मासूम नैंसी का कातिल कौन : भाग 1

12 वर्षीय नैंसी बचपन की देहरी लांघ कर किशोरावस्था में कदम रख रही थी. वह हंसती थी तो उस के  मुंह से फूल झड़ते थे और बोलती थी तो ऐसा लगता था जैसे उस के हर शब्द से चंचलता टपक रही हो. पूरी कोठी उस की शरारतों से महकतीगमकती रहती थी. जब से उसे चचेरी बुआ बबीता (परिवर्तित नाम) की शादी पक्की होने की बात पता चली थी, तब से खुशी के मारे उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. बबीता उस के चाचा सत्येंद्र की बेटी थी.

नैंसी कुमार रवींद्र नारायण झा की बड़ी बेटी थी. रवींद्र नारायण का परिवार बिहार के मधुबनी जिले की तहसील फुलपरास के थाना अंधरामढ़ क्षेत्र में आने वाले गांव महादेवमठ में रहता था. रवींद्र नारायण पेशे से शिक्षक हैं और मुक्तिनाथ एजुकेशन ट्रस्ट के तहत अपना खुद का मुक्तिनाथ पब्लिक स्कूल चलाते हैं. नर्सरी से 5वीं तक का यह स्कूल बिहार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है. पिता के साथसाथ नैंसी की मां अर्चना भी सरकारी स्कूल में अध्यापिका हैं. उन की नैंसी से छोटी एक और बेटी है. मधुबनी में रविंद्र नारायण की गिनती बड़े लोगों में होती है. ऐसे में सामाजिक मानप्रतिष्ठा स्वाभाविक है.

जिस बात को ले कर नैंसी उत्साहित थी, आखिरकार वह दिन आ ही गया. 26 मई, 2017 को उस की चचेरी बुआ बबीता की शादी थी. शादी से एक दिन पहले 25 मई को मेहंदी का कार्यक्रम था.

नातेरिश्तेदार आ चुके थे. घर में खुशियों का माहौल था. सत्येंद्र का घर रविंद्र के घर से थोड़ी सी दूरी पर था. मेंहदी की रस्म में रविंद्र के परिवार की महिलाएं भी शामिल हुईं.

नए कपडे़ पहन कर नैंसी खूब खुश थी. वह अपनी हमउम्र हिमांशु, साक्षी और भारती के साथ चाचा के घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद नैंसी की मां अर्चना बाहर आईं तो बेटी को बच्चों के साथ न देख कर परेशान हुईं. उन के पूछने पर बच्चों ने बताया कि नैंसी यहीं कहीं होगी, थोड़ी देर पहले तक तो हमारे साथ ही खेल रही थी. बच्चे फिर से खेलने में मस्त हो गए. उधर अर्चना ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन नैंसी कहीं नजर नहीं आई.

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तभी किसी ने बताया कि उस ने नैंसी को साढ़े 6 बजे के करीब घर की ओर जाते देखा था. यह सुन कर अर्चना को थोड़ी तसल्ली हुई कि नैंसी घर चली गई है. थोड़ी देर बाद मेंहदी की रस्म पूरी कर के वह छोटी बेटी को ले कर घर पहुंची तो नैंसी वहां भी नहीं थी. यह देख कर अर्चना परेशान हो गईं. बात परेशान करने  वाली इसलिए थी क्योंकि नैंसी घर से इधरउधर कहीं नहीं जाती थी.

अर्चना की समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने फोन कर के यह बात अपने पति कुमार रविंद्र नारायण को बताई. रविंद्र शादी की खरीदारी करने निर्मली बाजार गए थे. पत्नी का फोन सुन कर वह भी परेशान हो गए. खरीदारी कर के जब वह रात को 9 बजे घर पहुंचे तो उन के चचेरे भाई राघवेंद्र ने उन्हें एक चौंकाने वाली बात बताई.

उस ने बताया कि शाम साढ़े 6 बजे के करीब ग्रामीण बैंक के पास एक अज्ञात मोटर साइकिल वाला व्यक्ति नैंसी को मोटर साइकिल पर बैठा कर भाग गया. वह सांवले रंग का था और उस के चेहरे पर दाढ़ी थी. उस ने आसमानी रंग की चैक वाली शर्ट और काली पैंट पहन रखी थी. साथ ही उस के सिर पर गमछा भी बंधा था.

राघवेंद्र ने जो हुलिया बताया था वह उसी के गांव के रहने वाले पवन नाम के एक युवक से काफी मेल खाता था. इस का मतलब था कि पवन ने ही नैंसी का अपहरण किया था.  नैंसी के रहस्यमय ढंग से गायब होने को ले कर गांव भर में कोहराम मच गया. तब तक गांव के चारों तरफ नैंसी की तलाश कर ली गई थी.

जब बेटी का कहीं पता नहीं चला तो उसी रात रविंद्र गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर थाना अंधरामढ़ पहुंच गए. थानाप्रभारी राजीव उन्हें जानते थे. उन्होंने हालचाल पूछा तो रविंद्र ने उन्हें बेटी के अपहरण की बात बता दी. साथ ही गांव के ही पवन और लल्लू पर संदेह भी व्यक्त किया. थानाप्रभारी राजीव ने उन्हें लिखित तहरीर देने को कहा तो रविंद्र ने पवन और लल्लू पर संदेह व्यक्त करते हुए तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने भादंवि की धारा 363, 365 के तहत पवन कुमार झा और लल्लू झा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

अफवाह के आधार पर पवन और लल्लू को ठहराया गया मुलजिम

अगले दिन 26 मई को रविंद्र नारायण की चचेरी बहन बबीता की बारात आने वाली थी. आरोपियों ने उस की शादी में विघ्न डालने के लिए नैंसी की अपहरण किया था. रविंद्र के अनुसार, आरोपियों के ऐसा करने के पीछे जो वजह थी, वह 5-6 साल पहले की एक घटना से जुड़ी हुई थी.

दरअसल, पवन और लल्लू सगे भाई थे और उन्होंने बबीता के साथ छेड़छाड़ की थी. इस पर राघवेंद्र और पंकज ने उन्हें खूब मारापीटा था. उसी का बदला लेने के लिए, उन दोनों भाइयों ने ऐसा किया था. रविंद्र ने यह बात भी पुलिस को बता दी थी.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद घर लौटे रविंद्र को पता चला कि आरोपी पवन और लल्लू अपने घर में छिपे बैठे हैं. यह जान कर उन का खून खौल उठा. वह राघवेंद्र और कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर पवन के घर जा पहुंचे. पवन और लल्लू घर पर मिल गए. लोगों ने सारा गुस्सा दोनों भाइयों पर उतार दिया. फिर उन से पूछा कि उन्होंने नैंसी को अगवा कर के कहां छिपाया है.

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पवन और लल्लू ने कुछ नहीं बताया तो गांव वालों ने दोनों भाइयों को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस उन की तलाश में पहले ही गांव आ चुकी थी. दोनों भाइयों के मुंह से शराब की बू आ रही थी. पुलिस ने दोनों को थाने ले जा कर नैंसी के बारे में पूरी रात पूछताछ की. दूसरी ओर पुलिस और घर वाले नैंसी को अलगअलग दिशाओं में तलाशते रहे.

आरोपी पवन और लल्लू खुद को निर्दोष बता रहे थे. उन का कहना था कि न तो उन्होंने नैंसी का अपहरण किया है और न ही उस के बारे में उन्हें कोई जानकारी है. सुबह से देर रात तक वे अपने ड्यूटी पर थे. चाहे तो इस बात की तसदीक करा लें. बता दें कि लल्लू शहर के एक पैट्रोल पंप पर नौकरी करता था.

26 मई को बबीता की शादी बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो गई. लेकिन रविंद्र नारायण का मन बेटी में ही लगा था और वह उस की तलाश में जुटे थे. उन्होंने सभी जगह छान मारीं, लेकिन नैंसी का कहीं कोई पता नहीं चला. पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल खुद इस मामले की मौनीटरिंग कर रहे थे.

27 मई, 2017 को शाम साढ़े 7 बजे गांव महादेवमठ से लगभग 1 किलोमीटर दूर तिलयुगा नदी के पुल के नीचे एक लाश पड़ी मिली. गांव वालों की सूचना पर अंधरामढ़ के थानेदार राजीव कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

बड़ी बेदर्दी से की गई थी नैंसी की हत्या

थोड़ी देर में डीएसपी फूलपरास, एएसपी झंझारपुर निधि रानी, एसपी दीपक बरनवाल भी वहां पहुंच गए. दीपक बरनवाल ने ऐहतियात के तौर पर जिले के कई थानेदारों को मौके पर बुलवा लिया था ताकि बात बिगड़ने पर कोई भी कानून अपने हाथ में न ले सके. सूचना पा कर रविंद्र और नैंसी के दादा सत्येंद्र सहित घर वाले भी मौके पर पहुंच गए. शव देख कर उन्होंने उस की पहचान नैंसी के रूप में कर दी.

3 दिनों से लापता नैंसी लाश बन कर सामने आई. उस की लाश मिलते ही गांव में सनसनी फैल गई. रविंद्र के घर में कोहराम मच गया. मासूम नैंसी की लाश जिस स्थिति में बरामद हुई थी, वह वाकई सभ्य समाज के लिए रोंगटे खड़े करने वाली बात थी. लाश फूल कर पूरी तरह क्षतविक्षत हो चुकी थी.

प्रथमदृष्टया उस के शरीर पर तेजाब डाल कर जलाए जाने के निशान नजर आ रहे थे. चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. उस के दोनों हाथों की नसें कटी हुई लग रही थीं. यहीं नहीं, उस मासूम के साथ बलात्कार की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. हत्यारों ने उस का गला भी बड़ी निर्ममता से रेता था.

