एक हत्या ऐसी भी : फिर पुलिस भी चकमा खा गई

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था. मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का इंतजाम किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह नतीजा निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया.

मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे दिलासा दिया. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था.

न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तोंयारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से गहरा दोस्त हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौनकौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरनेमारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह बेऔलाद औरतों को औलाद देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गालीगलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से औलाद ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी औलाद समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरीशराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा मंजूरे, ‘‘मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलगअलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का मतलब यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेनादेना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई. मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है.

मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सचसच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारीबारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सचसच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यारमोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था.

कयूम को सेशन कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

मां की दी कुरबानी : जालिम निकला लख्ते जिगर

24 अगस्त, 2015. शाजापुर शहर में डोल ग्यारस की धूम मची थी. गलीमहल्लों में ढोलढमक्का व अखाड़ों के साथ डोल निकाले जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर मुसलिम समुदाय ईद की तैयारी में मसरूफ था.

25 अगस्त, 2015 की ईद थी. सो, हंसीखुशी से यह त्योहार मनाए जाने की तैयारी में जुटा यह समुदाय खरीदफरोख्त में मशगूल था.

कुरबानी के लिए बकरों को फूलमालाओं से सजा कर सड़कों पर घुमाया जा रहा था. बाजार में खुशनुमा माहौल था. कपड़े और मिठाइयों की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी हुई थी.

शाजापुर के एक महल्ले पटेलवाड़ी के बाशिंदे इरशाद खां ने इस खुशनुमा माहौल में एक ऐसी दिल दहलाने वाली वारदात को अंजाम दे दिया कि सुनने वालों की रूह कांप गई.

इरशाद खां ने अपने पड़ोसी आजाद की बकरी को गुस्से में आ कर छुरे से मार डाला. शायद वह बकरी इरशाद के घर में घुस गई थी और उस ने कुछ नुकसान कर दिया होगा, तभी इरशाद खां ने यह कांड कर दिया.

अपनी बकरी के मारे जाने की खबर लगते ही आजाद आपे से बाहर हो गया और उन दोनों के बीच तकरार शुरू हो गई. नौबत तूतूमैंमैं के बाद हाथापाई पर आ गई.

इरशाद खां की 65 साला मां रईसा बी भी यह माजरा देख रही थीं. इरशाद खां द्वारा बकरी मार दिए जाने के बाद वे मन ही मन डर गई थीं. कोई अनहोनी घटना न घट जाए, इस के मद्देनजर वे अपने बेटे पर ही बरस पड़ीं. वे चिल्लाचिल्ला कर इरशाद खां को गालियां देने लगीं.

यह बात शाम की थी. हंगामा बढ़ता जा रहा था. इरशाद खां के सिर पर जुनून सवार होता जा रहा था. मां का चिल्लाना और गालियां बकना उसे नागवार लगा. पहले तो वह खामोश खड़ाखड़ा सुनता रहा, फिर अचानक उस का जुनून जब हद से ज्यादा बढ़ गया, तो वह दौड़ कर घर में गया और वही छुरा उठा लाया, जिस से उस ने बकरी को मार डाला था.

लोग कुछ समझ पाते, इस के पहले इरशाद खां ने आव देखा न ताव और अपनी मां की गरदन पर ऐसा वार किया कि उन की सांस की नली कट गई. खून की फुहार छूटने लगी और वे कटे पेड़ की तरह जमीन पर गिर पड़ीं. उन का शरीर छटपटाने लगा.

इस खौफनाक मंजर को देख कर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए. रईसा बी का शरीर कुछ देर छटपटाने के बाद शांत हो गया. मामले की नजाकत देखते हुए इरशाद खां वहां से भाग खड़ा हुआ.

रईसा बी के बड़े बेटे रईस को जब इस दिल दहलाने वाली वारदात का पता चला, तो वह भागाभागा घर आया. तब तक उस की मां मर चुकी थीं.

बेटे रईस ने इस वारदात की रिपोर्ट कोतवाली शाजापुर पहुंच कर दर्ज कराई. पुलिस ने वारदात की जगह पर पहुंच कर कार्यवाही शुरू की. हत्या के मकसद से इस्तेमाल में लाए गए छुरे की जब्ती कर के पंचनामा बनाया गया. मौके पर मौजूद गवाहों के बयान लिए गए. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए डा. भीमराव अंबेडकर जिला अस्पताल भेजा गया.

इरशाद खां वहां से फरार तो हो गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद पुलिस ने उसे दबोच कर अपनी गिरफ्त में ले लिया. शाजापुर जिला कोर्ट में यह मामला 2 साल तक चला.

जज राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने मामले की हर पहलू से जांच करते हुए अभियोजन पक्ष की दलीलों से सहमत होते हुए इरशाद खां को मां की गरदन काट कर हत्या करने के जुर्म में कुसूरवार पाया.

8 सितंबर, 2017 को जज ने फैसला देते हुए उसे ताउम्र कैद की सजा सुनाई. यह सजा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत सुनाई गई.

साथ ही, कुसूरवार पर 2 हजार रुपए का जुर्माना किया गया. जुर्माना अदा न करने पर 2 साल की अलग से कैद की सजा सुनाई गई.

ईद के मौके पर एक बेटे ने बकरे की जगह अपनी मां की कुरबानी दे कर रोंगटे खड़े कर देने वाले कांड को अंजाम दिया.

वही मां, जिस ने उसे 9 महीने पेट में रखा. पालपोस कर उस की  हर मांग पूरी करते हुए बड़ा किया. लेकिन शाजापुर में एक बेटे की इस दरिंदगी ने मां की मम?ता को तारतार कर दिया.

गुस्से में उठाया गया यह कदम उस परिवार पर भारी पड़ गया. मां जान से हाथ धो बैठी, जबकि उस के कत्ल के इलजाम में बेटा जेल चला गया.

 

तंत्रमंत्र ने भरमाया, मासूम बेटा गंवाया

35 साला उमेश परिहार के पास वह सबकुछ था जिस की दरकार किसी को भी होती है, मसलन अपना बड़ा सा घर, खूबसूरत स्मार्ट बीवी, 4 मासूम बच्चे, मांबाप और खुद की कार. यह सब उस ने अपनी मेहनत से हासिल किया था.

पेशे से ड्राइवर उमेश मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले धार के गांव घाटबिल्लोदा के चंदननगर महल्ले में रहता था. काम के सिलसिले में अकसर उस का आनाजाना इंदौर और उज्जैन लगा रहता था. लेकिन जब से धार्मिक शहर उज्जैन में महाकाल कौरिडोर बना है, तब से उस के फेरे उज्जैन ज्यादा लग रहे थे.

पिछले कुछ महीनों से उमेश उज्जैन में ही रहने लगा था. अपनी बोलेरो कार उस ने किराए पर उठा दी थी. उज्जैन का माहौल दूसरे धार्मिक शहरों की तरह पूरी तरह धार्मिक है, जहां सुबह से बमबम भोले के नारे लगना शुरू होते हैं, तो देर रात तक यही सिलसिला चलता रहता है.

इस शहर में धर्मगुरुओं, ज्योतिषियों, बाबाओं और तांत्रिकों के इफरात से आश्रम और अड्डे हैं, जिन में ख्वाहिशमंद लोगों की लाइन लगी रहती है.

किसी को घरेलू कलह और लाइलाज बीमारी से छुटकारा चाहिए रहता है तो किसी को नौकरी की दरकार रहती है. बेटी की शादी के लिए भी लोग इन डेरों के चक्कर काटते नजर आते हैं, तो किसी को पितृ दोष से मुक्ति के लिए यह शहर मुफीद लगता है.

धनदौलत चाहने वालों का तो कहना ही क्या. यहां के काल भैरव मंदिर में शराब का भोग लगता है, जहां शनि उतरवाने के लिए दुनियाभर के लोग आते हैं. उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव अभिषेक करने के लिए तो हस्तियों का तांता लगा रहता है.

ऐसे माहौल का अलगअलग किस्म के लोगों पर अलगअलग असर पड़ता है. उमेश पर असर पड़ा तंत्रमंत्र का और उस में भी मरघट यानी श्मशान सिद्धि का, जिस के लिए उज्जैन खासतौर से जाना जाता है.

क्षिप्रा नदी के किनारे अघोरियों की श्मशान साधना होती है, जिस के बारे में तरहतरह के मनगढ़ंत किस्सेकहानियां फैलाने वालों ने फैला रखे हैं, जिन में से एक यह भी है कि अगर मरघट में तंत्रमंत्र और क्रियाएं करते रहने वाले बाबा किसी को आशीर्वाद दे दें, तो उस के वारेन्यारे होने से कोई नहीं रोक सकता.

ये बाबा आमतौर पर नंगे रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख या भभूत लपेटे रहते हैं, चौबीसों घंटे गांजे और भांग के नशे में चूर रहने के चलते इन की आंखें सुर्ख लाल रहती हैं. इन्हें देखने भर से आम लोग डरते हैं, क्योंकि ये बेहद डरावने लगते हैं.

मतलब, उज्जैन में मुरादें पूरी करने की छोटीमोटी दुकानों समेत बड़ेबड़े शोरूम और माल्स भी हैं. जिस की जैसी हैसियत होती है, उस के मुताबिक वह आशीर्वाद खरीद लेता है, जिस की कोई गारंटी नहीं होती.

इस खालिस ठगी के धंधे में कैसेकैसे लोग उल्लू बनते हैं, इस की एक बानगी उमेश परिहार भी है, जिस के सिर पर रातोंरात रईस बनने का भूत कुछ ऐसे सवार हुआ कि उस ने अपने ही हाथों अपने 2 साल के बेटे भीम की इतनी बेरहमी से हत्या कर दी कि देखने वाले तो दूर की बात है, सुनने वालों की भी रूह कांप उठे.

लालच में गड़े धन के

कोई विरला ही होगा, जिस ने गड़े धन के किस्सेकहानी नहीं सुने होंगे जिन का सार यह रहता है कि जमीन के नीचे इफरात से सोनाचांदी, हीरेजवाहरात गड़े रहते हैं, जिन्हें तंत्रमंत्र के जरीए निकाला जा सकता है.

लेकिन यह काम आसान नहीं है, क्योंकि जमीन में गड़े धन की हिफाजत खतरनाक जहरीले सांप करते हैं, इसलिए यह पैसा माहिर गुरुओं, जो तांत्रिक ही होते हैं, जिन की सरपरस्ती और देखरेख में ही निकाला जाना चाहिए, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते हैं और 90 फीसदी मामलों में गड़ा धन या खजाना निकालने वाला बेमौत मारा जाता है.

उज्जैन आतेजाते उमेश ने भी ऐसी चमत्कारी कहानियां सुनी थीं. सो जल्द ही अमीर बनने के सपने ने उस की रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया. यहां तक कि उस ने अपनी कार के बोनट पर भी खोपड़ी का निशान बनवा लिया था.

बोलेरो कार किराए पर उठाने के बाद उमेश ऐसे किसी सिद्ध बाबा की तलाश में जुट गया जो तंत्रमंत्र सिखा दे, जिस से वह गड़ा धन निकाल कर बिना मेहनत किए ऐशोआराम की जिंदगी जिए.

इस के पहले उमेश परिहार किन्नरों का ड्राइवर हुआ करता था, जिन्होंने उसे खूब पैसा दिया था. लेकिन तंत्रमंत्र के फेर में पड़ कर वह नशा करने लगा और काम में भी आलस बरतने लगा तो किन्नरों ने भी उस से किनारा कर लिया.

उमेश की यह तलाश बमबम बाबा की शक्ल में पूरी हुई. उज्जैन में बमबम बाबा का बड़ा नाम है, जो अघोरी हैं और श्मशान साधना के स्पैशलिस्ट माने जाते हैं.

इस बाबा के बारे में भी कई चमत्कारिक किस्से उज्जैन के लोग सुनाते हैं कि वे पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष हैं. एक बार जिस पर खुश हो जाएं, उस की हर मुराद पूरी हो जाए और जिस से गुस्सा हो जाएं, तो खड़ेखड़े ही उसे भस्म कर दें.

उमेश ने इस बाबा के बारे में सुना तो उसे लगा कि यही बाबा उसे गड़ा धन दिला सकते हैं. लिहाजा, वह बमबम बाबा के चक्कर काटने लगा.

कई दिनों की मिन्नत और मनुहार के बाद बाबा उसे अपना चेला बनाने को तैयार हुआ, लेकिन इस शर्त के साथ कि पहले किसी की बलि चढ़ाओ, तभी अपना चेला बनाऊंगा.

लालच में अंधा हो चुका उमेश पूरी तरह बाबा की गिरफ्त में आ चुका था, इसलिए यह बेवकूफी करने को भी तैयार हो गया.

लेकिन आजकल के जमाने में किसी की बलि लेना यानी उस की हत्या कर देना आसान काम नहीं रह गया है, सो वह परेशानी और चिंता में पड़ गया कि किस की बलि दे.

तंत्रमंत्र किस तरह अच्छेखासे आदमी की अक्ल हर लेता है, यह अब उमेश को देख सहज समझा जा सकता था, जिस के जेहन में बलि के लिए अपने ही जिगर के टुकड़े मासूम भीम के चेहरा कौंध गया.

बेरहमी से कुचल डाला

एक तरफ बेटा था तो वहीं दूसरी तरफ करोड़ों की काल्पनिक दौलत, जिस के बूते वह ऐशोआराम के खयालीपुलाव पका रहा था. अंधविश्वास के दलदल में गहरे तक धंस चुके उमेश को भीम सौफ्ट टारगेट लगा था, क्योंकि वह विरोध नहीं कर सकता था और आसानी से उसे मारा जा सकता था.

लिहाजा, बीती 5 सितंबर को उज्जैन से उमेश सीधा अपने घर घाटबिल्लोदा जा पहुंचा. घर पहुंचते ही उस ने ऊटपटांग हरकतें शुरू कर दीं. पहले तो उस ने पूजा का सारा सामान जमाया और फिर एक कटोरे में आग जला ली.

