रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

37 वर्षीय विधायक सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के नदिया शहर स्थित कृष्णानगर मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में मांबहन के अलावा पत्नी रूपाली और 7 माह का बच्चा था. विधायक सत्यजीत बिस्वास काफी मिलनसार, मृदुभाषी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे, जिस की वजह से वह अपने विधानसभा क्षेत्र कृष्णागंज में काफी लोकप्रिय थे.

उन की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि वह दिनरात क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर रहते थे. क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए वह हर समय तैयार रहते थे. इसी के चलते क्षेत्र के लोग उन से खुश रहते थे.

वह 9 फरवरी, 2019 की खुशनुमा शाम थी. तृणमूल कांग्रेस के विधायक सत्यजीत बिस्वास अपनी पत्नी रूपाली बिस्वास के साथ डाइनिंग रूम में बैठे बातचीत करते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे. उस वक्त उन का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

पति के चेहरे पर खुशी की ऐसी चमक रूपाली ने पहले कभी नहीं देखी थी. वह भीपति की खुशी से खुश हो कर उन्हें निहार रही थीं. चाय की चुस्की के दौरान बीचबीच में विधायक की नजरें कलाई पर बंधी घड़ी पर चली जाती थीं.

‘‘क्या बात है जो आज इतने मुसकरा रहे हैं जनाब?’’ रूपाली ने पति को गुदगुदाने की कोशिश की.

‘‘अपने घर में बैठा हूं. खूबसूरत बीवी की छत्रछाया में. खुश होना मना है क्या?’’

यह सुन कर रूपाली शरमाने के बजाए संजीदा हो गईं. फिर पति को कुछ याद दिलाते हुए बोलीं, ‘‘नेताजी, यहां बैठेबैठे यूं ही बातें करते रहेंगे या जिस के लिए तैयार हो कर बैठे हैं, वहां भी जाएंगे.’’

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‘‘अच्छा किया, तुम ने याद दिला दिया मैडम. ऐसा करो तुम भी तैयार हो जाओ. इसी बहाने तुम्हारा भी मूड बदल जाएगा और हमारा साथ भी बना रहेगा.’’ कलाई पर नजर डालते हुए सत्यजीत आगे बोले, ‘‘जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं बचा है. तुम तैयार हो जाओ. तब तक मैं एक काल कर लेता हूं.’’

इस के बाद रूपाली तैयार होने के लिए चली गई. 10 मिनट में वह तैयार हो कर पति के पास आ गईं. उन्होंने 7 महीने के बेटे को भी तैयार कर दिया था.

दरअसल, विधायक सत्यजीत बिस्वास को फुलबारी इलाके में सरस्वती पूजन के उद्घाटन कार्यक्रम में शरीक होना था, जिस में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया गया था. इन के अलावा उस कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस नेता गौरीशंकर, लघु उद्योग मंत्री रत्ना घोष सहित शहर के तमाम सम्मानित लोगों को भी आमंत्रित किया गया था.

सत्यजीत बिस्वास का वहां पहुंचना जरूरी था. इस के बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपनी कार से कार्यक्रम स्थल फुलबारी पहुंच गए. कार्यक्रम स्थल उन के आवास से बमुश्किल 300 मीटर दूर स्थित था. वहां पहुंचने में उन्हें 3-4 मिनट का समय लगा होगा.

बुला रही थी मौत

बहुत बड़े मैदान में लगे पंडाल में कतार से कुर्सियां बिछी हुई थीं. आगे की कतार में बिछी स्पैशल कुर्सियों पर तमाम वीआईपी और नेता बैठे थे. आयोजकों की आंखें बारबार मुख्यद्वार पर जा कर टिक रही थीं. उन की परेशान आंखों से यही पता चल रहा था कि वह बड़ी बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रहे थे.

जैसे ही विधायक सत्यजीत बिस्वास ने पंडाल में प्रवेश किया, वहां का माहौल खुशनुमा हो गया. सरस्वती पूजन के उद्घाटन की सारी तैयारियां पहले से कर ली गई थीं. दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम मंच पर ही होना था. विधायक बिस्वास के पहुंचते ही आयोजक उन्हें, उन की पत्नी रूपाली बिस्वास और कुछ अन्य गणमान्य लोगों को मंच पर ले गए और दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम संपन्न कराया गया.

दीप प्रज्जवलित करने के बाद विधायक सहित तमाम अतिथि कुर्सियों पर जा बैठे. उस के थोड़ी देर बाद अतिथियों के स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए. कार्यक्रम ने अतिथियों का मन मोह लिया. वे उस में तन्मयता से लीन हो कर लुत्फ उठा रहे थे. उस समय रात के करीब 9 बजे थे.

रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि 2 नकाबपोश फुरती से पंडाल में पहुंचे. इस से पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उन्होंने पीछे से विधायक सत्यजीत बिस्वास पर निशाना साध कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियां बरसा कर वे दोनों वहां से फरार हो गए. भागते हुए उन्होंने असलहे को वहीं पर फेंक दिया.

विधायक को 3 गोलियां लगी थीं. गोलियां लगते ही वह कुरसी पर गिर कर तड़पने लगे. गोली चलने से हाल में भगदड़ मच गई. जरा सी देर में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया. तृणमूल कांग्रेस के नेता गौरीशंकर, रत्ना घोष सहित अन्य लोग आननफानन में गंभीर रूप से घायल विधायक बिस्वास को कार से जिला अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया.

टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या की सूचना मिलते ही सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खून में उबाल आ गया. कार्यकर्ता चारों ओर तोड़फोड़ करने लगे. तमाम लोग अपने लोकप्रिय युवा नेता को देखने अस्पताल भी पहुंचे.

उधर मौके पर मौजूद रही विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास को अभी भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो देखा, वो सच है. सत्यजीत बिस्वास उन को हमेशा के लिए अकेला छोड़ कर दुनिया से चले गए थे. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया था. किसी तरह रूपाली और उन के 7 माह के दुधमुंहे बेटे को घर पहुंचाया गया. विधायक बेटे की हत्या की खबर जैसे ही बूढ़ी मां को मिली, उन की तो आंखें पथरा गईं. घर में कोहराम मच गया था.

पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी ने विधायक बिस्वास की हत्या पर गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा कि कातिल चाहे जितना भी कद्दावर क्यों हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

विधायक सत्यजीत की हत्या की सूचना मिलते ही एसपी रूपेश कुमार, एएसपी अमनदीप, डीएसपी सुब्रत सरकार, हंसखली के थानाप्रभारी अनिंदय बसु, कृष्णानगर के थानाप्रभारी राजशेखर पौल सहित जिले के तमाम पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल को चारों ओर से घेर लिया था.

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संदेह से भरे सवाल

एसपी रूपेश कुमार ने घटना के लिए हंसखली थाने के थानाप्रभारी अनिंदय बसु को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया. विधायक सत्यजीत बिस्वास की सुरक्षा में एक सुरक्षागार्ड लगाया गया था. घटना के समय वह मौके पर नहीं था.

जांचपड़ताल में पता चला कि सुरक्षागार्ड दिनेश कुमार उसी दिन छुट्टी ले कर घर चला गया था. यह बात किसी भी अधिकारी के गले नहीं उतर रही थी कि दिनेश आज ही छुट्टी पर घर क्यों गया? जिस तरह से विधायक बिस्वास की हत्या की गई थी, वह सुनियोजित थी. सुरक्षा गार्ड दिनेश कुमार को जिम्मेदार मानते हुए उसे भी निलंबित कर दिया.

बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी. टीएमसी कार्यकर्ता अपने लोकप्रिय विधायक की हत्या के लिए भाजपा के सांसद मुकुल राय को जिम्मेदार मान कर उन्हें हत्या का आरोपी बनाने के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे. टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच से फैलता हुआ यह आरोप फिजाओं में घुल रहा था. लोग कह रहे थे कि सांसद मुकुल राय के इशारे पर शूटर अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने विधायक की हत्या को अंजाम दिया.

विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास भी पति की हत्या के लिए सांसद और कद्दावर नेता मुकुल राय को जिम्मेदार मान रही थीं. रूपाली की तहरीर पर हंसखली थाने में 4 आरोपियों मुकुल राय, अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर मुकदमा दर्ज होने के कुछ देर बाद जांच थाना पुलिस से सीबीसीआईडी को सौंप दी गई. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही सीबीसीआईडी की टीम भवानी भवन से मौके पर जा पहुंची और जांच शुरू कर दी.

सूरज मंडल और कार्तिक मंडल फुलबारी माठ के आसपास रहते थे. पुलिस जानती थी कि जांच में जितना विलंब होगा, उतना ही आरोपी पकड़ से दूर होते जाएंगे. बगैर वक्त गंवाए सीबीसीआईडी ने रात में ही सूरज मंडल के घर दबिश दी. सूरज मंडल गिरफ्तार कर लिया गया. सूरज की निशानदेही पर ही कार्तिक मंडल को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. अभिजीत पुंडरी को नहीं पकड़ा जा सका. वह फरार हो गया था.

गिरफ्तार दोनों आरोपियों सूरज मंडल और कार्तिक मंडल को सीआईडी गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए हंसखली थाने ले आई उन से पूरी रात पूछताछ की गई. पर वे दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे.

अगले दिन अधिकारियों की मौजूदगी में उन से फिर पूछताछ की गई. सूरज मंडल ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने विधायक बिस्वास की हत्या में खुद और कार्तिक मंडल के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान सूरज ने बताया कि उस ने अपने घर के पास एक कटार, बातचीत में इस्तेमाल किए गए सिमकार्ड और कुछ अन्य दस्तावेज छिपा रखे हैं.

अगली सुबह सीआईडी की टीम उसे ले कर उस के घर पहुंची. उस के घर के बाहर पुलिस टीम ने जमीन की खुदाई की तो धारदार हथियार और बड़ी संख्या में सिमकार्ड बरामद किए, जो बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों के भी थे. इस के अलावा उस के घर की तलाशी लेने पर वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तसवीरें भी मिलीं. इस बरामदगी के बाद नाराज स्थानीय लोगों ने सूरज मंडल के घर के पास एकत्र हो कर विरोध प्रदर्शन किए.

इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सांसद मुकुल राय को पता चला कि विधायक की हत्या में उन्हें भी नामजद आरोपी बनाया गया है.

मुकुल राय की सफाई

अपना नाम घसीटे जाने को ले कर सांसद मुकुल राय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं कोलकाता में बैठा हूं और हत्या यहां से 120 किलोमीटर दूर नदिया जिले में विधायक के घर के पास हुई है. यह पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और पश्चिम बंगाल सरकार की विफलता है.

उन्होंने कहा कि घटना की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए, ताकि पूरे रहस्य से परदा उठ सके. आरोपों का खंडन करते हुए सांसद मुकुल राय ने कहा कि अभी ऐसी स्थिति है कि जो कुछ भी होगा, उस के लिए मेरा नाम घसीटा जाएगा. अगर दम है तो इस की निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने सांसद मुकुल राय का समर्थन करते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग कर दी. उन्होंने भी यही कहा कि विधायक बिस्वास की हत्या आपसी गुटबाजी में की गई है. यही नहीं, जब भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कुछ होता है तो वह उस का आरोप भाजपा पर मढ़ देती है.

कई बार तृणमूल खुद ऐसे काम कर के राजनैतिक विरोधियों को फंसाने की पूरी कोशिश करती है. सालों से टीएमसी में आपसी गुटबाजी चरम पर है, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

खैर, सांसद मुकुल राय गिरफ्तारी से बचने के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय की शरण में पहुंच गए. 12 फरवरी, 2019 को उन्हें बड़ी राहत मिल गई. कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ भाजपा नेता मुकुल राय की गिरफ्तारी पर 7 मार्च, 2019 तक रोक लगा दी. टीएमसी पार्टी ने आखिर सांसद मुकुल राय पर हत्या जैसा गंभीर आरोप क्यों लगाया, यह तो जांच का विषय है और पुलिस अपनी काररवाई कर रही है. आइए जानें कि यह मुकुल राय हैं कौन?

65 वर्षीय मुकुल राय मूलरूप से पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना के कंचरपाड़ा के रहने वाले हैं. इन के परिवार में पत्नी कृष्णा राय के अलावा एक बेटा है. भाजपा के सांसद मुकुल राय का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस के लीडर के रूप में शुरू हुआ था. कांग्रेस के साथ लंबी पारी खेलने के दौरान पिछली मनमोहन सिंह की सरकार में वह केंद्रीय रेल मंत्री थे.

11 जुलाई, 2011 को असम में एक रेल दुर्घटना हुई थी. मुकुल राय रेलमंत्री होने के बावजूद मौके पर नहीं पहुंचे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें पद से हटा दिया था और उन की जगह दिनेश त्रिवेदी को यह भार सौंप दिया था.

इस से पहले ममता बनर्जी के साथ मुकुल राय की खूब निभती थी. 1998 में जब ममता बनर्जी कांग्रेस से अलग हुईं तो उन्होंने एक नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. तब उन्होंने मुकुल राय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.

पहली बार सन 2001 में मुकुल राय को टीएमसी से एमएलए का टिकट मिला. वह जगतदला विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे. इस के बाद वह निरंतर पार्टी की सेवा करते रहे.

बाद में तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया. वह 28 मई, 2009 से 20 मार्च, 2012 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. सन 2012 में मुकुल राय सांसद चुन लिए गए. फिर 3 अप्रैल, 2012 से 11 अक्तूबर, 2017 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे.

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राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं मुकुल राय

सारदा स्कीम घोटाले में सन 2015 में मुकुल राय और ममता बनर्जी का नाम आया. घोटाले में नाम आने के बाद ममता बनर्जी और मुकुल राय के बीच दूरी बन गई. फिर वे कभी एक नहीं हो सके.

तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय का मन भंग होने लगा था. ममता बनर्जी को उन पर संदेह होने लगा था कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. फिर क्या था, ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया.

पार्टी से निकाले जाने के बाद मुकुल राय ने 25 सितंबर, 2017 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद 11 अक्तूबर, 2017 को उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और 3 नवंबर, 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. तब से वह भाजपा में हैं.

भाजपा का दामन थामने के बाद से मुकुल राय पश्चिम बंगाल में भाजपा की जमीन बनाने में लग गए. उन्होंने टीएमसी के कार्यकर्ताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल करना शुरू कर दिया. वैसे भी वह पुराने सियासी खिलाड़ी थे. उन्हें जोड़तोड़ की राजनीति अच्छी तरह आती थी. इस से टीएमसी पार्टी घबरा गई. इस बीच नदिया जिले में उन का कई बार दौरा हो चुका था.

विधायक सत्यजीत बिस्वास मतुआ समुदाय से आते थे, जिस का बंगाल में अच्छाखासा आधार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए ठाकुरनगर आए थे.

ठाकुरनगर के साथसाथ यह संप्रदाय नदिया और उत्तरी 24 परगना जिले में करीब 30 लाख की संख्या में मौजूद है और राज्य भर की कम से कम 10 से अधिक लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में काम करता है. मतुआ समुदाय पर सत्यजीत बिस्वास की अच्छीखासी पकड़ बनी हुई थी. उन की हत्या का एक कारण यह भी माना जा रहा है.

बहरहाल, आरोपी सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि विधायक की हत्या की योजना में निर्मल घोष और कालीपद मंडल भी शामिल थे. जांच में यह बात सच पाई गई.

इस के बाद पुलिस ने आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को पूछताछ में निर्मल और कालीपद मंडल ने बताया कि हत्या की साजिश अभिजीत पुंडरी ने रची थी और गोली मैं ने और कालीपद ने मारी थी. यह हत्या उन्होंने क्यों की, इस बारे में वे कुछ नहीं बता सके.

आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन अभिजीत पुंडरी को पश्चिम मिदनापुर जिले के राधामोहनपुर इलाके से गिरफ्तार कर लिया. जामातलाशी में उस से एक पिस्टल बरामद की गई.

पूछताछ में अभिजीत पुंडरी ने हत्या की साजिश रचने की बात कबूल ली थी. उसे हत्या की सुपारी किस ने दी थी, यह बात उस ने पुलिस को नहीं बताई. विधायक की हत्या में सांसद मुकुल राय की क्या भूमिका थी, इस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी.

विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या क्यों की गई, यह राज कहीं राज न रह जाए. आपसी गुटबाजी कह कर हत्या पर जो परदा डाला जा रहा है, क्या वह पर्याप्त वजह है? यह एक जलता हुआ सवाल है. इस सवाल का जवाब पुलिस को ही ढूंढना होगा.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सपा नेत्री की गहरी चाल

मुरादाबाद से 11 किलोमीटर दूर दिल्ली रोड पर एक कस्बा है पाकबड़ा. यह कस्बा राष्ट्रीय राजमार्ग-24 के दोनों ओर बसा हुआ है. कासिम सैफी अपनी पत्नी गुल हाशमीन के साथ इसी कस्बे में रहता था. वह आरटीआई कार्यकर्ता था. इस के अलावा वह किसी के साथ मिल कर प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था.

कासिम सैफी 27 दिसंबर, 2018 को अपनी पत्नी से यह कह कर गया था कि मुरादाबाद जा रहा है और वहीं से जमीन खरीदफरोख्त के लिए कहीं जाएगा. उसे घर लौटने में देर हो सकती है.

कासिम जब शाम 7 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस के भाई आसफ अली ने कासिम को फोन किया. उस ने बताया कि वह किसी के साथ बैठ कर प्रौपर्टी संबंधी बात कर रहा है. उस ने यह भी बताया कि रात 9-10 बजे तक घर पहुंच जाएगा.

कासिम जब रात 10 बजे तक भी घर नहीं पहुंचा तो आसफ अली ने उसे फिर से फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी लेकिन वह उठा नहीं रहा था. आसफ ने सोचा, हो सकता है किसी जरूरी काम में व्यस्त होने की वजह से काल रिसीव न कर पा रहा हो. इसलिए उस ने थोड़ी देर बाद फिर से कासिम को फोन किया. इस बार भी उस के फोन पर घंटी तो जा रही थी पर उस ने फोन नहीं उठाया.

कासिम ने इस से पहले कभी ऐसा नहीं किया था. घर वालों के फोन करने पर वह काल जरूर रिसीव करता था. भले ही थोड़ी देर बात करे, जबकि उस दिन वह फोन ही नहीं उठा रहा था.

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सभी घर वाले चिंतित थे. कासिम चूंकि आरटीआई कार्यकर्ता था, इसलिए घर वालों को और ज्यादा चिंता होने लगी. घर वाले रात भर चिंता में बैठे उसी के आने का इंतजार करते रहे. बीचबीच में वह उस का मोबाइल नंबर भी डायल करते रहे. हर बार फोन तो मिल जाता, पर बात नहीं हो रही थी. घंटी जा रही थी, लेकिन वह उठा नहीं रहा था. बैठेबैठे उन की रात बीत गई.

अगले दिन 28 दिसंबर को भी कासिम के परिवार वालों ने उस की तलाश की पर उन्हें उस का कोई पता नहीं चल सका. उन्होंने कासिम के दोस्तों और जानपहचान वालों को फोन कर के उस के बारे में जानने की कोशिश की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. बेटे की कोई जानकारी न मिलते देख 29 दिसंबर को कासिम के पिता साबिर हुसैन कुछ लोगों के साथ थाना पाकबड़ा पहुंच गए.

थानाप्रभारी नीरज कुमार शर्मा को उन्होंने अपने 32 वर्षीय बेटे कासिम के गायब होने की जानकारी दी. इस पर थानाप्रभारी ने कहा कि कहीं वह नाराज हो कर तो नहीं चला गया.

‘‘नहीं साहब, नाराज होने का सवाल ही नहीं उठता. मेरा लड़का आरटीआई कार्यकर्ता है. वह पढ़ालिखा और समझदार है. मुझे डर है कि उस के साथ कहीं कोई अनहोनी न हो गई हो.’’ साबिर हुसैन ने आशंका जताई.

यह सुन कर थानाप्रभारी ने उन से कहा, ‘‘अगर आप को किसी पर शक हो तो बताइए. कभी उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था?’’

‘‘साहब, छोटेमोटे झगड़े को छोड़ दें तो हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ साबिर हुसैन ने बताया.

थानाप्रभारी नीरज कुमार शर्मा ने साबिर हुसैन को यह कह कर घर भेज दिया कि कासिम के बारे में कहीं से कोई सुराग मिले तो पुलिस को जरूर बताना और किसी पर शक हो तो वह भी बताना.

पुलिस की चुप्पी देख घर वाले मिले एसपी से

कई दिन बीत गए, पुलिस भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. कासिम के घर वाले थाने का चक्कर लगातेलगाते परेशान हो गए तो थकहार कर वे 3 जनवरी, 2019 को एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ से मिले. एसएसपी ने उन की बात को गंभीरता से ले कर उसी समय पाकबड़ा के थानाप्रभारी को तुरंत कासिम के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने को कहा.

एसएसपी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने कासिम सैफी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उस के घर वालों से इस संबंध में बात की. दरअसल, जांच के लिए यह जानना जरूरी था कि कासिम अधिकांशत: किसकिस के साथ रहता था, उस के दोस्त कौनकौन हैं.

साबिर हुसैन ने बताया कि मुरादाबाद के रामगंगा विहार में अलका नाम की एक महिला रहती है, जो अपने परिचित विकास चौधरी के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करती है. रामगंगा विहार में ही उस का औफिस है. कासिम उसी के पास जाता था. उसी के औफिस में बैठ कर आरटीआई के कागजात तैयार करता था.

यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी ने कासिम के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. कालडिटेल्स की जांच में पता चला कि कासिम के फोन से अंतिम बार जिस नंबर पर बात हुई, वह नंबर विकास चौधरी का था. आश्चर्य की बात यह थी कि कासिम के फोन की लोकेशन कभी हरियाणा, पंजाब की तो कभी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की मिली थी.

थानाप्रभारी उसी दिन पुलिस टीम के साथ मुरादाबाद के रामगंगा विहार पहुंच गए और विकास चौधरी को पूछताछ के लिए उस के औफिस से पाकबड़ा ले आए. उन्होंने विकास से कासिम के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 27 दिसंबर को वह कासिम सैफी को प्रौपर्टी दिखाने के लिए लदावली गांव ले गया था. उस के बाद वह अपने घर जाने की बात कह कर चला गया था.

