पिता के प्यार पर भारी मां की ममता – भाग 2

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सीमा ने बेटे को बाप से मिलने से रोकने की कोशिश की, लेकिन मानव बाप को छोड़ने को तैयार नहीं था. क्योंकि राजेश उस की वह हर इच्छा पूरी करते थे, जो उस उम्र के बच्चे चाहते हैं. मानव के हाईस्कूल पास करते ही राजेश ने उसे बुलेट मोटरसाइकिल खरीद दी थी. उस के इंटर पास करते ही राजेश ने उस के लिए फोर्ड फिगो कार खरीद दी थी.

मानव देता था बाप से ज्यादा अहमियत मां को

मानव एलएलबी कर के बड़ा वकील बनना चाहता था, इसलिए वह किसी अच्छे और बड़े कालेज से एलएलबी की पढ़ाई करना चाहता था. उस ने कई बार यह बात राजेश से कही भी. लेकिन राजेश उसे अब कहीं दूर नहीं भेजना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उस का दाखिला रुद्रपुर के किच्छा रोड स्थित चाणक्य कालेज में करा दिया.

राजेश मानव को बहुत प्यार करते थे. लेकिन वह मां को और उस के द्वारा सिखाई बातों को ज्यादा अहमियत देता था. यही वजह थी कि राजेश के इतना प्यार करने के बावजूद उस के अंदर भरी नफरत कम नहीं हुई. एलएलबी की पढ़ाई के दौरान उस की मुलाकात अशहर उर्फ आशू से हुई.

सितारगंज का रहने वाला आशू राजनीति में सक्रिय था. वह युवा कांग्रेस से जुड़ा था, जिस की वजह से उस के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे. आशू की वजह से मानव भी कांग्रेस से जुड़ गया और मानव सेवा दल औफ इंडिया का गठन किया.

इसी संगठन के बैनर तले उस ने कई बार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सम्मान किया. राजनीति में आने के बाद मानव के हौसले बुलंदियों को छूने लगे थे. उस ने आशू को अपने घरपरिवार के बारे में सब बता दिया था. आशू कई बार हल्द्वानी स्थित मानव के घर भी गया था. इस से सीमा भी उसे पहचानने लगी थी.

अकसर साथ रहने की वजह से आशू को भी पता चल गया था कि मानव अपने पिता से बहुत नफरत करता है. वह उस की मां के साथ न रह कर रुद्रपुर में अलग रहते हैं. इस के बावजूद वह उस का सारा खर्चा उठाते हैं. उसे इस बात की हैरानी भी हो रही थी कि इतना सब कुछ करने के बाद भी मानव पिता से इतनी नफरत क्यों करता है.

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आशू ने जब इस की वजह जानने की कोशिश की तो मानव ने बताया कि उस के पिता के पास बेशुमार दौलत है, जिसे वह किसी लड़की के नाम करना चाहते हैं, जबकि उन की संपत्ति का असली हकदार वह है. इसलिए पिता की संपत्ति पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. अगर जरूरत पड़ी तो वह उन की हत्या भी कर सकता है.

पिता की संपत्ति मिलते ही वह काफी अमीर हो जाएगा. अगर इस काम में वह उस की मदद करता है तो पिता की संपत्ति मिलते ही वह उसे एक कार दिला देगा. कार के लालच में आशू उस का हर तरह से साथ देने को तैयार हो गया.

मानव ने योजना में शामिल किया दोस्त को

मानव ने आशू से कहा था कि उसे इस मामले में कुछ करना नहीं है, सिर्फ उस के साथ रहना है. जो भी करेगा, वह खुद करेगा. इस के बाद मानव पिता को कैसे ठिकाने लगाए कि पकड़ा न जाए? इस के लिए वह आपराधिक धारावाहिक देखने लगा.

काफी सोचविचार कर और पूरी योजना बना कर 29 अगस्त, 2016 की सुबह मानव आशू के साथ आरटीओ औफिस पहुंचा. वहीं उस ने पिता को भी बुला लिया. वहां थोड़ा काम था, जिसे निपटा कर वह पिता को कार में बैठा कर चल पड़ा. राजेश और मानव पिछली सीट पर बैठे थे, जबकि आशू कार चला रहा था.

मानव किसी ऐसे स्थान की तलाश में था, जहां वह आसानी से अपना काम कर सके और किसी को पता न चल सके. संयोग से उस दिन बरसात हो रही थी, जिस से सड़कें खाली पड़ी थीं. आरटीओ औफिस से निकल कर रामपुर रोड पर बीकानेर स्वीट के सामने मौका मिलते ही मानव ने अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर पिता की कनपटी से सटा कर 2 गोलियां दाग दीं.

गोलियां लगते ही राजेश तड़प कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस के बाद मानव ने उन्हें उठा कर इस तरह बैठा दिया, जैसे वह गहरी नींद में सो रहे हों. इस तरह मानव ने अपने पिता राजेश मान की हत्या कर दी. अब वह अपनी योजना के अनुसार, खटीमा की ओर चल पड़ा. क्योंकि अब उसे पिता की लाश को ठिकाने लगाना था. वह लाश को शारदा नहर में फेंकना चाहता था.

इस के लिए एक दिन पहले यानी 28 अगस्त, 2016 को ही मानव आशू को साथ ले कर पूरा रास्ता देख आया था. बरसात की वजह से नहर भी सूनी पड़ी थी. इस का लाभ उठाते हुए घटनास्थल से करीब 80 किलोमीटर दूर जा कर मानव ने कार से पिता की लाश निकाली और साथ लाई चादर में कुछ पत्थरों के साथ बांध कर नहर में फेंक दी.

मानव ने कैसे छिपाए हत्या के तथ्य

कार में खून लगा था, जिसे उस ने लौटते समय चलती कार में बरसात का फायदा उठाते हुए साफ कर दिया. कार तो साफ हो गई, लेकिन उसे इस बात का डर सता रहा था कि उस के रिवौल्वर की गोली से कार के शीशे में 2 छेद हो गए थे. लौटते समय उस ने रास्ता बदल दिया था. वह सितारगंज से चोरगलिया होते हुए हल्द्वानी पहुंचा.

हल्द्वानी पहुंच कर प्रेम टाकीज के पास उस ने कार की 2 बार सफाई कराई. सफाई के दौरान कार मैकेनिक ने कार में लगे खून के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि रास्ते में एक राहगीर का एक्सीडेंट हो गया था, जिसे उस ने इसी कार से अस्पताल पहुंचाया था. कार में यह उसी का खून लगा है.

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कार धुलवा कर उस ने उस के कवर भी बदलवा दिए. गाड़ी साफ करवा कर वह आशू के साथ घर पहुंचा और मां को बताया कि उस ने पिता को ठिकाने लगा दिया है. बेटे की बात सुन कर सीमा ने बेटे को कुछ कहने के बजाय उस की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेटे, तुम ने बहुत अच्छा किया. तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है. आगे मैं सब संभाल लूंगी. नाक में दम कर के रख दिया था उस इंसान ने.’’

सीमा ने राजेश की हत्या का सबूत मिटाने के लिए उन का मोबाइल फोन घर में ही जला दिया. मानव के खून सने कपड़े पास में बह रहे नाले में फेंकवा दिए. कार में गोली चलने से शीशे में जो छेद हो गए थे, मानव ने उसे भी बदलवा दिया. उस ने आशू को चुप रहने के लिए तो कहा ही था, साथ ही चेताया भी था कि अगर उस ने यह राज किसी पर खोला तो वह उस का भी वही हाल करेगा, जो अपने पिता का किया है.

पुलिस पूछताछ में सीमा ने बताया था कि राजेश मान ने न उसे कभी पत्नी का दर्जा दिया और न ही मानव को कभी अपना बेटा माना. जबकि वह करोड़ों का मालिक था. इस के बावजूद उसे और बेटे को तंगहाली का जीवन जीना पड़ रहा था. जिन पैसों पर उसे और उस के बेटे को मौज करनी चाहिए थी, उस पर कोई और मौज कर रहा था. अपना हक पाने के लिए उस ने और बेटे ने जो किया, वह गलत नहीं है.

अपराध स्वीकार करने के बाद दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा

आशू और सीमा के बयान के आधार पर पुलिस ने राजेश मान की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर दी. मानव, आशू और सीमा के खिलाफ भादंवि की धारा 304, 302, 120बी, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. फिर पुलिस ने आशू और सीमा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस टीम ने राजेश मान की लाश बरामद करने के लिए आशू की निशानदेही पर उस स्थान पर गोताखोरों से तलाश कराई थी, जहां उस ने लाश फेंकी थी. लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. लगता भी कहां से, राजेश की हत्या हुए पूरा एक साल बीत चुका था. अब पुलिस को मानव को गिरफ्तार करना था. वह उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. वह अपनी कार हीरानगर की पार्किंग में खड़ी कर के फरार था.

पुलिस ने उस की कार बरामद कर ली थी. मानव को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिया. उसी की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस का पीछा करती रही. मानव हल्द्वानी से मेरठ अपने मामा के यहां गया और अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर हल्द्वानी आ गया.

पुलिस जिस तरह मानव के पीछे पड़ी थी, उस का बचना आसान नहीं था. लेकिन वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर इधरउधर भागता रहा. वह अकसर पुलिस को चकमा दे कर निकल जाता था.

पुलिस पूरे एक महीने उस के पीछे लगी रही. उस के बचने की वजह यह थी कि सीमा ने गली में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे, जिस से पुलिस के आने का उसे पता चल जाता था.

कैसे आया मानव चौधरी पुलिस की गिरफ्त में

पुलिस उस की तलाश में मेरठ में भटकती रही. पुलिस को कहीं से पता चला कि मानव दुबई जा सकता है. पुलिस ने उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करवा दिया. पुलिस ने उस के खिलाफ कुर्की का आदेश जारी कराया. लेकिन जब पुलिस उस के घर कुर्की करने पहुंची तो नानी ने कहा कि यह मकान उन का है, इसलिए वे इस की कुर्की नहीं कर सकते.

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पुलिस निराश हो कर लौट आई. आखिर पुलिस ने 27 अगस्त, 2017 को मानव को गिरफ्तार कर ही लिया. पुलिस उसे थाना किच्छा ले आई, जहां उस से विस्तार से पूछताछ की गई. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

उस का कहना था कि अकसर उस की मम्मी कहा करती थीं कि उस के पिता की वजह से उन की जिंदगी बरबाद हुई है. घर से बेघर हो कर वह मां के यहां रहती हैं. उन की प्रौपर्टी पर उस का हक है, जबकि वह उसे बेदखल कर के अपनी सारी प्रौपर्टी किराएदार की बेटी को देना चाहते हैं.

इसी बात से उसे गुस्सा आ गया था और उस ने कसम खा ली थी कि वह अपनी प्रौपर्टी किसी भी कीमत पर अपने हाथ से नहीं जाने देगा. मानव पिता की कमजोरी जानता ही था, उसी का लाभ उठाते हुए उस ने पिता से कह कर अपनी जरूरत की सारी चीजें जुटा ली थीं.

राजेश ने ही उसे वह लाइसैंसी रिवौल्वर खरीदवाई थी, जिस से उस ने उन की हत्या की थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने मानव की कार की फोरैंसिक जांच कराई. इस तरह राजेश मान की हत्या को सुलझाने में पुलिस को एक साल लग गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मानव को भी अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.    लेकिन पुलिस अभी उसे एक बार रिमांड पर ले कर राजेश की लाश तलाशने पर विचार कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

पिता के प्यार पर भारी मां की ममता – भाग 1

हरियाणा की रहने वाली सुनीता गोदारा भाई के बारे में पता करने के लिए उत्तराखंड के रुद्रपुर का चक्कर लगालगा कर बुरी तरह से थक चुकी थीं. वह जिस तरह आती थीं, उसी तरह खाली हाथ लौट जाती थीं. उन्हें सिर्फ पुलिस से आश्वासन मिलता था. उसी आश्वासन में उन्हें संतोष करना पड़ता था. लेकिन जब 5 महीने पहले जिले में नए एसएसपी डा. सदानंद दाते आए तो सुनीता गोदारा बड़ी उम्मीद ले कर उन से मिलीं और अपने भाई के बारे में पता लगवाने का आग्रह किया.

