बाप का कातिल

लेखक- रघुनाथ सिंह

दक्षिण नागपुर के हुड़केश्वर रोड इलाके में साधारण आमदनी वाले परिवार रहते हैं. इसी इलाके के सन्मार्ग नगर बांते लेआउट शिव गौरी कौंवैस्ट के पास विजय गोविंदराव पिल्लेवार परिवार समेत रहते थे.

55 साला विजय पिल्लेवार प्रोपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कुछ साल पहले तक तो हालात ठीक थे, लेकिन समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि विजय गोविंदराव पिल्लेवार की माली मामले में हिम्मत हारने लगी. विजय पिल्लेवार इस मामले में खुशनसीब थे कि ‘हम दो हमारे दो’ की तर्ज पर उन का छोटा परिवार था. पत्नी कांताबाई घरेलू औरत थीं. बेटा विक्रांत उर्फ रोहित 26 साल का हो चला था. बेटी अवंती 20 साल की थी.

नागपुर में प्रोपर्टी के धंधे में बरकत का यह आलम रहा कि एक समय में यहां कई लोगों की लौटरी सी लग गई. सामान्य घर वालों के बंगले बन गए. दोपहिया की जगह पर चारपहिया वाहन घर की शान बन गए.

लेकिन, साल 2016 में हवा का एक झोंका सा आया, जिस ने कइयों की खुशियों को झकझोर कर रख दिया. भारत सरकार ने नोटबंदी क्या कराई, कइयों की जिंदगी में पाबंदिया लग गईं. खर्चों के लिए खुले रहने वाले हाथ बंधने से लगे. रुपए का गणित गड़बड़ा गया. दौलत के साथ शोहरत का भी ग्राफ गिरने लगा.

विजय गोविंदराव पिल्लेवार भी उन कई लोगों की कतार में शामिल हो गए, जो मुफलिसी की आहट सुन दबेदबे से रहने लगे. उन की पत्नी कांताबाई की खुशियों पर तो मानो सांप लोट गया था. गर्दिश के दिन आने की चिंता का झटका दिमाग पर लगा, तो उन्होंने खाट पकड़ ली. वे बीमार रहने लगीं.

ऐसे में पिल्लेवार परिवार के लिए बेटा विक्रांत उर्फ रोहित आस का नया दीया जलाने लगा था. विक्रांत ने कम समय में तरक्की के नएनए पायदान छुए थे. घर के सामने खड़ी बेटे की कार पिल्लेवार परिवार की अमीरी की ओर बढ़ते कदम का परिचय देने लगी थी.

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विक्रांत न केवल बौडी बिल्डर था, बल्कि वह बौडी ट्रेनर भी था. कई रईसजादों से ले कर अफसरों को वह फिटनैस ट्रेनिंग दिया करता था.

बेचैन बाप बहका बेटा

25 अप्रैल, 2020 को विजय पिल्लेवार काफी बेचैन व घबराए हुए थे. कोरोना संकट को ले कर लौकडाउन का ऐलान हुए एक महीना हो गया था. घर में रहते हुए बेटे विक्रांत ने गुस्सैल स्वभाव के कई रंग दिखाए थे. 3-4 दिन पहले ही वह किसी दोस्त के साथ झगड़ा कर के आया था.

कर्फ्यू में घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत के बाद भी विक्रांत का अनियंत्रित सा रहना परिवार वालों के लिए परेशानी का सबब बनने लगा था. पहले वह दिन में कम समय ही घर पर रहता था, लेकिन अब वह घर में रहने को मजबूर तो था, लेकिन अपनी हरकतों से घर का माहौल डर वाला बना रखा था.

विक्रांत बातबात पर घर के लोगों पर भड़क उठता था. मांबाप कुछ कहते, तो उन्हें भलाबुरा कहते हुए वहशी तरीके से घूर कर देखता था. छोटी बहन स्नेह जताती, तो उसे भी चुप कर देता था.

पिता विजय पिल्लेवार बेटे के स्वभाव को ले कर सोचविचार में ही थे कि किसी बात को ले कर विक्रांत उपद्रवी हो गया. वह घर के बरतन फेंकने लगा. दीवारों पर हाथ व सिर पटकने लगा. हिंसक पशु की तरह वह गुर्राने भी लगा था.

पासपड़ोस के लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अच्छेखासे हैंडसम दिखते लड़के को हो क्या गया है.

पूरा पिल्लेवार परिवार घर में ही डरासहमा सा था. विक्रांत अजीब सी हरकतें करते हुए इधरउधर हाथ पटक रहा था. विजय पिल्लेवार ने छिप कर अपने दोस्त को फोन लगाया. विक्रांत की हरकतों के बारे में जानकारी दी. तब वह दोस्त मदद के लिए उन के घर आया.

कुछ समय बातचीत करने के बाद वे विक्रांत को घूम कर आने के बहाने मैडिकल अस्पताल क्षेत्र के एक डाक्टर के घर ले गए.

डाक्टर ने जांच के बाद कहा कि कभीकभी ऐसी हालत हो जाती है कि साधारण इनसान भी असाधारण हरकत करने लगता है. उस के साथ सामान्य बरताव होता है, तो वह भी सामान्य हो जाता है.

डाक्टर ने कुछ गोलियां खाने को दीं और यह कह कर घर लौटा दिया कि फिलहाल विक्रांत का लंबा चैकअप नहीं किया जा सकता है. लौकडाउन है, इसलिए किसी अस्पताल में भरती भी नहीं किया जा सकेगा. सो, बेहतर यही होगा कि उसे घर में ही रखा जाए. वह जो भी कहे, उस की बात की खिलाफत न की जाए.

