खाली जगह : सड़क पर नारियल पानी बेचने का संघर्ष – भाग 2

सुरेश मन ही मन खुश हो गया कि चलो एक नारियल तो कटेगा. पर वह सीधी बड़ी दुकान में चली गई. वह मन मसोस कर रह गया. ढेर सा सामान खरीद कर वह बाहर निकली. एक पल के लिए उस ने सुरेश को देखा और उस की मेज के पास आई और पूछा ‘‘कितने में दिया है नारियल?’’

‘‘मैडमजी, बड़ा 20 रुपए का और छोटा वाला 15 रुपए का,’’ सुरेश ने नारियल हाथ में उठा कर दिखाते हुए कहा.

‘‘एक 20 रुपए वाला काट दो,’’ उस मैडम ने कहा. उस मैडम के कपड़ों से एक अजीब सी महक आ रही थी जो सुरेश को बहुत ही अच्छी लग रही थी मानो कहीं मोगरे या गुलाब के फूल खिले हों. उस ने 3 बार में नारियल को छील कर नारियल में एक स्ट्रा डाल कर मैडम की ओर बढ़ा दिया.

मैडम ने नारियल के पानी को पीना शुरू किया. 2-3 मिनट में पी लिया और कहने लगीं, ‘‘तुम लोग बहुत ठगने लगे हो…’’

‘‘क्यों मैडमजी?’’

‘‘नारियल में कितना कम पानी था.’’

‘‘एक और काट देता हूं.’’

‘‘ताकि तेरे एक नारियल के रुपए और बन जाएं,’’ मैडम ने कहा.

‘‘नहीं मैडमजी, ऐसी बात नहीं है,’’ कह कर बिना मैडम की इच्छा जाने उस ने एक और नारियल काट कर सामने कर दिया.

थोड़े से संकोच के बाद मैडम ने नारियल ले लिया. वह बड़ी उम्मीद से तारीफ सुनने के लिए मैडम को देख रहा था.

मैडम ने पानी पीया, फिर नारियल को एक ओर पटक दिया और 50 रुपए का नोट दिया. सुरेश ने 30 रुपए मैडम को वापस किए.

मैडम ने रुपए देखे, ‘‘अरे, यह क्या, 2 नारियल लिए?हैं.’’

‘‘मैडमजी, पानी कम था न.’’

‘‘अरे, तुम दुकान चला रहे हो या…’’

‘‘एक नारियल से कुछ नहीं होता.’’

‘‘ये पूरे 50 ही रखो,’’ कह कर मैडम ने 50 रुपए उसे पकड़ा दिए.

‘‘मैडम जी, मैं सुरेश,’’ न जाने क्यों और कैसे उस के मुंह से निकल गया.

‘‘मैं सुंदरी,’’ कह कर मैडम ने हाथ मिलाने को आगे बढ़ा दिया. सुरेश ने डरते हुए हाथ आगे किया. कितने खुरदरे और काले हाथ?हैं उस के और मैडम के हाथ कितने नरम और गोरे. पलभर को उसे लगा मानो स्वर्ग मिल गया हो.

‘‘दिनभर में कितने नारियल बेच लेते हो?’’ मैडम ने पूछा.

‘‘40 से 50.’’

‘‘कितना मुनाफा होगा है?’’

‘‘100 से 150 रुपए मिल जाते हैं,’’ सुरेश बताया.

‘‘मैं कल आऊंगी, तुम नारियल ले कर मत आना. इसी समय आऊंगी,’’ कह कर वह मैडम बास्केट उठा कर जाने को हुईं, तो सुरेश ने पूछा, ‘‘क्यों मैडमजी?’’

‘‘नारियल मत लाना. मैं मिलती हूं,’’ कह कर मैडम सड़क के उस पार खड़ी कार में जा कर बैठ गईं.

सुरेश का दिमाग बहुत तेजी से दौड़ने लगा. आखिर क्यों कल नारियल नहीं लाने हैं? मैडम क्यों आएंगी? वह और भी कुछ सोचता, लेकिन तब तक कालेज के कुछ लड़केलड़कियां वहां आ गए तो वह उन में लग गया, लेकिन दिमाग से वह बात जा नहीं रही थी कि आखिर मैडम ने ऐसा क्यों कहा? वह जितना सोच रहा था उतना ही उलझता जा रहा था. कभी एक काले से लड़के पर उस की नजर पड़ी जो नारियल की दुकान के पास आ कर खड़ा हो गया था.

‘‘क्या बात है?’’

‘‘भाई, मैं पास के गांव से आया हूं.’’

‘‘तो…?’’ सुरेश की आवाज में अजीब सा रूखापन था.

‘‘क्या मुझे काम मिल जाएगा?’’

‘‘मुझे जिंदा रहना भारी पड़ रहा है, तुझे कौन सा काम दे पाऊंगा,’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘मेरे पास 500 रुपए हैं.’’

‘‘भाई, तो मैं क्या करूं?’’

‘‘भाई, मैं यहां पड़ोस में दुकान खोल लूं?’’ उस ने बहुत अदब के साथ पूछा. सुरेश का दिमाग खराब हो गया कि यह तो उस का धंधा ही चौपट करने की सोच रहा है.

‘‘भाग यहां से. पुलिस वाले एक दिन में उठा कर भगा देंगे.’’

‘‘भाई, मैं थोड़ी दूर नारियल की दुकान खोल लूंगा, गांव में मुझे इस का बहुत अनुभव है, नारियल तोड़ने का, काटने का. मैं ने अपने गांव में सेठ के यहां काम भी किया था. आप मदद कर दें तो…’’ वह लड़का गिड़गिड़ा रहा था.

‘‘यार, धंधा खराब चल रहा?है. तू आगे बढ़ जा,’’ सुरेश की आवाज में नाराजगी थी. वह लड़का आगे बढ़ गया.

मौसम खराब था. उस ने सुरेश का मूड और भी खराब कर दिया. उस ने सामान समेटा और अपने झोंपड़े की ओर लौट पड़ा. रात चावल और सांबर खाया. अन्ना के हाथ में 5 रुपए रख दिए. झोंपड़े में चटाई डाल कर हाथ का सिरहाना बना कर लेट गया. बाहर रिमझिम बरसात हो रही थी. पूरी बस्ती में कीचड़ थी. आबोहवा में नमी थी. बारबार मैडम का चेहरा सामने आ रहा था. आखिर उन्होंने कल क्यों नारियल नहीं लाने को कहा? सोचतेसोचते कब नींद लग गई, पता नहीं चला. सुबह मौसम खुला हुआ था, लेकिन बाहर कीचड़ बहुत थी.

सुरेश उठा, कौफी पी, रात के चावल का नाश्ता किया और अन्ना से जल्दी आने की कह कर निकल गया. जब वह कालेज के गेट पर गया, सुबह के 9 बज रहे थे. कुछ देर इंतजार के बाद उस ने मेज और नारियल निकाले और अपनी दुकान खोल ली. 1-2 ग्राहकों को नारियल दिया कि तभी उस की नजर कल वाले लड़के पर पड़ी जो कालेज के गेट की दूसरी ओर जगह तलाश रहा था. गुस्सा तो उसे बहुत आया लेकिन चुपचाप मेज के पास खड़ा रहा.

थोड़ी देर बाद ही वह चमचमाती कार आ कर सड़क के किनारे खड़ी हो गई. थोड़ा सा कांच खिड़की का खुला और थोड़ा सा हाथ बाहर निकला और पास आने का उस ने इशारा किया. सुरेश का दिल जोरों से धड़क उठा. वह कार के पास गया.

मैडम ने कहा, ‘‘मैं ने मना किया था न कि आज तुम दुकान मत लगाना.’’

‘‘नारियल रात को घर नहीं ले गया था. बस, इसीलिए मेज पर रख लिए.’’

‘‘जल्दी जाओ और नारियल समेट कर कार में आओ,’’ मैडम ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पलटा. आखिर क्यों बुलाया है उस ने? क्यों ले जाया

जा रहा है उसे? और कहां? लेकिन कभीकभी ऐसे सवाल बहुत पीछे छूट जाते हैं.

सुरेश ने गेट के उस ओर खड़े लड़के को आवाज दी. वह पास आया तो सुरेश ने उसे बताया, ‘‘35 नारियल हैं. छोटे वाला नारियल 15 का एक और बड़ा 20 रुपए का एक बेचना. ये स्ट्रा हैं. मैं शाम को आता हूं. संभाल लेगा न?’’

‘‘हां भाई, आप भरोसा करो.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुरेश तेजी से कार की ओर बढ़ गया. मैडम ने कार का दरवाजा खोला और वह डरते हुए उस में बैठ गया.

चालाक लड़की: भाग 2

राजेश का आलीशान बंगला देख कुमुदिनी हैरान रह गई. दरबान ने बंगले का गेट खोला और नमस्ते की. नौकर ने राजेश की अटैची टैक्सी से निकाल कर बंगले में रखी.

‘‘मैडम, यह है अपनी कुटिया. आप के आने से हमारी कुटिया भी पवित्र हो जाएगी,’’ राजेश ने कुमुदिनी से कहा.

‘‘बहुत ही खूबसूरत बंगला बनाया है. कितनी भाग्यशाली हैं इस बंगले की मालकिन?’’

‘‘छोड़ो, इधर बाथरूम है. आप फ्रैश जाओ. मैं आप के लिए कपड़े लाता हूं,’’ कह कर राजेश दूसरे कमरे में जा कर एक बड़ी सी कपड़ों की अटैची ले आया. अटैची खोली तो उस में कपड़े तो कम थे, सोनेचांदी के गहने व नोटों की गड्डियां भरी पड़ी थीं.

‘‘नहींनहीं, यह अटैची मैं भूल से ले आया. कपड़े वाली अटैची इसी तरह की है,’’ और राजेश तुरंत अटैची बंद कर उसे रख कर दूसरी अटैची ले आया.

‘‘यह लो अपनी पसंद के कपड़े… मेरा मतलब, साड़ीब्लाउज या सूट निकाल लो. इस में रखे सभी कपड़े नए हैं.’’

‘‘पसंद तो आप की रहेगी,’’ तिरछी नजरों से कुछ मुसकरा कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यह नीली ड्रैस बहुत ज्यादा फबेगी आप पर. यह रही मेरी पसंद.’’

वह ड्रैस ले कर कुमुदिनी बाथरूम में चली गई. तब तक राजेश भी अपने बाथरूम में नहा कर ड्राइंगरूम में आ कर कुमुदिनी का इंतजार करने लगा.

कुमुदिनी जब तक वहां आई, तब तक नौकर चायनाश्ता टेबल पर रख कर चला गया.

दोनों ने नाश्ता किया. राजेश ने पूछा, ‘‘खाने में क्या चलेगा?’’

‘‘आप तो मेहमानों की पसंद का खाना खिलाना चाहते हो. मैं ने कहा न आप की पसंद.’’

‘‘मैं तो आलराउंडर हूं. फिर भी?’’

‘‘वह सबकुछ तो ठीक है, पर मैं आप के बारे में कुछ…’’

‘‘क्या? साफसाफ कहो.’’

‘‘आप के नौकरचाकर श्रीमतीजी को जरूरत बता सकते हैं. मेरे चलते आप के घर में पंगा खड़ा हो, मुझे गवारा नहीं.’’

‘‘आप चाहो तो मैं परसों तक नौकरों को छुट्टी पर भेज देता हूं, पर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कौन सी शर्त?’’

‘‘खाना आप को बनाना पड़ेगा.’’

‘‘हां, मुझे मंजूर है, पर आप के घर में कोई पंगा न हो.’’

‘‘पहले यह तो बताओ खाने में…’’ राजेश ने पूछा.

‘‘आप जो खिलाओगे, मैं खा लूंगी,’’ आंखों में झांक कर कुमुदिनी ने कहा.

राजेश ने एक नौकर से चिकन और शराब मंगवाई और बाद में सभी नौकरों को छुट्टी पर भेज दिया. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

‘‘आप ने तो…’’ शराब से भरे जाम को देखते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘जब मेरी पसंद की बात है तो साथ तो देना ही पड़ेगा,’’ राजेश ने जाम आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘मैं ने आज तक इसे छुआ भी नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं चलेगी. मैं अगर अपने हाथ से पिला दूं तो…?’’ और राजेश ने जबरदस्ती कुमुदिनी के होंठों से जाम लगा दिया.

‘‘काश, आप के जैसा जीवनसाथी मुझे मिला होता तो मैं कितनी खुशकिस्मत होती,’’ आंखों में आंखें डाल कर कुमुदिनी ने कहा.

