डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 1

हर काम ज्योतिषी से पूछ कर करने वाले राजगोपाल ने उसी ज्योतिषी से सलाह ली. ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी का सुझाव दिया. राजगोपाल ने उस का सुझाव मान लिया. अब सवाल यह था कि तीसरी शादी किस से की जाए, क्योंकि तब तक राजगोपाल की आयु 50-55 बरस हो चुकी थी. इस उम्र में कोई उसे अपनी बेटी क्यों देता.

राजगोपाल की तीसरी शादी की बात बरबादी के रूप में आई. शादी के चक्कर में उस का टकराव जीवज्योति से हुआ. बात सन 2000 के शुरुआत की है. जीवज्योति पी. राजगोपाल से कुछ पैसे उधार लेने के लिए आई. वह उन्हीं की कंपनी में काम करने वाले असिस्टेंट मैनेजर रामास्वामी की बेटी थी.

जीवज्योति का पति शांता कुमार ट्रैवल एजेंसी शुरू करना चाहता था, जिस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी. इसीलिए पति के कहने पर वह राजगोपाल के पास गई. उस के पिता रामास्वामी बेटी को अकेला छोड़ कर थाइलैंड चले गए थे. वह होते तो यह रकम वह अपने पिता से ले सकती थी.

राजगोपाल ने जब बला की खूबसूरत जीवज्योति को पहली बार देखा तो वह देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती आंखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली थी. उस समय जीवज्योति की उम्र 27-28 साल रही होगी. वह राजगोपाल के दिल में उतर गई. उस ने जीवज्योति को तीसरी पत्नी बनाने की ठान ली.

ये भी पढ़ें- हिमानी का याराना: भाग 1

लेकिन यहां राजगोपाल गलत था, क्योंकि वह प्रिंस शांताकुमार की पत्नी थी. जीवज्योति ने शांताकुमार से बहुत पहले ही लव मैरिज कर ली थी. यह बात राजगोपाल को पता भी चल गई थी. फिर भी वह जीवज्योति की खूबसूरती पर मर मिटा.

दरअसल शांताकुमार प्रोफेसर था. वह रामास्वामी की बेटी जीवज्योति को मैथ्स पढ़ाने के लिए उस के घर आता था. वह स्मार्ट और गबरू जवान था, चेन्नई के वेल्लाचीरी का रहने वाला. पढ़ातेपढ़ाते शांताकुमार का दिल जीवज्योति के लिए धड़कने लगा. जीवज्योति का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

दोनों को इस बात का अहसास तब होता था, जब ट्यूशन के बाद दोनों अलग होते थे. जीवज्योति ने अपने गुरु की आंखों में अपने प्रति पलते प्यार को देख लिया था. जीवज्योति का दिल भी शांताकुमार के लिए बेकरार था. अंतत: दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. फिर दोनों ने चुपचाप मंदिर में जा कर शादी भी कर ली.

यह बात सन 1999 की है. जीवज्योति ने भले ही अपने प्यार और शादी के राज को दबाए रखा, लेकिन उस का यह राज उस के पिता रामास्वामी के सामने आ ही गया. रामास्वामी को जब यह राज पता चला तो उन्हें धक्का लगा. उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी, क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था और जीवज्योति ब्राह्मण.

तमाम विरोधों के बावजूद जीवज्योति और शांताकुमार ने अपनी राह चुन ली थी

घर वालों ने इस शादी का घोर विरोध किया. परिवार वालों के विरोध के चलते जीवज्योति अपने मांबाप का घर छोड़ कर प्रेमी से पति बने शांताकुमार के घर चली गई. बेटी के इस कदम से आहत हो कर रामास्वामी थाइलैंड चले गए और वहीं बस गए.

शादी के कुछ समय बाद शांताकुमार की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. उस ने अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. जीवज्योति पी. राजगोपाल को जानती थी, क्योंकि उस के पिता की वजह से राजगोपाल उसे बेटी कहता था और मानता भी खूब था.

ये भी पढ़ें- एक तीर कई शिकार: भाग 2

पति शांताकुमार ने ही जीवज्योति को सुझाया था कि वह राजगोपाल के पास जा कर कुछ रकम उधार मांगे. जब बिजनैस से पैसा आएगा, तो उस की रकम लौटा देंगे. पति के सुझाव पर जीवज्योति राजगोपाल के पास पैसा मांगने गई. पी. राजगोपाल ने जीवज्योति को उतनी रकम दे दी, जितनी उसे जरूरत थी. इस रकम से शांता कुमार ने ट्रैवलिंग एजेंसी शुरू भी कर दी.

लेकिन दूसरी ओर जीवज्योति को देख कर राजगोपाल की नीयत खराब हो गई थी. उसे जीवज्योति इतनी पसंद आई कि वह उस से तीसरी शादी करने की योजना बनाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने जीवज्योति को महंगेमहंगे गिफ्ट भेजने भी शुरू कर दिए.

राजगोपाल की इस मेहरबानी को न तो जीवज्योति समझ पाई थी और न ही उस का पति शांताकुमार. लेकिन जल्द ही दोनों उस की नीयत को समझ गए कि उस के दिमाग में कितनी गंदगी भरी हुई है. तभी तो बेटी कहने वाला राजगोपाल उस पर नजर गड़ाए हुए था.

दरअसल, राजगोपाल ने एक दिन जीवज्योति को अपने औफिस बुलाया. औफिस में उस की खूब आवभगत की और उस के सामने अपने दिल की बात रख दी कि वह अपने पति शांताकुमार को छोड़ कर उस से शादी कर ले.

उस की बात सुन कर जीवज्योति बुरी तरह भड़क गई और उसे खूब खरीखोटी सुना कर घर लौट आई. इस के बाद राजगोपाल ने पतिपत्नी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी.

पी. राजगोपाल अपने बुरे इरादों में कामयाब नहीं हो पाया. फिर भी उस ने जीवज्योति को फोन करना और महंगे तोहफे भेजना बंद नहीं किया. जब से राजगोपाल ने जीवज्योति से शादी की बात की थी, तभी से वह राजगोपाल पर भड़की हुई थी. ऊपर से उस का रोज फोन आना और महंगे तोहफे भेजना, इस सब से वह परेशान हो गई थी. जब उस ने देखा कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है तो वह उस के प्रति और सख्त हो गई.

पी. राजगोपाल के फोन करने और महंगे तोहफों से परेशान हो कर जीवज्योति ने उस की शिकायत पुलिस में करने की धमकी दी. लेकिन इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. इस के बावजूद वह जीवज्योति को रोज फोन करता और महंगे तोहफे भेजता.

ये भी पढ़ें- दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी:भाग  2

जीवज्योति का पति शांताकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि पी. राजगोपाल रसूखदार इंसान है. उस की ऊपर तक पहुंच है. उस से पंगा लेना आसान नहीं होगा. काफी सोचविचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इस शहर को ही छोड़ दिया जाए.

प्रिंस शांताराम और उस की पत्नी चेन्नई छोड़ पाते, उस से पहले ही 28 सितंबर, 2001 को पी. राजगोपाल अपने 5 साथियों के साथ उन के घर जा पहुंचा. उस ने जीवज्योति से धमकी भरे लहजे में कहा कि 2 दिन के अंदर वह अपने पति से रिश्ता तोड़ दे और उस से शादी कर ले नहीं तो इस का बहुत बुरा अंजाम होगा. जीवज्योति डरी नहीं, उस ने उस के मुंह पर ही कह दिया कि वह अपने पति से किसी भी तरह अलग नहीं हो सकती, चाहे वह जो भी कर ले.

जीवज्योति के मुंह से न सुनते ही पी. राजगोपाल आगबबूला हो उठा. वह न सुनने का आदी नहीं था. वह ऐसा शख्स था, जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे साम, दाम, दंड, भेद चारों नीति अपना कर उसे हासिल कर लेता था, चाहे इस के लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

ये भी पढ़ें- फेसबुक से निकली मौत: भाग 1

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जब बीच रास्ते दुल्हन को लूटा

40 साल पहले सन 1979 में बौलीवुड की एक हौरर थ्रिलर फिल्म आई थी ‘जानी दुश्मन’. निर्देशक राजकुमार कोहली की इस फिल्म में उस जमाने के फिल्मी सितारों की पूरी फौज थी. ‘जानी दुश्मन’ में संजीव कुमार, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, विनोद मेहरा, अमरीश पुरी और प्रेमनाथ के अलावा 4 हीरोइनें थीं रीना राय, रेखा, नीतू सिंह और योगिता बाली.

इस सुपरहिट फिल्म में सस्पेंस भी था और भयावह दृश्य भी. कहानी के अनुसार फिल्म में ज्वाला प्रसाद का करेक्टर प्ले करने वाले रजा मुराद ने अपने सपनों की शहजादी से शादी की थी. लेकिन उस दुल्हन ने सुहागरात को ही ज्वाला प्रसाद को जहर मिला दूध पिला कर उस की जान ले ली.

मृत्यु के बाद ज्वाला प्रसाद ने दैत्य का रूप धारण कर लिया. उसे लाल जोड़े में सजी दुल्हनों से नफरत हो गई. वह दूसरों के शरीर में समा कर लाल जोड़े में सजी दुलहनों को डोली से उठा ले जाता था. इस फिल्म का गीत ‘चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की ऋतु आई…’ आज भी शादियों में दुल्हन की विदाई के समय बजाया जाता है.

जानी दुश्मन नाम से बाद में भी कई फिल्में बनीं. राजकुमार कोहली ने ही 2002 में ‘जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी’ नाम से फिल्म बनाई. इस में राज बब्बर, सनी देओल, रजत बेदी, शरद कपूर, मनीषा कोइराला, आदित्य पंचोली, अमरीश पुरी आदि कलाकार थे. लेकिन यह फिल्म 1979 वाली फिल्म जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर सकी.

