Family Story: पुनर्विवाह- क्या पत्नी की मौत के बाद आकाश ने दूसरी शादी की?

Family Story: जब से पूजा दिल्ली की इस नई कालोनी में रहने आई थी उस का ध्यान बरबस ही सामने वाले घर की ओर चला जाता था, जो उस की रसोई की खिड़की से साफ नजर आता था. एक अजीब सा आकर्षण था इस घर में. चहलपहल के साथसाथ वीरानगी और मुसकराहट के साथसाथ उदासी का एहसास भी होता था उसे देख कर. एक 30-35 वर्ष का पुरुष अकसर अंदरबाहर आताजाता नजर आता था. कभीकभी एक बुजुर्ग दंपती भी दिखाई देते थे और एक 5-6 वर्ष का बालक भी.

उस घर में पूजा की उत्सुकता तब और भी बढ़ गई जब उस ने एक दिन वहां एक युवती को भी देखा. उसे देख कर उसे ऐसा लगा कि वह यदाकदा ही बाहर निकलती है. उस का सुंदर मासूम चेहरा और गरमी के मौसम में भी सिर पर स्कार्फ उस की जिज्ञासा को और बढ़ा गया.

जब पूजा की उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गई तो एक दिन उस ने अपने दूध वाले से पूछ ही लिया, ‘‘भैया, तुम सामने वाले घर में भी दूध देते हो न. बताओ कौनकौन हैं उस घर में.’’

यह सुनते ही दूध वाले की आंखों में आंसू और आवाज में करुणा भर गई. भर्राए स्वर में बोला, ‘‘दीदी, मैं 20 सालों से इस घर में दूध दे रहा हूं पर ऐसा कभी नहीं देखा. यह साल तो जैसे इन पर कयामत बन कर ही टूट पड़ा है. कभी दुश्मन के साथ भी ऐसा अन्याय न हो,’’ और फिर फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘भैया अपनेआप को संभालो,’’ अब पूजा को पड़ोसियों से ज्यादा अपने दूध वाले की चिंता होने लगी थी. पर मन अभी भी यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर क्या हुआ है उस घर में.

शायद दूध वाला भी अपने मन का बोझ हलका करने के लिए बेचैन था.

अत: कहने लगा, ‘‘क्या बताऊं दीदी, छोटी सी गुडि़या थी सलोनी बेबी जब मैं ने इस घर में दूध देना शुरू किया था. देखते ही देखते वह सयानी हो गई और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. सलोनी बेबी ऐसी थी कि सब को देखते ही पसंद आ जाए पर वर भी उस के जोड़ का होना चाहिए था न.

‘‘एक दिन आकाश बाबू उन के घर आए. उन्होंने सलोनी के मातापिता से कहा कि शायद सलोनी ने अभी आप को बताया नहीं है… मैं और सलोनी एकदूसरे को चाहते हैं और अब विवाह करना चाहते हैं,’’ और फिर अपना पूरा परिचय दिया.

‘‘आकाश बाबू इंजीनियर थे व मांबाप की इकलौती औलाद. सलोनी के मातापिता को एक नजर में ही भा गए. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे मातापिता को यह रिश्ता मंजूर है?

‘‘यह सुन कर आकाश बाबू कुछ उदास हो गए फिर बोले कि मेरे मातापिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. 2 वर्ष पूर्व एक कार ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई थी.

‘‘यह सुन कर सलोनी के मातापिता बोले कि हमें यह रिश्ता मंजूर है पर इस शर्त पर कि विवाहोपरांत भी तुम सलोनी को ले कर यहां आतेजाते रहोगे. सलोनी हमारी इकलौती संतान है. तुम्हारे यहां आनेजाने से हमें अकेलापन महसूस नहीं होगा और हमारे जीवन में बेटे की कमी भी पूरी हो जाएगी.

‘‘आकाश बाबू राजी हो गए. फिर क्या था धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया और फिर साल भर में गोद भी भर गई.’’

‘‘यह सब तो अच्छा ही है. इस में रोने की क्या बात है?’’ पूजा ने कहा.

दूध वाले ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘एक दिन जब मैं दूध देने गया तो घर में सलोनी बिटिया, आकाश बाबू और शौर्य यानी सलोनी बिटिया का बेटा भी था. तब मैं ने कहा कि बिटिया कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखाई दीं. मेरी तो आंखें ही तरस जाती हैं तुम्हें देखने के लिए. पर मैं बड़ा हैरान हुआ कि जो सलोनी मुझे काकाकाका कहते नहीं थकती थी वह मेरी बात सुन कर मुंह फेर कर अंदर चली गई. मैं ने सोचा बेटियां ससुराल जा कर पराई हो जाती हैं और कभीकभी उन के तेवर भी बदल जाते हैं. अब वह कहां एक दूध वाले से बात करेगी और फिर मैं वहां से चला आया. पर अगले ही दिन मुझे मालूम पड़ा कि मुझ से न मिलने की वजह कुछ और ही थी. सलोनी बिटिया नहीं चाहती थी कि सदा उस का खिलखिलाता चेहरा देखने वाला काका उस का उदास व मायूस चेहरा देखे.

‘‘दरअसल, सलोनी बिटिया इस बार वहां मिलने नहीं, बल्कि अपना इलाज करवाने आई थी. कुछ दिन पहले ही पता चला था कि उसे तीसरी और अंतिम स्टेज का ब्लड कैंसर है. इसलिए डाक्टर ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जाने को कहा था. यहां इस बीमारी का इलाज नहीं था.

‘‘सलोनी को अच्छे से अच्छे डाक्टरों को दिखाया गया, पर कोई फायदा नहीं हुआ. ब्लड कैंसर की वजह से सलोनी बिटिया की हालत दिनोंदिन बिगड़ती चली गई. बारबार कीमोथेरैपी करवाने से उस के लंबे, काले, रेशमी बाल भी उड़ गए. इसी वजह से वह हर वक्त स्कार्फ बांधे रखती. कितनी बार खून बदलवाया गया. पर सब व्यर्थ. आकाश बाबू बहुत चाहते हैं सलोनी बिटिया को. हमेशा उसी के सिरहाने बैठे रहते हैं… तनमनधन सब कुछ वार दिया आकाश बाबू ने सलोनी बिटिया के लिए.’’

शाम को जब विवेक औफिस से आए तो पूजा ने उन्हें सारी बात बताई, ‘‘इस

दुखद कहानी में एक सुखद बात यह है कि आकाश बाबू बहुत अच्छे पति हैं. ऐसी हालत में सलोनी की पूरीपूरी सेवा कर रहे हैं. शायद इसीलिए विवाह संस्कार जैसी परंपराओं का इतना महत्त्व दिया जाता है और यह आधुनिक पीढ़ी है कि विवाह करना ही नहीं चाहती. लिव इन रिलेशनशिप की नई विचारधारा ने विवाह जैसे पवित्र बंधन की धज्जियां उड़ा दी हैं.’’

फिर, ‘मैं भी किन बातों में उलझ गई. विवेक को भूख लगी होगी. वे थकेहारे औफिस से आए हैं. उन की देखभाल करना मेरा भी तो कर्तव्य है,’ यह सोच कर पूजा रसोई की ओर चल दी. रसोई से फिर सामने वाला मकान नजर आया.

आज वहां काफी हलचल थी. लगता था घर की हर चीज अपनी जगह से मिलना चाहती है. घर में कई लोग इधरउधर चक्कर लगा रहे थे. बाहर ऐंबुलैंस खड़ी थी. पूजा सहम गई कि कहीं सलोनी को कुछ…

पूजा का शक ठीक था. उस दिन सलोनी की तबीयत अचानक खराब हो गई और उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. हालांकि उन से अधिक परिचय नहीं था, फिर भी पूजा और विवेक अगले दिन उस से मिलने अस्पताल गए. वहां आकाश की हालत ठीक उस परिंदे जैसी थी, जिसे पता था कि उस के पंख अभी कटने वाले ही हैं, क्योंकि डाक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि सलोनी अपने जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही है. फिर वही हुआ. अगले दिन सलोनी इस संसार से विदा हो गई.

इस घटना को घटे करीब 2 महीने हो गए थे पर जब भी उस घर पर नजर पड़ती पूजा की आंखों के आगे सलोनी का मासूम चेहरा घूम जाता और साथ ही आकाश का बेबस चेहरा. मानवजीवन पर असाध्य रोगों की निर्ममता का जीताजागता उदाहरण और पति फर्ज की साक्षात मूर्ति आकाश.

दोपहर के 2 बजे थे. घर का सारा काम निबटा कर मैं लेटने ही जा रही थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दरवाजे पर एक महिला थी. शायद सामने वाले घर में आई थी, क्योंकि पूजा ने इन दिनों कई बार उसे वहां देखा था. उस का अनुमान सही था.

‘‘मैं आप को न्योता देने आई हूं.’’

‘‘कुछ खास है क्या?’’

‘‘हां, कल शादी है न. आप जरूर आइएगा.’’

इस से पहले कि पूजा कुछ और पूछती, वह महिला चली गई. शायद वह बहुत जल्दी में थी.

वह तो चली गई पर जातेजाते पूजा की नींद उड़ा गई. सारी दोपहरी वह यही सोचती रही कि आखिर किस की शादी हो रही है वहां, क्योंकि उस की नजर में तो उस घर में अभी कोई शादी लायक नहीं था.

शाम को जब विवेक आए तो उन के घर में पैर रखते ही पूजा ने उन्हें यह सूचना दी जिस ने दोपहर से उस के मन में खलबली मचा रखी थी. उसे लगा कि यह समाचार सुन कर विवेक भी हैरान हो जाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. वे वैसे ही शांत रहे जैसे पहले थे.

बोले, ‘‘ठीक है, चली जाना… हम पड़ोसी हैं.’’

‘‘पर शादी किस की है, आप को यह जानने की उत्सुकता नहीं है क्या?’’ पूजा ने तनिक भौंहें सिकोड़ कर पूछा, क्योंकि उसे लगा कि विवेक उस की बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं.

‘‘और किस की? आकाश की. अब शौर्य की तो करने से रहे इतनी छोटी उम्र में. आकाश के घर वाले चाहते हैं कि यह शीघ्र ही हो जाए, क्योंकि आकाश को इसी माह विदेश जाना है. दुलहन सलोनी की चचेरी बहन है.’’

यह सुन कर पूजा के पैरों तले की जमीन खिसक गई. जिस आकाश को उस ने आदर्श पति का ताज दे कर सिरआंखों पर बैठा रखा था. वह अब उस से छिनता नजर आ रहा था. उस ने सोचा कि पत्नी को मरे अभी 2 महीने भी नहीं हुए और दूसरा विवाह? तो क्या वह प्यार, सेवाभाव, मायूसी सब दिखावा था? क्या एक स्त्री का पुरुषजीवन में महत्त्व जितने दिन वह साथ रहे उतना ही है? क्या मरने के बाद उस का कोई वजूद नहीं? मुझे कुछ हो जाए तो क्या विवेक भी ऐसा ही करेंगे? इन विचारों ने पूजा को अंदर तक हिला दिया और वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई. उसे सारा कमरा घूमता नजर आ रहा था.

जब विवेक वहां आए तो पूजा को इस हालत में देख घबरा गए और फिर उस का सिर गोद में रख कर बोले, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या ऊटपटांग सोचसोच कर अपना दिमाग खराब किए रखती हो? तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?’’

विवेक की इस बात पर सदा गौरवान्वित महसूस करने वाली पूजा आज बिफर पड़ी, ‘‘ले आना तुम भी आकाश की तरह दूसरी पत्नी. पुरुष जाति होती ही ऐसी है. पुरुषों की एक मृगमरीचिका है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. आकाश यह शादी अपने सासससुर के कहने पर ही कर रहा है. उन्होंने ही उसे पुनर्विवाह के लिए विवश किया है, क्योंकि वे आकाश को अपने बेटे की तरह चाहने लगे हैं. वे नहीं चाहते कि आकाश जिंदगी भर यों ही मायूस रहे. वे चाहते हैं कि आकाश का घर दोबारा बस जाए और आकाश की पत्नी के रूप में उन्हें अपनी सलोनी वापस मिल जाए. इस तरह शौर्य को भी मां का प्यार मिल जाएगा.

‘‘पूजा, जीवन सिर्फ भावनाओं और यादों का खेल नहीं है. यह हकीकत है और इस के लिए हमें कई बार अपनी भावनाओं का दमन करना पड़ता है. सिर्फ ख्वाबों और यादों के सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती. जिंदगी बहुत लंबी होती है.

‘‘आकाश दूसरी शादी कर रहा है इस का अर्थ यह नहीं कि वह सलोनी से प्यार नहीं करता था. सलोनी उस का पहला प्यार था और रहेगी, परंतु यह भी तो सत्य है कि सलोनी अब दोबारा नहीं आ सकती. दूसरी शादी कर के भी वह उस की यादों को जिंदा रख सकता है. शायद यह सलोनी के लिए सब से बड़ी श्रद्धांजलि होगी.

‘‘यह दूसरी शादी इस बात का सुबूत है कि स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के 2 पहिए हैं और यह गाड़ी खींचने के लिए एकदूसरे की जरूरत पड़ती है और यह काम अभी हो जाए तो इस में हरज ही क्या है?’’

विवेक की बातों ने पूजा के दिमाग से भावनाओं का परदा हटा कर वास्तविकता की तसवीर दिखा दी थी. अब उसे आकाश के पुनर्विवाह में कोई बुराई नजर नहीं आ रही थी और न ही विवेक के प्यार पर अब कोई शक की गुंजाइश थी.

विवेक के लिए खाना लगा कर पूजा अलमारी खोल कर बैठ गई और फिर स्वभावानुसार विवेक का सिर खाने लगी, ‘‘कल कौन सी साड़ी पहनूं? पहली बार उन के घर जाऊंगी. अच्छा इंप्रैशन पड़ना चाहिए.’’

विवेक ने भी सदा की तरह मुसकराते हुए कहा, ‘‘कोई भी पहन लो. तुम पर तो हर साड़ी खिलती है. तुम हो ही इतनी सुंदर.’’

पूजा विवेक की प्यार भरी बातें सुन कर गर्वित हो उठी.

Family Story: औलाद – क्यों कुलसूम अपने बच्चे को खुद से दूर करना चाहती थी?

Family Story: नरगिस की खूबसूरती के चर्चे आम होने लगे. गांवभर की औरतें नरगिस की मां से कहने लगीं कि उस की शादी की फिक्र करो जुबैदा. उम्र भले ही कम सही, लेकिन कुदरत ने इस को खूबसूरती ऐसी दी है कि बड़ेबड़ों का ईमान डोल जाए.

इस पर जुबैदा कहती, “तुम लोग मेरी बेटी की फिक्र में मत मरा करो. मेरे पास दौलत भले ही नहीं है, लेकिन बेटी ऐसी मिली है कि राजेमहाराजे तक आएंगे रिश्ता ले कर मेरे दरवाजे पर.”

एक दिन ऐसा हुआ भी. हवेली से बड़े नवाब के बड़े साहबजादे शाहरुख मिर्जा के लिए नरगिस का रिश्ता आ गया. जुबैदा की खुशी का ठिकाना न रहा.

नरगिस के अब्बा अब इस दुनिया में नहीं थे, इसलिए मंगनी की रस्म भी जुबैदा ने खुद पूरी की और अगले साल बेटी के निकाह का दिन तय कर दिया.

इस बीच बचपन का बिछड़ा जुबैदा का भांजा यानी नरगिस के मामा का बेटा खुर्रम पाकिस्तान से लौट आया. लोग कहते हैं कि वह बकरी चरातेचराते सरहद पार कर गया था और फिर वहां से लौट कर नहीं आया.

खुर्रम के साथ गांवभर में खुशियां भी लौट आईं, इसलिए कि बचपन में खुर्रम गांवभर का चहेता हुआ करता था. जुबैदा के भाईभाभी खुर्रम के साथ जुबैदा के घर मिलने आए और जुबैदा को उस का वादा याद दिलाया.

जुबैदा की जबान से आवाज नहीं निकल रही थी, “भाभी… वह… मैं ने तो… नरगिस का रिश्ता हवेली में शाहरुख मिर्जा के साथ तय कर दिया है. मैं नहीं जानती थी कि खुर्रम कभी लौट भी आएगा.”

यह सुन कर जुबैदा के भाईभाभी के अलावा खुर्रम भी हैरान रह गया. बच्चों के बचपन में किए गए उन के मांबाप के वादे को जुबैदा द्वारा तोड़े जाने का उन्हें बेहद अफसोस हो रहा था, लेकिन चूंकि गलती जुबैदा की नहीं, बल्कि हालात की थी, इसलिए उन्हें खामोश रह जाना पड़ा.

हालांकि खुर्रम के दिल में गांठ बैठ गई. उस ने नरगिस को अपने दिल से कभी नहीं निकालने का फैसला कर लिया. वह दिल से मनाया करता कि किसी तरह नरगिस का रिश्ता हवेली से टूट कर उस से तय हो जाता.

दोनों खानदान एक ही गांव में रहते थे, इसलिए नरगिस और खुर्रम का एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता था. एक दिन मौका पा कर खुर्रम ने नरगिस को घेर लिया, “देखो नरगिस, मैं जानता हूं कि तुम्हारा निकाह हवेली में तय हो चुका है, लेकिन मैं तुम्हें अपने दिल में बसा चुका हूं, इसलिए वहां से निकाल नहीं सकता.”

नरगिस पाक दामन लड़की थी. अकेले में खुर्रम की बातें सुन कर वह पसीनापसीना हो गई. उस के लब खुले, “तुम तो पाकिस्तान चले गए थे, फिर मैं कब दिल में बस गई?”

“मैं तुम्हें भुला ही कब था. बचपन में जब हमारा रिश्ता तय हुआ था, तब मैं होशमंद था और तुम नादान. उस वक्त मैं 8 साल का और तुम 5 साल की थी.”

नर्गिस बोली, “अच्छा तो अब मैं क्या कर सकती हूं?”

खुर्रम ने कहा, “तुम चाहो तो अब भी लौट सकती हो…”

नर्गिस ने कहा, “बेवा मां के अरमानों को तोड़ने की हिम्मत नहीं है मुझ में. उन्होंने मां की ममता के साथ बाप जैसी परवरिश भी दी है. पुराने लोग अपनी जबान पर मरते हैं. अम्मी हवेली वालों को जबान दे चुकी हैं.”

“फुफू तो मेरी अम्मी को भी जबान दे चुकी थीं…” खुर्रम बोला.

“लेकिन तब तुम गायब थे और गायब इनसान के भरोसे कोई अपनी बेटी को घर बिठा कर नहीं रख सकता,” नरगिस बोली.

बहरहाल बात आईगई हो गई. फिर तय वक्त पर नरगिस की बरात आई और अगली सुबह वह रुखसत भी हो गई.

हवेली में दुलहन की खूबसूरती एक कौंधती हुई बिजली की मानिंद झमाका बन कर गिरी. रात हुई. दूल्हा आया, लेकिन पलंग के बजाय सोफे पर सो गया. नरगिस घंटों इंतजार करती रही, लेकिन वह सेज तक नहीं आया और खुद उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि किसी अनजान मर्द के पास खुद चल कर जा सके.

