बिजली कहीं गिरी असर कहीं और हुआ- भाग 2: कौन थी खुशबू

इस तरह के विचार मन में आने के बाद शारदा कोशिश करने के बाद भी खुशबू के प्रति अपने व्यवहार को सामान्य नहीं कर पा रही थीं. यह बात जैसे आहिस्ता – आहिस्ता शारदा के मन में घर बना रही थी कि 7 वर्ष पहले शायद नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को भी बदल कर किसी दूसरे को दे दिया गया. अगर ऐसा हुआ था तो उस ने अवश्य एक बेटे को ही जन्म दिया होगा.

मन में उठने वाले इन विचारों ने जैसे शारदा के जीवन का सारा सुखचैन ही छीन लिया.

अपने मन में चल रहे विचारों के मंथन को शारदा अपने पति रमाकांत से छिपा नहीं सकी थी. उन ने बोलीं कि मैं ने भी तो अपने तीसरे बच्चे को इसी नर्सिंगहोम में जन्म दिया था. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि औरों की तरह मैं ने भी कहीं धोखा ही खाया हो? खुशबू वास्तव में हमारी बच्ची न हो?’’

शारदा की बात सुन रमाकांत स्तब्ध रह गए, ‘‘उन्हें इस तरह की बातें नहीं सोचनी चाहिए. ऐसी बातों का अब कोई मतलब नहीं. 7 साल बीत चुके हैं. ऐसी बातें सोचने से हमारी ही परेशानी बढ़ेगी,’’ रमाकांत ने उन्हें सम झाने की कोशिश की.

‘‘मैं चाह कर भी इस शक को अपने मन से निकाल नहीं  सकती. क्या तुम्हें नहीं लगता कि 7 साल पहले हमारे साथ जो कुछ भी हुआ था अजीब हुआ था? अपने दिल पर जरा हाथ रख कर कहो मैं जो भी कह रही हूं गलत कह रही हूं? तुम कह सकते हो कि पंडित और ज्योतिषयों ठोंग करते हैं. उन की बातें  झूठी होती हैं. मगर क्या मशीनें भी  झूठ बोलती हैं? मैडिकल साइंस भी अंधी है?’’

‘‘तुम्हारी इन सारी बातों के मेरे पास जवाब नहीं शारदा, मगर मैं तुम से इतना ही पूछना चाहता हूं कि गड़े मुरदे को उखाड़ने से क्या फायदा होगा? मैं मानता हूं नर्सिंगहोम में बहुत से लोगों के साथ धोखा हुआ, मगर इस बात का कोई सुबूत हम लोगों के पास नहीं कि उन लोगों में हम शामिल थे ही. बेकार मन में वहम पालो कि खुशबू हमारी बेटी नहीं.’’

‘‘यह वहम नहीं, एक हकीकत हो सकती है,’’ शारदा ने शब्दों पर जोर देते हुए शारदा ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारी बात मान भी लूं, तो इस हकीकत को साबित कौन करेगा? रमाकांत का लहजा तलख हो गया.

‘‘हमें पुलिस से संपर्क करना चाहिए.’’

‘‘क्या पुलिस इस बात का फैसला करेगी कि खुशबू हमारी बेटी है या नहीं?’’

‘‘तुम हमेशा मेरी बात का उलट मतलब निकालते हो, पुलिस सारे मामले की जांच कर रही है. वह इस मामलें में हमारी मदद कर सकती है,’’ शारदा ने कहा. उन के स्वर में बेसब्री थी.

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारें. पुलिस के पास जाए और उस से कहें कि हमें शक है कि खुशबू हमारी बेटी नहीं, नर्सिंगहोम वालों ने बेइमानी  कर के हमारे बच्चे को भी बदल दिया था. जानती हो इस के बाद क्या होगा? पुलिस इस मामले में हमें जांच का आश्वासन देगी, मगर इस के साथ ही वह एक काम और भी करेगी और खुशबू को हम से छीन किसी अनाथालय में भेज देगी. वह तब तक उसी अनाथालय में रहेगी जब तक पुलिस की जांच पूरी नहीं हो जाती. इस के साथ ही अगर तुम्हारे शक के मुताबिक पुलिस की जांच में यह साबित हो जाए कि नर्सिंगहोम वालों ने हमारा बच्चा भी बदला था तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि खुशबू के बदले में हमें कोई दूसरा बच्चा मिल ही जाएगा. अगर तुम इन सब चीजों का सामना करने के लिए तैयार हो तो मैं पुलिस स्टेशन चलने को तैयार हूं,’’ रमाकांत ने पत्नी को गहरी नजरों से देखते हुए कहा.

इस पर शारदा मानो धर्मसंकट में पड़ती हुई नजर आईं. इस के बाद पुलिस के पास जाने की बात शारदा ने पति से नहीं की. हां पंडित रामकुमार तिवारी से जरूर जिक्र किया, पर पुलिस के पास जाने को उस ने भी मना किया.

बिना कुछ हासिल किए ही कोई चीज गंवाने का रिस्क उठाने की हिम्मत शारदा में नहीं थी. अपने शक के कारण पुलिस के पास जाने का खयाल तो शारदा ने फिलहाल मन से निकाल दिया, मगर इस से उस के मन में जैसे घर बना चुका वहम नहीं निकला कि  वह भी नर्सिंगहोम वालों के धोखे की शिकार है.

शारदा के मन के वहम ने मासूम खुशबू के जीवन को बहुत ही उदास बना डाला था. वह मम्मी में पहले वाला प्यार ढूंढ़ती नजर आती थी जो उसे नहीं मिलता था. मम्मी के व्यवहार की बेरुखी देख मासूम खुशबू यह भी नहीं सम झ पाती कि उस से गलती क्या हुई है?

रमाकांत खुशबू के पति शारदा के बदले व्यवहार से परेशान थे, पर समस्या के तत्काल समाधान का रास्ता नहीं सू झ रहा था.

सारी कशमकश के बीच एक नई बात कह कर शारदा ने रमाकांत के लिए एक नया सिरदर्द पैदा कर दिया.

डीएनए के माने वास्तव में क्या थे और वह क्या था यह तो शारदा को मालूम नहीं था, मगर पंडित रामकुमार तिवारी के कहने पर और टीवी पर खबरें सुनने से उन्हें इतना अवश्य मालूम था कि उन के टैस्ट से किसी भी बच्चे के असली मांबाप का पता लगाया जा सकता है.

शारदा ने रमाकांत से कहा, ‘‘पंडितजी कह रहे थे कि एक टैस्ट होना है जिस से किसी भी बच्चे के असली मांबाप के बारे में बिलकुल सही ढंग से जाना जा सकता है. मैं ने मोबाइल पर पढ़ा था, डीएनए या ऐसा ही कोई मिलताजुलता नाम था इस टैस्ट का. क्यों न हम भी अपना व खुशबू का टैस्ट करवा लें? उस से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. पंडितजी ने एक लैब का कार्ड भी दिया है कि वह उन की जानपहचान की है.

शारदा की बात सुन रमाकांत कुछ पलों के लिए तो हक्काबक्का रह गए.

वे नहीं जानते थे कि  खुशबू को ले कर शारदा की सोच इस हद तक चली गई है.

‘‘इस टैस्ट को क्या तुम ने कोई मजाक सम झा है? इस पर बहुत पैसा खर्च होगा,’’ रमाकांत ने शारदा को टालने की गरज से कहा.

‘‘चाहे जितना भी खर्च आए करो, मगर किसी तरह भी मु झे मेरी दिनरात की दिमागी तकलीफ से छुटकारा दिलाओ वरना यह मु झे मार डालेगी,’’ शारदा ने कहा.

शारदा की बात से रमाकांत को लगा कि मामला एक नाजुक शक्ल ले रहा है. खुशबू को ले कर लगातार अंदर से घुल रही शारदा का तनाव खतरनाक सीमा तक बढ़ गया है. अगर जल्दी शारदा को उस की वर्तमान मनोस्थिति से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं खोजा गया तो इस के बुरे नतीजे सामने आ सकते हैं.

रमाकांत ने इस बारे में बहुत सोचा, बहुत मंथन किया. अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शारदा को उन की वर्तमान मनोस्थिति में से निकालने के लिए  झूठ का ही सहारा लेना पड़ेगा.

तभी रमाकांत को अपने बचपन के दोस्त सतीश धवन की याद आ गई, जो डाक्टर था.

सतीश धवन अपने क्लीनिक के साथसाथ एक लैब का भी मालिक था. रमाकांत ने डाक्टर सतीश धवन से मिल कर उसे अपनी सारी समस्या बताई. रामकुमार तिवारी के दिए गए लैब के कार्ड को भी दिखाया.

बीती ताहि बिसार दे – भाग 5 : देवेश के दिल की

मां के पास उस के लिए कई रिश्ते आए थे, जिन में से कई रिश्ते कुआरी लड़कियों के भी थे. पर वे रिश्ते ऐसे ही थे जैसे एक विवाहित व 1 बच्चे के पिता के लिए आ सकते थे. देवेश उन रिश्तों के बारे में सुनता भी नहीं था. देवेश की कुंआरी भावनाएं जो अभी जस की तस थीं. वह सोच भी नहीं पाता था कि उस का विवाह एक बार हो चुका है और वह एक बच्चे का पिता है. उस के जीवन की उलझनों का शिकार अकसर शनी हो जाता था. वह न कभी शनी को गोद में उठाता न कभी दुलारता. एक अनजानी सी नफरत घर कर गई थी उस मासूम बच्चे के लिए उस के दिल में. वह उसे अपनी जिंदगी की सब से बड़ी बाधा समझता था.

