झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.
ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.
मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’
‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.
‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.
वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’
मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’
चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.
चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.
चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.
तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.
भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.
मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.
अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?
मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी. फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.
आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.
पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.
जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.
मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?
मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.
‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.
‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.
‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.
पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.
‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’
‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’
पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’
मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.
पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.
वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.
दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.
पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.
इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.
मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’
पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’
‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.
पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’
पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.
डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’
पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.
मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.
जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.
मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’
पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.
पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’
‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.
‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’
‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’
पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’
पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’
मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’
‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’
‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.
मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.
दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.
मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’