प्रिया मेहरा मर्डर केस भाग 2 : लव कर्ज और धोखा

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बताते हैं कि उस ने दोगुनी करने के चक्कर में यह रकम सट्टे में उड़ाई थी. घर वाले उस से पैसे मागते थे तो वह यह कह कर उन्हें चुप करा देता था कि रकम बिजनैस में लगाई है, जल्द ही दोगुनी हो कर लौटेगी. इस बीच करीब 3 साल पहले प्रिया मां बन गई थी, बेटा हुआ था, जिस का नाम नाइस रखा गया.

बहरहाल, आइए लौट कर फिर क्राइम सीन पर आते हैं. यह तो हम बता ही चुके हैं कि प्राथमिक जांच में पंकज मेहरा संदेह के दायरे में आ चुका था. दूसरी ओर प्रिया के घर वालों की बातें भी पंकज को संदेह के दायरे में ला रही थीं. इस बीच पुलिस को तथाकथित घटनास्थल के पास वाले पैट्रोलपंप पर एक सीसीटीवी कैमरा मिल गया.

हकीकत सामने आई तो सब हैरान रह गए

पुलिस ने उस कैमरे की फुटेज देखी तो सारी हकीकत सामने आ गई. उस फुटेज में वहां पर रात के 4 बजे से साढ़े 4 बजे तक पंकज की कार के अलावा कोई कार नजर नहीं आई. इस का मतलब था कि पंकज सरासर झूठ बोल रहा था.

पोस्टमार्टम के बाद प्रिया का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. वे लोग जब उस का अंतिम संस्कार करने श्मशान पहुंचे तो पंकज मेहरा भी साथ था. चिता को मुखाग्नि भी उसी ने दी थी. पुलिस ने उसे वहीं गिरफ्तार कर लिया और सीधे थाना शालीमार बाग ले आई. थाने में उस से कई दौर में पूछताछ की गई.

आखिरकार उस ने मान ही लिया कि अपनी पत्नी प्रिया का कत्ल उसी ने किया था. ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहता था. यानी एक तरफ तो वह प्रियंका से पीछा छुड़ाना चाहता था और दूसरी ओर उस के कत्ल में वह उन लोगों को फंसाना चाहता था, जिन्होंने उसे कर्ज दे रखा था.

जब जांच शुरू हुई तो पंकज के कुकर्मों की एकएक पर्त खुलती चली गई. इस में उस का मोबाइल और लैपटौप भी सहायक बने. पता चला कि पंकज मेहरा एक बड़ा सट्टेबाज (बुकी) था. दरअसल, सट्टेबाज भी 2 तरह के होते हैं. एक सट्टा लगाने वाले और दूसरे लगवाने वाले. सट्टा लगवाने वाले को बुकी कहते हैं. पंकज तभी सट्टेबाजों के चक्कर में फंस गया था जब वह चांदनी चौक में पिता के साथ गारमेंट का कारोबार करता था.

जांच में पता चला कि प्रिया और पंकज ने घटना से कुछ महीने पहले ही रोहिणी सेक्टर-15 के सी ब्लौक में किराए के मकान में शिफ्ट किया था. इस के पहले ये दोनों पंकज के परिवार के साथ शालीमार बाग में रहते थे. रोहिणी शिफ्ट होने की एक वजह यह थी कि प्रिया के मायके वाले भी इसी ब्लौक में रहते थे.

पंकज से संबंधों में खटास के चलते बात बढ़ने पर वह कभी भी पास में स्थित अपने मायके चली जाती थी. प्रिया का रोहिणी आने का यह कारण था तो पंकज के अपने अलग कारण थे.

सट्टे के शौक ने किया बरबाद

दरअसल, सोनीपत के कुछ सट्टेबाजों की बुकिंग रोहिणी तक चलती थी. इन बुकीज से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. उन का पंकज पर काफी पैसा भी उधार था. पंकज चूंकि खुद बुकी था, इसलिए चाहता था कि किसी तरह रोहिणी की बुकिंग उस के कब्जे में आ जाए.

बहरहाल, हकीकत यही थी कि वह सट्टेबाजों की मोटी रकम का कर्जदार था. उस पर यह कर्ज तब से चला आ रहा था, जब 18 जून, 2017 को भारतपाकिस्तान मैच हुआ था. इस मैच पर पंकज ने मोटी रकम लगाई थी और हार गया था. जिन लोगों का पैसा था, वे उसे धमकाते रहते थे.

एक तरफ यह सब चल रहा था, दूसरी ओर पंकज मेहरा की रंगीनमिजाजी भी कम नहीं थी. बताया जाता है कि उस के बार में 2 लड़कियां काम करती थीं, एक दिल्ली की और दूसरी इलाहाबाद की. पंकज ने इन दोनों ही लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा था.

इतना ही नहीं, बल्कि उस के रेशमा नाम की एक 23 वर्षीया युवती से भी प्रेम संबंध थे. रेशमा को उस ने न केवल लाखों रुपए के गिफ्ट दिए थे, बल्कि उसे किराए का एक मकान भी ले कर दे रखा था. उस का पूरा खर्चा पंकज ही उठाता था. पुलिस के अनुसार पंकज प्रिया को अपने रास्ते से हटा कर रेशमा से शादी करना चाहता था.

रेशमा से संबंधों के चलते पंकज कई बार रातरात भर घर नहीं आता था. प्रिया उसे बारबार फोन करती रहती थी, लेकिन वह बहाने बना कर उसे बेवकूफ बनाता रहता था. हालांकि प्रिया इस बात को जानती थी. इसी सब के चलते एक बार प्रिया 11 महीने तक अपने मायके में रही थी, लेकिन उस के मातापिता ने उसे समझा कर पंकज के पास भेज दिया था.

एक तरफ दबंगों का कर्जदार, दूसरी ओर रेशमा के चक्कर में पत्नी से रुसवा, पंकज की स्थिति अजीब सी हो गई थी. यह अलग बात है कि इस सब का जिम्मेदार भी वह खुद ही था. जब लेनदार कुछ ज्यादा ही दबाव बनाने लगे तो ढाई महीने पहले पंकज ने अपना पहाड़गंज स्थित बार बंद कर दिया.

लेकिन इस से उस की समस्या कम होने की बजाय बढ़ती ही गई. अंतत: उस ने इस सब से निजात पाने के लिए ऐसा रास्ता खोजा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इस के लिए उस ने घटना से एक माह पहले जो योजना बनाई, वह थी प्रिया को मौत के घाट उतार कर अपने लेनदारों को फंसाने की.

  जान का खतरा बता कर खरीदी पिस्तौल

इस के लिए पंकज ने अपनी जान को खतरा बता कर एक दोस्त की मदद से एक पिस्तौल खरीदा. इस के बाद उस ने कई बार रेकी कर के वह जगह तय की, जहां आराम से प्रिया का कत्ल कर सके और पकड़ा भी न जाए. उसे यह जगह मिली बादली रेडलाइट से यू टर्न ले कर थोड़ा आगे. समय उस ने आधी रात के बाद का चुना, क्योंकि उस समय वह जगह एकदम सुनसान रहती थी. पंकज की सब से बड़ी भूल यह थी कि वह पास वाले पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी कैमरे को नहीं देख पाया.

काम नहीं आया बारबार पुलिस को गुमराह करना

पुलिस पूछताछ में पंकज ने पुलिस को गुमराह करने की पूरी कोशिश की. कभी उस ने कोई रूट बताया तो कभी कोई. पुलिस ने उसे साथ ले कर उस की बताई सभी जगहों, सभी रास्तों को देखा. उन रास्तों के सीसीटीवी कैमरे देखे, लेकिन उस का कोई भी बयान विश्वसनीय नहीं निकला. पुलिस ने जब पैट्रोल पंप पर लगे कैमरे की फुटेज देखी तो वह पूरी तरह से संदेह के घेरे में आ गया.

दरअसल, पैट्रोल पंप वाले कैमरे की फुटेज में साफ दिखाई पड़ रहा था कि भोर के 4 बज कर 15 मिनट पर पंकज ने बादली रेडलाइट से यू टर्न लिया. यू टर्न लेते समय कार की गति धीमी थी, लेकिन अचानक कार की गति बढ़ी और वह सीसीटीवी की रेंज के बाहर हो गई.

इस के 5 मिनट बाद ही पंकज ने 4 बज कर 20 मिनट पर पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. इस का मतलब जो भी हुआ था, 5 मिनट के अंदर हुआ था. यह कांड पंकज ने खुद किया था, इस बात की पुष्टि सीसीटीवी की फुटेज से हो रही थी, क्योंकि उस एक घंटे के दौरान कोई भी कार वहां से नहीं गुजरी थी.

पुलिस ने जब पंकज मेहरा से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. उस ने अपने पहले वाले बयान को झुठलाते हुए बताया कि उस ने प्रिया के मर्डर की योजना करीब एक महीने पहले बताई थी. इस के लिए वह पिछले 6 महीने से टीवी के क्राइम पैट्रोल और सावधान इंडिया शो देख रहा था, जो क्राइम पर आधारित होते हैं. यहां तक कि उस ने लैपटौप पर अजय देवगन और तब्बू अभिनीत फिल्म ‘दृश्यम’ 17 बार देखी. यूट्यूब पर उस ने पुलिस इनवैस्टीगेशन के हर पार्ट को देखा, समझा.

इतना ही नहीं, उस ने पुलिस के सर्विलांस सिस्टम को धता बताने, मोबाइल काल और सीसीटीवी की नजर से बचने का आइडिया फिल्म ‘दृश्यम’ से लिया था. जब उस की योजना तैयार हो गई तो उस ने एक दोस्त के माध्यम से पिस्तौल खरीदा.

पूरी तैयारी के बाद 24/25 अक्तूबर की रात को वह पत्नी प्रिया और बेटे नाइस को साथ ले कर गुरुद्वारा बंगला साहिब गया. वहां से वापसी में उस ने जामा मसजिद की ओर से हो कर रिंग रोड पकड़ी. उसे तलाश थी किसी ऐसी जगह की, जहां प्रिया को मौत के घाट उतार सके.

पंकज को ऐसी जगह मिली बादली की रेडलाहट से यू टर्न ले कर. वहां उस ने कार के अंदर ही प्रिया को पहले सिर में गोली मारनी चाही, लेकिन ऐन वक्त पर उस ने सिर पीछे कर लिया, जिस की वजह से गोली उस की गरदन में लगी. इस के बाद पंकज ने प्रिया पर एक गोली और दागी, जो उस के चेहरे पर राइट साइड से लग कर लेफ्ट साइड से निकल गई.

बेटा नाइस उस वक्त सो रहा था, जो गोली की आवाज से उठ गया था. प्रिया को मौत के घाट उतार कर पंकज ने कार के दोनों ओर के शीशे तोड़े और कार तेजी से भगा दी. उसी वक्त उस ने पिस्तौल देवली लालबत्ती से आगे रोहिणी के रास्ते में पड़ने वाले जंगल में फेंक दी. इसी बीच उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था.