जाग उठा शैतान

डाक्टर के यहां से लौटने के बाद विक्रांत घर पर अपने कमरे में जा कर सो गया. रात के 8 बजने वाले थे. वह जागा. रात 9 बजे बहन अवंती ने उसे बड़े लाड़ के साथ भोजन करने को कहा. वह थोड़ा मुसकराया. फिर टीवी वाले कमरे में सोफे पर जा कर बैठ गया. उस के मातापिता भी करीब में आ कर बैठ गए थे.

सभी टीवी देख रहे थे. उसी दौरान विक्रांत अपने कमरे में गया. उस ने एक इजैंक्शन अपने हाथ में लगाया. माना गया कि वह इंजैक्शन स्टेरौयड का था.

स्टेरौयड का इंजैक्शन लगा कर विक्रांत फिर से सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा. शायद उस पर स्टेरौयड का नशा चढ़ने लगा था.

कुछ मिनटों में ही पिता विजय पिल्लेवार सोफे से उठ कर मोबाइल फोन अपने हाथ में ले रहे थे, उसी दौरान विक्रांत चिल्ला उठा, ‘‘कोई मोबाइल फोन को हाथ नहीं लगाएगा. जो जहां बैठा है, वहीं बैठा रहे.’’

विक्रांत की बात पर उस के परिवार वाले पहले तो दंग रह गए, फिर सभी ने सोचा कि शायद विक्रांत मजाक कर रहा है.

पिता ने बगैर कुछ बोले फिर से मोबाइल फोन की ओर  हाथ बढ़ाया, तब विक्रांत ने पिता के गाल पर थप्पड़ मार दिया. मां कांताबाई से रहा नहीं गया. उन्होंने हिम्मत कर के विक्रांत को फटकारा, ‘‘होश में तो है पगले, अपने बाप पर हाथ उठाता है. तेरे को नरक में भी जगह नहीं मिलेगी.’’

विक्रांत और भी गुस्से से लाल हो गया. उस ने मां को भी थप्पड़ मारा. छोटी बहन कुछ बोलती, इस से पहले ही उसे भी एक तमाचा रसीद कर दिया.

क्रूर करतूत

थप्पड़ खा कर गिरे पिता ने उठ कर विक्रांत की खिलाफत करने की कोशिश की, तो घर में कुहराम मच गया. मां और बहन बीचबचाव करती रह गईं.

विक्रांत पिता पर टूट पड़ा. उस के सिर पर मानो खून सवार था. लोहे की छड़ से सिर पर वार कर उस ने पिता को फिर से गिरा दिया और जोरजोर से उन का सिर फर्श पर पटकता रहा.

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विक्रांत की हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने बड़ी बेरहमी से अपने दांतों से पिता का गला काट दिया, फिर उन का अंग काट कर चबा गया.

यह देख कर मांबेटी सिहर उठीं. वे दोनों अपनी जान बचाते हुए पड़ोसी के घर भाग गईं और शोर मचा कर लोगों से मदद की गुहार लगाती रहीं.

इधर विक्रांत का तांडव जारी था. वह रसोईघर से सब्जी काटने का चाकू ले आया. बेहोश से हुए पिता के गले पर चाकू से वार करने लगा. फिर पिता को घसीटते हुए दरवाजे तक ले आया. वहां भी वह नहीं रुका. पिता की छाती पर बैठ कर उन की गरदन मरोड़ने लगा.

इस हैवानियत की खबर महल्ले में फैली. कुछ लोग बचाव के लिए आए, लेकिन विक्रांत का खतरनाक रूप देखने के बाद कोई उस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

विक्रांत के वार से उस के पिता मरने जैसी हालत में थे. दरवाजे पर पड़े उन के शरीर में कोई हलचल नहीं थी.

इसी बीच विक्रांत को न जाने और क्या सूझा, वह फिर से अपने कमरे में गया. वहां से पेचकश ला कर पिता की आंख निकालने की कोशिश करने लगा. फिर अचानक पेचकश छोड़ कर कमरे के कोने में लहूलुहान हालत में बैठ गया.

तब किसी ने फोन पर हुड़केश्वर पुलिस स्टेशन में सूचना दी. लौकडाउन के चलते पुलिस स्टेशन में पुलिस कम थी. 2 सिपाही मोटरसाइकिल से घटनास्थल पर पहुंचे, लेकिन विक्रांत उन्हें भी दूर से ही मार डालने की धमकी देता रहा. तब वे दोनों सिपाही थाने में लौटे. बड़े अफसरों को इस घटना की सूचना दी. आननफानन कुछ अफसर जमा हुए. आसपास के इलाकों में सुरक्षा बंदोबस्त में लगे पुलिस जवानों को भी सूचना दी गई. तब 8 से 10 पुलिस जवानों का दल पुलिस थाने की गाड़ी ले कर विक्रांत को पकड़ने पहुंचा.

जवानों ने विक्रांत पर डंडे बरसाए, जैसेतैसे उस के पैरों में रस्सी बांधी, फिर उसे थाने में ले कर आए.

उधर पिता विजय पिल्लेवार को तत्काल उपचार के लिए मैडिकल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल में डाक्टर ने विजय पिल्लेवार को मरा हुआ बता दिया.

हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विजय पिल्लेवार की बेटी अवंती की शिकायत पर अपराध क्रमांक 166-2020 भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया.

विक्रांत थाने में भी बेकाबू हो रहा था. काफी देर तक वह कपड़े उतार कर थाने में हंगामा मचाता रहा. वह कह रहा था कि चाहे उस से जितने भी रुपए ले लो, लेकिन उसे पावर डोज दिला दो.

पुलिस आयुक्त भूषण कुमार उपाध्याय, सहआयुक्त रवींद्र कदम, अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे के मार्गदर्शन में हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विक्रांत के हाथपैर बांध कर कस्टडी में रखा.