घर पर मौजूद उमेश की पत्नी, मां और पिता हैरान थे कि वह यह क्या कर रहा है. पूरे घर को आग का धुआं देता वह मंत्र भी बुदबुदाता जा रहा था और अपने साथ लाई भभूत भी वह घर में बिखेरता जा रहा था.

ये हरकतें देख कर पिता और पत्नी ने उसे टोका तो उस ने उन दोनों को पीट डाला. इस के बाद अचानक ही उस ने भीम को उठाया और उसे भी पीटने लगा तो पत्नी और घबरा गई, क्योंकि अब उमेश के सिर पर पागलपन सवार हो चुका था.

किसी अनहोनी से डरी पत्नी ने भीम को उमेश से छुड़ाना चाहा तो वह और बिफर उठा और खुद को बेटे समेत दूसरे कमरे में ले जा कर शटर बंद कर लिया. घर के लोग चिल्लाते रह गए, लेकिन पगलाया उमेश भीम को मारता रहा तो पत्नी ने पास के थाने की तरफ दौड़ लगा दी.

पुलिस तुरंत आ गई, लेकिन लाख कहने और धमकाने के बाद भी उमेश ने शटर नहीं खोला. देखते ही देखते वह बेटे को जमीन पर ऐसे पटकने लगा, जैसे धोबी कपड़े धोता है.

उस मासूम के रोनेचिल्लाने और चीखने का इस वहशी पर कोई असर नहीं हुआ. वह लगातार उसे पटकता रहा, जिस से उस की मौत हो गई. नजारा इतना डरावना था कि पुलिस वाले भी कांप उठे, क्योंकि भीम के शरीर की चटनी बन चुकी थी और सारा कमरा खून से लाल हो चुका था.

कोई और चारा न देख कर पुलिस ने शटर काटने के लिए गैस कटर का इंतजाम किया, लेकिन तब तक वह हैवान अपने मकसद में कामयाब हो चुका था. पुलिस को धमकाते हुए उस ने घर को गैस सिलैंडर से धमाका करने की धमकी भी दी थी.

शटर काट कर पुलिस वाले अंदर कमरे में गए, तब भी उमेश बमुश्किल काबू में आया. उस ने आग लगाने की कोशिश की और एक सिपाही को काट भी खाया. खुद को भी उस ने नुकसान पहुंचाया.

गिरफ्तारी के बाद उमेश को पीथमपुर के अस्पताल में भरती किया गया, क्योंकि उस की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. पुलिस वाले जंजीर से बांध कर उसे ले गए. उस समय वहां मौजूद सारे लोग उमेश और उस के तंत्रमंत्र को कोस रहे थे, लेकिन सबक किसी ने लिया कि इस फरेब में नहीं पड़ेंगे, कहा नहीं जा सकता.

मेहनत से मिलता है धन देश में रोज कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसे ही किसी अंधविश्वास मसलन तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, ज्योतिष और टोनेटोटकों के फरेब में पड़ कर बरबाद हो रहा होता है और खुद का और दूसरों का नुकसान कर रहा होता है.

लेकिन सबकुछ जाननेसमझने के बाद भी लोग संभलते नहीं तो इस के जिम्मेदार वे खुद तो हैं ही, लेकिन इफरात से हर कहीं धूनी रमाए बैठे चिलम फूंकते बमबम बाबा जैसे तांत्रिक भी कम गुनाहगार नहीं ठहराए जा सकते, जो लोगों को बहलातेफुसलाते हैं.

उमेश को तो सजा होना तय है, लेकिन जब तक ऐसे बाबाओं पर कड़ी कार्यवाही नहीं होगी, तब तक कोई न कोई भीम तंत्रमंत्र की बलि चढ़ता रहेगा.

रही बात रातोंरात अंबानी और अडानी बन जाने के ख्वाब और ख्वाहिश की तो वह अगर तंत्रमंत्र से पूरी होना मुमकिन होती तो देश में सभी लोग अमीर होते. कम से कम वे बाबा तो होते ही, जो करोड़पति बनने का रास्ता चंद रुपयों में दिखाया करते हैं. लेकिन खुद भिखारियों सी जिंदगी जीते हैं.

खून में डूबा प्यार का दामन : किस ने उजाड़ी दो दिलों की दुनिया

18 वर्ष की वैष्णवी दरमियाने कद की सुंदर युवती थी. उस के पिता हरीराम गुप्ता अपने सब बच्चों से ज्यादा उसे प्यार करते थे. चूंकि वह जवान थी, इसलिए सतरंगी सपने उस के दिल में आकार लेने लगे थे. वह अपने भावी जीवनसाथी के बारे में सोचती रहती थी. कभी खयालों में तो कभी कल्पनाओं में वह उस के वजूद को आकार देने की कोशिश करती रहती.

वैष्णवी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला कस्बे के मोहल्ला इमलिया बाग में रहने वाले हरीराम गुप्ता की बेटी थी. हरीराम के 3 बेटे थे, वेद प्रकाश उर्फ उत्तम, ज्ञानप्रकाश उर्फ ज्ञानू, सर्वेश उर्फ शक्कू और 2 बेटियां वैष्णवी और लक्ष्मी थीं.

वेदप्रकाश उर्फ उत्तम ने घर में ही बनी दुकान में किराने की दुकान खोल रखी थी. हरीराम और ज्ञानू उस की मदद करते थे. हरीराम ने तीसरे बेटे सर्वेश को एक पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी थी. वह उसी में सवारियां ढो कर अच्छेखासे पैसे कमा लेता था.

एक दिन वैष्णवी की मुलाकात गांव के ही रहने वाले गोविंदा से हुई तो वह उसे देखती रह गई. वह बिलकुल वैसा ही था, जैसा अक्स उस के ख्वाबोंखयालों में उभरता था. गोविंदा से निगाहें मिलते ही उस के शरीर में सनसनी सी फैल गई.

उधर गोविंदा का भी यही हाल था. वैष्णवी के मुसकराने का अंदाज देख कर उस का दिल भी जोरों से धड़क उठा. मन हुआ कि वह आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में ले ले, मगर यह मुमकिन नहीं था, इसलिए वह मन मसोस कर रह गया. होंठों की मुसकराहट ने दोनों को एकदूसरे के आकर्षण में बांध दिया था. उस दिन के बाद उन के बीच आंखमिचौली का खेल शुरू हो गया.

गोविंदा भी संडीला के मोहल्ला अशरफ टोला में रहने वाले दिलीप सिंह का बेटा था. दिलीप सिंह के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे, जिस में गोविंदा तीसरे नंबर का था. दिलीप सिंह चाय का स्टाल लगाते थे.

सन 2002 में दिलीप बीमार हो कर बिस्तर से लग गए. उस समय उन के दोनों बेटे गोविंदा और आकाश पढ़ रहे थे. पिता के बीमार होने से घर की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गई तो दोनों भाइयों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए दोनों भाई कस्बे की एक गारमेंट शौप पर नौकरी करने लगे. दिलीप सिंह की बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. 2 बेटे और एक बेटी अविवाहित थे.

नजरें चार होने के बाद गोविंदा रोजाना वैष्णवी के घर के कईकई चक्कर लगाने लगा. वैष्णवी को भी चैन नहीं था. वह भी उस का दीदार करने के लिए जबतब बाहरी दरवाजे की चौखट पर आ बैठती.

जब नजरें मिलतीं तो दोनों मुसकरा देते. इस से उन के दिल को सुकून मिल जाता था. यह उन की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया था.

दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे. दिलों ही दिलों में मोहब्बत जवान होती जा रही थी. लब खामोश थे, मगर निगाहें बातें करती थीं और दिल का हाल बयान कर देती थीं. लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता.
गोविंदा चाहता था कि वह वैष्णवी से बात कर के अपने दिल का हाल बता दे. पर यह बात सरेआम नहीं कही जा सकती थी. आखिर एक दिन गोविंदा को मौका मिल गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से कह दी. चूंकि वैष्णवी भी उसे चाहती थी इसलिए मुसकरा कर उस ने नजरें झुका लीं.

प्यार स्वीकार हो जाने पर वह बहुत खुश हुआ. जैसे आजकल अधिकांश लड़के लड़कियों के पास स्मार्टफोन होता है तो वे दूसरों को दिखाने के लिए उसे हाथ में पकड़े रहते हैं. ऐसा करते हुए उस ने वैष्णवी को नहीं देखा था. फिर भी उस ने मौका मिलने पर एक दिन वैष्णवी से उस का मोबाइल नंबर मांगा. वैष्णवी ने उसे बता दिया कि उस के पास फोन नहीं है.

‘‘कोई बात नहीं, मैं जल्द ही एक फोन खरीद कर तुम्हें दे दूंगा.’’ गोविंदा ने कहा.

इतना सुन कर वैष्णवी मन ही मन खुश हुई. अगले ही दिन गोविंदा ने एक मोबाइल खरीद कर वैष्णवी को दे दिया. वैष्णवी ने उसे पहले ही बता दिया था कि मोबाइल इतना बड़ा ले कर आए, जिसे वह आसानी से छिपा कर रख सके, इसलिए गोविंदा उस के लिए बटन वाला फीचर मोबाइल ले कर आया था. उस मोबाइल को वैष्णवी ने छिपा कर रख लिया. जब उसे समय मिलता, वह गोविंदा से बात कर लेती.

दोनों ही फोन पर काफीकाफी देर तक प्यारमोहब्बत की बातें करते थे. उन की मोहब्बत दिनोंदिन बढ़ती गई. दोनों जब तक बात नहीं कर लेते, तसल्ली नहीं होती थी. उन्हें मोहब्बत के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता था. दोनों शादी के फैसले के अलावा यह भी तय कर चुके थे कि वे साथ जिएंगे, साथ ही मरेंगे.
बात 2 जनवरी, 2019 की है. दोपहर के समय गोविंदा अपने घर आया. उस समय वह कुछ परेशान था. उस ने खाना भी नहीं खाया. गोविंदा ने अपनी छोटी बहन सोनम से सारी बातें बता देता था. उस ने वैष्णवी और अपने प्यार की बात सोनम को बता दी थी. उस दिन छोटी बहन ने गोविंदा से उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने अपनी परेशानी बता दी. साथ ही उसे कसम दी कि इस बारे में घर वालों को कुछ न बताए.

इतना कह कर वह अपराह्न 3 बजे के करीब घर से चला गया. जब वह देर रात तक घर नहीं लौटा तो मां सुशीला और भाई आकाश ने उसे सारी जगह खोजा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

4 जनवरी, 2019 को सीतापुर के थाना संदना की पुलिस ने एक अज्ञात युवक की लाश बरामद की. चूंकि लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी, इसलिए इस की सूचना आसपास के जिलों की पुलिस को भी भेज दी गई.

गोविंदा के भाई आकाश के किसी दोस्त को वाट्सऐप पर एक लाश की फोटो मिली तो वह उस फोटो को पहचान गया. वह लाश गोविंदा की थी. उस ने वह फोटो आकाश को वाट्सऐप कर के फोन भी कर दिया. आकाश ने जैसे ही भाई गोविंदा की लाश देखी तो वह फफक कर रो पड़ा. घर के सदस्यों को पता चला तो वह भी गमगीन हो गए.

गोविंदा की छोटी बहन सोनम ने रोते हुए मां और भाई को बताया कि गोविंदा इमलिया बाग मोहल्ले में रहने वाले हरीराम की बेटी वैष्णवी से प्यार करता था. 2 जनवरी को वैष्णवी का मोबाइल उस के घर वालों ने छीन लिया था. यह बात गोविंदा को पता चली तो वह वैष्णवी के घर गया था. गोविंदा ने सोनम को कसम दी थी कि वह यह बात किसी को न बताए.

आकाश पता कर के किसी तरह वैष्णवी के घर पहुंचा तो हरीराम घर पर ही मिल गया. उस ने गोविंदा के घर पर आने की बात से साफ इनकार कर दिया.

तब गोविंदा की मां सुशीला कोतवाली संडीला पहुंच गई. उस ने इंसपेक्टर जगदीश यादव को पूरी बात बता दी. इंसपेक्टर यादव ने सुशीला से कहा कि पहले सीतापुर के संदना थाने जा कर बरामद की गई लाश देख लें. हो सकता है वह गोविंदा की न हो कर किसी और की लाश हो.

सुशीला अपने बेटे आकाश को ले कर थाना संदना, सीतापुर पहुंच गई. थानाप्रभारी ने मांबेटों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उन्होंने उस की शिनाख्त गोविंदा के रूप में कर दी. पोस्टमार्टम के बाद गोविंदा की लाश उन्हें सौंप दी गई.

5 जनवरी की देर रात सुशीला ने संडीला कोतवाली के इंसपेक्टर जगदीश यादव को एक तहरीर दी. तहरीर के आधार पर पुलिस ने हरीराम गुप्ता और उस के बेटों वेदप्रकाश गुप्ता, ज्ञानप्रकाश गुप्ता, सर्वेश गुप्ता के अलावा दोनों बेटियों वैष्णवी और लक्ष्मी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 302, 201, 342 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए अगले ही दिन एएसपी ज्ञानंजय सिंह के निर्देश पर इंसपेक्टर यादव ने हरीराम गुप्ता, वेदप्रकाश गुप्ता और ज्ञानप्रकाश गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गोविंदा की हत्या की थी. इस के बाद उन्होंने उस की हत्या के पीछे की सारी कहानी बता दी.

गोविंदा और वैष्णवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने अपनी मोहब्बत की कहानी को घर वालों और जमाने से छिपाने की बहुत कोशिश की थी, परंतु कामयाब नहीं हो सके. उन के प्रेम संबंधों की खबर किसी तरह वैष्णवी के घर वालों को लग गई. इस के बाद वे उस पर निगाह रखने लगे.

