की गई गड़बड़ का है, जिसे जांच कर के पकड़ा जा सकता?है.

हर एटीएम में नियमित रूप से रकम डाली जाती है. उस समय कीबोर्ड या दूसरी किसी जगह पर लगे कैमरे या कार्ड ऐंट्री पौइंट पर लगे स्कैनर की पड़ताल की जा सकती है.

हर एटीएम पर सिक्योरिटी गार्ड भी तैनात रहता है. उसे भी कैमरे या स्कैनर को पहचानने की ट्रेनिंग दी जा सकती है, ताकि वह थोड़ेथोड़े समय पर मशीन की जांच करता रहे कि उस पर कोई कैमरा या स्कैनर तो नहीं लगा है.

इस के अलावा बैंक के तकनीकी माहिर भी कुछ ऐसे सामान्य संकेत या दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं, जिस से आम आदमी भी यह पहचान सके कि मशीन में कोई गलत कैमरा या स्कैनर तो नहीं लगा है.

मिसाल के तौर पर, एटीएम में कार्ड डालने की जगह पर हर समय लाइट जलती रहती है, जबकि अगर उस के आगे स्कैनर लगा होगा, तो स्कैनर में लाइट नहीं जलती है. इसी तरह के कुछ और संकेत भी बैंक ग्राहकों को बता सकते हैं, जिस से कि लोग खुद ही बैंक को सूचना दे सकें कि फलां एटीएम मशीन में यह गड़बड़ है.

कुलमिला कर सारा मामला एटीएम मशीन के बाहरी हिस्से की बारीकी से जांच करने का है, जिसे बैंक आसानी से अपने लैवल पर या लोगों को कोई तरीका बता कर अंजाम दे सकते हैं और उन्हें लुटने से बचा सकते हैं.

सावधान ! इंटरनेट वाले ठगों से

बीकानेर शहर की रहने वाली उच्च शिक्षित सुरभि शर्मा खातेपीते परिवार से थीं. वह खूबसूरत भी थीं. अपनी दिलकश अदाओं से वह पहली नजर में ही किसी के भी दिल में उतर सकती थीं. इस के बावजूद उन के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. इस की वजह से सुरभि ही नहीं, उन के घर वाले भी परेशान थे.

घर वालों ने उस के रिश्ते के लिए नातेरिश्तेदारों से ही नहीं, जानपहचान वालों से भी कह रखा था. इन लोगों ने जो भी रिश्ते बताए, उन में से कुछ सुरभि को पसंद नहीं आए तो कुछ को सुरभि और उस के घर वाले पसंद नहीं आए.

एक समय था, जब रिश्तेदार या जानपहचान वाले ही शादियां करा देते थे. लेकिन लोग गांवों से निकल कर शहरों में बसते गए, जिस से लोग एकदूसरे से दूर होते गए. तब वैवाहिकी विज्ञापनों का दौर शुरू हुआ. विज्ञापनों के जरिए लोग बेटीबेटियों की शादी करने लगे.

इंटरनेट आया तो तमाम मैट्रीमोनियल वेबसाइटें बन गईं, जो वरवधू तलाशने में मदद करने लगीं. सुरभि की शादी में हो रही देरी को देखते हुए कुछ लोगों ने उसे सलाह दी कि वह भी किसी मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर अपनी प्रोफाइल बना कर डाल दे. हो सकता है, कोई अच्छा रिश्ता मिल ही जाए.

उन्हीं लोगों की सलाह पर सुरभि ने घर वालों से बात की. घर वालों ने हामी भर दी तो सुरभि ने मैट्रीमोनियल साइट पर अपनी एक बढि़या फोटो के साथ प्रोफाइल अपलोड कर दी. प्रोफाइल अपलोड होने के बाद वेबसाइट की ओर से उसे प्रोफाइल नंबर दे दिया गया. इसी नंबर के जरिए उस से वेबसाइट द्वारा संपर्क किया जा सकता था.

प्रोफाइल अपलोड करने के बाद सुरभि को पूरा विश्वास था कि उसे कोई अच्छा रिश्ता जरूर मिल जाएगा, इसलिए प्रोफाइल अपलोड कर के वह बेहद खुश थी. उस ने और उस के घर वालों ने जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ. मैट्रीमोनियल साइट पर सुरभि की प्रोफाइल देख कर कई लड़कों या लड़कों के घर वालों ने वेबसाइट के माध्यम से उस से संपर्क किया.

सुरभि एवं उस के घर वालों ने उन लोगों से और उन के घर वालों से बातचीत शुरू की. बातचीत किसी नतीजे पर पहुंचती, वेबसाइट के जरिए यूनाइटेड किंगडम (यूके) के रहने वाले पारस प्रेम कुमार ने वेबसाइट द्वारा सुरभि से संपर्क किया. जवाब में सुरभि ने पारस प्रेम कुमार से आवश्यक जानकारियां मंगाईं.

पारस प्रेम कुमार ने जो जानकारियां भेजीं थीं, उस के अनुसार वह मूलरूप से भारत का रहने वाला था. वहां वह यूएन एयरफोर्स में एयरक्राफ्ट इंजीनियर था. फिलहाल वह इराक में पदस्थापित था. वह भारतीय संस्कारों वाली ऐसी लड़की से शादी करना चाहता था, जो प्यार से उस की गृहस्थी संवार सके.

पारस प्रेम कुमार का कहना था कि अगर उस से उस की शादी हो जाती है तो वह खुद को दुनिया का सब से खुशकिस्मत आदमी समझेगा. अब तक जो रिश्ते आए थे, उन में पारस प्रेम कुमार का रिश्ता सब से अच्छा था. यह रिश्ता सुरभि को भी पसंद था और उस के घर वालों को भी. दोनों ओर से एकदूसरे को फोन नंबर दे दिए गए तो बातचीत शुरू हो गई. सुरभि ने भी प्रेम कुमार को अपना वाट्सऐप नंबर दे दिया था, इसलिए दोनों में चैटिंग होने लगी.

प्रेम कुमार जल्दी से जल्दी सुरभि से शादी करने की बात कर रहा था. अब उन के बीच प्यार की भी बातें होने लगीं थीं. सुरभि उसे अपने सपनों का राजकुमार समझने लगी थी और उस से शादी कर के विदेश जाने के सपने देखने लगी थी. यह सन 2016 अगस्त सितंबर महीने की बात है.

उसी बीच एक दिन प्रेम कुमार ने सुरभि से वाट्सऐप पर चैटिंग के दौरान बताया कि यहां उस के पास करीब 5 मिलियन पौंड की संपत्ति है. वह शादी के बाद भारत में बसना चाहता है. अब जल्दी ही उस की उस से शादी होने जा रही है, इसलिए वह 2.5 मिलियन पौंड की संपत्ति के कागज उस के नाम भारत भेज रहा है, ताकि उसे शादी की तैयारी में कोई परेशानी न हो.

प्रेम कुमार ने सुरभि को भरोसा दिलाते हुए कहा था कि इन दिनों भारत और इराक के बीच डिप्लोमैटिक पाउच सर्विस चल रही है, इसलिए इस सर्विस के जरिए वह अपनी 2.5 मिलियन पौंड की संपत्ति के कागज उस के नाम भारत भेज रहा है. जल्दी ही उस ने बताया था कि वह जेम्स डेविड नामक व्यक्ति के जरिए इराक एंबेसी में उस के नाम 2.5 मिलियन पौंड की संपत्ति के कागज भेज दिए हैं.

सुरभि ने हामी भर दी थी. आखिर वह मना भी क्यों करती? प्रेम कुमार ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का वादा जो कर लिया था. ऐसी भी कोई बात नहीं हुई थी कि उस पर भरोसा न किया जाता. अब तक हुई बातों में उसे ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस पर विश्वास न किया जाता. प्रेम कुमार ने उस के नाम से ढाई मिलियन पौंड की संपत्ति के कागज भेजने की बात कही तो उस के मन में प्रेम कुमार के लिए और प्रेम बढ़ गया था.

इस बातचीत के कुछ दिनों बाद जेम्स डेविड ने सुरभि को फोन कर के कहा कि इराक से उस का एक पाउच आया है. उस के किराए के लिए 70 हजार रुपए जमा कराने होंगे, जो सरकार के खाते में जाएंगे. पैसे जमा कराने के लिए उस ने 2 बैंक खातों के नंबर भी दे दिए थे.

सुरभि जेम्स डेविड द्वारा बताए गए खाता नंबरों में 70 हजार रुपए जमा करा कर इराक से आने वाले ढाई मिलियन पौंड की संपत्ति के कागजों के पाउच का इंतजार करने लगी. कई दिन बीत जाने पर भी जब न कोई कूरियर आया और न ही डाक विभाग से कोई पार्सल तो उसे चिंता हुई. लेकिन तभी अचानक जेम्स डेविड का फोन आ गया.

इस बार उस ने फाइनैंस इंटेलीजेंस सिक्यूरिटी भारतीय रिजर्व बैंक का नोटिस भेजे जाने की बात कह कर उस में बताई गई रकम बैंक खाते में जमा कराने को कहा.

इस के कुछ दिनों बाद सुरभि को एक नोटिस मिला, जिस में इराक से आए पाउच के नाम पर बैंक खाते में रकम जमा कराने की बात कही गई थी. सुरभि ने यह रकम भी बताए गए बैंक खाते में जमा करा दी.

इस के बाद करीब 2 महीने तक दिल्ली पुलिस के क्लीयरेंस सर्टिफिकेट, कस्टम क्लीयरेंस सर्टिफिकेट, इनकम टैक्स क्लीयरेंस सर्टिफिकेट आदि के नाम पर नवंबर, 2016 तक सुरभि से अलगअलग बैंक खातों में लगभग 56 लाख रुपए जमा करा लिए गए. सुरभि ने यह रकम अपने पिता तथा रिश्तेदारों से यह कह कर जुटाई थी कि उस के नाम ढाई मिलियन पौंड का पार्सल आने वाला है.

उस पार्सल के चक्कर में सुरभि अपने घर वालों तथा रिश्तेदारों की कर्जदार हो गई थी. इतनी बड़ी रकम अलगअलग बैंक खातों में जमा कराने के बाद भी उसे प्रेम कुमार की ओर से भेजा गया पार्सल नहीं मिला था.

काफी समय हो गया और पार्सल नहीं मिला तो सुरभि को शक होने लगा. उस ने अपने घर तथा अन्य लोगों से इस बारे में बात की तो सभी को दाल में कुछ काला लगा. लोगों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी. सुरभि बीकानेर के एसपी डा. अमनदीप कपूर से उन के औफिस में जा कर मिली और उन्हें सारी बातें बताई.

पूरी बात सुन कर डा. अमनदीप कपूर को पूरा विश्वास हो गया कि सुरभि के साथ ठगी हुई है. उन्होंने सुरभि से प्रार्थना पत्र लिखवा कर 29 नवंबर, 2016 को बीकानेर के थाना सदर में रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह मुकदमा अपराध संख्या 481/2016 पर भादंवि की धारा 420, 467, 468 व आईटी एक्ट के तहत दर्ज किया गया.

शादी के नाम पर सुरभि से 56 लाख रुपए की ठगी का यह मामला बड़ा ही पेचीदा था. डा. अमनदीप कपूर ने इस मामले की जांच के लिए एडीशनल एसपी (ग्रामीण) लालचंद कायल के नेतृत्व में सीआईयू के इंचार्ज इंसपेक्टर नरेंद्र पूनिया, थाना सदर के थानाप्रभारी लक्ष्मण सिंह राठौड़, थाना जामसर के थानाप्रभारी मनोज शर्मा, थाना कालू के थानाप्रभारी सुभाषचंद, थाना पांचू के थानाप्रभारी परमेश्वर सुथार, सबइंसपेक्टर कन्हैयालाल, सत्यनारायण गोदारा, संदीप बिश्नोई, नानूराम, साइबर एक्सपर्ट योगेंद्र सुथार, कांस्टेबल रामस्वरूप, दीपक यादव, पुष्पेंद्र सिंह, ओमप्रकाश, मनफूल और राजेश कुमार आदि की एक टीम गठित की.

इस टीम ने करीब 4 महीने तक जो जांच की, उस से पता चला कि स्टूडेंट वीजा पर भारत में पढ़ाई के लिए आए नाइजीरियन छात्रों की दिल्ली में रहने वाली एक गैंग स्थानीय लोगों की मदद से इस तरह की ठगी की वारदात कर रही है. वे ठगी द्वारा हासिल की गई रकम को तत्काल हवाला के जरिए अफ्रीका भेज देते हैं. यही नहीं, उस रकम से सोना खरीद कर भी अफ्रीका भेजा जाता है. नोटबंदी के दौरान इन्होंने सोने की काफी खरीद की थी.