एकाएक कहीं दूर से घंटा बजने की आवाज सुनाई दी. स्मृतियों में खोया देवेश जैसे अपनेआप में लौट आया. घड़ी पर नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. उस ने एक लंबी सांस ली. उस की आंखें अभी भी गीली थीं. उस ने दोनों हथेलियों से अपनी आंखें पोंछीं और फिर बैडरूम में चला गया.

उस के बाद जब कभी शानिका आई, वह उस से सामना होने को टालता रहा. यह सोच कर कि शानिका से किसी पूर्व सूचना के घर आ गई. रागिनी उस समय घर पर नहीं थी. मां को प्रणाम कर वह किताबें ले कर स्टडीरूम में चली गई. उसे भी पता नहीं था कि देवेश इस समय घर पर होगा. देवेश को देख कर वह चौंक गई. शानिका को अचानक सामने आया देख कर देवेश भी चौंक गया. दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. आज उसे शानिका बहुत दिनों बाद दिखाई दी.

‘‘अरे आप आज घर पर कैसे?’’

‘‘बस थोड़ा देर से जाऊंगा आज,’’ देवेश मुसकराते हुए बोला, ‘‘रागिनी को पता नहीं था कि आप आने वाली हैं? वह तो अभी घर पर नहीं है. पर जल्दी आ जाएगी.’’

‘‘कोई बात नहीं मैं इंतजार कर लूंगी. ये लीजिए अपनी किताबें,’’ वह किताबें मेज पर रखती हुई बोली.

‘‘दूसरी किताबें देख लीजिए जो आप को चाहिए,’’ वह मीठे स्वर में बोला. वह शानिका की मौजूदगी को इतने दिनों से टाल रहा था. लेकिन अब सामने आ गई थी तो उस का दिल नहीं कर रहा था कि वह जाए.

शानिका शेल्फ में किताबें देखने लगी. देवेश अपने दिल पर अकुंश नहीं रख पा रहा था. सोच रहा था, एक बार तो बात करे शानिका से कि आखिर वह क्या चाहती है. अपने ही ध्यान में जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बंधा ऐसा सोचता हुआ वह उस के करीब आ गया.

‘‘शानिका,’’ वह भावुक स्वर में बोला.

‘‘जी,’’ एकाएक उसे इतने करीब देख कर शानिका उस की तरफ पलट गई.

‘‘मुझ से शादी करोगी?’’ उस की निगाहें उस के चेहरे पर टिकी थीं. उसे स्वयं पता नहीं था कि वह क्या बोल रहा है.

‘‘जी,’’ शानिका हकला सी गई, ‘‘मैं ने ऐसा कुछ सोचा नहीं अभी,’’ वह उलझी, परेशान सी बोली.

‘‘तो कब सोचोगी?’’ देवेश का स्वर हलका सा कठोर हो गया.

शानिका गरदन झुकाए नीचे देखने लगी.

‘‘बोलो शानिका कब सोचोगी?’’

‘‘पता नहीं मेरे घर वाले मानेंगे या नहीं…’’

‘‘अगर तुम्हारे घर वाले नहीं मानेंगे तो क्यों आई हो मेरी जिंदगी में तूफान ले कर,’’ वह उसे झंझोड़ता हुआ बोला, ‘‘क्यों मेरी भावनाओं को उकसाया तुम ने? मैं जैसा भी था अपने हाल से समझौता कर लिया था मैं ने. तुम ने क्यों हलचल मचा दी मेरे दिलदिमाग में. बताओ शानिका बताओ,’’ वह उसे बुरी तरह झंझोड रहा था. उस की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर कठोरता के भाव.

शानिका देवेश को ऐसे रूप में देख कर हड़बड़ा सी गई. वह खुद को छुड़ाने का यत्न करने लगी. बोली, ‘‘छोड़ दीजिए मुझे. मैं आप की बात का जवाब बाद में दूंगी. आप अभी होश में नहीं हैं.’’

‘‘मैं होश में नही हूं और होश में न ही आऊं तो ठीक है… जाओ चली जाओ मेरे सामने से. फिर कभी मत आना मेरे सामने,’’ कह कर उस ने शानिका को हलका सा धक्का दे कर छोड़ दिया.

शानिका रोती हुई बाहर निकल गई. तभी अंदर आती रागिनी ने उसे पकड़ लिया. पूछा, ‘‘क्या हुआ शानिका? ऐसी बदहावास सी क्यों हो रही है और रो क्यों रही है? भैया ने कुछ कहा क्या?’’

‘‘नहीं…मैं घर जा रही हूं.’’

‘‘चली जाना…पहले मेरे साथ आ,’’ वह उसे खींचती हुई अपने बैडरूम में ले गई. उसे सहलाया, पानी पिलाया. जब वह संयत हो गई तो फिर बोली, ‘‘शानिका मैं नहीं जानता, तेरे और भैया के बीच ऐसी क्या बात हुई पर मैं बात का अंदाजा लगा सकती हूं. मैं जानती हूं भैया तुझ से बहुत प्यार करते हैं. तुझ से शादी करना चाहते हैं…मैं जानती हूं यह नामुमकिन है, फिर भी पूछना चाहती हूं कि तेरा दिल क्या कहता है? तेरे दिल में भैया के लिए वैसी कोमल भावनाएं हैं क्या? तू भी उन्हें पसंद करती है?’’

शानिका कुछ नहीं बोली. टपटप आंसू गिरने लगे.

‘‘बोल न शानिका,’’ रागिनी उसे प्यार से सहलाते हुए बोली.

‘‘मेरे चाहने से क्या होता…मम्मीपापा को कौन मनाएगा? मैं तो बोल भी नहीं सकती उन से.’’

‘‘मतलब कि तू भी भैया से प्यार करती है?’’

शानिका ने कोई जवाब नहीं दिया. चुपचाप नीचे देखती रही. थोड़ी देर दोनों चुप रहीं, फिर रागिनी बोली, ‘‘पापा की जिद्द ने भैया के जीवन में इतना बड़ा व्यवधान पैदा कर दिया. छोटी सी उम्र में उन्हें शादी के बंधन में बांध दिया और वह शादी उन के  लिए नासूर बन गई. वरना तू भी जानती है कि मेरे भैया जैसा लड़का चिराग ले कर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगा, उन जैसा साथी पाने का तो कोई भी लड़की ख्वाब देख सकती है.’’

शानिका ने कोई जवाब नहीं दिया तो रागिनी फिर बोली, ‘‘अगर प्यार भैया से करती है, तो किसी दूसरे के साथ कैसे खुश रह पाएगी तू और जब तक अपनी बात नहीं बोलेगी तब तक कोई तेरी बात कैसे मानेगा…अपने दिल की बात अपने मातापिता से कहना कोई गुनाह तो नहीं. अगर प्यार करती है तो बोलने की भी हिम्मत कर. चुप मत रह. चुप रहना किसी समस्या का हल नहीं है. तेरी चुप्पी, भैया और तेरी दोनों की जिंदगी बरबाद कर देगी,’’ रागिनी ने उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया.

बीती ताहि बिसार दे – भाग 2 : देवेश के दिल की

अभी भी नहीं भूलता देवेश उस दिन को जब उसे उस के पिता के कैंसर होने का पता चला था. कैंसर आखिरी स्टेज पर था. तब देवेश ने अपना एमबीए खत्म कर पिता के व्यवसाय में रुचि लेनी शुरू ही की थी कि पिता की बीमारी ने व्यवसाय का सारा भार उस के नाजुक कंधों पर डाल दिया. तब वह सिर्फ 23 साल का था. पिता की बीमारी ने सब को सकते में डाल दिया. किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था.

देवेश ने पिता के इलाज में दिनरात एक कर दिया पर मौत की तरफ बढ़ते पिता के कदमों को वह नहीं लौटा पाया. एक दिन पिता ने उस से आखिरी इच्छा व्यक्त की कि यदि वह चाहता है कि वे सुखसंतोष से इस दुनिया से जाए तो वह शादी कर ले. वे उस की शादी देखना चाहते हैं.

देवेश परेशान सा हो गया. बोला, ‘‘इतनी जल्दी अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है. ये भी कोई उम्र है शादी की? मेरे साथ के लड़के तो अभी पढ़ ही रहे हैं.’’

‘‘तू शादी कर लेगा बेटा, तो मैं चैन से मर सकूंगा. व्यवसाई परिवारों में तो शादियां जल्दी हो ही जाती हैं. तुझे जो करना है उस के बाद करते रहना. मेरी यह इच्छा पूरी कर दे देवेश… तेरी मां के लिए सहारा हो जाएगा और मैं भी एक जिम्मेदारी पूरी कर के चैन से दुनिया से जा पाऊंगा.’’

‘‘लेकिन पापा इतनी जल्दी लड़की कहां मिलेगी… कौन ढूंढ़ेगा?’’ वह मजबूर सा हो कर बोला.

‘‘लड़की है मेरी नजर में… मेरे दोस्त समीर की बेटी. एमबीए है. सुंदर है… समीर भी तैयार है इस रिश्ते के लिए.’’

पिता की हालत देख कर भावुक हो देवेश कुछ नहीं बोल पाया. आननफानन में एक सादे से समारोह में उस की शादी हो गई. उस की नवविवाहिता पत्नी 2 दिन उस के साथ रही. उन 2 दिनों में भी निमी के चेहरे व स्वभाव में उस ने एक अजीब तरह का तनाव महसूस किया. फिर उस ने सोचा कि वह भी शायद उस की तरह जल्दबाजी में हुई इस शादी के कारण उलझन में होगी. तीसरे दिन वह उसे 2-4 दिनों के लिए उस के मायके छोड़ आया. लेकिन वह जब उसे लेने गया तो उस ने आने से इनकार कर दिया. उस के ससुर ने कहा कि थोड़े दिनों वे स्वयं ही निमी को ससुराल छोड़ने आ जाएंगे. लेकिन निमी को न आना था न आई.

