आसान नहीं थी उस मासूम की जिंदगी

वह एक आम लड़की थी. दूसरी लड़कियों की तरह वह भी मासूम थी, भोली थी. उस के मुखड़े पर मुसकराहट व आंखों में खूबसूरत सपने थे. वह भी गांवदेहात की दूसरी लड़कियों की तरह ही अपनी जिंदगी को भरपूर जी लेना चाहती थी. इस के लिए वह खूब मेहनत भी कर रही थी.

उस लड़की के मातापिता में बनती नहीं थी. लिहाजा, मां उसे अपने साथ नानी के घर ले गई थी. नानी उसे अपने पास नहीं रहने देना चाहती थीं. वे उस से आएदिन मारपीट करती थीं. अब वह मासूम कहां जाए?

8वीं जमात के बाद ही वह लड़की बालाघाट के आदिवासी छात्रावास में रहने लगी थी, जहां पंकज डहरवाल नामक एक कोचिंग टीचर उसे छेड़ने लगा था. उस लड़की ने सिटी कोतवाली में इस की रिपोर्ट भी की थी. उसे बाल संरक्षण समिति ने भोपाल के बालगृह भेज दिया था.

भोपाल के बालगृह से लड़की का पिता उसे इसी साल ले आया था. शायद पिता का स्नेह जाग गया था. उस लड़की की उम्र इतनी ही थी कि पिता का प्रेम उमड़ पड़ा था. लड़की पिता के पास रहते हुए बालाघाट में म्यूनिसिपल स्कूल में साइंस सैक्शन में दाखिला लेने वाली एकमात्र छात्रा थी.

वह होनहार थी, पर समय को कुछ और ही मंजूर था. उस की चढ़ती उम्र पर एक बार फिर पंकज डहरवाल की नजर पड़ी. और वह जाने कैसे उसी पंकज के जाल में जा फंसी, जिसे वह पहले पुलिस में छेड़छाड़ का आरोपी बना चुकी थी.

क्या किसी साजिश के तहत पंकज ने उसे अपने जाल में फांस लिया होगा? इस बात को सामान्य तौर पर देखने पर यही लगता है कि महज 17 साल की इस छात्रा पर जाने कितने लोगों की नजर रही होगी. वजह, वह ऐसे मातापिता की औलाद थी, जो साथ में नहीं रहते थे.

3 सितंबर की रात को वह लड़की कोचिंग टीचर पंकज डहरवाल के कमरे में फांसी के फंदे पर झूलती पाई गई. उसी रात पंकज से उस का झगड़ा हुआ था. लड़की ने कहा भी था कि वह खुदकुशी कर लेगी.

किस वजह से वह लड़की अकेली ही उस कोचिंग टीचर के कमरे में हफ्तेभर से रह रही थी? वहां उस के साथ क्या घट रहा था? ऐसे सवालों के जवाब देने को कोई तैयार नहीं है.

पुलिस ने घटना की रात के बाद पंकज को दिनभर कोतवाली में बिठाया. आगे क्या हुआ, अखबारों में कुछ भी नहीं आया. कभीकभार तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी गलत होती है या मौत पर कुछ भी रोशनी नहीं डाली जाती है.

लड़की के पिता ने कहा कि लड़की को मारा गया है. इस पर पुलिस चुप है. पंकज पर क्या कार्यवाही हुई, इस पर अखबारों में कुछ भी नहीं छपा है. बालाघाट में कोई महिला संगठन सक्रिय नहीं है कि एक मासूम छात्रा के साथ क्या हुआ, इस पर सवाल उठाता.

बालाघाट एक बेहद पिछड़ा जिला है. जनता में किसी तरह की जागरूकता नहीं है. पत्रकारिता का लैवल भी यहां उतना तीखा नहीं है. अकसर लड़कियों की हत्या के बाद पुलिस मामले को रफादफा कर देती है. लड़की के घर वाले भी यह सोच कर चुप हो जाते हैं कि अब तो वह वापस आने से रही.

इन सब बातों का फायदा उठा कर अपराधी अपराध कर के बच जाते हैं. वैसे भी लड़कियों की तस्करी के मामले में छिंदवाड़ा व बालाघाट जिले आगे हैं. कोई इन मासूम लड़कियों पर हो रहे जुल्मों की खोजखबर लेने वाला नहीं है. निजी फायदे में गले तक डूबी राजनीति में नेताओं का माफियाराज अपने में मस्त है. मासूमों की जिंदगी सस्ती हो चुकी है. पुलिस महज खानापूरी कर रही है. ऐसे में कौन देगा ऐसी हत्याओं के सवालों के जवाब?

तीन साल बाद खुला मौत का रहस्य

पिछले साल सन 2016 के सितंबर महीने में अलीगढ़ का एसएसपी राजेश पांडेय को बनाया गया तो चार्ज लेते ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि जितनी भी जांचें अधूरी पड़ी हैं, उन की फाइलें उन के सामने पेश करें. जब सारी फाइलें उन के सामने आईं तो उन में एक फाइल थाना गांधीपार्क में दर्ज प्रीति अपहरण कांड की थी, जिस की जांच अब तक 10 थानाप्रभारी कर चुके थे और यह मामला 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. राजेश पांडेय को यह मामला कुछ रहस्यमय लगा. उन्होंने इस मामले की जांच सीओ अमित कुमार को सौंपते हुए जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. अमित कुमार ने फाइल देखी तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ. क्योंकि इतने थानाप्रभारियों ने मामले की जांच की थी, इस के बावजूद मामले का खुलासा नहीं हो सका था. उन्होंने थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को कुछ निर्देश दे कर फाइल सौंप दी.

मामला काफी पुराना और रहस्यमयी था, इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए दिनेश कुमार दुबे ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई अजीत सिंह, एसआई धर्मवीर सिंह, कांस्टेबल सत्यपाल सिंह, मोहरपाल सिंह और नितिन कुमार को शामिल किया.

फाइल का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उन्होंने मामले की जांच फरीदाबाद से शुरू की, क्योंकि प्रीति को भगाने का जिस युवक जयकुमार पर आरोप था, वह फरीदाबाद का ही रहने वाला था. दिनेश कुमार दुबे फरीदाबाद जा कर उस की मां संध्या से मिले तो उस ने बताया कि जयकुमार उस का एकलौता बेटा था. उस पर जो आरोप लगे हैं, वे झूठे हैं. उस का बेटा ऐसा कतई नहीं कर सकता. उस ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी.

संध्या से पूछताछ के बाद दिनेश कुमार दुबे को मामला कुछ और ही नजर आया. अलीगढ़ लौट कर उन्होंने 13 जनवरी, 2016 को प्रीति के पिता देवेंद्र शर्मा को थाने बुलाया, जिस ने जयकुमार पर बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस के सामने आने पर वह इस तरह घबराया हुआ था, जैसे उस ने कोई अपराध किया हो. जब सीओ अमित कुमार, एसपी (सिटी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने उस से जयकुमार के बारे में पूछताछ की तो पुलिस अधिकारियों को गुमराह करते हुए वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन यह भी सच है कि आदमी को एक सच छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में ही कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाती है कि सच सामने आ जाता है. उसी तरह देवेंद्र के मुंह से भी घबराहट में निकल गया कि कहीं जयकुमार ने घबराहट में ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली.

देवेंद्र की इस बात ने पुलिस अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसे कैसे पता चला कि जयकुमार ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने दिसंबर, 2013 के ट्रेन एक्सीडेंट के रिकौर्ड खंगाले तो पता चला कि थाना सासनी गेट पुलिस को 7 दिसंबर, 2013 को ट्रेन की पटरी पर एक लावारिस लाश मिली थी.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने देवेंद्र के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने जयकुमार की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जयकुमार की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस की शातिराना कहानी सुन कर पुलिस हैरान रह गई. देवेंद्र ने बताया कि अपनी इज्जत बचाने के लिए उसी ने अपने साले प्रमोद कुमार के साथ मिल कर जयकुमार की हत्या कर दी थी. इस बात की जानकारी उस की बेटी प्रीति को भी थी.

इस के बाद पुलिस ने देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति और उस के साले प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रीति और प्रमोद ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. तीनों की पूछताछ में जयकुमार की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क के नगला माली का रहने वाला देवेंद्र शर्मा रोजीरोटी की तलाश में हरियाणा के फरीदाबाद आ गया था. उसे वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई तो रहने की व्यवस्था उस ने थाना सारंग की जवाहर कालोनी के रहने वाले गंजू के मकान में कर ली. उन के मकान की पहली मंजिल पर किराए पर कमरा ले कर देवेंद्र शर्मा उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. यह सन 2013 के शुरू की बात है.

उन दिनों देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति यही कोई 17-18 साल की थी और वह अलीगढ़ के डीएवी कालेज में 12वीं में पढ़ रही थी. फरीदाबाद में सब कुछ ठीक चल रहा था.

देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति जवान हो चुकी थी. मकान मालिक गंजू की पत्नी गुडि़या का ममेरा भाई जयकुमार अकसर उस से मिलने उस के यहां आता रहता था. वह पढ़ाई के साथसाथ एक वकील के यहां मुंशी भी था. इस की वजह यह थी कि उस के पिता शंकरलाल की मौत हो चुकी थी, जिस से घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहा था.

जयकुमार अपनी मां संध्या के साथ जवाहर कालोनी में ही रहता था. फुफेरी बहन गुडि़या के घर आनेजाने में जयकुमार की नजर देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति पर पड़ी तो वह उस के मन को ऐसी भायी कि उस से प्यार करने के लिए उस का दिल मचल उठा. अब वह जब भी बहन के घर आता, प्रीति को ही उस की नजरें ढूंढती रहतीं.

एक बार जयकुमार बहन के घर आया तो संयोग से उस दिन प्रीति गुडि़या के पास ही बैठी थी. जयकुमार उस दिन कुछ इस तरह बातें करने लगा कि प्रीति को उस में मजा आने लगा. उस की बातों से वह कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया.

जयकुमार देखने में ठीकठाक तो था ही, अपनी मीठीमीठी बातों से किसी को भी आकर्षित कर सकता था. उस की बातों से ही आकर्षित हो कर प्रीति ने उस का मोबाइल नंबर लिया था. इस के बाद दोनों की बातचीत मोबाइल फोन से शुरू हुई तो जल्दी उन में प्यार हो गया. फिर खतरों की परवाह किए बिना दोनों प्यार की राह पर बेखौफ चल पड़े. दोनों घर वालों की चोरीछिपे जब भी मिलते, घंटों भविष्य के सपने बुनते रहते.

जल्दी ही प्रीति और जयकुमार प्यार की राह पर इतना आगे निकल गए कि उन्हें जुदाई का डर सताने लगा था. उन के एक होने में दिक्कत उन की जाति थी. दोनों की ही जाति अलगअलग थी. उन की आगे की राह कांटों भरी है, यह जानते हुए भी दोनों उसी राह पर आगे बढ़ते रहे.

देवेंद्र गृहस्थी की गाड़ी खींचने में व्यस्त था तो बेटी आशिकी में. लेकिन कहीं से प्रीति की मां रीना को बेटी की आशिकी की भनक लग गई. उन्होंने बेटी को डांटाफटकारा, साथ ही प्यार से समझाया भी कि जमाना बड़ा खराब है, इसलिए बाहरी लड़के से बातचीत करना अच्छी बात नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बिना मतलब की बदनामी होगी.

मां ने भले ही समझाया, लेकिन जयकुमार के प्यार में डूबी प्रीति को मां की बात समझ में नहीं आई. परेशान हो कर रीना ने सारी बात पति को बता दी. बेटी की आशिकी के बारे में सुन कर देवेंद्र तिलमिला उठा. वह मकान मालिक गंजू से मिला और उन से कहा कि वह जयकुमार को घर आने से मना करें, क्योंकि वह उस की बेटी प्रीति को बरगला रहा है.

‘‘आप का कहना ठीक है, लेकिन अपने किसी रिश्तेदार को मैं घर आने से कैसे रोक सकता हूं. आप अपनी बेटी को थोड़ा संभाल कर रखिए.’’ मकान मालिक गंजू ने कहा.

गंजू की इस बात से देवेंद्र ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. अब वह मकान मालिक से तो कुछ नहीं कह सकता था, लेकिन जयकुमार उसे जब भी मिलता, उसे धमकाता कि वह जो कर रहा है, ठीक नहीं है. वह उस की बेटी का पीछा छोड़ दे वरना उसे पछताना पड़ सकता है. लेकिन जयकुमार भी प्रीति के प्रेम में इस तरह डूबा था कि देवेंद्र की चेतावनी का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. जबकि देवेंद्र मन ही मन बौखलाया हुआ था.

प्रीति की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तारीख आ गई तो वह परीक्षा देने अपने मामा प्रमोद कुमार के यहां अलीगढ़ चली गई. उस के मामा अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क की बाबा कालोनी में रहते थे. घर वाले तो यही जानते थे कि प्रीति बस से अलीगढ़ गई है, लेकिन घर से निकलने से पहले उस ने जयकुमार को फोन कर दिया था, इसलिए वह मोटरसाइकिल ले कर उसे रास्ते में मिल गया था. उस के बाद प्रीति उस की मोटरसाइकिल से अलीगढ़ गई थी.

मामा के घर रह कर प्रीति ने परीक्षा दे दी. उसी बीच प्रीति के मामामामी अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में चले गए तो घर खाली देख कर उस ने जयकुमार को फोन कर के अलीगढ़ बुला लिया. प्रेमिका के बुलाने पर घर में बिना किसी को कुछ बताए जयकुमार उस से मिलने अलीगढ़ पहुंच गया. प्रेमी को देख कर प्रीति का दिल बल्लियों उछल पड़ा. वह प्रेमी के आगोश में समा गई. जयकुमार और प्रीति को उस दिन पहली बार एकांत और आजादी मिली थी, इसलिए उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दीं. ऐसे में जयकुमार ने प्रीति से वादा किया कि कुछ भी हो, हर हालत में वह उसे अपना कर रहेगा.

प्रीति को भी प्रेमी पर पूरा विश्वास था. लेकिन उस दिन दोनों ने एक गलती कर दी. जयकुमार को प्रेमिका से मिल कर वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वह तो उस दिन और पिला दे साकी वाली स्थिति में था. प्रीति भी भूल गई थी कि अगले दिन मामामामी लौट आएंगे.

दोनों एकदूसरे में इस तरह खो गए कि सब कुछ भूल गए. याद तब आया, जब दरवाजे पर दस्तक हुई. प्रीति ने दरवाजा खोला तो मामामामी को देख कर सन्न रह गई. जयकुमार घर में ही था. प्रमोद ने अपने घर में जयकुमार को देखा तो पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘यह जयकुमार है. मेरे मकान मालिक का साला.’’ प्रीति ने बताया.