विकास ने जितने आत्मविश्वास के साथ यह बात पुलिस को बताई, उस से पुलिस को लगा कि विकास सच बोल रहा है. तफ्तीश के दौरान ही विकास की बिजनैस पार्टनर और सपा नेत्री अलका दूबे एक वकील को ले कर थाना पाकबड़ा पहुंची. अपने प्रभाव के इस्तेमाल और पहुंच का फायदा उठा कर वह विकास चौधरी को थाने से छुड़ा ले गई.

इस के बाद पुलिस ने विकास चौधरी द्वारा कही गई बातों की जांच शुरू कर दी. उस ने बताया था कि लदावली जाने के लिए उन्होंने अकबर के किले के पास से बस पकड़ी थी. इसलिए पुलिस ने अकबर के किले पर लगे सीसीटीवी कैमरों की 27 दिसंबर की फुटेज देखी. उस फुटेज में कासिम सैफी और विकास चौधरी मुजफ्फरनगर जाने वाली एक बस में चढ़ते दिखाई दिए.

फुटेज देख कर थानाप्रभारी का माथा ठनका कि मुजफ्फरनगर जाने वाली जिस बस में वे दोनों बैठ कर गए थे, उस में लदावली गांव का न तो टिकट बनता था और न ही वह बस लदावली गांव में रुकती थी. लिहाजा आगे की पूछताछ के लिए पुलिस ने विकास चौधरी को फिर से उठा लिया.

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विकास चौधरी ने खोला रहस्य

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कासिम सैफी अब जीवित नहीं है. उस ने उस की हत्या कर लाश एक खेत में छिपा दी है.

उस ने बताया कि कासिम उस की जाति की लड़कियों पर अश्लील कमेंट करता था. इस के अलावा अलका दूबे पर भी वह बुरी नजर रखता था, जिस की वजह से उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

विकास ने आगे बताया कि 27 दिसंबर को वह शामली में एक प्रौपर्टी दिखाने के बहाने से उसे साथ ले गया था. वहां पर गांव भभीसा का रहने वाला एक दोस्त कुलदीप मिला. उस की मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम लोग शाहपुर गांव के गन्ने के एक खेत में पहुंचे. वहीं पर हम ने उस के पेट और पीठ में गोली मार कर उस की हत्या कर दी. उस की लाश खेत में छोड़ कर वह मुरादाबाद आ गया था और कुलदीप कासिम का मोबाइल फोन ले कर सहारनपुर रेलवे स्टेशन चला गया था.

योजना के अनुसार कुलदीप ने मृतक का फोन साइलेंट कर के सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर आई एक सुपरफास्ट टे्रन के शौचालय में छिपा दिया, ताकि उस के फोन की लोकेशन बदलती रहे.

विकास चौधरी द्वारा कासिम की हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर शामली के कांधला थाने के गांव शाहपुर में सतवीर के गन्ने के खेत से कासिम सैफी की लाश बरामद कर ली. यह 10 जनवरी, 2019 की बात है. कासिम के घर वालों को उस की हत्या की खबर मिली तो घर में कोहराम मच गया.

विकास चौधरी ने कासिम की हत्या किए जाने की जो वजह बताई थी वह मृतक के घर वालों के गले नहीं उतर रही थी. परिवार के लोगों का कहना था कि अलका दूबे से कासिम के नजदीकी संबंध नहीं थे. वह शरीफ, समझदार और नेकनीयत वाला आदमी था. उन्होंने कहा कि अभियुक्त विकास चौधरी गलत आरोप लगा कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है.

11 जनवरी, 2019 को शामली से कासिम का शव मुरादाबाद लाया गया. पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस के बाद कस्बे के सैकड़ों लोग उन के साथ हो गए. कासिम की हत्या का सही खुलासा न करने का आरोप लगाते हुए लोगों ने कासिम का शव थाने में रख कर हंगामा करना शुरू कर दिया.

भीड़ ने थाने में तोड़फोड़ भी की. इतना ही नहीं हत्यारोपी विकास चौधरी को हवालात से खींचने की भी कोशिश की. विरोध पर पुलिसकर्मियों से धक्कामुक्की की गई.

थाने में बवाल मचाने के बाद गुस्साए लोग दिल्ली लखनऊ हाइवे नंबर 24 पर पहुंच गए. उन्होंने कासिम का शव सड़क पर रख कर जाम लगा दिया.

सूचना मिलते ही एसएसपी जे. रविंद्र गौड़, एसपी (सिटी) अंकित मित्तल, सीओ (हाइवे) अपर्णा गुप्ता, सीओ (सिविल लाइंस) राजेश कुमार टीम के वहां पहुंच गए.

एसएसपी ने आक्रोशित भीड़ को समझाया और आश्वासन दिया कि केस की फिर से जांच कराई जाएगी. जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. आरोपी चाहे कितना भी असरदार क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा. एसएसपी के इस आश्वासन के बाद लोगों ने जाम खोला. इस के बाद लोग कासिम का शव दफनाने को तैयार हुए.

भारी पुलिस फोर्स के बीच कासिम सैफी के शव को दफनाया गया. पुलिस ने विकास चौधरी से पूछताछ कर 11 जनवरी 2019 को उसे जेल भेज दिया.

चूंकि लोगों ने अलका दूबे पर गंभीर आरोप लगाए थे, इसलिए एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने सीओ (हाइवे) अपर्णा गुप्ता को निर्देश दिया कि अलका दूबे को हिरासत में ले कर पूछताछ करें. सीओ अपर्णा गुप्ता पुलिस को ले कर जब रामगंगा विहार स्थित उस के घर पहुंची तो उस के घर व औफिस पर ताला लगा मिला.

इतना ही नहीं, उस के दोनों मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ थे. उस के अंडरग्राउंड हो जाने के बाद पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस ने उस के संभावित ठिकानों पर दबिश डाली, लेकिन सफलता नहीं मिली. लिहाजा पुलिस ने अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

असल खिलाड़ी थी अलका दूबे

इसी दौरान पुलिस को अलका दूबे के बारे में सूचना मिली कि वह सीमावर्ती जिले रामपुर की मिलक तहसील में कहीं रह रही है. सीओ अपर्णा गुप्ता की टीम ने इस सूचना पर काम करना शुरू किया. इस के बाद 14 जनवरी, 2019 को पुलिस टीम ने अलका दूबे को रामपुर जिले की तहसील मिलक से हिरासत में ले लिया.

सीओ अपर्णा गुप्ता ने अलका दूबे को मुरादाबाद के महिला थाने ले जा कर उस से पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताते हुए बारबार बयान बदलती रही. उस ने बताया कि मृतक कासिम से उस की मुलाकात मुरादाबाद कचहरी में हुई थी. इस से ज्यादा वह उस के बारे में कुछ नहीं जानती.

पुलिस को लगा कि वह उसे गुमराह कर रही है, तब उस से सख्ती से पूछताछ की गई. पुलिस की सख्ती के आगे अलका दूबे को सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने कासिम सैफी की हत्या की जो कहानी बताई वह बड़ी रहस्यमयी निकली—

अलका दूबे राजनीति में सक्रिय थी. वह समाजवादी पार्टी की जिला सचिव थी. सपा की जिला कार्यकारिणी में ही हारून सैफी भी जिला सचिव था. हारून सैफी पाकबड़ा का रहने वाला था और वहां का प्रधान रह चुका था.

पार्टी के कार्यक्रमों में हारून सैफी और अलका दूबे की अकसर मुलाकात होती रहती थी. चूंकि वह सपा जिला कार्यकारिणी में समान पद पर थे, इसलिए दोनों की फोन पर भी अकसर बातें होती रहती थीं.

करीब 3-4 महीने पहले मुरादाबाद की कचहरी में अलका की मुलाकात हारून सैफी से हुई. उस समय हारून बेहद परेशान दिखाई दे रहा था. अलका के पूछने पर उस ने बताया कि पाकबड़ा निवासी कासिम ने उसे और उस के घर वालों को परेशान कर रखा है.

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कासिम और हारून सैफी की दुश्मनी

दरअसल हुआ यह था कि हारून सैफी की पत्नी शायदा बेगम, बेटी नौरीन, एक रिश्तेदार आरिफ और आरिफ की पत्नी कैसरजहां ने फरजी डाक्यूमेंट बनवा कर रानी लक्ष्मीबाई पेंशन और समाजवादी पेंशन का लाभ लिया था. आरिफ ने पास सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान भी थी.

यह जानकारी पाकबड़ा निवासी आरटीआई कार्यकर्ता कासिम सैफी को मिली तो उस ने संबंधित विभागों में आरटीआई लगाने के बाद शिकायत की. उस की शिकायत पर गंभीरता से काररवाई करते हुए संबंधित विभाग ने उपरोक्त सभी से पेंशन हेतु दिए गए पैसे जमा कराने का नोटिस दे दिया था.

बताया जाता है कि कासिम सैफी और हारून सैफी में पिछले 10 सालों से रंजिश चली आ रही थी. दोनों के बीच दुश्मनी की शुरुआत ग्राम पंचायत चुनाव से शुरू हुई थी. करीब 10 साल पहले हारून और कासिम ने चुनाव लड़ने की शुरुआत की थी.

हारून सैफी ने बिरादरी की पंचायत में लोगों को अपने हक में कर के कासिम सैफी को चुनाव लड़ने से रोक दिया था. पंचायत चुनाव जीतने के बाद हारून सैफी ने कासिम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. यहीं से दोनों के बीच दुश्मनी शुरू हो गई थी.

इस के बाद कासिम हारून के खिलाफ लगातार शिकायत करने लगा. अप्रैल 2014 में कासिम ने हारून व उस की पत्नी शायदा बेगम के खिलाफ वोटर लिस्ट में धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी.

हारून सैफी ने फरजी तरीके से 2 पहचान पत्र भी बनवा रखे थे. उस ने ब्राइट फ्यूचर के नाम से एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) भी बना रखी थी. अपने इसी एनजीओ के नाम से उस ने मुरादाबाद प्राधिकरण से मोटी रकम की प्रौपर्टी खरीदी थी.

कासिम ने संबंधित विभागों में आरटीआईलगाकर फरजी पहचानपत्र और जमीन खरीदने के लिए जो मोटी रकम एमडीए को दी थी उस की आमदनी के स्रोत की जानकारी मांगी थी. कासिम सैफी द्वारा हारून सैफी और उस के परिवार पर लगाई गई आरटीआई से हारून बहुत परेशान हो गया था.

वह किसी भी तरह कासिम से छुटकारा पाना चाहता था. हारून ने अपनी परेशानी अलका दूबे को बताते हुए उस से कहा, ‘‘देखिए, इस समय हमारी सरकार नहीं है, अधिकारी भी हमारी बात नहीं सुन रहे. यदि चाहो तो तुम मेरी मदद कर सकती हो.’’

‘‘बताइए, मैं किस तरह आप की मदद कर सकती हूं.’’ अलका बोली.

‘‘आप बस इतना कर दो कि उसे अपने जाल में फंसा कर किसी तरह रास्ते से हटा दो. इस के लिए मैं 10 लाख रुपए दूंगा.’’ हारून ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि यह काम आप के आसान होगा.’’

अलका ने बनाई योजना

10 लाख रुपए की बात सुन कर अलका को लालच आ गया. उस ने कहा, ‘‘देखिए मेरा एक बिजनैस पार्टनर है विकास चौधरी. वह बहुत दबंग है. रामगंगा विहार में वह मेरे ही घर में रहता है. मैं उस से बात करूंगी. यदि वह चाहेगा तो आप का यह काम हो जाएगा.’’

‘‘अलकाजी, मैं विकास चौधरी को जानता हूं. आप चाहेंगी तो काम हो जाएगा.’’ कहते हुए हारून सैफी ने अलका को एडवांस में 50 हजार रुपए दिए और कहा कि बाकी रकम काम होने के बाद दे दूंगा. इस से पहले अलका कासिम सैफी को नहीं जानती थी.

50 हजार की रकम हाथ में आने के बाद अलका ने हारून से कासिम का मोबाइल नंबर ले लिया. इस के बाद अलका ने हारून सैफी से कहा कि अब आप निश्ंिचत हो कर जाइए, बाकी काम मेरा है.

अलका ने यह बात अपने बिजनैस पार्टनर विकास चौधरी को बताई तो पैसों के लालच में विकास कासिम को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गया.

लेकिन इस के पहले अलका को कासिम से जानपहचान करनी थी. अक्तूबर 2018 की दिवाली से पहले की बात है. अलका ने कासिम सैफी को फोन कर के कहा, ‘‘हैलो कासिम भाई, कैसे हैं?’’ कासिम को आवाज अनजानी लगी तो वह बोला, ‘‘आप कौन, सौरी मैं ने पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी की जिला सचिव बोल रही हूं.’’ अलका ने कहा.

‘‘सपा के जिला सचिव पूर्व प्रधान हारून सैफी भी हैं, आप उन्हें तो जानती होंगी?’’ कासिम ने पूछा.

‘‘हां वो भी हैं लेकिन मेरा काम महिलाओं की समस्याएं हल करना व उन के काम करवाना है. मुझे तो बस अपने काम से मतलब. हारून सैफी क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम, वैसे भी उन से मेरी ज्यादा बनती भी नहीं है. मेरा अपना प्रौपर्टी खरीदनेबेचने का काम है.’’ अलका ने बताया.

‘‘चलो कोई बात नहीं. अब यह बताओ मैडम की मुझे कैसे याद किया?’’ कासिम बोला.

‘‘कासिम भाई, मुझे कहीं से यह पता लगा कि आप आरटीआई कार्यकर्ता हैं. हमारी तरह आप भी समाजसेवा से जुड़े हुए हैं. देखो, पहले सपा सरकार थी तो हमारे सारे काम चुटकियों में हो जाते थे, लेकिन अब भाजपा की सरकार है. अब तो अफसर भी निगाहें फेर कर बात करते हैं. कुछ अफसरों के खिलाफ आरटीआई डलवानी है इसी संबंध में मुझे आप की मदद चाहिए.’’ अलका बोली.

‘‘कैसी मदद.’’ कासिम ने पूछा.

‘‘हम दोनों मिल कर भाजपा सरकार के भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ आरटीआई डालेंगे. उन के सबूत मैं दूंगी. आप मुरादाबाद के रामगंगा विहार स्थित मेरे औफिस आ जाइए इस बारे में और डिटेल्स से बात कर लेंगे.’’ इस दौरान अलका ने उसे अपने औफिस का पता भी दे दिया.

कासिम भांप नहीं पाया अलका की चाल को

कासिम सैफी अलका की योजना से अनभिज्ञ था. एक दिन वह उस के औफिस पहुंच गया. वहीं पर अलका ने विकास चौधरी से उस की मुलाकात कराई. इस के बाद कासिम का अलका के औफिस में आनाजाना शुरू हो गया.

धीरेधीरे वह उन के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा भी करने लगा. अलका कासिम को पूरी तरह अपने विश्वास में लेने के बाद ही योजना को अंजाम देना चाहती थी. इसलिए उस ने योजना को अंजाम देने में जल्दबाजी नहीं दिखाई.

अलका दूबे से घनिष्ठता बढ़ जाने के बाद कासिम सैफी का ज्यादातर समय अलका के साथ उस के औफिस में ही बीतता था. वहीं पर बैठ कर वह आरटीआई के कागजात तैयार करता. विकास चौधरी से भी कसिम की गहरी दोस्ती हो गई थी.

एक दिन विकास ने कासिम से कहा, ‘‘कासिम भाई शामली से खेती की जमीन का सौदा आया है. बताते हैं कि वह जमीन मौके की है. मैं चाहता हूं कि हम दोनों उस जमीन को एक बार देख आएं. बात बन गई तो मैं खरीदार का भी जुगाड़ कर लूंगा. सब कुछ ठीक रहा तो हम इस में मोटा पैसा कमा सकते हैं.’’

चूंकि कासिम को विकास पर भरोसा था इसलिए वह जमीन देखने जाने के लिए तैयार हो गया. फिर 27 दिसंबर, 2018 को विकास चौधरी कासिम सैफी को साथ ले कर बस से शामली के लिए निकल गया. जैसे ही वह दोनों शामली पहुंचे विकास चौधरी का दोस्त कुलदीप मोटरसाइकिल ले कर आ गया. कुलदीप वहीं पास के एक गांव में रहता था.

वह कासिम और विकास को मोटरसाइकिल पर बैठा कर शाहपुर गांव की तरफ चल दिया. वहीं गन्ने के एक खेत में ले जा कर विकास ने अपने साथ लाए तमंचे से कासिम को 2 गोलियां मारीं. एक गोली उस के पेट में और दूसरी पीठ में लगी. कुछ ही देर में उस की वहीं मौत हो गई.

हत्या को दूसरा रूप देने के लिए विकास चौधरी ने कासिम सैफी की पेंट उतार दी. हत्या करने के बाद विकास चौधरी वापस मुरादाबाद आ गया. जबकि कुलदीप कासिम का मोबाइल ले कर सहारनपुर रेलवे स्टेशन चला गया. जहां उस ने अमृतसर जाने वाली एक ट्रेन के टौयलेट में मोबाइल साइलेंट मोड पर कर के छिपा कर रख दिया.

हत्या के बाद हारून सैफी ने अलका दूबे को 50 हजार रुपए और दिए थे. हारून ने उस से कहा था कि वह उमरा करने सउदी अरब जा रहा है, बाकी के 9 लाख रुपए वह लौटने के बाद दे देगा.

हारून ने अलका से यह भी कहा था कि अगर कभी हत्या का राज खुल भी जाएगा तो वह मुकदमे का सारा खर्चा वहन करेगा और हर महीने 10 हजार रुपए विकास चौधरी के घर वालों को देता रहेगा. हारून 3 जनवरी को सऊदी अरब चला गया.

पुलिस ने अलका दूबे से पूछताछ के बाद उस से 27 हजार रुपए भी बरामद किए. फिर 16 जनवरी, 2019 को कुलदीप वर्मा को भी गिरफ्तार कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

अब पुलिस को हारून सैफी के सऊदी अरब से लौटने का इंतजार था. उस का 15 दिन बाद लौटने का कार्यक्रम था. कथा लिखे जाने तक हारून भारत नहीं पहुंचा था. पुलिस ने उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया था, जिस से उस के विदेश से लौटते ही उसे एयरपोर्ट पर ही गिरफ्तार किया जा सके.

अरबों की गुड़िया: रेडियो एक्टिव डांसिंग डौल

बदलते जमाने के साथ अपराधों के तौरतरीके भी बदल रहे हैं. चोरीडकैती, ठगी और हत्या जैसे अपराध आदिकाल से होते रहे हैं. फर्क केवल इतना है कि समय के साथ इन के चेहरेमोहरे बदल जाते हैं. ठगी के मामले में भारत में नटवर लाल और दुनिया में चार्ल्स शोभराज का नाम प्रसिद्ध है. नटवरलाल कोई ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन अपनी लच्छेदार और लुभावनी बातों से लोगों को ऐसा सम्मोहित कर लेता था कि वे खुद उस के बिछाए जाल में फंस कर ठगी का शिकार बन जाते थे. भले ही नटवरलाल से ज्यादा बड़ी रकम की ठगी करने वालों में दूसरे नाम जुड़ गए हों, लेकिन नटवरलाल का नाम आज भी ठगी का पर्याय बना हुआ है.

ठगों की इस दुनिया में अब विज्ञान भी शामिल हो गया है. ठगी के तरीके भी हाईटेक हो गए हैं. यहां तक कि अणु और परमाणु के नाम पर भी ठगी होने लगी है. मैकेनिकल इंजीनियर जैसे सम्मानजनक पेशे से जुड़े लोग भी ठगी की ऐसी वारदातों को अंजाम देने लगे हैं. उच्चशिक्षित और पैसे वाले लोग ऐसी ठगी का शिकार बनते हैं. ठगी भी कोई छोटीमोटी नहीं बल्कि करोड़ोंअरबों रुपए की है. यह कहानी ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय ठगों की है, जो न्यूक्लियर पदार्थ रेडियोएक्टिव के नाम पर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी करते रहे हैं.

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पिछले साल की बात है. पुणे के रहने वाले 3 बिजनैसमैन योगेश सोनी, समीर मोहते और गिरीश सोनी का कारोबार के सिलसिले में मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी दिनेश आर्य से संपर्क हुआ. दिनेश आर्य ने पुणे के कारोबारियों को रेडियोएक्टिव पदार्थ के बारे में बताया. साथ ही यह भी बताया कि रेडियोएक्टिव के काम में मोटा मुनाफा हो सकता है. शर्त यह है कि इस काम में रकम भी मोटी ही लगानी पड़ेगी.
पुणे के इन तीनों बिजनैसमैनों के पास पैसा था. उन का अच्छाखासा कारोबार चल रहा था. इसलिए उन्होंने दिनेश आर्य से कहा कि पैसों की कोई कमी नहीं है, तुम्हारी नजर में अगर किसी के पास रेडियोएक्टिव पदार्थ हो तो बताना.

उस समय तो बात आईगई हो गई, लेकिन इस के कुछ दिनों बाद दिनेश आर्य ने उन्हें बताया कि उस के एक परिचित सत्यनारायण आरोनिया, जो जयपुर में रहते हैं, के पास अंग्रेजों के जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी की एक डांसिंग डौल है. यह डांसिंग डौल रेडियोएक्टिव पदार्थ की बनी हुई है.

तीनों बिजनैसमैनों ने वह डांसिंग डौल देखने की इच्छा जताई. इस पर दिनेश आर्य ने बातचीत कर एक दिन तीनों बिजनैसमैनों को पुणे से जयपुर बुला लिया. दिनेश खुद भी इंदौर से जयपुर पहुंच गया था. ये लोग एक होटल में ठहरे. जयपुर में दिनेश ने बिजनैसमैन योगेश, समीर और गिरीश की मुलाकात सत्यनारायण से करवाई.

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डांसिंग डौल ने नचाया नाच

सत्यनारायण ने उन बिजनैसमैनों को एक डांसिंग डौल दिखाई. उस ने शीशे के शोकेस में रखी उस डांसिंग डौल के बारे में बताया कि रेडियोएक्टिव पदार्थ से बनी वह डौल दुनिया भर में एकमात्र डौल है. सत्यनारायण ने उस डौल की लंबाई 58 इंच बताई. उस ने बताया कि इस बेशकीमती डांसिंग डौल को बेच कर करोड़ोंअरबों रुपए की कमाई की जा सकती है.

बिजनेसमैनों ने डांसिंग डौल की खूबियां सुन कर उस के बारे में दिलचस्पी दिखाई. इस पर सत्यनारायण ने उन्हें मुंबई की रेनसेल कंपनी के बारे में बताया. साथ ही यह भी कि वह इस कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मिल लें, आगे की बातें वही करेंगे.