नैंसी का शव मिलने के बाद पुलिस ने अपहरण के केस में भादंवि की धारा 302, 201, 120बी और जोड़ दीं. पुलिस ने प्राथमिक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. नैंसी के घर वालों के शक और बयान के आधार पर हिरासत में लिए गए दोनों आरोपियों लल्लू और पवन झा से पूछताछ कर के बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया.

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लोग संतुष्ट नहीं थे पुलिस की काररवाई से

नैंसी हत्याकांड चर्चाओं में आ चुका था. सोशल साइट्स कैंपेन के बाद लोगों में बढ़ते आक्रोश को देख कर शासनप्रशासन सकते में था. घटना के 2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो पुलिस ने प्रैस कौन्फ्रेंस की, जिस में एसपी दीपक बरनवाल ने बताया कि पोस्टमार्टम से दुष्कर्म, नस काटने, गला रेतने या एसिड अटैक जैसी बातें प्रकाश में नहीं आई हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नैंसी की हत्या लगभग 72 घंटे पहले की गई थी. उस की मृत्यु का कारण था गला दबने से सांस रुक जाना. पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों की टीम ने किया है, जिस में 2 महिलाएं और एक पुरुष शामिल थे.

लेकिन नैंसी के घर वालों ने यह कह कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया कि रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की गई है, जबकि नैंसी की नस काटी गई थी और उस पर एसिड डाला गया था. पोस्टमार्टम में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है.

नैंसी हत्याकांड ने मधुबनी ही नहीं पूरे बिहार को हिला कर रख दिया था. आम आदमी से ले कर कई दलों के नेता तक सड़क पर आ गए थे और आरोपियों को फांसी देने की मांग कर रहे थे. नैंसी को इंसाफ दिलाने की मांग तेज पर तेज होती जा रही थी.

जस्टिस फौर नैंसी कैंपेन चला रही मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने दिल्ली के जंतरमंतर पर कैंडल मार्च निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया. मिथिला स्टूडेंट यूनियन सहित कई सामाजिक, छात्र संगठनों व आम लोगों के द्वारा अररिया, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा सहित कई जिलों में जगहजगह कैंडल मार्च निकाले गए.

बहरहाल, लोगों के रोजरोज के जुलूस, धरनाप्रदर्शन और सोशल मीडिया पर गंभीर कमेंट्स पोस्ट होने से पुलिस की खूब थूथू हो रही थी. ऐसा भी नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी.

नैंसी हत्याकांड मामले में जनता के बढ़ते दबाव से पुलिस के पसीने छूट रहे थे. लोगों का दबाव देख कर पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल ने 3 जून, 2017 को थानेदार राजीव कुमार को निलंबित कर दिया और उन की जगह आशुतोष कुमार को थाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

यही नहीं उन्होंने जांच का काम अंधरामढ़ थाने की जगह झंझारपुर की सहायक पुलिस अधीक्षक निधि रानी को सौंप दिया. उन के नेतृत्व में एसआईटी टीम का गठन किया गया. निधि ने जांच भी शुरू कर दी.

पता नहीं क्यों राघवेंद्र का बयान एएसपी निधि रानी के गले नहीं उतर रहा था. उन्होंने रविंद्र के बयान का विश्लेषण किया तो उस में कई झोल नजर आए. मसलन एक अकेला युवक 12 साल की किशोरी का कैसे अपहरण कर सकता था? अपहरण के समय नैंसी ने विरोध भी जरूर किया होगा, विरोध किया होगा तो वह अपने बचाव के लिए चिल्लाई भी होगी. लेकिन बताई गई जगह पर एक भी ऐसा गवाह नहीं मिला, जो राघवेंद्र के बयान को तसदीक कर पाता. इस का सीधा मतलब यह था कि वह झूठ बोल रहा था.

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एएसपी निधि रानी ने सुलझाई उलझी हुई गुत्थी

पुलिस ने इस बात को अपने तक ही सीमित रखा. इन सवालों के साथ निधि रानी ने उस पैट्रोल पंप के सीसीटीवी के फुटेज की जांच की, जहां लल्लू नौकरी करता था. फुटेज देख कर निधि हैरान रह गईं. राघवेंद्र ने जिस समय लल्लू द्वारा नैंसी के अपहरण किए जाने की बात कही थी, उस समय वह सीसीटीवी के फुटेज में पैट्रोल पंप की ड्यूटी करता हुआ नजर आ रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 3

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अब किसी को इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि बीसपंथी शांति सागर को सिद्धियां प्राप्त हो चुकी हैं. इसी तरह उस ने आग से एक साड़ी जलाई थी तो वह भी नहीं जली थी. जाहिर है यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि खालिस चालबाजी थी, जिसे कोई भी अंधविश्वास निवारण समिति साबित कर सकती है.

नेहा को पूरी तरह झांसे में लेने के अपने कामुक मकसद में वह कामयाब रहा था. हजारों भक्तों का सैलाब उस शांति सागर की जयजयकार करते उस के पांवों में लोट रहा था, जिस के दिलोदिमाग में वासना का सागर हिलोरें मार रहा था. इसी दिन भक्तों को उलझाए रखने के लिए उस ने 7 करोड़ 77 लाख मंत्रों का जाप कराया था.

अगले 2 दिन धार्मिक माहौल में रही नेहा अब अपने इस गुरु की आध्यात्मिक शक्तियों और चमत्कारों की पूरी तरह कायल हो चुकी थी. उसे विश्वास हो गया था कि अगर गुरुकृपा हुई तो कभी उस के परिवार पर कोई विघ्न या संकट नहीं आएगा.

आखिर वार कर ही दिया शांति सागर ने नेहा की इज्जत पर

1 अक्तूबर को शांति सागर ने अपनी कुत्सित मंशा पूरी करने के लिए नेहा के परिवार को कहा कि आज आप के परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए विशेष जाप किया जाना है, इसलिए परिवार के सभी सदस्य उस के साथ मंदिर में रहें. इस पेशकश पर यह परिवार बागबाग हो उठा. सभी लोग मय नेहा के उस के सान्निध्य के लिए पहुंच गए.

शांति सागर ने नेहा के मातापिता को एक कमरे में बैठा कर वैसी ही रेखा गोल घेरे की शक्ल में खींच दी, जैसी त्रेता युग में लक्ष्मण ने सीता के लिए खींची थी. उस ने इन दोनों को सख्त हिदायत यह दी कि कुछ भी हो जाए, उन्हें लगातार मंत्र जाप करना है और घेरे के बाहर नहीं आना है.

इन दोनों के मंत्र जाप में तल्लीन हो जाने पर उस ने नेहा के भाई को किसी बहाने से बाहर भेज दिया और नेहा को ले कर मंदिर के कमरे में चला गया. इस दौरान वह भी मंत्रोच्चारण करता रहा, जिस से कोई किसी तरह का शक न करे.

नेहा को अंदर ले जा कर उस ने बिठाया और उस के शरीर पर मोर पंख फेरने लगा. फिर कुछ देर बाद उस ने नेहा को कपड़े उतारने का आदेश दिया तो नेहा का सम्मोहन टूटा. गुरु क्या साक्षात भगवान भी उतर कर ऐसा कहे तो भी कोई युवती ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सकती. नेहा की हिचकिचाहट को दूर करने के लिए उस ने फिर उसे डराया कि इस स्टेज पर आने के बाद उस ने अगर बात नहीं मानी तो परिवार का अनिष्ट तय है.

इस के बाद नेहा ने सुबकते हुए पुलिस को बताया था ‘मेरे नग्न होने के बाद उस ने शरीर पर मोर पंख के बजाय हाथ फेरना शुरू कर दिया. इस पर मैंने उठने की कोशिश की तो वह गुस्से से भर उठा और फिर डराया. इस के बाद जो हुआ, वह मैं बयां नहीं कर सकती.’

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कुछ देर बाद लुटीपिटी नेहा बाहर आई और भाई से घर चलने के लिए कहा. भाई कुछ नहीं समझ पाया कि नेहा इतनी घबराई हुई क्यों है. बहरहाल नेहा घर आ कर सो गई. अगले दिन वह जागी तो उस का पूरा बदन दर्द कर रहा था, क्योंकि शांति सागर ने पूरी मर्दानगी और ताकत दिखाते हुए उसे बेरहमी से रौंदा था.

शरीर तो दर्द कर ही रहा था, साथ ही तनाव के चलते नेहा की दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी, इसलिए उस की मां उसे एक लेडी डाक्टर के पास ले गई. अनुभवी डाक्टर तुरंत समझ गई कि नेहा के साथ क्या हुआ है. नेहा की मानसिक हालत देख कर उस ने उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह भी दी और मुनि के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने को भी कहा.

अब शांति सागर का घिनौना चेहरा और कुत्सित हरकत दोनों ही सामने आ गए थे. लेकिन ये लोग समाज के डर से रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. उन्हें मालूम था कि कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि जैन मुनि शांति सागर ने एक मासूम युवती का कौमार्य भंग कर के उस का बेरहमी से बलात्कार किया है. हालांकि यह बात वह परिवारजनों को बड़ौदा आने के बाद बता भी चुकी थी.

डर के चलते ये लोग शायद रिपोर्ट नहीं लिखाते, लेकिन जब तनावग्रस्त नेहा चक्कर खा कर गिर गई तो मनोचिकित्सक ने साफसाफ कहा कि अगर आप लोग मुनि के खिलाफ काररवाई नहीं करेंगे तो लड़की घुटघुट कर मर जाएगी.

यही सलाह लेडी डाक्टर ने भी दी तो इन लोगों ने हिम्मत जुटाई और न केवल कमिश्नर को चिट्ठी लिखी, बल्कि बड़ौदा के महिला थाने में जा कर रिपोर्ट भी लिखाई.

