आखिर क्या था कमरा नंबर 104 का रहस्य

अमृतसर के सिटी सैंटर स्थित होटल सिंह इंटरनेशनल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दीपक से आने वाले युवक ने कहा था कि उसे ठहरने के लिए कमरा चाहिए तो उन्होंने रूम बौय को आवाज दे कर उसे कमरा दिखाने भेज दिया था. रूमबौय उस युवक को कमरा दिखाने फर्स्ट फ्लोर पर ले जाने लगा तो उस ने साथ आई युवती को स्वागतकक्ष में ही बैठा दिया था और खुद कमरा देखने चला गया था. युवक को कमरा पसंद आ गया तो दीपक ने एंट्री रजिस्टर उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, इस में आप अपना नामपता और फोन नंबर आदि लिख कर अपनी और मैडम की आईडी दे दीजिए. कमरे का किराया एक हजार रुपए प्रतिदिन होगा और नियम के अनुसार चैकआउट का समय दोपहर 12 बजे होगा.’’

दीपक से एंट्री रजिस्टर ले कर उस ने युवक ने अपना नाम रणवीर सिंह और साथ आई युवती को पत्नी बता कर उस का नाम मोनिका लिख दिया. पता उस ने 26-ए, नियर केवीएस मालवीय रोड, जयपुर, राजस्थान लिखा. मोबाइल नंबर- 8766711800 लिख कर अपनी और पत्नी मोनिका की आईडी दीपक के पास जमा करा दी. इस के बाद रूम बौय ने उन्हें होटल के कमरा नंबर 104 में पहुंचा दिया. यह 12 नवंबर, 2016 की बात है. उस समय शाम के यही कोई साढे़ 4 बज रहे थे.

कुछ देर आराम करने के बाद दोनों ने चायनाश्ता किया और स्वर्णमंदिर श्री हरमिंदर साहिब के दर्शन करने चले गए. लौट कर उन्होंने रात का खाना होटल से ही मंगवा कर खाया. अगले दिन यानी 13 नवंबर को दोनों सुबह 11 बजे घूमने के लिए निकले तो रात करीब साढ़े 8 बजे लौटे. खाना वगैरह खा कर वे सो गए तो अगले दिन यानी 14 नवंबर को दोनों में से न कोई बाहर आया और न चायनाश्ता या खाना मंगाया.

पूरा दिन बीत गया और उस कमरे में कोई हलचल नहीं हुई तो रात 10 बजे के करीब होटल मैनेजर दीपक यह पता करने के लिए कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि करीब 30 घंटे से इस कमरे से कोई बाहर नहीं निकला है.

दीपक ने दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं, लेकिन अंदर किसी तरह की हलचल नहीं हुई. उन्होंने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. अंदर उन्हें जो दिखाई दिया, वह परेशान करने वाला था. वह भाग कर नीचे आए और होटल के मालिक करनदीप सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘सरदारजी, कमरा नंबर 104 में एक लाश पड़ी है.’’

करनदीप सिंह फौरन होटल पहुंचे तो सारा स्टाफ कमरा नंबर 104 के सामने खड़ा था. उन्होंने देखा, कमरे के बैड पर 24-25 साल की एक युवती की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पूछने पर मैनेजर दीपक ने बताया, ‘‘यह युवती 2 दिनों पहले ही अपने पति रणवीर सिंह के साथ होटल में आई थी.’’

‘‘इस का पति कहां है?’’

‘‘13 नवंबर की रात से वह दिखाई नहीं दिया.’’ दीपक ने कहा.

इस के बाद करनदीप सिंह ने थाना रामबाग की बसअड्डा पुलिस चौकी को फोन कर के मुंशी संजीव कुमार को इस बात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही चौकीइंचार्ज एएसआई सुशील कुमार पुलिस बल के साथ होटल सिंह इंटरनेशनल आ पहुंचे. होटल में लाश मिलने की सूचना उन्होंने थाना रामबाग के थानाप्रभारी, एसीपी और क्राइम टीम को भी दे दी थी.

उन्हीं की सूचना पर थाना रामबाग के थानाप्रभारी इंसपेक्टर दलविंदर कुमार, एसीपी (ईस्ट) गुरमेल सिंह भी होटल आ पहुंचे थे. पुलिस ने कमरे और लाश का निरीक्षण किया. बैड पर लाश पड़ी थी. उसी के पास रखी टेबल पर खून सनी एक हथौड़ी रखी थी. उसी टेबल पर पानी का जग और 2 गिलास रखे थे.

मृतका के सिर के पिछले हिस्से में गहरे घाव थे. चेहरे पर भी चोटों के गंभीर निशान थे, जो संभवत: हथौड़ी के वार से हुए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों के अनुसार, हत्यारा इतना चालाक था कि उस ने कमरे की इस तरह सफाई की थी कि कहीं भी उस की अंगुली के निशान नहीं मिले थे. हथौड़ी पर भी अंगुलियों के निशान नहीं थे.

चौकीइंचार्ज ने लाश को कब्जे में ले कर सारी काररवाई निपटाई और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर अपराध संख्या 460/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की 12 नवंबर से 15 नवंबर तक की फुटेज कब्जे में ले ली थी. रजिस्टर में दर्ज रणवीर और मोनिका का पता, फोन नंबर नोट कर के रणवीर द्वारा होटल में जमा कराई गई आईडी भी अपने कब्जे में ले ली.

पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या रणवीर ने ही की है, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने उस की तलाश के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई बलदेव सिंह, हैडकांस्टेबल बलविंदर सिंह, हीरा सिंह, बूटा सिंह, गुरचरण सिंह, गुरप्रीत सिंह, हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और कांस्टेबल रणजीत सिंह को शामिल किया.

होटल के रजिस्टर में रणवीर द्वारा लिखवाया गया मोबाइल नंबर चैक किया गया तो वह फरजी पाया गया. जयपुर भेजी गई पुलिस टीम ने लौट कर बताया कि होटल में रणवीर ने जो पता लिखाया था और जो आईडी दी थी, वे सब फरजी थीं. इस के बाद सीसीटीवी फुटेज से मिले रणवीर और मोनिका के फोटो पंजाब और राजस्थान के सभी थानों को भेज कर कहा गया कि अगर इन के बारे में कोई जानकारी मिले तो सूचना दी जाए.

लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद शिनाख्त न होने की वजह से चौकीइंचार्ज सुशील कुमार ने अपने खर्चे से उस का अंतिम संस्कार करा दिया. लाख प्रयास के बाद भी रणवीर और मृतका के बारे में कोई जानकारी न मिलने से सुशील कुमार भी शांत हो गए.

लेकिन 8 दिसंबर, 2016 को अचानक बाड़मेर, राजस्थान के पुलिस अधीक्षक गगन सिंगला के औफिस से एक संदेश मिला, जिस में कहा गया था कि अमृतसर के होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में पत्नी भावना चौधरी की हत्या कर के फरार हुआ हत्यारा राजेंद्र चौधरी उन की हिरासत में है.

सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए चौकीइंचार्ज सुशील कुमार अपने साथ हैडकांस्टेबल हरप्रीत सिंह, हरजिंदर सिंह और बलविंदर सिंह को ले कर 9 दिसंबर को बाड़मेर पहुंच गए. थाना सदर के थानाप्रभारी जयराम चौधरी के सामने उन्होंने राजेंद्र चौधरी से शुरुआती पूछताछ कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ करने एवं सबूत जुटाने के लिए 10 दिसंबर, 2016 को उसे बाड़मेर के जेएमसी अंबिका सोलंकी बल्होत्रा की अदालत में पेश कर के 3 दिनों के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया.

राजेंद्र चौधरी उर्फ रणवीर सिंह को अमृतसर ला कर ड्यूटी मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर के रिमांड पर लिया और पुलिस चौकी ला कर पूछताछ की गई तो होटल सिंह इंटरनेशनल के कमरा नंबर 104 में हुई युवती की हत्या के बारे में की गई पूछताछ में उस ने जो कहानी बताई, वह घरेलू कलह और संदेह के घेरे में कैद एक अविवेकी पुरुष की मानसिकता से जुड़ी कहानी थी.

राजेंद्र प्रकाश चौधरी राजस्थान के जिला बाड़मेर के सारणनगर-जालिया के रहने वाले तगाराम का बेटा था. राजेंद्र के अलावा उन की 2 संतानें और थीं, एक बेटा और एक बेटी. 12वीं करने के बाद राजेंद्र डिस्कौम कंपनी में इलैक्ट्रिशियन की नौकरी करने लगा था. पितापुत्र की कमाई से घर के खर्च आराम से चल जाते थे.

राजेंद्र की नौकरी लग गई तो घर वालों ने लड़की देख कर 10 जून, 2014 को भावना से उस की शादी कर दी. भावना बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन खराब भी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों सामान्य शक्लसूरत के थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को दिल से चाहते थे. पर इस में परेशानी तब खड़ी हुई, जब राजेंद्र पत्नी पर संदेह करने लगा.

दरअसल, भावना का हंसमुख स्वभाव ही उस के लिए दुश्मन बन गया. अपने इसी स्वभाव की वजह से वह हर किसी से हंसहंस कर बातें कर लेती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से घर वाले ही नहीं, बाहर वाले भी उसे पसंद करते थे. लेकिन राजेंद्र को उस का यह स्वभाव यानी हर किसी से हंसनाबोलना जरा भी पसंद नहीं था.

इसी बात को ले कर पहले तो थोड़ीबहुत कहासुनी होती रही, लेकिन धीरेधीरे इस कहासुनी ने झगड़े का रूप ले लिया. जब यह झगड़ा रोजरोज होने लगा तो राजेंद्र की मोहल्ले में बदनामी होने लगी. इस बदनामी से बचने के लिए उस ने घर छोड़ दिया और नेहरूनगर में किराए का मकान ले कर पत्नी के साथ रहने लगा.

राजेंद्र ने घर जरूर बदल लिया था, लेकिन न उस का स्वभाव बदला था और न भावना का. इसलिए घर वालों से अलग होने के बाद पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़े और ज्यादा होने लगे. वह भावना को किसी से बातें करते देख लेता तो उस का खून खौल उठता. भावना लाख सफाई देती, लेकिन वह उस की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं करता था. इसी वजह से वह शराब भी पीने लगा.

एक दिन झगड़ा करने के बाद राजेंद्र ने शराब पी तो उस के दिमाग में आया कि ऐसी बेशर्म और बदचलन औरत को मौत के घाट उतार देना ही ठीक है. यह जब तक जिंदा रहेगी, उसे इसी तरह जिल्लत और बदनामी झेलनी पड़ेगी. बस इसी के बाद वह भावना की हत्या के बारे में सोचने लगा.

वह भावना की हत्या कुछ इस तरीके से करना चाहता था कि किसी भी सूरत में पकड़ा न जाए. इस के लिए वह साइबर कैफे जा कर इंटरनेट पर भावना की हत्या के लिए आइडिया ढूंढ़ने लगा. आखिर एक दिन उसे आइडिया मिल गया. इस के बाद उस ने बाजार से एक सर्जिकल ब्लेड और हथौड़ी खरीद कर रख ली.

इस के बाद राजेंद्र ने साइबर कैफे से ही अपने और भावना के फरजी नाम रणवीर और मोनिका के नाम से पहचान पत्र बनाया. योजना के अनुसार, उस ने भावना से लड़ाईझगड़ा बंद कर दिया और उसे विश्वास में लेने के लिए प्यार से बातें करने लगा. फरजी पहचान पत्र से नया सिम खरीद कर उस ने भावना से कहा, ‘‘अब हमारे घर का झगड़ाक्लेश खत्म हो गया है, क्यों न हम कहीं घूमने चलें?’’

भावना को भला इस में क्या ऐतराज हो सकता था. वह तैयार हो गई तो 10 नवंबर, 2016 को फरजी पहचान पत्र से टिकट करा कर वह भावना के साथ अमृतसर आ गया. घर से चलते समय उस ने अपना मोबाइल फोन घर में ही खड़ी मोटरसाइकिल की डिक्की में रख दिया था, जिस से कभी कोई बात हो तो उस के फोन की लोकेशन घर की मिले.

अमृतसर में उस ने होटल सिंह इंटरनेशनल में कमरा नंबर 104 बुक कराया और उसी में भावना के साथ ठहर गया. 13 नवंबर को दिन में उस ने भावना को अमृतसर में घुमाया और रात 9 बजे लौट कर होटल के कमरे में ही शराब पीने बैठ गया. बातोंबातों में प्यार की दुहाई दे कर उस ने भावना को भी शराब पिला दी.

रात के 11 बजे के करीब राजेंद्र ने देखा कि भावना की नशे और नींद की खुमारी में आंखें बंद हो रही हैं तो पहले उस ने उसे पीटपीट कर अधमरा कर दिया. इस के बाद साथ लाई हथौड़ी से उस के सिर और चेहरे पर कई वार किए. वह बेहोश हो गई तो सर्जिकल ब्लेड से श्वांस नली काट दी.

भावना की हत्या करने के बाद उस ने कमरे में मौजूद एकएक चीज से अपनी अंगुलियों के निशान मिटाए. इस के बाद 12 बजे के करीब कमरे का दरवाजा बंद कर के वह होटल के बाहर निकल गया. रेलवे स्टेशन से उस ने ट्रेन पकड़ी और बाड़मेर पहुंच गया.

घर आने पर उसे पता चला कि उस की अनुपस्थिति में उस का साला देवेंद्र भावना के बारे में पता करने आया था. इस के बाद जब उस से भावना के बारे में पूछा गया तो सारी सच्चाई सामने आ गई और भावना की हत्या का राज खुल गया.

सबूत जुटाने के लिए राजेंद्र को 2 दिनों के रिमांड पर और लिया गया. इस बीच उस की निशानदेही पर उस के घर से सर्जिकल ब्लेड बरामद कर ली गई. हथौड़ी होटल के कमरे से बरामद ही हो चुकी थी, इसलिए 2 दिनों का रिमांड समाप्त होने पर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जब दोस्ती पर भारी पड़ गया शराब का नशा

उड़ीसा के रहने वाले 25 साल के कुमार मांझी की अपने से 10 साल बड़े सीतापुर निवासी पूरन से गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ मिल कर कोई छोटामोटा काम करते और जो कमाते, उसी से गुजरबसर करते थे. इन के परिवार भी थे, लेकिन दोनों ही घर वालों के साथ नहीं रहते थे. ये दिन भर में जो कमाते थे, शाम को सीतापुर रोड पर कूड़ाखाना के पास स्थित देशी शराब के ठेके पर जा कर शराब में उड़ा देते थे.

मांझी और पूरन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों को ही एकदूसरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था. यहां तक कि उन्हें परिवार की भी कमी नहीं खलती थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन वे लगते हमउम्र थे. इन की गहरी दोस्ती होने की वजह यह थी कि दोनों ही आपस में एक जैसा व्यवहार करते थे. दोनों की पसंद भी एक जैसी थी.

कई बार मांझी और पूरन के अन्य साथी इन के साथ रहना चाहते या बात करना चाहते तो दोनों ही उन से कन्नी काट लेते थे. दोनों ही पक्के शराबी थे. बिना शराब के वे एक भी दिन नहीं रह सकते थे. लेकिन शराब पीने के बाद अकसर दोनों में लड़ाई हो जाती थी. कई बार मारपीट भी हो जाती थी, इस के बावजूद दोनों देर तक एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे.

रात में लड़ाई होती थी तो सवेरा होतेहोते सब ठीक हो जाता था. यह देख कर उन के अन्य दोस्त कहते भी थे कि मांझी और पूरन कब लड़ते हैं, पता ही नहीं चलता, सवेरे दोनों का चायनाश्ता एक साथ होता है. इस के बाद वे साथसाथ ही काम पर जाते थे.

पूरन और कुमार मांझी ने उस रात भी जम कर शराब पी थी. इस के बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो गई. बात बढ़ी तो पूरन ने कहा, ‘‘मांझी, तू कभी पैसे खर्च नहीं करता. हमेशा मेरे पैसे ही खर्च कराता है.’’

‘‘हमारे बीच पैसा आ गया, इस का मतलब हमारी दोस्ती खतम.’’ मांझी ने कहा.