पिता थोड़े दिनों बाद सब को अलविदा कह गए. कुछ दिन तो पिता के जाने के दुख से उबरने में लग गए उसे. फिर मां ने उसे बहू को लिवा लाने भेज दिया. लेकिन निमी फिर भी आने को तैयार नहीं हुई. उसे कुछ समझ नहीं आया. निमी का व उस का संपर्क मात्र 2 दिन का था. इसलिए वह उसे बहुत जोरजबरदस्ती भी नहीं कर पा रहा था. नईनई ससुराल में भी कुछ बोल नहीं पा रहा था. छोटी सी उम्र में तमाम जिम्मेदारियों ने उसे अजीब सी उलझन में डाल दिया था.

धीरेधीरे दबीढकी बातें सामने आने लगीं. निमी किसी दूसरे लड़के से विवाह करना चाहती थी. पर उस के पिता को वह लड़का और रिश्ता पसंद नहीं था. अपने पिता की जिद्द की वजह से वह उस के साथ शादी के लिए तैयार हो गई. निभाना चाहा पर रह नहीं पाई और अब वह किसी भी सूरत में आने के लिए तैयार नहीं थी.

वह हतप्रभ रह गया. उस की जिंदगी ने यह कैसा मोड़ ले लिया और यह मोड़ इतने पर भी खत्म नहीं हुआ. इस के बाद वह गहरी खाई में गिर पड़ा, जब कुछ महीनों बाद पता चला कि निमी मां बनने वाली है. जब मां ने ये सब सुना तो उसे समझाबुझा कर दोबारा निमी को लिवा लाने भेजा. किसी तरह बेमन से वह निमी को लेने ससुराल चला गया. उस ने बहुत समझाया कि बीती बातों को भुला दे और उस के साथ नई जिंदगी शुरू करे.

निमी के मातापिता ने भी बहुत समझाया, पर निमी तो जैसे पगली सी हो गई थी. न वह आने को तैयार हुई और न ही वह ऐसी हालत में अपना खयाल रखती थी. उसे उस पर दया भी आई. वह भी उस की तरह अपने पिता की जिद्द की शिकार हो गई. थकहार कर वह वापस आ गया.

बात एक राज की- भाग 2 : एक भयानक योजना

‘‘तुम लोगों के टूर के पैसे भी मैं दे दूंगा.

बचेंगे 40 हजार रुपए तो तुम लोग भी अपने घर से 40 हजार रुपए जमा करने वाले ही थे. वे पैसे रास्ते के खर्च के लिए रख लेना. सभी के पास बराबर पैसा होगा,’’ रुधिर मुसकराता हुआ बोला.

‘‘और संपर्क करने के लिए फोन कौन सा इस्तेमाल करेंगे?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘कोई एक फोन यूज नहीं करेंगे. कल मैं पापा की फर्म का गुमाश्ता और्डर की फोटोकौपी, लैटरपैड, सील और बाकी डौक्युमैंट्स ले कर आ जाऊंगा. इतने डौक्युमैंट्स से कौर्पोरेट के नाम पर जितनी चाहे उतनी सिम ले सकते हैं. मैं 5 पोस्टपेड सिम निकलवा दूंगा. अगर कभी पुलिस कंप्लैंट हुई भी, तो शौपकीपर मेरा ही हुलिया बताएगा. इस से यह स्पष्ट होगा कि पापा की फर्म का ही कोई प्रतिद्वंद्वी यह काम मु?ा से दबाव डलवा कर करवा रहा है. तुम लोगों पर कोई शक नहीं जाएगा,’’ रुधिर ने योजना का पूरा खुलासा किया.

‘‘फिरौती की रकम किस जगह ली जाएगी?’’ रक्ताभ ने अगली परेशानी प्रस्तुत की.

‘‘हमारे फार्महाउस के बिलकुल विपरीत शहर के दूसरे छोर पर. रुपए किसी शौपिंग बैग में ही लेना ताकि किसी को शक न हो. रुपए लेने के बाद बताना कि तुम ने मुझे फार्महाउस के नजदीक छोड़ दिया है. यहां पर तो मैं पहले से रहूंगा ही,’’ रुधिर ने स्पष्ट किया.

‘‘हम लोगों का तो कोई काम नहीं रहेगा न? इतना काम तो तुम निबटा ही लोगे?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘अरे मैडम, मेन रोल तो आप लोगों का ही रहेगा. रक्ताभ के धमकीभरे फोन करने के बाद फौलोअप करने का काम बारीबारी से तुम दोनों करोगे. इस से ऐसा लगेगा कि गु्रप बहुत बड़ा व खतरनाक है. यदि वौयस चेंजिंग ऐप से कौल करोगे तो बेहतर रहेगा. कोई तुम्हारी आवाज को ट्रैस नहीं कर सकेगा. दूसरा, पैसे लेने भी तुम लोग ही जाओगे, क्योंकि रक्ताभ अगर अपना मुंह कवर करेगा तो लोगों के शक के घेरे में आ जाएगा और तुम लोग स्टौल से कवर कर के आसानी से जा सकती हो,’’ रुधिर ने दोनों लड़कियों को सम?ाया.

‘‘तुम्हारी योजना तो बहुत आकर्षक लग रही है. मुझे विश्वास है जरूर सफल होगी.’’ रक्ताभ ने आशा प्रकट की.

‘‘फार्महाउस पर रामू अंकल रहेंगे. वे अनाथ हैं, दादाजी उन्हें किसी अनाथालय से उठा कर लाए थे. इस कारण वे हमेशा हमारे एहसानमंद रहते हैं. मुझे बहुत अधिक चाहते हैं. इस कारण वहां खानेपीने, रहने की कोई समस्या नहीं होगी. हां, तुम लोग अपनी तरफ से कोई गलती मत करना,’’ रुधिर समझाते हुआ बोला.

‘‘बिलकुल ठीक,’’ रक्ताभ ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, तो अपनी योजना पक्की रही. कल मैं घर से निकलूंगा मगर कालेज नहीं आऊंगा. मैं कल ही सिमों का इंतजाम कर के पहुंचा दूंगा. आज से ठीक 6 दिनों बाद मेरा किडनैप कर के मेरे घर पर फोन कर देना. मेरे मम्मी व पापा का नंबर अभी से नोट कर लो,’’ रुधिर नंबर लिख कर देता हुआ बोला.

‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘औल द बैस्ट,’’ चारों एक स्वर में मगर धीमे से बुदबुदा कर बोले.

अगले 5 दिनों तक सभीकुछ तय योजना के मुताबिक चलता रहा. छठे दिन रुधिर तय समय पर निकल कर निश्चित किए गए रैस्टोरैंट के सामने साइकिल रख कर पैदल चल पड़ा. लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद रक्ताभ अपनी बाइक पर इंतजार करता हुआ मिल गया. वह उसे फार्महाउस पर छोड़ आया.

कालेज समाप्त होने के लगभग आधा घंटा बाद रक्ताभ ने रुधिर के पापा को फोन किया.

‘‘हैलो, शांतिलाल बोल रहे हैं?’’ रक्ताभ ने आवाज बदल कर पूछा.

‘‘हां, मैं शांतिलाल बोल रहा हूं. आप कौन?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो और किसी दूसरे को बताने की कोशिश मत करना. हम ने तुम्हारे लड़के रुधिर का अपहरण कर लिया है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो आज शाम 5 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपया कहां लाना हैं, इस के बारे में हम शाम को बताएंगे. पुलिस को बताने पर अपने लड़के की लाश ही पाओगे,’’ रक्ताभ ने भरपूर पेशेवर रवैया अपनाते हुए कहा.

‘‘अपहरण? मेरे लड़के का? बहुत अच्छा किया. मेरी तरफ से जान ले लो उस की. रुपया छोड़ो, मैं एक पैसा भी नहीं देने वाला,’’ उधर से रुधिर के पापा ने कहा.

यह सुन कर रक्ताभ घबरा गया और उस ने फोन काट दिया. साथ में खड़ी हुई लालिमा और सिंदूरी से पूरी बात बताते हुए वह बोला, ‘‘कहीं हमारा दांव उलटा तो नहीं पड़ गया?’’

‘‘अब क्या होगा?’’ लालिमा घबराते हुए बोली.

‘‘अरे, इस समय तक तो रुधिर घर पहुंचता ही नहीं है. हम ने फोन में जल्दबाजी कर दी है. इसी कारण अतिआत्मविश्वास के साथ वे ऐसी बातें कर रहे हैं. 2 घंटे बाद उन्हें जब मालूम पड़ेगा की रुधिर सचमुच घर नहीं पहुंचा, तब वे घबराएंगे और हमारी बात मान लेंगे,’’ सिंदूरी ने अनुमान लगाया.

‘‘हां, हां, शायद ऐसा हो. ऐसा करते हैं हम शाम को 6 बजे पार्क में मिल कर फोन लगाते हैं,’’ रक्ताभ ने सहमति जताई.

‘‘सिंदूरी इस बार तुम फोन लगाओ. अब तो 6 घंटे गुजर चुके हैं. शायद अब तक रुधिर के घर वाले घबरा गए हों,’’ रक्ताभ ने पार्क में मिलते ही कहा.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, मैं फोन लगाती हूं,’’ सिंदूरी ने कहा और फोन लगाने लगी, ‘‘हैलो, शांतिलालजी…’’

‘‘हां, मैं शांतिलाल ही बोल रहा हूं.’’ वे बीच में ही सिंदूरी की बात काटते हुए बोले, ‘‘तुम किडनैपर्स गैंग से बोल रही हो न? मेरा जवाब अभी भी वही है जो पहले था. आप लोग मेरा व अपना समय बरबाद न करें,’’ कहते हुए शांतिलाल ने गुस्से में फोन काट दिया.