प्रमोद को जब पता चला कि जयकुमार एक दिन पहले उस के घर आया था और प्रीति के साथ रात में रुका था तो उसे इस बात की चिंता हुई कि यह लड़का यहां क्यों आया था? उसे दाल में कुछ काला लगा तो उस ने जयकुमार को एक कमरे में बंद कर दिया और अपने बहनोई देवेंद्र को फोन कर के सारी बात बता दी.

देवेंद्र उस समय उत्तराखंड के रुद्रपुर में था. उस ने कहा, ‘‘जब तक मैं आ न जाऊं, तब तक उसे उसी तरह कमरे में बंद रखना.’’

प्रीति डर गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रेमी को छुड़ाने के लिए वह क्या करे. उस ने मामामामी से बहुत विनती की कि वे जयकुमार को छोड़ दें, लेकिन प्रमोद कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था, इसलिए उस ने जयकुमार को नहीं छोड़ा.

शाम को देवेंद्र अलीगढ़ पहुंचा तो उस ने पहले ही मन ही मन तय कर लिया था कि बेटी के इस प्रेमी के साथ उसे क्या करना है? उस ने रास्ते में ही शराब की बोतल खरीद ली थी और साले के यहां पहुंचने से पहले ही उस ने शराब पी कर मूड बना लिया था.

नशे में धुत्त वह साले के यहां पहुंचा तो जयकुमार को कमरे से निकाल कर बातचीत शुरू हुई. इस बातचीत में जयकुमार ने साफसाफ कह दिया कि वह प्रीति से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. यह सुन कर देवेंद्र का खून खौल उठा और वह जयकुमार की पिटाई करने लगा.

पिटाई करते हुए ही उस ने जयकुमार से कहा, ‘‘इस बार तुम ने जो किया, माफ किए देता हूं. अब दोबारा ऐसी गलती मत करना. चलो, हम तुम्हें दिल्ली जाने वाली बस में बिठा देते हैं. फरीदाबाद आऊंगा तो तुम्हारी मां से बात करूंगा.’’

प्यार में बड़ी उम्मीदें होती हैं, जयकुमार को भी लगा कि शायद प्रेमिका का बाप मां से बात कर के शादी करा देगा. लेकिन देवेंद्र के मन में तो कुछ और था. अब तक अंधेरा गहरा चुका था.

देवेंद्र और प्रमोद जयकुमार को ले कर पैदल ही चलते हुए नगला मानसिंह होते हुए रेलवे लाइन की ओर नई बस्ती के अवतारनगर में रहने वाले अपने एक परिचित विनोद के घर पहुंचे.

विनोद ने चाय बनवाने के लिए कहा तो देवेंद्र ने सिर्फ पानी लाने को कहा. विनोद ने जयकुमार के बारे में पूछा तो देवेंद्र ने बताया कि यह उस के दोस्त का बेटा है. विनोद पानी ले आया तो प्रमोद और देवेंद्र ने शराब पी. नशा चढ़ा तो दोनों जयकुमार को ले कर रेलवे लाइन की ओर चल पड़े. अब तक काफी अंधेरा हो चुका था. जयकुमार कुछ समझ पाता, उस के पहले ही सुनसान पा कर दोनों ने उसे एक गड्ढे में गिरा दिया.

वह संभल भी नहीं पाया, उस के पहले ही दोनों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद दोनों वहीं बैठ कर ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्हें ट्रेन आती दिखाई दी तो जयकुमार की लाश को उठा कर दोनों ने पटरी पर रख दिया. ट्रेन लाश के ऊपर से गुजर गई तो वह कई टुकड़ों में बंट गई.

देवेंद्र और प्रमोद ने राहत की सांस ली, क्योंकि अब कांटा निकल गया था. लेकिन अब क्या करना है, अभी देवेंद्र को इस बारे में सोचना था. उस ने जो किया था, उसे भले ही किसी ने नहीं देखा था, लेकिन उसे होशियार तो रहना ही था. सुबह प्रीति ने उस से पूछा, ‘‘पापा, जयकुमार चला गया क्या?’’

देवेंद्र ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपनी पढ़ाई से मतलब रख. कौन कहां गया, इस से तुझे क्या मतलब?’’

प्रीति को शक हुआ. अगले दिन उस ने जयकुमार को फोन किया. लेकिन उस का तो फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. अब प्रीति की समझ में आ गया कि जयकुमार के साथ क्या हुआ है. वह बुरी तरह डर गई.

जयकुमार 2 दिन घर नहीं आया तो उस की मां गंजू के घर गई. उस ने बताया कि जयकुमार 2 दिनों से घर नहीं आया है और उस का फोन भी नहीं लग रहा है तो गंजू को भी चिंता हुई. उस ने रीना से प्रीति के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो परीक्षा देने अलीगढ़ गई है. जब उसे पता चला कि देवेंद्र भी घर पर नहीं है तो उस ने देवेंद्र को फोन कर के कहा कि वह जयकुमार को वापस भेज दे.

गंजू के इस फोन से देवेंद्र शर्मा घबरा गया. वह क्या जवाब दे, एकदम से उस की समझ में नहीं आया. लेकिन अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘प्रीति भी घर से गायब है. लगता है, वह उसे कहीं भगा ले गया है.’’

यह सुन कर संध्या परेशान हो उठी. उसे विश्वास नहीं हुआ कि उस का बेटा ऐसा भी कर सकता है. दूसरी ओर देवेंद्र परेशान था. वह गुनाह का ऐसा जाल बुनना चाहता था, जिस में जयकुमार का परिवार इस तरह फंस जाए कि कोई काररवाई करने के बजाए वह बचने के बारे में सोचे. उस ने पड़ोस में रहने वाले चौकीदार राकेश को बताया कि जयकुमार नाम का एक लड़का उस की बेटी को भगा ले गया है.

इस के बाद वह वकील मुन्नालाल के पास पहुंचा और उसे सारी बात बता दी. वकील मुन्नालाल देवेंद्र का परिचित था. उस ने उसे सलाह दी कि वह जयकुमार के खिलाफ बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज करा दे.

इस के बाद देवेंद्र मुन्नालाल वकील और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर थाना गांधीपार्क पहुंचा और जयकुमार के खिलाफ अपनी नाबालिग बेटी प्रीति को भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. यह मुकदमा 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच एसआई अभय कुमार को सौंपी गई.

अभय कुमार ने जयकुमार को नाबालिग प्रीति को भगाने का दोषी मानते हुए जांच शुरू की तो देवेंद्र को लगा कि उस ने जो किया है, पुलिस उस बारे में जान नहीं पाएगी. लेकिन चिंता की बात यह भी थी कि प्रीति का वह क्या करे. अब उसे घर में रखना ठीक नहीं था. दूसरी ओर उसे पता भी चल गया था कि जयकुमार की हत्या हो चुकी है.

पूछताछ में प्रीति सच्चाई उगल सकती थी, इसलिए उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने किसी को भी यह बात बताई तो वह उस की भी हत्या कर के उस की लाश को जयकुमार की लाश की तरह रेल की पटरी पर डाल आएगा. प्रीति डर गई. उस ने पिता से वादा किया कि वह मर सकती है, लेकिन यह बात किसी को बता नहीं सकती.

अब प्रीति को छिपा कर रखना था. इस के लिए देवेंद्र ने प्रीति को थाना सादाबाद, जिला हाथरस के गांव करसोरा स्थित अपने साले प्रमोद कुमार की ससुराल भिजवा दिया. चूंकि प्रमोद उस के साथ जयकुमार की हत्या में शामिल था, इसलिए देवेंद्र जो चाहता था, उसे वैसा ही करना पड़ता था. प्रीति मामा की ससुराल पहुंच गई, जबकि पुलिस जयकुमार और प्रीति की तलाश में दरदर भटकती रही.

प्रीति से छुटकारा पाने के लिए देवेंद्र उस के लिए लड़का तलाशने लगा. थोड़ी कोशिश कर के थाना वृंदावन के मोहल्ला चंदननगर के रहने वाले पूरन शर्मा का बेटा राहुल उसे पसंद आ गया तो करसोरा से ही उस ने प्रीति की शादी राहुल से कर दी. प्रीति की यह शादी 27 फरवरी, 2014 को हुई.

इस तरह प्रीति को ससुराल भेज कर देवेंद्र निश्चिंत हो गया. मजे की बात यह थी कि वह शांत नहीं बैठा था. वह महीने, 15 दिनों में थाने पहुंच जाता और पुलिस से बेटी की तलाश के लिए गुहार लगाता.

यही नहीं, वह फरीदाबाद में रहने वाले जयकुमार के घर वालों को भी धमकाता कि वे जयकुमार के बारे में पता कर के उस की बेटी को बरामद कराएं, वरना वह उन्हें शांति से जीने नहीं देगा. भले ही जयकुमार का कत्ल हो गया था और प्रीति की शादी हो गई थी. फिर भी पुलिस का डर तो देवेंद्र को सताता ही रहता था.

कहीं जयकुमार की हत्या का रहस्य खुल न जाए, इस बात से परेशान देवेंद्र एक बार फिर वकील मुन्नालाल से मिला. उस ने कहा कि अगर पुलिस को प्रीति के बारे में पता चल गया तो उस की परेशानी बढ़ सकती है. पुलिस उस पर शिकंजा कस सकती थी. अब तक प्रीति गर्भवती हो चुकी थी.

मुन्नालाल ने पूरी कहानी पर एक बार फिर नए सिरे से विचार किया. इस के बाद उस ने सलाह दी कि वह प्रीति को पुलिस के सामने पेश कर के उस से कहलवाए कि वह जयकुमार के बच्चे की मां बनने वाली है. वह उसे धोखा दे कर मथुरा रेलवे स्टेशन पर छोड़ कर कहीं भाग गया है. उस के बाद वह पिता के पास आ गई है.

प्रीति के अपहरण के मामले की जांच अब तक कई थानाप्रभारी कर चुके थे. लेकिन कोई मामले की तह तक नहीं पहुंच सका था. शायद उन्होंने कोशिश ही नहीं की थी. जबकि पुलिस ने कई बार फरीदाबाद जा कर जयकुमार की मां एवं रिश्तेदारों से पूछताछ की थी.

पूछताछ में जयकुमार की विधवा मां ने हर बार यही कहा था कि जयकुमार और प्रीति एकदूसरे को प्यार करते थे. दोनों को प्रीति के पिता देवेंद्र ने ही गायब किया है. मुकदमा दर्ज कराने के बाद देवेंद्र फरीदाबाद छोड़ कर बल्लभगढ़ में रहने लगा था. उस ने प्रीति को फोन कर के कहा कि वह सासससुर से लड़ाई कर के उस के यहां आ जाए. प्रीति पिता के हाथ की कठपुतली थी, इसलिए पिता ने जैसा कहा, उस ने वैसा ही किया.

इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहती थी कि उस के प्रेमसंबंधों की जानकारी उस की ससुराल वालों को हो. क्योंकि जानकारी होने के बाद वे उसे घर से निकाल सकते थे. पिता के कहने पर प्रीति ने सास से लड़ाई कर ली तो उसी दिन देवेंद्र उसे विदा कराने उस की ससुराल पहुंच गया.

वकील की सलाह के अनुसार देवेंद्र ने 1 सितंबर, 2015 को प्रीति को एसएसपी के सामने पेश कर दिया. प्रीति ने पुलिस के सामने वही सब कहा, जैसा उसे वकील ने सिखाया था. एसएसपी के आदेश पर प्रीति का मैडिकल कराया गया. जिस समय प्रीति को एसएसपी के सामने पेश किया गया था, उस समय थाना गांधीपार्क के थानाप्रभारी अमित कुमार थे. मजे की बात यह थी कि उन्होंने प्रीति से यह भी जानने की कोशिश नहीं की थी कि जयकुमार के साथ भागने के बाद वह उस के साथ कहांकहां रही.

पुलिस की देखरेख में ही प्रीति ने बच्चे को जन्म दिया. पुलिस ने अदालत में भी प्रीति के बयान करा दिए. वहां भी प्रीति ने वही कहानी सुना दी. अदालत ने प्रीति को उस के पिता को सौंप दिया. अब तक वैसा ही हो रहा था, जैसा देवेंद्र चाह रहा था. लेकिन इसी के बाद जब अलीगढ़ के एसएसपी बन कर राजेश पांडेय आए तो सब उलटा हो गया और वह पकड़ा गया.

मृतक जयकुमार के घर वालों को भी उस की हत्या की सूचना दे दी गई थी. पुलिस ने उस की मां को बुला कर जब जयकुमार के रखे सामान को दिखाया तो उस ने बेटे के जूते और कपड़ों की पहचान कर के फोटो में भी उस की शिनाख्त कर दी.

इस के बाद पुलिस ने प्रीति, देवेंद्र और प्रमोद को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एसएसपी ने इस मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है, साथ ही थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को शाबाशी दी.

प्रीति की ससुराल वालों को जब सच्चाई का पता चला तो वे हैरान रह गए. प्रीति ने प्रेम क्या किया, अपनी तो जिंदगी बरबाद की ही, प्रेमी को भी मरवा दिया जो विधवा मां का एकलौता सहारा था.

बदले का प्यार

2 हत्याओं की बात थी, इसलिए सूचना मिलते ही एसपी (ग्रामीण) जयप्रकाश सिंह, सीओ अजय कुमार और थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी गांव अज्योरी पहुंच गए थे. यह गांव उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के थाना सजेती के अंतर्गत आता है. दोनों हत्याएं इसी गांव के श्रीपाल के घर हुई थीं. यह 19 अगस्त, 2017 की बात है.

पुलिस अधिकारी श्रीपाल के घर के अंदर  घुसे तो वहां की हालत देख कर दहल उठे. आंगन  में 2 लाशें खून से सनी अगलबगल पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी तो दूसरी युवती की. युवक की उम्र 25 साल के आसपास थी, जबकि युवती की 20 साल के आसपास थी. दोनों लाशों के बीच 315 बोर का एक तमंचा और कारतूस के 2 खोखे भी पड़े थे.

पुलिस अधिकारी यह देख कर सोच में पड़ गए कि युवती की लाश पर तो घर वाले बिलख रहे थे, जबकि युवक की लाश पर वहां कोई रोने वाला नहीं था. एसपी जयप्रकाश सिंह ने श्रीपाल से इस बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, युवती मेरी बेटी रीता है और युवक मेरे दामाद बबलू का छोटा भाई पीयूष उर्फ छोटू. इसी ने गोली मार कर पहले रीता की हत्या की होगी, उस के बाद खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली है. जब इस ने यह सब किया, तब घर में कोई नहीं था.’’

‘‘इस ने ऐसा क्यों किया?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, पीयूष रीता से एकतरफा प्यार करता था और शादी के लिए परेशान कर रहा था. जबकि रीता उस से शादी नहीं करना चाहती थी. आज भी इस ने शादी के लिए ही कहा होगा, रीता ने मना किया होगा तो उस ने उसे मार डाला.’’ श्रीपाल ने कहा.

