बाप ने बेटी के जिस्म को देखा और फिर हवस में अंधा होकर किया ये काम

अंबाला शहर में परिवार के लोग हरिद्वार गंगा स्‍नान के लिए गए थे और घर में पिता-पुत्री रह गए थे. घर में बेटी को अकेली देख पिता की नीयत खराब हो गई और उसने उसे दुष्‍कर्म का शिकार बना डाला. परिजन लौटकर आए तो बेटी ने मां से पेट दर्द की शिकायत की. इसके बाद उसे डॉक्‍टर को दिखाया गया तो सारा मामला उजागर हो गया. अब अदालत ने दुष्‍कर्मी पिता को उम्रकैद की सजा सुनाई है.

घर में बेटी को अकेली देख पिता ने उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला. आरोप है कि बेटी ने विरोध किया तो उसने जान से मारने की धमकी दी. उसने बेटी को इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताने को कहा. परिवार के लोग हरिद्वार से लौटे तो लड़की को असहज पाया. पूछताछ करने पर लड़की ने मां को पेट में दर्द होने की बात कही.

इसके बाद वह उसे डॉक्टर के पास ले गई तो सारे मामले का खुलासा हो गया और लड़की ने मां को पिता की करतूत के बारे में बताया. इसके बाद मां ने आवाज उठाते हुए शहर के कोतवाली थाने में पति के खिलाफ मामला दर्ज करवाया. केस दर्ज करने के बाद पुलिस ने आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया. एक साल दो माह चली सुनवाई के दौरान अदालत में 14 लोगों की गवाही हुई.

एडिशनल सेशन जज नरेंद्र सूरा की अदालत ने पिता को उम्रकैद के संग तीन हजार रुपये जुर्माना भी किया है. सुनवाई के दौरान पीड़िता लड़की और मां ने अपने बयान भी बदल लिए, लेकिन दोषी को बचा न सके.

बदला लेने की ये थी अजीब सनक

20 दिसंबर, 2016 को पूरे 3 साल बाद हरप्रीत कौर तेजाब कांड के नाम से मशहूर मामले का फैसला सुनाया जाना था, इसलिए लुधियाना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री संदीप कुमार सिंगला की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी. इस की वजह यह थी कि अपने समय का यह काफी चर्चित मामला था. इस की वजह यह थी कि यह तेजाब कांड उस समय घटित हुआ था, जिस दिन हरप्रीत कौर की शादी होने वाली थी. दुख की बात यह थी कि इस मामले में दोष किसी और का था, दुश्मनी किसी और से थी और सजा भुगतनी पड़ी थी निर्दोष हरप्रीत कौर को. तमाम पीड़ा सहने के बाद उस की असमय मौत भी हो गई थी. इस मामले में क्या सजा सुनाई गई, उस से पहले आइए इस पूरे मामले के बारे में जान लें.

पंजाब के जिला बरनाला के ढनोला रोड पर स्थित है बस्ती फत्तहनगर. जसवंत सिंह यहीं के रहने वाले थे. उन्होंने अपने घर के एक हिस्से में सैलून खोल रखा था. उसी की कमाई से परिवार का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी.

बेटी पढ़लिख कर शादी लायक हुई तो जसवंत सिंह ने उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. लुधियाना में उन की बहन रहती थी भोली. उसी के माध्यम से हरप्रीत कौर की शादी की बात कोलकाता के रहने वाले रंजीत  सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली.

रंजीत सिंह मूलरूप से दोराहा लुधियाना के रहने वाले थे. लेकिन अपनी जवानी में वह कोलकाता जा कर बस गए थे. वहां उन का होटल एंड रेस्टोरैंट का बहुत बड़ा कारोबार था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी.

वह बहू के रूप में गरीब और शरीफ परिवार की प्रतिभाशाली लड़की चाहते थे. इसीलिए उन्होंने ही नहीं, उन के बेटे हरप्रीत सिंह ने भी हरप्रीत कौर को देख कर पसंद कर लिया था. यह मार्च, 2013 की बात थी. बातचीत के बाद शादी की तारीख 7 दिसंबर, 2013 रख दी गई थी.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था. शादी तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह को फोन कर के धमकी दी जाने लगी कि वह यह रिश्ता तोड़ दें अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहें. जसवंत सिंह ने यह बात रंजीत सिंह को बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश हैं, शायद वही फोन कर के आप को धमका रहे हैं. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमारी तरफ से कोई बात नहीं है. आप शादी की तैयारी करें.’’

इस के बाद भी जसवंत सिंह के पास धमकी भरे फोन आते रहे. कुछ अंजान युवकों ने बरनाला स्थित उन के घर आ कर भी शादी तोड़ने को कहा, लेकिन जसवंत सिंह परवाह किए बिना बेटी की शादी की तैयारी करते रहे.

शादी की तारीख नजदीक आ गई तो जसवंत सिंह परिवार सहित लुधियाना के जनता  नगर की गली नंबर 16 में रहने वाले अपने रिश्तेदार रजिंदर सिंह बगा के घर आ गए. दूसरी ओर रंजीत सिंह का परिवार भी बेटे की शादी के लिए कोलकाता से लुधियाना आ गया था. विवाह के लिए उन्होंने परवोवाल रोड स्थित शहर का सब से महंगा स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा रखा था.

7 दिसंबर, 2013 को शादी वाले दिन हरप्रीत कौर अपनी मां, पिता और 2 सहेलियों के साथ सजने के लिए सुबह 7 बजे कार से सराभानगर स्थित लैक्मे ब्यूटी सैलून॒पहुंची. मातापिता बाहर कार में ही बैठे रहे, जबकि हरप्रीत कौर सहेलियों के साथ सैलून में चली गई. चूंकि सैलून पहले से ही बुक कराया गया था, इसलिए उस के पहुंचते ही उस का मेकअप करना शुरू कर दिया गया.

ठीक साढ़े 7 बजे एक युवक हाथ में प्लास्टिक का डिब्बा लिए सैलून में दाखिल हुआ. उस ने अपना चेहरा ढक रखा था. सैलून में दाखिल होते ही उस ने हरप्रीत कौर को इस तरह पुकारा, जैसे वह उस का परिचित हो. हरप्रीत कौर के बोलते ही वह वहां गया, जहां हरप्रीत कौर का मेकअप हो रहा था. सैलून में काम करने वाले कर्मचारियों ने उसे अंदर आते देखा जरूर था, पर किसी ने उसे रोका नहीं. क्योंकि युवक जिस आत्मविश्वास के साथ अंदर आया था, सब ने यही समझा कि वह दुलहन का मेकअप करा रही हरप्रीत कौर का कोई रिश्तेदार है.

हरप्रीत कौर के पास पहुंच कर युवक ने थोड़ा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुझ से ही नहीं, तेरे घर वालों से भी कितनी बार कहा था न कि मैं यह शादी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद उस ने प्लास्टिक का डिब्बा खोला, जिस में वह तेजाब ले कर आया था. उस ने डिब्बे का सारा तेजाब हरप्रीत कौर के ऊपर उडे़ल दिया. इसी के साथ वह एक कागज फेंक कर जिस तरह तेजी से आया था उस से भी ज्यादा तेजी से बाहर निकल गया. तेजाब ऊपर पड़ते ही हरप्रीत चीखनेचिल्लाने लगी. उस के चीखनेचिल्लाने से वहां काम करने वाले कर्मचारियों को जब घटना का भान हुआ तो सभी डर के मारे चीखनेचिल्लाने लगे. शोरशराबा सुन कर सैलून के मैनेजर संजीव गोयल तुरंत आ गए. वह उस युवक के पीछे दौड़े भी, पर उन के बाहर आने तक वह बाहर खड़ी कार में सवार हो भाग गया था.

कार में शायद कुछ और लोग भी बैठे थे. हरप्रीत कौर के अलावा उस के बगल वाली सीट पर मेकअप करवा रही अमृतपाल कौर तथा 2 ब्यूटीशियनों पर भी तेजाब पड़ गया था. हरप्रीत कौर की हालत सब से ज्यादा खराब थी. मैनेजर संजीव गोयल ने थाना सराभानगर पुलिस को घटना की सूचना देने के साथ हरप्रीत कौर सहित सभी घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया.

प्राथमिक उपचार के बाद अन्य सभी घायलों को तो छुट्टी दे दी गई थी, लेकिन हरप्रीत कौर का पूरा चेहरा एवं छाती बुरी तरह जल गई थी, इसलिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया था.

मैनेजर संजीव गोयल, मेकअप करवाने वाली अमृतपाल कौर, 2 ब्यूटीशियनों के अलावा हरप्रीत कौर के मातापिता इस घटना के चश्मदीद थे. हरप्रीत कौर के पिता जसवंत सिंह की ओर से थाना सराभानगर में इस तेजाब कांड का मुकदमा दर्ज हुआ. घटनास्थल के निरीक्षण में इंसपेक्टर हरपाल सिंह ग्रेवाल को सैलून से युवक द्वारा फेंका गया कागज मिला तो पता चला कि वह प्रेमपत्र था.

उन्होंने सैलून के अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज कब्जे में ले ली थी. बाद में जांच में पता चला कि युवक ने सैलून में जो प्रेमपत्र फेंका था, वह पुलिस की जांच को गुमराह करने के लिए फेंका था. हरप्रीत कौर का किसी से कोई प्रेमसंबंध नहीं था.

जब स्पष्ट हो गया कि मामला प्रेमसंबंधों का या एकतरफा प्रेम का नहीं था तो पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर दुलहन पर तेजाब क्यों फेंका गया, वह भी फेरों से मात्र एक घंटे पहले? यह बात मामले की जांच कर रहे हरपाल सिंह ग्रेवाल की समझ में नहीं आ रही थी. हरप्रीत कौर बयान देने की स्थिति में नहीं थी. तेजाब पड़ने के बाद वह बेहोश हुई तो फिर होश में नहीं आई. उस की हालत दिनोंदिन नाजुक ही होती जा रही थी.