फिल्म ‘जानी दुश्मन’ का जिक्र हम ने इसलिए किया क्योंकि इस कहानी का घटनाक्रम भी काफी कुछ ऐसा ही है. दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की यह कहानी राजस्थान के सीकर जिले की है.

बीते 16-17 अप्रैल की आधी रात के बाद सात फेरे लेने के बाद ढाई पौने 3 बजे नागवा गांव में गिरधारी सिंह के घर से 2 बेटियों की बारातें विदा हुईं. ये बारातें मोरडूंगा गांव से आई थीं. मोरडूंगा निवासी भंवर सिंह की शादी गिरधारी सिंह की बड़ी बेटी सोनू कंवर से हुई थी और राजेंद्र सिंह की शादी छोटी बेटी हंसा कंवर से.

दोनों दुल्हनें और उन के दूल्हे एक सजी-धजी इनोवा कार में सवार थे. कार में दूल्हों के रिश्तेदार कृष्ण सिंह, शानू और दुल्हन का भाई करण सिंह भी थे. ये लोग धोंद हो कर मोरडूंगा जा रहे थे. बारात में आए अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग पहले ही दूसरे वाहनों से जा चुके थे. केवल दूल्हादुल्हन और उन के 3 रिश्तेदार ही वैवाहिक रस्में पूरी कराने के लिए रुके रहे थे.

दूल्हादुल्हन विदा हो कर नागवा गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर ही आए थे, तभी रामबक्सपुरा स्टैंड के पास एक बोलेरो और पिकअप में आए बदमाशों ने अपनी गाडि़यां दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार के आगेपीछे लगा दीं. इनोवा में सवार दोनों दूल्हे और उन के रिश्तेदार कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बोलेरो और पिकअप से 7-8 लोग लाठीसरिए ले कर उतरे. इन्होंने इनोवा कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी.

कार से दुल्हन का अपहरण

मायके से विदा होने पर जैसा कि होता है दोनों बहनें घूंघट में सुबक रही थीं. उन्होंने तोड़फोड़ की आवाज सुन कर अपने चेहरे से घूंघट उठाया, लेकिन अंधेरा होने की वजह से उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. इनोवा कार के अंदर जल रही मद्धिम रोशनी में बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था. तोड़फोड़ होती देख दोनों दुल्हन बहनें सहम कर अपनेअपने दूल्हों के हाथ पकड़ कर बैठ गईं.

इनोवा के शीशे तोड़ने के बाद हमलावरों में से एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर हवा में लहराते हुए कहा, ‘‘कोई भी हरकत की तो गोली मार देंगे.’’ इस के बाद वे कार में बैठे पुरुषों से मारपीट करने लगे. दोनों दूल्हों भंवर सिंह और राजेंद्र सिंह ने बदमाशों से मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद बदमाशों के आगे उन के हौसले पस्त हो गए.

इस बीच एक बदमाश ने इनोवा का दरवाजा खोल कर दुल्हन हंसा कंवर को बाहर खींच लिया. हंसा चीखनेचिल्लाने लगी. यह देख हंसा की बहन सोनू ने बदमाशों से उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वह उन से मुकाबला नहीं कर सकी. बदमाशों ने नईनवेली दुल्हन सोनू कंवर से भी मारपीट की.

दूल्हों के रिश्तेदार मौसेरे भाई करण सिंह ने मोबाइल निकाल कर फोन करने की कोशिश की तो बदमाशों ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. बदमाशों ने हंसा कंवर को अपनी गाड़ी में बैठाया और दूल्हों व दुल्हन सोनू कंवर के साथ उन के रिश्तेदारों को पिस्तौल दिखा कर धमकी दी. बदमाशों ने इनोवा कार की चाबी भी निकाल ली थी. इस के बाद बदमाश अपनी दोनों गाडि़यां दौड़ाते हुए वहां से चले गए.

यह सब मुश्किल से 10 मिनट के अंदर हो गया. बदमाशों के जाने के बाद दूल्हों ने मोबाइल फोन से नागवा गांव में अपनी ससुराल वालों को सूचना दी. कुछ ही देर में नागवा के कई लोग मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंच गए. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर बाद धोद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने आसपास के इलाके में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का कोई पता नहीं चला.

दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की खबर कुछ ही घंटों में आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जिस ने भी इस वारदात के बारे में सुना, सहम गया. ससुराल पहुंचने से पहले ही दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की ऐसी वारदात किसी ने न तो देखी थी और न सुनी थी. अलबत्ता लोगों ने फिल्मों में ऐसी घटनाएं जरूर देखी थीं.

इस घटना को ले कर 17 अप्रैल को सुबह से ही राजपूत समाज के लोगों में आक्रोश छा गया. नागवा गांव के कृष्ण सिंह ने धोद पुलिस थाने में अपने ही गांव के अंकित सेवदा और भड़कासली गांव के रहने वाले मुकेश रेवाड़ को नामजद करते हुए 5-6 अन्य लोगों के खिलाफ हंसा कंवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा गया कि हंसा कंवर ने करीब 5 लाख रुपए के गहने पहन रखे थे, साथ ही उस के पास कन्यादान के 20 हजार रुपए नकद भी थे. आरोपी हंसा कंवर के साथ उस के गहने और नकदी भी ले गए. डोली से दुल्हन को उठा ले जाने का मामला गंभीर था. पुलिस ने नामजद आरोपियों के परिजनों से पूछताछ की. उन से कुछ जानकारियां मिलने पर पुलिस ने 2 टीमें बना कर जयपुर और गाजियाबाद के लिए रवाना कर दीं.

पूरा राजपूत समाज एक साथ खड़ा हो गया

पुलिस की टीमें अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गईं. मुख्य आरोपी चूंकि नागवा गांव का था, इसलिए गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अनहोनी न हो. इस बीच यह मामला सीकर से ले कर जयपुर तक गरमा गया. दुल्हन के अपहरण की सूचना मिलने पर उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा सीकर के राजपूत छात्रावास आ गए. वहां राजपूत समाज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई.

इस के बाद लोगों ने सीकर कलेक्टर सी.आर. मीणा को ज्ञापन दे कर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दे कर कहा कि अगर काररवाई नहीं हुई तो पूरा राजपूत समाज कलेक्ट्रैट के सामने धरने पर बैठ जाएगा. साथ ही लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने सीकर में कलेक्टर और एसपी के बंगले के सामने प्रदर्शन किया. लोगों ने कहा कि 18 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों का पता नहीं लगा सकी है. प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जाम लगा कर नारेबाजी की. इस दौरान उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पैट्रोल छिड़क कर आत्मदाह करने का प्रयास किया. लेकिन समाज के लोगों ने विधायक को बचा लिया.

सूचना मिलने पर डीएसपी सौरभ तिवाड़ी, कोतवाल श्रीचंद सिंह और उद्योग नगर थानाप्रभारी वीरेंद्र शर्मा मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने विधायक को समझाया. राजपूत समाज के लोगों ने सीकर कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की शर्त पुलिस को भी बता दी कि अगर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो कलेक्ट्रैट के बाहर धरनाप्रदर्शन किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद लोगों ने जाम हटाया और प्रदर्शन समाप्त कर दिया.

दुल्हन के अपहरण का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान हुई इस वारदात ने पुलिस के सामने चुनौती खड़ी कर दी थी. पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि पूरा राजपूत समाज इस घटना को ले कर लामबंद होने लगा था.

पुलिस के सामने एक समस्या यह भी थी कि दुल्हन के अपरहण का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस तरह की वारदात किसी पुरानी रंजिश, लूट, दुष्कर्म या प्रेम प्रसंग के लिए की जाती हैं.

लेकिन इस मामले में स्पष्ट रूप से ऐसा कारण उभर कर सामने नहीं आ रहा था. पुलिस को जांचपड़ताल में इतना जरूर पता चला कि आरोपी अंकित सेवदा और दुल्हन हंसा कंवर के परिवार के खेत आसपास हैं. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग जैसा कोई सबूत सामने नहीं आया.

वारदात का तरीका भयावह था. पुलिस ने कई जगह दबिश दे कर 2-4 लोगों को हिरासत में लिया. दरजनों लोगों से पूछताछ की गई. इस के अलावा आरोपी अंकित सेवदा के मोबाइल नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

18 अप्रैल को सीकर में सुबह से ही भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज राजपूत समाज के लोगों ने सुबह 10 बजे सड़क पर जाम लगा दिया और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर के बंगले के बाहर एकत्र हो गए.

सुबह से शाम तक करीब 7 घंटे प्रदर्शन जारी रहा. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजपूत समाज के नेता पहले बैरीकेड्स पर चढ़ कर अपनी मांग करते रहे. बाद में वे जेसीबी मशीन पर चढ़ कर लोगों को संबोधित करने लगे. एकत्र लोग सड़क पर बैठ गए. एडीएम जयप्रकाश और एडीशनल एसपी देवेंद्र शास्त्री व तेजपाल सिंह ने उन्हें समझायाबुझाया.

इस दौरान जिला प्रशासन और पुलिस ने राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बात कर के आरोपियों को पकड़ने और दुल्हन को बरामद करने के लिए 3 दिन का समय मांगा.

प्रदर्शन में उदयपुरवाटी के विधायक

राजेंद्र गुढ़ा, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत समाज के अनेक गणमान्य लोग शामिल रहे.

हालात पर नजर रखने के लिए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर पहुंच गए थे. वे रानोली थाने में बैठ कर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों पर नजर रखते रहे. बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने राजपूत छात्रावास के पास टेंट लगा कर धरना देना शुरू कर दिया.

