दिल्ली के पंचशील पार्क में एक्ट्रेस के घर हुई चोरी

बौलीवुड की मशहूर मौडल व टीवी अभिनेत्री अपर्णा कुमार के दिल्ली स्थित घर से लाखों की हीरे जड़ित जूलरी, कैश समेट कर नर्स फरार हो गई. मालवीय नगर के पंचशील पार्क में अभिनेत्री के बुजुर्ग माता पिता अकेले रहते हैं. इतना ही नहीं, बुजुर्ग के अकाउंट से भी लाखों का कैश ट्रांजेक्शन कर लिया गया.

अपर्णा मुंबई में रहती हैं. उनकी देखभाल के लिए अपर्णा ने घर में नर्स रखी हुई थी जो कि मेड के तौर पर भी जौब करती थी. घटना की जानकारी मिलते ही अपर्णा मुंबई से फौरन दिल्ली पहुंची और मालवीय नगर थाने में इस बाबत केस दर्ज कराया.

फिलहाल एक टीम गायब मेड की तलाश में वेस्ट बंगाल भेजी है. मामले में सभी पहलुओं से जांच चल रही है.

पुलिस के मुताबिक, 74 साल के अरुण कुमार व मां सावित्री गुप्ता एस ब्लॉक में रहते हैं. अंजलि नाम की युवती घर में मेड व नर्स के तौर पर जौब पर रखी हुई थी. अपर्णा मुंबई में रहते हुए इन दिनों शूटिंग में बिजी हैं. कुछ दिनों से तबियत ठीक नहीं रहने की वजह से अपर्णा मुंबई से दिल्ली पैरंट्स को देखने आईं. लेकिन घर पहुंचने पर देखा कि मेड गायब है.

अगली सुबह सावित्री नगर स्थित मेड के घर पर अपर्णा पहुंची. जहां मालूम चला कि वह परिवार के साथ कमरा खाली करके कोलकाता जाने की बात कहकर निकली है. बिना बताए इस तरह गायब होने पर शक हुआ.

घर आकर देखा अलमारी से हीरे जड़ित 4 सोने के कड़े, ईयर रिंग, गोल्ड चैन व तमाम जूलरी समेत 5 लाख कैश गायब है. इसके बाद पता चला कि मां के बैंक अकाउंट से भी 4 लाख की ट्रांजेक्शन हुई है.

अपर्णा ने पुलिस को बताया कि उनके पैरंट्स कभी भी औनलाइन बैंकिंग नहीं करते. वहीं पुलिस ने जांच पड़ताल की तो मालूम चला कि मेड को कोई वेरिफिकेशन भी नहीं कराया गया था. इस बारे में मालवीय नगर पुलिस सीसीटीवी कैमरों की मदद भी ले रही है.

देह व्यापार में प्यार की कोई जगह नहीं

10 नवंबर, 2016 को दोपहर के करीब 2 बजे राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना केवला की पुलिस को सूचना मिली कि उदयपुर से गोमती जाने वाले फोरलेन नेशनल हाईवे के किनारे पड़ासली भैरूंघाटी के पास एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी भरत योगी अधिकारियों को घटना के बारे में बता कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए थे. उन के पहुंचतेपहुंचते एसपी डा. विष्णुकांत भी मौके पर पहुंच गए थे. लाश सड़क से 2 सौ मीटर की दूरी पर एक खाई में पड़ी थी. वह एक औरत की लाश थी, जो टीशर्ट और लैगिंग पहने हुए थी. मृतका का रंग गोरा, कद ठिगना तथा शरीर थोड़ा मोटा था. हाथ की अंगुलियों पर टैटू बने थे और नाखूनों पर नेलपौलिश लगी थी. बालों का रंग भूरा था, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बालों पर कलर किया गया होगा. एक कान में बाली थी. गले पर गहरे जख्म थे.

मृतका की उम्र 30-35 साल के बीच थी. लाश के पास बीयर की बोतलें पड़ी थीं. देख कर ही लग रहा था कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां ला कर फेंकी गई थी. पहनावे से मृतका मेवाड़ क्षेत्र की नहीं लग रही थी.

अनुमान लगाया गया कि मृतका किसी बड़े शहर की रहने वाली थी. आसपास बड़ा शहर उदयपुर था. गुजरात की सीमा भी नजदीक थी. पुलिस ने घटनास्थल से मिले सबूतों को जुटा कर आसपास के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए केवला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मुर्दाघर में रखवा दिया.

लाश देख कर डाक्टरों ने बताया कि मृतका की हत्या 10 से 15 घंटे पहले गला घोंट कर की गई थी. बाद में लाश को राजसमंद के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया था. इसी के साथ लाश की शिनाख्त होने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने का निर्णय लिया गया.

पुलिस के सामने समस्या मृतका की शिनाख्त की थी. इस के लिए पुलिस ने लाश के फोटो व वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिए. इस के अलावा उदयपुर, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर के सभी थानों को लाश के फोटो भेज कर कहा गया कि मृतका का पता लगाने की कोशिश करें. हो सकता है कहीं उस महिला की गुमशुदगी दर्ज हो. इसी के साथ ही हाईवे पर स्थित नेगडि़या और मांडावाड़ा टोल प्लाजा की सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली गईं.

मृतका की लाश के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से पुलिस को सूचनाएं मिलीं कि मृतका उदयपुर की हो सकती है. इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने उदयपुर जा कर स्थानीय पुलिस की मदद ली. लाश मिलने के तीसरे दिन यानी 12 नवंबर को पता चला कि वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की थी, जो मुंबई की रहने वाली थी.

उदयपुर में रोमा जिस्मफरोशी करती थी. पुलिस ने जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं के संपर्क में रहने वाले कुछ लोगों से पता किया तो उन से रोमा का फोन नंबर मिल गया. उस नंबर को वाट्सऐप वाले दूसरे फोन पर डाला गया तो उस की डीपी में मृतका की तसवीर आ गई. वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की ही थी.

इस के बाद पुलिस को यह भी पता चल गया कि रोमा उदयपुर में रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा के लिए काम करती थी. रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा का नाम उदयपुर पुलिस के लिए नया नहीं था. सैक्स रैकेट के मामले में वह उदयपुर की जानीमानी हस्ती थी. रोमा की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने उसे 12 नवंबर को हिरासत में लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के बडे़ बेटे अनिल और ड्राइवर धनराज मीणा को भी हिरासत में ले लिया.

उदयपुर पुलिस ने तीनों को राजसमंद की थाना केवला पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को 13 नवंबर को रोमा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इस पूछताछ में रोमा के मुंबई से उदयपुर आने और जिस्मफरोशी के धंधे की सरगना रेखा के बेटे से प्रेम करने से ले कर हत्या तक की कहानी सामने आ गई.

उदयपुर राजस्थान का पर्यटनस्थल है. यहां रोजाना तमाम देशीविदेशी सैलानी आते हैं. अन्य महानगरों की तरह यहां भी जिस्मफरोशी का कारोबार धड़ल्ले से होता है. उदयपुर की हिरणमगरी कालोनी के सेक्टर-9 की रहने वाली रेखा उर्फ पूजा काफी समय से सैक्स रैकेट चला रही थी.

उस के खिलाफ थाना हिरणमगरी में पीटा के 7 मामले दर्ज हैं. इस के अलावा वह शांतिभंग के मामलों में भी कई बार गिरफ्तार हो चुकी थी. रेखा की उम्र 50 साल के आसपास है. उस की शादी ललित छाबड़ा से हुई थी, जिस से उस के 2 बेटे हुए, बड़ा अनिल और छोटा मनीष.

रेखा पहले उदयपुर की हिरणमगरी के सेक्टर-5 में रहती थी. अभी भी वहां उस का मकान है, जिस में वह लड़कियों से जिस्मफरोशी कराती थी. इसी धंधे की बदौलत उस के संपर्क मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की लड़कियों से हो गए थे. उदयपुर के कई नामीगिरामी होटलों के अलावा हाईवे पर स्थित फार्महाउसों व गेस्टहाउसों के संचालकों से उस के संपर्क थे.

जिस्म के शौकीनों के लिए वह मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से लड़कियां बुलाती थी. रेखा लड़कियों की खूबसूरती और देह के आधार पर ग्राहकों से रकम वसूलती थी. बाहर से आई लड़कियां कुछ दिन उदयपुर में रह कर लौट जाती थीं.

ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से रेखा फोन कर के लड़कियां बुला लेती थी. इस धंधे से उस ने करोड़ों की दौलत कमाई. इसी कमाई से उस ने उदयपुर के हिरणमगरी के सेक्टर-9 में 3 हजार वर्गमीटर का भूखंड खरीद कर आलीशान कोठी बनवाई. कोठी के बेसमेंट में अनैतिक गतिविधियों के लिए ठिकाने बनवाए. उस ने कोठी में चारों तरफ कैमरे लगवाए, ताकि बाहर की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. कहा जाता है कि जब रेखा ने यह मकान बनवाना शुरू किया था, उस के कारनामों की वजह से मोहल्ले वालों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस ने आपराधिक लोगों की मदद से सब को चुप करा दिया था. इस मकान की कीमत इस समय करीब 5 करोड़ रुपए है.

रोमा उर्फ रेशमा भी रेखा के बुलाने पर जिस्मफरोशी के लिए मुंबई से उदयपुर आई थी. कहा जाता है कि रोमा मूलरूप से बांग्लादेश की रहने वाली थी. वह गरीबी की वजह से इस दलदल में फंस गई थी.

कुछ दिनों वह कोलकाता में रही, फिर वहां से मुंबई चली गई. अन्य कालगर्ल्स की तरह वह भी बुलाने पर मुंबई से दूसरे शहरों में जाने लगी. इसी तरह रेखा के बुलाने पर वह उदयपुर आई थी.

रोमा को उदयपुर अच्छा लगा, इसलिए वह रेखा के साथ रह कर जिस्मफरोशी करने लगी. शुरू में तो उस के चाहने वाले काफी थे, लेकिन धीरेधीरे उस का शरीर और उम्र बढ़ी तो चाहने वालों की संख्या घटने लगी.

यह सच्चाई भी है कि उम्र बढ़ने के साथ कालगर्ल्स के चहेतों की तादाद कम होने लगती है. रोमा की उम्र जरूर ज्यादा हो गई थी, लेकिन जब वह टाइट वेस्टर्न ड्रैस पहनती थी तो उस के उभार चाहने वालों को आकर्षित करते थे. बालों को भी वह कलर करने लगी थी. फिर भी उस का धंधा टूटता जा रहा था. इस के अलावा जिस्म बेचने के बाद भी उसे पूरा पैसा नहीं मिलता था. उस की कमाई का अधिकांश हिस्सा रेखा रख लेती थी. इसलिए अब उसे इस धंधे में अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा था.

रोमा के जो भी आशिक थे, वे सिर्फ उस के जिस्म से मतलब रखते थे. उन में से किसी की नजरों में उसे अपनापन नजर नहीं आता था. रोमा जब से उदयपुर आई थी, रेखा के साथ उसी के घर में रह रही थी. वह उस की आंटी भी थी और मालकिन भी. साथ रहने की वजह से रोमा का आमनासामना रोजाना रेखा के छोटे बेटे मनीष से होता था. कभीकभी रोमा अपने छोटेमोटे काम भी मनीष से करा लेती थी. मनीष को पता ही था कि उस की मां रेखा देहव्यापार कराती है. उस के घर एक से एक खूबसूरत और हर उम्र की लड़कियां आतीजाती रहती थीं.

मनीष करीब 28 साल का युवा था. उस की अपनी शारीरिक जरूरतें थीं. अगर वह चाहता तो घर आने वाली किसी भी कालगर्ल्स से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकता था, लेकिन रोमा उस के दिल में जगह बनाने लगी थी. अपनी जरूरतों के हिसाब से वह भी मनीष से प्यार करने लगी थी. कब दोनों एकदूसरे के प्यार में खो गए, पता ही नहीं चला.