29 अगस्त, 2016 को रुद्रपुर जाते समय सुनीता गोदारा के भाई राजेश मान गायब हो गए थे. उन पत्नी सीमा चौधरी और बेटे मानव ने उन के बारे में पता करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन का कहीं कुछ पता नहीं चला था. इस के बाद 1 सितंबर, 2016 को सीमा चौधरी ने रुद्रपुर स्थित रम्पुरा चौकी में तहरीर दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

पति की गुमशुदगी सीमा चौधरी ने रम्पुरा चौकी में दर्ज कराई थी. यह चौकी थाना किच्छा के अंतर्गत आती थी, इसलिए इस मामले की जांच थाना किच्छा पुलिस ने शुरू की. सीमा चौधरी ने एकाध बार थाने जा कर इस मामले में क्या हुआ, पता किया. लेकिन पुलिस से उचित सहयोग न मिलने की वजह से वह शांत हो कर बैठ गई थीं.

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लेकिन हरियाणा की रहने वाली राजेश मान की बहन को जब भाई के लापता होने के बारे में पता चला तो वह कभी मीडिया वालों से मिल कर तो कभी पुलिस अधिकारियों से मिल कर भाई के बारे में पता लगाने की गुहार लगाती रहीं.

उन्होंने पुलिस को बताया था कि उन की भाभी और भाई के बीच संबंध ठीक नहीं थे. दोनों काफी समय से अलग रह रहे थे. इसलिए भाई के लापता होने पर सीमा पर कोई असर नहीं पड़ा है.

सुनीता के दबाव की वजह से पुलिस ने कई बार राजेश मान की पत्नी सीमा चौधरी और बेटे मानव चौधरी को थाने बुला कर पूछताछ की थी. बेटे का कहना था कि उसी के पिता लापता हैं और पुलिस उसे ही बारबार थाने बुला कर परेशान कर रही है.

इस के बाद थाना किच्छा पुलिस ने इस मामले में रुचि लेनी बंद कर दी. इस की एक वजह यह भी थी कि सीमा चौधरी और उस के बेटे से पूछताछ में उसे कुछ हासिल नहीं हुआ था. दूसरे वे इस मामले में कोई रुचि भी नहीं ले रहे थे. राजेश की बहन सुनीता जरूर हाथ धो कर पीछे पड़ी थीं, लेकिन अब पुलिस उन्हें भाव नहीं दे रही थी.

एसएसपी ने दिए दोबारा जांच के आदेश

लेकिन जब सुनीता गोदारा नए एसएसपी डा. सदानंद दाते से मिलीं और उन्हें अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने आश्वासन देने के बजाय तुरंत एएसपी (क्राइम) कमलेश उपाध्याय और एएसपी देवेंद्र पिंचा को शीघ्र काररवाई के आदेश दिए.

इस के बाद दोनों अधिकारियों ने थाना किच्छा के थानाप्रभारी योगेश उपाध्याय और एसओजी प्रभारी विद्यादत्त जोशी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में एसएसआई सुशील कुमार, एसआई लाखन सिंह, देवेंद्र गौरव, सीमा ठाकुर, मनोज कोठारी, सुबोध शर्मा, हैडकांस्टेबल (एसओजी) प्रकाश भगत और महेंद्र डंडबाल को शामिल किया.

इस पुलिस टीम ने लापता राजेश मान के बेटे से पूछताछ करनी चाहा तो उस का कुछ पता नहीं चला. इस के बाद पुलिस ने शक के आधार पर उस के दोस्त अशहर उर्फ आशू से पूछताछ करनी चाही तो वह भी घर से गायब मिला.

इस से पुलिस यह सोचने पर मजबूर हो गई कि दोनों घर से गायब क्यों हैं? वैसे पुलिस दोनों से पहले भी लंबी पूछताछ कर चुकी थी, लेकिन तब दोनों ने पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं दी थी. पुलिस ने राजेश की पत्नी सीमा चौधरी से भी गहन पूछताछ की थी, तब उस ने खुद को इस मामले से अंजान बताते हुए पीछा छुड़ा लिया था.

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शक हुआ तो पुलिस टीम मानव और आशू के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. ऐसे में पुलिस टीम को पता चला कि आशू पाकिस्तान भागने की फिराक में है. यह जान कर पुलिस सकते में आ गई. क्योंकि पुलिस के लिए वह एक ऐसा सूत्र था, जो इस मामले की तह तक जाने में उस की मदद कर सकता था. आखिर पुलिस ने आशू की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि थाना सितारगंज के गांव पंडीखेड़ा से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

पत्नी को लिया गया हिरासत में

पुलिस की गिरफ्त में आते ही आशू के चेहरे की रंगत बदल गई. इधरउधर भागतेभागते वह पहले ही बुरी तरह से थक चुका था. इसलिए इस बार हिरासत में आते ही उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया.

पूछताछ में उस ने बताया, ‘‘मानव मान ने ही अपने पिता की हत्या की थी और उन की हत्या कराने में उस की मां सीमा चौधरी की भी अहम भूमिका थी.’’

इस के बाद पुलिस ने राजेश मान की पत्नी सीमा चौधरी को हल्द्वानी से हिरासत में ले लिया. हिरासत के दौरान की गई पूछताछ में सीमा चौधरी और आशू ने राजेश मान की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह आज के समय में हैरान करने वाली तो नहीं थी, पर सीधेसादे छलकपट से दूर रहने वाले लोगों को यह    सोचने पर मजबूर जरूर करेगी कि आज के समय में भला किसी पर विश्वास किया भी जा सकता है या नहीं? पुलिस पूछताछ में राजेश मान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजेश मान और सीमा चौधरी की शादी लगभग 25 साल पहले हुई थी. कालेज में पढ़ने के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी. यह मुलाकात दोस्ती में बदली तो फिर लवमैरिज तक जा पहुंची. सीमा चौधरी हल्द्वानी के रामपुर रोड की रहने वाली थी, जबकि राजेश मान किच्छा स्थित हरियाणा फार्म निवासी जयपाल सिंह का बेटा था.

सीमा चौधरी की सिर्फ एक ही बहन थी, जबकि भाई कोई नहीं था. शादी हो जाने के बाद बहन ससुराल चली गई तो शादी के बाद भी सीमा ज्यादातर हल्द्वानी में ही मांबाप के पास रहने लगी. राजेश से शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक चला, लेकिन उस के बाद दोनों के बीच तनाव ने जन्म ले लिया.

इस की वजह यह थी कि सीमा शहर की रहने वाली थी, जहां हर तरह की सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. लेकिन शादी के बाद उसे राजेश के साथ फार्महाउस पर रहना पड़ रहा था, जहां लगता था कि वह दुनिया से कट गई है. उस ने वहां दिल लगाने की बहुत कोशिश की, पर वहां उस का दिल बिलकुल नहीं लगा.

शहर में रहने को ले कर हुआ पतिपत्नी में तनाव

जब किसी भी तरह सीमा का दिल फार्महाउस पर नहीं लगा तो वह राजेश से कहने लगी कि यहां की कुछ जमीन बेच कर शहर में मकान बनवा लेते हैं और वहीं रहते हैं. लेकिन राजेश ने जमीन बेचने से साफ मना कर दिया. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन तकरार होने लगी, जो दिनोंदिन बढ़ती ही गई. इस का नतीजा यह निकला कि सीमा मायके जा कर रहने लगी.

मायके में रहते हुए ही सीमा ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम मानव रखा गया. सीमा रहती भले मायके में थी, लेकिन उस का खर्च राजेश ही उठाते थे. बेटे के पैदा होने के बाद बेटे का और उस का खर्च वही उठाते रहे.

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बेटा होने के बाद राजेश मान को उम्मीद थी कि सीमा आ कर फार्महाउस पर रहने लगेगी, लेकिन उस की इस उम्मीद पर उस वक्त पानी फिर गया, जब सीमा ने साफ कह दिया कि वह बेटे को जंगल में पाल कर जंगली नहीं बनाएगी. इस के बाद सीमा और राजेश के संबंध लगभग खत्म से हो गए. राजेश ने सीमा को खर्च देना भी बंद कर दिया. सीमा हल्द्वानी में मां के साथ रहते हुए बेटे को पालने लगी तो राजेश मान प्रौपर्टी का व्यवसाय शुरू कर के उसी में व्यस्त हो गया.

जब तक मानव बच्चा था, उसे पापा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन जब वह स्कूल जाने लगा तो उसे पापा की कमी खलने लगी. क्योंकि तमाम बच्चों के पापा उन्हें स्कूल छोड़ने और लेने आते थे. यह देख कर मानव ने सीमा से अपने पापा के बारे में पूछा. बेटे द्वारा बाप के बारे में पूछने पर सीमा अंदर तक हिल उठी. उस की समझ में नहीं आया कि वह बेटे को क्या बताए.

सीमा मानव॒को टालती रही, लेकिन किसी भी बच्चे को कब तक टाला जा सकता है. अगर उस के दिल में कोई चीज बैठ जाए तो जब तक वह उस के बारे में पता नहीं कर लेता, उसे भूलता नहीं. सीमा को लगा कि एक न एक दिन सच्चाई सामने आ ही जाएगी, इसलिए उस ने सब कुछ मानव को साफसाफ बता दिया.

उसी बीच राजेश मान प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ भाजपा से जुड़ गए और नेतागिरी करने लगे. प्रौपर्टी डीलिंग से उन्होंने अच्छीखासी कमाई की और शहर के नजदीक कई प्लौट तो खरीदे ही, रुद्रपुर के रामपुर रोड स्थित शांति विहार कालोनी में एक शानदार मकान भी बनवा लिया. अब वह ज्यादातर उसी मकान में रहने लगे. इतनी प्रौपर्टी और पैसा होने के बावजूद वह तनहा जीवन जी रहे थे.

राजेश को आने लगी बेटे की याद

इस के बाद भी उन्होंने सीमा को समझा कर साथ रहने को कहा, लेकिन सीमा ने उन के साथ रहने से साफ मना कर दिया. राजेश का उतना बड़ा मकान खाली ही पड़ा रहता था, कोई देखरेख करने वाला भी नहीं था, इसलिए उन्होंने एक किराएदार रख लिया.

किराएदार ललिता तिवारी की एक छोटी सी बेटी थी, जो अकसर राजेश के पास आ जाती थी. इस से राजेश का अकेलापन लगभग खत्म हो गया. धीरेधीरे राजेश उसे अपने ही बच्चे की तरह प्यार ही नहीं करने लगे, बल्कि उस की हर जरूरत भी पूरी करने लगे.

बच्ची के पास आनेजाने से राजेश को बेटे की याद सताने लगी. वह बेटे का पीछा करने लगे. मानव जिस स्कूल में पढ़ता था, वहां जा कर उस से मिलने लगे. लेकिन उन्होंने बेटे से साफ कह दिया था कि वह मम्मी को कभी नहीं बताएगा कि वह उस से मिलते हैं. राजेश बेटे की हर इच्छा पूरी करने लगे थे. कई बार वह उसे शांति विहार स्थित अपने घर भी ले आए.

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राजेश जहां मानव पर अपना प्यार लुटाते हुए उस के दिल को जीतने की कोशिश कर रहे थे, वहीं सीमा हमेशा उसे बाप के खिलाफ भड़काते हुए उस के मन में नफरत घोलने की कोशिश करती रहती थी. कहीं से सीमा को पता चल गया था कि राजेश चोरीछिपे बेटे से मिलते हैं.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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नई सुबह : शीला के साथ उन लड़कों ने क्या किया

शीला का अंगअंग दुख रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उठ ही नहीं पाएगी. बेरहमों ने कीमत से कई गुना ज्यादा वसूल लिया था उस से. वह तो एक के साथ आई थी, पर उस ने अपने एक और साथी को बुला लिया था. फिर वे दोनों टूट पड़े थे उस पर जानवरों की तरह. वह दर्द से कराहती रही, पर उन लोगों ने तभी छोड़ा, जब उन की हसरत पूरी हो गई.