पुलिस पूरी कोशिश में जुटी थी

राजपूत समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने दुल्हन की बरामदगी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस की 5 टीमें 3 राज्यों में भेजी गईं. इस बीच पुलिस ने दुल्हन का अपहरण करने के मामले में एक नामजद आरोपी भड़कासली निवासी मुकेश जाट के अलावा नेतड़वास के महेंद्र सिंह जाट, दुगोली निवासी राजेश बगडि़या उर्फ धौलिया और भड़कासली निवासी अशोक रेवाड़ को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में पता चला कि दुल्हन का अपहरण करने के बाद वे लोग अंकित और उस के साथियों से अलग हो गए थे. ये चारों धोद में छिपे थे. पुलिस ने इन से मुख्य आरोपी अंकित सेवदा के छिपने के संभावित ठिकानों के बारे में पूछताछ की. इसी के आधार पर पुलिस की टीमें विभिन्न स्थानों पर भेजी गईं.

19 अप्रैल को भी पुलिस अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर राजपूत समाज के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. सीकर शहर के सभी प्रवेश मार्गों पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.

पुलिस को जांचपड़ताल में यह बात साफ हो गई थी कि दुल्हन हंसा कंवर के अपहरण की साजिश उसी के गांव नागवा के अंकित ने रची थी. उस ने हंसा और उस की बड़ी बहन की शादी के दिन 16 अप्रैल की शाम अपने दोस्तों मुकेश रेवाड़, विकास भामू, महेंद्र फौजी, राजेश व अशोक आदि को तलाई पर बुलाया था. वहां उस ने सभी दोस्तों को शराब पिलाई.

योजनानुसार अंकित ने अपने एक साथी को गिरधारी सिंह के घर के बाहर बैठा दिया था. वह मोबाइल पर अंकित को शादी के हर कार्यक्रम की जानकारी दे रहा था. फेरे लेने के बाद रात ढाई पौने 3 बजे जैसे ही सोनू कंवर और हंसा कंवर अपने दूल्हों के साथ घर से विदा हुईं तो अंकित के साथी ने मोबाइल पर उसे यह खबर दे दी.

इस के बाद तलाई पर बैठे अंकित और उस के दोस्तों ने बोलेरो और पिकअप से दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार का पीछा किया. रामबक्स स्टैंड पर इन लोगों ने उन की इनोवा को आगेपीछा गाड़ी लगा कर घेर लिया गया. अंकित ने हंसा को बाहर निकाला और वे सभी साथी बोलेरो में उस का अपहरण कर ले गए.

जांच में पुलिस को पता चला कि हंसा का अपहरण करने के बाद अंकित के दोस्त रास्ते में उतरते गए. अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू हंसा को साथ ले कर नागौर जिले के जायल गांव गए. वहां से वे छोटी खाटू पहुंचे. फिर उन्होंने एक व्यक्ति से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए इनोवा गाड़ी किराए पर मांगी.

लेकिन उस दिन ज्यादा शादियां होने के कारण इनोवा नहीं मिली. इस के बाद हंसा कंवर को साथ ले कर अंकित और विकास भामू छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर चले गए. महेंद्र फौजी बोलेरो ले कर नागवा आ गया था.

पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों मुकेश रेवाड़, महेंद्र सिंह, राजेश बगडि़या और अशोक रेवाड़ को अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

बिना लड़े आमनेसामने थे

राजपूत समाज के नेता और पुलिस दुल्हन के अपहरण की घटना को ले कर राजपूत समाज तीसरे दिन भी आंदोलित रहा. कलेक्टर के बंगले के सामने लगातार दूसरे दिन भी राजपूत समाज के लोग धरना देते रहे. समाज के नेताओं ने कहा कि धरना आरपार की लड़ाई तक जारी रहेगा.

विधायक राजेंद्र गुढ़ा के अलावा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत महासभा व करणी सेना के तमाम नेता धरने पर बैठे रहे. उधर दुल्हन के अपहरण को ले कर नागवा गांव और उस की ससुराल मोरडूंगा में दोनों परिवारों में घटना के बाद से ही सन्नाटा पसरा रहा. दोनों परिवारों की शादियों की खुशियां काफूर हो गई थीं. नागवा में दुल्हन के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. दुल्हन की मां बारबार बेहोश हो जाती थी.

पूरे परिवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया. दुल्हन के पिता गिरधारी सिंह ने संदेह जताया कि आरोपी उस की बेटी की हत्या कर सकते हैं. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों ने नागवा में पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिया.

इस बीच एक हिस्ट्रीशीटर कुलदीप झाझड़ ने दुल्हन के अपहरण के मामले में एक वीडियो जारी कर प्रशासन को धमकी दे डाली. कई आपराधिक मामलों में फरार कुलदीप ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती है. अगर पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकती तो वह खुद उन्हें तलाश कर गोली मार देगा. उस के कई साथी आरोपियों की तलाश कर रहे हैं.

राजपूत समाज के आक्रोश को देखते हुए कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 20 अप्रैल को सीकर में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं. हालांकि इस की सूचना मीडिया के माध्यम से पुलिस व प्रशासन ने एक दिन पहले ही दे दी थी. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन के अधिकारी राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बराबर संपर्क में रहे.

इंटरनेट बंद होने से दिन भर बवाल मचता रहा. पुलिस ने राजपूत छात्रावास की बिजली बंद करा दी. इस से माइक बंद हो गया तो राजपूत युवा भड़क गए. इस के बाद विधायक गुढ़ा ने कलेक्टर आवास में घुस कर वहां कब्जा करने की चेतावनी दे दी. इस से पुलिस के हाथपैर फूल गए.

पुलिस ने वहां घेराबंदी कर बड़ी तादाद में सशस्त्र बल तैनात कर दिया. इस बीच विधायक गुढ़ा युवाओं के साथ मौन जुलूस निकालने लगे तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सख्ती से रोक दिया. दिन भर आंदोलनकारी और पुलिस आमनेसामने होते रहे.

आईजी एस. सेंगाथिर ने मोर्चा संभाल कर प्रदर्शनकारियों को बताया कि जयपुर से एटीएस और एसओजी सहित 11 टीमें जांच में जुटी हुई हैं. पुलिस अपराधियों के निकट पहुंच चुकी है और जल्द से जल्द हंसा कंवर को बरामद कर लिया जाएगा.

चौथे दिन 20 अप्रैल की शाम तक यह सूचना सीकर पहुंच गई कि पुलिस ने देहरादून से दुल्हन हंसा कंवर को बरामद कर लिया है और 2 आरोपी पकड़े गए हैं. इस के बाद राजपूत समाज ने आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी.

दुल्हन हंसा को देहरादून से बरामद करने की कहानी बड़ी रोचक है. हंसा का अपहरण कर अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू जायल हो कर छोटी खाटू पहुंचे. वहां वे आरिफ से मिले. आरिफ किराए पर गाडि़यां चलाता है.

अंकित ने आरिफ से देहरादून जाने के लिए किराए की गाड़ी मांगी, लेकिन उस समय उस की सभी गाडि़यां शादियों की बुकिंग में गई हुई थीं. आरिफ ने अंकित को शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में बताया था. पुलिस को आरिफ से ही यह सुराग मिला कि अंकित दुल्हन हंसा को ले कर देहरादून जा सकता है.

अंकित अपने दोस्त विकास भामू और दुल्हन हंसा के साथ छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर पहुंचा और जयपुर से सीधे देहरादून चला गया. देहरादून में ये लोग एक गेस्टहाउस में रुके. ये लोग गेस्टहाउस पर बाहर से ताला लगवा देते थे.

जानकारी मिलने पर सीकर से सबइंसपेक्टर सवाई सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. पुलिस दोनों आरोपियों और दुल्हन हंसा की फोटो ले कर होटल और गेस्टहाउसों में तलाश कर रही थी. 19 अप्रैल को पुलिस उस गेस्टहाउस पर भी पहुंची, जहां अंकित और विकास ने हंसा को ठहरा रखा था, लेकिन वहां बाहर ताला लगा देख कर पुलिस लौट गई.

कैसे पता लगा हंसा कंवर का

इस बीच पुलिस टीम ने हाथों में मेहंदी लगी लड़की के दिखाई देने पर सूचना देने की बात कह कर काफी लोगों को अपने मोबाइल नंबर दिए. 20 अप्रैल को एक वकील ने पुलिस टीम को फोन कर बताया कि एक युवती के हाथों में मेहंदी लगी हुई है और उस के साथ 2 युवक हैं.

पुलिस टीम ने वाट्सऐप पर वकील को दुल्हन और आरोपियों की फोटो भेजी, तो कंफर्म हो गया कि हंसा उन्हीं युवकों के साथ है. वकील ने बताया कि ये लोग कोर्ट के पास हैं और एक वकील उन की शादी के कागजात बनवाने गया है.

सीकर से गई पुलिस टीम ने एक मिनट की देरी करना भी उचित नहीं समझा. वे गाड़ी ले कर पूछते हुए कोर्ट की तरफ भाग लिए. लेकिन रास्ते में निकलती एक शोभायात्रा की वजह से सीकर पुलिस की गाड़ी जाम में फंस गई. इस पर पुलिसकर्मी मोटरसाइकिलों पर लिफ्ट ले कर कोर्ट के पास पहुंचे.