बीकानेर पुलिस ने अप्रैल, 2017 के दूसरे सप्ताह में सुरभि से 56 लाख रुपए की ठगी के मामले में 3 युवकों एवं एक महिला वकील को गिरफ्तार किया. इन में झारखंड के चतरा निवासी बैंक खाताधारक अजीत कुमार यादव भी शामिल था. अजीत ने अपना नाम अनिल कुमार उर्फ अभय गुप्ता रख कर फर्जी आईडी से बैंक में खाता खुलवाया था.

इस के अलावा ठगी में मदद करने वाले बाड़मेर के सिलोर समदड़ी निवासी फिलहाल बालोतरा में रह रहे श्रवण सिंह सोढ़ा और जोधपुर के पालड़ीनाथ के रहने वाले वीरेंद्रनाथ उर्फ महाराज गोस्वामी तथा हरियाणा के गुड़गांव के डीएलएफ फेज-1 की रहने वाली एक महिला वकील को गिरफ्तार किया गया था. वह कानूनी और प्रशासनिक मामलों पर नजर रखती थी.

पुलिस ने गिरफ्तार लोगों से करीब 3 लाख रुपए बरामद किए. इस के अलावा श्रवण सिंह सोढ़ा से एक लैपटौप, 4 मोबाइल फोन और सिमकार्ड, नाइजीरियन को दिए गए रुपयों के हिसाबकिताब की डायरियां, वीरेंद्रनाथ से 2 मोबाइल फोन, एक फर्जी वोटर आईडी, 2 डेबिट कार्ड आदि बरामद किए गए.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ और पुलिस की जांच से पता चला कि सुरभि से ठगी गई रकम बीकानेर के अलावा दिल्ली, पटना, गुवाहाटी और पुणे के विभिन्न बैंक खातों में जमा कराई गई थी. बीकानेर में शिवराम एंटरप्राइजेज और अनिल कुमार मांझी के नाम से एक ही व्यक्ति ने खाते खुलवा रखे थे.

पटना में शिवराम इंटरप्राइजेज और अभय गुप्ता के नाम से खाते खुलवाए गए थे. दोनों ही बैंक खातों में एक ही व्यक्ति के फोटो लगे थे. आगे की जांच में पता चला था कि नाइजीरियन छात्रों की गैंग अलगअलग साइटों से डाटा एकत्र कर के फेसबुक, ट्विटर एवं अन्य सोशल साइटों के जरिए व्यक्ति विशेष की जानकारी हासिल करती थी.

इन लोगों के बैंक खाते भारत में नहीं खुल सकते, इसलिए ये स्थानीय लोगों की मदद से अलगअलग बैंकों में फर्जी आईडी से चालू खाते खुलवा लेते थे. वेरिफिकेशन के लिए ये मकान या दुकान किराए पर लेते थे. इसी के साथ फर्जी आईडी से इकरारनामा तैयार कर के बैंकों में जमा कराते थे.

इस के बाद ये लोग अपना टारगेट बनाए व्यक्ति को झांसा दे कर बैंकों में रकम जमा कराते थे. बैंक में रकम आते ही ये लोग आरटीजीएस (रीयल टाइम ग्रौस सेटलमेंट सिस्टम) एवं एनईएफटी (नेशनल इलैक्ट्रौनिक फंड ट्रांसफर सिस्टम) के जरिए रकम ट्रांसफर कर देते थे. छोटी राशि एटीएम और बड़ी राशि सेल्फ चैक से निकाल लेते थे.

ठगी के इस पूरे खेल में खाताधारक और मध्यस्थ को 10 से 15 प्रतिशत तक कमीशन दिया जाता था. बीकानेर पुलिस को इस गिरोह के कई बैंक खातों का पता चला है, जिन्हें फ्रीज करवा दिया गया है. इन खातों में 35 से 40 लाख रुपए तक जमा कराए गए थे.

केवल बीकानेर में ही इस गिरोह के सदस्यों ने 19 बैंक खाते खोल रखे थे, जिन में 5 खातों की जांच में एक करोड़ 87 लाख रुपए जमा होने की जानकारी मिली है. बाकी खातों की जांच की जा रही है. इस गिरोह द्वारा बीकानेर की सुरभि से 56 लाख की ठगी के अलावा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से 13 लाख रुपए और चंडीगढ़ से 11 लाख रुपए ठगे जाने की वारदातों का पता चला है.

गिरफ्तार अजीत कुमार यादव ने बीकानेर की बैंकों में खाते खुलवाने के लिए नोखा रोड पर मकान और रेलवे स्टेशन के पास पार्वती कौंप्लैक्स में दुकान किराए पर ली थी. उस ने बीकानेर में बैंक औफ इंडिया में 2 और आईडीबीआई बैंक में एक खाता खुलवाया था. बीकानेर में चालू बैंक खाते शिवराम इंटरप्राइजेज और बचत खाते अनिल कुमार मांझी के नाम से खुलवाए गए थे.

शिवराम इंटरप्राइजेज का प्रोपराइटर अनिल कुमार ही बना था, जिस का वास्तविक नाम अजीत कुमार यादव था. उस की बीकानेर जेल में शिनाख्त परेड कराई गई तो मकान और दुकान मालिकों ने उस की पहचान कर ली थी. झारखंड के चतरा का रहने वाला अजीत कुमार यादव कई महीने तक बीकानेर में रहा था.

ठग गिरोह ने दिल्ली और गुड़गांव में अपना ठिकाना बना रखा था. वीरेंद्रनाथ करीब 4 महीने तक गुड़गांव में किराए का कमरा ले कर रहा था. श्रवण सिंह सोढ़ा भी वहां आताजाता था. ये लोग ठगी के शिकार लोगों से बैंक खातों में जमा होने वाले रुपयों को निकालते थे और अपना कमीशन काटने के बाद नाइजीरियन को पहुंचाते थे.

कथा लिखे जाने तक हालांकि इस मामले में किसी नाइजीरियन की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, लेकिन राजस्थान की उदयपुर पुलिस ने औनलाइन फ्रौड का खुलासा कर 2 नाइजीरियन युवकों और मुंबई की एक महिला सहित 5 ठगों को पकड़ने में सफलता हासिल की थी.

उदयपुर जिले की थाना अंबामाता पुलिस ने इसी साल अप्रैल के पहले सप्ताह में संदीप मोहिंद्रा उर्फ सोनू पंजाबी एवं नरेश पंचाली को गिरफ्तार किया था. ये दोनों बदमाश बैंकों में फर्जी नाम से खाते खुलवा कर औनलाइन फ्रौड की राशि जमा कराने और अवैध रूप से प्राप्त रकम से सोनाचांदी खरीद कर उसे बेच कर रकम कैश कराने की जालसाजी में लिप्त थे.

पुलिस ने इन बदमाशों से कई बैंकों के एटीएम कार्ड, पासबुक के अलावा 2 हजार रुपए के नोटों की 5 गड्डियां और 5 सौ रुपए के नोटों की 2 गड्डियां, कुल 11 लाख रुपए नकद और 20 ग्राम गोल्डन बिस्किट व 7 किलोग्राम चांदी की 10 सिल्लियां बरामद की थीं.

ये दोनों उदयपुर के रहने वाले थे. बरामद रकम हवाला के जरिए नाइजीरियन गैंग को भेजी जानी थी. इन से पूछताछ में नाइजीरियन युवकों की गैंग द्वारा औनलाइन ठगी का खुलासा हुआ. पता चला कि इस में कई लोग शामिल थे. जिन लोगों के फर्जी बैंक खाते खुले थे, उन के जरिए औनलाइन ठगी की रकम आती थी.

इस रकम को एक नंबर की बनाने के लिए ये सोनाचांदी खरीदते थे. इस के बाद उसे कुछ कम दामों में सर्राफा व्यवसायियों को बेच देते थे. इस तरह रकम हासिल कर ये लोग आपस में बांट लेते थे. दोनों आरोपियों से पूछताछ में कई सर्राफा व्यवसायियों के नाम भी सामने आए हैं. जिन के खातों से आरटीजीएस से रुपए ट्रांसफर किए जाते थे.

गिरफ्तार संदीप मोहिंद्रा एवं नरेश पंचाली से पूछताछ के आधार पर उदयपुर पुलिस ने अप्रैल, 2017 के तीसरे सप्ताह में मुंबई से नाइजीरिया के रहने वाले विक्टर उर्फ कैलविन एवं इडूमी चार्ल्स और मुंबई की एक महिला प्रेमादास सोनी को गिरफ्तार किया था. इन से पूछताछ में करीब 3 करोड़ रुपए के औनलाइन फ्रौड का पता चला. यह भी पता चला कि आरोपियों ने लोगों से ठगे गए रुपयों से रेडीमेड कपड़े खरीद कर कार्गो के जरिए नाइजीरिया भेज दिए थे.

नाइजीरियन युवकों के इस गिरोह ने ठगी के कई तरीके अपना रखे थे. इन्होंने महिला के नाम से फेसबुक पर प्रोफाइल बनाई हुई थी. आमतौर पर पुरुष यूजर महिला प्रोफाइल पर फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज देते हैं. उदयपुर पुलिस ने भी गिरोह तक पहुंचने के लिए महिला की प्रोफाइल पर फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी.

इस पर महिला ने खुद को समुद्री जहाज पर अधिकारी बताया था. पुलिस की उस महिला से कई दिनों तक फेसबुक पर चैटिंग चलती रही. 5 दिनों बाद महिला ने फेसबुक पर बताया कि उस के जहाज पर समुद्री डाकू आ गए हैं. उस के पास काफी डौलर, पौंड और भारतीय मुद्रा है. इस राशि को सुरक्षित रखने के लिए वह पार्सल के जरिए उस के पास भेज रही है.

आमतौर पर इस तरह की बात जान कर अधिकांश लोग लालच में तुरंत हामी भर देते हैं और अपना पता दे देते हैं. इस के बाद उस महिला के बजाय गिरोह के स्थानीय लोग उस से संपर्क करते हैं और कहते हैं कि विदेश से आप का पार्सल आया है. इस की कूरियर राशि खाते में जमा करवाइए और पार्सल ले लीजिए.

एक बार रकम जमा होने के बाद फिर किसी न किसी क्लीयरेंस के बहाने कई बार रकम मांगी जाती है और बैंक खातों में जमा कराई जाती है. आमतौर पर एक-दो बार रकम जमा कराने के बाद भी पार्सल नहीं मिलने पर सामान्य आदमी चुप बैठ जाता है और ठग गिरोह के सदस्य भी उस से संपर्क नहीं करते.

इस के अलावा यह गिरोह सोशल नेटवर्किंग साइट पर विभिन्न देशों के वीजा बनवाने का विज्ञापन देते हैं. किसी आदमी के संपर्क करने पर ये लोग फर्जी वीजा की कौपी स्कैन कर उस आदमी को भेज देते हैं और उस से मोटी रकम वसूल करते हैं.

फर्जी सिम के जरिए लौटरी निकलने का झांसा दे कर प्रोसैसिंग चार्ज के नाम पर रकम हड़पने और इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर ब्रांडेड इलैक्ट्रौनिक सामान एवं नामी कंपनियों के रेडीमेड कपड़े सस्ते दामों पर बेचने के नाम पर भी ये लोग ठगी करते हैं.

दोनों नाइजीरियन युवकों और मुंबई की उस महिला ने पूछताछ में मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली, इंदौर, विशाखापत्तनम सहित विभिन्न शहरों के तमाम लोगों से ठगी करने का अपराध स्वीकार किया है. जांच में पता चला है कि नाइजीरियन युवक विक्टर उर्फ कैलविन और मुंबई निवासी महिला प्रेमादास सोनी 2 बार उदयपुर आ चुके हैं. पुलिस ने इन के होटलों में ठहरने के रिकौर्ड जब्त किए हैं. ये लोग उदयपुर में संदीप मोहिंद्रा और नरेश पंचाली से मिल कर औनलाइन ठगी से हासिल रकम का हिसाबकिताब करने आए थे.

पुलिस ने विक्टर उर्फ कैलविन से भारत में बना हैदराबाद का वोटर आईडी कार्ड भी बरामद किया है. उस ने फर्जी तरीके से यह कार्ड बनवा लिया था. जांच में यह भी पता चला है कि यह गिरोह उदयपुर में 3 साल पहले मर चुके सेक्टर 14 निवासी प्रकाश हेमनानी के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहा था. प्रकाश हेमनानी के नाम वाले आईसीआईसीआई बैंक के 2 खातों एवं एक्सिस बैंक के एक खाते के जरिए औनलाइन ठगी की जा रही थी.