‘‘भई, दोस्ती रहे या खतम हो जाए, हम इस बारे में कुछ नहीं जानते. हम तो यह जानते हैं कि पैसे का सही से हिसाब होना चाहिए. पिछली बार के 100 रुपए अभी तक तुम ने नहीं दिए हैं.’’ पूरन ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो कई बार पैसे खर्च किए हैं, उन का क्या होगा?’’ मांझी ने कहा.

इस के बाद उन के बीच बात बढ़ गई. दोनों ही नशे में थे. ऐसे में आगापीछा सोचे बगैर आपस में हाथापाई करने लगे. मारपीट में उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं. मांझी ज्यादा नशे में था, इसलिए पूरन ने उसे पीट दिया. मारपीट कर के पूरन बैठ गया. नशे की वजह से उसे झपकी आ गई.

नशा कम होने पर मांझी थोड़ा होश में आया तो उसे याद आया कि पूरन ने उसे मारा था. उसे गुस्सा आ गया और ईंट उठा कर उस ने पूरन के सिर पर दे मारी. तब उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस से पूरन मर भी सकता है.

रात में दोनों रघुवर पैलेस के पास खाली प्लौट में बैठे थे. सवेरे 4 बजे कुमार मांझी इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर स्थित अनिल की दुकान पर पहुंचा. दोनों अकसर यहीं चायनाश्ता करते थे. कुमार के कपड़ों में खून लगा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘तेरे कपड़ों में खून कहां से लगा, पूरन कहां गया?’’

मांझी ने कहा, ‘‘कल रात पूरन से सौ रुपए को ले कर लड़ाई हो गई थी. वह मुझे बेईमान कह रहा था. जब मैं ने उसे सच बताया तो वह झगड़ा करने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो मैं ने ईंट से मार कर उस की हत्या कर दी. लेकिन अनिल भाई, अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उस की मौत का मुझे पछतावा हो रहा है.’’

उस से कुछ कहने के बजाय अनिल ने उसे दुकान पर बैठा दिया और पुलिस को सूचना देने के लिए फोन करने लगा. लेकिन दूसरी ओर से फोन उठा ही नहीं. करीब 7 बजे अनिल ने रघुवर पैलेस के मैनेजर वीरेंद्र को घटना की सूचना दी तो वीरेंद्र ने जानकीपुरम थाने में तैनात सबइंसपेक्टर को फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी.

इस के बाद 9 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस में पुलिस को कुछ समय लग गया. तब तक कुमार मांझी को पूरी तरह होश आ गया था. होश में आने के बाद उसे पता चला कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है तो पुलिस की मार की डर से वह कांपने लगा.

दोस्त की हत्या के साथसाथ पुलिस की मार का डर उसे सताने लगा. वहां मौजूद लोगों ने जब उसे बताया कि हत्या के बाद फांसी हो सकती है तो वह काफी डर गया. हत्या के आरोप में मिलने वाली सजा के डर से वह जंगल की ओर भागा.

अनिल ने मांझी को भागते देखा तो उसे पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा. आसपास के लोगों ने उस का पीछा किया. लेकिन तब तक वह गुडंबा के जंगल में घुस गया, जहां एक पेड़ के पीछे छिप गया. पुलिस अन्य लोगों को साथ मिल कर मांझी की तलाश करती रही. करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद मांझी को पकड़ लिया गया और थाने लाया गया.

थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीश सिन्हा ने बताया कि अपने दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़े गए कुमार मांझी ने स्वीकार कर लिया है कि सौ रुपए के विवाद में उस ने दोस्त की हत्या को अंजाम दिया था.

शुक्रवार की रात कुमार मांझी से मृतक पूरन ने सौ रुपए उधार मांगे थे. पैसे न होने पर कुमार ने देने से मना कर दिया, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. मारपीट के दौरान कुमार ने ईंट से पूरन के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

मांझी और पूरन की दोस्ती पर शराब का नशा भारी पड़ा. अगर दोनों शराब न पीते होते तो सौ रुपए जैसी मामूली रकम के लिए मांझी अपने सच्चे दोस्त की हत्या कतई नहीं कर सकता था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कुमार मांझी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

भाई ने ही कराई अपने भाइयों की हत्या

24 नवंबर, 2016 की रात पटना के जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स की चौथी मंजिल पर स्थित फ्लैट में रहने वाले शिवराज चौधरी के बेटों अभिषेक और सागर चौधरी की हत्या हो गई थी. दोनों भाइयों की लाशें पुलिस ने फ्लैट के एक ही कमरे से बरामद की थीं. दोनों भाई यह फ्लैट किराए पर ले कर रह रहे थे. हत्यारों ने दोनों भाइयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. हत्या के बाद गुप्तांग भी काट लिए थे. अभिषेक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. सागर के गले में प्लास्टिक की रस्सी लपेटी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी.

हत्यारों ने अभिषेक और सागर की हत्या में चाकू का भी उपयोग किया गया था. उन के शरीर पर चाकुओं के करीब 25-30 घाव थे. शरीर का कोई भी अंग बाकी नहीं था, जहां चाकू का घाव न रहा हो. इस से साफ लग रहा था कि हत्यारों को मृतकों से काफी खुन्नस थी.

पुलिस ने रोहतास, पटना और भोजपुर के ऐसे 9 लोगों से पूछताछ की, जिन का अभिषेक से संबंध था. ये सभी अभिषेक और सागर के करीबी रिश्तेदार थे. इन लोगों से पूछताछ में पता चला था कि सासाराम के बंजारी इलाके की रहने वाली किसी लड़की से अभिषेक का विवाह होने वाला था.

उस लड़की से अभिषेक की सगाई 16 सितंबर, 2016 को रोहतास में हुई थी. 23 नवंबर को शादी होने वाली थी. सगाई के बाद लड़की से अभिषेक की फोन पर बातें होने लगी थीं. लेकिन कुछ दिनों बाद ही सगाई टूट गई थी.

पुलिस ने जब इस की वजह पता की तो घर वालों ने बताया कि लड़की के सुंदर न होने की वजह से यह सगाई टूटी थी. अभिषेक के पिता शिवराज चौधरी का कहना था कि अभिषेक की सगाई होने के कुछ दिनों बाद ही उस की मर्चेंट नेवी में नौकरी लग गई थी.

मई, 2017 में उसे मुंबई जा कर नौकरी जौइन करनी थी. इसी बात को ले कर उसे विवाह में मामला उलझ गया था. अभिषेक के कैरियर को देखते हुए लड़की के घर वालों से विवाह के लिए मना कर दिया गया था, जिस की वजह से दोनों परिवारों में काफी विवाद हुआ था. अभिषेक के घर वालों ने दहेज के रूप में लड़की वालों से एक लाख रुपए एडवांस ले रखे थे.

24 नवंबर की सुबह 7 बजे अभिषेक नारायणपुर गांव के अपने घर से पटना पहुंचा था, जहां उस की मुलाकात कुछ दोस्तों से हुई थी. दोपहर 2 बजे वह अपने जीजा अमित से मिला था. वह पटना हाइकोर्ट में वकालत करते हैं. उसी दिन अभिषेक के मंझले भाई सागर को किसी काम से घर जाना था. वह घर के लिए निकला जरूर, पर पहुंचा नहीं.

अभिषेक और सागर के सब से छोटे भाई का नाम अमित चौधरी उर्फ भोलू है. पहले पुलिस को उसी पर दोनों भाइयों की हत्या का शक था. पुलिस उस से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन घर वाले पुलिस से कह रहे थे कि वह बीमार है. घर वालों का कहना था कि 2 भाइयों की हत्या की वजह से वह गहरे सदमे में हैं.

गौरतलब है कि हत्या के बाद भोलू और उस के मामा ही सब से पहले कमरे में पहुंचे थे. पुलिस को यह भी लग रहा था कि कहीं दोनों भाइयों की हत्या प्रेमप्रसंग की वजह से तो नहीं हुई है. लेकिन घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि इस हत्याकांड में किसी जानपहचान वाले का हाथ है. इस की वजह यह थी कि हत्यारा आराम से दोनों के कमरे में पहुंच गया था और दोनों की हत्या कर के चला गया था.

हत्या वाले दिन दोपहर 2 बजे अभिषेक ने पिता शिवराज चौधरी और मां रेणु देवी को फोन कर के बात की थी. अभिषेक का बहनोई अमित दोनों का खाना पहुंचाता था. दोनों भाई पटना में रह कर मोबाइल फोन एसेसरीज का कारोबार करते थे. इस के अलावा दोनों भाई आरा से बिहटा ट्रक चलवाते थे.

उन का बालू का ठेका भी था. बालू के ठेके और ट्रक को ले कर कई बार दोनों भाई विवादों में फंस चुके थे. उन का एक डंपर उत्तर प्रदेश में भी चलता था. शिवराज चौधरी का कहना था कि उन के बेटों की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दोनों बेटों की हत्या से उन के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

पहले दोनों भाई गांव में किराए पर जेनरेटर चलाते थे. इस के बाद उन्होंने पोल्ट्री फार्म और डेयरी फार्म का भी काम किया. पास में कुछ पैसे आए तो उन्होंने पटना में कारोबार करने का विचार किया. पटना आ कर दोनों ने 2 ट्रक खरीदे और उन्हें किराए पर चलाने लगे.

सन 2014 में जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स में उन्होंने रहने के लिए राजकुमार गुप्ता का फ्लैट किराए पर लिया था. मकान मालिक ने बताया था कि दोनों भाई काफी शांत स्वभाव के थे. उन का बाहरी लोगों से कोई लेनादेना नहीं था.

हत्यारा दोनों भाइयों के मोबाइल फोन भी ले गया था. शायद हत्यारों का सोचना था कि मोबाइल फोन गायब होने से पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलेगा, लेकिन वही पुलिस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुआ.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. वहीं 24 साल के अमित को अपने भाइयों की हत्या करवाने का जरा भी मलाल नहीं था. उस का कहना था कि उसे अपने भाइयों से नफरत हो गई थी. बड़ा भाई अभिषेक हमेशा परेशान करता रहता था. मंझला भाई सागर हमेशा उसे डांटतामारता रहता था. उन्होंने अपना धंधा तो चमका लिया था, जबकि उसे कोई काम नहीं करने दे रहे थे.

जब अभिषेक ने उसे घर से भगा दिया तो उसे लगा कि अगर दोनों भाइयों को रास्ते से हटा दिया जाए तो पिता और भाइयों की सारी संपत्ति उस की हो जाएगी. उस के बाद वह अकेला ऐश करेगा. इसी लालच में उस ने अपने भाइयों अभिषेक और सागर की हत्या करने का विचार बना लिया था.

22 अक्तूबर को अभिषेक और सागर ने अमित को घर से भगा दिया था. पहले अभिषेक ने एक ट्रक खरीदा था, उस के कुछ दिनों बाद सागर ने एक ट्रक खरीदा था. दोनों मिल कर तीसरा ट्रक खरीदना चाहते थे. अमित भी अपना एक ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. लेकिन भाइयों ने रुपए देने से ही मना ही नहीं कर दिया, बल्कि उसे घर से भाग जाने के लिए कह दिया.

इसी से नाराज हो कर अमित ने दोनों बड़े भाइयों अभिषेक और सागर को सबक सिखाने का मन बना लिया. अभिषेक ने फ्लैट की 3 चाबियां बनवा रखी थीं, जिस में से एक चाबी अभिषेक के पास रहती थी तो दूसरी सागर के पास रहती थी. जबकि तीसरी चाबी दरवाजे के ऊपर वेंटीलेटर पर रखी रहती थी. उस के बारे में उन दोनों के अलावा अमित और उन के पिता शिवराज चौधरी को पता था.

अमित के रिश्तेदारों का कहना था कि अमित इधर गलत लोगों की संगत में पड़ गया था. ऐसे लोगों से दूर रखने के लिए अभिषेक ने उसे बालू के कारोबार में लगा दिया था, जहां वह रुपयों की हेराफेरी करने लगा था. अभिषेक ने उसे कई बार समझाया, पर वह नहीं माना. दिवाली के पहले अमित की चोरी पकड़ी गई तो सागर ने उस की पिटाई कर दी थी.

शायद पिटाई से ही नाराज हो कर अमित ने अपराधियों के साथ मिल कर भाइयों की हत्या की साजिश रच डाली थी. अमित अपना ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. रुपए देने के बजाय दोनों भाई यही सलाह दे रहे थे कि वह पहले ट्रक चलवाने वाले कारोबार को अच्छी तरह समझ ले, उस के बाद ही वह इस कारोबार को शुरू करे.

बगैर समझेबूझे कोई काम करने से रुपए डूब सकते हैं. अमित भाइयों की बात मानने के बजाय ट्रक खरीदने की जिद पर अड़ा था. अभिषेक ने रुपए देने से मना कर दिया तो अमित उस के दुश्मन संतोष से जा मिला. आरा के नारायणपुर गांव के ही रहने वाले संतोष से अभिषेक का कुछ दिनों पहले ही झगड़ा हुआ था.

अमित ने उसी के साथ मिल कर अभिषेक की हत्या की योजना बनाई. संतोष को भी अभिषेक से बदला लेना था, इसलिए वह तुरंत उस की हत्या करने को तैयार हो गया. उसे इस काम के लिए ढाई लाख रुपए देने को भी कहा था. संतोष ने उसे अपने गैंग में शामिल करने का वादा किया था.

कुमार कौंप्लेक्स से कुछ दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में पुलिस को 3 सदिग्धों की फोटो मिली. उन फोटो को ले कर पुलिस आरा पहुंची तो तीनों की पहचान हो गई. पता चला कि वे आरा के छुटभैए अपराधी थे, जिन का नाम संतोष, नीतीश और सच्चिदानंद था. इस के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया कि अमित ने ही उन्हें भाइयों की हत्या की सुपारी दी थी.

पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर रितेश और रमेश को भी आरा से गिरफ्तार कर लिया गया. इन के पास से 8 मोबाइल फोन, 3 चाकू और एक हथौड़ा बरामद किया गया. संतोष अभी नहीं पकड़ा जा सका है. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए ताबड़तोड़ छापे मार रही है. आरा में उस के खिलाफ दरजनों मामले दर्ज हैं.

पुलिस ने अमित से सख्ती से पूछताछ की तो वह घबरा गया. पुलिस ने उस से पूछा कि वह घटना वाले दिन कहां था तो उस ने कहा कि वह आरा में ही था. लेकिन मोबाइल फोन की लोकेशन से उस का झूठ पकड़ा गया. लोकेशन के अनुसार उस दिन वह पटना में था. इस के बाद पुलिस ने सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

अमित ने जो बताया उस के अनुसार, 23 नवंबर, 2016 की रात सागर जमाल रोड वाले फ्लैट में अकेला था. अमित, संतोष, सच्चिदानंद और नीतीश को साथ ले कर फ्लैट पर पहुंचा. अमित खुद नीचे रह गया, जबकि तीनों अपराधियों को ऊपर भेज दिया. हत्यारों ने सागर के सिर पर हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया.

उस के बाद अंगौछे से गला कस कर हत्या कर दी. उन्होंने अमित को बताया कि सागर को मार दिया है तो वह ऊपर पहुंचा और सागर की लाश को घसीट कर पूजाघर में छिपा दिया. सागर की हत्या कर के सभी बाहर आ गए और दरवाजा लौक कर के अभिषेक के पीछे लग गए.

24 नवंबर, 2016 को 10 बजे अभिषेक फ्लैट पर पहुंचा तो पीछा करता हुआ अमित, संतोष, रितेश और रमेश के साथ फ्लैट पर पहुंच गया. इस बार भी अमित नीचे ही खड़ा रहा और तीनों अपराधी अभिषेक के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने अभिषेक के सिर पर भी हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया और फिर गला रेत कर हत्या कर दी. उस के प्राइवेट अंगों को भी काट दिया. इस के बाद अमित कमरे में पहुंचा और अभिषेक की लाश को भी पूजाघर में ले जा कर छिपा दिया.

इस के बाद दोनों लाशों पर एसिड डाल कर जलाने की कोशिश की. उस ने कमरे में फैले खून को साफ किया और बाहर से दरवाजा बंद कर के सब के साथ फरार हो गया.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि संपत्ति विवाद और ईर्ष्या की वजह से अभिषेक और सागर के छोटे भाई अमित ने ही उन की हत्या करवाई थी. 3 भाइयों में अभिषेक सब से बड़ा था और सागर उस से छोटा, अमित सब से छोटा था. 23 नवंबर को अमित के मोबाइल फोन की लोकेशन पटना की पाई गई तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया था.