इस के बाद तीनों बिजनैसमैन पुणे लौट गए. एक दिन उन्होंने सत्यनारायण की बताई रेनसेल कंपनी के बारे में जानकारी लेने के लिए गूगल पर सर्च किया. रेनसेल टाइप करते ही गूगल पर कई सारी साइटें सामने आ गईं. उन्होंने रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड की साइट खोली. साइट पर कंपनी का मुंबई का पता लिखा हुआ था. कंपनी के होम पेज पर अंतरिक्ष यात्रियों जैसी पोशाक में तसवीरें लगी थीं. कंपनी के बारे में लिखा था—हम गर्व के साथ 2016 से सेवाएं प्रदान कर रहे हैं.

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कंपनी के कार्यकलाप के बारे में रेडियोएक्टिव वेस्ट और न्यूट्रीलाइजेशन के बारे में लिखा था. यह भी लिखा था कि हम रेडिशन शेल टैक्नोलौजी एंड स्टेमराड के भारत के आथराइज्ड डिस्ट्रीब्यूटर हैं. यह कंपनी न्यूक्लियर प्रोटेशन, न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट व सोलर एनर्जी के क्षेत्र में इंटरनैशनल स्तर पर खरीदफरोख्त और सेवाएं प्रदान करती है.

कंपनी के होमपेज पर यह भी लिखा था कि रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड दुनिया को सुरक्षित, स्वच्छ और कुशल उर्जा देने के लिए काम कर रही है. होमपेज पर कुछ वीडियो भी दिखाए गए थे, जिन में परमाणु वैज्ञानिकों से बातचीत थी.

होमपेज पर कंपनी के बारे में ज्यादा कुछ प्रदर्शित नहीं किया गया था, लेकिन इस कंपनी की दूसरी लिंक साइटों से यह बात पता चल गई कि कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले हैं. रेनसेल कंपनी की इंग्लैंड की एक साइट भी बनी हुई थी.

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तीनों बिजनैसमैनों ने कुछ ही देर में गूगल पर प्रदर्शित रेनसेल कंपनी से जुड़ी अन्य साइटें खंगाल डालीं. इन में कंपनी की प्रोफाइल और कार्यकलापों को देख कर उन्हें यह भरोसा हो गया कि जयपुर के सत्यनारायण ने उन्हें सही कंपनी का नाम सुझाया है. अब उन्हें इस कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मिलने की जरूरत थी.

एक दिन ये बिजनेसमैन योजना बना कर मुंबई पहुंच गए. मुंबई में रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड और औथराइज्ड कंपनी का औफिस लेवल-8 विबग्योर टावर्स, बांद्रा कुर्ला में था. वहां पहुंच कर इन लोगों ने कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले से मुलाकात की.

इंगले ने चलाया चक्कर

गणेश इंगले ने उन की अच्छी आवभगत की. फिर उन्होंने उन के मुंबई आने का मकसद पूछा. व्यापारियों ने बताया कि जयपुर में एक आदमी के पास रेडियोएक्टिव पदार्थ से बनी काफी पुरानी डांसिंग डौल है. हम उस डौल को खरीद कर बेचना चाहते हैं.

उन की सारी बातें सुनने के बाद गणेश ने कहा, ‘‘आप सही जगह आए हैं. हमारी कंपनी इसी तरह का काम करती है. साथ ही वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन की सदस्य भी है.’’ गणेश ने अपनी बात को मजबूती से रखने के लिए उन्हें कई तसवीरें दिखाईं. वे तसवीरें लंदन, फ्रांस की राजधानी पेरिस, चीन की राजधानी बीजिंग और स्पेन के मेड्रिड शहर में आयोजित न्यूक्लियर से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की थीं.

गणेश इंगले ने बताया कि वह इन कार्यक्रमों में अपने एक पार्टनर अमित गुप्ता के साथ वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के सदस्य के रूप में शामिल हुए थे. गणेश ने अमित गुप्ता से भी उन की मुलाकात करा दी.

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न्यूक्लियर पर दुनिया के विभिन्न बड़े शहरों में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के कुछ वीडियो भी गणेश ने उन व्यापारियों को दिखाए. इन वीडियो में दुनिया के कई नामी न्यूक्लियर वैज्ञानिक रेडियोएक्टिव पदार्थ की महत्ता और दुनिया में इस की आवश्यकता बताते हुए नजर आ रहे थे. तसवीरें और वीडियो देख कर तीनों बिजनैसमैन काफी प्रभावित हुए. उन्होंने गणेश इंगले से डांसिंग डौल की बात की.

गणेश ने उन्हें बताया कि जिस डांसिंग डौल को आप रेडियोएक्टिव पदार्थ की बनी हुई बता रहे हैं, उस का पहले डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से प्रमाणीकरण करवाना पड़ेगा. प्रमाणीकरण के लिए डीआरडीओ के वैज्ञानिक पहले उस रेडियोएक्टिव आर्टिकल की टैस्टिंग करेंगे. इस टैस्टिंग की फीस 70 लाख रुपए होगी.

बिजनैसमैन डांसिंग डौल की डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से टैस्टिंग कराने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने सवाल किया कि वह डौल अगर टैस्टिंग में पास हो गई तो उसे खरीदा कैसे जाएगा.

गणेश ने कहा कि उस न्यूक्लियर पदार्थ को हमारी कंपनी 7 हजार करोड़ रुपए प्रति इंच के हिसाब से खरीद लेगी. इस के लिए कंपनी आप से एक करारनामा भी करेगी. इतना सुन कर व्यापारियों ने मन ही मन हिसाब लगाया कि इस हिसाब से तो 58 इंच की वह डांसिंग डौल 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बिक जाएगी.

इतने मोटे मुनाफे की बात सुन कर उन्होंने गणेश इंगले से सवाल किया कि आप की कंपनी उस डौल का क्या करेगी. गणेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘यही तो हमारी कंपनी का काम है. हमारी कंपनी उस डांसिंग डौल वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ को करोड़ों रुपए के भाव से अंतरराष्ट्रीय बाजार में या नासा को बेच देगी.’’

बिजनैसमैनों का न तो डीआरडीओ में कोई संपर्क था और ना ही नासा में उन की कोई जानपहचान थी. इतना जरूर पता था कि नासा और डीआरडीओ बहुत महंगे दामों पर रेडियोएक्टिव पदार्थ खरीदते हैं. इसलिए उन के लिए रेडियोएक्टिव से बनी डांसिंग डौल बेचने के लिए एकमात्र कड़ी के रूप में गणेश इंगले ही था. उन्होंने गणेश इंगले का मोबाइल नंबर ले कर जल्दी ही मुलाकात करने की बात कही.
तीनों व्यापारियों को डांसिंग डौल के सौदे में मोटा फायदा होता दिख रहा था, इसलिए उन्होंने टैस्टिंग के बाद वह डौल खरीदने का फैसला कर लिया. उन्होंने दिनेश आर्य के मार्फत सत्यनारायण से डांसिंग डौल खरीदने की बात जारी रखी. उन्होंने सत्यनारायण से कहा कि पहले वह डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से उस डौल की टैस्टिंग कराएंगे.

सत्यनारायण को इस में कोई ऐतराज नहीं था. उस ने कहा कि आप दुनिया के किसी भी वैज्ञानिक से इस की टैस्टिंग करा लें. लेकिन इस का खर्चा आप को ही देना होगा. एक शर्त यह भी होगी कि डौल की टैस्टिंग केवल जयपुर में ही कराई जाएगी. व्यापारियों ने उस की बात मानते हुए टैस्टिंग का खर्चा वहन करने पर सहमति जता दी.

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बढ़ता गया लालच

सत्यनारायण से बात तय होने पर उन्होंने गणेश से मोबाइल पर संपर्क किया. गणेश ने उन्हें डौल की टैस्टिंग के लिए मुंबई आ कर रेनसेल कंपनी में 70 लाख रुपए जमा कराने को कहा. इस पर उन व्यापारियों ने कहा कि डौल की टैस्टिंग हम जयपुर में कराना चाहते हैं.

तब गणेश ने कहा कि डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के जयपुर आनेजाने के लिए हवाई यात्रा का खर्च और उन के लिए लग्जरी गाडि़यों के साथ फाइव स्टार होटल में ठहरने की व्यवस्था अलग से करनी होगी.
पुणे के योगेश, समीर और गिरीश बिजनैस के खड़े खिलाड़ी थे. उन्हें पता था कि इस तरह के मामलों में मुंहमांगा पैसा खर्च करना पड़ता है. व्यापारियों ने सोचा कि जब वह डौल की टैस्टिंग के 70 लाख रुपए देंगे तो 5-7 लाख रुपए और ज्यादा खर्च हो जाएंगे. लिहाजा उन्होंने जयपुर में टैस्टिंग कराने को कह दिया.

सारी बातें तय हो जाने पर उन्होंने गणेश इंगले की कंपनी में 70 लाख रुपए जमा करा दिए. पैसे जमा होने के बाद गणेश ने कहा कि डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से डौल की टैस्टिंग की तारीख तय कर के उन्हें बता दिया जाएगा. उन्होंने जयपुर में सत्यनारायण को भी बता दिया कि टैस्टिंग के पैसे जमा करा दिए हैं और जल्दी ही डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की तारीख मिल जाएगी. इसलिए आप पहले से ही सारा इंतजाम कर लें.

पिछले साल जुलाई में जयपुर में डांसिंग डौल की टैस्टिंग का कार्यक्रम तय किया गया. तय तारीख को गणेश इंगले, पुणे के तीनों बिजनैसमैन, इंदौर का दिनेश आर्य वगैरह जयपुर पहुंच गए. वहां पर जिंदाल नाम का व्यक्ति और उस के सहयोगी भी पहुंचे. उन के पास कई तरह के वैज्ञानिक उपकरण, कैमिकल, एंटी रेडियोएक्टिव सूट आदि थे. गणेश इंगले ने जिंदाल को डीआरडीओ का वैज्ञानिक बताया. जिंदाल और उस के सहयोगियों, गणेश इंगले आदि को जयपुर के नामी फाइव स्टार होटल में ठहराया गया. इन के जयपुर में टैस्टिंग के लिए आनेजाने और घूमनेफिरने के लिए मर्सिडीज गाडि़यों की व्यवस्था की गई.
जयपुर में आमेर इलाके के एक फार्महाउस पर डांसिंग डौल की टैस्टिंग की सारी तैयारी की गई. जिंदाल और उस के सहयोगियों ने एक बंद कमरे में लैब बनाई. फिर एंटी रेडियोएक्टिव सूट पहन कर कई तरह के उपकरणों और कैमिकलों से डांसिंग डौल की टैस्टिंग की. टैस्टिंग के दौरान कमरे में बनी उस लैब में वैज्ञानिक व उस के सहयोगियों के अलावा किसी को नहीं जाने दिया गया.

इसी बीच टैस्टिंग करते समय उस कमरे में अचानक तेज धमाका हुआ. बाहर खड़े बिजनैसमैन और अन्य लोग अंदर पहुंचे, तो वैज्ञानिक और उस के सहयोगी जमीन पर गिरे पड़े थे. उन्होंने बताया कि जांच के दौरान किसी कैमिकल की मात्रा ज्यादा होने के कारण धमाका हो गया और टैस्टिंग फेल हो गई. बाद में होटल आने के बाद सभी लोग अपनेअपने शहरों को चले गए.

इस के बाद उन व्यापारियों ने गणेश इंगले और सत्यनारायण से फिर संपर्क किया. गणेश ने रेडियोएक्टिव की जांच के लिए फिर से 70 लाख रुपए जमा करा लिए. बाद में कभी दोबारा टैस्टिंग कराने, कभी कैमिकल के नाम पर और कभी वैज्ञानिकों को बुलाने के नाम पर 7 करोड़ रुपए से ज्यादा ले लिए.

हुआ अहसास ठगे जाने का

इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के बावजूद अभी तक उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा था. न तो डांसिंग डौल की टैस्टिंग हुई थी और ना ही डीआरडीओ का प्रमाणपत्र मिला था. अब उन्हें डांसिंग डौल 7 हजार करोड़ रुपए प्रति इंच के हिसाब से बिकने की बात में भी कोई दम नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने रेनसेल कंपनी की असलियत का पता लगाया तो पता चला कि यह पूरी तरह फरजी है.

एक दिन तीनों बिजनैसमैन ने बैठ कर सब बातों पर विचार किया. काफी विचारविमर्श करने पर उन्हें यह यकीन हो गया कि इंदौर के दिनेश आर्य से ले कर जयपुर के सत्यनारायण और मुंबई की रेनसेल कंपनी के डायरेक्टर गणेश इंगले व पार्टनर अमित गुप्ता वगैरह सब लोग एक ही गिरोह से जुड़े हुए हैं.
इस गिरोह ने उन्हें रेडियोएक्टिव के नाम पर बेवकूफ बना कर लगातार ठगी की थी. इस पर उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का फैसला किया.

इसी साल फरवरी के महीने में पुणे के रहने वाले तीनों बिजनैसमैन योगेश सोनी, समीर मोहते और गिरीश सोनी ने जयपुर के जवाहर नगर पुलिस थाने में एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में इन्होंने कहा कि रेडियो एक्टिव पदार्थ की बनी डांसिंग डौल दिखा कर डीआरडीओ और नासा के नाम पर उन से 7 करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की गई है.

रेडियोएक्टिव पदार्थ परमाणु बम बनाने के काम भी आते हैं. जयपुर में रेडियोएक्टिव पदार्थ होने की जानकारी गंभीर और महत्वपूर्ण थी. इसलिए थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को दर्ज हुई रिपोर्ट की जानकारी दी. पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें चिंता हुई कि अगर जयपुर में किसी के पास अवैध रूप से रेडियोएक्टिव पदार्थ है, तो इस से कभी भी जनहानि हो सकती है.

सब बातों पर गंभीरता से विचार कर पुलिस कमिश्नर ने एडिशनल सीपी (क्राइम) प्रसन्न खमेसरा से चर्चा की. इस के बाद उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में एडिशनल सीपी (स्पैशल क्राइम) विमल नेहरा के नेतृत्व में एक टीम गठित करने का फैसला किया.

इस टीम में सांगानेर थानाप्रभारी लाखन खटाना, बजाज नगर थानाप्रभारी मानवेंद्र सिंह, भट्टा बस्ती थानाप्रभारी शिवनारायण, ब्रह्मपुरी थानाप्रभारी भारत सिंह, आदर्श नगर थानाप्रभारी अरुण कुमार, मालवीय नगर थानाप्रभारी रघुवीर सिंह, मोतीडूंगरी थानाप्रभारी जोगेंद्र सिंह के अलावा कई तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को शामिल किया गया.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद जयपुर पुलिस ने 9 मार्च को मुंबई निवासी गणेश इंगले, गाजियाबाद निवासी अमित गुप्ता व राकेश कुमार गोयल, इंदौर के दिनेश कुमार आर्य, जयपुर के सत्यनारायण सहित कुल 18 लोगों को अलगअलग स्थानों से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का कहना है कि रेडियोएक्टिव के नाम पर ठगी करने वाला यह अंतरराष्ट्रीय गिरोह है.

गिरोह में शामिल जिन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, उन में दिल्ली के कालकाजी निवासी संतोष सिंघानिया, मुंबई के अंधेरी ईस्ट निवासी अमित प्रजापति, उत्तर प्रदेश के सिकंदराबाद निवासी विपिन कुमार राजपूत, संतोष कुमार जाट, वीरेंद्र सैनी, बुलंदशहर के रहने वाले शंकर सिंह, जयपुर के बापू कालोनी निवासी धर्मवीर वाल्मीकि, सेंट्रल जेल के पीछे रहने वाले अब्दुल रईस, कानोता निवासी मनोहर सिंह चौहान, बीकानेर के मधुर मोहन गुप्ता, भीलवाड़ा के उत्तमचंद नौलखा, नागौर के संजयनाथ, झुंझुनूं के राजेंद्र प्रसाद शामिल थे.

ये लोग ठग गिरोह से जुड़ कर गणेश, अमित गुप्ता, सत्यनारायण आदि के लिए ग्राहकों को फंसाने का काम करते हैं. पुलिस की ओर से गिरफ्तार आरोपियों से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है—

नवी मुंबई के घनसोली स्थित अटलांटिस टावर में रहने वाले 41 साल के गणेश इंगले ने अमरावती विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीई और मुंबई विश्वविद्यालय से रोबोटिक्स में एमई की डिग्री हासिल की थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद इंगले ने भाभा अटौमिक रिसर्च सेंटर में काम किया, लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा.

गणेश ने नौकरी छोड़ कर सन 2004-05 में अपने एक पुराने साथी लोलगे के साथ मिल कर सौफ्टवेयर डवलपमेंट एंड ट्रैनिंग का बिजनैस आरंभ किया. ये दोनों इंजीनियरिंग पासआउट विद्यार्थियों को mसौफ्टवेयर डवलपमेंट और ट्रैनिंग के कोर्स करवाते थे. गणेश इंगले ने इस के साथसाथ वह ज्योतिषी बन कर हस्तरेखा देखने का काम भी करने लगा. हालांकि उसे ज्योतिष का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उस ने लोगों की कमजोरियां जानसमझ कर उन्हें बेवकूफ बनाया और मोटी रकम ऐंठी.

खड़ी हो गई ठग कंपनी

बाद में सन 2016 में गणेश ने गाजियाबाद निवासी अमित गुप्ता के साथ मिल कर रेनसेल एनर्जी एंड मेटल लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई. इस कंपनी का औफिस मुंबई के बांद्रा कुर्ला में खोला गया. इस कंपनी में गणेश डायरेक्टर बना और अमित गुप्ता रिलेशनशिप मैनेजर कम पार्टनर था.

अमित की भतीजी शिवानी गुप्ता को कंपनी में सेके्रट्री बनाया गया. इस कंपनी के माध्यम से गणेश व अमित ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूक्लियर प्रोटेक्शन, न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट और सोलर एनर्जी के क्षेत्र में ट्रेडिंग और सर्विस का काम शुरू किया.

लोगों को झांसा देने और दिखावे के तौर पर इन्होंने अपनी कंपनी में ओलगा नामक व्यक्ति को एनवायरमेंटल इकोनोमिस्ट, एलेक्स फाल्कन को रेनसेल वेबमास्टर, पीटर मार्गन को अकेडमिक इंगेजमेंट मैनेजर, सांदरा को रिसर्च असिस्टेंट बना रखा था. वास्तव में इन चारों के ये नाम फरजी थे और इन नामों के कोई व्यक्ति कंपनी में नहीं थे.

गणेश और इंगले ने जोड़जुगत कर के वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन की सदस्यता भी हासिल कर ली थी. इस एसोसिएशन का कार्यालय यूके में सेंट्रल लंदन में है. इस सदस्यता के आधार पर दोनों ने 2017 में लंदन में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन सिंपोजियम में हिस्सा लिया.

इस आयोजन में इन की मुलाकात इकेटेरिना नामक महिला से हुई. दोनों ने इकेटेरिना को अपने झांसे में लिया और अपनी कंपनी रेनसेल का यूके का डायरेक्टर बना दिया. इकेटेरिना बाद में भारत भी आई थी.
लंदन में हुई इसी सिंपोजियम में गणेश व अमित की मुलाकात टिटियाना साइलाबस नामक बुल्गारियन महिला से भी हुई थी. यह महिला बुल्गारिया की एनआरडब्ल्यू नामक कंपनी में पार्टनर थी. गणेश और अमित ने इस महिला से यह टाईअप किया कि न्यूक्लियर वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित कोई कार्य भारत में रेनसेल कंपनी को मिलता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह उन का साथ देंगी. बाद में टिटियाना साइलाबस भी भारत आई थी.

ठगी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

यूके के सेंट्रल लंदन में पिछले साल आयोजित ग्लोबल न्यूक्लियर इनवेस्टमेंट समिट में भी गणेश और अमित ने भाग लिया था. इस समिट में दुनियाभर की लगभग 100 कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे.
जून 2018 में गणेश और अमित ने फ्रांस के पेरिस शहर में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर एक्जीबिशन में भी हिस्सा लिया. स्पेन के मैड्रिड शहर में आयोजित वर्ल्ड न्यूक्लियर फ्यूल साइकल 2018 के आयोजन में भी दोनों ने भागीदारी की.

ये लोग इंदौर के विजय नगर निवासी दिनेश आर्य के मार्फत ग्राहकों को फांसने का काम करते थे. दिनेश के जरिए ही गणेश इंगले जयपुर के सत्यनारायण के संपर्क में आया था. अमित गुप्ता लगातार सत्यनारायण के संपर्क में रहता था और जयपुर आताजाता रहता था.

पुणे के बिजनैसमैनों को बेवकूफ बनाने के लिए गणेश इंगले खुद भी जयपुर आया था. ये लोग अपने शिकार पर प्रभाव जमाने के लिए फाइव स्टार होटलों में रुकते थे और मर्सिडीज जैसी प्राइवेट लग्जरी कारें किराए पर मंगा कर उपयोग में लाते थे. पिछले साल जुलाई में डांसिंग डौल की टैस्टिंग के नाम पर जयपुर के आमेर इलाके में ड्रामा किया गया था. इस ड्रामे में जिंदाल नामक जिस आदमी को डीआरडीओ का वैज्ञानिक बना कर लाया गया, वह सत्यनारायण का परिचित था.

गणेश इंगले की कंपनी रेनसेल एनर्जी एंड मेटल द्वारा डीआरडीओ, नासा और वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के नाम पर फरजी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर के लोगों से करोड़ोंअरबों रुपए ठगने की बात पता चली है. पुलिस का दावा है कि इस गिरोह ने जयपुर, दिल्ली व हैदराबाद सहित देश के हिस्सों में लोगों से 300 से 400 करोड़ रुपए तक की ठगी की है.

जयपुर पुलिस ने गिरोह के सदस्यों से 10 लाख रुपए नकद, डीआरडीओ के फरजी लेटरपैड, कथित कैमिकल टैस्टिंग रिपोर्ट और एंटी रेडियोएक्टिव की नकली ड्रेस बरामद की है. पता चला है कि रेनसेल कंपनी ने इजरायल से साढ़े 3 लाख रुपए प्रति नग के हिसाब से 2 एंटी रेडियोएक्टिव सूट खरीदे थे. इन सूटों को दिखा कर ये लोग अपने शिकार को रेडियोएक्टिव की खरीदफरोख्त के लिए फांसते थे.
गिरोह की ओर से अंग्रेजों के जमाने की ईस्ट इंडिया कंपनी की जिस डांसिंग डौल का सौदा ग्राहकों से किया जाता था, वह साधारण लकड़ी की बनी हुई थी, जिसे फिश एक्वारियम में रखा हुआ था. इस डांसिंग डौल को दिखा कर यह गिरोह कई लोगों से ठगी कर चुका है.