इस पूरे मामले में एकलौती अच्छी बात पुलिस वालों का सहयोगात्मक रवैया रहा. कमिश्नर सतीश शर्मा के अलावा क्राइम ब्रांच के डीसीपी मनोज कुमार और सूरत की एएसपी निधि चौधरी ने नेहा की हालत देखते हुए तुरंत काररवाई की, जिस के चलते पूरा मामला रोशनी में आ पाया. मामले की जांच कर रहे अधिकारी डी.के. राठौड़ के सामने 4 और लोगों ने बयान दर्ज कराते हुए यह दावा किया कि वे शांति सागर और नेहा की मौजूदगी में वहां थे. अगर यह सच है तो इसे बलात्कार साबित कैसे किया जाएगा. यह बात भी शांति सागर के पक्ष में जाती है.

क्या सजा हो पाएगी जैन मुनि शांति सागर को?

धर्म की आड़ में धर्मगुरु कैसेकैसे लड़कियों को हवस का शिकार बनाते हैं, यह बात तो एक बार फिर सामने आई ही, साथ ही धर्मांध लोगों द्वारा शांति सागर का बचाव भी जता गया कि उन के लिए अपने ही समाज की एक युवती की अस्मत से ज्यादा धर्म की प्रतिष्ठा अहम है.

मामला अब अदालत में है और शांति सागर जेल में. कानूनी तौर पर साफ दिख रहा है कि शांति सागर यह साबित करने की पूरी कोशिश करेगा कि नेहा ने सहमति से संबंध बनाए थे और उस का पिता कमीशन मांग रहा था. जैसे नेहा को यह साबित करना आसान नहीं होगा कि बलात्कार हुआ है, वैसे ही तर्क शांति सागर की ओर से भी पेश किए जाएंगे कि यह एक अफेयर था, जो लंबे समय से चल रहा था.

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उम्मीद की जानी चाहिए कि मासूम नेहा को इंसाफ मिलेगा. लेकिन इस मामले से जैन समाज की एक कमजोरी भी उजागर हुई कि मुनियों में अंधश्रद्धा उन की बच्चियों की जिंदगी भी बरबाद कर सकती है. नेहा के मातापिता को अपनी बेटी को एकांत में मुनि शांति सागर के साथ भेजा जाना भारी भूल साबित हुई, जिस का खामियाजा मासूम नेहा ने भुगता.

चाय वाला था शांति सागर  

जैसे ही शांति सागर की करतूत उजागर हुई, लोगों की जिज्ञासा इस बात में स्वाभाविक रूप से बढ़ी कि वह है कौन और कैसे इतना बड़ा नामी मुनि बन गया. जिज्ञासुओं ने उस का अतीत और जिंदगी खंगाला तो पता चला कि शांति सागर मूलरूप से राजस्थान के कोटा का रहने वाला है और उस का असली नाम गिरराज शर्मा है.

शांति सागर यानी गिरराज के पिता सज्जन लाल शर्मा कोटा में हलवाई थे. पढ़ाईलिखाई में फिसड्डी गिरराज उन्हीं की मिठाई की दुकान के आगे चाय का ठेला लगाता था. किशोर अवस्था में ही मांबाप चल बसे तो गिरराज का मन भी कोटा से उचट गया और वह मध्य प्रदेश के गुना में अपने ताऊ के पास आ गया.

गुना में उस के ताऊ ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भतीजे का दाखिला एक स्कूल में करवा दिया. पर यहां भी पढ़ाईलिखाई में उस ने दिलचस्पी नहीं ली और चाय के एक ठेले पर काम करने लगा, जिस में बर्तन धोने का काम भी शामिल था. गुना में जवान हुए गिरराज को फैशन करने का खासा शौक था. वह तरहतरह के फैशन करता था और खाली समय में क्रिकेट खेलने का अपना शौक भी पूरा करता था. एक फैशनेबल लड़के को चाय के ठेले पर काम करते देख गुना के लोगों में वह मशहूर हो गया था.

साल 1993 में वह मंदसौर गया था, जहां जैन आचार्य कल्याण सागर के प्रवचन चल रहे थे. कल्याण सागर के प्रवचनों से वह इतना प्रभावित हुआ कि उस ने वहीं उन से दीक्षा ले ली. इस तरह वह गिरराज शर्मा से शांति सागर बन गया. जल्द ही अपना एक अलग संघ बना कर वह भी जैन मुनियों की तरह जगहजगह विहार करते हुए प्रवचन देने लगा. जल्दी ही जैन समुदाय में उस की खासी पैठ बन गई. उस के हजारों शिष्य बन गए थे.

जब पोल खुली तो उसे पूजने वाला जैन समाज भी उस पर थूथू करने लगा. क्रांतिकारी और कड़वे प्रवचनों के लिए मशहूर जैन मुनि तरूण सागर ने शांति सागर को पाखंडी बताते हुए मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की, पर ऐसा तब हुआ, जब उस का असली चेहरा सामने आ चुका था. जाहिर है ऐसे में कोई उसे क्यों संत या मुनि कहता. यह तो एक उजागर सच से मुंह छिपाने जैसी बात थी.

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टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 2

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इसी दौरान नेहा के पिता ने शांति सागर के श्री चरणों में निवेदन किया था कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें. हजारों भक्तों की भीड़ में रोज कई लोग शिष्य बनने की अनुनयविनय करते रहते हैं, पर मुनियों का जिस पर मन आ जाता है, वे उसे ही शिष्य बनाते हैं. नेहा के पिता के आग्रह को शांति सागर टाल गया.

दूसरे दिन जब शांति सागर ने नेहा को देखा तो जाने क्या हुआ कि उस के दिलोदिमाग में अशांति  छा गई. सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और संयम जैसे शब्द उड़नछू हो गए और इस शातिर का दिमाग नेहा को हासिल करने की जुगत में जुट गया.

कुछ सोचते हुए शांति सागर ने नेहा के पिता को बुलाया और सपरिवार दीक्षा देने यानी शिष्य बनाने को तैयार हो गया. खुद मुनि ने बुला कर गुरू बनने की बात कही, यह नेहा के पिता के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं थी.

उन की बांछें खिल उठीं और फिर देखते ही देखते उन का पूरा परिवार शांति सागर की सेवा में लग गया.

नेहा कैसे आई मुनि शांति सागर के प्रभाव में

मांडवी में नेहा कुछ दिन रुकी, फिर भाई के पास वापस बड़ौदा चली गई. पर उसे सपने में भी अहसास नहीं था कि वह किसी ऐसेवैसे या ऐरेगैरेनत्थूखैरे का नहीं बल्कि आचार्य तक कहे जाने वाले मुनि शांति सागर का दिल चुरा कर ले जा रही है, जो अब तक तप में रमा था.

बड़ौदा आ कर वह अपने कामों में लग गई पर शांति सागर के चमत्कारों ने उस के दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ दी थी. जैन धर्म में भी मंत्र जाप का काफी महत्व है. 4 फिरकों में बंटे जैन धर्म के 2 अहम संप्रदाय तेरापंथी और बीसपंथी हैं. तेरापंथी चमत्कारों में भरोसा नहीं करते, लेकिन बीसपंथी से जुड़ा शांति सागर कभीकभार ऐसा हैरतंगेज चमत्कार भक्तों, शिष्यों और श्रद्धालुओं को दिखा दिया करता था कि सभी हैरान रह जाते थे और उस में उन की आस्था और भी बढ़ जाती थी. कभीकभार गुस्से में आ कर वह अपने विरोधियों को कबूतर बनाने की धौंस देता था.

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए. लेकिन एक दिन नेहा उस वक्त हतप्रभ रह गई, जब उस के पास शांति सागर का फोन आया. चूंकि धर्म में उस की अगाध श्रद्धा थी, इस नाते वह जानती थी कि जैन मुनि मोबाइल फोन जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करते हैं. सांसारिक वस्तुओं से परहेज करने वाले गुरुजी के फोन से उसे खुशी तो हुई पर हैरानी भी कम नहीं हुई.

चिडि़या की तरह फंसी नेहा मुनि शांति सागर के जाल में

उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि यूं ही किसी भक्त के मोबाइल फोन से उन्होंने उसे काल कर दिया होगा. नेहा को इतनी जानकारी तो थी कि मुनि लोग अपने पास केवल पिच्छिका रखते हैं और आमतौर पर सूरज ढलने के बाद मौन धारण कर लेते हैं, लेकिन शांति सागर ने उसे रात को फोन कर के बात की थी.

बाद में यह जान कर तो उस की हैरानी और बढ़ गई कि शांति सागर के पास खुद के पांचपांच मोबाइल फोन हैं और वे वाट्सऐप का भी प्रयोग करते हैं. इस बाबत अपने मन में उमड़तीघुमड़ती शंकाओं को ले कर उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि उसे मुनियों के मामले में मीनमेख नहीं निकालनी चाहिए, यह अधर्म है.

फिर अकसर मोबाइल के जरिए शांति सागर नेहा के संपर्क में रहने लगा. एक दिन उस ने नेहा से उस की सब से बड़ी इच्छा पूछी तो अल्हड़ नेहा ने तुरंत कह दिया कि बस मैं और मेरे मम्मीपापा हमेशा खुश रहें.

चिडि़या को जाल में फंसते देख शांति सागर ने फोन पर ही तथास्तु की मुद्रा में उस से कहा कि ऐसा ही होगा, पर इस के लिए मंत्र जाप करना होगा, इसलिए तुम अपना एक फोटो वाट्सऐप पर भेज दो.

