शर्मनाक : हवस के पुजारी

10 मार्च, 2016 की सुबह सैकड़ों लोग भोपाल के पौश इलाके टीटी नगर के कस्तूरबा स्कूल के सामने बने शीतला माता मंदिर के इर्दगिर्द इकट्ठा हो रहे थे. उस दिन वहां कोई धार्मिक जलसा नहीं हो रहा था और न ही यज्ञहवन या भंडारा था. भीड़ गुस्से में थी. कुछ लोगों के हाथ में लोहे के सरिए थे.

देखते ही देखते लोगों ने मंदिर के पीछे बनी दीवार तोड़ डाली, जो इस मंदिर के 58 साला पुजारी राजेंद्र शर्मा के घर की थी.

अभी भीड़ तोड़फोड़ कर ही रही थी कि दनदनाती हुई पुलिस की गाडि़यां आ खड़ी हुईं. पुलिस वाले नीचे उतरे और भीड़ को तितरबितर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन के पास लोगों खासतौर से औरतों के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि जब परसों उन की बेटी की इज्जत इसी मंदिर में लुट रही थी, तब पुलिस कहां थी?

इस सवाल के जवाब से ज्यादा अहम पुलिस वालों के लिए यह था कि भीड़ पुजारी के घर को और ज्यादा नुकसान न पहुंचा पाए, लिहाजा, पुलिस वालों ने औरतों को समझाया और 4 लोगों को तोड़फोड़ और बलवे के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.

यों फंसाया शिकार

कस्तूरबा नगर में झुग्गीझोंपडि़यां भी काफी तादाद में हैं. यहां के बाशिंदों की अपनी अलगअलग परेशानियां हैं, जिन्हें दूर करने वे इस मंदिर में अपना माथा झुकाने आया करते थे.

मंदिर का पुजारी राजेंद्र शर्मा नकद चढ़ावा और प्रसाद बटोरता था और इस के एवज में भगवान की तरफ से गारंटी भी देता था कि यों ही चढ़ावा चढ़ाते रहो, आज नहीं तो कल जब भी तुम्हारी बारी आएगी, भगवान जरूर सुनेगा और परेशानी दूर करेगा.

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ऐसी ही एक हैरानपरेशान औरत ललिता बाई (बदला नाम) थी, जिस का पति जगन्नाथ प्रसाद (बदला नाम) शराब की लत का शिकार हो कर निकम्मा हो चला था.

नशे में धुत्त रहने वाले जगन्नाथ को घरगृहस्थी तो दूर की बात है, जवान हो रही बेटी आशा (बदला नाम) की भी चिंता नहीं थी कि वह 12 साल की हो रही है और जैसेतैसे 5वीं जमात तक पहुंची है.

ललिता की चिंता यह थी कि अगर पति ने नशा करना नहीं छोड़ा, तो बेटी के हाथ पीले करना मुश्किल हो जाएगा.

काफी समझाने के बाद भी जगन्नाथ की शराब की लत नहीं छूटी, तो ललिता उसे मंदिर ले गई और पुजारी राजेंद्र शर्मा के आगे अपना दुखड़ा रोया.

पुजारी राजेंद्र शर्मा तो मानो इसी दिन का इंतजार कर रहा था. उस ने ललिता को एक टोटका बता दिया कि रोजाना मंदिर में दीया लगाओ, तो जगन्नाथ की शराब की लत छूट सकती है.

इस मशवरे के पीछे इस पुजारी की मंशा यह थी कि जगन्नाथ के घर से रोज दीया रखने तो ललिता आने से रही, क्योंकि माहवारी के दिनों में औरतें मंदिर में पैर रखना तो दूर की बात है, नजदीक से भी नहीं गुजरतीं. ऐसे में जाहिर है कि कभी न कभी ललिता अपनी बेटी आशा को भेजेगी और तभी वह अपनी हवस की आग बुझा लेगा.

और ऐसा हुआ भी. 8 मार्च, 2016 की शाम को दीया रखने आशा आई, तो ललिता की तो नहीं, पर राजेंद्र शर्मा की मुराद पूरी हो गई. जैसे ही आशा ने दीया लगाया, तो राजेंद्र ने उसे मंदिर की एक परिक्रमा लगाने को भी कहा.

आशा ने मंदिर का चक्कर लगाया और मंदिर के सामने आ खड़ी हुई. इस पर राजेंद्र ने उसे एक और दीया मंदिर के भीतर आ कर लगाने को कहा. जैसे ही वह दीया लगाने मंदिर के अंदर गई, तो हवस के इस पुजारी ने उसे खींच लिया और इज्जत तारतार कर दी.

अपनी हवस पूरी करने के बाद राजेंद्र शर्मा ने रोतीकराहती आशा को धमकी दी कि अगर किसी को कुछ बताया, तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.

घर आ कर आशा ने मां ललिता को अपने साथ मंदिर में हुई ज्यादती की बात बताई, तो ललिता का खून खौल गया. ललिता ने कुछ खास लोगों को बात बता कर सीधे थाने का रुख किया.

मंदिर की तरह थाने में भी ललिता की सुनवाई नहीं हुई और मौजूदा पुलिस वाले उसे टरकाने की कोशिश करते हुए रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करने लगे, पर अब तक महल्ले के काफी लोग थाने के बाहर जमा हो चुके थे. लिहाजा, पुलिस को पुजारी राजेंद्र शर्मा के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखनी पड़ी और उसे गिरफ्तार भी करना पड़ा.

दूसरे दिन 9 मार्च, 2016 को जैसे ही मंदिर में नाबालिग से बलात्कार की खबर आम हुई, तो लोगों ने जीभर कर पुजारी राजेंद्र शर्मा को कोसा, लेकिन यह कम ही लोगों ने सोचा कि मंदिर में बैठी शीतला माता ने क्यों नहीं आशा की इज्जत बचाई? क्यों फिल्मों की तरह उस का त्रिशूल उड़ कर राजेंद्र शर्मा की छाती में जा घुसा? क्यों किसी सांप ने आ कर उसे नहीं डसा, जो मंदिर में हैवानियत कर रहा था?

ऐयाशी के अड्डे

देवी ने कुछ नहीं किया, तो 10 मार्च, 2016 को गुस्साए लोगों ने ही इंसाफ करने की ठान ली, पर पुलिस बीच में आ गई, तो मामला आयागया हो गया.

लेकिन यह हादसा कई सच उजागर कर गया कि मंदिर बलात्कार करने के लिए महफूज जगह है, क्योंकि ये भगवान के घर हैं, इसलिए यहां कुछ गलत नहीं हो सकता. लेकिन हकीकत में मंदिर हमेशा से ही पंडेपुजारियों की ऐयाशी के अड्डे रहे हैं.

घनी बस्तियों में बने मंदिरों में तो दुकानदारी के खराब होने के डर से थोड़ाबहुत लिहाज चलता है, पर शहर से दूर सुनसान और नदी किनारे बने मंदिरों में शाम होते ही चिलम सुलग उठती है और गांजे के धुएं से पूरा माहौल ही गंधाने लगता है. दिनभर तो साधुसंत घरघर जा कर भीख मांगते हैं और शाम को अफीमगांजा और शराब के सेवन से अपनी थकान उतारते हैं.

भोपाल की बस्तियों में बने नाजायज मंदिरों पर कब्जा जमाने की नीयत से ज्यादातर पुजारी वहीं पर ही घर बना कर रहने लगे हैं, क्योंकि जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं और अहम बात यह कि अगर इलाका रिहायशी हो, तो दुकान खुद ब खुद चल पड़ती है.

लोग सुबहशाम मंदिर का घंटा बजाते हैं, पैसाप्रसाद चढ़ाते हैं और पुजारी की भी खासी इज्जत करते हैं, क्योंकि वही उन्हें बताता है कि किस उपाय से कौन सा दुख दूर होगा.

पति जगन्नाथ की शराब पीने की आदत तो इस से नहीं छूटी, उलटे नाबालिग बेटी की इज्जत देवी की आंखों के सामने तारतार होते लुट गई. इस से कुछ लोगों की आंखें खुलीं, तो उन्होंने बलवा कर डाला, जो समस्या का हल नहीं कहा जा सकता.

समस्या का हल है भगवान और उस का राग अलाप कर दोनों हाथों से पैसा बटोरते पंडेपुजारियों की असलियत समझना कि देवी या देवता कुछ नहीं कर सकते, लेकिन इन की आड़ में पुजारी जो न करे सो कम है.

सालभर मंदिरों में धार्मिक जलसे हुआ करते हैं. गरीबों से कहा जाता है कि भगवान सभी की गरीबी दूर करेगा. ऐसा होता तो अब तक देश में एक भी गरीब न बचता, लेकिन चढ़ावे के चक्कर में गरीब हर तरफ से लुटपिट रहा है और उन की औरतों की इज्जत ये पुजारी कैसे करते हैं, भोपाल की 2 वारदातों ने इसे उजागर किया है.

हालांकि आसाराम बापू जैसे भी नाबालिग लड़की की इज्जत अपने आश्रम में ही लूटने के इलजाम में जेल की सजा काट रहे हैं, पर उन से यह सबक कौन सीखता है कि मंदिर जाने से पाप नहीं धुलते, बल्कि पाप होने देने के मौके बढ़ जाते हैं.

यह भी बनी शिकार

दानदक्षिणा लेकर भक्तों के लोकपरलोक सुधरवाने का दावा करने वाले पुजारियों का खुद का लोक कितना बिगड़ा होता है, इस की एक और मिसाल भोपाल में ही 15 मार्च, 2016 को देखने में आई.

38 साला गोमती (बदला नाम) को उस के पति ने तलाक दे दिया था, इसलिए वह रोजगार और काम की तलाश में रायसेन से भोपाल चली आई और बाग दिलकुशा इलाके में किराए के मकान में रहने लगी. घर के पास बने मंदिर में गोमती रोज जाने लगी, तो पुजारी दुर्गा प्रसाद दुबे ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया और 6 साल तक उस का जिस्मानी शोषण किया. इस के एवज में शादी का वादा भी किया.

पर जब दुर्गा प्रसाद दुबे का जी गोमती से भरने लगा, तो वह शादी के वादे से मुकरने लगा. घरों में झाड़ूपोंछा और बरतनकपड़े धो रही गोमती जैसेतैसे अपने जवान होते बेटे का पेट पालती थी. वह पुजारी की बीवी बनने का सपना देखने लगी थी. जब यह ख्वाब टूटा, तो वह भी सीधे थाने गई और पुजारी की ज्यादतियों और देह शोषण के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने दुर्गा प्रसाद दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

प्रीत या नादानी : इश्क के चक्कर में हत्या

दिल्ली-अमृतसर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जालंधर से करीब 50 किलोमीटर पहले ही जिला जालंधर की तहसील है थाना फिल्लौर. इसी थाने का एक गांव है शाहपुर. इसी गांव के 4 छात्र थे- हनी, रमेश उर्फ गगू, तजिंदर उर्फ राजन और निशा. 15 से 17 साल के ये सभी बच्चे फिल्लौर के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे.

