बदसूरत : प्रभा के साथ अविनाश ने क्या किया

‘प्रभा, जल्दी से मेरी चाय दे दो…’

‘प्रभा, अगर मेरा नाश्ता तैयार है, तो लाओ…’

‘प्रभा, लंच बौक्स तैयार हुआ कि नहीं?’

जितने लोग उतनी ही फरमाइशें. सुबह से ही प्रभा के नाम आदेशों की लाइन लगनी शुरू हो जाती थी. वह खुशीखुशी सब की फरमाइश पूरी कर देती थी. उस ने भी जैसे अपने दो पैरों में दस पहिए लगा रखे हों. उस की सेवा से घर का हर सदस्य संतुष्ट था. वर्मा परिवार उस की सेवा और ईमानदारी को स्वीकार भी करता था.

प्रभा थी भी गुणों की खान. दूध सा गोरा और कमल सा चिकना बदन. कजरारे नैन, रसीले होंठ, पतली कमर, सुतवां नाक, काली नागिन जैसे काले लंबे बाल और ऊपर से खनकती हुई आवाज. उस की खूबसूरती उस के किसी फिल्म की हीरोइन होने का एहसास कराती थी.

मालकिन मिसेज वर्मा की बेटी ज्योति, जो प्रभा की हमउम्र थी, के पुराने, मगर मौडर्न डिजाइन के कपड़े जब वह पहन लेती थी, तो उस की खूबसूरती में और भी निखार आ जाता था.

मिसेज वर्मा का बेटा अविनाश तो उस पर लट्टू था. हमेशा उस के आसपास डोलते रहने की कोशिश करता रहता था. वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी. अब तक दोनों में से किसी ने भी अपनेअपने मन की बात एकदूसरे से जाहिर नहीं की थी.

घर के दूसरे कामों के अलावा मिसेज वर्मा की बूढ़ी सास की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी भी प्रभा के कंधों पर ही थी. दरअसल, मिसेज वर्मा एक इंटर कालेज की प्रिंसिपल थीं. उन्हें सुबह के 9 बजे तक घर छोड़ देना पड़ता था. बड़ा बेटा अविनाश और बेटी ज्योति दोनों सुबह साढ़े 9 बजे तक अपनेअपने कालेज के लिए निकल जाते थे.

घर के मालिक पीके वर्मा पेशे से वकील थे और उन के मुवक्किलों के चायनाश्ते का इंतजाम भी प्रभा को ही देखना पड़ता था. प्रभा सुबह के 8 बजतेबजते वर्मा परिवार के फ्लैट पर पहुंच जाती थी. पूरे 8 घंटे लगातार काम करने के बाद शाम के 5 बजे तक ही वह अपने घर लौट पाती थी.

उस दिन प्रभा मिस्टर वर्मा के घर पर अकेली थी. बूढ़ी अम्मां भी किसी काम से पड़ोस में गई हुई थीं. घर का काम निबटा कर थोड़ा सुस्ताने के लिए प्रभा जैसे ही बैठी, दरवाजे की घंटी बज उठी.

प्रभा ने दरवाजा खोला, तो सामने अविनाश खड़ा था. ‘‘घर में और कोई नहीं है क्या?’’ अविनाश ने अंदर आते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ प्रभा ने छोटा सा जवाब दिया.

कमरे में खुद के अलावा अविनाश की मौजूदगी ने उस के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. वह अपनी नजरें चुरा रही थी. उधर अविनाश का दिमाग प्रभा को अकेला पा कर बहकने लगा था.

अविनाश ने अपने कमरे में जाते हुए प्रभा को एक गिलास पानी देने के लिए आवाज लगाई. वह पानी ले कर कमरे में पहुंची. अविनाश ने उसे गिलास मेज पर रख देने का इशारा किया.

गिलास रख कर जब प्रभा लौटने लगी, तो अविनाश ने उसे पीछे से अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया. एक तो लड़की की गदराई देह, मुश्किल से मिली तनहाई और मालिक होने का रोब… अविनाश पूरी तरह अपने अंदर के हैवान के आगे मजबूर हो चुका था.

‘‘यह आप क्या कर रहे हैं साहब?’’ प्रभा बुरी तरह डर गई थी.

‘‘वही, जो तुम चाहती हो. तुम्हें तो फिल्मों की हीरोइन होना चाहिए था, किन कंगालों के घर पैदा हो गई तुम… कोई बात नहीं. तुम तो किसी बड़े घर की बहू बनने के लायक हो मेरी जान.

‘‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ फिर अविनाश ने उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के जिस्म पर सवार होने लगा.

प्रभा पर ताकत का इस्तेमाल करते हुए अविनाश बड़ी बेशरमी से बोला, ‘‘पहले अपनी जवानी का मजा चखाओ, फिर मैं तुम्हें वर्मा परिवार की बहू बनाता हूं.’’

‘‘लेकिन, शादी के पहले यह सब करना पाप होता है,’’ प्रभा गिड़गिड़ाते हुए बोली.

‘‘पापपुण्य का हिसाब बाद में समझाना बेवकूफ लड़की. पहले मैं जो चाहता हूं, वह करने दे.’’

अविनाश वासना की आग में पूरी तरह दहक रहा था. इस के आगे वह कोई हरकत करता, घर का दरवाजा‘खटाक’ से खुला. सामने मिसेज वर्मा खड़ी थीं.

अपनी मां को देख अविनाश पहले तो झेंपा, फिर पैतरा बदल कर पलंग से उतर गया. प्रभा भी उठ खड़ी हुई.

‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’ मिसेज वर्मा चीखते हुए बोलीं.

‘‘देखिए न मम्मी, कैसी बदचलन लड़की को आप ने घर में नौकरी दे रखी है? अकेला देख कर इस ने मुझे जबरन बिस्तर पर खींच लिया. यह इस घर की बहू बनने के सपने देख रही है,’’ अविनाश ने एक ही सांस में अपना कुसूर प्रभा के सिर पर मढ़ दिया.

‘‘नहीं मालकिन, नहीं. यह सच नहीं है,’’ कहते हुए प्रभा रो पड़ी.

‘‘देख रही हैं मम्मी, कितनी ढीठ है यह लड़की? यह कब से मुझ पर डोरे डाल रही है. आज मुझे अकेला पा कर अपनी असलियत पर उतर ही आई,’’ अविनाश सफाई देता हुआ बोला.

‘‘मैं खूब जानती हूं इन छोटे लोगों को. अपनी औकात दिखा ही देते हैं. अब मैं इसे काम पर नहीं रख सकती,’’ मिसेज वर्मा प्रभा पर आंखें तरेरते हुए बोलीं.

‘‘नहीं मालकिन, ऐसा मत कीजिए. हम लोग भूखे मर जाएंगे,’’ प्रभा बोली.

‘‘भूखे क्यों मरोगे? अपनी टकसाल ले कर बाजार में बैठ जाओ. अपनी

भूख के साथसाथ दूसरों की भी मिटाओ. घरों में झाड़ूपोंछा कर के कितना कमाओगी. चलो, निकलो अभी मेरे घर से. मेरे बेटे पर लांछन लगाती है,’’ मिसेज वर्मा बेरुखी से बोलीं. प्रभा हैरान सी सबकुछ सुनतीदेखती रही. उस का सिर चकराने लगा. कुछ देर में जा कर वह संभली और बिना उन की तरफ देखे दरवाजे से बाहर निकल गई.

घर आ कर उस ने रोतेरोते सारी दास्तान अपनी मां को सुनाई. उस की मां लक्ष्मी हैरान रह गई.

‘‘मां, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. यह सच है कि मैं मन ही मन अविनाश बाबू को चाहने लगी थी, पर इन सब बातों के लिए कभी तैयार नहीं थी. वह तो ऐन वक्त पर मालकिन आ गईं और मैं बरबाद होने से बच गई. मुझे माफ कर दो मां,’’ प्रभा रोने लगी.

