Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 2

तीनों लाशों का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट में बताया कि किसी पतले तार से अनुपमा का गला घोंटा गया था.

जबकि दोनों बच्चों अभय कुमार व आभा कुमारी का गला किसी धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से उन की श्वांस नली कट गई थी. आगे की जांच के लिए तीनों का विसरा भी सुरक्षित रख लिया गया था.

राजेंद्र प्रसाद की तहरीर पर थानाप्रभारी मनोज कुमार ने फरार उन्हीं के बेटे भैरवनाथ शर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उसे तलाश करने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं.

पुलिस ने अनुपमा के परिजनों से पूछताछ की तो उस के पिता राजेंद्र राय ने चौंका देने वाली बात बताई, ‘‘दामाद भैरवनाथ से बेटी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे. बेटी के साथ वह अकसर मारपीट करता था.’’

अफेयर बना कलह की वजह

‘‘मारपीट करता था, क्यों?’’ इंसपेक्टर मनोज कुमार ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘मारपीट करने के पीछे कोई खास वजह थी क्या?’’

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‘‘जी सर, एक युवती से दामाद का अफेयर थे. अनुपमा पति की करतूत को जान चुकी थी. वह ऐसा करने से मना करती थी. इसी बात से चिढ़ कर वह उसे मारतापीटता था.’’

‘‘वह युवती कौन है? उस का नामपता वगैरह कुछ है?’’ मनोज कुमार ने पूछा.

‘‘हां है, सब कुछ है. युवती का नाम रूपा देवी है और उस का मोबाइल नंबर ये है..’’ कहते हुए राजेंद्र राय ने पौकेट डायरी निकाल कर उस में से रूपा का नंबर उन्हें बता दिया. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से वह नंबर डायल किया तो वह नंबर बंद मिला.

पुलिस टीम ने भैरवनाथ को पकड़ने के लिए उस के खासखास ठिकानों पर दबिश दी. मुखबिरों को भी लगा दिया. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. घटना हुए 9 दिन बीत गए, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस मायूस नहीं हुई. वह उस की तलाश में जुटी रही.

10वें दिन यानी 14 अक्तूबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को एक खास सूचना दी.  उस ने पुलिस को बताया कि आरोपी भैरवनाथ ने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. वह बोकारो के एक प्राइवेट अस्पताल की आईसीयू में भरती है.

पुलिस टीम बिना समय गंवाए बोकारो रवाना हो गई. सब से पहले बोकारो के उस अस्पताल पहुंची, जहां भैरवनाथ का इलाज चल रहा था. वह वहीं मिल गया. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों की सलाह मानते हुए पुलिस ने उसे उसी अस्पताल में भरती रहने दिया और खुद उस की निगरानी में लगी रही.

3 दिन बाद जब भैरव की हालत सामान्य हुई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर धनबाद ले आई. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस को पत्नी और बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली –

34 वर्षीय अनुपमा मूलरूप से झारखंड के हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा की रहने वाली थी. उस के पिता राजेंद्र राय ने सन 2013 में बड़ी धूमधाम से उस की शादी बोकारो के पुडरू गांव के रहने वाले भैरवनाथ शर्मा से की थी. भैरव के साथ अनुपमा हंसीखुशी से रह रही थी. बाद में वह एक बेटी और एक बेटे की मां भी बनी.

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जीविका चलाने के लिए भैरवनाथ पत्नी और बच्चों को ले कर बोकारो से धनबाद आ गया था और वहां न्यू कालोनी में किराए के 2 कमरे ले कर रहने लगा. उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली.

जब दो पैसे की बचत होने लगी तो उस ने मातापिता को अपने पास बुला लिया. मातापिता कुछ दिनों उस के पास और कुछ दिनों गांव में रहने लगे. बड़ी हंसीखुशी के साथ परिवार के दिन कटने लगे. यह बात सन 2015 के करीब की है.

साल भर बाद भैरवनाथ और अनुपमा की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने दोनों की जिंदगी तिनके के समान बिखेर कर रख दी. घर की खुशियों में आग लगाने वाली उस तूफान का नाम था रूपा देवी.

दरअसल रूपा देवी भैरवनाथ की चचेरी भाभी थी. उस का परिवार बोकारो के भाटडीह मुदहा में रहता है. 2 साल पहले उस के पति की लीवर कैंसर से मौत हो गई थी. उस दौरान भैरव ने चचेरे भाई की तीमारदारी में तनमन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. भाई को बचाने के लिए उस ने दिनरात एक कर दिया था.

भाई की मौत के बाद भैरव भाभी रूपा देवी का दुख देख कर टूट गया. उसे उस समय बड़ा दुख होता था, जब वह जवान भाभी के तन पर सफेद साड़ी देखता था. सफेद साड़ी के बीच लिपटी रूपा का मन उसे रंगीन दिखता था. दरअसल, पति की तीमारदारी के दौरान रूपा का झुकाव भैरव की ओर हो गया था. रंगीनमिजाज भैरव ने भाभी के निमंत्रण को कबूल कर लिया था.

एक दिन दोनों ने मौका देख कर एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. ड्यूटी से लौट कर आने के बाद भैरव सारा काम छोड़ मोबाइल ले कर घंटों तक रूपा से प्यारभरी बातें करने बैठ जाता था. पत्नी जब पूछती कि किस से बातें कर रहे हो तो वह इधरउधर की बातें कह कर टाल देता था. उस के दबाव बनाने पर वह उस पर चिल्ला पड़ता था.

जब पत्नी के सामने खुली भैरव की पोल

बात 1-2 बार की होती तो समझ में आती, लेकिन मोबाइल पर लंबीलंबी बातें करना तो भैरव की दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी. ड्यूटी से घर आने के बाद बच्चों का हालचाल लेना तो दूर की बात, उन की ओर देखता भी नहीं था और घंटों मोबाइल से चिपका रहता था.

पति की इस हरकत ने अनुपमा को उस पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया था. लेकिन वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि उस का पति उस के पीठ पीछे क्या गुल खिला रहा है. ये बातें ज्यादा दिनों तक कहां छिपती हैं. जल्द ही भैरव की सच्चाई खुल कर अनुपमा के सामने आ गई.

इस के बाद अनुपमा ने घर में विद्रोह कर दिया. कलई खुलते ही भैरवनाथ के सिर से इश्क का भूत उतर गया. अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए पत्नी के सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा कि अब ऐसा नहीं करेगा, गलती हो गई. पति के लाख सफाई देने के बावजूद अनुपमा ने पति की बातों पर यकीन नहीं किया. बच्चों को ले कर वह मायके चली गई. उस ने मांबाप से पति की करतूत बता दी.

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उस वक्त अनुपमा के पिता राजेंद्र राय ने भैरवनाथ से तो कुछ नहीं कहा, वह बेटी को ही समझाते रहे कि अगर पति को ऐसे ही छोड़ दोगी तो मामला बनने की बजाय और बिगड़ जाएगा. अपना गुस्सा थूक दो और पति के पास लौट जाओ पर अनुपमा ने पति के पास लौटने से साफ इनकार कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- ऐसे दिया वारदात को अंजाम

न्याय- क्या हुआ था रुकमा के साथ

सांझ का धुंधलका गहराते ही मुझे भय लगने लगता है. घर के  सामने ऊंचीऊंची पहाडि़यां, जो दिन की रोशनी में मुझे बेहद भली लगती हैं, अंधेरा होते ही दानव के समान दिखती हैं. देवदार के ऊंचे वृक्षों की लंबी होती छाया मुझे डराती हुई सी लगती है. समझ में नहीं आता दिन की खूबसूरती रात में इतनी डरावनी क्यों लगती है. शायद यह डर मेरी नौकरानी रुकमा की अचानक मृत्यु होने से जुड़ा हुआ है.

रुकमा को मरे हुए अब पूरा 1 माह हो चुका है. उस को भूल पाना मेरे लिए असंभव है. वह थी ही ऐसी. अभी तक उस के स्थान पर मुझे कोई दूसरी नौकरानी नहीं मिली है. वह मात्र 15 साल की थी पर मेरी देखभाल ऐसे करती थी जैसे मां हो या कोई घर की बड़ी.

मेरी पसंदनापसंद का रुकमा को हमेशा ध्यान रहता था. मैं उस के ऊपर पूरी तरह आश्रित थी. ऐसा लगता था कि उस के बिना मैं पल भर भी नहीं जी पाऊंगी. पर समय सबकुछ सिखा देता है. अब रहती हूं उस के बिना पर उस की याद में दर्द की टीस उठती रहती है.

वह मनहूस दिन मुझे अभी भी याद है. रसोईघर का नल बहुत दिनों से टपक रहा था. उस की मरम्मत के लिए मैं ने वीरू को बुलाया और उसे रसोईघर में ले जा कर काम समझा दिया तथा रुकमा को देखरेख के लिए वहीं छोड़ कर मैं अपनी आरामकुरसी पर समाचारपत्र ले कर पसर गई.

सुबह की भीनीभीनी धूप ने मुझे गरमाहट पहुंचाई और पहाडि़यों की ओर से बहने वाली बयार ने मुझे थपकी दे कर सुला दिया था.

अचानक झटके से मेरी नींद खुल गई. ध्यान आया कि नल मरम्मत करने आया वीरू अभी तक काम पूरा कर के पैसे मांगने नहीं आया था. हाथ में बंधी घड़ी देखी तो उसे आए पूरा 1 घंटा हो चुका था. इतने लंबे समय तक चलने वाला काम तो था नहीं. फिर मैं ने रुकमा को कई बार आवाज दी पर उत्तर न पा कर कुछ विचित्र सा लगा क्योंकि वह मेरी एक आवाज सुनते ही सामने आ कर खड़ी हो जाती थी. मजबूर हो कर मैं खुद अंदर पता लगाने गई.

रसोईघर का दृश्य देख कर मैं चौंक गई. गैस बर्नर के ऊपर दूध उफन कर बह गया था जिस के कारण लौ बुझ गई थी और गैस की दुर्गंध वहां भरी हुई थी. वीरू और रुकमा अपने में खोएखोए रसोईघर में बने रैक के सहारे खडे़ हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. सहसा मुझे प्रवेश करते देख दोनों अचकचा गए.

मैं ने क्रोधित हो कर दोनों को बाहर निकलने का आदेश दिया. नाक पर कपड़ा रख कर पहले बर्नर का बटन बंद किया. फिर मरम्मत किए हुए नल की टोंटी की जांच की और बाहर आ गई. वीरू को पैसे दे कर चलता किया और रुकमा को चायनाश्ता लाने का आदेश दे कर मैं फिर आरामकुरसी पर आ बैठी.

वातावरण में वही शांति थी. लेकिन रसोईघर में देखा दृश्य मेरे दिलोदिमाग पर अंकित हो गया था. रुकमा चाय की ट्रे सामने तिपाई पर रखने के लिए जैसे ही मेरे सामने झुकी तो मैं ने नजरें उठा कर पहली बार उसे भरपूर नजर से देखा.

मेरे सामने एक बेहद सुंदर युवती खड़ी थी. वह छोटी सी बच्ची जिसे मैं कुछ साल पहले ले कर आई थी, जिसे मैं जानती थी, वह कहीं खो गई थी. मेरा ध्यान ही नहीं गया था कि उस में इतना बदलाव आ गया था. मेरी दी हुई गुलाबी साड़ी में उस की त्वचा एक अनोखी आभा से दमक रही थी. उस की खूबसूरती देख कर मुझे ईर्ष्या होने लगी.

मैं ने चाय का घूंट जैसे ही भरा, मुंह कड़वा हो गया. वह चीनी डालना भूल गई थी. वह चाय रखने के बाद हमेशा की तरह मेरे पास न बैठ कर अंदर जा ही रही थी कि मैं ने रोक लिया और कहा,  ‘‘रुकमा, यह क्या? चाय बिलकुल फीकी है और मेरा नाश्ता?’’

बिना कुछ कहे वह अंदर गई और चीनी का बरतन ला कर मेरे हाथ में थमा दिया.

मैं ने फिर टोका, ‘‘रुकमा, नाश्ता भी लाओ. कितनी देर हो गई है. भूल गई कि मैं खाली पेट चाय नहीं पीती.’’

वह फिर से अंदर गई और बिस्कुट का डब्बा उठा लाई और मुझे पकड़ा दिया. मैं ने चिढ़ कर कहा, ‘‘रुकमा, मुझे बिस्कुट नहीं चाहिए. सवेरे नाश्ते में तुम ने कुछ तो बनाया होगा? जा कर लाओ.’’

वह अंदर चली गई. बहुत देर तक जब वह वापस नहीं लौटी तो मैं चाय वहीं छोड़ कर उसे देखने अंदर गई कि आखिर वह बना क्या रही है.

वह रसोईघर में जमीन पर बैठी धीरेधीरे सब्जी काट रही थी. उस का ध्यान कहीं और था. मेरे आने की आहट भी उसे सुनाई नहीं दी. कुछ ही घंटों में उस में इतना अंतर आ गया था. पल भर के लिए चुप न रहने वाली रुकमा ने अचानक चुप्पी साध ली थी.

रोज मैं उसे अधिक बोलने के लिए लताड़ लगाती थी पर आज मुझे उस का चुप रहना बुरी तरह अखर रहा था.

सिर से पानी गुजरा जा रहा था. मैं ने उस से दोटूक बात की, ‘‘रुकमा, जब से वह सड़कछाप छोकरा वीरू नल ठीक करने आया, तुम एकदम लापरवाह हो गई हो. क्या कारण है?’’

मेरे बारबार पूछने पर भी उस का मुंह नहीं खुला. मानो सांप सूंघ गया हो. उस के इस तरह खामोश होने से दुखी हो कर मैं ने उस वीरू के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि वह विवाहिता है तथा 2 छोटे बच्चे भी हैं. यह भी पता चला कि वह और रुकमा अकसर सब्जी की दुकान में मिला करते हैं.