जयपुर निवासी सत्यनारायण 2 दशक पहले तक जयपुर नगर निगम में कर्मचारी था. बाद में उस ने सरकारी नौकरी छोड़ दी. अब उस ने जवाहर सर्किल के पास औफिस खोल रखा था. जहां वह जादूटोने, स्टोन, मालाएं, पेंटिंग्स, कैमिकल और एंटीक आइटम्स के नाम पर लोगों से ठगी करता था.

उस के औफिस में हर समय कई एजेंट बैठे रहते थे. सत्यनारायण ने कई शादियां कर रखी हैं. उस ने एक पत्नी के नाम पर आयुर्वेद की फर्म भी रजिस्टर करवा रखी है. इस फर्म के जरिए वह चमत्कारी दवाओं के नाम पर लोगों से ठगी करता था. जयपुर में उसके कई मकान हैं.

पुलिस इस गिरोह के बारे में नए तथ्य जुटाने में लगी है. यह विडंबना है कि पैसे वाले लोग मोटे मुनाफे के लालच में गणेश, अमित और सत्यनारायण जैसे ठगों के चक्कर में फंस जाते हैं. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

बेरहम अस्पतालों का खौफनाक सच

भारतीय समाज में बच्चे का जन्म त्योहार की तरह मनाया जाता है. लेकिन क्या आप को पता है कि लेबररूम में जब नई जिंदगी जन्म ले रही होती है तो कई बार उस का स्वागत गालियों से होता है.

महिला एवं बाल विकास के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था ‘लाडो’ आंखों देखे ये वाकिए जब जनता के सामने लाई तो हर कोई दंग रह गया.

‘लाडो’ संस्था के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने रातरातभर जाग कर इकट्ठी की वह घटिया भाषा व गलत बरताव… जो हमारी औरतें लेबररूम में सुनने को मजबूर होती हैं. जिस समय उन्हें अपनेपन की सब से ज्यादा जरूरत होती है, तब वे गालियां सुन रही होती हैं… जैसे मां बनना जिंदगी की सब से बड़ी गलती हो.

‘लाडो’ संस्था की टीम ने 28 दिन तक 13 जिलों के 98 लेबररूमों की पड़ताल की थी. टीम ने देखा कि लेबररूमों में जबजब बच्चा जनने वाली मांओं की चीख निकलती थी, तबतब उन्हें नर्सों, डाक्टरों की गालियां सुनने को मिलती थीं. इतना ही नहीं, औरतों की चीख को दबाने के लिए नर्सें उन के बाल खींचती थीं व चांटे तक मारती थीं.

तय है कि जब किसी औरत को बच्चा जनने का दर्द उठता है, तो उस के पैर सीधे अस्पताल की ओर ही उठते हैं और वहां डाक्टरों के हाथों में ही सबकुछ होता है.

भारत में ज्यादातर 2 तरह के अस्पताल हैं, एक सरकारी व दूसरे गैरसरकारी. सरकारी अस्पतालों में कदम रखते ही दिल में चुभन करने वाली बातों का सामना करना होता है, जैसे ‘सीधी खड़ी रह’, ‘लाइन में लग जा’, ‘नाटक मत कर’ वगैरह.

फिर बारी आती है चैकअप की. मुंह पर कपड़ा बांधे जो औरत आती है, वह डाक्टर है भी या नहीं, यह पता करना बहुत मुश्किल होता है. वह चैकअप के दौरान जिन शब्दों का इस्तेमाल करती है, वे कानों में गरम सीसे की तरह पिघलते हैं.

फिर नंबर आता है बच्चा जनने का. यहां भी डाक्टर अपनी ही सहूलियत का ध्यान रखते हैं. बात सिजेरियन की ही नहीं, बल्कि सामान्य डिलीवरी केस में भी कोशिश यही होती है कि बच्चा दिन में ही पैदा हो, ताकि रात को उन की नींद में कोई खलल न पड़े.

जयपुर में एक जनाना अस्पताल की हैड विमला शर्मा की मानें तो अगर बच्चा जनने के दौरान किसी औरत के साथ कठोर बरताव होता है तो वह खुल कर दर्द सहन नहीं कर पाती है और ज्यादातर केस इसी वजह से बिगड़ते हैं. फिर भी आम लोगों का डाक्टरों पर यकीन पूरी तरह से कायम है, लेकिन डाक्टरों के पास इतना समय नहीं होता कि वे औरत में बच्चा जनने के कुदरती दर्द का इंतजार कर सकें. वे अपनी सहूलियत के मुताबिक दर्द देने वाली दवाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश में लग जाते हैं.

अगर बच्चा जनने के मामले में डाक्टर से ले कर पूरे स्टाफ तक का रवैया मरीज के प्रति सही नहीं होता है, तो डाक्टर की इतनी जरूरत क्यों? फिर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या हमारी पुरानी व्यवस्था ही सही थी?

डाक्टर विमला शर्मा कहती हैं, ‘‘बच्चे को जनने वाली मां अपने मन से बच्चा जनने का डर बाहर निकाले. एक जान को अपने भीतर पालने वाली औरत में बहुत ताकत होती है. जरूरत है तो बस उसे पहचानने की. बच्चे को नौर्मल तरीके से पैदा करने में मां को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है. बस, उसे खुद को दिमागी तौर पर तैयार करना होता है.’’

पटरियों पर बलात्कार

31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.

सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे.

एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.

शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था.

उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.

रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन

अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं.

कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.

रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी.

अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.

उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.

एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.

बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता

यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे.

लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.

मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ

अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए.

उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.

आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे.

उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.

राक्षसों की दयानतदारी भी कितनी भारी पड़ती है, इस का अहसास अनामिका को कुछ देर बाद हुआ. लगभग एक घंटे तक ज्यादती करने के बाद अमर और गोलू ने तय किया कि अनामिका को यूं निर्वस्त्र छोड़ा जाना ठीक नहीं, इसलिए उस के लिए कपड़ों का इंतजाम किया जाए. नशे में डूबे इन हैवानों की यह दया अनामिका पर और भारी पड़ी.

गोलू ने अमर को अनामिका की निगरानी करने के लिए कहा और खुद अनामिका के लिए कपड़े लेने गोविंदपुरा की झुग्गियों की तरफ चला गया. वहां उस के 2 दोस्त राजेश और रमेश रहते थे. गोलू ने उन से एक जोड़ी लेडीज कपड़े मांगे तो इन दोनों ने इस की वजह पूछी. इस पर गोलू ने सारा वाकया उन्हें बता दिया.

गोलू की बात सुन कर राजेश और रमेश की हैवानियत भी जाग उठी. वे दोनों कपड़े ले कर गोलू के साथ उसी पुलिया के नीचे पहुंच गए, जहां अनामिका निर्वस्त्र पड़ी थी.

अनामिका अब लाश सरीखी बन चुकी थी. उन चारों में से कोई जा कर स्टेशन के बाहर से चाय और गांजा ले आया. इन्होंने छक कर चाय गांजे की पार्टी की और बेहोशी और होश के बीच झूल रही अनामिका के साथ अमर और गोलू ने एक बार फिर ज्यादती की. फूल सी अनामिका इस ज्यादती को झेल नहीं पाई और बेहोश हो गई.

जब वासना का भूत उतरा तो इन चारों ने अनामिका को जान से मार डालने का मशविरा किया, जिसे इन में से ही किसी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रहने दो, लड़की किसी को कुछ नहीं बता पाएगी, क्योंकि यह तो हमें जानती तक नहीं है. बेहोश पड़ी अनामिका इन चारों की नजर में मर चुकी थी, इसलिए चारों अपने साथ लाए कपड़े उस के पास फेंक कर फरार हो गए और अनामिका से लूटे सामान का आपस में बंटवारा कर लिया.

थोड़ी देर बाद अनामिका को होश आया तो वह कुछ देर इन के होने न होने की टोह लेती रही. उसे जब इस बात की तसल्ली हो गई कि बदमाश वहां नहीं हैं तो उस ने जैसेतैसे उन के लाए कपडे़ पहने और बड़ी मुश्किल से महज 100 फीट दूर स्थित जीआरपी थाने पहुंची.

पुलिस ने नहीं किया सहयोग

थाने का स्टाफ उसे पहचानता था. मौजूदा पुलिसकर्मियों से उस ने कहा कि पापा से बात करा दो तो एक ने उस के पिता को नंबर लगा कर फोन उसे दे दिया. फोन पर सारी बात तो उस ने पिता को नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि आप तुरंत यहां थाने आ जाइए.

बेटी की आवाज से ही पिता समझ गए कि कुछ गड़बड़ है इसलिए 15 मिनट में ही वे थाने पहुंच गए. पिता को देख कर अनामिका कुछ देर पहले की घटना और तकलीफ भूल उन से ऐसे चिपट गई मानो अब कोई उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

बेटी की नाजुक हालत देख पिता उसे घर ले आए और फोन पर पत्नी को भी तुरंत भोपाल पहुंचने को कहा तो वह भी भोपाल के लिए रवाना हो गईं. देर रात मां वहां पहुंची तो कुछकुछ सामान्य हो चली अनामिका ने उन्हें अपने साथ हुई ज्यादती की बात बताई. जाहिर है, सुन कर मांबाप का कलेजा दहल उठा.

बेटी की एकएक बात से उन्हें लग रहा था कि जैसे कोई धारदार चाकू से उन के कलेजे को टुकड़ेटुकडे़ कर निकाल रहा है. चूंकि रात बहुत हो गई थी और भोपाल में मध्य प्रदेश स्थापना दिवस की तैयारियां चल रही थीं, इसलिए उन्होंने तय किया कि सुबह होते ही सब से पहला काम पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का करेंगे, जिस से अपराधी पकड़े जाएं.

इधर से उधर टरकाती रही पुलिस

अनामिका के मातापिता अगली सुबह ही कोई साढ़े 10 बजे एमपी नगर थाने पहुंचे. खुद को बेइज्जत महसूस कर रही अनामिका को उम्मीद थी कि थाने पहुंच कर फटाफट आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो जाएगी. एमपी नगर थाने में इन तीनों ने मौजूद सबइंसपेक्टर आर.एन. टेकाम को आपबीती सुनाई.

तकरीबन आधे घंटे तक इस सबइंसपेक्टर ने अनामिका से उस के साथ हुई ज्यादती के बारे में पूछताछ की लेकिन रिपोर्ट लिखने के बजाय वह इन तीनों को घटनास्थल पर ले गया. घटनास्थल का मुआयना करने के बाद टेकाम ने उन पर यह कहते हुए गाज गिरा दी कि यह जगह तो हबीबगंज थाने में आती है, इसलिए आप वहां जा कर रिपोर्ट लिखाइए.

यह दरअसल में एक मानसिक और प्रशासनिक बलात्कार की शुरुआत थी. लेकिन दिलचस्प इत्तफाक की बात यह थी कि ये तीनों जब एमपी नगर से हबीबगंज थाने की तरफ जा रहे थे, तब हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर सामने की तरफ से गुजरते अनामिका की नजर गोलू पर पड़ गई. रोमांचित हो कर अनामिका ने पिता को बताया कि जिन 4 लोगों ने बीती रात उस के साथ दुष्कर्म किया था, उन में से एक यह सामने खड़ा है. इतना सुनते ही उस के मातापिता ने वक्त न गंवाते हुए गोलू को धर दबोचा.

गोलू का इतनी आसानी और बगैर स्थानीय पुलिस की मदद से पकड़ा जाना एक अप्रत्याशित बात थी. अब उन्हें उम्मीद हो गई कि अब तो बाकी इस के तीनों साथी भी जल्द पकडे़ जाएंगे. गोलू को दबोच कर ये तीनों हबीबगंज थाने पहुंचे. हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव को एक बार फिर अनामिका को पूरा हादसा बताना पड़ा.

रवींद्र यादव ने गोलू से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने साथियों के नामपते भी बता दिए. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए आला अफसरों को भी वारदात के बारे में बता दिया. टीआई उन तीनों को ले कर फिर घटनास्थल पहुंचे. हबीबगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई पर अच्छी बात यह थी कि मुजरिमों के बारे में काफी कुछ पता चल गया था. आला अफसरों के सामने भी अनामिका को दुखद आपबीती बारबार दोहरानी पड़ी.

रवींद्र यादव ने हबीबगंज जीआरपी को भी फोन किया था, लेकिन वहां से कोई पुलिस वाला नहीं आया. सूरज सिर पर था लेकिन अनामिका और उस के मातापिता की उम्मीदों का सूरज पुलिस की काररवाई देख ढलने लगा था. बारबार फोन करने पर जीआरपी का एक एएसआई घटनास्थल पर पहुंचा लेकिन उस का आना भी एक रस्मअदाई साबित हुआ. जैसे वह आया था, सब कुछ सुन कर वैसे ही वापस भी लौट गया.

इस के कुछ देर बाद हबीबगंज जीआरपी के टीआई मोहित सक्सेना घटनास्थल पर पहुंचे. उन के और रवींद्र यादव के बीच घंटे भर बहस इसी बात पर होती रही कि घटनास्थल किस थाना क्षेत्र में आता है. इस दौरान अनामिका और उस के मांबाप भूखेप्यासे उन की बहस को सुनते रहे कि थाना क्षेत्र तय हो तो एफआईआर दर्ज हो और काररवाई आगे बढ़े. आखिरी फैसला यह हुआ कि अनामिका गैंगरेप का मामला हबीबगंज जीआरपी थाने में दर्ज होगा.

अब तक रात के 8 बज चुके थे. अनामिका के पिता को बेटी की चिंता सताए जा रही थी, जो थकान के चलते सामान्य ढंग से बातचीत भी नहीं कर पा रही थी. तमाम पुलिस वालों के सामने अनामिका को अपने साथ घटी घटना दोहरानी पड़ी. यह सब बताबता कर वह इस तरह अपमानित हो रही थी, जैसे उस ने अपराध खुद किया हो.

मीडिया में बात आने के बाद पुलिस हुई सक्रिय

24 घंटे थाने दर थाने भटकने के बाद तीनों का भरोसा पुलिस और इंसाफ से उठने लगा था. मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस बगैर किसी अड़चन के मन चुका था, जिस में पुलिस का भारीभरकम अमला तैनात था.

2 नवंबर, 2017 को जब अनामिका के साथ हुए अत्याचारों की भनक मीडिया को लगी तो अगले दिन के अखबार इस जघन्य, वीभत्स और शर्मनाक बलात्कार कांड से रंगे हुए थे, जिन में पुलिस की लापरवाही, मनमानी और हीलाहवाली पर खूब कीचड़ उछाली गई थी.

लोग अब बलात्कारियों से ज्यादा पुलिस को कोसने लगे थे. जब आम लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो स्थापना दिवस की खुमारी उतार चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला पुलिस अफसरों की बैठक ली.

मीटिंग में सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाते मुख्यमंत्री ने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला और डीआईजी संतोष कुमार सिंह की जम कर खिंचाई की और टीआई जीआरपी हबीबगंज मोहित सक्सेना, एमपी नगर थाने के टीआई संजय सिंह बैंस और हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव के अलावा जीआरपी के एक सबइंसपेक्टर भवानी प्रसाद उइके को तत्काल सस्पेंड कर दिया.

कानूनी प्रावधान तो यह है कि छेड़खानी और दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को एफआईआर लिखना अनिवार्य है. आईपीसी की धारा 166 (क) साफसाफ कहती है कि धारा 376, 354, 326 और 509 के तहत हुए अपराधों की एफआईआर दर्ज न करने पर दोषी पुलिस वालों को 6 महीने से ले कर 2 साल तक की सजा दी जा सकती है. किसी भी सूरत में कोई भी पुलिस वाला इन धाराओं के अपराध की एफआईआर लिखने से मना नहीं कर सकता. चाहे घटनास्थल उस की सीमा में आता है या नहीं.

गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 3 नवंबर को अमर और राजेश उर्फ चेतराम को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन चौथा अपराधी रमेश मेहरा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. बाद में पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस गिरफ्तारी पर भी पुलिस की हड़बड़ी और गैरजिम्मेदाराना बरताव उजागर हुआ.

छानबीन में यह बात सामने आई कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्त बेहद शातिर और नशेड़ी हैं. वे हबीबगंज इलाके के आसपास की झुग्गियों में ही रहते थे. ये लोग पन्नियां बीनने का काम करते थे. लेकिन असल में इन का काम रेलवे का सामान लोहा आदि चोरी कर कबाडि़यों को बेचने का था.

जांच में पता चला कि आरोपियों में सब से खतरनाक गोलू उर्फ बिहारी है. गोलू ने अपनी नाबालिगी में ही हत्या की एक वारदात को अंजाम दिया था. उस ने एक पुलिसकर्मी के बेटे की हत्या की थी.

इतना ही नहीं एक औरत से उस के नाजायज संबंध हो गए थे, जिस से उस के एक बच्चा भी हुआ था. गोलूकितना बेरहम है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी माशूका से हुए बेटे को वह उस के पैदा होने के 4 दिन बाद ही रेल की पटरी पर रख आया था, जिस से ट्रेन से कट कर उस की मौत हो गई थी.

दूसरा आरोपी अमर उस का साढ़ू है. अमर भी शातिर अपराधी है कुछ दिन पहले ही वह अरेरा कालोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के यहां चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया था. पूछताछ में आरोपियों ने अपने नशे में होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि अनामिका आती दिखी तो उन्होंने लूटपाट के इरादे से पकड़ा था लेकिन फिर उन की नीयत बदल गई.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी को दिया केस

अनामिका बलात्कार मामले का शोर देश भर में मचा. इस से पुलिस प्रशासन की जम कर थूथू हुई. शहर में लगभग 50 जगहों पर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने धरनेप्रदर्शन किए. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने जांच के लिए एसआईटी टीम गठित करने के निर्देश दे डाले. कांग्रेसी सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी सरकार और लचर कानूनव्यवस्था की जम कर खिंचाई की. बचाव की मुद्रा में आए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने एक बचकाना बयान यह दे डाला कि क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में ऐसा नहीं होता.

भोपाल में जो हुआ, वह वाकई मानव कल्पना से परे था. जनाक्रोश और दबाव में पुलिस ने एक और भारी चूक यह कर डाली कि जल्दबाजी में नाम की गफलत में एक ड्राइवर राजेश राजपूत को गिरफ्तार कर डाला. बेगुनाह राजेश से जुर्म कबूलवाने के लिए उसे थाने में अमानवीय यातनाएं दी गईं.

बकौल राजेश, ‘मुझे गिरफ्तार कर गुनाह स्वीकारने के लिए जम कर लगातार मारा गया. प्लास्टिक के डंडों से बेहोश होने तक मारा जाता रहा. इस दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी ने उस से कहा था कि तू गुनाह कबूल कर जेल चला जा और वहां बेफिक्री से कुछ दिन काट ले क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने वाली मांबेटी फरजी हैं.’

राजेश के मुताबिक उस का मोबाइल फोन पुलिस ने छीन लिया. उसे पत्नी से बात भी नहीं करने दी गई थी. हकीकत में राजेश राजपूत हादसे के वक्त और उस दिन भोपाल में था ही नहीं. वह शिवसेना के एक नेता के साथ इंदौर गया था.

उस की पत्नी दुर्गा को जब किसी से पता चला कि उस के पति को पुलिस ने गैंगरेप मामले में गिरफ्तार कर रखा है तो वह घबरा गई. दुर्गा जब थाने पहुंची तो पति की एक झलक दिखा कर उसे दुत्कार कर भगा दिया गया. इस के बाद वह अपने पति की बेगुनाही के सबूत ले कर वह यहांवहां भटकती रही, तब कहीं जा कर उसे 3 नवंबर को छोड़ा गया.

थाने से छूटे राजेश ने बताया कि वह हबीबगंज स्टेशन के बाहर भाजपा कार्यालय के पीछे की बस्ती में रहता है. जिनजिन पुलिस अधिकारियों ने उस के साथ ज्यादती की है, वह उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा.

अनामिका की हालत पुलिसिया पूछताछ और मैडिकल जांच में बेहद खराब हो चली थी लेकिन अच्छी बात यह थी कि इस बहादुर लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. मीडिया के सपोर्ट और संगठनों के धरनेप्रदर्शनों ने उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया. अब वह आईपीएस अधिकारी बन कर सिस्टम को सुधारना चाहती है. उस के मातापिता भी उसे हिम्मत बंधाते रहे और हरदम उस के साथ रहे, जिस से भावनात्मक रूप से वह टूटने व बिखरने से बच गई.

बवाल शांत करने के उद्देश्य से सरकार ने भोपाल के आईजी योगेश चौधरी और रेलवे पुलिस की डीएसपी अनीता मालवीय को भी पुलिस हैडक्वार्टर भेज दिया. अनीता मालवीय इस बलात्कार कांड पर ठहाके लगाती नजर आई थीं, जिस पर उन की खूब हंसी उड़ी थी.

डाक्टरों ने डाक्टरी जांच में की बहुत बड़ी गलती हर कोई जानता है कि ऐसी सजाओं से लापरवाह और दोषी पुलिस कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता. आज नहीं तो कल वे फिर मैदानी ड्यूटी पर होंगे और अपने खिलाफ लिए गए एक्शन का बदला और भी बेरहमी से अपराधियों के अलावा आम लोगों से लेंगे.

सरकारी अमले किस मुस्तैदी से काम करते हैं, इस की एक बानगी फिर सामने आई. अनामिका की मैडिकल जांच सुलतानिया जनाना अस्पताल में हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में एक जूनियर डाक्टर ने लिखा था कि संबंध ‘विद कंसर्न’ यानी सहमति से बने थे. इस रिपोर्ट में एक हास्यास्पद बात एक्यूज्ड की जगह विक्टिम शब्द का प्रयोग किया था. इस पर भी काफी छीछालेदर हुई. तब सीनियर डाक्टर्स ने गलती स्वीकारते हुए इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, मानो कुछ हुआ ही न हो.

रेलवे की नई एसपी रुचिवर्धन मिश्रा ने इसे मानवीय त्रुटि बताया तो भोपाल के कमिश्नर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने लापरवाही बरतने वाली डाक्टरों खुशबू गजभिए और संयोगिता को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये दोनों डाक्टर इस के पहले ही अपनी गलती स्वीकार चुकी थीं. उन की यह कोई महानता नहीं थी बल्कि मजबूरी हो गई थी. बाद में रिपोर्ट सुधार ली गई.

