मुआवजा : क्यों हो रही थी मीटिंग पर मीटिंग

दोपहर को कलक्टर साहब और उन के मुलाजिमों का काफिला आया था. शाम तक जंगल की आग की तरह खबर फैल गई कि गांव और आसपास के खेतखलिहान, बागबगीचे सब शहर विकास दफ्तर के अधीन हो जाएंगे. सभी लोगों को बेदखल कर दिया जाएगा.

रामदीन को अच्छी तरह याद है कि शाम को पंचायत बैठी थी. शोरशराबा और नारेबाजी हुई. सवाल उठा कि अपनी पुश्तैनी जमीनें छोड़ कर हम कहां जाएंगे? हम खेतिहर मजदूर हैं. गायभैंस का धंधा है. यह छोड़ कर हम क्या करेंगे?

पंचायत में तय हुआ कि सब लोग विधायकजी के पास जाएंगे. उन्हें अपनी मुसीबतें बताएंगे. रोएंगे. वोट का वास्ता देंगे.

इस के बाद मीटिंग पर मीटिंग हुईं. बड़े जोरशोर से एक धुआंधार प्लान बनाया गया, जो इस तरह था:

* जुलूस निकालेंगे. नारेबाजी करेंगे. जलसे करेंगे.

* लिखापढ़ी करेंगे. मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखेंगे.

* विधायकजी से फरियाद करेंगे. उन्हें खबरदार करेंगे.

* कोर्टकचहरी जाएंगे.

* सरकारी मुलाजिमों को गांव या उस के आसपास तक नहीं फटकने देंगे.

* चुनाव में वोट नहीं डालेंगे.

* आखिर में सब गांव वाले बुलडोजर व ट्रकों के सामने लेट जाएंगे. नारे लगाएंगे, ‘पहले हमें मार डालो, फिर बुलडोजर चलाओ’.

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब नोटिस आया, तो कुछ ने लिया और बहुतों ने वापस कर दिया. नोटिस देने वाला मुलाजिम पुलिस के एक सिपाही को साथ ले कर आया था. वह सब को सम?ाता था, ‘नोटिस ले लो, नहीं तो दरवाजे पर चिपका देंगे. लोगे तो अच्छा मुआवजा मिलेगा, नहीं तो सरकार जमीन मुफ्त में ले लेगी. न घर के रहोगे और न घाट के.’

आज रामदीन महसूस करता है कि मुलाजिम की कही बात में सचाई थी. अपनेआप को जनता का सेवक कहने वाले सरपंचजी कन्नी काटने लगे थे. विधायकजी वोट ले कर फरार हो गए थे.

रामदीन पढ़ालिखा न था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘इस कागज का हम क्या करेंगे?’’ रामदीन पूछ बैठा.

‘‘अपने पट्टे के कागज ले कर दफ्तर जाना. वहां तुम्हारी जमीन की कीमत आंकी जाएगी. उस के बाद सरकार अपना भाव निकालेगी और तुम्हें उसी के मुताबिक ही भुगतान होगा,’’ डाकिए ने सम?ाया.

3 गांवों पर इस का असर पड़ा था. इतमतपुर, इस्माइलपुर और गाजीपुर. गांव वाले खेतों से ध्यान हटा कर सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने लगे. उन्हें तमाम सवालों का दोटूक जवाब मिलता, ‘फाइलें खुल रही हैं. जानते हो न, सरकारी कामकाज कैसे चलता?है… चींटी की चाल.’

दफ्तर के बाहर ‘सरकारी काम में रुकावट न डालें’ का नोटिस भी लगा दिया गया था.

गांव वाले दफ्तर के बाहर से ही उलटे पैर लौटा दिए जाने लगे थे. लोहे की सलाखों वाला फाटक ऐसे बंद कर दिया गया था मानो जेल हो.

6 महीने बीते. अचानक चारों तरफ ट्रैक्टर, ट्रक, बुलडोजर और टिड्डियों की तरह आदमी मंडराने लगे. खड़ी फसल, आम और अमरूद के बाग देखते ही देखते उजाड़ दिए गए. जहां हरियाली थी, वहां अब पीली मिट्टी का सपाट मैदान हो गया था.

गुस्साए गांव वालों ने ‘पहले पैसा दो, फिर जमीन लो’, ‘हम कहां जाएंगे’, ‘हायहाय’ के नारे लगाए थे. नारेबाजी हुई, फिर पत्थरबाजी भी हुई थी.

पुलिस आई. गिरफ्तारियां हुईं. पुलिस ने जीभर कर लोगों की पिटाई की. मुकदमा चला सो अलग.

25 आदमी कुसूरवार पाए गए. 6-6 महीने की सजा हुई. रामदीन भी उन में से एक था.

जब रामदीन घर लौट कर आया, तब तक सबकुछ बदल चुका था. दरवाजे पर नोटिस चिपका हुआ था. जहां उस का बगीचा था, वहां ‘इंदिरा आवास योजना’ का बड़ा सा बोर्ड लगा था. जिस ने गरीबी मिटाने का नारा लगाया था, उसी के नाम पर कालोनी बन रही है.

घर में खाने के लाले पड़े हुए थे. आमदनी के नाम पर 4 भैंसें व 2 गाएं ही बची थीं. रामदीन दिहाड़ी के लिए निकल पड़ा था. वह भी कभी मिलती और कभी नहीं.

सोतेसोते रामदीन चौंक कर उठ बैठता. वह टकटकी बांधे छत को ताकता रहता. यह मकान भी खाली करना था. खुले आसमान की छत ही उस की जिंदगी का अगला पड़ाव होगा.

फिर दफ्तर के चक्कर लगाना रामदीन का रोज का काम हो गया था. दफ्तर के बरामदे में ‘नोटिस पर भुगतान के लिए मिलें’ का दूसरा नोटिस लग चुका था, इसीलिए वह दफ्तर में घुस गया था.

एक बाबू ने बताया, ‘‘सरकार के पास पैसा नहीं है.’’

दूसरा बाबू बोला, ‘‘तुम्हारा तो नाम ही नहीं है.’’

तीसरे ने कहा, ‘‘फाइलें बन गई हैं.’’

चौथे ने हंस कर कहा था, ‘‘मैं ही सब करूंगा… पहले मेरी दराज में तो कुछ डालो.’’

जितने मुंह उतनी ही बातें. रामदीन को तो खुद ही खाने के लाले पड़े थे, फिर किसी को चायपानी क्या कराता? उन की जेबें कैसे गरम करता?

चपरासी भी बख्शिश के चक्कर में बड़े साहब से मिलाने के लिए टालमटोल कर रहा था. 50 रुपए जेब में रखने के बाद ही उस ने साहब के कमरे का दरवाजा खोला था.

रामदीन साहब के पैरों में गिर कर रो पड़ा था. गिड़गिड़ाते हुए उस ने कहा था, ‘‘साहब, 3 साल हो गए हैं, एक पैसा भी नहीं मिला है. मैं पढ़ालिखा नहीं हूं. घर में खाने के लाले पड़े हैं.’’

साहब ने हमदर्दी दिखाई थी, वादा भी किया था, ‘‘घर से बेदखल करने से पहले तुम्हें कुछ न कुछ जरूर भुगतान किया जाएगा.’’

रामदीन इस तरह खुश हो कर घर लौटा था, जैसे दुनिया ही जीत ली हो. लेकिन जल्दी ही भरम टूटा. 6 महीने बाद भी वह वादा वादा ही रहा.

पुलिस घरों में घुसघुस कर सामान बाहर फेंकने लगी. सरकारी हुक्म की तामील जो हो रही थी.

रामदीन अपने घर वालों और जानवरों को ले कर अपने मौसेर भाई के यहां कुकरेती जा कर बस गया.

एक दिन रामदीन को लोगों ने बताया कि मामला कोर्ट में पहुंच गया है. जनता का भला करने वाले कुछ लोगों ने वहां अर्जी लगाई थी.

बातबात में रामदीन ने एक दिन अपने एक ग्राहक, जो एक दारोगा की बीवी थी, को अपनी कहानी सुना दी. दारोगाइन को उस पर तरस आ गया. दारोगाजी ने कागज देखे, 2-3 अर्जियां लिखीं. वे उस के साथ भी गए.

इस से दफ्तर के बाबुओं की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. रामदीन की फाइलें दौड़ने लगी थीं.

एक महीने में ही रामदीन के नाम के 3 चैक बने. एक 50,000 का, दूसरा 20,000 का और तीसरा 30,000 का. ये तीनों चैक खेत, मकान और बगीचे के एवज में थे.

पहला चैक मिलते ही रामदीन के दिन फिर गए. दारोगाजी उस के लिए भले इनसान साबित हुए थे. वह उन्हें दुआएं देता रहा और मुफ्त में दूध भी.

बाकी चैक पाने के लिए दफ्तर के चक्कर काटना रामदीन का अब रोजाना का काम बन गया था. बहुत से बाबू व अफसर उसे अच्छी तरह पहचान गए थे. वह उन्हें पान, सिगरेट, गुटका भी देता या कभी चाय भी पिलाता.

बाबू रामदीन को खबर देते. उसे बताया गया था कि पहले 8 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलने वाले थे, अब शायद 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से मिलेंगे.

एक दिन दफ्तर में रामदीन को उस का पड़ोसी राम खिलावन मिल गया. बातचीत से उसे पता चला कि शायद कोर्ट जमीन के भाव बढ़ा कर 10 या 13 रुपए वर्गफुट कर दे.

राम खिलावन ने बताया, ‘‘जानते हो रामदीन, सरकार हम से 10 रुपए वर्गफुट के हिसाब से जमीन खरीद कर सौ या 150 रुपए तक के भाव में बेच रही है.’’

दूसरी किस्त का चैक कुछ ही दिनों में मिलने वाला था. आखिरी चैक तो कोर्ट के फैसले के बाद ही मिलेगा.

रामदीन दुखी हो कर सोचने लगा, ‘सरकार 10 रुपए दे कर सौ रुपए में बेच रही है. एक फुट पर 90 रुपए का फायदा. महाजन को भी मात दे दी. क्या यही है जनता का राज?’

दारोगा साहब का तबादला हो गया था, लेकिन वह उसे एक समाजसेवक से मिलवा गए थे.

अब बाबुओं के तेवर बदल गए, ‘तुम उस के बूते पर बहुत कूदते थे, अब लेना ठेंगा.’

कुछ तो कहते, ‘इतनी सी बात भी तुम्हारी सम?ा में नहीं आती कि हम सरकारी मुलाजिम हैं. हमारे पास कलम है, ताकत?है.’

उस समाजसेवक की कोशिशों के बावजूद दूसरी किस्त लेने के लिए 5,000 रुपए बाबुओं की जेबों में डालने पड़े और इतना ही समाजसेवक साहब को भी खर्चापानी देना पड़ा.

रामदीन दौड़ता रहा. कभी दफ्तर में तो कभी कोर्टकचहरी में. उस ने मकान बनवा लिया था. अब उस के पास 10 भैंसें, 4 गाएं, 2 बैल और 2 बीघा जमीन भी थी.

जिंदगी में नई सुबह आई थी. लेकिन सब से ज्यादा फर्क रामदीन की सोच में आया था. वह जान गया था कि अनपढ़ होना मुसीबत की जड़ है.

रामदीन के 4 में से 3 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. पहला छठी में, दूसरा तीसरी में, तीसरी बिटिया पहले दर्जे में. चौथा बेटा 3 साल का था. वह अगले साल उस का दाखिला कराएगा. वह खुद भी अपने बच्चों से पढ़ता था.

कोर्ट का फैसला जल्दी ही आ गया. अदालत ने 13 रुपए वर्गफुट का भाव लगाया था. साथ ही, एक अधबना मकान लोगों से आधा पैसा ले कर देना था. 10 साल के इंतजार के बाद उस के और दूसरे गांव वालों के चेहरों पर मुसकान दिखी थी.

कोर्ट में अर्जी लगाने वाली संस्था के वकीलों के हाथों में चैक थे और चेहरों पर गहरी मुसकान. कुल 15 फीसदी देना होगा. 6 फीसदी वकीलों को, 5 फीसदी बाबुओं व अफसरों को और 4 फीसदी गैरसरकारी संस्था को.

सभी भोलेभाले लोग हैरान रह गए थे. सरपंच, नेता, पार्टी, पंडा, वकील, सरकारी दफ्तर क्या ये सभी दलाल हैं, मुरदों के भी कफन खसोटने वाले?

फर्क सिर्फ इतना है कि पंडे धर्म के नाम पर पूजा कराने, वकील कचहरी में फैसला कराने, नेता, समाजसेवक लोगों का भला कराने, बाबू दफ्तरों के काम कराने के पैसे लेते हैं.

दलाली के भी अलगअलग नाम हैं. जैसे चढ़ावा, दक्षिणा, फीस, चंदा और चायपानी. सभी का एक ही मकसद है, लोगों की जेब खाली कराना.

लोगों में बातचीत हो रही थी. जलसे हुए. बाद में कुल 10 फीसदी पर आम राय हो गई.

10 साल बीत चुके थे, पर मुआवजे की किस्तें अभी भी अधूरी थीं. चींटियों की चाल चल रही थी सारी सरकारी कार्यवाही. जब तक सांस है, आस भी है. कभी न कभी मुआवजा तो मिलेगा ही.

मेघनाद : मेघनाद और श्वेता का प्रेम संसार

‘मेघनाद…’ हमारे प्रोफैसर क्लासरूम में हाजिरी लेते हुए जैसे ही यह नाम पुकारते, ‘खीखी’ की दबीदबी आवाजें आने लगतीं. एक तो नाम भी मेघनाद, ऊपर से जनाब 6 फुट के लंबे कद के साथसाथ अच्छेखासे सांवले रंग के मालिक भी थे. उस पर घनीघनी मूंछें. कुलमिला कर मेघनाद को देख कर हम शहर वाले उसे किसी फिल्मी विलेन से कम नहीं सम झते थे.

पास ही के गांव से आने वाला मेघनाद पढ़ाई में अव्वल तो नहीं था लेकिन औसत दर्जे के छात्रों से तो अच्छा ही था.

आमतौर पर क्लास में पीछे की तरफ बैठने वाला मेघनाद इत्तिफाक से एक दिन मेरे बराबर में ही बैठा था. जैसे ही प्रोफैसर ने उस का नाम पुकारा कि ‘खीखी’ की आवाजें आने लगीं.

मेरे लिए अपनी हंसी दबाना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था. मु झे लगा कि मेघनाद को बुरा लग सकता है, लेकिन मैं ने देखा कि वह खुद भी मंदमंद मुसकरा रहा था.

कुछ दिनों से मैं नोट कर रहा था कि मेघनाद चुपकेचुपके श्वेता की तरफ देखता रहता था. कालेज में लड़कियों की तरफ खिंचना कोई नई बात नहीं थी लेकिन श्वेता अपने नाम की ही तरह खूब गोरी और बेहद खूबसूरत थी. क्लास के कई लड़के उस पर फिदा थे लेकिन श्वेता किसी को भी घास नहीं डालती थी.

मैं ने यह बात खूब मजे लेले कर अपने दोस्तों को बताई.

एक दिन जब प्रोफैसर महेश ने मेघनाद का नाम पुकारा तो कोई जवाब नहीं आया. उन्होंने फिर से नाम पुकारा लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं आया.

मेघनाद कभी गैरहाजिर नहीं होता था इसलिए प्रोफैसर महेश ने सिर उठा कर फिर से उस का नाम लिया. अब तक क्लास की ‘खीखी’ अच्छीखासी हंसी में बदल गई थी.

इतने में श्वेता ने मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘सर, वह शायद लक्ष्मणजी के साथ कहीं युद्ध कर रहा होगा.’’

यह सुन कर सभी हंसने लगे. यहां तक कि प्रोफैसर महेश भी अपनी हंसी न रोक पाए.

तभी सब की नजर दरवाजे पर पड़ी जहां मेघनाद खड़ा था. आज उस की ट्रेन लेट हो गई थी तो वह भी थोड़ा लेट हो गया था. उस ने श्वेता की बात सुन ली थी और उस का चेहरा उतर गया था.

मुझे मेघनाद का उदास सा चेहरा देख कर अच्छा नहीं लगा. शायद उस को लोगों की हंसी से ज्यादा श्वेता की बात बुरी लगी थी.

बीएससी पूरी कर के मैं दिल्ली आ गया और फिर अगले 10 सालों में एक बड़ी मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर बन गया.

कालेज के मेरे कुछ दोस्त सरकारी टीचर बन गए तो कुछ अपना कारोबार करने लगे.

कालेज के कुछ पुराने छात्रों ने 10 साल पूरे होने पर रीयूनियन का प्रोग्राम बनाया. अनुराग, अजहर, विनोद, इकबाल, पारुल वगैरह ने प्रोग्राम के लिए काफी मेहनत की.

प्रोग्राम में अपने पुराने साथियों से मिल कर मु झे बहुत अच्छा लगा.

यों तो प्रोग्राम में अपनी क्लास के करीब आधे ही लोग आ पाए, फिर भी उन सब से मिल कर काफी अच्छा लगा.

मेरे सहपाठी हेमेंद्र और दीप्ति शादी कर के मुंबई में रह रहे थे तो संजय एक बड़ी गारमैंट कंपनी में वाइस प्रैसीडैंट बन गया था. अतीक जरमनी में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर था. वह प्रोग्राम में तो नहीं आ पाया लेकिन उस ने हम सब को अपनी शुभकामनाएं जरूर भेजी थीं.

वंदना एक कामयाब डाक्टर बन गई थी. हमारे टीचरों ने भी हम सब को अपनेअपने फील्ड में कामयाब देख कर अपना आशीर्वाद दिया. कुलमिला कर सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

हमारे सीनियर मैनेजर मनीष सर 2 साल के लिए अमेरिका जा रहे थे. उन की जगह कोई नए सीनियर मैनेजर हैदराबाद से आ रहे थे. मेरे साथी असिस्टैंट मैनेजर ऋषि, जिन को औफिस में सब ‘पार्टी बाबू’ के नाम से बुलाते थे, ने नए सीनियर मैनेजर के स्वागत में एक छोटी सी पार्टी करने का सु झाव दिया. हम सभी को उन की बात जंच गई और सभी लोग पार्टी की तैयारियों में लग गए.

तय दिन पर नए सीनियर मैनेजर औफिस में पधारे और उन को देखते ही मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही. मेरे सामने मेघनाद खड़ा था. वह भी मु झे देख कर तुरंत पहचान गया और बड़ी गर्मजोशी से आ कर मिला.

मेघनाद बड़ा आकर्षक लग रहा था. सूटबूट में आत्मविश्वास से भरपूर फर्राटेदार अंगरेजी में बात करता एक अलग ही मेघनाद मेरे सामने था. अपने पहले ही भाषण में उस ने सभी औफिस वालों को प्रभावित कर लिया था.

थोड़ी देर बाद चपरासी ने आ कर मुझ से कहा कि सीनियर मैनेजर आप को बुला रहे हैं. मेघनाद ने मेरे और परिवार के बारे में पूछा. फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि ग्रेजुएशन करने के बाद वह कुछ साल दिल्ली में रहा, फिर हैदराबाद चला गया. पिछले साल ही उस ने हमारी कंपनी की हैदराबाद ब्रांच जौइन की थी. फिर उस ने मु झे रविवार को सपरिवार अपने घर आने की दावत दी.

रविवार को मैं अपनी श्रीमती के साथ मेघनाद के घर पहुंचा. घर पर मेघनाद के 2 प्यारेप्यारे बच्चे भी थे. लेकिन असली  झटका मु झे उस की पत्नी को देख कर लगा. मेरे सामने श्वेता खड़ी थी. मेरे हैरानी को भांप कर मेघनाद भी हंसने लगा.

‘‘हैरान हो गए क्या…’’ मेघनाद ने हंसते हुए कहा, फिर खुद ही वह अपनी कहानी बताने लगा, ‘‘दिल्ली आने के बाद नौकरी के साथसाथ मैं एमबीए भी कर रहा था. वहां मेरी मुलाकात श्वेता से हुई थी. फिर हमारी दोस्ती हो गई और कुछ समय बाद शादी. वैसे, मुझ में इन्होंने क्या देखा यह आज तक मेरी सम झ में नहीं आया.’’

श्वेता ने भी अपने दिल की बात बताई, ‘‘कालेज में तो मैं इन को सही से जानती भी नहीं थी, पता नहीं कहां पीछे बैठे रहते थे. दिल्ली आकर मैं ने इन के अंदर के इनसान को देखा और समझा. मैं ने अपनी जिंदगी में इन से ज्यादा ईमानदार, मेहनती और प्यार करने वाला इनसान नहीं देखा.’’

मेघनाद और श्वेता के इस प्रेम संसार को देख कर मुझे वाकई बड़ी खुशी हुई. सच ही है कि आदमी की पहचान उस के नाम या रंगरूप से नहीं, बल्कि उस के गुणों से होती है. और हां, अब मुझे मेघनाद नाम सुन कर हंसी नहीं आती, बल्कि फख्र महसूस होता है.

अनपढ़ : कालू डकैत ने फूलबतिया को क्यों उठाया

फूलबतिया को कालू डकैत उठा कर ले गया था. उस की ससुराल वाले कालू का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. पर कालू के ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया वहां से भाग गई. फिर वह रमेसरा से मिली और उस की घरवाली के रूप में रहने लगी. आगे क्या हुआ?

‘‘र मेसरा ने फूलबतिया से घर कर लिया है,’’ कंटीर मिसर अपने पड़ोसी देवेन को बता रहे थे.

‘‘अच्छा, मगर रमेसरा तो सीधासादा है,’’ देवेन बोले.

‘‘तभी तो फूलबतिया ने उसे फंसा लिया होगा. कौन नहीं जानता कि फूलबतिया को कालू डकैत उठा ले गया था,’’ कंटीर मिसर बोल रहे थे.

पूरे गांव के लोग परेशान थे. वजह, 2 महीने पहले कालू डकैत और उस के गिरोह के 4 सदस्य पुलिस ऐनकाउंटर में मारे गए थे. पूरा गिरोह ही खत्म हो गया था.

फूलबतिया को वही कालू 4 साल पहले उठा ले गया था. वह उसी की मंगेतर थी. कालू ने जीभर कर उसे भोगा और ऐनकाउंटर के बाद फूलबतिया रमेसरा से घर कर बैठी.

रमेसरा सीधासादा मजदूर था, जो दिल्ली में मजदूरी करता था. साल में एक बार घर आता था. उस के पिताजी सालों पहले गुजर चुके थे. उस ने पिछले साल अपनी मां को भी खो दिया था. वह 35-36 साल का होगा, जबकि फूलबतिया भी 30-32 साल के पास की होगी.

फूलबतिया के बाकी सभी बहनभाइयों की शादी हो चुकी थी. सो, वह आराम से रमेसरा से ब्याह कर बैठी.

काली और दोहरे बदन की अंगूठाछाप फूलबतिया खुद को कालू डकैत से कम नहीं समझती थी. वह तो अच्छा था कि पुलिस को सबक सिखाने वालों की टीम में वह नहीं शामिल थी.

‘चलो, उस पुलिस वाले साहब ने हमारा अड्डा और धंधा चौपट कर दिया है. उसे सबक सिखाना है. उसे बीवीबच्चों के सामने ही निबटा देना है,’ ऐनकाउंटर पर जाने से पहले कालू डकैत अपने साथियों से बोला था.

‘यही ठीक रहेगा. कल शाम को शैतान सिंह के घर धावा बोलना है,’ दूसरे साथी ने कहा था.

‘मैं भी साथ चलूंगी,’ फूलबतिया कालू के सामने ऐंठते हुए बोली थी.

‘तू यहीं रह. उस के लिए हम 4 ही काफी हैं. तू अच्छा सा मुरगाभात बना कर रखना,’ कालू डकैत ने कहा था.

‘अरे हरिया, शैतान सिंह को कल शाम का समय बोल दे. देख लें उस के पुलिस बल में कितनी औकात है?’ कालू दहाड़ा था.

पुलिस आखिर पुलिस होती है. वे चारों फिल्मी अंदाज में वहां गए और शैतान सिंह ने तो नहीं, हां सिर्फ 2 पुलिस वालों ने उन्हें ही निबटा दिया था.

उन चारों का अंतिम संस्कार हो, उस के पहले ही फूलबतिया वहां से भाग गई थी. उसे रमेसरा अच्छा मुरगा लगा था, जिस से आसानी से हलाल किया जा सकता था. इधर फूलबतिया के घर वालों ने उस से नाता ही तोड़ लिया था.

हुआ यह था कि भारी बरसात में फूलबतिया डाकुओं के अड्डे से भाग निकली थी और साड़ी में भीगती भागी जा रही थी. अचानक रेलवे स्टेशन पर जो गाड़ी दिखी, उस में चढ़ गई. उसी गाड़ी से रमेसरा भी अपने गांव से जा रहा था.

‘अरे, आप तो भीग गई हैं. आइए, बैठ जाइए,’ रमेसरा ने एक तरफ फूलबतिया को अपने पास सरकते हुए उसे बिठाया था.

‘यह गाड़ी कहां जा रही है?’ फूलबतिया धीरे से पूछ बैठी थी.

‘दिल्ली… आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने इनसानियत के नाते पूछा था.

‘मेरा कोई ठिकाना नहीं है. आप कहां से आ रहे हैं?’

‘बिहार से,’ रमेसरा बोला.

‘कहीं आप सतीश के लड़के रामेश्वर यानी रमेसरा तो नहीं है?’ फूलबतिया उसे पहचानते हुए बोली थी.

‘बिलकुल ठीक पहचाना. मैं वही रमेसरा हूं. दिल्ली में काम करता हूं. मगर आप…?’ रमेसरा ने हैरानी से पूछा था.

‘मैं फूलबतिया हूं, पास वाले गांव के सुगना की बेटी,’ वह जवाब देते हुए बोली थी.

‘अच्छा…’ कह कर रमेसरा सोचने लगा था, मगर जब कुछ याद नहीं आया, तो वह शांत बैठ गया था. अचानक उस का ध्यान फूलबतिया के कपड़ों पर गया. भीगी चोली में बड़े व लटके दोनों उभार अजीब दिख रहे थे.

‘आप को कहां जाना है?’ रमेसरा ने पूछा था.

इस पर फूलबतिया रोने लगी थी. अपनी पहचान का समझ कर वह उस के साथ दिल्ली पहुंच गई थी. फिर तो 15 दिनों के अंदर ही उस ने रमेसरा का घर संभाल लिया था.

दिल्ली में फूलबतिया सरल भाव से रह रही थी, जबकि सब उसे रमेसरा की पत्नी बता रहे थे. वह भी पत्नी जैसा ही बरताव कर रही थी.

‘आप मेरे से शादी कर लो,’ एक दिन फूलबतिया रमेसरा से सीधे बोली थी.

‘देख रही हो, लोग आप को मेरी लुगाई समझ रहे हैं. आप को बुरा नहीं लगता?’ रमेसरा ने हैरान होते हुए पूछा था.

‘कैसा बुरा? मुझे कुछ भी खराब नहीं लगता. आप मुझ लाचार और बेबस औरत को अपने घर में रखे हैं, मेरा पूरा ध्यान रखते हैं,’ फूलबतिया मुसकराते हुए बोली थी.

‘मगर, आप का पति और परिवार वाले…’ रमेसरा ने पूछा था.

‘कोई नहीं है. मेरा परिवार मुझे कालू डकैत को सौंप कर अलग हो चुका है. कालू और उस की टीम मारी जा चुकी है.’

‘तुम तो डकैत रह चुकी हो. किसी बात पर नाराज हुई तो मेरा भी खात्मा कर डालोगी. कोई भरोसा नहीं है तुम्हारा,’ रमेसरा डरते हुए बोला था.

‘अरे नहीं, मैं एक औरत हूं. पत्नी के रूप में घर चलाती हूं. फिर डकैत की जिंदगी बेकार की है. पुलिस की गोली से या आपस में ही खत्म हो जाती है,’ फूलबतिया समझाते हुए बोली थी.

‘फिर तुम कैसे वहां पहुंच गई?’ रमेसरा ने पूछा था.

‘आज से 6 साल पहले मेरी शादी मोहित मंडल से करवाई गई थी. शादी के बाद एक साल तो ठीक बीता, पर फिर कालू डकैत मुझे उठा ले गया. ससुराल और पीहर वालों में से किसी ने भी मेरी हिफाजत नहीं की.

‘मेरा पति भी कुछ नहीं कर सका और बाद में एक सड़क हादसे में चल बसा. तब से मैं कालू के साथ ही थी. वह गिद्ध की तरह मुझे नोचताखसोटता था. अभी कुछ दिन पहले उस के सारे लोग मारे गए.’

‘तुम तो मोस्ट वांटेड होगी?’ रमेसरा पूछ बैठा था.

‘नहीं, मैं अलग थी. कालू के किसी कारोबार या डकैती से मेरा कुछ भी लेनादेना नहीं था. पुलिस कभी भी मेरे पास नहीं आई, न ही मुझ से कोई मतलब है,’ फूलबतिया रोते हुए बोली थी.

‘मुझ से क्या चाहती हो? मैं तुम्हारे किस काम आ सकता हूं,’ रमेसरा ने पूछा था.

‘तुम मुझ से शादी कर लो. शादी क्या चादर डाल दो,’ फूलबतिया थोड़ा शरमाते हुए बोली थी.

‘‘ठीक है, मेरा तो कोई है नहीं. तुम्हारे घर वालों को तो कोई एतराज नहीं होगा न?’ रमेसरा बोला था.

‘कौन घर वाले? जो डकैत के हवाले कर गए या जो मुझे कभी झांकने नहीं आए? तुम ईमानदार हो, मुझे कभी हाथ नहीं लगाया. गलत नजर से नहीं देखा. तुम एक अबला समझ कर मुझे अपने पास रखे हो और इतना मान दे रहे हो.’

अब रमेसरा शांत भाव से फूलबतिया को देखने लगा था. वह एक घरेलू अनपढ़ लग रही थी. इस तरह वह अपनी वीरान जिंदगी में एक मौका समझ बैठा था.

फिर एक रात तकरीबन 8 बजे रमेसरा काम से घर वापस आया. घर में आते ही फूलबतिया पर नजर पड़ी. वह खाना बना रही थी. उस ने हाथपैर धोए और खाना खाया. वह भी खाने लगी. खा कर जब दोनों लेटे तो वह न जाने क्यों उसे छूने लगा.

फूलबतिया हंसते हुए उस से सट गई और पूरा सुख दिया. रमेसरा को खूब मजा आ रहा था. वह भी पूरा साथ दे रही थी. पहली बार दोनों जीभर कर खेल रहे थे.

‘आओ, आप आराम से अपनी इच्छा शांत करो,’ फूलबतिया ने कहा था.

‘नहीं, यह पाप था,’ रमेसरा शांत होने पर पछताते हुए बोला था.

‘कोई पाप नहीं था. यह मजा है. फिर मैं तेरी जोरू हूं. सब पत्नी से सब सोते हैं, फिर पाप कैसा?’ वह बोली थी.

रमेसरा उस के बाद काम में खो गया. सुबह से शाम तक का काम और फिर अपने घर पर पत्नी तो अद्भुत थी ही. जब भी इच्छा होती जैसी भी इच्छा होती, वह अपनी इच्छा शांत करता. पत्नी हमेशा साथ देती थी.

डकैत भी प्यार के भूखे होते हैं. फूलबतिया एक पत्नी की तरह घर संभाल रही थी, समय पर भोजन, पानी, सबकुछ संभाल रखा था.

हद तो तब हो गई, जब फूलबतिया ने 70,000 रुपए का आटोरिकशा खरीद कर रमेसरा को चलाने के लिए दे दिया.

‘रोज 500 रुपए घरखर्च के और बाकी बैंक की किस्त,’ रमेसरा फूलबतिया के हाथ में पैसे देते हुए बोला था.

‘काहे की किस्त? मैं ने अपनी जमा रकम से आटोरिकशा लिया है. तुम घरखर्च के जो पैसे देते थे, उसी में से बचा कर पूरे एक लाख में से 70,000 रुपए की खरीदी है. बाकी कभी परेशानी, बीमारी या आफत के लिए.’

अब रमेसरा फूलबतिया को पूरी तरह से बांहों में भर कर चूमने लगा.

‘कौन कहता है कि तुम ऐसीवैसी हो. तुम तो किसी भी पत्नी से अच्छी हो.’

‘दिनरात काम करने की जरूरत नहीं है. आराम से जितना काम हो उतना करना. मुसीबत के लिए पैसे जोड़ रखे हैं. जल्दी ही यह झुग्गी भी अपनी होगी.’

‘क्या?’ रमेसरा ने हैरान हो कर कहा.

‘अरे, 70,000 रुपए इस के दे दिए हैं. 2 लाख की झुग्गी है. सालभर में अपनी हो जाएगी,’ फूलबतिया खुशी से झूम कर बोली.

रमेसरा निश्चिंत भाव से फूलबतिया को देख रहा था.

मन की थाह : राधेश्याम की अनोखी गाथा

रामलाल बहुत हंसोड़ किस्म का शख्स था. वह अपने साथियों को चुटकुले वगैरह सुनाता रहता था.

वह अकसर कहा करता था, ‘‘एक बार मैं कुत्ते के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गया. वहां आदमियों का वजन तोलने के लिए बड़ी मशीन रखी थी. मैं ने एक रुपया दे कर उस पर अपने कुत्ते को खड़ा कर दिया. मशीन में से एक कार्ड निकला जिस पर वजन लिखा था 35 किलो और साथ में एक वाक्य भी लिखा था कि आप महान कवि बनेंगे.’’

यह सुनते ही सारे दोस्त हंसने लगते थे.

रामलाल जितना मजाकिया था, उतना ही दिलफेंक भी था. उम्र निकले जा रही थी पर शादी की फिक्र नहीं थी. शादी न होने की एक वजह घर में बैठी बड़ी विधवा बहन भी थी. गणित में पीएचडी करने के बाद वह इलाहाबाद के डिगरी कालेज में प्रोफैसर हो गया और वहीं बस गया. उस के एक दोस्त राधेश्याम ने दिल्ली में नौकरी कर घर बसा लिया.

एक बार राधेश्याम को उस से मिलने का मन हुआ. काफी समय हो गया था मिले हुए, इसलिए उस ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘मैं 3-4 दिनों के लिए इलाहाबाद जा रहा हूं. रामलाल से भी मिलना हो जाएगा. काफी सालों से उस की कोई खबर भी नहीं ली है. आज ही फोन कर के उसे अपने आने की सूचना देता हूं.’’

राधेश्याम ने रामलाल को अपने आने की सूचना दे दी. इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर पहुंचते ही राधेश्याम ने रामलाल को खोजना शुरू कर दिया. पर जो आदमी एकदम उस के गले आ कर लिपट गया वह रामलाल ही होगा, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था क्योंकि रामलाल कपड़ों के मामले में जरा लापरवाह था. पर आज जिस आदमी ने उसे गले लगाया वह सूटबूट पहने एकदम जैंटलमैन लग रहा था.

राधेश्याम के गले लगते ही रामलाल बोला, ‘‘बड़े अच्छे मौके पर आए हो दोस्त. मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं.’’

‘‘कैसी मुसीबत? मुझे तो तुम अच्छेखासे लग रहे हो,’’ राधेश्याम ने रामलाल से कहा. इस पर रामलाल बोला, ‘‘तुम्हें पता नहीं है… मैं ने शादी कर ली है.’’

इस बात को सुनते ही राधेश्याम चौंका और बोला, ‘‘अरे, तभी कहूं कि 58 साल का बुड्ढा आज चमक कैसे रहा है? यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह तो बता इतने सालों बाद तुझे शादी की क्या सूझ? अब पत्नी की जरूरत कैसे पड़ गई? हमें खबर भी नहीं की…’’

इस पर रामलाल फीकी सी मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘बस यार, उम्र के इस पड़ाव पर जा कर शादी की जरूरत महसूस होने लगी थी. पर बात तो सुन पहले. मैं ने जिस लड़की से शादी की है, वह मेरे कालेज में ही मनोविज्ञान में एमए कर रही है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है,’’ राधेश्याम ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छीवच्छी कुछ नहीं. उस ने आते ही मेरे ड्राइंगरूम का सामान निकाल कर फेंक दिया और उस में अपनी लैबोरेटरी बना डाली, ‘‘बुझ हुई आवाज में रामलाल ने कहा.

‘‘तब तो तुम्हें बड़ा मजा आया होगा,’’ राधेश्याम ने चुटकी ली.

‘‘हांहां, शुरूशुरू में तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा, पर आजकल तो बहुत बड़ी मुसीबत आई हुई है,’’ दुखी  आवाज में रामलाल बोला.

‘‘आखिर कुछ बताओगे भी कि हुआ क्या है या यों ही भूमिका बनाते रहोगे?’’ राधेश्याम ने खीजते हुए कहा.

‘‘सब से पहले उस ने मेरी बहन के मन की थाह ली और अब मेरी भी…’’

राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाई रामलाल, तुम ने बहुत बढि़या बात सुनाई. तुम्हारे मन की थाह भी ले डाली.’’

‘‘हां यार, और कल उस ने रिपोर्ट भी दे दी.’’

‘‘रिपोर्ट? हाहाहाहा, तुम भी खूब आदमी हो. जरा यह तो बताओ कि उस ने यह सब किया कैसे था?’’

‘‘उस ने मुझे एक पलंग पर लिटा दिया. मेरी बांहों में किसी दवा का एक इंजैक्शन लगाया और बोली कि मैं जो शब्द कहूं, उस से फौरन कोई न कोई वाक्य बना देना. जल्दी बनाना और उस में वह शब्द जरूर होना चाहिए.’’

‘‘सब से पहले उस ने क्या शब्द कहा?’’ राधेश्याम ने पूछा.

रामलाल ने कहा, ‘‘दही.’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘तुम ने क्या वाक्य बनाया?’’

रामलाल बोला, ‘‘क्योंजी, मध्य प्रदेश में दही तो क्या मिलता होगा?’’

राधेश्याम ने पूछा, ‘‘फिर?’’

रामलाल बोला, ‘‘फिर वह बोली, ‘बरतन.’

‘‘मैं ने कहा कि मुरादाबाद में पीतल के बरतन बनते हैं.

‘‘बस ऐसे ही बहुत से शब्द कहे थे. देखो जरा रिपोर्ट तो देखो,’’ यह कह कर उस ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला.

यह एक लैटरपैड था, जो इस तरह लिखा हुआ था, सुमित्रा गोयनका, एमए साइकोलौजी.

मरीज का नाम, रामलाल गोयनका.

बाप का नाम, हरिलाल गोयनका.

पेशा, अध्यापन.

उम्र, 58 साल.

ब्योरा, हीन भावना से पीडि़त. आत्मविश्वास की कमी. अपने विचारों पर दृढ़ न रहने के चलते निराशावादी बूढ़ा.

‘‘अबे, किस ने कहा था बुढ़ापे में शादी करने के लिए और वह भी अपने से 10-15 साल छोटी उम्र की लड़की से? जवानी में तो तू वैसे ही मजे लेता रहा है. तेरा ब्याह क्या हुआ, तेरे घर में तो एक अच्छाखासा तमाशा आ गया. तुझे तो इस में मजा आना चाहिए, बेकार में ही शोर मचा रहा है.’’

‘‘तू नहीं समझेगा. वह मेरी बहन को घर से निकालने पर उतारू हो गई है. दोनों में रोज लड़ाई होती है. अब मेरी बड़ी विधवा बहन इस उम्र में कहां जाएंगी?

‘‘अगर मैं उन्हें घर से जाने को कहता हूं, तो समाज कह देगा कि पत्नी के आते ही, जिस ने पाला, उसे निकाल दिया. मेरी जिंदगी नरक हो गई है.’’

इतनी बातें स्टेशन पर खड़ेखड़े ही हो गईं. फिर सामान को कार में रख कर रामलाल राधेश्याम को एक होटल में ले गया. वहां एक कमरा बुक कराया. उस कमरे में दोनों ने बैठ कर चायनाश्ता किया.

तब रामलाल ने उसे बताया, ‘‘इस समय घर में रहने में तुम्हें बहुत दिक्कत होगी. कहीं ऐसा न हो, वह तुम्हारे भी मन की थाह ले ले, इसलिए तुम्हारा होटल में ठहरना ही सही है.’’

इस पर राधेश्याम ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे तो कोई एतराज नहीं है. मुझे तो और मजा ही आएगा. यह तो बता कि वह दिखने में कैसी लगती है?’’

रामलाल ठंडी आह लेते हुए बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत हैं. बिलकुल कालेज की लड़कियों जैसी. तभी तो उस पर दिल आ गया.’’

राधेश्याम ने उस को छेड़ने की नीयत से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात तो बता, जब तुम ने उस का चुंबन लिया होगा तो उस के चेहरे पर कैसे भाव थे?’’

‘‘वह इस तरह मुसकराई थी, जैसे उस ने मेरे ऊपर दया की हो. उस ने

कहा था कि आप में अभी बच्चों जैसी सस्ती भावुकता है,’’ रामलाल झोंपता हुआ बोला.

चाय पीने के बाद राधेश्याम ने जल्दी से कपड़े बदल कर होटल के कमरे का ताला लगाया और रामलाल के साथ उस के घर की ओर चल दिया.

राधेश्याम मन ही मन उस मनोवैज्ञानिक से मिलने के लिए बहुत बेचैन था. होटल से घर बहुत दूर नहीं था. जैसे ही घर पहुंचे, घर का दरवाजा खुला हुआ था, इसलिए घर के अंदर से जोर से बोलने की आवाजें बाहर साफ सुनाई दे रही थीं. वे दोनों वहीं ठिठक गए.

रामलाल की बहन चीखचीख कर कह रही थीं, ‘‘मैं आज तुझे घर से निकाल कर छोड़ूंगी. तू ने इस घर का क्या हाल बना रखा है? तू मुझे समझाती क्या है?’’

रामलाल की नईनवेली बीवी कह रही थी, ‘‘तुम तो न्यूरोटिक हो, न्यूरोटिक.’’

इस पर रामलाल की बहन बोलीं, ‘‘मेरे मन की थाह लेगी. इस घर से चली जा, मेरे ठाकुरजी की बेइज्जती मत कर… समझ?’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम्हें तो रिलीजियस फोबिया हो गया है.’’

इस पर बहन बोलीं, ‘‘सारा महल्ला मुझ से घबराता है. तू कल की छोकरी… चल, निकल मेरे घर से.’’

तब रामलाल की पत्नी की आवाज आई, ‘‘तुम में भी बहुत ज्यादा हीन भावना है.’’

रामलाल बेचारा चुपचाप सिर झकाए खड़ा हुआ था. तब राधेश्याम ने उस के कान में कहा, ‘‘तुम फौरन जा कर अपनी पत्नी को मेरा परिचय एक महान मनोवैज्ञानिक के रूप में देना, फिर देखना सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’

रामलाल ने राधेश्याम को अपने ड्राइंगरूम में बिठाया और पत्नी को बुलाने चला गया. उस के जाते ही राधेश्याम ने खुद को आईने में देखा कि क्या वह मनोवैज्ञानिक सा लग भी रहा है या नहीं? उसे लगा कि वह रोब झाड़ सकता है.

थोड़ी देर बाद रामलाल अपनी पत्नी के साथ आया. वह गुलाबी रंग की साड़ी बांधे हुई थी. चेहरे पर गंभीर झलक थी. बाल जूड़े से बंधे हुए थे और पैरों में कम हील की चप्पल पहने हुए थी. उस ने बहुत ही आहिस्ता से राधेश्याम से नमस्ते की.

नमस्ते के जवाब में राधेश्याम ने केवल सिर हिला दिया और बैठने का संकेत किया.

तब रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आप मेरे गुरुपुत्र हैं. कल ही विदेश से लौटे हैं. मनोवैज्ञानिक जगत में आप बड़े मशहूर हैं. विदेशों में भी.

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘रामलाल ने मुझे बताया कि आप साइकोलौजी में बड़ी अच्छी हैं, इसीलिए मैं आप से मिलने चला आया. कुछ सुझाव भी दूंगा. मैं आदमी को देख कर पढ़ लेता हूं, किताब के जैसे. मैं बता सकता हूं कि इस समय आप क्या सोच रही हैं?’’

रामलाल की पत्नी तपाक से बोली, ‘‘क्या…?’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘आप इस समय आप हीन भावना से पीडि़त हैं.’’

रामलाल की पत्नी घबरा गई और बोली, ‘‘आप मुझे अपनी शिष्या बना लीजिए.’’

इस पर राधेश्याम बोला, ‘‘अभी नहीं. अभी मेरी स्टडी चल रही है. अब से कुछ साल बाद मैं अपनी लैबोरेटरी खोलूंगा.’’

‘‘मैं ने तो अपनी लैबोरेटरी अभी से खोल ली है,’’ रामलाल की पत्नी झट से बोली.

‘‘गलती की है. अब से 10 साल बाद खोलना. मैं तुम्हें कुछ किताबें भेजूंगा, उन्हें पढ़ना. अपनी लैबोरेटरी को अभी बंद करो. मुझे मालूम हुआ है कि आप अपनी ननद से भी लड़ती हैं. उन से माफी मांगिए.’’

रामलाल की पत्नी वहां से उठ कर चली गई. रामलाल राधेश्याम से लिपट गया और वे दोनों कुछ इस तरह खिलखिला कर हंसने लगे कि ज्यादा आवाज न हो.

बंपर ड्रा : बीवी के चंगुल में थानेदार

थानेदार साहब की पत्नी की फरमाइशें रोजाना बढ़ती जा रही थीं. वे परेशान थे, आखिर करें तो क्या करें? इधर लोगों में बहुत जागरूकता आ गई थी. थोड़ी भी आड़ीटेढ़ी बात होती कि ‘मानवाधिकार आयोग’ को फैक्स कर देते थे.

कुछ उठाईगीर तो आजकल मोबाइल फोन पर रेकौर्डिंग कर के उन्हें सुना भी देते थे. एक बार तो थानेदार साहब अपनी फेसबुक पर थे कि अचानक एक वीडियो दिखा. उन्हें लगा कि यह तो किस्सा कहीं देखा है.

उस वीडियो की असलियत यही थी कि थानेदार साहब एक शख्स को पंखा बना कर लात, जूतों, डंडे से मार रहे थे. थोड़ी देर बाद जब जूम कर के कैमरा थानेदार के चेहरे पर गया, तो पता चला कि अरे, यह तो वे खुद ही हैं.

कुछ महीने पहले उन्होंने एक अपराधी को जेब काटने पर मारा था और उस से जेबकटी का अपना हिस्सा मांगा था. पर उस ने नहीं दिया था, तब उसे पंखे पर लटका कर पिटाई की थी.

यह वीडियो वही था. इसी के चलते उन का तबादला हो गया था. वे तो शानदार सैटिंग वाले थे, हमेशा मंदिर में भिखारी से ले कर पुजारी और भगवान को चढ़ावा चढ़ाते थे, जिस की बदौलत लाइन हाजिर नहीं हो पाए थे. बात वैसे इतनी सी थी कि एक जेबकटी की रिपोर्ट आई थी. रिपोर्ट करने वाले बंदे ने बताया कि 6 हजार रुपए निकाले गए थे.

बाजार का दिन था और उस दिन जेबकटाई का ठेका पोटा को दिया गया था. उसे पकड़ कर जब पूछा गया, तो उस ने कसम खा कर कहा था कि कुल जमा 8 सौ रुपए थे. अब सच्चा कौन था और झूठा कौन था, पता नहीं.

बस, यही बात पता करने के लिए उसे पंखे पर लटका कर कुटाई की थी और सच की खोज को आम कर देने के चलते थानेदार साहब बदनाम हो गए थे.

बाद में पता चला कि जिस की जेब कटी थी, वही झूठ बोला था. उस की घर वाली ने साड़ी खरीदने के लिए रुपए जेब से निकाल लिए थे.

थानेदार साहब की बहुत इच्छा हुई कि पोटा से माफी मांग लें. लेकिन वरदी के घमंड के चलते वे ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि पोटा ने बारबार कहा था, ‘सर, बेईमानी के काम में ईमानदारी बहुत जरूरी है. मैं ईमानदारी से बता रहा हूं.’

लेकिन जो होना था, वह हो ही गया था. पर आज तक वे जान ही नहीं पाए थे कि आखिर किस ने वीडियो शूट किया था, क्योंकि आजकल तो पैन में भी शूटिंग की सहूलियत आने लगी है. जो नया थाना मिला था, वहां के भूखेनंगे, अमीर सब अच्छे दिनों की औलाद थे. उम्मीद से भरे हुए. महात्मा गांधी की बातों पर चलने वाले कि मामला आपस में सुलझा लो बेहतर है, इसलिए रिपोर्टारिपोर्टी कुछ होती नहीं थी.

थानेदार साहब को हैरत थी कि आखिर ऐसी अहिंसक जगह पर थाना खोलने की जरूरत क्या थी?

जिंदगी में अगर आप एक बार जो खर्चा करने लगें, उस पर लगाम लगाना अगले जन्म में ही मुमकिन है. पत्नीजी को जो खर्च की आदतें लग गई थीं, वे कम होने का नाम ही नहीं लेती थीं. रिश्तेदार भी भिखारियों की तरह आ कर जीजाजी, मामाजी कहते हुए महीनों तक पड़े रहते थे. ऐसे में माली हालत भिखारियों जैसी हो जाना जायज थी.

थानेदार साहब ने पुराने घाघ अपने हवलदार को बुला कर पूछा, ‘‘यहां कुछ महीने और रहा, तो पैंटशर्ट उतार कर तीरथ जाना होगा.’’

हवलदार ने उन्हें तसल्ली दी और अच्छे दिनों का वास्ता देते हुए कहा, ‘‘इतंजार का फल मीठा होता है. आप इंतजार करें.’’

बिल्ली के भाग्य से छींका टूट भी गया. मामला कुछ ऐसा हुआ कि कहीं एक लड़के और लड़की का चोंच लड़ाने का मामला था. कहानी में अमीरीगरीबी की जगह जातपांत आ गई. लड़की वालों ने कहा कि ‘प्राण जाए पर जाति न जाए’ और लड़के को प्यार से बुला कर समझाया, मनाया और जब उस के दिमाग में बात नहीं गई, तो एक लट्ठ जो दिया तो वह मजनू ऐसा गिरा कि खड़ा ही नहीं हो पाया.

उसी दिन एक रिपोर्ट और आई कि एक घर में सेठसेठानी के यहां 2 लोगों ने बंदूक की नोक पर लूटमार कर ली थी. दोनों की रिपोर्ट आ गई और थानेदार साहब ने जांच के लिए एक हवलदार को लगा दिया.

इधर पिछले हफ्ते घरवाली ने नोटिस दे दिया था कि अगर कुछ कमाई नहीं की, तो वह मायके चली जाएगी. उसी समय यह सुनहरे 2 केस हो गए.

थानेदार साहब ने हवलदार को अपने कमरे में बुला कर खास हिदायत दी, ‘‘पहले लूट वाले केस को सुलझाते हैं. हत्या वाला तो आईने की तरह साफ है.’’

हवलदार थानेदार से ज्यादा शातिर था और उस ने करतब दिखाना शुरू कर दिया. जहां डकैती हुई थी, उस गांव के और उस गांव से लगे 10 गांवों के उठाईगीरों, गुंडों के अलावा शरीफ घरों के एक दर्जन लड़कों को पकड़ लिया.

थाने के नाम से उन सब को ठंड लगने लगी थी. दिल्ली से और कुछ के लोकल विधायक, सांसद के फोन आने लगे. जिन के फोन आए, उन्हें एक अलग कमरे में बिठा कर ‘चाय का आर्डर’ करवा दिया. चाय के बाद उन से माफी मांगते हुए एक घंटे और रुक कर कानून की मदद करने की गुजारिश की.

चाय की रिश्वत से ही लड़के मान गए और शांति के साथ मोबाइल पर फिल्में देखने लगे. जिन के फोन नहीं आए थे, उन्हें एकएक कर के कमरे में ले गए और उन्हें बताया गया कि इस मुकदमे की जमानत नहीं होती है और वकील की फीस में 50 हजार खर्च होंगे, फोकट में बदनामी और होगी. टुच्चे पत्रकार चटकारे लेले कर खबर छापेंगे सो अलग.

हवलदार ने थानेदार साहब के सामने ऐसा दिल दहला देने वाला सीन पेश किया कि सब की घिग्घी बंध गई. कुछ प्रवचन सुन कर रोने लगे, कुछ थानेदार साहब के पैरों में गधे की तरह लोटपोट हो गए.

हैरत की बात यह थी कि 2 आदमियों ने लूटा और बुलाया गया था 80 को. 20 थाने में फोन से छूट गए थे. अब जो रकम थी, वह 60 लोगों से ही वसूल करनी थी. उन के मोबाइल, पैन, चश्मे सब उतार कर गुप्त जांच कर ली गई थी और थानेदार साहब कहीं से

2 नंगे तार ले आए, उन्हें बिजली के स्विच में डालते हुए बोले, ‘‘इसे छुआने के बाद जो 750 वोल्ट का करंट लगेगा, तो देश में आबादी रुक जाने में तुम सहयोगी हो जाओगे.’’

तार देख कर भविष्य की चिंता कर के आखिर वे सबकुछ देने को तैयार हो गए, जिस की मांग रखी गई थी. कुछ कमजोर, नंगे लोग भी थे. कुल जमा तकरीबन 3 लाख रुपए की कमाई हो गई और 20 हजार हवलदार, पत्रकारों को और ऊपर भिजवाने के बाद भी 2 लाख का मुनाफा हो गया था. जो 2 लुटेरे थे, वे अभी भी खोजे जाने बाकी थे. वैसे, पूरी लूट 10-20 हजार रुपए की हुई थी.

दूसरा केस तो इश्कमुहब्बत का था. शहर के सब आशिकों को पकड़ कर थाने ले आए और मर्डर केस के बारे में जो मुगलेआजम से ले कर प्रेम कहानी के आखिर तक कहानी सुनाई गई, तो आशिकों ने मां कसम खा कर कहा, ‘वह हमारी बहन जैसी हैं.’

‘‘तब ही तो सालो, तुम ने अपने जीजा का मर्डर कर दिया,’’ थानेदार साहब ने गुस्से में कहा.

सब प्रेमी माथा ठोंकने लगे, ‘कैसे मुंह से बहन शब्द निकल गया. मर्डर केस में मिली उम्रकैद में कैसे जवानी अंधेरे में डूब जाएगी…’

उस महाकाव्य को हवलदार ने पढ़ कर सुनाया, तो सब थरथर कांपने लगे और इस केस में भी थानेदार साहब ने 6 लाख रुपए दक्षिणा में लिए थे.

हत्यारे तो पहले से ही पता थे. उन का केस कमजोर करने के नाम पर एकएक लाख रुपए अलग से लिए और मामला मारने का नहीं, बल्कि एक हादसे का बना दिया गया था.

जिनजिन को थानेदार साहब ने लूट या हत्या में बुलवाया था और छोड़ दिया था, वह सब उन के गुण गाते थक नहीं रहे थे और कुछ ने जो चाय पी लेने के बाद घर का रास्ता नापा था, वे भी खुश थे. कुछ छोटीमोटी शिकायत हुई भी तो विधायक, सांसद ने वे शिकायतें कचरे के डब्बे में फेंक दीं. वे थानेदार साहब का एहसान भूले नहीं थे कि उन के फोन करते ही थानेदार साहब ने चाय पिला कर उन्हें इज्जत के साथ छोड़ दिया था.

थानेदार साहब बहुत खुश थे कि चलो, उन का लकी बंपर ड्रा खुल गया था. वे इंतजार कर रहे थे, ‘काश, ऐसी लौटरी हर महीने खुलती रहे, तो नीचे से ऊपर तक सब खुश रहेंगे. दुनियादारी निभाना इसी को तो कहते हैं.’

थानेदार साहब आजकल बहुत खुश हैं और नई बंपर लौटरी का इंतजार कर रहे हैं.

पिंक टैक्सी: कैसी थी रिदा की ससुराल

रिदा की जिंदगी दीवार पर टंगे किसी पुराने कलैंडर जैसी थी, जिस में न किसी तारीख का बदलाव होता है और न ही किसी पन्ने का. अपने निकाह से पहले मायके में कितनी खुश थी रिदा. मांबाप का साया भले ही उस के सिर से हट गया था, पर बड़े भाई महमूद ने उस की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी. महमूद का आटोमोबाइल का छोटामोटा काम था. ऊपर एक कमरे का मकान और नीचे छोटी सी दुकान. दिन में 4-5 मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का काम हो गया, तो आमदनी अच्छी हो जाती थी. महमूद भाई शाम को घर आते, तो खुशी उन के चेहरे पर बाकायदा नजर आती.

15 साला रिदा भी गाहेबगाहे दुकान पर पहुंच जाती और वहां खड़ी मोटरसाइकिलों पर चढ़ाउतरा करती. वह उन्हें खुलतेबनते देखती और पता नहीं कब उस ने भाईजान से मजेमजे में ही मोटरसाइकिल चलाना सीख लिया और उन की तकनीकों के बारे में भी जानने लगी. महमूद भाईजान भी खूब भरोसा रखने लगे थे रिदा पर. बिन मांबाप की बेटी की शादी जल्दी ही तय हो गई.

20 साल की होतेहोते रिदा की शादी नावेद से हो गई.पहलेपहल तो सब ठीकठाक रहा, पर फिर एक दिन रिदा को पता चला कि नावेद शराब भी पीता है और न जाने कहां से उसे जुए की लत लग गई है. नामुराद जुए की लत ने पहले तो उस के शौहर की नौकरी ले ली और फिर धीरेधीरे घर का छोटामोटा सामान चोरी होने लगा.उस के बाद नावेद की नजर रिदा के एकाध गहने पर पहुंची.

जब रिदा ने उसे अपने गहने देने से रोका, तो उस ने रिदा के साथ मारपीट की.रिदा ने कई बार महमूद भाईजान से भी इस की शिकायत की, तो उन्होंने नावेद को समझाया. कुछ दिन तो वह खामोश रहता और फिर वही जुए की हार के बाद रिदा से पैसे की मांग करता और न देने पर उसे मारनापीटना शुरू हो जाता.अभी तक रिदा की गोद नहीं भर पाई थी. इलाज भी न मिला. इफरात में पैसे कभी हो ही नहीं पाए, जो अच्छे डाक्टर से रिदा इलाज करवाती.

नावेद ने इसी गम को कम करने के लिए शराब पीने का बहाना बताया.कभीकभी तो देर रात गए नावेद की वापसी होती और आते ही वह बिरयानी की मांग करने लगता. अब अचानक रिदा बेचारी बिरयानी कैसे और कहां से बनाए. पहले से ही रोटी और दाल चलानी मुश्किल थी और बिरयानी की फरमाइश… रिदा तो पूरी तरह से टूट चुकी थी.एक शाम को नावेद का इतनी जल्दी घर वापस आना रिदा को कुछ अजीब लगा. नावेद के साथ सूटकेस लिए हुए एक 30 साल का आदमी भी था.

‘‘इन से मिलो… यह मेरे बचपन का दोस्त अजीमा है. पहले ये लोग हमारे बगल वाले घर में ही रहते थे, फिर ये सब बेच कर दुबई चले गए थे,’’ यह बताते हुए नावेद बहुत खुश दिख रहा था.रिदा ने झिझक के साथ उस आदमी की तरफ देखा, जो सीधा रिदा की आंखों में ही झांक रहा था. हलका सा मुसकराते हुए अजीमा ने सलाम किया, तो रिदा ने भी मुसकरा कर उस का जवाब दे दिया.

बातोंबातों में नावेद ने रिदा को बताया कि अजीमा नया मकान मिलते ही यहां से चला जाएगा. तब तक वह कुछ दिन उन लोगों के साथ ही रहेगा.दोस्तीयारी एक तरफ थी, मगर इस तंगहाली में किसी बाहर के आदमी का घर में आना रिदा को थोड़ा अजीब जरूर लगा, पर संकोच के चलते वह कुछ कह नहीं पाई.अगले दिन से ही रिदा को ऐसा लगा कि अजीमा काफी पैसे वाला है, क्योंकि वह नावेद और उस के लिए बाजार से अच्छे कपड़े और खानेपीने की चीजें ले आया था और कहने लगा कि वह दुबई से कुछ नहीं ला पाया था, इसीलिए लोकल मार्केट से खरीदारी की है. अजीमा आगे भी कुछ न कुछ खर्च करता ही रहता और साथ ही साथ उस ने नावेद को महंगी वाली शराब भी पिलानी शुरू कर दी, जिस का भरपूर मजा नावेद ले रहा था.

नावेद ने कुछ लोगों से कर्ज ले रखा था. यह बात जैसे ही अजीमा को पता चली, तो उस ने झट से नावेद को पैसे दिए और कहा कि वह जल्दी से अपना कर्जा चुकता कर दे. अजीमा का आना तो नावेद की जिंदगी में मजा ले आया था.

नावेद का जुआ खेलना बदस्तूर जारी ही था. वह अब भी घर से घंटों गायब रहता था. रिदा को महसूस होता था कि उस की गैरहाजिरी में अजीमा की आंखें लगातार रिदा के जिस्म का आगेपीछे से मुआयना करती रहती थीं.एक घूरने वाले गैरमर्द का यों घर में होना रिदा को बिलकुल नहीं अच्छा लग रहा था, फिर भी वह कुछ कह न सकी.‘‘यह क्या भाभीजी, आप ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि नावेद का जुआ खेलना आप को पसंद नहीं है. मैं आज ही उस की यह आदत छुड़वाता हूं,’’

अजीमा ने रिदा से कहा.नावेद के वापस आने पर अजीमा ने उसे बताया कि बाहर जा कर ताश के पत्तों से जुआ खेलना तो बीते जमाने की बात हो गई है और अगर पैसे से पैसे ही बनाने का शौक है, तो इस पर दांव लगा,’’ कहते हुए अजीमा ने नावेद को एक मोबाइल फोन थमाया.

‘‘क्रिकेट का एक टूर्नामैंट होता है पाईपीएल, उस में खेल रहे खिलाडि़यों पर पैसा लगाना होता है, जीते तो काफी पैसे मिलते हैं,’’ अजीमा ने यह भी बताया कि बिना डरे और बिना शरमाए घर बैठे ही इसे खेला जा सकता है.नावेद ने कुछ ही देर में इस खेल को खेलने के सारे तौरतरीके सीखने भी शुरू कर लिए थे. पर मोबाइल पर ही इस खेल को खेलने के लिए पैसे चाहिए थे, पर नावेद तो पहले से ही कर्ज में डूब गया था, इसलिए उस ने अजीमा से पैसे मांगने में कोई शर्म नहीं की.

शायद अजीमा को यह अहसास था, इसलिए उस ने तुरंत नावेद के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए.मोबाइल फोन पर ‘जीतो दुनिया’ नामक एप पर नावेद जल्दी ही पैसे लगाने लगा और हारने भी लगा. इस से फिर घर में तंगी आने लगी. ऊपर से अजीमा का खर्चा भी भारी पड़ ही रहा था और अजीमा था कि काफी बेतकल्लुफी से नावेद और रिदा के घर में खापी कर मजे कर रहा था.रात में रिदा ने शिकायती लहजे में नावेद से कहा कि उसे अब अजीमा का यहां रहना अच्छा नहीं लगता.

अब उन्हें चले जाना चाहिए.रिदा की इस बात को सिरे से खारिज करते हुए नावेद ने कहा कि उन लोगों पर तो उस के बहुत अहसान हैं, इसलिए वह हर तरीके से अजीमा का ध्यान रखे.अपने शौहर की बात सुन कर रिदा खामोश हो गई, पर एक औरत किसी मर्द की नीयत को पहचानने में गलती नहीं करती. रिदा भी एकदम सही थी. अजीमा की नीयत तो खराब थी ही और एक दिन जब नावेद नशे में चूर हो कर पड़ा था, तब अजीमा रिदा के कमरे में आया और रिदा के पीछे जा कर उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बांहों में कस लिया.

रिदा अजीमा का खतरनाक इरादा भांप गई थी. उस ने अजीमा की कैद से आजाद होने की कोशिश की और नावेद को मदद के लिए पुकारा.‘‘कोई फायदा नहीं. जिसे तू मदद के लिए पुकार रही है न, उस के मुंह पर मैं पैसे का ताला लगा चुका हूं और उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है.’’रिदा लगातार हाथपैर पटक रही थी,

‘‘मेरे शौहर को भटका कर तुम मेरे साथ खेलना चाहते हो. मेरी मरजी के बगैर तुम मुझे छू भी नहीं सकते. तुम्हारी नीयत पर मुझे पहले से ही शक था…’’

अचानक से अजीमा ने रिदा के बदन से अपनी पकड़ ढीली कर दी और लापरवाही वाले अंदाज में उसे बताया कि बाजार के लोगों का हजारों रुपए का कर्ज नावेद के ऊपर है. अभी जो उस ने पैसे कर्ज चुकाने के लिए उसे दिए थे, वे भी नावेद पाईपीएल में हार चुका है और उस के एक इशारे पर कर्ज देने वाले लोग नावेद को हथकड़ी लगवाने पर उतारू हैं और उसे इस मुश्किल से सिर्फ वही बचा सकता है.

अगर वह अपनी आबरू अजीमा को सौंप दे तो वह न सिर्फ नावेद का सारा कर्ज चुकाने में मदद करेगा, बल्कि नावेद को अच्छी राह पर लाने की कोशिश भी करेगा.किसी के साथ अपनी अस्मत का सौदा करना रिदा को कतई मंजूर नहीं था. वह बाहर की ओर जाने लगी.

अजीमा ने कोई जबरदस्ती नहीं की.घर के अंदर रिदा को इज्जत जाने का खतरा लग रहा था, सो उस ने बाहर ही रात काटी और सुबह होते ही महमूद भाईजान को फोन लगा कर नावेद की बढ़ती हरकतों और अजीमा के बारे में बताया और मायके आ कर वहीं रह जाने की बात की. रिदा को अपने भाई महमूद की तरफ से हमदर्दी तो हासिल हुई,

पर उस की जिम्मेदारी लेने से महमूद ने कतई मना कर दिया, ‘‘देख, अब तेरा निकाह हुए समय हो गया है. जिंदगी की परेशानियां अब तुझे खुद ही झेलनी हैं, क्योंकि मेरा भी परिवार है और महंगाई के इस दौर में उन्हीं का खर्चा चलाना मेरे लिए भारी पड़ रहा है.’’कुछ दिनों बाद जब तेज बारिश हो रही थी, तब नावेद अजीमा के साथ रिदा के कमरे में आया और कहने लगा,

‘‘अरे, अजीमा भाई कुछ मांग रहे हैं तुझ से, तो तू दे क्यों नहीं देती? तेरे तो औलाद होने का भी खतरा नहीं है. इन की अभी शादी नहीं हुई है… इन की भी तो कुछ जरूरतें हैं,’’ नावेद की बेहयाई भरी बातों को सुन कर रिदा सकते में आ गई.अजीमा ने रिदा को आ कर पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों को उसी के शौहर के सामने मसलने लगा और उसे पलंग पर गिरा कर बेतहाशा चूमने लगा.रिदा समझ चुकी थी कि नावेद ने उस की अस्मत का सौदा कर लिया है.

ताकतवर अजीमा कोमल रिदा पर छा गया था. कमरे में जोरजबरदस्ती का तूफान तो था ही, पर एक औरत के मन में उस के शौहर के लिए एक नफरत का तूफान भी पनप रहा था, क्योंकि उस का शौहर उसे लुटते हुए अपनी आंखों से देख रहा था.जिंदगी रिदा को घाव तो दे चुकी थी, पर अब इसे नासूर बनने से बचाना था. लिहाजा, एक दिन रिदा शहर जाने वाली बस में बैठ गई.शहर में रिदा ने कई रिहायशी कालोनियों में काम मांगा, तो लोगों ने साफसफाई का काम करवाने के लिए हामी तो भर दी, पर रिदा की सही पहचान जानने के लिए आधारकार्ड मांगा गया.

अब भला शौहर की बेवफाई की मारी रिदा आधारकार्ड कहां से लाती?रिदा अब हारने लगी थी. शायद अब भीख मांग कर अपना पेट भरना ही उस के लिए आखिरी रास्ता रह गया था. वह एक पार्क में जा कर बैठ गई. शरीर में कमजोरी और थकावट के चलते कब उसे बेहोशी ने आ घेरा, वह नहीं जान सकी थी.कुछ देर बाद एक झटके से जब रिदा की आंख खुली, तो उस ने देखा कि सामने वाली बैंच पर बैठा एक 50-55 साल का आदमी उसे घूर रहा था.रिदा थोड़ा घबराई और वहां से जाने की कोशिश करने लगी, तो वह आदमी बोला,

‘‘अजनबी लगती हो… कुछ परेशान भी हो…’’रिदा ने उस आदमी को बताया कि उसे काम की जरूरत है.वह आदमी एक इंटर कालेज में चौकीदार था. उस ने रिदा से साफसफाई वाला काम दिला देने को कहा, पर साथ ही साथ रिदा से यह भी कहा कि इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, इसलिए वह रिदा को काम दिलाने के बदले उस की पहली तनख्वाह में से आधा हिस्सा ले लेगा. रिदा ने तुरंत हां कर दी.‘‘पर, पहले चल कर कुछ खापी लो. शरीर में जान होगी,

तभी तो मेहनत कर पाओगी,’’ वह आदमी बोला.अगले ही दिन से उस आदमी ने रिदा को काम पर लगवा दिया और स्कूल के साइकिल स्टैंड के पास बने पुराने स्टोररूम में उस के रहने का इंतजाम भी करवा दिया.अगले दिन से ही रिदा पूरी मेहनत से सफाई का काम करने लगी. अपनी मेहनत से वह सब की चहेती बनती जा रही थी,

चाहे किसी को पानी पिलाना हो या किसी की कोई खोई फाइल ढूंढ़नी हो. सभी की जबान पर रिदा का ही नाम रहता था.आज कालेज के सभी बच्चे तो जा चुके थे, फिर भी मोटरसाइकिल स्टैंड पर 12वीं क्लास का एक लड़का आरव अपनी पुरानी सी बाइक स्टार्ट करने में लगा हुआ था, पर उस की बाइक स्टार्ट ही नहीं हो रही थी.रिदा ने ठिठक कर उसे परेशान हालत में देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ भैया? आप कहो, तो मैं स्टार्ट कर के देखूं?’’आरव को रिदा का ऐसा कहना बड़ा अजीब लगा,

पर उस के जवाब का इंतजार किए बिना ही रिदा ने आरव के हाथ से बाइक ले ली और चंद मिनट तक इधरउधर चैक करने के बाद ऐसी किक मारी कि बाइक स्टार्ट हो गई.आरव हैरान था. रिदा ने मुसकराते हुए उसे बताया कि उस की बाइक का प्लग साफ करते ही वह स्टार्ट हो गई है, पर फिर भी उसे आगे जा कर इस में नया प्लग डलवा ही लेना चाहिए.आरव थैंक्स बोल कर चला गया.आरव की मां नीमा एक समाजसेविका थीं और एक संस्था भी चलाती थीं.

उन की संस्था मजदूरों और गरीबों को आगे बढ़ाने का काम करती थी. एक दिन आरव की मां कालेज के आसपास काम करने वाले मजदूरों से मिलने और उन्हें उपहार देने आई थीं.आरव ने अपनी मां नीमा को रिदा के बारे में पहले से ही बता दिया था.‘‘उस दिन तुम ने बाइक कैसे स्टार्ट कर ली थी?’’ नीमा ने रिदा से पूछा.रिदा ने बताया कि कैसे वह अपने भाईजान की दुकान पर बाइक चलाना और थोड़ीबहुत मरम्मत करना सीख गई थी. उस ने यह भी बताया कि वह ड्राइवर बनना चाहती है, क्योंकि उन्हें ज्यादा पैसा मिलता है.‘‘पर इतना भरोसा एक औरत पर कोई नहीं करेगा,’’

नीमा ने कहा.रिदा ने नीमा को एक आइडिया  बताया कि यहां सैलानियों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए टैक्सीरिकशा की डिमांड रहती है. उस ने कुछ लोगों को बाइक पर लिफ्ट लेते भी देखा है. अगर उसे एक बाइक मिल जाती तो वह उसे ‘बाइक टैक्सी’ के रूप में चलाती.रिदा का आइडिया नीमा को पसंद आया और उन्होंने रिदा को अपना पता देते हुए 2 दिन बाद अपने घर बुलाया.

घर पर नीमा ने रिदा को बताया कि ‘बाइक टैक्सी’ वाला आइडिया तो अच्छा है, पर उस के लिए तो सब से पहले रिदा को ड्राइविंग लाइसैंस चाहिए होगा और उस के बाद कुछ रकम लगा कर एक बाइक खरीदनी होगी.रिदा परेशान हो गई थी. इतना सब वह कैसे करेगी? बाइक कैसे खरीदेगी वह?नीमा ने कहा कि वे अपनी जानपहचान से उस का ड्राइविंग लाइसैंस बनवा देंगी, पर ध्यान रहे कि आरटीओ औफिस में पूछे गए सभी सवालों का वह सही जवाब दे.

नीमा ने रिदा से आरव की पुरानी बाइक लेने को कहा, पर मुफ्त में नहीं, क्योंकि मुफ्त में देने से लोगों को उस की कदर नहीं रहती है, इसलिए रिदा को 1,000 रुपए प्रति माह लगातार 30 महीने तक देने होंगे. रिदा ने तुरंत हां कर दी.रिदा इस बीच स्कूल में सफाई का काम करती रही और जब उस का ड्राइविंग लाइसैंस आ गया, तब वह मानो आसमान में उड़ने लगी.इस बीच रिदा ने आरव की मदद से उस की पुरानी बाइक में जरूरी मरम्मत करा ली और आरटीओ औफिस से एक बाइक को ‘टैक्सी बाइक’ के रूप में चलाने की इजाजत भी ले ली थी.जब सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं, तो हैलमैट लगा कर नीमा बाइक पर निकली. बाइक के आगे ही एक छोटी सी प्लेट पर लिखा हुआ था, ‘पिंक टैक्सी’.

खुदकुशी : क्यों मरा चमनलाल

मेरी नजरें पंखे की ओर थीं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैं पंखे से झूल रहा हूं और कमरे के अंदर मेरी पत्नी चीख रही है. धीरेधीरे उस की चीख दूर होती जा रही थी.

सालों के बाद आज मुझे उस झुग्गी बस्ती की बहुत याद आ रही थी जहां मैं ने 20-22 साल अपने बच्चों के साथ गुजारे थे.

मेरे पड़ोसी साथी चमनलाल की धुंधली तसवीर आंखों के सामने घूम रही थी. वह मेरी खोली के ठीक सामने आ कर रहने लगा था. उसी दिन से वह मेरा सच्चा यार बन गया था. उस के छोटेबड़े कई बच्चे थे.

समय का पंछी तेजी से पंख फैलाए उड़ता जा रहा था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. चमनलाल का बड़ा बेटा जो 20-22 साल का था, बुरी संगत में पड़ कर आवारागर्दी करने लगा. घर में हुड़दंग मचाता. छोटे भाईबहनों को हर समय मारतापीटता.

चमनलाल उसे समझाबुझा कर थक चुका था. मैं ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. जब भी चमनलाल से इस बारे में बात होती तो मैं उसे ही कुसूरवार मान कर लंबाचौड़ा भाषण झाड़ता. शायद उस के जख्म पर मरहम लगाने के बजाय और हरा कर देता.

सुहानी शाम थी. सभी अपनेअपने कामों में मसरूफ थे. तभी पता चला कि चमनलाल की बेटी अपने महल्ले के एक लड़के के साथ भाग गई.

चमनलाल हांफताकांपता सा मेरे पास आया और यह खबर सुनाई तो उस के जख्म पर नमक छिड़कते हुए मैं बोला, ‘‘कैसे बाप हो? अपने बच्चों की जरा भी फिक्र नहीं करते. कुछ खोजखबर ली या नहीं? चलो साथ चल कर ढूंढ़ें. कम से कम थाने में तो गुमशुदगी की रिपोर्ट करा ही दें.’’

चमनलाल चुपचाप खड़ा मेरी ओर देखता रहा. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ.

मैं ने अपनी पत्नी से जब यह कहा तो वह रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘गरीब अपनी बेटी के हाथों में मेहंदी लगाए या उस के अरमानों की अर्थी उठाए…’’

मैं अपनी पत्नी का मुंह देखता रह गया, कुछ बोल नहीं पाया.

जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई. लोग तरहतरह के लांछन लगाने लगे. जिस के मुंह में दांत भी नहीं थे, वह भी अफवाहें उड़ाने और चमनलाल को बदनाम कर के मजा लूट रहा था. किसी ने भी एक गरीब लाचार बाप के दर्द को सम  झने की कोशिश नहीं की. किसी ने आ कर हमदर्दी के दो शब्द नहीं बोले.

चमनलाल अंदर ही अंदर टूट गया था. उस ने चिंताओं के समंदर से निकलने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. गम कम होने के बजाय और बढ़ता गया. घर की सुखशांति छिन गई.

रोज शाम को वह नशे की हालत में घर आता और घर से चीखपुकार, गालीगलौज, लड़ाई  झगड़ा शुरू हो जाता. चमनलाल जैसा हंसमुख आदमी अब पत्नी को पीटने भी लगा था. वह गंदीगंदी गालियां बकता था.

इधर, मिल में हड़ताल हो गई थी. दूसरे मजदूरों के साथसाथ चमनलाल की गृहस्थी का पत्ता धीरेधीरे पीला होने लगा था. आधी रात को चमनलाल ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मेरे बच्चे सो रहे थे.

मैं ने दरवाजा खोला और चमनलाल को बदहवास देखा तो घबरा गया.

‘‘क्या बात है चमनलाल?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

चमनलाल उस वक्त बिलकुल भी नशे में नहीं था. वह रोनी सूरत बना कर बोला, ‘‘मेरा बड़ा बेटा दूसरी जात की लड़की को ब्याह लाया है और उसे इसी घर में रखना चाहता है लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं रहने दे सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘उसे कहा नहीं कि दूसरी जगह ले कर रखे?’’

‘‘नहीं, वह इसी घर में रहना चाहता है. मेरी उस से बहुत देर तक तूतू मैंमैं हो चुकी है,’’ चमनलाल बोला.

मैं ने कहा, ‘‘रात में हंगामा खड़ा मत करो. अभी सो जाओ. सुबह देखेंगे.’’

अगली सुबह मैं जरा देर से उठा. बाहर भीड़ जमा थी. मैं हड़बड़ा कर उठा. बाहर का सीन बड़ा भयावह था. चमनलाल की पंखे से लटकी हुई लाश देख कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस के बाद से पुलिस का आनाजाना शुरू हो गया. कभी भी, किसी भी समय आती और लोगों से पूछताछ कर के लौट जाती. चमनलाल की मौत से लोग दुखी थे वहीं पुलिस से तंग आ गए थे.

मेरे मन में कई बुरे विचार करवट लेते रहे. क्या चमनलाल ने खुदकुशी की थी या किसी ने उस की… फिर… किस ने…? कई सवाल थे जिन्होंने मेरी नींद चुरा ली थी.

मेरी पत्नी और बच्चे डरेसहमे थे. पुलिस बारबार आती और एक ही सवाल दोहराती. हम लोग इस हरकत से परेशान हो गए थे.

इस बेजारी के चलते और बच्चों की जिद पर मैं उस महल्ले को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया और उस कड़वी यादों को भुलाने की कोशिश करने लगा.

लेकिन सालों बाद चमनलाल की याद और उस की रोनी सूरत आंखों के सामने घूमने लगी. उस का दर्द आज मुझे महसूस होने लगा, क्योंकि आज मेरी बड़ी बेटी पड़ोसी के अवारा लड़के के साथ… वह मेरी… नाक कटा गई थी. मैं खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा था. आज मैं चमनलाल की जगह खुद को पंखे से लटका हुआ देख रहा था.

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