एक ही गांव के होने की वजह से इन सभी का आपस में गहरा लगाव था. साथसाथ खेलना, साथसाथ खाना, साथसाथ पढ़ने जाना. लेकिन ज्योंज्यों इन की उम्र बढ़ती गई, त्योंत्यों इन के मन में तरहतरह के विचार पैदा होने लगे.

हनी के घर वालों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, जबकि रमेश और राजन अच्छे परिवारों से थे. हनी के पिता हरबंसलाल की फिल्लौर बसअड्डे के पास फ्लाई ओवर के नीचे पंचर लगाने की छोटी सी दुकान थी. उसी दुकान की आमदनी से घर का खर्चा चलता था.

जबकि राजन और रमेश के पिता के पास खेती की अच्छीखासी जमीनों के अलावा उन का अपना बिजनैस भी था. इसलिए राजन तथा रमेश जेब खर्च के लिए घर से खूब पैसे लाते थे और स्कूल में अन्य दोस्तों के साथ खर्च करते थे.

शुरुआत में निशा हनी के साथ ज्यादा घूमाफिरा करती थी, पर बाद में उस का झुकाव रमेश की ओर से हो गया. धीरेधीरे हालात ऐसे बन गए कि इन चारों छात्रों के बीच 2 ग्रुप बन गए. एक ग्रुप में अकेला हनी रह गया था तो दूसरे में राजन, रमेश और निशा.

रमेश और निशा अब हर समय साथसाथ रहने लगे थे. दोनों के साथ राजन भी लगा रहता था. तीनों ही साथसाथ फिल्म देखने जाते. हनी को एक तरह से अलग कर दिया गया था. इस बात को हनी समझ रहा था. निशा ने हनी से मिलनाजुलना तो दूर, बात तक करना बंद कर दिया था.

एक दिन हनी ने फोन कर के निशा से कहा, ‘‘हैलो जानेमन, कैसी हो और इस समय क्या कर रही हो?’’

‘‘कौन…हनी?’’ निशा ने पूछा.

‘‘और कौन होगा, जो इस तरह तुम से बात करेगा. मैं हनी ही बोल रहा हूं.’’ हनी ने कहकहा लगाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम इस समय कहां हो? आज हमें पिक्चर देखने चलना है.’’

‘‘हनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुकी हूं कि मुझे फोन कर के डिस्टर्ब मत किया करो. मैं तुम से कोई वास्ता नहीं रखती, फिर भी तुम मुझे परेशान करते हो. आखिर क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा…?’’ निशा ने झुंझलाते हुए कहा.

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‘‘अरे डार्लिंग, परेशान मैं नहीं, तुम कर रही होे. आखिर तुम्हें मेरे साथ फोन पर दो बातें करने में इतनी तकलीफ क्यों होती है, जबकि दूसरे लड़कों के साथ आवारागर्दी करती रहती हो. तब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होती.’’ हनी ने कहा तो उस की इन बातों से निशा खामोश हो गई. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘सुनो हनी, तुम जिन लड़कों की बात कर रहे हो, वे मेरे दोस्त हैं. अब तुम यह बताओ, मैं किसी के भी साथ घूमूंफिरूं, इस में तुम्हें क्या परेशानी है? यह मेरी मरजी है. मेरे दोस्त सभ्य परिवारों से हैं, समझे.’’

निशा की बात सुन कर हनी को गुस्सा तो बहुत आया, पर कुछ सोच कर उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘हां, सही कह रही हो. भला मैं कौन होता हूं. पर तुम शायद यह भूल गई कि तुम और तुम्हारे जो दोस्त हैं, वे मेरे ही गांव के हैं.’’

‘‘इस का मतलब तुम मुझे धमकी दे रहे हो?’’ निशा ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘मैं तुम्हें कोई धमकी नहीं दे रहा. तुम ना जाने क्यों नाराज हो रही हो.’’ हनी ने कहा.

इस के बाद निशा थोड़ा नार्मल हुई तो हनी ने कहा, ‘‘अरे पगली, मुझे इस से कोई ऐतराज नहीं है. तुम किसी के साथ भी घूमोफिरो. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि थोड़ा टाइम मुझे भी दे दिया करो. बात यह है कि आज मैं ने पिक्चर का प्रोग्राम बनाया है. तुम मेरे साथ पिक्चर देखने जालंधर चलो. मैं फिल्लौर बसअड्डे पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं आ रही हूं, लेकिन आइंदा जो भी प्रोग्राम बनाना, मुझ से पूछ कर बनाना.’’ निशा ने कहा.

‘‘ओके जानेमन, मैं आइंदा से ध्यान रखूंगा. तुम टाइम पर बसअडडे आ जाना. बाकी बातें वहीं करेंगे.’’ हनी ने कहा.

निशा समझ गई कि हनी उसे ब्लैकमेल कर रहा है, इसलिए न चाहते हुए भी मजबूरी में उसे उस के साथ फिल्म देखने जाना पड़ा. इस के बाद यह नियम सा बन गया.

हनी जब भी निशा को बुलाता, न चाहते हुए भी उसे उस की बात माननी पड़ती. निशा जानती थी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो इस का क्या परिणाम हो सकता है. क्योंकि हनी ने उस से स्पष्ट कह दिया था कि अगर उस ने उस की कोई बात नहीं मानी तो वह उस के और रमेश के संबंधों के बारे में उस के मातापिता से बता देगा.

उधर रमेश और उस के दोस्त को पता चल गया था कि निशा हनी के साथ घूमती है. यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी. इसलिए उन्होंने निशा को धमकी दी कि अगर उस ने हनी से बोलना बंद नहीं किया तो नतीजा ठीक नहीं होगा. निशा ने यह बात रमेश को नहीं बताई थी कि वह हनी के साथ अपनी मरजी से नहीं जाती, बल्कि यह उस की मजबूरी है.

निशा पेशोपेश में पड़ गई. वह जानती थी कि जिस दिन उस ने हनी से बोलना बंद किया, उसी दिन वह उस के मांबाप से उस की शिकायत कर देगा. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक न एक दिन इस बात का भांडा फूटना ही था.

यही सोच कर एक दिन निशा ने यह बात रमेश और राजन को बता दी कि हनी उसे किस तरह ब्लैकमेल कर रहा है. यह सुन कर रमेश और राजन का खून खौल उठा. उन्होंने उसी दिन हनी को रास्ते में घेर लिया. उन्होंने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम निशा से दूर ही रहो, वरना यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा. तुम लापता हो जाओगे और तुम्हारे मांबाप तुम्हें ढूंढते रह जाएंगे.’’

दोनों की इस धमकी से उत्तेजित होने के बजाय हनी ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘देखो रमेश, हम सब दोस्त हैं और एक ही गांव के रहने वाले हैं. बचपन से साथसाथ खेलेकूदे हैं और पढ़ेलिखे हैं. अब यह बताओ कि तुम निशा के साथ बातें करते हो, घूमने जाते हो, मैं ने कभी बुरा माना तो फिर मेरे बात करने पर तुम्हें भी बुरा नहीं मानना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो पंक्चर लगाने वाले का बेटा मेरी बराबरी करेगा?’’ रमेश ने नफरत से यह बात कही. इस के बावजूद हनी ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘रमेश बात हम लोगों के बीच की है, इसलिए इस में बड़ों को मत घसीटो.’’

बहरहाल, उस दिन तो मामला यहीं पर शांत हो गया. लेकिन हनी और रमेश के बीच कड़वाहट पैदा हो गई. आगे चल कर इस कड़वाहट का क्या नतीजा निकलेगा, कोई नहीं जानता था. हनी ने कुछ दिनों तक निशा से बात नहीं की.

7 जुलाई, 2017 को हनी ने निशा को फोन कर के मिलने के लिए कहा. इस बार निशा ने उस से मिलने से साफ मना कर दिया. हनी को गुस्सा आ गया. उस ने उसी दिन रमेश और निशा के प्रेमप्रसंग की बात निशा के पिता को बता दी.

बेटी की बदचलनी के बारे में जान कर मांबाप की नींद उड़ गई. निशा घर लौटी तो उन्होंने उसे डांटा. उस ने लाख सफाई दी, पर उन्होंने उस की बात पर विश्वास न करते हुए उसे घर में कैद कर दिया. यह बात जब रमेश और राजन को पता चली तो दोनों हनी के पास जा पहुंचे. दोनों पक्षों में काफी तूतूमैंमैं हुई और अंत में एकदूसरे को देख लेने की धमकी देते हुए अपनेअपने घर चले गए.

अगले दिन यानी 8 जुलाई, 2017 की शाम साढ़े 6 बजे हनी के पिता हरबंशलाल ने कहा, ‘‘जा बेटा, हवेली जा कर पशुओं के लिए चारा काट दे. पशु भूखे होंगे.’’

पिता के कहने पर हनी चारा काटने के लिए हवेली चला गया. चारा काटने का काम ज्यादा से ज्यादा एक घंटे का था. लेकिन जब हनी साढ़े 8 बजे तक घर नहीं लौटा तो हरबंशलाल को चिंता हुई. पहले तो उन्होंने अपने छोटे बेटे को हवेली जाने को कहा, फिर उसे रोक कर खुद ही उठ कर चल पड़े.

वहां हनी नहीं दिखा. उस ने चारा काट कर पशुओं को डाल दिया था. चारा काटने के बाद वह कहां चला गया, वह इस बात पर विचार करने लगे. उन्हें लगा ऐसा तो नहीं कि वह घर चला गया हो. वह घर लौट आए.

पर हनी घर नहीं आया था. उन्होंने उसे इधरउधर देखा, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया. अब तब तक रात के 10 बज चुके थे. हनी के मातापिता के अलावा गांव के अन्य लोग भी रात के 1 बजे तक उसे गांव और आसपास ढूंढते रहे. पर हनी का कहीं पता नहीं चला. थकहार कर सब सो गए.

अगले दिन सुबह जब हनी के दोस्तों रमेश, राजन आदि को उस के गायब होने का पता चला तो सभी हनी के घर जमा हो गए. वे सब भी उसे खोजने लगे.