अगर वक्त रहते इस गलती की तरफ ध्यान नहीं जाता तो इस का फायदा केस के आरोपियों को मिलता. वजह बलात्कार के मामलों में मैडिकल रिपोर्ट काफी अहम होती है. तरस और हैरानी की बात यह है कि जिस लड़की के साथ 6 दफा बलात्कार हुआ,उस की रिपोर्ट में सहमति से संबंध बनाना लिख दिया गया.

शायद इस की आदत डाक्टरों को पड़ गई है या फिर इस की कोई और वजह हो सकती है, जिस की जांच किया जाना जरूरी है. अनामिका बलात्कार कांड में एक भाजपा नेता का नाम भी संदिग्ध रूप से आया था, जो बारबार पुलिस थाने में आरोपियों के बचाव के लिए फोन कर रहा था.

पुलिस ने चारों दुर्दांत वहशी दरिंदों गोलू चिढार उर्फ बिहारी, अमर, राजेश उर्फ चेतराम और रमेश मेहरा से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

अनामिका चाहती है कि इन दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए पर बदकिस्मती से देश का कानून ऐसा है, यहां पीडि़ता की भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती. भोपाल बार एसोसिएशन ने यह एक अच्छा संकल्प लिया है कि कोई भी वकील इन अभियुक्तों की पैरवी नहीं करेगा.

गुस्साए आम लोग भी कानून में बदलाव चाहते हैं. उन का यह कहना है कि सुनवाई में देर होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और ऐसे अपराधों को शह मिलती है.

हालांकि खुद को आहत बता रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीघ्र नया विधेयक ला कर कानून बनाने की बात कर चुके हैं और मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की बात कर चुके हैं, पर सच यह है कि अब कोई उन पर भरोसा नहीं करता. खासतौर से इस मामले में पुलिस की भूमिका को ले कर तो वे खुद कटघरे में हैं.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनामिका परिवर्तित नाम है.

संदीप के सपने

बिहार के जिला सीवान के थाना नगर के मोहल्ला सीतारामनगर बैलहट्टा के वार्ड नंबर 32 में  कपड़ा और सोनेचांदी के गहनों के व्यवसाई राजकुमार गुप्ता परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्मिता और 11 साल का एकलौता बेटा विष्णुराज उर्फ राहुल था. एकलौता होने की वजह से राजकुमार बेटे को बड़े जतन से पाल रहे थे. उन के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उन्होंने बेटे का दाखिला शहर के सब से महंगे और प्रसिद्ध स्कूल डौन बोस्को में करा दिया था. वह इस समय 6वीं में पढ़ रहा था.

बेटा पढ़ने में कमजोर न रहे, इस के लिए राजकुमार ने मोहल्ले के संदीप कुमार को ट्यूशन पढ़ाने के लिए लगा रखा था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, इसलिए राजकुमार हर तरह से खुश थे. लेकिन किस की खुशी को कब ग्रहण लग जाए, कौन जानता है. ऐसा ही कुछ 9 अगस्त, 2017 की शाम राजकुमार गुप्ता के साथ हुआ.

राजकुमार गुप्ता की पत्नी स्मिता रक्षाबंधन पर 7 अगस्त को मायके चली गई थीं. मां के न रहने पर राहुल की देखरेख उस की चाची लक्ष्मी के जिम्मे थी. क्योंकि वह भी उसी मकान में पहली मंजिल पर पति रमाकांत गुप्ता के साथ रहती थीं. दोनों भाई रहते भले अलगअलग थे, लेकिन संबंध सगे भाइयों में जिस तरह के होने चाहिए, वैसे ही थे, इसलिए पत्नी के मायके चले जाने पर भी राजकुमार बेटे की तरफ से निश्चिंत थे.

9 अगस्त की शाम 7 बजे ट्यूशन पढ़ कर राहुल चाची से दुकान पर जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह घर से निकला ही था कि राजकुमार ने फोन कर के लक्ष्मी से पूछा, ‘‘लक्ष्मी, जरा नीचे देख कर बताओ कि राहुल ट्यूशन पढ़ रहा है या पढ़ चुका?’’

‘‘ठीक है भाई साहब, देख कर बताती हूं.’’ जवाब में लक्ष्मी ने कहा.

राजकुमार ने फोन काट दिया कि लक्ष्मी देख कर बताएगी. लेकिन उस समय लक्ष्मी की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह आलस्यवश नीचे नहीं गई. शायद इसी वजह से घर से जाते समय राहुल ने उसे दुकान पर जाने के बारे में जो बताया था, उस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया था.

थोड़ी देर बाद लक्ष्मी को थोड़ा आराम महसूस हुआ तो वह नीचे आई. राहुल को घर में न पा कर उस ने सोचा कि राहुल दुकान पर चला गया होगा. दूसरी ओर लक्ष्मी से बात होने के बाद राजकुमार दुकानदारी में व्यस्त हो गए थे. करीब 9 बजे दुकान बंद कर के वह घर पहुंचे तो राहुल उन्हें घर में कहीं दिखाई नहीं दिया. उन्होंने लक्ष्मी से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, वह तो 7 बजे से ही घर में नहीं है. वह तो दुकान पर चला गया था.’’

‘‘राहुल 7 बजे से घर में नहीं है?’’ हैरानी से राजकुमार ने कहा, ‘‘पर वह तो दुकान पर भी नहीं आया.’’

राजकुमार को लगा, राहुल दुकान पर जाने के बजाय किसी दोस्त के घर खेलने चला गया होगा. घर से बाहर आ कर वह आसपड़ोस में राहुल के बारे में पूछने लगे. लेकिन राहुल किसी के यहां नहीं गया था. राजकुमार परेशान हो उठे कि इस तरह राहुल बिना बताए कहां चला गया? उस की इस हरकत पर उन्हें गुस्सा भी आ रहा था और चिंता भी हो रही थी, क्योंकि एकलौते बेटे की बात थी.

जब राहुल आसपास कहीं नहीं मिला तो राजकुमार ट्यूशन पढ़ाने वाले संदीप कुमार के यहां गए. उन्होंने उस से राहुल के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम 7 बजे तक मैं राहुल को पढ़ाता रहा. उस के बाद मैं अपने घर आ गया. उस समय तक तो राहुल घर पर ही था. उस के बाद ही कहीं गया होगा.’’

हारे हुए जुआरी की तरह राजकुमार घर वापस आ गए. अब तक उन का भाई रमाकांत भी घर आ गया था. उन्होंने भाई से राहुल के गायब होने की बात बताई तो वह भी हैरान रह गया, क्योंकि अब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. ऐसे में वे राहुल को ढूंढने कहां जाते? राजकुमार की समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने पत्नी को फोन कर के बेटे के गायब होने के बारे में बता दिया. बेटे के गायब होने का पता चलते ही स्मिता रोने लगी.

कुछ व्यवसाई मित्रों को राजकुमार ने बेटे के गायब होने की बात बताई तो सब ने उन्हें हिम्मत बंधाते हुए राहुल की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी. सवेरा होते ही कुछ व्यवसाइयों के साथ राजकुमार थाना नगर पहुंचे और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को पूरी बात बताई तो उन्होंने तुरंत गुमशुदगी दर्ज कर के आश्वासन दिया कि वह अभी काररवाई करते हैं.

अब तक स्मिता भी घर आ गई थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. सब उसे समझा रहे थे. राजकुमार ने भी पत्नी को चुप कराने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में वह खुद ही रोने लगे. राहुल के गायब होने की जानकारी पा कर तमाम रिश्तेदार और जानपहचान वाले राजकुमार के घर आ गए थे.

किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि राहुल अचानक कहां चला गया? सब इसी बात पर विचार कर रहे थे कि 10 बजे के करीब राजकुमार गुप्ता के मोबाइल पर एक फोन आया. चूंकि वह नया नंबर था, इसलिए राजकुमार ने फोन रिसीव कर के पूछा, ‘‘कौन?’’

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो.’’ दूसरी ओर से रौबदार आवाज में लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा राहुल मेरे कब्जे में है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो 30 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, यह तुम्हें बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात कान खोल कर सुन लो, अगर तुम इस मामले में पुलिस को बीच में ले आए तो बेटे की लाश ही मिलेगी.’’

‘‘अरे आप कौन और कहां से बोल रहे हैं?’’ राजकुमार ने पूछा. लेकिन उन के इन सवालों का जवाब देने के बजाय फोन करने वाले ने फोन काट दिया.

राजकुमार ने पलट कर फोन किया तो फोन बंद हो चुका था. उन्होंने यह बात पत्नी और भाई को बताई तो बेटे के अपहरण की बात सुन कर पत्नी और जोरजोर से रोने लगी. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि इस बात की सूचना पुलिस को दे दी जाए, क्योंकि अपहर्त्ताओं का क्या भरोसा, वे रुपए ले कर भी बच्चे को सकुशल वापस न करें.

राजकुमार तुरंत भाई और कुछ व्यवसाई मित्रों के साथ थाना नगर पहुंच गए और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को अपहर्त्ताओं द्वारा किए गए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने अपहर्त्ताओं के उस नंबर को उसी समय सर्विलांस पर लगवा दिया. इसी के साथ उन्होंने राहुल की गुमशुदगी को अपहरण की धारा 364 के तहत दर्ज करा कर इस घटना की सूचना जिले के सभी थानों और पुलिस अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद पुलिस राहुल की खोज में जुट गई. घटना की सूचना एसपी सौरभ कुमार शाह को भी मिल गई थी. वह खुद इस पर नजर रखने लगे. राहुल को सहीसलामत मुक्त कराने के लिए उन्होंने एएसपी कार्तिकेय शर्मा को इस मामले में लगा दिया. इस के बाद पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं. एक टीम का नेतृत्व एसआईटी प्रभारी मनोज कुमार कर रहे थे तो दूसरी टीम थानाप्रभारी सुबोध कुमार के नेतृत्व में काम कर रही थी. उन की मदद के लिए जिले के कई थानों के थानाप्रभारी भी लगाए गए थे.

उसी दिन शाम को एक बार फिर अपहर्त्ताओं ने राजकुमार को फोन कर के फिरौती की रकम मांगी, पर राजकुमार ने फिरौती देने से मना कर दिया. पुलिस ने उस फोन की लोकेशन पता की, जिस से फिरौती मांगी गई थी. पता चला कि वह गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किया गया था. पुलिस वहां पहुंची, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.

दरअसल, पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही अपहर्त्ता निकल गए थे. इस से पुलिस को लगा कि राहुल के अपहरण में कोई करीबी शामिल है, जो अपहर्त्ताओं को पुलिसिया काररवाई की जानकारी दे रहा है.

अगले दिन यानी 11 अगस्त को सुबहसुबह थाना मुफस्सिल पुलिस ने अमलौरी-सरसर के बीच बसस्टौप के नजदीक सड़क के किनारे सीमेंट की बोरी में बंधी एक बच्चे की लाश बरामद की. शक्लसूरत और पहनावे से बच्चा बड़े घर का लग रहा था. कहीं से इस बात की भनक राजकुमार को लगी तो वह भाई के साथ वहां पहुंच गए.

लाश देखते ही दोनों भाई बिलखबिलख कर रोने लगे. लाश राजकुमार के एकलौते बेटे राहुल की थी. राहुल की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया. जब इस बात की जानकारी व्यापारियों को हुई तो सारे व्यापारी इकट्ठा हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए एसपी सौरभ कुमार शाह ने तुरंत पुलिस फोर्स की व्यवस्था की और शहर की नाकेबंदी करा दी. इस के बावजूद गुस्साई भीड़ ने पुलिस के वज्र वाहन को आग लगा दी. सभी राहुल की लाश को रख कर हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

एएसपी कार्तिकेय शर्मा और एसडीएम श्यामबिहारी मीणा ने गुस्साए लोगों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार किया जाएगा, तब लोग थोड़ा शांत हुए. इस के बाद लाश का अंतिम संस्कार करा दिया गया. उसी दिन शाम को लोगों ने कैंडिल मार्च भी निकाला.

सुबह राहुल के अपहरण की खबर फोटो के साथ अखबारों में छपी तो एक आदमी ने वह खबर पढ़ी और फोटो देखा तो हैरान रह गया. क्योंकि उस ने अस्पताल रोड पर राहुल को एक बोलेरो में 3 लोगों को बैठाते देखा था. राहुल को बैठा कर वे पश्चिम की ओर गए थे. उस आदमी से रहा नहीं गया और वह थाना मुफस्सिल पहुंच गया.

थानाप्रभारी विनय प्रताप सिंह से उस ने एसपी के सामने अपनी बात कहने को कहा तो वह उसे एसपी सौरभ कुमार शाह के पास ले गए. उस ने जो देखा था, सौरभ कुमार शाह को बता दिया. अपहर्त्ताओं ने फिरौती के लिए जो फोन किए थे, वे गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किए गए थे.

पुलिस ने योजना बना कर दोबारा मटिहानी में सर्च अभियान चलाया तो 2 लोग मनोज और दिनेश पकड़ में आ गए. ये दोनों सगे भाई थे. सीवान ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे राहुल के अपहरण में शामिल थे और उन्हीं के साथी मिट्ठू ने फिरौती के लिए फोन किए थे.

फोन के लिए जिस नंबर से फोन किए गए थे, उन्होंने उस नंबर का सिम थाना हथुआ के मनी छापर गांव के रहने वाले विकास कुमार प्रसाद से खरीदा था. इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड सीवान का भरत था. पुलिस ने उसी दिन सिम बेचने वाले विकास कुमार और मास्टरमाइंड भरत को गिरफ्तार कर लिया.

भरत ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि इस पूरे मामले का असली खिलाड़ी बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने वाला संदीप कुमार था. उसी के कहने पर बच्चे का अपहरण किया गया था. इस के बाद उसी दिन पुलिस ने संदीप कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में संदीप ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस तरह 48 घंटे में 1 महिला सहित सारे 11 अभियुक्त गिरफ्तार कर लिए गए थे, जबकि 3 लोग फरार हो गए थे. गिरफ्तार अभियक्तों से पूछताछ में राहुल के अपहरण से ले कर हत्या तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

22 साल का संदीप कुमार जिला सीवान के थाना नगर के नया बाजार के रहने वाले विमलेश कुमार का बेटा था. 5 भाईबहनों में वह चौथे नंबर पर था. विमलेश की कौस्मेटिक की दुकान थी. उसी की कमाई से घर चलता था.

संदीप से बड़े 4 भाई थोड़ीबहुत कमाई करने लगे थे. संदीप बीए फाइनल ईयर में पढ़ रहा था, साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्च निकाल रहा था. लेकिन उस की इच्छाएं काफी प्रबल थीं. वह जिस स्थिति में था, उस स्थिति में नहीं, बल्कि शान की जिंदगी जीना चाहता था. वह राजकुमार गुप्ता के बेटे राहुल को भी ट्यूशन पढ़ाता था.

संदीप राहुल को उस के घर पढ़ाने जाता था. उस के घर की शानोशौकत देख कर ही वह समझ गया था कि ये पैसे वाले लोग हैं. यही सोच कर धीरेधीरे उस के मन में लालच आने लगा. उसे लगा कि राहुल बड़े मालदार बाप का एकलौता बेटा है. अगर इस का अपहरण कर लिया जाए तो बेटे को छुड़ाने के लिए वह 25-50 लाख रुपए आसानी से दे देंगे.

इस के बाद संदीप राहुल के अपहरण की योजना बनाने लगा. यह काम वह अकेला तो कर नहीं सकता था. सहयोग के लिए उस ने श्रद्धानंद बाजार स्थित अस्पताल रोड चौराहे पर लिट्टी और चाय की दुकान चलाने वाले अपने एक परिचित भरत से बात की. बात लाखों की थी, इसलिए वह भी उस की योजना में शामिल हो गया.

भरत ने मीरगंज के रहने वाले अपने एक साथी आजाद अली को लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया. इस तरह अब 3 लोग हो गए थे. इस के बाद तीनों मौके की तलाश में जुट गए.

7 अगस्त को भरत की दुकान पर संदीप और आजाद अली राहुल के अपहरण की योजना को अंतिम रूप देने पहुंचे. तीनों ने 9 अगस्त की शाम को राहुल के अपहरण की योजना बना डाली. इस की वजह यह थी कि 7 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार था. राहुल की मां स्मिता मायके चली गई थीं. यह संदीप को पता था.

पूरी योजना बना कर आजाद अली ने गोपालगंज के थाना मीरगंज के गांव मटिहानी के रहने वाले दिलीप सिंह को फोन कर के उन की बोलेरो जीप 9 अगस्त के लिए बुक कर ली. आजाद अली दिलीप सिंह की जानपहचान वाला था, इसलिए उस ने गाड़ी भेजने के लिए कह दिया था.

9 अगस्त की शाम 6 बजे संदीप राहुल को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर गया. घर में राहुल के अलावा कोई नहीं था. संदीप राहुल से इधरउधर की बातें करने लगा, क्योंकि उस के मन में तो उथलपुथल मची थी. पढ़ाने में उस का मन नहीं लग रहा था. शाम 7 बजे संदीप के जाने का समय हुआ तो उस ने कहा, ‘‘राहुल, तुम्हें अपनी दुकान पर चलना हो तो चलो, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, क्योंकि मैं उधर ही जा रहा हूं.’’

राहुल को दुकान पर जाना ही था, वह कौपीकिताब रख कर संदीप के साथ चल पड़ा. घर से निकलते ही संदीप ने आजाद अली और भरत को तैयार रहने के लिए कह दिया. उसी बीच राजकुमार ने अपने भाई की पत्नी लक्ष्मी को फोन कर के राहुल के बारे में पूछा तो उस समय तो नहीं, लेकिन थोड़ी देर बाद घर में राहुल को न देख कर उसे लगा कि वह दुकान पर चला गया होगा.

अस्पताल रोड चौराहे पर दिलीप सिंह और आजाद अली बोलेरो जीप लिए संदीप का इंतजार कर रहे थे. भरत भी रास्ते में मिल गया था. संदीप ने राहुल को तो बोलेरो पर बैठा दिया, लेकिन खुद नहीं बैठा. वह उन के साथ गया भी नहीं. राहुल को जब ये लोग बोलेरो में बैठा रहे थे, तभी उस आदमी ने देख लिया था.

भरत और आजाद अली राहुल को ले कर गोपालगंज के जिगना के रहने वाले राजकिशोर सिंह के घर पहुंचे. दोनों ने उन से राहुल को अपने यहां रखने को कहा तो उन्होंने 5 लाख रुपए मांगे. दोनों 5 लाख रुपए देने को राजी हो गए तो राहुल को उन के यहां रख दिया गया. तब तक राहुल सो गया था. लेकिन सवेरा होते ही वह रोने लगा तो राजकिशोर सिंह ने उसे ले जाने को कहा.

इस के बाद दोनों राहुल को बसंतपुर के लालबाबू के यहां ले गए. पैसों के लालच में लालबाबू का दोस्त मिट्ठू भी अपहर्त्ताओं के साथ मिल गया.

10 अगस्त की सुबह संदीप ने फिरौती के लिए राजकुमार को फोन करने के लिए भरत को फोन किया. संदीप के कहने पर भरत ने मिट्ठू से राजकुमार को फोन करवा कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी. लेकिन राजकुमार ने फिरौती देने से साफ मना कर दिया. संदीप और उस के साथियों ने जो सोच कर राहुल का अपहरण किया था, वह बेकार गया. उन की मंशा पर पानी फिर गया.

संदीप बुरी तरह डर गया था. क्योंकि राहुल ने उसे ही नहीं, भरत और आजाद अली को भी पहचान लिया था. ऐसे में उसे जिंदा छोड़ दिया जाता तो सब पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से संदीप की रूह कांप उठी. बस उस ने तय कर लिया कि अब राहुल को जिंदा नहीं छोड़ना है.

उस ने आजाद अली को फोन कर के राहुल को खत्म करने के लिए कह दिया. भरत राहुल को लालबाबू के हवाले कर के सीवान लौट आया था. इसलिए अब जो करना था, आजाद अली, लालबाबू और इन के एक साथी दीपू को करना था. रात में आजाद अली ने दिलीप सिंह से एक मारुति वैन मंगवाई.

लालबाबू और दीपू ने रस्सी और सीमेंट की बोरी का इंतजाम किया. इस के बाद राहुल के गले में रस्सी लपेट कर कस दिया गया, जिस से तड़प कर वह मर गया. हत्या करने के बाद तीनों राहुल की लाश को सीमेंट की बोरी में भर कर मारुति वैन से ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. अब तक सवेरा हो चुका था.

लाश को ला कर उन्होंने सीवान के थाना मुफस्सिल के अंतर्गत अमलोरी-सरसर के बीच स्थित बसस्टौप के पास सड़क किनारे चलती वैन से फेंक दिया. उन लोगों को बोरी फेंकते कुछ लोगों ने देखा तो शोर भी मचाया, लेकिन वे भाग गए. इस के बाद उन्हीं लोगों ने इस की सूचना थाना मुफस्सिल पुलिस को दी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने इस मामले में धारा 365, 302, 201 और 34 शामिल कर दी थीं.

कथा लिखे जाने तक कुल 14 लोग पकड़े जा चुके थे. आजाद अली और वैन चालक अभी तक पकड़े नहीं गए थे. लालबाबू ने सीवान की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. पुलिस उसे रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही थी. पकड़े गए सारे अभियुक्त जेल भेजे जा चुके थे.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पतिपत्नी : प्रेमी और पुत्र के बीच उलझी तलाकशुदा

सीमा का जब अपने पति के साथ तलाक हुआ तो उस के बेटे सोनू की उम्र 14 साल की थी. तलाक होने के 2 महीने बाद ही सोनू के पिता ने दूसरी शादी कर ली. अब सोनू न चाहते हुए भी अपने पिता और सौतेली मां के साथ रहने को मजबूर है. वजह, उस का स्कूल वहां से पास है. तलाक होने के बाद सोनू की मां सीमा जहां रहती हैं वहां वह अकसर जाता रहता है पर इन दिनों उस की मां उसे पहले की तरह समय नहीं दे पातीं. मां या तो अपने काम में व्यस्त रहती हैं या फिर अपने एक परिचित रोहित के साथ बातें करती रहती हैं. सोनू खुद को अब बहुत अकेला पाता है.