वहां सादे कपड़ों में गए पुलिसकर्मियों ने अंकित और उस के साथी विकास भामू को फोटो से पहचान कर दबोच लिया. दुल्हन हंसा कंवर भी वहीं मिल गई. इस पर देहरादून के वकील एकत्र हो कर सीकर पुलिस से बहस करने लगे. हाथ में आई बाजी पलटती देख सबइंसपेक्टर सवाई सिंह ने जयपुर आईजी सेंगाथिर को फोन पर सारी बात बताई. जयपुर आईजी ने राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बी.एल. सोनी से बात की. सोनी ने देहरादून के पुलिस अधिकारियों से फोन कर बात कर पूरी घटना बता दी.

इस के करीब डेढ़ घंटे बाद देहरादून पुलिस वहां पहुंची. देहरादून पुलिस ने वकीलों को दुल्हन हंसा के अपहरण की घटना के बारे में बताया. इस के बाद सीकर पुलिस हंसा और दोनों आरोपियों को कोर्ट से बाहर ले आई.

देहरादून से 20 अप्रैल की रात को पुलिस दल तीनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हुआ. पुलिस को आरोपियों पर हमले या दुल्हन के दोबारा अपहरण की आशंका थी इसलिए कई रास्ते बदल कर और कई जगह एस्कार्ट ले कर पुलिस टीम 21 अप्रैल को उन्हें ले कर सीकर पहुंची.

सीकर में पुलिस ने दुल्हन हंसा कंवर से पूछताछ के आधार पर अंकित सेवदा और उस के दोस्त विकास भामू को गिरफ्तार कर लिया. दुल्हन हंसा कंवर ने पुलिस और मजिस्ट्रैट को दिए बयान में मां के साथ बुआ के घर जाने की इच्छा जताई.

इस के बाद हंसा को उस के घर वालों को सौंप दिया. हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथी उस का अपहरण कर ले गए थे. अंकित देहरादून में उस से जबरन शादी करना चाहता था. इसीलिए वह कोर्ट पहुंचा था और वकील के माध्यम से कागजात तैयार करवा रहा था. पुलिस ने 22 अप्रैल को आरोपी अंकित और विकास का मैडिकल कराया. इस के बाद दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सच्चाई नहीं आई सामने

बरामद दुल्हन हंसा ने प्रारंभिक बयानों में अंकित और उस के साथियों पर जबरन अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया है. गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी अंकित सेवदा ने भी पुलिस को हंसा के अपहरण का स्पष्ट कारण नहीं बताया.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि हंसा और अंकित एक ही गांव के हैं और उन के खेत भी आसपास हैं. गांव के नाते अंकित पहले से ही हंसा को जानता था. अंकित मन ही मन हंसा से प्यार करता था. यह उस का एकतरफा प्यार था. न तो उस ने कभी हंसा से यह बात कही और न ही हंसा ने कभी इस बारे में सोचा. अंकित जबरन उस से शादी करना चाहता था.

एक कारण और सामने आया. इस में अंकित के विदेश में रहने वाले दोस्त गंगाधर से बातचीत के दो औडियो वायरल हो रहे हैं. इस में कहा गया है कि अंकित का हंसा के परिवार से कुछ समय पहले झगड़ा हुआ था. इसलिए अंकित बदला लेना चाहता था. बदला लेने के लिए उस ने हंसा का अपहरण करने की योजना बनाई.

अंकित का मकसद लूट का भी हो सकता है, क्योंकि हंसा या अंकित के पास से पुलिस को कोई भी जेवर या नकदी नहीं मिले हैं. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक हंसा ने शादी में विदाई के समय 5 लाख रुपए के जेवर पहन रखे थे. उस के पास 20 हजार रुपए नकद भी थे.

हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथियों ने उस के जेवर व रुपए ले लिए थे. पुलिस के सामने भी यह बात आई है कि अपहरण में शामिल अंकित के दोस्तों ने हंसा के जेवर बेच दिए.

पुलिस इन गहनों को खरीदने वालों की तलाश कर उन्हें बरामद करने का प्रयास कर रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी कडि़यों को जोड़ कर हंसा के अपहरण के असली मकसद का पता लगाने में जुटी थी.

चाहे पुलिस हो, चाहे हंसा के परिवार वाले या फिर अंकित सेवदा, इस मामले का सच अभी तक सामने नहीं आया है. आएगा ऐसा भी नहीं लगता. अगर आम आदमी की तरह सोचें तो एक इज्जतदार परिवार और उस परिवार की लड़की के लिए ऐसे किसी भी सच का सामने आना ठीक नहीं है, जो उन्हें प्रभावित करे.

हां, यह जरूर कह सकते हैं कि अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जो किया, वह बड़ा अपराध तो है ही.

इसी बीच जाट समुदाय के लोगों ने गिरफ्तार किए गए लड़कों को छोड़ने और अपहरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए 25 अप्रैल को कलक्टे्रट पर धारना दिया.

डोसा किंग- तीसरी शादी पर बरबादी: भाग 1

चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.

दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

ये भी पढ़ें- जीवन की चादर में छेद: भाग 3

पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

ये भी पढ़ें- एक तीर कई शिकार: भाग 1

प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

ये भी पढ़ें- दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी: भाग 1

अरबपति बनने की राह पर

राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

ये भी पढ़ें- बेरहम बेटी: भाग 2

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

बेरहम बेटी: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- बेरहम बेटी: भाग 1

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया.

जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

ये भी पढ़ें- अंजाम: भाग 2

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे.

पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी.

इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास की पराकाष्ठा: भाग 2

जालिम बेटी

राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.

संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था.

इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

ये भी पढ़ें- जीवन की चादर में छेद: भाग 2

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी.

हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था.

इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.

ये भी पढ़ें- नौकरी की खातिर, बेटे ने करवाई पिता की हत्या!

राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी.

जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता.

बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता. – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ये भी पढ़ें- अंजाम: भाग 1

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

अंधविश्वास की पराकाष्ठा: भाग 2

पहला भाग पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें- 

होने लगी नेतागिरी

पुलिस द्वारा गोलू तथा उस के मातापिता को नजरबंद करने की जानकारी लोक जनशक्ति पार्टी के दलित नेता राजीव पासवान को मिली तो वह अपने समर्थकों के साथ बेरूई गांव आए. गांव में उन्होंने पुलिस काररवाई को गलत बताते हुए भड़काऊ बयान दिया.

उन्होंने कहा कि 6 वर्षीय बालक गोलू गरीब दलित का बेटा है इसलिए पुलिस ने उसे व उस के मातापिता को नजरबंद कर दिया है. यही गोलू अगर किसी ब्राह्मण का बेटा होता तो पुलिस किसी पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे तख्त डाल कर बिठा देती और उस की सुरक्षा करती.

राजीव पासवान ने कहा कि वह गोलू व उस के मातापिता को रिहा कराने के लिए डीएम व एसपी से बात करेंगे. फिर भी बात न बनी तो लोक जनशक्ति पार्टी के नेता तथा केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से मिलेंगे और तीनों को हर हाल में रिहा कराएंगे.

ये भी पढ़ें- जीवन की चादर में छेद: भाग 1

गोलू को नजरबंद हुए अभी 2 ही दिन बीते थे कि क्षेत्रीय विधायक संजय कुमार गुप्ता अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ बेरूई गांव आए. उन्होंने डीएम मनीष कुमार वर्मा तथा एसपी प्रदीप गुप्ता से मोबाइल फोन पर बात की और नजरबंद बालक गोलू तथा उस के मातापिता को बेरूई गांव बुलवा लिया.

बालक गोलू से मिलने और बातचीत करने के बाद विधायक संजय गुप्ता ने अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला बयान दिया, जबकि उन्हें लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने की नसीहत देनी चाहिए  थी.

विधायक संजय गुप्ता ने कहा कि बालक गोलू से बात कर के और उस के हाथों के स्पर्श से उन्हें भी बच्चे के अंदर दैवीय शक्ति की अनुभूति हुई है. गोलू नाम के इस बच्चे के ऊपर वाकई दैवीय कृपा है, जिस के छूने मात्र से असाध्य रोग ठीक हो जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि यह बच्चा किसी को छूता है तो अंदर से चट्ट सी आवाज आती है. यह आवाज हमने भी सुनी है. निश्चित तौर पर जन कल्याण के लिए पैदा हुए इस बच्चे के माध्यम से लोगों को लाभ होगा, ऐसा मुझे विश्वास है.

विधायक के इस बयान के बाद अंधविश्वास को बढ़ावा मिला तो लोगों की भीड़ और भी ज्यादा जुटने लगी. इलाहाबाद, फतेहपुर, कानपुर, इटावा, उन्नाव और लखनऊ आदि जिलों से पीडि़त लोग आने लगे. भीड़ का रिकौर्ड तब टूटने लगा जब चमत्कारी बालक की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं, प्रिंट मीडिया में छपने लगीं और इलेक्ट्रौनिक मीडिया पर दिखाई जाने लगीं. अभी तक लोग जिलों से ही आते थे. अब अन्य प्रदेशों से भी आने लगे.

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 2

अगस्त माह बीततेबीतते 15 दिनों में बेरूई गांव में 4-5 हजार लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन अंधाबहरा हो गया. हां, इतना जरूर हुआ कि कुछ बेरोजगारों को रोजगार मिल गया. गोलू बाबा के दरबार के बाहर कई दरजन चाय, पान और खानेपीने की दुकानें सज गईं.

आटो टैंपो वालों की आमदनी 10 से 20 गुना बढ़ गई. आसपास के जिलों के होटल मालिकों की भी आमदनी बढ़ गई. यही नहीं गोलू बाबा के परिजनों को भी अच्छी आमदनी होने लगी.