शीला ने दूसरे आदमी को मना भी किया था, पर नोट फेंक कर उसे मजबूर कर दिया गया था. ये कमबख्त नोट भी कितना मजबूर कर देते हैं.

जहां शीला लाश की तरह पड़ी थी, वह एक खंडहरनुमा घर था, जो शहर से अलग था. वह किसी तरह उठी, उस ने अपनी साड़ी को ठीक किया और ग्राहकों के फेंके सौसौ रुपए के नोटों को ब्लाउज में खोंस कर खंडहर से बाहर निकल आई. वह सुनसान इलाका था. दूर पगडंडी के रास्ते कुछ लोग जा रहे थे.

शीला से चला नहीं जा रहा था. अब समस्या थी कि घर जाए तो कैसे? वह ग्राहक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई थी. उसे बूढ़ी सास की चिंता थी कि बेचारी उस का इंतजार कर रही होगी. वह जाएगी, तब खाना बनेगा. तब दोनों खाएंगी.

शीला भी क्या करती. शौक से तो नहीं आई थी इस धंधे में. उस के पति ने उसे तनहा छोड़ कर किसी और से शादी कर ली थी. काश, उस की शादी नवीन के साथ हुई होती. नवीन कितना अच्छा लड़का था. वह उस से बहुत प्यार करता था. वह यादों के गलियारों में भटकते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

शीला अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. गरीबी की वजह से उसे 10वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उस के पिता नहीं थे. उस की मां बसस्टैंड पर ठेला लगा कर फल बेचा करती थी.

घर संभालना, सब्जी बाजार से सब्जी लाना और किराने की दुकान से राशन लाना शीला की जिम्मेदारी थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी. साइकिल पकड़ती और निकल पड़ती. लोग उसे लड़की नहीं, लड़का कहते थे.

एक दिन शीला सब्जी बाजार से सब्जी खरीद कर साइकिल से आ रही थी कि मोड़ के पास अचानक एक मोटरसाइकिल से टकरा कर गिर गई. मोटरसाइकिल वाला एक खूबसूरत नौजवान था. उस के बाल घुंघराले थे. उस ने आंखों पर धूप का रंगीन चश्मा पहन रखा था. उस ने तुरंत अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और शीला को उठाने लगा और बोला, ‘माफ करना, मेरी वजह से आप गिर गईं.’ ‘माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने ही अचानक साइकिल मोड़ दी थी,’ शीला बोली.

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. आप को कहीं चोट तो नहीं आई?’

‘नहीं, मैं ठीक हूं,’ शीला उठ कर साइकिल उठाने को हुई, पर उस नौजवान ने खुद साइकिल उठा कर खड़ी कर दी.

वह नौजवान अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो गया और स्टार्ट कर के बोला, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

‘शीला… और आप का?’

‘नवीन… अच्छा चलता हूं.’

इस घटना के 4 दिन बाद फिर दोनों की सब्जी बाजार में मुलाकात हो गई.

‘अरे, शीलाजी आप…’ नवीन चहका, ‘सब्जी ले रही हो?’

‘हां, मैं तो हर दूसरेतीसरे दिन सब्जी खरीदने आती हूं. आप भी आते हैं…?’

‘नहीं, सच कहूं, तो मैं यह सोच कर आया था कि शायद आप से फिर मुलाकात हो जाए…’ कह कर नवीन मुसकराने लगा, ‘अगर आप बुरा न मानें, तो क्या मेरे साथ चाय पी सकती हैं?’

‘चाय तो पीऊंगी… लेकिन यहां नहीं. कभी मेरे घर आइए, वहीं पीएंगे,’ कह कर शीला ने उसे घर का पता दे दिया.शीला आज सुबह से नवीन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि नवीन जरूर आएगा. वह घर पर अकेली थी. उस की मां ठेला ले कर जा चुकी थी, तभी मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई. वह दौड़ कर बाहर आ गई. नवीन को देख कर उस का मन खिल उठा, ‘आइए… आइए न…’

नवीन ने शीला के झोंपड़ी जैसे कच्चे मकान को गौर से देखा और फिर भीतर दाखिल हो गया. शीला ने बैठने के लिए लकड़ी की एक पुरानी कुरसी आगे बढ़ा दी और चाय बनाने के लिए चूल्हा फूंकने लगी.

‘रहने दो… क्यों तकलीफ करती हो. चाय तो आप के साथ कुछ पल बिताने का बहाना है. आइए, पास बैठिए कुछ बातें करते हैं.’

दोनों बातों में खो गए. नवीन के पिता सरकारी नौकरी में थे. घर में मां, दादी और बहन से भरापूरा परिवार था. वह एक दलित नौजवान था और शीला पिछड़े तबके से ताल्लुक रखती थी. पर जिन्हें प्यार हो जाता है, वे जातिधर्म नहीं देखते.

इस बात की खबर जब शीला की मां को हुई, तो उस ने आसमान सिर पर उठा लिया. दोनों के बीच जाति की दीवार खड़ी हो गई. शीला का घर से निकलना बंद कर दिया गया. शीला के मामाजी को बुला लिया गया और शीला की शादी बीड़ी कारखाने के मुनीम श्यामलाल से कर दी गई.

शीला की शादी होने की खबर जब नवीन को हुई, तो वह तड़प कर रह गया. उसे अफसोस इस बात का रहा कि वे दोनों भाग कर शादी नहीं कर पाए. सुहागरात को न चाहते हुए भी शीला को पति का इंतजार करना पड़ रहा था. उस का छोटा परिवार था. पति और उस की दादी मां. मांबाप किसी हादसे का शिकार हो कर गुजर गए थे.

श्यामलाल आया, तो शराब की बदबू से शीला को घुटन होने लगी, पर श्यामलाल को कोई फर्क नहीं पड़ना था, न पड़ा. आते ही उस ने शीला को ऐसे दबोच लिया मानो वह शेर हो और शीला बकरी. शीला सिसकने लगी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस की सुहागरात नहीं, बल्कि वह एक वहशी दरिंदे की हवस का शिकार हो गई हो.

सुबह दादी की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया कि शीला के साथ क्या हुआ है. उस ने शीला को हिम्मत दी कि सब ठीक हो जाएगा. श्यामलाल आदत से लाचार है, पर दिल का बुरा नहीं है. शीला को दादी मां की बातों से थोड़ी राहत मिली.

एक दिन शाम को श्यामलाल काम से लौटा, तो हमेशा की तरह शराब के नशे में धुत्त था. उस ने आते ही शीला को मारनापीटना शुरू कर दिया, ‘बेहया, तू ने मुझे धोखा दिया है. शादी से पहले तेरा किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘नहीं…नहीं…’ शीला रोने लगी, ‘यह झूठ है.’

‘तो क्या मैं गलत हूं. मुझे सब पता चल गया है,’ कह कर वह शीला पर लातें बरसाने लगा. वह तो शायद आज उसे मार ही डालता, अगर बीच में दादी न आई होतीं, ‘श्याम, तू पागल हो गया है क्या? क्यों बहू को मार रहा है?’

‘दादी, शादी से पहले इस का किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘चुप कर…’ दादी मां ने कहा, तो श्यामलाल खिसिया कर वहां से चला गया.

‘बहू, यह श्यामलाल क्या कह रहा था कि तुम्हारा किसी के साथ…’

‘नहीं दादी मां, यह सब झूठ है. यह बात सच है कि मैं किसी और से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. मेरा विश्वास करो दादी, मैं ने कोई गलत काम नहीं किया.’

‘मैं जानती हूं बहू, तुम गलत नहीं हो. समय आने पर श्याम भी समझ जाएगा.’ और एक दिन ऐसी घटना घटी, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की थी. श्यामलाल ने दूसरी शादी कर ली थी और अलग जगह रहने लगा था.

श्यामलाल की कमाई से किसी तरह घर चल रहा था. उस के जाने के बाद घर में भुखमरी छा गई. शीला मायके में कभी काम पर नहीं गई थी, ससुराल में किस के साथ जाती, कहां जाती. घर का राशन खत्म हो गया था.

दादी के कहने पर शीला राशन लाने महल्ले की लाला की किराने की दुकान पर पहुंच गई. लाला ने चश्मा लगा कर उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर उस की ललचाई आंखें शीला के उभारों पर जा टिकीं. ‘मुझे कुछ राशन चाहिए. दादी ने भेजा है,’ शीला को कहने में संकोच हो रहा था.

‘मिल जाएगा, आखिर हम दुकान खोल कर बैठे क्यों हैं? पैसे लाई हो?’

शीला चुप हो गई. ‘मुझे पता था कि तुम उधार मांगोगी. अपना भी परिवार है. पत्नी है, बच्चे हैं. उधारी दूंगा, तो परिवार कैसे पालूंगा? वैसे भी तुम्हारे पति ने पहले का उधार नहीं दिया है. अब और उधार कैसे दूं?’

शीला निराश हो कर जाने लगी.

‘सुनो…’

‘जी, लालाजी.’

‘एक शर्त पर राशन मिल सकता है.’

‘बोलो लालाजी, क्या शर्त है?’

‘अगर तुम मुझे खुश कर दो तो…’

‘लाला…’ शीला बिफरी, ‘पागल हो गए हो क्या? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए.’

लाला को भी गुस्सा आ गया, ‘निकलो यहां से. पैसे ले कर आते नहीं हैं. उधार में चाहिए. जाओ कहीं और से ले लो…’

शीला को खाली हाथ देख कर दादी ने पूछा, ‘क्यों बहू, लाला ने राशन नहीं दिया क्या?’

‘नहीं दादी…’

‘मुझ से अब भूख और बरदाश्त नहीं हो रही है. बहू, घर में कुछ तो होगा? ले आओ. ऐसा लग रहा है, मैं मर जाऊंगी.’

शीला तड़प उठी. मन ही मन शीला ने एक फैसला लिया और दादी मां से बोली, ‘दादी, मैं एक बार और कोशिश करती हूं. शायद इस बार लाला राशन दे दे.’

‘लाला, तुम्हें मेरा शरीर चाहिए न… अपनी इच्छा पूरी कर ले और मुझे राशन दे दे…’ लाला के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘यह हुई न बात.’

लाला उसे दुकान के पिछवाड़े में ले गया और अपनी हवस मिटा कर उसे कुछ राशन दे दिया. इस के बाद शीला को जब भी राशन की जरूरत होती, वह लाला के पास पहुंच जाती. एक दिन हमेशा की तरह शीला लाला की दुकान पर पहुंची, पर लाला की जगह उस के बेटे को देख कर ठिठक गई.

‘‘क्या हुआ… अंदर आ जाओ.’’

‘लालाजी नहीं हैं क्या?’

‘पिताजी नहीं हैं तो क्या हुआ. मैं तो हूं न. तुम्हें राशन चाहिए और मुझे उस का दाम.’

‘इस का मतलब?’

‘मुझे सब पता है,’ कह कर शीला को दुकान के पिछवाड़े में जाने का इशारा किया. अब तो आएदिन बापबेटा दोनों शीला के शरीर से खेलने लगे. इस की खबर शीला के महल्ले के एक लड़के को हुई, तो वह उस के पीछे पड़ गया.

शीला बोली, ‘पैसे दे तो तेरी भी इच्छा पूरी कर दूं.’ यहीं से शीला ने अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया था. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे. इस तरह वह कई लोगों के साथ सो कर दाम वसूल कर चुकी थी. उस की दादी को इस बात की खबर थी, पर वह बूढ़ी जान भी क्या करती.

शीला अब यादों से बाहर निकल आई थी. दर्द सहते, लंगड़ाते हुए वह भीड़भाड़ वाले इलाके तक आ गई थी. उस ने रिकशा रोका और बैठ गई अपने घर की तरफ जाने के लिए.

एक दिन हमेशा की तरह शीला चौक में खड़े हो कर ग्राहक का इंतजार कर रही थी कि तभी उसे किसी ने पुकारा, ‘शीला…’

शीला ग्राहक समझ कर पलटी, लेकिन सामने नवीन को देख कर हैरान रह गई. वह अपनी मोटरसाइकिल पर था. ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ नवीन ने पूछा.