ऐसा नहीं है कि नाइजीरियन गिरोहों की इस तरह की ठगी का पहली बार पता चला है. ये लोग स्थानीय लोगों की मदद से कई सालों से अलगअलग तरीकों से ठगी कर रहे हैं. सन 2015 के दिसंबर महीने में देहरादून पुलिस ने दून की महिला से कूरियर के नाम पर 20 लाख रुपए की ठगी के आरोप में एक महिला और 2 नाइजीरियन युवकों को गिरफ्तार किया था.

पिछले साल यानी सन 2016 में नोएडा में पकड़े गए नाइजीरियन गैंग के सदस्य जार्ज मार्टिन उर्फ एवर रेवबे ने कई अपराध स्वीकार किए थे. उस ने अंबाला की महिला तेजेंद्र कौर से ब्रिटिश नागरिक बन कर 15.48 लाख रुपए की ठगी की थी. मार्टिन ने फेसबुक पर तेजेंद्र से दोस्ती कर के खुद को अरबपति बताया था. एक दिन मार्टिन ने मुंबई से वाट्सऐप पर टिकट भेज कर अपने इंडिया आने की बात कही.

13 अक्तूबर को उस ने मुंबई एयरपोर्ट पहुंचने की बात कह कर अंबाला आने की इच्छा जताई. इस के बाद नेहा गुप्ता नाम की महिला का फोन आया कि मार्टिन की कस्टम ड्यूटी में 38 हजार रुपए कम हैं. यह रकम तेजेंद्र कौर ने बताए गए खाते में जमा करा दी. इस के बाद मनी लौंड्रिंग केस का झांसा दे कर 2.80 लाख रुपए और इस के बाद 3.28 लाख रुपए एनओसी और अन्य बहानों से खातों में जमा कराए गए.

नोएडा पुलिस ने नवंबर, 2016 में 4 नाइजीरियन युवकों एवर रेवबे, ओग्वू एंटोनीख सिकेरु ताइवू व फ्रांसिस ओबी सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया था. चारों नाइजीरियन 3 महीने के टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थे. वीजा खत्म होने पर ये लोग दिल्ली में छिप कर रह रहे थे. ये फर्जी मेल के जरिए उद्यमियों एवं कारोबारियों से करोड़ों की ठगी कर रहे थे.

– कथा में सुरभि बदला नाम है.

जुनूनी इश्क में पत्नी ने कर दिया पति का खून

31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा का दिन था. राजस्थान में इस दिन लोग एकदूसरे से मिलने जाते हैं. अजमेर जिले के कस्बा ब्यावर में अपनी बीवीबच्चों के साथ रहने वाला विजय कुमार गहलोत भी दूसरे मोहल्ले में रहने वाले अपने भाइयों बंटी और कमल से मिलने गया था. उस की पत्नी मोना ने तबीयत खराब होने की बात कह कर साथ जाने से मना कर दिया था. सुबह करीब 10 बजे अपने भाइयों से मिलने पहुंचा विजय दिन भर उन्हीं के यहां रहा. चूंकि घर पर पत्नी और बेटा ही था, इसलिए शाम का खाना खा कर वह 7, साढ़े 7 बजे मोटरसाइकिल से अपने घर के लिए चल पड़ा. रात साढ़े 11 बजे के करीब कमल के मोबाइल पर विजय की पत्नी मोना ने फोन कर के कहा, ‘‘कमल, आधी रात हो रही है, अब तो विजय से कहो कि घर आ जाएं.’’

इस पर कमल ने कहा, ‘‘भाभी, आप यह क्या कह रही हैं. विजय भैया तो 7 बजे ही यहां से चले गए थे.’’

‘‘हो सकता है, वह किसी यारदोस्त के यहां चले गए हों? मैं उन्हें फोन करती हूं.’’ कह कर मोना ने फोन काट दिया.

मगर कमल को चैन नहीं पड़ा. उस ने घर में यह बात बताई तो सब चिंतित हो उठे. उस ने विजय के मोबाइल पर फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. कई बार ऐसा हुआ तो कमल को लगा, कहीं विजय के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. कमल अपने घर वालों के साथ विजय के घर पहुंचा तो उस के घर पर ताला लगा था. उस ने विजय की पत्नी मोना को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘आप के भैया घर नहीं आए तो मैं थोड़ी देर पहले मायके आ गई. मुझे अकेले घर पर डर लग रहा था.’’ कमल घर वालों के साथ अपने घर लौट आया. घर पर सभी परेशान थे कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो विजय फोन नहीं उठा रहा. सुबह साढ़े 3 बजे के करीब विजय के मोबाइल से कमल के मोबाइल पर फोन आया. जैसे ही कमल ने फोन रिसीव किया, दूसरी तरफ से किसी अनजान व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं और जिस मोबाइल से मैं फोन कर रहा हूं, वह किस का है?’’

‘‘मैं कमल बोल रहा हूं और यह मोबाइल मेरे आई विजय का है. आप कौन?’’ कमल ने पूछा.

‘‘मैं थाना सदर का एएसआई माणिकचंद बोल रहा हूं. उदयपुर बाईपास रोड पर एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया है. यह मोबाइल वहीं पड़ा मिला था. आप तुरंत यहां आ जाइए.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर कमल घबरा गया. थोड़ी देर में वह अपने घर वालों और परिचितों के साथ उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंच गया. वहां सड़क के किनारे झाडि़यों के पास विजय की लाश पड़ी थी. उस के पैरों में चप्पल नहीं थे. लाश से करीब 100 फुट दूर उस की मोटरसाइकिल पड़ी थी. इस से यह मामला दुर्घटना के बजाय हत्या का लग रहा था. मोटरसाइकिल से ले कर लाश तक मोटरसाइकिल के घिसटने के निशान भी नहीं थे. लाश के पास ही शराब का एक खाली पव्वा पड़ा था. जबकि विजय शराब बिलकुल नहीं पीता था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था. एएसआई माणिकचंद की सूचना पर थाना सदर के थानाप्रभारी रविंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए थे. उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया गया था. वे भी सुबह तक घटनास्थल पर आ गए थे. मौके का बारीकी से मुआयना करने के बाद विजय की लाश पोस्टमार्टम के लिए अमृतकौर चिकित्सालय भिजवा दी गई थी. पुलिस मृतक की पत्नी मोना से बात करना चाहती थी, लेकिन उस वक्त वह काफी दुखी थी. पुलिस उस के घर का निरीक्षण करना चाहती थी, पर उस के घर में ताला बंद था. पुलिस ने उसे बुलवा कर घर का ताला खुलवाया. घर के बाहर ही मृतक विजय के चप्पलें पड़ी थीं. पुलिस ने मोना से पूछा कि ये चप्पलें यहां कैसे आईं तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी.

घर का पानी जिस नाली से बहता था, उसे देख कर ही लग रहा था कि वहां खून साफ किया गया था. इस के अलावा हौल की दीवारों और फर्श पर खून के छींटे नजर आए. बाथरूम में पानी से भरी एक बाल्टी में मोना के कपड़े और पैंटशर्ट भिगोए थे, उन में भी खून लगा था. इस सब से यही लग रहा था कि विजय की हत्या घर में ही की गई थी और हत्या में मोना के साथ कोई आदमी भी शामिल था. रविंद्र सिंह ने जब मोना से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने प्रेमी दिनेश साहू के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. सच सामने आ चुका था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के प्रेमी दिनेश साहू को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना सदर ला कर पूछताछ की गई तो विजय कुमार गहलोत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के जिला अजमेर से कोई 60 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर स्थित है कस्बा ब्यावर. इसी कस्बे की चौहान कालोनी के रहने वाले रामभरुच सांखला के 3 बेटे और एक बेटी थी मोना. मोना बहुत खूबसूरत थी. वह सयानी हुई तो उस की शादी पाली के अपनी ही जाति के एक लड़के से कर दी गई. मोना ससुराल में खुश थी. उस के मायके वाले आर्थिक रूप से काफी मजबूत थे. इसलिए उन्होंने उस से कहा कि वे उस के लिए ब्यावर में मकान बनवा कर दे रहे हैं, इसलिए वह पति के साथ आ कर वहीं रहे. मोना ने जब यह बात अपने पति को बताई तो उस ने साफ कह दिया कि वह ससुराल में घरजमाई बन कर नहीं रहेगा. उस की मजबूरी यह थी कि उस के पिता का देहांत हो चुका था और वह विधवा मां को अकेली नहीं छोड़ना चाहता था.इसी बात पर मोना की पति से कटुता बढ़ गई और हालात यहां तक पहुंच गए कि शादी के 6 महीने बाद ही दोनों में तलाक हो गया. इस के बाद मोना अपने पिता के घर आ गई.

ब्यावर में ही मोहनलाल गहलोत अपनी पत्नी जसोदा देवी के साथ रहते थे. इन के तीन बेटे थे, बंटी कुमार, विजय कुमार और कमल किशोर. तीनों भाइयों में बड़ा स्नेह था. सब से बड़ा बेटा बंटी दिव्यांग था. दिव्यांग होने के बावजूद वह समाजसेवा में ज्यादा से ज्यादा समय बिताता था. वह ब्यावर विकलांग समिति का अध्यक्ष भी था. सोहनलाल और उन की पत्नी जसोदा की मौत के बाद तीनों भाइयों ने घरगृहस्थी और दुकानदारी संभाल ली थी.

सब बढि़या चल रहा था. बात सन 2004 की है. विजय कुमार अपने चचेरे भाई के साथ उस की ससुराल में आयोजित एक शादी समारोह में गया था. वहीं विजय की मुलाकात मोना उर्फ मोनिका से हुई. इसी मुलाकात में मोना और विजय एकदूजे को दिल दे बैठे. एक दिन वह भी आ गया, जब विजय ने अपने घर में मोना से शादी करने की बात कह दी. मोना ने भी अपने पिता से कह दिया था कि वह विजय को चाहती है और उस से शादी करना चाहती है. दोनों परिवारों की सहमति से सन 2004 में मोना और विजय की शादी हो गई.

मोना और विजय को अपनाअपना प्यार मिल गया था. उन की गृहस्थी आराम से कटने लगी. शादी की पहली वर्षगांठ से पहले ही मोना बेटे की मां बन गई, जिस का नाम नितेश रखा गया. विजय संयुक्त परिवार में रहता था, जबकि मोना पति के साथ अलग रहना चाहती थी. मोना के मायके वालों ने उसे विजयनगर में एक मकान बनवा कर दे दिया था. पति से जिद कर के वह उसी मकान में रहने चली गई. विजय की ब्यावर में फोटोफ्रैम की दुकान थी. वह सुबह दुकान पर चला जाता था तो रात को ही लौटता था. नितेश स्कूल जाने लायक हुआ तो उस का दाखिला पास के स्कूल में करा दिया गया था. विजय के घर के सामने दिनेश साहू का मैडिकल स्टोर था. उस के पिता माणक साहू ब्यावर के अमृतकौर सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे और अस्पताल के पास ही रहते थे. दिनेश शादीशुदा था. मैडिकल स्टोर पर बैठने के साथ वह नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था.

मैडिकल स्टोर पर बैठने के दौरान ही दिनेश और मोना के नैन लड़ गए. शादीशुदा होने के बावजूद दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मोना घर में अकेली रह जाती थी. एक दिन उस ने चाय के बहाने दिनेश को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों रोज मिलने लगे. मोना उम्र में दिनेश से 6-7 साल बड़ी थी. मगर उस की फिगर ऐसी थी, जिस पर दिनेश मर मिटा था.

एक दिन ऐसा भी आया, जब सारी सीमाएं लांघ कर दोनों ने शारीरिक संबंध बना लिए. मोना को विजय में अब कोई रुचि नहीं रह गई थी, बल्कि वह उसे राह का कांटा लगने लगा था. दूसरी ओर दिनेश को भी अपनी पत्नी में पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी. वह उसे समय नहीं दे पा रहा था. राह में कांट लग रहे पति को मोना ने राह से हटाने के बारे में दिनेश से बात की तो उस ने कहा कि विजय को इस तरह ठिकाने लगाया जाए कि किसी को शक तक न हो.