‘‘तुम ने पीयूष के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी है?’’

‘‘जी साहब, मैं ने फोन कर के इस के पिता और भाई को बता दिया है. लेकिन उन्होंने आने से साफ मना कर दिया है.’’ श्रीपाल ने कहा.

‘‘क्यों?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, इस की हरकतों से पूरा परिवार परेशान था. यह घर वालों से रीता से शादी कराने के लिए कहता था, शराब पी कर झगड़ा करता था, इसलिए घर वाले इस से त्रस्त थे. यही वजह है कि इस की मौत की खबर पा कर भी कोई आने को तैयार नहीं है.’’

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इस के बाद सीओ अजय कुमार ने पीयूष के पिता विश्वंभर को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मिट्टी का तेल डाल कर आप उस की लाश को जला दीजिए. उस ने जो किया है, उस से मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. अब मैं उस का मुंह नहीं देखना  चाहता.’’

इस के बाद अजय कुमार ने उस के बडे़ भाई बबलू को फोन किया तो उस ने भी यह कह कर आने से मना कर दिया कि उस की हरकतों से परेशान हो कर उस ने तो पहले ही उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अब तक फोरेंसिक टीम आ चुकी थी. उस ने अपना काम कर लिया तो थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद रीता के घर वालों से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर के कस्बा सजेती से 3 किलोमीटर की दूरी पर सड़क किनारे बसा है गांव अज्योरी. इसी गांव में श्रीपाल अपनी पत्नी, 2 बेटियों गुड्डी, रीता और 2 बेटों रविंद्र एवं अरविंद के साथ रहता था. उस के पास खेती की जो जमीन थी, उसी की पैदावार से वह अपना गुजरबसर करता था.

श्रीपाल की बड़ी बेटी गुड्डी ने दसवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी तो उन्होंने कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला मछरिया के रहने वाले विश्वंभर के बेटे बबलू से उस का विवाह कर दिया. विश्वंभर का अपना मकान था. भूतल पर किराने की दुकान थी, जिसे वह संभालते थे. बबलू नौकरी करता था, जबकि उस से छोटा पीयूष ड्राइवर था.

पीयूष ट्रक चलाता था. उसे जो भी वेतन मिलता था, वह खुद पर ही खर्च करता था. घर वालों को एक पैसा नहीं देता था. हां, अगर गुड्डी कुछ कह देती तो वह उस की फरमाइश पूरी करता था. देवरभाभी में पटती भी खूब थी. दोनों के बीच हंसीमजाक भी खूब होती थी. लेकिन इस हंसीमजाक में दोनों मर्यादाओं का खयाल जरूर रखते थे.

गुड्डी की छोटी बहन रीता बेहद खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. वह अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. जवानी की दहलीज पर उस ने कदम रखा तो उस की खूबसूरती और बढ़ गई. देखने वालों की निगाहें जब उस पर पड़तीं, ठहर कर रह जातीं. रीता तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतना ही पढ़ने में भी तेज थी. इस समय वह बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. अपने स्वभाव और पढ़ाई की वजह से रीता मांबाप की ही नहीं, भाइयों की भी आंखों का तारा थी.

पीयूष जब कभी भाई की ससुराल जाता, उस की नजरें रीता पर ही जमी रहतीं. मौका मिलने पर वह उस से हंसीमजाक और छेड़छाड़ भी कर लेता था. जीजासाली का रिश्ता होने की वजह से रीता ज्यादा विरोध भी नहीं करती थी. शरमा कर आंखें झुका लेती थी. इस से पीयूष को लगता था कि रीता उस में दिलचस्पी ले रही है.

इसी साल जून महीने की एक तपती दोपहर को पीयूष ट्रक ले कर हमीरपुर जा रहा था. घाटमपुर कस्बा पार करते ही उस का ट्रक खराब हो गया. उस ने ट्रक खलासी के हवाले किया और खुद आराम करने की गरज से भाई की ससुराल पहुंच गया. संयोग से उस समय रीता घर में अकेली थी. छोटे जीजा को देख कर रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आप चाय पिएंगे या शरबत?’’

‘‘चिलचिलाती धूप से आ रहा हूं. अभी कुछ भी पीने से तबीयत खराब हो सकती है.’’ अंगौछे से पसीना पोंछते हुए पीयूष ने कहा.

‘‘जीजाजी, आप आराम कीजिए मैं टीवी देख रही हूं. आप को जब भी कुछ पीना हो, बता दीजिएगा.’’ रीता ने कहा.

‘‘टीवी पर देहसुख वाली फिल्म देख रही हो क्या?’’ पीयूष ने हंसी की.

शरमाते हुए रीता ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप इस तरह की फालतू बातें मत किया कीजिए.’’

‘‘रीता यह फालतू की बात नहीं, इसी में जिंदगी का सच है.’’

‘‘कुछ भी हो, मुझे इस तरह की बातों में कोई रुचि नहीं है.’’ कहते हुए रीता कमरे से चली गई.

थोड़ी देर आराम करने के बाद पीयूष ने पानी मांगा तो रीता गिलास में ठंडा पानी ले आई. उसे देख कर पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो. तुम्हें देख कर किसी का भी मन डोल सकता है. मेरा भी जी चाहता है कि तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं.’’

रीता ने अदा से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अभी धीरज रखो जीजाजी और आराम से पानी पियो. मुझे बांहों में भरने का सपना रात में देखना.’’

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. पीयूष मन ही मन सोचने लगा कि रीता उस की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती है. इस का मतलब उस के दिल में भी वही सब है, जो वह उस के बारे में सोचता है. जिस तरह वह रीता को चाहता है, उसी तरह रीता भी मन ही मन उसे चाहती है.

रीता के प्यार में आकंठ डूबा पीयूष उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का ख्वाब देखने लगा. अब वह रीता के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. उसे रिझाने के लिए जब भी वह आता, कोई न कोई उपहार ले कर आता. थोड़ी नानुकुर के बाद रीता उस का लाया उपहार ले भी लेती. जबकि रीता जानती थी कि इन उपहारों को लाने के पीछे पीयूष का कोई न कोई स्वार्थ जरूर है.

दिन बीतने के साथ रीता को पाने की चाहत पीयूष के मन में बढ़ती ही जा रही थी. लेकिन रीता न तो उस के प्यार को स्वीकार रही थी और न ही मना कर रही थी. रीता के कुछ न कहने से पीयूष की समझ में नहीं आ रहा था कि रीता उस से प्यार करती भी है या नहीं?

इस बात को पता करने के लिए एक दिन पीयूष रीता के यहां आया और उस की खूबसूरती का बखान करते हुए उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रीता, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘यह क्या कह रहे हैं जीजाजी आप?’’ रीता ने अपना हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप भले ही मुझ से प्यार करते हैं, लेकिन मैं आप से प्यार नहीं करती. आप से हंसबोल लेती हूं तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं आप से प्यार करती हूं.’’

‘‘मजाक मत करो रीता,’’ पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम मेरी साली हो और साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. लेकिन मैं तुम्हें पूरी तरह अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. इसलिए तुम मना मत करो.’’

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‘‘हरगिज नहीं,’’ रीता गुस्से में बोली, ‘‘न तो मैं तुम से प्यार करती हूं और न तुम मेरी पसंद हो. मैं बीए कर रही हूं, जबकि तुम कक्षा 8 भी पास नहीं हो. मैं किसी पढ़ेलिखे लड़के से शादी करूंगी, किसी ड्राइवर से नहीं, इसलिए आप मुझे भूल जाओ.’’

रीता के इस तरह साफ मना कर देने से पीयूष का दिल टूट गया. लेकिन वह एकतरफा प्यार  में इस तरह पागल था कि उसे लगता था कि एक न एक दिन रीता मान जाएगी. इसलिए उस ने रीता के यहां आनाजाना बंद नहीं किया. यह बात अलग थी कि अब रीता उस से ज्यादा बात नहीं करती थी.

रीता ने पीयूष के एकतरफा प्यार की बात घर वालों को बताई तो सब परेशान हो उठे. यह एक गंभीर समस्या थी, इसलिए यह बात गुड्डी और उस के पति बबलू को भी बता दी गई. दोनों ने पीयूष को समझाया कि वह रीता को भूल जाए. इस पर पीयूष ने साफ कह दिया कि वह शादी करेगा तो सिर्फ रीता से करेगा, वरना जहर खा कर जान दे देगा.

पीयूष शराब भी पीता था. रीता ने उस के प्यार को ठुकराया तो वह कुछ ज्यादा ही शराब पीने लगा. वह जबतब शराब पी कर रीता से मिलने उस के घर पहुंच जाता और रीता पर शादी के लिए दबाव बनाता. रीता उसे खरीखोटी सुना कर शादी से मना कर देती थी.

पीयूष रीता के घर वालों पर भी शादी के लिए दबाव डाल रहा था. वह धमकी भी देता था कि अगर रीता से उस की शादी नहीं हुई तो अच्छा नहीं होगा. आखिर निराश हो कर पीयूष ने रीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन वह उसे फोन जरूर करता था. रीता कभी फोन रिसीव कर लेती तो कभी काट देती. पीयूष दिनरात फोन करने लगा तो परेशान हो कर रीता ने अपना फोन नंबर ही बदल दिया.

रीता के यहां से इनकार होने पर पीयूष ने भाई और पिता से कहा कि वे रीता के पिता से बात कर के उस की शादी रीता से करा दें. अगर वे शादी के लिए तैयार नहीं होते तो गुड्डी को घर से निकाल दें. इस पर बात करने की कौन कहे, पिता और भाई ने पीयूष को ही डांटा.

पिता और भाई के मना करने से नाराज हो कर पीयूष ने काफी मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. उस की हालत बिगड़ने लगी तो उसे हैलट अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे बचा लिया. इस के बाद बबलू गुड्डी को ले कर परिवार से अलग हो गया और किराए का कमरा ले कर रहने लगा. विश्वंभर ने भी पीयूष से परेशान हो कर उस से बातचीत बंद कर दी.

पीयूष रीता के प्यार में इस तरह पागल था कि उसे जबरदस्ती हासिल करने के बारे में सोचने लगा. उस का एक साथी ड्राइवर अपराधी प्रवृत्ति का था. कई बार वह जेल भी जा चुका था. उसी की मदद से पीयूष ने 315 बोर का एक तमंचा और 4 कारतूस खरीदे. उस ने उसी से तमंचा चलाना भी सीखा.

पीयूष 19 अगस्त, 2017 की दोपहर घर पहुंचा और पिता से जबरदस्ती मोटरसाइकिल की चाबी ले कर मोटरसाइकिल निकाली और रीता के घर पहुंच गया. संयोग से उस समय घर में रीता अकेली थी. पीयूष ने रीता को आंगन में बुला कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘रीता, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’

अपना हाथ छुड़ाते हुए रीता गुस्से में बोली, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा कि मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. आखिर यह बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती?’’

‘‘एक बार और सोच लो रीता. तुम्हारा मना करना कहीं तुम्हें भारी न पड़ जाए?’’

‘‘मैं ने एक बार नहीं, हजार बार सोच लिया है कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगी.’’

‘‘तो फिर यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ पीयूष ने पूछा.

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रीता ने कहा.

‘‘तो फिर मेरा भी फैसला सुन लो. अगर तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की भी दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ कह कर पीयूष ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रीता के सीने पर फायर कर दिया. गोली लगते ही रीता जमीन पर गिरी और तड़प कर मर गई.

रीता की हत्या करने के बाद पीयूष ने अपनी भी गरदन पर तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली उस के सिर को भेदती हुई उस पार निकल गई. कुछ देर तड़पने के बाद उस ने भी दम तोड़ दिया.

गोली चलने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले श्रीपाल के घर पहुंचे तो आंगन में 2-2 लाशें देख कर दहल उठे. पूरे गांव में शोर मच गया. श्रीपाल घर पहुंचे तो रीता के साथ पीयूष की लाश देख कर समझ गए कि पीयूष ने रीता की हत्या कर के आत्महत्या कर ली है. इस के बाद उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी.

पीयूष के घर वाले पुलिस के कहने के बाद भी उस की लाश लेने नहीं आए तो पुलिस ने रीता की लाश के साथ पीयूष की लाश को भी श्रीपाल के हवाले कर दिया. मजबूरी में श्रीपाल को बेटी की लाश के साथ पीयूष का अंतिम संस्कार करना पड़ा. थाना सजेती पुलिस ने इस मामले में रिपोर्ट तो दर्ज की, पर आरोपी द्वारा आत्महत्या कर लेने से फाइल बंद कर दी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्टेज डांसर : जान पर खेल कर करती हैं मनोरंजन

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले की बात है. शादी का दावत समारोह चल रहा था. एक तरफ दावत में आए लोग लजीज खाने का स्वाद ले रहे थे, तो दूसरी तरफ मस्त अदाओं का जादू बिखेरती एक स्टेज डांसर अपने डांस से सब के दिल खुश कर रही थी. कई लोग शराब के नशे में स्टेज के नीचे डांस कर रहे थे. पूरी तरह से मस्ती भरा माहौल था. डांस के लिए अलगअलग गानों की फरमाइश भी हो रही थी. इस बीच ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार…’ गाना बजने लगा. स्टेज पर अपने दिलकश अंदाज दिखाती वह डांसर गाने की धुन पर लहराने लगी. उस की मस्त अदाओं का जादू नीचे डांस कर रहे लोगों पर छाने लगा. एक नौजवान पर यह नशा कुछ इस कदर छाया कि वह अपने साथ लाई बंदूक लहराते हुए डांस करने लगा और डांस करतेकरते डांसर के करीब जाने लगा.  डांसर स्टेज पर डांस कर रही थी और वह नौजवान नीचे था. नाचतेनाचते उस की बंदूक का ऊपरी नली वाला हिस्सा डांसर की स्कर्ट के नीचे पहुंच जाता था.

डांसर ने जब यह देखा, तो वह स्टेज पर पीछे की तरफ खिसक गई. उस के संकेत पर गाने के बोल बदल गए, पर वह नौजवान उसी गाने को फिर से बजाने की बात करने लगा. उस की जिद पर ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार…’ गाना दोबारा बजने लगा. डांसर अनमनी सी डांस करने लगी.

अब वह नौजवान स्टेज पर चढ़ कर उस डांसर के साथ डांस करने लगा. इस से परेशान हो कर वह स्टेज से वापस जाने लगी, तो उस नौजवान ने बंदूक लहराते हुए उसे रोका. जब वह नहीं रुकी, तो उस पर गोली चला दी.

इस कांड में अच्छी बात यह रही कि गोली डीजे के स्पीकर पर जा लगी. हां, गोली चलने से शादी समारोह में हंगामा जरूर मच गया.