दरअसल, जब भीड़ बढ़ी तो गांव के कुछ दबंग युवकों ने गोलू के परिजनों के साथ मिल कर एक कमेटी बना ली और कमेटी मेंबरों को पहचान पत्र दे दिया गया. इस कमेटी के सदस्यों ने 10 रुपए में टोकन नंबर देने शुरू कर दिए, जो कमाई का बड़ा जरिया बना. गोलू बाबा से मिलने के लिए दिन रात टोकन दिए जाने लगे.

इन दबंगों ने विरोध करने वालों से निपटने के लिए लठैत युवकों को तैनात कर दिया गया, जिन्हें भीड़ को संभालने का जिम्मा सौंपा गया. टोकन नंबर धारी ही गोलू बाबा के पास पहुंचता और उस के तथाकथित स्पर्श पा कर रोग से राहत पाता.

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 1

आस्था और अंधविश्वास के मेले में ऐसे तमाम स्त्रीपुरुष थे, जिन का रोग गोलू बाबा के स्पर्श मात्र से ठीक हो गया था, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो गोलू बाबा के स्पर्श से ठीक नहीं हुए थे. उन का कहना था कि यह सब अंधविश्वास है, लेकिन गोलू बाबा के समर्थक और कमेटी के लोग बाबा के विरुद्ध कुछ सुनना या बोलना पसंद नहीं करते थे.

बेहोश हो कर गिरा चमत्कारी बालक

कौशलपुरी (कानपुर नगर) निवासी रवींद्र मोहन ठक्कर सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ठक्कर पेट रोग से पीडि़त थे, उन्हें एक टीवी चैनल के माध्यम से गोलू के बारे में पता चला तो वह बेरूई गांव आए. गोलू बाबा ने उन्हें स्पर्श किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

वह समझ गए कि यह सब अफवाह और अंधविश्वास है. उन्होंने कौशांबी पहुंच कर डीएम और एसपी से मिल कर अपना विरोध जताया और इस अंधविश्वास को जल्दी खत्म कराने की अपील की.

8 सितंबर, 2019 को गोलू बाबा के दरबार में लगभग 5-6 हजार लोगों की भीड़ जुटी थी. मरीजों के स्पर्श करने के दौरान गोलू बाबा की तबीयत बिगड़ गई. पुलिस प्रशासन को खबर लगी तो एसपी प्रदीप गुप्ता ने तत्काल मासूम बालक को अस्पताल में भरती करने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही मझनपुर, कौशांबी कोतवाल उदयवीर सिंह, बेरूई गांव पहुंचे और गोलू को जीप में बिठा कर कौशांबी लाए. उसे जिला अस्पताल में भरती करा दिया गया. कौतूहलवश कई नर्स व कर्मचारी चमत्कारी बालक को देखने के लिए आए.

जिला चिकित्सालय के सीएमओ दीपक सेठ की देखरेख में बालरोग विशेषज्ञ डा. आर.के. निर्मल ने गोलू का शारीरिक परीक्षण किया और एमआरआई कराई.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

शारीरिक परीक्षण के बाद डा. निर्मल कुमार ने बताया कि बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ है उसे कोई बीमारी नहीं है. थकान के चलते वह मूर्छित हो गया था. उन्होंने यह भी बताया कि उस के शरीर में कोई दैवीय या चमत्कारिक शक्ति नहीं है. दूसरे बच्चों की तरह वह भी बालक है.

जिला अस्पताल में ही कोतवाल उदयवीर सिंह ने बालक गोलू से स्पर्श करा कर इलाज कराया. वह कमर दर्द से परेशान थे. नर्स रमा ने भी स्पर्श करा कर इलाज कराया. वह पीठ दर्द से पीडि़त थी. दोनों ने कहा कि उन का दर्द चला गया है.

कोतवाल उदयवीर सिंह द्वारा बालक के स्पर्श वाला इलाज कराने का वीडियो सोशल मीडया पर वायरल हुआ तो एडीजी इलाहाबाद ने नाराजगी जताई. यही नहीं उन्होंने त्वरित काररवाई करते हुए अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले इंसपेक्टर उदयवीर सिंह को लाइन हाजिर कर दिया.

आस्था और अंधविश्वास के बीच गोलू बाबा जब मीडिया की सुर्खियां बना तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्य भी गोलू की जांच करने पहुंचे. जांच के बाद कमेटी के सदस्य मोहम्मद रेहान ने इसे मात्र एक अफवाह और अंधविश्वास मानते हुए बच्चे के मौलिक अधिकारों का हनन बताया. साथ ही एसपी प्रदीप गुप्ता से जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत काररवाई करने की मांग की.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 2

चाइल्ड वेयफेयर कमेटी की रिपोर्ट के बाद जिला पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. एसपी प्रदीप गुप्ता ने 11 सितंबर, 2019 को बेरूई गांव में भारी पुलिस तैनात कर दिया, जिस ने भीड़ को वहीं से खदेड़ दिया. यही नहीं उन्होंने गोलू बाबा तथा उस के परिवार वालों को नजरबंद करा दिया. ताकि अंधविश्वासी उस से न मिल सके.

एसपी प्रदीप गुप्ता ने अंधविश्वास का मेला बंद तो करा दिया है, लेकिन अब सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, सांसद विनोद सोनकर, डीएम मनीष कुमार वर्मा तथा बाल विकास मंत्री, स्वाति सिंह की जिम्मेदारी है कि वह पुन: इस अंधविश्वास को न पनपने दें. साथ ही विधायक संजय गुप्ता तथा राजीव पासवान जैसे लोगों पर भी नजर रखें जिन्होंने सरे आम अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले बयान दिए.

बहरहाल यह तो समय ही बताएगा कि गोलू बाबा का दरबार पुन: चालू होगा या फिर बंद हो जाएगा. कथा संकलन तक गोलू बाबा उस के मातापिता थाना सराय अंकिल पुलिस थाने में नजरबंद थे. कुछ शरारती तत्वों, जिन की कमाई की दुकानें बंद हो गई थीं, ने पुलिस थाने पर धरनाप्रदर्शन भी किया.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 1

बेरहम बेटी: भाग 1

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे.

जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे.

ये भी पढ़ें- अंजाम: भाग 1

उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए.

दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.

सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास की पराकाष्ठा: भाग 1

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया.

आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान

मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी.

ये भी पढ़ें- जीवन की चादर में छेद: भाग 1

डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली.

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 2

डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए.

हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे.

कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 1

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी.

मौडल बनने की चाह

अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास की पराकाष्ठा: भाग 1

साइंस ने भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, भले ही हम डिजिटल युग में आ गए हों, जहां ज्यादातर जरूरी काम बैठेबैठे हो जाते हैं. लेकिन इस के बावजूद अंधविश्वास ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा है. आश्चर्य तब होता है जब पढ़ेलिखे लोगों को अंधविश्वास के आगे सिर झुकाते देखा जाता है.

हमारे समाज के कितने ही लोग अपनी गलीसड़ी मानसिकता के साथ अभी तक अंधविश्वास की खाइयों में पड़े हैं. यह पिछले दिनों कौशांबी जिले के गांव बेरूई में देखने को मिला. खबर फैली कि 6 साल का बच्चा बीमार लोगों को छू कर इलाज कर रहा है. बीमारी कोई भी हो 6 वर्षीय गोलू बाबा के छूने भर से दूर हो जाती है.

इसी के चलते बेरुई में उस के घर के सामने लंबीलंबी कतारें लग रही हैं. आश्चर्य की बात यह कि उस के पास गांव कस्बों के लोग भी नहीं महानगरों के पढ़ेलिखे लोग भी आ रहे हैं. जिन के चलते गांव में मेला सा लग जाता है.

ये भी पढ़ें- जीवन की चादर में छेद: भाग 1

6 वर्षीय गोलू बाबा का मकान गांव के बाहर खेत पर बना था. उस के पिता का नाम है- राजू पासवान, गोलू उस का एकलौता बेटा था. बेरूई गांव में रोजाना हजारों की भीड़ जुट रही थी. राजू के मकान से कुछ दूर साइकिल स्टैड, मोटरसाइकिल स्टैंड बना दिए गए थे. वहां सैकड़ों की संख्या में साइकिलें, मोटरसाइकिलें खड़ी होने लगी थीं. थोड़ी दूर आगे टैंपो स्टैंड बनाया गया था. कुछ कारें भी वहां आने लगी थीं. प्रशासन की ओर से वहां 2 सिपाहियों और 2 होम गार्डों की ड्यूटी भी लगाई गई थी.

गोलू बाबा के दरबार में 2 लाइनें लगती थीं. एक पुरुषों की दूसरी औरतों की. भीड़ बढ़ी तो गांव के 4-5 युवकों ने 10 रुपए फीस ले कर टोकन बांटने शुरू कर दिए. मतलब यह कि गोलू बाबा उसी का स्पर्श करता था, जिस के पास टोकन होता था. टोकन नंबर से उस के पास जाया जाता था.

बेरूई गांव उतर प्रदेश के नवनिर्मित जिले कौशांबी में है. कौशांबी पहले इलाहाबाद जिले का कस्बा था. बाद में इलाहाबाद की 2 तहसीलों को सम्मिलित कर कौशांबी को नया जिला बना दिया गया.

कौशांबी के थाना अंकिल सराय क्षेत्र का गांव बेरुई दलित बाहुल्य है. इस गांव में रहने वाले राजू पासवान के परिवार में पत्नी गोमती देवी के अलावा एक बेटी सरोजनी और एक बेटा गोलू था.

राजू के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनत मजदूरी कर के परिवार का भरणपोषण करता था. गांव में उस का मिट्टी का घर था, जो बरसात में गिर गया था. इस की जगह उस ने अपने खेत के किनारे पक्का मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगा था.