दिमाग कैसे सरका

फिलहाल इस वारदात में यही माना जा रहा है कि विक्रांत को स्टेरौयड दवाओं के शौक ने हिंसक बना दिया. लौकडाउन में उस का शौक बाधित होने लगा, तो वह मानसिक तनाव में रहने लगा.

पुलिस ने उस के कमरे व कार से कुछ दवाओं के अलावा इंजैक्शन के सीरिंज बरामद किए. मनोचिकित्सकों से चर्चा के आधार पर पुलिस कह रही है कि शक्तिवर्धक दवा के असर में ही यह वारदात होने की ज्यादा संभावना है.

दरअसल, विक्रांत जिम ट्रेनर है. फिटनैस गुरु के तौर पर वह कई जानीमानी हस्तियों को भी ट्रेनिंग देता रहा है. आईपीएस लैवल के अफसर से ले कर बड़े कारोबारी व नेता भी उसे घर बुला कर उस से फिटनैस की टिप्स लेते रहे हैं.

12वीं क्लास में फेल होने के बाद उस ने कुछ समय तक मैडिकल स्टोर में काम किया. उसे पहले से ही जिम का शौक था. जिम ट्रेनर को कोर्स करने के बाद वह बतौर ट्रेनर काम करता था.

वह मौडल की तरह दिखता है. उस ने पार्टनरशिप में जिम शुरू किया. जिम के साथ ही वह स्टेरौयड दवाओं व इंजैक्शन की बिक्री का काम करता रहा है. उस ने बाकायदा वी चैंपियन नाम से एक मोटिवेशनल संस्था शुरू की. सिक्स पैक बौडी के लिए चर्चित विक्रांत के कई युवा नेताओं से भी संबंध हैं. वह बौडी बनाने के लिए अलगअलग दवाओं के इस्तेमाल व उन के लाभ के बारे में भी क्लास लेता रहा है. इस संबंध में वह औनलाइन टिप्स भी देता रहा है.

विक्रांत के नैटवर्क में कई हसीन युवायुवतियां हैं. कुछ महीने पहले ही उस ने एक बौडी डवलपमैंट इवैंट का आयोजन किया था. उस में बौडी फिटनैस से संबंधित स्टार्स को मुंबई से बुलवा कर शामिल किया था.

2-3 साल में ही उस की जिंदगी में काफी बदलाव आ गया था. उस का आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन उस के दोस्तों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ने लगी, जो विविध क्षेत्रों में दबदबा रखते हैं. हुक्का पार्लर्स से ले कर युवाओं के रोमांस स्थल माने जाने वाले कुछ रैस्टोरैंटों में भी उस का खास दबदबा था.

दक्षिण नागपुर में ही ड्रग्स तस्कर आबू रहता था. चर्चा है कि आबू से भी विक्रांत की करीबी जानकारी थी. फिलहाल आबू नागपुर सैंट्रल जेल में है.

विक्रांत ने अपने पिता की हत्या की, उस के 3 दिन बाद आबू ने जेल में खुदकुशी करने की कोशिश की. आबू की इस कोशिश को ले कर प्रशासन हड़बड़ाया है.

आबू ड्रग तस्कर है. उस के पास न केवल बेहिसाब दौलत पाई गई, बल्कि कई पुलिस वाले भी उस के सहयोगी पाए गए. ड्रग तस्करी के जिस मामले में उसे जेल में डाला गया है, उसी मामले में उस के सहयोगी के तौर पर 4 पुलिस वालों को महकमे ने निलंबित किया है.

घातक दवाओं का सेवन

इस मामले को ले कर डाक्टरों व मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सेहत बनाने के लिए युवा जानेअनजाने में घातक दवाओं का सेवन कर रहे हैं. आधुनिकता की दौड़ और उस की चमक के पीछे भाग रहा युवा वर्ग इस कदर अंधा हो गया है कि परफैक्ट बौडी बनाने के लिए प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन का सहारा ले रहा है.

इस से उस के शरीर की मांसपेशियां तो फूल जाती हैं, लेकिन बदले में मानसिक अस्थिरता, कमजोरी के साथ उसे हिंसक भी बना देती है.

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जानकार सलाह देते हैं कि प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन लेना बंद कर दें. मनोचिकित्सक डाक्टर अविनाश जोशी कहते हैं कि जिम में बौडी बनाने के लिए मिलने वाला प्रोटीन किसी दवा की दुकान में नहीं मिलता है. यह सिर्फ जिम में मिलता है. इसे खाने से दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है. इस का सेवन करने वाले की कई बार सोचनेसमझने की ताकत कमजोर हो जाती है.

महाराष्ट्र मैडिकल काउंसिल के सदस्य डाक्टर विंकी रुघवानी कहते हैं, ‘‘बौडी बिल्डिंग का चसका युवाओं को ऐसे गंभीर मोड़ की ओर ले जा रहा है, जिस से वे अपनी बुद्धिमता, मानसिक ताकत और शारीरिक ताकत को कमजोर कर रहे हैं.

‘‘उन्हें इस बात का तब पता चलता है, जब अपनी कमजोरी, उदासीनता, घबराहट, चिड़चिड़ापन और मानसिक विक्षिप्तता की हरकतों का उपचार कराने वे डाक्टर के पास जाते हैं. ऐसी अवस्था को साइकोसिस कहा जाता है.’’

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अरूप मुखर्जी कहते हैं, ‘‘बाजार में जब भी कोई दवा खरीदो तो उस पर लिखा होता है कि अपने चिकित्सक से सलाह के बाद ही लें.

‘‘शक्तिवर्धक कैप्सूल पर भी यह बात लिखी होती है कि हर किसी के लिए यह फायदेमंद साबित नहीं हो सकता है, क्योंकि किसी को क्या बीमारी है, यह तय नहीं रहता है. यह भी मालूम नहीं रहता है कि संबंधित दवा से फायदा होगा या नहीं.’’