मां लक्ष्मी ने बेटी प्रभा को खींच कर गले से लगा लिया. प्रभा काफी देर तक मां से लिपट कर रोती रही. रो लेने के बाद उस का जी हलका हो गया. वह लुटतेलुटते बची थी. इस के लिए वह मन ही मन मिसेज वर्मा को धन्यवाद भी दे रही थी. ऐन वक्त पर उन का आ धमकना प्रभा के लिए वरदान साबित हुआ था.

प्रभा को अब अपने सपनों के टूट जाने का कोई गम नहीं था. उस के सपनों का राजकुमार तो अंदर से बड़ा ही बदसूरत निकला था.

‘‘महीने की पगार की आस टूट गई तो क्या हुआ, इज्जत का कोहिनूर तो बच गया. वह अगर लुट जाता, तो किस दुकान पर वापस मिलता?’’ इतना कह कर उस की मां लक्ष्मी ने इतमीनान की एक लंबी सांस ली.

कुछ खोतेखोते बहुतकुछ बच जाने का संतोष प्रभा के चेहरे पर भी दिखने लगा था.

आस्था : कुंभ में स्नान करने का क्या मिला फल

रात के 8 बज चुके थे. पुष्पेंद्रजी अभी तक घर नहीं पहुंचे थे. पत्नी बारबार घड़ी की तरफ बेचैनी से देख रही थीं. सोच रही थीं कि रोज शाम 6 बजे के पाबंद पतिदेव को आज क्या हो गया? इतनी देर तो कभी नहीं होती… तभी उन्हें सहसा याद आया कि सुबह उन्होंने गरज कर यही कहा था कि आज कुंभ के लिए कन्फर्म टिकट ले कर ही आना है.

इतने में बाहर गाड़ी के आने की आवाज कानों में पड़ी. गाड़ी की आवाज से पत्नी भलीभांति परिचित थीं और श्रीमानजी के आने का संकेत उन्हें मिल चुका था.

पुष्पी ने खीजते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘‘आज भी रिजर्वेशन करा लाए या मुंह लटका कर चले आए?’’

शांत स्वभाव के पुष्पेंद्रजी ने कहा, ‘‘एजेंट से कह आया हूं कि टिकट के इंतजाम में कितने भी रुपए लगें, करवा देना, वरना घर पहुंच कर मेरी खैर नहीं.’’

यह सुन कर पत्नी ने कुछ राहत की सांस ली और यह सोच कर मुसकराईं, ‘चलो, मेरा कुछ तो इन पर असर है.’

सारा मामला कुंभ स्नान से जुड़ा हुआ था. उज्जैन में कुंभ शुरू होने वाला था. पत्नी चाहती थीं कि 14 को ही पहुंच कर कुंभ के पहले स्नान का लाभ ले लिया जाए.

चाय पी कर पुष्पेंद्रजी अखबार पकड़ने ही वाले थे कि फोन की घंटी बज उठी. सोच के मुताबिक फोन एजेंट का ही था. उस ने कहा, ‘सर, रिजर्वेशन तो हो गया है, लेकिन भक्तों की भीड़ के चलते 14 तारीख के बजाय 20 तारीख के टिकट मिले हैं, वे भी हर टिकट के एक हजार रुपए ज्यादा देने पर.’पुष्पेंद्रजी के लिए यह हैरानी की बात थी कि टिकट की कीमत है 8 सौ रुपए और ऐक्स्ट्रा हजार रुपए. उन्हें समझ नहीं आया कि हजार रुपए ज्यादा देने के लिए रोएं या टिकट मिलने की खुशी मनाएं. फिर उन्हें लगा कि एक पति को आदर्श पति का दर्जा हासिल करने के लिए पत्नी की मांगों को सिरआंखों पर रखना पड़ता है. फिर यहां तो धार्मिक आस्था का भी सवाल है.

पुष्पेंद्रजी गाड़ी उठा कर टिकट लाने चले गए और थोड़ी देर बाद उन्होंने टिकटों को पत्नी के सुपुर्द कर राहत की सांस ली. पर यह क्या, 20 तारीख के टिकट देख कर पुष्पेंद्रजी की पत्नी बिफर पड़ीं. घर का सारा माहौल अशांत हो गया.

14 तारीख के बजाय 20 तारीख के टिकट श्रीमतीजी को गंवारा नहीं थे. सो, गुस्से में उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप खुद टिकट लेने जाते, तो यह नौबत नहीं आती. अपना काम खुद करना चाहिए, एजेंटों  के भरोसे रहोगे, तो काम ऐसा ही होगा. आखिरकार दफ्तर में करते ही क्या हो, सिवा अपना और दूसरों का टिफिन खाने के?’’

पुष्पेंद्रजी शांत स्वभाव के जरूर थे, पर वे नटखट भी कम नहीं थे. उन्हें भी कभीकभी सांप की पूंछ पर पैर रखने में मजा आता था.

उन्होंने पत्नी के गले में प्यार से बांहें डाल कर कहा, ‘‘टिकट का रिजर्वेशन क्या मेरे ससुरजी के हाथ में है, जो हमारी मरजी से टिकट देगा. फिर प्राणप्यारी, अगर 14 की जगह 20 को स्नान कर लेंगे, तो न हमें पाप लगेगा और न ही हमारे पुण्य में कोई कमी हो जाएगी.’’

यह सुन कर पुष्पी ने आंखें लाल कीं, तो पुष्पेंद्रजी ने नजरें नीचे कीं.

पुष्पेंद्रजी के बड़े भाई गजेंद्रजी थे. खाने की चीजों के प्रति अटूट लालसा के चलते बचपन से ही लोग उन्हें प्यार से गजेंद्र कहने लगे थे. गजेंद्रजी आकार में गज के समान थे, तो उन की पत्नी गौरी की जबान गज भर की थी.

धार्मिकता के एकदम महीन कपड़े उन्होंने भी पहन रखे थे. भक्ति व धार्मिक कामों में दोनों देवरानीजेठानी एक से बढ़ कर एक थीं. इस मुद्दे पर किसी दूसरे को बोलने का हक नहीं था.

कुलमिला कर कहा जाए, तो धार्मिक नजरिए से उन का घर एक मंदिर था, दोनों भाइयों की पत्नियां पुजारिन थीं और बाकी सदस्य भक्त थे.

घर में धार्मिकता व पत्नीभक्ति का आलम यह था कि पत्नी के पदचिह्नों पर चलना पतियों के लिए जरूरी परंपरा थी.

इस की मजबूत नींव उन के पूज्य दादाजी व पिताजी ने पहले ही रख दी थी. पत्नीभक्ति की परंपरा उन तक ही नहीं सिमटी थी, बल्कि उन के दोनों बेटों ने भी इसी राह पर चलने का व्रत ले रखा था.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. घर पर चौकीदार को छोड़ कर सारा परिवार कुंभ स्नान के लिए निकल पड़ा.

कुंभ की भीड़ का यह नजारा था कि मुट्ठीभर रेत फेंकने पर वह नीचे न गिर कर लोगों के सिर पर ही गिरती. इन हालात में वहां ठहरने का इंतजाम करना आसान नहीं था. हर कारोबारी इस कुंभ में इतना कमा लेना चाहता था कि उस का मुनाफा आगे आने वाले कुंभ तक चले.

पंडे तो अपनेआप को भगवान का एजेंट बता र थे. वे इस बात का यकीन दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे कि उन के बिना भगवान तक पहुंचा ही नहीं जा सकता.

होटल, खानेपाने की चीजें व पूजा से संबंधित हरसामान, आभूषण वगैरह कई गुना ज्यादा दामों पर बेचे जा रहे थे. खरीदने वालों में भी कम जोश नहीं था. भले ही घर में झगड़ा कर के आए हों या जमीन गिरवी रख कर आए हों, लेकिन पुण्य कमाने की होड़ में कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता था.

पुष्पेंद्रजी ने कुछ बुजुर्गों से उन के आने की वजह पूछी, तो उन्होंने कहा कि अगले 12 सालों तक उन के रहने की गारंटी नहीं है, इसीलिए वे तनमनधन से इसी कुंभ में स्नान कर के पुण्य कमाने आए हैं.