पुलिस ने अदालत से पंकज का 3 दिन का पुलिस कस्टडी रिमांड ले कर क्राइम सीन को भी रिक्रिएट किया और उस की फेंकी पिस्तौल भी खोजी. लेकिन कई दौर की खोजबीन के बाद भी पिस्तौल नहीं मिली. संभवत: उसे कोई उठा ले गया था.

पुलिस ने जांच के किसी भी कोण को इग्नोर नहीं किया

पंकज के मोबाइल की काल डिटेल्स और उस के लैपटौप से पुलिस को काम की काफी जानकारियां मिलीं. पता चला कि वह एक साथ कई लड़कियों से चक्कर चला रहा था. इन में उस की सब से करीबी थी रेशमा, जिस पर उस ने लाखों रुपए खर्च किए थे. सुनने में यह भी आया कि पंकज ने रेशमा से शादी कर रखी थी और वह रातों को कई बार उसी के साथ रुकता था.

यह बात भी चर्चा में आई कि पंकज पहले से शादीशुदा था और प्रिया को यह बात पंकज से शादी कर लेने के बाद पता चली थी. जो भी हो, पूरी कोशिशों के बाद भी पंकज अपने गुनाह को छिपा नहीं पाया और अपने बुने जाल में खुद ही फंस गया. ‘दृश्यम’ फिल्म से उसे अपराध की जो राह मिली, वह सीधे तिहाड़ जेल में जा कर खुली. उसे शायद यह पता नहीं था कि फिल्म और असल जिंदगी में बड़ा फर्क होता है.

अब जब वह जेल से बाहर निकलेगा तो उसका वही बेटा बड़ा हो कर उस के मुंह पर थूकेगा, जिस ने अपनी आंखों से अपनी मां को मौत के मुंह में जाते देखा. उस की आंखों के सामने एक तरफ ममतामयी मां थी तो दूसरी तरफ जल्लाद बाप.

छोटा बच्चा आज भले ही कुछ न समझता हो, बोल सकता हो, लेकिन वह बड़ा होगा और अपने क्रूरबाप का चेहरा जरूर देखना चाहेगा. वैसे 3 साल का नाइस अभी नानानानी के पास है.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मासूम नैंसी का कातिल कौन : भाग 2

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यह संभव नहीं था कि एक व्यक्ति एक समय पर 2 अलगअलग जगह उपस्थित हो. सीसीटीवी कैमरे की फुटेज ने जांच की दिशा ही बदल दी और शक के दायरे में खुद राघवेंद्र आ गया.

सीसीटीवी फुटेज से नैंसी हत्याकांड की गुत्थी बुरी तरह उलझ गई. जांच अधिकारी एएसपी निधि रानी उलझी हुई कडि़यों को सुलझाने में जुट गईं. एक मुखबिर ने उन्हें ऐसी सूचना दी कि वह चौंक गईं. सूचना में उन्हें बताया गया कि जिस दिन बबीता की बारात आई थी, उस दिन राघवेंद्र घर पर ही था. वह न तो घर से बाहर निकला था और न ही बारात में शामिल हुआ था. जबकि उस की सगी बहन की शादी हो रही थी.

इस के साथ ही मुखबिर ने एक और चौंकाने वाली बात यह बताई कि नैंसी की हत्या घर की एक महिला के अवैध संबंध को छिपाने के लिए की गई थी. नैंसी इस बात को जानती थी. उस महिला को अपने अनैतिक रिश्ते का राज खुलने का डर सताने लगा था, इसलिए उस ने सोचीसमझी साजिश के तहत उसे रास्ते से हटवा दिया था. इस शक के दायरे में बबीता भी आ रही थी.

अब मामला काफी पेचीदा और गंभीर हो गया था. निधि रानी ने यह बात पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल को बताई तो वह हैरान हुए. यह बात सोचने वाली थी कि जिस की बहन की बारात आई हो, वह घर में रहते हुए भी उस में शामिल न हो. एसपी दीपक बरनवाल ने निधि रानी को निर्देश दिया कि राघवेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ करें.

नैंसी की हत्या में 2 चाचा आए संदेह के घेरे में

शक के आधार पर 5 जून, 2017 को एएसपी निधि रानी ने राघवेंद्र और पंकज झा सहित 6 लोगों को हिरासत में ले लिया. पुलिस उन्हें थाना अंधरामढ़ ले आई. उन लोगों से अलगअलग सख्ती के साथ पूछताछ की गई.

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पूछताछ में राघवेंद्र और पंकज बारबार अपना बयान बदलते हुए पुलिस को इधरउधर घुमाने की कोशिश करते रहे. इस से दोनों एएसपी निधि रानी के शक के दायरे में आ गए.

पूछताछ के बाद उन दोनों को छोड़ कर शेष 4 लोगों को जाने को कह दिया गया. शतरंज जैसे इस खेल में निधि रानी ने आखिरी दांव में पूरी बाजी ही पलट दी. नैंसी जिन 3 बच्चों के साथ खेल रही थी, उन तीनों ने निधि के सामने इस मामले की कलई खोल दी थी. बच्चों का बयान दोनों को बताया गया. इस के बाद राघवेंद्र और पंकज के सामने सच बोलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अंतत: दोनों ने कानून के सामने घुटने टेक दिए और भतीजी की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

चचेरी भतीजी नैंसी की हत्या में दोनों आरोपी चाचाओं के इकबालिया बयान के बाद एएसपी निधि रानी और एसपी दीपक बरनवाल ने संयुक्त प्रैसवार्ता आयोजित की. एक पखवाड़े से सुर्खियों में रहे नैंसी हत्याकांड का खुलासा करते हुए एसपी दीपक बरनवाल ने संवाददाता को बताया, ‘‘नैंसी हत्याकांड का मास्टरमाइंड उस का चचेरा चाचा राघवेंद्र झा है. राघवेंद्र और पंकज के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले हैं. दोनों के बयानों में समानता भी नहीं है. साथ ही जो साक्ष्य मिले हैं, वे संकेत दे रहे हैं कि यह परिवार झूठ बोल रहा है.

‘‘जिन 2 लोगों को आरोपी बना कर एफआईआर में नैंसी के अपहरण का जो समय दर्ज कराया गया था, उस समय उन में से एक लल्लू झा पैट्रोल पंप पर काम करता पाया गया. नैंसी का अपहरण नहीं बल्कि हत्या हुई थी.’’

बरनवाल ने आगे बताया कि जिस समय नैंसी के गायब होने की बात बताई गई, जांच के दौरान पता चला कि गायब होने के समय राघवेंद्र व पंकज ही मौके पर थे. पूछताछ के दौरान इस बात की जानकारी नैंसी के साथ खेलने वाले बच्चों ने दी है.

उन्होंने यह भी बताया था कि जांच के दौरान एसआईटी ने घटना के दिन का दोबारा सीन क्रिएट किया. उस के साथ रहने वाले 3 बच्चों हिमांशु, साक्षी व भारती से विस्तृत पूछताछ की गई, तो तीनों बच्चों ने बताया कि जिस समय नैंसी गायब हुई, उस समय दरवाजे के बाहर राघवेंद्र बैठा था और बाहर वाले रास्ते पर पंकज मौजूद था. ऐसे में किसी बाहरी व्यक्ति का घर में आने का सवाल ही नहीं था. राघवेंद्र और पंकज ने अपने जुर्म कबूल लिए हैं.

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प्रैस कौंफ्रेंस के बाद पुलिस ने उसी दिन दोनों आरोपियों राघवेंद्र झा व पंकज झा को झंझारपुर कोर्ट में एसीजेएम द्वितीय शिव प्रसाद शुक्ल के न्यायालय में पेश किया. अदालत ने दोनों आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस को दिए आरोपियों के बयानों के बाद कहानी कुछ इस तरह सामने आई –

रविंद्र के पिता देवानंद झा के चचेरे भाई हैं सत्येंद्र झा. दोनों भाइयों के अपनेअपने परिवार हैं. 5 साल पहले साल 2012 की बात है. रविंद्र के मांबाप उत्तराखंड घूमने गए थे. 25 मई, 2012 की शाम 6 बजे के करीब दोनों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई. आज तक दोनों की मौत पर रहस्य की चादर लिपटी हुई है.

मांबाप की मौत के दुख से रविंद्र और उन का परिवार अभी तक नहीं उबर नहीं पाया था. रविंद्र की 2 बेटियों में नैंसी बड़ी थी और काफी समझदार व चुलबुली थी. नैंसी अपने चचेरे बडे़ दादा सत्येंद्र झा के साथ काफी घुलीमिली थी. सत्येंद्र भी उस से बहुत प्यार करते थे.

क्या बबीता के संबंधों की वजह से हुई नैंसी की हत्या?

सत्येंद्र झा के 4 बच्चों में 2 के नाम थे राघवेंद्र और बबीता. राघवेंद्र बचपन से ही उग्र स्वभाव का था. बबीता काफी खूबसूरत और चंचल स्वभाव की युवती थी. सन 2012 की बात है, एक दिन बबीता किसी काम से कहीं जा रही थी, तभी उसी गांव के रहने वाले लल्लू झा ने बबीता के साथ छेड़छाड़ कर दी. कहीं से राघवेंद्र और उस के भाइयों को इस की भनक लग गई. झा भाइयों ने लल्लू के घर में घुस कर लातघूंसों से उस की पिटाई की. उस के बाद लल्लू बबीता को जब भी देखता था, अपना रास्ता बदल देता था.

बात आई गई हो गई. धीरेधीरे 5 साल बीत गए. इस बीच बबीता का गांव के ही एक लड़के से तथाकथित प्रेम संबंध बन गया. इस बात की जानकारी परिवार वालों को भी मिल गई थी. झा परिवार एक रसूखदार परिवार था. जिले भर में उन का नाम था. उन की छोटी सी बात भी सुर्खियों में आ जाती थी. इसलिए परिवार वालों ने इज्जत की बात समझ कर इसे दबा कर रखा.

कहीं से मासूम नैंसी को इस की भनक लग गई. वह बुआ के प्रेमिल रिश्ते की हकीकत जान गई थी. बबीता को इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं नैंसी यह राज किसी के सामने न खोल दे.

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इधर 26 मई, 2017 को बबीता की शादी पक्की हो गई थी. सूत्रों के मुताबिक, परिवार वालों को कहीं से यह भनक लग गई थी कि 5 साल पुरानी छेड़छाड़ वाली घटना में पिटे दोनों भाइयों लल्लू और पवन झा ने शादी में बाधा डालने की योजना बना रखी है. राघवेंद्र और पंकज चाहते थे कि बहन की शादी में किसी तरह की कोई बाधा न आए. इस के लिए वह हर बाधा से निपटने के लिए तैयार थे.

शादी के एक दिन पहले 25 मई को बबीता की मेंहदी की रस्म थी. नैंसी बुआ बबीता की शादी को ले कर काफी खुश थी. लेकिन बबीता के चेहरे पर वो खुशी नहीं थी जो शादी को ले कर लड़की के चेहरे पर होनी चाहिए. जैसे अंदर ही अंदर उसे कोई बड़ा डर खाए जा रहा हो. नैंसी मां और छोटी बहन के साथ अपने घर से मेंहदी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आई.