मुझे रुकमा का विवाहित वीरू से इस तरह मिलने की बात सुन कर बहुत बुरा लगा. यह मेरी प्रतिष्ठा का प्रश्न था. उस की बदनामी के छींटे मेरे ऊपर भी गिर सकते थे. मैं रुकमा को बुला कर डांटने का विचार कर ही रही थी कि गेट के बाहर जोरजोर से बोलने की आवाज सुनाई दी. देखा, एक बूढ़ा व्यक्ति मैलेकुचैले कपड़ों में अंदर आने की कोशिश कर रहा है और चौकीदार उसे रोक रहा है. मैं ने ऊंचे स्वर में चौकीदार को आदेश दिया कि वह उसे अंदर आने दे.

आते ही वह बुजुर्ग मेरे पैरों पर गिर कर रोने लगा. बोला, ‘‘मां, मेरी बेटी का घर बचाओ. मेरा दामाद आप की नौकरानी रुकमा से शादी करने के लिए मेरी बेटी को छोड़ रहा है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारा दामाद कौन, वीरू?’’

प्रत्युत्तर में वह जमीन पर सिर पटक कर रोने लगा. मैं भौचक्की सी सोचने लगी ‘तो मामला यहां तक बिगड़ चुका है.’

मैं ने उसे सांत्वना देते हुए वचन दिया कि मैं किसी भी हालत में उस की बेटी का घर नहीं उजड़ने दूंगी.

आश्वस्त हो कर जब वह चला गया तो रुकमा को बुला कर मैं ने बुरी तरह डांटा और धमकाया, ‘‘बेशर्म कहीं की, तुझे शादी की इतनी जल्दी पड़ी है तो अपने बापभाई से क्यों नहीं कहती? विवाहित पुरुष के पीछे पड़ कर उस की पत्नी का घर बरबाद क्यों कर रही है? मैं आज ही तेरे भाई को बुलवाती हूं.’’

वह अपने बाप से ज्यादा हट्टेकट्टे भाई से डरती थी जो जरा सी बात पर झगड़ा करने और किसी को भी जान से मार देने की धमकी के लिए मशहूर था. रुकमा बुरी तरह से डर गई. बहुत दिनों बाद उस की चुप्पी टूटी. बोली, ‘‘अब मैं उस की ओर देखूं भी तो आप सच में मेरे भाई को खबर कर देना.’’

कान पकड़ कर वह मेरे पैरों में झुक गई. इस घटना के बाद सबकुछ सामान्य सा हो गया प्रतीत होता था. मैं अपने काम में व्यस्त हो गई.

मुश्किल से 15 दिन ही बीते थे कि एक दिन दोपहर में जब मैं बाहर से घर लौटी तो दरवाजे पर ताला लगा देख कर चौंक गई. रुकमा कहां गई? यह सवाल मेरे दिमाग में रहरह कर उठ रहा था. खैर, पर्स से घर की डुप्लीकेट चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर गई तो घर सांयसांय कर रहा था. दिल फिर से आशंका से भर गया और रुकमा की अनुपस्थिति के लिए वीरू को दोषी मान रहा था.

शाम हो गई थी पर रुकमा अभी तक लौटी नहीं थी. चौकीदार सब्जी वाले के  यहां पता लगाने गया तो पता चला कि आज दोनों को किसी ने भी नहीं देखा. वीरू के घर से पता चला कि वह भी सवेरे से निकला हुआ था. आशंका से मेरा मन कांपने लगा.

2 दिन गुजर गए थे. वीरू व रुकमा का कहीं पता नहीं था. मैं ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी थी. किसी ने रुकमा के बाप व भाई को भी सूचित कर दिया था. सब हैरान थे कि वे दोनों अचानक कहां गुम हो गए. पुलिस जंगल व पहाडि़यों का चप्पाचप्पा छान रही थी. उधर रुकमा का भाई अपने हाथ में फसल काटने वाला चमचमाता हंसिया लिए घूमता दिखाई दे रहा था.

एक सप्ताह बाद मुझे पुलिस ने एक स्त्री की क्षतविक्षत लाश की शिनाख्त करने के लिए बुलवाया जोकि पहाडि़यों के  पास जंगली झाडि़यों के झुरमुट में पड़ी मिली थी. लाश के ऊपर की नीली साड़ी मैं तुरंत पहचान गई जोकि रुकमा ने मेरे घर से जाते समय चुरा ली थी. मुझे लाश पहचानने में तनिक भी समय नहीं लगा कि वह रुकमा ही थी.

रुकमा का मृत शरीर मिल गया था. पर वीरू का कहीं पता नहीं था और उस का भाई अब भी हंसिया लिए घूम रहा था. चौकीदार ने बताया कि पहाड़ी लोग अपने घरपरिवार को कलंकित करने वाली लड़की या स्त्री को निश्चित रूप से मृत्युदंड देते हैं. साथ ही वह उस के प्रेमी को भी मार डालते हैं जिस के  कारण उन के घर की स्त्री रास्ता भटक जाती है.

मुझे दुख था रुकमा की मृत्यु का. उस से भी अधिक दुख था मुझे कि मैं वीरू की पत्नी का घर बचाने में असमर्थ रही थी. मैं बारबार यही सोचती कि आखिर वीरू गया कहां? मैं इसी उधेड़बुन में एक शाम रसोईघर में काम कर रही थी कि पिछवाड़े किसी के चलने की पदचाप सुनाई दी. सांस रोक कर कान लगाया तो फिर से किसी के दबे पैरों की पदचाप सुनाई दी. हिम्मत बटोर कर जोर से चिल्लाई ‘‘कौन है? क्या काम है? सामने आओ, नहीं तो पुलिस को फोन करती हूं.’’

रसोईघर के पिछवाड़े की ओर खुलने वाली खिड़की के सामने जो चेहरा नजर आया उसे देख कर मेरे मुंह से मारे खुशी के आवाज निकल गई, ‘‘तुम जीवित हो?’’

वह वीरू था. फटेहाल, बदहवास चेहरा, मेरे घर के पिछवाडे़ में घने पेड़ों के बीच छिपा हुआ था. किसी ने भी मेरे घर के पीछे उसे नहीं खोजा था. वह डर के मारे बुरी तरह कांप रहा था.

मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे चौकीदार की चौकन्नी आंखों से वह कैसे बचा रहा. मुझे भी उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने नल ठीक करने के साथ रुकमा को बिगाड़ दिया था. मन करने लगा कि लगाऊं उसे 2-4 थप्पड़. पर उस की हालत देख कर मैं ने क्रोध पर काबू पाना ही उचित समझा.

पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर उसे रात के घुप अंधेरे में चुपचाप अंदर बुला लिया क्योंकि मुझे उस की पत्नी व बच्चों को उन का सहारा लौटाना था. मैं ने उसे खाने को दिया और वह उस पर टूट पड़ा. उस का खाना देख कर लगा कि भूख भी क्या चीज है.

वीरू के खाना खा लेने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने यह बहुत घिनौना काम किया है कि विवाहित हो कर भी एक कुंआरी लड़की को अपने जाल में फंसाया. तुम्हारे कारण ही उस की हत्या हुई है. तुम दोषी हो अपनी पत्नी व बच्चों के, जिन्हें तुम ने धोखा दिया. तुम ने तो रुकमा से कहीं अधिक बड़ा अपराध किया है. तुम्हारे साथ मुझे जरा भी सहानुभूति नहीं है पर मैं मजबूर हूं तुम्हारी रक्षा करने के लिए क्योंकि मैं ने तुम्हारी मासूम पत्नी के पिता को वचन दिया है कि उस की बेटी का घर मैं कदापि उजड़ने नहीं दूंगी.’’

ऐसा कहते हुए मैं ने उसे रसोईघर के भंडारगृह में बंद कर ताला लगा दिया. वीरू, रुकमा तथा उस का भाई तीनों अपराधी थे. लेकिन इन के अपराध की सजा वीरू की पत्नी व बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए. करे कोई, भरे कोई. इन्हें न्याय दिलवाना ही होगा तो इस के लिए मुझे वीरू की रक्षा करनी होगी.

मुझे वीरू से पता चला कि रुकमा की हत्या के अपराध में उस के जिस भाई को पुलिस ढूंढ़ रही थी वह उस के घर में घात लगाए उस की बीवी व बच्चों को बंधक बना कर छिपा बैठा था. इस रहस्य को केवल वही जानता था क्योंकि रात के अंधेरे में जब वह अपने बीवीबच्चों से मिलने गया था तो तब उस ने उस को वहां छिपा हुआ देखा था.

वीरू को सुरक्षित ताले में बंद कर मैं आश्वस्त हो गई और फिर तुरंत ही रुकमा के भाई को सजा दिलवाने के लिए मैं ने पुलिस को फोन द्वारा सूचित कर दिया. यही एक रास्ता था मेरे पास अपना वचन निभाने का और वीरू की पत्नी व बच्चों का सहारा लौटा कर घर बचाने का, उन्हें न्याय दिलाने का.

मेरी शिकायत पर पुलिस रुकमा के भाई को पकड़ कर ले गई. मैं ने ताला खोल कर वीरू को बाहर निकाल कर कहा, ‘‘जाओ, अपने घर निश्ंिचत हो कर जाओ. अब तुम्हें रुकमा के भाई से कोई खतरा नहीं है. वह जेल में बंद है.’’

वीरू ने अपने घर जाने से साफ मना कर दिया. वह अब भी भयभीत दिखाई दे रहा था. मेरा माथा ठनका. रहस्य और अधिक गहराता जा रहा था. मैं ने उस से बारबार पूछा तो वह चुप्पी साधे बैठा रहा.

मैं क्रोध से चीखी, ‘‘आखिर अपने ही घर में तुम्हें किस से भय है? मैं तुम्हें सदा के लिए यहां छिपा कर नहीं रख सकती. अगर तुम ने सच बात नहीं बताई तो मैं तुम्हें भी पुलिस के हवाले कर दूंगी. क्योंकि सारी बुराई की जड़ तो तुम्ही हो.’’

वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘मांजी, किसी से मत कहिएगा, मेरे बच्चे बिन मां के हो जाएंगे. मेरी पत्नी ने मेरे ही सामने रुकमा की हत्या की थी और अब वह मेरे खून की भी प्यासी है. मुझे यहीं छिपा लो.’’

कहते हुए वह फफकफफक कर रोने लगा.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 3

सलोनी की बात सुनते ही पास खड़ी महिला सिपाही ने उसे मारने के लिए हाथ ऊपर किया, लेकिन राम सिंह ने उसे रोक दिया और सलोनी से पूछा, ‘‘तो तुम्हारी उंगलियों के निशान उस छड़ पर कैसे आए?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम साहब… मुझे नहीं मालूम,’’ कहते हुए सलोनी फूटफूट कर रोने लगी. दारोगा राम सिंह बाहर निकला तो उस ने सुधीर को बच्चों के साथ थाने की बैंच पर बैठा पाया.

दारोगा राम सिंह ने सुधीर से कहा, ‘‘तुम अपने वकील से बात कर लो. अगर वकील रखने में पैसों की समस्या आ रही है तो कोर्ट में अर्जी दे देना. कोर्ट तुम को वकील मुहैया कराएगा.’’

दारोगा राम सिंह को उन लोगों से हमदर्दी होने लगी थी, क्योंकि उस ने सुखलाल का असली रूप वीडियो में देख लिया था, लेकिन सुधीर गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘मुझे कोई वकील नहीं करना साहब. मैं क्यों परेशान होऊं उस के लिए, जो उस सुखलाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी और मुझे ही जेल भिजवा दिया था. हो गया होगा दोनों में पैसों को ले कर झगड़ा और यह खून हो गया.’’

‘‘ऐसा नहीं है सुधीर…’’ दारोगा राम सिंह ने उसे समझाया, ‘‘गैरकानूनी हथियार रखने के जुर्म में तुम्हारी जो गिरफ्तारी पहले हुई थी, वह सुखलाल ने केवल तुम्हारी बीवी को पाने के लिए साजिशन कराई थी. इस में तुम्हारी बीवी का कोई कुसूर नहीं था. वह बेचारी तो बस तुम्हारे लिए उस के आगे झुकती चली गई. वह तुम से और केवल तुम से ही प्यार करती है.’’

सुधीर हैरानी से दारोगा राम सिंह का मुंह ताकने लगा. राम सिंह ने सुखलाल के मोबाइल फोन में मिला वही वीडियो उस के आगे चला दिया.

‘‘नहींनहीं… बंद कीजिए इसे दारोगा बाबू,’’ वीडियो देखता हुआ सुधीर चिल्लाया. सलोनी के शरीर पर सुखलाल का हाथ लगने वाला सीन वह नहीं देख पाया और वहीं बैठ कर रोने लगा. सलोनी के प्रति उस का शक आंसुओं से बाहर निकल चुका था.

सुधीर बोला, ‘‘मैं तो उसी रात सुखलाल को मारने उस के कमरे में गया था साहब, जिस के अगले दिन उस की लाश मिली. उस समय वह सो रहा था, लेकिन कानूनी बंधन का डर मुझे रोकने में कामयाब हो गया और मैं घर से निकल कर पूरी रात तनाव में इधरउधर भटकता रहा.

‘‘कल दोपहर को घर लौटने पर उस हैवान के मरने की खुशखबरी मिली. खैर, चाहे उसे मेरी सलोनी ने मारा हो या जिस ने भी, मैं उस का शुक्रगुजार हूं.’’

पिता को यों रोते देख साथ खड़े बच्चे और भी सहम गए. राम सिंह ने सुधीर को उठाया और लौकअप की ओर इशारा किया. उस का संकेत समझ कर सुधीर बेतहाशा सलोनी से मिलने भागा. सलोनी भी उसे देखते ही उस की ओर दौड़ी, लेकिन दीवार बनी सलाखों ने उस के पैर रोक दिए.