शीला हड़बड़ा गई, ‘‘मैं… मैं अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी.’’

‘‘शीला, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘यहां नहीं… चलो, कहीं बैठ कर चाय पीते हैं. वहीं बात करेंगे.’’

शीला नवीन के साथ नजदीक के एक रैस्टोरैंट में चली गई.

‘‘शीला,’’ नवीन ने बात की शुरुआत की, ‘‘मैं ने तुम से शादी करने के लिए अपने मांपापा को मना लिया था, लेकिन तुम्हारे परिवार वालों की नापसंद के चलते हम एक होने से रह गए.’’ ‘‘नवीन, मैं ने भी बहुत कोशिश की थी, लेकिन हम दोनों के बीच जाति की एक मजबूत दीवार खड़ी हो गई.’’

‘‘खैर, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं. वैसे, तुम खुश तो हो न? क्या करता है तुम्हारा पति? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

शीला थोड़ी देर चुप रही, फिर सिसकने लगी, ‘‘नवीन, मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है,’’ शीला ने अपनी आपबीती सुना दी.

‘‘तुम्हारे साथ तो बहुत बुरा हुआ,’’ नवीन ने कहा.

‘‘तुम अपनी सुनाओ. शादी किस से की? कितने बच्चे हैं?’’ शीला ने पूछा.

‘‘एक भी नहीं. मैं ने अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे तुम जैसी कोई लड़की नहीं मिली.’’

शीला एक बार फिर तड़प उठी.

‘‘शीला, मेरी जिंदगी में अभी भी जगह खाली है. क्या तुम मेरी पत्नी…’’

‘‘नहीं… नवीन, यह मुमकिन नहीं है. मैं पहली वाली शीला नहीं रही. मैं बहुत गंदी हो गई हूं. मेरा दामन मैला हो चुका है. मैं तुम्हारे लायक नहीं रह गई हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गलत राह पर चल रही हो. पर, इस में तुम्हारा क्या कुसूर है? तुम्हें हालात ने इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया है. तुम चाहो, तो इस राह को अभी भी छोड़ सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. तुम सोचसमझ कर जवाब देना.’’

इस के बाद नवीन ने चाय के पैसे काउंटर पर जमा कए और बाहर आ गया. शीला भी नवीन के पीछे हो ली.नवीन ने मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा. उम्मीद है कि तुम निराश नहीं करोगी,’’ कह कर नवीन आगे बढ़ गया.

शीला के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वक्त उसे दलदल से निकलने का एक और मौका देगा. अभी शीला आगे बढ़ी ही थी कि एक नौजवान ने उस के सामने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी, ‘‘चलेगी क्या?’’

‘‘हट पीछे, नहीं तो चप्पल उतार कर मारूंगी…’’ शीला गुस्से से बोली और इठलातीइतराती अपने घर की तरफ बढ़ गई.

मर्डर मिस्ट्री

इंदौर शहर की रौनक  देखते ही बनती है. इंदौर शहर लजीज व्यंजन के लिए महशूर है. विशेषत: रात को सराफा बाजार बंद होने के बाद वहाँ खाने पीने की दुकानें लगती है. खाने के शौकीन लोगों का हुजुम  देर रात सराफा बाजार मेंं  ऐसे उमडता है जैसे कि दिन  निकला  हो.  वहां का स्वाद, खाने के लजीज व्यंजन, लोगों का जिंदगी को  जिंदादिली से  जीने की स्वभाव, मालवा की माटी में रचा बसा है.  एक बार जो शहर में आया तो वहीं का होकर रह जाता है. मालवा की माटी  की सौंधी महक किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम है.

रात को शहरों की रौनक देखते ही बनती है, सराफा की गलियों में व्यजंनो की महक हवा में घुली होती है.  व्यजंनों का स्वाद व  राजवाडा की रौनक रात का भ्रम पैदा करतें है. रात 9 बजे के बाद जैसे यहाँ दिन निकलता है.

पुराने शहर की गलियों में लोग एक दूसरे से बहुत परिचित रहते हैं.  उनसे  परिवार के सदस्य क्या, पूरे खानदान का ब्यौरा मिल सकता है. शहर के कुछ नामी-गिरामी लोगों में राय साहब का रुतबा बहुत है. राजघराने से संबंधित होने के कारण मुख पर वही तेज सुशोभित रहता है.  कहतें है न कि  मिल्कियत भले चली जाये लेकिन शानो शौकत व जीने का अंदाज नहीं बदलता. यह इंसान के खून में ही शामिल होता है. यदि पुरखे राजा महाराजा रहे हों,  तब राजपुताना अंदाज  उनके रहन सहन में झलकता है.

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शहर के बीचों -बीच राय साहब का बंगला है. बाहर बडा सा शाही दरवाजा बंगले की शान है, जिसके भीतर देख पाना मुश्किल है . गेट पर छोटा सा कमरानुमा जगह है जहाँ  दरबान का पहरा रहता है.  या यह कहे कि दिन भर उसके रहने का आशियाना है. बंगले के एक कोने में शानदार 2-2  गाड़ियां खड़ी है. बंगले के चारों तरफ गुलमोहर, संतरा, चीकू, गुलाब, आम, पपई,  अनगिनत फूलों के पौधे बंगले की खूबसूरती में चार चांद लगा रहें हैं . लेकिन इतने बडे घर में रहने वाले सिर्फ दो लोग है . राय साहब और उनकी पत्नी दामिनी. एक  बेटा है जिसे लंदन पढ़ाई करने के लिए भेजा है. दोनों की खूबसूरती व सौंदर्य के चर्चे शहर भर में होते रहते हैं. रूप की रानी दामिनी जितनी सौंदर्य की स्वामिनी है , उतनी ही गुणों की खान  भी है. बंगले का चप्पा चप्पा दामिनी की कला व सौंदर्य से सुशोभित था.  वह दोनों जितने  बड़े बंगले के मालिक है उतने ही  दिल के बहुत अच्छे इंसान भी है .  वह दोनों लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे.

अमीर घरों में पार्टी का चलन आम बात है . जहाँ शबाब और कबाब पूरे चरम पर रहता है. कुछ समय पहले एक पार्टी में रात मालिनी को देखकर राय साहब की आंखें फटी रह गई. मालिनी उनके साथ लंदन में पढ़ती थी जिस पर राय साहब दिलों जान से फिदा थे. मालिनी स्वच्छंद विचरण में यकीन रखती थी. कोलेज के दिनों में  उसने राय साहब के प्रस्ताव को ठोकर मार दी. बात वही समाप्त हो गई . खानदानी परंपरा के अनुसार राय साहब का विवाह दामिनी से हुआ. अप्रतिम सौंदर्य के स्वामिनी दामिनी का शाही अंदाज उसके व्यक्तित्व में झलकता था.

लेकिन इतने बरसों बाद मालिनी को देखकर राय साहब को अपना पहला अधूरा प्यार याद आ गया.  ह्रदय में दबी हुई चिंगारी चुपके से सुलगने लगी. जिस की हवा देने में मालिनी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. अविवाहित मालिनी भी एक कांधे की तलाश में थी जो उसे अपने पुराने आशिक में मिल सकता था.

“और राय कैसे हो ?” … हाथों में जाम लिए,  अधरों पर छलकती मुस्कान व नशीली आंखों से भरी शरारती के साथ मालिनी ने साहब के कंधे पर हाथ रखा.

“अच्छा हूं … मालिनी  इतनी बरसो बाद यहां कैसे…?  मालिनी ने बात काटकर कहा

“काम के सिलसिले में आई थी, आजकल तुम कहां हो? लंबे समय बाद मुलाकत हो रही है . कभी अपने घर बुलाना… !

इससे पहले मालिनी  कुछ बोल पाती  कि  दामिनी ने आकर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए.

“अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आपने बहुत पी रखी है”.

दामिनी के आने पर राय ने मालिनी को दामिनी का परिचय कराया और औपचारिक संवादों के बाद वह दोनों वहां से चले गए.

पर मुलाकाते यहां समाप्त नहीं हुई, यह मुलाकातों की शुरुआत थी. मालिनी  यदा कदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय के जलवे,  मिल्कियत व दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा.  एक टीस सी उठती थी कि काश उसने राय के प्रस्ताव को उस समय ठुकराया ना होता,  तो आज दामिनी की जगह वह होती.

मालिनी के आने जाने से राय के हृदय में दबी हुई चिंगारी सुलग रही थी . जिसे मालिनी ने भी महसूस किया.  इस भावना ने  दबे पांव  उन्हें  एक दूसरे की तरफ धकेल दिया जिसका उन्हें एहसास भी नहीं हुआ.

दोनों उम्र के इस पड़ाव में आकर्षण ,नई ताजगी, रोमांस, रूमानियत से जीवन में रंग भर रहे थे . मालिनी अब अक्सर उनके घर  आने लगी व उसने दामिनी से भी उतने ही अपनत्व से मित्रता कर ली.

इन बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एक दूसरे से बहुत करीब ला दिया. प्रेम में घायल पंछी अपनी उड़ान भर रहा था. एक दिन मौका पाकर मालिनी ने राय से कहा-

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“प्रिय कब तक ऐसा चलेगा, यह दूरी अब सही नहीं जाती है ” दोनों तड़प रहे थे लेकिन किस्मत ने जल्दी उन्हें मौका दे दिया .

आज बंगले पर कुछ करीबी दोस्तों के साथ पार्टी थी. इसमें मालिनी ने भी शिरकत की. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब था. मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नशे व नींद की गोलियां मिला दी. अधूरी तमन्नाएं व जिंदगी को रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.

नशे का असर जब शुरू होने लगा, तो वह दामिनी को लेकर उसके कमरे में गई. राय ने यह सब देखा तो पीछे – पीछे आकर पूछा कि – दामिनी को क्या हुआ?

मालिनी ने उसे चुप कराया, कहा-

“पार्टी समाप्त करो फिर बात करते हैं. सब ठीक है ”  कहकर उसने राय को सब कुछ बताकर कहा –

” राय तुम चिंता मत करो, नशा ज्यादा हो गया .अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. उसे कुछ नही होगा, बस रात की ही बात है. ”

ऐसा कहकर मालिनी उसके गले लग गई. लेकिन दामिनी अचानक नशे की हालत में उठी तो डर कर मालिनी ने उसे धक्का दे दिया, जिससे वह पलंग से टकराकर वही लुढ़क गई. फिर उनसे वह गलती हो गई जो नहीं होनी चाहिए.

पार्टी को वहीं खत्म करके सबने विदा ली. सुबह जब नशे कि खुमारी उतरी तो राय को अपनी गलती का एहसास हुअा. वह  तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा . लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी.  उसने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उसकी चीख जोर से निकल गई .  दामिनी बाथटब में पानी के अंदर पड़ी हुई थी, उसने उसे बाहर निकालकर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया.   मुख से साँस का प्रयास किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. शरीर निस्तेज हो चुका था.

राय की चीख सुनकर मालिनी दौड़ी आई.

“क्या हुआ… यह कैसे हो गया ? बात गले में अटक गई. “ वह बडबडाने लगी –

” मैंने ड्रिंक में सिर्फ नशे व नींद की गोलियां मिलाई थी,  मैं किसी की जान नहीं लेना चाहती थी….”

राय ने उसे गुस्से में परे धकेला-

” जाओ जल्दी से किसी डॉक्टर को बुलाओ… यह नही होना चाहिये था”.

भय से मालिनी ने उसे शांत करने का प्रयास किया-

” देखो तुम शांत हो जाओ. इसकी साँसे नहीं चल रही है . डाक्टर से क्या कहोगे. पुलिस केस बनेगा . तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बनेगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार करने में ही भलाई है.  इन परेशानियों  से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही हितकर होगा . मैं तुम्हारे साथ हूं . चिंता मत करो . मैं रात को आऊंगी. घर के नौकर छुट्टी पर है.  किसी को पता नहीं चलेगा….” मालिनी उसे शांत करने का प्रयास करती रही.

