धोखाधड़ी: वर्क फ्रोम होम लालच दे कर लूट

सोशल मीडिया ने शहरों और गांवदेहात के नौजवानों के फर्क को मिटा दिया है. वे भले ही कुछ और न करें, पर मोबाइल फोन पर उंगलियां चलाने में माहिर हो गए हैं. जब से कोरोना ने पूरी धरती पर कहर ढहाया है, तब से नौजवान पीढ़ी की एक ही बड़ी समस्या रह गई है कि अच्छी नौकरी मिलती नहीं और मोबाइल का खर्चा कैसे निकालें? मतलब बहुत से नौजवान अब बेरोजगार हो गए हैं और किसी न किसी तरह अपना खर्चा निकालने के लिए वे कोई भी काम करने के लिए उतावले होने लगे हैं.

इसी बात का फायदा सोशल मीडिया पर उठाया जा रहा है और ‘वर्क फ्रोम होम’ के लुभावने इश्तिहार दे कर लोगों खासकर नौजवानों को उल्लू बनाया जा रहा है. धोखाधड़ी करने वाले बड़ी और नामचीन कंपनियों के नाम का इस्तेमाल कर के लोगों को चूना लगा रहे हैं.हाल ही में दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के एक इंटरनैशनल गिरोह का भंडाफोड़ किया था.

इस गिरोह ने वर्क फ्रोम होम का फर्जीवाड़ा कर के तकरीबन 11,000 लोगों को ठगा था.पुलिस ने बताया कि एक महिला, जो पार्टटाइम नौकरी की तलाश कर रही थी, के साथ एक लाख, 18 हजार रुपए की ठगी हुई थी. उस महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि कुछ अज्ञात स्कैमर्स ने अमेजन कंपनी में औनलाइन पार्टटाइम नौकरी देने की आड़ में उस से यह धोखाधड़ी की थी.

इस पूरे मामले पर एक बड़े पुलिस अफसर ने नौकरी ढूंढ़ने वालों को आगाह करते हुए कहा कि ये लोग वैबसाइटों को इस तरह से डिजाइन करते हैं कि वे एकदम असली अमेजन वैबसाइट की तरह दिखती हैं. इस तरह की फर्जी वैबसाइटों को इंस्टाग्राम, फेसबुक और दूसरी सोशल मीडिया वैबसाइटों पर बड़े पैमाने पर प्रमोट भी किया जाता है.

यहां तक कि स्कैम करने वाले पीडि़तों को अच्छे पैसे कमाने वाले लोगों के नकली स्क्रीनशौट भी दिखाते हैं.ऐसा कहा जा रहा है कि इन साइबर ठगों ने लोगों को चूना लगाने के लिए एक टैलीग्राम आईडी का इस्तेमाल किया था, जो चीन के बीजिंग से चलाई जा रही थी. जिस ह्वाट्सएप नंबर से लोगों को अमेजन कंपनी की साइट में पैसा लगाने के लिए कहा गया था, वह भी भारत के बाहर का नंबर था.एक और मामला देखते हैं.

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले हरीन बंसल एक दिन सोशल मीडिया चला रहे थे, जहां उन्हें एक वर्क फ्रोम होम का औप्शन दिखा. इस में घर बैठे रोजाना कमाई करने का औफर दिया जा रहा था.हरीन बंसल ने इस बारे में और ज्यादा जानकारी लेने के चक्कर में दिए गए लिंक पर क्लिक किया, तो उन्हें सीधे एक ह्वाट्सएप नंबर पर जाने का निर्देश दिया गया.

इस के बाद एक अनजान आदमी की तरफ से एक रजिस्टर्ड वैबसाइट पर क्लिक कर के रजिस्ट्रेशन पूरा करने की बात कही गई और कुछ टास्क को पूरा करने को कहा गया. फिर कुछ पैसे जमा कर के कमीशन हासिल करने की बात कही गई.यह एक तगड़ा स्कैम था, जहां स्कैम करने वालों ने हरीन बंसल का भरोसा जीतने के लिए पहली बार में पैसे वापस कर दिए. हालांकि जब दूसरी बार में पीडि़त ने 9,32,000 रुपए जमा किए, तो पैसे वापस नहीं हुए.

अब कुछ ऐसे दावों पर बात करते हैं, जो आप की जेब खाली कर सकते हैं, जैसे ‘3 वीडियो लाइक करो, बदले में 150 रुपए मिलेंगे’, ‘आप का सीवी सिलैक्ट हो गया है, दिन के 5,000 मिलेंगे, यहां क्लिक करें’. ऐसे मैसेज घोटाले का हिस्सा होते हैं, जहां लोगों को फंसा कर वर्क फ्रोम होम की घुट्टी पिलाई जाती है और लूट लिया जाता है.ऐसा ही एक और घोटाला इन दिनों चल पड़ा है ‘फिल्मों की रेटिंग कर के पैसे कमाने का’, जैसे ‘फिल्में रेट कीजिए, दिन के टोटल 16,700 रुपए मिलेंगे.

आप को 5,000 रुपए का कमीशन भी मिलेगा. आप को बस हमें 10,000 रुपए देने होंगे, फिर तो आप को हर महीने लखपति बनने से कोई रोक ही नहीं सकता.’‘इंडियन ऐक्सप्रैस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ये ठग लोगों को खासकर ऐसी महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं, जो वर्क फ्रोम होम में नौकरी खोज रही हैं. दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम में ऐसे 3 मामले दर्ज किए गए थे. शिकायत करने वालों का कहना था कि उन्होंने सोशल मीडिया पर वर्क फ्रोम होम के इश्तिहार देखे.

जब उन्होंने इश्तिहार में दिए गए नंबरों पर बात की तो उन्हें एक टैलीग्राम ग्रुप में जोड़ दिया गया.इस के बाद उन लोगों को बताया गया कि उन्हें दिन में 30 टास्क करने होंगे और हर रिव्यू पर उन्हें कमीशन दिया जाएगा. फिर उन्हें एक वैबसाइट का लिंक दिया गया, जहां पर उन्हें रजिस्टर कर के फिल्मों को रेट करना था.शिकायतकर्ता ने बताया कि उन्होंने रेटिंग करना शुरू किया और शुरुआत में उन्हें पैसे भी मिल रहे थे, लेकिन इस के बाद उन से कहा गया कि वे 10,000 रुपए इनवैस्ट करें. इस इनवैस्टमैंट के बाद उन्हें काम के पैसे तो मिल रहे थे, पर 10,000 रुपए वापस नहीं दिए गए.

गुरुग्राम, हरियाणा की रहने वाली मेहा सेठी ने ‘इंडियन ऐक्सप्रैस’ को बताया, ‘‘मैं पैसों का इंतजार कर रही थी, पर वे अपना पैसा वापस पाने के लिए और ज्यादा पैसे लगाने का दबाव बनाने लगे. मैं ने दिसंबर से फरवरी के बीच तकरीबन 28 लाख रुपए गंवा दिए.’’दरअसल, यह जो वर्क फ्रोम होम का झांसा है, उन मीठी नशीली गोलियों की तरह होता है, जिन का स्वाद जबान पर चढ़ते ही उन की आदत पड़ जाती है. जब शुरुआत में ही पैसा बैंक खाते में आने लगता है, तो लोग ठगों की गिरफ्त में आ जाते हैं.

इस के बाद जब ठग पैसे मांगते हैं, तो दिल को यह तसल्ली दे कर हम उन्हें पैसे दे देते हैं कि इन्हीं से तो यह कमाई हुई, फिर डर काहे का.लेकिन हम यह भूल जाते हैं असली कंपनियां काम के बदले आप को पैसा देती हैं, पैसा मांगती नहीं हैं. तो अगर कोई आप को किसी भी तरह की नौकरी दे रहा है और बदले में पैसा भी मांग रहा है, तो समझ लीजिए कि मामला गड़बड़ है.यह बात भी कभी मत भूलिए कि अगर कोई कंपनी आप को घर बैठे चार लाइक बटन दबाने के बदले दिन के काफी पैसे देने का दावा कर रही है, तो समझ लेना कि आप को चूना लगेगा.इस तरह की ठगी से बचने का एक तरीका है कि लालची मत बनें और ऐसे फर्जी इश्तिहारों से दूर रहें. याद रखें, आप का एक गलत क्लिक आप को कंगाल बना सकता है.

सनकियों की साजिश : हत्या की अनोखी कहानी

ब्रिटेन के पूर्वी क्षेत्र लिंकनशायर स्थित उपनगरीय इलाके स्पालडिंग में एक पौश कालोनी है डा. वसन एवेन्यू. इसी कालोनी में स्थित एक 2 मंजिले मकान से 15 अप्रैल, 2016 की दोपहर को मांबेटी की खून से लथपथ लाशें मिलने से कालोनी में सनसनी फैल गई थी. लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही थी कि किस ने मांबेटी की हत्या कर दी?

उन्हें तब और हैरानी हुई, जब पुलिस ने मकान से एक किशोर प्रेमी जोड़े को हिरासत में लिया. पुलिस को पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि मरने वाली महिला 49 वर्षीया एलिजाबेथ एडवर्ट उर्फ लिज और उन की 13 साल की बेटी केटी थी, जो एक स्कूल में खाना परोसती थी. मांबेटी इस मकान में लंबे समय से रह रही थीं.

लिज के पति पीटर एडवर्ट उस से अलग रहते थे. उन की विवाहिता बड़ी बेटी मैरी काट्टिंघम भी दूसरे इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. 15 अप्रैल, 2016 को जब पुलिस उस 2 मंजिला मकान का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुई तो निचले तल पर एक किशोर जोड़ा गद्दे पर आराम फरमाते मिला. पुलिस ने उस से पूछा, ‘‘एलिजाबेथ कहां है?’’

लड़के के साथ मौजूद लड़की ने बगैर किसी हड़बड़ाहट और डर के हाथ से सीढि़यों की तरफ इशारा करते हुए धीमे से कहा, ‘‘ऊपर.’’

पुलिस ने लड़के से पूछा, ‘‘उन के साथ क्या हुआ है?’’

लड़के ने भी लड़की की तरह शांत भाव से कहा, ‘‘ऊपर जा कर देख क्यों नहीं लेते?’’

पुलिस को उन का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा. कुछ पुलिसकर्मी सीढि़यों के जरिए ऊपरी मंजिल पर पहुंचे तो वहां एलिजाबेथ उर्फ लिज और उन की बेटी केटी की लाश उन के कमरों में पड़ी मिलीं. लिज के शरीर पर तेजधार हथियार के गहरे निशान थे, जो गले के अतिरिक्त शरीर के दूसरे ऊपरी हिस्से पर भी थे.

इसी तरह के जख्म केटी के भी शरीर पर थे. ऐसा लग रहा था, जैसे उन पर हत्यारे ने चाकू से ताबड़तोड़ वार किए हों.

पुलिस ने मकान में मौजूद लड़की और लड़के को हिरासत में ले लिया था. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने मां बेटी की हत्या का अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया था. वह पुलिस से इतने इत्मीनान से बात कर रहे थे, जैसे इन्होंने कोई अपराध किया ही न हो. उन्होंने अपने बारे में बताया कि उन का इरादा नींद की ज्यादा गोलियां खा कर आत्महत्या करने का था.

पुलिस ने उन के पास से एक डायरी बरामद की थी, जिस में उन्होंने एक स्यूसाइड नोट भी लिखा था. उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि खुदकुशी के बाद उन की लाशों को जला कर उस की राख उन के पसंदीदा जगहों पर बिखेर दी जाए.

लिखे गए कुछ अन्य वाक्यों से लग रहा था कि उन्हें न तो जीवन से प्यार था और न ही भविष्य की कोई योजना थी. न जीने की तमन्ना थी और न ही कोई महत्त्वाकांक्षा. दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया था कि उन की हत्या धारदार चाकू से गला रेत कर की गई थी.

पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अदालत में उन के बयान कराए तो लड़के ने तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन लड़की हत्या में शामिल होने से इनकार कर रही थी. वारदात के समय उन की उम्र महज 14 साल थी. पुलिस के सामने लड़की की भूमिका काफी अस्पष्ट होने से तहकीकात करना एक चुनौती बन गई थी.

पुलिस को उन पर जघन्य हत्या का दोष लगाने के साथसाथ उन के नाबालिग होने का भी खयाल रखना था. उन के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन की पहचान भी पुलिस छिपा रही थी. जांच करने वाली टीम ने पाया था कि दोनों एक किस्म के मनोरोगी और जीवन से हताश प्रेमीयुगल थे. उन की हरकतें जितनी बचकानी थीं, उतने ही वे इस उम्र में ही सब कुछ हासिल करने की तमन्ना रखते थे.

इस मनोविज्ञान की गुत्थी के साथ दोहरे हत्याकांड को सुलझाने में जासूसी और फोरैंसिक जांचकर्ताओं की खास टीम के अतिरिक्त मनोचिकित्सक तक की मदद ली गई. पुलिस ने छानबीन में पाया कि लिज और आरोपी लड़की के बीव किसी बात को ले कर कोई पुराना विवाद चल रहा था.

उसी विवाद ने उस लड़की को इस कदर सनकी बना दिया था कि उस ने मांबेटी की हत्या की साजिश रच डाली. उस ने अपने साथ पढ़ने वाले प्रेमी को हत्या के लिए राजी कर लिया. इस संबंध में कुल 12 विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में 7 पुरुष और 5 महिलाओं द्वारा जुटाए गए तथ्यों और तर्कों की मदद से मामले की तह तक पहुंचना संभव हो सका था.

पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट और अदालत में दिए गए उन के बयानों के आधार पर लड़के को 8 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में ले कर ट्रायल पर भेज दिया गया था. बाद में पूरी तहकीकात की जिम्मेदारी मुख्य जांचकर्ता इंसपेक्टर मार्टिन हैल्वे को सौंप दी गई थी. जांच जब आगे बढ़ी तो नाबालिग लडकी को भी आरोपी बना दिया गया. इस के बाद लड़की के बयान के आधार पर हत्याओं की गुत्थी परतदरपरत उधड़ने लगी.

यह जान कर सभी को हैरानी हुई कि हत्याएं बहुत ही साधारण अपमान का बदला लेने के लिए की गई थीं. इस से पहले हम उन परिस्थितियों पर गौर करना चाहेंगे, जिन की वजह से हत्यारा लडका और उस की प्रेमिका कू्रर बनी.

बात सितंबर, 2013 की है. हायर सैकेंडरी स्कूल की एक 12 वर्षीया छात्रा एक दिन अपनी कक्षा में काफी आक्रामक थी. उस ने स्कूल के अनुशासन को नजरअंदाज करते हुए आक्रोश में एक कुरसी इस कदर धकेली कि उस से एक सहपाठी छात्र को जोर की टक्कर लग गई. इस से लड़का तमतमाया हुआ उस पर उबल पड़ा.

लड़की साथियों के बीच तमाशा बन गई. स्थिति को भांप कर उस ने झट से सौरी बोल दिया. लड़का भी दूसरे सहपाठियों के समझानेबुझाने पर शांत हो गया. बात आईगई हो गई, लेकिन इस घटना ने दोनों के बीच आकर्षण के बीज अंकुरित कर दिए. बाद में उन के बीच दोस्ती हो गई, जो जल्द ही एकदूसरे पर अथाह विश्वास करने वाली गहराई तक पहुंच गई.

इसी बीच वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे, जिस का अहसास उन्हें जल्द हो गया. वे साथसाथ घूमनेफिरने लगे. हालांकि लड़का जितना गंभीर और शांत स्वभाव का था, लड़की उतनी ही चुलबुली और अपनी मनमर्जी की मालकिन थी. अपनी बातें मनवाना और इच्छा पूरी करना वह भलीभांति जानती थी. आगे बढ़े कदम को पीछे हटाना तो जैसे उस ने सीखा ही नहीं था. यही कारण था कि जल्द ही उस ने लड़के को अपने रंग में रंग लिया.

उन के बीच प्रेम पनपा तो वे पढ़ाई के प्रति असहज और लापरवाह हो गए. स्कूल परिसर में उन की अनुशासनहीनता की कई शिकायतें आईं. जिस ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, वे उस से उलझ पडे़. लड़का भी अपनी प्रेमिका के प्रभाव में आ कर आक्रामक तेवर वाला बन गया.

यही वजह थी कि एक दिन लड़का अनियंत्रित हिंसक प्रवृत्ति दिखाने और अनुशासनहीनता के आरोप में स्कूल से निकाल दिया गया. यह बात लड़की के दिल में चुभ गई, क्योंकि उसे लड़के से मिलनेजुलने में परेशानी होने लगी थी.

लड़की 6 साल की उम्र से ही अपने परिवार के लिए सिरदर्द बनी रहती थी. तब उस के असामान्य व्यवहार को देखते हुए उस का मनोचिकित्सक से इलाज भी कराया गया था. डाक्टर ने उस की अच्छी देखभाल की सलाह दी थी.

हत्याकांड की घटना से ठीक एक साल पहले भी उसे मानसिक उपचार के लिए स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में भरती कराया गया था. कुछ महीने तक उस का उपचार चला. उस में सुधार होने के बावजूद मनोचिकित्सक ने उस की मनोस्थिति के स्तर को 10 में से 2 अंक दे कर चिंता का विषय बताया था. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस की अच्छी देखभाल और विशेषज्ञ की मदद लेने की सलाह दी गई. उस के पिता वेल्डर थे. वह ड्रग लेता था और इस कारण वह पत्नी और 2 साल की बेटी को छोड़ कर कहीं चला गया था. बड़ी होने पर वही लड़की अकेलेपन की भावना से भर गई थी, जिस से उस में आक्रामक तेवर आ गए थे.

लड़के की परवरिश भी असामान्य तरीके से हुई थी और उस का बचपन काफी अशांत किस्म का था. उस की मां की आकस्मिक मौत हो गई थी. तब वह मात्र 5 साल का था और उस ने अपने पिता को घर में रहते हुए शायद ही कभी भरी नजरों से देखा हो. उस के पिता हमेशा काम के सिलसिले में यात्राओं पर रहते थे, जिस से उस का बचपन भी एकाकीपन में गुजरा था. अदालत में केस चला तो वकीलों ने भी इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि के 2 मुख्य कारणों की ओर संकेत किए.

पहले कारण में सामाजिक और पारिवारिक संस्कार के साथ मानवीयता को पोषित करने वाले मनोवैज्ञानिक विकास की समस्या को रेखांकित किया. जबकि दूसरा कारण नाबालिग लड़की के मन में गहराई तक बैठ चुकी डिनर लेडी लिज के साथ पुराने विवाद से संबंधित था.

पूछताछ में आरोपी लड़की ने बताया था कि एक बार उस की लिज के साथ जबरदस्त बहस हो गई थी. लड़की का व्यवहार और स्कूल में अनुशासनहीनता लिज को पसंद नहीं थी. उस ने उसे कड़ी फटकार लगाई थी. तभी लड़की ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया था और उस ने लिज से हर कीमत पर बदला लेने की ठान ली थी.

जांच और हत्यारे द्वारा अदालत में दिए गए बयान के मुताबिक प्रेमी युगल ने हत्या की योजना मैकडोनाल्ड के एक आउटलेट में बैठ कर 11 अप्रैल, 2016 को बनाई थी. उसी दिन उन्होंने हत्या के बाद खुदकुशी करने की शपथ भी ली थी. योजना को अंजाम देने के लिए दोनों 13 अप्रैल की रात को लिज के घर के एक अलग हिस्से में चोर की भांति जा घुसे थे.

लड़के ने पीठ पर टांगने वाले बैग में एक टीशर्ट में लपेट कर तेज धार के 4 चाकू रख लिए थे. उन में 8 इंच के 2 चाकुओं में काला हत्था लगा था, जबकि 2 मध्यम आकार के चाकू थे. लड़की ने बताया था कि उस का प्रेमी जब लिज की हत्या को अंजाम दे रहा था, तब अपने बचाव के लिए वह काफी संघर्ष कर रही थी. वह शोर मचा रही थी.

लड़के ने उस की आवाज को रोकने के लिए चाकू से गले की नली काट दी ताकि दूसरे कमरे में सो रही उस की बेटी तक उस की आवाज न पहुंचे. लिज की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की बेटी केटी को भी मौत की नींद सुला दिया था. विशेषज्ञों ने इसे उस की अपरिपक्व मानसिकता और मन में दबे आक्रोश को दर्शाने वाला मनोविज्ञान बताया था.

उस के बारे में जांच करने वालों ने पाया था कि उसे बचपन से ही किसी भी तरह की रोकटोक पसंद नहीं थी. वह हमेशा अपनी मनमरजी की मालकिन बनी रहना चाहती थी. वह लिज से बदला लेना चाहती थी. इस के लिए उस ने अपने सहपाठी को उकसाया. जांच के बाद लड़की भी हत्या की आरोपी करार दे दी गई थी. जबकि पक्ष के वकीलों द्वारा उसे विक्षिप्त और सनकी साबित करने की भी कोशिश की गई थी.

इस के बावजूद फोरैंसिक मनोचिकित्सक के एक सलाहकार डा. फिलिप जोसेफ ने अदालत में तर्क दिया था कि उस के दावे के मुताबिक वे मानसिक विकार से पीडि़त नहीं थे. अगर वे अपने मन में जहरीले रिश्ते, भावना और विचार नहीं रखते तो बहुत संभव था कि ये हत्याएं नहीं होतीं. पर कुटिल मन वाले 2 व्यक्ति एक साथ होते हैं, तब ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है.

अदालत ने विभिन्न बयानों के आधार पर पाया था कि लड़की और लड़का सितंबर, 2013 से गाहेबगाहे मिलतेजुलते रहे, लेकिन मई 2015 तक उन के संबंधों में मधुरता नहीं बन पाई थी. इस दौरान वे बातबात पर उलझते भी रहते थे, जो एक तरह से नाबालिगों में होता है. उन के व्यवहार में हमेशा आक्रोश बना रहता था. लड़की ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा था कि उसी ने लड़के को हत्या के लिए प्रेरित किया था.

उस ने यह भी माना था कि लड़के के साथ उस ने केवल एक बार यौनसंबंध बनाया था, वह भी हत्या के बाद. उस का कहना था कि हत्या की रात वह उस से बहुत प्रभावित हुई थी, क्योंकि उस ने उस की इच्छा पूरी कर दी थी. न्यायाधीशों की बेंच ने पाया था कि दोनों के संबंधों में एकदूसरे के प्रति विश्वास की भावना नवंबर, 2015 से मार्च 2016 के बीच पनपी थी.

यह भी स्पष्ट हुआ था कि हत्या में उस की भूमिका पूरी तरह से बदले की भावना से ग्रसित थी. तमाम गवाहों के बयान, तहकीकात के सभी जांच बिंदुओं, तर्कों, तथ्यों और आरोपियों के बयानों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को नाटिंघम क्राउन कोर्ट में ढाई घंटे तक लंबी बहस चली. कोर्ट में न्यायाधीशों की बेंच द्वारा इसे बहुत ही असाधारण मामला बताया गया.

न्यायाधीश जस्टिस हड्डन ने प्रेमी युगल को हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कैद की सजा सुनाई थी. वे 9 नवंबर, 2016 को 20 साल के लिए जेल भेज दिए गए. फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इस मामले में कई पहलू एकदूसरे से अलग थे और यह असाधारण ढंग से एक सुनियोजित साजिश के तहत की गई हत्या थी. दोनों हत्यारे सजा के वक्त भले ही नाबालिग थे, लेकिन जब वे जेल से छूटेंगे, तब उन की उम्र 35 साल हो जाएगी.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.  नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है. लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया. फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे. उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वक्त आगे बढ़ रहा था पर नरगिस के गलीमोहल्ले वालों में नरगिस और रशीद के संबंधों की बात फैल गई थी. इकबाल चूंकि रिक्शा चला कर देर रात को लौटता था इसलिए उसे भाभी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. एक दिन एक पड़ोसी ने उस से कहा, ‘‘इकबाल, तुम अपनी भाभी पर नजर रखो. कहीं किसी दिन वह बच्चों को छोड़ कर भाग गई तो बच्चे तुम्हारे गले पड़ जाएंगे.’’ यह सुन कर इकबाल चिंतित हो उठा. उस ने उस पड़ोसी से पूछताछ की तो उसे भाभी की सच्चाई पता चली. यह बात इकबाल को पसंद नहीं आई. उस ने नरगिस को समझाने की कोशिश की तो नरगिस ने घूर कर उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भाई की मौत के बाद तुम ने कभी जानने की कोशिश की कि मैं किस हाल में रहती हूं, बल्कि घर की जिम्मेदारी उठाने के बजाय तुम ने मुझे अकेला छोड़ दिया. बेहतर यही है कि तुम मेरी जिंदगी में टांग मत अड़ाओ.’’

इकबाल के पास इस का कोई जवाब नहीं था. अब नरगिस के मन में एक ही ख्वाहिश थी और वह यह थी कि रशीद की रखैल से अब बीवी कैसे बने. वह रशीद को बताती कि उस के मोहल्ले वाले और देवर उस के खिलाफ हो रहे हैं. तब रशीद उसे समझाता कि जमाना तो कुछ न कुछ कहता ही है. हमें जमाने से लड़ना थोड़े ही है. रशीद की बातों से नरगिस को समझ में आने लगा था कि वह उसे सिर्फ इस्तेमाल कर रहा है. वह रिश्ते के प्रति गंभीर नहीं है और न ही उस का उस से निकाह करने का ही कोई इरादा है. इधर रशीद सोच रहा था कि वह नरगिस से मोहब्बत करता है और बदले में उस का खर्चा उठाता है. इतना ही बहुत है. दोनों के बीच की कशमकश रिश्ते में खटास ला रही थी. अब तो नरगिस उसे शिकोहाबाद जाने से भी रोकती थी.

इसी बीच रशीद की बीवी को भनक लग गई कि उस के शौहर ने फिरोजाबाद में भी कोई औरत रखी हुई है. यह जानकारी मिलते ही सलमा परेशान हो गई और एक दिन जब रशीद घर आया तो उस ने साफ कह दिया कि वह अपने मायके चली जाएगी और मांबाप को सब कुछ बता देगी. सलमा की इस धमकी से रशीद परेशान हो गया. वह दो नावों पर सवार था. अब उसे डूबने से डर लगने लगा. नरगिस इतनी करीब आ चुकी थी कि उसे छोड़ना भी मुश्किल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इधर नरगिस ने भी तय कर लिया कि वह सलमा को रशीद की जिंदगी से निकाल देगी. एक दिन उस ने रशीद से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहुत हो गया. अब तुम्हें फैसला करना ही होगा.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ रशीद चौंकते हुए बोला.

‘‘आखिर मैं कब तक तुम्हारी रखैल बन कर रहूंगी. सलमा को तलाक दो और मुझ से निकाह करो.’’ नरगिस अपनी बातों पर जोर देते हुए बोली. रशीद को नरगिस की यह बात इतनी बुरी लगी कि उस ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘आगे से कभी सलमा को तलाक देने की बात मुंह से मत निकालना.’’