अगले दिन सुबह गांव का ही ओंकार सिंह अपने खेतों पर गया तो उस के खेत के दूसरे छोर पर नहर के पास एक जगह किसी आदमी का कटा हुआ कान पड़ा दिखाई दिया. वहीं पर काफी मात्रा में खून बिखरा था. खून देख कर ओंकार सिंह सोच रहा था कि यह सब वह किस ने किया होगा, तभी हरबंशलाल, रमेश, राजन तथा अन्य लोग हनी को तलाशते हुए वहां पहुंच गए.

कान और खून वाली जगह उन्होंने भी देखी, पर एक अकेले कान को देख कर कुछ कहा नहीं जा सकता था कि कान किस का होगा. खेत में कुछ दूरी पर खून से सनी एक चप्पल देख कर हरबंशलाल के मुंह से चीख निकल गई. वह कान को भले ही नहीं पहचान पाए थे, पर वह चप्पल उन के बेटे हनी की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने खुद वह चप्पल हनी को खरीद कर दी थी.

कान वाली जगह से खून टपकता हुआ खेत के बाहर तक गया था. सभी ने टपकते खून का पीछा किया तो वह नहर के किनारे तक टपका हुआ मिला. अनुमान लगाया गया कि मरने वाला जो भी था, उस की हत्या करने के बाद लाश को ले जा कर नहर में फेंक दिया गया था.

कुछ लोग गोताखोरों को बुलाने चले गए तो कुछ लोग पुलिस को सूचना देने थाने चले गए. पर गोताखोर और पुलिस आती, उस के पहले ही अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए रमेश और राजन नहर में कूद गए और लाश ढूंढने लगे.

सूचना मिलने पर थाना फिल्लौर के थानाप्रभारी राजीव कुमार अपनी टीम के साथ नहर पर पहुंच गए. गोताखोर भी आ कर नहर में लाश ढूंढने लगे. कुछ देर बाद गोताखोर नहर से लाश निकाल कर बाहर आ गए. लाश देख कर हरबंशलाल पछाड़ खा कर गिर गए. क्योंकि वह लाश और किसी की नहीं, उन के बेटे हनी की थी.

थानाप्रभारी ने लाश मिलने की सूचना अधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर डीएसपी (फिल्लौर) बलविंदर इकबाल सिंह, सीआईए इंचार्ज हरिंदर गिल भी मौके पर पहुंच गए. लाश का मुआयना करने पर उस का एक कान गायब मिला. गरदन भी पूरी तरह कटी हुई थी. वह सिर्फ खाल से जुड़ी थी.

लाश व कान को बरामद कर पुलिस काररवाई में जुट गई. खेत से खूनआलूदा मिट्टी भी अपने कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. पुलिस ने हरबंशलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी.

15 साल के हनी की हत्या के विरोध में लोगों ने बाजार बंद कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. सूरक्षा की दृष्टि से एसपी (जालंधर) बलकार सिंह ने फिल्लौर और शाहपुर में भारी मात्रा में पुलिस तैनात कर दिया. इस के अलावा एसपी ने लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

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उन के आश्वासन के बाद लोग शांत हुए. एसपी बलकार सिंह ने डीएसपी गुरमीत सिंह और डीएसपी बलविंदर इकबाल सिंह की अगुवाई में पुलिस टीमों का गठन किया, जिस में सीआईए इंचार्ज हरिंदर गिल, एसआई ज्ञान सिंह, एएसआई लखविंदर सिंह, परमजीत सिंह, हंसराज सिंह, हवलदार राजिंदर कुमार, निशान सिंह, प्रेमचंद और सिपाही जसविंदर कुमार को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले मृतक हनी के यारदोस्तों से पूछताछ की. इस में निशा को ले कर रमेश और राजन की नाराजगी वाली बातें निकल कर सामने आईं. यह बात भी सामने आई कि इस हत्या से एक दिन पहले रमेश और हनी के बीच जम कर कहासुनी हुई थी.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रमेश को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पर उस की हिमायत में लगभग पूरा गांव थाने पहुंच गया. दबाव बढने पर पुलिस को तफ्तीश बीच में छोड़ कर उसे घर भेजना पड़ा.

हरबंशलाल ने अपने बयान में बताया था कि रात को जिस समय वह उसे तलाश रहे थे, उन्होंने अपने फोन से हनी को कई बार फोन किया था, पर हर बार फोन बंद मिला था. थानाप्रभारी राजीव कुमार ने हनी के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में अंतिम फोन रमेश के फोन से गई थी.

रमेश के अलावा 4 नंबर और भी थे. डीएसपी गुरमीत सिंह ने राजन, रमेश सहित उन चारों लड़कों को उठवा लिया. इस बार थाने के बजाय उन्हें किसी अन्य जगह ले जाया गया. वहां हनी की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो रमेश अधिक देर तक नहीं टिक सका. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए हनी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी सन्न रह गए.

रमेश और हनी के बीच निशा को ले कर खींचातानी चल रही थी. निशा और रमेश, दोनों के दिलों में इस बात को ले कर एक डर बैठा हुआ था कि हनी कभी भी उन की पोल गांव वालों या निशा के मांबाप के सामने खोल सकता है. ऐसा ही हुआ भी. हनी ने 7 जुलाई को जब निशा के घर वालों को निशा और रमेश के संबंधों की बात बता दी तो रमेश यह सहन नहीं कर सका.

रमेश ने उसी समय राजन के साथ मिल कर हनी को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. निशा को समझा कर उसे घर भेजते समय रमेश ने कहा, ‘‘तू चिंता मत कर, जल्द ही हनी की दर्दनाक चीखों की आवाज तेरे कानों को सुनाई देगी.’’

और फिर उसी शाम वह अपना फोन निशा के घर जा कर जबरदस्ती उसे दे आया. निशा की मां ने उस समय उसे बहुत डांटा था, पर वह वहां से भाग गया था. रमेश और राजन यह बात अच्छी तरह जानते थे कि हनी शाम को किस समय हवेली में चारा लेने जाता है.

दोनों दातर (दरांती) ले कर 8 जुलाई को हनी के पीछेपीछे पहुंच गए. हनी शाम 8 बजे जैसे ही हवेली से  घर जाने के लिए निकला दोनों ने उस का रास्ता रोक कर दोस्ताना लहजे में  कहा, ‘‘सौरी यार हनी, बेवजह तेरे साथ गरमागरमी कर ली, यार हमें माफ कर दे. हमें निशा से बात करने में कोई ऐतराज नहीं. तू कहे तो अभी के अभी तेरी निशा से बात करा दूं.’’

बात करतेकरते दोनों हनी को खेतों की तरफ ले गए. चलते हुए रमेश ने अपने उस फोन का नंबर मिलाया, जो वह निशा को दे आया था. उधर से जब निशा ने फोन उठाया तो रमेश ने कहा, ‘‘निशा, लो अपने पुराने साथी से बात करो.’’

हनी फोन अपने कान से लगा कर निशा से बातें करने लगा, तभी रमेश ने पीछे से दातर का एक भरपूर बार हनी के उस कान पर किया, जिस पर उस ने फोन लगा रखा था. एक ही वार में हनी का कान कट कर दूर जा गिरा और उस के मुंह से एक जोरदार चीख निकली.

इस के बाद रमेश और राजन ने यह कहते हुए हनी पर लगातार वार करने शुरू कर दिए कि ‘‘साले और कर निशा से बात.’’

हनी कटे हुए पेड़ की तरह जमीन पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. हनी की हत्या कर के राजन और रमेश ने उस की लाश को घसीट कर पास वाली नहर में फेंक दिया और अपनेअपने घर चले गए.

पुलिस ने 11 जुलाई, 2017 को रमेश और राजन को हनी की हत्या के अपराध में गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया. रमेश की उम्र 17 साल और राजन की उम्र 15 साल थी. अब यह अदालत तय करेगी कि उन पर काररवाई कोर्ट में चलेगी या बाल न्यायालय में.

रिमांड के बीच पुलिस ने वह दातर बरामद कर लिया था, जिस से हनी की हत्या की गई थी. इस के बाद पुलिस ने रमेश और राजन को बाल न्यायालय में पेश कर बालसुधार गृह भेज दिया.

पुलिस ने पूछताछ के लिए निशा को भी थाने बुलाया था कि इस अपराध में उस की भी तो कोई भूमिका नहीं है? पर थाने आते ही वह डर के मारे बेहोश हो गई. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कराया. उस की हालत में सुधार होने पर उस से पूछताछ की गई, पर वह बेकुसूर थी, इसलिए उसे घर भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रमेश, राजन तथा निशा बदले हुए नाम हैं.

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साली के जिस्म की चाहत ने जीजा से कराया जुर्म

उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल शिवकुमार की पोस्टिंग शिकोहाबाद के सीओ औफिस में थी. उन का घर वहां से कोई 60-65 किलोमीटर दूर आगरा में था. वहीं से वह रोजाना अपनी ड्यूटी पर आतेजाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां संगम और ज्योति तथा एक बेटा अमरेंद्र कुमार था. परिवार के साथ वह हंसीखुशी से जिंदगी बिता रहे थे. उन्होंने तीनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया था. बड़ी बेटी शादी लायक हुई तो उस की शादी उन्होंने अपने जिगरी दोस्त कुलदीप शैली के बेटे अशोक शैली से कर दी. कुलदीप गाजियाबाद के नेहरूनगर में रहते थे. उन की भी 2 बेटियां परविंद्र और पूजा तथा एक बेटा अशोक था. बेटी परविंद्र का विवाह उन्होंने बुलंदशहर के रहने वाले पंकज के साथ किया था.

संगम की शादी के समय उस की छोटी बहन ज्योति महज 12 साल की थी. अशोक गाजियाबाद में किसी फैक्ट्री में काम करता था. संगम और अशोक का जीवन काफी खुशहाल था. शादी के साल भर बाद ही अशोक एक बेटी का पिता बन गया था. वह जबतब अपनी पत्नी और बेटी के साथ ससुराल आता रहता था. शिवकुमार का बेटा अमरेंद्र एक दवा कंपनी में एमआर था. अशोक की बहन पूजा की शादी में निमंत्रण पा कर शिवकुमार पूरे परिवार के साथ आए थे. शादी में लहंगाचोली पहने ज्योति बहुत खूबसूरत लग रही थी. हालांकि उस की उम्र 14-15 साल थी, पर हृष्टपुष्ट शरीर की वजह से वह जवान लग रही थी. ऐसे में ज्योति की नजर अपने जीजा अशोक से टकराई तो उस की नजरों में उसे कुछ अजीब सा दिखाई दिया. क्योंकि इस के पहले अशोक ने कभी उसे इस तरह नहीं देखा था. चूंकि शादी अशोक की बहन पूजा की थी, इसलिए उस पर काफी जिम्मेदारियां थीं. वह भागदौड़ में लगा था. ऐसे में अशोक कई बार साली से टकराया. एक बार हिम्मत कर के उस ने ज्योति का हाथ पकड़ कर सहलाते हुए कहा, ‘‘ज्योति, आज तुम बड़ी सुंदर लग रही हो. किस पर बिजली गिराने का इरादा है ’’ जीजा की बात सुन कर ज्योति घबरा गई. झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह चली गई. उस का दिल जोरों से धड़क उठा था. वह समझ गई कि जीजा की नीयत ठीक नहीं है.