रोमा और मनीष के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. ये संबंध लगातर चलते रहे, जिस से रेखा को उन के संबंधों की जानकारी हो गई. रेखा इस धंधे की खेलीखाई और घाघ औरत थी. उसे पता था कि इस तरह के संबंधों का क्या हश्र होता है. भविष्य के बारे में सोच कर रोमा रेखा की चिंता किए बगैर मनीष के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

मनीष से रोमा को गर्भ भी ठहर गया. अब वह मनीष से शादी की बात करने लगी. उसे पता था कि मनीष से शादी करने के बाद वह रेखा की करोड़ों की जायदाद में आधे की हिस्सेदार हो जाएगी. इस के लिए ही वह मनीष पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बात की भनक रेखा को लगी तो उसे मामला गड़बड़ नजर आने लगा. वह कतई नहीं चाहती थी कि उस का बेटा कालगर्ल्स से शादी करे और उस की जायदाद में हिस्सा मांगे. पहले उसे लगता था कि इस मामले को वह अपने स्तर से निपटा देगी. लेकिन उस की चिंता तब बढ़ गई, जब उस का अपना बेटा मनीष भी रोमा की भाषा बोलने लगा.

रोमा को ले कर घर में लगभग रोज ही झगड़े होने लगे. इस से रेखा परेशान रहने लगी. अब वह रोमा से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगी. काफी सोचविचार कर उस ने फैसला किया कि इस झगड़े की जड़ रोमा है, इसलिए उसे ही मनीष के रास्ते से हटा दिया जाए.

रेखा ने काफी सोचविचार कर साजिश रची. उसी साजिश के तहत उस ने मनीष को तलवारबाजी के एक झगड़े में पुलिस से गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया. मनीष के जेल जाते ही रेखा ने अपने ड्राइवर धनराज मीणा और बड़े बेटे अनिल से बात की. इस के बाद योजना के अनुसार, 9 नवंबर की शाम को धनराज ने रोमा को इतनी शराब पिलाई कि वह सुधबुध खो बैठी. उसी हालत में धनराज और रेखा ने सलवार के नाड़े से रोमा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. अधिक नशा होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सकी.

रेखा को पूरा विश्वास हो गया कि रोमा की मौत हो चुकी है तो उस ने अनिल और धनराज से कहा कि वे लाश को गाड़ी से ले जा कर कहीं फेंक आएं. अनिल और धनराज हुंडई आई10 कार की पिछली सीट पर लाश रख कर निकल पड़े. कार धनराज चला रहा था.

दोनों नेगडि़या टोलनाका, नाथद्वारा, राजनगर, केवला होते हुए मांडावाड़ा टोलनाके से हो कर पड़ासली के पास पहुंचे. वहीं हाईवे पर सुनसान जगह देख कर धनराज ने सड़क के किनारे कार रोक दी.

फिर अनिल की मदद से कार की पिछली सीट पर पड़ी रोमा की लाश को निकाल कर हाईवे से करीब 2 सौ मीटर दूर ले जा कर खाई में फेंक दिया. इस तरह लाश को ठिकाने लगा कर दोनों उसी कार और उसी रास्ते से रात में ही घर आ गए.

रोमा की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस ने सबूत जुटाने के लिए नेगडि़या टोलनाका व मांडावाड़ा टोलनाका की सीसीटीवी फुटेज की फिर से जांच की तो उन की कार आतीजाती दिखाई दे गई. पुलिस ने दोनों की उस रात की मोबाइल की लोकेशन और काल डिटेल्स भी सबूत के तौर पर जुटाए.

कथा लिखे जाने तक पुलिस यह पता करने की कोशिश कर रही थी कि रोमा कौन थी, वह कहां की रहने वाली थी, उस के परिवार में कोई है या नहीं? अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने रोमा की लाश का पोस्टमार्टम करा कर अंतिम संस्कार करा दिया था.

बहरहाल, देहव्यापार करने वाली रोमा ने कभी नहीं सोचा होगा कि प्यार करने की उसे ऐसी सजा मिलेगी. रोमा के साथ जो हुआ, उस से एक बार फिर साबित हो गया है कि इस तरह की औरतों का कोई भविष्य नहीं होता.

इंटरनेशन तैराक की कातिल माशूका

23 जनवरी, 2017 की सुबह की बात है. बिहार के भागलपुर के लोदीपुर थानांतर्गत कवाली नदी के किनारे कुछ बच्चे बेर तोड़ रहे थे तभी किसी की नजर पास की झाड़ी में पड़ी एक लाश पर गई. लाश देखते ही डर कर बच्चे वहां से भाग गए. उन्होंने यह बात अपने जानने वालों को बताई तो गांव के कुछ लोग उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी. वहीं से किसी ने फोन कर के यह जानकारी लोदीपुर थाने में दे दी. सुबह 10 बजे के करीब पुलिस को जैसे ही लाश मिलने की सूचना मिली तो थानाप्रभारी भारतभूषण पुलिस टीम के साथ नदी के किनारे पहुंच गए.

वहां झाडि़यों में करीब 35 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. वह युवक विकलांग था. उस के दोनों हाथ नहीं थे. उस का चेहरा तेजाब से झुलसा हुआ सा लग रहा था. लाश से दुर्गंध आ रही थी. इस से लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले की गई थी.

जांच में उस लाश की पुष्टि इंटरनैशनल तैराक और बिहार सरकार के सचिवालय में क्लर्क की नौकरी करने वाले विनोद कुमार सिंह के रूप में हुई. विनोद मूलरूप से सीवान जिले के बड़ा सिकवा इलाके के नौतन बाजार में रहने वाले रामजी सिंह का बेटा था. वह पश्चिम बंगाल के 24 परगना के स्कूल में अध्यापक थे. पुलिस ने खबर भेज कर रामजी सिंह को बुलवा लिया. बेटे की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगे. मौके की काररवाई पूरी कर के पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने रामजी सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि विनोद का लोदीपुर की रहने वाली वौलीबौल खिलाड़ी रंजना कुमारी से प्रेम चल रहा था. 6 जनवरी, 2017 से ही वह पटना से लापता था. तब 13 जनवरी को उन्होंने उस के गायब होने की सूचना सचिवालय थाने में दी. इस के 8 दिन बाद भी जब विनोद के बारे में जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने विनोद के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. एफआईआर दर्ज कराते हुए उन्होंने रंजना कुमारी, उस के पिता, मां, बहनोई और फुफेरे भाई पर अपहरण की आशंका जताई थी.

इंटरनैशनल तैराकी में मुकाम बना चुके विनोद को इसी उपलब्धि पर सचिवालय भवन में जल संसाधन विभाग में सन 2012 में क्लर्क की नौकरी मिली थी. विनोद के करीबी लोगों ने पुलिस को बताया कि वह रंजना को तैराकी सिखाता था. उसी दौरान दोनों करीब आए. दोनों चोरीछिपे मिलते रहते थे और धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ गया. विनोद शादीशुदा ही नहीं, बल्कि 2 बच्चों का पिता था. बेटा मिलन सिंह 7 साल का और बेटी गुनगुन 4 साल की है. विनोद की बीवी वीणा अपने ससुर के साथ ही 24 परगना में ही रहती है.

इस के बावजूद भी उस का रंजना से चक्कर चल रहा था. विनोद अपने परिवार के साथ पटना के राजवंशी नगर मोहल्ले में रहता था. उस के साथ उस का भांजा अंकित भी रहता था. विनोद के पिता ने पुलिस को बताया कि रंजना का मकसद विनोद के पैसों पर कब्जा जमाना था. रंजना सीतामढ़ी के डीएवी स्कूल में टीचर थी. विनोद जहां इंटरनैशनल डिसएबल स्विमर था तो वहीं रंजना स्टेट लेवल की वौलीबाल खिलाड़ी रह चुकी थी. विनोद के साथ पटना में रहने वाले उस के भांजे अंकित ने बताया कि जब विनोद गायब हुआ था तो उस दौरान वह पटना में नहीं था. वह कोलकाता जाने की बात कह कर पटना से निकले थे. पर बाद में पता चला कि वह कोलकाता पहुंचे ही नहीं.

जांच की इसी कड़ी में पुलिस को पता चला कि पहली जनवरी, 2017 को विनोद पर मोबाइल छीनने का आरोप लगा था. 2 लोग उसे पीटने पर उतारू थे. उन से जान बचा कर विनोद किसी तरह तिलकामांझी थाने के पास पहुंच गया. तब पुलिस ने उसे बचाया था. जो लोग उस की पिटाई करने पर उतारू थे उन्होंने पुलिस को बताया कि एक बैंक के एटीएम बूथ के पास विनोद ने किसी लड़की का मोबाइल फोन छीना है.

उन की यह बात सुन कर पुलिस भी चौंकी क्योंकि जिस आदमी के दोनों हाथ ही कंधों से न हों, वह किसी का मोबाइल कैसे छीन सकता है. तब उन दोनों युवकों ने पुलिस की उस लड़की से भी बात कराई. जिस का मोबाइल छीनने का वह आरोप लगा रहे थे. वह लड़की रंजना ही निकली और जो 2 आदमी विनोद को पीट रहे थे उन में एक रंजना का बहनोई और दूसरा मौसेरा भाई था.

रंजना ने पुलिस को बताया कि विनोद ने उस का मोबाइल छीना नहीं था बल्कि कई दिन पहले ले लिया था जो अब लौटा नहीं रहा है. पुलिस ने विनोद से मोबाइल फोन ले कर रंजना के बहनोई को दे दिया.

रंजना और उस के घर वाले चाहते थे कि विनोद रंजना का पीछा छोड़ दे. लेकिन विनोद नहीं मान रहा था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने उस पर लूटपाट का झूठा आरोप लगाया था.

विनोद ने पुलिस को बताया कि रंजना उस की बीवी है, जो लोदीपुर इलाके में रहती है. वह नए साल पर उसे गिफ्ट देने आया था. इतना ही नहीं उस ने अपने मोबाइल में रंजना की और अपनी विवाह की तसवीरें भी दिखाईं.

विनोद तैराकी के बटरफ्लाई स्ट्रोक में माहिर था. उस ने सन 2005 और 2008 के बीजिंग पैरा ओलांपिक के अलावा 2011 में कई नैशनल और इंटरनैशनल तैराकी प्रतियोगिताओं में भाग लिया था. कई प्रतियोगिताओं में वह भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुका था. सन 2006 में मलेशिया में आयोजित ऐशियाई खेलों में भी उस ने भाग लिया था.

इस के बाद सन 2007 में ताइवान में आयोजित वर्ल्ड ऐम्प्यूटी स्पोर्ट और जरमन ओपन में हिस्सा ले चुका था. 2008 में वह तैराकी का इंटरनैशनल चैंपियन बना था. जर्मनी में तैराकी प्रतियोगिता में उसे गोल्ड मैडल मिला था. उस की इस उपलब्धि पर बिहार और बंगाल सरकार ने उसे कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया था.

साल 2012 में विनोद को खेल कोटा से बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग में क्लर्क की नौकरी मिली थी. शनिवार और रविवार को वह कोलकाता जा कर तैराकी का अभ्यास करता था.

अपनी विकलांगता को अपना हथियार बनाने वाले विनोद ने कभी हिम्मत नहीं हारी. उस के दोनों हाथ नहीं थे इस के बावजूद भी वह पैरों से ही सारा काम कर लेता था. घरेलू काम हो चाहे औफिस का काम हो, वह सारा काम पैरों से ही करता था. मोबाइल फोन से ले कर कंप्यूटर तक वह बिना किसी अवरोध के पैरों से ही चला लेता था.