रोहित को सोनू की मनोस्थिति समझते देर न लगी. उस ने सोनू से दोस्ती करनी शुरू कर दी. बहुत जल्द सोनू व रोहित आपस में हिलमिल गए. अब सोनू अकेलापन महसूस नहीं करता है बल्कि रोहित के साथ वीकेंड पर घूमने जाता है और खूब मस्ती करता है. रोहित जब भी सोनू से मिलता है, उस के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आता है. सोनू को भी रोहित और अपने उपहार का इंतजार रहता है. सीमा जब यह सब देखती है तो उस की सारी चिंता काफूर हो जाती है.

इधर पिछले कुछ दिनों से रोहित को सबकुछ बहुत बदलाबदला सा नजर आ रहा है. अचानक सोनू ने उस से उपहार लेना बंद कर दिया और पहले की तरह अब न तो वह रोेहित से खुल कर मिलता है और न ही उस के साथ वीकेंड पर घूमने जाता है. सीमा भी अब उस से खुद को दूरदूर रखने लगी है. रोहित इस बदलाव को महसूस तो कर रहा है पर न तो वह इस का कारण समझ पा रहा है, न यह कि क्या करे कि सबकुछ फिर से पहले की तरह ठीक हो जाए.

सीमा भी जानती है कि रोहित की उपेक्षा कर वह ठीक नहीं कर रही है लेकिन वह यह समझ पाने में असमर्थ है कि इस परेशानी का हल वह कैसे निकाले? कुछ साल पहले जब पति ने उस का साथ छोड़ा था तो वह बिलकुल अकेली हो गई थी. ऐसे में रोहित ने उसे संभाला था. धीरेधीरे रोहित का साथ उसे भी अच्छा लगने लगा था.

उस दिन सीमा की मौसी आईं तो उस के घर में रोहित की दखलंदाजी देख उन्हें ठीक न लगा. उन्होंने सीमा को समझाया, ‘‘बेटी, अभी तेरी उम्र ढली नहीं है इसलिए रोहित तेरे इर्दगिर्द चक्कर लगा रहा है. सोनू को भी बहुत प्यार कर रहा है लेकिन जैसे ही तुम दोनों ने शादी की और तुम्हारी औलाद हुई कि वह सोनू से चिढ़ने लगेगा और घर में एक बार फिर कलह होने लगेगी. अभी तो सोनू अपने पापा के साथ है लेकिन स्कूल पूरा करते ही वह तुम्हारे साथ आ  कर रहना चाहेगा और रोहित की परेशानियां तुम्हें भी परेशान करने लगेंगी. इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले कई बार विचार कर लेना.’’

मौसी ने सीमा को समझाया तो उस के मन में कई सवाल एक साथ खड़े हो गए. वह तय नहीं कर पा रही है कि उसे क्या करना चाहिए? सच है, रोहित आज उसे और सोनू को बहुत प्यार करता है लेकिन अपने बच्चे होने पर भी क्या यह प्यार कायम रहेगा? रोहित की अपनी कोई औलाद नहीं है. ऐसे में वह अपने बच्चे की जिद भी जरूर करेगा तब फिर क्या होगा? यह सब सोच कर ही सीमा परेशान हो उठती. इन सब का कोई हल उसे नहीं सूझ रहा था. बस, मन की इसी उलझन ने उसे रोहित से दूर रहने को मजबूर कर दिया. लेकिन क्या सीमा का यह फैसला सही है?

वजह चाहे कोई भी हो लेकिन आज तलाक शादी का पर्याय बन चुका है. शादी, जिसे एक समय में जन्मजन्मांतर का बंधन माना जाता था, आज अपनी पहचान बदल चुका है. आज समझौता और समर्पण की जगह ईर्ष्या व अहं ने ले ली है. ऐसे में कानूनी रूप से तलाक लेने के सिवा उन्हें दूसरा रास्ता नजर ही नहीं आता.

तलाक के बाद जिंदगी रुक तो नहीं जाती. इस को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि नए जीवनसाथी की तलाश की जाए.

कई बार दूसरी शादी भी सफल नहीं हो पाती जैसा कि सुनैना के साथ हुआ. प्रेमी की बेवफाई उसे किसी भी लड़के से शादी को तैयार नहीं होने दे रही थी. कई रिश्ते आते और वह उन में कोई न कोई कमी निकाल कर ठुकरा देती. अच्छा रिश्ता और पुरानी जानपहचान के बाद भी जब सुनैना ने एक जगह का रिश्ता ठुकरा दिया तो उस की छोटी बहन ने वहां शादी के लिए हामी भर दी. यह बात सुनैना को चुभी लेकिन वह सबकुछ भूलने की कोशिश करती रही.

इसी दौरान एक दिन पूर्व प्रेमी से सुनैना की मुलाकात हुई तो पता चला कि उस के प्रेमी ने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया है और वह अब सुनैना से शादी कर पुरानी गलती को सुधारना चाहता है. पुरानी बातें भूल सुनैना ने भी शादी के लिए हां कर दी, लेकिन एक बच्चे के बाद दोनों में तलाक हो गया. अब सुनैना के बूढ़े मांबाप उस के लिए तलाकशुदा लड़के की तलाश करने लगे क्योंकि पहाड़ सा यह जीवन अकेले तो नहीं काटा जा सकता न.

तलाक होने के 8 माह बाद एक दिन बाजार में उस का पूर्व प्रेमी पति मिल गया. उस ने सुनैना को समझाया, ‘‘क्या हुआ जो हमारा तलाक हो गया, आखिर हम एकदूसरे से प्यार करते थे और कुछ मनमुटाव के कारण हम ने अलग होने का फैसला लिया था. अब तुम जिस से भी शादी करोगी उस के साथ भी तो तुम्हें कई तरह के समझौते करने होंगे तो दूसरों के बजाय क्यों न हम अपनों के लिए ही समझौता कर लें और फिर से एक हो जाएं?’’

सुनैना को पति की बात जंच गई और उस ने फिर से अपने पति के साथ रहने का फैसला ले लिया. आखिर समझौते तो जीवन में करने ही पड़ते हैं तो क्यों न उसे सब के भले को ध्यान में रख कर किया जाए. सुनैना ने तो समझदारी से सही फैसला ले लिया लेकिन क्या सीमा की समझ में बात आई? दरअसल, सीमा अपने बच्चे सोनू के भविष्य को ले कर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो रही थी और अपने बारे में तो वह कुछ सोच ही नहीं पा रही थी.

सीमा समझ नहीं पा रही थी कि 2-3 साल बाद जब उस का बेटा सोनू बड़ा हो जाएगा और आगे की पढ़ाई के लिए उस से दूर चला जाएगा तब वह खुद को इस के लिए कैसे तैयार करेगी?

बेशक मौसी की यह बात सच है कि आज वह उम्र की ढलान पर नहीं है इसलिए रोहित उस का साथ देने को तैयार है लेकिन उम्र के जिस मुकाम पर वह है वहां से आगे ढलान ही तो शुरू होती है. ऐसे में बेटे को उस की जितनी जरूरत है, उस के लिए सीमा को अपने भविष्य के साथ समझौता नहीं करना चाहिए. इस तरह सीमा को रोहित के साथ जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ने देना चाहिए और समझदारी इसी में है कि वह रोहित, जो कि इतना सुलझा हुआ व समझदार युवक है, से शादी कर फिर से अपना घर बसा ले. यही उस के लिए बेहतर होगा, यद्यपि इस दौरान उसे कुछ परेशानियां आ सकती हैं लेकिन रोहित का साथ मिलने पर वे मिल कर उस का समाधान भी ढूंढ़ सकते हैं.

रोहित जवान होते सोनू को समझने की कोशिश कर सकता है. फिर यदि सीमा खुद बेटे को अपनी परेशानियां बताए तो वह उसे जरूर समझेगा. हां, बेटे को अपने पक्ष में कर के यह कदम उठाए तो बेहतर होगा. ठीक इसी तरह, यदि रोहित से भी वह साफसाफ हर बात कर ले और अपनी परेशानियों को उसे भी बता दे तो जीवन में कभी परेशानी आने की नौबत ही नहीं रह जाएगी.

कहा जा सकता है कि छोटीछोटी पर महत्त्वपूर्ण बातों का खयाल रखें तो सीमा व सुनैना जैसी कई महिलाएं अपने जीवन को एक नई दिशा देने में सक्षम हो सकेंगी. तलाक के बाद भी वे समझदारी से सही निर्णय लें और जीवन को सहज रूप से आगे बढ़ने दें, इसी में सब की खुशहाली है.

औरतों का शिकारी महंत प्रीतम सिंह

जालंधर देहात के थाना भोगपुर के अंतर्गत आने वाले गांव बढ़चूही में नाथ समुदाय के बाबा बालकनाथ का प्रसिद्ध डेरा है, जिस की बड़ी मान्यता है. जालंधर और उस के आसपास क्षेत्र के तो क्या, दूरदूर से लोग अपनी श्रद्धा के वशीभूत डेरे पर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते रहते थे. दरअसल, सालों पहले महंत प्रीतम सिंह ने सरपंच और गांव वालों की मदद से इस डेरे की नींव रखी थी. बाद में देखतेदेखते इस डेरे की मान्यता दूरदूर तक फैल गई.

डेरे पर हर तरह की समस्याओं से ग्रस्त लोग समाधान के लिए आते थे. हां, निस्संतान औरतों का संतान प्राप्ति के लिए डेरे पर आनाजाना कुछ अधिक ही था. कहा जाता है कि संतान की चाह रखने वाली जरूरतमंद औरतों की मुराद यहां आ कर पूरी हो जाती थी. इस डेरे का संचालन करने वाले महंत प्रीतम सिंह के बारे में कहा जाता है कि कई साल पहले वह झारखंड से यहां आए थे.

महंत प्रीतम सिंह थाना तेरापाहा के अंतर्गत आने वाले गांव चंपवाला, जिला कुरी, झारखंड के मूल निवासी थे. लोगों का मानना था कि उन पर बाबा बालकनाथजी की कृपा थी. डेरे की सेवा का काम बाबा प्रीतम सिंह का भांजा राम करता था.

26 जून, 2016 की शाम को राम और उस का दोस्त चैंपियन शाम के समय डेरे की साफसफाई में लगे थे. उस वक्त बाबा अपने निजी कक्ष में ध्यान में बैठे थे. तभी 2 युवक डेरे का मुख्यद्वार खोल कर भीतर आए और बिना किसी से पूछे ऊपर बाबा के निजी कक्ष की ओर चले गए.

राम और उस के दोस्त चैंपियन ने उन्हें बाबाजी के कक्ष की ओर जाते देखा था, पर उन्होंने इस ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि डेराप्रेमी श्रद्धालु अकसर बाबा से मिलने आते रहते थे. दोनों युवकों को ऊपर गए अभी मुश्किल से 5 मिनट ही गुजरे थे कि गोली चलने की आवाज के साथ चीख भी सुनाई दी. राम और चैंपियन ने चौंक कर देखा, गोली चलने की आवाज और चीख बाबा के कक्ष की ओर से आई थी.

वे अवाक खड़े अभी सोच ही रहे थे कि क्या मामला है, तभी दोनों युवक अपने हाथ में पिस्तौल लिए बाबा के कक्ष से निकले और मुख्यद्वार की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था.

राम और चैंपियन दौड़ कर बाबा के कक्ष की ओर लपके. दोनों ऊपर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर उन के पैरों तले से जमीन निकल गई. बाबाजी के सिर से खून का फव्वारा छूट रहा था और वह बैड पर औंधे पड़े थे.

डेरे में गोली चलने की आवाज कुछ गांव वालों ने भी सुनी थी, वे भी हकीकत जानने के लिए डेरे में दौड़े चले आए थे. राम और चैंपियन ने देखा तो बाबा की नब्ज चल रही थी. राम ने तुरंत गांव के प्रधान महिंदर सिंह को सूचना देने के साथ थाना भागपुर पुलिस को भी घटना के बारे में बता दिया. यह 26 जून, 2016 की घटना है.

सूचना मिलते ही जालंधर देहात के एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर, डीएसपी और थाना भागपुर के प्रभारी एसआई प्रीतम सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. बाबा को तुरंत वहां के नजदीकी निजी अस्पताल पहुंचाया गया.

इस काम से फारिग होने के बाद थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने गांव वालों और राम के बयान दर्ज किए. राम के बयान पर महंत प्रीतम सिंह की हत्या के मकसद से जानलेवा हमला करने का मुकदमा भादंसं की धारा 307 के तहत दर्ज कर के हमलावरों की तलाश शुरू कर दी गई.

उधर अस्पताल में डाक्टरों के तमाम प्रयासों के बाद भी बाबा को बचाया नहीं जा सका. उन की मौत के बाद थानाप्रभारी ने लाश को कब्जे में ले कर पंचनामा तैयार किया और लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. बाबा प्रीतम सिंह की हत्या दिनदहाड़े सिर में गोली मारकर की गई थी और हत्यारे फरार हो गए थे.

कुछ ही देर में बाबा की हत्या की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई. देखतेदेखते हजारों श्रद्धालु बाबा के डेरे और अस्पताल के पास जमा हो गए और आक्रोश में पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए हत्यारों को जल्दी गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. बेकाबू होती भीड़ ने दिल्ली जम्मू नेशनल हाईवे को जाम कर दिया, साथ ही उन्होंने सरकारी वाहनों की तोड़फोड़ भी शुरू कर दी, जिस पर पुलिस ने बड़ी मुश्किल से काबू पाया.

शुरुआती जांच में थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने बाबा के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. उन कैमरों से प्रीतम सिंह को बड़ी उम्मीद थी कि कैमरों से हमलावरों का सुराग लग सकता है. पर जब मुआयना किया गया तो कैमरे वहां से गायब पाए गए.

हमलावर बाबा पर गोली चलाने के बाद सीसीटीवी कैमरे भी उखाड़ कर साथ ले गए थे. आगे की जांच में पता चला कि बाबा प्रीतम सिंह एक अच्छे इंसान थे, समाज और मानव कल्याण ही उन का मूल उद्देश्य था. ऐसे नेक इंसान को गोली मार कर हत्या करने का क्या मकसद हो सकता है, यह समझ से परे था.

प्रीतम सिंह ने गांव वालों से पूछताछ की और बाबा के भांजे राम और उस के दोस्त चैंपियन के बयान भी फिर से दर्ज किए पर कोई खास बात पता नहीं चल सकी. दिनरात की मशक्कत और मुखबिरों का सहारा लेने के बाद भी वह बाबा प्रीतम सिंह के हत्यारों तक नहीं पहुंच सके. इसी बीच उन का तबादला हो गया.

प्रीतम सिंह के तबादले के बाद नए थानाप्रभारी ने भी अपने कार्यकाल में बाबा के हत्यारों को ढूंढने का काफी प्रयास किया, पर वह भी सफल नहीं हो पाए. इस के बाद यह केस पूरे एक साल तक जिले के सीआईए स्टाफ और क्राइम ब्रांच के पास भटकता रहा. इतना अरसा गुजर जाने के बाद स्थानीय लोग भी इस घटना को भूलने लगे थे.

बाबा के श्रद्धालु भले ही बाबाजी की गोली मार कर हत्या कर देने की बात को भूलने लगे थे, पर जालंधर देहात के एसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बाबा प्रीतम सिंह के हत्यारों को कभी नजरअंदाज नहीं किया था. उन्होंने अपने कुछ खास पुलिस अफसरों को इस काम पर लगाया हुआ था.

बाबा प्रीतम सिंह की हत्या की वजह पता चल जाती तो हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती यह जानने की थी कि आखिर बाबा की हत्या किस मकसद से की गई थी. उन की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि हत्यारों को उन की हत्या करनी पड़ी. निस्संदेह इस के पीछे कोई बहुत बड़ा कारण रहा होगा.

एसपी भुल्लर ने अपनी टीम को सब से पहले यही बात पता करने के लिए लगाया. जल्द ही उन्हें पता चला कि बाबा प्रीतम सिंह एक अय्याश आदमी था. निस्संतान औरतों को संतान देने का आशीर्वाद देने और उन का इलाज करने के बहाने वह उन का शारीरिक शोषण किया करता था.

यह बात पता चलने पर पुलिस ने जब इसी थ्यौरी पर जांच कार्य आगे बढ़ाया तो एक नाम निकल कर सामने आया, गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी निवासी कमराय, भुलत्थ. दरअसल, गोपी की कोई रिश्तेदार थी, जिस के साथ बाबा ने रिद्धिसिद्धि का आशीर्वाद देने का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण किया था.

गोपी को जब बाबा की इन काली करतूतों का पता चला तो उस ने बाबा प्रीतम को सबक सिखाने और अपनी रिश्तेदार का बदला लेने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई थी.

इस योजना में गोपी ने अपने एक साथी ओंकार सिंह उर्फ कारा निवासी रहीमपुर, करतारपुर को रुपयों का लालच दे कर तैयार किया था. गोपी के कहने पर ही ओंकार सिंह ने अपने एक दोस्त राजविंदर सिंह उर्फ राजा निवासी रामगढ़, भुलत्थ को पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया था.

अब तक की जांच में पुलिस को बाबा की हत्या करने का कारण और हत्यारों का पता लग चुका था, पर लाख कोशिश करने के बाद भी पुलिस अभी तक यह पता लगाने में सफल नहीं हुई थी कि बाबा को गोली मार कर फरार होने के बाद ये तीनों लोग कहां भूमिगत हो गए थे.

बहरहाल, 10 सितंबर, 2017 को जालंधर देहात पुलिस को सूचना मिली कि भोगपुर के गांव बढ़चुई में करीब सवा साल पहले डेरा संचालक बाबा प्रीतम की हत्या करने वालों में से एक ओंकार सिंह उर्फ कारा विदेश जाने की फिराक में है. यह भी पता चला कि ओंकार सिंह जालंधर के एक ट्रैवल एजेंट के पास अपना पासपोर्ट और टिकट लेने के लिए आने वाला है.

एसपी द्वारा बनाई गई पुलिस टीम को जांच के दौरान ओंकार सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत और प्रमाण मिले थे. पुलिस ने ट्रैवेल एजेंट के औफिस के बाहर अपना जाल बिछा कर ओंकार सिंह उर्फ कारा को गिरफ्तार कर लिया. मौके पर ही उस के पास से मोटरसाइकिल व तेजधार के हथियार बरामद हुए.

गिरफ्तारी के बाद ओंकार सिंह को सीआईए स्टाफ ला कर पूछताछ की गई तो बिना किसी हीलहुज्जत के उस ने बाबा प्रीतम सिंह की हत्या करने का अपराध स्वीकार करते हुए खुलासा किया कि डेरा संचालक की हत्या उस ने अपने साथी राजविंदर सिंह उर्फ राजा के साथ मिल कर की थी.

उस ने यह भी बताया कि उन दोनों को बाबा की हत्या करने के लिए गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी ने 3 लाख रुपए की सुपारी दी थी. यह भी पता चला कि बाबा की हत्या करने की सुपारी देने वाला गोपी और बाबा की हत्या करने में ओंकार सिंह का साथ देने वाला राजविंदर सिंह उर्फ राजा दोनों ही विदेश जा चुके हैं.

उसी दिन ओंकार को अदालत में पेश कर के आगामी पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया. एसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर द्वारा उस से की गई विस्तृत पूछताछ में बाबा प्रीतम सिंह की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अंधविश्वास का मायाजाल फैला कर भोलेभाले लोगों की आस्था से खेलने वाले एक अय्याश बाबा की कहानी थी, जोकि हमारे सभ्य समाज के लिए एक भयानक कलंक के समान है.

देखा जाए तो बाबा प्रीतम सिंह शुरू से ही अय्याश किस्म का आदमी था. किसी कारण वश अपने किसी अपराध को छिपाने के लिए वह बिहार छोड़ कर फरार हो गया था और दिल्ली, यूपी के अलगअलग शहरों की खाक छानते हुए पंजाब पहुंचा था.

यहां पर कुछ समय किसी बाबा की सोहबत में रहने के बाद वह भी अपने आप को सिद्ध समझने लगा और बढ़चूही गांव के भोलेभाले लोगों को अपने विश्वास में ले कर उस ने गांव में ही डेरा बना लिया. उस डेरे का संचालक बन कर वह लोगों की आस्था और भावनाओं से खिलवाड़ करने लगा.

बाबा प्रीतम सिंह ने अपने बारे में प्रचारित कर रखा था कि उस के पास बाबा बालकनाथ की सिद्धी और कृपा है. अपने आशीर्वाद से वह बांझ औरतों को भी संतान सुख दे सकता है. उस की इन बातों से प्रभावित हो कर सैकड़ों निस्संतान स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए उस के डेरे पर आने लगीं, जिस में से अधिकांश के साथ बाबा ने आंतरिक संबंध बनाए थे.

अधिकांश गांववासियों का कहना था कि बाबा प्रीतम सिंह डेरे में महिलाओं के साथ गलत काम करता था. गोपी की कोई रिश्तेदार लड़की भी अपनी किसी समस्या के समाधान के लिए बाबा प्रीतम सिंह के मायाजाल में फंस गई थी, जिस का बाबा ने जी भर कर आर्थिक और शारीरिक शोषण किया था.

वह युवती बाबा के चंगुल में इतनी बुरी तरह फंसी थी कि अपने साथ हुए धोखे के बारे में किसी से खुल कर बात भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि बाबा ऐसी युवतियों को बदनाम कर देने की बात कह कर ब्लैकमेल भी किया करता था. फलस्वरूप वह युवती भी खामोशी से बाबा के शोषण का शिकार होती रही. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई कि संतान होने का आशीर्वाद देने के नाम पर बाबा युवा औरतों के साथ क्याक्या खेल खेलता है.

लेकिन एक दिन किसी तरह यह बात गोपी को पता चल गई. सच्चाई जान कर उस का खून खौल उठा. आस्था के नाम पर भोलेभाले लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने और उन का शोषण करने वाले बाबा प्रीतम सिंह को सबक सिखाने के लिए गोपी ने उस की हत्या करने की योजना बना ली. बाबा के काले कारनामे उस ने अपने दोस्त ओंकार को बताए तो रुपयों के बदले वह इस काम में उस की मदद करने को तैयार हो गया.

बाबा के डेरे पर हर समय लोगों का आनाजाना लगा रहता था, कोई न कोई सेवादार या कोई और 24 घंटे डेरे पर मौजूद रहता था. ऐसे में बाबा की हत्या करना किसी अकेले के वश की बात नहीं थी, सो ओंकार ने इस काम के लिए अपने दोस्त राजविंदर उर्फ राजा को पैसों का लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

ओंकार और राजविंदर ने गोपी की बात मान ली और बाबा की हत्या का सौदा 3 लाख में कर लिया. ओंकार व राजविंदर 26 जून, 2016 को दोपहर बाद करीब साढ़े 4 बजे डेरे में गए और बाबा की गोली मार कर हत्या कर दी. उस समय भी बाबा अपने कक्ष में किसी युवती के साथ था.