सुबह जल्दी ही नरगिस जाग गई. हड़बड़ा कर कपड़े समेटे और पलंग से नीचे उतर आई और सोफर के पास गई जहां उस का शौहर सो रहा था.

शाहरुख का चेहरा देखते ही नरगिस गश खा कर वहीं गिर पड़ी. जब वह गिरी तब उस की आवाज पर शाहरुख जाग गया. अपनी दुलहन को ऐसे देख कर वह समझ गया कि उस की बदसूरती ने नरगिस को बेहोश कर दिया है.

फिर शाहरुख बाहर जा कर अपनी मां की गोद में सिर रख कर रोने लगा, “अम्मी, मैं न कहता था कि मेरी शादी किसी खूबसूरत लड़की से मत करना. देखो, मुझे देखते ही दुलहन गश खा कर गिर पड़ी है.”

मां दौड़ीदौड़ी दुलहन के कमरे में गई. पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाया गया, फिर दुलहन के सामने अपना दामन फैलाते हुए अम्मी ने कहा, “बेटी, मैं तुम्हारी असल गुनहगार हूं. शाहरुख अपनी सूरत को ले कर बचपन से ही  परेशान रहा है. मैं ने ही उस से बारबार चांद सी दुलहन लाने का वादा किया था.

“बेटी, अब तुम इस हवेली की बड़ी बहू हो. मेरे इन आंसुओं का वास्ता… तुम मेरे शाहरुख को अपना लो, नहीं तो वह जीतेजी मर जाएगा.”

बहरहाल, नरगिस को हालात से समझौता करना पड़ा जैसा अकसर लड़कियों को करना पड़ता है. फिर शाहरुख के खुरदरे जीवन में बहार आ गई. शाहरुख की खुशी देख कर उस की मां आयशा फूली नहीं समाती. वह हवेली की औरतों में अपनी बहू की खूबसूरती के चर्चे बढ़ाचढ़ा कर करती.

देखतेदेखते एक साल, फिर 2 साल बीत गए, लेकिन नरगिस मां नहीं बनी. उस की सास आयशा को शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि नरगिस अपने शौहर के साथ हमबिस्तर ही नहीं होती. पर उन दोनों ने अपने हमबिस्तर होने का उसे यकीन दिलाया, फिर वह अपने वारिस को ले कर फिक्रमंद रहने लगी.

3 साल बीत गए. फिर डाक्टरों के यहां चक्कर लगने शुरू हो गए. डाक्टरों ने बताया कि नरगिस के अंदर कोई खराबी नहीं है. जो कमी है वह शाहरुख के अंदर ही है.

शाहरुख हवेली में सब से बड़ा लड़का था. उस के अंदर का खोट आयशा को अपना खोट महसूस होने लगा. उस की बहू को मारे जाने वाले ताने उस के जिगर पर नश्तर बन कर चुभने लगे. फिर पोतेपोतियों की चाहत में आयशा बीमार रहने लगी.

एक दिन आयशा ने नरगिस से अकेले में कहा, “दुलहन, एक औरत के लिए सब से बड़ा कलंक होता है उस का मां नहीं बनना. मैं जानती हूं कि मेरे बेटे में खोट है, लेकिन दुनिया तुम्हें ही हिकारत की नजर से देखेगी, बांझ कहेगी.

“मैं चाहती हूं कि तुम अपने मायके में कुछ दिनों तक रह लो. क्या पता वहीं कुदरत तुम्हारी गोद हरी कर दे और हमारे खानदान का चिराग रोशन हो जाए.”

नरगिस नादान और कम उम्र थी. उस ने हंसते हुए कहा, “अम्मां, मैं वहां अकेली रहूंगी, तो मेरी गोद हरी कैसे होगी?”

आयशा ने समझाया, “यह हंसने का समय नहीं, बल्कि सोचने का समय है. एक औरत दूसरी औरत का और एक मां दूसरी मां का दर्द समझती है. तुम वहां जा कर सोचना कि इस हवेली का चिराग कैसे रोशन होगा. औरत अपने अंदर बड़े से बड़ा तूफान भी जज्ब कर लेती है, यह बात तुम्हें समझनी पड़ेगी.”

नरगिस अपने घर चली आई. आते ही मां ने औलाद की खुशखबरी जाननी चाही, लेकिन उसे नाउम्मीदी हाथ लगी. फिर नर्गिस ने अपनी सास की कही बातों को मां से कहा. जुबैदा सब समझ गई.

जुबैदा ने बेटी को समझाया, “बीज गलत रहने से जमीन बंजर रह जाती है और सारा कुसूर जमीन के माथे मढ़ दिया जाता है, इसलिए बीज बदला जाता है. जब जानदार और दमदार बीज धरती की कोख में पड़ता है, तो धरती को फाड़ कर बाहर निकल आता है. थोड़ा दर्द सहने के बाद जब धरती पर फसल लहलहाने लगती है, तब धरती अपने सारे दर्द भूल जाती है.”

फिर जुबैदा को खुर्रम याद आया जो अभी भी कुंआरा बैठा था. अपने खानदान का देखाभाला लड़का था. उस ने उस तक खबर पहुंचा दी कि नरगिस आई हुई है.

खुर्रम दौड़ादौड़ा आ पहुंचा. दोनों को अकेला छोड़ कर जुबैदा अपना इलाज कराने शहर चली गई. नरगिस ने खुर्रम काफी देर तक आपस में बातें करते रहे.

उस दिन के बाद जब तक नरगिस मां के घर रही, खुर्रम का आनाजाना लगा रहा. जबजब खुर्रम आता, जुबैदा कभी अपना इलाज कराने शहर चली जाती तो कभी बाजार चली जाती, ताकि तनहाई में उम्मीदों के चिराग जल सकें.

2 महीने बीत गए. नरगिस ज्यादा दिनों तक यहां रह भी नहीं सकती थी. एक दिन जुबैदा ने उसे टटोला. नरगिस ने जवाब दिया, “अम्मां, पागल हो गई हो क्या… बिना मर्द के बच्चा कैसे होगा?”

जुबैदा ने पूछा, “खुर्रम मर्द नहीं है क्या?”

नरगिस को पहली बार मां और सास दोनों की बातें समझ में आईं. वह फूटफूट कर रोने लगी, “यह क्या कह रही हो आप… ऐसा कैसे हो सकता है…”

जुबैदा ने कहा, “ऐसा करने के लिए मैं कह रही हूं और तुम्हारी सास कह रही हैं. सारा गुनाह हमारे सिर होगा. मेरी बेटी को लोग बांझ कहें यह मैं कतई बरदाश्त नहीं कर सकती.”

नरगिस बोली, “लेकिन मैं आप लोगों के लिए खुर्रम को कुरबानी का बकरा नहीं बना सकती.”

जुबैदा ने कहा, “मर्द औरत के जिस्म प्यासा होता है. मर्द खुद को गिराने की ताक में लगा रहता है. खुर्रम के लिए यह कुरबानी नहीं, बल्कि फख्र की बात होगी.”

नरगिस ने कहा, “मेरे गुनाहों की सजा आप को या मेरी सास को नहीं मिल सकती…”

जुबैदा चिल्लाई, “फिर तो जाओ हवेली और अपने गुनाहों की सजा जिंदगीभर भुगतती रहो, “कह कर जुबैदा बाहर निकल गई और नरगिस किसी कमजोर दीवार की तरह वहीं ढह गई.

अगली सुबह नरगिस ने हवेली का रुख किया. सास ने उम्मीदों के साथ उस का स्वागत किया. शाम होते ही आयशा ने उम्मीद से होने की बात पूछी, पर नरगिस ने इनकार कर दिया.

आयशा ने कहा, “तुम्हारी तरह तुम्हारी मां भी बेवकूफ ठहरी. क्या उस ने तुम्हें दुनियादारी नहीं सिखाई…”

नर्गिस ने कहा, “सिखाई थी, बल्कि आप से ज्यादा बेहतर ढंग से सिखाई थी, लेकिन मैं ने मोहरा बनने से साफ इनकार कर दिया.”

आयशा मुंह बना कर रह गई.

रात में नरगिस ने अपने शौहर को सारी बातों से आगाह किया. नरगिस की बातें सुन कर शाहरुख हैरान रह गया. उस ने अपनी मां और अपनी सास को बुराभला कहना शुरू किया, लेकिन नरगिस ने उसे समझाया कि एक को अपने बेटे की कमी पर परदा डालना है तो दूसरी को अपनी बेटी की कमी पर परदा डालना है.

दोनों अपनीअपनी औलाद की खातिर इस हद तक गिरने के लिए तैयार हैं. दोनों मां हैं और मां अपनी औलाद की खातिर कुछ भी करगुजरने के लिए ऐसे ही तैयार रहती है, लेकिन अफसोस कि दोनों ही गलत हैं.

फिर नरगिस ने शाहरुख को एक प्लान समझाते हुए कहा कि शायद इस तरह हमारे लिए कोई राह निकल आए.

सुबह होते ही शाहरुख ने अपनी मां से कहा कि फलां डाक्टर का पता चला है जो बेऔलाद लोगों के लिए मसीहा साबित हो रहा है.

आयशा ने उन्हें उस डाक्टर के पास जाने के लिए कहा. वे दोनों डाक्टर के पास गए. जब वापस लौटे तो औलाद की भूखी आयशा दरवाजे पर नजरें गड़ाए बैठी थी. आते ही फौरन सवाल किया, “क्या कहा डाक्टर ने?”

वे दोनों अपने प्लान के मुताबिक मुंह लटकाए अपने कमरे में चले गए. मां का मन नहीं माना और वह भी पीछेपीछे उन के कमरे में गई, “आखिर क्या कहा डाक्टर ने? कुछ तो बताओ?”

शाहरुख ने जवाब दिया, “मां, डाक्टर ऐसी तरकीब बता रहा है जो मुमकिन ही नहीं है.”

आयशा ने परेशान होते हुए पूछा, “कुछ मुझे भी तो पता चले कि क्या कहा डाक्टर ने?”

शाहरुख ने कहा, “आप नरगिस से ही पूछ लो.”

यह सुन कर आयशा बोली, “क्या ड्रामा है. आखिर कोई कुछ बता क्यों नहीं रहा है. बताओगे नहीं तो कैसे समझ में आएगा कि मुमकिन है या नहीं. तुम लोगों से ज्यादा दुनिया मैं ने देख रखी है. कौन सा काम है जो मुमकिन नहीं…”

नरगिस ने आखिरकार बताया, “डाक्टर का कहना है कि शौहरबीवी दोनों को एक साल कश्मीर घाटी में गुजारना पड़ेगा. वहां की बर्फीली आबोहवा और क़ुदरती खानपान में एक साल गुजारने के बाद शाहरुख की अंदरूनी कमी दूर होने की पूरी उम्मीद है. और अगर कश्मीर घाटी में हमल ठहरता है तो बच्चा दूध का धुला पैदा होगा.”

आयशा ने तड़पते हुए कहा, “सचमुच ऐसा कहा डाक्टर ने?”

शाहरुख बोला, “जी बिलकुल.”

आयशा ने पूछा, “तो फिर दिक्कत क्या है?”

शाहरुख बोला, “एक साल तक वहां रहना कैसे मुमकिन होगा? वहां सर्दी भी जबरदस्त पड़ती है.”

आयशा ने कहा, “जिस आबोहवा में इनसान रहने लगता है आहिस्ताआहिस्ता उस का आदी हो जाता है. तुम लोग बस जाने की तैयारी करो. मैं और कुछ सुनना नहीं चाहती.”

यह कहते हुए आयशा उन के कमरे से बाहर निकल गई. उस के जाते ही दोनों शौहरबीवी खुशी से झूम उठे, इसलिए कि उन के प्लान का पहला हिस्सा आसानी से मुकम्मल हो चुका था.

ठीक 8 महीने बाद उन के प्लान का दूसरा हिस्सा शुरू हुआ. अफजल एक गरीब कश्मीरी था. वह रोज ताजा फल शाहरुख के डेरे पर ला कर पहुंचा जाता था. अफजल की बीवी कुलसूम दुबलीपतली, बला की खूबसूरत कश्मीरी औरत थी. पूरे कश्मीर का हुस्न उस के बदन में समाया हुआ लगता था. अफजल की गैरमौजूदगी में कभीकभी कुलसूम भी फल पहुंचा जाया करती थी.

एक दिन कुलसूम का निकला हुआ पेट देख कर नरगिस की उम्मीदों को पर लग गए. उस ने पूछा, “बहन, कितने महीने हो गए?”

कुलसूम ने बताया, “8 महीने हो गए बीबीजी.”

नर्गिस ने पूछा, “पहले से आप के कितने बच्चे हैं?”

कुलसूम शरमाते हुए बोली, “10 बच्चे हैं जी. पर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?”

नरगिस ने अपनी पूरी कहानी कुलसूम को सुना दी. कहानी सुनातेसुनाते दोनों के दामन आंसुओं से भीग गए.

कुलसूम ने घर जा कर अपने शौहर अफजल से पूरी बात सुनाई और कहा कि क्यों न हम अपनी आने वाली औलाद उसे दे दें. वह लेने की ख्वाहिशमंद है.

कुलसूम की बातें सुन कर अफजल हैरान रह गया. उस ने कहा, “तुम कैसी मां हो जो अपना बच्चा दूसरी औरत को देने के लिए तैयार हो.”

कुलसूम बोली, “मां होने का सुख एक औरत के मुकम्मल होने का सुबूत होता है. मुझे मां होने का भरपूर सुख मिला है. क्यों न जो इस सुख से महरूम है उसे अपनी तरफ से औलाद की दौलत दे कर उसे भी मालामाल कर दिया जाए.”

अफजल अपनी बीवी की बातें सुन कर सोचने के लिए मजबूर हो गया और बोला, “ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी.”

फिर अगले महीने कुलसूम को एक नहीं, बल्कि जुड़वां बेटे हुए. उस ने एक बेटा नरगिस को दे कर उस की गोद हरी कर दी. बदले में नरगिस ने अपने गले में पड़ा हीरे का हार कुलसूम को देना चाहा, लेकिन उस ने लेने से साफ इनकार कर दिया.

फिर साल पूरा होते ही शाहरुख और नरगिस अपनी औलाद के साथ हवेली लौट आए. आयशा के तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

शानदार दावत दी गई. नरगिस के मायके से भी लोग आए थे. मेहमानों की भीड़ से अलग शाहरुख और नरगिस एकदूसरे को एहसानमंद नजरों से देख रहे थे. उन की चतुराई से हवेली को वारिस और नरगिस को औलाद मिल गई थी.

Family Story: घुटन – मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

Family Story: शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.

मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’

‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’

शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’

शुभि सिया को सास की गोद में दे कर फीकी सी हंसी हंस दी. सिया की टुकुरटुकुर देखती आंखें शुभि की आंखें नम कर गईं पर इस समय भावुक बनने से काम चलने वाला नहीं था. इसलिए तेजी से अपना बैग उठा कर मयंक के साथ बाहर निकल गई.

उन का घर नवी मुंबई में ही था. वहां से 8 किलोमीटर दूर वाशी में शुभि का औफिस था. मयंक ने उसे बसस्टैंड छोड़ा. रास्ते भर बस में शुभि कभी सिया के तो कभी औफिस के बारे में सोचती रही. अकसर बस में सीट नहीं मिलती थी. वह खड़ेखड़े ही कितने ही विचारों में डूबतीउतरती रही.

शुभि एक प्रसिद्ध सौंदर्य प्रसाधन की कंपनी में ऐक्सपोर्ट मैनेजर थी. अच्छी सैलरी थी. अपने कोमल स्वभाव के कारण औफिस और घर में उस का जीवन अब तक काफी सुखी और संतोषजनक था पर आज सिया के जन्म के बाद पहली बार औफिस आई थी तो दिल कुछ उदास सा था.

औफिस में आते ही शुभि ने इधरउधर नजरें डालीं, तो काफी नए चेहरे दिखे. पुराने लोगों ने उसे बधाई दी. फिर सब अपनेअपने काम में लग गए. शुभि जिस पद पर थी, उस पर काफी जिम्मेदारियां रहती थीं. हर प्रोडक्ट को अब तक वही अप्रूव करती थी.

शुभि की बौस शिल्पी उस की लगन, मेहनत से इतनी खुश, संतुष्ट रहती थी कि वह अपने भी आधे काम उसे सौंप देती थी, जिन्हें काम की शौकीन शुभि कभी करने से मना नहीं करती थी.

शिल्पी कई बार कहती थी, ‘‘शुभि, तुम न हो तो मैं अकेले इतना काम कर ही नहीं पाऊंगी. मैं तो तुम्हारे ऊपर हर काम छोड़ कर निश्चिंत हो जाती हूं.’’

शुभि को अपनी काबिलीयत पर गर्व सा हो उठता. नकचढ़ी बौस से तारीफ सुन मन खुश हो जाता था. शुभि उस के वे काम भी निबटाती रहती थी, जिन से उस का लेनादेना भी नहीं होता था.

औफिस पहुंचते ही शुभि ने अपने अंदर पहली सी ऊर्जा महसूस की. अपनी कार्यस्थली पर लौटते ही कर्तव्य की भावना से उत्साहित हो कर काम में लग गई. शिल्पी से मिल औपचारिक बातों के बाद उस ने अपने काम देखने शुरू कर दिए. 1 महीने बाद ही कोई नया प्रोडक्ट लौंच होने वाला था. शुभि उस के बारे में डिटेल्स लेने के लिए शिल्पी के पास गई तो उस ने सपाट शब्दों में कहा, ‘‘शुभि, एक नई लड़की आई है रोमा, उसे यह असाइनमैंट दे दिया है.’’

‘‘अरे, क्यों? मैं करती हूं न अब.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. उस के लिए तो देर तक काम रहेगा. तुम्हें तो अब घर भागने की जल्दी रहा करेगी.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं है. काम तो करूंगी ही न.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो.’’

शुभि के अंदर कुछ टूट सा गया. सोचने लगी कि वह तो हर प्रोडक्ट के साथ रातदिन एक करती रही है. अब क्यों नहीं संभाल पाएगी यह काम? सिया के लिए घर टाइम पर पहुंचेगी पर काम भी तो उस की मानसिक संतुष्टि के लिए माने रखता है. पर वह कुछ नहीं बोली. मन कुछ उचाट सा ही रहा.

शुभि ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अचानक कपिल का ध्यान आया कि कहां है. सुबह से दिखाई नहीं दिया. उसे याद करते ही शुभि को मन ही मन हंसी आ गई. दिलफेंक कपिल हर समय उस से फ्लर्टिंग करता था. शुभि को भी इस में मजा आता था. वह मैरिड थी, फिर प्रैगनैंट भी थी. तब भी कपिल उस के आगेपीछे घूमता था. कपिल उसे सीधे लंचटाइम में ही दिखा. आज वह लंच ले कर नहीं आई थी. सोचा था कैंटीन में खा लेगी. कल से लाएगी. कैंटीन की तरफ जाते हुए उसे कपिल दिखा, तो आवाज दी, ‘‘कपिल.’’

‘‘अरे, तुम? कैसी हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं, सुबह से दिखे नहीं?’’

‘‘हां, फील्ड में था, अभी आया.’’

‘‘और सुनाओ क्या हाल है?’’

‘‘सब बढि़या, तुम्हारी बेटी कैसी है?’’

‘‘अच्छी है. चलो, लंच करते हैं.’’