रविंद्र नारायण घर के दूसरे सदस्यों के साथ बारातियों के खानेपीने के सामानों की खरीदारी करने निर्मली बाजार गए थे. उन के घर से बबीता का घर थोड़ी दूरी पर था.

नैंसी अपने दोस्तों हिमांशु, साक्षी व भारती के साथ घर के बाहर खेलने लगी. बाद में खेलते खेलते बच्चे अंदर कमरे में पहुंच गए. कमरे में बबीता बैठी हुई थी. नैंसी बबीता के पास ही रखी एक चौकी पर बैठ गई. तभी अचानक बिजली चली गई. नैंसी के साथ हिमांशु भी था. बबीता ने हिमांशु को टौर्च दे कर घर के दूसरे कमरे में भेज दिया. थोड़ी देर बाद हिमांशु वापस लौटा तो नैंसी गायब थी और बबीता अकेली बैठी थी.

कैसे गायब हुई थी नैंसी सच्चाई बताई बच्चों ने

बच्चों के अनुसार, जब वे कमरे से बाहर निकले तो बरामदे में कुरसी पर राघवेंद्र को बैठे देखा, जबकि पंकज घर से बाहर जाने वाले रास्ते पर चहलकदमी कर रहा था. बच्चे वापस लौट कर फिर कमरे में आए और बबीता से नैंसी के बारे में पूछा. उस ने बच्चों को डांट कर भगा दिया. तब तक बिजली आ गई थी. बच्चों ने नैंसी को पूरे घर में तलाश किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

अचानक लापता हुई नैंसी को घर के बाहर और आसपास सभी जगह तलाश किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. बाजार गए रविंद्र को नैंसी के रहस्यमय ढंग से गायब होने की सूचना दे दी गई थी.

वह भी घर वापस लौट आए थे. तब तक रात के 9 बज गए थे. राघवेंद्र ने रविंद्र को बताया कि उस ने लल्लू को मोटरसाइकिल से नैंसी को अपहरण कर के ले जाते देखा था. जब तक वह उस के पास पहुंचता, तब वह भाग चुका था.

घर में शादी का माहौल था. नैंसी के अचानक गायब होने से खुशियों में खलल पड़ गई थी. चश्मदीद गवाह राघवेंद्र के बयान के आधार पर लल्लू और उस के भाई पवन को उसी रात हिरासत में ले लिया गया था. पूरी रात नैंसी की खोजबीन जारी रही. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

अगले दिन बबीता की शादी थी. राघवेंद्र घर में मौजूद होने के बावजूद बहन की शादी में शरीक नहीं हुआ.

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सोचीसमझी रणनीति के तहत ही राघवेंद्र ने बबीता की शादी में लल्लू और पवन द्वारा व्यवधान पैदा करने की अफवाहें फैलाई थीं. बहरहाल उस की शादी सकुशल संपन्न हो गई, कहीं कोई बाधा नहीं आई.

शादी बीत जाने के बाद तीनों बच्चों के बयान के आधार पर पुलिस ने बबीता से पूछताछ करनी चाही, लेकिन परिवार ने पूछताछ नहीं करने दी.

पुलिस की मिन्नतों और कानूनी मजबूरियां बताने के बाद बबीता से 10 मिनट ही पूछताछ की जा सकी. इस पूरी पूछताछ मे बबीता ने इतना ही कहा कि उसे कुछ नहीं मालूम, वह कुछ नहीं जानती.

रहस्यमय तरीके से गायब नैंसी की तीसरे दिन यानी 27 मई, 2017 को गांव से दूर नदी के किनारे लाश मिली. पुलिस की जांच में शक के दायरे में चचेरा चाचा राघवेंद्र और पंकज आए.

पूछताछ में दोनों आरोपियों ने नैंसी की हत्या करने की बात कबूल कर ली थी. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया, लेकिन घर वालों ने पुलिस की कार्यशैली पर ही सवाल उठा दिए.

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने अपनी करनीकथनी छिपाने के लिए निर्दोषों को जेल भेज दिया, जबकि नैंसी के हत्यारे वे नहीं हैं, बल्कि असली मुलजिम लल्लू और पवन हैं. बबीता की शादी न हो सके, इसलिए दोनों ने नैंसी का अपहरण कर के उस की हत्या कर दी थी.

परिजनों के बयानों से पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है. जबकि नैंसी की हत्या एक राज बन कर रह गई है.

– कथा में बबीता परिवर्तित नाम है. कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मासूम नैंसी का कातिल कौन : भाग 1

12 वर्षीय नैंसी बचपन की देहरी लांघ कर किशोरावस्था में कदम रख रही थी. वह हंसती थी तो उस के  मुंह से फूल झड़ते थे और बोलती थी तो ऐसा लगता था जैसे उस के हर शब्द से चंचलता टपक रही हो. पूरी कोठी उस की शरारतों से महकतीगमकती रहती थी. जब से उसे चचेरी बुआ बबीता (परिवर्तित नाम) की शादी पक्की होने की बात पता चली थी, तब से खुशी के मारे उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. बबीता उस के चाचा सत्येंद्र की बेटी थी.

नैंसी कुमार रवींद्र नारायण झा की बड़ी बेटी थी. रवींद्र नारायण का परिवार बिहार के मधुबनी जिले की तहसील फुलपरास के थाना अंधरामढ़ क्षेत्र में आने वाले गांव महादेवमठ में रहता था. रवींद्र नारायण पेशे से शिक्षक हैं और मुक्तिनाथ एजुकेशन ट्रस्ट के तहत अपना खुद का मुक्तिनाथ पब्लिक स्कूल चलाते हैं. नर्सरी से 5वीं तक का यह स्कूल बिहार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है. पिता के साथसाथ नैंसी की मां अर्चना भी सरकारी स्कूल में अध्यापिका हैं. उन की नैंसी से छोटी एक और बेटी है. मधुबनी में रविंद्र नारायण की गिनती बड़े लोगों में होती है. ऐसे में सामाजिक मानप्रतिष्ठा स्वाभाविक है.

जिस बात को ले कर नैंसी उत्साहित थी, आखिरकार वह दिन आ ही गया. 26 मई, 2017 को उस की चचेरी बुआ बबीता की शादी थी. शादी से एक दिन पहले 25 मई को मेहंदी का कार्यक्रम था.

नातेरिश्तेदार आ चुके थे. घर में खुशियों का माहौल था. सत्येंद्र का घर रविंद्र के घर से थोड़ी सी दूरी पर था. मेंहदी की रस्म में रविंद्र के परिवार की महिलाएं भी शामिल हुईं.

नए कपडे़ पहन कर नैंसी खूब खुश थी. वह अपनी हमउम्र हिमांशु, साक्षी और भारती के साथ चाचा के घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद नैंसी की मां अर्चना बाहर आईं तो बेटी को बच्चों के साथ न देख कर परेशान हुईं. उन के पूछने पर बच्चों ने बताया कि नैंसी यहीं कहीं होगी, थोड़ी देर पहले तक तो हमारे साथ ही खेल रही थी. बच्चे फिर से खेलने में मस्त हो गए. उधर अर्चना ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन नैंसी कहीं नजर नहीं आई.

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तभी किसी ने बताया कि उस ने नैंसी को साढ़े 6 बजे के करीब घर की ओर जाते देखा था. यह सुन कर अर्चना को थोड़ी तसल्ली हुई कि नैंसी घर चली गई है. थोड़ी देर बाद मेंहदी की रस्म पूरी कर के वह छोटी बेटी को ले कर घर पहुंची तो नैंसी वहां भी नहीं थी. यह देख कर अर्चना परेशान हो गईं. बात परेशान करने  वाली इसलिए थी क्योंकि नैंसी घर से इधरउधर कहीं नहीं जाती थी.

अर्चना की समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने फोन कर के यह बात अपने पति कुमार रविंद्र नारायण को बताई. रविंद्र शादी की खरीदारी करने निर्मली बाजार गए थे. पत्नी का फोन सुन कर वह भी परेशान हो गए. खरीदारी कर के जब वह रात को 9 बजे घर पहुंचे तो उन के चचेरे भाई राघवेंद्र ने उन्हें एक चौंकाने वाली बात बताई.

उस ने बताया कि शाम साढ़े 6 बजे के करीब ग्रामीण बैंक के पास एक अज्ञात मोटर साइकिल वाला व्यक्ति नैंसी को मोटर साइकिल पर बैठा कर भाग गया. वह सांवले रंग का था और उस के चेहरे पर दाढ़ी थी. उस ने आसमानी रंग की चैक वाली शर्ट और काली पैंट पहन रखी थी. साथ ही उस के सिर पर गमछा भी बंधा था.

राघवेंद्र ने जो हुलिया बताया था वह उसी के गांव के रहने वाले पवन नाम के एक युवक से काफी मेल खाता था. इस का मतलब था कि पवन ने ही नैंसी का अपहरण किया था.  नैंसी के रहस्यमय ढंग से गायब होने को ले कर गांव भर में कोहराम मच गया. तब तक गांव के चारों तरफ नैंसी की तलाश कर ली गई थी.

जब बेटी का कहीं पता नहीं चला तो उसी रात रविंद्र गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर थाना अंधरामढ़ पहुंच गए. थानाप्रभारी राजीव उन्हें जानते थे. उन्होंने हालचाल पूछा तो रविंद्र ने उन्हें बेटी के अपहरण की बात बता दी. साथ ही गांव के ही पवन और लल्लू पर संदेह भी व्यक्त किया. थानाप्रभारी राजीव ने उन्हें लिखित तहरीर देने को कहा तो रविंद्र ने पवन और लल्लू पर संदेह व्यक्त करते हुए तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने भादंवि की धारा 363, 365 के तहत पवन कुमार झा और लल्लू झा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

अफवाह के आधार पर पवन और लल्लू को ठहराया गया मुलजिम

अगले दिन 26 मई को रविंद्र नारायण की चचेरी बहन बबीता की बारात आने वाली थी. आरोपियों ने उस की शादी में विघ्न डालने के लिए नैंसी की अपहरण किया था. रविंद्र के अनुसार, आरोपियों के ऐसा करने के पीछे जो वजह थी, वह 5-6 साल पहले की एक घटना से जुड़ी हुई थी.

दरअसल, पवन और लल्लू सगे भाई थे और उन्होंने बबीता के साथ छेड़छाड़ की थी. इस पर राघवेंद्र और पंकज ने उन्हें खूब मारापीटा था. उसी का बदला लेने के लिए, उन दोनों भाइयों ने ऐसा किया था. रविंद्र ने यह बात भी पुलिस को बता दी थी.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद घर लौटे रविंद्र को पता चला कि आरोपी पवन और लल्लू अपने घर में छिपे बैठे हैं. यह जान कर उन का खून खौल उठा. वह राघवेंद्र और कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर पवन के घर जा पहुंचे. पवन और लल्लू घर पर मिल गए. लोगों ने सारा गुस्सा दोनों भाइयों पर उतार दिया. फिर उन से पूछा कि उन्होंने नैंसी को अगवा कर के कहां छिपाया है.