सुधीर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चिंता मत करना. चाहे जैसे भी हो, तुम को यहां से मैं छुड़ा कर ले जाऊंगा, वरना अपनी भी जान दे दूंगा,’’ इतना कह कर वह वहां से चल दिया.

कुछ दिन बीत गए. दारोगा राम सिंह का बचपन एक अनाथ के रूप में बीता था. मांबाप के बिना बच्चों की क्या हालत होती है, वह अच्छी तरह जानता था. सलोनी थाने में बंद थी और सुधीर वकील खोजने में. ऐसे में उस के बच्चे किस हाल में होंगे?

दारोगा राम सिंह को चिंता हुई तो वह अपनी पत्नी के साथ खानेपीने का कुछ सामान ले कर सुधीर के घर आया. उस का सोचना सही निकला और बच्चे बेसहारा जैसे घर में बैठे मिले.

दारोगा राम सिंह ने उन से पूछा, ‘‘पापा कहां हैं बेटा?’’

‘‘वे तो सुबह से बाहर गए हैं… हम को भूख लगी है, लेकिन पास वाली आंटी ने अभी तक खाना नहीं दिया,’’ बड़े वाले बेटे ने कहा.

दारोगा राम सिंह का कलेजा भर आया. उस ने अपनी बीवी की ओर देखा. राम सिंह की बीवी ने दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठाया और बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हारी आंटी हूं. देखो, मैं लाई हूं खाना.’’

वह उन को खाना खिलाने लगी. कुछ देर सकुचाने के बाद बच्चे उस से घुलनेमिलने लगे.

तभी छोटा वाला बेटा बोल पड़ा, ‘‘आंटीआंटी, मेरे भैया बहुत बहादुर हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या किया है भैया ने?’’

‘‘भैया ने उस विलेन अंकल को नीचे गिरा दिया, जो मम्मी को आएदिन परेशान करता था.’’

दारोगा राम सिंह को उस की यह बात सुन कर झटका लगा. उस ने तुरंत उस की ओर देखा, लेकिन फिर समझदारी से काम लेते हुए बड़े वाले बेटे से पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया जो तुम्हारा यह प्यारा सा छोटा भाई बता रहा है?’’

बड़ा वाला बेटा मुसकरा कर बोला, ‘‘अंकल, मम्मी कहती हैं कि मच्छर मारने वाली दवा पीने से आदमी मर जाता है, इसलिए मैं ने वही दवा उस विलेन अंकल के जूस में मिला दी थी. छोटे भाई ने तो मेरा फोटो भी लिया था.’’

दारोगा राम सिंह के कानों में जैसे बम फूट रहे थे. बड़े वाले बेटे ने उसे मोबाइल फोन में अपना वह फोटो भी दिखाया, जिस में वह सुखलाल के शराब की बोतल को जूस की बोतल समझ के उस में लिक्विडेटर मिला रहा था.

दारोगा राम सिंह कुछ और पूछता, इस से पहले ही छोटा वाला बेटा बोला, ‘‘रात को हम ने चुपके से सीढ़ी पर कंचे रख दिए थे… विलेन अंकल रोज की तरह बाथरूम जाने के लिए बाहर आए और फिसल कर नीचे गिर गए. इस का मैं ने वीडियो भी बनाया है. मेरे भैया… बहुत बहादुर…’’ कह कर वह ताली बजाने लगा.

दारोगा राम सिंह ने वीडियो लिस्ट से जल्दी से वह वीडियो खोजा. सचमुच उस में बड़ा वाला बेटा सीढ़ी पर कंचे रखता दिख रहा था और उस के तुरंत बाद सुखलाल अपना पेट पकड़े वहां आया क्योंकि लिक्विडेटर मिली शराब पी कर सोने के बाद शायद उस की तबीयत बिगड़ रही थी. उस का पैर इसी जल्दी में कंचों पर पड़ा और वह नीचे गिर गया, जहां जमीन पर पड़ी छड़ पेट में धंस गई होगी और वह मर गया.

चूंकि छड़ों के वे टुकड़े सलोनी ने ही उधर फेंके थे, सो उन पर उस की उंगलियों के निशान भी मिल गए, इस घटना का समय बिलकुल वही था जो पोस्टमार्टम में सुखलाल की मौत का बताया गया था.

‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया?’’ दारोगा राम सिंह ने बड़े बेटे से पूछा.

वह लड़का बोला, ‘‘वे विलेन अंकल मम्मी को हमेशा परेशान करते थे. मैं ने बहुत बार छिप कर देखा था. उस दिन मम्मी के सिर में उन्होंने ही चोट लगा दी थी. जब मैं स्कूल से आया तो पता चला और मुझे बहुत गुस्सा आया.’’

‘‘और यह मोबाइल फोन कहां से मिला तुम को?’’

‘‘यह नानाजी ने हम को दिया है वीडियो गेम खेलने के लिए,’’ बड़े बेटे के कहने के बाद वे दोनों बच्चे फिर खाना खाने लगे.

दारोगा राम सिंह ने अपनी पत्नी की ओर देखा. वह भी हैरान थी. उस ने पूछा, ‘‘बचपन को क्या सजा दी जाएगी?’’

‘‘बचपन किलकने के लिए होता है…’’ दारोगा राम सिंह का चेहरा अब तनाव मुक्त दिखने लगा था. वह हंसते हुए बोला, ‘‘यह केस कानून के लिए एक हादसा माना जाएगा. इन बच्चों की मां भी कुछ दिनों में घर आ जाएगी.’’

सेक्स के दौरान फेविक्विक से चिपका कपल

बात राजस्थान के उदयपुर के गोगुंदा थानांतर्गत केलाबावड़ी के जंगल से शुरू होती है, जिस में 2 जिंदगियां

खत्म हो गईं और एक के माथे पर हत्या का आरोप लग गया. इस जिले में उबेश्वर के जंगलों में मजावद गांव के पास 18 नवंबर, 2022 की सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना पर कांस्टेबल विजेश कुमार और कांस्टेबल भवानी सिंह मौके पर पहुंच गए. वहां उन्हें 2 लाशें नग्नावस्था में मिलीं. एक लाश युवक की थी, जबकि दूसरी एक युवती की.

पास में महिला के कपड़े कुरती और लेगी पड़ी थी. जबकि वहीं जींसटीशर्ट भी थी. बरामद लाश के आसपास पाए गए उन के कुछ सामानों से उन की पहचान राहुल मीणा (30) और सोनू कुंवर (28) के रूप में हुई. कांस्टेबल ने इस की जानकारी गोगुंदा के एसएचओ योगेंद्र व्यास को दे दी. उन्होंने उन्हें बताया कि दोनों लाशों को क्षतिग्रस्त किया गया है. ऐसा जान पड़ता है, जैसे मरने वालों पर किसी ने गुस्सा निकाला हो.

उस ने अपने अधिकारियों को यह भी बताया कि पुरुष के गुप्तांग और स्त्री के वक्षों को नुकसान पहुंचाया गया है. शरीर की चमड़ी जगहजगह उधड़ी हुई है.

शहर से ही सटे जंगल में 2 लाशें मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पुलिसकर्मियों की इस पहल के बाद उदयपुर के एसपी विकास कुमार ने हत्याकांड की जांच के लिए टीमें बनाईं.

गोगुंदा के एसएचओ योगेंद्र व्यास की देखरेख में जांच शुरू की गई. घटनास्थल से मिले सुराग के आधार पर मालूम हुआ कि राहुल मीणा एक सरकारी स्कूल में टीचर था. दोनों मृतकों का पता भी मालूम हो गया था. उन के घर 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित अलगअलग गांवों में थे.

उदयपुर के एसपी विकास कुमार के दिशानिर्देश पर गहन जांच की जाने लगी. पहली प्राथमिकता हत्याकांड में शामिल अपराधियों का पता लगाना और संबंधित साक्ष्य जुटाने की थी. आगे की जांच के सिलसिले में 200 लोगों से पूछताछ की गई और आसपास के 50 स्थानों के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. दोनों मृतकों के मोबाइल नंबर भी मिल गए, उन की  बीते 2 हफ्ते की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

जांच में यब भी पता चला कि दोनों मृतक शादीशुदा थे. उन के अपनेअपने जीवनसाथी थे. शादीशुदा होते हुए भी उन के द्वारा जंगल में सैक्स संबंध के लिए आने का मतलब प्रेमप्रसंग और अवैध रिश्ते का लग रहा था. पुलिस ने मृतक राहुल मीणा की पत्नी से पूछताछ की तो कई संदिग्ध बातों की जानकारी मिली.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के पति के अवैध संबंध सोनू कुंवर नाम की महिला से थे. कुछ समय पहले उन की जानपहचान भादवी गुड़ा स्थित शेषनाग मंदिर में आतेजाते हुई थी. वह मंदिर इच्छापूर्ति मंदिर के रूप में दूरदूर तक मशहूर है.

पति के नाजायज रिश्ते के बारे में मालूम होने पर उस ने विरोध जताया था. इसे ले कर उस का पति के साथ हर रोज झगड़ा होने लगा. उन्हीं दिनों उस की मंदिर से जुड़े तांत्रिक भालेश कुमार से मुलाकात हुई. वह पिछले 7-8 सालों से भादवी गुड़ा स्थित उस इच्छापूर्ति मंदिर में रह कर लोगों को कष्ट निवारण के लिए ताबीज बना कर देता था.

इसी के साथ राहुल और सोनू के मोबाइल डिटेल्स से भी एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर  लगातार कई बार बातें करने के बारे में पता लगा. वह नंबर उसी तांत्रिक भालेश कुमार का था.

राहुल की पत्नी ने पुलिस को बताया कि उस ने तांत्रिक से मदद मांगी थी. दूसरी तरफ पुलिस को तांत्रिक से राहुल और सोनू के बातचीत करने के सुराग मिलने से जांच की सूई अनैतिक संबंध के साथसाथ तंत्रमंत्र और अंधविश्वास की ओर भी घूम गई.

फिर क्या था पुलिस ने तांत्रिक भालेश कुमार को तुरंत थाने बुलवा लिया. उस से राहुल और सोनू के बारे में पूछताछ की गई. तांत्रिक मंदिर का एक जानामाना व्यक्ति था. उस की समाज में काफी इज्जत थी. उस के पास लोग दूरदूर से अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से ले कर घरेलू झगड़े आदि के निदान के लिए आते थे.

यह जानते हुए भी कि भालेश के उपाय निहायत ही अंधविश्वास वाले थे, लेकिन लोग उस के पास मानसिक संतुष्टि के लिए आते थे.

भालेश ने खुद को राहुल और सोनू के साथ किसी भी तरह की गहरी जानपहचान होने से इनकार कर दिया. उस ने बताया कि उस के पास हर दिन अनेक लोगों के फोन आते रहते हैं और लोग उस से मिलते हैं. वे दोनों भी उसी जैसे थे.

पुलिस के यह कहने पर कि दोनों की उस के साथ कई बार लंबीलंबी बातें हुई हैं. यहां तक कि उस ने रात में भी बातें की हैं. उन की हत्या कर दी गई है.

उस की समस्या के बारे पूछे जाने पर भालेश बौखला गया और इस बारे में गुप्त रखने की बात बताई. किंतु जब पुलिस ने उस पर अंधविश्वास बढ़ाने और तंत्रमंत्र कर लोगों को बरगलाने के कानून में जेल भेजने की धमकी दी, तब वह टूट गया.

हालांकि पूछताछ के क्रम में भालेश ने खुद को एक सिद्ध पुरुष और विकट साधना और लंबे समय तक मंत्र जाप करने वाला व्यक्ति बताया.

उस ने यह भी बताया कि उस की इसी योग्यता के पुण्य प्रताप से उसे इस मंदिर में जगह मिली हुई है. यहां वह लोगों की समस्याओं का निदान करता है.

इसी के साथ उस ने कथित तौर पर राहुल और सोनू के बीच अवैध संबंध तथा अंधविश्वास की हैरान कर देने वाली बातें बताईं. साथ ही दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने की बात भी कुबूल कर ली.

उस के बाद राहुल और सोनू कुंवर की हत्या के बारे में जो खुलासा हुआ, वह काफी चौंकाने वाला निकला— कोरोना प्रकोप का असर काफी हद तक कम होने के बाद लौकडाउन खुला तो मंदिर भी खुल गए थे. लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. लोग नई तरह की अजीबोगरीब समस्या ले कर आने लगे थे.

इन में अधिकांश लोग प्रेम विवाह, दांपत्य जीवन में तकरार, विवाह टूटने, आर्थिक स्थिति बिगड़ने, कानूनी मामले में फंसने आदि से ले कर अवैध रिश्ते से छुटकारा पाने तक की समस्या के निदान के लिए आते थे.

उन्हीं में राहुल की पत्नी समेत सोनू कुंवर के परिजन भी थे. राहुल की पत्नी ने तांत्रिक भालेश से अपनी समस्या बताई कि वह पति को वश में रखने के लिए कोई उपाय बताए. उस का पति किसी दूसरी औरत के साथ प्रेम संबंध बनाए हुए है और उस की उपेक्षा करता है. यहां तक कि उस के साथ यौन संबंध भी नहीं बनाता है. लंबे समय से राहुल देर रात को घर आ रहा था और शराब पी कर अकसर झगड़ा करता था. इस पर राहुल के परिवार के लोग मंदिर में भालेश जोशी के पास आए और राहुल के ऐसा करने का कारण पूछा.

इस पर तांत्रिक भावेश ने राहुल और सोनू कुंवर के बीच में अफेयर की बात बता दी थी. राहुल के इस व्यवहार से क्षुब्ध हो कर उस की पत्नी तांत्रिक भालेश से मदद मांगने आई थी.

इस सिलसिले में राहुल भी भालेश से मिला था. लेकिन उस की तमन्ना कुछ और ही थी. वह भी प्रेमिका से छुटकारा पाना चाहता था. बताते हैं कि उस की नजर तांत्रिक भालेश की बेटी पर थी. इस कारण सोनू कुंवर से छुटकारा दिलाने का कोई उपाय पूछा.

