हिस्ट्रीशीटर डौक्टर…

कन्या हो तो उसे कोख में ही मार दिया जाए. डा. इम्तियाज और उस के साथी यही सब कर रहे थे. लेकिन अब…
आमतौर पर आप ने कुख्यात अपराधियों के हिस्ट्रीशीटर होने की बात सुनी और पढ़ी
होगी. पुलिस और कानून की भाषा में हिस्ट्रीशीटर वे होते हैं, जो बारबार अपराध कर आम जनता के लिए खतरा बन जाते हैं. ऐसे अपराधी की उस के रिहायशी इलाके वाले पुलिस थाने में हिस्ट्रीशीट खोल दी जाती है. इस में उस शख्स के अपराधों का पूरा ब्यौरा होता है.  शांति व्यवस्था कायम करनी हो या चुनाव वगैरह शांति से निपटाने हों, तो सब से पहले उस इलाके की पुलिस हिस्ट्रीशीटर को पाबंद करती है. यहां तक कोई भी बड़ा अपराध होने पर सब से पहले हिस्ट्रीशीटर को ही तलब कर पूछताछ की जाती है, ताकि अपराधियों तक पहुंचा जा सके. हिस्ट्रीशीटर को संबंधित पुलिस थाने में निश्चित समयावधि में हाजिरी भी देनी होती है.
लेकिन कोई अच्छा भला डाक्टर भी हिस्ट्रीशीटर हो सकता है, यह बात कल्पना से परे है. कोई कल्पना या यकीन करे न करे पर इस कहानी का अहम किरदार डा. इम्तियाज अली रंगरेज संभवत: देश का पहला हिस्ट्रीशीटर डाक्टर है. इस डाक्टर पर आरोप है कि उस ने हजारों बेटियों को महिलाओं को कोख में ही मार डाला है.
राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले डा. इम्तियाज ने सन 2004 में एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी. इस के बाद वह राजस्थान में सरकारी अस्पताल में नौकरी करने लगा. नौकरी करते हुए 2 साल में वह 4 बार भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया.

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सब से पहले डा. इम्तियाज को राज्य की पीसीपीएनडीटी टीम ने 7 अक्तूबर, 2016 को जोधुपर के शंकर नगर में एक महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करते हुए गिरफ्तार किया था. उस के साथ एम्स जोधपुर का रेडियोलोजिस्ट भी पकड़ा गया था. दबिश देने के दौरान दोनों आरोपियों ने सोनोग्राफी मशीन पहली मंजिल से नीचे फेंक दी थी. बाद में यह मशीन जब्त कर ली गई. डा.
इम्तियाज के बारे में जानकारी मिलने पर पीसीपीएनडीटी टीम ने बाड़मेर की एक गर्भवती महिला को फर्जी ग्राहक बना कर डा. इम्तियाज के पास भेजा था. डा. इम्तियाज ने उस महिला से भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए 23 हजार रुपए लिए थे.
इन में 18 हजार डा. के और 5 हजार रुपए रेडियोलौजिस्ट के थे. टीम ने यह रकम बरामद कर ली थी. जांच में सामने आया कि डा. इम्तियाज बेटी नहीं चाहने वाली महिलाओं का गर्भपात कराता था. गर्भपात बालेसर के सरकारी अस्पताल में कराया जाता था.
उस समय डा. इम्तियाज बालेसर में ब्लौक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर कार्यरत था. यह उस की चौथी पोस्टिंग थी. इस मामले में डा. इम्तियाज को जेल भेज दिया गया था. लेकिन जल्दी ही वह जमानत पर बाहर आ गया.
इस के बाद वह 21 मई, 2017 को जोधपुर में निजी अस्पताल के संचालक हनुमान ज्याणी के घर पर भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. हनुमान ज्याणी इस से पहले ही पकड़ा जा चुका था
डा. इम्तियाज तीसरी बार 5 जनवरी, 2018 को उस समय पकड़ा गया, जब उस के दलालों ने एक गर्भवती महिला को भ्रूण परीक्षण के लिए पहले झुंझुनूं, फिर सीकर इस के बाद नागौर और बाद में जोधपुर बुलाया. जोधपुर में वह चलती गाड़ी में भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. उस से जबत की गई पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन नेपाल से खरीद कर लाई गई थी.
झुंझुनूं के कलेक्टर के सहयोग से पीसीपीएनडीटी (प्री कंसेप्शन ऐंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक्स ऐक्ट) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रघुवीर सिंह के नेतृत्व में की गई इस काररवाई में हनुमान ज्याणी और एक दलाल भाग निकले. उस समय डा. इम्तियाज ने पूछताछ में पीसीपीएनडीटी की टीम को बताया कि विभिन्न जिलों में उस के 50 से अधिक दलाल हैं. इन दलालों के माध्यम से वह अब तक 5 हजार से ज्यादा भ्रूण परीक्षण कर चुका है.

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चौथी बार वह 9 सितंबर, 2018 को जोधपुर में ही महामंदिर स्थित एक मकान में गर्भवती महिला का भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. राज्य पीसीपीएनडीटी ने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शिल्पा चौधरी के निर्देशन में की गई इस काररवाई में संविदा पर कार्यरत लैब तकनीशियन फतेह किशन शर्मा को भी गिरफ्तार किया.
इस दौरान एक अवैध पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन भी बरामद की गई. काररवाई के दौरान डा. इम्तियाज का साथी जोधपुर के निजी हौस्पिटल का संचालक हनुमान ज्याणी फरार हो गया.
डा. इम्तियाज ने भ्रूण परीक्षण और बेटियों को कोख में मारने का गैरकानूनी काम अपने पिता डा. मोहम्मद नियाज से सीखा. डा. इम्तियाज के पिता नियाज रंगरेज भी डाक्टर हैं. उन का नागौर जिले के मकरना शहर में निजी अस्पताल है. करीब 72 साल के डा. नियाज भी सन 2012, 2014 और 2016 में लिंग परीक्षण करते हुए पकड़े जा चुके हैं.
पीसीपीएनडीटी की टीम ने अगस्त 2016 में नागौर जिले के मकराना शहर में डा. नियाज और नर्स रोजा को भ्रूण लिंग जांच करते हुए रंगेहाथ पकड़ा था. उस समय डा. नियाज ने टीम के एक सदस्य को काट भी लिया था. इस संबंध में स्थानीय पुलिस थाने में अलग से मामला दर्ज कराया गया.
भ्रूण परीक्षण के लिए नर्स रोजा के माध्यम से बोगस गर्भवती महिला ने 30 हजार रुपए में सौदा तय किया था. डा. नियाज ने महिला के गर्भ की जांच कर लड़की बताई थी. इस पर गर्भवती की सहयोगी महिला ने कहा कि हमें लड़की नहीं चाहिए, तो डा. नियाज ने 7 माह की गर्भवती महिला से इस काम के लिए 30 हजार रुपए और मांगे थे.
इस से पहले डा. नियाज को जब भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया था, तो उन की सोनोग्राफी मशीनें सील कर दी गई थीं. लेकिन उस ने सील मशीनों को विशेषज्ञ की मदद से जोड़ लिया था और फिर गैरकानूनी तरीके से लिंग परीक्षण का काम शुरू कर दिया था.
कहा जाता है कि डा. इम्तियाज ने सरकारी नौकरी में आने से कई साल पहले ही लिंग परीक्षण का अवैध काम शुरू कर दिया था. 2008 से वह पेशेवर के रूप में यह अवैध काम करने लगा था.
डाक्टर पिता और पुत्र भ्रूण परीक्षण कर गर्भपात करने का पैकेज लेने के लिए कुख्यात थे. ये किसी महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करने के लिए 25 से 35 हजार रुपए लेते थे. बाद में इतनी ही राशि गर्भपात के लिए वसूलते थे.

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लिंग परीक्षण करते हुए पकड़े जाने के बाद डा. इम्तियाज को जेल भी भेजा गया, लेकिन जमानत पर जेल से बाहर आ कर वह फिर इसी घिनौने धंधे में लग जाता था. सरकारी नौकरी में रहते हुए 2016 में डा. इम्तियाज गैरकानूनी रूप से भ्रूण परीक्षण के मामले में लिप्त पाया गया तो उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था.
राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने उसे निलंबित कर दिया था. तब से वह निलंबित चल रहा है. इस के बाद भी वह 3 बार लिंग परीक्षण करते हुए पकड़ा गया, लेकिन सरकार ने उसे नौकरी से बर्खास्त नहीं किया. डा. इम्तियाज के पास अभी तक डाक्टरी का तमगा है. विशेषज्ञों का कहना है कि डाक्टरी की डिग्री छीने जाने के संबंध में स्पष्ट प्रावधान है कि अदालत से सजा होने के बाद ही मेडिकल कौंसिल औफ इंडिया की ओर से डिग्री छीनी जाती है.
सीनियर आईपीएस औफिसर डा. अमनदीप सिंह कपूर की पहल पर डा. इम्तियाज को हिस्ट्रीशीटर घोषित किया गया. डा. कपूर जोधपुर में पुलिस उपायुक्त (पूर्व) के पद पर तैनात हैं. डीसीपी अमनदीप कपूर के पास भी एमबीबीएस की डिग्री है.
अमनदीप कपूर को पता चला कि डा. इम्तियाज लिंग जांच कर के अवैध रूप से गर्भपात करवाने जैसे घिनौने काम में लगा है. वह 4 बार गिरफ्तार हो चुका है. उस के खिलाफ अदालत में कई मामले विचाराधीन हैं, फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है.
डा. इम्तियाज की आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण और आमजन की सुरक्षा के लिए डीसीपी डा. कपूर ने उस की हिस्ट्रीशीट खोलने के निर्देश दिए. इस के बाद दिसंबर 2018 में पुलिस ने 41 साल के डा. इम्तियाज को जोधपुर शहर के नागौरी गेट थाने का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया.
कहा जाता है कि डा. इम्तियाज के पिता डा. नियाज का मकराना में अस्पताल और जोधपुर सहित कई शहरों में जमीनें व मकान हैं. दोनों पितापुत्र की चलअचल संपत्ति करीब सौ करोड़ रुपए की बताई जाती है. यह सारी संपत्ति अवैध तरीके से एकत्र करने का अनुमान है.

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लिंग परीक्षण करने और बेटियों को कोख में मारने वाले डा. इम्तियाज के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान ले कर राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, राजस्थान मेडिकल काउंसिल और जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है.
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने चिकित्सा विभाग से पूछा है कि सरकारी सेवारत डाक्टरों के खिलाफ दर्ज प्रत्येक विभागीय काररवाई का विवरण और उस से संबंधित प्रगति रिपोर्ट आयोग के सामने पेश करें.
राजस्थान मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार को कहा गया है कि इन डाक्टरों के विरुद्ध कोई प्रकरण शिकायत या स्वत: संज्ञान से कोई प्रकरण दर्ज किया गया या नहीं. अगर प्रकरण दर्ज किए गए हैं तो उन में की गई काररवाई की जानकारी दें और अगर प्रकरण दर्ज नहीं किए तो उस के कारण बताएं.
जस्टिस टाटिया ने जोधपुर पुलिस कमिश्नर से डा. इम्तियाज और उस के पिता डा. नियाज रंगरेज के खिलाफ दर्ज सभी फौजदारी प्रकरणों की एफआईआर की प्रतिलिपियां, हिस्ट्रीशीट खोले जाने के लिए पेश किए गए प्रार्थनापत्र और उन पर जारी आदेशों की प्रतिलिपियां मांगी हैं. इस के अलावा किनकिन प्रकरणों में जांच पूरी कर के अदालत में नतीजा पेश किया गया, उस से संबंधित जानकारी भी देने को कहा गया है.
पीसीपीएनडीटी टीम को अंतरराज्यीय लिंग जांच गिरोह के सरगना रवि सिंह को नवंबर, 2018 में पता चला था. झुंझुनू सहित कई जगह की गई काररवाई में इस घिनौने काम में उस की लिप्तता पाई गई थी. रवि सिंह ने शेखावटी अंचल के अलावा राजस्थान के करीब 20 जिलों में जगहजगह दलाल नियुक्त कर रखे थे. रवि की पत्नी सुनीता सिंह भी लिंग जांच के काम से जुड़ी है.

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झुंझुनूं के सिंघाना कस्बे का रहने वाला रवि सिंह पीसीपीएनडीटी के मामलों में 3 बार पहले भी पकड़ा जा चुका था. वह भी जमानत पर छूटने के बाद फिर से इसी काम में लग जाता था.
उस ने अपने एक दर्जन से ज्यादा सहयोगियों को अवैध पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन से भ्रूण लिंग जांच करने का काम भी सिखा दिया था. वह राजस्थान के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब के कुछ जिलों में निर्धारित स्थान पर जा कर भ्रूण लिंग परीक्षण भी करता था.
14 अगस्त, 2018 की देर रात झुंझनूं के सोलाना गांव में भ्रूण लिंग परीक्षण के दौरान पीसीपीएनडी टीम ने रवि के 2 सहयोगियों को पकड़ लिया था, लेकिन रवि सिंह अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकला था. बाद में रवि सिंह ने अपने रिश्तेदारों व सहयोगियों के माध्यम से मुखबिर से संपर्क कर उसे लालच भी दिया था, लेकिन वह इस में कामयाब नहीं हो सका था.
चौथी बार पकडे़ जाने पर रवि सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि शेखावटी इलाके में अवैध सोनाग्राफी मशीनों से लिंग जांच करने वाले अधिकतर लोग उस के शागिर्द हैं. उन्हें मशीनें भी रवि ने ही दिलवाई थीं.
उसे इस का एक फायदा यह हुआ कि उसे लिंग जांच के लिए कहीं भी मशीन ले कर नहीं जाना पड़ता था. जिस इलाके की गर्भवती महिला जांच करवाना चाहती, रवि सिंह उसी क्षेत्र के अपने शार्गिद की मशीन से जांच कर देता था.
रवि सिंह ने लिंग परीक्षण का काम दिल्ली के एक डाक्टर से सीखा था. इस के बाद उस ने खुद की मशीन ला कर अवधेश पांडे के साथ यह काम शुरू किया. अवधेश पांडे लिंग जांच के मामले में 3 बार पकड़ा जा चुका है.
बाद में रवि सिंह ने पांडे से अलग हो कर नया नेटवर्क तैयार किया. रवि के नेटवर्क में सरकारी नर्सों सहित 100 से ज्यादा लोग हैं.
पीसीपीएनडीटी टीम ने रिमांड अवधि पूरी होने पर जब उसे जेल ले कर गई तो उस ने कहा कि वह एक-डेढ़ महीने से ज्यादा यहां नहीं रुकेगा, क्योंकि जल्दी ही उस की जमानत हो जाएगी.
राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग की पीसीपीएनडीटी टीम ने दिसंबर 2018 के पहले सप्ताह में पंजाब के मलोट शहर से एक सरकारी महिला नर्स सहित 3 महिलाओं को गिरफ्तार किया. इस मामले में भ्रूण लिंग जांच के लिए श्रीगंगानगर की रहने वाली सरकारी नर्स ने 80 हजार रुपए लिए थे.
श्रीगंगानगर में एक महिला दलाल इन के साथ और जुड़ गई. नर्स व महिला दलाल उस गर्भवती को गंगानगर में घुमाने के बाद ट्रेन से पंजाब के मलोट शहर ले गईं. वहां तीसरी महिला दलाल मिली. वे गर्भवती महिला को पंजाब के फिरोजपुर जिले में ले गई, जहां सोनोग्राफी कर लड़की बताई गई.
बाद में गर्भवती के साथ महिला दलाल वापस मलोट पहुंची तो पीसीपीएनडीटी टीम ने तीनों को पकड़ लिया. राजस्थान पीसीपीएनडीटी की पंजाब में यह आठवीं डिकौय काररवाई थी.
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में 8 मार्च, 2018 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने मुन्नीदेवी अल्ट्रासाउंड पर काररवाई कर एक महिला सहित 2 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन से एक सोनोग्राफी मशीन भी जब्त की गई थी. इस दौरान सोनोलोजिस्ट भाग गया था.
पीसीपीएनडीटी टीम की काररवाई में ऐसे मामले भी सामने आए, जिन में पता चला कि लिंग जांच परीक्षण के नाम पर गर्भवती महिलाओं को फर्जी मशीनों से जांच कर बेवकूफ भी बनाया जाता है. ऐसा ही एक मामला अक्तूबर 2018 में जयपुर जिले के चौमूं में ओम डेंटल क्लीनिक का सामने आया.

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पीसीपीएनडीटी की टीम ने सूचना पर कथित दंत चिकित्सक मोहनलाल जाट से बात की, तो उस ने लिंग परीक्षण के 30 हजार रुपए मांगे. उस ने गर्भवती को एक जगह बुलाया. कार से मोहनलाल जाट एक दलाल के साथ पहुंचा और गर्भवती को चौमूं में ओम डेंटल क्लीनिक पर ले गया.
वहां मोहनलाल ने गर्भवती को डेंटल चेयर पर लिटा कर मसाला सुखाने वाली मशीन से लिंग परीक्षण का नाटक किया और भ्रूण की जानकारी दे दी. बाद में मोहनलाल और दलाल ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर रकम जब्त कर ली गई.
जनवरी 2018 में राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने उत्तर प्रदेश के आगरा में काररवाई कर मैक्स डायग्नोस्टिक एंड पैथोलौजी सेंटर पर फर्जी तरीके से भ्रूण लिंग परीक्षण करने के मामले में सेंटर संचालक अजय उपाध्याय और उस की सहयोगी महिला प्रीति कुलश्रेष्ठ को गिरफ्तार किया.
इन से 2 फीटल डौपलर व एक कंप्यूटर मौनिटर सहित 20 हजार रुपए की रकम बरामद की गई. इस सेंटर पर बच्चों की हृदय की धड़कन की जांच में काम आने वाले फीटल डौपलर से फर्जी तरीके से गर्भवती महिला की जांच की गई और भ्रूण के लिंग की झूठी जानकारी दी गई.
मोबाइल फोन में एक तार लगातार फर्जी तरीके से लिंग परीक्षण करने के मामले में नवंबर 2018 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ शहर से एक महिला सहित 2 लोग पकड़े गए.
यह काररवाई राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने की. जिस गर्भवती की फर्जी तरीके से सोनोग्राफी की गई, वह अलवर शहर से गई थी. दलाल सतपाल यादव ने उसे अलवर जिले में बहरोड़ के जखराना गांव बुलाया.
वहां दलाल ने महिला से 40 हजार रुपए लिए और उसे महेंद्रगढ़ ले गया. वहां दलाल भाग गया, बाकी 2 लोग पकड़े गए. दलाल सतपाल यादव 2017 में लिंग परीक्षण के मामले में हरियाणा में पकड़ा जा चुका है.
अप्रैल 2018 में जयपुर जिले के चौमूं शहर के पास मोरीजा गांव में लिंग परीक्षण करते पकड़े गए आरोपियों के पास उपकरण देख कर पीसीपीएनडीटी की टीम भी हैरान रह गई. ये लोग वाशिंग मशीन के पाइप से एलईडी बल्ब जोड़ते और गर्भवती के पेट पर टच कर सामने लगी एलसीडी स्क्रीन पर गर्भ में भ्रूण का वीडियो दिखाते.
इस के बाद वे महिला को गर्भ में लड़की होने की बात बताते और गर्भपात कराने की बात कहते. ये लोग गर्भपात करने के लिए भी तैयार हो जाते थे. यहां से 3 लोग गिरफ्तार किए गए. इन में 10वीं पास सुरेंद्र डाक्टर बन कर गर्भवती की फर्जी जांच करता था. जयपुर के अचरोल में अगस्त 2018 में 2 लोगों को थंब इंप्रेशन मशीन से फर्जी लिंग परीक्षण के नाम पर ठगी करते पकड़ा गया था.
दरअसल, समाज में अभी भी पुरुष प्रधान मानसिकता हावी है. बेटे को वंश बढ़ाने वाला और बेटी को बोझ समझा जाता है. यही कारण है कि लिंग परीक्षण पर सरकारी प्रतिबंध होने के बावजूद लोग बेटे की चाहत में गर्भवती का भ्रूण परीक्षण कराने के रास्ते तलाशते हैं.
इस धंधे में लगे लोग आमजन की इसी सोच का फायदा उठाते हुए अवैध तरीके से लिंग परीक्षण में जुटे हैं. समाज की मानसिकता का फायदा उठा कर कुछ लोगों ने इसे ठगी का धंधा भी बना लिया है. वे फर्जी तरीके से लिंग परीक्षण कर लोगों से ठगी कर रहे हैं.
गर्भ में भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 1996 में देश में पीसीपीएनडीटी एक्ट लागू किया गया था. कोख में कत्ल करने की दिशा में काररवाई करते हुए पीसीपीएनडीटी सेल ने जयपुर में देश का पहला थाना खोला था. राजस्थान के इस मौडल को बाद में कई अन्य राज्यों में भी अपनाया है.
जून 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में कन्या भ्रूण हत्या से जुड़े मामलों में 449 लोगों को सजा हुई. इन में सब से ज्यादा 149 लोगों को राजस्थान में सजा हुई.

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फरवरी 2016 से 19 दिसंबर, 2018 तक नेशनल हेल्थ मिशन के मिशन डायरेक्टर के पद पर कार्यरत रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवीन जैन के निर्देशन में पीसीपीएनडीटी सेल ने 3 साल के दौरन 100 से ज्यादा डिकौय आपरेशन किए. इन मामलों में करीब 50 डाक्टर भी पकडे़ गए.
इस दौरान पीसीपीएनडीटी सेल की टीम ने राजस्थान के अलावा हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में जा कर भी डिकौय औपरेशन किए. आईएएस नवीन जैन का तबादला अब श्रम एवं रोजगार आयुक्त के पद पर हो गया है. अब सीनियर आईएएस डा. समित शर्मा एनएचएम के मिशन डायरेक्टर का कार्यभार संभाल रहे हैं.
राजस्थान सरकार ने बेटियों को बचाने के लिए भ्रूण लिंग परीक्षण पर अंकुश लगाने के लिए मुखबिर योजना भी चलाई है. इस के तहत सफल डिकौय औपरेशन करवाने पर ढाई लाख रुपए तक प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है.
राजस्थान में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर 888 लड़कियां थीं. पीसीपीएनडीटी सेल की ओर से लगातार की गई काररवाई से लिंग परीक्षण की रोकथाम में मदद मिली है और बेटियों को कोख में मारने का सिलसिला कम हुआ है. इस का परिणाम है कि 2017-18 में सैक्स रेशो बढ़ कर 938 पहुंच गया है.

फरेबी चाहत…

लेखक- विजय सोनी

घटना 31 दिसंबर, 2018 की है. 31 दिसंबर होने के कारण इंदौर के शाजापुर क्षेत्र में आधी रात
के समय लोग शराब के नशे में डूब कर नए साल का स्वागत करने में जुटे थे. काशीनगर क्षेत्र के एक मकान से पतिपत्नी के झगड़े की तेज आवाज आ रही थी. वह आवाज सुन कर पड़ोसी डिस्टर्ब होने लगे तो एक पड़ोसी श्याम वर्मा ने कोतवाली में फोन कर झगड़े की सूचना दे दी.

जिस घर से झगड़े की तेज आवाज आ रही थी, वह मकान बलाई महासभा युवा ब्रिगेड के जिला अध्यक्ष और प्रौपर्टी डीलर रहे रमेशचंद्र उर्फ मोनू का था. उस की पत्नी मंजू भी भाजपा की सक्रिय कार्यकत्री थी.
नए साल में लड़ाईझगड़े की संभावना को देखते हुए पुलिस भी अलर्ट थी, इसलिए झगड़े की खबर सुनते ही कुछ ही देर में शाजापुर कोतवाली की मोबाइल वैन मौके पर पहुंच गई. लेकिन यह मामला पतिपत्नी के पारिवारिक झगडे़ का था तथा पतिपत्नी दोनों ही सम्मानित व जानेमाने लोग थे. इसलिए पुलिस दोनों को समझाबुझा कर थाने लौट गई.

करोड़ोें की खूबसूरती..

पुलिस के जाने के बाद पतिपत्नी ने दरवाजा बंद कर लिया, जिस के बाद मकान से झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई. फिर पड़ोसी भी अपनेअपने घरों में चले गए. लेकिन 45 मिनट बाद मोनू लहूलुहान अपने घर से निकला और पड़ोस में रहने वाले एक परिचित को ले कर शाजापुर के जिला अस्पताल पहुंचा.
मोनू के पेट से खून बह रहा था. पूछने पर मोनू ने डाक्टर को बताया कि ज्यादा नशे में होने की वजह से वह गिर गया और चोट लग गई. डाक्टर ने रमेश उर्फ मोनू को अस्पताल में भरती कर लिया. परंतु सुबह रमेश उर्फ मोनू की हालत और बिगड़ जाने के कारण उसे इंदौर के एमवाईएच अस्पताल रेफर कर दिया. उस समय मोनू के पास इतना पैसा भी नहीं था कि उसे इलाज के लिए इंदौर ले जाया जा सके, इसलिए मोनू के दोस्तों ने आपस में चंदा जमा कर कुछ रकम जुटाई और वह मोनू को इंदौर ले गए.

कानून के टप्पेबाजी…

बलाई महासभा के युवा ब्रिगेड के बड़े नेता के घायल हो जाने की बात सुन कर समाज के लोग बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंचने लगे. रमेश के परिवार वाले भी उस के जल्द ठीक होने की कामना करने लगे. परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था. 6 जनवरी की सुबह मोनू की मौत हो गई. रमेश की मौत से मामला एकदम बदल गया.
5 दिन से अस्पताल में मौजूद उस के पिता गंगाराम बेटे की मौत की खबर सुन कर टूट गए. वह रोते हुए बेटे की मौत का आरोप अपनी बहू मंजू पर लगाने लगे. उन का यह आरोप सुन कर अस्पताल के एमएस ने संयोगितागंज थाने में खबर कर दी. सूचना पा कर थाना पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के रमेश का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रेव पार्टी: डांस, ड्रग्स और सैक्स का तड़का

प्रारंभिक पूछताछ में रमेश के पिता गंगाराम व बुआ गीता बलाई ने पुलिस को बताया कि रमेश ने खुद उन्हें बताया था कि उसे उस की पत्नी मंजू ने चाकू मारा है. लेकिन समाज में बदनामी के डर से वह गिर कर चोट लगने की बात कहता रहा.
पुलिस ने उन से मंजू के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मंजू तो घटना के बाद से एक बार भी अपने पति को देखने अस्पताल नहीं आई. वह पति को देखने अस्पताल क्यों नहीं आई, यह बात पुलिस की समझ में नहीं आ रही थी. इस से पुलिस का मंजू पर शक गहरा गया.

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : जेल में सब हो सकता है

संयोगितागंज थाना पुलिस ने अपने यहां जीरो एफआईआर दर्ज कर के डायरी शाजापुर कोतवाली भेज दी. यहां रमेश की हत्या किए जाने की बात सामने आने पर बलाई समाज के लोगों में भारी आक्रोश फैल गया.
समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो कर एसपी शैलेंद्र चौहान से मिले और रमेश की पत्नी मंजू को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. जिस पर एसपी ने बलाई समाज के लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर रमेश का अंतिम संस्कार किया गया.
रमेश की चिता की आग शांत होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी को ले कर लोगों में गुस्से की आग फिर भड़क उठी. चूंकि मंजू भी भाजपा नेत्री थी, इसलिए पुलिस भी जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से मामला उलटा पड़ जाए.
कोतवाली इंसपेक्टर के.एल. दांगी बड़ी ही सावधानी से एकएक कदम बढ़ा रहे थे. वरिष्ठ अधिकारियों से मशविरा करने के बाद उन्होंने मृतक रमेश की पत्नी मंजू को हिरासत में ले लिया. जब उस से रमेश की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने रमेश चंद्र की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

शाजापुर के मध्यमवर्गीय बलाई परिवार में जन्मे रमेशचंद्र उर्फ मोनू की मां का देहांत उस समय हो गया था, जब रमेश बाल्यावस्था में था. मां के बिना रमेश गलत संगत में पड़ गया, जिस से मिली पिता की डांट से नाराज हो कर वह सन 1995 में घर से भाग कर गुजरात के भावनगर चला गया और वहां के एक होटल में नौकरी करने लगा.

गैंगस्टरों का खूनी खेल

वहां उस की मुलाकात मुंबई के एक जैन व्यापारी से हुई. होटल का काम छोड़ कर वह जैन व्यापारी के साथ चला गया. उसी दौरान उस ने ड्राइविंग सीख ली और जैन व्यापारी की कार चलाने लगा. जैन व्यापारी उन दिनों श्वेतांबर जैन संत सुरेशजी महाराज के भक्त थे और अकसर उन की सेवा करने जाया करते थे. इस दौरान रमेश भी अपने सेठ के साथ रहता था.
संयोग से एक रोज सुरेशजी महाराज ने सेठ से उन के ड्राइवर रमेश को कुछ दिन अपने साथ रखने को ले लिया. सेठजी भला अपने गुरुजी की बात कैसे टाल सकते थे. लिहाजा उन्होंने रमेश को महाराज के हवाले कर दिया. सुरेशजी महाराज के संपर्क में आ कर रमेश ने जैन धर्म को नजदीक से जाना.

राजेश साहनी की खुदकुशी : एटीएस कैंपस में दफन है 

धर्म में उस की रुचि देख कर सुरेशजी महाराज ने उसे दीक्षा दी और उस का नाम तरुणजी महाराज रख दिया. इस तरह रमेश की योग्यता और संयम देख कर उसे स्थानक वासी की पदवी दी गई. जिस के बाद वह देश भर में घूमघूम कर धार्मिक प्रवचन देने लगा.
उस के पिता को जब पता चला कि बेटा संत हो गया है तो वह बहुत खुश हुए. धर्म के मामले में असाधारण योग्यता के चलते रमेश ने समाज में काफी सम्मानित स्थान हासिल कर लिया था.
लेकिन उस की लाइफ काफी एक्सीडेंटल निकली. अचानक ही मालूम नहीं उस के मन को क्या आया कि वह त्याग का मार्ग छोड़ कर वापस सांसारिक दुनिया में आ गया. वह अपने घर लौट आया. बेटे के वापस घर लौटने पर पिता खुश थे.

प्रेमिका और पत्नी के बीच मौत का खेल

शाजापुर आ कर रमेश ने प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया. वह ज्ञानी और धार्मिक प्रवृत्ति का था और सत्य के मार्ग पर चलने वाला भी, इसलिए लोग उस पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. देखते ही देखते रमेश का बिजनैस चल निकला, जिस से कुछ ही समय में उस की गिनती समाज और शहर के संपन्न लोगों में होने लगी.
उसी दौरान शहर के एक थाने में पदस्थ सजातीय पुलिसकर्मी की नजर रमेश पर पड़ी. वह रमेश के साथ अपनी बेटी मंजू की शादी करना चाहता था. उस पुलिसकर्मी ने इस बारे में रमेश के पिता से बात की. लड़की सुंदर थी जो रमेश को भी पसंद थी. लिहाजा दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद रमेशचंद्र और मंजू की शादी हो गई.