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पवन और लल्लू ने कुछ नहीं बताया तो गांव वालों ने दोनों भाइयों को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस उन की तलाश में पहले ही गांव आ चुकी थी. दोनों भाइयों के मुंह से शराब की बू आ रही थी. पुलिस ने दोनों को थाने ले जा कर नैंसी के बारे में पूरी रात पूछताछ की. दूसरी ओर पुलिस और घर वाले नैंसी को अलगअलग दिशाओं में तलाशते रहे.

आरोपी पवन और लल्लू खुद को निर्दोष बता रहे थे. उन का कहना था कि न तो उन्होंने नैंसी का अपहरण किया है और न ही उस के बारे में उन्हें कोई जानकारी है. सुबह से देर रात तक वे अपने ड्यूटी पर थे. चाहे तो इस बात की तसदीक करा लें. बता दें कि लल्लू शहर के एक पैट्रोल पंप पर नौकरी करता था.

26 मई को बबीता की शादी बिना किसी व्यवधान के संपन्न हो गई. लेकिन रविंद्र नारायण का मन बेटी में ही लगा था और वह उस की तलाश में जुटे थे. उन्होंने सभी जगह छान मारीं, लेकिन नैंसी का कहीं कोई पता नहीं चला. पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल खुद इस मामले की मौनीटरिंग कर रहे थे.

27 मई, 2017 को शाम साढ़े 7 बजे गांव महादेवमठ से लगभग 1 किलोमीटर दूर तिलयुगा नदी के पुल के नीचे एक लाश पड़ी मिली. गांव वालों की सूचना पर अंधरामढ़ के थानेदार राजीव कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे. उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

बड़ी बेदर्दी से की गई थी नैंसी की हत्या

थोड़ी देर में डीएसपी फूलपरास, एएसपी झंझारपुर निधि रानी, एसपी दीपक बरनवाल भी वहां पहुंच गए. दीपक बरनवाल ने ऐहतियात के तौर पर जिले के कई थानेदारों को मौके पर बुलवा लिया था ताकि बात बिगड़ने पर कोई भी कानून अपने हाथ में न ले सके. सूचना पा कर रविंद्र और नैंसी के दादा सत्येंद्र सहित घर वाले भी मौके पर पहुंच गए. शव देख कर उन्होंने उस की पहचान नैंसी के रूप में कर दी.

3 दिनों से लापता नैंसी लाश बन कर सामने आई. उस की लाश मिलते ही गांव में सनसनी फैल गई. रविंद्र के घर में कोहराम मच गया. मासूम नैंसी की लाश जिस स्थिति में बरामद हुई थी, वह वाकई सभ्य समाज के लिए रोंगटे खड़े करने वाली बात थी. लाश फूल कर पूरी तरह क्षतविक्षत हो चुकी थी.

प्रथमदृष्टया उस के शरीर पर तेजाब डाल कर जलाए जाने के निशान नजर आ रहे थे. चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. उस के दोनों हाथों की नसें कटी हुई लग रही थीं. यहीं नहीं, उस मासूम के साथ बलात्कार की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. हत्यारों ने उस का गला भी बड़ी निर्ममता से रेता था.

नैंसी का शव मिलने के बाद पुलिस ने अपहरण के केस में भादंवि की धारा 302, 201, 120बी और जोड़ दीं. पुलिस ने प्राथमिक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. नैंसी के घर वालों के शक और बयान के आधार पर हिरासत में लिए गए दोनों आरोपियों लल्लू और पवन झा से पूछताछ कर के बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया.

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लोग संतुष्ट नहीं थे पुलिस की काररवाई से

नैंसी हत्याकांड चर्चाओं में आ चुका था. सोशल साइट्स कैंपेन के बाद लोगों में बढ़ते आक्रोश को देख कर शासनप्रशासन सकते में था. घटना के 2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो पुलिस ने प्रैस कौन्फ्रेंस की, जिस में एसपी दीपक बरनवाल ने बताया कि पोस्टमार्टम से दुष्कर्म, नस काटने, गला रेतने या एसिड अटैक जैसी बातें प्रकाश में नहीं आई हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नैंसी की हत्या लगभग 72 घंटे पहले की गई थी. उस की मृत्यु का कारण था गला दबने से सांस रुक जाना. पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों की टीम ने किया है, जिस में 2 महिलाएं और एक पुरुष शामिल थे.

लेकिन नैंसी के घर वालों ने यह कह कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया कि रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की गई है, जबकि नैंसी की नस काटी गई थी और उस पर एसिड डाला गया था. पोस्टमार्टम में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है.

नैंसी हत्याकांड ने मधुबनी ही नहीं पूरे बिहार को हिला कर रख दिया था. आम आदमी से ले कर कई दलों के नेता तक सड़क पर आ गए थे और आरोपियों को फांसी देने की मांग कर रहे थे. नैंसी को इंसाफ दिलाने की मांग तेज पर तेज होती जा रही थी.

जस्टिस फौर नैंसी कैंपेन चला रही मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने दिल्ली के जंतरमंतर पर कैंडल मार्च निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया. मिथिला स्टूडेंट यूनियन सहित कई सामाजिक, छात्र संगठनों व आम लोगों के द्वारा अररिया, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा सहित कई जिलों में जगहजगह कैंडल मार्च निकाले गए.

बहरहाल, लोगों के रोजरोज के जुलूस, धरनाप्रदर्शन और सोशल मीडिया पर गंभीर कमेंट्स पोस्ट होने से पुलिस की खूब थूथू हो रही थी. ऐसा भी नहीं था कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी.

नैंसी हत्याकांड मामले में जनता के बढ़ते दबाव से पुलिस के पसीने छूट रहे थे. लोगों का दबाव देख कर पुलिस अधीक्षक दीपक बरनवाल ने 3 जून, 2017 को थानेदार राजीव कुमार को निलंबित कर दिया और उन की जगह आशुतोष कुमार को थाने की जिम्मेदारी सौंप दी.

यही नहीं उन्होंने जांच का काम अंधरामढ़ थाने की जगह झंझारपुर की सहायक पुलिस अधीक्षक निधि रानी को सौंप दिया. उन के नेतृत्व में एसआईटी टीम का गठन किया गया. निधि ने जांच भी शुरू कर दी.

पता नहीं क्यों राघवेंद्र का बयान एएसपी निधि रानी के गले नहीं उतर रहा था. उन्होंने रविंद्र के बयान का विश्लेषण किया तो उस में कई झोल नजर आए. मसलन एक अकेला युवक 12 साल की किशोरी का कैसे अपहरण कर सकता था? अपहरण के समय नैंसी ने विरोध भी जरूर किया होगा, विरोध किया होगा तो वह अपने बचाव के लिए चिल्लाई भी होगी. लेकिन बताई गई जगह पर एक भी ऐसा गवाह नहीं मिला, जो राघवेंद्र के बयान को तसदीक कर पाता. इस का सीधा मतलब यह था कि वह झूठ बोल रहा था.

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एएसपी निधि रानी ने सुलझाई उलझी हुई गुत्थी

पुलिस ने इस बात को अपने तक ही सीमित रखा. इन सवालों के साथ निधि रानी ने उस पैट्रोल पंप के सीसीटीवी के फुटेज की जांच की, जहां लल्लू नौकरी करता था. फुटेज देख कर निधि हैरान रह गईं. राघवेंद्र ने जिस समय लल्लू द्वारा नैंसी के अपहरण किए जाने की बात कही थी, उस समय वह सीसीटीवी के फुटेज में पैट्रोल पंप की ड्यूटी करता हुआ नजर आ रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 3

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अब किसी को इस बात में कोई शक नहीं रह गया था कि बीसपंथी शांति सागर को सिद्धियां प्राप्त हो चुकी हैं. इसी तरह उस ने आग से एक साड़ी जलाई थी तो वह भी नहीं जली थी. जाहिर है यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि खालिस चालबाजी थी, जिसे कोई भी अंधविश्वास निवारण समिति साबित कर सकती है.

नेहा को पूरी तरह झांसे में लेने के अपने कामुक मकसद में वह कामयाब रहा था. हजारों भक्तों का सैलाब उस शांति सागर की जयजयकार करते उस के पांवों में लोट रहा था, जिस के दिलोदिमाग में वासना का सागर हिलोरें मार रहा था. इसी दिन भक्तों को उलझाए रखने के लिए उस ने 7 करोड़ 77 लाख मंत्रों का जाप कराया था.

अगले 2 दिन धार्मिक माहौल में रही नेहा अब अपने इस गुरु की आध्यात्मिक शक्तियों और चमत्कारों की पूरी तरह कायल हो चुकी थी. उसे विश्वास हो गया था कि अगर गुरुकृपा हुई तो कभी उस के परिवार पर कोई विघ्न या संकट नहीं आएगा.

आखिर वार कर ही दिया शांति सागर ने नेहा की इज्जत पर

1 अक्तूबर को शांति सागर ने अपनी कुत्सित मंशा पूरी करने के लिए नेहा के परिवार को कहा कि आज आप के परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए विशेष जाप किया जाना है, इसलिए परिवार के सभी सदस्य उस के साथ मंदिर में रहें. इस पेशकश पर यह परिवार बागबाग हो उठा. सभी लोग मय नेहा के उस के सान्निध्य के लिए पहुंच गए.

शांति सागर ने नेहा के मातापिता को एक कमरे में बैठा कर वैसी ही रेखा गोल घेरे की शक्ल में खींच दी, जैसी त्रेता युग में लक्ष्मण ने सीता के लिए खींची थी. उस ने इन दोनों को सख्त हिदायत यह दी कि कुछ भी हो जाए, उन्हें लगातार मंत्र जाप करना है और घेरे के बाहर नहीं आना है.

इन दोनों के मंत्र जाप में तल्लीन हो जाने पर उस ने नेहा के भाई को किसी बहाने से बाहर भेज दिया और नेहा को ले कर मंदिर के कमरे में चला गया. इस दौरान वह भी मंत्रोच्चारण करता रहा, जिस से कोई किसी तरह का शक न करे.

नेहा को अंदर ले जा कर उस ने बिठाया और उस के शरीर पर मोर पंख फेरने लगा. फिर कुछ देर बाद उस ने नेहा को कपड़े उतारने का आदेश दिया तो नेहा का सम्मोहन टूटा. गुरु क्या साक्षात भगवान भी उतर कर ऐसा कहे तो भी कोई युवती ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सकती. नेहा की हिचकिचाहट को दूर करने के लिए उस ने फिर उसे डराया कि इस स्टेज पर आने के बाद उस ने अगर बात नहीं मानी तो परिवार का अनिष्ट तय है.

इस के बाद नेहा ने सुबकते हुए पुलिस को बताया था ‘मेरे नग्न होने के बाद उस ने शरीर पर मोर पंख के बजाय हाथ फेरना शुरू कर दिया. इस पर मैंने उठने की कोशिश की तो वह गुस्से से भर उठा और फिर डराया. इस के बाद जो हुआ, वह मैं बयां नहीं कर सकती.’

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कुछ देर बाद लुटीपिटी नेहा बाहर आई और भाई से घर चलने के लिए कहा. भाई कुछ नहीं समझ पाया कि नेहा इतनी घबराई हुई क्यों है. बहरहाल नेहा घर आ कर सो गई. अगले दिन वह जागी तो उस का पूरा बदन दर्द कर रहा था, क्योंकि शांति सागर ने पूरी मर्दानगी और ताकत दिखाते हुए उसे बेरहमी से रौंदा था.

