उस्तादों के उस्ताद…

इसी साल 7 मार्च की बात है. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना शहर के पुलिस थाने में नागौर जिले के शेरानी आबाद के रहने वाले सुलतान खां ने

एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वह अपने भाई इरफान के साथ दिल्ली एयरपोर्ट से सऊदी अरब से आए अपने परिचित इरफान और वली मोहम्मद को ले कर अपनी स्कौर्पियो गाड़ी से नागौर जिले के डीडवाना शहर जा रहा था.

शाम करीब 4 बजे नीमकाथाना बाईपास पर बने रेलवे अंडरपास के नीचे उन की स्कौर्पियो गाड़ी के आगे एक कैंपर गाड़ी और पीछे स्विफ्ट कार आ कर रुकीं. दोनों कारों से उतरे लोगों ने हमारी कार रोक ली और हथियार दिखा कर हमें गाड़ी से उतार दिया.

दोनों गाडि़यों से आए बदमाशों ने हम से 30 हजार रुपए नकद, कपड़े, प्रैस, थर्मस, स्पीकर और काजूबादाम वगैरह लूट लिए. इस के बाद बदमाश अपनी कैंपर कार में मेरे भाई इरफान का अपहरण कर ले गए. साथ ही हमें सड़क पर छोड़ कर हमारी स्कौर्पियो भी ले भागे.

पुलिस ने सुलतान खां की रिपोर्ट दर्ज कर ली. हालांकि रिपोर्ट में ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी. कोई बड़ी लूटपाट भी नहीं हुई थी, लेकिन अपहरण का मामला गंभीर था. पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए इलाके में चारों तरफ नाकेबंदी करवा दी. पुलिस ने अपहृत इरफान की तलाश शुरू की, तो रात को सीकर जिले में ही हांसनाला मंदिर के पास इरफान और लूटी गई स्कौर्पियो गाड़ी मिल गई.स्कौर्पियो गाड़ी में इरफान और वली मोहम्मद से लूटी गई रकम, प्रैस, स्पीकर और थर्मस आदि सामान नहीं मिले. फिर भी लूटी गई गाड़ी और अपहृत युवक के मिल जाने से पुलिस ने राहत की सांस ली. बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. न तो उस से कोई मारपीट की गई थी और न कोई धमकी वगैरह दी गई थी.

हालांकि लूटी गई रकम और अन्य सामान बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी यह गंभीर बात थी कि दिनदहाड़े लूट हुई थी. अगर पुलिस साधारण मामला समझ कर कोई काररवाई नहीं करती, तो हो सकता था भविष्य में कोई बड़ी वारदात हो जाती. नीमकाथाना के थाना प्रभारी राजेंद्र यादव ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लूटपाट की जांच शुरू की.

पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला लूटपाट करने वाले बदमाशों की दोनों गाडि़यां सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो का पीछा करती हुई नीमकाथाना तक आई थीं. सवाल यह था कि सुलतान की स्कौर्पियो का पीछा कहां से किया गया था.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव के दिमाग में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि 2 गाडि़यों में सवार बदमाश केवल 30 हजार रुपए, कपड़े, प्रैस व स्पीकर जैसे छोटेमोटे सामान के लिए दिनदहाड़े लूट की वारदात को क्यों अंजाम देंगे? या तो बदमाशों को सुलतान और उस के साथियों के पास मोटी रकम होने की सूचना थी, जिस की वजह से उन्होंने लूटपाट की. दूसरी बात यह थी कि अगर बदमाशों का मकसद इरफान का अपहरण ही था, तो वे उसे छोड़ क्यों गए? बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया था. ये सवाल थानाप्रभारी को बारबार परेशान कर रहे थे.

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समझ से परे थी लूट की वारदात

इन सवालों का सही जवाब या तो बदमाशों के पकड़े जाने पर मिल सकता था या फिर इस बारे में पीडि़त ही कुछ बता सकते थे. इसलिए थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सुलतान खां और उस के साथी इरफान खां से पूछताछ की. लेकिन उन से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से बदमाशों और उन के असल मकसद का पता चल सकता.

सुलतान और इरफान ने लूटपाट करने वाले बदमाशों के बारे में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर किसी पर शक भी जाहिर नहीं किया. ऐसी स्थिति में लूटपाट करने वाले बदमाशों को तलाशना पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं था.

नीमकाथाना के थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर के सामने हाजिर हो कर अपने दिमाग में उठ रहे सारे सवाल बताए. एसपी साहब भी थानाप्रभारी की बातों से सहमत थे. उन्होंने थानाप्रभारी से इस मामले की फाइल ले कर एफआईआर और इस के बाद की पुलिस की काररवाई पर सरसरी नजर दौड़ाई. उन्हें लगा कि राजेंद्र यादव की बातों में दम है.

एसपी ने थानाप्रभारी से पूछा, ‘‘राजेंद्र, तुम इस केस को कैसे सौल्व करना चाहते हो?’’

‘‘सर, यह केस सौल्व तो तभी होगा जब बदमाश पकड़े जाएंगे.’’ थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, सब से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो गाड़ी का पीछा कहां से शुरू किया गया था.’’

अपनी बात जारी रखते हुए थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, इस के लिए हमें दिल्ली एयरपोर्ट तक जाना पड़ेगा. इस के साथ हमें दिल्ली से नीमकाथाना तक रास्ते में जहांजहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, वहां पर 7 मार्च की दोपहर की फुटेज देखनी पड़ेगी. इसी से हमे बदमाशों का सुराग मिल सकता है.’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हारा आइडिया अच्छा है.’’ एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर ने थानाप्रभारी की हौसलाअफजाई करते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दी से जल्दी यह काम पूरा करो. उम्मीद है तुम्हें कामयाबी जरूर मिलेगी.’’

‘‘थैंक यू सर.’’ थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सैल्यूट किया और वहां से निकल गए.

थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पहुंचते ही दिल्ली जाने की तैयारी शुरू कर दी. कुछ देर बाद वे अपने 2 मातहतों को ले कर गाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

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मिली एक बड़ी सफलता

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच कर उन्होंने एयरपोर्ट के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की 7 मार्च की फुटेज निकलवा कर देखी. इस में सुलतान खां और उस के साथियों की स्कौर्पियो के पीछे एक ब्रेजा गाड़ी नजर आई.

इस के बाद पुलिस ने दिल्ली से नीमकाथाना तक के रास्ते में टोलनाके और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी. इन में भी वह ब्रेजा गाड़ी इरफान व वली मोहम्मद की स्कौर्पियो के पीछेपीछे आती हुई नजर आई.

इस ब्रेजा गाड़ी के नंबर के आधार पर पुलिस ने नागौर जिले के लाडनूं थाना इलाके के तितरी गांव के रहने वाले चैन सिंह राजपूत को पकड़ा. चैन सिंह से पूछताछ की गई, तो सुलतान खान के साथियों से की गई लूट की वारदात की गुत्थी सुलझ गई. लेकिन उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सारी बातें बताई. एसपी साहब ने राजेंद्र को शाबासी देते हुए चैन सिंह के बताए बाकी अपराधियों को पकड़ने और माल बरामद करने के निर्देश दिए. साथ ही जिले के कुछ अन्य पुलिस अफसरों को सदर थानाप्रभारी के साथ सहयोग करने के लिए लगा दिया.

पुलिस टीमों ने भागदौड़ कर नागौर जिले के डीडवाना थाना इलाके के कोलिया गांव के रहने वाले इकबाल उर्फ भाणू खां, सीकर जिले के रानोली के रहने वाले विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट, नीमकाथाना सदर थाना इलाके के चला गांव निवासी बलराम मील और ढाणी खुड़ालिया तन डहरा जोहड़ी गुहाला के रहने वाले जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप जाट को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों की निशानदेही पर डेढ़ करोड़ रुपए की कीमत का 4 किलो 300 ग्राम सोना, वारदात में इस्तेमाल की गईं 3 गाडि़यां ब्रेजा, कैंपर और स्विफ्ट के अलावा 315 बोर का एक कट्टा बरामद किया.

सिर्फ  30 हजार रुपए की लूट का करोड़ों रुपए की लूट में खुलासा होने पर जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर और अन्य मातहत अधिकारियों को बधाई दी.

आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सोने के तस्करों की आपसी रंजिश की कहानी है. उस्तादों के उस्ताद बनने की यह कहानी सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा दिखाती है कि किस तरह विदेशों से तस्करी कर सोना भारत में लाया जा रहा है. इस के अलावा विदेशों में बैठे तस्कर ही अपने सहयोगियों से सोने की लूट भी करवा रहे हैं.

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यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों से रोजाना चोरीछिपे बड़ी मात्रा में सोना भारत लाया जाता है. विदेशों से अधिकांश सोना हवाई मार्ग से ही आता है. तस्करी से जुड़े लोग सोना लाने और कस्टम से बचने के नएनए तरीके अपनाते हैं. कुछ तस्करों की एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों या एयरलाइंस के कर्मचारियों से मिलीभगत भी होती है. इस से वे सुरक्षित बाहर निकल आते हैं.

राजस्थान में भी सोने की तस्करी करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. इन गिरोहों के लोग दिल्ली या जयपुर एयरपोर्ट पर सोना ले कर आते हैं. इन में कभीकभी कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं, जबकि अधिकांश तस्कर सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बता कर सोना लाने में सफल हो जाते हैं.

सोने की ऐसे होती है तस्करी

सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के शेखावटी इलाके के करीब 5 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. इन में अधिकतर कामगार हैं, जो भवन निर्माण कार्यों से जुड़े हैं. कोई आरसीसी लेंटर डालने का काम करता है, तो कोई टाइल्स लगाने का काम. ये लोग सालछह महीने में एक बार अपने घर आते रहते हैं.

खाड़ी देशों में सक्रिय सोने के तस्कर शेखावटी के इन लोगों को लालच दे कर अपने कैरियर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बदले में इन कैरियर को हवाई टिकट का पैसा और कुछ खर्चा दे दिया जाता है. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर तस्कर गिरोह के लोग इन कैरियरों से सोना ले लेते हैं. एयरपोर्ट पर पकड़े जाने पर कैरियर अगर फंस जाता है, तो बाहर बैठे तस्कर गिरोह के सदस्य अपनी कोशिशें करते हैं. कोशिश कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना ये लोग उस कैरियर से पल्ला झाड़ लेते हैं.

नागौर जिले के खुनखुना थाना इलाके के शेरानी आबाद के रहने वाले शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद सऊदी अरब से कैरियर के माध्यम से तस्करी का सोना मंगवाते हैं. इन में लाल मोहम्मद अब सऊदी अरब में रहता है. जबकि शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद में आजकल रंजिश चल रही है.

रंजिश का कारण यह है कि करीब डेढ़ साल पहले लाल मोहम्मद की ओर से सऊदी अरब से मंगाए गए सोने की लूट हो गई थी. लाल मोहम्मद को इस लूट में शेर मोहम्मद का हाथ होने का शक था. इस के बाद लाल मोहम्मद के साथ एक बार फिर धोखा हो गया. लाल मोहम्मद के लिए सऊदी अरब से तस्करी का सोना ले कर आया एक कैरियर दिल्ली से निर्धारित गाड़ी में न आ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर चला गया था.

बाद में लाल मोहम्मद ने उस का अपहरण कर अपना सोना वसूल किया था. इस मामले में नागौर जिले के खुनखुना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस में पुलिस ने लाल मोहम्मद, चैन सिंह, मोहम्मद अली, अली मोहम्मद, अब्दुल हकीम आदि के खिलाफ चालान पेश किया था.

आजकल सऊदी अरब में रह कर भी लाल मोहम्मद अपने विरोधी शेर मोहम्मद की गतिविधियों की सारी जानकारियां रखता था. चूरू जिले के बीदासर गांव का रहने वाला वली मोहम्मद 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. वह वहां आरसीसी लेंटर डालने का काम करता था. बीदासर गांव का ही रहने वाला इरफान करीब 9 महीने से सऊदी अरब में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था.

तस्कर देते हैं लालच

वली मोहम्मद और इरफान भारत में अपने घर आना चाहते थे. सोने के तस्कर शेर मोहम्मद को यह बात पता चली, तो उस ने सऊदी अरब में सक्रिय अपने लोगों के माध्यम से इन दोनों को सोना लाने के लिए राजी कर लिया. उस ने दोनों को सऊदी अरब से दिल्ली तक का हवाई जहाज का फ्री टिकट और दिल्ली से गांव तक जाने के लिए टैक्सी कराने का वादा किया था.

दूसरी तरफ सऊदी अरब में रह रहे शेर मोहम्मद के विरोधी लाल मोहम्मद को यह बात पता चल गई कि बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद नाम के 2 युवक शेर मोहम्मद के लिए सोना ले जाएंगे. इस पर लाल मोहम्मद ने योजना बना कर इन दोनों से संपर्क कर उन्हें लालच दिया और अपनी योजना में शामिल कर लिया.

सऊदी अरब में तस्करी के लिए सोने को पिघला कर अलगअलग रूपों में ढाल दिया जाता है. फिर उस सोने को पारे की परत चढ़ा कर ऐसा रंग दे दिया जाता है कि वह एल्युमीनियम नजर आता है. इस एल्युमीनियम रूपी सोने को इलैक्ट्रौनिक सामान का पार्ट बना दिया जाता है. इस तरह इलैक्ट्रौनिक उपकरण के रूप में तस्करी का सोना भारत आता है.

निश्चित दिन सऊदी अरब में शेर मोहम्मद के लोगों ने बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद को भारत ले जाने के लिए 7 स्पीकर और एक प्रैस में छिपा कर 5 किलो सोना सौंप दिया. इस के बाद शेर मोहम्मद के लोग इन दोनों से मोबाइल के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे. वहीं, लाल मोहम्मद भी इरफान और वली मोहम्मद से संपर्क बनाए हुआ था. इन से लाल मोहम्मद को पता चल गया था कि वे किस दिन कौन सी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेंगे.

स्पीकर में पारे से एल्युमीनियम के रंग में रंगी सोने की प्लेटों को चिपकाया गया था जबकि इलैक्ट्रिक प्रैस में सोने की प्लेट को सिल्वर रंग दे कर नट से कस दिया गया था. इरफान और वली मोहम्मद हवाई जहाज से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर आ गए. कहा जाता है कि सोने के तस्कर शेर मोहम्मद की दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम व सुरक्षा अधिकारियों से मिलीभगत थी, इसलिए इरफान और वली मोहम्मद को न तो किसी ने रोका और ना ही उन के सामान की जांच की.

सऊदी अरब से सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद को दिल्ली से लाने के लिए शेर मोहम्मद ने सुलतान खां और उस के भाई इरफान को स्कौर्पियो गाड़ी ले कर भेजा.

लूटने की बना ली योजना

दूसरी तरफ लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब से ईमो कालिंग के जरिए अपने ड्राइवर नागौर जिले के लाडनूं के तितरी निवासी चैन सिंह राजपूत को सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद से माल लूटने को कहा.

उस ने चैन सिंह को इरफान और वली मोहम्मद की फोटो सहित फ्लाइट नंबर वगैरह की सारी जानकारी दे दी. इस पर चैन सिंह ने अपने परिचित बदमाशों इकबाल, विजय कुमार उर्फ बिज्जू, जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप, बलराम और 3 अन्य लोगों को साथ ले कर सोना लूटने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक चैन सिंह और उस का एक साथी नरेंद्र सिंह ब्रेजा गाड़ी ले कर 7 मार्च को फ्लाइट आने के समय से काफी पहले ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गए. उन्होंने फ्लाइट आने के बाद एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे यात्रियों में फोटो के आधार पर इरफान और वली मोहम्मद को पहचान लिया. चैन सिंह व उस का साथी नरेंद्र उन पर नजर रखते रहे.

इरफान और वली मोहम्मद जब सुलतान खां व उस के भाई इरफान के साथ उन की स्कौर्पियो में बैठ गए, तो चैन सिंह व उस का साथी अपनी ब्रेजा गाड़ी से उन के पीछेपीछे चलते रहे. बीचबीच में ये लोग अपने साथियों को सूचना भी देते रहे.

दिल्ली से जयपुर वाले नैशनल हाइवे नंबर 8 पर गुड़गांव, धारूहेड़ा, शाहजहांपुर, नीमराना, बहरोड़ हो कर ये लोग कोटपुतली पहुंच गए. कोटपुतली से नीमकाथाना जाने के लिए हाइवे से अलग रास्ता है. नीमकाथाना में बाइपास पर चैन सिंह के बाकी साथी एक कैंपर और एक स्विफ्ट कार में सोना ला रहे इरफान और वली मोहम्मद की स्कौर्पियो गाड़ी का इंतजार कर रहे थे.

दोनों कैरियरों के साथ सुलतान और उस के भाई की स्कौर्पियो गाड़ी जब नीमकाथाना में रेलवे अंडरपास पर पहुंची, तो चैन सिंह के साथियों ने अपनी दोनों गाडि़यां उन की स्कौर्पियो के आगेपीछे लगा कर सुलतान, उस  के भाई इरफान और दोनों कैरियर वली मोहम्मद व इरफान को गाड़ी से नीचे उतार लिया.

बदमाशों ने इन चारों को अपनी कैंपर गाड़ी में बैठा लिया. इन लोगों ने सुलतान की स्कौर्पियो अपने कब्जे में ले ली. रेलवे अंडरपास से ऊपर चढ़ाई पर सुलतान और उस का भाई इरफान बदमाशों से संघर्ष करने लगे, लेकिन दोनों कैरियर चुपचाप बैठे रहे. इस दौरान बदमाशों की गाड़ी की गति धीमी हो गई, तो दोनों कैरियर इरफान व वली मोहम्मद कूद कर भाग निकले. मौका मिलने पर सुलतान भी किसी तरह बच कर भाग निकला.

