Hindi Family Story: अक्ल वाली दाढ़ – कयामत बन कर कैसे आई दाढ़

Hindi Family Story: हमबचपन से सुनतेसुनते तंग आ चुके थे कि तुम्हें तो बिलकुल भी अक्ल नहीं है. एक दिन जब हम इस बात से चिढ़ कर रोंआसे से हो गए तो हमारी बूआजी ने हमें बड़े प्यार से समझाया, ‘‘बिटिया, अभी तुम छोटी हो पर जब तुम बड़ी हो जाओगी तब तुम्हारी अक्ल वाली दाढ़ आएगी और तब तुम से कोई यह न कहेगा कि तुम में अक्ल नहीं है.’’ बूआ की बातें सुन कर हमारे चेहरे पर मुसकान आ गई और हम रोना भूल कर खेलने चले गए. अब हम पूरी तरह आश्वस्त थे कि एक न एक दिन हमें भी अक्ल आ ही जाएगी और देखते ही देखते हम बड़े हो गए और इंतजार करने लगे कि अब तो जल्द ही हमें अक्ल वाली दाढ़ आ जाएगी. इस बीच हमारी शादी भी हो गई.

अब ससुराल में भी वही ताने सुनने को मिलते कि तुम्हें तो जरा भी अक्ल नहीं. मां ने कुछ सिखाया नहीं. यही सब सुनतेसुनते वक्त बीतता चला गया पर अक्ल वाली दाढ़ को न आना था न वह आई. अब जब 40वां साल भी पार कर लिया तो हम ने उम्मीद ही छोड़ दी पर एक दिन हमारी चबाने वाली दाढ़ में बहुत तेज दर्द उठा. यह दर्द इतना बेदर्द था कि इस की वजह से हमारे गाल, कान यहां तक कि सिर भी दुखने लगा. हम दर्द से बेहाल गाल पर हाथ धरे आह उह करते फिर रहे थे. जिस ने भी हमारे दांत के दर्द के बारे में सुना उस ने यही कहा, ‘‘अरे, तुम्हारी अक्ल वाली दाढ़ आ रही होगी. तभी इतना दर्द हो रहा है.’’

हम बड़े खुश हुए कि चलो देर से ही सही पर अब हमें भी अक्ल आ ही जाएगी. पर जब हमारा दर्द के मारे बुरा हाल हुआ तो हम ने सोचा इस से हम बिना अक्ल के ही ठीक थे. डैंटिस्ट के पास गए तो उन्होंने बताया आप की अंतिम वाली दाढ़ कैविटी की वजह से सड़ चुकी है. उसे निकालना होगा. तब हम ने जिज्ञासावश पूछ लिया, ‘‘क्या यह हमारी अक्ल वाली दाढ़ थी?’’

हमारे इस सवाल पर डैंटिस्ट महोदय मुसकराते हुए बोले, ‘‘जी मैम, यह आप की अक्ल वाली दाढ़ ही थी.’’ अब बताइए देर से आई और कब आई यह हमें पता ही नहीं चला और सड़ भी गई. दर्द बरदाश्त करने से तो अच्छा यही था कि हम उसे निकलवा ही दें. डैंटिस्ट ने तीसरे दिन बुलाया था सो हम तीसरे दिन दाढ़ निकलवाने वहां पहुंच गए. वहां दांत के दर्द से पीडि़त और लोग भी बैठे थे, जिन में एक छोटी सी 5 साल की बच्ची भी थी. उस के सामने वाले दूध के दांत में कैविटी थी. वह भी उस दांत को निकलवाने आई थी. हम ने उस से उस का नाम पूछा तो वह कुछ नहीं बोली. बस अपना मुंह थामे बैठी रही.

उस की मम्मी ने बताया कि 3 दिन से दर्द से बेहाल है. पहले तो दांत निकलवाने को तैयार नहीं थी पर जब दर्द ज्यादा होने लगा तो बोली चलो दांत निकलवाने. हमारा नंबर उस बच्ची के पीछे ही था. पहले उसे बुलाया गया और सुन्न करने वाला इंजैक्शन लगाया गया, जिस से उस के पूरे मुंह में सूजन आ गई. अब हमारी बारी थी. वैसे आप को बता दें हम देखने में हट्टेकट्टे जरूर हैं पर हमारा दिल एकदम चूहे जैसा है. खैर, हमें भी इंजैक्शन लगा और 10 मिनट बाद आने को कहा गया. हम मुंह पकड़े वहीं सोफे पर ढेर हो गए.

अभी हमें चकराते हुए 10 मिनट ही बीते थे कि हमें फिर अंदर बुलाया गया और निकाल दी गई हमारी अक्ल वाली दाढ़. जब दाढ़ निकाली तो हमें दर्द का एहसास नहीं हुआ पर डैंटिस्ट ने एक रुई का फाहा हमारी निकली हुई दाढ़ वाली खाली जगह लगा दिया. उस पर लगी दवा का स्वाद इतना गंदा था कि हम ने वहीं उलटी कर दी. इस पर हमें नर्स ने खा जाने वाली नजरों से देखा तो हम गाल पकड़े बाहर आ गए. हमारा छोटा बेटा जो हमारे साथ ही था ने बताया कि डैंटिस्ट अंकल ने कहा है कि 1 घंटे तक रुई नहीं निकालनी है. बड़ी मुश्किल से यह वक्त बीता और फिर हमें आइस्क्रीम खाने को मिली. एक तरफ से सूजे हुए मुंह से आइस्क्रीम खाते हुए हम बड़े फनी से लग रहे थे. बच्चे हमारी मुद्राएं देखदेख कर हंसे जा रहे थे. अब हम ने जो दर्द सहा सो सहा पर यह तो हमारे साथ बड़ी नाइंसाफी हुई न कि जिस अक्ल दाढ़ का सालों इंतजार किया वह आई भी तो कैसी. जो भी हो हम तो आखिर रह गए न वही कमअक्ल के कमअक्ल. Hindi Family Story

Family Story In Hindi: सबक – सुधीर को लेकर क्या थी अनु की कशमकश ?

Family Story In Hindi: रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’

‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’

‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.

‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’

‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’

‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों

इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’

‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’

‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.

‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें. Family Story In Hindi

Story In Hindi: क्षमादान – वर्षों बाद जब मिली मोहिनी और शर्वरी

Story In Hindi: ‘‘हाय शर्वरी, पहचाना मुझे?’’ शर्वरी को दूर से देख कर अमोल उस की ओर खिंचा चला आया.

‘‘अमोल, तुम्हें नहीं पहचानूंगी तो और किसे पहचानूंगी?’’

शर्वरी के स्वर के व्यंग्य को अमोल ने भांप लिया. फिर भी बोला, ‘‘इतने वर्षों बाद तुम से मिल कर बड़ी खुशी हुई. कहो, कैसी कट रही है? तुम ने तो कभी किसी को अपने बारे में बताया ही नहीं. कहां रहीं इतने दिन?’’

‘‘ऐसे कुछ बताने लायक था ही नहीं. वैसे भी 7-8 वर्ष आस्ट्रेलिया में रहने के बाद पिछले वर्ष ही लौटे हम लोग.’’

‘‘अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ न. हमारे बैच के सभी छात्र नैट पर अपने बारे में एकदूसरे को सूचित करते रहे. पर तुम न जाने कहां खोई रहीं कि हमारी याद तक नहीं आई,’’ अमोल मुसकराया.

‘‘अमोल कालेज जीवन की याद न आए, ऐसा भला हो सकता है क्या? वह समय तो जीवन का सब से सुखद अनुभव होता है… बताऊंगी अपने बारे में भी बताऊंगी. पर तुम भी तो कुछ कहो…इतने समय की क्या उपलब्धियां रहीं? क्या खोया, क्या पाया?’’

‘‘2 विवाह, 1 तलाक और 1 ठीकठाक सी नौकरी. इस से अधिक बताने को कुछ नहीं है मेरे पास,’’ अमोल उदास स्वर में बोला.

‘‘लगता है जीवन ने तुम्हारे साथ न्याय नहीं किया. ऐसी निराशापूर्ण बातें तो वही करता है जिस की अपेक्षाएं पूरी न हुई हों.’’

‘‘हां भी और नहीं भी. पर जो मेरे जीवन में घटा है कहीं न कहीं उस के लिए मैं भी दोषी हूं. है न?’’

अमोल शर्वरी से अपने प्रश्न का उत्तर चाहता था, पर शर्वरी उत्तर देने के मूड में नहीं थी. वह उसे टालने के लिए अपने दूसरे मित्रों की ओर मुड़ गई. पुराने विद्यार्थियों के पुनर्मिलन का आयोजन पूरे 10 वर्षों बाद किया गया था. एकत्रित जनसमूह में शर्वरी को कई परिचित चेहरे मिल गए थे. आयोजकों ने पहले अपने अतिथियों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया था. उस के बाद डिनर का प्रबंध था. आयोजकों ने मेहमानों से अपनीअपनी जगह बैठने का आग्रह किया तो शर्वरी साथियों के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठी. तभी उस बड़े से हौल के मुख्यद्वार पर मोहिनी दाखिल हुई. लगभग 10 वर्षों के बाद मोहिनी को देख कर शर्वरी को लगा मानो कल की ही बात हो. आयु के साथ चेहरा भर गया था पर मोहिनी तनिक भी नहीं बदली थी. सितारों से जड़ी जरी के काम वाली सुनहरे रंग की नाभिदर्शना साड़ी में सजीसंवरी मोहिनी किसी फिल्मी तारिका की भांति चकाचौंध पैदा कर रही थी. शर्वरी चाह कर भी अपनी कुरसी से हिल नहीं पाई. कभी मोहिनी से शर्वरी की इतनी गाढ़ी छनती थी कि दोनों दो तन एक जान कहलाती थीं पर अब केवल वर्षों की दूरी ने ही नहीं मन की दूरी ने भी शर्वरी को जड़वत कर दिया था.

मोहिनी अपने अन्य मित्रों से मिलजुल रही थी. पुरानी यादें ताजा करते हुए वह किसी से हाथ मिला रही थी, किसी को गले लगा रही थी तो किसी को पप्पी दे कर कृतार्थ कर रही थी, शर्वरी का कुतूहल पल दर पल बढ़ता जा रहा था. मोहिनी के स्लीवलेस, बैकलेस ब्लाउज और भड़कीले शृंगार को ध्यान से देखा और फिर गहरी सोच में डूब गई. शून्य में बनतेबिगड़ते आकारों में डूबतीउतराती शर्वरी 12 वर्ष पूर्व के अपने कालेज जीवन में जा पहुंची… शर्वरी, मोहिनी और अमोल भौतिकी के स्नातकोत्तर छात्र थे. शर्वरी व मोहिनी ने एकसाथ बी.एससी. में प्रवेश लिया था और शीघ्र ही एकदूसरे की हमराज बन गई थीं. वहीं अमोल को वह स्कूल के दिनों से जानती थी. दोनों के पिता एक ही कार्यालय में कार्यरत थे. अत: परिवारों में अच्छी घनिष्ठता थी. कब यह मित्रता, प्रेम में बदल गई, शर्वरी को पता ही न चला था.

कालेज में अमोल अकसर शर्वरी से मिलने आता, पर महिला कालेज होने के कारण अमोल को कालेज के प्रांगण में जाने की अनुमति नहीं मिलती थी. अत: वह कालेज के गेट के पास खड़ा हो कर शर्वरी की प्रतीक्षा करता. शर्वरी और मोहिनी एकसाथ ही कालेज से बाहर आती थीं. औपचारिकतावश अमोल मोहिनी से भी हंस बोल लेता तो शर्वरी आगबबूला हो उठती.