गुड गर्ल: ससुराल में तान्या के साथ क्या हुआ – भाग 2

तान्या आश्चर्य से बोली,”मगर क्यों?”

“बेटा, यह समाज लड़कियों को देवी की तरह पूजता तो है पर मौका पाने पर हाड़मांस की इन जीतीजागती देवियों की भावनाओं और इच्छाओं अथवा अनिच्छाओं को कुचलने से तनिक भी गुरेज नहीं करता.”

समाज के इस निर्मम चेहरे से अनजान तान्या ने कंचन जी से पूछा,”मां, लेकिन ऐसा क्यों? मैं भी तो भैया जैसी ही हूं. मैं भी एक इंसान हूं फिर मैं अलग कैसे हुई?”

“बेटा, पुरुष के विपरीत स्त्री को एक ही जीवनचक्र में कई जीवन जीना पड़ता है. पहले मांबाप के नीड़रूपी घर में पूर्णतया लाङप्यार और सुरक्षित जीवन और दूसरा घर के बाहर भेदती हुई हजारों नजरों वाले समाज के पावरफुल स्कैनर से गुजरने की चुभती हुई पीड़ा से रोज ही दोचार होते हुए सीता की तरह अग्नि परीक्षा देने को विवश.

“बेटा, एक बात और, विवाह के बाद अकसर यह स्कैनर एक नया स्वरूप धारण कर लेता है, जिस की फ्रीक्वैंसी कुछ अलग ही होती है.”

“लेकिन हम लड़कियां ही एकसाथ इतने जीवन क्यों जिएं?”

“बेटा, निश्चित तौर पर यह गलत है और हमें इस का पुरजोर विरोध जरूर करना चाहिए. लेकिन स्त्री के प्रति यह समाज कभी भी सहज या सामान्य नहीं रहा है. या तो हमें रहस्य अथवा अविश्वास से देखा जाता है या श्रद्धा से लेकिन प्रेम से कभी नहीं, क्योंकि हम स्त्रियों की जैंडर प्रौपर्टीज समाज को हमेशा से भयाक्रांत करती रही है. सभी को अपने लिए एक शीलवती, सच्चरित्र और समर्पित पत्नी चाहिए जो हर कीमत पर पतिपरायण बनी रहे लेकिन दूसरे की पत्नी में अधिकांश लोगों को एक इंसान नहीं बल्कि एक वस्तु ही दिखाई पड़ती है.”

“लेकिन मां, यह तो ठीक बात नहीं, ऐसा क्यों?”

“बेटा, हम स्त्रियों के मामले में पुरुष हमेशा से इस गुमान में जीता आया है कि यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ जरा सा भी हंसबोल ले तो कुछ न होते हुए भी वह इसे उस के प्रेम और शारीरिक समर्पण की सहमति मान लेता है.”

“तो क्या मैं किसी के साथ हंसबोल भी नहीं सकती?”

“नहीं बेटा, मेरे कहने का अभिप्राय यह बिलकुल भी नहीं है. मैं तो तुम्हें सिर्फ आगाह करना चाहती हूं कि समाज के ठेकेदारों ने हमारे चारो ओर नियमकानूनों का एक अजीब सा जाल फैला रखा है, जिस में काजल का गहरा लेप लगा हुआ है. लेकिन हमें भी अपनेआप को कभी कमजोर या कमतर नहीं आंकना चाहिए जबकि उन्हें यह एहसास करा देना चाहिए कि हम न केवल इस जाल को काट फेंकने का सामर्थ्य रखते हैं बल्कि हमारे इर्दगिर्द फैलाए गए इसी काजल को अपने व्यक्तित्व की खूबसूरती का माध्यम बना उसे आंखों में सजा लेना जानते हैं, ताकि हम सिर उठा कर खुले आकाश में उड़ सकें और अपनी खुली आंखों से अपने सपनों को पूरा होते देख सकें.”

“मां, यह हुई न झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वाली बात.”

अपनी फूल सी बिटिया को सीने से लगाती हुईं कंचनजी बोलीं,”बेटा, मैं तुम्हें कतई डरा नहीं रही थी. बस समाज की सोच से तुम्हें परिचित करा रही थी ताकि तुम परिस्थितियों का मुकाबला कर सको. तुम वही करना जो तुम्हारा दिल कहे. तुम्हारे मम्मीपापा सदैव तुम्हारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे.”

समय अपनी गति से पंख लगा कर उड़ता रहा और देखतेदेखते एक दिन छोटी सी तान्या विवाह योग्य हो गई. संयोग से रवि और कंचनजी को उस के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

एक पारिवारिक शादी समारोह में दिनकर का परिवार भी आया हुआ था. तान्या की निश्छल हंसी और मासूम व्यवहार पर मोहित हो कर दिनकर उसे वहीं अपना दिल दे बैठा. शादी की रस्मों के दौरान जब कभी तान्या और दिनकर की नजरें आपस में एक दूसरे से मिलतीं तो तान्या दिनकर को अपनी ओर एकटक देखता हुआ पाती. उस की आंखों में उसे एक अबोले पर पवित्र प्रस्ताव की झलक दिखाई पड़ रही थी. उस ने भी मन ही मन दिनकर को अपने दिल में जगह दे दिया.

दिनकर की मां को छोड़ कर और किसी को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दरअसल, दिनकर की मां शांताजी अपने दूर के रिश्ते की एक लड़की को अपनी बहू बनाना चाहती थी जो कनाडा में रह रही थी और पैसे से काफी संपन्न परिवार की थी, दूसरे उन्हें तान्या का सब के साथ इतना खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं था. लेकिन बेटे के प्यार के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और कुछ ही समय के अंदर तान्या और दिनकर विवाह के बंधन से बंध गए.

सरल एवं बालसुलभ व्यवहार वाली तान्या ससुराल में भी सब के साथ खूब जी खोलकर बातें करती, हंसती और सब को हंसाती रहती.

पति दिनकर बहुत अच्छा इंसान था. उस ने तान्या को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह मायके में नहीं ससुराल में है. उस ने तान्या को अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीने की पूरी आजादी दी.

दिनकर की मां शांताजी कभी तान्या को टोकतीं तो वह उन्हें बड़े प्यार से समझाता, “मां, तुम अपने बहू पर भरोसा रखो. वह इस घर का मानसम्मान कभी कम नहीं होने देगी. वह एक परफैक्ट गुड गर्ल ही नहीं एक परफैक्ट बहू भी है.”

लेकिन कुछ ही दिनों मे तान्या को यह एहसास हो गया कि उस के ससुराल में 2 लोगों का ही सिक्का चलता है, पहला उस की सास और दूसरा उस के ननदोई राजीव का.

दरअसल, उस के ननदोई राजीव काफी अमीर थे. जब तान्या के ससुर का बिजनैस खराब चल रहा था तो राजीव ने रूपएपैसे से उन की काफी मदद की थी. इसलिए राजीव का घर में दबदबा था और उस की सास तो अपने दामाद को जरूरत से ज्यादा सिरआंखों पर बैठाए रखती थी.

परी हूं मैं : तरुण ने दिखाई मुझे मेरी औकात – भाग 2

मुझे अस्पताल में भरती करना पड़ा और तरुण के हाथों पर भी पट्टियां बंध चुकी थीं तो रिद्धि व सिद्धि को किस के आसरे छोड़ते. अम्माजी को बुलाना ही पड़ा. आते ही अम्माजी अस्पताल पहुंचीं.

‘देख, तेरी वजह से तरुण भी जल गया. कहते हैं न, आग किसी को नहीं छोड़ती. बचाने वाला भी जलता जरूर है.’ जाने क्यों अम्मा का आना व बड़बड़ाना मुझे अच्छा नहीं लगा. आंखें मूंद ली मैं ने. अस्पताल में तरुण नर्स के बजाय खुद मेरी देखभाल करता. मैं रोती तो छाती से चिपका लेता. वह मुझे होंठों से चुप करा देता. बिलकुल ताजा एहसास.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई तो घर का कोनाकोना एकदम नया सा लगा. फूलपत्तियां सब निखर गईं जैसे. जख्म भी ठीक हो गए पर दाग छोड़ गए, दोनों के अंगों पर, जलने के निशान.

तरुण और मैं, दोनों ही तो जले थे एक ही आग में. राजीव को भी दुर्घटना की खबर दी गई थी. उन्होंने तरुण को मेरी आग बुझाने के लिए धन्यवाद के साथ अम्मा को बुला लेने के लिए शाबाशी भी दी.

तरुण को महीनों बीत चले थे भोपाल गए हुए. लेकिन वहां उस की शादी की बात पक्की की जा चुकी थी. सुनते ही मैं आंसू बहाने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’

‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होता.’ तरुण ने पूरी तरह मुझे अपने वश में कर लिया था, मगर पिता के फैसले का विरोध करने की न उस में हिम्मत थी न कूवत. स्कौलरशिप से क्या होना जाना था, हर माह उसे घर से पैसे मांगने ही पड़ते थे.

तो इस शादी से इनकार कैसे करता? लड़की सरकारी स्कूल में टीचर है और साथ में एमफिल कर रही है तो शायद शादी भी जल्दी नहीं होगी और न ही ट्रांसफर. तरुण ने मुझे आश्वस्त कर दिया.

मैं न सिर्फ आश्वस्त हो गई बल्कि तरुण के संग उस की सगाई में भी शामिल होने चली आई. सामान्य सी टीचरछाप सांवली सी लड़की, शक्ल व कदकाठी हूबहू मीनाकुमारी जैसी.