‘‘हां, तुम चल कर शुरू करो, मैं अभी आता हूं,’’ कह कर कपिल एक ओर चला गया.

शुभि को कुछ अजीब सा लगा कि क्या यह वही कपिल है? इतना फौरमल? इस तरह तो उस ने कभी बात नहीं की थी? फिर शुभि पुराने सहयोगियों के साथ लंच करने लगी. इतने दिनों के किस्से, बातें सुन रही थी. कपिल पर नजर डाली. नए लोगों में ठहाके लगाते दिखा, तो वह एक ठंडी सांस ले कर रह गई. सास से फोन पर सिया के हालचाल ले कर वह फिर अपने काम में लग गई.

शाम 6 बजे शुभि औफिस से बसस्टैंड चल पड़ी. पहले तो शायद ही वह कभी 6 बजे निकली हो. काम ही खत्म नहीं होता था. आज कुछ काम भी खास नहीं था. वह रास्ते भर बहुत सारी बातों पर मनन करती रही… आज इतने महीनों बाद औफिस आई, मन क्यों नहीं लगा? शायद पहली बार सिया को छोड़ कर आने के कारण या औफिस में कुछ अलगअलग महसूस करने के कारण. आज याद आ रहा था कि वह पहले कपिल के साथ फ्लर्टिंग खूब ऐंजौय करती थी, बढि़या टाइमपास होता था. उसे तो लग रहा था कपिल उसे इतने दिनों बाद देखेगा, तो खूब बातें करेगा, खूब डायलौगबाजी करेगा, उसे काम ही नहीं करने देगा. इन 6 महीनों की छुट्टियों में कपिल ने शुरू में तो उसे फोन किए थे पर बाद में वह उस के हायहैलो के मैसेज के जवाब में भी देर करने लगा था. फिर वह भी सिया में व्यस्त हो गई थी. नए प्रोडक्ट में उसे काफी रुचि थी पर अब वह क्या कर सकती थी, शिल्पी से तो उलझना बेकार था.

घर पहुंच कर देखा सिया को संभालने में सास और ससुर की हालत खराब थी. वह भी पहली बार मां से पूरा दिन दूर रही थी. शुभि ने जैसे ही सिया कहा, सिया शुभि की ओर लपकी तो वह, ‘‘बस, अभी आई,’’ कह जल्दीजल्दी हाथमुंह धो सिया को कलेजे से लगा लिया. अपने बैडरूम में आ कर सिया को चिपकाएचिपकाए ही बैड पर लेट गई. न जाने क्यों आंखों की कोरों से नमी बह चली.

‘‘कैसा रहा दिन?’’ सास कमरे में आईं तो शुभि ने पूछा, ‘‘सिया ने ज्यादा परेशान तो  नहीं किया?’’

‘‘थोड़ीबहुत रोती रही, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी उसे भी, तुम्हें भी और हमें भी. तुम्हारा औफिस जाना भी तो जरूरी है.’’

अब तक मयंक भी आ गया था. रमा बाई रोज की तरह डिनर बना कर चली गई थी. खाना सब ने साथ ही खाया. सिया ने फिर शुभि को 1 मिनट के लिए भी नहीं छोड़ा.

मयंक ने पूछा, ‘‘शुभि, आज बहुत दिनों बाद गई थी, दिन कैसा रहा?’’

‘‘काफी बदलाबदला माहौल दिखा. काफी नए लोग आए हैं. पता नहीं क्यों मन नहीं लगा आज?’’

‘‘हां, सिया में ध्यान रहा होगा. खैर, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’

अगले 10-15 दिनों में औफिस में जो भी बदलाव शुभि ने महसूस किए, उन से उस का मानसिक तनाव बढ़ने लगा. शिल्पी 35 साल की चिड़चिड़ी महिला थी. उस का पति बैंगलुरु में रहता था. मुंबई में वह अकेली रहती थी. उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी. 15 दिन, महीने में वीकैंड पर उस का पति आता रहता था. उस की आदत थी शाम 7 बजे के आसपास मीटिंग रखने की. अचानक 6 बजे उसे याद आता था कि सब से जरूरी बातें डिस्कस करनी हैं.

शुभि को अपने काम से बेहद प्यार था. वह कभी देर होने पर भी शिकायत नहीं करती थी. मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी शुभि ने यहां पहुंचने तक बड़ी मेहनत की थी. 6 बजे के आसपास जब शुभि ने अपनी नई सहयोगी हेमा से पूछा कि घर चलें तो उस ने कहा, ‘‘मीटिंग है न अभी.’’

शुभि चौंकी, ‘‘मीटिंग? कौन सी? मुझे तो पता ही नहीं?’’

‘‘शिल्पी ने बुलाया है न. उसे खुद तो घर जाने की जल्दी होती नहीं, पर दूसरों के तो परिवार हैं, पर उसे कहां इस बात से मतलब है.’’ शुभि हैरान सी ‘हां, हूं’ करती रही. फिर जब उस से रहा नहीं गया तो शिल्पी के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘मैम, मुझे तो मीटिंग के बारे में पता ही नहीं था… क्या डिस्कस करना है? कुछ तैयारी कर लूं?’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. एक नए असाइनमैंट पर काम करना है.’’

‘‘मैं रुकूं?’’

‘‘नहीं, तुम जाओ,’’ कह कर शिल्पी लैपटौप पर व्यस्त हो गई.

शुभि उपेक्षित, अपमानित सी घर लौट आई. उस का मूड बहुत खराब था. डिनर करते हुए उस ने अपने मन का दुख सब से बांटना चाहा. बोली, ‘‘मयंक, पता है जब से औफिस दोबारा जौइन किया है, अच्छा नहीं लग रहा है. लेट मीटिंग में मेरे रहने की अब कोई जरूरत ही नहीं होती… कहां पहले मेरे बिना शिल्पी मीटिंग रखती ही नहीं थी. मुझे कोई नया असाइनमैंट दिया ही नहीं जा रहा है.’’

फिर थोड़ी देर रुक कर कपिल का नाम लिए बिना शुभि ने आगे कहा, ‘‘जो मेरे आगेपीछे घूमते थे, वे अब बहुत फौरमल हो गए हैं. मन ही नहीं लग रहा है… सिया के जन्म के बाद मैं ने जैसे औफिस जा कर कोई गलती कर दी हो. आजकल औफिस में दम घुटता है मेरा.’’

मयंक समझाने लगा, ‘‘टेक इट ईजी, शुभि. ऐसे ही लग रहा होगा तुम्हें… जौब तो करना ही है न?’’

‘‘नहीं, मेरा तो मन ही नहीं कर रहा है औफिस जाने का.’’

‘‘अरे, पर जाना तो पड़ेगा ही.’’

सास खुद को बोलने से नहीं रोक पाईं. बोलीं, ‘‘बेटा, घर के इतने खर्चे हैं. दोनों कमाते हैं तो अच्छी तरह चल जाता है. हर आराम है. अकेले मयंक के ऊपर होगा तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी.’’

शुभि फिर चुप हो गई. वह यह तो जानती ही थी कि उस की मोटी तनख्वाह से घर के कई काम पूरे होते हैं. अपने पैरों पर खड़े होने को वह भी अच्छा मानती है पर अब औफिस में अच्छा नहीं लग रहा है. उस का मन कर रहा है कुछ दिन ब्रेक ले ले. सिया के साथ रहे, पर ब्रेक लेने पर ही तो सब बदला सा है. दिनेश, लता और मयंक बहुत देर तक उसे पता नहीं क्याक्या समझाते रहे. उस ने कुछ सुना, कुछ अनसुना कर दिया. स्वयं को मानसिक रूप से तैयार करती रही.

कुछ महीने और बीते. सिया 9 महीने की हो गई थी. बहुत प्यारी और शांत बच्ची थी. शाम को शुभि के आते ही उस से लिपट जाती. फिर उसे नहीं छोड़ती जैसे दिन भर की कमी पूरी करना चाहती हो.

शुभि को औफिस में अपने काम से अब संतुष्टि नहीं थी. शिल्पी तो अब उसे जिम्मेदारी का कोई काम सौंप ही नहीं रही थी. 6 महीनों के बाद औफिस आना इतना जटिल क्यों हो गया? क्या गलत हुआ था? क्या मातृत्व अवकाश पर जा कर उस ने कोई गलती की थी? यह तो हक था उस का, फिर किसी को उस की अब जरूरत क्यों नहीं है?

ऊपर से कपिल की बेरुखी, उपेक्षा मन को और ज्यादा आहत कर रही थी. 1 बच्ची की मां बनते ही कपिल के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर देख कर शुभि बहुत दुखी हो जाती. कपिल तो जैसे अब कोई और ही कपिल था. थोड़ीबहुत काम की बात होती तो पूरी औपचारिकता से करता और चला जाता. दिन भर उस के रोमांटिक डायलौग, फ्लर्टिंग, जिसे वह ऐंजौय करती थी, कहां चली गई थी. कितना सूना, उदास सा दिन औफिस में बिता कर वह कितनी थकी सी घर लौटने लगी थी.

अपने पद, अपनी योग्यता के अनुसार काम न मिलने पर वह रातदिन मानसिक तनाव का शिकार रहने लगी थी. उस के मन की घुटन बढ़ती जा रही थी. शुभि ने घर पर सब को बारबार अपनी मनोदशा बताई पर कोई उस की बात समझ नहीं पा रहा था. सब उसे ही समझाने लगते तो वह वहीं विषय बदल देती.

औफिस में अपने प्रति बदले व्यवहार से यह घुटन, मानसिक तनाव एक दिन इतना बढ़ गया कि उस ने त्यागपत्र दे दिया. वह हैरान हुई जब किसी ने इस बात को गंभीरतापूर्वक लिया ही नहीं. औफिस से बाहर निकल कर उस ने जैसे खुली हवा में सांस ली.

सोचा, थोड़े दिनों बाद कहीं और अप्लाई करेगी. इतने कौंटैक्ट्स हैं… कहीं न कहीं तो जौब मिल ही जाएगी. फिलहाल सिया के साथ रहेगी. जहां इतने साल रातदिन इतनी मेहनत की, वहां मां बनते ही सब ने इतना इग्नोर किया… उस में प्रतिभा है, मेहनती है वह, जल्द ही दूसरी जौब ढूंढ़ लेगी.

उस शाम बहुत दिनों बाद मन हलका हुआ. घर आते हुए सिया के लिए कुछ खिलौने

खरीदे. घर में घुसते ही सिया पास आने के लिए लपकी. अपनी कोमल सी गुडि़या को गोद में लेते ही मन खुश हो गया. डिनर करते हुए ही

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने आज रिजाइन कर दिया.’’

सब को करंट सा लगा. सब एकसाथ बोले, ‘‘क्यों?’’

‘‘मैं इतनी टैंशन सह नहीं पा रही थी. थोड़े दिनों बाद दूसरी जौब ढूंढ़ूगी. अब इस औफिस में मेरा मन नहीं लग रहा था.’’

मयंक झुंझला पड़ा, ‘‘यह क्या बेवकूफी की… औफिस में मन लगाने जाती थी या काम करने?’’

‘‘काम ही करने जाती थी पर मेरी योग्यता के हिसाब से अब कोई मुझे काम ही नहीं दे रहा था… मानसिक संतुष्टि नहीं थी… मैं अब अपने काम से खुश नहीं थी.’’

‘‘दूसरी जौब मिलने पर रिजाइन करती?’’

‘‘कुछ दिन बाद ढूंढ़ लूंगी. मेरे पास योग्यता है, अनुभव है.’’

सास ने चिढ़ कर कहा, ‘‘क्या गारंटी है तुम्हारा दूसरे औफिस में मन लगेगा? मन न लगने पर नौकरी छोड़ी जाती है कहीं? अब एक की कमाई पर कितनों के खर्च संभलेंगे… यह क्या किया? थोड़ा धैर्य रखा होता?’’

ससुर ने भी कहा, ‘‘जब तक दूसरी जौब नहीं मिलेगी, मतलब एक ही सैलरी में घर चलेगा. बड़ी मुश्किल होगी… इतने खर्चे हैं… कैसे होगा?’’

शुभि सिया को गोद में बैठाए तीनों का मुंह देखती रह गई. उस के तनमन की पीड़ा से दूर तीनों अतिरिक्त आय बंद होने का अफसोस मनाए जा रहे थे. अब? मन की घुटन तो पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी.

Family Story: एक बेटी ऐसी भी – जब मंजरी ने उठाया माता-पिता का फायदा

Family Story: ‘‘नानी आप को पता है कि ममा ने शादी कर ली?’’ मेरी 15 वर्षीय नातिन टीना ने जब सुबहसुबह यह अप्रत्याशित खबर दी तो मैं बुरी तरह चौंक उठी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुझे कैसे पता? फोन आया है क्या?’’

‘‘नहीं, फेसबुक पर पोस्ट किया है,’’ नातिन ने उत्तर दिया.

मैं ने झट से उस के हाथ से मोबाइल लिया और उस पुरुष के प्रोफाइल को देख कर सन्न रह गई. वह पाकिस्तान में रहता था. मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. ‘यह लड़की कब कौन सा दिन दिखा दे, कुछ नहीं कह सकते… इस का कुछ नहीं हो सकता.’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

टीना ने देखते ही अपनी मां को अनफ्रैंड कर दिया. 10वीं क्लास में है. छोटी थोड़ी है, सब समझती है.

पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था. मेरे पति घर पर नहीं थे. वे थोड़ी देर बाद आए तो यह खबर सुन कर चौंके. फिर थोड़ा संयत होते हुए बोले, ‘‘अच्छा तो है. शादी कर के अपना घर संभाले और हमें जिम्मेदारी से मुक्ति दे. उस के नौकरी पर जाने के बाद उस के बच्चे अब हम से नहीं संभाले जाते… तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

मैं ने थोड़े उत्तेजित स्वर में कहा, ‘‘अरे, मुक्ति कहां मिलेगी? और जिम्मेदारी बढ़ गई है. जिस आदमी से शादी की है वह पाकिस्तानी है, अब वह वहीं रहेगी. इसीलिए तो उस ने नहीं बताया और चुपचाप शादी कर ली. अब बच्चे तो हमें ही संभालने पड़ेंगे… कम से कम मुझे शादी करने से पहले बताती तो… लेकिन जानती थी कि इस शादी के लिए हम कभी नहीं मानेंगे. मानते भी कैसे. अपने देश के लड़के मर गए हैं क्या? मुझ से तो बोल कर गई थी कि औफिस के काम से मुंबई जा रही है.’’

वे विस्फारित आंखों से अवाक से मेरी ओर देखते रह गए.

‘कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है? उसे अपने बूढ़े मांबाप और बच्चों का जरा भी खयाल नहीं आया?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘उफ, यह तो बहुत बुरी बात है. हमारे बारे में न सोचे, लेकिन अपने बच्चों की जिम्मेदारी तो उसे उठानी ही चाहिए… वैसे बच्चे तो हम ही संभाल रहे थे उस के बावजूद उस के यहां हमारे साथ रहने से घर में तनाव ही रहता था. अब कम से कम हम शांति से तो रह सकते हैं,’’ उन्होंने मुझे सांत्वना दी.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन हम भी कब तक संभालेंगे? हमारा शरीर भी थक रहा है. फिर इन का खर्चा कहां से आएगा?’’ मैं ने थके मन से कहा.

यह सुन उन्हें अपनी अदूरदर्शिता पर क्षोभ हुआ तो फिर सकारात्मक में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हूं.’’

हमारे कोई बेटा नहीं था. इकलौती बेटी मंजरी, जिसे हम ने कंप्यूटर इंजीनिरिंग की उच्च शिक्षा दिलाई थी, को जाने किस के संस्कार मिले थे. उस का जब दूसरा बच्चा हुआ था, तभी से हम अपना घर छोड़ कर उस के बच्चों को संभालने के लिए उस के साथ रह रहे थे. उस के पिता रिटायरमैंट के बाद भी उसे आर्थिक सहायता देने हेतु नौकरी कर रहे थे.

मंजरी के दोनों बच्चे हमारी ही देखरेख में पैदा हुए थे, पले थे. कई बार हम मंजरी के व्यवहार से आहत हो कर यह कह कर कि अब हम कभी नहीं आएंगे, अपने घर लौट जाते, फिर बच्चों की कोई न कोई समस्या देख कर लौट आते. मंजरी हमारी इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाने में नहीं चूकती थी.

हम उसे समझाते तो वह कहती, ‘‘आप लोगों ने जिस तरह मेरी परवरिश की है वैसी मैं अपने बच्चों की नहीं होने दूंगी.’’

वास्तविकता तो यह थी कि वह बिना मेहनत के सब कुछ प्राप्त करना चाहती थी, यह हमें बहुत बाद में ज्ञात हुआ. औफिस से आ कर प्रतिदिन बताना कि आज उस की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी. झूठी बीमारियों की रिपोर्ट बनवा कर हमें डरा कर हम से इलाज के लिए पैसे भी ऐंठती थी.

हम सब को इमोशनली ब्लैकमेल करती थी. शुरू में तो मैं भी उस की रिपोर्ट्स देख कर घबरा जाती थी कि उस का और उस के बच्चों का क्या होगा, लेकिन उस के चेहरे पर शिकन भी नहीं होती थी. बाद में समझ आया कि अकसर वह गूगल पर बीमारियों के बारे में क्यों जानकारी लेती रहती थी. नौकरी छोड़ के बिजनैस करना, उस को बंद कर के फिर नौकरी करना यह उस की आदत बन गई थी. घर के कार्यों में तो उस की रत्ती भर भी रुचि नहीं थी. खाना बनाने वाली पर या बाजार के खाने पर ही उस के बच्चे पल रहे थे.

मंजरी ने पहली शादी नैट के द्वारा अमेरिका रहने के लोभ के कारण किसी अमेरिका निवासी से की, जिस में हम भी शामिल हुए थे. बिना किसी जानकारी के यह रिश्ता हमें समझ नहीं आ रहा था. हम ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर तो अमेरिका का भूत सवार था. फिर वही हुआ जिस का डर था. कुछ ही महीनों बाद वह गर्भवती हो कर इंडिया आ गई.

शादी के बाद अमेरिका जाने के बाद उसे पता लगा कि वह पहले से विवाहित था, तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई थी. हम बेबस थे. उस ने एक बेटी को जन्म दिया. हम ने मंजरी की बेटी को अपने पास रख लिया और वह दिल्ली जा कर किसी कंपनी में नौकरी करने लगी.

एक दिन अचानक जब हम उस से मिलने पहुंचे तो यह देख कर सन्न रह गए कि वह एक पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी. हम ने अपना सिर पीट लिया. हमें देखते ही वह व्यक्ति वहां से ऐसा गायब हुआ कि फिर दिखाई नहीं दिया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 4 महीने का गर्भ उस के पेट में पल रहा था, असहाय से हम कर भी क्या सकते थे. अपना घर छोड़ कर उस के साथ रहने को मजबूर हो गए.

महरी ने जब डोर बैल बजाई तो मेरे विचारों का तारतम्य टूटा. किचन में जा कर बरतन खाली कर उसे दिए और डिनर की तैयारी में लग गई. लेकिन दिमाग पर अभी भी मंजरी ने ही कब्जा कर रखा था. सोच रही थी इनसान एक बार धोखा खा सकता है, 2 बार खा सकता है, लेकिन यह  तीसरी बार… मुसलमानों में तो 4 शादियों की स्वीकृति उन का धर्म ही देता है, तो क्या गारंटी है कि… और एक और बच्चा हो गया तो?