शरीर तो दर्द कर ही रहा था, साथ ही तनाव के चलते नेहा की दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी, इसलिए उस की मां उसे एक लेडी डाक्टर के पास ले गई. अनुभवी डाक्टर तुरंत समझ गई कि नेहा के साथ क्या हुआ है. नेहा की मानसिक हालत देख कर उस ने उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह भी दी और मुनि के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने को भी कहा.

अब शांति सागर का घिनौना चेहरा और कुत्सित हरकत दोनों ही सामने आ गए थे. लेकिन ये लोग समाज के डर से रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. उन्हें मालूम था कि कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि जैन मुनि शांति सागर ने एक मासूम युवती का कौमार्य भंग कर के उस का बेरहमी से बलात्कार किया है. हालांकि यह बात वह परिवारजनों को बड़ौदा आने के बाद बता भी चुकी थी.

डर के चलते ये लोग शायद रिपोर्ट नहीं लिखाते, लेकिन जब तनावग्रस्त नेहा चक्कर खा कर गिर गई तो मनोचिकित्सक ने साफसाफ कहा कि अगर आप लोग मुनि के खिलाफ काररवाई नहीं करेंगे तो लड़की घुटघुट कर मर जाएगी.

यही सलाह लेडी डाक्टर ने भी दी तो इन लोगों ने हिम्मत जुटाई और न केवल कमिश्नर को चिट्ठी लिखी, बल्कि बड़ौदा के महिला थाने में जा कर रिपोर्ट भी लिखाई.

इस पूरे मामले में एकलौती अच्छी बात पुलिस वालों का सहयोगात्मक रवैया रहा. कमिश्नर सतीश शर्मा के अलावा क्राइम ब्रांच के डीसीपी मनोज कुमार और सूरत की एएसपी निधि चौधरी ने नेहा की हालत देखते हुए तुरंत काररवाई की, जिस के चलते पूरा मामला रोशनी में आ पाया. मामले की जांच कर रहे अधिकारी डी.के. राठौड़ के सामने 4 और लोगों ने बयान दर्ज कराते हुए यह दावा किया कि वे शांति सागर और नेहा की मौजूदगी में वहां थे. अगर यह सच है तो इसे बलात्कार साबित कैसे किया जाएगा. यह बात भी शांति सागर के पक्ष में जाती है.

क्या सजा हो पाएगी जैन मुनि शांति सागर को?

धर्म की आड़ में धर्मगुरु कैसेकैसे लड़कियों को हवस का शिकार बनाते हैं, यह बात तो एक बार फिर सामने आई ही, साथ ही धर्मांध लोगों द्वारा शांति सागर का बचाव भी जता गया कि उन के लिए अपने ही समाज की एक युवती की अस्मत से ज्यादा धर्म की प्रतिष्ठा अहम है.

मामला अब अदालत में है और शांति सागर जेल में. कानूनी तौर पर साफ दिख रहा है कि शांति सागर यह साबित करने की पूरी कोशिश करेगा कि नेहा ने सहमति से संबंध बनाए थे और उस का पिता कमीशन मांग रहा था. जैसे नेहा को यह साबित करना आसान नहीं होगा कि बलात्कार हुआ है, वैसे ही तर्क शांति सागर की ओर से भी पेश किए जाएंगे कि यह एक अफेयर था, जो लंबे समय से चल रहा था.

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उम्मीद की जानी चाहिए कि मासूम नेहा को इंसाफ मिलेगा. लेकिन इस मामले से जैन समाज की एक कमजोरी भी उजागर हुई कि मुनियों में अंधश्रद्धा उन की बच्चियों की जिंदगी भी बरबाद कर सकती है. नेहा के मातापिता को अपनी बेटी को एकांत में मुनि शांति सागर के साथ भेजा जाना भारी भूल साबित हुई, जिस का खामियाजा मासूम नेहा ने भुगता.

चाय वाला था शांति सागर  

जैसे ही शांति सागर की करतूत उजागर हुई, लोगों की जिज्ञासा इस बात में स्वाभाविक रूप से बढ़ी कि वह है कौन और कैसे इतना बड़ा नामी मुनि बन गया. जिज्ञासुओं ने उस का अतीत और जिंदगी खंगाला तो पता चला कि शांति सागर मूलरूप से राजस्थान के कोटा का रहने वाला है और उस का असली नाम गिरराज शर्मा है.

शांति सागर यानी गिरराज के पिता सज्जन लाल शर्मा कोटा में हलवाई थे. पढ़ाईलिखाई में फिसड्डी गिरराज उन्हीं की मिठाई की दुकान के आगे चाय का ठेला लगाता था. किशोर अवस्था में ही मांबाप चल बसे तो गिरराज का मन भी कोटा से उचट गया और वह मध्य प्रदेश के गुना में अपने ताऊ के पास आ गया.

गुना में उस के ताऊ ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भतीजे का दाखिला एक स्कूल में करवा दिया. पर यहां भी पढ़ाईलिखाई में उस ने दिलचस्पी नहीं ली और चाय के एक ठेले पर काम करने लगा, जिस में बर्तन धोने का काम भी शामिल था. गुना में जवान हुए गिरराज को फैशन करने का खासा शौक था. वह तरहतरह के फैशन करता था और खाली समय में क्रिकेट खेलने का अपना शौक भी पूरा करता था. एक फैशनेबल लड़के को चाय के ठेले पर काम करते देख गुना के लोगों में वह मशहूर हो गया था.

साल 1993 में वह मंदसौर गया था, जहां जैन आचार्य कल्याण सागर के प्रवचन चल रहे थे. कल्याण सागर के प्रवचनों से वह इतना प्रभावित हुआ कि उस ने वहीं उन से दीक्षा ले ली. इस तरह वह गिरराज शर्मा से शांति सागर बन गया. जल्द ही अपना एक अलग संघ बना कर वह भी जैन मुनियों की तरह जगहजगह विहार करते हुए प्रवचन देने लगा. जल्दी ही जैन समुदाय में उस की खासी पैठ बन गई. उस के हजारों शिष्य बन गए थे.

जब पोल खुली तो उसे पूजने वाला जैन समाज भी उस पर थूथू करने लगा. क्रांतिकारी और कड़वे प्रवचनों के लिए मशहूर जैन मुनि तरूण सागर ने शांति सागर को पाखंडी बताते हुए मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की, पर ऐसा तब हुआ, जब उस का असली चेहरा सामने आ चुका था. जाहिर है ऐसे में कोई उसे क्यों संत या मुनि कहता. यह तो एक उजागर सच से मुंह छिपाने जैसी बात थी.

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टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 2

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इसी दौरान नेहा के पिता ने शांति सागर के श्री चरणों में निवेदन किया था कि वे उन्हें अपना शिष्य बना लें. हजारों भक्तों की भीड़ में रोज कई लोग शिष्य बनने की अनुनयविनय करते रहते हैं, पर मुनियों का जिस पर मन आ जाता है, वे उसे ही शिष्य बनाते हैं. नेहा के पिता के आग्रह को शांति सागर टाल गया.

दूसरे दिन जब शांति सागर ने नेहा को देखा तो जाने क्या हुआ कि उस के दिलोदिमाग में अशांति  छा गई. सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और संयम जैसे शब्द उड़नछू हो गए और इस शातिर का दिमाग नेहा को हासिल करने की जुगत में जुट गया.

कुछ सोचते हुए शांति सागर ने नेहा के पिता को बुलाया और सपरिवार दीक्षा देने यानी शिष्य बनाने को तैयार हो गया. खुद मुनि ने बुला कर गुरू बनने की बात कही, यह नेहा के पिता के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं थी.

उन की बांछें खिल उठीं और फिर देखते ही देखते उन का पूरा परिवार शांति सागर की सेवा में लग गया.

नेहा कैसे आई मुनि शांति सागर के प्रभाव में

मांडवी में नेहा कुछ दिन रुकी, फिर भाई के पास वापस बड़ौदा चली गई. पर उसे सपने में भी अहसास नहीं था कि वह किसी ऐसेवैसे या ऐरेगैरेनत्थूखैरे का नहीं बल्कि आचार्य तक कहे जाने वाले मुनि शांति सागर का दिल चुरा कर ले जा रही है, जो अब तक तप में रमा था.

बड़ौदा आ कर वह अपने कामों में लग गई पर शांति सागर के चमत्कारों ने उस के दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ दी थी. जैन धर्म में भी मंत्र जाप का काफी महत्व है. 4 फिरकों में बंटे जैन धर्म के 2 अहम संप्रदाय तेरापंथी और बीसपंथी हैं. तेरापंथी चमत्कारों में भरोसा नहीं करते, लेकिन बीसपंथी से जुड़ा शांति सागर कभीकभार ऐसा हैरतंगेज चमत्कार भक्तों, शिष्यों और श्रद्धालुओं को दिखा दिया करता था कि सभी हैरान रह जाते थे और उस में उन की आस्था और भी बढ़ जाती थी. कभीकभार गुस्से में आ कर वह अपने विरोधियों को कबूतर बनाने की धौंस देता था.

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कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए. लेकिन एक दिन नेहा उस वक्त हतप्रभ रह गई, जब उस के पास शांति सागर का फोन आया. चूंकि धर्म में उस की अगाध श्रद्धा थी, इस नाते वह जानती थी कि जैन मुनि मोबाइल फोन जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं करते हैं. सांसारिक वस्तुओं से परहेज करने वाले गुरुजी के फोन से उसे खुशी तो हुई पर हैरानी भी कम नहीं हुई.

चिडि़या की तरह फंसी नेहा मुनि शांति सागर के जाल में

उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि यूं ही किसी भक्त के मोबाइल फोन से उन्होंने उसे काल कर दिया होगा. नेहा को इतनी जानकारी तो थी कि मुनि लोग अपने पास केवल पिच्छिका रखते हैं और आमतौर पर सूरज ढलने के बाद मौन धारण कर लेते हैं, लेकिन शांति सागर ने उसे रात को फोन कर के बात की थी.

बाद में यह जान कर तो उस की हैरानी और बढ़ गई कि शांति सागर के पास खुद के पांचपांच मोबाइल फोन हैं और वे वाट्सऐप का भी प्रयोग करते हैं. इस बाबत अपने मन में उमड़तीघुमड़ती शंकाओं को ले कर उस ने यह सोच कर खुद को तसल्ली दे ली कि उसे मुनियों के मामले में मीनमेख नहीं निकालनी चाहिए, यह अधर्म है.

फिर अकसर मोबाइल के जरिए शांति सागर नेहा के संपर्क में रहने लगा. एक दिन उस ने नेहा से उस की सब से बड़ी इच्छा पूछी तो अल्हड़ नेहा ने तुरंत कह दिया कि बस मैं और मेरे मम्मीपापा हमेशा खुश रहें.

चिडि़या को जाल में फंसते देख शांति सागर ने फोन पर ही तथास्तु की मुद्रा में उस से कहा कि ऐसा ही होगा, पर इस के लिए मंत्र जाप करना होगा, इसलिए तुम अपना एक फोटो वाट्सऐप पर भेज दो.