बीए करने के बाद अमित नौकरी खोज रहा था. जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो वह अपने दोनों बड़े भाइयों से रुपए मांगने लगा था. कुछ समय तक अभिषेक रुपए देता रहा. उस के बाद में उस ने अभिषेक से कहा कि वह अपना अलग धंधा करना चाहता है, जिस के लिए वह उसे रुपए दे.

पिछली दिवाली से ही अमित अपने भाइयों से कारोबार के लिए रुपए मांग रहा था. जबकि वे टालमटोल कर रहे थे. अभिषेक के रवैए से नाराज हो कर अकसर अमित घर में हंगामा करता रहता था.

शिवराज चौधरी के 7 बच्चे हैं. अभिषेक, सागर और अमित के अलावा उन की 4 बेटियां हैं. चारों बेटियों का विवाह हो चुका है. घर वालों का कहना है कि अमित के रवैए और उस की अपराधियों से दोस्ती की वजह से घर के सभी लोग परेशान थे. उस पर किसी के समझाने का असर नहीं हो रहा था. वह रातोंरात करोड़पति बनने के सपने देखा करता था.

अभिषेक और सागर को उस के ही छोटे भाई अमित ने मौत के घाट उतरवा दिया था. अब वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है. एक साथ तीनों बेटों के खोने के दर्द में डूबे शिवराज चौधरी आंखों में आंसू लिए कहते हैं कि उन का परिवार और जिंदगी दोनों बरबाद हो गई.

उन की पत्नी रेणु चौधरी बुत बनी बैठी रहती हैं. उन्हें किसी चीज की सुध नहीं है. उन की सूनी आंखें मानो हर पल अपने बच्चों को ढूंढती रहती हैं. शिवराज कहते हैं कि दौलत के लिए भाइयों के झगड़े के बारे में कई कहानियां सुनी थीं, पर उन के ही बेटे ने एक दर्दनाक कहानी बना डाली. अब उन की जिंदगी बेकार है.

ये है 37 अरब का फर्जीवाड़ा डौट कौम

हम भारतीय हर माने में देश को अमेरिका बनाना चाहते हैं, पर यह नहीं देखते कि अमेरिका ने किस तरह अपनी एक टौप की ऐनर्जी कंपनी ‘एनरौन’ के खातों में घपला पाए जाने पर न सिर्फ कंपनी के मालिक को पकड़ कर जेल में डाल दिया, बल्कि इस की नीलामी से मिले पैसे धोखाधड़ी के शिकार निवेशकों में बांट दिए. अमेरिका ही नहीं, इंडस्ट्री के बल पर चल रहे दक्षिण कोरिया में दुनिया की 35वीं अर्थव्यवस्था के बराबर ताकत रखने वाली इलैक्ट्रौनिक्स कंपनी सैमसंग के मालिक ली जी योंग के साथ इस साल की शुरुआत में ऐसी रगड़ाई की खबरें आई थीं कि उन के बारे में हमारे देश में कल्पना तक नहीं की सकती.

यहां के उद्योपतियों के साथ वैसा बरताव होने पर कई राजनीतिक दल ही उन का पक्ष ले कर हंगामा करने सड़कों पर उतर आए. यहां तो हाल यह है कि विजय माल्या जैसा फ्रौड व्यक्ति बैंक अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर करोड़ों रुपए ले कर विदेश भाग गया और उस से हुए नुकसान की भरपाई के लिए देश पर नोटबंदी थोप दी गई. इसी तरह वोडाफोन ने भारत में 12 अरब डौलर लगा कर हचिंसन को खरीद लिया, लेकिन टैक्स के रूप में एक पैसा तक सरकारी खजाने में जमा नहीं किया. ताजा उदाहरण साल की शुरुआत में पकड़ में आए साइबर ठगी मामले में महज 3 लोगों ने मिल कर नोएडा में चिटफंड कंपनी के रूप में 37 अरब का औनलाइन फर्जीवाड़ा कर डाला और सरकार को इस फर्जीवाड़े की खबर तक न हुई. यदि धोखाधड़ी के शिकार कुछ लोगों ने शिकायतें दर्ज न कराई होतीं, तो शायद यह घोटाला खरबों की रकम डकारने के बाद भी न रुकता. ध्यान रहे कि शारदा घोटाले में 17.4 लाख लोगों से 20 हजार करोड़ रुपए, रोज वैली में 60 हजार करोड़ और सहारा मामले में 36 हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की गई थी, कोई शक नहीं कि सोशल ट्रेड के नाम पर ठगी का यह सिलसिला 3,700 करोड़ रुपए के पार जा कर कहीं थमता, अगर कुछ लोगों ने इस की शिकायत न की होती.

वैसे तो इंटरनैट के प्रचारप्रसार का दौर शुरू होने के बाद लगातार यह कहा जाता रहा है कि भविष्य की सब से बड़ी चुनौती आपराधिक साइबर गतिविधियां ही होंगी, जिन से इंटरनैट के माध्यम से संचालित होने वाली इन आपराधिक और आतंकी गतिविधियों को कोई व्यक्ति या संगठन देशदुनिया और समाज को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करे. अभी तक देश में इस तरीके से कई गैरकानूनी काम हुए हैं, जैसे औनलाइन ठगी, बैंकिंग नैटवर्क में सेंध, लोगों खासकर महिलाओं को उन के गलत प्रोफाइल बना कर परेशान करना.

सोशल नैटवर्किंग के जरिए एक किस्म की पोंजी स्कीम (चिटफंड कंपनी जैसी योजना) चलाने का यह पहला बड़ा मामला है जो नोएडा में पकड़ में आया. नोएडा लाइक स्कैम नामक इस साइबर घोटाले का खुलासा यूपी एसटीएफ ने फरवरी के आरंभ में यह कहते हुए किया कि देशभर के करीब साढ़े 6 लाख लोगों से सोशल ट्रेड के नाम पर एक कंपनी ने 3,700 करोड़ रुपए ठग लिए हैं.

इस फर्जीवाड़े में 3 लोगों को गिरफ्तार करते हुए एसटीएफ ने दावा किया था कि एब्लेज इंफो सौल्यूशंस नाम की कंपनी नोएडा से अपना औफिस संचालित कर रही थी. यह कंपनी सोशल ट्रेड डौट बिज के नाम पर निवेशकों से मल्टी लैवल मार्केटिंग के जरिए डिजिटल मार्केटिंग के लिए पैसा ले रही थी, जिस में कंपनी के केनरा बैंक खाते में जमा 524 करोड़ रुपए सीज किए गए. कंपनी पर पड़े छापे में एसटीएफ को साढ़े 6 लाख लोगों के फोन नंबर डाटाबेस में मिले, जबकि 9 लाख लोगों के पहचानपत्र बरामद किए गए.

एसटीएफ ने कंपनी पर छापा मार कर कंपनी के निदेशक अनुभव मित्तल, सीईओ श्रीधर प्रसाद और तकनीकी प्रमुख महेश को गिरफ्तार किया. अनुभव मित्तल पुत्र सुनील मित्तल हापुड़ जनपद के पिलखुवा का

रहने वाला है, जबकि कंपनी का सीईओ श्रीधर पुत्र पीएस रमया मूलरूप से विशाखापट्टनम निवासी है और फिलहाल नोएडा के 53बी, सैक्टर-53 में रह रहा था. एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार तीसरा अभियुक्त कंपनी का टैक्निकल हैड महेश दयाल पुत्र गोपाल मथुरा जनपद के थाना बरसाना क्षेत्र स्थित कमई गांव का रहने वाला है. इस मामले में केनरा बैंक के एक मैनेजर की गिरफ्तारी हुई.

फर्जीवाड़े को कैसे दिया अंजाम

यों तो कंपनी ने दावा किया कि उस ने अपने निवेशकों से मिले अधिकतर पैसे निवेशकों को लौटा दिए थे पर जिस तरह से कंपनी के खातों में सैकड़ों करोड़ रुपए मिले, उस से साफ है कि कंपनी कुछ और रकम जमा होने के बाद यहां से रफूचक्कर हो जाती और इस में फंसे लाखों लोग हाथ मलते हुए रह जाते.

हालांकि निवेशकों से पैसा लेने की इस कंपनी की स्कीम शारदा, सहारा और रोज वैली जैसी पोंजी स्कीमों से काफी अलग थी. कंपनी की स्कीम लेने वालों को तयशुदा रकम देने पर एक विशेष आईडी के जरिए सोशल ट्रेड डौट बिज पोर्टल से जोड़ा जाता था और उन्हें अपनी आईडी पर दिखने वाले विज्ञापनों को फेसबुक और ट्विटर की तरह रोजाना ‘लाइक’ यानी क्लिक करना पड़ता था, जिस के बदले प्रति लाइक रकम देने का वादा था. ‘घर बैठे कुछ वैबसाइट लिंक्स पर क्लिक करें और बदले में अच्छे पैसे कमाएं’, इस स्लोगन के साथ कंपनी ने कुछ ही समय में लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ लिया था. आईडी यानी सदस्यता हासिल करने के लिए कंपनी सोशल ट्रेड डौट बिज पोर्टल से जोड़ने के नाम पर 5,750 रुपए, 11,500 रुपए, 28,750 रुपए तथा 57,500 रुपए सदस्यता के तौर पर लेती थी. आईडी मिलने पर जब सदस्य पोर्टल पर मिलने वाले लिंक को लाइक करता था, तो उसे एक लाइक पर कंपनी सदस्य के खाते में 5 रुपए के हिसाब से पेमैंट करती थी. यही नहीं, अन्य पोंजी स्कीमों की तरह इस योजना में भी हर सदस्य को 21 दिन में अपने साथ 2 और लोगों को जोड़ना होता था, जिस के बाद सदस्य को पोर्टल पर रोजाना मिलने वाले लिंक दोगुने हो जाते थे.

सदस्यों को शुरुआत में रोजाना पेमैंट दी जाती थी, लेकिन बाद में उसे साप्ताहिक कर दिया जाता था. इस के अलावा सदस्यों को प्रमोशनल इनकम के रूप में भी कुछ रकम देने का झांसा दिया जाता था.

हालांकि कंपनी दावा करती थी कि वह विभिन्न कंपनियों के विज्ञापनों को लाइक कराने के बदले ज्यादा रकम पाती थी, जिस में से अपना हिस्सा काट कर वह बाकी सदस्यों में बांट देती थी, पर सचाई यह है कि यह कंपनी खुद ही इस तरह के फर्जी विज्ञापन डिजाइन कर के पोर्टल पर डालती थी और नए सदस्यों से हासिल रकम का कुछ हिस्सा पुराने सदस्यों को वापस करती थी.

कंपनी की मनशा फर्जीवाड़े की ही थी, इस का खुलासा इस बात से होता है कि सरकारी जांच एजेंसियों की पकड़ से बचने के लिए यह कंपनी कुछ समय से लगातार नाम बदल रही थी.

कंपनी में लोगों का भरोसा तेजी से बढ़ने के पीछे की वजह यह थी कि असल में मामूली रकम लगाने के बाद इस में कोई विशेष दिमागी काम तो करना ही नहीं था. बस, घर बैठे मोबाइल या कंप्यूटर पर दिखने वाले लिंक्स पर क्लिक करने के मोह ने दिल्लीएनसीआर से ले कर विदेशों में बैठे लोगों को भी आकर्षित किया.

यही नहीं, जब नवंबर, 2016 में कंपनी के एक समारोह में बौलीवुड अभिनेत्री सन्नी लियोनी और अमीषा पटेल जैसी अभिनेत्रियां शामिल हुईं तो लोगों का भरोसा और पुख्ता हो गया. यही वजह है कि इस के झांसे में आए लोगों ने एक नही कई अकाउंट खोल रखे थे और कुछ ने तो क्लिक की मेहनत करवाने के लिए भी 300-400 रुपए रोजाना दे कर लड़के तक रख लिए थे. सब से आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस कंपनी का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद भी लोग इस के समर्थन में मुहिम चलाते रहे.

आंखों में धूल झोंकने की नीयत

यह कंपनी कैसे लोगों की आंखों में धूल झोंक रही थी, इस का खुलासा इस बात से हुआ कि पोर्टल पर विज्ञापनों के जिन लिंक्स के खुलने का दावा किया जाता था, खुद क्रिएट करती थी, जबकि कंपनी का दावा था कि लिंक उसे विज्ञापनदाता कंपनियां भेजती हैं.

शुरुआती जांच में ही नोएडा पुलिस ने साफ कर दिया कि इस में विज्ञापनदाता कोई थर्ड पार्टी नहीं थी. कंपनी के पोर्टल पर दिखने वाले सभी लिंक फर्जी होते थे जो लाइक के बाद कंपनी के सर्वर में डंप कर दिए जाते थे. कंपनी सिर्फ पैसा बनाने के लिए मल्टी लैवल मार्केटिंग के जरिए अपनी जेब भर रही थी.

खास बात यह है कि देश में इस तरह की मल्टी लैवल मार्केटिंग पर मनी सर्कुलेशन ऐक्ट, 1978 के तहत प्रतिबंध लगा है, लेकिन बावजूद इस के न तो ऐसी फ्रौड कंपनियों पर कोई प्रतिबंध है और न ही उन से धोखा खाने वालों का सिलसिला रुक रहा है. सोशल ट्रेड बिज से पहले स्पीक एशिया और क्यू नैट जैसी कंपनियां इसी तरह मल्टी लैवल मार्केटिंग के नाम पर लोगों को चूना लगा चुकी हैं.

व्यक्तिगत लालच एक वजह

इंटरनैट और सोशल मीडिया पर ठगी के दर्जनों तरीके हैं जिन के जरिए लोगों को फंसाया जाता है और उन से रकम ऐंठी जाती है. लौटरी का झांसा देना, किसी दूसरे मुल्क में वसीयत में छोड़ी गई संपत्ति आप के नाम ट्रांसफर करने के बदले फीस मांगना, विदेश से आए तोहफे की ड्यूटी चुका उसे आप तक पहुंचाना, क्रैडिट व एटीएम कार्ड की हैंकिंग जैसी अनगिनत वारदातें तकरीबन रोज होती हैं और एक किस्सा बंद होते ही साइबर ठगी का कोई दूसरा नया उदाहरण हमारे सामने उपस्थित हो जाता है.

ऐसे हादसे साबित करते हैं कि इंटरनैट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में सजगता का सारा मामला एकतरफा है. लोग इंटरनैट का इस्तेमाल करना तो सीख गए हैं, पर उस के विभिन्न मंचों पर क्याक्या सावधानियां बरतें, इस का उन्हें कोई आइडिया ही नहीं है. सरकार भी कानून पर कानून तो बनाती है, पर उस के पहरुओं की नींद तब टूटती है. जब अरबों का घोटाला हो चुका होता है और लाखों लोग अपनी पूंजी गंवा चुके होते हैं.

वैसे साइबर ठगी की इस बड़ी घटना की 2 अहम वजह हैं. एक तो यह कि सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में भारत खुद को अगुआ मानता रहा है, उस के आईटी ऐक्सपर्ट दुनियाभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं और अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थापित सिलीकौन वैली की स्थापना तक में भारतीय आईटी विशेषज्ञों की भूमिका मानी जाती है.

साइबर खतरों को भांपते हुए सरकार 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी कर चुकी है, जिस में देश के साइबर सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर की रक्षा के लिए प्रमुख रणनीतियों को अपनाने की बात कही गई थी. इन नीतियों के तहत देश में चौबीसों घंटे काम करने वाले एक नैशनल क्रिटिकल इन्फौर्मेशन प्रोटैक्शन सैंटर (एनसीईआईपीसी) की स्थापना शामिल है, जो देश में महत्त्वपूर्ण इन्फौर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में काम कर सके.

सवाल है कि क्या इन उपायों को अमल में लाने में कोई देरी या चूक हुई है अथवा यह हमारे सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की कमजोर कडि़यों का नतीजा है कि एक ओर हैकर जब चाहे सरकारी प्रतिष्ठानों की वैबसाइट्स ठप कर रहे हैं और दूसरी ओर साइबर आतंकी भी अपनी गतिविधियां चलाने में सफल हो रहे हैं?