‘‘तुम चिंता मत करो, इस के लिए मेरे दिमाग में एक सुपर आइडिया है. हम पहले विजय की घर में ही हत्या कर देंगे, उस के बाद लाश और मोटरसाइकिल को सड़क पर डाल देंगे. लोग समझेंगे कि उस की मौत सड़क हादसे में हुई है. मामला ठंडा होने के बाद हम नाता प्रथा के तहत शादी कर लेंगे.’’

योजना को किस तरह अंजाम देना है, यह दोनों ने तय कर लिया. 31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा वाले दिन विजय कुमार गहलोत ने सुबह मोना से कहा, ‘‘आज हम लोग बंटी और कमल के घर चलते हैं?’’

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा करो, तुम अकेले चले जाओ. मैं फिर कभी हो आऊंगी.’’ मोना ने कहा.

पत्नी की बात पर विश्वास कर के विजय ने उस से साथ चलने की जिद नहीं की और मोटरसाइकिल उठा कर अकेला ही अपने भाइयों के यहां  चला गया. मोना ने तबीयत खराब होने की बात कही थी, इसलिए विजय भाइयों के यहां से शाम 7 बजे घर लौट आया. इस के बाद पत्नी से बातचीत कर के रात 10 बजे सो गया.

दिनेश अपने मैडिकल स्टोर पर ही बैठा था. मोना का इशारा पा कर वह दुकान में रखा हथौड़ा ले कर उस के घर आ गया. उस के घर में घुसते ही मोना ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. दिनेश ने सो रहे विजय के सिर पर हथौड़े से वार किया. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गया. इस के बाद मोना से चाकू ले कर उस ने उस का गला रेत दिया.

गला कटने से जो खून निकला, उस से मोना की साड़ीब्लाउज और दिनेश के कपड़ों पर खून लग गया. विजय तड़प कर मर गया तो लाश को बैड से नीचे उतार कर उस पर पानी डाल कर खून साफ किया गया. इस के बाद उन्होंने खून से सने कपड़े बाथरूम में भिगो दिए. दूसरे कपड़े पहन कर तौलिए से खून के छींटे साफ किए और चाकू, हथौड़ा तथा खून सना तौलिया छिपा दिया.

इस के बाद दिनेश अपने गैराज से अपनी स्कौर्पियो ले आया. लाश को स्कौर्पियो में रख कर पहले से ला कर रखा शराब का पौवा भी साथ रख दिया. लाश को गाड़ी में रखने के दौरान विजय के पैरों से चप्पलें निकल कर घर के बाहर गिर गई थीं. अंधेरा होने की वजह से मोना और दिनेश ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है.

दोनों लाश ले कर उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंचे और इधरउधर देख कर उन्होंने लाश को सड़क के पास फेंक दिया. शराब का पौवा खोल कर उन्होंने विजय के मुंह पर शराब उड़ेल दी. खाली शीशी पास ही फेंक दी. विजय का मोबाइल भी वहीं रख दिया. इतना सब कर के दोनों लौट आए. स्कौर्पियो को अपनी गैराज में खड़ी कर दिनेश पुन: मोना के घर गया. इस बार वह विजय की मोटरसाइकिल ले कर उसी जगह गया, जहां लाश फेंक कर आया था.

उधर जब कमल को पता चला कि विजय घर नहीं पहुंचा है तो वह बारबार उसे फोन करने लगा. विजय के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. उदयपुर बाईपास रोड पर गश्त लगा रही पुलिस को सड़क किनारे फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी तो पुलिस वहां पहुंची. पुलिस ने वहां लाश पड़ी देखी तो हैरान रह गई. पास में पड़े फोन की घंटी तब तक बंद हो चुकी थी. इस के बाद उसी फोन से पुलिस ने कमल को फोन किया. दिनेश मोटरसाइकिल ले कर वहां पहुंचा तो पुलिस की गाड़ी खड़ी देख कर वह लाश से करीब 100 फुट दूर ही सड़क पर मोटरसाइकिल छोड़ कर भाग आया. तब तक खून वगैरह साफ कर के मोना घर में ताला लगा कर अपने मायके चली गई थी.

उस रात अमृतकौर अस्पताल में नर्सिंगकर्मियों की एक पार्टी चल रही थी. मोटरसाइकिल छोड़ कर दिनेश यारदोस्तों की उस पार्टी में शामिल हो गया. पुलिस के गश्ती दल की सूचना पर सदर थानाप्रभारी रविंद्र सिंह एवं सहायक पुलिस अधीक्षक देवाशीष देव घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मोना उर्फ मोनिका और उस के प्रेमी दिनेश साहू को गिरफ्तार कर के उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू बरामद कर लिया था. इस के अलावा स्कौर्पियो कार व अन्य सबूत भी जुटा लिए गए. पोस्टमार्टम के बाद विजय का विसरा जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया था. पुलिस ने मोना और उस के प्रेमी दिनेश को न्यायालय में पेश कर के अजमेर केंद्रीय कारागार भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी रविंद्र सिंह कर रहे थे.

इंतकाम की आग में कर दिया दोस्त का कत्ल

31 मार्च, 2017 को सुबह के करीब 7 बजे की बात है. उत्तरी दिल्ली के थाना तिमारपुर के ड्यूटी अफसर एएसआई सतीश कुमार को पुलिस कंट्रोल रूम से एक चौंकाने वाली खबर मिली. कंट्रोलरूम से बताया गया कि बाहरी रिंग रोड पर गोपालपुर रेडलाइट के पास जो बिजलीघर है, उस के नजदीक तकिए के एक कवर में किसी इंसान के 2 हाथ पड़े हैं.

मामला हत्या का लग रहा था. दरअसल, कुछ शातिर हत्यारे किसी का कत्ल करने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस के अंग काट कर अलगअलग जगहों पर फेंक देते हैं. इस से पुलिस भी भ्रमित हो जाती है. ड्यूटी अफसर ने इस काल से मिली सूचना एएसआई अशोक कुमार त्यागी के नाम मार्क कर दी.

एएसआई अशोक कुमार त्यागी कांस्टेबल अनिल कुमार को साथ ले कर सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए. वह जगह थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर थी इसलिए वह 10 मिनट के अंदर वहां पहुंच गए. वहां पर तमाम लोग जमा थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहनचालक भी रुक रहे थे. एएसआई ने मुआयना किया तो वास्तव में एक मटमैले छींटदार तकिए के कवर में 2 हाथ रखे मिले.

उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को दे दी. थानाप्रभारी कुछ देर पहले ही रात्रि गश्त से थाने लौटे थे. एएसआई अशोक कुमार से बात कर के वह भी एसआई हरेंद्र सिंह, एएसआई उमेश कुमार, हेडकांस्टेबल राजेश, कांस्टेबल कमलकांत और निखिल कुमार को ले कर कुछ ही देर में बिजलीघर के पास पहुंच गए.

मौके पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को भी सूचना दे दी. इन दोनों टीमों के पहुंचने तक पुलिस उन अंगों से दूर रही. करीब आधे घंटे में फोरैंसिक और क्राइम इनवैस्टीगेशन की टीमें वहां पहुंच गईं. मौके के फोटो वगैरह खींचने के बाद पुलिस ने तकिए को उठा कर उलटा किया तो उस में से 2 बाहों के अलावा पीले रंग की एक पौलीथिन भी निकली. दोनों बाहों को कंधे से काटा गया था.

उस थैली को खोला गया तो उस में एक युवक का सिर था. सिर और हाथ देख कर वहां मौजूद सभी लोग चौंक गए. फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. वहां पर मृतक के चेहरे को कोई भी नहीं पहचान पाया, क्योंकि हत्यारे ने चाकू से उस के चेहरे को बुरी तरह से गोद डाला था. उस के दाहिने हाथ पर ‘ऊं साईंराम’ गुदा हुआ था. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने उन तीनों अंगों को अपने कब्जे में ले लिया.

मृतक के अन्य अंग भी हत्यारे ने कहीं आसपास ही डाले होंगे, यह सोच कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर बुराड़ी से कश्मीरी गेट की तरफ जाने वाली सड़क की साइड को बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे. करीब 100 मीटर चलने पर खून से सनी एक चादर पड़ी मिली. वहीं पर एक विंडचिटर, स्वेटर, लोअर, शर्ट और एक जींस भी पड़ी थी. कांस्टेबल अनिल को वहां छोड़ कर थानाप्रभारी करीब 200 मीटर आगे बढ़े थे कि सड़क किनारे बाईं टांग पड़ी मिली, जो जांघ से कटी हुई थी.

कांस्टेबल कमलकांत को हिफाजत के लिए वहां छोड़ कर थानाप्रभारी और आगे बढ़े. वहां से वह 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर उन्हें दाहिनी टांग भी पड़ी मिल गई. मृतक का हाथपैर और सिर बरामद हो चुके थे. अब केवल धड़ बरामद करना था. उस की खोजबीन के लिए वह और आगे बढ़े. बाहरी रिंगरोड पर जहां तक उन के थाने की सीमा थी, वहां तक उन्होंने सड़क के दोनों तरफ काफी खोजबीन की. झाडि़यां भी देखीं पर कहीं भी धड़ नहीं मिला.

फोरैंसिक टीम और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी उन जगहों पर पहुंच गई, जहां दोनों टांगें मिली थीं. उन का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने पंचनामे की काररवाई पूरी की. इस के बाद सिर, दोनों हाथों और दोनों पैरों को सब्जीमंडी मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया गया. खबर मिलने पर डीसीपी जतिन नरवाल ने भी उन जगहों का निरीक्षण किया, जहांजहां पर वे कटे अंग मिले थे.

दोपहर करीब 12 बजे उत्तरी जिला पुलिस को वायरलैस द्वारा मैसेज मिला कि मजनूं टीला गुरुद्वारे के पास स्थित संजय गांधी अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे प्लास्टिक का सफेद रंग का बोरा पड़ा हुआ है. उस बोरे से दुर्गंध आ रही है और उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. यह इलाका थाना सिविल लाइंस क्षेत्र में आता था, इसलिए वहां के थानाप्रभारी 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

चूंकि यह मैसेज पूरे जिले में प्रसारित हुआ था, जिसे तिमारपुर के थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने भी सुना था. मैसेज सुनते ही ओ.पी. ठाकुर के दिमाग में विचार आया कि कहीं उस बोरे में उस व्यक्ति का धड़ तो नहीं है, जिस के अन्य अंग उन के इलाके में मिले थे. लिहाजा वह भी संजय अखाड़े के पास पहुंच गए.

सिविल लाइंस थानाप्रभारी ने जब उस बोरे को खुलवाया तो एक चादर में लपेट कर रखी हुई सिरविहीन लाश दिखी. यह देख तुरंत क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम को खबर दे दी गई. कुछ देर में दोनों टीमें मौके पर पहुंच गईं. पुलिस ने चादर में लिपटी हुई लाश बाहर निकलवाई. वह किसी युवक का धड़ था. धड़ देख कर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर को लगा कि यह धड़ उसी युवक का हो सकता है, जिस के और अंग बरामद किए गए हैं.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद ओ.पी. ठाकुर ने इस की सूचना डीसीपी को दी. डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने पंचनामे की काररवाई कर के उस धड़ को भी सब्जीमंडी मोर्चरी भिजवा दिया.

डाक्टरों ने जांच कर बता दिया कि धड़ और कटे हुए सारे अंग एक ही व्यक्ति के हैं. इस से यह बात जाहिर हो रही थी कि हत्यारे बेहद शातिर हैं. उन्होंने मृतक के अंगों को अलगअलग जगहों पर इस तरह डाला था, जिस से पुलिस उन तक न पहुंच सके. लाश के सारे टुकड़े बुराड़ी से कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ जाने वाली सड़क पर ही डाले गए थे. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए या तो स्कूटर या स्कूटी का प्रयोग किया होगा या फिर लाश औटोरिक्शा अथवा कार वगैरह से ठिकाने लगाई होगी.

पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की शिनाख्त करने की थी. वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब पता लगाना आसान नहीं था, क्योंकि मौके से पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से मृतक की शिनाख्त में सहयोग मिल सके. बस दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ गुदा था.

मृतक का हुलिया बताते हुए थानाप्रभारी ने सब से पहले दिल्ली के समस्त थानों में मैसेज भेज कर यह जानने की कोशिश की कि इस हुलिए से मिलताजुलता कोई व्यक्ति गायब तो नहीं है. पर किसी भी थाने में इस हुलिए से मिलतेजुलते किसी व्यक्ति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी.