जब डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने हरप्रीत कौर के इलाज से हाथ खड़े कर दिए तो लुधियाना के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निर्मल सिंह ढिल्लो और इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने खुद और कुछ पुलिस फंड से मदद कर के इलाज के लिए दिसंबर, 2013 को विशेष विमान द्वारा उसे मुंबई भिजवाया.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने रंजीत सिंह और उन के बेटे हरप्रीत सिंह, जिस से हरप्रीत कौर की शादी हो रही थी, दोनों लोगों से विस्तार से पूछताछ करते हुए उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में गहराई से छानबीन की तो आखिर पूरा मामला उन की समझ में आ गया.

इस के बाद अपने अधिकारियों से रायमशविरा कर के उन्होंने सबइंसपेक्टर मनजीत सिंह को साथ ले कर एक पुलिस टीम बनाई और पटियाला के रंजीतनगर स्थित एक कोठी पर छापा मारा. उन के छापा मारने पर भागने के लिए एक युवक कोठी की छत से कूदा, जिस से उस की एक टांग टूट गई और वह पकड़ा गया. उस का नाम पलविंदर सिंह उर्फ पवन था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के अलावा 30-32 साल की एक महिला को गिरफ्तार किया गया, जिस का नाम अमृतपाल कौर था.

दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ला कर पूछताछ की गई तो पता चला कि इस तेजाब कांड की मुख्य अभियुक्ता अमृतपाल कौर थी, जो हरप्रीत सिंह की भाभी थी.

उस का हरप्रीत सिंह के भाई से तलाक हो चुका था. उसी ने अपने ससुर रंजीत सिंह और उन के घर वालों से बदला लेने के लिए हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाया  था. अमृतपाल कौर से पूछताछ में इस तेजाब कांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

अमृतपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ हनी उर्फ परी, लुधियाना के दुगड़ी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. आधुनिक विचारों वाली अमृतपाल कौर अपनी मरजी से जिंदगी जीने में विश्वास करती थी, जिस से उस की तमाम लड़कों से दोस्ती हो गई थी. जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की होने की वजह से मांबाप भी उसे नहीं रोक पाए.

सन 2003 में रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से अमृतपाल कौर का विवाह हो गया तो वह कोलकाता आ गई थी. ससुराल आ कर जब उसे पता चला कि तरनजीत सिंह नपुंसक है तो वह सन्न रह गई. पति का साथ न मिलने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई.

इस के बाद घर में क्लेश शुरू हो गया. बातबात पर अमृतपाल कौर ससुर और पति को ताने देने लगी. धीरेधीरे वह परिवार पर हावी होती गई. शारीरिक कमजोरी और समाज में बदनामी के डर से तरनजीत सिंह ही नहीं, घर का कोई भी सदस्य उस के सामने कुछ नहीं कह पाता था.

इस क्लेश से बचने के लिए तरनजीत सिंह अमृतपाल कौर को ले कर विदेश चला गया, जहां उस ने जुड़वा बेटों अनंत और मिरर को जन्म दिया. बच्चों के जन्म के बाद दोनों कोलकाता आ गए. विदेश से लौटने के बाद घर में क्लेश कम होने के बजाए इतना बढ़ गया कि अमृतपाल कौर ने दोनों बेटों को पति को सौंप कर उस से तलाक ले लिया. इस तलाक में अमृतपाल कौर ने 70 लाख रुपए नकद और लुधियाना के दोहरा में एक प्लौट लिया था.

तलाक के बाद अमृतपाल कौर  पूरी तरह से आजाद हो गई. पैसों की उस के पास कमी नहीं थी. वह अपनी मरजी की मालिक थी. सन 2013 में उस ने एक एनआरआई अमेंदर सिंह के शादी कर ली. वह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के कुछ दिनों बाद वह लंदन चला गया तो अमृतपाल कौर मायके में रहने लगी. पति के विदेश जाने के बाद उस की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. वह आपराधिक प्रवृति का था, जिस की वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था.

अमृतपाल कौर को सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने उस से नजदीकियां बढ़ाईं. पलविंदर से उस के संबंध बन गए तो वह उस के इशारे पर नाचने लगा. अमृतपाल कौर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रही थी. लेकिन तलाक के बाद उस की ससुराल वालों ने चैन की सांस ली थी.

अमृतपाल कौर को पता चला कि उस के पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत सिंह की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की हरप्रीत कौर से हो रही है तो उसे जैसे सनक सी चढ़ गई कि कुछ भी हो, वह उस परिवार के किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देगी. उस ने तुरंत अपने ससुर रंजीत सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘रंजीत सिंह, तुम कान खोल कर सुन लो, मैं तुम्हारे घर में अब कभी शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’

रंजीत सिंह ने उस की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और वह बेटे की शादी की तैयारी करते रहे. अमृतपाल कौर के पास ना तो शैतानी दिमाग की कभी थी और ना ही दौलत की. उस ने अपने मन की बात पलविंदर को बता कर उस के साथ योजना बनाई गई कि कोलकाता जा कर रंजीत सिंह के परिवार का कुछ ऐसा अनिष्ट किया जाए कि शादी करने की हिम्मत न कर सके.

पर उन के लिए यह काम इतना आसान नहीं था. इसलिए अमृतपाल कौर ने विचार किया कि जिस लड़की के साथ हरप्रीत सिंह की शादी होने वाली है, अगर उस लड़की की सुंदरता खराब कर दी जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी. पलविंदर को भी उस का यह विचार उचित लगा. उस ने कहा कि अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाए तो शादी अपने आप रुक जाएगी.

इस योजना पर सहमति बन गई तो अमृतपाल कौर ने यह काम करने के लिए पलविंदर को 10 लाख रुपए दिए. पलविंदर ने अपनी इस योजना में अपने चचेरे भाई सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी को भी शामिल कर लिया. यह काम सिर्फ 2 लोगों से नहीं हो सकता था, इसलिए सन्नी ने अपने दोस्तों, राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत सिंह और गुरसेवक को शामिल कर लिया. पलविंदर और सन्नी हरप्रीत कौर पर तेजाब डालने के लिए 3 बार बरनाला स्थित उस के घर गए, पर वहां मौका नहीं मिला.

इस के बाद अमृतपाल कौर ने पलविंदर को लुधियाना बुला लिया. क्योंकि उसे पता चल गया था कि 5 दिसंबर को हरप्रीत कौर का परिवार लुधियाना आ गया है. 6 दिसंबर, 2013 को पलविंदर भी अपने साथियों के साथ लुधियाना आ गया था. उस ने अपने फूफा की मारुति जेन कार यह कह कर मांग ली थी कि उसे अपने दोस्त की शादी में जाना है. इसी कार में पलविंदर ने फरजी नंबर पीबी11जेड-9090 की प्लेट लगा कर घटना को अंजाम दिया था.

पलविंदर सिंह ने तेजाब पटियाला के एक मोटर मैकेनिक अश्विनी कुमार से लिया था. अमृतपाल कौर ने अपने सूत्रों से पता कर लिया था कि हरप्रीत कौर सजने के लिए लैक्मे ब्यूटी सैलून जाएगी. इसलिए पलविंदर ने एक दिन पहले रेकी कर के हरप्रीत कौर पर तेजाब फेंक कर भागने का रास्ता देख लिया था.

अमृतपाल कौर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने तेजाब कांड से जुड़े अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के 9 दिसंबर, 2013 को ड्यूटी मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर के सबूत जुटाने के लिए 3 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में सारे सबूत जुटा कर सभी अभियुक्तों को पुन: अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

मुंबई के नैशनल बर्न अस्पताल में भरती हरप्रीत कौर ने 27 दिसंबर की सुबह 5 बजे दम तोड़ दिया था. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के हरपाल सिंह उस की लाश विमान द्वारा मुंबई से दिल्ली और वहां से सड़क मार्ग से बरनाला ले आए थे.

पुलिस ने इस मामले में अमृतपाल कौर उर्फ परी, परविंदर सिंह उर्फ पवन, सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार प्रेमी, गुरुसेवक सिंह, अश्विनी कुमार और जसप्रीत सिंह को अभियुक्त बनाया था. इस मामले में लैक्मे ब्यूटी सैलून की ब्यूटीशियनों एवं मैनेजर संजीव गोयल सहित 38 गवाह थे. घटनास्थल से बरामद सीसीटीवी फुटेज भी अदालत में पेश की गई थी.

अभियोजन पक्ष की ओर से सीनियर पब्लिक प्रौसीक्यूटर एस.एम. हैदर ने जबरदस्त तरीके से दलीलें देते हुए माननीय जज से सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की थी. जबकि बचाव पक्ष के वकील ने सजा में नरमी बरतने का आग्रह किया था. लंबी सुनवाई और बहस के बाद अदालत ने 6 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए 20 दिसंबर, 2016 को सजा की तारीख तय कर दी थी.

तय तारीख पर अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप कुमार सिंगला ने अपना फैसला सुनाया. माननीय न्यायाधीश ने अमृतपाल कौर और पलविंदर सिंह उर्फ पवन के इस कृत्य को अमानवीय मानते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

लेकिन उन्होंने इस सजा में एक शर्त यह रख दी थी कि दोनों दोषी पूरे 25 साल तक जेल में रहेंगे. इस के अलावा उन पर 9 लाख 60 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया था.

जुरमाने की इस राशि से 6 लाख रुपए मृतका हरप्रीत कौर के घर वालों को दिए जाएंगे. 1 लाख रुपया ब्यूटीपार्लर में घायल अमृतपाल कौर को तथा 50-50 हजार रुपए ब्यूटीपार्लर की घायल दोनों ब्यूटीशियनों को दिए जाएंगे.