जबकि सोनू कुंवर भी अलग से भावेश से मिली थी. वह राहुल से गहरे संबंध कायम बनाए रखने और उस के पत्नी से संबंध तुड़वाने की मांग कर रही थी. ऐसे में भालेश उलझन में घिर गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस की बात माने और किस के खिलाफ व किस के पक्ष में तंत्र साधना करे.

तंत्रमंत्र और ताबीज आदि से जुड़ी एक सच्चाई को वह अच्छी तरह जानता था कि इस से किसी समस्या का निदान नहीं निकलता है. यह सिर्फ मानसिक संतुष्टि भर होता है. किंतु हां, उस ने भी रोजीरोटी के लिए दूसरे फरेबी तांत्रिकों की तरह ही एक ज्ञानी और सिद्ध तांत्रिक होने का चोला पहन लिया था.

दूसरों की समस्याओं का निदान करने वाले भालेश खुद समस्या में फंस गया था, क्योंकि उसे सोनू कुंवर ने काम नहीं करने पर बदनाम करने की धमकी दी थी.

इसी तरह राहुल तांत्रिक भालेश की बेटी को भी चाहता था. उस ने तांत्रिक से कहा कि वह अपनी तंत्रसाधना के जरिए उस की इच्छा की पूर्ति करे. उस ने धमकी दी कि यदि उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह उस के खिलाफ दुष्प्रचार कर उस की छवि को पलक झपकते ही मिटा सकता है. भालेश दोनों तरफ से तंत्रमंत्र के झूठे साम्राज्य के ध्वस्त होने और अपनी बदनामी होने से घबरा गया. उस के सामने उलझन यह थी कि राहुल और सोनू दोनों वशीकरण की साधना करना चाहते थे.

जैसा कि उन्हें मालूम था कि भालेश ने वशीकरण सीख कर और सवा लाख मंत्रजाप कर ही सिद्धि हासिल की है. उस के बारे में लोगों में ऐसी मान्यता थी कि इस जाप के पूरा होते ही उन की हर इच्छा पूर्ण हो जाती है.

एक तरफ भालेश के सामने राहुल की इच्छापूर्ति के लिए बेटी को दांव पर लगाने की बात थी. दूसरी तरफ सोनू की धमकी थी. सोनू कुंवर ने भालेश का हाथ पकड़ते हुए धमकी दी थी कि यदि उस ने उसे वशीकरण नहीं सिखाया तो वह सभी को बता देगी कि उस ने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की है. यह बात पुलिस को भी बता दूंगी और वह जेल जाएगा. उस का बनाबनाया नाम खत्म कर दूंगी.

तांत्रिक ने बेटी के दांव पर लगे होने की बात  सामने नहीं आने दी और उस ने दोनों से छुटकारा पाने के लिए एक साजिश रच डाली. उस ने राहुल और सोनू कुंवर को अपनी इच्छापूर्ति के लिए आखिरी बार यौन संबंध बनाने के लिए राजी कर लिया. इस के लिए वे दोनों तैयार हो गए. तांत्रिक ने दोनों को हिदायत दी कि वे अपनी इच्छाओं के बारे में किसी से जिक्र नहीं करेंगे. घटना वाले दिन यानी 15 नवंबर, 2022 की शाम को तांत्रिक क्रिया के बहाने राहुल और उस की प्रेमिका को गोगुंदा इलाके के एकांत जंगल में ले गया और उन्हें अपने सामने ही सैक्स संबंध बनाने को कहा.

राहुल मीणा और सोनू कुंवर उस के कहे अनुसार सैक्स संबंध बनाने लगे. जिस के बाद उस ने मंत्र जाप करते हुए एक बोतल से तरल पदार्थ उन पर उड़ेल दिया. वह तरल पदार्थ उन दोनों के गुप्तांगों तक भी पहुंच गया.

वह तरल पदार्थ दरअसल फेविक्विक था, जिस के दोनों के बदन पर गिरते ही वे चिपक गए. प्रेमी युगल को जरा भी समय नहीं मिल पाया कि वे उस से बच सकें. कुछ समझ पाते, तब तक वे बुरी तरह चिपक चुके थे. अलग होने की कोशिश में दोनों के गुप्तांगों व शरीर के अन्य हिस्सों की चमड़ी उधड़ गई.

उधर तांत्रिक भालेश ने राहुल का प्राइवेट पार्ट काट दिया और सोनू कुंवर के वक्षों पर भी वार कर दिया. उस के बाद उन दोनों की हत्या कर वहां से वह फरार हो गया. हत्या के लिए उस ने चाकू और पत्थर का इस्तेमाल किया था. हत्याकांड को अंजाम देने के लिए तांत्रिक ने 15 रुपए वाली 50 फेविक्विक खरीदी थीं. उन्हें खोल कर सारा तरल पदार्थ एक छोटी बोतल में भर लिया था.

इतनी अधिक संख्या में फेविक्विक खरीदने को ले कर किसी तरह की साजिश का कोई शक नहीं हुआ, क्योंकि वह ताबीज बनाता था इस वजह से वह पहले भी अकसर फेविक्विक खरीदा करता था.

मर्डर के दौरान तांत्रिक के अंगूठे और हाथपैर पर भी फेविक्विक लग गई थी, जिसे हटाने के प्रयास में उस के हाथपैर की खाल भी उधड़ गई थी. तांत्रिक उस दिन के बाद से पट्टी बांध कर घूम रहा था.

हालांकि उस ने इस दौरान पूरी सतर्कता बरतते हुए हाथों में ग्लव्स पहन रखे थे, फिर भी ग्लव्स के फटने से उस के हाथों में फेविक्विक लग गई थी. पुलिस ने तांत्रिक भालेश से पूछताछ कर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 2

तफतीश पूरी होने तक के लिए सुखलाल के कमरे को सील कर दारोगा राम सिंह वहां से चला गया.

दोपहर को अचानक सुधीर लौट आया. सलोनी भाग कर उस से लिपट गई और पूछा, ‘‘कहां चले गए थे आप अचानक आधी रात से?’’

‘‘दुकान के लिए निकलना है मुझे…’’ सुधीर ने बेरुखी से उसे खुद से अलग करते हुए कहा.

सलोनी उसे देखती रह गई. उस ने फिर बातों का सिलसिला शुरू करना चाहा, ‘‘अरे, पुलिस आई थी यहां. सुखलाल की मौत हो गई न आज…’’

‘‘हां, मुझे पता चला है पड़ोसियों से इस बारे में,’’ सुधीर ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम को पैसे की तंगी हो जाएगी, फिर अब तो…’’

सलोनी उस की बात सुन कर सन्न रह गई. सुधीर तीखे लहजे में आगे बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि हम को अब किराया नहीं मिल सकेगा न.’’

इतना कह कर सुधीर अपना थैला ले कर दुकान के लिए निकल गया. सलोनी उस के कहे का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. वह बच्चों को अपनी बांहों में भर कर उदास मन से फिर वहीं बैठ गई.

कुछ दिन ऐसे ही बीतते रहे. उधर सुखलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. दारोगा राम सिंह उसे पढ़ने में लगा था. सुखलाल की मौत की वजह पेट में लोहे की छड़ धंसना बताई गई थी. बाकी शरीर पर लगी चोटें जानलेवा नहीं थीं. इस के अलावा एक बात जिस ने राम सिंह को चौंका दिया, वह थी सुखलाल के शरीर में मिली जहरीली चीज की मात्रा. जहरीली चीज भी क्या थी, घरों में मच्छर भगाने के लिए काम में आने वाला लिक्विडेटर उस की शराब में मिलाया गया था.

दारोगा राम सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या मतलब है? लिक्विडेटर इतना ज्यादा जहरीला नहीं होता कि कोई उस का इस्तेमाल किसी को जहर दे कर मारने के लिए करे. और सुखलाल खुद उसे पीएगा नहीं, फिर यह क्या चक्कर है? फोरैंसिक और फिंगर प्रिंट रिपोर्टें भी उस के सामने थीं. उन के मुताबिक जो छड़ सुखलाल के पेट में धंसी थी, उस पर सुखलाल के अलावा एक और आदमी की उंगलियों के निशान मिले थे. सुखलाल पर एकसाथ इतने सारे हमले कैसे हुए? पहले शराब में जहरीली चीज दी गई, उस के बाद पेट में छड़ घोंपी गई. मारने वाले को इतने से भी संतोष नहीं मिला तो उस ने उस को ऊपर से नीचे गिरा दिया और सुखलाल ने अपने बचाव के लिए किसी को कोई आवाज क्यों नहीं दी?

दारोगा राम सिंह को समझ आने लगा कि सुखलाल की मकान मालकिन सलोनी उस से झूठ बोल रही है. उस ने गुप्त रूप से उस के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. बाकियों ने तो कुछ खास बात नहीं बताई लेकिन सुखलाल के कमरे की खिड़की के ठीक सामने रहने वाले छात्र विवेक ने कहा, ‘‘सर, उस

रात मैं रोज की तरह जाग कर अपने कंपीटिशन के इम्तिहान की तैयारी में जुटा था तो मैं ने सुधीर भैया को सीढि़यों से ऊपर सुखलाल चाचा के कमरे में जाते देखा था, पर वे बाहर कब आए, इस का मुझे ध्यान नहीं.’’

‘‘अच्छा,’’ राम सिंह को ऐसी ही किसी बात का शक तो पहले से था. उस ने आगे पूछा, ‘‘सुखलाल और सुधीर

की कोई दुश्मनी? वह तो किराएदार था उस का.’’

‘‘सर… वह…’’ विवेक खुल कर कुछ बोलने से बचता दिखा. राम सिंह ने उसे भरोसा दिलाया कि केस में उस का नाम नहीं आएगा.

विवेक ने डरतेडरते कहा, ‘‘सर, सुधीर भैया को शक था सुखलाल चाचा और सलोनी भाभी को ले कर…’’

दारोगा राम सिंह मुसकरा उठा कि यहां भी वही चक्कर. वह वहां से चल पड़ा. गैरकानूनी हथियार रखने के केस में सुधीर के पहले भी गिरफ्तार होने की जानकारी तो उसे अपने थाने के रिकौर्ड से मिल ही चुकी थी. वह चाहता तो सुधीर को सीधे गिरफ्तार कर सकता था, मगर वह अपने महकमे के दूसरे पुलिस वालों सा नहीं था. किसी भी केस को बिना किसी पक्षपात के हल करना उस की पहचान थी.

दारोगा राम सिंह को अब सुखलाल के मोबाइल फोन की तलाश थी. उसे वह न तो सुखलाल के कमरे में मिला था और न ही उस के कपड़ों में. अचानक उस की छठी इंद्रिय ने उस से कुछ कहा और वह उसी जगह आया जहां सुखलाल की लाश पड़ी मिली थी.

दारोगा राम सिंह ने इधरउधर खोजना शुरू किया और आखिर एक पौधे के पीछे छिपा पड़ा सुखलाल का मोबाइल फोन उसे मिल गया.

थाने आ कर दारोगा राम सिंह उसे खंगालने लगा और जल्दी ही अपने काम की चीज उसे नजर आ गई. उस में सुखलाल और सलोनी का एक वीडियो था जो शायद सुखलाल ने चोरीछिपे बनाया था. उस में सुखलाल अपने कपड़े उतारते हुए कह रहा था, ‘बस, मुझे खुश करो, तुम्हारा पति तुरंत थाने से बाहर आ जाएगा.’

वहीं सलोनी उस के आगे गिड़गिड़ा रही थी, ‘मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं… मुझे ऐसा काम करने को मजबूर मत कीजिए.’

लेकिन सुखलाल ने उस की एक न सुनी और अपने दिल की कर के ही उसे बिस्तर पर लिटा दिया. वीडियो को आगे देखना राम सिंह को सही नहीं लगा. वह हर औरत की इज्जत करता था. उस ने ऐसे भी कई केस देखे थे जहां औरत

ने अपने साथ हुए इस तरह के जुल्मों

का बदला खुद लिया था. उस ने अपनी इसी सोच के साथ एक बार फिर सलोनी से मिलने का फैसला किया और उस के घर पहुंचा.

‘‘दारोगा बाबू, आप यहां,’’ सलोनी उसे देख कर ठिठक गई.

‘‘डरिए नहीं… बस, आप से कुछ जानकारियां चाहिए थीं,’’ दारोगा राम सिंह उसे सहज करने के लिए बोला और सामान्य तरीके से इसी केस के सिलसिले में बातें करने लगा.

इसी बीच दारोगा राम सिंह ने अपना मोबाइल फोन सलोनी के हाथ में दिया जिस से उस की उंगलियों के निशान उस पर आ जाएं और उन का मिलान छड़ पर मिले निशानों से हो सके.

सलोनी उस की यह चालाकी समझ नहीं सकी. राम सिंह ने वापस आ कर उन निशानों की जांच कराई और इस बार फिर उस का सोचना सही निकला. छड़ पर सुखलाल के अलावा सलोनी की

ही उंगलियों के निशान थे. उस ने तुरंत सलोनी को गिरफ्तार कर लिया.

लौकअप में सलोनी दारोगा राम सिंह के सामने रोरो कर कहने लगी, ‘‘दारोगा साहब, मैं ने किसी का खून नहीं किया है. जिंदगी तो मेरी उस सुखलाल ने बरबाद की थी. मैं अकेली उस भारीभरकम आदमी को कैसे मार सकती हूं? मैं ने तो अपने घर की साफसफाई में कुछ दिनों पहले ही लोहे की छड़ों के सारे टुकड़े पास की उसी खाली जमीन में फेंक दिए थे.’’

बहके कदमों का खूनी अंजाम

राजस्थान के भरतपुर जिले के चिकसाना थाना क्षेत्र के गांव नौह निवासी हरिप्रसाद शर्मा के शादीशुदा बेटे पवन शर्मा के रहस्यमय परिस्थितियों में घर से देर रात गायब हो जाने पर परिवार ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी अचंभित हो गए.