बदमाशों ने गाड़ी रोक कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन शहर के बीच और दिन का समय होने के कारण उन्हें फंसने का डर हुआ. इस पर वे सुलतान के भाई इरफान और उन की स्कौर्पियो को ले कर भाग गए.

बाद में सुलतान ने पुलिस को 30 हजार रुपए नकद और इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने और इरफान का अपहरण होने की सूचना दी, तो पुलिस ने नाकेबंदी करा दी. नाकेबंदी के दौरान बदमाश हांसनाला मंदिर के पास इरफान और स्कौर्पियो को छोड़ कर भाग गए.

लेकिन स्कौर्पियो में से वह सारा इलैक्ट्रौनिक सामान ले गए, जो इरफान और वली मोहम्मद सऊदी अरब से लाए थे. इसी इलैक्ट्रौनिक सामान में 5 किलोग्राम सोना छिपा कर रखा हुआ था. सुलतान ने पुलिस में जो रिपोर्ट दर्ज कराई, उस में केवल इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने की बात कही थी, सोने का जिक्र नहीं किया था.

बाद में चैन सिंह सहित 5 बदमाशों की गिरफ्तारी से 5 किलोग्राम सोने की लूट का भंडाफोड़ हुआ. बाद में पुलिस ने सऊदी अरब से सोना लाने वाले चूरू के बीदासर निवासी इरफान और वली मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया. नागौर जिले के मकराना निवासी एक आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किया.

वह दिल्ली एयरपोर्ट से चैन सिंह के साथ ब्रेजा गाड़ी से सुलतान और दोनों कैरियरों का पीछा कर रहा था. इस वारदात में चैन सिंह के साथ मिल कर लूट व अपहरण की वारदात करने वाले कुछ बदमाश कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

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सभी पुलिस वालों को मिली पदोन्नति

इस के साथ ही 700 ग्राम सोने के बारे में भी पता किया जा रहा है. पुलिस ने 6 स्पीकर और एक प्रैस में भरा 4 किलो 300 ग्राम सोना ही बरामद किया है. एक स्पीकर खाली मिला था. पुलिस को अंदेशा है कि आरोपियों ने एक स्पीकर में भरा सोना खुर्दबुर्द कर दिया होगा.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपी विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंद पाल के गिरोह से जुड़ा हुआ था. आनंद पाल के एनकाउंटर के बाद वह राजू ठेहठ गैंग से जुड़ गया. वह अवैध हथियारों की सप्लाई भी करता है. बिज्जू के खिलाफ फायरिंग व लूट के 7 मामले दर्ज हैं. वह 5 हजार रुपए का इनामी बदमाश है.

इकबाल उर्फ भाणू खां नागौर जिले के कुचामन थाने का हिस्ट्रीशीटर है. कुचामन और डीडवाना में उस के खिलाफ  9 मुकदमे दर्ज हैं. चैन सिंह के खिलाफ  खुनखुना व लाडनूं थाने में अपहरण, मारपीट व शराब तस्करी के 8 मामले दर्ज हैं. जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप चर्चित भढाढर हत्याकांड का मुख्य आरोपी है. वह लूट व डकैती की कई वारदातों में भी शामिल रहा है.

एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर का दावा है कि शेर मोहम्मद हर साल 5 से 7 बार कैरियरों के माध्यम से सऊदी अरब से सोना मंगवाता है. सोने की तस्करी से जुड़े इस मामले की सीबीआई और फेरा को भी जानकारी दी जाएगी. सोना लूट की यह योजना लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब में बैठ कर ही बनाई थी, इसलिए उस के खिलाफ  भी काररवाई की जाएगी.

जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर ने शेखावटी की अब तक की सब से बड़ी सोने की तस्करी का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल नीमकाथाना के डीएसपी रामावतार सोनी, थानाप्रभारी राजेंद्र यादव, साइबर सेल के सबइंसपेक्टर मनीष शर्मा, हैड कांस्टेबल सुभाषचंद, कांस्टेबल कर्मवीर यादव व मुकेश कुमार की पदोन्नति की सिफारिश करने की बात कही है.

पढ़ालिखा अमानुष

लेखक- प्रफुल्लचंद्र सिंह 

जूनियर इंजीनियर सुशील कुमार पिछले 2 सालों से मेरठ की ट्यूबवेल कालोनी स्थित सरकारी कालोनी में अपने परिवार के साथ रह रहा था.

उस की नियुक्ति सिंचाई विभाग में थी. उस के परिवार में पत्नी मोनिका उर्फ डौली के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. सब से बड़ी बेटी सोनी (परिवर्तित नाम) 14 साल की थी.

बात 13 मार्च, 2019 की सुबह करीब 9 बजे की है. जेई सुशील कुमार की पत्नी मोनिका अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ अस्पताल गई थी. थोड़ी देर बाद जब वह घर लौटी तो वहां का खौफनाक मंजर देख कर उस की चीख निकल गई. उस के रोनेबिलखने की आवाजें सुन कर आसपास रहने वाले लोग उस के यहां चले आए. सभी के मन में जिज्ञासा हो गई कि पता नहीं अचानक जेई साहब के यहां क्या हो गया. लेकिन लोगों ने एक कमरे में जब जेई सुशील कुमार की खून से सनी लाश बैड पर पड़ी देखी तो सन्न रह गए. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया. कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था.

मोनिका ने उसी समय अपने देवर अजय कुमार को फोन कर के  इस घटना की जानकारी दी. बड़े भाई की हत्या होने की बात सुन कर अजय भी अवाक रह गया. अजय सहारनपुर के पास स्थित अपने पैतृक गांव सलोनी में रहता था. भाई का दुखद समाचार सुन कर वह परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरठ की तरफ रवाना हो गया. उसी दौरान मोनिका ने थाना सिविल लाइंस में फोन कर के पति की हत्या की सूचना दे दी.

मेरठ के सिविल लाइंस थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी को जैसे ही घटना की जानकारी मिली तो वह अपने स्टाफ के साथ नलकूप विभाग की कालोनी की ओर रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी घटनास्थल पर बुला लिया. बैड पर मृतक जेई सुशील कुमार के हाथपैर तथा मुंह कपड़े से बंधे थे तथा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था.

बैड के अलावा बैडरूम में चारों तरफ खून के छींटे दिख रहे थे तथा कमरे का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. इस के अलावा जेई साहब के क्वार्टर के सामने वाले एक क्वार्टर के दरवाजे पर भी खून के छींटे दिखाई दिए.

घटनास्थल पर मिले तमाम फोरैंसिक नमूने एकत्र करने के बाद उन्होंने क्वार्टर के दूसरे कमरे का भी मुआयना किया. दरअसल, इस सरकारी क्वार्टर में 2 कमरे थे. दूसरे कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था और अलमारी खुली पड़ी थी.

यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्या की यह वारदात लूटपाट के इरादे से की गई हो. शायद सुशील कुमार ने लुटेरों का विरोध किया होगा. जिस पर लुटेरों ने उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी.

मृतक की पत्नी मोनिका से जब इस घटना के बारे में थानाप्रभारी ने पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि वह सुबह 9 बजे के आसपास अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ डाक्टर के पास गई थी. उस समय उस के पति चाय पीने के बाद नहाने जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि दोनों छोटे बच्चे घर से बाहर खेलने गए थे.

डाक्टर के पास से जब वह घर लौटी तो देखा कि क्वार्टर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. दरवाजा खोलने पर उसे बैड पर पति की लाश पड़ी मिली. यह सारी घटना महज आधे घंटे के अंतराल के दौरान घट गई थी.

मृतक की पत्नी और कालोनी के कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद सुशील कुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

काररवाई के बाद पुलिस ने सुशील कुमार के बैडरूम को अपने कब्जे में ले लिया. वहां पर कुछ पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी वापस थाने लौट आए. पुलिस ने मोनिका की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी इस केस की आगे की तहकीकात थाने के ही इंसपेक्टर मुकेश कुमार को सौंप दी.

इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या के इस सनसनीखेज मामले की तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए मृतक जेई के सामने रहने वाले दूसरे जेई भारत यादव को हिरासत में ले लिया. क्योंकि उन के दरवाजे पर खून के छींटे मिले थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जेई भारत यादव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सुबह वह अपने र्क्वाटर में मौजूद थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सुशील कुमार के क्वार्टर से चीखने जैसी कोई आवाज नहीं सुनी.

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अलबत्ता मोनिका ने भारत यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत यादव के उस के पति से अच्छे संबंध नहीं थे इसलिए इस घटना में उस का हाथ हो सकता है. लेकिन जब अगले 36 घंटे की पूछताछ में इंसपेक्टर मुकेश कुमार को इस घटना में भारत यादव के ऊपर संदेह नहीं हुआ तो उन्होंने उसे शहर में ही रहने की ताकीद कर घर जाने की इजाजत दे दी.

उधर पोस्टमार्टम के बाद सुशील कुमार की लाश अतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुशील कुमार की मौत गला कटने के कारण अधिक खून निकल जाने की वजह से हुई थी.

 

काल डिटेल्स में मिला क्लू

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि सुबह 9 और साढ़े 9 बजे के बीच कालोनी के लोगों ने किसी को भी मृतक के क्वार्टर की तरफ आतेजाते नहीं देखा था. जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने मृतक सुशील कुमार और उस की पत्नी मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

मोनिका के मोबाइल की काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मुकेश कुमार चौंक उठे. पता चला कि पिछले कुछ महीने से लगातार एक मोबाइल नंबर पर उस की लगातार बातें होती आ रही हैं. बातचीत का यह सिलसिला उस के पति की हत्या के बाद भी जारी था.

पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की भी डिटेल निकलवाई तो पता चला यह सिमकार्ड पवन कुमार सैनी के नाम रजिस्टर्ड था, जो राजस्थान के गंगानगर का रहने वाला था.  जब इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने मोनिका को थाने में बुला कर इस मोबाइल नंबर के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने बड़ी ही आसानी से पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पति की हत्या को स्वीकार करते हुए उस ने जो कुछ बताया, सुन कर वहां उपस्थित सभी पुलिस अधिकारी हैरान रह गए.

उस से की गई पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस टीम श्रीगंगानगर पहुंची और वहां से पवन को हिरासत में ले आई. उस से जब इस घटना के बारे में पूछताछ की तो थोड़ी देर तक आनाकानी करने के बाद उस ने मोनिका के साथ मिल कर उस के पति सुशील कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी और एसपी डा. अखिलेश नारायण सिंह ने 16 मार्च, 2019 को एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का एक गांव है सलोनी. यह गांव थाना सरसावाला के अंतर्गत आता है. जेई सुशील कुमार इसी गांव का रहने वाला था. वह अपनी पत्नी मोनिका व 3 बच्चों के साथ मेरठ के सिंचाई विभाग के सरकारी क्वार्टर में रहता था. उस के पास सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

मोनिका अपने पति और तीनों बच्चों के साथ बेहद खुश थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह पति के चालचलन में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी.

दरअसल, सुशील ने उस में रुचि लेनी बहुत कम कर दी थी. इस का पता लगाने के लिए जब मोनिका ने एक दिन पति के मोबाइल फोन की जांचपड़ताल की तो एक दिन उसे पता चला कि पति के कुछ महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं, जिन के साथ वह बराबर संपर्क में रहता है.

यह जान कर मोनिका के दिल को बहुत चोट पहुंची. उस ने पति को आकर्षित करने के कई हथकंडे अपनाए, लेकिन सुशील के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. यह सब देख कर उस ने पति से बदला लेने की ठानी और अपने मोबाइल से एक सोशल साइट पर जा कर दूसरे लड़कों से रोमांटिक चैटिंग करनी शुरू कर दी. सोशल साइट पर उस की मुलाकात पवन कुमार सैनी नाम के युवक से हुई. पवन सैनी राजस्थान के श्रीगंगानगर के गांव नाहरावाली का रहने वाला था.

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मोनिका की पवन से गहरी दोस्ती हो गई. मोनिका को पवन बहुत अच्छा लगा, इसलिए उस ने उस से प्यार का इजहार कर दिया. अब मोनिका पवन से मिलने के लिए उतावली हो रही थी. लिहाजा मोनिका ने एक दिन उसे मेरठ के एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

मोनिका के कहने पर पवन श्रीगंगानगर से चल कर मेरठ के एक होटल में पहुंच गया. मोनिका भी उसी होटल में पहुंच गई. पहली बार मिलने पर दोनों ही बहुत खुश हुए. पवन उम्र में उस से छोटा था.

होटल के बंद कमरे में दोनों ने एकदूसरे पर प्यार लुटाते हुए काफी वक्त गुजारा. एकदूसरे को प्यार करते रहने की कसमें खाईं. इस हसीन और रोमांचक मुलाकात के बाद पवन ने मोनिका से फिर मिलने आने का वादा किया और वापस श्रीगंगानगर लौट गया.

इस घटना के बाद वे दोनों अपनी सुविधा और मौके के अनुसार एक दूसरे को फोन कर अपने दिल की बात कर लेते थे. जब मोनिका के मन में पवन से मिलने की इच्छा हिलोरें मारती तो वह उसे मेरठ बुला लेती थी. पवन अभी कुंवारा था, इसलिए वह खुद भी मोनिका से मिलने की ताक में रहता था.

 

करीब ढाई साल तक अवैध संबंधों का यह सिलसिला बड़ी खामोशी से चलता रहा. मोनिका और पवन दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. तभी एक दिन अचानक मोनिका की 14 वर्षीय किशोर बेटी सोनी ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

सोनी ने बताया कि उस के पापा पिछले कुछ महीनों से उस के साथ जबरन गलत काम करते हैं और मना करने पर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

मोनिका ने हिम्मत कर के यह बात पति से पूछी तो उलटे वह आगबबूला हो उठा और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं, उस ने यह भी धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तीनों बच्चों को मौत के घाट उतार देगा.

पानी चढ़ गया सिर से ऊपर

मोनिका ने कई बार पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुशील अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. पानी सिर से ऊपर जाता देख कर मोनिका ने सुशील की इस गंदी हरकत के बारे में अपनी सास परीक्षा देवी को बताया. अपने बेटे की करतूत सुन कर परीक्षा ने ऐसे पढ़ेलिखे बेटे को लानत दी. इतना ही नहीं, उन्होंने बेटे सुशील को समझाने की कोशिश की, मगर वह कुछ भी समझने की जगह उलटे मरनेमारने पर उतारू हो गया.

यह देख कर परीक्षा से बहू मोनिका से कहा कि ऐसे राक्षस का घर में रहना ठीक नहीं है. इसे तो समाज में जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं है. सास की बात सुन कर मोनिका मन ही मन बहुत खुश हुई क्योंकि पति के मरने के बाद पूरी तरह से अपने प्रेमी पवन सैनी के साथ रहने की आजादी मिलती.

मोनिका एक तीर से दो शिकार कर रही थी. उसे अब सुशील से नफरत हो चुकी थी. वह सुशील की हत्या करने के बाद पवन के साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहती थी. मोनिका ने पति को ठिकाने लगाने के बारे में सास से बात की तो उन्होंने मोनिका को कुछ रुपए भी दे दिए ताकि वह किसी और से सुशील की हत्या करा सके.

इस के बाद मोनिका ने पवन को मेरठ बुला कर उस से कहा कि अगर वह उसे हमेशा के लिए पाना चाहता है तो उसे पति को ठिकाने लगाना होगा. आखिर में पवन अपनी माशूका के साथ जिंदगी गुजारने की खातिर उस के पति की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस काम के लिए मोनिका ने अपनी बड़ी बेटी सोनी को भी शामिल कर लिया.

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बेटी भी हो गई बाप की हत्या में शामिल

दरअसल वह भी अपने बाप के अत्याचारों से इतनी तंग आ चुकी थी कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए मम्मी का साथ देने में उस ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.

योजना के अनुसार, 12 मार्च, 2019 को मोनिका का प्रेमी पवन श्रीगंगानगर से मेरठ पहुंचा और वहां एक होटल में ठहर गया. अगले दिन 13 मार्च की सुबह मोनिका ने पवन के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने क्वार्टर के बाहर बुला लिया. उस समय लोगों का अधिक आनाजाना नहीं था.

इसी बीच सोनी अपने पापा सुशील के पास पहुंची. सुशील कुमार उस समय अपने बैड पर बैठा हुआ था.  सोनी ने प्यार से मनुहार करते हुए उसे एक खेल खेलने के लिए कहा तो वह इस के लिए फौरन राजी हो गया. दरअसल, वह सोनी को कभी किसी बात के लिए मना नहीं करता था.

इस के बाद पहले तो उस ने पापा सुशील कुमार की दोनों आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथ और पैरों को भी मजबूती से बांध दिया. तब तक मोनिका भी कमरे में आ गई. उस ने पति को बंधे देखा तो पवन को कमरे में आने के लिए फोन किया.

पवन चाकू ले कर वहां पहुंच गया. पवन को देखकर मोनिका की आंखें चमक उठीं. उस ने पति के सिर को पकड़ कर पीछे की ओर खींचा और पवन को जल्दी से उस की गरदन काटने का इशारा किया. शायद तभी सुशील को अपने साथ कुछ गलत होने का आभास हो गया था, इसलिए वह बचने के लिए छटपटाने लगा. लेकिन उस की बेटी सोनी ने उस के हाथ और पैर पकड़ लिए ताकि पवन आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके. तभी पवन ने चाकू से सुशील की गरदन रेत डाली.

जब सुशील की लाश तड़प कर ठंडी पड़ गई तो पवन ने दूसरे कमरे में जा कर अपने कपड़ों से खून साफ किया और वहां से अपने होटल लौट गया. उस के जाने के बाद मोनिका और सोनी ने सुशील के खून के छींटे सामने रहने वाले जेई भारत यादव के दरवाजे पर लगा दिए ताकि साजिश के तहत इस कत्ल का आरोप उस के सिर मढ़ा जा सके.