‘‘यही तो मैं सोच रहा हूं. काश, आप की तरह घर मालकिन रहती तो सारा घर महक जाता.’’

‘‘अब मेरी बारी है. यह लो, मैं अपने हाथों से आप को पिलाऊंगी,’’ कह कर कुमुदिनी ने दूसरा रखा हुआ जाम राजेश के होंठों से लगा दिया.

शराब पीने के बाद राजेश से रहा न गया और उस ने कुमुदिनी के गुलाबी होंठों को चूम लिया.

‘‘आप तो मेहमान की बहुत ज्यादा खातिरदारी करते हो,’’ मुसकराते हुए कुमुदिनी ने कहा.

‘‘बहुत ही मधुर फूल है कुमुदिनी का. जी चाहता है, भौंरा बन कर सारा रस पी लूं,’’ राजेश ने कुमुदिनी को अपने आगोश में लेते हुए कहा.

‘‘आप ने ही तो यह कहा था कि कुमुदिनी रात में सारे माहौल को महका देती है.’’

‘‘मैं ने सच ही तो कहा था. लो, एक जाम और पीएंगे,’’ गिलास देते हुए राजेश ने कहा.

‘‘कहीं जाम होंठ से टकराते हुए टूट न जाए राजेश साहब.’’

‘‘कैसी बात करती हो कुमुदिनी. यह बंदा कुमुदिनी की मधुर खुशबू में मदहोश हो गया है. यह सब तुम्हारा है कुमुदिनी,’’ जाम टकराते हुए राजेश ने कहा और एक ही सांस में शराब पी गया.

कुमुदिनी ने अपना गिलास राजेश के होंठों से लगाते हुए कहा, ‘‘इस शराब को अपने होंठों से छू कर और भी ज्यादा नशीली बना दो राजेश बाबू, ताकि यह रात आप के ही नशे में मदहोश हो कर बीते.’’

नशे में धुत्त राजेश ने कुमुदिनी को बांहों में भर कर प्यार किया. कुमुदिनी भी अपना सबकुछ उस पर लुटा चुकी थी. राजेश पलंग पर सो गया.

थोड़ी देर में कुमुदिनी उठी और अपने पर्स से एक छोटी सी शीशी निकाल राजेश को सुंघाई. शीशी में क्लोरोफौर्म था. इस के बाद कुमुदिनी ने किसी को फोन किया.

राजेश जब सुबह उठा, उस समय 8 बजे थे. राजेश के बिस्तर पर कुमुदिनी की साड़ी पड़ी थी. साड़ी को देख उसे रात की सारी बातें याद हो आईं. उस ने जोर से पुकारा, ‘‘ऐ कुमुदिनी.’’

बाथरूम से नल के तेजी से चलने की आवाज आ रही थी. राजेश ने दोबारा आवाज लगाई, ‘‘कुमुदिनी, हो गया नहाना. बाहर निकलो.’’

पर, कुमुदिनी की कोई आवाज नहीं आई. तब राजेश ने बाथरूम का दरवाजा धकेला, तो उसे कुमुदिनी नहीं दिखी.

वह घर के अंदर गया. सारा सामान इधरउधर पड़ा था. रुपएपैसे व जेवर वाला सूटकेस, घर की कीमती चीजें गायब थीं. राजेश को समझते देर नहीं लगी. उस के मुंह से निकला, ‘‘चालाक लड़की…’’

पछतावा: थर्ड डिगरी का दर्द- भाग 2

‘बंद करो अपनी बकवास. मयंक तुम्हारे जैसा अपराधी नहीं, बल्कि वह एक सच्चा इनसान है. इस की मैं तहेदिल से कद्र करती हूं. तुम यहां से जाते हो कि पुलिस को बुलाऊं…’

‘ओह, मैं तेरे लिए इतना बेगाना हो गया हूं नैना कि पुलिस को बुलाने की धमकी दे रही हो? खैर, जाता हूं मैं. अगर मेरे प्रति थोड़ी सी भी ममता और प्यार हो, तो कल ओम सिनेमा घर के पास दोपहर के शो के दौरान मिलना…’ इतना बोल कर रतन वहां से चला गया.

‘‘अरे रतन, किन खयालों में डूबे हो?’’ अचानक नेता सुरेश राय लौकअप में बंद रतन को देखते ही बोल पड़े.

मंत्री सुरेश राय को देखते ही रतन अपने खयालों की दुनिया से वापस लौटा और अपने ऊपर होने वाले जोरजुल्म से बचने के लिए गुजारिश करते हुए बोला, ‘‘सर, मुझे किसी तरह इंस्पैक्टर से बचा लीजिए, नहीं तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा…’’

‘‘अरे रतन, तू बेकुसूर है. मेरे पास तेरी बेगुनाही के पुख्ता सुबूत हैं. एसपी ने इंस्पैक्टर छेत्री को फोन कर तुम्हें छोड़ने के लिए आदेश दे दिया है.’’

ठीक उसी समय इंस्पैक्टर राजन छेत्री आया और लौकअप पर तैनात सिपाही से रतन को छोड़ देने के लिए कहा.

बाहर निकलने के बाद मंत्री ने रतन को अपनी गाड़ी में बिठाया. तब रतन मंत्री के एहसानों के दबाव में बोला, ‘‘सर, मैं आप का यह उपकार जिंदगीभर नहीं भूल पाऊंगा.’’

‘‘अरे, कैसा उपकार? मैं तेरे काम आ गया तो बदले में तू भी तो मेरा काम कर देता है. तेरे जैसे जोशीले नौजवान मुझे बहुत पसंद हैं…’’ गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे हुए मंत्री सुरेश राय ने रतन की पीठ को धीरे से थपथपाया और फिर कहा, ‘‘तुम्हारी मदद से ही तो मैं अपने दुश्मनों के दांत खट्टे करता हूं.’’

उन की गाड़ी बीरपाड़ा शहर से काफी दूर निकल गई थी. अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगाया, दरवाजा खोल कर रतन बाहर निकल गया था. जहां सड़क पर एक बेबस लड़की ‘बचाओ… बचाओ…’ की आवाज लगाते हुए दौड़ रही थी और उस के पीछे 4-5 गुंडे लगे हुए थे.

यह देख कर मंत्रीजी के हाथपैर फूल गए. उन्होंने घबराते हुए रतन को आवाज लगाई, ‘‘अरे रतन, उन के पीछे क्यों भागे जा रहे हो. मेरी जान आफत में डालोगे क्या? ड्राइवर तुम्हें भी कई बार कह चुका हूं कि रात में गाड़ी अनजान जगह पर मत रोको…’

‘‘सौरी सर,’’ ड्राइवर ने माफी मांगी, लेकिन रतन पर मंत्री की बातों का कोई असर नहीं पड़ा.

रतन ने दौड़ रहे एक गुंडे को पकड़ा और उस के पेट में अपनी लात से 2-4 किक जमाई. वह तिलमिला उठा. वार करने की जगह अपनी जान बचा कर चाय बागान में वह भाग गया. रतन दूसरे अपराधियों की ओर बढ़ा, लेकिन वे सब अपने को फंसते देख कर नौ दो ग्यारह हो गए.

सड़क पर दौड़ रही लड़की हांफती हुई धम्म से गिर गई. रतन ने उसे अपने कंधे पर उठाया और गाड़ी की पिछली सीट पर डाल दिया.

‘‘अरे रतन, यह क्या चक्कर है. तुम्हें लड़की की जरूरत थी तो मुझ से बोला होता,’’ मंत्री सुरेश राय ने उस से अपना गुस्सा इजहार किया.

‘‘सर, गलत काम जरूर करता हूं, लेकिन शराब और शबाब से दूर रहता हूं. अनजान जगह पर किसी बेबस लड़की की जान बचाना कोई अपराध तो नहीं है. इनसानियत के नाते मैं ने अपना कर्तव्य निभाया है.’’

‘‘देखो, फालतू बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है. हक और धर्म की बातें हम अपने भाषणों में करते हैं, अपनी जिंदगी में नहीं. अब इस लड़की को कहां छोड़ोगे?’’

‘‘इसे सिलीगुड़ी के किसी अस्पताल में ले जाएंगे सर,’’ विधान मार्ग पर बने सुभाषचंद्र नर्सिंग होम में उस अनजान लड़की को इलाज के लिए भरती करा दिया गया. साथ ही, इस की सूचना स्थानीय पुलिस को भी दी गई.

जब लड़की पर रतन की नजर गई, उस का कलेजा धकधक करने लगा. वह तो नैना थापा है, उसे देखने के बाद वह पत्थर की तरह वहीं खड़ा रह गया. कभी खून से लथपथ उस के सलवारसूट को देख रहा था तो कभी उस के मुरझाए चेहरे को. उसे सामूहिक हवस का शिकार बनाया था. दूसरे ही पल रतन के मन ने कहा, ‘यह लड़की तो मुझ से नफरत करती है. कहीं होश में आने के बाद कोई नई मुसीबत न खड़ी कर दे. अब यहां से निकलने में ही भलाई है.’

‘‘रतन, इस लड़की के पीछे तो तू ने अपना सारा काम चौपट कर दिया. पहले इसे उन बदमाशों से बचाया, उस के बाद अस्पताल में भरती कराया और अब इस के चेहरे पर टकटकी लगाए खड़ा है. आखिर क्या बात है?’’ नर्सिंग होम में देर होने पर नेता सुरेश राय ने रतन को टोका. ‘‘नहीं, नहीं सर,’’ वह हड़बड़ा कर बोल उठा और उन के साथ बाहर निकल गया. साथ ही जातेजाते रतन सोचने लगा, ‘इस लड़की का क्या भरोसा, कब क्या आरोप लगा दे, इस से दूर रहने में ही भलाई है.’

जब नैना को होश आया तो एक बार रतन का चेहरा उस के दिमाग में नाच उठा. टाइगर हिल में दी गई उस की चेतावनी उस के मन को झकझोरने लगी. उसे अपनेआप पर पछतावा होने लगा, क्यों उस ने आंख मूंद कर मयंक पर भरोसा किया. जिस ने उस की इज्जत लूट ली. उस के साथियों ने उस का सबकुछ छीन लिया.

नैना की आंखें भर आईं. उस को अंदर ही अंदर घुटन महसूस होने लगी. वह सोचने लगी कि उस से शैतान और इनसान को पहचाने में कैसे भूल हो गई?

अचानक नैना के सामने रतन और मयंक की तसवीरें उभर आईं. दोनों ही अपराधी थे. मयंक कई मासूम लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाने के बाद उन की हत्या कर देता था, तो रतन कई बार बम धमाके कर चुका था. एक हैवान था, तो दूसरा शैतान. दोनों जनता के दुश्मन थे.

अस्पताल से घर आने के बाद भी नैना को चैन नहीं मिला. लोकलाज के डर से उस ने कालेज जाना बंद कर दिया था. दिनरात उस के घर में जमघट लगाने वाली सहेलियां, अब उस से बात करने में भी कतराती थीं. हमदर्दी जताने के बजाय तरहतरह के ताने देती थीं.

एक दिन नैना के घर रतन पहुंच गया. उस समय नैना की आंखों में आंसू थे. नैना की हालत देख कर रतन भी रोना आ गया.

रतन ने अपनी डबडबाई आंखों को रूमाल से पोंछा और फिर उस से बोला, ‘‘नैना प्लीज… मत रोओ, चाहे मयंक को सजा हो भी गई तो मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा…’’

विधायक को जवाब : निशा किस वारदात से डरी हुई थी- भाग 2

मगर निशा उस के सीने में चेहरा छिपाए रोती ही रही. तभी निशा के पिता वहां आ पहुंचे. राजन उन्हें देख कर निशा से अलग हो गया. निशा भी आंसू पोंछते हुए सिर झुका कर खड़ी हो गई. कुछ पलों तक वहां शांति छाई रही. फिर निशा के पिता बोले. ‘‘देखो राजन साहब, इस तरह रात में किसी के घर में घुसना अच्छी बात नहीं. आप…’’ राजन उन की बात को काटते हुए बोला, ‘‘आप जो कुछ भी कहिए, मगर मैं निशा से प्यार करता हूं और हम दोनों शादी करना चाहते हैं.