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश

मंजू खूबसूरत तो थी ही, साथ ही पढ़ीलिखी और समझदार भी थी. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलती रही. इसी बीच मंजू 2 बेटों की मां बन गई. जब रमेश ने बलाई समाज की राजनीति में दखल देना शुरू किया तो अपने दोनों बेटों के बड़े हो जाने के बाद मंजू भी भाजपा से जुड़ कर उभरती नेत्री के रूप में पहचानी जाने लगी.
लेकिन रमेश की जिंदगी ने फिर एक बार करवट ली. समाज की राजनीति में ज्यादा समय देने के कारण उस का अपना बिजनैस एक तरह से ठप हो गया, जिस पर उस ने पहले तो ध्यान नहीं दिया और जब ध्यान दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

धीरेधीरे स्थिति बिगड़ती गई, जिस के चलते कभी समाज को शराब जैसी बुराई से दूर रहने का उपदेश देने वाला जैन स्थानक वासी रमेश खुद शराब की गिरफ्त में आ गया. जिस के चलते रमेश की पहचान एक शराबी के रूप में बन गई.
मंजू को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि उस का पति शराबी भी हो सकता है. लेकिन अब तो यह बात सड़कों पर भी जाहिर हो चुकी थी. इसलिए खुद की सामाजिक पहचान कायम कर चुकी मंजू के लिए यह बात असहनीय थी. उस ने पति के शराब पीने का विरोध किया तो दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा, जिस की आवाज धीरेधीरे उन के घर के बाहर भी गूंजने लगी.
फिर एक बार यह आवाज बाहर आई तो यह रोज का क्रम बन गया. ऐसे में एक तरफ जहां मंजू का परिवार टूट रहा था तो वहीं दूसरी ओर पार्टी में उस की पकड़ मजबूत होती जा रही थी.
दोनों के अहं टकराने लगे, जिस से रमेश और भी ज्यादा शराब पीने लगा. राजनीति में सक्रिय होने के कारण मंजू देर रात तक घर से बाहर रहती थी. ऐसे में जब कभी रमेश शराब पी कर पत्नी के घर वापस आने से पहले लौट आता तो पत्नी के देर से वापस आने पर उस पर उलटेसीधे आरोप लगाकर उस से झगड़ना शुरू कर देता.

प्रेमिका से शादी के लिए मां बाप से खूनी दुश्मनी

अब मंजू को अपना राजनैतिक भविष्य स्वर्णिम दिखाई देने लगा था. उसे दूर तक जाने का रास्ता साफ दिख रहा था, इसलिए उस का वापस लौटना भी संभव नहीं था. पति के विरोध को दरकिनार कर वह राजनीति में और ज्यादा सक्रिय हो गई. हाल ही में संपन्न हुए प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मंजू ने पार्टी के हित में दिनरात मेहनत की.
जाहिर है राजनीति में शामिल कई महिलाओं के अच्छेबुरे किस्से अकसर चर्चा में बने रहते हैं, इसलिए रमेश भी पत्नी पर इसी तरह के आरोप लगाने लगा. वह उस के राजनीति में सक्रिय रहने पर ऐतराज करता था.
इस से दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि वे एक ही छत के नीचे अलगअलग कमरों में रहने लगे. इस से दिन में तो शांति रहती लेकिन रात को रमेश के शराब पी कर आने पर सारी शांति कलह में बदल जाती थी. दोनों में रोजरोज रात में अकसर विवाद होने लगा.

11 दूल्हों को लूटने वाली दुल्हन

31 दिसंबर, 2018 को रात 11 बजे के करीब रमेश ने शराब के नशे में आ कर घर का दरवाजा खटखटाया तो मंजू ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. इस से रमेश को शक हो गया कि मंजू तो यह सोच कर बैठी होगी कि आज साल का आखिरी जश्न होने के कारण मैं रात भर घर वापस नहीं लौटूंगा, इसलिए उस ने किसी और के साथ पार्टी करने की योजना बना ली होगी. मंजू के देर से दरवाजा खोलने पर रमेश को शक हो गया कि मंजू के साथ घर में कोई और है.
दरवाजा खोलते ही वह पत्नी पर उलटेसीधे आरोप लगा कर मारपीट करने लगा. इस से विवाद इतना बढ़ गया कि उस का शोर पड़ोसियों के कानों तक पहुंच गया. उसी समय पड़ोसी श्याम वर्मा ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने आ कर दोनों का मामला सुलझा दिया और वापस लौट गई.
लेकिन पुलिस के जाने के बाद एक बार फिर दोनों में विवाद गहरा गया और इस दौरान मंजू ने मोनू की जेब में हमेशा रखा रहने वाला खटके वाला चाकू निकाल कर उस के पेट में घोंप दिया. चाकू काफी गहरा जा घुसा जिस से वह गंभीर रूप से घायल हो गया. लेकिन शराब के नशे में उसे घाव की गंभीरता का अहसास नहीं हुआ इसलिए वह अपने कमरे में जा कर लेट गया.

अल्लाह के नाम पर बेटी की कुर्बानी

कुछ देर बाद रमेश के पेट में दर्द बढ़ा तो पड़ोस में रहने वाले अपने परिचित के साथ वह अस्पताल गया, जहां से सुबह उसे इंदौर भेज दिया गया. लेकिन वहां भी इलाज के दौरान 6 जनवरी को उस की मौत हो गई.
थानाप्रभारी के.एल. दांगी ने मंजू से पूछताछ के बाद हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गुड़गांव का क्लब डांसर मर्डर केस

इसे कर हाथ तापते हुए सर्दी से बचाव का जतन कर रहे थे.
खुशबू चौक के पास ही सड़क किनारे एक कार खड़ी थी. यह कार कुछ देर पहले ही वहां आई थी. कार में 2 युवक और 2 युवतियां सवार थीं. ये लोग कुछ देर तक कार में बैठे हुए आपस में बात करते रहे.
कुछ देर बाद कार से एक युवक बाहर निकला. उस ने इशारे से कार में सवार एक युवती को बाहर बुलाया. परेशान सी 24-25 साल की वह युवती कार से बाहर निकल आई तो युवक ने उस से कहा, ‘‘प्रियंका, अदालत में बयान बदल कर अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘देखो संदीप, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मैं तुम्हें अब माफ नहीं कर सकती.’’ प्रियंका बोली. उस के सामने खड़ा युवक संदीप था.
प्रियंका की बात सुन कर संदीप को गुस्सा आ गया. वह प्रियंका का हाथ पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम समझती क्यों नहीं हो. तुम्हारे केस की वजह से मेरी जिंदगी खराब हो रही है. मेरा परिवार टूट रहा है.’’
संदीप के तेवर देख कर प्रियंका भी गुस्से में बोली, ‘‘तुम ने यह बात मेरी जिंदगी बरबाद करने से पहले क्यों नहीं सोची थी.’’

नोटिस का जवाब खून से

फिर आंखें तरेर कर प्रियंका ने कहा, ‘‘संदीप, तुम लगातार मेरा शरीर नोचते रहे. तुम ने मुझे कुंवारी मां बना दिया, जिस से मैं आज समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रही. अब तुम मुझ पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे हो. तुम भी कान खोल कर अच्छी तरह सुन लो, मैं केस हरगिज वापस नहीं लूंगी और तुम्हें तुम्हारे कारनामों की सजा दिलवा कर रहूंगी.’’

प्रियंका की बातें सुन कर संदीप का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘आखिरी बार सोच लो, यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा.’’
‘‘अब ठीक होने को बचा ही क्या है. तुम तो पहले ही मेरी जिंदगी खराब कर चुके हो.’’ तमतमाई प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम और क्या कर सकते हो, ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लोगे. इस से ज्यादा तुम कर भी नहीं सकते.’’
‘‘हां, अगर तुम नहीं मानी तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने अपनी जेब से पिस्टल निकाली और प्रियंका के ऊपर कई गोलियां दाग दीं. गोलियां प्रियंका की गरदन, पेट और हाथों में लगीं.
गोलियों की आवाज सुन कर कार में बैठी युवती और दूसरा युवक बाहर निकल आए. युवती ने प्रियंका को संभाला, उस के बदन से खून बह रहा था. वह आखिरी सांसें गिन रही थी.
आसपास अलाव ताप रहे और चाय की चुस्कियां ले रहे लोग गोलियों की आवाज सुन कर कार के पास आने लगे, तो संदीप ने प्रियंका के हाथ से उस का मोबाइल छीना और दूसरे युवक के साथ कार ले कर वहां से भाग गया.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी

कार से उतरी युवती ने उसी समय प्रियंका की बहन को फोन कर घटना की जानकारी दी. इस के बाद उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कुछ देर बाद ही पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मौके पर मौजूद युवती से पूछताछ की.
युवती ने बताया कि वह प्रियंका की सहेली है. पुलिस सड़क पर तड़प रही प्रियंका को अस्पताल ले गई. अस्पताल में डाक्टरों ने प्रियंका को मृत घोषित कर दिया. उसे 5 गोलियां लगी थीं. पुलिस ने पोस्टमार्टम काररवाई के बाद प्रियंका का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.
पुलिस ने प्रियंका की सहेली के बयान लिए. इस के बाद गुड़गांव के डीएलएफ फेज-1 पुलिस थाने में प्रियंका की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

प्रियंका और संदीप कौन थे. संदीप ने प्रियंका को इस तरह सरेआम चौराहे पर गोलियों से क्यों भून दिया. पुलिस ने इस की जांचपड़ताल शुरू की. प्रियंका के परिवारजनों और सहेली द्वारा पुलिस को दिए गए बयानों के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—
हरियाणा के करनाल शहर की रहने वाली प्रियंका कई साल पहले परिवार के साथ गुड़गांव आ गई थी. उस के पिता की सन 2004 में मौत हो गई थी. प्रियंका की करनाल में ही शादी हो गई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उस का तलाक हो गया था. तलाक होने पर प्रियंका अपनी मां के पास आ गई.
घर में कमाने वाला कोई नहीं था. 8 बहनों और एक भाई के परिवार में प्रियंका पांचवें नंबर की थी. परिवार का पेट पालने के लिए प्रियंका ने गुड़गांव में नौकरी तलाशनी शुरू की. वह जहां भी नौकरी मांगने जाती, लोग उस से डिग्री मांगते. डिग्री उस के पास थी नहीं.
प्रियंका के पास भले ही पढ़ाई की कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन वह नाकनक्श से खूबसूरत थी. इस के साथ वह डांस में भी पारंगत थी. फिल्मी गानों पर जब वह अपनी कमर लचका कर ठुमके लगाती तो देखने वालों के दिलों में छुरियां सी चलने लगतीं. प्रियंका की खूबसूरती लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाती थी.
काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो प्रियंका ने नाचगाने से ही रोजीरोटी कमाने की सोची. गुड़गांव में कई सारे पब और डांस क्लब हैं. इन क्लबों में रात को झिलमिलाती रंगीन रोशनी में डांस की महफिलें सजती हैं. प्रियंका ने कोशिश की तो उसे एक क्लब में डांसर की नौकरी मिल गई.

शनि के उपासक दाती महाराज पर शनि की कुदृष्टि

नौकरी मिल गई तो प्रियंका के परिवार को भी घर खर्च के लिए एक सहारा मिल गया. प्रियंका अपनी नौकरी से संतुष्ट थी. वह रोजाना शाम को तय समय पर क्लब जाती. मेकअप करने के बाद डांस फ्लोर पर जाने के लिए रंगबिरंगी ड्रैस पहन कर तैयार होती. फिर महफिल सजने पर फिल्मी गानों की धुन पर फ्लोर पर डांस करती.
डांस क्लब और पब में सजने वाली महफिलें रात गहराने के साथ जवान होती जाती हैं. इन महफिलों में आने वाले ज्यादातर ग्राहक शराब के नशे में डांसर की अदाओं और मादकता को निहारते हैं और छूनाछेड़ना भी चाहते हैं.
प्रियंका की मादक अदाएं ग्राहकों को लुभाती थीं. उस की अदाओं पर कई रसिया नोट भी लुटाते थे. प्रियंका के ठुमके लगाने की अदा कई मनचलों और रसिक लोगों को इतनी पसंद आती थी कि वे उस के दीदार करने के लिए रोजाना क्लब में आते थे.
क्लब में आने वाले कई युवा महिला डांसरों को ललचाई नजरों से देखते थे. वे अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए ऐसी डांसरों को नोटों की झलक दिखा कर आमंत्रण देते थे. लेकिन प्रियंका ऐसी लड़की नहीं थी. वह ऐसे मनचलों को मुसकरा कर पीछे धकेल देती थी. करीब आधी रात बाद महफिल सिमटती तो प्रियंका क्लब से अपने घर जाती थी.

हनीट्रैप में शामिल ‘फ्रीडम 251’ कंपनी का मालिक

प्रियंका जवान थी. क्लब में उस के डांस की मादक अदाओं पर सैकड़ों युवा मरते थे. इन में कई ऐसे नौजवान भी थे, जो उस से प्रेम निवेदन करते थे. हालांकि प्रियंका ने कभी ऐसे लोगों को तवज्जो नहीं दी.
आमतौर पर नाचगाने के पेशे को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता. फिर प्रियंका तो क्लब में डांसर थी. अपनी मादक अदाएं दिखा कर डांस करना उस की मजबूरी थी. प्रियंका के इस पेशे से उस के परिवार वाले खुश नहीं थे. लेकिन वह क्या करती. परिवार का पेट तो पालना ही था. उस के पास कोई दूसरा हुनर होता तो शायद उसे क्लब में डांसर की नौकरी नहीं करनी पड़ती.
उसी डांस क्लब में संदीप भी काम करता था. वह वहां बाउंसर था. उस का काम ऐसे ग्राहकों को काबू करना था, जो क्लब में नशे की हालत में गलत हरकतें करते या डांसरों को परेशान करते थे. ऐसे ग्राहकों को संदीप क्लब से बाहर का रास्ता दिखा देता था.

एकदो बार ऐसा हुआ भी, जब किसी ग्राहक ने फ्लोर पर डांस कर रही प्रियंका पर अश्लील फब्तियां कस दीं या उस से छेड़छाड़ करने की कोशिश की तब संदीप ने प्रियंका को बचाया था. 1-2 बार मनचलों ने प्रियंका को आधी रात के समय क्लब से घर जाते वक्त रोकने की कोशिश की थी, तब भी संदीप ने उसे सुरक्षा दी थी.
ऐसे में प्रियंका उसे अपना हमदर्द मानने लगी. यह हमदर्दी कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. संदीप मजबूत कदकाठी का हैंडसम जवान था. वह भी प्रियंका की डांस करने की अदाओं पर फिदा था.
संदीप फरीदाबाद के तिगांव का रहने वाला था और शादीशुदा था. संदीप ने हमदर्द बन कर प्रियंका से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. प्रियंका को संदीप से सहारा और सुरक्षा मिल रही थी. इस का कारण था कि डांसर के पेशे के कारण प्रियंका को अपने परिवार का पूरा प्यार नहीं मिल रहा था.
उसे संदीप की आंखों में प्यार का ज्वार नजर आया तो वह भी नजदीक आती चली गई. संदीप ने खुद के शादीशुदा होने की बात प्रियंका को नहीं बताई थी. प्रियंका उस पर भरोसा करने लगी. प्यार बढ़ने लगा तो संदीप ने प्रियंका को शादी करने का आश्वासन दिया.

बेवफाई रास न आई

प्रियंका को भी एक सहारे की जरूरत थी. पेशे के हिसाब से भी और शारीरिक जरूरत के हिसाब से भी. इसी प्यार और विश्वास के भरोसे प्रियंका कब उस के आगोश में समा गई, उसे याद नहीं. लिवइन पार्टनरशिप में रहते हुए संदीप समयसमय पर प्रियंका से संबंध बनाता रहा. इस का नतीजा यह हुआ कि प्रियंका गर्भवती हो गई.
गर्भ ठहरने पर प्रियंका ने संदीप पर जल्द शादी करने का दबाव डाला, लेकिन संदीप बारबार उसे टालता रहा. प्रियंका जब भी उस से शादी की बात करती, तो वह जल्दी ही अपने परिवार वालों को मनाने की बात कहता.
संदीप की बारबार की टालमटोल से प्रियंका को शक होने लगा. उसे जब पता चला कि वह शादीशुदा है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. यह पता चलने पर प्रियंका को बड़ा झटका लगा.
सच सामने आने पर प्रियंका ने संदीप से बात की. संदीप फिर उसे झांसा देता रहा. उस ने कहा कि वह पत्नी को तलाक दे कर जल्दी ही उस से शादी कर लेगा. कुछ दिन बीत गए. प्रियंका दुलहन बनने का इंतजार करती रही. इस बीच संदीप उस का शारीरिक शोषण करता रहा.

तंत्रमंत्र के चक्कर में गई अनीता की जान

बारबार वादा करने के बाद भी संदीप ने जब प्रियंका से शादी करने की कोई पहल नहीं की तो वह समझ गई कि संदीप केवल उस के बदन से खेलना चाहता है. उस से जब पूरी तरह भरोसा टूट गया तो प्रियंका ने सन 2017 में गुड़गांव के सेक्टर-50 स्थित महिला थाने में संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज करा दिया.
जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने संदीप को गिरफ्तार कर लिया. कई महीने जेल में रहने के बाद जुलाई 2018 में वह जमानत पर जेल से बाहर आ गया. इस बीच पुलिस ने संदीप के खिलाफ अदालत में चालान पेश कर दिया था.
वहीं इस दौरान प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. यह बच्चा अब करीब 9 महीने का है. प्रियंका ने बेटे की देखभाल के लिए एक नौकरानी लगा रखी थी.

संदीप ने जेल से बाहर आने के बाद प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया. दोनों की मुलाकात हुई. वह प्रियंका को क्लब की डांसर से बाहर निकाल कर अपने दिल की रानी बनाने और बच्चे को अपना कर पिता का नाम देने की बात कहने लगा. प्रियंका की गलती यह रही कि वह फिर से संदीप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई.
इस का नतीजा यह हुआ कि संदीप उस के घर भी आने लगा. वह प्रियंका की मां और बहनों से भी मिलता रहता था. एकदो बार संदीप ने प्रियंका के घर वालों को भी यह विश्वास दिलाया कि उस से गलती हो गई थी, लेकिन अब वह जल्दी ही प्रियंका से शादी कर लेगा.
संदीप की बेवफाई से टूटने के बाद प्रियंका अकेली रह गई थी. संदीप के लगातार आनेजाने और मुलाकातें करने से उन का इश्क दोबारा परवान चढ़ने लगा. वह पुरानी बातों को भूल कर फिर से संदीप की बांहों में झूल गई. दोनों के बीच दोबारा आंतरिक संबंध कायम हो गए. दोनों फिर से साथ रहने लगे.
प्रियंका इस बात से अनजान थी कि संदीप के मन में क्या है. वह तो उसे अपना प्रेमी और जीवनसाथी मानने लगी थी, इसीलिए वह अपना सब कुछ उसे सौंपती रही.

मौत के रहस्य में लिपट गई अर्पिता तिवारी

दूसरी ओर संदीप ने चाल चली. वह प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा कर उस का उपयोग अदालत में करना चाहता था. चूंकि प्रियंका ने ही संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस
पुलिस में दर्ज कराया था, इसलिए अदालत में उस के बयान ही सब से महत्त्वपूर्ण थे. संदीप प्रियंका से बयान बदलवा कर दुष्कर्म के केस से बरी होना चाहता था, इसीलिए वह प्रियंका और उस के परिवार वालों से बयान बदलने के लिए बारबार मिलता रहता था.

17 जनवरी की शाम को प्रियंका अपनी डांसर सहेली के साथ दिल्ली के हौजखास स्थित एक क्लब में गई थी. इस दौरान संदीप ने उसे फोन किया. संदीप ने उस से मिलने की इच्छा जताते हुए गुड़गांव आने को कहा. प्रियंका को फोन करने के बाद संदीप गुड़गांव में उस के घर गया. वहां वह प्रियंका की मां से मिला.
संदीप ने प्रियंका की मां को बताया कि 19 जनवरी को अदालत में दुष्कर्म मामले की पेशी है. उस ने प्रियंका की मां से कहा कि वह प्रियंका को अदालत में बयान बदलने के लिए समझाएं. प्रियंका की मां ने संदीप से कहा कि वह इस बारे में प्रियंका से बात करेगी और उसे समझा देगी. वैसे प्रियंका की मां भी संदीप के पक्ष में गवाही देने को राजी हो गई थी.

इधर संदीप के कहने पर प्रियंका अपनी सहेली के साथ दिल्ली से टैक्सी ले कर गुड़गांव आ गई. प्रियंका सहेली के साथ नाथूपुर स्थित अपने किराए के घर पहुंची तो वहां उसे संदीप मिल गया. संदीप के साथ उस का एक दोस्त भी था. उस दोस्त को प्रियंका नहीं जानती थी. संदीप और उस का दोस्त कार से वहां आए थे. उस समय तक आधी रात हो गई थी. संदीप कुछ देर प्रियंका से इधरउधर की बातें करता रहा.
रात करीब 2 बजे संदीप ने प्रियंका से कहा कि चलो, आसपास घूम कर आते हैं. प्रियंका को रात 2 बजे घूमने जाना कोई अटपटा नहीं लगा. क्योंकि वह रात की जिंदगी से खूब अच्छी तरह परिचित थी. वह खुद भी क्लब से आधी रात बाद ही घर आती थी. वह संदीप के साथ आधी रात बाद से तड़के तक कई बार घूम चुकी थी. इसलिए उस ने संदीप के घूमने चलने की बात कहने पर न तो कोई अचंभा किया और न ही कोई नाराजगी जताई.

प्रियंका के राजी होने पर संदीप ने उस की सहेली को भी साथ चलने को कहा. सहेली को साथ जाने से कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए संदीप और उस के दोस्त के साथ प्रियंका और उस की सहेली कार से चल दिए.
वे चारों लोग रात को कार से गुड़गांव की सड़कों पर इधरउधर घूमते रहे. इस दौरान संदीप प्रियंका से दुष्कर्म केस के बारे में बात करता रहा. वह प्रियंका से अगले दिन अदालत की पेशी में बयान बदलने पर जोर दे रहा था. प्रियंका उस की बात सुन रही थी, लेकिन साफतौर पर उस ने उसे कोई जवाब नहीं दिया था.
इस बीच संदीप एक जगह रास्ते में रुका, वहां चारों ने मोमोज खाए. इस के बाद वे कार में सवार हो कर फिर घूमने लगे. कार में संदीप और प्रियंका के बीच अदालत में बयान देने को ले कर ही बातचीत चलती रही. बीचबीच में संदीप के दोस्त ने प्रियंका को समझा कर दबाव बनाने का प्रयास किया, लेकिन प्रियंका कोई फैसला नहीं ले पा रही थी. वह संदीप के लगातार दबाव बनाने से परेशान सी हो गई.

प्रियंका को परेशान देख कर संदीप ने एक बार कार फिर रोकी. इस बार चारों लोगों ने स्नैक्स खाए. कुछ देर बाद वे वहां से कार ले कर चल दिए और फिर सड़कों पर घूमने लगे. रास्ते में संदीप ने जब फिर वही बात दोहराई तो प्रियंका से उस की कहासुनी हो गई.
इस के कुछ देर बाद सुबह करीब 6-सवा 6 बजे वे लोग कार से गुड़गांव में फरीदाबाद रोड पर स्थित खुशबू चौक पर आ गए. खुशबू चौक पर संदीप ने दुष्कर्म केस की बात करते हुए प्रियंका से गालीगलौज की और उसे गोलियां मार दीं.
मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने संदीप की तलाश में तिगांव गांव स्थित उस के घर और कई संभावित जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का पता नहीं चला.
प्रियंका की हत्या के करीब 16-17 घंटे बाद उस की बहन को वाट्सऐप काल कर धमकाया गया. प्रियंका की बहन का आरोप है कि संदीप ने अपने दोस्त के जरिए उसे धमका कर हत्या के मामले में मुंह नहीं खोलने की नसीहत दी. प्रियंका के परिवार ने पुलिस को इस की जानकारी दी. इस के बाद भी धमकी भरे मैसेज भेजे गए.
कथा लिखे जाने तक संदीप पुलिस की पकड़ से बाहर था. पुलिस उस की और उस के दोस्त की तलाश में जुटी थी.

तांत्रिकों के जाल में दिल्ली

बहरहाल, प्रियंका की जान एक डांसर की तरह घूमते हुए ही चली गई. वह डांस कर के लोगों का मन बहलाती थी और संदीप उस के शरीर से खेल कर अपना मन बहलाता रहा. दुष्कर्म के केस से बरी होने के लिए संदीप ने अपने हाथ प्रियंका के खून से रंग लिए.
संदीप के अपराधों की सजा उसे कानून देगा, लेकिन विश्वास का कत्ल होने से 9 महीने के मासूम की जिंदगी भी संकट में पड़ गई है. इस मासूम को न तो मां का आंचल मिला और न ही बाप का दुलार. इस मासूम को तो बाप का नाम भी नहीं मिला. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. कथा में मृतका का नाम बदला हुआ है.

करोड़ोें की खूबसूरती..

अजमेर विद्युत वितरण निगम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन कई दिनों से परेशान थीं. वह कर्मचारियों के वेतन, कैश वाउचर, चैक आदि का हिसाब रखती थीं. उन की परेशानी का कारण यह था कि कई वाउचर नहीं मिल रहे थे.

इस के अलावा कर्मचारियों की वेतन स्लिप और उन के बैंक खातों में जमा हो रही राशि में भी अंतर आ रहा था. शीतल की नजर में कई ऐसे बैंक खाते भी आए, जिन में निगम की ओर से वेतन जमा कराया जा रहा था. लेकिन उन खाताधारक कर्मचारियों का कोई रिकौर्ड नहीं मिल रहा था. शीतल जैन इस औफिस में कुछ समय पहले ही आई थीं.
कर्मचारियों की हाजिरी देख कर उन का मासिक वेतन बनाना, बिल वाउचर और कैश का हिसाबकिताब रखना उन के लिए कोई नई बात नहीं थी. न ही पहले इस काम में उन से कोई गड़बड़ हुई थी, लेकिन उन्हें यहां का काम समझ नहीं आ रहा था.
वह रोजाना कर्मचारियों का रजिस्टर ले कर बैठतीं और उन के वेतन के हिसाबकिताब देखतीं, उन्हें हर जगह भारी गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी वह यह नहीं समझ पाईं कि यह गड़बडि़यां किस ने, कैसे और क्यों कीं.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

अलबत्ता यह बात उन की समझ में आ गई थी कि राजस्थान सरकार की अजमेर बिजली वितरण कंपनी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा, बल्कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही हैं. यह गड़बड़ी किस स्तर पर हो रही हैं, यह पता जांच के बाद ही चल सकता था.
शीतल ने इस गड़बड़ी की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देने का फैसला किया. यह दिसंबर 2018 की बात है.
एक दिन उन्होंने एक सहायक लेखाधिकारी के साथ अजमेर बिजली वितरण निगम यानी अजमेर डिस्काम के प्रबंध निदेशक बी.एम. भामू और डायरैक्टर फाइनैंस एस.एम. माथुर के पास पहुंच कर उन्हें इस बारे में बताया. साथ ही उन्हें कुछ सबूत भी दे दिए. सरकारी रकम में गड़बड़ी के सबूत देख कर भामू साहब और माथुर साहब को यकीन हो गया कि अजमेर डिस्काम में बड़ा घपला हो रहा है.

सपा नेत्री की गहरी चाल

डायरेक्टर फाइनैंस माथुर ने 3 अधिकारियों की जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी में मुख्य लेखाधिकारी एम.के. जैन, बी.एल. शर्मा और सहायक लेखाधिकारी मनीष मेठानी को शामिल किया गया. तीनों अधिकारियों ने अजमेर डिस्काम मुख्यालय और हाथीभाटा पावर हाउस कार्यालय में कई दिनों तक जांचपड़ताल की.

प्रारंभिक जांच में पता चला कि अजमेर डिस्काम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी अन्नपूर्णा सैन ने फरजी दस्तावेज तैयार कर कर्मचारियों के वेतन और बिलों में 96 लाख 36 हजार रुपए का गबन किया है. विस्तृत औडिट में यह राशि बढ़ने की आशंका जताई गई.
गबन का मामला सामने आने पर 17 दिसंबर, 2018 को अन्नपूर्णा सैन को निलंबित कर दिया गया. निलंबन काल में उस का स्थानांतरण नागौर स्थित मुख्यालय में कर दिया गया. इसी के साथ अजमेर डिस्काम प्रशासन ने अन्नपूर्णा के खिलाफ अजमेर के क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

अरबों की गुड़िया: रेडियो एक्टिव डांसिंग डौल

डिस्काम कर्मचारियों का वेतन सीधे उन के बैंक खातों में जाता है. इस के लिए अजमेर डिस्काम की ओर से हर महीने भारतीय स्टेट बैंक की केसरगंज शाखा में कर्मचारियों के नाम, उन के वेतन बिल की राशि और बैंक खाता संख्या की सूची औनलाइन भेजी जाती है. इसी से कर्मचारियों को तनख्वाह मिलती थी.
प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने रोकडि़या के पद पर रहते हुए 378 कर्मचारियों के वेतन बिलों में काटछांट की थी. उस ने डिस्काम की ओर से अपने परिवार और रिश्तेदारों के बैंक खातों के नंबर भी बैंक को भेजी जाने वाली सूची में शामिल कर दिए थे.
वह कर्मचारियों की संख्या और तनख्वाह की राशि बढ़ा देती थी. बैंक डिस्काम की वेतन शीट के आधार पर खातों में राशि डाल देती थी. इस तरह फरजीवाड़े से डिस्काम कर्मचारियों के वेतन की रकम अन्नपूर्णा के जानकारों के बैंक खातों में पहुंच रही थी. अन्नपूर्णा इस गबन का खुलासा होने से पहले 14 नवंबर से ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर छुट्टी पर चल रही थी. दरअसल, अन्नपूर्णा को अपना भांडा फूटने का अहसास नवंबर में ही हो गया था, इसलिए वह छुट्टी पर चली गई थी.

आगे बढ़ने से पहले उस अन्नपूर्णा की कहानी जानना जरूरी है, जिस ने अपनी खूबसूरती का जाल बिछा कर अजमेर डिस्काम में सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का गबन किया. अन्नपूर्णा की खूबसूरती पर फिदा अधिकारी आंखें मूंदे रहे. किसी अधिकारी ने कभी उस के तैयार किए कागजातों को जांचने की जरूरत महसूस नहीं की.