इस तेजाब कांड में शामिल अन्य अभियुक्तों सनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, राकेश कुमार, गुरुसेवक सिंह और जसप्रीत सिंह को भी दोषी करार देते हुए अदालत ने इन्हें उम्रकैद की सजा के साथ सवासवा लाख रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. अभियुक्त अश्विनी कुमार को सबूतों के अभाव में दोष मुक्त कर दिया गया था.

इन अभियुक्तों की वजह से एक बेकसूर को उस समय मौत के मुंह में जाना पड़ा, जब वह अपने जीवन के हसीन पल जीने जा रही थी. इसलिए इन्हें जो सजा मिली, शायद वह कम ही कही जाएगी.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी

दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढि़या नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं. इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.

‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई.

गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा.

गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए.

कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके.

गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया.

नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.

बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.

उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.

कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.

सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.

सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.

कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी  बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.

अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.

उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.

अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई.

सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.

लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे.

15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.

अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया.

जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.

कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.

पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.

कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है.

पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.

टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.

पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

इस लड़के ने रेलवे को लगाया करोड़ों का चूना

12वीं जमात में पढ़ने वाले हामिद अशरफ नाम के एक 19 साला लड़के ने 2 सालों में भारतीय रेल को करोड़ों रुपए का चूना लगाया और रेलवे अफसरों को इस की भनक तक नहीं लगी. मामले का खुलासा तब हुआ, जब रेलवे विजिलैंस टीम ने इस की शिकायत बेंगलुरु व लखनऊ की सीबीआई टीम से की. पता चला कि रेल का टिकट बुक करने वाली आईआरसीटीसी वैबसाइट का क्लोन तैयार कर देशभर की कई जगहों से फर्जी तरीके से तत्काल टिकट की बुकिंग की जा रही थी.

इस मामले के खुलासे के लिए रेलवे विजिलैंस व सीबीआई टीम द्वारा पिछले 2 सालों से कोशिश की जा रही थी कि अचानक सीबीआई के हाथ एक क्लू लगा कि देशभर में तकरीबन 5 हजार एजेंटों के जरीए आईआरसीटीसी की वैबसाइट को हैक कर तत्काल टिकटों के कोटे में सेंध लगा दी गई थी और इस का संचालन उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से किया जा रहा था.

इस के बाद बेंगलुरु की सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर टी. राजशेखर और लखनऊ सीबीआई टीम के इंस्पैक्टर रमेश पांडेय की टीम रेलवे विजिलैंस के साथ बस्ती पहुंची और पुरानी बस्ती के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र के साथ मिल कर 3 दिनों तक इस मामले के खुलासे की कोशिश करती रही.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 27-28 अप्रैल, 2016 की रात सीबीआई टीम ने पुरानी बस्ती थाने के थाना प्रभारी रणधीर मिश्र व एसआई अरविंद कुमार व रामवृक्ष यादव, एचसीपी रामकरन और महिला सिपाही प्रीति पांडेय के साथ मिल कर दरवाजा नाम की जगह पर बनी एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान पर छापा मारा, तो गुफानुमा संकरे गलियारों से होते हुए जब पुलिस के लोग एक कमरे में पहुंचे, तो वहां तकरीबन 19 साला एक किशोर को 10 लैपटौप के बीच काम करता हुआ पाया गया.

उस लड़के ने पुलिस को देखते ही भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की मुस्तैदी से वह धर दबोचा गया.

हामिद अशरफ ने बताया कि वह पिछले 2 साल से आईआरसीटीसी का क्लोन तैयार कर वैबसाइट को हैक कर चुका था, जिस के जरीए उस ने नकली सौफ्टवेयर बना कर पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंट तैयार किए थे. इन एजेंटों से उसे अच्छीखासी रकम मिलती थी.

जहां रेल महकमा एक टिकट को बुक करने में एक मिनट का समय लगाता था, वहीं हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए सौफ्टवेयर से 30 सैकंड में ही टिकट की बुकिंग हो जाती थी.

  1. हामिद की चाहत

 हामिद अशरफ ने पुलिस को बताया कि वह बस्ती जिले के कप्तानगंज थाने के वायरलैस चौराहे का रहने वाला है. उस के पिता जमीरुलहसन उर्फ लल्ला बिल्डिंग मैटीरियल का कारोबार करते हैं. लेकिन घर का खर्च मुश्किल से ही चल पाता था. ऐसे में उसे इंजीनियर बनने का सपना पूरा होता नहीं दिखा.

माली तंगी से परेशान हो कर वह अपने मामा के घर आ कर रहने लगा. बस्ती रेलवे स्टेशन के पास ही एक दुकान पर वह रेलवे टिकट निकालने का हुनर सीखने लगा.

चूंकि हामिद अशरफ का झुकाव इंजीनियरिंग की ओर था. ऐसे में रेलवे टिकट की बुकिंग के दौरान उस के दिमाग में एक ऐसी योजना आई, जिस से न केवल उस ने आईआरसीटीसी का सौफ्टवेयर तैयार किया, बल्कि रुपयों की बौछार भी होने लगी.

2. बेचता था सौफ्टवेयर

 हामिद अशरफ ने आईआरसीटीसी की डुप्लीकेट वैबसाइट को बेचने के लिए तमाम सोशल साइटों का सहारा लिया. देखते ही देखते पूरे देश में तकरीबन 5 हजार एजेंटों की फौज तैयार कर ली. इस सौफ्टवेयर को वह 60 हजार से 80  हजार रुपए में एजेंटों को बेचता था.

2 साल में हामिद अशरफ ने नकली सौफ्टवेयर के जरीए इतना पैसा कमा लिया था कि उस के एक ही खाते में तकरीबन 50 लाख रुपए जमा होने की जानकारी पुलिस को हुई.

हामिद अशरफ लोगों की नजर में तब आया, जब उस ने औडी जैसी महंगी गाड़ी की बुकिंग कराई. साथ ही, उस ने अपने पिता के लिए नकद रुपए दे कर एक बोलैरो गाड़ी खरीदी थी.

इंटरनैट पर सर्च कर के हामिद अशरफ ने जानकारी इकट्ठा की थी कि किस तरह से किसी भी साइट को हैक कर इस की सिक्योरिटी में सेंध लगाई जा सकती है.

हामिद अशरफ ने यह कबूला कि उस ने 2 सालों में रेलवे को तकरीबन 16 करोड़ रुपए का चूना लगाया है, लेकिन सीबीआई व पुलिस का मानना है कि यह रकम कई करोड़ रुपए हो सकती है.

3. टूटेगा गिरोह का नैटवर्क

 पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से पकड़े गए हामिद अशरफ की कारगुजारी को ले कर हर कोई हैरान है. यहां के लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा कि हामिद इतना बड़ा शातिर निकलेगा.

गिरफ्तारी के बाद उसे सीबीआई की लखनऊ कोर्ट में पेश किया गया, जहां से बेंगलुरु की सीबीआई टीम उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले कर बेंगलुरु चली गई.

सूत्रों की मानें, तो सीबीआई बस्ती के अलावा गोरखपुर, संत कबीरनगर, फैजाबाद, गोंडा समेत देश के अलगअलग इलाकों से जुड़े लोगों के बारे में जानकरी इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है.

4. रेलवे पर उठे सवाल

भारतीय रेल सेवा के नैटवर्क में 19 साला एक लड़के ने इस तरह से सेंध लगाई कि देखते ही देखते 2 साल में उस ने रेलवे को 16 करोड़ रुपए का चूना लगा दिया. इस के अलावा देशभर में तैयार किए गए तकरीबन 5 हजार एजेंटों ने पता नहीं कितने रुपए का चूना लगाया होगा.

इस मामले की जांच सीबीआई के हवाले है. बस्ती पुलिस ने बताया कि उस की भूमिका सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम के साथ हामिद अशरफ की गिरफ्तारी तक थी. इस के बाद क्या हुआ, पुलिस को नहीं पता.

इस मामले के मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी हो चुकी है. अब देखना यह है कि सीबीआई और रेलवे विजिलैंस टीम हामिद अशरफ द्वारा तैयार किए गए देशभर के नैटवर्क को किस तरह से खत्म करती है.

शहर में डाले डेरे, बेखौफ हुए चेन लुटेरे

जयपुर में पुलिस की ढिलाई से चेन खींचने वाले गिरोहों की भरमार हो गई है. तकरीबन 15 साल पहले शहर में चेन खींचने की वारदातें करने वाले इंदर सिंधी और विनोद लांबा के 2 गिरोह थे, लेकिन ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस की कड़ी कार्यवाही की कमी के चलते सरेराह चेन खींचने वालों की तादाद लगातार बढ़ती ही गई. इस के चलते शहर में आज 2 दर्जन से ज्यादा चेन खींचने वाले गिरोह बन गए हैं. यही वजह है कि महज पिछले 5 महीनों में ही चेन खींचने वाले 60 से ज्यादा वारदातें कर शहर से तकरीबन 60 लाख रुपए की कीमत की चेन लूट ले गए हैं. चेन खींचने की लगातार बढ़ती वारदातों को देखते हुए पिछले दिनों पुलिस कमिश्नर खुद गश्त पर निकले, लेकिन गश्त ढीली पड़ने के साथ ही चेन खींचने वाले गिरोह फिर से हरकत में आ जाते हैं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि तकरीबन 15 साल पहले शहर में केवल इंदर सिंधी और विनोद लांबा के गिरोह ही इस तरह की वारदातों को अंजाम देते थे. हर वारदात के बाद पुलिस इन दोनों शातिर गिरोह की लोकेशन को ही सब से पहले ट्रेस किया करती थी.

इस के बाद खानाबदोश परिवारों के कुछ नौजवान शहर में चेन तोड़ने लगे, लेकिन पुलिस की ढिलाई और अनदेखी के चलते आज शहर की गलीगली में चेन खींचने वाले गिरोह बन गए हैं और ऐसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं.