राय, जब मालिनी की बात से सहमत हो गया तो उसने चैन की साँस ली . राय ने बाहर दरबान को आवाज दी

“रामू ,मैडम को घर छोड़ कर आओ और तुम कई दिनों से अपने घर जाना चाहते थे . दो-चार दिन गांव होकर आ जाओ, अभी ज्यादा कुछ काम भी नहीं है”

मालिनी ने जाते जाते इशारा किया घबराओ मत, हम शाम को मिलते हैं.

राय ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगा. मन को बहलाने के लिए वह टीवी में समाचार सुन रहा था कि एक खबर ने उसे चौंका दिया . देश में महामारी  फैलने के कारण कर्फ्यू दिया गया है. किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही है. उसने कल ध्यान नही दिया था. मसलन आज रात को वह बाहर नही जा सकते है.

उसने जल्दी से मालिनी को फोन किया कि

” तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संकार करना होगा. लाश को घर में नही रख सकतें है.”

लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करके अाने से इंकार कर दिया कि आज शहर भर में पुलिस ड्यूटी पर है . मैं नहीं आ सकती हूं. कल मिलती हूँ एक दिन की बात है. अब राय अकेला‌ घर में परेशान घूम रहा था.

काल की मार देखो  कि वह अगला दिन नहीं आया ही नही.  लाक डाउन की मियाद बढाकर एक महीने कर दी गई . मालिनी आ नहीं सकी व इधर राय को आत्मग्लानि होने लगी. भय के बादल मँडरा रहे थे. उसने जल्दी से अपने घर के सब खिड़की दरवाजे सब बंद कर लिए,  बाहर गेट पर ताला लगा दिया जिससे कोई अंदर ना आ सके.

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कुछ पल बैठकर उसने खुद को संभाला. विचार किया कि घर में गाड़ी है. उसे निकालकार लाश को गाडी में ले जाकर रात को उसका क्रिया कर्म करवा दूंगा.  बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकता थे.  किंतु बंगले  के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे.  जिससे उसे घर से बाहर  सड़क पर अाने जाने वालों  की  सब जानकारी मिल जाती थी. उसमें अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखें . चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिस कर्मी नजर अाए. कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराया जा रहा है. आने जाने ‌वालों की चेंकिग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नही था.

एक लाश के साथ इतने दिन गुजारना भयावह था .  समय ने ऐसा चक्र घुमाया कि जिंदगी ठहर गई. राय की हालत अजीब सी होने लगी. लाश के साथ रहना उसकी मजबूरी थी. बार-बार बेडरूम में जाकर चेक करता कि शरीर सुरक्षित है या नहीं. पूरे बंगले में सिर्फ वह था और दामिनी का मृत शरीर .

लाश को घर में रखना चिंता का विषय था. शरीर के  सड़ने  से बदबू फैल सकती है. उसने बेडरूम में ऐसी चलाकर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया व कमरे का दरवाजा बंद कर दिया . कभी वह कमरे के बाहर जाता तो कभी वह खिड़कियों से झांकता वहीं बैठा रहता .

घबराहट धीरे-धीरे कुंठा में परिवर्तित हो रही थी. भय और ग्लानि के भाव मुख पर नजर आ रहे थे. वह खुद को संयत करने का जितना प्रयास करता उतना ही खुद को दामिनी का दोषी मानता.  अब इन हालातों में जैसे भी हो दिन काटना  मजबूरी है.

एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गया तो जाने किस भावावेश मेंं उसके मृत शरीर से लिपट गया और पागलों की तरह चिल्लाने लगा.

“दामिनी मुझे माफ कर दो . मेरी गलती की सजा तुम्हें मिल रही है. घर का कोना कोना तुम्हारी महक में रचा बसा है, तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, प्लीज वापिस आ जाओ… मैने मालिनी पर विश्वास करके गलती की है…मुझे माफ कर दो ….”  रोते  हुए उसकी आंख लग गई.

थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि कोई उसके हाथ को सहला रहा है. किसी की गर्म सांसे मुख पर महसूस हो रही है. चिर परिचित महक उसके आगोश में लिपटी हुई है. वह मदमस्त सा उस निश्चल धारा में बहने लगा. तभी अचानक ना जाने कहाँ से उसके पालतू कुत्ते आ गये, जो उनके साथ खेलने लगे.

लेकिन खेलते खेलते अचानक उन्होंने उसके हाथों की उंगलियों को मुंह में दबा लिया. वह उंगलियों को छुड़ाना चाहता है, लेकिन उनकी पकड मजबूत से दर्द का अहसास हो रहा था.  पैने नुकीले दांतो के बीच दबी उंगलियां कट सकती हैं. इस डर से जोर से चिल्लाने लगा. भयभीत आंखें खोली तो खुद को बिस्तर पर पाकर स्वप्न का अहसास हुआ.

लेकिन हाथ की मजबूत पकड अभी भी महसूस हो रही थी. तभी उसने देखा कि दामिनी के हाथ में उसका हाथ फंसा हुआ था और वह उसके शरीर से लिपटी हुई थी.  डर से चीखें निकल गई. वह पसीने से तरबतर, भय से कांपता हुआ जमीन पर बैठ गया.  सांसें उखड़ने लगी, गला सूख रहा था . किसी तरह उठ कर लडखडाते हुए कदमों से वह रसोई की तरफ भागा.  जग से पानी लेकर दो-तीन गिलास पानी पीकर खुद को संयत किया.

लाश  के साथ घर में रहते हुए उसे 15 20 दिन हो चुके थे. हर एक दिन एक  वर्ष के समान लग रहा था . बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उसके सुंदर मुख को डरावना बना रहे थे. घर में जो मिला वह खा लिया. पर अब खाने से ज्यादा पीने शुरू कर दिया .

धीरे-धीरे उसे इन बातों की आदत पडने लगी. पहले वह लाश को देखकर डरता था  लेकिन अब वह उससे बातें करने लगा.  उसकी मन: स्थिति अजीब सी हो रही थी. दामिनी उसकी कल्पना में फिर से जी उठी. दामिनी की अच्छाई  व उसका निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उसकी दुनिया पुन:  दामिनी के इर्द-गिर्द सिमटने लगी. कल्पनिक दुनिया में उसने  अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए. अब काल्पनिक दामिनी  हर जगह उसके साथ थी.

घंटों नशे में धुत्त दामिनी से बातें करना, उसका श्रृंगार करना व उसके पास ही सो जाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गए.

आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त कर रहा था . बिछोह की अग्नि प्रबल हो  रही थी . एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगा. दामिनी के सडते हुए शरीर को गंदा समझकर गीले कपडे साफ करने लगा तो शरीर से चमडी निकलने लगी.  उसके पास से बदबू आ रही थी. पर पागल दीवाना राय उसका शृंगार कर रहा था. अंत में उसने शादी वाली साडी अलमारी से निकाली अौर शरीर पर डाल कर दुल्हन जैसा सजा दिया. माँग में सिंदूर भरकर अपनी मोहर लगा दी.

उसकी नजर में वह उसकी वही सुंदर दामिनी थी.  फिर वह उससे बातें करने लगा .देखो दामिनी कितनी सुंदर लग रही हो. उसने उसके माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाई,  फिर गले लगकर .

“अब तुम आराम करों, तुम तैयार हो गई हो. मै भी नहाकर आता हूँ. हमें बाहर जाना है.  ”

पगला दीवाना मुस्कुराया.  वह कई दिनों से सोया नही था.  वह सुकुन से सोना चाहता था. आंखों में नींद भरी थी.  पर आंखे बंद नहीं हो रही थी. गला सूख रहा था.  उसने उठकर पानी पिया . फिर जाने किस नशे में अभिभूत होकर नींद की गोलियां खा ली.  उसके बाद वह बाथरूम में गया और टब से टकराकर गिर पडा. नींद मे अस्फुट शब्द फूट रहे थे कि आज उसका व  दामिनी आज पुनर्मिलन होगा.

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एक महीने बाद जब कर्फ्यू खत्म हुआ. तो घर के नौकर -चाकर काम पर वापिस लौट अाए.  घर का बंद दरवाजा देखा तो फोन लगाया लेकिन किसी ने भी फोन नही उठाया . काफी देर तक घंटी बजाने के बाद किसी ने दरवाजा नही खोला तो उन्होंने पुलिस को बुलाया.  बंगले के अंदर करीब जाने पर  तेज आती गंध से सभी को कुछ अनहोनी होने की आंशका  होने लगी.  अंदर जाकर देखा तो दोनो की लाशें पड़ी थी. लाशें सड रही थी. एक लाश पलंग पर सुंदर कपडों में सजी थी, दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पडी थी. उनकी हालत देखकर सबका कलेजा मुँह को आ गया. दोनो का पोस्ट मार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी.  पुलिस आज तक इस मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व करने का प्रयास कर रही है .  यह रहस्य कोई समझ नहीं सका कि बंद घर के अंदर दोनो का मर्डर कैसे हुआ.

यहां चल रहा था इंसानी खून का काला कारोबार

पैसा और जल्द अमीर बनने की लालसा इंसान को वह सब करने को मजबूर कर देता है कि एकबारगी यकीन ही नहीं होता कि क्या कोई ऐसा भी कर सकता है? यों अपराध करना और वह भी खुलेआम बिहार में आम बात है मगर पिस्तौल के बल पर आएदिन लोगों को शिकार बनाने वाले अपराधी किस्म के लोगों ने पैसे कमाने का नया तरीका ढूंढ़ा तो जान कर लोग सन्न रह गए.

बिहार के पटना में एक ऐसा ही वाकेआ घटित हुआ और पुलिस के हत्थे चढ़े ऐसे अपराधी जिन की तलाश में पुलिस खाक छान रही थी.

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कमरा छोटा अपराध बड़ा

मामला पटना के जक्कनपुर थाने स्थित पोस्टल पार्क, खासमहाल इलाके की है. यहां एक छोटे से कमरे में चल रहे अपराध की सूचना पुलिस को मिली. पुलिस ने सुनियोजित तरीके से छापा मारा तो चारों तरफ बिखरे खून की छींटे देख कर हैरान रह गई. एकबारगी तो पुलिस ने सोचा कि यहां किसी की हत्या की गई है पर जब पुलिस ने तफ्तीश की और घर में सर्च औपरेशन चलाया तो माजरा समझते देर नहीं लगी.

दरअसल, इस छोटे से कमरे में इंसानी खून का काला कारोबार चलाया जा रहा था. पुलिस ने अपराध का भंडाफोड़ किया तो परत दर परत सचाई खुलती गई.

पुलिस ने गिरोह के सरगना संतोष कुमार और एजेंट सोनू को गिरफ्तार कर सख्ती से पूछताछ की. वहां खून से भरे 4 ब्लड बैग भी बरामद किए गए थे. पहले तो इन अपराधियों ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की पर जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो टूट गए और बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों यहां रह कर खून की खरीदबिक्री कर रहे थे.

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अपराध और अपराधी

जक्कनपुर थाना के इंचार्ज मुकेश कुमार वर्मा ने मीडिया को जानकारी दी और बताया,”पुलिस टीम द्वारा की गई पूछताछ में यह बात सामने आई है कि दोनों के तार कई निजी अस्पतालों से जुड़े हैं. छापे के दौरान कई डोनर्स भी पकड़े गए, जिन्हें पैसे का लालच दे कर खून निकलवाने लाया गया था.”

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अब पुलिस मानव खून की खरीदबिक्री में शामिल दूसरे लोगों की तलाश में अलगअलग जगहों पर छापे मार रही है.

एक बार में 2 यूनिट तक खून निकाल लेते थे

खून की खरीदबिक्री का धंधा करने वाले 1 यूनिट खून निकालने की बात कह कर ब्लड डोनर्स को कमरे तक लाते थे. फिर धोखे से 1 की जगह 2 यूनिट खून निकाल लेते थे और उन्हें भनक तक नहीं लग पाती थी. खून लेने के तुरंत बाद सरगना संतोष डोनर को आयरन की कैप्सूल खिला देता था. फिर कुछ ही दिनों बाद वह डोनर दोबारा खून देने पहुंच जाता था. कई बार तो डोनरों की तबीयत तक बिगड़ जाती थी. ये ऐसे डोनर्स होते थे जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत होती थी या फिर वे जो लंबे समय से बेरोजगार थे. कई तो नशाखोर भी थे, जो नशे की लत को पूरा करने के लिए ब्लड डोनेट करते और पैसा मिलने के बाद नशा करने चले जाते.