गुमशुदा पवन शर्मा के घर वालों को उस की पत्नी टीना ने बताया कि देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद कामधंधे के लिए जाने की बात कह कर वह कहीं चले गए. जाते समय उन्होंने बताया था कि थोड़ी देर में आ जाएंगे.

टीना की बात पर यकीन कर के घर वाले कुछ नहीं बोले. हालांकि आधी रात को कामधंधे के लिए कहीं चले जाने की बात उन के गले से नहीं उतरी, पर और कोई चारा भी नहीं था. लेकिन 4-5 दिन गुजर जाने के बाद पवन वापस नहीं आया तो पिता हरिप्रसाद शर्मा थाने में बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए जाने लगे.

इस पर पहले तो टीना ने उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश की कि वो कामधंधे के लिए गए हैं, गुमशुदगी दर्ज कराई तो पुलिस उलटे हमें ही परेशान कर सकती है. फिर बाद में कुछ सोच कर उस ने ससुर के साथ चिकसाना थाने जा कर पति की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

पुलिस ने हरिप्रसाद से पवन का हुलिया, पहने गए कपड़ों सहित अन्य जरूरी जानकारी ले कर गुमशुदगी दर्ज कर ली और अपने स्तर से पवन को तलाशना शुरू कर दिया.

लेकिन हफ्ते-2 हफ्ते की बात छोडि़ए, 4-5 महीने बीत जाने के बाद भी पवन की खबर नहीं मिली, जिस से उस के घर वाले निराश हो चुके थे. जबकि बहू टीना अपने में मस्त रहती.

बच्चों को उस ने पहले ही पवन के दादादादी के पास बेहतर पढ़ाई कराने के बहाने भेज दिया था, इसलिए उस पर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं. वह आजादी से मनमानी कर रही थी. बस एक काम वह जरूर कर रही थी. वह यह कि सभी व्रत उपवास और धार्मिक कार्यों में घर वालों के साथ जरूर शामिल होती थी.

पवन की गुमशुदगी के बाद घर वालों की नजर में टीना एक तरह से दुखियारी बन चुकी थी, इसलिए हर कोई उस से सहानुभूति रखता था.

अक्तूबर 2022 महीने की 18 तारीख थी. हरिप्रसाद शर्मा को नींद नहीं आ रही थी. जवान बेटे के असमय वियोग ने उन्हें उम्र से कहीं ज्यादा बूढ़ा बना दिया था. जीवन बोझ लगने लगा था. बस बेटे के वापस आने की उम्मीद में ही जिंदा थे.

देर रात हरिप्रसाद शर्मा पानी पीने के लिए उठे तो बहू के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुन उन्हें लगा कि शायद उन की मुराद पूरी हो गई है और बेटा वापस आ गया है. कौतूहलवश उन के कदम बहू के कमरे की तरफ बढ़ चले. लेकिन थोड़ी दूर जा कर ही उन्हें रुकना पड़ा.

कमरे के अंदर बेटा तो नहीं था, बल्कि पड़ोसी भोगेंद्र उर्फ भोला उन की बहू के साथ आपत्तिजनक हालत में था. बहू टीना का हाथ पकड़ कर वह कह रहा था, ‘‘जानू, किस्मत अच्छी थी जो अपना काम भी हो गया और किसी को पता भी नहीं चला. मस्त रहो तुम, अब अपन ऐश करेंगे.’’

यह सुन कर अपमान, शर्म और दुख से आहत हो हरिप्रसाद ने बहू के कमरे को बाहर से ताला लगा दिया और थाने में सूचना देने चल पड़े. लेकिन जब तक पुलिस पहुंचती भोगेंद्र उर्फ भोला ने फोन कर अपने पिता दिनेश चंद और भाई को बुला लिया.

उन दोनों ने हरिप्रसाद के घर वालों से लड़झगड़ कर कमरे का ताला तोड़ कर भोगेंद्र को वहां से निकाल लिया और अपने साथ ले गए. भोगेंद्र उसी रात को गांव से दिल्ली चला गया.

हरिप्रसाद शर्मा ने 20 नवंबर, 2022 को चिकसाना थाने पहुंच कर लिखित शिकायत कर दी. उन्होंने अपनी बहू टीना और उस के प्रेमी भोगेंद्र द्वारा अपने बेटे पवन की हत्या अथवा उसे गायब करने का आरोप लगाया.

एसएचओ विनोद कुमार मीणा ने मामले की गंभीरता देखते हुए हत्या के ऐंगल से मामले की जांच शुरू की और भरतपुर के एसपी श्याम सिंह के आदेश तथा एएसपी बृजेश ज्योति उपाध्याय (आईपीएस) के निर्देशन में पुलिस टीम गठित की गई, जिस में एएसआई बलबीर सिंह, महेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल कैलाश चंद और सिपाही पुष्पेद्र सिंह, उदयवीर सिंह तथा योगेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले दिल्ली से गांव लौटे आरोपी भोगेंद्र और टीना को हिरासत में ले कर उन से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की. इस के साथ ही साक्ष्य एकत्रित किए.

पुलिस पूछताछ से घबरा कर टीना और भोगेंद्र ने हत्या को अंजाम देना कुबूल कर लिया, जिस के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. आरोपियों के कुबूलनामे के बाद पवन की हत्या की जो कहानी उजागर हुई, वह इस प्रकार निकली—

राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरहद पर बसा एक बड़ा शहर है भरतपुर, जिसे उत्तर प्रदेश के लोग राजस्थान का प्रवेश द्वार भी कहते हैं. इसी भरतपुर जिले के चिकसाना थाना क्षेत्र गांव नौह में ब्राह्मणों के कई परिवार रहते हैं.

इन में से एक परिवार है हरिप्रसाद शर्मा का. इन के बेटे पवन शर्मा की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. उस के योग्य कोई रिश्ता नहीं मिल पाने से मातापिता और रिश्तेदार चिंता में रहते थे.

तभी पवन के लिए उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर से टीना नाम की लड़की का रिश्ता आया. फिर दोनों ओर से बातचीत हो जाने पर यह रिश्ता तय हो गया और 2015 में पवन की शादी टीना के साथ हो गई.

महानगर की रहने वाली खुले स्वभाव की टीना को गांव में स्थित ससुराल आ कर थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन भरतपुर शहर गांव के नजदीक होने के कारण वह धीरेधीरे वहां के रंग में रचबस गई. हंसीखुशी के साथ पतिपत्नी का समय बीतने लगा और 5 साल में टीना 2 बच्चों की मां भी बन गई.

बच्चे बड़े हुए तो दंपति ने उन्हें उन की अच्छी पढ़ाई के लिए थोड़ी दूर स्थित दादादादी के पास छोड़ दिया. टीना और पवन पिता के साथ रहने लगे. पवन और टीना की उम्र में बड़ा अंतर था. जहां टीना 23 की थी वहीं पवन 37 साल का यानी उन की उम्र में 14 साल का अंतर था.

उम्र का ये बड़ा अंतर शुरू में तो पता नहीं चला, लेकिन वक्त गुजरने के साथ ही दांपत्य जीवन में यह अंतर अपना असर दिखाने लगा. जहां टीना हिरनी की तरह कुलांचे भर कर दौड़ना चाहती थी तो वहीं 2 बच्चों का बाप बनने के बाद पवन धीरगंभीर हो गया था और कामधंधे को ले कर ज्यादा समय गुजारने लगा था.

पति द्वारा अपनी उपेक्षा से आहत टीना ने इसी दौरान करीब 2 साल पहले ब्राह्मण परिवार के हमउम्र पड़ोसी युवक भोगेंद्र उर्फ भोला से जानपहचान बढ़ा ली, जो बाद में अवैध संबंधों में बदलती गई.

27 वर्षीय भोगेंद्र दिल्ली की किसी प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था और गांव में घर होने के कारण समयसमय पर आताजाता रहता था. जब से टीना से उस की आंखें चार हुईं, भोगेंद्र टीना के आकर्षण में फंस कर उस के आसपास मंडराने लगा और दोनों का प्रेम परवान चढ़तेचढ़ते अनैतिकता की हदें पार कर गया.

पवन को भोला का बारबार उस के घर आना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन 2 बच्चों की मां बन चुकी पत्नी पर वह शक नहीं करना चाहता था, इसलिए देवरभाभी का रिश्ता मान कर चुप रह जाता था, जिस का बेजा फायदा उठा कर टीना और भोगेंद्र उर्फ भोला मर्यादा की सीमाएं लांघ गए थे.

मई महीने की एक रात थी, जब थकान के कारण पवन जल्दी घर आ कर सो गया था. देर रात उस की नींद खुली तो अपनी पत्नी को भोगेंद्र के साथ हमबिस्तर देख सन्न रह गया.

फिर परिवार की बदनामी होने के चलते दोनों को कड़ी फटकार लगा कर उस ने मामला दबा दिया, लेकिन वासना की आग में जल रहे टीना और भोगेंद्र ने अपने रास्ते के कांटे पवन को ठिकाने लगाने का मन बना लिया था. वे मौके की तलाश में रहने लगे.

तयशुदा साजिश के अनुसार 29 मई, 2022 की रात को टीना ने फोन कर दिल्ली से भोगेंद्र को गांव बुलाया तो वह अपने दोस्त उत्तर प्रदेश के एटा जिले के रहने वाले दीप सिंह के साथ रात साढ़े 12 बजे गांव पहुंचा और दीप सिंह को घर के बाहर बाइक पर छोड़ कर खुद टीना से मिलने घर में घुस गया.

वह बेखौफ हो कर उस से रोमांस करने लगा, तभी पवन की नींद खुल गई और अपनी पत्नी को गैरमर्द की बाहों में देख अपना आपा खो बैठा. वह भोगेंद्र उर्फ भोला से भिड़ गया. लेकिन कदकाठी से मजबूत भोगेंद्र ने नींद से जागे पवन का मुंह दबोच कर उसे काबू में कर लिया और अपने साथी दीप सिंह को बुला कर उस की मदद से पवन की रस्सी से गला घोट कर हत्या कर के ठिकाने लगा दिया.

रात ढलने वाली थी, इसलिए रजाई के कवर में लाश लपेट कर बोरे में भर कर दोनों दोस्तों ने वह बैड के अंदर बने बौक्स में रख दी. उन्होंने सोचा कि मौका देख कर नहर में फेंक देंगे. फिर दोनों सुबह होने से पहले बाइक से दिल्ली चले गए. अगले दिन वट सावित्री व्रत आया, यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए रखती हैं.

टीना ने भी व्रत पूजा की और बाद में उसी बैड पर बैठ कर खीरपूरी खाई, जिस के अंदर बौक्स में पति की लाश रखी गई थी. इत्मीनान से फोन पर किसी से देर तक बातचीत करने के बाद वह सो गई.

एकदो दिन से ज्यादा लाश को घर में नहीं रखा जा सकता था, क्योंकि गरमी के दिन थे. बदबू फैल कर हत्या का राज फाश कर सकती थी. लिहाजा वापस भोगेंद्र अपने दोस्त दीप सिंह के साथ गांव नौह पहुंचा. दोनों ने बाइक से गांव से 2 किलोमीटर दूर स्थित गिरिराज नहर में लाश बड़े पत्थर से बांध फेंक दी. इस के बाद वे दोनों वापस दिल्ली लौट गए.

इस बीच रोनेधोने के साथ ही टीना ने एकदो दिन खानापीना छोड़ कर घर वालों को जता दिया कि वह पति के लापता हो जाने से बेहद दुखी है. साथ ही गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कुछ दिनों तक शातिरदिमाग टीना और भोगेंद्र ने मोबाइल से बात करनी बंद कर दी, ताकि किसी को उन शक न हो. इसी बीच टीना अपने पीहर वालों को बुला कर उन के साथ कानपुर चली गई.

वापस भरतपुर आने के बाद टीना घर वालों और पुलिस की गतिविधियों के समाचार दूसरे फोन से प्रेमी भोगेंद्र को दे कर सचेत करती रही. खास बात यह रही कि गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस और घर वाले पवन को तलाशते रहे और भोगेंद्र तथा टीना वापस मिलने लगे और उन की नजदीकियां बढ़ती गईं.

2 बच्चों की मां टीना और भोगेंद्र का प्रेम धीरेधीरे पागलपन की हद तक पहुंच चुका था. दोनों को एकदूसरे से मिले बिना चैन नहीं था, इसलिए दोनों देर रात को उस वक्त चोरीछिपे मिल लेते थे. जब दुनिया वाले सो रहे होते.

दीपावली से पहले महिलाओं का सब से महत्त्वपूर्ण व्रत करवाचौथ आया. तब भी टीना ने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए वह सावित्री का व्रत रखा. उस ने नई साड़ी पहन, शृंगार कर के दूसरी औरतों की तरह करवाचौथ की कहानी सुन कर चंद्रमा की पूजा आरती भी की. किसी को शक तक नहीं होने दिया कि गुमशुदा पवन शर्मा के साथ अनहोनी हो चुकी है.

लेकिन 16 अक्तूबर, 2022 की रात को हरिप्रसाद को बहू की हकीकत पता लग गई. भोगेंद्र उर्फ भोला और टीना की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक के कमरे में उस के बैड से खून से सना रजाई का कवर, नायलौन की रस्सी के अतिरिक्त हत्याकांड में प्रयुक्त बाइक बरामद कर ली.

अभियुक्त भोगेंद्र को रिमांड पर ले कर पुलिस उसे उस जगह ले गई, जहां उस ने पवन की लाश फेंकी थी. गोताखोरों की मदद से नहर के गंदे पानी से मृतक का करीब 6 महीने पुराना शव जो करीबकरीब नष्ट हो चुका था. उस की हड्डियां और वह बड़ा पत्थर बरामद कर जब्त कर लिया, जिस से बांध कर शव फेंका था.