  1. लगाते चोरी की धारा

सूत्रों ने बताया कि ऐसे गिरोह खड़े होने के पीछे पुलिस का काम करने का तरीका बड़ी वजह है. पुलिस ने अपना रिकौर्ड अच्छा रखने के चक्कर में चेन खींचने की वारदातों को लूट की धाराओं में दर्ज करने के बजाय चोरी की धाराओं में ही दर्ज करने का सिस्टम बना लिया है.

शिकार लोग फौजदारी धाराओं के इस खेल को इतना समझते नहीं हैं. इस वजह से चेन तोड़ने का अपराध ज्यादा आसान लगने लग गया है. दूसरे अपराधों से जुड़े कई अपराधी भी इस के चलते चेन खींचने वाले अपराधी बन गए हैं.

इस के अलावा आदतन चेन खींचने को चोरी की धारा के चलते जमानत मिलने में आसानी हो गई है. जमानत पर जेल से बाहर आने के साथ ही ये अपराधी फिर से अपने धंधे में जुट जाते हैं.

2. नाकाम रहती है नाकाबंदी

चैन खींचने वाले शातिर हर वारदात से पहले इलाके की रेकी कर के ही इस को अंजाम देते हैं. फिर वे अपने शिकार को टारगेट करते हैं. मसलन, कोई औरत रोज मंदिर जाती है, तो उस के आनेजाने का समय नोट किया जाता है. साथ ही, उस के साथ जाने वाले लोग कहां तक उस के साथ जाते हैं, इसे भी ध्यान में रखा जाता है.

चेन तोड़ने वाले गिरोहों द्वारा वारदात करने से पहले एक रूपरेखा तैयार की जाती है कि चेन किस जगह से तोड़नी है और वहां से निकलने के लिए किस रास्ते से वे आसानी से भागने में कामयाब हो सकते हैं.

यही वजह है कि वारदात के बाद पुलिस नाकाबंदी के दौरान आज तक एक भी चेन खींचने वाला नहीं पकड़ा गया है. इस के पीछे पुलिस की लापरवाही को ही खास वजह माना गया है. पुलिस चेन खींचने वाले की लोकेशन पर निगाह रखने में नाकाम रहती है. इस से चेन चोरों का हौसला बढ़ जाता है.

3. महीनों का चैन

पकड़ में आए कुछ चेन खींचने वालों ने बताया कि जिस चेन को वे तोड़ते हैं, वह कम से कम डेढ़ से 3 तोले के बीच होती है. 3 तोले चेन की कीमत 80 से 90 हजार रुपए बैठती है. ऐसे में वे चेन को बेचने सुनार के पास जाते हैं, तो उन्हें अच्छाखासा पैसा मिल जाता है. महज कुछ पल की मेहनत के बाद उन्हें दोढ़ाई महीने तक काम की चिंता नहीं रहती. पैसा पूरा होने के बाद दूसरे टारगेट पर निशाना साधने निकल जाते हैं.

वकील बीएस चौहान का कहना है कि पुलिस को चेन खींचने के मामलों को लूट की धाराओं में ही दर्ज करना चाहिए. आईपीसी की धारा 309 में 10 साल की सजा का प्रावधान है, वहीं चोरी की आईपीसी की धारा 379 में महज 3 साल की सजा का प्रावधान है.

4. बरामदगी नहीं हो पाती

कई मामलों में पुलिस चेन खींचने वालों को पकड़ लेती है, मगर उन से बरामदगी नहीं कर पाती है. पुलिस का कहना है कि वारदात के बाद चेन खींचने वाले सुनार के पास जा कर उसे गलवा देते हैं.

हालांकि कई सुनारों को भी गिरफ्तार किया है, लेकिन यह भी नाकाफी है. बरामदगी नहीं होने और सुबूत नहीं मिल पाने से चोरों को सजा में राहत मिल जाती है.

5. मुहिम से पकड़ में आएंगे

चेन खींचने की वारदातों ने आम आदमी का चैन छीन लिया है. टोंक फाटक कालोनी की रहने वाली साक्षी शर्मा का कहना है कि चेन खींचने वालों को पकड़ने की मुहिम चलानी चाहिए. इस में एक महिला कांस्टेबल को चेन पहना कर सुबह की सैर पर भेजना चाहिए, ताकि बदमाशों को रंगे हाथों दबोचा जा सके.

महेश नगर इलाके में रहने वाली सोनाली शर्मा का कहना है कि पुलिस सुबह के समय नियमित रूप से गश्त करे, ताकि सुबह की सैर और मंदिर जाते समय चेन तोड़ने की वारदातों पर रोक लगाई जा सके.

6. ऐसे हो सकता है बचाव

चेन खींचने की वारदातों के लिए पुलिस को जन सहयोग से जगहजगह पर सीसीटीवी कैमरे लगाने चाहिए, ताकि किसी तरह का भी अपराध होता है, तो वारदात करने वाले बदमाश उस में तसवीर के रूप में कैद हो जाएं.

जितने भी कैमरे लगाए जाएं, वे नाइटविजन वाले होने चाहिए, ताकि रात में भी अपराधियों का चेहरा पूरी तरह से साफ नजर आए.

साथ ही, कैमरों की मौनीटरिंग रोजाना हो और इस के लिए पुलिस वाले रोजाना अपडेट लेते रहें. संदिग्ध लगने वाले लोगों पर कड़ी नजर रखी जाए.

पुलिस के कुछ जवानों को भीड़ भरे बाजार और यातायात के बीच से मोटरसाइकिल चलाने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे बदमाशों को पकड़ने का हुनर सीख सकें. इस के लिए किसी गैरसरकारी संस्था की मदद भी ली जा सकती है.

7. औरतें ये सावधानियां बरतें

* साड़ी या सूट इस तरह पहनें कि गले से चेन दिखाई नहीं दे.

* सुबह की सैर व मंदिर जाते समय निगाह रखें कि कोई उन का पीछा तो नहीं कर रहा है.

* वारदात के बाद बदमाशों का गाड़ी नंबर जरूर देखें और उसे याद रखें.

* असली गहने पहनने से अच्छा है कि नकली गहने पहन कर अपना शौक पूरा कर लें.

* किसी अनजान को घर के आसपास घूमता देख तुरंत पुलिस को सूचना दें.

शक: क्या केतकी की कम हुई सुगना के लिए जलन

रोज  इसी समय वह काम से लौटती थी. उस के चारों बच्चे वहीं खेलते हुए मिलते थे. उसे ध्यान आया कि हो सकता है कि उस का पति मंगल आज बच्चों को उस की मां के घर छोड़ कर काम पर चला गया हो. वह कराहते हुए उठी और अपनेआप को घसीटते हुए मां के  घर की ओर चल पड़ी, जो उस के घर से मात्र एक फर्लांग की दूरी पर था. वहां पहुंच कर उस ने पाया कि मां अभी तक काम से नहीं लौटी थीं. उन के घर में भी ताला लगा हुआ था. निराश हो कर वह वापस लौटी और घर के सामने जमीन पर बैठ कर पति और बच्चों का इंतजार करने लगी.

वह रोज सवेरे 4 बजे सो कर उठती. घर का कामकाज निबटा कर पति व बच्चों के लिए दालभात पका कर काम पर निकल जाती थी. पति व बच्चे देर से सो कर उठते थे. मंगल बच्चों को खिलापिला कर उन्हें खेलता छोड़ कर काम पर निकल जाता. जब वह दोपहर में लौट कर आती तो उस के बच्चे घर के सामने गली के बच्चों के साथ खेलते मिलते. आज पहला मौका था कि सुगना को घर बंद मिला और बच्चे नहीं मिले. आसपास पूछताछ करने पर पता चला कि किसी ने भी मंगल व बच्चों को नहीं देखा था. ऐसा लगता था कि मंगल बच्चों को ले कर भोर होते ही कहीं चला गया था. सुगना को बाहर बैठेबैठे 2 घंटे हो गए थे. वह धीरेधीरे सुबकने लगी. आसपास औरतों व बच्चों की भीड़ जमा हो गई.

उस की पड़ोसिन केतकी, ईर्ष्यावश उस से बात नहीं करती थी पर सुगना की दयनीय स्थिति देख कर केतकी  को भी उस पर दया आ गई. उस ने उसे अपने घर के अंदर आ कर कुछ खा लेने व आराम करने को कहा पर सुगना नहीं मानी. उस ने रोतेरोते कहा कि जब तक वह मंगल व बच्चों को नहीं देख लेगी तब तक न तो वहां से कहीं जाएगी और न ही कुछ खाएगी.

केतकी का पति, बसंत अकसर सुगना को निहारा करता था, जिस के कारण वह मन ही मन उस से जलती थी और उस से बात नहीं करती थी. बसंत ही नहीं, बस्ती के सभी पुरुषों की नजरों का केंद्रबिंदु थी सुगना. वह 6 धनी परिवारों में मालिश का काम करती थी. उन घरों की मालकिनों को कुछ काम नहीं था. खाली बैठेबैठे उन के बदन में दर्द होता रहता. सुगना उन के हाथपैरों में मालिश करती. साथ ही, इधरउधर की बातें नमकमिर्च लगा कर सुना कर उन का मनोरंजन करती.

ये रईस स्त्रियां प्रसन्न हो कर सुगना को अपनी उतरी हुई पुराने फैशन की साडि़यां दे देतीं. सुगना जब जार्जेट, रेशम, शिफान, टसर व नायलोन की साडि़यां पहन कर निकलती तो बस्ती की स्त्रियों के सीनों पर सांप लोट जाते और पुरुष आहें भरने लगते. सभी उसे पाना चाहते, उस से बातें करने को लालायित रहते.

शाम घिरने लगी थी. धीरेधीरे बस्ती के पुरुष काम से लौैटने लगे थे. आते ही सभी मंगल और बच्चों की खोज में लग गए. वास्तव में उन्हें खोजने से ज्यादा उन की दिलचस्पी सुगना की कृपादृष्टि पाने में थी.