आगे की स्थिति सोच कर मैं कांप गई, लेकिन जो उस की पृष्ठभूमि थी, उस में कोई संस्कारी पुरुष तो उसे अपनाता नहीं. जो कदम उस ने उठाए हैं, उस के बाद क्या वह अपने परिवार को तथा अपनी किशोरावस्था की ओर अग्रसर होती बेटी को मुंह दिखा पाएगी? जरूर कोई बहुत बड़ा आसामी होगा, जिसे उस ने अपने चंगुल में फांस लिया होगा. पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकती है, यह सर्वविदित था. बहुत जल्दी सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, कब तक परदे के पीछे रहेगी.

टीना के द्वारा उस को फेसबुक पर अनफ्रैंड करते ही वह समझ गई कि सब को उस के विवाह की खबर मिल गई है और टीना उस से बहुत नाराज है. आए दिन उस का फोन आने लगा. लेकिन इधर की प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आया. मैं ने मन ही मन सोचा आखिर कब तक बात नहीं करूंगी? बच्चों के भविष्य के बारे में तो उस से बात करनी ही पड़ेगी.

एक बार उस का फोन आने पर जैसे ही मोबाइल को अपने कान से लगा कर मैं ने हैलो कहा, वह तुरंत बोली, ‘‘टीना को समझाओ… मुझे भी तो खुशी से जीने का हक है. मेरे विवाह से किसी को क्या परेशानी है. अभी भी मैं अपने बच्चों की जिम्मेदारी संभालूंगी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी, क्योंकि जिस से मैं ने विवाह किया है उस का बहुत समृद्घ व्यवसाय है…’’

मुझे उस का कथन बड़ा ही हास्यास्पद लगा और मैं ने जो उस के वर्तमान पति की हैसियत के बारे में अनुमान लगाया था वह सत्य निकला. फिर एक दिन अचानक बहुत बड़ा सा कूरियर आया, जिस में बहुत महंगे मोबाइल और बच्चों के लिए कपड़े थे और औन लाइन बहुत सारा खाने का सामान, जिस में चौकलेट, केक, पेस्ट्री आदि भेजा था. सामान को देख कर चिंटू के अलावा कोई खुश नहीं हुआ.

एक दिन मंजरी ने हमें अपने बच्चों का वीजा बनवाने के लिए कहा कि एअर टिकट वह भेज देगी और हमारे लिए भी फ्लाइट के टिकट भेजेगी ताकि हम अपने घर लौट जाएं.

यह सुनते ही टीना आक्रोश में बोली, ‘‘नहीं जाना मुझे. आप के पास रहना है, आई हेट हर…’’ चिंटू बोला, ‘‘मुझे जाना है, ममा के पास, लेकिन वे यहां क्यों नहीं आतीं?’’

मैं तो शब्दहीन हो कर सन्न रह गई. थोड़ा मौन रहने के बाद कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बहुत अच्छा संदेश दिया है तूने… तूने बच्चों को जन्म दिया है, तेरा पूरा अधिकार है उन पर, कानून भी तेरा ही साथ देगी. हम तो केयरटेकर मात्र हैं. हमारा कोई रिश्ता थोड़ी है बच्चों से… पूछे कोई तुम से रातरात भर जाग कर किस ने बच्चों को पाला है. वहां जाने के बाद तो हम इन से मिलने को तरस जाएंगे.

‘‘यदि तुम्हें बच्चों की इतनी चिंता होती तो ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं, पैसे के नहीं. हमारी भावनाओं की तो कद्र ही नहीं है, जाने किस मिट्टी की बनी है तू. मुझे अफसोस है कि  तू मेरी बेटी है, मुझे तुझ पर ही विश्वास नहीं है कि तू बच्चों को अच्छी तरह पालेगी, फिर मैं उस सौतेले बाप पर कैसे कर सकती हूं…’’

‘‘चिंटू जाना चाहे तो चला जाए, लेकिन टीना को तो मैं हरगिज नहीं भेजूंगी. जमाना वैसे ही बहुत खराब है… यदि मैं नहीं संभाल पाई तो होस्टल में डाल दूंगी,’’ मैं ने एक सांस में अपनी सारी व्यथा उगल दी. मेरे वर्चस्व का सब ने सम्मान कर के मेरे निर्णय का समर्थन किया. टीना के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वह मेरे गले से लिपट गई.

Hindi Story: इच्छाधारी बाबा – बाबा जी को क्यों गिरफ्तार किया गया?

Hindi Story: मंदिर के ऊपरी भाग में बने स्पैशल कमरे से नीचे का सारा नजारा दिखाई देता था. वे इस कमरे में आराम करते हुए मंदिर में आने वाले भक्तों को देखते रहते थे. वैसे तो उन्हें मर्द भक्तों से इतना मतलब नहीं रहता था, पर उन में से वे केवल ऐसे भक्तों पर ही निगाह गड़ाए रहते थे, जो उन्हें पैसे वाला दिखाई देता था. इस से उलट वे मंदिर में आने वाली उन लड़कियों और औरतों को खास निगाह से देखते थे, जो गरीब घरों की होती थीं.

वे अपने कमरे से ही उन के चेहरे को पढ़ लेते थे. उन में से जिन में उन्हें कोई उम्मीद नजर आती, उन्हें अपने दूसरे कमरे में बुला लिया जाता. इस दूसरे कमरे से ही इस कमरे तक आने का सफर तय होता था. वे ‘इच्छाधारी बाबा’ कहे जाते थे.

अब थोड़ा ‘इच्छाधारी बाबा’ का इतिहास जान लेते हैं. उस का असली नाम मूलचंद था. वह शुरू से ही शानशौकत से जीने के सपने देखा करता था, पर वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था, तो उसे जो सरकारी नौकरी मिली, वह क्लर्क की थी.

यह नौकरी भी मूलचंद को इस वजह से मिल गई थी कि उस के पिताजी भी सरकारी नौकर थे और रिटायर होने से पहले एक हादसे में उन की मौत हो गई थी.

मूलचंद को आसानी से नौकरी मिली तो उस के सपने जोर मारने लगे. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उस के पास घपला करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

क्लर्क की तनख्वाह तो इतनी होती नहीं कि वह उस में ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके. घपला किया और पकड़ा गया.

मूलचंद ने जितने रुपयों का घपला किया था, उन को अपने एक दोस्त  के पास रख दिया था, ताकि  अगर  वह पकड़ा भी जाए तो उस के पैसे महफूज रहें.

मूलचंद को भरोसा था कि वह पकड़े जाने के बाद इन्हीं पैसों की रिश्वत खिला कर अपनेआप को बेदाग साबित कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं. न केवल उसे नौकरी से निकाल दिया गया, बल्कि उस के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई. रिपोर्ट दर्ज होते ही उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. डर के मारे वह फरार हो गया.

पुलिस मूलचंद को ढूंढ़ती फिर रही थी और वह यहांवहां छिपते हुए दिन काट रहा था. पुलिस के साथ आंखमिचौली के दौरान ही वह एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंचा. उस पुजारी ने उसे छिपने में बहुत मदद की.

बाद में मूलचंद को पता चला कि वह पुजारी खुद भी सालों से ऐसे ही पुलिस से छिपता फिर रहा है. उस ने तो अपनी पत्नी का ही खून कर दिया था.

मूलचंद ने भी सोचा, ‘कितने लोग ऐसे ही अपनेआप को छिपाए हुए हैं, तू भी यही चोला पहन ले…’

मूलचंद तब तक वहां छिपा रहा, जब तक उस के बाल और दाढ़ीमूंछ नहीं आ गई. फिर एक दिन वह भगवा चोला पहन कर वहां से निकल पड़ा. उस ने अपना नया नाम ‘इच्छाधारी बाबा’ रख लिया था. अब उसे पुलिस का कोई डर नहीं था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपना जो नया ठिकाना बनाया, वह एक रईस रम्मू का पुरखों का मंदिर था. इस मंदिर में बहुत सारी जमीन लगी हुई थी. इस जमीन को रम्मू ही जोतता था और सारा पैसा अपने इस्तेमाल में ही खर्च करता था.

रम्मू को अपने पुरखों से इस वजह से चिढ़ होती थी कि इतनी सारी जमीन मंदिर में लगा दी और इतनी कीमती जमीन पर मंदिर बना दिया. वह मंदिर जिस जगह पर बना था, उस की कीमत आज लाखों रुपए में हो गई थी.

धीरेधीरे जब रम्मू ने मंदिर में खर्चा कराना बंद कर दिया, तो महल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के मंदिर  को चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली.

कहीं मंदिर पूरी तरह से हाथ से न निकल जाए, इस भावना के चलते रम्मू मंदिर में अपना दबदबा बनाए रखता था. उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जो मंदिर से आमदनी करा सके.

मूलचंद यानी ‘इच्छाधारी बाबा’ से रम्मू की एक डील हुई थी. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने उसे हर साल एकमुश्त मोटी रकम देने का लिखित करार कर दिया था. इस के बदले रम्मू ने पूरा मंदिर उसे सौंप दिया.

रम्मू का भार हलका हो गया. अब उसे अपने पुरखों से इतनी नाराजगी भी नहीं रही. इसी बीच ‘इच्छाधारी बाबा’  मंदिर से पैसा कमाने की कला सीख चुका था.

वह महल्ला अच्छे लोगों का था, इसलिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को अपनी कमाई को ले कर कोई शक था भी नहीं. अब समाज में इज्जत भी मिलने लगी थी. वह तू से आप हो गया था.

रम्मू ने ‘इच्छाधारी बाबा’ की योजना के मुताबिक उन्हें बड़ी धूमधाम और उन से जुड़ी अनेक कहानियों का प्रचार कर मंदिर में बैठा दिया. मंदिर में एक पंडित था रामलाल, जो कुछ मंत्र वगैरह पढ़ लेता था. वह मंदिर में भगवान की पूजा करता और अपना पंडिताई धर्म निभा लेता. सपने तो वह भी बहुत सारे पाले हुए था, पर उस के पास ‘इच्छाधारी बाबा’ की तरह खुद पर यकीन और चालाकियां नहीं थीं.

‘इच्छाधारी बाबा’ को एक ऐसा ही आदमी तो चाहिए ही था, इसलिए उन्होंने उस पंडित रामलाल के सिर पर अपना हाथ रख कर यह भी सम झा दिया कि अगर उस ने उन के कामों में रोड़े अटकाए तो उस की खैर नहीं.

रामलाल वैसे भी ‘इच्छाधारी बाबा’ को देख कर घबरा चुका था, उन की धमकी को सुन कर और भी घबरा गया. वह ‘इच्छाधारी बाबा’ के पैरों में गिर गया और कसम खा ली कि बाबा के न केवल सारे कामों में वह हिस्सेदार बनेगा, साथ ही हर राज को भी बरकरार रखेगा.

‘इच्छाधारी बाबा’ को अपना जलवा बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वे जल्दी ही सम झ गए थे कि जो अपने चेहरे पर जितनी मुसकान लिए रहता है, उस के दिल में उतने ही दर्द छिपे होते हैं. उन्हें केवल उन दर्दों को कुरेदना ही था.

एक औरत सविता पर उन की निगाह पहले ही दिन पड़ गई थी. वह मंदिर गाहेबगाहे आ जाती थी और जोरजोर से बातें करती और हंसती रहती. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने सविता को ही अपना पहला शिकार बनाया.

सविता के कोई औलाद नहीं थी और उम्र भी ढलती जा रही थी. पति दूसरे शहर में काम करता था. वह 15 दिनों में एक बार ही आता, वह भी एक दिन के लिए.

सविता ने यह सब ‘इच्छाधारी बाबा’ को बता दिया. उस की बातें सुन कर बाबाजी की हवस जाग गई. फिर एक दिन सविता को अपने कमरे में बुला कर बाबाजी ने उस की कोख में अपना बीज रोप दिया.

सविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पेट से हो गई और बाबाजी के लिए खिलौना बन गई. वे जब चाहते, उसे बुला लेते और अपने कमरे में मौज करते.

सविता का पेट अब बाहर की ओर निकला दिखाई देने लगा था. बाबाजी का मजा खत्म हो गया था. सविता ने एक दूसरी औरत को उन के कमरे में पहुंचा दिया था. धीरेधीरे ‘इच्छाधारी बाबा’ के पास औरतों की लाइन लगने लगी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की नजर अब नवीन पर गई. नवीन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. वह सुबह फैक्टरी जाने के पहले मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ की निगाह उस पर गड़ चुकी थी. वैसे तो वे बहुत ही कम सुबह जल्दी सो कर उठते थे और कभीकभार ही सुबह की पूजा में शामिल होते थे. पर अब वे रोज आने लगे थे.

नवीन को अपने जाल में फंसाने के लिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. सविता ने नवीन के लिए एक खूबसूरत लड़की का इंतजाम कर दिया था.

‘इच्छाधारी बाबा’ के कमरे में नवीन की मुलाकात उस लड़की से कराई गई और उन के बिस्तर पर जाते ही वीडियो बना लिया गया. नवीन अब बाबाजी के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था.

इस मंदिर को और बड़ा नवीन ने ही कराया था. इसी दौरान बाबाजी ने ऊपरी भाग में अपने लिए एक ऐसा कमरा बनवा लिया था, जिस की कांच की दीवारों से वे तो बाहर  झांक सकते थे, पर कोई और बाहर से कमरे में नहीं  झांक पाता था. कमरे की मोटी कांच की दीवारों के अंदर से बहुत जोर की आवाज भी बाहर नहीं निकल पाती थी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की दुकानदारी चल निकली थी. मंदिर में भक्तों का जमावड़ा बढ़ने लगा था और पैसा बरसने लगा था. बाबाजी ने पैसा कमाने का एक और खेल चालू कर लिया था. उन के पास अब औरत भक्तों की तादाद खूब  हो गई थी. इन में वे तो शामिल थीं ही, जिन की गोद भर चुकी थी और वे भी थीं, जिन्हें केवल बाबाजी के साथ से मजा मिलता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपने अमीर भक्तों तक इन औरतों को पहुंचना शुरू कर दिया. बाबाजी के पास उन सब औरतों के वीडियो तो थे ही, इसलिए चाह कर भी वे उन के आदेश को मानने से इनकार नहीं कर पाती थीं. बाबाजी को इस नए कारोबार से ज्यादा आमदनी हो रही थी.

रम्मू ने जब अपना पुरखों का मंदिर ‘इच्छाधारी बाबा’ को किराए पर दिया था, तब उसे भी उम्मीद नहीं थी कि बाबाजी इस मंदिर को इतना चमत्कारिक बना देंगे कि पैसा बरसने लगेगा. उसे तो लग रहा था कि कुछ ही दिनों में बाबाजी मंदिर छोड़ कर भाग खड़े होंगे, पर अब जब मंदिर की चर्चा दूरदूर तक होने लगी थी, तो उसे बाबाजी से जलन होने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह ठगा गया है. वह अब उन्हें मंदिर से भगाने की जुगत में लग गया था.

एक दिन ‘इच्छाधारी बाबाजी’ अपने भक्तों के साथ नाच रहे थे. उन्होंने जिस औरत का हाथ पकड़ा हुआ था, उसे वे पहली निगाह में ही पसंद कर चुके थे. उन्होंने अपने कांच वाले कमरे से ही उस औरत को एक बच्चे और मर्द के साथ आते देख लिया था.

उस औरत की उम्र ज्यादा नहीं थी. उस के लंबे बाल कमर के नीचे तक लहरा रहे थे. बाबाजी ने उस औरत को दर्शन देने का मन बना लिया था, इसलिए वे अपने कमरे से नीचे आ गए थे.

उस औरत ने अपने सिर पर आंचल रख कर पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया और बाबाजी ने आशीर्वाद देने के बहाने उस की पीठ को सहला दिया.

इस के बाद बाबाजी उस औरत का हाथ पकड़ कर नाचने लगे. मंदिर के अहाते में जमा सभी भक्त भी बाबाजी के साथ नाच रहे थे. वे उसे यहांवहां छू रहे थे. वह औरत भी उन्हें छूने का भरपूर मौका दे रही थी.

थोड़ी देर के बाद वह औरत बाबाजी के कमरे में उन के सामने बैठी थी. बाबाजी उसे एकटक निगाहों से देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने उस औरत के चेहरे पर आने वाली लट को हटाते हुए अपनी बांहों में लेने की कोशिश की, तभी उस औरत ने अपनी कमर में छिपी पिस्तौल को निकाल कर बाबाजी के माथे पर अड़ा दिया.

‘इच्छाधारी बाबा’ अभी भी मदहोश ही थे. उन्होंने पिस्तौल की परवाह किए बिना एक बार फिर उस औरत को बांहों में लेने की कोशिश की, पर अब की बार पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो तेज आवाज के साथ कांच की दीवार से जा टकराई.

गोली की आवाज बाहर नहीं गई थी, पर अंदर ही उस ने इतना धमाका किया था कि बाबाजी का सारा नशा गायब हो चुका था.

‘इच्छाधारी बाबा’ को गिरफ्तार कर लिया गया था. दरअसल, पुलिस ने ही यह सारा प्लान बनाया था. वह खूबसूरत औरत एसपी थी, जिस ने बाबाजी को अपने मोह जाल में फंसाया था.

पुलिस ने एक दिन पहले ही कुछ औरतों को एक होटल से गिरफ्तार किया था. उन्होंने ही मंदिर में चल रहे इस गोरखधंधे का खुलासा किया था. बाबाजी के कमरे से गंदी किताबों के अलावा नशीली दवाएं भी बरामद हुई थीं. ‘इच्छाधारी बाबा’ का पुराना कच्चाचिट्ठा भी खुल चुका था.

Hindi Story: झुमकी – क्या झुमकी अपने पति का इलाज करा पाई?

Hindi Story: ‘‘बाजार से खाने के लिए कुछ ले आती हूं,’’  झुमकी पलंग पर लेटे बिछुआ को देख कर बोली और बाहर निकल गई.  बटुए से पैसे निकाल कर गिनते हुए  झुमकी के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं. उत्तर प्रदेश के कमालपुर गांव से वह अपने बीमार पति बिछुआ का इलाज कराने दिल्ली आई थी. उसे यहां आए हुए 2 हफ्ते हो चुके थे. कोई जानपहचान वाला तो था नहीं, सो अस्पताल के पास ही एक कमरा किराए पर ले कर रह रही थी.

कई दिनों से चल रही जांच के बाद ही पता लग पाया कि बिछुआ के पेट की छोटी आंत में एक गांठ थी. आपरेशन जल्द कराने को कह रहे थे अस्पताल वाले, लेकिन  झुमकी यह सोच कर परेशान थी कि पैसों का जुगाड़ कैसे होगा? सरकारी अस्पताल है तो क्या हुआ… कुछ खर्चा तो होगा ही आपरेशन का. फिर इस कमरे का किराया, खानापीना और बिछुआ की दवाएं… पैसे के बिना तो कुछ मुमकिन था ही नहीं. क्या बिछुआ का इलाज कराए बिना ही वापस लौट जाना पड़ेगा?