रंजना के पिता राधाकृष्ण मंडल स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करते थे. वह रिटायर हो चुके हैं. चूंकि विनोद के पिता ने रंजना के घर वालों पर ही आरोप लगाया था इसलिए पटना के एसएसपी मनु महाराज के निर्देश पर पुलिस ने रंजना, उस के पिता राधाकृष्ण मंडल, मां सबरी देवी, बहनोई शंभू मंडल को हिरसत में ले कर पूछताछ की तो उन्होंने विनोद की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ में पता चला कि खेल कोटे के तहत नौकरी का फार्म भरने के लिए रंजना बिहार सचिवालय में गई तो वहीं पर उस की मुलाकात विनोद से हुई थी. बाद में दोनों के बीच संबंध और गहरे हो गए.

रंजना ने कई चौंकाने वाली बातें पुलिस को बताईं. उस ने बताया कि वह विनोद से प्यार करती थी. पर उस ने खुद के शादीशुदा होने की बात उस से छिपाई. जब उसे पता चला कि विनोद 2 बच्चों का बाप है तो उस ने विनोद से दूरी बनानी शुरू कर दी.

रंजना के फोन में विनोद के साथ खींचे गए कुछ फोटो खास पलों के थे. विनोद ने उस का फोन अपने पास रख लिया. वह उन फोटो को सार्वजनिक करने की धमकी दे कर रंजना पर शादी का दबाव बना रहा था. पर रंजना उस से शादी तो दूर बल्कि उस से मिलना तक नहीं चाहती थी. बाद में रंजना की नौकरी सीतामढ़ी के डीएवी स्कूल में लग गई. लेकिन विनोद उस से मिलने उस के स्कूल में भी पहुंच जाता था.

रंजना ने बताया कि विनोद पैरों से ही मोबाइल फोन को पकड़ कर सेल्फी भी खींच लेता था. इतना ही नहीं वह पैरों से ही सिगरेट जला कर पी लेता था. कई बार जब वह उस से मिलने भागलपुर पहुंचता था और उस के घर वाले घर का दरवाजा नहीं खोलते थे तो वह बरामदे में ही घंटों बैठा रहता था. उस दौरान वह पैरों से ही माचिस जला कर सिगरेट जला लेता था और कश पर कश लेता रहता था.

रंजना की मां सबरी देवी ने रोतेरोते पुलिस से कहा कि परिवार की इज्जत बचाने के लिए गलत काम करना पड़ा. विनोद रंजना को ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को ब्लैकमेल कर रहा था. रंजना और विनोद के रिश्तों की वजह से समाज में उस के परिवार की काफी बदनामी हो रही थी. छोटी बेटी का विवाह पक्का हो चुका था. विनोद की धमकी के बाद परिवार के लोगों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं विनोद की वजह से बेटी का रिश्ता न टूट जाए. इसलिए परिजनों ने विनोद को यह समझाने की कोशिश की बेटी की शादी तक चुप रहे पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं था.

रंजना की बहन की शादी की तारीख जैसेजैसे नजदीक आती जा रही थी वैसेवैसे रंजना के घर वाले परेशान हो रहे थे. क्योंकि विनोद रंजना पर साथ रहने का दबाव  बढ़ा रहा था. 6 मार्च, 2017 को रंजना की बहन की शादी की तारीख निश्चित हो गई. रंजना को डर लगने लगा था कि विनोद और उस के अवैध संबंधों की बात बहन के ससुराल वालों को पता चल गई तो शादी टूट सकती है.

रंजना ने मिलने के लिए उसे भागलपुर बुलाया ताकि उसे बैठा कर समझाया जाए. विनोद 6 जनवरी को ही भागलपुर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. उस समय रात हो गई थी इसलिए वह रेलवे स्टेशन पर ही रुक गया था. 7 जनवरी को वह रंजना से मिलने पहुंच गया. काफी समझाने के बाद भी विनोद अपनी जिद पर अड़ा रहा.

7 जनवरी की सुबह विनोद ने अपने पिता से बात की. पिता को जब पता चला कि वह भागलपुर में रंजना के पास गया है तो उन्होंने उस से कहा कि वह तुरंत लौट आए. पर विनोद ने कहा कि रंजना के भाई बिट्टू ने मिलने के लिए बुलाया है उस से बातचीत कर के लौट आऊंगा.

इस के बाद विनोद ने रंजना के मौसेरे भाई बिट्टू को फोन कर के कहा कि रंजना के मांबाप से बोल दो कि रंजना से उस की शादी हो चुकी है और अब जल्द से जल्द वह उस की विदाई कर दें. रंजना के बहनोई शंभू मंडल ने पुलिस के सामने कबूल कर लिया कि उस ने रंजना के मौसेरे भाई कमल किशोर उर्फ बिट्टू और उस के एक दोस्त संजीव के साथ मिल कर विनोद का कत्ल किया था. कत्ल के दौरान रंजना वहां मौजूद नहीं थी.

सभी ने पकड़ कर विनोद को जमीन पर पटक दिया. रंजना की मां और संजीव ने उस के पैर पकड़ लिए और बिट्टू उस का गला घोंटने लगा. शंभू ने विनोद के मुंह में गमछा ठूंस कर नाक दबा ली. कुछ ही देर में दम घुटने से विनोद की मौत हो गई. चूंकि रंजना ने ही मिलने के लिए विनोद को भागलपुर बुलाया था इस से वह साबित हो गया कि वह भी विनोद की हत्या की साजिश में शामिल थी.

पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के जाल में लड़के लड़कियां

प्यार के जाल में फंस कर आज भी बहुत से नौजवान लड़केलड़कियां जेल की सलाखों में बंद हैं. आएदिन प्यार के फेर में पड़ कर लड़केलड़कियों की हत्या तक कर दी जाती है.

जब एक नौजवान लड़का और लड़की किसी तरह आपस में मिलते हैं, तो वे दोनों बहुत से सपने देखते हैं. लेकिन ज्यादातर प्रेमियों के सपने पूरे नहीं होते. ऐसे सपनों की सचाई भी अलगअलग होती है.

राकेश एमएससी तक पढ़ालिखा था. 10वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की अंजू को वह ट्यूशन पढ़ाता था. थोड़े ही समय में वह उस लड़की से इश्क करने लगा. अंजू भी मान गई. दोनों साथ जीनेमरने का सपना देखने लगे. स्कूल, पार्क, रैस्टोरैंट में दोनों का लगातार मिलना जारी रहा.

इस दौरान राकेश के मातापिता ने दूसरी जगह लड़की देख कर उस की शादी तय कर दी. ज्यों ही यह बात अंजू को मालूम हुई, वह राकेश पर दबाव बनाने लगी, ‘‘अगर तुम ने उस लड़की से शादी की, तो मैं जहर खा कर जान दे दूंगी.’’

राकेश को अपने भरोसे में ले कर अंजू बोली, ‘‘हम लोग यहां से किसी दूसरी जगह भाग चलते हैं.’’

अंजू अपने पिता की अलमारी से 50 हजार रुपए निकाल कर ले आई. दोनों नई दिल्ली के लिए चल दिए.

उधर अंजू के मातापिता ने अपनी बेटी के अपहरण का मामला लोकल थाने में दर्ज करा दिया. पुलिस छानबीन करने लगी.

मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उन दोनों को नई दिल्ली के एक होटल से गिरफ्तार कर लिया.

अंजू का मैडिकल टैस्ट कराया गया. जांच में उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की तसदीक हो गई.

राकेश के ऊपर अंजू को अगवा करने और उस का बलात्कार करने का मुकदमा चला. उसे अदालत ने 8 साल की सजा सुनाई. वह आज भी जेल में बंद है.

इसी तरह की दूसरी घटना है. इलैक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग कर चुके अमित कुमार का बैंगलुरु में कंप्यूटर ट्रेनिंग सैंटर था. ट्रेनर के रूप में उस ने एक लड़की को बहाल किया था. उस का नाम शबाना था. दोनों एक ही जगह पर रह कर काम कर रहे थे. दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं. धीरेधीरे ये नजदीकियां प्यार में बदलने लगीं और उन्होंने शादी करने का मन बना लिया.

अमित ने अपने मातापिता के सामने उस लड़की से शादी करने की बात कही, पर दोनों के बीच धर्म आडे़ आने लगा. अमित के मातापिता किसी भी शर्त पर दूसरे धर्म की लड़की के साथ अपने बेटे की शादी करने को राजी नहीं थे.

इस शादी के लिए शबाना के मातापिता भी तैयार नहीं थे. दोनों ने शहर छोड़ने का फैसला लिया और अहमदाबाद चले गए. शबाना के मातापिता ने मुकदमा कर दिया. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया और अमित को जेल भेज दिया गया.

रमता अपने गांव के ही साथ में पढ़ने वाले संजय से प्यार करती थी. कभीकभी रात में मौका पा कर दोनों आपस में जिस्मानी संबंध बना लिया करते. वह पेट से हो गई. इस की जानकारी ज्यों ही लोगों को हुई, उन्होंने रमता की हत्या कर लाश गांव के एक कुएं में फेंक दी.

पुलिस को पता चला, तो जांच के दौरान सचाई जब सामने आई, तो उस के परिवार वालों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. सामाजिक मुद्दों की जानकारी रखने वाले कृष्णा सिंह का कहना है कि अगर लड़का या लड़की आपस में प्यार करते हैं, तो सोचसमझ कर करें. इस में दोनों के मातापिता और घर वालों की रजामंदी होना जरूरी है, नहीं तो बाद में बड़े अपराध तक हो जाते हैं.

बुजुर्ग दंपती के मुंह पर टेप लगाकर 45 लाख लूटे

वेस्ट दिल्ली के पंजाबी बाग थाना इलाके में रहने वाले बुजुर्ग दंपती को घर में बंधक बनाकर लूट लिया गया. 45 लाख कैश, जूलरी और मोबाइल फोन लूटने का विरोध करने पर उन्हें पीटा भी गया. बाद में दोनों को बाथरूम में बांधकर बंद कर दिया गया. इसके बाद लुटेरों ने आराम से लूटपाट की. करीब 1 घंटे तक बदमाश घर में रहे. उनकी संख्या 3-5 बताई जा रही है. पुलिस का कहना है कि दो बदमाशों ने लूट को अंजाम दिया.

पुलिस के पास रविवार रात 8 बजे के बाद पीसीआर कॉल की गई. पीड़ित शिकायतकर्ता का नाम गिरधारी लाल है. 63 साल के गिरधारी लाल, पत्नी के साथ रहते हैं. वह एक फाइनैंस कंपनी चलाते हैं. रविवार शाम करीब 7:15 बजे किसी ने उनके घर की घंटी बजाई. गेट खोलने से पहले उन्होंने घंटी बजाने वाले से पहचान पूछी. अजनबी ने बताया कि एक ट्रक खरीदने के लिए पैसे लिए थे उसकी किस्त जमा करनी है. गेट खोलने पर दो आदमी घुसे.

कुछ देर तक दोनों ने गिरधारी लाल से इधर-उधर की बातें कीं. इसके बाद उनकी कनपटी पर पिस्टल तान दी. उन्होंने विरोध किया तो उनकी पिटाई भी की गई. इसी बीच, उनकी पत्नी वहां आ पहुंचीं. लुटेरों ने दोनों को बाथरूम ले जाकर बांध दिया. उनके मुंह पर भी टेप चिपका दी गई थी.

पुलिस का कहना है कि लुटेरे जाते-जाते उनके घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी अपने साथ ले गए. ऐसे में उनकी पहचान नहीं हो पाई है. लुटेरों ने जिस तरह वारदात को अंजाम दिया उससे लगता है कि उन्हें यह पहले से पता था कि गिरधारी लाल के पास कितना कैश है. बदमाशों ने लूट की वारदात को अंजाम देते हुए उनसे कैश के बारे में पूछा था.

आशंका जताई जा रही है कि कंपनी में ही काम करने वाला कोई कर्मचारी लुटेरों में शामिल हो. कुछ लोगों को शक के दायरे में रखा गया है.