जो सरकार और पुलिस ठगी की बड़ी घटना के बाद संदिग्ध लोगों की धरपकड़ से ले कर उन के नैटवर्क का पता लगाने में मुस्तैद नजर आती है, वह किसी कंपनी के कामकाज शुरू करने से पहले यह पड़ताल क्यों नहीं करती कि आखिर वह किस तरह का काम कर रही है? क्या कंपनी ऐक्ट उसे ऐसी जानकारियां लेने से रोकता है या फिर सरकार का काम सिर्फ कागजी खानापूर्ति मात्र है?

सवाल कमाई के ऐसे आसान तरीके खोजने और उस में अपनी पूंजी फंस कर सिर पीटने वाली युवापीढ़ी से भी है, जो वैसे तो बेरोजगारी का रोना रोती है, लेकिन आसान काम के बदले बड़ी रकम के लालच में फंस जाती है. युवा यह क्यों नहीं सोचते कि किसी जरिए से उस के पास थोड़ेबहुत पैसे आते हैं, तो वह उन का इस्तेमाल ऐसे गैरकानूनी कामों में करती है जो आगे चल कर मुसीबत करते हैं. ऐसे लोगों के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आती कि मात्र एक क्लिक के बदले कोई भी कंपनी 5-7 रुपए क्यों दे रही है, जबकि उस से किसी किस्म की आर्थिक सेवा का सर्जन नहीं हो रहा है?

निवेश से पहले की सावधानियां

 यदि आम लोग किसी भी वित्तीय योजना अथवा निवेश कराने वाली कंपनी में पैसा लगाने से पहले कुछ सावधानियां बरतें, तो ठगे जाने से बच सकते हैं :

– कंपनी के कामकाज पर नजर डालें कि क्या वे जमा कराई गई रकम या ली गई फीस के बदले कोई विश्वसनीय सेवा कर रही हैं या कोई व्यवसाय कर रही हैं.

– कंपनी के उच्चाधिकारियों के बारे में पूरी तरह से जांचपड़ताल करें. यह देखें कि उन का प्रोफैशनल अनुभव क्या है? क्या पहले उन्होंने इस तरह की कंपनियों या चिटफंड कंपनियों का संचालन किया है?

– कंपनियों के उच्चाधिकारियों की राजनीतिक नहीं, वित्तीय पोजिशन देखी जाए. यह पता करने की कोशिश हो कि कंपनी की कुल परिसंपत्तियां क्या हैं. यदि कंपनी के उच्चाधिकारी किसी प्रकार की धोखाधड़ी कर के भागते हैं तो क्या उन की परिसंपत्ति बेच कर निवेशकों का पैसा लौटाया जा सकता है?

– निवेश पर रिटर्न की दर की तुलना मार्केट रेट से की जानी चाहिए. यह जरूर देखा जाए कि अन्य वित्तीय कंपनियां क्या रिटर्न दे रही हैं.

– बाजार विशेषज्ञों की राय अवश्य ली जानी चाहिए और शुरुआत में छोटी रकम का ही निवेश करना चाहिए.

धोखाधड़ी : ‘मेवा’ खा कर फरार मेवालाल

बिहार कृषि विश्वविद्यालय में हुए बहाली घोटाले में कुलपति रह चुके और जनता दल (यू) से बाहर निकाले गए विधायक मेवालाल चौधरी पर एफआईआर दर्ज होने के बाद रोज नएनए खुलासे हो रहे हैं. पटना हाईकोर्ट के जस्टिस रह चुके एसएम आलम की एकल जांच कमेटी के सामने मेवालाल चौधरी को दोषी पाया गया. जांच रिपोर्ट के मुताबिक, मेवालाल चौधरी ने माना कि पावर प्रैजेंटेशन के अलावा रीमार्क्स, इंटरव्यू और एग्रीमैंट कालम उस ने खुद भरे थे. इस से यह बात साफ हो गई कि ऐक्सपर्टों ने उम्मीदवारों को जो नंबर दिए थे, उन के लिफाफों को खोला भी नहीं गया. असिस्टैंट प्रोफैसरों की बहाली में चहेतों को दिल खोल कर नंबर दिए गए. नियमों को ताक पर रख कर बाहर से ऐक्सपर्टों को बुलाया गया.

नैट में फेल 40 उम्मीदवारों को चुना गया. बहाल हुए प्रोफैसरों में से ज्यादातर का संबंध पश्चिम बंगाल के कृषि विश्वविद्यालय से रहा है. रिपोर्ट में पक्षपात, जोड़तोड़ और घपले करने का जिक्र किया गया है. कई नाकाबिल उम्मीदवारों से टैस्ट लिए बगैर ही अच्छे नंबर दे दिए गए, वहीं काबिल उम्मीदवारों को 10 में से 0.1 नंबर दिए गए.

22 फरवरी, 2017 को सबौर थाने में मेवालाल चौधरी के खिलाफ दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि साल 2011 में सबौर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय में तकरीबन 161 प्रोफैसरों व जूनियर साइंटिस्टों की बहाली में जम कर हेराफेरी की गई.

कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव अशोक कुमार की अर्जी पर मेवालाल चौधरी को आरोपी बनाया गया. नौकरी देने के लिए 15 से 20 लाख रुपए तक की बोली लगाई गई थी.

जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मेवालाल चौधरी को पार्टी से निकाल दिया है.

बिहार कृषि विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद साल 2015 में मेवालाल चौधरी ने जद (यू) के टिकट पर मुंगेर जिले की तारापुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया था.

मेवालाल चौधरी का कहना है कि उसे राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया है. जिस ऐक्सपर्ट कमेटी ने बहाली की थी, वह उस कमेटी का अध्यक्ष तो था, लेकिन बहाली में उस का कोई लेनादेना नहीं था, इसलिए उसे कोई जानकारी नहीं है.

भागलपुर के एसएसपी मनोज कुमार ने बताया कि मेवालाल चौधरी का पासपोर्ट जब्त करने की कार्यवाही शुरू की गई है. कोर्ट के बारबार बुलाने के बाद भी वह हाजिर नहीं हो रहा है.

पुलिस ने धारा-164 के तहत 5 गवाहों के बयान दर्ज किए और मेवालाल चौधरी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को पुख्ता सुबूत मिल चुके हैं. रिटायर्ड जज और पुलिस की जांच रिपोर्ट, केस डायरी और गवाहों के बयान पूरी तरह से मेवालाल चौधरी के खिलाफ हैं. सभी गवाहों के बयान फर्स्ट क्लास ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए जा चुके हैं.

साल 2010 में जब भागलपुर कृषि कालेज को नीतीश कुमार की सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था, तो मेवालाल चौधरी को ही उस का पहला कुलपति बनाया गया था.

मेवालाल चौधरी नीतीश कुमार का इतना भरोसेमंद था कि जब वह रिटायर हुआ, तो उसे विधानसभा चुनाव में तारापुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए जद (यू) का टिकट दे दिया. उस से पहले जब वह कुलपति था, तो साल 2010 के चुनाव में उस की बीवी नीता चौधरी तारापुर से विधायक बनी थी.

जब चढ़ा प्यार का नशा : नाजायज संबंधों की राह

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी के भलस्वा गांव के रहने वाले सोहताश की बेटी की शादी थी. उन के यहां शादी में एक रस्म के अनुसार, लड़की की मां को सुबहसुबह कई घरों से पानी लाना होता है. रस्म के अनुसार पानी लाने के लिए सोहताश की पत्नी कुसुम सुबह साढ़े 5 बजे के करीब घर से निकलीं. यह 20 जून, 2017 की बात है.

पानी लेने के लिए कुसुम पड़ोस में रहने वाली नारायणी देवी के यहां पहुंचीं. नारायणी देवी उन की रिश्तेदार भी थीं. नारायणी के घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह उस की बहू मीनाक्षी को आवाज देते हुए सीधे अंदर चली गईं. वह जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, उन्हें नारायणी का 40 साल का बेटा अनूप फर्श पर पड़ा दिखाई दिया. उस का गला कटा हुआ था. फर्श पर खून फैला था. वहीं बैड पर नारायणी लेटी थी, उस का भी गला कटा हुआ था.

दोनों को उस हालत में देख कर कुसुम पानी लेना भूल कर चीखती हुई घर से बाहर आ गईं, उस की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए. उस ने आंखों देखी बात उन्हें बताई तो कुछ लोग नारायणी के घर के अंदर पहुंचे. नारायणी और उस का बेटा अनूप लहूलुहान हालत में पड़े मिले.

crime

अनूप की पत्नी मीनाक्षी, उस की 17 साल की बेटी कनिका, 15 साल का बेटा रजत बैडरूम में बेहोश पड़े थे. दूसरे कमरे में नारायणी की छोटी बहू अंजू और उस की 12 साल की बेटी भी बेहोश पड़ी थी. नारायणी का छोटा बेटा राज सिंह बालकनी में बिछे पलंग पर बेहोश पड़ा था.

मामला गंभीर था, इसलिए पहले तो घटना की सूचना पुलिस को दी गई. उस के बाद सभी को जहांगीरपुरी में ही स्थित बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया. सूचना मिलते ही एएसआई अंशु एक सिपाही के साथ मौके पर पहुंच गए थे. वहां उन्हें पता चला कि सभी को बाबू जगजीवनराम अस्पताल ले जाया गया है तो सिपाही को वहां छोड़ कर वह अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल में डाक्टरों से बात करने के बाद उन्होंने घटना की जानकारी थानाप्रभारी महावीर सिंह को दे दी.

घटना की सूचना डीसीपी मिलिंद डुंबरे को दे कर थानाप्रभारी महावीर सिंह भी घटनास्थल पर जा पहुंचे. उस इलाके के एसीपी प्रशांत गौतम उस दिन छुट्टी पर थे, इसलिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे के निर्देश पर मौडल टाउन इलाके के एसीपी हुकमाराम घटनास्थल पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया गया था. पुलिस ने अनूप के घर का निरीक्षण किया तो वहां पर खून के धब्बों के अलावा कुछ नहीं मिला. घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह व्यवस्थित रखा था, जिस से लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी.

कुसुम ने पुलिस को बताया कि जब वह अनूप के यहां गई तो दरवाजे खुले थे. पुलिस ने दरवाजों को चैक किया तो ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से लगता कि घर में कोई जबरदस्ती घुसा हो. घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस अधिकारी जगजीवनराम अस्पताल पहुंचे. डाक्टरों ने बताया कि अनूप और उस की मां के गले किसी तेजधार वाले हथियार से काटे गए थे. इस के बावजूद उन की सांसें चल रही थीं. परिवार के बाकी लोग बेहोश थे, जिन में से 2-3 लोगों की हालत ठीक नहीं थी.

कनिका, रजत और राज सिंह की बेटी की हालत सामान्य हुई तो डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रात उन्होंने कढ़ी खाई थी. खाने के बाद उन्हें ऐसी नींद आई कि उन्हें अस्पताल में ही होश आया.

इस से पुलिस अधिकारियों को शक हुआ कि किसी ने सभी के खाने में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया था. अब सवाल यह था कि ऐसा किस ने किया था? अब तक राज सिंह को भी होश आ चुका था. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई थी. यह सब किस ने किया, उसे भी नहीं पता.

पुलिस को राज सिंह पर ही शक हो रहा था कि करोड़ों की संपत्ति के लिए यह सब उस ने तो नहीं किया? पुलिस ने उस से खूब घुमाफिरा कर पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई बात सामने नहीं आई.

मामले के खुलासे के लिए डीसीपी मिलिंद डुंबरे ने थानाप्रभारी महावीर सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में अतिरिक्त थानाप्रभारी राधेश्याम, एसआई देवीलाल, महिला एसआई सुमेधा, एएसआई अंशु, महिला सिपाही गीता आदि को शामिल किया गया.

नारायणी और उस के बेटे अनूप की हालत स्थिर बनी हुई थी. अंजू और उस की जेठानी मीनाक्षी अभी तक पूरी तरह होश में नहीं आई थीं. पुलिस ने राज सिंह को छोड़ तो दिया था, पर घूमफिर कर पुलिस को उसी पर शक हो रहा था. उस के और उस के भाई अनूप सिंह के पास 2-2 मोबाइल फोन थे.

शक दूर करने के लिए पुलिस ने दोनों भाइयों के मोबाइल फोनों की कालडिटेल्स निकलवाई. इस से भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अनूप का एक भाई अशोक गुड़गांव में रहता था. उस का वहां ट्रांसपोर्ट का काम था. पुलिस ने उस से भी बात की. वह भी हैरान था कि आखिर ऐसा कौन आदमी है, जो उस के भाई और मां को मारना चाहता था?

21 जून को मीनाक्षी को अस्पताल से छुट्टी मिली तो एसआई सुमेधा कांस्टेबल गीता के साथ उस से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गईं. पूछताछ में उस ने बताया कि सभी लोगों को खाना खिला कर वह भी खा कर सो गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. पुलिस को मीनाक्षी से भी कोई सुराग नहीं मिला.

अस्पताल में अब राज सिंह की पत्नी अंजू, अनूप और उस की मां नारायणी ही बचे थे. अंजू से अस्पताल में पूछताछ की गई तो उस ने भी कहा कि खाना खाने के कुछ देर बाद ही उसे भी गहरी नींद आ गई थी.

जब घर वालों से काम की कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा मुखबिरों को लगा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. पुलिस को मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि अनूप की पत्नी मीनाक्षी के अब्दुल से अवैध संबंध थे. अब्दुल का भलस्वा गांव में जिम था, वह उस में ट्रेनर था. पुलिस ने अब्दुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह जहांगीरपुरी के सी ब्लौक में रहता था.

पुलिस 21 जून को अब्दुल के घर पहुंची तो वह घर से गायब मिला. उस की पत्नी ने बताया कि वह कहीं गए हुए हैं. वह कहां गया है, इस बारे में पत्नी कुछ नहीं बता पाई. अब्दुल पुलिस के शक के दायरे में आ गया. थानाप्रभारी ने अब्दुल के घर की निगरानी के लिए सादे कपड़ों में एक सिपाही को लगा दिया. 21 जून की शाम को जैसे ही अब्दुल घर आया, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने पहुंचते ही अब्दुल बुरी तरह घबरा गया. उस से अनूप के घर हुई घटना के बारे में पूछा गया तो उस ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि उस के मीनाक्षी से नजदीकी संबंध थे और उसी के कहने पर मीनाक्षी ने ही यह सब किया था. इस तरह केस का खुलासा हो गया.

इस के बाद एसआई देवीलाल महिला एसआई सुमेधा और सिपाही गीता को ले कर मीनाक्षी के यहां पहुंचे. उन के साथ अब्दुल भी था. मीनाक्षी ने जैसे ही अब्दुल को पुलिस हिरासत में देखा, एकदम से घबरा गई. पुलिस ने उस की घबराहट को भांप लिया. एसआई सुमेधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे और अब्दुल के बीच क्या रिश्ता है?’’

‘‘रिश्ता…कैसा रिश्ता? यह जिम चलाता है और मैं इस के जिम में एक्सरसाइज करने जाती थी.’’ मीनाक्षी ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘मैडम, तुम भले ही झूठ बोलो, लेकिन हमें तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी मिल चुकी है. इतना ही नहीं, तुम ने अब्दुल को जितने भी व्हाट्सऐप मैसेज भेजे थे, हम ने उन्हें पढ़ लिए हैं. तुम्हारी अब्दुल से वाट्सऐप के जरिए जो बातचीत होती थी, उस से हमें सारी सच्चाई का पता चल गया है. फिर भी वह सच्चाई हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं.’’

सुमेधा का इतना कहना था कि मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली, ‘‘मैडम, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. प्यार में अंधी हो कर मैं ने ही यह सब किया है. आप मुझे बचा लीजिए.’’

इस के बाद पुलिस ने मीनाक्षी को हिरासत में लिया. उसे थाने ला कर अब्दुल और उस से पूछताछ की गई तो इस घटना के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह अविवेक में घातक कदम उठाने वालों की आंखें खोल देने वाली थी.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली के थाना जहांगीरपुरी के अंतर्गत आता है भलस्वा गांव. इसी गांव में नारायणी देवी अपने 2 बेटों, अनूप और राज सिंह के परिवार के साथ रहती थीं. गांव में उन की करोड़ों रुपए की संपत्ति थी. उस का एक बेटा और था अशोक, जो गुड़गांव में ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था. वह अपने परिवार के साथ गुड़गांव में ही रहता था. करीब 20 साल पहले अनूप की शादी गुड़गांव के बादशाहपुर की रहने वाली मीनाक्षी से हुई थी. उस से उसे 2 बच्चे हुए. बेटी कनिका और बेटा रजत. अनूप भलस्वा गांव में ही ट्रांसपोर्ट का बिजनैस करता था.