सड़क पर चलते हुए अचानक ही  झुमकी को किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी. पास जा कर देखा तो एक 35-40 साल की औरत जमीन पर गिरी हुई थी. उठने की भरपूर कोशिश करने के बावजूद वह उठ नहीं पा रही थी.  झुमकी ने सहारा दे कर उसे उठाया और पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठा दिया.

झुमकी को उस औरत ने बताया कि वह आराम से चलती हुई जा रही थी कि अचानक एक लड़का तेजी से साइकिल चलाता हुआ पीछे से आया और धक्का मार दिया. उस के धक्के से वह इतनी जोर से गिरी कि एक पैर बुरी तरह मुड़ गया और कुहनियां भी छिल गईं.

कुछ देर वहीं बैठने के बाद उस औरत ने  झुमकी से एक रिकशा रोक लेने को कहा. रिकशा रुकते ही वह औरत  झुमकी की मदद  से चढ़ तो गई, लेकिन  हाथों में दर्द के चलते रिकशे को पकड़ नहीं पा रही थी.

झुमकी भी तब रिकशे में बैठ गई और अपने हाथ का घेरा उस घायल औरत की कमर पर बना कर सहारा दे दिया. रिकशा उस औरत के घर की ओर रवाना हो गया.

रास्ते में उन दोनों की बातचीत हुई. उस औरत ने  झुमकी को बताया कि  उस का नाम राधा है. नजदीक के ही  एक महल्ले में वह अपने पति सुरेंद्र  के साथ रहती है. सुरेंद्र की पास के बाजार में किराने की दुकान है.

शादी को 10 साल बीत चुके थे, लेकिन राधा के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए घर पर अकेली ऊब जाती थी. अपना समय बिताने और पति की मदद करने के मकसद से वह कुछ देर के लिए दुकान पर चली जाती है. आज भी वह दुकान से वापस लौट रही थी, तब यह घटना घटी.

अपने बारे में बता कर राधा ने  झुमकी से उस का परिचय पूछा, तो  झुमकी ने अपने बारे में सब बता दिया.

झुमकी की बात पूरी होतेहोते ही राधा का घर आ गया.  झुमकी ने चाबी राधा के हाथ से ले कर ताला खोल दिया और उसे सहारा देते हुए कमरे के भीतर ले

आई. जब तक राधा ने सुरेंद्र को फोन किया, तब तक  झुमकी वहां खड़ी रही.

राधा की सुरेंद्र से बात पूरी होते ही  झुमकी  बोली, ‘‘मैडमजी, मैं अब चलती हूं. बिछुआ मेरी बाट देखते होंगे.’’

राधा ने उसे रुकने को कहा. धीरेधीरे चलते हुए उस ने रसोई से ला कर कुछ नमकीन के पैकेट  झुमकी को थमा दिए.

रात को  झुमकी और बिछुआ राधा की दी हुई नमकीन खा कर सो गए. अगले दिन सुबहसुबह  झुमकी के कमरे का दरवाजा खड़का तो दरवाजा खोलने पर वह सामने सुरेंद्र को देख चौंक उठी.

सुरेंद्र ने उसे बताया कि राधा के पैर में पलस्तर चढ़ गया है. वह एक जरूरी बात करने के लिए  झुमकी को घर बुला रही है.

झुमकी बिछुआ को बता कर सुरेंद्र के साथ राधा से मिलने आ गई.

राधा  झुमकी को देख कर बहुत खुश हुई और तुरंत अपनी बात सामने रखते हुए बोली, ‘‘ झुमकी, मैं कल से तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी. तुम्हारी परेशानी को ले कर मैं ने सुरेंद्र से भी बात की  है. मेरा एक सु झाव है, तुम्हें जंचे तो ही हां करना.’’

‘‘जी, कहिए…’’  झुमकी बोली.

‘‘मैं ने अपने घर का कुछ हिस्सा पिछले महीने ही बनवाया है. पहले आगे वाले 2 कमरे ही थे. कई दिनों बाद रंगरोगन हुआ तो पीछे की ओर एक कमरा भी बनवा लिया. उसे हम दुकान के गोदाम के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.

‘‘अभी वह कमरा खाली है. बस, मकान बनवाने के बाद का कुछ बचाखुचा सामान जैसे रंगरोगन के खाली डब्बे रखे हैं. तुम चाहो तो बिछुआ के इलाज तक उस कमरे में रह सकती हो.

‘‘तुम मेरे घर का काम कर दिया करना, क्योंकि चोट की वजह से मु झ से काम हो नहीं पाएगा. तुम हम दोनों का खाना बनाओगी तो साथसाथ अपना खाना भी बना लिया करना. काम के बदले पैसे तो दूंगी ही मैं तुम्हें.’’

झुमकी को मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. खुशीखुशी यह प्रस्ताव स्वीकार कर उसी दिन बिछुआ को ले कर वह राधा के घर चली आई.

राधा ने अपने घर पर रखे सामान में से बिस्तर और कुछ पुराने कपड़े  झुमकी के कमरे में रखवा दिए. अस्पताल के खर्च के लिए उस को कुछ रुपए भी दे दिए.

बिछुआ के पेट में खून रिसने के चलते जल्द ही आपरेशन कर दिया गया. आपरेशन कामयाब रहा और 4 दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई. तकरीबन एक महीने के लिए उसे आराम करने की सलाह दी गई. साथ ही, यह भी कहा कि दर्द ज्यादा हो तो तुरंत अस्पताल आना है, वरना एक महीने बाद जांच कराने ही आना होगा.

झुमकी ने पहले दिन से ही खाना बनाने के साथसाथ घर के बाकी काम पूरी जिम्मेदारी से करने शुरू कर दिए. वह सोच रही थी कि राधा के घर पर अगर आसरा न मिला होता तो जाने क्या होता? इधर राधा को भी  झुमकी के रूप में बड़ा सहारा मिल गया था.

एक दिन सफाई करते समय कमरे  में मकान बनने के बाद का बचा हुआ सामान और एक अलमारी में रखे रद्दी अखबार देख  झुमकी कुछ सोच कर मुसकरा उठी. शादी से पहले अपने  पिता से उस ने कुट्टी नाम की कला सीखी थी.

कुट्टी का मतलब होता है कागज को कूट कर उस से सुंदरसुंदर चीजें बनाना. पहले बेकार पड़े कागजों को कुछ दिन पानी में भिगो कर कूटा जाता है. इस लुगदी में मुलतानी मिट्टी और गोंद डाल कर गूंद लिया जाता है और किसी भी आकृति में ढाल कर सुखा लिया जाता है. बाद में उस आकृति पर रंग कर देते हैं.

‘इस काम के लिए मु झे जो भी सामान चाहिए, उस में से मुलतानी मिट्टी को छोड़ कर यहां सबकुछ  है, लेकिन उस की जगह एक थैली में  जो सफेद सीमेंट रखा है, उस से काम चल जाएगा.

‘मैडमजी तो यह सारा सामान फेंकने को कह रही थीं. इस का मतलब उन  को इस में से कुछ चाहिए भी नहीं, तो  मैं ही इस्तेमाल कर लेती हूं इसे,’  झुमकी ने सोचा.

डिस्टैंपर के खाली डब्बे में पानी भर कर  झुमकी ने वहां रखे रद्दी अखबार उस में भिगो दिए. 2-3 दिन बीतने पर भीगे कागजों को कूट कर लुगदी बना ली और बाकी सामान मिला कर एक सुंदर बड़ा सा फूलदान बना दिया. सूखने पर वहां रखे पेंट और ब्रश ले कर उसे सुंदर रंगों से रंग दिया.

जब  झुमकी फूलदान ले कर राधा के पास पहुंची, तो पीले, संतरी और सुनहरी रंगों से चमकते फूलदान को देख कर राधा हैरान रह गई. जब उसे पता लगा कि वह  झुमकी ने बचे सामान से बनाया है, तो हैरानी के साथसाथ उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

‘‘ झुमकी तुम मु झे सिखाओगी यह कला?’’ राधा ने चहकते हुए पूछा.

‘‘क्यों नहीं मैडमजी, मु झे तो बहुत अच्छा लगेगा,’’  झुमकी को बहुत दिनों बाद एक अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी.

अगले दिन से ही  झुमकी ने राधा को कुट्टी कला की बारीकियां बतानी शुरू कर दीं.  झुमकी ने बताया कि उस के पिता ज्यादा सामान बनाते थे, तो तकरीबन 15 दिन भिगोते थे कागजों को. ऐसे में 2-3 दिनों के बाद पानी बदल लेते थे. पुराना पानी वे पेड़पौधों में दे  देते थे.

पानी में कागजों को कुछ दिन भिगो कर जब कलाकृतियां बनाने का समय आया, तो  झुमकी राधा को सहारा देते हुए आंगन में ले आई और एक कुरसी पर बिठा दिया.

झुमकी को छोटेछोटे खिलौने बनाते देख राधा का मन भी खिलौने बनाने को करने लगा.  झुमकी एक टीचर की तरह राधा को सब सिखा रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ही राधा भी  झुमकी को देख कर खिलौने बना रही थी.

झुमकी ने उसे मूर्तियां, कटोरे और प्लेट जैसी और चीजें बनानी भी सिखाईं. सूखने पर रंग करने का आसान तरीका भी  झुमकी ने राधा को सिखा दिया. कुछ रंगों को मिला कर नए सुंदर रंग बनाना और उन का सही ढंग से इस्तेमाल करना भी राधा ने  झुमकी से सीख लिया.

इधर बिछुआ ठीक हुआ, उधर राधा के पैर का पलस्तर भी कट गया.  झुमकी और बिछुआ के गांव वापस जाने का समय आ गया था. जाने से पहले एक बार अस्पताल में जांच कराने के बाद  झुमकी और बिछुआ राधा और सुरेंद्र का अहसान मानते हुए भरे मन से विदा ले कर गांव चले गए.

कुछ दिनों तक राधा को घर सूनासूना लगता रहा, फिर धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. वह पहले की तरह ही घर संभालने लगी और सुरेंद्र की मदद को दुकान भी पर जाने लगी थी.

अचानक उन की जिंदगी में एक मुसीबत आ गई. सुरेंद्र को दुकान के मालिक ने एक दिन आ कर बताया कि उस की और आसपास की कई दुकानों को गैरकानूनी होने के चलते जल्दी ही गिरा दिया जाएगा.

सभी दुकानदार आपस में सलाह कर इस नोटिस के खिलाफ कोई कदम उठाते, इस से पहले ही अचानक दुकानों को तोड़ने का काम शुरू हो गया.

सुरेंद्र ने बाकी सब की तरह ही अफरातफरी के बीच जल्दीजल्दी अपना सामान बाहर निकाला. उस का काफी सामान इधरउधर बिखर कर खराब हो गया. बाकी बचे सामान को किसी तरह वह घर ले कर आया.

अड़ोसपड़ोस में जा कर उन दोनों ने गुजारिश की कि पड़ोसी रोजमर्रा का कुछ सामान उन से खरीद लें, लेकिन बहुत कम लोगों ने ही सामान खरीदने के लिए उन के घर तक आने की जहमत उठाई. बचे सामान में से कुछ खराब हो गया और बाकी राधा ने घर पर इस्तेमाल कर लिया.

उन की असली चिंता तो अभी भी सामने थी, रोजीरोटी की. वे जान गए थे कि घर पर दुकान खोलने की बात सोचना बेकार है, क्योंकि ग्राहक तो आएंगे नहीं वहां चल कर. कुछ सालों से बचत कर के जो पैसे जोड़े थे, वे अब खत्म होने को आए थे.

एक दिन सुरेंद्र का दोस्त अनवर उस से मिलने घर आया हुआ था. चाय पीते हुए उस का ध्यान  झुमकी के बनाए फूलदान पर चला गया. उस ने बताया कि उस के दफ्तर के पास इस तरह का सामान बेचने वाला बैठता है, जिस की खूब बिक्री होती है. वहां विदेश से घूमने आए सैलानी भी आते हैं. वे लोग इसे ‘पेपर मैशे’ से बना सामान कहते हैं.

अनवर की बात सुन कर राधा की आंखें चमक उठीं. वह सुरेंद्र से बोली, ‘‘क्यों न हम सजावट का सामान बना कर उसे ही बेचने की कोशिश करें?  झुमकी ने कितने आसान तरीके से इतनी सुंदर चीजें बनानी सिखाई थीं हमें. शायद यही हो हमारी समस्या का हल.’’

सुरेंद्र की परेशानी अनवर सम झता था, लेकिन दूर करने का उपाय नहीं मिल पा रहा था. उसे भी यह बात जंच गई. वह बोला, ‘‘आप लोग ऐसा कर सकते हैं, तो मैं आप की बात दफ्तर के पास दुकान लगाने वाले से करवा दूंगा. महेश नाम है उस का.’’

सुरेंद्र ने तुरंत हामी भर दी.

अनवर ने जल्दी ही महेश से सुरेंद्र को मिलवा दिया. महेश  झुमकी के हाथों से बना फूलदान देख कर बहुत प्रभावित हुआ. उस ने कहा कि अगर सुरेंद्र ऐसा ही सामान बना लेगा, तो वह सारा सामान उस से खरीद लेगा. वैसे भी उसे खरीदारी के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है. इस से किराए पर बहुत खर्च होता है और सामान टूटने पर नुकसान भी हो जाता है.

महेश की शर्त यही थी कि नया बनने वाला सामान भी फूलदान की टक्कर का हो. बेचने की जिम्मेदारी उस पर होगी. इस में दोनों का फायदा ही होगा.

अगले दिन से ही राधा ने  झुमकी द्वारा सिखाई गई एकएक बात को याद करते हुए काम करना शुरू कर दिया. सुरेंद्र भी उस की मदद कर रहा था. उन्होंने कागज भिगो कर रख दिए. राधा को याद आया कि  झुमकी ने उसे कुट्टी कला के एक और रूप के बारे में भी बताया था, जिस में गुब्बारा फुला कर उस पर कागज की कतरनें गोंद से चिपकाते हुए तकरीबन 7 परतें बना दी जाती हैं. सूखने पर गुब्बारे को फोड़ कर उस ढांचे को बराबर 2 भागों में काट कर दीवार पर सजाने वाले मुखौटे बनाए जाते हैं.

राधा ने सुरेंद्र से कई बड़ेबड़े गुब्बारे बाजार से मंगवा लिए और उन को फुला कर एकएक कर कागज की परतें  चिपका दीं.

कागज की मोटी परतें सूख गईं, तो मुलतानी मिट्टी गूंद कर ढांचे पर आंख, नाक व होंठ बना दिए और उन्हें फिर सुखाने के लिए रख दिया. सूखने पर  पेंट के डब्बों से रंग ले कर उन को रंग दिया गया.

सुरेंद्र ने अपना दिमाग लगाते हुए बोरी के रेशों से मुखौटों की भौंहें व बाल बनाए और बेकार पड़े बिजली के तारों से कानों में कुंडल पहना दिए. अपने बनाए मुखौटे देख कर उन की खुशी का ठिकाना न रहा.

कुछ दिनों बाद पानी में भीगे कागज जब गल गए तो  झुमकी के बताए तरीके से उन दोनों ने मिल कर छोटेछोटे पक्षी, जानवर, फोटो फ्रेम, फूलदान, गिफ्ट बौक्स और सजावट की अनेक चीजें बना कर तैयार कर लीं.

उन चीजों के सूख जाने पर राधा ने पुराना और बेकार सामान जैसे आईना, चूडि़यां, बिंदी व बटन वगैरह ले कर उन को सजा दिया

महेश ने जब उन सब चीजों को देखा, तो बहुत खुश हुआ. उस ने सामान ले जा कर जब अपनी दुकान में रखा तो पाया कि बाकी सामान के मुकाबले सुरेंद्र से खरीदे गए सामान की ओर लोग ज्यादा खिंच रहे हैं. जल्द ही उस ने यह बात सुरेंद्र को बता कर और चीजें बनाने का और्डर दे दिया.

राधा और सुरेंद्र मन ही मन  झुमकी का धन्यवाद करना नहीं भूले. राधा जानती थी कि  झुमकी के पिता कुट्टी कला में माहिर थे. उन के साथ बचपन से काम करती आ रही  झुमकी का हाथ इतना सधा हुआ था कि उस से सीखने के बाद ही आज राधा बेजोड़ सामान तैयार कर पाई है.

इस बार राधा ने मूर्तियां, खिलौने, कटोरे, प्लेट और सजावट की अनेक चीजें बनाईं. इस बार रंगने का काम सुरेंद्र ने किया. उस ने पेंट करने के लिए ब्रश के अलावा पेड़ के पत्तों, भिंडी के कटे भाग व फूलों की पंखुडि़यों का इस्तेमाल भी किया.

महेश के सामान को देख कर दूसरे कारोबारियों ने भी सुरेंद्र से सामान खरीदना शुरू कर दिया. धीरेधीरे धंधा खूब चमकने लगा. घर का नया कमरा, जो उन्होंने दुकान का सामान रखने के लिए बनाया था, उस में अब कुट्टी कला की मदद से सामान बनने लगा था.

झुमकी का अहसान वे न तो भूले थे और न ही भूलना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने इस नए कारोबार को ‘ झुमकी कला निकेतन’ नाम दिया.

Hindi Story: चौराहे की काली

Hindi Story: ‘‘मेरी बीवी बहुत बीमार है पंडितजी…’’ धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘न जाने क्यों उस पर दवाओं का असर नहीं होता है. जब वह मुझे घूर कर देखती है तो मैं डर जाता हूं.’’ ‘‘तुम्हारी बीवी कब से बीमार है?’’ पंडित ने पूछा.

‘‘महीनेभर से.’’ ‘‘पहले तुम मुझे अपनी बीवी से मिलवाओ तभी मैं यह बता पाऊंगा कि वह बीमार है या उस पर किसी भूत का साया है.’’

‘‘मैं अपनी बीवी को कल सुबह ही दिखा दूंगा,’’ इतना कह कर धर्म सिंह चला गया. पंडित भूतप्रेत के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर पैसे ऐंठता था. इसी धंधे से उस ने अपना घर भर रखा था.

अगली सुबह धर्म सिंह के घर पहुंच कर पंडित ने कहा, ‘‘अरे भाई धर्म सिंह, तुम ने कल कहा था कि तुम्हारी बीवी बीमार है. जरा उसे दिखाओ तो सही…’’ धर्म सिंह अपनी बीवी सुमन को अंदर से ले आया और उसे एक कुरसी पर बैठा दिया.

पंडित ने उसे देखते ही पैसा ऐंठने का अच्छा हिसाबकिताब बना लिया. सुमन के बाल बिखरे हुए और कपड़े काफी गंदे थे. उस की आंखें लाल थीं और गालों पर पीलापन छाया था. जो भी उस के सामने जाता, वह उसे ऐसे देखती मानो खा जाएगी.

पंडित सुमन की आंखें देख कर बोला, ‘‘अरे धर्म सिंह, मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी बीवी पर बड़े भूत का साया है.’’ ‘‘कैसा भूत पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम नहीं समझ पाओगे कि इस पर किस किस्म का भूत है,’’ पंडित बोला. ‘‘क्या भूतों की भी किस्में होती हैं?’’

‘‘क्यों नहीं. कुछ भूत सीधे होते हैं, कुछ अडि़यल, पर तुम्हारी बीवी पर…’’ पंडित बोलतेबोलते रुक गया. ‘‘क्या बात है पंडितजी… जरा साफसाफ बताइए.’’

‘‘यही कि तुम्हारी बीवी पर सीधेसादे भूत का साया नहीं है. इस पर ऐसे भूत का साया है जो इनसान की जान ले कर ही जाता?है,’’ पंडित ने हाथ की उंगली उठा कर जवाब दिया. ‘‘फिर तो पंडितजी मुझे यह बताइए कि इस का हल क्या है?’’ धर्म सिंह कुछ सोचते हुए बोला.

पंडित ने हाथ में पानी ले कर कुछ बुदबुदाते हुए सुमन पर फेंका और बोला, ‘‘बता तू कौन है? यहां क्या करने आया है? क्या तू इसे ले कर जाएगा? मगर मेरे होते हुए तू ऐसा कुछ नहीं कर सकता.’’ ‘‘पंडितजी, आप किस से बातें कर रहे हैं?’’ धर्म सिंह ने पूछा.

‘‘भूत से, जो तेरी बीवी पर चिपटा है,’’ होंठों से उंगली सटा कर पंडित ने धीरे से कहा. ‘‘क्या भूत बोलता है?’’ धर्म सिंह ने सवाल किया.

‘‘हां, भूत बोलता है, पर सिर्फ हम से, आम आदमी से नहीं.’’ ‘‘तो क्या कहता है यह भूत?’’

‘‘धर्म सिंह, भूत कहता है कि वह भेंट चाहता है.’’ ‘‘कैसी भेंट?’’ यह सुन कर धर्म सिंह चकरा गया.

‘‘मुरगे की,’’ पंडित ने कहा. ‘‘पर हम लोग तो शाकाहारी हैं.’’

‘‘तुम नहीं चढ़ा सकते तो मुझे दे देना. मैं चढ़ा दूंगा,’’ पंडित ने रास्ता सुझाया. ‘‘पंडितजी, मुझे एक बात बताओ?’’

‘‘पूछो, क्या बात है?’’ ‘‘मेरी बीवी पर कौन सी किस्म का भूत है?’’

पंडित ने सुमन की तरफ उंगली उठाते हुए कहा, ‘‘इस पर ‘चौराहे की काली’ का असर है.’’ ‘‘क्या… ‘चौराहे की काली’,’’ धर्म सिंह की आंखें डर के मारे फैल गईं, ‘‘मेहरबानी कर के कोई इलाज बताएं पंडितजी.’’

‘‘जरूर. वह काली कहती है कि तुझे एक मुरगा, एक नारियल, 101 रुपए, बिंदी, टीका, कपड़ा और सिंदूर रात को 12 बजे चौराहे पर रख कर आना पड़ेगा.’’ ‘‘इतना सारा सामान पंडितजी?’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘हां, अगर ऐसा नहीं हुआ तो तेरी बीवी गई काम से,’’ पंडित तपाक से बोला. ‘‘जी अच्छा पंडितजी, पर इतना सामान और वह भी रात के समय, यह मेरे बस की बात नहीं है,’’ धर्म सिंह ने कहा.

‘‘तेरे बस की बात नहीं है तो मैं रख आऊंगा…’’ पंडित ने कहा, ‘‘शाम को सारा सामान लेते आना. मैं शाम को आऊंगा.’’ धर्म सिंह तैयारी करने में लग गया. हालांकि उस ने बीवी को डाक्टर से दवा भी दिला दी, पर वह पंडित को भी मौका देना चाहता था इसीलिए चौराहे पर जाने से मना कर दिया.

रात को पंडित पूरा सामान ले कर चौराहे पर रखने के लिए चल दिया. हवा के झोंके, झींगुरों का शोर और उल्लुओं की डरावनी आवाजें रात के सन्नाटे को चीर रही थीं.

पंडित जैसे ही चौराहे से 30 फुट की दूरी पर पहुंचा, उसी समय वहां 15-16 फुट ऊंची मीनार सी मूर्ति नजर आने लगी. वह कभी छोटी हो जाती तो कभी बड़ी. उस में से घुंघरू की खनखनाती आवाज भी आ रही थी. पंडित यह सब देख कर बुरी तरह घबरा गया. हिम्मत कर के उस ने पूछा, ‘‘क… क… कौन है तू?’’

‘‘मैं चौराहे की काली हूं,’’ मीनार से घुंघरूओं की झंकार के साथ एक डरावनी आवाज निकली. ‘‘तू… तू… क्या चाहती है?’’

‘‘मैं तुझे खाना चाहती हूं,’’ मीनार में से फिर आवाज आई. ‘‘क… क… क्यों? मेरी क्या गलती है?’’ पंडित ने डरते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि तू ने लोगों से बहुत पैसा ऐंठा है. अब मैं तेरे खून से अपनी प्यास बुझाऊंगी,’’ कहतेकहते काली धीरेधीरे नजदीक आ रही थी. पंडित के हाथों से सामान तो पहले ही छूट चुका था. ज्यों ही उस ने मुड़

कर पीछे की तरफ भागना चाहा, उस का पैर धोती में अटक गया और वह

गिर पड़ा. जब पंडित को होश आया तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया. वह उस समय भी चिल्लाने लगा, ‘‘बचाओ… बचाओ… चौराहे की काली मुझे खा जाएगी…’’

‘‘कौन खा जाएगी? कैसी काली पंडितजी?’’ पंडित के कानों में धर्म सिंह की आवाज गूंजी. पंडित ने आंखें खोलीं तो अपने सामने धर्म सिंह व गांव के तमाम लोगों को खड़ा पाया. पंडित फिर बोला, ‘‘चौराहे की काली.’’

‘‘नहीं पंडितजी, आप बिना वजह ही डर गए हैं. वह काली नहीं थी,’’ धर्म सिंह ने पंडित को थपथपाते हुए कहा. ‘‘तो फिर कौन थी वह?’’

‘‘वहां मैं था पंडितजी, आप तो यों ही डर रहे हैं,’’ धर्म सिंह ने कहा. ‘‘पर वह तो… कभी छोटी तो कभी बड़ी और घुंघरुओं की आवाज…’’ पंडित बड़बड़ाया, ‘‘न… न… नहीं, तुम नहीं हो सकते.’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता? मैं वही नजारा फिर दिखा सकता हूं,’’ इतना कह कर धर्म सिंह काला कपड़ा लगा लंबा बांस, जिस में घुंघरू लगे थे, ले आया. उस ने बांस से कपड़ा कभी ऊंचा उठाया तो कभी नीचा किया और खुद को बीच में छिपा लिया. तब जा कर पंडित को यकीन हुआ कि वह काली नहीं थी.

धर्म सिंह ने पंडित से कहा, ‘‘इस दुनिया में न तो भूत हैं और न ही चुड़ैल. यह सारा चक्कर तो सरासर मक्कारी और फरेब का है.”

Family Story: सच्चाई – आखिर क्यों मां नहीं बनना चाहती थी सिमरन?

Family Story: पड़ोस में आते ही अशोक दंपती ने 9 वर्षीय सपना को अपने 5 वर्षीय बेटे सचिन की दीदी बना दिया था. ‘‘तुम सचिन की बड़ी दीदी हो. इसलिए तुम्हीं इस की आसपास के बच्चों से दोस्ती कराना और स्कूल में भी इस का ध्यान रखा करना.’’ सपना को भी गोलमटोल सचिन अच्छा लगा था. उस की मम्मी तो यह कह कर कि गिरा देगी, छोटे भाई को गोद में भी नहीं उठाने देती थीं. समय बीतता रहा.

दोनों परिवारों में और बच्चे भी आ गए. मगर सपना और सचिन का स्नेह एकदूसरे के प्रति वैसा ही रहा. सचिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मणिपाल चला गया. सपना को अपने ही शहर में मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया था. फिर एक सहपाठी से शादी के बाद वह स्थानीय अस्पताल में काम करने लगी थी. हालांकि सचिन के पापा का वहां से तबादला हो चुका था. फिर भी वह मौका मिलते ही सपना से मिलने आ जाता था. सऊदी अरब में नौकरी पर जाने के बाद भी उस ने फोन और ईमेल द्वारा संपर्क बनाए रखा. इसी बीच सपना और उस के पति सलिल को भी विदेश जाने का मौका मिल गया. जब वे लौट कर आए तो सचिन भी सऊदी अरब से लौट कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रहा था.

‘‘बहुत दिन लगा दिए लौटने में दीदी? मैं तो यहां इस आस से आया था कि यहां आप अपनी मिल जाएंगी. मम्मीपापा तो जबलपुर में ही बस गए हैं और आप भी यहां से चली गईं. इतने साल सऊदी अरब में अकेला रहा और फिर यहां भी कोई अपना नहीं. बेजार हो गया हूं अकेलेपन से,’’ सचिन ने शिकायत की. ‘‘कुंआरों की तो साथिन ही बेजारी है साले साहब,’’ सलिल हंसा, ‘‘ढलती जवानी में अकेलेपन का स्थायी इलाज शादी है.’’

‘‘सलिल का कहना ठीक है सचिन. तूने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ सपना ने पूछा.

‘‘सऊदी अरब में और फिर यहां अकेले रहते हुए शादी कैसे करता दीदी? खैर, अब आप आ गई हैं तो लगता है शादी हो ही जाएगी.’’

‘‘लगने वाली क्या बात है, शादी तो अब होनी ही चाहिए… और यहां अकेले का क्या मतलब हुआ? शादी जबलपुर में करवा कर यहां आ कर रिसैप्शन दे देता किसी होटल में.’’

‘‘जबलपुर वाले मेरी उम्र की वजह से न अपनी पसंद का रिश्ता ढूंढ़ पा रहे हैं और न ही मेरी पसंद को पसंद कर रहे हैं,’’ सचिन ने हताश स्वर में कहा, ‘‘अब आप समझा सको तो मम्मीपापा को समझाओ या फिर स्वयं ही बड़ी बहन की तरह यह जिम्मेदारी निभा दो.’’ ‘‘मगर चाचीचाचाजी को ऐतराज क्यों है? तेरी पसंद विजातीय या पहले से शादीशुदा बालबच्चों वाली है?’’ सपना ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, स्वजातीय और अविवाहित है और उसे भविष्य में भी संतान नहीं चाहिए. यही बात मम्मीपापा को मंजूर नहीं है.’’

‘‘मगर उसे संतान क्यों नहीं चाहिए और अभी तक वह अविवाहित क्यों है?’’ सपना ने शंकित स्वर में पूछा. ‘‘क्योंकि सिमरन इकलौती संतान है. उस ने पढ़ाई पूरी की ही थी कि पिता को कैंसर हो गया और फिर मां को लकवा. बहुत इलाज के बाद भी दोनों को ही बचा नहीं सकी. मेरे साथ ही पढ़ती थी मणिपाल में और अब काम भी करती है. मुझ से शादी तो करना चाहती है, लेकिन अपनी संतान न होने वाली शर्त के साथ.’’

‘‘मगर उस की यह शर्त या जिद क्यों है?’’

‘‘यह मैं ने नहीं पूछा न पूछूंगा. वह बताना तो चाहती थी, मगर मुझे उस के अतीत में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो उसे सुखद भविष्य देना चाहता हूं. उस ने मुझे बताया था कि मातापिता के इलाज के लिए पैसा कमाने के लिए उस ने बहुत मेहनत की, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया, जिस के लिए कभी किसी से या स्वयं से लज्जित होना पड़े. शर्त की कोई अनैतिक वजह नहीं है और वैसे भी दीदी प्यार का यह मतलब यह तो नहीं है कि उस में आप की प्राइवेसी ही न रहे? मेरे बच्चे होने न होने से मम्मीपापा को क्या फर्क पड़ता है? जतिन और श्रेया ने बना तो दिया है उन्हें दादादादी और नानानानी. फूलफल तो रही है उन की वंशबेल,’’ फिर कुछ हिचकते हुए बोला, ‘‘और फिर गोद लेने या सैरोगेसी का विकल्प तो है ही.’’

‘‘इस विषय में बात की सिमरन से?’’ सलिल ने पूछा. ‘‘उसी ने यह सुझाव दिया था कि अगर घर वालों को तुम्हारा ही बच्चा चाहिए तो सैरोगेसी द्वारा दिलवा दो, मुझे ऐतराज नहीं होगा. इस के बावजूद मम्मीपापा नहीं मान रहे. आप कुछ करिए न,’’ सचिन ने कहा, ‘‘आप जानती हैं दीदी, प्यार अंधा होता है और खासकर बड़ी उम्र का प्यार पहला ही नहीं अंतिम भी होता है.’’

‘‘सिमरन का भी पहला प्यार ही है?’’ सपना ने पूछा. सचिन ने सहमति में सिर हिलाया, ‘‘हां दीदी, पसंद तो हम एकदूसरे को पहली नजर से ही करने लगे थे पर संयम और शालीनता से. सोचा था पढ़ाई खत्म करने के बाद सब को बताएंगे, लेकिन उस से पहले ही उस के पापा बीमार हो गए और सिमरन ने मुझ से संपर्क तक रखने से इनकार कर दिया. मगर यहां रहते हुए तो यह मुमकिन नहीं था. अत: मैं सऊदी अरब चला गया. एक दोस्त से सिमरन के मातापिता के न रहने की खबर सुन कर उसी की कंपनी में नौकरी लगने के बाद ही वापस आया हूं.’’ ‘‘ऐसी बात है तो फिर तो तुम्हारी मदद करनी ही होगी साले साहब. जब तक अपना नर्सिंगहोम नहीं खुलता तब तक तुम्हारे पास समय है सपना. उस समय का सदुपयोग तुम सचिन की शादी करवाने में करो,’’ सलिल ने कहा.

‘‘ठीक है, आज फोन पर बात करूंगी चाचीजी से और जरूरत पड़ी तो जबलपुर भी चली जाऊंगी, लेकिन उस से पहले सचिन मुझे सिमरन से तो मिलवा,’’ सपना ने कहा. ‘‘आज तो देर हो गई है, कल ले चलूंगा आप को उस के घर. मगर उस से पहले आप मम्मी से बात कर लेना,’’ कह कर सचिन चला गया. सपना ने अशोक दंपती को फोन किया. ‘‘कमाल है सपना, तुझे डाक्टर हो कर भी इस रिश्ते से ऐतराज नहीं है?  तुझे नहीं लगता ऐसी शर्त रखने वाली लड़की जरूर किसी मानसिक या शारीरिक रोग से ग्रस्त होगी?’’ चाची के इस प्रश्न से सपना सकते में आ गई.

‘‘हो सकता है चाची…कल मैं उस से मिल कर पता लगाने की कोशिश करती हूं,’’ उस ने खिसियाए स्वर में कह कर फोन रख दिया.

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा. ‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सुझाव दिया. अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली. चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए. ‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के सुझाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’ सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया. ‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’ ‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी. ‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’ सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’ ‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी. ‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी. सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

‘‘आप मिली हैं न, जीजाजी से भी तो मिलवाना है इसे,’’ सचिन बोला, ‘‘आप घर पर ही आराम करिए, मैं सिमरन को ले कर वहीं आ जाऊंगा.’’

‘‘इस से अच्छा और क्या होगा, जरूर आओ,’’ सपना मुसकराई, ‘‘खाना हमारे साथ ही खाना.’’ शाम को सचिन और सिमरन आ गए. सलिल की चुटकियों से शीघ्र ही वातावरण अनौपचारिक हो गया. जब किसी काम से सपना किचन में गई तो सचिन उस के पीछेपीछे आया.

‘‘आप ने मम्मी से बात की दीदी?’’

‘‘हां, हालचाल पूछ लिया सब का.’’

‘‘बस हालचाल ही पूछा? जो बात करनी थी वह नहीं की? आप को हो क्या गया है दीदी?’’ सचिन ने झल्ला कर पूछा. ‘‘तजरबा, सही समय पर सही बात करने का. सिमरन कहीं भागी नहीं जा रही है, शादी करेगी तो तेरे से ही. जहां इतने साल सब्र किया है थोड़ा और कर ले.’’ ‘‘इस के सिवा और कर भी क्या सकता हूं,’’ सचिन ने उसांस ले कर कहा. इस के बाद सपना ने सिमरन से और भी आत्मीयता से बातचीत शुरू कर दी. यह सुन कर कि सचिन औफिस के काम से मुंबई जा रहा है, सपना उस शाम सिमरन के घर चली गई. उस का घर बहुत ही सुंदर था. लगता था बनवाने वाले ने बहुत ही शौक से बनवाया था. ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने यह घर न बेच कर सिमरन. जाहिर है, शादी के बाद भी यहीं रहना चाहोगी. सचिन तैयार है इस के लिए?’’ ‘‘सचिन तो बगैर किसी शर्त के मेरी हर बात मानने को तैयार है, लेकिन मैं बगैर उस के मम्मीपापा की रजामंदी के शादी नहीं कर सकती. मांबाप से उन के बेटे को विमुख कभी नहीं करूंगी. प्रेम तो विवेकहीन और अव्यावहारिक होता है दीदी. उस के लिए सचिन को अपनों को नहीं छोड़ने दूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत ही अच्छी बात है सिमरन. चाचाचाचीजी यानी सचिन के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं. अगर उन्हें ठीक से समझाया जाए यानी तुम्हारी शर्त का कारण बताया जाए तो वे भी सहर्ष मान जाएंगे. लेकिन सचिन ने उन्हें कारण बताया ही नहीं है.’’ ‘‘बताता तो तब न जब उसे खुद मालूम होता. मैं ने उसे कई बार बताने की कोशिश की, लेकिन वह सुनना ही नहीं चाहता. कहता है कि जब मेरे साथ हो तो भविष्य के सुनहरे सपने देखो, अतीत की बात मत करो. मुझे भी अतीत याद रखने का कोई शौक नहीं है दीदी, मगर अतीत से या जीवन से जुड़े कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें चाह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, उन के साथ जीना मजबूरी होती है.’’ ‘‘अगर चाहो तो उस मजबूरी को मुझ से बांट सकती हो सिमरन,’’ सपना ने धीरे से कहा. ‘‘मैं भी यही सोच रही थी दीदी,’’ सिमरन ने जैसे राहत की सांस ली, ‘‘अकसर देर से जाने और बारबार छुट्टी लेने के कारण न नौकरी पर ध्यान दे पा रही थी न पापा के इलाज पर, अत: मैं नौकरी छोड़ कर पापा को इलाज के लिए मुंबई ले गई थी. वहां पैसा कमाने के लिए वैक्यूम क्लीनर बेचने से ले कर अस्पताल की कैंटीन, साफसफाई और बेबी सिटिंग तक के सभी काम लिए. फिर मम्मीपापा के ऐतराज के बावजूद पैसा कमाने के लिए 2 बार सैरोगेट मदर बनी. तब तो मैं ने एक मशीन की भांति बच्चों को जन्म दे कर पैसे देने वालों को पकड़ा दिया था, लेकिन अब सोचती हूं कि जब मेरे अपने बच्चे होंगे तो उन्हें पालते हुए मुझे जरूर उन बच्चों की याद आ सकती है, जिन्हें मैं ने अजनबियों पर छोड़ दिया था. हो सकता है कि विचलित या व्यथित भी हो जाऊं और ऐसा होना सचिन और उस के बच्चे के प्रति अन्याय होगा. अत: इस से बेहतर है कि यह स्थिति ही न आने दूं यानी बच्चा ही पैदा न करूं. वैसे भी मेरी उम्र अब इस के उपयुक्त नहीं है. आप चाहें तो यह सब सचिन और उस के परिवार को बता सकती हैं. उन की कोई भी प्रतिक्रिया मुझे स्वीकार होगी.’’