लेकिन एक डांसर…

गोली चले और डांसर को न लगे, ऐसा हर बार नहीं होता है. 3 नवंबर, 2016 को पंजाब के भटिंडा में मैरिज पैलेस हाल में एक शादी समारोह में डांसर कुलविंदर कौर 3 लड़कियों के साथ स्टेज पर डांस कर रही थी. डांस पंजाबी गानों पर हो रहा था.

डांस करने वाली लड़कियों ने शालीन कपड़े पहन रखे थे. इस के बाद भी समारोह में हिस्सा ले रहे बहुत से लोग उन डांसरों को देखदेख कर मस्त हो रहे थे. कई तो ऐसे थे, जो डांसरों के ग्रीनरूम में घुसे जा रहे थे. उन में से एक लक्की उर्फ बिल्ला भी था. वह डांसर कुलविंदर कौर के ग्रीनरूम में घुस कर उस से अपने साथ डांस करने को कहने लगा. कुलविंदर कौर ने उसे समझाया, पर वह माना नहीं.

थोड़ी देर बाद बिल्ला ग्रीनरूम से बाहर चला आया और जब कुलविंदर कौर डांस करने आई, तो वह अपनी बंदूक लहरा कर डांस करने लगा.

वह बीचबीच में बंदूक दिखा कर कुलविंदर कौर को डराने की कोशिश कर रहा था. कुलविंदर ने जब उस की ओर ध्यान नहीं दिया, तो बिल्ला ने डांस करतेकरते अपनी बंदूक से गोली चला दी. गोली सीधी कुलविंदर कौर को जा लगी और वह वहीं स्टेज पर गिर गई.

गोली की आवाज गाने की तेज आवाज में तुरंत समझ में नहीं आई. स्टेज के पास खड़े लोगों ने कुलविंदर के शरीर को घसीट कर स्टेज से नीचे किया. इसी बीच चारों तरफ अफरातफरी मच गई. बिल्ला भाग गया.

कुलविंदर कौर की एक साथी डांसर पूजा ने बताया कि बिल्ला कुलविंदर को पहले से परेशान कर रहा था. डीजे वालों ने उसे मना कर दिया था, इस के बाद भी वह माना नहीं. डीजे वालों ने आयोजकों से भी शिकायत की, पर वे लोग कुछ कर नहीं सके.

पुलिस ने 3 दिन बाद बिल्ला को पकड़ लिया और जेल भेज दिया.

दर्ज न करा सकी मुकदमा

 मुंबई की एक डांसर रेखा को डीजे चलाने वाले कई लोग बुलाते थे. उसे एक डांस के 10 हजार रुपए मिलते थे. वह मुंबई से बाहर भी डांस करने जाती थी. एक बार में वह हफ्तेभर के लिए अपने कार्यक्रम बनाती थी और 70 से 80 हजार रुपए कमा कर वापस मुंबई चली जाती थी.

एक बार रेखा समस्तीपुर, बिहार में शादी में डांस करने गई, तो कुछ लोग उस से मिले और पैसे दे कर सैक्स करने का औफर दिया. रेखा को यह सब पसंद नहीं था. उस ने मना कर दिया. इस के बाद वह स्टेज पर डांस करने लगी. रात में 2 बजे उस का काम खत्म हुआ, तो वह डीजे वालों की कार से वापस अपने होटल जाने लगी.

रास्ते में 5 लोग आए और उस की गाड़ी को रोक लिया. उन्होंने डीजे वालों को जान से मारने की धमकी दे कर रेखा को उठा कर अपनी कार में डाल लिया. जातेजाते वे लोग डीजे वालों से कह गए, ‘अगर किसी को बताया, तो रेखा को मार देंगे. अगर चुप रहे, तो रेखा को यहीं छोड़ जाएंगे.’

रेखा भी कुछ नहीं कर सकी. उन लोगों ने रेखा को 2 दिन तक अपने पास रखा और उस के साथ रेप किया. 2 दिन बाद रात को रेखा को वहीं छोड़ दिया गया, जहां से उसे उठाया था.

रेखा होटल गई. वह पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहती थी, पर डीजे वालों ने उसे मना किया. तब मजबूरी में वह चुप हो गई. रेखा अब बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाती है.

डांसर को दी धमकी

भोजपुरी फिल्मों में डांस करने वाली एक लड़की शादी के समारोह में गैस्ट बन कर डांस करने गई थी. वहां उसे कुछ खास लोगों के सामने ही डांस करने को कहा गया था. गैस्ट हाउस के कमरे में एक जगह डांस हो रहा था. कई लोग डांसर से चिपकचिपक कर डांस करने लगे.

डांस करते समय एक नौजवान डांसर के बेहद करीब आ कर डांस करने लगा. डांसर ने उस को अपने से दूर करने की कोशिश की, इस के बाद भी वह नहीं माना और डांसर के अंगों को यहांवहां छूने लगा.

डांसर ने उसे मना किया, तो रिवौल्वर निकाल कर उस की कनपटी पर लगा दी. यह बात आयोजक और गैस्ट हाउस के मालिक तक पहुंच गई. वे लोग भाग कर आए, तो डांसर की जान बच सकी.

डांसर रेखा कहती है, ‘‘डांसर भले ही सब के मनोरंजन का ध्यान रख कर स्टेज पर अपनी कला दिखाती हो, पर नशे में चूर देखने वालों की नजर में उस की कीमत देह बेचने वाली जैसी होती है. उन्हें लगता है कि डांसर का परिवार नहीं होता. वह अच्छे चालचलन वाली नहीं होती है. ऐसे लोग डांसर की तुलना धंधे वाली से करते हैं.

‘‘इस के उलट डांसर अपनी मेहनत से पैसे कमाती है. उस का भी पसीना निकलता है. डांस करना उस का पेशा होता है. उस के पास सरकारी नौकरी नहीं होती. उसे समाज से भी सिक्योरिटी नहीं मिलती.

‘‘स्टेज डांस से लोगों का मनोरंजन होता है, पर डांसर की जान पर बनी रहती है. लोग यह नहीं सोचते कि अपने घरपरिवार को पालने के लिए डांसर ऐसा करती है.’’

शर्म से झुक गया शहर

लखनऊ के एक रिसोर्ट में पार्टी चल रही थी. पार्टी में डांस और खाना परोसने के लिए कुछ लड़कियों को इवैंट मैनेजर ने बुलाया था. पार्टी के लिए हाल के साथ 3 कमरे भी किराए पर लिए गए थे.

पार्टी के समय ही कुछ लोगों ने नशे में डांस कर रही लड़कियों और खाना परोस रही लड़कियों से छेड़छाड़ शुरू कर दी. जब लड़कियों ने विरोध किया, तो उन को एक कमरे में जबरन बंद कर उन के साथ जोरजबरदस्ती शुरू कर दी.

लड़कियों ने किसी तरह से इस बात की जानकारी इवैंट मैनेजर को दी, तब जा कर वे अपनी जान बचा सकीं.

इस बात की शिकायत लखनऊ पुलिस से की गई. पुलिस ने रिसोर्ट के मैनेजर और पार्टी के आयोजकों समेत वहां मौजूद कई लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया.

पुलिस की तेजी के चलते लड़कियों की इज्जत बच गई. इस के बाद भी घटना की जानकारी जब लोगों के सामने आई, तो अदब के शहर में रहने वालों का सिर शर्म से झुक गया. लखनऊ भी ऐसे शहरों की लाइन में खड़ा हो गया, जिस में बाकी शहर खड़े थे.

लखनऊ में डांस शो का आयोजन करने वाले एक इवेंट मैनेजर कहते हैं, ‘‘डांस करने वाली लड़कियों को ले कर समाज की सोच में बदलाव आने के साथ ही साथ ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए. डांसर के साथ इस तरह की घटनाएं ज्यादातर ऐसे प्रदेशों में होती हैं, जहां की कानून व्यवस्था खराब है. जहां शिकायत करने पर पुलिस समय पर नहीं पहुंचती है.

‘‘महाराष्ट्र और दूसरी जगहों पर उत्तजेक डांस होने के बाद भी कोई घटना नहीं होती, वहीं दूसरी तरफ पंजाब में शालीन कपड़े पहन कर डांस करने वाली डांसर पर गोली चल जाती है. इस की चर्चा एक  महीने के बाद तब होती है, जब घटना का वीडियो वायरल होता है.’’

लेनदेन पर मनमानी

केवल डांस देखते समय ही मनमानी नहीं होती है, बल्कि डांस के बदले पैसा देते समय भी इवैंट मैनेजर और डांस ग्रुप चलाने वालों को तरहतरह से परेशान किया जाता है.

आगरा की रहने वाली सरिता डांस ग्रुप चलाती हैं. उन के ग्रुप में 4 लड़कियां और 3 लड़के होते हैं. वे अपने शो के लिए 35 से 50 हजार रुपए लेती हैं.

सरिता कहती हैं, ‘‘डांस ग्रुप को बुक कराते समय लोग पूरा पैसा नहीं देते. कई बार कुछ पैसे दे कर बाकी का चैक दे देते हैं, जो बाउंस हो जाता है. ऐसे में पैसा लेने के लिए हमें कईकई चक्कर लगाने पड़ते हैं.

‘‘कई बार लोग पैसा देने के नाम पर डांसर लड़कियों के साथ सैक्स संबंध बनाने का दबाव डालते हैं. परेशानी की बात यह है कि कई डांस ग्रुप वाले ज्यादा पैसा लेने के लिए ऐसे समझौते कर जाते हैं, जिस से दूसरों पर भी ऐसा करने का दबाव बनता है.’’

डांस ग्रुप में डांस करने वाली एक लड़की विशाखा बताती है, ‘‘स्टेज पर डांस करते समय या पार्टी में डांस के समय लोग चाहते हैं कि डांसर कम से कम कपड़े पहने. कई बार तो ऐसे कपड़ों को पहनने की डिमांड करते हैं, जिन को पहन कर डांस करना मुनासिब नहीं होता है.

‘‘डांस ग्रुप चलाने वाले लोग पैसा कमाने के लिए हर तरह के समझौते करते हैं. हमें तो कम पैसे मिलते हैं, पर सब से ज्यादा मुसीबत हमें ही झेलनी पड़ती है. डांस करने वाली ज्यादातर लड़कियां कम उम्र की होती हैं. उन में उतना अनुभव भी नहीं होता. इस वजह से वे हालात को संभाल नहीं पाती हैं.’’

किसी डांसर को तमाम तरह के समझौते करने पड़ते हैं, तब कहीं उस को चार पैसे मिलते हैं. डांस ग्रुप के लोग भी उसे तब तक ही बुलाते हैं, जब तक वह नई रहती है.

डांस ग्रुप चलाने वाले लोग कई बार डांसर को बंधुआ मजदूर की तरह रखना चाहते हैं. वे यह कोशिश करते हैं कि डांसर केवल उन के ग्रुप के साथ ही डांस करे. जब डांसर ज्यादा पैसे देने वाले दूसरे ग्रुप के साथ जाना चाहती है, तो वे लोग उस का विरोध करते हैं.

विशाखा बताती है कि डांसर के सामने भी तमाम परेशानियां होती हैं, इस के बाद भी वह खुल कर अपनी बात कह नहीं पाती है. अगर कोई डांसर अपने साथ हुई वारदात की शिकायत करती है, तो डीजे चलानेवाले और डांस ग्रुप चलाने वाले उसे झगड़ा करने वाली मान कर उस के साथ काम नहीं करते. ऐसे में डांसर भी छोटीछोटी वारदातों में चुप रह जाती है.

पैसों पर टिकी मोहब्बत का यही अंजाम होना था

पुरानी दिल्ली स्थित जामा मसजिद के पास सड़क के किनारे दाहिनी ओर कई मध्यम दर्जे के होटल हैं, जिन में दूरदराज से जामा मसजिद देखने आए लोग ठहरते हैं. इन्हीं होटलों में एक है अलदानिश, जिस के मैनेजर सोहेल अहमद हैं.  19 नवंबर, 2016 को वह होटल के रिसेप्शन पर बैठे अपनी ड्यूटी कर रहे थे, तभी साढ़े 11 बजे एक लड़का एक लड़की के साथ उन के पास आया. दोनों काफी खुश लग रहे थे. लड़के ने साथ आई लड़की को अपनी पत्नी बताते हुए कहा कि वह जामा मसजिद देखने आया है. उसे एक दिन के लिए एक कमरा चाहिए. सोहेल ने लड़के का नामपता पूछ कर रजिस्टर में नोट किया. उस के बाद आईडी मांगी तो उस ने जेब से अपना आधार कार्ड निकाल कर उन के सामने काउंटर पर रख दिया. आधार कार्ड उसी का था. उस का नाम आजम और पता राजीव बस्ती, कैप्टननगर, पानीपत, हरियाणा था. इस के बाद सोहेल ने सर्विस बौय मोहम्मद मिनहाज को बुला कर आजम को कमरा नंबर 203 देखने के लिए भेज दिया.

थोड़ी देर बाद अकेले ही वापस आ कर आजम ने कहा कि कमरा उसे पसंद है. इस के बाद अन्य औपचारिकताएं पूरी कर के सोहेल ने कमरा नंबर-203 उस के नाम से बुक कर दिया. कमरे का किराया 12 सौ रुपए जमा कर के आजम वापस कमरे में चला गया. सोहेल ने रुपए और आधार कार्ड अपनी दराज में रख लिया. करीब 2 घंटे बाद आजम मैनेजर सोहेल के पास आया और अपना आधार कार्ड मांगते हुए कहा कि उसे उस की फोटो कौपी करानी है. सोहेल ने आधार कार्ड दे दिया तो वह तेजी से बाहर निकल गया. उस के जाने के थोड़ी देर बाद मोहम्मद मिनहाज किसी काम से कमरा नंबर 203 में गया तो उस ने वहां जो देखा, सन्न रह गया.

मिनहाज भाग कर नीचे आया और मैनेजर सोहेल अहमद के पास जा कर बोला, ‘‘कमरा नंबर 203 के बाथरूम में लड़की की लाश पड़ी है. शायद उस के साथ जो आदमी आया था, उस ने उसे मार दिया है.’’ यह सुन कर सोहेल परेशान हो उठा. उस ने तुरंत होटल के मालिक इसलामुद्दीन के बेटे दानिश को फोन कर के सारी बात बताई. दानिश होटल आने के बजाय सीधे थोड़ी दूर स्थित जामा मसजिद पुलिस चौकी पर पहुंचा और चौकीइंचार्ज मोहम्मद इनाम को सारी बात बता दी. चौकीइंचार्ज इनाम चौकी में मौजूद सिपाहियों को ले कर होटल जा पहुंचे. लाश का सरसरी तौर पर निरीक्षण करने के बाद उन्होंने हत्याकांड की सूचना थाना जामा मसजिद के थानाप्रभारी अनिल बेरीवाल को दे दी.