नारायणी देवी के साथ रहने वाला छोटा बेटा राज सिंह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी में फलों का आढ़ती था. उस के परिवार में पत्नी अंजू के अलावा एक 12 साल की बेटी थी. नारायणी देवी के गांव में कई मकान हैं, जिन में से एक मकान में अनूप अपने परिवार के साथ रहता था तो दूसरे में नारायणी देवी छोटे बेटे के साथ रहती थीं.

तीनों भाइयों के बिजनैस अच्छे चल रहे थे. सभी साधनसंपन्न थे. अपने हंसतेखेलते परिवार को देख कर नारायणी खुश रहती थीं. कभीकभी इंसान समय के बहाव में ऐसा कदम उठा लेता है, जो उसी के लिए नहीं, उस के पूरे परिवार के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है. नारायणी की बहू मीनाक्षी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठा लिया था.

सन 2014 की बात है. घर के रोजाना के काम निपटाने के बाद मीनाक्षी टीवी देखने बैठ जाती थी. मीनाक्षी खूबसूरत ही नहीं, आकर्षक फिगर वाली भी थी. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उस ने खुद को अच्छी तरह मेंटेन कर रखा था. वह 34 साल की हो चुकी थी, लेकिन इतनी उम्र की दिखती नहीं थी. इस के बावजूद उस के मन में आया कि अगर वह जिम जा कर एक्सरसाइज करे तो उस की फिगर और आकर्षक बन सकती है.

बस, फिर क्या था, उस ने जिम जाने की ठान ली. उस के दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. अनूप रोजाना समय से अपने ट्रांसपोर्ट के औफिस चला जाता था. इसलिए घर पर कोई ज्यादा काम नहीं होता था. मीनाक्षी के पड़ोस में ही अब्दुल ने बौडी फ्लैक्स नाम से जिम खोला था. मीनाक्षी ने सोचा कि अगर पति अनुमति दे देते हैं तो वह इसी जिम में जाना शुरू कर देगी. इस बारे में उस ने अनूप से बात की तो उस ने अनुमति दे दी.

मीनाक्षी अब्दुल के जिम जाने लगी. वहां अब्दुल ही जिम का ट्रेनर था. वह मीनाक्षी को फिट रखने वाली एक्सरसाइज सिखाने लगा. अब्दुल एक व्यवहारकुशल युवक था. चूंकि मीनाक्षी पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए अब्दुल उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रखता था.

मीनाक्षी अब्दुल से कुछ ऐसा प्रभावित हुई कि उस का झुकाव उस की ओर होने लगा. फिर तो दोनों की चाहत प्यार में बदल गई. 24 वर्षीय अब्दुल एक बेटी का पिता था, जबकि उस से 10 साल बड़ी मीनाक्षी भी 2 बच्चों की मां थी. पर प्यार के आवेग में दोनों ही अपनी घरगृहस्थी भूल गए. उन का प्यार दिनोंदिन गहराने लगा.

मीनाक्षी जिम में काफी देर तक रुकने लगी. उस के घर वाले यही समझते थे कि वह जिम में एक्सरसाइज करती है. उन्हें क्या पता था कि जिम में वह दूसरी ही एक्सरसाइज करने लगी थी. नाजायज संबंधों की राह काफी फिसलन भरी होती है, जिस का भी कदम इस राह पर पड़ जाता है, वह फिसलता ही जाता है. मीनाक्षी और अब्दुल ने इस राह पर कदम रखने से पहले इस बात पर गौर नहीं किया कि अपनेअपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात कर के वह जिस राह पर चलने जा रहे हैं, उस का अंजाम क्या होगा?

बहरहाल, चोरीछिपे उन के प्यार का यह खेल चलता रहा. दोढाई साल तक दोनों अपने घर वालों की आंखों में धूल झोंक कर इसी तरह मिलते रहे. पर इस तरह की बातें लाख छिपाने के बावजूद छिपी नहीं रहतीं. जिम के आसपास रहने वालों को शक हो गया.

अनूप गांव का इज्जतदार आदमी था. किसी तरह उसे पत्नी के इस गलत काम की जानकारी हो गई. उस ने तुरंत मीनाक्षी के जिम जाने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, उस ने पत्नी के मायके वालों को फोन कर के अपने यहां बुला कर उन से मीनाक्षी की करतूतें बताईं. इस पर घर वालों ने मीनाक्षी को डांटते हुए अपनी घरगृहस्थी की तरफ ध्यान देने को कहा. यह बात घटना से 3-4 महीने पहले की है.

नारायणी की दोनों बहुओं मीनाक्षी और अंजू के पास मोबाइल फोन नहीं थे. केवल घर के पुरुषों के पास ही मोबाइल फोन थे. लेकिन अब्दुल ने अपनी प्रेमिका मीनाक्षी को सिमकार्ड के साथ एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था, जिसे वह अपने घर वालों से छिपा कर रखती थी. उस का उपयोग वह केवल अब्दुल से बात करने के लिए करती थी. बातों के अलावा वह उस से वाट्सऐप पर भी चैटिंग करती थी. पति ने जब उस के जिम जाने पर रोक लगा दी तो वह फोन द्वारा अपने प्रेमी के संपर्क में बनी रही.

एक तो मीनाक्षी का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था, दूसरे पति ने जो उस के मायके वालों से उस की शिकायत कर दी थी, वह उसे बुरी लगी थी. अब प्रेमी के सामने उसे सारे रिश्तेनाते बेकार लगने लगे थे. पति अब उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा था. उस ने अब्दुल से बात कर के पति नाम के रोड़े को रास्ते से हटाने की बात की. इस पर अब्दुल ने कहा कि वह उसे नींद की गोलियां ला कर दे देगा. किसी भी तरह वह उसे 10 गोलियां खिला देगी तो इतने में उस का काम तमाम हो जाएगा.

एक दिन अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 10 गोलियां ला कर दे दीं. मीनाक्षी ने रात के खाने में पति को 10 गोलियां मिला कर दे दीं. रात में अनूप की तबीयत खराब हो गई तो उस के बच्चे परेशान हो गए. उन्होंने रात में ही दूसरे मकान में रहने वाले चाचा राज सिंह को फोन कर दिया. वह उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां अनूप को बचा लिया गया. पति के बच जाने से मीनाक्षी को बड़ा अफसोस हुआ.

इस के कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने पति को ठिकाने लगाने के लिए एक बार फिर नींद की 10 गोलियां खिला दीं. इस बार भी उस की तबीयत खराब हुई तो घर वाले उसे मैक्स अस्पताल ले गए, जहां वह फिर बच गया.

मीनाक्षी की फोन पर लगातार अब्दुल से बातें होती रहती थीं. प्रेमी के आगे पति उसे फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. वह उस से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच अनूप की मां नारायणी को भी जानकारी हो गई कि बड़ी बहू मीनाक्षी की हरकतें अभी बंद नहीं हुई हैं. अभी भी उस का अपने यार से याराना चल रहा है.

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अनूप तो अपने समय पर औफिस चला जाता था. उस के जाने के बाद पत्नी क्या करती है, इस की उसे जानकारी नहीं मिलती थी. उस के घर से कुछ दूर ही मकान नंबर 74 में छोटा भाई राज सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. मां भी वहीं रहती थी. कुछ सोचसमझ कर अनूप पत्नी और बच्चों को ले कर राज सिंह के यहां चला गया. मकान बड़ा था, पहली मंजिल पर सभी लोग रहने लगे. यह घटना से 10 दिन पहले की बात है. उसी मकान में ग्राउंड फ्लोर पर अनूप का ट्रांसपोर्ट का औफिस था.

इस मकान में आने के बाद मीनाक्षी की स्थिति पिंजड़े में बंद पंछी जैसी हो गई. नीचे उस का पति बैठा रहता था, ऊपर उस की सास और देवरानी रहती थी. अब मीनाक्षी को प्रेमी से फोन पर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता था. अब वह इस पिंजड़े को तोड़ने के लिए बेताब हो उठी. ऐसी हालत में क्या किया जाए, उस की समझ में नहीं आ रहा था?

एक दिन मौका मिला तो मीनाक्षी ने अब्दुल से कह दिया कि अब वह इस घर में एक पल नहीं रह सकती. इस के लिए उसे कोई न कोई इंतजाम जल्द ही करना होगा. अब्दुल ने मीनाक्षी को नींद की 90 गोलियां ला कर दे दीं. इस के अलावा उस ने जहांगीरपुरी में अपने पड़ोसी से एक छुरा भी ला कर दे दिया. तेजधार वाला वह छुरा जानवर की खाल उतारने में प्रयोग होता था. अब्दुल ने उस से कह दिया कि इन में से 50-60 गोलियां शाम के खाने में मिला कर पूरे परिवार को खिला देगी. गोलियां खिलाने के बाद आगे क्या करना है, वह फोन कर के पूछ लेगी.

अब्दुल के प्यार में अंधी मीनाक्षी अपने हंसतेखेलते परिवार को बरबाद करने की साजिश रचने लगी. वह उस दिन का इंतजार करने लगी, जब घर के सभी लोग एक साथ रात का खाना घर में खाएं. नारायणी के पड़ोस में रहने वाली उन की रिश्तेदार कुसुम की बेटी की शादी थी. शादी की वजह से उन के घर वाले वाले भी खाना कुसुम के यहां खा रहे थे. मीनाक्षी अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेचैन थी, पर उसे मौका नहीं मिल रहा था.

इत्तफाक से 19 जून, 2017 की शाम को उसे मौका मिल गया. उस शाम उस ने कढ़ी बनाई और उस में नींद की 60 गोलियां पीस कर मिला दीं. मीनाक्षी के दोनों बच्चे कढ़ी कम पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने कम खाई. बाकी लोगों ने जम कर खाना खाया. देवरानी अंजू ने तो स्वादस्वाद में कढ़ी पी भी ली. चूंकि मीनाक्षी को अपना काम करना था, इसलिए उस ने कढ़ी के बजाय दूध से रोटी खाई.

खाना खाने के बाद सभी पर नींद की गोलियों का असर होने लगा. राज सिंह सोने के लिए बालकनी में बिछे पलंग पर लेट गया, क्योंकि वह वहीं सोता था. अनूप और उस की मां नारायणी ड्राइंगरूम में जा कर सो गए. उस के दोनों बच्चे बैडरूम में चले गए. राज सिंह की पत्नी अंजू अपनी 12 साल की बेटी के साथ अपने बैडरूम में चली गई.

सभी सो गए तो मीनाक्षी ने आधी रात के बाद अब्दुल को फोन किया. अब्दुल ने पूछा, ‘‘तुम्हें किसकिस को निपटाना है?’’

‘‘बुढि़या और अनूप को, क्योंकि इन्हीं दोनों ने मुझे चारदीवारी में कैद कर रखा है.’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम उन्हें हिला कर देखो, उन में से कोई हरकत तो नहीं कर रहा?’’ अब्दुल ने कहा.

मीनाक्षी ने सभी को गौर से देखा. राज सिंह शराब पीता था, ऊपर से गोलियों का असर होने पर वह गहरी नींद में चला गया था. उस ने गौर किया कि उस की सास नारायणी और पति अनूप गहरी नींद में नहीं हैं. इस के अलावा बाकी सभी को होश नहीं था. मीनाक्षी ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तुम नींद की 10 गोलियां थोड़े से पानी में घोल कर सास और पति के मुंह में सावधानी से चम्मच से डाल दो.’’

मीनाक्षी ने ऐसा ही किया. सास तो मुंह खोल कर सो रही थी, इसलिए उस के मुंह में आसानी से गोलियों का घोल चला गया. पति को पिलाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन उस ने उसे भी पिला दिया.

आधे घंटे बाद वे दोनों भी पूरी तरह बेहोश हो गए. मीनाक्षी ने फिर अब्दुल को फोन किया. तब अब्दुल ने सलाह दी कि वह अपनी देवरानी के कपड़े पहन ले, ताकि खून लगे तो उस के कपड़ों में लगे. देवरानी के कपड़े पहन कर मीनाक्षी ने अब्दुल द्वारा दिया छुरा निकाला और नारायणी का गला रेत दिया. इस के बाद पति का गला रेत दिया.

इस से पहले मीनाक्षी ने मेहंदी लगाने वाले दस्ताने हाथों में पहन लिए थे. दोनों का गला रेत कर उस ने अब्दुल को बता दिया. इस के बाद अब्दुल ने कहा कि वह खून सने कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन ले और कढ़ी के सारे बरतन साफ कर के रख दे, ताकि सबूत न मिले.

बरतन धोने के बाद मीनाक्षी ने अब्दुल को फिर फोन किया तो उस ने कहा कि वह उन दोनों को एक बार फिर से देख ले कि काम हुआ या नहीं? मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची तो उसे उस का पति बैठा हुआ मिला. उसे बैठा देख कर वह घबरा गई. उस ने यह बात अब्दुल को बताई तो उस ने कहा कि वह दोबारा जा कर गला काट दे नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है.

छुरा ले कर मीनाक्षी ड्राइंगरूम में पहुंची. अनूप बैठा जरूर था, लेकिन उसे होश नहीं था. मीनाक्षी ने एक बार फिर उस की गरदन रेत दी. इस के बाद अनूप बैड से फर्श पर गिर गया. मीनाक्षी ने सोचा कि अब तो वह निश्चित ही मर गया होगा.

अपने प्रेमी की सलाह पर उस ने अपना मोबाइल और सिम तोड़ कर कूड़े में फेंक दिया. जिस छुरे से उस ने दोनों का गला काटा था, उसे और दोनों दस्ताने एक पौलीथिन में भर कर सामने बहने वाले नाले में फेंक आई. इस के बाद नींद की जो 10 गोलियां उस के पास बची थीं, उन्हें पानी में घोल कर पी ली और बच्चों के पास जा कर सो गई.

मीनाक्षी और अब्दुल से पूछताछ कर के पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 307, 328, 452, 120बी के तहत गिरफ्तार कर 22 जून, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार की कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में अन्य सबूत जुटा कर पुलिस ने उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मीनाक्षी ने अपनी सास और पति को जान से मारने की पूरी कोशिश की थी, पर डाक्टरों ने उन्हें बचा लिया है. कथा लिखे जाने जाने तक दोनों का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

मीनाक्षी के मायके वाले काफी धनाढ्य हैं. उन्होंने उस की शादी भी धनाढ्य परिवार में की थी. ससुराल में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. खातापीता परिवार होते हुए भी उस ने देहरी लांघी. उधर अब्दुल भी पत्नी और एक बेटी की अपनी गृहस्थी में हंसीखुशी से रह रहा था. उस का बिजनैस भी ठीक चल रहा था. पर खुद की उम्र से 10 साल बड़ी उम्र की महिला के चक्कर में पड़ कर अपनी गृहस्थी बरबाद कर डाली.

बहरहाल, गलती दोनों ने की है, इसलिए दोनों ही जेल पहुंच गए हैं. निश्चित है कि दोनों को अपने किए की सजा मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बदतर जिंदगी जीने को मजबूर ‘बाल मजदूर’

इन बच्चों की उम्र 14 साल से कम  है, लेकिन रोजाना इन्हें अकसर 14 घंटे से ज्यादा हाड़तोड़ मशक्कत करनी पड़ती है. कहने को तो ये बाल मजदूर हैं, लेकिन अपनी उम्र और कूवत से बढ़चढ़ कर बालिगों से कहीं ज्यादा मेहनत करते हैं. सुबहसवेरे जब आमतौर पर लोग सो कर उठते हैं, तब तक ये बच्चे रूखीसूखी रोटी का पुलिंदा बगल में दबाए अपनी काम की जगह पर मौजूद हो चुके होते हैं, फिर 15-16 घंटे की मेहनत के बाद थकान से चूर रात को घर लौट कर बिस्तर पर लेटते हैं, तो दूसरे दिन ही नींद खुलती है. यही जिंदगी है इन नन्हे कामगारों की. इतनी मेहनत के बावजूद ये मजदूर महीने के आखिर में पाते हैं महज कुछ सौ रुपए, पर इस से ज्यादा इन्हें मालिकों से मिलता है जोरजुल्म. अपनी बुनियादी जरूरतों से दूर ये बच्चे नाजुक उम्र में ही भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीड़ी उद्योग के बाल मजदूर नाक की बीमारी, उनींदापन, निकोटिन के जहर से पैदा होने वाली बीमारी, सिरदर्द, अंधेपन वगैरह के शिकार हो जाते हैं, वहीं कालीन उद्योग के बच्चे लगातार धूल और रेशों में रह कर फेफड़ों की बीमारी से घिर जाते हैं.