एक दिन वैष्णवी घर पर अकेली थी. गोविंदा ने वैष्णवी को मोबाइल दे ही रखा था. उस दिन वैष्णवी ने गोविंदा को फोन कर के घर आने को कह दिया. गोविंदा उस के दरवाजे पर पहुंच गया. जैसे ही गोविंदा ने दस्तक दी, वैष्णवी ने दरवाजा खोल दिया. गोविंदा को सामने देख वह खुशी से झूम उठी.

वह उसे घर के अंदर ले गई. गोविंदा के अंदर दाखिल होते ही वैष्णवी ने दरवाजा बंद कर दिया और उस से लिपट गई. वैष्णवी की आंखों में आंसू छलक आए. गोविंदा ने उस से पूछा, ‘‘क्या हुआ वैष्णवी?’’

‘‘गोविंदा, घर में सब को हमारे संबंधों का पता चल गया है. मेरे घर वाले हमें कभी एक नहीं होने देंगे.’’ वह बोली.

‘‘ऐसा नहीं होगा वैष्णवी. तुम मेरे ऊपर विश्वास रखो. मैं जल्द तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊंगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे, हमारा प्यार होगा और हमारी खुशियां होंगी.’’ गोविंदा ने भरोसा दिया.

‘‘सच कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित होते हुए बोली.

‘‘एकदम सच.’’ गोविंदा ने कहा. इस के बाद दोनों ने एकदूसरे को बांहों में लिया तो तनहाई के आलम में उन्हें बहकते देर नहीं लगी.

उस दिन गोविंदा काफी देर तक वैष्णवी के घर में रहा. दोनों ने जी भर कर बातें कीं और भावी जिंदगी के सपने बुने. फिर गोविंदा अपने घर चला गया.

उन की इस मुलाकात की जानकारी किसी तरह हरीराम और उस के बेटों को हो गई. वे सभी गुस्से से भर उठे और अपने घर की इज्जत नीलाम करने वाले को सबक सिखाने की ठान ली.

2 जनवरी, 2019 को हरीराम ने वैष्णवी को मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. हरीराम को समझते देर नहीं लगी कि वह गोविंदा से बात कर रही है और मोबाइल भी उसी का दिया हुआ है. हरीराम ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

दूसरी ओर गोविंदा को फोन पर वैष्णवी के पिता की गुस्से से भरी आवाज सुनाई दे गई थी, क्योंकि जिस समय वैष्णवी की गोविंदा से बात चल रही थी, उसी समय हरीराम कमरे में आया था. बेटी को फोन पर बात करते देख वह दरवाजे से ही दहाड़ा था.

पिता के दहाड़ने की आवाज सुन कर गोविंदा को समझते देर नहीं लगी कि वैष्णवी के पिता ने उसे बातें करते पकड़ लिया है. वह परेशान हो उठा.

वह घर पहुंचा तो काफी परेशान था. मां सुशीला ने गोविंदा से खाना खा लेने को कहा, लेकिन उस ने खाना नहीं खाया. छोटी बहन सोनम को समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई बात है.

उस ने पूछा तो गोविंदा ने वैष्णवी के मोबाइल पर बात करते पकड़े जाने की बात बता दी और कहा कि वह वैष्णवी के घर जा रहा है. जाते समय उस ने सोनम को कसम दी कि यह बात किसी को न बताए. इस के बाद वह घर से निकल गया.

गोविंदा सीधे वैष्णवी के घर पहुंचा. घर पर हरीराम मिला तो वह उस से लड़ने लगा. शोर सुन कर हरीराम के तीनों बेटे वेदप्रकाश, ज्ञानप्रकाश और सर्वेश बाहर निकल आए. उन्होंने उसे दबोच लिया और पिटाई शुरू कर दी. फिर उस के मुंह पर टेप चिपकाने के बाद उस के हाथपैर बांध कर जिंदा ही बोरे में बंद कर दिया. यह सब वैष्णवी और लक्ष्मी के सामने हुआ था.

देर रात साढ़े 10 बजे सभी ने बोरे में बंद गोविंदा को सर्वेश की पिकअप गाड़ी में रख लिया. फिर वे सीतापुर की तरफ रवाना हो गए. सीतापुर के संदना थाना क्षेत्र में एक सुनसान जगह पर उन्होंने हाथपैर बंधे गोविंदा को बोरे से निकाला और साथ लाए बांके से उस का गला रेत दिया. उस की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस का पर्स, आधार कार्ड और बोरे को जला दिया. लेकिन वह पूरी तरह नहीं जल पाए थे.

हरीराम, वेदप्रकाश व ज्ञानप्रकाश से पूछताछ करने के बाद इसंपेक्टर यादव ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बांका और पिकअप गाड़ी भी बरामद कर ली. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

फिर 23 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर यादव ने वैष्णवी और सर्वेश को भी गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक लक्ष्मी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. बाकी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

किसी का किसी से प्यार करना गलत नहीं है, लेकिन प्यार करने वाले सोचते हैं कि वे अपनेअपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्यार की मंजिल तक पहुंच जाएंगे. उन की यही भूल कई बार…

प्यार में हद पार करने का खतरनाक नतीजा

अगस्त, 2016 की सुबह मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना पुरानी छावनी के खेरिया गांव के अटल गेट के पास खेत में 24-25 साल के एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना गांव वालों ने पुलिस को दी तो अधिकारियों को सूचना दे कर थानाप्रभारी प्रीति भार्गव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रही थीं कि एसपी हरिनारायण चारी मिश्र और एएसपी दिनेश कौशल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ लगी थी.

थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका. इस से साफ हो गया कि मृतक वहां का रहने वाला नहीं था. मृतक की जेबों की तलाशी ली गई तो उस की पैंट की जेब से मोटरसाइकिल की चाबी मिली. लाश से थोड़ी दूरी पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. पुलिस ने मृतक की जेब से मिली चाबी उस मोटरसाइकिल में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस से पुलिस को लगा कि इस मोटरसाइकिल से मृतक की शिनाख्त हो सकती है.

पुलिस ने मोटरसाइकिल जब्त कर अन्य तमाम काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन जब पुलिस ने आरटीओ औफिस से मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह मोटरसाइकिल विनयनगर, सेक्टर 3, पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष किरार की थी.

पुलिस ने उस के घर जा कर पता किया तो घरवालों ने बताया कि संतोष एक अगस्त की सुबह अपनी मोटरसाइकिल से निकला है तो अब तक घर लौट कर नहीं आया है. इस से पुलिस को लगा कि खेत में पड़ी लाश संतोष की हो सकती है. लेकिन जब पुलिस ने वह लाश उस के पिता रामकिशोर को दिखाई तो उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे संतोष की नहीं है. इस के बाद पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में संतोष की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

प्रीति भार्गव लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश कर रही थीं कि शाम को थाना हजीरा के रहने वाले तुलसीराम पिछली शाम से गायब अपने बेटे की तलाश करतेकरते उन के पास आ पहुंचे. दरअसल, पिछली शाम को घर से निकला उन का बेटा शीतल न लौट कर आया था और न उस का फोन मिला था, तब परेशान हो कर वह थाना हजीरा में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए थे.

वहां से जब उन्हें बताया गया कि थाना पुरानी छावनी पुलिस ने एक लड़के की लाश बरामद की है तो वह थाना पुरानी छावनी पहुंच गए थे. थाना पुरानी छावनी पुलिस ने तुलसीराम को बरामद लाश दिखाई तो वह फफकफफक कर रोने लगे. इस के बाद उन्होंने खेतों में मिली लाश की शिनाख्त अपने बेटे शीतल की लाश के रूप में कर दी थी.

प्रीति भार्गव ने हत्यारे का पता लगाने के लिए तुलसीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं थी कि उन के बेटे की इस तरह हत्या कर दी जाती. उन से पत्रकार कालोनी के रहने वाले संतोष के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उस के बारे में जानने से मना कर दिया. तुलसीराम के बताए अनुसार, उन की किराने की दुकान थी. दोपहर को दुकान पर उन का बेटा शीतल बैठता था. इस तरह वह पिता के कारोबार में हाथ बंटाता था.

पुलिस ने हत्याकांड के खुलासे के लिए जितने भी लोगों से पूछताछ की, उन में से कोई भी ऐसी बात नहीं बता सका, जिस से वह हत्यारे तक पहुंच पाती. प्रीति भार्गव की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शीतल खेरिया गांव क्यों गया? अगर वह संतोष के साथ वहां गया था तो उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि संतोष ने उसे मौत के घाट उतार दिया? यह सब जानने के लिए पुलिस को संतोष की तलाश थी. आखिर आठवें दिन काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में वह असलियत छिपा नहीं सका और उस ने शीतल की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने शीतल की हत्या की जो कहानी सुनाई वह हैरान करने वाली तो थी ही, साथ ही आज के युवाओं में स्त्रीसुख की जो लालसा उपजी है, उस की हकीकत बयां करने वाली थी. पत्रकार कालोनी का रहने वाला इलेक्ट्रिशियन संतोष 31 जुलाई, 2016 की शाम घर लौट रहा था तो रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क पर खड़े एक युवक ने उसे हाथ दे कर रोक कर कहा, ‘‘भाई साहब, मैं यहां काफी देर से किसी सवारी का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन कोई सवारी मिल नहीं रही है. अगर आप मुझे अपनी मोटरसाइकिल से लिफ्ट दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

संतोष ने उसे मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. इस के बाद उस युवक ने अपना नाम शीतल बताते हुए कहा, ‘‘हजीरा के इंद्रनगर में मेरे पिता की किराने की दुकान है. मैं उसी पर बैठता हूं. लेकिन अब मेरा मन दुकान पर बैठने को नहीं होता, इसलिए मैं नौकरी खोज रहा हूं. इंटरव्यू देने ही मैं झांसी जा रहा था, लेकिन दुर्भाग्य से मेरी ट्रेन छूट गई.’’

‘‘कोई बात नहीं, यार, मैं तुम्हारी नौकरी यहीं लगवा दूंगा.’’ संतोष ने कहा. विजयनगर पहुंचतेपहुंचते दोनों में ऐसी दोस्ती हो गई कि उन्होंने पीनेपिलाने का प्रोग्राम बना डाला. फिर इस नई दोस्ती के नाम पर दोनों में एकदूसरे को शराब पिलाने की होड़ लग गई, जिस में करीब 500 रुपए खर्च हो गए. शराब के नशे ने अपना असर दिखाया तो संतोष ने जाने कितनी बार शीतल को भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह उस की नौकरी ग्वालियर में लगवा देगा. उसे यह शहर छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना नहीं पड़ेगा.

संतोष शीतल से बातें कर रहा था, तभी उस की प्रेमिका रेखा (बदला हुआ नाम) का उस के मोबाइल पर फोन आ गया. शीतल से उस की दोस्ती हो ही चुकी थी, इसलिए उस से बिना कुछ छिपाए वह रेखा से अश्लील यानी शारीरिक संबंधों की बातें करने लगा. संतोष रेखा से जो बातें कर रहा था, उन्हें सुनसुन कर शीतल उत्तेजित हो उठा. तब उस ने बिना किसी संकोच के संतोष से कहा, ‘‘कल तुम अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहे हो न, मुझे भी कल उस से मिलवा दो.’’

‘‘तुम उस से मिल कर क्या करोगे?’’ संतोष ने कहा तो जरा भी झिझके बिना शीतल ने कहा, ‘‘जो तुम करोगे, वही मैं भी करूंगा.’’

इस पर संतोष नाराज होते हुए बोला, ‘‘रेखा ऐसी लड़की नहीं है. वह केवल मुझ से ही बातें करती है और केवल मुझ से उस के शारीरिक संबंध हैं.’’ उस समय तो संतोष ने शीतल को समझाबुझा कर उस के घर भेज दिया. लेकिन सुबह होते ही शीतल संतोष को फोन कर के कहने लगा कि वही उस का सच्चा दोस्त है. सिर्फ एक बार वह अपनी प्रेमिका से उसे भी मौजमजा ले लेने दे. यही नहीं, उस ने यहां तक पूछ लिया कि वह कितनी देर में रेखा को उस के पास भिजवा रहा है.

नए दोस्त के मुंह से सुबहसुबह प्रेमिका के बारे में ऐसी बातें सुन कर संतोष को गुस्सा आ गया. किसी तरह अपने गुस्से पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘एक घंटे के भीतर तू मेरे घर आ जा, आज मैं तुझे रेखा से मिलवा ही देता हूं. तू भी याद करेगा कि कोई दोस्त मिला था.’’ शीतल के आने से पहले संतोष ने तय कर लिया था कि प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वाले शीतल को अब वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. जैसे ही शीतल उस के घर पहुंचा, वह उसे ले कर निकल पड़ा.

संतोष ने ठेके से शराब की 2 बोतलें खरीदीं और मोटरसाइकिल से शीतल को ले कर पुरानी छावनी की ओर चल पड़ा. वहां एक पेड़ के नीचे बैठ कर दोनों ने शराब पी. अपनी योजना के अनुसार संतोष ने शीतल को कुछ ज्यादा शराब पिला दी थी. शीतल को जैसे ही शराब का नशा चढ़ा, उस ने कहा, ‘‘चलो बुलाओ रेखा को. तुम ने उस के साथ बहुत मजा लिया है, आज मैं उस के साथ ऐसा मजा लूंगा कि वह भी याद करेगी.’’

संतोष रात से ही शीतल की इन बातों से जलाभुना बैठा था. उस ने पैंट की जेब में रखा चाकू निकाला और एक ही झटके में शीतल का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने शराब की बोतल उठा कर एक ही सांस में पूरी शराब पी ली और शीतल की लाश को वहीं अटल गेट के पास एक खेत में छोड़ कर चला आया. मोटरसाइकिल वह इसलिए नहीं ला सका, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रास्ते में शीतल ने चलाने के लिए ले ली थी और उस की चाबी उस ने अपनी जेब में रख ली थी.