‘‘बड़े हंस कर बतिया रहे थे मोहिनी से?’’ शर्वरी मोहिनी के जाते ही प्रश्नों की झड़ी लगा देती.

‘‘कहीं जलने की गंध आ रही है. क्यों ऐसी बातें करती हो शर्वरी? अपने अमोल पर विश्वास नहीं है क्या?’’ अमोल उलटा पूछ बैठता.

समय मानो पंख लगा कर उड़ रहा था. शर्वरी और मोहिनी महिला कालेज से निकल कर विश्वविद्यालय आ पहुंची थीं. यह जान कर शर्वरी के हर्ष की सीमा नहीं रही कि अमोल भी उन के साथ ही एम.एससी. की पढ़ाई करेगा. पर यह प्रसन्नता चार दिन की चांदनी ही साबित हुई. मिलनेजुलने की खुली छूट मिलते ही मोहिनी और अमोल करीब आने लगे थे. शर्वरी सब देखसमझ कर भी चुप रह जाती. शुरू में उस ने अमोल को रोकने का प्रयास किया, रोई, झगड़ा किया. अमोल ने भी उसे बहलाफुसला कर यह जताने का यत्न किया कि सब कुछ ठीकठाक है. पर शर्वरी ने शीघ्र ही नियति से समझौता कर लिया. मोहिनी और अमोल के चर्चे सारे विभाग में फैलने लगे थे. पर शर्वरी ने स्वयं को सब ओर से सिकोड़ कर अपनी पढ़ाई की ओर मोड़ लिया था. इस का लाभ भी उसे मिला अब वह अपनी कक्षा में सब से आगे थी. इस सफलता का अपना ही नशा था. पर मोहिनी उस की सब से घनिष्ठ सहेली थी. उस का विश्वासघात उसे छलनी कर गया. अमोल जिसे उस ने कभी अपना सर्वस्व माना था उस की ही सहेली पर डोरे डालेगा, यह विचारमात्र ही कुंठित कर देता था.

घर पर सभी उस की और अमोल की घनिष्ठता से परिचित थे. अमोल संपन्न और सुसंस्कृत परिवार का एकमात्र दीपक था. अत: उन्होंने शर्वरी के मिलनेजुलने, घूमनेफिरने पर कहीं कोई रोकटोक नहीं लगाई थी. शर्वरी और अमोल के बीच आती दूरी भी उन से छिपी नहीं थी. शर्वरी की मां नीला देवी ने बिना कहे ही सब कुछ भांप लिया था. अमोल के उच्छृंखल व्यवहार ने उन्हें भी आहत किया था. पर वे शर्वरी को सहारा देने के लिए मजबूत चट्टान बन गई थीं.

‘‘चिंता क्यों करती है बेटी. अच्छा ही हुआ कि अमोल का असली रंग जल्दी सामने आ गया. वह मनचला तुम्हारे योग्य था ही नहीं. वह भला संबंधों की गरिमा को क्या समझेगा.’’ अब तक स्वयं पर पूर्ण संयम रखा था  शर्वरी ने. पर मां की बातें सुन कर वह फूटफूट कर रो पड़ी थी. नीला देवी ने भी उसे रोने दिया था. अच्छा ही है कि मन का गुबार आंखों की राह बह जाए तभी चैन मिलगा.

‘‘मां, आप मुझ से एक वादा कीजिए,’’ शीघ्र ही स्वयं को संभाल कर शर्वरी नीला देवी से बोली.

‘‘हां, कहो बेटी.’’

‘‘आज के बाद इस घर में कोई अमोल का नाम नहीं लेगा. मैं ने उसे अपने जीवन से पूरी तरह निकाल फेंका. किसी सड़ेगले अंग की तरह.’’ नीला देवी ने उत्तर में शर्वरी का हाथ थपथपा कर आश्वासन दिया था. उन के वार्त्तालाप ने शर्वरी को पूर्णतया आश्वस्त कर दिया था. उस दिन शर्वरी पुस्तकालय में बैठी अध्ययन में जुटी थी कि अचानक मोहिनी आ धमकी. शर्वरी को देखते ही चहकी, ‘‘हाय, शर्वरी, तुम यहां छिपी बैठी हो? मैं तो तुम्हें पूरे भौतिकी विभाग में ढूंढ़ आई.’’

‘‘अच्छा? पर यों अचानक क्यों?’’

‘‘क्या कह रही हो? मैं तो तुम्हारे लिए खुशखबरी लाई हूं,’’ मोहिनी इतने ऊंचे स्वर में बोली कि वहां उपस्थित सभी विद्यार्थी उस से चुप रहने का इशारा करने लगे.

‘‘चलो, बाहर चलते हैं. वहीं तुम्हारी खुशखबरी सुनेंगे,’’ शर्वरी मोहिनी को हाथ से पकड़ कर बाहर खींच ले गई. वह जानती थी कि मोहिनी स्वर नीचा नहीं रख पाएगी.

‘‘ये लोग समझते क्या हैं अपनेआप को? पुस्तकालय में क्या कर्फ्यू लगा है कि हम किसी से आवश्यक बात भी नहीं कर सकते?’’ मोहिनी क्रोध में पैर पटकते हुए बोली.

‘‘हर पुस्तकालय में यह प्रतिबंध लागू होता है. अब छोड़ो यह बहस और बताओ क्या खुशखबरी ले कर आई होे?’’

‘‘हां, मैं तुम्हें यह बताने आई थी कि मैं तुम्हारे अमोल को सदा के लिए छोड़ आई हूं, केवल तुम्हारे लिए.’’

‘‘क्या कहा? मेरे अमोल को? अमोल मेरा कब से हो गया? शर्वरी खिलखिला कर हंसी.

‘‘लो अब क्या यह भी याद दिलाना पड़ेगा कि तुम और अमोल कभी गहरे मित्र थे?’’

‘‘मुझे कुछ भी याद दिलाने की जरूरत नहीं है. और तुम अमोल से मित्रता करो या शत्रुता मुझे कुछ लेनादेना नहीं है.’’ शर्वरी का रूखा स्वर सुन कर एक क्षण को तो चौंक ही उठी थी मोहिनी, फिर बोली, ‘‘घनिष्ठ सहेली हूं तुम्हारी, तुम्हारी चिंता मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा? वैसे भी मैं विवाह कर रही हूं. अमोल को मैं ने तुम्हारे लिए छोड़ दिया है.’’

‘‘अच्छा तो विवाह कर रही हो तुम? तो जा कर अमोल को बताओ. यहां क्या लेने आई हो?’’

‘‘बताया था, पर वह तो बच्चों की तरह रोने लगा, कहने लगा मेरे बिना वह जीवित नहीं रह सकेगा. वह मूर्ख सोचता था मैं उस से विवाह करूंगी. तुम जानती हो, मैं किस से विवाह कर रही हूं?’’

‘‘बताओगी नहीं तो कैसे जानूंगी?’’

‘‘बहुत बड़ा करोड़पति व्यापारी है दीपेन. तुम्हें ईर्ष्या तो नहीं हो रही मुझ से?’’ और फिर अचानक मोहिनी ने स्वर नीचा कर लिया. शर्वरी का मन हुआ कि इस बचकाने प्रश्न पर खिलखिला कर हंसे पर मोहिनी का गंभीर चेहरा देख कर चुप रही.

‘‘मेरी बात मान शर्वरी अमोल को हाथ से मत जाने दे. वैसे भी दिल टूट गया है बेचारे का. तुम प्रेम का मरहम लगाओगी तो शीघ्र संभल जाएगा.’’

‘‘तुम्हें मेरी कितनी चिंता है मोहिनी…पर आशा है तुम मुझे क्षमा कर दोगी. मेरा तो मित्रता, प्रेम जैसे शब्दों से विश्वास ही उठ गया है. मेरे मातापिता ने मेरा विवाह तय कर दिया है. फाइनल परीक्षा होते ही मेरा विवाह हो जाएगा.’’

‘‘क्या? तुम भी विवाह कर रही हो और वह भी मातापिता द्वारा चुने वर से? होश में आओ शर्वरी बिना रोमांस के विवाह का कोई अर्थ नहीं. अमोल अब भी तुम्हें जीजान से चाहता है.’’ शर्वरी चुपचाप उठ कर चली गई. अगले दिन प्रयोगशाला में फिर मोहिनी ने शर्वरी को घेर लिया. बोली, ‘‘चलो कैंटीन में बैठते हैं.

‘‘मैं जरा जल्दी में हूं मोहिनी…घर पर बहुत काम है.’’

‘‘ऐसा भी क्या काम है कि तुम्हें अपनी सहेली से कुछ देर बात करने का भी समय नहीं है?’’ मोहिनी भीगे स्वर में बोली तो शर्वरी मना नहीं कह सकी.

‘‘अब बता किस से हो रहा है तेरा विवाह?’’ चायसमोसे का और्डर देने के बाद मोहिनी ने पुन: प्रश्न किया.

‘‘कोई करोड़पति नहीं है. हमारे जैसे मध्यवर्गीय परिवार का पढ़ालिखा युवक है वह. अच्छी नौकरी है. मैं ने मातापिता के निर्णय को मानने में ही भलाई समझी. मुझे तो समझ में ही नहीं आता कि इंसान किस पर विश्वास करे किस पर नहीं? प्रेम के नाम पर कैसेकैसे धोखे दिए जाते हैं भोलीभाली लड़कियों को,’’ शर्वरी गंभीर स्वर में बोली.

‘‘धोखा तो मातापिता द्वारा तय किए विवाह में भी होता है…प्रेम विवाह में कम से कम यह तो संतोष रहता है कि अपनी गलती की सजा भुगत रहे हैं.’’

‘‘ऐसा कोई नियमकायदा नहीं है और कैसे भी विवाह में सफलता की गारंटी कोई नहीं दे सकता,’’ शर्वरी ने बात समाप्त करने की गरज से कहा. अब तक चाय और समोसे आ गए थे. और बात का रुख भी पढ़ाईलिखाई की ओर मुड़ गया था. परीक्षा, प्रयोगशाला, विवाह की तैयारी के बीच समय कब पंख लगा कर उड़ गया पता ही नहीं चला. इस बीच अमोल कई बार सामने पड़ा. आंखें मिलीं पर अब दोनों के बीच औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा था. अपने परिवार के साथ अमोल विवाह में आया अवश्य, पर बधाई दे कर तुरंत चला गया. उधर मोहिनी के करोड़पति परिवार में विवाह के किस्से अकसर सुनने को मिल जाते थे. शर्वरी के पति गौतम की कंपनी ने उन्हें आस्ट्रेलिया भेजा तो सारे संपर्क सूत्र टूट से गए. परिवार, बच्चों और अपनी नौकरी के बीच 8 वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

इतने वर्षों बाद अपने शहर लौट कर शर्वरी को ऐसा लगा मानो मां की गोद में आ गई हो. ऐसे समय जब अपने विश्वविद्यालय से पुराने छात्रों के पुनर्मिलन सम्मेलन का निमंत्रण मिला तो शर्वरी ठगी सी रह गई. इतने वर्षों बाद किस ने उस का पताठिकाना ढूंढ़ लिया, वह समझ नहीं पाई. आज इस सम्मेलन में अनेक पूर्व परिचितों से भी भेंट हुई. पर अमोल और मोहिनी से भेंट होगी, इस की आशा शर्वरी को कम ही थी. सामने ग्लैमरस मोहिनी को मित्रों और परिचितों से मिलते देख कर भी शर्वरी अपने ही स्थान पर जमी रही. तभी मोहिनी की नजर शर्वरी पर पड़ी तो बोली, ‘‘हाय शर्वरी, तुम यहां? मुझे तो जरा भी आशा नहीं थी कि तुम यहां आओगी… यहां बैठी क्या कर रही हो चलो मेरे साथ. ढेर सी बातें करनी हैं,’’ और मोहिनी उसे खींच ले गई.