पटाका और माचिस उद्योग के बाल मजदूर सांस की परेशानी, दम घुटना, थकावट, मांसपेशियां बेकार हो जाने जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसी तरह ताला उद्योग में तेजाब से जलना, दमा, सांस का रुक जाना, टीबी, भयंकर सिरदर्द होना आम बात है. खदानों में काम करने वाले बच्चों की आंखों, फेफड़ों व चमड़ी की बीमारियों का तोहफा मिलता है, तो कांच उद्योग में काम कर रहे बाल मजदूर आग उगलती भट्ठियों के नजदीक हर समय कईकई घंटे तीनों ओर से गरम कांच से घिरे रह कर कैंसर, टीबी और मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां पाल लेते हैं. इसी तरह मध्य प्रदेश के मंदसौर इलाके के स्लेट उद्योग में काम करने वाले बच्चे वहां स्लेट, पैंसिल बनाने के लिए खान से स्लेटी रंग की लगातार उड़ती धूल में रह कर फेफड़ों और सांस की तरहतरह की गंभीर बीमारियों से घिर जाते हैं. गुब्बारा उद्योग में काम करने वाले बच्चों की हालत तो और भी ज्यादा खतरनाक है. वे नन्ही उम्र में ही दिल की बीमारी, निमोनिया और सांस की बीमारी की जकड़ में आ जाते हैं.

इतना ही नहीं, ढाबों में काम कर रहे या घरेलू बाल मजदूर नशीली चीजों के सेवन के आदी तो हो ही जाते हैं, शारीरिक और यौन शोषण, ज्यादा काम और दूसरी तरह से भी वे खूब सताए जाते हैं. गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खेतखलिहानों, अलगअलग लघु व कुटीर उद्योगों, पत्थर खदानों, ढाबों और घरेलू कामों में तकरीबन 10 करोड़ बच्चे मजदूर बने हुए हैं. यह आलम तो तब है, जब कई लैवलों पर कई सालों से बाल मजदूर उन्मूलन के लिए कायदेकानूनों की झड़ी लगा दी गई है. आज भी नए कानून बनाने व बाल मजदूरी लगाने की कोशिश जारी है. फिर आखिर क्या वजह है कि बाल मजदूरी में कमी आने के बजाय लगातार इजाफा ही हो रहा है?

मिसाल के तौर पर, ‘बाल दिवस’ यानी बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू के जन्मदिन के मौके पर जगहजगह सैमिनार, भाषणबाजी और न जाने क्याक्या होता है, पर इन सब से अनजान चाचा नेहरू के 10 करोड़ लाड़ले उस समय रोटी की जुगाड़ में न जाने क्याक्या, सह रह होते हैं. कुछ लोग बच्चों को मजदूर बनाने में उन से काम कराने वालों का भी बहुत बड़ा हाथ मानते हैं. ऐसे लोगों का लालच यही होता है कि बाल मजदूरी सस्ती पड़ती है. छोटेछोटे कुटीर उद्योग जहां जगह की कमी होती है, इसीलिए बच्चों को काम पर रखा जाता है, क्योंकि वे जगह कम घेरते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा बच्चे वहां ज्यादा से ज्यादा काम कर सकते हैं. ये बच्चे पूरी तरह से असंगठित होते हैं, जिस से अपने शोषण के खिलाफ मालिक के सामने आवाज नहीं उठा सकते. दूसरी ओर, मालिकों को इन्हें रखने की मजबूरी यह होती है कि कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें केवल बच्चे ही पूरी सफाई से कर सकते हैं.

मसलन, कालीन उद्योग में कालीन बनाते समय जगहजगह गांठ लगाने की जरूरत पड़ती है. सफाई से गांठ लगाने के लिए उंगलियों का पतला होना जरूरी है, इसीलिए इस उद्योग में बच्चों को अहमियत दी जाती है. इसी तरह माचिस उद्योग में बाल मजदूर लगे होने से माचिसों की बनाने की लागत कम आती है. कम लागत के चलते विदेशी माचिसों से होड़ लेने में दिक्कत नहीं आ रही है. फिर भी बाल मजदूरी कराने वाले मालिकों और बाल मजदूरी के पक्ष में चाहे जो भी दलीलें पेश की जाएं, सचाई तो यही है कि बाल मजदूरी से कई और तरह की सामाजिक दिक्कतें बढ़ी हैं. यह सच है कि गरीबी के चलते बच्चे मजदूरी के लिए मजबूर हैं, पर इस से पैदा होने वाली समस्याएं कहीं ज्यादा गंभीर हैं. चूंकि कुछ इलाको में केवल बच्चों को ही काम पर रखा जाता है, इसलिए उन के मांबाप अकसर बेरोजगार ही होेते हैं.

दूसरी ओर, 15 साल से बड़ा होते ही इन बच्चों को काम से हटा दिया जाता है, इसलिए मांबाप यह मान कर चलते हैं कि ज्यादा बच्चे होने से आमदनी बराबर बनी रहेगी, क्योंकि बड़े बच्चे के काम से हटते ही छोटा संभाल लेगा, फिर उस के बाद उस से छोटा और फिर उस से छोटा. इस सिलसिले को जारी रखने के लिए बच्चों की तादाद ज्यादा रखना मजबूरी बन जाती है. यह सोच आबादी की समस्या को गंभीर बना रही है. पर इन सब में सब से ज्यादा चिंताजनक पहलू तो सेहत ही है, क्योंकि पैसे की कमी में ये बाल मजदूर न तो ठीक से इलाज करा पाते हैं और न ही ठीक से खानेपीने का बैलैंस बनाए रख पाते हैं, इसलिए ये बच्चे जवानी आतेआते गंभीर बीमारियों के शिकार हो कर कदमकदम पर कतराकतरा मौत का इंतजार करते हैं. यकीनन, आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं, लेकिन जहां के एकतिहाई बच्चे बचपन की बुनियादी सुविधाओं से अलग हो कर मेहनतमजदूरी में रातदिन एक कर रहे हैं व कम उम्र में ही भयानक बीमारियों से घिर जाते हैं, भविष्य में उन की जगह कहां होगी? क्या बीमार बच्चों के नाजुक कंधों पर तैयार की जा रही भविष्य के विकास की बुनियाद मजबूत हो पाएगी? कब इन्हें इन का हक मिल पाएगा? इन सवालों के जवाब भारत के नीति बनाने वालों के पास भी नहीं है.

100 करोड़ की फिरौती का फंडा

22 जुलाई, 2017 की शाम को फिरोजाबाद के राजातालाब आर्किड ग्रीन के रहने वाले संजीव गुप्ता की पत्नी सारिका गुप्ता 2-3 लोगों के साथ टुंडला कोतवाली पहुंची तो कोतवाली प्रभारी अरुण कुमार सिंह हैरान ही नहीं हुए, बल्कि उन्हें किसी अनहोनी की आशंका भी हुई. क्योंकि वह सारिका गुप्ता को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. उस के पति संजीव गुप्ता शहर के जानेमाने व्यवसायी थे.

सारिका गुप्ता सीधे अरुण कुमार सिंह के पास पहुंची थी. उन्होंने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने के लिए कह कर आने की वजह पूछी तो उस ने जो बताया, सुन कर वह दंग ही नहीं रह गए, बल्कि परेशान भी हो उठे. उस ने बताया था कि साढ़े 5 बजे के करीब उस के पति संजीव गुप्ता अपने होटल सागर रत्ना से अपनी मीटिंग खत्म कर के सीधे घर आने वाले थे.

लेकिन अब तक वह न घर पहुंचे हैं और न ही उन का फोन मिल रहा है. जब भी उन्हें फोन किया जाता है, फोन बंद बताता है. इतना सब बता कर उस ने आशंका भी व्यक्त की कि कहीं उन का अपहरण तो नहीं हो गया है.

बहरहाल, अरुण कुमार सिंह ने सारिका से तहरीर ले कर उसे आश्वासन दिया कि पुलिस जल्दी ही उस के पति को ढूंढ निकालेगी. जबकि वह जानते थे कि यह काम इतना आसान नहीं है.

संजीव गुप्ता शहर का जानामाना नाम था. फिरोजाबाद शहर के राजातालाब इलाके की आर्किड ग्रीन में उस की शानदार कोठी थी, जहां कई महंगी कारें खड़ी रहती थीं. शहर के होटल सागर रत्ना में ही नहीं, कई स्कूलों में भी उस की हिस्सेदारी थी. इस के अलावा वह ब्याज पर पैसा उठाने के साथसाथ करोड़ों की कमेटी और सोसायटी चलाता था, जिस में शहर के ही नहीं, आसपास के शहरों के भी बड़ेबड़े लोग शेयर डालते थे.

ऐसे आदमी का गायब होना पुलिस के लिए परेशानी ही थी. पैसे वाला आदमी था, उस का अपहरण भी हो सकता था, इसलिए अरुण कुमार सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. अपहरण की आशंका को ध्यान में रख कर तुरंत शहर की नाकाबंदी कराते हुए शहर भर की पुलिस को सतर्क कर दिया गया.

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रात भर पुलिस अपने हिसाब से संजीव गुप्ता की तलाश करती रही, लेकिन कुछ पता नहीं कर पाई. अगले दिन यानी 23 जुलाई को सारिका गुप्ता एक बार फिर कोतवाली पहुंची और शक के आधार पर नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अमित गुप्ता तथा कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध क्रमांक 641/2017 पर भादंवि की धारा 364ए, 506, 120बी के तहत नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन्होंने पुलिस को अपने मोबाइल में 2 मैसेज भी दिखाए, जो उन के पति के ही फोन से आए थे. उन संदेशों में उन से संजीव गुप्ता की रिहाई के लिए सौ करोड़ की फिरौती मांगी गई थी. फिरौती न देने पर संजीव गुप्ता को मौत के घाट उतारने की धमकी दी गई थी.

यह मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने संजीव गुप्ता के दोनों मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगवा दिए, साथ ही सुरक्षा की गरज से संजीव की कोठी पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया. एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने पुलिस की कई टीमें बना कर संजीव की तलाश में लगा दिया. इस के साथ एसटीएफ की भी एक टीम बना कर इस मामले में लगा दी गई थी.

पुलिस ने संजीव के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर अलीगढ़, दिल्ली, नोएडा, चंडीगढ़, जम्मूकश्मीर तक उस की खोज की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. उस के मोबाइल का स्विच औफ रहता था, बस थोड़ी देर के लिए औन होता था. उसी के हिसाब से जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस वहां पहुंच जाती थी.

24 जुलाई को सारिका के मोबाइल पर एक बार फिर संदेश आया कि कोठी पर पुलिस क्यों तैनात है, पुलिस को वहां से हटवाओ. सारिका ने यह संदेश पुलिस अधिकारियों को दिखाया तो कुछ पुलिस वालों को वहां से हटा दिया गया, लेकिन पूरी तरह से पुलिस नहीं हटाई गई.

संजीव गुप्ता को गायब हुए 3 दिन हो चुके थे. यह घटना शहर में चर्चा का विषय बनी हुई थी. ज्यादातर लोगों का कहना था कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ, बल्कि वह खुद ही कहीं छिपा बैठा है. दूसरी ओर संजीव की पत्नी और भांजे विप्लव गुप्ता ने संजीव के अपहरण का आरोप नीता पांडेय पर लगाया ही नहीं था, बल्कि शक के आधार पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया था.

नीता का पति प्रदीप पांडेय समाज कल्याण विभाग में वरिष्ठ लिपिक था. भाजपा का जिला संगठन ब्राह्मण समाज ही नहीं, सरकारी कर्मचारी भी प्रदीप पांडेय और नीता पांडेय के साथ थे. इसलिए पुलिस नीता पांडेय, उस के पति प्रदीप पांडेय और अनिल गुप्ता के खिलाफ कोई काररवाई नहीं कर पा रही थी.

पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार, नीता पांडेय का आरओ और बोतलबंद पानी का व्यवसाय था. उन्होंने सन 2015 में संजीव गुप्ता से 15 लाख रुपए ब्याज पर लिए थे, जिस का ब्याज पहले ही काट कर संजीव ने उसे 10 लाख 80 हजार रुपए दिए थे. इस के बाद जबरदस्ती उस से 25 लाख रुपए की कमेटी डलवाई थी. बाद में ब्याज जोड़ कर वह उस से 60 लाख रुपए मांगने लगा था.

नीता ने इतना रुपया देने से मना किया तो संजीव जबरदस्ती वसूल करने की कोशिश करने लगा. मजबूर हो कर नीता ने 1 जुलाई, 2017 को भादंवि की धारा 406, 452, 504, 506 एवं 6 के तहत संजीव, दीपक और विप्लव गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. जबकि दोनों के बीच झगड़ा अप्रैल से ही चल रहा था.

यह मामला सुर्खियों में तब आया, जब नीता पांडेय ने जिलाधिकारी से संजीव गुप्ता द्वारा धमकी देने की शिकायत के साथ ब्याज पर पैसे उठाने की शिकायत कर दी थी. जिलाधिकारी ने एसपी (सिटी) और एसडीएम को इस मामले को सुलझाने का आदेश दिया था. लेकिन बुलाने पर भी संजीव समझौते के लिए नहीं आया.

धीरेधीरे नीता पांडेय और संजीव गुप्ता का विवाद इतना बढ़ गया कि यह प्रदेश के डीजीपी और मुख्यमंत्री तक पहुंच गया. ऐसे में कुछ और लोग नीता के साथ आ गए थे, जिन्हें कमेटी का अपना पैसा डूबता नजर आ रहा था. संजीव गुप्ता शहर का बड़ा आदमी ही नहीं, रसूख वाला भी था. उस के सामने हर किसी के आने की हिम्मत नहीं थी.

सपा सरकार के समय उस का अलग ही रुतबा था. लेकिन सत्ता बदलते ही उस का रुतबा जाता रहा. उस की कमेटी और सोसायटी का व्यवसाय शहर ही नहीं, अन्य शहरों तक फैला था, जिस की वजह से लगभग रोज ही होटल में पार्टियां होती रहती थीं, जिस में बड़ेबड़े लोग शामिल होते थे.

इसी संजीव गुप्ता की वापसी के लिए 100 करोड़ की फिरौती मांगी जा रही थी. यह हैरान करने वाली बात थी. पुलिस को भी इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. 22 जुलाई की शाम को संजीव गायब हुआ था और 23 जुलाई की रात एक बज कर 40 मिनट पर 100 करोड़ की फिरौती का संदेश उस की पत्नी के फोन पर वाट्सऐप द्वारा आ गया था. यह भी संदेह पैदा करने वाली बात थी.

100 करोड़ की फिरौती की वजह से ही यह मामला राजधानी लखनऊ तक पहुंच गया था. विधान परिषद में भी मामला उठाया गया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सख्त आदेश था कि इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाया जाए, इसीलिए इस मामले को सुलझाने में पुलिस जीजान से जुटी थी.

इसी का नतीजा था कि पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि संजीव गुप्ता की कार अलीगढ़ के गभाना में खड़ी है. उस का मोबाइल फोन औन तो होता था, पर बहुत थोड़ी देर के लिए. फिर भी उस की जो लोकेशन मिलती थी, पुलिस उसी ओर भागती थी. अब तक की भागदौड़ से पुलिस को लगने लगा था कि यह अपहरण का मामला नहीं है. यह योजना बना कर किया गया अपहरण का नाटक है.

पुलिस ने नीता पांडेय से पूछताछ की तो उस ने कहा कि अगर सारिका गुप्ता को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन पुलिस ऐसा करने से कतरा रही थी, क्योंकि ऐसा करने पर उस पर अंगुली उठ सकती थी. जबकि पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का काफी दबाव था. अधिकारी भी मामले को सुलझाने में लगी टीमों पर दबाव बनाए हुए थे.