नरगिस को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘तुम ने मुझे मारने की हिम्मत की. अब मैं भी बताती हूं कि या तो मुझ से निकाह करो वरना मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

रशीद नरगिस की धमकी से डर गया कि कहीं यह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज न करा दे. वह किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था. इसलिए उस ने अपना व्यवहार सामान्य कर के उसे समझाया. पर मन ही मन उस ने उस से छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. वह इस का उपाय ढूंढने लगा. रशीद ने अब नरगिस से मिलनाजुलना कम कर दिया. वह दुकान बंद कर के किराए के कमरे पर आने के बजाए शिकोहाबाद स्थित अपने घर चला जाता था. नरगिस के पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देता था. नरगिस रशीद को खोना नहीं चाहता थी क्योंकि वह घर चलाने के पैसे जो देता रहता था.

नरगिस से अवैध संबंधों की बात रशीद की ससुराल तक पहुंच गई थी. अब रशीद को बदनामी से भी डर लगने लगा. वह समझ गया कि इस की वजह से समाज और रिश्तेदारी में उस की बेइज्जती हो सकती है इसलिए नरगिस नाम के कांटे को जीवन से जल्द निकालने का उस ने फैसला ले लिया. इस के बाद किसी न किसी बात को ले कर उस का नरगिस से झगड़ा होने लगा. तनाव की वजह से उस का धंधा भी चौपट हो चुका था. जिस मकान को उस ने नरगिस को किराए पर दिलाया था, वहां के आसपड़ोस वालों को भी दोनों के झगड़े की जानकारी हो चुकी थी, पर कोई भी उन के मामले में दखल नहीं देता था. जिस मकान में नरगिस रहती थी, वह अधबना था. मकान मालिक वहां नहीं रहता था.

12 दिसंबर, 2016 को दुकान बंद कर के रशीद नरगिस के पास कमरे पर पहुंचा. खाना खाने के बाद नरगिस ने पूछा, ‘‘तुम ने फैसला कर लिया?’’ ‘‘कैसा फैसला? देखो नरगिस, मैं तुम जैसी औरत के लिए अपने बीवीबच्चों को हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ वह दृढ़ता से बोला. ‘‘मुझ जैसी औरत….आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? पहले तो बड़ीबड़ी बातें करते थे. इस का मतलब यह हुआ कि अब तक तुम केवल मेरा इस्तेमाल कर रहे थे. ठीक है, अब देखना मैं क्या करती हूं.’’ कह कर जैसे ही वह उठने लगी, रशीद ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया और झट से उस के सीने पर बैठ गया. वह उस का गला तब तक दबाए रहा जब तक वह मर नहीं गई. कुछ ही देर में नरगिस की लाश सामने थी और जुनून उतर चुका था. पुलिस का डर उसे सताने लगा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह उसे अधबने कमरे में ले गया और उस पर वहां मौजूद प्लास्टिक की बोरियां डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह वहां से फरार हो गया.

कुछ देर बाद गश्ती सिपाही वहां से गुजर रहे थे तो मकान से धुआं निकलता देख वे मकान के अंदर चले गए. तब मामला दूसरा ही सामने आया.

रशीद से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 28 दिसंबर, 2016 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेखौफ बदमाश : चार घंटे में दो को मार डाला

उत्तर-पूर्वी जिला में रविवार रात चार घंटे के भीतर ब्रहमपुरी और भजनपुरा में हुई गैंगवार में दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि गोली लगने से एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. गैंगवार की सूचना पर पुलिस में हड़कंप मच गया. आननफानन में पहुंचे आला अधिकारी और पुलिस की कई टीमें देर रात तक जांच में जुटी रहीं. पुलिस का दावा है कि दोनों जगहों पर 50 से अधिक गोलियां चलीं, इनमें से 30 से 35 गोलियां मृतकों को लगी हैं.

ब्रह्मपुरी गली संख्या-7 के बाहर रात लगभग 9.30 बजे दो बाइक पर सवार होकर आए चार बदमाशों ने सड़क किनारे खड़े होकर बातचीत कर रहे मो. वाजिद और मो. फैज पर ताबड़तोड़ 20 से अधिक गोलियां चलाईं. हमले में वाजिद की मौत हो गई, जबकि मो. फैज की हालत गंभीर बनी हुई है. वाजिद को आठ और फैज को चार गोलियां लगीं. वाजिद के खिलाफ कई मामले दर्ज थे.

सूचना पर पहुंची पुलिस मौके पर छानबीन कर रही थी कि इसी बीच देर रात 1.30 बजे भजनपुरा में गोलियां चलने की सूचना मिली. मौके पर पहुंची पुलिस को पता चला कि दो बाइक पर आए चार बदमाशों ने 24 वर्षीय आरिफ हुसैन रजा को गोली मार दी, इससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.

सूत्रों के अनुसार, हमलावरों ने 30 से अधिक गोलियां चलाईं, जिनमें से लगभग 25 गोलियां आरिफ को लगीं. हालांकि, पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद आरिफ को 15 गोलियां लगने की बात कही है. मौके से गोलियों के 26 खोखे मिले हैं. हत्या का मुकदमा दर्ज कर भजनपुरा पुलिस छानबीन कर रही है.

मौत के बाद भी गोली मारी

पुलिस को जांच में पता चला कि हमलावरों में से एक ने हेलमेट लगा रखा था. हमलावरों ने जब आरिफ पर गोलियां चलाई तो वह जान बचाने के लिए घर की तरफ भागा. मगर गोली लगने के कारण वह कुछ दूर जाकर ही गिर पड़ा. बताया गया कि मौत के बाद भी हमलावर आरिफ पर गोलियां चलाते रहे. उसके सीने, सिर, पेट, पैर, हाथ और कमर आदि पर गोलियां लगी हैं.

दोनों जगह हमलावरों की संख्या चार थी

पुलिस गैंगवार और रंजिश सहित विभिन्न कोणों से मामले की जांच कर रही है. फिलहाल हमलावर पुलिस पकड़ से दूर हैं. दोनों ही वारदातों में दो बाइक पर सवार चार बदमाशों ने गोलियां चलाई हैं. गैंगवार के कारण पूरे जिले की पुलिस को चौकन्ना रहने के लिए कहा गया है.

फोन आने पर घर से निकला

पुलिस के अनुसार, आरिफ परिवार के साथ मौजपुर में रहता था. उसके परिवार में माता-पिता, भाई और दो बहनें हैं. वह पत्रचार से स्नातक करने के साथ ही पिता के कारोबार में भी मदद करता था. रविवार देर रात उसके मोबाइल पर एक कॉल आयी और वह बातचीत करते हुए घर से बाहर निकल गया. आरिफ का कोई आपराधिक रिकॉर्ड अभी तक पुलिस को नहीं मिला है.

बेटी के गुनाहगार बन गए मां बाप

इसी साल 17 मई की सुबह के करीब साढ़े 7, पौने 8 बजे का समय रहा होगा, जब जयपुर की जगदंबा विहार कालोनी में सिविल इंजीनियर अमित नायर के घर के बाहर एक होंडा अमेज कार आ कर रुकी. कार से 4 लोग उतरे, जिन में एक महिला भी थी. उन में से एक आदमी कार के पास खड़ा हो गया तो बाकी महिला समेत 3 लोग घर के सामने जा कर खड़े हो गए.

उन में से अधेड़ उम्र के एक आदमी ने आगे बढ़ कर घर की डोरबेल बजाई. डोरबेल की आवाज सुन कर अमित नायर की पत्नी ममता ने गेट खोला. गेट के बाहर पापामम्मी को देख कर वह खुशी से फूली नहीं समाई. वह शिकायत भरे लहजे में पापा से लिपट कर बोली, ‘‘पापा, बेटीदामाद की याद नहीं आई क्या, जो इतने दिनों बाद आज आए हो?’’

ममता जिस आदमी से लिपटी थी, वह उस के पिता थे. उन का नाम जीवनराम था. उन्होंने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. आखिर हम तेरे मांबाप हैं. तूने भले ही अपनी मनमरजी कर ली है, लेकिन हम तुझे कैसे भूल सकते हैं.’’

‘‘पापा, आप लोग बाहर ही खड़े रहेंगे या घर के अंदर भी आएंगे?’’ ममता ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, आप क्यों चुपचाप खड़ी हैं?’’

‘‘बेटी, आज हम सब तुम से ही मिलने आए हैं.’’ मां भगवानी देवी ने कहा.

‘‘पापा, ये आप के साथ कौन लोग हैं, मैं इन्हें नहीं जानती?’’ ममता ने शंका भरे लहजे में पूछा.

जीवनराम ने ममता को भरोसा दिलाया, ‘‘बेटी, ये हमारे जानकार हैं. हम साथसाथ कहीं जा रहे थे. सोचा, बेटी का घर रास्ते में है तो उस से मिलते चलें. इसी बहाने आपसी गिलेशिकवे भी दूर हो जाएंगे.’’

‘‘आओ, अंदर आ जाओ.’’ ममता ने मम्मीपापा व उन के साथ आए लोगों से कहा, ‘‘आप सब चायनाश्ता कर के जाना.’’

ममता के कहने पर जीवनराम, उन की पत्नी भगवानी देवी और उन के साथ आया वह आदमी ममता के साथ घर के अंदर जा कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठ गए.

हालांकि सुबह का समय था, लेकिन सूरज की तपन से गरमी बढ़ने लगी थी. इसलिए ममता ने ड्राइंगरूम का एसी औन कर दिया. इस के बाद फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और 3 गिलासों में पानी डाला. तीनों गिलास एक ट्रे में रख कर वह ड्राइंगरूम में पहुंची और मम्मीपापा व उन के साथ आए व्यक्ति को एकएक गिलास दे दिया. तीनों ने पानी पिया.

पानी पीने के बाद जीवनराम ने पूछा, ‘‘बेटी, दामादजी नजर नहीं आ रहे, वह कहां हैं?’’

‘‘पापा, वह अभी सो रहे हैं. वह थोड़ा देर से उठते हैं, लेकिन आप आए हैं तो मैं उन्हें उठाए देती हूं.’’ ममता ने हंसते हुए कहा.

‘‘ठीक है बेटी, दामादजी को जगा दो, उन से भी गिलेशिकवे दूर कर लें.’’ जीवनराम ने लंबी सांस ले कर कहा.

पापा के कहने पर ममता बैडरूम में गई और पति अमित को जगा कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आए हैं, आपसी गिलेशिकवे दूर करना चाहते हैं.’’

ममता के पापामम्मी के आने की बात सुन कर अमित हैरान रह गया. वह जल्दी से उठा और वाशबेसिन पर जा कर मुंह धोया. तौलिए से मुंह पोंछते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा और ममता के मम्मीपापा को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर के बोला, ‘‘पापाजी, आज आप को हमारी याद कैसे आ गई?’’

‘‘बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ जीवनराम ने कहा, ‘‘तुम से शादी करने के बाद ममता तो हमें भूल ही गई. उसे हमारे साथ भेज दो तो कुछ दिन हमारे साथ रह लेगी. वैसे भी वह प्रैग्नेंट है, इसलिए उसे आराम की जरूरत है.’’

अमित के जवाब देने से पहले ही ममता ने पिता की बात काट कर कहा, ‘‘पापा, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मुझे यहां किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है.’’

अमित ने ममता की बात का समर्थन किया, ‘‘पापाजी, ममता आप के साथ नहीं जाना चाहती, इस का कहीं जाने का मन नहीं है.’’

ममता और अमित की बातें सुन कर जीवनराम गुस्से से उबल पड़े, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने दिया. उन्होंने अपने साथ आए युवक को इशारा किया. इशारा मिलते ही उस ने पिस्तौल निकाली और अमित पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगा. कई गोलियां लगने से अमित ड्राइंगरूम में ही फर्श पर गिर पड़ा. उस के सीने, गरदन और पैर में 4 गोलियां लगीं.

अमित के गिरते ही ममता चीखने लगी. जीवनराम और उस की पत्नी ममता के बाल पकड़ कर घसीटते हुए जबरन अपने साथ ले जाने लगे, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज और ममता की चीखें सुन कर अंदर से अमित की मां रमा देवी आ गई थीं. कुछ पड़ोसी भी आ गए थे. कार के पास खड़े व्यक्ति ने गोलियों की आवाज सुन कर कार स्टार्ट कर दी थी. जीवनराम, भगवानी देवी और उन के साथ आया युवक बाहर खड़ी कार में बैठ कर फरार हो गए.

दिनदहाड़े घर में घुस कर अमित नायर की हत्या किए जाने से कालोनी में हड़कंप मच गया. आसपास के लोग अमित के मकान पर एकत्र हो गए. पुलिस को सूचना दी गई तो पुलिस ने वायरलैस पर सूचना दे कर नाकेबंदी करा दी. पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पूछताछ में जो बातें सामने आईं, उस से साफ हो गया कि यह औनर किलिंग का मामला था.

अमित की हत्या उस के सासससुर ने अपने साथ लाए भाड़े के शूटर से कराई थी. मातापिता ने ही अपनी बेटी की मांग उजाड़ दी थी.

आमतौर पर औनर किलिंग के ज्यादातर मामले हरियाणा के जाट समुदाय में सामने आए हैं. राजस्थान में हरियाणा से सटे इलाकों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन राजधानी जयपुर में औनर किलिंग की संभवत: इस पहली घटना ने पुलिस अधिकारियों को झकझोर दिया था.