अस्पतालों में बिना जांच खरीद लिए जाते थे खून

कुछ निजी अस्पतालों के मालिक बिना जांच ही ऐसे लोगों से कम दाम पर खून खरीद लेते थे. उन की साठगांठ संतोष और सोनू के साथ थी. दोनों रोज अस्पतालों में खून की सप्लाई करते थे. सूत्रों के मुताबिक, पुलिस टीम उन अस्पतालकर्मियों की तलाश कर रही है, जो अकसर सोनू और संतोष से मिलने यहां आया करते थे. जिन निजी अस्पतालों में खून की खरीदबिक्री करने वाला गैंग सक्रिय था, पुलिस के अनुसार अब वहां भी काररवाई हो सकती है.

हजारों कमाते थे सिर्फ 1 दिन में

पुलिस के मुताबिक, खून खरीदने वाला संतोष डोनर्स को महज 1 हजार रुपए देता था जबकि 1 यूनिट खून से वह 22 सौ रूपए का मुनाफा कमा लेता था. इस तरह 1 डोनर से वह 44 सौ बना लेता था जबकि डोनर्स को वह बताता तक नहीं था कि उस ने 2 यूनिट ब्लड निकाल लिए हैं.

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वहीं सोनू खून देने वालों को रुपए का लालच दे कर अपने अड्डे तक लाता था. 1 डोनर को लाने के बदले उसे कमीशन के रूप में 11 सौ रुपए मिलते थे.

जिस कमरे में खून की खरीदबिक्री का खेल चल रहा था वह बेहद छोटा था. जाहिर है इस में संक्रमण का खतरा भी हो सकता है. सारे नियमकानून को ताक पर रख कर खून निकाले जाते थे. खास बात यह है कि ब्लड बैग तक का इंतजाम सरगना ने कर रखा था, जबकि ब्लड बैग आम आदमी को देने की मनाही है. उसे लाइसैंसी ब्लड बैंक ही ले सकता है.

पुलिस उगलवा रही है सच

अब पुलिसिया तफ्तीश जारी है. इस गैंग को चिह्नित कर पुलिस आगे की कार्रवाई कर रही है. सह भी पता एसएसपी उपेंद्र शर्मा ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि पुख्ता सुबूत जुटाने के बाद पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी और यह पता लगाएगी कि इन अपराधियों के तार कहांकहां जुङे हैं.

सेनेटाइजर ही पिला दिया दबंगों ने, कठघरे में खड़ा दबंग

दबंगों को यह जरा भी रास नहीं आया कि कोई उस की तौहीन कर दे. इसी तौहीन की वजह से दबंगों ने मिल कर एक शख्स की पहले पिटाई की और फिर उस के बाद जबरन उसे सेनेटाइजर पिलाने की घटना सामने आई.

यह ताजा मामला रामपुर जिले के मुतियापुर गांव का है. गांव के प्रधान ने अपने गांव में सैनिटाइजर के छिड़काव के लिए युवक को बुलाया और उसी के मुंह में सैनिटाइजर का स्प्रे कर दिया, जिस से उस युवक की इलाज के दौरान मौत हो गई.

रामपुर जिले के भोट थाना क्षेत्र में सेनेटाइजर कर रहे एक युवक कुंवर पाल की गांव के ही दूसरे शख्स से झड़प हो गई. जब कुंवर पाल सैनिटाइजर स्प्रे कर रहा था तब पास से गुजर रहे एक शख्स के पैर पर सैनिटाइजर स्प्रे चला गया, जिस के बाद दोनों में झड़प हो गई. दूसरे शख्स ने कुंवर पाल को गालीगलौज देना शुरू कर दी.

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कुछ ही देर में कुछ और लोग वहां पहुंच गए और दूसरे युवक के साथ मिल कर सैनिटाइजर का स्प्रे कुंवर पाल के मुंह में उड़ेल दिया.

हालत बिगड़ने पर वहां मौजूद लोग उसे अस्पताल ले गए, जहां से उसे हायर सेंटर रेफर किया गया. यहां इलाज के दौरान 17 अप्रैल की दोपहर कुंवर पाल की मौत हो गई.

फिलहाल, पुलिस ने एक अज्ञात व 4 अन्य के खिलाफ धारा 147, 323 व 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मृतक कुंवर पाल के भाई महेश पाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि 14 अप्रैल की सुबह 7 बजे पड़ोसी गांव के प्रधान ने हमारे गांव से 2 लड़के दवा छिड़कने के लिए बुलाए थे. दवा छिड़कने के दौरान कुछ दवा पास से गुजर रहे युवक के पैरों पर चली गई जिस के बाद उन की आपस में झड़प हो गई और छिड़काव कर रहे कुंवर पाल के मुंह में सैनिटाइजर स्प्रे कर दिया, जिस से उस की हालत बिगड़ गई.

17 अप्रैल की दोपहर इलाज के दौरान कुंवर पाल की मौत हो गई.

वहीं भोट क्षेत्राधिकारी अशोक पांडे ने बताया कि मुतियापुरा गांव के प्रधान इंद्रपाल हैं. भाई महेश पाल ने कहा कि उस के भाई कुंवर पाल को इंद्रपाल सेनेटाइजर दवा का छिड़काव करने के लिए ले गए थे और छिड़काव करते समय स्प्रे इंद्रपाल के ऊपर पड़ गया.

इंद्रपाल ने जानबूझ कर उस के भाई कुंवर पाल के मुंह में दवा डाल दी. महेश पाल की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

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वहीं एएसपी अरुण कुमार कहते हैं, ‘मृतक के भाई ने हमें घटना के बारे में सूचना दी. उस ने बताया कि जब मृतक 14 अप्रैल को गांव में सेनेटाइजेशन करने गया था तो कुछ बदमाशों ने उसे पीटा था. लोगों ने युवक को रामपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से डाक्टरों ने रेफर कर दिया. फिर उसे मुरादाबाद जिले के टीएमयू अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां 17 अप्रैल को उस की मौत हो गई.

भाई महेश पाल कुछ भी आरोप लगाए, पर इन दबंगों के खिलाफ मामला तो कोर्ट ही तय करेगा कि गलती किस की है.

जरा सी बात पर दबंगों का इतना बखेड़ा खड़ा करना कि जान ही चली जाए, कोई हैरानी की बात नहीं, पर यह इस बात पर निर्भर है कि इन दबंगों की दबंगई का फैसला कोर्ट किस तरह करती है. क्या ये बाहर निकल पाएंगे या जेल ही इन का भविष्य होंगी, कहना मुश्किल है.

19 दिन 19 कहानियां : कातिल बहन की आशिकी

इस साल गणतंत्र दिवस की बात है. अन्य शहरों की तरह इस मौके पर उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में भी स्कूल, कालेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान व मुख्य चौराहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था. शहर का ही सराय एसर निवासी श्याम सिंह यादव भी अपने स्कूल में मौजूद था और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम को तन्मयता से देख रहा था. श्याम सिंह यादव एक प्राइवेट स्कूल में वैन चालक था. वैन द्वारा सुबह के समय बच्चों को स्कूल लाना फिर छुट्टी होने के बाद उन्हें उन के घर छोड़ना उस का रोजाना का काम था.

स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद श्याम सिंह ने स्कूल के बच्चों को घर छोड़ा, फिर वैन को स्कूल में खड़ा कर के वह दोपहर बाद अपने घर पहुंचा. घर में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे बड़ी बेटी पूजा तो दिखाई पड़ी, लेकिन छोटी बेटी दीपांशु उर्फ रचना दिखाई नहीं दी. रचना को घर में न देख कर श्याम सिंह ने पूजा से पूछा, ‘‘पूजा, रचना घर में नहीं दिख रही है. कहीं गई है क्या?’’

‘‘पापा, रचना कुछ देर पहले स्कूल से आई थी, फिर सहेली के घर चली गई. थोड़ी देर में आ जाएगी.’’ पूजा ने बताया.

श्याम सिंह ने बेटी की बात पर यकीन कर लिया और चारपाई पर जा कर लेट गया. लगभग एक घंटे बाद उस की नींद टूटी तो उसे फिर बेटी की याद आ गई. उस ने पूजा से पूछा, ‘‘बेटा, रचना आ गई क्या?’’

‘‘नहीं पापा, अभी तक नहीं आई.’’ पूजा ने जवाब दिया.

‘‘कहां चली गई जो अभी नहीं आई.’’ श्याम सिंह ने चिंता जताते हुए कहा.

इस के बाद वह घर से निकला और पासपड़ोस के घरों में रचना के बारे में पूछा. लेकिन रचना का पता नहीं चला. फिर उस ने रचना के साथ पढ़ने वाली लड़कियों से उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रचना आज स्कूल गई ही नहीं थी.

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श्याम सिंह का माथा ठनका. क्योंकि पूजा कह रही थी कि रचना स्कूल से वापस आई थी. श्याम सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगीं. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी अपने बेटे विवेक के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई हुई थी. श्याम सिंह ने रचना के गुम होने की जानकारी पत्नी को दी और तुरंत घर वापस आने को कहा.

शाम होतेहोते 17 वर्षीय दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. कई हमदर्द लोग श्याम सिंह के साथ रचना की खोज में जुट गए. जब कोई जवान लड़की घर से गायब हो जाती है तो तमाम लोग तरहतरह की कानाफूसी करने लगते हैं. श्याम सिंह के पड़ोस की महिलाएं भी कानाफूसी करने लगीं.

श्याम सिंह ने लोगों के साथ तमाम संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. इटावा के रेलवे स्टेशन, रोडवेज व प्राइवेट बसअड्डे पर भी रचना को ढूंढा गया. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लगा.

जब रचना का कुछ भी पता नहीं चला, तब श्याम सिंह थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस ने वहां मौजूद ड्यूटी अफसर आर.पी. सिंह को अपनी बेटी दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की जानकारी दी. थानाप्रभारी ने दीपांशु उर्फ रचना की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने इटावा जिले के सभी थानों में रचना के गुम होने की सूचना हुलिया तथा उम्र के साथ प्रसारित करा दी.

बड़ी बेटी पर हुआ शक

रात 10 बजे तक श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी बेटे के साथ अपने घर पहुंच गई. पतिपत्नी ने सिर से सिर जोड़ कर परामर्श किया तो उन्हें बड़ी बेटी पूजा पर शक हुआ. उन्हें लग रहा था कि रचना के गुम होने का रहस्य पूजा के पेट में छिपा है. इसलिए श्याम सिंह ने पूजा से बड़े प्यार से रचना के बारे में पूछा.

लेकिन जब पूजा ने कुछ नहीं बताया तो श्याम सिंह ने उस की पिटाई की. इस के बाद भी पूजा ने अपनी जुबान नहीं खोली. रात भर श्याम सिंह व सर्वेश कुमारी परेशान होते रहे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रचना कहां गुम हो गई.

अगले दिन 27 जनवरी की सुबह गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ गए तो उन्होंने तालाब के किनारे पानी में एक बोरी पड़ी देखी. बोरी को कुत्ते पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. बोरी को देखने से लग रहा था कि उस में किसी की लाश है.

यह तालाब श्याम सिंह के घर के पिछवाड़े था, इसलिए बहुत जल्द उसे भी तालाब में संदिग्ध बोरी पड़ी होने की जानकारी मिल गई. खबर पाते ही वह तालाब किनारे पहुंच गया. उस ने बोरी पर एक नजर डाली फिर तमाम आशंकाओं के बीच बदहवास हालत में थाना सिविल लाइंस पहुंचा. थानाप्रभारी जे.के. शर्मा को उस ने तालाब किनारे मुंह बंद बोरी पड़ी होने की सूचना दी और आशंका जताई कि उस में कोई लाश हो सकती है.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा पुलिस टीम के साथ सराय एसर गांव के उस तालाब के किनारे पहुंचे, जहां संदिग्ध बोरी पड़ी थी. उन्होंने 2 सिपाहियों की मदद से बोरी को तालाब से बाहर निकलवाया. बोरी का मुंह खुलवा कर देखा गया तो उस में एक लड़की की लाश निकली.