ज्योति सोच में डूबी थी कि जीजा उसे अजीब नजरों से क्यों देख रहे थे उसे लगा कि शायद उन्होंने मजाक किया होगा  इस बात को दिमाग से निकाल कर वह शादी के कार्यक्रमों में एंजौय करने लगी. लेकिन अशोक ने तो मन ही मन कुछ और ही सोच लिया था. शादी निपट जाने के बाद थकेहारे लोग आराम करने की सोच रहे थे, जबकि शिवकुमार अपने परिवार के साथ घर जाना चाहते थे, लेकिन कुलदीप ने उन्हें एक दिन और रुकने की बात कह कर रोक लिया. इस से अशोक को खुशी हुई, क्योंकि उस का दिल अपनी नाबालिग साली ज्योति पर आ गया था. वह किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था. शादी की भागदौड़ में सभी काफी थक गए थे. इसलिए खापी कर सभी जल्दी ही सो गए. अशोक के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने धीरे से ज्योति को उठा कर कहा, ‘‘चलो, तुम से कुछ बात करनी है.’’

डरीसहमी ज्योति के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. उसे एकांत में ले जा कर अशोक उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. ज्योति ने विरोध किया तो उस ने कहा, ‘‘चुप रहो, अगर कोई जाग गया तो तुम्हारी ही बदनामी होगी.’’ ज्योति जानती थी कि अगर वह शोर मचाएगी तो घर के लोग उस की बात पर विश्वास नहीं करेंगे. क्योंकि सभी अशोक पर बहुत विश्वास करते थे. आखिर अशोक ने ज्योति को डराधमका कर अपनी हवस पूरी कर ली. यही नहीं, उस ने मोबाइल फोन से उस की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें भी खींच लीं. अपना सब कुछ गंवा कर ज्योति कमरे में आ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे  अशोक ने उसे धमकी दे रखी थी कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे बदनाम कर देगा.

ज्योति खामोश थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. बेटी को परेशान देख कर मां मुन्नी ने पूछा तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया. घर आ कर ज्योति ने राहत की सांस ली. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीजा से कभी बात नहीं करेगी. अपने साथ घटी घटना के बारे में उस ने घर वालों से इसलिए नहीं बताया कि कहीं बहन का घर न टूट जाए. इसलिए चुप रह कर वह अपनी पढ़ाई में लग गई. कुछ दिन इसी तरह बीत गए. जीजा का कोई फोन नहीं आया तो उसे लगा कि शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. अशोक को इधर गाजियाबाद के एक फार्महाउस में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. एक दिन वह अकेला ही ससुराल पहुंचा. उसे देख कर ज्योति डर गई.

‘‘अरे ज्योति, तुम इधरउधर क्यों भाग रही हो आओ, बैठो मेरे पास.’’ अशोक ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाते हुए कहा. मुन्नी भी वहीं बैठी थी. इस की असल वजह क्या है, यह मुन्नी को पता नहीं था, इसलिए वह हंसने लगी. क्योंकि जीजासाली के बीच हंसीमजाक होना आम बात है. उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. खाना खाने के बाद अशोक जाने लगा तो उस ने ज्योति से चुपके से कहा, ‘‘मैं ने आगरा के कुंदु कटरा स्थित एक होटल में कमरा बुक करा रखा है, तुम वहां आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

ज्योति ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मैं वहां नहीं आऊंगी.’’

इस पर अशोक ने टेढ़ी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तो फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना. मेरी मानो तो तुम्हारा आना ही ठीक रहेगा. मैं होटल में तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ न चाहते हुए भी ज्योति को होटल जाना पड़ा. अशोक होटल के गेट पर ही मिल गया. उस का हाथ पकड़ कर वह उसे उस कमरे में ले गया, जो उस ने पहले से बुक करा रखा था. कमरे में पहुंच कर उस ने ज्योति के सामने एक कागज रख दिया, जिस पर कुछ टाइप किया हुआ था. ज्योति ने पूछा, ‘‘यह क्या है ’’

‘‘यह हमारी शादी का प्रमाण पत्र है. इस पर तुम दस्तखत कर दो.’’ अशोक ने कहा. ज्योति ने दस्तखत करने से मना करते हुए कहा, ‘‘आप तो दीदी के पति हैं, हमारी शादी कैसे हो सकती है ’’

‘‘देखो ज्योति, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता, इसलिए मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे यह बेहूदगी पसंद नहीं है.’’ कह कर ज्योति कमरे से बाहर जाने लगी तो अशोक ने उसे पकड़ कर बैड पर ही पटक दिया और गुर्राते हुए कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूंगा.’’

उस की धमकी से डर कर ज्योति ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए. ज्योति मजबूर थी, इस का फायदा उठाते हुए अशोक ने उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस की अश्लील वीडियो भी बना ली. ज्योति उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी थी. चाह कर भी वह नहीं निकल पा रही थी. उस के एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. वह जीजा का शोषण सहती रही. मुन्नी कभीकभी पूछती भी कि वह परेशान क्यों रहती है तो वह पढ़ाई का बहाना बना देती. अशोक का जब भी उस के पास फोन आता, वह अवसाद से घिर जाती. वह उसे होटल में बुलाता. उस का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर अशोक उस के साथ मनमानी करता. इसी तरह 2 साल गुजर गए. अशोक की हिम्मत बढ़ती गई. ज्योति इंटरमीडिएट में आ गई थी. पढ़ाई में उस का मन बिलकुल नहीं लगता था. वह यही सोचती थी कि दुराचारी जीजा से कैसे छुटकारा मिले  उसे अब खुद से नफरत होने लगी थी.

सब कुछ चलता रहा. घर वाले बेटी पर हो रहे अत्याचार से बेखबर थे. बेटी भी अपना मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. उसी बीच ज्योति की जिंदगी में नागेंद्र आ गया. वह ज्योति को अच्छा लगता था. दोचार मुलाकातों के बाद दोनों के बीच गहरा प्यार हो गया. नागेंद्र के प्यार से ज्योति का खोया आत्मविश्वास वापस लौटने लगा. इस के बाद जब भी अशोक का फोन आता, वह फोन रिसीव नहीं करती. अशोक की समझ में यह नहीं आ रहा था कि ज्योति ऐसा क्यों कर रही है  यह जानने के लिए एक दिन वह अपनी ससुराल पहुंच गया. उसे इस बार देख कर ज्योति ने तय कर लिया कि वह उस से बिलकुल नहीं डरेगी. मौका देख कर जब अशोक ने उसे होटल चलने को कहा तो उस ने साफ मना कर  दिया. अशोक ने उसे धमकाया तो उस ने कहा, ‘‘जीजा मेहरबानी कर के अब छोड़ दो मुझे.’’ अशोक ने उसे मोहब्बत की दुहाई दी, पर वह नहीं मानी. वह नाराज हो कर चला गया. ज्योति के व्यवहार से उसे लगा कि जरूर कोई उस की जिंदगी में आ गया है. अशोक ज्योति की सहेली के दोस्त सुमित को जानता था. उस ने जब सुमित को फोन किया तो उसे पता चला कि सचमुच ही ज्योति के जीवन में कोई और आ गया है. सच्चाई पता चलने पर अशोक को ज्योति पर बहुत गुस्सा आया.

इस के बाद ज्योति ने अपने प्रेमी नागेंद्र को सारी बात बता दी. उस ने ज्योति की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि वह हमेशा उस के साथ है. अशोक से उसे डरने की जरूरत नहीं है. इस के बाद अशोक अपने आखिरी हथियार का उपयोग करते हुए धमकी देने लगा कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस के नंगे फोटो इंटरनेट पर डाल देगा. ज्योति ने साफ कह दिया, ‘‘जीजा, तुम्हें जो करना हो करो, मैं अब तुम से बिलकुल नहीं मिल सकती.’’ आखिर अशोक ने अंजाम की चिंता किए बिना ज्योति को सबक सिखाने की ठान ली. 9 सितंबर, 2016 को ज्योति कालेज के लिए निकली तो गली में खड़े कुछ लड़कों ने उसे देख कर कटाक्ष किया. वह उन की बातों का विरोध करने के बजाय आगे बढ़ गई. तभी उस के मोबाइल पर उस के भाई का फोन आया. भाई ने उसे तुरंत घर वापस आने को कहा.

ज्योति घर पहुंची तो उस ने देखा मां और भाई गुस्से में हैं. भाई ने उसे कई तमाचे जड़ दिए. भाई के गुस्से को देख कर ज्योति समझ गई कि जरूर जीजा ने उस का अश्लील वीडियो वायरल कर दिया है, जिसे घर वालों ने देख लिया है. ज्योति ने रोरो कर मां और भाई को जीजा की सारी करतूतें बता दीं. असलियत जान कर दोनों ने अपना सिर पीट लिया. ज्योति ने कहा कि वह जीजा की धमकियों से डर गई थी, जिस की वजह से उस ने किसी को कुछ नहीं बताया था. शिवकुमार उस समय ड्यूटी पर थे. अमरेंद्र ने पिता को फोन कर के सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि वह ज्योति को ले कर थाना सदर जाए और पुलिस को सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दे. अमरेंद्र बहन को ले कर थाना सदर पहुंचा और थानाप्रभारी अशोक कुमार सिंह को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी ने उस की बात सुन कर भादंवि की धारा 376, 506, 420, 67, 72 के तहत अशोक सैली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. शिवकुमार और मुन्नी दामाद की इस हरकत से बहुत आहत हुए थे. पर उस ने काम ही ऐसा किया था, जो क्षमा करने लायक नहीं था. अगले दिन आगरा सदर बाजार पुलिस ने गाजियाबाद से अशोक को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अशोक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पति की करतूत से संगम को अफसोस है. बहरहाल कथा संकलन तक अशोक जेल में था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल

माधुरी जिस उम्र में थी, वह नएनए सपनों, उमंगों, उम्मीदों और उत्साह से लबरेज होती है. उस ने भी भविष्य के लिए ढेरों ख्वाब बुन रखे थे. बीकौम की छात्रा माधुरी सुंदर और हंसमुख स्वभाव की थी. पढ़लिख कर वह एक मुकाम हासिल करना चाहती थी. लेकिन यह ऐसी उम्र है, जब कोई करिश्माई व्यक्ति आकर्षित कर जाता है. फिर तो उसी के लिए दिल धड़कने लगता है. माधुरी के साथ भी ऐसा हुआ था. वह आदमी कौन था, यह सिर्फ माधुरी ही जानती थी, जिसे वह जाहिर भी नहीं होने देना चाहती थी. वह परिवार में सभी की प्रिय थी. मातापिता को अपने बच्चों से ढेरों उम्मीदें होती हैं. माधुरी को भी मांबाप की ओर से पढ़नेलिखने और घूमनेफिरने की इसीलिए आजादी मिली थी कि वह अपना भविष्य संवार सके.