अपनी इच्छा पूरी होने की गारंटी मिलते देख नेहा ने तुरंत अपना फोटो वाट्सऐप पर भेज दिया. इस पर शांति सागर का फोन आया कि अरे ऐसा फोटो नहीं, बल्कि वैसा दिगंबर भेजो, जैसा मैं रहता हूं.

ऐसी बात या प्रस्ताव पर भला कौन भारतीय युवती होगी जो शर्म से लाल न हो उठे, यही नेहा के साथ हुआ. उस ने हिचकिचाहट दिखाते इनकार कर दिया तो शांति सागर ने बड़े दार्शनिक अंदाज में उसे समझाया कि अरे पगली भगवान तो सब को इसी अवस्था में पैदा करता है, ये वस्त्र तो दुनिया वाले पहना देते हैं.

इस के बाद भी नेहा सहमत नहीं हुई तो मुनि ने समझाया कि अब जप शुरू हो चुका है और इसे बीच में छोड़ने से तुम्हारे मातापिता का अनिष्ट हो सकता है. यह चूंकि विशेष प्रकार का जप है जो नग्नावस्था में ही पूरा होता है, इसलिए अनिष्ट से बचने के लिए नग्न फोटो भेजो.

अनहोनी से डर गई नेहा ने अपने कपड़े उतारे और उसी अवस्था में अपना फोटो खींच कर शांति सागर को भेज दिया. इस वक्त वह बेहद दुविधा में थी और लजा भी रही थी, खुद अपने कपड़े उतारते बारबार उस के हाथ कांप रहे थे. बात थी ही कुछ ऐसी ही.

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फोटो भेज कर वह पूरी तरह बेफिक्र हो पाती कि 2 दिन बाद फिर इस कामुक मुनि का फोन आया, जिस का सार यह था कि चूंकि यह फोटो थोड़े अंधेरे में खींचा गया है, इसलिए मंत्र असर नहीं कर रहे हैं. उस ने इस बार नेहा को निर्देश दिया कि वह पूरी रोशनी में निर्वस्त्र हो कर फोटो खींच कर भेजे, तभी अनिष्ट से बचा जा सकता है.

अपने जाल को धीरेधीरे फैलाता रहा मुनि शांति सागर

2 दिन पहले अपना नग्न फोटो भेज चुकी नेहा की झिझक थोड़ी कम हो गई थी, इसलिए उस ने गुरु की इस आज्ञा का भी पालन किया और वे जैसा फोटो चाहते थे, वैसा भेज दिया. लेकिन इस बात की चर्चा उस ने घर वालों से नहीं की, जिन की सलामती के लिए उस ने नारीसुलभ लज्जा दांव पर लगा दी थी.

2 महीने गुजर गए तो नेहा के मन से डर जाता रहा और उस ने मन ही मान लिया कि मंत्र जाप के लिए निर्वस्त्र फोटो जरूरी होता होगा, इसलिए शंका और चिंता की कोई बात नहीं. इस चक्कर में उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उस का नग्न फोटो देख शांति सागर ने उस की खूबसूरती की भूरिभूरि प्रशंसा की थी, जैसे वह कोई मुनि न हो कर दिलफेंक आशिक हो. नेहा के मन में तो परिवार की सुरक्षा की चिंता थी. वह अज्ञात आशंकाओं से उबरना चाहती थी.

फिर एक दिन शांति सागर ने उसे बताया कि सब कुछ ठीकठाक है, लेकिन इस बार मेरे चातुर्मास में तुम परिवार सहित आना. उस वक्त एक और विशेष जाप करूंगा, जिस से फिर तुम्हें या तुम्हारे परिवार को कभी कोई खतरा नहीं रह होगा. शांति सागर ने किस धूर्तता से संभ्रांत घराने की एक सांस्कारिक युवती को अपने जाल में फंसा लिया था, यह बात कोई समझ नहीं पाया. क्योंकि नेहा सब कुछ छिपाने की गलती कर रही थी. उस ने चातुर्मास में आने सहमति दे दी.

दरअसल, नेहा के नग्न फोटो देख कर ही शांति सागर के तनमन का संयम दरक चुका था और अब वह इस कल्पना में डूबा रहता था कि जब नेहा साक्षात इस अवस्था में उस के सामने होगी तब…

इस बाबत यह बहेलिया एक और जाल बुन रहा था. लेकिन उस के प्रवचनों में जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की रोजाना व्याख्या होती थी, जिसे सुन लोग अभिभूत हो उठते थे. शांति सागर को णमोकार बाबा के नाम से भी बुलाया जाता था.

जैन धर्म में मुनियों के चातुर्मास का विशेष महत्त्व होता है. बारिश के 4 महीनों में जैन धर्म के भव्य धार्मिक आयोजन शबाब पर होते हैं, जिन में भक्त दिल खोल कर धन लुटाते हैं. कौन कहां किस मुनि के सान्निध्य में चातुर्मास व्यतीत करेगा, यह जैन धर्मावलंबी काफी पहले तय कर लेते हैं और बढ़चढ़ कर उन में हिस्सा लेते हैं.

मुनि शांति सागर ने सही वक्त पर बांधी नेहा को फंसाने की भूमिका

इस बार शांति सागर ने अपने संघ का चातुर्मास सूरत जिले के नानपुरा टाटलियावाड़ स्थित जैन मंदिर में व्यतीत करने का फैसला लिया तो वहां के भक्तों ने शांति सागर की आगवानी में पलकपांवड़े बिछा दिए. समारोहपूर्वक चातुर्मास की तैयारियां करने में टाटलियावाड़ के जैनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. मंदिर पहुंच कर शांति सागर ने प्रवचन शुरू किए तो रोज भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी.

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अपना कामुक मकसद पूरा करने के लिए शांति सागर ने ग्वालियर में नेहा के पिता को चातुर्मास में आने को कहा तो वे मानो धन्य हो उठे. ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता है कि गुरु खुद शिष्य को आमंत्रित करे. शांति सागर का मुरीद हो चुका नेहा का परिवार सितंबर के महीने में टाटलियावाड़ पहुंच गया. इस के पहले शांति सागर ने नेहा को भी कह दिया था कि वह अपने घरवालों के साथ जरूर आए क्योंकि इन दिनों में विशेष जाप करना है.

धर्मज्ञानी और अनुभवी शांति सागर को इतना तो समझ आ गया था कि नेहा एकदम से उस के सामने समर्पण नहीं कर देने वाली, इसलिए नेहा को और गिरफ्त में लेने के लिए उस ने 29 सितंबर को सैकड़ों भक्तों के सामने एक पत्थर को पानी में तैराने का अविश्वसनीय कारनामा कर दिखाया.

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टूट गया शांति सागर के तनमन का संयम : भाग 1

19 वर्षीया नेहा जैन (बदला नाम) हद से ज्यादा धार्मिक और आस्तिक युवती थी. नेहा के पास वह सब कुछ था जिस पर वह चाहती तो घमंड कर सकती थी. एक धनाढ्य जैन परिवार में जन्मी नेहा की खूबसूरती में गजब की सादगी थी. गुरूर से कोसों दूर रहने वाली नेहा की कोई उम्रजनित इच्छा नहीं थी, सिवाय इस के कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश और स्वस्थ रहें.

नेहा के पिता का ग्वालियर में खासा रसूख और इज्जत दोनों है. वहां उन के कई लौज और धर्मशालाएं हैं, जिन से उन्हें खासी आमदनी होती है. धार्मिक माहौल नेहा को बचपन से ही मिला था, जहां घर में चाहे कुछ भी हो रहा हो, प्रतिदिन मंदिर जाना एक अनिवार्यता थी.

जैन मुनियों ओर गुरुओं में अपार आस्था रखने वाली नेहा चाहती थी कि ऐसी कोई गारंटी मिल जाए तो मजा आ जाए, जिस से कि उस के मम्मीपापा हमेशा खुश रहें, उन पर कभी कोई विपत्ति न आए. इस उम्र में मांबाप से इतना लगाव या चाहत कतई हैरानी की बात नहीं है. दूसरी तरफ उस के मम्मीपापा भी चाहते थे कि नेहा खूब पढ़लिख जाए और किसी अच्छे परिवार के लड़के से उस की शादी हो जाए तो उन की एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी.

व्यावसायिक बुद्धि के लिए पहचाने जाने वाले जैन समुदाय के अधिकांश लोग धनाढ्य होते हैं. अपनी संपन्नता की वजह वे अपने धर्म और उन मुनियों को बहुत मानते हैं, जिन के कठोर त्याग, तपस्या की माला हर कोई जपता रहता है. नेहा को भी ऐसे किसी गुरू की तलाश थी, जो एक बार उसे यह आश्वासन दे दे कि उस के मम्मीपापा को कुछ नहीं होगा. इस आश्वासन के बदले वह कुछ भी करने तैयार थी.

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पर 45 वर्षीय जैन मुनि शांति सागर ने उस से जो वसूला, उस की तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. यह नेहा के सादगी भरे सौंदर्य का सम्मोहन ही था कि एक झटके में शांति सागर का संयम ऐसा टूटा कि देश भर के जैनी तो जैनी, गैरजैनी भी उस की करतूत पर शर्मिंदा हो उठे.

किसी धर्मगुरु का ऐसा घिनौना चेहरा पहली बार सामने नहीं आया था, लेकिन इस बार आरोप एक जैन मुनि पर लगा था, जिस से यह साबित हो गया कि ब्रह्मचर्य एक परिकल्पना या धारणा भर है, नहीं तो प्रकृति और इंद्रियों का द्वंद किसी तपस्या से खत्म नहीं हो जाता.

विरक्ति का राग अलापते रहने वाले धर्मगुरुओं में कामुकता या आसक्ति इस हद तक होती है कि वे या तो तमाम धार्मिक नियमों और सिद्धांतों को तोड़ने को बाध्य हो जाते हैं या फिर धर्म का वास्तविक चेहरा लोगों के सामने खुद उजागर कर देते हैं. इंद्रियों को वश में करने के नाम पर वे उन का दमन ही करते हैं.

नेहा की दुखद आपबीती या कहानी कहीं से भी शुरु कर लें, वह खत्म तो एक ऐसे बलात्कार पर जा कर होती है, जो धर्म की आड़ में एक जैन धर्मशाला में हुआ और इस की सुनवाई करने वाली अदालत को भी सहमति और असहमति के मुद्दे पर सोचने और फैसला देने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है. वजह यह कि शांति सागर निहायत ही धूर्त और रंगा सियार है, जिस ने अपने बचाव की भूमिका बलात्कार की योजना से पहले से ही बना रखी थी.

कैसे सामने आई पूरी कहानी की हकीकत

सूरत के पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने अपनी लंबी नौकरी में हर तरह के अपराध और अपराधी देखे हैं. बीती 12 अक्तूबर की डाक जब उन के दफ्तर में पहुंची तो एक लिफाफे पर गोपनीय लिखा हुआ था, लिहाजा उन के रीडर ने उस लिफाफे को खोलने के बजाय ज्यों का त्यों उन्हें सौंप दिया.