‘‘सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होने वाला है मोहिनी,’’ शर्वरी ने कहा.

‘‘देखेंगे कार्यक्रम भी देखेंगे. पर पहले ढेर सारी बातें करेंगे. न जाने कितनी अनकही बातें करने को मन छटपटा रहा है.’’

‘‘ठीक है चलो,’’ शर्वरी ने हथियार डाल दिए.

कैंटीन में चाय और सैंडविच मंगाए मोहिनी ने और फिर शर्वरी का हाथ अपने हाथों में ले कर सिसकने लगी.

‘‘क्या हुआ मोहिनी?’’ शर्वरी सकते में आ गई.

‘‘शर्वरी कह दो कि तुम ने मुझे क्षमा कर दिया. मैं सच कहती हूं कि मैं ने कभी जानबूझ कर तुम्हें कष्ट नहीं पहुंचाया…जो हुआ अनजाने में हुआ.’’

‘‘क्या कह रही हो मोहिनी? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है?’’

‘‘तुम ने मुझे और अमोल को क्षमा नहीं किया तो हमें कभी चैन मिलेगा, मोहिनी अब भी सुबक रही थी.’’

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रही हो मोहिनी. मैं ने तो कभी ऐसा सोचा तक नहीं.’’

‘‘पर अमोल सदा यही कहता है कि उसे तुम्हारे साथ किए व्यवहार का फल मिल रहा है और अब तो मुझे भी ऐसा ही लगता है.’’

‘‘क्या हुआ तुम्हारे साथ?’

‘‘याद है वह करोड़पति जिस से मैं ने विवाह किया था, वह पहले से विवाहित था. बड़ी कठिनाई से उस के चंगुल से छूटी मैं… उस ने मुझे तरहतरह से प्रताडि़त किया.’’

‘‘उफ, और अमोल?’’

‘‘अमोल को सदा अपनी पत्नी पर शक होता कि वह किसी और के चक्कर में है जबकि ऐसा कुछ नहीं था. थकहार कर वह अमोल से अलग हो गई. अब मैं और अमोल पतिपत्नी हैं. यों घर में सब कुछ है पर शक का कीड़ा अमोल के दिमाग से जाता ही नहीं. उसे अब मुझ पर शक होने लगा है. अमोल को लगता है कि यह सब तुम्हारे से बेवफाई करने का फल है. हमें क्षमा कर दो शर्वरी,’’ और मोहिनी फूटफूट कर रो पड़ी.

तभी शर्वरी किसी की आहट पा कर पलटी. पीछे अमोल खड़ा था.

‘‘कैसा सुखद आश्चर्य है अमोल, मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम दोनों पतिपत्नी हो,’’ शर्वरी आश्चर्यचकित स्वर में बोली.

‘‘बात को टालो मत शर्वरी, हमें क्षमा कर दो. हम तुम्हारे अपराधी हैं. पर तुम्हें नहीं लगता कि हम काफी सजा भुगत चुके हैं?’’ अमोल ने अनुनय की.

‘‘समझ में नहीं आ रहा तुम क्या कह रहे हो? मैं तो उस बुरे स्वप्न को कब का भूल चुकी हूं. फिर भी मेरे कहने से कोई फर्क पड़ता है तो चलो मैं ने तुम्हें क्षमा किया,’’ शर्वरी बोली. उस के बाद शर्वरी वहां रुक नहीं सकी, न कार्यक्रम के लिए और न ही डिनर के लिए. लौटते हुए केवल एक ही बात उसे उद्वेलित कर रही थी कि क्या यह अमोल और मोहिनी का अपराधबोध था, जिस ने उन के जीवन में जहर घोल दिया था या फिर कुछ और? Story In Hindi

Family Story In Hindi: टूटे हुए पंखों की उड़ान

Family Story In Hindi: गली में घुसते ही शोरगुल के बीच लड़ाईझगड़े और गालीगलौज की आवाजें अर्चना के कानों में पड़ीं. सड़ांध भरी नालियों के बीच एक संकरी गली से गुजर कर उस का घर आता था, जहां बरसात में मारे बदबू के चलना मुश्किल हो जाता था.

दुपट्टे से नाक ढकते हुए अर्चना ने घर में कदम रखा, तो वहां का नजारा ही दूसरा था. आंगन के बीचोंबीच उस की मां और पड़ोस वाली शीला एकदूसरे पर नाक फुलाए खड़ी थीं. यह रोज की बात थी, जब किसी न किसी बात पर दोनों का टकराव हो जाता था.

मकान मालिक ने किराए के लालच में कई सारे कोठरीनुमा कमरे बनवा रखे थे, मगर सुविधा के नाम पर बस एक छोटा सा गुसलखाना और लैट्रिन थी, जिसे सब किराएदार इस्तेमाल करते थे.

वहां रहने वाले किराएदार आएदिन किसी न किसी बात को ले कर जाहिलों की तरह लड़ते रहते थे. पड़ोसन शीला तो भद्दी गालियां देने और मारपीट करने से भी बाज नहीं आती थी.

गुस्से में हांफती, जबान से जहर उगलती प्रेमा घर में दाखिल हुई. पानी का बरतन बड़ी जोर से वहीं जमीन पर पटक कर उस ने सिगड़ी जला कर उस पर चाय का भगौना रख दिया.

‘‘अम्मां, तुम शीला चाची के मुंह क्यों लगती हो? क्या तुम्हें तमा करके मजा आता है? काम से थकहार कर आओ, तो रोज यही सब देखने को मिलता है. कहीं भी शांति नहीं है,’’ अर्चना गुस्से से बोली.

‘‘हांहां, तमाशा तो बस मैं ही करती हूं न. वह तो जैसे दूध की धुली है. सब जानती हूं… उस की बेटी तो पूरे महल्ले में बदनाम है. मक्कार औरत नल में पानी आते ही कब्जा जमा कर बैठ जाती है. उस पर मुझे भलाबुरा कह रही थी.

‘‘अब तू ही बता, मैं कैसे चुप रहूं?’’ चाय का कप अर्चना के सामने रख कर प्रेमा बोली.

‘‘अच्छा लाडो, यह सब छोड़. यह बता कि तू ने अपनी कंपनी में एवांस पैसों की बात की?’’ यह कहते हुए प्रेमा ने बेटी के चेहरे की तरफ देखा भी नहीं था अब तक, जो दिनभर की कड़ी मेहनत से कुम्हलाया हुआ था.

‘‘अम्मां, सुपरवाइजर ने एडवांस पैसे देने से मना कर दिया है. मंदी चल रही है कंपनी में,’’ मुंह बिचकाते हुए अर्चना ने कहा, फिर दो पल रुक कर उस ने कुछ सोचा और बोली, ‘‘जब हमारी हैसियत ही नहीं है तो क्या जरूरत है इतना दिखावा करने की. ननकू का मुंडन सीधेसादे तरीके से करा दो. यह जरूरी तो नहीं है कि सभी रिश्तेदारों को कपड़ेलत्ते बांटे जाएं.’’

‘‘यह क्या बोल रही है तू? एक बेटा है हमारा. तुम बहनों का एकलौता भाई. अरी, तुम 3 पैदा हुईं, तब जा कर वह पैदा हुआ… और रिश्तेदार क्या कहेंगे? सब का मान तो रखना ही पड़ेगा न.’’

‘‘रिश्तेदार…’’ अर्चना ने थूक गटका. एक फैक्टरी में काम करने वाला उस का बाप जब टीबी का मरीज हो कर चारपाई पर पड़ गया था, तो किसी ने आगे आ कर एक पैसे तक की मदद नहीं की. भूखे मरने की नौबत आ गई, तो 12वीं का इम्तिहान पास करते ही एक गारमैंट फैक्टरी में अर्चना ने अपने लिए काम ढूंढ़ लिया.

अर्चना के महल्ले की कुछ और भी लड़कियां वहां काम कर के अपने परिवार का सहारा बनी हुई थीं. अर्चना की कमाई का ज्यादातर हिस्सा परिवार का पेट भरने में ही खर्च हो जाता था. घर की बड़ी बेटी होने का भार उस के कंधों को दबाए हुए था. वह तरस जाती थी अच्छा पहननेओढ़ने को. इतने बड़े परिवार का पेट पालने में ही उस की ज्यादातर इच्छाएं दम तोड़ देती थीं.

कोठरी की उमस में अर्चना का दम घुटने लगा, सिगड़ी के धुएं ने आंसू ला दिए. सिगड़ी के पास बैठी उस की मां खांसते हुए रोटियां सेंक रही थी.

‘‘अम्मां, कितनी बार कहा है गैस पर खाना पकाया करो… कितना धुआं है,’’ दुपट्टे से आंखमुंह पोंछती अर्चना ने पंखा तेज कर दिया.

‘‘और सिलैंडर के पैसे कहां से आएंगे? गैस के दाम आसमान छू रहे हैं. अरी, रुक जा. अभी धुआं कम हो जाएगा, कोयले जरा गीले हैं.’’

अर्चना उठ कर बाहर आ गई. कतार में बनी कोठरियों से लग कर सीढि़यां छत पर जाती थीं. कुछ देर ताजा हवा लेने के लिए वह छत पर टहलने लगी. हवा के झोंकों से तनमन की थकान दूर होने लगी.

टहलते हुए अर्चना की नजर अचानक छत के एक कोने पर चली गई. बीड़ी की महक से उसे उबकाई सी आने लगी. पड़ोस का छोटेलाल गंजी और तहमद घुटनों के ऊपर चढ़ाए अपनी कंचे जैसी गोलगोल आंखों से न जाने कब से उसे घूरे जा रहा था.

छोटेलाल कुछ महीने पहले ही उस मकान में किराएदार बन कर आया था. अर्चना को वह फूटी आंख नहीं सुहाता था. अर्चना और उस की छोटी बहनों को देखते ही वह यहांवहां अपना बदन खुजाने लगता था.

शुरू में अर्चना को समझ नहीं आया कि वह क्यों हर वक्त खुजाता रहता है, फिर जब वह उस की बदनीयती से वाकिफ हुई, तो उस ने अपनी बहनों को छोटेलाल से जरा बच कर रहने की हिदायत दे दी.

‘‘यहां क्या कर रही है तू इतने अंधेरे में? अम्मां ने मना किया है न इस समय छत पर जाने को. चल, नीचे खाना लग गया है,’’ छोटी बहन ज्योति सीढि़यों पर खड़ी उसे आवाज दे रही थी.

अर्चना फुरती से उतर कर कमरे में आ गई. गरम रोटी खिलाती उस की मां ने एक बार और चिरौरी की, ‘‘देख ले लाडो, एक बार और कोशिश कर के देख ले. अरे, थोड़े हाथपैर जोड़ने पड़ें, तो वह भी कर ले. यह काम हो जाए बस, फिर तुझे तंग न करूंगी.’’

अर्चना ने कमरे में टैलीविजन देखती ज्योति की तरफ देखा. वह मस्त हो कर टीवी देखने में मगन थी. ज्योति उस से उम्र में कुल 2 साल ही छोटी थी. मगर अपनी जवानी के उठान और लंबे कद से वह अर्चना की बड़ी बहन लगती थी.

9वीं जमात पास ज्योति एक साड़ी के शोरूम में सेल्सगर्ल का काम करती थी. जहां अर्चना की जान को घरभर के खर्च की फिक्र थी, वहीं ज्योति छोटी होने का पूरा फायदा उठाती थी.