पुलिस ने संजीव के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस पर कमेटी और सोसायटी मैंबरों का करोड़ों का कर्ज था. पैसे वाले लोगों ने अपना चोरी का पैसा उस की कमेटी में लगा रखा था. उन्हें जब लगा कि उन का पैसा डूबने वाला है तो परेशान हो कर वे अपना पैसा उस से वापस मांगने लगे थे, जबकि उस के पास लौटाने के लिए पैसा नहीं था. उस ने कमेटी और सोसायटी का पैसा अपनी अय्याशी और शानोशौकत में उड़ा दिया था.

पुलिस जांच में एक आदमी ने बताया कि उस ने संजीव को 23 जुलाई को फिरोजाबाद में देखा था. इस से पुलिस को लगा कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ है. वह अपहरण का नाटक कर रहा है. वह देश छोड़ कर भाग न जाए, पुलिस ने उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

पुलिस ने शहर के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सारी पोल खुल गई. संजीव अपनी कार में अकेला ही नजर आ रहा था. गभाना में जहां उस की कार मिली थी, वहां एक पंक्चर बनाने वाले ने भी बताया था कि इस कार से एक ही आदमी उतरा था और कार लौक कर के वह चला गया था.

आखिर 28 जुलाई को एसटीएफ की टीम ने नाटकीय ढंग से संजीव गुप्ता को पानीपत के होटल स्वर्ण महल से बरामद कर लिया और फिरोजाबाद ला कर 29 जुलाई की सुबह एसएसपी अजय कुमार पांडेय के सामने पेश कर दिया. इस तरह संजीव गुप्ता की सकुशल बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली.

पुलिस की मेहनत तो सफल हो गई थी, पर उस की अपहरण की कहानी पर किसी को विश्वास नहीं था. संजीव गुप्ता ने कहा कि एसटीएफ और एसएसपी साहब ने उसे बचा लिया. अपनी बात कहते हुए वह कभी रोने लगता था तो कभी हंसने लगता था. उस के बताए अनुसार, जब वह मीटिंग खत्म कर के होटल सागर रत्ना से निकला और बाहर खड़ी कार में बैठा तो पीछे छिप कर बैठे एक युवक ने उस की पीठ पर पिस्टल सटा कर चुपचाप गाड़ी चलाते रहने को कहा.

रास्ते में 2-3 लोग और बैठ गए. उन्होंने उस का फोन ले कर उस की पत्नी को 100 करोड़ की फिरौती का संदेश भेजा. लेकिन वह अपनी इस बात पर टिका नहीं रह सका. बारबार बयान बदलता रहा. पुलिस को पहले से ही उस पर शक था, बयान बदलने से शक और बढ़ गया. इस के बावजूद पुलिस तय नहीं कर पा रही थी कि उस के साथ क्या किया जाए? अब तक उस की मदद के लिए तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस के पास अभी संजीव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे, इसलिए सबूतों के अभाव में पुलिस ने उस के खिलाफ कोई काररवाई न करते हुए उसे उस के घर वालों के हवाले कर दिया. पुलिस की यह हरकत लोगों को नागवार गुजरी, क्योंकि सभी जानते थे कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ था. उस ने खुद ही अपने अपहरण का नाटक किया था.

सब से ज्यादा विरोध तो नीता पांडेय ने किया. उस ने संजीव से जान का खतरा बताते हुए उसे जेल भेजने की गुहार लगाई. संजीव को पुलिस ने घर भेज दिया तो वही नहीं, उस के घर वाले भी खुश थे कि उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. लेकिन पुलिस की स्थिति संदिग्ध होने लगी थी, इसलिए पुलिस अभी चुप नहीं बैठी थी.

अगले दिन आईजी मथुरा अशोक जैन फिरोजाबाद आए तो स्थिति बदलने लगी. पुलिस को होटल सागर रत्ना के गार्ड ने बताया था कि उस दिन संजीव गुप्ता ने उस होटल में कोई मीटिंग नहीं की थी. एक आदमी ने बताया था कि संजीव उस दिन अकेला ही कार में था. होटल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी संजीव अकेला ही कार में दिखाई दिया था.

एसटीएफ टीम ने उस कार को भी ढूंढ निकाला, जिस में संजीव जम्मू में अकेला घूमता रहा था. 22 जुलाई यानी संजीव के लापता होने वाले दिन उस की लोकेशन एटा, अलीगढ़ की मिली थी. 24 जुलाई को वह जम्मू में था. एसटीएफ टीम जब वहां होटल में पहुंची तो वह वहां से निकल चुका था. इस तरह के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने उस के खिलाफ काररवाई करने का मन बना लिया.

अब तक संजीव गुप्ता और सारिका गुप्ता की स्थिति काफी बदल चुकी थी. जो लोग उन की मदद के लिए खड़े रहते थे, अब उन्होंने दूरियां बना ली थीं. लोगों ने उन के नंबर ब्लौक कर दिए थे. लोग इस अपहरण के ड्रामे से हैरान थे, इसलिए लोग अब किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे.

31 जुलाई की शाम को इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह संजीव गुप्ता की कोठी पर पहुंचे और संजीव गुप्ता तथा सारिका गुप्ता से अलगअलग पूछताछ की. संजीव और उस के घर वालों ने तो समझा था कि सब ठीक हो गया है, पुलिस को उन्होंने गुमराह कर दिया है, पर ऐसा नहीं था.

1 अगस्त, 2017 को पुलिस ने संजीव गुप्ता, सारिका गुप्ता, उस के भांजे विप्लव गुप्ता तथा सारिका के भाई सागर गुप्ता को हिरासत में ले कर थाने ले आई. अधिकारियों के सामने जब इन से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस की सख्ती के आगे सभी टूट गए और उन की जुबान खुल गई. संजीव को जब सीसीटीवी कैमरों की फुटेज दिखाई गई तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

संजीव ने पुलिस को सारी कहानी सचसच बता दी. उस ने बताया कि लेनदारों तथा नीता पांडेय से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपनी पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर के साथ मिल कर अपने अपहरण की योजना बनाई थी. नीता पांडेय और उस के पति को फंसा कर वह विदेश भाग जाना चाहता था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संजीव के बयानों के आधार पर सारिका, विप्लव और सागर के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 500, 507, 120बी, 34, 182, 186 और 187 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को जेल भेज दिया. इस पूछताछ में संजीव गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, कहानी कुछ इस प्रकार थी.

संजीव गुप्ता बड़ेबड़े सपने देखने वाला नौजवान था. फर्श पर रह कर वह अर्श छूना चाहता था. कभी शहर की एक तंग गली में उस का चूडि़यों का छोटा सा गोदाम था. लेकिन वह रंगबिरंगी चूडि़यों के बीच जिंदगी के गोलगोल रंगीन सपने बुन रहा था. वह सपने ही नहीं देख रहा था, बल्कि धीरेधीरे उन सपनों को हकीकत का जामा भी पहनाने लगा था. पर इस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने फिरोजाबाद ही नहीं, आगरा, मथुरा के बड़ेबड़े व्यापारियों से संपर्क बनाए और कमेटी और किटी का काम शुरू किया. लोग उस की कमेटी और किटी में बड़ीबड़ी रकम लगाने लगे. इसी पैसे को वह ब्याज पर उठाने लगा. बाजार में उस का लाखों रुपए ब्याज पर उठ गया. मजे की बात यह थी कि वह ब्याज के रुपए काट कर लोगों को रुपए उधार देता था.

समय पर किस्त न आने से संजीव अलग से ब्याज लेता था. धीरेधीरे वह बड़ा आदमी बनने लगा. पैसा आया तो वह अन्य धंधों में पैसे लगाने लगा. कमेटी में जो लोग पैसा डालते थे, वह दो नंबर का था. संजीव का सारा काम भी 2 नंबर का होता था, इसलिए हर कोई एकदूसरे की चोरी छिपाए रहा. पैसा आया तो संजीव गुप्ता के खर्चे बढ़ने लगे.

लोगों के पैसों से संजीव ने प्रौपर्टी तो बनाई ही, बड़ीबड़ी कारें भी खरीदीं. लेकिन बाद में लोग अपने पैसे मांगने लगे. अब उसे घाटा भी होने लगा था, जिस से लोगों को अपना पैसा डूबता नजर आया. फिर तो वह उस पर पैसा लौटाने के लिए दबाव डालने लगे. लोगों के दबाव से परेशान संजीव गुप्ता नीता पांडेय से 60 लाख रुपए मांगने लगा तो परेशान हो कर नीता ने उस पर मुकदमा कर दिया.

संजीव अब परेशान रहने लगा था. इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए उस ने एक योजना बनाई, जिस में उस ने पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर गुप्ता को शामिल किया. अगर संजीव की योजना सफल हो गई होती तो नीता पांडेय और उस के पति प्रदीप पांडेय जेल में होते और वह विदेश में मौज कर रहा होता.

योजना के अनुसार, संजीव ने सारिका की बहन के बेटे विप्लव गुप्ता तथा साले सागर को फिरोजाबाद बुला लिया. सागर सीए भी था और वकील भी. संजीव ने सागर को अपने ऊपर सूदखोरी के चल रहे मुकदमे की पैरवी के लिए बुलाया था, लेकिन आने पर अपने अपहरण की पटकथा लिखवा डाली.

सारिका किटी पार्टियों की शान मानी जाती थी. कमेटी और किटी में रुपए डालने के लिए सदस्यों को पटाने का काम वही करती थी. कमेटी चलाने की जिम्मेदारी भी उसी की थी. पति के अपहरण के इस ड्रामे में मुख्य भूमिका उसी की थी.

संजीव ने अपने अपहरण का तानाबाना काफी मजबूती से बुना था, पर पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता के कारण उस का ड्रामा सफल नहीं हुआ. पत्रकारों के सामने संजीव, सारिका, विप्लव और सागर को पेश कर के एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि संजीव अपनी कार को ऐसे रास्तों से अलीगढ़ गया, जिन पर कोई टोलनाका नहीं था.

इसी वजह से वह सीसीटीवी कैमरों की नजर में नहीं आ सका. अलीगढ़ के गभाना टोल प्लाजा के पहले ही उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे खड़ी कर के लौक कर दी और बस से दिल्ली के आईएसबीटी बसअड्डे पहुंचा. वहां से चंडीगढ़, मोहाली होते हुए 24 जुलाई को वह जम्मू पहुंच गया.

वहां से वह मनाली गया और 25 से 27 जुलाई तक वहीं रहा. वह रोहतांग भी गया, जहां से मनाली आ गया. मनाली से देहरादून होते हुए 28 जुलाई को वह पानीपत आया, जहां स्वर्ण होटल पहुंचा और योजना के अनुसार अपने अपहरण की कहानी होटल के कर्मचारियों को सुनाई.

दूसरी ओर सारिका ने कई बार सूटकेस ले कर कोठी से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के पहरे की वजह से वह जा नहीं सकी. यह भी उस का एक ड्रामा था. अगर वह निकल जाती तो लोगों से कहा जाता कि सौ करोड़ की फिरौती दे कर वह पति को छुड़ा कर लाई है.

संजीव एक तीर से कई निशाने साधना चाहता था. अपहरण की आड़ में नीता पांडेय और उस के पति को जेल भिजवा कर उन से छुटकारा पाना चाहता था. सौ करोड़ की फिरौती दे कर आने के नाम पर वह कमेटी के कर्ज से छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि लोगों को उस से सहानुभूति हो जाती.

पर सच्चाई सामने आ जाने से संजीव की योजना पर पानी फिर गया. इस की वजह थी ज्यादा लालच. उस ने सौ करोड़ की जो फिरौती की बात की थी, उस पर किसी ने विश्वास नहीं किया.  जिन धाराओं में संजीव और सारिका को जेल भेजा गया है, उन का जेल से बाहर आना मुश्किल है. शानदार कोठी में रहने वाले पता नहीं कब तक जेल की कोठरी में रहेंगे.

संजीव के वकील ने उन की जमानत के लिए अदालत में अरजी लगा कर जमानत की काफी कोशिश की, लेकिन सरकारी वकील की दलीलें सुन कर न्यायाधीश श्री पी.के. सिंह ने जमानत की अरजी खारिज कर दी. एसटीएफ ने जिस तरह इस मामले का खुलासा किया, किसी को उम्मीद नहीं थी. उन की इस काररवाई से खुश हो कर एसएसपी अजय कुमार पांडेय ने उन्हें प्रशस्तिपत्र के साथ 15 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह का तबादला हो गया है. उन की जगह पर नए कोतवाली प्रभारी भानुप्रताप सिंह आए हैं. वह संजीव गुप्ता और उस के साथियों को रिमांड पर ले कर एक बार फिर पूछताछ करना चाहते हैं.

दर्द में डूबी जिंदगी, न प्यार मिला न पति

21 अक्तूबर, 2016 की रात साढ़े 10 बजे के करीब अभिनव पांडेय ससुराल पहुंचा तो नशा अधिक होने की वजह से उस के कदम डगमगा रहे थे. पति की हालत देख कर नेहा का पारा चढ़ गया. ससुर घनश्याम शुक्ला को भी दामाद की यह हरकत अच्छी नहीं लगी, इसलिए वह उठ कर दूसरे कमरे में चले गए. अभिनव ने नेहा से साथ चलने को कहा तो उस ने उस के साथ जाने से मना कर दिया. अभिनव नशे में तो था ही, उसे भी तैश आ गया. गुस्से में वह नेहा से मारपीट करने लगा. पहले तो घनश्याम शुक्ला ने बेटी को बचाने का प्रयास किया, लेकिन जब वह उसे नहीं छुड़ा पाए तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी.

थोड़ी ही देर में मोटरसाइकिल से 2 पुलिस वाले उन के घर आ गए और पत्नी के साथ मारपीट करने के आरोप में अभिनव को हिरासत में ले लिया. अभिनव को पता था कि उस के ससुर घनश्याम शुक्ला ने फोन कर के पुलिस वालों को बुलाया है. वह वैसे भी दुखी और परेशान था, क्योंकि उन्हीं की वजह से नेहा ससुराल नहीं जा रही थी. पुलिस को देख कर उस का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगेपीछे की चिंता किए बगैर अपना लाइसेंसी रिवौल्वर निकाला और पुलिस के सामने ही घनश्याम शुक्ला के सीने में 2 गोलियां उतार दीं. गोली लगते ही घनश्याम शुक्ला जमीन पर गिर पड़े. उन्हें अस्पताल ले जाया जाता, उस के पहले ही उन की मौत हो गई.

इस के बाद अभिनव नेहा की ओर बढ़ा, लेकिन तब तक पुलिस वालों ने उसे पकड़ कर उस का रिवौल्वर कब्जे में ले लिया था. कंट्रोल रूम की सूचना पर आए सिपाहियों ने घटना की सूचना थाना कैंट के थानाप्रभारी बृजेश कुमार वर्मा को दी तो थोड़ी ही देर में वह भी सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. अभिनव को गिरफ्तार कर लिया गया था. थाने आ कर थाना कैंट पुलिस ने नेहा की तहरीर पर घनश्याम शुक्ला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव द्वारा दिए गए बयान एवं नेहा ने पुलिस को अपनी जो आपबीती सुनाई, उस के अनुसार नेहा की जो दर्दभरी कहानी सामने आई, वह सचमुच द्रवित करने वाली थी.

37 वर्षीया नेहा उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले घनश्याम शुक्ला की दूसरे नंबर की बेटी थी. जनरल कंसल्टेंट का काम करने वाले घनश्याम शुक्ला की पत्नी कुसुम शुक्ला भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की एजेंट थीं. शहर में घनश्याम शुक्ला की गिनती रईसों में होती थी. पतिपत्नी खुले विचारों के थे, शायद इसी का असर था कि उन की बड़ी बेटी नम्रता ने रुस्तमपुर निवासी विष्णु तिवारी से प्रेम विवाह कर लिया था. विष्णु तिवारी उन्हीं की जाति का था, इसलिए शुक्ला दंपति ने इस रिश्ते को स्वीकार कर बेटीदामाद को आशीर्वाद दे दिया था.

उस समय नेहा 8वीं में पढ़ रही थी. लेकिन जब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के जीजा विष्णु तिवारी का दिल उस पर आ गया. जीजासाली का रिश्ता तो वैसे भी हंसीमजाक का होता है, इसलिए विष्णु तिवारी इस रिश्ते का फायदा उठाते हुए नेहा से हंसीमजाक के बहाने छेड़छाड़ करने लगा.