सूचना मिलते ही अनिल बेरीवाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल से ही उन्होंने इस घटना की सूचना  उच्चाधिकारियों को दे दी थी. अतिरिक्त थानाप्रभारी धन सिंह सांगवान भी सूचना पा कर होटल पहुंच गए थे. थोड़ी देर में सैंट्रल डिस्ट्रिक की क्राइम टीम तथा एफएसएल टीम भी पहुंच गई थी. लाश का सिर बाथरूम में टौयलेट पौट के ऊपर तथा पैर दरवाजे की तरफ थे. गरदन पर चोट के निशान थे. लगता था हत्या गला दबा कर की गई थी. एफएसएल टीम ने अपना काम निपटा लिया तो अनिल बेरीवाल ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जयप्रकाश नारायण अस्पताल भिजवा दिया. होटल से लौट कर पुलिस टीम ने अपराध संख्या 135/2016 पर हत्या के इस मुकदमे को अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर मामले की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी धन सिंह सांगवान को सौंप दी गई. धन सिंह सांगवान ने होटल के मैनेजर सोहेल अहमद को थाने बुला कर पूछताछ की तो उस ने हत्या का शक मृतका के शौहर आजम पर जताया. आजम अपना आधार कार्ड भले ही साथ ले गया था, लेकिन उस में दर्ज उस का पता मैनेजर ने अपने रजिस्टर में लिख लिया था. उस का मोबाइल नंबर भी लिखा हुआ था.

आजम का पता धन सिंह को मिल ही गया था. उन्होंने उसे गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की, जिस में एसआई धर्मवीर, हैडकांस्टेबल नीरज तथा कुछ अन्य लोगों को शामिल किया. अगले दिन सुबह 8 बजे वह अपनी टीम के साथ होटल के रजिस्टर में लिखे पते पर पहुंचे तो पता चला कि आजम पहले वहां एक कमरा किराए पर ले कर रहता था. लेकिन अब वह अपनी अम्मी समीना, अब्बा मोहम्मद सलीम के साथ राजीव कालोनी के मकान नंबर-1109/10 (गंदा नाला के निकट) रहता है. इस के बाद धन सिंह वहां पहुंचे तो वह घर में सोता हुआ मिल गया. उसे जगाया गया तो दिल्ली पुलिस को देख कर उस के हाथपांव फूल गए. पुलिस पहचान के लिए अलदानिश होटल के सर्विस बौय मिनहाज को साथ ले कर आई थी. आजम को देखते ही उस ने कहा, ‘‘साहब, यही आदमी उस औरत के साथ होटल में आया था.’’ मुजरिम के पकड़े जाने से धन सिंह सांगवान ने राहत की सांस ली. आजम ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. उस ने मृतका का नाम शबनम बताया. वह कभी उस के पड़ोस में रहने वाले अलादिया की पत्नी थी. लेकिन इस समय वह दिल्ली में रहता था. धन सिंह ने आजम से अलादिया का फोन नंबर ले कर उसे फोन किया कि उस की पत्नी दुर्घटना में घायल हो गई है, वह दिल्ली के थाना जामा मसजिद पहुंच जाए. धन सिंह आजम को ले कर दिल्ली आ गए. वह थाने पहुंचे तो मृतका का शौहर अलादिया उन का इंतजार कर रहा था. उसे जयप्रकाश नारायण अस्पताल ले जाया गया तो उस ने मृतका की लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी शबनम के रूप में कर दी.

अगले दिन शबनम की लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि उस की मौत दम घुटने से हुई थी. आजम को अगले दिन तीसहजारी कोर्ट में पेश कर के पूछताछ के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान आजम ने शबनम का मोबाइल (बिना सिम का), अपना मोबाइल और श्मशान घर की छत पर फेंका गया शबनम का पर्स बरामद करा दिया. पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सोनिया उर्फ शबनम जिला शामली के गांव कुडाना के रहने वाले रामनरेश की बेटी थी. 2 बेटों पर एकलौती होने की वजह से सोनिया को कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस से वह स्वच्छंद हो गई. लेकिन उस के कदम बहकते, उस के पहले ही रामनरेश ने सन 2009 में उस की शादी उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के लोनी के रहने वाले करण के साथ कर दी. शुरूशुरू  में तो सब ठीक रहा, लेकिन जब घरगृहस्थी का बोझ सोनिया पर पड़ा तो वह परेशान रहने लगी. करण की आमदनी उतनी नहीं थी, जितने उस के खर्चे थे. करण उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. सोनिया ने देखा कि करण उस के मन की मुरादें पूरी नहीं कर पा रहा है तो जल्दी ही उस का मन उस से भर गया.

करण और सोनिया के बीच मनमुटाव रहने लगा. कोई न कोई बहाना बना कर सोनिया अकसर कुडाना आ जाती. उसी बीच बस से आनेजाने में उस की मुलाकात बस कंडक्टर अलादिया से हुई. वह गाजियाबाद का रहने वाला था. वह सोनिया की सुंदरता पर मर मिटा. उसे खुश करने के लिए अलादिया उस की हर मांग पूरी करने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन सोनिया अलादिया के साथ भाग गई. अलादिया सोनिया को ले कर सोनीपत पहुंचा और वहां कैप्टननगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद अलादिया ने सोनिया के साथ निकाह कर लिया और उस का  नाम शबनम रख दिया. सोनिया की इस हरकत से नाराज हो कर ससुराल वालों ने ही नहीं, मायके वालों ने भी उस से रिश्ता खत्म कर लिया. सोनिया उर्फ शबनम अलादिया के साथ खुश थी. उसे खुश रखने के लिए अलादिया उस की हर बात मानता था और उस के सारे नाजनखरे उठाता था. चूंकि अलादिया बस कंडक्टर था, इसलिए वह सुबह घर से निकलता तो देर रात को ही घर वापस आता था. दिन भर शबनम अकेली रहती थी. उस के पड़ोस में आजम भी अकेला ही रहता था. उस के अम्मीअब्बू राजीव कालोनी में गंदा नाला के निकट रहते थे.

वह शबनम का हमउम्र था. शबनम उसे बहुत अच्छी लगती थी, इसलिए कोई न कोई बहाना बना कर वह उस से बातें करने की कोशिश करता था. वह एक कबाड़ी के यहां काम करता था, जहां से उसे 9 हजार रुपए वेतन मिलता था.

चूंकि आजम अकेला ही रहता था. इसलिए सारे पैसे खुद पर खर्च करता था. लेकिन इधर शबनम पर दिल आया तो वह उस के लिए खानेपीने की चीजें ही नहीं, गिफ्ट भी लाने लगा. फिर तो जल्दी ही दोनों के बीच अवैधसंबंध बन गए. चूंकि अलादिया दिन भर घर से बाहर रहता था, इसलिए आजम को शबनम से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. लेकिन इस तरह की बातें कहां छिपी रहती हैं. शबनम और आजम के संबंधों की जानकारी अलादिया को हो गई. उस ने इस बारे में शबनम से पूछा तो उस ने कहा कि कभीकभार आजम उस से मिलने घर आ जाता है, लेकिन उस से उस के संबंध ऐसे नहीं हैं, जिसे गलत कहा जा सके. अलादिया समझ गया कि शबनम आजम से अपने अवैध संबंधों को स्वीकार तो करेगी नहीं, इसलिए उसे दोनों को चोरीछिपे पकड़ना होगा. कुछ दिनों बाद एक दिन अलादिया काम पर जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन काम पर गया नहीं. 3-4 घंटे इधरउधर समय गुजार कर वह दोपहर को अचानक घर पहुंचा तो देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद है. उस ने शबनम को आवाज लगाई तो थोड़ी देर में शबनम ने दरवाजा खोला. उस समय उस के कपड़े तो अस्तव्यस्त थे ही, चेहरे का भी रंग उड़ा हुआ था.

शबनम की हालत देख कर अलादिया को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि अंदर क्या हो रहा था. वह उसी बारे में सोच रहा था कि अंदर से सिर झुकाए आजम निकला. अलादिया ने उसे रोक कर खूब खरीखोटी सुनाई और अपने घर आने पर सख्त पाबंदी लगा दी. कुछ कहे बगैर आजम चुपचाप चला गया.

उस के जाने के बाद अलादिया ने शबनम की जम कर खबर ली. शबनम ने माफी मांगते हुए फिर कभी आजम से न मिलने की कसम खाई. इस के बाद कुछ दिनों तक तो शबनम आजम से दूरी बनाए रही, लेकिन जब उस ने देखा कि अलादिया को उस पर विश्वास हो गया है तो वह फिर लोगों की नजरें बचा कर आजम से घर से बाहर मिलने लगी. आजम शबनम को फोन कर के कहीं बाहर बुला लेता और वहीं दोनों तन की प्यास बुझा कर घर वापस लौट आते. शबनम को खुश करने के लिए आजम उस की हर मांग पूरी करता था. आजम और शबनम भले ही चोरीछिपे घर से बाहर मिलते थे, लेकिन अलादिया को उन की मुलाकातों का पता चल ही जाता था.

परेशान हो कर अलादिया शबनम के साथ पानीपत छोड़ कर दिल्ली आ गया और बदरपुर में किराए क  कमरा ले कर रहने लगा. उस का सोचना था कि इतनी दूर आ कर शबनम और आजम का मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा. लेकिन उन के बीच संबंध उसी तरह बने रहे. मोबाइल द्वारा दोनों के बीच बातचीत होती ही रहती थी. मौका मिलते ही शबनम आजम को फोन कर देती थी और जहां दोनों को मिलना होता था, आजम वहां आ जाता था. इस के बाद किसी होटल में कमरा ले कर दोनों मिल लेते थे. शबनम जब भी आजम से मिलने आती थी, वह उस के लिए कोई न कोई गिफ्ट ले कर आता था, उसे नकद रुपए भी देता था.

19 नवंबर को शबनम ने फोन कर के आजम को दिल्ली के महाराणा प्रताप बसअड्डे पर बुलाया. आजम पानीपत से चल कर करीब 10 बजे बसअड्डे पर पहुंचा तो शबनम उसे वहां इंतजार करती मिली. वहां से दोनों जामा मस्जिद के पास स्थित होटल अलदानिश पहुंचे और मौजमस्ती के लिए किराए पर कमरा ले  लिया. पहले दोनों ने जी भरकर मौजमस्ती की. उस के बाद दोनों बातें करने लगे. शबनम ने आजम से 10 हजार रुपए मांगे. आजम ने कहा कि इस समय उस के पास इतने रुपए नहीं हैं तो शबनम को गुस्सा आ गया और उस ने आव देखा न ताव, एक करारा थप्पड़ आजम के गाल पर जड़ दिया. शबनम के हाथ से थप्पड़ खा कर आजम को भी गुस्सा आ गया. शबनम की इस हरकत का बदला लेने के लिए आगेपीछे की सोचे बगैर आजम कूद कर उस के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से गला पकड़ कर दबा दिया. पलभर में ही शबनम ने दम तोड़ दिया.

शबनम की हत्या करने के बाद आजम ने लाश को उठाया और उसे बाथरूम की फर्श पर लिटा कर उस का पर्स और मोबाइल फोन ले कर होटल के रिसैप्शन पर पहुंचा. वहां बैठे होटल के मैनेजर सोहेल अहमद से अपना आधार कार्ड फोटोस्टेट कराने के बहाने ले कर वह फरार हो गया. बसअड्डे से उस ने  पानीपत जाने वाली बस पकड़ी और अपने घर पहुंच गया. थोड़ी देर बाद उस ने शबनम का खाली पर्स कालोनी में बने श्मशान घर की छत पर फेंक दिया. शबनम के मोबाइल फोन से उस का सिम निकाल कर बाहर फेंक दिया और मोबाइल फोन अपने पास रख लिया. उस ने सोचा था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी, लेकिन घटना के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

23 नवंबर को रिमांड की अवधि समाप्त होने पर उसे फिर से तीसहजारी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दुष्कर्मियों को सजा

उस लड़की की हिम्मत को अब सराहा जाने लगा है, क्योंकि वह निडरता की ऐसी मिसाल बन गई, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली रीना (बदला हुआ नाम) दबंग प्रवृत्ति के युवाओं की दरिंदगी का शिकार हुई थी. प्यार करने वालों को सजा देने के मामले में बदनाम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की सरजमीं पर उसे 7 हैवानों ने सामूहिक रूप से अपनी हवस का शिकार बनाया था. विरोध करने पर उस के साथ दरिंदगी की गई.

चुप बैठने के बजाय दरिंदगी की शिकार रीना ने सामाजिक शर्म को किनारे रख कर उन्हें सजा दिलाने की ठान ली. लाख तिरस्कार, दबाव, लालच व धमकियों के बावजूद उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लड़ाई लड़ती रही. नतीजतन हैवानियत करने वाले छटपटा कर रह गए. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन मामूली लड़की निडरता से लड़ाई लड़ कर हैवानियत का खेल खेलने वालों को सजा दिला देगी.

मुजफ्फरनगर की जिला अदालत ने बहुचर्चित गैंगरेप कांड में 31 जुलाई, 2017 को दोपहर 7 युवाओं अब्दुल, राशिद, वासिफ, सोमान, मोनू, राहुल व सलाऊ को उम्रकैद और जुरमाने की सजा सुनाई. इन लोगों ने एक लड़की के साथ न केवल सामूहिक गैंगरेप किया था, बल्कि मोबाइल से उस का एमएमएस भी बना कर वायरल कर दिया था. उन की हनक, हैवानियत और गरीब लड़की की इज्जत को खिलौना समझने की भूल ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया.

किसी ने पीडि़त लड़की को डरायाधमकाया तो किसी ने उस की लूटी अस्मत को दौलत के तराजू में तौला. पर उन के सारे पैंतरों और दबंगता को उस मामूली लड़की ने चकनाचूर कर दिया. रीना की हिम्मत के सामने उन की सभी कोशिशें व करतूत जवाब दे गईं.

मुजफ्फरनगर के एक गांव की रहने वाली रीना रोंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत से रूबरू हुई. उस के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी. पिता मजदूरी कर के तथा 2 भैसों को पाल कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते थे. रीना खुद शाहपुर कस्बे में एक चिकित्सक के क्लिनिक पर रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करती थी. वहीं काम करने वाले एक युवक से उस की दोस्ती हो गई.

17 अगस्त, 2013 को वह अपने दोस्त के साथ बाइक पर सवार हो कर रेस्टोरैंट में खाना खाने के लिए बेगराजपुर जा रही थी. बसधाड़ा गांव के जंगल में वे एक ट्यूबवेल पर रुक कर पानी पीने लगे. इसी बीच 3 युवक वहां पहुंच गए. उन की नजर में इस तरह एक लड़की का किसी लड़के से मिलना गुनाह था.

यह बात अलग थी कि समाज की इस कथित ठेकेदारी की आड़ में उन की खुद की घिनौनी मानसिकता जिम्मेदार थी. उन्होंने रीना के दोस्त के साथ मारपीट की, साथ ही अपने कुछ अन्य साथियों को भी बुला लिया. सभी ने मारपीट कर के रीना के दोस्त को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भगा दिया और रीना को पीटते हुए खींच कर खेत में ले गए.