इसलिए शीतल की हत्या करने के बाद जब संतोष ने अपनी जेब में मोटरसाइकिल की चाबी देखी. चाबी न पा कर नशे में होने की वजह से उसे लगा कि चाबी कहीं गिर गई है. हड़बड़ाहट में वह गाड़ी वहीं छोड़ कर घर चला और घर से कानपुर चला गया. उसे उम्मीद थी कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. एक सप्ताह तक वह निश्चिंत हो कर कानपुर में रहा. लेकिन शायद उसे पता नहीं था कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन उस का राज खुल ही जाता है. पैसे खत्म होने के बाद संतोष पैसे लेने के लिए जैसे ही घर आया, थानाप्रभारी प्रीति भार्गव ने उसे पकड़ लिया. संतोष से पूछताछ में पता चला कि उस ने शीतल की हत्या जिस खेत में की थी, लाश वहां नहीं मिली थी.

पुलिस ने खेत की रखवाली करने वाले सोनू कुशवाह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने लाश पड़ी देखी तो डर के मारे उस ने अपने रिश्तेदार सैकी कुशवाह की मदद से लाश ले जा कर खेरिया मोड़ पर अटल गेट के पास रमेश शर्मा के खेत में फेंक दी थी. पुलिस ने सोनू और सैकी को हिरासत में ले लिया. इन का दोष यह था कि इन्होंने लाश पड़ी होने की सूचना पुलिस को नहीं दी थी, इस के अलावा सबूत नष्ट किए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भिजवा दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सहयोग : रंजीत सुर्वे

प्यार का खौफनाक पहलू

उत्तर प्रदेश जिला रायबरेली के थाना बछरावां का एक गांव है गजियापुर. इसी गजियापुर का छोटा सा मजरा है शेखपुरा समोधा. पुत्तीलाल लोध अपने परिवार के साथ इसी मजरे में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां आशा व माया और एक बेटा था उमेश. पुत्तीलाल कास्तकार था और खेतीकिसानी से अपने परिवार का भरणपोषण करता था. वह सीधासादा सरल स्वभाव का व्यक्ति था.

पुत्तीलाल की 3 संतानों में आशा सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही 16वां बसंत आतेआते उस की खूबसूरती और भी निखर गई थी. उस का अंगअंग फूलों की तरह महक उठा था. उस की पतली कमर, नैननक्श और गोरा रंग किसी को भी आंखों में चाहत जगा देने के लिए काफी थे.

खूबसूरत होने के साथ आशा पढ़ाई-लिखाई में भी तेज थी. प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर के बीए में एडमिशन ले लिया था. आशा की खूबसूरती ने कई युवकों को उस का दीवाना बना दिया था. लड़के उस के आगेपीछे घूमते थे. इन लड़कों में बृजेंद्र कुमार भी था.

बृजेंद्र शेखपुरा समोधा का ही रहने वाला था. उस का घर आशा के घर से कुछ दूरी पर था. बृजेंद्र के पिता जागेश्वर दबंग किसान थे. उन की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति भी मजबूत थी. बृजेंद्र कुमार हृष्ट-पुष्ट सजीला नौजवान था. रहता भी बनसंवर कर था. वह पढ़ने में भी वह अच्छा था. बीए पास करने के बाद उस का चयन बीटीसी में हो गया था. वह अध्यापक बनने का इच्छुक था.

बृजेंद्र और आशा बचपन से एकदूसरे को जानते थे. कालेज आतेजाते दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं. दोनों एकदूसरे को चाहत भरी नजरों से देखते और फिर मुसकरा देते थे. बृजेंद्र आशा को चाहने लगा था. आशा भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. उसे अपने लिए बृजेंद्र की आंखों में प्यार का सागर हिलोरे मारता लगता था. धीरेधीरे उस के मन में भी बृजेंद्र के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

जब बृजेंद्र को आभास हुआ कि आशा उस की ओर आकर्षित है तो वह दिल की बात दिल में नहीं रख सका. एक दिन आशा कालेज से अकेली घर लौट रही थी. बृजेंद्र ने उसे रास्ते में रोक लिया. आशा भले ही अकेली थी, लेकिन रास्ता सुनसान हीं था. इसलिए वहां दिल की बात नहीं कहीं जा सकती थी. मिनट 2 मिनट बात करने पर भले ही कोई संदेह न करता, लेकिन दिल की बात कहने के लिए समय चाहिए था, क्योंकि इजहारे इश्क करते के लिए भूमिका बांधने में ही समय लग जाता है.

यही वजह थी कि उस समय दिल की बात कहने के बजाए बृजेंद्र ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आशा, क्या आज शाम 7 बजे तुम मुझ से मिलने गांव के बाहर बगीचे में आ सकती हो?’’

आशा कुछ कहती उस के पहले ही बृजेंद्र ने एक बार फिर कहा, ‘‘मैं बेसब्री से तुम्हारा वहीं इंतजार करूंगा.’’

आशा का जवाब सुने बगैर बृजेंद्र चला गया. आशा हैरानी से तब तक उसे जाते देखती रही जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया. वह जानती थी कि बृजेंद्र ने उसे क्यों बुलाया है? सवाल यह था कि वह उस से मिलने जाए या न जाए. यही सोचते हुए वह घर पहुंच गई.

दोनों की पहली मुलाकात
आशा घर जरूर पहुंच गई, लेकिन उस का मन बेचैन था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जाए या न जाए. वह भले ही कितनी भी बेचैन रही. लेकिन शाम को बृजेंद्र से मिलने जाने से खुद को रोक नहीं सकी.

सहेली के घर जाने का बहाना बना कर वह बगीचे में पहुंची तो बृजेंद्र वहीं बैठा उस का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर बृजेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि तुम जरूर आओगी.’’

‘‘चलो यह अच्छी बात है कि तुम्हारा विश्वास नहीं टूटा. बताओ मुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘पहली बात तो यह कि तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. फिर भी बता दूं कि मैं ने तुम्हें यह बताने के लिए बुलाया है कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

बृजेंद्र की इस बात पर आशा को कोई हैरानी नहीं हुई. क्योंकि उसे पहले से ही पता था कि बृजेंद्र ने यही कहने के लिए बुलाया है. फिर भी बनावटी हैरानी व्यक्त करते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो?’’

‘‘आशा मेरे दिल में जो था, मैं ने कह दिया. बाकी तुम जानो. यह बात सच है कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं.’’ बृजेंद्र की इन बातों से आशा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. बृजेंद्र उसे अच्छा लगता ही था. वह उसे चाहने भी लगी थी. इसलिए उस ने बृजेंद्र को चाहत भरी नजरों से देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा,

‘प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन डर लगता है.’’

बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘डर किस बात का आशा, मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर तो मैं तुम्हारा साथ आखिरी सांस तक निभाऊंगी.’’ आशा ने अपना दूसरा हाथ बृजेंद्र के हाथ पर रखते हुए कहा.

इस तरह प्यार का इजहार हो गया तो आशा और बृजेंद्र की दुनिया ही बदल गई. आशा कालेज जाने के बहाने घर से निकलती और पहुंच जाती बृजेंद्र के पास. बृजेंद्र उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठाता, फिर दोनों बछरावां, रायबरेली घूमने निकल जाते. कभीकभी एकांत में बैठ कर दोनों भविष्य के सपने बुनते. जबकि उन्हें पता था कि वे जो सोच रहे हैं, वह इतना आसान नहीं है.

मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई जाने लगीं. हालांकि दोनों परिवारों में समानता नहीं थी. इसलिए यह इतना आसान नहीं था. फिर भी दोनों ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए वे अपनी दुनिया बसा कर रहेंगे.

प्यारमोहब्बत ज्यादा दिनों तक छिपने वाली चीज नहीं होती. कुछ दिनों बाद पुत्तीलाल को भी शुभचिंतकों से पता चल गया कि बेटी गलत राह पर चल पड़ी है. पतिपत्नी ने बेटी को डांटाफटकारा भी और प्यार से समझाया भी. इस के बावजूद भी उन्हें बेटी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें लगा कि जवानी के जोश में आशा गलत कदम उठा सकती है. इसलिए उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया.

पुत्तीलाल और सुशीला ने अब आशा पर निगाह रखनी शुरू कर दी, जिस से दोनों के मिलन में बाधा पड़ने लगी. फिर भी आशा को जब मौका मिलता वह बृजेंद्र से बतिया लेती थी. बृजेंद्र उसे सांत्वना देता कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.

एक रात सुशीला ने आशा को बृजेंद्र से मोबाइल पर बात करते पकड़ लिया. उस ने उसी समय आशा को डांटा, ‘‘देखो, आशा इज्जतआबरू और मानमर्यादा औरत के गहने हैं और तू इन गहनों पर दग लगा रही है. तुझे तो अपनी इज्जत की परवाह है नहीं, कम से कम हम लोगों की इज्जत का तो खयाल रख. तू पढ़ीलिखी है, समझदार है, फिर भी मना करने के बावजूद तू बृजेंद्र से संबंध बनाए हुए है.’’

सुशीला ने गुस्से में आशा को डांटा भी और उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से समझाया भी, ‘‘बेटी, औरत की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं धुल पाता. अब भी समय है. तू बृजेंद्र को भूल जा. मैं जल्दी ही तेरा रिश्ता अच्छा घरवर देख कर कर दूंगी.’’

बदल गया आशा का मन…
मां की बात आशा के दिल को छू गई. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह बृजेंद्र को भुलाने की पूरी कोशिश करेगी. मांबाप उस का रिश्ता, जहां भी जैसा भी करेंगे वह स्वीकार कर लेगी. उस ने मां को अपने फैसले के बारे में बता भी दिया. बेटी के चेहरे पर विश्वास देख कर मां खुश हुई.

पुत्तीलाल आशा के लिए योग्य वर की खोज में जुट गया. थोड़ी मेहनतमशक्कत के बाद उसे एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाने अंतर्गत कुशहारी गांव निवासी बच्चूलाल लोध के 25 वर्षीय बेटे साजन के बारे में पता चला तो वह उस के घर पहुंचे. साजन उन्हें पसंद आ गया. साजन बीए पास कर चुका था और कंप्टीशन की तैयारी में जुटा था. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में वह शामिल भी हो चुका था.

साजन के पिता बच्चूलाल के पास 10 बीघा उपजाऊ जमीन थी. जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. बच्चूलाल, पुत्तीलाल का दूर का रिश्तेदार भी था. इसलिए घरपरिवार जाना समझा था. घरवर पसंद आया तो पुत्तीलाल ने अपनी बेटी आशा की शादी साजन के साथ तय कर दी. चूंकि लड़का और लड़की दोनों पढ़ेलिखे थे, अत: तय हुआ कि जब लड़कालड़की एकदूसरे को देख लें और पसंद कर लेंगे, तभी शादी की तारीख फाइनल कर दी जाएगी.

कुछ दिन बाद साजन अपने मातापिता व बहनों के साथ आशा को देखने आया. दोनों ने एकदूसरे को देखा और बातचीत भी की. उस के बाद दोनों ने अपनी रजामंदी दे दी. इस के बाद सगाई की रस्म भी पूरी हो गई. शादी की तारीख तय हुई 12 मार्च, 2019.

इधर बृजेंद्र को आशा की शादी तय हो जाने की खबर लगी तो उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उसे अपना सपना बिखरता नजर आया. आशा की बेवफाई की बात सुन कर बृजेंद्र विचलित हो उठा. वह उस दिन किसी तरह आशा से मिला और गुस्से में उस की आंखों में झांकते हुए शादी की सच्चाई के बारे में पूछा.

आशा को बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला नजर आ रही थी. सच कहने में ही उसे भलाई नजर आई. उस ने कहा, ‘‘हां, बृजेंद्र, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे मातापिता ने मेरी शादी तय कर दी है. अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं तुम्हें? मैं ने तुम से प्यार किया है, सपना संजोया था कि तुम मेरी दुलहन बनोगी. लेकिन तुम तो बेवफा निकली.’’

‘‘मैं बेवफा नहीं हूं, बृजेंद्र. मेरी मजबूरी समझो.’’ आशा ने बृजेंद्र को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम बेवफा नहीं तो और क्या हो? जब तुम्हें दूसरी जगह ही ब्याह रचाना था तो मुझे सपने क्यों दिखाए, क्यों मेरी दुलहन बनने का वादा किया. अब भी समय है आशा, तुम शादी के लिए मना कर दो और मांबाप के विरुद्ध खड़ी हो जाओ. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

‘‘नहीं बृजेंद्र, मैं ऐसा नहीं कर सकती. मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है कि मांबाप के फैसले के खिलाफ कुछ कर सकूं.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है,” आशा ने दो टूक जवाब दिया और घर वापस चली गई.

बृजेंद्र नहीं छोड़ना चाहता था आशा को
आशा और बृजेंद्र के प्यार की डोर भले ही टूट गई थी, लेकिन इस सब के बावजूद दोनों की कभीकभी फोन पर बातें होती रहती थीं. इस बातचीत में बृजेंद्र अकसर आशा से कहता था कि वह रिश्ता तोड़ कर उस के साथ भाग चले. लेकिन आशा इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह घर से भाग कर मांबाप के मुंह पर कालिख नहीं पोतना चाहती.

लेकिन बृजेंद्र के दिलोदिमाग पर आशा कुछ इस तरह छाई थी कि उस के मना करने के बावजूद वह उसे भुला नहीं पा रहा था. कभी उसे आशा की बेवफाई पर गुस्सा आता तो कभी उस की मजबूरी पर तरस. आशा की वजह से उस की जिंदगी निराशा में बदल गई थी. अब उस का मन किसी भी काम में नहीं लगता था.