‘‘अम्मां, ज्योति भी तो अब कमाती है. तुम उसे कुछ क्यों नहीं कहती?’’

‘‘अरी, अभी तो उस की नौकरी लगी है, कहां से ला कर देगी बेचारी?’’ मां की इस बात पर अर्चना चुप हो गई.

‘‘ठीक है, मैं फिर से एक बार बात करूंगी, मगर कान खोल कर सुन लो अम्मां, यह आखिरी बार होगा, जब तुम्हारे इन फुजूल के रिवाजों के लिए मैं अपनी मेहनत की कमाई खर्च करूंगी.’’

‘‘हांहां, ठीक है. अपनी कमाई की धौंस मत जमा. चार पैसे क्या कमाने लगी, इतना रोब दिखा रही है. अरे, कोई एहसान नहीं कर रही है हम पर,’’ गुस्से में प्रेमा का पारा फिर से चढ़ने लगा.

एक कड़वाहट भरी नजर अपनी मां पर डाल कर अर्चना ने सारे जूठे बरतन मांजने के लिए समेटे.

बरतन साफ कर अर्चना ने अपना बिस्तर लगाया और सोने की कोशिश करने लगी, उसे सुबह जल्दी उठना था, एक और जद्दोजेहद भरे दिन के लिए. वह कमर कस के तैयार थी. जब तक हाथपैर चलते रहेंगे, वह भी चलती रहेगी. उसे इस बात का संतोष हुआ कि कम से कम वह किसी के सामने हाथ तो नहीं फैलाती.

अर्चना के होंठों पर एक संतुष्टि भरी फीकी मुसकान आ गई और उस ने आंखें मूंद लीं.

Family Story In Hindi: अकीदन बूआ

Family Story In Hindi: अकीदन बूआ की लाश चौराहे पर रखी थी. पूरा गांव उन के अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ पड़ा था. गांव के हर मर्दऔरत की जबान पर आज अकीदन बूआ का नाम था. हर कोई आज उन की अच्छाइयों के चर्चे करते नहीं थक रहा था. हर कोई यही महसूस कर रहा था, जैसे कोई उन का अपना उन से बिछड़ गया हो.

गांव में किसी के यहां अगर कोई कामकाज होता, तो अकीदन बूआ को सब से पहले खबर हो जाती. सभी धर्मजाति के लोग उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते थे. उन का अपना घर आगजनी की भेंट चढ़ गया था. उस के बाद से गांव का हर घर उन का अपना घर बन गया था. उन की सुबह किसी घर में होती, तो दोपहर किसी दूसरे के यहां और शाम कहीं और.

कभी अकीदन बूआ का अपना भी एक घर हुआ करता था. उन का भी हंसताखेलता, भरापूरा परिवार हुआ करता था. उन का आदमी फौज में था. देश के बंटवारे के समय उन के देवरदेवरानी और सासससुर अपने बच्चों समेत पाकिस्तान चले गए थे.

सासससुर ने उन्हें बहुत सम?ाया कि अकीदन तू भी पाकिस्तान चल. तेरे आदमी को चिट्ठी भेज कर वहीं बुलवा लिया जाएगा, लेकिन उन्होंने उन के साथ पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था.

सासससुर, देवरदेवरानी और उन के बच्चों के चले जाने के बाद घर भांयभांय करने लगा. घर में निपट अकेली बची अकीदन को दिन काटना मुश्किल लगने लगा था. काफी दिनों से उन के पति यासीन की भी कोई चिट्ठी न आने से वे परेशान हो उठीं. उन का आदमी जो हर महीने खर्चा भेजता था, वह भी आना बंद हो गया था.

एक दिन पाकिस्तान से एक चिट्ठी आई, जो उस के ससुर ने लिखी थी. उस चिट्ठी में लिखा था. ‘अकीदन, तेरे आदमी को यहां फौज में जगह मिल गई है. तू अगर आना चाहे तो चिट्ठी में लिख भेज. यासीन तु?ो लेने आ जाएगा.’

लेकिन अकीदन को अपने गांव और यहां की मिट्टी से इतना लगाव हो गया था कि वे किसी भी कीमत पर यहां से जाना नहीं चाहती थीं.

उन्होंने चिट्ठी के जवाब में साफसाफ लिख भेजा, ‘जिस मुल्क की मिट्टी में मैं ने जन्म लिया है, उसी की खाक में मिल कर अपने को धन्य सम?ांगी. मु?ो लेने आने की सोचना भी मत, वरना यहां से तुम्हें निराश ही लौटना पड़ेगा. मैं यहीं ठीक हूं.’

अब अकीदन बूआ को इस बात का पता चल गया था कि उन का आदमी भी पाकिस्तान का हो गया है. ऐसे में उन के सामने रोजीरोटी की समस्या बनी हुई थी, क्योंकि उन के आदमी की कमाई पर ही घर का खर्च चलता था और अब खर्च आना बंद हो गया था, इसलिए भुखमरी से निबटने के लिए उन्होंने एक तरकीब सोची.

उन्होंने अपने जेवरात बेच कर घर पर ही एक छोटी सी परचून की दुकान खोल ली. ग्राहक बनाने के लिए उन्होंने छोटेछोटे बच्चों को जरीया बनाया. उन की दुकान पर जो भी बच्चा सौदा लेने आता, वे उसे एक टौफी मुफ्त में देतीं. देखते ही देखते हर घर के बच्चे उन की दुकान की ओर खिंचने लगे.

जब अकीदन बूआ की दुकान चलने लगी, तो उन्होंने अपनी दुकान के सामने यह सूचना लिख कर टंगवा दी कि अकीदन बूआ की दुकान पर सौदा खरीदने पर बच्चों को टौफी और बड़ों को माउथ फ्रैशनर उपहार में दिया जाएगा.

यह सूचना धीरेधीरे सारे गांव में फैल गई. इस से गांव की बड़ीबड़ी दुकानें प्रभावित होने लगीं.

अकीदन बूआ चूंकि सभी चीजें वाजिब दाम पर बेचती थीं और मुनाफा दूसरों से कम लेती थीं व जरूरतमंदों को उधार भी दे देती थीं. इसी वजह से ज्यादा मुनाफाखोर दुकानदारों की ओर से गांव वालों का मोह भंग होने लगा. अब अकीदन बूआ की दुकान का नाम सारे गांव की जबान पर था.

अकीदन बूआ की दुकान के आगे एकएक कर अब कई दुकानें बंद होती चली गईं. जिन लोगों की दुकानें बंद हो गई थीं, वे गोलबंद हो कर उन के खिलाफ साजिश रचने की योजना बनाने में जुट गए.

एक दिन जब अकीदन बूआ गांव से बाहर किसी काम से गई हुई थीं, तो साजिश करने वालों ने मौका पा कर अकीदन बूआ के घर को आग लगा दी. इतना ही नहीं, आग बु?ाने के बहाने उन्होंने मिट्टी का तेल छिड़क कर आग को और भड़का दिया.

सारा घर धूधू कर आग में जल उठा. सबकुछ जल कर खाक हो चुका था. सिर छिपाने तक को आसरा नहीं बचा था.

अकीदन बूआ लौट कर जब घर आईं, तो घर की जगह उन्हें राख का ढेर मिला. आदमी का साथ तो पहले ही छूट चुका था, आज घर का साया भी नहीं रह गया था. वे किसी अनाथ बच्चे की तरह फफक पड़ीं.

गांव के लोग भी अकीदन बूआ के दुख में शामिल हो गए. उन्होंने उन्हें हिम्मत बंधाई. गांव वालों में से एक ने कहा, ‘‘अब से गांव के हर घर को तुम अपना घर समझो. तुम्हारे लिए गांव के हर घर के दरवाजे खुले हैं.’’

थोड़े ही दिनों में अकीदन बूआ ने अपने अच्छे बरताव, सेवा भाव और गांव वालों के दुखसुख में बराबर शरीक हो कर सब का दिल जीत लिया.

गांव के मुखिया ने एक दिन पंचायत बुला कर अकीदन बूआ को घर बनवा कर देने की बात कही, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि अब उन्हें घर की जरूरत नहीं है.

अब सारा गांव ही उन का घर था. गांव के बच्चे अपनी अकीदन बूआ के लाड़प्यार से बहुत प्रभावित थे. वे अकसर शाम के समय उन्हें घेर कर बैठ जाते और कहानियां सुनाने की जिद करते. गांव में जब कोई मां शरारत करने पर अपने बच्चे को मारनेपीटने के लिए हाथ उठाती, तो बच्चा कहता, ‘‘मारोगी तो अकीदन बूआ को बता दूंगा.’’

यह सुन कर मां की ममता जाग जाती और वह बच्चे को छाती से चिपका लेती.

आज जब अकीदन बूआ हमेशा के लिए शांत हो गई थीं, तो पूरा गांव हैरान था. बच्चे फटीफटी आंखों से उन्हें देखते हुए कह रहे थे, ‘अकीदन बूआ उठो… अकीदन बूआ उठो…’ पर शायद वे नहीं जानते थे कि अकीदन बूआ अब कभी नहीं उठेंगी. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: सजा – अंकिता ने सुमित को ऐसा क्या बताया?

Hindi Family Story: वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’

‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’

‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’

उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’

अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’

‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’

‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई. आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’

‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’

‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’

‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’

‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’

‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती

करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर  मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’

अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’

अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’

‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’

‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमा होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’

‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’

‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’

‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’

उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया.

‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’

‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’

उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से.

‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए?

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’

अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी.

आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां पहुंचा था.

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’

उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’

‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’

‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं.

‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई. Hindi Family Story

Hindi Romantic Story: यही प्यार है – अखिलेश और रीमा की बेइंतहा मोहब्बत

Hindi Romantic Story: दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं. Hindi Romantic Story

Family Story In Hindi: बबूल का पेड़ – बड़ा भाई अपने छोटे भाई से जब हुआ पराया

Family Story In Hindi: कमरे में प्रवेश करते ही नीलम को अपने जेठजी, जिन्हें वह बड़े भैया कहती थी, पलंग पर लेटे हुए दिखाई दिए. नीलम ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, कैसे हैं आप?’’

‘‘कौन है?’’ एक धीमी सी आवाज कमरे में गूंजी.

‘‘मैं, नीलम,’’ नीलम ने कहा.

बड़े भैया ने करवट बदली. नीलम उन को देख कर हैरान रह गई. क्या यही हैं वे बड़े भैया, जिन की एक आवाज से सारा घर कांपता था, कपड़े इतने गंदे जैसे महीनों से बदले नहीं गए हों, दाढ़ी बढ़ी हुई, जैसे बरसों से शेव नहीं की हो, शायद कुछ देर पहले कुछ खाया था जो मुंह के पास लगा था और साफ नहीं किया गया था. हाथपैर भी मैलेमैले से लग रहे थे, नाखून बढ़े हुए. उन को देख कर नीलम को उन पर बड़ा तरस आया. तभी नीलम का पति रमन भी कमरे में आ गया. बड़े भाई को इस दशा में देख कर रमन रोने लगा, ‘‘भैया, क्या मैं इतना पराया हो गया कि आप इस हालत में पहुंच गए और मुझे खबर भी नहीं की.’’

भैया से बोला नहीं जा रहा था. उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और कहने लगे, ‘‘किस मुंह से खबर करता छोटे, क्या नहीं किया मैं ने तेरे साथ. फिर भी तू देखने आ गया, क्या यह कम है.’’

‘‘नहीं भैया, अब मैं आप को यहां नहीं रहने दूंगा. अपने साथ ले जाऊंगा और अच्छी तरह से इलाज करवाऊंगा,’’ रमन सिसकते हुए कह रहा था.