अपनी इच्छा पूरी होने की गारंटी मिलते देख नेहा ने तुरंत अपना फोटो वाट्सऐप पर भेज दिया. इस पर शांति सागर का फोन आया कि अरे ऐसा फोटो नहीं, बल्कि वैसा दिगंबर भेजो, जैसा मैं रहता हूं.

ऐसी बात या प्रस्ताव पर भला कौन भारतीय युवती होगी जो शर्म से लाल न हो उठे, यही नेहा के साथ हुआ. उस ने हिचकिचाहट दिखाते इनकार कर दिया तो शांति सागर ने बड़े दार्शनिक अंदाज में उसे समझाया कि अरे पगली भगवान तो सब को इसी अवस्था में पैदा करता है, ये वस्त्र तो दुनिया वाले पहना देते हैं.

इस के बाद भी नेहा सहमत नहीं हुई तो मुनि ने समझाया कि अब जप शुरू हो चुका है और इसे बीच में छोड़ने से तुम्हारे मातापिता का अनिष्ट हो सकता है. यह चूंकि विशेष प्रकार का जप है जो नग्नावस्था में ही पूरा होता है, इसलिए अनिष्ट से बचने के लिए नग्न फोटो भेजो.

अनहोनी से डर गई नेहा ने अपने कपड़े उतारे और उसी अवस्था में अपना फोटो खींच कर शांति सागर को भेज दिया. इस वक्त वह बेहद दुविधा में थी और लजा भी रही थी, खुद अपने कपड़े उतारते बारबार उस के हाथ कांप रहे थे. बात थी ही कुछ ऐसी ही.

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फोटो भेज कर वह पूरी तरह बेफिक्र हो पाती कि 2 दिन बाद फिर इस कामुक मुनि का फोन आया, जिस का सार यह था कि चूंकि यह फोटो थोड़े अंधेरे में खींचा गया है, इसलिए मंत्र असर नहीं कर रहे हैं. उस ने इस बार नेहा को निर्देश दिया कि वह पूरी रोशनी में निर्वस्त्र हो कर फोटो खींच कर भेजे, तभी अनिष्ट से बचा जा सकता है.

अपने जाल को धीरेधीरे फैलाता रहा मुनि शांति सागर

2 दिन पहले अपना नग्न फोटो भेज चुकी नेहा की झिझक थोड़ी कम हो गई थी, इसलिए उस ने गुरु की इस आज्ञा का भी पालन किया और वे जैसा फोटो चाहते थे, वैसा भेज दिया. लेकिन इस बात की चर्चा उस ने घर वालों से नहीं की, जिन की सलामती के लिए उस ने नारीसुलभ लज्जा दांव पर लगा दी थी.

2 महीने गुजर गए तो नेहा के मन से डर जाता रहा और उस ने मन ही मान लिया कि मंत्र जाप के लिए निर्वस्त्र फोटो जरूरी होता होगा, इसलिए शंका और चिंता की कोई बात नहीं. इस चक्कर में उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उस का नग्न फोटो देख शांति सागर ने उस की खूबसूरती की भूरिभूरि प्रशंसा की थी, जैसे वह कोई मुनि न हो कर दिलफेंक आशिक हो. नेहा के मन में तो परिवार की सुरक्षा की चिंता थी. वह अज्ञात आशंकाओं से उबरना चाहती थी.

फिर एक दिन शांति सागर ने उसे बताया कि सब कुछ ठीकठाक है, लेकिन इस बार मेरे चातुर्मास में तुम परिवार सहित आना. उस वक्त एक और विशेष जाप करूंगा, जिस से फिर तुम्हें या तुम्हारे परिवार को कभी कोई खतरा नहीं रह होगा. शांति सागर ने किस धूर्तता से संभ्रांत घराने की एक सांस्कारिक युवती को अपने जाल में फंसा लिया था, यह बात कोई समझ नहीं पाया. क्योंकि नेहा सब कुछ छिपाने की गलती कर रही थी. उस ने चातुर्मास में आने सहमति दे दी.

दरअसल, नेहा के नग्न फोटो देख कर ही शांति सागर के तनमन का संयम दरक चुका था और अब वह इस कल्पना में डूबा रहता था कि जब नेहा साक्षात इस अवस्था में उस के सामने होगी तब…

इस बाबत यह बहेलिया एक और जाल बुन रहा था. लेकिन उस के प्रवचनों में जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की रोजाना व्याख्या होती थी, जिसे सुन लोग अभिभूत हो उठते थे. शांति सागर को णमोकार बाबा के नाम से भी बुलाया जाता था.

जैन धर्म में मुनियों के चातुर्मास का विशेष महत्त्व होता है. बारिश के 4 महीनों में जैन धर्म के भव्य धार्मिक आयोजन शबाब पर होते हैं, जिन में भक्त दिल खोल कर धन लुटाते हैं. कौन कहां किस मुनि के सान्निध्य में चातुर्मास व्यतीत करेगा, यह जैन धर्मावलंबी काफी पहले तय कर लेते हैं और बढ़चढ़ कर उन में हिस्सा लेते हैं.

मुनि शांति सागर ने सही वक्त पर बांधी नेहा को फंसाने की भूमिका

इस बार शांति सागर ने अपने संघ का चातुर्मास सूरत जिले के नानपुरा टाटलियावाड़ स्थित जैन मंदिर में व्यतीत करने का फैसला लिया तो वहां के भक्तों ने शांति सागर की आगवानी में पलकपांवड़े बिछा दिए. समारोहपूर्वक चातुर्मास की तैयारियां करने में टाटलियावाड़ के जैनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. मंदिर पहुंच कर शांति सागर ने प्रवचन शुरू किए तो रोज भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी.

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अपना कामुक मकसद पूरा करने के लिए शांति सागर ने ग्वालियर में नेहा के पिता को चातुर्मास में आने को कहा तो वे मानो धन्य हो उठे. ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता है कि गुरु खुद शिष्य को आमंत्रित करे. शांति सागर का मुरीद हो चुका नेहा का परिवार सितंबर के महीने में टाटलियावाड़ पहुंच गया. इस के पहले शांति सागर ने नेहा को भी कह दिया था कि वह अपने घरवालों के साथ जरूर आए क्योंकि इन दिनों में विशेष जाप करना है.

धर्मज्ञानी और अनुभवी शांति सागर को इतना तो समझ आ गया था कि नेहा एकदम से उस के सामने समर्पण नहीं कर देने वाली, इसलिए नेहा को और गिरफ्त में लेने के लिए उस ने 29 सितंबर को सैकड़ों भक्तों के सामने एक पत्थर को पानी में तैराने का अविश्वसनीय कारनामा कर दिखाया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 1

19 वर्षीया नेहा जैन (बदला नाम) हद से ज्यादा धार्मिक और आस्तिक युवती थी. नेहा के पास वह सब कुछ था जिस पर वह चाहती तो घमंड कर सकती थी. एक धनाढ्य जैन परिवार में जन्मी नेहा की खूबसूरती में गजब की सादगी थी. गुरूर से कोसों दूर रहने वाली नेहा की कोई उम्रजनित इच्छा नहीं थी, सिवाय इस के कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश और स्वस्थ रहें.

नेहा के पिता का ग्वालियर में खासा रसूख और इज्जत दोनों है. वहां उन के कई लौज और धर्मशालाएं हैं, जिन से उन्हें खासी आमदनी होती है. धार्मिक माहौल नेहा को बचपन से ही मिला था, जहां घर में चाहे कुछ भी हो रहा हो, प्रतिदिन मंदिर जाना एक अनिवार्यता थी.

जैन मुनियों ओर गुरुओं में अपार आस्था रखने वाली नेहा चाहती थी कि ऐसी कोई गारंटी मिल जाए तो मजा आ जाए, जिस से कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश रहें, उन पर कभी कोई विपत्ति न आए. इस उम्र में मांबाप से इतना लगाव या चाहत कतई हैरानी की बात नहीं है. दूसरी तरफ उस के मम्मीपापा भी चाहते थे कि नेहा खूब पढ़लिख जाए और किसी अच्छे परिवार के लड़के से उस की शादी हो जाए तो उन की एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.

व्यावसायिक बुद्धि के लिए पहचाने जाने वाले जैन समुदाय के अधिकांश लोग धनाढ्य होते हैं. अपनी संपन्नता की वजह वे अपने धर्म और उन मुनियों को बहुत मानते हैं, जिन के कठोर त्याग, तपस्या की माला हर कोई जपता रहता है. नेहा को भी ऐसे किसी गुरू की तलाश थी, जो एक बार उसे यह आश्वासन दे दे कि उस के मम्मीपापा को कुछ नहीं होगा. इस आश्वासन के बदले वह कुछ भी करने तैयार थी.

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पर 45 वर्षीय जैन मुनि शांति सागर ने उस से जो वसूला, उस की तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. यह नेहा के सादगी भरे सौंदर्य का सम्मोहन ही था कि एक झटके में शांति सागर का संयम ऐसा टूटा कि देश भर के जैनी तो जैनी, गैरजैनी भी उस की करतूत पर शर्मिंदा हो उठे.

किसी धर्मगुरु का ऐसा घिनौना चेहरा पहली बार सामने नहीं आया था, लेकिन इस बार आरोप एक जैन मुनि पर लगा था, जिस से यह साबित हो गया कि ब्रह्मचर्य एक परिकल्पना या धारणा भर है, नहीं तो प्रकृति और इंद्रियों का द्वंद किसी तपस्या से खत्म नहीं हो जाता.

विरक्ति का राग अलापते रहने वाले धर्मगुरुओं में कामुकता या आसक्ति इस हद तक होती है कि वे या तो तमाम धार्मिक नियमों और सिद्धांतों को तोड़ने को बाध्य हो जाते हैं या फिर धर्म का वास्तविक चेहरा लोगों के सामने खुद उजागर कर देते हैं. इंद्रियों को वश में करने के नाम पर वे उन का दमन ही करते हैं.