बृजेंद्र का एक दोस्त अजय बछरांवा कस्बे में रहता था. कस्बे में ढाबे के पास उस की मोबाइल शौप थी. बृजेंद्र हमेशा उसी की दुकान से मोबाइल रिचार्ज कराता था. इसी वजह से दोनों के बीच अच्छा परिचय हो गया था. बाद में धीरेधीरे यह परिचय दोस्ती में बदल गया था.

बृजेंद्र को जब भी मोबाइल रिचार्ज कराने की जरूरत होती थी उसे फोन कर लेता था. अजय उस का मोबाइल फोन रिचार्ज कर देता था. बृजेंद्र अपनी प्रेमिका आशा का मोबाइल फोन भी उसी से रिचार्ज कराता था. दोनों के प्रगाढ़ संबंधों की उसे जानकारी थी. बृजेंद्र स्वयं भी उस से हर बात शेयर करता था.

इधर कुछ समय से बृजेंद्र गुमसुम रहने लगा था. उस में आए बदलाव को देख कर अजय ने कारण पूछा तो उस ने अपने दिल की बात उसे बता दी.

अजय चूंकि बृजेंद्र का दोस्त था, इसलिए उस ने बृजेंद्र को सलाह दी कि वह आशा को भुला दे. क्योंकि अब वह किसी और की अमानत बनने जा रही है. आशा की खुशी के लिए उसे अपने सीने पर पत्थर रखना ही होगा.

बृजेंद्र ने दोस्त की सलाह पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन उस की बात स्वीकार भी नहीं की. आशा के प्यार में आकंठ डूबे बृजेंद्र ने एक शाम आशा के मोबाइल पर फोन कर के प्यार की दुहाई दी और उसे गांव के बाहर उसी बगीचे में बुलाया, जहां उन की पहली मुलाकात हुई थी.

उस ने कहा था कि एक हफ्ते बाद 12 मार्च को वह किसी और की हो जाएगी. इसलिए सिर्फ इस बार उस से मिल ले. बृजेंद्र की इस विनती को आशा ठुकरा नहीं सकी और उस से मिलने बगीचे में जा पहुंची.
आशा जैसे ही वहां पहुंची बृजेंद्र उसे अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘आशा, तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें जान से ज्यादा चाहता हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हें अपनी दुलहन बनाना चाहता हूं, जबकि तुम पीछे हट रही हो.’’

खुद को बृजेंद्र की बांहों में आजाद कर के आशा ने कहा, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कह दिया था कि मैं अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा सकती. मेरी वजह से मांबाप की इज्जत पर दाग लगे, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी.’’

‘‘प्यार करने वाले, इस सब की परवाह नहीं करते. तुम मुझ से प्यार करती हो, यह बात तुम न जाने कितनी बार कह चुकी हो. इसलिए अब तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए.’’ बृजेंद्र ने आशा का हाथ पकड़ कर विनती की, ‘‘हम दोनों बालिग हैं. इसलिए हम अपनी मरजी से शादी कर सकते हैं. शादी के बाद कुछ दिनों में घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो, पर मैं तुम्हें साफसाफ बता रही हूं. मैं तुम से कभी प्यार करती थी, लेकिन अब नहीं करती. इसलिए तुम से शादी नहीं कर सकती. भाग कर शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता. आशा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए अपना आखिरी फैसला सुना दिया.’’

आशा के प्रति भर गई नफरत
आशा ने बृजेंद्र के प्यार को ठुकराया और शादी से इनकार किया तो उस के मन में आशा के प्रति नफरत और गुस्से की चिंगारी सुलगने लगी. एक रात बृजेंद्र ने मोबाइल फोन पर फिल्म ‘बेवफा सनम’ देखी. फिल्म की कहानी उस की असल जिंदगी की कहानी से मिलतीजुलती थी. आशा भी उस के प्यार को ठुकरा कर दूसरे से शादी रचा रही थी.

यह ‘बेवफा सनम’ फिल्म बृजेंद्र ने अपने मोबाइल फोन पर कई बार देखी. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि फिल्म की तरह वह भी आशा को उस की बेवफाई की सजा देगा.

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे बृजेंद्र की नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था. बृजेंद्र के चाचा लोधेश्वर के पास डबल बैरल (दोनाली) बंदूक थी. लोधेश्वर जब शादी तिलक समारोह में जाता था तो बंदूक साथ ले जाता था और शादी समारोह में हर्ष फायरिंग करता था. चूंकि बृजेंद्र भी चाचा के साथ जाता था, सो उस ने भी बंदूक चलानी सीख ली थी. चाचा के साथ वह भी हर्ष फायरिंग करता था.

12 मार्च, 2019 को मंगलवार था. उस दिन पुत्तीलाल की 22 वर्षीय बेटी आशा की शादी होनी थी. बारात उन्नाव जिले के सोहरामऊ थाना अंतर्गत गांव कुशहरी से आनी थी. सुबह से ही पुत्तीलाल के घर पर चहलपहल शुरू हो गई थी. नातेरिश्तेदार आने शुरू हो गए थे. पुत्तीलाल अपने परिवार के लोगों के साथ व्यवस्था में जुटा था. उस की तमन्ना थी कि उस की बेटी की शादी में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए.

बृजेंद्र भी शादी में कर रहा था सहयोग
बृजेंद्र के दिल में क्या था, और वह किस उधेड़बुन में लगा था. किसी को पता नहीं था. सुबह से ही वह पुत्तीलाल के घर मौजूद था और उस की हर तरह से मदद कर रहा था. कभी वह व्यंजन तैयार कर रहे हलवाइयों के पास जाता और उन्हें आदेश देता तो कभी डेकोरेशन का काम कर रहे कर्मचारियों को ठीक से डेकोरेशन करने की हिदायत देता. उसे देख कर किसी को नहीं लग रहा था कि उस के दिल में कोई भयंकर तूफान उमड़ रहा है.

घरपरिवार व रिश्तेदार महिलाएं मंगल गीत गाते हुए शादी की पूर्व होने वाली रस्मों को पूरा कर रही थीं. कुछ मंडप के नीचे परछन कर रही थीं तो कुछ गीत गाते हुए आशा को उबटन लगा रही थीं. कुछ ऐसी भी थीं जो चुहलबाजी और हंसीमजाक कर माहौल को खुशनुमा बना रही थीं. पूरा घर आंगन खुशियों से सराबोर था.

शाम ढलतेढलते सारी तैयारियां पूरी हो गईं. पंडाल सज गया और मेहमानों के बैठने के लिए पंडाल में कुरसियां डाल दी गईं. दूल्हादुलहन के लिए पंडाल में भव्य स्टेज सजाया गया. पूरा पंडाल लाइटों से जगमगा रहा था. छोटछोटे बच्चे सजधज कर मस्ती करने लगे थे.

आशा भी अपनी सहेलियों के साथ सजधज कर अपने कमरे में आ गई थी. वह बछरावां स्थित मधु ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराने गई थी. सजीधजी आशा आज बेहद खूबसूरत लग रही थी. सखीसहेलियां उस से हंसीमजाक कर रही थीं, जबकि वह अपने भविष्य के सुनहरे सपनों में खोई थी.

रात साढ़े 10 बजे के लगभग बारात गाजेबाजे के साथ पुत्तीलाल के दरवाजे पर पहुंची. पुत्तीलाल ने हर एक बाराती के गले में फूलमाला डाल कर स्वागत किया. फिर दूल्हे साजन को स्टेज पर लाया गया. उस समय रिश्तेदारों, गांव वालों और बारातियों से पूरा पंडाल भरा हुआ था. सजीधजी महिलाओं की रौनक देखते ही बन रही थी. सभी खुशी में डूबे हुए थे.

कुछ देर बाद आशा दुलहन के वेश में स्टेज पर आई. उस के साथ उस की सहेलियां भी थीं. स्टेज पर दूल्हा और दुलहन ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर सिर झुका लिया. फिर एकदूसरे को जयमाला पहना कर रस्म पूरी की. कई युवकयुवतियां खुशी से स्टेज के सामने नाचने लगे. इस के बाद वरवधू को दोनों पक्षों के लोग आशीर्वाद देने आने लगे. फोटोग्राफर फोटो खींचने में लगा था.

शादी का स्टेज हो गया खून से लाल
जयमाला होने के बाद स्टेज पर दुलहन आशा और उस के दूल्हे साजन का फोटो सेशन चल रहा था. तभी अचानक आशा का पूर्व प्रेमी बृजेंद्र कुमार अपने चाचा लोधेश्वर की दोनाली बंदूक ले कर वहां आ धमका. बृजेंद्र की आंखों में क्रोध की ज्वाला साफ झलक रही थी.

उस के हाथ में बंदूक देख कर आशा सहम गई और उठ कर खड़ी हो गई. उसी समय बृजेंद्र आशा के नजदीक आ कर बोला, ‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी, तो मैं जीते जी तुम्हें किसी और की दुलहन बन जाने दूंगा. नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता.’’

इसी के साथ बृजेंद्र ने आशा पर फायर झोंक दिया. गोली उस के पेट में धंसी और वह खून से लथपथ हो कर स्टेज पर ही गिर पड़ी. गांव के 2 साहसी युवक बृजेंद्र के हाथ से बंदूक छीनने उस की ओर लपके लेकिन बृजेंद्र उन दोनों पर भी बंदूक तानते हुए बोला, ‘‘खबरदार, जो मेरे पास आए. अभी हिसाब बराबर नहीं हुआ.’’ कहते हुए बृजेंद्र ने बंदूक की नाल अपने गले पर सटाई और ट्रिगर दबा दिया.

धांय की आवाज के साथ बृजेंद्र भी जमीन पर बिछ गया. कुछ देर छटपटाने के बाद आशा और बृजेंद्र दोनों ने दम तोड़ दिया.

इधर गोली चलने की आवाज सुन कर लोगों में भगदड़ मच गई. दूल्हा साजन तो बेहोश ही हो गया. बच्चूलाल उसे कार में डाल कर अपने गांव की ओर भागा. अन्य बाराती भी भाग लिए. बारातियों को इस बात का संतोष था कि दूल्हा सहीसलामत था और किसी भी बाराती को हानि नहीं पहुंची थी.

डोली की जगह उठी अर्थी
जिस घर में कुछ देर पहले खुशियां छाई थीं. अब वहां मौत की परछाइयों के अलावा कुछ नहीं था. चारों ओर चीखपुकार मची थी. आशा के मातापिता व घर वाले उस के शव के पास विलाप कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर बृजेंद्र के मातापिता और परिजन आंसू बहा रहे थे. गांव वाले भी अवाक थे कि जिस घर से सुबह डोली उठनी थी, वहां से अब अर्थी उठेगी.

इसी बीच किसी ने मोबाइल फोन के जरिए इस गंभीर वारदात की सूचना थाना बछरावां को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी रविंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाने से रवाना होते समय उन्होंने वारदात से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. शेखपुरा समोधा गांव, बछरावां थाने से मात्र 5 किलोमीटर दूर था. इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

रात करीब 12 बजे के लगभग एसपी सुनील कुमार सिंह, एएसपी शशि शेखर सिंह तथा सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी रवींद्र सिंह पहले से ही वहां मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. स्टेज पर एक युवती की लाश पड़ी थी, जो दुलहन के वेश में थी और स्टेज के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि युवती का नाम आशा था और मृतक बृजेंद्र कुमार था.

आशा की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी, जबकि बृजेंद्र की उम्र लगभग 25 वर्ष थी. मृतक के पास दोनाली बंदूक पड़ी थी. इसी बंदूक से वारदात को अंजाम दिया था. अत: पुलिस ने जांच हेतु बंदूक अपने पास सुरक्षित रख ली.

घटनास्थल पर मृतका और मृतक के मातापिता व घर वाले मौजूद थे. एसपी सुनील कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक शशिशेखर सिंह ने उन सब से पूछताछ की तो पता चला कि यह सब प्रेम प्रसंग की वजह से हुआ है.

इस मामले में सीओ राजेंद्र प्रसाद शाही ने मौके पर मौजूद गवाह रमेश आदि के बयान दर्ज किए. वहीं थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के मातापिता सुशीला और पुत्तीलाल तथा बृजेंद्र के पिता जागेश्वर व उस के भाई लोधेश्वर के बयान दर्ज किए. इस के बाद दोनों शव राजकीय अस्पताल रायबरेली पोस्मार्टम हेतु भेज दिए.

पुलिस अधिकारियों ने दूसरे रोज थाने बुला कर दूल्हे साजन तथा उस के पिता बच्चूलाल से भी पूछताछ की. उन के भी बयान दर्ज किए गए.

इधर थानाप्रभारी रवींद्र सिंह ने मृतका आशा के पिता पुत्तीलाल को वादी बना कर आशा की हत्या के आरोप में भादंवि की धारा 302 के तहत बृजेंद्र कुमार के विरुद्ध रिपोर्ट तो दर्ज की, लेकिन बृजेंद्र द्वारा आत्महत्या कर लेने से इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

साजिश : 17 साल की मंजुला का ब्लाइंड मर्डर

17 वर्षीय मंजुला अपने परिवार के साथ मोहाली के गांव मटौर में रहती थी. सेक्टर-69 के एक वकील के यहां वह बेबीसिटर की नौकरी करते हुए उन के छोटे बच्चे को संभालती थी. दिन के 9 बजे उस की ड्यूटी शुरू होती थी और प्राय: शाम 4 बजे छुट्टी कर के वह पैदल ही घर के लिए निकल पड़ती थी. 9 नवंबर, 2017 की सुबह भी वह नौकरी पर जाने के लिए रोजाना की तरह घर से निकली थी. मगर उस शाम घर नहीं लौटी.

पैदल चल कर भी मंजुला अकसर 5 बजे तक घर पहुंच जाया करती थी. उस रोज 6 बज गए और वह नहीं लौटी तो उस के भाई ने वकील के यहां फोन कर के दरियाफ्त की. वकील साहब ने बताया कि मंजुला तो हमेशा की तरह शाम के 4 बजे छुट्टी कर के चली गई थी.

