शादी में फायरिंग दलितों पर रोब गांठने का फैशन

चारों ओर चहलपहल थी. खुशी का माहौल था. शहनाई के सुर माहौल में रस घोल रहे थे. इसी बीच शोर मचा कि बरात आ गई. दूल्हा कार से उतरा और उसे वरमाला के लिए बने स्टेज की ओर ले जाया गया.

कुछ देर में दुलहन भी छमछम करते हुए स्टेज पर आई. लोग तालियां बजाने लगे. शहनाइयों की आवाज तेज हो उठी.

दूल्हे ने दुलहन के गले में वरमाला डाली. दनादन हवाई फायरिंग होने लगी. बंदूकों और रायफलों की गोलियों से शामियाने में सैकड़ों छेद हो गए.

अचानक स्टेज के किनारे से चीख की आवाज उठी. एक बच्चा खून से सना जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. चारों ओर चीखपुकार मच गई. शहनाइयां और गाजेबाजे बंद हो गए.

दरअसल, हवाई फायरिंग करने वालों में से किसी एक की गोली गलती से बच्चे को जा लगी थी. लोग घायल बच्चे को उठा कर अस्पताल ले जाने के लिए भागे.

कुछ देर पहले तक खुशी का माहौल अचानक मातम में बदल गया. कुछ लोगों ने पुलिस को खबर कर दी. आननफानन शादी की रस्मों को 10-12 मिनटों में खत्म कराया गया. पुलिस दूल्हे के फूफा को गिरफ्तार कर के ले गई. उसी की बंदूक से निकली गोली से बच्चा जख्मी हुआ था.

इसी तरह 7 दिसंबर, 2016 को पंजाब के भटिंडा शहर में शादी के समारोह में डांस का प्रोग्राम चल रहा था.  उसी दौरान कुछ नौजवान अपनी बंदूकों से हवाई फायरिंग भी कर रहे थे.

इसी बीच स्टेज पर डांस कर रही लड़की को एक गोली जा लगी और वह चीखते हुए खून से लथपथ हो कर गिर पड़ी. उस ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

25 साल की उस डांसर का नाम कुलविंदर कौर था और वह पेट से भी थी. पुलिस ने गोली चलाने वाले को दबोच लिया.

बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब जैसे राज्यों में शादीब्याह में हवाई फायरिंग करने का पुराना फैशन है. ऐसी फायरिंग की वजह से कइयों की जान जाने और जख्मी होने के बाद भी लोग इस से बाज नहीं आ रहे हैं. प्रशासन और पुलिस भी ऐसे जानलेवा फैशन पर रोक लगाने को ले कर खासा गंभीर नहीं हैं.

दरअसल, हवाई फायरिंग करने का मकसद खुशी जताने के साथसाथ दबंगों का आसपास के इलाकों के गरीबों और दलितों के बीच डर का माहौल बनाना भी होता है.

बिहार पिछड़ा वर्ग महासंघ के संयोजक किशोरी दास कहते हैं कि अगड़ी जातियों में जो दबंग टाइप के लोग होते हैं, वे बंदूक, रायफल से गोलियां चला कर या तलवारें भांज कर निचली जातियों के लोगों में खौफ पैदा करते हैं.

वे आगे बताते हैं कि पटना शहर के लोहानीपुर महल्ले में मुसहरों की पुरानी और बड़ी बस्ती है. उस के आसपास कुछ अगड़ी जाति के दबंगों ने ऊंचीऊंची इमारतें बना ली हैं. उन इमारतों के चारों ओर 10-12 फुट ऊंची चारदीवारी खड़ी की गई है. अंदर क्या होता है, इस का पता बाहर वालों को नहीं लगता है.

चारदीवारी के अंदर भी अजीब सा माहौल बना कर रखा जाता है. 5-7 दिनों में वहां के कुछ लोग अपनीअपनी छतों पर जा कर हवाई फायरिंग करते हैं. इस से पूरी बस्ती में खौफ का माहौल बना रहता है. शादी वगैरह के मौके पर तो अंधाधुंध फायरिंग की जाती है.

किसी से इस बात की शिकायत भी नहीं की जा सकती. उन के जलसों में मंत्री, नेता, अफसर और पुलिस वाले ही मेहमान होते हैं. ऐसे में दलितों की शिकायत पर कितनी कार्यवाही होगी, इस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

दलित पिछड़ों पर रोब गांठने के लिए बंदूक, रायफल और पिस्तौल से हवाई फायरिंग की जाती है. दूल्हे के रिश्तेदार दनादन हवाई फायरिंग कर खुशियां जताते हैं, जबकि हकीकत में वे आसपास के गरीबों और दलितों के बीच खौफ पैदा करना चाहते हैं, ताकि दलित हर समय उन से सहम कर रहें. उन से बात करने की जुर्रत नहीं कर सकें. उन की बदमाशियों और शोषण के खिलाफ आवाज न उठा सकें.

शादी समारोहों में खुशी और ताकत जाहिर करने के लिए गोलियां चलाने का एक दर्दनाक वाकिआ देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में हुआ था.

18 फरवरी, 2010 को नोएडा के सैक्टर 10 में एक शादी समारोह में हवाई फायरिंग तब हुई, जब शादी की रस्में खत्म हो चुकी थीं. दुलहन की विदाई की तैयारी चल रही थी. इसी बीच दूल्हे के फूफा ने खुशी जताने के लिए हवाई फायरिंग की, लेकिन गोली सीधे दूल्हे के सीने में जा लगी और उस ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

ताजा मामला उत्तराखंड के जसपुर इलाके का है, जहां 5 दिसंबर, 2016 को बरातियों द्वारा हवाई फायरिंग करने से 2 लोग घायल हो गए थे. उन्हें आननफानन प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया गया था. पुलिस में केस दर्ज नहीं किया गया था, क्योंकि गोली चलाने वाले भी अपने थे और जिन्हें गोली लगी थी, वे भी रिश्तेदारों में ही थे.

पुलिस इस मसले पर कहती है कि हथियारों का गलत इस्तेमाल होने पर  आर्म्स ऐक्ट की धारा-17 और धारा-30 के तहत लाइसैंस रद्द किया जा सकता है. आरोपी को 3 साल की कैद और जुर्माने की सजा मिल सकती है.

गोली चलाने पर किसी की मौत हो जाने पर धारा-304 के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है. इस के तहत गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज होता है. इस मामले में 10 साल की सजा या फिर ताउम्र कैद हो सकती है.

शादी या फिर किसी भी तरह के समारोह में हथियार ले कर जाने पर बैन लगना चाहिए. हालांकि केंद्र सरकार ने इस तरह का बैन लगाने का निर्देश सभी राज्य सरकारों को दिया है, इस के बाद भी इस पर रोक नहीं लग पा रही है.

गोलियां चलानी हैं तो शादी में मत आओ

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बड़ौत थाने के वाजिदपुर गांव के फौजी रह चुके एक शख्स सुभाष कश्यप ने शादियों में गोलियां बरसाने वाले लोगों के गाल पर करारा तमाचा जड़ा था.

उन्होंने अपनी शादी के कार्ड में अनोखी चेतावनी छाप कर लोगों का दिल जीत लिया था. उन्होंने उस कार्ड में वैवाहिक कार्यक्रमों के साथसाथ यह भी छापा था, ‘शादी में फायरिंग और शराब के सेवन पर पूरी तरह से पाबंदी है. जो लोग फायरिंग करना चाहते हैं और शराब पीना चाहते हैं, ऐसे लोगों से निवेदन है कि वे शादी में शामिल नहीं हों…’ शादी के मजे को किरकिरा बनाने वालों ने वहां न जाने में ही अपनी भलाई समझी.

काश ! वह मान जाती : हुस्न के फेर में किया कत्ल

जून का महीना था, बिजली न होने की वजह से गरमी से लोगों का बुरा हाल था. लगभग 2 घंटे बाद बिजली आई भी तो परमजीत कौर के घर के तार में आग लग जाने की वजह से परेशानी कम होने के बजाए और बढ़ गई. दिन तो गुजारा जा सकता था, लेकिन रात गुजारना मुश्किल था. इसलिए परमजीत कौर ने अपनी 17 साल की बेटी संदीप कौर से कहा, ‘‘देख तो बेटा, तेरा भाई रमन कहां है. उस से कहो किसी बिजली मिस्त्री को बुला लाए, जिस से घर की बिजली ठीक हो जाए.’’

‘‘मम्मी, रमन तो दोस्तों के साथ ट्यूबवैल पर गया है.’’

‘‘फिर बिजली कैसे ठीक होगी?’’

‘‘मैं जा कर किसी मिस्त्री को देखती हूं.’’ संदीप कौर ने कहा और दुपट्टा ले कर घर से बाहर निकल गई. बिजली की दुकान गांव से बाहर सड़क किनारे थी, जिस पर 2 लड़के रहते थे. उन में से एक का नाम राजवीर सिंह उर्फ राजा था.

राजा गांव के ही रहने वाले रंजीत सिंह का बेटा था. रंजीत सिंह खुद तो ड्राइवर थे, लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर ठीकठाक नौकरी कर लें. लेकिन दुर्भाग्य से उन के दोनों बेटे पढ़ नहीं सके. बड़े बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजा ने 8वीं पास कर के स्कूल छोड़ दिया तो छोटा 8वीं भी पास नहीं सका.

पढ़ाई छोड़ कर राजा ने बिजली मरम्मत का काम सीख लिया और गांव के बाहर दुकान खोल ली. संदीप कौर राजवीर की दुकान पर पहुंची और उसे घर ले आई. 15-20 मिनट में राजवीर ने बिजली ठीक कर के परमजीत कौर से कहा, ‘‘बेबे, आप के घर के सारे तार गल गए हैं. आप नया तार मंगवा लीजिए, मैं तार बदल दूंगा.’’

‘‘बेटा, तू पैसे ले जा और बाजार से नया तार ला कर बदल दे. मेरे यहां कौन तार लाने जाएगा?’’ परमजीत कौर ने कहा.

‘‘ठीक है बेबे, मैं तार ला कर बदल दूंगा.’’

परमजीत कौर उसे पैसे देने लगीं तो उस ने कहा, ‘‘बेबे,जब तार ला कर बदल दूंगा तब पैसे देना. अभी मैं पैसे नहीं लूंगा.’’ राजवीर परमजीत कौर से बातें करते हुए कनखियों से संदीप कौर को भी ताक रहा था.

राजवीर संदीप कौर को आज पहली बार इस तरह नहीं ताक रहा था. इस के पहले दोनों गांव के एक समारोह में मिले थे, तभी से दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे थे.

राजवीर को देखते ही 17 साल की संदीप कौर के दिल की धड़कनें बढ़ जाती थीं. राजवीर भी अकसर सुबहशाम स्कूल आतेजाते उसे देखता रहता था पर सहेलियों के साथ होने की वजह से वह संदीप से बात नहीं कर पाता था. बिजली खराब होने की वजह से उस दिन वह संदीप कौर के इतना करीब आया था.

राजवीर संदीप कौर के घर कभी बिजली ठीक करने के बहाने तो कभी किसी और बहाने आनेजाने लगा. गांव का होने की वजह से परमजीत कौर ने न कभी बुरा माना और न संदेह किया. क्योंकि राजवीर उम्र में संदीप कौर से बड़ा था. इसी तरह आनेजाने में राजवीर और संदीपकौर के बीच न केवल प्यार का इजहार हो गया, बल्कि एकदूसरे की बांहों में समा कर दोनों अपनी सीमाएं भी लांघ गए, इस का अहसास होने पर जब संदीप कौर उदास हुई तो राजवीर ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है, आखिर हम दोनों को शादी तो करनी ही है.’’

संदीप और राजवीर अकसर चोरीछिपे मिलने लगे थे. धीरेधीरे 2 साल का समय बीत गया. इस बीच संदीप कौर ने राजवीर से कई बार कहा कि वह उस से शादी कर ले. इस पर राजवीर उसे समझाते हुए कहता, ‘‘संदीप, शादी कोई बच्चों का खेल नहीं. शादी के बाद जिंदगी गुजारने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. पहले उस लायक हो जाने दो, उस के बाद शादी कर लेंगे.’’

राजवीर की बातें सुन कर संदीप कौर मन मसोस कर रह जाती. लेकिन अब उस की रातें राजवीर के बिना मुश्किल से कटती थीं, इसलिए वह लगातार उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी थी. इधर कुछ दिनों से शादी की बात को ले कर राजवीर से उस का झगड़ा भी होने लगा था. क्योंकि राजवीर शादी के लिए बहाने बना रहा था. अंत में संदीप कौर ने उसे धमकी दे दी कि अगर उस ने 2 दिनों में शादी नहीं की तो वह उसे गांव वालों के सामने बदनाम कर के जहर खा लेगी.

संदीप कौर की इस धमकी से राजवीर बुरी तरह डर गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह संदीप कौर को किस तरह समझाए. 22 दिसंबर, 2016 की सुबह रोज की तरह संदीप कौर स्कूल जाने के लिए घर से निकली जरूर, लेकिन लौट कर नहीं आई.

 

संदीप कौर लौट कर नहीं आई तो उस की मां को चिंता हुई. जालंधर के थाना लांबड़ा का एक गांव है कोहाला. तरसेम सिंह इसी गांव के रहने वाले थे. उन के पास कुछ जमीन थी, उसी की पैदावार से घर का खर्च चलता था. लेकिन इस से वह संतुष्ट नहीं थे. उन के गांव के तमाम लोग विदेशों में रहते थे, इसलिए उन की देखादेखी तरसेम सिंह भी 3 साल पहले सऊदी अरब चले गए थे.

पति के विदेश जाने के बाद परमजीत कौर ने परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली थी. उन के परिवार में एक बेटी संदीप कौर और बेटा रमन था. संदीप कौर आठोला के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 11वीं में पढ़ रही थी.

वह सुबह स्कूल जाती थी और शाम साढ़े 4 बजे तक घर लौट आती थी, पर 22 दिसंबर, 2016 को वह शाम 6 बजे तक घर नहीं लौटी तो परमजीत कौर को चिंता हुई. उन्होंने संदीप कौर की सहेलियों के घर जा कर पूछा तो पता चला कि उस दिन तो वह स्कूल गई ही नहीं थी. यह सुन कर परमजीत कौर के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

बेटी के लापता होने से परमजीत कौर रोने लगीं. गांव वालों ने उन्हें सांत्वना दी और सभी मिल कर संदीप कौर को रात भर ढूंढते रहे. अगले दिन स्कूल जा कर भी पता किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. परमजीत कौर ने सऊदी अरब फोन कर के पति को भी बेटी के लापता होने के बारे में बता दिया.

जवान लड़की का मामला था, इसलिए सभी घबरा रहे थे. 3 दिनों तक तलाश करने के बाद जब संदीप कौर की कहीं कोई खबर नहीं मिली तो गांव वालों के कहने पर संदीप कौर की गुमशुदगी थाना लांबड़ा में दर्ज करा दी गई.

थानाप्रभारी सुखपाल सिंह को पूछताछ में पता चला कि 22 दिसंबर को संदीप कौर किसी युवक के साथ थी. युवक के बारे में पता करने के लिए थानाप्रभारी ने संदीप कौर की सहेलियों से पूछताछ की, पर कुछ पता नहीं चला. हां, इतनी जानकारी जरूर मिली कि उस का किसी युवक से चक्कर था. लेकिन युवक के बारे में किसी को पता नहीं था.

युवक के बारे में पता करने के लिए सुखपाल सिंह ने मुखबिरों को लगा दिया. इस बीच संदीप कौर को गायब हुए 8 दिन बीत गए थे. संदीप कौर के पिता तरसेम सिंह भी सऊदी अरब से आ गए थे. आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और किसी मुखबिर से पता चला कि संदीप कौर के गायब होने में गांव के ही राजवीर सिंह का हाथ है.

संदेह के आधार पर पुलिस ने पूछताछ के लिए राजवीर को थाने बुला लिया. उस से संदीप के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने संदीप कौर के गायब होने का रहस्य उजागर करते हुए जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी हैरान रह गए. उस ने बताया कि संदीप कौर की हत्या कर के उस की लाश को उस ने जमीन में गाड़ दिया है.

3 जनवरी, 2017 को राजवीर को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान राजवीर सिंह उर्फ राजा की निशानदेही पर पुलिस ने एसडीएम, ग्राम सरपंच और अन्य लोगों की उपस्थिति में गांव कोहाला के बाहर एक खेत से संदीप कौर की लाश बरामद कर ली. लाश काफी हद तक सड़ चुकी थी.

सुखपाल सिंह ने संदीप कौर के घर वालों से लाश की शिनाख्त करवाने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और गुमशुदगी की जगह हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. राजवीर के बताए अनुसार उसे संदीप कौर की मौत का बहुत दुख था क्योंकि वह उसे सचमुच बहुत प्यार करता था. लेकिन उस ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि न चाहते हुए भी उसे उस की हत्या करनी पड़ी.

जिस दिन संदीप कौर ने उसे बदनाम करने और खुद जहर खाने की धमकी दी थी, उस दिन वह काफी डर गया था और रात भर सो नहीं सका. अगले दिन भी वह काफी घबराया हुआ था. वह गांव के बाहर खेतों में घूमता रहा और सोचता रहा कि इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाए, क्योंकि वह संदीप कौर को हर तरह से समझा कर थक चुका था. वह शादी की अपनी जिद पर अड़ी थी. शायद वह चाहती थी कि सऊदी अरब से पिता के आने से पहले शादी कर हो जाए.

राजवीर ने एक बार फिर संदीप कौर को समझाया कि वह कुछ दिनों रुक जाए लेकिन संदीप कौर रुकने को तैयार नहीं थी. जब वह किसी तरह नहीं मानी तो राजवीर ने उसे गांव से बाहर जाने वाली सड़क पर मिलने को कहा. उस ने कहा कि दोनों घर से भाग कर शादी करेंगे.

अगले दिन 22 दिसंबर, 2016 की सुबह संदीप कौर स्कूल जाने के लिए घर से निकली और राजवीर के पास पहुंच गई. दिन भर राजवीर उसे लांबड़ा में घुमाता रहा. शाम को वह उसे गांव के बाहर एक सुनसान खेत, जिसे उस ने एक दिन पहले देख रखा था, में ले आया. कुछ देर प्यारमोहब्बत की बातें करने के बाद उस ने एक बार फिर संदीप कौर को समझाने की कोशिश की पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

इस के बाद राजवीर ने इधरउधर देखा. दूरदूर तक उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो संदीप कौर के गले में बांहें डाल कर वह जोरों से दबाने लगा. अचानक हुए इस हमले से संदीप कौर की आंखें हैरानी से फटी रह गईं. वह कुछ कर पाती, उस के पहले ही दबाव बढ़ने से कुछ देर तड़प कर उस की मौत हो गई.

कहीं वह जिंदा न रह जाए, यह सोच कर उस ने वहां पड़ी ईंट उठा कर संदीप कौर के सिर पर कई वार किए. जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह मर चुकी है तो उसे बाहों में ले कर वह कुछ देर रोता रहा और कहता रहा कि काश उस ने उस की बात मान ली होती.

संदीप कौर की लाश ठिकाने लगाने के लिए राजवीर ने रात में ही खेत में फावड़े से एक गहरा गड्ढा खोदा और लाश को उसी गड्ढे में दबा दिया. फावड़ा वह पहले से खेत में रख आया था. पुलिस ने वह फावड़ा भी बरामद कर लिया था. सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने राजवीर सिंह को फिर से 5 जनवरी, 2017 को अदालत में पेश किया, जहां से जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

थाना प्रभारी की आशिक मिजाजी

जालौर, राजस्थान के भीनमाल थाने में एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल किसी खास मीटिंग के लिए आने वाले थे. इस की सूचना थाने के सभी पुलिसकर्मियों को पहले से थी. लिहाजा सभी अपनीअपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से तैनात थे.

एसपी साहब समय से कुछ पहले आ गए थे. उन के साथ डीएसपी भी थे. उन की अगुवाई थानाप्रभारी दुलीचंद गुर्जर कर रहा था. वह उन के आगेपीछे मंडराता हुआ उन्हें थाने के सभी स्टाफ और बंटी हुई ड्यूटी के बारे में बता रहा था.

एसपी हर्षवर्धन तेजी से चलते हुए रिसैप्शन पर रुके. वहां तैनात लेडी कांस्टेबल से विजिटर्स रजिस्टर में पिछले एक हफ्ते की एंट्री दिखाने को कहा. कांस्टेबल ने रजिस्टर के पन्ने खोल कर एसपी साहब की ओर रजिस्टर घुमा दिया. रजिस्टर के एक खाली पन्ने पर एसपी साहब रुक गए. डांटते हुए पूछा, ‘‘यह पन्ना खाली क्यों है? इस तारीख को जो माल पकड़ा गया था, उस की एंट्री क्यों नहीं हुई है?’’

कांस्टेबल हक्कीबक्की स्थिति में कभी रजिस्टर को तो कभी थानाप्रभारी को देखने लगी. एसपी साहब दुबारा गुस्से में बोले, ‘‘तुम इधरउधर क्या देखती हो. पूरा रजिस्टर और चार्जशीट की सभी फाइलें ले कर में कमरे में आओ.’’ यह कहते हुए एसपी साहब आगे बढ़ गए. कांस्टेबल उदास हो कर वहां साथ खड़े हैडकांस्टेबल तेजाराम को देखने लगी.

‘‘घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा. तुम फाइलें ले कर साहब के पास जाओ,’’ तेजाराम बोला.

‘‘जी सर,’’ कांस्टेबल बोली.

‘‘और हां, मौका देख कर अपनी बात भी बेझिझक कह देना,’’ तेजाराम ने समझाया.

थोड़ी देर में लेडी कांस्टेबल कई फाइलें और रजिस्टर लिए हुए कमरे के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी. परदा हटाने को थी कि उन्हें एसपी साहब के गुस्साने की आवाज सुनाई दी. वह सहम गई. इसी बीच डीएसपी साहब भी आ गए. उन्होंने कांस्टेबल को एक नजर देखा और अंदर आने का इशारा कर दिया.

‘‘इतने सारे केस पेंडिंग क्यों है? क्या करते हो इतनी सारी फौज ले कर… तुम ने जुए में पकड़े गए लोगों तक का केस नहीं सुलझाया है. गुमशुदा के कई केस भरे पड़े हैं. …और नारकोटिक्स का जो माल पकड़ा गया था, उस का क्या हुआ? तुम्हारे यहां नैशनल स्पोर्ट्स की खिलाड़ी शूटर अपाइंटेड है. उस से तुम कोई काम ही नहीं लेते हो. उसे रिसैप्शन पर बिठा रखा है…’’

फाइलें लिए लेडी कांस्टेबल एसपी साहब की नाराजगी भरी बातें सुन कर समझ गई कि उस के बारे में भी कुछ बातें हो रही हैं. डांट थानाप्रभारी को पड़ रही थी. डीएसपी साहब एसपी साहब को सलाम ठोकते हुए उन के साथ की कुरसी पर बैठ गए. तभी एसपी साहब की नजर लेडी कांस्टेबल पर पड़ी. उन्होंने फाइलें अपने आगे रख कर उसे जाने को कहा.

लेडी कांस्टेबल वहां से आ कर अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गई. करीब आघे घंटे तक एसपी और डीएसपी साहब के कमरे में गहमागहमी बनी रही. थाने के करीबकरीब सभी पुलिसकर्मी कमरे में जा कर वापस आ चुके थे. इस बीच चायबिसकुट का दौर भी चलता रहा.

जो लोग कमरे से बाहर थे, उन्हें चायबिसकुट मिले. एएसआई प्रेम सिंह और हैडकांस्टेबल तेजाराम भी काफी सक्रिय दिखे. प्रेम सिंह एसपी साहब की गाड़ी से एक फाइल ले कर उन्हें दे कर अपनी सीट पर बैठ गए थे. कुछ समय में अधिकतर पुलिसकर्मी अपनीअपनी सीटों पर आ चुके थे. डीएसपी साहब जा चुके थे. कमरे में केवल एसपी साहब और एसएचओ थे.

एक कांस्टेबल लेडी कांस्टेबल को आ कर बोल गया, ‘‘जाओ, अब तुम्हारी बारी है. एक के चलते सब को डांट पड़ रही है.’’

लेडी कांस्टेबल एसपी साहब के पास जा कर खड़ी हो गई. एसपी साहब ने कहा, ‘‘अपनी फाइलें समेट लो.’’  उस के बाद वे एक फाइल में से कुछ पढ़ने लगे.

‘‘सर, उसे भी ले लूं?’’ एसपी साहब के सामने खुली फाइल की ओर उस ने इशारा किया. तब तक थानाप्रभारी भी कमरे से निकल चुके थे.

‘‘नहींनहीं,यह तुम्हारी नहीं है.’’ एसपी साहब यह कह कर उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘तो तुम अपना यहां से ट्रांसफर चाहती हो… लेकिन क्यों?’’

‘‘सर, मैं ने कंप्लेन लेटर में लिखा है कारण.’’

‘‘लेकिन, उस कारण पर ट्रांसफर नहीं हो सकता. तुम जहां जाओगी, वहां भी ऐसे सहकर्मी मिल सकते हैं, जिन से तुम्हारी नहीं बनेगी. इस की क्या गारंटी है कि लेटर की शिकायत जैसी बात वहां नहीं होगी.’’ यह सुन कर कांस्टेबल चुप लगा गई.

‘‘निराश होने की बात नहीं है. पहले तुम अपने साथ घटित वाकए के बारे में बताओ,’’ एसपी साहब बोले.

यह सुन कर लेडी कांस्टेबल की जान में जान आई. पिछले कई महीनों से अपने साथ लगातार हो रहे जिस वाकए को ले कर वह परेशान थी, उस बारे में उस ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, मैं जानती हूं कि यहां एक छोटा स्टाफ है. लेकिन मेरी भी इज्जत है. समाजपरिवार में लोगों के लिए मैं एक औरत ही हूं. माना कि मैं अविवाहित हूं, लेकिन इस का यह मतलब थोड़े है कि मेरे साथ अभद्रता से पेश आएं…’’

बात करीब 9 महीने पहले 17-18 की अप्रैल है. मैं ने देर रात तक जाग कर पूरी चार्जशीट तैयार कर ली थी. उसे ले कर थानाप्रभारी साहब दुलीचंद गुर्जर के चैंबर में गई थी. थानाप्रभारी साहब टांगे टेबल पर रख कर बैठे थे. मुझे देखते ही बोल पड़े, ‘‘आज तो तुम बड़ी सुंदर लग रही हो.’’

मैं उन की बात सुन कर सकपका गई, लेकिन बोलने का टोन समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहते हैं. मैं जल्दीजल्दी बोली, ‘‘सर, चार्जशीट तैयार कर ली है, इसे देख कर साइन कर दीजिए.’’

‘‘इतना सारा पढ़ने में समय लगेगा. तू फाइल टेबल पर रख दे और मेरे सामने कुरसी पर बैठ जा. तुझे देखता रहूंगा और पढ़ता भी रहूंगा.’’ इस बात पर मैं चुप रही.

थानाप्रभारी ने दोबारा कहा, ‘‘तेरे से एक बात पूछना चाहता हूं. मैं तुझे बहुत चाहता हूं. काम भी बहुत अच्छा करती हो. रातरात भर जाग कर तूने चार्जशीट लिख डाली. तुम्हारी तरक्की भी करवा दूंगा, लेकिन बदले में एक रात मेरे हवाले करनी पड़ेगी… समझ गई न?’’

अंतिम कुछ शब्द लेडी कांस्टेबल के कानों में पिघले शीशे जैसे लगे. लगा वह बहरी हो जाने वाली है. भागती हुई अपनी सीट पर आ गई. एसआई प्रेम सिंह से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. कल मिलूंगी.’’

उस के बाद मैं रूआंसी हो कर आधी रात को अपनी स्कूटी से घर आ गई. उस रात ठीक से सो नहीं पाई. अगले रोज जा कर मैं ने यह बात हैडकांस्टेबल तेजाराम और एएसआई प्रेमसिंह को बताई, लेकिन उन्होंने बदनामी की बात कह कर मुझे चुप करा दिया.

उस के बाद मैं ने देखा कि थानाप्रभारी साहब का मेरे प्रति रवैया काफी रूखा हो गया. मुझे दी गई कई जिम्मेदारियां छीन ली गईं. मुझे नीचा और निकम्मा दिखाने की कोशिश की जाने लगी. उस के बाद ही मैं ने आप को और डीसीपी साहब को ट्रांसफर का लेटर लिखा था. लेडी कांस्टेबल के इस बयान को लिखित ले कर एसपी साहब चले गए. एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल ने इस मामले को गंभीरता से लिया.

अगले रोज एसपी औफिस से थाने में एक लेटर आया. लेटर क्या था वह बम से कम नहीं था. उस के खुलते ही थाने के 6 पुलिसकर्मी बुरी तरह आहत हो गए थे. दरअसल, लेडी कांस्टेबल की अश्लील हरकत करने जैसी शिकायत पर थानाप्रभारी को लाइनहाजिर का दिया गया था.

थानाप्रभारी की रंगमिजाजी का असर पूरे थाने के कामकाज पर भी पड़ा था, जिस से और 5 लोगों को वहां से हटा दिया गया था. इन में थानाप्रभारी दुलीचंद सहित एएसआई कल्याणसिंह, कांस्टेबल प्रकाश, ओमप्रकाश, रामलाल और श्रवण कुमार थे.

इस थाने के डीएसपी हीरालाल सैनी के बाद यह दूसरा मामला था, पुलिस को महिला स्टाफ के साथ अभद्र व्यवहार करने और काम की अनदेखी करने की सजा मिली थी.

जानलेवा बना पत्नी के प्रेमी से अवैध संबंध

उस दिन मई 2021 की 11 तारीख थी. तीर्थनगरी हरिद्वार के पथरी थाने के थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा अपने औफिस में बैठे कुछ आवश्यक काम निपटा रहे थे, तभी उन के पास एक महिला आई और बोली, ‘‘साहब, मेरी मदद कीजिए.’’

वह महिला बड़े ही दुखी लहजे में बोली, ‘‘मेरा नाम अंजना है और मैं रानी माजरा गांव में रहती हूं. साहब, परसों 9 मई को मेरा पति संजीव सुबह फैक्ट्री गया था, लेकिन शाम को वापस नहीं लौटा. उस के न लौटने पर उस की फैक्ट्री व परिचितों के घर जा कर पता किया लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. उस के बारे में कुछ पता न चलने पर मैं आप के पास मदद मांगने आई हूं. अब आप ही मेरे पति को तलाश सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, हम तुम्हारे पति को खोज निकालेंगे. तुम लिखित तहरीर दे दो और साथ में अपने पति की एक फोटो दे दो.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘ठीक है साहब. मुझे शक है कि मेरे गांव के ही प्रधान ने मेरे पति को गायब कराया है. कहीं उस ने मेरे पति के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. इस बात से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’ वह बोली.

‘‘ठीक है, जांच में सब पता लगा लेंगे. अगर प्रधान का इस सब में हाथ हुआ तो उसे सजा जरूर दिलाएंगे.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘ठीक है साहब,’’ कह कर वह महिला अंजना वहां से चली गई. कुछ ही देर में वह वापस लौटी और एक तहरीर और फोटो थानाप्रभारी शर्मा को दे गई तो उन्होंने संजीव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी शर्मा अभी कुछ प्रयास करते, उस से पहले ही अगले दिन फिर अंजना उन से मिलने आ गई. उस ने गांव के प्रधान द्वारा अपने पति को मार देने का आरोप लगाते हुए लाश जंगल में पड़ी होने की आशंका जाहिर की.

उस ने यह बात उस की इस हरकत से इंसपेक्टर शर्मा को उस पर शक हो गया. ऐसी हरकत तो इंसान तभी करता है, जब वह खुद उस मामले में संलिप्त हो और दूसरे को फंसाने की कोशिश करता है.

अंजना भी जिस तरह से गांव के प्रधान को बारबार इंगित कर रही थी, उस से यही लग रहा था कि अंजना का अपने पति संजीव को गायब कराने में हाथ है और इस में वह गांव के प्रधान को फंसाना चाहती है.

संजीव ने गांव के कई विकास कार्यों के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रखी थी. इस से प्रधान और संजीव के बीच विवाद चल रहा था. इसी का फायदा शायद अंजना उठाना चाहती थी.

अंजना पर शक हुआ तो इंसपेक्टर शर्मा ने अंजना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर पर अंजना की काफी बातें होने की बात पता चली. 9 मई को भी कई बार बातें हुई थीं. दोनों की लोकेशन भी कुछ देर के लिए साथ में मिली.

अंजना पर जब शक पुख्ता हो गया तो 16 मई, 2021 को थानाप्रभारी शर्मा ने अंजना को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. फिर महिला कांस्टेबलों बबीता और नेहा की मौजूदगी में अंजना से काफी सवाल किए, जिन का सही से अंजना जवाब नहीं दे पाई. जब सख्ती की गई तो अंजना ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

अंजना ने ही अपने पति संजीव की हत्या की थी. हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी शिवकुमार उर्फ शिब्बू ने दिया था, जोकि धनपुरा गांव में रहता था. उसी ने हत्या के बाद संजीव की लाश पैट्रोल डाल कर जलाई थी. पुलिस ने शिवकुमार को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों की निशानदेही पर पीपली गांव के जंगल के काफी अंदर जा कर संजीव की अधजली लाश पुलिस ने बरामद कर ली. मौके से ही हत्या में प्रयुक्त रस्सी और प्लास्टिक बोरी भी बरामद हो गई.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, वह काफी हैरतअंगेज थी.

उत्तराखंड के शहर हरिद्वार के पथरी थाना क्षेत्र के गांव रानी माजरा में रहता था संजीव. संजीव पदार्था स्थित पतंजलि की फूड पार्क कंपनी में काम करता था. परिवार के नाम पर उस की पत्नी और 12 साल का बेटा सनी था.

जब परिवार का मुखिया सही न चले तो परिवार का बिगड़ना तय होता है. संजीव में कई गलत आदतें थीं, जिस से अंजना काफी परेशान रहती थी. संजीव को अप्राकृतिक यौन संबंध बनवाने का शौक था, जिस के चलते वह शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार भी रहता था.

कभीकभी उस की मानसिक स्थिति काफी बदतर हो जाती थी. घर के सामने से कोई कुत्ता गुजर जाता तो वह कुत्ते को जम कर मारतापीटता था. कई बार उस ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के पुलिसकर्मियों को गालियां दीं. पुलिसकर्मियों ने शिकायत की तो उस की हालत देख कर थाना स्तर से कोई काररवाई नहीं की जाती. उस के दिमाग में कब क्या फितूर बस जाए कोई नहीं जान सकता था.

धनपुरा गांव में रहता था 45 वर्षीय शिवकुमार उर्फ शिब्बू. शिवकुमार के परिवार में पत्नी, एक बेटी और एक बेटा था. शिवकुमार दूध बेचने का काम करता था. संजीव के घर वह पिछले 10 सालों से दूध देने आता था.

संजीव से उस की दोस्ती थी. संजीव ने शिवकुमार को अपनी पत्नी अंजना से मिलाया. दोनों मे दोस्ती कराई. दोस्ती होने पर शिवकुमार दूध देने घर के अंदर तक आने लगा. अंजना से वह घंटों बैठ कर बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में वे दोनों काफी घुलमिल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी होने लगा.

एक दिन दूध देने के बाद शिवकुमार अंजना के पास बैठ गया. उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, लगता है आप अपना खयाल नहीं रखती हो?’’

अंजना को उस की बात सुन कर हैरत हुई, बोली, ‘‘अरे, भलीचंगी तो हूं …और कैसे खयाल रखूं?’’

‘‘सेहत पर तो आप ध्यान दे रही हो, जिस से स्वस्थ हो लेकिन अपने हुस्न को निखारनेसंवारने में बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही हो.’’

‘‘ओह! तो यह बात है. मैं भी सोचूं कि मैं तो अच्छीखासी हूं.’’ फिर दुखी स्वर में बोली, ‘‘अपने हुस्न को संवार कर करूं भी तो क्या.  जिस के साथ बंधन में बंधी हूं, वह तो ध्यान ही नहीं देता. उस का शौक भी दूसरी लाइन का है. मुझे खुश करने के बजाय खुद को खुश करने के लिए लोगों को ढूंढता फिरता है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ चौंकते हुए बोला.

शिवकुमार कुछकुछ समझ तो गया था लेकिन अंजना से खुल कर पूछने के लिए उस से सवाल किया.

‘‘यही कि वह आदमी है और आदमी से ही प्यार करता है, उसे औरत में कोई लगाव नहीं है. जैसेतैसे उस ने कुछ दिन मुझे बेमन से खुशी दी, जिस की वजह से एक बेटा हो गया. उस के बाद उस ने मेरी तरफ देखना ही बंद कर दिया. उस के शौक ही निराले हैं.’’

इस पर शिवकुमार उस से सुहानुभूति जताते हुए बोला, ‘‘यह तो आप के साथ अत्याचार हो रहा है, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से. आप कैसे सह लेती हो इतना सब?’’

‘‘क्या करूं…जब नसीब में ही सब लिखा है तो भुगतना तो पडे़गा ही.’’ दुख भरे लहजे में अंजना ने कहा.

‘‘जैसे वह आप का खयाल नहीं रखता, वैसे आप भी उस का खयाल मत रखो. आप का भी अपना वजूद है, आप को भी अपनी खुशी का खयाल रखने का हक है.’’ उस ने उकसाया.

‘‘खुद को खुश रखने की कोशिश भी करूं तो कैसे, संजीव मेरी खुशियों में आग लगाने में पीछे नहीं हटता. अब उस से बंध गई हूं तो उस के साथ ही निभाना पड़ेगा.’’

‘‘आप अपनी खुशी के लिए कोई भी कदम उठा सकती हैं. इस के लिए आप पर कोई बंधन नहीं है. जरूरत है तो आप के एक कदम बढ़ाने की.’’

‘‘कदम तो तभी बढ़ेंगे, जब कोई मंजिल दिखे. बिना मंजिल के कदम बढ़ाने से कोई फायदा नहीं, उलटा कष्ट ही होगा.’’ वह बेमन से बोली.

‘‘मंजिल तो आप के सामने ही है लेकिन आप ने देखने की कोशिश ही नहीं की.’’ शिवकुमार ने अंजना की आंखों में देखते हुए कहा.

शिवकुमार की बात सुन कर अंजना ने भी उस की आंखों में देखा तो वहां उसे अपने लिए उमड़ता प्यार दिखा. अंजना के दिल को सुकून मिला कि उसे भी कोई दिल से चाहता है और उस का होना चाहता है.

‘‘लेकिन शिव, हम दोनों का ही अपना बसाबसाया परिवार है. ऐसे में एकदूसरे की तरफ कदम बढ़ाना सही होगा.’’ अंजना ने सवाल किया.

‘‘मेरी छोड़ो, अपनी बात करो. कौन सा परिवार… परिवार के नाम पर पति और एक बेटा. पति ऐसा कि जो अपने लिए ही मस्ती खोजता रहता है, जिसे अपनी पत्नी की जरूरतों का कोई खयाल नहीं और न ही उस की भावनाओं की कद्र करता है. ऐसे इंसान से दूर हो जाना बेहतर है.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रहे हो शिव. जब उसे मेरा खयाल नहीं तो मैं क्यों उस की चिंता करूं.’’

‘‘हां भाभी, मैं आप को वह सब खुशियां दूंगा, जिस की आप हकदार हैं. बस आप एक बार हां तो कहो.’’

अंजना ने उस की बात सुन कर मूक सहमति दी तो शिवकुमार ने उसे बांहों में भर कर कर सीने से लगा लिया. उस के बाद शिवकुमार ने अंजना को वह खुशी दी, जो अंजना पति से पाने को तरसती थी. उस दिन शिवकुमार ने अंजना की सूखी जमीन को फिर से हराभरा कर दिया.

फिर तो उन के बीच नाजायज संबंध का यह रिश्ता लगभग हर रोज निभाया जाने लगा. अंजना का चेहरा अब खिलाखिला सा रहने लगा. वह अब अपने को सजानेसंवारने लगी थी. शिवकुमार के बताए जाने पर वह शिवकुमार के दिए जाने वाले कच्चे दूध से चेहरे की सफाई करती. दूध उबालने के बाद पड़ने वाली मोटी मलाई को अपने चेहरे पर लगाती, जिस से उस के चेहरे की चमक बनी रहे.

समय का पहिया निरंतर आगे बढ़ता गया. संजीव से उन के संबंध छिपे नहीं रहे. उसे पता चला तो उसे बिलकुल गुस्सा नहीं आया. अमूमन कोई भी पति अपनी पत्नी के अवैध रिश्ते के बारे में जानता तो गुस्सा करता, पत्नी के साथ मारपीट लड़ाईझगड़ा करता, लेकिन संजीव के मामले में ऐसा कुछ नहीं था. उस के दिमाग में तो और ही कुछ चल रहा था. जो उस के दिमाग में चल रहा था उसे सोच कर वह मंदमंद मुसकरा रहा था.

अब संजीव दोनों पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को शारीरिक रिश्ता बनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. उसे आया देख कर शिवकुमार और अंजना सहम गए.

संजीव ने दोनों को एक बार खा जाने वाली नजरों से देखा, फिर उन के सामने कुरसी डाल कर आराम से बैठ गया और बोला, ‘‘तुम दोनों अपना कार्यक्रम जारी रखो.’’

उस के बोल सुन कर शिवकुमार और अंजना हैरत से एकदूसरे को देखने लगे. उन के आश्चर्य की सीमा नहीं थी. संजीव ने जो कहा था उन की उम्मीद के बिलकुल विपरीत था. संजीव के दिमाग में क्या चल रहा है, दोनों यह जानने के लिए उत्सुक थे.

उन दोनों को हैरत में पड़ा देख कर संजीव मुसकरा कर बोला, ‘‘चिंता न करो, मुझे तुम दोनों के संबंधों से कोई एतराज नहीं है. मैं तो खुद तुम दोनों को संबंध बनाते देखने को आतुर हूं.’’

संजीव के बोल सुन कर अंजना के अंदर की औरत जागी, ‘‘कैसे मर्द हो जो अपनी ही बीवी को पराए मर्द के साथ बिस्तर पर देखना चाहते हो. तुम इतने गिरे हुए इंसान हो, मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी.’’

‘‘तुम्हारे प्रवचन खत्म हो गए हों तो आगे का कार्यक्रम शुरू करो.’’ बड़ी ही बेशरमी से संजीव बोला.

‘‘क्यों कोई जबरदस्ती है, हम दोनों ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’ अंजना ने सपाट लहजे में बोल दिया.

संजीव ठहाके लगा कर हंसा, फिर बोला, ‘‘मुझे न बोलने की स्थिति में नहीं हो तुम दोनों. मैं ने बाहर वालों को तुम दोनों के नाजायज संबंधों के बारे में बता दिया तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे.’’

बदनामी का भय इंसान को अंदर तक हिला कर रख देता है. अंजना और शिवकुमार भी बदनाम नहीं होना चाहते थे. वैसे भी जिस से उन को डरना चाहिए था, वह खुद उन को संबंध बनाने की छूट दे रहा था. ऐसे में दोनों ने संबंध बनाए रखने के लिए संजीव की बात मान ली.

अंजना और शिवकुमार शारीरिक संबंध बनाने लगे. संजीव उन के पास ही बैठ कर अपनी आंखों से उन को ऐसा करते देखता रहा और आनंदित होता रहा. किसी पोर्न मूवी में फिल्माए जाने वाले दृश्य की तरह ही सब कुछ वहां चल रहा था.

अंजना के साथ संबंध बनाने के बाद संजीव ने शिवकुमार से अपने साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने को कहा. शिवकुमार ने न चाहते हुए उस की बात मान ली. संजीव को उस की खुशी दे दी. अब तीनों के बीच बेधड़क संबंधों का यह नाजायज खेल बराबर खेला जाने लगा.

अंजना और शिवकुमार को संजीव ब्लैकमेल कर रहा था. दोनों को अपने प्यार में बाधा पहुंचाने वाला और बदनाम करने की धमकी देने वाला संजीव अब अखरने लगा था. उस से छुटकारा पाने का एक ही तरीका था, वह था उसे मौत की नींद सुला देने का. दोनों ने संजीव को ठिकाने लगाने का फैसला किया तो उस पर योजना भी बना ली.

शिवकुमार का फेरूपुर गांव में खेत था, उसी में उस ने अपना एक अलग मकान बनवा रखा था. 9 मई को अंजना संजीव को यह कह कर वहां ले गई कि वहीं तीनों मौजमस्ती करेंगे. संजीव अंजना के जाल में फंस गया. उस के साथ शिवकुमार के मकान पर पहुंच गया. शिवकुमार वहां पहले से मौजूद था.

शिवकुमार के पहुंचते ही शिवकुमार ने अंजना को इशारा किया. अंजना ने तुरंत पीछे से संजीव को दबोच लिया. दुबलापतला संजीव अंजना के चंगुल से तमाम कोशिशों के बाद भी छूट न सका.

शिवकुमार ने संजीव के गले में रस्सी का फंदा डाल कर कस दिया, जिस से दम घुटने से संजीव की मौत हो गई. शिवकुमार ने उस की लाश प्लास्टिक बोरी में डाल कर बोरी बंद कर दी और उस बोरी को बाइक पर रख कर वह पीपली गांव के जंगल में ले गया और जंगल में काफी अंदर जा कर संजीव की लाश फेंक दी. लाश ठिकाने लगा कर वह वापस आ गया.

योजना के तहत 11 मई, 2021 को अंजना ने पथरी थाने में पति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अंजना ने ग्राम प्रधान पर हत्या का शक जाहिर किया, जिस से हत्या में ग्रामप्रधान फंस जाए. इधर अंजना को पता नहीं क्यों भय सताने लगा कि वे दोनों किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं.

इस भय के कारण 14 मई को ईद के दिन अंजना ने शिवकुमार से संपर्क किया और शिवकुमार से कहा कि लाश को पैट्रोल डाल कर जला दो. शिवकुमार ने फिर से जंगल जा कर संजीव की लाश पर पैट्रोल डाल कर जला दी.

लेकिन दोनों की ज्यादा होशियारी काम न आई, दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. चूंकि अंजना ही वादी थी, ऐसे में पीडि़त को गुनहगार साबित करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है. लेकिन थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा ने बड़ी सूझबूझ से पहले पुख्ता सुबूत जुटाए, फिर अंजना को उस के प्रेमी शिवकुमार के साथ गिरफ्तार किया.

थानाप्रभारी शर्मा ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पंजाब में बहन भाई का खुराफाती कारनामा

28 नवंबर, 2016 की शाम मोहाली के थाना सोहाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरसिमरन सिंह बल फील्ड के कामों से फारिग हो कर अपने औफिस पहुंचे थे कि उन का एक खास मुखबिर उन के सामने आ खड़ा हुआ. नमस्कार करने के बाद उस ने कहा, ‘‘सर, बढि़या इनाम तैयार रखिए, ऐसी जबरदस्त खबर लाया हूं कि सुन कर आप उछल पड़ेंगे.’’

यह मुखबिर लंबे समय से हरसिमरन सिंह के लिए मुखबिरी करता आ रहा था. यह उन का निहायत भरोसे का आदमी था, जिस की सूचनाएं अकसर सही निकलती थीं. वह पढ़ालिखा था और मामले की गहराई में जाने के बाद जब उसे पूरा विश्वास हो जाता था कि मामला पूरी तरह से सच है, उस के बाद ही वह उन के पास आता था.

उस दिन भी उस के चेहरे पर ऐसा ही आत्मविश्वास झलक रहा था. हरसिमरन सिंह ने उसे अपने रिटायरिंग रूम में ले जा कर कहा, ‘‘इनाम की चिंता मत करो, सूचना बढि़या होनी चाहिए.’’

‘‘मैं ने कहा न सर, ऐसी जबरदस्त सूचना लाया हूं कि सुन कर उछल पड़ेंगे. सरकार द्वारा जो यह दम भरा जा रहा है कि 2 हजार रुपए के नए नोट की कभी नकल नहीं हो सकेगी यानी जाली नोट नहीं छापे जा सकेंगे, मेरी सूचना उसी के बारे में है.’’ मुखबिर ने उत्साह के साथ कहा.

‘‘मतलब, किसी ने इतनी जल्दी उस की नकल तैयार कर ली यानी 2 हजार रुपए के नकली नोट छाप लिए ’’ हरसिमरन सिंह ने हैरानी से पूछा.

‘‘नकल तैयार ही नहीं कर ली सर, करोड़ों के जाली नोट छाप कर मार्केट में चला भी दिए हैं.’’

‘‘2 हजार के जाली नोट चला भी दिए ’’

‘‘जी सर.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है ’’ कहने के साथ उन्होंने पूछा, ‘‘यह अपराध क्या मेरे इलाके में हुआ है ’’

‘‘सर, यह तो पता नहीं, लेकिन मुझे जो जानकारी है, उस के अनुसार लालबत्ती लगी औडी कार पर सवार हो कर 3 लोग, जिन में एक लड़की भी शामिल है, 2 हजार रुपए के जाली नोटों के साथ आप के एरिया में घूम रहे हैं.’’

‘‘उन लोगों के पास इस समय भी 2 हजार रुपए के जाली नोट हैं, अगर हैं तो कितने होंगे ’’

‘‘एकदम सटीक तो नहीं बता सकता सर, लेकिन जो भी है, वे लाखों में हैं. आप तुरंत नाकाबंदी करवाइए. अगर देर हो गई तो वे आप के इलाके से निकल भी सकते हैं. सर, मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर इस समय आप ने उन लोगों को पकड़ लिया तो बड़ी मात्रा में 2 हजार रुपए के जाली नोट पकड़ने का यह पहला मामला होगा. अगर ऐसा हो गया तो मैं भी बढि़या इनाम पाने का हकदार हो जाऊंगा.’’ ट्राइसिटी (मोहाली-चंडीगढ़-पंचकूला) के कुछ बैंक वालों ने 2 हजार रुपए के नए नोटों की पुख्ता पहचान के लिए एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिस में बताया गया था कि 2 हजार रुपए के नोट पर सीधी तरफ सी थ्रू रजिस्टर में 2 हजार रुपए लिखा है. महात्मा गांधी के चित्र की दाईं ओर देवनागरी में 2 हजार रुपए लिखा गया है, जिस में रुपए का नया साइन है. महात्मा गांधी का चित्र नोट के ठीक बीच में है. नोट पर बाईं ओर माइक्रालैटर्स में आरबीआई और 2 हजार लिखा है. नोट को थोड़ा टेढ़ा कर के देखने पर थ्रेड का रंग हरे से नीले में बदलता दिखाई देता है. नोट की दाईं ओर गवर्नर के हस्ताक्षर, गारंटी और प्रौमिस क्लाज दिया गया है.

इस में आरबीआई का साइन भी देखा जा सकता है. नोट को लाइट में देखने पर सफेद जगह में महात्मा गांधी का चित्र दिखाई देता है. वहीं इलैक्ट्रोटाइप वाटरमार्क है तो नीचे की तरफ दाईं ओर अशोक स्तंभ है, जिस के ऊपरी भाग पर रैक्टेंगल में 2 हजार रुपए लिखा गया है. बाईं ओर 7 लाइनें भी चिह्नित की गई हैं. नोट में पिछली तरफ स्वच्छ भारत का लोगो दिया गया है. वहीं पर कई भाषाओं में नोट की वैल्यू लिखने के अलावा मंगलयान का चित्र भी दिया गया है.

सरकार पहले ही दिन से दावा कर रही थी कि इस नए 2 हजार रुपए के नोट का जाली नोट तैयार करना कठिन ही नहीं, एकदम असंभव है. बैंक वालों ने 2 हजार रुपए के नोट के बारे में जो आयोजन किया था, उस में हरसिमरन सिंह ने भी भाग लिया था. उन दिनों उन के पास थाना सोहाना के अलावा मोहाली इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर स्थित थाने का भी चार्ज था. उस समय वह वहीं से आए थे, जब उन का वह मुखबिर उन से मिलने आया था.

मुखबिर द्वारा मिली सूचना के बारे में उच्चाधिकारियों को फोन द्वारा बता कर दिशानिर्देश लेने के बाद हरसिमरन सिंह ने एक तहरीर तैयार कर अपराध संख्या 276 पर भादंवि की धाराओं 420, 489ए, 489बी, 489सी, 489डी, 489ई एवं 120बी के तहत आपराधिक मामला दर्ज कर एक टीम तैयार की, जिस में एसआई चरणजीत सिंह के अलावा हवलदार परमजीत कुमार, इकबाल सिंह, संजय कुमार, बलविंदर सिंह और जगतपाल सिंह, सीनियर सिपाही गुरमुख सिंह, देवेंद्र सिंह, सिपाही बलवीर सिंह व महिला हवलदार गुरविंदर कौर को शामिल किया गया.

अपनी इस पूरी टीम के साथ मुखबिर के बताए अनुसार, जगतपुरा के टी पौइंट पर उन्होंने नाका लगा दिया. यह शाम के करीब साढ़े 7 बजे की बात है. गाडि़यां आतीजाती रहीं और जरूरत के हिसाब से उन्हें रोक कर तलाशी ली जाती रही. जिस गाड़ी का इस पुलिस टीम को इंतजार था, वह अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी थी.

आखिर आधी रात को साढ़े 12 बजे के करीब वीआईपी नंबर की लालबत्ती लगी सफेद रंग की औडी कार आती दिखाई दी. शायद इसी गाड़ी के बारे में मुखबिर ने बताया था, इसलिए हरसिमरन सिंह ने अपने एक सिपाही को इशारा कर के उस कार को रोकने को कहा.

सिपाही के इशारे पर गाड़ी चालक ने बड़ी शराफत से गाड़ी एक तरफ ले जा कर रोक दी. उस के बाद खिड़की का शीशा नीचे कर के गरदन बाहर निकाल कर पूछा, ‘‘क्या बात है भई, गाड़ी क्यों रुकवाई  देख नहीं रहे हो कि यह वीआईपी गाड़ी है.’’

तब तक हरसिमरन सिंह गाड़ी के पास पहुंच गए थे. सिपाही के बजाए उन्होंने उस की बात का जवाब दिया, ‘‘गाड़ी इसलिए रुकवाई है, क्योंकि इस की तलाशी लेनी है.’’

‘‘वह किसलिए ’’ ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी ने रुखाई से पूछा.

इस पर हरसिमरन सिंह ने अपनी आवाज में थोड़ी सख्ती लाते हुए कहा, ‘‘गाड़ी में जितने भी लोग हैं, चुपचाप बाहर आ कर खड़े हो जाएं. हमें अपना काम करने दें.’’

‘‘कमाल है सर, वीआईपी नंबर वाली गाड़ी है, जिस पर रैड बीकन भी लगी है, ऐसे में आप को मालूम होना चाहिए…’’

‘‘मुझे यह मालूम करने की जरूरत नहीं है कि तुम लोग किस तरह के वीआईपी हो और अपनी गाड़ी पर लालबत्ती लगाने का अधिकार तुम ने कहां से हासिल किया है. ऊपर से आदेश के अनुसार हमें तुम्हारी गाड़ी की तलाशी लेनी है. बेहतर होगा कि तुम लोग शराफत से बाहर आ कर खड़े हो जाओ वरना हमें सख्ती से काम लेना होगा.’’ हरसिमरन सिंह ने अपनी आवाज को सख्त करते हुए कहा.

इस बीच उन के इशारे पर टीम के अन्य लोगों ने कार को चारों ओर से घेर लिया था. यह सब देख कर ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक ने अंदर कोई इशारा किया और दरवाजा खोल कर बाहर आ गया. वह एक स्मार्ट सा युवक था. उस की बगल वाली सीट से एक आकर्षक युवती उतरी तो पिछली सीट से अधेड़ उम्र का एक आदमी बाहर आया. कार से बाहर आ कर ये सभी हरसिमरन सिंह को यह समझाने की कोशिश करने लगे कि वे ऊंचे पदों पर बैठे प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित हैं और उन की गाड़ी में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे अनुचित कहा जा सके. अधेड़ शख्स ने कुछेक राजनेताओं के नाम ले कर प्रभावित करने की कोशिश की.

हरसिमरन सिंह ने उन की बातों पर ध्यान न दे कर खुद कार की तलाशी लेने लगे. इस तलाशी में उन के हाथ ऐसे 3 बैग लगे, जिन में 2 हजार रुपए के नोटों की गड्डियां ठसाठस भरी थीं. देखने में वे तमाम नोट एकदम असली लग रहे थे, लेकिन मुखबिर ने उन के पास जाली नोटों के होने के बारे में बताया था. फिर भी नोटबंदी के दौर में इतनी बड़ी मात्रा में नई करेंसी का एक जगह मिलना किसी अपराध से कम नहीं था.

हरसिमरन सिंह तीनों को उन की गाड़ी और करेंसी सहित थाने ले आए, जहां शुरुआती पूछताछ में ही उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए उगल दिया कि उन से बरामद सारी करेंसी नकली है और वे कुल 42 लाख के नोट हैं. फिर क्या था, तीनों को विधिवत हिरासत में ले कर फिलहाल हवालात में बंद कर दिया गया. अगले दिन सुबह उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड पर ले कर तीनों से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उन्होंने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से उच्चशिक्षित एवं अच्छे प्रतिष्ठित परिवारों के लड़केलड़की द्वारा अपना एक गिरोह बना कर आपराधिक राह पर चलने की जो दास्तान सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

सरवमित्तर वर्मा हरियाणा सरकार में उच्च अधिकारी थे. उन की पत्नी सैन्य विभाग में लैफ्टिनेंट कर्नल डाक्टर हैं. इस जाली नोटों के साथ पकड़ा गया युवक इन्हीं वर्मा दंपति का 21 साल का बेटा है अभिनव वर्मा. वह पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार था. मूलरूप से ये लोग हरियाणा के जिला फरीदाबाद के कस्बा बल्लभगढ़ के रहने वाले थे.

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अभिनव चंडीगढ़ चला आया था. यहीं रह कर उस ने चंडीगढ़ से 25 किलोमीटर दूर पंजाब के जिला मोहाली के कस्बा बनूड़ स्थित चितकारा यूनिवर्सिटी से बीटेक किया.

अभिनव ने कई प्रोजैक्टों पर काम करते हुए न केवल अपार सफलताएं अर्जित कीं, बल्कि अपना नाम भी रोशन किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ का हिस्सा बन कर उस ने अंधे लोगों के लिए एक ऐसा उपकरण बनाया, जिसे किसी अंधे की छड़ी अथवा अंगूठी में आसानी से फिट किया जा सकता है. नेत्रहीन अगर अकेला चला जा रहा है तो किसी भी तरह की बाधा आने पर यह उपकरण सेंसर की तरह काम करते हुए उन्हें चौकन्ना कर देता है. इस उपकरण की न केवल खूब चर्चा हुई बल्कि अभिनव इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतारने की तैयारी करने लगा. इस के लिए ‘लाइव ब्रेल सौल्यूशन’ नाम से अपनी कंपनी बना कर चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1 में उस ने अपना आलीशान औफिस भी खोल लिया. रहने के लिए उस ने जीरकपुर के ढकौली स्थित पाइनहोम अपार्टमेंट में एक फ्लैट ले लिया. अभिनव घर से काफी संपन्न था. वैसे भी उस की प्रतिभा को निखारने के लिए घर वाले उस का हर तरह से सहयोग कर रहे थे. पिछले साल उस के पिता का अचानक देहांत हो गया तो उस की मां का प्यार उस पर कुछ ज्यादा ही उमड़ने लगा.

अपना व्यापार चलाने के लिए अभिनव अब तक 16 देशों की यात्रा कर चुका है. नेट के जरिए वह विश्व भर की कंपनियों व ग्राहकों से जुड़ता जा रहा था. ऐसे में उसे योग्य स्टाफ की जरूरत थी. कपूरथला की रेलवे कोच फैक्ट्री में इंजीनियर के पद पर काम कर रहे रामरक्खा वर्मा रिश्ते में अभिनव के मामा हैं.

वह फैक्ट्री के सी टाइप वार्ड के अपने सरकारी फ्लैट में पत्नी और बेटी विशाखा के साथ रहते थे. विशाखा ने सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था. इन दिनों वह लुधियाना के एक बड़े प्रौपर्टी डीलर सुमन नागपाल के यहां नौकरी करती थी. लुधियाना की गगनदीप कालोनी में रहने वाले नागपाल के अनेक राजनेताओं से घनिष्ठ संबंध थे.

एमबीए करने के बाद विशाखा ने अभिनव से कहीं नौकरी दिलाने को कहा था. लेकिन वह उसे कहीं नौकरी नहीं दिला सका था. इस के बाद विशाखा ने लुधियाना में प्रौपर्टी डीलर सुमन नागपाल के यहां नौकरी कर ली थी, जबकि वह इस से कहीं बढि़या नौकरी करने में सक्षम थी.

अभिनव को अपना काम जमता नजर आने लगा तो उसे अपने औफिस के लिए विशाखा की जरूरत महसूस हुई. विशाखा उस से भले ही 2 साल बड़ी थी, मगर वह उसे मानती बहुत थी. लिहाजा अभिनव के कहने भर की देर थी कि उस ने प्रौपर्टी डीलर के यहां वाली नौकरी छोड़ दी और अभिनव के औफिस में जौइन कर लिया.

अभिनव को इस क्षेत्र में अपना सुनहरा भविष्य नजर आ रहा था. उस का बनाया उपकरण खरीदने के लिए पूरी दुनिया से और्डर आ रहे थे. उस के लिए उन की मांग पूरी कर पाना मुश्किल हो रहा था. ऐसे में उसे अपने पैर जमाने के लिए काफी बड़ी रकम की जरूरत थी, जिसे वह न खुद पूरी कर सकता था और न ही उस के परिवार वाले पूरी कर सकते थे. अचानक नोटबंदी के तहत 500 और 1000 रुपए के नोटों का प्रचलन बंद कर सरकार द्वारा 2 हजार रुपए के नए नोट मार्केट में उतार दिए गए. ऐसे में मार्केट और आम लोगों की परेशानी को देख कर अभिनव के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न 2 हजार रुपए के जाली नोट छाप कर बाजार में चला दिए जाएं.

प्रयोग के तौर पर उस ने नए नोट को स्कैन कर के उस का प्रिंट निकाला. प्रिंट इतना बढि़या निकला कि देखने में किसी भी तरह से असली नोट से कम नहीं लग रहा था. उस ने इस बारे में विशाखा से बात की तो वह भी उस की मदद के लिए तैयार हो गई. फिर तो उन्होंने 2 हजार रुपए के 10 जाली नोट तैयार कर के अपने कर्मचारियों के माध्यम से मार्केट में भिजवाए जो आसानी से चल गए. इस सफलता से उत्साहित हो कर उन्होंने अपने कर्मचारियों का अपना एक गैंग बना लिया. यही नहीं, लुधियाना के प्रौपर्टी डीलर सुमन नागपाल को भी लालच दे कर अपने गिरोह में शामिल कर लिया. 54 वर्षीय यह अधेड़ बिना आगेपीछे की सोचे अपराध की राह पर चलने को तैयार हो गया. आगे जो योजना बनी, उस के अनुसार, थोड़ीबहुत नहीं, 2 हजार रुपए के करोड़ों के नकली नोट तैयार कर के इन लोगों ने उन लोगों के हवाले कर दिए, जिन के पास 5 सौ व 1 हजार रुपए के नोटों की शक्ल में ब्लैकमनी भरी पड़ी थी. ऐसे में 30 प्रतिशत कमीशन काट कर नकली नोटों को असली कह कर उन के हवाले कर 70 प्रतिशत असली नोटों की कमाई कर ली जाए. इन पैसों से काम के अनुसार, गिरोह के सदस्यों का कमीशन फिक्स कर दिया गया.

फिर क्या था, पूरे उत्साह के साथ ये सभी इस काम में शिद्दत से लग गए. दिनरात मेहनत कर के कुछ ही समय में इन्होंने 3 करोड़ रुपए के नकली नोट तैयार कर के 2 करोड़ के नोट बाजार में चला भी दिए.

पूछताछ में उन लोगों ने जो बताया, उस के अनुसार, अभिनव ने मोहाली में अपनी एक फैक्ट्री खोल रखी थी, जिस में विशाखा को एचआर की अहम पोस्ट दी गई थी. उसी फैक्ट्री में पैसा लगा कर उसे ऊंचाइयों तक ले जाने का उस ने सपना देखा था. पकड़े गए सारे नोट इसी फैक्ट्री में तैयार किए गए थे. पुलिस ने अभिनव और विशाखा की निशानदेही पर डिजिटल प्रिंटर, पेपर और कटर वगैरह बरामद कर लिया था. पूछताछ में इन लोगों ने बताया था कि अपने इस धंधे में अभिनव ने आधा दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों को लगा रखा था. लेकिन उन में हर्ष और प्रमोद की भूमिका अहम थी. पुलिस ने उन की गिरफ्तारी के लिए तमाम जगहों पर छापे मारे, पर वे पकडे़ नहीं जा सके. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में अभिनव ने यह भी स्वीकारा कि 2009 मौडल की वीआईपी नंबर एचआर 70यू 0004 वाली औडी कार उस ने 20 लाख रुपए में जीरकपुर के कार बाजार से खरीदी थी. उस कार को अपने नाम पर ट्रांसफर न करवा कर उस पर अवैध रूप से लालबत्ती लगा कर वह पुलिस और अन्य लोगों की आंखों में धूल झोंक कर नकली नोटों के अपने धंधे को अंजाम देता रहा.

अखबारों में खबरें छपने के बाद कई लोगों ने थाने जा कर अभिनव और उस के साथियों द्वारा ठगे जाने की अपनी शिकायतें दर्ज कराई हैं. मजे की बात यह है कि वे भी अभियुक्तों से मिले 2 हजार रुपए के नकली नोट आसानी से असली के रूप में चला चुके थे. नकली नोटों के बदले लोगों से मिले पुराने असली नोटों को अभिनव न केवल अपने पर्सनल और कंपनी के खातों में जमा कराता था, बल्कि कुछ पैसा उस ने अपने कर्मचारियों के बैंक खातों में भी जमा कराए थे. 14 लाख के पुराने नोट उस के घर से भी बरामद किए गए थे. खुद तैयार किए गए 3 करोड़ के 2 हजार के नोटों में से उस के पास 42 लाख रुपए ही बचे थे, जिन्हें वह विशाखा और सुमन नागपाल के साथ अपनी कथित वीआईपी गाड़ी से एक पार्टी को देने जा रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

अभिनव से बरामद नोटों के बारे में आरबीआई की रिपोर्ट आ चुकी है कि वे सभी नोट जाली हैं और उन की छपाई हलके कागज पर हुई है.

पुलिस ने रिमांड अवधि समाप्त होने पर अभिनव, विशाखा और सुमन नागपाल को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन तीनों को न्यायिक हिरासत में जेल भिजवा दिया गया. कथा लिखे जाने तक न तो उन की जमानतें हुई थीं और न ही इस मामले के 7 अन्य अभियुक्तों में से कोई पकड़ा जा सका था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हत्यारा हमसफर

उस दिन जनवरी 2020 की 7 तारीख थी. शाम के 7 बज रहे थे. हर रोज की तरह घरेलू नौकरानी पूजा, जयपुर की यूनिक टावर सोसायटी के आई ब्लौक स्थित रोहित तिवारी के फ्लैट नंबर 103 पर काम करने के लिए पहुंची. उस ने डोरबैल बजाई तो मालकिन श्वेता तिवारी ने दरवाजा नहीं खोला और न ही अंदर कोई हलचल सुनाई दी.

पूजा ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला तो वह खुल गया. नौकरानी कमरे के अंदर पहुंची तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर पलंग पर मालकिन श्वेता तिवारी मृत पड़ी थीं. उन का मुंह खून से लाल था.पूजा चीखतेचिल्लाते बाहर निकली और पासपड़ोस के फ्लैट्स में रहने वाले लोगों को जानकारी दी. मर्डर की खबर से सोसायटी में हडकंप मच गया, लोगों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच किसी ने थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना दे दी.

पौश सोसायटी के फ्लैट में हत्या की सूचना पा कर प्रताप नगर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. उन्होंने यह खबर वरिष्ठ अधिकारियों को दी और पूछताछ में जुट गए. पूछताछ से पता चला कि जिस फ्लैट में मर्डर हुआ है उस में रोहित तिवारी किराए पर रहते हैं. रोहित इंडियन औयल कारपोरेशन में सीनियर मैनेजर हैं और जयपुर एयर पोर्ट पर बतौर फ्यूल इंचार्ज तैनात हैं. मर्डर उन की पत्नी श्वेता तिवारी का हुआ है.

हत्या का मामला हाई प्रोफाइल था. सूचना पा कर पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव, डीआईजी सुभाष बघेल, एएसपी डा. अवधेश सिंह, एसपी डा. सतीश कुमार, डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा सीओ संजय शर्मा घटना स्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जयपुर एयरपोर्ट पर तैनात रोहित तिवारी को उन की पत्नी श्वेता की हत्या की सूचना दी तो कुछ देर में वह भी फ्लैट पर आ गए.

रोहित ने फ्लैट के अंदर देख कर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बेड पर पड़ी लाश उस की पत्नी श्वेता की है, लेकिन उस के 21 माह के मासूम बेटे श्रीयम का पता नहीं है. लगता है, हत्यारों ने श्वेता की हत्या के बाद श्रीयम का अपहरण कर लिया है. रोहित की बात सुन कर पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. क्योंकि अभी तक जानकारी हत्या की थी लेकिन अब श्रीयम के अपहरण की बात सामने आई थी.

पुलिस अधिकारियों ने हत्या और अपहरण के इस मामले को गंभीरता से लेते हुए घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. कमरे के अंदर पड़े बेड पर 30-32 वर्षीय श्वेता तिवारी की लाश पड़ी थी. उस के सिर से खून रिस रहा था, जिस से उस का चेहरा खून से लाल था. उस का गला भी रेता गया था. सिर पर भी जख्म था.

बेड पर खून से सना चाकू पड़ा था, बेड के नीचे अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली पड़ी थी. बिस्तर भी खून से तरबतर था. खून की बूंदे दीवार पर भी दिखाई दे रही थीं. कमरे में रखी प्लास्टिक टेबल पर चाय के 2 कप रखे थे. जिस में कुछ चाय बची हुई थी. श्वेता का मोबाइल फोन भी गायब था.

घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि श्वेता का हत्यारा कोई करीबी ही रहा होगा, जिस के आने पर श्वेता ने दरवाजा खोला और उसे कमरे में बिठा कर चाय पिलाई. इसी बीच हत्यारे ने अदरक कूटने वाली मूसली से उस के सिर पर प्रहार कर उसे पलंग पर गिरा दिया होगा, फिर चाकू से उस का गला रेता होगा. इस के बाद वह श्रीयम का अपहरण कर ले गया होगा. पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू व मूसली को सुरक्षित कर लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटना स्थल का निरीक्षण किया और दीवार, प्याले, फर्श व बेड से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड टीम ने सुराग के लिए खोजी कुत्ते को छोड़ा. खोजी कुत्ता घटना स्थल को सूंघ कर भौंकते हुए बाहर निकला और रोहित की कार के 2 चक्कर काटे. कुछ देर वह रोहित के आसपास भी मंडराता रहा. इस से टीम को रोहित पर शक हुआ. किंतु उस के खिलाफ कोई पक्का सुबूत न मिलने से उस से ज्यादा कुछ पूछताछ नहीं की गई.

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका श्वेता का शव पोस्टमार्टम के लिए जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल भिजवा दिया.

श्वेता तिवारी का मायका उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर स्थित सर्वोदय नगर में था और ससुराल गांधी नगर, दिल्ली में थी. रोहित ने फोन कर के श्वेता की हत्या और मासूम श्रीयम के अपहरण की जानकारी अपने माता पिता तथा ससुराल वालों को दे दी. बेटी की हत्या की खबर पा कर श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा उन की पत्नी माधुरी मिश्रा घबरा गईं.

परिवार में कोहराम मच गया. वह पत्नी, बेटे शुभम व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ निजी वाहन से जयपुर के लिए रवाना हो लिए. अब तक श्वेता की हत्या की खबर टीवी चैनलों पर भी प्रसारित होने लगी थी. वह मोबाइल फोन पर रास्ते भर हत्या की जानकारी लेते रहे.

पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव ने इस हत्या और अपहरण के मामले को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने 22 महीने के श्रीयम का पता लगाने के लिए 6 थाना प्रभारियों, 3 सीओ तथा पुलिस के 100 जवानों को लगा दिया. भारीभरकम पुलिस फोर्स ने डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन तथा एसपी डा. सतीश कुमार के निर्देशन में श्रीयम की खोज आरंभ की.

इस बारे में पुलिस ने तकरीबन डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की. दरजनों संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. सैकड़ों संदिग्ध नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, तकनीक का सहारा लिया. लेकिन श्रीयम का कोई सुराग नहीं मिला और न ही श्वेता के हत्यारों का.

पुलिस अधिकारी रात भर रोहित तिवारी के फ्लैट पर जुटे रहे. एसपी डा. सतीश कुमार एएसपी डा. अवधेश सिंह तथा सीओ संजय शर्मा  अन्य पुलिस कर्मियों के साथ जांच में जुटे थे.

वह सीसीटीवी फुटेज खंगाल चुके थे और कमरे की हर चीज का निरीक्षण कर रहे थे. तभी रोहित तिवारी के मोबाइल फोन पर एक मैसेज आया. मैसेज देख कर वह चीख पड़ा, ‘‘सर, यह देखो श्रीयम के अपहर्त्ता का मैसेज आया है. उस ने 30 लाख रुपए फिरौती की मांग की है.’’

फिरौती का मैसेज मृतका श्वेता के मोबाइल नंबर से भेजा गया था. रोहित ने उसी नंबर पर काल बैक कर अपहर्त्ता से कहा कि वह फिरौती की रकम देने को तैयार है लेकिन पहले श्रीयम का चेहरा दिखाए. लेकिन फोन करने वाले ने चेहरा नहीं दिखाया और फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

पुलिस अधिकारियों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अपहर्त्ता को रोहित का मोबाइल नंबर कैसे मिला. क्या अपहर्त्ता रोहित की जान पहचान का है?

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि सुबह मृतका श्वेता के मांबाप व अन्य परिजन रोहित के फ्लैट पर आ गए. श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा तथा मां माधुरी मिश्रा ने आते ही एसपी डा. सतीश कुमार को बताया कि उन की बेटी की हत्या उन के दामाद रोहित ने ही की है.

5 जनवरी को मोबाइल रिचार्ज न करवाने की बात को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा हुआ था. मारपीट करने के बाद रोहित ने उन के मोबाइल पर फोन किया था. उस ने गुस्से में कहा था, ‘‘पापा जी, हम बहुत परेशान हैं. आप को जितना रुपया चाहिए, ले लो लेकिन श्वेता को अपने साथ ले जाओ. नहीं तो मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

इस पर उन्होंने रोहित को समझाने का प्रयास किया तो उस ने फोन काट दिया. इस के बाद उन्होंने श्वेता को काल कर के समझाया था. लेकिन यह नहीं सोचा था कि रोहित हत्या कर ही देगा.

रोहित जिस तरह से बारबार अपनी बेगुनाही का सबूत दे रहा था और हत्या के समय अपनी मौजूदगी औफिस में बता रहा था, उस से पुलिस अधिकारियों को उस पर शक बढ़ता जा रहा था. लेकिन जब मृतका के मांबाप ने भी उस पर सीधे तौर पर हत्या का आरोप लगाया तो पुलिस का भी शक उस पर गहराने लगा.

8 जनवरी, 2020 की दोपहर 3 बजे हल्ला मचा कि एक बच्चे का शव रोहित के फ्लैट की बाउंड्रीवाल के पीछे झाडि़यों में पड़ा है. पुलिस ने झाडि़यों से शव को बाहर निकाला, शव तौलिया में लिपटा था. तौलिया हटाया गया तो सभी अवाक रह गए, शव श्रीयम का ही था. उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. श्रीयम का सिर भी कुचला गया था. जिस श्रीयम को खोजने के लिए पुलिस के 100 जवान पसीना बहा रहे थे, उस का शव उसी के घर के पीछे झाडि़यों में पड़ा था. नाती की लाश देख कर सुरेश कुमार मिश्रा व उन की पत्नी माधुरी मिश्रा फफक पड़ी. बेटे शुभम ने मांबाप को धैर्य बंधाया.मासूम श्रीयम की हत्या की जानकारी पाते ही पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव तथा डीएसपी (पूर्वी) राहुल जैन वहां आ गए. उन्होंने मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों से कहा कि मां के बाद बेटे की हत्या दिल को झकझोर देने वाली है. ऐसे क्रूर हत्यारों को वह जल्द से जल्द सलाखों के पीछे देखना चाहते हैं. इस के बाद उन्होंने श्रीयम का शव भी पोस्टमार्टम के लिए महात्मा गांधी अस्पताल भेज दिया.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच 3 डाक्टरों के एक पैनल ने श्वेता और उस के मासूम बेटे श्रीयम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद दोनों शव मृतका के पति रोहित के बजाय मृतका के मातापिता को सौंप दिए गए.

सुरेश कुमार मिश्रा बेटी श्वेता व नाती श्रीयम के शव सर्वोदय नगर (कानपुर) स्थित अपने घर ले आए. वहां भैरवघाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

अंतिम संस्कार का दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक था. शव यात्रा के समय 22 महीने के श्रीयम का शव श्वेता की गोद में था. ठीक इसी तरह उन्हें चिता पर लिटाया गया. श्वेता का एक हाथ बेटे के ऊपर था. ठीक वैसे ही जैसे कोई सो रही मां अपने बेटे को अपनी बांहों की सुरक्षा देती है. श्मशान घाट पर जिस ने भी यह दृश्य देखा उस का कलेजा फट गया. लोग तो अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक सके.

उधर डबल मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए जयपुर पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पति रोहित तिवारी पर शिकंजा कसा और उस से सख्ती से पूछताछ की. पुलिस अधिकारी उसे एयर पोर्ट ले गए और घटना वाले दिन यानी 7 जनवरी की सीसीटीवी फुटेज खंगाली.

पता चला कि उस रोज रोहित तिवारी सुबह 9 बजे एयरपोर्ट पहुंचा था और पत्नी की हत्या की सूचना मिलने के बाद एयरपोर्ट से घर को निकला था. फुटेज से यह भी पता चला कि रोहित घटना के समय वहां एक बैठक में मौजूद था.

उस के मोबाइल की लोकेशन भी दिन भर एयरपोर्ट की ही मिल रही थी. सारे सबूत रोहित के पक्ष में जा रहे थे जिस से पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पा रही थी. यद्यपि पुलिस अधिकारियों को पक्का यकीन था कि दोहरी हत्या में रोहित का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ हो सकता है.

पुलिस ने रोहित पर कड़ा रुख अपनाया तो पुलिस पर दबाव बनाने के लिए उस ने कोर्ट का रुख किया. 9 जनवरी को रोहित ने जयपुर की निचली अदालत में अपने वकील दीपक चौहान के मार्फत प्रार्थना पत्र दे कर पुलिस पर प्रताडि़त करने का अरोप लगाया.

कोर्ट ने इस मामले में प्रताप नगर थानाप्रभारी को 10 जनवरी को प्रकरण से जुड़े तथ्यों के साथ उपस्थित होने का आदेश दिया.

रोहित की इस काररवाई से पुलिस बौखला गई. जिस मोबाइल फोन से रोहित के मोबाइल पर मैसेज किया गया था, पुलिस ने उस मोबाइल फोन की जांच में जुट गई. जांच से पता चला कि श्वेता अपने मोबाइल फोन में पैटर्न लाक लगाती थी, जिसे कोई दूसरा नहीं खोल सकता था.

इस का मतलब मैसेजकर्ता ने श्वेता का सिम निकाल कर किसी दूसरे मोबाइल में डाला था. मैसेज करते समय इस मोबाइल फोन की लोकेशन जयपुर के सांगानेर की मिली. पुलिस फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे उस दुकानदार तक पहुंची, जहां से वह हैंडसेट खरीदा गया था.

वहां से मोबाइल खरीदार के बारे में जानकारी नहीं मिली तो उस फोन के आईएमईआई (इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी) नंबर को ट्रेस कर पुलिस मैसेजकर्ता तक पहुंच गई.

पुलिस मैसेजकर्ता को उस के घर से पकड़ कर थाने ले आई. उस ने अपना नाम सौरभ चौधरी निवासी भरतपुर (राजस्थान) तथा हाल पता सांगानेर बताया. उस से जब श्वेता व उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने ऐसा कुछ करने से इनकार किया.

लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और दोहरी हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. सौरभ चौधरी ने बताया कि रोहित तिवारी ने ही उसे 20 हजार रुपए दे कर पत्नी व बेटे की हत्या की सुपरी दी थी. मतलब दोहरी हत्या की साजिश रोहित ने ही रची थी.

सौरभ से पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने 10 जनवरी, 2020 को रोहित तिवारी को भी बंदी बना लिया. थाने में जब उस का सामना सौरभ चौधरी से हुआ तो उस का चेहरा लटक गया और उस ने सहज ही पत्नी श्वेता की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

डबल मर्डर के हत्यारों के पकड़े जाने की जानकारी पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और डीसीपी (पूर्वी) डा. राहुल जैन को हुई तो वह थाना प्रताप नगर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की, फिर प्रैसवार्ता कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 302/201 तथा 120बी के तहत सौरभ चौधरी तथा रोहित तिवारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर एक ऐसे पति की कहानी सामने आई जिस ने दूसरी शादी रचाने के लिए अपनी पत्नी व बच्चे के कत्ल की साजिश रच डाली.उत्तर प्रदेश के कानुपर महानगर के काकादेव थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है सर्वोदय नगर. सुरेश कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ इसी सर्वोदय नगर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी मिश्रा के अलावा एक बेटा और 3 बेटियां थीं. सुरेश कुमार मिश्रा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में अधिकारी थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं. उन का आलीशान मकान है, मिश्राजी अपनी 2 बेटियों की शादी कर चुके थे.

श्वेता सुरेश कुमार मिश्रा की सब से छोटी बेटी थी. वह अपनी दोनों बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जब वह आंखों पर काला चश्मा लगा कर घर से बाहर निकलती थी तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे, लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी. श्वेता ने कानपुर छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय से बीए किया था.

वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके, लेकिन पिता सुरेश कुमार मिश्रा कोई अच्छा घरवर ढूंढ कर उस के हाथ पीले करना चाहते थे. उन्होंने उस के लिए वर की खोज भी शुरू कर दी. उसी खोज में उन्हें रोहित तिवारी पसंद आ गया.

रोहित के पिता उमाशंकर तिवारी मूल रूप से औरैया जनपद के गांव कंठीपुर के रहने वाले थे, लेकिन वह दिल्ली के गांधी नगर के रघुवरपुरा स्थित माता मंदिर वाली गली में रहते थे. उमाशंकर तिवारी के परिवार में पत्नी कृष्णादेवी के अलावा बेटा रोहित तथा 2 बेटियां थीं. बेटियों की शादी वह कर चुके थे.

रोहित अभी कुंवारा था. रोहित पढ़ालिखा हैंडसम युवक था. वह इंडियन आयल कारपोरशन में मैनेजर था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में ही थी. सुरेश कुमार मिश्रा ने रोहित को देखा तो उसे अपनी बेटी श्वेता के लिए पसंद कर लिया.

फिर 24 जनवरी, 2011 को रीतिरिवाज से रोहित के साथ श्वेता का विवाह धूमधाम से कर दिया. उस की शादी में उन्होंने लगभग 30 लाख रुपए खर्च किए थे.

शादी के बाद श्वेता और रोहित ने बड़े प्रेम से जिंदगी का सफर शुरू किया. हंसतेखेलते 2 साल कब बीत गए दोनों में किसी को पता ही न चला. लेकिन इन 2 सालों में श्वेता मां नहीं बन सकी. सूनी गोद का दर्द जहां श्वेता और रोहित को था, वहीं श्वेता के सासससुर को भी टीस थी. सास कृष्णादेवी तो श्वेता को ताने भी देने लगी थी.

इतना ही नहीं, श्वेता को कम दहेज लाने की भी बात कही जाने लगी. उस के हर काम में कमी निकाली जाने लगी. यहां तक कि उस के खानपान और पहनावे पर भी सवाल उठाए जाने लगे. उसे तब और गहरी चोट लगी जब उसे पता चला कि उस के पति रोहित के किसी अन्य लड़की से नाजायज संबंध हैं, जो उस के साथ कालेज में पढ़ती थी.

वर्ष 2013 में जब श्वेता की प्रताड़ना ज्यादा बढ़ गई तो वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. यहां वह 7 महीने तक रही. उस के बाद एक प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता ने बीच में पड़ कर समझौता करा दिया. उस के बाद सुरेश कुमार मिश्रा ने श्वेता को ससुराल भेज दिया.

ससुराल में कुछ समय तक तो उसे ठीक से रखा गया. लेकिन उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. मांबाप की नुकताचीनी पर रोहित उसे पीट भी देता था. कृष्णा देवी तो सीधेसीधे उसे बांझ होने का ताना देने लगी थी. ननद नूतन और मीनाक्षी भी अपने मांबाप व भाई का ही पक्ष ले कर प्रताडि़त करती थीं.

ससुराली बातों की प्रताड़ना से दुखी हो कर श्वेता ने एक रोज अपनी बड़ी बहन सपना को एक खत भेजा, जिस में उस ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा, ‘सपना दीदी, रोहित तथा उस के मांबाप मुझे बहुत परेशान करते हैं. चैन से जीने नहीं देते. सब पीटते हैं, मुझे नीचा दिखाते हैं. खाने को भी नहीं देते. यहां तक कि मेरे पहनावे पर सवाल उठाते हैं.

‘‘मुझे यह भी पता चला है कि रोहित के एक युवती से संबंध हैं. वह उस के कालेज समय की दोस्त है. वह उसी से प्यार करता है. यही वजह है कि वह मुझे प्रताडि़त करता है. उसे मेरी हर बात बुरी लगती है. मामूली बातों पर मारपीट कर घर से जाने को कहता है. सासससुर भी उसी का साथ देते हैं. नौकरानी की तरह दिन भर घर का काम करवाते हैं. यदि मेरे साथ कोई अप्रिय वारदात हो जाए तो ये सभी जिम्मेदार होंगे.’’

छोटी बहन का दर्द सुन कर सपना बहुत दुखी हुई. उस ने सारी बात मांबाप को बताई. तब सुरेश कुमार मिश्रा ने दामाद रोहित तथा उस के मांबाप से बात की और अनुरोध किया कि वे लोग श्वेता को प्रताड़ित न करें.

इतना ही नहीं उन्होंने श्वेता को भी समझाया कि वह परिवार में सामंजस्य बनाए रहे. लेकिन सुरेश कुमार के अनुरोध का रोहित और उस के परिजनों पर कोई असर न पड़ा, उन की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही.

इसी तनाव भरी जिंदगी के बीच रोहित का तबादला उदयपुर के महाराणा प्रताप एयरपोर्ट पर हो गया. श्वेता दिल्ली छोड़ कर पति के साथ उदयपुर चली गई. उदयपुर में ही श्वेता ने अप्रैल 2018 में बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम श्रीयम रखा गया. बेटे के जन्म के बाद श्वेता को लगा कि अब उस की खुशियां वापस आ जाएंगी और पति के स्वभाव में भी परिवर्तन आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.श्रीयम के जन्म से न तो रोहित को खुशी हुई और न ही उस के स्वभाव में परिवर्तन आया. उस की प्रताड़ना बदस्तूर जारी रही. रोहित के मातापिता भी श्रीयम के जन्म से खुश नजर नहीं आए.

उदयपुर एयरपोर्ट पर तैनाती के दौरान रोहित तिवारी की मुलाकात सह कर्मी हरीसिंह से हुई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. हरी सिंह अपनी पत्नी सुधा सिंह को साथ ले कर रोहित के घर आने लगा. सुधा सिंह मिलनसार थी. इसलिए श्वेता और सुधा अपना सुखदुख एकदूसरे से शेयर कर लेती थीं. श्वेता ने प्रताडि़त किए जाने की बात भी सुधा से शेयर की थी.

सौरभ चौधरी हरीसिंह का साला था. वह भरतपुर में रहता था, और हैंडीक्राफ्ट का काम करता था. हरीसिंह के मार्फत सौरभ की जानपहचान रोहित से हुई. वह रोहित के घर आने लगा. उस ने श्वेता से भी पहचान बना ली, और उस से खूब बतियाने लगा. सौरभ जब भी रोहित से मिलने आता था, वह उसे शराब पिलाता था.

इधर श्रीयम के जन्म के बाद रोहित तिवारी का ट्रांसफर उदयपुर से जयपुर हो गया. जयपुर में रोहित ने प्रताप नगर थाना क्षेत्र के जगतपुरा में स्थित यूनिक टावर सेक्टर 26, आई ब्लौक में फ्लैट संख्या 103 किराए पर ले लिया और पत्नी श्वेता तथा बेटे श्रीयम के साथ रहने लगा.

जयपुर आ कर भी श्वेता और रोहित के बीच तनाव बरकरार रहा. दोनों का छोटीछोटी बातों में झगड़ा और मारपीट होती रहती थी. हरीसिंह का साला सौरभ चौधरी यहां भी रोहित से मिलने आता था. उसे दोनों की तनाव भरी जिंदगी के बारे में जानकारी थी. रोहित कभीकभी शराब के नशे में कह भी देता था कि वह झगड़ालू श्वेता से छुटकारा पाना चाहता है.

दिसंबर 2019 की बात है. रोहित को कंपनी के काम से 8 से 21 दिसंबर के बीच शहर से बाहर जाना था. इसलिए वह श्वेता को अपने मांबाप के पास दिल्ली छोड़ गया. पहले वह कोलकाता गया फिर मुंबई. 21 दिसंबर को वह मुंबई से दिल्ली आया. घर वालों ने हमेशा की तरह उसे श्वेता के खिलाफ भड़काया. तब दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ.

इस के बाद वह श्वेता को ले कर जयपुर आ गया. दोनों कार से आए थे. घर आ कर श्वेता ने अपनी मां माधुरी को फोन पर बताया कि रोहित ने 272 किलोमीटर के सफर में उसे पानी तक नहीं पीने दिया और वह झगड़ता रहा.

अब तक रोहित अपनी शादीशुदा जिंदगी से ऊब चुका था. वह दूसरी शादी रचा कर अपनी नई जिंदगी की शुरूआत करने के सपने देखने लगा, लेकिन एक पत्नी के रहते वह दूसरी शादी नहीं कर सकता था. उस ने श्वेता की हत्या के साथ मासूम श्रीयम की भी हत्या कराने का फैसला किया, ताकि शादीशुदा जिंदगी का नामोनिशान मिट जाए. वह जिंदगी की बैक हिस्ट्री को ही डिलीट करना चाहता था.

3 जनवरी, 2020 को रोहित ने सौरभ चौधरी को फोन कर जयपुर एयरपोर्ट के पास स्थित होटल फ्लाइट व्यू में बुलाया. वहां रोहित ने सौरभ के साथ बैठ कर पत्नी व बेटे की हत्या की साजिश रची. साजिश इस तरह रची गई कि रोहित का नाम सामने नहीं आए. रोहित ने हत्या के लिए सौरभ को 20 हजार रुपए भी दे दिए.

दरअसल सौरभ चौधरी शादीशुदा था. रोहित की तरह सौरभ भी पत्नी से परेशान रहता था और पत्नी से छुटकारा पाना चाहता था. इसलिए दोनों में तय हुआ कि पहले वह रोहित का साथ देगा. फिर रोहित उस की पत्नी की हत्या में उस का साथ देगा. यही कारण था कि मात्र 20 हजार में सौरभ डबल मर्डर को राजी हो गया था.

5 जनवरी, 2020 को मोबाइल रिचार्ज न कराने को ले कर रोहित और श्वेता के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. इस के बाद उस ने श्वेता के पिता सुरेश कुमार मिश्रा को फोन कर के झगड़े की जानकारी दी और गुस्से में कहा, ‘‘पापा जी, आप श्वेता को ले जाइए. मैं उस का मुंह नहीं देखना चाहता. आप को जितना पैसा चाहिए ले लीजिए. अन्यथा मैं इस की हत्या कर दूंगा.’’

दामाद की धमकी से सुरेश कुमार मिश्रा घबरा उठे. उन्होंने दामाद को भी समझाया और बेटी को भी. लेकिन समझाने के बावजूद रोहित का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. उस ने फोन कर सौरभ चौधरी को जयपुर बुला लिया और श्वेता तथा उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या की पूरी योजना तैयार कर के हत्या का दिन तारीख और समय तय कर दिया.

योजना के मुताबिक 7 जनवरी, 2020 की सुबह 9 बजे रोहित जयपुर एयरपोर्ट पहुंच गया और अपने काम पर लग गया. वह वहां एक मीटिंग में भी शामिल हुआ. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के सामने भी वह आताजाता रहा, ताकि उस का फोटो कैमरों में कैद हो जाए.

इधर योजना के मुताबिक सौरभ चौधरी भी 7 जनवरी को दोपहर बाद लगभग 2 बजे रोहित के यूनिक टावर अपार्टमेंट स्थित फ्लैट पर पहुंचा और डोरवेल बजाई. श्वेता ने दरवाजा खोला तो सामने सौरभ खड़ा था.

चूंकि सौरभ को श्वेता जानतीपहचानती थी, इसलिए उसे घर के अंदर ले गई और कमरे में बिठाया. फिर उस ने 2 कप चाय बनाई और दोनों ने बैठ कर चाय पी. चाय पी कर दोनों ने कप प्लास्टिक की टेबल पर रख दिए.

इसी बीच श्वेता दूसरे कमरे में चली गई, जहां उस का बेटा श्रीयम सो रहा था. तभी मौका पा कर सौरभ रसोई में गया और अदरक कूटने वाली लोहे की मूसली उठा लाया. चंद मिनट बाद श्वेता वापस आई तो सौरभ ने अकस्मात श्वेता के सिर पर मूसली से वार कर दिया. श्वेता सिर पकड़ कर पलंग पर गिर पड़ी.

इस के बाद सौरभ ने श्वेता को दबोच लिया, और मूसली से उस का सिर व चेहरा कूट डाला. इस के बाद वह पुन: रसोई में गया और चाकू ले आया और चाकू से श्वेता का गला रेत दिया. उस ने चाकू पलंग पर तथा मूसली पलंग के नीचे फेंक दी.

श्वेता की हत्या करने के बाद सौरभ चौधरी दूसरे कमरे में पहुंचा, जहां मासूम श्रीयम पलंग पर सो रहा था. सौरभ को उस मासूम पर जरा भी दया नहीं आई और न ही उस का कलेजा कांपा. उस ने श्रीयम को गला दबा कर मार डाला तथा उस का सिर भी कूट डाला. इस के बाद सौरभ ने उस का शव तौलिए में लपेटा और बाउंड्री वाल के पीछे झाडि़यों में फेंक दिया.

श्रीयम का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने फिर से कमरे में आ कर श्वेता का मोबाइल फोन अपनी जेब में डाला और मुंह पर कपड़ा ढक कर फ्लैट से निकल गया. बाद में उस ने श्वेता का मोबाइल फोन तोड़ कर सांगानेर से शिकारपुरा की ओर बहने वाले नाले में फेंक दिया और दूसरा फोन खरीद कर फिरौती के लिए रोहित को मैसेज भेजा.

इधर शाम 4 बजे नौकरानी काम करने फ्लैट पर आई तब घटना की जानकारी हुई. इस के बाद तो कोहराम मच गया. थाना प्रताप नगर पुलिस को सूचना मिली तो पुलिस मौके पर पहुंची.

11 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त रोहित तिवारी तथा सौरभ चौधरी को जयपुर कोर्ट में पेश किया. पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन व सिम कार्ड बरामद करने के लिए अदालत में अभियुक्तों की 3 दिन के रिमांड की अरजी लगाई. अदालत ने 2 दिन की रिमांड अरजी मंजूर कर ली.

रिमांड मिलने पर जब पुलिस ने सौरभ से श्वेता के मोबाइल फोन व सिम के बारे में पूछा तो उस ने सिम तो बरामद करा दिया, लेकिन मोबाइल फोन के बारे में बताया कि उस ने मोबाइल तोड़ कर सांगानेर के नाले में फेंक दिया था. रिमांड के दौरान पुलिस मोबाइल बरामद नहीं कर सकी. जिस से उन दोनों को 13 जनवरी को अदालत में पेश करना पड़ा.पुलिस की अरजी पर अदालत ने 15 जनवरी, 2020 तक फिर से रिमांड अवधि बढ़ाई लेकिन पुलिस मोबाइल फोन फिर भी बरामद नहीं कर सकी. इसलिए उन्हें अदालत में पेश कर जयपुर की जिला जेल भेज दिया गया. हरीसिंह को पुलिस ने उदयपुर से हिरासत में जरूर ले लिया था, परंतु बाद में उसे इस मामले में क्लीन चिट दे दी.

 

टीचर बन कर पढ़ा रहा था जिहाद

बिहार के गया शहर में वह मास्टर बन कर रह रहा था. पहले उस ने एक स्कूल में नौकरी की, उस के बाद वह प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. उस ने पुलिस और लोकल लोगों को झांसा देने के लिए अपना नाम और पहचान बदल ली थी. उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था, जबकि उस का असली नाम तौसिफ खान था. अतीक साल 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों का आरोपी था. पिछले 9 सालों से वह गया में अपना हुलिया बदल कर रह रहा था.

13 सितंबर, 2017 को बिहार के गया जिले में दबोचे गए 3 आतंकियों में से एक की पहचान तौसिफ खान के रूप में हुई, तो पुलिस और खुफिया महकमे के होश उड़ गए. उस ने खुलासा किया कि गया शहर के 3 खास इलाकों विष्णुपद मंदिर के पितृपक्ष मेले का इलाका, महाबोधि मंदिर और गया रेलवे जंक्शन पर बम धमाका करने की साजिश रची गई थी.

गौरतलब है कि जिस समय तौसिफ खान ने धमाके की साजिश रची, उस समय गया में 15 दिनों का पितृपक्ष मेला लगा हुआ था. इस में देशविदेश के लाखों लोग पिंडदान करने के लिए गया पहुंचते हैं.

तौसिफ खान साइबर कैफे के एक संचालक की मुस्तैदी से पुलिस के हत्थे चढ़ गया. वह रोजाना साइबर कैफे से ईमेल के जरीए सारी जानकारी अपने आका को भेजता था.

पुलिस ने कैफे से वह कंप्यूटर जब्त कर लिया है, जिस से वह किसी चांद नाम के आदमी को ईमेल भेजता था. गया के एसएसपी ने बताया कि 3 और संदिग्धों को पकड़ा गया है, जिन से पूछताछ के बाद तौसिफ खान के आतंकी होने की बात पक्की हो गई है. पुलिस ने बताया कि साइबर कैफे संचालक अनुराग को तौसिफ खान की हरकतें ठीक नहीं लगी थीं, तो उस ने तौसिफ खान से पहचानपत्र मांगा. जब उस ने पहचानपत्र नहीं दिया, तो अनुराग ने पुलिस को सूचना दी. उस के बाद तौसिफ खान और उस के साथी भागने लगे.

अनुराग ने उन का पीछा किया, तो वे उसे धक्का दे कर आटोरिकशा में सवार हो गए. उसी समय सामने से पुलिस की गाड़ी आ रही थी. अनुराग ने पुलिस वालों को आटोरिकशा रुकवाने का इशारा किया. पुलिस ने आटोरिकशा रोका और उस में सवार तौसिफ खान और उस के साथी सना खान और गुलाम सरवर को पकड़ा.

35 साल के तौसिफ खान उर्फ अतीक का पता अहमदाबाद के जूहापुरा इलाके का यूनाइटेड अपार्टमैंट्स का फ्लैट नंबर-15ए है. वह इंडियन मुजाहिदीन का फं्रटलाइन आतंकी है. इलैक्ट्रोनिक्स ऐंड कम्यूनिकेशन से इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद उस ने आतंक की दुनिया में कदम रख दिया था. उस ने महाराष्ट्र के नंदूरबाग के डीएन पाटिल इंजीनियरिंग कालेज से साल 2001-05 में बीटैक किया था.

अहमदाबाद में बम धमाकों को अंजाम देने के बाद तौसिफ खान साल 2008 में गया आ गया था. 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में 90 मिनट के अंदर एक के बाद एक 16 बम धमाके किए गए थे, जिन में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 2 सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे.

तौसिफ खान गया जिले के डोभी थाने के करमौनी गांव में रह रहा था और पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना नाम अतीक रख लिया था. उस ने स्थानीय सना खान की मदद से मुमताज पब्लिक हाईस्कूल में टीचर की नौकरी हासिल कर ली थी. वह विज्ञान और गणित पढ़ाया करता था.

3 साल तक स्कूल में पढ़ाने के बाद तौसिफ खान ने नौकरी छोड़ दी और प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने लगा. गिरफ्तारी के बाद उस ने कबूल किया कि वह आईएसआई के प्रचार का काम कर रहा था. पुलिस इस बात की पड़ताल कर रही है कि वह कितने बच्चों के दिमाग में आतंक का कीड़ा डाल चुका है. उस के पाकिस्तान कनैक्शन की भी खोज की जा रही है.

तौसिफ खान से पूछताछ के बाद कई खुलासे हुए हैं. उस के घर से पाकिस्तान के लाहौर में प्रिंट कराई गई किताबें और जिहादी परचे बरामद हुए हैं. पुलिस को शक है कि उस ने गया में 50 जिहादियों को तैयार कर दिया है, जिस में से ज्यादातर 14 साल से 16 साल की उम्र के लड़के हैं.

तौसिफ खान ने किनकिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर जिहाद की घुट्टी पिलाई है, इस की भी जांच की जा रही है. गया में रहने के दौरान तौसिफ खान कई दफा राजस्थान और मुंबई गया था. पुलिस और एटीएस उस की इन यात्राओं के मकसद का पता लगा रही है. साल 2016 और साल 2017 में वह 2 बार राजस्थान गया था. उस के पास मुंबई जाने का टिकट भी मिला है.

तौसिफ खान के साथ दबोचा गया गुलाम सरवर खान बोधगया ब्लौक के बारा पंचायत के प्राथमिक निमहर विद्यालय का प्रभारी है. स्कूल के बच्चों ने पुलिस को बताया कि गुलाम सरवर खान हफ्ते में 2-3 दिन ही स्कूल आता था. साल 2006 में उस की बहाली पंचायत शिक्षक के रूप में हुई थी.

पुलिस जब गुलाम सरवर खान को गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तो गांव वालों ने विरोध किया. पुलिस के काफी समझानेबुझाने के बाद ही गांव वाले शांत हुए. गया की एसएसपी गरिमा मलिक ने बताया कि तौसिफ खान पर पुलिस ने देशद्रोह का केस दर्ज किया है और उस के साथ पकड़े गए उस के 2 साथियों पर उसे संरक्षण देने का आरोप लगा है. उस के पास से मिले कागजात, पैनड्राइव और मोबाइल डाटा से देशद्रोह की गतिविधियों में शामिल होने के ठोस सुबूत मिल चुके हैं.

गुजरात की एटीएस टीम ने 15 सितंबर, 2017 को उस से पूछताछ की. गया के सिविल लाइन थाने में तीनों के खिलाफ केस (नंबर-277/2017) दर्ज कराया गया है. गया पुलिस की रिमांड की सीमा खत्म होने के बाद गुजरात एटीएस उन्हें रिमांड पर ले लेगी.

वहीं पुलिस सूत्रों की मानें, तो तौसिफ खान ने अहमदाबाद बम धमाकों में खुद के शामिल होने की बात को कबूल कर लिया है. पटना एटीएस, एसटीएफ और गया पुलिस अफसरों को पहले वह झांसा देने की कोशिश करता रहा. पहले तो वह आतंकी होने से ही इनकार करता रहा, उस के बाद उस ने माना कि अहमदाबाद बम धमाकों में संदिग्धों की लिस्ट में उस का नाम आने के बाद गिरफ्तारी के डर से वह वहां से भाग निकला था.

15 सितंबर की रात गुजरात एटीएस की टीम गया पहुंची और उस से पूछताछ की. एटीएस टीम ने बम धमाके के दूसरे आरोपियों के साथ उस का फोटो दिखाया, तो उस के होश उड़ गए. चारों ओर से खुद को फंसा देख कर आखिर तौसिफ खान ने हार मान ली.

गुजरात एटीएस की पूछताछ के बाद तौसिफ खान ने माना कि वह सिमी का हार्डकोर सदस्य है. वह 24 आतंकी मामलों में वांटेड था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के जलगांव का रहने वाला है.

सिमी का सदस्य बनने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भी भेजा गया था. पाकिस्तान में उस ने बम धमाके की ट्रेनिंग ली थी. इंजीनियर और तेज दिमाग का होने की वजह से उस ने बड़े आतंकियों के बीच अपनी खासी पैठ बना ली थी. वह सिमी की बैठकों और योजनाओं में शामिल होता था और उस की बातें गौर से सुनी जाती थीं.

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी

मई, 2016 को स्पेन में मलागा की अदालत से आने वाले एक चर्चित मामले के फैसले का लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था. आरोपी और पीडि़त के परिजनों से ले कर मीडिया के लोगों तक को फैसला सुनने की उत्सुकता थी. यह हाईप्रोफाइल मामला ब्रिटेन के 48 वर्षीय सोने के व्यापारी एंडी बुश की हत्या का था. उन की हत्या 5 अप्रैल, 2014 को स्पेन के शहर मारबेला के कोस्टा डेल सोल नामक मशहूर बीच पर स्थित होटल हौलिडे विला में उन की पूर्व प्रेमिका द्वारा गोली मार कर की गई थी. हत्या का आरोप 26 वर्षीया स्विमवियर मौडल मायका मैरीका कुकुकोवा पर था. अपराध साबित हो जाने के बाद उसे सजा के लिए दोषी करार दिया जा चुका था.

अदालत में बुश की 22 वर्षीया बेटी एल्ली अपनी 44 वर्षीया बुआ रशेल के साथ मौजूद थी. जबकि ज्यूरी के सामने सिर झुकाए चिंतातुर बैठी आरोपी कुकुकोवा अपने चेहरे को हथेली से बारबार ढंकने का प्रयास कर रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी से खासकर एल्ली और रशेल से नजरें मिलाने से बचना चाह रही हो. हालांकि सुनवाई के दौरान उन तीनों का अदालत में पहले भी कई बार आमनासामना हो चुका था, लेकिन तब वे अपनीअपनी बातों को साबित करने की कोशिश करते हुए इतनी अधिक असहज महसूस नहीं करती थीं, जितना कि उन्हें फैसले की घड़ी के वक्त महसूस हो रहा था.

मायका मैरीका कुकुकोवा अपने बचाव के लिए हर संभव प्रयास कर चुकी थी. लेकिन सबूतों के अभाव में उस की दलीलों को खारिज कर दिया गया था. फिर भी क्यूडेड ला जस्टिका के निर्णायक मंडल द्वारा उसे एक और अंतिम मौका दिया गया था, ताकि वह बचाव संबंधी औपचारिक याचिका दायर कर सके.

कुकुकोवा ने भले ही बचाव के लिए कोई याचिका नहीं दायर की थी, लेकिन इतना जरूर कहा था कि बुश ने उस के ऊपर हमला किया था और उस ने अपनी आत्मरक्षा में उसे गोली मारी थी.

बुश को चोट पहुंचाने का उस का कोई मकसद कभी नहीं था, क्योंकि अपनी उम्र से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करती थी. उस ने भावुकता के साथ कहा था कि वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी, लेकिन उन के प्रेम में किसी तीसरे के शामिल होने से वह काफी दुखी थी.

निर्णायक मंडल ने फैसला सुनाने के दरम्यान कहा कि घटना के 6 महीने पहले ही कुकुकोवा और बुश के बीच संबंध खराब हो चुके थे. वह ईर्ष्या, द्वेष की भावना से भरी हुई थी.

सरकारी वकीलों को उम्मीद थी कि इस मामले में 26 वर्षीया मौडल कुकुकोवा को 25 साल की जेल की सजा तो सुनाई ही जाएगी, लेकिन जजों के निर्णायक मंडल ने उसे 15 साल की सजा सुनाने के साथ बुश की 21 वर्षीया बेटी को 1,22,000 पाउंड और 44 वर्षीया बहन रशेल को 30,500 पाउंड की राशि जुरमाने के तौर पर देने का आदेश दिया.

इसी के साथ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी का पूर्व का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं है. उस ने जो भी अपराध किया है, वह भावुकता में किया है. इस लिहाज से उसे अपना पक्ष रखने का एक और मौका दिया जाता है लेकिन बचाव के अंतिम मौके का भी कुकुकोवा को कोई लाभ नहीं मिल पाया.

अदालत ने फैसले से संबंधित 17 पृष्ठों का दस्तावेज बुश के परिजनों को भी दे दिया. इस फैसले पर भले ही एल्ली और उस की बुआ रशेल ने न्याय मिलने का संतोष व्यक्त किया, लेकिन बुश से तलाक ले चुकी एल्ली की मां ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि कुकुकोवा को कम सजा हुई है. उसे कम से कम 20 साल की सजा होनी चाहिए थी. वह अदालत में अपनी बेटी के साथ नहीं थी, लेकिन उस ने खुद उस की भावनाओं को काफी शिद्दत के साथ महसूस करते हुए कई ट्वीट किए थे.

अदालती सुनवाई और जांचपड़ताल की काररवाई में पाया गया था कि बुश को .38 की रिवौल्वर से 3 गोलियां मारी गई थीं. 2 गोलियां उस के सिर में लगी थीं, जबकि एक गोली उस के कंधे में लगी थी. न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुश का हाथ रिवौल्वर के साथ इस तरह से रखा गया था, ताकि पहली नजर में लगे कि उस ने आत्महत्या की है. हत्या के बाद कुकुकोवा बुश की महंगी हमर गाड़ी से करीब 3012 किलोमीटर दूर स्लोवाकिया स्थित अपने घर चली गई थी, जहां उस का प्रेमी इंतजार कर रहा था.

कुकुकोवा ने न केवल 2 देशों की सीमाएं लांघीं, बल्कि इस लंबी यात्रा को 27 घंटे में पूरा भी किया. हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसे स्लोवाकिया स्थित उस के पुश्तैनी गांव नोवा बोसाका से हिरासत में ले लिया गया था. उस की गिरफ्तारी स्पैनिश अधिकारियों के अनुरोध पर यूरोपीय वारंट के आधार पर की गई थी.

मायका मैरीका कुकुकोवा एक जमाने में बहुचर्चित स्विमवियर मौडल रही. सन 1990 में उस का जन्म स्लोवाकिया के एक गांव नोवा बोसाका में हुआ था. ग्रामीण परिवेश के साधारण परिवार में पलीबढ़ी कुकुकोवा जब किशोरावस्था में आई तो उसे अहसास होने लगा कि उस के अंदर खूबसूरती के साथसाथ हीरोइन बनने के भी तमाम गुण मौजूद हैं. जब उस के दोस्तों ने उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांधे तो उस की सपनीली आंखों में मौडलिंग की रंगीन दुनिया तैरने लगी.

कुकुकोवा के मातापिता ने उसे अपनी मनमर्जी से कैरियर चुनने की आजादी दे रखी थी. उस ने मौडलिंग के लिए कोशिश की तो थोड़े प्रयास में ही उसे मौका मिल गया. मौडलिंग की दुनिया में शुरुआत की पहली कोशिश में ही उसे सफलता मिल गई.

आगे भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा. ऊंची जगह बनाने के लिए भी उसे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. उस की खूबसूरती और पहली ही नजर में किसी को भी आकर्षित कर लेने वाले ग्लैमर की वजह से उस का आगे का रास्ता खुदबखुद बनता चला गया.

जल्दी ही कुकुकोवा एक परफेक्ट मौडल बन गई. चाहे रैंप पर चलना हो या कैमरे के किसी भी एंगल के सामने खुद को प्रदर्शित करना हो, वह बहुत कम समय में सीख गई. फलस्वरूप जल्द ही वह एक पेशेवर मौडल बन गई. उसे कुछ नामीगिरामी मौडलों के साथ रैंप पर चलने का मौका मिला तो वह एक चर्चित मैगजीन के कवर पर भी जगह बनाने में सफल रही.

इस के बाद फोटोग्राफरों ने उसे इंटरनेशनल मौडलिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की सलाह दी. उस ने ऐसा ही किया और स्लोवाकिया के फैशन और मौडलिंग की दुनिया का मक्का माने जाने वाले शहर मिलान की ओर रुख किया. मौडलिंग की बदौलत कुकुकोवा ने अपनी खास पहचान बना ली. ब्रिटिश और अमेरिकन मौडलों से टक्कर लेते हुए उस ने स्विमवियर या बिकिनी के पहनावे के साथ रैंप पर चल कर निर्णायक मंडल का दिल जीत लिया.

फिर क्या था, उस का सितारा बुलंद हो गया. मल्टीनेशनल कंपनियां उसे जहां अपने ब्रांड के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाने को लालायित रहने लगीं, वहीं उसे नौकरी के कुछ औफर भी मिले. लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही वह देर रात तक चलने वाली पार्टियों में भी आनेजाने लगी.

मौडलिंग की दुनिया में इस प्रोफेशन को अपनाने वाली मौडल्स अगर अपनी अदाकारी और शारीरिक सुंदरता बिखेरती हैं तो इस में अमीरजादे प्लेबौय की भी भरमार रहती है. उन की सोच के हिसाब से सुंदरियां मौजमस्ती की सैरगाह में मनोरंजन और रोमांस के साधन की तरह होती हैं. ऐसे ही लोगों में से एक थे इंगलैंड के गोल्ड बिजनेसमैन ‘किंग औफ ब्लिंग’ के नाम से चर्चित एंडी बुश. वह अधेड़ावस्था की दहलीज पर आ चुके थे, लेकिन मौजमस्ती के लिए सुंदरियों के साथ डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

एंडी ब्रिटेन में सोने के आभूषणों के अरबपति कारोबारी थे. उन की गिनती अमीरजादों में होती थी. 1990 में उन्होंने बीबीसी टीवी प्रजेंटर साम मैसन से शादी की थी. उसी से एक बेटी एल्ली पैदा हुई थी. लेकिन बाद में साम मैसन से उन का तलाक हो गया था. वह एल्ली को बहुत प्यार करते थे और उसे हर तरह से खुश और सुखी रखने की कोशिश करते थे.

एल्ली अपनी मां से ज्यादा बुआ रशेल के करीब रही. दूसरी तरफ बुश की पहचान रंगीनियों में डूबे रहने वाले शख्स की बन गई थी. वह आए दिन लेट नाइट पार्टियों या फैशन शो में जाया करते थे. गर्लफ्रैंड के साथ लौंग ड्राइव या डेटिंग पर जाना उन का खास शौक था.

कुकुकोवा को रैंप पर चलते देख बुश पहली बार में ही उस पर फिदा हो गए थे. बुश को न केवल उस का ग्लैमर भरा सौंदर्य पसंद आया था, बल्कि उस की शारीरिक सुंदरता और अदाएं भी बहुत अच्छी लगी थीं. संयोग से बुश उस फैशन शो वीक के प्रायोजक भी थे, जिस में कुकुकोवा को बतौर मौडल जगह मिली थी. तब दोनों की औपचारिक मुलाकात हुई थी.

पहली मुलाकात में ही कुकुकोवा ने बुश के दिल में इतनी तो जगह बना ही ली थी कि वह कारोबारी व्यस्तता के बावजूद उस से मिलनेजुलने के लिए समय निकालने लगे थे.

इस तरह शुरू हुई मुलाकातों के दौरान कुकुकोवा ने उन से अपने लिए कोई काम तलाशने की इच्छा जताई. इस पर बुश ने उसे ब्रिस्टल स्थित अपने ही सोने के आभूषणों के शोरूम में नौकरी दे दी.

अब बुश के लिए उस से मिलनाजुलना आसान हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उन की मुलाकातें प्रगाढ़ संबंध में बदलती चली गईं.

बुश अपनी सुगठित और चुस्तदुरुस्त देह के लिए काफी मेहनत करते थे. यही वजह थी कि वे 48 की उम्र में भी 28-30 के युवा की तरह दिखते थे. उन की सब से बड़ी कमजोरी सुंदरियों के पीछे भागना थी. नईनई प्रेमिकाएं बनाना, उन्हें महंगे उपहार देना और उन के साथ डेटिंग या लौंग ड्राइव पर जाना उन की जीवनशैली का अहम हिस्सा था.

उन के पास महंगी कारों की बड़ी शृंखला थी, जिन में लाल रंग की फेरारी और ग्रे रंग की लेंबोरगिनी के अतिरिक्त हमर रेंज की कई कारें थीं. उन की कई गाडि़यां कानसेलाडा के समुद्र तटीय गांव स्थित स्पैनिश विला में रखी जाती थीं.

अपनी आरामदायक जिंदगी गुजारने के लिए उन्होंने सन 2002 में करीब 3,20,000 पाउंड में 5 बैडरूम का एक मकान खरीदा था, जो केप्सटो के भीड़भाड़ वाले इलाके से काफी दूर ग्रामीण क्षेत्र मानमाउथशिरे में स्थित था. यह भव्य मकान 7 फुट ऊंची चारदीवारी से घिरा था.

इस के बावजूद इस मकान में सुरक्षा के तमाम अत्याधुनिक इंतजाम किए गए थे. उन्होंने सुरक्षा के लिए विख्यात राट्टेवाइलर डौग गार्ड भी वहां तैनात किए थे. आधिकारिक तौर पर बुश के 4 तरह के कारोबार थे, जिस में 3 तो फिलहाल निष्क्रिय थे. सिर्फ ट्रेडिंग कंपनी बिगविग से ही उन्हें मुनाफा होता था.

बुश के दिल में कुकुकोवा के लिए कितनी जगह थी या फिर कुकुकोवा बुश से कितनी मोहब्बत करती थी, यह कहना मुश्किल था, लेकिन इतना जरूर था कि वह उन के तमाम निजी कार्यों में दखलंदाजी करती थी. वह बुश के उसी शोरूम में एक कर्मचारी थी, जिस का कामकाज बुश की बहन रशेल और बेटी एल्ली संभालती थीं.

सन 2012 में बुश की कुकुकोवा के साथ डेटिंग चरम पर थी. इस का फायदा उठाते हुए कुकुकोवा बुश के साथ रशेल और एल्ली पर भी अपना रौब दिखाती थी. हालांकि उन के ‘लिव इन रिलेशन’ की मधुरता में जल्द ही नीरसता आ गई और नवंबर 2013 में तो उन के संबंध पूरी तरह से खत्म हो गए. इस की वजह यह थी कि उसी दौरान बुश की जिंदगी में एक 20 वर्षीया रूसी युवती मारिया कोरोतेवा आ गई थी.

मारिया इंगलैंड के पश्चिमी इलाके में स्थित एक यूनिवर्सिटी में ह्यूमन रिसोर्सेस की छात्रा थी. उस से बुश की मुलाकात ब्रिस्टल के कोस्टा कैफे की एक शाखा में हुई थी. मारिया बुश की बेटी एल्ली से मात्र एक साल बड़ी थी.

नई प्रेमिका का साथ मिलने पर वह कुकुकोवा को समय नहीं दे पा रहे थे. इतना ही नहीं, वह मारिया को अपना जीवनसाथी भी बनाना चाहते थे. कुकुकोवा अपनी उपेक्षा को महसूस कर रही थी. यह सब मारिया की वजह से हुआ था, इसलिए इस का दोषी वह मारिया को मान रही थी.

वह मारिया से ईर्ष्या करने लगी थी. इस की वजह से वह हमेशा तनाव में भी रहने लगी थी. और तो और वह फोन, ईमेल और डेटिंग ऐप के जरिए उस का पीछा भी करती थी. इस की शिकायत मारिया ने बुश से भी की थी. बुश को भी कुकुकोवा की यह हरकत पसंद नहीं आई. नतीजतन उन दोनों के बीच जबतब तकरार होने लगी. कुकुकोवा उन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की कोशिश करती थी.

एल्ली का कहना था कि कुकुकोवा बहुत जल्द गुस्से में आ जाती थी. दुकान की महंगी चीजों को फर्श पर फेंक देती थी. कई बार तो वह बुश का मोबाइल तक फेंक देती थी, पासपोर्ट छिपा देती थी और उन की गैरमौजूदगी में उन का पर्सनल कंप्यूटर चेक करती थी.

इसी तरह का एक वाकया एल्ली के जन्मदिन के अवसर पर भी हुआ. एल्ली अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर पिता और कुकुकोवा के साथ दुबई में थी. एक मौल में महंगी खरीदारी को ले कर कुकुकोवा ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया था, बल्कि गुस्से में उस ने बुश पर अपना बैग फेंक कर हमला भी किया था.

बुश ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर उस ने उसी दिन बुश का लैपटौप भी तोड़ डाला था. उस की वजह से एल्ली के जन्मदिन की खुशियों भरे माहौल में खलल पड़ गया. इंगलैंड वापस लौट कर बुश ने दुबई की घटना को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा.

कुकुकोवा की अजीबोगरीब आदतों को झेलना बहुत ही मुश्किल हो गया था. वह हमेशा तेवर में रहती थी. सितंबर, 2013 में कुकुकोवा बगैर कुछ बताए बुश के यहां से चली गई. वह एक जगह स्थिर नहीं रहती थी. एक शहर से दूसरे शहर घूमती रहती थी. बुश ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन कुकुकोवा को लगता था कि बुश उसे फिर से अपना लेगा. इस के लिए वह अपने फेसबुक एकाउंट पर प्रेमसंबंधों का सबूत देने वाले चुंबन और गले लगने के वीडियो अपलोड करती रहती थी.

कुकुकोवा के परिजनों के अनुसार, हत्या की घटना के 2 सप्ताह पहले वह अपना पुश्तैनी घर छोड़ गई थी. उस वक्त उस के पिता बीमार चल रहे थे. बुश की हत्या की खबर जब अखबारों की सुर्खियां बन गईं और उस की पूर्व पत्नी समेत दूसरे परिजनों ने हत्या का आरोप सीधे तौर पर कुकुकोवा पर लगाया.

इस के बाद स्पेन समेत स्लोवाकिया की पुलिस भी सक्रिय हो गई और बुश की हत्या के 2 दिनों बाद ही कुकुकोवा को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे न्यायिक हिरासत में ले कर मलागा के निकट अल्हउरा डेला टोर्रो जेल में डाल दिया गया. उस की गिरफ्तारी से उस की मां लुबोमीर कुकुका (50) और पिता दानक कुकुकोवा (51) को काफी दुख हुआ. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई है.

कुकुकोवा की वजह से उस के मातापिता की पूरे इलाके में काफी बदनामी हुई. इस के बावजूद वे बेटी को बचाने की कोशिश के लिए स्पेन गए. उन्होंने एक महंगा वकील किया, जिस की फीस जुटाने में उन का पुश्तैनी मकान तक बिक गया.

पुलिस के अनुसार, घटना वाली रात को कुकुकोवा बुश के उसी घर में थी, जिस में बुश ने अपनी नई प्रेमिका मारिया कोरातेवा को बुला रखा था. मारिया किसी वजह से कुछ देर के लिए बाहर चली गई थी. संभवत: वह वापस जाना चाहती थी. थोड़ी देर में ही उस ने गोली चलने की आवाज सुनी. यही गवाही मारिया ने कोर्ट में दी थी.

बुश के स्मार्टफोन पर डेटिंग ऐप के जरिए कुकुकोवा को पता चल चुका था कि बुश और मारिया 5 अप्रैल, 2014 की रात अपनी मुलाकात का पांचवां महीना पूरा होने पर जश्न मनाने वाले हैं. इस के लिए स्पैनिश विला कोस्टा डेल सोल में खास किस्म का रोमांटिक आयोजन किया गया था. इस से पहले ब्रिस्टल हवाई अड्डे पर बुश ने मारिया को 10,000 पाउंड की हीरे की एक अंगूठी भेंट की थी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि वे विला पर उस से एक खास बात पर चर्चा करना चाहते हैं.

घटना के बारे में मारिया ने बताया, ‘‘5 अप्रैल की सुबह जब हम लोग (मैं और बुश) विला पहुंचे, तब सूर्योदय नहीं हुआ था. हम लोगों ने एकदूसरे का हाथ थामे प्रेमी युगल की तरह हंसहंस कर बातें करते हुए विला में प्रवेश किया. विला के कर्मचारियों ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. हम सहज भाव से कमरे में चले गए.’’

मारिया ने आगे बताया, ‘‘बुश ने कमरे की बत्ती जलाई. मुझे कमरे में कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं ने दरवाजे के पास एक रैक में ‘ब्रा और किंकर्स’ टंगे देखे. यह देख कर मैं समझ गई कि निश्चित तौर पर यहां पहले से कोई औरतें आती होंगी. मैं बुश से थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ दूरी पर फर्श पर एक अधखुला सूटकेस पड़ा था, जिस में 2 कटार रखे दिखे. उसे देख कर मैं घबरा गई. मैं उलटे पैर मुड़ कर ऊपर की सीढि़यों पर चली गई.

‘‘जब मैं सब से ऊपर पहुंची, तब देखा कि वहां कुकुकोवा बिलकुल शांत, स्थिर एकदम चट्टान की तरह खड़ी थी. वह मुझे ही घूर रही थी. उस ने अपने बाल नीचे किए हुए थे और पाजामा पहन रखा था. ऊपर वह शार्ट्स पहने हुए थी. मैं ने पलभर के लिए उसे देखा और चिल्लाती हुई वहां से भाग कर घर से बाहर आ गई.’’

इसी बीच कुकुकोवा ने बुश पर 3 गोलियां दाग दीं. मारिया ने समझा कि टीवी या सीढि़यों से कोई भारी सामान गिर गया है. कुछ मिनट बाद ही कुकुकोवा बाहर आई तो उस के हाथ में गाड़ी की चाबी थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘कार से दूर हट जाओ.’’

उस वक्त वह बहुत ही शांत थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि बुश ने उसे अपनी हमर कार की चाबी कैसे दे दी. इस से मारिया को शक हुआ. जब तक वह घर में जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब तक कुकुकोवा कार को तेजी से ड्राइव करते हुए फरार हो गई. मारिया विला के अंदर पहुंची तो बुश की रक्तरंजित लाश देख कर घबरा गई.

मारिया ने तुरंत बुश की बहन रशेल और पुलिस को बुलाया. पुलिस के साथ आई डाक्टरों की टीम ने बुश को मृत घोषित कर दिया.

बुश की हत्या के बाद जहां मारिया के सपने साकार होने से पहले ही चूरचूर हो गए, वहीं कुकुकोवा को पूरी जवानी जेल की सलाखों के पीछे गुजारनी होगी. उस के मातापिता पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है. न तो बुढ़ापे का कोई सहारा है और न ही सिर छिपाने को छत बची है. सब कुछ बेटी को जेल जाने से बचाने में खत्म हो गया है. रही बात एल्ली और बहन रशेल की, तो उन को बुश की यादों के सहारे जीना होगा.

वरदी की आड़ में हनीट्रैप का खेल

उत्तरी दिल्ली के जय माता मार्केट, त्रिनगर का रहने वाला कमलेश कुमार एलआईसी ऐजेंट था. अपने इस काम की वजह से उसे दिन भर इधरउधर भागदौड़ करनी पड़ती थी. इस मेहनत से उसे महीने में ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. 25 मई, 2016 को वह किसी काम से त्रिनगर के पोस्ट औफिस गया. तभी उस के मोबाइल पर ज्योति नाम की एक महिला का फोन आया. वह ज्योति को पिछले 5-6 सालों से जानता था. कमलेश ने उस की जीवन बीमा पौलिसी की थी. ज्योति के सहयोग से उसे कई और भी पौलिसी मिली थीं. ज्योति ने उसे बताया, ‘‘मेरी एक बहन रोहिणी में रहती है. उसे एक पौलिसी करानी है. आप उस की कोई अच्छी सी पौलिसी कर देना.’’

‘‘उन के पास कब पहुंचना है?’’ कमलेश कुमार ने पूछा.

‘‘आज ही चले जाओ. मैं भी उसी के पास ही जा रही हूं.’’ ज्योति ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं अभी पोस्ट औफिस में हूं. यहां से निबट कर मैं रोहिणी पहुंच जाऊंगा. वहां का एड्रेस बता दो?’’ कमलेश ने कहा.

‘‘जब तुम यहां से निकलो तो मुझे फोन कर देना, मैं वहां कहीं मिल जाऊंगी और अपने साथ ले चलूंगी.’’ ज्योति बोली.

‘‘ठीक है, मैं बता दूंगा.’’

कोई नया केस तलाशने के लिए कभीकभी कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इस बात को कमलेश अच्छी तरह जानता था, पर अब उसे ज्योति के माध्यम से एक केस आसानी से मिलने जा रहा था. इसलिए वह खुश था. उस ने फटाफट पोस्ट औफिस का काम निपटाया और बाहर आते ही ज्योति को फोन किया. ज्योति ने उसे बताया कि वह दोपहर एक बजे रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर मिलेगी. ज्योति से बात करने के बाद कमलेश ने मोबाइल में समय देखा तो साढ़े 11 बज रहे थे. एक बजने में डेढ़ घंटा बाकी था. वह सोचने लगा कि यह टाइम कहां बिताए. उस ने कुछ लोगों को फोन किया. इत्तेफाक से पीतमपुरा के एक क्लाइंट ने उसे मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. कमलेश के लिए तो यह अच्छा ही था क्योंकि दोपहर एक बजे उसे पीतमपुरा से आगे रोहिणी जाना था, इसलिए उस ने फटाफट अपनी स्कूटी स्टार्ट की और पीतमपुरा की तरफ चल दिया.

15 मिनट में वह पीतमपुरा में अपने क्लाइंट के यहां पहुंच गया. उस क्लाइंट को एकमुश्त मोटी रकम एलआईसी में जमा करनी थी. उसी संबंध में बातचीत करने के लिए उस ने कमलेश को घर बुलाया था. कमलेश को रोहिणी भी पहुंचना था, इसलिए बातचीत करने के बाद वह निश्चित समय पर रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 2 पर पहुंच गया. वादे के मुताबिक ज्योति वहां खड़ी मिली. रोहिणी सेक्टर-1 की तरफ जाने की बात कह कर ज्योति उस की स्कूटी पर बैठ गई. सेक्टर-1 में पानी की टंकी के पास पहुंच कर ज्योति ने किसी महिला से बात की. फिर उस ने कमलेश से कुछ देर वहीं इंतजार करने को कहा. करीब 10 मिनट बाद वहां 30-35 साल की एक महिला आई. ज्योति ने उस का परिचय अपनी सहेली के रूप में कराया. उसे भी स्कूटी पर बैठा कर कमलेश उन के बताए अनुसार विजय विहार में बी.डी. जैन पब्लिक स्कूल के पास एक फ्लैट पर पहुंच गया.

वहां पहुंच कर 30-35 साल की उस महिला ने कमलेश से कहा, ‘‘मैं आप से अभी बात करती हूं. तब तक आप अंदर एसी वाले कमरे में बैठ जाएं. कमलेश अंदर वाले कमरे में चला गया. पहले से उस कमरे में जो लड़की बैठी थी, वह कमलेश से बातचीत करने लगी. उसे वहां आए अभी 5 मिनट ही हुए थे कि उसी दौरान वहां 4 व्यक्ति आए. लंबेचौड़े डीलडौल वाले वह चारों खुद को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के लोग बता रहे थे. उन में से एक व्यक्ति पुलिस वरदी में था.’’

कमरे में घुसते ही उन्होंने कमलेश को हड़काते हुए कहा, ‘‘यहां बैठे इस लड़की के साथ गलत काम कर रहे हो?’’

उन लोगों की बात सुनते ही कमलेश हक्काबक्का रह गया. कमलेश ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘नहीं सर, आप लोगों को शायद कोई गलतफहमी हुई है. मैं तो यहां बीमा केस के संबंध में आया हूं. आप चाहें तो बाहर बैठी ज्योति से पूछ सकते हैं. ज्योति सारी सच्चाई बता देगी.’’

कमलेश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वरदी वाले ने कमलेश के गाल पर जोरदार तमाचा मारा. पलभर के लिए कमलेश का दिमाग घूम गया. उसी दौरान कमरे में बैठी महिला वहां से चली गई. कमरे में अब कमलेश के अलावा वही 4 लोग ही थे.

कमलेश समझ गया कि उसे फंसाया गया है. ऐसी हालत में उसे क्या करना चाहिए, उस की समझ में नहीं आ रहा था. फिर भी खुद को बचाने के लिए वह उन के सामने गिड़गिड़ाने लगा. पर उन लोगों ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे हड़काते हुए जेल भेजने की धमकी देने लगे. तभी उन में से एक ने कमलेश की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्होंने उस का पर्स निकाल लिया और बैग की भी तलाशी ली. उस के पर्स में 4-5 सौ रुपए निकले, जबकि बैग में 25 हजार रुपए थे. वह रुपए उन्होंने अपने पास रख लिए. उस के पर्स में बैंक औफ बड़ौदा, आंध्रा बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम कार्ड थे. कमलेश को ले कर वह चारों फ्लैट से बाहर निकल आए. ज्योति नाम की जिस महिला के साथ वह एलआईसी केस के लालच में उस फ्लैट में आया था, वह दूसरे कमरे में बैठी हुई थी. कमलेश समझ गया कि यह सब उसी की साजिश है.

फ्लैट के बाहर आने के बाद उन में से एक व्यक्ति ने कमलेश को एक साइड में ले जा कर कहा, ‘‘देखो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो गई तो परेशानी में फंस जाओगे. जेल तो जाना ही पड़ेगा साथ में बदनामी होगी अलग से. फिर सालों साल कोर्ट जा कर मुकदमा लड़ते रहना. वकीलों की फीस तो तुम जानते ही हो. अगर तुम इन सब से बचना चाहते हो तो 2 लाख रुपए खर्च कर दो. सारी बात यहीं रफादफा हो जाएगी और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’ यह सुन कर कमलेश कुछ सोचने लगा. फिर कुछ पल बाद वह बोला, ‘‘इतने पैसे मेरे पास तो हैं नहीं. कहां से दूंगा. मैं आप लोगों से फिर से अनुरोध करता हूं कि मुझे छोड़ दीजिए.’’ कमलेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

‘‘हम ने तुझे जो तरीका बताया, तेरी समझ में नहीं आया. जब जेल जाएगा तब अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’ उसी शख्स ने धमकाया जिस ने 2 लाख रुपए में मामला रफादफा करने को कहा था. इस के बाद पुलिस वरदी वाले ने कमलेश के पर्स से निकाले हुए एटीएम कार्ड अपने एक साथी को देते हुए कहा, ‘‘इस के साथ कहीं आसपास के एटीएम बूथ पर जाओ और देखो कि इन खातों में पैसे हैं कि नहीं. यदि हों तो 2 लाख रुपए निकाल कर इस का मामला यहीं निपटा दो.’’

उस के कहने पर एक आदमी कमलेश की स्कूटी पर बैठ कर आईसीआईसीआई के एटीएम बूथ पर पहुंच गया. कमलेश ने डर की वजह से उसे अपना पिन बता दिया था. जिस के बाद उस शख्स ने कमलेश के एटीएम कार्डों से 82,200 रुपए निकाल लिए. इस तरह उन लोगों ने कमलेश से 1,10,200 ऐंठ लिए पैसे लेने के बाद उन्होंने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. बिना कुछ किएधरे ही कमलेश लुटपिट कर घर पहुंचा. उस का चेहरा उतरा हुआ था. पत्नी ने उस से वजह भी पूछी पर उस ने उसे कुछ नहीं बताया. यह ऐसी बात थी, जिसे वह किसी को बताने की हिम्मत भी नहीं जुटा रहा था. 3-4 दिन बीत जाने के बाद भी वह उस घटना को भुला नहीं पा रहा था. आखिर एक दिन उस के दोस्त ने उस से उस की खामोशी और परेशानी का कारण पूछ ही लिया. सोचविचार कर कमलेश ने अपने साथ घटी पूरी घटना उसे बता दी.

उस की बात सुनने के बाद दोस्त को लगा कि उस के साथ धोखाधड़ी हुई है क्योंकि असली पुलिस होती तो उसे सीधे थाने ले जाती. अगर किसी तरह की कोई सैटिंग होती भी तो थाने में होती. दूसरे पुलिस को इस तरह किसी के खाते से पैसे निकालने का कोई हक नहीं होता. ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि करूं तो क्या करूं.’’ कमलेश दुखी मन से बोला.

‘‘करना क्या है, तुम्हें थाने जाना चाहिए. तुम थाने जाओगे तो उन चारों पुलिसवालों में से कोई न कोई तो वहां दिख ही जाएगा. अगर उन में से कोई न दिखे तो थानाप्रभारी को बता देना. यह भी तो हो सकता है कि वो लोग पुलिसवाले हों ही नहीं. क्योंकि इसी तरह से एक पायलट से 15 लाख रुपए लेने के आरोप में पुलिस ने दिल्ली होमगार्ड के एक पूर्व कमांडर को गिरफ्तार किया था. मेरी बात मानो, तुम थाने चलो. मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं.’’ दोस्त ने उस की हिम्मत बढ़ाई. इस के बाद कमलेश दोस्त के साथ बाहरी दिल्ली के थाना विजय विहार पहुंचा. कमलेश ने थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को आपबीती सुनाई. थानाप्रभारी ने शाम 5 बजे थाने के समस्त स्टाफ की ब्रीफिंग के दौरान शिनाख्त कराई. कमलेश को उन में से कोई नहीं दिखा. इस से थानाप्रभारी को लगा कि कमलेश के साथ ठगी करने वाले या तो किसी दूसरे थाने के रहे होंगे या फिर उन्होंने फरजी पुलिस बन कर कमलेश से पैसे ऐंठे होंगे.

जो भी हो, उन्होने अपराध तो किया ही था. इसलिए थानाप्रभारी ने कमलेश की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 384/388/208/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ विजय विहार स्थित उस फ्लैट पर गए, जहां ज्योति कमलेश को ले गई थी. वह फ्लैट बंद मिला. पता चला कि वह फ्लैट अवध गुप्ता नाम के व्यक्ति का था. पुलिस अवध गुप्ता की तलाश में जुट गई. मुखबिर की सूचना के बाद पुलिस टीम ने 2 दिन बाद ही उसे रोहिणी के विजय विहार क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि कई सालों से वह इस फ्लैट में अकेला रहता है. उस की दोस्ती रोहिणी सेक्टर-22 के रहने वाले सुनील कुमार से थी. सुनील दिल्ली होमगार्ड में था. वह कभीकभी ज्योति नाम की एक महिला को ले कर उस के फ्लैट पर आता था. जब कभी ज्योति किसी व्यक्ति को ले कर आती थी तो सुनील अपने दोस्तों सीताराम, अनिल और आरिफ उर्फ बंटी को ले कर आ जाता था. उस वक्त सुनील पुलिस की वरदी में होता था. ये लोग उस व्यक्ति को रेप के आरोप में बंद करने की धमकी दे कर उस से मोटे पैसे ऐंठते थे. जितने पैसे ऐंठे जाते उसे सभी लोग आपस में बांट लेते थे. अवध गुप्ता ने बताया कि वह सुनील और ज्योति के ठिकानों के बारे में जानता है.

पुलिस ने अवध की निशानदेही पर ज्योति को गिरफ्तार कर लिया. शादीशुदा ज्योति की दोस्ती सुनील से थी. पैसे के लालच में वह हनीट्रैप में लोगों को फंसाने का धंधा करने लगी. कम मेहनत में उसे अच्छी कमाई होने लगी तो वह नएनए शिकार को तलाशने लगी थी. इसी चक्कर में उस ने कमलेश को फांसा था. पुलिस ने अवध गुप्ता और ज्योति को गिरफ्तार कर रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अन्य अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने उन के संभावित ठिकानों पर दबिशें दीं, पर वे लोग अपने घरों से फरार मिले. इसी तरह करीब 5 महीने बीत गए. आरोपियों का कहीं कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. इस पर उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी ने यह केस जिले की स्पैशल स्टाफ यूनिट को सौंप दिया. तेजतर्रार सब इंसपेक्टर राममनोहर मिश्रा की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई गई.

यह पुलिस टीम फरार अभियुक्त सुनील कुमार, सीताराम, अनिल, आरिफ उर्फ बंटी व उन की एक महिला साथी को तलाशने लगी. लेकिन आरोपी बेहद शातिर थे. उन्हें पता चल गया था कि पुलिस उन्हें ढूंढ रही है. इसलिए वह गुप्त ठिकानों पर छिप गए थे. टीम को किसी तरह से सुनील और उस के दोस्त सीताराम के फोन नंबर मिल गए थे. पुलिस उन के फोन नंबरों के सहारे उन्हें तलाशने लगी. उन के फोन नंबरों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को एसआई राममनोहर मिश्रा की टीम ने सुनील कुमार और सीताराम को दिल्ली के बाहरी रिंग रोड स्थित विवेकानंद इंस्टीट्यूट के पास से गिरफ्तार कर लिया. वह अपनी होंडा अमेज कार नंबर डीएल 4सीएयू1658 में वहां किसी का इंतजार कर रहे थे. दोनों को स्पैशल स्टाफ औफिस ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि सुनील दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-22 में रहने वाले मेवालाल का बेटा था. वह शादीशुदा था लेकिन किसी बात को ले कर उस की पत्नी से नहीं बनती थी, इसलिए वह पत्नी से अलग रहता था. सुनील दिल्ली होमगार्ड था. करीब 6 महीने पहले उस की नौकरी छूट गई थी. जब वह होमगार्ड में नौकरी करता था, तभी उस की ड्यूटी सुल्तानपुरी थाने में थी. वहीं पर सीताराम भी उस के साथ ड्यूटी करता था. सीताराम का एक भाई दिल्ली पुलिस में था. सुनील और सीताराम गहरे दोस्त थे. दोनों ही ज्यादा पैसे कमाने की बातें करते रहते थे. तभी उन के दिमाग में हनीट्रैप के जरिए पैसा कमाने का विचार आया. इस के लिए एक महिला की जरूरत थी. उस का इंतजाम सुनील ने कर दिया. दरअसल सुनील ज्योति नाम की एक महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहता था.

ज्योति को उस ने तैयार कर लिया. अब बात आई जगह की तो सुनील का एक जानकार था अवध गुप्ता, जिस का विजय विहार में फ्लैट था. पैसे के लालच में वह भी तैयार हो गया. सीताराम ने अपने 2 दोस्तों अनिल व आरिफ उर्फ बंटी को भी इस गैंग में शामिल कर लिया. यह दोनों गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र में रहते थे. ज्योति शिकार को फांस कर अवध गुप्ता के मकान पर ले जाती थी. फिर कुछ देर बाद सुनील अपने सभी साथियों के वहां आ धमकता था. सुनील पुलिस वरदी में होता था. इसलिए वह शिकार को डराधमका कर आसानी से पैसे झटक लेते थे. फिर उस रकम को आपस में बांट लेते थे. इस तरह उन का यह धंधा आसानी से चल रहा था. पर कमलेश कुमार के मामले में सभी फंस गए पुलिस ने सुनील और सीताराम को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया जबकि अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी है.

बच्ची के लिए फरिश्ता बना औटोरिक्शा चालक

ग्वालियर के ख्वाजानगर के रहने वाले हेमराज सिंह 29 दिसंबर, 2016 को अपने परिवार के साथ शहर के प्रसिद्ध साईंबाबा मंदिर गए थे. वहीं उन की 4 साल की बेटी दिव्या बिछुड़ गई. हेमराज सिंह और उन की पत्नी बेटी को इधरउधर खोजने लगे, पर वह कहीं दिखाई नहीं दी.

उन्होंने बच्ची को मंदिर परिसर से ले कर बाहर सड़क तक तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल सका. कुछ ही देर में बच्ची के गायब होने की खबर मंदिर परिसर में मौजूद लोगों के बीच फैल गई. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम और नजदीकी पुलिस स्टेशन में दिव्या के गुम होने की सूचना दे दी. पुलिस को सूचना देने के बावजूद भी हेमराज सिंह और उन की पत्नी बेटी को मंदिर के आसपास खोजते रहे.

उसी बीच एक महिला एक औटोरिक्शा में बैठते हुए औटोचालक से बोली कि उसे बसअड्डा जाना है. उस महिला के साथ जो बच्ची थी, उस की उम्र यही कोई 3-4 साल थी. वह बच्ची लगातार रोए जा रही थी. उसे चुप कराने के लिए वह महिला उसे खाने को कभी बिस्कुट तो कभी कुछ और चीजें दे रही थी. पर वह बच्ची रोते हुए अपनी मां के पास जाने के लिए कह रही थी. बच्ची को इस तरह रोता देख औटोचालक हरिमोहन चौरसिया को कुछ शक हुआ तो उस ने महिला से पूछा कि यह बच्ची क्यों रो रही है?

‘‘दरअसल, इस बच्ची की मां अस्पताल में भरती है. यह उस के पास जाने की जिद कर रही है.’’ महिला ने कहा. हरिमोहन को उस महिला की बात पर विश्वास नहीं हुआ. उसे दाल में कुछ काला नजर आया. लिहाजा वह अपने औटो को रास्ते में पड़ने वाले इंदरगंज थाने में ले गया. महिला ने जब औटो थाने में लाने के बारे में पूछा तो ड्राइवर हरिमोहन ने कहा कि उसे थाने में किसी से 2 मिनट बात करनी है.

हरिमोहन ने थाने में मौजूद हैडकांस्टेबल राजकिशोर त्रिपाठी को महिला पर हो रहे अपने शक के बारे में बता दिया. हरिमोहन की बात सुन कर हैडकांस्टेबल राजकिशोर उस के औटोरिक्शा के पास पहुंचे और महिला को पूछताछ के लिए औफिस में ले आए. पूछताछ में महिला ने बताया कि वह इस बच्ची की पड़ोसन है. इस बच्ची की मां सरकारी अस्पताल में भरती है. मैं इसे इस की मां से मिलवाने के लिए ले जा रही हूं.

हैडकांस्टेबल को भी उस महिला की बातों पर शक हुआ तो उस ने उस बच्ची को अलग ले जा कर बात की. उस ने कहा, ‘‘अंकल, मेरा नाम दिव्या है. मैं तो अपने मम्मीपापा के साथ साईंबाबा मंदिर में दर्शन के लिए गई थी. यह जो आंटी मुझे ले जा रही हैं, इन्हें मैं नहीं जानती. मेरी मम्मी अस्पताल में नहीं भरती हैं. पता नहीं यह मुझे कहां ले जा रही हैं?’’ इतना कह कर दिव्या रोने लगी.

हैडकांस्टेबल राजकिशोर को अब मामला समझ में आ गया. उस ने उस समय उस महिला से कुछ नहीं कहा. उसे थाने में बिठा कर वह दिव्या को मोटरसाइकिल पर बिठा कर साईंबाबा मंदिर ले गया. वहां दिव्या के पिता हेमराज सिंह और उन की पत्नी मिल गई. दोनों ही परेशान थे. जैसे ही उन्होंने पुलिस वाले के साथ अपनी बेटी को देखा, उन के चेहरे पर खुशी की चमक लौट आई.

मां ने दिव्या को सीने से लगा लिया. कई मिनट तक वह उसे पुचकारती रही. हेमराज सिंह ने जब दिव्या के साथ आए पुलिस वाले से पूछा कि उन्हें उन की बेटी कहां मिली तो उस ने बताया कि एक महिला इस का अपहरण कर औटो में बैठा कर कहीं ले जा रही थी. वह तो भला हो उस औटो वाले का जो अपना औटो सीधे थाने ले आया और आप की बच्ची गलत जगह पहुंचने से बच गई. बेटी को बचाने वाले उस औटोचालक को बहुत दुआएं दीं. इस के बाद हैडकांस्टेबल राजकिशोर हेमराज और उन की पत्नी को थाने ले आए.

थाने पहुंचने के बाद हैडकांस्टेबल ने पूरी जानकारी थानाप्रभारी को दी. दिव्या का अपहरण कर के ले जा रही महिला से हैडकांस्टेबल राजकिशोर त्रिपाठी ने पूछताछ की तो उस महिला ने अपना नाम लक्ष्मी उर्फ मुन्नीबाई बताया. वह डबरा कस्बे की जवाहर कालोनी की रहने वाली थी.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह बच्चों को चुराने वाले गैंग से जुड़ी है. इस बच्ची को भी वह चुरा कर ले जा रही थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी डा. आशीष खरे को दी. जिले के अलगअलग क्षेत्रों से अनेक बच्चियां गायब हो चुकी थीं. उन का कोई सुराग नहीं मिल रहा था, इसलिए उन्होंने झांसी रोड सर्किल के सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया को इस मामले की जांच करने को कहा.

सीएसपी भदौरिया ने महिला पुलिस की मदद से लक्ष्मी से पूछताछ की तो उस ने  सारा राज उगल दिया. पता चला कि लक्ष्मी के गैंग में 8 लोग शामिल थे और ये तमाम बच्चियों को चुरा कर अलगअलग जगहों पर भेज चुके हैं. एक बच्ची चुराने के लिए उन्हें 25 से 30 हजार रुपए मिलते थे. पैसे के लालच में लक्ष्मी के 2 बेटे राजेश और राजू भी यही काम कर रहे थे.

लक्ष्मी ने बताया था कि उस के गैंग में 3 महिलाएं और 5 शातिर पुरुष शामिल हैं. कई शहरों में मौजूद दलालों से बच्चियों को सप्लाई करने का सौदा किया जाता है. कभीकभी दलाल डील के बदले एडवांस में भी पैसे देते थे.

गैंग के सदस्य रेलवे स्टेशनों, बसअड्डे, मंदिरों आदि भीड़भाड़ वाले इलाकों में सक्रिय रहते हैं. पता चला कि गैंग के टारगेट में केवल छोटी बच्चियां ही होती हैं. बच्ची को अगवा करने के बाद कुछ दिनों तक ये अपने ठिकाने पर रखते हैं, फिर उन्हें दूसरी जगहों पर रख कर भीख मंगवाई जाती है और जवान होने पर उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया जाता है. पता चला है कि 50 वर्षीया लक्ष्मी ही गैंग की मुखिया थी.

सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया ने लक्ष्मी से सभी राज खुलवाने के बाद लक्ष्मी की निशानदेही पर ग्वालियर के गिर्जोरा गांव से राममिलन कंजर, रामदास कुशवाह और लक्ष्मी के दोनों बेटों राजू और राजेश के घर दबिश दे कर गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने इन के पास से अगवा की गई 3 बच्चियों को बरामद किया था.

इस के बाद एक पुलिस टीम राजस्थान के धौलपुर जिला भेजी गई. वहां से पुलिस ने सरनाम कंजर को धर दबोचा. उस के पास से पुलिस ने अगवा की गई 2 बच्चियां बरामद कीं. ग्वालियर जिले का बदनापुरा क्षेत्र वेश्यावृत्ति के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर रोशनबाई और आकाश कालकोट के घर दबिश दी गई. उस के पास से भी 2 बच्चियां बरामद की गईं.

गैंग का नेटवर्क देश के 5 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ था.

पुलिस ने 8 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर उन के पास से ग्वालियर के माधोगंज की 6 वर्षीया मोहिनी माहौर, गुढ़ागढ़ी के नाके की 5 वर्षीया नेहा खान, नई बस्ती ललितपुर की 6 साल की कांती, मोहनगढ़ की 4 साल की नैना, 8 साल की राशि, 4 साल की अंजलि, 5 साल की प्राची और 4 साल की रज्जो उर्फ आयशा को बरामद किया.

यह पुलिस के लिए बहुत बड़ी सफलता थी. पुलिस ने बरामद की गई सभी बच्चियां उन के मातापिता को सौंप दीं. अपनी बच्चियों को पा कर परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

इस सफलता के लिए सीएसपी डी.बी.एस. भदौरिया और औटो चालक हरिमोहन को प्रदेश की राजधानी भोपाल में बाल आयोग द्वारा सम्मानित किया गया. औटोरिक्शा चालक की चौकसी के बाद यदि लक्ष्मी नहीं पकड़ी जाती तो पता नहीं यह गैंग कितनी और बच्चियों को चुरा कर उन का जीवन तबाह कर देता.

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