31 मार्च को ही शाम के समय बुराड़ी थाने के संतनगर की गली नंबर 92 की रहने वाली शकुंतला नाम की महिला थाने पहुंची. शकुंतला ने ड्यूटी अफसर को बताया कि उस का 26 वर्षीय बेटा नितिन कल रात से घर नहीं आया है. उन्होंने बेटे का हुलिया भी बता दिया.

ड्यूटी अफसर को यह बात तो पता थी ही कि तिमारपुर पुलिस ने किसी व्यक्ति की 6 टुकड़ों में कटी लाश बरामद की है, इसलिए उन्होंने शकुंतला से कहा, ‘‘मैडम, हम तो यही चाहते हैं कि नितिन जहां भी हो सहीसलामत हो. पर आज तिमारपुर थाना पुलिस ने एक लाश बरामद की है, जिस की शिनाख्त अभी नहीं हो सकी है. आप एक बार तिमारपुर थाने जा कर संपर्क कर लें तो अच्छा रहेगा.’’

इतना सुन कर शकुंतला घबराते हुए बोलीं, ‘‘नहीं मेरे बेटे के साथ ऐसा नहीं हो सकता.’’

उधर ड्यूटी अफसर ने तिमारपुर के थानाप्रभारी को फोन कर के बताया कि संतनगर की एक महिला अपने 26 साल के बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने आई है. इन का बेटा कल से गायब है. यह खबर मिलने पर थानाप्रभारी ने एसआई हरेंद्र सिंह को बुराड़ी थाने भेज दिया. हरेंद्र सिंह ने बुराड़ी थाने में बैठी शकुंतला से उस के बेटे नितिन के गायब होने के बारे में बात की. फिर वह उसे अपने साथ तिमारपुर थाने ले गए.

सब से पहले उन्होंने महिला को बरामद की गई लाश के सारे टुकड़ों के फोटो दिखाए. उस के दाहिने बाजू पर ‘ॐ साईंराम’ लिखा था. यही नितिन के सीधे हाथ पर भी लिखा था. उस का चेहरा ज्यादा क्षतिग्रस्त था इसलिए वह उसे ठीक से नहीं पहचान सकी. इस पर एसआई हरेंद्र सिंह उसे सब्जीमंडी मोर्चरी ले गए.

दरअसल, हत्यारों ने मृतक के चेहरे को चाकू से गोद दिया था, जिस से चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया था. फिर भी उस बिगड़े चेहरे और हाथ पर गुदे टैटू से शकुंतला ने लाश की पहचान अपने बेटे नितिन के रूप में कर ली. इस के बाद तो वह वहीं पर दहाड़ें मारमार कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे सांत्वना दे कर जैसेतैसे चुप कराया. इस के बाद शकुंतला ने नितिन की हत्या की जानकारी अपने पति और अन्य लोगों को दी. खबर मिलते ही शकुंतला के पति लालता प्रसाद मोहल्ले के कई लोगों के साथ सब्जीमंडी मोर्चरी पहुंच गए. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि नितिन की कोई इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल पोस्टमार्टम कराने के बाद लाश के सभी टुकड़े लालता प्रसाद को सौंप दिए गए.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. डीसीपी जतिन नरवाल ने थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर की अगुवाई में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर संजीव वर्मा, एसआई अमित भारद्वाज, हरेंद्र सिंह, एएसआई सतेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल सुनील, राजेश, कांस्टेबल कुलदीप, निखिल, कमलकांत, विकास और सुनील कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोला के परिजनों से बात की. उस की मां शकुंतला ने बताया कि नितिन हैदरपुर में जौनसन एंड जौनसन कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. वह कल यानी 30 मार्च को अपनी ड्यूटी खत्म कर के 6 बजे घर आ गया था. बाद में वह किसी से मिलने बाहर चला गया था.

जब वह काफी देर तक नहीं लौटा तो उसे कई बार फोन किया पर उस ने नहीं उठाया. सुबह होने तक भी जब नितिन घर नहीं लौटा तो उसे फोन किया पर उस का फोन बंद मिला. उस के दोस्तों और अन्य लोगों को फोन कर के उस के बारे में मालूम किया गया, लेकिन कोई पता नहीं चला. थकहार कर वह थाने में गुमशुदगी लिखाने पहुंची.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने नितिन के दोस्तों से पूछताछ करनी शुरू कर दी.

8-10 दोस्तों से पूछताछ करने के बाद एक दोस्त ने पुलिस को बताया कि नितिन 30 मार्च की शाम सवा 6 बजे सरदा मैडिकल स्टोर के सामने देखा गया था. वह किसी की मोटरसाइकिल पर बैठा था. सरदा मैडिकल स्टोर संतनगर में मेनरोड पर ही है. पुलिस ने उस मैडिकल स्टोर पर पहुंच कर नितिन के बारे में पता किया तो पता चला कि वहां काम करने वाला कोई भी व्यक्ति नितिन को नहीं जानता था.

इस के बाद पुलिस ने वहां मार्केट में दुकानों के सामने लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज देखते समय नितिन के कुछ दोस्तों को भी बैठा लिया गया था, जिस से वह नितिन को आसानी से पहचान सकें. एक फुटेज में नितिन मोटरसाइकिल पर जाता दिख गया. दोस्तों ने बता दिया कि वह हैप्पी नाम के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा है. हैप्पी संतनगर की ही गली नंबर 18 में रहने वाले सुनील कपूर का बेटा था. पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि हैप्पी बदमाश और दबंग किस्म का है.

पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर वालों ने बताया कि वह कहीं रिश्तेदारी में गया है. जिस मोटरसाइकिल पर वह फुटेज में दिखा था, वह उस के घर के सामने खड़ी दिखी. इस के अलावा उस के घर के सामने एक वैगनआर कार भी खड़ी थी.

इस के बाद पुलिस ने हैप्पी के बारे में गोपनीय जांच शुरू कर दी. इस जांच में पुलिस को उस के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. यह भी पता चला कि हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन नितिन से गहरी दुश्मनी रखते थे.

पुलिस टीम ने हैप्पी को तलाश करने के बजाय उस के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस के फोन की काल डिटेल्स पाने के लिए संबंधित मोबाइल कंपनी को लिख दिया गया. पुलिस ने हैप्पी की उस रात की मूवमेंट देखने के लिए पुन: आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. फुटेज में रात 1 बजे के आसपास उसी वैगनआर कार की मूवमेंट दिखाई दी जो उस के घर के सामने खड़ी पाई गई थी. इस से पुलिस को शक हुआ कि नितिन की हत्या में हैप्पी का हाथ हो सकता है.

नितिन से हैप्पी और उस के मामा का लड़का पवन रंजिश रखते थे. हैप्पी तो घर से गायब था जबकि पवन संतनगर की गली नंबर 88 में रहता था. पुलिस टीम पवन के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. पुलिस ने उस से हैप्पी के बारे में पूछा तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

पुलिस ने पवन के कमरे की गहनता से जांच की तो बैड के पास खून के छींटे मिले. उन छींटों के बारे में पूछा गया तो वह इधरउधर की बातें करने लगा. तभी थानाप्रभारी ओ.पी. ठाकुर ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया. एक थप्पड़ लगते ही पवन लाइन पर आ गया. अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘सर, नितिन को मैं ने नहीं बल्कि हैप्पी ने मारा था.’’

केस का खुलासा होते ही थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने पवन को हिरासत में ले लिया. इस के बाद हैप्पी के घर के बाहर खड़ी सीबीजेड मोटरसाइकिल और वैगनआर कार कब्जे में लेने के बाद हैप्पी के घर वालों पर उसे तलाश करने का दबाव बनाया. कार चैक की गई तो उस की सीट कवर पर भी खून के धब्बे पाए गए. पुलिस ने पवन से नितिन की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह दोस्ती में अविश्वास की भावना से उपजी हुई निकली.

26 वर्षीय नितिन उर्फ सुमित उर्फ भोले उत्तरी दिल्ली के थाना बुराड़ी के संतनगर में अपने परिवार के साथ रहता था. वह जौनसन एंड जौनसन कंपनी के हैदरपुर डिस्ट्रीब्यूटर के यहां सेल्समैन था. नितिन की संतनगर के ही रहने वाले सूरज और विक्की से अच्छी दोस्ती थी. तीनों दोस्त साथ खातेपीते थे.

एक बार नितिन को कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने विक्की से पैसे मांगे. दोस्त की जरूरत को समझते हुए विक्की ने उसे 10 हजार रुपए उधार दे दिए. कई बार पैसों की वजह से अपने नजदीकी संबंधों और यहां तक कि रिश्तेदारी तक में दरार पड़ जाती है. यही बात इन दोस्तों के बीच भी हुई. निर्धारित समय पर जब नितिन ने विक्की के पैसे नहीं लौटाए तो विक्की ने उस से तकाजा करना शुरू कर दिया. नितिन कोई न कोई बहाना बना कर उसे टालता रहा.

नितिन के बारबार किए जा रहे झूठे वादों से विक्की भी परेशान हो गया. 10 हजार की रकम कोई छोटीमोटी तो होती नहीं जो विक्की छोड़ देता. दोस्ती में भी कोई दरार न आए इसलिए वह उस से पैसे लौटाने को कहता रहा. बारबार पैसों का तकाजा करना नितिन को पसंद नहीं था. इस बात पर कभीकभी उन दोनों के बीच तकरार हो जाती थी.

15 अगस्त, 2015 की बात है. नितिन, विक्की और सूरज यमुना किनारे पार्टी करने गए थे. नितिन तो वापस आ गया लेकिन विक्की और सूरज नहीं आए. घर वालों ने पूछा तो नितिन ने बता दिया कि वे दोनों नदी में डूब गए. जवान बच्चों के डूबने की बात पर उन के घरों में हाहाकार मच गया. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने गोताखोरों की मदद से सूरज और विक्की की लाशें बरामद करने की कोशिश की लेकिन उन की लाशों का पता तक नहीं चला. सूरज विक्की का ममेरा भाई था.

विक्की के भाई हैप्पी और सूरज के भाई पवन को नितिन पर शक था. उन का मानना था कि नितिन ने उधारी के पैसों से बचने के लिए दोनों को मार डाला. उन का कहना था कि नितिन ने विक्की और सूरज को शराब पिलाने के बाद गला घोंट कर हत्या कर दी होगी और उन की लाशें पत्थर के साथ बांध कर नदी में डाल दी होंगी.

दोनों ही आपराधिक प्रवृत्ति के थे. दोनों पर ही चोरी, लूट आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. उन्होंने दिल्ली पुलिस की औपरेशन सेल से नितिन की शिकायत की थी. औपरेशन सेल ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. शिकायत के लगभग एक साल बाद भी जब इस मामले में कोई नतीजा नहीं निकला तो पवन और हैप्पी को निराशा हुई. उन्होंने सोचा कि नितिन ने पुलिस से सांठगांठ कर के काररवाई दबवा दी है. वे नितिन को ही अपने भाइयों का कातिल मान रहे थे. उस के किए की वे उसे सजा दिलाना चाहते थे.

जब उन्हें लगा कि उसे कानूनी सजा नहीं मिल पाएगी तो उन्होंने खुद ही नितिन को सजा देने की ठान ली और सोच लिया कि जिस तरह उन के भाइयों की लाश आज तक नहीं मिल सकी है, उसी तरह नितिन की हत्या कर के लाश इस तरह से ठिकाने लगाएंगे कि उस के घर वाले ढूंढते ही रहें.

नितिन से उन दोनों की बोलचाल तक बंद हो चुकी थी, लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए उस से नजदीकी संबंध बनाने जरूरी थे. इसलिए पवन और हैप्पी ने अपनी योजना के तहत उस से दोस्ती की. चूंकि नितिन भी शराब का शौकीन था इसलिए उस ने सारे गिलेशिकवे भुला कर हैप्पी और पवन से दोस्ती कर ली.

लेकिन हैप्पी और पवन के मन में तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी, जिस से नितिन अनभिज्ञ था. लेकिन इस से पहले नितिन पर अपना विश्वास जमाना जरूरी था ताकि काम आसानी से हो सके.

हैप्पी संतनगर की गली नंबर-18 में अपने परिवार के साथ रहता था जबकि उस का ममेरा भाई पवन गली नंबर-88 में अकेला रहता था. पवन दुकानों पर कौस्मेटिक सामान सप्लाई करता था. उस ने अपने कमरे के ताले की एक चाबी हैप्पी को दे रखी थी और एक खुद रखता था. कभीकभी वे नितिन के साथ इसी कमरे में दारू की पार्टी रखते थे.