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इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा.

रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

हैवानियत करने वाले रीना को अपनी मौजमस्ती का साधन बनाना चाहते थे. लेकिन अब वह उन से दूर चली गई थी. इस पर उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने 10 महीने बाद जून, 2014 में वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. इस से हड़कंप मच गया. रीना का चेहरा और युवकों की करतूत साफ झलक रही थी. सभी की पहचान से मामला तूल पकड़ गया.

वीडियो क्लिप रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और रीना को खोज निकाला. इस के बाद रीना ने 24 जून, 2014 को सातों आरोपियों के खिलाफ थाने में तहरीर दे दी. मामला गंभीर था. पुलिस ने गैंगरेप और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. आरोपी दूसरे संप्रदाय के थे. इस से इलाके में तनाव भी बढ़ा, लेकिन पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

पहचान उजागर होने से रीना की जिंदगी दोजख बन गई. समाज ने भी अपनी परंपरागत मानसिकता के चलते उस पर उल्टीसीधी टिप्पणियां कर के अपना रोल बखूबी निभाया. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी, जो आरोपियों के इस दुष्कर्म पर यह कह कर परदा डालने की कोशिश कर रहे थे कि अगर रीना दोस्त के साथ उस रास्ते से नहीं जाती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.

कई तरह के लांछन लगाए गए. जिल्लत और तोहमतों से रीना का बेहद करीबी रिश्ता बन गया. तोहमत लगाने वाले लोग ज्यादा थे, जो हर मामले में लडकियों की ही गलती निकालने की मानसिकता का शिकार होते हैं. लेकिन इन सब बातों ने रीना को और भी मजबूत बना दिया था. उस ने इंसाफ की लड़ाई लड़ने की ठान ली.

आरोपियों को सजा दिलाना ही उस की जिंदगी का मकसद बन गया. वक्त बीतता रहा. एक साल बाद 7 में से 6 आरोपियों को जमानत मिल गई. आरोपियों के खिलाफ सबूत मजबूत थे. उन्हें सजा का डर था, लिहाजा वे समझौता करना चाहते थे. रीना द्वारा अदालत में बयान बदलने से पूरा केस उलट सकता था. उन की तरफ से दबाव बनाया जाने लगा.

तरहतरह के लालच दिए गए, लेकिन रीना और उसके मातापिता ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. रीना एक असहनीय दर्द से गुजर रही थी. वह रातों को जाग कर रोती थी. उस का दुख कम हो, इसलिए घर वाले उस की गृहस्थी बसा देना चाहते थे. खतौली कस्बे के नजदीक का रहने वाला एक युवक उस का हाथ थामने को तैयार हो गया. फलस्वरूप दोनों का विवाह हो गया.

एक साल तो रीना का ठीक बीता, लेकिन घटना की परछाईं और वक्त ने खुशियों को उस का दुश्मन बना दिया. आरोपियों के पैरोकार रीना की ससुराल तक पहुंच गए. रीना बताती है कि उन्होंने उस के पति को 25 लाख रुपए देने का लालच तक दे डाला. लालच में आ कर पति व ससुराल वालों ने रंग बदल लिया और उस से बयान बदलने को कहने लगे.

उन का तर्क था कि अब उस की शादी हो गई है, इसलिए ऐसी सभी बातों को बीता हुआ कल मान कर भूल जाना चाहिए, वरना बदनामी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा. रीना ससुराल वालों के बदले रवैये पर हैरान थी. आरोपी पैसे देने और माफी मांगने को तैयार थे. लेकिन रीना ने किसी की नहीं मानी.

इस मुद्दे पर परिवार में कलह रहने लगी. कई महीनों तक भी जब उस ने ससुराल वालों की बात नहीं मानी तो उसे फरमान सुना दिया गया कि या तो वह बयान बदल कर आरोपियों को बचाने में मदद करे या फिर रिश्ता खत्म कर ले. रीना समझ चुकी थी कि ससुराल में उस का साथ देने वाला कोई नहीं है. यह शर्मनाक हकीकत भी थी कि एक पति जिस ने उसे उम्र भर साथ निभाने का वचन दिया था, वह इंसाफ की डगर पर उस का साथ देने के बजाय उसे कमजोर कर रहा था.

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रीना ने जितनी जिल्लत झेली, उतनी ही वह मजबूत होती गई. रीना ने भी ठान लिया कि वह दुराचारियों को कभी माफ नहीं करेगी. लिहाजा उस ने किसी अनहोनी की आशंका के भय से ससुराल से ही रिश्ता खत्म करने का फैसला कर लिया. ससुराल छोड़ कर आपसी सहमति से पतिपत्नी दोनों अलग हो गए. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विचेनाधिकारी सबइंसपेक्टर अजयपाल गौतम ने विवेचना कर के सबूतों सहित अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई. रीना ने पूरा घटनाक्रम अदालत में बयान किया.

अभियोजन पक्ष की तरफ से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता कय्यूम अली ने इसे गंभीर अपराध बताया, जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने आरोपियों के कैरियर, उम्र व भविष्य की दलीलें दे कर कम से कम सजा की मांग की. अदालत में आरोपियों द्वारा सुनाई गई शर्मिंदा कर देने वाली वीडियो क्लिप को भी देखा गया. उस से उन की वहशत सामने आ गई. अदालत ने वीडियो को अहम सबूत माना.

आरोप तय होने के बाद आखिर 31 जुलाई को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश भारद्वाज ने सातों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें भादंवि धारा 376 (जी) में उम्रकैद व 10-10 हजार रुपए जुरमाना व आईटी एक्ट में 3 साल का करावास व 25-25 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई. आरोपियों में सोमान को छोड़ कर सभी अविवाहित थे. सजा के बाद जब आरोपियों को जेल ले जाया गया तो वे मुंह छिपाते नजर आए.

अदालत का फैसला आने के बाद रीना कहती है, ‘मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती. हैवानों को कभी माफ नहीं किया जा सकता. सजा से दूसरे वहशियों को सीख मिलेगी, ताकि फिर कोई किसी लड़की के साथ ऐसा न कर सके.’

रीना के मातापिता कहते हैं, ‘हम ने बेटी की अस्मत के सामने समझौता नहीं किया. हमें न्याय की पूरी उम्मीद थी.’ हैवानियत करने वाले शायद अपने गुनाह से बच भी जाते, लेकिन अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली रीना की हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ है. उस की हिम्मत ने ही उन्हें उन के गुनाह की सजा दिलाई.

कैसे थमे बलात्कार

‘मैं एक घर से काम करके लौट रही थी. पराग चैराहे से थोडा आगे मंदिर के आगे पहुंची तो सामने से कार में सवार 4 लडके आये. उन लोगों ने मेरा मुंह बंद करके मुझे जबरदस्ती कार में चढा लिया. मुझे गाडी की पिछली सीट की गद्दी के नीचे लिटा दिया. मैने शोर मचाया तो उन लोगों ने जोर से बाजा बजा दिया. उनमें से एक गाडी चलाने लगा और 2 लडको ने मेरे साथ जोर जबरदस्ती करनी शुरू कर दी.

मुझे धमकी देकर कहा कि रोओगी तो गोली मार देगे. मैने जब उन से कहा कि भैया मुझे छोड दो तो उन लोगों ने मुझे और मारा. मेरे पैर में लाइटर से जलाया और बट से कमर पर मारा. उनमें से 3 लडको ने मेरे साथ उस समय गलत काम किया.’ 2 मई 2005 को उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में घटी इस घटना को आशियाना बलात्कार कांड के नाम से जाना जाता है. इस लडकी को शाम के 6 बजे अगवा किया गया था और रात के 11 बजे हाथ में 20 रूपया देकर घायल अवस्था में सडक पर छोड कर युवक भाग गये.

लडकी गरीब परिवार की थी. घरों में मेहनत मजदूरी करके काम चलाती थी. उसके पिता रिक्शा चलाकर अपना परिवार चलाते थे. लडकी किसी तरह उस रात पहले घर फिर पिता के साथ थाने पहुंची, पुलिस ने मुकदमा लिखा. 6 आरोपियों को पुलिस ने पकडा, जिनमें से 4 खुद को नाबालिग बताने लगे. मुख्य आरोपी गौरव शुक्ला लखनऊ के एक बाहुबलि नेता का भतीजा था. बहुत सारी अदालतीय लडाई के बाद अदालत में यह साबित हो गया कि गौरव शुक्ला बालिग था.

5 सितम्बर 2005 को बालिग आरोपी अमन बक्शी और भारतेन्दु मिश्रा को सेशन कोर्ट ने 10 साल की सजा और 10-10 हजार रूपये जुर्माना की सजा दी. इस कांड में शामिल दो आरापियों आसिफ सिद्दकी और सौरभ जैन जमानत पर छूट कर बाहर आये. एक दुर्घटना में दोनो की मौत हो गई. एक आरोपी फैजान को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई. गौरव शुक्ला ने पूरे मामले को भटकाने के जितने प्रयास कर सकता था किया. अदालत ने उसे 10 साल की सजा और 20 हजार रूपये का जुर्माना सुनाया. फास्ट ट्रैक अदालत के बाद यह मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जायेगा. न्याय का मूल सिद्वान्त है कि न्याय होना ही नहीं चाहिये न्याय होते दिखना भी चाहिये.

अदालत में पेशी पर जब भी गौरव शुक्ला आता था हमेशा सफेद लकदक कपडों में ही रहता था. उसको जेल में हर सुविध मिले इसके लिये पूरे गठजोड होते रहे. सजा सुनाये जाने के बाद भी उसे विशेष सुविध हासिल थी. यह राजनीतिक और नौकरशाही के गठजोड के बिना संभव नहीं हो सकती.

प्रदेश की राजनीति और नौकरशाही को मुंह चिढाने वाली यह घटना बताती है कि पीडित लडकी और उसके परिवार के साथ मीडिया, अदालत और महिला संगठनों का जोर नहीं होता, तो यह मामला कब का दबा दिया जाता. कई बार पीडित परिवार को केस वापस लेने के लिये लालच और धमकी दी गई. इससे पता चलता है कि हमारे देश में समाज बलात्कार के मामले में आज भी पीडित के बजाय दोषी के साथ खडा होता है. क्या इन परिवारों का समाज ने कोई बायकाट किया ?

हत्यारी मां ने किया बेटी का कत्ल

24 वर्षीय प्रमोद यादव उत्तर प्रदेश के जिला संतकबीर नगर के गांव बगहिया का रहने वाला था. 4 भाई और 3 बहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता के पास मात्र 4 बीघा खेती की जमीन थी, उस से बमुश्किल घर का गुजारा हो पाता था.

प्रमोद के गांव के कई लोग दिल्ली में रहते थे, जो उस के दोस्त भी थे. दिल्ली जाने के बाद उन लोगों के घर के आर्थिक हालात सुधर गए थे. इसलिए प्रमोद ने भी सोचा कि वह भी गांव के दोस्तों के साथ दिल्ली जा कर कोई काम देख लेगा.

एक बार होली के त्यौहार पर जब उस के यारदोस्त दिल्ली से गांव लौटे तो प्रमोद ने उन्हें अपने मन की बात बताई और त्यौहार के बाद वह भी उन के साथ दिल्ली चला गया. उस के यारदोस्त पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर क्षेत्र में रहते थे. वह भी उन के साथ रहने लगा. उन के सहयोग से वह नौकरी तलाशने लगा.

थोड़ी कोशिश के बाद गाजीपुर में ही स्थित अमरनाथ की पशु आहार की दुकान पर उस की नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी वह गांव के 3 दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रहता रहा. खानेपीने का खर्चा सभी आपस में मिल कर उठाते थे.

प्रमोद 2-3 महीने बाद 4-5 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव जाता रहता था. गांव में खर्च के बाद जो पैसे बचते, वह अपने मांबाप को दे आता. पास के गांव बगहिया के पड़ोसी रतिपाल से प्रमोद की अच्छी दोस्ती थी. सन 2004 के मई महीने में रतिपाल के भाई की शादी थी. उस ने प्रमोद को भाई की शादी में शामिल होने का निमंत्रण दिया. तब प्रमोद 5 दिन की छुट्टी ले कर शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से चला गया था.

शादी समारोह में ही प्रमोद की मुलाकात मुन्नी से हुई. मुन्नी संतकबीर नगर के गांव भसेल की रहने वाली थी. मुन्नी 3 बच्चों में मंझले नंबर की थी. पहली ही मुलाकात में प्रमोद मुन्नी का दीवाना हो गया. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए.

शादी कार्यक्रम के बाद प्रमोद अपने गांव चला गया पर मुन्नी 4 दिनों तक रतिपाल के यहां रही. प्रमोद भी जब तक अपने घर रहा, मुन्नी से फोन पर बात करता रहता था. फोन पर ही दोनों ने प्यार का इजहार कर दिया था.

पांचवें दिन मुन्नी अपने परिवार के साथ भसेल चली गई. उसी दिन प्रमोद भी दिल्ली चला आया. दोनों की फोन पर बातचीत होती रहती थी. रात को दोनों काफीकाफी देर तक अपने प्यार की बातें करते रहते थे. यहां तक कि दोनों ने शादी तक करने का वादा भी कर लिया.

मुन्नी की मां रामवती को भी इस बात का शक हो गया कि आखिर मुन्नी घंटोंघंटों तक किस से बातें करती है. एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, जब से तुम शादी से लौट कर आई हो, तुम्हारे हावभाव बदल गए हैं. जब देखो कानों में फोन लगाए रहती हो. क्या है यह सब?’’

मुन्नी जानती थी मां की बगैर रजामंदी के प्रमोद का विवाह उस के साथ नहीं हो सकता, इसलिए उस ने मां को अपने प्यार की सच्चाई बताना उचित समझा. इस के बाद उस ने मां को सारी बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर रामवती पहले तो नाराज हुई, फिर मुन्नी की बातों से उसे लग रहा था कि वे दोनों एकदूसरे को चाहते हैं और लड़का सजातीय है तो वह मन ही मन खुश हुई.

रामवती न तो प्रमोद को जानती थी और न ही उसे उस के घरबार के बारे में जानकारी थी. बिना कोई छानबीन किए बेटी की शादी उस के साथ करना समझदारी वाली बात नहीं थी, इसलिए रामवती ने मुन्नी से कहा, ‘‘बेटा, जब तक हम प्रमोद के बारे में छानबीन न कर लें, तब तक तुम उस से फोन पर ज्यादा बातें न करो.’’

मगर मुन्नी पर तो प्यार का भूत सवार था. उस ने मां की सलाह को गंभीरता से नहीं लिया और वह चोरीछिपे उस से फोन पर बातें करती रही.

एक दिन मुन्नी से रामवती ने कह दिया कि वह फोन कर के प्रमोद को यहां बुला ले, ताकि उस से कुछ बात की जा सके.