यह चिट्ठी नेहा ने उन्हें भेजी थी, जिसे खोलते ही सतीश शर्मा के होश फाख्ता हो गए. विस्तार से लिखी इस चिट्ठी में नेहा ने जैन मुनि शांति सागर महाराज पर अपने साथ बलात्कार का आरोप लगाते हुए सिलसिलेवार ब्यौरा भी दिया था. इस पत्र को एक सांस में पूरा पढ़ कर सतीश शर्मा को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई नामी जैन मुनि बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को भी अंजाम दे सकता है.

मामला गंभीर था और धर्म से ताल्लुक रखता था, इसलिए अनुभवी सतीश शर्मा ने इस की तह में जाने का फैसला कर लिया. उन्होंने चिट्ठी में लिखे मोबाइल नंबर पर फोन किया और नेहा को अभिभावकों सहित अपने औफिस में आने के लिए कहा. कोई भी कदम उठाने से पहले किसी भी जिम्मेदार और तजुर्बेकार पुलिस अधिकारी के लिए तसल्ली कर लेना जरूरी था कि वाकई जो लिखा है वह सच है या इस में कहीं कोई छलकपट या किसी की साजिश तो नहीं है.

नेहा अपने पिता के साथ कमिश्नर साहब के औफिस पहुंची और उस ने अपनी जुबानी सारी बात बताई. सतीश शर्मा को उस की बातों पर भरोसा न करने की कोई वजह नजर नहीं आई.

नेहा के बयान की बिनाह पर पुलिस ने शांति सागर को गिरफ्तार कर लिया. इस गिरफ्तारी का जैन समुदाय के लोगों ने हर मुमकिन विरोध किया. दिगंबर जैन समाज के वरिष्ठ लोग कमिश्नर से मिले और उन्हें बताया कि यह लड़की (नेहा) समाज को बदनाम करना चाहती है, इसलिए मुनि पर झूठा आरोप लगा रही है.

धर्म की दुनिया कितनी पूर्वाग्रही और विरोधाभासी होती है, यह साबित हुआ महावीर दिगंबर जैन मंदिर के एक ट्रस्टी आर.जी. शाह के इस कथन से. शाह ने बताया कि 29 सितंबर को सूरत के परवट पारिया के पास बनी मौडल टाउनशिप में जैन मुनि शांति सागर का पिच्छी परिवर्तन का आयोजन हुआ था. इस आयोजन में 2 करोड़ 92 लाख रुपए की बोली लगी थी. बकौल आर.जी. शाह नेहा के पिता इस राशि में से 40 फीसदी कमीशन मांग रहे थे, जो मुनिजी ने देने से इंकार कर दिया था. तब उन के इशारे पर नेहा ने मुनिजी पर बलात्कार का आरोप लगा दिया.

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जब एक संयमी दिगंबर जैन मुनि बलात्कार कर सकता है तो उसी समुदाय का एक परिवार कुछ लाख रुपए झटकने के लिए अपनी बेटी की इज्जत दांव पर लगा कर सौदेबाजी क्यों नहीं कर सकता? इस बात की अहमियत न केवल इस मुकदमे में बल्कि हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि जैन धर्म में बातबात पर लाखोंकरोड़ों की बोलियां लगती हैं, यह हर कोई जानता है.

किसी भी जैन मुनि पर आरोप लगाना आसान नहीं

सच क्या है यह जानने के लिए जरूरी था कि नेहा की मैडिकल जांच कराई जाए. जांच में डाक्टर ने दुष्कर्म होने की पुष्टि की तो शांति सागर को गिरफ्तार कर आठवा थाने लाया गया. अब तक देश भर में जैन मुनि के इस कुकर्म का हल्ला मच चुका था. यह भी शायद पहला मौका था, जब किसी दिगंबर जैन मुनि को पुलिस ने कपड़े पहनाए हों.

शांति सागर को भी जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन कपड़े पहना कर. इस बात पर भी सूरत की धार्मिक फिजा बिगड़ती दिख रही थी.

आठवा थाने के बाहर जैन समुदाय के लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी, इसलिए पुलिस ने ऐहतियात बरतते हुए शांति सागर को आधी रात में मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के उसे लाजपोक जेल में शिफ्ट कर दिया था. ऐसा इसलिए किया गया ताकि धर्मांध लोग किसी तरह का फसाद खड़ा न कर पाएं. जैन समुदाय के अधिकांश लोग नेहा के बयान पर भरोसा नहीं कर रहे थे, बल्कि यह मान रहे थे कि पैसों के लालच में उन के मुनि पर यह आरोप मढ़ा गया है, जिस की न्यायिक जांच होनी चाहिए.

निश्चित रूप से मामला न केवल तूल पकड़ लेता, बल्कि हिंसा भी हो सकती थी, लेकिन खुद शांति सागर ने एक सधे हुए खिलाड़ी की तरह अपनी और नेहा की मैडिकल जांच के बाद यह स्वीकार कर लिया कि उस ने नेहा से शारीरिक संबंध स्थापित किए थे. मुनि ने कहा कि इस के लिए उस ने कोई जबरदस्ती नहीं की थी, संबंध नेहा की सहमति से बने थे.

मैडिकल जांच के दौरान उस ने माना कि इस से पहले उस ने कभी देहसुख नहीं भोगा है. डाक्टर के यह पूछने पर कि आप तो मुनि हैं, फिर आप ने ऐसा क्यों किया? इस पर वह खामोश रहा और सिर झुका लिया.

यह इस मामले की दूसरी चौंका देने वाली बात थी. शांति सागर के इस बयान ने कमीशन और सौदेबाजी का आरोप लगा कर हायहाय करने वाले समर्थकों के गुस्से को ठंडा कर दिया, बात आईगई हो गई. कल का ईश्वरतुल्य पूजनीय मुनि शांति सागर लाजपोर जेल का कैदी नंबर 11035 हो गया.

नेहा के बयान से जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है –

कैसे बना नेहा जैन का परिवार शांति सागर का शिष्य

ग्वालियर में नेहा के पिता ने काफी पैसा कमा लिया था और वे व्यवसाय बढ़ाने के लिए गुजरात का रुख कर चुके थे. इस बाबत उन्होंने अपने बेटे को 4 साल पहले बड़ौदा भेज दिया था.

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भाई भी पिता की तरह तीक्ष्ण व्यवसायिक बुद्धि वाला था. इसलिए उस का कारोबार वहां भी चल निकला. ग्वालियर में स्कूली पढ़ाई पूरी कर चुकी नेहा को भाई ने अपने पास बड़ौदा बुला लिया और वहां के एक कालेज में उस का दाखिला करा दिया.

इसी साल मार्च के महीने में नेहा मातापिता के साथ मांडवी गई थी, जहां जैन मंदिर में शांति सागर के प्रवचन चल रहे थे. शांति सागर के प्रवचन सुन कर नेहा तो प्रभावित हुई ही थी, उस के मातापिता उस से भी ज्यादा प्रभावित हुए थे. शांति सागर के दर्शन मात्र से ही इस जैन परिवार को असीम सुख की प्राप्ति हुई थी.

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विदेशी शोलों में झुलसते भारतीय : भाग 1

मोहाली के सेक्टर-70 की कोठी नंबर 2607 में रहने वाले रंजीत सिंह भंगू पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से एक अच्छे पद से रिटायर हुए थे. उन की सब से बड़ी बेटी अमेरिका में, दूसरी न्यूजीलैंड में और तीसरी खरड़ के सन्नी एन्क्लेव में अपनेअपने परिवारों के साथ खुशहाल जीवन बिता रही थीं.

भंगू साहब का 20 वर्षीय एकलौता बेटा सिमरन सिंह गतवर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अपनी बड़ी बहन के पास अमेरिका गया था. पढ़ाई के साथसाथ वह दक्षिण सेकरामेंटो स्थित चैवगन गैस स्टेशन पर पार्टटाइम नौकरी भी करता था. गैस स्टेशन परिसर में जनरल मर्चेंडाइज की एक छोटी सी दुकान थी. कभीकभी सिमरन की ड्यूटी इस दुकान पर भी लग जाती थी.

26 जुलाई, 2017 की रात को भी सिमरन दुकान की ड्यूटी पर था. कुछ स्थानीय लड़कों ने दुकान पर आ कर सिमरन से थोड़ाबहुत सामान खरीदा. फिर वे दुकान से थोड़ी दूरी पर खुले में खड़े हो कर शराब पीने लगे. गैस स्टेशन के एक भारतीय कर्मी ने उन के पास जा कर उन्हें वहां शराब पीने से मना किया तो वे लड़के खफा हो कर उसे ही धमकाने लगे. बात बढ़ती देख कर वह कर्मचारी कुछ इस अंदाज से भीतर चला गया, जैसे उन्हें सबक सिखाने के लिए किसी को बुलाने जा रहा हो.

इत्तफाक से तभी सिमरन को किसी काम से दुकान के बाहर उसी ओर जाना पड़ गया. उन लड़कों ने आव देखा न ताव गोलियां चला कर सिमरन को मौत के घाट उतार दिया. उन्होंने 11 गोलियां दागी थीं, जिन में से 7 गोलियां सिमरन की छाती में लगी थीं.

इसी साल 7 अगस्त को जब समूचा हिंदुस्तान भाईबहन के पवित्र रिश्ते वाला त्यौहार रक्षाबंधन मना रहा था, सिमरन की बड़ी बहन हरजिंदर कौर अपने एकलौते भाई का शव ले कर अमेरिका से मोहाली स्थित अपने मायके पहुंची.

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अमेरिका की सेकरामेंटो पुलिस ने इस केस में फिलहाल एक संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया था, जबकि आगे की छानबीन जारी थी.

बात थोड़ी पुरानी है. पंजाब स्थित फगवाड़ा के एक सिपाही की आतंकवादियों से मुठभेड़ में मौत हो गई थी. तब इस के एवज में अनुकंपा के आधार पर पंजाब पुलिस ने उस के छोटे भाई नीरज को नौकरी औफर की थी. नौकरी जौइन करने के बाद नीरज प्रशिक्षण के लिए पुलिस ट्रेनिंग सैंटर में गया तो किसी ने उस से कह दिया कि वह तो फिल्मी हीरो लगता है, कहां पुलिस की रफटफ नौकरी में चला आया.

नीरज शुरुआती दौर में ही पुलिस की नौकरी को अलविदा कह घर आ गया. फिल्मों में काम हासिल करने के लिए उस ने प्रयास भी किए, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

इस पर उस के एक पारिवारिक मित्र ने सलाह दी कि पहले विदेश जा कर वह खूब पैसा कमाए और फिर खुद अपनी फिल्म बनाए. नीरज को यह सलाह जंच गई.

जोड़तोड़ कर के नीरज को बेल्जियम जाने में सफलता मिल गई. जहां 2 साल रह कर उस ने कई तरह के काम किए. इस के बाद वह रोम चला गया. वहां इटली के एक होटल में उसे अच्छी नौकरी मिल गई. बड़ी बात यह थी कि होटल मालिक भी पंजाबी था. एक पंजाबी की सरपरस्ती में काम पा कर नीरज बहुत खुश था.