हैप्पी नितिन को ठिकाने लगाने के तरहतरह के प्लान बनाता पर उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. 30 मार्च, 2017 की शाम को हैप्पी अपनी सीबीजेड मोटरसाइकिल से आ रहा था, तभी संतनगर बसअड्डे पर उसे नितिन दिखाई दिया. दरअसल, ड्यूटी के बाद वह घर हो कर बाहर बाजार में आ गया था. नितिन को देखते ही उस ने उस से बात की और पार्टी करने के बहाने उसे गली नंबर-88 में पवन के कमरे पर ले गया. जाते समय हैप्पी ने शराब की बोतल खरीद ली थी. पवन के कमरे की एक चाबी उस के पास पहले से थी. लिहाजा ताला खोल कर हैप्पी और नितिन शराब पीने बैठ गए. हैप्पी ने सोच लिया था कि वह आज नितिन का काम तमाम कर के रहेगा.

लिहाजा उस दिन उस ने नितिन को खूब शराब पिलाई और खुद कम पी. उस की शराब में उस ने नशीली दवा भी मिला दी थी. नितिन जब शराब के नशे में चूर हो गया तभी हैप्पी ने उसे धक्का दे दिया. नितिन फर्श पर गिर गया. हैप्पी ने आव देखा न ताव चाकू से उस का गला रेत दिया. खून को उस ने एक कपड़े से पोंछ दिया तथा लाश चादर में लपेट कर बैड में छिपा दी और ताला लगा कर घूमने निकल गया.

पवन उस समय तक भी कमरे पर नहीं लौटा था. हैप्पी ने कुछ देर बाद पवन को फोन किया, ‘‘नितिन का मर्डर कर के मैं ने तो अपना इंतकाम पूरा कर लिया, तू भी आ जा.’’

थोड़ी देर बाद पवन कमरे पर लौटा तो उसी समय हैप्पी भी वहां पहुंच गया. हैप्पी ने बैड से नितिन की लाश बाहर निकाली. इस के बाद उन्होंने सब से पहले धड़ से सिर अलग किया. फिर उस की दोनों बाहों को कंधों से काट कर अलग किया. इस के बाद दोनों टांगों को भी काट दिया. पवन के दिल में भी नितिन के प्रति खुंदक भरी हुई थी. गुस्से में उस ने भी उस के चेहरे को चाकू से इस तरह गोद डाला कि उसे कोई पहचान तक न सके.

इस के बाद दोनों भाइयों ने उस की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नितिन के कटे सिर को उन्होंने एक पौलीथिन में बांध लिया. फिर उसे तकिए के कवर में रख लिया. तकिए के उसी कवर में उन्होंने उस की दोनों भुजाओं को भी रख लिया. धड़ को उन्होंने एक चादर में लपेटा और प्लास्टिक की एक बोरी में डाल लिया.

हैप्पी अपनी वैगनआर कार नंबर एचआर-26एएस-3712 ले आया. रात एक बजे के करीब जब अधिकांश लोग गहरी नींद सो रहे थे, तभी हैप्पी और पवन ने नितिन की लाश के सभी टुकडे़ कार में रखे.

कार ले कर वे कश्मीरी गेट बसअड्डे की तरफ बाहरी रिंगरोड से चल दिए. गोपालपुर बिजलीघर के नजदीक कार रोक कर उन्होंने तकिए का कवर बाहर फेंक दिया. वहां से 100 मीटर चलने के बाद खून से सनी चादर सड़क के किनारे फेंक दी. वहीं पर कुछ और कपड़े फेंके. वहां से करीब 200 मीटर आगे सड़क के बाईं ओर को उन्होंने एक पैर फेंक दिया.

वहां से 200 मीटर और चल कर उन्होंने दूसरा पैर भी सड़क किनारे फेंक दिया. अब उन के पास केवल धड़ बचा था. धड़ वाली बोरी उन्होंने मजनूं का टीला गुरुद्वारे से लगे संजय अखाड़े के नजदीक फुटपाथ के किनारे रख दी.

लाश ठिकाने लगाने के बाद वे दोनों कमरे पर लौट आए. उन्होंने कमरे में जहांतहां लगा खून पोंछ दिया. कार की सीट पर भी खून के कुछ धब्बे लगे थे. वह भी साफ कर दिए. लेकिन किसी तरह बैड पर लगा खून का दाग रह गया, जिस से पुलिस उन तक पहुंच गई.

पवन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2017 को उसे तीसहजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार के समक्ष पेश कर के 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या से संबंधित कुछ और सबूत जुटाए. फिर 4 अप्रैल को उसे फिर से न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. बाद में हैप्पी को पुलिस ने बिहार के नालंदा से गिरफ्तार कर लिया. अदालत में पेश कर के उसे भी जेल भेज दिया गया.

नशे की खातिर बेटे ने की बाप की हत्या

केवल सिंह खेत की मेड़ पर बैठे सुस्ता रहे थे, तभी उन के नजदीक आ कर एक लंबी सी कार रुकी. कार से 3 लोग उतरे. उन में एक उन का बेटा जगदीप भी था. उस के साथ आए लोगों ने केवल सिंह के नजदीक आ कर नमस्कार किया तो नमस्कार कर के केवल सिंह ने उन लोगों को सवालिया नजरों से देखा.

दोनों कुछ कहते, उस के पहले ही उन दोनों का परिचय कराते हुए जगदीप सिंह ने कहा, ‘‘बापूजी, यह सिद्धू साहब हैं. इन्हें हमारी जमीन बहुत पसंद है. यह हमें बाजार भाव से कई गुना ज्यादा दाम दे कर हमारी जमीन खरीदना चाहते हैं.’’

जगदीप सिंह की बातें सुन कर केवल सिंह की त्यौरियां चढ़ गईं. उन्होंने बेटे को एक भद्दी सी गाली देते हुए कहा, ‘‘तुझ से किस ने कहा कि मेरी यह जमीन बिक रही है. जब देखो तब तू किसी न किसी को परेशान करने के लिए पकड़ लाता है. जब एक बार कह दिया कि यह हमारे पुरखों की जमीन है, मैं इसे जीतेजी नहीं बेच सकता तो तू क्यों लोगों को परेशान करने के लिए लाता है. अगर आज के बाद फिर कभी किसी को ले कर आया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस के बाद बापबेटे में बहस होने लगी. बापबेटे को झगड़ा करते देख जमीन का सौदा करने आए लोग चुपचाप वहां से खिसक गए. बापबेटे में जमीन को ले कर हुआ यह झगड़ा कोई नया नहीं था.

पंजाब के जिला बरनाला के थाना भदौड़ के गांव मुजूक के रहने वाले पाल सिंह के 3 बेटे थे, केवल सिंह, सुखमिंदर सिंह और मंजीत सिंह. पाल सिंह ने तीनों बेटों की शादियां कर के जीतेजी जमीन को उन में बांट दिया था. तीनों भाई गांव में अलगअलग मकान बना कर अपनेअपने परिवारों के साथ रह रहे थे. तीनों भाई रहते भले अलग थे, लेकिन उन में और उन के परिवारों में काफी मेलजोल था.

केवल सिंह का एक ही बेटा था जगदीप सिंह. उसे बचपन से ही पहलवानी का शौक था. उन्होंने भी उसे कभी मना नहीं किया. जगदीप के 2 ही काम थे, पढ़ना और पहलवानी करना. युवा होतेहोते वह अच्छाखासा पहलवान बन गया. जिला स्तर पर कुश्तियां जीतने के बाद उस ने राज्य स्तर के पहलवानों को पछाड़ कर अपने नाम का डंका बजाया.

जगदीप शादी लायक हुआ तो केवल सिंह ने अपने एक दोस्त की सुंदर बेटी परमजीत कौर से उस की शादी कर दी. उसी बीच पंजाब में नशे की ऐसी लहर चली कि घरघर नशीली चीजों का उपयोग होने लगा. जगदीप भी इस का शिकार हो गया. फिर तो वह पहलवानी ही नहीं, घरपरिवार को भी भूल कर नशे का गुलाम बन गया.

जगदीप ऐसा नशा करता था, जिस में एक ही बार में 4-5 हजार रुपए खर्च हो जाते थे. जबकि उस के पास इतने रुपए नहीं होते थे. लेकिन नशा तो नशा है, उसे कैसे भी करना था. कुछ दिनों तक तो वह यारदोस्तों और रिश्तेदारों से झूठ बोल कर रुपए उधार ले कर अपना काम चलाता रहा. लेकिन इस तरह कब तक चलता. लोग अपनेअपने पैसे मांगने लगे तो वह मुसीबत में फंस गया.

केवल सिंह ने जब अपने बेटे में बदलाव देखा तो उन्हें चिंता हुई. हर समय खुश रह कर हंसनेहंसाने वाला जगदीप उदास मुंह लटकाए बैठा रहता था. उन्होंने उस की उदासी का कारण पूछते हुए कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, आजकल पहलवानी भी बंद है और हर समय चेहरे पर मुर्दानगी छाई रहती है?’’

पिता के इस सवाल पर नशे को ले कर परेशान जगदीप के दिमाग में तुरंत उपाय आ गया. पिता को बेवकूफ बनाते हुए उस ने रोआंसा हो कर कहा, ‘‘बापूजी, बात ही ऐसी है. उदास न होऊं तो क्या खुशियां मनाऊं.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘बापूजी, नैशनल लेवल पर कुश्ती लड़ने के लिए मैट चाहिए, वह मेरे पास नहीं है.’’

‘‘तो उस के लिए क्या करना होगा?’’

‘‘करना क्या होगा, खरीदना पड़ेगा, जिस के लिए 8-10 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ केवल सिंह ने बेटे की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘तू तैयारी शुरू कर, पैसे की व्यवस्था मैं करता हूं.’’

जगदीप का तीर सही निशाने पर लगा. भावुकता में केवल सिंह ने वादा तो कर लिया, पर इतने रुपयों की व्यवस्था करना उन के लिए आसान नहीं था. फिर भी उन्होंने कुछ घर से, कुछ रिश्तेदारों से तो कुछ जमीन गिरवी रख कर रुपयों का इंतजाम कर दिया.

10 लाख रुपए हाथ में आते ही जगदीप की तो मानो लौटरी लग गई. उस ने पिता से मिले रुपए नशे पर उड़ाने शुरू कर दिए. कुछ ही दिनों में सारे रुपए नशे पर फूंक कर उस ने तमाशा देख लिया. केवल सिंह जब भी मैट के लिए पूछते, वह कहता कि और्डर दे दिया है, जल्दी ही आ जाएगा.

यह बहाना कब तक चलता. केवल सिंह अनपढ़ जरूर थे, लेकिन नासमझ नहीं थे. जल्दी ही उन्हें असलियत का पता चल गया. बेटे को नशे में डूबा देख कर वह समझ गए कि जगदीप झूठ बोल रहा है. मैट के बहाने उस ने जो रुपए लिए हैं, नशे में उड़ा दिए हैं. फिर तो घर वालों को ही नहीं, लगभग सभी को पता चल गया कि जगदीप पहलवान नशे का आदी हो गया है. अब लोग उस से दूरियां बनाने लगे.

जगदीप के लिए अब रुपए का इंतजाम करना मुश्किल हो गया था. फिर तो नशा न मिलने की वजह से वह गंभीर रूप से बीमार हो गया. केवल सिंह ने लगभग 2 लाख रुपए खर्च कर के उस का इलाज कराया. ठीक होने के बाद एक बार फिर उस ने कारोबार के नाम पर पिता से 8-10 लाख रुपए झटक लिए. इन रुपयों को भी उस ने नशे पर उड़ा दिए.

इस के बाद वह पिता की जमीन बिकवाने के चक्कर में पड़ गया कि वह यहां रह कर नशा नहीं छोड़ सकता, इसलिए उसे विदेश भेजा जाए, ताकि वहां जा कर वह नशा छोड़ कर कोई कामधंधा कर सके. लेकिन 2 बार धोखा खा चुके केवल सिंह को अब जगदीप की बातों पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं रह गया था.

जगदीप ही नहीं, उस की पत्नी परमजीत कौर भी केवल सिंह पर दबाव डाल रही थी कि कुछ जमीन बेच कर उसे विदेश भिजवा दें. जबकि केवल सिंह अब उस की कोई भी बात मानने को बिलकुल तैयार नहीं थे. इसी बात को ले कर बापबेटे में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इसी रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर केवल सिंह की पत्नी कुलवंत कौर शांति से रहने के लिए गांव में रह रहे अपने देवर सुखमिंदर सिंह के घर चली गई थीं.