पुष्पेंद्रजी ने कहा कि लंबी जिंदगी की गारंटी व सारी इच्छाएं पूरी होने के लिए तो यहां आए हो, फिर कहते हो कि गारंटी नहीं है.

इस का मतलब है कि आप को कुंभ स्नान व भगवान में विश्वास नहीं है. मामला विश्वास और अविश्वास के बीच झूल रहा था. होटल वाले एक दिन के लिए  10 हजार रुपयों की मांग कर रहे थे. अमीर गजेंद्रजी को भी एक बार सोचना पड़ गया. उन्होंने महिला मंडली से कहा कि एक दिन स्नान कर के लौट आएंगे, लेकिन पत्नियों की भक्ति फिर आड़े आ गई.

दोनों ने एक आवाज में कहा कि इतनी दूर आने के बाद पति के साथ कम से कम 3 स्नान जरूरी हैं, नहीं तो सारा पुण्य मिट्टी में मिल जाएगा.

दूसरे दिन सब सुबहसुबह उठ गए और पंडे को खोजने की सोच रहे थे कि उन की इच्छा तुरंत पूरी हो गई, क्योंकि पंडे ने खुद ही उन्हें खोज लिया था.

पंडे ने सारे विधिविधान से स्नान और पूजा करने का ठेका 20 हजार रुपए में ले लिया. परिवार के सभी सदस्यों ने पंडे का साथ दिया, क्योंकि जीवन में अच्छे दिन जो आने वाले थे. नदी पर फैली गंदगी और पानी का रंग देख कर तो पुष्पेंद्रजी का मन कसैला हो गया.

उन्होंने गंदा पानी देख कर कहा कि इस में डुबकी लगा कर पुण्य कमाने की तुलना में पाप क्या बुरा है? पुण्य मिलेगा या नहीं, पर बीमारियों का आना तय है.

पंडे ने कुछ मंत्र पढ़ कर पतिपत्नी को एकदूसरे का हाथ पकड़ कर डुबकी लगाने व भगवान से अगले 7 जन्मों में भी पतिपत्नी बने रहने का वरदान मांगने को कहा.

गजेंद्रपुष्पेंद्रजी ने बुदबुदाते हुए कहा कि यही जन्म इन के साथ भारी पड़ रहा है और पंडा है कि 1-2, नहीं पूरे 7 जन्मों तक मारने पर तुला है.

पुष्पेंद्रजी ने मजाक भरे लहजे में पंडे से पूछा, ‘‘भैया, आप ने अपनी पत्नी के साथ अभी तक डुबकी लगाई है कि नहीं? क्योंकि धार्मिकता का पूरा ठेका आप ने ही ले रखा है.’’

पंडा भी घुटापिटा था. उस ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘डुबकी मैं भी रोज लगाता हूं, लेकिन अपनी पत्नी के साथ नहीं.’’

3 दिन जैसेतैसे कटे. होटल खाली कर जैसे ही स्टेशन पहुंचे, पता चला कि आगे मालगाड़ी पटरी से उतर गई है और 2 दिन तक गाडि़यां नहीं चलेंगी.

यह सुन कर दोनों भाइयों में पहाड़ टूट पड़ा, क्योंकि उन की हालत धोबी के कुत्ते जैसे हो गई, घर का न घाट का. भाइयों ने चिढ़ते हुए महिला मंडली पर आक्रामक मुद्रा में कहा कि लो, यहीं से अच्छे दिन शुरू हो गए.

सारा परिवार 2 दिन तक ठसाठस भरी धर्मशाला में रुका. धर्मशाला की भीड़ में गौरी की 2 तोले की सोने की चैन गायब हो गई. लेकिन उस ने डर और उलाहने की वजह से किसी को नहीं बताया.

2 दिन बाद वे सभी गाड़ी में चढ़े, तो पता चला कि रिजर्वेशन का डब्बा नहीं लग पाया और सब को जनरल डब्बे में सफर करना पड़ेगा. जनरल डब्बे की बात सुन कर गजेंद्रजी के होश उड़ गए, क्योंकि पिछले 20 सालों से उन्होंने हवाईजहाज या रेलगाड़ी में एयरकंडीशंड क्लास से कम में सफर नहीं किया था.

वे आधी दूर ही पहुंचे थे कि पड़ोसी का फोन आया कि सिक्योरिटी गार्ड घर का सामान ले कर चंपत हो गया है. यह सुन कर पुष्पेंद्रजी ने अपने बाल नोच कर कहा, ‘‘जिंदगी में इस से ज्यादा और बुराई क्या हो सकती है. जिस सिक्योरिटी गार्ड के भरोसे अपने घर को रखा, वही चोर निकला. और हम सब यहां अच्छाई बटोरने आए थे.’’

कुंभ स्नान के बाद उन्हें यह तीसरा झटका लग चुका था. पता नहीं, आगे और क्याक्या होगा. घर पहुंचे, तो पोतों ने कहा कि शरीर में जबरदस्त खुजली हो रही है.

पुष्पेंद्रजी ने मन ही मन कहा कि बेटा, मुझे भी माली व जिस्मानी खुजली हो रही है. गंदे व कीचड़ वाले पानी में नहाने पर खुजली नहीं होगी, तो क्या काया कंचन की हो जाएगी. फर्क यही है कि तुम कह रहे हो, लेकिन मैं बता नहीं पा रहा हूं.

पुण्य कमाने के चक्कर में अब तक डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा ही खर्च हो चुके थे. उन्होंने कहा कि इतने रुपए में पूरा परिवार घर में ही सालभर बोतलबंद पानी में डुबकी लगा सकता था, पर पत्नियों की धार्मिक आस्था का भी जवाब नहीं था.

उन्होंने कहा कि दुख मत मनाइए, ये सब दुर्घटनाएं पिछले कुंभ में स्नान न करने का फल हैं. इस बार के स्नान का फल आने वाले समय में जरूर मिलेगा, सब्र रखिए. यह सुन कर दोनों भाई हैरानी से एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

Valentine’s Day 2024: प्यार असफल है तुम नहीं रक्षित

एक हार्ट केयर हौस्पिटल के शुभारंभ का आमंत्रण कार्ड कोरियर से आया था. मानसी ने पढ़ कर उसे काव्य के हाथ में दे दिया. काव्य ने उसे पढ़ना शुरू किया और अतीत में खोता चला गया…

उस ने रक्षित का दरवाजा खटखटाया. वह उस का बचपन का दोस्त था. बाद में दोनों कालेज अलगअलग होने के कारण बहुत ही मुश्किल से मिलते थे. काव्य इंजीनियरिंग कर रहा था और रक्षित डाक्टरी की पढ़ाई. आज काव्य अपने मामा के यहां शादी में अहमदाबाद आया हुआ था, तो सोचा कि अपने खास दोस्त रक्षित से मिल लूं, क्योंकि शादी का फंक्शन शाम को होना था. अभी दोपहर के 3-4 घंटे दोस्त के साथ गुजार लूं. जीभर कर मस्ती करेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे. वह रक्षित को सरप्राइज देना चाहता था.

उस के पास रक्षित का पता था क्योंकि अभी उस ने पिछले महीने ही इसी पते पर रक्षित के बर्थडे पर गिफ्ट भेजा था. दरवाजा दो मिनट बाद खुला, उसे आश्चर्य हुआ पर उस से ज्यादा आश्चर्य रक्षित को देख कर हुआ. रक्षित की दाढ़ी बेतरतीब व बढ़ी हुई थी. आंखें धंसी हुई थीं जैसे काफी दिनों से सोया न हो. कपड़े जैसे 2-3 दिन से बदले न हों. मतलब, वह नहाया भी नहीं था. उस के शरीर से हलकीहलकी बदबू आ रही थी, फिर भी काव्य दोस्त से मिलने की खुशी में उस से लिपट गया. पर सामने से कोई खास उत्साह नहीं आया.

‘क्या बात है भाई, तबीयत तो ठीक है न,’ उसे आश्चर्य हुआ रक्षित के व्यवहार से, क्योंकि रक्षित हमेशा काव्य को देखते ही चिपक जाता था.

