सरिता ने राजू को गोदी में उठा लिया था और उस के पति ने बैग ले रखा था. सेठ जी के पास मोहन और सरिता के पति दोनों ही गए थे. सेठ जी ने सौ-सौ रुपया दे कर चलता कर दिया था.
सरिता ने सौ रुपयों में राजू के लिए जूतेमोजे और कुछ बिस्कुट के पैकेट ले लिया था. वे लोग ज्यादा दूर नहीं चल पाए थे, बीच में ही पुलिस ने उन्हें रोक लिया था. बहुत सारे लोग तो पुलिस वालों को चकमा दे कर आगे निकल गए पर सरिता और उस के पति के साथ तकरीबन 50 मजदूर नहीं निकल पाए. पुलिस उन्हें अपनी गाड़ी में बिठा कर एक स्कूल में ले गई थी, ‘अभी तुम लोगों को यहीं रुकना है, तुम्हारी जांच होगी, फिर आगे जाने दिया जाएगा.
कोई कुछ नहीं बोला. स्कूल में महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था बनाई गई थी और पुरुषों के लिए अलग. सरिता अपने सीने से राजू को चिपकाए दूर दरी पर सो रही थी.
‘चल, तू मेरे साथ मेरे औफिस में सोना…’
रात के करीब 2 बजे होंगे, सरिता की झपकी लगी ही थी कि उस पुलिस वाले ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया था. सरिता घबरा गई, ‘क्यों? मैं यहीं ठीक हूं.’
‘चलती है कि मैं ही तुझे उठाऊं.’
सरिता की नाक में शराब की बदबू दौड़ गई.
पुलिस वाले ने उसे जबरन उठाने का प्रयास किया. सरिता ने पूरी ताकत लगा कर उसे गिरा दिया. उस ने जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया था.
‘चुप हो जा, नहीं तो तेरी ऐसी दुर्गति कर दूंगा कि तू कहीं की नहीं रहेगी,’ पुलिस वाला बौखला गया था.
सरिता को अपनेआप को बचाना था, इस कारण वह जोरजोर से चिल्ला रही थी. उस की आवाज सुन कर कुछ लोग जाग गए थे. पुलिस वाला तो
लोगों को जागते देख भाग चुका था पर सरिता अभी भी डर के मारे कांप रही थी.
आखिरकार, सभी लोगों की जांच की गई और सभी को आगे जाने की अनुमति दे दी गई. केवल सरिता के पति को रोक लिया, ‘इस में बीमारी के लक्षण हैं,
इसे अभी नहीं जाने दिया जाएगा.’ कुटिल मुसकान थी उस कर्मचारी के चेहरे पर जिसे सरिता ने तो समझ लिया पर और कोई नहीं समझ पाया.
‘कितने दिन रहना पड़ेगा?’
‘कम से कम 14 दिन तक. हो सकता है कि इस के बाद भी रहना पड़े.’
दोनों चुप थे.
‘यदि तुम कल रात में बात मान लेतीं तो यह स्थिति नहीं आती.’
सरिता चुप ही बनी रही. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या उत्तर दे.
‘अभी भी बात मान लो, तो घंटेभर में छोड़ देंगे.’
‘नासपीटे, तू मुझे समझता क्या है? तेरी शिकायत करती हूं, फिर समझ में आएगा,’ सरिता बिफर पड़ी.
‘कर दो शिकायत, जिस से करोगी, पहले वह भी तुम्हें…’ और हंस पड़ा वह. उस के साथ ही और पुलिस वाले भी हंसे थे. सरिता बेबस थी. उस के साथ रुके सारे लोग जा चुके थे. मोहन भी जा चुका था. उस ने पति की ओर देखा और उसे वैसे ही छोड़ कर एक हाथ में बैग और गोद में राजू को ले कर अकेले ही चल पड़ी थी.
सरिता के कदम अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे. वह कभी राजू को गोदी से उतार देती तो कभी गोद में ले लेती. कहीं छांव मिलती, तो रुक जाती.
उस ने राजू के माथे को सहलाया, ‘‘अब चलें, रात होने वाली है. यह सुनसान जगह है.”