साथ ही नहर से मिली मृतक पवन की पैंट शर्ट की जेबों से पवन तथा टीना के आधार कार्ड जन आधार कार्ड भी बरामद कर सबूत के लिए जब्त कर लिए और हत्याकांड के बाद फरार हो गए भोगेंद्र के साथी दीप सिंह निवासी एटा (उत्तर प्रदेश) को तलाशना शुरू किया.

पुलिस टीम ने उसे भी जल्दी गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया. साथ ही 21 नवंबर से 4 दिन के पुलिस रिमांड पर चल रहे भोगेंद्र उर्फ भोला को भी रिमांड अवधि पूर्ण होने तथा सभी वांछित साक्ष्य बरामद कर लेने के बाद 24 नवंबर, 2022 को अदालत में पेश किया गया, जहां से कोर्ट के आदेश पर दोनों आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

मृतक की पत्नी टीना को पहले ही गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश पर जेल भेजा जा चुका था. कथा लिखे जाने तक पवन शर्मा हत्याकांड के सभी तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया था.

हालांकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन दुखद बात यह रही कि टीना की नासमझी या यूं कहिए कि टीवी के क्राइम पैट्रोल जैसे शो लगातार देखने के कारण उपजी शातिराना हरकतों की वजह से उस की खुशहाल गृहस्थी तो उजड़ी ही, साथ ही 2 निर्दोष मासूम बच्चे भी अनाथ हो गए

अपराध: श्रद्धा हत्याकांड- बेबस हैं लड़कियां, चाहे शादीशुदा चाहे लिवइन

दुनिया के किसी भी समाज में अपराध को पूरी तरह रोक पाना तकरीबन नामुमकिन है. लेकिन ऐसा न हो, इसलिए पुलिस के साथसाथ मीडिया वाले भी किसी अपराध की हकीकत बताते हुए लोगों को जागरूक करते रहते हैं, ताकि भविष्य में ऐसे कांड न होने पाएं. पिछले काफी सालों से टैलीविजन पर हत्या जैसे अपराधों की कहानियां ‘क्राइम पैट्रोल’ या ‘सावधान इंडिया’ या फिर दूसरे नामों से दिखाई जाती हैं और ‘मनोहर कहानियां’ या ‘सत्यकथा’ जैसी अपराध खोजी पत्रिकाएं भी देशविदेश में होने वाले अपराधों की जानकारी देती रहती हैं, ताकि लोग अपने आसपास नजरें जमाए रखें कि कहीं कोई बड़े कांड की तैयारी तो नहीं कर रहा है.

इस के बावजूद अगर देश की राजधानी में कोई लड़का अपनी लिवइन पार्टनर की हत्या कर के काफी दिनों तक मासूम होने का ढोंग करता रहे तो समझ लीजिए कि लोगों की भावनाओं के साथसाथ उन की इनसानियत भी दम तोड़ रही है.

दिल्ली के महरौली इलाके में 18 मई, 2022 को ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला कांड हुआ था, पर इस का खुलासा कई महीने बाद हुआ. वह भी तब जब दिल्ली पुलिस ने पीडि़ता श्रद्धा के पिता विकास वालकर द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत की जांच शुरू की थी.

श्रद्धा की हत्या उस के तथाकथित प्रेमी आफताब ने की थी और इस की जड़ में था उन के बीच का झगड़ा. दिल्ली पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस प्रेमी जोड़े के बीच 18 मई, 2022 को पहली बार झगड़ा नहीं हुआ था, बल्कि वे दोनों पिछले काफी समय से झगड़ा करते आ रहे थे. समाचार एजेंसी एएनआई को सूत्रों ने बताया कि 18 मई को मुंबई से घर का सामान लाने को ले कर आफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था. घर का खर्च कौन उठाएगा और सामान कौन लाएगा, इस बात को ले कर भी उन में झगड़े होते थे. इस बात को ले कर आफताब काफी गुस्से में आ गया था.

18 मई, 2022 की रात को तकरीबन 8 बजे दोनों के बीच जम कर झगड़ा शुरू हुआ. झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि आफताब ने श्रद्धा की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रातभर श्रद्धा की लाश को कमरे में रखा और अगले दिन

चाकू और रैफ्रिजरेटर खरीदने चला गया. पर क्यों?

क्या है पूरा मामला आफताब और श्रद्धा पिछले 3 साल से झगड़ रहे थे. वे आपस में क्यों झगड़ते थे, इस से पहले यह जान लेते हैं कि वे दोनों कौन थे और मुंबई छोड़ कर दिल्ली में क्या कर रहे थे?पेशे से शैफ और फोटोग्राफर तकरीबन 28 साल के आफताब पूनावाला का जन्म मुंबई में हुआ था और वह वहां अपने छोटे भाई अहद, पिता आमिन और मां मुनीरा बेन के साथ वसई उपनगर में बनी यूनिक पार्क हाउसिंग सोसाइटी में रहता था.

मुंबई के एलएस रहेजा कालेज से ग्रेजुएट आफताब पूनावाला इस साल की शुरुआत में श्रद्धा से मिलने के बाद दिल्ली में रहने लगा था.श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के पालघर जिले की रहने वाली थी और मुंबई के मलाड इलाके में एक मल्टीनैशनल कंपनी के एक काल सैंटर में काम करती थी. यहीं से उस की मुलाकात आफताब पूनावाला से हुई थी.

कुछ ही समय में श्रद्धा और आफताब एकदूसरे से बेहद प्यार करने लगे थे और उन्होंने शादी तक का फैसला कर लिया था, लेकिन उन दोनों के परिवार वाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे. नतीजतन, उन दोनों ने अपने प्यार की खातिर परिवार और मुंबई छोड़ दी. इस के बाद वे दिल्ली आ गए और महरौली के एक फ्लैट में लिवइन में रहने लगे. पुलिस की पूछताछ में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि श्रद्धा उस पर लगातार शादी करने का दबाव बना रही थी. वह रोजाना सुबह से ले कर शाम तक बस एक ही बात कहती थी कि शादी कर लो. इसी बात को ले कर उन के बीच आएदिन झगड़ा होता था. पूछताछ में यह भी सामने आया कि आफताब की कई दूसरी लड़कियों से भी दोस्ती थी, जिन को ले कर श्रद्धा को उस पर शक हो रहा था. जब श्रद्धा ने इस बारे में पूछा तो आफताब ने सिरे से खारिज कर दिया.

18 मई, 2022 की रात भी दोनों के बीच इन्हीं सब बातों को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस के बाद आफताब ने श्रद्धा की बेरहमी से हत्या कर दी. श्रद्धा को मारने वाले आफताब की हैवानियत से इनकार नहीं किया जा सकता है. उस ने उस लड़की को मौत के घाट उतार दिया, जिस से वह प्यार करता था और उस के साथ एक ही घर में रहता था. पर ऐसा क्यों होता है कि कोई इनसान किसी के साथ जानवर जैसा बरताव करने पर उतारू हो जाता है?

क्या श्रद्धा ने शादी की बात कह कर इतनी बड़ी गलती कर दी थी कि उसे अपनी ही जान से हाथ धोना पड़ा? आफताब जैसे लोगों की यह कैसी फितरत होती है कि वे कोल्ड ब्लडेड मर्डर को अंजाम दे देते हैं और किसी को खबर तक नहीं लगती? सब से बड़ा सवाल यह कि ऐसे मामलों में लव जिहाद का एंगल कैसे जुड़ जाता है लव जिहाद का हौआ उन्हीं मामलों में उछाला जाता है, जहां लड़का मुसलिम और लड़की हिंदू होती है, पर यहां तो शादी ही नहीं हुई थी. आफताब ने एक दिल दहला देने वाला कांड सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि वह मुसलिम था, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है.

जब आफताब ने श्रद्धा का कत्ल किया था, तब वह नशे में था. अब अगर पुलिस को शक है कि आफताब सीरियल किलर हो सकता है, तो लव जिहाद का बुलबुला वैसे ही फूट जाता है.इस हत्याकांड ने साल 2010 की उसी खौफनाक कहानी को याद दिला दिया है, जिस में श्रद्धा की तरह ही एक और औरत की हत्या की गई थी. तब 36 साल की अनुपमा गुलाटी की उस के पति राजेश गुलाटी ने उत्तराखंड के देहरादून में हत्या कर दी थी.हत्यारे राजेश ने अनुपमा को मारने के बाद उस के शरीर के 70 टुकड़े करने के लिए बिजली से चलने वाले कटर का इस्तेमाल किया था. वहां तो लव जिहाद की कोई गुंजाइश नहीं थी, जबकि कांड बहुत बड़ा था.

अगर कोई अपना जानवर सरीखा हो कर जुल्म करे तो यकीनन हमें ही उसे पहचानने में कोई कमी रह गई है. श्रद्धा को जरूर अंदाजा रहा होगा कि आफताब जब आपा खो बैठता है, तो वह किस हद तक जा सकता है. इस के बावजूद वह उस के दिमाग को पढ़ नहीं पाई. दरअसल, आफताब पूनावाला या राजेश गुलाटी जैसे लोग स्वभाव से गुस्सैल होते हैं, जो सामने वाले की छोटी से छोटी बात को दिल से लगा लेते हैं. फिर वे सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें ‘न’ सुनने को मिलती है, तो वे इसे बरदाश्त नहीं कर पाते हैं.

साल 1995 के दिल्ली में हुए जेसिका लाल हत्याकांड में आरोपी मनु शर्मा को जेसिका की ‘न’ ही चुभ गई थी कि एक बारमेड कैसे उसे ड्रिंक देने से मना कर सकती है और मनु शर्मा ने जेसिका पर गोली दागने में देर नहीं की. आफताब ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े करने में झिझक महसूस नहीं की. तो क्या वह चाकू का इस तरह इस्तेमाल करने का आदी था? ऐसा हो सकता है, क्योंकि गला घोंट कर मारने के बाद फुतूर सिर से उतरने के बाद वह घबरा सकता था, पर उस ने ऐसा नहीं किया और श्रद्धा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने में कोई दया नहीं दिखाई.

चूंकि श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है, तो उसे ही पीडि़ता समझा जाएगा, पर आफताब पूनावाला जैसे अपराधी दिमाग के लोग खुद को पीडि़त समझते हैं और पीड़ा देने वाले को सजा देना अपना हक समझते हैं. गला दबा कर मारने के बाद भी आफताब को संतुष्टि नहीं मिली थी. वह श्रद्धा की लाश को भी सजा देना चाहता था, ताकि खुद के अहम को संतुष्टि मिले. अगर दूसरी तरफ श्रद्धा आफताब पर शादी करने का जोर दे रही थी, तो इस में कोई गलत बात नहीं थी. लेकिन उन के रोजरोज के झगड़ों के बावजूद श्रद्धा आफताब की बदनीयती नहीं समझ पाई तो यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

श्रद्धा ने अपने मांबाप की नहीं सुनी और आफताब के साथ बिना शादी किए एकसाथ रहने लगी, यहां तक तो सब ठीक था, पर उसे आफताब के गुस्सैल स्वभाव को समझ जाना चाहिए था. वह उस से तुरंत अलग हो जाती. अगर मांबाप के घर नहीं जाती तो भी कोई बात नहीं थी. वह अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए अकेली रह सकती थी. उसे पीजी में तो जगह मिल ही जाती, जहां उस की जान बची रह सकती थी. पर वह ऐसा न करने की गलती कर बैठी.

ऐसे मामलों में गलती तो उन पड़ोसियों की भी होती है, जो ऐसे झगड़ों की जड़ में जाने के बजाय कन्नी काट लेते हैं. इस मामले में पड़ोसी जानते थे कि आफताब और श्रद्धा झगड़ते थे, पर उन्हें भी इतना बड़ा अपराध होने की भनक तक नहीं लग पाई. आफताब ने श्रद्धा का सिर काट कर उसे रैफ्रिजरेटर में रखा और जिस्म के कई टुकड़े कर दिए थे. हत्या के 5 महीने बाद उस ने उन्हें ठिकाने लगाना शुरू किया, पर मजाल है कि पड़ोसी यह हत्याकांड सूंघ पाए. आफताब लाश काटते समय पानी का नल चला देता था, ताकि खून नाली में बह जाए. उस पर पानी के बिल के 300 रुपए पैंडिंग थे, पर मकान मालिक को जरा भी शक नहीं हुआ.

दिक्कत यह है कि शहरों में लोग धीरेधीरे सामाजिक सरोकारों को भूलते जा रहे हैं. कोई आप के पड़ोस में आया तो यह कह कर नाकभौं सिकोड़ लेते हैं कि बड़ा अजीब है, ‘नमस्ते’ तक नहीं की. पर क्या हम खुद कोई पहल करते हैं? पड़ोस में जब भी कोई आता है, तो उसे चायपानी पूछ कर अच्छे पड़ोसी होने का संकेत दे सकते हैं, फिर यह उस पर है कि वह अपना मेलजोल बढ़ाता है या नहीं. इस से एकदूसरे को कुछ हद तक समझने में मदद मिल जाती है.

इस सब के बावजूद आफताब पूनावाला जैसे अपराधी का दिमाग पढ़ना मुश्किल होता है, पर श्रद्धा को अगर यह पता लगने लगा था कि आफताब उस पर हावी होने की नाजायज कोशिश करने लगा है, तो उसे सतर्क हो जाना चाहिए था. उसे कतई आफताब की उंगलियों पर नहीं नाचना चाहिए था और किसी को अपने इस बिगड़ते रिश्ते के बारे में बता देना चाहिए था.लेकिन जिस देश में बड़ी आसानी से निठारी कांड हो जाता हो या जहां आज तक आरुषी हत्याकांड के हत्यारे के बारे में पता नहीं चल पाया हो, वहां आम लोगों की समाज के प्रति जागरूकता की असलियत की पोल खुल जाती है.