एक उम्र की बात छोड़ दी जाए तो वह मेरे सामने कहीं नहीं टिक रही थी. संभवतया इसलिए भी कि पूरे प्रोग्राम में मैं घर की बड़ी बहू की तरह हर काम दौड़दौड़ कर करती रही. बड़ों से परदा भी किया. छोटों को दुलराया भी. तरुण ने भी भाभीभाभी कर के पूरे वक्त साथ रखा लेकिन रिंग सेरेमनी के वक्त स्टेज पर लड़की के रिश्तेदारों से परिचय कराया तो भाभी के रिश्ते से नहीं बल्कि, ‘ये मेरे बौस, मेरे गाइड राजीव सर की वाइफ हैं.’

कांटे से चुभे उस के शब्द, ‘सर की वाइफ’, यानी उस की कोई नहीं, कोई रिश्ता नहीं. तरुण को वापस तो मेरे ही साथ मेरे ही घर आना था. ट्रेन छूटते ही शिकायतों की पोटली खोल ली मैं ने. मैं तैश में थी, हालांकि तरुण गाड़ी चलते ही मेरा पुराना तरुण हो गया था. मेरा मुझ पर ही जोर न चल पाया, न उस पर.

मौसम बदल रहे थे. अपनी ही चाल में, शांत भाव से. मगर तीसरे वर्ष के मौसमों में कुछ ज्यादा ही सन्नाटा महसूस हो रहा था, भयावह चुप्पियां. आंखों में, दिलों में और घर में भी.

तूफान तो आएंगे ही, एक नहीं, कईकई तूफान. वक्त को पंख लग चुके थे और हमारी स्थिति पंखकटे प्राणियों की तरह होती लग रही थी. मुझे लग रहा था समय को किस विध बांध लूं?

तरुण की शादी की तारीख आ गई. सुनते ही मैं तरुण को झंझोड़ने लगी, ‘‘मेरा क्या होगा?’’

‘परी का जादू कभी खत्म नहीं होगा,’ इस बार तरुण ने मुझे भविष्य की तसल्ली दी. मैं पूरा दिन पगलाई सी घर में घूमती रही मगर अम्माजी के मुख पर राहत स्पष्ट नजर आ रही थी. बातों ही बातों में बोलीं भी, ‘अच्छा है, रमेश भाईसाहब ने सही पग उठाया. छुट्टा सांड इधरउधर मुंह मारे, फसाद ही खत्म…खूंटे से बांध दो.’

मुझे टोका भी, कि ‘कौन घर की शादी है जो तुम भी चलीं लदफंद के उस के संग. व्यवहार भेज दो, साड़ीगहना भेज दो और अपना घरद्वार देखो. बेटियों की छमाही परीक्षा है, उस पर बर्फ जमा देने वाली ठंड पड़ रही है.’

अम्माजी को कैसे समझाती कि अब तो तरुण ही मेरी दुलाईरजाई है, मेरा अलाव है. बेटियों को बहला आई, ‘चाची ले कर आऊंगी.’

बड़े भारी मन से भोपाल स्टेशन पर उतरी मैं. भोपाल के जिस तालाब को देख मैं पुलक उठती थी, आज मुंह फेर लिया, मानो मोतीताल के सारे मोती मेरी आंखों से बूंदें बन झरने लगे हों.

तरुण ने बांहों में समेट मुझे पुचकारा. आटो के साइड वाले शीशे पर नजर पड़ी, ड्राइवर हमें घूर रहा था. मैं ने आंसू पोंछ बाहर देखना शुरू कर दिया. झीलों का शहर, हरियाली का शहर, टेकरीटीलों पर बने आलीशन बंगलों का शहर और मेरे तरुण का शहर.

आटो का इंतजार ही कर रहे थे सब. अभी तो शादी को हफ्ताभर है और इतने सारे मेहमान? तरुण ने बताया, मेहमान नहीं, रिश्तेदार एवं बहनें हैं. सब सपरिवार पधारे हैं, आखिर इकलौते भाई की शादी है. सुन कर मैं ने मुंह बनाया और बहनों ने मुझे देख कर मुंह बनाया.

रात होते ही बिस्तरों की खींचतान. गरमी होती तो लंबीचौड़ी छत थी ही. सब अपनीअपनी जुगाड़ में थे. मुझे अपना कमरा, अपना पलंग याद आ रहा था. तरुण ने ही हल ढूंढ़ा, ‘भाभी जमीन पर नहीं सो पाएंगी. मेरे कमरे के पलंग पर भाभी की व्यवस्था कर दो, मेरा बिस्तरा दीवान पर लगा दो.’

मुझे समझते देर नहीं लगी कि तरुण की बहनों की कोई इज्जत नहीं है और मां ठहरी गऊ, तो घर की बागडोर मैं ने संभाल ली. घर के बड़ेबूढ़ों और दामादों को इतना ज्यादा मानसम्मान दिया, उन की हर जरूरतसुविधा का ऐसा ध्यान रखा कि सब मेरे गुण गाने लगे. मैं फिरकनी सी घूम रही थी. हर बात में दुलहन, बड़ी बहू या भाभीजी की राय ली जाती और वह मैं थी.

सब को खाना खिलाने के बाद ही मैं खाना खाने बैठती. तरुण भी किसी न किसी बहाने से पुरुषों की पंगत से बच निकलता. स्त्रियां सभी भरपेट खा कर छत पर धूप सेंकनेलोटने पहुंच जातीं. तरुण की नानी, जो सीढि़यां नहीं चढ़ पाती थीं, भी नीम की सींक से दांत खोदते पिछवाड़े धूप में जा बैठतीं. तब मैं और तरुण चौके में अंगारभरे चूल्हे के पास अपने पाटले बिछाते और थाली परोसते.

आदत जो पड़ गई है एक ही थाली में खाने की, नहीं छोड़ पाए. जितने अंगार चूल्हे में भरे पड़े थे उस से ज्यादा मेरे सीने में धधक रहे थे. आंसू से बुझें तो कैसे? तरुण मनाते हुए अपने हाथ से मुझे कौर खिला रहे थे कि उस की भांजी अचानक आ गई चौके में गुड़ लेने…लिए बगैर ही भागी ताली बजाते हुए, ‘तरुण मामा को तो देखो, बड़ी मामीजी को अपने हाथ से रोटी खिला रहे हैं. मामीजी जैसे बच्ची हों. बच्ची हैं क्या?’

तरुण फुरती से दौड़ा उस के पीछे, तब तक तो खबर फैल चुकी थी. मैं कुछ देर तो चौके में बैठी रह गई. जब छत पर पहुंची तो औरतों की नजरों में स्पष्ट हिकारत भाव देखा और तो और, उस रोज से नानी की नजरें बदली सी लगीं. मैं सावधान हो गई.

ज्योंज्यों शादी की तिथि नजदीक आ रही थी, मेरा जी धकधक कर रहा था. तरुण का सहज उत्साहित होना मुझे अखर रहा था. इसीलिए तरुण को मेहंदी लगाती बहनों के पास जा बैठी. मगर तरुण अपने में ही मगन बहन से बात कर रहा था, ‘पुष्पा, पंजे और चेहरे के जले दागों पर भी हलके से हाथ फेर दे मेहंदी का, छिप जाएंगे.’

सुन कर मैं रोक न पाई खुद को, ‘‘तरुण, ये दाग न छिपेंगे, न इन पर कोई दूसरा रंग चढ़ेगा. आग के दाग हैं ये.’’

सन्नाटा छा गया हौल में. मुझे राजीव आज बेहद याद आए. कैसी निरापदता होती है उन के साथ, तरुण को देखो…तो वह दूर बड़ी दूर नजर आता है और राजीव, हर पल उस के संग. आज मैं सचमुच उन्हें याद करने लगी.

आखिरकार बरात प्रस्थान का दिन आ गया, मेरे लिए कयामत की घड़ी थी. जैसे ही तरुण के सेहरा बंधा, वह अपने नातेरिश्तेदारों से घिर गया. उसे छूना तो दूर, उस के करीब तक मैं नहीं पहुंच पाई. मुझे अपनी औकात समझ में आने लगी.

असल औकात अन्य औरतों ने बरात के वापस आते ही समझा दी. उन बहन-बुआ के एकएक शब्द में व्यंग्य छिपा था-‘‘भाभीजी, आज से आप को हम लोगों के साथ हौल में ही सोना पड़ेगा. तरुण के कमरे का सारा पुराना सामान हटा कर विराज के साथ आया नया पलंग सजाना होगा, ताजे फूलों से.’’

छुरियां सी चलीं दिल पर. लेकिन दिखावे के लिए बड़ी हिम्मत दिखाई मैं ने भी. बराबरी से हंसीठिठोली करते हुए तरुण और विराज का कमरा सजवाया. लेकिन आधीरात के बाद जब कमरे का दरवाजा खट से बंद हुआ. मेरी जान निकल गई, लगा, मेरा पूरा शरीर कान बन गया है. कैसे देखती रहूं मैं अपनी सब से कीमती चीज की चोरी होते हुए. चीख पड़ी, ‘चोर, चोर,चोर.’

गुल हुई सारी बत्तियां जल पड़ीं. रंग में भंग डालने का मेरा उपक्रम पूर्ण हुआ. शादी वाला घर, दानदहेज के संग घर की हर औरत आभूषणों से लदी हुई. ऐसे मालदार घरों में ही तो चोरलुटेरे घात लगाए बैठे रहते हैं.

मियांबीवी राजी : क्यों करें रिश्तेदार दखलअंदाजी – भाग 2

‘‘धत्त तेरे की. इस कहानी में तो कोई थ्रिल नहीं- न कोई विलेन आया और न ही कोई व्हाट नैक्स्ट मोमैंट. इतनी सहजता से हो गया सब? और जो कोई न मानता तो?’’ पूछने के साथ झूमुर का उत्साह कुछ फीका पड़ गया.