3 फरवरी, 2017 को इसी बात को ले कर केवल सिंह और जगदीप के बीच जम कर झगड़ा हुआ. परमजीत कौर ने भी ससुर पर दबाव डालते हुए कहा, ‘‘बापूजी, यह जमीन क्या अपनी छाती पर रख कर ले जाओगे? बेटे की जिंदगी का सवाल है, बेच क्यों नहीं देते थोड़ी जमीन?’’

‘‘तू जमीन की बात कर रही है. मैं मर जाऊंगा, लेकिन इस झूठे धोखेबाज नशेड़ी को एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा.’’ केवल सिंह ने गुस्से में कहा और घर से निकल गए.

उस समय केवल सिंह घर से गए तो फिर लौट कर नहीं आए. इस ओर न जगदीप ने ध्यान दिया, न उस की पत्नी परमजीत कौर ने. क्योंकि ऐसा अकसर होता था. केवल सिंह जब भी नाराज होते थे, घर छोड़ कर अपने दोनों भाइयों में से किसी एक के यहां चले जाते थे. लेकिन इस बार वह न भाइयों के घर गए थे, न खेतों पर.

जब अगले दिन भी केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो जगदीप उन की तलाश में निकला. इधरउधर तलाश करता हुआ वह शाम को चाचा सुखमिंदर सिंह के घर पहुंचा. उस ने उन से पिता के लापता होने की बात बता कर मां को घर भेजने को कहा. क्योंकि बापबेटों के झगड़ों से तंग आ कर उन दिनों कुलवंत कौर सुखमिंदर सिंह के घर पर ही थीं.

जगदीप की बात सुन कर सुखमिंदर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तू चिंता मत कर पुत्तर, सब ठीक हो जाएगा. तू घर चल, मैं तेरी मां को ले कर आता हूं.’’

सुखमिंदर सिंह उसी समय कुलवंत कौर को उन के घर छोड़ गए. इस के बाद वह जगदीप को साथ ले कर केवल सिंह की तलाश में निकल पड़े. काफी भागदौड़ के बाद भी जब केवल सिंह का कुछ पता नहीं चला तो सुखमिंदर सिंह ने 5 फरवरी को उन की गुमशुदगी थाना भदौड़ में दर्ज करा दी.

केवल सिंह की गिनती गांव के संपन्न किसानों में होती थी. वह सज्जन व्यक्ति थे, इसलिए गांव के सरपंच गोरा सिंह ने गांव वालों के साथ मिल कर केवल सिंह को जल्द से जल्द ढूंढने का पुलिस पर दबाव बनाया.

इस के बाद अधिकारियों के आदेश पर थाना भदौड़ के थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह ने सबइंसपेक्टर बलविंदर सिंह, एएसआई परमजीत सिंह की निगरानी में हैडकांस्टेबल सरबजीत सिंह, पवन कुमार, कांस्टेबल सुखराज सिंह आदि की एक टीम बना कर केवल सिंह की तलाश में लगा दी. पुलिस ने उन की तलाश तेजी से शुरू कर दी.

6 फरवरी, 2017 की सुबह सुखमिंदर सिंह को गांव वालों से पता चला कि जगदीप भूसा ले जाने के लिए ट्रौली खोज रहा है, क्योंकि उस की ट्रौली खराब है. तीनों भाइयों के मकान भले ही अलग थे, पर सभी की जमीन की फसलों का भूसा केवल सिंह के घर से लगे एक बड़े कमरे में रखा जाता था. गांव वालों की बात सुन कर सुखमिंदर को लगा कि जगदीप नशे के जुगाड़ में भूसा बेच रहा होगा. उन्होंने सोचा कि भूसा नहीं रहेगा तो जानवरों को क्या खिलाया जाएगा.

जगदीप भूसा बेचे, उस के पहले ही वह जानवरों के लिए कुछ दिनों का भूसा लेने के लिए जगदीप के घर जा पहुंचे. वह भूसा वाले हालनुमा कमरे से भूसा भरने लगे. अभी वह 3-4 गट्ठर भूसा ही निकाल पाए थे कि अचानक भूसे के ढेर से हाथ में एक इंसानी पैर आ गया.

उन्होंने बेटे और नौकर की मदद से वहां का भूसा हटा कर देखा तो उन्हें वहां एक लाश दबी नजर आई, जिस का एक पैर बाहर निकला था. लाश देख कर उन की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने तुरंत ऊंची आवाज में अपने भतीजे जगदीप को बुलाया. जगदीप आया तो उन्होंने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

जगदीप भी वहां का दृश्य देख कर हैरान था. उस ने असमंजस की स्थिति में कहा, ‘‘चाचाजी, यह तो किसी की लाश है. आप रुकें, मैं फावड़ा ले कर आता हूं.’’

यह कह कर जगदीप भूसे वाले कमरे से बाहर चला गया. सुखमिंदर उस लाश को देख कर बारबार यही सोच रहे थे कि पता नहीं यह किस की लाश है, किस ने इसे यहां दबाया है? किसी अनहोनी की आशंका से उन का दिल घबरा रहा था. काफी देर हो गई, जगदीप फावड़ा ले कर नहीं लौटा तो वह बाहर आए. घर के दरवाजे खुले थे. न वहां पर जगदीप था न उस की पत्नी परमजीत कौर.

भाभी कुलवंत कौर एक कमरे में बैठी पाठ कर रही थीं. पलभर में ही सुखमिंदर सिंह को अपने भाई केवल सिंह की गुमशुदगी का रहस्य समझ में आ गया. समझदारी दिखाते हुए उन्होंने बिना एक पल गंवाए अपनी मोटरसाइकिल उठाई और सीधे थाना भदौड़ के थानाप्रभारी के पास पहुंचे. उन्हें पूरी बात बताई तो मामले को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने केवल इतना पूछा, ‘‘जगदीप को गए कितना समय हुआ होगा?’’

‘‘लगभग आधा घंटा.’’

सुरेंद्र सिंह ने एएसआई परमजीत सिंह और 2 हवलदारों को लाश की हिफाजत के लिए सुखमिंदर सिंह के साथ भेज कर खुद एक टीम ले कर भदौड़ बसअड्डे की ओर निकल गए.

उन का अनुमान ठीक निकला. जगदीप और परमजीत कौर भागने के लिए एक बस में सवार हो चुके थे. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बस से उतारा और थाने ले आए. इस के बाद वह गांव मुजूक केवल सिंह के घर पहुंचे और अपने सामने उस जगह की खुदाई करवाई.

बरामद लाश देख कर सभी हैरान थे. लाश केवल सिंह की थी, जिसे बड़ी बेरहमी से मार कर भूसे वाले कमरे में दफना दिया गया था. सुरेंद्र सिंह ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और थाने लौट कर दर्ज गुमशुदगी के स्थान पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इसी के साथ ही जगदीप और परमजीत से पूछताछ शुरू कर दी.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध तो स्वीकार कर लिया, पर उन्होंने हत्या क्यों की, इस के पीछे बड़ी विचित्र कहानी बताई.

दरअसल, नशा एक ऐसी घातक बीमारी और कलंक है, जिस के सेवन से आदमी की बुद्धि ही नहीं, जमीर भी भ्रष्ट हो जाता है. आदमी इतना खुदगर्ज हो जाता है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए या बचाव के लिए कुछ भी कर सकता है.

जगदीप और परमजीत कौर ने केवल सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने यह हत्या इसलिए की थी, क्योंकि केवल सिंह अपनी बहू परमजीत कौर पर बुरी नजर रखते थे. उस ने अकेले में कई बार परमजीत से छेड़छाड़ की थी.

जगदीप ने आगे बताया कि घटना वाले दिन यानी 3 फरवरी को वह घर पर नहीं था. शाम को जब वह घर आया तो उस ने देखा कि उस के पिता केवल सिंह उस की पत्नी को दबोचे बैड पर लेटे हैं और परमजीत बचाव के लिए चिल्ला रही है.

यह देख कर उसे गुस्सा आ गया और उस ने गंडासे से पिता की हत्या कर दी. लेकिन उस की इस कहानी पर किसी को विश्वास नहीं हुआ.

जब पतिपत्नी पर सख्ती की गई तो उन्होंने सच्चाई उगल दी. जगदीप ने इस बार बताया कि नशे की पूर्ति के लिए वह जमीन बेचना चाहता था. जबकि पिता इस के लिए तैयार नहीं थे. इसीलिए उस ने पिता की हत्या कर दी. हत्या कर लाश उस ने भूसे वाले कमरे में इसलिए दबा दी थी कि मौका मिलने पर वह उसे भूसे के बीच छिपा कर कहीं दूर ले जा कर ठिकाने लगा देगा. लेकिन वह अपने इरादे में कामयाब होता, उस के पहले ही भूसे के चक्कर में उस की पोल खुल गई.

7 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पिता के हत्यारे जगदीप सिंह और उस की पत्नी को सक्षम अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर हत्या करने वाला हथियार गंडासा व कस्सी बरामद कर ली. रिमांड अवधि समाप्त होने पर दोनों को पुन: अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

समाज की खातिर प्यार जब पराया हो गया

30 अक्तूबर, 2016 को दिवाली का त्यौहार था, इसलिए सारे शहर की सड़कों पर ही नहीं, गलीगली में चहलपहल थी. हर कोई खुश नजर आ रहा था. सिर्फ हेमंत ही एक ऐसा आदमी था, जो ऊपर से भले ही खुश नजर आ रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर वह सुलग रहा था. दोपहर बाद वह अपने दोस्त मनोज के मैडिकल स्टोर पर पहुंचा और उस से घूमने चलने को कहा. इस के बाद दोनों ने घूमने की योजना बनाई और एक अन्य दोस्त सलीम को बुला कर मोटरसाइकिल से घूमने निकल पड़े. तीनों दोस्त काफी देर तक बाजार में घूमते रहे. शाम हो गई तो हेमंत ने दोनों दोस्तों से कहा, ‘‘मोटरसाइकिल छप्परी गली की ओर ले चलो, मैं तुम लोगों को वहां एक तमाशा दिखाता हूं.’’

‘‘कौन सा तमाशा दिखाएगा भाई?’’ सलीम ने पूछा तो हेमंत ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘पहले वहां चलो तो, खुद ही देख लेना वह तमाशा.’’

सलीम ने मोटरसाइकिल छप्परी गली की ओर मोड़ दी. गली के बाहर ही मोटरसाइकिल रुकवा कर हेमंत उतर गया तो सलीम भी उतर कर खड़ा हो गया. शाम का समय था. दिवाली का त्यौहार होने की वजह से लोग दीए जला रहे थे. गली में बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे. हेमंत ने मनोज से उस की पिस्टल मांगी और गली में घुस गया. वह जिस घर के सामने जा कर रुका, वह भारती माहेश्वरी का था. उन की मौत हो चुकी थी. घर में पत्नी सुनीता, बेटा तुषार, बेटी प्रेरिका और छोटे भाई की पत्नी पूजा और बहन का बेटा रानू था.

प्रेरिका उस समय घर के बाहर दीए जला रही थी. हेमंत उसी के पास जा कर खड़ा हो गया. उसे देख कर प्रेरिका हड़बड़ा सी गई. उस ने हेमंत को घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’

‘‘क्यों, मैं यहां नहीं आ सकता क्या?’’ कह कर हेमंत ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा तो उस ने शोर मचा दिया. उस की चीखपुकार सुन कर उस की बुआ का बेटा रानू और छोटा भाई तुषार बाहर आ गया. उन्होंने प्रेरिका को छुड़ा कर हेमंत को घेर लिया.

खुद को घिरा पा कर हेमंत घबरा गया और उस ने मनोज की पिस्टल सीधी कर के प्रेरिका पर गोली चला दी, जो उस के पेट में लगी. गोली लगते ही वह गिर गई. इस के बाद उस ने रानू पर गोली चला दी, तो उस के भी पेट में गोली लगी. उस ने तीसरी गोली तुषार पर चलाई, जो उसे छूती हुई निकल गई.

अब तक चीखपुकार मच गई थी. गोलियों की आवाज सुन कर गली वाले इकट्ठा हो गए थे. हेमंत ने भागना चाहा, लेकिन तभी उसे अजीत ने घेर लिया. अजीत हेमंत पर भारी पड़ा तो पकड़े जाने के डर से उस ने अजीत पर भी गोली चला दी, जो सीधे उस के सीने में लगी. उस की तुरंत मौत हो गई. अजीत तातारपुर निवासी प्रेरिका के भाई राहुल की दुकान पर नौकरी करता था. वह शादीशुदा ही नहीं, एक बेटी का बाप भी था.