इस जानकारी से घर में सब को लड़की की फिक्र हो गई. पहले तो उस की तलाश में काफी भागदौड़ की गई. फिर उस के भाई ने इस संबंध में पुलिस से गुहार लगाई तो फेज-8 के थाने में मंजुला की गुशुदगी लिखा दी गई. नाबालिग लड़की का मामला होने की वजह से पुलिस ने भी मंजुला की तलाश के लिए हाथपैर चलाए. लेकिन उस के संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद लगातार मंजुला की तलाश की जाती रही. उस का मिल पाना तो दूर की बात, उस के बारे में कहीं से कोई छोटीमोटी खबर तक नहीं मिल पाई थी. देखतेदेखते मंजुला को गायब हुए 5 दिन गुजर गए.

14 नवंबर को बालदिवस की वजह से कुछ बच्चे एक समारोह अटैंड कर के अपने घर लौट रहे थे. पैदल चलते हुए वे सेक्टर-69 स्थित निजी अस्पताल मायो के पास से हो कर आगे निकले तो 2 बच्चों को पेशाब की हाजत हुई. इस से फारिग होने को वे पास की झाड़ियों में चले गए. वहां पीछे एक छोटामोटा जंगल था.

झाडि़यों से निकलते वक्त इन की निगाह जंगल की तरफ चली गई. वहां इन्हें लेडीज कपड़ों के टुकड़े पड़े दिखाई दिए. जिज्ञासावश ये थोड़ा आगे बढ़ गए. आगे का दृश्य देख इन के मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुन कर उन के साथी भी दौड़ते हुए वहां आ पहुंचे. फिर तो जो कुछ इन लड़कों ने वहां देखा, उस से उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इन से जरा ही फासले पर एक लड़की की गलीसड़ी नग्न हालत में लाश पड़ी थी.

ऐसा भयानक दृश्य देख, सभी लड़के भागते हुए सड़क पर आ गए. वहां उन्हें एक नौजवान खड़ा दिखाई दिया. उसे उन्होंने इस बाबत बता दिया. उस नौजवान ने अपने मोबाइल से तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. जरा सी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी वहां आ पहुंची. पीसीआर कर्मियों ने मौकामुलाहजा कर के मामला फ्लैश कर दिया.

जिस वक्त यह सूचना फेज-8 के थाने में पहुंची, थानाप्रभारी राजीव कुमार अपने दफ्तर ही में थे. सबइंसपेक्टर जागीर सिंह व कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे. नाबालिग मंजुला की गुमशुदगी की सूचना उन्हीं के थाने में दर्ज थी, जिस के साथ गुमशुदा लड़की का फोटो भी लगा था.

राजीव कुमार को लाश की सूरत मंजुला से मेल खाती लगी. उन्होंने तुरंत थाने से संबंधित फाइल मंगवा कर शव और फोटो में लड़की के हुलिए से मिलान करने का प्रयास किया. रिजल्ट पौजीटिव आते देख उन्होंने मंजुला के भाई को बुलवा भेजा. आते ही वह शव को देख फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने इस की शिनाख्त अपनी बहन मंजुला के रूप में कर दी.

पहली ही नजर में साफ था कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद चाकुओं से गोदगोद कर उसे मौत के घाट उतारा गया था.

पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू की. थानाप्रभारी ने मंजुला के भाई की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 363, 366, 302, 376-डी एवं 120-बी के अलावा पौक्सो एक्ट की धारा 4, 5 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस दौरान मौके की दीगर काररवाइयों को अंजाम देते हुए पुलिस ने मंजुला के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

अस्पताल में डाक्टरों के विशेष पैनल ने मंजुला के शव का पोस्टमार्टम कर के अपनी रिपोर्ट में उस के जिस्म पर तेजधार हथियार के 13 घावों का उल्लेख करने के अलावा इस बात की भी पुष्टि की कि उस के साथ एक से ज्यादा पुरुषों ने बलात्कार किया था. डाक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव बताया था. मंजुला का बिसरा भी रासायनिक परीक्षण के लिए फोरेंसिक लैबोरेट्री भेज दिया.

पोस्टमार्टम के बाद मंजुला का शव उस के परिजनों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने रोतेबिलखते उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था जो थाना पुलिस हल कर पाने में सफल नहीं हो पा रही थी. मोहाली के एसएसपी कुलदीप चहल ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इस की जांच का जिम्मा जिला पुलिस की सीआईए ब्रांच को सौंप दिया.

सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने केस की फाइल हाथ में आते ही न केवल इस का गहराई से अध्ययन किया बल्कि घटनास्थल पर जा कर बारीकी से जांच भी की. हालांकि  घटना को हुए काफी दिन गुजर चुके थे, ऐसे में उन्हें घटनास्थल से कत्ल संबंधी कोई क्लू मिलने की उम्मीद नहीं थी. क्लू उन्हें चाहिए भी नहीं था. उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी में न जाने कितने ब्लाइंड मर्डर केस सौल्व किए थे.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन कर के एकएक नुक्ते को जोड़ कर अपराधी तक पहुंचने का प्रयास किया था. उन्होंने घटनास्थल की फिर से फोटोग्राफी भी कराई फिर फाइल का ठीक से अध्ययन किया.

नक्शा व फोटो सामने रख कर इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उन का घटनास्थल से मिलान करते हुए एकाग्रचित्त हो कर अपनी अलग तरह की जांच शुरू की. उन्होंने लाश बरामद होने के समय खींचे गए फोटो को भी बड़े ध्यान से देखा.

एक फोटो में जमीन की मिट्टी पर एक ऐसे हाथ की छाप उभर रही थी जो किसी युवती का लग रहा था. यह हाथ मृतका का भी हो सकता था. मगर इस मुद्दे को यहीं पर खत्म न कर के तरलोचन सिंह ने चित्र के आधार पर उस जगह की तलाश की, जहां का यह फोटो था.

अनुमान और प्रयासों के आधार पर वह जगह मिल गई. लेकिन हाथ की छाप अब वहां नहीं थी. अब तक उस में शायद धूल वगैरह भर गई थी. तरलोचन सिंह ने इस जगह को आसपास से खुदवाया तो वहां से हरे रंग के कांच की चूड़ी का एक टुकड़ा उन के हाथ लग गया. उन्होंने उसे अपने पास संभाल कर रख लिया. टुकड़े को ले कर वह एसएसपी चहल के पास पहुंचे. फिर सीधेसपाट लहजे में बोले, ‘‘सर, इस ब्लाइंड मर्डर केस में कोई न कोई लड़की इन्वौल्व है.’’

‘‘लेकिन तरलोचन सिंह आप यह क्यों भूल रहे हो कि मर्डर के साथ यह गैंगरेप का मामला भी है.’’

‘‘लेकिन वो सब बदला लेने के नीयत से भी तो करवाया जा सकता है, सर.’’

‘‘मतलब यह कि किसी लड़की ने इस लड़की से बदला लेने के लिए पहले इस का गैंगरेप करवाया और फिर इस का मर्डर करवा दिया.’’

‘‘गैंगरेप जरूर करवाया गया सर, लेकिन मर्डर इस लड़की ने खुद अपने हाथों किया है. हां, ऐसा करते वक्त दूसरों की मदद जरूर ली गई होगी, यह सोचा जा सकता है.’’

‘‘तरलोचन सिंह, मेरी समझ में फिलहाल आप की बात नहीं आ रही है. आखिर ऐसा कौन सा क्लू आप के हाथ लग गया जो आप इतने उत्साहित हैं.’’

एसएसपी की बात पर हरे रंग की चूड़ी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हुए तरलोचन सिंह ने पहले घटनास्थल पर किए गए अपने प्रयास की बात बताई. फिर बताया कि रिकौर्ड में दर्शाया गया है कि मृतका ने लाल रंग की चूड़ियां पहन रखी थीं.

इस मामले में अभी तक पुलिस अपनी जो काररवाई करती आई थी वो यही थी कि पिछले कुछ अरसे में पकडे़ गए गैंग रेप आरोपियों को बुड़ैल जेल से ट्रांजिट रिमांड पर ला कर उन से इस केस के बारे में गहन पूछताछ करती रही थी.

मुखबिरों को लगा कर उन के कहने पर कुछ संदिग्ध लोगों पर भी शिकंजा कसा गया था. मगर पुलिस की पूछताछ में उन्हें बेकसूर पा कर हरी झंडी दे दी गई थी.

आगे छानबीन का सारा कार्यक्रम ही बदल दिया गया. अपने अन्य प्रयासों के अलावा सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने इस काम पर अपने खास मुखबिरों को लगाया.

10 जनवरी, 2018 को इंसपेक्टर तरलोचन सिंह के एक खास मुखबिर ने आ कर उन्हें इस केस के बारे में अहम सूचना दी. इस सूचना के अनुसार मृतका के मटौर स्थित निवास के पास एक औरत शीला अपनी जवान लड़की पूजा के साथ रहती थी. उन्हीं दोनों ने पहले अपने साथियों से मंजुला का रेप करवाया, फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

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‘‘लेकिन इस के पीछे कोई वजह भी तो रही होगी? इतने बड़े कांड को अंजाम देने का कोई कारण तो होगा?’’ तरलोचन सिंह ने मुखबिर से पूछा.

‘‘इस सब की जानकारी मुझे नहीं हो पाई है. लेकिन इस केस के असली कसूरवार यही लोग हैं. इन्होंने एक जगह बैठ कर आपस में मीटिंग की है. मैं ने छिप कर इन की सारी बातें सुनी हैं. आज ये लोग यहां से निकल भागने वाले हैं. मैं आप को वहां ले चलता हूं, जहां इन्होंने शरण ले रखी है. आप अभी उन्हें काबू कर लें, वरना पछतावे वाली बात हो जाएगी.’’ मुखबिर ने कहा.

ज्यादा सोचनेसमझने का वक्त नहीं था. इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उसी वक्त अपनी पुलिस पार्टी तैयार कर के मुखबिर को साथ लिया और उस की बताई जगह पर छापा मारा. वहां एक औरत व एक युवती के अलावा एक अन्य शख्स पुलिस के हत्थे चढ़ गया. मालूम पड़ा इन के साथ एक और भी आदमी था जो किसी तरह फरार होने में सफल हो गया था.

काबू में आए तीनों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में अभी लाया ही गया था  कि तीनों ने मंजुला को कत्ल किए जाने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड ले लिया गया.

रिमांड की अवधि में हुई गहन पूछताछ के दौरान इन तीनों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक अलग ही कहानी सामने आई.

पकड़ी गई औरत का नाम शीला और युवती थी उस की बेटी पूजा. इन के साथ पकड़े गए शख्स का नाम मक्खन था, जो शख्स भागने में सफल हो गया था, उस का नाम था रहूण.

शीला उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की रहने वाली थी. इस के पति रामनिवास का काम अच्छा नहीं चल रहा था, मगर वह अपना मूल प्रदेश छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश में जाना भी नहीं चाहता था. घर की गुजरबसर के लिए शीला और उस की बेटी पूजा छोटीमोटी नौकरी करती थीं. शीला जवान हो रही थी, घर वालों को उस की शादी की चिंता स्वाभाविक ही थी.

उत्तर प्रदेश के कामगार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब में उन के लिए हमेशा रोजगार के अवसर रहते हैं. इसी वजह से शीला कुछ साल पहले पति से अनुमति ले कर बेटी पूजा के साथ मोहाली आ गई. मोहाली की एक फैक्ट्री में दोनों को काम मिल गया. रहने के लिए मोहाली के गांव मटौर में किराए का मकान भी ले लिया.

यहीं पर पड़ोस में मंजुला अपने परिवार के साथ रहती थी. शीला ने पुलिस को बताया कि एक बार उस का पति उन लोगों से मिलने मटौर आया.

एक दिन मंजुला ने उस पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जैसेतैसे बात संभल तो गई लेकिन मंजुला ने धमकी देते हुए कहा कि वह रामनिवास को छोड़ेगी नहीं. उसे उस की करतूत की सजा दे कर रहेगी.

कुछ दिनों बाद रामनिवास वापस उत्तर प्रदेश चला गया, जहां सड़क दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई. उसे टक्कर मारने वाला चालक अपना वाहन भगा ले गया था. बाद में उसे पकड़ा नहीं जा सका.

पूजा और शीला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की मौत के पीछे मंजुला का हाथ था. उसी ने योजना बना कर रामनिवास को मरवाया था. इसीलिए मांबेटी ने तय कर लिया कि वे मंजुला को भी दर्दनाक मौत दे कर रहेंगी. योजना बनी तो इन लोगों ने पैसों का लालच दे कर मटौर में रहने वाले अपने परिचित मक्खन व रहूण को भी तैयार कर लिया. ये दोनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे.

दोनों ने मांबेटी से एक ही बात कही कि उन्हें इस काम के लिए पैसा नहीं चाहिए. बस वे मंजुला को मारने से पहले उस के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे.

योजना बन गई. इस के लिए लंबे फल वाला एक चाकू भी खरीद लिया गया. मंजुला का पीछा कर के उस के आनेजाने के रास्तों के बारे में पता लगा कर उसे 9 नवंबर, 2017 की शाम को उस वक्त झाडि़यों में खींच लिया गया जब वह वकील के यहां से छुट्टी कर के पैदल वहां से गुजर रही थी.

जंगल में ले जा कर मक्खन और रहूण ने उसे निर्वस्त्र कर के बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया. फिर मक्खन और रहूण के अलावा पूजा ने मंजुला के हाथपैर पकड़े. तभी शीला ने चाकुओं से लगातार वार कर के मंजुला की हत्या कर दी.

पूछताछ के दौरान ही शीला की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया था. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर तीनों अभियुक्तों को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मंजुला बदला हुआ नाम है

 

 

शराब माफिया के निशाने पर थानेदार

17 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली ने खगड़िया जिले के पसराहा थाने में तैनात युवा और तेजतर्रार थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड का विस्तृत विवरण जानने के लिए भागलपुर जिलाधिकारी और नवगछिया एसपी से रिपोर्ट मांगी है.