माधुरी दिल्ली से लगे गौतमबुद्ध नगर जिले के रबूपुरा थाना के गांव मोहम्मदपुर जादौन के रहने वाले मुनेश राजपूत की बेटी थी. वह एक समृद्ध किसान थे. वैसे तो यह परिवार हर तरह से खुश था, लेकिन नवंबर, 2016 में एक दिन माधुरी अचानक लापता हो गई तो पूरा परिवार परेशान हो उठा. वह घर नहीं पहुंची तो उसे ढूंढा जाने लगा. काफी प्रयास के बाद भी जब माधुरी का कुछ पता नहीं चल सका तो परिवार के सभी लोग परेशान हो उठे. चूंकि मामला जवान बेटी का था, इसलिए मुनेश ने थाने जा कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस जांच में पता चला कि माधुरी अपने पिता के मोबाइल से किसी को फोन किया करती थी. पुलिस और घर वालों ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नजदीक के ही गांव के रहने वाले राहुल जाट का निकला. 27 नवंबर, 2016 को राहुल को खोज निकाला गया.

राहुल के साथ माधुरी भी थी. दोनों ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर घर वाले दंग रह गए. दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. यही नहीं, उन्होंने आर्यसमाज मंदिर में विवाह भी कर लिया था. राहुल ने अपने 3 दोस्तों की मदद से माधुरी को भगाया था. मामला 2 अलगअलग जातियों का था. माधुरी के घर वाले इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे बेटी द्वारा उठाए गए इस कदम से काफी आहत थे. बात मानमर्यादा और इज्जत की थी, इसलिए दोनों पक्षों के बीच आस्तीनें चढ़ गईं. इस मुद्दे पर पंचायत बैठी, जिस ने फैसला लिया कि दोनों ही अब एकदूसरे से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. घर वालों ने माधुरी को डांटाफटकारा और जमाने की ऊंचनीच समझा कर इज्जत का वास्ता दिया. इस पर उस ने वादा किया कि अब वह कोई ऐसा कदम नहीं नहीं उठाएगी, जिस से उन की इज्जत पर आंच आए.

किस के दिमाग में कब क्या चल रहा है, यह कोई दूसरा नहीं जान सकता. माधुरी बिलकुल सामान्य जिंदगी जी रही थी. इस घटना को घटे अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि 23 दिसंबर, 2016 की दोपहर माधुरी अचानक फिर लापता हो गई. उस के इस तरह अचानक घर से लापता होने से घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने अपने स्तर से उस की खोजबीन की. लेकिन जब वह शाम तक नहीं मिली तो उन का सीधा शक उस के प्रेमी राहुल पर गया.

माधुरी के घर वालों ने थाने जा कर राहुल और उस के दोस्तों के खिलाफ नामजद तहरीर दे दी. राहुल का चूंकि माधुरी से प्रेमप्रसंग चल रहा था और एक बार वह उसे ले कर भाग चुका था, इसलिए कोई भी होता, उसी पर शक करता. गुस्सा इस बात का था कि समझाने के बावजूद उस ने वादाखिलाफी की थी. इस बात से माधुरी के घर वाले ही नहीं, गांव वाले भी नाराज थे. शायद इसीलिए सभी माधुरी को जल्द से जल्द ढूंढ कर लाने को पुलिस से कहने लगे थे. पुलिस ने माधुरी के घर वालों से नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि अभी भी माधुरी की राहुल से बातचीत होती रहती थी. गायब होने वाले दिन भी उस की राहुल से बात हुई थी.

पुलिस ने राहुल और उस के दोस्तों को थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन इन लोगों ने माधुरी के गायब होने में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. इस पूछताछ में पुलिस को भी लगा कि इन लोगों का माधुरी के गायब होने में हाथ नहीं है तो उस ने उन्हें छोड़ दिया. कई दिन बीत गए, माधुरी का कुछ पता नहीं चला. घर वाले राहुल और उस के साथियों के छोड़े जाने से खिन्न थे. मुनेश के पड़ोस में ही रहता था हेमंत कौशिक उर्फ टिंकू, जो शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. वह कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. पड़ोसी होने के नाते वह माधुरी के घर वालों की हर तरह से मदद कर रहा था.

हेमंत ने मुनेश को सलाह दी कि इस मामले में थाना पुलिस राहुल के खिलाफ काररवाई नहीं कर रही है तो चल कर पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिला जाए. उस की बात घर वालों को ठीक लगी तो गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर मुनेश एसएसपी औफिस जा पहुंचे. अपनी बात मनवाने के लिए इन लोगों ने धरनाप्रदर्शन भी किया. इस का नतीजा यह निकला कि एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने इस मामले में एसपी (देहात) सुजाता सिंह को काररवाई करने के निर्देश दिए. मामला तूल पकड़ता जा रहा था, इसलिए सुजाता सिंह ने थानाप्रभारी शाबेज खान को माधुरी की गुमशुदगी वाले मामले की गुत्थी सुलझाने को तो कहा ही, खुद भी इस मामले पर नजर रख रही थीं.

पुलिस एक बार फिर राहुल को पकड़ कर थाने ले आई. एसपी सुजाता सिंह ने खुद उस से पूछताछ की. राहुल का कहना था कि पंचायत के बाद वह माधुरी से कभी नहीं मिला तो पुलिस ने उस के ही नहीं, उस के दोस्तों के भी मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई. इस से पता चला कि राहुल ही नहीं, उस के दोस्त भी माधुरी के लापता होने वाले दिन घर पर ही थे. कई लोग इस बात की तसदीक भी कर रहे थे. जांच में यह बात सच पाई गई, इसलिए पुलिस उलझ कर रह गई. जबकि माधुरी के घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब तक राहुल के पक्ष में भी कुछ लोग उतर आए थे, इसलिए पुलिस को विरोध और आरोपों का सामना करना पड़ रहा था. कभीकभी परेशान हो कर पुलिस फरजी खुलासा करते हुए निर्दोषों को जेल भेज देती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. एसपी सुजाता सिंह ने तय कर रखा था कि वह जो भी काररवाई करेंगी, सबूतों के आधार पर ही करेंगी. माधुरी के घर वाले चाहते थे कि राहुल और उस के साथियों को जेल भेजा जाए, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ एक भी सबूत नहीं था.

बात माधुरी की बरामदगी की भी थी. इस के लिए राहुल के पास कोई सुराग नहीं था. माधुरी कहां चली गई थी, इस बात को कोई नहीं जानता था. उस का प्रेम प्रसंग राहुल से था और राहुल को ही उस की खबर नहीं थी. पुलिस के लिए यह मामला काफी पेचीदा हो गया था. इस बीच पुलिस को पता चला कि माधुरी चोरीछिपे मोबाइल फोन इस्तेमाल करती थी. पुलिस को लगा कि इस से कोई सुराग मिल सकता है. लेकिन घर वालों को माधुरी का मोबाइल नंबर पता नहीं था. पुलिस ने गांव के टावर से जितने भी मोबाइल नंबर इस्तेमाल हो रहे थे, सभी का डाटा निकलवाया. यह संख्या 3 हजार से अधिक थी, लेकिन पुलिस को उम्मीद थी कि इस से कोई न कोई सुराग जरूर मिल जाएगा.

पुलिस ने मोबाइल नंबरों को खंगाला तो उन में 2 मोबाइल नंबर एक ही सीरीज के मिले. उन नंबरों को संदिग्ध मान कर जांच शुरू की गई. इस में खास बात यह थी कि माधुरी के लापता होने के 2 दिनों बाद दोनों नंबर बंद कर दिए गए थे. पुलिस ने उन नंबरों की आईडी निकलवाई तो वे जनपद पीलीभीत के एक ही पते पर लिए गए थे. सिमकार्ड लेते वक्त जो पहचानपत्र दिया गया था, वह भी फरजी था. पुलिस ने आईएमईआई नंबर के जरिए मोबाइल का पता किया तो पता चला कि जिस मोबाइल में दोनों सिम में से एक सिम का उपयोग हो रहा था, उसी टावर के अंतर्गत उस में दूसरा नंबर चल रहा था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह माधुरी के पड़ोसी हेमंत का निकला. इस से हेमंत शक के दायरे में आ गया. 7 जनवरी, 2017 को थानाप्रभारी शाबेज खान एसआई श्रीपाल सिंह, नरेश कुमार, कांस्टेबल जकी अहमद और जितेंद्र को साथ ले कर गांव पहुंचे और पूछताछ के लिए हेमंत को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में हेमंत शातिर खिलाड़ी निकला. उस के न केवल माधुरी से प्रेमसंबंध थे, बल्कि उसी ने सुनियोजित तरीके से माधुरी की हत्या कर के उस की लाश को ठिकाने लगा दिया था. आपराधिक घटनाओं पर आधारित टीवी सीरियलों और फिल्मों से शातिर सोच पैदा कर के उस ने पूरी योजना बनाई थी. उस के प्रेम में अंधी हो चुकी माधुरी उस के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन चुकी थी तो राहुल मोहरा. माधुरी के लिए हेमंत ही वह आकर्षक करिश्माई आदमी था, जिस का राज माधुरी ने अपने सीने में दफन कर रखा था. हेमंत की निशानदेही पर पुलिस ने गांव के ही एक खेत से माधुरी के शव को बरामद कर लिया था. पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही हेमंत के खिलाफ अपराध संख्या 2/2017 पर धारा 364, 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने हेमंत से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे शातिर दिमाग इंसान की कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने एक लड़की को प्यार के जाल में फांस कर पहले उस की भावनाओं और विश्वास को छला, उस के बाद उसे मौत की चौखट पर पहुंचा दिया. पड़ोसी होने के नाते माधुरी और हेमंत के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. करीब 10 महीने पहले हेमंत ने माधुरी पर डोरे डालने शुरू किए. माधुरी उम्र के नाजुक मोड़ पर थी. उस ने हेमंत का झुकाव अपनी ओर देखा तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो गई. बहुत जल्दी दोनों के प्रेमसंबंध बन गए. हेमंत माधुरी को केवल मौजमस्ती का साधन बनाना चाहता था, लेकिन माधुरी उस से दिल से प्यार कर बैठी.