‘‘ओहो बिटिया, तू तो अपने दादू के किस्सों में उलझ गई. असली मुद्दे पर आ,’’ दादू झूमुर की नकल उतारते हुए बोले. आखिर उन्होंने बाल धूम में सफेद नहीं किए थे. उन के पास वर्षों का अनुभव तथा पारखी नजर थी. ‘‘तेरे दादू उड़ती चिरैया के पर गिन लेते हैं, समझी?’’ झूमुर की उत्सुकता, उस का अचानक दादूदादी की कहानी में रुचि दिखाना देख दादू भांप गए थे कि झूमुर उन से कुछ कहना चाहती है, ‘‘बात क्या है?’’

शाम ढलने को थी. राधेश्याम फैक्टरी से घर लौट चुके थे. हर तरफ फिर शांति थी. रात के भोजन के समय एक बार फिर ताईजी की पुकार पर सब मेज पर पहुंच गए. इस पूरे परिवार में झूमुर सब से निकट अपने दादू से थी. शुरू से ही उस ने दादू को सब से सरल , समझदार और खुले विचारों का पाया था.

कैसी अजीब बात है कि ऐसे दादू के बेटे, अगली पीढ़ी के होते हुए भी संकीर्ण सोच के वारिस थे. उसे याद है कि छोटे ताऊजी की बेटी, रेणु दीदी, ने अपने कालेज के एक जाट लड़के को पसंद कर लिया था किंतु परिवार का कोई सदस्य नहीं माना था.

उन्हें समाज में कमाई गई अपनी इज्जत और रुतबे की चिंता ज्यादा थी. राधेश्याम के कहने पर आननफानन रेणु की शादी अपनी जाति के एक परिवार में तय कर दी गई थी. हालांकि उस की शादी परिवार की इच्छा से की गई थी, फिर भी आज तक उसे माफ नहीं किया गया था. परिवार में सब ओर उस की बेशर्मी के किस्से बांचे जाते थे. उस ने भी कभी इस परिवार के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.

अगली सुबह झूमुर बगीचे में झूले पर गुमसुम बैठी थी कि वहां दादू पहुंच गए, ‘‘बताई नहीं तूने मुझे असली बात.’’ वे भी झूमुर के साथ झूले पर बैठ गए.

‘‘एक आप ही हो दादू जिस से मैं अपने मन की बात…’’

‘‘जानता हूं. असली बात पर आ, वरना फिर कोई आ धमकेगा और हमारी बात बीच में ही रह जाएगी.’’

‘‘कालेज में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था- रिदम.  अच्छा लड़का है, नौकरी भी बहुत अच्छी लग गई है हैदराबाद में.’’

‘‘समझ गया. तुझे वह लड़का पसंद है. तो दिक्कत क्या है?’’

‘‘वह लड़का हमारे धर्म का नहीं है, ईसाई है.’’

‘‘हूं…’’ कुछ क्षण दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति का ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्म का प्रश्न था. उस पर इन के परिवार की गिनती शहर के जानेमाने रईस, इज्जतदार खानदानों में होती है.

‘‘हम ने अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में दोनों परिवारों को मिलवाया. रिदम के परिवार को कोई एतराज नहीं है. मम्मी को रिदम व उस का परिवार बहुत पसंद आया है. किंतु पापा राजी नहीं हैं. उन की मजबूरी है- परिवार जो रजामंद नहीं होगा.’’

झूमुर की चिंता का कारण वाजिब था, ‘‘मैं ने पापा की काफी खुशामद की, काफी समय से उन्हें मना रही हूं. दादू, यदि रिदम नहीं तो कोई नहीं-यह बात मैं ने पापामम्मी से कह भी दी है.’’ आजकल की पीढ़ी अपनी बात रखने में कोई झिझक, कोई संकोच नहीं दिखाती है. झूमुर ने भी साफतौर से अपने दादू को सब बता दिया.

‘‘तो मामला गंभीर है. देख बिटिया, वैसे तो उम्र के इस पड़ाव में, सबकुछ देख चुकने के बाद मैं यह मानता हूं कि जो कुछ है, यही जीवन है. इसे अच्छे से जियो, खुश रहो, बस. यदि तुझे विश्वास है कि तू उस लड़के के साथ खुश रहेगी तो मैं दूंगा तेरा साथ किंतु तुझे मेरी एक बात माननी होगी-एकदम चुप रहना होगा.’’ दादू की बात मान कर झूमुर ने अपने होंठ सिल लिए. उसे अपने दादू पर पूरा विश्वास था.

दादू ने भी बिना समय गंवाए अपने बेटे बृजलाल से इस विषय में बात की. बृजलाल अचरज में थे कि पिताजी को यह बात किस ने बता दी. ‘‘मुझ से यह बात स्वयं झूमुर ने साझा की है. अब तू यह बता कि परिवार की खुशी के आगे क्या अपनी इकलौती बिटिया की खुशी खोने को तैयार है?’’

‘‘पिताजी, यही तो दुविधा है. मैं झूमुर को उदास भी नहीं देख सकता हूं और अपने परिवार को नाराज भी नहीं कर सकता हूं.’’

बात एक राज की- भाग 1 : एक भयानक योजना

रक्ताभ, रुधिर, लालिमा और सिंदूरी चारों कालेज के कैंपस में बैठ कर गपशप कर रहे थे, तभी शिरा ने आ कर सूचना दी.

‘‘फ्रैंड्स, खुश हो जाओ. कालेज हम लोगों का एनुअल टूर अरेंज कर रहा है

अगले महीने.’’

‘‘अरे वाह, किस ने बताया तु?ो?’’  लालिमा ने पूछा, ‘‘कहां जा रहा है?’’

‘‘नोटिस बोर्ड पर नोटिस लगा है. नौर्थ इंडिया का टूर है. शिमला, कुल्लूमनाली, डलहौजी, धर्मशाला और भी कई जगहें हैं. पूरे 15 दिनों का टूर है,’’ शिरा ने बताया.

‘‘कितने पैसे लगेंगे?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘40 हजार रुपए पर हैड,’’ शिरा ने बताया और बाय कर के चली गई.

‘‘यार, हमारा तो फाइनल ईयर है. हमें तो जाना ही चाहिए. भविष्य में हमें साथ जाने का मौका शायद न मिले,’’ रक्ताभ खुश होता हुआ बोला.

‘‘मैं तो जाऊंगी,’’ लालिमा चहकते हुए बोली.

‘‘मैं भी,’’ सिंदूरी भी उसी लय में बोली.

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगा. मेरा कंजूस बाप फीस के लिए तो बड़ी मुश्किल से पैसे देता है. टूर के लिए तो बिलकुल नहीं देगा,’’ रुधिर कुछ गंभीर किंतु निराश स्वर में बोला.

‘‘ऐसा नहीं है, यार. तेरे पापा का इतना अच्छा बिजनैस है. करोड़ों की फर्म है. कई ट्रस्ट और पार्कों में उन के द्वारा दान में दी गई वस्तुएं लगी हैं. एक बार रिक्वैस्ट कर के तो देख. बेटे की खुशी से बढ़ कर एक पिता के लिए और कुछ नहीं होता,’’ रक्ताभ रुधिर को सम?ाते हुआ बोला.

‘‘अगर रुधिर नहीं जाएगा तो मैं भी नहीं जाऊंगी,’’ रुधिर की क्लोज फ्रैंड सिंदूरी बोली.

‘‘सिंदूरी नहीं गई तो मेरे घर वाले मु?ो भी नहीं जाने देंगे. क्योंकि मेरे घर वाले किसी और पर विश्वास नहीं करते,’’ लालिमा बोली.

‘‘लो, यह लो. यह तो पूरा प्लान ही खत्म हो गया,’’ रक्ताभ निराशाभरे स्वर में बोला.

‘‘क्या रुधिर के लिए चंदा इकट्ठा नहीं कर सकते?’’ सिंदूरी ने प्रश्न किया.

‘‘हम सब साधारण घरों से हैं. 40 हजार रुपए के अलावा 10 हजार रुपए खर्चे के लिए चाहिए. मतलब 50 हजार रुपए. इतना पैसा भी निकालना हमारे घर वालों के लिए मुश्किल होगा,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘हां, यह बात तो सही है,’’ लालिमा ने सहमति व्यक्त की.

‘‘टूर अगले महीने की 25 तारीख को जाएगा. आज तो 3 ही तारीख है. अभी डेढ़ महीने से ज्यादा समय है. कल मिल कर सोचते हैं क्या करना है,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘नहीं, जो सोचना है आज ही सोचना है. बैठो और बैठ कर सोचो,’’ रुधिर बोला, ‘‘मेरे पापा से पैसे कैसे निकलवाए जाएं.’’

‘‘उन्होंने शायद बहुत मुश्किलों से यह पैसा कमाया है और शायद यह चाहते हों कि तु?ो पैसों की सही कीमत पता चले. इसलिए तु?ो पैसे देने की आनाकानी करते हों,’’ रक्ताभ ने अपने विचार रखे.

‘‘कारण कुछ भी हो, अभी टूर के लिए पैसे कैसे जमा किए जाएं, यह सोचो,’’ रुधिर सामान्य होता हुआ बोला.

‘‘क्या सोचूं? किसी का मर्डर करूं? किसी का किडनैप कर फिरौती मांगूं?’’ रक्ताभ ?ां?ालाता हुआ बोला.

‘‘किडनैप? वाह, क्या बढि़या आइडिया है. हम किडनैप ही करेंगे,’’ रुधिर खुशी से उछलते हुए बोला.

‘‘किडनैप? अरे बाप रे,’’ लालिमा डर कर आश्चर्य से बोली.

‘‘किस का किडनैप करोगे, रुधिर? देखो, कोई गलत कदम मत उठाना वरना सारी उम्र पछताना पड़ेगा,’’ सिंदूरी भी विरोध करते हुए बोली.