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 2

राजू पासवान का बेटा गोलू एकलौता बेटा था, इसलिए घरपरिवार के लोग उसे बहुत प्यार करते थे. चाचा मनोज का तो वह आंख का तारा था. घर आंगन में खेलकूद कर जब गोलू ने 4 वर्ष की उम्र पार की तो उसे बेरुई गांव के प्राथमिक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. गोलू गांव के हमउम्र बच्चों के मुकाबले पढ़ने में कमजोर था. एक वर्ष बाद गोलू दूसरी कक्षा में आ गया.

अभी तक सब कुछ सामान्य था. राजू का परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा था. उस का बेटा गोलू सामान्य बालक की तरह हंसखेल कर बचपन व्यतीत कर रहा था. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया.

अफवाह और अंधविश्वास ने रातोंरात राजू के बेटे गोलू को चमत्कारिक बना दिया. गोलू सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रौनिक मीडिया की सुर्खियों में आ गया.

गोलू बन गया चमत्कारी

6 वर्षीय बालक गोलू व उस की मां गोमती देवी के अनुसार 10 अगस्त, 2019 को गोलू अपनी नानी के घर से चाचा मनोज के साथ घर वापस लौट रहा था. अचानक वह यमुना नदी के पुल पर रुक गया. उस ने मनोज से कहा, ‘‘चाचा तुम थोड़ी देर रुको, मुझे मछलियां देखनी हैं.’’

मनोज थका हुआ था. वह यमुना किनारे पेड़ की छांव में लेट कर आराम करने लगा. जबकि गोलू यमुना के पानी में मछलियां देखने लगा. अचानक पानी में उसे एक बड़ी मछली दिखाई दी, जो नथुनी पहने थी. बड़ी मछली देख कर राजू डर कर मूर्छित हो गया. उस की मूर्छा तब टूटी, जब मछली ने उछल कर उस के मुंह पर पानी उड़ेला. मूर्छा टूटी तो मछली बोली, ‘‘तुम डरो नहीं, मैं ने तुम्हें दैवीय शक्ति दे दी है. आज के बाद तुम जिस व्यक्ति को अपने हाथों से छू दोगे, वह निरोगी हो जाएगा.’’

ये भी पढ़ें- वेलेंसिया की भूल: भाग 1

घर वापस आने पर गोलू ने मछली वाली कहानी अपने मातापिता व अन्य परिजनों को बताई तो उन्होंने सहजता से उस की बात पर विश्वास कर लिया. दूसरे दिन गोलू स्कूल गया तो उस ने साथ पढ़ने वाले बच्चों को मछली वाली कहानी बताई. बाल बुद्धि बच्चों ने कौतूहलवश गोलू की कहानी को सच मान लिया.

बच्चों ने गोलू से अपने शरीर को छूने को कहा. गोलू ने उन्हें छुआ तो वह चिल्लाने लगे कि मेरे शरीर का दर्द चला गया. बच्चों की बात स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर कृपाशंकर तक पहुंची तो उन्होंने बच्चों को डांटा और अफवाह न फैलाने की बात कही.

मास्टरजी ने बच्चों को तो डांट दिया. लेकिन अपने बारे में सोचने लगे, क्योंकि वह खुद कमर दर्द से पीडित थे. उन्हें लगा कि कहीं बच्चे सच तो नहीं कह रहे. उन्होंने गोलू को एकांत में बुला कर कमर छूने को कहा. गोलू ने जैसे ही कमर पर हाथ रखा तो उन्हें चट्ट की आवाज सुनाई दी और दर्द से राहत मिल गई.

स्कूल कर्मचारी सपना सिर दर्द से परेशान थी. गोलू के स्पर्श से उसे सिर दर्द में आराम मिल गया. इन दोनों को अपनेअपने दर्द में कोई राहत मिली थी या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इस सब से स्कूल में गोलू की इज्जत बढ़ गई.

बेरूई गांव के आसपास के गांवों में अफवाह फैली तो लोग राजू के घर आ कर बालक गोलू से इलाज कराने लगे. गोलू जब स्कूल में होता तो लोग वहां भी पहुंच जाते और गोलू को जबरन स्कूल से बाहर ले आते. लोगों का स्कूल में आनाजाना शुरू हुआ तो हेडमास्टर ने राजू पासवान को बुलवा कर गोलू को स्कूल न भेजने का फरमान जारी कर दिया.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

गोलू का स्कूल जाना बंद हुआ तो लोग उस के घर पर आने लगे. गोलू के मातापिता उसे सुबहसुबह नहलाधुला कर घर के बाहर तख्त पर बिठा देते. इस के बाद गोलू आने वाले लोगों को स्पर्श कर उन का रोग दूर करता. कहते हैं, अफवाह की चाल हवा से भी तेज होती है. शुरू में तो सौपचास लोग ही इलाज के लिए आते थे, लेकिन जब अफवाह एक गांव से दूसरे गांव में फैली तो राजू पासवान के घर पर भीड़ जुटने लगी.

अफवाह, अंधविश्वास और भीड़ जुटने की जानकारी जब थाना सराय अंकिल के थानाप्रभारी मनीष कुमार पांडेय को लगी तो वह पुलिस टीम के साथ बेरूई गांव पहुंचे. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को समझाया कि विज्ञान के इस युग में आप लोग अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें. इस बालक में ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि किसी के मर्ज ठीक कर सके. यह सब आप का वहम है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वे कई ऐसे बाबाओं को जानते हैं, जो चमत्कार दिखा कर लोगों को बेवकूफ बनाते थे. मैं उन का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन आज वे जेल में हैं और अदालत से जमानत की भीख मांग रहे हैं. इसलिए सभी से गुजारिश है कि आप अफवाह न फैलाएं और अंधविश्वास से दूर रहें.

लेकिन अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं होता. यहां भी ठीक ऐसा ही हुआ. अंधविश्वासी लोगों को इंसपेक्टर मनीष कुमार पांडेय की नसीहत नागवार लगी. इंसपेक्टर की नसीहत के बावजूद दूसरे रोज और ज्यादा भीड़ उमड़ पड़ी.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 2

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

वेलेंसिया की भूल: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- वेलेंसिया की भूल: भाग 1

जब नशा उतर जाने के बाद थाने में उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश करते हुए वेलेंसिया हत्याकांड से खुद को अनभिज्ञ और बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्याकांड में शामिल रहे अपने सहयोगी देवीदास गावकर का भी नाम बता दिया. शैलेश वलीप की निशानदेही पर पुलिस टीम ने देवीदास गांवकर को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद वेलेंसिया फर्नांडीस की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली-

30 वर्षीया वेलेंसिया फर्नांडीस दक्षिणी गोवा के मडगांव के थाना कुडतरी गांव मायना की रहने वाली थी. वह अपनी चारों बहनों में तीसरे नंबर की थी. उस के पिता जोसेफ फर्नांडीस एक सीधेसादे और सरल स्वभाव के थे. वह अपनी बेटियों में कोई भेदभाव नहीं रखते थे.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

वेलेंसिया फर्नांडीस की दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. वे अपने परिवार के साथ अपनी ससुराल में खुश थीं. वेलेंसिया अपनी छोटी बहन जूलिया फर्नांडीस के साथ रहती थी. उस की सारी जिम्मेदारी वेलेंसिया पर थी. वेलेंसिया ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी की कोशिश की तो उसे बिना किसी परेशानी के गोवा मडगांव के एक जानेमाने बड़े मैडिकल शौप में सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई.

वेलेंसिया देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही वह महत्त्वाकांक्षी भी थी. जिस मैडिकल शौप में वह काम करती थी, वहां रीमा वलीप नाम की लड़की भी काम करती थी. वह वेलेंसिया की अच्छी दोस्त बन गई थी.

रीमा वलीप अपने बड़े भाई शैलेश वलीप के साथ गोवा के मडगांव के संगम तालुका में रहती थी. परिवार के नाम पर वह सिर्फ बहनभाई ही थे. रीमा का भाई शैलेश वलीप भी उसी शौप में सिक्योरिटी गार्ड था. लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का था.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 2

यह बात जब शौप मालिक को पता चली तो उस ने शैलेश को नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद वह घर पर ही रहने लगा. उस का सारा खर्च रीमा पर ही था. वह बहन से पैसे लेता और सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ इधरउधर मटरगश्ती करता था. कभीकभी वह बहन रीमा से मिलने मैडिकल शौप पर भी जाता था.

शैलेश वलीप ने बहन के माध्यम से दोस्ती की थी वेलेंसिया से

वहीं पर उस की मुलाकात वेलेंसिया फर्नांडीस से हुई थी. पहली ही नजर में वह उस पर फिदा हो गया था. चूंकि उस की बहन रीमा वलीप की दोस्ती वेलेंसिया से थी, इसलिए उसे वेलेंसिया के करीब आने में अधिक समय नहीं लगा.

अब वह जब भी अपनी बहन से मिलने मैडिकल स्टोर आता तो वेलेंसिया से भी मीठीमीठी बातें कर लिया करता था. सहेली का भाई होने के नाते वह शैलेश से बात कर लेती थी.

कुछ ही दिनों में शैलेश वेलेंसिया के दिल में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हो गया था. वेलेंसिया जब उस के करीब आई तो शैलेश की तो जैसे लौटरी लग गई थी. क्योंकि वेलेंसिया के पैसों पर शैलेश मौज करने लगा था. इस के अलावा जब भी उसे पैसों की जरूरत पड़ती तो वह उधार के बहाने उस से मांग लिया करता था.

ये भी पढ़ें- किसानों के साथ ऐसे हो रही ठगी!