एक घंटे तक रहे घर में

  • 63 साल के गिरधारी लाल, पत्नी के साथ रहते हैं. वह एक फाइनैंस कंपनी चलाते हैं
  • घर में घुसे बदमाशों ने लूट का विरोध करने पर दंपती को पीटा भी
  • पुलिस का कहना है कि 2 बदमाश थे, कुछ लोगों का कहना है कि 3-5 बदमाश थे
  • कुछ देर तक दोनों ने गिरधारी लाल से इधर-उधर की बातें कीं, इसके बाद उनकी कनपटी पर पिस्टल तान दी

साली के जिस्म की चाहत ने जीजा से कराया जुर्म

उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल शिवकुमार की पोस्टिंग शिकोहाबाद के सीओ औफिस में थी. उन का घर वहां से कोई 60-65 किलोमीटर दूर आगरा में था. वहीं से वह रोजाना अपनी ड्यूटी पर आतेजाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां संगम और ज्योति तथा एक बेटा अमरेंद्र कुमार था. परिवार के साथ वह हंसीखुशी से जिंदगी बिता रहे थे. उन्होंने तीनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया था. बड़ी बेटी शादी लायक हुई तो उस की शादी उन्होंने अपने जिगरी दोस्त कुलदीप शैली के बेटे अशोक शैली से कर दी. कुलदीप गाजियाबाद के नेहरूनगर में रहते थे. उन की भी 2 बेटियां परविंद्र और पूजा तथा एक बेटा अशोक था. बेटी परविंद्र का विवाह उन्होंने बुलंदशहर के रहने वाले पंकज के साथ किया था.

संगम की शादी के समय उस की छोटी बहन ज्योति महज 12 साल की थी. अशोक गाजियाबाद में किसी फैक्ट्री में काम करता था. संगम और अशोक का जीवन काफी खुशहाल था. शादी के साल भर बाद ही अशोक एक बेटी का पिता बन गया था. वह जबतब अपनी पत्नी और बेटी के साथ ससुराल आता रहता था. शिवकुमार का बेटा अमरेंद्र एक दवा कंपनी में एमआर था. अशोक की बहन पूजा की शादी में निमंत्रण पा कर शिवकुमार पूरे परिवार के साथ आए थे. शादी में लहंगाचोली पहने ज्योति बहुत खूबसूरत लग रही थी. हालांकि उस की उम्र 14-15 साल थी, पर हृष्टपुष्ट शरीर की वजह से वह जवान लग रही थी. ऐसे में ज्योति की नजर अपने जीजा अशोक से टकराई तो उस की नजरों में उसे कुछ अजीब सा दिखाई दिया. क्योंकि इस के पहले अशोक ने कभी उसे इस तरह नहीं देखा था. चूंकि शादी अशोक की बहन पूजा की थी, इसलिए उस पर काफी जिम्मेदारियां थीं. वह भागदौड़ में लगा था. ऐसे में अशोक कई बार साली से टकराया. एक बार हिम्मत कर के उस ने ज्योति का हाथ पकड़ कर सहलाते हुए कहा, ‘‘ज्योति, आज तुम बड़ी सुंदर लग रही हो. किस पर बिजली गिराने का इरादा है ’’ जीजा की बात सुन कर ज्योति घबरा गई. झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह चली गई. उस का दिल जोरों से धड़क उठा था. वह समझ गई कि जीजा की नीयत ठीक नहीं है.

ज्योति सोच में डूबी थी कि जीजा उसे अजीब नजरों से क्यों देख रहे थे उसे लगा कि शायद उन्होंने मजाक किया होगा  इस बात को दिमाग से निकाल कर वह शादी के कार्यक्रमों में एंजौय करने लगी. लेकिन अशोक ने तो मन ही मन कुछ और ही सोच लिया था. शादी निपट जाने के बाद थकेहारे लोग आराम करने की सोच रहे थे, जबकि शिवकुमार अपने परिवार के साथ घर जाना चाहते थे, लेकिन कुलदीप ने उन्हें एक दिन और रुकने की बात कह कर रोक लिया. इस से अशोक को खुशी हुई, क्योंकि उस का दिल अपनी नाबालिग साली ज्योति पर आ गया था. वह किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था. शादी की भागदौड़ में सभी काफी थक गए थे. इसलिए खापी कर सभी जल्दी ही सो गए. अशोक के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने धीरे से ज्योति को उठा कर कहा, ‘‘चलो, तुम से कुछ बात करनी है.’’

डरीसहमी ज्योति के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. उसे एकांत में ले जा कर अशोक उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. ज्योति ने विरोध किया तो उस ने कहा, ‘‘चुप रहो, अगर कोई जाग गया तो तुम्हारी ही बदनामी होगी.’’ ज्योति जानती थी कि अगर वह शोर मचाएगी तो घर के लोग उस की बात पर विश्वास नहीं करेंगे. क्योंकि सभी अशोक पर बहुत विश्वास करते थे. आखिर अशोक ने ज्योति को डराधमका कर अपनी हवस पूरी कर ली. यही नहीं, उस ने मोबाइल फोन से उस की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें भी खींच लीं. अपना सब कुछ गंवा कर ज्योति कमरे में आ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे  अशोक ने उसे धमकी दे रखी थी कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे बदनाम कर देगा.

ज्योति खामोश थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. बेटी को परेशान देख कर मां मुन्नी ने पूछा तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया. घर आ कर ज्योति ने राहत की सांस ली. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीजा से कभी बात नहीं करेगी. अपने साथ घटी घटना के बारे में उस ने घर वालों से इसलिए नहीं बताया कि कहीं बहन का घर न टूट जाए. इसलिए चुप रह कर वह अपनी पढ़ाई में लग गई. कुछ दिन इसी तरह बीत गए. जीजा का कोई फोन नहीं आया तो उसे लगा कि शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. अशोक को इधर गाजियाबाद के एक फार्महाउस में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. एक दिन वह अकेला ही ससुराल पहुंचा. उसे देख कर ज्योति डर गई.

‘‘अरे ज्योति, तुम इधरउधर क्यों भाग रही हो आओ, बैठो मेरे पास.’’ अशोक ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाते हुए कहा. मुन्नी भी वहीं बैठी थी. इस की असल वजह क्या है, यह मुन्नी को पता नहीं था, इसलिए वह हंसने लगी. क्योंकि जीजासाली के बीच हंसीमजाक होना आम बात है. उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. खाना खाने के बाद अशोक जाने लगा तो उस ने ज्योति से चुपके से कहा, ‘‘मैं ने आगरा के कुंदु कटरा स्थित एक होटल में कमरा बुक करा रखा है, तुम वहां आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

ज्योति ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मैं वहां नहीं आऊंगी.’’

इस पर अशोक ने टेढ़ी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तो फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना. मेरी मानो तो तुम्हारा आना ही ठीक रहेगा. मैं होटल में तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ न चाहते हुए भी ज्योति को होटल जाना पड़ा. अशोक होटल के गेट पर ही मिल गया. उस का हाथ पकड़ कर वह उसे उस कमरे में ले गया, जो उस ने पहले से बुक करा रखा था. कमरे में पहुंच कर उस ने ज्योति के सामने एक कागज रख दिया, जिस पर कुछ टाइप किया हुआ था. ज्योति ने पूछा, ‘‘यह क्या है ’’

‘‘यह हमारी शादी का प्रमाण पत्र है. इस पर तुम दस्तखत कर दो.’’ अशोक ने कहा. ज्योति ने दस्तखत करने से मना करते हुए कहा, ‘‘आप तो दीदी के पति हैं, हमारी शादी कैसे हो सकती है ’’

‘‘देखो ज्योति, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता, इसलिए मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे यह बेहूदगी पसंद नहीं है.’’ कह कर ज्योति कमरे से बाहर जाने लगी तो अशोक ने उसे पकड़ कर बैड पर ही पटक दिया और गुर्राते हुए कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूंगा.’’

उस की धमकी से डर कर ज्योति ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए. ज्योति मजबूर थी, इस का फायदा उठाते हुए अशोक ने उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस की अश्लील वीडियो भी बना ली. ज्योति उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी थी. चाह कर भी वह नहीं निकल पा रही थी. उस के एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. वह जीजा का शोषण सहती रही. मुन्नी कभीकभी पूछती भी कि वह परेशान क्यों रहती है तो वह पढ़ाई का बहाना बना देती. अशोक का जब भी उस के पास फोन आता, वह अवसाद से घिर जाती. वह उसे होटल में बुलाता. उस का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर अशोक उस के साथ मनमानी करता. इसी तरह 2 साल गुजर गए. अशोक की हिम्मत बढ़ती गई. ज्योति इंटरमीडिएट में आ गई थी. पढ़ाई में उस का मन बिलकुल नहीं लगता था. वह यही सोचती थी कि दुराचारी जीजा से कैसे छुटकारा मिले  उसे अब खुद से नफरत होने लगी थी.

सब कुछ चलता रहा. घर वाले बेटी पर हो रहे अत्याचार से बेखबर थे. बेटी भी अपना मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. उसी बीच ज्योति की जिंदगी में नागेंद्र आ गया. वह ज्योति को अच्छा लगता था. दोचार मुलाकातों के बाद दोनों के बीच गहरा प्यार हो गया. नागेंद्र के प्यार से ज्योति का खोया आत्मविश्वास वापस लौटने लगा. इस के बाद जब भी अशोक का फोन आता, वह फोन रिसीव नहीं करती. अशोक की समझ में यह नहीं आ रहा था कि ज्योति ऐसा क्यों कर रही है  यह जानने के लिए एक दिन वह अपनी ससुराल पहुंच गया. उसे इस बार देख कर ज्योति ने तय कर लिया कि वह उस से बिलकुल नहीं डरेगी. मौका देख कर जब अशोक ने उसे होटल चलने को कहा तो उस ने साफ मना कर  दिया. अशोक ने उसे धमकाया तो उस ने कहा, ‘‘जीजा मेहरबानी कर के अब छोड़ दो मुझे.’’ अशोक ने उसे मोहब्बत की दुहाई दी, पर वह नहीं मानी. वह नाराज हो कर चला गया. ज्योति के व्यवहार से उसे लगा कि जरूर कोई उस की जिंदगी में आ गया है. अशोक ज्योति की सहेली के दोस्त सुमित को जानता था. उस ने जब सुमित को फोन किया तो उसे पता चला कि सचमुच ही ज्योति के जीवन में कोई और आ गया है. सच्चाई पता चलने पर अशोक को ज्योति पर बहुत गुस्सा आया.

इस के बाद ज्योति ने अपने प्रेमी नागेंद्र को सारी बात बता दी. उस ने ज्योति की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि वह हमेशा उस के साथ है. अशोक से उसे डरने की जरूरत नहीं है. इस के बाद अशोक अपने आखिरी हथियार का उपयोग करते हुए धमकी देने लगा कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस के नंगे फोटो इंटरनेट पर डाल देगा. ज्योति ने साफ कह दिया, ‘‘जीजा, तुम्हें जो करना हो करो, मैं अब तुम से बिलकुल नहीं मिल सकती.’’ आखिर अशोक ने अंजाम की चिंता किए बिना ज्योति को सबक सिखाने की ठान ली. 9 सितंबर, 2016 को ज्योति कालेज के लिए निकली तो गली में खड़े कुछ लड़कों ने उसे देख कर कटाक्ष किया. वह उन की बातों का विरोध करने के बजाय आगे बढ़ गई. तभी उस के मोबाइल पर उस के भाई का फोन आया. भाई ने उसे तुरंत घर वापस आने को कहा.