प्यार का खौफनाक पहलू

अजमेर शहर के चंदवरदाई नगर, रामगंज के रहने वाले वीरेंद्र सैन की बेटी अन्नपूर्णा की शादी अजमेर जिले के किशनगढ़ शहर में साधारण सैलून चलाने वाले युवक से हुई थी. अन्नपूर्णा पढ़ीलिखी थी. वह हाईप्रोफाइल तरीके से जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उस के पति के सैलून से इतनी आमदनी नहीं थी कि उस के सपने साकार हो पाते.
फलस्वरूप घर में विवाद होने लगे. इस से उन के दांपत्य जीवन में दरार आने लगी. विवाद बढ़ा तो अन्नपूर्णा ने तलाक लेने का फैसला कर लिया. बाद में पतिपत्नी का तलाक हो गया. अन्नपूर्णा अपने पिता के घर आ गई. उस का भाई गौरव सैन रेलवे में लोको पायलट है.
बाद में अन्नपूर्णा ने परित्यक्ता कोटे से अजमेर बिजली वितरण निगम में 2012 में नौकरी हासिल कर ली. उस की पहली नियुक्ति कौमर्शियल असिस्टेंट के पद पर हुई. उसे अजमेर डिस्काम मुख्यालय में रोकडि़या और संस्थापन शाखा में रोकडि़या का काम सौंपा गया.
अन्नपूर्णा खूबसूरत थी, जब वह नौकरी में आई, तो बिलकुल भोलीभाली नजर आती थी. उस समय वह साड़ी पहनती थी और साधारण बन कर रहती थी.
डिस्काम में सर्विस रिकौर्ड में लगी अन्नपूर्णा की पासपोर्ट साइज फोटो उस की मासूमियत बयां करती थी. लेकिन वह ऐसी थी नहीं. वह महत्त्वाकांक्षी तो थी ही, सपने कैसे पूरे हो सकते हैं, यह बात भी जान गई थी.

डिस्काम की नौकरी करते हुए उसे अपने सपने पूरे होते नजर आने लगे. सपनों को पंख लगे, तो अन्नपूर्णा ने दूसरी शादी कर ली. उस की दूसरी शादी सुमित चौधरी से हुई. सुमित गुड़गांव में प्राइवेट नौकरी करता है. अन्नपूर्णा के एक दिव्यांग बेटा और एक बेटी है.
सरकारी नौकरी करते हुए अपने सपने पूरे करने के लिए उस ने अपनी खूबसूरती का जाल फैलाना शुरू किया. चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही, मेकअप करने के बाद वह मनचलों के दिलों पर भी गाज गिराने की क्षमता रखती थी.
अन्नपूर्णा की खूबसूरती से प्रभावित कई अधिकारी और कर्मचारी उस की ओर आकर्षित होने लगे. वह अधिकारियों और कर्मचारियों से नजदीकियां बढ़ाती रही. इसी के साथ वह अपने सपनों की उड़ान भरने के तरीके भी सोचती रही.
अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने के लिए सीधे तौर पर 4 सहायक लेखाधिकारी थे और इन सहायक लेखाधिकारियों पर लेखाधिकारी, फिर मुख्य लेखाधिकारी और इन से भी बड़े अफसर थे. लेकिन किसी अधिकारी ने कभी अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की. अधिकारी उस के बनाए वेतन बिलों, बिल, वाउचर, चैक और रोकड़ के हिसाब पर आंख बंद कर के हस्ताक्षर कर देते थे.

परफेक्ट षड्यंत्र

अन्नपूर्णा ने इसी का फायदा उठाया. जब उस ने देखा कि कोई अधिकारी उस के बनाए कागजातों की जांच नहीं करता, तो उस ने अप्रैल 2017 से अजमेर डिस्काम के साथ गबन का खेल शुरू किया. यह सिलसिला अक्टूबर 2018 तक चलता रहा.
इस बीच, अन्नपूर्णा ने मुंबई में आयोजित प्रतियोगिता में मिसेज राजस्थान-2017 और मिसेज इंडिया मोस्ट एंटरटेनिंग-2017 का खिताब हासिल किया. यह प्रतियोगिता 2017 में 26 से 30 जून तक मुंबई के मड आइलैंड स्थित एक रिसोर्ट में हुई थी. इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में पूरे देश से करीब 200 प्रतियोगी पहुंचे थे. इन में राजस्थान की 5 महिलाएं भी शामिल थीं.
प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में फिल्म अभिनेता राज बब्बर, जयाप्रदा, टीवी कलाकार युवराज, किश्वर, पूनम झंवर व जय मदन आदि शामिल थे. राष्ट्रीय नाई महासभा ने अन्नपूर्णा की इस उपलब्धि को उल्लेखनीय बताया था. अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन नाई महासभा के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

मिसेज राजस्थान का ताज पहनने के बाद अन्नपूर्णा का अपने औफिस में रुतबा और भी बढ़ गया था. उस की खूबसूरती की चर्चाएं भी होने लगी थीं. इसी खूबसूरती की चमक दिखा कर वह अधिकारियों के नजदीक बनी रही और डिस्काम को चपत लगाती रही. अफसरों की चहेती होने के कारण वह अपनी मनमर्जी से दफ्तर आती और जाती थी. वह छुट्टियां ले कर पति के पास गुड़गांव भी जाती रहती थी.
अनापशनाप पैसा आने लगा, तो वह उसी तरह से खर्च भी करने लगी. उस के फैशन स्टाइल और रहनसहन के तौरतरीके बदल गए. वह अपने पति से मिलने के लिए अजमेर से हवाई जहाज से गुड़गांव जाने लगी. वह मौडलिंग करने के प्रयास में भी जुटी हुई थी. इस के लिए वह हवाई जहाज से मुंबई और दिल्ली भी आतीजाती थी. वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती थी.
गबन की राशि से अन्नपूर्णा ने होंडा सिटी जैसी महंगी गाड़ी खरीदी. उस ने कुछ जमीनों में भी निवेश किया. कहा जाता है कि उस ने अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की मोटी राशि भी चुकाई. परिवार के विवाह में भी उस ने काफी पैसा खर्च किया.

बेरोजगारी ने बनाया पत्नी और बच्चों का कातिल
अन्नपूर्णा ने कर्मचारी नेता और सेवानिवृत्त लेखाधिकारी रामवतार अग्रवाल के साथ मिल कर अजमेर में स्टीफन चौराहे पर ब्यूटी सैलून भी खोला था. उस ने अग्रवाल को काफी आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया. वह अग्रवाल के एटीएम कार्ड से खरीदारी करती थी. आपसी विवादों के कारण बाद में यह सैलून बंद हो गया.
इस के बाद अन्नपूर्णा ने अमित वर्मा नामक युवक के साथ मिल कर अजमेर के पंचशील में ‘द रिपेयर’ नाम से दूसरा सैलून खोला. वह अमित के साथ महंगी कार में घूमती थी. गबन का मामला सामने के बाद जब से अन्नपूर्णा गायब हुई, तब से यह सैलून भी बंद है.

अन्नपूर्णा अजमेर डिस्काम के कर्मचारियों की संस्था राजस्थान राज्य विद्युत वितरण सहकारी बचत एवं साख समिति लिमिटेड की कोषाध्यक्ष बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने अगस्त 2018 में सोसायटी के डायरेक्टर पद का चुनाव लड़ा. इस में वह जीत भी गई थी, लेकिन किसी भी पैनल का स्पष्ट बहुमत नहीं आने से वह कोषाध्यक्ष नहीं बन सकी थी.
लगभग डेढ़ हजार कर्मचारियों की इस सोसायटी का सालाना टर्नओवर करीब 60 करोड़ रुपए है. गबन का मामला सामने आने के बाद सोसायटी से जुड़े कर्मचारी इस बात को ले कर संतोष जता रहे हैं कि वे अन्नपूर्णा के कारनामे से बच गए. संभव था कि इस सोसायटी में भी हेराफेरी हो जाती.
अन्नपूर्णा ने इस सोसायटी से 6 लाख रुपए का हाउसिंग लोन भी लिया था. इस में से अभी 4 लाख रुपए से ज्यादा बकाया है. सोसायटी ने अब अन्नपूर्णा के नाम से उस के घर नोटिस भेज कर बकाया राशि जमा कराने को कहा है.

खाकी वरदी वाले डकैत

अजमेर डिस्काम प्रशासन ने विस्तार से जांच कराई, तो अधिकारी हैरान रह गए. जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2018 तक लगभग 2 करोड़ 28 लाख रुपए का गबन किया था. उस ने गबन की यह राशि करीब 65 संदिग्ध बैंक खातों में जमा करवाई थी.
डिस्काम के अधिकारियों ने बैंक से इन खाताधारकों की जानकारी ली है. इन में अधिकांश खाताधारक राजस्थान के और कुछ मध्य प्रदेश के हैं. पुलिस को इन खातों की सूची भी सौंपी गई है.
जांच में पता चला कि अन्नपूर्णा सैन ने 2017 के अप्रैल महीने में सब से पहले 30 हजार रुपए का गबन किया. उस ने मई में 2 लाख 49 हजार, जून में 11 लाख 35 हजार, जुलाई में 7 लाख 80 हजार, अगस्त में 25 लाख 63 हजार, सितंबर में 33 लाख 46 हजार, नवंबर में 7 लाख 68 हजार और दिसंबर में 9 लाख 21 हजार रुपए की हेराफेरी की.
अक्टूबर 2017 में कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई. वर्ष 2018 के जनवरी महीने में उस ने 15 लाख 71 हजार, फरवरी में 9 लाख 43 हजार, मार्च में 12 लाख 41 हजार, अप्रैल में 9 लाख 79 हजार, मई में 6 लाख 11 हजार, जून में 11 लाख 16 हजार, जुलाई में 16 लाख 18 हजार, अगस्त में 6 लाख 70 हजार, सितंबर में 20 लाख 88 हजार और अक्टूबर में 15 लाख 30 हजार रुपए का गबन किया.

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

अन्नपूर्णा का तबादला 27 जून, 2018 को पंचशील स्थित अजमेर डिस्काम मुख्यालय से हाथीभाटा में अधीक्षण अभियंता कार्यालय में हो गया था. अधीक्षण अभियंता ने उसे अजमेर शहर सर्किल में रोकडि़या के पद पर लगा दिया. हाथीभाटा में भी उस ने 4 महीने गबन किया. इस बीच डिस्काम ने उसे पदोन्नति दे कर सहायक प्रशासनिक अधिकारी बना दिया.
इधर, पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद 13 जनवरी 2019 को अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन और मामा नरेश कुमार सैन को सह आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.
मामा नरेश अजमेर में न्यू कालोनी सुभाष नगर का रहने वाला है. अन्नपूर्णा ने अपने पिता के खाते में 52 लाख 78 हजार 447 रुपए फरजी तरीके से जमा कराए थे. जबकि मामा नरेश के खाते में 2 लाख 73 हजार 336 रुपए जमा करवाए गए थे.

यह सारी राशि इन्होंने समयसमय पर पहले ही निकलवा ली थी. पुलिस ने संबंधित बैंकों से इन के खातों में हुए लेनदेन का ब्यौरा हासिल किया है. यह भी जानकारी जुटाई जा रही है कि इन आरोपियों के किसी अन्य बैंक में तो खाते नहीं हैं. अदालत ने दोनों आरोपियों को अगले दिन न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.
अजमेर डिस्काम प्रशासन की ओर से कराई गई विस्तृत औडिट की रिपोर्ट आने के बाद 17 जनवरी को लेखा विभाग से जुड़े 16 अधिकारियों और कर्मचारियों को चार्जशीट थमा दी गई.
डिस्काम की सचिव प्रशासन नेहा शर्मा ने पंचशील स्थित मुख्यालय में अन्नपूर्णा सैन, वरिष्ठ लेखा अधिकारी जितेंद्र मकवाना, लेखा अधिकारी सुरभि पारीक, अशोक तिवाड़ी, सहायक लेखाधिकारी पल्लवी मीणा, तृप्ति तुनगरिया, नीता कृष्णानी, मिंटू जोधा, कनिष्ठ लेखाकार आशीष शर्मा, चंद्रप्रकाश, कीर्ति वर्मा और हाथीभाटा पावर हाउस में पवन कुमार शर्मा, आर.सी. पारीक, रजनी यादव, स्वाति अग्रवाल और शीतल जैन को आरोपपत्र दिए गए हैं.
गबन को उजागर करने वाली सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन को भी डिस्काम प्रबंधन ने काम में अनदेखी का दोषी मान कर आरोप पत्र दिया है. प्रबंधन का कहना है कि एक निश्चित अवधि तक शीतल जैन की ओर से जांच नहीं की गई.

बेगम बनने की चाह में

अजमेर डिस्काम के एक कर्मचारी की मौत भी अन्नपूर्णा के गबन के मामले से जुड़ी होने की चर्चा है. इसी साल जनवरी की 13 तारीख को डिस्काम कर्मचारी प्रशांत की लाश आनासागर झील में तैरती मिली थी. उस समय प्रशांत की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हुए थे. अन्नपूर्णा के गबन में उस के पिता और मामा की गिरफ्तारी भी इसी दिन हुई थी.
बाद में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने प्रशांत के खाते में 3 लाख रुपए ट्रांसफर किए थे. प्रशांत की तनख्वाह 38 हजार 400 रुपए थी. अन्नपूर्णा ने उस के वेतन के शुरू में 3 का अंक और जोड़ दिया था. इस से एक बार प्रशांत के खाते में वेतन के रूप में 3 लाख 38 हजार 400 रुपए आ गए थे.
प्रशांत ने इस बारे में अन्नपूर्णा से एक बार पूछा था, तो उस ने बाद में बताने की कह कर उसे टाल दिया था. बाद में प्रशांत ने वह पैसे दूसरे काम में इस्तेमाल कर लिए. गबन की जांच होने पर प्रशांत के खाते में भी ज्यादा राशि जमा होने की बात सामने आई, तो वह परेशान हो गया.
माना जा रहा है कि अन्नपूर्णा के पिता और मामा की गिरफ्तारी से वह डिप्रेशन में आ गया और उस ने आनासागर झील में कूद कर जान दे दी. हालांकि प्रशांत की मौत के कारणों का खुलासा नहीं हुआ.

पुलिस ने गबन की आरोपी अन्नपूर्णा को गिरफ्तार करने के लिए बारबार कई जगह दबिश दी, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस की गिरफ्त से बाहर थी. डिस्काम प्रशासन की ओर से अन्नपूर्णा को नौकरी से बर्खास्त करने की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.
बहरहाल, अन्नपूर्णा को पुलिस देरसवेर गिरफ्तार कर ही लेगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बिजली निगम की सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की गबन की राशि की वसूली कैसे होगी? अन्नपूर्णा ने जिन खातों में गबन की राशि जमा कराई, उन में अब बहुत थोड़ाथोड़ा पैसा ही बाकी है. इन खातों से अधिकांश पैसा निकाला जा चुका है. यह पैसा किस ने निकाला, यह पुलिस की जांच का विषय है.
बैंक व वित्तीय मामलों के जानकार विधिवेत्ताओं का कहना है कि डिस्काम कानूनी रूप से गबन की राशि अन्नपूर्णा की व्यक्तिगत नामित संपत्तियों से ही वसूल सकता है. इस के अलावा उस की नौकरी के दौरान कटे जीपीएफ व अन्य जमा स्कीमों से भी रकम वसूली जा सकती है, लेकिन अन्नपूर्णा की नौकरी केवल 6-7 साल की है. इस अवधि में उस की जमा राशियां 10 लाख रुपए से कम होंगी.

बेरहम अस्पतालों का खौफनाक सच

पुलिस अगर गबन की राशि का उपयोग करने वाले उस के रिश्तेदारों व अन्य परिचितों के खिलाफ सख्त काररवाई कर अदालत में मामला पेश करे, तो उन से भी वसूली की काररवाई हो सकती है.
अजमेर डिस्काम प्रबंधन अभी यह जांच कर रहा है कि सिस्टम में लूपहोल कहां रही, जिस से गबन का मौका मिला. साथ ही सैलरी सिस्टम में भी बदलाव किया जा रहा है. अब डीओआईटी द्वारा तैयार सौफ्टवेयर लागू किया जाएगा. डिस्काम में स्पैशल औडिट भी कराई जाएगी.

कानून के टप्पेबाजी…

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र  

पैट्रोलपंप मालिक संजय पाल जब कानपुर के थाना किदवईनगर पहुंचे, तब दोपहर के 12 बज रहे
थे. थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा थाने में मौजूद थे और क्षेत्र में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए अपने अधीनस्थ अफसरों से विचारविमर्श कर रहे थे.
संजय पाल ने उठतीगिरती सांसों के बीच उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरे साथ टप्पेबाजी हो गई. 2 टप्पेबाज युवकों ने मेरी कार से नोटों से भरा बैग पार कर दिया. बैग में 10 लाख 69 हजार रुपए थे, जिसे मैं अपने ड्राइवर अरुण पाल के साथ भारतीय स्टेट बैंक की गौशाला शाखा में जमा करने जा रहा था.’’
संजय पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा चौंके. उन्होंने तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. जब यह सूचना पुलिस कंट्रोल रूम से प्रसारित हुई तो पूरा पुलिस महकमा अलर्ट हो गया.

बेवफाई की लाश
पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जाने के लिए रवाना हो गए. टप्पेबाजी की यह बड़ी वारदात संजय वन वाली मेनरोड पर हुई थी. कुछ ही देर में किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा, नौबस्ता थानाप्रभारी संतोष कुमार, अनवर गंज थानाप्रभारी मंसूर अहमद, चकेरी थानाप्रभारी अजय सेठ, सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पूरे कानपुर शहर में वाहन चैकिंग शुरू करा दी. टूव्हीलरों और फोर व्हीलरों की सघन तलाशी होने लगी. यह बात 19 दिसंबर, 2018 की है.

बदले पे बदला
टप्पेबाजी का शिकार हुए संजय पाल घटनास्थल पर मौजूद थे. एसएसपी अनंत देव ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की. संजय पाल ने बताया कि वह चकेरी थाने के श्याम नगर मोहल्ले में रहते हैं. नौबस्ता के कोयला नगर, मंगला विहार में उन का श्री बालाजी फिलिंग स्टेशन नाम से पैट्रोल पंप है. पैट्रोल बिक्री की रकम वह गौशाला स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में जमा करते हैं.
हर रोज की तरह वह आज भी पैट्रोल बिक्री का 10.69 लाख रुपए अपनी निजी कार से जमा करने जा रहे थे. कार को उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
संजय पाल ने बताया कि करीब साढ़े 11 बजे जब वह संजय वन चौकी से 80 मीटर पहले एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के सामने पहुंचे ही थे कि पीछे से बाइक पर सवार 2 युवकों ने कार के आगे की ओर इशारा किया. ड्राइवर अरुण ने कार रोक कर देखा तो बोनट के पास मोबिल औयल गिरता नजर आया.

अशिकी मे गई जान
अरुण ने बोनट खोल कर चैक किया और कार मिस्त्री को फोन कर के जानकारी दी. मिस्त्री ने कहा कि कोई खास दिक्कत नहीं है. इस पर वे दोनों कार में बैठ गए. संजय ने बताया कि कार में बैठते ही आंखों में तेज जलन हुई. वह आंखें मलते हुए ड्राइवर के साथ बाहर निकले. इसी बीच बाइक सवार युवकों ने कार की पीछे वाली सीट पर रखा रुपयों से भरा बैग उड़ा दिया.
जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो वे तत्काल संजय वन चौकी गए. लेकिन चौकी पर ताला लटक रहा था. उस के बाद वह थाना किदवईनगर गए और पुलिस को सूचना दी.

अजय विजय के बीच शिववती
संजय पाल की बातों से स्पष्ट था कि किसी बड़े टप्पेबाज गिरोह ने टप्पेबाजी की है. गैंग के अन्य सदस्य भी रहे होंगे जो वारदात के समय आसपास ही होंगे. एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी को शक हुआ कि इस वारदात में कहीं ड्राइवर तो शामिल नहीं.
उन्होंने कार ड्राइवर अरुण पाल को बातों में उलझा कर पूछताछ की लेकिन उस ने वही सब बताया जो संजय पाल ने बताया था. संजय पाल ने भी अरुण पाल को क्लीनचिट दे दी. उन्होंने कहा कि वह उन का विश्वासपात्र ड्राइवर है. घटनास्थल पर एक नाबालिग चश्मदीद था, जो पोस्टर बैनर बना रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका.
जिस जगह सड़क पर टप्पेबाजी हुई थी, उस के दूसरी ओर एक मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने इस सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उस में पूरी वारदात कैद थी. सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि जब पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल और उन का ड्राइवर अरुण पाल कार का बोनट खोल कर जांच करने लगी, तभी बाइकर्स आगे जा कर डिवाइडर कट से मुड़े.
पीछे बैठा युवक बाइक से नीचे उतरा. वह काली शर्ट व नीली जींस पहने था. डिवाइडर फांद कर उस ने कार की पीछे वाली सीट से रुपयों से भरा बैग उठाया और फिर वापस साथी के पास आया. बाइक चलाने वाला युवक नीली शर्ट, जींस, लाल जूते पहने था और हेलमेट लगाए था. इस के बाद बाइकर्स यशोदानगर की ओर भागते दिखे.

सुंदरी की साजिश

इधर देर रात तक पुलिस शहर भर में वाहन चैकिंग करती रही लेकिन वारदात को अंजाम देने वालों का पता नहीं चल सका. उधर दूसरे दिन पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई और पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से 10.69 लाख की टप्पेबाजी की घटना को ले कर रोष व्यक्त किया.
बैठक के बाद अध्यक्ष ओमशंकर मिश्रा, महासचिव सुनील शरन गर्ग, कोषाध्यक्ष संजय गुप्ता, सुखदेव पाल, बसंत माहेश्वरी तथा पवन गर्ग ने पुलिस के आला अधिकारियों एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह से मुलाकात की. उन्होंने पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से टप्पेबाजी की घटना का जल्दी खुलासा करने का अनुरोध किया.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह
पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि पुलिस प्रशासन को पैट्रोल मालिकों को समुचित सुरक्षा देनी चाहिए. असलहों के लाइसैंस शीघ्र निर्गत किए जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है तो पैट्रोल पंप मालिक हड़ताल पर चले जाएंगे.
एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह ने पैट्रोल पंप एसोसिएशन के पदाधिकारियों की बात गौर से सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की घटना का जल्दी ही खुलासा हो जाएगा. उन की मांगों का भी निस्तारण होगा.
पदाधिकारियों को आश्वासन देने के बाद एडीजी अविनाश चंद्र ने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई. इस में एसपी, सीओ, इंसपेक्टर तथा तेजतर्रार दरोगाओं ने भाग लिया. मीटिंग में शहर में आए दिन हो रही टप्पेबाजी की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई.
मीटिंग के बाद एडीजी अविनाश चंद्र व आईजी आलोक सिंह ने टप्पेबाजी गैंग को पकड़ने के लिए 4 टीमें बनाईं. इन टीमों की कमान एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सौंपी गई.
टीम में सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, इंसपेक्टर अनुराग मिश्रा, संतोष कुमार, मंसूर अहमद, अजय सेठ, राजीव सिंह, एडीजीजी की क्राइम ब्रांच से अजय अवस्थी, कुलभूषण सिंह, वंश बहादुर, सीमांत और अखिलेश व एक दरजन तेजतर्रार तथा सुरागसी में दक्ष दरोगा वगैरह के साथसाथ सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी
इन टीमों ने टप्पेबाजों की तलाश शुरू की और एक दरजन से अधिक लोगों को उठा कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. टीमों ने पैट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारियों तथा घटना के चश्मदीद नाबालिग किशोर से भी पूछताछ की, लेकिन कोई क्लू नहीं मिला.
पुलिस टीमों ने शहर के बाहर शिवली, घाटमपुर, महाराजपुर, जहानाबाद आदि कस्बों में टप्पेबाजी करने वालों की तलाश की. जेल से छूटे पुराने टप्पेबाजों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से संजय पाल से की गई टप्पेबाजी का खुलासा हो पाता.
पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की वारदात एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी के क्षेत्र में हुई थी, इसलिए वह इस वारदात को ले कर कुछ ज्यादा प्रयासरत थीं. उन के दिशानिर्देश में काम कर रही टीम रातदिन एक किए हुए थी. सर्विलांस टीम भी उन के साथ काम कर रही थी.
सर्विलांस टीम ने पुलिस टीम के साथ संजय पाल के घर से घटनास्थल तक मोबाइल टावर डेटा फिल्टरेशन की मदद ली. इस में एक नंबर ऐसा निकला जो वारदात के वक्त घटनास्थल पर एक्टिव था. उस नंबर की लोकेशन यशोदा नगर हाइवे से उन्नाव की ओर मिली थी, इसलिए सर्विलांस टीम ने उस नंबर को लिसनिंग पर लगा दिया.

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन
29 दिसंबर को उस नंबर धारक ने लखनऊ में रहने वाले एक साथी से बात की, जिसे पुलिस ने सुन लिया. इस के बाद एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी की टीम ने मोबाइल लोकेशन के जरिए आलमबाग, लखनऊ से 2 युवकों को धर दबोचा.
रवीना त्यागी ने जब इन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपना नाम विनेश और विकास बताया. इन दोनों से रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई 10.69 लाख की टप्पेबाजी के बारे में पूछा तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब उन्हें थाना किदवई नगर लाया गया और पुलिसिया अंदाज में पूछताछ हुई तो दोनों टूट गए. उन्होंने 10.69 लाख रुपए की टप्पेबाजी स्वीकार कर ली. उन दोनों ने बताया कि उन का टप्पेबाजी का गैंग है. गैंग के अन्य सदस्य झकरकटी बसअड्डा स्थित गणेश होटल में ठहरे हुए हैं.
इस के बाद पुलिस की चारों संयुक्त टीमों ने झकरकटी स्थित गणेश होटल पर छापा मारा और 3 बैड वाले एक रूम से 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में एक महिला और एक नाबालिग भी था.

अतीक जेल में भी बाहुबली
इन के पास से पुलिस ने टप्पेबाजी कर के उड़ाया गया बैग बरामद कर लिया. बैग से 10.69 लाख रुपए सहीसलामत मिले. इस के अलावा पुलिस ने गैंग के पास से एक कार, एक वैन, एक बाइक, पेपर स्प्रे, चिली स्प्रे, गुलेल, लोहे के छर्रे, जले हुए मोबिल औयल की बोतल तथा सूजा बरामद किया.

पुलिस की संयुक्त टीम ने टप्पेबाज गैंग के 11 सदस्यों को पकड़ा. इन सभी को बरामद रुपए और अन्य सामान के साथ थाना किदवई नगर लाया गया. पूछताछ में गैंग के सदस्यों ने अपना नाम आकाश, राहुल, प्रेम, राजेश, रामू, अनिकली, विनेश, विकास, नरेश निवासी मदनगीर, दिल्ली तथा वरदराज और नाबालिग एस. विजय निवासन निवासी इंद्रपुरी दिल्ली बताया.
एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई टप्पेबाजी का खुलासा करने, पूरे गैंग को पकड़ने और टप्पेबाजी का 10.69 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी एडीजी अविनाश चंद्र, आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी को दी.
इस के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी व एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की, जिस में आरोपियों को पेश किया गया. प्रैसवार्ता के दौरान एडीजी अविनाश चंद्र ने टप्पेबाज गैंग को पकड़ने वाली टीम को एक लाख रुपए तथा आईजी आलोक सिंह ने 50 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

राजनीति की अंधी गली में खोई लड़की
प्रैसवार्ता में टप्पेबाजी के शिकार पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल तथा पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स के पदाधिकारियों को बुलाया गया. संजय पाल ने नोटों से भरे अपने बैग की पहचान की तथा खुलासे के लिए पुलिस की सराहना की.

चूंकि गैंग के सदस्यों ने अपना जुर्म कबूल कर के रुपया भी बरामद करा दिया था. इसलिए किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा ने टप्पेबाजी के शिकार हुए संजय पाल को वादी बता कर भादंसं की धारा 406, 419, 420 के तहत राहुल, प्रेम, राजेश रामू, विकास, विनेश, अनिकली, आकाश, वरदराज, नरेश तथा एस. विजय निवासन (नाबालिग) के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को गिरफ्तार कर लिया. बंदी बनाए गए आरोपियों से की गई पूछताछ में जो घटना सामने आई, उस का विवरण इस तरह है—

डाक्टर नहीं जल्लाद
कानपुर में पकड़े गए टप्पेबाज विनेश, विकास, आकाश, राहुल व उन के गैंग के अन्य सदस्य मूलरूप से तमिलनाडु के चेन्नै व त्रिची के रहने वाले थे. सालों पहले ये लोग दिल्ली आए और मदनगीर जेजे कालोनी तथा इंद्रपुरी के क्षेत्रों में बस गए. इन क्षेत्रों में इन के 25 डेरे हैं, जो आपस में जुड़े हुए हैं. एक डेरे में 12-13 सदस्य होते हैं.
इन सदस्यों के समूह को डेरा नाम दिया जाता है. डेरा स्वामी समूह का सरगना होता है. इन की पीढि़यां कई दशकों से अपराध को जीविकोपार्जन का साधन बनाए हुए हैं. इन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. इन के गिरोह में पुरुष, महिला व बच्चे सभी होते हैं.
इन के समुदाय के जो लोग अपराध की ट्रेनिंग नहीं लेते और अपराध नहीं करते, उन्हें डेरे के लोग नकारा मानते हैं. उन्हें हीनभावना से देखते हैं. ऐसे निठल्लों की शादी भी नहीं होती.
दिल्ली का डेरा टप्पेबाज गैंग, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली व राजस्थान के विभिन्न शहरों में वारदातें करता था. वह राज्य के जिस जिले में जाता, वहां के बसअड्डों या रेलवे स्टेशनों के आसपास के होटलों में ठहरता. होटल में वैध आईडी दिखा कर ये लोग कमरा बुक कराते थे. चूंकि इन के साथ महिलाएं व बच्चे होते, इसलिए पुलिस भी इन पर शक नहीं करती. ये लोग किराए का वाहन प्रयोग नहीं करते. अपनी कार, वैन या मोटरसाइकिल ही इस्तेमाल करते हैं.

गैंग के शातिर टप्पेबाज बाइक से वारदात को अंजाम देने के लिए निकलते हैं. उन के पीछे कार होती है, जिस में महिला और एक बच्चा भी रहता है. घटना को अंजाम देने के बाद शातिर टप्पेबाज कार में नकदी व जेवरात ले कर बैठ जाते हैं.
पुलिस को चकमा देने के लिए दूसरे साथी नकदी ले कर बाइक से निकल जाते हैं. ज्यादातर वाहन गैंग की महिलाओं के नाम खरीदे हुए होते हैं. वाहन सही नामपते पर रजिस्टर्ड होते हैं, जिस से पुलिस चैकिंग में कभी नहीं पकड़े जाते.
गैंग के शातिर लोग रेलवे क्रौसिंग, जेब्रा क्रौसिंग, रेड लाइट तथा जाम वाली जगहों पर रेकी करते हैं. वहां घटना को अंजाम दे कर ये लोग दूसरे जिले की ओर कूच कर जाते हैं. ये लोग चलती गाड़ी के बोनट पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर शिकार बनाते हैं या फिर चलती गाड़ी रुकवा कर चिली स्प्रे के सहारे टप्पेबाजी करते हैं.
कभीकभी ये गाड़ी का शीशा तोड़ कर नोटों से भरा बैग या अन्य सामान पार कर लेते हैं. कार के टायर में सूजा चुभो कर ये लोग पंक्चर कर के भी गाड़ी से सामान गायब कर देते हैं. कभीकभी ये लोग खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी या आयकर विभाग का अधिकारी बता कर भी टप्पेबाजी कर लेते हैं.

दिल्ली के डेरा टप्पेबाज गैंग ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों आगरा, मथुरा, लखनऊ, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर आदि शहरों में दरजनों वारदातें कर के काफी धन एकत्र किया. दिसंबर माह के पहले सप्ताह में टप्पेबाज गैंग के डेरा मुखिया विनेश, विकास, आकाश व राहुल अपने डेरे के 2-2 सदस्य ले कर कानपुर शहर आ गए.
कानपुर में इन लोगों ने रेलवे स्टेशन स्थित एक होटल में अपनी वैध आईडी दिखा कर 3 रूम बुक कराए और साथियों के साथ ठहर गए. इस होटल में रुक कर इन लोगों ने कई लोगों को टप्पेबाजी का शिकार बनाया.
इस के बाद इन लोगों ने क्राइम ब्रांच का सिपाही बता कर प्रमोद वर्मा को शिकार बनाया. प्रमोद की बिरहाना रोड पर ज्वैलरी शौप है. प्रमोद दोपहर में घर में रखे 250 ग्राम सोने के आभूषण ले कर अपनी दुकान पर जा रहे थे. जब वह खत्री धर्मशाला के पास पहुंचे, तभी 2 युवकों ने उन्हें रोक लिया और खुद को क्राइम ब्रांच का सिपाही बताते हुए बैग की तलाशी देने को कहा.
इस पर उन्होंने दुकान पर चल कर तलाशी लेने की बात कही तो उन्होंने हड़काते हुए क्राइम ब्रांच औफिस चलने को कहा. इस से घबरा कर उन्होंने बैग खोल दिया. एक ने बैग की तलाशी शुरू कर दी. दूसरे ने उन्हें नामपता नोट करने में उलझा लिया.
कुछ देर बाद इन लोगों ने बैग लौटाते हुए कहा दुकान जाओ. प्रमोद ने दुकान जा कर बैग खोल कर देखा तो उस में पत्थर के टुकड़े थे. टप्पेबाज उन को शिकार बना कर फरार हो गए. प्रमोद ने थाना कलक्टरगंज में रिपोर्ट दर्ज कराई.

19 दिसंबर को टप्पेबाज विनेश और आकाश मोटरसाइकिल से झकरकटी स्थित गणेश होटल से शिकार की तलाश में निकले. मोटरसाइकिल विकास चला रहा था. जबकि पीछे की सीट पर विनेश बैठा था.
जब ये लोग यशोदानगर बाईपास पहुंचे तो वहां जाम लगा था. पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल की कार भी इसी जाम में फंसी थी. संजय पाल पीछे की सीट पर बैठे थे और नोटों से भरा बैग उन के पास रखा था. गाड़ी उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
जाम में फंसी संजय की गाड़ी पर टप्पेबाज विनेश व आकाश की नजर पड़ी. सीट पर रखा बैग देख कर उन दोनों की बांछें खिल उठीं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि बैग में मोटी रकम हो सकती है. उन्होंने संजय पाल को शिकार बनाने की ठान ली.
योजना के तहत उन्होंने कार का पीछा किया और विनेश ने जाम के चलते धीमी चल रही कार के बोनट पर मोबिल औयल गिरा दिया. संजय वन रोड पहुंचने पर विनेश ने ड्राइवर अरुण पाल को इंजन से औयल टपकने का इशारा किया. अरुण ने कार रोक दी. संजय पाल व ड्राइवर अरुण जब कार से उतरे, तभी टप्पेबाज आकाश व विनेश आ गए. उन्होंने चिली स्प्रे कार में छिड़क दिया.

गाड़ी चैक कर के संजय पाल व अरुण पाल आ कर गाड़ी में बैठे तो उन की आंखों में जलन होने लगी. दोनों आंखें मलते हुए गाड़ी के बाहर आए. इसी बीच विनेश ने नोटों से भरा बैग सीट से उठाया और बाइक की पिछली सीट पर जा बैठा. वहां से ये यशोदा नगर की ओर भाग गए.
यशोदा नगर बाईपास के पहले वृंदावन गार्डन के पास टप्पेबाज राहुल कार लिए खड़ा था. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहा था. कार में प्रेम, राजेश, नरेश, अनिकली व नाबालिग एस. विजय निवासन बैठे थे. आकाश व विनेश ने आते ही रुपयों से भरा बैग कार में बैठे लोगों को थमा दिया और खुद उन्नाव की ओर चले गए. राहुल कार ले कर वापस गणेश होटल लौट आया.
इधर टप्पेबाजों का शिकार हुए संजय पाल थाना किदवई नगर पहुंचे और थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा को टप्पेबाजों द्वारा नोटों से भरा बैग पार करने की जानकारी दी.

पकड़े गए टप्पेबाज गैंग के प्रमुख आकाश, राहुल, विनेश, विकास से जब कड़ी पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि इन के अलावा शहर में एक और गैंग है, जो टप्पेबाजी कर पुलिस की नींद हराम किए हुए है. यह गैंग महाराष्ट्र का है.
इस गैंग में तमिलनाडु के सदस्य भी हैं. इस गैंग ने अनवरगंज क्षेत्र में कई वारदातें की थीं. इंसपेक्टर (अनवरगंज) मंसूर अहमद पुलिस टीम में शामिल थे. उन से पता चला कि टप्पेबाजों ने उन के थाना क्षेत्र में बांसमंडी के पास बिंदकी (फतेहपुर) निवासी आढ़ती जयकुमार साहू के साथ टप्पेबाजी की थी.
टप्पेबाजों ने उन से कहा कि उन की कार के पहिए से हवा निकल गई है. वह पहिया चैक करने उतरे. इसी बीच टप्पेबाजों ने उन की गाड़ी में रखा बैग पार कर दिया. बैग में ढाई लाख रुपए थे.

इस के बाद टप्पेबाजों ने लालगंज निवासी रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह तथा फर्रुखाबाद निवासी अतुल को शिकार बनाया. दोनों की कार से बैग उड़ाया गया था. विजेंद्र सिंह के बैग में लाइसेंसी पिस्टल, रुपए व जरूरी कागजात थे, जबकि अतुल के बैग में नकदी व कागजात थे. तीनों ने थाना अनवरगंज में टप्पेबाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
इंसपेक्टर मंसूर अहमद इन टप्पेबाजों को पकड़ने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी.

पकड़े गए गैंग से मंसूर अहमद को कुछ क्लू मिला तो उन्होंने टप्पेबाजी करने वाले गैंग की टोह में मुखबिर लगा दिए. वह स्वयं भी प्रयास करते रहे. उन्होंने क्षेत्र के होटलों, विश्राम गृहों तथा रेलवे स्टेशन अनवरगंज में विशेष निगरानी शुरू कर दी.

4 जनवरी शुक्रवार की रात इंसपेक्टर मंसूर अहमद को खास मुखबिर से सूचना मिली कि टप्पेबाज गिरोह बांसमंडी तिराहे पर मौजूद है और किसी बड़ी वारदात की फिराक में है.
मुखबिर की इस सूचना पर विश्वास कर मंसूर अहमद बांसमंडी तिराहा पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर एक महिला सहित 4 लोगों को हिरासत में ले लिया. सभी को थाना अनवरगंज लाया गया.

एक हत्या ऐसी भी

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम गणेश नायडू, दूसरे ने बाबू नायडू तथा महिला ने अपना नाम पार्वती नायडू बताया. पार्वती नायडू, गणेश नायडू की बहन थी जबकि बाबू नायडू उस का बेटा था. ये तीनों महाराष्ट्र के नदुरवार जिले के नवापुर के रहने वाले थे. चौथा व्यक्ति गणेश का रिश्तेदार चंद्रुक तेली था. वह तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के उठकली का रहने वाला था.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा
पुलिस ने चारों की जामातलाशी ली तो उन के पास से करीब सवा लाख रुपए नकद, टायर कटर, गुलेल, छर्रे, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड बरामद हुए. पूछताछ में टप्पेबाजों ने तीनों घटनाओं का खुलासा किया और कार से बैग उड़ाने की बात कबूली.
पुलिस ने इन टप्पेबाजों से करीब आधी रकम तो बरामद कर ली, लेकिन रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह की पिस्टल का पता नहीं चला. संभावना है कि गैंग का कोई अन्य सदस्य आधी रकम व पिस्टल ले कर किसी दूसरे जिले की ओर निकल गया हो.

30 दिसंबर, 2018 को थाना किदवईनगर पुलिस ने टप्पेबाज गिरोह के 11 सदस्यों विनेश, विकास, आकाश, राहुल, प्रेम, नरेश, रामू, वरदराज, राजेश, अनिकली तथा नाबालिग को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से नाबालिग को छोड़ कर सभी को जेल भेज दिया गया. नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा गया.

कातिल बहन की आशिकी
दूसरे टप्पेबाज गैंग को अनवरगंज पुलिस ने 5 जनवरी को रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से गणेश, बाबू, पार्वती, चंदुक तेली को जिला जेल भेज दिया गया.

बेवफाई की लाश

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिंगरा थाना क्षेत्र में एक गांव है बड़गांव. कल्लू निषाद अपने
परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे रमेश, दिनेश, संतोष के अलावा एक बेटी थी उमा. कल्लू किसान था. खेती की आय से परिवार चलता था. समय बीतते कल्लू ने अपने सभी बच्चों की शादियां कर दीं. तीनों भाइयों ने पिता के रहते ही घर और खेती की जमीन का बंटवारा भी कर लिया. भाईबहनों में संतोष सब से छोटा था. उस का विवाह गुडि़या से हुआ था. गुडि़या के पिता रघुवीर निषाद गाजीपुर जिले के सुहावल गांव के रहने वाले थे. गुडि़या से शादी कर के संतोष बहुत खुश था.

कातिल बहन की आशिकी

बंटवारे के बाद संतोष के पास खेती की इतनी जमीन नहीं बची थी जिस से परिवार का गुजारा हो सके. फिर भी सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.
धीरेधीरे वक्त गुजरता गया और इस गुजरते वक्त के साथ गुडि़या एक बेटे कृष्णा और 2 बेटियों की मां बन गई. गुडि़या 3 बच्चों की मां भले ही बन गई थी, लेकिन उस की देहयष्टि से ऐसा लगता नहीं था.
वह पति को अकसर खेती के अलावा कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन संतोष खेतीकिसानी में ही खुश था. बाहर जा कर नौकरी करने की बात न मानने पर संतोष का पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता था.

संतोष अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ दूसरों की जमीन भी बंटाई पर लेता था. तब कहीं जा कर परिवार का भरणपोषण हो पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती तो उस के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचता था. इस सब के चलते जब संतोष पर कर्ज हो गया तो उस ने गांव छोड़ दिया.
संतोष ने अपने गांव के कुछ लोगों से सुन रखा था कि कानपुर उद्योग नगरी है और वहां नौकरी आसानी से मिल जाती है. संतोष भी नौकरी की तलाश में कानपुर शहर पहुंच गया. वहां कई दिनों तक भागदौड़ करने के बाद संतोष को पनकी स्थित एक रिक्शा कंपनी में काम मिल गया. वह रिक्शा कंपनी किराए पर रिक्शा भी चलवाती थी.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

संतोष मेहनती व ईमानदार था. जल्द ही उस ने वहां अपनी अच्छी छवि बना ली, उस की लगन और मेहनत को देख कर मालिक ने उसे किराए पर चलने वाले रिक्शों के चालकों से किराया वसूलने की जिम्मेदारी सौंप दी. इस के साथ ही वह किराए के रिक्शों की भी मरम्मत भी करता था. ज्यादा कमाने के चक्कर में संतोष नौकरी के बाद खुद भी रिक्शा चला लेता था.
संतोष महीने-2 महीने में कानपुर से घर लौटता था और 2-3 दिन घर रुक कर कानपुर चला जाता था. गुडि़या उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. एक बार संतोष घर आया तो गुडि़या ने उस से कहा कि बच्चों की अब पढ़ने की उम्र है. गांव में रह कर पढ़ नहीं पाएंगे, अत: उसे व बच्चों को साथ ले चले.
संतोष को गुडि़या की बात सही लगी. उस ने पत्नी को आश्वासन दिया कि जब वह अगली बार आएगा, तो उसे व बच्चों को अपने साथ ले जाएगा. संतोष कानपुर पहुंच कर कमरे की खोज में जुट गया. काफी कोशिश के बाद उसे अरमापुर में किराए पर कमरा मिल गया.

सपा नेत्री की गहरी चाल

कमरा मिल जाने के बाद वह पत्नी व बच्चों को कानपुर शहर ले आया. बच्चों का दाखिला उस ने अरमापुर के सरकारी स्कूल में करा दिया. गुडि़या शहर आई तो उस के रंगढंग ही बदल गए. वह खूब सजसंवर कर रहने लगी. अपने व्यवहार की वजह से उस ने आसपड़ोस की महिलाओं से भी अच्छे संबंध बना लिए थे.

संतोष जिस रिक्शा कंपनी में काम करता था, उसी में राजू नाम का युवक भी काम करता था. हालांकि राजू संतोष से कई साल छोटा था, फिर भी दोनों में खूब पटती थी. दोनों साथसाथ लंच करते थे. जरूरत पड़ने पर राजू संतोष की आर्थिक मदद भी कर देता था.
राजू पनकी स्थित रतनपुर कालोनी में अकेला रहता था. वैसे वह मूलरूप से इटावा जिले के अजीतमल गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और भाइयों से उस की पटती नहीं थी. इसलिए कानपुर आ कर रिक्शा कंपनी में काम करने लगा था.

सपा नेत्री की गहरी चाल

एक दिन संतोष ने राजू को बताया कि आज उस के बेटे कृष्णा का जन्मदिन है. उस ने किसी और को तो नहीं बुलाया लेकिन उसे जरूर आना है. अपनेपन की इस बात से राजू खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘संतोष भैया, मैं शाम को जरूर आऊंगा. शाम की पार्टी भी मेरी तरफ से रहेगी.’’

राजू दिन भर काम में व्यस्त रहा. शाम होते ही वह अपने घर पहुंचा और अच्छे कपड़े पहने. फिर सजसंवर कर संतोष के घर पहुंच गया. राजू के पहुंचने पर संतोष बहुत खुश हुआ. उस ने राजू का अपनी पत्नी से परिचय कराते हुए कहा कि यह मेरा अच्छा दोस्त और हमदर्द है.

गुडि़या ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया और बोली, ‘‘यह आप के बारे में बताते रहते हैं और बहुत तारीफ करते हैं.’’
गुडि़या ने राजू की आवभगत की. राजू भी गुडि़या की खूबसूरती में खो गया. कुल मिला कर गुडि़या पहली ही नजर में राजू के दिलोदिमाग पर छा गई.
इस के बाद वह किसी न किसी बहाने संतोष के साथ उस के घर जाने लगा. वह जब भी घर जाता, बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें जरूर ले कर आता. बच्चों को उन की मनपसंद चीजें मिलने लगीं तो वह ‘चाचाचाचा’ कह कर उस से घुलमिल गए.

प्यार का खौफनाक पहलू

जल्दी ही राजू ने संतोष के घर में अपनी पैठ बना ली. राजू का घर आना बच्चों को ही नहीं, बल्कि गुडि़या को भी अच्छा लगता था. राजू की लच्छेदार बातें उसे खूब भाती थीं. धीरेधीरे गुडि़या के मन में भी राजू के प्रति चाहत बढ़ गई.

एक रोज गुडि़या कमरे के बाहर खड़ी धूप में बाल सुखा रही थी, तभी अचानक राजू उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. गुडि़या ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ‘‘अरे तुम, इस तरह अचानक, क्या ड्यूटी नहीं गए?’’

‘‘ड्यूटी गया तो था भाभी, पर तुम्हारी याद आई तो चला आया.’’ राजू ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन राजू को गुडि़या बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें गुडि़या के चेहरे पर जम गईं. यही हाल गुडि़या का भी था. राजू को इस तरह देखते हुए गुडि़या बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’
‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो देख रहा था कि खुले बालों में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. वैसे एक बात कहूं, आप के अलावा पासपडोस में और भी हैं, पर आप जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’
‘‘बस…बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. काम के बोझ से इतने थके होते हैं कि खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं और अगर उन से कुछ कहो तो किसी न किसी बात को ले कर झगड़ने लगते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. भैया तो लापरवाह हैं. शराब में डूबे रहते हैं, इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’ राजू बोला.
‘‘तू तो मेरी बहुत कद्र करता है? हफ्ते बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’ गुडि़या उसे उकसाते हुए बोली.
‘‘मुझे सचमुच आप की बहुत फिक्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं आप की खैरखबर लेने जल्दीजल्दी आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, मैं करूंगा.’’ राजू ने गुडि़या की चिरौरी सी की.
राजू की यह बात सुन कर गुडि़या खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तू आराम से चारपाई पर बैठ. मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में गुडि़या 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट व नमकीन ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. सच तो यह था कि गुडि़या गबरू जवान राजू पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, राजू भी मतवाली भाभी का दीवाना बन गया था.
दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद राजू अकसर गुडि़या से मिलने आने लगा. गुडि़या को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वह एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा.
इन्हीं दिनों संतोष खेतों की देखभाल के लिए एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव चला गया. गुडि़या को यह मौका अच्छा लगा तो उस ने एक रोज रात में राजू को अपने कमरे पर रोक लिया. खाना खाने के बाद एक चारपाई पर राजू लेट गया और दूसरी पर गुडि़या.

राजू सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. उस का मन भाभी गुडि़या की तरफ ही लगा हुआ था. तभी आधी रात के बाद गुडि़या अपनी चारपाई से उठ कर उस के पास आ लेटी. इस के बाद तो राजू की खुशी का ठिकाना न रहा. वह गुडि़या से बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी?’’
‘‘डर लग रहा था, इसलिए तुम्हारे पास चली आई.’’ गुडि़या ने उस से सटते हुए कहा.
‘‘डर लग रहा है तो लाइट जला दूं क्या?’’ राजू ने पूछा.
‘‘नहीं, लाइट जलाने की अब कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि अब तुम मेरे पास हो.’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.
राजू गुडि़या की मंशा समझ चुका था. वह भी जवान था. गुडि़या के स्पर्श से उस के शरीर में भी सरसराहट दौड़ गई थी. फिर जब गुडि़या ने उसे उकसाया तो ऐसे में भला वह कैसे शांत रह सकता था. नतीजतन दोनों ने ही उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद राजू और गुडि़या अकसर कामलीला रचाने लगे. राजू अपनी अधिकांश कमाई गुडि़या व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा. उस के घर आने का विरोध संतोष न करे, इसलिए वह उस की भी आर्थिक मदद करने लगा.
इस के अलावा संतोष जब भी शराब पीने की इच्छा जताता तो राजू उसे ठेके पर ले जाता और शराब पिलाता. इतना ही नहीं, राजू अब गुडि़या के घरेलू काम में भी हाथ बंटाने लगा. राशन लाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना तथा शाम को सब्जी लाना उस की दिनचर्या बन गई थी.

परफेक्ट षड्यंत्र

संतोष जब गांव चला जाता तो राजू रात में उस के घर रुकता और फिर दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. राजू जब संतोष के साथ उस के घर आता तब तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस की गैरमौजूदगी में जब वह अकसर उस के घर पड़ा रहने लगा तो पड़ोसियों के मन में शंका पैदा होने लगी. धीरेधीरे मोहल्ले में गुडि़या और राजू के संबंधों की चर्चा फैल गई.

एक दिन संतोष को उस के पड़ोसी रामसिंह भदौरिया ने अपने पास बुला कर कहा, ‘‘संतोष, तुम रातदिन काम में व्यस्त रहते हो और घर आ कर नशे में डूब जाते हो. कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दिया करो कि तुम्हारे यहां कौन आता है कौन जाता है. तुम्हें कुछ पता भी है?’’
‘‘चाचा, मेरे घर में तो सब ठीक चल रहा है. अगर कोई गड़बड़ है तो बताओ. हमें आप की बात पर पूरा भरोसा है.’’ संतोष ने पूछा.
‘‘वह जो तुम्हारा दोस्त राजू है न, वह ठीक नहीं है. तुम घर पर नहीं होते तब वह तुम्हारे घर आता है. बच्चों को पैसे दे कर घर के बाहर भेज देता है. फिर तुम्हारे घर का दरवाजा बंद हो जाता है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारी बीवी और राजू के नाजायज संबंधों की चर्चा हो रही है और तुम कान बंद किए बैठे हो.’’ राम सिंह ने बताया.
संतोष निषाद को जब यह बात पता चली तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व राजू से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गुडि़या ने कहा कि राजू उस की मदद करता है, इसलिए पड़ोसी जलते हैं. घर में झगड़ा कराने के लिए वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.
संतोष ने उस समय तो पत्नी की बात पर विश्वास कर लिया और फिर कुछ दिनों के लिए जरूरी काम से अपने गांव चला गया. लगभग एक सप्ताह बाद जब वह गांव से लौटा तो घर में राजू मौजूद था. उस समय राजू और गुडि़या हंसीठिठोली और शारीरिक छेड़छाड़ कर रहे थे.
अब उसे विश्वास हो गया कि राम सिंह चाचा ने जो बात उसे बताई थी, वह सच थी. यह देख कर संतोष का पारा चढ़ गया. उसी समय उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई कर दी. मौका पा कर राजू वहां से खिसक गया.

अगले दिन संतोष जब अपनी ड्यूटी पर पहुंचा तो कंपनी में उसे राजू मिल गया. संतोष ने राजू को वहीं पर खूब फटकारा. राजू ने उस समय उस से माफी मांग ली, पर बाद में राजू और गुडि़या पहले की तरह मिलते रहे. किसी न किसी तरह संतोष को इस की जानकारी मिलती रही.
पत्नी की इस बेवफाई से संतोष टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था लेकिन अब और ज्यादा पीने लगा. उसे गुडि़या से इतनी अधिक नफरत हो गई थी कि उस ने उस से बातचीत तक करनी बंद कर दी.
लेकिन जिस दिन राजू घर के पास दिख जाता था, उस दिन गुस्से से संतोष का खून खौल जाता था. राजू को ले कर गुडि़या से उस की तकरार होती थी. नौबत मारपीट तक आ जाती थी. पूरा मोहल्ला जान गया था कि झगड़े की जड़ राजू और गुडि़या के अवैध संबंध हैं.
इस के बाद तो खुल्लमखुल्ला पूरे मोहल्ले में दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. इस से संतोष की खूब बदनामी हो रही थी. तब संतोष ने राजू के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. गुडि़या अपने से 10 साल छोटे प्रेमी राजू की दीवानी थी. वह किसी भी हाल में उस से अलग नहीं होना चाहती थी.

बेरोजगारी ने बनाया पत्नी और बच्चों का कातिल

पति के चौकस हो जाने पर गुडि़या भी सतर्क हो गई. गुडि़या को जब भी मौका मिलता था, वह फोन कर के राजू को बुला लेती थी. पड़ोसियों को भनक न लगे, इस के लिए वह राजू को कमरे के पीछे खुलने वाली खिड़की से अंदर बुलाती थी, फिर शारीरिक मिलन के बाद वह उसी खिड़की से चला जाता था.
लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रोज पड़ोसन रेखा निषाद ने राजू को खिड़की के रास्ते गुडि़या के घर में जाते देख लिया. उस ने यह बात संतोष को बताई तो उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई की और दूसरे दिन बच्चों सहित गुडि़या को अपने गांव वाले घर भेज दिया. गुडि़या ने गांव पहुंचने की जानकारी राजू को दे दी.
गुडि़या के गांव जाने पर राजू परेशान रहने लगा. अब दोनों की बात मोबाइल पर ही हो पाती थी. राजू गुडि़या पर दबाव बनाने लगा कि वह किसी न किसी बहाने से वापस आ जाए. उस के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा. गुडि़या राजू को आश्वासन देती कि अभी उचित समय नहीं है. संतोष का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वह उस से बात कर के आ जाएगी.
संतोष ने पत्नी को मजबूरी में गांव भेज तो दिया था लेकिन उस के जाने के बाद वह भी परेशान हो गया था. अब उसे खाना खुद ही बनाना पड़ता था. काम में व्यस्त रहने से वह इतना थक जाता था कि कभी बिना खाना खाए ही सो जाता था.
उसे बच्चों की भी याद आ रही थी. स्कूल से भी खबर आ रही थी कि आखिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं? संतोष का मन करता कि वह बच्चों को ले आए, लेकिन पत्नी की चरित्रहीनता याद आते ही वह अपना विचार बदल देता.
जब गुडि़या को गांव से कानपुर आने का मौका नहीं मिला तो राजू संतोष को मनाने तथा उस से फिर से दोस्ती करने का प्रयास करने लगा. लेकिन संतोष उसे झिड़क देता था. एक दिन उस ने कह दिया, ‘‘तू आस्तीन का सांप है. अब मैं तेरे झांसे में नहीं आऊंगा. मैं ने तुझे भाई जैसा मानसम्मान दिया, पर तूने मुझे ही डंस लिया.’’

खाकी वरदी वाले डकैत

‘‘बड़े भैया, मुझे अपनी गलती का अहसास है. बस मुझे एक बार माफ कर दो, फिर ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा.’’

राजू ने बारबार मिन्नत की तो संतोष का दिल पसीज गया. फिर से दोस्ती बहाल हो जाने पर उस दिन दोनों ने दोस्ती के नाम पर फिर से जाम पर जाम टकराए. राजू ने अपनी कामयाबी की जानकारी गुडि़या को दी तो उस के मन में आस जगी कि संतोष अब उसे अपने पास बुला लेगा.
उन्हीं दिनों संतोष वायरल फीवर की चपेट में आ गया. राजू ही उसे अस्पताल ले गया. राजू ने संतोष को सलाह दी कि वह भाभी को बुला ले तो उस की सही तरीके से देखभाल हो जाएगी. संतोष ने पहले तो मुंह बनाया फिर कुछ सोच कर गुडि़या को फोन कर बताया कि वह बीमार है, अत: बच्चों के साथ जल्दी आ जाए.
पति की बात सुन कर गुडि़या खुशी से उछल पड़ी. उस ने फटाफट अपना सामान बांध कर बच्चों को तैयार किया और दूसरे दिन कानपुर आ गई. गुडि़या की सेवा से संतोष ठीक हो गया और बच्चे भी स्कूल जाने लगे.
राजू और गुडि़या कुछ दिनों तक तो अंजान बने रहे, उस के बाद फिर से दोनों का चोरीछिपे मिलन शुरू हो गया. गुडि़या के आने के बाद राजू संतोष से किए गए अपने वादे को भूल गया.
एक रोज संतोष की अपनी कंपनी में ही तबीयत खराब हो गई. उस का बदन बुखार से तप रहा था इसलिए वह दोपहर के समय ही कंपनी से घर की ओर चल दिया. दरवाजे पर पहुंचते ही उस ने आवाज लगाई, ‘‘गुडि़या, दरवाजा खोल.’’

कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला. वह कमरे में पहुंचा तो उस ने खिड़की से किसी को भागते देखा. पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन गुडि़या के उलझे बाल, बिस्तर की हालत तो कुछ और ही बयां कर रही थी.
वह समझ गया कि जरूर इस का यार राजू यहां से भागा है. यानी इस ने अपने यार से मिलना बंद नहीं किया है. गुस्से में संतोष ने गुडि़या की चोटी पकड़ कर पूछा, ‘‘बता, तेरे साथ कमरे में कौन था? सचसच बता वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’
गुडि़या घबरा तो गई, लेकिन फिर संभलते हुए बोली, ‘‘कोई भी नहीं था. तुम्हें जरूर कोई वहम हुआ है. तुम्हारी तबीयत शायद ठीक नहीं है.’’

गुडि़या ने हमदर्दी जताई तो संतोष को लगा कि शायद उसे बुखार है, इसलिए गलतफहमी हुई है. लेकिन उस का मन बारबार कह रहा था कि कमरे के अंदर राजू था जो उस के साथ सोया था. उस रात राजू को ले कर दोनों में झगड़ा होता रहा.

पहले की छेड़छाड़, फिर जिंदा जलाया

संतोष के मन में शक पैदा हुआ तो फिर बढ़ता ही गया. अब तो संतोष राजू की मौजूदगी में भी गुडि़या की पिटाई कर देता. राजू बीचबचाव करने आता तो उसे झिड़क देता.
गुडि़या राजू की दीवानी थी, इसलिए उसे न तो पति की परवाह थी और ही परिवार के इज्जत की. इसी दीवानगी में एक दिन गुडि़या ने राजू से कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से संतोष मुझे मारतापीटता है और तुम दुम दबा कर भाग जाते हो. आखिर तुम कैसे प्रेमी हो, कुछ करते क्यों नहीं?’’
‘‘घर का मामला है भाभी, मैं कर भी क्या सकता हूं.’’ राजू ने मजबूरी जाहिर की तभी गुडि़या बोली, ‘‘विरोध तो कर सकते हो. मुझ पर उठने वाला उस का हाथ तो मरोड़ सकते हो.’’
‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकता भाभी. क्योंकि तुम पर मेरा कोई अधिकार नहीं है. फिर भी मैं तुम्हारी बात पर गौर करूंगा.’’ राजू ने कहा.

28 नवंबर, 2018 की रात संतोष यह कह कर घर से निकला कि वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा है. संतोष चला गया तो गुडि़या ने राजू से मोबाइल पर बात की, ‘‘राजू तुम फटाफट आ जाओ. आज तो मौज ही मौज है. वह घर पर नहीं है. पूरी रात अपनी है. जम कर मौजमस्ती करेंगे.’’
रात 12 बजे के आसपास राजू खिड़की के रास्ते गुडि़या के कमरे में पहुंच गया. गुडि़या ने एक कमरे में अपने बच्चों को सुला दिया था. दूसरे कमरे में गुडि़या सजीसंवरी बैठी थी. आते ही राजू ने गुडि़या को अपने बाहुपाश में लिया और दोनों जिस्मानी भूख मिटाने लगे.
इधर सुबह 5 बजे संतोष घर आया. वह कमरे के पास पहुंचा तो उस ने कमरे के अंदर हंसने की आवाजें सुनीं. संतोष का माथा ठनका, वह समझ गया कि कमरे के अंदर गुडि़या और राजू ही होंगे.
गुस्से में उस ने दरवाजा पीटना शुरू किया तो कुछ देर बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला, तो उस ने खिड़की से कूदते राजू को देख लिया था. संतोष ने गुस्से में गुडि़या के बाल पकड़े और उसे जमीन पर गिरा दिया. फिर वह उसे लातघूंसों से पीटने लगा.
अचानक संतोष की नजर कमरे में रखी कुल्हाड़ी पर पड़ी. उस ने कुल्हाड़ी उठाई और ताबड़तोड़ कई वार गुडि़या के सिर और गरदन पर किए. गुडि़या खून से लथपथ हो कर जान बख्श देने की गुहार लगाने लगी.
शोर सुन कर बच्चे भी जाग गए लेकिन पिता का रौद्र रूप देख कर वे सहम गए. फिर भी कृष्णा ने बाप के हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और बोला, ‘‘पापा, मम्मी को मत मारो. हम लोगों को रोटी कौन देगा.’’
कहते हुए कृष्णा कुल्हाड़ी ले कर घर के बाहर भागा.
उस ने पड़ोस में रहने वाली रेखा आंटी को बताया कि उस के पापा उस की मम्मी को कुल्हाड़ी से मार रहे हैं. रेखा भागीभागी गुडि़या के कमरे में पहुंची. गुडि़या की उस समय सांसें चल रही थीं. रेखा पुलिस को फोन करने कमरे से बाहर आई तो संतोष ने कमरे में रखा फावड़ा उठा लिया और जोरदार वार कर के गुडि़या को मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद संतोष भागा नहीं बल्कि पत्नी के शव के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.
इधर रेखा निषाद ने पड़ोसियों व थाना अरमापुर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही अरमापुर थानाप्रभारी आर.के. सिंह भी वहां आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतका के पति संतोष व उस के बच्चों से बात की.

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

संतोष ने हत्या का जुर्म कबूलते हुए पुलिस अधिकारियों को बताया कि उस की पत्नी बदचलन थी, इसलिए उसे मार दिया. उसे हत्या का कोई अफसोस नहीं है. मृतका के बच्चों ने बताया कि मां की हत्या उस के पिता संतोष ने उन की आंखों के सामने की थी. उन्होंने मां को बचाने का प्रयास भी किया था, लेकिन बचा नहीं सके. पड़ोसी रेखा भी हत्या की चश्मदीद गवाह बनी.
थाना अरमापुर के इंसपेक्टर आर.के. सिंह ने मृतका गुडि़या के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाया. फिर रेखा निषाद को वादी बना कर संतोष निषाद के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पोस्टमार्टम के बाद शव को मृतका के मातापिता को सौंप दिया गया. कृष्णा, नंदिनी व लाडो को भी पालनपोषण के लिए नानानानी अपने साथ ले गए.
30 नवंबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त संतोष निषाद को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. सभी बच्चे अपनी ननिहाल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अजय विजय के बीच शिववती

लेखक – सुरेशचंद्र मिश्र  

कानपुर नगर से करीब 30 किलोमीटर दूर बेला विधूना रोड पर एक गांव है

अंगदपुर. राजबली अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी अनीता के अलावा 2 बेटे थे राजू व भीम. साथ ही 2 बेटियां शिववती व रामवती भी थीं. राजबली की कहिंजरी बस स्टाप पर मिठाई की दुकान थी, उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस के दोनों बेटे भी काम में उस का हाथ बंटाते थे.

दुकान बस स्टाप पर होने की वजह से अच्छी चलती थी. जैसेजैसे उस के बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. छोटी बेटी शिववती की शादी उस ने थाना शिवली के अंतर्गत आने वाले गांव लुधौरा बाघपुर निवासी विजय लाल से करदी थी. विजय लाल खेतीकिसानी में अपने पिता गोपीचंद के हाथ बंटाता था.

शिववती से शादी कर के वह बहुत खुश था, लेकिन सुहागरात को वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. पति की यह हालत देख कर शिववती के सारे सपने बिखर गए. पति को ले कर उस ने जो अरमान सजाए थे, आंसुओं में बह गए.

विजय ने पत्नी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन शिववती की सुहागरात आंसुओं के साथ गुजरी. बहरहाल, शिववती ने संयम और समझदारी से काम लिया. चूंकि उसे विजय लाल के साथ ही रहना था, इसलिए उस ने पति को किसी डाक्टर से मिलने की सलाह दी. विजय ने अपना इलाज कराया और वह ठीक हो गया. बहरहाल, उस की गृहस्थी ठीक से चलने लगी.

सुंदरी की साजिश

समय अपनी गति से गुजरता रहा और करीब 4 साल बाद विजय एक बच्चे का बाप बन गया. बच्चा हो जाने के बाद पत्नी का खर्च बढ़ गया.

अब शिववती के खर्च के लिए घर में रोजरोज तो पैसे मांगे नहीं जा सकते थे, लिहाजा वह कोई दूसरा काम करने की सोचने लगा. उस के पास इतना पैसा तो था नहीं, जिस से वह कोई ढंग की दुकान वगैरह खोल लेता. लिहाजा वह कहीं नौकरी पाने की कोशिश करने लगा.

 

काफी कोशिश करने के बाद भी जब कोई नौकरी नहीं लगी तो विजय लाल शिवली कस्बा स्थित भगवती जनरल स्टोर पर नौकरी करने लगा. कस्बा शिवली उस के गांव से करीब 5 किलोमीटर दूर था. वह सुबह 8 बजे साइकिल से अपने काम पर निकलता था और रात 8 बजे घर लौटता था. दिन भर दुकान पर काम कर के वह काफी थक जाता था, जिस से वह पत्नी की शारीरिक जरूरत को नहीं समझ पाता था.

पति की कमाई से शिववती के हाथ में पैसा आने लगा तो उस की घरगृहस्थी की गाड़ी चलने लगी. शिववती आर्थिक रूप से तो पति से संतुष्ट थी, लेकिन शारीरिक रूप से नहीं. उस का दिन तो किसी तरह कट जाता, लेकिन रात की गहरी खामोशी उसे खाने को दौड़ती थी.

विजय लाल के साथ दीपू और श्यामू नाम के 2 युवक काम करते थे. तीनों में खूब पटती थी. दोनों ही पियक्कड़ थे. उन्होंने विजय लाल को भी शराब का चस्का लगा दिया था. शिववती को पति का शराब पीना पसंद नहीं था. वह जब भी शराब पी कर घर पहुंचता तो उस की पत्नी घर में कलह शुरू कर देती थी.

शिववती कहती, ‘एक तो तुम वैसे भी किसी काम के नहीं हो, ऊपर से शराब पी कर आ जाते हो. तुम्हें न मेरी चिंता है और न बच्चे की.’

 

विजय लाल अपनी कमजोरी समझता था, इसलिए वह बीवी की जलीकटी बातें सुन लेता था. विजय लाल के घर अजय कुमार का आनाजाना था. अजय कुमार रसूलाबाद थाने के अंतर्गत आने वाले गांव संभरपुर का रहने वाला था. विजय लाल उस का ममेरा भाई था.

अजय कुमार जब भी शिवली कस्बे से बीजखाद लेने आता था, मामा के घर जरूर जाता था. अजय कुमार शादीशुदा था और 2 बच्चों का बाप भी. उस की पत्नी अनपढ़ और सामान्य सी महिला थी, इसलिए वह उसे मन से नहीं चाहता था. अपनी पत्नी से उस की बिलकुल नहीं पटती थी.

शिववती ने अजय के आने पर पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह कामना की आग में झुलसने लगी तो उस ने अजय पर नजरें गड़ानी शुरू कर दीं. अब अजय जब भी घर आता, शिववती उसे चाहत भरी नजरों से देखती. उस से हंसीमजाक करती.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह

 

अजय पहले तो सकुचाया, क्योंकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. लेकिन जब उस ने शिववती की आंखों में चाहत देखी तो उस ने भी कदम आगे बढ़ा दिए.

अजय का शिववती के घर कभीकभी ही आ पाता था. उस रोज वह कई दिनों बाद आया तो काफी रोमांटिक मूड में था. शिववती भाभी के लिए वह गिफ्ट में एक साड़ी ले कर आया था, लेकिन वह उसे घर में दिखाई नहीं दी. उस की बेचैन निगाहें शिववती को देखने को बेचैन थीं. अजय को घर में बैठे काफी देर हो गई थी. लेकिन उसे भाभी का दीदार नहीं हुआ था.

कुरसी पर बैठेबैठे वह पहलू बदलने लगा. तभी गुसलखाने की किवाड़ें खुलीं और शिववती बाहर निकली. भीगे तनबदन पर लपेटी हुई साड़ी शरीर से चिपकी पड़ी थी. ऐसे में देह के सारे कटाव और उभार साफ दिख रहे थे.

 

अजय हैरान नजरों से शिववती के हुस्न और शबाब को देखता रहा. अजय को देख शिववती अपनी हालत पर थोड़ी लजाई, फिर गीले बालों को पीछे झटकते हुए बोली, ‘‘अजय, तुम कब आए?’’

‘‘अभीअभी आया हूं भाभी.’’ अजय की निगाहें अनीता के बदन पर ही चिपकी हुई थीं. वह बोला, ‘‘विजय भैया नजर नहीं आ रहे, कहीं गए हैं?’’

‘‘हां, वह दुकान पर गए हैं. अब तो रात तक ही वापस लौटेंगे. तुम बैठो, मैं कपड़े बदल कर आती हूं.’’ शिववती ने कहा तो अजय बोल पड़ा, ‘‘भाभी, एक मिनट ठहरो.’’

उस ने अपने बैग से साड़ी का एक लिफाफा निकाला और उसे शिववती की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लो भाभी, यह मैं तुम्हारे लिए ही लाया हूं. कपड़े बदलने जा ही रही हो तो इसे ही पहन लो. मैं भी तो देखूं कि इस साड़ी में कैसी लगोगी.’’

शिववती ने साड़ी ली और मादक निगाहों के तीर चलाती हुई दूसरे कमरे में चली गई. कुछ देर बाद शिववती साड़ी पहन कर आई तो उस के हाथ में पानी का गिलास था. अजय ने पानी लिया और एक ही सांस में पी गया.

‘‘क्या बात है अजय, बहुत प्यासे नजर आ रहे हो.’’ शिववती ने चुहल की.

‘‘प्यासा था नहीं, पर अब प्यास जाग गई है.’’ अजय ने शिववती को गौर से देखा, ‘‘तुम पर साड़ी खूब फब रही है. अच्छी है न?’’

‘‘बहुत अच्छी है, तुम लाओ और अच्छी न हो, भला ऐसा हो सकता है?’’ शिववती मुसकराई.

 

यह देख कर कुरसी पर बैठा अजय खड़ा हो गया. वह शिववती की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘जानती हो भाभी, मैं यहां बारबार क्यों आता हूं.’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, तुम हमारे रिश्तेदार हो, जब चाहे आ सकते हो.’’ शिववती मुसकराई.

‘‘सच कहा तुम ने. पर मुझे तुम्हारी चाहत खींच लाती है. मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं.’’ अजय ने एकाएक उस का हाथ पकड़ लिया. फिर उसे अपनी बांहों में भर लिया. इस से शिववती की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगीं.

वह कसमसाई, ‘‘यह ठीक नहीं है अजय.’’

‘‘ठीक तब नहीं होगा भाभी, जब हम अपनी चाहतों को अधूरा छोड़ देंगे.’’ कह कर अजय ने अपने हाथों की हरकत बढ़ा दी.

आखिर शिववती ने अपनी आंखें बंद कर के खुद को अजय की बांहों में छोड़ दिया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस रोज शिववती ने वह सुख पा लिया, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. वह अजय की दीवानी हो गई.

उस दिन के बाद शिववती व अजय को जब भी मौका मिलता, वह मिलन कर लेते. जब विजय घर पर नहीं होता, तब अजय उस के ही कमरे में घुसा रहता. चूंकि अजय व शिववती करीबी रिश्ते में थे, इसलिए काफी दिनों तक गांव में किसी को उन के संबंधों पर शक नहीं हुआ. सब की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपनी मन की मुराद पूरी करते रहे.

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी

शिववती अब पति के बजाए अजय के लिए शृंगार करने लगी. शिववती के व्यवहार में भी अब काफी बदलाव आ गया था. उस की चंचलता बढ़ गई थी और चेहरे पर लुनाई छाने लगी थी. उस का पति विजय इस बदलाव को महसूस कर रहा था, लेकिन उसे इस की वजह पता नहीं थी.

लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों से हकीकत छिपी न रह सकी. विजय की गैरमौजूदगी में अजय का बारबार उस के घर आना लोगों के मन में शक पैदा कर रहा था. एक रोज एक पड़ोसी ने विजय को टोक ही दिया. उसे सारी बात बताई तथा सलाह दी कि वह नौकरी के साथसाथ घरवाली का भी खयाल रखे.

पड़ोसी की बात सुन कर विजय का माथा ठनका. उस रोज उस का मन काम में नहीं लगा और शाम को जल्द घर आ गया. आते ही उस ने पत्नी से सीधा सवाल किया, ‘‘ये अजय यहां बारबार क्यों आता है?’’

‘‘तुम्हारा रिश्तेदार है. तुम ममेरे भाई हो, इसलिए आता है.’’ शिववती बोली.

‘‘लेकिन वह मेरी गैरमौजूदगी में क्यों आता है?’’

‘‘तुम सुबह काम पर चले जाते हो और रात को लौटते हो. यदि वह तुम्हारी गैरमौजूदगी में आता है तो क्या मैं उसे घर से निकाल दूं.’’

‘‘निकालो या कुछ भी करो, लेकिन वह मेरी गैरहाजिरी में घर नहीं आना चाहिए.’’ विजय ने गुस्से में कहा.

‘‘पर हुआ क्या है, यह तो बताओ. आप इतने खफा क्यों हो?’’ शिववती ने पूछा.

‘‘देखो शिववती, मोहल्ले वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें कर रहे हैं. इस से हमारी बदनामी हो रही है. मैं नहीं चाहता कि आज के बाद अजय के मनहूस कदम इस घर में पड़ें.’’ विजय ने तेज आवाज में कहा.

तभी शिववती चीख कर बोली, ‘‘मैं कौन होती हूं उसे रोकने वाली. तुम खुद रोको.’’

पत्नी की इस बेहयाई पर विजय ने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया, ‘‘बदचलन, अगर तू ही उसे मुंह नहीं लगाएगी तो वह कैसे आएगा?’’

 

पति का रौद्र रूप देख वह सकते में आ गई. अगले रोज जैसे ही विजय घर से काम पर जाने के लिए निकला, वैसे ही शिववती ने अजय को फोन मिलाया और उसे पूरी बात बता दी. अजय ने उसे दिलासा दी, ‘‘भाभी, तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. मैं हूं न.’’

‘‘नहीं अजय, मेरा दिल घबरा रहा है. हमारे रिश्तों की भनक विजय को लग गई है, इसलिए अब तुम यहां मत आना.’’

‘‘ऐसा मत कहो भाभी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो कुछ दिन रह लो. फिर मैं कोई रास्ता निकालती हूं.’’

इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अजय शिववती से मिलने नहीं आया. लेकिन जब शिववती को अजय की याद सताने लगी तो उस ने फोन कर के अजय को देर रात अपने यहां आने को कहा.

अजय की लुधौरा गांव के पश्चिमी छोर पर रहने वाले रमेश सरस से दोस्ती थी. दोनों हमउम्र थे. अजय और शिववती के नाजायज रिश्ते की जानकारी उसे भी थी. शराब के लालच में रमेश अजय को रात में अपने यहां ठहरा लेता था. शिववती ने जब उसे बुलाया तो वह देर शाम लुधौरा बाघपुर गांव पहुंच गया. उस ने अपनी साइकिल दोस्त रमेश के घर खड़ी कर दी फिर शिववती से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन

शिववती उसी का इंतजार कर रही थी. उस का पति थकाहारा आ कर खाना खाने के बाद कब का सो चुका था. अजय के आते ही शिववती उसे छत पर बने कमरे में ले गई. वहां दोनों मौजमस्ती में जुट गए.

इस के बाद अजय दोस्त के घर चला गया. विजय के सोने के बाद उस के घर में कौन आया, कौन गया, उसे पता नहीं चला. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. अजय सप्ताह में 1-2 बार शिववती से मिलने पहुंच जाता था.

गलत काम चाहे कितनी भी चालाकी से किया जाए, एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. एक रात विजय दोस्तों के साथ शराब पी कर नशे में धुत हो कर घर आया. ज्यादा नशे में होने की वजह से वह बिस्तर पर गिरा और सो गया.

संयोग से उस शाम अजय भी गांव में अपने दोस्त रमेश के यहां आया हुआ था. शिववती ने अजय को फोन कर के घर बुला लिया. नशे में धुत विजय को खर्राटे लेते देख कर अजय का मन मचल उठा. उस ने शिववती से कहा, ‘‘भाभी, आज तो भैया इतने नशे में हैं कि इन की आंखें सुबह होने से पहले नहीं खुलने वालीं.’’

‘‘तभी तो मैं ने तुम्हें बुलाया है.’’ शिववती बोली.

इस के बाद दोनों इत्मीनान से कामलीला में मग्न हो गए.

संयोग से तभी विजय को प्यास लगी तो उस की नींद टूट गई. उस ने देखा कि शिववती चारपाई पर नहीं है. वह पानी पीना भूल गया और पत्नी को ढूंढने लगा, वह नहीं मिली. दबेपांव विजय सीढि़यों से छत पर जा पहुंचा. वहां कमरे में शिववती को अजय की बांहों में समाया देखा तो विजय के तनबदन में आग लग गई. उस दिन उसे पत्नी की सच्चाई का प्रमाण मिल गया था.

 

तेज कदमों से वह उन दोनों के करीब पहुंचा. लेकिन दोनों कामक्रीड़ा में इतने तल्लीन थे कि उन्हें विजय के आने का आभास तक नहीं हुआ. विजय ने अजय के बाल पकड़ कर उसे झिंझोड़ा. अचानक हुए इस हमले से अजय सकते में आ गया. उस ने खुद को संभालते हुए अपने कपड़े उठाए और फटाफट पहन कर वहां से भाग खड़ा हुआ. पति के रौद्र रूप को देख कर एक कोने में सिमटी शिववती समझ चुकी थी कि आज उस की खैर नहीं.

उस रात विजय ने शिववती को रुई की तरह धुना. उस के बाद उस ने पत्नी पर तमाम पाबंदियां लगा दीं. शिववती का प्रेमी से मिलन बंद हुआ तो वह घुटघुट कर जीने लगी. अजय भी परेशान था. लेकिन दोनों को मिलन की कोई राह नहीं सूझ रही थी.

 

आखिर जब शिववती से रहा नहीं गया तो उस ने एक रोज हिम्मत जुटा कर फोन कर अजय को घर बुला लिया. अजय घर आया तो शिववती उस के सीने से लग कर सुबकने लगी, ‘‘अजय, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती. मुझे कहीं भगा कर ले चलो.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो. विजय भैया का क्या होगा, पता है?’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारी खातिर मैं उसे भी छोड़ दूंगी.’’

‘‘पर वह तो तुम्हें नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘हां, तुम्हारी यह बात सच है.’’ शिववती कुछ देर गहन सोच में डूबी रही फिर बोली, ‘‘तो फिर ऐसा करो कि किसी बदमाश से सौदा कर के विजय को जान से मरवा दो. कम से कम रोजरोज की कलह से तो मुक्ति मिलेगी.’’

शिववती के इरादे जान कर अजय हक्काबक्का रह गया कि यह औरत है या डायन, जो अपने ही पति की हत्या कराने की बात कर रही है.

वह सोचने लगा कि जो औरत आज अपने पति को कत्ल कराने पर आमादा है, कल वह उसे भी मरवा सकती है. यानी यह वफादार और भरोसेमंद नहीं है. इसलिए उस ने शिववती का साथ छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी.

एक हत्या ऐसी भी

अजय ने किसी तरह शिववती को समझाया कि वह बावली न बने. वह कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा. समझाबुझा कर अजय चला गया. अजय न तो ममेरे भाई का कत्ल करना चाहता था और न ही अपनी पत्नीबच्चों से दूर जाना चाहता था. वह तो बस शिववती से शारीरिक सुख चाहता था. शिववती ने समस्या खड़ी कर दी तो वह इस समस्या से निजात पाने की सोचने लगा.

3 जनवरी, 2019 की रात 8 बजे विजय घर आया तो घर में उसे पत्नी नहीं दिखी. पड़ोसी के घर उस का बेटा मनीष बच्चों के साथ खेल रहा था. उस ने मनीष से पूछा तो उस ने बताया कि मम्मी जंगल गई है. विजय लाल का माथा ठनका. उस ने पत्नी की खोज शुरू की लेकिन शिववती का पता नहीं चला. सवेरा होतेहोते पूरे गांव में बात फैल गई कि शिववती घर से गायब है.

लुधौरा बाघपुर गांव के बाहर छिद्दू यादव का खेत था. इस में उस ने अरहर की फसल बोई थी. छिद्दू सुबह 10 बजे के करीब अपने खेत पर पहुंचा तो उस ने खेत में एक महिला की लाश देखी. वह लाश के पास गया तो उस ने शिववती को पहचान लिया. छिद्दू ने यह जानकारी गांव में दी तो लोग दौड़ पड़े.

विजय लाल भी वहां पहुंचा. लाश देखते ही विजय लाल फफक कर रो पड़ा. क्योंकि लाश उस की पत्नी शिववती की थी. गांव वालों ने पुलिस को सूचना दी.

हत्या की सूचना पाते ही शिवली कोतवाली निरीक्षक चंद्रशेखर दूबे ने एसआई ए.के. सिंह, आर.पी. राजपूत, कांस्टेबल राजेश, उमाशंकर तथा महिला सिपाही पूनम को साथ लिया और घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. इसी बीच उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी.

 

घटनास्थल कोतवाली से करीब 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस फोर्स को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुटी थी. पुलिस को देखते ही भीड़ छंट गई. तब इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका गुलाबी रंग की साड़ी और उसी की मैचिंग का ब्लाउज पहने थी.

वह खूब शृंगार किए थी. उस के शरीर पर कोई जख्म नहीं था. ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या गला घोंट कर की गई हो. जोरजबरदस्ती किए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (देहात) राधेश्याम विश्वकर्मा तथा सीओ अर्पित कपूर भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पति विजय लाल से हत्या के संबंध में पूछताछ की.

 

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शिववती की लाश को पोस्टमार्टम हाउस माती भेज दिया. इस के बाद इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने विजय लाल की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले विजय लाल से ही पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘साहब, शिववती की हत्या संभरपुर गांव के रहने वाले अजय कुमार ने की है. वह हमारा रिश्तेदार है.’’

‘‘उस से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’ दूबे ने विजय को कुरेदा.

‘‘साहब, दुश्मनी नहीं है. अजय कुमार के मेरी पत्नी से नाजायज संबंध थे. मैं ने उसे रंगेहाथों पकड़ा था. इस के बाद उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी थी.’’ उस ने बताया.

विजय से बात करने के बाद इंसपेक्टर दूबे को शिववती की हत्या का कारण समझने में देर नहीं लगी. उन्होंने अजय के गांव संभरपुर में छापा मारा, लेकिन वह घर से फरार था. अजय कुमार को पकड़ने के लिए पुलिस ने झींझक, रसूलाबाद, मैथा, भाऊपुर में उस के रिश्तेदारों के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह हाथ नहीं लगा.

फिर 7 जनवरी, 2019 को इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे को खास मुखबिर से जानकारी मिली कि हत्यारोपी अजय कुमार मैथा नहर पुल पर मौजूद है. इस सूचना पर दूबे अपनी पुलिस टीम के साथ मैथा नहर पुल पर पहुंचे. पुलिस जीप देखते ही अजय नहर की पटरी पर सरपट भागने लगा. पुलिस ने पीछा कर के उसे दबोच लिया. उसे थाना शिवली लाया गया.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा

इंसपेक्टर चंद्रशेखर दूबे ने जब अजय कुमार से शिववती की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गया. हत्या का जुर्म कबूलते हुए उस ने बताया कि विजय लाल उस के मामा का बेटा है. उस के घर आनेजाने पर विजय की पत्नी शिववती से उस के अवैध संबंध बन गए थे.

कुछ समय से शिववती उस पर शादी करने तथा घर से भाग जाने का दबाव बना रही थी. वह अपने पति विजय की हत्या भी कराना चाहती थी. लेकिन वह शादीशुदा तथा 2 बच्चों का बाप है, इसलिए यह सब करने के लिए तैयार नहीं हुआ.

जब शिववती ने उस पर दबाव बढ़ाया तो उस ने शिववती से छुटकारा पाने की योजना बना ली. घटना वाली शाम उस ने उसे गांव के बाहर मिलने को कहा. वह वहां पहुंचा तो शिववती उसे अरहर के खेत में ले गई. वह सजधज कर आई थी. उस ने उस पर दबाव बनाया कि वह उसे आज ही अपने साथ भगा कर ले चले.

उस ने शिववती को समझाना चाहा तो वह भड़क उठी. गुस्से में उस ने शिववती को दबोच लिया और उसी के शाल से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद फरार हो गया. जुर्म कबूलने के बाद अजय ने वह शाल भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने शिववती का गला घोंटा था.

8 जनवरी, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अजय कुमार को कानपुर देहात की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल माती भेज दिया गया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुंदरी की साजिश

लेखक – नंदकिशोर गोयल

 

जून 2018 की तपती दोपहर थी. उस दिन गरमी पूरे शबाब पर थी. हनुमानगढ़ टाउन निवासी अशोक अरोड़ा जिला न्यायालय परिसर में
स्थित एक फोटोस्टेट दुकान में फोटोस्टेट करवाने को दाखिल हुए, तभी वहां खड़ी एक युवती ने मधुर स्वर में कहा, ‘‘भैया, 10 रुपए उधार देंगे क्या? मैं हड़बड़ाहट में अपना पर्स घर पर ही भूल आई हूं.’’
कुछ पल विचार कर अशोक ने एक 50 रुपए का नोट जेब से निकाल कर उस युवती की तरफ बढ़ा दिया. युवती ने नोट ले लिया व हाथ में पकड़े थैले में से कुछ ढूंढने लगी. तब तक अशोक के कागज फोटोस्टेट हो चुके थे. वह अपने कागज ले कर दुकान से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ चुके थे.
‘‘अरे भैया, बाकी 40 रुपए तो लेते जाइए.’’ कह कर हाथ में 10-10 के 4 नोट उठाए लगभग हांफती हुई वह युवती अशोक की कार के पास पहुंच चुकी थी. अशोक ने देखा युवती पसीने से तरबतर थी.
‘‘भाईसाहब, आज तो गरमी ने पसीनापसीना कर दिया है.’’ युवती ने फिर कहा और 40 रुपए उन्हें देते हुए बोली, ‘‘लीजिए, बाकी के 40 रुपए. मुझे 10 रुपए ही चाहिए थे.’’

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अशोक ने बाकी पैसे लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने बगल में स्थित एक रेस्टोरेंट की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘गरमी बहुत है. चलो, वहां कुछ ठंडा पीते हैं.’’
दोनों रेस्टोरेंट में एक मेज के सामने बैठ गए. उस समय वहां इक्कादुक्का ग्राहक ही थे. वेटर के आने पर अशोक ने 2 गिलास लस्सी का और्डर दिया. इस के बाद अशोक ने उस युवती को अपने बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मुझे अशोक अरोड़ा कहते हैं. मैं हनुमानगढ़ टाउन में रहता हूं. मेरे ईंट भट्ठे हैं. एक पार्टी पेमेंट देने में आनाकानी कर रही है. इसी चक्कर में कोर्ट आया था.’’
‘‘मेरा नाम सविता अरोड़ा है. मेरा पीहर टिब्बी का है और हनुमानगढ़ जंक्शन में मेरी ससुराल है. पति के साथ मेरी अनबन चल रही है और कोर्ट में तलाक का मामला डाल रखा है. इसी सिलसिले में मैं आज अदालत आई थी.’’ युवती ने अपने बारे में बताया.

‘‘आप यदि बुरा नहीं मानें तो एक बात कहूं?’’ अशोक ने उसे गौर से देखते हुए कहा.
‘‘हांहां, बेफिक्र हो कर कहिए.’’ वह बोली.
‘‘पिछले साल मैं अपने एक दोस्त की शादी में आप के टिब्बी के एक असीजा परिवार के यहां गया था. वहां लहंगाचुन्नी में सुंदर सलोनी एक युवती को देखा था. जहां तक मुझे अपनी याद्दाश्त पर भरोसा है, वह सुंदरी आप ही थीं.’’
इतना सुनते ही युवती खिलखिला पड़ी, ‘‘अशोक बाबू, मान गए आप की याद्दाश्त को. असीजा परिवार की सोनू मेरी पक्की सहेली है. उसी की शादी में मैं ने ही लहंगाचुन्नी पहना था.’’ सविता बोली.

बढ़ने लगीं नजदीकियां

तब तक लस्सी आ गई. सविता ने अशोक को बता दिया था कि कोर्ट में उस की अगली तारीख 17 जुलाई को होगी. उसी दौरान सविता ने अपना मोबाइल नंबर अशोक को दे दिया और अशोक ने भी अपना विजिटिंग कार्ड सविता को दे दिया था.
बता दें कि हनुमान टाउन मूल शहर है. वहीं हनुमानगढ़ जंक्शन में रेलवे स्टेशन सहित अन्य सभी सरकारी कार्यालय हैं. कुछ सालों में जंक्शन क्षेत्र भी किसी शहर का रूप ले चुका है. दोनों शहरों में लगभग 3 किलोमीटर का फासला है. इस फासला क्षेत्र में घग्घर नदी का बहाव क्षेत्र है.

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हालांकि अशोक अरोड़ा शादीशुदा व बालबच्चेदार थे. गाहेबगाहे सुंदर युवतियों द्वारा किसी मोटी आसामी को फांस कर ब्लैकमेल करने की खबरें वह अखबारों में पढ़ चुके थे. लिहाजा उन के मन में भी विचार आया कि कहीं वह भी तो इस तरह के जाल में नहीं फंस रहे.
तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह किसी भी सूरत में अपनी सीमा नहीं लांघेंगे. हां, सविता से संबंध केवल दोस्ती तक ही सीमित रखेंगे. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि विपरीत लिंगी का आकर्षण दोनों ही तरफ होता है. वही इन के बीच भी था.

सविता व अशोक दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. एक हफ्ता गुजर चुका था, पर किसी ने भी फोन नहीं किया था. लगभग 10 दिन बाद सविता ने अशोक के मोबाइल पर घंटी मारी. सविता का फोन आया देखते ही अशोक की आंखें चमक उठीं और दिल की धड़कनें बढ़ गईं.
औफिस में अकेले बैठे अशोक ने फोन रिसीव कर कहा, ‘‘कहिए मैडम…’’
‘‘मैडम नहीं, सिर्फ सविता. हां याद रखना, 17 जुलाई को मैं कोर्ट में आऊंगी, पेशी है. आप भी आओगे न?’’ वह बोली.

‘‘कोशिश करूंगा.’’ अशोक ने कहा.
‘‘अरे साहब, कोशिशवोशिश का बहाना नहीं चलेगा. आप की उधारी भी चुकानी है. आप को मेरी कसम है, जरूर आना.’’ सविता ने जैसे अधिकारपूर्ण स्वर में अशोक को याद दिलाई.

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सविता के अपनत्व भरे मीठे बोल ने अशोक को अंदर तक गुदगुदा दिया था. पर युवतियों द्वारा ब्लैकमेल की खबरों ने जैसे उन के पैरों में बेडि़यां डाल दी थीं.
17 जुलाई, 2018 की सुबह रोजाना की तरह तैयार हो कर अशोक अपने कार्यालय पहुंच चुके थे. उन का अंतर्मन अदालत जाने के लिए मना कर रहा था, पर बाहरी मन उन्हें अदालत जाने के लिए उकसा रहा था.
आखिर उन्होंने अपने बाहरी मन की बात मानी और आधा घंटा पहले ही अदालत पहुंच गए और कचहरी के पास उसी रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए, जिस में बैठ कर पिछली बार सविता के साथ लस्सी पी थी.

सजधज कर गई थी सविता

सविता भी कहां कम थी. वह भी अदालत के समय से काफी देर पहले ही कचहरी पहुंच गई थी. उस दिन विशेष बात यह थी कि सविता हलकाफुलका मेकअप कर वही लहंगाचुन्नी पहन कर आई थी जो उस ने अपनी सहेली सोनू की शादी में पहना था.
कचहरी पहुंच कर सविता ने इधरउधर ताकझांक की पर अशोक कहीं दिखाई नहीं दिए तो वह कचहरी से बाहर रेस्टोरेंट के पास पहुंच गई. जब वहां भी अशोक दिखाई नहीं दिए तो सविता ने उन का फोन नंबर मिलाया.

अशोक ने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘लहंगाचुन्नी में बड़ी खूबसूरत लग रही हो. लग रहा है जैसे कि अप्सरा आसमान से उतर आई हो.’’
अपनी प्रशंसा सुन कर सविता खुश हो गई. वह बोली, ‘‘आप हैं कहां, यहां तो दिखाई नहीं दे रहे?’’
‘‘मैं इसी रेस्टोरेंट में शीशे के पीछे बैठा हूं. आ जाओ.’’ अशोक ने कहा तो सविता रेस्टोरेंट में चली गई.
अशोक को देख कर वह बहुत खुश हुई और उस की टेबल के सामने बैठ गई.
‘‘अशोक बाबू, क्या खाएंगेपिएंगे, आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’ सविता ने कहा, ‘‘देखिए, मेरे परिवार में मेरे खैरख्वाह के नाम पर मात्र एक बूढ़ी मां है. मैं अपना पीहर छोड़ कर कामधंधे की तलाश में मां को ले कर हनुमानगढ़ आ गई हूं. किराए के एक कमरे में रह कर जैसेतैसे गुजरबसर कर रही हूं. खुद का मकान व आर्थिक हालत बेहतर होती तो आप के लिए लजीज भोज की व्यवस्था कर आप को घर पर आमंत्रित करती पर…’’

‘‘कोई बात नहीं. आप ने कह दिया यही बहुत है.’’ अशोक ने कहा. फिर दोनों में बातचीत चलती रही. वेटर के आने पर अशोक ने और्डर दिया. तब तक अशोक ने सविता के घर का एड्रैस ले लिया था.
कुछ देर बाद अशोक ने सविता से जाने की इजाजत मांगी. जातेजाते अशोक ने पर्स से एक 500 रुपए का नोट निकाला और सविता की तरफ बढ़ा दिया. सविता नोट पकड़ने में आनाकानी करने लगी तो अशोक ने कहा, ‘‘अरे भई, दोस्ती के नाम पर ही रख लो.’’

तब सविता ने वह नोट ले लिया. इस के बाद अशोक वहां से चले गए और सविता कोर्ट की तरफ चली गई.

अशोक की करने लगी छानबीन

उन के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो लगभग रोजाना ही फोन पर उन की बातें होने लगीं. सविता अब अशोक के औफिस में जाने लगी थी. अशोक के पास 2-3 गाडि़यां थीं. कभीकभी अशोक अपनी गाड़ी से सविता को उस के घर पहुंचवा देते थे.
सविता के बारबार आग्रह करने पर एक दिन अशोक समय निकाल कर उस के घर पहुंच गए. सविता ने दिल खोल कर उन का स्वागत किया. सविता ने अपनी मां को अशोक का परिचय एक दोस्त के रूप में दिया था.
समय गुजरता रहा. दोनों के बीच पनपा दोस्ती का पौधा धीरेधीरे वटवृक्ष बनता जा रहा था. कह सकते हैं कि दोनों के बीच दोस्ती का नाता जरूरत से ज्यादा प्रगाढ़ हो गया था. सविता समझ गई थी कि अशोक बहुत बड़ी आसामी है.

अशोक हो गए प्रभावित

एक दिन अशोक सविता के घर थे. तभी सविता बोली, ‘‘अशोक बाबू, अगर मैं आप को शौकी नाम से पुकारूं तो कैसे लगेगा?’’
‘‘मुझे मंजूर है. अब मेरी भी सुनो, मेरी एक कालेज की दोस्त थी तनु, पर एक ऐक्सीडेंट में उस की मौत हो गई. अगर आप को भी मैं तनु नाम देना चाहूं तो आप को कोई ऐतराज तो नहीं होगा.’’
‘‘नहीं, मुझे कोई ऐतराज नहीं,’’ सविता बोली, ‘‘देखो आप शब्द में अपनापन नहीं होता. अगर हम दोनों तुम शब्द का प्रयोग करेंगे तो अच्छा लगेगा.’’

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‘‘ओके.’’ अशोक ने सहमति जताई.
एक दिन सविता उर्फ तनु अशोक के कार्यालय गई. वहां अशोक को तनाव की हालत में देख कर तनु बोली, ‘‘शौकी, क्या बात है इतने परेशान क्यों हो?’’
‘‘तनु, बात तो कोई खास नहीं है, एकदो पार्टियों के यहां पैसा फंसा है. उसे ले कर टेंशन में हूं. दूसरी टेंशन यह है कि कुछ अरसा पहले भैया शेखावटी क्षेत्र से लाखों रुपयों की उगाही कर के लौट रहे थे, उन के साथ लूट हो गई थी. जो पुलिस अधिकारी इस केस की जांच कर रहे थे, उन से मेरी अभीअभी बात हुई है. उन्होंने कहा कि लुटेरों का कोई सुराग अभी तक नहीं लगा है.’’ अशोक ने बताया.
‘‘देखो शौकी, पुलिस अगर अपनी पर आ जाए तो आज नहीं तो कल लुटेरे जरूर पकड़े जाएंगे. रही बात फंसे पेमेंट की तो सुनो, मैं आज ही इस के लिए अपने ईस्टदेव की विशेष पूजाअर्चना शुरू करूंगी. मुझे विश्वास है कि हफ्ता-10 दिन में तुम्हारा फंसा हुआ पेमेंट मिल जाएगा.’’ तनु ने कहा.
कुछ देर बातचीत करने के बाद सविता उर्फ तनु अशोक की गाड़ी से अपने घर लौट गई थी.

उस दिन 15 सितंबर, 2018 की तारीख थी. अशोक अपने औफिस में पहुंचे ही थे कि डीडवाना निवासी सुशील शर्मा का फोन आ गया, ‘‘अशोक बाबू, आप 20 सितंबर को यहां आ जाइएगा. सभी पार्टियों का पेमेंट
तैयार है. मेरी सभी पार्टियों से बात हो गई है.’’ सुशील पैसों के लेनदेन में बिचौलिए का काम करता था.
यह मात्र संयोग ही था कि अशोक को पार्टियों ने स्वयं फोन कर पेमेंट के लिए उन्हें बुलाया था. लेकिन अशोक इसे सविता की पूजा का नतीजा समझ रहे थे. वह उस दिन बहुत खुश हुए. मारे खुशी के अशोक उछल पड़े थे.

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उसी समय अशोक ने फोन कर यह खुशखबरी तनु को दी, ‘‘भई तनु, मान गए तुम्हारी पूजाअर्चना व तुम्हारे ईस्टदेव को. पार्टियों ने 21 सितंबर को पेमेंट के लिए बुलाया है. और हां, सुनो मेरी तरफ से हीरा जडि़त एक अंगूठी तुम्हारे लिए गिफ्ट. दूसरा गिफ्ट तुम अपनी तरफ से मुझ से मांग लो. पेमेंट मिलते ही शेखावटी क्षेत्र से लाऊंगा तुम्हारा गिफ्ट, वहां की कारीगरी व सोने की क्वालिटी उच्चस्तर की होती है.’’
‘‘शौकी, एक बात सुनो. भैया की तरह पेमेंट ले कर बसों में सफर नहीं करना. कोई नशा सुंघा कर बेहोश कर सकता है. विश्वसनीय ड्राइवर के साथ अपनी कार से सफर करना.’’

सविता ने बना ली योजना

इधर अशोक खुश थे, वहीं सविता उर्फ तनु भी अपनी दिमागी खुराफात का पासा फेंक कर फूली नहीं समा रही थी.
सविता ने 16 सितंबर की सुबह अपने परिचित टैक्सी चालक सुनील नायक को फोन कर अपने घर बुला लिया था. सविता को जब भी इधरउधर जाना होता था, वह सुनील की टैक्सी ही ले जाती थी.
उस ने उस से कहा, ‘‘देखो सुनील, एक मालदार मुर्गी फंसी है. उसे बड़ी चतुराई व समझदारी से हलाल करना है. मामूली सी चूक या गड़बड़ हम दोनों को कालकोठरी में पहुंचा देगी. तुम इस में अपने 4-5 दोस्तों को और शामिल कर लो. क्योंकि मामला 50 लाख का है.’’

 

सुनील के पूछने पर सविता ने पूरा मामला उसे बता दिया था, ‘‘तुम उस शख्स की पहचान व उस की गाड़ी के बारे में जानना चाहते हो न, घबराओ मत पूरी जानकारी समय रहते तुम्हें मोबाइल से मिलती रहेगी. लेकिन याद रखना, इस योजना में अपने अति विश्वसनीय दोस्त ही शामिल करना.’’
सविता व सुनील ने अशोक को लूटने की पूरी योजना बना ली. दोनों की योजना फूलप्रूफ लग रही थी.

20 सितंबर को योजनानुसार सविता अशोक के औफिस में पहुंच गई. अशोक ने खड़े हो कर सविता की अगवानी की थी. उस ने नौकर से सविता के लिए मिठाइयां व समोसे मंगा लिए. वह बारबार सविता उर्फ तनु द्वारा की गई पूजाअर्चना की तारीफ कर रहे थे.
अशोक ने उस से कहा, ‘‘तनु, कल मैं अपने ड्राइवर विनोद के साथ कार से डीडवाना की तरफ उगाही करने जा रहा हूं. मेरी इच्छा है कि तुम भी साथ चलो.’’
‘‘अरे नहीं शौकी, मां की तबीयत ठीक नहीं है. मैं नहीं जा पाऊंगी.’’ तनु बोली.
‘‘अरे भाई, एक ही दिन की तो बात है, 22 को तो लौट ही आएंगे.’’ अशोक ने आग्रह किया.
‘‘तुम जाओ और पेमेंट मिलने पर मेरा गिफ्ट ले आना. और हां, वहां से एक चीज मेरी और लानी है. वह मैं तुम्हें फोन पर बता दूंगी.’’ तनु ने कहा.

‘‘जरूर ले आऊंगा.’’ अशोक ने कहा. फिर तनु अशोक की गाड़ी से घर लौट गई.
21 सितंबर, 2018 को अशोक अपनी गाड़ी से सरदारशहर के लिए रवाना हो गए. उधर सविता के बुलावे पर सुनील अपने 5 दोस्तों के साथ सविता के घर पहुंच गया था. सभी साथी युवा थे.

सविता ने सभी साथियों को योजना के बारे में विस्तार से बता दिया था. उस ने यह भी बता दिया था कि अशोक सरदारशहर से पहले इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर के सामने से मेरे लिए अचार खरीदेगा. वह 22 सितंबर की दोपहर तक मंदिर पहुंच जाएगा. वैसे मैं उस की पलपल की लोकेशन मोबाइल से तुम्हें देती रहूंगी.
अशोक डीडवाना के सुशील शर्मा के पास पहुंच गए. उस क्षेत्र से कलेक्शन कर शर्मा के यहां रात को रुके.
डीडवाना से 22 सितंबर की सुबह वह रवाना हो कर रतनगढ़ पहुंच गए. उस क्षेत्र में कलेक्शन कर वह तनु के लिए हीरे की अंगूठी खरीदने के लिए सर्राफा बाजार में गए पर वहां उन्हें उन की इच्छा के मुताबिक अंगूठी नहीं मिली.

सविता लेती रही पलपल की जानकारी

यह जानकारी उन्होंने फोन द्वारा तनु को दे दी और यह भी कह दिया कि उन्होंने एक व्यापारी को 20 हजार रुपए एडवांस के तौर पर अंगूठी बनवाने के लिए दे दिए हैं. अगले हफ्ते वह उस से अंगूठी ले आएंगे. अशोक ने आगे कहा, ‘‘हां, तुम एक और चीज के लिए कह रही थी, बताओ क्या लाना है?’’
‘‘शौकी, शेखावटी क्षेत्र में कच्चे बांस का अचार बढि़या मिलता है. वह लाना है एक किलो.’’ तनु ने कहा था.
‘‘तनु, रतनगढ़ में भी बांस का अचार बढि़या मिलता है.’’ अशोक ने कहा तो वह बोली, ‘‘अरे नहीं शौकी, सरदारशहर से पहले इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर के सामने अचार की बड़ी दुकान है. तुम उसी दुकान से अचार लाना. और हां, यह बताओ कितनी देर में वहां पहुंच जाओगे.’’ तनु ने अपने मतलब का प्रश्न दाग दिया.
‘‘बस आधे घंटे में अचार की दुकान पर पहुंच जाऊंगा.’’ अशोक ने बताया.

उधर सविता के कहने पर सुनील 22 सितंबर, 2018 की सुबह अपने दोस्तों के साथ इच्छापूर्ण बालाजी मंदिर पहुंच गया था. टैक्सी साइड में खड़ी कर सुनील अपने साथी बबलू के साथ अचार की दुकान के पास ही खड़ा हो गया था. अन्य साथी नजदीक के ढाबे पर चाय की चुस्कियां लेने लग गए थे. सविता के फोन करने पर पूरी चौकड़ी सतर्क हो गई थी.
करीब 20 मिनट बाद अशोक अपनी गाड़ी से मंदिर के सामने पहुंच गए. बांस का अचार खरीद कर वह जैसे ही दुकान से चले, वहां खड़े सुनील ने उन्हें पहचान लिया. और जब वह अपनी कार में जा कर बैठे तो सुनील ने उन की गाड़ी का नंबर आरजे31सी बी3927 को याद कर लिया. अशोक के वहां से चलते ही सविता ने फिर से अशोक को फोन किया तो अशोक ने बता दिया कि उन्होंने अचार ले लिया है.
सुनील करने लगा पीछा

सविता हर 10 मिनट बाद अशोक को फोन कर रही थी. तब एक बार अशोक ने कह दिया, ‘‘अरे तनु, परेशान क्यों हो रही हो. मैं ठीक हूं.’’
‘‘शौकी, बात यह है कि आज आप के लाए अचार के साथ ही मैं रोटी खाऊंगी. पेट में चूहे कूद रहे हैं इसलिए बारबार रिंग कर रही हूं.’’ सविता ने कह दिया. सविता की सफाई पर अशोक मुसकरा उठा था.

अशोक की गाड़ी के पीछे सुनील ने अपनी सफेद रंग की टैक्सी लगा दी. योजना बनी थी कि अशोक को ओवरटेक कर उन से नकदी लूट ली जाए, पर स्टेट हाइवे पर उस दिन ट्रैफिक ज्यादा था. एकदो बार सुनील ने अशोक की कार ओवरटेक करने की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली. अशोक की गाड़ी रावतसर पार कर गई थी.
तब सुनील ने फोन कर सविता को वस्तुस्थिति बता दी. सविता के निर्देश पर सुनील ने अशोक की गाड़ी का पीछा करना जारी रखा. अशोक की गाड़ी मैनावाली बसस्टैंड पर पहुंच गई थी. सुनसान जगह देख कर उन के चालक विनोद ने कहा, ‘‘भैयाजी, पेशाब कर लूं?’’
कह कर साइड में गाड़ी स्टार्ट हालत में खड़ी कर उतर गया. तभी पीछे से आ रही सुनील की टैक्सी वहां आ कर रुकी. उस में से 3 लोग उतरे. वे सभी अशोक की गाड़ी में फुरती से घुस गए. सुनील ने ड्राइविंग सीट संभाली और दोनों साथी अशोक के अगलबगल बैठ गए.
अनजान लोगों के गाड़ी में बैठने पर अशोक चौंके तो चुप रहने के लिए उन लोगों ने पिस्तौल दिखा दी, जिस से अशोक शांत हो गए. सुनील अशोक की गाड़ी तेज गति से ले गया.

लूट लिए 35 लाख रुपए

अशोक के अगलबगल बैठे रोहताश व बबलू ने अशोक के हाथपांव बांध दिए थे. बबलू ने हाथ में उठाए पिस्तौल को अशोक की कनपटी से सटा कर उसे गोली मारने
की धमकी दी. फिर सुनसान जगह देख कर उन्होंने अशोक को गाड़ी से निकाल दिया.
उन्होंने पिस्तौल के फायर से अशोक की गाड़ी के टायर पंक्चर कर दिए. नकदी का बैग व मोबाइल उठा कर सभी पीछे आ रही टैक्सी में बैठ कर फरार हो गए. उन के बैग में 35 लाख रुपए थे.
जैसेतैसे कुछ देर में अशोक ने अपने हाथ खोले और वह हनुमानगढ़ टाउन पुलिस थाना पहुंच गए. थानाप्रभारी सीआई विष्णुदत्त बिश्नोई को अशोक ने आपबीती सुनाई. उन्होंने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर इस की इत्तला उच्च अधिकारियों को दी.

एसपी अनिल कयाल ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र खुलासे के लिए कई टीमें गठित कर दीं. क्षेत्र में बढ़ रही लूटपाट व चोरी की घटनाओं से पुलिस की छिछालेदर हो रही थी. इस संगीन मामले की निगरानी खुद एसपी अनिल कर रहे थे.
काफी कोशिश के बाद भी पुलिस को लुटेरों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. इसी बीच एक मुखबिर ने सीआई विष्णुदत्त बिश्नोई को सविता व अशोक की प्रगाढ़ दोस्ती की सूचना दी.
हालांकि यह सूचना उन्हें अप्रभावी सी लग रही थी. पर पुलिस मामले के खुलासे की चाहत में किसी भी जानकारी को बेजा नहीं मानती. सीआई के निर्देश पर एसआई संध्या सविता को उस के घर से उठा लाईं. अशोक उस समय थाने में ही मौजूद थे.

अशोक ने सविता को देखते ही कहा, ‘‘सर, सविता मेरी शुभचिंतक है. इसे यहां क्यों ले आए. इसे क्यों परेशान कर रहे हैं?’’
‘‘अशोक बाबू, हम इन्हें कहां लुटेरा बता रहे हैं. बस मामूली पूछताछ ही तो करनी है.’’ सीआई ने कहा.
सविता को तलब करने से पहले जांच अधिकारी ने अशोक व सविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स प्राप्त कर ली थीं. वारदात के समय सविता व अशोक के बीच 8 बार बात हुई थी.
सविता के फोन की डिटेल्स में एक विशेष बात यह सामने आई कि अशोक से बात होने के तुरंत बाद सविता ने किसी अन्य फोन नंबर पर भी बात की थी. उस संदिग्ध नंबर की डिटेल्स भी पुलिस ने निकलवा ली.
सविता द्वारा अशोक को बारबार काल करने के बारे में पुलिस ने उस से पूछा तो सविता ने कहा, ‘‘सर, मैं ने अशोक बाबू से बांस का अचार मंगवाया था. चाहें तो आप इस बारे में इन्हीं से पूछ सकते हैं.’’

ऐसे खुला राज

पुलिस ने इस बारे में अशोक से पूछा तो उन्होंने सविता की बात की तसदीक कर दी. तब पुलिस ने सविता को घर भेज दिया. सुनीता की काल डिटेल्स में जो संदिग्ध नंबर आया था, वह नंबर सुनील नायक का निकला. पुलिस ने उस के घर पर दबिश दी तो वह नहीं मिला.
जांच अधिकारी ने अब तक की जांच रिपोर्ट एसपी अनिल कयाल तक पहुंचा दी थी. अधिकारियों की नजर में मामले का खुलासा हो चुका था व निकट भविष्य में किसी भी समय आरोपियों की गिरफ्तारी संभव थी.

अगले दिन सुनील नायक पुलिस के हत्थे चढ़ गया. जांच अधिकारी ने उस से पूछताछ शुरू कर दी. मनोवैज्ञानिक तरीके से की गई पूछताछ में सुनील ने सब कुछ पुलिस के सामने उगल दिया. उस ने अपने साथियों रोहताश, बबलू, कालू, मान सिंह, दीपक, मोहित व मनप्रीत के बारे में भी बता दिया.
पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादंसं की धारा 323, 395, 365, 109, 143, 120बी व 27 व 3/25 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उन्हें अदालत में पेश कर सभी को पूछताछ हेतु रिमांड पर ले लिया.
काबिलेगौर यह भी था कि सभी का यह पहला अपराध था. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 35 लाख की लूट की राशि में से 16 लाख रुपए बरामद कर लिए. रिमांड अवधि पूरी होने के बाद उन्हें फिर से न्यायालय में पेश कर जेल भिजवा दिया गया.
बेशक अशोक ने सुंदरियों के मामले में सीमा नहीं लांघी थी, लेकिन दोस्ती की घनिष्ठता में फंस कर एक सुंदरी का शिकार हो ही गए.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन

30 जनवरी, 2019 की शाम की बात है. मध्य दिल्ली के पहाड़गंज में चूनामंडी इलाके की गली नंबर 5 के प्रथम  तल स्थित मकान नंबर 2860 के बाहर भारी मात्रा में पुलिस तैनात थी. पुलिस ने यहां रहने वाले संजय सचदेव नाम के शख्स को हिरासत में लिया था. संजय सचदेव इस मकान में एक शेल्टर होम चलाता था. यहीं पर उस ने अपनी संस्था का अस्थाई औफिस भी बनाया हुआ था. पुलिस की इस काररवाई की भनक जल्द ही पूरे इलाके में सनसनी बन कर फैल गई. आननफानन में उस मकान के आगे लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

हर कोई जानना चाहता था कि इलाके में जिस इंसान को एक बड़े समाजसेवी की नजर से देखा जाता था, उसे पुलिस ने आखिर किस जुर्म में गिरफ्तार किया है. संजय सचदेव के छापे और उसे गिरफ्तार करने की सूचना मीडिया में भी जंगल की आग की तरह फैली, जिस के बाद पहाड़गंज के उस ठिकाने पर मीडिया के लोगों का भी हुजूम उमड़ आया.

दरअसल, संजय सचदेव ‘लव कमांडो’नाम से एक ऐसी संस्था चलाता था, जो उन प्रेमी जोड़ों को तथाकथित रूप से पनाह देती थी, जिन्हें समाज या अपने घरपरिवार वालों से जान का खतरा हो. ऐसे जोड़ों की एनजीओ में रहने की भी व्यवस्था थी. लेकिन यह केवल दिखावा भर था, सच्चाई कुछ और ही थी.

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आइए पहले इस संस्था के बारे में जान लें. साल 2001 में संजय सचदेव ने फरवरी महीने में अपने कुछ साथियों के साथ वैलेंटाइंस पीस कमांडो नाम का संगठन बनाया. दरअसल, वैलेंटाइंस डे करीब आते ही कुछ कट्टरपंथी संगठन दिल्ली व दूसरे महानगरों में प्रेमियों को यह त्यौहार मनाने पर बंदिशें लगा देते थे.

वैलेंटाइंस पीस कमांडो ने प्रेमियों के इस अवसर पर अपने कमांडो तैनात कर के प्रेमियों को सुरक्षा देने का काम शुरू किया. शुरुआती दौर में इस संगठन को ज्यादा रेस्पौंस नहीं मिला. 2006-07 तक ये संस्था ऐसे ही चलती रही.

लेकिन साल 2010 में हुई एक घटना ने संजय सचेदव की इस संस्था को विस्तार दे दिया. हुआ यूं कि संजय के एक रिश्तेदार के लड़के को एक लड़की से प्रेम विवाह करने की वजह से लड़की के परिजनों ने उस युवक को झूठे रेप केस में फंसा दिया.

संजय सचदेव को जब उस बात का पता चला तो उन्होंने खुद लड़की से बात की. लड़की ने उन्हें बताया कि मेरे पापा मुझ पर दबाव बना कर ऐसा करवा रहे हैं. जबकि हम दोनों रिलेशनशिप में हैं. इस के बाद संजय ने अदालत का सहारा लिया. कोर्ट ने प्रेमी को जमानत दे दी.

ऐसे आया लव कमांडो का आइडिया…

कोर्ट से बाहर निकलने पर एक दोस्त ने संजय सचदेव से कहा कि ऐसे लोगों को बचाने, पनाह देने और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कुछ और बेहतर किया जाना चाहिए. बस इसी के बाद सचदेव ने इस संस्था का स्वरूप बदल दिया. उन्होंने 2 हेल्पलाइन नंबर भी जारी कर दिए.

संस्था के शुरुआती दौर से जुड़े सदस्य और संस्था के कोऔर्डिनेटर हर्ष मल्होत्रा ने सुझाव दिया कि संस्था का नाम अब पीस कमांडो से बदल कर ‘लव कमांडो’ रख दिया जाए. संजय सचदेव को नाम अच्छा लगा, लिहाजा 2010 में संस्था का नाम ‘लव कमांडो’कर दिया गया.

‘लव कमांडो’ संस्था की शुरुआत के समय इस में सिर्फ 200 लोग थे,लेकिन वक्त गुजरता रहा, लोग जुड़ते गए. नतीजतन अकेली दिल्ली में लव कमांडो ग्रुप के 7 शेल्टर होम हैं,जहां प्रेमियों को तथाकथित सुरक्षा के साथ नि:शुल्क रहनेखाने की सुविधा दी जाती है.

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लव कमांडो के कर्ताधर्ता संजय सचदेव आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनने लगे,उनके इसी अद्भुत काम से प्रभावित हो कर आमिर खान ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम सत्यमेव जयते में लव कमांडो के चेयरमैन संजय सचदेव को बुलाया था, जिस के बाद संजय सचदेव की लोकप्रियता शिखर पर पहुंच गई थी.

लेकिन अचानक दिल्ली महिला आयोग और पुलिस के संयुक्त अभियान में लव कमांडो के बेस शेल्टर होम और अस्थाई मुख्यालय पर छापा मारने के बाद जो जानकारी सामने आई, उसे जान कर सभी हैरान रह गए.

दरअसल, हुआ यह कि दिल्ली के पहाड़गंज एरिया में लव कमांडोज का जो शेल्टर होम चल रहा था, वहां से 28 जनवरी 2019 को एक प्रेमी जोड़ा निकला और महिला आयोग की सदस्य किरण नेगी और फिरदौस से मिला.

इस जोड़े ने लव कमांडो के शेल्टर होम में प्रेमी जोड़े की मदद के नाम पर उन के साथ होने वाले अत्याचार और जबरन वसूली करने की एक ऐसी कहानी सुनाई,जिस से महिला आयोग की दोनों सदस्य उन की शिकायत को नजरअंदाज नहीं कर सकीं.

शिकायत गंभीर थी, इसलिए इसे महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के संज्ञान में लाया गया. स्वाति मालीवाल ने किरण नेगी और फिरदौस की अगुवाई में पुलिस के सहयोग से लव कमांडो के शेल्टर होम पर छापा मार कर सच्चाई का पता लगाने का फैसला लिया.

प्रेमी युगल की हिम्मत ने दिखाई राह

अगले दिन यानी 29 जनवरी को सदस्य किरण नेगी व फिरदौस को साथ ले कर दिल्ली महिला आयोग की मुखिया स्वाति मालीवाल मध्य दिल्ली जिला पुलिस के उपायुक्त मनदीप सिंह रंधावा से मिलीं और उन्हें एक दिन पहले प्रेमी जोड़े से मिली शिकायत से अवगत करा कर जांच के लिए पुलिस बल उपलब्ध कराने का अनुरोध किया.

डीसीपी रंधावा ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए तत्काल पहाड़गंज इलाके के एसीपी संजीव गुप्ता और एसएचओ सुनील चौहान को एक रेडिंग पार्टी तैयार करने के लिए कहा, जिस के बाद महिला आयोग की टीम पहाड़गंज थाने पहुंच गई. एसीपी संजीव गुप्ता ने एसएचओ सुनील चौहान के साथ संगतराशां चौकी प्रभारी दीपक कुमार वर्मा और एसआई खजान सिंह को भी टीम के साथ वहां बुलवा लिया था.

महिला आयोग की टीम के साथ पुलिस लव कमांडो के शेल्टर होम पहुंची. संयोग से उस वक्त संजय सचदेव वहां मौजूद था. पुलिस को वहां से 4 प्रेमी जोड़े मिले. इन में से 2 जोड़े ऐसे थे, जिन में लड़के व लडकियां अलगअलग धर्म से संबधित थे.

पुलिस व महिला आयोग की टीम ने चारों जोड़ों को अपने साथ लिया और पहाड़गंज थाने ले आए. वहां महिला आयोग की टीम ने चारों जोड़ों की काउंसलिंग कर के उन्हें समझाया कि शेल्टर होम में उन के साथ जो कुछ भी हुआ, बिना किसी डर या दबाव के बताएं.

चारों प्रेमी जोड़े पहले कुछ झिझक रहे थे लेकिन थोड़ी देर बाद वे खुल गए. इस के बाद उन्होंने शेल्टर होम में होने वाली कारगुजारियों के बारे में जो हकीकत बयान की,उसे सुन कर सब सकते में आ गए.

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प्रेमी जोड़ों ने बताया कि लव कमांडो प्रेमी जोड़ों की मदद करने व उन्हें पनाह देने के नाम पर संगठित रूप से जबरन वसूली का एक गिरोह चला रहा था.

महिला आयोग की टीम ने पुलिस से इस मामले की एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया. 29 जनवरी को ही प्रेमी जोड़ों के बयान के आधार पर थाना पहाड़गंज में भारतीय दंड संहिता की धारा 342, 384, 386, 506, 509 व 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस की जांच का काम संगतराशां चौकी प्रभारी दीपक वर्मा की निगरानी में एसआई खजान सिंह को सौंपा गया.

खजान सिंह ने उसी दिन चारों प्रेमी जोड़ों को अदालत में पेश कर मजिस्ट्रैट के सामने उन के बयान दर्ज करवा दिए. पुलिस को अपना विस्तृत बयान देने के बाद महिला आयोग की टीम चारों प्रेमी जोड़ों को अपने साथ ले गई और उन्हें दिल्ली सरकार के अलगअलग शेल्टर होम में शरण दे दी.

इस के बाद शुरू हुआ पुलिस की पड़ताल का काम. 30 जनवरी को एचएचओ सुनील चौहान और चौकी प्रभारी दीपक कुमार के नेतृत्व में एक टीम फिर से लव कमांडो के शेल्टर होम पहुंची. शेल्टर होम में 2 छोटे कमरे थे. उन में सभी प्रेमी जोड़ों का रखा जाता था. घर से भागे हुए प्रेमी जोड़ों को चूंकि कोई रास्ता और नहीं दिखता था, इसलिए शरण पाने के लिए उन्हें लव कमांडोज के शेल्टर होम में मिली शरण स्वर्ग से कम नहीं लगती थी.

लेकिन शरण मिलने के बाद उन जोड़ों को जल्दी ही वहां की हकीकत पता चल जाती थी. उन्हें वहां के सारे काम करने पड़ते थे. युवक-युवतियों को झाड़ूपोंछा तक करना पड़ता था. शेल्टर होम में सारा स्टाफ पुरुषों का था,लेकिन मजबूरी में उस जोड़े को स्टाफ के पैर भी दबाने पड़ते थे. वहां मौजूद जोड़ों ने पूछताछ में बताया था कि संजय सचदेव शाम होते ही शराब पी लेता था और लड़कों को जबरदस्ती अपने साथ शराब पिलाता था.

हालांकि लव कमांडो की हेल्पलाइन और प्रचार माध्यमों में यही कहा जाता था कि किसी भी प्रेमी जोड़े को शेल्टर होम में रहने या खाने की व्यवस्था मुफ्त है. लेकिन 1-2 दिन बाद जब कपल से शादी कराने के लिए उन के सभी मूल दस्तावेज लव कमांडो अपने कब्जे में लेते, उस के बाद कानूनी खर्चों के नाम पर और वहां शरण देने के लिए कपल से उस के एवज में मोटी फीस वसूली जाती थी.

इतना ही नहीं, अगर किसी कपल के घर वाले उन्हें पैसे भेजते तो लव कमांडो की टीम थोड़ा सा पैसा कपल को दे कर बाकी सारा खुद अपने पास रख लेते थे. इतना ही नहीं, छोटीछोटी बातों पर प्रेमी जोड़ों से बदसलूकी, गालीगलौज, यहां तक कि कभीकभी मारपीट तक की जाती थी.

वसूली के लिए ले लेते थे पहचान से जुड़े मूल कागजात…….

 यही नहीं, लव कमांडो की टीम सभी प्रेमी जोड़ों के आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और पहचान से जुड़े दूसरे दस्तावेजों की मूल प्रति तब तक के लिए अपने पास रख लेते थे,जब तक कपल से मोटी रकम नहीं वसूल हो जाती थी. ऐसा नहीं था कि प्रेमी जोडे़ इस का विरोध नहीं करते थे, लेकिन वे यह सोच कर चुप रह जाते थे कि चलो, जब तक शादी हो या कोई दूसरा सुरक्षित ठिकाना न मिले, तक तक लव कमांडो की जबरन वसूली को पूरा कर देते हैं.

प्रेमी जोड़े महीना-2 महीना जब तक लव कमांडो के किसी भी शेल्टर होम में पनाह ले कर रहते थे,तब तक उन के दस्तावेज वापस नहीं किए जाते थे. इस बीच लव कमांडो की टीम अलग-अलग बहाने से मोटी रकम ऐंठती रहती थी.

महिला आयोग और पुलिस की टीम ने जिन प्रेमी जोड़ों को वहां से निकलवाया था,उन सब की उम्र 25 साल के आसपास थी. पुलिस टीम ने शेल्टर होम में छापा मार कर तलाशी ली तो वहां उस कमरे से शराब की बहुत सारी खाली बोतलें मिलीं, जहां एक कमरे में संजय सचदेव आराम करता था.

इस के अलावा भी पुलिस को वहां रखी फाइलों से बहुत सारे जोड़ों की पहचान से जुड़े मूल दस्तावेज मिले. पुलिस को वहां से संजय के एक बैंक अकाउंट की पासबुक भी मिली. पुलिस का कहना है कि जब इस खाते की पड़ताल की गई तो पता चला कि संजय सचदेव के निजी खाते में पिछले 6 महीनों के दौरान ही 40 लाख से अधिक का ट्रांजैक्शन हुआ है.

संजय सचदेव पूछताछ में यह नहीं बता सका कि इतना पैसा उसे कहां से मिला. इस के बाद पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि प्रेमी जोड़ों ने संजय सचदेव पर जबरन वसूली का जो आरोप लगाया था, वह कहीं न कहीं सच है. इस के बाद संजय सचदेव के पास बचाव के लिए बहुत कुछ नहीं रह गया था. इसलिए पुलिस ने उसे उसी दिन गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर संजय सचदेव से पूछताछ हुई. उस के बाद लव कमांडो चेयरमैन को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

दरअसल, 28 दिसंबर को दिल्ली महिला आयोग के सामने जिस प्रेमी जोड़े ने लव कमांडो संगठन की शिकायत की थी, वह 20 दिसंबर को लव कमांडो के दफ्तर में शरण मांगने पहुंचा था.

वे दोनों संजय सचदेव से फोन पर बात करने के बाद अपनेअपने आईडी प्रूफ के साथ संजय के पास गए थे. वहां पहुंचते ही दोनों के फोन बंद करा दिए गए. प्रोटेक्शन देने व शादी कराने के नाम पर उन से 50 हजार रुपए ले लिए गए. प्रेमी के पास 55 हजार रुपए ही थे. वो भी बैंक में थे. चूंकि उन के दस्तावेज संजय सचदेव ने अपने कब्जे में ले लिए थे, इसलिए पैसा देना मजबूरी हो गई.

और पैसा मिलना नहीं था इसलिए छोड़ दिया गया प्रेमी जोड़े को…

संजय ने अपने 2 आदमी प्रेमी युवक के साथ भेजे और कहा कि एटीएम से पैसा निकाल कर इन को दे देना. सोनू नाम का एक कमांडो गया और प्रेमी ने उसे 40 हजार रुपए एटीएम से निकाल कर दे दिए. चूंकि पैसा पूरा नहीं मिला था, इसलिए इस प्रेमी जोड़े को वहां बंधक बना लिया गया.

लेकिन 28 जनवरी को किसी तरह उन्होंने संजय सचदेव को रजामंद कर लिया कि उन के पास और पैसा नहीं है, उन्हें अब शादी भी नहीं करनी, लिहाजा वे उन्हें जाने दें. संजय सचदेव ने कुछ पेपर उन्हें लौटा दिए. जबकि कुछ अपने पास ही रख लिए और उन्हें जाने की इजाजत दे दी.

इस प्रेमी जोड़े ने उसी वक्त संजय सचदेव के वसूली धंधे की पोल खोलने का मन बना लिया. प्रेमी जोड़े ने समाचार पत्रों में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल के बारे में बहुत पढ़ा था कि वे इस तरह के मामलों में बहुत संजीदगी से काम करती हैं.

उसी दिन प्रेमी जोड़ा दिल्ली महिला आयोग पहुंचा, जहां आयोग की सदस्य फिरदौस से उन की मुलाकात हुई. जोड़े ने उन्हें अपनी पीड़ा बताई. उस के बाद ही ये सारी काररवाई हुई. नतीजतन सालों से लव कमांडो संस्था की आड़ में चल रहे संजय सचदेव के वसूली धंधे का भंडाफोड़ हो गया.

संजय सचदेव से पूछताछ में पता चला कि इस संस्था में उस के बाद नंबर 2 की हैसियत हर्ष मल्होत्रा की है, जो संस्था का कोऔर्डिनेटर है. हालांकि हर्ष मल्होत्रा पहाड़गंज में ही रहता है और पेशे से प्रौपर्टी डीलर है. लव कमांडो की विशेष टीम में हर्ष मल्होत्रा का छोटा भाई राजेश मल्होत्रा भी शामिल है. इन के अलावा सोनू व गोविंदा नाम के 2 लव कमांडो प्रेमी जोड़ों पर निगाह रखने और उन की शादियां कराने की जिम्मेदारी उठाते थे.

पहाड़गंज थाने की पुलिस ने इन चारों की तलाश में उन के ठिकानों पर छापेमारी की तो हर्ष मल्होत्रा के अलावा तीनों लोग राजेश, सोनू व गोविंदा पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उन से पूछताछ में पता चला कि प्रेमी जोड़ों से रकम मिलती थी, उस में से उन्हें भी हिस्सा मिलता था.

पुलिस ने तीनों को पूछताछ के बाद अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस हर्ष मल्होत्रा की तलाश में लगातार छापेमारी कर रही है, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा था.

पुलिस को जांच में पता चला है कि संजय सचदेव के शेल्टर होम में प्रेमी जोड़ों को प्रताड़ना देने के अलावा उन से अवैध वसूली कई सालों से चली आ रही थी. पेशे से पत्रकार संजय सचदेव कुछ साल पहले जब रामविलास पासवान रेल मंत्री थे, तब उस ने उन के मीडिया सलाहकार के रूप में काम किया था.

इस के बाद से वह कोई काम नहीं करता था,लेकिन फिर भी ऐशो-आराम भरी जिदंगी बसर करता था. उस की आय का कोई स्थाई साधन नहीं था,फिर भी वह पूरे देश में घूमताफिरता था.

लव कमांडो के नाम पर मीडिया में जम कर अपना प्रचार करता था, जिस की वजह से उस की हैसियत इतनी बड़ी हो गई कि आमिर खान ने भी ‘सत्यमेव जयते’ के अपने कार्यक्रम में संजय सचदेव के अभियान की सराहना की. टीवी कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ से मिलने वाली ख्याति का उस ने अनुचित फायदा उठाया और अपने गलत इरादों को पूरा करने के लिए इस का सहारा लिया.

पीड़ितों ने मजिस्ट्रैट को दिए अपने बयान में भी आरोप लगाया कि संजय सचदेव अदालत द्वारा जारी किए गए उन के शादी के प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाण पत्र, कालेज की डिग्री और आधार कार्ड की मूल प्रति अपने पास रख लेता था. महिलाओं को बर्तन साफ करने पड़ते थे और साफसफाई करनी पड़ती थी.

यही नहीं, उन से और अधिक पैसे की मांग की जाती थी. जो लोग पैसे दे देते थे उन के प्रमाण पत्र वापस मिल जाते थे और उन्हें शेल्टर होम छोड़ कर जाने दिया जाता था. बाकियों को जबरन शेल्टर होम में रखा जाता था और उन को प्रताडि़त किया जाता था.

अगर कोई बीमार हो जाता तो वहां के कर्मचारी उसे डाक्टर के पास भी नहीं ले जाते थे. जांच में पुलिस को पता चला कि वहां एक व्यक्ति को 3 बार टायफाइड हो गया, लेकिन उस का उचित इलाज नहीं कराया गया. अगर कोई मनमानी फीस दिए बिना वहां से जाने का प्रयास करता तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती. साथ ही उस से कहा जाता कि वे उन के परिवार को बुला कर उन्हें उन के सुपुर्द कर देंगे.

संजय सचदेव की डार्लिंग

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि संजय सचदेव शेल्टर होम में रह रही एक शादीशुदा युवती को हमेशा डार्लिंग कह कर बुलाता था. युवती के इसी आरोप के मद्देनजर पुलिस ने दर्ज केस में आईपीसी की धारा 509 जोड़ी गई.

संजय का एक बेटा नेवी में है. वह भी इसी होम में रहता था. दूसरा बेटा एयरफोर्स में है. वैसे लव कमांडो की टीम के लोग प्रेमी जोड़ों से संजय सचदेव को पापा कह कर बुलाने के लिए कहते थे,ताकि सब को लगे कि संजय सचदेव एक पिता की तरह प्रेमी जोड़ों का संरक्षण देता है.

युवतियों ने अपने बयान में यह भी बताया कि रात में चारों जोड़ों को अलगअलग कमरे में बंद कर दिया जाता था. भागने के डर से दोनों कमरों पर बाहर से ताले लगा दिए जाते थे. प्रेमी जोड़ों को बासी व साधारण खाना परोसा जाता था. शेल्टर होम के सामने ही संजय सचदेव का निजी घर था, वहां भी प्रेमी जोड़ों से काम करवाया जाता था. यहीं से राशन शेल्टर होम में जाता था.

शेल्टर होम के चेयरमैन संजय ने शेल्टर होम में 3 खूंखार कुत्ते पाल रखे थे. कोई प्रेमी जोड़ा बात नहीं मानता था तो ये उन पर कुत्ते छोड़ देते थे. इस के अलावा कोई बाहर जाने या भागने का प्रयास करता तो कुत्ते नहीं जाने देते थे.

जांच में पता चला कि जिस प्रौपर्टी पर यह शेल्टर होम चल रहा था, उसे ढाई साल पहले किराए पर लिया गया था. पुलिस ने शेल्टर होम का एक रजिस्टर भी जब्त किया है, जिस में तमाम जानकारियां मिलीं.

पुलिस को जांच में पता चला है कि लव कमांडो का यह गैंग अभी तक करीब 500 से ज्यादा कपल से रकम ऐंठ चुका था. कैश खत्म होने के बाद ये लोग कपल्स के रिश्तेदारों, परिवार, दोस्तों व जानकारों से रुपए मंगवाने का दबाव बनाने लगते थे. जो नहीं दे पाता, उसे प्रताडि़त कर वहां से भगाने की तैयारी शुरू कर दी जाती थी.

कपल्स को कम से कम 6 महीने तक रहने के लिए कहा जाता था. पुलिस का कहना है कि नौजवान युवा पीढ़ी में कानून के प्रति जानकारी का अभाव ही एक बड़ी वजह थी, जिस से वे ऐसे लोगों के जाल में फंस जाते थे.

पुलिस अब सभी आरोपियों व संस्था से जुड़े बैंक अकाउंट को भी खंगालने की तैयारी कर रही है ताकि साफ हो सके कि उन के खाते में बीते 9 साल में कितनी रकम जमा करवाई गई.

जांच सिर्फ दिल्ली तक ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों पर भी फोकस की गई है. 9 साल के भीतर कुल कितने लोग इस संस्था के संपर्क में आए, पुलिस इस का भी पूरा ब्यौरा जुटाने में लगी है ताकि उन्हें भी जरूरत पड़ने पर जांच में शामिल किया जा सके. इस शेल्टर होम में पहले रह चुके युवक-युवतियों से भी पुलिस संपर्क कर शारीरिक शोषण के एंगल से भी जांच करेगी.

लव कमांडो क्यों हुआ चर्चित…

आमतौर पर भारत के छोटे शहरों और गांवों में इज्जत के नाम बेगुनाहों की हत्या कर दी जाती है. लेकिन हाल के दिनों में मीडिया इस बारे में ज्यादा रिपोर्टिंग करने लगा है, जिस से लोग डरने लगे हैं. भारत के कई क्षेत्रों में आज भी प्रेमी युगलों के लिए अन्य जाति से विवाह करना मुश्किल होता है.

पारिवारिक सदस्यों के साथसाथ कुछ खाप पंचायतों ने भी अन्य जाति से प्यार करने वाले लोगों की जान लेने जैसे सख्त कानून बना रखे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक स्वयंसेवी संस्था ‘शक्ति वाहिनी’ की याचिका पर स्वयंभू खाप पंचायतों और प्यार पर बंदिश लगाने वाले अभिभावकों को कड़ी फटकार लगाते हुए ये निर्देश दिया कि बालिग लड़केलड़की की शादी के फैसले में कोई भी दखल नहीं दे सकता.

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में जोड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस पर होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि कोई शादी कानूनी तौर पर वैध है या नहीं, इस का फैसला अदालतें करेंगी न कि परिवार और खाप पंचायतें. अदालत के इस फरमान से पहले ही संजय सचदेव इस सोच को लव कमांडो बना कर अपनी राह पर बढ़ चुका था.

लव कमांडो संस्था ने कुछ कहानियों को मीडिया में इस तरह प्रचारित किया कि पूरे देश में लव कमांडोज के काम की तारीफ होने लगी. बाद में यह संस्था हर साल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम भी और्गनाइज करने लगी.

कुछ चर्चित मामले जिन्होंने दिलाई सुर्खियां

2 दिसंबर, 2012 को बुलंदशहर के अब्दुल हकीम को उस के घर के पास गोलियों से भून दिया गया.

अब्दुल हकीम और महविश अड़ोसपड़ोस में रहते थे और बचपन से ही एकदूसरे को पसंद करते थे. लेकिन जब महविश के परिजनों को दोनों के प्रेमसंबधों का पता चला तो उस के घरवालों ने उस की पढ़ाई बंद करवा दी. साथ ही घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन वक्त बीतने के साथ जब हकीम शहर के स्कूल में पढ़ने लगा था तो महविश के परिजनों ने सोचा कि अब महविश अपना प्यार भूल चुकी होगी. उन्होंने धीरेधीरे बंदिशें कम कर दीं.

परिजनों को लगा कि बचपन की प्रेम कहानी खत्म हो गई है. इस बीच महविश का निकाह उस की मौसी के लड़के से तय कर दिया गया. 31 अक्तूबर, 2010 को निकाह की तारीख तय हुई. हकीम के अलावा किसी अन्य से महविश को निकाह कबूल नहीं था, लिहाजा 29 अक्तूबर, 2010 की रात वह अपने प्रेमी अब्दुल हकीम के साथ भाग गई. पहले महविश की तलाश शुरू हुई. शक अब्दुल पर गया. जब वह भी लापता मिला तो दोनों परिवारों के लोगों में तनातनी हो गई.

इस के बाद बिरादरी की खाप पंचायत में प्रेमी जोड़े की हत्या करने वर 50 हजार रुपए का नकद ईनाम देने की घोषणा की. घर से भाग कर महविश और अब्दुल ने पहले अलीगढ़ कोर्ट में 7 नवंबर, 2010 को कोर्ट मैरिज की, फिर मेरठ के तारापुरी के एक मोहल्ले में 11 नवंबर, 2010 को काजी से निकाह पढ़वा कर मजहबी शादी की.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अब्दुल को दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी. जब इस से काम नहीं चला तो दोनों दिल्ली आ गए और सीलमपुर में आ कर रहने लगे. जहां अब्दुल को औटोरिक्शा चलाना पड़ा. उधर महविश के घरवालों का अब्दुल के भाइयों और मां पर कहर टूटना शुरू हुआ.

प्रेमी जोड़े की हत्या पर रखा ईनाम

महविश अपने पति अब्दुल को ले कर हाईकोर्ट पहुंची और अपने पति के परिवार और अपनी सुरक्षा की मांग की. हाईकोर्ट ने महविश को इंसाफ दिया और बुलंदशहर पुलिस को सुरक्षा देने के आदेश दिए. लेकिन जिला पुलिस ने सुरक्षा नहीं दी.

महविश दोबारा हाईकोर्ट पहुंची. इसी बीच महविश के गांव अड़ौली के 2 दरजन लोगों ने पंचायत कर अब्दुल के पिता मोहम्मद लतीफ को पेड़ पर उलटा लटका दिया और मारपीट की, जिस से लतीफ की मौत हो गई.

पुलिस में हड़कंप मचा, लेकिन उसे नैचुरल मौत बता कर मामला रफादफा कर दिया गया. 21 जुलाई, 2011 को महविश ने एक बेटी को जन्म दिया. इसी बीच कुछ लोगों से जानकारी मिलने पर महविश पहाड़गंज में लव कमांडो के चेयरमैन संजय सचदेव से मिली और उसे अपनी प्रेम कहानी बताई.

संजय सचदेव ने उसे सुरक्षा देने की दिलासा दी. उन्होंने बुलंदशहर के एसएसपी राजेश कुमार राठौर से बात की और हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए राजी किया. इतना ही नहीं संजय सचदेव के जरिए महविश खाप पंचायत के फरमान से लड़ने के लिए आमिर खान के सीरियल सत्यमेव जयते के 5वें एपिसोड में आई और अपनी सुरक्षा की मांग की.

इस का असर ये हुआ कि पुलिस को उन्हें सुरक्षा दे कर गांव में पुनर्वासित कराना पड़ा. लेकिन दिसंबर महीने में महविश के चचेरे भाई व चाचा ने अब्दुल की हत्या कर दी. बाद में पुलिस ने  महविश की तहरीर पर हत्या व साजिश का मुकदमा दर्ज कर तीनों आरोपियों गुल्लू, आसिफ और सरवर को गिरफ्तार कर लिया.

हकीम हत्याकांड में इंसाफ दिलाने के लिए भी संजय सचदेव के संगठन लव कमांडो ने महविश की भरपूर मदद की जिस कारण लव कमांडो को खूब सुर्खिया मिलीं. प्रेमियों की मदद करने के नाम पर लव कमांडो ने एक ओर चर्चित मामले से सुर्खियां बटोरी थीं. 9 अक्तूबर, 2016 को संस्था के हेल्पलाइन नंबर पर एक फोन आया, जिस में एक महिला ने रोते हुए कहा, ‘मुझे और मेरे पति को औनर किलिंग से बचा लो, ये दरिंदे हमें जान से मार डालेंगे.’

महिला ने अपना नाम सोनिया शर्मा बताते हुए आगे कहा, ‘मैं पुंछ,जम्मू कश्मीर की रहने वाली हूं. मेरे पति जेल में हैं और उन का कसूर यह है हम ने पिछले महीने लवमैरिज की थी. मैं खुद जम्मू के एक मंदिर में छिप कर रहते हुए अपनी जान व इज्जत बचा रही हूं. हमारी मदद करो. मैं दिल्ली के बस अड्डे तक पहुंच जाऊंगी. लेकिन आगे क्या होगा, मुझे नहीं पता. मेरी जान बचा लो प्लीज.’

अलग कहानी निकली सोनिया शर्मा की
हर्ष ने सोनिया को दिल्ली आने और बस का नंबर बताने को कहा. सोनिया ने यह भी बताया कि वह ये फोन जम्मू के उस मंदिर में दर्शन के लिए आए किसी दर्शनार्थी के फोन से कर रही है और बस मिलने के बाद किसी यात्री से अनुरोध कर के उस के फोन से नंबर की जानकारी देने की कोशिश करेगी.

10 अक्तूबर की सुबह करीब 7 बजे दिल्ली के कश्मीरी गेट बसअड्डे पर लव कमांडो के कमांडो ट्रेनर सुनील सागर, एक्सपर्ट कमांडो गोविंदा महिला एवं पुरुष कमांडो दस्ते के साथ मौजूद थे और जम्मू से आने वाली हर बस पर निगाह रखे थे.

जम्मू-कश्मीर रोडवेज की एक बस से एक महिला उतरी, जिस की आखें इधरउधर किसी को तलाश रही थीं. लव कमांडो का दस्ता उस के पास पहुंचा और उस से पूछा कि क्या वह सोनिया शर्मा हैं? उस के पूछने पर उन्होंने खुद का परिचय लव कमांडो के रूप में दिया तो सोनिया ने तसल्ली करने के बाद अपना परिचय उन्हें बताया.

बाद में सोनिया को लव कमांडो के बेस शेल्टर पहाड़गंज में लाया गया. जहां संजय सचदेव से उस की मुलाकात हुई. सोनिया की कहानी सुन कर व उस के दस्तावेज देख कर संजय सचदेव चौंक पड़े.

क्योंकि सोनिया का असली नाम फरजाना कौसर था, जिस ने इसलाम धर्म से  हिंदू धर्म में परिवर्तित कर के अपना नाम सोनिया शर्मा कर लिया था और अपने प्रेमी रिंकू कुमार निवासी खौर जिला जम्मू से 7 सितंबर, 2015 को आर्यसमाज मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से शादी की थी. गाजियाबाद में शादी पंजीकृत भी करवा ली थी, तब से ये दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे थे.

लेकिन 16 सितंबर को जब ये अपने वकील से मिलने तीसहजारी अदालत स्थित उस के चैंबर की ओर जा रहे थे तो वहां पहुंचने से पहले ही जम्मूकश्मीर पुलिस की टुकड़ी और फरजाना कौसर उर्फ सोनिया शर्मा के भाई एवं परिजनों ने उन्हें दबोच लिया. जिसे देख किसी वकील ने पीसीआर को काल कर दी थी. जिस पर तीसहजारी कोर्ट स्थित पुलिस चौकी का स्टाफ सभी को वहां ले आया था.

इस के बाद स्थानीय पुलिस से मिलीभगत कर के जम्मूकश्मीर पुलिस व सोनिया के परिजनों ने मजिस्ट्रैट को गुमराह कर के फरजाना कौसर उर्फ सोनिया को उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया और प्रेमी रिंकू शर्मा को पुंछ पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया.

बाद में फरजाना का अपहरण कर उस के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में जम्मूकश्मीर पुलिस ने रिंकू को पुंछ जेल भेज दिया. कुछ दिन बाद सोनिया फिर अपने परिवार को झांसा दे कर घर से भाग निकली और लव कमांडो संगठन से बात कर के दिल्ली पहुंच गई.

सोनिया ने बताया कि उस का मकसद अपने पति रिंकू व उस के परिवार को बचाना है. संजय सचदेव ने पहले उसे अपने शेल्टर होम में शरण दी, फिर खतोखिताबत कर के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं तक यह मामला पहुंचा दिया. जिस का असर यह हुआ कि कश्मीर पुलिस को संज्ञान ले कर मामले की जांच करनी पड़ी, जिस से सोनिया को तो न्याय मिला ही, साथ ही रिंकू को भी रिहा कर दिया गया.

हालांकि सोनिया को लंबी लड़ाई के बाद इंसाफ तो मिला, लेकिन इसे भी लव कमांडो ने अपनी उपलब्धि बता कर खूब प्रचारित किया. जबकि हकीकत यह थी कि इस पूरी लड़ाई में रिंकू के परिवार व सोनिया को लाखों रुपए खर्च करने पडे़ थे.

ऐसी ढेरों कहानियां हैं, जिन से प्रचार पा कर लव कमांडो ने शोहरत बटोरी और अपने जबरन वसूली के अनोखे धंधे को बड़े मुकाम तक पहुंचाया.

अतीक जेल में भी बाहुबली

30 दिसंबर, 2018 की सुबह साढ़े 10 बजे देवरिया के जिला कारागार में उस समय अफरातफरी मच गई, जब जिलाधिकारी अमित किशोर ने एसडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल, एडीएम रामकेश यादव, जिला सूचना विज्ञान अधिकारी कृष्णानंद यादव, एएसपी शिष्यपाल, सीओ (सदर) वरुण कुमार मिश्र और साइबर एक्सपर्ट सहित करीब 500 पुलिसकर्मियों के साथ जेल में छापा मारा. उन का मुख्य टारगेट था बैरक नंबर-7. इस बैरक में पूर्वांचल के कुख्यात बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद बंद थे.

जिलाधिकारी अमित किशोर ने यह काररवाई प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार के निर्देश पर की थी. दरअसल एक दिन पहले 29 दिसंबर को राजधानी लखनऊ के रहने वाले रीयल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल ने लखनऊ के कृष्णानगर थाने में पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के बेटे उमर अहमद सहित 4 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन, गुलफाम, फारुख और इरफान के खिलाफ अपहरण, धोखाधड़ी, रंगदारी मांगने, जाली कागज तैयार करने और आपराधिक साजिश रचने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

मोहित जायसवाल ने पुलिस को बताया कि 26 दिसंबर, 2018 को लखनऊ से उन का अपहरण कर उन्हें देवरिया जेल लाया गया था. जेल में बंद पूर्व सांसद अतीक अहमद की बैरक नंबर-7 में उन के बेटे उमर अहमद, अतीक अहमद और 2 गुर्गों गुलाम इमामुद्दीन और इरफान ने उन्हें जान से मारने की नीयत से बुरी तरह पीटा.

इस के साथ ही इन लोगों ने उन की करीब 45 करोड़ रुपए की संपत्ति हथियाने के लिए उन से जबरन स्टांप पेपरों पर दस्तखत करा लिए थे. उस के बाद उन्हें जबरन गाड़ी में बैठा कर लखनऊ के गोमतीनगर में फेंक दिया और उन की गाड़ी लूट कर चारों गुर्गे मौके से फरार हो गए. गौरतलब है, इलाहाबाद के बहुचर्चित मरियाडीह दोहरे हत्याकांड के केस में अतीक अहमद देवरिया जेल की बैरक नंबर-7 में बंद थे.

अतीक अहमद के खिलाफ कृष्णानगर थाने में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया था. ये कोई मामूली बात नहीं थी. एक कैदी ने जेल के भीतर रहते हुए सारे कायदेकानून तोड़ते हुए प्रशासन की नाक के नीचे ऐसा दुस्साहस किया कि प्रशासन उस के सामने बौना बना रहा.

मामला जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा तो उन्होंने इस की सच्चाई जानने के लिए प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार को लगाया. सरकार ने एडीजी (जेल) डा. शरद से 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी ताकि देवरिया जेल प्रशासन पर जवाबदेही तय की जा सके.

एडीजी (जेल) डा. शरद के निर्देश पर इस मामले की जांच गोरखपुर मंडलीय कारागार के वरिष्ठ जेल अधीक्षक डा. रामधनी और एसपी (देवरिया) एन. कोलांची को सौंपी गई थी. दोनों अधिकारियों ने देवरिया जेल जा कर मामले की जांच की.

जेल प्रशासन भी डर गया अतीक अहमद से

जांच में मोहित जायसवाल द्वारा लगाए गए आरोप सही पाए गए. इस में देवरिया जेल अधिकारियों की घोर लापरवाही उजागर हुई. 26 दिसंबर, 2018 की वह सीसीटीवी फुटेज भी डिलीट कर दी गई थी, जिस में कारोबारी मोहित जायसवाल के साथ मारपीट की घटना कैद थी. फुटेज की बारीकी से जांच करने पर एक जगह मोहित को दरजन भर लोगों के साथ जेल के भीतर जाते हुए देखा गया था, जबकि जेल के आगंतुक रजिस्टर में 26 दिसंबर को सिर्फ मोहित जायसवाल के अलावा एक और व्यक्ति के आने की एंट्री दर्ज थी.

यह मामला साफतौर पर घोर लापरवाही की ओर इशारा कर रहा था. जांच में डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे की लापरवाही साफसाफ झलक रही थी. जेल अधीक्षक दिलीप पांडे और जेलर मुकेश कटियार की कार्यशैली भी काफी संदिग्ध पाई गई थी. 24 घंटों के भीतर जांच कर के दोनों अधिकारियों ने रिपोर्ट एडीजी (कारागार) डा. शरद को भेज दी थी.

जांच रिपोर्ट के आधार पर एडीजी (कारागार) डा. शरद ने डिप्टी जेलर देवकांत यादव, हेड वार्डन मुन्ना पांडे, वार्डन राकेश कुमार शर्मा और वार्डन रामआसरे को तत्काल निलंबित कर दिया और जेल अधीक्षक दिलीप पांडे व जेलर मुकेश कटियार के खिलाफ विभागीय काररवाई करने के निर्देश दिए.

जेल अधिकारियों द्वारा पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ कानूनी काररवाई न करने पर ही प्रमुख सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने जांच के आधार पर डीएम अमित किशोर को जेल में जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

डीएम की मौजूदगी में अतीक अहमद के बैरक नंबर-7 की जांच की गई तो वहां सेलफोन, कई सिमकार्ड, खानेपीने की सामग्री (काजू, किशमिश, बादाम आदि) के अलावा और भी कई चीजें बरामद की गईं. पुलिस अधिकारियों ने बरामद चीजों को अपने कब्जे में ले लिया था.

इस मामले में साफतौर पर जेल अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी. जेल की गहनता से छानबीन करने पर डीएम अमित किशोर और एसपी एन. कोलांची ने जेल परिसर में बाहुबली अतीक अहमद के आतंक का अहसास महसूस किया.

अतीक का आतंक देख कर सरकार ने उसी दिन उसे देवरिया से बरेली जेल स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया. बरेली जेल स्थानांतरित होने का फैसला सुनते ही अतीक अहमद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. यही नहीं पति से मिलने आई उस की पत्नी शाइस्ता परवीन और बहन सलहा खान ने मीडियाकर्मियों को बयान देते हुए इस काररवाई को एक साजिश बताया.

खैर, सच और झूठ का पता तो अदालत में हो ही जाएगा. मुद्दा यह है कि बाहुबली के आतंक के सामने पुलिसप्रशासन ने घुटने क्यों टेक दिए थे? जेल प्रशासन उस के इशारे पर क्यों नाचता था? यह सब जानने के लिए अतीक अहमद के अतीत में झांकना होगा कि उस ने किस तरह जुर्म की दुनिया से राजनीति के गलियारों में कदम रखा.

अतीक अहमद की कर्मकथा

56 वर्षीय अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त, 1962 को हुआ था. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले थे, जो कालांतर में परिवार सहित इलाहाबाद, चकिया के कसारी मसारी में आ कर रहने लगे थे. बचपन से ही दबंग रहे अतीक अहमद की पढ़ाईलिखाई में कोई खास रुचि नहीं थी. सन 1979 में उन्होंने इलाहाबाद के एमआईसी विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन फेल हो जाने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई छोड़ दी. पढ़ाई से मुंह मोड़ लेने के बाद अतीक अहमद जुर्म की दुनिया में पहुंच गए.

जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अतीक अहमद के खिलाफ कत्ल का पहला केस सन 1979 में इलाहाबाद के खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ था. उस के बाद अतीक ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उन के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक की हिस्ट्रीशीट खोल दी, जिस में बताया गया था कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, इलाहाबाद, घूमनगंज, खुल्दाबाद, शाहगंज, कोतवाली, कर्नलगंज, बरेली, कीडगंज ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली, गुंडा ऐक्ट, अवैध हथियार रखने, गैंगस्टर, बलवा आदि के मामले दर्ज हैं.

अतीक के खिलाफ सब से ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए थे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सन 1986 से 2007 तक अतीक अहमद के खिलाफ एक दरजन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर ऐक्ट के तहत दर्ज किए गए थे.

अंतरराज्यीय गिरोह के सरगना खुल्दाबाद थाने के हिस्ट्रीशीटर अतीक अहमद के खिलाफ इस साल तक 75 मुकदमे दर्ज हो चुके थे. उन के गिरोह में 138 सदस्य थे. कचहरी में पुलिस वकीलों के बीच शूटआउट में 4 लोगों का कत्ल, चकिया में नस्सन हत्याकांड, चांद बाबा हत्याकांड, कचहरी परिसर में बम से हमला और चकिया में निवास के सामने भाजपा नेता अशरफ हत्याकांड से अतीक अहमद शहर और प्रदेश में सुर्खियों में बने रहे.

खैर, अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके खूंखार अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है. पुलिस से बचना है तो सत्ता का सुरक्षा कवच पहनना जरूरी है. इस के बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया.

सन 1989 में उन्होंने पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाई. नतीजतन चुनाव जीत कर वह विधायक बन गए. विधायक बने अतीक अहमद ने सन 1991 और 1993 का विधानसभा चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत हासिल कर विधायक बन गए.

अपराधी से विधायक बने अतीक अहमद की इलाहाबाद में तूती बोलती थी. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नजर दबंग अतीक अहमद पर पड़ी तो उन्होंने सन 1996 के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का टिकट दे कर उन्हें चुनाव लड़ाया. फलस्वरूप अतीक फिर से विधायक चुने गए.

दबंग से बाहुबली बने अतीक अहमद ने सन 1999 में समाजवादी पार्टी से रिश्ता तोड़ कर सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल का दामन थाम लिया. अतीक अहमद की दबंगई का जलवा देख कर सोनेलाल पटेल ने इलाहाबाद के बजाए उन्हें प्रतापगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा. विधानसभा के चुनाव में पहली बार अतीक को हार का मुंह देखना पड़ा. सन 2002 में अपना दल ने उन्हें उन के पुराने चुनावी मैदान से खड़ा किया. यहां से चुनाव जीत कर अतीक फिर से विधायक बन गए.

अतीक अहमद बने मुलायम सिंह के सिपहसालार

सन 2003 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो दल बदलने में माहिर अतीक अहमद ने फिर से मुलायम सिंह यादव का दामन पकड़ लिया. सपा मुखिया ने बाहुबली अतीक अहमद की पुरानी बातों को भुला कर अपने खेमे में पनाह दे दी. सन 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए.

राजनीति में आने के बाद अतीक अहमद ने खुल्दाबाद में रंगदारी को ले कर कपड़ा व्यवसाई नीटू सरदार की हत्या करा कर क्षेत्र में दहशत फैला दी. नीटू सरदार हत्याकांड को भले ही 15 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों के जहन में आज भी उस की टीस है. विधायक अतीक अहमद ने रंगदारी को ले कर हुए विवाद में नीटू सरदार की गोलियों से छलनी कर के दिनदहाड़े हत्या करा दी थी.

इस हत्या में तब के विधायक रहे बाहुबली अतीक अहमद सहित 7 लोग आरोपी बनाए गए थे, जिस में अतीक के अलावा मोहम्मद जाकिर, मोहम्मद अहमद फहीम, मोहम्मद कैफ, नरेंद्र सिंह, शेरू उर्फ शिराज और अशरफ शामिल थे. बाद के दिनों में शेरू उर्फ शिराज की मौत हो जाने के कारण उस पर से मुकदमा समाप्त कर दिया गया था और अशरफ के गैरहाजिर रहने के कारण उस की केस फाइल अलग कर दी गई थी.

लंबे समय तक विशेष अदालत में चले इस मुकदमे में विशेष जज पवन कुमार तिवारी ने पूर्व सांसद अतीक अहमद सहित पांचों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया. उन्होंने 16 दिसंबर, 2018 को यह फैसला खान फरहत, खान शौकत, एडवोकेट राधेश्याम पांडेय और शासकीय अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद दिया था.

कोर्ट ने साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि इस मामले की कडि़यां पूरी तरह जुड़ नहीं पाईं, जिस से अपराध साबित होता है. बचावपक्ष के तर्क अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में आरोपों को प्रमाणित नहीं कर सके.

हत्या एवं आपराधिक साजिश रचने के आरोप को संदेह से परे साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा है. न्यायहित की चिंतन की स्याही और चेतना की लेखनी का निष्कर्ष स्पष्ट व साफ है कि दंडित किया जाना न्यायहित में नहीं है, इसलिए सभी आरोपियों को बरी किया जाता है.

आरोपियों के बरी किए जाने का मुख्य आधार पुलिस द्वारा विवेचना के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों को कोर्ट में साबित नहीं कर पाना था, जो साक्ष्य प्रस्तुत हुए, उन से मुकदमे की पूरी कडि़यां जुड़ नहीं पाई थीं.

मुकदमे के वादी रहे नीटू के पिता की मौत 2004 में होने के कारण उन का कोर्ट में बयान दर्ज नहीं हो सका. नीटू के पिता ने नामजद आरोपी जोगेंद्र सिंह को बनाया था. लेकिन बाहुबली अतीक के दबाव में आ कर नामजदगी गलत बता कर पुलिस ने दूसरे को आरोपी बना दिया था. और तो और बाहुबली की दहशत का आलम यह था कि जितने भी गवाह पेश हुए, किसी ने भी घटना का समर्थन नहीं किया.

मृतक नीटू सरदार की पत्नी जितेंद्र कौर भी अपने बयान से पलट गई. मृतक की मां परमदीप कौर ने भी इसी तरह का बयान दिया. नीटू के भाई अरविंद सिंह ने भी घटना का समर्थन नहीं किया. इस का सीधा लाभ आरोपियों को मिला.

खैर, 2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे. उन के सांसद बनने पर इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर उपचुनाव हुआ. सपा ने सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था, वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने कभी सांसद अतीक का दाहिना हाथ कहे जाने वाले राजू पाल को चुनावी मैदान में उतार दिया.

राजू पाल की हत्या

राजू पाल ने बाहुबली के दुलारे छोटे भाई अशरफ अहमद को हरा कर चुनाव जीत लिया. राजू पाल की जीत से सांसद अतीक अहमद खुश नहीं थे, क्योंकि उन के अपने ही प्यादे से उन्हें करारी शिकस्त मिली थी. इस शिकस्त को वह बरदाश्त नहीं कर पाए और उसे रास्ते से हटाने की खतरनाक साजिश रच डाली.

उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद ही 25 फरवरी, 2005 को दोपहर 3 बजे दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई. राजू पाल एसआरएन अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस से अपने समर्थकों के साथ 2 गाडि़यों में धूमनगंज के नीवां स्थित अपने घर लौट रहे थे, तभी सुलेमसराय में जीटी रोड पर अमितदीप मोटर्स के पास उन की गाड़ी को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी गई थी.

उस वक्त विधायक राजू पाल खुद क्वालिस कार की ड्राइविंग सीट पर थे. उन के बगल में उन के दोस्त की पत्नी रुखसाना बैठी थी, जो उन्हें चौफटका के पास मिली थी. इसी गाड़ी में संदीप यादव और देवीलाल भी सवार थे. पीछे स्कौर्पियो में ड्राइवर महेंद्र पटेल और ओमप्रकाश तथा नीवां के सैफ समेत 4 लोग और थे. दोनों गाडि़यों में एकएक शस्त्रधारी सिपाही भी था.

राजू पाल ने सांसद अतीक अहमद से अपनी जान को खतरा बताया था, इसीलिए उन की सुरक्षा में सिपाही तैनात कर दिए गए थे. कई गोलियां लगने से घायल राजू पाल समेत सभी लोगों को औटो से जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इस शूटआउट में संदीप यादव और देवीलाल भी मारे गए थे.

घटना की सूचना पा कर तत्कालीन एसएसपी सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) राजेश कृष्ण और थानाप्रभारी (धूमनगंज) परशुराम सिंह मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने राजू पाल का शव पोस्टमार्टम हाउस भेजा. लेकिन उन के समर्थक उन का शव वहां से उठा कर ले गए और सुलेमसराय में चक्काजाम कर दिया.

बसपा विधायक की हत्या से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी. विधायक राजू पाल की नवविवाहिता पत्नी पूजा पाल ने धूमनगंज थाने में सपा सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ, करीबियों फरहान, आबिद, रंजीत पाल, गुफरान समेत 9 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 120बी, 506 और 7 सीएल ऐक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. 9 दिन पहले ही राजू पाल ने पूजा से प्रेम विवाह किया था. अभी पूजा के हाथों की मेहंदी भी फीकी नहीं पड़ी थी.

बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नामजद आरोपी होने के बावजूद अतीक अहमद सांसद बने रहे. इस की वजह से चौतरफा आलोचनाओं का शिकार बनने के बाद मुलायम सिंह ने दिसंबर 2007 में सांसद अतीक अहमद को पार्टी से बाहर कर दिया.

मायावती ने अतीक को दिखाई अपनी हनक

अतीक अहमद ने राजू पाल हत्याकांड के गवाहों को भी डरानेधमकाने की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से बाहर हो जाने और मायावती के मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से कामयाब नहीं हो सके. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उन के भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था.

मुख्यमंत्री मायावती की हनक से अतीक अहमद के हौसले पस्त होने लगे थे. उन के खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे. इसी दौरान बाहुबली अतीक अहमद भूमिगत हो गए.

बाहुबली सांसद अतीक के फरार होने के बाद न्यायालय के आदेश पर उन के घर, कार्यालय सहित 5 स्थानों की संपत्ति कुर्क की जा चुकी थी और 5 मामलों में उन की संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए गए थे. फरार अतीक अहमद की गिरफ्तारी पर पुलिस ने 20 हजार रुपए का ईनाम रख दिया था.

ईनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था. इस के 6 महीने बाद दिल्ली पुलिस ने उन्हें पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार कर लिया था. उस वक्त अतीक ने कहा था कि उन्हें मुख्यमंत्री मायावती से जान का खतरा है, इसलिए शहर छोड़ कर वह फरार हो गए थे.

सांसद अतीक अहमद की उलटी गिनती शुरू हो गई थी. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक अहमद की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए उस का निर्माण ध्वस्त कर दिया था.

औपरेशन अतीक के तहत ही 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. दरअसल, सांसद अतीक अहमद ने राजू पाल कांड में उमेश पाल को गवाही देने से साफ मना कर दिया था.

ऐसा न करने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी. इसी के तहत उमेश पाल ने अतीक सहित 5 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इस के 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उन के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए थे.

सन 2013 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो एक बार फिर अतीक साइकिल पर सवार हो गए. फिलहाल वह जमानत पर बाहर चल रहे थे. उन के छोटे भाई अशरफ भी जमानत पर बाहर थे और और अपना कारोबार कर रहे थे.

बाहुबली पूर्व सांसद के आतंक की दास्तान अभी खत्म नहीं हुई थी. अपराध के दस्तावेजों में एक और खूनी इबारत लिखे जाने की तैयारी चल रही थी. दहशत भरी यह कहानी मरियाडीह के दोहरे हत्याकांड के नाम से मशहूर हुई, जिसे सोच कर लोग आज भी दहशत में आ जाते हैं. यह लोमहर्षक घटना 25 सितंबर, 2015 को बकरीद के दिन घटी थी. उस दिन मरियाडीह निवासी आबिद प्रधान के घर जोशोखरोश से त्यौहार की खुशियां मनाई जा रही थीं.

रात के समय आबिद प्रधान का ड्राइवर सुरजीत उस की चचेरी बहन अल्कमा को गाड़ी से घर छोड़ने जा रहा था. वह एक दावत में शरीक होने के बाद लौट रही थी. अल्कमा बला की खूबसूरत थी. अपनी खूबसूरती पर उसे नाज था. वह ड्राइवर सुरजीत से जल्द घर पहुंचने को कह रही थी. अंधेरी रात की वजह से सुरजीत भी जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहता था. अभी वे घर के पास ही पहुंचे थे कि उन्हें नकाबपोश बंदूकधारियों ने चारों तरफ से घेर कर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

बंदूकधारियों ने आबिद की चचेरी बहन अल्कमा और ड्राइवर को गोलियों से छलनी कर दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि अल्कमा को 17 और सुरजीत को 8 गोलियां मारी गई थीं.

मृतका के चचेरे भाई आबिद प्रधान ने इस केस में 7 लोगों उमरी के साबिर, वसी अहमद, मकसूद अहमद, बेली गांव के कम्मू, जाबिर मीरापट्टी के तौसीफ और इंतेखाब आलम के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया. इस में अल्कमा के सगे भाइयों बेली निवासी कम्मू और जाबिर को भी आरोपी बनाया गया था.

हत्याकांड की वजह प्रेम संबंध बताई गई थी. दरअसल, धूमनगंज के बेली निवासी अल्कमा एक लड़के से प्रेम करती थी. धीरेधीरे यह मामला पूरे गांव में फैल गया था. अल्कमा के भाइयों कम्मू और जाबिर को बहन के प्रेम संबंधों की जानकारी हुई तो वे इतना नाराज हुए कि बहन को प्रेमी से दूर रहने के लिए कह दिया.

लेकिन अल्कमा प्रेमी से चोरीछिपे मिलती रही. बहन के इश्किया मिजाज से समाज बिरादरी में दोनों की हंसी उड़ाई जा रही थी.

आबिद प्रधान ने नामजद रिपोर्ट जरूर लिखा दी थी, लेकिन वारदात के बाद से ही शक जताया जा रहा था कि इस हत्याकांड में खुद आबिद प्रधान का हाथ है. मामला प्रेम संबंध नहीं बल्कि कुछ और ही था.

आबिद प्रधान के सिर पर बाहुबली सांसद अतीक अहमद का हाथ था, इसलिए पुलिस उस पर हाथ डालने से कतरा रही थी. उस के प्रभाव से पुलिस ने यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया.

उधर आबिद प्रधान ने अल्कमा के दोनों भाइयों कम्मू और जाबिर को आरोपी बनवा कर जिन 7 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वे सभी आरोपी फरार हो गए थे. तत्कालीन एसएसपी ने सभी आरोपियों पर 5-5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.

जांच अधिकारी ने अपनी विवेचना में सातों आरोपियों, जिन पर ईनाम घोषित किया गया था, को विवेचना में क्लीनचिट दे दी और कहा कि नामजद सातों आरोपियों का घटना से कोई लेनादेना नहीं है. इस के बाद पुलिस ने केस फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी.

इस सनसनीखेज वारदात के करीब डेढ़ साल बाद आनंद कुलकर्णी ने इलाहाबाद के एसएसपी का पद संभाला. पद संभालने के बाद उन्होंने सभी थानों के अनसुलझे केसों की समीक्षा की तो सनसनीखेज मरियाडीह दोहरे हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने आई.

उन्होंने फाइल गौर से देखी तो पाया कि न तो घटना का सही तरीके से खुलासा हुआ था और न ही आरोपी पकड़ गए थे. एसएसपी कुलकर्णी ने इस केस की समीक्षा की और सीओ (सिविल लाइंस) श्रीशचंद्र को इस केस की जांच सौंपी. सीओ श्रीशचंद्र इंसपेक्टर (धूमनगंज) अरुण त्यागी के साथ इस दोहरे हत्याकांड की जांच में जुट गए.

एसएसपी आनंद कुलकर्णी की जांच से सामने आई सच्चाई

उन्होंने वारदात के बाद पहली बार मरियाडीह गांव जा कर लोगों के बयान दर्ज किए. पुलिस को कई ऐसे प्रत्यक्षदर्शी मिले, जिन्होंने सरेआम गोली मारने वाले शूटरों को देखा था. उन के बयान और काल डिटेल्स की मदद से पुलिस ने मरियाडीह दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर दिया. उन्होंने इस केस में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के साथ 15 लोगों को आरोपी बनाया. इस में पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, आबिद के भाई अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैजल, ऐजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इम्तियाज और मुन्ना को आरोपी बनाया.

मरियाडीह दोहरे हत्याकांड में अतीक अहमद के कहने पर मुख्य भूमिका मोहम्मद आबिद प्रधान और उस के छोटे भाई मोहम्मद अकबर ने निभाई थी.

पुलिस के शक की सुई जब दोनों भाइयों पर जा कर टिकी तो वे फरार हो गए. पुलिस ने उन्हें वांछित बनाया. एसएसपी ने मोहम्मद आबिद प्रधान पर 20 हजार और उस के भाई अकबर पर 5 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था. 27 अगस्त, 2017 को पुलिस ने मरियाडीह से फरार दोनों भाइयों मोहम्मद आबिद प्रधान और मोहम्मद अकबर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

जांच में इस कहानी के सूत्रधार पूर्व सांसद अतीक अहमद, उन के छोटे भाई अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान का नाम सामने आया. दरअसल, कम्मू और जाबिर विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. बाहुबली अतीक और उस के गैंग के जुल्मों से जनता त्रस्त हो चुकी थी.

जनता पश्चिमी इलाहाबाद से एक साफसुथरी छवि वाले ऐसे इंसान को विधायक चुनना चाहती थी, जो उस के सुखदुख में साथ खड़ा हो सके. जरूरत पड़ने पर उस के लिए 2 कदम साथ चल सके. इस के लिए बेली के कम्मू और जाबिर लोगों को बेहतर लगे. दोनों भाई आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए थे. कम्मू और जाबिर बाहुबली को टक्कर के लिए पर्याप्त थे.

कम्मू और जाबिर की क्षेत्र में लोकप्रियता बढ़ रही थी. उन की लोकप्रियता को अतीक गैंग स्वीकार नहीं कर पा रहा था. पूर्व सांसद अतीक अहमद और अशरफ ने उन्हें समझाया कि चुनाव में मत उतरो, जितने पैसे चाहो ले लो. लेकिन बात नहीं बनी. पूर्व सांसद अतीक अहमद कम्मू और जाबिर की चुनावी तैयारी को ले कर खफा थे.

फरमान का पालन न करने से अतीक अहमद का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा था. मोहम्मद आबिद प्रधान, बाहुबली अतीक का खासमखास था. आबिद प्रधान चचेरी बहन अल्कमा के प्रेम संबंध को ले कर नाखुश था, क्योंकि बिरादरी में बदनामी हो रही थी. अपने आका अतीक के रास्ते का रोड़ा बने कम्मू और जाबिर को आबिद इस तरह रास्ते से हटाना चाहता था, जिस से उस के आका पर किसी को शक भी न हो और दोनों भाई रास्ते से भी हट जाएं.

अपनी ताकत और रुतबे से फंसवा दिया भाइयों को

फिर क्या था. बाहुबली अतीक अहमद पूर्व विधायक अशरफ और मोहम्मद आबिद प्रधान ने मिल कर एक खतरनाक साजिश रच डाली. साजिश कम्मू और जाबिर को शिकार बनाने की नहीं थी, बल्कि बहन अल्कमा को शिकार बनाने की थी. अल्कमा को टारगेट इसलिए बनाया गया कि उस के प्रेम संबंधों को ले कर गांव में बदनामी हो रही थी.

कम्मू और जाबिर बहन की करतूत से परेशान थे, यह भी आबिद जानता था. आबिद इसी बात का फायदा उठाना चाहता था ताकि लोगों को यही लगे कि बदनामी से बचने के लिए कम्मू और जाबिर ने मिल कर अल्मका को मौत के घाट उतार दिया है. पुलिस का सारा शक कम्मू और जाबिर पर चला जाएगा. बहन के कत्ल में दोनों भाई जेल चले जाएंगे और उन के विधायक बनने का सपना धरा का धरा रह जाएगा.

योजना बन गई थी, बस उसे अंजाम देना शेष था. बकरीद के दिन अल्कमा की हत्या की तारीख तय की गई. 25 सितंबर, 2015 को अल्कमा एक रिश्तेदार की पार्टी से कार से अपने घर लौट रही थी. अतीक अहमद के करीब 6-7 बंदूकधारी गुर्गे मरियाडीह गांव में डेरा डाले उस के आने का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अल्कमा की कार मरियाडीह गांव के करीब पहुंची, पहले से घात लगाए बैठे बंदूकधारियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिस से अल्कमा के साथ ड्राइवर सुरजीत को भी मार दिया गया ताकि वह कोर्ट में गवाही न दे सके.

त्यौहार के दिन इस सनसनीखेज घटना से इलाहाबाद थर्रा उठा था. अतीक ने जो सोचा, उसे पूरा कर दिया था. पुलिस को गुमराह करते हुए अल्कमा के चचेरे भाई मोहम्मद आबिद प्रधान ने कम्मू और जाबिर सहित 7 को आरोपी बना कर थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया था.

किसी हद तक बाहुबली अतीक और उस के साथी अपने मंसूबों में कामयाब हो गए थे. लेकिन ईमानदार एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने बाहुबली के मंसूबों पर पारी फेर दिया. उन की सूझबूझ से दोहरे हत्याकांड के सभी सही आरोपी गिरफ्त में आ गए. पूर्व विधायक अशरफ को छोड़ कर सभी आरोपी जेल में बंद हैं.

दोहरे हत्याकांड में पुलिस ने पूर्व सांसद अतीक अहमद समेत 15 आरोपियों पूर्व विधायक अशरफ, मोहम्मद आबिद प्रधान, फरहान, मोहम्मद अकबर, जावेद, माजिद, अबूबकर, शेरू, फैसल, एजाज, आसिफ, जुल्फिकार उर्फ तोता, पप्पू उर्फ इत्मियाज और मुन्ना के खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया.

अशरफ अभी फरार है. एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने फरार अशरफ पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित करने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन इस प्रस्ताव को अभी तक स्वीकृति नहीं मिली.

मोहित जायसवाल को जेल ले जाने की हकीकत

बहरहाल, कृष्णानगर थाने के इंसपेक्टर यशकांत सिंह मोहित जायसवाल कांड की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद टीम के साथ काररवाई में जुट गए.

पुलिस टीम ने गोमतीनगर के सिल्वरलाइन अपार्टमेंट से सुलतानपुर निवासी गुलाम इमामुद्दीन और प्रतापगढ़ निवासी इरफान को गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से मोहित जायसवाल से लूटी गई एसयूवी गाड़ी भी बरामद हो गई. दूसरी ओर पुलिस टीमें बना कर अतीक के बेटे उमर अहमद, गुलफाम और फारुख की तलाश में जुट गई. उन की तलाश में एक टीम ने इलाहाबाद में डेरा डाल लिया.

पुलिस ने रियल एस्टेट कारोबारी मोहित जायसवाल और बाहुबली अतीक के बीच के संबंधों की पड़ताल की तो पता चला कि मोहित जायसवाल और अतीक अहमद पूर्व परिचित थे. दोनों के बीच कारोबारी रिश्ते थे. उन के बीच पैसों को ले कर विवाद चल रहा था.

इसी विवाद की कड़ी ने अपराध को जन्म दिया. बाहुबली अतीक अहमद के इशारे पर उन के गुर्गे मोहित जायसवाल को अगवा कर के देवरिया जेल में बंद अतीक अहमद के पास ले आए. जेल के भीतर अतीक अहमद, उस के बेटे उमर और चारों गुर्गों ने मोहित को बुरी तरह मारापीटा और 45 करोड़ की संपत्ति के स्टांप पेपरों पर उस से जबरन दस्तखत करवा लिए थे.

इधर देवरिया जेल प्रशासन ने भी मोहित के जेल में दाखिल होने की पुष्टि की. पुलिस सूत्रों के अनुसार, मोहित जायसवाल करीब 3 घंटे तक जिला जेल में रहे.

जेल नियमों के अनुसार कोई भी मुलाकाती अधिकतम आधे घंटे तक ही बंदी या कैदी से मिल सकता है. विशेष परिस्थिति में उसे कुछ अतिरिक्त समय के लिए छूट दी जा सकती है, पर अतीक के मामले में सारे नियम ताक पर रख दिए गए थे.

अव्वल तो कई मुलाकातियों की जेल के रजिस्टर में एंट्री तक नहीं की जाती थी और अगर एंट्री हुई भी तो उन के बाहर निकलने की कोई तय सीमा नहीं होती थी. भेंट पूरी होने और पूर्व सांसद की सहमति के बाद ही वह जेल से बाहर आता था.

इस बारे में जेल अधीक्षक दिलीप कुमार पांडेय का कहना था कि निर्धारित समय के बाद मुलाकातियों को बाहर कर दिया जाता है. विशेष परिस्थिति में ही उसे अतिरिक्त समय दिया जाता है. हालांकि वह यह नहीं बता सके कि मोहित जायसवाल के मामले में ऐसी कौन सी परिस्थिति थी, जो उसे 3 घंटे तक अतीक से मिलने की अनुमति दे दी गई थी.

डीएम अमित किशोर के नेतृत्व में गई टीम ने देवरिया जिला कारागार के 26 दिसंबर, 2018 के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इस में कई फुटेज गायब मिले. मुलाकाती रजिस्टर में मोहित जायसवाल और सिद्दीकी का नाम दर्ज मिला, लेकिन फुटेज में अतीक की बैरक की ओर आनेजाने वालों की संख्या अधिक दिख रही थी. मुलाकाती रजिस्टर में मुलाकातियों के जाने और निकलने का टाइम दर्ज नहीं किया गया था.

जेल के कैदी भी रहते थे डरे हुए

सजायाफ्ता कैदियों से भी टीम के सदस्यों ने पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला. एडीएम (प्रशासन) राकेश कुमार पटेल ने अपनी रिपोर्ट में सीसीटीवी फुटेज में छेड़छाड़ की बात बताई, जिस पर डीएम अमित किशोर ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की जांच किसी एक्सपर्ट से कराई जाएगी. वारदात की वजह जेल प्रशासन की उदासीनता है, जिस की रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है.

जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि जेल में अतीक अहमद के बंद होने के बाद शहर में अतीक के गुर्गों की आवाजाही बढ़ गई थी. शहर के एक खास मोहल्ले में अतीक का ड्राइवर और करीबी निवास करते थे और फौर्च्युनर गाड़ी से जेल आतेजाते थे.

पुलिस सूत्रों की मानें तो जेल में बंद लोगों की मदद भी अतीक करता था, जिस से उन का समर्थन उसे मिल जाता था. मोहित जायसवाल कांड ने अतीक अहमद की मुसीबत बढ़ा दी थी. इसी के चलते उसे बरेली जेल भेज दिया गया. बताया जा रहा है कि अतीक की वजह से बरेली जेल प्रशासन भी परेशान है. उसे वहां से कहीं और भेजने की तैयारी की जा रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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