रमा देवी ने उसी दिन थाना करणी विहार में अपने बेटे अमित के सासससुर व 2 अन्य लोगों के खिलाफ घर पर आ कर अमित की गोली मार कर हत्या करने व बहू ममता को जबरन ले जाने का प्रयास करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला भारतीय दंड विधान की धारा 453, 302 व 120बी के अंतर्गत दर्ज किया.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार, पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता, पुलिस उपायुक्त (अपराध) विकास पाठक के निर्देशन में कई पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त जयपुर (पश्चिम) रतन सिंह, सहायक पुलिस आयुक्त वैशालीनगर रामअवतार सोनी, करणी विहार थानाप्रभारी महावीर सिंह, चौमूं थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, हरमाड़ा थानाप्रभारी लखन सिंह खटाना, भांकरोटा थानाप्रभारी हेमेंद्र कुमार शर्मा, सेज थानाप्रभारी गयासुद्दीन, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, वैशालीनगर थानाप्रभारी भोपाल सिंह भाटी और यातायात पुलिस इंसपेक्टर निहाल सिंह को शामिल किया गया.

इन के अलावा एफएसएल, एमओबी शाखा व साइबर सेल की सहायता से अमित नायर हत्याकांड की जांच शुरू कर के अभियुक्तों की तलाश शुरू कर दी गई. दूसरे दिन पुलिस ने शूटर का स्कैच बनवा कर जारी कर दिया.

पुलिस को अमित के सासससुर और रिश्तेदारों के नामपते पता चल गए थे. अमित के ससुर जीवनराम जाट मूलरूप से सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा के रहने वाले थे. फिलहाल वह जयपुर के वैशालीनगर में झारखंड मोड़ स्थित गणेश कालोनी में रह रहे थे.

पुलिस को शूटरों का पता जीवनराम से ही मिल सकता था, साथ ही अमित की हत्या का कारण भी उन के पकड़ में आने के बाद ही पता चल सकता था. इसलिए पुलिस ने जीवनराम को गिरफ्तार करने के लिए जयपुर, सीकर, लोसल, नागौर जिले में डीडवाना, कुचामन, लाडनूं, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, दिल्ली व हरियाणा में स्थित उस के घर वालों तथा रिश्तेदारों के यहां कई जगहों पर दबिश दी.

जांच के दौरान पुलिस को नागौर जिले के डीडवाना कस्बे में वह कार मिल गई, जिस में अमित की हत्या के आरोपी उस के घर आए थे. पुलिस को पता चला कि जीवनराम का बेटा मुकेश डीडवाना में ही रहता है. वह रेलवे में जेईएन है. जांच में पता चला कि अमित की हत्या से पहले और बाद में मुकेश लगातार मातापिता के संपर्क में था.

पुलिस ने अमित की हत्या की साजिश के आरोप में 19 मई को मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश ने पूछताछ में बताया कि अमित की हत्या के बाद मां भगवानी देवी व पिता जीवनराम जयपुर से सीधे डीडवाना आए थे. वे दोनों करीब 10 मिनट उस के पास रुके थे. इस दौरान जीवनराम ने मुकेश को बताया था कि अमित का काम तमाम कर दिया गया है. इस के बाद वे चले गए थे. पुलिस को मुकेश से पूछताछ में इस मामले में कुछ अहम जानकारियां मिलीं. इन जानकारियों के आधार पर पुलिस लगातार अभियुक्तों की तलाश में जुटी रही.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस ने आखिर 24 मई को 4 आरोपियों जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी के अलावा उन के ही गांव मोरडूंगा के रहने वाले भगवानाराम जाट तथा नागौर जिले के मौलासर थाना के गांव कीचक निवासी रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को गिरफ्तार कर लिया.

इन में मोरडूंगा निवासी भगवानाराम जाट पंचायत समिति का पूर्व सदस्य था. रवि उर्फ रविंद्र शेखावत शूटर था. उस ने इस घटना से करीब 6 महीने पहले 3 लाख रुपए में अमित की हत्या की सुपारी ली थी. पुलिस ने जीवनराम को हरियाणा के कैथल, भगवानी देवी और पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को सीकर तथा रवि उर्फ रविंद्र शेखावत को जयपुर से पकड़ा था.

आरोपियों से पूछताछ में पुलिस को अमित की हत्या करने वाले शूटरों का पता चल गया था. पूछताछ में जीवनराम ने पुलिस को बताया था कि भाड़े के 2 शूटरों विनोद गोरा तथा रामदेवलाल ने गोलियां चला कर अमित को मौत की नींद सुलाया था. ये दोनों शूटर भी जीवनराम के साथ ही कार से फरार हो गए थे.

बाद में दोनों शूटर जीवनराम से अलग हो कर गुजरात के शहर सूरत चले गए थे. यह सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस की 2 टीमें शूटरों की तलाश में सूरत गईं, लेकिन तब तक वे दोनों सूरत से मुंबई चले गए थे. जयपुर पुलिस मुंबई पहुंची तो पता चला कि दोनों शूटर गोवा चले गए हैं.

जयपुर पुलिस की टीमें शूटरों का लगातार पीछा कर रही थीं. जयपुर पुलिस के गोवा पहुंचने से पहले ही वे वहां से भी चले गए थे. दोनों शूटरों का पीछा करते हुए जयपुर पुलिस राजस्थान के नागौर आ गई. नागौर जिले के कुचामन सिटी की कृष्णा कालोनी के एक मकान में दोनों शूटरों के होने की सूचना पर पुलिस ने 5 जून को देर रात दबिश दी.

दबिश में विनोद गोरा पकड़ा गया, जबकि रामदेवलाल नहीं मिला. पता चला कि वह कुचामन से उसी दिन विनोद गोरा से अलग हो गया था. लाडनूं निवासी गिरफ्तार शूटर विनोद गोरा ने पुलिस को बताया कि जीवनराम ने अमित को मारने के लिए उसे व रामदेवलाल को 2 लाख रुपए की सुपारी दी थी. वारदात के दौरान विनोद गोरा अमित के घर के बाहर हथियार ले कर खड़ा था, जबकि रामदेवलाल घर के अंदर गया था.

दोनों शूटरों ने तय किया था कि घर के अंदर अगर रामदेवलाल किसी कारण से अमित की हत्या में सफल नहीं हो पाता तो विनोद उस की मदद करेगा. अमित की हत्या के बाद जीवनराम ने दोनों शूटरों को 50 हजार रुपए दिए थे.

गिरफ्तार आरोपियों व अमित की पत्नी ममता से पूछताछ के बाद औनर किलिंग के नाम पर अमित की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह जीवनराम जाट और उस के परिवार की झूठी आनबानशान और इज्जत का दिखावा मात्र थी.

सीकर जिले के थाना लोसल के गांव मोरडूंगा का रहने वाला जीवनराम जाट सेना में नौकरी करता था. वह सेना की 221 मीडियम आर्टिलरी से सन 2000 में रिटायर हुआ था. इस के बाद वह परिवार के साथ जयपुर में रहने लगा था. उस के परिवार में पत्नी भगवानी देवी के अलावा बेटा मुकेश और बेटी ममता थी. सेना से रिटायर होने के बाद वह नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में ड्राइवर हो गया था.

दूसरी ओर अमित नायर के पिता राघवन सोमन मूलरूप से केरल के रहने वाले थे. वह जयपुर में ए श्रेणी के ठेकेदार थे. अमित की मां रमादेवी जयपुर से नर्स के पद से रिटायर हुई थीं. राघवन का करीब ढाई-3 साल पहले निधन हो गया था.

उस समय ममता और अमित के परिवार जयपुर के वैशालीनगर में आसपास रहते थे. दोनों परिवारों में अच्छा परिचय था. जीवनराम का बेटा मुकेश और अमित नायर जयपुर के केंद्रीय विद्यालय संख्या-4 में साथसाथ पढ़ते थे. वहीं दोनों की आपस में दोस्ती हो गई थी. जीवनराम की बेटी ममता जयपुर के ही केंद्रीय विद्यालय संख्या-2 में पढ़ती थी.

बाद में अमित ने जयपुर के ज्योतिराव फुले कालेज से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. ममता ने मोदी इंस्टीट्यूट लक्ष्मणगढ़ से एलएलबी की पढ़ाई की और मुकेश ने पूर्णिमा कालेज से बीटेक किया.

आसपास रहने और केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई करने के दौरान ही अमित का अपने सहपाठी मुकेश की बहन ममता से परिचय हुआ. कालेज स्तर की पढ़ाई के दौरान उन का यह परिचय प्यार में बदल गया. हालांकि दोनों अलगअलग कालेजों में पढ़ते थे, लेकिन प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे.

ममता ने अपने प्यार की भनक घर वालों को नहीं लगने दी. जब ममता और अमित का प्यार परवान चढ़ने लगा तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों अलगअलग जाति से थे. ममता जहां जाट परिवार की बेटी थी, वहीं अमित दक्षिण भारतीय था.

ममता को अच्छी तरह पता था कि उस के घर वाले अमित और उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. जातिसमाज के बंधनों को देखते हुए अमित और ममता ने सन 2011 में आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, लेकिन इस शादी का अपने परिवार वालों को पता नहीं लगने दिया. भले ही उन दोनों ने शादी कर ली थी, लेकिन वे अपनेअपने घरों पर अलगअलग ही रहते थे.

सन 2015 में जब ममता की एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो अमित व ममता ने अपनी शादी परिवार और समाज में जाहिर करने का फैसला कर लिया. एक दिन ममता ने अमित से अपनी शादी की बात अपने मातापिता को बता दी और उन की इच्छा के खिलाफ उसी दिन घर छोड़ कर अमित के साथ रहने चली गई. तब तक अमित का परिवार करणी विहार में जा कर रहने लगा था.

बेटी का इस तरह दूसरी जाति के युवक से शादी करना जीवनराम, उस की पत्नी और बेटे मुकेश को अच्छा नहीं लगा. उन्हें इस बात पर ज्यादा गुस्सा था कि ममता ने बिना बताए शादी कर ली थी. मुकेश इस बात से ज्यादा खफा था कि उस के साथ पढ़ने और पड़ोस में रहने वाले दोस्त अमित ने उस की बहन से ही शादी कर के दोस्ती में दगा किया था.

ममता अपने पति अमित के साथ हंसीखुशी वैवाहिक जीवन गुजारने लगी. अमित प्रौपर्टी व कंस्ट्रक्शन का काम करता था. इस बीच ममता के मातापिता व भाई लगातार उस पर दबाव डालते रहे कि वह अमित से संबंध तोड़ ले. उन्होंने कई बार ममता को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन वे इस में सफल नहीं हुए. अमित की शिकायत पर पुलिस ने वारदात से करीब 8 महीने पहले ममता के मातापिता व भाई पर पाबंदी भी लगा दी थी कि वे अमित के घर न जाएं.

ममता इसी साल जनवरी में गर्भवती हो गई थी. इसी वजह से कुछ महीनों से उस की अपनी मां से बातचीत होती रहती थी. करीब 3 महीने से बीचबीच में ममता के मातापिता उस से मिलने आते रहते थे. इस से अमित व ममता को लगने लगा था कि अब सब ठीक हो गया है. ममता अपने मांबाप के मंसूबों का अंदाजा नहीं लगा पाई थी.

दूसरी तरफ जीवनराम और उस का परिवार अमित नायर को अपना सब से बड़ा दुश्मन मान रहा था. वे उसे रास्ते से हटाने की योजना में लगे हुए थे. जीवनराम ने अपने गांव मोरडूंगा के रहने वाले पुराने दोस्त पूर्व पंचायत समिति सदस्य भगवानाराम जाट को अपनी परेशानी बताई. भगवानाराम ने अमित को ममता के रास्ते से हटाने के लिए जीवनराम को रवि उर्फ रविंद्र शेखावत से मिलवाया.

रवि ने 3 लाख रुपए में अमित की हत्या करने की सुपारी ले ली. योजना के तहत जीवनराम और भगवानाराम ने रवि के साथ मिल अमित की रेकी कर उस की हत्या का मौका तलाशने लगे. इसी बीच जीवनराम और उस के घर वालों ने भगवानाराम के साथ मिल कर भाड़े के 2 अन्य शूटरों रामदेवलाल और विनोद गोरा को 2 लाख रुपए में अमित की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया.

योजनाबद्ध तरीके से जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और किराए के दोनों शूटर रामदेवलाल व विनोद गोरा होंडा अमेज कार आरजे14सीएक्स 0313 से 17 मई की सुबह साढ़े 7 से पौने 8 बजे के बीच जगदंबा विहार में मकान नंबर सी-493 पर बेटीदामाद के घर पहुंचे. वहां एक शूटर विनोद गोरा कार के पास बाहर खड़ा रहा, जबकि जीवनराम, भगवानी देवी और रामदेवलाल घर के अंदर चले गए.

घर के अंदर जीवनराम ने अमित को बुलवाया और ममता को साथ ले जाने की बात कही. लेकिन ममता के इनकार कर देने पर जीवनराम को गुस्सा आ गया. उन्होंने शूटर से अमित पर गोलियां चलवा कर उस की हत्या करा दी. इस के बाद उन्होंने ममता को जबरन ले जाने का प्रयास किया, लेकिन अमित की मां व पड़ोसियों के आ जाने से वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके और कार में बैठ कर भाग गए.

पूछताछ में पता चला कि जीवनराम, उस की पत्नी भगवानी देवी और दोनों शूटर वारदात के बाद जयपुर से निकले तो बगरू के पास दोनों शूटरों को उतार दिया. इस के बाद जीवनराम व उस की पत्नी भगवानी देवी सीधे डीडवाना पहुंचे, जहां वे रेलवे में नौकरी करने वाले अपने बेटे मुकेश से मिले. उन्होंने उसे अमित का काम तमाम करने के बारे में बताया और अपनी कार वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गए.