‘‘ठीक है सिमरन, मैं मौका देख कर सब से बात करूंगी,’’ सपना ने सिमरन को आश्वासन दिया. सिमरन ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था. उस की भावनाओं का खयाल रखना जरूरी था. सचिन के साथ तो खैर कोई समस्या नहीं थी, उसे तो सिमरन हर हाल में ही स्वीकार थी, लेकिन उस के घर वालों से आज की सचाई यानी सैरोगेट मदर बन चुकी बहू को स्वीकार करवाना आसान नहीं था. उन लोगों को तो सिमरन की बड़ी उम्र बच्चे पैदा करने के उपयुक्त नहीं है कि दलील दे कर समझाना होगा. सचिन के प्यार के लिए इतने से कपट का सहारा लेना तो बनता ही है.

Family Story: पीयूषा – क्या विधवा मिताली की गृहस्थी दोबारा बस पाई?

Family Story, लेखिका: Sandhya

रविवार का दिन था. छुट्टी होने के कारण मैं इतमीनान से अपने कमरे में अखबार पढ़ रहा था, तो अचानक चाचाजी पर नजर पड़ी. वे सामने उदास व शांत खड़े हुए थे. मैं ने बैठने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी, परेशान से लग रहे हैं? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं ठीक हूं बेटा, तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ बैठने के बाद चाचाजी ने धीरे से कहा. मैं ने अखबार एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘तो कहिए न चाचाजी.’’ लेकिन चाचाजी शांत ही बैठे रहे. मैं ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी? जो दिल में है बेझिझक कह दीजिए. आप का कथन मेरे लिए आदेश है,’’ चाचाजी की चुप्पी दरअसल मेरी बैचेनी बढ़ा रही थी. ‘‘बेटा पवन, तू ने कभी भी मेरी बात नहीं टाली है. आज भी इसी उम्मीद से तेरे पास आया हूं. तेरी चाची का और मेरा विचार है कि तू मिताली से शादी कर ले. उसे सहारा दे दे. बेचारी कम उम्र में विधवा हो गई है और दुनिया में एकदम अकेली है. मायके में उस का कोई नहीं है. हम बूढ़ाबूढ़ी का क्या भरोसा, तब वह अकेली कहां जाएगी…,’’ चाचाजी ने धीरेधीरे अपनी बात रखी. उन की आंखें सजल हो उठी थीं, गला भर आया था. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा चाचाजी की बातें सुन रहा था और क्या कहूं समझ नहीं पा रहा था. मेरे समक्ष एक ओर चाचाचाची का निर्णय था, तो दूसरी ओर मेरा प्यार जो पनप चुका था.

मुझे लग रहा था कि यह बात सच है कि जीवनपथ का अगला मोड़ क्या और कैसा होगा कोई नहीं जानता. आज जीवनपथ का ऐसा मोड़ मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ था, जिस में मुझे अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य एवं अपने प्यार में से किसी एक का चुनाव करना था.

मेरे जीवनपथ का प्रथम पड़ाव बचपन शुरू में काफी खुशहाल था. मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान हूं. पापा बैंक में मैनेजर थे और मां कुशल गृहिणी. चूंकि पापा घर के बड़े बेटे थे और मां अच्छे स्वभाव की महिला थीं, इसलिए मेरी वृद्धा दादी हमारे साथ ही रहती थीं. मुझे मांबाप के साथ दादी का भी भरपूर स्नेहप्यार मिलता रहा. पटना के सब से अच्छे स्कूल में मेरा दाखिला करवाया गया था. पढ़ाई में मेरी विशेष दिलचस्पी थी और शुरू से ही मैं मेधावी रहा, इसलिए अच्छे अंक लाता था. पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद, गायन आदि में भी मेरी विशेष रुचि थी. मुझे मांपापा का पूरा प्रोत्साहन मिलता रहा, इसलिए सभी क्षेत्रों में अच्छा कर मैं परिवार एवं स्कूल की आंखों का तारा बना रहा. मेरे जीवनपथ में अचानक ही अत्यंत कठिन और पथरीला मोड़ आ खड़ा हुआ. मैं उस समय कक्षा 8 में पढ़ता था. मांपापा का अचानक रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. मेरे पास इस दुख को सहने की न तो बुद्धि थी न ही हिम्मत. मैं हताश और हारा हुआ सा सिर्फ रोता रहता था.

उस कठिन समय में दादी ने मुझे ढाढ़स बंधाया और अपने छोटे बेटे यानी मेरे चाचाजी के घर मुझे ले आईं. मैं चाचा चाची के साथ जमशेदपुर में रहने लगा. उन का इकलौता बेटा पीयूष था. वह मुझ से 2 साल छोटा था. चाचाजी ने उसी के स्कूल में मेरा नाम लिखवा दिया. मैं वहां भी अच्छे अंकों से पास होने लगा.

चाचाचाची मेरी रहने, खानेपीने, पढ़नेलिखने आदि सभी व्यवस्था देखते, लेकिन मेरे और पीयूष के प्रति उन के व्यवहार में थोड़ा फर्क रहता. जैसे चाची मुझ से नजरें बचा कर पीयूष को कुछ स्पैशल खाने को देतीं. लेकिन पीयूष मेरे लाख मना करने पर भी उसे मुझ से शेयर करता. मैं चाचाचाची के सारे भेदभाव नजरअंदाज कर तहे दिल से उन का आभार मानता कि उन्होंने मुझ बेसहारा को सहारा तो दिया ही अच्छे स्कूल में मेरा नाम भी लिखवाया. मेरी दादी जब तक रहीं मुझ पर विशेष ध्यान देती रहीं, किंतु वे मांपापा के आकस्मिक निधन से अंदर तक टूट चुकी थीं. उन के जाने के 2 वर्ष बाद वे भी चल बसीं.

चाचाचाची पीयूष की उच्च शिक्षा हेतु अकसर चर्चा करते किंतु मेरे संबंध में ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं व्यक्त करते. मैं ने 12वीं की परीक्षा उच्च अंकों से पास की. फिर बी.कौम. करने के बाद बैंक परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर मैं सरकारी बैंक में पी.ओ. बन गया. इत्तफाक से मेरी नियुक्ति जमशेदपुर में ही हुई, तो मैं चाचाचाची के साथ ही रहा. वैसे भी मेरी दिली इच्छा यही थी कि मैं चाचाचाची के साथ रह कर उन्हें सहयोग दूं क्योंकि दोनों को ही बढ़ती उम्र के साथसाथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होने लगी थीं.

पीयूष ने बैंगलुरु से एम.बी.ए. किया. वहीं उस का एक मल्टीनैशनल कंपनी में सिलैक्शन हो गया. हम सभी उस की खुशी से खुश थे. उसे जल्दी ही अपनी जूनियर मिताली से प्यार हो गया, तो चाचाचाची ने उस की पसंद को सहर्ष स्वीकार करते हुए धूमधाम से उस का विवाह कर दिया. शादी के बाद पीयूष और मिताली बैंगलुरु लौट गए. पीयूष की शादी के बाद मेरा मन कुछ ज्यादा ही खालीपन महसूस करने लगा. उसी दौरान कविता ने कब इस में जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला. कविता मेरी ही बस से आतीजाती थी. सुंदर, सुशील, सभ्य कविता विशाल हृदय मालूम होती, क्योंकि हमेशा ही सब की सहायता हेतु तत्पर दिखाई देती. कभी किसी अंधे को सड़क पार करवाती, तो कभी किसी बच्चे की सहायता करती. बस में वृद्ध या गर्भवती महिला को तुरंत अपनी सीट औफर कर देती. मुझे उस की ये सब बातें बहुत अच्छी लगती थीं, क्योंकि वे मेरे स्वभाव से मेल खाती थीं. हम दोनों में छोटीछोटी बातें होने लगीं.

धीरेधीरे हम एकदूसरे के लिए जगह रख, साथ ही जानेआने लगे. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. मैं उस के प्रति आकर्षण महसूस करता किंतु चाह कर भी उस के सामने व्यक्त नहीं कर पाता. उस की दशा भी मेरे समान ही महसूस होती, क्योंकि उस की आंखों में चाहत, समर्पण दिखाई देता. किंतु शर्मोहया का बंधन उसे भी जकड़े हुए था.

मैं अपने विवाह हेतु चाची से चर्चा करना चाहता किंतु झिझक महसूस होती. कई बार पीयूष की मदद लेने का विचार आता किंतु वह अपनी नौकरी एवं गृहस्थी में ऐसा व्यस्त और मस्त था कि उस से चर्चा करने का अवसर ही नहीं मिल पाता. इस के अलावा उस का हमारे पास आना भी बहुत कम एवं सीमित समय के लिए हो पाता. उस दौरान मेरा संकोची स्वभाव कुछ व्यक्त नहीं कर पाता. मिताली के गर्भवती होने पर चाची उसे लंबी छुट्टी दिलवा कर अपने साथ ले आईं. 5 माह का गर्भ हो चुका था.

चाची बड़ी लगन एवं जिम्मेदारी से उस की देखभाल करतीं, तो नए मेहमान के आगमन की खुशी से घर में हर समय त्योहार जैसा माहौल बना रहता. मैं अपने संकोची स्वभाव के कारण मिताली से थोड़ा दूरदूर ही रहता. हम दोनों में कभीकभी ही कुछ बात होती. जीवन अपनी गति से चल रहा था कि अचानक पीयूष का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. घर में मानो कुहराम मच गया. चाचाचाची का रोरो कर बुरा हाल था. मिताली तो पत्थर की मूर्ति सी बन गई. एकदम शांत, गमगीन. मैं स्वयं के साथसाथ सभी को संभालने की असफल कोशिश में लगा रहता. मिताली को समझाते हुए कहता कि मिताली कम से कम बच्चे के बारे में तो सोचो उस पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, तो वह आंसू पोंछते हुए सुबकने लगती. पीयूष के जाने बाद हम सभी का जीवन रंगहीन, उमंगहीन हो गया था. हम सभी यंत्रवत अपनाअपना काम करते और एकदूसरे से नजरें चुराते हुए मालूम होते.

जीवनयात्रा की टेढ़ीमेढ़ी डगर मेरे मनमस्तिष्क में हलचल मचा रही थी. चाचाजी मिताली से विवाह करने की बात पर मेरा जवाब सुनना चाह रहे थे. वे मेरी सहमति की आस लगाए बैठे थे और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा गुजरा कल आज मिताली के साथ में मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ है. कल जब मैं अपने मातापिता से बिछुड़ कर चाचाचाची के समक्ष सहारे की उम्मीद लिए आ खड़ा हुआ था, यदि उस समय उन्होंने सहारा नहीं दिया होता तो मेरा जाने क्या होता. सत्य है इतिहास स्वयं को दोहराता है. वैसे चाचाजी यदि मेरी जान भी मांग लेते तो बिना सोचेविचारे मैं सहर्ष दे देता, किंतु चाचाजी ने मिताली से विवाह का प्रस्ताव रख मुझे असमंजस में डाल दिया था. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘चाचाजी, मिताली को मैं ने हमेशा अपनी छोटी बहन माना है. ऐसे में भला मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘बेटा, तुम निराश करोगे तो हम कहां जाएंगे,’’ कहते हुए चाचाजी रो पड़े. मैं ने उन्हें संभालते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, स्वयं को संभालिए. यों निराश होने से समस्या का समाधान कैसे निकलेगा? मैं नहीं जानता था कि आप लोग मिताली के पुनर्विवाह हेतु विचार कर रहे हैं. दरअसल, मेरा मित्र पंकज अपने विधुर भैया प्रसुन्न के लिए मुझ से मिताली का हाथ मांग रहा था, किंतु मैं उस के प्रस्ताव पर उस पर बिफर पड़ा था कि अभी बेचारी पीयूष के गम से उबर भी नहीं पाई है, उस का बच्चा मिताली के गर्भ में है, ऐसे में उस से मैं कहीं और शादी करने के लिए कैसे बोल सकता हूं. ‘‘उस ने मुझे समझाते हुए कहा था कि दोस्त गंभीरता से विचार कर. जो हुआ बहुत बुरा हुआ किंतु वह हो चुका है, तो अब उस से निकलने का उपाय सोचना होगा. मेरी भाभी बेटे के जन्म के साथ चल बसीं. आज बेटा डेढ़ वर्ष का हो गया है.

मेरी मां बेटे प्रखर का पालनपोषण करती हैं किंतु वे बूढ़ी और बीमार हैं. भैया दूसरी शादी के लिए इसलिए इनकार कर देते हैं कि अगर उन की दूसरी पत्नी उन के जान से प्यारे प्रखर के साथ बुरा व्यवहार करेगी तो वे बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. वही सिचुएशन मिताली के समक्ष भी आ खड़ी हुई है. लेकिन वह बेचारी जिंदगी किस सहारे निकालेगी?

‘‘उस ने मुझे विस्तार से समझाते हुए कहा कि देख दोस्त मेरे भैया और मिताली दोनों संयोगवश अपने जीवनसाथियों से बिछुड़ आधेअधूरे रह गए हैं. हम दोनों को मिला कर उन के जीवन को सरस एवं सफल बनाएं, यही सर्वथा उचित होगा. मैं ने बहुत चिंतनमनन के बाद तेरे समक्ष यह प्रस्ताव रखा है. दोनों एकदूसरे के बच्चे को अपना कर जीवनसाथी बन जाएं, इसी में दोनों का सुख है. जो घटित हुआ उसे तो बदला नहीं जा सकता, किंतु उन का भविष्य तो अवश्य सुधारा जा सकता है. ‘‘गंभीरता से विचार करने पर मुझे भी पंकज का प्रस्ताव उचित लगा, किंतु आप लोगों से इस के बारे में चर्चा करने का साहस मुझ में न था. आज आप ने चर्चा की तो कहने का साहस जुटा पाया.’’

चाचाजी मेरी बातें शांति से सुन रहे थे और समझ भी रहे थे, क्योंकि अब वे संतुष्ट नजर आ रहे थे. चाचीजी जो अब तक परदे की ओट से हमारी बातें सुन रही थीं, लपक कर हमारे सामने आ खड़ी हुईं और अधीरता से बोलीं, ‘‘बेटा, कैसे हैं पंकज के भैया? क्या करते हैं? उम्र क्या है उन की और क्या तू उन से मिला है? वगैरहवगैरह.’’

मैं ने उन को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘चाचीजी, पहले आप इतमीनान से बैठिए. मैं सब बताता हूं. बड़े नेक और संस्कारवान इनसान हैं. सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और मेरी ही उम्र के होंगे, क्योंकि पंकज से 2 साल ही बड़े हैं. पंकज मुझ से लगभग 2 साल ही छोटा है. वैसे आप लोग पहले उन से मिल लीजिए, उस के बाद निर्णय लीजिएगा. मैं तो मिताली को देख कर चिंतित हो जाता हूं. समझ नहीं पाता हूं कि वह इस बात के लिए तैयार होगी या नहीं. अभी बेहद गुमसुम व गमगीन रहती है.’’

‘‘बेटा, तू चिंता न कर. उसे विवाह के लिए हम सभी को प्रोत्साहित करना होगा. विवाह होने से वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करेगी जिस का प्रभाव गर्भ पर भी सकारात्मक पड़ेगा. बेटा, वह अभी स्वयं को अकेली एवं असुरक्षित महसूस करती होगी. एक औरत होने के नाते मैं उस की भावनाएं समझ सकती हूं. यदि उसे सहारा मिल जाएगा तब उसे दुनिया और जीवन प्रकाशवान लगने लगेगा. हम सब के सहयोग और प्रोत्साहन से वह सामान्य जीवन के प्रति अग्रसर हो जाएगी,’’ चाची ने समझाते हुए कहा. फिर चाची 2 मिनट बाद बोलीं, ‘‘बेटा पवन मिताली की शादी के बाद हम तेरी शादी भी कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है चाची, लेकिन अभी हमें सिर्फ मिताली के संबंध में ही सोचना चाहिए. कच्ची उम्र में बड़ी विपदा उस पर आ पड़ी है.’’ ‘‘हां बेटा, बहुत दुख लगता है उसे यों मूर्त बना देख कर, लेकिन तेरी जिम्मेदारी भी पूरी कर देना चाहती हूं. कोई नजर में हो तो बता देना,’’ कहते हुए चाची ने स्नेह से मेरा सिर सहला दिया. मैं कविता को याद कर अहिस्ता से मुसकरा दिया. प्रसुन्न भैया के साथ मिताली की शादी कर दी गई. उन के प्यार, संरक्षण एवं हम सभी के स्नेह, सहयोग एवं प्रोत्साहन से मिताली ने स्वयं को संभाल लिया. समय से उस ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, तो हम सभी को सारा संसार गुलजार महसूस होने लगा. सब से बड़ी बात तो यह हुई कि अब मिताली खुश रहने लगी. बच्ची के नामकरण हेतु घर में चर्चा होने लगी, तो मैं ने कहा, ‘‘प्रसुन्न भैया, आप ने बेटे का नाम प्रखर बहुत प्यारा एवं सारगर्भित रखा है. उसी तरह बेटी का नाम भी आप ही बताएं.’’

प्रसुन्न भैया 2 पल सोच कर मुसकराते हुए बोले, ‘‘मेरी बेटी का नाम होगा पीयूषा, जो है तो पीयूष की निशानी किंतु दुनिया उसे मेरी निशानी के रूप में पहचानेगी.’’ फिर प्यार से उन्होंने मिताली की ओर देखा. मिताली उन्हें आदर और प्यार से देखने लगी मानों कह रही हो कि आप को पा कर मैं धन्य हो गई.

Family Story: हृदयहीन – एक मध्यमवर्गीय परिवार की दिलचस्प कहानी

Family Story: ड्राइंगरूम में मम्मीपापा के साथ पड़ोस में रहने वाले अशोक अंकल और एक अनजान दंपती को देख कर दिव्या का चौंकना स्वाभाविक था.

‘‘लगता है बिटिया ने मुझे पहचाना नहीं,’’ अनजान सज्जन हंसे.

दिव्या ने उन्हें गौर से देखा, उसे पहचानते देर नहीं लगी कि ये तो उमेश चंद्र थे जो चंद घंटे पहले उस के होटल में अपनी बेटी की शादी के लिए हौल बुक कराने आए थे. उन्होंने बातचीत के दौरान उस से घरपरिवार के बारे में पूछा था. दिव्या ने उन की सज्जनता के प्रभाव में काफी कुछ बता दिया था. घर का पता सुनते ही उन्होंने कहा था कि स्टार टावर्स में तो उन के एक मित्र अशोक मित्तल भी रहते हैं और दिव्या ने बताया था कि वे उस के पापा के भी अच्छे दोस्त हैं.

‘‘सौरी अंकल, सोचा नहीं था कि आप से यहां और इतनी जल्दी मुलाकात होगी.’’

‘‘अब तो मुलाकातों का यह सिल- सिला चलता ही रहेगा बिटिया, अभी चलते हैं, फिर आएंगे,’’ उमेश चंद्र उठ खड़े हुए.

‘‘फिर भी आ जाइएगा अंकल, मगर अभी तो बैठिए,’’ दिव्या आग्रह करते हुए बोली, ‘‘आंटी से तो मेरा परिचय कराया ही नहीं.’’