‘अरे काव्य, तुम यहां, चलो अंदर आओ,’ उस ने जैसे अनमने भाव से कहा. स्टूडैंट रूम की हालत वैसे ही हमेशा खराब ही होती है पर रक्षित के रूम की हालत देख कर लगता था जैसे एक साल से कमरा बंद हो. सफाई हुए महीनों हो गए हों. पूरे कमरे में जगहजगह जाले थे. किताबों पर मिट्टी जमा थी. किताबें अस्तव्यस्त यहांवहां बिखरी हुई थीं. काव्य ने पुराना कपड़ा ले कर कुरसी साफ की और बैठा. उस से पहले ही रक्षित पलंग पर बैठ चुका था जैसे थक गया हो.

काव्य अब आश्चर्य से ज्यादा दुखी व स्तब्ध था. उसे चिंता हुई कि दोस्त को क्या हो गया है? ‘‘तबीयत ठीक है न? यह क्या हालत बना रखी है खुद की व कमरे की? 2-3 बार पूछने पर उस ने जवाब नहीं दिया, तो काव्य ने कंधों को पकड़ कर पूछा तो रक्षित की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ कहने की जगह वह काव्य से चिपक गया, तकलीफ में जैसे बच्चा अपनी मां से चिपकता है. वह फफकफफक कर रोने लगा. काव्य को कुछ भी समझ न आया. कुछ देर तक रोने के बाद वह इतना ही बोला, ‘भाई, मैं उस के बिना जी नहीं सकता,’ उस ने सुबकते हुए कहा.

‘किस के बिना जी नहीं सकता? तू किस की बात कर रहा है?’ दोनों हाथ पकड़ कर काव्य ने प्यार से पूछा.

‘आम्या की बात कर रहा हूं.’

‘ओह तो प्यार का मामला है. मतलब गंभीर. यह उम्र ही ऐसी है. जब काव्य कालेज जा रहा था तब उस के गंभीर पापा ने उसे एकांत में पहली बार अपने पास बिठा कर इस बारे में विस्तार से बात की. अपने पापा को इस विषय पर बात करते हुए देख कर काव्य को घोर आश्चर्य हुआ था. पर जब पापा ने पूरी बात समझाई व बताई, तब उसे अपने पापा पर नाज हुआ कि उन्होंने उसे कुएं में गिरने से पहले ही बचा लिया.

‘ओह,’ काव्य ने अफसोसजनक स्वर में कहा.

‘रक्षित, तू एक काम कर. पहले नहाधो और शेविंग कर के फ्रैश हो जा. तब तक मैं पूरे कमरे की सफाई करता हूं. फिर मैं तेरी पूरी बात सुनता हूं और समझाता हूं,’ काव्य ने अपने दोस्त को अपनेपन से कहा. काव्य सफाईपसंद व अनुशासित विद्यार्थी की तरह था. रो लेने के कारण उस का मन हलका हो गया था.

‘अरे काव्य, सफाई मैं खुद ही कर दूंगा. तू तो मेहमान है.’ काव्य को ऐसा बोलते हुए रक्षित हड़बड़ा गया.

‘अरे भाई, पहले मैं तेरा दोस्त हूं. प्लीज, दोस्त की बात मान ले.’ अब दोस्त इतना प्यार और अपनेपन से कहे तो कौन दोस्त की बात न माने. काव्य ने समझ कर उसे अटैच्ड बाथरूम में भेज दिया, क्योंकि ऐसे माहौल में न तो वह ढंग से बता सकता है और न वह सुन सकता है. पहले वह फ्रैश हो जाए तो ढंग से कहेगा.

काव्य ने किताब और किताबों की शैल्फ से शुरुआत की और आधे घंटे में एक महीने का कचरा साफ कर लिया. काव्य होस्टल में सब से साफ और व्यवस्थित कमरा रखने के लिए प्रसिद्ध था.

आधे घंटे बाद जब रक्षित बाथरुम से निकला तो दोनों ही आश्चर्य में थे. रक्षित एकदम साफ और व्यवस्थित कक्ष देख कर और काव्य, रक्षित को क्लीन शेव्ड व वैलड्रैस्ड देख कर.

‘वाऊ, तुम ने इतनी देर में कमरे को होस्टल के कमरे की जगह होटल का कमरा बना दिया भाई. तेरी सफाई की आदत होस्टल में जाने के बाद भी नहीं बदली,’ रक्षित सफाई से बहुत प्रभावित हो कर बोला.

‘और तेरी क्लीन शेव्ड चेहरे में चांद जैसे दिखने की,’ चेहरे पर हाथ फेरते हुए काव्य बोला. अब रक्षित काफी रिलैक्स था.

‘भैया चाय…’ दरवाजे पर चाय वाला चाय के साथ था.

‘अरे वाह, क्या कमरा साफ किया है आप ने,’ कमरे की चारों तरफ नजर घुमाते हुए छोटू बोला तो रक्षित झेंप गया. वह रोज सुबहसुबह चाय ले कर आता है, इसलिए उसे कमरे की हालत पता थी.

‘अरे, यह मेरे दोस्त का कमाल है,’ काव्य के कार्य की तारीफ करते हुए रक्षित मुसकराते हुए बोला, ‘अरे, तुम्हें चाय लाने को किस ने बोला?’

‘मैं ने बोला. दीवार पर चाय वाले का फोन नंबर था.’

‘थैंक्यू काव्य. चाय पीने की बहुत इच्छा थी,’ रक्षित ने चाय का एक गिलास काव्य को देते हुए कहा. दोनों चुपचाप गरमागरम चाय पी रहे थे.

चाय खत्म होने के बाद काव्य बोला, ‘अब बता, क्या बात है, कौन है आम्या और पूरा माजरा क्या है?’ आम्या की बात सुन कर रक्षित फिर से मायूस हो गया, फिर से उस के चेहरे पर मायूसी आ गई. हाथ कुरसी के हत्थे से भिंच गए.

‘मैं आम्या से लगभग एक साल पहले मिला था. वह मेरी क्लासमेट लावण्या की मित्र थी. लावण्या की बर्थडे पार्टी में हम पहली बार मिले थे. हमारी मुलाकात जल्दी ही प्रेम में बदल गई. वह एमबीए कर रही थी और बहुत ही खूबसूरत थी. मैं सोच भी नहीं सकता कि कालेज में मेरी इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती थी पर क्यों मुझे आम्या ही पसंद आई. मुझे उस से प्यार हो गया. शायद वह समय का खेल था. हम लगभग रोज ही मिलते थे. मेरी फाइनल एमबीबीएस की परीक्षा के दौरान भी मुझ में उस की दीवानगी छाई हुई थी. वह भी मेरे प्यार में डूबी हुई थी.

‘मैं अभी तक प्यारमोहब्बत को फिल्मों व कहानियों में गढ़ी गई फंतासी समझता था. जिसे काल्पनिकता दे कर लेखक बढ़ाचढ़ा कर पेश करते हैं. पर अब मेरी हालत भी वैसे ही हो गई, रांझा व मजनूं जैसी. मैं ने तो अपना पूरा जीवन उस के साथ बिताने का मन ही मन फैसला कर लिया था और आम्या की ओर से भी यही समझता था. मुझ में भी कुछ कमी नहीं थी, मुझ में एक परफैक्ट शादी के लिए पसंद करने के लिए सारे गुण थे.’

‘तो फिर क्या हुआ दोस्त?’ काव्य ने उत्सुकता से पूछा.

‘मेरी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी हो गई थी और मैं हृदयरोग विशेषज्ञ बनने के लिए आगे की तैयारी के लिए पढ़ाई कर रहा था. एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘सुनो, पापा तुम से मिलना चाहते हैं.’ वह खुश और उत्साहित थी.

‘क्यों?’ मुझे जिज्ञासा हुई.

‘हम दोनों की शादी के सिलसिले में,’ उस ने जैसे रहस्य खोलते हुए कहा.

‘शादी? वह भी इतनी जल्दी’ मैं ने हैरानगी से कहा.