पहले लोग आसपड़ोस में आंखें खुली रख कर जिम्मेदार नागरिक होने के संकेत दे देते थे, पर अब तो मकान मालिक को किराएदार से किराया लेने के अलावा कोई सरोकार नहीं होता है. पड़ोसी भी बंद कमरों से आती झगड़े की आवाजों को नजरअंदाज कर देते हैं और जब कोई बड़ा कांड हो जाता है, तो ऐसे चौंकते हैं, जैसे उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था.आफताब पूनावाला जैसे लोग समाज का वे अटूट हिस्सा हैं, जो कहीं भी हो सकते हैं और अपने आसपड़ोस में बड़े अच्छे होने की ऐक्टिंग करते हैं, इसीलिए उन्हें कांड होने से पहले समझ लेना बड़ा मुश्किल होता है, पर यह नामुमकिन भी नहीं है.अगर हम सतर्क रहें, क्योंकि हर बड़े अपराध की दस्तक बहुत पहले होने लगती है, अगर उसे सुन लिया जाए तो. लेकिन हमारे इसी बहरेपन का फायदा अपराधी उठाते हैं.

एकतरफा प्यार का गुनाह

सुबह के यही कोई साढ़े 3 बजे मुंबई के डोमेस्टिक एयरपोर्ट परिसर में स्थित थाना विलेपार्ले पुलिस को इर्ला कूपर अस्पताल से सूचना मिली कि एक युवती की हत्या कर के उस की लाश को जला दिया गया है. उस समय ड्यूटी पर तैनात इंसपेक्टर महादेव निवालकर ने इस सूचना की तुरंत डायरी बनवाई और थानाप्रभारी लक्ष्मण चव्हाण, पुलिस कंट्रोल रूम के अलावा अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर खुद एआई देवकाते, सांलुके, सबइंसपेक्टर पाटिल, महिला सबइंसपेक्टर कडव, सिपाही सुरेश छोत्रो, संतोष शिंदे, योगेंद्र सिंह शिंदे, गांवडे, सावडेकर, महांडिक और पालवे को साथ ले कर के इर्ला कूपर अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

इंसपेक्टर महादेव निवालकर जिस समय सहयोगियों के साथ अस्पताल पहुंचे थे, डाक्टरों की एक टीम युवती के शव का निरीक्षण कर रही थी. युवती के साथ आए लोग अस्पताल परिसर में ही मौजूद थे. उन के बीच मातम का माहौल था. महादेव निवालकर ने देखा, युवती का चेहरा बुरी तरह से जला हुआ था.

पूछताछ में पता चला कि मृतका का नाम श्रद्धा पांचाल था. वह फिजियोथेरैपिस्ट थी. डाक्टरों के अनुसार, श्रद्धा की हत्या एक से डेढ़ घंटा पहले गला घोंट कर की गई थी. उस के दोनों पैरों पर खरोंच के निशान थे, जिस से आशंका जताई गई थी कि हत्या के पूर्व उस के साथ मनमानी भी की गई थी.

डाक्टरों से बातचीत के बाद महादेव निवालकर ने मृतका श्रद्धा के साथ आए लोगों से बातचीत शुरू की. घर वालों से तो उस समय कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी, क्योंकि उस समय वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे. साथ आए पड़ोसियों ने जो बताया था उस के अनुसार, मामला काफी संदिग्ध था. पड़ोसियों ने रात ढाई बजे के आसपास श्रद्धा के कमरे से धुआं निकलता देखा था. तब उन्हें लगा था कि यह धुआं शायद एयरकंडीशनर से निकल रहा है.

लेकिन आधे घंटे बाद जब श्रद्धा के घर वालों के रोनेचीखने की आवाजें आईं तो पता चला कि वह धुआं एसी से नहीं, बल्कि श्रद्धा के कमरे से निकल रहा था. किसी ने श्रद्धा की हत्या कर के उस की लाश को जलाने की कोशिश की थी. पड़ोसी भाग कर वहां पहुंचे तो कमरे की लाइट नहीं जल रही थी. टौर्च की रोशनी में उन्होंने जो दृश्य देखा, वह दिल को दहलाने वाला था. कमरे के बीचोबीच श्रद्धा की अधजली निर्वस्त्र लाश पड़ी थी. उसी की जींस से उस का गला कसा हुआ था.

पड़ोसी दीपक और सचिन ने जल्दी से जींस हटाई और उपचार के लिए उसे इर्ला कूपर अस्पताल ले आए. डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर इस बात की सूचना थाना विलेपार्ले पुलिस को दे दी थी. महादेव निवालकर ने मामले की प्राथमिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल में रखवा दिया था. यह 6 दिसंबर, 2016 की बात थी.

अस्पताल की काररवाई निपटा कर महादेव निवालकर सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर यानी श्रद्धा के घर पहुंचे. डा. श्रद्धा पांचाल मकान की ऊपरी मंजिल पर बने कमरे में रहती थी. उसी कमरे में उस ने सोने से ले कर पढ़ाई तक का इंतजाम कर रखा था. लेकिन डाक्टर होने के बावजूद वह समय की पाबंद नहीं थी. उस के आनेजाने का कोई निश्चित समय नहीं था.

घर वालों को किसी तरह की तकलीफ न हो, इस के लिए श्रद्धा ने अपने कमरे की सीढ़ी घर के बाहर से बनवा रखी थी. इसलिए वह जब भी देर से घर आती थी, सीधे अपने कमरे में चली जाती थी. अगर कभी वह सहेलियों के घर रुक जाती थी तो घर वालों को बता देती थी.

महादेव निवालकर श्रद्धा के कमरे का निरीक्षण करने लगे. उस के कमरे की सारी चीजें बिखरी हुई थीं. अलमारी के भी दोनों पट खुले हुए थे. उस के अंदर का सारा सामान बिखरा था. कमरे में बिखरे किताबों के पेज जले हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि किताबों के पन्ने फाड़ कर श्रद्धा की लाश को जलाने की कोशिश की गई थी.

महादेव निवालकर घटनास्थल का निरीक्षण कर आसपड़ोस वालों से पूछताछ कर रहे थे कि जोन-8 के डीसीपी वीरेंद्र मिश्र, एसीपी प्रकाश गव्हाणे, थानाप्रभारी लक्ष्मण चव्हाण भी आ पहुंचे. इन्हीं अधिकारियों के साथ फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच यूनिट-8 के अधिकारी भी आए थे. फोरैंसिक टीम का काम निपट गया तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया.

अधिकारियों के जाने के बाद महादेव निवालकर भी थाने लौट आए थे. उन्होंने श्रद्धा के घर वालों की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी थी. चूंकि मामला दुष्कर्म और हत्या का था, इसलिए पुलिस हत्यारे को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करना चाहती थी. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने श्रद्धा के घर वालों से गहराई से पूछताछ की, लेकिन उन लोगों से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इस पूछताछ में पुलिस को सिर्फ इतना ही पता चला था कि उस रात श्रद्धा साढ़े 9 बजे घर आई थी. 10 बजे घर वालों के साथ खाना खा कर वह निपटी थी कि उस की 2 सहेलियां पूजा उर्फ पल्लवी और चैताली मुखर्जी उस से मिलने आ गई थीं. कुछ देर तीनों बातें करती रहीं, उस के बाद वे बाहर चली गई थीं. इस के बाद वे कब कमरे पर आईं, घर वालों को पता नहीं चला.

महादेव निवालकर ने श्रद्धा की दोनों सहेलियों को थाने बुला कर पूछताछ की तो पता चला कि वे श्रद्धा की जिगरी सहेलियां थीं. वे आपस में अकसर मिलती रहती थीं. कभीकभी एकदूसरे के घर रुक भी जाया करती थीं. उस दिन रात को वे श्रद्धा के यहां आईं तो थोड़ी देर घर में रुक कर सभी एटीएम पर पैसे निकालने चली गईं.

वहां से आ कर 12 बजे तक दोनों श्रद्धा के कमरे पर बातें करती रहीं. श्रद्धा को नींद आने लगी तो दोनों उठीं और श्रद्धा से दरवाजा बंद करने को कह कर दरवाजा उढ़का कर चली गईं. श्रद्धा की दोनों सहेलियों से भी हत्यारे तक पहुंचने का कोई सुराग नहीं मिला था. इस के बाद महादेव निवालकर ने अपना ध्यान श्रद्धा की क्लिनिक पर केंद्रित किया.

श्रद्धा फिजियोथेरैपिस्ट थी, ऐसे में उस के यहां हर तरह और हर उम्र के लोग आते थे. उन में कुछ ऐसे भी रहे होंगे, जो श्रद्धा को पसंद करते रहे होंगे. क्योंकि श्रद्धा आधुनिक फैशनपरस्त और खुले विचारों वाली युवती थी. वह हर किसी से खुल कर बात करती थी.

ऐसे में कोई ऐसा भी रहा होगा, जो उस के प्रति आकर्षित हो गया होगा. श्रद्धा ने उसे नजरअंदाज किया होगा, जिस की वजह से बात दुष्कर्म से हत्या तक पहुंच गई होगी. यही सोच कर पुलिस ने श्रद्धा के क्लिनिक और उस के यहां आनेजाने वालों के नामपते तथा टेलीफोन नंबर ले कर गहराई से जांच की, लेकिन कोई भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जिस पर शक किया जाता. इस तरह मामला धीरेधीरे जटिल और पेंचीदा होता जा रहा था.

ऐसे में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि पुलिस को श्रद्धा के घर वालों पर ही शक हो गया. पुलिस को लगा कि श्रद्धा की हत्या एक सोचीसमझी साजिश के तहत की गई थी, जिस में घर वाले ही शामिल हैं. वे श्रद्धा की किसी कमजोरी को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. यही सोच कर पुलिस पूछताछ के लिए श्रद्धा के एक मुंहबोले भाई तथा घर वालों को थाने ले आई.

इस बात की भनक जैसे ही मीडिया को लगी, उन्होंने श्रद्धा के घर वालों का जीना दूभर कर दिया. अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया ने इस मामले को तिल का ताड़ बना दिया. जिस के जो मन में आया, वह खबरों को रंगीन और चटपटी बना कर नोएडा के आरुषि हत्याकांड से जोड़ कर अनापशनाप खबरें पेश करने लगा.

मीडिया ने श्रद्धा के मांबाप को गुनाहों के कटघरे में खड़ा कर दिया. यही नहीं, डा. श्रद्धा के चरित्र को भी जम कर शर्मसार किया गया. और यह सब तब तक चलता रहा, जब तक श्रद्धा का असली कातिल पकड़ा नहीं गया. एक ओर जहां मीडिया नाक में दम किए था, वहीं दूसरी ओर मामले की जांच कर रही पुलिस टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का भी दबाव था. क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस का मिलाजुला औपरेशन भी काम नहीं आ रहा था. पुलिस का सारा तंत्र बेकार हो चुका था.

परेशान पुलिस ने सभी रेलवे स्टेशनों, मुंबई के उपनगर नवी मुंबई, थाणे, वसई पालघर जनपद के नालासोपारा, विरार, कल्याण के सभी पुलिस थानों के संदिग्धों के रिकौर्ड चैक कर पूछताछ कर डाली, साथ ही श्रद्धा के फोन नंबरों के काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाला. इस के अलावा करीब 5 सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

50 दिनों से अधिक बीत गए, पर पुलिस अंधेरे में ही हाथपैर मारती रही. पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि श्रद्धा की हत्या का रहस्य क्या था और हत्यारा कौन था? इस मामले को ले कर पुलिस चिंतित जरूर थी, लेकिन निराश नहीं थी.

एक बार फिर पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर घटनास्थल पर जा कर मामले से संबंधित सारे तथ्यों को समझने की कोशिश की. इसी के साथ उस इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर उन्हें बारीकी से देखा गया. इस में उन्हें आशा के विपरीत फल मिला. आखिर इस से श्रद्धा की हत्या की कडि़यां जुड़ ही गईं.

पुलिस को एक फुटेज में एक ऐसा चेहरा दिखाई दिया, जिस पर शक हुआ. उस का चेहरा काफी धुंधला था, पर उस की गतिविधियां काफी संदिग्ध लग रही थीं. चेहरा स्पष्ट न होने की वजह से उसे पहचाना नहीं जा सकता था. फुटेज को सांताकु्रज की लैब भेजा गया तो चेहरा कुछ साफ हुआ. इस के बाद सच्चाई सामने आ गई. वह युवक उसी बस्ती में लगभग 7 सालों से रह रहा था, जहां श्रद्धा का परिवार रहता था.

उस युवक का नाम देवाशीष धारा था. पुलिस उस की तलाश में लग गई. वह जिस मकान में किराए पर रहता था, मकान मालिक ने बताया कि वह 8 जनवरी, 2017 को कमरा खाली कर के अपने गांव चला गया था. पुलिस ने इस मामले में देर करना उचित नहीं समझा. वैसे भी संभावित अभियुक्त उन की पहुंच से काफी दूर निकल चुका था.

थानापुलिस ने इस बात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी. इस के बाद अधिकारियों के निर्देश पर पुलिस की एक टीम पश्चिम बंगाल स्थित देवाशीष के गांव के लिए रवाना हो गई. पुलिस को उस का पता मकान मालिक से मिल गया था.

देवाशीष के गांव गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे वहां की अदालत में पेश कर के प्रोडक्शन वारंट पर मुंबई ला कर अधिकारियों की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई तो पहले वह खुद को इस मामले से अनभिज्ञ बताता रहा. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

27 वर्षीय देवाशीष धारा मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला मिदनापुर के थाना दासपुर के गांव मेधूपुर का रहने वाला था. उस के पिता नंदलाल गांव के एक गरीब किसान थे. परिवार का सब से बड़ा बेटा देवाशीष ही था. बड़ा हुआ तो घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से सन 2010 में वह काम की तलाश में मुंबई आ गया.