नेहा की दुखद आपबीती या कहानी कहीं से भी शुरु कर लें, वह खत्म तो एक ऐसे बलात्कार पर जा कर होती है, जो धर्म की आड़ में एक जैन धर्मशाला में हुआ और इस की सुनवाई करने वाली अदालत को भी सहमति और असहमति के मुद्दे पर सोचने और फैसला देने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है. वजह यह कि शांति सागर निहायत ही धूर्त और रंगा सियार है, जिस ने अपने बचाव की भूमिका बलात्कार की योजना से पहले से ही बना रखी थी.

कैसे सामने आई पूरी कहानी की हकीकत

सूरत के पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने अपनी लंबी नौकरी में हर तरह के अपराध और अपराधी देखे हैं. बीती 12 अक्तूबर की डाक जब उन के दफ्तर में पहुंची तो एक लिफाफे पर गोपनीय लिखा हुआ था, लिहाजा उन के रीडर ने उस लिफाफे को खोलने के बजाय ज्यों का त्यों उन्हें सौंप दिया.

यह चिट्ठी नेहा ने उन्हें भेजी थी, जिसे खोलते ही सतीश शर्मा के होश फाख्ता हो गए. विस्तार से लिखी इस चिट्ठी में नेहा ने जैन मुनि शांति सागर महाराज पर अपने साथ बलात्कार का आरोप लगाते हुए सिलसिलेवार ब्यौरा भी दिया था. इस पत्र को एक सांस में पूरा पढ़ कर सतीश शर्मा को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई नामी जैन मुनि बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को भी अंजाम दे सकता है.

मामला गंभीर था और धर्म से ताल्लुक रखता था, इसलिए अनुभवी सतीश शर्मा ने इस की तह में जाने का फैसला कर लिया. उन्होंने चिट्ठी में लिखे मोबाइल नंबर पर फोन किया और नेहा को अभिभावकों सहित अपने औफिस में आने के लिए कहा. कोई भी कदम उठाने से पहले किसी भी जिम्मेदार और तजुर्बेकार पुलिस अधिकारी के लिए तसल्ली कर लेना जरूरी था कि वाकई जो लिखा है वह सच है या इस में कहीं कोई छलकपट या किसी की साजिश तो नहीं है.

नेहा अपने पिता के साथ कमिश्नर साहब के औफिस पहुंची और उस ने अपनी जुबानी सारी बात बताई. सतीश शर्मा को उस की बातों पर भरोसा न करने की कोई वजह नजर नहीं आई.

नेहा के बयान की बिनाह पर पुलिस ने शांति सागर को गिरफ्तार कर लिया. इस गिरफ्तारी का जैन समुदाय के लोगों ने हर मुमकिन विरोध किया. दिगंबर जैन समाज के वरिष्ठ लोग कमिश्नर से मिले और उन्हें बताया कि यह लड़की (नेहा) समाज को बदनाम करना चाहती है, इसलिए मुनि पर झूठा आरोप लगा रही है.

धर्म की दुनिया कितनी पूर्वाग्रही और विरोधाभासी होती है, यह साबित हुआ महावीर दिगंबर जैन मंदिर के एक ट्रस्टी आर.जी. शाह के इस कथन से. शाह ने बताया कि 29 सितंबर को सूरत के परवट पारिया के पास बनी मौडल टाउनशिप में जैन मुनि शांति सागर का पिच्छी परिवर्तन का आयोजन हुआ था. इस आयोजन में 2 करोड़ 92 लाख रुपए की बोली लगी थी. बकौल आर.जी. शाह नेहा के पिता इस राशि में से 40 फीसदी कमीशन मांग रहे थे, जो मुनिजी ने देने से इंकार कर दिया था. तब उन के इशारे पर नेहा ने मुनिजी पर बलात्कार का आरोप लगा दिया.

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जब एक संयमी दिगंबर जैन मुनि बलात्कार कर सकता है तो उसी समुदाय का एक परिवार कुछ लाख रुपए झटकने के लिए अपनी बेटी की इज्जत दांव पर लगा कर सौदेबाजी क्यों नहीं कर सकता? इस बात की अहमियत न केवल इस मुकदमे में बल्कि हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि जैन धर्म में बातबात पर लाखोंकरोड़ों की बोलियां लगती हैं, यह हर कोई जानता है.

किसी भी जैन मुनि पर आरोप लगाना आसान नहीं

सच क्या है यह जानने के लिए जरूरी था कि नेहा की मैडिकल जांच कराई जाए. जांच में डाक्टर ने दुष्कर्म होने की पुष्टि की तो शांति सागर को गिरफ्तार कर आठवा थाने लाया गया. अब तक देश भर में जैन मुनि के इस कुकर्म का हल्ला मच चुका था. यह भी शायद पहला मौका था, जब किसी दिगंबर जैन मुनि को पुलिस ने कपड़े पहनाए हों.

शांति सागर को भी जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन कपड़े पहना कर. इस बात पर भी सूरत की धार्मिक फिजा बिगड़ती दिख रही थी.

आठवा थाने के बाहर जैन समुदाय के लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी, इसलिए पुलिस ने ऐहतियात बरतते हुए शांति सागर को आधी रात में मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के उसे लाजपोक जेल में शिफ्ट कर दिया था. ऐसा इसलिए किया गया ताकि धर्मांध लोग किसी तरह का फसाद खड़ा न कर पाएं. जैन समुदाय के अधिकांश लोग नेहा के बयान पर भरोसा नहीं कर रहे थे, बल्कि यह मान रहे थे कि पैसों के लालच में उन के मुनि पर यह आरोप मढ़ा गया है, जिस की न्यायिक जांच होनी चाहिए.

निश्चित रूप से मामला न केवल तूल पकड़ लेता, बल्कि हिंसा भी हो सकती थी, लेकिन खुद शांति सागर ने एक सधे हुए खिलाड़ी की तरह अपनी और नेहा की मैडिकल जांच के बाद यह स्वीकार कर लिया कि उस ने नेहा से शारीरिक संबंध स्थापित किए थे. मुनि ने कहा कि इस के लिए उस ने कोई जबरदस्ती नहीं की थी, संबंध नेहा की सहमति से बने थे.

मैडिकल जांच के दौरान उस ने माना कि इस से पहले उस ने कभी देहसुख नहीं भोगा है. डाक्टर के यह पूछने पर कि आप तो मुनि हैं, फिर आप ने ऐसा क्यों किया? इस पर वह खामोश रहा और सिर झुका लिया.

यह इस मामले की दूसरी चौंका देने वाली बात थी. शांति सागर के इस बयान ने कमीशन और सौदेबाजी का आरोप लगा कर हायहाय करने वाले समर्थकों के गुस्से को ठंडा कर दिया, बात आईगई हो गई. कल का ईश्वरतुल्य पूजनीय मुनि शांति सागर लाजपोर जेल का कैदी नंबर 11035 हो गया.

नेहा के बयान से जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है –

कैसे बना नेहा जैन का परिवार शांति सागर का शिष्य

ग्वालियर में नेहा के पिता ने काफी पैसा कमा लिया था और वे व्यवसाय बढ़ाने के लिए गुजरात का रुख कर चुके थे. इस बाबत उन्होंने अपने बेटे को 4 साल पहले बड़ौदा भेज दिया था.

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भाई भी पिता की तरह तीक्ष्ण व्यवसायिक बुद्धि वाला था. इसलिए उस का कारोबार वहां भी चल निकला. ग्वालियर में स्कूली पढ़ाई पूरी कर चुकी नेहा को भाई ने अपने पास बड़ौदा बुला लिया और वहां के एक कालेज में उस का दाखिला करा दिया.

इसी साल मार्च के महीने में नेहा मातापिता के साथ मांडवी गई थी, जहां जैन मंदिर में शांति सागर के प्रवचन चल रहे थे. शांति सागर के प्रवचन सुन कर नेहा तो प्रभावित हुई ही थी, उस के मातापिता उस से भी ज्यादा प्रभावित हुए थे. शांति सागर के दर्शन मात्र से ही इस जैन परिवार को असीम सुख की प्राप्ति हुई थी.

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विदेशी शोलों में झुलसते भारतीय : भाग 1

मोहाली के सेक्टर-70 की कोठी नंबर 2607 में रहने वाले रंजीत सिंह भंगू पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से एक अच्छे पद से रिटायर हुए थे. उन की सब से बड़ी बेटी अमेरिका में, दूसरी न्यूजीलैंड में और तीसरी खरड़ के सन्नी एन्क्लेव में अपनेअपने परिवारों के साथ खुशहाल जीवन बिता रही थीं.

भंगू साहब का 20 वर्षीय एकलौता बेटा सिमरन सिंह गतवर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अपनी बड़ी बहन के पास अमेरिका गया था. पढ़ाई के साथसाथ वह दक्षिण सेकरामेंटो स्थित चैवगन गैस स्टेशन पर पार्टटाइम नौकरी भी करता था. गैस स्टेशन परिसर में जनरल मर्चेंडाइज की एक छोटी सी दुकान थी. कभीकभी सिमरन की ड्यूटी इस दुकान पर भी लग जाती थी.

26 जुलाई, 2017 की रात को भी सिमरन दुकान की ड्यूटी पर था. कुछ स्थानीय लड़कों ने दुकान पर आ कर सिमरन से थोड़ाबहुत सामान खरीदा. फिर वे दुकान से थोड़ी दूरी पर खुले में खड़े हो कर शराब पीने लगे. गैस स्टेशन के एक भारतीय कर्मी ने उन के पास जा कर उन्हें वहां शराब पीने से मना किया तो वे लड़के खफा हो कर उसे ही धमकाने लगे. बात बढ़ती देख कर वह कर्मचारी कुछ इस अंदाज से भीतर चला गया, जैसे उन्हें सबक सिखाने के लिए किसी को बुलाने जा रहा हो.