‘मैं आम्या को चाहता था पर अभी शादी के लिए विचार भी नहीं किया था.

‘हां, मेरे दादाजी की जिद है कि मेरी व मेरी छोटी बहन की शादी जल्दी से करें,’ आम्या ने शादी की जल्दबाजी का कारण बताया और जैसी शांति से बता रही थी उस से तो ऐसा लगा कि उसे भी जल्द शादी होने में आपत्ति नहीं है.

‘अभी इतनी जल्दी यह संभव नहीं है. मेरा सपना हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का है और मैं अपना सारा ध्यान अभी पढ़ाई में ही लगाना चाहता हूं,’ मैं ने उसे अपने सपने के बारे में और अभी शादी नहीं कर सकता हूं, यह सम?ाया. ‘उस के लिए 2-3 साल और रुक जाओ. फिर हम दोनों जिंदगीभर एकदूसरे के हो जांएगे,’ मैं ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘नहीं रक्षित, यह संभव नहीं है. मेरे पिता इतने साल तक रुक नहीं सकते. मेरे पीछे मेरी बहन का भी भविष्य है,’ जैसे उस ने जल्दी शादी करने का फैसला ले लिया हो.

‘मैं ने उसे बहुत समझाया. पर उस ने अपने पिता के पसंद किए हुए एनआरआई अमेरिकी से शादी कर ली और पिछले महीने अमेरिका चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी यादें और मेरा अकेलापन. मैं सोच नहीं सकता कि आम्या मुझे छोड़ देगी. मैं दुखी हूं कि मेरा प्यार छिन गया. मैं ने उसे मरने की हद तक चाहा. काव्य, मेरा प्यार असफल हो गया. मझ में कुछ भी कमी नहीं थी. फिर भी क्यों मेरे साथ समय ने ऐसा खेल खेला.’

रक्षित फिर से रोने लगा और रोते हुए बोला, ‘बस, तभी से मुझे न भूख लगती है न प्यास. एक महीने से मैं ने एक अक्षर की भी पढ़ाई नहीं की है. मेरा अभी विशेषज्ञ प्रवेश परीक्षा का अगले महीने ही एग्जाम है. यों समझ कि मैं देवदास बन गया हूं.’ वह फिर से काव्य के कंधे पर सिर रख कर बच्चों जैसा रोने लगा.

‘देखो रक्षित, इस उम्र में प्यार करना गलत नहीं है. पर प्यार में टूट जाना गलत है. तुम्हारा जिंदगी का मकसद हमेशा ही एक अच्छा डाक्टर बनना था न कि प्रेमी. देखो, तुम ने कितना इंतजार किया. बचपन में तुम्हारे दोस्त खेलते थे, तुम खेले नहीं. तुम्हारे दोस्त फिल्म देखने जाते, तो तुम फिल्म नहीं देखते थे. तुम्हारा भी मन करता था अपने दोस्तों के साथ गपशप करने का और यहां तक कि रक्षित, तुम अपनी बहन की शादी में भी बरातियों की तरह शाम को पहुंच पाए थे, क्योंकि तुम्हारी पीएमटी परीक्षा थी. वे सारी बातें अपने प्यार में  भूल गए.

‘आम्या तो चली गई और फिर कभी वापस भी नहीं आएगी तुम्हारी जिंदगी में. और यदि आज तुम्हें आम्या ऐसी हालत में देखेगी तो तुम पर उसे प्यार नहीं आएगा, बल्कि नफरत करेगी और सोचेगी कि अच्छा हुआ कि मैं इस व्यक्ति से बच गई जो एक असफलता के कारण, जिंदगी से निराश, हताश और उदास हो गया और अपना जिंदगी का सपना ही भूल गया. क्या वह ऐसे व्यक्ति से शादी करती?

‘सोचो रक्षित, एक पल के लिए भी. एक दिल टूटने के कारण क्या तुम भविष्य में लाखों दिलों को टूटने दोगे,  इलाज करने के लिए वंचित रखोगे. इस मैडिकल कालेज में आने, इस अनजाने शहर में आने, अपना घर छोड़ने का मकसद एक लड़की का प्यार पाना था या फिर बहुत सफल व प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का था? तुम्हें वह सपना पूरा करना है जो यहां आने से पहले तुम ने देखा था.

‘रक्षित बता दो दुनिया को और अपनेआप को भी कि तुम्हारा प्यार असफल हुआ है, पर तुम नहीं और न ही तुम्हारा सपना असफल हुआ है. और यह बात तुम्हें खुद ही साबित करनी होगी,’ काव्य ने उसे समझया.

‘तुम सही कहते हो काव्य, मेरा लक्ष्य, मेरा सपना, सफल प्रेमी बनने का नहीं, एक अच्छा डाक्टर बनने का है. थैंक्यू तुम्हें दोस्त, यह सब मुझे सही समय पर याद दिलाने के लिए,’ काव्य के गले लग कर, दृढ़ता व विश्वास से रक्षित बोला.

‘‘कार्ड हाथ में ले कर कब से कहां खो गए हो?’’ मानसी ने अपने पति काव्य को झिझड़ कर पूछा, ‘‘अरे, कब तक सोचते रहोगे. कुछ तैयारी भी करोगे? कल ही रक्षित भैया के हार्ट केयर हौस्पिटल के उद्घाटन में जोधपुर जाना है,’’ मानसी ने उस से कहा तो वह मुसकरा दिया.

चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’

‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’

‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’

‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.

‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’

कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’

फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’

दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमनेसामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.

हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’

फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.

फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.

‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’

फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’

‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’

यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.

फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’

हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’

यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’

फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.

‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’

‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’

पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.

फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.

‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’

फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’

फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’

हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’

हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.

अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’

फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’

यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’

हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.

‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.

‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’

हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.

फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 4

चाची को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें मत करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम?ा जाता है, पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को हिम्मत बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिन गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं, 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची की ऐसी हालत देख पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी.

पायल ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया.

चाची के बाल बिखरे हुए और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु?ो बताओ कि क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो गया है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं.

वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु?ा पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया.

‘‘मैं तो पहले से ही अधमरी थी, अब इन लोगों ने तो मु?ो पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया?’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है.

‘‘उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. आप को पता है न, खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? अब तू ही मु?ो सम?ा सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो?ा कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु?ो पसंद करता है और मु?ा से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी.

किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इस के बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से बोली, ‘‘अंकलजी, मु?ो आप से कुछ बात करनी है. वैसे तो मु?ो इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, पर मु?ो लगा कि आप की बात और कोई तो सम?ोगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में वह किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है मु?ा से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते हैं?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी

तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ कि क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर ?ाक?ोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची ?ां?ालाते हुए बोलीं, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम?ाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया है तो आप उस किराएदार से शादी कर लो तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंचीं. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह रही है तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी, जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी ये सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 3

पायल की बातों पर चाची कुछ भावुक होते हुए बोलीं, ‘‘जब मैं बाहर छत पर खड़ी होती हूं तो वह किराएदार मेरा हालचाल पूछने लगता है, मैं भी उस को कुछ जवाब दे देती हूं. पर गांव के ये लोग भी पता नहीं क्यों मेरी हर बात का बतंगड़ बना देते हैं…’’

चाची एक लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘अच्छा… पायल तू ही बता, इस में मेरी क्या गलती है?’’

चाचा को रोता देख पायल उन्हें चुप कराते हुए बोली, ‘‘चाची प्लीज, ऐसी बातें न करो. मौत तो जब जिस की लिखी होगी, तभी होगी. किसी के चाहने से कुछ नहीं होता. वह तो हमारे समाज में ऐसा रूढि़वाद है कि हमेशा औरत को ही कुसूरवार सम झा जाता है. पर यह सब हमें और आप को ही बदलना होगा.’’

चाची पायल की बातें ध्यान से सुने जा रही थीं. पायल ने चाची को ढांढस बंधाते हुए आगे कहा, ‘‘चाची, आप लोगों के कहे की फिक्र मत करना. आप तो अपने बच्चों के साथ अच्छे से रहो.’’