जाति के बंधन तोड़ कर क्या शादी करना बुरी बात है?’’ ‘‘देखिए, निशा मेरी बेटी है और मैं एक हरिजन हूं. आप के पिताजी बारबार कह चुके हैं कि एक हरिजन की बेटी को वह अपनी बहू कभी नहीं बनाएंगे.’’ ‘‘मगर मैं निशा को अपनी पत्नी जरूर बनाऊंगा. मैं घर छोड़ दूंगा. उन की जायदाद से एक कौड़ी नहीं लूंगा.’’ ‘‘राजन बाबू, मेरी पीठ पर आप के पिताजी के आदमियों के डंडों के निशान हैं. अच्छा होगा कि आप यहां से चले जाएं, वरना यदि मेरी बिरादरी के लोग भी यहां आ गए, तो गजब हो जाएगा.’’

‘‘मैं निशा से सच्चा प्यार करता हूं बाबूजी, और प्यार करने वाले मौत से नहीं घबराते, मैं पिताजी की तरफ से…’’ राजन इतना ही बोल पाया था कि 4-5 लोग हाथ में लाठियां लिए अंदर आ गए. एक आदमी बोला, ‘‘राजनजी, हम हरिजन हैं तो क्या, हमारी भी अब इज्जत है. अब हम अपनी इज्जत की नीलामी कभी बरदाश्त नहीं कर सकते. बेहतर होगा कि आप यहां से चले जाएं. पुलिस कुछ नहीं करेगी तो भी हम बहुतकुछ कर सकते हैं.’’ निशा डर गई. राजन भी उस की हालत को समझ गया. राजन बोला, ‘‘भाइयो, इज्जत की नीलामी तो कोई भी बरदाश्त नहीं कर सकता. मगर, आप लोग बताइए कि शादी करना क्या जुर्म है?’’ ‘‘ऐसी बात मत कहिए राजन साहब, जिसे पूरा कर पाना नामुमकिन हो.’’ ‘‘मैं पूरे होश में कह रहा हूं और इस का सुबूत आप लोगों को कल ही मिल जाएगा.’’ तुरंत दूसरे आदमी ने कहा, ‘‘कल क्यों, आज क्यों नहीं?’’ सभी ने देखा कि राजन ने अपनी जेब से कुछ निकाला और निशा की तरफ मुड़ा. देखते ही देखते उस ने निशा की सूनी मांग में सिंदूर भर दिया.

निशा के साथसाथ सभी चौंक गए. निशा हैरानी से उसे देखने लगी. अचानक राजन बोला, ‘‘आज से यह मेरी पत्नी और कल कचहरी में जा कर अप्लाई कर देंगे और महीनेभर में हम दोनों कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन जाएंगे. मैं ने वकील से बात कर ली है,’’ इतना कह कर वह निकल गया. राजन जब अपने घर के पास आया, तो गेट पर ही रामू से मुलाकात हो गई, जो उस का सब से वफादार नौकर था. वह उस को देखते ही बोला, ‘‘भैयाजी, बड़े मालिक आप ही की राह देख रहे हैं.’’ ‘‘ठीक?है,’’ कहते हुए राजन आगे बढ़ गया, तो रामू बोला, ‘‘बड़े मालिक आप पर बहुत गुस्सा हो रहे हैं.’’ राजन खड़ा हो गया. रामू की तरफ मुड़ा और मुसकरा कर आगे बढ़ गया. रामू हैरानी से उसे देखता रह गया.

राजन सीधा ठाकुर साहब के कमरे में गया. वह मुंह में सिगार दबाए इधरउधर घूम रहे थे. राजन उन को देखते ही बोला, ‘‘पिताजी…’’ ठाकुर साहब उसे देखते ही गुस्से से बोले, ‘‘कहां गए थे तुम?’’ ‘‘निशा के घर,’’ राजन ने साफ बोल दिया. ठाकुर साहब को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिए उन का गुस्सा और बढ़ गया, ‘‘क्यों गए थे?’’ ‘‘पिताजी, आप के आदमियों ने निशा के पिता को आज का तोहफा दिया. फिर भी आप पूछ रहे हैं कि क्यों गए थे?’’ आज बेटे के जवाब देने के इस तरीके पर वे हैरान रह गए, पर खुद पर काबू करते हुए बोले, ‘‘वाह बेटे, वाह. मैं ने तुम्हें मांबाप दोनों का प्यार दिया और आज तू मुझे उस का यह फल दे रहा?है. बड़ी इज्जत बढ़ाई है तू ने अपने बाप की.’’ ‘‘आप की इज्जत करना मेरा फर्ज है पिताजी, मैं जिंदगीभर आप की सेवा करूंगा… मगर मैं निशा को कैसे भूल जाऊं?’’

निशा का नाम सुन कर ठाकुर अपने गुस्से पर काबू न कर सके और चिल्ला कर बोले, ‘‘तो इतना जान लो कि मेरे जीतेजी एक हरिजन की बेटी इस खानदान की बहू कभी नहीं बन सकती.’’ राजन से भी नहीं रहा गया. वह बोला, ‘‘क्यों नहीं बन सकती?’’ ‘‘इसलिए कि नाली का कीड़ा नाली में ही अच्छा लगता है, समझे…’’ ‘‘तो ठीक है पिताजी, मैं निशा से बात तक नहीं करूंगा. मगर इस से पहले आप को मेरे सवालों का जवाब देना पड़ेगा.’’ ‘‘बोलो.’’ ‘‘मेरे खून का रंग कैसा है?’’ ‘‘लाल.’’ ‘‘और निशा के खून का रंग?’’ ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’ ‘‘जवाब दीजिए पिताजी.’’ ‘‘लाल.’’ ‘‘अगर मेरे और निशा दोनों के खून का रंग लाल ही है, तो वह नीची जाति की क्यों और मैं ऊंची जाति का क्यों?’’ ‘‘ऐसा सदियों से चलता आ रहा है…’’ ‘‘नहीं पिताजी, यह एक ढकोसला है. और मैं इसे नहीं मानता.’’

‘‘तुम्हारे मानने और न मानने से समाज नहीं बदल जाएगा. हम जिस घर का पानी तक नहीं पीते, उस घर की बेटी को किसी भी शर्त पर अपनी बहू नहीं बना सकते. समाज के रीतिरिवाजों से खिलवाड़ करने की कोशिश मत करो.’’ राजन गुस्से से पागल सा हो गया. वह जोर से चिल्लाया, ‘‘लानत है ऐसे समाज पर, जहां जातपांत और ऊंचनीच की दीवार खड़ी कर के इनसानियत के बंटवारे होते हैं. मैं उस समाज को नहीं मानता पिताजी, जहां इनसान को जात के नाम से अपनी पहचान बतानी पड़ती है.’’ ठाकुर साहब बेटे की इस हरकत से गुस्से से लाल हो रहे थे. वे जोर से चीखे, ‘‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहता. तुम्हारे लिए इतना ही जानना काफी?है कि तुम्हारी शादी उस लड़की से किसी भी हालत में नहीं होगी.’’

राजन भी मानने वाला नहीं था. उस ने साफसाफ शब्दों में बोल दिया कि वह निशा की मांग में सिंदूर भर के उसे अपनी पत्नी बना चुका है और एक महीने बाद कचहरी में जा कर कानूनी तौर पर भी शादी कर लेगा. राजन तेजी से अपने कमरे में चला गया तो ठाकुर साहब को मानो पैरों से धरती खिसकती हुई मालूम पड़ी. मगर ठाकुर साहब ने भी ठान लिया कि राजन और निशा को कचहरी तक पहुंचने ही नहीं देंगे. उन्होंने एक खतरनाक योजना बना डाली. वे निशा को जान से मरवा डालना चाहते थे. निशा और राजन इस बारे में जानते थे. उन्होंने उसी रात शहर छोड़ने का फैसला कर लिया. अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा इस समाज की खोखली शान को मन ही मन कोसने लगा. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. अचानक ‘छोटे मालिक… छोटे मालिक…’ चिल्लाता हुआ रामू राजन के पास दौड़ा आया. उस ने एमएलए साहब की योजना बताते हुए यह भी कहा कि वे और उन के कुछ आदमी और अभीअभी पुलिस वाले सादा वरदी में निशा के घर की तरफ गए हैं. राजन ने भी तुरंत मेज की दराज से पिस्तौल और कुछ गोलियां निकालीं और गिरतापड़ता निशा के घर की तरफ दौड़ पड़ा. पूरी बस्ती रात के अंधेरे में डूबी थी.

राजन जब कुछ दूर पहुंचा तो ‘भागोभागो’ की आवाजें उस के कानों में गूंजने लगीं. कहीं टौर्च, तो कहीं लालटेन की रोशनी नजर आने लगी. चारों तरफ कुत्तों के भूंकने की आवाजें सुनाई देने लगीं. राजन डर से कांप गया. अभी वह कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि देखा बस्ती के कई हरिजन हाथों में लाठियां लिए चिल्लाते हुए निशा के घर की तरफ बढ़ रहे हैं. वह भी उन लोगों से छिपता हुआ उसी ओर भागा. जैसे ही राजन निशा के घर के नीचे पहुंचा, उसे उस के पिता के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी. वह उधर ही लपका. विधायक के पालतू गुंडों ने निशा के बापू को मारमार कर बुरा हाल बना दिया था. निशा के पिता राजन को अंधेरे में भी पहचान गए. उसे देखते ही चिल्लाने लगे, ‘‘राजन, मेरी बेटी को बचा लीजिए. विधायक साहब और उन के आदमी उसे मार डालेंगे.’’ राजन ने घबराई आवाज में पूछा, ‘‘निशा कहां है?’’ ‘‘वे लोग…’’ तब तक राजन अपने पिताजी की गर्जन सुन कर उधर ही भागा. टौर्च और लालटेन की रोशनी में वहां का नजारा देख कर वह सिर से पैर तक कांप गया. विधायक कृपाल सिंह के आदमी हरिजनों की तरफ बंदूकों की नालें किए खड़े थे.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां: जिंदगी की राह चुनती स्त्री- भाग 2

शाम के नारंगी रंग, स्याह रंग ले चुके थे. आकाश में तारों का झुरमुट झिलमिलाने लगा था, पर रंजन नहीं आया. अकेली बैठी कविता फोन की ओर देख रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, कविता, राघव बोल रहा हूं, कैसी हो? और रंजन कहां है?’’

‘‘वह तो अब तक आफिस से नहीं लौटे.’’

‘‘चलो, आता ही होगा, तुम अपना और रंजन का खयाल रखना.’’

‘‘जी,’’ कहते हुए कविता ने फोन रख दिया.

न चाहते हुए भी कविता दोनों भाइयों की तुलना कर बैठी, कितना फर्क है दोनों में. एक नदी सा शांत तो दूसरा सागर सा गरजता हुआ. मेरी शादी रंजन से नहीं राघव से हुई होती तो…वह चौंक पड़ी, यह कैसा अजीब विचार आ गया उस के मन में और क्यों?

तभी रंजन घर में दाखिल हुआ. कविता ने घड़ी की ओर देखा तो रात के 10 बज चुके थे.

‘‘कविता, मुझे खाना दे दो, मैं बहुत थक गया हूं, सोना चाहता हूं.’’

कविता ने चौंक कर कहा, ‘‘मैं ने तो खाना बनाया ही नहीं.’’

‘‘क्यों…’’ रंजन ने पूछा.

‘‘तुम्हीं तो कह कर गए थे न कि खाना मत बनाना, कहीं बाहर चलेंगे.’’

‘‘ओह, मुझे तो इस का ध्यान ही नहीं रहा…आज तो मैं इतना थका हूं कि कहीं जाना नहीं हो सकता. चलो, तुम जल्दी से मेरे लिए कुछ बना दो,’’ इतना कह कर रंजन कमरे की ओर बढ़ गया और कविता अपना होंठ काट कर रसोई में चली गई.

एक सप्ताह में ही कविता अकेलेपन से घबरा उठी. रंजन रोज घर से जल्दी जाता और बहुत देर से वापस आता. कभी थकान से चूर हो कर सो जाता तो कभी अपने शरीर की जरूरत पूरी कर के. जब यह सब कविता के लिए असहाय हो जाता तो वह अनायास ही राघव की यादों में खो जाती. राघव ने उस से कहा था कि जब बहुत परेशान हो और किसी काम में मन न लगे तो वह करो जो तुम्हें सब से अच्छा लगता हो, यह तुम्हें मन और तन की सारी परेशानियों से मुक्त कर देगा. वह यही करती और सारीसारी शाम नाचते हुए बिता देती थी.

एक शाम रंजन को जल्दी घर आया देख कविता खुशी से चहक कर बोली, ‘‘अरे, आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए? क्या मेरे बिना मन नहीं लग रहा था?’’