मृतक दरोगा आशीष कुमार के पिता गोपाल सिंह ने कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली को अपने बेटे आशीष कुमार सिंह की साजिशन हत्या किए जाने के संबंध में एक दुख भरा पत्र भेजा था. आयोग ने उन के पत्र को गंभीरता से लेते हुए यह कड़ा कदम उठाया था, इसी संबंध में दोनों अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई.

12 अक्तूबर, 2018 को पुलिस और बदमाशों के बीच हुए एक एनकाउंटर में खगड़िया के पसराहा थाना के दारोगा आशीष कुमार सिंह शहीद हो गए थे. एनकाउंटर पसराहा थाने की पुलिस और दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि और उस के गैंग के बीच हुआ था. एनकाउंटर में पुलिस की गोली से दिनेश मुनि गैंग का शातिर अपराधी श्रवण यादव मारा गया था.

इसी संबंध में मानवाधिकार आयोग ने भागलपुर डीएम और नवगछिया एसपी से घटना से संबंधित विस्तृत जानकारी मांगी थी. आयोग ने उन्हें 8 सप्ताह यानी 16 मार्च, 2019 के अंदर संबंधित कागजात उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.

घटना खगड़िया और नवगछिया जिले की सीमा से लगे बिहपुर थानाक्षेत्र के सलालपुर दियारा में घटी थी. आयोग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम की वीडियो सीडी, मजिस्ट्रैट जांच रिपोर्ट, डिटेल रिपोर्ट, एफआईआर की कौपी, घायल पुलिसकर्मी की रिपोर्ट, मृतक अपराधी श्रवण यादव का आपराधिक इतिहास, फोरैंसिक जांच रिपोर्ट, बैलेस्टिक रिपोर्ट, घटनास्थल का ब्यौरा, मृतक का फिंगरप्रिंट, जब्ती सूची आदि मांगी थी.

यही नहीं, आयोग ने सभी कागजात अंगरेजी वर्जन में देने का आदेश दिया है. आयोग इस की जांच कर रहा है. संबंधित कागजात मिलने पर आयोग नोटिस भेज कर इस मामले से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुला सकता है.राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जो रिपोर्ट तलब की है, उस की कहानी कुछ ऐसे सामने आई है.

मुखबिर ने खगड़िया जिले के थाना पसराहा के प्रभारी आशीष कुमार सिंह को सेलफोन से सूचना दी थी कि दुर्दांत अपराधी दिनेशमुनि अपने गैंग और साथियों के साथ अपने गांव में छिपा है. उस ने अपने गांव तिहाय में कुछ महिलाओं को रंगरलियां मनाने के लिए बुलाया है. जल्दी की जाए तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. दिनेश मुनि पर जिले के विभिन्न थानों में लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी जैसी गंभीर और संगीन धाराओं में दरजन भर मुकदमे दर्ज थे.

सूचना मिलते ही आशीष कुमार हुए रवाना

खगडि़या जिले के अलावा राज्य के कई अन्य जिलों में भी उस के खिलाफ लूट, अपहरण, हत्या, हत्या के प्रयास और रंगदारी के मुकदमे दर्ज थे. हत्या वाले मुकदमों में वह वांछित चल रहा था. पुलिस को उस की तलाश थी. पसराहा थाने में भी उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. दारोगा आशीष कुमार सिंह ने दिनेश मुनि की सुरागरसी में एक मुखबिर को लगाया था. उसी मुखबिर ने आशीष कुमार सिंह को यह सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही एसओ आशीष कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिहाय गांव के लिए रवाना हो गए. उन की टीम में ड्राइवर कुंदन यादव, सिपाही दुर्गेश सिंह, होमगार्ड अरुण मुनि और बीएमपी के जवान थे. रवाना होने से पहले यह सूचना जिले की पुलिस कप्तान मीनू कुमारी को दे दी गई थी. कप्तान मीनू ने उन्हें सावधानी से मिशन को अंजाम देने की शुभकामनाएं दी थीं.

तिहाय के करीब पहुंचने पर मुखबिर ने एसओ को फोन कर के बताया कि दिनेश मुनि और उस के साथियों को पुलिस के वहां पहुंचने की सूचना पहले ही मिल गई थी, इसलिए उस ने अपना ठिकाना बदल दिया है. अब वह सलालपुर दियारा में जा छिपा है.

यह सुन कर एसओ आशीष कुमार ने तिहाय से सलालपुर दियारा गांव की तरफ जीप मुड़वा दी. यह इलाका खगड़िया और नवगछिया के सीमावर्ती इलाके में पड़ता है.

सलालपुर दियारा में चारों ओर अंधेरा फैला था. अंधेरे को चीरती पुलिस जीप ऊबड़खाबड़ संकरे रास्ते से होती हुई सलालपुर दियारा की ओर बढ़ती जा रही थी. बदमाशों को पुलिस के आने की भनक न लगे, इसलिए पुलिस ने अपनी जीप की लाइटें बंद कर दी थीं. बीचबीच में एसओ के नंबर पर मुखबिर की काल आ रही थी. वह उसे थोड़ी और रुक जाने को कह रहे थे.

एसओ आशीष कुमार सिंह अभी थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अचानक धांय धांय की आवाज आई. बदमाशों ने पुलिस के ऊपर 3 गोलियां चलाई थीं. लेकिन तीनों गोलियां पुलिस जीप से बच कर निकल गईं. स्थिति के मद्देनजर एसओ आशीष सिंह और उन की टीम ने जीप रोक कर पोजीशन ले ली और जवाबी फायरिंग शुरू कर दी.

अंधेरे में दोनों ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हो गई. अंधेरे में पुलिस को यह समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी कि बदमाश कहांकहां छिपे हैं और उन की संख्या कितनी है. अगर इस का सही अंदाजा लग जाता तो बदमाशों से मोर्चा लेना आसान हो जाता.

स्थिति भांपने के लिए आशीष सिंह जीप से नीचे उतर गए और दोनों हाथों से सर्विस रिवौल्वर थामे पोजीशन ले कर बदमाशों की ओर फायरिंग करने लगे. जवाबी काररवाई में बदमाशों की ओर से भी फायरिंग हो रही थी. उसी दौरान एसओ आशीष कुमार सिंह के सीने में 3 गोलियां जा धंसी, जिस से वह लहराते हुए जमीन पर गिर गए.

एक गोली सिपाही दुर्गेश सिंह के पैर में लगी. वह भी घायलावस्था में नीचे गिरा कर कराहने लगा. कुछ देर बाद बदमाशों की तरफ से फायरिंग बंद हो गई. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि या तो सभी बदमाश ढेर हो गए या फिर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकले.

फायरिंग बंद होते ही ड्राइवर कुंदन यादव ने जीप की लाइट औन की. तभी उस ने एसओ आशीष कुमार सिंह को खून से लथपथ जमीन पर गिरा देखा तो वह चीख पड़ा. एसओ साहब से थोड़ा आगे सिपाही दुर्गेश सिंह भी खून से लथपथ पड़ा कराह रहा था. यह देख कर होमगार्ड अरुण मुनि दौड़ा हुआ दुर्गेश की ओर बढ़ा और उसे गोद में उठा लिया.

शरीर से काफी खून बहने से एसओ आशीष सिंह की हालत गंभीर होती जा रही थी. उन के मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. ड्राइवर कुंदन यादव ने सीधे कप्तान मीनू कुमारी से बात की और उन्हें स्थिति से अवगत कराने के बाद मौके पर और फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

सूचना मिलते ही एसपी मीनू कुमारी की आंखों की नींद गायब हो गई. उन्होंने उसी वक्त यह सूचना भागलपुर जोन के आईजी सुशील मान सिंह खोपड़े, मुंगेर प्रक्षेत्र के डीआईजी जितेंद्र मिश्र, खगड़िया के डीएम अनिरुद्ध कुमार को दे दी. साथ ही जिले के विभिन्न थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

आशीष कुमार सिंह को बचाने का प्रयास

आदेश मिलते ही सभी थानेदार और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. खून से लथपथ थानेदार आशीष कुमार सिंह और घायल सिपाही दुर्गेश सिंह को जीप से भागलपुर जिला चिकित्सालय ले जाया गया था. डाक्टरों ने एसओ आशीष को देखते ही मृत घोषित कर दिया और दुर्गेश को बेहतर इलाज के लिए भरती कर लिया.

मौके पर पहुंची पुलिस ने सलालपुर दियारा में रात में ही कौंबिंग शुरू कर दी गई. मुठभेड़ के दौरान एक बदमाश श्रवण यादव मारा गया था. मौके से अत्याधुनिक हथियार के तमाम खाली खोखे मिले.

बड़ा सवाल यह था कि मुखबिर ने सलालपुर दियारा में कुख्यात बदमाश दिनेश मुनि और उस के 4-5 साथियों के छिपे होने की पक्की सूचना दी थी. मौके से केवल एक ही बदमाश की लाश बरामद हुई तो दिनेश मुनि और उस के दूसरे साथी कहां चले गए. पुलिस को लगा कि या तो बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए होंगे या घायल होने के बाद किसी डाक्टर से इलाज करा रहे होंगे.

एसपी मीनू कुमारी के दिमाग में भी यही विचार उमड़ रहा था. उन्होंने दिनेश मुनि के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए सीओ पसराहा को लगा दिया. बदमाशों को तलाशने में जुटी फोर्स ट्रैक्टर ट्रौली आदि से क्षेत्र में गश्त करने लगी. पुलिस ने पूरे दियारा को छान मारा लेकिन बदमाशों का कहीं पता नहीं लगा.

सीओ को जानकारी मिली कि मुठभेड़ के दौरान गिरोह का सरगना दिनेश मुनि और रमन यादव जख्मी हुए थे. अशोक मंडल और उस के रिश्तेदार पंकज मुनि पुलिस को चकमा दे कर फरार होने में कामयाब हो गए थे. पुलिस ने बिहपुर थाने में कुख्यात अपराधी दिनेश मुनि और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ आशीष कुमार सिंह को पहली बार गोली नहीं लगी थी. पिछले साल जब वह मुफस्सिल थाने में एसओ थे, तब भी एक मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी. लेकिन तब बच गए थे. आशीष कुमार सिंह जांबाज ही नहीं बल्कि बेहद संवेदनशील व्यक्ति भी थे. उन की मां कैंसर से पीड़ित थीं. उन का इलाज कराने के लिए वह खुद उन्हें ले कर दिल्ली आतेजाते थे.

मुठभेड़ में एसओ आशीष कुमार सिंह के शहीद होने की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली तो कोहराम मच गया. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. पत्नी सरिता की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद जब आशीष का शव उन के गांव सरौजा पहुंचा तो पूरा गांव गमगीन हो गया. गांव वालों ने अपने घरों में चूल्हे नहीं जलाए.

बहरहाल, आईजी (जोन) सुशील मान सिंह खोपड़े के नेतृत्व में 2 क्यूआरटी, एसटीएफ की 3, चीता फोर्स और 5 डीएसपी को कौंबिंग व सर्च औपरेशन में लगाया गया. लेकिन थानाप्रभारी की हत्या के आरोपी दिनेश मुनि को घटना के 4 दिन बाद भी नहीं ढूंढा जा सका.

अलबत्ता पुलिस ने उस के कपड़े और मोबाइल फोन जरूर जब्त कर लिया. पुलिस ने यह काररवाई दीना चकला में रहने वाली उस की बहन की निशानदेही पर की थी.

कहानी दिनेश मुनि और थानेदार आशीष सिंह की

गौरतलब है कि पुलिस के पास दुर्दांत अपराधी दिनेश मुनि का एक फोटो तक नहीं था, जिस से उस का सही हुलिया पता लगाया जा सकता. बहुत मशक्कत के बाद आखिर पुलिस को दिनेश मुनि का फोटो मिल गया. दरअसल, करीब 3 साल पहले किसी मामले में बेगूसराय में दिनेश मुनि की गिरफ्तारी हुई थी. उसी दौरान उस का फोटो खींचा गया था, जो थाने में था.

पुलिस घायल दिनेश मुनि का इलाज करने वाले गांव के डाक्टर सहित उस के बहनबहनोई और मांबाप सहित आधा दरजन आश्रयदाताओं को हिरासत में ले चुकी थी. लेकिन इस के बावजूद दिनेश मुनि को गिरफ्तार नहीं किया जा सका. इस से लग रहा था कि उस का खुफिया तंत्र पुलिस के खुफिया तंत्र पर भारी पड़ रहा था.

आखिर दिनेश मुनि कौन है? वह पुलिस के लिए सिरदर्द क्यों बन गया था? उस के सिर पर किस का हाथ था, जिस की वजह से पुलिस की हर काररवाई की अग्रिम सूचना उस तक पहुंच जाती थी? थानेदार आशीष सिंह के साथ वो दूसरे थानेदार कौन थे, जो उस के गैंग के निशाने पर थे? उस के अतीत की कहानी जानने से पहले थानेदार आशीष कुमार सिंह के बारे में जान लें.

32 वर्षीय आशीष कुमार सिंह मूलरूप से सहरसा जिले के बलवाहाट के अंतर्गत सरोजा गांव के रहने वाले थे. उन के पिता गोपाल सिंह बिहार के एक जिले में थानेदार थे. गोपाल सिंह के 3 बेटों में आशीष कुमार सिंह सब से छोटे थे. पिता की तरह वह भी पुलिस में जाना चाहते थे. इस के लिए वह मेहनत करते रहे. करीब सवा 6 फीट लंबेतगड़े आशीष सन 2009 में एसआई बन गए.

विभिन्न जिलों में कुशलतापूर्वक ड्यूटी का निर्वहन करते हुए वह 4 सितंबर, 2017 को पसराहा थाने के एसओ बन कर आए. इसी दौरान उन की शादी सरिता सिंह के साथ हो गई थी. जिन से एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई.