 

‘‘अरे, किसी दूसरे का नहीं, मेरा किडनैप, तुम सब मिल कर मेरा किडनैप करोगे और मेरे बाप से फिरौती मांगोगे. कम से कम लोकलाज की खातिर वे फिरौती तो देंगे ही,’’ रुधिर अपनी योजना बताते हुए बोला.

‘‘और अगर पुलिस को बता दिया तो हम सब अंदर जाएंगे,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘मेरी मां ऐसा नहीं करने देंगी,’’ रुधिर ने कहा.

‘‘लेकिन पुलिस को सूचना दे दी तो? तब क्या होगा?’’ रक्ताभ ने संशय जाहिर किया.

‘‘चलो, हम सब बैठते हैं और एक फूलप्रूफ प्लान बनाते हैं,’’ रुधिर सभी को बैठाते हुए बोला.

‘‘नहीं रुधिर, यह गलत है,’’ सिंदूरी ने एक बार फिर विरोध किया.

‘‘क्या सही क्या गलत? एक फिल्म के गाने की लाइन है ‘जहां सच न चले वहां ?ाठ सही, जहां हक न मिले वहां लूट सही… मैं अपना हक ही तो ले रहा हूं,’’ रुधिर बोला.

‘‘चल ठीक है. अपना प्लान बता,’’ रक्ताभ बात को समाप्त करने के दृष्टिकोण से बोला, ‘‘हमारी योजना में सब से बड़ी बाधा पुलिस ही रहेगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ रुधिर ने पूछा.

‘‘वह ऐसे कि कालेज में हम चारों का ही ग्रुप है. यदि किसी एक को अचानक कुछ होता है तो बाकी के 3 शक के दायरे में आएंगे ही न,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘इस का समाधान खोज लिया है मैं ने. प्लान शुरू होने के 3-4 दिनों से पहले से मैं घर से कालेज के लिए निकलूंगा जरूर, मगर मैं कालेज में आऊंगा नहीं. कालेज रिकौर्ड से यह साफ हो जाएगा कि मैं कालेज आ ही नहीं रहा हूं, बल्कि यह भी साबित होगा कि मैं किसी तीसरे के साथ हूं,’’ रुधिर ने अपनी योजना बतानी प्रारंभ की.

‘‘तो तू रहेगा कहां? किसी को तो दिखाई देगा न?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं किसी को भी दिखाई नहीं दूंगा क्योंकि मैं घर से निकल कर पास के प्लौट पर बने गैराज में छिप जाऊंगा. जब से पापा ने नई कार ली है तब से गैराज में पुरानी गाड़ी ही खड़ी रहती है. मेरी साइकिल भी वहां पर आसानी से घुस जाएगी. कालेज छूटने के समय मैं वापस घर पहुंच जाऊंगा. मां अकसर घर के अंदर ही रहती हैं, इसलिए उन्हें कुछ मालूम नहीं पड़ेगा और तुम लोग भी शक के दायरे से बाहर ही रहोगे,’’ रुधिर ने अपनी योजना का पहला दृश्य सामने रखा.

‘‘चलो, यहां तक तो ठीक है पर किडनैपिंग होगी कैसे? और किडनैपिंग के बाद तु?ो रखेंगे कहां?’’ सिंदूरी ने उत्सुकता से प्रश्न किया.

‘‘जो भी दिन किडनैपिंग के लिए निश्चित किया जाएगा उस दिन मैं कालेज के नाम पर निकल कर शहर के दूसरे छोर पर बने रैस्टोरैंट में पहुंच जाऊंगा. वहां पर मैं अपनी साइकिल रख कर लगभग आधा किलोमीटर पैदल जाऊंगा. इतने बड़े शहर में मु?ो कोई पहचानेगा, इस बात की संभावना कम ही है. वहां से रक्ताभ मु?ो अपनी बाइक से 20 किलोमीटर दूर मेरे फार्महाउस पर छोड़ आएगा. पुलिस सब जगह ढूंढे़गी मगर मुझे मेरे ही घर में नहीं ढूंढे़गी.’’ रुधिर ने आगे कहा.

‘‘पर वहां तो तुम्हारे बरसों पुराने चौकीदार रामू अंकल हैं न?’’ रक्ताभ ने कहा.

‘‘हां, हैं तो सही. वे बहुत ही सीधे और अनपढ़ हैं. उन्हें तो लैंडलाइन से डायल करना भी नहीं आता. मैं जाते ही फोन को डेड कर दूंगा. मेरा विचार है एक या ज्यादा से ज्यादा 2 दिनों में ही अपना प्लान कंपलीट हो जाएगा,’’ रुधिर ने आशा जताई.

‘‘वह सब तो ठीक है. फिरौती की रकम कब, कहां और कितनी मांगनी है?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘हमारी आवश्यकता तो सिर्फ 40 हजार रुपए ही है,’’ लालिमा बोली.

‘‘अरे, नाक कटवाओगे क्या? इतनी रकम तो लोग कुत्तेबिल्ली का किडनैप करने के भी नहीं मांगते हैं. तुम ऐसा करना 5 लाख रुपए मांग लेना,’’ रुधिर रक्ताभ को निर्देश देता हुआ बोला.

‘‘5 लाख रुपए? यह तो बहुत अधिक हो जाएगा. क्या करेंगे हम इतने रुपयों का?’’ रक्ताभ का मुंह आश्चर्य से खुल गया.

‘‘देखो, जैसी कि रीत है, मांगने वाले को उतने पैसे तो मिलते नहीं हैं जितने वह चाहता है. कुछ मोलभाव अवश्य होता है. ऐसी स्थिति में तुम 2 लाख रुपए पर डील पक्की कर लेना,’’ रुधिर ने सम?ाया.

‘‘2 लाख रुपए भी ज्यादा हैं. क्या करेंगे हम इतने पैसों का?’’ लालिमा कुछ चिंतित स्वर में बोली.

गुड गर्ल: ससुराल में तान्या के साथ क्या हुआ – भाग 1

कई पीढ़ियों के बाद माहेश्वरी खानदान में रवि और कंचन की सब से छोटी संतान के रूप में बेटी का जन्म हुआ था. वे दोनों फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि रवि और कंचन की बहुत इच्छा थी कि वे भी कन्यादान करें क्योंकि पिछले कई पीढ़ियों से उन का परिवार इस सुख से वंचित था.

आज 2 बेटों के जन्म के लगभग 7-8 सालों बाद फिर से उन के आंगन में किलकारियां गूंजी थीं और वह भी बिटिया की.

बिटिया का नाम तान्या रखा गया. तान्या यानी जो परिवार को जोड़ कर रखे. अव्वल तो कई पीढ़ियों के बाद घर में बेटी का आगमन हुआ था, दूसरे तान्या की बोली एवं व्यवहार में इतना मिठास एवं अपनापन घुला हुआ था कि वह घर के सभी सदस्यों को प्राणों से भी अधिक प्रिय थी.

सभी उसे हाथोहाथ उठाए रखते. यदि घर में कभी उस के दोनों बड़े भाई झूठमूठ ही सही जरा सी भी उसे आंख भी दिखा दें या सताएं तो फिर पूछो मत, उस के दादादादी और खासकर उस के प्यारे पापा रण क्षेत्र में तान्या के साथ तुरंत खड़े हो जाते.

दोनों भाई उस की चोटी खींच कर उसे प्यार से चिढ़ाते कि जब से तू आई है, हमें तो कोई पूछने वाला ही नहीं है.

जिस प्रकार एक नवजात पक्षी अपने घोंसले में निडरता से चहचहाते रहता है, उसे यह तनिक भी भय नहीं होता कि उस के कलरव को सुन कर कोई दुष्ट शिकारी पक्षी उन्हें अपना ग्रास बना लेगा. वह अपने मातापिता के सुरक्षित संसार में एक डाली से दूसरी डाली पर निश्चिंत हो कर उड़ता और फुदकता रहता है. तान्या भी इसी तरह अपने नन्हे पंख फैलाए पूरे घर में ही नहीं अड़ोसपड़ोस में भी तितली की तरह अपनी स्नेहिल मुसकान बिखेरती उड़ती रहती थी. सब को सम्मान देना और हरेक जरूरतमंद की मदद करना उस का स्वभाव था.

समय के पंखों पर सवार तान्या धीरेधीरे किशोरावस्था के शिखर पर पहुंच गई, लेकिन उस का स्वभाव अभी भी वैसा ही था बिलकुल  निश्छल, सहज और सरल. किसी अनजान से भी वह इतने प्यार से मिलती कि कुछ ही क्षणों में वह उन के दिलों में उतर जाती. भोलीभाली तान्या को किसी भी व्यक्ति में कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी.

पूरे मोहल्ले में गुड गर्ल के नाम से मशहूर सब लोग उस की तारीफ करते नहीं थकते थे और अपनी बेटियों को भी उसी की तरह गुड गर्ल बनाना चाहते थे.

हालांकि तान्या की मां कंचनजी काफी प्रगतिशील महिला थीं, लेकिन थीं तो वे भी अन्य मांओं की तरह एक आम मां ही, जिन का हृदय अपने बच्चों के लिए सदा धड़कता रहता था. उन्हें पता था कि लडकियों के लिए घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया घर के सुरक्षित वातावरण की दुनिया से बिलकुल अलग होती है.

बड़ी हो रही तान्या के लिए वह अकसर चिंतित हो उठतीं कि उसे भी इस निर्मम समाज, जिस में स्त्री को दोयम दरजे की नागरिकता प्राप्त है, बेईमानी और भेदभाव के मूल्यों का सामना करना पड़ेगा.