दिल के हाथों मजबूर हो कर माधुरी राह भटक गई. उन के रिश्ते की कोई मंजिल नहीं थी. बात एक ही गांव, पड़ोस और अलगअलग जाति की थी, इस से भी बड़ी बात यह थी कि हेमंत शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. माधुरी इन बातों को भूल गई और उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं. हेमंत शातिर था. वह आपराधिक टीवी सीरियलों से भी खासा प्रभावित था. हेमंत किसी खतरे में नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए उस ने फरजी आईडी पर 2 मोबाइल नंबर लिए. एक नंबर उस ने अपने पास रखा और दूसरा माधुरी को देते हुए कहा, ‘‘माधुरी, इस नंबर से मेरे सिवा किसी और से बात मत करना.’’

‘‘मैं भला किसी और से बातें क्यों करूंगी. वैसे भी मेरे लिए अब तुम ही सब कुछ हो.’’ माधुरी ने कहा ही नहीं, किया भी ऐसा ही. माधुरी फोन को छिपा कर रखती थी. उस से वह केवल हेमंत से ही बातें करती थी या एसएमएस करती थी. दोनों का संबंध इतना गुप्त था कि किसी को कानोंकान खबर नहीं थी. दोनों चूंकि पड़ोसी थे, इसलिए उन के संबंधों पर किसी ने कभी शक भी नहीं किया. इस मामले में हेमंत काफी सतर्क रहता था. हेमंत गांव से बाहर कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. वह सुबह घर से निकलता था तो शाम को ही वापस आता था. इस दौरान वह मोबाइल से माधुरी से जम कर बातें करता था और उस के प्यार के सपनों को पंख लगाता था. आखिर एक दिन माधुरी ने उस से कह ही दिया कि वह हमेशा के लिए उस की होना चाहती है. हेमंत ने भी ऐसा करने का वादा कर लिया. उस ने सोचा कि वक्त आने पर वह माधुरी से पीछा छुड़ा लेगा, लेकिन माधुरी की सोच ऐसी नहीं थी. वह उसे अपना सब कुछ मान चुकी थी, इसलिए प्यार की बातों के दौरान एक दिन उस ने हेमंत से पूछ लिया, ‘‘तुम कभी मुझे धोखा तो नहीं दोगे ’’

‘‘मैं ने तुम्हें धोखा देने के लिए प्यार नहीं किया माधुरी. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’

‘‘हम शादी कब करेंगे ’’

‘‘तुम जानती हो माधुरी कि यह सब इतना आसान नहीं है. इस के लिए हमें इंतजार करना होगा.’’ हेमंत ने उसे यह कह कर टाल तो दिया, लेकिन वह यह सोच कर चिंतित जरूर हो उठा कि माधुरी उस की पत्नी बनने का पक्का इरादा बना चुकी है.

इस के बाद आए दिन माधुरी हेमंत से शादी की बातें करने लगी. एक दिन बातोंबातों में माधुरी ने उस से कहा कि राहुल उसे पसंद करता है तो यह सुन कर वह खुश हो गया, क्योंकि इस से उसे माधुरी से छुटकारा पाने की राह सूझ गई. उस ने कहा, ‘‘माधुरी, तुम राहुल से भी बातें कर लिया करो, अब वही हमारी शादी कराएगा.’’

‘‘मतलब ’’ माधुरी ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगा. मैं जैसा कह रहा हूं, तुम वैसा ही करती रहो. उस के बाद हमें शादी से कोई नहीं रोक सकेगा. तुम अपने पिता के नंबर से उस से बातें किया करो.’’ माधुरी ने ऐसा ही किया. वह पिता के नंबर से राहुल को फोन करने लगी. दरअसल राहुल सीधासादा लड़का था. उसे पता नहीं था कि वह मोहरा बन रहा है. हेमंत के कहने पर माधुरी ने राहुल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. दोनों ही जानते थे कि घर वाले उन की शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. इस का एक ही उपाय था कि भाग कर शादी की जाए. माधुरी ने अधिक दबाव डाला तो राहुल इस के लिए तैयार हो गया. हेमंत ने माधुरी को समझाया, ‘‘तुम्हें राहुल से शादी भी करनी है और पकड़ी भी जाना है. इस से सब को विश्वास हो जाएगा कि राहुल तुम्हारा प्रेमी है. फिर एक दिन हम दोनों घर से भाग कर शादी कर लेंगे, जिस का सारा शक राहुल पर जाएगा. उस के जेल जाने पर मामला अपने आप शांत हो जाएगा.’’

हेमंत दिमाग से माधुरी के साथ खेल रहा था, जबकि वह दिल की खुशी के चक्कर में अच्छाबुरा सोचे बिना डगमगा गई. वह उसे अपने इशारों पर नचा रहा था. माधुरी उस की हर बात मानती थी और हद दरजे का विश्वास करती थी. हेमंत के कहे अनुसार, माधुरी राहुल के साथ भागी भी और शादी भी कर ली. दोनों पकड़े भी गए. उन्हें पकड़वाने में हेमंत ने ही अहम भूमिका निभाई थी. उस ने माधुरी से पीछा छुड़ाने की योजना मन ही मन पहले ही तैयार कर ली थी. इतना सब तमाशा होने के बाद वह घर आई तो उस ने हेमंत को शादी की बात याद दिलाई. बदनामी, परिवार की डांटफटकार माधुरी ने सिर्फ हेमंत से शादी करने के लिए सही थी. हेमंत उसे प्यार से समझाबुझा कर पीछा छुड़ाने के बजाए उस के सपनों को और भी ऊंचाई दे कर बरगलाने का काम करता रहा. उस के कहने पर माधुरी राहुल से पिता के मोबाइल से बातें करती रही.

22 दिसंबर को हेमंत ने माधुरी से कहा था कि अगले दिन वह घर से निकल कर गांव के बाहर तय जगह पर पहुंच जाए. उसे लगता था कि माधुरी ऐसा नहीं करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. माधुरी उस के झूठे प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह उस खेत पर पहुंच गई, जहां उस ने पहुंचने को कहा था. माधुरी ने यह बात हेमंत को फोन कर के बता भी दी. वह खेत गांव के किसान डंकारी सिंह का था. हेमंत ने पहले ही तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. माधुरी उस के गले की फांस बन चुकी थी. शाम करीब 4 बजे वह खेत पर पहुंचा और माधुरी को कंबल तथा बाजार से ला कर खाना दे आया.

हेमंत ने उसे समझाने के बजाए बरगलाते हुए कहा, ‘‘माधुरी, मैं माहौल देख लूं. पहले तो राहुल को जेल भिजवाना जरूरी है. उस के बाद हम निकल चलेंगे. लेकिन तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा.’’

माधुरी ने इस कड़ाके की ठंड में वह रात अकेली खेतों में बिताई. हेमंत उस के लिए खाना पहुंचाता रहा. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह माधुरी के घर वालों के साथ खड़ा रहा और उन्हें राहुल के खिलाफ भड़काता रहा. 2 दिन बीत गए. अब माधुरी को खेत में रहना मुश्किल लगने लगा. आखिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

तीसरे दिन यानी 26 दिसंबर की शाम माधुरी हेमंत से चलने की जिद करने लगी तो प्यार जताने के बहाने उस ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. हेमंत का यह रूप देख कर माधुरी के होश उड़ गए. बचाव के लिए विरोध करते हुए उस ने हाथपैर भी चलाए, लेकिन हेमंत ने गले में लिपटा दुपट्टा पूरी ताकत से कस दिया था, जिस से छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या कर के हेमंत ने अपने और माधुरी के मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ दिया और घर आ गया. रात को वह बहाने से निकला और गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया. इस के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगा.

लोगों के शक से बचने के लिए वह अपने काम पर भी जाता और माधुरी के पिता के साथ बैठ कर माधुरी को ले कर फिक्र भी जताता. हेमंत को पूरा विश्वास था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा. उसे लगता था कि दबाव में आ कर पुलिस राहुल और उस के दोस्तों को जेल भेज देगी. उस के बाद माधुरी की खोजबीन ठंडे बस्ते में चली जाएगी. इसीलिए उस ने माधुरी के घर वालों को पुलिस अधिकारियों के यहां प्रदर्शन करने के लिए उकसाया था.

यह अलग बात थी कि एसपी सुजाता सिंह की समझ से पुलिस ने किसी दबाव में काम नहीं किया और वह पकड़ में आ गया. यह भी सच है कि अगर पुलिस बारीकी से जांच न करती तो हेमंत कभी पकड़ा न जाता. उस की फरेबी फितरत और हैवानियत ने पूरे गांव को हैरान कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. माधुरी हेमंत जैसे शातिर के झांसे में न आई होती और बिना डगमगाए अपने भविष्य को संवारने में लगी होती तो यह नौबत कभी न आती.