नागपुर पुलिस विभाग में अपराध शाखा के प्रमुख अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे कहते हैं कि नागपुर में ड्रग्स सप्लायर की कड़ी को तोड़ने के लिए पुलिस को सदैव अलर्ट रहना पड़ता है. यहां मुंबई के मार्ग से नाइजीरियन ड्रग सप्लायरों की सक्रियता देखी गई है.

Manohar Kahaniya: पड़ोसन का चसका

सौजन्य- मनोहर कहानियां

नूप की उम्र 17 साल थी. वह पास के ही एक स्कूल में 12वीं जमात में पढ़ता था. एक दिन जब वह स्कूल से घर आया तो देखा कि उस की मम्मी के साथ एक खूबसूरत औरत बैठी थी. वह औरत जवान थी और काफी पढ़ीलिखी भी लग रही थी.

मम्मी ने अनूप को बताया कि वह औरत साथ वाले घर में अपने पति के साथ रहने आई है. बातों ही बातों में जब पता चला कि माया नाम की वह खूबसूरत पड़ोसन इंगलिश में एमए है तो अनूप की मम्मी ने बिना देर किए माया के यहां अनूप का ट्यूशन लगवा दिया.

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अनूप तो अपनी माया भाभी के पास पढ़ने के खयाल से ही झूमने लगा था. अगले हफ्ते से अनूप का ट्यूशन शुरू हुआ तो वह पढ़ने से ज्यादा माया भाभी पर नजरें टिका कर रखता था.

हैरत की बात तो यह थी कि माया भाभी उसे कभी इस बात के लिए टोकती नहीं थीं. वे कभी कौपी पकड़ाने के बहाने उस के हाथों को छूती थीं तो कभी उसे अपने करीब बिठाती थीं.

शुक्रवार का दिन था. अनूप रोज की तरह माया भाभी के पास पढ़ने गया, पर भाभी तो कुछ बीमार दिख रही थीं. उन्होंने अनूप को बैडरूम में आ कर पढ़ने के लिए कहा.

जब अनूप बैड पर बैठा पढ़ रहा था तो उस का ध्यान अपनी पढ़ाई पर कम और माया भाभी पर ज्यादा था.

माया भाभी अचानक कराहीं तो अनूप को लगा कि उन की तबीयत बिगड़ रही है. वह उन्हें पानी पिलाने लगा तो उन्होंने गिलास उस के हाथ से ले कर पानी अपनी गरदन पर उड़ेल लिया. उन्होंने अनूप को पानी पोंछने के लिए कहा तो अनूप उन की बात मान कर वैसा ही करने लगा.

पर माया भाभी की मंशा कुछ और ही थी. उन्होंने अनूप को अपनी तरफ खींचा और उसे चूम लिया.

पहले अनूप थोड़ा सकपकाया, मगर खुद को दूर करने के बजाय उस ने माया भाभी के वश में रहना ज्यादा अच्छा समझा. इस के बाद तो वे दोनों उसी बैड पर प्यार का ट्यूशन पढ़ने लगे.

माया भाभी और अनूप के इन नाजायज संबंधों का सिलसिला तकरीबन 2-3 हफ्तों तक चला. न किसी को शक हुआ, न उन्होंने किसी की परवाह ही की.

लेकिन एक दिन जब माया भाभी के पति दिनेश औफिस से बिना बताए जल्दी घर लौटे और उन्होंने डोरबैल बजाने से बेहतर अपने पास रखी चाबी से दरवाजा खोला तो चौंक गए.

अनूप और अपनी पत्नी माया को बिस्तर पर देख दिनेश हैरान रह गए. उन्होंने दोनों को खूब गालियां दीं.

अनूप किसी तरह अपने कपड़े उठा कर वहां से भागा. वह घर पहुंचा और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के वहीं बैठा रहा.

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कुछ देर बाद जब मम्मीपापा आए तो उन्होंने जबरदस्ती अनूप को कमरे से निकाला और खरीखोटी सुनाई. पापा ने तो उसे कई चांटे भी जड़ दिए.

जब माया और अनूप के नाजायज संबंधों की जानकारी दूसरे लोगों को लगी तो उन का मजाक बनाया जाने लगा. अनूप को खूंटे से बांधने की हिदायतें दी जाने लगीं. माया का तो घर से बाहर निकलना ही बंद हो गया था.

स्कूल में भी अनूप को कोई छिछोरा कहता तो कोई बेशर्म. इन तानों से अनूप की जिंदगी नरक बन गई थी.

एक दिन अनूप माया भाभी के घर जा पहुंचा. माया ने दरवाजा खोला तो अनूप ने उन के मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया और जेब से ब्लेड निकाल कर उन की गरदन पर चलाने की कोशिश की.

जब माया चिल्लाईं तो आसपड़ोस के कुछ लोगों ने अनूप को रोका और उस की मां को वहां बुलाया.

माया तो बच गईं, पर अनूप को उन की जान लेने की कोशिश के जुर्म में बाल सुधारगृह भेज दिया गया.

इसी तरह अगस्त, 2015 की बात है. 23 साला प्रवीण को पुलिस ने 3 लोगों के खून के इलजाम में उस के घर से गिरफ्तार किया था.

प्रवीण ने अपनी 37 साला पड़ोसन रीना और उस के 2 बच्चों की हत्या की थी. हत्या की वजह भी यही थी कि रीना इन्हीं बातों से तिलमिलाए प्रवीण को पिछले एक साल से जिस्मानी संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रही थी. पर अब प्रवीण इस रिश्ते को खत्म करना चाहता था. रीना उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी. इसी के चलते प्रवीण ने रीना और उस के 12 साल के बेटे आदिल और 5 साल की बेटी साहित्य की हत्या कर दी.