ज्योति घर पहुंची तो उस ने देखा मां और भाई गुस्से में हैं. भाई ने उसे कई तमाचे जड़ दिए. भाई के गुस्से को देख कर ज्योति समझ गई कि जरूर जीजा ने उस का अश्लील वीडियो वायरल कर दिया है, जिसे घर वालों ने देख लिया है. ज्योति ने रोरो कर मां और भाई को जीजा की सारी करतूतें बता दीं. असलियत जान कर दोनों ने अपना सिर पीट लिया. ज्योति ने कहा कि वह जीजा की धमकियों से डर गई थी, जिस की वजह से उस ने किसी को कुछ नहीं बताया था. शिवकुमार उस समय ड्यूटी पर थे. अमरेंद्र ने पिता को फोन कर के सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि वह ज्योति को ले कर थाना सदर जाए और पुलिस को सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दे. अमरेंद्र बहन को ले कर थाना सदर पहुंचा और थानाप्रभारी अशोक कुमार सिंह को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी ने उस की बात सुन कर भादंवि की धारा 376, 506, 420, 67, 72 के तहत अशोक सैली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. शिवकुमार और मुन्नी दामाद की इस हरकत से बहुत आहत हुए थे. पर उस ने काम ही ऐसा किया था, जो क्षमा करने लायक नहीं था. अगले दिन आगरा सदर बाजार पुलिस ने गाजियाबाद से अशोक को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अशोक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पति की करतूत से संगम को अफसोस है. बहरहाल कथा संकलन तक अशोक जेल में था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सड़क किनारे हुई हत्या, लोग बनाते रहे वीडियो

दो महीने से भी कम समय में हैदराबाद में दूसरी बार एक शख्स की बीच सड़क पर बेरहमी से हत्या कर दी गई. इस दौरान आस-पास लोग तमाशबीन बनकर खड़े रहे और मोबाइल से वीडियो-तस्वीरें उतारते रहे. कुछ ही समय पहले हैदराबाद के अट्टापुर इलाके में दिनदहाड़े एक शख्स की इसी तरह हत्या की गई थी जिससे पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी.

बुधवार को शाम करीब साढ़े सात बजे ओल्ड सिटी में अति व्यस्त मदीना चौराहे के पास भीड़ के बीच एक औटोरिक्शा ड्राइवर ने 35 साल के एक शख्स की चापड़ मारकर हत्या कर दी. आरोपी की पहचान मोहम्मद अब्दुल खाजा (30) के रूप में हुई है जिसने शाकिर कुरैशी नाम के शख्स पर चाकू से कई बार वार किया.

आस-पास गुजरते लोगों ने इस वीभत्स घटना का वीडियो बना डाला लेकिन किसी ने हत्यारे को रोकने और पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सोशल मीडिया में वायरल हो रहे इस वीडियो को देखकर अपराधी के बेखौफ होने का सबूत मिलता है क्योंकि घटना वाली जगह से कुछ मीटर की दूरी पर ही पुलिसकर्मी मौजूद थे लेकिन किसी ने खाजा को रोकने की हिम्मत नहीं जुटाई.

एक ट्रैफिक पुलिस ने खाजा को विक्टिम के पास से धक्का देने की कोशिश की लेकिन वह तुरंत ही वहां से पीछे लौट गया. मीरचौक पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर एस श्रीनिवास गौड़ ने कहा कि खाजा ने कुरैशी पर काबू करते हुए उसे जमीन पर गिरा दिया और सड़क किनारे उसकी हत्या कर दी. पुलिस ने बताया कि दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ था.

शुरुआती जांच में सामने आया कि कुरैशी ने खाजा को किराये पर औटोरिक्शा दिया था. खाजा ने किसी दूसरे शख्स को औटो दे दिया था जिससे कुरैशी नाराज हो गया. दोनों विवाद सुलझाने के लिए बुधवार शाम को मिले लेकिन बहस और बढ़ गई. खाजा ने दावा किया कि कुरैशी ने उसे और उसके परिवार को अपशब्द कहे.

पुलिस अधिकारी ने कहा कि कुरैशी पेशे के एक कसाई भी था, वह अपने साथ एक चापड़ लाया था जिसे खाजा ने छीनकर उसकी हत्या कर दी. वीडियो में खाजा शव को लात मारते हुए दिख रहा है, उसकी शर्ट में खून के धब्बे हैं. वह वीडियो में यह कहते हुए सुना जा रहा है कि अगर उसे फांसी दे दी गई तो भी उसे कोई चिंता नहीं.

इसके बाद बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी वहां पहुंचे और आरोपी को हिरासत में ले लिया. दोनों चंचलगुड़ा के निवासी बताए जा रहे हैं. साउथ जोन के डेप्युटी कमिश्नर अंबर किशोर झा ने कहा कि वह आरोपी से पूछताछ कर और जानकारी निकाल रहे हैं. पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि एक कॉन्स्टेबल के तत्काल ऐक्शन से आरोपी घटनास्थल से 10 मिनट में पकड़ लिया गया जबकि वीडियो में पुलिस के कथन का विरोधाभास करता है.

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल

माधुरी जिस उम्र में थी, वह नएनए सपनों, उमंगों, उम्मीदों और उत्साह से लबरेज होती है. उस ने भी भविष्य के लिए ढेरों ख्वाब बुन रखे थे. बीकौम की छात्रा माधुरी सुंदर और हंसमुख स्वभाव की थी. पढ़लिख कर वह एक मुकाम हासिल करना चाहती थी. लेकिन यह ऐसी उम्र है, जब कोई करिश्माई व्यक्ति आकर्षित कर जाता है. फिर तो उसी के लिए दिल धड़कने लगता है. माधुरी के साथ भी ऐसा हुआ था. वह आदमी कौन था, यह सिर्फ माधुरी ही जानती थी, जिसे वह जाहिर भी नहीं होने देना चाहती थी. वह परिवार में सभी की प्रिय थी. मातापिता को अपने बच्चों से ढेरों उम्मीदें होती हैं. माधुरी को भी मांबाप की ओर से पढ़नेलिखने और घूमनेफिरने की इसीलिए आजादी मिली थी कि वह अपना भविष्य संवार सके.

माधुरी दिल्ली से लगे गौतमबुद्ध नगर जिले के रबूपुरा थाना के गांव मोहम्मदपुर जादौन के रहने वाले मुनेश राजपूत की बेटी थी. वह एक समृद्ध किसान थे. वैसे तो यह परिवार हर तरह से खुश था, लेकिन नवंबर, 2016 में एक दिन माधुरी अचानक लापता हो गई तो पूरा परिवार परेशान हो उठा. वह घर नहीं पहुंची तो उसे ढूंढा जाने लगा. काफी प्रयास के बाद भी जब माधुरी का कुछ पता नहीं चल सका तो परिवार के सभी लोग परेशान हो उठे. चूंकि मामला जवान बेटी का था, इसलिए मुनेश ने थाने जा कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस जांच में पता चला कि माधुरी अपने पिता के मोबाइल से किसी को फोन किया करती थी. पुलिस और घर वालों ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नजदीक के ही गांव के रहने वाले राहुल जाट का निकला. 27 नवंबर, 2016 को राहुल को खोज निकाला गया.

राहुल के साथ माधुरी भी थी. दोनों ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर घर वाले दंग रह गए. दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. यही नहीं, उन्होंने आर्यसमाज मंदिर में विवाह भी कर लिया था. राहुल ने अपने 3 दोस्तों की मदद से माधुरी को भगाया था. मामला 2 अलगअलग जातियों का था. माधुरी के घर वाले इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे बेटी द्वारा उठाए गए इस कदम से काफी आहत थे. बात मानमर्यादा और इज्जत की थी, इसलिए दोनों पक्षों के बीच आस्तीनें चढ़ गईं. इस मुद्दे पर पंचायत बैठी, जिस ने फैसला लिया कि दोनों ही अब एकदूसरे से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. घर वालों ने माधुरी को डांटाफटकारा और जमाने की ऊंचनीच समझा कर इज्जत का वास्ता दिया. इस पर उस ने वादा किया कि अब वह कोई ऐसा कदम नहीं नहीं उठाएगी, जिस से उन की इज्जत पर आंच आए.

किस के दिमाग में कब क्या चल रहा है, यह कोई दूसरा नहीं जान सकता. माधुरी बिलकुल सामान्य जिंदगी जी रही थी. इस घटना को घटे अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि 23 दिसंबर, 2016 की दोपहर माधुरी अचानक फिर लापता हो गई. उस के इस तरह अचानक घर से लापता होने से घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने अपने स्तर से उस की खोजबीन की. लेकिन जब वह शाम तक नहीं मिली तो उन का सीधा शक उस के प्रेमी राहुल पर गया.

माधुरी के घर वालों ने थाने जा कर राहुल और उस के दोस्तों के खिलाफ नामजद तहरीर दे दी. राहुल का चूंकि माधुरी से प्रेमप्रसंग चल रहा था और एक बार वह उसे ले कर भाग चुका था, इसलिए कोई भी होता, उसी पर शक करता. गुस्सा इस बात का था कि समझाने के बावजूद उस ने वादाखिलाफी की थी. इस बात से माधुरी के घर वाले ही नहीं, गांव वाले भी नाराज थे. शायद इसीलिए सभी माधुरी को जल्द से जल्द ढूंढ कर लाने को पुलिस से कहने लगे थे. पुलिस ने माधुरी के घर वालों से नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि अभी भी माधुरी की राहुल से बातचीत होती रहती थी. गायब होने वाले दिन भी उस की राहुल से बात हुई थी.

पुलिस ने राहुल और उस के दोस्तों को थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन इन लोगों ने माधुरी के गायब होने में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. इस पूछताछ में पुलिस को भी लगा कि इन लोगों का माधुरी के गायब होने में हाथ नहीं है तो उस ने उन्हें छोड़ दिया. कई दिन बीत गए, माधुरी का कुछ पता नहीं चला. घर वाले राहुल और उस के साथियों के छोड़े जाने से खिन्न थे. मुनेश के पड़ोस में ही रहता था हेमंत कौशिक उर्फ टिंकू, जो शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. वह कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. पड़ोसी होने के नाते वह माधुरी के घर वालों की हर तरह से मदद कर रहा था.

हेमंत ने मुनेश को सलाह दी कि इस मामले में थाना पुलिस राहुल के खिलाफ काररवाई नहीं कर रही है तो चल कर पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिला जाए. उस की बात घर वालों को ठीक लगी तो गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर मुनेश एसएसपी औफिस जा पहुंचे. अपनी बात मनवाने के लिए इन लोगों ने धरनाप्रदर्शन भी किया. इस का नतीजा यह निकला कि एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने इस मामले में एसपी (देहात) सुजाता सिंह को काररवाई करने के निर्देश दिए. मामला तूल पकड़ता जा रहा था, इसलिए सुजाता सिंह ने थानाप्रभारी शाबेज खान को माधुरी की गुमशुदगी वाले मामले की गुत्थी सुलझाने को तो कहा ही, खुद भी इस मामले पर नजर रख रही थीं.

पुलिस एक बार फिर राहुल को पकड़ कर थाने ले आई. एसपी सुजाता सिंह ने खुद उस से पूछताछ की. राहुल का कहना था कि पंचायत के बाद वह माधुरी से कभी नहीं मिला तो पुलिस ने उस के ही नहीं, उस के दोस्तों के भी मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई. इस से पता चला कि राहुल ही नहीं, उस के दोस्त भी माधुरी के लापता होने वाले दिन घर पर ही थे. कई लोग इस बात की तसदीक भी कर रहे थे. जांच में यह बात सच पाई गई, इसलिए पुलिस उलझ कर रह गई. जबकि माधुरी के घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब तक राहुल के पक्ष में भी कुछ लोग उतर आए थे, इसलिए पुलिस को विरोध और आरोपों का सामना करना पड़ रहा था. कभीकभी परेशान हो कर पुलिस फरजी खुलासा करते हुए निर्दोषों को जेल भेज देती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. एसपी सुजाता सिंह ने तय कर रखा था कि वह जो भी काररवाई करेंगी, सबूतों के आधार पर ही करेंगी. माधुरी के घर वाले चाहते थे कि राहुल और उस के साथियों को जेल भेजा जाए, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ एक भी सबूत नहीं था.