इत्तफाक से तभी सिमरन को किसी काम से दुकान के बाहर उसी ओर जाना पड़ गया. उन लड़कों ने आव देखा न ताव गोलियां चला कर सिमरन को मौत के घाट उतार दिया. उन्होंने 11 गोलियां दागी थीं, जिन में से 7 गोलियां सिमरन की छाती में लगी थीं.

इसी साल 7 अगस्त को जब समूचा हिंदुस्तान भाईबहन के पवित्र रिश्ते वाला त्यौहार रक्षाबंधन मना रहा था, सिमरन की बड़ी बहन हरजिंदर कौर अपने एकलौते भाई का शव ले कर अमेरिका से मोहाली स्थित अपने मायके पहुंची.

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अमेरिका की सेकरामेंटो पुलिस ने इस केस में फिलहाल एक संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया था, जबकि आगे की छानबीन जारी थी.

बात थोड़ी पुरानी है. पंजाब स्थित फगवाड़ा के एक सिपाही की आतंकवादियों से मुठभेड़ में मौत हो गई थी. तब इस के एवज में अनुकंपा के आधार पर पंजाब पुलिस ने उस के छोटे भाई नीरज को नौकरी औफर की थी. नौकरी जौइन करने के बाद नीरज प्रशिक्षण के लिए पुलिस ट्रेनिंग सैंटर में गया तो किसी ने उस से कह दिया कि वह तो फिल्मी हीरो लगता है, कहां पुलिस की रफटफ नौकरी में चला आया.

नीरज शुरुआती दौर में ही पुलिस की नौकरी को अलविदा कह घर आ गया. फिल्मों में काम हासिल करने के लिए उस ने प्रयास भी किए, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

इस पर उस के एक पारिवारिक मित्र ने सलाह दी कि पहले विदेश जा कर वह खूब पैसा कमाए और फिर खुद अपनी फिल्म बनाए. नीरज को यह सलाह जंच गई.

जोड़तोड़ कर के नीरज को बेल्जियम जाने में सफलता मिल गई. जहां 2 साल रह कर उस ने कई तरह के काम किए. इस के बाद वह रोम चला गया. वहां इटली के एक होटल में उसे अच्छी नौकरी मिल गई. बड़ी बात यह थी कि होटल मालिक भी पंजाबी था. एक पंजाबी की सरपरस्ती में काम पा कर नीरज बहुत खुश था.

नीरज के परिवार के सभी पुरुष सदस्य अच्छी तरह स्थापित थे. घर में किसी को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने नीरज से कह रखा था कि वह अपनी कमाई में से जितना भी बचा सकता है, वहीं अपने पास जमा करता रहे. नीरज के पारिवारिक सूत्रों के अनुसर उस ने कुछ ही समय में अपने पास काफी नकद पैसा और सोना जमा कर लिया था.

लेकिन एक दिन होटल मालिक का फोन आया कि नीरज का किसी से मामूली झगड़ा हो गया था. इसी से नाराज हो कर उस व्यक्ति ने नीरज की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी है.

कपूरथला के गांव नडाला के 600 से अधिक लोग किसी न किसी बाहरी देश में बसे हुए हैं. यहां का एक लड़का सुरजीत सिंह खेतीबाड़ी के अपने पुश्तैनी धंधे में मस्त था. उस की एक बुआ अमेरिका के कैलिफोर्निया में बस गई थी, जहां उस का जनरल स्टोर था. एक बार वह भारत आई तो सुरजीत को भी अपने साथ अमेरिका ले गई. वहां वह बुआ के जनरल स्टोर के काम में उन का हाथ बंटाने लगा. सुरजीत को वहां अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देने लगा था.

स्टोर का काम अच्छी तरह सीख कर उस ने अपना अलग स्टोर खोलने की योजना बनाई. सुरजीत के इस काम में उस की बुआ भी मदद करने के लिए राजी थी.

मगर यह सपना उस वक्त धरा का धरा रह गया, जब एक दोपहर एक शख्स स्टोर पर बीयर लेने आया. सुरजीत स्टोर में अकेला था. उस की बुआ कुछ ही देर पहले घर चली गई थी. उस व्यक्ति ने 5 केन बीयर ली. बीयर देने के साथ ही सुरजीत ने बिल भी उस के सामने रख दिया. वह व्यक्ति बेरुखी से ‘इस का हिसाब मेरे खाते में डाल देना’ कहते हुए बीयर उठा कर स्टोर से बाहर निकल गया.

सुरजीत उस के पीछे भागा. बाहर जीप में 4 अन्य लोग बैठे थे. उस व्यक्ति ने उन के पास पहुंचते ही बीयर के केन उन के हवाले कर के अपनी भाषा में कुछ कहा. फलस्वरूप जीप में बैठे एक नौजवान ने रिवाल्वर निकाल कर सुरजीत पर फायर कर दिया. गोली लगते ही वह वहीं ढेर हो गया.

यह समाचार जब नडाला पहुंचा तो हाहाकार मच गया. दरअसल, चंद रोज पहले ही इसी गांव के एक अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा ही दर्दनाक हादसा हो चुका था.

नडाला निवासी जसवंत सिंह सोढी गांव के सरपंच तो थे ही, जालंधर की प्रसिद्ध दोआबा फैक्ट्री के चेयरमैन भी थे. उन के 8 लड़के थे, जिन में से 3 विदेश में जा बसे थे. इन तीनों सोढी भाइयों ने अमेरिका के शहर फिनिक्श में पैट्रोल व गैस का अपना अच्छाखासा बिजनैस जमा लिया था. स्थानीय लोगों के साथ उन का अच्छा रसूख भी बन गया था. तीनों भाइयों इंदरपाल सिंह, बलवंत सिंह और सुखपाल सिंह का जीवन खूब मजे से गुजर रहा था.

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उस दिन बलबीर सिंह सोढी ने अपने केश क्या धोए, लगा जैसे उन्होंने अपनी मौत को बुलावा दे दिया. केश धोने के बाद उन्होंने बालदाढ़ी खुली छोड़ कर सिर पर सफेद रंग का पटका बांध लिया था. इत्तफाक से उस दिन उन्होंने कुर्तापाजामा भी सफेद ही पहन रखा था. वह कदकाठी और हुलिए से पूरी तरह अफगानी लग रहे थे.

यह उन दिनों की बात है, जब न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन पर हुए दुस्साहिक हमलों के बाद अमेरिकी लोग अफगानियों से नफरत करने लगे थे. ऐसे में बलबीर सिंह सोढी को अफगानी समझ कर किसी कट्टरपंथी ने उन्हें तब निशाना बना दिया, जब वह अपने घर की छत पर खड़े थे. गोली उन के बदन को चीर गई थी.

जालंधर नकोदर मार्ग पर बसे गांव नीमियां मल्लियां निवासी रेशम सिंह का लड़का अमरीक सिंह कुछ सालों पहले रोजगार की तलाश में मनीला गया था. वहां उस के 2 भाई पहले से ही रहते थे. वे सामान खरीदनेबेचने का धंधा करते थे. अमरीक ने भी यही कारोबार शुरू कर दिया. उस का भी काम ठीक से चल निकला. लेकिन एक दिन उस की लाश वीराने में पड़ी मिली. पता चला कि उस के किसी देनदार ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

सुनील विरमानी अपनी पत्नी के अलावा बेटी मनी और बेटे मानव के साथ लुधियाना के मौडल टाउन एरिया में रहते थे. मानव को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा गया. उस ने अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित न्यू इंग्लैंड इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी से 95 प्रतिशत अंकों के साथ विजुअल प्रोसेसिंग इन कंप्यूटर की डिग्री हासिल की.

इस के बाद वह छुट्टियां बिताने मिसीसिपी चला गया, जहां सुनील विरमानी के एक मित्र रहते थे. वहां उन का अपना जनरल स्टोर था. एक दिन दोपहर में मानव को स्टोर पर बैठा कर वह किसी काम से घर चले गए. तभी कुछ लुटेरे आए और उन्होंने मानव को कत्ल कर के स्टोर का कैश बौक्स लूट लिया.

जालंधर के गांव हरिपुर का युवक कमल वीर सिंह भी जीवन में कुछ बनने की तमन्ना ले कर कनाडा गया था. वहां उसे एक शराबखाने में नौकरी मिली. एक रात शराब ठीक से सर्व न करने के मुद्दे पर उस का एक अंगरेज ग्राहक से झगड़ा हो गया. तूतू, मैंमैं से बात आगे बढ़ी और हाथापाई तक पहुंच गई. स्थिति यह बनी कि उस ग्राहक ने कमलवीर सिंह की हत्या कर दी.

कपूरथला के गांव टिब्बा का नौजवान जसवंत सिंह अच्छे रोजगार के लिए जापान गया था. वहां उसे एक निजी कंपनी में कार मैकेनिक की नौकरी मिल गई. अपनी इस नौकरी से वह बहुत खुश था और सुनहरे भविष्य के प्रति आशावान भी. जापान के जिस नगर सिगमाहारा में जसवंत रहता था, वहां एक रात कुछ भारतीय और पाकिस्तानी युवकों की किसी बात पर कहासुनी हो गई.

जसवंत ने बीचबचाव कर के उन लड़कों का आपस में राजीनामा करवा दिया. एक पाकिस्तानी युवक इस सब से चिढ़ गया. उस ने अपने मन में रंजिश रखी, जिस के फलस्वरूप 2 दिन बाद वह अपने कुछ साथियों को ले कर जसवंत के घर आ गया. उन्होने लोहे की रौडों से घर का दरवाजा तोड़ कर जसवंत को मौत के घाट उतार दिया.