जब मंगल व बच्चों का कहीं पता नहीं चला तो सब ने सोचा कि शायद वह पास वाले गांव में अपने मातापिता के पास चला गया होगा. इस विचार के आते ही बस्ती के दारूभट्टी के नौजवान मालिक केवल सिंह ने सुगना की सहायता के लिए अपनेआप को पेश कर दिया. बस्ती के सभी पुरुषों के पास वाहन के नाम पर पुरानी घिसीपिटी साइकिलें ही थीं. केवल सिंह ही ऐसा रईस था जिस के पास एक पुरानी खटारा फटफटी थी.

केवल सिंह ने अपनी फटफटी पर एक और नौजवान को बैठाया और मंगल का पता लगाने पास वाले गांव में चला गया. केवल सिंह का सुगना के घर खूब आनाजाना था. मंगल जब दारू पी कर उस की दुकान में लुढ़क जाता तो वह उसे अपनी गाड़ी में लाद कर घर छोड़ने आता. हर रात ऐसा ही होता.

उसे मंगल से कोई लगाव नहीं था, बल्कि सुगना को आंख भर देखने तथा नशे में बेहोश मंगल की सेवा करने के बहाने सुगना के पास बैठने और उस से देर रात तक बतियाने का मौका पाने के लिए वह ऐसा करता था. मंगल का जब नशा टूटता तो वह आधी रात को सुगना को जगा कर खाना मांगता. जरा भी नानुकुर या देर होने पर वह सुगना को बुरी तरह पीटता. रात के सन्नाटे में सुगना की दर्दभरी चीखें महल्ले वाले सुनते पर क्या करते, पतिपत्नी का मामला था.

धुंधलका गहरा होने लगा था. केवल सिंह लौट आया था. मंगल सिंह अपने बच्चों के साथ अपने गांव भी नहीं गया था. इतना बड़ा ताला लगा कर आखिर गया कहां वह?  सब इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे कि तभी किसी को घर के अंदर से बच्चों की दबीदबी सिसकियां सुनाई दीं. सब के कान खड़े हो गए. तुरंत 2 हट्टकट्टे नौजवानों ने दरवाजा तोड़ डाला.

अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था. मंगल का शरीर छत की मोटी बल्ली से लटका हुआ था. गले में बंधी थी सुगना की नाइलोन की साड़ी. वह मर चुका था. चारों बच्चे डरे हुए, सुबक रहे थे. देखते ही सुगना पछाड़ खा कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. स्त्रियों ने उस के ऊपर पानी डाला. होश में आते ही वह बच्चों से लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगी.

भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी. पुलिस ने आते ही जांचपड़ताल शुरू कर दी. ऐसा लगता था कि शराब के नशे में मंगल ने आत्महत्या कर ली थी. कमरे की एकमात्र खिड़की अंदर से बंद थी. बस्ती वाले मंगल की बुरी आदतों से परेशान तो थे ही. सभी ने उस के विरोध में बयान दिया. किसी पर भी शक की सुई नहीं घूम रही थी. पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल ने बाहर से ताला लगाया तथा खिड़की से कूद कर अंदर आ गया. अंदर से दरवाजा बंद कर के उस ने आत्महत्या कर ली. उस ने बच्चों को भी मारने की कोशिश की थी. पतीली में बचेखुचे दालभात की जांच से पता चला कि उस में अफीम मिलाई गई थी. मात्रा कम होने के कारण बच्चे बच गए थे.

आत्महत्या का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था. एक नशेड़ी इतने ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध काम करेगा यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. बच्चे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. कई दिन तक गहन पूछताछ और जांचपड़ताल के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. सभी के बयान समान थे और केवल मंगल की ओर इशारा करते थे. पुलिस ने भी इस गरीब बस्ती के एक नशेड़ी की मौत के मामले में ज्यादा  सिर खपाने की जरूरत नहीं समझी और आत्महत्या का मामला दर्ज कर तुरंत फाइल बंद कर दी.

मिसेज दिवाकर के यहां सुगना काम करती थी. उन्हें घर के अन्य नौकरों से मंगल की मौत के बारे में पता चला तो उन्हें शराब की भट्ठी के मालिक केवल सिंह पर शक हुआ, क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति था जिस का सुगना के यहां अधिक आनाजाना था. वह उस में जरूरत से ज्यादा रुचि भी लेता था. पर उन्होंने इस मामले में अपनी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा.

मंगल की मौत को 1 माह ही बीता था कि केवल सिंह ने सुगना को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया. एक दिन की अनुपस्थिति के बाद सुगना सजीसंवरी, नई चूडि़यां खनकाती काम पर आई तथा मिसेज दिवाकर को अपने विवाह की सूचना दी. सुनते ही मिसेज दिवाकर भड़क गईं और बोलीं, ‘‘हाय मरी, तुझे तो रोज रात की मारपीट से मुक्ति मिल गई थी. फिर से क्यों जा पड़ी नरक में उसी मुए के साथ, जिस ने तेरे मंगल को मारा?’’

अनजाने में उन के मुख से उन के अंदर का दबा हुआ शक उजागर हो गया, पर अविचलित सुगना बोली, ‘‘अपने आदमी की मार भी कोई मार होती है. इस से बस्ती में इज्जत बढ़ती है. रही शादी की बात, तो महल्ले के सब बदमाशों से बचने के लिए किसी एक का हाथ थामना अच्छा है. आप क्या जानो, एक औरत का अकेले रहना कितना मुश्किल होता है. बिना आदमी के बस्ती के मनचले दारू पी कर मेरा दरवाजा पीटते थे. रात को सोने नहीं देते थे.’’

मिसेज दिवाकर को कुछ अटपटा सा लगा कि केवल सिंह पर उन के द्वारा लगाए हत्या के इल्जाम को सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया उस ने व्यक्त नहीं की थी.

एक वर्ष बीत गया था. सुगना के पांव भारी थे. जच्चगी के लिए अस्पताल जाने से पहले उस ने अपनी छोटी बहन फागुन को घर व बच्चों की देखभाल के लिए बुलवा लिया. जब वह अस्पताल से नवजात बेटे के साथ घर लौटी तो उसे यह देख कर जबरदस्त धक्का पहुंचा कि उस के पति केवल सिंह ने उस की अनुपस्थिति में उस की बहन को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया है.

क्रोधित हो सुगना ने फागुन को बालों से पकड़ कर घसीटा और खदेड़ कर बाहर निकाल दिया. केवल सिंह के ऊपर फागुन का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. उसे अपनी नईनवेली पत्नी का अपमान सहन नहीं हुआ. उस ने कोने में  पड़ी हुई  कुल्हाड़ी उठा कर सुगना की टांग पर दे मारी. कुल्हाड़ी मांस फाड़ कर हड्डी के अंदर तक धंस गई. सुगना बेहोश हो कर गिर पड़ी. टांग से बहते खून की धार तथा रोते हुए नवजात शिशु को देख केवल सिंह के मन में पश्चाताप होने लगा. शोरगुल सुन सब पड़ोसी इकट्ठे हो गए. जिस अस्पताल से सुगना थोड़ी देर पहले वापस आई थी फिर वहीं दोबारा भरती हो गई.

केवल सिंह बड़ी लगन से तब तक उस की सेवा करता रहा जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ व समर्थ नहीं हो गई. सुगना उस की सेवा से खुश कम थी और दुखी ज्यादा थी क्योंकि केवल सिंह ने फागुन को घर से नहीं निकाला था.

बेचारी दुखी सुगना क्या करती. उस ने अपनी पूरी आशाएं अपने नवजात बेटे पर टिका दी थीं. उस ने निश्चय किया कि वह बेटे को सेना में भरती कराएगी. जब वह लड़ाई में मारा जाएगा तो उसे सरकार लाखों रुपया देगी और उन रुपयों से वह अपनी मालकिनों की तरह ऐशोआराम से रहेगी. इसलिए उस ने अपने बेटे का नाम कारगिल रख दिया.

सुगना की विचित्र निष्ठुर कामना सुन कर मिसेज दिवाकर के रोंगटे खड़े हो गए. बड़ा ही क्रूर लगा उन्हें नवजात शिशु को बड़ा कर उस की मौत की कल्पना करना और अपने ऐशोआराम के लिए उसे भुनाना.

थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन केवल सिंह अपनी नई  पत्नी फागुन के साथ हमेशा के लिए कहीं चला गया. साथ में ले गया अपना नन्हा पुत्र कारगिल. सुगना का धनपति बनने का सपना धरा रह गया. 2 बार ब्याही सुगना फिर से अकेली रह गई थी.

वर्षा के दिन थे. सुगना की टांग का घाव भर गया था, पर दर्द की टीस अब भी उठती थी. पति और उस की सगी बहन ने मिल कर जो छल उस के साथ किया था उस ने उसे अंदर से भी घायल कर दिया था. एक दिन वर्षा में भीगती सुगना जब मिसेज दिवाकर के यहां पहुंची तो उसे तेज बुखार था. अपनी साइकिल बाहर खड़े उन के ड्राइवर को थमा बड़ी मुश्किल से वह बरामदे तक पहुंची ही थी कि गिर कर बेहोश हो गई. जब वह होश में आई तो मिसेज दिवाकर ने अपने ड्राइवर से उस को कार में ले जा कर डाक्टर गर्ग से दवा दिलवा कर घर छोड़ आने को कहा.

आगे की सीट पर बैठी सुगना का सिर निढाल हो कर ड्राइवर गोपी के कंधे पर लुढ़क गया तो उस ने उसे हटाया नहीं. उसे बड़ा भला सा लग रहा था.

डाक्टर से दवा दिलवा कर गोपी उस को घर पहुंचाने गया. वहां उस को सहारा दे कर अंदर तक ले गया. इस के बाद भी उस का मन नहीं माना. वह उसे देखने उस के घर बराबर जाता तथा यथासंभव उस की सहायता करता. 3 दिन के बुखार में गोपी और सुगना बहुत करीब आ गए थे. चौथे ही दिन गोपी ने सुगना के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. सुगना सहर्ष तैयार हो गई. गोपी ने उसे चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया.

मिसेज दिवाकर को सुगना का पुनर्विवाह तनिक भी नहीं भाया. वह गुस्से से चीखीं, ‘‘कुदरत तुझे बारबार खराब  पुरुषों से मुक्ति दिलाती है, फिर चैन से अकेले क्यों नहीं रहती? अपनी मां के साथ रहने में तुझे क्या तकलीफ है?’’

सुगना बड़ी सहजता से बोली, ‘‘अकेली औरत जात को कोई तो रखवाला चाहिए.’’

मिसेज दिवाकर ने सुगना की समस्या से अपने को अलग रखने की ठान ली.

एक दिन मिसेज दिवाकर ने सुगना से धुले कपड़ों का गट्ठर इस्तरी वाले के ठेले तक अपनी साइकिल पर रख कर पहुंचाने को कहा. गट्ठर बड़ा होने के कारण साइकिल के कैरियर पर ठीक से नहीं बैठ रहा था. यह देख कर मिसेज दिवाकर बोलीं, ‘‘सुगना, तुझे ठीक से गांठ बांधनी भी नहीं आती. कपड़े बाहर निकल रहे हैं.’’

‘‘मांजी, चिंता मत कीजिए. गांठ लगानी मुझे खूब आती है. मंगल के लिए कैसी मजबूत गांठ लगाई थी मैं ने,’’ अकस्मात सुगना के मुंह से निकला.

ऐसा कहते हुए उस ने आंखें ऊपर उठाईं. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर मिसेज दिवाकर सहम उठीं. अंदर दबा हुआ शक उभर कर ऊपर आ गया था. उन्होंने सोचा, ‘तो मेरा शक सही था. मंगल ने आत्महत्या नहीं की थी. सुगना ने ही उसे मारा था.’

स्तब्ध मिसेज दिवाकर अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर सोफे पर धम्म से बैठ गईं.

‘सुगना, हत्यारिन मेरे घर में, और मुझे पता ही नहीं चला.’ सोचसोच कर वह हैरान व परेशान थीं.

उन के शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई. अब इतने अरसे बाद किस से कहें और किस से शिकायत करें. अपराधी को अपने दुष्कर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. पर उन के पास कोई सुबूत भी नहीं था. था केवल शक. कौन सुनेगा उन के शक को? अगर सुगना को सजा दिलवा भी दी तो उस के बच्चों का क्या होगा? सोचते सोचते उन के सिर में दर्द होने लगा.

और सुगना, अनजाने में अपना अपराध प्रकट कर बैठी थी. अपने अपराध के प्रकटीकरण से बेखबर मिसेज दिवाकर के हृदय की हलचल से अनभिज्ञ बढ़ी चली जा रही थी अपने गंतव्य की ओर.

जागरूकता: ठगों के तरह-तरह के रूप

ठगों के अलगअलग अंदाज और किरदार देख कर आम लोग सम झ ही नहीं पाते हैं और जब तक वे सम झ पाते हैं, तब तक ठगी के शिकार हो जाते हैं.ठग कभी अनपढ़गंवार के रूप में सामने आते हैं, तो कभी गांव के ठेठ देहाती बन जाते हैं. वे कभी भगवान दिखाने वाले बहुरुपिए होते हैं, तो कभी लखपतिकरोड़पति बनाने का आसान तरीका बताते हैं. ठगी का शिकार आखिर में सिर्फ हाथ मलता रह जाता है, क्योंकि पुलिस भी ठगों को पकड़ कर उस का लूटा गया सामान और रुपयापैसा लौटा पाने में निकम्मी ही साबित होती है.ठग अपना उल्लू तो सीधा कर लेते हैं, लेकिन लूटा गया इनसान कई तरह की परेशानियों में घिर जाता है. लापरवाह इनसान को ठग आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं. ठगी के अनोखे अंदाज देखिए :

अनपढ़ बन कर मांगते मदद

अगर बैंक में कभी कोई अनपढ़गंवार इनसान मदद मांगे तो सावधान हो जाएं, क्योंकि वह आप को चूना लगा कर फुर्र हो सकता है.छत्तीसगढ़ में रायपुर के उइला की एक बैंक में एक कंपनी में काम करने वाला नरेश पैसे जमा करवाने पहुंचा. वहां 2 नौजवानों ने खुद को अनपढ़गंवार बताते हुए उस से मदद मांगी.

मदद मांगने पर नरेश ने न सिर्फ उन का फार्म भर दिया, बल्कि अपना बैग उन्हें थमा कर उन के पैसे जमा करने खुद लाइन में लग गया. उन नौजवानों ने नरेश को कागज में लिपटी गड्डी दी और कहा कि इस में एक लाख रुपए हैं. नरेश ने भरोसे में उसे खोल कर नहीं देखा. काउंटर पर पता चला कि गड्डी में नोट नहीं कोरे कागज के टुकड़े थे. बदहवास नरेश को कुछ नहीं सू झा. जब तक वह कुछ सम झ पाता, ठग कहीं दूर जा चुके थे. नरेश के बैग में 30,000 रुपए थे.

बेईमान बनते हैं ईमानदार

किसी को अगर लूटना या ठगना है, तो अपनी ईमानदारी का सुबूत पेश कर दो, फिर आसानी से आप उसे चूना लगा सकते हैं. ऐसा ही एक वाकिआ रायपुर गुढि़यारी के अंबे एग्रो इंडस्ट्रीज के कैशियर सुरेश कुमार के साथ हुआ था. वे अपनी कंपनी के लिए चैक से 2 लाख रुपए कैश कराने आए थे. रुपए कैश करा कर उन्होंने अपनी बाइक के हैंडल में उन्हें रखा था. इतने में सामने से गुजरते हुए एक नौजवान ने उसे कुछ रुपए गिरने की बात बताई.

सुरेश ने पलट कर देखा, तो 50-100 के नोट सड़क पर गिरे पड़े थे. उन्हें लगा कि रुपए जेब से गिरे हैं. लिहाजा, वे पैसे उठाने के लिए आगे बढ़े. इतने में दूसरे नौजवान ने दौड़ कर उन की बाइक से बैग उठाया और वहां से भाग निकला.

जब तक सुरेश कुमार माजरा सम झ पाते, तब तक लुटेरा भाग निकला. इसी बीच रुपए दिखा कर भटकाने वाला नौजवान भी फरार हो चुका था.

ऐसी ही ठगी के शिकार हुए सैयद अख्तर. रायपुर विजया बैंक कचहरी चौक पर ट्रांसपोर्टर सैयद अख्तर बैंक से पैसे ले कर निकले और उन्हें कार की पिछली सीट पर रख दिया. पीछे से एक ठग ने जमीन पर उन से रुपए गिरने की बात कही. जैसे ही सैयद अख्तर रुपए उठाने के लिए झुके, ठग कार से रुपयों से भरा बैग ले कर भाग निकला.

पता पूछते हैं ठग अपने जाल में शिकार को फांसने के लिए कई तरीके अपनाते हैं. कई बार वे शहर में अजनबी होने की बात कह कर किसी का पताठिकाना पूछते हैं. यह पूछने का उनका असल मकसद ठगी करना होता है. बूढ़ापारा के रहने वाले उत्तम चंद्र जैन चांदी के व्यापारी हैं. इन्होंने अपने ड्राइवर को बैंक से 2 लाख रुपए कैश करा कर निकालते देखा. बस, फिर क्या था. वहीं से उन का पीछा किया गया.

ड्राइवर ने रुपए अपनी बाइक की डिक्की में रखे थे. जैसे ही वे घर के सामने रुके, ठग उन के करीब पहुंच कर किसी का पता पूछने लगे. ड्राइवर ने अपनी गाड़ी खड़ी की और आगे जा कर कहा कि इस गली से जाइए, आगे चौक पर उन का मकान है. इतने में पीछे से एक नौजवान आया और डिक्की खोल कर रुपए ले कर तेजी से भाग खड़ा हुआ. ड्राइवर ने पलट कर देखा, तो वह बहुत दूर जा चुका था. पता पूछने वाला ठग भी अपनी बाइक से फरार हो गया.

लखपति बनाने का  झांसा उपहार योजना में लखपति बनाने और बैंकौक घुमाने का  झांसा दे क 8 करोड़ रुपए की ठगी की जा रही है. नरेंद्र मोदी योजना का नाम ले कर रजिस्ट्रेशन कराने के बहाने औरतों से पैसे जमा किए जाते हैं.

ठगों ने  झांसे में फांसने के लिए तगड़ी प्लानिंग की. रामपुर आरंभ में रहने वाले विजय और अमित ने सदस्य बनाने के लिए बड़ेबड़े होटलों में पार्टियां आयोजित की. पूरा आयोजन इतनी शानोशौकत से किया जाता था कि औरतें उस के झांसे में आ जाएं और तुरंत सदस्य बन जाएं.

सदस्यों से हर महीने की किस्त के रूप में 6,000 रुपए लेने का प्रावधान रखा गया. योजना में शामिल होने के लिए कहा गया कि हर महीने एक लकी ड्रा निकाला जाएगा, जिस का पहला पुरस्कार एक लाख रुपए, दूसरा बैंकौक का टूर और अन्य पुरस्कार के रूप में टीवी, फ्रिज वगैरह देने का औफर दिया गया. अंत में योजना पूरी होने के बाद पूरी रकम ब्याज समेत लौटाने का वादा किया गया.

इतना मुनाफा और घूमने का मौका देख कर लोग इन के  झांसे में आ गए. सदस्य उस समय सकते में आ गए, जब उन्होंने योजनाकारों के दफ्तर में महीनों से ताला लटका देखा. तब उन्हें सम झ आया कि वे ठगे गए हैं. लखपति तो नहीं बन पाए, हां, पुलिस और अदालत के चक्कर शुरू हो गए.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रुस्तम नगर के रहने वाले पवन शर्मा ने छोटे नोट ले कर बड़े नोट देने पर डबल करने का  झांसा दिया. लोगों को भरमाया कि वह एक के 3 गुना पैसे कर के तुरंत देगा.