दोनों डीडवाना से नागौर, फलौदी, रामदेवरा हो कर सूरतगढ़ पहुंचे. सूरतगढ़ से जीवनराम ने पत्नी भगवानी देवी को बस में बैठा कर सीकर भेज दिया. इस के बाद जीवनराम बीकानेर, हिसार हो कर कैथल पहुंच गया.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि व्यापक जांच के बाद अमित हत्याकांड में 7 लोगों की संलिप्तता सामने आई है. इन में से 6 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वारदात में इस्तेमाल कार भी बरामद कर ली गई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस शूटर रामदेवलाल की तलाश कर रही थी.

इस मामले में गिरफ्तार जीवनराम ने पुलिस को बताया कि अमित ने ममता को पहले धर्मबहन बनाया. वह रक्षाबंधन पर उस से राखी भी बंधवाता रहा. इस के बाद अपने प्यार में फांस कर उस से शादी कर ली. उस की शादी का पता चलते ही हम ने अमित को ठिकाने लगाने की ठान ली थी.

वारदात के कुछ दिनों बाद तक ममता के परिवार की सुरक्षा के लिए उस के घर के बाहर पुलिस तैनात रही. ममता की याचिका पर हाईकोर्ट ने भी पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया है कि ममता और उस के घर वालों के अलावा गवाह पड़ोसियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

बहरहाल, अमित की हत्या करवा कर जीवनराम और परिवार ने सीने में सुलग रही आग भले ही ठंडी कर ली हो, लेकिन जातिबिरादरी में शर्मिंदगी की आड़ ले कर ऐसा कृत्य करने वालों को कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं करता. जीवनराम ने बेटी का सुहाग उजाड़ कर भगवानी देवी की ममता का भी गला घोंट दिया. ममता का गर्भस्थ शिशु संभवत: सितंबर में जन्म लेगा तो उस मासूम को पिता का प्यार नहीं मिल पाएगा.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मोनिका की दास्तां

जब औरत अपने प्रेमी से मिलना चाहे तो वह हर बाधा को पार कर सकता है. दिल्ली की मोनिका की 2016 में शाद हुई पर वह पति के सामने प्रेमी के साथ फोन पर बात करती रही और उस के मना करने पर मिलती भी रही. उस के सासससुर का मकान भागीरथी विहार में था और शायद बहू के कारनामों से तंग आ कर परचून की दुकान चलाने वाले ससुर ने मकान बेचना चाहा. मोनिका मकान के मिलने वाले 1 करोड़ रुपए हथियाना चाहती थी और चूंकि ससुर उस से डरते नहीं थे उस ने उन का सफाया करना था.

मोनिका के वाउंसर प्रेमिका ने एक शातिर अपराधी को पकड़ा और दोनों की सहायाता से सासससुर दोनों की हत्या कारवा दी. पति तो प्रेमी से डरता था इसलिए उस को बाद में काबू करना मुश्किल नहीं था. पर जैसा अपराधों के मामलों में होता है, अपराधी फूल प्रूफ प्लान नहीं बना पाते. ज्यादातर अपराधी बेहद कम पढ़ेलिखे होते हैं और उन्हें अपराध पकड़े कैसे जाते हैं, इस की जानकारी कम होती है और बहुत से फ्लू छोड़ते चले जाते हैं.

महीनों की तैयारी के बाद मोनिका ने जो हत्या की उसे पुलिस ने 10 घंटे में सुलटा दिया  जबकि मामला कोई हाई प्रोफाइल नहीं था. मोनिका के सासससुर तो गए ही, वह खुद जेल में न कितने साल रहेगी और पति खुद इधरउधर भटकता रहेगा. जिन प्रेमियों ने प्रेमिका की खातिर जोखिम लिया. वे भी जेलों में सड़ेंगे अगर उन के रिश्तेदार होंगे तो उन्हें वकील मिलेगा क्या एक तरफा फैसले में जेल से जेल जाना होगा.

अपराधी आमतौर पर फंसते इसलिए हैं कि वे सोचते हैं कि पकड़े नहीं जाएंगे जबकि हर ऐसा अपराध जिस में थोड़ा बहुत प्लान किया हो, आसपास के किसी विक्टिम का हो, पकड़े जाने के अवसर बहुत होते हैं, फिल्मों में अक्सर दिखाते हैं कि अपराधी बच निकला जैसा अजय देवगन की फिल्म दृश्य में दिखाया गया है पर उस में मृतक के प्रति किसी की भी सहानुभूति नहीं थी, न सिस्टम की न जनता की. हां हमारे देश में अगर कोई अपराध है जिन में गारंटीड सजा नहीं मिलेगी तो वे हैं धर्म के मामलों में. ङ्क्षहदू अपराधी मुसलिम नागरिकों के खिलाफ जो भी कर लें,

आज कानून ऐसा हो गया हैकि उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा. मोनिका की गलती यह थी कि उस ने अपराध करना था मुसलिम सासससुर ढूंढती. फिर तो उस के हजार समर्थक निकल आते जो कहते कि वह तो खुद लव जेहाद की मारी थी, वह भला हत्यारिन कैसे कही जा सकती है चाहे उस ने 10 खून किए हो.

अब अपराधियों को यह भी ख्याल रखना पड़ेगा कि चप्पेचप्पे पर लगे कैमरे उन की हर गतिविधि को देख रहे हैं रिकार्ड कर रहे हैं. अब पफेन रिकार्ड और कैमरों के सहारे किसी को भी पकडऩा आसान होता जा रहा है. अपराध कम हो रहे हैं इसलिए नहीं कि मंदिर ज्यादा बन रहे हैं बल्कि इसलिए कि कैंमरे ज्यादा लग रहे हैं और ज्यादा कामयाब हो रहे हैं.

पुलिस के लिए सिरदर्द बने नाइजीरिया के अपराधी

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नशीली दवाओं की तस्करी के आरोप में नाइजीरिया के एक नौजवान को गिरफ्तार किया. उस के पास से पौने 2 किलो कोकीन बरामद हुई. इंटरनैशनल बाजार में इस कोकीन की कीमत एक करोड़, 75 लाख रुपए आंकी गई.

पुलिस के मुताबिक, पकड़े गए 32 साला तस्कर का नाम पौल चीनेडू अगवोर उर्फ एमा था. वह ओनिशा, नाइजीरिया का रहने वाला था. वह कई सालों से भारत में रह कर नशीली दवाओं की तस्करी कर रहा था. उस का नैटवर्क देश के कई शहरों में था. वह नशीली दवाओं को बड़ी चालाकी से कभी कपड़ों में, कभी मिठाई के डब्बों में या पेंटिंग के फ्रेम में भर कर एक शहर से दूसरे शहर ले जाता था और वहां दूसरे तस्करों को सप्लाई करता था.

चंडीगढ़ पुलिस ने करोड़ों रुपए के डौलर देने के बहाने लोगों से ठगी करने वाले नाइजीरिया के एक नौजवान इमैनुअल हैरी को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उस के पास से नकली डौलर के 36 पैकेट बरामद किए (असली होने पर ये डौलर 5 करोड़ रुपए के होते).

पुलिस के मुताबिक, हैरी औरत बन कर लोगों को ईमेल भेजता था. उस ईमेल में वह लिखता था कि उसे एक जानलेवा बीमारी है. उस का इस दुनिया में कोई नहीं है. वह मरने से पहले अपनी सारी जायदाद, जो 85 मिलियन डौलर की है, किसी अच्छे शख्स को दान करना चाहती है. जो कोई इस जायदाद को पाना चाहता है, कृपया पूरी डिटेल्स के साथ उस से बात करे.

अगर कोई शख्स इस बात में दिलचस्पी दिखाते हुए ईमेल का जवाब देता, तब उसे दूसरा मेल मिलता. इस में बताया जाता कि रुपए देने के लिए उस का वकील माइकल नैल्सन कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिए भारत पहुंच चुका है. वह सारी जानकारी लेने के बाद जायदाद दे देगा.

अगले कुछ दिनों में हैरी खुद ही माइकल नैल्सन बन कर फोन द्वारा बात कर के ईमेल करने वाले शख्स से डिटेल लेता था. इस के बाद वह कहता था कि इतनी बड़ी रकम को डायरैक्ट किसी बैंक में ट्रांसफर करना मुश्किल है. भारतीय रिजर्व बैंक के जरीए ही भेजना मुमकिन है. इस के लिए भारतीय नियम के मुताबिक वैट टैक्स समेत दूसरे शुल्क चुकाने होंगे.

लोग उस के झांसे में आ कर वैट टैक्स के रूप में रुपए जमा कर देते थे. मोटी रकम लेने के बाद वह उन्हें नकली डौलर थमा देता था.

पुलिस के मुताबिक, इमैनुअल हैरी भारत के कई शहरों के सौ से भी ज्यादा लोगों को करोड़ों रुपए का चूना लगा चुका था.

पुणे, महाराष्ट्र की रहने वाली एक तलाकशुदा औरत किसी ब्रिटेन के बाशिंदे से शादी कर के विदेश जाना चाहती थी. दूसरी शादी के बाद करोड़ों रुपए में खेलने की सोच रखने वाली इस औरत ने सैकंड शादीडौटकौम पर अपना ब्योरा रजिस्टर करा दिया.

इस प्रोफाइल को पढ़ कर रौबर्ट नाम के एक नौजवान ने उस औरत से बात की. उस ने खुद को कनाडा का रहने वाला नागरिक बताया. चैटिंग करते वक्त उस ने औरत को बताया कि वह उसे काफी पसंद है. वह उस के साथ घर बसाना चाहता है.

रौबर्ट ने यह दावा भी किया कि उस के पास 3 लाख, 20 हजार कनेडियन डौलर यानी एक करोड़, 75 लाख रुपए हैं. वह सारे रुपए उसे दे देगा.

यह सुन कर वह औरत खुशी से उछल पड़ी. उसे विदेश जाने के सपने पूरे होते नजर आने लगे. कुछ दिनों की चैटिंग के बाद जब उस नौजवान को यह महसूस हो गया कि वह औरत पूरी तरह से उस पर फिदा है और वह उस के झांसे में आ चुकी है, तब एक दिन उस ने अपनी मां की तबीयत खराब होने और उस के इलाज के लिए 8 लाख रुपए मंगवाए. फिर मलयेशिया एयरपोर्ट पर कस्टम द्वारा रुपए पकड़े जाने की बात कह कर और रुपए मंगवाए.

इस तरह रौबर्ट ने उस औरत से अलगअलग बहाने बना कर के कुल 40 लाख, 59 हजार रुपए ठग लिए और उस के बाद उसे फोन करना बंद कर दिया.

उस औरत ने पुलिस में शिकायत की. पुलिस द्वारा मोबाइल फोन, ईमेल, फेसबुक, बैवसाइट द्वारा खोजबीन करने पर पता चला कि रौबर्ट ब्रिटिश नागरिक नहीं, बल्कि नाइजीरिया का था. उस का असली नाम पौल ओकाफोर था. वह तलाकशुदा, विधवा, विकलांग औरतों को अपने बारे में बड़ीबड़ी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर लेता था. इस के बाद वह उन से किसी न किसी बहाने रुपए ठग लेता था.

पुणे पुलिस ने बेंगलुरु में छापा मार कर उसे एक फ्लैट से गिरफ्तार किया. उस के साथ एक भारतीय औरत को भी गिरफ्तार किया गया. पौल ओकाफोर उर्फ रौबर्ट के मुताबिक, वह औरत उस की पत्नी थी. भारतीय मूल की उस औरत का नाम सुप्रिया एलिजाबेथ उर्फ मोना था.

पौल ओकाफोर के ठगी के काम में उस की यह पत्नी भी मदद करती थी. पुणे पुलिस के मुताबिक, पौल ओकाफोर को इस के पहले भी 43 लाख रुपए की ठगी के एक मामले में गिरफ्तार किया जा चुका था.

देशभर में सैकड़ों लोगों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप में चेन्नई, तमिलनाडु पुलिस ने नाइजीरिया के 2 नागरिकों रीलेंड चुकबुदी उर्फ लुकारा और स्टैलनी रेनसोगा को गिरफ्तार किया. पुलिस ने उन के पास से 5 डाटा कार्ड, 5 पैन ड्राइव, 3 लैपटौप, काफी मात्रा में ब्लैक डौलर बरामद किए.

राजू नाम के एक नौजवान ने नाइजीरिया के 2 लोगों द्वारा ब्लैक डौलर दे कर 44 लाख रुपए ठगे जाने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई. पुलिस ने नाइजीरिया के उन नौजवानों की पहचान के लिए फेसबुक से नाइजीरिया के 2 सौ नागरिकों के फोटो जुटाए. उन्हें राजू को दिखाने के बाद वह एक आरोपी को पहचान गया. पुलिस ने उन्हें उन की मोबाइल लोकेशन से मुंबई में गिरफ्तार कर लिया.

फेसबुक के जरीए दोस्ती करने के बाद एक शख्स से करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले नौजवान को कोलकाता पुलिस ने उस की प्रेमिका के साथ दिल्ली के उत्तम नगर इलाके से गिरफ्तार किया.

गिरफ्तार किए गए 35 साला आरोपियों के नाम विंसैंट मोर्लिय और 30 साला सुशान आओमिन उर्फ तोशेली थे. वे दोनों मूलरूप से नाइजीरिया के रहने वाले थे, जो फेसबुक पर खुद को अमेरिका और डेनमार्क के बाशिंदे और डौक्यूमैंट्री फिल्म बनाने वाले बताते थे.