नीलम को याद आ रहे थे वे दिन जब वह दुलहन बन कर इस घर में आई थी. उस के मातापिता ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दहेज दिया था लेकिन मनोहर भैया हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. उस के दहेज के सामान को देख कर रमन से कहते, ‘क्या सामान दिया है, इस से अच्छा तो हम लड़की को सिर्फ फूलमाला पहना कर ही ले आते.’

उन की शादी अमीर घर में हुई थी, लेकिन रमन की ससुराल उतनी अमीर नहीं थी. इसलिए वे हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. रोजरोज के तानों से नीलम को बहुत गुस्सा आता, पर रमन के समझाने पर वह चुप रह जाती. फिर भी बड़े भैया के लिए उस के दिल में गांठ पड़ ही गई थी. उन से भी ज्यादा तेज उन की पत्नी शालू थी जो बोलती कम थी पर अंदर ही अंदर छुरियां चलाने से बाज नहीं आती थी.

मातापिता की मृत्यु के बाद घर में मनोहर भैया की ही चलती थी. सब कुछ उन से पूछ कर होता था. एक तो मनोहर बड़े थे, दूसरे, वे एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर थे. उन की शादी भी पैसे वाले घर में हुई थी जबकि रमन न सिर्फ छोटा था बल्कि एक छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी एक साधारण घर में हुई थी. उस की घरेलू स्थिति ठीक नहीं थी. रमन को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वह न सिर्फ अपने बड़े भाई को बहुत प्यार करता था बल्कि उन की हर बात को मानना अपना कर्तव्य भी समझता था. मनोहर अपने छोटे भाई को वह प्यार नहीं देते थे जिस का वह हकदार था, बल्कि हमेशा उस की बेइज्जती करने के बहाने ढूंढ़ते रहते. वे हमेशा यह जतलाना चाहते थे कि घर में सिर्फ वे ही श्रेष्ठ हैं और बाकी सब बेवकूफ हैं.

‘‘नीलम, कहां खो गईं. चलो, भैया का सामान पैक करो, इन को हम अपने साथ ले जाएंगे,’’ रमन की आवाज सुन कर नीलम वापस वर्तमान में आ गई.

‘‘भैया, प्रिया नहीं आती क्या आप से मिलने?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘आती है कभीकभी, लेकिन वह भी क्या करे. उस की अपनी गृहस्थी है. हमेशा तो मेरे पास नहीं रह सकती न,’’ भैया रुकरुक कर बोल रहे थे.

‘‘और राजू और पल्लवी कहां हैं?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘राजू तो औफिस गया होगा और पल्लवी शायद किसी ‘किटी पार्टी’ में गई होगी,’’ भैया शर्मिंदा से लग रहे थे.

नीलम को इसी तरह के किसी जवाब की उम्मीद थी. उसे अच्छी तरह याद है वह दिन जब उस की छोटी बहन सीढि़यों से गिर गई थी तो वह हड़बड़ाहट में बिना किसी को बताए अपनी मां के घर चली गई थी. बस, इतनी सी बात पर मनोहर भैया ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि ऐसा भी किसी भले घर की बहू करती है क्या कि किसी को बगैर बताए मायके चली जाए.

उन दिनों भैया ही सारा घर संभालते थे. रमन भी अपनी सारी कमाई भैया के हाथ में दे देता था और कभी भी नहीं पूछता था कि भैया उन पैसों का क्या करते हैं जबकि भैया सब से यही कहते फिरते थे कि छोटे का खर्च तो वही चलाते हैं. छोटे की तो बिलकुल भी कमाई नहीं है.

नीलम की सारी अच्छाइयां, सारी पढ़ाईलिखाई, सारे गुण सिर्फ एक कमी के नीचे दब कर रह गए कि एक तो उस का मायका गरीब था, दूसरे, पति की कमाई भी साधारण थी. सारे रिश्तेदारों, दोस्तों में शालू और मनोहर नीलम और रमन को नीचा दिखाने का प्रयास करते. नीलम को अपनी इस स्थिति से बहुत कोफ्त होती पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि रमन उसे कुछ भी बोलने नहीं देता था.

एक बड़े पेड़ के नीचे जिस तरह एक छोटा पौधा पनप नहीं सकता वैसी ही कुछ स्थिति रमन की थी. पिता की मृत्यु के बाद मनोहर घर के मुखिया तो बन गए लेकिन उन्होंने रमन को सिर्फ छोटा भाई समझा, बेटा नहीं. बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति जो फर्ज होता है वह उन्होंने कभी नहीं निभाया.

नीलम समझ नहीं पाती थी कि क्या करे? वैसे वह बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कभीकभी शालू और मनोहर के तानों से इतनी दुखी हो जाती कि उसे लगता कि वह रमन को ही छोड़ दे. रमन का चुप रहना उसे और परेशान कर जाता, लेकिन रमन को छोड़ना तो इस समस्या का हल नहीं था. रमन तो बहुत अच्छा था. बस, उस की एक ही कमजोरी थी कि वह बड़े भाई की हर अच्छी या बुरी बात मानता था और आंख बंद कर उन पर विश्वास भी करता था.

रमन के इसी विश्वास का मनोहर ने हमेशा फायदा उठाया. उस ने पुश्तैनी मकान भी अपने नाम करवा लिया और एक दिन नीलम और रमन को अपने ही घर से जाने को कह दिया.

इतना कुछ होने पर भी रमन कुछ नहीं बोला और अपनी 4 साल की बेटी और पत्नी को ले कर चुपचाप घर से निकल पड़ा. उस दिन नीलम को अपने पति की कायरता पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन जब रमन ही कुछ करने को तैयार नहीं था तो वह क्या कर सकती थी, पर मन ही मन उस ने सोच लिया था कि वह इस घर में अब कभी वापस नहीं आएगी और इस घर से बाहर रह कर ही अपनी और अपने परिवार की एक पहचान बनाएगी.

अब नीलम की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई थी. घर में पैसों की तंगी बनी रहेगी, यह तो नीलम को मालूम था क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से ऐसे खर्चे होते हैं जिन का पता नहीं चलता, लेकिन एकल परिवार में उन खर्चों को निकालना मुश्किल हो जाता है. फिर भी नीलम ने हार नहीं मानी और जुट गई अपना एक समर्थ संसार बनाने में. सुबह मुंहअंधेरे उठ कर घर का कामकाज करती, उस के बाद कई बच्चों को घर पर बुला कर ‘ट्यूशन’ पढ़ाती और फिर रमन के साथ दुकान पर चली जाती.

नीलम के अंदर दुकान चलाने की गजब की क्षमता थी जो शायद अभी तक उस के अंदर सुप्त पड़ी थी. उस ने अपने मीठे व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से न सिर्फ अपनी दुकान को बढ़ाया बल्कि रमन का आत्मविश्वास बढ़ाने में भी उस का साथ दिया.

बड़े भाई से अलग रह कर रमन को भी एहसास हो गया था कि वह कितना बुद्धू था और बड़े भाई ने उस का कितना फायदा उठाया.

मनोहर ने सोचा था कि रमन कभी भी घर से नहीं जाएगा और अगर जाता है तो जाते वक्त उस के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएगा या फिर नीलम ही कुछ भलाबुरा कहेगी पर वह हैरान था कि दोनों ने कुछ भी नहीं कहा बल्कि चुपचाप एकदूसरे का हाथ पकड़ कर घर से चले गए. वैसे भी वे रमन से चिढ़ते थे कि उस की पत्नी हमेशा उस का कहना मानती थी जबकि वह इतना समर्थ भी नहीं था और एक उन की पत्नी शालू है, जिस ने उन का जीना मुश्किल किया हुआ था. हर वक्त उसे कुछ न कुछ चाहिए. उस की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं.

मनोहर ने रमन को घर से तो निकाल दिया पर उन के अंदर आत्मग्लानि का भाव पैदा हो गया था. एक दिन रात को शराब के नशे में धुत्त हो कर मनोहर ने रमन को फोन किया, ‘चल छोटे, घर आजा, भूल जा सब कुछ.’ लेकिन नीलम और रमन ने सोच लिया था कि अब उस घर में वापस नहीं जाना है. अब मनोहर को एक नया बहाना मिल गया था अपनेआप को बहलाने का कि उस ने तो उन दोनों को वापस बुलाया था पर वे ही वापस नहीं आए और गाहेबगाहे वे अपने रिश्तेदारों को कहने लगे कि वे दोनों अपनी मरजी से घर छोड़ कर गए हैं. नीलम तो हमेशा से ही रमन को उन से दूर करना चाहती थी, पर अंदर की बात तो कोई भी नहीं जानता था कि यह सब कियाधरा मनोहर का ही है.

रमन और नीलम ने दिनरात मेहनत की. धीरेधीरे उन की दुकान एक अच्छे ‘स्टोर’ में बदल गई थी. अब उस ‘स्टोर’ की शहर में एक पहचान बन गई थी. रमन और नीलम का जीवनस्तर भी ऊंचा हो गया था. उन के बच्चे शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. अब मनोहर उन से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते पर वे दोनों तटस्थ रहते.

रमन के घर छोड़ने के बाद दोनों भाइयों का आमनासामना बहुत ही कम हुआ था. एक बार मनोहर के बेटे राजू की शादी में वे मिले थे, तब रमन ने महसूस किया था कि बड़े भाई की अब घर में बिलकुल भी नहीं चलती है. जो कुछ भी हो रहा था, वह बच्चों की मरजी से ही हो रहा था. बड़े भाई के बच्चे भी उन पर ही गए थे. वे बिलकुल ही स्वार्थी निकले थे. दूसरी मुलाकात मनोहर की बेटी प्रिया की शादी में हुई थी. बड़े भैया को अनेक रोगों ने घेर लिया था. वे बहुत ही कमजोर हो गए थे. तब भी उन को देख कर रमन को बहुत दुख हुआ था पर उस वक्त वह कुछ नहीं बोला था, लेकिन शालू भाभी के जाने के बाद तो जैसे भैया बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे. उन का खयाल रखने वाला कोई भी नहीं था. शालू जैसी भी थी, पर अपने पति का तो खयाल रखती ही थी. राजू को अपने काम और क्लबों से ही फुरसत नहीं थी. वैसे भी उसे पिता के पास बैठ कर उन का हाल जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर वह अपने पिता का ध्यान नहीं रख सकता था तो पल्लवी को क्या पड़ी थी इन सब बातों में पड़ने की? वह भी ससुर का बिलकुल ध्यान नहीं रखती थी.

एकएक बात रमन के दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रही थी. पुरानी घटनाओं का क्रम जैसे ही खत्म हुआ तो रमन बोला, ‘‘बड़े भैया, कल ही किसी से पता चला था कि आप गुसलखाने में गिर गए हैं. मुझ से रहा नहीं गया और आप का हाल पूछने चला आया.’’

रमन का दिल रोने लगा कि खामखां ही वह इतने दिनों तक भैया से नाराज रहा और उन की खबर नहीं ली, लेकिन अब वह उन को अपने साथ जरूर ले जाएगा, लेकिन बड़े भैया ने जाने से इनकार कर दिया, ‘‘मुझे माफ कर दे छोटे, सारी जिंदगी मैं ने सिर्फ तेरा मजाक उड़ाया है और अब जब मैं बिलकुल ही मुहताज हो चुका हूं और मेरे अपने मुझे बोझ समझने लगे हैं, इस वक्त मैं तेरे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहता.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा मत कहो. क्या मैं आप का अपना नहीं, मैं ने आप को अपना भाई नहीं बल्कि पिता माना है और एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सेवा करे, इसलिए आप को मेरे साथ चलना ही पड़ेगा,’’ रमन ने विनती की.

तभी नीलम भी बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप को हमारे साथ चलना ही पड़ेगा, हम आप को इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते.’’

अब तक पल्लवी भी घर पहुंच चुकी थी. उस ने चाचा और चाची को देख कर इस तरह व्यवहार किया जैसे वह उन दोनों को जानती ही नहीं. उस को इस बात की भी चिंता नहीं थी कि दुनियादारी के लिए ही कुछ दिखावा कर दे. उस का व्यवहार इस बात की गवाही दे रहा था कि अगर मनोहर को कोई अपने साथ ले जाता है तो उसे कोई परवा नहीं है. अभी तक मनोहर को आशा थी कि शायद पल्लवी उसे कहीं भी जाने नहीं देगी और उसे रोक लेगी, पर उस की बेरुखी देख कर मनोहर भैया उठ खड़े हुए, ‘‘चल छोटे, मैं तेरे साथ ही चलता हूं, लेकिन उस से पहले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्या, भैया?’’ रमन ने पूछा.

‘‘तुझे एक वकील लाना पड़ेगा क्योंकि मैं यह बंगला तेरे नाम करना चाहता हूं जो धोखे से मैं ने अपने नाम करवा लिया था,’’ मनोहर ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे यह घर नहीं चाहिए भैया, मेरे पास सब कुछ है,’’ रमन ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं छोटे, तेरे पास सब कुछ है लेकिन जिंदगी ने मुझे यह सबक सिखाया है कि किसी से भी धोखे से ली हुई कोई भी वस्तु सदैव दुख ही देती है. मैं इतने सालों तक चैन से नहीं सो पाया और अब चैन से सोना चाहता हूं इसलिए मुझे मना मत कर और अपना हक वापस ले ले.’’

यह सब सुन कर पल्लवी के तो होश उड़ गए. उसे लगता था कि उस के ससुर का तो कोई अपना है ही नहीं, जो उन्हें अपने साथ ले जाएगा, और इतना बड़ा बंगला सिर्फ उस के हिस्से ही आएगा. लेकिन ससुर की बात सुन कर उसे लगा कि इतना बड़ा घर उस के हाथ से निकल गया है. उस ने फटाफट बहू होने का फर्ज निभाया. उस ने मनोहर को रोकने की कोशिश की, पर मनोहर ने कहा, ‘‘नहीं बहू, अब नहीं, अब मैं नहीं रुक सकता. तुम ने और मेरे बेटे ने मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया है. इस बूढ़े और लाचार इंसान को अब अपने मतलब के लिए इस घर में रखना चाहते हो. नहीं, इस घर में तड़पतड़प कर मरने से अच्छा है मैं अपने भाई के साथ कुछ दिन जी लूं, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि इस में तुम्हारी गलती कम है क्योंकि मैं ने ही बबूल का पेड़ बोया है तो आम की उम्मीद कहां से करूं.’’

कुछ देर बाद नीलम और रमन मनोहर को ले कर अपने घर जा रहे थे और पल्लवी पछता रही थी कि उस ने अपने ससुर को नहीं रोका जिन के जाने से इतना बड़ा घर हाथ से निकल गया. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: सबक – गीता ने कौन सा कदम उठाया

Hindi Family Story: ‘‘देख लेना, मैं एक दिन घर छोड़ कर चली जाऊंगी, तब तुम लोगों को मेरी कीमत पता लगेगी,’’ बड़बड़ाते हुए गीता अपने घर से काम करने के लिए बाहर निकल गई.

गीता की इस चेतावनी का उस के मातापिता और भाईबहन पर कोई असर नहीं पड़ता था, क्योंकि वे जानते थे कि वह अगर घर छोड़ कर जाएगी, तो जाएगी कहां…? आना तो वापस ही पड़ेगा.

आजकल गीता यह ताना अकसर अपने मातापिता को देने लगी थी. वह ऊब गई थी उन का पेट पालतेपालते. आखिर कब तक वह ऐसी बेरस जिंदगी ढोती रहेगी. उस की अपनी भी तो जिंदगी है, जिस की किसी को चिंता ही नहीं है.

गीता के अलावा उस की 2 बहनें और एक भाई भी था. बाप किसी फैक्टरी में मजदूरी करता था, लेकिन अपनी कमाई का सारा पैसा शराब और जुए में उड़ा देता था.

महज 10 साल की उम्र में ही गीता ने अपनी मां लक्ष्मी के साथ घरों में झाड़ूपोंछा और बरतन साफ करने के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. वह बहुत जल्दी खाना बनाना भी सीख गई थी, क्योंकि उस ने देखा था कि इस पेशे में अच्छे पैसे मिलते हैं और उस ने घरों में खाना बनाने का काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे गीता ब्यूटीशियन का कोर्स किए बिना ही फेसियल, मेकअप वगैरह सीख कर थोड़ी और आमदनी भी करने लगी.

बचपन से ही गीता बहुत जुझारू थी. लक्ष्मी पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी, इसलिए वह भी जीतोड़ मेहनत कर के पैसा कमाती थी, जिस से कि उस के बच्चे पढ़ सकें.

लक्ष्मी स्वभाव से बहुत सरल और अपने काम के प्रति समर्पित थी, इसलिए कालोनी में जिस के घर भी वह काम करती थी, वे उसे बहुत पसंद करते थे और जब भी उसे जरूरत पड़ती, उस की पैसे और सामान दे कर मदद करते थे.

समय बीतता गया. गीता ने प्राइवेट से इम्तिहान दे कर बीए की डिगरी हासिल कर ली. हैदराबाद में रहने से वहां के माहौल के चलते उस की अंगरेजी भी बहुत अच्छी हो गई थी.

लोग गीता की तारीफ करते नहीं थकते थे कि पढ़ाई के साथ वह घर का खर्चा भी चलाने में अपनी मां के काम को कमतर समझ कर उस की मदद करने में कभी कोताही नहीं बरतती थी.

इस के उलट गीता की दोनों बहनों ने रैगुलर रह कर पढ़ाई की, लेकिन कभी अपनी मां के काम में हाथ नहीं बंटाया, क्योंकि पढ़ाई के चलते अहंकारवश उन को उस का काम छोटा लगता था, बल्कि वे तो अपने घर का काम भी नहीं करना चाहती थीं. दिनभर पढ़ना या टैलीविजन देखना ही उन की दिनचर्या थी.

गीता उन को कुछ कहती, तो वे उसे उलटा जवाब दे कर उस का मुंह बंद कर देतीं, लक्ष्मी भी उन का पक्ष लेते हुई कहती कि अभी वे छोटी हैं, उन के खेलनेकूदने के दिन हैं.

गीता के भाई राजू ने इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ दी. उस का कभी पढ़ाई में मन लगा ही नहीं, लेकिन सपने उस के काफी बड़े थे. दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल पर घूमना और देर रात घर लौट कर अपनी बहनों पर रोब गांठना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया था.

लक्ष्मी अपने लाड़ले एकलौते बेटे की हर जिद के सामने हार जाती थी, क्योंकि वह घर छोड़ कर चला जाऊंगा की धमकी दे कर अपनी हर बात मनवाना चाहता था.

एक बार राजू मोटरसाइकिल खरीदने की जिद पर अड़ गया, तो लक्ष्मी ने लोगों से उधार ले कर उस की इच्छा पूरी की. किसी ऊंची पोस्ट पर काम करने वाले आदमी, जिन के यहां दोनों मांबेटी काम करती थीं, से कह कर दूसरे शहर में राजू की नौकरी लगवाई कि अपने दोस्तों से दूर रहेगा, तो उस का काम में मन लगेगा. उस के लिए पैसों की जरूरत पड़ी, तो लक्ष्मी ने अपने कान के सोने के बूंदे गिरवी रख कर उस की भरपाई की.

एक दिन अचानक राजू अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर गायब हो गया. पूरा परिवार उस की इस हरकत से बहुत परेशान हुआ.

कुछ महीने बाद पता चला कि राजू तो एक लड़की से शादी कर के उस के साथ इसी शहर में रह रहा है. वह लड़की किसी ब्यूटीपार्लर में काम करती थी.

लक्ष्मी और गीता को यह जान कर बड़ी हैरानी हुई कि उन लोगों ने उस का भविष्य बनाने के लिए क्याकुछ नहीं किया और उस ने लड़की के चक्कर में अपने कैरियर की भी परवाह नहीं की.

राजू के इसी शहर में रहने के चलते आएदिन उस की खबर इन लोगों को मिलती रहती थी. लक्ष्मी किसी तरह कोशिश कर के उस की नौकरी लगवाती, वह फिर नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाता, जरूरत पड़ने पर वह जबतब लक्ष्मी से पैसे की मांग करता, तो अपने बेटे के प्यार में सबकुछ भूल कर वह उस की मांग पूरी करती.

अब गीता को अपनी मां लक्ष्मी की राजू के प्रति हमदर्दी अखरने लगी. उस का मन बगावत करने लगा कि बचपन से उस ने दोनों बहनों और भाई की जिंदगी बनाने के लिए क्याकुछ नहीं किया, लेकिन लक्ष्मी को उसे छोड़ कर सभी की बहुत चिंता रहती थी. यहां तक कि जब गीता अपने पिता को कुछ कहती, तो लक्ष्मी उसे डांटती कि वे उस के पिता हैं, उस को उन के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए.

गीता गुस्से से बोलती, ‘‘कैसे पिता…? क्या बच्चे पैदा करने से ही कोई पिता बन जाता है? जब वे हमें पाल नहीं सकते, तो उन्हें बच्चे पैदा करने का हक ही क्या था…?’’

गीता को अपनी मां लक्ष्मी से बहुत हमदर्दी रहती थी, लेकिन जवान होतेहोते उसे समझ आने लगा था कि वह अपनी हालत के लिए खुद भी जिम्मेदार है.

सुबह की निकली जब गीता रात को 8 बजे घर पहुंचती, तो देखती कि दोनों बहनें टैलीविजन देख रही हैं, मां खाना बना रही हैं, मांजने के लिए बरतनों का ढेर लगा हुआ है, तो उस का मन गुस्से से भर उठता. लेकिन किसी को भी कुछ कहने से फायदा नहीं था और वह मन मसोस कर रह जाती थी.

गीता ने अब बीऐड भी कर लिया था और वह एक स्कूल में नौकरी करने लगी थी, लेकिन उस ने खाली समय में घरों के काम में मां का हाथ बंटाना नहीं छोड़ा था. स्कूल से जो तनख्वाह मिलती थी, वह तो पूरी अपनी मां को दे देती थी, लेकिन घरों से उसे जो आमदनी होती थी, वह अपने पास रख लेती थी.

देखते ही देखते गीता 26 साल की हो गई थी, लेकिन उस की शादी की किसी को चिंता ही नहीं थी. पर उस ने अपने भविष्य के लिए सोचना शुरू कर दिया था और मन ही मन घर छोड़ने का विचार करने लगी. ऐसा कर के वह उन सब को सबक सिखाना चाहती थी.

गीता ने अब बातबात पर कहना शुरू कर दिया था कि वह घर छोड़ कर चली जाएगी, लेकिन वे लोग उस की इस बात को कभी गंभीरता से नहीं लेते थे, क्योंकि उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि वह कभी ऐसा कदम भी उठा सकती है. पर बात यह नहीं थी.

गीता ने मन ही मन स्कूल में बने स्टाफ क्वार्टर में रहने की योजना बनाई और एक दिन वाकई अपने घर छोड़ने की खबर कागज पर लिख कर चुपचाप चली गई.

जैसे ही घर वालों को उस के जाने की खबर मिली, सभी सकते में आ गए. सब से ज्यादा मां लक्ष्मी को झटका लगा, क्योंकि गीता की कमाई के बिना घर चलाना मुश्किल था. मां के हाथपैर फूल गए थे.

एक हफ्ता बीत गया, लेकिन गीता घर नहीं आई. उस को कई बार फोन भी किया, लेकिन गीता ने फोन नहीं उठाया. हार कर लक्ष्मी अपनी बीच वाली बेटी के साथ उस के स्कूल पहुंच गई.

लक्ष्मी के कहने पर गार्ड गीता को बुलाने गया. थोड़ी देर में गीता आ गई. उस को देख कर वे दोनों रोते हुए उस से लिपटने के लिए दौड़ीं, लेकिन गीता ने हाथ से उन्हें रोक लिया.

इस से पहले कि लक्ष्मी कुछ कहती, गीता बोली, ‘‘मुझे पता है, तुम्हें मेरी नहीं, बल्कि मेरे पैसों की जरूरत है. मैं उस घर में तभी कदम रखूंगी, जब वहां मेरे पैसे की नहीं, मेरी कद्र होगी. तुम सभी के मेरे जैसे दो हाथ हैं, इसलिए मेरी तरह तुम सभी मेहनत कर के अपने खर्चे चला सकते हो. तभी तुम्हें पता चलेगा कि पैसा कितनी मेहनत से कमाया जाता है.

‘‘अब मुझ से किसी तरह की उम्मीद मत रखना. अब मैं सिर्फ अपने लिए जीऊंगी. मुझ से कभी दोबारा मिलने की कोशिश भी नहीं करना…’’ और इतना कह कर वह वहां से तुरंत लौट गई.

अपनी बेटी की दोटूक बात सुन कर मां लक्ष्मी हैरान रह गई. वह उस के इस रूप की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. उसे याद आया, जब डाक्टर ने लक्ष्मी के लिए ब्रैस्ट कैंसर का शक जाहिर किया था, तब गीता छिपछिप कर कितना रोती थी. उस के साथ डाक्टरों के चक्कर भी लगाने जाती थी और जब शक बेवजह का निकला, तो खुशी के आंसू उस की आंखों से बह निकले थे और आज वह इतनी कठोर कैसे हो गई? लक्ष्मी वहीं थोड़ी देर के लिए सिर पकड़ कर बैठ गई.

लक्ष्मी ने अपने सभी बच्चों को बचपन से ही हनत करना सिखाया होता और पैसे की अहमियत बताई होती, तो गीता को न अपना घर छोड़ना पड़ता और न लक्ष्मी के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूटता.

अपने पति और बेटे के प्रति अंधे प्यार ने उन्हें निकम्मा और नकारा बना दिया था, जिस के चलते उन्होंने कभी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश ही नहीं की. उन को मुफ्त के पैसे लेने की आदत पड़ गई थी. वे दोनों इस परिवार पर बोझ बन गए थे.

मां लक्ष्मी को गीता के जाने से अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत. लक्ष्मी को अब नए सिरे से घर का खर्च चलाना था, उस ने कुछ घरों से उधार लिया, यह कह कर कि हर महीने उस की पगार से काट लें. पहले ही खर्चा चलाना मुश्किल था, उस पर उधार चुकाना उस के लिए किसी बोझ से कम नहीं था.

पति और बेटे से तो उम्मीद लगाना ही बेकार था, लेकिन बीच वाली बेटी ने किसी दुकान में नौकरी कर ली और छोटी बेटी ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ मां के साथ घरों के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया, लेकिन उन को अपने खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी. इस वजह से वे दोनों बहनें चिड़चिड़ी सी रहने लगी थीं.

गीता के स्वभाव और उस को अपने काम के प्रति निष्ठावान देख कर उस के एक सहयोगी ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो उस ने हामी भरने में बिलकुल भी देरी नहीं लगाई.

शादी के बाद गीता ने घर और स्कूल की जिम्मेदारी बखूबी निभा कर सब का मन मोह लिया और सुखी जिंदगी जीने लगी.

गीता ने जो कदम उठाया, उस से उस की जिंदगी में तो खुशी आई ही, बाकी सब को भी कम से कम सबक तो मिला कि मुफ्त की कमाई ज्यादा दिनों तक हजम नहीं होती. हो सकता है कि भविष्य में लक्ष्मी का परिवार एकजुट हो जाए, जिस से उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाए. Hindi Family Story

Hindi Family Story: अबोला नहीं – बेवजह के शक ने पैदा किया तनाव

Hindi Family Story: क्यारियों में खिले फूलों के नाम जया याद ही नहीं रख पाती, जबकि अमित कितनी ही बार उन के नाम दोहरा चुका है. नाम न बता पाने पर अमित मुसकरा भर देता.

‘‘क्या करें, याद ही नहीं रहता,’’ कह कर जया लापरवाह हो जाती. उसे नहीं पता था कि ये फूलों के नाम याद न रखना भी कभी जिंदगी को इस अकेलेपन की राह पर ला खड़ा करेगा.

‘‘तुम से कुछ कहने से फायदा भी क्या है? तुम फूलों के नाम तक तो याद नहीं रख पातीं, फिर मेरी कोई और बात तुम्हें क्या याद रहेगी?’’ अमित कहता.

छोटीछोटी बातों पर दोनों में झगड़ा होने लगा था. एकदूसरे को ताने सुनाने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते थे और फिर नाराज हो कर एकदूसरे से बोलना ही बंद कर देते. बारबार यही लगता कि लोग सही ही कहते हैं कि लव मैरिज सफल नहीं होती. फिर दोनों एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते.

‘‘तुम्हीं तो मेरे पीछे पागल थे. अगर तुम मेरे साथ नहीं रहोगी, तो मैं अधूरा रह जाऊंगा, बेसहारा हो जाऊंगा. इतना सब नाटक करने की जरूरत क्या थी?’’ जया चिल्लाती.

अमित भी चीखता, ‘‘बिना सहारे की  जिंदगी तो मेरी ही थी और जो तुम कहती थीं कि मुझे हमेशा सहारा दिए रहना वह क्या था? नाटक मैं कर रहा था या तुम? एक ओर मुझे मिलने से मना करतीं और दूसरी तरफ अगर मुझे 15 मिनट की भी देरी हो जाता तो परेशान हो जाती थीं. मैं पागल था तो तुम समझदार बन कर अलग हो जाती.’’

जया खामोश हो जाती. जो कुछ अमित ने कहा था वह सही ही था. फिर भी उस पर गुस्सा भी आता. क्या अमित उस के पीछे दीवाना नहीं था? रोज सही वक्त पर आना, साथ में फूल लाना और कभीकभी उस का पसंदीदा उपहार लाना और भी न जाने क्याक्या. लेकिन आज दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं, दोषारोपण कर रहे हैं. कभीकभी तो दोनों बिना खाएपिए ही सो जाते हैं. मगर इतनी किचकिच के बाद नींद किसे आ सकती है. रात का सन्नाटा और अंधेरा पिछली बातों की पूरी फिल्म दिखाने लगता.

जया सोचती, ‘अमित कितना बदल गया है. आज सारा दोष मेरा हो गया जैसे मैं ही उसे फंसाने के चक्कर में थी. अब मेरी हर बात बुरी लगती है. उस का स्वाभिमान है तो मेरा भी है. वह मर्द है तो चाहे जो करता रहे और मैं औरत हूं, तो हमेशा मैं ही दबती रहूं? अमितजी, आज की औरतें वैसी नहीं होतीं कि जो नाच नचाओगे नाचती रहेंगी. अब तो जैसा दोगे वैसा पाओगे.’

उधर अमित सोचता, ‘क्या होता जा रहा है जया को? चलो मान लिया मैं ही उस के पीछे पड़ा था, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि वह हर बात में अपनी धौंस दिखाती रहे. मेरा भी कुछ स्वाभिमान है.’

फिर भी दोनों कोई रास्ता नहीं निकाल पाते. आधी रात से भी ज्यादा बीतने तक जागते रहते हैं, पिछली और वर्तमान जिंदगी की तुलना करते हुए मन बुझता ही जाता और चारों ओर अंधेरा हो जाता. फिर रंगबिरंगी रेखाएं आनेजाने लगती हैं, फिर कुछ अस्पष्ट सी ध्वनियां, अस्पष्ट से चेहरे. शायद सपने आने लगे थे. उस में भी पुराना जीवन ही घूमफिर कर दिखता है. वही जीवन, जिस में चारों ओर प्यार ही प्यार था, मीठी बातें थीं, रूठनामनाना था, तानेउलाहने थे, लेकिन आज की तरह नहीं. आज तो लगता है जैसे दोनों एकदूसरे के दुश्मन हैं फिर नींद टूट जाती और भोर गए तक नहीं आती.

सुबह जया की आंखें खुलतीं तो सिरहाने तकिए पर एक अधखिला गुलाब रखा होता. शादी के बाद से ही यह सिलसिला चला आ रहा था. आज भी अमित अपना यह उपहार देना नहीं भूला. जया फूल को चूम कर ‘कितना प्यारा है’ सोचती.

अमित ने तकिए पर देखा, फूल नहीं था, समझ गया, जया ने अपने जूड़े में खोंस लिया होगा. उस के दिए फूल की बहुत हिफाजत करती है न.

तभी जया चाय की ट्रे लिए आ गई. उस के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. सब कुछ सामान्य लग रहा था. अमित भी सहज हो कर मुसकराया है. जया के केशों में फूल बहुत प्यारा लग रहा था. अमित चाहता था कि उसे धीरे से सहला दे, फिर रुक गया, कहीं जया नाराज न हो जाए.

अमित को मुसकराते देख जया मन ही मन बोली कि शुक्र है मूड तो सही लग रहा है.

तैयार हो कर अमित औफिस चला गया. जया सारा काम निबटा कर जैसे ही लेटने चली, फोन की घंटी बजी. जया ने फोन उठाया. अमित का सेक्रेटरी बोल रहा था, ‘‘मैडम, साहब आज आएंगे नहीं क्या?’’

जया चौंक गई, अजीब सी शंका हुई. कहीं कोई ऐक्सीडैंट… अरे नहीं, क्या सोचने लगी. संभल कर जवाब दिया, ‘‘यहां से तो समय से ही निकले थे. ऐसा करो मिस कालिया से पूछो कहीं कोई और एप्वाइंटमैंट…’’

सेक्रेटरी की आवाज आई, ‘‘मगर मिस कालिया भी तो नहीं आईं आज.’’

जया उधेड़बुन में लग गई कि अमित कहां गया होगा. सेक्रेटरी बीचबीच में सूचित करता रहा कि साहब अभी तक नहीं आए, मिस कालिया भी नहीं.

बहुत सुंदर है निधि कालिया. अपने पति से अनबन हो गई है. उस की बात तलाक तक आ पहुंची है. उसे जल्द ही तलाक मिल जाएगा. इसीलिए सब उसे मिस कालिया कहने लगे हैं. उस का बिंदास स्वभाव ही सब को उस की ओर खींचता है. कहीं अमित भी…

सेके्रटरी का फिर फोन आया कि साहब और कालिया नहीं आए.

यह सेके्रटरी बारबार कालिया का नाम क्यों ले रहा है? कहीं सचमुच अमित मिस कालिया के साथ ही तो नहीं है? सुबह की शांति व सहजता हवा हो चुकी थी.

शाम को अमित आया तो काफी खुश दिख रहा था. वह कुछ बोलना चाह रहा था, मगर जया का तमतमाया चेहरा देख कर चुप हो गया. फिर कपड़े बदल कर बाथरूम में घुस गया. अंदर से अमित के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी. जया किचन में थी. जया लपक कर फिर कमरे में आ गई. फर्श पर सिनेमा का एक टिकट गिरा हुआ था. उस के हाथ तेजी से कोट की जेबें टटोलने लगे. एक और टिकट हाथ में आ गया. जया गुस्से से कांपने लगी कि साहबजी पिक्चर देख रहे थे कालिया के साथ और अभी कुछ कहो तो मेरे ऊपर नाराज हो जाएंगे. अरे मैं ही मूर्ख थी, जो इन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई. यह तो रोज ही किसी न किसी से कहता होगा कि तुम्हारे बिना मैं बेसहारा हो जाऊंगा.

तभी अमित बाथरूम से बाहर आया. जया का चेहरा देख कर ही समझ गया कि अगर कुछ बोला तो ज्वालामुखी फूट कर ही रहेगा. अमित बिना वजह इधरउधर कुछ ढूंढ़ने लगा. जया चुपचाप ड्राइंगरूम में चली गई. धीरेधीरे गुस्सा रुलाई में बदल गया और उस ने वहीं सोफे पर लुढ़क कर रोना शुरू कर दिया.

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, फिर अब दोनों के बीच उतनी सहजता तो रह नहीं गई थी कि जा कर पूछता क्या हुआ है. वह भी बिस्तर पर आ कर लेट गया. कैसी मुश्किल थी. दोनों ही एकदूसरे के बारे में जानना चाहते थे, मगर खामोश थे. जया वहीं रोतेरोते सो गई. अमित ने जा कर देखा, मन में आया इस भोले से चेहरे को दुलार ले, उस को अपने सीने में छिपा कर उस से कहे कि जया मैं सिर्फ तेरा हूं, सिर्फ तेरा.

मगर एक अजीब से डर ने उसे रोक दिया. वहीं बैठाबैठा वह सोचता रहा, ‘कितनी मासूम लग रही है. जब गुस्से से देखती है तो उस की ओर देखने में भी डर लगने लगता है.’

तभी जया चौंक कर जग गई. अमित ने सहज भाव से पूछा, ‘‘जया, तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल अच्छी हूं.’’

तीर की तरह जया ड्राइंगरूम से निकल कर बैडरूम में आ कर बिस्तर पर निढाल हो गई. अमित भी आ कर बिस्तर के एक कोने में बैठ गया. सारा दिन कितनी हंसीखुशी से बीता था, लेकिन घर आते ही… फिर भी अमित ने सोच लिया कि थोड़ी सी सावधानी उन के जीवन को फिर हंसीखुशी से भर सकती है और फिर कुछ निश्चय कर वह भी करवट बदल कर सो गया.

दोनों के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थीं, लेकिन वे इन दूरियों को कम करने की कोई कोशिश ही नहीं करते. कोशिश होती भी है तो कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है. यह नाराज हो कर अबोला कर लेना संबंधों के लिए कितना घातक होता है. अबोला की जगह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेना ही सही होता है. लेकिन ऐसा हो कहां पाता है. जरा सी नोकझोंक हुई नहीं कि बातचीत बंद हो जाती है. इस मौन झगड़े में गलतफहमियां बढ़ती हैं व दूरी बढ़ती जाती है.

लगभग 20-25 दिन हो गए अमित और जया में अबोला हुए. दोनों को ही अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन पहल कौन करे. दोनों का ही स्वाभिमान आड़े आ जाता.

उस दिन रविवार था. सुबह के 9 बज रहे होंगे कि दरवाजे की घंटी बजी.

‘कौन होगा इस वक्त’, यह सोचते हुए जया ने दरवाजा खोला तो सामने मिस कालिया और सुहास खड़े थे.

‘‘मैडम नमस्ते, सर हैं क्या?’’ कालिया ने ही पूछा.

बेमन से सिर हिला कर जया ने हामी भरी ही थी कि कालिया धड़धड़ाती अंदर घुस गई, ‘‘सर, कहां हैं आप?’’ कमरे में झांकती वह पुकार रही थी.

सुहास भी उस के पीछे था. तभी अमित

ने बालकनी से आवाज दी, ‘‘हां, मैं यहां हूं. यहीं आ जाओ. जया, जरा सब के लिए चाय बना देना.’’

नाकभौं चढ़ाती जया चाय बनाने किचन में चली गई. बालकनी से अमित, सुहास और कालिया की बातें करने, हंसने की आवाजें आ रही थीं, लेकिन साफसाफ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. जया चायबिस्कुट ले कर पहुंची तो सब चुप हो गए. किसी ने भी उसे साथ बैठने के लिए नहीं कहा. उसे ही कौन सी गरज पड़ी है. चाय की टे्र टेबल पर रख कर वह तुरंत ही लौट आई और किचन के डब्बेबरतन इधरउधर करने लगी.

मन और कान तो उन की बातों की ओर लगे थे.

थोड़ी देर बाद ही अमित किचन में आ कर बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए इन लोगों के साथ बाहर जा रहा हूं,’’ और फिर शर्ट के बटन बंद करते अमित बाहर निकल गया.

कहां जा रहा, कब लौटेगा अमित ने कुछ भी नहीं बताया. जया जलभुन गई. दोनों के बीच अबोला और बढ़ गया. इस झगड़े का अंत क्या था आखिर?

हफ्ते भर बाद फिर कालिया और सुहास आए. कालिया ने जया को दोनों कंधों से थाम लिया, ‘‘आप यहां आइए, सर के पास बैठिए. मुझे आप से कुछ कहना है.’’

बुत बनी जया को लगभग खींचती हुई वह अमित के पास ले आई और उस की बगल में बैठा दिया. फिर अपने पर्स में से एक कार्ड निकाल कर उस ने अमित और जया के चरणों में रख दिया और दोनों के चरणस्पर्श कर अपने हाथों को माथे से लगा लिया.

‘‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो, कालिया? सदा खुश रहो, सुखी रहो,’’ अमित बोला तो जया की जैसे तंद्रा भंग हो गई.

कैसा कार्ड है यह? क्या लिखा है इस में? असमंजस में पड़ी जया ने कार्ड उठा लिया. सुहास और निधि कालिया की शादी की 5वीं वर्षगांठ पर होने वाले आयोजन का वह निमंत्रणपत्र था.

निधि कालिया चहकते हुए बोली, ‘‘मैडम, यह सब सर की मेहनत और आशीर्वाद का परिणाम है. सर ने कोशिश न की होती तो आज 5वीं वर्षगांठ मनाने की जगह हम तलाक की शुरुआत कर रहे होते. हम ने लव मैरिज की थी, लेकिन सुहास के मम्मीपापा को मैं पसंद नहीं आई. मेरे मम्मीपापा भी मेरे द्वारा लड़का खुद ही पसंद कर लेने के कारण अपनेआप को छला हुआ महसूस कर रहे थे. बिना किसी कारण दोनों परिवार अपनी बहू और अपने दामाद को अपना नहीं पा रहे थे. उन्होंने हमारे छोटेमोटे झगड़ों को खूब हवा दी, उन्हें और बड़ा बनाते रहे, बजाय इस के कि वे लोग हमें समझाते, हमारी लड़ाइयों की आग में घी डालते रहे. छोटेछोटे झगड़े बढ़तेबढ़ते तलाक तक आ पहुंचे थे.

‘‘सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया ताकि हमारी शादी न टूटे. 1-2 महीने पहले उन्होंने हमें अलगअलग एक सिनेमा हाल में बुलाया और एक फिल्म के 2 टिकट हमें दे कर यह कहा कि चूंकि आप नहीं आ रहीं इसलिए वे भी फिल्म नहीं देखना चाहते. टिकटें बेकार न हों, इसलिए उन्होंने हम से फिल्म देखने का आग्रह किया. भले ही मैं और सुहास अलग होने वाले थे, लेकिन हम दोनों ही सर का बहुत आदर करते हैं, इसलिए दोनों ही मना नहीं कर पाए.

‘‘फिल्म शुरू हो चुकी थी इसलिए कुछ देर तो हमें पता नहीं चला. थोड़ी देर बाद समझ में आया कि सिनेमाहाल करीबकरीब खाली ही था. लेकिन सिनेमाहाल के उस अंधेरे में हमारा सोया प्यार जाग उठा. फिल्म तो हम ने देखी, सारे गिलेशिकवे भी दूर कर लिए. हम ने कभी एकदूसरे से अपनी शिकायतें बताई ही नहीं थीं, बस नाराज हो कर बोलना बंद कर देते थे. जितनी देर हम सिनेमाहाल में थे सर ने हमारे मम्मीपापा से बात की, उन्हें समझाया तो वे हमें लेने सिनेमाहाल तक आ गए. फिर हम सब एक जगह इकट्ठे हुए एकदूसरे की गलतफहमियां, नाराजगियां दूर कर लीं. मैं ने और सुहास ने भी अपनेअपने मम्मीपापा और सासससुर से माफी मांग ली और भरोसा दिलाया कि हम उन के द्वारा पसंद की गई बहूदामाद से भी अच्छे साबित हो कर दिखा देंगे.

‘‘उस के बाद से कोर्ट में चल रहे तलाक के मुकदमे को सुलहनामा में बदलने में सर ने बहुत मदद की. आज इन की वजह से ही हम दोनों फिर एक हो गए हैं, हमारा परिवार भी हमारे साथ है, सब से बड़ी खुशी की बात तो यही है. परसों हम अपनी शादी की 5वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाने जा रहे हैं, केवल सर के आशीर्वाद और प्रयास से ही. आप दोनों जरूर आइएगा और हमें आशीर्वाद दीजिएगा.’’

निधि की पूरी बात सुन कर जया का तो माथा ही घूमने लगा था कि कितना उलटासीधा सोचती रही वह, निधि कालिया और अमित को ले कर. लेकिन आज सारा मामला ही दूसरा निकला. कितना गलत सोच रही थी वह.

‘‘हम जरूर आएंगे. कोई काम हो तो हमें बताना,’’ अमित ने कहा तो निधि और सुहास ने झुक कर उन के पांव छू लिए और चले गए.

जया की नजरें पश्चात्ताप से झुकी थीं, लेकिन अमित मुसकरा रहा था.

‘आज भी अगर मैं नहीं बोली तो बात बिगड़ती ही जाएगी,’ सोच कर जया ने धीरे से कहा, ‘‘सौरी अमित, मुझे माफ कर दो. पिछले कितने दिनों से मैं तुम्हारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती रही. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

अमित ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘नहीं जया, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है. मैं समझ रहा था कि तुम सब कुछ गलत समझ रही हो, फिर भी मैं ने तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी. न बताने के पीछे एक कारण यह भी था कि पता नहीं तुम पूरी स्थिति को ठीक ढंग से समझोगी भी या नहीं. अगर मैं ने तुम्हें सारी बातें सिलसिलेवार बताई होतीं, तो यह समस्या न खड़ी होती.

‘‘दूसरे का घर बसातेबसाते मेरा अपना घर टूटने के कगार पर खड़ा हो गया था. लेकिन उन दोनों को समझातेसमझाते मुझे भी समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच सारी बातें स्पष्ट होनी चाहिए. कुछ भी हो जाए, लेकिन अबोला नहीं होना चाहिए. जो भी समस्या हो, एकदूसरे से शिकायतें हों, सभी आपसी बातचीत से सुलझा लेनी चाहिए वरना बिना बोले भी बातें बिगड़ती चली जाती हैं. पहले भी हमारे छोटेमोटे झगड़े इसी अबोले के कारण विशाल होते रहे हैं. वादा करो आगे से हम ऐसा नहीं होने देंगे,’’ अमित ने कहा तो जया ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी. Hindi Family Story

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