कहा जाता है कि मुंबई में कोई भूखा नहीं सोता, पर यहां काम नसीब से मिलता है. यही देवाशीष के साथ भी हुआ. उसे उस के मनमुताबिक काम नहीं मिला. उस के गांव के कुछ लोग वहां मेहनतमजदूरी करते थे, उन्हीं के साथ वह भी मेहनतमजदूरी करने लगा.

देवाशीष महत्त्वाकांक्षी युवक था. मेहनतमजदूरी से जो पैसे मिलते थे, उन्हें जोड़ कर रखता था. खर्चे के बाद जो भी पैसे बचते थे, वह उन्हें गांव भेज देता था. रहने के लिए उस ने विलेपार्ले पूर्व के श्रद्धानंद रोड पर साईंबाबा मंदिर के पास किराए का कमरा ले रखा था.

जहां देवाशीष रहता था, उसी के नजदीक की लीलाबाई सोसायटी के एक चालनुमा 2 मंजिले मकान में काशीनाथ पांचाल परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी और 2 बेटियां थीं. 50साल के काशीनाथ मुंबई लोअर परेल की सन मिल कंपाउंड की एक प्रतिष्ठित फर्म में नौकरी करते थे. उन्हें बेटा नहीं था, इसलिए उन्होंने बेटियों को ही बेटों की तरह पालापोसा. वह बेटियों को पढ़ालिखा कर किसी योग्य बनाना चाहते थे. बड़ी बेटी श्रद्धा पढ़लिख कर फिजियोथेरैपिस्ट बन गई थी और विलेपार्ले वेस्ट जुहू में अपनी क्लिनिक खोल ली थी, जो धीरेधीरे चलने भी लगी थी. छोटी बेटी भी इलैक्ट्रौनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी.

24 साल की श्रद्धा खूबसूरत तो थी ही, वाचाल भी थी. वह किसी से भी बात करने में नहीं झिझकती थी. इस की एक वजह यह थी कि उस का काम ही ऐसा था.

जो दूसरों की फिटनेस का खयाल रखता हो, वह अपनी फिटनेस का ध्यान रखेगा ही. श्रद्धा के अधिकतर ग्राहक फिल्मी दुनिया और टीवी सीरियलों में काम पाने वाले युवकयुवतियां थे. वे क्लिनिक पर भी आते थे और घर पर भी. ऐसे लोगों के बीच रहने की वजह से श्रद्धा खुद भी मौडल की तरह रहती थी. वह कपड़े भी छोटेछोटे पहनती थी.

देवाशीष की नजर श्रद्धा पर पड़ी तो वह उसे चाहने लगा. वैसे तो वह श्रद्धा को कई सालों से देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में श्रद्धा के प्रति प्यार तब जागा, जब उस ने फिजियोथेरैपिस्ट डाक्टर बन कर अपनी क्लिनिक खोली थी. फिल्म और सीरियल में काम पाने के इच्छुक युवकयुवतियों के संपर्क में रहने की वजह से श्रद्धा का रहनसहन और बातव्यवहार उसी तरह हो गया था. वह बनसंवर कर घर से सुबह निकलती थी तो देर रात को ही लौटती थी.

श्रद्धा की खूबसूरती देवाशीष को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर देवाशीष श्रद्धा का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह श्रद्धा का पीछा भी करने लगा था. लेकिन वह उस से अपने दिल की बात कह नहीं पा रहा था. इस की एक वजह यह थी कि उस की और श्रद्धा की हैसियत में बड़ा अंतर था. श्रद्धा के सामने वह कुछ नहीं था.

लेकिन दिल तो दिल है, वह किस पर आ जाए कौन जानता है. जब देवाशीष से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने श्रद्धा से दिल की बात कह ही दी. भला श्रद्धा उस के प्यार को कहां स्वीकार करने वाली थी. उस ने जो जवाब दिया, वह देवाशीष के कलेजे में तीर की तरह उतर गया.

देवाशीष को अपमानित कर श्रद्धा अपने काम पर चली गई और उसे भूल गई. उस ने यह बात किसी को बताई भी नहीं. श्रद्धा भले ही इस बात को भूल गई थी, लेकिन देवाशीष अपने अपमान को नहीं भुला सका था. वह बदले की आग में जलने लगा. वह श्रद्धा को सबक सिखाने का मौका ढूंढने लगा.

घटना वाली रात देवाशीष दोस्तों से मिल कर लौट रहा था, तभी उस ने श्रद्धा की सहेलियों को उस के कमरे से निकलते देखा. उसे यह मौका उचित लगा. वह कुछ देर श्रद्धा के मकान के आसपास घूमता रहा. उस के बाद मौका देख कर वह श्रद्धा के कमरे के दरवाजे पर जा पहुंचा.

उस ने दरवाजे पर हाथ रखा तो दरवाजा खुल गया, क्योंकि दरवाजा खुला ही था. दरअसल, श्रद्धा की सहेलियों ने जाते समय उस से दरवाजा बंद करने को कहा था, लेकिन नींद में होने की वजह से वह दरवाजा बंद नहीं कर सकी थी. गहरी नींद में सो रही श्रद्धा को देवाशीष ने इस तरह दबोचा कि वह अर्द्धबेहोशी की स्थिति में चली गई. उसी हालत में उस ने श्रद्धा के कपड़े उतार कर उस के साथ दुष्कर्म किया और अपना अपराध छिपाने के लिए उसी की जींस से उस का गला घोंट दिया.

श्रद्धा मर गई तो अलमारी में रखी किताबें निकाल कर उस ने फाड़ा और उन के पन्ने श्रद्धा की लाश पर रख कर आग लगा दी. आग जब तक जोर पकड़ती, उस ने कमरे की लाइट तोड़ कर बाहर आ गया. बाहर आ कर दरवाजे की कुंडी बंद की और भाग गया.

इस हत्याकांड के बाद एक महीने तक वह अपने दोस्तों के यहां रह कर पुलिस काररवाई के बारे में पता करता रहा. जब उस ने देखा कि पुलिस हत्यारे के बारे में पता नहीं लगा पा रही है तो निश्चिंत हो कर वह गांव चला गया. लेकिन वह बच नहीं सका और 2 फरवरी, 2017 को पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

इंसपेक्टर महादेव निवालकर ने पूछताछ के बाद देवाशीष के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 1

‘‘देखिए… मैं अभी नहा कर आई हूं,’’ सुखलाल से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए सलोनी किसी तरह बोली, लेकिन वह शराबी कहां मानने वाला था. वह बेशर्मी से बोला, ‘‘इसीलिए तो अभी खासतौर से तुम को प्यार करने आया हूं. तरोताजा फल का स्वाद ही अलग होता है.’’

इसी पकड़धकड़ में सलोनी का सिर टेबल के कोने से जा टकराया और उस की चीख निकल गई, ‘‘आह…’’

लेकिन सलोनी की कमजोरी तो जिस्मानी से ज्यादा दिमागी थी. वह कसमसा कर रह गई और सुखलाल उस के ऊपर छा गया.

तकरीबन 15 मिनट बाद सलोनी के जलते दिल पर अपने जहर की बरसात करने के बाद संतुष्टि की सांसें भरता सुखलाल उठा और कहने लगा, ‘‘बस, हो तो गया. कोई ज्यादा समय थोड़े ही लगता है हम को काम करने में. तुम्हीं बेकार में टैंशन ले लेती हो और हम को भी दे देती हो,’’ इस के बाद वह बाहर चला गया.

सलोनी ने भरी आंखों से घड़ी देखी तो बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. बुझे मन से वह दोबारा नहाने चली गई. बाहर आ कर अपने माथे की चोट पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

सलोनी ने दरवाजा खोला. उस के दोनों बेटे स्कूल से आ चुके थे.

बड़े बेटे की नजर अपनी मां के माथे पर गई तो वह पूछ बैठा, ‘‘मम्मी, यह चोट कैसे लगी?’’

‘‘वह जरा टेबल से सिर टकरा गया. तुम दोनों फ्रैश हो लो. मैं आलू के परांठे बना रही हूं,’’ सलोनी ने जल्दी से उसे टाला और रसोईघर में चली गई.

सलोनी के साथ इस तरह की घटनाओं की भूमिका तो उसी दिन से शुरू हो गई थी जब तकरीबन 6 महीने पहले उस के पति सुधीर ने पैसे की तंगी कम करने के लिए सुखलाल को ऊपर का कमरा किराए पर दिया था. उन को तब पता नहीं था कि कि 50 साल का सुखलाल किस कदर काइयां आदमी है. उस के तार इलाके के कुछ बड़े दबंगों से जुड़े थे और पुलिस से भी.

टीवीकूलरपंखे वगैरह की रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाला सुधीर सीधासादा आदमी था. सुखलाल की गंदी नजरें यहां आते ही खुद से 10 साल छोटी सलोनी पर टिक गई थीं. पहली मुलाकात में ही वह उस के हुस्न को देखता रह गया था, जब वह उस के लिए चाय ले कर आई थी. इस के बाद तो सुखलाल ने उस पर लगातार डोरे डालने शुरू कर दिए थे.

जब सलोनी ने सुखलाल की दाल नहीं गलने दी तो उस ने एक दिन अपना गैरकानूनी कट्टा चुपके से सुधीर की दुकान में रखवा कर इलाके के अपने परिचित दारोगा से उस को गिरफ्तार

करा दिया.

अपने पति को दिलोजान से चाहने वाली सलोनी ने हर मुमकिन कोशिश कर ली लेकिन सुधीर को छुड़ा नहीं पाई. तब एक रात इसी सुखलाल ने सलोनी को अपने कमरे में इस बारे में बात करने के लिए बुलाया और अपने मन की कर ली. सुबह उस ने अपने नशे में होने का बहाना बनाया और सुधीर की रिहाई का लालच दे कर उसे किसी से कुछ भी न बताने के लिए राजी कर लिया.

रोजरोज थाने में थर्ड डिगरी झेल रहा बेकुसूर सुधीर अगले दिन ही रिहा कर दिया गया. सलोनी उस की हालत देख कर रो पड़ी.

सुखलाल ने उस के इलाज के लिए कुछ पैसे दे कर सलोनी की रहीसही हिम्मत भी तोड़ दी. उस ने सोचा कि अपनेआप को एक बार दागदार कर के उस ने अपना घर और सुहाग बचा लिया है, लेकिन उस का यह सोचना गलत निकला.

सुखलाल पर सलोनी का स्वाद लग चुका था. अब वह अकसर उस को मौका पाते ही दबोच लेता था.

आज भी सलोनी के साथ वही हुआ. वह बारबार सोचती कि सुधीर को सबकुछ बता दे, लेकिन सुखलाल का डर उस की जबान सिल देता.

शाम को सुधीर दुकान से आया और सलोनी के माथे पर लगी चोट देख कर शंका भरी आवाज में सवाल करने लगा.

दरअसल, सुधीर को यह सारा मामला किसी और ही नजरिए से दिखने लगा था. वह सोचता था कि सलोनी और सुखलाल के बीच कुछ है और उस का खमियाजा पति होने के नाते थाने में गिरफ्तार हो कर उसे भुगतना पड़ा.

सलोनी ने सुधीर से भी अपनी चोट का वही बहाना बनाया जो उस ने अपने बच्चों से बनाया था. सुधीर उस का जवाब सुन कर चुपचाप वहां से चला तो गया, लेकिन आज उस की आंखों में सलोनी ने एक ऐसी आग की झलक देखी जो उस ने पहले कभी महसूस नहीं की थी.

अगली सुबह बाहर हो रहे शोर से सलोनी जागी तो उस ने सुधीर को अपने पास नहीं पाया. वह हड़बड़ी में अपने बाल बांधती बाहर भागी. उस के घर के बगल वाली खाली जमीन के सामने लोगों की भीड़ लगी थी. कोई आदमी कह रहा था, ‘‘जिंदा है कि मर गया?’’

ये शब्द सुनते ही सलोनी को बेहोशी आने लगी. कहीं सुधीर ने तनाव में आ कर खुदकुशी तो…

घबराहट में वह बेतहाशा लोगों को धकियाती आगे बढ़ी तो पाया कि सामने सुखलाल खून से लथपथ गिरा पड़ा था. उस के पेट में लोहे की एक छड़ धंसी थी और जिस्म शांत हो चुका था.

इसी बीच पुलिस भी आ गई. नए दारोगा राम सिंह ने कुछ ही दिनों पहले इस इलाके का चार्ज लिया था और सुखलाल उस से भी मेलजोल बढ़ाने में लगा रहता था लेकिन राम सिंह की ईमानदारी के चलते वह कामयाब नहीं हो सका था.

सलोनी घर वापस आई और सुधीर को पूरे घर में तलाशा. उसे नहीं पा कर उस को फोन मिलाया. वह भी बंद मिला.

सलोनी सिर पकड़ कर रोने लगी कि आखिर वही हुआ जिस से बचने के लिए उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया था… आखिरकार सुधीर कानून का मुजरिम बन ही गया.

सुखराम की लाश को कस्टडी में लेने के बाद दारोगा राम सिंह सलोनी

के घर आया क्योंकि सुखलाल उसी का किराएदार था. उस ने सुखलाल के कमरे की तलाशी ली. सीढ़ीघर के बाहर

की तरफ दीवार नहीं बनी थी जिस के चलते वहां से नीचे गिरने का खतरा बना रहता था.

दारोगा राम सिंह ने अंदाजा लगा लिया कि यहीं से सुखलाल भी नीचे गिरा है. उस के कमरे में रखी शराब की बोतलों को आगे की जांच के लिए जब्त कर उस ने सलोनी से सवाल किया, ‘‘आप के पति कहां हैं?’’

‘‘ज… जी, वे मेरे मायके गए हैं, कल रात को… मेरे चाचाजी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी तो उन को ही देखने,’’ सलोनी ने झूठ बोल दिया ताकि राम सिंह का शक सुधीर पर न जाए. अपनी बात की तसदीक तो वह अपने मायके वालों को समझा कर करा ही सकती थी.

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