बात माधुरी की बरामदगी की भी थी. इस के लिए राहुल के पास कोई सुराग नहीं था. माधुरी कहां चली गई थी, इस बात को कोई नहीं जानता था. उस का प्रेम प्रसंग राहुल से था और राहुल को ही उस की खबर नहीं थी. पुलिस के लिए यह मामला काफी पेचीदा हो गया था. इस बीच पुलिस को पता चला कि माधुरी चोरीछिपे मोबाइल फोन इस्तेमाल करती थी. पुलिस को लगा कि इस से कोई सुराग मिल सकता है. लेकिन घर वालों को माधुरी का मोबाइल नंबर पता नहीं था. पुलिस ने गांव के टावर से जितने भी मोबाइल नंबर इस्तेमाल हो रहे थे, सभी का डाटा निकलवाया. यह संख्या 3 हजार से अधिक थी, लेकिन पुलिस को उम्मीद थी कि इस से कोई न कोई सुराग जरूर मिल जाएगा.

पुलिस ने मोबाइल नंबरों को खंगाला तो उन में 2 मोबाइल नंबर एक ही सीरीज के मिले. उन नंबरों को संदिग्ध मान कर जांच शुरू की गई. इस में खास बात यह थी कि माधुरी के लापता होने के 2 दिनों बाद दोनों नंबर बंद कर दिए गए थे. पुलिस ने उन नंबरों की आईडी निकलवाई तो वे जनपद पीलीभीत के एक ही पते पर लिए गए थे. सिमकार्ड लेते वक्त जो पहचानपत्र दिया गया था, वह भी फरजी था. पुलिस ने आईएमईआई नंबर के जरिए मोबाइल का पता किया तो पता चला कि जिस मोबाइल में दोनों सिम में से एक सिम का उपयोग हो रहा था, उसी टावर के अंतर्गत उस में दूसरा नंबर चल रहा था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह माधुरी के पड़ोसी हेमंत का निकला. इस से हेमंत शक के दायरे में आ गया. 7 जनवरी, 2017 को थानाप्रभारी शाबेज खान एसआई श्रीपाल सिंह, नरेश कुमार, कांस्टेबल जकी अहमद और जितेंद्र को साथ ले कर गांव पहुंचे और पूछताछ के लिए हेमंत को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में हेमंत शातिर खिलाड़ी निकला. उस के न केवल माधुरी से प्रेमसंबंध थे, बल्कि उसी ने सुनियोजित तरीके से माधुरी की हत्या कर के उस की लाश को ठिकाने लगा दिया था. आपराधिक घटनाओं पर आधारित टीवी सीरियलों और फिल्मों से शातिर सोच पैदा कर के उस ने पूरी योजना बनाई थी. उस के प्रेम में अंधी हो चुकी माधुरी उस के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन चुकी थी तो राहुल मोहरा. माधुरी के लिए हेमंत ही वह आकर्षक करिश्माई आदमी था, जिस का राज माधुरी ने अपने सीने में दफन कर रखा था. हेमंत की निशानदेही पर पुलिस ने गांव के ही एक खेत से माधुरी के शव को बरामद कर लिया था. पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही हेमंत के खिलाफ अपराध संख्या 2/2017 पर धारा 364, 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने हेमंत से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे शातिर दिमाग इंसान की कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने एक लड़की को प्यार के जाल में फांस कर पहले उस की भावनाओं और विश्वास को छला, उस के बाद उसे मौत की चौखट पर पहुंचा दिया. पड़ोसी होने के नाते माधुरी और हेमंत के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. करीब 10 महीने पहले हेमंत ने माधुरी पर डोरे डालने शुरू किए. माधुरी उम्र के नाजुक मोड़ पर थी. उस ने हेमंत का झुकाव अपनी ओर देखा तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो गई. बहुत जल्दी दोनों के प्रेमसंबंध बन गए. हेमंत माधुरी को केवल मौजमस्ती का साधन बनाना चाहता था, लेकिन माधुरी उस से दिल से प्यार कर बैठी.

दिल के हाथों मजबूर हो कर माधुरी राह भटक गई. उन के रिश्ते की कोई मंजिल नहीं थी. बात एक ही गांव, पड़ोस और अलगअलग जाति की थी, इस से भी बड़ी बात यह थी कि हेमंत शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. माधुरी इन बातों को भूल गई और उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं. हेमंत शातिर था. वह आपराधिक टीवी सीरियलों से भी खासा प्रभावित था. हेमंत किसी खतरे में नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए उस ने फरजी आईडी पर 2 मोबाइल नंबर लिए. एक नंबर उस ने अपने पास रखा और दूसरा माधुरी को देते हुए कहा, ‘‘माधुरी, इस नंबर से मेरे सिवा किसी और से बात मत करना.’’

‘‘मैं भला किसी और से बातें क्यों करूंगी. वैसे भी मेरे लिए अब तुम ही सब कुछ हो.’’ माधुरी ने कहा ही नहीं, किया भी ऐसा ही. माधुरी फोन को छिपा कर रखती थी. उस से वह केवल हेमंत से ही बातें करती थी या एसएमएस करती थी. दोनों का संबंध इतना गुप्त था कि किसी को कानोंकान खबर नहीं थी. दोनों चूंकि पड़ोसी थे, इसलिए उन के संबंधों पर किसी ने कभी शक भी नहीं किया. इस मामले में हेमंत काफी सतर्क रहता था. हेमंत गांव से बाहर कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. वह सुबह घर से निकलता था तो शाम को ही वापस आता था. इस दौरान वह मोबाइल से माधुरी से जम कर बातें करता था और उस के प्यार के सपनों को पंख लगाता था. आखिर एक दिन माधुरी ने उस से कह ही दिया कि वह हमेशा के लिए उस की होना चाहती है. हेमंत ने भी ऐसा करने का वादा कर लिया. उस ने सोचा कि वक्त आने पर वह माधुरी से पीछा छुड़ा लेगा, लेकिन माधुरी की सोच ऐसी नहीं थी. वह उसे अपना सब कुछ मान चुकी थी, इसलिए प्यार की बातों के दौरान एक दिन उस ने हेमंत से पूछ लिया, ‘‘तुम कभी मुझे धोखा तो नहीं दोगे ’’

‘‘मैं ने तुम्हें धोखा देने के लिए प्यार नहीं किया माधुरी. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’

‘‘हम शादी कब करेंगे ’’

‘‘तुम जानती हो माधुरी कि यह सब इतना आसान नहीं है. इस के लिए हमें इंतजार करना होगा.’’ हेमंत ने उसे यह कह कर टाल तो दिया, लेकिन वह यह सोच कर चिंतित जरूर हो उठा कि माधुरी उस की पत्नी बनने का पक्का इरादा बना चुकी है.

इस के बाद आए दिन माधुरी हेमंत से शादी की बातें करने लगी. एक दिन बातोंबातों में माधुरी ने उस से कहा कि राहुल उसे पसंद करता है तो यह सुन कर वह खुश हो गया, क्योंकि इस से उसे माधुरी से छुटकारा पाने की राह सूझ गई. उस ने कहा, ‘‘माधुरी, तुम राहुल से भी बातें कर लिया करो, अब वही हमारी शादी कराएगा.’’

‘‘मतलब ’’ माधुरी ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगा. मैं जैसा कह रहा हूं, तुम वैसा ही करती रहो. उस के बाद हमें शादी से कोई नहीं रोक सकेगा. तुम अपने पिता के नंबर से उस से बातें किया करो.’’ माधुरी ने ऐसा ही किया. वह पिता के नंबर से राहुल को फोन करने लगी. दरअसल राहुल सीधासादा लड़का था. उसे पता नहीं था कि वह मोहरा बन रहा है. हेमंत के कहने पर माधुरी ने राहुल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. दोनों ही जानते थे कि घर वाले उन की शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. इस का एक ही उपाय था कि भाग कर शादी की जाए. माधुरी ने अधिक दबाव डाला तो राहुल इस के लिए तैयार हो गया. हेमंत ने माधुरी को समझाया, ‘‘तुम्हें राहुल से शादी भी करनी है और पकड़ी भी जाना है. इस से सब को विश्वास हो जाएगा कि राहुल तुम्हारा प्रेमी है. फिर एक दिन हम दोनों घर से भाग कर शादी कर लेंगे, जिस का सारा शक राहुल पर जाएगा. उस के जेल जाने पर मामला अपने आप शांत हो जाएगा.’’

हेमंत दिमाग से माधुरी के साथ खेल रहा था, जबकि वह दिल की खुशी के चक्कर में अच्छाबुरा सोचे बिना डगमगा गई. वह उसे अपने इशारों पर नचा रहा था. माधुरी उस की हर बात मानती थी और हद दरजे का विश्वास करती थी. हेमंत के कहे अनुसार, माधुरी राहुल के साथ भागी भी और शादी भी कर ली. दोनों पकड़े भी गए. उन्हें पकड़वाने में हेमंत ने ही अहम भूमिका निभाई थी. उस ने माधुरी से पीछा छुड़ाने की योजना मन ही मन पहले ही तैयार कर ली थी. इतना सब तमाशा होने के बाद वह घर आई तो उस ने हेमंत को शादी की बात याद दिलाई. बदनामी, परिवार की डांटफटकार माधुरी ने सिर्फ हेमंत से शादी करने के लिए सही थी. हेमंत उसे प्यार से समझाबुझा कर पीछा छुड़ाने के बजाए उस के सपनों को और भी ऊंचाई दे कर बरगलाने का काम करता रहा. उस के कहने पर माधुरी राहुल से पिता के मोबाइल से बातें करती रही.

22 दिसंबर को हेमंत ने माधुरी से कहा था कि अगले दिन वह घर से निकल कर गांव के बाहर तय जगह पर पहुंच जाए. उसे लगता था कि माधुरी ऐसा नहीं करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. माधुरी उस के झूठे प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह उस खेत पर पहुंच गई, जहां उस ने पहुंचने को कहा था. माधुरी ने यह बात हेमंत को फोन कर के बता भी दी. वह खेत गांव के किसान डंकारी सिंह का था. हेमंत ने पहले ही तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. माधुरी उस के गले की फांस बन चुकी थी. शाम करीब 4 बजे वह खेत पर पहुंचा और माधुरी को कंबल तथा बाजार से ला कर खाना दे आया.

हेमंत ने उसे समझाने के बजाए बरगलाते हुए कहा, ‘‘माधुरी, मैं माहौल देख लूं. पहले तो राहुल को जेल भिजवाना जरूरी है. उस के बाद हम निकल चलेंगे. लेकिन तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा.’’

माधुरी ने इस कड़ाके की ठंड में वह रात अकेली खेतों में बिताई. हेमंत उस के लिए खाना पहुंचाता रहा. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह माधुरी के घर वालों के साथ खड़ा रहा और उन्हें राहुल के खिलाफ भड़काता रहा. 2 दिन बीत गए. अब माधुरी को खेत में रहना मुश्किल लगने लगा. आखिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

तीसरे दिन यानी 26 दिसंबर की शाम माधुरी हेमंत से चलने की जिद करने लगी तो प्यार जताने के बहाने उस ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. हेमंत का यह रूप देख कर माधुरी के होश उड़ गए. बचाव के लिए विरोध करते हुए उस ने हाथपैर भी चलाए, लेकिन हेमंत ने गले में लिपटा दुपट्टा पूरी ताकत से कस दिया था, जिस से छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या कर के हेमंत ने अपने और माधुरी के मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ दिया और घर आ गया. रात को वह बहाने से निकला और गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया. इस के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगा.