राजू का मन बिलकुल भी नहीं हो रहा था, पर अपनी मां की परेशानी को भी वह समझ रहा था, इसलिए अलसाए हुए उठ खड़ा हुआ.
‘‘अच्छा देखो, तुम इस बैग पर बैठ जाओ, इस में चके लगे हैं न. मैं दोनों हाथों से खींचती रहूंगी,” सरिता राजू के मनोभावों और उस की थकान को समझ रही थी. उस के पास और कोई उपाय नहीं था.
राजू ट्रौलीबैग के पहियों पर चढ़ गया और अपना सिर बैग के ऊपर रख लिया. सरिता के लिए अब बैग को खींचना आसान नहीं था. वह अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे खींच रही थी. राजू की आंखें तो बैग में लटके-लटके ही लग गई थीं, पर सरिता के पैर अब जवाब देने लगे थे.
मजदूरों के यों पैदल अपने घर लौटने का मजमा दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा था. इस मजमे में राजू और सरिता भी शामिल थीं. बैग में सो रहे राजू की तसवीरें कैमरे में कैद हो रही थीं. जो भी सरिता और राजू को इस हालत में देखता, उस का मन विषाद से भर जाता.
‘‘कहां जाना है?” एक ट्रक वाले को शायद उस पर दया आ गई थी.
‘‘मढ़ई गांव.”
‘‘आओ, बैठ जाओ, गांव से थोड़ी दूर उतार दूंगा.”
अपने गांव तक सरिता को पैदल ही जाना पड़ा. राजू को गोद से उतार कर वह अपन बूढ़ी सास के गले लग कर रोती रही थी बहुत देर तक.
सरिता का पति 15 दिनों बाद लौट पाया. उसे तो जबरन मरीज बता कर रखा गया था. आते ही वह फूटफूट कर रोने लगा. सरिता का सारा गुस्सा उस पर उतारा गया था.
‘‘दिनभर काम कराते थे और 2 सूखी रोटी खाने को दे देते थे,” पति की आंखों में आंसू थे.
‘‘तो तुम ने शिकायत क्यों नहीं की,” सरिता पति की दारुण कथा सुन कर द्रवित हो रही थी.
‘‘सुनाई थी. उस दिन कोई बड़े नेता आए थे. उन के सामने मैं बिफरबिफर कर रो पड़ा था और सारी बातें चीखचीख कर बोल दी थीं. पर वे केवल हंसते रहे थे. उन्होंने एक शब्द भी किसी से कुछ नहीं बोला. साले झूठे…” और उस ने जोर से अपने आंगन में थूक दिया, “बताएं सरिता, वे कह रहे थे कि सरकार ने गरीबों के लिए बहुत सारे पैसे दिए हैं और राशन भी दिया है. तुम को मिला कुछ?” प्रश्नवाचक निगाहों से उस ने सरिता की ओर देखा.
‘‘कछु नई मिलो. राशन वालो कहत है कि वाके पास राशन आओ ही नहीं है तो वो कहां से देगा और बैंक जाओ तो वे अंदर घुसवे के पहिले ही बता देते हैं कि कोई पैसा नहीं आया. नेता लोग तो केवल गपें मारत हैं,” सरिता के चेहरे पर घृणा के भाव उभर आए थे.
‘‘जा सरकार तो केवल गपें मारवे के काजे ही आई है. अब आने दो, कोई भी नेता को वोट मांगवे, उन से पूछ ले हैं कि तब वे कहां थे जब वह अपने छोटे से बेटे के साथ पैदल चल कर गांव आ रही थी. पूरे पांव में ऐसे छाले पड़ गए थे कि अभी तक ठीक नहीं हुए और राजू भी बेचारा भूखाप्यासा मारामारा ही पैदल चला न,” सरिता के पति ने दुखीमन से कहा.
दुखों की मारी सरिता ने अपने पैरों को सहलाया. पैरों में अभी दर्द होता था.
गांव में थाली बजने और शंख बजने की आवाज गूंज रही थी. सरिता ने आसमान की ओर देखा और जोर से जमीन पर थूका. ‘‘सालो, अब सब तो बरबाद कर दिया है…’ वह बड़बड़ाती हुई मकान के अंदर जा चुकी थी.