लाश बोरी से निकाली गई तो उसे देखते ही श्याम सिंह फफक कर रो पड़ा. लाश उस की 17 वर्षीय बेटी दीपांशी उर्फ रचना की थी. रचना की लाश मिलने की खबर पाते ही उस की मां सर्वेश कुमारी रोतीबिलखती तालाब किनारे पहुंच गई.

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इधर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने रचना की लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी तथा एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पिता श्याम सिंह से इस बारे में पूछताछ की.

श्याम सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रचना की हत्या का राज उन की बड़ी बेटी पूजा के पेट में छिपा है जो इस समय घर में मौजूद है. अगर उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

अपनी ही बेटी पर छोटी बेटी की हत्या का आरोप लगाने की बात सुन कर एसएसपी त्रिपाठी भी चौंके. उन्होंने पूछा, ‘‘बड़ी बहन अपनी छोटी बहन की हत्या आखिर क्यों कराएगी?’’

‘‘साहब, मेरी बड़ी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं. हो सकता है इस हत्या में पड़ोस का अनिल और उस का दोस्त अवध पाल भी शामिल रहे हों.’’ श्याम सिंह ने बताया.

श्याम सिंह की बातों से एसएसपी को मामला प्रेम प्रसंग का लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि वह डेडबौडी को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आरोपियों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ करें. इस के बाद थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद रचना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

फिर उन्होंने महिला पुलिस के सहयोग से मृतका की बड़ी बहन पूजा यादव को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा आरोपी अनिल व उस के दोस्त अवध पाल को भी सरैया चुंगी के पास से पकड़ लिया गया.

थाने में एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की मौजूदगी में पुलिस ने सब से पहले श्याम सिंह की बड़ी बेटी पूजा यादव से पूछजाछ शुरू की. शुरू में तो पूजा अपनी बहन की हत्या से इनकार करती रही लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि छोटी बहन रचना से उस का झगड़ा हुआ था. झगडे़ के बाद उस ने कमरा बंद कर फांसी लगा ली थी. इस से वह बुरी तरह डर गई. इसलिए शव को उस ने बोरी में भरा और साइकिल पर लाद कर घर से थोड़ी दूर स्थित तालाब में फेंक आई.

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.

श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

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अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.

‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.

‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’

मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी. घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.

पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

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पूजा और अवध पाल के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूनासूना लगने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में साथ बैठ कर अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. इसी प्यार के चलते दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिले तो फिर तन मिलने में भी देर नहीं लगी.

पूजा और अवध पाल ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का पता किसी को न चले. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पूजा की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना ने पूजा और अवध पाल को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. रास्ते में तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर आ कर उस ने पापा और मम्मी के कान भर दिए.

कुछ देर बाद पूजा कालेज से घर आई तो मांबाप की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं. श्याम सिंह ने गुस्से में उस से पूछा, ‘‘रास्ते में किस के साथ हंसीठिठोली कर रही थी? कौन है वह, जो हमारी इज्जत को नीलाम करना चाहता है? सचसच बता वरना…’’

पिता का गुस्सा देख कर पूजा सहम गई. वह जान गई कि उस के प्यार का भांडा फूट गया है, इसलिए झूठ बोलने से कुछ नहीं होगा. अत: वह सिर झुका कर बोली, ‘‘पापा, वह लड़का है अवध पाल. सरैया चुंगी में रहता है. वह अपने बड़े भाई वीरपाल के साथ डेयरी चलाता है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

पूजा की बात सुनते ही श्याम सिंह का गुस्सा सीमा लांघ गया. उस ने पूजा की जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी कि आइंदा वह अवध पाल से न मिले. पूजा की मां सर्वेश कुमारी ने भी उसे खूब समझाया. पूजा पर लगाम कसने के लिए सर्वेश ने उस का कालेज जाना बंद करा दिया, साथ ही उस पर निगरानी भी रखने लगी. पूजा पर निगाह रखने के लिए श्याम सिंह और उस की पत्नी ने छोटी बेटी रचना को भी लगा दिया. पूजा जब भी कालेज जाने की बात कहती तो रचना उस के साथ होती और उस की हर गतिविधि पर नजर रखती.

पाबंदी लगी तो पूजा व अवध पाल का मिलनाजुलना बंद हो गया. इस से दोनों परेशान रहने लगे. अवध पाल ने अपनी परेशानी अपने दोस्त अनिल को बताई और इस मामले में मदद मांगी. अनिल रचना का नातेदार था और पास में ही रहता था. वह दोनों के प्यार से वाकिफ था, सो मदद करने को राजी हो गया.

इस के बाद अवध पाल ने अनिल को एक मोबाइल फोन दे कर कहा, ‘‘दोस्त, तुम पूजा के पड़ोसी हो. पूजा तुम्हारे परिवार की है. तुम उस के घर वालों पर नजर रखो और जब भी पूजा घर में अकेली हो तो उसे फोन दे कर मेरी बात करा दिया करना.’’

इस के बाद अनिल पूजा और अवध पाल के प्यार का राजदार बन गया. पूजा जब भी घर में अकेली होती तो अनिल उसे मोबाइल दे कर अवध पाल से बात करा देता. प्यार भरी बातें करने के बाद पूजा अनिल को मोबाइल वापस कर देती. कभीकभी पूजा बहाना कर के अनिल के घर चली जाती और मोबाइल से देर तक प्रेमी अवध पाल से बतिया कर वापस आ जाती.

परंतु पूजा और अवध पाल का मोबाइल पर बतियाना ज्यादा समय तक राज न रह सका. एक रोज रचना ने पूजा को बतियाते सुन लिया. यही नहीं, उस ने अनिल को मोबाइल वापस करते भी देख लिया. इस की जानकारी उस ने मांबाप को दी तो पूजा की पिटाई हुई.

इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. रचना जब भी पूजा को बतियाते हुए देख लेती तो मांबाप को बता देती. फिर उस की पिटाई होती. पूजा अब रचना को अपने प्यार का दुश्मन समझने लगी थी. वह प्रतिशोध की आग में जल रही थी.

24 जनवरी, 2019 को श्याम सिंह की पत्नी बेटे विवेक के साथ किसी काम से चरुआभानी, मैनपुरी रिश्तेदारी में चली गई. इस की जानकारी अनिल को हुई तो वह पूजा और अवध पाल का मिलाप कराने का प्रयास करने लगा, लेकिन रचना की कड़ी निगरानी की वजह से वह मिलाप न करा सका.

गुस्सा बना रचना की मौत की वजह

26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस था. लगभग साढ़े 7 बजे श्याम सिंह यादव अपनी ड्यूटी चला गया. श्याम सिंह के जाने के बाद अनिल पूजा के घर पहुंच गया और उसे मोबाइल दे गया. कुछ देर बाद रचना भी किसी काम से पड़ोसी के घर चली गई. इसी बीच पूजा को मौका मिल गया और वह मोबाइल पर प्रेमी अवध पाल से बतियाने लगी.

पूजा, प्रेमी से रसभरी बातें कर ही रही थी कि रचना आ गई. उस ने मोबाइल पर बहन द्वारा बात करने का विरोध किया और धमकी देते हुए कहा कि आने दो पापा को तुम्हारे प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम रचना नहीं.

रचना की धमकी से पूजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और दोनों में कहासुनी होने लगी. इसी कहासुनी के बीच रचना ने पूजा के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया, जिस से वह टूट गया. इस के अलावा उस ने ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया, जिस से पूजा का गुस्सा और बढ़ गया. वह नफरत की आग में जल उठी.

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पूजा ने लपक कर रचना के गले में पड़ा स्कार्फ दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसे खींचने लगी. नफरत की आग में जल रही पूजा भूल गई कि जिस का वह गला कस रही है, वह उस की छोटी बहन है. पूजा के हाथ तभी ढीले हुए जब रचना की आंखें फट गईं और वह जमीन पर गिर पड़ी.

पूजा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन की सांसें थम गई हैं. वह उसे हिलानेडुलाने लगी. नाम ले कर पुकारने लगी, ‘‘उठो रचना, उठो. मुझे माफ कर दो.’’

लेकिन रचना कैसे उठती. उस की तो दम घुटने से मौत हो चुकी थी. पूजा कुछ देर तक लाश के पास बैठी पछताती रही. फिर पकड़े जाने के डर से वह घबरा गई. पुलिस से बचने के लिए उस ने गले में लिपटा स्कार्फ निकाला और बक्से में छिपा दिया. फिर रचना के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और बोरी का मुंह बंद कर दिया.

घर के पिछवाड़े कुछ ही कदम की दूरी पर तालाब था. घर के कमरे का एक दरवाजा इसी तालाब की ओर खुलता था. पूजा ने दरवाजा खोला, आवाजाही की टोह ली और फिर शव को साइकिल पर लाद कर तालाब किनारे फेंक दिया. फिर दरवाजा बंद कर साइकिल जहां की तहां खड़ी कर दी. टूटे मोबाइल को उस ने कबाड़ में फेंक दिया और घर साफसुथरा कर दिया.

दोपहर बाद जब श्याम सिंह घर आया तो उसे रचना नहीं दिखी. तब उस ने पूजा से पूछा. पूजा ने उसे गुमराह कर दिया. श्याम सिंह देर रात तक रचना की खोज में जुटा रहा. जब वह नहीं मिली तब वह वह थाना सिविल लाइंस चला गया और पुलिस जांच के बाद प्यार में बाधक बनी छोटी बहन की बड़ी बहन द्वारा हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई.

पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 28 जनवरी, 2019 को उसे इटावा की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. अनिल व अवध पाल के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिस से उन्हें छोड़ दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्या कसूर था उन मासूमों का ?

उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के गोपीगंज कोतवाली क्षेत्र के जहांगीराबाद की ये घटना है जो सामने आई है, इस घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. जो भी सुनेगा उसका कलेजा कांप जाएगा ये सोचकर ही भला कोई मां ऐसा कैसे कर सकती है? अब जरा आप भी जानिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ.

गंगा घाट पर एक महिला ने अपने पांच बच्चों को गंगा में फेंक दिया. उन बच्चों को अभी भी पुलिस स्थानीय गोताखोरों के द्वारा ढ़ूढ रही है. सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि महिला खुद तैरक बाहर आ गई लेकिन बच्चों का कुछ भी अता-पता नहीं चल पाया. महिला ने बताया कि उसका पति से झगड़ा हुआ था, जिसकी वजह से उसने अपने पांचों बच्चों को गंगा में फेंक दिया. जहांगीराबाद गांव की रहने वाली महिला का नाम मंजू यादव है. शायद इसीलिए इसे कलयुग कहा गया है क्योंकि आप खुद सोचिए कि भला पति से झगड़े में उन बच्चों का क्या दोष था?

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ये घटना शनिवार देर रात की है जब उस महिला का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हुआ और फिर वो महिला अपने बच्चों को लेकर जहांगीराबाद गंगा घाट पर पहुंची, जहां उसने सभी बच्चों को गंगा में फेंक दिया. इन बच्चों की पहचान वंदना (12), रंजना (10), पूजा (6), शिव शंकर (8) और संदीप (5) के रूप में हुई है. महिला मंजू यादव ने बताया कि पहले उसने तीन बच्चों को गंगा में फेंका उसके बाद उसने अपने अन्य दो बच्चों को भी गंगा में फेंक दिया और फिर वह अपने घर चली आई.भला ये कैसी मां है जिसने अपने ही हांथों से अपने बच्चों को मौत के मुंह में डाल दिया अरे जब मारना ही था तो पैदा क्यों किया लेकिन कौन समझाए इस कलयुगी मां को.