जब इस तरह कुछ लोगों को 3 गुना पैसे मिलने की बात जाहिर हो गई, तो लोगों की लंबी कतारें लग गईं. बिना मेहनत किए पैसे को तिगुना करने के लालची लोगों ने न सिर्फअपने घर और जेवर गिरवी रखे, बल्कि बच्चों को भी गिरवी रख दिया. लापरवाह होते हैं शिकार ठगी के शिकार लोगों की गहराई से स्टडी करने पर यह बात सामने आई कि ज्यादातर लोग लापरवाह होते हैं, जिस के चलते वे ठगी के शिकार होते हैं.

अब नरेश को ही लीजिए, जो बैंक में पैसे जमा करने गया था. ठग ने अनपढ़गंवार बन कर उस से मदद मांगी. मदद के नाम पर उस ने उस आदमी का फार्म भी भरा और उस से नकली रुपए की गड्डी ले कर जमा कराने लाइन में खड़ा हो गया.

यहां चूक नरेश से यह हुई कि वह अपना रुपए से भरा बैग उस अनजान आदमी को थमा गया. अगर वह ऐसी लापरवाही नहीं करता, सावधानी बरतता, रुपए से भरा बैग अपने पास ही रखता तो शायद वह न लुटता.

कुछ ऐसा ही किया उत्तम चंद्र जैन के ड्राइवर ने. उन्होंने बाइक की डिक्की में रुपए रख दिए और गाड़ी छोड़ कर अनजान आदमी को पता बताने चले गए. ठग ऐसी ही लापरवाही के इंतजार में रहते हैं. लालच में न आएं आज के भौतिकवादी युग में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा पाने का लालची हो गया है. जब कोई लखपति बनाने का  झांसा देता है, तो आदमी उस का शिकार हो जाता है. लोगों की इसी लालची सोच का फायदा उठा कर विजय और अमित ने वीसी उपहार योजना चला कर एक  झटके में 8 करोड़ रुपए ठगे और फरार  हो गए.

लोग यह सोचने की जहमत नहीं उठाते हैं कि आखिर कोई कैसे कुछ ही दिनों में एक का 3 तिगुना पैसा दे सकता है? अगर यहां गहराई से सोचें तो धोखे की गंध आ ही जाती है, लेकिन लालच में अंधा इनसान सोचने की ताकत नहीं रखता. लिहाजा, इनसान की ऐसी लालची सोच का फायदा अहमदाबाद के अशोक जडेजा जैसे शख्स आसानी से उठा लेते हैं.

क्यों कोसते हैं पुलिसको अगर आप सावधान नहीं हैं, अपने काम के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, सचेत नहीं हैं, मिनटों में लखपति, करोड़पति बनना चाहते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं, तो पुलिस प्रशासन को मत कोसिए. ऐसी ठगी के लिए आप खुद जिम्मेदार हैं. आखिर पुलिस एकएक आदमी की हिफाजत नहीं कर सकती. अपने जानमाल की हिफाजत की सब से पहली जवाबदेही आदमी की अपनी होती है.

अकसर लोग असावधानी और हद दर्जे की लालची सोच के चलते ठगे जाते हैं. पुलिस का काम पुलिसिंग का 2 पार्ट प्रिवैंशन और डिटैक्शन होता है. प्रिवैंशन का मतलब अपराध की रोकथाम के लिए किए जाने वाले उपाय. अपराध हो जाने के बाद पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए जो कार्यवाही करती है, वह डिटैक्शन के तहत आता है.

पुलिस डिटैक्शन पर ज्यादा ध्यान देती है. ठगी, चोरी, लूटपाट की वारदात होने के बाद पुलिस इन्हें पकड़ने में ज्यादातर नाकाम ही साबित होती है. अपराध हो ही न, इस के लिए पुलिस प्रशासन को प्रिवैंशन की प्राथमिकता देनी चाहिए. इस के लिए पुराने अपराधियों पर निगाह रखी जानी चाहिए. बाहर से आने वालों पर कड़ी निगाह रखी जाए. बदमाशों के जमावड़े वाले ठिकाने जैसे ढाबा, गुमटियां और गलीमहल्लों में लगातार छापेमारी की जानी चाहिए. प्रिवैंशन का खास तरीका गश्त होता है. गश्त में पुलिस को पूरी ताकत  झोंकनी चाहिए.

Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 1

3 अक्तूबर, 2017 को भैरवनाथ के छोटे बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने इस अवसर पर घर पर एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी में भैरवनाथ ने बोकारो से अपने पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री देवी को भी धनबाद में अपने कमरे पर बुला लिया था. पार्टी में भैरवनाथ ने कालोनी में रहने वाले अपने कुछ जानने वालों को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी में भैरवनाथ के बच्चों ने भी खूब मजे किए. बच्चों के साथ बड़ों ने भी इस मौके पर खूब डांस किया था.

कुल मिला कर पार्टी सब के लिए यादगार रही. पार्टी एंजौय से घर के सभी लोग थक गए थे. उन की टांगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था, इसलिए वे अपनेअपने कमरों में सोने के लिए चले गए. थकान की वजह से उन्हें जल्द ही नींद भी आ गई.

अगली सुबह रोजमर्रा की तरह घर में सब से पहले राजेंद्र प्रसाद उठे. देखा घर में सन्नाटा पसरा था. उन्होंने सोचा कि रात काफी देर तक बच्चों ने पार्टी का आनंद लिया था, उस की थकान की वजह से देर तक सो रहे हैं.

यही सोचते हुए वह घर से वह बाहर टहलने के लिए निकल गए. थोड़ी देर बाद जब वह वापस घर लौटे तो घर में वैसा ही सन्नाटा था, जैसा जाने से पहले था. यह देख कर उन का माथा ठनका. ऐसा पहली बार हुआ था कि जब बहू अनुपमा और बच्चे इतनी देर तक सो रहे हैं. वह बच्चों को उठाना चाहते थे.

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राजेंद्र प्रसाद पहले बेटे भैरवनाथ के कमरे तक गए तो उस के कमरे पर बाहर से सिटकनी बंद मिली. यह देख कर वे चौंक गए कि सुबहसुबह बेटा और बहू बच्चों को ले कर कहां चले गए, जबकि बाहर जाते हुए वह उन्हें दिखाई भी नहीं दिए थे. सिटकनी खोल कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे से भीतर झांका तो बुरी तरह चौंके. बैड पर बहू अनुपमा और दोनों बच्चों की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं. वे चीखते हुए उल्टे पांव वहां से भाग खड़े हुए.

चीखने की आवाज सुन कर उन की पत्नी गायत्री देवी की नींद टूट गई. वह तेजी से उस ओर लपकीं, जिस तरफ से आवाज आई थी. उन्होंने देखा कि आंगन के पास उन के पति खड़े थरथर कांप रहे थे. अभी भी गायत्री ये नहीं समझ पा रही थीं कि उन्होंने ऐसा क्या देख लिया जो कांप रहे हैं. उन्होंने पति को झकझोरते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे भैरव की मां, गजब हो गया. किसी ने बहू और दोनों बच्चों का कत्ल कर दिया है. बिस्तर पर तीनों की लाशें पड़ी हैं.’’ कह कर राजेंद्र प्रसाद जोरजोर से रोने लगे.

इतना सुनना था कि गायत्री भी रोनेबिलखने लगीं. वह रोती हुई बोलीं, ‘‘अरे भैरव को बुलाओ, देखो कहां है?’’

‘‘घर में वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं सुबहसुबह कहां चला गया.’’ राजेंद्र प्रसाद ने कहा.

भैरवनाथ के घर में सुबहसुबह रोने की आवाज पड़ोसियों ने सुनी तो वे भी परेशान हो गए. इंसानियत के नाते कुछ लोग भैरवनाथ के घर जा पहुंचे. कमरे में 3-3 लाशें देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस के बाद तो देखतेदेखते वहां मोहल्ले के काफी लोग जमा हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना को देख कर लोगों का कलेजा कांप उठा. उसी दौरान किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. धनबाद की न्यू कालोनी जहां यह घटना घटी थी, वह क्षेत्र बरवा अड्डा के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना थाना बरवा अड्डा को प्रसारित कर दी गई.

तिहरे हत्याकांड की सूचना मिलते ही बरवा अड्डा के थानाप्रभारी मनोज कुमार एसआई दिनेश कुमार और अन्य पुलिस वालों के साथ न्यू कालोनी पहुंच गए. यह जानकारी उन्होंने एसपी पीयूष कुमार पांडेय और डीएसपी मुकेश कुमार महतो को भी दे दी. सूचना दे कर उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच शुरू कर दी थी. छानबीन के दौरान सब से पहले थानाप्रभारी मनोज कुमार ने राजेंद्र प्रसाद और उन की पत्नी गायत्री देवी से पूछताछ की. उन से पता चला कि भैरवनाथ सुबह से ही गायब है. वह कहीं दिखाई नहीं दिया. यह सुन कर थानाप्रभारी का माथा ठनका.

लाश के पास धमकी भरा पत्र भी मिला

छानबीन के दौरान घटनास्थल से आधार कार्ड की फोटोकौपी पर लाल स्याही से लिखा धमकी भरा 3 पन्नों का खत मिला. खत सिरहाने दूध की बोतल के नीचे दबा कर रखा गया था. लिखने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा था. इस में अज्ञात ने राजेंद्र प्रसाद को धमकी दी थी, ‘‘गवाही देने के चलते तुम्हारे बेटे भैरवनाथ का अपहरण कर के ले जा रहे हैं. उस की भी लाश मिल जाएगी. तुम्हारे बेटे ने एक लाख दिया है. 2 लाख रुपए दे कर इसे ले जाना. पुलिस को इस की सूचना नहीं देना वरना अंजाम और भयानक हो सकता है.’’