वेलेंसिया उस के भुलावे में आ जाती थी और उसे पैसे दे दिया करती थी. इस तरह वह वेलेंसिया से लगभग एक लाख रुपए ले चुका था. वेलेंसिया उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना सजा रही थी, इसलिए वह शैलेश को दिए गए पैसे नहीं मांगती थी.

अगर वेलेंसिया के सामने शैलेश की हकीकत नहीं आती तो पता नहीं वह वेलेंसिया के पैसों पर कब तक ऐश करता रहता. सच्चाई जान कर वेलेंसिया का अस्तित्व हिल गया था. वह जिस शख्स को अपना जीवनसाथी बनाने का ख्वाब देख रही थी, स्थानीय थाने में उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

यह जानकारी मिलने के बाद वेलेंसिया को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा. उसे शैलेश से नफरत होने लगी और वह उस से दूरियां बनाने लगी.

इसी बीच नवंबर, 2018 में एक दिन वेलेंसिया का रिश्ता कहीं और तय हो गया. शादी की तारीख सितंबर 2019 तय हो गई. शादी तय हो जाने के बाद वेलेंसिया ने शैलेश वलीप से अपनी दोस्ती खत्म कर दी और उस से अपने पैसों की मांग करने लगी.

एक कहावत है कि चोट खाया सांप और धोखा खाया प्रेमी दोनों खतरनाक होते हैं. वेलेंसिया को अपने से दूर जाते हुए देख शैलेश वलीप का खून खौल उठा. एक तो वेलेंसिया ने उसे उस के प्यार से वंचित कर दिया था, दूसरे वह उस से उधार दिए पैसे की मांग कर रही थी.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 1

पैसे लौटाने में वह सक्षम नहीं था. इसलिए आजकल कर के वह वेलेंसिया को टाल देता था. शैलेश अब वेलेंसिया से निजात पाने का उपाय खोजने लगा. इसी दौरान योजना बनाने के बाद उस योजना को अमलीजामा पहनाने का सही मौका मिला 6 जून, 2019 को.

6 जून को जब उसे यह जानकारी मिली कि वेलेंसिया आज अपनी ड्यूटी के बाद मौल से शौपिंग करेगी. इस के लिए उस ने एटीएम से पैसे भी निकाल लिए हैं. इस के बाद शैलेश का दिमाग तेजी से काम करने लगा.

अपनी योजना को साकार करने के लिए शैलेश अपने दोस्त देवीदास गावकर के पास गया और उस से यह कह कर उस की स्कूटी मांग लाया कि उसे एक जरूरी काम से गोवा सिटी जाना है. स्कूटी की डिक्की में उस ने वेलेंसिया की मौत का सारा सामान, नायलौन की रस्सी और प्लास्टिक की एक बड़ी थैली रख ली थी.

स्कूटी से वह वेलेंसिया के मैडिकल शौप के सामने पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. उस ने वहीं से वेलेंसिया को फोन मिलाया तो न चाहते हुए भी उस ने शैलेश की काल रिसीव कर ली. शाम 8 बजे वेलेंसिया अपनी ड्यूटी पूरी कर शौप से बाहर निकली तो वह स्कूटी ले कर उस के पास पहुंच गया और उस का पैसा लौटाने के बहाने उसे अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

ये भी पढ़ें- पहले सास के साथ बनाए अवैध संबंध, फिर इस वजह से कर दिया मर्डर

दोस्त की मदद से लगाया ठिकाने

पैसे मिलने की खुशी में वेलेंसिया अपने जन्मदिन की शौपिंग करना भूल गई. अपनी स्कूटी पर बैठा कर वह उसे एक सुनसान जगह पर ले गया. रास्ते में उस ने वेलेंसिया को जूस में नींद की गोलियों का पाउडर डाल कर पिला दिया, जिस के कारण वेलेंसिया जल्द ही बेहोशी की हालत में आ गई थी.

वेलेंसिया के बेहोश होने के बाद शैलेश ने उस के हाथपैर अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी से कस कर बांध दिए और उस के गले में उस का ही दुपट्टा डालकर उसे मौत की नींद सुला दिया.

वेलेंसिया को मौत के घाट उतारने के बाद शैलेश वलीप ने उस के पर्स में रखे रुपए निकाल कर उस का मोबाइल फोन कुछ दूर जा कर झाडि़यों में फेंक दिया था.

शैलेश वलीप अपनी योजना में कामयाब तो हो गया था लेकिन अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या थी, शव को ठिकाने लगाने की. शव गांव के करीब पड़ा होने के कारण उस के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा थी और बिना किसी की मदद के अकेले उसे ठिकाने लगाना उस के लिए संभव नहीं था.

ये भी पढ़ें- शर्तों वाला प्यार: भाग 4

ऐसे में उसे अपने दोस्त देवीदास गावकर की याद आई. वह तुरंत गांव वापस गया. देवीदास को पूरी बात बताते हुए जब उस ने शव ठिकाने लगाने में उससे मदद मांगी तो देवीदास गावकर के चेहरे का रंग उड़ गया. पहले तो देवीदास इस के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन जब शैलेश ने उसे 2 हजार रुपए शराब पीने के लिए दिए तो वह फौरन तैयार हो गया.

उस ने अपने घर से एक सफेद चादर ली और घटनास्थल पर पहुंच कर वेलेंसिया का चेहरा बिगाड़ कर उस के शव को पौलीथिन में डाला. फिर वह थैली चादर में लपेट ली और उसे स्कूटी पर रख कर घटनास्थल से करीब 10 किलोमीटर दूर ले जा कर केपे पुलिस थाने की सीमा में फातिमा हाईस्कूल के जंगलों में डाल दिया.

शैलेश वलीप और देवीदास गावकर से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें मडगांव कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

-कथा के कुछ नाम काल्पनिक हैं

ये भी पढ़ें- कबीर सिंह को फौलो कर किया ये अपराध, पढ़ें खबर

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

वेलेंसिया की भूल: भाग 1

बात 7 जून, 2019 की है. उस समय सुबह के यही कोई 4 बजे थे. सैलानियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले गोवा राज्य के मडगांव की रहने वाली जूलिया फर्नांडीस अपने साथ 4-5 रिश्तेदारों को ले कर कुडतरी पुलिस थाने पहुंची. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराई हुई थी.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर ने जूलिया से थाने में आने की वजह पूछी तो उस ने अपना परिचय देने के बाद कहा कि उस की बहन वेलेंसिया फर्नांडीस कल से गायब है, उस का कहीं पता नहीं लग रहा है.

‘‘उस की उम्र क्या थी और कैसे गायब हुई?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा.

‘‘वेलेंसिया की उम्र यही कोई 30 साल थी. रोजाना की तरह वह कल सुबह 8 बजे अपनी ड्यूटी पर गई थी. वह मडगांव के एक जानेमाने मैडिकल स्टोर पर नौकरी करती थी. अपनी ड्यूटी पर जाते समय वेलेंसिया काफी खुश थी. क्योंकि आज से 10 दिनों बाद उस का जन्मदिन आने वाला था, उन का परिवार उस के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाता था.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

‘‘घर से निकलते समय वह कह कर गई थी कि आज उसे घर लौटने में देर हो जाएगी. फिर भी वह 9 बजे तक घर पहुंच जाएगी. उस का कहना था कि ड्यूटी के बाद वह मौल जा कर जन्मदिन की पार्टी की कुछ शौपिंग करेगी.

‘‘मगर ऐसा नहीं हुआ. रात 9 बजे के बाद भी जब वेलेंसिया नहीं आई तो घर वालों की चिंता बढ़ गई. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो उस का फोन नहीं मिला. इस के बाद सारे नातेरिश्तेदारों और उस की सभी सहेलियों को फोन कर के उस के बारे में पूछा गया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.’’ जूलिया फर्नांडीस ने बताया.

जूलिया फर्नांडीस और उन के साथ आए रिश्तेदारों की सारी बातें सुन कर ड्यूटी अफसर ने वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने वेलेंसिया का फोटो लेने के बाद आश्वासन दिया कि पुलिस वेलेंसिया को खोजने की पूरी कोशिश करेगी.

वेलेंसिया की गुमशुदगी की शिकायत को अभी 4 घंटे भी नहीं हुए थे कि वेलेंसिया के परिवार वालों को उस के बारे में जो खबर मिली, उसे सुन कर पूरा परिवार हिल गया.

दरअसल, सुबहसुबह वायना के कुडतरी पुलिस थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर रीवन गांव के जंगल में कुछ लोगों ने सफेद रंग की चादर में एक लाश देखी तो उन में से एक शख्स ने इस की जानकारी गोवा पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा यह सूचना शहर के सभी पुलिस थानों में प्रसारित कर दी.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 2

जिस जंगल में लाश मिलने की सूचना मिली थी, वह इलाका मडगांव केपे पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, सूचना मिलते ही केपे थाने की पुलिस लगभग 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस को वहां काफी लोग खड़े मिले.

इस बीच जंगल में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंच गई थी. देखते ही देखते वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने मुआयना किया तो सफेद रंग की चादर में बंधे शव के थोड़े से पैर दिखाई दे रहे थे, जिस से लग रहा था कि शव किसी महिला का हो सकता है. जब पुलिस ने चादर खोली तो वास्तव में शव युवती का ही निकला.

मृतका के हाथपैर एक नायलौन की रस्सी से बंधे थे और गले में उस का दुपट्टा लिपटा हुआ था. लेकिन हत्यारे ने उस का चेहरा इतनी बुरी तरह से विकृत कर दिया था कि उसे पहचानना आसान नहीं था. हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि उस की शिनाख्त न हो सके.

फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. सब से पहले मृतका की शिनाख्त जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. मृतका के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले की सूचना देने के बाद केपे पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया. खोजी कुत्ते से पुलिस को एक साक्ष्य मिल गया. शव सूंघने के बाद वह वहां से कुछ दूर झाडि़यों में पहुंच कर भौंकने लगा. पुलिस ने वहां खोजबीन की तो एक मोबाइल फोन मिला. जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

केपे थाना पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि दक्षिणी गोवा के एसपी अरविंद गावस अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और केपे थाने के थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लौट गए.

ये भी पढ़ें- पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 1

इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए गोवा के जिला अस्पताल भेज दी.

थाने लौट कर थानाप्रभारी ने मृतका की शिनाख्त पर जोर दिया. क्योंकि बिना शिनाख्त के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ना संभव नहीं थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने गोवा शहर और जिलों के सभी पुलिस थानों में मृतका का फोटो भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

कुडतरी थाने में जब लाश की फोटो हुलिए के साथ पहुंची तो वहां के थानाप्रभारी को एक दिन पहले अपने थाने में दर्ज वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना याद आ गई. बरामद लाश का हुलिया वेलेंसिया के हुलिए से मिलताजुलता था. कुडतरी थानाप्रभारी ने उसी समय केपे के थानाप्रभारी को फोन कर इस बारे में बात की.

जीवित नहीं मृत मिली वेलेंसिया

इस के बाद उन्होंने तुरंत वेलेंसिया के परिवार वालों को थाने बुला कर उन्हें लाश की शिनाख्त करने के लिए केपे थाने भेज दिया. केपे थानाप्रभारी ने जिला अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर युवती की लाश वेलेंसिया के घर वालों को दिखाई. चेहरे से तो नहीं, लेकिन कपड़ों और चप्पलों को देखते ही घर वाले फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त वेलेंसिया फर्नांडीस के रूप में की.

ये भी पढ़ें- किसानों के साथ ऐसे हो रही ठगी!

थानाप्रभारी ने उन्हें सांत्वना दे कर शांत कराया. इस के बाद उन से पूछताछ की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उन्होंने केस की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर बंद हालत में मिले मोबाइल की सिम निकाल कर उन्होंने दूसरे फोन में डाली और मोबाइल की काल हिस्ट्री खंगालने लगे. इस जांच में एक नंबर संदिग्ध लगा.

वह नंबर शैलेश वलीप के नाम पर लिया गया था. शैलेश वलीप ने 7 जून, 2019 को ही वेलेंसिया से बातें की थीं. पुलिस टीम जब शैलेश वलीप के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर मिली उस की बहन भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी. पुलिस ने जब उस की बहन से बात की तो वेलेंसिया और शैलेश वलीप के संबंधों की पुष्टि हो गई.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि वेलेंसिया की हत्या में जरूर शैलेश का हाथ रहा होगा. इसलिए उस की तलाश सरगरमी से शुरू हो गई. थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने शैलेश को गोवा के अमोल कैफे में दबोच लिया. पुलिस टीम ने जिस समय उसे गिरफ्तार किया, उस समय वह शराब के नशे में धुत था.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

ये भी पढ़ें- शर्तों वाला प्यार: भाग 4

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

किसानों के साथ ऐसे हो रही ठगी!

किसान भोले भाले होते हैं, अशिक्षित होते हैं, दूसरी तरफ सरकार का राजस्व अमला किस तरह कुंभकरणी निद्रा में सोया हुआ है इसका खुलासा भी इस एक प्रकरण से हो जाता है. दरअसल, हुआ यह है कि छत्तीसगढ़ के  महासमुंद जिले की पुलिस ने विगत  सात साल से फर्जी ऋण पुस्तिका बना बैंकों से केसीसी लोन दिलाने का कारोबार कर रहे गिरोह का भंडाफोड़ किया है.

ये भी पढ़ें- पहले सास के साथ बनाए अवैध संबंध, फिर इस वजह से कर दिया मर्डर

किसान अंकिता आई सामने!

मामले का खुलासा करते हुए पुलिस ने  एक-दो नहीं बल्कि सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है. उनके पास से भारी संख्या में फर्जी ऋण पुस्तिका, कई बैंकों के सील, तहसीलदार और पटवारी के फर्जी सील समेत कई सामान जब्त किया गया  है.कौफ्रेंस कर पिथौरा नगर निरीक्षक कमला पुसाम और अनुविभागीय अधिकारी पुलिस पुपलेश पात्रे ने जानकारी दी कि  कुछ  दिनों पहले  ठगी की  शिकार अंकिता यादव ने लिखित शिकायत दर्ज कराई थी कि पिथौराके  रहवासी उत्तम मजूमदार ने वर्ष  2018 के अप्रैल माह में कृषि भूमि  का पट्टा बनाने के एवज में  उससे 20 हजार लिया था. लेकिन अभी तक पट्टा बनाकर नहीं दिया, पैसे मांगने पर देने से इंकार कर रहा है .

जिला पुलिस अधीक्षक के निर्देश के बाद शिकायत शिकायत की जांच को गंभीरता से लेते हुए टीम गठित कर मामले की जांच की गई तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये, तब जाकर इस किसानों के  ठगी मामले का  खुलासा हुआ.

ये भी पढ़ें- कबीर सिंह को फौलो कर किया ये अपराध, पढ़ें खबर

पटवारी की सील, दस्तावेज भी फर्जी

पुलिस के अनुसार जांच में पाया गया कि आरोपी उत्तम मजूमदार अपने अन्य साथियों ग्रीसम बिसी निवासी रामपुर, संजय राव काटे, गलय कमार यादव साकिनान झलप, सुभाष चक्रधारी निवासी बेलडीह, दीनबंध पटेल निवासी आण्ड, घासीराम प्रजापति निवासी पिथौरा ने मिलकर  ग्रामीणों को बैंक से ऋण दिलाने, जमीन संबंधी खसरा, नक्शा प्राप्त कर लोन संबंधी दस्तावेजों में फर्जी राजस्वत निरीक्षक और बैंकों का सील तैयार कर फर्जी तरीके से फर्जीवाड़ा किया है . विगत  सात साल से ये सातों आरोपी मिलकर इस फर्जीवाड़ा को अंजाम देते रहे थे.

पुलिस ने इनके पास से किसान किताब, बैंक पास बुक, रबड़ सील,  यही नही रबड़ सील बनाने की मशीन समेत कई फर्जी दस्तावेज जब्त किया है. सभी आरोपियों को धारा 420, 467, 468, 471.120-B के तहत गिरफ्तार जेल भेज दिया गया  है. मामले के  अन्य फरार आरोपियों की तलाश  पुलिस  सरजमीं से कर रही है.

ये भी पढ़ें- शर्तों वाला प्यार: भाग 1

इस गंभीर ठगी के प्रकरण में यह तथ्य भी उभर कर सामने आया है कि लंबे समय से चल रहे इस फर्जीवाड़े की खबर आखिर पुलिस एवं राजस्व विभाग को क्यों नहीं हो पाई जाने कितने किसानों को फर्जी ऋण पुस्तिका बना कर दी गई जाने कितने लोगों को फर्जी लोन दिलाया गया और सरकार कुंभकरणी निंद्रा में सोती रही। निसंदेह इस संपूर्ण मामले में बिना मिलीभगत के ऐसा गड़बड़झाला नहीं हो सकता इसलिए अब आवश्यकता है संपूर्ण मामले की गंभीरता से जांच की ताकि मामले का पूरी तरह खुलासा हो सके.

फिर बड़ी  मछलियां बच गई

संपूर्ण प्रकरण में अभी तक के खुलासे में यही जान पड़ता है कि पुलिस ने छोटी मछलियों पर तो हाथ डाला मगर इस गंभीर मसले में जुड़े बड़ी मछलियों  तक पुलिस नहीं पहुंच पाई.

ग्राम मेमरडीही की  प्रार्थिया अंकिता यादव की शिकायत के आधार पर गिरफ्तार करने पहुंची टी आई कमला  व उनकी टीम ने घर मे दबिश दे कर जाँच की तो घर से तहसीलदार, पटवारी, राजस्व अधिकारियो समेत नगर के प्रमुख बैंको की सील, मोहर व अन्य कागजाद बरामद किया गया, कड़ाई से पूछताछ करने के बाद आरोपी द्वारा अन्य व्यक्तियों के भी शामिल होने की बात कबूली है. जिसमे एक शिक्षाकर्मी दीनबंधु पटेल तहसील आफिस की भृत्य घासीराम प्रजापति, ग्रीसम बीसी निवासी रामपुर संजय राव काटे, मलय कुमार यादव साकिन झलप सुभास चक्रधारी बेलडिहि शामिल है सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है.

ये भी पढ़ें- पत्नी का षड्यंत्र, पति को गोली!

पुलिस की द्वारा बताया गया है की सरगना  मास्टरमाइंड उत्तम मजूमदार है यह अपराधी किस्म का है और कई बार पहले भी ऐसे प्रकरणों में जेल दाखिल हो चुका है.वहीं यह गैंग महासमुंद जिला में 2012 से सक्रिय है  आस पास के गांवो मे जाकर लोन व पट्टा बनवाने के नाम पर ठगी करता है, राजस्व विभाग मे पदस्थ आरोपी कर्मचारी,  उत्तम  को पट्टा बनवाने आये गाँव के भोले भाले ग्रामीणों का पता लगा कर सुचना देता था, जिसके बाद उत्तम व उसकी टीम ज़मीन का पट्टा तैयार कर अधिकारिओ का सील मोहर लगा कर बैंको से लोन दिलवाने का कार्य करते थे. ये आरोपी फर्जी ऋण पुस्तिका बनाकर विभिन्न बैंकों से के.सी.सी लोन दिलाने का फर्जी कारोबार विगत सात वर्षों से चला रहे थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें