ब्रह्म राक्षस : किसने लूटी तारा की इज्जत

‘‘आज से हमारा पतिपत्नी का रिश्ता खत्म हो गया.’’

‘‘क्यों? उस में मेरा क्या कुसूर था?’’

‘‘कुसूर नहीं था, पर तुम्हारे दामन पर कलंक तो लग ही गया है.’’

‘‘तुम मेरे पति थे. तुम्हारे सामने ही मेरी इज्जत लुटती रही और तुम चुपचाप देखते रहे.’’

‘‘उस समय तुम्हारे पिता भी तो थे.’’

‘‘उन्होंने तो मुझे तुम्हें सौंप दिया था.’’

‘‘मैं अकेला क्या कर सकता था? वे लोग गिरोह में थे और सब के पास हथियार थे.’’

‘‘तो तुम मर तो सकते थे.’’

‘‘मेरे मरने से क्या होता?’’

‘‘तुम अमर हो जाते.’’

‘‘नहीं, यह खुदकुशी कहलाती.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा?’’

‘‘मुझे 10 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. हर महीने 5 हजार रुपए तुम्हें दे दिया करूंगा. इस के लिए तुम्हें कोई कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी. तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’

‘‘क्या तुम करोगे दूसरी शादी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर तुम मुझे दूसरी शादी करने की क्यों सलाह दे रहे हो?’’

‘‘यह मेरा अपना विचार है.’’

‘‘मैं जाऊंगी कहां?’’

‘‘तुम अपने पिता के साथ मायके चली जाओ.’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं अकेला रह लूंगा.’’

‘‘क्या, मेरा कलंक अब कभी नहीं मिटेगा?’’

‘‘मिटेगा, जरूर मिटेगा. लेकिन कैसे और कब, नहीं बता सकता.’’

‘‘फिर क्या तुम मुझे अपना लोगे?’’

‘‘यह मेरे जिंदा रहने पर निर्भर करता है. अब तुम मायके जाने की तैयारी करो. बाबूजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

तारा अपने पिता के साथ मायके चली गई.

उस के पति विक्रम ने उस के जाने के बाद अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. वह गहरी सोच में पड़ गया.

घर की हर चीज तारा की यादों को ताजा करने लगी थी. तारा की जब इज्जत लूटी जा रही थी, तब विक्रम हथियारों के घेरे में बिलकुल कमजोर खड़ा था.

वह नजर उस के दिलोदिमाग को बोझिल बना रही थी. उसे अपने ठंडे खून पर गुस्सा आ रहा था.

तारा ने ठीक ही कहा था, ‘कम से कम मर तो सकते थे.’

क्यों नहीं मरा? वह मौत से क्यों डर गया था?

बहुत से लोगों को उस ने मरते देखा था, फिर भी मौत के डर से छूट नहीं सका. बलात्कारी परशुराम का अट्टहास करता चेहरा बारबार उस की आंखों के सामने घूम रहा था.

डर की एक तेज लहर विक्रम के भीतर से उठी. वह कांप उठा था. सारा शरीर पसीने से गीला हो गया. उसे ऐसा लगने लगा था कि परशुराम का खौफनाक चेहरा उसे जीने नहीं देगा.

बहुत कोशिशों के बावजूद भी विक्रम की आंखों के सामने से उस का चेहरा हट नहीं रहा था. वह चेहरा जैसे हर जगह उस का पीछा करने लगा था, बलात्कार का वह घिनौना नजारा भी उस के साथ ही उभरने लगा था.

तारा का डर और शर्म से भरा चेहरा भी परशुराम के खौफनाक चेहरे के साथ उभरता रहा. उसे याद आया कि किस तरह तारा मदद के लिए बारबार उस की तरफ देखती और वह हर बार उस से अपनी आंखें चुरा लेता था. परशुराम और उस के साथियों की हंसी अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

तकरीबन एक घंटे बाद बदमाश जा चुके थे. इस के बाद 1-1 कर के धीरेधीरे भीड़ जमा होने लगी थी. सब लोग डरेसहमे बेजान से लग रहे थे. विक्रम पहले की तरह खड़ा रहा, मानो उस के पैर जमीन से चिपक गए हों.

अचानक बाहर शोर सुनाई दिया, तो विक्रम धीरे से उठा. उस ने देखा कि बलात्कारी परशुराम अपने साथियों के साथ फूलमालाओं से लदा मस्ती में जा रहा है.

विक्रम चुपचाप उस भीड़ में शामिल हो गया. कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. उन के चेहरों पर कुटिल हंसी दिखाई दे रही थी.

भीड़ में से एक आदमी बोला, ‘‘इसी की बीवी के साथ बलात्कार हुआ था, इस की आंखों के सामने. और इस के ससुर भी वहीं थे. इस ने अपनी बीवी से संबंध तोड़ लिया है. अब मौज से दूसरी शादी करेगा. इस की बीवी जिंदगीभर अपना कलंक ढोती रहेगी.’’

‘‘पैसे में बड़ी ताकत होती है. पैसे के बल पर ही तो परशुराम को जमानत मिली है.’’

‘‘तारा से ऐसेऐसे सवाल पूछे जाएंगे, जो दूसरे बलात्कार जैसे ही होंगे. एक बार परशुराम ने तारा के पति और पिता के सामने उस के साथ बलात्कार किया, दूसरी बार बचाव पक्ष के वकील भरी अदालत में जज की मौजूदगी में तारा से उलटेसीधे सवाल पूछेंगे, जिस से उसे दूसरे बलात्कार का एहसास होगा.’’

‘‘गवाही देने की भी हिम्मत कौन करेगा? समाज ही तो पालता है परशुराम जैसे लोगों को.’’

जितने मुंह उतनी बातें.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी थी. परशुराम के घर पहुंचतेपहुंचते थोड़े ही लोग रह गए थे. विक्रम अभी भी सिर झुकाए उसी भीड़ में चल रहा था. परशुराम को उस के घर पहुंचा कर भीड़ वापस चली गई थी. विक्रम वहीं डरासहमा खड़ा रहा.

परशुराम जैसे ही अंदर जाने लगा, विक्रम ने धीरे से कहा, ‘‘कुछ मेरी भी सुन लो परशुराम दादा.’’

आवाज सुन कर परशुराम पीछे मुड़ा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यहां नहीं दादा, उस बाग में चलो,’’ विक्रम बोला.

परशुराम ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘वहां क्यों?’’

‘‘दादा, बात ही कुछ ऐसी है.’’

‘‘अच्छा चलो,’’ घमंड से भरा परशुराम विक्रम के साथ बाग तक गया. उस ने सोचा कि यह डरासहमा आदमी उस का क्या कर लेगा.

उस ने अंदर की जेब में रखे अपने कट्टे को टटोला. वहां पहुंच कर उस ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ?’’

‘‘दादा, मैं ने अपनी बीवी को छोड़ दिया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह दागी हो गई थी न दादा.’’

परशुराम के होंठों पर मुसकान उभर आई. वह बोला, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है विक्रम, पर क्या करता तुम्हारी बीवी चीज ही ऐसी थी.’’

उस का इतना ही कहना था कि विक्रम गुस्से से तमतमा गया, मानो उस के जिस्म में कई हाथियों की ताकत आ गई हो. उस ने परशुराम को अपने हाथों में उठा लिया और उसे जमीन पर तब तक उठाउठा कर पटकता रहा, जब तक कि वह मर नहीं गया.

आसपास के सभी लोग यह नजारा देखते रहे, मगर कोई भी उसे बचाने नहीं आया.

परशुराम की चीखें चारों तरफ गूंजती रहीं, मगर किसी पर उस का असर नहीं हुआ.

परशुराम की हत्या कर विक्रम सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा, जहां उस ने सारी बातें दोहरा दीं.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

तारा को जब इस बात का पता चला, तो वह उस से मिलने जेल आई.

विक्रम ने उसे बड़े ही गौर से देखा और मुसकरा कर कहा, ‘‘तारा, तुम्हारा कलंक मिट गया है. जेल से छूटने के बाद तुम्हें आ कर ले जाऊंगा. मेरा इंतजार करना. करोगी न?’’

‘‘हां, जिंदगीभर,’’ कहतेकहते तारा रो पड़ी.

हैलमैट : क्या हुआ था सबल सिंह और उसकी पत्नी के साथ?

सबल सिंह ने घर से मोटरसाइकिल बाहर निकाली और अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘जल्दी चलो.’’

उन्हें पड़ोसी को देखने अस्पताल जाना था. वे पड़ोसी जिन से उन के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे. कई बार बच्चों को ले कर, कूड़ाकरकट फेंकने को ले कर उन का आपस में झगड़ा हो चुका था.

सबल सिंह अपने नियम से चलते थे. कचरा अपने घर के सामने फेंकते थे. पड़ोसी रामफल का कहना था, ‘या तो कचरा जलाइए या कचरा गाड़ी आती है नगरपालिका की, उस में डालिए.’

‘मैं कचरा गाड़ी का रास्ता देखता रहूं. कभी भी आ जाते हैं. फिर एक मिनट के लिए भी नहीं रुकते,’ सबल सिंह ने कहा था.

‘तो कचरा पेटी में डालिए,’ रामफल ने कहा था.

‘कचरा पेटी घर से एक किलोमीटर दूर है. क्या वहां तक कचरा ले कर जाऊं? यह क्या बात हुई…’

‘तो जला दीजिए.’

‘आप को क्या तकलीफ है? आप मुझ से जलते हैं.’

‘मैं क्यों जलूंगा?’

‘पिछली बार बच्चों के  झगड़ने पर मैं ने आप के बच्चे को डांट दिया था इसलिए…’

‘बच्चे हैं… साथ खेलेंगे तो लड़ेंगे भी और फिर साथ खेलेंगे. आप ने मेरे बच्चे को डांटा, मैं ने तो कुछ नहीं कहा. लेकिन आप के बच्चे को मैं ने डांटा तो आप लड़ने आ गए थे.’

‘मेरे बच्चे को डांटने का हक किसी को नहीं है. उस के मातापिता हैं अभी.’

‘फिर आप ने मेरे बच्चे को क्यों डांटा? उस के मातापिता भी जिंदा हैं.’

‘उसी बात का तो आप बदला लेते रहते हैं. कभी कचरे की आड़ में तो कभी नाली सफाई के नाम पर.’

‘मैं ऐसा आदमी नहीं हूं. सही को सही, गलत को गलत कहता हूं. यह मेरा स्वभाव है.’

‘आप अपना स्वभाव बदलिए. सहीगलत कहने वाले आप कौन होते हैं?’

फिर रामफल कुछ कहते, सबल सिंह उस का जवाब देते. बात से बात निकलती और बहस बढ़ती जाती. बेमतलब का तनाव बढ़ता. मन में खटास आती. रामफल अस्पताल में थे. महल्ले के सभी लोग देखने जा चुके थे.

सबल सिंह की पत्नी ने कहा, ‘‘दूरदूर के लोग मिल कर आ गए हैं. हमारे तो पड़ोसी हैं. हम कोई दुश्मन तो हैं नहीं. पड़ोसियों में थोड़ीबहुत बहस तो होती रहती है. इनसानियत और पड़ोसी धर्म के नाते हमें उन्हें देखने चलना चाहिए.’’

सबल सिंह को बात ठीक लगी. उन्होंने कहा, ‘‘आज शाम को ही चलते हैं.’’ और सबल सिंह ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की. पत्नी बाहर आईं तो उन्होंने कहा, ‘‘आप हैलमैट तो लगा लीजिए.’’

‘‘अभी पुलिस की चैकिंग नहीं चल रही है. तुम बैठो.’’

‘‘हैलमैट पुलिस से बचने के लिए नहीं, बल्कि हमारी हिफाजत के लिए जरूरी है.’’

‘‘पढ़ीलिखी बीवियों का यही तो नुकसान है. उपदेश बहुत देती हैं. तुम बैठो न.’’

रमा मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गईं. सबल सिंह ने मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा दी तो रमा ने कहा, ‘‘धीरे चलिए. मोटरसाइकिल है, हवाईजहाज की तरह मत चलाइए.’’

‘‘मैं इसी तरह चलाता हूं. आप शांति से बैठी रहिए.’’

उन्हें दाएं मुड़ना था. गाड़ी थोड़ी धीमी की और दाईं तरफ घुमा दी, तभी पीछे से कोई जोर से चीखा. चीख के साथ मोटरसाइकिल के ब्रेक की आवाज आई. पीछे वाले की मोटरसाइकिल सबल सिंह की मोटरसाइकिल से टकरातेटकराते बची थी.

वह आदमी चीखा, ‘‘मुड़ते समय इंडीकेटर नहीं दे सकते?’’

सबल सिंह भी चीखे, ‘‘शहर में इतनी तेज गाड़ी क्यों चलाते हो कि कंट्रोल न हो सके?’’

‘‘गलती तुम्हारी थी, तुम्हें इंडीकेटर देना चाहिए,’’ वह आदमी बोला.

‘‘गलती तुम्हारी है, तुम्हें धीरे चलना चाहिए.’’

पीछे वाली मोटरसाइकिल पर 3 लोग बैठे हुए थे.

सबल सिंह ने कहा, ‘‘एक मोटरसाइकिल पर 3 सवारी करना गैरकानूनी है.’’

वह आदमी थोड़ा डर गया. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ. वह बिना कुछ बोले आगे निकल गया.

पत्नी रमा ने कहा, ‘‘दूसरों की गलती तो आप तुरंत पकड़ लेते हैं और अपनी गलती का क्या? आप भी तो स्पीड में चल रहे थे.’’

सबल सिंह ने कहा, ‘‘ऐसा करना पड़ता है. सामने वाले की गलती को निकालना जरूरी है, नहीं तो वह चढ़ बैठता हमारे ऊपर.’’

सबल सिंह ने मोटरसाइकिल की स्पीड को फिर बढ़ा दिया. सामने चौक पर उन्होंने देखा कि पुलिस की गाड़ी चैकिंग कर रही थी.

उन्होंने मोटरसाइकिल धीमी की और वापस मोड़ दी.

‘‘क्या हुआ?’’ रमा ने पूछा.

‘‘सामने चैकिंग चल रही है. दूसरे रास्ते से चलना होगा.’’

‘‘आप के पास गाड़ी के कागजात तो हैं.’’

‘‘हां हैं, लेकिन तुम इन पुलिस वालों को नहीं जानतीं. न जाने किस बात का चालान काट दें. इन का तो काम ही है. गाड़ी अपनी, लाइसैंस भी है, फिर भी हमें ही चोरों की तरह छिप कर, रास्ता बदल कर निकलना पड़ता है. ऐसा है कानून हमारे देश का,’’ कहते हुए सबल सिंह ने बाइक मोड़ी और दूसरे रास्ते की ओर घुमा दी.

‘‘अगर इस रास्ते के किसी चौक पर पुलिस वाले चैकिंग करते मिल गए तब क्या करोगे? कोई तीसरा रास्ता भी है?’’ पत्नी रमा ने पूछा.

सबल सिंह चुप रहे. उन्हें आगे गाड़ी रोकनी पड़ी. सुनसान रास्ता था. सामने कुछ लड़के खड़े थे, पूरा रास्ता रोके हुए.

‘‘पुलिस से बचोगे तो गुंडों में फंसोगे. जो कुछ पास में है सब निकाल कर रख दो, नहीं तो लाश मिलेगी दोनों की,’’ कहते हुए एक मजबूत कदकाठी के मवालीटाइप आदमी ने चाकू निकाल कर सबल सिंह पर तान दिया. बाकी मवालियों ने सबल सिंह की घड़ी, मोबाइल फोन, पर्स और चाकूधारी ने रमा का मंगलसूत्र और हाथ में पहनी सोने की अंगूठी उतार ली.

‘‘चलो, भागो यहां से. पुलिस में शिकायत की तो खैर नहीं तुम्हारी,’’ चाकूधारी मवाली ने कहा.

रमा गुस्से में चीख पड़ीं, ‘‘चालान से बचने के चक्कर में लाख रुपए का सामान चला गया.’’

‘‘शुक्र है जान बच गई और मोटरसाइकिल भी. चलो, निकलते हैं. अस्पताल से वापसी पर थाने में रिपोर्ट दर्ज करेंगे,’’ सबल सिंह ने कहा.

किसी तरह वे अस्पताल पहुंचे. सबल सिंह अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे. सो, उन्होंने मोटरसाइकिल अस्पताल के स्टैंड पर खड़ी कर दी.

अस्पताल में रामफल से मिले. हालचाल पूछने पर रामफल ने बताया कि उन्हें फर्स्ट स्टेज का कैंसर है.

‘‘फालतू के शौक से खर्चा भी हो और बीमारी भी. अब तो तंबाकू, सिगरेट बंद कर दो,’’ सबल सिंह ने यहां भी अपना ज्ञान बघारा. लेकिन पीड़ित रामफल ने इस का बुरा नहीं माना और कहा, ‘‘मैं तो शुरुआती स्टेज पर हूं.

2-4 लाख रुपए का खर्चा कर के बच भी जाऊंगा शायद. मैं ने तो तोबा कर ली. तुम भी बंद कर दो शराब पीना.’’

‘‘मैं कौन सी रोज पीता हूं?’’ सबल सिंह ने कहा.

‘‘जहर तो थोड़ा भी बहुत होता है,’’ रामफल ने कहा.

रामफल और सबल सिंह यहां भी बहस करने लगे. पत्नी रमा ने इशारा किया, तब शांत हुए. इस के बाद

वे पुलिस चौकी गए. रिपोर्ट लिखाई. हवलदार ने सब से पहला सवाल पूछा, ‘‘पत्नी के साथ उस सुनसान रास्ते से गए ही क्यों थे?’’

झूठा सच्चा जवाब दे कर वे वापस लौटे. इस तरह दिनदहाड़े लुटने से उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था. इस गुस्से में मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ती गई. पत्नी रमा उन्हें गाड़ी धीरे चलाने के लिए कहती रहीं, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया. वे बस यही सोच रहे थे कि अब पत्नी के लिए मंगलसूत्र, अंगूठी फिर से बनवानी पड़ेगी. अगर हैलमैट लगा लेते तो क्या चला जाता? थोड़े से बचने के चक्कर में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा.

हैलमैट रखा तो था घर पर. कम से कम परिवार के साथ चलते समय तो हिफाजत का ध्यान रखना चाहिए. पत्नी क्या सोच रही होगी. घर में लोग अलग डांटफटकार करेंगे. बच्चे भी डांटेंगे और मातापिता भी.

तभी सामने से एक मोटरसाइकिल पर 3 लड़के तेज रफ्तार में आ रहे थे. सबल सिंह ने तेजी से हौर्न बजाया. सामने वाला संभल तो गया लेकिन फिर भी बहुत संभालने पर भी हलके से दोनों मोटरसाइकिल टकराईं. थोड़ा सा बैलैंस बिगड़ा लेकिन लड़के ने मोटरसाइकिल संभाल ली और वे भाग निकले.

लेकिन सबल सिंह नहीं संभल पाए. उन की मोटरसाइकिल गिरी. काफी दूर तक घिसटी. पत्नी की चीख सुनी उन्होंने. वे गाड़ी के नीचे दबे पड़े थे. पत्नी उन से थोड़ी दूरी पर बेहोशी की हालत में पड़ी थी.

आतेजाते लोगों में से कुछ उन्हें शराबी, तेज स्पीड से चलने की कहकर निकल रहे थे. कुछ लोगों ने अपना मोबाइल फोन निकाल कर वीडियो बनानी शुरू कर दी. धीरेधीरे भीड़ इकट्ठी हो गई.

सबल सिंह को बहुत दर्द हो रहा था. वे सोच रहे थे, ये कैसे लोग हैं जो घायल लोगों की मदद करने के बजाय मोबाइल फोन से फोटो खींच रहे हैं. वीडियो बना रहे हैं. टक्कर मारने वाले तो भाग निकले. क्या मैं ने भी किसी घायल के साथ ऐसा बरताव किया था. हां, किया था.

वे मदद की गुहार लगा रहे थे. भीड़ इस बात पर टीका टिप्पणी कर रही थी कि गलती किस की है. इन की या उन लड़कों की. समय खराब होता है तो कुछ भी हो सकता है. पुलिस को खबर की जाए या एंबुलैंस को. पता नहीं, औरत जिंदा भी है या मर गई. पुलिस के झंझट में कौन पड़े? इन्हें भी देख कर चलना चाहिए.

वीडियो अपलोड कर के ह्वाट्सऐप, फेसबुक पर भेज दिए गए थे. सबल सिंह को अपने से ज्यादा लोगों की भीड़ कमजोर नजर आ रही थी.

तभी भीड़ को चीरते हुए एक आदमी आया. उस ने भीड़ को डांटते हुए कहा, ‘‘शर्म नहीं आती आप लोगों को. घायलों की मदद करने की जगह तमाशा बना रखा है.’’

फिर उस आदमी ने अपने साथियों को पुकारा. सब ने मिल कर सबल सिंह को मोटरसाइकिल से निकाला. उन की बेहोश पत्नी को अपनी गाड़ी में लिटाया और अस्पताल चलने के लिए कहा.

सबल सिंह के हाथपैर में मामूली चोट लगी थी. पत्नी को होश आ चुका था. उन की कमर में चोट लगी थी.

डाक्टर ने कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. सब ठीक है. अच्छा है, सिर में चोट नहीं लगी, वरना बचना मुश्किल था.’’

सबल सिंह सोच रहे थे कि काश, उन्होंने हैलमैट लगाया होता तो ये सारे झंझट ही नहीं होते.

जीत गई द्रौपदी : एक पत्नी ने खेला गजब का दांव

मैनी गरीब जरूर थी, पर रूप के मामले में बहुत धनवान थी. लंबा शरीर, सुराहीदार गरदन और गोरा रंग. गांव में निकलती तो मनचलों की आंखें उस के उभारों पर टिक जातीं.

गांव में ही रहने वाला मूलन ठाकुर मैनी को देख कर लार गिराता था और हमेशा उस के शरीर को घूरा करता था. और वैसे भी कोई लड़की या औरत मूलन की गंदी नजर से बची नहीं थी.

मैनी भी मूलन की नजर को अच्छी तरह से पहचानती थी. आज तक उस ने खुद को मूलन नाम के कामी मर्द से खुद को बचा कर रखा था.

झोंपड़ी के बाहर साइकिल के खड़खड़ाने की आवाज आई, तो मैनी समझ गई कि उस का मरद ढोला दिनभर आसपास के गांवों में फेरी लगाने के बाद वापस आ गया है. मैनी गुड़ और पानी ले आई.

ढोला खटिया पर बैठ चुका था. गमछे से अपने माथे का पसीना पोंछते हुए उस ने फीकी मुसकराहट से अपनी 7 साल की बेटी बिट्टी को पुचकारा.

बिट्टी किसी खाने वाली चीज की उम्मीद में अपने बापू के हाथों को टटोलने लगी. ढोला ने उसे गोद में उठा कर अपने पास बिठा लिया और उस के सिर पर हाथ फेरने लगा.

मैनी के चेहरे पर नजर जाते ही ढोला की दिनभर की थकान कुछ कम हुई. उस ने गुड़ खाते हुए मैनी का हाथ पकड़ कर उसे पास बिठाने की कोशिश की, पर मैनी उस से दूर छिटकते हुए बोली, ‘‘काहे नहीं और कोई काम करते हैं अब… इस धंधे में हमें अब कोई बरकत नहीं दिखती.’’

मैनी की शिकायत सुन कर ढोला का मुंह लटक गया और वह बोला, ‘‘अरे, अब गांव में भी ये प्लास्टिक के देशी खिलौने कोई नहीं लेता. हर तरफ चीन के बने खिलौने पहुंच गए हैं. विदेशी के सामने देशी खिलौने की क्या औकात…’’

‘‘तो काहे नहीं हमें अपने साथ ले कर चलते हो… गांव के लोग एक औरत को फेरी लगाते देख कर उस की खूबसूरती निहारेंगे तो ज्यादा सामान खरीदेंगे,’’ मैनी ने अपने बड़े उभारों

को थोड़ा सा उचकाते हुए कहा और मुसकराने लगी.

ढोला साइकिल पर बच्चों के खिलौने लाद कर फेरी लगाता था. दिनभर कई किलोमीटर साइकिल चला लेने के बाद भी रोजाना 50-60 रुपए ही कमा पाता था, जो उस के 3 लोगों के परिवार को चलाने के लिए बहुत कम थे.

हालांकि ढोला के पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी था, जिस में वह बड़ी मेहनत से खेती करता था, पर खेतीकिसानी भी बिना संसाधनों के कहां पनपती है?

बड़ी मुश्किल से थोड़ाबहुत गेहूं पैदा हुआ था इस बार. ढोला के खेत में लगी हुई बालियां सुनहरी हो चुकी थीं. ढोला और मैनी के मन में संतोष था कि चलो गेहूं की फसल होने के चलते उन को भूखा तो नहीं रहना पड़ेगा.

ढोला खुश था कि अब वह अपने लिए देशी शराब की बोतल भी लाएगा. सालभर हो गया है और हलक के नीचे शराब की एक बूंद भी नहीं उतरी है.

रात में ढोला मैनी के पास लेटा तो प्यार जताता हुआ बोला, ‘‘बस मैनी, कुछ दिन की बात और है. एक बार फसल बिक जाए तो हमारी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी और फिर हम यह काम छोड़ कर दुकान कर लेंगे.’’

उन दोनों की आंखों में एक सुनहरा भविष्य करवट ले रहा था.

अगली सुबह जब ढोला खेत की तरफ जाने लगा, तो उस की नजर अपने खेत से उठते धुएं की तरफ गई. किसी खतरे के डर से उस का कलेजा मुंह को आने लगा. वह पूरी ताकत लगा कर दौड़ते हुए खेत के पास पहुंचा.

ओह, यह क्या… ढोला की नजरों के सामने ही पूरी फसल राख हुई जा रही थी और वह सिर्फ खड़े हो कर देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था.

जरूर गांव के किसी आदमी ने ही ढोला से अपनी दुश्मनी निकाली है, पर भला गरीब ढोला से किसी को क्या परेशानी हो सकती थी? यह सवाल बारबार ढोला के मन को कचोटे जा रहा था. उसे रोना आ रहा था, पर रोते भी नहीं बन रहा था.

अब न तो ढोला दारू पी पाएगा और न ही घर के लिए तेल, गुड़ वगैरह खरीद पाएगा… सोचविचार के सांप एक के बाद उसे डसे जाते थे.

फसल जल गई थी. घर में जो राशन बचा था, वह ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते और चल सकता था. इस के बाद तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी… फिर क्या करेगा ढोला? किसी तरह से अपनी पत्नी और बेटी का पेट तो भरना ही है उसे.

इसी सोचविचार में अपने मुंह को लटकाए ढोला घर की तरफ जाता था

कि तभी गांव में रहने वाला बिरजू

उसे देख कर बोला, ‘‘काहे परेशान हो ढोला भाई?’’

ढोला ने उसे अपनी आपबीती कह सुनाई, तो बिरजू बोला, ‘‘तो इस में परेशानी की क्या बात है… मूलन ठाकुर की हवेली पर जुआ चलता है. 10 रुपए की चाल के बदले कोई भी 100 रुपए तक जीत सकता है… और, साथ ही साथ मूलन ठाकुर कभीकभी सब को दारू भी पिलाता है.’’

मुफ्त की दारू का नाम सुनते ही ढोला के मन में दारू पीने की इच्छा जाग गई. फसल तो जाती रही क्यों न चल कर मूलन ठाकुर के यहां जुआ खेल लिया जाए. 10 के बदले 100 रुपए मिलेंगे. 2-3 बार पैसे लगा दिए तो वह मतलब भर का पैसा जीत जाएगा.

ढोला का मन मचल गया, पर दुविधा यह थी कि एक बार दांव लगाने के लिए कम से कम 10 रुपए तो चाहिए थे.

‘10 रुपए तो मैनी आराम से दे सकती है,’ यही सोच कर ढोला लंबे कदमों से घर की ओर बढ़ गया. दरवाजे पर पहुंचा ही था कि अंदर से मैनी के रोने की आवाज ढोला के कानों तक टकराई. फसल में आग लग जाने की बात मैनी तक पहले ही पहुंच चुकी थी.

ढोला ने मैनी को ज्ञान देते हुए कहा, ‘‘जो हो गया है, उस पर दुख करने से क्या फायदा. अब आगे की सोचो और एक महीने पहले जो 10 रुपए मैं ने

तुम्हें दिए थे, वे मुझे ला कर दे दो.

हो सकता है, मैं इस के 10 गुना पैसे ले कर लौटूं…’’

‘‘पर, वे पैसे तो मैं ने चावल लाने के लिए रखे हैं. बिट्टी कई दिन से भात मांग रही है.’’

मैनी ने बहुत नानुकर की, पर भला पति के सामने उस की क्या चलती. थकहार कर मैनी को 10 रुपए ढोला को देने ही पड़े.

मूलन ठाकुर के दरवाजे पर महफिल लगी हुई थी. कई आदमी जुआ खेलने में मसरूफ थे और ठाकुर एक तरफ कुरसी पर बैठा मजे ले रहा था. बीचबीच में नौकर शराब और पकौड़ी ले कर आता और मेज पर रख कर चला जाता.

ढोला को देख कर मूलन ठाकुर के चेहरे पर एक शैतानी मुसकराहट दौड़ गई, ‘‘आओ ढोला, आओ. आज तुम भी अपनी किस्मत आजमाओ… तुम्हारी फसल नहीं रही तो क्या हुआ, यह खेल ही तुम्हारे सब खर्चे पूरे कर देगा.’’

ढोला ने 10 रुपए का नोट रख कर दांव लगाया और पहला दांव वह जीत गया. अब उस के हाथ में 100 रुपए आ गए. ‘कौन कहता है कि पैसे कमाना मुश्किल है,’ ढोला मन ही मन सोच रहा था.

इस के बाद ढोला एक के बाद एक कई दांव जीत चुका था. पूरे 500 रुपए थे उस की मुट्ठी में. उसे जीतता देख कर मूलन ठाकुर भी खेल में शामिल हो गया और फिर पता नहीं क्या हुआ कि ढोला अपनी जीती हुई सारी रकम हार बैठा और खाली हाथ घर पहुंचा.

मैनी को सारी बात बताई, तो वह बिफर पड़ी, ‘‘बिटिया भात मांग रही है और घर में अब कुछ नहीं है. क्या खिलाऊं उसे? और तुम तो फेरी पर नहीं जा रहे… मैं क्या खिलाऊंगी बिट्टी को अब…’’ शराब के नशे में डूबे ढोला को अब कोई बात नहीं समझ में आ रही थी. बिस्तर पर लेटते ही वह नींद से घिर गया.

अगली सुबह जब ढोला जागा, तो उस के मन में जुए की हार को जीत में बदलने की बात चल रही थी. वह घर से मूलन ठाकुर की हवेली की ओर बढ़ चला कि मैनी की आवाज आई, ‘‘बिट्टी के लिए घर में कुछ खाने को नहीं है. क्या करूं?’’

ढोला ने मैनी को यकीन दिलाया कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, वह पैसे ले कर ही घर लौटेगा.

जुए का इतिहास बहुत पुराना है और इस बात की गवाही देता है कि जुए के खेल में औरत की आन बहुत जल्दी दांव पर लग जाती है.

ढोला आज भी पहले तो खूब पैसे जीता और फिर बाद में हारने लगा. जब उस के पास कुछ नहीं बचा, तो उस ने अपना खेत दांव पर लगा दिया और फिर खेत भी बहुत आसानी से हारने के बाद उस ने मैनी के गहने दांव पर लगा दिए और गहने भी हार बैठा.

ढोला खेल से उठ गया था, क्योंकि मूलन ठाकुर ने उसे पत्नी के सारे गहने और खेत के कागज ला कर सौंपने को कहा था.

मैनी सन्न रह गई थी कि आज ढोला यह क्या कर आया है. खेत तक हार गया. अब तक वे गरीबी की मार ही झेल रहे थे, पर अब उन्हें भुखमरी भी झेलनी पड़ेगी.

पर क्या कर सकती थी वह अकेली औरत? ढोला के सामने उस की एक न चली. ढोला ने उस के गहने और खेत के कागज छीन लिए और ठाकुर को सौंपने के लिए चल दिया.

देर रात तक जब ढोला घर वापस नहीं आया, तब मैनी उसे खुद ही ढूंढ़ने चल दी.

मैनी जानती थी कि इस समय ढोला कहां पर होगा, इसलिए वह सीधा मूलन के घर जा पहुंची और एक कोने में खड़े हो कर खेल देखने लगी.

ढोला लगातार हार रहा था और ऐसा लग रहा था कि मूलन ठाकुर किसी बुरी नीयत से ढोला को जुआ खेलने के लिए उकसाए जा रहा था.

मैनी ने मन ही मन काफीकुछ सोचा और ठाकुर के सामने आ कर इठलाते हुए बोली, ‘‘ठाकुर साहब, वैसे तो हमारा पसंदीदा खेल गुल्लीडंडा है, पर मेरा ढोला अब थका हुआ लग रहा है, इसलिए आप को एतराज न हो, तो मैं अपने मरद की जगह जुआ खेलूंगी.’’

मूलन ठाकुर ने मैनी को ऊपर से नीचे की तरफ घूरा और अपनी जांघ पर हाथ मार कर जोरजोर से हंसने लगा, ‘‘तू आना ही चाहती है तो आ जा. तेरे साथ तो मजा ही आएगा.’’

ठाकुर की बात के जवाब में मैनी ने कमर मचकाई और पास आ कर बैठ गई.

‘‘हां तो मैनी, बोलो दांव पर क्या लगाती हो?’’ मूलन ठाकुर ने पूछा.

‘‘एक औरत का सब से बड़ा धन तो उस के जेवर होते हैं. मैं इन्हें ही दांव पर लगा सकती थी, पर वे तो मेरा मरद पहले ही हार चुका है और बाकी की कसर उस ने खेत हार कर पूरी कर

दी है.’’

‘‘अरे अब क्या है तेरे पास? और अगर कुछ नहीं बचा तो अपनेआप को भी दांव पर लगा दे. तुझे द्रौपदी बनने का मौका दे रहा हूं. अगर तू हारी तो तेरे बदन पर मेरा हक होगा, तू मेरी रखैल बन कर रहेगी. लगा दे अपने को दांव पर और बन जा द्रौपदी,’’ मूलन ने एक बार फिर अपनी जांघ पर अपना हाथ मारते हुए कहा.

कुछ देर तक मैनी शांत रहने की ऐक्टिंग करती रही और फिर बोली, ‘‘मैं अपनेआप को दांव पर लगा तो दूं, पर मेरी यह शर्त होगी कि मेरे जिस्म पर जीतने वाले का हर तरीके से हक होगा, लेकिन मेरे जेवर और खेत मुझे वापस करने होंगे.’’

मूलन को इस समय सिवा मैनी को जीत कर अपनी रखैल बना कर उस के जिस्म को भोग लेने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा था, इसलिए उस ने मैनी को तुरंत ही उस के जेवर और खेत लौटा देने की हामी भर ली और अब मैनी ने खुद को दांव पर लगा दिया.

मूलन ने जबरदस्त चाल चली और बड़े आराम से दांव जीत गया. मैनी खुद को जुए में हार गई थी और अब वह मूलन ठाकुर की रखैल हो गई थी.

ढोला को अपनी पत्नी का इस तरह से रखैल हो जाना कुछ अजीब सा लग रहा था, इसलिए वह मैनी से शिकायत करने लगा, जिस के बदले में मैनी ने उसे जवाब दिया, ‘‘तुम ने मेरे गहने और खेत जुए में हार कर यह पक्का कर दिया था कि हम आज नहीं तो कल मर ही जाएंगे, पर मैं ने जुए में खुद को हार कर तुम्हें अहसास कराया है कि तुम गलती करने जा रहे थे…’’

मैनी ने ढोला से यह भी कहा कि जुए में जो आदमी अपनी पत्नी के गहने और खेत दांव पर लगा सकता है, वह कल अपनी पत्नी को भी जुए में हार सकता है, इसलिए ढोला को सजा के तौर पर अकेले ही जिंदगी काटनी होगी, जबकि उस की बेटी मैनी के साथ रहेगी.

मैनी यह बात अच्छी तरह जानती थी कि ढोला की माली हालत इस लायक नहीं रह गई थी कि वह अपनी बेटी को दोनों समय का खाना खिला सके, इसलिए उस ने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और एक तरह से अपने पति ढोला और बिट्टी की जिंदगी की हिफाजत भी की.

गियर वाली साइकिल : विक्रम साहब की दरियादिली

‘टनटनटन…’ साइकिल की घंटी बजती तो दफ्तर के गार्ड विक्रम साहब की साइकिल को खड़ी करने के लिए दौड़ पड़ते. विक्रम साहब की साइकिल की इज्जत और रुतबा किसी मर्सडीज कार से कम न था.

विक्रम साहब ठसके से साइकिल से उतरते. अपने पाजामे में फंसाए गए रबड़ बैंड को निकाल कर उसे दुरुस्त करते, साइकिल पर टंगा झोला कंधे पर टांगते और गार्डों को मुन्नाभाई की तरह जादू की झप्पी देते हुए अपनी सीट की तरफ चल पड़ते.

विक्रम साहब एक अजीब इनसान थे. साहबी ढांचे में तो वे किसी भी एंगल से फिट नहीं बैठते थे या यों कहें कि अफसर लायक एक भी क्वालिटी नहीं थी उन में. न चाल में, न पहनावे में, न बातचीत में, न स्टेटस में. 90 हजार रुपए महीना की तनख्वाह उठाते थे विक्रम साहब, पर अपने ऊपर वे 2 हजार रुपए भी खर्च न करते थे. दाल, चावल, सब्जी, रोटी खाने के अलावा उन्होंने दुनिया में कभी कुछ नहीं खाया था. अपने मुंह से तो यह सब वे बताते ही थे, उन के डीलडौल को देख कर लगता भी यही था कि उन्होंने रूखी रोटी और सूखी सब्जी के अलावा कभी कुछ खाया भी नहीं होगा.

काग जैसा रूप था उन का, पर अपनी बोली को उन्होंने कोयल जैसी मिठास से भर दिया था. औरतों के तो वे बहुत ही प्रिय थे. मर्द होते हुए भी औरतें उन से बेझिझक अपनी निजी बातें शेयर कर सकती थीं. उन्हें कभी नहीं लगता था कि वे अपने किसी मर्द साथी से बात कर रही हैं. लगता था जैसे अपनी किसी प्रिय सखी से बातें कर रही हैं. उन्हें विक्रम साहब के चेहरे पर कभी हवस नहीं दिखती थी.

दफ्तर में 10 मर्दों के साथ 3 औरतें थीं. बाकी 7 के 7 मर्द विक्रम साहब की तरह औरतों में लोकप्रिय बनने के अनेक जतन करते, पर कोई भी कामयाब न हो पाता था.

विक्रम साहब सीट पर आते ही सब से पहले डस्टर ले कर अपनी मेज साफ करने लगते थे, फिर पानी का जग ले कर वाटर कूलर की तरफ ऐसे दौड़ लगाते थे जैसे अपने गांव के कुएं से पानी भरने जा रहे हों.

चपरासी शरमाते हुए उन के पीछे दौड़ता, ‘‘साहब, आप बैठिए. मैं पानी लाता हूं.’’

विक्रम साहब उसे मीठी डांट लगाते, ‘‘नहीं, तुम भी मेरी तरह सरकारी नौकर हो. तुम को मौका नहीं मिला इसलिए तुम चपरासी बन गए. मुझे मौका मिला इसलिए मैं अफसर बन गया. इस का मतलब यह नहीं है कि तुम मुझे पानी पिलाओगे. तुम्हें सरकार ने सरकारी काम के लिए रखा है और पानी या चाय पिलाना सरकारी काम नहीं है.’’

विक्रम साहब के सामने के चारों दांत 50 की उम्र में ही उन का साथ छोड़ गए थे. लेकिन कमाल था कि अब 59 साल की उम्र में भी उन के चश्मा नहीं लगा था.

दिनभर लिखनेपढ़ने का काम था इसलिए पूरा का पूरा स्टाफ चश्मों से लैस था. एक अकेले विक्रम साहब नंगी आंखों से सूई में धागा भी डाल लेते थे.

फुसरत के पलों में जब सारे लोग हंसीमजाक के मूड में होते तो विक्रम साहब से इस का राज पूछते, ‘‘सर, आप के दांत तो कब के स्वर्ग सिधार गए, पर आंखों को आप कौन सा टौनिक पिलाते हैं कि ये अभी भी टनाटन हैं?’’

विक्रम साहब सब को उलाहना देते, ‘‘मैं तुम लोगों की तरह 7 बजे सो कर नहीं उठता हूं और फिर कार या मोटरसाइकिल से भी नहीं चलता हूं. मैं दिमाग को भी बहुत कम चलाता हूं, केवल साइकिल चलाता हूं रोज 40 किलोमीटर…’’

विक्रम साहब के पास सर्टिफिकेटों को अटैस्ट कराने व करैक्टर सर्टिफिकेट बनाने के लिए नौजवानों की भीड़ लगी रहती थी. बहुत से गजटेड अफसरों के पास मुहर थी, पर वे ओरिजनल सर्टिफिकेट न होने पर किसी की फोटोकौपी भी अटैस्ट नहीं करते थे. डर था कि किसी गलत फोटोकौपी पर मुहर व दस्तखत न हो जाएं.

लेकिन विक्रम साहब के पास कोई भी आता, उन की मुहर हमेशा तैयार रहती थी उस को अटैस्ट कर देने के लिए. वे कहते थे, ‘‘मेरी शक्ल अच्छी तरह याद कर लो. जब तुम डाक्टर बन जाओगे तो मैं अपना इलाज तुम्हीं से कराऊंगा.’’

नौजवानों के वापस जाते ही वे सब से कहते, ‘‘ये नौजवान ऐसे ही बेरोजगारी का दंश झोल रहे हैं. फार्म पर फार्म भरे जा रहे हैं. हम इन्हें नौकरी तो नहीं दे सकते हैं, पर कम से कम इन के सर्टिफिकेट को अटैस्ट कर के इन का मनोबल तो बढ़ा ही सकते हैं.’’

सब उन की सोच के आगे खुद को बौना महसूस कर अपनेअपने काम में बिजी होने की ऐक्टिंग करने लगते.

विक्रम साहब में गुण ठसाठस भरे हुए थे. वे कभी किसी पर नहीं हंसते थे, दुनिया के सारे जुमलों को वे खुद में दिखा कर सब का मनोरंजन करते थे.

विक्रम साहब जिंदादिली की मिसाल थे. दफ्तर में हर कोई हाई ब्लडप्रैशर की दवा, कोई शुगर की टिकिया, कोई थायराइड की टेबलेट खाखा कर अपनी जिंदगी को तेजी से मौत के मुंह में जाने से थामने की कोशिश में लगा था, पर विक्रम साहब को इन बीमारियों के बारे में जानकारी तक नहीं थी. उन्हें कभी किसी ने जुकाम भी होते नहीं देखा था.

विक्रम साहब चकरघिन्नी की तरह दिनभर काम के चारों ओर चक्कर काटा करते थे. वे अपने अलावा दूसरों के काम के बोझ तले दबे रहते थे. सारा काम खत्म करने के बाद शाम 5 बजे वे लंच के लिए अपने झोले से रोटियां निकालते थे.

यों तो विक्रम साहब की कभी किसी से खिटपिट नहीं होती थी लेकिन आखिर थे तो वे इनसान ही. बड़े साहब के अडि़यल रवैए ने उन को एक बार इतना खिन्न कर दिया था कि उन्होंने अपनी सीट के एक कोने में हनुमान की मूरत रख ली थी और डंके की चोट पर ऐलान कर दिया था, ‘‘जब एक धर्म वालों को अपने धार्मिक काम पूरे करने के लिए दिन में 2-2 बार काम बंद करने की इजाजत है तो उन को क्यों नहीं? उन के यहां त्रिकाल संध्या का नियम है. वे दफ्तर नहीं छोड़ेंगे त्रिकाल संध्या के लिए, लेकिन दोपहर की संध्या के लिए वे एक घंटा कोई काम नहीं करेंगे.’’

विक्रम साहब के इस सवाल का किसी के पास कोई जवाब नहीं था. दफ्तर में धर्म के नाम पर सरकारी मुलाजिम समय का किस तरह गलत इस्तेमाल करते हैं, इस का गुस्सा सालों से लोगों के अंदर दबा पड़ा था. विक्रम साहब ने उस गुस्से को आवाज दे दी थी.

महीने के तीसों दिन रात के 8 बजे तक दफ्तर खुलता था. रोटेशन से सब की ड्यूटी लगती थी. इस में तीनों औरतों को भी बारीबारी से ड्यूटी करनी पड़ती थी.

रात 8 बजे तक और छुट्टियों में ड्यूटी करने में वे तीनों औरतें खुद को असहज पाती थीं. उन्होंने एक बार हिम्मत कर के डायरैक्टर के सामने अपनी समस्या रखी थी.

डायरैक्टर साहब ने उन्हें टका सा जवाब दिया था, ‘‘जब आप ऐसी छोटीमोटी परेशानी भी नहीं उठा सकतीं तो नौकरी में आती ही क्यों हैं?’’

साथी मर्द भी उन औरतों पर तंज कसते, ‘‘जब आप को तनख्वाह मर्दों के बराबर मिल रही है तो काम आप को मर्दों से कम कैसे मिल सकता है?’’

लेकिन विक्रम साहब के आने के बाद औरतों की यह समस्या खुद ही खत्म हो गई थी. वे पता नहीं किस मिट्टी के बने थे, जो हर रोज रात के 8 बजे तक काम करते और हर छुट्टी के दिन भी दफ्तर आते थे.

6 बजते ही वे तीनों औरतोें को कहते, ‘‘आप जाएं अपने घर. आप की पहली जिम्मेदारी है आप का परिवार. आप के ऊपर दोहरी जिम्मेदारियां हैं. हमारी तरह थोड़े ही आप को घर जा कर बनाबनाया खाना मिलेगा.’’

विक्रम साहब की इस हमदर्दी से सारे दूसरे मर्द कसमसा कर रह जाते थे.

विक्रम साहब न तो जवान थे, न हैंडसम और न ही रसिकमिजाज, इसलिए औरतों के प्रति उन की इस दरियादली पर कोई छींटाकशी करता तो लोगों की नजर में खुद ही झूठा साबित हो जाता.

विक्रम साहब की इस दरियादिली का फायदा धीरेधीरे किसी न किसी बहाने दूसरे मर्द साथी भी उठाने लगे थे.

विक्रम साहब जब सड़क पर साइकिल से चलते तो वे एक साधारण बुजुर्ग से नजर आते थे. कोई साइकिल चलाने वाला भरोसा भी नहीं कर सकता था कि उन के बगल में साइकिल चला रहा यह आदमी कोई बड़ा सरकारी अफसर है.

‘वर्ल्ड कार फ्री डे’ के दिन कुछ नेता व अफसर अपनीअपनी कारें एक दिन के लिए छोड़ कर साइकिल से या पैदल दफ्तर जाने की नौटंकी करते हुए अखबारों में छपने के लिए फोटो खिंचवा रहे थे. विक्रम साहब के पास कुछ लोगों के फोन भी आ रहे थे कि वे सिफारिश कर के किसी बड़े अखबार में उन के फोटो छपवा दें.

विक्रम साहब अपनी साइकिल पर बैठ कर उस दिन दिनभर दौड़भाग में लगे थे, उन लोगों के फोटो छपवाने के लिए, पर उस 59 साल के अफसर की ओर न अपना फोटो छपवाने वालों का ध्यान गया था और न छापने वालों का, जो चाहता तो लग्जरी कार भी खरीद सकता था. पर जिस ने इस धरती को बचाने की चिंता में अपने 35 साल के कैरियर में हर रोज साइकिल चलाई थी, उस ने अपनी जिंदगी के हर दिन को ‘कार फ्री डे’ बना रखा था.

विक्रम साहब के रिटायरमैंट में बहुत कम समय रह गया था. सब उदास थे खासकर औरतें. उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि विक्रम साहब के जाने के बाद उन्हें पहले की तरह 8 बजे तक और छुट्टियों में भी अपनी ड्यूटी करनी पड़ेगी.

वे सब चाहती थीं कि विक्रम साहब किसी भी तरह से कौंट्रैक्ट पर दूसरे लोगों की तरह नौकरी करते रहें.

विक्रम साहब कहां मानने वाले थे. उन्होंने सभी को अपने भविष्य की योजना बता दी थी कि वे रिटायरमैंट के बाद सभी लोगों को साइकिल चलाने के फायदे बताएंगे खासकर नौजवानों को वे साइकिल चलाने के लिए बढ़ावा देंगे.

विक्रम साहब ने एक बुकलैट भी तैयार कर ली थी, जिस में दुनियाभर की उन हस्तियों की तसवीरें थीं, जो रोज साइकिल से अपने काम करने की जगह पर जाती थीं. उस में उन्होंने दुनिया के उन आम लोगों को भी शामिल किया था, जो साइकिल चलाने के चलते पूरी जिंदगी सेहतमंद रहे थे.

विक्रम साहब ने अपनी खांटी तनख्वाह के पैसों में से बहुत सी रकम बुकलैट की सामग्री इकट्ठा करने व उस की हजारों प्रतियां छपवाने में खर्च कर डाली थीं.

उन तीनों औरतों ने भी विक्रम साहब के रिटायरमैंट पर अपनी तरफ से उन्हें गियर वाली साइकिल गिफ्ट करने के लिए रकम जमा करनी शुरू कर दी थी. उन की दिली इच्छा थी कि विक्रम साहब रिटायरमैंट के बाद गियर वाली कार में न सही, गियर वाली साइकिल से तो जरूर चलें.

 

देश का किसान क्यों है हलकान

तकरीबन 2 साल पहले मोदी सरकार द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की हुंकार के साथ किसानों ने दिल्ली की घेराबंदी की थी. ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ दिल्ली के बौर्डर पर किसानों ने डेरा डाला था, क्योंकि दिल्ली के अंदर घुसने के सारे रास्तों पर पुलिस ने सीमेंट दीवारों पर कीलकांटे जड़ कर किसानों और केंद्र सत्ता के बीच मजबूत दीवार खड़ी कर दी थी.

उस आंदोलन के दौरान तकरीबन सालभर तक जाड़ा, गरमी और बरसात झोलते हुए किसान खुले आसमान के नीचे सड़कों पर बैठे रहे थे. तकरीबन 700 किसानों की जानें भी गई थीं. लेकिन किसानों ने तब मोदी सरकार को झका ही लिया था और वे 3 काले कानून वापस करा दिए थे, जिन से किसानों को अपनी ही जमीन पर मजदूर बनाने के सारे इंतजाम मोदी सरकार ने कर दिए थे.

उस समय तो मजबूरन मोदी सरकार को किसानों की मांगों के आगे झकना पड़ा, लेकिन उस आंदोलन से कुछ और नए मुद्दे खड़े हुए, जिन को ले कर किसान एक बार फिर दिल्ली घेरने निकल पड़े.

14 मार्च, 2024 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में देशभर से 400 से ज्यादा किसान संगठनों के लोग महापंचायत के लिए पहुंचे. इतनी बड़ी तादाद में किसानों का रेला देख दिल्ली के कई क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई. हालांकि, किसानों की तरफ से किसी तरह की बेअदबी नहीं हुई और महापंचायत के बाद दोपहर के 3 बजे, रैली खत्म भी हो गई.

मगर, इस महापंचायत में किसानों ने सरकार को यह संदेश जरूर दे दिया कि सरकार के बरताव से वे न सिर्फ आहत हैं, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे भारतीय जनता पार्टी को करारा सबक भी सिखाने के लिए कमर कस चुके हैं.

महापंचायत के दौरान अपनी भड़ास निकालते हुए एसकेएम के नेता डाक्टर दर्शन पाल ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसान भाजपा नेताओं को गांवों में नहीं घुसने देंगे, वहीं भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘‘इस महापंचायत से सरकार को यह संदेश मिल गया है कि किसान इकट्ठा हैं और भारत सरकार बातचीत से समाधान करे. यह आंदोलन खत्म नहीं होगा. जिस तरह उन्होंने बिहार को बरबाद किया, वहां मंडियां खत्म कर दीं, पूरे देश को बरबाद करना चाहते हैं.’’

किसान नेताओं ने एमएसपी की गारंटी कानून लाने की मांग की और हरियाणापंजाब के शंभू और खनोरी बौर्डर पर बैठे किसानों पर पुलिस की कार्यवाही की निंदा की.

दरअसल, मोदी सरकार ने अपने करीबी उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए जिस तरह किसानों की अनदेखी की और उन्हें साजिशन गुलाम बनाने की कोशिश की, उस से किसान समुदाय बुरी तरह से बिफर गया है. उद्योगपतियों के अरबोंखरबों रुपए के कर्ज माफ करने वाली सरकार किसानों की छोटीछोटी मांगों को दरकिनार कर रही है.

केंद्र सरकार की तरफ से लगातार लागू की जा रही मजदूर किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ संयुक्त किसान मोरचा लगातार संघर्ष कर रहा है. अन्नदाता के मुद्दे वही पुराने हैं, जिन पर मोदी सरकार ध्यान नहीं दे रही है :

* एमएसपी गारंटी कानून आए.

* स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू की जाए.

* किसानों की कर्जमाफी हो.

* पिछले किसान आंदोलन में दर्ज मामले वापस लिए जाएं.

* पिछले किसान आंदोलन में जान खो चुके किसानों को मुआवजा दिया जाए.

* लखीमपुर खीरी वाले मामले में कुसूरवारों को सजा मिले.

* भूमि अधिग्रहण कानून के किसान विरोधी क्लौज पर दोबारा विचार किया जाए.

किसान चाहते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को सरकार लागू करे. स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उन की फसल की लागत का डेढ़ गुना कीमत देने की सिफारिश की थी.

आयोग की रिपोर्ट को आए 18 साल गुजर गए, लेकिन एमएसपी पर सिफारिशों को अब तक लागू नहीं किया गया. बिजली कानून 2022 भी वापस करने का दबाव वे सरकार पर बनाए हुए हैं.

इस के अलावा भूमि अधिग्रहण और आवारा पशुओं की प्रमुख समस्या देश के अंदर बनी हुई है, जिस से किसान परेशान हैं. आवारा पशु खड़ी फसल को बरबाद कर देते हैं. इस का कोई समाधान सरकार के पास नहीं है, उलटे सरकार किसानों के हित में काम करने के बजाय उन की जमीनों को बड़े कारोबारियों के हाथों बेचना चाहती है और इसी नीयत से सरकार मजदूर किसान विरोधी नीतियां लगातार लागू कर रही है.

देश का किसान अपनी सभी फसलों के लिए एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी भरोसा चाहता है और सभी किसानों के लिए कर्ज की पूरी माफी की मांग कर रहा है. जब उद्योगपतियों के कर्ज माफ हो सकते हैं, तो उस के मुकाबले किसानों की कर्ज राशि तो मामूली सी है.

मनरेगा के तहत किसानों को खेती के लिए रोजाना 700 रुपए निश्चित मजदूरी और साल में 200 दिनों के रोजगार की गारंटी भी चाहिए, जो सरकार के लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. मगर सरकार की नीयत गरीबी खत्म करना नहीं, बल्कि गरीब को खत्म करने की है.

News Kahani: स्पैनिश औरत का रेप कांड

भारत के झारखंड राज्य का एक आदिवासी जिला है गोड्डा, जिसे 17 मई, 1983 को पुराने संथाल परगना जिले से बाहर बनाया गया था. इसी गोड्डा जिले का बसंत राय तालाब बहुत ज्यादा मशहूर है. यहां का बिसुआ मेला लोगों की जिंदगी में अलग ही रंग बिखेर देता है.

15 दिनों तक चलने वाले इस बिसुआ मेले की पौराणिक और ऐतिहासिक अहमियत है. मेले के दौरान तालाब में सुबह से ही आदिवासी और गैरआदिवासी लोग नहाना शुरू कर देते हैं.

साफा होड़ आदिवासी समुदाय के लोग तालाब में डुबकी लगाने के बाद सादा कपड़े पहन कर कांसे के बरतन में पूजा शुरू करते हैं. इस के बाद उन्हें मांस और शराब का सेवन छोड़ देना होता है.

इसी बसंत राय तालाब से चंद दूरी पर कुछ और ही नजारा था. रात के 8 बजे थे और तालाब से थोड़ा हट कर एक बड़ा शामियाना लगा हुआ था.

दरअसल, नजदीक के एक गांव के दबंग मुखिया श्याम मुर्मू ने हाल ही में पंचायत का चुनाव जीता था. अपने गुरगों को खुश करने के लिए उस ने वहां शराब, कबाब और शबाब का पूरा इंतजाम किया हुआ था.

श्याम मुर्मू का अपने इलाके में पूरा दबदबा था. वह जंगल से गैरकानूनी कमाई करता था. उस के बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध थे. जिले के एसपी मनोज सिंह से उस की यारी थी. वह खुद बहुत बड़ा औरतखोर था.

अपनी इसी हवस को पूरा करने के लिए श्याम मुर्मू ने आज वहां आरकैस्ट्रा भी बुलाया था, जिस में 2 जवान लड़कियां कम और तंग कपड़ों में फूहड़ गानों पर कमर मटका रही थीं. उन की मांसल देह, मादक डांस स्टैप और पाउडर व लिपस्टिक से लिपेपुते चेहरे बता रहे थे कि वे इस फील्ड की माहिर खिलाड़ी थीं.

स्टेज के नीचे उस गांव के जवान से ले कर बूढ़े तक ललचाई नजरों से उन दोनों लड़कियों के नाजुक अंगों को देख रहे थे. बहुत से लड़के तो उन्हें छू कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश कर रहे थे.

उन्हीं सब में 5 जवान लड़के भी शामिल थे, जो मुखिया के मुंह लगे थे और शराब के नशे में चूर भी. वे पांचों लड़के 18 से 22 साल की उम्र के थे और सभी ज्यादा पढ़ेलिखे भी नहीं थे. वे लड़कियों को देखने में इतना डूबे हुए थे कि उन के शरीर में तरावट सी आ गई थी.

‘‘भाई, अगर यह चिकने गाल वाली लड़की मुझे मिल जाए, तो मैं इसे छील कर रख दूंगा,’’ ब्रजेश मांझी ने कहा.

‘‘सही कहा तुम ने. मन तो मेरा भी कर रहा है कि आज शराब और कबाब के साथसाथ शबाब भी मिल ही जाए,’’ टोनी संथाल ने अपनी छाती पर हाथ फेरते हुए ब्रजेश मांझी से कहा.

‘‘अरे, दूसरी लड़की कौन सा कम है. इस के उभार तो गजब के हैं,’’ तीसरा लड़का प्रदीप मुर्मू बीयर गटकते हुए बोला.

‘‘लेकिन, इस भीड़ में यह लड़की मानेगी? आज तो जेब भी खाली है, वरना अभी इस के मुंह पर पैसे फेंक कर सौदा कर लेता,’’ ब्रजेश मांझी उस लड़की की तरफ आंख मारते हुए बोला.

उस लड़की ने जीभ निकाल कर गंदा इशारा किया, तो वे सब कनखियों से एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

इतने में मुखिया का एक गुरगा उन के पास आया और इशारे से बोला कि साहब बुला रहे हैं.

वे पांचों फौरन वहां से चल दिए. जातेजाते ब्रजेश मांझी ने उस लड़की को फ्लाइंग किस दे दी, तो उस लड़की ने भी उसे दूर से चुम्मा चिपका दिया.

‘‘तुम लोग अभी गांव की ओर निकल जाओ. हवेली में मेरा कमरा तैयार करा दो. आज रात को इन दोनों लड़कियों का मजा जो लूटना है,’’ कुछ पुलिस वालों के साथ शराब पी रहे मुखिया श्याम मुर्मू ने एक लड़के ज्ञानू किस्कू के कान में कहा.

‘‘जी, मुखियाजी,’’ ज्ञानू किस्कू धीरे से बोला.

इस के बाद वे सारे लड़के 2 मोटरसाइकिलों पर बैठ कर गांव की ओर निकल गए. पर उन सब के मन में अभी भी वे दोनों लड़कियां समाई हुई थीं.

थोड़ी दूर चलने पर उन्हें एक मोटरसाइकिल पर कोई जोड़ा नजर आया. ज्यादा रोशनी न होने पर पहले तो उन्होंने उस जोड़े पर ध्यान नहीं दिया, पर जब वे नजदीक से गुजरने लगे तो उन पांचों की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस मोटरसाइकिल पर एक विदेशी जोड़ा सवार था. वे दोनों जवान थे और लड़की तो एकदम सैक्सी लग रही थी.

संजय उरांव नाम के लड़के को थोड़ी बहुत इंगलिश आती थी. उस ने तेज आवाज में उस जोड़े से इंगलिश में पूछा, ‘‘कहां से हो?’’

लड़की ने इंगलिश में ही कहा, ‘‘इक्वाडोर से. हम स्पैनिश हैं.’’

इतने में ब्रजेश मांझी ने पता नहीं क्या सोच कर उस लड़की की तरफ फ्लाइंग किस का इशारा कर दिया.

उस लड़की ने भी हंसते हुए उसी अंदाज में जवाब दे दिया. दरअसल, उस जोड़े ने सुन रखा था कि अब भारत एक सेफ कंट्री बन गया है और यहां पर विदेशी मेहमानों के साथ दोस्ताना बरताव किया जाता है.

वैसे, जब यह जोड़ा दुनिया घूमने निकला था, तब लंदन में रहने के दौरान कुछ भारतीय लोगों ने इन्हें कहा भी था कि भारत में थोड़ा संभल कर रहना, पर चूंकि वह कैथोलिक लड़की, जिस का नाम विवियाना था और जो इक्वाडोर में योग सिखाती थी, को उस के भारत में बैठे योगगुरुओं ने कहा था कि तुम भारत आओ, स्वागत है.

यह जोड़ा ऋषिकेश से होता हुआ अब उत्तरपूर्वी राज्यों की तरफ जा रहा था. रास्ते में झारखंड देखने की इच्छा हुई, तो यहां गोड्डा के पास एक सस्ते होटल में रह रहा था और अब इस सुनसान रास्ते से हो कर होटल जा रहा था. इन्हें अगले ही दिन यहां से रवाना होना था.

जब विवियाना ने ब्रजेश मांझ को फ्लाइंग किस दी, तो इन पांचों को लगा कि यह विदेशी गोरी तो लाइन दे रही है. शराब का नशा और हवस तो इन पर पहले से ही हावी थी, तो इन्होंने उन दोनों को रुकने का इशारा कर दिया.

विवियाना के साथ जो लड़का था, उस का नाम मार्कोस था. उस ने सोचा कि ये चोरउचक्के हैं. वह विवियाना से स्पैनिश में बोला, ‘‘मोटरसाइकिल की सीट के नीचे एक सीक्रेट कंपार्टमैंट में पिस्टल रखी है. निकाल लूं क्या?’’

विवियाना ने स्पैनिश में ही कहा, ‘‘रहने दो. ये सब शराब के नशे में हैं और थोड़ी मस्ती कर रहे हैं. हो सकता है कि इन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत हो, तो तुम मोटरसाइकिल रोक दो.’’

विवियाना के कहने पर मार्कोस ने मोटरसाइकिल रोक दी. वे पांचों भी रुक गए.

इतने में संजय उरांव ने इंगलिश में पूछा, ‘‘भरी हुई सिगरेट पीनी है?’’

कार्लोस ने इंगलिश में पूछा, ‘‘आप का मतलब चरस से है?’’

‘‘हां,’’ संजय उरांव ने कहा और 3 सिगरेट जला लीं और उन में से 2 सिगरेट उन्हें पकड़ा दीं.

विवियाना ने झना टौप और देह दिखाता पाजामा पहना हुआ था. कमीज के ऊपर के 2 बटन खुले हुए थे. उस के बड़े उभार और काली ब्रा मानो उन पांचों को न्योता दे रही थी.

इक्वाडोर में इस तरह का खुला माहौल हमेशा ही रहता है. वहां सैक्स और नशे का आलम इतना ज्यादा है कि यह देश बरबादी के कगार पर पहुंच गया है.

मार्कोस और विवियाना चरस भरी सिगरेट पीने लगे. उन्हें अंदाजा नहीं था कि जिस देश को वे योगगुरु और सेफ कंट्री समझ कर आए थे, वहां उन के साथ क्या होने वाला है.

चरस की सिगरेट पीते ही वे दोनों भी नशे में हो गए. मार्कोस इंगलिश में बोला, ‘‘मैं जरा पेशाब कर के आता हूं. आप ऐंजौय करो.’’

‘ऐंजौय’ शब्द सुन कर उन पांचों की जवानी जोर मारने लगी. मार्कोस के थोड़ा दूर जाते ही ब्रजेश मांझी ने अपने हाथों से विवियाना का मुंह बंद दिया और प्रदीप मुर्मू व ज्ञानू किस्कू ने टांगों से पकड़ कर उसे जमीन पर लिटा दिया.

विवियाना समझ गई कि ये लड़के किसी और इरादे से यहां आए हैं. उस ने छूटने की कोशिश की, पर नाकाम रही. बाकी 2 लड़के संजय उरांव और टोनी संथाल मार्कोस को रोकने के लिए घात लगा कर बैठ गए.

मार्कोस जब पेशाब कर के आया तो उस ने देखा कि विवियाना जमीन पर पड़ी है. उस के बदन पर कमीज नहीं है और ब्रा भी न के बराबर ही है. उस का नशा काफूर हो गया.

मार्कोस सवा 6 फुट का हट्टाकट्टा नौजवान था. वह विवियाना की तरफ लपका तो संजय उरांव और टोनी संथाल ने उसे दबोचना चाहा, पर मार्कोस ने फुरती दिखाते हुए खुद को उन से अलग किया और उन दोनों पर ताबड़तोड़ घूंसे बरसा दिए.

इस हमले से संजय उरांव और टोनी संथाल अपना होश खो बैठे, पर इतने में प्रदीप मुर्मू पीछे से वहां आया और उस ने मोटरसाइकिल के पाने से मार्कोस के सिर पर वार कर दिया. मार्कोस वह वार झेल नहीं पाया और गिर कर बेहोश हो गया.

रास्ता साफ देख कर वे तीनों भी विवियाना के पास जा पहुंचे. वह इंगलिश में गिड़गिड़ा रही थी, ‘‘हमें जाने दो. हम तो तुम्हें दोस्त समझ रहे थे, पर तुम ने हमें धोखा दिया.’’

ब्रजेश मांझी के सिर पर तो हवस सवार थी. उस ने विवियाना का पाजामा खींच दिया और उस पर सवार हो गया.

प्रदीप मुर्मू बोला, ‘‘भाई, जल्दी कर. हमें भी मजे लेने हैं. गांव की सड़क पर विदेशी लड़की का स्वाद कहां बारबार चखने को मिलेगा…’’

संजय उरांव ने कहा, ‘‘आज तो हम विवियाना को दुनिया की सैर यहीं करा देंगे.’’

विवियाना समझ गई थी कि अब वह ज्यादा जोर लगाएगी तो ये सब उसे मार डालेंगे. उस ने खुद को ढीला छोड़ दिया. उन पांचों ने बारीबारी से उसे रौंदा और ऐसे ही सड़क पर छोड़ कर भाग गए.

विवियाना और मार्कोस कुछ देर तक वहीं पड़े रहे, फिर थोड़ी जान आने पर विवियाना उठी, धीरेधीरे अपने कपड़े पहने और मार्कोस के पास गई. उस की बेहोशी तो टूट चुकी थी, पर सिर से खून ज्यादा बह गया था.

विवियाना किसी तरह मार्कोस को मोटरसाइकिल पर लाद कर पास के एक सरकारी अस्पताल में ले गई.

इतनी रात को कोई उस अस्पताल में डाक्टर तो था नहीं, पर वहां के मुलाजिम समझ गए थे कि कोई बड़ा कांड हुआ है. उन्होंने डाक्टर और पुलिस दोनों को फोन कर दिया.

पुलिस इंस्पैक्टर हरि उईके ने विवियाना और मार्कोस की हालत देख कर अंदाजा लगा लिया कि यह मामला तो दुमका जैसा ही लग रहा है, जहां 1 मार्च को ऐसा ही कांड हुआ था.

इंस्पैक्टर हरि उईके के हाथपैर फूल गए. उसे ज्यादा इंगलिश भी नहीं आती थी. उस ने तुरंत जिले के एसपी मनोज सिंह को फोन लगा दिया.

एसपी मनोज सिंह भी आननफानन वहां पहुंच गए और डाक्टर से मामला समझ.

डाक्टर ने बताया, ‘‘रेप और मारपीट का मामला है. विदेशी नौजवान ज्यादा घायल है, पर खतरे से बाहर है. लड़की का गैंगरेप हुआ है.’’

एसपी मनोज सिंह ने इंगलिश में उस जोड़े से बात की और उन पांचों लड़कों का हुलिया लिया.

अस्पताल के एक मुलाजिम को शक हुआ कि मुखिया के जश्न में शामिल उस के गुरगों ने यह कांड किया होगा. उस ने एसपी साहब को चुपके से यह बात बता दी.

एसपी मनोज सिंह ने विवियाना से इंगलिश में पूछा, ‘‘आप क्या चाहती हैं? यह मामला ज्यादा उछला तो आप की भी बदनामी होगी. हाल ही में दुमका जिले में भी ऐसा ही कांड हुआ है.’’

‘‘कैसा कांड…?’’ पूछते हुए विवियाना को हैरत हुई.

एसपी मनोज सिंह ने बताया, ‘‘पिछली 1 मार्च की बात है. कई देशों से होता हुआ बंगलादेश के बाद एक विदेशी स्पैनिश जोड़ा मोटरसाइकिल से भारत आया था और उसे यहां से आगे नेपाल जाना था. वे दोनों पतिपत्नी झारखंड के दुमका में पहुंचे थे, जो यहां से सटा हुआ जिला है. वहां वे लोग हंसडीहा थाना इलाके के कुरमाहाट गांव में टैंट लगा कर रुके थे. वहीं यह कांड हुआ था.

‘‘वह औरत 28 साल की थी, जबकि उस का पति कुछ ज्यादा बड़ी उम्र का था. वे दोनों मोटरसाइकिल पर दुनिया घूमने निकले थे. जब वे कुरमाहाट पहुंचे, तो 1 मार्च की रात को कुछ लड़कों, जो तादाद में 7-8 थे, ने उन्हें दबोच लिया था.

‘‘उस औरत ने पुलिस को आपबीती सुनाते हुए बताया था, ‘यहां आ कर हम ने जंगल के पास एक टैंट गाड़ दिया था. शाम के 7 बजे जब हम अपने टैंट में थे, तब बाहर कुछ आवाजें आने लगीं. हम टैंट से बाहर आए, तो देखा कि 2 लोग फोन पर बात कर रहे थे. साढ़े 7 बजे के आसपास 2 मोटरसाइकिल पर कुछ और लोग भी आ गए. फिर उन्होंने बाहर से हमें कहा कि ‘हैलो फ्रैंड्स’.’’

‘‘इस के बाद उस औरत ने आगे बताया था, ‘हम दोनों टैंट से बाहर आए और हैड टौर्च जलाई. हम ने देखा कि अचानक 5 लोग हमारी तरफ आए और 2 लोग हमारे टैंट की तरफ गए. वे सब अपनी लोकल भाषा में बातचीत कर रहे थे और बीचबीच में इंगलिश भी बोल रहे थे.’

‘‘उस औरत ने बताया था, ‘कुछ देर के बाद 3 लड़के मेरे पति से झगड़ने लगे और उन के हाथ बांध दिए. बाकी

4 लड़कों ने मुझे छुरा दिखाया और जबरदस्ती उठा लिया. फिर मुझे जमीन पर पटक दिया और लातघूंसों से खूब मारा. इस के बाद उन सब ने मेरे साथ रेप किया. मुझे महसूस हुआ कि उन सब ने शराब पी रखी थी. यह पूरा कांड शाम के साढ़े 7 बजे और रात के 10 बजे के बीच हुआ.’’’

विवियाना बड़े ध्यान से यह सब सुन रही थी. पास ही बिस्तर पर लेटे मार्कोस ने इंगलिश में कहा, ‘‘हमारे साथ भी तो ऐसा ही हुआ है.’’

एसपी मनोज सिंह ने इंगलिश में कहा, ‘‘लेकिन, आप के साथ कोई लूटपाट नहीं हुई है, जबकि उस औरत ने आगे बताया था, ‘उन लोगों ने हमारा एक स्विस नाइफ (एक तरह का चाकू), कलाई घड़ी, हीरा जड़ी एक प्लेटिनम की अंगूठी, चांदी की अंगूठी, काले रंग के ईयरपौड, काले रंग का पर्स, क्रेडिट कार्ड, चांदी का चम्मच और कांटा छीन लिए थे. 13,000 रुपए नकद और 300 डौलर भी ले लिए थे.’

‘‘उस औरत ने यह भी बताया था कि अब तक उन दोनों ने 20,000 किलोमीटर का सफर तय किया था, पर किसी भी देश में ऐसी कोई वारदात नहीं हुई थी. हालांकि, उस ने भारत के लोगों की तारीफ की, पर यह कांड तो भारत में हुआ न…’’

‘‘क्या उस औरत को भी चोटें आई थीं?’’ विवियाना ने एसपी मनोज सिंह से इंगलिश में पूछा.

‘‘उस औरत ने पुलिस को बताया था, ‘मुझे लग रहा था कि आरोपी उस रात मेरी हत्या कर देंगे, मगर मैं अभी भी जिंदा हूं. घटना के बाद मैं खुद बाइक चला कर इलाज के लिए अस्पताल पहुंची थी,’’’ एसपी मनोज सिंह ने जानकारी दी.

कुछ देर वहां चुप्पी छाई रही, फिर एसपी मनोज सिंह ने आगे कहा, ‘‘आप लोगों को रात को अकेले नहीं घूमना चाहिए था.’’

इतने में अस्पताल के एक मुलाजिम ने अपने मोबाइल फोन पर देखते हुए बताया, ‘‘साहब, ईटीवी भारत की एक खबर और रेप के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि साल 2018 से ले कर 2023 के दिसंबर तक झारखंड के अलगअलग जिलों में दुष्कर्म की 14,162 वारदातें अलगअलग थानों में दर्ज की गई थीं.

‘‘बोकारो में 762, चाईबासा में 497, देवघर में 446, धनबाद में 1021, दुमका में 318, गढ़वा में 897, गिरिडीह में 925, गोड्डा में 669, गुमला में 605, हजारीबाग में 967, जमशेदपुर में 740, जामताड़ा में 198, खूंटी में 237, कोडरमा में 281, लातेहार में 384, लोहरदगा में 416, पाकुड़ में 357, पलामू में 704, रेल धनबाद में

5, रेल जमशेदपुर में 3, रामगढ़ में 318, रांची में 1,484, साहिबगंज में 872, सरायकेला में 295 और सिमडेगा में 323 रेप के मामले दर्ज किए गए.’’

‘‘तो क्या इन रेपिस्टों का कुछ नहीं होगा?’’ विवियाना ने एसपी मनोज सिंह से इंगलिश में सवाल किया.

‘‘होगा क्यों नहीं? हम इन्हें धर दबोचेंगे. दुमका के एसपी पीतांबर सिंह खेरवार ने भी उस मामले में बड़ी गंभीरता और तेजी दिखाई थी. जब वे तीनों आरोपियों के पकड़े जाने के बाद जानकारी दे रहे थे, तब उन्होंने इस मामले के बारे में एकएक बात पर रोशनी डाली थी.

‘‘उन्होंने कहा था, ‘1 और 2 मार्च की आधी रात में पुलिस टीम इलाके से गुजर रही थी, जब उन्हें युगल मिला. शुरुआत में पुलिस को लगा कि यह मारपीट का मामला है. उन्हें अस्पताल ले जाया गया और डाक्टर ने कहा कि महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है.’

‘‘फिर एसपी साहब ने आगे कहा था, ‘मैं ने पुलिस टीम के साथ पहले अस्पताल का दौरा किया और फिर उस जगह का दौरा किया, जहां घटना हुई थी. स्पैनिश जोड़े द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी के आधार पर हम ने छापामारी की और 3 लोगों को हिरासत में लिया, जिन्होंने इस जघन्य अपराध में अपनी संलिप्तता स्वीकार की.

‘‘उन्होंने अपने सहयोगियों के नामों का भी खुलासा किया. अन्य दोषियों की गिरफ्तारी के लिए एसआईटी गठित कर छापामारी की जा रही है. मैं व्यक्तिगत रूप से मामले की निगरानी कर रहा हूं.’’’

विवियाना और मार्कोस एकदूसरे को देख रहे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि भारत में इतने ज्यादा रेप कांड क्यों होते हैं और वे दोनों बेवजह यहां फंस गए हैं.

एसपी मनोज सिंह समझ गए थे कि उन दोनों के मन में क्या चल रहा है. उन्होंने विवियाना को थोड़ा दूर ले जा कर इंगलिश में कहा, ‘‘जिन लड़कों ने आप के साथ यह कांड किया है, पुलिस उन्हें छोड़ेगी नहीं. मेरी उस मुखिया से जानपहचान है. मैं उसे धमका कर आप को 10 लाख रुपए दिलवा सकता हूं. हम मामला यहीं रफादफा कर देते हैं. फिर 1-2 दिन बाद आप यहां से चली जाना.’’

विवियाना खामोश रही. एसपी मनोज सिंह ने इस चुप्पी को रजामंदी समझाते हुए मुखिया श्याम मुर्मू को फोन लगाया और बोले, ‘‘मुखियाजी, आप के लड़कों ने कांड कर दिया है. रेप किया है एक विदेशी लड़की का.’’

उधर से मुखिया श्याम मुर्मू ने कहा, ‘ये पांचों मेरे ही पास बैठे हैं. एसपी साहब, मैं ने अभी ही सरपंच का चुनाव जीता है. अगर यह मामला खुल गया, तो पूरे इलाके में मेरी थूथू हो जाएगी.’

‘‘थूथू ही नहीं होगी, बल्कि मैं तुम्हारे पिछले कांड भी खुलवा दूंगा. बड़ा पैसा बनाया है दो नंबर की कमाई से. थोड़ा जेब को ढीला करो. 10 लाख इस लड़की को दो और 5 लाख मुझे. यह बड़ी मुश्किल से मानी है, वरना तुम्हारे घर पर बुलडोजर चलवा दूंगा,’’ एसपी मनोज सिंह ने धमकी दी.

मुखिया श्याम मुर्मू मान गया. एसपी मनोज सिंह अगले दिन विवियाना और मार्कोस को मुखिया के यहां ले गए और उन से पैसे दिलवा दिए. वे अपने 5 लाख रुपए भी लेने नहीं भूले. विवियाना और मार्कोस भी समझ गए थे कि पैसे लेने में ही भलाई है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें