मोहब्बत का खूनी अंजाम

जब जब इश्क की कलम से दिल के कागज पर मोहब्बत की इबादत लिखी गई है, तबतब मोहब्बत करने वाले फना हुए हैं. इस तरह की कहानी में तब और दिलचस्प मोड़ आया है, जब वह त्रिकोण प्रेम पर आधारित हुई है और प्रेम त्रिकोण की कहानी में अकसर खूनी खेल सामने आता है. कुछ ऐसा ही इस त्रिकोण प्रेम में भी हुआ.

8 दिसंबर, 2017 की अलसाई सुबह चटख धूप के साथ खिली. लोग अपने घरों से निकल कर अपनी दिनचर्या में रम रहे थे.

उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के बिलरियागंज थाने के भदाव गांव के कुछ लोग अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. तभी गांव से बाहर कच्ची सड़क से दाईं ओर करीब 500 मीटर की दूरी पर कुदारन तिवारी के खेत में सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार लावारिस हालत में खड़ी दिखी. उत्सुकतावश लोग उस कार की ओर चले गए कि सुबहसुबह खेत में किस की कार खड़ी है.

लोगों ने जब कार के भीतर झांक कर देखा तो भीतर कोई नहीं था. कार का नंबर था यूपी53सी 3262. कार से कुछ दूरी पर एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के सिर के घाव से लग रहा था कि किसी ने सिर में गोली मार कर उस की हत्या की है. उस का चेहरा खून से सना था.

मृतक काले रंग की पैंट और नीलेपीले रंग की धारीदार डिजाइन वाली जैकेट पहने था. उस के पैरों में कोई चप्पल या जूते नहीं थे. चेहरे पर दाढ़ी थी. वह शक्लसूरत और पहनावे से किसी अच्छे परिवार का लग रहा था.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही आसपास के गांव के और लोग भी वहां जुटने लगे. उसी भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि मामला बिलरियागंज थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम ने बिलरियागंज थाने को घटना की इत्तला दे दी. लाश मिलने की खबर पा कर बिलरियागंज के थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

घटनास्थल पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी. इस के अलावा उन्होंने फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.

खबर पा कर एसपी अजय कुमार साहनी, एसपी (देहात) एन.पी. सिंह, सीओ (सगड़ी) सुधाकर सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने कार के नंबर की जांच की तो वह नंबर गोरखपुर आरटीओ का था.

जांचपड़ताल से पता चला कि वह कार गोरखपुर के दीपक सिंह के नाम से रजिस्टर्ड थी. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि मृतक गोरखपुर का रहने वाला होगा. फिर पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से सगड़ी के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज का एक परिचयपत्र मिला. उस परिचयपत्र से उस की शिनाख्त एमए के छात्र विभांशु प्रताप पांडेय के रूप में हुई, जिस में उस का पता गांव भौवापार थाना बेलीपार लिखा था.

कार की तलाशी लेने पर डिक्की में उल्टी और खून के धब्बे मिले. कार में एक जोड़ी लेडीज चप्पल पड़ी मिली. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि बदमाश हत्या कहीं और कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, लेकिन कार खेत में फंस जाने की वजह से दूर नहीं भाग सके और उस की लाश फेंक कर फरार हो गए. इस का मतलब साफ था कि कार में कोई महिला भी सवार थी. वह कौन थी? यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

पुलिस इस मामले को प्रेम संबंधों से जोड़ कर देखने लगी थी. कार में लेडीज चप्पल और उल्टी ने गुत्थी बुरी तरह उलझा कर रख दी थी. विभांशु के मुंह से झाग निकले थे. वह झाग किसी जहरीले पदार्थ के सेवन से थे या किसी और के, यह बात जांच के बाद ही पता चलना था.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. कागजी काररवाई पूरी करने के पहले पुलिस ने घटना की सूचना मृतक के परिजनों को दे दी थी. सूचना मिलने के बाद वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतक के बड़े भाई जोकि पेशे से एक वकील थे, उन की तहरीर पर पुलिस ने रुचि राय पुत्री अरविंद राय, ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय और उस के भाई सत्यम राय सहित 8 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

सभी आरोपी कोतवाली जीयनपुर के बांसगांव के निवासी थे. घनश्याम पांडेय का आरोप था कि भाई को उस की प्रेमिका रुचि राय ने फोन कर के बुलाया था और उस की हत्या करवा दी. रिपोर्ट नामजद लिखाई गई थी, इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

चूंकि वादी घनश्याम पांडेय एक वकील के साथसाथ रसूखदार और ऊंची पहुंच वाला था, पुलिस की थोड़ी सी भी चूक कानूनव्यवस्था बिगाड़ सकती थी, इसलिए एसपी अजय कुमार साहनी ने सीओ सुधाकर सिंह के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम को निर्देश दे दिए थे कि नामजद आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए.

पुलिस टीम ने आरोपियों के घर दबिश डाली तो वह अपने ठिकानों पर नहीं मिले. उन के न मिलने पर पुलिस की समस्या और बढ़ गई. उन की तलाश के लिए पुलिस ने अपने सभी मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

9 दिसंबर, 2017 की सुबह थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव को एक मुखबिर ने आरोपी ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर पहुंच गए. श्यामनारायण वहीं खड़ंजे के पास खड़ा मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. वह वहां से कहीं भागने की फिराक में था.

तलाशी लेने पर उस के पास से एक पिस्टल .32 बोर व 2 जिंदा कारतूस के अलावा एक कारतूस का खोखा भी मिला. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई, उस ने विभांशु की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने उस के पास से जो पिस्टल बरामद किया था, उसी से उस ने विभांशु की हत्या की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम त्रिकोण वाली निकली—

22 वर्षीय विभांशु प्रताप पांडेय उर्फ विभू मूलरूप से गोरखपुर के बेलीपार थाना क्षेत्र के ऊंचगांव (भौवापार) के रहने वाले रमाशंकर पांडेय का बेटा था. रमाशंकर पांडेय के 7 बेटों में विभांशु सब से छोटा और सब का दुलारा था. रमाशंकर पांडेय के सभी बेटे अपने पैरों पर खड़े थे. सब से बड़ा बेटा घनश्याम पांडेय अधिवक्ता था. अन्य बेटे भी अच्छे पदों पर कार्यरत थे.

विभांशु ही घर पर रह कर खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. इस के साथ वह आजमगढ़ के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज से एमए की पढ़ाई भी कर रहा था. वह काफी मेहनती युवक था. उस की एक खास बात थी कि वह जिस भी काम को करने की ठान लेता, उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करता.

खैर, गोरखपुर से आजमगढ़ की कुल दूरी 85 किलोमीटर थी. विभांशु कालेज अपनी बाइक से आताजाता था. वैसे आजमगढ़ के रामगढ़ व जमसर गांव में उस की रिश्तेदारियां थीं. जिस दिन उस का मन कालेज से घर लौटने का नहीं होता तो वह इन में से अपनी किसी रिश्तेदारी में रुक जाता था. अपने रुकने की खबर वह फोन कर के घर वालों को दे देता था.

सन 2015 की बात है. रिश्तेदारी में आतेजाते एक दिन विभांशु की नजर एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो वह उसे अपलक निहारता रह गया. पहली ही नजर में वह उस के कजरारे नैनों के तीर से घायल हो गया था. उस ने अपने स्रोतों से पता किया तो जानकारी मिली कि उस का नाम रुचि राय है और वह पड़ोस के कल्याणपुर बांसगांव में रहती है.

रुचि के दिल में प्यार का रंग भरने के लिए विभांशु रिश्तेदारों के यहां ज्यादा समय बिताने लगा. वहीं रह कर पढ़ने लगा. घर वाले इस बात से बेखबर थे कि विभांशु पर प्रेम रोग का रंग चढ़ने लगा है. एक दिन की बात है. विभांशु कालेज से घर आ रहा था तभी सड़क पर उसे रुचि जाती हुई दिखाई दी. रुचि को देख कर उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

विभांशु ने तय किया कि आज वह उस से बात कर के ही रहेगा. थोड़ी दूर बढ़ने के बाद विभांशु ने अपनी बाइक उस के नजदीक ले जा कर रोक दी. अचानक पास बाइक रुकी देख रुचि सहम गई. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विभांशु बोला, ‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही रुचि चौंकते हुए बोली, ‘‘आप को मैं पहचानती नहीं. और मैं अजनबियों से बात नहीं करती.’’

‘‘लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानतापहचानता हूं. रुचि राय नाम है आप का और कल्याणपुर बांसगांव में रहती हैं.’’ उस ने कहा.

अपना नाम सुन कर रुचि हैरान रह गई कि अजनबी युवक को मेरा नाम और पता कैसे पता चला. बिना कोई उत्तर दिए वह आगे बढ़ गई पर विभांशु भी उस के पीछेपीछे बाइक से आ रहा था. रास्ता सुनसान था. पीछे बाइक सवार युवक को अपनी ओर आते देखा तो रुचि सहम गई.

वह तेजतेज कदमों से आगे बढ़ने लगी. विभांशु ने आगे बढ़ कर उस का रास्ता फिर रोक लिया और बोला, ‘‘मुझे गलत मत समझो, मैं कोई लुच्चालफंगा नहीं हूं.’’

‘‘रास्ता रोकने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? हट जाओ मेरे रास्ते से वरना अभी शोर मचा दूंगी.’’ हिम्मत बटोर कर वह बोली, ‘‘मुझे ऐसीवैसी लड़की मत समझना, वरना अभी दिन में ही तारे दिखा दूंगी.’’

‘‘नाराज क्यों हो रही हैं. नहीं रोकूंगा, जाइए. वैसे मैं अपने बारे में तो बताना भूल गया. मेरा नाम विभांशु प्रताप पांडेय है और पड़ोस के गांव रामगढ़ में रहता हूं. अभी तुम जाओ, मैं फिर मिलूंगा.’’

कह कर विभांशु बाइक तेज गति से चला कर वहां से निकल गया. उस के जाने के बाद रुचि की जान में जान आई. रास्ते भर वह यही सोचती रही कि इस युवक को मेरा नाम और पता कैसे मालूम हुआ. सोचतेसोचते घर कब पहुंची उसे पता नहीं चला.

बात आईगई, खत्म हो गई और वह अपने कामों में लग गई. अब जब भी वह मिलती विभांशु हायहैलो कर के निकल जाता था. पर यह इत्तफाक था या कुछ और कि उस दिन के बाद रुचि से रास्ते में उस की मुलाकात अकसर हो जाया करती थी. विभांशु की आशिकी की निगाहें देख कर रुचि के दिल में भी उस के लिए चाहत के बीज अंकुरित होने लगे.

इस के बाद विभांशु जब भी उस से हायहैलो कहता, वह भी मुसकरा पड़ती थी. अपनी ओर उसे आकर्षित हुआ देख कर विभांशु की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. फिर उन के बीच बातचीत भी होने लगी.

मौका देख कर उन्होंने एकदूसरे से अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया. रुचि और विभांशु की मोहब्बत की गाड़ी पटरी पर दौड़ी तो वो भविष्य के सपने बुनने लगे और शादी तक के सपने देखने लगे. यह पंछी प्यार की उड़ान भरने लगे. दोनों बाइक पर इधरउधर खूब घूमने लगे. इस बात पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि जानने वालों ने उन्हें देखा भी है या नहीं. लिहाजा उन के प्यार की चर्चा गलीमोहल्लों में होने लगी थी.

रुचि और विभांशु की मोहब्बत की खुशबू कल्याणपुर बांसगांव के ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय तक पहुंची. श्यामनारायण राय रुचि का हमउम्र और अविवाहित था. लिहाजा उस का मन मचल गया और वह रुचि की ओर आकर्षित हो गया. रुचि को पाने की हसरतें उमंगें भरने लगीं. किसी के माध्यम से उस ने अपनी मोहब्बत का पैगाम रुचि तक भिजवाया पर रुचि ने उस का पैगाम ठुकरा दिया.

श्यामनारायण काफी दबंग और पहुंच रखने वाला था. उस की मोहब्बत एकतरफा थी, जबकि रुचि विभांशु से प्यार करती थी. रुचि द्वारा ग्रामप्रधान को लिफ्ट न देने पर वह बौखला गया. इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह रुचि और विभांशु की मोहब्बत में बाधा को सफल नहीं होने देगा.

विभांशु भी कमजोर नहीं था. ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय से मुकाबला करने के लिए उस के सामने आ खड़ा हुआ. यह बात श्यामनारायण को काफी नागवार लगी कि एक बाहरी युवक उसी के घर में घुस कर उसे ही चुनौती देने पर आमादा है. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.

रुचि को चाहने वाले 2 लोग थे लेकिन रुचि तो उन में से केवल एक को ही चाहती थी. लिहाजा रुचि को ले कर उन दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया जो थमने के बजाय बढ़ता ही गया.

अक्तूबर, 2017 की बात है. विभांशु दशहरे का मेला घूमने गया था. फोन कर के उस ने रुचि को भी मेले में बुला लिया था. काफी देर तक साथसाथ मेला घूमने के बाद दोनों अपनेअपने घरों को रवाना हुए. प्रेमिका से विदा होते विभांशु ने उसे फ्लाइंग किस दिया. रुचि ने मुसकरा कर इस का जवाब दे दिया.

इत्तफाक से उसी समय श्यामनारायण भी कहीं से उधर आ पहुंचा. उस ने दोनों को किस लेतेदेते देख लिया था. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने आव देखा न ताव, कुछ ग्रामीणों को आवाज लगा दी.

ग्रामप्रधान की आवाज सुन कर गांव के तमाम लोग वहां पहुंच गए. प्रधान ने विभांशु पर गांव की लड़की को छेड़ने का आरोप लगाया. इस के बाद तो ग्रामीण भड़क गए. विभांशु वहां से भागा तो उन्होंने दौड़ कर उसे दबोच लिया. इस के बाद उस की जम कर पिटाई की.

पिटाई के बाद भी उन्होंने विभांशु को नहीं छोड़ा बल्कि प्रधान श्यामनारायण ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया. जीयनपुर के थानाप्रभारी ने विभांशु को लड़की छेड़ने के आरोप में जेल भेज दिया. इस तरह प्रधान ने विभांशु को जेल भिजवा कर अपनी खुन्नस निकाल ली.

घर वालों को जब यह पता चला कि लड़की छेड़ने के आरोप में विभांशु जेल में बंद है तो वे परेशान हो गए. शर्म के मारे उन का चेहरा झुक गया. किसी तरह विभांशु के बड़े भाई वकील घनश्याम पांडेय ने उस की जमानत कराई. घर वालों ने विभांशु को खूब डांटा, साथ ही समझाया कि ये इश्कविश्क का चक्कर छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान दो. जब समय आएगा तो किसी अच्छी लड़की से शादी करा कर गृहस्थी बसा दी जाएगी.

परिवार के दबाव में आ कर उस समय तो कह दिया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिस से परिवार की बदनामी हो लेकिन वह दिल से रुचि को निकाल नहीं पाया. साथ ही वह श्यामनारायण द्वारा जेल भिजवा देने वाली बात से काफी आहत था. उस ने तय कर लिया कि वह इस का बदला जरूर लेगा.

वह प्रधान श्यामनारायण से बदला लेने का मौका ढूंढने लगा. इसी बीच 4 दिसंबर, 2017 को ग्रामप्रधान श्यामनारायण पर किसी ने हमला कर दिया. प्रधान का पूरा शक विभांशु पर आ गया. प्रधान ने तय कर लिया कि वह विभांशु को सूद के साथ इस का भुगतान करेगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि विभांशु का उस हमले से कोई लेनादेना नहीं था और न ही उस ने ऐसा किया था.

बहरहाल, इश्क की जलन ने एक नाकाम प्रेमी श्यामनारायण राय को इंसान से शैतान बना दिया था. वह विभांशु के खून का प्यासा हो गया. वह मौके की तलाश में था लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था.

7 दिसंबर, 2017 की शाम 6 बजे रुचि ने विभांशु को फोन कर के मिलने के लिए आजमगढ़ बुलाया. प्रेमिका के बुलावे पर वह बेहद खुश था. तैयार हो कर वह बाइक ले कर रुचि से मिलने निकल गया. घर से निकलते समय उस ने घर वालों से यही कहा था कि वह शहर जा रहा है और थोड़ी देर में आ जाएगा.

विभांशु पहले अलहलादपुर में रहने वाले अपने दोस्त दीपक सिंह के घर गया. वहां उस ने बाइक खड़ी की ओर उस की स्विफ्ट डिजायर कार ले कर प्रेमिका से मिलने आजमगढ़ रवाना हो गया. यह बात पता नहीं कैसे प्रधान श्यामनारायण को पता चल गई. फिर तो उस की बांछें खिल उठीं. वह कल्याणपुर बांसगांव से पहले खालिसपुर गांव के पास घात लगा कर बैठ गया. रात 11 बजे के करीब विभांशु स्विफ्ट डिजायर कार ले कर गुजरा.

प्रधान ने गाड़ी में विभांशु को जाते देख लिया. प्रधान मोटरसाइकिल पर था. उस ने कार का पीछा किया और ओवरटेक कर के उसे रोक लिया. सुनसान जगह पर प्रधान को देख विभांशु का माथा ठनक गया. वह कार ले कर वहां से भागना चाहा लेकिन कार के आगे प्रधान और उस की बाइक थी, इसलिए वहां से नहीं भाग सका.

सड़क पर ही दोनों के बीच बहस छिड़ गई. बात काफी बढ़ गई. मामला गालीगलौज से हाथापाई तक पहुंच गया. प्रधान श्यामनारायण का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने कार का दरवाजा खोल कर विभांशु को खींच कर बाहर निकाल लिया. उसी समय उस ने कमर से लाइसेंसी पिस्टल निकाली और उस के सिर में गोली मार दी.

गोली लगते ही विभांशु कटे पेड़ की तरह धड़ाम से सड़क पर गिर गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई. इस के बाद प्रधान ने फोन कर के छोटे भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश को मौके पर बुला लिया.

श्यामनारायण और सत्यम दोनों ने मिल कर उसे कार की पिछली सीट पर डाला फिर लाश ठिकाने लगाने के लिए गांव के बाहर ले गए.

वह कार को सड़क से नीचे खेत में ले गए. वहां से वह नहर की ओर ले जा रहे थे, तभी कार कुदारन तिवारी के खेत में जा कर फंस गई. वहां से कार नहीं निकली तो वह वहीं खेत में छोड़ दी और लाश भी कुछ आगे डाल दी. इस के बाद वे घर लौट आए और इत्मीनान से सो गए.

उन्हें विश्वास था कि पुलिस को उन पर शक नहीं होगा पर जब मृतक के भाई घनश्याम पांडेय ने नामजद रिपोर्ट लिखाई तो प्रधान श्यामनारायण पुलिस से बचने के लिए घर से निकल कर सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर जा कर खड़ा हो गया और उधर से आने वाले वाहन का इंतजार करने लगा. इस से पहले कि वह वहां से कहीं जाता, थानाप्रभारी विजयप्रताप यादव ने उसे मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया.

प्रधान श्यामनारायण राय से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के 3 दिनों के बाद उस का छोटा भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश भी बांसगांव से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस कार में मिली महिला की सैंडिल और उल्टी के बारे में जांचपड़ताल कर रही थी. आरोपी रुचि राय फरार चल रही थी. पुलिस उस की तलाश में जुटी हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

SOCIETY

मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

भरतपुर के सरकारी अस्पताल से नवजात लड़का चोरी होने की घटना से पूरे अस्पताल में सनसनी फैल गई. मनीषा के ताया ससुर सद्दीक ने इस की सूचना मथुरा गेट थाना पुलिस को दी. पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर जांचपड़ताल की. अस्पताल के बाहर वाहन पार्किंग वाले से पूछताछ में पता चला कि जिस स्कूटी पर दोनों युवतियां गई हैं, उस का नंबर 1361 है. यह नंबर पार्किंग वाले के पास रहने वाली आधी पर्ची पर लिखा मिला.

पार्किंग वाले ने वाहन की सीरीज व जिले का कोड नंबर नहीं लिखा था. पुलिस ने अस्पताल के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग खंगाली. कैमरों की फुटेज में एक युवती गोद में बच्चा लिए हुए जाती नजर आई.

पुलिस के पास जांच करने के लिए केवल सफेद रंग की स्कूटी का नंबर 1361 था. पुलिस को इसी के सहारे अपनी जांच करनी थी. भरतपुर के एसपी अनिल कुमार टांक ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीशनल एसपी सुरेश खींची और डीएसपी (सिटी) आवड़दान रत्नू के नेतृत्व में कई पुलिस टीमें गठित कीं.

पुलिस टीमों ने स्कूटी के अलावा रंजिशवश ऐसी वारदात करने और दूसरे कारणों को भी ध्यान में रखा. पुलिस को यह भी शक हुआ कि किसी पारिवारिक रंजिशवश तो बच्चे का अपहरण नहीं हुआ. इसी अस्पताल में उसी दिन एक प्रसूता के 2 जुड़वां नवजात बच्चों की मौत हो गई थी, इस एंगल पर भी बच्चा चोरी की आशंका को ध्यान में रख कर जांच की गई.

SOCIETY

पुलिस का ध्यान इस बात पर भी गया कि युवती जब बच्चा ले जा रही थी तो उसे समीना ने देख लिया था. इस से घबरा कर उस ने कहीं नवजात को भरतपुर की सुजानगंगा नहर में न फेंक दिया हो.

पुलिस की एक टीम ने परिवहन कार्यालय जा कर जांचपड़ताल की तो भरतपुर में 1361 नंबर की 2 स्कूटी मिलीं. ये दोनों स्कूटी लाल रंग की थीं, जबकि बच्चा चोरी में इस्तेमाल की गई स्कूटी सफेद रंग की थी. इस पर आसपास के जिलों के परिवहन कार्यालयों की मदद लेने का निर्णय लिया गया.

मथुरा गेट थानाप्रभारी राजेश पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने सुजानगंगा नहर और आसपास के इलाकों में नवजात की तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने प्रसूता मनीषा के गांव से भी जानकारी कराई कि कोई आपसी रंजिश का ऐसा मामला तो नहीं है, जिस के चलते नवजात का अपरहण कर लिया जाए.

दूसरे दिन पुलिस ने भरतपुर और आसपास के अस्पतालों व निजी नर्सिंगहोमों में बच्चे की तलाश की. पुलिस का मानना था कि नवजात की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उसे किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में भरती कराया जा सकता है. लेकिन पुलिस को इस भागदौड़ में भी सफलता नहीं मिली.

जांच में एक तथ्य यह जरूर सामने आया कि बच्चे की अपहर्त्ता युवती एक दिन पहले और उस से पहले भी कई बार अस्पताल में रैकी करने आई थी. एक संभावना यह भी थी कि किसी की सूनी गोद भरने के लिए बच्चे की चोरी की गई हो.

पुलिस की एक टीम भरतपुर जिले के कुम्हेर भी भेजी गई. वहां 2 मृत बच्चों को जन्म देने वाली महिला बदहवास स्थिति में थी, इसलिए बच्चा चोरी की आशंका जताई गई थी, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. फतेहपुर सीकरी में भी पुलिस टीम जांच करने गई, लेकिन नवजात का कोई सुराग नहीं मिला.

मामला उछलने पर दूसरे दिन पुलिस के साथ इस मामले की जांच बाल कल्याण समिति एवं अस्पताल प्रशासन ने भी शुरू की. अस्पताल प्रशासन ने जनाना अस्पताल की प्रभारी डा. ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में 3 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद उन रास्तों पर जांच शुरू की, जहां से बच्चे को ले जाया गया था. इसी क्रम में पुलिस की टीमें जांच के लिए मथुरा और आगरा भेजी गईं. भरतपुर के पास सब से बड़ा शहर मथुरा और आगरा है. पुलिस की एक टीम ने भरतपुर के वाहन शोरूमों पर पहुंच कर सफेद रंग की स्कूटी की बिक्री के रिकौर्ड की पड़ताल की. इस के अलावा निस्संतान दंपतियों और बावरिया बस्ती में भी नवजात की खोजबीन की गई.

तीसरे दिन अस्पताल प्रशासन ने प्रसूता मनीषा, उस की सास समीना, दादी सास, देवर व अन्य परिजनों से कई घंटे पूछताछ की. उधर नवजात बेटे का कोई अतापता नहीं मिलने पर मनीषा रोरो कर बेहाल हो गई थी.

भरतपुर से मथुरा गई पुलिस टीम को 12 जनवरी को वहां के परिवहन कार्यालय का रिकौर्ड देखने के बाद 1361 नंबर की सफेद रंग की एक स्कूटी के बारे में पता चला. यह स्कूटी यूपी85 सीरीज की थी. पुलिस को इस स्कूटी के मालिक का नामपता मिल गया.

इस बीच, 12 जनवरी को ही पूरे भरतपुर जिले में यह अफवाह तेजी से फैल गई कि अस्पताल से चोरी हुआ नवजात भरतपुर शहर के पास सरसों के एक खेत में पड़ा मिल गया है. यह अफवाह पुलिस तक पहुंची तो जांचपड़ताल की गई.

कई लोगों की काल डिटेल्स निकलवाई गईं. जांच में सामने आया कि मनीषा के मायके से फोन आया था. उन लोगों को भी यह बात किसी और ने बताई थी.

घटना के चौथे दिन यानी 13 जनवरी की सुबह भरतपुर से 15 किलोमीटर दूर सांतरुक की सड़क पर गोवर्धन नहर के किनारे झाडि़यों में कंबल में लिपटा एक नवजात बालक मिला. यह नवजात मनीषा का ही बेटा था, जो 10 जनवरी को भरतपुर के अस्पताल से चोरी हुआ था.

झाडि़यों में पड़े इस नवजात को 2 बाइक सवार युवकों ने देखा था. उन्होंने शोर मचाया तो आसपास के लोग एकत्र हो गए.

कंबल में लिपटे नवजात के पास दूध की बोतल रखी थी. उस के सिर पर गर्म टोपा और पैरों में गर्म पायजामी थी. बच्चे के फुल स्लीव स्वेटर पर सेफ्टी पिन से एक पत्र लगा हुआ था. पत्र पर लिखा था, ‘यह बच्चा भरतपुर के जनाना अस्पताल से चोरी हुआ है, कृपया इसे इस के मांबाप को सौंप दें.’

लोगों की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची. नवजात को एंबूलेंस से भरतपुर के जनाना अस्पताल लाया गया. अस्पताल में 4 दिन से बदहवास पड़ी मनीषा ने अपने कलेजे के टुकड़े को देखते ही पहचान लिया.

मनीषा और उस की सास समीना ने बच्चे की बलाइयां लीं और उसे जी भर के दुलार किया. डाक्टरों ने नवजात का स्वास्थ्य परीक्षण कर के उसे आईसीयू में भरती करा दिया.

SOCIETY

दूसरी ओर भरतपुर पुलिस ने मथुरा में 1361 नंबर की सफेद स्कूटी के मालिक का पता लगा कर स्कूटी जब्त कर ली. यह स्कूटी मथुरा के रामवीर नगर निवासी सेना के सूबेदार की पत्नी मीना देवी के नाम पर थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने मीना देवी की शिक्षिका बेटी शिवानी को हिरासत में ले लिया.

शिवानी को पुलिस भरतपुर ले आई और उस से व्यापक पूछताछ की. पूछताछ के आधार पर पुलिस शिवानी की बहन प्रियंका को भी आगरा से भरतपुर ले आई.

भरतपुर की मथुरा गेट थाना पुलिस ने 14 जनवरी को दोनों बहनों को बच्चे के अपरहण के मामले में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोनों बहनों से जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—

मथुरा के रहने वाले सेना के सूबेदार लक्ष्मण सिंह जाट की शादी मीना देवी से हुई थी. कालांतर में उन के 4 बच्चे हुए. 3 बेटियां और 1 बेटा. उन्होंने 2 बेटियों की शादी कर दी थी, जबकि 14 साल के एकलौते बेटे की 2016 में असामयिक मौत हो गई थी. तीसरी 15 वर्षीय बेटी खुशबू मथुरा में मातापिता के पास रहती थी.

एकलौते भाई की मौत से दोनों बड़ी बहनों को तो झटका लगा ही, उन की मां मीना देवी डिप्रेशन में आ गई थीं. लक्ष्मण सिंह को बेटे की चाहत थी. इस के लिए रिश्तेदार और करीबी लक्ष्मण सिंह पर दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे. क्योंकि मीना देवी फिर गर्भवती नहीं हो पा रही थीं.

डिप्रेशन की हालत में मीना देवी ने एक बार सुसाइड करने का भी प्रयास किया था. उन्होंने कोई बेटा गोद लेने की भी कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली थी. मां का घर न उजड़े, इस के लिए दोनों बड़ी बेटियां शिवानी व प्रियंका तरकीब सोचने लगीं. दोनों बहनों के नाना लाल सिंह भी चाहते थे कि उन की बेटी मीना का घर बसा रहे. इस बीच दोनों बहनों ने पिता व अन्य घर वालों के बीच यह बात फैला दी कि उन की मां गर्भवती है.

दोनों बहनों ने किसी नवजात को खरीदने के लिए मथुरा व आगरा के निजी अस्पतालों में भी बात की थी. एक नर्स के माध्यम से बच्चा खरीदने की बात तय भी हो गई थी, लेकिन जिस प्रसूता का बच्चा लेना था, उस की मौत हो गई. इस से दोनों बहनों को अपनी मां के गर्भवती बताने की योजना पर पानी फिरता नजर आया.

इस के बाद मीना देवी के पिता लाल सिंह कई दिनों तक हरियाणा के मेवात इलाके में नवजात खरीदने के लिए घूमे. उन्हें किसी नर्स ने बताया था कि मेवात इलाके में गरीब लोग सक्षम न होने के कारण नवजात बच्चा बेच सकते हैं.

काफी प्रयासों के बाद भी जब किसी नवजात का इंतजाम नहीं हुआ तो दोनों बहनों शिवानी व प्रियंका ने अपनी मां के लिए बच्चा चोरी करने की योजना बनाई. इस के लिए उन्हें भरतपुर का सरकारी अस्पताल सुरक्षित जगह लगी. इस पर दोनों बहनें 9 जनवरी को भरतपुर आईं और अस्पताल में किसी नवजात बच्चे की तलाश की, लेकिन वे किसी बच्चे को ले जाने में कामयाब नहीं हुईं.

इस के अगले दिन 10 जनवरी को दोनों बहनें मां की स्कूटी से मथुरा से भरपुर आईं. उन्होंने अपनी स्कूटी जनाना अस्पताल के बाहर पार्किंग में खड़ी की. शिवानी अस्पताल में अंदर चली गई, जबकि प्रियंका अस्पताल के अंदरबाहर चक्कर लगा कर शिवानी पर नजर रखती रही.

शिवानी ने अस्पताल के वार्ड में भरती मनीषा की सास की गोद में नवजात को देख कर सब से पहले यही पूछा कि लड़का है या लड़की.

समीना ने जब उसे बताया कि लड़का है तो शिवानी को अपनी योजना सफल होती नजर आई. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. इस बीच समीना जब चायनाश्ता करने अस्पताल से बाहर चली गई तो शिवानी ने मनीषा को शौचालय चलने की बात कही. मनीषा के शौचालय में घुसते ही शिवानी बच्चे को ले कर तेजी से अस्पताल से बाहर निकल आई.

प्रियंका ने उसे बच्चे के साथ आता देख कर पार्किंग से स्कूटी निकाल ली. इस दौरान समीना ने अपने पोते का कंबल पहचान कर शिवानी को टोका तो वह रुकने के बजाय बाहर स्कूटी ले कर तैयार खड़ी प्रियंका के साथ भाग निकली.

दोनों बहनें स्कूटी से बच्चे को ले कर भरतपुर से सीधे मथुरा पहुंचीं. मथुरा से उन्होंने मां मीना देवी और आगरा में नाना लाल सिंह को बच्चा खरीद कर लाने की बात बताई. बाद में प्रियंका अपनी ससुराल आगरा चली गई.

जांच में सामने आया कि वारदात के बाद दोनों बहनें पुलिस की गतिविधि पर नजर रखे हुए थीं. पुलिस का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. यह देख कर दोनों बहनें 13 जनवरी की सुबह बच्चे को भरतपुर सीमा में रारह में सांतरुक स्थित नहर के पास लावारिस छोड़ कर लौट आई थीं.

दोनों बहनों में 20 साल की प्रियंका छोटी है और 23 साल की शिवानी बड़ी. मथुरा के रहने वाले पुष्पेंद्र जाट की पत्नी शिवानी एक निजी स्कूल में शिक्षिका है, जबकि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस के सरूपा नौगावां निवासी और आजकल आगरा में रह रहे भूपेंद्र सिंह जाट की पत्नी प्रियंका बीए की पढ़ाई कर रही है.

शिवानी को औपरेशन से बेटी हुई थी. उसे डाक्टरों ने 2 साल तक बच्चा पैदा नहीं करने की सलाह दी थी. प्रियंका शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई थी, लेकिन परीक्षा होने के कारण उस ने गर्भपात करा दिया था. इस से उस के ससुराल वाले नाराज थे. वारदात के दौरान वह 15 दिन से मायके में थी.

पुलिस ने शिवानी व प्रियंका को 15 जनवरी, 2018 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. शिक्षा के पेशे से जुड़ी और एक बेटी की मां शिवानी ने पढ़ीलिखी छोटी बहन के साथ मिल कर अपनी मां का टूटता घर बसाए रखने के लिए बच्चे को चुरा कर एक मां को जो यातना दी, उस अपराध के लिए कानून उन्हें सजा देगा. लेकिन इस वारदात ने दोनों के घर वालों व ससुराल वालों के सिर भी शर्म से झुका दिए.

गणेश की शातिर सोच ने उसे बनाया अपराधी

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना भेलूपुर में प्रमोद कुमार पत्नी और 3 बच्चों के साथ हंसीखुशी से रहता था. शुभम उस का सब से छोटा बेटा था, जो सभी का लाडला था. गुरुवार 27 अक्तूबर, 2016 को अचानक वह गायब हो गया तो पूरा परिवार परेशान हो उठा.13 महीने का शुभम जब कहीं दिखाई नहीं दिया तो उस की तलाश शुरू हुई. उस के बारे में आसपास के घरों में पूछा गया तो जल्दी ही उस के गायब होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. इस के बाद मोहल्ले के भी कुछ लोग मदद के लिए आ गए. जब शुभम का कहीं कुछ पता नहीं चला तो बिना देर किए सलाह कर के सब उस के गुम होने की सूचना थाना भेलूपुर पुलिस को देने पहुंच गए.

थानाप्रभारी इंसपेक्टर राजीव कुमार सिंह को जब 13 महीने के शुभम के गायब होने की तहरीर दी गई तो उन्होंने गुमशुदगी दर्ज करा कर शुभम की फोटो ले कर प्रमोद कुमार तथा उन के साथ आए लोगों को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘आप लोग बिलकुल मत घबराइए, शुभम को कुछ नहीं होगा. हम उसे जल्द ही ढूंढ निकालेंगे.’’

इस के बाद राजीव कुमार सिंह ने आवश्यक जानकारी ले कर सभी को घर भेज दिया. एक मासूम की गुमशुदगी की बात थी, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी अधिकारियों को दे कर थाने में मौजूद सिपाहियों को बच्चे की तलाश में लगा दिया. इस के अलावा इलाके के सभी मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया.

प्रमोद की किसी से न कोई अदावत थी और न किसी से कोई विवाद था. ऐसे में यही लगता था कि बच्चे का फिरौती के लिए अपहरण किया गया होगा. लेकिन प्रमोद कुमार की इतनी हैसियत भी नहीं थी कि वह फिरौती के रूप में मोटी रकम दे सकता. फिर भी पुलिस फिरौती के लिए किए गए अपहरण को ही ध्यान में रख कर चल रही थी.

और हुआ भी वही. प्रमोद द्वारा थाने में तहरीर दे कर लौटने के थोड़ी देर बाद ही उसे एक पत्र मिला, जिस में शुभम के अपहरण की बात लिख कर उस की सकुशल वापसी के लिए 5 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई थी.

अपहर्त्ता ने पत्र में लिखा था, ‘तुम्हारे जीजा ने मुझे बहुत परेशान किया है. अब तुम्हें अपना बेटा चाहिए तो 5 लाख रुपए दो, वरना बाद में चिडि़या खेत चुग जाएगी.’

ताज्जुब की बात यह थी कि पत्र भेजने वाला कोई और नहीं, प्रमोद कुमार के पड़ोस में ही रहने वाला गणेश राजभर था, जो औटो चलाता था. प्रमोद कुमार ने तुरंत इस बात की जानकारी थाना भेलूपुर पुलिस को तो दी ही, खुद भी गणेश की तलाश में लग गया. गणेश के घर में कोई नहीं था. पुलिस भी सूचना मिलते ही गणेश की तलाश में तेजी से जुट गई थी.

एसपी (सिटी) राजेश यादव ने सीओ राजेश श्रीवास्तव को निर्देश दिया कि किसी भी तरह गणेश को गिरफ्तार कर के शुभम को सकुशल बरामद किया जाए. इस के बाद थाना भेलूपुर पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच को भी गणेश की तलाश में लगा दिया गया.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और अपहरण के 2 दिनों बाद यानी 29 अक्तूबर, 2016 को मुखबिर की सूचना पर गणेश को बच्चे के साथ मंडुआडीह रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार करने के साथ ही उस के कब्जे से मासूम शुभम को सकुशल बरामद कर लिया गया. वह काफी डरासहमा हुआ था.

गणेश की गिरफ्तारी और मासूम शुभम की सकुशल बरामदगी के बाद एसपी (सिटी) राजेश यादव ने अपने औफिस में प्रैसवार्ता बुला कर अभियुक्त गणेश को पत्रकारों के सामने किया तो उस ने मासूम शुभम के अपहरण की जो कहानी सुनाई, वह प्रतिशोध की भावना से भरी हुई इस प्रकार थी—

वाराणसी के थाना सारनाथ के सोना तालाब का रहने वाला गणेश राजभर घर वालों से न पटने की वजह से परिवार के साथ थाना भेलूपुर के कमच्छा सट्टी स्थित अपनी ससुराल में किराए का मकान ले कर रहता था. गुजरबसर के लिए वह औटो चलाता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे थे. किराए पर रहने की वजह से उसे आर्थिक रूप से तो परेशानी होती ही थी, साथ ही बारबार कमरा बदलने से भी उसे दिक्क्त होती थी.

यही सोच कर उस ने कुछ पैसा इकट्ठा किया और जमीन लेने की योजना बनाई, जिस से वह अपना मकान बना कर उस में आराम से रह सके. इस से उस के किराए के पैसे तो बचते ही, बारबार कमरा बदलने की जहमत से भी छुटकारा मिल जाता. इस के अलावा उस में वह थोड़ीबहुत सागसब्जी की खेती भी कर लेगा, जिस से चार पैसे भी बचते.

पैसे इकट्ठा हो गए तो गणेश जमीन की तलाश में लग गया. किसी के माध्यम से उस ने प्रकाश मास्टर से साढ़े 3 लाख रुपए में एक जमीन खरीदी. लेकिन जमीन खरीदने के बाद उसे पता चला कि वह जमीन बंजर है. यह जान कर वह परेशान हो उठा. क्योंकि वहां कुछ भी नहीं हो सकता था. प्रकाश से उस ने अपने रुपए वापस मांगे तो उस ने पैसे देने से मना कर दिया. इस के बाद दोनों में अकसर तकरार होने लगी.

गणेश को जब पता चला कि प्रकाश मास्टर उस के पड़ोस में रहने वाले प्रमोद कुमार का बहनोई है तो उस के मन में शातिर और घृणित सोच ने जन्म लेना शुरू कर दिया. वह थी प्रमोद कुमार के मासूम बेटे शुभम के अपहरण की. उसे लगता था कि साले के बेटे की चाहत में प्रकाश उस के रुपए तो लौटा ही देगा, फिरौती के रूप में भी कुछ रुपए देगा.

बस फिर क्या था, अपनी इसी सोच को अंजाम देने के लिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. आखिर 27 अक्तूबर, 2016 को उसे मौका मिल ही गया. उस समय शुभम  घर के बाहर खेल रहा था. गणेश ने अपने 14 साल के बेटे सूरज को भेज कर औटो में घुमाने के बहाने शुभम को मंगा लिया और उसे ले कर चला गया. बाद में उस ने अपने बेटे सूरज के हाथों फिरौती के लिए प्रमोद के पास चिट्ठी भिजवा दी थी.

फिरौती की चिट्ठी मिलते ही प्रमोद के घर में कोहराम मच गया था, जबकि गणेश फिरौती के 5 लाख पाने के सपने देखने लगा था. उस के ये सपने पूरे होते, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

दरअसल, गणेश को इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि लोग इतनी जल्दी पुलिस को शुभम के अपहरण की सूचना दे देंगे. गणेश द्वारा शुभम के अपहरण का अपराध स्वीकार करने के बाद थाना भेलूपुर पुलिस ने उस के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज किया और उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जानलेवा फेसबुक फ्रेंडशिप

आजकल तकरीबन हर कोई सोशल मीडिया खासतौर से फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्सऐप पर मौजूद है. कई लोगों के लिए इन साइटों पर रहना जरूरत की बात है, तो ज्यादातर लोग इन के जरीए अपना वक्त काटते हैं.

हैरानी की बात है कि अब तेजी से लड़कियां भी फेसबुक पर दिख रही हैं. बड़े शहरों की लड़कियों को पछाड़ते हुए अब देहातों और कसबों की लड़कियां भी फेसबुक पर अकाउंट खोल कर दोस्त बनाने लगी हैं और उन से चैट यानी लिखित में बातचीत करने लगी हैं.

फेसबुक पर दोस्त बना कर उन से चैट करने पर घर वालों को कोई खास एतराज नहीं होता, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां बेखौफ हो कर अपने बौयफ्रैंड से बातें करती हैं.

ये बातें कभीकभी ऐसे जुर्म की भी वजह बन जाती हैं, जिस से नादान लड़कियां मुसीबत में पड़ जाती हैं, इसलिए अब जरूरी हो चला है कि फेसबुक का इस्तेमाल सोचसमझ कर और एहतियात बरतते हुए किया जाए, नहीं तो हालात मध्य प्रदेश के इंदौर की प्रिया जैसे भी हो सकते हैं.

आशिक बना कातिल

17 साला प्रिया इंदौर के गीता नगर इलाके के कृष्णा नगर अपार्टमैंट्स में तीसरी मंजिल पर रहती थी. हाईस्कूल में पढ़ रही प्रिया पढ़ाई की अहमियत समझती थी, इसलिए इंजीनियर बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उस ने अभी से आईआईटी की भी तैयारी शुरू कर दी थी और कोचिंग क्लास में  जाती थी.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी रावत एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं और मां किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं. हालांकि ये लोग कोई बहुत बड़े रईस नहीं हैं, लेकिन इज्जत से गुजारे लायक कमाई आराम से हो जाती थी. पूजा इन दोनों की एकलौती लड़की थी.

दूसरी लड़कियों की तरह पूजा भी फेसबुक का इस्तेमाल करती थी और उस के कई दोस्त भी बन गए थे.

प्रिया जानती थी कि फेसबुक पर लड़कों या अनजान लोगों से दोस्ती करना अब खतरे से खाली बात नहीं, इसलिए वह ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट मंजूर नहीं करती थी, जिन में सामने वाला जानपहचान का न हो.

एक दिन पूजा को प्रियांशी नाम की लड़की ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, तो उस ने इसे मंजूर कर लिया, क्योंकि प्रियांशी लड़की थी और उस की प्रोफाइल भी प्रिया को ठीकठाक लगी थी.

धीरेधीरे प्रिया और प्रियांशी की फेसबुक पर दोस्ती गहराने लगी और दोनों चैटिंग करने लगीं. इस दौरान प्रिया ने प्रियांशी से कई दिली बातें कीं और अपना और अपनी मम्मी का मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया.

लेकिन एक दिन प्रियांशी की हकीकत प्रिया के सामने खुल ही गई कि वह लड़की नहीं, बल्कि लड़का है. उस का असली नाम अमित यादव है. वह 24 साल का है और पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

crime

अमित ने असलियत बताते हुए प्रिया से मुहब्बत का इजहार किया, तो धोखा खाई प्रिया तिलमिला उठी और उस ने अमित का अकाउंट ब्लौक कर दिया.

गूजरखेड़ी गांव का रहने वाला अमित अब तक प्रिया, उस के घर और स्वभाव के बारे में चैट के जरीए प्रिया से ही काफीकुछ जानकारी हासिल कर चुका था, इसलिए उस ने प्रिया के मोबाइल पर फोन कर उस से अपनी मुहब्बत का इजहार किया. तब भी प्रिया ने उसे झिड़क दिया.

जब प्रिया ने अमित का फोन रिसीव करना बंद कर दिया, तो एकतरफा प्यार में पागल इस सिरफिरे आशिक ने मैसेज भेजने शुरू कर दिए.

प्रिया को अब समझ आ गया था कि धोखे या गलती से ही सही, वह एक गलत और झक्की नौजवान से फेसबुक पर दोस्ती कर के फंस चुकी है, तो उस ने पीछा छुड़ाने के लिए उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया.

इस अनदेखी और बेरुखी से अमित और भी तिलमिला गया, जो यह मान कर चल रहा था कि चूंकि वह प्रिया से प्यार करता है, इसलिए यह उस की जिम्मेदारी है कि वह भी उसे प्यार करे. हालांकि उसे मन में कहीं न कहीं एहसास होने लगा था कि प्रिया सख्तमिजाज और उसूलों वाली लड़की है.

हिम्मत न हारते हुए अमित ने प्रिया की मां किरण को फोन किया और सारी बात बताई. इस पर किरण ने प्रिया से पूछा, तो उस ने मां को साफसाफ बता दिया कि अमित एक धोखेबाज लड़का है, जिस ने लड़की बन कर फेसबुक पर उस से दोस्ती की और अब जबरदस्ती प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा है.

बेरहमी आशिक की

मां किरण ने आजकल के जमाने को देख शुरू में तो बेटी की तरह ही अमित को झिड़क दिया.

यह देख कर अमित गिड़गिड़ाया, ‘‘आंटी, मुझे बस एक बार प्रिया से बात कर लेने दें, फिर मैं कभी फोन नहीं करूंगा.’’

दुनिया देख चुकीं किरण यहीं गच्चा खा गईं. उन्होंने सोचा था कि लड़का एकतरफा प्यार में पागल हो गया है और कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर बेटी को कोई नुकसान पहुंचा दे, इसलिए जब

27 सितंबर, 2016 की सुबह उस का दोबारा फोन आया, तो उन्होंने उसे घर आने की इजाजत दे दी, लेकिन इस शर्त पर कि बात दरवाजे के बाहर से ही होगी.

अमित तो मानो इसी फिराक में था, इसलिए वह किरण की हर बात मानता गया और सुबह के तकरीबन 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

जब किरण ने उसे दरवाजे से ही टरकाना चाहा, तो वह फिर दुखी होने की ऐक्टिंग करते हुए बोला, ‘‘यहां बाहर खड़ेखड़े क्या बात होगी. अंदर आने दें तो इतमीनान से बात कर लूंगा.’’

किरण ने उसे अंदर आने दिया. अंदर आ कर अमित ने बाथरूम जाने की बात कही और बाथरूम में चला भी गया.

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अंदर कमरे में प्रिया स्कूल जाने के लिए अपना बैग लगा रही थी कि अमित ने बगैर कुछ कहे या मौका दिए पीछे से चाकू निकाल कर उस पर जानलेवा हमला कर दिया.

प्रिया हमले से घबराई और चीखी तो किरण उस के कमरे की तरफ भागीं, पर जब तक अमित प्रिया पर चाकू के दर्जनभर वार कर चुका था, जो पीठ के अलावा पेट, सीने और चेहरे पर लगे थे.

बदहवास सी किरण बेटी को बचाने बीच में आईं, तो अमित ने उन पर भी हमला बोल दिया. मौका पा कर प्रिया बाथरूम में जा घुसी और डर के मारे भीतर से दरवाजा बंद कर लिया.

शोर सुन कर अपार्टमैंट्स के कई लोग किरण के फ्लैट की तरफ भागे, तो उन्होंने हाथ में चाकू लिए एक नौजवान यानी अमित को भागते देखा. दूसरी मंजिल पर आ कर उस ने भीड़ देखी, तो अपने बचाव के लिए वह नीचे कूद गया.

इधर लोग किरण के घर में गए और हालात देख कर बाथरूम का दरवाजा तोड़ा. वहां प्रिया बेहोश पड़ी थी. लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर की और प्रिया को कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागे, पर इलाज के दौरान ही प्रिया ने दम तोड़ दिया.

अमित नीचे कूद तो गया, लेकिन उस के हाथपैर की हड्डियां टूट गईं, इसलिए भाग नहीं सका और गिरफ्तार हो गया. उसे जेल वार्ड में रखा गया.

अमित अपने बयानों में पुलिस को यह कहते हुए बरगलाने की कोशिश करने लगा कि प्रिया उस पर जबरदस्ती करने का झूठा इलजाम लगा रही थी और उसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुलाया था.

पर यह बहानेबाजी ज्यादा नहीं चली और जल्दी ही एकतरफा प्यार में पगलाए इस आशिक का जुर्म सामने आ गया.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी ने जब बेटी की हत्या की खबर सुनी, तो सदमे के चलते वे बेहोश हो गए और होश में आते ही हत्यारे अमित को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे.

एहतियात बरतना है जरूरी

जिस ने भी इस अपराध के बारे में सुना, वह सन्न रह गया और फेसबुक जैसी साइट को कोसता नजर आया कि आजकल यह जुर्म का नया जरीया बन गया है, इसलिए लड़कियों को जरा संभल कर रहना चाहिए.

बात सच भी है, क्योंकि लड़कियां फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा फ्रैंड्स बनाना अपनी शान की बात समझती हैं. हालांकि प्रिया ने अमित को लड़की समझ कर उस से दोस्ती की थी, पर इस हादसे से लगता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते समय लड़कियों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो वे भी प्रिया की तरह किसी हादसे या जुर्म का शिकार हो सकती हैं:

* यह जरूरी नहीं कि जो फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज रही है, ये हकीकत में लड़की हो, इसलिए उसे प्रोफाइल की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए कि फैमिली फोटो डाले गए हैं या नहीं.  कितने फ्रैंड्स कौमन हैं. अगर कौमन फ्रैंड्स न हों या कम हों, तो भी फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल नहीं करनी चाहिए.

* किसी भी अनजान शख्स की फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल न करें.

* अपने प्रोफाइल में मोबाइल नंबर नहीं डालना चाहिए, न ही चैटिंग में किसी को देना चाहिए.

* अगर सामने वाली लड़की ज्यादा अपनापन दिखाए, तो चौकन्ना हो जाएं. अकसर जब 2 अनजान लड़कियां दोस्त बनती हैं, तो एकदूसरे से यह जरूर पूछती हैं कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या? तुम ने कभी सैक्स किया है क्या? ऐसी बातें करने वाली लड़की को भाव नहीं देना चाहिए.

* घर का पता किसी को न दें.

* फेसबुक का पासवर्ड भी किसी को न दें.

* फ्रैंड कहीं बाहर होटल या पार्क वगैरह में मिलने बुलाए, तो सख्ती दिखाते हुए मना कर देना चाहिए. आजकल लोग गिरोह बना कर भी फेसबुक पर भोलीभाली लड़कियों को फांसने लगे हैं.

* अगर यह पता चल जाए कि सामने जो लड़की थी, वह असल में लड़का है, तो उस से धीरेधीरे कन्नी काटनी चाहिए. ब्लौक कर देने या भड़कने से गुस्से में आ कर लड़का कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है.

* इस के बाद भी बात न बने, तो मांबाप या घर के बड़ों को भरोसे में लेते हुए सारी बात बता देनी चाहिए.

11 दुल्हों की फरेबी दुलहन की कहानी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में कारखानों और बड़ीबड़ी कंपनियों के तमाम औफिस हैं, जिन में काम करने के लिए देश के अलगअलग राज्यों से आए लोग यहां रह रहे हैं. रहने  वालों की संख्या बढ़ती गई तो फ्लैट कल्चर कायम हुआ. जिन में रहने वाले लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.  इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि लोग निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते. ऐसे में किस फ्लैट में कौन रहता है और कौन क्या करता है, पड़ोसियों तक को पता नहीं होता. नोएडा शहर के ही सैक्टर-120 स्थित जोडिएक अपार्टमेंट सोसाइटी भी इस आधुनिक हकीकत से अलग नहीं थी. 17 दिसंबर, 2016 की सुबह पुलिस की 2 गाडि़यां सोसाइटी में आ कर रुकीं. पुलिस ने गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से कुछ पूछताछ की और फिर एक सुरक्षाकर्मी को साथ ले कर सीधे 11वीं मंजिल पर बने फ्लैट नंबर-1104 के सामने जा पहुंची.

पुलिस के इशारे पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे के ठीक बराबर में लगी डोरबैल बजाई तो अंदर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

सुरक्षाकर्मी ने जवाब में कहा, ‘‘दरवाजा खोलिए मैम, मैं गार्ड हूं.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप से कोई मिलने आया है.’’ गार्ड ने कहा.

कुछ पलों की खामोशी के बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर पुलिस वालों को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह कुछ समझ पाती, उस के पहले ही एक पुलिसकर्मी ने पूछा, ‘‘मेघा कहां है?’’

पुलिस वाले के इस सवाल पर वह चौंकी, लेकिन तुरंत ही संभलने की कोशिश करते हुए जवाब देने के बजाए सवाल दाग दिया, ‘‘एक्सक्यूजमी सर, कौन मेघा? मैं समझी नहीं. आप शायद गलत जगह आ गए हैं. यहां कोई मेघा नहीं रहती.’’

लड़की के जवाब से एकबारगी पुलिसकर्मी सकते में आ गए. लेकिन अगले ही पल उस ने कहा, ‘‘यह नाटक बंद करो और जल्दी बताओ कि मेघा कहां है?’’

वह लड़की कोई जवाब देती, उस के पहले ही पुलिसकर्मी फ्लैट में दाखिल हो गए. अंदर बैडरूम में एक लड़की एक युवक के साथ बैठी टीवी देख रही थी. पुलिसकर्मियों की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उन के चेहरे पर मुसकान तैर गई. जबकि लड़की ने हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

उस की हालत देख कर उस पुलिसकर्मी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘यहां भी तुम शादी करने आई होगी मेघा? चलो, बहुत शादियां कर लीं, अब बाकी का वक्त जेल में बिता लेना.’’

लड़की हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए सर, अब आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ पुलिसकर्मियों ने उस की बातों को नजरअंदाज करते हुए फ्लैट में रहने वाले तीनों लोगों को कस्टडी में ले कर औपचारिक पूछताछ की. इस के बाद पुलिस तीनों को थाना फेज-2 ले आई, जहां उन से लंबी पूछताछ की गई. गिरफ्तार तीनों लोगों में मेघा भार्गव, उस की बहन प्राची और जीजा देवेंद्र शर्मा शामिल थे.

अगले दिन मेघा की गिरफ्तारी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बन गई. इस की वजह यह थी कि मेघा कोई मामूली लड़की नहीं थी. उस ने 11 लोगों से शादी कर के उन से करीब एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की थी. लोग उस की सुंदरता के जाल में आसानी से फंस जाते थे. उसे ले कर ढेरों अरमान सजाते थे, जबकि वह शादी की शहनाई में धोखे की धुन बजाती थी.

उन की नईनवेली दुलहन मेघा फरेबी होती थी और वह कुछ ही दिनों में पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिला कर घर में रखी नकदी और गहने ले कर रफूचक्कर हो जाती थी. इस के बाद ऐशपरस्त जिंदगी जीने वाली मेघा एक बार फिर नए दूल्हे की तलाश में निकल पड़ती थी. सिलसिला था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. केरल के त्रिवेंद्रम में भी मेघा फरेब का ऐसा ही खेल खेल कर आई थी.

नोएडा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार करने  वाली केरल पुलिस ही थी. उस के कारनामे से हर कोई दंग था. तीनों आरोपियों को केरल ले जाना था, लिहाजा पुलिस ने तीनों को सूरजपुर स्थित न्यायालय में पेश किया और कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें साथ ले कर केरल के लिए रवाना हो गई. सचमुच इस लुटेरी दुलहन का हर कारनामा चौंकाने वाला था.

27 वर्षीया मेघा भार्गव मूलरूप से भोपाल के अशोकनगर निवासी उमेश भार्गव की 4 बेटियों में तीसरे नंबर के बेटी थी. उस ने एमबीए की पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही शातिर दिमाग और महत्वाकांक्षी थी. उस के ऐशपरस्ती के जो सपने थे, वे साधारण जिंदगी में कभी पूरे नहीं हो सकते थे. लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

करीब 6 साल पहले मेघा ने केतन नामक युवक से एक कालेज में एडमीशन कराने के नाम पर 80 हजार रुपए ले लिए थे. लेकिन एडमीशन नहीं हो सका तो केतन अपने रुपए वापस मांगने लगा. मेघा ने रुपए लौटाने में आनाकानी की तो उस ने उस के खिलाफ ठगी का मामला दर्ज करा दिया. दरअसल, मेघा का मकसद उसे धोखा देना ही था. पुलिस ने इस मामले में उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो केतन न्यायालय चला गया. इस के बाद मेघा का परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोयल विहार में शिफ्ट हो गया. लेकिन केतन ने उस का पीछा नहीं छोड़ा.

अंत में पुलिस से दबाव  डलवा कर उस ने अपनी रकम वसूल कर ही ली. मेघा ने पीछा छुड़ाने के लिए यह रकम कर्ज ले कर अदा की थी. कर्ज अदा करने के लिए उस ने एक संस्थान में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. समय अपनी गति से चलता रहा. करीब 2 साल पहले मेघा की मुलाकात महेंद्र बुंदेला से हुई. समाज में ऐसे शातिर लोगों की कमी नहीं है, जो महत्वाकांक्षी लोगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में माहिर होते हैं.

मेघा के रंगढंग और पैसे की जरूरतों को देख कर महेंद्र समझ गया कि यह ऐसी लड़की है, जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है. मौका देख कर उस ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा, तुम ऐश की जिंदगी जीना चाहती हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’ मेघा की आंखों में एकाएक चमक आ गई. ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. तुम चाहो तो महीने भर में ही इतनी रकम कमा सकती हो कि पूरे साल मेहनत कर के भी उतना नहीं कमा सकती. लेकिन इस के लिए मैं जिस से कहूं, तुम्हें उस से शादी करनी होगी. वहां से जो माल मिलेगा, उस में मुझे आधा हिस्सा देना होगा.’’

‘‘क…क्या,’’ मेघा चौंकी, ‘‘लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘शादी तो एक नाटक होगी, लेकिन उसी से तुम अमीर बन सकती हो.’’ महेंद्र ने उसे समझाया, ‘‘मैं किसी ऐसे अमीर को पकडूंगा, जिस की शादी नहीं हो रही होगी. शादी के बाद उस के माल पर हाथ साफ कर के तुम दूर निकल जाना.’’

मेघा को महेंद्र की यह योजना पसंद आ गई. इस के बाद महेंद्र एक ऐसा तलाकशुदा आदमी ढूंढ कर लाया, जो शादी के लिए काफी परेशान था. महेंद्र ने उसे मेघा की फोटो दिखा कर किसी दूसरे राज्य की अनाथ लड़की बताया. फोटो देखते ही उस ने मेघा को पसंद कर लिया तो उस ने दोनों की मुलाकात करा दी. मेघा सुंदर भी थी और पढीलिखी भी.

उस आदमी की जिंदगी में जैसे खुशियों की बहार खुद चल कर आ रही थी. महेंद्र ने कहा कि लड़की जल्द से जल्द शादी करना चाहती है, क्योंकि उसे पति के रूप में सहारा चाहिए. इस पर वह आदमी और भी खुश हुआ. इस मौके को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही महेंद्र ने एक मंदिर में उन का विवाह करा दिया.

विवाह के अभी 10 दिन ही बीते थे कि मेघा एक रात करीब साढ़े 11 लाख रुपए की नकदी ले कर लापता हो गई. उस आदमी ने महेंद्र से संपर्क किया तो उस ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने कहा कि उस अनाथ लड़की से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, इस बारे में उसे पता नहीं था. यह उस आदमी की शराफत थी  कि उस ने पुलिस में शिकायत नहीं की. जैसा तय था, मेघा ने आधी रकम महेंद्र को दे दी.

इस के बाद मेघा मुंबई चली गई. कुछ दिन मस्ती में गुजारने के बाद उस ने नया शिकार तलाश कर लिया और इस नए शिकार को उस ने 40 लाख रुपए का चूना लगाया. मेघा को ठगी का यह अनोखा धंधा रास आ गया. अब तक वह इतनी तेज हो गई थी कि उस ने महेंद्र का साथ छोड़ दिया और खुद ही अपने लिए दूल्हे ढूंढने लगी.

उस ने पुणे के एक अमीर परिवार के अपाहिज लड़के से शादी कर के वहां 90 लाख रुपए का चूना लगाया. इस के बाद उस ने मुंबई छोड़ दी. इस बीच मेघा की बड़ी बहन प्राची का विवाह देवेंद्र से हो चुका था. मेघा के धंधे से वे वाकिफ थे. रुपयों के लालच में वे भी उस की फितरत में शामिल हो गए.

कभी पैसोंपैसों के लिए मोहताज रहने वाली मेघा नोटों से खेलने लगी. वह अच्छा खाने और महंगे कपड़े पहनने की शौकीन थी. बड़े शहरों में घूमने के लिए हवाई जहाज की यात्राएं करती थी. मेघा सौ, 5 सौ के नोट टिप में दे दिया करती थी.

उस का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था. वह शादियों के विज्ञापन देने वाली इंटरनेट बेवसाइट्स पर शिकार की तलाश करती थी. खास बात यह थी कि वह पैसे वाले तलाकशुदा और विकलांगों से ही शादी करती थी. इस की वजह यह थी कि उन्हें अच्छी लड़की मिल रही होती थी. ऐसे जरूरतमंद लोग ज्यादा छानबीन किए बिना शादी के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे.

मेघा की बहन और जीजा भावी दूल्हे के परिवार से मिलते थे और माली हालत का अंदाजा लगा कर ही रिश्ता पक्का करते थे. रिश्ता पक्का होते ही शादी की जल्दी करते थे. वह अपनी कमजोर माली हालत का परिचय देते तो शादी का खर्च भी लड़के वाले ही उठाते थे. जिन की माली हालत लूटने लायक नहीं होती थी, वहां वे कोई न कोई बहाना बना कर रिश्ता तोड़ देते थे.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और बिहार में भी मेघा ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. परिवार के नाम पर मेघा की शादी में बहन और जीजा ही शामिल होते थे. कुछ मामलों में वह खुद को अनाथ और दुखियारी लड़की बता कर अकेली ही रिश्ता पक्का कर लेती थी. वह हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए शादी के बाद दूल्हे के घर वालों से मीठीमीठी बातें कर के घुलमिल जाती थी.

ससुराल वाले तो अपनी नईनवेली दुलहन की तारीफ करते नहीं थकते थे कि उन के नसीब अच्छे थे, जो गुणी बहू मिली. रुपए और गहने कहां रखे होते थे, इस की वह जल्दी से जल्दी जानकारी हासिल कर लेती थी. उस में एक खास बात यह थी कि वह घर में खाना बनाने का काम भी जल्दी ही संभाल लेती थी.

ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करती थी. एक तो लड़के वाले उस के कामकाज की प्रशंसा कर के विश्वास करने लगते थे, दूसरे उसे नींद की गोलियां मिलाने में सुविधा हो जाती थी. वह ऐसी अदाकारा बन चुकी थी कि सभी उस पर पूरी तरह विश्वास कर बैठते थे. वारदात करने से पहले वह बहन और जीजा को बता देती थी, जिस से तय समय पर वे घर के बाहर पहुंच जाते थे. इस के बाद मेघा सामान समेट कर उन के साथ निकल जाती थी.

प्रत्येक वारदात के बाद मेघा अपने मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ कर फेंक देती थी. कुछ लोगों ने पुलिस में शिकायतें भी कीं, लेकिन पुलिस कभी उस तक पहुंच नहीं पाई. इस से उस के हौसले बढ़ते गए. पिछले साल मेघा अपनी बहन और जीजा के साथ केरल पहुंची. मेघा ने अपने पुराने अंदाज में शादी कर के 4 लोगों को ठगा. कुछ महीने पहले उस ने त्रिवेंद्रम के लौरेन जोसटिस से शादी की.

शादी के 20 दिनों बाद ही वह करीब 15 लाख के माल पर हाथ साफ कर के भाग निकली. उस के शिकार हुए लोग लुटने के बाद सिर पीट कर रह जाते थे, लेकिन लौरेन सिर पीटने वालों में नहीं थे. उन्होंने सीधा पुलिस का रुख किया और मेघा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मामले को गंभीरता लिया और इस केस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर टी. सज्जी को सौंपा गया. कुछ समय मुंबई में रहने के बाद मेघा, प्राची और देवेंद्र नोएडा आ कर रहने लगे.

यह इत्तेफाक ही था कि अभी तक मेघा कभी पकड़ी नहीं गई थी. उस का सोचना था कि उस का जन्म ही शादी की चाह रखने वाले लोगों को ठगने के लिए हुआ है. तीनों फ्लैट में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे और किसी से कोई वास्ता नहीं रखते थे. आसपास के लोगों को खबर भी नहीं थी कि वहां शादी के नाम पर अपने हाथों में मक्कारी की मेहंदी लगाने वाली जालसाज दुलहन रहती है. नोएडा में भी वे नए शिकार की तलाश में जुट गए थे. उधर केरल पुलिस ने ठगी के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया.

उस ने मेघा के फोटो हासिल करने के साथ ही उस के मोबाइल नंबर को हासिल कर के उस की कौल डिटेल्स निकलवाई. उन की गहराई से जांचपड़ताल की गई. उस में 2 नंबर मिले, जिन पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. इन तीनों की लोकेशन भी साथसाथ होती थी. यही दोनों नंबर उस की बहन और जीजा के थे. लेकिन परेशानी की बात यह थी कि तीनों ही नंबर बंद कर दिए गए थे.

जिन मोबाइल हैंडसेट में ये नंबर इस्तेमाल होते थे, उन पर कोई दूसरा नंबर भी नहीं चल रहा था. लेकिन एक महीने बाद एक मोबाइल हैंडसेट में नया नंबर चल गया. जांच में यह नंबर मेघा के जीजा देवेंद्र का निकला. इस नंबर के संपर्क में 2॒ नंबर और आए. पुलिस समझ गई कि ये मेघा और प्राची के नंबर हैं. पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन पता कराई तो वह नोएडा की मिली. इस के बाद पुलिस ने तीनों ही नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. बहुत जल्दी साफ हो गया कि ये नंबर शादी के नाम पर ठगी करने वाली तिगड़ी के हैं. मेघा कोई नया शिकार फांस कर नंबर बदल सकती थी, इसलिए उसे जल्दी गिरफ्तार करना जरूरी था.

इंसपेक्टर टी. सज्जी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम नोएडा आ पहुंची और एसएसपी धर्मेंद्र यादव से मिली. एसएसपी ने एसपी (सिटी) दिनेश यादव को मदद करने के निर्देश दिए. उन्होंने फेज-2 थानाप्रभारी उम्मेद सिंह को केरल से आई पुलिस टीम के साथ लगा दिया.

पुलिस ने पहले सुरागसी की, उस के बाद सोसाइटी जा कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मेघा के पकड़े जाने के बाद केरल के वे अन्य लोग भी सामने आ गए हैं, जिन्हें मेघा ने ठगा था. पुलिस ने मेघा, प्राची और देवेंद्र को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. मेघा ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखा होता और पढ़ाई का सही इस्तेमाल किया होता तो आज उसे जेल जाने की नौबत न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसान को लुटेरा बना सकती है शाहखर्ची

29 दिसंबर, 2016 की रात उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव मदाखेड़ा के देशी शराब के ठेके पर कुछ लोग बैठे शराब पी रहे थे. रात गहराई तो शराब पीने वाले वे लोग ठेके से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़े हो गए. इस की वजह यह थी कि वे शराब के ठेके के पास चलने वाली कैंटीन में चोरी करना चाहते थे. वे अकसर यहां शराब पीने आते थे. इस से उन्हें पता था कि कैंटीन में पैसा रखा रहता है. दरअसल, नया साल आने वाला था, इसलिए उन लोगों को मौजमस्ती और शाहखर्ची के लिए पैसों की जरूरत थी. इस के लिए उन्हें कैंटीन में चोरी करने से बेहतर कोई दूसरा उपाय नजर नहीं आ रहा था. शराब का यह ठेका सिसेंडी निवासी राजेश कुमार जायसवाल की पत्नी सरिता जायसवाल के नाम था.

28 साल का मनीष कुमार अपने परिवार के गुजरबसर के लिए ठेके के पास कैंटीन चलाता था. उस की कैंटीन में शराब के साथ पीने के लिए पानी, कोल्डड्रिंक और नमकीन बिस्कुट वगैरह मिलता था. दिन भर जो बिक्री होती थी, वह मनीष के पास कैंटीन में ही रखी रहती थी. रायबरेली जिले के रहने वाले राजनारायण, कल्लू, चुन्नीलाल और चंदन अकसर यहां आ कर शराब पीते थे. पैसों के लिए ये इलाके में चोरी और लूटपाट करते थे. इन सभी को शान से रहने की आदत थी. इन्हें महंगी गाडि़यों में घूमने और ब्रांडेड कपड़े पहनने का शौक था.

रायबरेली जिले के थाना बछरावां के रहने वाले राजनारायण और चंदन बापबेटे थे. बेरोजगारी और महंगे शौक ने दोनों को एक साथ अपराध करने के लिए विवश कर दिया था. गिरोह बना कर ये इलाके में पत्तल और दोने बेचते थे.

इस के जरिए ये पता कर लेते थे कि किस घर या दुकान में रकम मिल सकती है. ये सभी ज्यादातर बड़ी दुकानों, शोरूम और दूसरी जगहों को ही निशाना बनाते थे. गांव और आसपास की बाजारों में अभी भी लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए घर पर ही रखते हैं. दिसंबर महीने में नोटबंदी के चलते बैंकों में पैसा जमा कराना मुश्किल हो गया था, इसलिए कैंटीन चलाने वाले मनीष ने भी बिक्री के पैसों को कैंटीन में ही रखा हुआ था.

यह बात लुटेरे गिरोह को पता चल गई थी, इसलिए 29 दिसंबर को शराब पीने के बाद इन लोगों ने वहां चोरी की योजना बना डाली थी. रात में मनीष सो गया तो ये सभी चोरी करने के लिए कैंटीन में घुसे. चोरी करते समय बदमाशों ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि किसी तरह का कोई शोरशराबा न हो.

इस के बावजूद कैंटीन में रखा एक बरतन गिर गया, जिस की आवाज सुन कर मनीष जाग गया. उस के जागने से चोरी करने वाले परेशान हो उठे. उन्हें पकड़े जाने का भय सताने लगा. बचने के लिए उन्होंने मनीष के सिर पर लोहे का सरिया मार दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गया.

उस के सिर से खून बहने लगा. इस के बाद लुटेरे नकदी और सामान लूट कर भाग गए. सुबह शराब के ठेके का सेल्समैन पहुंचा तो उस ने मनीष को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया. मनीष के शरीर से खून ज्यादा बह चुका था, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

उस की मौत की सूचना थाना निगोहां पुलिस को दी गई तो पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ चोरी और हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह ने मामले की जानकारी लखनऊ की एसएसपी मंजिल सैनी को दी तो उन्होंने इस मामले की जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

एसपी क्राइम डा. सुजय कुमार की अगुवाई में गठित टीम में से सर्विलांस सेल के प्रभारी अक्षय कुमार और इंसपेक्टर क्राइम उदय प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से मुश्किल काम यह था कि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था. यह पूरी तरह से ब्लाइंड मर्डर था. ऐसे में पूरा दारोमदार सर्विलांस टीम पर था.

निगोहां पुलिस और क्राइम ब्रांच ने कुछ संदिग्ध लोगों को निशाने पर लिया. उन की जानकारी सर्विलांस टीम को दी. इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ने लगी. आखिर में पुलिस के हत्थे रायबरेली जिले का यह लुटेरा गिरोह लग गया. अब जरूरत थी घटना के बारे में उन से कबूल करवाना.

दरअसल, लुटेरे आपस में फोन पर बातें कर रहे थे, उसी से पुलिस को उन के द्वारा की गई वारदात का पता तो चल ही गया था, यह भी पता चल गया था कि वे निगोहां के टिकरा गांव के पास बने सामुदायिक मिलन केंद्र पर एकत्र होंगे.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने घेराबंदी कर के 6 जनवरी को इस गिरोह को पकड़ लिया था. पुलिस को इस गिरोह के पास से 35 हजार रुपए नकद और 10 मोबाइल फोन मिले थे. पुलिस ने गिरोह के सदस्यों से वह सरिया भी बरामद कर लिया था, जिस से मनीष की हत्या की गई थी.

पूछताछ में इस गिरोह ने बताया था कि निगोहां के ही बाबूखेड़ा गांव में रामू के घर 15 अक्तूबर को हुई चोरी भी इन्हीं लोगों ने की थी. दरअसल 29 दिसंबर की रात इस गिरोह ने सब से पहले पत्तेखेड़ा और मदाखेड़ा गांव में चोरी का प्रयास किया था, पर सफल नहीं हो सके थे.

ऐसे में ये शराब के ठेके पर पहुंचे, जहां कैंटीन में इन लोगों ने पैसा देखा तो लूट की योजना बना डाली. लूट के दौरान आवाज होने से ये लोग बचने के लिए मनीष को मारने पर मजबूर हो गए. पुलिस की इस सफलता के लिए एसएसपी मंजिल सैनी और एसपी क्राइम डा. संजय कुमार ने पुलिस टीम को बधाई दी है.

एसआई अक्षय कुमार ने बताया कि यह गिरोह पहले अपने टारगेट को चुनता था, उस के बाद चोरी करता था. उस दिन 2 जगहों पर असफल होने के बाद ये कैंटीन में चोरी करने को मजबूर हो गए. इन्हें किसी भी तरह से पैसा हासिल करना था, इसलिए ये समझ नहीं पाए कि कैंटीन में कोई सोया हुआ है. इन्हें लगता था कि कैंटीन में कोई होगा नहीं. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह का कहना था कि इस गिरोह के पकड़े जाने के बाद इलाके में होने वाली चोरियां रोकी जा सकेंगी?

प्यार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं

सिंहपुर निवासी अनीता द्विवेदी सुबह को कुछ महिलाओं के साथ गंगा बैराज  रोड पर मार्निंग वाक पर निकलीं. महिलाओं के साथ वाक करते हुए जब वह हरी चौराहे पर पहुंचीं तो उन्होंने रोड किनारे की झाडि़यों में एक युवती का शव पड़ा देखा. वहीं ठिठक कर उन्होंने साथी महिलाओं को भी बुला लिया.

थोड़ी ही देर में शव देखने वालों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच अनीता द्विवेदी ने मोबाइल फोन से इस की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 8 मार्च, 2018 की थी.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी तुलसी राम पांडेय पुलिस टीम के साथ सिंहपुर स्थित हरी चौराहा पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर वह उस जगह पहुंचे, जहां युवती की लाश पड़ी थी. लाश किसी नवविवाहिता की थी. उस के दोनों हाथों में मेंहदी रची थी और कलाइयों में सुहाग चूडि़यां थीं.

उस की उम्र 25 वर्ष के आसपास थी और वह गुलाबी रंग का सूट पहने थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवती की हत्या कहीं और की गई थी, जिस के बाद शव को गंगा बैराज रोड किनारे फेंक दिया गया था.

चूंकि मामला एक नवविवाहिता की हत्या का था, इसलिए इंसपेक्टर तुलसीराम पांडे ने कत्ल की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर, एसपी (पूर्व) अनुराग आर्या तथा सीओ भगवान सिंह भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

इस के बाद मौके पर आई फोरेंसिक टीम ने जांच की. युवती के गले पर कपड़े से कसे जाने के साथसाथ उंगलियों के निशान भी थे, जिस से टीम ने संभावना जताई कि युवती की हत्या गला घोंट कर की गई थी. युवती के सिर में दाईं ओर चोट का निशान तथा शरीर पर आधा दरजन खरोंच के निशान थे. टीम ने फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

काफी कोशिश के बाद भी युवती के शव की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. पुलिस शिनाख्त के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच भीड़ में से एक युवक आगे आया और शव को झुक कर गौर से देखने लगा. इत्मीनान हो जाने के बाद वह एसपी अनुराग आर्या से बोला, ‘‘साहब यह लाश पूनम की है.’’

‘‘कौन पूनम, पूरी बात बताओ?’’

‘‘साहब, मेरा नाम श्याम मिश्रा है. मैं बैकुंठपुर गांव का रहने वाला हूं. हमारे गांव में शिवशंकर मौर्या रहते हैं. पूनम उन्हीं की बेटी थी.’’

श्याम मिश्रा की बात सुन कर एसपी अनुराग आर्या ने तत्काल पुलिस भेज कर शिवशंकर व उन के घर वालों को बुला लिया. शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती ने जब बेटी का शव देखा तो वह बिलख पड़े. प्रियंका भी बड़ी बहन पूनम का शव देख कर रोने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी को धैर्य बंधाया और आश्वासन दिया कि पूनम के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा.

शव की शिनाख्त हो जाने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पूनम के शव का पंचनामा भरवा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से 2 सिपाहियों और एक दरोगा की ड्यूटी पोस्टमार्टम हाउस पर लगा दी.

इस के बाद इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे ने शिवशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई  दुश्मनी नहीं है. न ही जमीन जायदाद का झगड़ा है. उसे नहीं मालूम कि पूनम की हत्या किस ने और क्यों कर दी. चूंकि शिवशंकर ने किसी पर शक नहीं जताया था, इसलिए तुलसीराम पांडे ने शिवशंकर को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर दी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने सीओ भगवान सिंह के निर्देशन में पूनम की हत्या का राज खोलने के लिए एक सशक्त पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में बिठूर इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे, सबइंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, संजय मौर्या, राजेश सिंह, सिपाही रघुराज सिंह, देवीशरण सिंह तथा मोहम्मद खालिद को शामिल किया गया.

society

पुलिस टीम ने अपनी जांच मृतका के पिता शिवशंकर मौर्या से शुरू की. पुलिस ने मृतका के पिता का विधिवत बयान दर्ज किया. अपने बयान में शिवशंकर ने बताया कि उस ने पूनम की शादी 17 फरवरी, 2018 को सामूहिक विवाह समारोह में उन्नाव जिले के गांव परागी खेड़ा निवसी अंकुश मौर्या के साथ की थी.

20 फरवरी को वह पूनम की चौथी ले आया था, तब से वह मायके में ही थी. 7 मार्च को पूनम दोपहर बाद दवा लेने आस्था नर्सिंगहोम सिंहपुर गई थी. जाते समय वह अपना मोबाइल फोन घर पर ही भूल गई थी. अलबत्ता उस के पास दूसरा मोबाइल था. शाम 6 बजे तक जब वह वापस नहीं आई तो चिंता हुई. उस का मोबाइल भी बंद था.

शादी के पहले पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी, इसलिए हम ने सोचा कि शायद वह वहीं रुक गई होगी, सुबह तक आ जाएगी. लेकिन सुबह उस की मौत की खबर मिली. पूनम घर से जाते वक्त पूरे जेवर पहने हुए थी, जो गायब थे.

शिवशंकर के बयान से पुलिस टीम को शक हुआ कि कहीं पूनम के पति अंकुश ने जेवर हड़प कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. पुलिस टीम ने घर में रखा पूनम का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और परागी खेड़ा निवासी पूनम के पति अंकुश को हिरासत में ले कर पूछताछ की.

अंकुश ने पुलिस को बताया कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. वह तो पूनम से बहुत प्यार करता था. वह उसे लेने जाने ही वाला था कि उस की मौत की खबर मिल गई.

अंकुश ने पुलिस टीम को एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी. उस ने बताया कि पूनम जब ससुराल में थी, तब उस के मोबाइल पर अकसर गोलू नाम के किसी युवक का फोन आता था. देर रात भी वह उस से बातें किया करती थी. पूछने पर पूनम ने बताया था कि गोलू उस का मौसेरा भाई है.

पुलिस टीम ने गोलू के संबंध में शिवशंकर से पूछताछ की तो यह बात गलत निकली कि गोलू पूनम का मौसेरा भाई है. पुलिस टीम ने पूनम के मोबाइल के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह मोबाइल चोरी का है, लेकिन सिम कार्ड नीरज के नाम का है, जो नयापुरवा हिंगूपुर का रहने वाला है. पुलिस ने रात में छापा मार कर नीरज उर्फ गोलू को हिरासत में ले लिया.

थाना बिठूर ला कर जब नीरज उर्फ गोलू से पूनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने साफसाफ कहा कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन जब उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो वह जल्दी ही टूट गया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

नीरज ने बताया कि पूनम ने उस के साथ बेवफाई की थी इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया. पुलिस टीम ने नीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल दुपट्टा, पूनम का मोबाइल, मय लौकेट के मंगलसूत्र, सोने की अंगूठी, टौप्स, पायल, बिछिया वगैरह बरामद कर लिए.

चूंकि नीरज उर्फ गोलू ने पूनम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने नीरज को हत्या के जुर्म में नामजद कर गिरफ्तार कर लिया. नीरज के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस तरह थी.

कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर है ऐतिहासिक कस्बा बिठूर. इस कस्बे से 2 किलोमीटर दूर एक गांव बैकुंठपुर है. मिलीजुली आबादी वाले इस गांव में शिवशंकर मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवकांती के अलावा 2 बेटियां पूनम, प्रियंका तथा एक बेटा अमन था. शिवशंकर लोडर चालक था. मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार के भरण पोषण करता था.

भाईबहनों में पूनम सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही पर जैसेजैसे जवानी चढ़ी वह उस के बदन को सजाती गई. पूनम की खूबसूरती और निखरती गई. यौवन के फूल खिलते हैं तो उन की मादक महक फिजा में फैलती ही है. ऐसे में भंवरों का फूलों के इर्दगिर्द मंडराना स्वाभाविक है. मनचले भंवरे पूनम के इर्दगिर्द मंडराते तो उसे अच्छा लगता.

पूनम जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और आगे पढ़ना चाहती थी. लेकिन मातापिता के विरोध की वजह से आगे न पढ़ सकी और मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी. हालांकि पूनम को चौकाचूल्हा पसंद न था, लेकिन मां के दबाव में उसे सब करना पड़ता था.

एक रोज पूनम की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस की दूर की रिश्तेदार थी और किसी काम से उस के घर आई थी. सरिता सिंहपुर स्थित आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी. बातचीत के दौरान पूनम ने सरिता से नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो सरिता उसे नौकरी दिलाने के लिए राजी हो गई.

लेकिन मां ने पूनम को नौकरी करने के लिए साफ मना कर दिया. कुछ माह तक पूनम अपनी मां शिवकांती को नौकरी के लिए मनाती रही लेकिन जब वह नहीं मानी तो पूनम ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मां, तुम राजी हो या न हो, अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मैं नौकरी करूंगी.’’

पूनम के निर्णय के आगे शिवकांती को झुकना पड़ा. इस के बाद पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करने लगी. पूनम के गांव से सिंहपुर ज्यादा दूर नहीं था. वहां आनेजाने के साधन भी थे. अत: उसे नर्सिंग होम आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. कभीकभी अस्पताल में ज्यादा महिला मरीज होती या प्रसव कराने का मामला होता तो पूनम को रात में भी रुकना पड़ता था. रुकने की खबर वह मोबाइल से घर वालों को दे देती थी.

पूनम को नौकरी करते हुए 2 महीने बीत गए तो उस ने कुछ पैसा बचाने की सोची. इस के लिए बैंक खाता जरूरी था. इसलिए वह बैंक में खाता खुलवाने का प्रयास करने लगी. पूनम जिस आस्था नर्र्सिंग होम में काम करती थी उस के ठीक सामने रोड के उस पार भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा थी.

एक रोज वह बैंक पहुंची तो वहां उस की मुलाकात एक हृष्टपुष्ट युवक नीरज उर्फ गोलू से हुई, पहली ही नजर में खूबसूरत पूनम, नीरज के दिल में रच बस गई.

नीरज उर्फ गोलू बिठूर थाने के नयापुरवा (हिंगूपुर) गांव का रहने वाला था. उस के पिता केशव मौर्या मेहनतमजदूरी कर के अपना परिवार चलाते थे. 3 भाईबहनों में नीरज सब से बड़ा था. साधारण पढ़ा लिखा नीरज पेशे से मैकेनिक था.

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बैंक में मनोज नाम के व्यक्ति का जनरेटर लगा था. इस जनरेटर का औपरेटर नीरज था. बिजली चली जाने पर वह जनरेटर चालू करता था. सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक उस की ड्यूटी बैंक में रहती थी.

पूनम और नीरज पहली ही मुलाकात में एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए. पूनम ने जब नीरज से खाता खुलवाने की बात कही तो उस ने भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा में पूनम का खाता खुलवा दिया.

खाता खुला तो पूनम का बैंक में आनाजाना शुरू हो गया. नीरज जब भी पूनम को देखता, मदहोश सा हो जाता था. वह उस से एकांत में मिलने का मौका तलाश करने लगा. पूनम जब बैंक आती तो वह नजरें चुरा कर पूनम को निहारता रहता था.पूनम नीरज की नजरों की भाषा खूब समझती थी. एक दिन जब पूनम आई तो वह उस का हाथ पकड़ कर उसे बैंक के जीने के नीचे ले गया. वहां एकांत था. वहां नीरज ने पूनम का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘पूनम मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’

पूनम खामोश रही तो उस ने अपनी बात दोहराते हुए फिर कहा, ‘‘पूनम, अगर तुम ने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया तो मैं अपनी जान दे दूंगा. अब एक पल भी तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कैसी बात करते हो नीरज, इस तरह किसी लड़की का हाथ पकड़ना कहां की सभ्यता है?’’ पूनम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘तुम प्यार करते हो तो यह ठीक है, पर मैं तुम से प्यार नहीं करती.’’ पूनम की मुसकराहट से नीरज की हिम्मत बढ़ गई. उस ने पूनम को अपने आगोश में भर लिया.

पूनम उस के सीने से चिपट कर बोली, ‘‘नीरज, मैं भी तुम से प्यार करती हूं और काफी दिनों से तुम मेरे दिल में बसे हुए हो, मैं चाहती थी कि शुरुआत तुम करो. बताओ, मुझे जीवन के किसी मोड़ पर धोखा तो नहीं दोगे.’’

‘‘तुम मेरे मन में बस गई हो पूनम, भला मैं तुम्हें कैसे धोखा दे सकता हूं. तुम तो मेरी जिंदगी हो.’’

नीरज की ये विश्वास भरी बातें सुन कर पूनम समर्पण की भावना के साथ उस से लिपट गई. धीरेधीरे दोनों का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ने लगा. पूनम के दिल में नीरज गहराई तक उतरता चला गया. बैंक के जीने के नीचे का एकांत स्थल उन के मिलने की पसंदीदा जगह बन गया. इस सब के चलते एक दिन दोनों के बीच मर्यादा की सारी दीवारें भी ढह गईं.

उस रोज जैसे ही पूनम अस्पताल की ओर बढ़ी, नीरज बीच रास्ते में उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘शाम 6 बजे बैंक आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

पूनम को लगा, जैसे उस का दिल उछल कर सीने से बाहर आ जाएगा. अस्पताल में उस का पूरा दिन बेचैनी से गुजरा. वह सोचती रही कि नीरज ने बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही. वह खुद भी नीरज से मिलना चाहती थी.

ज्योंज्यों दिन ढलने लगा, पूनम की बेचैनी बढ़ने लगी. मिलने का तयशुदा वक्त आया तो पूनम तेज कदमों से बैंक की ओर बढ़ गई. बैंक के करीब पहुंचते ही नीरज उसे दिख गया. वह बैंक के जीने की सीढि़यों पर बैठा था. तब तक बैंक बंद हो गई थी और सन्नाटा पसरा था. नीरज, पूनम का हाथ पकड़ कर जीने की सीढि़यां चढ़ते हुए छत पर पहुंचा.

वहां घुप अंधेरा था. नीरज ने बिना कुछ कहे सुने उसे बांहों में भर लिया और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगा. दोनों ही खुद पर काबू न रख सके और अपनी हसरतें पूरी कर लीं. कुछ देर बाद जब नीरज ने पूनम को खुद से अलग किया तो उस ने महसूस किया कि वह अपना बहुत कुछ खो बैठी है.

वह फफकफफक कर रोने लगी तो नीरज ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पूनम, मैं तुम से प्यार करता हूं. मेरा वादा है कि मैं तुम से ही शादी करूंगा. रोने की जरूरत नहीं है, जो मेरी अमानत थी, वह मैं ने ले ली. वादा करो फिर मिलोगी.’’

पूनम ने नीरज को गहरी नजरों से देखा और उस से फिर मिलने का वादा कर के अपने घर चली गई. इस के बाद पूनम अकसर शाम को नीरज से उसी जगह एकांत में मिलती. नीरज से मिलने के चक्कर में पूनम को घर आने में देर हो जाती थी. मां पूछती तो पूनम बहाना बना देती. लेकिन धीरेधीरे सब कुछ शिवकांती की समझ में आने लगा था. शिवकांती ने अपने पिता शिवशंकर से कहा, ‘‘जल्दी से पूनम के हाथ पीले कर दो, वरना हाथ मलते रह जाओगे. लड़की के पर निकल आए हैं.’’

पत्नी की बात शिवशंकर को सही लगी. वह पूनम के ब्याह के लिए दौड़धूप करने लगा. पूनम को विवाह की जानकारी हुई तो वह घबरा गई. उस ने अपने विवाह की जानकारी नीरज को दे कर कहा, ‘‘गोलू, जल्दी से कोई उपाय खोजो, वरना मैं किसी और की दुलहन बन कर चली जाऊंगी और तुम ताकते रह जाओगे.’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा पूनम. तुम्हें अपना बनाने का मेरे पास एक उपाय है.’’

‘‘क्या उपाय है?’’ पूनम ने पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे साथ भाग चलो. कहीं जा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे सोचने समझने का मौका दो.’’

फिर एक दिन नीरज की मीठीमीठी बातों में आ कर पूनम घरपरिवार से नाता तोड़ कर सपनों की सजीली दुनिया में जीने के लिए उस के साथ उड़ गई. वह बैंक से पैसा निकाल कर भी अपने साथ ले गई.

इधर देर रात तक जब पूनम घर नहीं पहुंची तो मां शिवकांती को चिंता हुई मां ने उसे तलाश भी किया, लेकिन पूनम का कोई पता न चला. शिवशंकर घर आए तो शिवकांती ने उन्हें बताया कि पूनम अभी तक अस्पताल से नहीं आई है. शिवशंकर ने  आस्था नर्सिंग होम की औपरेटर से बात की.

उस ने बताया कि पूनम आज ड्यूटी पर नहीं आई थी. यह जानकारी पा कर शिवशंकर भौचक्के रह गए. उन्होंने अपने स्तर पर पूनम को सभी जगह तलाश किया, लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

जवान बेटी के भाग जाने से शिवशंकर की बिरादरी व रिश्तेदारों में थूथू होने लगी थी. इसलिए वह पूनम की खोज में जीजान से जुटे थे. 2 दिन बाद शिवशंकर को आस्था नर्सिंग होम की एक महिला कर्मचारी से पता चला कि पूनम की दोस्ती बैक के जनरेटर औपरेशन नीरज से थी. पूनम शायद उसी के साथ गई होगी.

यह अहम जानकारी मिली तो शिवशंकर ने नीरज के संबंध में जानकारी जुटाई. पता चला कि नीरज भी गायब है. शिवशंकर नीरज के गांव नयापुरवा (हिंगूपुर) गए तो उस के घर वालों ने बताया कि नीरज एक सप्ताह के लिए कहीं बाहर घूमने गया है. इस से शिवशंकर को पक्का यकीन हो गया था कि नीरज ही पूनम को बहलाफुसला कर भगा ले गया है. इस पर शिवशंकर ने थाना बिठूर में नीरज के विरुद्ध प्रार्थना पत्र दे कर बेटी की बरामदगी की गुहार लगाई.

पुलिस पूनम को बरामद कर पाती, उस के पहले ही पूनम अपने ननिहाल आजादनगर (कानपुर)  पहुंच गई. उस ने अपने नाना बाबूलाल को बताया कि उस ने अपने प्रेमी नीरज से मंदिर में शादी कर ली है. बाबूलाल ने इस की जानकारी शिवशंकर को दी तो वह पूनम को समझा कर घर ले आए.

इस के बाद घर वालों के दबाव और पुलिस हस्तक्षेप से नीरज और पूनम अलगअलग रहने को राजी हो गए. दरअसल, पुलिस ने जब नीरज को जेल भेजने की धमकी दी तो वह घबरा गया और पुलिस की बात मान ली.

इस घटना के बाद कुछ समय के लिए नीरज और पूनम का मिलनाजुलना बंद हो गया. लेकिन बाद में दोनों चोरीछिपे फिर मिलने लगे. इसी बीच नीरज ने वक्त बेवक्त बात करने के लिए पूनम को एक मोबाइल फोन दे दिया. फोन में सिम उसी के नाम का था.

पूनम को मोबाइल मिला तो दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. पूनम को जब भी मौका मिलता, वह नीरज से लंबी बातें करती और प्यार की दुहाई देती.

शिवशंकर ने पूनम की अस्पताल वाली नौकरी अब छुड़वा दी थी, इसलिए पूनम घर पर ही रहती थी. शिवकांती भी बेटी पर कड़ी नजर रखने लगी थी. इसी बीच शिवशंकर को मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना की जानकारी मिली तो उस ने अपनी बेटीपूनम का रजिस्टे्रशन करा दिया. इस योजना के तहत वरवधू को 20 हजार रुपए का चेक, घरगृहस्थी का सामान तथा वधू को आभूषण व वस्त्र दिए जाने का प्रावधान था.

वरवधू का परिचय सम्मेलन हुआ तो शिवशंकर भी अपनी पत्नी शिवकांती व बेटी पूनम को साथ ले कर पहुंचा. शिवशंकर ने उन्नाव जिले के परागी खेड़ा गांव निवासी राजवीर मौर्या के पुत्र अंकुश मौर्या को अपनी बेटी पूनम के लिए पसंद कर लिया.

पूनम और अंकुश ने भी एकदूसरे को देख कर हामी भर दी. 17 फरवरी, 2018 को सामूहिक विवाह में पूनम की शादी अंकुश से हो गई.

शादी के बाद पूनम, अंकुश की दुलहन बन कर ससुराल पहुंच गई. चूंकि पूनम सुंदर थी. उसे जिस ने भी देखा उसी ने उस के रूप सौंदर्य की तारीफ की. अंकुश स्वयं भी सुंदर पत्नी पा कर खुश था. सजीला पति पा कर पूनम भी खुश थी. फिर भी उसे अपने प्रेमी नीरज की रहरह कर याद आ रही थी. सुहागरात को भी वह नीरज को भुला नहीं पाई थी.

ससुराल में पूनम मात्र 3 दिन ही रही. इस बीच नीरज फोन कर के उस से बातें करता रहा. अंकुश ने बारबार फोन आने पर पूनम को टोका तो वह बोली, ‘‘गोलू का फोन आता है. गोलू मेरी मौसी का लड़का है.’’ अंकुश ने सहज ही पूनम की बात पर यकीन कर लिया.

20 फरवरी को शिवशंकर अपनी बेटी पूनम को ससुराल से लिवा लाया. दरअसल परंपरा के हिसाब से नवविवाहिता ससुराल में पहली होली जलती नहीं देख सकती थी. इसी परंपरा की वजह से शिवशंकर होली से 8 दिन पहले ही पूनम को ले आया था. मायके आते ही पूनम स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगी. उस पर किसी तरह की बंदिश नहीं थी.

पूनम के पास मोबाइल फोन पहले से ही था. पहले जब वह अपने पूर्व पे्रेमी नीरज से बात करती थी तो उसी के दिए गए मोबाइल से फोन करती थी. वह नीरज से दिन में कईकई बार बात करती थी. बातचीत के दौरान वह खूब खिलखिला कर हंसती थी और नीरज को शादी करने की सलाह देती थी.

चूंकि पूनम ने नीरज के साथ बेवफाई की थी सो उसे पूनम की खिलखिलाहट और सलाह नागवार लगती थी. वह नफरत से भर उठता था. जैसेजैसे दिन बीतते गए उस की नफरत भी बढ़ती गई. आखिर उस ने पूनम को सबक सिखाने की ठान ली.

7 मार्च, 2018 की दोपहर नीरज ने पूनम  से मीठीमीठी बातें कीं और शाम को मिलने के लिए बैंक बुलाया. दोपहर बाद पूनम ने साज शृंगार किया, फिर मां को बताया कि उस के पेट में दर्द है. वह दवा लेने आस्था नर्सिंग होम सिंहपुर जा रही है. शिवकांती ने उसे जल्दी घर लौट आने की नसीहत दे कर दवा लाने की इजाजत दे दी.

पूनम शाम साढ़े 4 बजे सिंहपुर स्थित भारतीय स्टेट बैंक शाखा पहुंची. नीरज वहां जनरेटर के पास कुरसी डाले बैठा था. पूनम के आते ही उस ने कुटिल मुसकान बिखेरी, फिर पूनम को बैंक के बगल से जाने वाले जीने की सीढि़यों पर ले गया. वहां बैठ कर दोनों बातें करने लगे. बातचीत के दौरान नीरज ने पूनम से छेड़छाड़ शुरू की तो उस ने विरोध करते हुए कहा कि अब वह किसी और की अमानत है. लेकिन नीरज नहीं माना और उस ने शारीरिक भूख शांत कर ली.

शारीरिक संबंध बनाने के बाद नीरज ने पूनम पर बेवफाई का आरोप लगाया तो पूनम झगड़ने लगी. फलस्वरूप दोनों में हाथापाई होने लगी. गुस्से में नीरज ने पूनम का सिर जोर से दीवार पर टकरा दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. यह देख वह बुदबुदाया, ‘‘बेवफा औरत, तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा. आज मैं तुझे बेवफाई की सजा दे कर रहूंगा.’’ कहते हुए नीरज ने पूनम के गले में उसी का दुपट्टा कस दिया और फिर गला घोंट दिया.

पूनम को मौत के घाट उतारने के बाद नीरज ने उस के शरीर से सारे आभूषण उतारे और मोबाइल फोन अपने पास रख लिया. इस के बाद वह लाश को सीढि़यों पर ही छोड़ कर चला गया.

लगभग 3 घंटे तक लाश सीढि़यों पर ही पड़ी रही. रात लगभग साढ़े 9 बजे नीरज पुन: बैंक आया. सन्नाटा देख कर उस ने पूनम का शव कंधे पर लाद कर सीढि़यों से उतारा और उसे बाइक पर रख कर गंगा बैराज रोड के किनारे झाडि़यों में फेंक कर फरार हो गया.

इधर जब देर रात तक पूनम दवा ले कर घर नहीं लौटी तो शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती को चिंता हुई. रातभर दोनों परेशान रहे. दूसरे रोज शिवशंकर पूनम को पता लगाने आस्था नर्सिंगहोम जा ही रहा था कि पुलिस जीप उस के दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. जीप में बैठे पुलिसकर्मी शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती को गंगा बैराज स्थित हरी चौराहा ले गए. जहां उन को पूनम की लाश मिली.

शिवशंकर ने अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो नीरज उर्फ गोलू संदेह के घेरे में आ गया. उसे गिरफ्तार कर जब पूछताछ की गई तो उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर मृतका पूनम के आभूषण व मोबाइल बरामद करा दिए.

12 मार्च, 2018 को थाना बिठूर पुलिस ने अभियुक्त नीरज उर्फ गोलू को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

आसान नहीं थी उस मासूम की जिंदगी

वह एक आम लड़की थी. दूसरी लड़कियों की तरह वह भी मासूम थी, भोली थी. उस के मुखड़े पर मुसकराहट व आंखों में खूबसूरत सपने थे. वह भी गांवदेहात की दूसरी लड़कियों की तरह ही अपनी जिंदगी को भरपूर जी लेना चाहती थी. इस के लिए वह खूब मेहनत भी कर रही थी.

उस लड़की के मातापिता में बनती नहीं थी. लिहाजा, मां उसे अपने साथ नानी के घर ले गई थी. नानी उसे अपने पास नहीं रहने देना चाहती थीं. वे उस से आएदिन मारपीट करती थीं. अब वह मासूम कहां जाए?

8वीं जमात के बाद ही वह लड़की बालाघाट के आदिवासी छात्रावास में रहने लगी थी, जहां पंकज डहरवाल नामक एक कोचिंग टीचर उसे छेड़ने लगा था. उस लड़की ने सिटी कोतवाली में इस की रिपोर्ट भी की थी. उसे बाल संरक्षण समिति ने भोपाल के बालगृह भेज दिया था.

भोपाल के बालगृह से लड़की का पिता उसे इसी साल ले आया था. शायद पिता का स्नेह जाग गया था. उस लड़की की उम्र इतनी ही थी कि पिता का प्रेम उमड़ पड़ा था. लड़की पिता के पास रहते हुए बालाघाट में म्यूनिसिपल स्कूल में साइंस सैक्शन में दाखिला लेने वाली एकमात्र छात्रा थी.

वह होनहार थी, पर समय को कुछ और ही मंजूर था. उस की चढ़ती उम्र पर एक बार फिर पंकज डहरवाल की नजर पड़ी. और वह जाने कैसे उसी पंकज के जाल में जा फंसी, जिसे वह पहले पुलिस में छेड़छाड़ का आरोपी बना चुकी थी.

क्या किसी साजिश के तहत पंकज ने उसे अपने जाल में फांस लिया होगा? इस बात को सामान्य तौर पर देखने पर यही लगता है कि महज 17 साल की इस छात्रा पर जाने कितने लोगों की नजर रही होगी. वजह, वह ऐसे मातापिता की औलाद थी, जो साथ में नहीं रहते थे.

3 सितंबर की रात को वह लड़की कोचिंग टीचर पंकज डहरवाल के कमरे में फांसी के फंदे पर झूलती पाई गई. उसी रात पंकज से उस का झगड़ा हुआ था. लड़की ने कहा भी था कि वह खुदकुशी कर लेगी.

किस वजह से वह लड़की अकेली ही उस कोचिंग टीचर के कमरे में हफ्तेभर से रह रही थी? वहां उस के साथ क्या घट रहा था? ऐसे सवालों के जवाब देने को कोई तैयार नहीं है.

पुलिस ने घटना की रात के बाद पंकज को दिनभर कोतवाली में बिठाया. आगे क्या हुआ, अखबारों में कुछ भी नहीं आया. कभीकभार तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट भी गलत होती है या मौत पर कुछ भी रोशनी नहीं डाली जाती है.

लड़की के पिता ने कहा कि लड़की को मारा गया है. इस पर पुलिस चुप है. पंकज पर क्या कार्यवाही हुई, इस पर अखबारों में कुछ भी नहीं छपा है. बालाघाट में कोई महिला संगठन सक्रिय नहीं है कि एक मासूम छात्रा के साथ क्या हुआ, इस पर सवाल उठाता.

बालाघाट एक बेहद पिछड़ा जिला है. जनता में किसी तरह की जागरूकता नहीं है. पत्रकारिता का लैवल भी यहां उतना तीखा नहीं है. अकसर लड़कियों की हत्या के बाद पुलिस मामले को रफादफा कर देती है. लड़की के घर वाले भी यह सोच कर चुप हो जाते हैं कि अब तो वह वापस आने से रही.

इन सब बातों का फायदा उठा कर अपराधी अपराध कर के बच जाते हैं. वैसे भी लड़कियों की तस्करी के मामले में छिंदवाड़ा व बालाघाट जिले आगे हैं. कोई इन मासूम लड़कियों पर हो रहे जुल्मों की खोजखबर लेने वाला नहीं है. निजी फायदे में गले तक डूबी राजनीति में नेताओं का माफियाराज अपने में मस्त है. मासूमों की जिंदगी सस्ती हो चुकी है. पुलिस महज खानापूरी कर रही है. ऐसे में कौन देगा ऐसी हत्याओं के सवालों के जवाब?

तीन साल बाद खुला मौत का रहस्य

पिछले साल सन 2016 के सितंबर महीने में अलीगढ़ का एसएसपी राजेश पांडेय को बनाया गया तो चार्ज लेते ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुला कर सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि जितनी भी जांचें अधूरी पड़ी हैं, उन की फाइलें उन के सामने पेश करें. जब सारी फाइलें उन के सामने आईं तो उन में एक फाइल थाना गांधीपार्क में दर्ज प्रीति अपहरण कांड की थी, जिस की जांच अब तक 10 थानाप्रभारी कर चुके थे और यह मामला 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. राजेश पांडेय को यह मामला कुछ रहस्यमय लगा. उन्होंने इस मामले की जांच सीओ अमित कुमार को सौंपते हुए जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. अमित कुमार ने फाइल देखी तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ. क्योंकि इतने थानाप्रभारियों ने मामले की जांच की थी, इस के बावजूद मामले का खुलासा नहीं हो सका था. उन्होंने थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को कुछ निर्देश दे कर फाइल सौंप दी.

मामला काफी पुराना और रहस्यमयी था, इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए दिनेश कुमार दुबे ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में एसएसआई अजीत सिंह, एसआई धर्मवीर सिंह, कांस्टेबल सत्यपाल सिंह, मोहरपाल सिंह और नितिन कुमार को शामिल किया.

फाइल का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उन्होंने मामले की जांच फरीदाबाद से शुरू की, क्योंकि प्रीति को भगाने का जिस युवक जयकुमार पर आरोप था, वह फरीदाबाद का ही रहने वाला था. दिनेश कुमार दुबे फरीदाबाद जा कर उस की मां संध्या से मिले तो उस ने बताया कि जयकुमार उस का एकलौता बेटा था. उस पर जो आरोप लगे हैं, वे झूठे हैं. उस का बेटा ऐसा कतई नहीं कर सकता. उस ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी.

संध्या से पूछताछ के बाद दिनेश कुमार दुबे को मामला कुछ और ही नजर आया. अलीगढ़ लौट कर उन्होंने 13 जनवरी, 2016 को प्रीति के पिता देवेंद्र शर्मा को थाने बुलाया, जिस ने जयकुमार पर बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस के सामने आने पर वह इस तरह घबराया हुआ था, जैसे उस ने कोई अपराध किया हो. जब सीओ अमित कुमार, एसपी (सिटी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने उस से जयकुमार के बारे में पूछताछ की तो पुलिस अधिकारियों को गुमराह करते हुए वह इधरउधर की बातें करता रहा.

लेकिन यह भी सच है कि आदमी को एक सच छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में ही कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाती है कि सच सामने आ जाता है. उसी तरह देवेंद्र के मुंह से भी घबराहट में निकल गया कि कहीं जयकुमार ने घबराहट में ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली.

देवेंद्र की इस बात ने पुलिस अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसे कैसे पता चला कि जयकुमार ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने दिसंबर, 2013 के ट्रेन एक्सीडेंट के रिकौर्ड खंगाले तो पता चला कि थाना सासनी गेट पुलिस को 7 दिसंबर, 2013 को ट्रेन की पटरी पर एक लावारिस लाश मिली थी.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने देवेंद्र के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने जयकुमार की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जयकुमार की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस की शातिराना कहानी सुन कर पुलिस हैरान रह गई. देवेंद्र ने बताया कि अपनी इज्जत बचाने के लिए उसी ने अपने साले प्रमोद कुमार के साथ मिल कर जयकुमार की हत्या कर दी थी. इस बात की जानकारी उस की बेटी प्रीति को भी थी.

इस के बाद पुलिस ने देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति और उस के साले प्रमोद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रीति और प्रमोद ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. तीनों की पूछताछ में जयकुमार की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क के नगला माली का रहने वाला देवेंद्र शर्मा रोजीरोटी की तलाश में हरियाणा के फरीदाबाद आ गया था. उसे वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी मिल गई तो रहने की व्यवस्था उस ने थाना सारंग की जवाहर कालोनी के रहने वाले गंजू के मकान में कर ली. उन के मकान की पहली मंजिल पर किराए पर कमरा ले कर देवेंद्र शर्मा उसी में परिवार के साथ रहने लगा था. यह सन 2013 के शुरू की बात है.

उन दिनों देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति यही कोई 17-18 साल की थी और वह अलीगढ़ के डीएवी कालेज में 12वीं में पढ़ रही थी. फरीदाबाद में सब कुछ ठीक चल रहा था.

देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति जवान हो चुकी थी. मकान मालिक गंजू की पत्नी गुडि़या का ममेरा भाई जयकुमार अकसर उस से मिलने उस के यहां आता रहता था. वह पढ़ाई के साथसाथ एक वकील के यहां मुंशी भी था. इस की वजह यह थी कि उस के पिता शंकरलाल की मौत हो चुकी थी, जिस से घरपरिवार की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा भी रहा था.

जयकुमार अपनी मां संध्या के साथ जवाहर कालोनी में ही रहता था. फुफेरी बहन गुडि़या के घर आनेजाने में जयकुमार की नजर देवेंद्र शर्मा की बेटी प्रीति पर पड़ी तो वह उस के मन को ऐसी भायी कि उस से प्यार करने के लिए उस का दिल मचल उठा. अब वह जब भी बहन के घर आता, प्रीति को ही उस की नजरें ढूंढती रहतीं.

एक बार जयकुमार बहन के घर आया तो संयोग से उस दिन प्रीति गुडि़या के पास ही बैठी थी. जयकुमार उस दिन कुछ इस तरह बातें करने लगा कि प्रीति को उस में मजा आने लगा. उस की बातों से वह कुछ इस तरह प्रभावित हुई कि उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया.

जयकुमार देखने में ठीकठाक तो था ही, अपनी मीठीमीठी बातों से किसी को भी आकर्षित कर सकता था. उस की बातों से ही आकर्षित हो कर प्रीति ने उस का मोबाइल नंबर लिया था. इस के बाद दोनों की बातचीत मोबाइल फोन से शुरू हुई तो जल्दी उन में प्यार हो गया. फिर खतरों की परवाह किए बिना दोनों प्यार की राह पर बेखौफ चल पड़े. दोनों घर वालों की चोरीछिपे जब भी मिलते, घंटों भविष्य के सपने बुनते रहते.

जल्दी ही प्रीति और जयकुमार प्यार की राह पर इतना आगे निकल गए कि उन्हें जुदाई का डर सताने लगा था. उन के एक होने में दिक्कत उन की जाति थी. दोनों की ही जाति अलगअलग थी. उन की आगे की राह कांटों भरी है, यह जानते हुए भी दोनों उसी राह पर आगे बढ़ते रहे.

देवेंद्र गृहस्थी की गाड़ी खींचने में व्यस्त था तो बेटी आशिकी में. लेकिन कहीं से प्रीति की मां रीना को बेटी की आशिकी की भनक लग गई. उन्होंने बेटी को डांटाफटकारा, साथ ही प्यार से समझाया भी कि जमाना बड़ा खराब है, इसलिए बाहरी लड़के से बातचीत करना अच्छी बात नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बिना मतलब की बदनामी होगी.

मां ने भले ही समझाया, लेकिन जयकुमार के प्यार में डूबी प्रीति को मां की बात समझ में नहीं आई. परेशान हो कर रीना ने सारी बात पति को बता दी. बेटी की आशिकी के बारे में सुन कर देवेंद्र तिलमिला उठा. वह मकान मालिक गंजू से मिला और उन से कहा कि वह जयकुमार को घर आने से मना करें, क्योंकि वह उस की बेटी प्रीति को बरगला रहा है.

‘‘आप का कहना ठीक है, लेकिन अपने किसी रिश्तेदार को मैं घर आने से कैसे रोक सकता हूं. आप अपनी बेटी को थोड़ा संभाल कर रखिए.’’ मकान मालिक गंजू ने कहा.

गंजू की इस बात से देवेंद्र ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. अब वह मकान मालिक से तो कुछ नहीं कह सकता था, लेकिन जयकुमार उसे जब भी मिलता, उसे धमकाता कि वह जो कर रहा है, ठीक नहीं है. वह उस की बेटी का पीछा छोड़ दे वरना उसे पछताना पड़ सकता है. लेकिन जयकुमार भी प्रीति के प्रेम में इस तरह डूबा था कि देवेंद्र की चेतावनी का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. जबकि देवेंद्र मन ही मन बौखलाया हुआ था.

प्रीति की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की तारीख आ गई तो वह परीक्षा देने अपने मामा प्रमोद कुमार के यहां अलीगढ़ चली गई. उस के मामा अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क की बाबा कालोनी में रहते थे. घर वाले तो यही जानते थे कि प्रीति बस से अलीगढ़ गई है, लेकिन घर से निकलने से पहले उस ने जयकुमार को फोन कर दिया था, इसलिए वह मोटरसाइकिल ले कर उसे रास्ते में मिल गया था. उस के बाद प्रीति उस की मोटरसाइकिल से अलीगढ़ गई थी.

मामा के घर रह कर प्रीति ने परीक्षा दे दी. उसी बीच प्रीति के मामामामी अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में चले गए तो घर खाली देख कर उस ने जयकुमार को फोन कर के अलीगढ़ बुला लिया. प्रेमिका के बुलाने पर घर में बिना किसी को कुछ बताए जयकुमार उस से मिलने अलीगढ़ पहुंच गया. प्रेमी को देख कर प्रीति का दिल बल्लियों उछल पड़ा. वह प्रेमी के आगोश में समा गई. जयकुमार और प्रीति को उस दिन पहली बार एकांत और आजादी मिली थी, इसलिए उन्होंने सारी सीमाएं तोड़ दीं. ऐसे में जयकुमार ने प्रीति से वादा किया कि कुछ भी हो, हर हालत में वह उसे अपना कर रहेगा.

प्रीति को भी प्रेमी पर पूरा विश्वास था. लेकिन उस दिन दोनों ने एक गलती कर दी. जयकुमार को प्रेमिका से मिल कर वापस आ जाना चाहिए था, लेकिन वह तो उस दिन और पिला दे साकी वाली स्थिति में था. प्रीति भी भूल गई थी कि अगले दिन मामामामी लौट आएंगे.

दोनों एकदूसरे में इस तरह खो गए कि सब कुछ भूल गए. याद तब आया, जब दरवाजे पर दस्तक हुई. प्रीति ने दरवाजा खोला तो मामामामी को देख कर सन्न रह गई. जयकुमार घर में ही था. प्रमोद ने अपने घर में जयकुमार को देखा तो पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘यह जयकुमार है. मेरे मकान मालिक का साला.’’ प्रीति ने बताया.

प्रमोद को जब पता चला कि जयकुमार एक दिन पहले उस के घर आया था और प्रीति के साथ रात में रुका था तो उसे इस बात की चिंता हुई कि यह लड़का यहां क्यों आया था? उसे दाल में कुछ काला लगा तो उस ने जयकुमार को एक कमरे में बंद कर दिया और अपने बहनोई देवेंद्र को फोन कर के सारी बात बता दी.

देवेंद्र उस समय उत्तराखंड के रुद्रपुर में था. उस ने कहा, ‘‘जब तक मैं आ न जाऊं, तब तक उसे उसी तरह कमरे में बंद रखना.’’

प्रीति डर गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि प्रेमी को छुड़ाने के लिए वह क्या करे. उस ने मामामामी से बहुत विनती की कि वे जयकुमार को छोड़ दें, लेकिन प्रमोद कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था, इसलिए उस ने जयकुमार को नहीं छोड़ा.

शाम को देवेंद्र अलीगढ़ पहुंचा तो उस ने पहले ही मन ही मन तय कर लिया था कि बेटी के इस प्रेमी के साथ उसे क्या करना है? उस ने रास्ते में ही शराब की बोतल खरीद ली थी और साले के यहां पहुंचने से पहले ही उस ने शराब पी कर मूड बना लिया था.

नशे में धुत्त वह साले के यहां पहुंचा तो जयकुमार को कमरे से निकाल कर बातचीत शुरू हुई. इस बातचीत में जयकुमार ने साफसाफ कह दिया कि वह प्रीति से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. यह सुन कर देवेंद्र का खून खौल उठा और वह जयकुमार की पिटाई करने लगा.

पिटाई करते हुए ही उस ने जयकुमार से कहा, ‘‘इस बार तुम ने जो किया, माफ किए देता हूं. अब दोबारा ऐसी गलती मत करना. चलो, हम तुम्हें दिल्ली जाने वाली बस में बिठा देते हैं. फरीदाबाद आऊंगा तो तुम्हारी मां से बात करूंगा.’’

प्यार में बड़ी उम्मीदें होती हैं, जयकुमार को भी लगा कि शायद प्रेमिका का बाप मां से बात कर के शादी करा देगा. लेकिन देवेंद्र के मन में तो कुछ और था. अब तक अंधेरा गहरा चुका था.

देवेंद्र और प्रमोद जयकुमार को ले कर पैदल ही चलते हुए नगला मानसिंह होते हुए रेलवे लाइन की ओर नई बस्ती के अवतारनगर में रहने वाले अपने एक परिचित विनोद के घर पहुंचे.

विनोद ने चाय बनवाने के लिए कहा तो देवेंद्र ने सिर्फ पानी लाने को कहा. विनोद ने जयकुमार के बारे में पूछा तो देवेंद्र ने बताया कि यह उस के दोस्त का बेटा है. विनोद पानी ले आया तो प्रमोद और देवेंद्र ने शराब पी. नशा चढ़ा तो दोनों जयकुमार को ले कर रेलवे लाइन की ओर चल पड़े. अब तक काफी अंधेरा हो चुका था. जयकुमार कुछ समझ पाता, उस के पहले ही सुनसान पा कर दोनों ने उसे एक गड्ढे में गिरा दिया.

वह संभल भी नहीं पाया, उस के पहले ही दोनों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद दोनों वहीं बैठ कर ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्हें ट्रेन आती दिखाई दी तो जयकुमार की लाश को उठा कर दोनों ने पटरी पर रख दिया. ट्रेन लाश के ऊपर से गुजर गई तो वह कई टुकड़ों में बंट गई.

देवेंद्र और प्रमोद ने राहत की सांस ली, क्योंकि अब कांटा निकल गया था. लेकिन अब क्या करना है, अभी देवेंद्र को इस बारे में सोचना था. उस ने जो किया था, उसे भले ही किसी ने नहीं देखा था, लेकिन उसे होशियार तो रहना ही था. सुबह प्रीति ने उस से पूछा, ‘‘पापा, जयकुमार चला गया क्या?’’

देवेंद्र ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपनी पढ़ाई से मतलब रख. कौन कहां गया, इस से तुझे क्या मतलब?’’

प्रीति को शक हुआ. अगले दिन उस ने जयकुमार को फोन किया. लेकिन उस का तो फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो सकी. अब प्रीति की समझ में आ गया कि जयकुमार के साथ क्या हुआ है. वह बुरी तरह डर गई.

जयकुमार 2 दिन घर नहीं आया तो उस की मां गंजू के घर गई. उस ने बताया कि जयकुमार 2 दिनों से घर नहीं आया है और उस का फोन भी नहीं लग रहा है तो गंजू को भी चिंता हुई. उस ने रीना से प्रीति के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो परीक्षा देने अलीगढ़ गई है. जब उसे पता चला कि देवेंद्र भी घर पर नहीं है तो उस ने देवेंद्र को फोन कर के कहा कि वह जयकुमार को वापस भेज दे.

गंजू के इस फोन से देवेंद्र शर्मा घबरा गया. वह क्या जवाब दे, एकदम से उस की समझ में नहीं आया. लेकिन अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘‘प्रीति भी घर से गायब है. लगता है, वह उसे कहीं भगा ले गया है.’’

यह सुन कर संध्या परेशान हो उठी. उसे विश्वास नहीं हुआ कि उस का बेटा ऐसा भी कर सकता है. दूसरी ओर देवेंद्र परेशान था. वह गुनाह का ऐसा जाल बुनना चाहता था, जिस में जयकुमार का परिवार इस तरह फंस जाए कि कोई काररवाई करने के बजाए वह बचने के बारे में सोचे. उस ने पड़ोस में रहने वाले चौकीदार राकेश को बताया कि जयकुमार नाम का एक लड़का उस की बेटी को भगा ले गया है.

इस के बाद वह वकील मुन्नालाल के पास पहुंचा और उसे सारी बात बता दी. वकील मुन्नालाल देवेंद्र का परिचित था. उस ने उसे सलाह दी कि वह जयकुमार के खिलाफ बेटी को भगाने का मुकदमा दर्ज करा दे.

इस के बाद देवेंद्र मुन्नालाल वकील और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर थाना गांधीपार्क पहुंचा और जयकुमार के खिलाफ अपनी नाबालिग बेटी प्रीति को भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. यह मुकदमा 12 दिसंबर, 2013 में दर्ज हुआ था. मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच एसआई अभय कुमार को सौंपी गई.

अभय कुमार ने जयकुमार को नाबालिग प्रीति को भगाने का दोषी मानते हुए जांच शुरू की तो देवेंद्र को लगा कि उस ने जो किया है, पुलिस उस बारे में जान नहीं पाएगी. लेकिन चिंता की बात यह भी थी कि प्रीति का वह क्या करे. अब उसे घर में रखना ठीक नहीं था. दूसरी ओर उसे पता भी चल गया था कि जयकुमार की हत्या हो चुकी है.

पूछताछ में प्रीति सच्चाई उगल सकती थी, इसलिए उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने किसी को भी यह बात बताई तो वह उस की भी हत्या कर के उस की लाश को जयकुमार की लाश की तरह रेल की पटरी पर डाल आएगा. प्रीति डर गई. उस ने पिता से वादा किया कि वह मर सकती है, लेकिन यह बात किसी को बता नहीं सकती.

अब प्रीति को छिपा कर रखना था. इस के लिए देवेंद्र ने प्रीति को थाना सादाबाद, जिला हाथरस के गांव करसोरा स्थित अपने साले प्रमोद कुमार की ससुराल भिजवा दिया. चूंकि प्रमोद उस के साथ जयकुमार की हत्या में शामिल था, इसलिए देवेंद्र जो चाहता था, उसे वैसा ही करना पड़ता था. प्रीति मामा की ससुराल पहुंच गई, जबकि पुलिस जयकुमार और प्रीति की तलाश में दरदर भटकती रही.

प्रीति से छुटकारा पाने के लिए देवेंद्र उस के लिए लड़का तलाशने लगा. थोड़ी कोशिश कर के थाना वृंदावन के मोहल्ला चंदननगर के रहने वाले पूरन शर्मा का बेटा राहुल उसे पसंद आ गया तो करसोरा से ही उस ने प्रीति की शादी राहुल से कर दी. प्रीति की यह शादी 27 फरवरी, 2014 को हुई.

इस तरह प्रीति को ससुराल भेज कर देवेंद्र निश्चिंत हो गया. मजे की बात यह थी कि वह शांत नहीं बैठा था. वह महीने, 15 दिनों में थाने पहुंच जाता और पुलिस से बेटी की तलाश के लिए गुहार लगाता.

यही नहीं, वह फरीदाबाद में रहने वाले जयकुमार के घर वालों को भी धमकाता कि वे जयकुमार के बारे में पता कर के उस की बेटी को बरामद कराएं, वरना वह उन्हें शांति से जीने नहीं देगा. भले ही जयकुमार का कत्ल हो गया था और प्रीति की शादी हो गई थी. फिर भी पुलिस का डर तो देवेंद्र को सताता ही रहता था.

कहीं जयकुमार की हत्या का रहस्य खुल न जाए, इस बात से परेशान देवेंद्र एक बार फिर वकील मुन्नालाल से मिला. उस ने कहा कि अगर पुलिस को प्रीति के बारे में पता चल गया तो उस की परेशानी बढ़ सकती है. पुलिस उस पर शिकंजा कस सकती थी. अब तक प्रीति गर्भवती हो चुकी थी.

मुन्नालाल ने पूरी कहानी पर एक बार फिर नए सिरे से विचार किया. इस के बाद उस ने सलाह दी कि वह प्रीति को पुलिस के सामने पेश कर के उस से कहलवाए कि वह जयकुमार के बच्चे की मां बनने वाली है. वह उसे धोखा दे कर मथुरा रेलवे स्टेशन पर छोड़ कर कहीं भाग गया है. उस के बाद वह पिता के पास आ गई है.

प्रीति के अपहरण के मामले की जांच अब तक कई थानाप्रभारी कर चुके थे. लेकिन कोई मामले की तह तक नहीं पहुंच सका था. शायद उन्होंने कोशिश ही नहीं की थी. जबकि पुलिस ने कई बार फरीदाबाद जा कर जयकुमार की मां एवं रिश्तेदारों से पूछताछ की थी.

पूछताछ में जयकुमार की विधवा मां ने हर बार यही कहा था कि जयकुमार और प्रीति एकदूसरे को प्यार करते थे. दोनों को प्रीति के पिता देवेंद्र ने ही गायब किया है. मुकदमा दर्ज कराने के बाद देवेंद्र फरीदाबाद छोड़ कर बल्लभगढ़ में रहने लगा था. उस ने प्रीति को फोन कर के कहा कि वह सासससुर से लड़ाई कर के उस के यहां आ जाए. प्रीति पिता के हाथ की कठपुतली थी, इसलिए पिता ने जैसा कहा, उस ने वैसा ही किया.

इस की वजह यह थी कि वह नहीं चाहती थी कि उस के प्रेमसंबंधों की जानकारी उस की ससुराल वालों को हो. क्योंकि जानकारी होने के बाद वे उसे घर से निकाल सकते थे. पिता के कहने पर प्रीति ने सास से लड़ाई कर ली तो उसी दिन देवेंद्र उसे विदा कराने उस की ससुराल पहुंच गया.

वकील की सलाह के अनुसार देवेंद्र ने 1 सितंबर, 2015 को प्रीति को एसएसपी के सामने पेश कर दिया. प्रीति ने पुलिस के सामने वही सब कहा, जैसा उसे वकील ने सिखाया था. एसएसपी के आदेश पर प्रीति का मैडिकल कराया गया. जिस समय प्रीति को एसएसपी के सामने पेश किया गया था, उस समय थाना गांधीपार्क के थानाप्रभारी अमित कुमार थे. मजे की बात यह थी कि उन्होंने प्रीति से यह भी जानने की कोशिश नहीं की थी कि जयकुमार के साथ भागने के बाद वह उस के साथ कहांकहां रही.

पुलिस की देखरेख में ही प्रीति ने बच्चे को जन्म दिया. पुलिस ने अदालत में भी प्रीति के बयान करा दिए. वहां भी प्रीति ने वही कहानी सुना दी. अदालत ने प्रीति को उस के पिता को सौंप दिया. अब तक वैसा ही हो रहा था, जैसा देवेंद्र चाह रहा था. लेकिन इसी के बाद जब अलीगढ़ के एसएसपी बन कर राजेश पांडेय आए तो सब उलटा हो गया और वह पकड़ा गया.

मृतक जयकुमार के घर वालों को भी उस की हत्या की सूचना दे दी गई थी. पुलिस ने उस की मां को बुला कर जब जयकुमार के रखे सामान को दिखाया तो उस ने बेटे के जूते और कपड़ों की पहचान कर के फोटो में भी उस की शिनाख्त कर दी.

इस के बाद पुलिस ने प्रीति, देवेंद्र और प्रमोद को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. एसएसपी ने इस मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है, साथ ही थानाप्रभारी दिनेश कुमार दुबे को शाबाशी दी.

प्रीति की ससुराल वालों को जब सच्चाई का पता चला तो वे हैरान रह गए. प्रीति ने प्रेम क्या किया, अपनी तो जिंदगी बरबाद की ही, प्रेमी को भी मरवा दिया जो विधवा मां का एकलौता सहारा था.

बदले का प्यार

2 हत्याओं की बात थी, इसलिए सूचना मिलते ही एसपी (ग्रामीण) जयप्रकाश सिंह, सीओ अजय कुमार और थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी गांव अज्योरी पहुंच गए थे. यह गांव उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के थाना सजेती के अंतर्गत आता है. दोनों हत्याएं इसी गांव के श्रीपाल के घर हुई थीं. यह 19 अगस्त, 2017 की बात है.

पुलिस अधिकारी श्रीपाल के घर के अंदर  घुसे तो वहां की हालत देख कर दहल उठे. आंगन  में 2 लाशें खून से सनी अगलबगल पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी तो दूसरी युवती की. युवक की उम्र 25 साल के आसपास थी, जबकि युवती की 20 साल के आसपास थी. दोनों लाशों के बीच 315 बोर का एक तमंचा और कारतूस के 2 खोखे भी पड़े थे.

पुलिस अधिकारी यह देख कर सोच में पड़ गए कि युवती की लाश पर तो घर वाले बिलख रहे थे, जबकि युवक की लाश पर वहां कोई रोने वाला नहीं था. एसपी जयप्रकाश सिंह ने श्रीपाल से इस बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, युवती मेरी बेटी रीता है और युवक मेरे दामाद बबलू का छोटा भाई पीयूष उर्फ छोटू. इसी ने गोली मार कर पहले रीता की हत्या की होगी, उस के बाद खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली है. जब इस ने यह सब किया, तब घर में कोई नहीं था.’’

‘‘इस ने ऐसा क्यों किया?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, पीयूष रीता से एकतरफा प्यार करता था और शादी के लिए परेशान कर रहा था. जबकि रीता उस से शादी नहीं करना चाहती थी. आज भी इस ने शादी के लिए ही कहा होगा, रीता ने मना किया होगा तो उस ने उसे मार डाला.’’ श्रीपाल ने कहा.

‘‘तुम ने पीयूष के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी है?’’

‘‘जी साहब, मैं ने फोन कर के इस के पिता और भाई को बता दिया है. लेकिन उन्होंने आने से साफ मना कर दिया है.’’ श्रीपाल ने कहा.

‘‘क्यों?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, इस की हरकतों से पूरा परिवार परेशान था. यह घर वालों से रीता से शादी कराने के लिए कहता था, शराब पी कर झगड़ा करता था, इसलिए घर वाले इस से त्रस्त थे. यही वजह है कि इस की मौत की खबर पा कर भी कोई आने को तैयार नहीं है.’’

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इस के बाद सीओ अजय कुमार ने पीयूष के पिता विश्वंभर को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मिट्टी का तेल डाल कर आप उस की लाश को जला दीजिए. उस ने जो किया है, उस से मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. अब मैं उस का मुंह नहीं देखना  चाहता.’’

इस के बाद अजय कुमार ने उस के बडे़ भाई बबलू को फोन किया तो उस ने भी यह कह कर आने से मना कर दिया कि उस की हरकतों से परेशान हो कर उस ने तो पहले ही उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अब तक फोरेंसिक टीम आ चुकी थी. उस ने अपना काम कर लिया तो थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद रीता के घर वालों से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर के कस्बा सजेती से 3 किलोमीटर की दूरी पर सड़क किनारे बसा है गांव अज्योरी. इसी गांव में श्रीपाल अपनी पत्नी, 2 बेटियों गुड्डी, रीता और 2 बेटों रविंद्र एवं अरविंद के साथ रहता था. उस के पास खेती की जो जमीन थी, उसी की पैदावार से वह अपना गुजरबसर करता था.

श्रीपाल की बड़ी बेटी गुड्डी ने दसवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी तो उन्होंने कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला मछरिया के रहने वाले विश्वंभर के बेटे बबलू से उस का विवाह कर दिया. विश्वंभर का अपना मकान था. भूतल पर किराने की दुकान थी, जिसे वह संभालते थे. बबलू नौकरी करता था, जबकि उस से छोटा पीयूष ड्राइवर था.

पीयूष ट्रक चलाता था. उसे जो भी वेतन मिलता था, वह खुद पर ही खर्च करता था. घर वालों को एक पैसा नहीं देता था. हां, अगर गुड्डी कुछ कह देती तो वह उस की फरमाइश पूरी करता था. देवरभाभी में पटती भी खूब थी. दोनों के बीच हंसीमजाक भी खूब होती थी. लेकिन इस हंसीमजाक में दोनों मर्यादाओं का खयाल जरूर रखते थे.

गुड्डी की छोटी बहन रीता बेहद खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. वह अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. जवानी की दहलीज पर उस ने कदम रखा तो उस की खूबसूरती और बढ़ गई. देखने वालों की निगाहें जब उस पर पड़तीं, ठहर कर रह जातीं. रीता तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतना ही पढ़ने में भी तेज थी. इस समय वह बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. अपने स्वभाव और पढ़ाई की वजह से रीता मांबाप की ही नहीं, भाइयों की भी आंखों का तारा थी.

पीयूष जब कभी भाई की ससुराल जाता, उस की नजरें रीता पर ही जमी रहतीं. मौका मिलने पर वह उस से हंसीमजाक और छेड़छाड़ भी कर लेता था. जीजासाली का रिश्ता होने की वजह से रीता ज्यादा विरोध भी नहीं करती थी. शरमा कर आंखें झुका लेती थी. इस से पीयूष को लगता था कि रीता उस में दिलचस्पी ले रही है.

इसी साल जून महीने की एक तपती दोपहर को पीयूष ट्रक ले कर हमीरपुर जा रहा था. घाटमपुर कस्बा पार करते ही उस का ट्रक खराब हो गया. उस ने ट्रक खलासी के हवाले किया और खुद आराम करने की गरज से भाई की ससुराल पहुंच गया. संयोग से उस समय रीता घर में अकेली थी. छोटे जीजा को देख कर रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आप चाय पिएंगे या शरबत?’’

‘‘चिलचिलाती धूप से आ रहा हूं. अभी कुछ भी पीने से तबीयत खराब हो सकती है.’’ अंगौछे से पसीना पोंछते हुए पीयूष ने कहा.

‘‘जीजाजी, आप आराम कीजिए मैं टीवी देख रही हूं. आप को जब भी कुछ पीना हो, बता दीजिएगा.’’ रीता ने कहा.

‘‘टीवी पर देहसुख वाली फिल्म देख रही हो क्या?’’ पीयूष ने हंसी की.

शरमाते हुए रीता ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप इस तरह की फालतू बातें मत किया कीजिए.’’

‘‘रीता यह फालतू की बात नहीं, इसी में जिंदगी का सच है.’’

‘‘कुछ भी हो, मुझे इस तरह की बातों में कोई रुचि नहीं है.’’ कहते हुए रीता कमरे से चली गई.

थोड़ी देर आराम करने के बाद पीयूष ने पानी मांगा तो रीता गिलास में ठंडा पानी ले आई. उसे देख कर पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो. तुम्हें देख कर किसी का भी मन डोल सकता है. मेरा भी जी चाहता है कि तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं.’’

रीता ने अदा से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अभी धीरज रखो जीजाजी और आराम से पानी पियो. मुझे बांहों में भरने का सपना रात में देखना.’’

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. पीयूष मन ही मन सोचने लगा कि रीता उस की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती है. इस का मतलब उस के दिल में भी वही सब है, जो वह उस के बारे में सोचता है. जिस तरह वह रीता को चाहता है, उसी तरह रीता भी मन ही मन उसे चाहती है.

रीता के प्यार में आकंठ डूबा पीयूष उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का ख्वाब देखने लगा. अब वह रीता के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. उसे रिझाने के लिए जब भी वह आता, कोई न कोई उपहार ले कर आता. थोड़ी नानुकुर के बाद रीता उस का लाया उपहार ले भी लेती. जबकि रीता जानती थी कि इन उपहारों को लाने के पीछे पीयूष का कोई न कोई स्वार्थ जरूर है.

दिन बीतने के साथ रीता को पाने की चाहत पीयूष के मन में बढ़ती ही जा रही थी. लेकिन रीता न तो उस के प्यार को स्वीकार रही थी और न ही मना कर रही थी. रीता के कुछ न कहने से पीयूष की समझ में नहीं आ रहा था कि रीता उस से प्यार करती भी है या नहीं?

इस बात को पता करने के लिए एक दिन पीयूष रीता के यहां आया और उस की खूबसूरती का बखान करते हुए उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रीता, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘यह क्या कह रहे हैं जीजाजी आप?’’ रीता ने अपना हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप भले ही मुझ से प्यार करते हैं, लेकिन मैं आप से प्यार नहीं करती. आप से हंसबोल लेती हूं तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं आप से प्यार करती हूं.’’

‘‘मजाक मत करो रीता,’’ पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम मेरी साली हो और साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. लेकिन मैं तुम्हें पूरी तरह अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. इसलिए तुम मना मत करो.’’

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‘‘हरगिज नहीं,’’ रीता गुस्से में बोली, ‘‘न तो मैं तुम से प्यार करती हूं और न तुम मेरी पसंद हो. मैं बीए कर रही हूं, जबकि तुम कक्षा 8 भी पास नहीं हो. मैं किसी पढ़ेलिखे लड़के से शादी करूंगी, किसी ड्राइवर से नहीं, इसलिए आप मुझे भूल जाओ.’’

रीता के इस तरह साफ मना कर देने से पीयूष का दिल टूट गया. लेकिन वह एकतरफा प्यार  में इस तरह पागल था कि उसे लगता था कि एक न एक दिन रीता मान जाएगी. इसलिए उस ने रीता के यहां आनाजाना बंद नहीं किया. यह बात अलग थी कि अब रीता उस से ज्यादा बात नहीं करती थी.

रीता ने पीयूष के एकतरफा प्यार की बात घर वालों को बताई तो सब परेशान हो उठे. यह एक गंभीर समस्या थी, इसलिए यह बात गुड्डी और उस के पति बबलू को भी बता दी गई. दोनों ने पीयूष को समझाया कि वह रीता को भूल जाए. इस पर पीयूष ने साफ कह दिया कि वह शादी करेगा तो सिर्फ रीता से करेगा, वरना जहर खा कर जान दे देगा.

पीयूष शराब भी पीता था. रीता ने उस के प्यार को ठुकराया तो वह कुछ ज्यादा ही शराब पीने लगा. वह जबतब शराब पी कर रीता से मिलने उस के घर पहुंच जाता और रीता पर शादी के लिए दबाव बनाता. रीता उसे खरीखोटी सुना कर शादी से मना कर देती थी.

पीयूष रीता के घर वालों पर भी शादी के लिए दबाव डाल रहा था. वह धमकी भी देता था कि अगर रीता से उस की शादी नहीं हुई तो अच्छा नहीं होगा. आखिर निराश हो कर पीयूष ने रीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन वह उसे फोन जरूर करता था. रीता कभी फोन रिसीव कर लेती तो कभी काट देती. पीयूष दिनरात फोन करने लगा तो परेशान हो कर रीता ने अपना फोन नंबर ही बदल दिया.

रीता के यहां से इनकार होने पर पीयूष ने भाई और पिता से कहा कि वे रीता के पिता से बात कर के उस की शादी रीता से करा दें. अगर वे शादी के लिए तैयार नहीं होते तो गुड्डी को घर से निकाल दें. इस पर बात करने की कौन कहे, पिता और भाई ने पीयूष को ही डांटा.

पिता और भाई के मना करने से नाराज हो कर पीयूष ने काफी मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. उस की हालत बिगड़ने लगी तो उसे हैलट अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे बचा लिया. इस के बाद बबलू गुड्डी को ले कर परिवार से अलग हो गया और किराए का कमरा ले कर रहने लगा. विश्वंभर ने भी पीयूष से परेशान हो कर उस से बातचीत बंद कर दी.

पीयूष रीता के प्यार में इस तरह पागल था कि उसे जबरदस्ती हासिल करने के बारे में सोचने लगा. उस का एक साथी ड्राइवर अपराधी प्रवृत्ति का था. कई बार वह जेल भी जा चुका था. उसी की मदद से पीयूष ने 315 बोर का एक तमंचा और 4 कारतूस खरीदे. उस ने उसी से तमंचा चलाना भी सीखा.

पीयूष 19 अगस्त, 2017 की दोपहर घर पहुंचा और पिता से जबरदस्ती मोटरसाइकिल की चाबी ले कर मोटरसाइकिल निकाली और रीता के घर पहुंच गया. संयोग से उस समय घर में रीता अकेली थी. पीयूष ने रीता को आंगन में बुला कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘रीता, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’

अपना हाथ छुड़ाते हुए रीता गुस्से में बोली, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा कि मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. आखिर यह बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती?’’

‘‘एक बार और सोच लो रीता. तुम्हारा मना करना कहीं तुम्हें भारी न पड़ जाए?’’

‘‘मैं ने एक बार नहीं, हजार बार सोच लिया है कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगी.’’

‘‘तो फिर यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ पीयूष ने पूछा.

‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रीता ने कहा.

‘‘तो फिर मेरा भी फैसला सुन लो. अगर तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की भी दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ कह कर पीयूष ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रीता के सीने पर फायर कर दिया. गोली लगते ही रीता जमीन पर गिरी और तड़प कर मर गई.

रीता की हत्या करने के बाद पीयूष ने अपनी भी गरदन पर तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली उस के सिर को भेदती हुई उस पार निकल गई. कुछ देर तड़पने के बाद उस ने भी दम तोड़ दिया.

गोली चलने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले श्रीपाल के घर पहुंचे तो आंगन में 2-2 लाशें देख कर दहल उठे. पूरे गांव में शोर मच गया. श्रीपाल घर पहुंचे तो रीता के साथ पीयूष की लाश देख कर समझ गए कि पीयूष ने रीता की हत्या कर के आत्महत्या कर ली है. इस के बाद उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी.

पीयूष के घर वाले पुलिस के कहने के बाद भी उस की लाश लेने नहीं आए तो पुलिस ने रीता की लाश के साथ पीयूष की लाश को भी श्रीपाल के हवाले कर दिया. मजबूरी में श्रीपाल को बेटी की लाश के साथ पीयूष का अंतिम संस्कार करना पड़ा. थाना सजेती पुलिस ने इस मामले में रिपोर्ट तो दर्ज की, पर आरोपी द्वारा आत्महत्या कर लेने से फाइल बंद कर दी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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