‘‘परिचय क्या, आंटी तो तुम्हारी पूरी जन्मपत्री ले चुकी हैं. क्यों? यह आराम से जयाजी और उदयजी से सुनना, अभी हमें जाने दो, घर पर बच्चे इंतजार कर रहे हैं.’’

उन के जाने के बाद दिव्या ने देखा, मेज पर परिवार की कई तसवीरें बिखरी हुई थीं.

‘‘यह सब क्या है, मम्मी?’’

‘‘सब तेरा अपना कियाधरा है दिव्या, मम्मी का कोई कसूर नहीं है,’’ उदय ने कहा.

‘‘मेरा कियाधरा? मैं ने क्या किया है?’’ दिव्या ने झुंझला कर पूछा.

‘‘उमेश चंद्र से बेहद शालीनता और विनम्रता से बातें…’’

‘‘वह तो मेरी नौकरी का हिस्सा है मम्मी,’’ दिव्या ने बात काटी, ‘‘मुझे तनख्वाह ही उसी की मिलती है और अभी जो रुकने को कहा वह आप का सिखाया शिष्टाचार है. खैर, वे यहां आए किस खुशी में थे?’’

‘‘अपने इकलौते इंजीनियर बेटे देवेश के लिए तेरा हाथ मांगने.’’

‘‘और आप ने फौरन देने का वादा कर दिया?’’ दिव्या चिल्लाई.

‘‘वह लड़का देखने के बाद तेरी मरजी पूछ कर करेंगे, फिलहाल मिलने और लड़का देखने में हमें कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा,’’ उदय ने कहा, ‘‘अगर लड़का अच्छा नहीं लगा तो मना कर देंगे.’’

दिव्या ने गहरी सांस ली.

‘‘वह तो आप शायद नहीं करेंगे, क्योंकि देवेश विनम्र और आकर्षक है, कल आया था हमारे होटल में हौल देखने.’’

‘‘हौल के साथ ही उस ने तुझे भी पसंद कर लिया और आज बात करने के लिए बाप को भेज दिया,’’ जया हंसीं.

‘‘उस ने शायद मुझे देखा भी न हो क्योंकि उस ने आते ही मेरे सहकर्मी विकास से बात की थी. वह केवल बैंक्वेट हौल को देखने और उस का किराया पता करने आया था और विकास से जरूरी जानकारी ले कर तभी चला गया था. उस समय मैं विकास की बराबर वाली सीट पर बैठी थी. इसलिए मेरा उसे देखना या उस की बात सुनना स्वाभाविक था.’’

‘‘यानी लड़का तुझे पसंद आया?’’

‘‘आप भी कमाल करती हैं, मम्मी. होटल में मेरे साथ एक से बढ़ कर एक स्मार्ट लोग काम करते हैं, पांचसितारा होटल में आने वाले सभी शालीन ही लगते हैं और मैं सब को पसंद करने लग गई तो हो गई छुट्टी. एक बात और, प्रोबेशन पीरियड में आप मेरी शादी की बात सोच भी कैसे सकती हैं?’’

‘‘तेरे पापा ने तो उमेश चंद्र को यह भी बताया था कि अपने बेटे सौरभ की गैरहाजिरी में वे बेटी की शादी की सोच भी नहीं सकते और सौरभ अगले साल के अंत से पहले नहीं आ सकता तो उन्होंने कहा कि उन्हें भी कोई जल्दी नहीं है.’’

‘‘पूरी बात बताओ न जया, उमेश चंद्र ने साफ कहा कि बेटी की शादी करने के तुरंत बाद बेटे की शादी करने लायक उन की हैसियत नहीं है लेकिन लड़की अच्छी लगी, इसलिए बात करने चले आए इस उम्मीद से कि शायद हम कुछ समय बाद शादी करने के लिए मान जाएं. हमें वे सुलझे हुए लोग लगे इसलिए हम ने उन्हें सपरिवार बुलाया है. लड़के की सुविधानुसार आएंगे वे किसी दिन.’’

‘‘यह भी बता दिया न कि मुझे उन के लड़के की सुविधानुसार जब चाहे तब छुट्टी नहीं मिलेगी?’’

‘‘अपनी छुट्टी का दिन और घर आने का समय तो तू स्वयं ही उन्हें बता चुकी है,’’ जया और उदय हंसने लगे.

दिव्या मुंह बनाती हुई अपने कमरे में चली गई.

अगले सप्ताह उमेश चंद्र पत्नी और बेटीबेटे के साथ आए. दिव्या को पापा से सहमत होना पड़ा कि सुलझे हुए लोग हैं. देवेश ने उस से साफ कहा कि वह दहेज में कुछ नहीं लेगा और दिव्या को अपने शौक उस की या अपनी सीमित आय में ही पूरे करने होंगे. इकलौता बेटा है इसलिए मातापिता के प्रति उस के कुछ दायित्व हैं. उन्हें छोड़ कर न तो वह ज्यादा पैसे के लालच में विदेश जाएगा और न ही तरक्की के लिए किसी दूसरे शहर में. दिव्या को इसी शहर में उस के मातापिता के साथ रहना पड़ेगा. दोनों ही शर्तें दिव्या को मंजूर थीं क्योंकि उस के मातापिता भी यह शहर छोड़ कर जाने वाले नहीं थे. यहां रहते हुए वह बराबर उन का खयाल भी रख सकेगी और देवेश का संयुक्त परिवार होने से जरूरत पड़ने पर मम्मीपापा के पास आ कर रहने में भी आसानी रहेगी. जल्दी ही दोनों की सगाई हो गई. सगाई के बावजूद देवेश का व्यवहार बहुत सौम्य और शालीन था. वह दिव्या को फोन करता था, उस से मिलने आता और घुमाने भी ले जाता था लेकिन दिव्या की सुविधानुसार. उस का कहना था कि प्रोबेशन पीरियड पूरे कैरियर की नींव है. अगर वह पुख्ता हो गई तो बुलंदियों को छूना मुश्किल नहीं होगा. दिव्या का भी यही सपना था, होटल की सर्वोच्च कुरसी पर बैठना. देवेश जैसे समझदार जीवनसाथी के साथ अब यह मुश्किल नहीं लग रहा था.

दिव्या के प्रोबेशन पीरियड पूरे होने से कुछ रोज पहले सीढि़यों से गिरने के कारण जया के दाहिने कंधे की हड्डी कई जगह से टूट गई. कई घंटे के औपरेशन के बाद कंधे को जोड़ तो दिया गया लेकिन डाक्टर ने उन्हें आराम और एहतियात बरतने को कहा था. मां के फ्रैक्चर की खबर सुनते ही दिव्या की बड़ी बहन विजया भी आ गई थी, उस के रहते दिव्या काम पर जाती रही लेकिन विजया अपना घर और बच्चे छोड़ कर कितने रोज तक रुक सकती थी. जया तो पूरी तरह से विजया पर आश्रित थीं. उन्हें सहारा दे कर उठानाबैठाना, यहां तक कि एक खास अवस्था में लिटाना तक पड़ता था. पापा कितनी छुट्टी लेते और फिर मां और घर दोनों की देखभाल उन के बस की बात नहीं थी. दिव्या को छुट्टी तो नहीं मिल सकती थी लेकिन प्रोबेशन पीरियड पूरा होते ही वह नौकरी छोड़ सकती थी, इसलिए उस ने वही किया. मम्मीपापा ने तो नौकरी छोड़ने के लिए मना किया था लेकिन दिव्या के यह कहने पर कि नौकरी तो कभी भी दोबारा मिल जाएगी लेकिन तीमारदारी में थोड़ी सी कोताही हो गई तो मम्मी हमेशा के लिए अपाहिज हो जाएंगी, वे गद्गद हो गए. सौरभ और विजया ने भी उस की बहुत तारीफ की और आभार माना लेकिन देवेश यह सुनते ही कि उस ने नौकरी छोड़ दी है, बुरी तरह भड़क गया.

‘‘किस ने कहा था तुम्हें लगीलगाई बढि़या नौकरी छोड़ने के लिए?’’

‘‘मेरी अंतरात्मा ने, अपनी मम्मी के प्रति जो मेरा कर्तव्यबोध है, उस ने.’’

‘‘कर्तव्य केवल तुम्हारा ही है? तुम्हारे बहनभाई या पापा का नहीं?’’

‘‘विजया दीदी घर और बच्चे छोड़ कर जितना रुक सकती थीं, रुक गईं, सौरभ भैया स्कौलरशिप पर पीएचडी कर रहे हैं इसलिए बीच में छोड़ कर नहीं आ सकते लेकिन पार्ट टाइम जौब कर के पैसा भेज रहे हैं…’’

‘‘तो उस पैसे से तुम्हारे पापा मम्मी के लिए ट्रेंड नर्स क्यों नहीं रखते?’’ देवेश ने बात काटी.

‘‘नर्स तो है ही देवेश लेकिन उस पर नजर रखने और मम्मी का मनोबल बनाए रखने के लिए परिवार के किसी सदस्य का हरदम उन के साथ रहना जरूरी है और फिलहाल यह काम मैं ही कर सकती हूं.’’

‘‘पांचसितारा होटल की नौकरी छोड़ कर? नौकरी छोड़ने से पहले किसी से पूछा तो होता?’’

‘‘जरूर पूछती अगर कोई गलत काम कर रही होती तो. मम्मी के बिलकुल ठीक होने के बाद फिर नौकरी तलाश कर लूंगी. वैसे यह होटल भी दोबारा जौइन कर सकती हूं.’’

‘‘लेकिन उसी पोजीशन और तनख्वाह पर, जिस पर तुम कल तक थीं,’’ देवेश ने तल्ख स्वर में कहा, ‘‘अगर 6 महीने के बाद भी जौइन किया तो लौंग रन में जानती हो कितने का नुकसान होगा?’’

दिव्या का मन एक अजीब से अवसाद से भर उठा. कमाल का आदमी है, मानवीय संवेदनाओं को पैसे से तौल रहा है. लेकिन वह कुछ बोली नहीं, मम्मी के आईसीयू में रहने के दौरान देवेश बराबर पापा के साथ रहा था और उन्हें सौरभ की कमी महसूस नहीं होने दी थी. उस के घर वाले भी परिवार की तरह उन सब के लिए खाना लाते थे, जया को तसल्ली दिया करते थे.

उदय और जया बहुत खुश थे कि दिव्या को इतना अच्छा घरवर मिला है. दिव्या को लगा कि नौकरी में अनुभव होने के कारण शायद देवेश को मालूम होगा कि नौकरी में वरीयता की क्या अहमियत है मगर दिव्या की वरीयता तो मम्मी की संतुष्टि और सेहत थी. देवेश रोज ही शाम को जया को देखने आया करता था लेकिन उस रोज के बाद वह नहीं आया और न ही उस ने फोन किया. 2-3 रोज के बाद जया ने पूछा कि देवेश क्यों नहीं आ रहा है तो दिव्या ने उन्हें टालने को कह दिया कि काम में व्यस्त है. जया को तसल्ली नहीं हुई और अगले रोज उन्होंने स्वयं देवेश को फोन किया.

‘‘क्या बात है बेटा, तुम घर आ नहीं रहे, बहुत व्यस्त हो काम में?’’

‘‘काम छोड़ कर दिव्या बैठ तो गई है आप के सिरहाने,’’ देवेश ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘हां बेटा, रातदिन साए की तरह मेरे साथ रहती है. तभी कह रही हूं कि तुम आ जाओगे तो उस का ध्यान बंटेगा, हंसबोल लेगी तुम से.’’

‘‘उस के हंसनेबोलने की तो आप को फिक्र है लेकिन उस के कैरियर की नहीं, अभी भी देर नहीं हुई है, उसे समझा कर भेज दीजिए काम पर,’’ देवेश के स्वर में व्यंग्य था या आदेश, जया समझ नहीं सकीं.

‘‘देवेश को शायद दिव्या का नौकरी छोड़ना पसंद नहीं आया,’’ जया ने शाम को उदय के घर लौटने पर कहा.

‘‘शायद क्या, बिलकुल पसंद नहीं आया,’’ दिव्या बोली, ‘‘सुनते ही बौखला गया और लगा उलटासीधा बोलने.’’

‘‘कुछ ऐसा ही हाल उस के पिताजी का भी हुआ था,’’ उदय ने हंस कर कहा, ‘‘वे भी बौखला कर कहने लगे कि दुनिया में बहुत से लोग बाएं हाथ से सब काम करते हैं, जयाजी भी करना सीख लेंगी. उस के लिए दिव्या का कैरियर क्यों खराब कर रहे हैं? सोचा नहीं था कि उमेश चंद्रजी जैसे सज्जन व्यक्ति ऐसी बेहूदा बात कर सकते हैं.’’

‘‘जब उन्हें पसंद नहीं है तो तेरा काम पर लौटना ही मुनासिब होगा, दिव्या,’’ जया ने चिंतित स्वर में कहा.

‘‘काम पर तो लौटना है ही और जरूर लौटूंगी, मम्मी, लेकिन तब जब आप बिलकुल ठीक हो जाएंगी यानी मुझे अपने हाथ से बनाए परांठे खिला कर काम पर भेजेंगी.’’

‘‘और अगर मैं इस काबिल न हुई तो?’’

‘‘क्यों नहीं होगी?’’ दिव्या ने जिरह की, ‘‘औपरेशन से हड्डियां बिलकुल सही बैठा दी गई हैं. बस, अब इंतजार है उन के जुड़ने का और वे भी सही जुड़ जाएंगी अगर आप फालतू में हिलेंगीडुलेंगी नहीं और उस की चौकसी करने को मैं हूं ही.’’

‘‘ससुराल वालों की नाराजगी की कीमत पर?’’

‘‘वे अभी मेरे ससुराल वाले नहीं हैं, मम्मी. और न ही फिलहाल उन्हें मेरे व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप करने का हक है.’’

‘‘यह तो तू ठीक कह रही है बेटी,’’ पापा ने बात काटी, ‘‘नौकरी करना या छोड़ना एक नितांत व्यक्तिगत मामला है, खासकर उन लड़कियों के लिए जो शौक के लिए नौकरी करती हैं, पैसों के लिए नहीं.’’

‘‘यही नहीं पापा, बात भावनाओं को समझने की भी तो है. जो लोग हमारे हालात और मजबूरियों को नहीं समझ रहे, वे सज्जनता का मुखौटा लगाए संवेदनहीन लोग नहीं हैं क्या?’’ दिव्या ने पूछा.

‘‘जहां पैसे का सवाल हो बेटा वहां मध्यम वर्ग के लोग भावुक होने के बजाय अकसर व्यावहारिक हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन अभी तो पैसा उन की जेब से नहीं जा रहा. दूसरी बात यह कि उन्होंने आप को बताया था कि अपने काम के प्रति मेरी निष्ठा से प्रभावित हो कर वे आप से मेरा हाथ मांगने आए थे, फिर अब अपने कर्तव्य या मां के प्रति मेरी निष्ठा से उन्हें तकलीफ क्यों हो रही है?’’ दिव्या ने फिर पूछा.

‘‘कभी मौका देख कर देवेश से पूछ लेना,’’ उदय ने टालने के स्वर में कहा लेकिन उमेश चंद्र और देवेश का व्यवहार उन्हें भी सामान्य नहीं लगा था और वे भी जानना चाहते थे कि कहीं उन लोगों ने दिव्या के रूपगुण की अपेक्षा उस की तगड़ी तनख्वाह से प्रभावित हो कर तो रिश्ता नहीं किया था? उस के बाद देवेश या उमेश चंद्र ने फोन नहीं किया. जया चाहती थीं कि उन से संपर्क किया जाए मगर दिव्या नहीं मानी.

‘‘परेशानी हमारे घर में है मम्मी, इसलिए उन लोगों को हमारी खैरखबर पूछनी चाहिए और अगर वे लोग मेरी नौकरी छोड़ने से नाराज हैं तो भूल जाइए कि मैं उन की खुशी के लिए आप के ठीक होने से पहले नौकरी जौइन करूंगी, इसलिए बेहतर है कि हम अभी चुप रहें,’’ दिव्या ने दृढ़ स्वर में कहा. जया और उदय दिव्या से सहमत तो थे लेकिन फिर भी उन्हें यह सब ठीक नहीं लग रहा था और वे किसी तरह उन लोगों का हालचाल जानना चाहते थे. इसलिए उदय एक रोज अशोक मित्तल से मिलने के लिए उन के घर गए. कुछ देर अशोक से इधरउधर की बातें करने के बाद उन्होंने उमेश चंद्र का जिक्र छेड़ा.

‘‘यार क्या बताऊं, कंधा तो भाभीजी का टूटा मगर उम्मीदें और दिल उमेश के परिवार के टूट गए,’’ अशोक ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘असल में अपने मध्यम वर्ग को आदर्शवादी बनना रास नहीं आता. ईमानदारी से नौकरी करते हुए उमेश ने बच्चों को हैसियत से बढ़ कर उच्च शिक्षा दिलवाई, लड़की की शादी में खर्च भी दिल खोल कर किया और यह फैसला भी किया कि लड़के की शादी में दहेज नहीं लेगा, किसी अच्छी नौकरी वाली लड़की को ही बहू बनाएगा. देवेश भी अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित लड़की से ही शादी करना चाहता था ताकि घर में मां की सत्ता बरकरार रहे और बीवी की तगड़ी तनख्वाह भी आती रहे. दिव्या से मिलने के बाद परिवार को अपना सपना साकार होता लगा लेकिन भाभीजी ने अपने कंधे के साथ ही उन का सपना भी चकनाचूर कर दिया. भाभीजी का कंधा तो खैर सही इलाज से जुड़ गया है मगर उमेश के परिवार के सपने जुड़ने में समय लगेगा.’’

‘‘वह क्यों?’’

‘‘क्योंकि देवेश को एक स्ट्रिक्टली कैरियर माइंडिड लड़की चाहिए. हालांकि इस बीच उसे दिव्या से प्यार भी हो गया है लेकिन उसे लगता है कि दिव्या अपने कैरियर के प्रति नहीं, घरपरिवार के प्रति अधिक समर्पित है. घरपरिवार में तो परेशानियां आती ही रहेंगी, खासकर बालबच्चे होने के बाद. इसलिए दिव्या जबतब छुट्टी ले कर या तो अपनी तरक्की के अवसर खराब किया करेगी या नौकरी छोड़ दिया करेगी…’’

‘‘और यह देवेश की तिकड़मी योजनाओं के अनुकूल नहीं है,’’ उदय ने बात काटी.

‘‘बिलकुल. मैं ने समझाया है कि यह कोई ऐसी गंभीर समस्या नहीं है, प्रभुत्व वाले पद पर पहुंचने के बाद हर कोई प्रैक्टिकल हो जाता है, दिव्या भी हो जाएगी. वह मेरी इस बात से तो सहमत है.’’

‘देवेश हो सकता है सहमत हो लेकिन दिव्या जैसी संवेदनशील लड़की प्रैक्टिकल होते हुए भी कभी भी देवेश जैसे हृदयहीन व्यक्ति के तिकड़मी विचारों से सहमत नहीं होगी और न ही तालमेल बिठा पाएगी,’ उदय ने घर लौटते हुए सोचा, ‘और इस के लिए मैं और जया कभी भी उस पर दबाव नहीं डालेंगे.’

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