पत्र पढ़ कर पुलिस को किसी साजिश की आशंका होने लगी.

पुलिस को शक था कि भैरवनाथ ने ही हत्या की वारदात को अंजाम देने के बाद जांच को गुमराह करने के लिए यह पत्र लिखा है. पुलिस कई बिंदुओं पर छानबीन करने लगी.

राजेंद्र प्रसाद से पुलिस ने भैरवनाथ का मोबाइल नंबर लिया. पुलिस ने जब उस नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पुलिस ने मौके से बरामद पत्र को अपने कब्जे में ले लिया ताकि उसे जांच के लिए भेजा जा सके.

लाशों का मुआयना करने पर पता चला कि तीनों की हत्याएं अलगअलग तरीके से की गई थीं. अनुपमा का किसी चीज से गला घोंटा गया था, जबकि दोनों बच्चों की हत्या गला रेत कर की गई थी. दूसरे कमरे में अनुपमा के कपड़े फर्श पर बिखरे पड़े मिले थे. अलमारी भी खुली हुई थी. लग रहा था जैसे उस में कुछ ढूंढा गया हो.

सीआईएसएफ की डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल की जांच की. खोजी कुत्ता शव को सूंघने के बाद घर की सीढ़ी से छत के ऊपर गया और फिर नीचे उतर कर घर से करीब ढाई सौ मीटर दूर एक जुए के अड्डे तक पहुंचा. वहां शराब की बोतल और ग्लास मिले. टीम को शक हुआ कि हत्या के बाद हत्यारों ने यहां आ कर शराब पी होगी.

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सूचना पा कर अनुपमा के पिता राजेंद्र राय परिवार के अन्य लोगों के साथ हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा से मौके पर पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी और उस के बच्चों को भैरवनाथ, उस के पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री ने मिल कर मारा है.

उन से बातचीत करने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के जब लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी की, तभी अनुपमा के घर वालों ने पुलिस का विरोध करते हुए मांग की कि पहले आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए. घटना की सूचना पर विधायक फूलचंद मंडल, जिला पंचायत सदस्य दुर्योधन प्रसाद चौधरी, कांग्रेस नेता उमाचरण महतो आदि ने मौके पर पहुंच कर पीडि़त परिवार के लोगों को ढांढस बंधाया और एसपी पीयूष कुमार पांडेय से हत्या में शामिल लोगों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

एसपी ने आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. उन के आश्वासन के बाद ही घर वालों ने शव उठाने दिए.

अगले भाग में पढ़ें- अफेयर बना कलह की वजह

Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 3

सौजन्य-मनोहर कहानियां

राजेंद्र काफी समझदार और सुलझे हुए इंसान थे. इस बात को वह अच्छी तरह से समझ रहे थे कि दामाद ने जो किया है, वह उचित नहीं है. लेकिन गलतियां इंसान से ही होती हैं.

उस से भी एक भूल हुई है. निश्चय ही उस की यह पहली गलती है, अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे एक मौका देना चाहिए. उन्होंने बेटी को समझाया. जमाने भर की उसे नसीहत दी, तब जा कर वह पति के पास लौट जाने को तैयार हुई.

माफी मांगने के बाद भी मिलता रहा प्रेमिका से

उस के बाद राजेंद्र ने इस संबंध में दामाद से बात की. उसे समझाया कि उस ने जो किया है, वह गलत है. फिर कहा, ‘‘तुम्हारा भरपूरा परिवार है. पत्नी और 2 बच्चे हैं. उन मासूम बच्चों का तनिक भी खयाल नहीं आया.’’

ससुर की बात सुन कर भैरव काफी शर्मिंदा हुआ. उस ने ससुर से वादा किया कि उस से दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. यह जून, 2017 की बात है.

एक महीने अनुपमा मायके में रही. पिता के समझाने के बाद वह बच्चों को ले कर पति के पास धनबाद लौट आई. भैरवनाथ ने पत्नी को भरोसा दिया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा. लेकिन कुछ दिनों बाद भैरव फिर पुरानी हरकतें करने लगा. लेकिन इस बार सजग हो कर और पत्नी से छिप कर प्रेमिका रूपा से बातें करता था. फिर भी अनुपमा को पति पर शक हो गया कि वह अभी भी रूपा से बातें करता है.

इस बार अनुपमा ने हजारीबाग के रेवाली के रहने वाले अपने ममेरे भाई विवेक राय से बात की. वह भी धनबाद में ही रहता था. विवेक ने किसी तरह उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि भैरव किसी एक नंबर पर ज्यादा बातें करता है. उस नंबर पर विवेक ने काल की तो उसे एक महिला ने रिसीव किया. यह बात विवेक ने अनुपमा को बता दी. अब अनुपमा का शक यकीन में बदल गया कि भैरव के अभी भी रूपा से संबंध बने हुए हैं.

इस के बाद रूपा को ले कर अनुपमा का पति से रोज झगड़ा होने लगा. घर की सारी बातें भैरव रूपा से बता देता था. उसे रूपा दिलोजान से मोहब्बत करती थी. उस से अलग रहने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी. ऐसा ही हाल भैरव का भी था. वह रूपा के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन रूपा भैरव के साथ रहने की जिद पर अड़ गई लेकिन पत्नी अनुपमा इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. भैरव भारी दबाव में था. इस कारण वह तनाव में रहने लगा. वह किसी भी हालत में रूपा को नहीं छोड़ना चाहता था.

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अपनी पत्नी और बच्चे उसे रास्ते का कांटा दिखने लगे क्योंकि उन के होते हुए वह रूपा को घर नहीं ला सकता था. अंत में उस ने पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उसे बेटे अभय के जन्मदिन का मौका सब से अच्छा लगा.

3 अक्तूबर, 2017 को भैरव के बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने एक पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में उस के मांबाप, मकान में रह रहे अन्य किराएदार, कुछ रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों के अलावा रूपा भी आई थी. रूपा को जैसे ही अनुपमा ने देखा, उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब पार्टी का मजा किरकिरा हो गया. अनुपमा आगबबूला हो गई और रूपा से उलझ गई. दोनों में काफी झगड़ा हुआ.

वह कभी नहीं चाहती थी कि उस की सौतन बनी रूपा उस के पति के गले की हड्डी बन जाए. रूपा समझ गई थी कि अनुपमा उसे देख कर खुश नहीं है. लेकिन उसे इस से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था.

वह अपनी राह के रोड़े को जल्द से जल्द हटा हुआ देखना चाहती थी. रूपा पार्टी के दौरान भैरव को बारबार उकसाती रही कि मौका अच्छा है, हाथ से जाना नहीं चाहिए. बहरहाल, रात साढ़े 9 बजे केक कटा और खुशी का माहौल था. पार्टी के बाद बाहर के आए लोग अपने घरों को चले गए. रात साढ़े 12 बजे बिजली गुल हो गई, जो करीब 2 बजे आई. तब तक घर के लोग जागे हुए थे. बिजली आने के बाद परिवार के सभी लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

आभा और अभय दादी गायत्री देवी के कमरे में सो रहे थे. भैरव ने दादी के पास सो रहे बच्चों को अपने बैडरूम में पत्नी के पास ला कर सुला दिया. क्योंकि उसे अपनी योजना को अंजाम जो देना था. उधर रूपा के आने से नाखुश अनुपमा पहले ही कमरे में आ कर सो गई थी. बिजली आने के बाद रूपा अपने दूसरे रिश्तेदार के यहां चली गई ताकि उस पर कोई संदेह न करे.

ऐसे दिया वारदात को अंजाम

योजना के अनुसार, तड़के 3 बजे के करीब भैरवनाथ दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा. कमरे से निकल कर बाहर आया. दूसरे कमरे में सो रहे मांबाप के दरवाजे पर उस ने सिटकनी चढ़ा दी. फिर लौट कर वह अपने कमरे में आया, जहां पत्नी और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने जूते के फीते से पत्नी का गला उस वक्त तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. फिर बाजार से खरीद कर लाए चाकू से पहले बेटी आभा फिर अभय का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

उस नराधम का ऐसा करते हुए एक बार भी हाथ नहीं कांपा. फिर साक्ष्य छिपाने और खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से लिखे 3 पन्नों के लेटर को बैड के पास ऐसे मोड़ कर रखा ताकि किसी की भी नजर उस पर आसानी से पड़ जाए.

घटना को अंजाम देने के बाद भैरवनाथ भोर में 4 बजे के करीब भाग कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से होते हुए रांची चला गया. वहां से पटना होते हुए मुंबई चला गया. मुंबई में ठिकाना नहीं मिलने पर फ्लाइट से फिर पटना लौटा और पटना से रांची होते हुए 14 अक्तूबर को बोकारो के जैनामोड़ पहुंचा.

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उस के पास के सारे पैसे खत्म हो चुके थे, इसलिए वहां के एक दुकानदार के पास अपना मोबाइल गिरवी रख दिया. उस ने खुदकुशी के इरादे से जैनामोड़ में ही सल्फास की 4 गोलियां खा लीं और अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही तबीयत बिगड़ने पर परिजनों ने उसे बीजीएच हौस्पिटल में भरती करा दिया, जहां से धनबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस से सल्फास की गोलियों के बारे मे पूछताछ की तो उस ने मोबाइल गिरवी रख कर सल्फास खरीदे जाने की बात बताई. पुलिस उसे ले कर उस दुकान पर पहुची, जहां उस ने अपना फोन गिरवी रखा था. भैरवनाथ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त जूते का फीता और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के आरोप में रूपा देवी को उस की ससुराल भाटडीह, मुदहा से 24 अक्तूबर, 2017 को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की जांच थानाप्रभारी मनोज कुमार कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और सोशल मीडिया पर आधारित

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