इस तरह की तमाम कहानियां हैं. दरअसल, युवा ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और अपने भविष्य को सिक्योर करने के लिए विदेश चले जाते हैं, लेकिन कई बार ऐसा कुछ हो जाता है, जिस की कीमत उन्हें प्राण दे कर चुकानी पड़ती है.

वैसे परदे के पीछे मुद्दा यह भी है कि विदेश जा कर धन कमाने का सपना देखने वाले नौजवान कोई यूं ही विदेश नहीं पहुंच जाते. इस के लिए जो धन खर्च किया जाता है, अधिकांश लड़कों के परिवारों द्वारा वह धन जुटाना आसान नहीं होता. कहीं घर के गहने बिकते हैं तो कहीं उन के भविष्य के लिए महंगे ब्याज पर जमीन गिरवी रखी जाती है. लेकिन भविष्य संवारने की कथित होड़ में भारतीयों के विदेश जाने की दौड़ खत्म नहीं होती, भले ही उन के साथ कितना भी दुर्व्यवहार हो, मौत उन्हें अपनी आगोश में समेट ले.

पंजाब के लहरागागा कस्बे के रहने वाले पंजाबी सिंगर मनमीत अली शेर ने ख्याति तो खूब अर्जित की, लेकिन ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी. करीब 10 साल पहले उस ने भी आस्ट्रेलिया का रुख किया था. अपनी लेखनी और गायकी को जिंदा रखने के लिए उस ने विदेशी धरती पर बहुत मेहनत से हर तरह के काम किए. वहां एक ओर तो वह पंजाबी समुदाय के लिए जानामाना गायक था, वहीं दूसरी ओर व्यवसाय के नाम पर क्वींसलैंड की राजधानी ब्रिसबेन में सिटी कौंसिल बस का ड्राइवर था.

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वह 28 अक्तूबर, 2016 को रात थी. मनमीत अली शेर ने ब्रिसबेन के मारूका कस्बे में एक बस स्टौप से सवारियां लेने के लिए बस रोकी. कुछेक सवारियां बस में चढ़ीं भी. तभी एक सवारी ने तेजी से ड्राइवर कक्ष की ओर बढ़ते हुए मनमीत पर कुछ फेंका, जिस से वहां आग भड़क उठी.

उस वक्त बस में 16 सवारियां थीं, जिन्हें पीछे आ रहे एक टैक्सी ड्राइवर की मुस्तैदी से बस का इमरजेंसी द्वार खोल कर सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. लेकिन मनमीत अली शेर की मौके पर ही मौत हो गई. इस से चारों तरफ शोक एवं भय की लहर दौड़ गई. उस समय एक समाचार में बताया गया था कि पिछले 6 महीनों में बस ड्राइवरों पर 350 हमले हो चुके थे.

ब्रिसबेन पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए इस हमले के आरोप में एक 48 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया. मनमीत अली शेर की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा थी कि अगले दिन उसे श्रद्धांजलि देने के लिए ब्रिसबेन में झंडे झुके रहने का ऐलान कर दिया गया था.

पंजाब के सांसद व पंजाबी एक्टर भगवंत मान ने इस मामले को उठाते हुए विदेशों में बसने वाले पंजाबियों की जानमाल की रक्षा को सुनिश्चित बनाने की केंद्र सरकार से मांग की थी. कुमार विश्वास ने भी इस संबंध में ट्वीट किया था.

पुलिस ने इस केस के संबंध में जिस आरोपी को पकड़ा था. उस का नाम का ऐंथनी मारक एडवर्ड डौनोहयू था. उस ने न तो पहले पुलिस के आगे मुंह खोला था, न ही अब अदालत के सामने खोला. अदालत के बाहर मौजूद पत्रकारों से आरोपी के वकील ऐडम मैगिल ने कहा कि इस की मानसिक हालत ठीक नहीं है और यह जुर्म एकदम समझ से परे है.

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विदेशी शोलों में झुलसते भारतीय : भाग 2

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बाद में यह बात भी सामने आई कि कुछ दिनों पहले तक ऐंथनी मारक एडवर्ड का क्वींसलैंड के मैंटल अस्पताल में इलाज चल रहा था. अब फिर से उसे इसी तरह के इलाज की आवश्यकता है.

यह मामला अभी बीच में ही था कि लंदन में रहने वाली 30 वर्षीया भारतीय महिला प्रदीप कुमार अपने घर से गायब हो गई. 2 हफ्ते बाद उस का शव हीथ्रो एयरपोर्ट के पास से बरामद हुआ. ऐसे ही बहादुर सिंह पिछले 40 वर्षों से अमेरिका में रह रहे थे. 8 नंवबर, 2016 को जब वह अपने नौकर के साथ अपने स्टोर पर मौजूद थे तो काले रंग के कुछ लोगों ने आ कर उन की दुकान लूट कर उन्हें व उन के नौकर को गोली मार दी. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई.

15 नवंबर को भारतीय मूल के 17 वर्षीय गुरनूर सिंह नाहल को कैलिफोर्निया में उस वक्त गोली मार दी गई, जब वह कहीं से अपने घर लौट रहा था. 23 नवंबर को भारतीय प्रवासी भगवंत सिंह अपनी पत्नी जसविंदर कौर के साथ मनीला के शहर रगाई में अपनी कार से कहीं जा रहे थे कि रास्ते में बाइक सवार अंगरेज लड़कों ने गोलियां बरसा कर पतिपत्नी दोनों की हत्या कर दी. इसी तरह लंदन के साउथहाल में गुरिंदर सिंह, कनाडा के शहर रेगिना में इकबाल सिंह व कुछ अन्य भारतीयों की हत्याएं हुईं.

25 दिसंबर, 2016 को न्यूजीलैंड के शहर औकलैंड में 24 वर्षीय हरदीप सिंह देओल की एक युवती ने चाकुओं के वार से उस वक्त हत्या कर दी, जब वह एक पार्क में सैर करने गया था.

पुलिस के अनुसार युवती को गिरफ्तार कर लिया गया. वह नशे की इस कदर आदी थी कि पिनक में आ कर कुछ भी कर बैठती थी. 30 दिसंबर, 2016 को अफगानिस्तान के अशांत शहर कुंदूज में सिख समुदाय के एक प्रमुख को मार डाला गया. पिछले 3 महीनों में यह एक ही तरह की दूसरी घटना थी.

सन 2017 की शुरुआत होते ही 2 जनवरी को मनीला के शहर सनजागो सिटी में गुरमीत सिंह, 6 जनवरी को अमेरिका के शिकागो के नजदीक पड़ने वाले शहर मिलवाकी में पैट्रोल स्टेशन पर नौकरी करने वाले हरजिंदर सिंह खटड़ा, 7 जनवरी को साइप्रस में सरबजीत सिंह, 12 जनवरी को रियाद में अमृतपाल सिंह, 21 जनवरी को अमेरिका में इंजीनियर श्रीनिवास और 25 जनवरी को कैलिफोर्निया के वुडलैंड क्षेत्र में एक अन्य भारतीय की हत्याएं कर दी गईं.

इन में कुछ मामलों में सीधेसीधे हेट क्राइम का मुद्दा सामने आया है. कई केसों में प्रवासी भारतीयों पर हमला करते वक्त हमलावरों द्वारा सीधेसीधे कहा गया था- ‘गैट आउट औफ माई कंट्री’ यानी दफा हो जाओ मेरे देश से.

इन अपराधों की चर्चा विश्वस्तर पर हो रही थी, लेकिन काररवाई के नाम पर किसी भी मामले में कुछ खास नहीं हो पाया.

इस बीच डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए थे. 22 फरवरी, 2017 को उन्होंने अपने बयान में कहा कि अमेरिका में इस वक्त 1.10 करोड़ अप्रवासी अवैध रूप से रह रहे हैं, जिन में 3 लाख भारतवंशी हैं. इन के खिलाफ काररवाई करने में कड़ा रुख अपना कर इन्हें वापस उन के देश भेज दिया जाएगा. उन्होंने अपनी नई आव्रजन नीति जारी करने की भी घोषणा की. इस का नतीजा यह हुआ कि 24 फरवरी को यूएस में घुसते ही न केवल 5 भारतीयों को, बल्कि उन की मदद करने वाले 1 कनाडाई नागरिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

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इसी दिन एक दर्दनाक खबर यह भी सामने आई कि 26 वर्षीय संदीप सिंह बब्बू को अमेरिका के स्ट्रीमवुड इलाके में उस समय एक वाहन ने कुचल कर मौत के घाट उतार दिया, जब वह अपनी गाड़ी पार्क कर के सड़क क्रौस कर रहा था. मूलरूप से लुधियाना के नगर समराला का रहने वाला यह युवक अपने 3 भाइयों व 3 बहनों में सब से छोटा था. अच्छाखासा कर्ज ले कर उसे बड़ी कठिनाई से विदेश भेजा गया था. वहां उसे एक कंपनी का ट्रक चलाने की नौकरी मिली थी.

ऊपर जिस इंजीनियर श्रीनिवास की हत्या का जिक्र है, उस का मामला विश्वस्तर पर उछला था. श्रीनिवास की पत्नी सुनयना दुमाला ने ह्यूस्टन में मीडिया के माध्यम से जो कहा, वह काबिलेगौर है.

‘हम ने कनसास को अपना घर माना, ओलेथा में हमें अपने सपनों का शहर मिला, हम दोनों का पहला घर. श्रीनिवास ने इसी जनवरी में खुद अपने हाथों से इस का पूरा लिविंग एरिया पेंट किया था. वह काफी जुनूनी थे. एविएशन उन का जुनून था. वह इस इंडस्ट्री में सफल व्यक्ति बनना चाहते थे.