दरअसल भारत यादव और सुशील के बीच किसी बात को ले कर खटपट होती रहती थी. इस के बाद उस ने घर के कपड़े और अलमारियों का सामान इस प्रकार कमरे में फेंक दिया ताकि यह मामला लूटपाट का लगे. फिर दोनों मांबेटी कमरों का दरवाजा बंद कर अस्पताल जाने के बहाने घर से बाहर निकल गईं. आधे घंटे के बाद दोनों वापस लौट आईं और घर में लूटपाट होने तथा पति की हत्या की झूठी खबर लोगों में फैला दी.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने पवन के कपड़े बरामद करने के बाद सुशील कुमार हत्याकांड के दोनों आरोपियों पवन और मोनिका को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सोनी को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधारगृह भेजा गया. बाद में इस हत्याकांड में शामिल चौथी आरोपी जेई सुशील कुमार की मां परीक्षा देवी को भी सहारनपुर स्थित उन के पुश्तैनी घर से गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

 

पुलिस को नचाती रही फर्जी IFS Officer

 लेखक-  प्रगति अग्रवाल 

इसी दौरान अर्दली ने देखा कि पुलिस एस्कार्ट के साथ एक मर्सिडीज वहां आई. मर्सिडीज पर लालबत्ती लगी हुई थी. मर्सिडीज से आगे चालक के पास वाली सीट से एक खूबसूरत नौजवान फुरती से उतरा. उस नौजवान के हाथ में लैपटौप बैग था. उस नौजवान ने मर्सिडीज के पीछे का गेट खोला. कार से एक महिला तेजी से बाहर निकली. महिला की उम्र करीब 32-33 साल थी. उस ने जींस और पूरी आस्तीन की टीशर्ट पहन रखी थी.

  पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी और मर्सिडीज पर लगी लालबत्ती देख कर अर्दली समझ गया कि आगंतुक महिला कोई बड़ी अफसर हैं. अर्दली अपने साहब को महिला के बारे में बताने जाता, उस से पहले ही वह महिला तेज कदमों से चलती हुई आई और उस से बोली कि एसएसपी बैठे हैं क्या. अर्दली ने कहा, ‘‘यस मैम, साहब चैंबर में मीटिंग कर रहे हैं.’’

  आगंतुक महिला अर्दली से बिना कुछ कहे सीधे चैंबर का गेट खोल कर अंदर जाने लगी, तो अर्दली ने आगे बढ़ कर गेट खोल दिया. महिला ने चैंबर में घुस कर सामने सीट पर बैठे एसएसपी की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हैलो वैभव, आई एम जोया खान, औफिसर औफ  इंडियन फौरेन सर्विस.’’

  ‘‘जोया मैम, आप से मिल कर खुशी हुई.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी सीट से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा.

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एसएसपी ने जोया का किया स्वागत

एसएसपी ने जोया को कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मैम, अभी तक तो आप के ईमेल ही मिले थे या एकदो बार फोन पर बात हुई थी. मुलाकात आज पहली बार हो रही है.’’

  ‘‘वैभव, यार तुम को तो पता है कि इंडियन फौरेन सर्विस में कितनी मारामारी रहती है. हमें आधा समय तो विदेशों में और आधा समय भारत में रहना पड़ता है.’’

  जोया ने एसएसपी पर अपनी रुतबे वाली नौकरी के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं विदेश मंत्रालय में जौइंट सेक्रेटरी लेवल की औफिसर हूं. आजकल मेरी पोस्टिंग यूनाइटेड नेशंस में है.’’

  ‘‘मैडम, बाई द वे, आप कौन से बैच की आईएफएस औफिसर हैं?’’ पास ही दूसरी कुरसी पर बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने जोया से पूछा.

  जोया ने एसपी (देहात) की ओर नजर उठा कर देखा. फिर उन की वरदी पर लगा आईपीएस का बैज देख कर संक्षिप्त सा जवाब दिया, ‘‘2007 बैच.’’

  ‘‘विनीत, आप भी यार हर जगह पुलिस की अपनी इनक्वायरी शुरू कर देते हो.’’ एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपने साथी एसपी (देहात) से कहा. फिर जोया खान की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘मैडम, क्या लेंगी? चायकौफी या ठंडा?’

  ‘‘वैभव, ऐसी कोई औपचारिकता नहीं है. फिर भी पहली बार मुलाकात हुई है, इसलिए आप के साथ कौफी पीने में कोई हर्ज नहीं है.’’ जोया ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.

  एसएसपी ने घंटी बजा कर अर्दली से पहले पानी और इस के बाद कौफी लाने को कहा. अर्दली पानी के गिलास रख गया. इस बीच जोया और एसएसपी वैभव कृष्ण कई मुद्दों पर बातें करते रहे. बीचबीच में वहां बैठे एसपी (देहात) विनीत जायसवाल भी अपनी बात कह देते थे.

  कुछ ही देर में अर्दली कौफी ले आया. एसएसपी, एसपी (देहात) और जोया खान बातें करते हुए कौफी सिप करने लगे. कौफी पीते हुए जोया ने एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, मेरी गाड़ी में तोड़फोड़ हो गई थी. इस की रिपोर्ट भी मैं ने बिसरख थाने में दर्ज करा दी थी, लेकिन आप की पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. आप जरा एक बार अपने स्तर पर इस केस को दिखवाना.’’

  एसएसपी ने जोया को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैडम, मैं इस केस को दिखवा लूंगा.’’

  जोया ने कौफी की आखिरी सिप लेते हुए कप खाली किया और कुरसी से उठते हुए एसएसपी से कहा, ‘‘वैभव, आप से पहली मुलाकात अच्छी रही.’’

  एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपनी कुरसी से खड़े हो कर जोया से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘नाइस टू मीट यू.’’

  जोया एसएसपी से मिल कर तेजी से उन के चैंबर से बाहर निकली और फुरती से अपनी गाड़ी के पास पहुंची. वहां पहले से ही लैपटौप बैग लिए खड़े नौजवान ने तेजी से आगे बढ़ कर गाड़ी का पीछे का गेट खोल दिया. जोया बैठ गई, तो उस की गाड़ी सायरन बजाती चल रही पुलिस की एस्कार्ट गाड़ी के पीछेपीछे चली गई.

  जोया के जाने पर एसपी (देहात) विनीत जायसवाल ने एसएसपी साहब से कहा, ‘‘सर, आप बुरा नहीं मानें, तो एक बात कहना चाहता हूं.’’

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एसपी (देहात) को जोया लगी संदिग्ध

एसएसपी वैभव ने एसपी (देहात) विनीत की ओर सवालिया नजरों से देखकर कहा, ‘‘हां, बताओ क्या कहना चाहते हो.’’

  ‘‘सर, मुझे जोया मोहतरमा पर शक है.’’ एसपी (देहात) ने संदेह जताते हुए कहा, ‘‘जोया मैडम खुद को 2007 बैच की इंडियन फौरेन सर्विस की औफिसर बता रही हैं और उन की उम्र करीब 32-33 साल लगती है. इस का मतलब क्या वे 20-21 साल की उम्र में ही आईएफएस औफिसर बन गईं.’’

  ‘‘विनीत, मुझे भी जोया के हावभाव और बात करने का अंदाज देख कर संदेह हो रहा है. तुम्हारी बात में भी दम नजर आता है.’’ एसएसपी ने कहा, ‘‘मैं जोया खान की असलियत का पता लगवा लेता हूं. सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.’’

  एसएसपी वैभव कृष्ण ने उसी दिन अपने कुछ मातहतों को जोया खान की असलियत का पता लगाने का जिम्मा सौंप दिया. साथ ही उन्होंने साइबर एक्सपर्ट टीम को जोया खान के भेजे एक ईमेल की जांच करने को कहा.

  यह ईमेल जोया ने एसएसपी से मुलाकात से कुछ दिन पहले पुलिस एस्कार्ट उपलब्ध कराने के लिए भेजा था. यह ईमेल ह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्द्धद्बद्गद्घञ्चह्वठ्ठद्बह्लद्गस्रठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठह्य ह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्शह्वठ्ठष्द्बद्य.शह्म्द्द से भेजा गया था.

  साइबर एक्सपर्ट टीम ने जोया खान की ओर से भेजे ईमेल के संबंध में जांच की, तो पता चला कि यूनाइटेड नेशंस की असली वेबसाइट सिर्फ  222.ह्वठ्ठ.शह्म्द्द है. इसी से मिलतेजुलते नामों से भी कई ईमेल आईडी मिलीं.

  असलियत जानने के लिए डोमेन नेम की जांच कराई गई. इस में पता चला कि जोया ने खुद अपने लैपटौप से बैंक अकाउंट के माध्यम से ह्वठ्ठद्बह्लद्गस्रठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठह्यह्यद्गष्ह्वह्म्द्बह्ल4ष्शह्वठ्ठष्द्बद्य. शह्म्द्द नामक वेबसाइट खरीद कर उस से ईमेल बनाया था.

  इस के अलावा दूसरी पुलिस टीम को जोया खान के बारे में कई ऐसी बातें पता चलीं, जिन से यह बात पुख्ता हो रही थी कि जोया खान फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है.

फरजी होने के मिले सबूत

सभी तरफ  से जोया खान के बारे में फरजी अफसर होने की पुष्टि होने पर नोएडा पुलिस ने जोया खान को हिरासत में ले कर पूछताछ की, तो उस की जालसाजी की सारी पोल खुल गई. पुलिस ने पूछताछ के बाद जोया खान और उस के पति हर्षप्रताप सिंह को 4 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया.

  पुलिस ने जोया के पास से यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट का फरजी डिप्लोमैटिक आईडी कार्ड, 2 लैपटौप, पिस्टलनुमा लाइटर गन, वाकीटाकी वायरलैस सेट, 4 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, पैन कार्ड, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस सहित यूएन का लोगो लगी मर्सिडीज कार और नीली बत्ती लगी एसयूवी महिंद्रा कार सहित कई अन्य सामान भी बरामद किए.

  फरजी आईएफएस औफिसर जोया खान और उस के पति से पुलिस की पूछताछ के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

जोया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली है. मेरठ के कैंट इलाके में सदर बाजार स्थित तिवारी कंपाउंड में उस के पिता का आलीशान बंगला है. उस के पिता ए. खान एमबीबीएस डाक्टर हैं. उन का मेरठ के लालकुर्ती बड़ा बाजार में क्लीनिक है. जोया के पिता डा. ए. खान की इस इलाके में अच्छी शोहरत है. डाक्टरी के पेशे से उन्होंने अच्छीखासी कमाई भी की है.

  डा. ए. खान की 2 बेटियां हैं. बड़ी बेटी जोया ने मेरठ के प्रतिष्ठित स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई की थी. इस के बाद उस ने दिल्ली से ग्रैजुएशन किया. दिल्ली यूनिवर्सिटी से जोया ने पौलिटिकल साइंस में एमए किया. सन 2007 में वह दिल्ली में रह कर सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करने लगी. इस के लिए उस ने कोचिंग वगैरह भी की. बाद में उस ने यूपीएससी की ओर से आयोजित सिविल सर्विसेज परीक्षा भी दी, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी.

  करीब 6-7 साल पहले जोया ने एक बार मेरठ जाने पर अपनी मां को बताया था कि वह हर्षप्रताप सिंह से शादी करेगी. इस पर पिता डा. खान व मां ने बेटी को हर्ष और उस के परिवार से मुलाकात कराने को कहा था, लेकिन जोया ने कभी उन से मुलाकात नहीं कराई.

जोया ने हर्ष से की थी कोर्टमैरिज

जोया ने नवंबर 2013 में हर्षप्रताप सिंह से कोर्टमैरिज की थी. हर्षप्रताप सिंह उस समय स्टेट बैंक औफ  इंडिया में प्रोबेशनरी अफसर की नौकरी छोड़ कर सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा था. शादी के बाद हर्ष प्रताप सिंह ने सिविल सर्विस परीक्षा भी दी, लेकिन वह सफल नहीं हो सका. हर्ष प्रताप के पिता उत्तर प्रदेश में एक सरकारी विभाग में जौइंट कमिश्नर हैं.

  जोया खान ने अच्छीखासी पढ़ाई की थी. उस की तमन्ना प्रशासनिक अफसर बनने की थी. लेकिन वह परीक्षा में सफल नहीं हो सकी, तो उसे अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया. पति हर्ष प्रताप भी सिविल सर्विस परीक्षा में पास नहीं हो सका था.

  करीब 2 साल पहले जोया ने अपने सपनों को पूरा करने और अफसरों जैसा रुतबा हासिल करने के लिए फरजीवाड़ा करने की योजना बनाई. उस ने इंटरनेट पर यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी से संबंधित सारी जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उस ने ‘गो डैडी’ डोमेन से फरजी ईमेल आईडी सिक्युरिटी चीफ  यूनाइटेड नेशन सिक्युरिटी काउंसिल डौट ओआरजी के नाम से बनवाई और इसे रजिस्टर्ड करवाया.

  इस के लिए जोया ने यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन के लोगो व अन्य सूचनाएं फरजीवाड़े से हासिल कर उपलब्ध करवाईं. इस के बाद जोया ने खुद का यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल का आईडी कार्ड और विजिटिंग कार्ड बनवाए.

  जोया ने खुद का एक डिप्लोमेटिक आईडी कार्ड भी बनवाया. इस में खुद को न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताया गया. वाशिंगटन से जारी इस आईडी कार्ड में जोया की तैनाती अफगानिस्तान में बताई गई थी.

  इस के बाद जोया ने उत्तर प्रदेश के एक जिले के एसपी को यूनाइटेड नेशंस और्गनाइजेशन सिक्युरिटी काउंसिल के नाम से ईमेल भेज कर पुलिस एस्कार्ट मांगी.

  जोया को इस ईमेल पर पुलिस एस्कार्ट सुविधा मिल गई. पुलिस की सुरक्षा में इधरउधर आनाजाना, हर चौराहे पर पुलिसकर्मियों की ओर से सैल्यूट देने का रुतबा जोया खान को पसंद आ गया.

फरजी अधिकारी बन कर दिखाती थी रुतबा

जोया ने खुद को भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया. मेरठ में भी वह खुद को आईएफएस अफसर बताने लगी. वह किसी को भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव बताती, किसी को वह यूनाइटेड नेशंस की सिक्युरिटी काउंसिल की न्यूक्लियर पौलिसी अफसर बताती. जोया ने अपनी मर्सिडीज गाड़ी पर यूनाइटेड नेशंस का लोगो भी लगवा लिया था. एसयूवी कार पर नीली बत्ती लगवा ली थी.

  भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी के रूप में जोया खान मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव, अलीगढ़, मथुरा, मुरादाबाद आदि जिलों के एसपी या एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस सिक्युरिटी काउंसिल के सिक्युरिटी चीफ की ओर से ईमेल भेज कर पुलिस सुरक्षा की मांग करती थी.

जोया खान ने अपने मोबाइल में वाइस कनवर्टर ऐप डाउनलोड कर रखा था. वह इस ऐप के जरिए अधिकारियों से कभी पुरुष और कभी महिला की आवाज में बात करती थी. किसी जिले के एसपी या एसएसपी को ईमेल भेजने के बाद जोया खान उस अधिकारी को फोन करती और ऐप के जरिए आवाज बदल कर पुरुष की आवाज में कहती कि मैं विदेश मंत्रालय की जौइंट सेक्रेटरी जोया खान का पीए बोल रहा हूं, मैडम आप से बात करना चाहती हैं.

  इस के तुरंत बाद जोया खान महिला की आवाज में उस अधिकारी से बात करती. वह धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते हुए कई बार फोन पर अधिकारियों को फटकार भी देती थी.

  पत्नी जोया के रुतबे के इस खेल में पति हर्ष को भी मजा आने लगा था. जोया इस खेल में पति को साथ रखना चाहती थी. इसलिए दोनों ने मिल कर एक रास्ता निकाला. इस के मुताबिक जोया आईएफएस अधिकारी बन कर कार में पीछे की सीट पर बैठती थी और हर्ष उस क ा कमांडो बन कर कार चलाता था. हर्ष अपने पास लाइटर पिस्टल और वाकीटाकी रखता था.

  कार से उतर कर जोया जब किसी अधिकारी से मिलने जाती थी, तो हर्ष उस का लैपटौप और डायरी उठा कर चलता था. पुलिस की एस्कार्ट के सामने जोया और हर्ष किसी को यह जाहिर नहीं होने देते कि वे पतिपत्नी हैं. इस दौरान हर्ष जोया को मैडम कह कर कहता था.

अपनी पोल न खुल सके, इस के लिए जोया अपनी कार चलाने के लिए किसी ड्राइवर को नहीं रखती थी. ड्राइवर को रखने से जोया का फरजीवाड़ा उजागर हो सकता था. इसलिए जोया जब भी आईएफएस अफसर बन कर जाती, तो हर्ष ही कार चलाता था. जोया अपने घर में भी किसी पुलिसकर्मी को नहीं आने देती थी.

  इस बीच, जोया अपने पति हर्ष के साथ ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में फ्लैट ले कर रहने लगे. यह फ्लैट जोया ने 6500 रुपए महीने किराए पर ले रखा था. इस सोसायटी में भी जोया ने खुद को आईएफएस अफसर ही बता रखा था.

  जोया हर महीने मेरठ भी आतीजाती रहती थी. मेरठ में भी जोया पुलिस एस्कार्ट लेती थी. इस के लिए वह पहले ही एसएसपी को यूनाइटेड नेशंस का ईमेल भेज देती थी. इसी 26 मार्च को भी जोया मेरठ गई थी और पुलिस सुरक्षा ली थी. इसी दिन वह मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी से भी मिली थी. वह विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों को फोन कर अपने निजी काम, किसी मुकदमे की पैरवी आदि के लिए कहती थी.