हेमंत जैसे लोग अपनी घिनौनी सोच को पूरी करने के लिए भोलीभाली लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं. जरूरत है, लड़कियों को ऐसे लोगों से सावधान रहने की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी

देश भर में क्रिकेट व अन्य खेलों का सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध शहर जालंधर (पंजाब) के उपनगर लाजपतनगर की कोठी नंबर 141 में प्रसिद्ध करोड़पति बिजनैसमैन जगजीत सिंह लूंबा का परिवार रहता था. उन के सीमित परिवार में 60 वर्षीय पत्नी दलजीत कौर, 42 वर्षीय बेटा अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू, बहू परमजीत कौर उर्फ पम्मी, 20 वर्षीय पोता शानजीत सिंह, मनजीत सिंह और पोती आशीषजीत कौर थीं. जगजीत लूंबा बड़े सज्जन एवं दयालु प्रवृत्ति के इंसान हैं. धनवान होने के बावजूद भी उन्हें किसी चीज का घमंड नहीं था. शहर में उन की जगजीत ऐंड कंपनी नाम से बहुत बड़ी फर्म है, जिस के अंतर्गत 2 पैट्रोल पंप, सर्विस स्टेशन और एक बहुत बड़ी मैटल ढलाई की फैक्ट्री है, जिस में कई फर्नेस लगे हैं. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू अपने पिता के साथ कारोबार संभालने में उन की मदद करता था. दलजीत कौर भी कभीकभार पति और बेटे की मदद के लिए पैट्रोल पंपों पर चली जाती थीं. तीनों बच्चे अभी पढ़ रहे थे. बड़ा पोता शानजीत सिंह एपीजे कालेज जालंधर का छात्र था. कुल मिला कर लूंबा परिवार सुखचैन से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे की बात है. दलजीत कौर अपने ड्राइंगरूम में परमजीत कौर उर्फ पम्मी और खुशवंत कौर उर्फ नीतू के साथ बैठी चाय पी रही थीं. खुशवंत कौर परमजीत कौर के पति के दोस्त बलजिंदर सिंह की पत्नी थी. दोनों के आपस में पारिवारिक संबंध थे. बलजिंदर की भी जालंधर के लक्ष्मी सिनेमा के पास मैटल ढलाई की फैक्ट्री थी.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू की शादी के बाद से परमजीत कौर और खुशवंत कौर के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इसी कारण वह हर रोज शाम के समय उस से मिलने उस के घर आ जाया करती थी. पिछले कई दिनों से दलजीत कौर की कमर में दर्द हो रहा था. शायद उम्र का तकाजा था. वह रोज शाम के ठीक 4 बजे फिजियोथैरेपी करवाने के लिए डाक्टर के यहां जाती थीं.

पर उस दिन खुशवंत कौर के आ जाने पर उन्होंने डाक्टर के यहां जाना कैंसिल कर दिया था. तीनों बच्चे शाम 4 से 6 बजे तक ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे. मतलब आम दिनों में 4 से 6 बजे तक यानी 2 घंटे पम्मी घर में अकेली होती थी. उस दिन पम्मी की बेटी ट्यूशन चली गई थी.

बेटा शान जब ट्यूशन पढ़ने जाने के लिए निकलने लगा तो पम्मी ने कहा, ‘‘बेटा शान, तुम्हारे पापा का फोन आया था. उन्होंने कहा है कि तुम अपने छोटे भाई के साथ जा कर अवतारनगर रोड पर स्थित कार की दुकान पर एजेंट से मिलो. वह आज तुम्हारे पसंद की जीप खरीदवाएंगे.’’

‘‘ठीक है मम्मी.’’ शान ने मां की बात सुन कर कहा और छोटे भाई मनजीत को ले कर कार से अवतारनगर की तरफ चला गया.  दरअसल शान कई दिनों से अपने लिए जीप खरीदवाने की जिद कर रहा था.

तीनों महिलाएं चाय की चुस्कियां लेते हुए आपस में बतिया रही थीं कि तभी डोरबेल बजी. घंटी बजते ही पम्मी ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोला तो सामने 2 आदमी खड़े थे. बिना कुछ कहे ही उन्होंने पम्मी को भीतर की ओर धक्का दे कर दरवाजा बंद कर दिया.

इस से पहले कि पम्मी कुछ समझ पाती, उन दोनों में से एक ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और पम्मी को निशाना बना कर एक के बाद एक 3 गोलियां चला दीं. पम्मी को तो चीखने का अवसर भी नहीं मिला और वह फर्श पर गिर गई. गोलियों की आवाज सुन कर दलजीत कौर ड्राइंगरूम से बाहर आईं. बहू की हालत देख कर वह चिल्लाईं, ‘‘ओए मार दित्ता जालमा.’’

उन के साथ ही खुशवंत कौर भी कमरे से बाहर आ गई थी. माजरा समझ दोनों हमलावरों पर झपट पड़ीं. उन की इस हरकत से हमलावर घबरा गए. खुशवंत कौर दोनों में से एक से गुत्थमगुत्था हो गई. दलजीत कौर दूसरे आदमी से भिड़ गईं, जिस के हाथ में पिस्तौल था.

पिस्तौल वाले हमलावर ने दलजीत कौर से खुद को छुड़ाने के लिए उन पर गोली चला दी. इस के बाद दूसरे आदमी ने खुशवंत कौर को काबू करने के लिए अपने हाथ में थामा पेचकस उस की गरदन में पूरी ताकत से घुसेड़ दिया. उसी समय पिस्तौल वाले ने उस पर भी गोली चला कर मामला खत्म कर दिया.

तीनों औरतों की हत्या कर दोनों हमलावरों ने चैन की सांस ली और ड्राइंगरूम से निकल कर लौबी में आ गए. लौबी में रखे फ्रिज के पीछे टंगी चाबियों में से उन्होंने एक चाबी उठाई और घर के पिछवाड़े आ कर कोठी के बैक साइड वाला दरवाजा खोल कर निकल गए. मात्र 6-7 मिनट में वे 3 हत्याएं कर के आराम से चले गए थे.

दूसरी ओर जीप देखने के बाद शाम सवा 5 बजे शंटू जब अपने दोनों बेटों के साथ कोठी पर आया तो मुख्य दरवाजा भीतर से बंद मिला. काफी खटखटाने के बाद भी जब अंदर से कोई आहट नहीं सुनाई दी तो किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो कर बापबेटों ने धक्के मार कर दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. शंटू चीखने लगे, ‘‘मार गए…मार गए… बीजी को मार गए.’’

बच्चे भी मदद के लिए उन के साथ चीखने लगे थे. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी जमा हो गए. उन में खुशवंत कौर का बेटा अर्शदीप भी था. मां की लाश देख कर वह भी जोरजोर से रोने लगा. पड़ोसियों की मदद से तीनों को नजदीक के प्राइवेट अस्पताल ले गया. पौश कालोनी में दिनदहाड़े हुई 3 हत्याओं की खबर जंगल में लगी आग की तरह शहर भर में फैल गई. लोगों में दहशत भर गया. कोई इसे आंतकवादी घटना बता रहा था तो कोई आपसी रंजिश. किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. डा. अमनप्रीत सिंह ने मुआयना करने के बाद दलजीत कौर और खुशवंत कौर को मृत घोषित कर दिया. पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से भी पुलिस को सूचना दे दी गई.

परमजीत कौर की हालत नाजुक थी. उस के दिल की धड़कनें काफी धीमी थीं. उस की जान बचाने के लिए डाक्टरों ने उसे वेंटीलेटर पर रख दिया.

खबर मिलते ही थाना डिवीजन नंबर-4 के थानाप्रभारी प्रेम सिंह और थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी गुरवचन सिंह दलबल सहित घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाजपतनगर इलाका पहले थाना डिवीजन नंबर-6 में था, पर बाद में उसे थाना डिवीजन नंबर-4 में शामिल कर दिया गया. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस को पता चला कि सब लोग अस्पताल गए हैं तो थानाप्रभारी ने कोठी पर 2 सिपाही तैनात कर इंसपेक्टर प्रेम सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर परमजीत को बचाने की कोशिश कर रहे थे पर उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. फिर रात 9 बजे के करीब उस ने दम तोड़ दिया.

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.

शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.

रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’

रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.

शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.

दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.

रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’

‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.

जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.

सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.

शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’

‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’

‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.

‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’

‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.

अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.

उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.

शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.

शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.

21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.

विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नाजायज संबंधों पर भारी पड़ा प्रेम

22 नवंबर, 2016 की सुबह कानपुर (देहात) के थाना सजेती के गांव बसई के रहने वालों ने नहर किनारे बोरी में बंद पड़ी लाश देखी तो थाना सजेती पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी आर.के. सिंह पुलिस बल के साथ गांव बसई पहुंच गए. उन्होंने साथ आए सिपाहियों से बोरी खुलवाई तो उस में एक युवक की लाश निकली. लाश देख कर गांव वालों के बीच खड़ा रमेश फफक कर रो पड़ा. क्योंकि बोरी से निकली लाश उस के भाई राजेश की थी. हत्या की सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) सुरेंद्रनाथ तिवारी भी आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद मृतक के भाई रमेश से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि राजेश के पड़ोस में ही रहने वाली साधना से नाजायज संबंध थे. उसे शक है कि उसी ने राजेश की हत्या कराई है. एसपी थानाप्रभारी को जल्दी से जल्दी हत्यारों को पकड़ने का आदेश दे कर चले गए. आर.के. सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर गांव वालों से पूछताछ की तो पता चला कि पहले राजेश और साधना के बीच प्रेमसंबंध थे. इधर साधना ने लालू से रिश्ते बना लिए थे. इस जानकारी से थानाप्रभारी को लगा कि राजेश का कत्ल नाजायज संबंधों की ही वजह से हुआ है.

25 नवंबर को वह लालू को पकड़ कर थाने ले आए और सख्ती से पूछताछ की तो उस ने राजेश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि साधना के साथ मिल कर उसी ने राजेश की हत्या की थी, क्योंकि वह साधना को ब्लैकमेल कर रहा था. इस के बाद साधना को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पुलिस को राजेश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर (देहात) जनपद की तहसील घाटमपुर के थाना सजेती का एक गांव है बसई. इसी गांव में रामबाबू अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शांति देवी के अलावा 2 बेटियां रमन, साधना और बेटा अजय था. साधना का विवाह उन्होंने गोविंद के साथ किया था. वह थाना सजेती के अंतर्गत आने वाले गांव रामपुर के रहने वाले रघुवर का बेटा था. वह गांव में ही रह कर पिता के साथ खेती करवाता था.

गोविंद साधना जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर बहुत खुश था. साधना भी गोविंद को खूब चाहती थी. दोनों की जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी. इसी तरह 3 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच साधना ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंकुर रखा. बेटे के जन्म के बाद उन का भरापूरा परिवार हो गया.

पर उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रह सकी. होनी ने ऐसे पैर पसारे कि दोनों की जिंदगी में तबाही आ गई. गोविंद एक दिन खादबीज लेने घाटमपुर गया तो लौटते वक्त उस का बस से एक्सीडेंट हो गया, जिस में वह बुरी तरह से घायल हो गया. उस के सिर में गंभीर चोट आई थी.

साधना ने पति का काफी इलाज कराया. वह ठीक तो हो गया, लेकिन दिमाग में चोट लगने से वह अर्धविक्षिप्त हो गया. अब वह न काम करता था, न घरपरिवार की देखभाल करता था. वह पागलों की तरह गलीगली में घूमता रहता था. साधना खूबसूरत और जवान थी. पति की दूरी उसे खलने लगी. वह मर्द सुख के लिए बेचैन रहने लगी.

उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उस की नजरें पड़ोस में रहने वाले राजेश पर टिक गईं. वह उस के पड़ोस में ही बड़े भाई रमेश के साथ रहता था. उस के मातापिता की मौत हो चुकी थी. वह शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. उस का दूध का कारोबार था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर के वह मंडी में ले जा कर बेच आता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी.

राजेश और गोविंद हमउम्र थे. दोनों में दोस्ती भी थी. इसलिए राजेश का साधना के घर भी आनाजाना था. लेकिन गोविंद के पागल होने के बाद उस का साधना के घर आना काफी कम हो गया था. पर देवरभाभी का रिश्ता होने की वजह से दोनों जब भी मिलते, हंसीमजाक कर लेते थे. साधना के मन में उस के लिए चाहत पैदा हुई तो वह उस से खुल कर हंसीमजाक करने लगी.

राजेश को साधना के मन की बात का अंदाजा हुआ तो उस का उस के घर आनाजाना बढ़ गया. साधना को खुश करने के लिए वह खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा. इन चीजों को पा कर साधना खूब खुश होती. अब हंसीमजाक के साथ छेड़छाड़ भी होने लगी. साधना अपनी मोहक अदाओं से राजेश को नजदीक आने का निमंत्रण देती, लेकिन राजेश आगे बढ़ने में हिचकता था.

परंतु साधना के खुले आमंत्रण पर हिचकिचाहट त्याग कर जल्दी ही राजेश ने साधना की मन की मुराद पूरी कर दी. मर्यादा की दीवार गिरी तो सिलसिला चल निकला. अब साधना के लिए राजेश ही सब कुछ हो गया. वह भी साधना की देह का ऐसा दीवाना हुआ कि अपनी सारी कमाई उसी पर लुटाने लगा.

घर में क्या हो रहा है, विक्षिप्त होने की वजह से गोविंद को कोई मतलब नहीं था. उस की मौजूदगी में भी कभीकभी साधना राजेश के साथ संबंध बना लेती थी. अगर वह कुछ कहता तो दोनों उसे मारपीट कर भगा देते थे. इस के बाद डर के मारे वह कई दिनों तक घर नहीं आता था.

साधना पूरी तरह स्वच्छंद थी. सास की मौत हो चुकी थी. ससुर साधु बन कर गांव छोड़ कर तीर्थों में भटक रहा था. साधना को कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था, इसलिए वह खुल कर राजेश के साथ रंगरलियां मना रही थी. राजेश रात में घर से निकलता और साधना के घर पहुंच जाता. सुबह होने से पहले वह अपने घर आ जाता.

लेकिन एक रात भेद खुल गया. आधी रात को रमेश की आंख खुली तो उस ने भाई को गायब पाया. मुख्य दरवाजा बाहर से बंद था, इस से वह समझ गया कि राजेश घर से बाहर गया है. वह उस के लौटने का इंतजार करने लगा. राजेश लगभग 2 घंटे बाद घर लौटा तो रमेश उस पर बरस पड़ा. भाई की डांट से राजेश डर गया. उस ने बता दिया कि वह साधना के घर गया था और उस से उस के नाजायज संबंध हैं.

रमेश समझ गया कि राजेश अपनी सारी कमाई साधना के साथ अय्याशी में खर्च कर रहा है, इसीलिए कारोबार में घाटा बता रहा है. रमेश ने भाई को डांटफटकार कर साधना के घर जाने पर रोक लगा दी. यही नहीं, राजेश से सख्ती से हिसाब लेने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि राजेश के पास अब पैसे नहीं बचते थे, जिस से वह साधना की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था.

राजेश ने पैसे देने बंद किए तो साधना ने भी उसे लिफ्ट देना बंद कर दिया. कभी चोरीछिपे राजेश साधना के घर पहुंचता तो वह उसे दुत्कार कर भगा देती. वह अपमानित हो कर लौट आता. उसी बीच साधना के 3 साल के बेटे अंकुर को डेंगू बुखार हो गया. उस के इलाज के लिए उस ने राजेश से 10 हजार रुपए उधार मांगे.

लेकिन राजेश ने पैसे देने से मना कर दिया. रुपयों को ले कर साधना और राजेश में जम कर झगड़ा हुआ. साधना ने साफ कह दिया कि अगर अब वह उस के घर आया तो वह उसे धक्के मार कर भगा देगी. इस के बाद राजेश का साधना के घर आनाजाना बिलकुल बंद हो गया. साधना को बेटे के इलाज के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उस ने गांव के ही लालू यादव से 10 हजार रुपए ब्याज पर उधार ले लिए.

इन रुपयों से साधना ने बेटे का इलाज कराया. उचित इलाज होने से अंकुर पूरी तरह स्वस्थ हो गया. बेटा तो स्वस्थ हो गया, लेकिन अब उसे रुपए वापस करने की चिंता सताने लगी. साधना के पास खेती की कमाई के अलावा आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं था. खेती की कमाई से वह किसी तरह घर का खर्च चला पाती थी. लालू के रुपए लौटाने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे.

लालू महीने के अंत में ब्याज के रुपए लेने आता था. साधना उसे किसी न किसी बहाने टरका देती थी. जब कई महीने तक साधना ब्याज का पैसा नहीं दे पाई तो लालू का माथा ठनका. वह अपने रुपए कैसे वसूले, इस बात पर विचार करने लगा. उस ने सोचा कि अगर साधना रुपए नहीं देती तो क्यों न वह उस के शरीर से रुपए वसूल ले.

यह विचार आते ही लालू साधना से हंसीमजाक करने लगा. लालू हृष्टपुष्ट युवक था, जिस से साधना को उस के हंसीमजाक में आनंद आने लगा. उस ने सोचा कि अगर लालू उस के रूपजाल में फंस जाता है तो उस की शारीरिक जरूरत तो पूरी होगी ही, उसे उस के पैसे भी नहीं देने होंगे. इस के बाद उस ने लालू को पूरी छूट दे दी. फिर तो जल्दी ही दोनों के बीच संबंध बन गए.

लालू से उस के संबंध क्या बने, वह उस की दीवानी हो गई. लालू भी उस के लिए पागल हो चुका था, इसलिए दिल खोल कर उस पर पैसे खर्च करने लगा. यही नहीं, उस ने अपने पैसे भी मांगने बंद कर दिए.

लालू और साधना के अवैध संबंध बिना किसी रोकटोक के चल रहे थे. लेकिन अचानक राजेश बीच में कूद पड़ा. जब उसे पता चला कि साधना ने लालू से संबंध बना लिए हैं तो वह साधना को ब्लैकमेल करने की कोशिश करने लगा. उस ने साधना से कहा कि वह उस से भी संबंध बनाए वरना वह गांव में सभी से उस के और लालू के संबंधों के बारे में बता देगा.

राजेश की इस धमकी से साधना डर गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात मानने को तैयार हूं, लेकिन इस के लिए मुझे थोड़ा वक्त दो.’’ इस के बाद जब लालू आया तो साधना ने रोते हुए उस से कहा, ‘‘मेरे और तुम्हारे संबंधों की जानकारी राजेश को हो गई है. अब वह भी मुझ से संबंध बनाने को कह रहा है. संबंध न बनाने पर गांव में सब को बताने की धमकी दे रहा है.’’

साधना की इस बात पर लालू का खून खौल उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम किसी भी कीमत पर राजेश से संबंध मत बनाना. मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि वह जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा. लेकिन इस के लिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’

साधना लालू की मदद करने के लिए राजी हो गई तो लालू ने राजेश को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली और मौके का इंतजार करने लगा.

21 नवंबर, 2016 की रात 10 बजे राजेश के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उस ने देखा, साधना का फोन था. फोन रिसीव कर के वह खुश हो कर बोला, ‘‘कहो, कैसे फोन किया?’’

‘‘राजेश, मैं ने तुम्हारी बात मान ली है. तुम अभी आ जाओ.’’ साधना ने कहा.

राजेश तुरंत साधना के घर जा पहुंचा और उसे बांहों में भर लिया. तभी कमरे में छिप कर बैठा लालू निकला और राजेश को पकड़ कर पीटने लगा. राजेश कुछ कर पाता, उस के पहले ही लालू ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कस दिया. राजेश छटपटाने लगा तो साधना ने उस की छाती पर सवार हो कर उसे काबू में कर लिया.

राजेश की मौत हो गई तो दोनों ने उस की लाश को एक बोरी में भरा और रात में ही साइकिल से ले जा कर गांव के बाहर नहर के किनारे फेंक आए. पूछताछ के बाद आर.के. सिंह ने साधना और लालू के खिलाफ राजेश की हत्या का मुकदमा दर्ज कर 26 नवंबर, 2016 को कानपुर (देहात) की माती अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

17 साल के लड़के ने हैक की ई-कौमर्स साइट

फोन और लैपटौप पर खेलते-खेलते महज 17 साल का लड़का हैकर बन गया. उसने एक ई-कामर्स वेबसाइट हैक कर उसके अकाउंट से 1.97 लाख रुपये की ट्रांजैक्शन कर डाला. उस रुपये से बिटकौइन खरीद लिए.

पुलिस के मुताबिक, उसने ‘काउंटर स्ट्राइक’ गेम खेलते हुए यूट्यूब से हैकिंग के गुर सीखे. नाबालिग की इस कारगुजारी के बावजूद हैक होने वाली वेबसाइट का मालिक इतना प्रभावित हुआ कि उसने कहा कि अगर वह गुनहगार नहीं होता तो मैं उसे अच्छे पैकेज पर नौकरी पर रख लेता.

पुलिस के मुताबिक, सरकारी बिलों के औनलाइन पेमेंट से जुड़ी एक वेबसाइट के मालिक ने इसी साल जनवरी में शिकायत दी थी कि किसी ने कंपनी के अकाउंट को हैक करके 1.97 लाख रुपये अलग-अलग 6 अकाउंट में ट्रांसफर कर लिए हैं.

मौरिस नगर थाने में तैनात SI और साइबर ऐक्सपर्ट रोहित और उनकी टीम ने आरोपी नाबालिग की पहचान की, उस पर 11 महीने निगाह रखी और सबूत जुटाकर गुरुवार रात पकड़ लिया.

खेल खेल में किया अपराध

17 साल के आरोपी की 12 मेल ID मिलीं, 5 मोबाइल सिम मिले

11वीं-12वीं में कंप्यूटर साइंस पढ़ी थी, जावा और C+ लैंग्वेज में माहिर

‘काउंटर स्ट्राइक’ गेम खेलकर यूट्यूब से सीखे हैकिंग के गुर

हैकिंग की इसी कोशिश में ई-कॉमर्स साइट में घुसपैठ की, निकाले रुपये

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