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इस तरह के नाजायज संबंधों में अकसर लड़के की उम्र औरत से छोटी होती है, पर आने वाले खतरों के शिकार वे दोनों ही किसी न किसी तरह से होते हैं. किसी औरत की उम्र ज्यादा होने के चलते उस के लिए ऐसे संबंध केवल मनोरंजन का जरीया मात्र हो सकते हैं, इसलिए जवान होते लड़कों को इन के आने वाले खतरों के बारे में सचेत रहना बहुत जरूरी है.

Best of Crime Stories : जिस्म की खातिर किया इश्क

मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. मीना ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया. जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

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राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

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मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली. उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

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अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

खतरनाक मंसूबे की चपेट में नीलम

4अप्रैल, 2019 गुरुवार का दिन था. सुबह के लगभग साढ़े 4 बजे थे. सिपाही नीलम शर्मा की सुबह 5 बजे से दोपहर एक बजे तक मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ड्यूटी थी. नीलम ने तैयार हो कर अपना लंच बौक्स पिट्ठू बैग में रखा और दामोदरपुरा के मुख्यद्वार पर प्याऊ के पास पहुंच गई. यहीं पर रोजाना उसे लेने के लिए पुलिस की बस आती थी. प्याऊ के पास खड़ी हो कर वह स्टाफ की बस का इंतजार करने लगी. बस आने के लगभग 5 मिनट पहले एक कार नीलम शर्मा से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आ कर रुकी. उस समय नीलम का ध्यान अपनी बस के आने की तरफ था. अचानक आगे बढ़ी कार नीलम के पास आई. झटके से रुकी कार से उतर कर एक युवक तेजी से नीलम की ओर बढ़ा. जबकि कार में बैठे अन्य युवकों ने कार स्टार्ट रखी.

कार से उतरे युवक ने नीलम से कुछ बात की, इस के बाद उस ने नीलम के ऊपर तेजाब फेंक दिया. नीलम ने अपना बैग उस के मुंह पर मारा तो वह फुरती से कार में जा कर बैठ गया. कार वहां से कुछ दूर जा कर खड़ी हो गई.

अचानक हुए एसिड अटैक से झुलसी 26 वर्षीय नीलम घबरा गई. वह तेजाब की जलन से तड़पने लगी. उस ने शोर मचाया. मदद के लिए वह इधरउधर भागने लगी. जो भी उसे मिला, उस ने उसी से मदद की गुहार लगाई.

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इस बीच अखबार के एक हौकर ने महिला सिपाही को बचाने का प्रयास किया. तभी हमलावरों ने उन दोनों पर कार चढ़ाने की कोशिश की. लेकिन हौकर महिला सिपाही को ले कर एक तरफ हट गया, जिस से दोनों बच गए. हौकर ने उस कार पर पत्थर भी फेंके पर कार रुकी नहीं, तेज गति से चली गई.

रोतेबिलखते वह सिपाही एक दुकान के आगे गिर गई और दर्द की वजह से चीखने लगी. तेजाब से नीलम के कपड़े भी जल गए थे. यह देख दुकानदार ने मौर्निंग वाक पर निकली महिलाओं को बुलाया और उन की चुन्नी से नीलम को ढंका. उसी समय किसी ने इस घटना की जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दे दी.

नीलम ने किसी तरह अपनी सहकर्मी सिपाही नीतू को फोन कर दिया था. थोड़ी देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई और नीलम को जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

जानकारी मिलते ही एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, एसपी (क्राइम) अशोक कुमार मीणा, एसपी (सुरक्षा) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह भी अस्पताल पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य जुटाए. यह घटना विश्वप्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में घटी थी.

नीलम पिछले एक साल से थाना सदर बाजार क्षेत्र के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां अपनी सहकर्मी नीतू के साथ रह रही थी. नीलम के मकान मालिक सुरेंद्र सिंह भी नीतू के साथ अस्पताल पहुंच गए.

महिला सिपाही नीलम पर एसिड अटैक की घटना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. पूछताछ में नीलम ने पुलिस को बताया कि इस वारदात को संजय नाम के युवक ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था.

वह संजय को पहले से जानती थी. नीलम ने सदर बाजार थाने में संजय सिंह उर्फ बिट्टू निवासी नेमताबाद, खुर्जा (बुलंदशहर) व सोनू सहित 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. भादंवि की धारा 326(ए), 332 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस हमलावरों की तलाश में जुट गई.

नीलम की हालत थी नाजुक

जिला अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि नीलम तेजाब से लगभग 45 फीसदी झुलस गई है. एसिड से उस का चेहरा, एक आंख, हाथ व शरीर के अन्य हिस्से जल गए थे. नीलम की नाजुक हालत को देखते हुए उसी दिन शाम को उसे आगरा के सिकंदरा क्षेत्र स्थित सिनर्जी अस्पताल रेफर कर दिया गया. एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह खुद उसे ले कर सिनर्जी अस्पताल में भरती कराने पहुंचे.

सिनर्जी अस्पताल के डाक्टर नीलम के इलाज में जुट गए. उन्होंने बताया कि नीलम की हालत स्थिर बनी हुई है. जब नीलम के घर वालों को बेटी के साथ घटी दिल दहलाने वाली घटना की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. वे भी सीधे सिनर्जी अस्पताल पहुंच गए.

आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम इस हादसे से बेहद डरी हुई थी. कहने को अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा लगाई गई थी लेकिन पीडि़ता के परिजनों ने पुलिस अधिकारियों से और कड़ी सुरक्षा की मांग की. उन्हें डर था कि फरार संजय उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस पर एसएसपी ने पीडि़ता व उस के घर वालों को हरसंभव सुरक्षा देने का वायदा किया. घर वालों के अलावा अन्य किसी को भी अस्पताल में पीडि़ता से मिलने पर रोक लगा दी गई.