जीजा के मन में क्या है, उस की हरकतों से नेहा को जल्दी ही इस का अंदाजा हो गया. जीजा की नीयत का अंदाजा होते ही वह होशियार हो गई. विष्णु तिवारी ने पहले तो राजीखुशी से नेहा को अपनी बनाने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि नेहा राजीखुशी से उस के वश में आने वाली नहीं है तो नेहा को घर में अकेली पा कर उस ने जबरदस्ती करने की भी कोशिश की. लेकिन नेहा ने जीजा को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दिया. उस ने खुद को किसी तरह बचा लिया.

विष्णु तिवारी की हरकतों से परेशान हो कर नेहा ने आत्महत्या करने की कोशिश की. क्योंकि वह जानती थी कि उस की बातों पर घर में कोई विश्वास नहीं करेगा. नेहा फांसी का फंदा गले में डाल पाती, संयोग से कुसुम आ गईं और उन्होंने उसे बचा कर आश्वासन दिया कि वह विष्णु तिवारी को रोकेगी. पर शायद उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, क्योंकि इस के बाद भी वह नेहा से पहले की ही तरह छेड़छाड़ करता रहा.

तंग आ कर नेहा ने जीजा की शिकायत बहन से कर दी. लेकिन बहन ने भी पति को कुछ कहने के बजाय उसे ही डांटा और भविष्य में पति के चरित्र पर कीचड़ न उछालने की हिदायत भी दी. इस के बाद नेहा विष्णु तिवारी से बच कर रहने लगी.

जिन दिनों नेहा बीए कर रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात विष्णु तिवारी के भांजे अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी से हुई. दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. अभिनव नेहा के घर भी आनेजाने लगा. उसे नेहा के घर आनेजाने में कोई दिक्कत न हो, इस के लिए उस ने नेहा के भाई कपिल उर्फ मोहित से दोस्ती कर ली.

अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी कैंट थाना के बेतियाहाता मोहल्ले में अपनी मां और छोटे भाई उत्कर्ष के साथ रहता था. विष्णु तिवारी के रिश्ते से अभिनव नेहा का भांजा लगता था, लेकिन प्यार रिश्तेनाते कहां देखता है. बोंटी भी रिश्तेनाते भूल कर नेहा के प्रेम में डूब गया था.

अभिनव नेहा से शादी करना चाहता था, लेकिन इस के लिए नेहा के मातापिता से बात करना जरूरी था. उसे लगा कि अगर वह मामा से कहे तो शायद बात बन जाए. उस ने नेहा से अपने प्रेम की बात बता कर विष्णु तिवारी से मदद मांगी तो मदद करने के बजाय वह भड़क उठा. उस ने अभिनव को हद में रहने की हिदायत दी.

पर अभिनव ने तो नेहा से प्रेम किया था, इसलिए मामा की धमकी की चिंता किए बगैर अपने प्रेम के बारे में मां को बता कर उन्हें नेहा का हाथ मांगने के लिए उस के घर जाने को कहा. अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने घनश्याम शुक्ला के घर जातीं, उस के पहले ही विष्णु तिवारी ने सासससुर से अभिनव और नेहा के प्रेम के बारे में नमकमिर्च लगा कर बता कर उन्हें भड़का दिया.

इस का नतीजा यह निकला कि अभिनव की मां नेहा का रिश्ता मांगने आईं तो कुसुम ने उन्हें जलील कर के खाली हाथ लौटा दिया. इस की एक वजह यह भी थी कि कुसुम ने नेहा के लिए एलआईसी के मुंबई के एग्जीक्यूटिव डाइरेक्टर राधेमोहन पांडेय के बेटे मनीष कुमार पांडेय को पसंद कर रखा था.

मनीष लखनऊ सचिवालय में दलाली कर के अच्छी कमाई कर रहा था. कुसुम ने जल्दी से मनीष से नेहा का विवाह कर दिया. नेहा मनीष की दुलहन बन कर ससुराल चली गई. ससुराल में कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद ससुराल वालों की असलियत सामने आ गई. वे मायके से दहेज लाने के लिए नेहा को परेशान करने लगे.

नेहा को परेशान करने की एक वजह यह भी थी कि विष्णु तिवारी ने नेहा से बदला लेने के लिए अभिनव से उस के संबंधों की बात मनीष को बता दी थी. इस के अलावा अभिनव नेहा की ससुराल फोन कर के उस से बातचीत किया करता था. नेहा को परेशान करने वाली बात घनश्याम और कुसुम को पता चली तो लखनऊ जा कर वे उसे गोरखपुर ले आए.

मायके में ही नेहा ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम मौलि रखा गया. मौलि के पैदा होने की सूचना घनश्याम शुक्ला ने नेहा की ससुराल वालों को भी दी थी, लेकिन वहां से कोई नहीं आया था. धीरेधीरे एक साल बीत गया. जब ससुराल से नेहा को लेने कोई नहीं आया तो अगस्त, 2004 में उस ने गोरखपुर के महिला थाना में भादंवि की धाराओं 498ए, 323, 342, 313 व 3/4 के तहत ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

संकट की इस घड़ी में अभिनव ने नेहा का हर तरह से साथ दिया. परिणामस्वरूप उन का प्यार एक बार फिर से जाग उठा. इस की जानकारी विष्णु तिवारी को हुई तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा. उस ने साली का साथ देने के बजाय मनीष का साथ दिया और नेहा पर मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव डालने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि वह मनीष के साथ मिल कर ठेकेदारी करने लगा था.

चूंकि अभिनव हर तरह से नेहा का साथ दे रहा था, इसलिए 25 नवंबर, 2005 को उसे सबक सिखाने के लिए विष्णु तिवारी कुछ लोगों के साथ उस के घर जा पहुंचा. संयोग से उस समय अभिनव घर पर नहीं था. बाद में उस ने विष्णु तिवारी के खिलाफ थाना कैंट में भादंवि की धारा 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कराया.

अभिनव द्वारा मुकदमा दर्ज कराने के बाद कुसुम नेहा से नाराज हो गईं. बेटी से नाराज होने के बाद उस की मदद करने वाले अभिनव के खिलाफ उन्होंने 16 फरवरी, 2006 को थाना कैंट में ही भादंवि की धाराओं 498ए, 506, 328, 352, 307 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

उन का कहना था कि 15 फरवरी को अभिनव ने जान से मारने के लिए उन पर हमला किया था. उस समय नेहा ने विष्णु तिवारी और मनीष की वजह से जहर खा लिया था, जिस की वजह से वह अस्पताल में भरती थी. दरअसल विष्णु तिवारी ने रिवौल्वर की नोक पर मनीष के सामने ही उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. तब अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने घर में रखा जहर खा लिया था.

17 फरवरी, 2006 को अस्पताल में पत्रकारों के सामने अभिनव पांडेय ने ऐलान किया कि वह नेहा और उस की बेटी को अपनाने को तैयार है. इस के अगले दिन 18 फरवरी को अस्पताल में ही नेहा पर जानलेवा हमला हुआ. अगले दिन 19 फरवरी को अभिनव नेहा को एंबुलैंस से एसएसपी दीपेश जुनेजा के आवास पर ले गया, जहां उस ने उन्हें पूरी बात बताई.

इस के बाद एसएसपी के आदेश पर थाना कैंट में विष्णु तिवारी के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 323, 354, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ, जिस की जांच बेतियाहाता चौकीप्रभारी मनोज पटेल को सौंपी गई. मनोज पटेल ने जांच में सारे आरोप सत्य पाए. लेकिन वह उसे गिरफ्तार कर पाते, उस के पहले ही उस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे ले लिया.

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद नेहा अभिनव के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. चूंकि नेहा का अभी मनीष से तलाक हुआ नहीं था, इसलिए वह अभिनव से शादी नहीं कर सकती थी. आखिर घनश्याम शुक्ला ने कोशिश कर के किसी तरह नेहा को मनीष से आजादी दिला दी.

मनीष से छुटकारा मिलने के बाद नेहा ने अभिनव पांडेय से मंदिर में शादी कर ली. नेहा को अभिनव से भी 2 बेटियां पैदा हुईं. रियल एस्टेट कंपनी में मैनेजर की नौकरी करने वाले अभिनव ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगा. इस धंधे से उस ने खूब कमाई की, लेकिन उसी बीच वह शराब पीने लगा. नेहा को अभिनव का शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. वह उसे रोकती तो अभिनव उस से मारपीट करता. जब अभिनव नेहा को ज्यादा परेशान करने लगा तो उस ने मांबाप से की शिकायत की. घनश्याम शुक्ला ने अभिनव को समझाया कि वह पत्नी को सलीके से रखे. ससुर की यह बात उसे काफी बुरी लगी. इस के बाद नेहा के प्रति उस का व्यवहार और खराब हो गया. दुर्भाग्य से उसी बीच नेहा की मां कुसुम की अचानक मौत हो गई. कुसुम की मौत की बाद घनश्याम शुक्ला अकेले पड़ गए. नेहा पिता को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए अभिनव से बात कर के वह बच्चों को ले कर मायके चली आई. अभिनव जबतब शराब पी कर ससुराल आता और लड़ाईझगड़ा कर के नेहा से मारपीट करता. घनश्याम शुक्ला उसे समझाते, पर उस की तो आदत पड़ चुकी थी. वह भला कैसे सुधरता.

उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लेकिन उस दिन नशे में अभिनव ने जो किया, उस की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर नशे में उस ने अपना घर ही नहीं, जिंदगी भी बरबाद कर ली.

पूछताछ के बाद पुलिस ने अभिनव को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अभिनव के जेल जाने के बाद उस के घर वाले नेहा पर मुकदमा वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं, जिस की वजह से नेहा बच्चों को ले कर छिप कर रह रही है. कथा लिखे जाने तक अभिनव पांडेय उर्फ बोंटी की जमानत नहीं हुई थी. थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी अभिनव पांडेय के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर न्यायालय में दाखिल करने की तैयारी कर रहे हैं.

प्रगति मैदान सुरंग : 15 सैकंड में लाखों की लूट

मोदी सरकार के नए और भव्य संसद भवन से प्रगति मैदान सुरंग की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है. दिल्ली के रिंग रोड, मथुरा रोड और भैरों मार्ग का ट्रैफिक आसान बनाने के लिए इस सुरंग को लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाया गया है.

920 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत वाली तकरीबन डेढ़ किलोमीटर लंबी इस सुरंग को बनाने में 4 साल लग गए थे, जिस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून, 2022 में अपने हाथों से किया था.

पर ‘डबल इंजन’ सरकार की कामयाबियों का हल्ला मचाने वालों को कहां पता था कि एक साल बाद कुछ अपराधी महज 15 सैकंड में इसी नईनवेली सुरंग में लाखों रुपए की चोरी को अंजाम दे देंगे.

दिन था 24 जून, 2023 का. दोपहर के ढाई बजे थे. चांदनी चौक की ओमिया ऐंटरप्राइजेज में एक डिलिवरी एजेंट रुपयों से भरा बैग ले कर लालकिला चौक से पेमेंट करने गुरुग्राम जा रहा था. उस के साथ एक और मुलाजिम भी था. जैसे ही वे इस सुरंग में गाड़ी से दाखिल हुए कि तभी लूट की वारदात हो गई.

पीडि़तों ने तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में आ कर इस वारदात के संबंध में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी. इस के बाद पुलिस ने जानकारी देते हुए बताया, ‘उन्होंने (पीडि़तों) लालकिला से एक ओला कैब किराए पर ली और जब कैब सुरंग में दाखिल हुई, तो 2 मोटरसाइकिलों पर 4 लोगों ने उन की गाड़ी को रोका और बंदूक की नोक पर 2 लाख रुपए से भरा बैग लूट लिया.’

चूंकि यह मामला देश की सब से बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के बेहद नजदीक हुआ था, तो पुलिस पर इसे सुलझाने का बहुत ज्यादा दबाव था. पुलिस ने मुस्तैदी भी दिखाई और इस मामले में अब तक 7 लोगों उस्मान अली उर्फ कल्लू, इरफान, सुमित उर्फ आकाश, अनुज मिश्रा उर्फ सैंकी, कुलदीप उर्फ लंगड़, प्रदीप उर्फ सोनू, अमित उर्फ बाला को गिरफ्तार किया है.

शुरुआती जांच में सामने आया है कि आरोपियों ने इस लूट को अंजाम देने से पहले वीरवार और शुक्रवार को इलाके की रेकी की थी. इस के बाद शनिवार को लूट को अंजाम दिया था.

पुलिस के मुताबिक, उस्मान अली और प्रदीप इस वारदात के मास्टरमाइंड हैं. उस्मान अली को चांदनी चौक इलाके में नकदी की आवाजाही के बारे में जानकारी थी, क्योंकि वह वहां कई सालों तक एक ईकौमर्स कंपनी में कूरियर बौय के तौर पर काम कर चुका था.

उस्मान अली ने कई बैकों से कर्ज ले रखा था और वह क्रिकेट की सट्टेबाजी में भी पैसा हार गया था. उस ने अपना कर्ज चुकाने के लिए इस लूट की साजिश रची थी.

उस्मान अली को जानकारी थी कि चांदनी चौक में कैश ट्रांजैक्शन दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक होता है. ऐसे में उस ने टारगेट की पहचान कर उस की रेकी शुरू की. शनिवार को उस्मान अली ने अपने साथियों को बताया था कि हरियाणा नंबर की टैक्सी में नकदी ले जाई जा रही है.

अनुज मिश्रा जल बोर्ड में कौंट्रैक्ट पर मेकैनिक है, जबकि कुलदीप सब्जी बेचता है और उसी ने लूट के लिए पिस्टल और गोलियों का इंतजाम कराया था. इरफान हज्जाम है और वह अपने चचेरे भाई उस्मान के जरीए दूसरे आरोपियों से मिला था. सुमित भी सब्जी बेचता है.

पुलिस के मुताबिक, प्रदीप फिरौती के एक मामले में 8 साल तक न्यायिक हिरासत में रह चुका है. वह 2 साल पहले ही जेल से रिहा हुआ है. अमित प्रदीप के जरीए ही उस्मान अली से मिला था.

उस्मान अली के बुराड़ी के फ्लैट पर इस लूट कांड की साजिश रची गई. कुलदीप पर पहले से झपटमारी और डकैती के 16 मामले दर्ज हैं, वहीं अनुज मिश्रा पर 5 केस दर्ज हैं, जबकि प्रदीप 37 आपराधिक मामलों में शामिल रहा है.

पुलिस में दर्ज की गई रिपोर्ट में 2 लाख रुपए की लूट का जिक्र किया गया है, पर यह बात भी उठ रही है कि लूट तो 50 लाख रुपए की हुई थी. पुलिस ने आरोपियों से तकरीबन 5 लाख रुपए भी बरामद किए थे. अपराध बढ़े हैं राजधानी में आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में साल 2019 में लूट के 1,956 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2020 में यही मामले बढ़ कर 1,963 हो गए थे. साल 2021 में राजधानी में दिनदहाड़े लूटने के 2,333 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2022 के सिर्फ 15 जुलाई तक 1,221 मामले दर्ज किए जा चुके थे.

अगर प्रगति मैदान सुरंग कांड के इन आरोपियों पर नजर डालें, तो उस्मान अली कुरियर बौय का काम करता था. अनुज मिश्रा मेकैनिक था, तो इरफान हज्जाम, जबकि सुमित और कुलदीप सब्जी बेचते थे. ये सातों शातिर थे, पर कहीं न कहीं ऐसे अपराधों की जड़ में बेरोजगारी होती है. उसी की वजह से भटक कर नौजवान तबका जुर्म की राह पर चला जाता है.

पिछले कुछ सालों में और कोरोना के कहर के बाद लोगों का रोजगार छूटा है या फिर बहुतों को कोई काम मिला ही नहीं है. ऊंची पढ़ाई वाले भी एक अदद नौकरी की तलाश में जूते घिसते नजर आते हैं. फिर दिल्ली जैसे शहर में प्रवासियों का आनाजाना लगा रहता है. उन में से जो ढंग का काम पा लेते हैं, वे तो दिल्ली में जमे रहते हैं, बहुत से किसी अपराध को अंजाम दे कर भाग जाते हैं.

दिल्ली में बढ़ती आबादी, नौजवान तबके में नशे की लत और पुलिस के अपराधियों के प्रति कमजोर रवैए से भी जुर्म की दर में इजाफा हुआ है.

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