लोगों के शक से बचने के लिए वह अपने काम पर भी जाता और माधुरी के पिता के साथ बैठ कर माधुरी को ले कर फिक्र भी जताता. हेमंत को पूरा विश्वास था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा. उसे लगता था कि दबाव में आ कर पुलिस राहुल और उस के दोस्तों को जेल भेज देगी. उस के बाद माधुरी की खोजबीन ठंडे बस्ते में चली जाएगी. इसीलिए उस ने माधुरी के घर वालों को पुलिस अधिकारियों के यहां प्रदर्शन करने के लिए उकसाया था.

यह अलग बात थी कि एसपी सुजाता सिंह की समझ से पुलिस ने किसी दबाव में काम नहीं किया और वह पकड़ में आ गया. यह भी सच है कि अगर पुलिस बारीकी से जांच न करती तो हेमंत कभी पकड़ा न जाता. उस की फरेबी फितरत और हैवानियत ने पूरे गांव को हैरान कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. माधुरी हेमंत जैसे शातिर के झांसे में न आई होती और बिना डगमगाए अपने भविष्य को संवारने में लगी होती तो यह नौबत कभी न आती.

हेमंत जैसे लोग अपनी घिनौनी सोच को पूरी करने के लिए भोलीभाली लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं. जरूरत है, लड़कियों को ऐसे लोगों से सावधान रहने की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी

देश भर में क्रिकेट व अन्य खेलों का सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध शहर जालंधर (पंजाब) के उपनगर लाजपतनगर की कोठी नंबर 141 में प्रसिद्ध करोड़पति बिजनैसमैन जगजीत सिंह लूंबा का परिवार रहता था. उन के सीमित परिवार में 60 वर्षीय पत्नी दलजीत कौर, 42 वर्षीय बेटा अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू, बहू परमजीत कौर उर्फ पम्मी, 20 वर्षीय पोता शानजीत सिंह, मनजीत सिंह और पोती आशीषजीत कौर थीं. जगजीत लूंबा बड़े सज्जन एवं दयालु प्रवृत्ति के इंसान हैं. धनवान होने के बावजूद भी उन्हें किसी चीज का घमंड नहीं था. शहर में उन की जगजीत ऐंड कंपनी नाम से बहुत बड़ी फर्म है, जिस के अंतर्गत 2 पैट्रोल पंप, सर्विस स्टेशन और एक बहुत बड़ी मैटल ढलाई की फैक्ट्री है, जिस में कई फर्नेस लगे हैं. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू अपने पिता के साथ कारोबार संभालने में उन की मदद करता था. दलजीत कौर भी कभीकभार पति और बेटे की मदद के लिए पैट्रोल पंपों पर चली जाती थीं. तीनों बच्चे अभी पढ़ रहे थे. बड़ा पोता शानजीत सिंह एपीजे कालेज जालंधर का छात्र था. कुल मिला कर लूंबा परिवार सुखचैन से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे की बात है. दलजीत कौर अपने ड्राइंगरूम में परमजीत कौर उर्फ पम्मी और खुशवंत कौर उर्फ नीतू के साथ बैठी चाय पी रही थीं. खुशवंत कौर परमजीत कौर के पति के दोस्त बलजिंदर सिंह की पत्नी थी. दोनों के आपस में पारिवारिक संबंध थे. बलजिंदर की भी जालंधर के लक्ष्मी सिनेमा के पास मैटल ढलाई की फैक्ट्री थी.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू की शादी के बाद से परमजीत कौर और खुशवंत कौर के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इसी कारण वह हर रोज शाम के समय उस से मिलने उस के घर आ जाया करती थी. पिछले कई दिनों से दलजीत कौर की कमर में दर्द हो रहा था. शायद उम्र का तकाजा था. वह रोज शाम के ठीक 4 बजे फिजियोथैरेपी करवाने के लिए डाक्टर के यहां जाती थीं.

पर उस दिन खुशवंत कौर के आ जाने पर उन्होंने डाक्टर के यहां जाना कैंसिल कर दिया था. तीनों बच्चे शाम 4 से 6 बजे तक ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे. मतलब आम दिनों में 4 से 6 बजे तक यानी 2 घंटे पम्मी घर में अकेली होती थी. उस दिन पम्मी की बेटी ट्यूशन चली गई थी.

बेटा शान जब ट्यूशन पढ़ने जाने के लिए निकलने लगा तो पम्मी ने कहा, ‘‘बेटा शान, तुम्हारे पापा का फोन आया था. उन्होंने कहा है कि तुम अपने छोटे भाई के साथ जा कर अवतारनगर रोड पर स्थित कार की दुकान पर एजेंट से मिलो. वह आज तुम्हारे पसंद की जीप खरीदवाएंगे.’’

‘‘ठीक है मम्मी.’’ शान ने मां की बात सुन कर कहा और छोटे भाई मनजीत को ले कर कार से अवतारनगर की तरफ चला गया.  दरअसल शान कई दिनों से अपने लिए जीप खरीदवाने की जिद कर रहा था.

तीनों महिलाएं चाय की चुस्कियां लेते हुए आपस में बतिया रही थीं कि तभी डोरबेल बजी. घंटी बजते ही पम्मी ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोला तो सामने 2 आदमी खड़े थे. बिना कुछ कहे ही उन्होंने पम्मी को भीतर की ओर धक्का दे कर दरवाजा बंद कर दिया.

इस से पहले कि पम्मी कुछ समझ पाती, उन दोनों में से एक ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और पम्मी को निशाना बना कर एक के बाद एक 3 गोलियां चला दीं. पम्मी को तो चीखने का अवसर भी नहीं मिला और वह फर्श पर गिर गई. गोलियों की आवाज सुन कर दलजीत कौर ड्राइंगरूम से बाहर आईं. बहू की हालत देख कर वह चिल्लाईं, ‘‘ओए मार दित्ता जालमा.’’

उन के साथ ही खुशवंत कौर भी कमरे से बाहर आ गई थी. माजरा समझ दोनों हमलावरों पर झपट पड़ीं. उन की इस हरकत से हमलावर घबरा गए. खुशवंत कौर दोनों में से एक से गुत्थमगुत्था हो गई. दलजीत कौर दूसरे आदमी से भिड़ गईं, जिस के हाथ में पिस्तौल था.

पिस्तौल वाले हमलावर ने दलजीत कौर से खुद को छुड़ाने के लिए उन पर गोली चला दी. इस के बाद दूसरे आदमी ने खुशवंत कौर को काबू करने के लिए अपने हाथ में थामा पेचकस उस की गरदन में पूरी ताकत से घुसेड़ दिया. उसी समय पिस्तौल वाले ने उस पर भी गोली चला कर मामला खत्म कर दिया.

तीनों औरतों की हत्या कर दोनों हमलावरों ने चैन की सांस ली और ड्राइंगरूम से निकल कर लौबी में आ गए. लौबी में रखे फ्रिज के पीछे टंगी चाबियों में से उन्होंने एक चाबी उठाई और घर के पिछवाड़े आ कर कोठी के बैक साइड वाला दरवाजा खोल कर निकल गए. मात्र 6-7 मिनट में वे 3 हत्याएं कर के आराम से चले गए थे.

दूसरी ओर जीप देखने के बाद शाम सवा 5 बजे शंटू जब अपने दोनों बेटों के साथ कोठी पर आया तो मुख्य दरवाजा भीतर से बंद मिला. काफी खटखटाने के बाद भी जब अंदर से कोई आहट नहीं सुनाई दी तो किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो कर बापबेटों ने धक्के मार कर दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. शंटू चीखने लगे, ‘‘मार गए…मार गए… बीजी को मार गए.’’

बच्चे भी मदद के लिए उन के साथ चीखने लगे थे. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी जमा हो गए. उन में खुशवंत कौर का बेटा अर्शदीप भी था. मां की लाश देख कर वह भी जोरजोर से रोने लगा. पड़ोसियों की मदद से तीनों को नजदीक के प्राइवेट अस्पताल ले गया. पौश कालोनी में दिनदहाड़े हुई 3 हत्याओं की खबर जंगल में लगी आग की तरह शहर भर में फैल गई. लोगों में दहशत भर गया. कोई इसे आंतकवादी घटना बता रहा था तो कोई आपसी रंजिश. किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. डा. अमनप्रीत सिंह ने मुआयना करने के बाद दलजीत कौर और खुशवंत कौर को मृत घोषित कर दिया. पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से भी पुलिस को सूचना दे दी गई.

परमजीत कौर की हालत नाजुक थी. उस के दिल की धड़कनें काफी धीमी थीं. उस की जान बचाने के लिए डाक्टरों ने उसे वेंटीलेटर पर रख दिया.

खबर मिलते ही थाना डिवीजन नंबर-4 के थानाप्रभारी प्रेम सिंह और थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी गुरवचन सिंह दलबल सहित घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाजपतनगर इलाका पहले थाना डिवीजन नंबर-6 में था, पर बाद में उसे थाना डिवीजन नंबर-4 में शामिल कर दिया गया. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस को पता चला कि सब लोग अस्पताल गए हैं तो थानाप्रभारी ने कोठी पर 2 सिपाही तैनात कर इंसपेक्टर प्रेम सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर परमजीत को बचाने की कोशिश कर रहे थे पर उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. फिर रात 9 बजे के करीब उस ने दम तोड़ दिया.

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.

शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.

रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’

रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.

शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.

दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.

रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’

‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.

जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.

सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.

शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’

‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’

‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.

‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’

‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.

अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.

उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.

शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.

शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.

21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.

विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नन्हा हत्यारा, जिसने पूरा पंजाब हिला दिया

संगीता 16 जनवरी, 2017 की शाम को नौकरी से घर पहुंची तो उस के दोनों बच्चे चारपाई पर बैठे रो रहे थे. डेढ़ साल की बेटी काजल जोरजोर से रो रही थी, जबकि 4 साल का राहुल सिसकते हुए उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था. संगीता ने काजल को उठा कर सीने से लगाया और दूसरे हाथ से राहुल की आंखें पोंछते हुए 8 साल के बेटे दीपू को आवाज दी. दीपू नहीं बोला तो संगीता काजल को गोद में लिए बड़बड़ाते हुए घर के बाहर आ गई. उस ने गली में खेल रहे बच्चों से दीपू के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि आज वह उन्हें दिखाई नहीं दिया. खीझ कर वह लौट आई और बड़बड़ाते हुए घर के कामों में लग गई. साढ़े 7 बजे तक घर के काम निपटा कर संगीता खाली हुई तो एक बार फिर दीपू की तलाश में निकल पड़ी.

काफी तलाश के बाद भी जब उस का कुछ पता नहीं चला तो उसे चिंता हुई. अब तक अंधेरा भी घिर आया था. ऐसे में दीपू का न मिलना उसे बेचैन करने लगा था. संगीता घर के बाहर खड़ी सोच रही थी कि अब वह दीपू को कहां ढूंढे, तभी सामने से पति दिलीप कुमार को आते देख कर उसे थोड़ी राहत महसूस हुई. पत्नी के चेहरे पर परेशानी के बादल मंडराते देख दिलीप ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों खड़ी हो?’’

‘‘दीपू पता नहीं कहां चला गया है. मैं ने उसे सब जगह तलाश लिया है, उस का कुछ पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है,’’ दिलीप ने पत्नी को सांत्वना दी, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं देखता हूं वह कहां है.’’

कह कर दिलीप ने दीपू की तलाश शुरू कर दी. दीपू के गायब होने की जानकारी पड़ोसियों को हुई तो वे भी उस के साथ दीपू की तलाश में जुट गए. आधी रात तक तलाश करने पर भी जब दीपू का कुछ पता जब नहीं चला तो थकहार कर सभी अपनेअपने घर चले गए. दिलीप और संगीता ने वह रात आंखों में काटी.

अगले दिन सवेरा होते ही दिलीप और संगीता नौकरी पर जाने के बजाए दीपू की तलाश में जुट गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दीपू कहां चला गया? दीपू एक समझदार बच्चा था. भले ही परिस्थितियों ने उसे स्कूल का मुंह नहीं देखने दिया था, पर वह अपनी जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रहा था.