महिला सिपाही पर एसिड अटैक की यह दुस्साहसिक घटना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी. हर कोई पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में यह खबर सुर्खियां बन गई थीं. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी.

अभियुक्तों के फरार होने को ले कर उस दिन सोशल मीडिया पर भी सवाल खड़े होते रहे. लोगों का कहना था कि जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भला आम आदमी का क्या होगा.

उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया ओ.पी. सिंह ने मथुरा के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज से महिला कांस्टेबल नीलम शर्मा पर हुए एसिड अटैक की पूरी जानकारी ली. उन्होंने निर्देश दिए कि हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इस एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार कहीं भी हों, उन्हें ढूंढ निकाला जाए.

मथुरा में पुलिसकर्मी नीलम पर हुए एसिड अटैक के बाद महिला संगठनों के साथसाथ छात्राओं ने भी आक्रोश व्यक्त किया. वात्सल्य पब्लिक स्कूल, राधाकुंड, चरकुला ग्लोबल पब्लिक स्कूल और गौड़ शिक्षा निकेतन में शिक्षिकाओं एवं छात्रछात्राओं ने पीडि़ता के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की.

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उन्होंने एसिड फेंकने वाले दोषी लोगों को फांसी देने की मांग की. वहीं आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम को देखने के लिए महिला शांति सेना की सदस्याएं पहुंची. संरक्षिका कुंदनिका शर्मा ने आरोपियों को शीघ्र पकड़ने व कड़ी सजा दिलाने की मांग की.

पकड़ा गया मुख्य आरोपी

एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने आरोपियों को पकड़ने के लिए अलगअलग थानों के तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 पुलिस टीमें बनाईं. ये टीमें मथुरा के अलावा खुर्जा और बुलंदशहर जा कर आरोपियों को तलाशने लगीं. इस बीच पुलिस को हमलावरों की कार नंबर डीएल 2पीए8381 घटनास्थल से कुछ दूर लावारिस हालत में खड़ी मिली. कार पुलिस ने जब्त कर ली. पुलिस टीम ने अगले दिन 5 अप्रैल को शाम 5 बजे मुखबिर की सूचना पर एक आरोपी सोनू को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि नीलम शर्मा के ऊपर तेजाब संजय सिंह ने डाला था. सोनू की निशानदेही पर रात करीब 11 बजे घटना के मुख्य आरोपी संजय सिंह को मुठभेड़ के बाद यमुनापार इलाके के राया रोड स्थित राधे कोल्डस्टोरेज के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

मुठभेड़ के दौरान संजय के बाएं पैर में गोली लग गई थी. पुलिस ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया था. संजय के कब्जे से पुलिस ने एक तमंचा और एक बाइक बरामद की. पुलिस ने संजय सिंह से जब सख्ती से पूछताछ की तो सिपाही नीलम शर्मा पर एसिड अटैक करने की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की चाशनी में डूबी हुई निकली—

नीलम शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की कोतवाली शिकारपुर के गांव आंचरू कलां की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम सुंदरलाल शर्मा था. जबकि मुख्य आरोपी संजय सिंह खुर्जा में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था. जब नीलम पढ़ाई कर रही थी, तब उस का संजय सिंह की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था.

संजय और नीलम की मुलाकात कंप्यूटर सेंटर में हुई जो बाद में दोस्ती में बदल गई थी. दोस्त बन जाने के बाद दोनों फोन पर भी बातें करने लगे. दोस्ती बढ़ी तो संजय नीलम को एकतरफा प्यार करने लगा, जबकि नीलम

उसे केवल अपना दोस्त ही समझती थी.

एक दिन संजय ने अपने मन की बात नीलम के सामने जाहिर कर दी तो नीलम ने उसे झिड़क दिया और उस से दूरी बना ली. इस पर संजय ने इस बारे में नीलम के घर वालों से बात की. चूंकि संजय उन की बिरादरी का नहीं था, इसलिए नीलम के पिता सुंदरलाल शर्मा ने नीलम की शादी संजय से करने को मना कर दिया.

इस के बाद नीलम की सन 2016 में उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी संजय ने उसे परेशान करना बंद नहीं किया. और कोई रास्ता न देख नीलम ने अपना फोन नंबर बदल दिया. लेकिन इस के बावजूद संजय ने उसे ढूंढ निकाला और परेशान करने लगा.

संजय लगातार उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. इस से परेशान हो कर नीलम के घर वालों ने उस की शादी कहीं दूसरी जगह तय कर दी.यह बात संजय को बुरी लगी. उसे लगने लगा कि उस की प्रेमिका अब किसी और की हो जाएगी.

सन 2017 में नीलम की पोस्टिंग मथुरा में हो गई. कुछ दिनों वह पुलिस लाइन में रही, इस के बाद सन 2018 में उस की तैनाती श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा में हो गई. इस पर नीलम मथुरा के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां किराए पर रहने लगी. उस ने अपनी बैचमेट और सहेली नीतू को भी उस कमरे में अपने साथ रख लिया था.

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पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संजय सिंह ने बताया कि वह नीलम से प्यार करता था. उस से उस की पिछले 10 सालों से जानपहचान थी. वह उस से शादी करना चाहता था, लेकिन उस ने बात तक करनी बंद कर दी थी. जब उसे पता चला कि नीलम की शादी कहीं और तय हो गई है, तब उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी प्रेमिका को किसी और की हरगिज नहीं होने देगा.

खतरनाक इरादे

उस की शादी रोकने के लिए उस ने नीलम के ऊपर तेजाब डालने का फैसला कर लिया. इस काम के लिए उस ने अपने दोस्तों हिमांशु ठाकुर, बौबी, किशन शर्मा और सोनू को भी तैयार कर लिया. ये सब उस की प्रेम कहानी को जानते थे.