नीरज के परिवार के सभी पुरुष सदस्य अच्छी तरह स्थापित थे. घर में किसी को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने नीरज से कह रखा था कि वह अपनी कमाई में से जितना भी बचा सकता है, वहीं अपने पास जमा करता रहे. नीरज के पारिवारिक सूत्रों के अनुसर उस ने कुछ ही समय में अपने पास काफी नकद पैसा और सोना जमा कर लिया था.

लेकिन एक दिन होटल मालिक का फोन आया कि नीरज का किसी से मामूली झगड़ा हो गया था. इसी से नाराज हो कर उस व्यक्ति ने नीरज की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी है.

कपूरथला के गांव नडाला के 600 से अधिक लोग किसी न किसी बाहरी देश में बसे हुए हैं. यहां का एक लड़का सुरजीत सिंह खेतीबाड़ी के अपने पुश्तैनी धंधे में मस्त था. उस की एक बुआ अमेरिका के कैलिफोर्निया में बस गई थी, जहां उस का जनरल स्टोर था. एक बार वह भारत आई तो सुरजीत को भी अपने साथ अमेरिका ले गई. वहां वह बुआ के जनरल स्टोर के काम में उन का हाथ बंटाने लगा. सुरजीत को वहां अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देने लगा था.

स्टोर का काम अच्छी तरह सीख कर उस ने अपना अलग स्टोर खोलने की योजना बनाई. सुरजीत के इस काम में उस की बुआ भी मदद करने के लिए राजी थी.

मगर यह सपना उस वक्त धरा का धरा रह गया, जब एक दोपहर एक शख्स स्टोर पर बीयर लेने आया. सुरजीत स्टोर में अकेला था. उस की बुआ कुछ ही देर पहले घर चली गई थी. उस व्यक्ति ने 5 केन बीयर ली. बीयर देने के साथ ही सुरजीत ने बिल भी उस के सामने रख दिया. वह व्यक्ति बेरुखी से ‘इस का हिसाब मेरे खाते में डाल देना’ कहते हुए बीयर उठा कर स्टोर से बाहर निकल गया.

सुरजीत उस के पीछे भागा. बाहर जीप में 4 अन्य लोग बैठे थे. उस व्यक्ति ने उन के पास पहुंचते ही बीयर के केन उन के हवाले कर के अपनी भाषा में कुछ कहा. फलस्वरूप जीप में बैठे एक नौजवान ने रिवाल्वर निकाल कर सुरजीत पर फायर कर दिया. गोली लगते ही वह वहीं ढेर हो गया.

यह समाचार जब नडाला पहुंचा तो हाहाकार मच गया. दरअसल, चंद रोज पहले ही इसी गांव के एक अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा ही दर्दनाक हादसा हो चुका था.

नडाला निवासी जसवंत सिंह सोढी गांव के सरपंच तो थे ही, जालंधर की प्रसिद्ध दोआबा फैक्ट्री के चेयरमैन भी थे. उन के 8 लड़के थे, जिन में से 3 विदेश में जा बसे थे. इन तीनों सोढी भाइयों ने अमेरिका के शहर फिनिक्श में पैट्रोल व गैस का अपना अच्छाखासा बिजनैस जमा लिया था. स्थानीय लोगों के साथ उन का अच्छा रसूख भी बन गया था. तीनों भाइयों इंदरपाल सिंह, बलवंत सिंह और सुखपाल सिंह का जीवन खूब मजे से गुजर रहा था.

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उस दिन बलबीर सिंह सोढी ने अपने केश क्या धोए, लगा जैसे उन्होंने अपनी मौत को बुलावा दे दिया. केश धोने के बाद उन्होंने बालदाढ़ी खुली छोड़ कर सिर पर सफेद रंग का पटका बांध लिया था. इत्तफाक से उस दिन उन्होंने कुर्तापाजामा भी सफेद ही पहन रखा था. वह कदकाठी और हुलिए से पूरी तरह अफगानी लग रहे थे.

यह उन दिनों की बात है, जब न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन पर हुए दुस्साहिक हमलों के बाद अमेरिकी लोग अफगानियों से नफरत करने लगे थे. ऐसे में बलबीर सिंह सोढी को अफगानी समझ कर किसी कट्टरपंथी ने उन्हें तब निशाना बना दिया, जब वह अपने घर की छत पर खड़े थे. गोली उन के बदन को चीर गई थी.

जालंधर नकोदर मार्ग पर बसे गांव नीमियां मल्लियां निवासी रेशम सिंह का लड़का अमरीक सिंह कुछ सालों पहले रोजगार की तलाश में मनीला गया था. वहां उस के 2 भाई पहले से ही रहते थे. वे सामान खरीदनेबेचने का धंधा करते थे. अमरीक ने भी यही कारोबार शुरू कर दिया. उस का भी काम ठीक से चल निकला. लेकिन एक दिन उस की लाश वीराने में पड़ी मिली. पता चला कि उस के किसी देनदार ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

सुनील विरमानी अपनी पत्नी के अलावा बेटी मनी और बेटे मानव के साथ लुधियाना के मौडल टाउन एरिया में रहते थे. मानव को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा गया. उस ने अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित न्यू इंग्लैंड इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी से 95 प्रतिशत अंकों के साथ विजुअल प्रोसेसिंग इन कंप्यूटर की डिग्री हासिल की.

इस के बाद वह छुट्टियां बिताने मिसीसिपी चला गया, जहां सुनील विरमानी के एक मित्र रहते थे. वहां उन का अपना जनरल स्टोर था. एक दिन दोपहर में मानव को स्टोर पर बैठा कर वह किसी काम से घर चले गए. तभी कुछ लुटेरे आए और उन्होंने मानव को कत्ल कर के स्टोर का कैश बौक्स लूट लिया.

जालंधर के गांव हरिपुर का युवक कमल वीर सिंह भी जीवन में कुछ बनने की तमन्ना ले कर कनाडा गया था. वहां उसे एक शराबखाने में नौकरी मिली. एक रात शराब ठीक से सर्व न करने के मुद्दे पर उस का एक अंगरेज ग्राहक से झगड़ा हो गया. तूतू, मैंमैं से बात आगे बढ़ी और हाथापाई तक पहुंच गई. स्थिति यह बनी कि उस ग्राहक ने कमलवीर सिंह की हत्या कर दी.

कपूरथला के गांव टिब्बा का नौजवान जसवंत सिंह अच्छे रोजगार के लिए जापान गया था. वहां उसे एक निजी कंपनी में कार मैकेनिक की नौकरी मिल गई. अपनी इस नौकरी से वह बहुत खुश था और सुनहरे भविष्य के प्रति आशावान भी. जापान के जिस नगर सिगमाहारा में जसवंत रहता था, वहां एक रात कुछ भारतीय और पाकिस्तानी युवकों की किसी बात पर कहासुनी हो गई.

जसवंत ने बीचबचाव कर के उन लड़कों का आपस में राजीनामा करवा दिया. एक पाकिस्तानी युवक इस सब से चिढ़ गया. उस ने अपने मन में रंजिश रखी, जिस के फलस्वरूप 2 दिन बाद वह अपने कुछ साथियों को ले कर जसवंत के घर आ गया. उन्होने लोहे की रौडों से घर का दरवाजा तोड़ कर जसवंत को मौत के घाट उतार दिया.

इस तरह की तमाम कहानियां हैं. दरअसल, युवा ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और अपने भविष्य को सिक्योर करने के लिए विदेश चले जाते हैं, लेकिन कई बार ऐसा कुछ हो जाता है, जिस की कीमत उन्हें प्राण दे कर चुकानी पड़ती है.

वैसे परदे के पीछे मुद्दा यह भी है कि विदेश जा कर धन कमाने का सपना देखने वाले नौजवान कोई यूं ही विदेश नहीं पहुंच जाते. इस के लिए जो धन खर्च किया जाता है, अधिकांश लड़कों के परिवारों द्वारा वह धन जुटाना आसान नहीं होता. कहीं घर के गहने बिकते हैं तो कहीं उन के भविष्य के लिए महंगे ब्याज पर जमीन गिरवी रखी जाती है. लेकिन भविष्य संवारने की कथित होड़ में भारतीयों के विदेश जाने की दौड़ खत्म नहीं होती, भले ही उन के साथ कितना भी दुर्व्यवहार हो, मौत उन्हें अपनी आगोश में समेट ले.

पंजाब के लहरागागा कस्बे के रहने वाले पंजाबी सिंगर मनमीत अली शेर ने ख्याति तो खूब अर्जित की, लेकिन ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी. करीब 10 साल पहले उस ने भी आस्ट्रेलिया का रुख किया था. अपनी लेखनी और गायकी को जिंदा रखने के लिए उस ने विदेशी धरती पर बहुत मेहनत से हर तरह के काम किए. वहां एक ओर तो वह पंजाबी समुदाय के लिए जानामाना गायक था, वहीं दूसरी ओर व्यवसाय के नाम पर क्वींसलैंड की राजधानी ब्रिसबेन में सिटी कौंसिल बस का ड्राइवर था.

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वह 28 अक्तूबर, 2016 को रात थी. मनमीत अली शेर ने ब्रिसबेन के मारूका कस्बे में एक बस स्टौप से सवारियां लेने के लिए बस रोकी. कुछेक सवारियां बस में चढ़ीं भी. तभी एक सवारी ने तेजी से ड्राइवर कक्ष की ओर बढ़ते हुए मनमीत पर कुछ फेंका, जिस से वहां आग भड़क उठी.

उस वक्त बस में 16 सवारियां थीं, जिन्हें पीछे आ रहे एक टैक्सी ड्राइवर की मुस्तैदी से बस का इमरजेंसी द्वार खोल कर सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. लेकिन मनमीत अली शेर की मौके पर ही मौत हो गई. इस से चारों तरफ शोक एवं भय की लहर दौड़ गई. उस समय एक समाचार में बताया गया था कि पिछले 6 महीनों में बस ड्राइवरों पर 350 हमले हो चुके थे.

ब्रिसबेन पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए इस हमले के आरोप में एक 48 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया. मनमीत अली शेर की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा थी कि अगले दिन उसे श्रद्धांजलि देने के लिए ब्रिसबेन में झंडे झुके रहने का ऐलान कर दिया गया था.

पंजाब के सांसद व पंजाबी एक्टर भगवंत मान ने इस मामले को उठाते हुए विदेशों में बसने वाले पंजाबियों की जानमाल की रक्षा को सुनिश्चित बनाने की केंद्र सरकार से मांग की थी. कुमार विश्वास ने भी इस संबंध में ट्वीट किया था.

पुलिस ने इस केस के संबंध में जिस आरोपी को पकड़ा था. उस का नाम का ऐंथनी मारक एडवर्ड डौनोहयू था. उस ने न तो पहले पुलिस के आगे मुंह खोला था, न ही अब अदालत के सामने खोला. अदालत के बाहर मौजूद पत्रकारों से आरोपी के वकील ऐडम मैगिल ने कहा कि इस की मानसिक हालत ठीक नहीं है और यह जुर्म एकदम समझ से परे है.

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