पायल कुछ दिनों गांव में रह कर फिर वापस शहर चली गई थी. जब वह कुछ महीने बाद लौटी तो गांव में फिर से इसी बात को ले कर काफी होहल्ला मचा हुआ था. उस की चाची ने अपनेआप को एक कमरे तक सीमित कर लिया था. यही नहीं 2 दिन से तो वे न किसी से बात कर रही थीं और न ही अपने कमरे से बाहर निकल रही थीं.

चाची को ऐसी हालत देख कर पायल की दादी भी काफी परेशान हो गई थीं. जब पायल को इस बात का पता चला तो वह चाची के कमरे की ओर भागी. उस ने चाची के कमरे का दरवाजा खटखटाया, पर उस की चाची ने दरवाजा नहीं खोला. इस से घबरा कर पायल रोते हुए चाची से दरवाजा खोलने की गुहार लगाने लगी.

काफी देर बाद चाची कुछ पसीजीं और उन्होंने दरवाजा खोल दिया. चाची के बाल बिखरे और आंखें सूजी हुई थीं. देखने से ही लग रहा था कि वे कई दिनों से सोई नहीं थीं. उन का शरीर कमजोर पड़ गया था.

पायल को सामने देख कर चाची भी उस से लिपट कर बिलखबिलख कर रो पड़ीं.

पायल ने चाची के आंसू पोंछते हुए और प्यार जताते हुए पूछा, ‘‘चाची, आप ने यह क्या हाल बना रखा है. इस तरह कैसे काम चलेगा. आप मु झे बताओ क्या बात है? आखिर अब फिर इतना बवाल क्यों हो रहा है? अब ऐसा क्या हो रहा है?’’

पायल की बातों के जवाब में चाची अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘कुछ नहीं, वही किराएदार को ले कर फिर से…’’ और यह कहतेकहते वे दोबारा फफक पड़ीं. वे तेजतेज हिचकियां लेते हुए आगे बोलीं, ‘‘मैं ने तो देखा नहीं कि उस ने क्या लिखा था उस चिट्ठी में… लेकिन सुना है कि मेरे बारे में ही कुछ लिखा था और वह चिट्ठी बगल वाली काकी के हाथ लग गई. उन्होंने तो पूरे गांव वालों को ही वह चिट्ठी दिखा दी और मु झ पर कुलटा होने का ठप्पा भी लगा दिया. मैं तो पहले से ही अधमरी थी अब इन लोगों ने तो मु झे पूरी तरह से मार डाला. मैं तो पराए मर्द के बारे में कभी सोच भ्ी नहीं सकती.’’

इस पर पायल चाची के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘चाची, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा था उस ने, जो इतना बड़ा बवाल खड़ा कर दिया.’’

चाची ने कुछ गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘उस ने लिख दिया कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है…’’ फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हीं बताओ पायल… यह आदमी सचमुच पागल हो गया है. उस ने ऐसी चिट्ठी लिखने से पहले यह भी नहीं सोचा कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे. इस विधवा का तो जीना हराम कर दिया उस ने. मेरा तो जी करता है कि कहीं जा कर मर ही जाऊं.’’

चाची की बातें सुन कर पायल ने चाची के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा न कहो… चाची. पता है खुदकुशी करना बहुत बड़ा अपराध है.’’

इस पर चाची फफक कर रोते हुए बोलीं, ‘‘फिर क्या करूं पायल, तू ही बता? तू ही मु झे सम झ सकती है इस घर में.’’

पायल से बात कर के चाची के मन का बो झ कुछ हलका हो गया और उन के सिर से तनाव के बादल छंट गए.

इस के बाद तो पायल के दिमाग में चाची द्वारा कही गई बात कि वह मु झे पसंद करता है और मु झ से शादी करना चाहता है, बैठ गई थी. किराएदार द्वारा कही हुई वह बात पायल के दिमाग में काफी दिनों तक कौंधती रही थी. इसके बाद एक दिन पायल अपनी एक सहेली को ले कर सीधे उस किराएदार के घर जा पहुंची.

पायल उस किराएदार से हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘अंकलजी. आप से मु झे कुछ बात करनी है. वैसे तो मु झे इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए. पर मु झे लगा कि आप की बात और कोई तो सम झेगा भी नहीं, इसलिए कुछ पूछने चली आई हूं.’’

पायल की बातों के जवाब में किराएदार कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘बोलो बेटी, क्या पूछना है तुम्हें मु झ से?’’

इस पर कुछ गंभीर होते हुए पायल ने कहा, ‘‘क्या यह सच है कि आप मेरी चाची को पसंद करते है? क्या आप उन से शादी करना चाहते है?’’

पायल की बातों से किराएदार की आंखों में चमक आ गई, उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘हांहां, बेटी. मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं तुम्हारी चाची से शादी करना चाहता हूं. उन की बेरंग जिंदगी में मैं नए रंग भर देना चाहता हूं.’’

किराएदार की बातों से पायल की आंखों में उम्मीद की एक किरण जाग गई. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों के साथ घर आ कर चाची से बात की. उस ने उन से पूछा, ‘‘चाची, वह किराएदार सचमुच आप से शादी करना चाहता है. अब आप बताओ आप क्या चाहती हो?’’

पायल की बातें सुन कर चाची ने पायल को चुप कराते हुए कहा, ‘‘पायल, ऐसी बातें मत कर… देख… कोई सुन लेगा.’’

इस पर पायल ने चाची को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप किसी बात की फिक्र मत करो, मैं हूं न,’’ और फिर वह चाची के जवाब के इंतजार में उन्हें पकड़ कर  झक झोरने लगी थी.

पायल की बातों से चाची  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘पायल, यह तू कैसी बातें कर रही है? बिना बात के तो बतंगड़ बन रहा है, तू ऐसी बातें करेगी तो मेरा जीना भी मुश्किल हो जाएगा.’’

चाची की इस बात पर पायल ने उन्हें सम झाते हुए कहा, ‘‘अब तो बात का बतंगड़ बन ही गया तो आप उस किराएदार से शादी कर लो. तो सब ठीक हो जाएगा. सब के मुंह बंद हो जाएंगे.’’

इतने में ही पायल की दादी भी वहां आ पहुंची. उन्होंने उन की सारी बातें सुन ली थीं. वे आगबबूला होते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या कह तू छोरी. तू कौन सी नई रीत निकाल रही है. विधवा की भी कोई शादी होती है.’’

इस पर पायल अपनी दादी से लाड़ में बोली थी, ‘‘क्यों नहीं दादी. जब एक मर्द की दूसरी शादी हो सकती है, तो औरत की क्यों नहीं?’’

पायल की सहेलियां भी उस की हां में हां मिलाने लगीं. अब तक उस के पापा ने भी यह सब बातें सुन ली थीं. उन्हें पायल की बात उचित लग रही थी. कुछ कोशिश के बाद उन्होंने अपनी मां को पायल की चाची की दूसरी शादी के लिए मना लिया. कुछ दिनों के बाद चाची की शादी उस किराएदार से हो गई. पायल ने अपनी चाची की बेरंग जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए थे.

Holi 2024 सतरंगी रंग: कैसा था पायल का जीवन- भाग 2

वहां मौजूद औरतें उस की चाची के भाग्य को कोसे जा रही थीं कि ये बेचारी कितनी अभागिन है. भरी जवानी में ही विधवा हो गई.

एक औरत चाची को उलाहना देते हुए बोली, ‘‘खा गई अपने पति को… यह चुड़ैल.’’

ये सब बातें सुन कर पायल बौखला गई. उसे इन औरतों पर बहुत गुस्सा आया था. उस ने आगे देखा न पीछे और इन औरतों पर  झुं झलाते हुए बरस पड़ी, ‘‘आप सब को इस तरह की बातें करते शर्म नहीं आती. एक तो मेरी चाची ने अपना पति खो दिया है, ऊपर से आप उन का दर्द बांटने के बजाय उन्हें पता नहीं क्याक्या बोले जा रही हैं.’’