सब से पहले इन लोगों ने नीलम के आनेजाने के मार्ग की रेकी की. इस से पता लग गया कि उस की ड्यूटी श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा पर लगी है और वह सुबह पैदल ही दामोदरपुरा के प्याऊ पर पहुंचती है. वहां से वह पुलिस की बस में बैठ कर जाती है.

उन्होंने प्याऊ के पास ही योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. यह भी तय कर लिया था कि यदि नीलम बच गई तो उसे गोली मार देंगे. और अगर उस के साथ उस की सहेली नीतू हुई तो उसे भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे.

सभी ने बौबी की कार से घटना को अंजाम देने की बात तय कर ली. योजना बनाने के बाद संजय ने खुर्जा में पाहसू रोड स्थित दुकानदार पुनीत शर्मा के यहां से तेजाब खरीद लिया. फिर 4 अप्रैल, 2019 की सुबह उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

संजय की निशानदेही पर पुलिस ने तेजाब विक्रेता पुनीत शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने संजय सिंह, सोनू और पुनीत शर्मा को कोर्ट में पेश कर संजय का रिमांड मांगा. गोली लगने की वजह से संजय अस्पताल में भरती था. अदालत ने पुलिस की मांग मंजूर कर सोनू और पुनीत शर्मा को जेल भेज दिया और गोली से घायल संजय को पुलिस कस्टडी में सौंप दिया.पुलिस को अभी कई आरोपी गिरफ्तार करने थे. संजय की निशानदेही पर 6 अप्रैल को पुलिस ने बौबी और किशन शर्मा को गोकुल बैराज मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. शाम 6 बजे के करीब वे दोनों मथुरा आए हुए थे. पुलिस के अनुसार, उन का अपराध इसलिए भी गंभीर हो गया क्योंकि उन्होंने संजय को रोकने के बजाए उकसाया था.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर रविवार को जेल भेज दिया. एसिड अटैक के अब तक 5 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. अभी एक आरोपी हिमांशु ठाकुर पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस को 9 अप्रैल, 2019 को पता चला कि फरार आरोपी हिमांशु मथुरा आ रहा है. इस के बाद स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार, थाना सदर बाजार प्रभारी लोकेश भाटी और छाता कोतवाली प्रभारी हरवेंद्र मिश्रा ने घेराबंदी कर के गोकुल बैराज पर उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह फायर कर के बाइक से भागने लगा. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने भी गोली चलाई. गोली उस की दाहिनी टांग में लगी थी. घायल आरोपी वहीं गिर गया. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लेने के बाद जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

अपराध में हिमांशु भी था बराबर का हिस्सेदार

हिमांशु की सीधे हाथ की अंगुलियां तेजाब से जल गई थीं. पुलिस ने उस के पास से बाइक व तमंचा भी बरामद कर लिया. पूछताछ में उस से काम की कई बातें पता चलीं. हिमांशु को भी अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

उधर मुख्य आरोपी संजय सिंह जिस की बाईं टांग में गोली लगी थी, उस का औपरेशन किया गया. उसे 2 यूनिट खून भी चढ़ाया गया.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी ने बताया कि आरोपी संजय ने जबरन शादी के लिए इस घटना को अंजाम दिया था. महिला पुलिसकर्मी पर एसिड अटैक की दिल दहला देने वाली घटना में शामिल सभी 6 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इन में से 4 को जेल भेज दिया गया, जबकि 2 घायल आरोपी अस्पताल में भरती हैं, जहां उन का उपचार चल रहा है. सभी पर एनएसए भी लगाया जाएगा. एसिड अटैक से घायल महिला पुलिसकर्मी नीलम की हरसंभव सहायता की जाएगी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम

मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

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उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

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तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

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राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.  ?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

सोने के लालच की “फांस”

अक्सर हम सुर्खियों में देखते हैं सोना देने, दिलाने की लालच में किस तरह ठगी  हो जाती है. मगर इसके बावजूद लोग आज भी सोने की पीली धातु की चमक में आकर ठगी का शिकार हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ की स्टील सिटी कहे जाने वाले भिलाई एवं आदिवासी जिले जशपुर  में दो बड़ी सनसनीखेज घटना घटित हुई है. जो यह दर्शाता  है कि देश में आज भी सोने का लालच किस तरह बुरी बला बना हुआ है.

भिलाई शहर  स्थित एक हार्डवेयर व्यापारी को लालच में फांस कर एक व्यक्ति ने सोने का ऐसा झांसा दिया की वह दिन दहाड़े लुट गया. एक  व्यक्ति 2जून  को  नकली सोना थमाकर व्यापारी से 5 लाख रुपये लेकर फरार हो गया. दरअसल,  नंदिनी रोड में हुई इस घटना के बाद  छावनी पुलिस ने धारा 420,34 के तहत अपराध भी  कायम कर लिया है. ठगी के शिकार हुए निर्मल  जैन (53 वर्ष ) शांति नगर का रहवासी है.  निर्मल को  एक अनजान शख्स ने महिला सहयोगी के साथ मिल जाल मे फंसा ठगी का शिकार बनाया. इस वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी ने व्यापारी निर्मल कुमार जैन पर पेशेवर ठग की तर्ज पर पहले दाना डाला.