रंजन ने हंस कर कहा, ‘‘ज्यादा खुश मत हो और जल्दी से मेरा सामान पैक कर दो, आफिस के काम से मुझे आज शाम क ो ही दिल्ली जाना है.’’

कविता मायूस हो कर बोली, ‘‘रंजन, तुम भूल गए क्या, कल हमारी शादी की सालगिरह है.’’

रंजन अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘ओह…मैं तो भूल ही गया था, कोई बात नहीं, मेरे वापस आने पर हम सालगिरह मना लेंगे.’’

कविता ने पति को मनाते हुए कहा, ‘‘आप प्लीज, मत जाओ, मैं घर में अकेली कैसे रहूंगी?’’

रंजन ने झल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम कोई छोटी सी बच्ची नहीं हो, जो अकेली नहीं रह सकतीं, मेरा जाना जरूरी है.’’

रंजन को जाना था सो वह चला गया. कविता अपनी उम्मीदों और सपनों के साथ अकेली रह गई. सालगिरह के दिन राघव ने फोन किया तो कविता की बुझी आवाज को भांपते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कविता, तुम उदास हो? रंजन कहां है?’’

राघव की बातें सुन कर कविता बोली, ‘‘वह आफिस के काम से दिल्ली गए हैं.’’

कविता को धैर्य बंधाते हुए राघव ने कहा, ‘‘तुम परेशान मत हो, मैं और मां कल ही वापस आ रहे हैं.’’

अगली शाम ही राघव और मां को घर के दरवाजे पर देख कविता खिल उठी. सामान रखते हुए राघव बोले, ‘‘कैसी हो कविता?’’ तो कविता ने उन के जाने के बाद रंजन से हुई सारी बातें बता दीं. राघव एक लंबी सांस ले कर बोले, ‘‘मैं तो यहां से यह सोच कर गया था कि इस तरह तुम दोनों को करीब आने का मौका मिलेगा, पर यहां तो सारा मामला ही उलटा दिखता है.’’

कविता ने चौंक कर कहा, ‘‘इस का मतलब आप बिना कारण यहां से गए थे? अब आप मुझे अकेला छोड़ कर कभी मत जाना. आप के होने से मुझे यह एहसास तो रहता है कि कोई तो है, जिस से मैं अपनी बात कह सकती हूं.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं जाऊं गा.’’

कविता ने हंस कर कहा, ‘‘पर इस बार जाने की सजा मिलेगी आप को.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘आज आप को हमें आइसक्रीम खिलानी होगी.’’

उस शाम बहुत अरसे बाद कविता खुल कर हंसी थी. वह अपने को बहुत हलका महसूस कर रही थी. दोचार दिन में रंजन भी वापस आ गया. आते ही उस ने कविता को मनाने के लिए एक शानदार पार्टी दी. अब वह कविता को भी वक्त देने लगा था. कविता को लगा मानो अचानक सारे काले बादल कहीं खो गए और कुनकुनी धूप खिल आई हो.

तभी एक शाम आफिस से आते ही रंजन ने कहा, ‘‘कविता, मेरा सामान पैक कर दो. मुझे आफिस के काम से लंदन जाना है.’’

कविता ने खुश हो कर पूछा, ‘‘अरे, वाह, कितने दिन के लिए?’’

रंजन नजरें झुका कर बोला, ‘‘6 माह के लिए.’’

कविता के साथ राघव और मां भी अवाक् रह गए.

मां ने रंजन से कहा भी कि 6 माह बहुत होते हैं बेटा, कविता को इस वक्त तेरी जरूरत है और तू जाने की बात कर रहा है, ऐसा कर, इसे भी साथ ले जा.

रंजन ने झल्ला कर कहा, ‘‘ओह मां, मैं वहां घूमने नहीं जा रहा हूं, कविता वहां क्या करेगी? और फिर 6 माह कैसे बीत गए पता भी नहीं चलेगा.’’

कविता कमरे में जा कर शांत स्वर में बोली, ‘‘रंजन, प्लीज मत जाओ. इस वक्त मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है.’’

‘‘क्यों, इस वक्त में क्या खास है?’’

कविता ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’’

रंजन चौंक कर बोला, ‘‘क्या… इतनी जल्दी…’’ फिर कुछ पल खामोश रह कर उस ने कहा, ‘‘सौरी कविता, इस के लिए मैं तैयार नहीं था, लेकिन अब किया क्या जा सकता है.’’

कविता रंजन के सीने पर अपना सिर टिकाती हुई बोली, ‘‘तभी तो कह रही हूं कि मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

रंजन ने उसे अपने से अलग किया और फिर बोला, ‘‘तुम अकेली कहां हो कविता, यहां तुम्हारा ध्यान रखने को मां हैं, भैया हैं.’’

कविता ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘तुम क्यों नहीं समझते कि औरत का घर परिवार उस के पति से होता है, वही न हो तो क्या घर, क्या घर वाले? तुम्हारी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता, रंजन.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताने को तो सारी उम्र पड़ी है, कविता,’’ रंजन बोला, ‘‘पर विदेश जाने का यह मौका फिर नहीं आएगा.’’

इस के बाद कविता कठपुतली की तरह रंजन का सारा काम करती रही, पर उस से एक बार भी रुकने को नहीं कहा. रंजन को एअरपोर्ट छोड़ने भी राघव अकेले ही गए थे. रंजन के जाने के बाद कविता सारा दिन काम करती और खुश रहने का दिखावा करती पर उस की आंखों की उदासी को भांप कर राघव उस से कहते, ‘‘कविता, तुम मां बनने वाली हो, ऐसे समय में तो तुम्हें सदा खुश रहना चाहिए. तुम उदास रहोगी तो बच्चे की सेहत पर इस का असर पड़ेगा.’’

जवाब में कविता हंस कर कहती, ‘‘खुश तो हूं, आप नाहक मेरे लिए परेशान रहते हैं.’’

मां और राघव भरसक कोशिश करते कि कविता को खुश रखें, पर रंजन की कमी को वे पूरा नहीं कर सकते थे. राघव कविता के मुंह से निकली हर इच्छा को तुरंत पूरी करते. इस तरह कविता को खुश रखने की कोशिश में वह कब उस को चाहने लगे, उन्हें खुद पता नहीं चला.

अपने ही छोटे भाई की पत्नी के प्रति मन में पनपते अनुराग ने उन्हें एक अपराधभाव से भर दिया. वह चाह कर भी इस समय कविता से दूर नहीं जा सकते थे. लेकिन मन ही मन राघव ने निर्णय कर लिया था कि रंजन के आते ही वह उन दोनों के जीवन से कहीं दूर चले जाएंगे.

अचानक एक शाम काम करतेकरते कविता आंगन में फिसल कर गिर गई. राघव तुरंत उसे ले कर अस्पताल भागे पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कविता अपने बच्चे को खो चुकी थी. राघव ने जब रंजन को इस बारे में बता कर उसे लौट आने को कहा तो रंजन बोला, ‘‘भैया, जो होना था सो हो गया. इस वक्त तो मेरा आ पाना संभव नहीं, पर जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’

लिली: उस लड़की पर अमित क्यो प्रभावित था ?-भाग 2

अमित ने इस बार कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि वह जान चुका था कि लिली इसे अपना पर्सनल मामला कह कर चुप करा देगी.

अमित सोचने लगा यह कैसा संबंध है कि मेरी हर चीज पर लिली का हक है. बदले में कुछ पूछता हूं तो यह कह कर मुंह बंद करा देती है कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं?

एकबारगी अमित का मन हुआ कि वह लिली से साफ साफ  कह दे कि या तो वह उस से शादी कर ले, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर समेट कर चली जाए.

ऐसा करने की वह सोच ही रहा था कि अगली शाम लिली ने उसे एक शर्ट खरीद कर तोहफे में दी.

‘‘यह क्या…?’’ अमित ने सवाल किया.

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ लिली बोली, तो अमित जज्बाती हो गया.  उस ने लिली को बांहों में भर लिया. अमित का सवाल सवाल ही रह गया.

अगले दिन रविवार था. लिली अपनी मां के पास जाने लगी.

‘‘क्या मैं तुम्हारी मां से नहीं मिल सकता?’’ अमित बोला, तो लिली सकपका गई.

‘‘अभी समय नहीं आया है,’’ कह कर लिली चली गई. एक ही छुट्टी मिलती थी, वह भी लिली अपनी मां के पास गुजार देती थी. अमित दिनभर बोर होता. आज उस ने अकेले ही घूमने का मन बनाया. मरीन ड्राइव पर बैठा वह समुद्र की लहरों को निहार रहा था कि लिली का फोन आया.

‘अमित मु झे एक लाख रुपए की सख्त जरूरत है. अभी और इसी वक्त मेरे खाते में डाल दो. सारी बातें आने पर बताऊंगी,’ कह कर लिली ने फोन काट दिया. लिली ने अपने एकाउंट की डिटेल भेजी थी.

अमित ने बिना देर किए उतने रुपए ट्रांसफर कर दिए.

लिली जब लौटी, तो बदहवास थी मानो किसी बहुत बड़ी मुसीबत से छूट कर आई हो.

‘‘तबीयत तो ठीक है न…?’’ अमित ने पूछा.

‘‘नहीं, आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी,’’ कह कर लिली सो गई.

अमित अकेले ही काम पर चला गया. शाम को वह लौटा, तो लिली के लिए पिज्जा लेता आया. पिज्जा देख कर लिली खुश हो गई.

दोनों पिज्जा खाने लगे. बीच में अमित ने रुपयों की बात छेड़ी.

‘‘रुपए तुम को वापस मिल जाएंगे,’’ लिली के इस कथन से अमित संतुष्ट नहीं था. लिली ने भांप लिया. उस ने उस के मुंह में पिज्जा डालते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, क्यों परेशान होते हो? क्या अपनी लिली के लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं सोच रहा था कि ऐसे कब तक चलेगा?’’

‘‘मैं सम झी नहीं?’’ लिली बोली.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘फिर वही शादी का रोना. अमित तुम सम झने की कोशिश करो. जब तक हम दोनों एकदूसरे को सम झ नहीं लेते, शादी का कोई मतलब नहीं है.’’

तभी लिली के मोबाइल की घंटी बजी. वह पिज्जा बीच में खाना छोड़ कर बरामदे में आई. अमित सोफे पर बैठा लिली का इंतजार करने लगा. तकरीबन 15 मिनट बाद वह आई.

‘‘किस का फोन था?’’ अमित से रहा न गया.

‘‘मेरे एक्स बौयफ्रैंड का फोन था.’’

‘‘क्या तुम्हारा किसी और से भी संबंध था?’’

‘‘हां, यह तो आम बात है. मैं उस के साथ एक साल तक रिलेशन में थी.’’

अमित को यह जान कर धक्का  सा लगा.

दोनों को एकसाथ रहते हुए सालभर से ऊपर हो चुका था. न लिली अमित को अपने मांबाप से मिलवाती, न ही शादी के लिए उस के मन में कोई  खयाल आता.

आजिज आ कर एक दिन अमित ने साफसाफ लफ्जों में शादी करने के  लिए कहा.

‘‘ठीक है, मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, मगर हम रहेंगे कहां? क्या हमारे पास कोई अपना फ्लैट है?’’

‘‘शादी से फ्लैट का क्या ताल्लुक?’’ अमित के सवाल पर लिली तुनक उठी, ‘‘जब तक अपना फ्लैट नहीं होगा, मैं शादी नहीं करूंगी.’’

अमित की लिली के बगैर जिंदगी की कल्पना भी बेमानी थी. वह उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी थी. उस ने काफी दिमाग दौड़ाया. बनारस में पुश्तैनी मकान था. क्यों न उसे बेच कर मुंबई में फ्लैट खरीद लिया जाए? विचार बुरा नहीं था. लिली को अमित का आइडिया पसंद आया.

अमित अगले दिन औफिस से छुट्टी ले कर बनारस आया.

‘‘तुम ने कैसे सोच लिया कि हम पुश्तैनी मकान बेच कर मुंबई में रहने लगेंगे? रही शादी की बात, तो यहीं कोई लड़की देख कर शादी कर लो. मु झे वह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है,’’ अमित के पापा ने साफ शब्दों में कहा.

‘‘पापा, हम कई महीनों से लिव  इन रिलेशनशिप में हैं,’’ सुनते ही पापा भड़क गए.

‘‘शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते हुए. कैसी बेशर्म लड़की है, जो बिना शादी किए तुम्हारे साथ रहती है? और कैसे मांबाप हैं उस के, जो लड़की को बिना शादी किए किसी गैर लड़के के साथ रहने की इजाजत दे दी?’’