‘‘हां… ठीक ही तो कह रही हैं वे,’’ उन में से एक औरत बोली.

पायल दोबारा उन पर बरसते हुए बोली, ‘‘हांहां, तो बताओ कि क्या मतलब है अपने पति को खा गई? मेरी चाची ने क्या मेरे चाचा का खून किया है, जो आप सब इस तरह की बातें कर रही हो? प्लीज, आप सब यहां से चली जाओ, वरना ठीक नहीं होगा.’’

पायल की इस बात पर एक औरत बोली, ‘‘चलो… चलो… यहां से सब… यह लड़की चार अक्षर क्या पढ़ गई, शहर की मैम बन गई है… अरे भाषण देना भी सीख गई है यह तो.’’

उस औरत की इस बात पर तो पायल का गुस्सा सातवें आसमान पर ही पहुंच गया. वह उन औरतों से बोली, ‘‘जब मेरी मां मरी थीं, तब आप सब ने ही तो कहा था न कि मेरी मां बड़ी सौभाग्यशाली हैं, फिर इस हिसाब से तो आज मेरे चाचा को भी सौभाग्यशाली होना चाहिए न?’’

पायल की इस बात पर उन में से एक औरत बोली, ‘‘अरे, जब औरत की अर्थी पति के कंधों पर जाती है, तो उसे बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है, जबकि किसी औरत का पति मर जाता है, तो वह औरत विधवा हो जाती है. यह सब तो सदियों से होता रहा है. हम सब कोई नई बात तो नहीं कह रही हैं.’’

इस पर पायल  झल्लाते हुए बोली, ‘‘पर काकी, जरूरी तो नहीं जो अब तक होता रहा है, वही सही हो और वही आगे भी होता रहे. आज जो मेरी चाची के साथ हुआ है, वह किसी के साथ भी हो सकता है…’’ और फिर वह सभी औरतों की ओर उंगली दिखाते हुए बोल पड़ी, ‘‘…आप के साथ… आप के साथ… और आप के साथ भी…’’ वह बोलती चली गई.

पायल का इतना कहना था कि उन औरतों के मुंह सिल गए और सब की गरदनें नीचे लटक गईं.

बहुत देर से उन सब की बातें सुन रही दादी अचानक चिल्लाते हुए वहां आईं और बोलीं, ‘‘पायल, तू ने यह क्या लगा रखा है. तेरे चाचा को ले जा रहे हैं. आखिरी बार उन के दर्शन कर ले.’’

दादी की बातें सुन कर पायल  झट से अपने चाचा की लाश के पास जा कर बैठ गई और वहां मौजूद अपनी चाची को चुप कराने लगी.

13 दिनों तक रस्मोरिवाज चलते रहे. उन्हीं में से एक रस्म ने पायल को अंदर तक  झक झोर दिया था. उस रस्म के दौरान एक दिन नाइन को बुलाया गया और फिर उस ने चाची का पूरा सोलह शृंगार किया. उस के बाद उन्हें नहलाधुला कर सफेद साड़ी में लपेट दिया गया और इस के बाद ही चाची की जिंदगी बेरंग कर दी गई.

पायल वापस होस्टल चली गई. कुछ महीने बाद जब पायल किसी काम से गांव आई तो उस के कानों में एक अजीब सी बात सुनाई दी. उस की दादी उस की चाची की तरफ इशारा करते हुए उन के बारे में बताते हुए बोलीं, ‘‘इस कलमुंही ने तो हमारी नाक ही कटा दी है.’’इस बात पर पायल कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘दादी, आप की नाक तो जैसी की तैसी लगी हुई है, पर आखिर हुआ क्या है? चाची से आप की इतनी नाराजगी क्यों है?’’

इस पर दादी गुस्सा होते हुए बोलीं, ‘‘इसी कलमुंही से पूछ ले… पूरा गांव हम पर थूथू कर रहा है.’’

दादी की बातें सुन कर चाची फूटफूट कर रो पड़ीं और अपने कमरे में चली गईं.

चाची के जाते ही पायल खीजते हुए बोली, ‘‘देखा दादी, आप ने चाची को रुला दिया न. आखिर हुआ क्या है… कुछ बताओगी भी या यों ही पहेलियां बु झाती रहोगी.’’

इस पर दादी ने पायल के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरे, बगल वाले ठाकुर साहब हैं न. उन के यहां कोई किराएदार आया है. उसी से नैनमटक्का करती रहती है यह कलमुंही आजकल.’’

दादी की बातों पर पायल कुछ  झुं झलाते हुए बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो दादी. तुम तो जो भी मन में आया, बोलती रहती हो चाची के बारे में.’’

जवाब में दादी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तेरी चाची रोज शाम को बाहर जा कर खड़ी हो जाती है. अरे विधवा है… विधवा की तरह रहे. इधरउधर देखने की क्या जरूरत है… किसी से बात करने की भी क्या जरूरत है. घर में दो रोटी चैन से खाए और पड़ी रहे एक कोने में.’’

दादी की बातें सुन कर पायल उन के मुंह की ओर ताकते हुए बोली, ‘‘दादी, यह आप क्या कह रही हो? यह बात आप अपनी बहू के लिए कह रही हो…’’

पायल के मन में अपनी मां के जाने बाद अपने पापा की जिंदगी की यादें घूमने लगीं. मां के जाने के बाद तो पापा की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का तो गांव में घूमनाफिरना, किसी से भी बातचीत करना, पहननाओढ़ना सबकुछ पहले जैसा ही रहा. उन की तो तुरंत ही दूसरी शादी भी हो गई. फिर वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘अच्छा, वे मर्द जो ठहरे.’

उन यादों से बाहर आतेआते पायल का मन बहुत कसैला हो गया. उस की आंखों के कोरों से ढेर सारा पानी बह निकला. उस ने दादी से कहा, ‘‘दादी, आप को अपनी सोच बदलनी चाहिए. अब बहुत हो गया औरतमर्द में फर्क. चाची भी पापा की ही तरह इनसान हैं. उन्हें भी उतना ही जीने का हक है, जितना पापा को है. आप नहीं सम झती हो कि इस तरह की बातें कर के आप चाची के साथ नाइंसाफी कर रही हैं.’’

इस पर दादी  झुं झलाते हुए बोलीं, ‘‘ओए छोरी, तू पागल हो गई है क्या. औरत मर्द की बराबरी कभी नहीं कर सकती है. ये बड़ीबड़ी बातें किताबों में ही अच्छी लगती हैं.’’

पायल अपनी दादी के गालों को प्यार से पकड़ते हुए बोली, ‘‘दादी, आप चाहो तो सबकुछ बदल सकती हो. चाची को भी अपनी जिंदगी जी लेने दो. मत दो, उन्हें बिना अपराध की कोई सजा.’’

अब तक दादी थोड़ा नरम पड़ गईं. उन्हें पायल की बात कुछकुछ ठीक भी लगने लगी थी.

थोड़ी देर बाद पायल चाची के कमरे में जा कर उन के पास बैठ गई. चाची जमीन पर घुटनों के बीच सिर रख कर उदास बैठी थीं. पायल ने जब उन के कंधे पर हाथ रखा, तो वे चौंक गईं.

पायल ने हमदर्दी का मरहम लगाते हुए चाची से कहा, ‘‘चाची, इस तरह कब तक बैठी रहोगी.’’

फिर चाची का दिल बहलाने के मकसद से उस ने इधरउधर की बातें करनी शुरू कर दीं. इस के बाद पायल बात को आगे बढ़ाते हुए चाची से पूछ बैठी, ‘‘चाची, आखिर कौन किराएदार आया है ठाकुर चाचा के यहां? और गांव के लोग इतनी बातें क्यों बना रहे हैं?’’

फिर कुछ सोचते हुए पायल आगे बोली, ‘‘चाची, आप मु झे गलत मत सम झना, पर आप से इस बारे में जानना मेरी मजबूरी है.’’