अजीत के गिरते ही गली में अफरातफरी मच गई, जिस का फायदा उठा कर हेमंत दोस्तों के साथ भाग निकला. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस घटना की सूचना दे दी तो वहां से मिली सूचना के आधार पर एसपी सुनील कुमार, एडीएम सुरेंद्र कुमार, सीओ शबीह अहमद और थानाप्रभारी पदम सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

पुलिस ने घायलों को तुरंत अस्पताल भिजवाया और मृतक अजीत के घर वालों को सूचना दी. सूचना मिलते ही कुछ ही देर में अजीत के मांबाप और पत्नी गीता रोतीबिलखती आ पहुंची. औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अजीत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने लौट कर घायल प्रेमिका के घर वालों की ओर से गोली चलाने वाले हेमंत और उस के दोस्तों मनोज तथा सलीम के खिलाफ हत्या तथा हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के बाद पुलिस हेमंत को गिरफ्तार करने उस के घर पहुंची तो वही नहीं, उस के दोनों साथी भी अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने तीनों की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू किए. इस का नतीजा यह निकला कि घटना के तीसरे दिन यानी 2 नवंबर, 2016 को हेमंत पुलिस के हाथ लग गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में हेमंत ने कहा कि वह वहां घूमने गया था. लोगों ने उसे घेर लिया तो गोलियां उस ने अपने बचाव में चलाई थीं. इस के बाद गोलियां चलाने की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज की छप्परी गली में रहते थे भारती माहेश्वरी. उन की मौत हो चुकी थी. उन के बाद घर में उन की पत्नी सुनीता के अलावा उन के भाई की पत्नी पूजा, बेटा तुषार, बेटी प्रेरिका और बहन का बेटा रानू रहता था. पिता की मौत के बाद तुषार ने उन की गहनों की दुकान संभाल ली थी. 12वीं पास करने के बाद प्रेरिका कोई प्रोफैशनल कोर्स करना चाहती थी. उस ने यह बात घर वालों से कही तो उन्होंने उस का दाखिला दिल्ली में एनआईआईटी में कंप्यूटर सीखने के लिए करा दिया.

घर में शायद किसी को मालूम नहीं था कि प्रेरिका के नजदीकी संबंध कासगंज की ही दुर्गा कालोनी के रहने वाले रूप सिंह यादव के बेटे हेमंत यादव से हैं. वह यूपी टैक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमसीए कर रहा था. कासगंज में पढ़ाई के दौरान हेमंत की मुलाकात प्रेरिका से हुई थी. कालेज में पढ़ते समय दोनों मिले तो कुछ ऐसी बातें हुईं कि एकदूसरे की ओर आकर्षित हो उठे.

इस का नतीजा यह निकला कि दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. 12वीं करने के बाद हेमंत आगे की पढ़ाई के लिए जहां लखनऊ चला गया, वहीं प्रेरिका दिल्ली. दोनों भले ही दूरदूर हो गए थे, लेकिन मोबाइल के जरिए उन का संपर्क बना हुआ था.

कंप्यूटर का कोर्स पूरा हो गया तो प्रेरिका ने बीकौम में दाखिला लेने के साथ बैंकिंग की कोचिंग में भी दाखिला ले लिया था. अब तक हेमंत की पढ़ाई पूरी हो गई थी. उसे दिल्ली की रिलैक्सो कंपनी में नौकरी मिल गई तो वह भी दिल्ली आ कर रहने लगा था.

दिल्ली में न प्रेरिका पर कोई नजर रखने वाला था और न हेमंत पर. दोनों खुलेआम मिलनेजुलने के साथसाथ घूमनेटहलने लगे. प्रेरिका भले ही हेमंत से मिलजुल रही थी और घूमफिर रही थी, लेकिन अपने इस प्रेम संबंध को वह वैवाहिक संबंध में तब्दील नहीं कर सकती थी. इस की वजह यह थी कि उस की और हेमंत की जाति अलगअलग थी. दोनों के ही घर वाले उन की शादी के लिए कतई तैयार न होते. हेमंत और प्रेरिका ने अपने प्रेम संबंधों को बहुत छिपाया, पर उन के घर वालों को उन के प्रेम संबंधों का पता चल ही गया. फिर तो दोनों के ही घर वाले परेशान हो उठे. न हेमंत के घर वाले दूसरी जाति की लड़की से शादी करने को तैयार थे और न प्रेरिका के घर वाले दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहते थे. दोनों के ही घर वालों ने उन्हें समझाने का काफी प्रयास किया, लेकिन दोनों ने कोई उचित जवाब नहीं दिया.

कोई ऊंचनीच न हो जाए, यह सोच कर हेमंत के घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढने लगे. यह जान कर हेमंत परेशान हो उठा. दूसरी ओर प्रेरिका भी कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी, इसलिए हेमंत भ्रम में था. वैसे वह अपने पैरों पर खड़ा था, जिस से चाहता, उस से शादी कर सकता था.

आखिर रूप सिंह ने हेमंत के लिए अलीगढ़ की एक लड़की पसंद कर ली. जब इस बात की जानकारी हेमंत को हुई तो वह चिंतित हो उठा. उस ने प्रेरिका से कहा कि अब उसे जल्दी ही फैसला कर लेना चाहिए कि वह उस से शादी कर रही है या नहीं? इस पर प्रेरिका ने कहा कि वह किसी तरह इस शादी को कुछ समय के लिए टाल दे. उसे जैसे ही नौकरी मिल जाएगी, वह उस से शादी के बारे में विचार करेगी.

प्रेरिका का यह व्यवहार हेमंत की समझ में नहीं आ रहा था. वह तनाव में रहने लगा. प्रेरिका के कहने पर उस ने घर में शादी के लिए मना कर दिया. उस ने घर में कहा था कि अभी उस की नईनई नौकरी है, ऐसे में अभी शादीब्याह का झंझट ठीक नहीं है. लड़का बड़ा हो गया था, इसलिए मांबाप को उस की बात माननी पड़ी. उन्होंने विवाह के लिए मना कर दिया.

लेकिन जब समय बीतने के साथ प्रेरिका ने कोई निर्णय नहीं लिया तो हेमंत को लगने लगा कि प्रेरिका शादी को ले कर गंभीर नहीं है. उसे लगा कि शायद वह उस के साथ खेल खेल रही है.

यह बात उसे परेशान करने लगी थी, क्योंकि अब प्रेरिका उस से कटने लगी थी. वह जब भी उस से मिलने को कहता, वह कोई न कोई बहाना बना देती. उस का फोन भी रिसीव करना कम कर दिया था. कभीकभी तो बात करतेकरते ही फोन काट कर स्विच्ड औफ कर देती.

प्रेरिका की ये हरकतें हेमंत को अखरने लगी थीं. परेशान हो कर आखिर एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रेरिका, आखिर तुम चाहती क्या हो, साफसाफ क्यों नहीं बता देतीं?’’

प्रेरिका ने तुनक कर कहा, ‘‘मेरी मम्मी को हमारे प्यार के बारे में पता चल गया है. उन्होंने कसम दिलाई है कि मैं तुम से बिलकुल न मिलूं.’’

हेमंत अवाक रह गया. प्रेरिका यह क्या कह रही है. उसे तो वैसे भी लग रहा था कि प्रेरिका की जिंदगी में कोई और आ गया है, इसीलिए वह उस से दूर भाग रही है. उस ने यह बात प्रेरिका से कही तो उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो हेमंत?’’

‘‘मैं तो वही कह रहा हूं, जो तुम्हारे बातव्यवहार से मुझे लग रहा है. लेकिन तुम्हारे लिए यह ठीक नहीं होगा प्रेरिका.’’

‘‘तो तुम मुझे धमकी दे रहे हो?’’

‘‘धमकी ही समझ लो. प्रेरिका अगर तुम ने खुद को सुधारा नहीं तो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ कह कर हेमंत चला गया.

प्रेरिका प्रेमी की इन बातों से बुरी तरह डर गई. दूसरी ओर हेमंत का भी दिल टूट चुका था. प्रेरिका की दूरी उसे परेशान कर रही थी, इसलिए उसे उस पर गुस्सा आ रहा था. इसी गुस्से में उस ने प्रेरिका के साथ का अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया.

प्रेरिका ने जब उस वीडियो को देखा तो परेशान हो उठी. हेमंत उसे इस तरह बदनाम करेगा, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. जब इस बात की जानकारी प्रेरिका के घर वालों को हुई तो सब की नींद उड़ गई.

उन्होंने समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने हेमंत के घर वालों से बात की. इस के बाद दोनों ओर के कुछ प्रतिष्ठित लोग इकट्ठा हुए. सब ने हेमंत तथा प्रेरिका को बुला कर समझाया और अपनीअपनी जिंदगी जीने की सलाह दी.

प्रेरिका ने जब कहा कि अब वह हेमंत से कोई संबंध नहीं रखना चाहती तो बड़ेबुजुर्गों ने हेमंत को सख्त हिदायत दी कि अब वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा. हेमंत ने सब के सामने वादा कर लिया कि अब वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा. वह उसे फोन भी नहीं करेगा.

बड़ेबुजुर्गों के सामने दबाव में हेमंत ने वादा तो कर लिया कि वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा और उसे फोन भी नहीं करेगा. लेकिन शायद वह प्रेमिका के बिना रह नहीं सकता था. घर वालों को लग रहा था कि हेमंत सुधर गया है, इसलिए उन्होंने उस की शादी मैनपुरी में तय कर दी.

लड़की सेवानिवृत्त फौजी की बेटी थी. रूप सिंह और उस की पत्नी को लगता था कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. बेटा प्रेरिका को भूल कर अपनी गृहस्थी को संभाल लेगा. अब तक प्रेरिका की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह कासगंज आ कर रहने लगी थी. उसे भी पता चल गया था कि हेमंत की शादी हो रही है. उसे भी लगा कि शादी के बाद हेमंत उसे परेशान नहीं करेगा.

सन 2016 के अप्रैल महीने में हेमंत की शादी हो गई. घर वाले चाहते थे कि वह पत्नी को अपने साथ दिल्ली ले जाए, लेकिन हेमंत पत्नी को साथ नहीं ले गया.

भले ही हेमंत की शादी हो गई थी, लेकिन वह प्रेरिका को भूल नहीं पा रहा था. उस के साथ गुजारे गए पल उसे बारबार याद आ रहे थे, जिस से उसे यह सोचसोच कर गुस्सा आ रहा था कि प्रेरिका ने उस के प्यार को मजाक बना कर रख दिया.

हेमंत से रहा नहीं गया तो उस ने प्रेरिका को फोन कर के कहा कि वह उस से मिलना चाहता है. लेकिन प्रेरिका ने मिलने से मना कर दिया. उस ने कहा कि अब तो उस की शादी हो चुकी है, इसलिए अब वह उस से मिल कर क्या करेगा. उसे अपनी पत्नी में दिल लगाना चाहिए.

हेमंत गुस्से में उबल पड़ा. बस उस ने उसी समय तय कर लिया कि अब वह प्रेरिका के इस व्यवहार का बदला ले कर रहेगा. दूसरी ओर घबरा कर प्रेरिका ने अपना मोबाइल नंबर बदल दिया था, जिस से हेमंत की उस से बात नहीं हो पा रही थी. इस से उस का गुस्सा बढ़ता ही गया. बात न होने की वजह से उस का मन बेचैन रहता था. उस की पत्नी को भी उस का व्यवहार अजीब लगता था. उसे सच्चाई का पता नहीं था, फिर भी उसे लगता था कि कुछ गड़बड़ जरूर है.

दिवाली का त्यौहार आया तो हेमंत घर आया. लेकिन त्यौहार को ले कर उस के दिल में कोई उत्साह नहीं था. दिवाली के दिन वह अपने दोस्त मनोज की दुकान पर गया. उस की कमर पर लगी उस की लाइसैंसी पिस्टल देख कर एकदम से उसे प्रेरिका से बदला लेने की बात याद आ गई. इस के बाद बदला लेने के लिए उस ने उसे गोली जरूर मारी, पर वह बच गई. उस के बदले मारा गया निर्दोष अजीत.

पूछताछ के बाद पुलिस ने हेमंत को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. बाद में मनोज और सलीम ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया था.

इस मामले में निर्दोष मारे गए अजीत का परिवार अनाथ हो गया. जिलाधिकारी ने सहानुभूति जताते हुए प्रधानमंत्री फंड से सहायता दिलाने का वादा किया था. लेकिन उस के घर वालों को तो कभी न भुलाने वाला गम मिल ही गया है.

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