‘श्रीनिवास अमेरिका के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे. निस्संदेह वह ऐसी मौत के लायक नहीं थे. जिंदा रहते तो 9 मार्च, 2017 को अपना 33वां जन्मदिन मनाते. समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं. अमेरिका में होने वाली फायरिंग की खबरें हम अकसर पढ़ते थे.

‘हमेशा चिंता होती थी कि यहां पर हम कितने सुरक्षित हैं. क्या हमारा अमेरिका में रहना सही है? लेकिन वह हमेशा दिलासा देते थे कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है. हमेशा अच्छे रहो, अच्छा सोचो तो आप के साथ भी सब अच्छा होगा.

‘उस रात काम की थकान उतारने के लिए वह बार में अपने दोस्त के साथ बीयर पी रहे थे. इसी बीच एक हमलावर आ कर उन्हें भलाबुरा कहने लगा. उस ने खुल कर नस्लीय नफरत दिखाई. श्रीनिवास ने उस के इस तरह के व्यवहार पर ध्यान नहीं दिया. बार के लोगों ने उसे हल्ला करने से रोका और पकड़ कर बाहर निकाल दिया. मेरे पति को भी उसी वक्त वहां से चले आना चाहिए था. लेकिन उन्होंने सोचा होगा कि मैं क्यों जाऊं? मैं ने तो कुछ गलत नहीं किया है.

‘मैं उन्हें जानती हूं. कह सकती हूं कि वह सिर्फ इसलिए बैठे रहे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया था. लेकिन थोड़ी ही देर में वह व्यक्ति लौट कर आया और उस ने मेरे पति श्रीनिवास की जान ले ली. मेरा ट्रंप सरकार से सवाल है कि नफरत की बुनियाद पर हो रही इस तरह की हत्याओं को आखिर कब रोका जाएगा और कैसे?’

श्रीनिवास का मामला अभी विश्वस्तर पर पूरी तरह से गर्म था कि 4 मार्च को साउथ कैरोलिना के लैंसेस्टर शहर में हरनिश पटेल नाम के भारतीय को गोली से उड़ा दिया गया. हमलों के छिटपुट अपराधों के चलते 24 मार्च को अमेरिका में न्यूजर्सी के बर्लिंग्टन स्थित अपने आवास पर 38 वर्षीया शशिकला अपने 7 साल के बेटे अनीश के साथ मृत पाई गईं. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. अमेरिकी पुलिस इस मामले की जांच घृणा अपराध के नजरिए से कर रही थी, साथ ही पुलिस ने शशिकला के पति हनुमंत राव को भी संदेह के दायरे में रखा हुआ था. मगर सुलझने के बजाय यह रहस्य अभी गहराता जा रहा था.

25 मार्च, 2017 को घटी एक घटना में भले ही किसी की जान न गई हो, लेकिन नस्लभेदी अपराध पूरी तरह उभर कर सामने आ गया था.

लेबनान में रहने वाली सिख लड़की राजप्रीत हीर उस दिन सबवे टे्रन से अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में मैनहट्टन जा रही थी. उसे देखते ही एक अमेरिकी चिल्लाने लगा, ‘क्या तुम जानती हो कि मरीन लुक क्या होता है? क्या तुम जानती हो कि वो लोग कैसे दिखते हैं? उन्होंने इस देश के लोगों के लिए क्या किया है? यह सब तुम्हारे जैसे लोगों के चलते होता है. लेबनान लौट जाओ, तुम इस देश की नहीं हो.’ इस के बाद उस व्यक्ति ने खूब अपशब्द बोले.

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राजप्रीत हीर ने बाद में इस घटना का वीडियो सोशल साइट पर डालते हुए इसे नाम दिया- ‘दिस वीक इन हेट.’ उल्लेखनीय है कि इस वीडियो में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में बढ़ते नस्लभेदी अपराधों के बारे में बताया गया है.

26 मार्च को एक भारतीय जौय पर नौर्थ होबार्ट स्थित मैकडोनाल्ड रेस्त्रां में 5 लोगों के  ग्रुप ने नस्लीय टिप्पणियां करते हुए उन से मारपीट की. इन में एक लड़की भी थी, जिस ने उन्हें ब्लैक इंडियंस कहते हुए बुरी तरह जलील किया.

7 अप्रैल को 26 वर्षीय भारतीय विक्रम जरथाल की अमेरिका के शहर वाशिंगटन में उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई, जब वह एक पैट्रोल स्टेशन के स्टोर में अपनी ड््यूटी दे रहा था.

25 वर्षीय प्रदीप सिंह आस्ट्रेलिया में रहते हुए न केवल हौस्पिटैलिटी की पढ़ाई कर रहा था, बल्कि गुजारे के लिए पार्टटाइम टैक्सी भी चलाता था. 22 मई की रात में उस ने मैकडोनाल्ड्स ड्राइव थू्रले जाने के लिए एक लड़के व लड़की को पिक किया. महिला सवारी को उल्टी आने लगी तो प्रदीप ने उन लोगों से उतर जाने को कहा. इस पर उन्होंने भड़कते हुए न केवल प्रदीप की जम कर पिटाई की, बल्कि उसे यह कह कर धमकाया भी कि तुम भारतीयों के साथ इधर ऐसा ही किया जाना चाहिए.

इस के बाद भी विदेशों में रह रहे भारतीयों के जलील होने अथवा मारे जाने के समाचार लगातार आ रहे हैं, जिन में ताजा मामला 26 जुलाई, 2017 को मोहाली निवासी सिमरन सिंह भंगू के अमेरिका में मारे जाने का है.

एनआरआई सभा, पंजाब के एक वरिष्ठ सदस्य के बताए अनुसार, यह निहायत ही गंभीर मसला बनता जा रहा है. इस के मद्देनजर वे लोग विदेशों में बसे भारतीयों की सुरक्षा के लिए इस तरह का तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि भारतीयों को किसी भी देश में विदेशियों के मुकाबले पिछड़ा हुआ अथवा कमजोर न समझा जाए.

इस वक्त 50 लाख से अधिक भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, बैल्जियम, स्कौटलैंड, फिलीपींस व यूरोप के अन्य कई देशों में बसे हुए हैं. इन लोगों की सुरक्षा का पूरा जिम्मा उस देश की सरकार व सुरक्षा एजेंसियों पर है, जिन्होंने उन्हें नागरिकता दी है.

3 दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके चंडीगढ़ के समाजसेवी आलमजीत सिंह मान के बताए अनुसार, सवाल केवल पनाह देने या सुरक्षा प्रदान करने का नहीं है, भारतीयों का भी यह फर्ज बनता है कि वे जब दूसरों पर आश्रित हो कर रह रहे हैं तो उन्हें अपनी सीमाएं निर्धारित कर के चलना चाहिए.

विदेशों में भारतीयों के मारे जाने के ज्यादातर मामले लड़ाईझगड़े अथवा लूटपाट के वक्त विरोध करने के रहे हैं. हम लोग अपनी मानसिकता नहीं बदल पाते, स्वयं पर काबू नहीं रख पाते. वहां की सरकार कहती है कि अगर कोई लूटने आ जाए तो हाथ खड़े कर दो. नुकसान की भरपाई सरकार की ओर से होगी. हम लोगों के लिए इस तरह की बातें पचा पाना कठिन है.’

पंजाब के डायरेक्टर जनरल औफ पुलिस (डीजीपी) पद से रिटायर्ड चंद्रशेखर घई का इस विषय पर कहना है, ‘पश्चिमी देशों की सोच और वहां की संस्कृति हम लोगों से पूरी तरह भिन्न है. जहां भारतीय उन के बाहरी तौरतरीकों को बेझिझक अपना लेते हैं, वहीं हमारे लोग उन के भीतर की सोच और जीवन के प्रति उन के नजरिए को आत्मसात करना तो दूर, उस सब का विश्लेषण करते हुए गहराई में जाने तक का प्रयास नहीं करते.

‘यहां से जो लोग विदेश जाते हैं, उन में से ज्यादातर पहले से खुशहाल नहीं होते, बल्कि अपने को खुशहाल बनाने के लिए वहां जाते हैं. फिर भारत के अनुपात में उन्हें जब अपनी मेहनत का प्रतिफल कहीं ज्यादा मिलने लगता है तो घर में पैसे की नदियां बहती दिखाई देने लगती हैं. लिहाजा अपनी सोच न बदल कर खुद को उन लोगों के सिर पर बैठने की कोशिश करते हैं. तब आधार बनता है झगड़े का.

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‘आप तमाम रिकौर्ड निकाल कर देख लें, भारतीयों के विदेशों में होने वाले कत्ल के मामलों में 95 प्रतिशत मामले इसी तरह के झगड़ों के हैं, 4 प्रतिशत लूटपाट के वक्त अकेले विरोध कर बैठने के और केवल एक प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिन में हत्या का कारण व्यक्तिगत रहा. अब रेशियल अटैक की भी शुरुआत हो गई है, इस मुद्दे पर सभी देशों के रहनुमाओं को बात कर के इस स्थिति पर काबू पाना चाहिए.’

एक वरिष्ठ राजनेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा, ‘दरअसल, विदेशियों के सामने उन के देश में हम लोग आज भी गुलाम हैं. अव्वल तो हमें अपना देश छोड़ कर विदेश जाना ही नहीं चाहिए. अगर गए हो तो भई गुलाम बन कर ही रहना होगा. यह सोचने वाली बात है कि दूसरे देश में गुलामी की जिंदगी बेहतर है या अपने देश में अपनों के बीच आजादी की जिंदगी.’

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