विंसैंट मोर्लिय ने एक निजी कंपनी में प्रोड्यूसर के पद पर काम करने वाले अनुतोष डे से फेसबुक पर दोस्ती की थी. वे दोनों फेसबुक पर फिल्मों को ले कर काफी समय तक चैटिंग करते थे. इस दौरान विंसैंट ने शांति निकेतन पर डौक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की बात कही. अनुतोष ने उसे हर तरह से मदद करने का भरोसा दिलाया.

एक दिन अनुतोष के पास विंसैंट मोर्लिय का फोन आया, जिस में उस ने कहा कि वह भारत आ गया है, लेकिन यहां एक परेशानी में पड़ गया है. उसे मदद की जरूरत है. उस ने आगे बताया कि ज्यादा रुपए होने की वजह से एयरपोर्ट पर भारतीय कस्टम महकमे वालों ने उसे पकड़ लिया है. कस्टम से निकलने के लिए उस ने कुछ रुपए जमा करने की बात कही.

अनुतोष ने रुपए जमा कर के उस की मदद कर दी. इस के बाद कई तरह के बहानों से विंसैंट मोर्लिय ने उन से रुपए मंगवाए.

अनुतोष ने कई किस्तों में कुल 18 लाख, 78 हजार, 6 सौ रुपए रुपए उस के बैंक खाते में ट्रांसफर किए. जब अनुतोष ने महसूस किया कि उस के साथ ठगी हो गई है, तब उस ने कोलकाता पुलिस में इस की शिकायत दर्ज की.

कोलकाता पुलिस द्वारा जांच शुरू कर बैंक अकाउंट के जरीए विंसैंट मोर्लिय को ढूंढ़ निकाला. पुलिस ने दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव इलाके से विंसैंट मोर्लिय और सुशान आओमिन उर्फ तोशेली को गिरफ्तार किया.

उन के पास 2 पासपोर्ट और साल 2010 का एक ड्राइविंग लाइसैंस मिला. कोलकाता पुलिस के मुताबिक वे दोनों साल 2010 से भारत में रह कर लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे.

नाइजीरिया के अपराधी भारतीय पुलिस के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. वे अपराध करने के काफी शातिर तरीके अपनाते हैं. वे अपने शिकार से जो भी रकम भारत के किसी बैंक के अकाउंट में जमा कराते हैं, वह अकाउंट किसी भारतीय का होता है.

नाइजीरिया के अपराधी किसी भारतीय को मोटा कमीशन देने की बात कह कर उस के अकाउंट में रकम मंगवा लेते हैं. रुपए मंगवाने के लिए वे हर बार किसी नए अकाउंट होल्डर को पकड़ते हैं. शिकायत होने पर मामला उस भारतीय के खिलाफ बनता है और वे साफ बच जाते हैं.

कोई भी विदेशी नागरिक भारत आने पर जरूरत पड़ने पर बैंक में अपना अकाउंट खुलवा सकता है. पासपोर्ट दिखा कर विदेशियों का बैंक में अकाउंट आसानी से खुल जाता है, पर जो विदेशी नागरिक भारत में अपराध करने के मकसद से आते हैं, वे यहां आते ही अपना पासपोर्ट फाड़ कर फेंक देते हैं.

इस की 2 वजहें होती हैं. पहली, इस से वे अपनी पहचान छिपाने में कामयाब हो जाते हैं. दूसरी, अपराध करने के बाद पकड़े जाने पर उन्हें उन के देश भेजना पुलिस के लिए मुश्किल हो जाता है.

एसीपी सुनील देशमुख ने बताया, ‘‘इन के मोबाइल नंबर को भी सुबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इन के मोबाइल नंबर भी किसी भारतीय के नाम से रजिस्टर्ड होते हैं.

‘‘आजकल नाइजीरिया के अपराधी ब्रिटेन या अमेरिका के सिम का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में वहां से जानकारी लेना बड़ा मुश्किल है. इन की आवाज को टेप कर सुबूत के रूप में कोर्ट में पेश कर उसे साबित करना मुश्किल होता है, क्योंकि शिकायत करने वाले अकसर उन की आवाज को पहचान नहीं पाते हैं.’’

नाइजीरया के ज्यादातर अपराधी काफी उग्र होते हैं. वे अगर भड़क गए, तो 2-3 पुलिस वाले भी उन्हें संभाल नहीं सकते. उन्हें कंट्रोल करने के लिए पुलिस फोर्स की जरूरत पड़ती है, वरना वे भाग सकते हैं. खाने के मामले में उन पर काफी खर्च करना पड़ता है. ठीक से खाना न मिलने पर वे और ज्यादा ऊधम मचाते हैं.

कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जगह बदल लेते हैं. उन के नाम का वारंट निकलने के बाद भी उन्हें खोज पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि देश में रहने का उन का कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है.

नशीली दवाओं जैसे मामलों में उन्हें जमानत नहीं मिल पाती है, पर जब कोर्ट का ट्रायल चलता है, उस वक्त गवाह न मिल पाने की वजह से वे छूट जाते हैं.

उन के जेल जाने पर जेल प्रशासन भी परेशान हो जाता है. वहां पर दूसरे कैदियों के साथ मारपीट करना, झगड़ा करना, दूसरे कैदियों का खाना छीन लेना, धमकी देना जैसी हरकतों से सभी परेशान हो जाते हैं. उन्हें उन के देश वापस भेजना भी पुलिस अफसरों के लिए परेशान कर देने वाली बात होती है. ऐसा करते वक्त पुलिस व सरकार को अपनी जेब से हवाईजहाज का टिकट खरीद कर देना होता है.

क्या उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती? इस सवाल पर एसीपी सुनील देशमुख का कहना हैं, ‘‘इस बारे में अभी तक सरकार द्वारा नाइजीरिया के लोगों पर भारत आने की रोक लगाने की बात सामने नहीं आई है. इस मामले में राजनीति और कूटनीति वाले समझ सकते हैं कि क्या करना है, क्या नहीं. अपने देश भेजा गया आरोपी दोबारा वापस न आए, इस के लिए पुलिस द्वारा सावधानी बरती जाती है.

‘‘नाइजीरिया के अपराधी को उस के देश वापस भेजते वक्त पुलिस उस का बायोमीट्रिक्स और फिंगर प्रिंट ले लेती है और उसे देश के सभी एयरपोर्ट पर भेज दिया जाता है. अगर वह दोबारा भारत में आता है, तो एयरपोर्ट पर ही पहचान लिया जाता है.’’

लोगों को एक बात और सोचनी चाहिए कि लालच बुरी बला है. अगर वे इसी बात को ध्यान में रखेंगे, तो नाइजीरिया के अपराधियों के चंगुल से बच जाएंगे.

लूट के विरोध पर कारोबारी की हत्या

दिल्ली के नरेला में गुरुवार रात बाइक सवार बदमाशों ने लूट का विरोध करने पर घर के बाहर एक कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी. लुटेरों ने कारोबारी के भाई को भी पिस्तौल की बट मारकर घायल कर दिया. घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में लुटेरों की तस्वीर कैद हो गई है, मगर उन्होंने अपने चेहरे हेलमेट से ढक रखे हैं.

नरेला की पंजाबी कॉलोनी में 38 वर्षीय नीरज और 35 वर्ष का रिंकू परिवार सहित रहते थे. नरेला अनाज मंडी में उनका परचून का थोक कारोबार है. गुरुवार रात दोनों भाई कारोबार का हिसाब-किताब लेकर चार्टेड अकाउंटेंट से मिलने गए थे. वहां से रात लगभग 8.30 बजे दोनों बाइक से घर लौटे.

कारोबारी भाई जैसे ही बाइक से उतरकर घर की ओर बढ़े, पीछे से एक बाइक पर सवार दो बदमाश आए. उन्होंने कारोबारी से बैग छीनने का प्रयास किया. लुटेरों का कारोबारी भाइयों ने विरोध किया. इसी बीच एक बदमाश ने नीरज को गोली मार दी और पिस्तौल की बट मारकर रिंकू को भी घायल कर दिया. गोली चलने की आवाज सुनकर आसपास के लोग घटनास्थल की ओर दौड़े. लोगों को आता देख बदमाश तेज रफ्तार से बाइक दौड़ाते हुए भाग गए.

दोनों घायलों को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने नीरज को मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने रिंकू के बयान पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया है. रिंकू ने पुलिस को बताया कि दोनों बदमाशों ने हेलमेट पहन रखा था. इस कारण उनके चेहरे नहीं दिख रहे थे. पुलिस आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने के साथ ही कारोबारी के कर्मचारियों से भी पूछताछ कर रही है. इसके अलावा इलाके में सक्रिय लुटेरों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है.

लुटेरे भाइयों का पहले से ही पीछा कर रहे थे

पुलिस का मानना है कि लुटेरे पहले से ही कारोबारी भाइयों का पीछा कर रहे थे. उनके हाथ में बैग देखकर लुटेरों को लगा होगा कि उसमें मोटी रकम है. कारोबारी जब घर के पास पहुंचे तो वहां लुटेरों को मौका मिल गया और उन्होंने वारदात को अंजाम दिया. हालांकि, बैग में रुपये नहीं, बल्कि कारोबार के हिसाब से संबंधित दस्तावेज थे. हत्या के बाद भी बदमाश बैग ले जाने में कामयाब नहीं हो सके.

पुलिस के खिलाफ लोगों में गुस्सा

हत्या से नाराज लोगों ने शुक्रवार दोपहर सड़क पर शव रखकर जाम लगा दिया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की. लोगों का आरोप है कि नरेला इलाके में आए दिन वारदात हो रही हैं. कारोबारी सुरक्षित नहीं हैं. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने लोगों को समझाकर शांत करवाया, जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार किया गया.

महबूबा के लिए बेटे ने कर दिया मां का कत्ल

पुराने भोपाल में बन्ने मियां और उन की पत्नी जमीला का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं था. उन्हें वहां हर कोई जानता था. बन्ने मियां की इमेज एक भाजपा समर्थक मुसलमान नेता की थी. वह आपातकाल के समय गिरफ्तार कर के जेल भी भेजे गए थे. वह बड़ी शान से खुद को मीसाबंदी बताते हुए जेल के उस समय यानी सन 1975 के किस्से लोगों को सुनाते रहते थे कि कांग्रेसी शासनकाल में हम नई आजादी के सिपाहियों पर किसकिस तरह के जुल्मोसितम ढाए गए थे. 48 साल की जमीला बेगम उन की दूसरी पत्नी थीं. वह भी राजनीति में जरूरत के हिसाब से सक्रिय रहने वाली महिला थीं और कदकाठी से भी काफी मजबूत थीं. उन की इमेज झुग्गीझोपड़ी की राजनीति करने वाली औरत की थी, जो अपने पति की पहुंच और रसूख के दम पर झुग्गीझोपड़ी का कारोबार भी करती थी. इस काम से उन्होंने खासा पैसा बनाया था. हालांकि पैसों की कमी उन्हें वैसे भी नहीं थी, क्योंकि बन्ने मियां खानदानी आदमी थे. उन्हें विरासत में ही कोई 25 एकड़ जमीन मिली थी, जिस की कीमत अब करोड़ों में थी.

दूसरी शादी कर के बन्ने मियां गौतमनगर थाना इलाके के इंदिरानगर में रहने लगे थे. जमीला से उन्हें एक बेटा अमन था, जो अब 22 साल का बांका जवान हो चुका था. बन्ने मियां की पहली बीवी अपने 4 बच्चों के साथ गांधीनगर इलाके में रहती थी. उन के बच्चों में से एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. जिंदगी में कई उतारचढ़ाव देखने वाले बन्ने मियां यह कहने का हक तो रखते ही थे कि मियां ऊपर वाले के फजल से सब कुछ है मेरे पास, किसी चीज की कमी नहीं है.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अब कहने भर का रह गया है, जिस में पुराने जमाने के इनेगिने नेता ही सक्रिय हैं और इस इकाई को जैसेतैसे ढो रहे हैं. लेकिन उन्हें इस का अच्छाखासा फायदा मिल रहा है. बन्ने मियां और जमीला बेगम सियासत करते हुए तबीयत से भाजपाई राज में चांदी काट रहे थे. इन दोनों ने मिल कर अपना खासा समर्थक वर्ग भी तैयार कर रखा था.

30 नवंबर की दोपहर को अचानक जमीला बेगम की मौत की खबर आग की तरह फैली. दोपहर के वक्त इंदिरानगर में आमतौर पर औरतें और बच्चे ही होते थे. मर्द अपनेअपने काम पर निकल चुके होते थे. अमन ने तंग गली में बने अपने मकान के बाहर आ कर शोर मचाया तो वहां मौजूद तमाम औरतें अपना कामधंधा छोड़ कर जमीला के घर की ओर भागीं. हर एक की जुबान पर यही सवाल था कि क्या हुआ?

जवाब में घबराए अमन ने बताया कि अम्मी को करंट लगा है. औरतों ने देखा कि जमीला बेगम खाट पर लेटी थीं और उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. लिहाजा तुरंत नजदीक से औटो बुलवा कर उन्हें हमीदिया अस्पताल ले जाया गया. घर आई औरतों में कुछ औरतें हैरानी से घर की दीवारों को देख रही थीं कि जमीला को करंट लगा कैसे? यह सवाल अमन से किया गया तो वह घबराहट में कोई जवाब नहीं दे सका. औरतों ने भी उस की हालत देखते हुए ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा.