एक दिन मौका निकाल कर बड़ी होती तान्या को बङे प्यार से समझाते हुए वे बोलीं,”बेटा, यह समाज लड़की को सिर्फ गुड गर्ल के रूप में जरूर देखना चाहता है लेकिन अकसर मौका मिलने पर उन्हें गुड गर्ल में सिर्फ केवल एक लङकी ही दिखाई देती है जो अनुचित को अनुचित जानते हुए भी उस का विरोध न करे और खुश रहने का मुखौटा ओढ़े रहे. यह समाज हम स्त्रियों से ऐसी ही अपेक्षा रखता है.”

तान्या बोलती,”ओह… इतने सारे अनरियलिस्टिक फीचर्स?”

तब कंचनजी फिर समझातीं, “हां, पर एक बात और, आज का समय पहले की तरह घर में बंद रहने का भी नहीं है. तुम्हें भी घर के बाहर अनेक जगह जाना पड़ेगा, लेकिन अपने आंखकान सदैव खुले रखना.”

बिजली कहीं गिरी असर कहीं और हुआ- भाग 1: कौन थी खुशबू

अखबार में छपी एक खबर की वजह से एक ही दिन में जैसे खुशबू की सारी दुनिया ही बदल गई. अपनों के बीच जैसे खुशबू एकाएक बेगानी हो गई.

देखने में तो अब भी सबकुछ पहले जैसा ही दिखता था, लेकिन नजरों के साथसाथ दिलों में भी कहीं फर्क  आ गया था. मम्मी के स्पर्श से भी खुशबू इस फर्क को महसूस कर सकती थी. मम्मी के स्पर्श में वैसे अब एक संकोच और दुविधा थी.

खुशबू के वजूद पर ही जैसे एक सवालिया निशान लग गया था. मगर सवाल यह भी था कि खुशबू का कुसूर क्या था? उस  के जन्म के समय कहां पर क्या हुआ था, किस ने क्या बेईमानी की थी उसे क्या मालूम.

अखबार में छपी खबर ने 7 वर्षीय खुशबू को उस के अपने ही घर में अजनबी जैसा बना दिया था. बाहर के एक नर्सिंगहोम के स्कैंडल को ले कर भी इस प्राइवेट नर्सिंगहोम को पुलिस ने सील कर के उस की संचालिका और नर्सिंगहोम में काम करने वाली कुछ नर्सों को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने यह सारी काररवाई उस नर्सिंगहोम में बच्चे को जन्म देने वाली एक महिला की शिकायत पर की थी. शिकायत करने वाली महिला का आरोप था कि नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को बदल दिया गया, महिला के अनुसार उस ने नर्सिंगहोम में  जिस बच्चे को जन्म दिया था वह एक लड़का था. मगर उस के बदले में उसे एक लड़की मिली थी.

शिकायत करने वाली महिला ने बच्चे को बदले जाने के संबंध में नर्सिंगहोम की 2 नर्सों पर अपना शक जाहिर किया था.

महिला की शिकायत पर पुलिस ने काररवाई करते हुए दोनों नर्सों को अपनी हिरासत में ले कर जब कड़ाई से पूछताछ की तो एक बहुत बड़ा और सनसनीखेज स्कैंडल सामने आया. स्कैंडल  में नर्सिंगहोम को जाली डाक्टरी सर्टिफिकेट के साथ चलाने वाली उस की मालकिन भी शामिल थी. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की तफतीश से खुलासा हुआ कि 16 वर्ष पहले अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही नर्सिंगहोम लोगों की आंखों में धूल झोंक रहा था. वहां न केवल गैरकानूनी तरीके से कुंआरी मां बनने वाली लड़कियों के गर्भपात किए जाने थे बल्कि बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को भी बच्चा मोटी रकम में बेचा जाता था.

यहां डिलिवरी कराने वाली कई युवतियों के बच्चों को भी गुपचुप बदल दिया था. इस काम के बदले में भी एक खूब मोटी रकम बसूल की जाती थी.

नर्सिंगहोम की संचालिका और बाकी स्टाफ से पूछताछ करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि इस की कोई गिनती या रिकौर्ड नहीं था कि नर्सिंगहोम में कितनी युवतियों के शिशुओं को बदला गया. बेटे की चाह रखने वाले कितने लोगों को उन के यहां बेटी होने की सूरत में किसी दूसरे का बेटा मोटी रकम बसूल कर दे दिया गया था. इस का भी कोई रिकौर्ड नहीं था. 7 वर्ष पहले खुशबू ने भी पुलिस के द्वारा सील किए गए इसी नर्सिंगहोम में जन्म लिया था.

खुशबू की दोनों बड़ी बहनों ने तो सरकारी अस्पताल में जन्म लिया था. इस के लिए घर की माली हालात की मजबूरी थी. खुशबू के पापा रमाकांत अपनी पहली दोनों बेटियों के जन्म के समय किसी प्राइवेट नर्सिंगहोम का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

मगर खुशबू के जन्म के समय उस के पापा रमाकांत के हाथ में थोड़े पैसे थे अगर नहीं भी होते तो वे उधार ले कर भी किसी नर्सिंगहोम का खर्चा उठाते क्योंकि ऐसा खुशबू की मम्मी शारदा भी चाहती थीं.

2 बेटियों की मां बन चुकीं शारदा के लिए तीसरा बच्चा बड़ा माने रखता था और वे कोई भी रिस्क नहीं लेते हुए पूरी एहतियात से काम लेना चाहती थीं.

वास्तव में तीसरे बच्चे के जन्म के समय शारदा बेटे की चाहत और कल्पनाओं से सराबोर थी.

बेटे की चाहत में शारदा ने पंडित रामकुमार तिवारी को पकड़ा था. उन्होंने ही दोनों को वृंदावन जाने को कहा था. आश्रम का पता दिया था. वहां के पहुंचे हुए स्वामी को फोन कर दिया था. दोनों ने कई हजार रुपयों की भेंट दी थी.

रामकुमार तिवारी दावे से कह रहे थे कि शारदा के गर्भ में मौजूद उस का तीसरा बच्चा एक लड़का ही होगा. लिंग निर्धारण टैस्ट चूंकि गैरकानूनी था, इसलिए कोई भी टैस्ट लेबोरट्री अलट्रासाउंड करने के उपरांत लिखित रूप से यह गारंटी देने को तैयार नहीं थी कि शारदा के गर्भ में मौजूद बच्चा एक लड़का है जुबानी तौर पर शारदा से यही कहा गया कि उस की गर्भ में मौजूद तीसरा बच्चा एक लड़का ही.

मगर एक बेटे की मां बनने की शारदा की सारी उम्मीदों पर तब कुठाराघात हुआ जबउसे बताया गया कि उस का तीसरा बच्चा भी लड़की है.

शारदा का तो जैसे दिल ही टूट गया. रामकुमार तिवारी पंडित और अन्य ज्योतिषियों की सारी बातें गलत साबित हुई थीं. अल्ट्रासाउंड करने वाली लैबोरटरी की जबानी कही बात भी गलत निकली. रामकुमार तिवारी फिर भी कह रहे थे कि यह कोई चमत्कार है. उन का कहा गलत हो ही नहीं सकता. लड़की होने पर भी वे क्व20 हजार  झटक गए थे.

शारदा को ही नहीं, तीसरी बेटी के आने से रमाकांत को भी सदमा लगा था. बेटे की चाहत में चौथी संतान के खयाल से भी उन दोनों ने तोबा कर ली.

तीसरी बेटी खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा काफी दिनों तक बु झीबु झी रही थीं. पूजापाठ और उपवासों पर से जैसे उन का विश्वास ही डगमगा गया. रामकुमार तिवारी ने आना बंद नहीं किया पर अब वे दक्षिणा नहीं मांगते पर चौथे बच्चे के लड़के होने की गारंटी देने लगे थे. वे अभी भी गलती मानने को तैयार न थे.

खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा ने बु झे मन के कारण उस के प्रति 1-2 दिन बेरुखी दिखाई थी, मगर जब शारदा की ममता ने जोर मारा तो अपनी मायूसियों को भूल खुशबू को स्वीकार कर लिया.

खुशबू को स्वीकार करने के बाद एक मां के रूप में शारदा ने न तो उसे अपनी पहली दोनों बेटियों से कम प्यार दिया और न ही उस की कभी उपेक्षा ही की.

खुशबू के जन्म के बाद शारदा को उस की मायूसी से निकालने में रमाकांत का भी काफी योगदान था. उन्होंने शारदा को सांत्वना देते हुए कहा था कि आज के युग में बेटियां किसी भी लिहाज से बेटों से कम नहीं. हमें जो भी मिला है उसे हमें खुशीखुशी स्वीकार करना चाहिए.

खुशबू को स्वीकार कर लिया गया था. वह छोटी होने की वजह से मांबाप की लाड़ली बन गई थी.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि उस नर्सिंगहोम की काली करतूतों का पुलिस के द्वारा भंडाफोड़ कर दिया गया जहां 7  वर्ष पहले खुशबू का भी जन्म हुआ था.

नर्सिंगहोम की करतूतों का भंडा फोड़ होने के बाद बीता हुआ कल जैसे एक सवाल की शक्ल में सामने आ कर खड़ा हो गया था. पंडित रामकुमार तिवारी फिर बारबार आने लगे थे. इस नर्सिंगहोम की करतूतों की चर्चा वे जोरशोर से करते थे.

शारदा दुविधा और संदेह में घिर गई थी. वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि क्या 7 वर्र्ष पहले नर्सिंगहोम में उस के साथ भी कोई धोखा ही हुआ था? क्या पंडितों और ज्योतिषियों की कही बातें वास्तव में सही थीं? लैबोरटरी वालों  ने भी कोई गलतबयानी बच्चे के लिंग को ले कर नहीं की थी. दूसरों महिलाओं की तरह नर्सिंगहोम में उस के साथ भी तो कोईर् धोखा नहीं हो गया था?

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