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सुरक्षा एजेंसियों ने की पूछताछ

इसी साल जनवरी में ग्रेटर नोएडा वेस्ट की प्रिस्टीन एवेन्यू सोसायटी में रात के समय जोया की कार के शीशे किसी ने तोड़ दिए थे. इस पर जोया ने नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण से शिकायत की थी. इस संबंध में जोया ने मुकदमा भी दर्ज कराया था. पुलिस की ओर से कोई काररवाई नहीं करने पर वह 30 मार्च को इसी सिलसिले में एसएसपी वैभव कृष्ण से मिलने उन के औफिस में गई थी.

  जोया का फरजीवाड़ा उजागर होने के बाद पुलिस अब दूसरी सुरक्षा एजेंसियां जांचपड़ताल में जुटी हुई हैं. जोया खान से बरामद लैपटौप और मोबाइल के डेटा की जांच नोएडा एटीएस टीम कर रही है.

  पुलिस यह भी जांच कर रही है कि जोया का संबंध अफगानिस्तान या अन्य किसी देश से तो नहीं है. यह बात भी सामने आई थी कि गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले जोया ने मेरठ में हुई प्रधानमंत्री की रैली के लिए पुलिस से एस्कार्ट मांगी थी. हालांकि पुलिस इस बात से इनकार कर रही है. नोएडा में गिरफ्तारी के बाद जोया के खिलाफ  मेरठ में भी मुकदमा दर्ज किया गया है. इस के अलावा हरियाणा और उत्तर प्रदेश के उन जिलों में भी जोया के खिलाफ  मुकदमा दर्ज करने की तैयारी चल रही है, जहां जोया ने फरजीवाड़े से पुलिस सुरक्षा हासिल की थी.

  कहा जाता है कि जोया के मातापिता और हर्षप्रताप के पिता को पता चल गया था कि जोया फरजी आईएफएस अफसर बन कर घूमती है. हर्ष के पिता ने बेटे को समझाया भी था, लेकिन सरकारी अफसर का रुतबा और पुलिस वालों के सैल्यूट के आगे उन की समझाइश का कोई मतलब नहीं निकला. कथा लिखे जाने तक दोनों पतिपत्नी जेल में थे.

जहरीली शराब का कहर, एक ही परिवार के 4 लोगों की मौत…

लेखक- सुनील शर्मा

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रानीगंज इलाके में जहरीली शराब पीने से 10 लोगों की मौत हो गई. इन में से 4 लोग तो एक ही परिवार से बताए गए हैं.

ये मौतें रामनगर थानाक्षेत्र के अलगअलग गांव में हुईं. गांव वालों का कहना है कि इन लोगों ने सोमवार 27 मई की रात रानीगंज कसबे में देशी शराब की दुकान से शराब खरीद कर पी थी. थोड़ी देर के बाद जब सभी को पेट दर्द व उलटी की शिकायत हुई तो उन्हें स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाया गया.

शराब पीने के बाद उन लोगों को दिखना भी बंद हो गया था. मामला बिगड़ता दिखा तो उन सब को वहां से जिला अस्पताल भेज दिया गया, जिन में से 4 की जिला अस्पताल में ही मौत हो गई.

इतना ही नहीं, इलाज के दौरान मंगलवार, 28 मई की सुबह तक कुल 12 लोगों की मौत हो गई थी. कइयों की हालत नाजुक बनी हुई थी.

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इस सिलसिले में राज्य के आबकारी मंत्री जयप्रताप सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन के 4 अफसरों और 8 पुलिस वालों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि कुसुरवारों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाए जाएंगे.

दूसरी तरफ गांव वालों का आरोप है कि दानवीर सिंह नाम के एक आदमी की नकली शराब बनाने की एक गैरकानूनी फैक्टरी है. यह नकली शराब उस की सरकारी ठेके वाली दुकान पर बेची जाती है.

 पहले भी लील चुकी है नकली शराब

यह कोई पहला मामला नहीं है जब इस तरह की जहरीली शराब ने लोगों को अपना शिकार बनाया है. इसी साल के फरवरी महीने में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 4 जिलों में जहरीली शराब पीने से 112 लोगों की मौत हुई थी. सूत्रों की मानें तो शराब माफिया ने उस शराब में स्प्रिट या चूहा मारने की दवा मिलाई थी.

फरवरी महीने में ही असम में भी जहरीली शराब के सेवन के चलते 143 लोगों की मौत हुई थी. तब गैरकानूनी शराब की बिक्री और उसे बनाने के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

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सवाल उठता है कि अगर सरकार कुसूरवार लोगों पर कड़ी कार्यवाही करती है तो फिर मौत बेचने का यह धंधा बंद क्यों नहीं हो जाता है? दिक्कत यह है कि इस तरह की शारब बनाने और बेचने वालों का नेटवर्क इतना मजबूत होता है कि वे कोई हादसा होने के बाद कुछ दिन तो चुप रहते हैं, पर बाद में फिर इस नशीले धंधे की भट्ठियों को सुलगा देते हैं. पुलिस और आबकारी महकमे की मिलीभगत से यह धंधा दोबारा फलनेफूलने लगता है, जिस का बुरा अंत फिर किसी की मौत से होता है.

बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में, जहां शराबबंदी की जा चुकी है, से भी जहरीली शराब पी कर लोगों द्वारा अपनी जान गंवाने की खबरें आती रहती हैं तो आप समझ सकते हैं कि नशे का यह गैरकानूनी कारोबार देशभर में अपनी कितनी मजबूत जड़ें जमा चुका है.

ग्लैमरस लाइफ बनी मौत का कारण…

 लेखक-  प्रगति अग्रवाल 

बीते 28 मार्च की बात है. छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में गुरुर थाने से करीब 5-7 किलोमीटर दूर स्थित धानापुरी गांव के कुछ लोग सुबह 8 बजे जब गंगरेल भिलाई नहर में नहाने गए तो वहां उन्होंने एक युवती की लाश तैरती देखी. ग्रामीणों ने इस की सूचना धानापुरी की सरपंच योगेश्वरी मानिक सिन्हा और गुरुर थाना पुलिस को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर नहर में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. लाश किसी युवती की थी, जिस की उम्र करीब 30 साल थी. लाश के हाथपैर और गला रस्सी से बंधा हुआ था. रस्सी को एक कांश्भाररी पत्थर से बांधा गया था. मृतका के पेट पर चाकू से वार करने के 2 निशान थे. पुलिस जब नहर से लाश निकालने की काररवाई कर रही थी, तब आसपास के काफी ग्रामीण एकत्र हो गए.

पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से युवती की शिनाख्त कराने के प्रयास किए. लेकिन कोई भी उस युवती को नहीं पहचान सका. युवती चुस्त कुरता और सलवार पहने थी. मृतका की हथेली पर अंग्रेजी में ए. यादव लिखा था और बाएं हाथ पर पंखुड़ी का टैटू बना हुआ था.

इस बीच, बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी भी मौके पर पहुंच गए. निरीक्षण कर उन्होंने अनुमान लगाया कि युवती की हत्या रात को की गई होगी और उस के शव को करीब 10 किलोमीटर के दायरे से ला कर वहां फेंका गया है.

लाश को पत्थर से बांध कर संभवत: इसलिए फेंका गया होगा कि वह पानी के नीचे डूबी रहे. लेकिन गंगरेल नहर में बहाव तेज होने से लाश पत्थर सहित पानी के साथ बह कर धानापुरी की तरफ आ गई.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने युवती के शव को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. आगे की जांच के लिए सब से पहले लाश की शिनाख्त जरूरी थी, कपड़ों और टैटू से लग रहा था कि युवती किसी खातेपीते परिवार की और बड़े शहर की रहने वाली थी. समझदारी से काम लेते हुए पुलिस ने युवती के शव के फोटो वाट्सएप के जरिए सोशल मीडिया पर डाल दिए.

इस का परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गया. कई लोगों ने उस शव की शिनाख्त आंचल यादव के रूप में की. पुलिस को केवल मृतका का नाम पता चला था, बाकी जानकारी नहीं मिली थी. इस पर पुलिस ने आंचल यादव नाम की युवतियों के फेसबुक अकाउंट खंगाले.

इस में आंचल यादव नाम के एक फेसबुक अकाउंट पर लगी फोटो से लाश का हुलिया मेल खा रहा था. आंचल के फेसबुक अकाउंट पर एक ऐसी फोटो भी मिल गई. जिस में उस के हाथ पर पंखुड़ी का टैटू साफ नजर आ रहा था. टैटू का मिलान होने पर यह तय हो गया कि लाश आंचल यादव की ही है.

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आंचल की लाश की हुई शिनाख्त

फेसबुक अकाउंट और अन्य सूत्रों से पुलिस को पता चला कि आंचल गुरुर से 5-7 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय धमतरी की विवेकानंद कालोनी की रहने वाली थी. वह धमतरी के अलावा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी रहती थी.

शव की विश्वसनीय शिनाख्त मृतका के घर वाले कर सकते थे. इस के लिए गुरुर थाना पुलिस ने धमतरी सिटी कोतवाली पुलिस से संपर्क किया. धमतरी पुलिस के सहयोग से गुरुर थाना पुलिस का संपर्क आंचल के परिवार से हो गया.

पुलिस की सूचना पर आंचल के भाई सिद्धार्थ ने अस्पताल जा कर शव की शिनाख्त की. शव आंचल यादव का ही था. पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने और आवश्यक काररवाई के बाद देर शाम आंचल का शव उस के भाई सिद्धार्थ को सौंप दिया. बालोद थाने में हत्या का मामला पहले ही दर्ज कर लिया गया था.

पुलिस ने आंचल के बारे में जानकारी लेने के लिए उस के परिवार वालों से पूछताछ की. उस की मां ममता यादव ने बताया कि आंचल एक दिन पहले यानी 25 मार्च को रायपुर से अदालत की किसी पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. उस रात वह करीब 9 बजे अपनी कार से धमतरी में विवेकानंद कालोनी स्थित घर पर पहुंची थी.

घर पहुंचते ही उस के मोबाइल पर एक काल आई. फोन पर बात करने के बाद आंचल घर से चली गई. मां ने उसे रात में जाने से रोका भी था, लेकिन वह नहीं मानी और थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से बाहर निकल गई.

पुलिस ने अपने स्तर पर आंचल यादव के बारे में पता करवाया. पता चला कि ग्लैमरस लाइफ जीने वाली आंचल का धमतरी, भिलाई और रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ व अन्य कई बड़े शहरों के हाई प्रोफाइल लोगों से संपर्क था. वह अकसर रायपुर की पेज थ्री पार्टियों और क्लबों में नजर आती थी. उसे लग्जरी कारों का भी शौक था.

तीखे नाकनक्श वाली आंचल जिस शानोशौकत और आधुनिकता से रहती थी, उस से लोगों का अनुमान था कि वह मौडलिंग करती है और छत्तीसगढ़ की छौलीवुड हीरोइन है. आंचल ने अपने फोटोशूट कराने के लिए पर्सनल फोटोग्राफर रखा हुआ था. हालांकि लोगों ने आंचल को कभी मौडलिंग करते या  किसी फिल्म अथवा एलबम वगैरह में नहीं देखा था, लेकिन उस का रहनसहन और जीवनशैली किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं थी. इसलिए सभी उसे मौडल या हीरोइन समझते थे.

आंचल रोजाना फेसबुक व सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती थी. वह फेसबुक पर रोजाना अपना एक ग्लैमरस फोटो अपलोड करती थी. अपने फेसबुक अकाउंट पर 25 मार्च को शाम 4 बज कर 7 मिनट पर अंतिम बार उस ने एक कुत्ते के साथ वाला फोटो अपलोड किया था. आंचल के फेसबुक पर 22 हजार से ज्यादा फौलोअर थे.

प्रारंभिक जांच पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि फरवरी 2014 में वन विभाग के एक रेंजर की अश्लील सीडी बना कर आंचल ने उसे ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगे थे. इस मामले में उसे पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था. कुछ दिन बाद जेल से छूटने पर आंचल ने अपना गृहनगर धमतरी छोड़ दिया था और रायपुर में अकेली रहने लगी थी. आंचल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर खुद को रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की एक्जीक्यूटिव सेल्स मैनेजर बताया था.

शौर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आंचल की हत्या की पुष्टि हो गई. उस के पेट में चाकू से वार करने के निशान थे. यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि हत्या से पहले उस के साथ दुष्कर्म हुआ था या नहीं. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने रिपोर्ट में लाश के करीब 12 घंटे तक पानी में रहने की बात कही थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घर से निकलने के कुछ ही देर बाद आंचल की हत्या कर दी गई होगी. मां ने बताया था कि आंचल के पास मोबाइल था. लेकिन पुलिस को कोई मोबाइल फोन नहीं मिला था.

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रहस्य बन गई थी आंचल की हत्या

आंचल के घर वालों ने 27 मार्च को धमतरी में उस की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया. आंचल के शव की अंत्येष्टि के बाद पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की. इस में वही बात सामने आई कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल के मोबाइल पर किसी की काल आई थी.

उस के बाद वह अपनी कार घर पर छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह किस के साथ गई, इस के बारे में आंचल की मां और भाई ने अनभिज्ञता जताई. मां ने इतना जरूर बताया कि आंचल किसी के साथ बाइक पर बैठ कर गई थी.

आंचल के संबंध हाईप्रोफाइल लोगों से होेने और एक बार पहले ब्लैकमेलिंग के चक्कर में जेल जाने से पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई है. इसलिए पुलिस ने आंचल के संपर्क वाले लोगों को जांच के दायरे में लिया.

साथ ही धमतरी में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगालने का काम भी शुरू किया. पुलिस ने आंचल का मोबाइल तलाशने और उस की लोकेशन का पता लगाने की भी कोशिश की. लेकिन कुछ पता नहीं चला.

आंचल की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दुर्ग रेंज के आईजी हिमांशु गुप्ता 27 मार्च को थाना गुरुर पहुंचे. उन्होंने इस मामले में पुलिस अधिकारियों से आवश्यक जानकारी ली और उन्हें दिशानिर्देश दिए. आईजी ने धमतरी के एसपी बालाजी राव को भी इस मामले में बालोद पुलिस का सहयोग करने को कहा.

आंचल के धमतरी और रायपुर में रहने और कई शहरों के रईसजादों से संपर्क होने की वजह से जांच कई नजरिए से होनी जरूरी थी. इस के लिए पुलिस की 5 अलगअलग टीमें बनाई गईं. इन टीमों ने अलगअलग लोगों को ध्यान में रख कर जांच शुरू की. इन में एक कोण पैसे और ब्लैकमेलिंग का भी था.

आंचल ने रायपुर के वीआईपी रोड स्थित फ्लावर वैली में करीब 35 हजार रुपए महीना किराए पर बंगला ले रखा था. 28 मार्च को पुलिस ने आंचल के इस बंगले की तलाशी ली. तलाशी में पुलिस को सीडी, लैपटौप, पैनड्राइव, वन विभाग के अफसरों के नाम लिखे कुछ दस्तावेज आदि मिले. पुलिस ने इन की जांच पड़ताल की. लेकिन कहीं से भी आंचल की हत्या का कोई क्लू नहीं मिला. पुलिस ने आंचल की फ्रैंड्स से भी पूछताछ कर के हत्या का कारण जानने का प्रयास  किया, लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस से इस मामले में उम्मीद की कोई किरण नजर आती.

पुलिस की जांच का फोकस आंचल के दोस्तों, हाईप्रोफाइल लोगों और उस के घर वालों पर था. पुलिस ने कुछ बिंदुओं पर जांच शुरू की. ऐसा कर के पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि आंचल कब और किस समय कहां जाती थी और किन लोगों के ज्यादा संपर्क में थी.

अपने महंगे शौक पूरे करने और ग्लैमरस जिंदगी जीने के लिए आंचल के पास आमदनी के क्या स्रोत थे, यह भी जानने की कोशिश की गई. यह भी पता लगाया गया कि 25 मार्च को दिन भर उस की किनकिन लोगों से मोबाइल पर बात हुई थी. उस दिन वह रायपुर से धमतरी आई तो किनकिन लोगों को इस बात की जानकारी थी और किन लोगों से उस की मुलाकात हुई.

साथ ही यह भी कि रात 9 बजे वह बाइक पर बैठ कर किस के साथ गई थी. इस के अलावा एक पुलिस टीम को सीसीटीवी कैमरे खंगालने और आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई.

साइबर सेल की मदद से पुलिस ने आंचल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली. पता चला कि 25 मार्च को आंचल के फोन पर 40 से ज्यादा लोगों के काल आए थे. इन में कई हाईप्रोफाइल लोगों के अलावा रायपुर व भिलाई के रहने वाले उस के दोस्त भी शामिल थे. पुलिस ने इन में से कई लोगों से पूछताछ की.

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जांच के लिए कई कोण मिले

पर सब बेकार साबित हुए

जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि जगदलपुर के एक व्यक्ति ने आंचल के पिता राकेश यादव से 50 लाख रुपए में उन का धमतरी का मकान और जमीन खरीदी थी.

बाद में आंचल ने पिता की मानसिक स्थिति खराब होने की बात कह कर इस सौदे से इनकार कर दिया था. इस पर मकान खरीदने वाले ने आंचल के खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जमीन खरीदने वाले शख्स को जांच के दायरे में ले कर पूछताछ की.

जांच में पुलिस को कोलकाता के एक कथित तांत्रिक बाबा से भी आंचल के संपर्कों का पता चला. बाबा आंचल से मिलने रायपुर भी आता था. आंचल इस बाबा के जरिए कोई सिद्धि हासिल कर सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहती थी.

बाद में इस बाबा से आंचल का मोहभंग हो गया था. बाबा से पीछा छुड़ाने के बाद आंचल को अहसास हुआ कि वह ठगी गई है. आंचल ने अपने करीबी कुछ लोगों को बताया था कि बाबा ने पैसे हड़पने के साथ उस का शोषण भी किया था. हालांकि बाबा के खिलाफ आंचल ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी.

पुलिस ने आंचल के ब्लैकमेलिंग के पुराने मामले को ध्यान में रख कर वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों से भी पूछताछ की. लेकिन ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से आंचल के हत्यारों का सुराग मिल पाता.

सभी एंगलों पर चल रही जांचपड़ताल के बीच 27 मार्च की शाम दुर्ग के आईजी हिमांशु गुप्ता और बालोद के एसपी एम.एल. कोटवानी ने धमतरी में आंचल के घर जा कर उस की मां ममता यादव और भाई सिद्धार्थ से पूछताछ की. इस पूछताछ में पुलिस को आंचल की हत्या के बारे में कुछ अहम सुराग मिले. इस के बाद पुलिस ने जांच की दिशा तय कर ली.

आवश्यक तथ्य  जुटाने के बाद पुलिस ने 30 मार्च की शाम आंचल के भाई सिद्धार्थ यादव को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई. बाद में उसे आंचल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. सिद्धार्थ से पूछताछ के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार  किया गया. मांबेटे से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. उस का कारण था आंचल की वजह से होने वाली परिवार की बदनामी.

धमतरी के रहने वाले राकेश यादव आबकारी विभाग में निरीक्षक थे. उन का छोटा सा परिवार था. इस परिवार में पत्नी ममता यादव के अलावा बड़ी बेटी थी आंचल और छोटा बेटा था सिद्धार्थ. राकेश यादव ने दोनों बच्चों आंचल और सिद्धार्थ को बड़े लाड़प्यार से पाला. आंचल ने धमतरी के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद ग्रैजुएशन की. इस के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया.

कहा जाता है कि तीखे नाकनक्श वाली आंचल जैसेतैसे जवान होती गई, वैसेवैसे उस की खूबसूरती गजब ढाने लगी. आंचल जब आइने में अपना चेहरा देखती थी तो उसे अपनी खूबसूरती पर रश्क होता. उस की सहेलियां भी उसे हीरोइन कह कर चिढ़ाती थीं. वे उस से कहती थीं कि तू इतनी खूबसूरत है कि फिल्मी हीरोइन भी तेरे आगे पानी भरेंगी.

खूबसूरती और महत्त्वाकांक्षा

बनी पतन का कारण

जवानी के साथ बढ़ती खूबसूरती ने आंचल के ख्वाबों की ऊंचाई भी बढ़ा दी. वह ग्लैमर की दुनिया में नाम कमाने के बारे में सोचने लगी. लेकिन इस के लिए न तो उस के पास अनुभव था और न ही ग्लैमर की दुनिया तक पहुंचने का रास्ता उसे पता था. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह आधुनिक परिवेश में ढलती गई और इसी चक्कर में उस के कदम बहक गए.

उन्हीं दिनों वह वन विभाग के एक रेंजर के प्यार में उलझ गई. बाद में आंचल ने उस रेंजर की अश्लील सीडी बना ली. इस सीडी के बहाने वह रेंजर को ब्लैकमेल कर 3 करोड़ रुपए मांगने लगी. रेंजर ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस मामले में सन 2014 में पुलिस ने आंचल को गिरफ्तार किया था. आंचल को करीब ढाई महीने तक जेल में रहना पड़ा. बाद में वह जमानत पर छूट गई.

बेटी की ऐसी गुश्ताखियों से लगे सदमे के कारण पिता राकेश यादव की मौत हो गई. जेल से छूटने के बाद आंचल ज्यादा स्वच्छंद हो गई. उस ने धमतरी शहर छोड़ दिया और वह रायपुर जा कर रहने लगी.

रायपुर में उस की जानपहचान कई रईसजादों से हो गई. जल्दी ही उस की दोस्ती का दायरा रायपुर, भिलाई और दुर्ग के अलावा कई अन्य शहरों के हाईप्रोफाइल लोगों तक फैल गया. वह रायपुर में होने वाली हाईप्रोफाइल नाइट पार्टियों की शान बन गई.

रईसजादों से दोस्ती हुई तो आंचल ने रायपुर की फ्लावर वैली में किराए का एक बंगला ले लिया. साथ ही उस ने लग्जरी कार भी ले ली.

वह आधुनिक तौरतरीकों और शानोशौकत से ग्लैमरस लाइफ जीने लगी. कभीकभी वह धमतरी भी आ जाती थी. साथ ही कभी उस की मां या भाई भी रायपुर आ जाते थे. इस बीच भाई सिद्धार्थ ने धमतरी में किराए पर टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था.

आंचल भले ही रायपुर में रहती थी, लेकिन उस की स्वच्छंदता और चालचलन के किस्से धमतरी में रह रहे भाई सिद्धार्थ और मां ममता के कानों तक पहुंच जाते थे. उन्हें मौडर्न लाइफ स्टाइल के नाम पर आंचल का अश्लीलता बिखेरने वाले छोटेछोटे कपड़े पहन कर पार्टियों में शामिल होना और शराब पीना अच्छा नहीं लगता था. इस से उन के परिवार की बदनामी हो रही थी.

आंचल के कारण सिद्धार्थ और ममता को लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. बदनामी की वजह से सिद्धार्थ की शादी भी नहीं हो रही थी. इसे ले कर आंचल और सिद्धार्थ में अकसर विवाद होता रहता था. आंचल और सिद्धार्थ के बीच पिता की संपत्ति का भी विवाद था.

आंचल ने 3 डौगी पाल रखे थे. इन में से एक डौगी का नाम उस ने अपने छोटे भाई सिद्धार्थ उर्फ जिमी के नाम पर जिमी रखा हुआ था. कई बार आंचल अपने भाई को जलील करने के लिए उस के टुकड़ों पर पलने वाला कुत्ता तक कह देती थी. बेटी के रहने सहने के ढंग और भाई के साथ उस के व्यवहार से मां भी परेशान थी.

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गुस्से में उबला खून बना खतरनाक

25 मार्च को आंचल रायपुर से पेशी के सिलसिले में धमतरी आई थी. वह अपनी कार से अपने 3 पालतू कुत्ते भी लाई थी. शाम करीब 7 बजे अपनी काले रंग की कार से वह घर पहुंची. थोड़ी देर बाद उस का भाई सिद्धार्थ से पुरानी बातों को ले कर विवाद हो गया.

इस पर आंचल ने भाई से कहा कि तुम मेरी कमाई पर पल रहे हो. तुम्हारी औकात घर के पालतू कुत्ते जिमी जैसी है. यह सुन कर सिद्धार्थ को गुस्सा आ गया. उस ने आंचल को 2 तमाचे जड़ दिए.

चांटे खाने से तिलमिलाई आंचल ने अपने बैग से चाकू निकाला और सिद्धार्थ पर हमला कर दिया. इस से सिद्धार्थ के हाथ पर जख्म हो गया और खून रिसने लगा. खून बहता देख कर सिद्धार्थ अपना आपा खो बैठा.

उस ने आंचल से चाकू छीन लिया और उसी से आंचल के पेट पर कई वार किए. फिर उस ने तब तक उस पर गला दबाए रखा जब तक कि उस के प्राण नहीं निकल गए.

इस घटना के वक्त आंचल की मां ममता घर में ही थी. वह बाथरूम में काम कर रही थी. ममता बाथरूम से कमरे में आई तो आंचल फर्श पर पड़ी थी उस के पेट से खून बह रहा था और सांसें थम चुकी थीं. सिद्धार्थ ने मां को सारी बात बता दी. मां भी आंचल की हरकतों और तानों से त्रस्त थी. इसलिए वह बेटे का साथ देने को तैयार हो गई. आखिर मांबेटे ने मिल कर आंचल का शव ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

आंचल का शव घर में पड़ा छोड़ कर सिद्धार्थ उस का मोबाइल ले कर बाइक से मकई चौक गया. वहां उस ने पान खाया, फिर म्युनिसिपल स्कूल के पास आ कर आंचल का मोबाइल स्विच औफ कर दिया. इस के बाद सिद्धार्थ घर लौट आया.

सिद्धार्थ ने मां की मदद से आंचल की कार की डिक्की में उस की लाश रखी. फिर वह पुलिस और सीसीटीवी कैमरों से बचने के लिए कार ले कर जिला अस्पताल के बगल से जाने वाली पतली गली में हो कर म्युनिसिपल स्कूल के पास पहुंचा.

वहां से वह बस्तर रोड पर निकल गया. गुरुर और कनेरी होते हुए वह गंगरेल नहर पर पहुंच गया. नहर पर पहुंच कर उस ने डिक्की से आंचल की लाश कार से निकाली. नहर के किनारे ले जा कर उस ने लाश को रस्सी के सहारे एक भारी पत्थर से बांधा और लाश नहर में लुढ़का दी.

नहर में आंचल का शव फेंकने के बाद सिद्धार्थ ने उस की घड़ी, मोबाइल फोन, सोने का ब्रेसलेट आदि चीजें वालेदगहन के पास फेंक दीं.

घर वापस लौट कर सिद्धार्थ ने आंचल की कार में लगे खून के धब्बों को साफ किया. इस से पहले मां ने कमरे में फर्श पर फैले खून को साफ कर दिया था. आंचल की लाश ठिकाने लगाने के बाद मांबेटे ने पुलिस को बताने के लिए झूठी कहानी रच ली.

दूसरे दिन नहर में आंचल का शव मिलने और शिनाख्त होने के बाद वे पुलिस को यही बताते रहे कि 25 मार्च की रात 9 बजे आंचल जब घर आई तो उस के मोबाइल पर काल आ गई थी. इस के बाद वह काल करने वाले को अपशब्द कहते हुए बाहर चली गई और फिर वापस नहीं लौटी.

पूछताछ के दौरान पुलिस को सिद्धार्थ की कलाई पर कटे का निशान नजर आया. कलाई में कट का निशान लगने के बारे में सिद्घार्थ और उस की मां ने अलगअलग बातें बताईं. इलाज कराने की बात पर भी दोनों ने अलगअलग अस्पतालों के नाम बताए. इस से पुलिस का शक मांबेटे पर गहरा गया.

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छिप न सका अपराध

पुलिस ने आंचल की कार की तलाशी ली तो उस में खून के निशान मिले. इस के अलावा सीसीटीवी कैमरे खंगालने पर भगवती अस्पताल के पास से रात करीब 9 बजे आंचल की कार जाती हुई दिखाई दी. आंचल की कार में सिद्धार्थ के फिंगरप्रिंट भी मिल गए.

कई ठोस सबूत मिलने के बाद पुलिस ने जब सिद्धार्थ को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. इस के बाद उस ने आंचल की हत्या की सारी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने सिद्धार्थ के बयानों के आधार पर उस की मां ममता यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. सिद्धार्थ की निशानदेही पर आंचल की घड़ी, मोबाइल फोन ब्रैसलेट आदि बरामद हो गए. वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से आंचल की हत्या की गई थी.

यह विडंबना रही कि ग्लैमरस जिंदगी जीने की तमन्ना में आधुनिकता का लबादा ओढ़ कर स्वच्छंद उड़ान भरने वाली आंचल न तो अपनी जिंदगी जी सकी और ना ही अपने परिवार को सुकून से रहने दिया. उस के जिंदगी जीने के तौरतरीकों से हंसताखेलता परिवार बिखर गया. आंचल के खून से हाथ रंग कर  भाई और मां जेल पहुंच गए.

बेटे ने मम्मी की बना ही ममी…

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर

सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.

रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.

उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.

एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.

जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.

रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाबकिताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

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जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

 

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.

चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.

उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.

दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.

रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.

कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.

जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खूनपसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

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दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.

मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होतेहोते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.

चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.

खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.

श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसीपड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलनेफिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.

पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारनेपीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारतापीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

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राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.

पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नातेरिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.

अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…

पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ीगली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.

लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.

पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.

सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.

विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैलेकुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

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जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.

विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई  थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.

5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.

उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.

चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.

बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.

 

बालिका सेवा के नाम पर…

31जनवरी, 2019 की शाम जावरा क्षेत्र में पिपलोदा रोड स्थित कुटीर बालिका गृह के बाहर अफरातफरी
का माहौल था. बालिका गृह के गेट पर औद्योगिक क्षेत्र के टीआई बी.एल. सोलंकी, एसआई मधु राठौर और पुलिस बल के साथ खड़े थे.
भारी पुलिस बल को देख कर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. उसी समय पूर्व संचालिका रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश भारतीय के साथ बालिका गृह से बाहर निकल आई.
रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश के साथ आश्रम के प्रांगण में स्थित घर में रहती थी. रचना ने टीआई सोलंकी से आने की वजह जाननी चाही तो टीआई ने बताया कि वह जिला कलेक्टर के आदेश पर आश्रम में रहने वाली बच्चियों को वहां से हटा कर रतलाम के वन स्टाफ सेंटर में ले जाने के लिए आए हैं.
रचना और उस के पति ओमप्रकाश ने इस बात का विरोध करना चाहा लेकिन पुलिस के सामने उन की एक नहीं चली. पुलिस ने आश्रम में रह रही करीब 300 बालिकाओं को बसों में बैठाया. इतना ही नहीं टीआई बी.एल. सोलंकी ने रचना भारतीय व ओमप्रकाश को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद वह उन्हें ले कर थाने लौट आए. उन्होंने सभी बालिकाओं को रतलाम के वन स्टाफ सेंटर भेज दिया.
रचना और ओमप्रकाश भारतीय को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की बात जल्द ही पूरे जावरा शहर में फैल गई. पर पुलिस की काररवाई चलती रही. टीआई सोलंकी ने अगले दिन क्षेत्र के 2 और चर्चित व्यक्तियों कुंदन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सुदेश जैन और सचिव दिलीप बरैया को भी गिरफ्तार कर लिया.
दरअसल इन की गिरफ्तारी की वजह यह थी कि कुटीर आश्रम से 24 जनवरी, 2019 को 5 बालिकाएं बालिका गृह का रोशनदान तोड़ कर फरार हो गई थीं.
आश्रम से बालिकाओं के भागने की सूचना मिलते ही पुलिस और बाल कल्याण समिति सक्रिय हो गई. जिस के चलते ये सभी बालिकाएं शाम को मंदसौर में मिल गईं. बालिकाओं से पूछताछ की गई तो पता चला कि रचना और उस का पति अन्य लोगों के साथ मिल कर इन लड़कियों का शारीरिक शोषण करते थे.

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कलेक्टर ने दिए थे जांच के आदेश

यह जानकारी जब रतलाम की कलेक्टर रुचिका चौहान को मिली तो उन्होंने जावरा क्षेत्र के एसडीएम एम.एल. आर्य को संस्था में रह रही दूसरी लड़कियों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एसडीएम ने आश्रम जा कर वहां रह रही करीब 300 लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने आपबीती एसडीएम साहब को बता दी.
एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर रुचिका चौधरी को सौंप दी. इस के बाद ही कलेक्टर रुचिका चौहान ने आदेश दिया कि कुटीर बालिका गृह में रह रही सभी बच्चियों को वहां से वन स्टाफ सेंटर रतलाम शिफ्ट कर दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.
जिला कलेक्टर के आदेश पर ही पुलिस ने बालिका गृह की पूर्व संचालिका रचना भारतीय तथा उस के पति ओमप्रकाश भारतीय, संस्था के वर्तमान अध्यक्ष और सचिव सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया के खिलाफ भादंवि की धारा 354, 376, 324 एवं बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम की धारा 75, पोक्सो 5डी, 4, 7/8 के तहत मामला दर्ज कर लिया.
जांच में पुलिस को पता चला कि रचना भारतीय पूर्व में इस बालिका गृह की संचालिका के पद पर थी. वह अपने पति ओमप्रकाश के साथ बालिका गृह के एक हिस्से में रहती थी. बाद में अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते उसे बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.

चूंकि वह एक साथ 2 पदों पर नहीं रह सकती थी, लिहाजा उस ने बालिका गृह की संचालिका का पद छोड़ना जरूरी समझा. यह पद छोड़ने के बाद रचना ने अपने विश्वसनीय सुदेश जैन और दिलीप बरैया को संस्था का अध्यक्ष और सचिव बनवा दिया था. पद छोड़ने के बाद भी रचना अपने पति के साथ इसी आश्रम में रहती थी.
सुदेश जैन और दिलीप बरैया नाम के ही पदाधिकारी थे. बालिका गृह से जुड़े सारे फैसले रचना और उस का पति ही लेते थे.
बहरहाल पुलिस ने दूसरे दिन सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जहां से रचना भारतीय को रतलाम एवं ओमप्रकाश भारतीय, सुदेश जैन तथा दिलीप बरैया को जावरा जेल भेज दिया गया.
अदालत में पेश करने से पहले सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया की मौजूदगी में टीआई बी.एल. सोलंकी तथा हुसैन टेकरीजहां के तहसीलदार के सामने आश्रम की सील तोड़ कर दस्तावेजों की जांच की गई.
साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में महिला सशक्तिकरण अधिकारी रहे एवं वर्तमान में महिला बाल विकास विभाग के सहायक संचालक रविंद्र मिश्रा को निलंबित कर दिया गया.
इस के अलावा रचना को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया. बालिका गृह में लड़कियों के साथ किए जाने वाले शोषण की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

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कई साल पहले जावरा नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे कुंदनमल भारतीय. ओमप्रकाश भारतीय कुंदनमल का ही बेटा था. जबकि रचना ओमप्रकाश भारतीय की पत्नी थी. कुंदनमल की मृत्यु के बाद सन 2015 में रचना ने कुंदन बेलफेयर सोसाइटी का गठन कर उस के अंतर्गत पिपलौदा रोड पर कुंदन कुटीर नाम से बालिका गृह का संचालन किया.

राजनैतिक पहुंच का उठाया लाभ

रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.
जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी. पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.
रात के समय आश्रम में आने वाली एक महिला भी शराब पीए होती थी. मम्मा एक गुप्त रास्ते से लड़कियों के कमरों में आती थी. रात के खाने में हमें कुछ मिला कर खिलाया जाता था, जिस के बाद हम उठ ही नहीं पाते थे.
यह भी पता चला कि सन 2018 में लड़कियों की शिकायत पर बाल संरक्षण अधिकारी पवन कुमार सिसौदिया ने जांच कर के अपनी रिपोर्ट रतलाम में संबंधित विभाग के 2 अधिकारियों को सौंपी थी. लेकिन उन की जांच रिपोर्ट पर कोई काररवाई नहीं की गई.
शिकायत में बच्चियों ने आरोप लगाए कि रचना मम्मा का व्यवहार काफी खराब है. वह बातबात पर हम लोगों से मारपीट करती हैं. समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. लड़कियों ने बताया कि रचना के पति हम लोगों के शरीर पर गलत नीयत से हाथ फेरते थे. मना या विरोध करने पर हमारे साथ मारपीट की जाती थी. वह कभीकभी किचन में आ कर लड़कियों के पैर में हाकी डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींच लेते.

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बहरहाल अब शासन ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है बल्कि रचना के आश्रम में रहने वाली सभी बच्चियों को रतलाम और उज्जैन के आश्रमों में शिफ्ट कर दिया है, दूसरी तरफ रतलाम कलेक्टर के निर्देश पर पुलिस उन तमाम बच्चियों से संपर्क कर उन के बयान लेने की कोशिश कर रही हैं, जो कभी न कभी रचना के आश्रम में रही थीं.
कुंदन कुटीर बालिका गृह मामले में एक युवती से वीडियो बनवाने के संबंध में करीब 2 महीने से फरार चल रहे नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस से निष्कासित यूसुफ कड़पा को पुलिस ने गिरफ्तार कर भी लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को आननफानन में कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया.
इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में आरोपी के पुलिस रिमांड की मांग भी नहीं की. पुलिस ने कोर्ट से उसे जेल भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने आरोपी के आवेदन पर उसे कोर्ट से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

मासूमियत बनी मौत…

प्रसिद्ध धार्मिक नगरी चित्रकूट का एसपीएस यानी सदगुरु पब्लिक स्कूल अपने आप में एक ब्रांड है. अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल में

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं, चित्रकूट (मध्य प्रदेश) से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित है, कर्बी जिले (उत्तर प्रदेश) के सैकड़ों बच्चे यहां रोजाना पढ़ने के लिए बस से आते हैं.

इन्हीं सैकड़ों बच्चों में से श्रेयांश रावत और प्रियांश रावत की पहचान कुछ अलग हट कर थी. क्योंकि ये दोनों जुड़वां भाई भी थे और हमशक्ल भी. दोनों को पहचानने में कोई भी धोखा खा जाता था. 5-5 साल के ये मासूम अभी एलकेजी में पढ़ रहे थे. जुड़वां होने के अलावा एक और दिलचस्प बात यह भी थी कि रावत परिवार के ये दोनों ही नहीं बल्कि 11 बच्चे एसपीएस में पढ़ रहे थे. इन में से 2 श्रेयांश और प्रियांश के सगे बड़े भाई देवांश और शिवांश भी थे.

इन चारों भाइयों के पिता ब्रजेश रावत चित्रकूट के जाने माने तेल व्यापारी हैं. आयुर्वेदिक तेलों का कारोबार करने वाले ब्रजेश रावत ईमानदार, कर्मठ और मिलनसार व्यक्ति हैं. तेल के अपने पुश्तैनी कारोबार को उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. इसी वजह से कर्बी से ले कर चित्रकूट तक उन की अपनी एक अलग पहचान है.

अपने कारोबार में मशगूल रहने वाले ब्रजेश रावत हर लिहाज से सुखी और संपन्न कहे जा सकते हैं. कर्बी के रामघाट में उन का बड़ा मकान है, जिस में पूरा रावत परिवार संयुक्त रूप से रहता है. उन के घर में हर वक्तचहलपहल रहती है जिस की बड़ी वजह वे 11 बच्चे भी हैं जो एसपीएस में पढ़ते थे.

ईश्वर में अपार श्रद्धा रखने वाले ब्रजेश रावत ने कभी सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी कि कभी उन के साथ भी ऐसी कोई अनहोनी होगी जो जिंदगी भर उन्हें सालती रहेगी और जिन श्रेयांश और प्रियांश की मासूम किलकारियां और शरारतों से उन का घर आबाद रहता है, उन की यादें उम्र भर उन्हें काटने को दौड़ती रहेंगी.

रोजाना की तरह 12 फरवरी को भी दोपहर में लगभग 12 बजे एसपीएस की बसें लाइन से लग गई थीं. बच्चे अपनी बसों का नंबर पढ़ते हुए उन में सवार हो रहे थे. छोटी कक्षाओं के बच्चों में स्कूल की छुट्टी के बाद घर जाने की खुशी ठीक वैसी ही होती है जैसी जेल से लंबी सजा काट कर रिहा हुए कैदियों की होती है.

क्लास से लाइन में लग कर बाहर आए प्रियांश और श्रेयांश भी अपनी बस में सवार हो गए, जिस में ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा एक केयरटेकर भी थी. जब बस के सभी बच्चे आ कर अपनीअपनी सीटों पर बैठ गए तो गेट बंद होने के बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. इस बस का नंबर था एमपी19-0973.

स्कूल कैंपस से बस अभी 500 मीटर का फासला भी तय नहीं कर पाई थी कि न जाने कहां से एक लाल रंग की बाइक आई और बस के सामने रुक गई.

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ड्राइवर ने अचकचा कर बस धीमी की लेकिन जब तक वह माजरा समझ पाता तब तक बाइक पर सवार दोनों युवक नीचे उतर आए. उन में से एक के हाथ में पिस्टल थी. दोनों युवकों ने चेहरा भगवा कपड़े से ढक रखा था. फिल्मी स्टाइल में ही बस के गेट तक आए बदमाशों ने डरावनी चेतावनी दी और श्रेयांश और प्रियांश को नीचे उतार लिया.

कोई कुछ समझ या कर पाता इस के पहले ही दोनों ने श्रेयांश और प्रियांश को बाइक पर बीच में बैठाया और आंधीतूफान की तरह जैसे आए थे, वैसे ही उड़नछू हो गए. कहां गए यह कोई उन्हें ढंग से भी नहीं देख पाया.

यह जरूर है कि हर किसी को समझ आ गया कि दिन दहाड़े स्कूल बस में से दोनों का अपहरण हो गया है और अपहरणकर्ताओं का टारगेट श्रेयांश और प्रियांश ही थे, क्योंकि अगर किसी को भी उठाना होता तो बच्चे आगे की सीटों पर भी बैठे थे. लेकिन बदमाशों ने पीछे की सीट पर बैठे दोनों भाइयों को ही उठाया था यानी अपहरण की यह वारदात पूर्वनियोजित थी.

बाइक के नजरों से दूर होते ही कंडक्टर ड्राइवर और केयरटेकर सहित बच्चों का डर खत्म हुआ तो खासी हलचल मच गई. देखते ही देखते यह बात चित्रकूट की तंग और संकरी गलियों से होती हुई देश भर में फैल गई कि 2 जुड़वां भाईयों का दिनदहाड़े अपहरण हो गया.

अपहरण के बाद मिनटों में वारदात की खबर पुलिस और ब्रजेश रावत तक पहुंच गई. ब्रजेश भागेभागे स्कूल आए, लेकिन वहां उन के जिगर के ये दोनों जुड़वां टुकड़े नहीं थे. थी तो ऊपर बताई गई दास्तां जो हर किसी ने अपने शब्दों मे बयां की, जिस का सार यह था कि एक बाइक पर 2 नकाबपोश बदमाश आए. उन्होंने बाइक अड़ा कर बस रोकी, पिस्टल लहरा कर धमकाया और श्रेयांश व प्रियांश को बीच में बैठा कर उड़नछू हो गए.

मौके पर आई पुलिस के हाथ नया कुछ नहीं लगा, सिवाय उन सीसीटीवी फुटेज के जो स्कूल के कैमरों में कैद हो गई थी. इन फुटेज को देखने के बाद पुलिस वालों ने अंदाजा लगाया कि अपहरणकर्ताओं की उम्र 25-26 साल के लगभग है और उन की हरकतें देख लगता है कि वे पेशेवर हैं. पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि 2 संदिग्ध युवक कुछ दिनों से स्कूल की रैकी कर रहे थे. चूंकि स्कूल में अभिभावकों और दूसरे लोगों की आवाजाही लगी रहती है इसलिए किसी ने उन से कुछ पूछा या कहा नहीं था.

सीसीटीवी फुटेज में दोनों के चेहरे नहीं दिखे क्योंकि उन्होंने भगवा कपड़ा बांध रखा था लेकिन यह जरूर पता चला कि एक बदमाश काली और दूसरा सफेद रंग की टी शर्ट पहने हुए था. यह आशंका भी जताई गई कि दोनों बदमाश बच्चों को ले कर अनुसुइया आश्रम की तरफ भागे हैं और बीच में उन की बाइक रजौरा के पास गिरी भी थी.

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चंद घंटों में ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस हादसे पर खासा बवाल मचा तो पुलिस भी एक्शन में आ गई. सतना के एसपी संतोष सिंह गौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से बच्चों की सुरक्षित वापसी की कोशिशें की जा रही हैं.

अब तक यह भी कहा जाने लगा था कि बदमाश बच्चों को ले कर बीहड़ों में कूद गए होंगे और जल्द ही ब्रजेश रावत से फिरौती मांगेंगे. आशंका यह भी जताई गई कि इस वारदात के पीछे साढ़े 5 लाख के ईनामी बबुली कोल गिरोह का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने संदिग्ध लोगों को पकड़ कर उन से पूछताछ शुरू कर दी थी, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा था. चित्रकूट को छूती मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को सीज कर दिया गया. कर्बी के एसपी मनोज कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस टीमों ने हर जगह बच्चों और बदमाशों को तलाशना शुरू कर दिया.

ब्रजेश रावत ने बारबार यह बात दोहराई कि उन का किसी से भी व्यक्तिगत या पारिवारिक विवाद नहीं है और न ही अब तक यानि घटना वाले दिन तक उन से किसी ने फिरौती मांगी है. घंटों के सघन अभियान के बाद भी प्रियांश और श्रेयांश का कोई सुराग नहीं लग रहा था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने डीजीपी वी.के. सिंह को तलब किया था. इसलिए पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते अपने महकमे के उन सभी अधिकारियों को चित्रकूट बुलवा भेजा, जो कभी भी एंटी डकैत गतिविधियों का हिस्सा रहे थे.

ये तजुर्बेकार अधिकारी नौसिखिए अपराधियों के सामने किस तरह गच्चा खा रहे थे. यह खुलासा बाद में 13 फरवरी को हुआ. उसी दिन आईजी ने मोर्चा संभालते हुए एसआईटी गठित कर डाली, जिस के तहत दोनों राज्यों की पुलिस के लगभग 500 जवान विंध्य के बीहड़ों में बच्चों को तलाशते रहे. अपराधियों का सुराग देने पर डेढ़ लाख रुपए के ईनाम का ऐलान भी किया गया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

इसी बीच उम्मीद के मुताबिक अपहरणकर्त्ताओं ने रावत परिवार से संपर्क कर के मासूमों की रिहाई के एवज में 2 करोड़ रुपए मांगे. 19 फरवरी को रावत परिवार ने उन्हें 20 लाख रुपए दिए भी, लेकिन इस के बाद भी उन्होंने बच्चों को रिहा नहीं किया.

अब तक सार्वजनिक रूप से पुलिस की कार्यप्रणाली और लापरवाही की आलोचना होने लगी थी. चित्रकूट में तो आक्रोश था ही, कर्बी और सतना में भी लोगों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किए. अब भाजपाई और कांग्रेसी भी राजनीति पर उतर आए थे, जिस से लगा कि इन नेताओं को बच्चों की सलामती और जिंदगी से प्यारी अपनी आरोपप्रत्यारोप की परंपरागत राजनीति है.

श्रेयांश और प्रियांश कहां और किस हाल में हैं इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सदमे में डूबे रावत परिवार के सदस्य बच्चों की खैरियत को लेकर चिंतित थे. हर किसी का रोरो कर बुरा हाल था खासतौर से ब्रजेश रावत की पत्नी बबीता रावत का जो बच्चों की जुदाई के गम में होश खो बैठी थी.

पुलिस भागादौड़ी करती रही, दावे करती रही लेकिन 20 लाख रुपए देने के बाद भी बच्चे वापस नहीं लौटे तो रावत परिवार किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा.

आशंका गलत नहीं निकली. 24 फरवरी को पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बबेरू के पास यमुना नदी से प्रियांश और श्रेयांश की लाशें बरामद कीं. इन दोनों मासूमों के शव जंजीर से बंधे हुए थे.

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आस और उम्मीदें तो पहले ही टूट चुकी थीं, जिन पर मोहर लगने के बाद 12 फरवरी से ज्यादा हाहाकार मचा. अब हर कोई यह जानने को बेताब था कि अपहरणकर्ता कौन थे, कैसे पकड़े गए और इन्होंने कैसे हैवानियत दिखाते हुए फिरौती की रकम लेने के बाद भी मासूमों पर कोई रहम नहीं किया. प्रदेश भर में पुलिसिया प्रणाली के खिलाफ फिर जम कर हल्ला मचा, धरनेप्रदर्शन हुए और उम्मीद के मुताबिक फिर सियासत गरमाई.

पूरे घटनाक्रम में सुकून देने वाली इकलौती बात यह थी कि हत्यारे पकड़े गए थे, जिन की तादाद 6 थी.

हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की भूमिका कोई खास नहीं थी, क्योंकि वे इत्तफाकन धरे गए थे. 24 फरवरी को फिर एक बार सनसनी मची और इतनी मची कि पुलिस वालों और सरकार को जवाब देना मुश्किल हो गया.

श्रेयांश और प्रियांश के शव इस दिन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यमुना नदी के बबेरू घाट पर मिले थे. दोनों शव के हाथ पैर बंधे हुए थे.

हैवानों ने इन मासूमों की कैसे जान ली होगी, इस के पहले यह जानना जरूरी है कि हत्यारे थे कौन और इतने शातिराना ढंग से उन्होंने कैसे इस वारदात को अंजाम दिया था. जब एक एक कर 6 हत्यारे पकड़े गए तो दिल को दहला देने वाली कहानी कुछ इस तरह सामने आई, जिस ने साबित भी कर दिया कि लोग बेवजह पुलिस को नहीं कोस रहे थे.

इस वारदात का मास्टरमाइंड पदम शुक्ला निकला, जिस के पिता रामकरण शुक्ला, पुरोहित और सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में संस्कृत के प्राचार्य हैं. पदम शुक्ला का छोटा भाई विष्णुकांत शुक्ला भाजपा और बजरंग दल से जुड़ा है. जानकीकुंड में रहने वाला शुक्ला परिवार भी चित्रकूट में किसी पहचान का मोहताज नहीं है, लेकिन इस की वजह इन के कुकर्म ज्यादा हैं.

अपहरण और हत्या का दूसरा अहम किरदार रामकेश यादव है जो मूलरूप से बिहार का रहने वाला है और पढ़ाई पूरी करने के बाद चित्रकूट में किराए का मकान ले कर रहता था. रामकेश रावत परिवार के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाता था.

उस का रावत परिवार में वही मान सम्मान था जो आमतौर पर ट्यूटर्स का होता है, रामकेश के दिल में अपराध का बीज यहीं से अंकुरित हुआ और इस से पेड़ बना पदम शुक्ला के दिमाग में.

इसमें कोई शक नहीं कि ब्रजेश रावत के पास पैसों की कमी नहीं थी, जिस का गुरुर उन्हें कभी नहीं रहा. संभ्रांत और संस्कारित रावत परिवार का वैभव रामकेश ने देखा तो इस रामनगरी में एक और रावण आकार लेने लगा.

पैसों की तंगी तो रामकेश को भी नहीं थी लेकिन रावत परिवार की दौलत देख उसके दिल में खयाल आया था कि अगर श्रेयांश और प्रियांश को अगुवा कर लिया जाए तो फिरौती में इतनी रकम तो मिल ही जाएगी कि फिर जिंदगी ऐशोआराम से कटेगी.

पाप का पौधा कितनी जल्दी वृक्ष बन जाता है, यह इस हत्याकांड से भी उजागर होता है. रामकेश ने जब यह आइडिया पदम से साझा किया तो उस की बांछें खिल उठीं.

फिर क्या था देखते ही देखते योजना बन गई और उस का पूर्वाभ्यास भी होने लगा. अपनी नापाक मुहिम को सहूलियत से पूरा करने के लिए इन दोनों ने अपने जैसे 4 और राक्षसों को साथ मिला लिया.

रातों रात मालामाल हो जाने के लालच के चलते इस नवगठित गिरोह में बहलपुर का रहने वाला विक्रमजीत, हमीरपुर का अपूर्व उर्फ पिंटू उर्फ पिंटा यादव, बांदा का लक्की सिंह तोमर और राजू द्विवेदी भी शामिल हो गए.

22 से 24 साल की उम्र के ये सभी अपराधी अभी पढ़ रहे थे. पदम आईटी सब्जेक्ट से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. लकी तोमर उस का सहपाठी था. राजू द्विवेदी एग्रीकल्चर फैकल्टी के एग्रोनामी विषय से एमएससी कर रहा था और पिंटू यादव उस का सहपाठी था. ये पांचों ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र थे.

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जब गिरोह बन गया तो इन शातिरों ने अपहरण की योजना बनाई. इस बाबत इन के बीच दरजनों मीटिंगें हुईं जिन में संभावित खतरों पर विचार कर उन से बचने के उपाय खोजे गए. पदम का घर घटनास्थल से पैदल दूरी पर है, वह उस इलाके के चप्पेचप्पे से वाकिफ था.

12 फरवरी को श्रेयांश और प्रियांश का अपहरण करने के बाद ये लोग कहीं ज्यादा दूर नहीं भागे थे, जैसा कि हर कोई अंदाजा लगा रहा था. बबुली कौल गिरोह का नाम भी इन्होंने जानबूझ कर अपहरण के वक्त लिया था जिस के चलते पुलिस ने मान लिया था कि हो न हो इस कांड में इसी गिरोह का हाथ है.

श्रेयांश और प्रियांश को इन्होंने 3 दिन चित्रकूट के ही एक मकान में रखा जो लक्की सिंह से किराए पर लिया गया था. आमतौर पर ऐसे हादसों में होता यह है कि अपराधी घटनास्थल से दूर जा कर फिरौती मांगते हैं, जिस से किसी की भी, खासतौर से पुलिस की निगाह में न आएं. जिस मकान में दोनों मासूमों को रखा गया था वह एसपीएस के नजदीक ही है. इस चालाकी की तरफ पुलिस का ध्यान ही नहीं गया.

जिस बाइक से अपहरण किया गया था उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं थी, बल्कि नंबर प्लेट पर रामराज्य लिखा हुआ था. बाइक पर भाजपा का झंडा लगा होने के कारण पुलिस वाले उसे रोकने की हिमाकत नहीं कर पाए थे.

चूंकि पदम का भाई बजरंग दल का संयोजक था, इसलिए पुलिस वालों ने रामराज्य को ही बाइक का नंबर मान लिया था. चित्रकूट और बांदा का हर एक पुलिसकर्मी पदम के भाई विष्णुकांत और उस की बाइक तक को पहचानता है, जिस के छोटे बड़े भाजपा नेताओं से अच्छे संबंध हैं. कई बड़े नेताओं के साथ खिंचाए फोटो उस ने फेसबुक पर श्ेयर भी कर रखे हैं.

वारदात के तीसरे दिन ही इन्होंने ब्रजेश रावत से फिरौती के 2 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन सौदा 20 लाख रुपए में पट गया था जो ब्रजेश रावत ने इन्हें दे भी दिए थे. जब चित्रकूट में बच्चों को रखना इन्हें जोखिम का काम लगने लगा तो उन्हें वे रोहित द्विवेदी गांव बबेरू ले गए. उस ने ही श्रेयांस और प्रियांश के यहां रहने का इंतजाम किया था. रोहित का पिता ब्रह्मदत्त द्विवेदी सिक्योरिटी गार्ड है.

सौदा तय हो जाने के बाद ब्रजेश रावत को उम्मीद थी कि आरोपी बच्चों को छोड़ देंगे. इधर चित्रकूट सतना और बांदा सहित पूरे मध्य प्रदेश में लोग सड़कों पर आ कर पुलिसिया लापरवाही के खिलाफ धरने प्रदर्शन दे रहे थे, जिस से कुछ और हुआ न हुआ हो लेकिन

इन छहों पर बाहरी दबाव बनने लगा था.

20 लाख रुपए देने से ब्रजेश रावत को इकलौता सुकून इस बात का मिला था कि आरोपियों ने 19 फरवरी को उन से फोन पर बच्चों की बात करा दी थी. बेटों की आवाज सुन कर उन्हें आस बंधी थी कि वे सलामत हैं और आरोपी अगर वादे पर खरे उतरे तो बेटे जल्द घर होंगे और उन की किलकारियों से घर फिर गूंजेगा.

आरोपियों ने बच्चों के साथ कोई खास बुरा बर्ताव नहीं किया था लेकिन उन्हें सुलाने के लिए जरूर नींद की गोलियां खिलाई थीं. बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वे उन्हें मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने देते थे. अब तक सब कुछ उन की योजना के मुताबिक हो रहा था और इन्होंने फिरौती में मिले 20 लाख रुपयों का बंटवारा भी कर लिया था, जिस का सब से बड़ा हिस्सा पदम शुक्ला को मिला था. एक आरोपी ने तो पैसे मिलते ही बाइक लेने का अपना सपना भी पूरा कर लिया था.

पुलिस अभी भी हवा में हाथपैर मार रही थी. इस मामले की एक हैरत वाली बात यह थी कि ब्रजेश शुक्ला का सेल फोन सर्विलांस पर रखा था लेकिन आरोपियों की पहचान उन के पास आ रहे फोन काल्स से नहीं हो पा रही थी. फिरौती के पैसे भी ब्रजेश रावत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के जरिए दिए थे, जिस की भनक मध्य प्रदेश पुलिस को नहीं लगी थी.

नवगठित इस गैंग के सदस्य कितने शातिर थे इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रामकेश पहले की तरह ही रावत परिवार के दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाता रहा था.

इसी बहाने वह घर के सदस्यों से प्रियांश और श्रेयांश के बारे में पूछ कर ताजा अपडेट हासिल कर लेता था और साथियों को बता देता था. उस की हकीकत से बेखबर रावत परिवार उस की खातिरदारी पहले की तरह करता रहा था.

होहल्ले के चलते इन छहों को अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था और ब्रजेश रावत की जेब से और पैसा निकालने की उम्मीदें भी खत्म हो चली थीं. इसलिए इन्होंने शायद बच्चों को छोड़ने का फैसला कर लिया था.

जब फैसला हो गया तो बच्चों को छोड़ने का मन बना चुके आरोपियों को यह खटका लगा कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे जा कर उन की पहचान उजागर कर दें. इन लोगों ने अब तक जिस जुर्म को छिपा रखा था, बच्चों के छोड़ने पर वह खुल सकता था. इसलिए दोनों के कत्ल का इरादा बन गया.

लेकिन इस से पहले मन में आ गए डर को दूर करने की गरज से इन लोगों ने श्रेयांश और प्रियांश से पूछा कि छूट कर वे पुलिस को उन की पहचान यानी नाम वगैरह तो नहीं बता देंगे.

मासूमियत की यह इंतहा ही थी कि दोनों बच्चों ने ईमानदारी से जवाब दे दिया कि वे उन्हें  पहचान लेंगे. यह जवाब सुनना था कि हथकडि़यां इन की आंखों के आगे झूलती नजर आने लगीं. जिस से अब तक के किए धरे पर तो पानी फिरता ही साथ ही हाथ आए 20 लाख रुपयों का लुत्फ भी जाता रहता.

अपना जुर्म छिपाने के लिए इन्होंने दोनों मासूमों के हाथपैर जंजीर से बांधे, फिर उन्हें क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश किया. इस के बाद पत्थर बांध कर उन्हें यमुना नदी के उगासी घाट पर पानी में फेंक दिया. यह 21 फरवरी की बात है.

साथ पैदा हुए साथ पले बढ़े और पढ़ेलिखे जुड़वां श्रेयांश और प्रियांश की लाशें भी साथसाथ 3 दिन पानी में तैरती रहीं और वे मरे भी साथ में. दोनों के शरीर पर वही स्कूल यूनिफार्म थी जो उन्होंने 12 फरवरी को स्कूल जाते वक्त पहनी थी.

लाशें बरामद हुईं तो इन मासूमों की हत्या को ले कर ऐसा बवाल मचा कि पूरा बुंदेलखंड इलाका त्राहित्राहि कर उठा. राजनेताओं ने भी चित्रकूट में बहती मंदाकिनी नदी में खूब हाथ धोए. भाजपाई और कांग्रेसी बच्चों की मौतों पर अफसोस जताते एकदूसरे को कोसते रहे.

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को निशाने पर रखा तो कांग्रेसी भी यह कहने से नहीं चूके कि यह सब भाजपाइयों का कियाधरा है.

राजनीतिक बवंडर से परे यह हुआ था कि आईटी से इंजीनियरिंग कर रहे 2 आरोपी बेहतर समझ रहे थे कि अगर वे अपने सेल फोन से ब्रजेश रावत से बात करेंगे तो फौरन धर लिए जाएंगे, इसलिए वे फोन काल के लिए या तो इंटरनेट का सहारा ले रहे थे या फिर बहाने बना कर राहगीरों का फोन इस्तेमाल कर रहे थे जिस से पता नहीं चल रहा था कि अपराधी हैं कौन और कहां से फोन कर रहे हैं.

कहावत पुरानी लेकिन सटीक है कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों हो कोई न कोई भूल कर ही देता है ऐसा ही इस मामले में हुआ.

एक राहगीर से फोन मांग कर उन्होंने ब्रजेश रावत को फोन किया था तो उस राहगीर को बातचीत का मसौदा सुन इन पर शक हुआ था. हर किसी की तरह उसे भी श्रेयांश और प्रियांश के अपहरण के बारे में मालूम था.

ये लोग जिस का भी फोन लेते थे उसे यह कहना नहीं भूलते थे कि जिस नंबर पर फोन किया है उसे डिलीट कर देना. लेकिन इस समझदार और भले आदमी ने ऐसा नहीं किया और चुपचाप बिना इन की जानकारी के उन की बाइक का फोटो भी खींच लिया.

तब पुलिस ने इस राहगीर के नंबर पर फोन किया तो उस ने बाइक के फोटो पुलिस को दे दिए. इस बाइक के नंबर की बिना पर छानबीन की गई तो वह रोहित द्विवेदी की निकली. पुलिस ने उस की गरदन दबोच कर सख्ती की तो उस ने श्रेयांश और प्रियांश की हत्या का राज खोल दिया और पुलिस ने एक के बाद एक छहों हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया.

हत्यारों की गिरफ्तारी की खबर भी आग की तरह फैली और लोगों ने चित्रकूट में बेकाबू हो कर सदगुरु ट्रस्ट पर पत्थर फेंके, वाहन जलाए, तोड़फोड़ की. इस के बाद पूरे मध्य प्रदेश में इन मासूमों को श्रद्धांजलियां दी गईं और हर किसी ने इन हैवानों के लिए मौत की सजा की मांग की.

श्रेयांश और प्रियांश के शवों का पोस्टमार्टम बांदा में किया गया, जिस के बाद दोनों के शव रावत परिवार को सौंप दिए गए.

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इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कई बातें स्पष्ट नहीं हुई थीं, जिन के कोई खास माने भी नहीं वजह आरोपी अपना जुर्म स्वीकार चुके हैं. पिस्टल, बाइक, 17 लाख रुपए के अलावा वह बोलेरो कार भी बरामद की जा चुकी है. जिस में इन दोनों को चित्रकूट से बाहर ले जाया गया था.

चूंकि इस पर भी भाजपा का झंडा लहरा रहा था इसलिए पुलिस वालों ने उसे नहीं रोका. ब्रजेश रावत लगातार शक जताते रहे कि पकड़े गए लड़के तो मोहरे थे असल अपराधी और कोई है इसलिए मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. छानबीन में यह बात भी सामने आई थी कि आरोपियों के संबंध उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता राजा भैया से थे. सीबीआई जांच होगी या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने जरूर एक जांच कमेटी गठित कर दी है जो कई बिंदुओं पर जांच कर रही है.

मुमकिन है कुछ हैरान कर देने वाली बातें सामने आएं, लेकिन यह सच है कि चित्रकूट में लाखों की भीड़ जमा रहती है, इसलिए यहां अपराधों की दर बढ़ रही है.

सच यह भी है कि निकम्मे और गुंडे किस्म के युवकों ने शार्टकट से पैसा कमाने के लिए एक हंसतेखेलते घर के जुड़वां चिराग बुझा दिए, जिस की भरपाई कोई जांच पूरी नहीं कर सकती.द्य

 

नाटकबाज हत्यारा…

20नवंबर, 2018 को दोपहर के 2 बजे थे, तभी भोपाल के थाना कोलार के टीआई

नवीन पांडे को सूचना मिली कि अंबेडकर नगर में एक युवक आत्महत्या करने के लिए 5वीं मंजिल की खिड़की के छज्जे पर चढ़ गया है. लोग उसे उतारने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह नहीं उतर रहा.

यह सूचना मिलते ही टीआई पांडे तुरंत टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां उन्होंने एक युवक को 5वीं मंजिल की खिड़की के छज्जे पर बैठे देखा. उस बिल्डिंग के नीचे तमाम लोग खड़े थे. वे उसे उतर आने को बोल रहे थे.

पुलिस को आया देख वह युवक और भड़क कर कूदने के लिए आगे बढ़ा तो टीआई नवीन पांडे समझदारी दिखाते हुए वहां से थोड़ा हट गए. उन्होंने वहां चुपचाप खड़े लोगों से पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि खिड़की के छज्जे पर चढ़ा युवक अक्षय उर्फ मुकुल है, जो इसी क्षेत्र में रहता है और पुताई का काम करता है. वह आत्महत्या क्यों करना चाहता है, इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस के लिए यह कठिन परीक्षा थी क्योंकि उस के पास जाने पर संभव था कि वह नीचे छलांग लगा देता. इसलिए टीआई नवीन पांडे ने समझदारी से काम लेते हुए मुकुल के दोस्तों से बात की. उन से उन्हें पता चला कि मुकुल शराब पीने का शौकीन है.

यह पता चलते ही टीआई ने उस के दोस्तों से बात कर एक योजना बनाई और उस योजना के तहत दोस्तों को उस बिल्डिंग की छत पर भेजा, जहां से मुकुल कूदने को तैयार था.

हाथ में शराब की बोतल ले कर मुकुल के दोस्त छत पर पहुंचे और उन्होंने उस से नीचे उतर आने को कहा. लेकिन मुकुल अपने दोस्तों की बात भी सुनने को तैयार नहीं था.

योजनानुसार उस के दोस्त रवि ने कहा, ‘‘चल, तू कूदना चाहता है तो कूद जा पर दोस्ती के नाम पर हमारे साथ बैठ कर एक जाम तो पीता जा.’’

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यह कहते हुए रवि ने मुकुल की तरफ शराब की बोतल बढ़ा दी.

शराब की बोतल देख कर मुकुल का मन ललचा गया. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तू ही मेरा सच्चा दोस्त है. ला यार, दे बोतल. जब मरना ही है तो क्यों न दोस्त के साथ आखिरी बार पी लूं.’’

कहते हुए मुकुल ने खड़े हो कर जैसे ही शराब की बोतल लेने के लिए हाथ बढ़ाया, उस के दोस्तों ने उसे पकड़ कर छत पर खींच लिया. यह देख पहले से ही वहां बैठे टीआई नवीन पांडे ने मुकुल को हिरासत में ले लिया. उस के पुलिस के चंगुल में पहुंचते ही लोगों ने राहत की सांस ली.

मुकुल को हिरासत में ले कर टीआई पांडे थाने पहुंचे. उस से पूछताछ करने पर एक चौंकाने वाली बात सामने आई. उन्हें पता चला कि मुकुल आत्महत्या का प्रयास करने से पहले गांव की ही सरिता नाम की एक लड़की की हत्या कर के आया था.

यह जानकार टीआई चौंके. उन्होंने जांच की तो पता चला कि जिस सरिता नाम की लड़की की उस ने हत्या की थी, उस की लाश भोपाल के जे.पी. अस्पताल में है. सरिता के परिवार वालों को इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि उन की बेटी की हत्या हो चुकी है. क्योंकि जिस समय यह घटना घटी थी, उस वक्त सरिता अपने घर अकेली थी. उस के घर वाले कहीं गए हुए थे.

टीआई नवीन पांडे ने एडीशनल एसपी संजय साहू व एसपी (सिटी) भूपेंद्र सिंह को इस घटना से अवगत कराया. इस के बाद पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर सरिता के शव को अपने कब्जे में लिया.

एडीशनल एसपी संजय साहू और एसपी (सिटी) भी थाने पहुंच गए. उन की मौजूदगी में टीआई पांडे ने मुकुल से पूछताछ की तो इस पूरे घटनाक्रम की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

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भोपाल के अंबेडकर नगर में रहने वाली सरिता और मुकुल के घर पासपास थे. सरिता जब किशोरावस्था में पहुंची तो मुकुल उसे चाहने लगा. उसे फंसाने के चक्कर में वह उस पर डोरे डालने लगा.

सरिता नाबालिग थी, फिर भी वह मुकुल के इरादे भांप गई थी. उस के साथ स्कूल में पढ़ने वाली कई सहेलियों के प्रेमी थे. वह अपने प्रेम के किस्से चटखारे लेले कर उसे सुनाया करती थीं. उस की एक घनिष्ठ फ्रैंड तो अपने प्रेमी के संग प्यार की राहों में काफी आगे तक निकल चुकी थी.

वह उसे अपने प्रेमी की बात सुनाती तो सरिता को भी लगता था कि काश उस का भी कोई दोस्त होता तो वह भी उस के किस्से अपनी सहेली को सुनाती. इसी दौरान सरिता का ध्यान मुकुल की तरफ गया. क्योंकि वह उसे चाहत की नजरों से देखता था.

लिहाजा सरिता ने भी उस के बारे में सोचना शुरू कर दिया. मुकुल के मुकाबले सरिता संपन्न परिवार की थी. जबकि मुकुल मकानों की पुताई का काम करता था. फिर भी सरिता ने सोचा कि वह अपने प्यार से प्रेरित कर के मुकुल को बड़ा आदमी बना देगी.

यह सोच कर धीरेधीरे सरिता भी मुकुल को देख कर मुसकराने लगी. मुकुल को लगा कि सरिता लाइन पर आ रही है. इस के बाद उन के बीच बातचीत होनी शुरू हो गई.

दोनों मौका देख कर अकेले में मुलाकातें करने लगे. लेकिन रोजरोज मिलने के लिए वक्त निकालना संभव नहीं था. ऐसे में दिलों का हाल कहनेसुनने के लिए एकमात्र फोन ही सहारा था.

मगर यहां भी मुश्किल यह थी कि सरिता के पास तो स्मार्टफोन था, मगर मुकुल के पास फोन ही नहीं था. फिर भी मुकुल अपने दोस्तों का मोबाइल ले कर सरिता के संग फेसबुक पर बातचीत कर लेता था.

लेकिन दूसरों के फोन से मन नहीं भरता था, इसलिए कुछ समय बाद सरिता को तंगहाल मुकुल से नफरत होने लगी. यही नहीं, वह कभीकभी तो मुकुल को इस बात का उलाहना भी देती कि जब खुद इतना भी नहीं कर सकते तो इश्क करने की तुम्हें जरूरत ही क्या थी.

सरिता की बात मुकुल के दिल पर लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकता था. जबकि दूसरी तरफ सरिता की दोस्ती दूसरे युवकों से हो गई थी.

यह बात मुकुल को पता चली तो वह समझ गया कि उस की तंगहाली की वजह से ही सरिता दूसरे युवकों से दोस्ती कर रही है. यह सब होने के बाद भी सरिता को जब भी मौका मिलता, वह मुकुल को अकेले में मिलने के लिए अपने घर बुला लेती थी.

20 नवंबर, 2018 को भी यही हुआ. सरिता के घर वाले कहीं गए हुए थे. वह घर पर अकेली थी. तभी उस ने फोन कर के मुकुल को मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. मुकुल कई दिनों से सरिता से मिलने को बेताब था, इसलिए उस ने वहां पहुंचते ही सरिता को बांहों में ले कर प्यार का जोश दिखाना शुरू कर दिया. लेकिन सरिता ने उसे झटके से खुद से अलग कर दिया.

उस ने मुकुल से कहा कि दूसरे लड़के अपनी प्रेमिकाओं को कितने गिफ्ट देते हैं, तुम ने मुझे आज तक कुछ नहीं दिया. पहले गिफ्ट दो, फिर मैं बात करूंगी.

मुकुल प्यार के आवेग में पागल हो रहा था. उस ने सरिता से कहा कि पहले हम प्यार कर लें, गिफ्ट की बात तो बाद में भी कर लेंगे.

‘‘नहीं, पहले गिफ्ट दो.’’ उस ने फिर कहा.

‘‘अच्छा दे दूंगा, अभी तो पास आ जाओ.’’ मुकुल ने विश्वास दिलाना चाहा.

‘‘बोल तो ऐसे रहे हो जैसे कितने बड़े रईस हो. अपने लिए एक फोन तो खरीद नहीं पाए, मुझे गिफ्ट देने की बात करते हो.’’

सरिता की बात मुकुल को चुभ गई, लेकिन उस वक्त गुस्सा दिखा कर वह एकांत के सुनहरे मौके को नहीं खोना चाहता था. इसलिए उस ने सरिता को फिर से अपने आगोश में भरने की कोशिश की तो सरिता भड़क गई और उसे भलाबुरा कहने लगी.

इस पर मुकुल ने उसे दूसरे लड़कों से दोस्ती रखने का उलाहना दिया तो सरिता ने भी कह दिया कि जिस से मेरा मन करेगा, दोस्ती करूंगी. तुम जैसे कंगाल से प्यार करने का क्या फायदा.

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सरिता का इतना कहना था कि मुकुल आपा खो बैठा. उस ने गुस्से में आ कर सरिता का गला दबा दिया, जिस से वह बेहोश हो गई. तभी मुकुल ने पलंग पर पड़ी उस की लैगिंग गले में कस दी और वहां से भाग गया.

बाद में उसे लगा कि पुलिस उसे पकड़ लेगी. इसलिए वह खुद की जान देने के लिए एक इमारत पर चढ़ गया, लेकिन कोलार पुलिस ने समझदारी दिखाते हुए उसे आत्महत्या करने से रोक कर गिरफ्तार कर लिया.

उधर सरिता के घर वालों को जब उस की हत्या की जानकारी मिली तो वह जे.पी. अस्पताल पहुंच गए. पुलिस ने उन से भी पूछताछ की.

सरिता का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाश उन्हें सौंप दी. पुलिस ने अक्षय उर्फ मुकुल से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.      द्य

इंजीनियरिंग में पढ़ा मूर्ती चोर का पाठ….

लेखक- वेणीशंकर पटेल ‘ब्रज’

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक तहसील है गोटेगांव. गोटेगांव के रेलवे स्टेशन का नाम
श्रीधाम है. इस नाम के महत्त्व का अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि रेलवे द्वारा जबलपुर से नई दिल्ली तक चलने वाली ट्रेन का नाम श्रीधाम एक्सप्रेस रखा है.
श्रीधाम का संपूर्ण इलाका शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है. 2 पीठों के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने गोटेगांव से 16 किलोमीटर दूर झोतेश्वर में त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर बनवाया है. सन 1984 में जब इस मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद वहां गई थीं.
नरसिंहपुर जबलपुर स्टेट हाइवे पर गोटेगांव से महज 5 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है कंजई. यहां के श्रीराम जानकी मंदिर में करीब 300 साल पुरानी श्रीराम, लक्ष्मण, सीता के साथ लड्डू गोपाल की प्रतिमाएं स्थापित हैं. 2 से 3 फीट ऊंची इन प्रतिमाओं का वजन 10-12 किलोग्राम है. इन प्राचीन मूर्तियों के कारण कंजई का यह मंदिर आसपास के इलाके में लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र है.
13 जनवरी, 2019 की सुबह मंदिर के पुजारी पं. उमाशंकर दूबे ने रोजाना की तरह पूजन के लिए मंदिर में प्रवेश किया तो मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे को ताले से बंद करने वाली चैन कटी हुई मिली. यह देख कर उन का मन आशंका से कांप उठा. जब वह गर्भगृह के अंदर गए तो पुजारी के होश उड़ गए. वहां रखी हुई पांचों मूर्तियां गायब थीं.
कड़कड़ाती ठंड में पसीनापसीना हो रहे पुजारी ने आसपास के लोगों को बुला कर इस की जानकारी दी. देखतेदेखते गांव के मंदिर में हुई चोरी की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई.
खबर पा कर गांव के सरपंच रविशंकर पाराशर और मंदिर के ट्रस्टी पं. विष्णु दूबे के अलावा गांव के प्रमुख लोगों की खासी भीड़ मंदिर परिसर में जमा हो गई. उसी समय पुजारी पं. उमाशंकर दूबे ने मोबाइल से मंदिर से मूर्तियां चोरी होने की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

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गोटेगांव अपने राजनीतिक रसूख के लिए भी मध्य प्रदेश में अहम स्थान रखता है. यहां के प्रहलाद पटेल वर्तमान में दमोह से भाजपा के सांसद हैं तो उन के छोटे भाई नरसिंहपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं. गोटेगांव विधानसभा से हाल ही में निर्वाचित हुए विधायक नर्मदा प्रसाद प्रजापति को मध्य प्रदेश की विधानसभा में अध्यक्ष बनाया गया था.
नर्मदा प्रसाद 13 जनवरी को गोटेगांव आ रहे थे. उन के आगमन पर स्वागत और जुलूस की तैयारी चल रही थी. पुलिस के आला अधिकारी दलबदल सहित कार्यक्रम की व्यवस्था में लगे हुए थे कि अचानक उन्हें कंजई के श्रीराम जानकी मंदिर से मूर्तियां चोरी होने की सूचना मिली. कंट्रोल रूम से जैसे ही थाने के इंचार्ज डीएसपी (ट्रेनी) निरंजन सिंह राजपूत और एसडीओपी पी.एस. बालरे को सूचना मिली तो वह घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.
मंदिर से मूर्तियों के चोरी होने की जानकारी मिली तो एसपी धर्मेंद्र सिंह भदौरिया और जिलाधिकारी दीपक सक्सेना भी कंजई गांव पहुंच गए. वहां मौजूद गांव वालों की भीड़ मूर्तियों के चोरी होने को ले कर काफी आक्रोशित थी. भीड़ ने स्टेट हाइवे भी जाम कर दिया था.
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि गोटेगांव क्षेत्र के मंदिरों में चोरी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर रही. जिलाधिकारी और एस.पी. ने आश्वासन दिया कि जल्द ही चोरों का पता लगा लिया जाएगा. उन के आश्वासन के बाद भीड़ ने जाम खोल दिया.

इस के बाद जिलाधिकारी ने घटनास्थल का निरीक्षण कर मंदिर के पुजारी से जानकारी ली. पुजारी ने बताया कि 12 जनवरी की रात उन्होंने मंदिर में पूजन आरती कर रोज की तरह गांव के कुछ लोगों की मौजूदगी में मंदिर के पट बंद कर गर्भगृह में लोहे की चैन बांध कर ताला लगाया था.
सुबह आ कर देखा तो चैन कटी मिली और मंदिर से मूर्तियां गायब थीं. एसपी धर्मेंद्र सिंह भदौरिया ने उसी समय एडीशनल एसपी राजेश तिवारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में गोटेगांव के एसडीओपी पी.एस. बालरे डीएसपी (ट्रेनी) एवं थाना गोटेगांव के इंचार्ज निरंजन सिंह राजपूत, एसआई आर.सी. पटेल, एसआई रोहित पटेल, एएसआई संजय सूर्यवंशी, प्रधान आरक्षक राजेश शर्मा, आरक्षक संजय मिश्रा, लक्ष्मी, भास्कर पटेल, मृदुल आदि को शामिल किया गया. घटनास्थल का निरीक्षण कर सभी अधिकारी लौट आए.

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एसपी के निर्देश के बाद जांच टीम कंजई गांव पहुंच गई. इस टीम ने ग्रामीणों से सघन पूछताछ की. उसी दौरान मंदिर के पुजारी उमाशंकर दूबे के बेटे सत्यम दूबे ने पुलिस को एक नई जानकारी दी.
उस ने बताया कि साल की पहली तारीख यानी 1 जनवरी को कंजई गांव के युवक लवकुश गौड़ के साथ कुछ अपरिचित लड़के काफी देर तक मंदिर में घूमते रहे थे. इसी बीच उन्होंने भगवान की मूर्तियों के साथ सेल्फी भी ली थी. पुलिस ने सत्यम की बात को गंभीरता से लिया. इस संबंध में लवकुश से पूछताछ जरूरी थी.
पुलिस टीम लवकुश की तलाश में उस के घर पहुंची तो पता चला वह 12 जनवरी से ही घर पर नहीं है. वारदात 13 जनवरी कोे हुई थी. जबकि लवकुश घटना के एक दिन पहले से गायब हो गया था. लिहाजा शक की सुई लवकुश पर ही घूमने लगी. पुलिस ने उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया.
मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे सिवनी जिले के घूमा के पास कंधारपानी में उस के रिश्तेदार के यहां घर से हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने मूर्ति चोरी की घटना में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया. पुलिस ने जब उस के साथ सख्ती की तो उस ने मूर्ति चोरी में अपना हाथ होने की बात बता दी. इतना ही नहीं उस ने वारदात में शामिल रहे अपने साथियों के नाम भी बता दिए.
पुलिस ने लवकुश की निशानदेही पर उसी दिन उस के 6 साथियों को उठा लिया. पुलिस ने इन लोगों से 60-70 किलोग्राम वजन की अष्टधातु की चोरी हुई मूर्तियां भी बरामद कर लीं. पुलिस के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन मूर्तियों कीमत की 3 करोड़ रुपए थी.
14 जनवरी, 2019 को एसपी धर्मेंद्र सिंह भदौरिया ने गोटेगांव में प्रैसवार्ता का आयोजन कर इस मामले का खुलासा किया. साथ ही सातों अपराधियों को भी मीडिया के सामने पेश किया गया. एसपी द्वारा दी गई जानकारी से पता चला कि मूर्तियां चुराने वाले सभी आरोपी 18 से 20 साल के छात्र थे. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से 5 युवक भेड़ाघाट में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे जबकि अन्य 2 युवक बी फार्मा के स्टूडेंट थे.
पकड़े गए आरोपियों में 19 वर्षीय धर्मेंद्र, दमोह का रहने वाला था, जतिन गोटेगांव का, 19 वर्षीय सौरभ सिवनी का, मुकेश दमोह का और सौरभ गोटेगांव का ही था.
पुलिस ने सभी अभियुक्तों को नरसिंहपुर न्यायालय में पेश किया. घटना के 3 मास्टरमाइंड लवकुश, धर्मेंद्र और कमलेश को पुलिस ने 3 दिन के रिमांड पर ले लिया, जबकि अन्य 4 को न्यायालय के आदेश पर जेल भेज दिया गया. रिमांड पर लिए गए तीनों युवकों से पूछताछ की गई, तो मूर्ति चोरी की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

कंजई गांव का लवकुश लोगों के पास ब्रांडेड कंपनी का महंगा मोबाइल देखता तो उस के मन में लालच आ जाता. वह सोचता कि काश उस के पास भी ऐसा मोबाइल और ब्रांडेड कपड़े जूते आदि हों, तो अन्य लोगों पर उस का अच्छा प्रभाव पड़ेगा. लेकिन उस के घर वाले उस के ये शौक पूरे करने में असमर्थ थे. लवकुश मोटी रकम हासिल करने के उपाय सोचता रहता था.
इसी दौरान उस के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न अपने यहां के जानकी मंदिर की प्राचीन मूर्तियों को चुरा कर कहीं बेचा जाए. इस बारे में उस ने भेड़ाघाट के हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने वाले अपने दोस्त कमलेश से बात की. उस ने कमलेश को बताया कि अष्टधातु की मूर्तियों की बड़ी डिमांड होती है. साथ ही उस ने यह भी कहा कि वह मूर्तियों को निकलवा भी सकता है.
इस के बाद कमलेश इस के लिए तैयार हो गया. अपने गांव के मंदिर से मूर्तियां चोरी करने के उपाय खोजने लगा. एक दिन लवकुश दमोह जिले के कछार गांव में रहने वाली अपनी बुआ के लड़के धर्मेंद्र के पास गया और उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया. पहली जनवरी को दोनों दर्शन के बहाने कंजई के मंदिर पहुंचे.

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दोनों ने मूर्तियों के साथ सेल्फी भी ली. अपने मोबाइल फोन से ली गई मूर्तियों की फोटो उस ने भेड़ाघाट के एक हौस्टल में रहने वाले अपने दोस्त कमलेश को भेज दी. कमलेश छपरा, बिहार का रहने वाला था. उस ने मूर्ति चोरी का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया. कमलेश ने मूर्तियों के फोटो मूर्ति को खरीदने वाले छपरा के सनी नाम के व्यक्ति को भेज दिए. सनी ने फोटो देखने के बाद भरोसा दिया कि सभी मूर्तियां करीब 70 लाख रुपए में बिक जाएंगी.
मूर्ति चोरी की वारदात को अंजाम देने के लिए लवकुश और उस की बुआ के लड़के धर्मेंद्र ने मूर्ति चोरी के लिए अपने साथ कालेज में पढ़ रहे 4 अन्य साथियों को भी शामिल कर लिया. निम्नमध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखने वाले सातों दोस्तों ने 10-10 लाख रुपए मिलने के लालच में अपने कैरियर को दांव पर लगा दिया.
प्लानिंग के तहत तय हुआ कि 6 साथी 2 बाइकों से रात में कंजई गांव के मंदिर के पास पहुंचेंगे. वहां से मूर्तियां चुरा कर वे लोग भेड़ाघाट के हौस्टल में रहने वाले कमलेश तक पहुंचाएंगे.
तय योजना के अनुसार 12 जनवरी को रात के 2 बजे के बाद लवकुश ने मंदिर की एक छोटी सी खिड़की के सहारे धर्मेंद्र और एक साथी को मंदिर के अंदर पहुंचा दिया और खुद अन्य साथियों के साथ बाहर पहरा देने लगा.
धर्मेंद्र ने कटर की सहायता से मंदिर के गर्भगृह में लगी लोहे की चैन काट दी और एकएक कर के मंदिर में रखी वजनी मूर्तियां बाहर खड़े दोस्तों के हवाले कर दीं. लवकुश और धर्मेंद्र के अन्य 4 साथी मूर्तियों को ले कर गांव के बाहर सुनसान रास्ते पर आ गए, जहां उन की बाइकें खड़ी थीं.
मूर्तियों को बोरियों में रख कर ये लोग रात में ही भेड़ाघाट स्थित हौस्टल पहुंच गए जहां कमलेश उन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. मूर्तियों को हौस्टल में रख कर सभी साथी दूसरे दिन मूर्तियों को बेचने की योजना में लग गए. लवकुश भेड़ाघाट से अपने रिश्तेदार के यहां कंधरापानी चला गया, जहां से वह पुलिस के हत्थे चढ़ा.

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13 जनवरी की रात में ही गोटेगांव थाने के एसआई आर.सी. पटेल के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम भेड़ाघाट भेजी गई. लवकुश की निशानदेही पर जैसे ही भेड़ाघाट के हौस्टल में पुलिस टीम ने रेड डाली तो चोरी में शामिल अन्य 6 युवकों के होश उड़ गए. ये सभी रात में मूर्तियों को अपने सिरहाने रख कर सो रहे थे. आरोपियों ने 4 मूर्तियों को कोयले से काला कर दिया था, जबकि एक मूर्ति को ट्यूब की रबर में लपेट कर छिपा दी गई थी.
बिहार के रामपुर तरैया निवासी कमलेश ने पुलिस के सामने यह स्वीकार किया कि इन मूर्तियों को वे देश के अन्य राज्यों और देश के बाहर बेच कर करोड़ों रुपए कमाने की फिराक में थे. यदि 1-2 दिन पुलिस की पकड़ से बच जाते तो मूर्तियां बड़े मूर्तिचोरों के पास पहुंच जातीं. पूछताछ में यह बात भी सामने आई है कि आरोपियों ने अष्टधातु की मूर्तियों का सौदा 3 करोड़ रुपए में किया था.द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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