अलबत्ता, जमीला को जब औटो से ले जाया जा रहा था तो जरूर कुछ औरतों ने उस के बाएं कंधे के नीचे एक सुराख देखा था. लेकिन अस्पताल पहुंचने की जल्दबाजी में किसी ने इस बाबत सवाल नहीं किया. बन्ने मियां उस समय अपनी मीसाबंदियों वाली पेंशन लेने बैंक गए हुए थे. जैसे ही उन्हें बीवी की मौत की खबर मिली, वह भी भागेभागे हमीदिया अस्पताल पहुंचे. तब तक डाक्टरों ने जमीला का निरीक्षण कर उन्हें मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. जमीला बेगम के दफनाए जाने की यानी अंतिम संस्कार की बातें और तैयारियां दोनों शुरू हो गई थीं.

जमीला की मौत की खबर थाना गौतमनगर के थानाप्रभारी मुख्तार कुरैशी तक पहुंची तो वह तुरंत हरकत में आ गए. जमीला की मौत कुदरती नहीं, बल्कि संदिग्ध थी. यह बात उन्हें अपने सूत्रों से पता चल चुकी थी, साथ ही यह भी कि जमीला के घर वाले यानी खासतौर पर पति बन्ने मियां और बेटा अमन इस मौत को राज ही रखना चाहते हैं, इसलिए कफनदफन के इंतजाम में जुट गए हैं.

मुख्तार कुरैशी के लिए जमीला की मौत संदिग्ध इस लिहाज से भी थी कि 2 दिनों पहले ही ट्रैक्टर रखने को ले कर कुछ पड़ोसियों से जमीला का विवाद हुआ था. कुछ लोगों के खिलाफ जमीला ने थाने में शिकायत भी दर्ज करा रखी थी. कुरैशी नहीं चाहते थे कि किसी को कुछ कहने का मौका मिले, क्योंकि मामला एक भाजपा नेत्री की संदिग्ध मौत का था, जिस पर उचित काररवाई न करने पर बवाल भी मच सकता था. लिहाजा वह बगैर वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए.

उन का शक सच निकला. जमीला बेगम के बाएं कंधे के नीचे सुराख था. लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि खून का कहीं नामोनिशान नहीं था. कुरैशी ने तुरंत जमीला के कंधे पर बने सुराख का एक्सरे कराया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि उन की मौत करंट लगने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी. साफ हो गया कि यह हत्या का मामला था. एक्सरे रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया था कि कंधे में धंसी गोली 318 बोर के कट्टे की थी.

जमीला के अंतिम संस्कार की बात अब खत्म हो गई थी और उन का पोस्टमार्टम शुरू हो चुका था. पोस्टमार्टम के बाद उन का शव घर वालों यानी बन्ने मियां और अमन को सौंप दिया गया. पूछताछ में पुलिस को अमन से कुछ हासिल नहीं हुआ. वह कभी करंट लगने की बात कहता था तो कभी यह शक भी जाहिर करता था कि मुमकिन है कि मम्मी को किसी ने घर में घुस कर गोली मारी हो, जिस का उसे पता नहीं चला, क्योंकि उस वक्त वह सो रहा था.

दूसरी ओर शहर में यह अफवाह फैल चुकी थी कि जमीला की हत्या की गई है, पर हत्यारे कौन हैं, इस का पता नहीं चल पा रहा है. पुलिस को अमन पर शक था, लेकिन उसे कातिल ठहराने की कोई ठोस वजह उन के पास नहीं थी. पूछताछ में पड़ोसियों से विवाद की बात भी सामने आई थी. उस से भी ज्यादा दिलचस्प लेकिन गंभीर बात यह भी उजागर हुई थी कि बन्ने मियां का पहली पत्नी से कुछ दिनों पहले ही जायदाद को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस का एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. लिहाजा वह भी शक के दायरे में आ गया था.

आमतौर पर हत्या के ऐसे मामलों में पुलिस 1-2 दिन में ही असली कातिल तक पहुंच जाती है, लेकिन जमीला बेगम की हत्या पुलिस वालों के लिए गुत्थी बनती जा रही थी. पड़ोसियों से पूछताछ की गई तो झगड़े की बात तो उन्होंने स्वीकारी, लेकिन जमीला की मौत के तार उन से जुड़ नहीं पाए. बन्ने मियां की पहली बीवी और बच्चों से भी पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी वजह सामने नहीं आई, जिस से उन पर शक किया जाता.

कोई नतीजा न निकलते देख एसपी (नौर्थ) अरविंद सक्सेना ने यह मामला क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. अब मामला क्राइम ब्रांच के एएसपी शैलेंद्र सिंह के हाथ में आ गया, जो अपनी खास स्टाइल के चलते ऐसे ब्लाइंड मर्डर सुलझाने के लिए जाने जाते हैं.

मुखबिरों के जरिए और जो नई बातें पता चलीं, उन में एक अहम बात यह थी कि हादसे के वक्त बन्ने मियां पेंशन लेने बैंक नहीं गए थे, जैसा कि उन्होंने बताया था, बल्कि वह एक फड़ पर बैठे ताश खेल रहे थे. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली थी कि कुछ दिनों पहले ही बन्ने मियां और जमीला का किसी बात पर इतना झगड़ा हुआ था कि जमीला नाराज हो कर घर छोड़ कर अपनी बहन के यहां चली गई थी, जहां से बाद में बन्ने मियां उसे मना कर ले आए थे. आते हुए उन्होंने साली से अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी थी.

अब शक की सुई बन्ने मियां पर घूमी तो वह झल्ला उठे और एसपी (नौर्थ) से मिल कर शिकायत की कि बीवी के कत्ल के मामले में पुलिस वाले उन के घर वालों को पूछताछ के नाम पर परेशान कर रहे हैं. पुलिस वाले बन्ने मियां को हलके में लेने की भूल नहीं कर रहे थे, जो पेशे से नेता थे और बातबात में नेतागिरी के दम पर सिर पर आसमान उठाने के हुनर में माहिर थे.

पर अब उन में पहले सा आत्मविश्वास नहीं रह गया था, इसलिए पुलिस वाले ताड़ गए कि दाल में कुछ काला जरूर है. पर दाल कहां और कितनी काली है, वहां तक पहुंचने के लिए सब्र की जरूरत थी. लिहाजा ढील दे कर पतंग उड़ाने की शैली अपनाई गई. बन्ने मियां पर शक की वजह यह मनोवैज्ञानिक पहलू भी था कि कई बार कलह के बाद शौहर सुलह करता है तो एक खतरनाक खयाल उस के दिमाग में बीवी को देख लेने या उसे सबक सिखाने का भी पनप रहा होता है.

पुलिस की बारबार की पूछताछ और छानबीन कम हो जाने से बन्ने मियां और अमन को थोड़ा सुकून मिला. अब तक जमीला बेगम की हत्या हुए 3 हफ्ते गुजर चुके थे और लोग इस मामले को भूल चुके थे. जिन्हें याद था, उन्होंने अपनी तरफ से उसे ब्लाइंड मर्डर की लिस्ट में डाल दिया था.

आखिरकार 20 दिसंबर, 2016 को सनसनीखेज तरीके से इस हत्याकांड से पुलिस ने परदा उठाया तो लोग एक बार फिर यह जान कर चौंके कि बेटा अमन ही अपनी मां जमीला का हत्यारा था और हत्या की वजह एक लड़की थी, जो उस की माशूका थी. पूछताछ में अमन टूट गया था और अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने हत्या में प्रयुक्त कट्टा भी बरामद करा दिया था.

अमन निकम्मा और आलसी किस्म का बेजा लाड़प्यार में पला लड़का था, जिस का एक शौक बाइक चलाना भी था. कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. लेकिन मोहल्ले की ही एक लड़की से उसे सच्चा प्यार हो गया था. लड़की चूंकि बिरादरी की थी, इसलिए उस के लिहाज से शादी में कोई अड़चन पेश नहीं आनी थी. लेकिन इस प्रेमप्रसंग की गहराई के बारे में जब जमीला बेगम को पता चला तो वह दुखी भी हुईं और बेटे पर भड़क भी उठीं, क्योंकि उन्होंने अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की को बहू के रूप में चुन रखा था और उन रिश्तेदारों को वह जुबान भी दे चुकी थीं.

जमीला ने तरहतरह से अमन को समझाया, पर वह टस से मस नहीं हुआ. वारदात की दोपहर वह सो कर उठा तो मम्मी से चाय की फरमाइश की. इस पर जमीला बाहर नुक्कड़ की किराने की दुकान पर गईं और दूध का पैकेट तथा लड्डू ले आईं. बेटे के लिए चाय बनातेबनाते उन का ध्यान इस तरफ गया कि बिस्तर पर पड़ा बेटा अपनी माशूका से गुफ्तगू कर रहा है तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने उसे खुली चेतावनी दे दी, ‘तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं तय कर चुकी हूं. अपनी पसंद की लड़की से शादी करना है तो मेरे मरने के बाद कर लेना.’

इस कलयुगी आशिक बेटे ने मां की हिदायत कुछ इस तरह मानी कि तकिए के नीचे रखा कट्टा निकाला और उन पर गोली दाग दी. अब वह मां के मरने के बाद अपनी मरजी से शादी करने के लिए आजाद था. मां के कंधे से निकले खून को उस ने गीले कपड़े से पोंछ दिया. हत्या के बाद जो हुआ, वह शुरू में बताया जा चुका है.

जल्दी ही बन्ने मियां की समझ में आ गया था कि उन की बीवी का कत्ल किस ने किया है. बीवी तो वह खो ही चुके थे, अब बेटे को नहीं खोना चाहते थे. लिहाजा जांच के दौरान पड़ोसियों से ट्रैक्टर को ले कर झगड़े को उन्होंने तूल दे कर पुलिस का ध्यान बंटाने की कोशिश की और पहली बीवी से हुए विवाद को भी उन्होंने तूल दिया, जो पुलिसिया जांच में खारिज हो गए थे.

बिगड़ैल अमन मांबाप के बेजा लाड़प्यार के चलते ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था. लेकिन इश्क में मास्टर डिग्री हासिल कर चुका था. उस की महबूबा एकांत में अकसर उस के साथ होती थी और दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते रहते थे. नई आजादी के सिपाही बन्ने मियां की दुनिया लुट चुकी है. कातिल बेटा जेल में है और करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद अब उन्हें मुंह चिढ़ा रही है, जिस का पहली बीवी और बच्चों के हिस्से में जाना तय दिख रहा है.

जमीला की जिद खुद उन्हें भारी पड़ी. अगर वह पुरानी कहानी की तरह बेटे को उस की माशूका को देने के लिए अपना कलेजा सौंप देतीं तो बात बन जाती. इधर अमन का सोचना यह था कि अगर अपनी मरजी से शादी की तो मांबाप के पैसों पर ऐश करने को नहीं मिलेगा. तय है कि जमीला को इस बात का अहसास नहीं था कि बेटा गले तक इश्क के समंदर में डूब चुका है. गोली मारने के पहले उस ने कहा भी था कि अब्बा ने भी तुम से इसी तरह शादी की थी.

पुराने भोपाल के गरीब जरूरतमंद बाशिंदों को झोपड़ी दिलाने का कारोबार करने वाली जमीला का घर अब उजड़ चुका है, जिस में अब बन्ने मियां गमगीन से बैठे रहते हैं. बेटे की परवरिश में कहां गलती हो गई, यह अब उन्हें सब कुछ लुटने के बाद समझ आ रहा है.

बुआ के दिल ने जब भतीजे को छुआ

वेदराम बेहद सीधासादा और मेहनती युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के एक चूड़ी कारखाने में काम करता था, जबकि उस के बीवीबच्चे कासगंज जिले के नगला लालजीतगंज में रहते थे. यह वेदराम का पैतृक गांव था. वहीं पर उस का भाई मिट्ठूलाल भी परिवार के साथ रहता था.

जिला कासगंज के ही थाना सहावर का एक गांव है बीनपुर कलां. यहीं के रहने वाले आलम सिंह का बेटा नेकसे अकसर नगला लालजीतगंज में अपनी बुआ के घर आताजाता रहता था. उस की बुआ की शादी वेदराम के भाई मिट्ठूलाल के साथ हुई थी.

वेदराम की पत्नी सुनीता पति की गैरमौजूदगी में भी घर की जिम्मेदारी  ठीकठाक निभा रही थी. वह अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी थी. जिंदगी ने कब करवट ले ली, वेदराम को पता ही नहीं चला. पिछले कुछ समय से वेदराम जब भी छुट्टी पर घर जाता था, उसे पत्नी सुनीता के मिजाज में बदलाव देखने को मिलता था. उसे अकसर अपने घर में नेकसे भी बैठा मिलता था.

नेकसे हालांकि उस के भाई मिट्ठूलाल की पत्नी का भतीजा था, फिर भी वह यही सोचता था कि आखिर यह उस के घर में क्यों डेरा डाले रहता है. उस ने एकदो बार नेकसे को टोका भी कि बुआ के घर पड़े रहने से अच्छा है वह कोई कामकाज देखे. सुनीता ने भी नेकसे पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन वह जब भी आता था, वह उस की खूब मेहमाननवाजी करती थी. नेकसे के मन में क्या था, यह सुनीता को पता नहीं था. एक दिन नेकसे दोपहर में उस के घर आया और चारपाई पर बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगा. अचानक वह उस के पास आ कर बोला, ‘‘बुआ, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

नेकसे की इस बात पर पहले तो सुनीता चौंकी, उस के बाद हंसती हुई बोली, ‘‘मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘नहीं बुआ, ये मजाक नहीं है. तुम मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगती हो. तुम्हें देखने को दिल चाहता है, तभी तो मैं तुम्हारे यहां आता हूं.’’ नेकसे ने हंसते हुए कहा.

नेकसे की बातें सुन कर सुनीता के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो, क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘कुछ नहीं बुआ, तुम बैठो और यह बताओ कि फूफाजी कब आएंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन्हें छुट्टी कहां मिलती है. तुम सब कुछ जानते तो हो, फिर भी पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने थोड़ा रोष में कहा.