बाबा की हत्या के बाद दोनों ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरे उखाड़ लिए थे. बाबा की हत्या के बाद उन्होंने वहां से लाए सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर गोपी को दे दिए थे. संभवत: गोपी ने सीसीटीवी चैक करने के बाद ओंकार व राजविंदर को 3 लाख रुपए दे दिए. दोनों ने मौके पर ही डेढ़-डेढ़ लाख रुपए बांट लिए थे. इसी दौरान गोपी ने सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर जला कर बाबा की हत्या करने के सारे सबूत नष्ट कर दिए थे.

इस वारदात के बाद अगले ही दिन 27 जून, 2016 को ओंकार व राजविंदर दोनों गोपी से मिले. गोपी ने उन्हें सलाह दी कि वे दोनों विदेश भाग जाएं. वैसे भी गोपी और राजा विदेश जाने वाले थे, उन का पासपोर्ट और वीजा भी तैयार था.

राजा इसी साल अप्रैल-मई में जर्मनी चला गया था और गुरप्रीत उर्फ गोपी वारदात के कुछ महीने बाद दुबई चला गया. इस के बाद दोनों वापस नहीं आए थे. फिलहाल थाना भोगपुर, जालंधर पुलिस दोनों आरोपियों की एलओसी जारी कर गिरफ्तारी के लिए कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें भारत लाने की कोशिश में है, ताकि उन पर बाबा प्रीतम सिंह की हत्या का मुकदमा चलाया जा सके.

बाबा प्रीतम सिंह की हत्या के अलावा भी ओंकार व राजविंदर के खिलाफ भुलत्थ व करतारपुर इलाके में लूट व हत्या के केस दर्ज हैं. पत्रकार वार्ता में एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि ओंकार सिंह के खिलाफ सितंबर, 2008 में थाना करतारपुर में हत्या का केस दर्ज हुआ था.

ओंकार सिंह ने अपने साथियों के साथ मिल कर मलकीत सन्नी की हत्या कर के उस की लाश जमीन में दबा दी थी. इस केस में ओंकार को 20 साल की सजा हुई थी. 6 साल सजा काटने पर सन 2014 में वह जमानत पर आया था, जबकि राजविंदर भुलत्थ में पैट्रोल पंप की लूट तथा करतारपुर में फाइनैंसर पर फायरिंग कर लूट आदि की वारदातों में नामजद है.

ओंकार सिंह उर्फ कारा से पूछताछ करने और पूरी पुलिस काररवाई के बाद उसे अदालत पर पेश कर के जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काले सोने का कालाधंधा

राजस्थान का बाड़मेर जिला रेतीले धोरों के लिए प्रसिद्ध है. करीब दोढाई दशक पहले कुछ कंपनियों

ने बाड़मेर सहित आसपास के कुछ अन्य जिलों में खोज की तो यहां के रेतीले धोरों के पीछे कच्चे तेल एवं गैस का अथाह भंडार मिला. इस के बाद केंद्र सरकार ने अलगअलग बेसिन बना कर राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को तेल एवं प्राकृतिक गैस के दोहन की जिम्मेदारी सौंप दी.

करीब 2 दशक से राजस्थान के करीब 21 ब्लौकों में तेल एवं प्राकृतिक गैस की खोज एवं दोहन का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है. जानीमानी कंपनी केयर्न इंडिया की ओर से बाड़मेर के 10 ब्लौकों में पैट्रोलियम की खोज के लिए 700 से अधिक कुआें की खुदाई की गई.

इन में मंगला, मंगला ईओआर, सरस्वती, रागेश्वरी, रागेश्वरी दक्षिण, रागदीप, भाग्यम, एनआई, एनई एवं ऐश्वर्या ब्लौक शामिल हैं. केयर्न इंडिया ने जो कुएं खोदे, उन में से 380 कुओं में खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस के दोहन का काम चल रहा है. बाकी 58 कुएं ड्राई हो कर फेल हो गए, जबकि 270 कुओं में खोज का काम चल रहा है.

अगस्त, 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बाड़मेर में केयर्न इंडिया के एक आयलफील्ड का उद्घाटन किया था. केयर्न इंडिया के पास देश का सब से बड़ा खजाना बाड़मेर के मंगला ब्लौक में है. मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल (एमपीटी) में पिछले कई सालों से क्रूड आयल की बड़े पैमाने पर चोरी हो रही थी.

क्रूड आयल को काला सोना भी कहा जाता है. काले सोने के खजाने में चोरी की छोटीमोटी घटनाएं यदाकदा सामने आती रहती थीं. पुलिस इस पर काररवाई भी करती रहती थी. आरोपियों की गिरफ्तारी होती और अधिकांश मामलों में क्रूड आयल की बरामदगी हो जाती.

इसी साल 14 जुलाई को बाड़मेर जिले की थाना नगाणा पुलिस ने किसी की शिकायत पर तेल का एक टैंकर पकड़ा. वह टैंकर नरेंद्र रोडलाइंस का था. उस टैंकर की जांच की गई तो उस के 3 चैंबरों में प्रोड्यूस्ड वाटर (अशोधित पानी) और 2 चैंबरों में क्रूड आयल भरा था.

आगे की जांच में पता चला कि टैंकर चालक ने क्रूड आयल के साथ अशोधित पानी भर कर केवल उसी के कागजात तैयार कराए थे. यह टैंकर मंगला टर्मिनल में खाली होना था, लेकिन वह वहां से बाहर आ गया था. पुलिस ने इस मामले में टैंकर चालक सताराम और हेल्पर धर्माराम को गिरफ्तार कर लिया.

इस मामले में केयर्न इंडिया के लीगल अफसर गणपत सिंह चौहान की रिपोर्ट पर थाना नगाणा पुलिस ने 14 जुलाई को मामला दर्ज कर लिया. इस के बाद थानाप्रभारी केसर कंवर ने मामले की जांच शुरू की.

बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने क्रूड आयल के चोरी के मामले को गंभीरता से लिया. उन्हें लगा कि यह मामला छोटामोटा नहीं, बल्कि इस में किसी माफिया का हाथ हो सकता है. मामले की जांच के लिए कई सीनियर अधिकारियों की टीम गठित की गई. टीम ने गिरफ्तार किए गए सताराम और धर्माराम से पूछताछ की. उन दोनों से की गई पूछताछ के बाद क्रूड आयल चोरी के मामले की जड़ें बहुत गहराई तक फैली मिलीं.

इस में केयर्न इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के अलावा राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता भी संलिप्त पाए गए. पुलिस ने तेजी से काररवाई करते हुए 30 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया. उन्होंने बताया कि बाड़मेर से चोरी हुआ क्रूड आयल गुजरात और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों तक पहुंचता था.

एसपी गगनदीप सिंगला ने 21 जुलाई को प्रेस कौंन्फ्रैंस में बताया कि केयर्न इंडिया के उत्पादन केंद्रों से रोजाना 15 से 20 हजार लीटर क्रूड आयल की चोरी हो रही थी. मौजूदा रेट के हिसाब से रोजाना करीब 3 लाख रुपए का क्रूड आयल चोरी हो रहा था. इस तरह साल भर में करीब 11-12 करोड़ रुपए के क्रूड आयल की चोरी हो रही थी और यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा था.

लोगों का मानना है कि पुलिस ने 14 जुलाई को 2 लोगों की गिरफ्तारी के बाद पूरे मामले के खुलासे में जितना समय लगाया, वह संदेह के दायरे में हैं. इसी वजह से लोगों को लग रहा है कि पुलिस बडे़ लोगों को बचा सकती है. क्षेत्रीय विधायक एवं सांसद ने भी इस मामले में सवाल उठाए हैं. मामला जयपुर और दिल्ली तक पहुंच गया है.

इस के बाद राज्य सरकार ने इस मामले की जांच राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को सौंप दी है. एसओजी ने जांच भी शुरू कर दी है.

इस से पहले बाड़मेर पुलिस की करीब 2 सप्ताह तक चली जांच और गिरफ्तार आरोपियों से की गई पूछताछ मे ंजो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

केयर्न इंडिया के मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के तहत गुढ़ामलानी, भाड़खां, बायतू सहित कई क्षेत्रों में तेल कुएं हैं. तेल के इन कुओं से क्रूड आयल के साथ अशोधित पानी भी निकलता है. क्रूड आयल को रिफायनरी में अलगअलग तापमान पर शोधित किया जाता है तो उस में से पैट्रोल, डीजल, नेप्था कैमिकल, लुब्रिकेटिंग आयल, तारकोल आदि बनाए जाते हैं.

कुओं से निकलने वाले अशोधित पानी में कई तरह के अपशिष्ट पदार्थ होते हैं. इस पानी को मशीनों से साफ कर के दूसरे कामों में उपयोग लायक बनाया जाता है. यह पानी जमीन के साथसाथ इंसानों और पशुओं के लिए भी हानिकारक होता है. इसलिए इस पानी को कहीं फेंका या बहाया नहीं जाता.

कुओं से निकलने वाला क्रूड आयल और अशोधित पानी टैंकरों द्वारा उत्पादन केंद्र से कंपनी के ही कई किलोमीटर क्षेत्र में फैले अलगअलग प्लांटों तक ले जाया जाता है. ये प्लांट मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल में लगे हैं.

क्रूड आयल और अशोधित पानी को उत्पादन केंद्र से मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनपल तक पहुंचाने का ठेका कंपनी ने विभिन्न कंपनियों को दे रखा है. ठेके पर लगे इन टैंकरों पर नजर रखने के लिए कंपनी ने जीपीएस लगा रखे हैं.

जांच में पता चला कि केयर्न इंडिया ने तेल उत्पादन केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों की मिलीभगत से टैंकरों के मालिक, चालक व हेल्पर टैंकरों में अशोधित पानी के बजाय क्रूड आयल भरवा कर लाते थे और टैंकरों के ढक्कन के सील तोड़ कर आसपास की फैक्ट्रियों में बने भूमिगत टैंकों में खाली कर देते थे.

इस के बाद खाली टैंकरों में सादा पानी भर कर ये टैंकर मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पहुंचते और वहां टैंकर का पानी खाली कर देते. केयर्न के तेल उत्पादन केंद्र एवं अनलोडिंग पौइंट पर तैनात कर्मचारियों को इस गोरधंधे का पता था.

पर टैंकर मालिक इन कर्मचारियों को अवैध रूप से मोटी रकम देते थे, इसलिए वे चुप रहते थे. जैसेजैसे जांच आगे बढ़ती गई, अधिकारी हैरान होते गए कि लोगों ने किस तरह चोरी के नएनए रास्ते निकाल लिए थे. जांच में सामने आया कि तेल उत्पादन केंद्र से जो टैंकर मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के लिए जाते थे, वे केवल निश्चित स्थानों पर ही रोके जा सकते थे.

इस की मौनिटरिंग जीपीएस द्वारा की जाती थी. पर गोरखधंधे में लगे टैंकर मालिकों और फैक्ट्री मालिकों ने जीपीएस की मौनिटरिंग में लगे कर्मचारियों से मिल कर इस का भी तोड़ निकाल लिया था. उन्होंने अपनी गाडि़यों, स्कौपियो, स्विफ्ट डिजायर व दुपहिया वाहनों में जीपीएस की पिन का इंस्टालेशन करवा लिया था.

इस के बाद ये लोग टैंकर को रास्ते में धोरीमन्ना और मांगता नामक स्थान के बीच कुछ मिनट के लिए रोक लेते और वहीं पर टैंकर में लगे जीपीएस को पिन से निकाल कर स्कौर्पियो, स्विफ्ट डिजायर या बाइक से जोड़ देते.

इस के बाद टैंकर चालक वहां से तेज गति से टैंकर चला कर उस फैक्ट्री के भूमिगत टैंकों में क्रूड आयल को डाल आते थे, जहां उन की सेटिंग थी. वहीं टैंकर में पानी भर लिया जाता था.

इस के बाद टैंकरों पर जीपीएस को दोबारा इंस्टाल कर दिया जाता था. इस तरह जीपीएस को टैंकर से हटा कर अपनी कार पर लगाने में करीब 40 मिनट का समय मिल जाता था. इस 40 मिनट में ही रोजाना लाखों रुपए के क्रूड आयल को दूसरी फैक्ट्रियों में पहुंचा दिया जाता था.

जिन फैक्ट्रियों में क्रूड आयल पहुंचाया जाता था, वे बख्तरबंद किले से कम नहीं हैं. वहां बाहर से किसी को कुछ नजर नहीं आता. फैक्ट्री में बाहर से हर आनेजाने वाले पर कड़ी निगरानी रहती थी. फैक्ट्री के गेट किसी अपरिचित के लिए नहीं खुलते थे. क्रूड आयल से भरे टैंकर के प्रवेश करते ही फैक्ट्री का गेट बंद कर दिया जाता था.

टैंकर को तत्काल खाली करने और उस में पानी भरने के लिए इलैक्ट्रिक फाइटर का उपयोग किया जाता था. इस में केवल 30 मिनट ही लगते थे.

टैंकर से क्रूड आयल खाली करने के बाद भूमिगत टैंकों पर सैकड़ों पुराने टायरों का ढेर लगा दिया जाता था, ताकि किसी को पता न चल सके कि वहां भूमिगत टैंक बने हुए हैं.

मुकदमों में सौ से अधिक लोग नामजद किए गए हैं. गिरफ्तार किए गए लोगों में एक फैक्ट्री मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित के अलावा ओमप्रकाश, आदूराम, उकाराम, पर्बत सिंह, हुकमाराम एवं सब से पहले 14 जुलाई को पकड़े गए सताराम व धर्माराम शामिल हैं.

अभियुक्तों से की गई पूछताछ में पता चला कि केयर्न इंडिया के तेल उत्पादन केंद्रों से टैंकरों में अशोधित पानी के नाम पर चोरीछिपे भर कर लाए जाने वाले क्रूड आयल को बाड़मेर- अहमदाबाद एनएच-15 पर खेत सिंह के प्याऊ के पास स्थित फैक्ट्री में अपलोड किया जाता था. इस फैक्ट्री के मालिक महाबार के रहने वाले गौतम सिंह एवं भूर सिंह राजपुरोहित हैं.

पुलिस ने इस फैक्ट्री पर दबिश दे कर पुराने टायरों के नीचे अंडरग्राउंड बनाए गए टैंकरों से करीब 3500 लीटर क्रूड आयल बरामद किया. इस कू्रड आयल का रासायनिक परीक्षण केयर्न इंडिया की प्रयोगशाला में कराया गया. इस से पता चला कि यह क्रूड आयल केयर्न इंडिया के आयल फील्ड का ही था. इस संबंध में सदर थाने में भादंवि की धारा 420, 120बी व 3/7 आवयश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया.

जांच में पता चला कि भूर सिंह राजपुरोहित ने इस फैक्ट्री का राजस्थान के वाणिज्यिक कर विभाग में दिसंबर, 2012 में ग्रीनटेक एंटरप्राइजेज के नाम से रजिस्टे्रशन कराया था. इस फर्म ने 5 साल में केवल एक बार रिटर्न भरा. बाकी सालों में कोई माल खरीदा या बेचा नहीं गया. इस फैक्ट्री के एक संचालक का गुजरात में पालनपुर के पास तारकोल प्लांट भी बताया जाता है. वहां से होलसेल सप्लाई के लिए तारकोल बाड़मेर भी आता था.

पुलिस को इस के अलावा एक अन्य फैक्ट्री के बारे में पता चला. यह फैक्ट्री गादान रोड पर थी. पुलिस को यहां भी कंकरीट और टायरों के नीचे 8 भूमिगत टैंक मिले. इन टैंकों में 43 हजार लीटर क्रूड आयल मिला. पुलिस ने इस की जांच कराई तो यह केयर्न इंडिया की साइट सरस्वती-1, सरस्वती-2 एवं आरजीटी से उत्पादित क्रूड आयल निकला.

इसी फैक्ट्री से 150 लीटर अवैध केरोसिन और विशेष रासायनिक पाउडर के 60 कट्टे भी बरामद हुए. इस का उपयोग क्रूड आयल से डीजल बनाने में किया जाता है. पुलिस ने इस संबंध में सदर थाने में भादंवि की धारा 420, 120बी व 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया.

जांच में पता चला कि फैक्ट्री मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित व भूर सिंह राजपुरोहित टैंकर मालिकों से साढ़े 7 रुपए प्रति लीटर की दर से क्रूड आयल खरीदते थे. इसी क्रूड आयल को ये औसतन 25 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से आगे बेच देते थे. इस तरह वे साढ़े 17 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से मुनाफा कमाते थे.

टैंकर मालिक जो क्रूड आयल साढ़े 7 रुपए प्रति लीटर बेचते थे, उस में से साढ़े 3 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से तेल उत्पादन केंद्र पर तैनात केयर्न इंडिया कंपनी के कर्मचारियों को दिया जाता था. इस साढ़े 3 रुपए प्रति लीटर में से एक रुपया प्रति लीटर सर्वेयर को मिलता था और बाकी रकम हेल्पर एवं अन्य कर्मचारियों में बांट दी जाती थी. टैंकर मालिक एमपीटी पर तैनात जीपीएस के कर्मचारियों व सर्वेयर को भी कुछ हिस्सा देते थे.

पुलिस जांच में सामने आया है कि केयर्न इंडिया के आयल फील्ड के दक्षिणी इलाके में नरेंद्र रोडलाइंस एवं श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी के 44 टैंकर लगे हुए थे. प्रारंभिक जांच में इन में से 39 टैंकरों के जरिए क्रूड आयल की चोरी होने की बात सामने आई है. इस के बाद पुलिस ने जीपीएस के कार्डिनेट के माध्यम से 33 टैंकर जब्त कर लिए.

चोरी के क्रूड आयल को निजी फैक्ट्री मालिक टैंकरों में भर कर गुजरात, कोलकाता व अन्य जगहों पर भेजते थे. 22 जुलाई को पुलिस ने जालौर जिले में कू्रड आयल की चोरी के मामले में 3 फैक्ट्रियों पर दबिश दी. इन फैक्ट्रियों में 20 हजार लीटर क्रूड आयल बरामद हुआ. इन फैक्ट्रियों में बाड़मेर से केयर्न इंडिया का चोरी का क्रूड आयल भेजा जाता था.

बाड़मेर एवं जालौर पुलिस ने संयुक्त काररवाई कर जालौर जिले के सांचोर क्षेत्र में बीढ़ाणी स्थित एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में दबिश दे कर टैंकर में भरा 20 हजार लीटर क्रूड आयल जब्त किया. वहीं जालौर के ही सिवाड़ा में कुलदीप ट्रांसपोर्ट कंपनी के बख्तरबंद बाड़े में भूमिगत टैंक में क्रूड आयल मिला. यहां भी क्रूड से डीजल बनाने वाला सफेद रंग का रासायनिक पदार्थ मिला.

उसी दिन बाड़मेर पुलिस ने सदर थाने में दर्ज मामले में 2 लोगों पांचाराम विश्नोई व धौलाराम विश्नोई को गिरफ्तार किया. इन के टैंकर भी केयर्न इंडिया में लगे हुए थे. पुलिस ने इन से 2200 लीटर क्रूड आयल जब्त किया. इन्होंने पूछताछ में पुलिस को बताया कि वे टैंकरों में से आधा क्रूड आयल निकाल कर उस के स्थान पर पानी भर देते थे.

23 जुलाई, 2017 को पुलिस ने बाड़मेर जिले में ही भाड़खा की एक फैक्ट्री अपने कब्जे में ले ली. मामले में नए खुलासे होते रहे तो जिला कलेक्टर के निर्देश पर प्रशासनिक अधिकारियों ने भी जांच शुरू कर दी. वहीं पैट्रोलियम मंत्रालय के स्तर पर भी जांच शुरू कर दी गई.

पुलिस ने 24 जुलाई को केयर्न इंडिया के अधिकारियों को पत्र लिख कर कई तरह के रिकौर्ड मांगे. इतना ही नहीं, पुलिस ने 25 जुलाई को केयर्न इंडिया के प्रोडक्शन हैड मनोज अग्रवाल एवं औपरेशन हैड वाई.के. सिंह से पूछताछ की. दूसरी ओर केयर्न इंडिया ने काररवाई करते हुए 2 कंपनियों श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी व नरेंद्र रोडलाइंस के परिवहन ठेके निरस्त कर दिए. कुछ कंपनियों को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया.

कंपनी के कई स्थाई कर्मचारियों को बर्खास्त करने की काररवाई शुरू कर दी गई. पुलिस ने 26 जुलाई को इस मामले में कांग्रेस के बाड़मेर जिला आईटी सेल के सह कोऔर्डिनेटर मनोज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया.

वह श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैनेजर का काम करता था. पुलिस का कहना है कि मनोज गुर्जर चोरी का क्रूड आयल खरीदने वाली फैक्ट्री के मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित से प्रति टैंकर 10 हजार रुपए की वसूली करता था.

केयर्न इंडिया में किराए के टैंकर उपलब्ध कराने का ठेका श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी एवं नरेंद्र रोडलाइंस ने ले रखा था. श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी बाड़मेर के सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी के चचेरे भाई लालचंद की है. हालांकि बाड़मेर के सांसद कर्नल सोनाराम कहते हैं कि लालचंद रिश्ते में उन के भाई जरूर हैं, लेकिन पिछले 8 सालों से उन दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई है. क्योंकि लालचंद ने सोनाराम की पत्नी व बेटे के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवा रखे हैं. श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी के माध्यम से बाड़मेर रिफायनरी के लिए भूमि अवाप्ति से प्रभावित किसानों एवं कई अन्य ठेकेदारों के टैंकर किराए पर लगे हुए हैं.

कहा जाता है कि श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी में एक भाजपा नेता के रिश्तेदार के टैंकर लगाने की बात पर ठेकेदार से विवाद हो गया था. इस विवाद ने तूल पकड़ लिया. इस के बाद नगाणा थाना पुलिस ने उस नेता की शिकायत पर 14 जुलाई को क्रूड आयल चोरी के मामले में एक टैंकर को पकड़ लिया. इसी शिकायत के बाद क्रूड आयल चोरी के गोरखधंधे का खुलासा हुआ.

इस पूरे मामले में मजेदार बात यह है कि केयर्न इंडिया में दोनों कंपनियों की ओर से जो टैंकर अनुबंध पर लगे थे, उन टैंकरों के मालिक को ठेकेदार हर महीने 50 हजार रुपए किराया देता था. तेल कुओं से कू्रड आयल चोरी कर एमपीटी से बाहर निजी फैक्ट्री तक पहुंचाने पर टैंकर मालिक को हर महीने डेढ़ से दो लाख रुपए तक कमीशन मिल जाता था. कई बार क्रूड आयल की मात्रा अधिक होने पर कमीशन की राशि भी बढ़ जाती थी.

यह बात भी सामने आई है कि क्रूड आयल की चोरी मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल की सीधी पाइप लाइन से नहीं होती थी. पाइप लाइन के जरिए क्रूड आयल सीधे एमपीटी पहुंचता है. इस की मात्रा व सप्लाई का डेटा औनलाइन रहता है. इसलिए वे वैलपैड से क्रूड आयल चुराते थे, क्योंकि वैलपैड का रिकौर्ड आफलाइन रहता है.

एक बात और पता चली है कि वैलपैड से क्रूड आयल टैंकर में भर कर एमपीटी में खाली करने का रूट करीब 60 किलोमीटर लंबा है. ऐसे में जीपीएस सिस्टम से दूरी 60 किलोमीटर दिखानी होती थी. गुढ़ामलानी क्षेत्र के वैलपैड से क्रूड आयल के टैंकर एनएच-15 से होते हुए मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पहुंचते थे.

इस के लिए गोरखधंधे में लिप्त लोगों ने खेत सिंह की प्याऊ के पास निजी फैक्ट्री लगा रखी थी. वहीं भाड़खा क्षेत्र में आने वाले वैलपैड से चलने वाले टैंकरों का क्रूड खाली करने के लिए भीमड़ा के पास दूसरी फैक्ट्री लगाई गई, ताकि रूट के बीच में ही टैंकर खाली हो जाए और किसी बाहरी व्यक्ति को पता न चले.

तेल एवं प्राकृतिक गैस राष्ट्रीय संपत्ति है. इन के दोहन से सरकार को भी अरबों रुपए का राजस्व मिलता है. राजस्थान विधानसभा में पेश की गई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सन 2015 में बाड़मेर जिले में प्रतिदिन एक लाख 74 हजार बैरल खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा था. इस से राज्य सरकार को सन 2014-15 के दौरान रायल्टी के रूप में औसतन 400 करोड़ रुपए प्रति माह एवं भारत सरकार को पैट्रोलियम सैस एवं एनसीसीडी के रूप में औसतन 416 करोड़ रुपए प्रति माह का राजस्व मिल रहा था.

बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. राजनीतिक दबाव के कारण केयर्न इंडिया के बड़े अफसरों व नेताओं के रिश्तेदारों के खिलाफ काररवाई नहीं की जा रही है. जैन ने बायतू विधायक कैलाश चौधरी की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं.

जैन का आरोप है कि बायतू विधायक जिस गाड़ी में घूमते हैं, वह रेवंतराम की है और उसी के टैंकर लगाने को ले कर विवाद हुआ था. इस के बाद बायतू विधायक की शिकायत पर ही क्रूड आयल से भरा टैंकर पकड़ा गया था और पूरे मामले का भंडाफोड़ हुआ था. विधायक श्री जैन का कहना है कि काल डिटेल्स की जांच कराई गई तो मामले में कई अहम खुलासे होंगे.

बाड़मेर विधायक जैन ने अप्रैल, 2015 में राजस्थान विधानसभा में केयर्न इंडिया की साइटों से क्रूड आयल चोरी का मामला उठाया था. इस पर सरकार ने जवाब दिया था कि एक अक्तूबर, 2014 से 28 फरवरी, 2015 तक बाड़मेर जिले के 4 थानों में 4 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इन में 49 हजार लीटर क्रूड आयल बरामद हुआ था. इन मामलों में 10 लोग मुलजिम थे.

दूसरी ओर बायतू विधायक कैलाश जैन की ओर से लगाए आरोपों को मिथ्या व निराधार बताते हुए कहा कि कांग्रेस के लोग इस में लिप्त हैं, इसलिए वे इस तरह के अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. विधायक चौधरी ने इस मामले में दिल्ली जा कर केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान से मुलाकात की और पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की.

बहरहाल, काले सोने की चोरी के इस गोरखधंधे में एक ओर जहां राजनीति चल रही है, वहीं एसओजी ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है. एसओजी इस मामले में कई बड़े लोगों पर हाथ डाल सकती है. लेकिन सरकार को क्रूड आयल की चोरी से अब तक जो करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हुई है, उस की भरपाई कभी नहीं होगी. दूसरी ओर इस गोरखधंधे के उजागर होने से केयर्न इंडिया जैसी नामी कंपनियों की सुरक्षा की पोल खुल गई है.

– कहानी पुलिस सूत्रों व अन्य दस्तावेजों पर आधारित

बच्चे की चाहत में

रोजाना की तरह 25 सितंबर, 2017 की सुबह भी मानव और शिवम की मां रजनी ने दोनों को तैयार कर के स्कूल भेजा था. स्कूल साढ़े 8 बजे शुरू होता था, इसलिए दोनों भाई 8 बज कर 10 मिनट पर घर से निकले थे. स्कूल से आ कर दोनों बच्चे खाना खाते थे और थोड़ी देर खेल कर सो जाते थे.

रजनी का पति अशोक अपना लंच बौक्स साथ ले जाता था. वह भवनों की मरम्मत के छोटेमोटे ठेके लिया करता था. सुबह का निकला अशोक दिन ढले ही घर लौटता था.

बच्चों के जाने के बाद रजनी ने घर के काम निपटाए, फिर बच्चों के लिए दोपहर का खाना तैयार किया. दोपहर को जब उन के आने का समय हो गया तो वह दरवाजे पर खड़ी हो कर उन का इंतजार करने लगी. जब बच्चे अपने आने के समय से भी आधा घंटा बाद तक नहीं आए तो रजनी को चिंता हुई.

परेशान हाल रजनी घर में ताला लगा कर बच्चों के स्कूल जा पहुंची. वहां मालूम पड़ा कि उस रोज मानव और शिवम स्कूल आए ही नहीं थे. यह सुन कर रजनी ठगी सी रह गई.

सुबह घर से स्कूल के लिए निकले बच्चे, वहां नहीं पहुंचे तो कहां चले गए. निस्संदेह यह चिंता की बात थी. उस का पति काम पर गया हुआ था, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. रजनी अपने कुछ परिचितों के साथ बच्चों की तलाश के लिए निकली भी. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी बच्चों का कहीं कोई पता नहीं चला. आखिर थकहार कर उस ने थाने में उन के गुम होने की रिपोर्ट लिखा दी.

रजनी की शिकायत पर रोपड़ के थाना सिटी में बच्चों की गुमशुदगी की डीडीआर दर्ज कर ली गई. पुलिस ने बच्चों की तलाश को कोशिश भी की.

सफलता न मिलने पर अगले दिन इस मामले में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया. साथ ही यह सूचना दूसरे थानों को भी दे दी गई. पुलिस ने बच्चों के फोटो और विवरण सहित इश्तिहार छपवा कर रोपड़ व आसपास के इलाके की दीवारों पर चिपकवा दिए.

जिले के एसएसपी कैप्टन राजबचन सिंह संधू ने इस मामले को गंभीरता से ले कर इस की जांच डीएसपी (एच) मनवीर सिंह बाजवा को सौंप दी. उन्होंने 2 दिन तक गहनता से जांच की. लेकिन सफलता नहीं मिली. अंतत: एसएसपी ने यह केस रोपड़ पुलिस की सीआईए ब्रांच के हवाले कर दिया.

सीआईए के इंचार्ज अतुल सोनी ने केस की फाइल हाथ में आते ही उस की स्टडी कर के एक अलग स्ट्रेट्जी बनाई. इस के तहत उन्होंने बच्चों की मां रजनी से विस्तृत बातचीत कर उस की जिंदगी का एकएक पन्ना खंगालने का प्रयास किया.

35 वर्षीय रजनी ने अपनी जिंदगी में इतने ज्यादा उतार चढ़ाव देखे थे जिन की कल्पना करना भी मुश्किल था. 16 साल की उम्र में उस की शादी बलवंत नामक शख्स से हो गई थी, जिस से उसे एक लड़की जिया पैदा हुई. लेकिन कुछ दिन बाद ही उस के पति की मौत हो गई. इस के बाद उस की शादी रमेश से कर दी गई. शादी के कुछ समय बाद रमेश की भी मृत्यु हो गई.

रजनी की तीसरी शादी बलदेव नाम के आदमी से हुई. बलदेव से उसे 2 लड़के हुए मानव और शिवम. बाद में बलदेव से रजनी का तलाक हो गया. थोड़े दिन बाद रजनी मनोज के संपर्क में आई, जो उसे उस के बच्चों सहित अपने साथ तो रखे रहा, लेकिन यह लिव इन रिलेशन की तरह था. मनोज ने उस के साथ वैवाहिक बंधन में बंधने से साफ इनकार कर दिया था.

रजनी की चौथी शादी अशोक कुमार उर्फ पिंटू से हुई. वह इस के लिए हर लिहाज से बेहतर साबित हुआ. उस ने रजनी की बेटी जिया की शादी करवाने में पूरा सहयोग दिया. साथ ही उस ने मानव और शिवम को पढ़ानेलिखाने का जिम्मा भी उठाया. वह अकसर रजनी से कहा करता था कि उसे दिनरात कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े, वह उस के बच्चों को जिंदगी में कोई कमी नहीं आने देगा. यही नहीं वह उन्हें पढ़ालिखा कर समाज में सलीके से जीने लायक भी बनाएगा.

मानव और शिवम से अशोक प्यार भी करता था. 24 मार्च, 2017 को मानव 9 वर्ष का हुआ तो उस ने खूब अच्छी तरह से उस का जन्मदिन मनाया. इसी तरह 20 जुलाई को 6 साल का होने पर उस ने शिवम का भी खूब अच्छे से जन्मदिन मनाया.

अपने बच्चों को सौतेले बाप का भरपूर प्यार मिलते देख रजनी बहुत खुश थी. वैसे भी वह सोचा करती थी कि इन 2 लड़कों के भविष्य पर ही ध्यान केंद्रित करेगी और आगे एक भी बच्चे के बारे में नहीं सोचेगी. यही वजह थी कि पति से संबंध बनाने में वह काफी सावधानी बरतती थी. सावधानी के लिए वह नलबंदी करवाने की इच्छुक थी.

इस संबंध में जब उस ने अशोक से बात की, तो वह भड़क उठा, ‘‘बच्चे चाहे 6 और हो जाएं, लेकिन मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मुझे अपने खुद के बच्चे भी तो चाहिए.’’

‘‘तो मानव और शिवम किस के बच्चे हैं, ये भी तो तुम्हारे ही हैं.’’ रजनी ने भी थोड़ा खफा होते हुए कह दिया.

‘‘देखो, मेरी भावना को समझने की कोशिश करो. मानव और शिवम को मैं बाप का प्यार दे रहा हूं तो इस का यह मतलब नहीं है कि वह मेरे बच्चे हो गए.’’ अशोक ने कहा.

‘‘क्यों, ऐसे तो कल को तुम मुझ से भी कह दोगे कि तुम मुझे पति का प्यार दे रहे हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी पत्नी हो गई.’’ रजनी भी उसी अंदाज में बोली.

‘‘देखो, फालतू बहकीबहकी बातें मत करो. मैं ने तुम से प्यार किया है और बाकायदा शादी कर के तुम्हें पत्नी बनाया है.’’

‘‘जब मुझे हमेशा के लिए अपनी बना लिया तो मेरे बच्चे भी तुम्हारे हो गए. उन्हें अपनाने में अब कैसी हिचक?’’

‘‘रजनी, मैं ने तुम्हारे बच्चों को अपनाया हुआ है और उन का भविष्य बनाने में पीछे हटने वाला भी नहीं हूं. लेकिन इन के साथसाथ मुझे अपना खुद का बच्चा भी तो चाहिए. भले ही एक हो. उस के बाद तुम क्या, मैं ही अपनी नसबंदी करवा लूंगा. इस के लिए तुम्हें मुझे सहयोग देना ही पड़ेगा.’’ अशोक ने आखिर की 2 बातों पर जोर देते हुए कहा.

इस सब के लिए रजनी तैयार नहीं हुई.

उस का कहना था कि आज की महंगाई के दौर में 2 बच्चों का खर्च उठाना ही मुश्किल है. फिर लड़की की शादी पर उठाया गया कर्ज भी अभी पूरी तरह नहीं उतरा है. ऐेसे में 1 और बच्चा आ जाने से उन्हें कई किस्म की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. लिहाजा वह किसी भी कीमत पर अशोक से सहमत नहीं हुई.

‘‘इस बात को ले कर हम दोनों में थोड़ी बहुत तकरार जरूर रहने लगी थी, लेकिन मैं अशोक को अच्छी तरह जानती हूं. वह मुझे नुकसान पहुंचाने जैसा कभी कुछ नहीं करेगा.’’ रजनी ने अपने बयान में इंसपेक्टर अतुल सोनी को बताया.

अतुल सोनी ने यह बात एसएसपी संधू को बताई. इस पर उन्होंने इस मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए इंसपेक्टर सोनी को दिशानिर्देश दिया, ‘मेरा शक अशोक पर ही जा रहा है. तुम जरा इस के बारे में पता लगाने की कोशिश करो, मुखबिरों का भी सहारा लो.’

सोनी ने ऐसा ही किया. पता चला कि 25 सितंबर की शाम जब अशोक काम से लौटा था तो दोनों बच्चों के गुम हो जाने की बात सुन कर वह भी पत्नी और अन्य लोगों के साथ बच्चों की तलाश करने निकला था. यहां तक कि रिपोर्ट लिखवाने वह थाने भी आया था.

लेकिन इस के अगले दिन एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद वह यह कहते हुए घर से चला गया था कि बच्चों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए वह एक तांत्रिक के पास जा रहा है.

उसी दिन थाना सिटी में एक अज्ञात फोन भी आया. फोन करने वाले ने बताया कि रजनी के बच्चों को उस के पूर्व प्रेमी मनोज ने अपहृत कर के मौत के घाट उतार दिया है. मनोज को थाना ला कर उस से इस संबंध में व्यापक पूछताछ की गई. लेकिन पूछताछ में वह निर्दोष पाया गया.

इंसपेक्टर अतुल सोनी ने एक पुलिस पार्टी अशोक के गांव बवैते जिला ऊना, हिमाचल प्रदेश भेज दी थी. यह पार्टी उस की तलाश में पूछताछ करते हुए एक तांत्रिक के यहां जा पहुंची. तांत्रिक ने पुलिस को बताया कि अशोक उस का जानकार है और वह उस के पास आया भी था.

उस ने पूछा था कि किसी ने उस की बीवी के पहले के 2 लड़कों का अपहरण कर के उन्हें मार डाला है. इस आरोप में कहीं वह तो नहीं फंस जाएगा? उस की इस बात से तांत्रिक इतना डर गया था कि उस ने अशोक को किसी तरह टरकाते हुए अपने यहां से भगा दिया था.

लेकिन घर वापस लौटने के बजाए अशोक भूमिगत हो गया था.

पुलिस ने उस की तलाश में छापेमारी करने के साथसाथ कई मुखबिर भी उस की खबर लाने के लिए लगा दिए थे. इन प्रयासों में पुलिस को सफलता भी मिली. 28 सितंबर को अशोक पुराना रोपड़ से पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस से पहला प्रश्न यही पूछा गया कि 25 सितंबर की सुबह वह कहां था?

उस ने बताया कि उस रोज वह सुबह साढ़े 8 बजे सनसिटी सोसाइटी जा कर अपने काम से लग गया था. उस के इस बयान की सत्यता की जांच करने के लिए जब सनसिटी के अधिकारियों से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस रोज वह साढ़े 8 बजे नहीं, बल्कि दिन के साढ़े 10 बजे सनसिटी पहुंचा था. इस से पहले वह हमेशा सुबह के साढ़े 8 बजे वहां पहुंच जाता था. 25 सितंबर को वह पहली बार 2 घंटे देरी से आया था.

अशोक संदेह के दायरे में आ गया था. उसे सीआईए केंद्र के इंटेरोगेशन सैल में ले जा कर उस से अभी थोड़ी ही पूछताछ हुई थी कि उस ने दोनों हाथ जोड़ कर अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. फिर बताया कि उस ने ही रजनी के दोनों बच्चों को मार कर उन के शव पानी में फेंक दिए थे, जिन्हें वह बरामद करवा सकता है.

पुलिस ने अशोक को विधिवत गिरफ्तार कर के हवालात में बंद कर दिया

अगले रोज उसे इलाका मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 4 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. रिमांड की इस अवधि में सीआईए इंसपेक्टर अतुल सोनी के अलावा एसएसपी राजबचन सिंह सिंधू ने भी उस से व्यापक पूछताछ की. इस पूछताछ में अशोक ने जो कुछ बताया, उस से इस मामले की दर्दनाक दास्तान कुछ इस तरह सामने आई.

अशोक कुमार उर्फ पिंटू गांव बवैते में रहने वाले रामकिशन का बेटा था. गुजारे लायक पढ़लिख लेने के बाद एक रोज पिता से झगड़ा कर के वह रोपड़ चला आया.

उस वक्त उस की उम्र महज 13 वर्ष थी. 4 दिनों तक वह रोपड़ के रेलवे स्टेशन पर ही रुका रहा. फिर रोपड़ में किसी के यहां घरेलू नौकर बन गया. करीब 6-7 साल इसी तरह निकल गए. जिन के घर वह नौकरी करता था, उन का ठेकेदारी का काम था. नौकरी छोड़ कर अशोक भी स्वतंत्र रूप से यही काम करने लगा.

आगे के 5 सालों में उस ने ठेकेदारी का अपना अच्छा काम जमा लिया. रहने को उस ने बेला चौक एरिया में मकान ले लिया.

करीब 2 साल पहले की बात है. एक रोज अचानक उस की मुलाकात रजनी से हुई. उस ने एक दुकान पर कुछ सामान वगैरह खरीदा था, जिस की बिल अदायगी के लिए उस के पास पैसे कम पड़ रहे थे.

वह दुकानदार से बकाया पैसा अगले दिन दे जाने की बात कह रही थी. दूसरी ओर दुकानदार इस के लिए मना करते हुए उसे समझा रहा था कि वह फिलहाल उतना ही सामान ले जाए. जितने उस के पास पैसे हैं. वह थोड़ा रुखाई से भी पेश आ रहा था.

अशोक भी उसी दुकान पर कुछ खरीद रहा था. रजनी को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गया. उस ने उस के द्वारा खरीदे गए सामान का पूरा बिल चुकता कर दिया.

इस के बाद दोनों अकसर मिलने लगे. देखतेदेखते दोनों में प्यार हो गया. धीरेधीरे जिस्मानी ताल्लुक भी बन गए, जिस में रजनी ने पूरी तरह ऐहतियात बरती. एक रोज उस ने अशोक को अपनी पिछली जिंदगी के बारे में विस्तार से बता दिया. रजनी की दास्तान सुन कर अशोक को झटका लगा. उस की जिंदगी में पहले ही 4-4 मर्द आ चुके थे और वह 3 बच्चों की मां भी थी.

मगर अब तक वह उस के मोहपाश में बंध चुका था. उसे वह खूबसूरत भी लगती थी. आखिर उस ने मंदिर में रजनी से विवाह रचा लिया. उस के बच्चों का जिम्मा भी उस ने अपने ऊपर ले लिया.

विवाह के बाद अशोक को शारीरिक सुख देने में रजनी ने कोई कसर नहीं छोडी. मगर उसे गर्भ न ठहरे, इस की सावधानी भी वह रखे हुए थी. कुछ अरसा अशोक उस के दैहिक आकर्षण में इस कदर पागल रहा कि उस ने इस सब की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मगर साल भर बीतते ही उस के मन में अपने खुद के बच्चे की इच्छा जागृत होने लगी.

रजनी और कोई बच्चा नहीं चाहती थी. वह सोचती थी कि महंगाई के इस दौर में ज्यादा बच्चें की परवरिश करना मुश्किल हो जाता है. वह अपनी जगह एकदम सही थी. लेकिन अशोक भावुकता में बह कर इस जिद पर अड़ गया कि रजनी से वह अपना खुद का बच्चा भी हासिल कर के रहेगा.

इस मुद्दे पर दोनों में झगड़ा रहने लगा. पहले रजनी रात में बच्चों का सुला कर अशोक के पास चली आया करती थी. मगर अब वह ज्यादातर बच्चों के साथ, उन के बीच में सोने लगी. बहरहाल वक्त आगे सरकता गया. इस दौरान अशोक के मन में यह बात घर करने लगी कि रजनी को केवल अपने बच्चों से प्यार है.

जब तक उस के बच्चे जिंदा हैं, वह मन से उस की नहीं हो सकती. लिहाजा उस ने दोनों बच्चों को मारने की योजना बना ली.

इस योजना के तहत 25 सितंबर, 2017 की सुबह वह घर से पैदल निकला और सिविल हास्पीटल के पिछली तरफ रहने वाले अपने दोस्त सद्दाम हुसैन की स्प्लेंडर मोटरसाइकिल ले कर मानव और शिवम के स्कूल की ओर जाने वाले रास्ते पर रुक गया. थोड़ी देर में उसे दोनों बच्चे पैदल आते दिखाई दे गए.

अशोक ने उन्हें यह कह कर मोटरसाइकिल पर बिठा लिया कि आज वह उन्हें मछलियां दिखाने नदी पर ले जाएगा और बोटिंग भी करवाएगा, इसलिए स्कूल से छुट्टी.

बच्चे खुश हो गए. अशोक इन्हें मोटरसाइकिल पर बिठा कर रोपड़ के साथ लगते सतलुज नदी के एक किनारे पर ले गया. नदी के उत्तर दिशा की तरफ बने बांध के पास ले जा कर उस ने दोनों बच्चों को पानी में फेंक दिया. बाद में उस ने उस जगह से करीब 100 कदम की दूरी पर जंगल में बच्चों के स्कूल बैग छिपा दिए.

पूछताछ के दौरान अशोक की निशानदेही पर पुलिस ने दोनों बच्चों के शवों के अलावा उन के स्कूल बैग भी बरामद कर लिए. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर पुलिस ने अशोक को फिर से अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भिजवा दिया. फिलहाल, वह पटियाला की केंद्रीय जेल में बंद था.?

   — कथा पुलिस सूत्रो पर आधारित

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