मातापिता और 15 साल के बड़े भाई दीपक कुमार के नौकरी पर चले जाने के बाद अपने 4 साल के छोटे भाई राहुल और डेढ़ साल की बहन काजल की देखभाल वही करता था. आज तक उस ने शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था. लेकिन उस दिन वह पता नहीं कहां चला गया था. जब दीपू का कुछ पता नहीं चला तो दिलीप और संगीता ने उस के लापता होने की सूचना थाना पुलिस को दे दी थी.

इस तरह के मामलों में जैसा होता है, उसी तरह पुलिस ने उन्हें 24 घंटे बाद आने को कहा था. उसी दिन 4 बजे शाम को एक मजदूर ने एक खाली प्लौट में कुछ कुत्तों को आपस में लड़ते देखा. कुत्ते किसी चीज को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. मजदूर ने नजदीक जा कर देखा तो कुत्ते प्लास्टिक के कट्टे को ले कर छीनाझपटी कर रहे थे. वहां 2 कट्टे पड़े थे. कुत्तों को भगा कर उस ने जिज्ञासावश एक कट्टे का मुंह खोला तो उस में जो देखा, डर के मारे पीछे हट गया. कट्टे में मानव अंग थे.

उस ने यह बात मोहल्ले वालों को बताई तो किसी ने इस की सूचना स्थानीय थाना दुगड़ी पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही ड्यूटी अफसर जतिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल प्रीतपाल सिंह और कांस्टेबल प्रभजोत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस वालों ने प्लास्टिक के कट्टों को खोल कर देखा तो उन में किसी बच्चे की लाश के टुकड़े भरे थे. किसी ने बेरहमी से बच्चे के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर के दोनों कट्टों में भर कर वहां फेंक दिए थे.

बच्चे की लाश मिलने की खबर मोहल्ले में फैली तो लाश देखने दिलीप और संगीता भी वहां पहुंच गए. लाश देखते ही संगीता और दिलीप दहाड़े मार कर रोने लगे. क्योंकि लाश उन के बेटे दीपू की थी. पतिपत्नी दीपू की लाश के टुकड़ों से लिपट कर रो रहे थे. एसआई जतिंदर सिंह ने समझाबुझा कर दोनों को वहां से अलग किया और घटना की सूचना अधिकारियों तथा क्राइम टीम को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना दुगड़ी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर प्रेम सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल घटनास्थल पर आ गए थे. दीपू की लाश के टुकड़े मिलने से मोहल्ले वालों में बड़ा रोष था. लोगों की नाराजगी को देखते हुए प्रेम सिंह ने सारी काररवाई पूरी कर के पोस्टमार्टम के लिए लाश के टुकड़ों को सिविल अस्पताल भिजवा दिया था.

इस के बाद मृतक के पिता दिलीप की ओर से थाना दुगड़ी में दीपू की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया था.

लुधियाना के सिविल अस्पताल में 17 जनवरी को दीपू की लाश के टुकड़ों का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्चे का दिल गायब है. इस खबर से लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. लेकिन पुलिस लोगों की बातों पर ध्यान न दे कर अपने हिसाब से काम में जुटी रही.

पूछताछ में दिलीप ने बताया था कि वह उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना बिहार के गांव छेदा का रहने वाला था. रोजीरोजगार की तलाश में वह कई सालों पहले लुधियाना  आ गया था. लुधियाना में वह थाना दुगड़ी की शेख कालोनी के सूआ रोड पर किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था.

उस ने 5 साल पहले संगीता से विवाह किया था. संगीता तलाकशुदा थी. पहले पति ननकूराम से उसे 2 बेटे थे, जो दिलीप से शादी के समय 9 साल और 3 साल के थे. दिलीप से भी उसे 2 बच्चे राहुल और बेटी काजल हुई थी. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते थे. संगीता का बड़ा बेटा दीपक, जो अब 15 साल का था, वह भी नौकरी करता था. सब के नौकरी पर चले जाने के बाद 8 साल का दीपू अपने छोटे भाई और बहन की देखभाल करता था.

दिलीप के बयान के आधार पर प्रेम सिंह ने एएसआई राम सिंह और एसआई रामपाल के नेतृत्व में एक टीम उत्तर प्रदेश के उन्नाव संगीता के पूर्वपति ननकूराम से पूछताछ के लिए भेजी. लेकिन पूछताछ में ननकूराम निर्दोष पाया गया. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान इलाके में ही लगा दिया.

पुलिस हत्यारे के बारे में सोच रही थी कि मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल ने फोन द्वारा इंसपेक्टर प्रेम सिंह को सूचना दी कि उन के स्कूल के ग्राउंड में एक जगह मानव दिल पड़ा है. सूचना मिलते ही प्रेम सिंह और हरपाल सिंह होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल पहुंच गए और दिल बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

सिविल अस्पताल के सीनियर डाक्टरों ने दिल की जांच कर बताया कि बरामद दिल मृतक बच्चे दीपू का था. इस तरह दीपू के सभी अंग पूरे हो गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दीपू की गला दबा कर हत्या की गई थी. उस के बाद किसी ऐसे हथियार से उस के शरीर के टुकड़े किए गए थे, जिस की धार बहुत तेज नहीं थी.

पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने का कोई सूत्र नहीं मिला तो उस ने अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया. इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था. तभी किसी मुखबिर ने प्रेम सिंह को बताया कि 16 जनवरी की दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपू मोहल्ले के ही रमेश (बदला हुआ नाम) के साथ दिखाई दिया था.

शक के आधार पर प्रेम सिंह रमेश को थाने ले आए. उस से पूछताछ की जाने लगी तो वह पुलिस को बहकाने लगा. लेकिन उस की बातों से पुलिस को यकीन हो गया कि भले ही यह बच्चा है, लेकिन है यह घुटा हुआ. मजबूर हो कर प्रेम सिंह और हरपाल सिंह ने जब थोड़ी सख्ती की तो रमेश ने अपना अपराध स्वीकार कर के सच्चाई उगल दी कि उसी ने दीपू की हत्या कर उस की लाश के टुकड़े कर खाली प्लौट में फेंक आया था.

रमेश द्वारा अपराध स्वीकार करने पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. खतरनाक से खतरनाक हादसे और वारदातें देखने वाले पुलिस अफसर भी सिहर उठे. क्योंकि हत्यारा मात्र 13 साल का था. एडीसीपी क्राइम बलकार सिंह और एसीपी योगीराज के सामने प्रेम सिंह ने जब रमेश से विस्तारपूर्वक पूछताछ की तो किसी हौरर फिल्म की कहानी की तरह रमेश ने जो कहानी सुनाई, वह इस तरह थी—

रमेश मृतक दीपू के घर से 3 घर छोड़ कर अपने मांबाप के साथ किराए के मकान में रहता था. वह मातानगर के होली सीनियर सैकेंडरी स्कूल में 8वीं में पढ़ता था. लेकिन कुछ दिनों पहले उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. दरअसल रमेश बचपन से ही अपराधी प्रवृत्ति का जिद्दी लड़का था.

गरीब मातापिता गुजरबसर के लिए सुबह ही काम पर चले जाते थे. उस के बाद रमेश घर में अकेला ही रह जाता था. मांबाप मुश्किल से गुजरबसर कर रहे थे, इस के बावजूद बेटे का भविष्य संवारने के लिए उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे थे लेकिन रमेश स्कूल न जा कर इधरउधर आवारागर्दी किया करता था.

कमजोर और छोटे बच्चों पर धौंस जमाना, दादागिरी करना और उन से पैसे तथा खानेपीने की चीजें छीनना उस की आदत बन गई थी. यही नहीं, वह पढ़ने वाले बच्चों से मारपीट करता था और उन की किताबें चोरी कर के कबाड़ी को बेच कर मौज करता था. इसी वजह से क्लास टीचर ने सब के सामने पिटाई कर के उसे स्कूल से निकाल दिया था. स्कूल और क्लास टीचर से बदला लेने के लिए ही उस ने दिल  दहला देने वाला यह कांड कर डाला था.

दरअसल, स्कूल से निकाले जाने के बाद वह क्लास टीचर को सबक सिखाना चाहता था. रमेश टीवी पर आने वाले आपराधिक सीरियल खूब देखता था. इन्हीं धारावाहिकों से आइडिया ले कर वह कम उम्र के बच्चे की तलाश में जुट गया. किसी दिन उस की नजर गली में खेल रहे दीपू पर पड़ी तो उसे लगा कि इस बच्चे से उस के 2 काम हो सकते हैं.

योजना बना कर रमेश बाजार से पतंग ले आया और मोहल्ले वालों की नजर बचा कर दीपू के घर पहुंच गया. उसे पता ही था कि दीपू का भाई और मांबाप काम पर चले जाते हैं, उस के बाद वह घर पर अकेला ही रहता है. दीपू के घर जा कर उसे पतंग दिखाते हुए उस ने कहा, ‘‘देख मेरे पास ढेर सारी पतंगें हैं. चल मेरे घर की छत पर चल कर पतंग उड़ाते हैं.’’

दीपू छोटे भाई और बहन को छोड़ कर जाना तो नहीं चाहता था, पर पतंग उड़ाने के लालच में वह रमेश के साथ चला गया. अपने घर आ कर रमेश ने कहा, ‘‘चल, पहले कुछ खा लेते हैं, उस के बाद छत पर चल कर पतंग उड़ाएंगे.’’

इस तरह रमेश दीपू को अपने कमरे में ले जा कर अंदर से कुंडी बंद कर ली. इस के बाद उसे उठा कर पलंग पर पटक दिया. अचानक हुए इस हमले से दीपू घबरा गया और खुद को रमेश के चंगुल से छुड़ाने के लिए हाथपैर चलाने लगा. दीपू छोटा और उस से कमजोर था, इसलिए उस का मुकाबला नहीं कर सका. उस ने रमेश को 2-3 जगह दांतों से काटा भी. लेकिन रमेश उस की छाती पर सवार हो गया और उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

दीपू की हत्या करने के बाद रमेश ने लाश को पलंग से नीचे उतारा और घसीट कर बाथरूम में ले गया. इस के बाद घर में रखी खुरपी से उस के शरीर के टुकड़े कर प्लास्टिक के कट्टे में भर दिए. दिल निकाल कर उस ने अलग पौलीथिन में रख लिया. जब गली में कोई नहीं दिखाई दिया तो लाश के टुकड़ों वाले कट्टे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक आया.

इस के बाद बाथरूम को साफ कर दिया. अब बची दिल वाली पौलीथिन, जिसे ले कर जा कर वह स्कूल के ग्राउंड में फेंक आया. जिस समय रमेश अपने घर पहुंचा, सभी दीपू की तलाश कर रहे थे. वह भी सब के साथ दीपू की तलाश करने लगा.

20 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह ने रमेश को हत्या के अपराध में बच्चों की अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पूछताछ में बताया कि उस ने दिल स्कूल में इसलिए फेंका था कि अगर वहां दिल मिलेगा तो लोगों को लगेगा कि स्कूल में बच्चों के अंग निकाल कर बेचा जाता है. बाद में वह क्लासटीचर के बारे में अफवाह फैला देता कि वह इस तरह के काम करता है. इस तरह स्कूल भी बदनाम हो जाता और क्लासटीचर भी.

इस के अलावा रमेश दीपू के अपहरण की बात कह कर दिलीप से फिरौती वसूलना चाहता था. लेकिन पुलिस का दबाव बढ़ने की वजह से वह फिरौती के लिए दिलीप को फोन नहीं कर सका था. पुलिस ने रमेश की निशानदेही पर घर से खुरपी बरामद कर ली थी. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने उसे फिर से बच्चों की अदालत में पेश किया था, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया था.

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