‘‘तुम्हारे ऊपर दया आती है बुआ, फूफाजी को तो तुम्हारी फिक्र ही नहीं है. अगर उन्हें फिक्र होती तो इतने दिनों बाद घर न आते. वह चाहते तो गांव में ही कोई काम कर सकते थे.’’ यह कह कर नेकसे ने जैसे सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था.

इस के बाद सुनीता के करीब आ कर वह उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बुआ, अब तुम चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

इतना कह कर नेकसे तो चला गया, लेकिन सुनीता के मन में कई सवाल छोड़ गया. वह सोचने लगी कि आखिर नेकसे का उस के यहां आनेजाने का मकसद क्या है? 28 साल का नेकसे देखने में ठीकठाक था. वह अविवाहित था. और अपने गांव के एक ईंट भट्ठे पर काम करता था. तनख्वाह तो ज्यादा नहीं थी, पर वहां उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बुआ के यहां आतेआते उस का दिल बुआ की देवरानी सुनीता पर आ गया था.

सुनीता पति की दूरी से बहुत परेशान थी. इसी का बहाना बना कर उस ने उस के दिल में जगह बनानी शुरू कर दी थी. रिश्ते की नजदीकियां रास्ते में बाधक थीं. नेकसे को इस बात का भी डर लग रहा था कि अगर सुनीता को बुरा लग गया तो परिवार में तूफान आ जाएगा. उस दिन नेकसे के जाने के बाद सुनीता देर तक उसी के बारे में सोचती रही कि आखिर नेकसे चाहता क्या है. उस रात सुनीता को देर तक नींद नहीं आई. नेकसे की बातचीत का अंदाज मन मोहने वाला था, लेकिन सुनीता उम्र और रिश्ते में नेकसे से बड़ी थी. मन में पति के प्रति गुस्सा भी आया, क्योंकि पति से दूरी के कारण ही उस का मन डगमगा रहा था.

उस ने तय कर लिया कि इस बार जब पति घर आएगा तो वह उस से कहेगी कि या तो वह गांव में रह कर कोई काम करे या फिर उसे भी अपने साथ ले चले.

कुछ दिनों बाद वेदराम छुट्टी पर आया तो सुनीता ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे बिना मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता. या तो तुम यहीं कोई काम कर लो या फिर मैं भी बच्चों को ले कर फिरोजाबाद चल कर तुम्हारे साथ रहूंगी.’’

पत्नी की बात सुन कर वेदराम बोला, ‘‘लगता है, तुम पगला गई हो. तुम अपनी उम्र तो देखो. बच्चे बड़े हो रहे हैं और तुम्हें रोमांस सूझ रहा है.’’

‘‘तो क्या अब मैं बूढ़ी हो गई हूं?’’ सुनीता ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसा नहीं है. पर सुनीता यह मेरी मजबूरी है. मेरी तनख्वाह इतनी नहीं कि वहां किराए पर कमरा ले कर तुम्हें साथ रख सकूं. और तुम क्या सोच रही हो कि वहां मैं खुश हूं. नहीं, तुम्हारे बिना मैं भी कम परेशान नहीं हूं.’’

पति के जवाब पर सुनीता कुछ नहीं बोली. वेदराम 3 दिनों तक घर पर रहा, तब तक सुनीता काफी खुश रही. पर पति के जाने के बाद उस के जिस्म की भूख फिर सिर उठाने लगी. वह उदास हो गई. तब उस के दिलोदिमाग में नेकसे घूमने लगा. वह उस से मिलने को उतावली हो उठी. इतना ही नहीं, वह अपनी जेठानी के घर जा कर बोली, ‘‘दीदी, नेकसे आया नहीं क्या?’’

जेठानी ने कहा, ‘‘आया तो था, पर जल्दी में था. क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने तो यूं ही पूछ लिया.’’ उदास मन से सुनीता वापस आने को हुई, तभी जेठानी ने कहा, ‘‘शायद वह कल आएगा.’’

जेठानी की बात सुन कर सुनीता का दिल बल्लियों उछलने लगा. उसे लग रहा था कि नेकसे उस से नाराज है, तभी तो वह उस के घर नहीं आया. अगले दिन अचानक उस के दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला, सामने नेकसे खड़ा था.

‘‘तुम?’’ उसे देख कर सुनीता हैरानी से बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं बुआ, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना हैरान क्यों हो? बड़ी बुआ ने बताया कि तुम मुझे याद कर रही थीं, सो मैं आ गया. अब बताओ, क्या कहना है?’’ नेकसे ने घर में दाखिल होते हुए कहा.

सुनीता ने मुख्यद्वार बंद किया और अंदर आ कर नेकसे से बातें करने लगी. कुछ देर में सुनीता 2 गिलासों में चाय ले कर आई तो नेकसे ने पूछा, ‘‘फूफा आए थे क्या?’’

‘‘हां, आए तो थे, लेकिन 3 दिन रह कर चले गए.’’ सुनीता बेमन से बोली.

नेकसे को लगा कि वह फूफा से खुश नहीं है. उस ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘बुआ, मैं कुछ कहना चाहता हूं, पर डर लगता है कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘बुआ, सच तो यह है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’ नेकसे ने एक ही झटके में मन की बात कह दी.

नेकसे की बात पर सुनीता भड़क उठी, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? और हां, प्यार का मतलब जानते हो? अपनी और मेरी उम्र में फर्क देखा है. मैं रिश्ते में तुम्हारी बुआ लगती हूं.’’

‘‘हां, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो तुम पर आ गया है. अब तो दिलोदिमाग पर हमेशा तुम ही छाई रहती हो.’’ नेकसे ने कहा.

‘‘लगता है, तुम पागल हो गए हो. जरा सोचो, अगर घर वालों को यह सब पता चल गया तो मेरा क्या हाल होगा?’’ सुनीता ने कहा.

नेकसे चारपाई से उठा और सुनीता के पास जा कर उस के गले में बांहें डाल दीं. सुनीता ने इस का कोई विरोध नहीं किया. इस से नेकसे की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सुनीता भी खुद को नहीं रोक सकी तो मर्यादा भंग हो गई. जोश उतरने पर जब होश आया तो दोनों में से किसी के भी मन में पछतावा नहीं था.

सुनीता को अपना मोबाइल नंबर दे कर और फिर आने का वादा कर के नेकसे चला गया. उस दिन के बाद सुनीता की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. पर कभीकभी उसे डर भी लगता था कि अगर भेद खुल गया तो क्या होगा. अब नेकसे का आनाजाना लगा रहने लगा. इसी बीच एक दिन वेदराम अचानक घर आ गया. उस की तबीयत खराब थी. पर उस समय घर पर नेकसे नहीं था. सुनीता डर गई कि कहीं पति की मौजूदगी में नेकसे न आ जाए, इसलिए उस ने नेकसे को फोन कर के सतर्क कर दिया. हफ्ते भर बाद वेदराम चला तो गया, पर सुनीता के मन में डर सा समा गया.

पड़ोसियों को सुनीता के घर नेकसे का आनाजाना अखरने लगा था. आखिर एक दिन पड़ोसन ने सुनीता को टोक ही दिया, ‘‘जवान लड़के का इस तरह घर आनाजाना ठीक नहीं है. अपनी जवान बेटी का कुछ तो खयाल करो.’’

सुनीता तमक कर बोली, ‘‘अपने घर का खयाल मैं खुद रख लूंगी. तुम हमारी फिक्र मत करो.’’

नेकसे उस के यहां बेखौफ और बिना रोकटोक आताजाता था. पड़ोसियों के मन में भी शक के बीज पड़ चुके थे. एक दिन जब वेदराम घर आया तो एक पड़ोसी ने कहा, ‘‘नेकसे तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारे घर अकसर आता है. तुम्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए.’’

इस बात से वेदराम को लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने सुनीता से पूछा, ‘‘यह नेकसे का क्या चक्कर है?’’

पति की बात सुन कर सुनीता की धड़कनें बढ़ गईं, ‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, तुम्हारा रिश्तेदार है. कभीकभी यहां आ जाता है. इस में गलत क्या है?’’

‘‘घर में जवान बच्ची है. तुम उसे यहां आने के लिए मना कर दो.’’ वेदराम ने कहा.

‘‘अपनी बेटी की देखरेख मैं खुद कर सकती हूं, पर कभी सोचा है कि तुम्हारे बिना मैं कैसे रहती हूं.’’

‘‘तुम लोगों के लिए ही तो मैं बाहर रहता हूं. जरा सोचो क्या तुम्हारे बिना मुझे वहां अच्छा लगता है क्या?’’

वेदराम को सुनीता की इस बात से विश्वास होने लगा कि पड़ोसियों ने उसे उस की पत्नी और नेकसे के बारे में जो खबर दी है, वह सही है. वेदराम 2-4 दिन रुक कर अपने काम पर फिरोजाबाद चला गया. पर इस बार उस का काम में मन नहीं लगा. उसे लगता था, जैसे उस की गृहस्थी की नींव हिल रही है.

एक दिन अचानक वह छुट्टी ले कर बिना बताए घर से आ गया. उस ने घर में कदम रखा तो घर में कोई बच्चा दिखाई नहीं दिया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो सन्न रह गया. उस की पत्नी नेकसे की बांहों में थी. गुस्से में वेदराम ने डंडा उठाया और सुनीता की खूब पिटाई की. जबकि नेकसे भाग गया.

पिटने के बाद भी सुनीता के चेहरे पर डर नहीं था. वह गुर्रा कर बोली, ‘‘इस सब में मेरी नहीं, बल्कि तुम्हारी गलती है. मैं ने कहा था न कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, पर तुम ने मेरी भावनाओं का खयाल कहां रखा.’’

वेदराम का गुस्सा बढ़ गया. वह हैरान था कि सुनीता ने रिश्तों का भी खयाल नहीं रखा. नेकसे तो उस के बेटे की तरह है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अब मैं आ गया हूं, सब संभाल लूंगा.’’

‘‘मैं आ गया हूं, से क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘अब मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए आ गया हूं. यहीं खेतीबाड़ी करूंगा. फिर देखूंगा तुझे.’’ वेदराम ने कहा.

पति के नौकरी छोड़ने की बात सुन कर सुनीता परेशान हो उठी. क्योंकि अब उसे नेकसे से मिलने का मौका नहीं मिल सकता था. उस ने नेकसे को सारी बात बता कर सतर्क रहने को कहा. अब वह किसी भी कीमत पर नेकसे को छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस के मन में पति के प्रति नफरत पैदा हो गई.

वेदराम को अब इस बात का डर लगा रहता था कि सुनीता नेकसे के साथ भाग न जाए. अगर ऐसा हो गया तो समाज में उस की नाक ही कट जाएगी. लिहाजा उसे अपनी दुराचारी पत्नी से नफरत हो गई. बेटी भी जवान थी पर वह मां की ही तरफ से बोलती थी. उसे इस बात का भी डर था कि कहीं बेटी भी गुमराह न हो जाए.

वेदराम की चौकसी के बावजूद सुनीता और नेकसे मौका पा कर घर से बाहर मिलने लगे. यह बात भी वेदराम से ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने सुनीता को एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी. वेदराम समझ गया कि अब कोई बड़ा कदम उठाना ही पड़ेगा, वरना उस की गृहस्थी डूब जाएगी. घर का वातावरण काफी तनावपूर्ण रहने लगा था. नेकसे वेदराम की खुशियों के रास्ते में बाधा बन गया था. काफी सोचनेविचारने के बाद वेदराम को लगा कि इस समस्या का अब एक ही हल है कि रास्ते के कांटे को जड़ से निकाल दिया जाए.

दूसरी ओर रोजरोज पिटने से सुनीता को लगने लगा था कि अब वह पति के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकती. वह खुल कर नेकसे के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

वेदराम धीरेधीरे अपने इरादे को मजबूत कर रहा था. बेशक यह काम उस के लिए कठिन था. पर एक ओर चरित्रहीन पत्नी थी तो दूसरी ओर बेलगाम भतीजा. दोनों उस केगुस्से को हवा दे रहे थे.

योजना के अनुसार, वेदराम उसी ईंट भट्ठे पर काम करने लगा, जहां नेकसे करता था. वेदराम जानता था कि नेकसे रात में भट्ठे पर ही सोता है. उसे लगा कि वह वहीं पर अपना काम आसानी से कर सकता है. वह भी भट्ठे पर ही सोने लगा और मौके की तलाश में लग गया.

नेकसे अपने फूफा वेदराम के इरादे से बेखबर था. जबकि वेदराम ने तय कर लिया था कि अपनी इज्जत पर हाथ डालने वाले को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. अपनी नौकरी के तीसरे दिन 5 दिसंबर, 2016 को वेदराम को मौका मिल गया. उस ने देखा, नेकसे अकेला सो रहा था. वह अपनी जगह से उठा और फावड़े से नेकसे पर प्रहार कर दिया. चोट नेकसे के कंधे पर लगी तो वह चीख कर उठा और भागने की कोशिश की. लेकिन वेदराम ने उस पर ताबड़तोड़ प्रहार कर दिए, जिस से वह वहीं पर मर गया.

नेकसे की हत्या करने के बाद वेदराम ने राहत की सांस ली, पर उस की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. वह फावड़ा ले कर सीधे थाना सहावर पहुंचा और पुलिस को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी रफत मजीद वेदराम से पूछताछ कर के उसे उस जगह ले गए, जहां उस ने नेकसे की हत्या की थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पुलिस ने वेदराम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. थानाप्रभारी रफत मजीद केस की तफ्तीश कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

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