मां की यह बात सुन कर मुन्नी मारे खुशी के बल्लियों उछल पड़ी. उस ने प्रमोद को फोन कर के मां से मिलने के लिए अपने गांव बुला लिया. रामवती ने प्रमोद से विस्तार से बात की. उस से की गई बातचीत से रामवती को भरोसा हो गया कि वह मुन्नी को हर तरह से खुश रखेगा. बेटी की खुशी को देखते हुए रामवती ने भी उन के प्यार को हरी झंडी दे दी.

मां से हरी झंडी मिलने के बाद प्रमोद और मुन्नी ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. इस के बाद वह मुन्नी को अपने गांव ले गया. मुन्नी को 2-4 महीने गांव में मांबाप के पास छोड़ने के बाद वह उसे दिल्ली ले आया. और गाजीपुर के ही रामअवतार के मकान में किराए का कमरा ले कर वह रहने लगा.

रामअवतार के उस मकान के भूतल पर कुछ दुकानें बनी थीं और पहली मंजिल पर 4 कमरे बने थे. उन में से एक कमरे में प्रमोद और 3 कमरों में दूसरे किराएदार रहते थे. मुन्नी प्रमोद के साथ पूरी तरह से खुश थी.

समय अपनी गति से गुजरता गया और एकएक कर वह 3 बच्चों की मां बन गई, जिस में 2 बेटे और एक बेटी काजल थी. बच्चे बड़े हुए तो उन का दाखिला पास के ही सरकारी स्कूल में करा दिया.

प्रमोद अपनी दुकान पर सुबह 6 बजे चला जाता और दोपहर के 2 बजे जब दुकान बंद हो जाती तो वह घर आ जाता था. दोपहर 2 बजे के बाद प्रमोद घर पर ही रहता. प्रमोद चाहता था कि उसे ऐसा कोई पार्टटाइम काम मिल जाए, जो वह 2 बजे के बाद कर सके. इस बारे में उस ने अपने दोस्तों के अलावा मकान मालिक से भी कह रखा था.

एक दिन मकान मालिक रामअवतार ने उस से कहा, ‘‘प्रमोद, तुम जो पार्टटाइम काम की बात कह रहे हो, मेरे पास इस का उपाय है. उपाय यह है कि मैं अपनी दुकान में जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दूंगा. 2 बजे से रात 10 बजे तक तुम संभालना. इस के बदले में तुम्हारा मकान का किराया नहीं लिया जाएगा. तुम यहां बिलकुल फ्री में रहना. अगर तुम्हें यह मंजूर है तब तो मैं दुकान में पैसे लगाऊं.’’

दुकान से मिलने वाली सैलरी से प्रमोद का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था, इसलिए उस ने रामअवतार से हां कह दी. रामअवतार ने अपनी दुकान में अच्छेखासे पैसे लगा कर जनरल स्टोर खुलवा दिया. दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक प्रमोद ही उस जनरल स्टोर को संभालता था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 13 दिसंबर, 2017 की रात होते ही प्रमोद की 7 साल की बेटी काजल अचानक लापता हो गई. काफी ढूंढने के बाद भी जब काजल नहीं मिली तो प्रमोद ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बेटी के गायब होने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर पीसीआर वैन प्रमोद के यहां पहुंच गई. मामला गाजीपुर थानाक्षेत्र का था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम की सूचना पा कर एसआई सोनू, एएसआई यशपाल प्रमोद के यहां पहुंच गए. पुलिस ने प्रमोद और उस की पत्नी मुन्नी से बात की. उसी दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह भी एसआई नीरज के साथ प्रमोद के कमरे पर पहुंच गए.

प्रमोद की पत्नी मुन्नी ने यही बताया कि शाम के समय वह घर के बाहर ही खेल रही थी, तभी अचानक गायब हो गई. इस के बाद पुलिस ने रात में ही काजल को ढूंढना शुरू कर दिया. टौर्च की रोशनी में पुलिस वाले डीडीए कौंप्लेक्स के नजदीक के खाली पड़े प्लाटों के आसपास के सुनसान वाले इलाकों, गड्ढों, झाडि़यों आदि में काजल को तलाशते रहे, लेकिन वह वहां कहीं नहीं मिली तो थानाप्रभारी वापस प्रमोद के कमरे पर आ गए.

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मकान का निरीक्षण करने के दौरान ही प्रमोद से थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘छत पर क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं है, खुली छत है. वहां कोई नहीं जाता.’’ प्रमोद ने बताया.

थानाप्रभारी ने पास खड़े एसआई नीरज कुमार से कहा, ‘‘जरा ऊपर छत पर जा कर देखो.’’

एसआई नीरज कुमार ने टौर्च की रोशनी में पूरी छत छान मारी, पर वहां कोई भी संदिग्ध चीज नहीं मिली. पर पड़ोसी की छत पर उन्हें एक लड़की की रक्तरंजित लाश मिली. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी को बताई तो वह भी छत पर पहुंच गए.

प्रमोद और उस की पत्नी को ले कर थानाप्रभारी अमर सिंह भी छत पर पहुंच गए. बच्ची की लाश देखते ही मुन्नी जोर से चीखी. इस के बाद वह बेहोश हो गई.

प्रमोद ने लाश की पहचान अपनी 7 वर्षीय बेटी काजल के रूप में की. पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और प्रमोद की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस के पूछने पर प्रमोद ने किसी से दुश्मनी आदि होने की बात भी नकार दी. पुलिस यही मान कर चल रही थी कि किसी ने इस बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी होगी. पर यह बात डाक्टरी जांच के बाद पता लग सकती थी.

हत्या के इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी रामवीर सिंह ने थानाप्रभारी अमर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई नीरज कुमार, सोनू सिंह, एएसआई यशपाल आदि को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी ने पूछताछ के लिए मकान मालिक को भी थाने बुला लिया. उस के यहां रहने वाले सभी किराएदारों को भी बुला कर पूछताछ की लेकिन सभी ने इस मामले में अनभिज्ञता व्यक्त की. पड़ोस में रहने वाला सुधीर नाम का एक किराएदार फरार था. पता चला कि वह बिहार के दरभंगा का रहने वाला है. करीब 2 साल से वह डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर रहा है.

अन्य किराएदारों ने बताया कि काजल के गायब होने के बाद से सुधीर गायब है. इस बात से पुलिस के शक की सुई सुधीर की तरफ मुड़ गई.

सुधीर जिस फैक्ट्री में काम करता था, वहां से पुलिस ने उस का फोटो और मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुधीर, मुन्नी और प्रमोद के फोन नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई तो कालडिटेल्स में चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि मुन्नी और सुधीर की रोजाना ही लंबीलंबी बातें होती थीं. केवल घटना वाली रात 9 बजे के करीब दोनों की बात नाममात्र ही हुई थी.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने सुधीर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. तब उन्होंने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. इस के बाद वह प्रमोद के घर गए. उस समय प्रमोद और उस की पत्नी दोनों ही कमरे पर मिल गए. उन्होंने प्रमोद से पूछा, ‘‘क्या आप सुधीर नाम के किसी आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी, सुधीर को बस इतना ही जानता हूं कि वह पड़ोस में रहता है और मेरे पास दुकान पर वह कुछ सामान खरीदने आता रहता था. उस से ज्यादा मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानता.’’ उस ने कहा.

प्रमोद से बात करते हुए थानाप्रभारी मुन्नी पर नजर रखे हुए थे. उन्होंने मुन्नी के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे. पर वह उस से कुछ नहीं बोले. प्रमोद से बात कर के वह थाने लौट आए.

कुछ समय के बाद ही थानाप्रभारी अमर सिंह को सर्विलांस सेल से सूचना मिली कि सुधीर के फोन की लोकेशन गाजीपुर थाना क्षेत्र में ही है. थानाप्रभारी ने एसआई नीरज और सोनू को सुधीर को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी सौंप दी.

एसआई नीरज और सोनू ने प्लाईवुड फैक्ट्री से एक ऐसे कर्मचारी को साथ लिया जो सुधीर को पहचानता था. इस के बाद वह गाजीपुर बसस्टैंड पर पहुंच गए, क्योंकि सुधीर के फोन की लोकेशन वहीं की आ रही थी. साथ गए व्यक्ति की शिनाख्त पर पुलिस ने सुधीर को बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. वहां से वह बिहार भागने की फिराक में था.

सुधीर को थाने ला कर पूछताछ की तो वह पहले इधरउधर की बातें करता रहा. फिर सख्ती करने पर उस ने सच्चाई बता दी. उस ने बताया कि काजल की हत्या में उस के साथ काजल की मां मुन्नी भी शामिल थी.

मासूम बेटी की हत्या में मां के शामिल होने की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई. फिर सुधीर ने उस बच्ची की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली-

प्रमोद सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक व्यस्त रहता था. काम के चक्कर में वह पत्नी को भी समय नहीं दे पाता था. लगातार 16 घंटे काम कर के वह थक कर जल्द ही सो जाता था. ऐसे में पड़ोस में रहने वाले सुधीर नाम के युवक से मुन्नी के अवैध संबंध हो गए.

दरअसल, पति की मरजी के बगैर मुन्नी ने डीडीए कौंप्लेक्स स्थित प्लाईवुड फैक्ट्री में नौकरी कर ली थी. उसी प्लाईवुड फैक्ट्री में सुधीर भी नौकरी करता था. साथसाथ काम करने पर उस की सुधीर से दोस्ती हो गई थी. 23 साल का सुधीर अविवाहित था. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. इसी बीच उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

मुन्नी के नौकरी पर चले जाने पर घर अस्तव्यस्त रहता था और बच्चों की देखभाल भी ठीक से नहीं हो पाती थी. तब प्रमोद ने दबाव डाल कर पत्नी की नौकरी छुड़वा दी. उस ने वहां 3 माह नौकरी की थी.

नौकरी छूटने के बाद भी मुन्नी के सुधीर से संबंध कायम रहे. उस की फोन पर बातचीत होती रहती थी. पति तो रात 10 बजे तक दुकान पर रहता था, इसलिए जब मुन्नी का मन होता, वह सुधीर को अपने कमरे पर बुला लेती.

10 दिसंबर, 2017 को मुन्नी और सुधीर को आपत्तिजनक स्थिति में उस की बेटी काजल ने देख लिया था. काजल को देख कर दोनों अलग हो गए. दोनों ने काजल को पैसे, कपड़े, खिलौनों आदि का लालच दे कर कहा कि उस ने जो कुछ देखा है, वह किसी को नहीं बताए.

काजल उस समय तो चुप रही, पर उस के बाद उस ने अपनी मम्मी से कह दिया कि उस की गंदी हरकत वह पापा को जरूर बताएगी. काजल के जवाब से मुन्नी घबरा गई. मुन्नी को डर लगने लगा कि काजल की वजह से वह पति की नजरों में गिर जाएगी.

साथ ही बदनामी भी होगी, इसलिए उस ने सुधीर को फोन कर के कह दिया कि काजल बात नहीं मान रही, उसे ठिकाने लगा दो, ऐसा नहीं हुआ तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.

इस के बाद मुन्नी ने काजल की हत्या की योजना तैयार की. 13 दिसंबर, 2017 की रात 8 बजे के करीब पड़ोसी लालमन के कमरे में काजल टीवी देख रही थी. मुन्नी ने इशारे से काजल को बुलाया. उसे कोई अच्छी चीज दिखाने की बात कह कर वह उसे छत पर ले गई.

सुधीर चाकू लिए छत पर पहले से बैठा था. छत के किनारे पर मुन्नी ने काजल का मुंह दबा कर पटका और सुधीर ने चाकू से उस बच्ची का गला रेत दिया. कुछ ही देर में काजल की मौत हो गई.

दोनों ने मिल कर पड़ोस की छत पर लाश फेंक दी और जिस जगह उन्होंने काजल का गला रेता था, वहां पड़े खून के ऊपर उन्होंने बोरी डाल दी, ताकि खून किसी को न दिखे.

उन की योजना रात के अंधेरे में लाश को बोरी में भर कर ठिकाने लगाने की थी. पर वह लाश ठिकाने तो नहीं लगा सके, पुलिस के हत्थे जरूर चढ़ गए. इस के बाद पुलिस ने मुन्नी को भी गिरफ्तार कर लिया. सुधीर की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने 15 दिसंबर को दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

फर्जी फाइनैंस कंपनियों से रहें सावधान

मथुरा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला विश्वेंद्र सिंह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश करतेकरते थक चुका था. आखिरकार उस ने हार मान कर अपना खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी.

इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को पैसों की जरूरत थी. इस वजह से उस ने कई बैंकों से लोन लेने के लिए बातचीत की. लेकिन उसे वहां भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि इस के लिए उसे बैंक में सिक्योरिटी के रूप में अचल संपत्ति या गारंटर की जरूरत थी, लेकिन उस की बेरोजगारी के चलते कोई भी उस का गारंटर बनने को तैयार नहीं था.

एक दिन विश्वेंद्र सिंह की अखबार पढ़ते हुए उस में छपे एक इश्तिहार पर नजर पड़ी. ‘गारैंटैड लोन, वह भी मात्र 2 घंटे में. नो फाइल चार्ज. नो गारंटर. खर्चा लोन पास होने के बाद.’

इसी तरह का एक इश्तिहार और था, जिस में मार्कशीट पर किसी भी कारोबार के लिए लोन देने की बात लिखी थी.

विश्वेंद्र सिंह को इसी तरह के तमाम इश्तिहार उस अखबार में दिखाई पड़े, जिन में 10 लाख से ले कर करोड़ रुपए तक लोन देने की बात की गई थी. उस ने उस अखबार में दी गई मेरठ की एक फाइनैंस कंपनी, जिस का नाम सिक्योर इंडिया सर्विसेज लिमिटेड और पता अबू प्लाजा लेन का था, को फोन किया.

वहां से फोन रिसीव करने वाले शख्स ने उसे बहुत आसान शर्तों पर लोन देने की बात कही. इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को मेरठ बुलाया गया.

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विश्वेंद्र सिंह जब उस लोन कंपनी के दफ्तर में पहुंचा, तो उस से पहले से बताए गए डौक्यूमैंट की फोटोकौपी व उस का फोटो जमा करवा कर 5 लाख रुपए के लोन की फाइल तैयार की गई और उस लोन की कुल रकम की सिक्योरिटी मनी के रूप में उस से 30 हजार रुपए मांगे गए.

इस पर विश्वेंद्र सिंह चौंका और बोला कि इश्तिहार में तो किसी भी तरह की गारंटी या प्रोसैसिंग फीस लेने की बात नहीं की गई थी, तो फिर यह कैसी गारंटी मनी?

इस पर उस लोन कंपनी की तरफ से कहा गया कि वे उसे 5 लाख रुपए बिना किसी गारंटर के दे रहे हैं और वह 30 हजार रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में नहीं दे सकता.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह 30 हजार रुपए देने को तैयार हो गया और उस ने उस कंपनी के खाते में 10 हजार रुपए जमा करा दिए और बाकी के पैसे उस ने नकद जमा किए. इस के एवज में उसे बिना कंपनी का नामपता लिखी एक रसीद थमा दी गई.

इस के बाद सादा कागज पर एक एग्रीमैंट करवाया गया, जिस में यह लिखा गया था कि स्थानीय तहसीलदार से जांच कराने के बाद ही उसे लोन देने की बात की गई थी.

उस एग्रीमैंट में यह भी लिखा था कि तहसीलदार की रिपोर्ट अगर उस के पक्ष में होगी, तभी यह लोन दिया जाएगा.

इस एग्रीमैंट के बाद विश्वेंद्र सिंह घर चला आया और वह लोन की रकम मिलने का इंतजार करता रहा, लेकिन जब 3 महीने बीत जाने पर भी कंपनी के लोगों ने उस से संपर्क नहीं किया, तो वह सीधे कंपनी के दफ्तर गया और लोन न मिलने की बात कही.

इस पर कंपनी की तरफ से उसे यह कहा गया कि तहसीलदार ने उस के पक्ष में रिपोर्ट नहीं लगाई है, इसलिए अब उसे लोन नहीं दिया जा सकता है.

जब विश्वेंद्र सिंह ने तहसीलदार की रिपोर्ट देखने के लिए मांगी, तो उसे यह कर मना कर दिया गया कि यह गोपनीय रिपोर्ट होती है. हम इसे नहीं दिखा सकते.

इस के बाद विश्वेंद्र सिंह ने सिक्योरिटी मनी के अपने 30 हजार रुपए वापस मांगे, तो उसे भी कंपनी ने यह कर मना कर दिया वह रकम वापस नहीं की जा सकती है.

इस तरह की फर्जी लोन कंपनियों से ठगे जाने का मामला सिर्फ बेरोजगार विश्वेंद्र सिंह का नहीं है, बल्कि हर रोज आसान तरीके से ऐसे लोन लेने के चक्कर में हजारों बेरोजगार ठगी के शिकार होते हैं.

ऐसे पहचानें फर्जी कंपनी

आसान शर्तों पर लोन देने का झांसा देने वाली इश्तिहार कंपनियां ज्यादातर मामलों में फर्जी ही होती हैं, जो भोलेभाले बेरोजगार लोगों को लोन देने के नाम पर शिकार बनाती हैं.

ऐसे में अगर आप को आसान शर्तों पर लोन देने का दावा करता कोई इश्तिहार दिख जाए, तो यह समझ लेना चाहिए कि यह महज ठगी करने वाली कंपनी ही होगी, क्योंकि कोई भी कंपनी बिना अपने रुपए की वापसी की गारंटी जांच की पड़ताल किए किसी को भी लोन नहीं देती है.

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फर्जी लोन कंपनियों की पहचान के मसले पर पंजाब नैशनल बैंक में मार्केटिंग अफसर अभिषेक पांडेय का कहना है कि कोई भी फाइनैंस कंपनी शुरू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी व सिडबी जैसे वित्तीय संस्थानों से लाइसैंस लेना पड़ता है.

ये संस्थाएं लाइसैंस देने के पहले खुलने वाली फाइनैंस कंपनी की कई तरीके से जांचपड़ताल करती हैं.

मानकों पर खरी पाए जाने पर उस कंपनी के लोन कैटीगरी को तय किया जाता है कि वह किस तरह का लोन देना चाहती है. इस में  घर का लोन, गाड़ी के लिए लोन, कारोबार वगैरह की अलगअलग कैटीगरी तय की जाती है.

अभिषेक पांडेय के मुताबिक, कोई भी लोन देने वाली कंपनी एक फीसदी  सालाना के न्यूनतम ब्याज पर कर्ज दे कर नहीं चलाई जा सकती है, वह भी कर्ज वापसी के लिए बिना किसी छानबीन व गारंटी के तो यह एकदम मुश्किल है. अगर कोई कंपनी इस तरह के लोन देने का दावा करती है, तो वह धोखाधड़ी व ठगी के मकसद से ही ऐसा कर रही होती है.

इन से ही लें लोन

अगर आप बेरोजगार हैं और किसी तरह का लोन लेना चाहते हैं, तो इस के लिए बैंक व फाइनैंस कंपनी से ही आप का लोन लेना ज्यादा अच्छा होता है.

एक वित्तीय सलाहकार मनमोहन श्रीवास्तव के मुताबिक, लोन देने के पहले बैंकों द्वारा लोन लेने वाले के पते की छानबीन कर पूरी गारंटी के साथ ही लोन दिया जाता है.

बैंक द्वारा लोन के लिए सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस ली जाती है. अगर आप किसी कारोबार के लिए लोन ले रहे हैं, तो बैंक उस के लिए उस कारोबार का प्रोजैक्ट मांगता है. उस प्रोजैक्ट रिपोर्ट के संतुष्ट होने के बाद ही लोन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है.

मनमोहन श्रीवास्तव का आगे कहना है कि बैंक द्वारा जो ब्याज की रकम ली जाती है, वह इश्तिहारी लोन कंपनियों के बजाय ज्यादा तो होती है, लेकिन यह भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही तय होती है, जिस में धोखाधड़ी का कोई डर नहीं होता है.

उन का कहना है कि अगर अखबारों में आसान शर्तों पर लोन देने के इश्तिहार दिखाई दें, तो उस पर ध्यान न दे कर बैंकों से लोन लेने की कोशिश करें. इस लोन को हासिल करने में भले ही समय लगे, लेकिन इस में आप की जेब का पैसा डूबने का डर नहीं रहता है.

बहनों से छेड़छाड़, भाइयों की मुसीबत

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला राजा नामक नौजवान दिल्ली से लगे नोएडा के एक कार गैराज में नौकरी करता था. उसे घायल हालत में अस्पताल में भरती कराया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत से जूझने के बाद राजा की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. वह मारपीट में बुरी तरह से घायल हुआ था. उस के सिर व बदन के दूसरे हिस्सों पर चोटों के निशान थे. उस की मौत ने न सिर्फ उस के परिवार, बल्कि उस के जानकारों को भी हिला कर रख दिया. राजा की गलती महज इतनी थी कि वह अपनी बहन के साथ आएदिन होने वाली छेड़छाड़ का विरोध करता था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध करने पर मनचला अपने साथियों के साथ उसे इस तरह निशाना बना लेगा.

एक भाई के लिए यह जरूरी भी हो जाता है कि जब कोई सिरफिरा शोहदा उस की बहन को छेड़े, तो वह विरोध करे, लेकिन मनचलों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे विरोध से उन की तौहीन हो गई है और वे सीनाजोरी कर के मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

दरअसल, राजा की बहन को एक शोहदा वसीम अकसर ही परेशान किया करता था. मौका लगने पर छेड़छाड़ और फब्तियां कसता था. राजा ने इस बात का कई बार विरोध किया, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं.

एक दिन वसीम ने अपने साथियों के साथ मिल कर राजा की जम कर पिटाई कर दी. गंभीर चोटों के बाद उस की मौत हो गई.

पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कानून ने अपना काम किया, लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो जाती. सवाल है कि किसी सभ्य समाज में क्या एक भाई को यह सब सहना चाहिए?

समाज में इस तरह की वारदातों में इजाफा हो रहा है. हर छोटेबड़े शहर में शोहदे हैं. हर मिनट कोई लड़की आहत हो कर खून का घूंट पी रही होती है और शोहदे कौलर तान कर निकल जाते हैं. विरोध करने पर सिरफुटौव्वल होती है.

बहन के साथ होने वाली छेड़छाड़ के विरोध की कीमत चुकाने वाला राजा कोई एक अकेला नौजवान नहीं था. उत्तर प्रदेश के बरेली में तो बहन से छेड़छाड़ करने पर दबंगों ने एक भाई की सरेआम हत्या कर दी.

दरअसल, संजय नगर इलाके में एक लड़की सावित्री घर के बाहर खड़े हो कर अपने भाई नन्हे से बात कर रही थी. इसी बीच मोटरसाइकिल सवार एक लड़के ने उसे हलकी टक्कर मार दी.

सावित्री ने विरोध किया, तो उस ने दबंगई दिखा कर छेड़छाड़ कर दी. गुस्से में आए भाई ने उस लड़के को पीट दिया.

वह लड़का तब तो चला गया, लेकिन कुछ देर बाद वह अपने दोस्तों के साथ आया और भाई से मारपीट कर दी. उन्होंने उस के सिर पर फरसे से वार किए. तेज वार से नन्हे लहूलुहान हो कर गिर गया और उस की मौत हो गई.

मामला किसी छोटी जाति की लड़की का हो, तो दबंग उस पर अपना हक समझते हैं कि वह बिना नानुकर किए उन की बात मान ले.

सुलतानपुर का मामला कुछ ऐसा ही है. कादीपुर कोतवाली क्षेत्र में पिछड़ी जाति के निषाद की बेटी रीना (बदला नाम) खेत पर गई थी, तभी 3 दबंगों ने छेड़छाड़ करते हुए उसे दबोच लिया.

इसी बीच रीना का भाई उधर पहुंच गया. बहन की चीखपुकार सुन कर उस की आबरू बचाने के लिए वह दबंगों से भिड़ गया. उन्होंने उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया. बाद में अस्पताल में उस की मौत हो गई.

गांवदेहात में कमजोर लोगों की बहूबेटियों पर दबंगों की गंदी नजरें मंडराती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. विरोध करने पर उन्हें तरहतरह से सताया जाता है.

हापुड़ के हरसांव गांव का रहने वाला एक लड़का अपनी बहन के साथ जा रहा था, तभी रास्ते में एक मनचले ने उस की बहन का हाथ पकड़ लिया. भाई ने विरोध किया, तो उस के साथ मारपीट कर मनचला मौके से फरार हो गया.

छेड़छाड़ करने वाले सड़कों, महल्लों से ले कर स्कूलकालेजों के बाहर तक मंडराते हैं. गाजियाबाद शहर के एक कालेज के बाहर 10वीं जमात की एक छात्रा के साथ मनचले अकसर छेड़छाड़ किया करते थे. उस ने इस की शिकायत अपने भाई से की.

एक दिन उस छात्रा का भाई छुट्टी के वक्त पहुंच गया. मनचलों ने वही हरकत दोहराई, तो भाई ने विरोध किया. मनचलों को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने भाई को दौड़ादौड़ा कर इतना पीटा कि उसे आईसीयू में भरती कराना पड़ा. हालांकि बाद में पुलिस ने मनचलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

इसी तरह कानपुर शहर में एक वारदात हुई. 12वीं जमात की एक छात्रा के साथ एक मनचला अकसर छेड़खानी किया करता था. एक दिन वह घर से कोचिंग क्लास के लिए निकली, तो मनचले ने रास्ता घेर कर उसे रोक लिया और उसे जबरन मोटरसाइकिल पर बैठाने की कोशिश की.

घर पहुंच कर उस लड़की ने अपने भाई को जानकारी दी. गुस्साया भाई अपने एक दोस्त के साथ मनचले के घर शिकायत करने पहुंचा. मनचले ने उलटा उन पर हमला बोल दिया. बैल्ट व डंडों से पीट कर उन दोनों को घायल कर दिया.

मेरठ शहर के सदर इलाके में भी एक नौजवान को अपनी बहन के साथ हुई छेड़छाड़ का विरोध करना भारी पड़ गया. हुआ यों कि एक लड़की अपने घर के बाहर खड़ी थी. इसी दौरान 2 दोस्तों के साथ जा रहे एक लड़के ने लड़की पर फब्तियां कसीं और उस का मोबाइल नंबर पूछा.

इसी बीच घर से बाहर निकले भाई ने उन लड़कों की इस हरकत का विरोध किया, तो उन्होंने उस के साथ मारपीट कर दी. मौके पर खड़ी भीड़ तमाशा देखती रही. पुलिस के पहुंचने तक हमलावर फरार हो गए.

छेड़छाड़ करने वाले ज्यादातर मनचले इस सोच के मारे होते हैं कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं. जो लड़की के पक्ष में आता है, उसे गुंडई कर के सबक भी सिखाते हैं. ऐसे मनचले लड़कियों को गंदे इशारे करते हैं, उन्हें छू कर निकलते हैं, वासना भरी नजरों से घूरते हैं और सीटी बजाते हैं.

अमूमन हर रोज ऐसी हरकतों को सहा जाता है. जब कोई भाई अपनी बहन को छेड़छाड़ से बचाने की कोशिश करता है, तो उसे बहुतकुछ सहना पड़ता है. मामला मारपीट और पुलिस तक जाए, तो समाज कई बार लड़की को ही गलत नजर से देखता है. उस का घर से निकलना तक बंद हो जाता है. मनचलों को कानून का डर नहीं होता. छेड़छाड़ के मामले में शायद ही कभी किसी को सजा हुई हो.

वकील सुदेश त्यागी बताते हैं कि पुलिस ऐसे मामलों में छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ धारा-294 के तहत कार्यवाही करती है. इस में ज्यादा से ज्यादा 3 महीने की सजा या जुर्माने का प्रावधान है. ऐसे में अपराध अदालत के सामने साबित भी करना होता है.

समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की बीमारी से उन भाइयों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, जो अपनी बहन की आबरू को ले कर फिक्रमंद रहते हैं. वे गलत हरकत का विरोध करते हैं, तो उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है, रंजिशें पनपती हैं और हत्याएं तक हो जाती हैं.

पुलिस अफसर नरेंद्र प्रताप कहते हैं कि इस तरह के मामलों में तुरंत पुलिस को सूचित करना चाहिए. औरतों के लिए अलग से भी हैल्पलाइन नंबर हैं. उन पर भी सूचना दी जा सकती है.

दुखी हो कर बने कातिल

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का रहने वाला संतराम भी ऐसा ही एक भाई है, जिसे छेड़छाड़ से तंग आ कर हत्या तक करनी पड़ गई. दरअसल, राजीव नामक दबंग लड़का संतराम की बहन पर बुरी नजर रखता था. वह अकसर उस के साथ छेड़छाड़ करता था. बारबार समझाने पर भी जब वह नहीं माना, तो संतराम ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

एक दिन संतराम ने अपने साथी के साथ मिल कर राजीव को बुलाया. पहले उसे शराब पिलाई, फिर डंडे से सिर पर वार कर के उस की हत्या कर दी. तफतीश में मामला खुला, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

हरियाणा के करनाल शहर का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा. 5 नौजवानों ने चाकुओं से गोद कर बसस्टैंड इलाके में एक लड़के विजय राणा की हत्या कर दी. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि विजय राणा आरोपियों में से एक की बहन के साथ छेड़छाड़ व पीछा किया करता था. इसी बात से गुस्साए भाई ने अपने साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर डाली.

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