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कथित आरोपी 20 मई को निर्मल की दुकान पर प्लायी  क्रय करने  पहुंचा. इस दौरान रुपये कम होने का हवाला देकर उसने एक चांदी का सिक्का सामने रख दिया. निर्मल ने कहा,- यह तो प्लायी की कीमत से काफी महंगा है. तब उस शख्स ने संजीदगी से  कहा  कि उसके पास बहुत  सा  सोना है, जिसे वह बाजार रेट से कम में निकालना  चाहता है. शख्स की बातों से प्रभावित निर्मल जैन ने सोना देखने के बाद सौदा करने हामी भर दी.  दूसरी  बार 22 मई को वह अनजान शख्स एक सोने का चेन लेकर निर्मल की दुकान पर फिर से पहुंचा. इस बार उसके साथ एक महिला भी थी.आदिनाथ सेल्स एजेंसी के संचालक को विश्वास में लेकर ठग ने पांच लाख रुपये  लेकर चलता बना.

सोने की लालच बनी  बला

भिलाई छावनी  मामले के जांच अधिकारी विनय बघेल  बताते हैं  करुणा हॉस्पिटल के पास  सुपेला शांति नगर सड़क-3 क्र्वाटर- 238 निवासी निर्मल जैन (53 वर्ष) की नंदनी रोड में आदिनाथ सेल्स एजेन्सी के संचालक है कोरोना काल के संक्रमण समय मे  20 मई को सुबह 10 बजे उनकी दुकान आया और अपनी मोहक बातों में फंसा कर ठग ने  विश्वास में ले लिया. ठग ने निर्मल का भरोसा जीतने के लिए उसे 4 दाना सोने की चेन से तोड़कर उसी के सामने  रख  दिया. ठग ने कहा कि इसकी पहले जांच करा लीजिए. इसके बाद खरीदना. निर्मल जैन ने सोने के दाना को निकट के  राधा ज्वेलर्स  में चेक कराया. चारों दाना पक्का गोल्ड था. ठग पर निर्मल का भरोसा पक्का हो गया. अज्ञात  ठग ने कहा कि उसके पास बहुत चांदी और सोना है जो  वह निकालना चाहता है.

2 जून को पीतल धातु में सोने का पानी चढ़ाकर वह ले आया.  और निर्मल जैन से  5 लाख नकद ले लिए. दोनों के बीच 7 लाख 50 हजार में सौदा हुआ था . निर्मल ने उसे पांच लाख रुपए नकद दिया.बाकि 2.50 लाख बाद में देने की बात तय हुई . ठग राजी खुशी  उसकी बात पर सहमत हो गया.पांच लाख रुपए  लेकर चलता बना. शाम को जब निर्मल ने जब सोना की जांच कराई को वह पीतल का निकला तो मानो उसके होश उड़ गए .

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महिला थी ठग की साथी

भिलाई शहर में हुई ठगी से सनसनी का माहौल निर्मित हो गया. एक शिक्षित उच्च वर्गीय शख्स  को ठगे जाने की मिश्रित प्रतिक्रिया हुई. यह तथ्य भी सामने आया कि ठग के साथ एक खूबसूरत महिला थी. उसके रूप लावण्य में फंसकर जैन साहब ठगी का शिकार हो गए! इसी तरह छत्तीसगढ़ के जशपुर में थाना बगीचा अंतर्गत एक गांव की सरपंच जो पूर्व में शिक्षिका थी  लाखों रुपए लाल सोना प्राप्त करने के लिए लुटा बैठी. छत्तीसगढ़ पुलिस इस मामले की भी तत्परता से जांच कर रही है.

प्रतीक्षा की गलती

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का.

सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था.

यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया. चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया.

पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

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‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई.

‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी.

मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा. हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी.

क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई.

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2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था.

शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई. ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली.

नई और पुरानी का फर्क

यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं.

यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया.

यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था.

दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था.

खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता.

दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर

प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा.

जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे.

एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

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‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया.

29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई.

प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता.

दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया.

रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा

31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए.

इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.

मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया.

28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए.

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यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी.

पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : देवर को खेत में लाई भाभी

भाभी और देवर का रिश्ता हमेशा से पवित्र माना गया है, कहा जाता है कि देवर के लिए भाभी मां के समान होती है. लेकिन हाल ही में राजस्थान के श्रीगंगानगर से सबको हैरान कर देने वाले मामला सामने आया है. जिसने भाभी-देवर के पवित्र रिश्ते को शर्मसार करके रख दिया है. इस चौंकाने वाले मामले से पूरा गांव सकते में है.

स्थानीय लोगों के बताए अनुसार उन्होंने भरी दोपहर में पास ही के एक खेत में एक महिला और दो युवकों को आपत्तिजनक हालत में झाड़ियों के बीच पकड़ा. लोगों ने तुरंत पुलिस को इस बारे में खबर दी. पुलिस ने मौके से तीनों को गिरफ्तार कर लिया है.

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पुलिस के अनुसार पकड़े गए आरोपियों के नाम संजय कुमार और राजू हैं. पुलिस को उनके पास से शराब की बोतल और कंडोम मिले है. पकड़े जाने के दौरान महिला ने संजय को अपना देवर बताया और महिला ने पुलिस को बताया कि वह अपनी मर्जी से उसके साथ आई है.

पुलिस की मानें तो महिला काफी नशे में थी. वहीं दोनों युवकों ने भी शराब या किसी अन्य प्रकार का नशा किया हुआ था. पुलिस ने महिला का मेडिकल करवाकर उसके परिजनों को सौंप दिया है. इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा है.

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Best of Crime Stories : 5 सालों का रहस्या

लेखक- हरमिंदर खोजी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

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बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

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थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक हत्या ऐसी भी

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमीखबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था. मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.  मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

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अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

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2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया.

मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था.

न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तोंयारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौनकौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरनेमारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गालीगलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरीशराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

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आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा मंजूरे, ‘‘मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलगअलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

 

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

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उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेनादेना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

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रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई. मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है.

मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सचसच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारीबारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सचसच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यारमोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

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कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

 

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

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मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था.

कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.  द्य

 

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