धीरेधीरे उन की पहचान तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की बन गई थी. वह जिस थाने में तैनात होते, वहां के अपराधियों की धड़कनें बढ़ने लगती थीं. अपराधी दिनेश मुनि पसराहा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर हत्या, हत्या के प्रयास और लूट जैसे कई संगीन मामले दर्ज थे. कई मामलों में वह वांछित भी था.

एसओ आशीष कुमार को लगातार सूचनाएं मिल रही थीं कि दिनेश मुनि जिले के एक कद्दावर नेता के संरक्षण में रह रहा है. उसी नेता के संरक्षण में वह बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में प्रतिबंधित शराब का अवैध तरीके से कारोबार कर रहा है. दिनेश मुनि का पता लगाने के लिए आशीष ने अपने मुखबिर उस के पीछे लगा दिए थे.

आशीष ने जब से पसराहा थाने का चार्ज लिया था, तब से अपने इलाके में शराब की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. इस से शराब माफियाओं के धंधे को काफी नुकसान पहुंच रहा था. आशीष सिंह के इस कदम से शराब माफिया उन से नाराज थे और उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे थे.

करीब 36 वर्षीय दिनेश मुनि मूलरूप से बिहार के खगड़िया जिले के तीनमुंही गांव का निवासी था. खगड़िया के तिहाय गांव में उस की ससुराल थी. सन 2006 में उस ने अपना गांव तीनमुंही छोड़ दिया था. सन 2007 से उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा और देखतेदेखते पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया.
उस पर आधा दरजन से अधिक मामले मड़ैया, पसराहा, परबत्ता के अलावा चौसा थानों में दर्ज थे. दिनेश मुनि का फंडा यह था कि वह छोटामोटा अपराध कर के छिपने के लिए अपने मूल गांव तीनमुंही चला जाता था.

दिनेश मुनि को उस के साथियों के अलावा बहुत कम लोग ही जानते थे कि वह मूलत: तीनमुंही गांव का रहने वाला है. लोग उस की ससुराल तिहाय गांव को ही उस का असली गांव समझते थे, क्योंकि दिनेश मुनि अधिकांशत: ससुराल में ही रहता था. अपराध के लिए उस ने खगड़िया का चयन किया था और छिपने के लिए अपना गांव. दिनेश मुनि का अपना गिरोह था.

उस के गिरोह में पंकज मुनि (रिश्तेदार), श्रवण यादव, अशोक मंडल, रमन यादव, संतलाल सिंह, बजरंगी सिंह, सुनील सिंह, बत्तीस सिंह, गजना, सुदामा, ननकू सिंह, मनोज सिंह भाटिया, मिथिलेश मंडल, टेपो मंडल, पृथ्वी मंडल आदि शामिल थे.

मुठभेड़ वाले दिन दिनेश मुनि सलालपुर दियारा में रात के वक्त अशोक मंडल के होटल पर रंगरलियां मनाने पहुंचा था. वहां उस के गिरोह के 9 सदस्य थे, जो 3 होटलों में रुके थे. उन के पास महिलाओं के आने की भी सूचना थी. यही सूचना मुखबिर ने पसराहा थानेदार आशीष कुमार सिंह को दी थी.

शहीद एसओ आशीष कुमार सिंह के कातिल को दबोचने के लिए पुलिस द्वारा दियारा में लगातार कौंबिंग औपरेशन चलाए जाने से दिनेश मुनि द्वारा संचालित दारू बेचने वाले लोग जिले से पलायन कर चुके थे.
बहरहाल, सलालपुर दियारा में पुलिस और दिनेश मुनि गिरोह के बीच हुई मुठभेड़ में पुलिस मुखबिर की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह जब तिहाय गांव के लिए निकले थे, तब मुखबिर को क्या पहले से ही पता था कि दियारा में क्या होना है, इसलिए गोली चलते ही वह मौके से भाग निकला था. मुखबिर के फरार होने से उन आशंकाओं को बल मिल रहा है, जिस में माना जा रहा है कि मुखबिर को सब पता था कि आगे क्या होगा और वह धोखे से थानेदार को मौत के दरवाजे तक ले गया.

थानेदार सुमन कुमार भी थे निशाने पर

फिलहाल मृतक थानेदार के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से ही इस बात का खुलासा हो सकता है कि मुखबिर कौन था, क्योंकि मुखबिर का नाम कथा लिखे जाने तक पता नहीं चल सका था. फिलहाल थानेदार आशीष कुमार सिंह हत्याकांड की जांच चल रही है. तफ्तीश के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, उस से आशीष की हत्या के पीछे बड़ी साजिश के संकेत मिल रहे हैं. उस में शराब माफियाओं के साथसाथ कई बड़ों के नाम सामने आ रहे हैं.

थानेदार आशीष कुमार सिंह के साथ ही दूसरे थानेदार सुमन कुमार सिंह भी दिनेश मुनि गैंग के निशाने पर आ चुके हैं. यह खुलासा 17 अक्तूबर, 2018 को दिनेश मुनि, गिरोह के अपराधी पंकज मुनि की गिरफ्तारी के बाद उस के मोबाइल में सेव फोटो से पता चला.

एक अखबार में छपी खबर के साथ आशीष के साथ एसआई सुमन कुमार सिंह की तसवीर छपी थी. तसवीर में आशीष के साथ सुमन कुमार के फोटो पर लाल पेन से क्रौस बना हुआ था. पूछताछ में पंकज मुनि ने पुलिस को बताया था कि आशीष कुमार की हत्या के बाद सुमन कुमार की हत्या की योजना बनी थी लेकिन उन का स्थानांतरण हो जाने से फिलहाल वह बच गए थे.

काफी खोजबीन के बाद आखिर पूर्णिया जिले के अरजपुर भिट्ठा टोला के पास से 17 अक्तूबर, 2018 की देर रात को चौसा पुलिस ने कुख्यात अपराधी पंकज मुनि को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उस के पास से एक देसी कट्टा, 6 जिंदा कारतूस, 2 मोबाइल फोन, करीब 12 हजार रुपए नकद तथा चोरी की एक बाइक बरामद की. आशीष कुमार सिंह हत्याकांड में पंकज मुनि भी शामिल था.

पंकज मुनि के खिलाफ मधेपुरा, पूर्णिया, खगड़िया और भागलपुर जिले के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक संगीन मामले दर्ज थे.

उस से पूछताछ में पता चला कि करीब 2 महीने पहले सितंबर, 2018 में चौसा थाना क्षेत्र के चंदा गांव के चर्चित ईंट भट्ठा व्यवसायी मोहम्मद नसरुल हत्याकांड में पंकज मुनि का हाथ था. हत्या कर के वह फरार हो गया था.

अंधविश्वास में मासूम की बलि

ज्योंज्यों अंधेरा घिरता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश की परेशानी बढ़ती जा रही थी. वह कभी
दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखता तो कभी टिकटिक करती घड़ी की सुइयों को निहारने लगता. दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी जिस से मुकेश परेशान था. उस की 2 साल की बेटी कंचन अचानक गायब हो गई थी. शाम को वह घर के बाहर खेल रही थी. पर वह वहां से अचानक कहां गुम हो गई, किसी को पता न चला. यह बात 21 मार्च, 2019 की है.

उस दिन होली का त्यौहार था. नंदापुर गांव के लोग रंगों से सराबोर थे. फाग गाने वालों की टोली अपना जलवा अलग से बिखेर रही थी. कई लोग ऐसे भी थे, जो नशे में झूम रहे थे. कंचन का पिता मुकेश भी फाग गाता था. फाग गा कर मुकेश जब घर लौटा, तब उसे मासूम कंचन के गुम होने की जानकारी हुई थी. उस के बाद वह कंचन को ढूंढने निकल गया.

लेकिन उस का कुछ भी पता न चल पा रहा था. धीरेधीरे गांव में जब कंचन के गुम होने की खबर फैली तो लोग स्तब्ध रह गए. आज भी अनेक गांवों में ऐसी परंपरा है कि किसी के दुखतकलीफ में लोग एकदूसरे की मदद करते हैं. फाग गाने वाली टोलियों को जब मुकेश की बेटी के गायब होने की जानकारी मिली तो टोलियों ने फाग गाना बंद कर दिया. इस के बाद वे मुकेश के घर पहुंच गए.

घर पर मुकेश की पत्नी संध्या का रोरो कर बुरा हाल था. परिवार की महिलाएं उसे सांत्वना दे रही थीं. लेकिन संध्या का हाल बेहाल था. उस के मन में तमाम तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

उधर कंचन की खोज के लिए पूरा गांव एकजुट हो गया था. मुकेश के चाचा रामखेलावन ने 10-10 लोगों की टीमें बनाईं. चारों टीमों ने टौर्च व लालटेन की रोशनी में अलगअलग दिशाओं में कंचन की खोज शुरू कर दी. गांव के हर खेत, बागबगीचे, नदीनाले व झुरमुटों के बीच टीमों ने कंचन की खोज की लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

एक आशंका यह भी थी कि कहीं कंचन भटक कर गांव के बाहर न पहुंच गई हो और कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया हो. अत: इस दिशा में भी गांव के आसपास के जंगल व ऊंचीनीची जमीन के बीच कंचन की खोज की गई, लेकिन ऐसा कोई सबूत नही मिला. रात भर कंचन की खोज हुई. परंतु कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

जब मासूम कंचन का कुछ भी पता नहीं चला तो मुकेश अपने चाचा रामखेलावन के साथ थाना बिंदकी पहुंच गया. थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को उस ने अपनी 2 वर्षीय बेटी कंचन के लापता होने की जानकारी दे दी.

थानाप्रभारी ने कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने फतेहपुर के समस्त थानों को वायरलैस से 2 साल की कंचन के गुम होने की खबर भेजवा दी. थानाप्रभारी को लगा कि जब कंचन तलाश करने के बाद भी कहीं नहीं मिली है तो जरूर उस का किसी ने अपहरण कर लिया होगा और अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि किसी रंजिश या दूसरे किसी इरादे से किया होगा.

इस की 2 वजह थीं. पहली यह कि मुकेश कुशवाहा की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि कोई फिरौती के लिए उस की बेटी का अपहरण करे. दूसरी वजह यह थी कि 2 दिन बीत जाने के बाद भी मुकेश के पास किसी का फिरौती के लिए फोन नहीं आया था. रंजिश का पता लगाने के लिए थानाप्रभारी चंदेल, मुकेश के गांव नंदापुर पहुंचे.

वहां उन्होंने मुकेश से कुछ देर तक रंजिश के संबंध में पूछताछ की. मुकेश ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई रंजिश नहीं है. रुपयों के लेनदेन तथा जमीन से जुड़ा कोई विवाद भी नहीं है.
इस के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को शक हुआ कि कहीं मासूम का अपहरण किसी सिरफिरे या नशेबाज ने दुष्कर्म के इरादे से तो नहीं कर लिया. फिर दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी हो और शव को किसी नदीनाले या झाडि़यों में छिपा दिया हो.

इस प्रकार का शक उन्हें इसलिए हुआ, क्योंकि होली का त्यौहार था. नशेबाजी जम कर हो रही थी. हो सकता है कि किसी नशेबाज की नजर बच्ची पर पड़ी हो और वह उसे गलत इरादे से उठा कर ले गया हो. शक के आधार पर उन्होंने पुलिस टीम के साथ नदीनालों, जंगल, झाडि़यों आदि में कंचन की खोज की. लेकिन कंचन का सुराग नहीं मिला.

इधर कंचन के लापता होने से कुशवाहा परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि कंचन पता नहीं कहां और किस हाल में होगी. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों मुकेश व उस की पत्नी संध्या की चिंता बढ़ती जा रही थी.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक कंचन का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. तब मुकेश अपने सहयोगियों के साथ फतेहपुर के एसपी कैलाश सिंह से मिलने गया. लेकिन एसपी से उस की मुलाकात नहीं हो सकी. तब मुकेश ने एसपी कपिलदेव मिश्रा से मुलाकात की और अपनी व्यथा व्यक्त की.

एएसपी ने उसी समय थाना बिंदकी के थानाप्रभारी से बात की और कंचन को हर हाल में खोजने का आदेश दिया. इस के बाद थानाप्रभारी जीजान से कंचन को ढूंढने में जुट गए. उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. पुलिस टीम ने क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को उन के घरों से उठा लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन से कंचन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्हें छोड़ना पड़ा.

नाले में मिला कंचन का शव

25 मार्च, 2019 की शाम 4 बजे चरवाहे सैमसी नाले के पास बकरियां चरा रहे थे. तभी उन की निगाह नाले में उतराते हुए एक सफेद रंग के कपड़े पर पड़ी. लग रहा था उस में किसी बच्चे की लाश हो.
चरवाहे नंदापुर व सैमसी गांव के थे, अत: उन्होंने भाग कर गांव वालों को यह बात बता दी. यह खबर मिलते ही सैमसी व नंदापुर गांव के लोग नाले की ओर दौड़ पड़े. मुकेश भी बदहवास हालत में वहां पहुंचा. उसी दौरान किसी ने फोन कर के यह सूचना बिंदकी थाने में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थानाप्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.
मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आलाकत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.
हेमराज का मन न तो खेतीकिसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचारप्रसार के लिए उस ने कुछ युवकयुवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने का निश्चय कर लिया.

हर होलीदिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.
21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएंबाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं. शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.बचपन की मासूमियत संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे.

अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे.चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे. संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे.

अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था. जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे.

किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.जवानी की आगयों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे.

खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई जैसा कि गांवदेहातों में होता है,16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी.

होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है. संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था.

उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा. बेवफाई की दी सजाराजो का अंदाजा गलत नहीं था.

एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है. वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी.

23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन मेें लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे. रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई.

जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा. मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा.

एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए. संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था. राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

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