अमित अपनी मां की तरफ देख कर लाचार भरे लहजे में बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हीं पापा को सम झाओ. आजकल ऐसे ही चलता है. पहले हम साथ रह कर एकदूसरे को सम झते हैं, फिर ठीक लगता है तो शादी करते हैं, वरना एकदूसरे से अलग हो जाते हैं.’’

कुछ ऐसे बंधन होते हैं : दोस्ती का मतलब

‘‘दोस्ती वह इमारत है जो विश्वास की नींव पर खड़ी होती है… यह नदी के किनारों को जोड़ने वाला वह पुल है, जिस में यह माने नहीं रखता कि किनारे स्त्री है या पुरुष,’’ व्हाट्सऐप पर आया मैसेज प्रेरणा ने जरा ऊंचे स्वर में पति सोमेश को सुनाते हुए पढ़ा.

‘‘एक स्त्री और पुरुष आपस में कभी दोस्त नहीं हो सकते… यह सिर्फ और सिर्फ अपनी वासना को शराफत का खोल पहनाने की गंदी मानसिकता से ज्यादा कुछ नहीं…’’ सुनते ही हमेशा की तरह सोमेश उस दिन भी बिदक गया.

प्रेरणा का मुंह उतर गया. उस ने फोन चार्जर में लगाया और बाथरूम की तरफ बढ़ गई.

प्रेरणा और सोमेश की शादी को 5 वर्ष होने को आए थे. देह के फासले जरूर उन के बीच पहली रात को ही खत्म हो गए थे, लेकिन दिलों के बीच की दूरी आज तक तय नहीं हो सकी थी. यों तो दोनों के बीच खास मतभेद नहीं थे, लेकिन स्त्रीपुरुष के बीच संबंधों को ले कर सोमेश के खयालात आज भी सामंती युग वाले ही थे. जब भी प्रेरणा स्त्रीपुरुष के बीच खालिस दोस्ती की पैरवी करती, सोमेश इसी तरह भड़क जाता था.

दोनों अलगअलग मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. सुबह का वक्त दोनों के लिए ही भागमभाग वाला होता था और शाम को घर लौटने में अकसर दोनों को ही रात हो जाती थी. सप्ताहांत पर जरूर उन्हें कुछ लमहे फुरसत के मिलते, लेकिन वे भी सप्ताहभर के छूटे हुए कामों की भेंट चढ़ जाते. ऐसे में सोमेश को तो कोई खास परेशानी नहीं होती थी, क्योंकि वह तो शुरू से ही अंतर्मुखी स्वभाव का रहा है, लेकिन मनमीत के अभाव में प्रेरणा अपने मन की गुत्थियों को सुलझाने के लिए तड़प उठती थी.

प्रेरणा को हमेशा एक ऐसे पुरुष मित्र की तलाश थी जो दिल के बेहद करीब हो… जिस से हर राज शेयर किया जा सके… हर मुश्किल वक्त में सलाह ली जा सके… जिस के साथ बिंदास खिलखिलाया जा सके और दुख की घड़ी में जिस के कंधे पर सिर टिका कर रोया भी जा सके.

ऐसे दोस्त की कल्पना जब प्रेरणा सोमेश के साथ साझा करती थी, तो वह आगबबूला हो उठता था.

‘‘पति है न… सुखदुख में साथ निभाने के लिए… फिर अलग से पुरुष की क्या जरूरत हो सकती है और फिर मित्र भी हो तो कोई स्त्री क्यों नहीं? मां या बहन से अच्छी कोई सहेली नहीं हो सकती?’’ कह कर सोमेश उसे चुप करा दिया करता.

‘‘पति कभी दोस्त नहीं हो सकता, क्योंकि उस के प्रेम में अधिकार की भावना होती है… पत्नी को ले कर स्वामित्व का भाव होता है… और स्त्री उस में तो स्वाभाविक ईर्ष्या होती ही है… फिर चाहे बहन ही क्यों न हो… रही बात मां की तो उन की बातें तो हमेशा नैतिकता का जामा पहने होती हैं… वे दिल की नहीं दिमाग की बातें करती हैं… मुझे ऐसा मित्र चाहिए जिस के साथ बंधन में भी आजादी का एहसास हो…’’

प्रेरणा लाख कोशिश कर के भी सोमेश को समझा नहीं सकती थी कि किसी भी महिला के लिए पुरुष मित्र शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक जरूरत है.

इन्हीं दिनों रवीश ने प्रेरणा की जिंदगी में दस्तक दी. मार्केटिंग विभाग में ट्रेनी के रूप में जौइन करने वाला रवीश दिखने में जितना आकर्षक था व्यवहार में भी उतना ही शालीन और हंसमुख था. उसे देख प्रेरणा को लगता जैसे वह अपने आधे संवाद तो अपनी आंखों और मुसकराहट से ही कर लेता है.

धीरेधीरे रवीश पूरे औफिस का चहेता बन गया था और फिर कब वह प्रेरणा के दिल के बंद दरवाजे पर दस्तक देने लगा था खुद प्रेरणा भी कहां जान पाई थी. हां, रवीश की इस हिमाकत पर उसे आश्चर्य अवश्य हुआ था. सोमेश के स्वभाव से भलीभांति परिचित प्रेरणा ने रवीश के लिए अपने दिल का दरवाजा कस कर बंद कर लिया था, लेकिन रवीश कोई फूल नहीं था जिसे रोका जा सके… वह तो खुशबू था और खुशबू कभी रोकने से रुकी है भला?

और फिर शुरुआत हुई स्त्रीपुरुष के बीच उस खालिस दोस्ती के रिश्ते की जिसे जीने के लिए प्रेरणा ने न जाने कितनी बार अपने मन को मारा था… जिस के कोमल एहसास को महसूस करने के लिए न जाने कितनी ही बार सोमेश के तानों से अपनेआप को छलनी किया था…

प्रेरणा अपने जीवन की किताब के अनछुए पन्ने को पढ़ने लगी. कितना सुंदर था यह बंद पन्ना… इंद्रधनुषी रंगों में ढला… खुशबुओं से तरबतर… पंखों से हलका… सूर्य की किरण सा सुनहरा… बर्फ सा शीतल… और मिस्री सा मीठा… रवीश का साथ जैसे पिता का वात्सल्य… मां की ममता… भाई सा प्रेम… बहन सा स्नेह और प्रेमी सा नाज उठाने वाला… प्रेम का हर रूप उस में समाया था… नहीं था तो बस एकाधिकार का भाव… आधिपत्य की भावना…

प्रेरणा रवीश की आदी होने लगी थी. उस से बात किए बिना तो उस के दिन की शुरुआत ही नहीं होती थी. हर काम में रवीश की सलाह प्रेरणा के लिए जरूरी हो जाती थी. वह रवीश के साथ फिल्मों से ले कर खेल… सामाजिक से ले कर राजनीति और व्यक्तिगत से ले कर सार्वजनिक तक हर विषय पर खुल कर बात करती थी.

उन के बीच स्त्री और पुरुष होने का भेद कहीं दिखाई नहीं देता था. अब वे मात्र 2 इंसान थे जो एक पवित्र रिश्ते को जी रहे थे. जब दोनों फोन पर होते थे तो मिनट कब घंटों में बदल जाते थे दोनों को ही खबर नहीं होती थी. सोशल मीडिया पर भी दोनों के बीच संदेशों का आदानप्रदान अनवरत होता था. लेकिन दोनों ही अपनीअपनी मर्यादा में बंधे होते थे. उन की बातचीत या संदेशों में अश्लीलता का अंशमात्र भी नहीं होता था.

बेशक यह मित्रता पूरी तरह 2 इंसानों के बीच थी, लेकिन सोमेश का स्वभाव भला प्रेरणा कैसे भूल सकती थी. कहा जाता है कि सभ्य कहलाने के लिए व्यक्ति अपनी आदतें बदल सकता है, मगर अपने मूल स्वभाव को बदलना उस के लिए संभव नहीं. सोमेश के बारे में सोचते ही रवीश की दोस्ती को खोने का डर प्रेरणा को सताने लगता था. इसीलिए वह अब तक रवीश के साथ अपनी दोस्ती को सोमेश से छिपाए हुए थी.

रात देर तक लैपटौप पर काम निबटाती प्रेरणा की आंख सुबह देर से खुली. फटाफट चायनाश्ता और दोनों का टिफिन पैक कर के वह भागती सी बाथरूम में घुस गई. फिर किसी तरह 2 ब्रैड पीस चाय के साथ निगल कर अपना पर्स संभालने लगी.

‘‘उफ, कहीं देर न हो जाए…’’ हड़बड़ाती प्रेरणा सोमेश को बाय कहती हुए घर से निकल गई.

सोमेश आज थोड़ी देर से औफिस जाने वाला था, इसलिए आराम से नाश्ता कर रहा था.

मोड़ पर ही औटो मिल गया तो प्रेरणा ने राहत की सांस ली. फिर बोली, ‘‘भैया, जरा तेज चलाओ न… मेरी ट्रेन न मिस हो जाए… मेरा प्रेजैंटेशन है… अगर टाइम पर औफिस न पहुंची तो बौस बहुत नाराज होंगे…’’

पता नहीं प्रेरणा औटो वाले से कह रही थी या अपनेआप से, लेकिन उस की बड़बड़ाहट सुन कर औटो वाले ने स्पीड जरा बढ़ा दी. मैट्रो स्टेशन पहुंचते ही उसे ट्रेन मिल गई और उस में सीट भी.

तसल्ली से बैठते ही प्रेरणा को रवीश की याद आ गई. उस ने मुसकराते हुए मोबाइल निकालने के लिए पर्स में हाथ डाला. पूरा पर्स खंगाल लिया, मगर मोबाइल हाथ में नहीं आया. अपनी तसल्ली के लिए उस ने एक बार फिर से पर्स को अच्छी तरह खंगाला, मगर मोबाइल उस में होता तो उसे मिलता न…

‘उफ, यह क्या हो गया… मोबाइल तो चार्जर में लगा हुआ ही छोड़ आई… इतनी बड़ी भूल मैं कैसे कर सकती हूं?’ सोच प्रेरणा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं…

‘अब क्या करूं? यदि सोमेश ने उत्सुकतावश मेरा फोन चैक कर लिया तो? रवीश के मैसेज पढ़ लिए तो? तो… तो… क्या? यह तो मानव स्वभाव है कि हर छिपी हुई चीज उसे आकर्षित करती है… सोमेश भी अवश्य उस का मोबाइल चैक करेगा… काश, उस ने अपने मोबाइल की स्क्रीन को अनलौक करने का पैटर्न सोमेश से साझा न किया होता…’

‘क्या करूं… क्या वापस जा कर अपना फोन ले कर आऊं? लेकिन अब तक तो उस ने फोन देख ही लिया होगा… यदि उस ने रवीश के मैसेज पढ़ लिए होंगे तो वह उस का सामना कैसे कर पाएगी…’

प्रेरणा कुछ भी तय नहीं कर पा रही थी. हार कर उस ने आने वाली स्थिति को वक्त के हवाले कर दिया और खुद को उस का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करने लगी.

‘रवीश भी टूर पर गया है. वह अवश्य उसे फोन करेगा… बस, फटाफट औफिस पहुंच कर उसे मोबाइल भूलने की सूचना दे दूं ताकि वह कौल न करे…’ प्रेरणा का दिमाग बिजली की सी तेज गति से दौड़ रहा था.

‘अब जो भी होगा देखा जाएगा… यदि उस की निजता का सम्मान करते हुए सोमेश ने उस का मोबाइल चैक नहीं किया होगा तब तो कोई फिक्र ही नहीं और यदि उस ने मोबाइल चैक कर भी लिया और रवीश को ले कर सवालजवाब किए तो उसे हिम्मत दिखानी होगी… वह रवीश के साथ अपनी दोस्ती कुबूल कर लेगी, परिणाम चाहे जो हो. लेकिन रवीश का साथ नहीं छोड़ेगी…’ प्रेरणा ने मन ही मन निश्चय कर लिया था. अब वह काफी हलका महसूस कर रही थी.

लाख हिम्मत बनाए रखने के बावजूद घर में पसरे अंधेरे ने प्रेरणा के हौसला पस्त कर दिया. आखिर वही हुआ जिस का डर था.

‘‘कब से चल रहा है ये सब… उस दो टके के इंसान की हिम्मत कैसे हुई तुम्हें इस तरह के व्यक्तिगत मैसेज भेजने की… जरूर तुम ने ही उसे बढ़ावा दिया होगा… जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को दोष कैसे दिया जा सकता है…’’ सोमेश के स्वर में क्षोभ, नफरत, गुस्से और निराशा के मिलेजुले भाव थे.

‘‘हमारे बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं है जिस पर तुम उंगली उठा रहे हो… रवीश मेरा दोस्त है… अंतरंग मित्र… लेकिन छोड़ो… दोस्ती के माने तुम नहीं समझोगे…’’ प्रेरणा ने बहस को विराम देने की मंशा से कहा.

लेकिन इतना बड़ा मुद्दा इतनी आसानी से कहां सुलझ सकता है. प्रेरणा की स्वीकारोक्ति ने आग में घी का काम किया. सोमेश के पुरुषोचित अहम को ठेस लगी. वह लगातार जहर उगलता रहा और प्रेरणा उसे अपने भीतर उतारती रही. दोनों के बीच एक शून्य पसर गया. उस रात खाना नहीं बना.

इस घटना के बाद हालांकि सोमेश ने उस से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग ली थी, लेकिन प्रेरणा ने खुद को खुद में समेट लिया. वह जितनी देर घर में सोमेश के साथ रहती, एक मशीन की तरह अपने सारे काम निबटाती… खानापीना हो या पहननाओढ़ना, घूमनाफिरना हो या किसी से मिलनाजुलना… यहां तक कि बिस्तर में भी वह न अपनी कोई इच्छा जाहिर करती और न ही किसी बात पर प्रतिवाद करती. बस, चुपचाप अपने हिस्से के कर्तव्य निभाती रहती.

हर सुबह वह घर से औफिस के लिए इस तरह निकलती मानो कोई पंछी कैद से छूट कर खुले आकाश में आया हो… और शाम को घर वापस लौटते ही फिर से कछुए की तरह अपनेआप में सिमट जाती.

सोमेश के साथ रिश्ते में ठंडापन आने से प्रेरणा के मन की घुटन और भी अधिक बढ़ने लगी थी. उस के अंदर ऐसा बहुत कुछ उमड़ताघुमड़ता रहता था जिसे अभिव्यक्ति की चाह होती… उसे बहुत बेचैनी होती थी जब वह ये सब रवीश के साथ बांटना चाहती और रवीश उपलब्ध नहीं होता.

वह रवीश की मजबूरी समझती थी… आखिर उस की अपनी जिंदगी… अपनी प्राथमिकताएं हैं… लेकिन दिल का क्या करे? उसे तो हर समय एक साथी चाहिए जो बिना किसी शर्त के उसे उपलब्ध हो… कई बार सोमेश की तरफ भी हाथ बढ़े, लेकिन हर बार स्वाभिमान पांवों में बेडि़यां डाल देता. रवीश और सोमेश के बीच झूलती प्रेरणा की निराशा अवसाद में बदलती जा रही थी.

देर रात तक जागती प्रेरणा आज सुबह उठी तो सिर में भारीपन था. उठने की कोशिश में गिर पड़ी. सोमेश लपक कर पास आया, लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर रुक गया. पे्ररणा ने फिर से उठने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी कामयाब नहीं हुई तो उस ने निरीहता से सोमेश की तरफ देखा. सोमेश ने बिना एक पल गंवाए उसे बांहों में थाम लिया.

‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है,’ सोमेश की फिक्र उसे अच्छी लगी.

‘काश, इस वक्त रवीश मेरे पास होता,’ सोच प्रेरणा ने आह भरी. अब तक सोमेश उस के लिए उस की मनपसंद गरमगरम अदरक वाली चाय बना लाया था. प्रेरणा ने कृतज्ञता से उस की ओर देखा.  सोमेश ने फोन कर डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने उसे आवश्यक दवा और आराम करने की सलाह दी.

सोमेश ने प्रेरणा के औफिस फोन कर उस के लिए 1 सप्ताह की छुट्टी मांग ली और खुद भी औफिस से छुट्टी ले ली. सोमेश प्रेरणा का एक छोटे बच्चे की तरह खयाल रख रहा था. लेकिन प्रेरणा को रहरह कर रवीश की अनुपस्थिति अखर रही थी… उस का ध्यान बारबार अपने मोबाइल की तरफ जा रहा था. उसे रवीश के फोन का इंतजार था.

फिर सोचने लगी कि शायद रवीश सोच रहा हो कि सोमेश उस के पास है, इसलिए फोन नहीं कर रहा… लेकिन व्हाट्सऐप पर मैसेज तो कर ही सकता है…

प्रेरणा बारबार मोबाइल चैक करती और हर बार उस की निराशा कुछ और बढ़ जाती… दोपहर होतेहोते उसे रवीश की बुजदिली पर गुस्सा आने लगा कि क्या उन का रिश्ता इतना कमजोर है? जब हमारा रिश्ता पाकसाफ है तो फिर यह डर कैसा? ऐसे रिश्ते का क्या फायदा जो जरूरत पड़ने पर साथ न निभा सके? तो क्या उन का रिश्ता सिर्फ सतही था? उस में कोई गहराई नहीं थी? क्या यह सिर्फ टाइमपास था? प्रेरणा ऐसे अनेक प्रश्नों के जाल में उलझ कर कसमसा उठी.

फिर अचानक उस के सोचने की दिशा बदल गई कि सोमेश जब साथ होता है तो वह कितने आत्मविश्वास से भरी होती हूं जबकि रवीश के साथ खालिस दोस्ती का रिश्ता होते हुए भी एक अनजाना डर मन को घेरे रहता है कि कहीं कोई देख न ले… किसकिस को सफाई देती रहेगी… सोमेश उस की हर जरूरत के समय साथ खड़ा रहता जबकि रवीश चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता… आखिर सामाजिक मजबूरियां भी एक तरह का बंधन ही तो हैं…

फिर प्रेरणा अनजाने ही दोनों के साथ अपने रिश्ते की तुलना करने लगी. हर बार उसे सोमेश का पलड़ा ही भारी लगा.

अब सोचने लगी कि सैक्स और साथ के अलावा भी विवाह में बहुत कुछ ऐसा होता है जिसे शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता. रवीश उस की मानसिक जरूरत है, लेकिन उस के साथ उस के रिश्ते को सामाजिक मान्यता नहीं मिल सकती तो क्या वह रवीश से रिश्ता खत्म कर ले? क्या अपने मन की हत्या कर दे? फिर जीएगी कैसे?

प्रेरणा का मानसिक द्वंद्व खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

तभी सोमेश कमरे में आया. पूछा, ‘‘कैसा लग रहा है अब? सूप बना कर लाया हूं… गरमगरम पी लो. तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ और फिर उसे सहारा दे कर उठाया.

प्रेरणा ने गौर से उस की आंखों में देखा. कहीं कोई छलकपट या दिखावा नहीं था… खुद के लिए परवाह और प्यार देख कर वह पुलक उठी. लेकिन इस परवाह के पीछे से अब भी स्वामित्व का भाव झलक रहा था.

‘मुझे स्वीकार है तुम्हारा प्रेम… रवीश से उतना ही रिश्ता रखूंगी जितना हम दोनों के बीच की झिर्री को भरने के लिए पर्याप्त हो… हमारा रिश्ता शाश्वत सत्य है, लेकिन हरेक रिश्ता जरूरी होता है… दोस्ती का भी… इस रिश्ते में तुम्हारे अधिकारों का अतिक्रमण कभी नहीं होगा, यह मेरा वादा है तुम से… तुम भी मुझे समझने की कोशिश करोगे न,’ मन ही मन निश्चय करते हुए प्रेरणा ने सोमेश के कंधे पर सिर टिका लिया.

‘‘मैं ने शायद प्रेम के बंधन जरा ज्यादा ही कस लिए थे… तुम घुटने लगी थी… मैं अपने पाश को ढीला करता हूं… मुझे माफ कर सकोगी न…’’ कह सोमेश ने उसे बांहों में कस लिया.

गुनाहों का रिश्ता : सुदीप का किरण के लिए प्यार

‘‘किरण, क्या तुम मुझसे नाराज हो?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘तो फिर तुम ने मुझसे अचानक बोलना क्यों बंद कर दिया?’’

‘‘यों ही.’’

‘‘मुझ से कोई गलती हो गई हो, तो बताओ… मैं माफी मांग लूंगा.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है सुदीप. अब मैं सयानी हो गई हूं न, इसलिए लोगों को मुझ पर शक होने लगा है कि कहीं मैं गलत रास्ता न पकड़ लूं,’’ किरण ने उदास मन से कहा.

‘‘जब से तुम ने मुझे अपने से अलग किया है, तब से मेरा मन बेचैन रहने लगा है.’’

सुदीप की बातें सुन कर किरण बोली, ‘‘अभी तक हम दोनों में लड़कपन था, बढ़ती उम्र में जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. दूसरों के कहने पर यह सब समझ में आया.’’

‘‘तुम ने कभी मेरे बारे में सोचा है कि मैं कितना बेचैन रहता हूं?’’

‘‘घर का काम निबटा कर जब मैं अकेले में बैठती हूं, तो दूसरे दोस्तों की यादों के साथसाथ तुम्हारी भी याद आती है. हम दोनों बचपन के साथी हैं. अब बड़े हो कर भी लगता है कि हम एकदूसरे के हमजोली बने रहेंगे.’’

‘‘तो दूरियां मत बनाए रखो किरण,’’ सुदीप ने कहा.

यह सुन कर किरण चुप हो गई.

जब सुदीप ने अपने दिल की बात कही, तो किरण का खिंचाव उस की ओर ज्यादा बढ़ने लगा.

दोनों अपने शुरुआती प्यार को दुनिया की नजरों से छिपाने की कोशिश करने लगे. लेकिन जब दोनों के मिलने की खबर किरण की मां रामदुलारी को लगी, तो उस ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह अपनी हद में ही रहे.

उसी दिन से सुदीप का किरण के घर आनाजाना बंद हो गया.

लेकिन मौका पा कर सुदीप किरण के घर पहुंच गया. किरण ने बहुत कहा कि वह यहां से चला जाए, लेकिन सुदीप नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से दिल लगाया, तुम डरती क्यों हो? मैं  तुम से शादी करूंगा, मु?ा पर भरोसा करो.’’

‘‘सुदीप, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन… जैसे अमीर और गरीब का रिश्ता नहीं होता, इसी तरह से ब्राह्मण और नीची जाति का रिश्ता भी मुमकिन नहीं, इसलिए हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा होगा.’’

सुदीप पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा.

वह आगे बढ़ा और किरण को बांहों में भर कर चूमने लगा. पहले तो किरण को अच्छा लगा, लेकिन जब सुदीप हद से ज्यादा बढ़ने लगा, तो वह छिटक कर अलग हो गई.

‘‘बस सुदीप, बस. ऐसी हरकतें जब बढ़ती हैं, तो अनर्थ होते देर नहीं लगती. अब तुम यहां से चले जाओ,’’ नाखुश होते हुए किरण बोली.

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है किरण, प्यार में यही सब तो होता है.’’

‘‘होता होगा. तुम ने इतनी जल्दी कैसे सम?ा लिया कि मैं इस के लिए राजी हो जाऊंगी?’’

‘‘बस, एक बार मेरी प्यास बुझ दो. मैं दोबारा नहीं कहूंगा. शादी से पहले ऐसा सबकुछ होता है.’’

‘‘नहीं सुदीप, कभी नहीं.’’

इस तरह सुदीप ने किरण से कई बार छेड़खानी की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली.

कुछ दिन बाद किरण के मातापिता  दूसरे गांव में एक शादी में जातेजाते किरण को कह गए थे कि वह घर से बाहर नहीं निकलेगी और न ही किसी को घर में आने देगी.

उस दिन अकेली पा कर सुदीप चुपके से किरण के घर में घुसा और अंदर

से किवाड़ बंद कर किरण को बांहों में कस लिया.

अपने होंठ किरण के होंठों पर रख कर वह देर तक जबरदस्ती करता रहा, जिस से दोनों के जिस्म में सिहरन पैदा हो गई, दोनों मदहोश होने लगे.

किरण के पूरे बदन को धीरेधीरे सहलाते हुए सुदीप उस की साड़ी ढीली कर के तन से अलग करने की कोशिश करने लगा.

किरण का ध्यान टूटा, तो उस ने जोर से धक्का दे कर सुदीप को चारपाई से अलग किया और अपनी साड़ी ठीक करते हुए गरजी, ‘‘खबरदार, जो तुम ने मेरी इज्जत लूटने की कोशिश की. चले जाओ यहां से.’’

‘‘चला तो जाऊंगा, लेकिन याद रखना कि तुम ने आज मेरी इच्छा पूरी नहीं होने दी,’’ सुदीप गुस्से में चला गया.

उस के जाने के बाद किरण की आंखों से आंसू निकल आए.

मां के लौटने पर किरण ने सारी सचाई बता दी. रामदुलारी ने उसे चुप रहने को कहा.

किरण के पिता सुंदर लाल से रामदुलारी ने कहा, ‘‘लड़की सयानी हो गई है, कुछ तो फिक्र करो.’’

‘‘तुम इसे मामूली बात सम?ाती हो? आजकल लड़की निबटाने के लिए गांठ भरी न हो, तो कोई बात नहीं करेगा. भले ही उस लड़के वाले के घर में कुछ न हो.’’

‘‘तो क्या यही सोच कर हाथ पर हाथ धर बैठे रहोगे?’’

‘‘भरोसा रखो. वह कोई गलत काम नहीं करेगी.’’

सुंदर लाल की दौड़धूप रंग लाई और एक जगह किरण का रिश्ता पक्का हो गया.

किरण की शादी की बात जब सुदीप के कानों में पहुंची, तो वह तड़प उठा.

एक रात किरण अपने 8 साला भाई के साथ मकान की छत पर सोई थी. उस के बदन पर महज एक साड़ी थी.

किरण और सुदीप के मकानों के बीच दूसरे पड़ोसी का मकान था, जिसे पार करता हुआ सुदीप उस की छत पर चला गया.

सुदीप किरण की बगल में जा कर लेट गया. किरण की नींद खुल गई. देखा कि वह सुदीप की बांहों में थी. पहले तो उस ने सपना सम?ा, पर कुछ देर में ही चेतना लौटी. वह सबकुछ सम?ा गई. उस ने सुदीप की बेजा हरकतों पर ललकारा.

‘‘चुप रहो किरण. शोर करोगी, तो सब को पता चल जाएगा. बदनामी तुम्हारी होगी. मैं तो कह दूंगा कि तुम ने रात में मु?ो मिलने के लिए बुलाया था,’’ कहते हुए सुदीप ने किरण का मुंह हथेली से बंद कर दिया.

इस के बाद सुदीप किरण के साथ जोरजबरदस्ती करता रहा और वह चुपचाप लेटी रही.

किरण की आंखें डबडबा गईं. उस ने कहा, ‘‘सुदीप, आज तुम ने मेरी सारी उम्मीदों को खाक में मिला दिया. आज तुम ने मेरे अरमानों पर गहरी चोट पहुंचाई है. मैं तुम से प्यार करती हूं, करती रहूंगी, लेकिन अब मेरी नजरों से दूर हो जाओ,’’ कह कर वह रोने लगी.

उसी समय पास में सोए किरण के छोटे भाई की नींद खुली.

‘मांमां’ का शोर करते हुए वह छत से नीचे चला गया और वहां का देखा हाल मां को  सुनाया. सुंदर लाल भी जाग गया. दोनों चिल्लाते हुए सीढ़ी से छत की ओर भागे. उन की आवाज सुन कर सुदीप किरण को छोड़ कर भाग गया.

दोनों ने ऊपर पहुंच कर जो नजारा देखा, तो दोनों के रोंगटे खड़े हो गए. मां ने बेटी को संभाला. बाप छत पर से सुदीप को गालियां देता रहा.

दूसरे दिन पंचायत बैठाने के लिए किरण के पिता सुंदर लाल ने ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद से गुजारिश करते हुए पूरा मामला बतलाया और पूछा, ‘‘हम लोग पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं. आप हमारे साथ चलेंगे, तो पुलिस कार्यवाही करेगी, वरना हमें टाल दिया जाएगा.’’

‘‘सुंदर लाल, मैं थाने चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन सोचो, क्या इस से तुम्हारी बेटी की गई इज्जत वापस लौट आएगी?’’

‘‘फिर हम क्या करें प्रधानजी?’’

‘‘तुम चाहो, तो मैं पंचायत बैठवा दूं. मुमकिन है, कोई रास्ता दिखाई पड़े.’’

‘‘आप जैसा ठीक सम?ों वैसा करें,’’ कहते हुए सुंदर लाल रोने लगा.

दूसरे दिन गांव की पंचायत बैठी.

गांव के कुछ लोग ब्राह्मणों के पक्ष में थे, तो कुछ दलितों के पक्ष में.

कुछ लोगों ने सुदीप को जेल भिजवाने की बात कही, तो कुछ ने सुदीप से किरण की शादी पर जोर डाला.

शादी की बात पर सुदीप के पिता बिफर पड़े, ‘‘कैसी बातें कहते हो?

कहीं हम ब्राह्मणों के यहां दलित

ब्याही जाएगी.’’

कुछ नौजवान शोर मचाने लगे, ‘जब तुम्हारे बेटे ने दलित से बलात्कार किया, तब तुम्हारा धर्म कहां था?’

‘‘ऐसा नहीं होगा. पहली बात तो यह कि सुदीप ने ऐसा किया ही नहीं. अगर गलती से किया होगा, तो धर्म नहीं बदल जाता,’’ सुदीप की मां बोली.

‘‘तो मुखियाजी, आप सुदीप को जेल भिजवा दें, वहीं फैसला होगा,’’ किरण की मां रामदुलारी ने कहा.

ग्राम प्रधान राजेंद्र प्रसाद ने पंचों की राय जानी, तो बोले, ‘पंचों की राय है कि सुदीप ने जब गलत काम किया है, तो अपनी लाज बचाने के लिए किरण से शादी कर ले, वरना जेल जाने के लिए तैयार रहे.’

यह सुन कर ब्राह्मण परिवार सन्न रह गया.

पंचायत ने किरण की इच्छा जानने की कोशिश की. किरण ने भरी पंचायत में कहा, ‘‘मेरी इज्जत सुदीप ने लूटी है. इस वजह से अब मु?ो उसी के पास अपनी जिंदगी महफूज नजर आती है.

‘‘गंदे बरताव की वजह से मैं सुदीप से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन अब मैं मजबूर हूं, क्योंकि इस घटना को जानने के बाद अब मु?ा से कोई शादी नहीं करना चाहेगा.’’

सुदीप के पिता ने दुखी मन से कहा, ‘‘मेरी इच्छा तो किरण की शादी वहशी दरिंदे सुदीप के साथ करने की नहीं थी, फिर भी मैं किरण की शादी सुदीप से करने को तैयार हूं.’’

किरण व सुदीप के घरपरिवार में शादी पर रजामंदी हो जाने पर पंचायत ने भी यह गुनाहों का रिश्ता मान लिया.

विसाल ए यार : इश्क की अंगड़ाई

दिल्ली के साउथ कैंपस के लोधी रोड पर बने दयाल सिंह कालेज में रोहित बीकौम का स्टूडैंट था और उसी की क्लास में आयशा नाम की एक खूबसूरत लड़की पढ़ती थी.

रोहित मिडिल क्लास फैमिली से था, जो एक सैकंड हैंड बाइक पर कालेज जाता था. परिवार में एक बहन और एक छोटा भाई था. दोनों ही अभी स्कूल में पढ़ते थे.

मां कम पढ़ीलिखी थीं, मगर उन का सपना बच्चों को अच्छी ऊंची तालीम दिलाना था. पिता दर्जी थे और वे दिनरात मेहनत करते थे, ताकि बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकें.

इधर आयशा दिल्ली के नामचीन कपड़ा कारोबारी की बेटी थी. कभी वह क्रेटा गाड़ी से कालेज आ रही थी, तो कभी इनोवा से, कभी होंडा सिटी से तो कभी औडी कार से… मतलब, उस के घर में कई कारें थीं और परिवार के नाम पर केवल एक छोटा भाई और पिता.

भाई के जन्म के कुछ ही समय बाद किसी बीमारी के चलते आयशा की मां चल बसी थीं. पिता ने दोनों को बड़े लाड़प्यार से पाला था.

आयशा बेशक अमीर लड़की थी, पर उसे पैसे का घमंड छू तक नहीं गया था. लेकिन हां, जिद की पक्की थी वह. जो कह दिया या सोच लिया वह तो कर के ही रहना है, फिर चाहे उस में कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएं.

आयशा की इसी जिंदादिली पर रोहित मरमिटा था, मगर वह यह नहीं जानता था कि आयशा इतने बड़े घराने से है. आखिरकार दोनों का इश्क अंगड़ाई लेने लगा.

‘‘आयशा, हमारा ग्रेजुएशन का यह आखिरी साल है. तुम ने आगे के बारे में क्या सोचा है? क्या तुम आगे पढ़ोगी या कुछ और?’’

‘‘रोहित, मैं तो अभी आगे पढ़ने की सोच रही हूं, मगर मैं तुम्हारे सिवा किसी और को अपना लाइफ पार्टनर नहीं बना सकती. अगर तुम्हें शादी की जल्दी हो तो मैं अपना प्लान बदल भी सकती हूं. तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, मगर तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम न मिले तो मैं मर जाऊंगी.’’

‘‘आयशा, मैं भी तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा, लेकिन अभी मैं इस लायक भी नहीं कि अपने परिवार का बोझ उठा सकूं. मुझे अभी आगे और पढ़ना है, ताकि मैं किसी अच्छी पोस्ट पर जौब कर सकूं और तुम्हें और अपने परिवार को हर वह खुशी दे सकूं, जिस के तुम सब हकदार हो. तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

‘‘मैं मरते दम तक भी इंतजार करूंगी, लेकिन एक बार तुम्हें मेरे पापा से मिल लेना चाहिए. तब तक मेरी भी पढ़ाई पूरी हो जाएगी, फिर हम दोनों मिल कर अपना परिवार संभाल लेंगे.’’

‘‘ठीक है. मैं कल ही तुम्हारे पापा से मिलता हूं.’’

अगले दिन रोहित आयशा के पापा से मिलने गया, तो आयशा के पापा ने उस से कहा, ‘‘अरे रोहित, आओ बेटा. मुझे तुम्हारे बारे में आयशा ने सब बता दिया है. बेटा, तुम ने बहुत सही फैसला लिया कि एक बार सैट हो कर ही शादी के बारे में सोचना है.’’

‘‘जी हां अंकल, पहले इनसान को परिवार पालने लायक बनना चाहिए, उस के बाद ही परिवार को आगे बढ़ाने का सोचना चाहिए. आप से मुझे यही उम्मीद थी. आयशा… अब मेरी अमानत है आप के पास. ठीक है तो मैं चलता हूं.’’

जैसे ही रोहित जाने के लिए उठा, आयशा के पापा ने उस के हाथ पर

50 लाख रुपए का चैक रख दिया, जिसे रोहित हैरानी से देखते हुए बोला, ‘‘अंकल, यह सब क्या है?’’

‘‘बेटा, यह मेरी तरफ से एक छोटी सी मदद है, जो तुम्हारा भविष्य बनाने में काम आएगी. और अब मेरी बेटी को भूलने की कोशिश करो, ताकि मैं उस की शादी किसी अच्छे और ऊंचे घराने में कर सकूं.’’

‘‘अंकल, आप मेरी मदद कर रहे हैं या मेरे प्यार का सौदा?’’

‘‘कुछ भी समझ लो. अभी मैं तुम्हें प्यार से समझा रहा हूं, कहीं ऐसा न हो कि मुझे सख्ती से काम लेना पड़े.’’

रोहित चैक ठुकरा कर चला गया और जातेजाते कह गया, ‘‘अगर हमारा प्यार सच्चा है, तो कोई भी हमें मिलने से नहीं रोक सकता.’’

‘‘पहले इस लायक बन कर दिखाओ,’’ आयशा के पापा को भी अब गुस्सा आने लगा.

आयशा ने लाख कहा कि वह रोहित के बिना जिंदा नहीं रह सकती, पर उस के पापा ने उस की एक न सुनी और फरमान सुना दिया कि अगले महीने आयशा की शादी उन के दोस्त के बेटे आशीष से कर दी जाएगी.

अगले महीने आयशा की शादी बिजनैस टायकून सुरेश मेहता के बेटे आशीष मेहता से करा दी गई. लेकिन जब आयशा विदा होने लगी, तब उस ने पापा को एक नजर देख कर कहा, ‘‘पापा, अब तक मैं आप के साए तले थी, आप का हर हुक्म मानने को मजबूर थी, लेकिन अब मैं अपना हर फैसला लेने के लिए आजाद हूं.’’

‘‘आशीष, मैं किसी और से प्यार करती हूं, इसलिए मैं आप के साथ पत्नी धर्म नहीं निभा सकती,’’ आयशा ने सुहागरात पर ही अपने पति से साफ लफ्जों में कह दिया.

‘‘अगर ऐसा है, तो तुम ने अपने पापा से क्यों नहीं कहा? अब मुझे कहने से क्या फायदा? अब कानूनन तुम मेरी पत्नी हो और तुम पर मेरा हक है.’’

‘‘मगर, किसी की मरजी के खिलाफ उस का शरीर पाना भी कानूनन जुर्म है, यह तो आप जानते ही होंगे, इसलिए आप मुझे तलाक दे दें, ताकि मैं भी अपनी नई जिंदगी शुरू कर सकूं और आप भी.’’

‘‘मैं तुम्हें तलाक नहीं दे सकता. यह सब तुम्हें पहले सोचना था. हमारी इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी… क्या कहेंगे लोग कि बिजनैस टायकून मेहता का बेटा बीवी को नहीं संभाल सका. मैं तुम्हें किसी कीमत पर तलाक नहीं दूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, इस के जिम्मेदार आप खुद होंगे, मैं उसे नहीं छोड़ सकती.’’

और वही हुआ, जो एक पत्नी को नहीं करना चाहिए था. आयशा अकसर रोहित से मिलती, उस पर अपने हुस्न का जाल बिछाती, मगर रोहित खुद पर काबू पा लेता.

आग भला घी से कितना दूर रहेगी. जब घी और आग पासपास होंगे, तो आग बढ़ेगी भी, भड़केगी भी. एक दिन रोहित भी बहक गया और दोनों के जिस्मानी संबंध बन गए.

अब आयशा रोहित को कहती कि वह उस से जिस्मानी संबंध बनाए रखे, ताकि किसी तरह उस का पति उसे तलाक दे दे. अगर रोहित कहता कि ऐसा करना गलत है, तो आयशा बीमार होने का नाटक करती. एक बार उस ने कार से जानबूझ कर अपना ऐक्सिडैंट भी किया, ताकि रोहित की हमदर्दी उसे मिल सके… और उधर अपने पति आशीष से भी कुछ न छिपाती, ताकि वह परेशान हो कर उसे तलाक दे दे.

लेकिन आयशा का पति अपने खानदान और अपने स्टेटस की वजह से उसे तलाक नहीं देना चाहता था. उस ने आयशा को बहुत समझाया कि वह गलत काम न करे.

जैसेजैसे समय बीतता गया, रोहित को भी आयशा के जिस्म का चसका लगता गया. साथ ही, आयशा के पति के पैसे पर ऐश करने का भी वह आदी हो गया था. वह अब आयशा को किसी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहता था, यहां तक कि उस की पढ़ाई का खर्च भी आयशा ही उठाती थी.

अचानक रोहित के पिता की मौत हो गई और इधर आयशा के पति ने भी आयशा के सारे बैंक अकाउंट सील करवा दिए. आयशा का घर से निकलना भी बंद कर दिया.

अब न तो आयशा के पास पैसा था और न ही रोहित के पापा की कमाई. सारी जिम्मेदारी रोहित पर आ गई. रोहित और आयशा का मिलना बंद हो गया.

इत्तिफाक से एक अच्छेखासे परिवार की एकलौती लड़की का रिश्ता रोहित के लिए आया और मां के समझाने पर रोहित ने शादी कर ली और ससुर का सारा बिजनैस संभालने लगा, जिस से रोहित का परिवार सैटल हो गया.

कुछ समय तक तो आयशा चुप रही, मगर उसे तन की भूख जब हद से बढ़ कर सताने लगी और रोहित से मिलने भी न दिया गया, तो उस ने खुदकुशी करने की कोशिश की.

आयशा के खुदकुशी करने वाले मुद्दे पर भी ससुराल वालों के लिए ही मुसीबत खड़ी होगी, इसलिए उस के पति आशीष ने अब अपने मातापिता से कुछ भी छिपाना ठीक नहीं समझा.

सारी बात जान कर आशीष के मातापिता ने आशीष को आयशा से तलाक के लिए राजी कर लिया.

इधर आयशा का तलाक हुआ और जैसे ही खुशीखुशी वह रोहित से मिलने उस के घर गई, सामने ही रोहित अपनी पत्नी के साथ नजर आया.

‘‘अरे आयशा, आओ… बड़े अच्छे मौके पर आई हो. आज मेरे बेटे का नामकरण है. आओ, तुम भी मेरे बेटे को आशीर्वाद दो.’’

आयशा हैरान सी खड़ी कभी रोहित को देखती, तो कभी उस के साथ खड़ी उस की पत्नी को, जिस की गोद में प्यारा सा बच्चा था. दूर कहीं से ‘मिर्जा गालिब’ फिल्म का सुरैया का गाना चल रहा था… ‘ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल ए यार होता…’

बेटे की चाह : भाग 2

बाहर की बारिश थम चुकी थी और 2 जिस्मों का तूफान भी. दोनों की झिझक भी खत्म हो गई थी. उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वे दोनों जम कर मस्ती करते, पर रसीली बहुत चालाक औरत थी. वह गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती थी, जिस के चलते उसे बच्चा नहीं ठहरता था. वह तो बस मंगलू में अपने अकेलेपन और मौजमस्ती का इलाज ढूंढ़ रही थी.

जब कुछ महीने बीत चले और रसीली ने बच्चा ठहरने की खबर नहीं सुनाई तो मंगलू ने उस से कहा, ‘‘सुन रसीली… महीनों से मैं तुम्हारे घर आ रहा हूं और अनेक बार हम ने जिस्मानी संबंध बनाए हैं, पर अभी तक तुझे बच्चा क्यों नहीं ठहरा?’’

‘‘अरे, अब तुम 40 साल के हो गए हो. अब तुम में 25 साल के मर्द वाली रवानी तो रही नहीं, गांव के और गबरू जवान लड़कों को देखो, जमीन में पैर मार दें तो पानी निकल आए. अब तुम अपनी लटकी शक्ल देख लो. लगता है, 60 साल के हो गए हो.

‘‘अरे, जरा बादाम घोटो, जरा बदन बनाओ, लड़का पैदा करना आसान है क्या…?’’

जब रसीली ने कई बार इस तरह मजाक किया तो मंगलू का मन रसीली से पूरी तरह हटता चला गया. उस ने समझ लिया था कि रसीली एक खूंटे से बंधी रहने वाली गाय नहीं है, बल्कि उसे तो अपनी मस्ती के लिए नएनए आशिक चाहिए.

मन में ऐसा खयाल आते ही मंगलू सीधा गांव के बीच बने पीपल देवता के चबूतरे पर पहुंचा और माफी मांगी कि अब वह फिर कभी रसीली की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखेगा.

जब चबूतरे से मंगलू नीचे उतरा तो अपने सामने फौजी को खड़ा देख चौंक गया.

‘‘नमस्ते फौजी साहब.’’

‘‘नमस्ते… अरे भाई, पीपल देवता से क्या मांग रहे हो? तुम्हारे गांव के बाहर एक बहुत बड़े तांत्रिक आ कर ठहरे हुए हैं, जो हाथ देख कर ही किसी का भी आगापीछा सब बता देते हैं और बदले में कुछ लेते भी नहीं. जाओ, उन से जा कर मिल लो. हो सकता है कि तुम्हारा कल्याण भी उन के हाथों हो ही जाए,’’ फौजी ने अपना ज्ञान बांटा.

मंगलू अंदर से टूटा हुआ था और जब इनसान अंदर से टूटा होता है तो धर्म और तांत्रिकों में उस की दिलचस्पी अपनेआप ही बढ़ जाती है.

मंगलू तांत्रिक से जा कर मिला और जब वापस आया तो उस के चेहरे पर खुशी की हलकी सी रेखा साफ देखी जा सकती थी.

शायद उस तांत्रिक ने मंगलू को खुश रहने की कोई तरकीब बता दी थी, तभी तो वह अपनी पत्नी पर भी बातबात में चिल्लाता नहीं था.

पर मंगलू की यह खुशी ज्यादा दिन तक न रह पाई. एक दिन जब वह शाम ढले घर वापस आया तो उस की पत्नी रोरो कर हलकान हुई जाती थी.

‘‘अरे, क्या हुआ? क्यों रोए जा रही हो?’’

‘‘अरे रमिया के पापा, रमिया को तुम्हारे पास खाना देने को भेजा था. अब शाम होने को आई, पर अभी तक वह लौट कर नहीं आई है. सयानी लड़की है. कहीं कोई ऊंचनीच हो गई तो हम जमाने को क्या मुंह दिखाएंगे.’’

‘‘क्या कहा… रमिया घर नहीं लौटी… अभी जा कर देखता हूं,’’ कह कर मंगलू घर से बाहर निकल गया.

कुछ घंटे बाद पसीना पोंछता हुआ मंगलू अपना मुंह लटका कर वापस आ गया और अपनी पत्नी सरोज से बोला, ‘‘रमिया की मां, लगता है कि रमिया हम लोगों को छोड़ कर कहीं चली गई है. मैं सरपंचजी से भी मिला और गांव के बाकी लोगों को भी इकट्ठा किया और हम सब लोगों ने पूरे गांव में रमिया को ढूंढ़ा, पर रमिया नहीं मिली.’’

रमिया के घर छोड़ कर जाने वाली बात उस की मां को हजम नहीं हो रही थी, पर उस के पास इन बातों को मान लेने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था.

‘‘जब से फौजी ने गांव में आ कर कोठी बनवाई है, तभी से गांव में अजीब हादसे हो रहे हैं,’’ काकी बोल रही थी.

‘‘हां, देखने में भी तो फौजी कितना डरावना लगता है,’’ गांव की दूसरी औरत कह उठी.

‘‘पर सवाल यह है कि रमिया को आसमान खा गया या जमीन निगल गई,’’ बन्नो भाभी बोली.

‘‘मंगलू के खेत में जाते समय किनारे पर जो भुतही तलैया पड़ती है न, उस में कई कुंआरे भूत रहते हैं. हो न हो, उन्हीं कुंआरे भूतों ने रमिया का अपहरण कर लिया है और वे अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करते होंगे,’’ सिबली की शक भरी आवाज आई.

‘‘अरे, मैं तो कहती हूं कि मंगलू से रमिया का ब्याह करते बन नहीं रहा था और फिर रमिया का चक्कर भी तो सरजू के साथ चल ही रहा था न. हो न हो, वह सरजू के साथ भाग गई है,’’ दया की अम्मां बोल रही थी.

रमिया की मां अपनी बेटी के गांव से गायब हो जाने से अंदर तक टूट भी गई थी और कहीं न कहीं उसे भी भुतही तलैया के भूतों पर ही शक था.

एक दिन रमिया की मां ने अपनी दूसरी बेटी श्यामा की कमर की करधन में 2 छोटी घंटियां बांध दी थीं, जिन के बजने से छुनछुन की आवाज आती थी.

‘‘कहते हैं कि कमर में लोहा बंधा हो तो भूत पास में नहीं आते और तुझे भी तो स्कूल आनाजाना रहता ही है, इसलिए ये लोहे की घंटियां तेरी हिफाजत के लिए हैं और फिर ये मुझे तेरी मौजूदगी का अहसास भी देती रहेंगी.’’

बदले में श्यामा सिर्फ मुसकरा दी.

अभी रमिया को गायब हुए 6 महीने भी न बीते थे कि जब एक दिन श्यामा स्कूल गई तो फिर लौट कर नहीं आई.

मंगलू की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. मंगलू भी एक कोने में मुंह छुपाए बैठा था.

गांव के लोग आजा रहे थे और बातें बना रहे थे, हमदर्दी दिखा रहे थे.

श्यामा के इस तरह गायब होने की बात फौजी शमशेर सिंह के कानों तक पहुंची. वह सीधा मंगलू के घर जा पहुंचा.

फौजी शमशेर सिंह ने उस से कुछ बातें पूछीं, जिन का जवाब मंगलू बड़े ही अनमने ढंग से दे रहा था. फौजी हर तरह की मदद का भरोसा दे कर वहां से चला गया.

समय बीत रहा था. एक दिन जब रमिया की मां घर की साफसफाई कर रही थी, तो उसे एक बिस्तर के नीचे वही घंटियां मिलीं, जो उस ने अपनी बेटी श्यामा की कमर में बांधी थीं. वह परेशान हो उठी. पर उस ने यह बात किसी को नहीं बताई, मंगलू को भी नहीं.

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