पुलिस  का कहना है कि वो अभी भी बच्चों की तलाश कर रही है क्योंकि शव मिले नहीं हैं. हालांकि महिला के पति ने साफ-साफ किसी भी झगड़े के होने से इंकार किया है और कहा कि हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ था पता नहीं इसने ऐसा कदम क्यों उठाया. बात जो भी हो लेकिन इन सब में उन मासूमों की जान चली गई जिनका कोई कसूर नहीं था. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी मां कुछ ऐसा करेगी उनके साथ और दो बच्चे तो इतने छोटे थें कि उन्हें तो कुछ पता भी नहीं होगा कि उनके साथ क्या हुआ. किस तरह से तड़प रहे होंगे वो सोचकर ही रूह कांप जाती है हाय रे मां ये तूने क्या कर डाला कैसे अपने ही हांथों से अपने बच्चों को मार डाला.

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दूसरी शादी जुर्म है!

पेशे से वीडियोग्राफर 32 वर्षीय सुरेंद्र सिंह दांगी मूलत: सीहोर जिले का रहने वाला था और नौकरी के सिलसिले में भोपाल के शंकराचार्य नगर में किराए के मकान में रहता था. शादीविवाह में वीडियोग्राफी से उसे खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन दूसरों की खुशियों के माहौल को कैमरे में कैद करने वाले सुरेंद्र सिंह की अपनी जिंदगी नर्क जैसी बनी हुई थी.

पहली बीवी की मौत के बाद उस ने अपने गांव दोराहा की ही एक लड़की सविता (परिवर्तित नाम) से शादी कर ली थी. जिस से 2 साल पहले उसे एक बेटी भी हुई थी. बेटी हुई तो सुरेंद्र को मानो जीने का मकसद मिल गया, लेकिन वह चाह कर भी पहली बीवी को नहीं भूल पा रहा था.

इस पर आए दिन उस की तनातनी सविता से होने लगी थी. अंतत: नाराज सविता उसे अकेला छोड़ कर बेटी को ले कर मायके चली गई तो तनाव में जी रहे सुरेंद्र ने बीते 1 अक्तूबर को फांसी का फंदा लगा कर जान दे दी.

मरने से पहले उस ने अपने सुसाइड नोट में सविता को लिखा कि मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि कभी सही और गलत का फैसला नहीं कर पाया. अब मुझे पता चला है कि तुम ने कभी मुझे प्यार ही नहीं…मैं तुम से नफरत करता हूं.

केस्सा-2

56 साल के सुरेश सिंह भोपाल के ही कमलानगर इलाके में रहते थे. वे केंद्र सरकार के एक महकमे के मुलाजिम थे. सुरेश की पहली बीवी सीमा की मौत सन 2002 में हो गई थी, जिस से उन्हें एक बेटा भी था. साल 2004 में उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी. दूसरी बीवी का नाम भी इत्तफाक से सीमा ही था.

शादी के बाद से ही इन मियांबीवी में खटपट होने लगी थी. सीमा का दुखड़ा यह था कि शौहर के पास खासी जायदाद और पैसा है, जिस में से वे उसे कुछ नहीं दे रहे. सुरेश बेटे पर ज्यादा ध्यान देते थे जो जबलपुर के एक इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था.

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सीमा आए दिन पति से पैसा और जायदाद अपने नाम कर देने की जिद पर अड़ी रहती थी. जैसे ही उसे पता चला कि सुरेश ने अपने जीपीएफ की 80 फीसदी रकम पहली बीवी से पैदा हुए बेटे के नाम कर दी है तो वह मारे गुस्से के आपा खो बैठी और भोपाल आ कर उन से झगड़ने लगी.

ऐसे ही एक झगड़े में उस ने बीती 28 अगस्त की अलसुबह शौहर की हत्या कर दी और अपना जुर्म छिपाने के लिए पड़ोसियों से यह बताया कि सुरेश की मौत सांप के काटने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि सुरेश की मौत गला दबाने से हुई थी. आखिर सीमा को अपना जुर्म स्वीकार करना पड़ा. पुलिस हिरासत में होते हुए भी वह पति पर ये आरोप लगाती रही कि उस ने उसे पाईपाई का मोहताज बना दिया था और जायदाद में से कुछ नहीं दिया था.

इन दोनों ही मामलों में मर्दों ने दूसरी शादी की थी, जोकि कतई गुनाह नहीं था. लेकिन एक बड़ी दिक्कत यह थी कि दूसरी बीवी से इन की पटरी नहीं बैठी थी. इस की एक अहम वजह यह भी थी कि ये दोनों पहली बीवी को भूल नहीं पा रहे थे और पहली बीवी की चाहत को अलग तरीके से जाहिर कर रहे थे. सुरेश अपने बेटे से लगाव के जरिए तो सुरेंद्र पहली बीवी की यादों के सहारे.

गुनाह या गलती

यह एक गलती थी, क्योंकि दूसरी बीवी कतई नहीं चाहती कि उस का शौहर उस का ध्यान न रख कर किसी भी तरह पहली बीवी को इतना याद करता रहे कि उसे अपनी अहमियत दोयम दरजे की और जिस्मानी जरूरत पूरी करने की गुडि़या सरीखी लगने लगे. ऐसे में उन्होंने वही किया, जो ज्यादा से ज्यादा वे कर सकती थीं. सविता अपने जज्बाती शौहर को अकेला छोड़ कर मायके चली गई तो सीमा ने पति का काम ही तमाम कर डाला.

ये मामले तो वे थे, जिन में शौहर की पहली बीवी मर चुकी थी पर उन मामलों में भी जिंदगी दुश्वार हो जाती है जब शौहर पहली बीवी से तलाक ले कर दूसरी शादी करता है और बारबार उस का जिक्र दूसरी बीवी से कर के उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है. ऐसे में दूसरी का कलपना कुदरती बात है.

एक दास्तां

भोपाल के ही एक सरकारी स्कूल की 44 वर्षीय टीचर निर्मला (बदला नाम) का कहना है कि उस की उम्र 40 साल की थी, जब उस ने एक सरकारी मुलाजिम नरेश (बदला नाम) से शादी की थी. नरेश का अपनी पहली बीवी से तलाक हुआ था. चूंकि निर्मला की उम्र बढ़ रही थी, इसलिए घर वालों ने तलाकशुदा से उस का रिश्ता तय कर दिया था.

बकौल निर्मला शादी के 2 साल तो ठीकठाक गुजरे. इस दौरान अकसर नरेश पहली बीवी के बारे में बताता रहता था कि वह कितनी झगड़ालू, जालिम, बेगैरत और बिगड़े चालचलन की थी, जिस के चलते उस की जिंदगी नर्क बन गई थी. शौहर की आपबीती सुन कर निर्मला को उस से हमदर्दी होती थी और वह हर मुमकिन कोशिश करती थी कि उसे इतना प्यार दे कि वह पहली बीवी और ज्यादतियों को भूल जाए.

भले ही निर्मला की शादी देर से हुई थी, पर शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के अपने अरमान और ख्वाहिशें थीं. दोनों की पगार अच्छी थी, इसलिए वह चाहती थी कि वह और नरेश अच्छी जिंदगी जिएं. प्यारमोहब्बत की बातें करें, गृहस्थी जमाएं और घूमेंफिरें. पर नरेश अकसर पहली बीवी की कहानी ले कर बैठ जाता था, जिस से कुछ ही दिनों में उसे खीझ होने लगी थी.

इस बाबत उस ने शौहर को समझाया कि जो हुआ उसे भूल जाओ, अब क्या फायदा. अब क्यों न हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करें. लेकिन नरेश अपने गुजरे कल से बाहर नहीं आ पा रहा था, जिस से आए दिन कलह होने लगी. जब भी निर्मला रोमांटिक और सैक्सी मूड में होती थी और नरेश को लुभाती थी, तब वह पहली बीवी का पुराण खोल कर बैठ जाता था, जिस से उस का मूड औफ हो जाता था.

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निर्मला ने अपनी तरफ से ईमानदारी से कोशिश की थी, लेकिन यहां नरेश गलती करते अनजाने में उस से ज्यादती कर रहा था. वह बीवी के जज्बातों, जरूरतों, ख्वाहिशों और अरमानों को समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसे में एक दिन निर्मला ने गुस्से में कह ही दिया कि जब उसे नहीं भूल पा रहे तो मुझ से शादी क्यों की.

इस से नरेश की मर्दानगी को ठेस लगी और वह यह सोचते हुए फिर मायूस रहने लगा कि पहली बीवी ने तो ज्यादती की ही थी, अब दूसरी भी उसे नहीं समझ रही. उस की नजर में दूसरी बीवी की जिम्मेदारी यह थी कि वह अपने अरमानों का गला घोंट कर उस की रामायण सुनती रहे, तभी अच्छी है.

दरअसल, होता यह है कि अकसर मर्द की दूसरी शादी उस औरत से होती है जो पहली बार शादी करती है. इसलिए उस की ख्वाहिशें अलग होती हैं जबकि इस के उलट शौहर के लिए यह नई बात नहीं होती. दूसरी बीवी उस के लिए जिस्मानी जरूरत पूरी करने का जरिया भर होती है, जिस से वह उसे समझ नहीं पाता और दूसरी शादी भी टूटने के कगार पर पहुंच जाती है. समाज और परिवार के दबाव के चलते न भी टूटे तो दोनों एक छत के नीचे अजनबी बन कर रह जाते हैं.

शौहर और बीवी दोनों यह सोच कर जिंदगी का लुत्फ नहीं उठा पाते कि शादी कर के आखिर उन्हें क्या मिला.

शौहर ध्यान दें

अगर मर्द दूसरी शादी करे तो एक अच्छी और नई जिंदगी के लिए यह जरूरी है कि वह इन बातों पर ध्यान दे-

दूसरी बीवी केवल सैक्स जरूरतें पूरी करने का जरिया नहीं है, यह सोच कर उसे ही सब कुछ माने और उस की ख्वाहिशों और अरमानों को पूरा करने की कोशिश करने की कोशिश करे.

यदि पहली बीवी के बच्चे हों तो दूसरी बीवी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, उसे उस के तमाम हक देना जरूरी है.

उस के सामने बारबार पहली बीवी की याद या जिक्र नहीं करते रहना चाहिए, इस से उसे खीझ ही होगी.

अगर पहली बीवी से औलाद है तो उसे शादी के बाद किसी भरोसेमंद रिश्तेदार के यहां या फिर हौस्टल में रखने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन बीवी उस का पूरा ध्यान रखे तो ऐसा करना जरूरी भी नहीं और इस बाबत उस का शुक्रगुजार होना चाहिए.

अगर उम्र 40 के लगभग हो जाए और बच्चे 8-10 साल के हों तो दूसरी शादी करने से बचना चाहिए. आमतौर पर दूसरी बीवी उतना ध्यान बच्चे का नहीं रख पाती, जितनी यानी सगी मां की तरह उस से उम्मीद की जाती है.

खुद को दूसरी बीवी के मुताबिक ढालने की कोशिश करना चाहिए.

उस की जरूरतों और पैसों का पूरा खयाल रखना चाहिए.

जरूरी नहीं कि हर दूसरी शादी नाकाम हो, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर नई जिंदगी को खुशनुमा बनाएं. इसलिए बीवी को भी चाहिए कि वह शौहर को इस बात का अहसास न कराए कि उस ने दूसरी शादी कर के उस पर कोई अहसान किया है.

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पहली बीवी को ले कर शौहर पर ताने मारते रहना भी अक्ल की नहीं, बल्कि कलह को न्यौता देने वाली बात है.

दूसरी बीवी को कोशिश यह करनी चाहिए कि वह धीरेधीरे पति का दिल जीते और उसे पुरानी जिंदगी से बाहर निकलने में मदद करे. बेशक यह बेहद कठिन और सब्र वाला काम है, लेकिन बिना इस के शादी कामयाब भी नहीं होती.

आशिक बन गया ब्लैकमेलर

कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

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रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं.

रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आ कर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी.

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मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं.

मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी.

दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई.

उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

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कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई.

कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन.

यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था.

रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी.

रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला.

नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी.

कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे.

माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.

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मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे.

तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.

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ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता.

इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.

ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए.

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