काला दरिंदा: जब बहादुर लड़की ने किया रेपिस्ट का सामना

वह एक टैक्सी ड्राइवर था. उस का रंग जले तवे की तरह काला था, तभी तो उस के घर वालों ने सोचसमझ कर उस का नाम काला रखा था. उस ने कार के पिछले शीशे पर मोटेमोटे अक्षरों में ‘काला’ लिखवा दिया था.

19 साल की उम्र में वह माहिर ड्राइवर बन गया था. तभी से वह टैक्सी चला रहा था. अब उस की उम्र 35 साल के करीब थी.

थोड़ी देर पहले एक ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आ कर रुकी थी. कुछ सवारियां गेट से बाहर निकलीं, तो काला मुस्तैदी से खड़ा हो गया. कुछ सवारियों से उस ने टैक्सी के लिए पूछा भी था लेकिन सवारियों ने मना कर दिया.

कुछ सवारियों को टैक्सी की जरूरत नहीं थी और जिन्हें जरूरत थी, वे अपने परिवार के साथ थे. उन्होंने शक्ल देखते ही काला को मना कर दिया था, क्योंकि शराब के नशे में डूबा काला शक्ल से ही बदमाश लगता था.

काला ने कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा. रात के 10 बज रहे थे. समता ऐक्सप्रैस ट्रेन के आने का समय हो गया था. शायद उसे कोई सवारी मिल जाए, यह सोच कर काला ने बीड़ी सुलगा ली.

काला का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. 3 भाइयों में वह अकेला जिंदा बचा था. उस ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था. उस की मां तो उसे स्कूल भेजना चाहती थी, पर उस का बाप उसे स्कूल भेजने के सख्त खिलाफ था.

काला की उम्र जब 10 साल की थी, तभी उस की मां मर गई थी और उस के बाप ने उसे एक लुहार के यहां काम पर लगा दिया था. सारा दिन भट्ठी के आगे बैठ कर वह लोहे का पंखा चलाता था. महीने में उसे मेहनत के जो पैसे मिलते थे, उन पैसों को उस का बाप शराब में उड़ा देता था.

7 साल तक काला ने लुहार की दुकान पर काम किया था. तभी उस के शराबी बाप की मौत हो गई थी. बाप के मरने का उसे जरा भी दुख नहीं हुआ था, क्योंकि अब वह पूरी तरह आजाद हो गया था.

कुछ गलत लड़कों के साथ काला का उठनाबैठना हो गया था. 20 साल का होतेहोते वह पक्का शराबीजुआरी बन चुका था. एक करीबी रिश्तेदार को उस पर दया आ गई थी. उसी ने भागदौड़ कर के उस की शादी करा दी थी. उस की औरत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, पर उस से कई गुना अच्छी थी.

काला ने हमेशा से ही अपनी बीवी को इस्तेमाल की चीज समझा था. अब वह 4 बच्चों का बाप बन चुका था. फिर भी बच्चों के लिए एक बाप की क्या जिम्मेदारियां होती हैं, इस का उसे पता नहीं था.

काला जितना शौकीन था, उस से कहीं ज्यादा मेहनती भी था. वह सुबह 7 बजे टैक्सी ले कर घर से निकल जाता था और रात 12 बजे के बाद ही लौटता था.

वह 300 से 500 रुपए तक रोजाना कमा लेता था. इतना कमाने के बाद भी उस के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, क्योंकि उसे शराब पीने के अलावा कोठे पर जाने का भी शौक था.

रात 11 बजे समता ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. ट्रेन पूरे एक घंटा लेट थी. सवारियां जल्दीजल्दी स्टेशन के गेट से बाहर निकल रही थीं. काला सवारियों पर नजरें दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक लड़की पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.

काला तेजी से उस लड़की की तरफ लपका और उस से पूछा, ‘‘मैडम क्या आप को टैक्सी चाहिए?’’

‘‘हां चाहिए,’’ लड़की ने उस की तरफ बिना देखे ही जवाब दिया.

‘‘कहां जाना है आप को?’’

‘‘विजय नगर,’’ लड़की ने बताया.

‘‘चलिए,’’ कह कर काला ने लड़की के हाथ से बैग ले लिया.

कुछ ही दूर टैक्सी स्टैंड पर काला की टैक्सी खड़ी थी.

काला ने डिक्की खोल कर बैग उस में रखा और फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. तब तक लड़की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी.

उस लड़की की उम्र 22-23 साल के आसपास थी. वह बेहद खूबसूरत थी. पहनावे से वह अमीर और हाई सोसायटी की लग रही थी. वह शायद किसी सोच में गुम थी, तभी तो उस ने काला के ऊपर ध्यान नहीं दिया था, वरना काला का चेहरा और शराब के नशे में डूबी उस की आंखें देख कर वह उस की टैक्सी में कभी न बैठती.

लड़की पिछली सीट पर अधलेटी सी आंखें बंद किए हुए थी. काला सामने लगे शीशे में से उसे बारबार देख रहा था.

रेलवे स्टेशन से विजय नगर का रास्ता महज आधे घंटे का था. काला धीमी रफ्तार से टैक्सी चला रहा था. उस लड़की ने काला के अंदर उथलपुथल मचा रखी थी.

काला का ध्यान टैक्सी चलाने में कम, उस लड़की पर ज्यादा था. वह जितना उस लड़की को देख रहा था, उस पर उतना ही एक नशा सा छा रहा था.

काला एक नंबर का आवारा था. जवान लड़कियों को देख कर उस के खून में गरमी पैदा हो जाती थी.

एक बार स्कूटर पर जा रही एक लड़की को घूरते हुए वह अपने होश खो बैठा था. नतीजतन, उस की टैक्सी एक बस के पिछले हिस्से से जा टकराई थी. इत्तिफाक से वह बच गया था, मगर टैक्सी को काफी नुकसान पहुंचा था. लेकिन इस के बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था.

काला का दिमाग और ध्यान कार में बैठी लड़की पर ही लगा था. अचानक

5 महीने पहले की एक घटना याद कर उस के अंदर धीरेधीरे वासना का शैतान जागने लगा.

हुआ यों था कि उस रात वह कुछ सवारियों को रेलवे स्टेशन छोड़ने आया था. रात के तकरीबन साढ़े 11 बज रहे थे. शायद कोई सवारी मिल जाए, इस उम्मीद के साथ वह सवारी मिलने का इंतजार करने लगा था.

कुछ ही देर में उसे एक सवारी मिल गई थी. वह एक लड़की थी और उसे अशोक नगर जाना था. उसे टैक्सी की जरूरत थी. उस ने कई टैक्सी वालों से बात की थी. रेलवे स्टेशन से अशोक नगर काफी दूर था, तकरीबन एक घंटे का रास्ता था.

ज्यादातर टैक्सी वालों ने रात को इतनी दूर जाने से मना कर दिया था. कुछ टैक्सी वाले वहां जाने के लिए तैयार हुए भी, मगर उन्होंने किराया बहुत ज्यादा मांगा.

आखिर में लड़की का सौदा काला से पट गया था. वह लड़की कम उम्र की व खूबसूरत थी. सफर में बोरियत से बचने के लिए लड़की टाइमपास करने की नीयत से काला को ‘अंकल’ पुकार कर बातें करने लगी थी.

काला उस के सवालों के जवाब देने के साथसाथ खुद भी उस के बारे में पूछताछ करने लगा था.

उस लड़की का नाम श्वेता था. वह एक अमीर घर की लड़की थी. श्वेता अपने घर से दूर एक शहर में पढ़ती थी. वहां वह होस्टल में रहती थी. कुछ दिनों की छुट्टियों में वह अपने घर चली आई थी. श्वेता ने अपने आने की खबर घर वालों को नहीं दी थी. अगर वह फोन कर देती, तो उसे स्टेशन पर लेने घर से कार आ जाती.

श्वेता ने जानबूझ नहीं बताया था, क्योंकि अगले दिन उस का जन्मदिन था और वह अचानक अपने घर पहुंच कर घर वालों को चौंका देना चाहती थी.

श्वेता अब तक अपने घर पहुंच भी चुकी होती, अगर ट्रेन 2 घंटे लेट नहीं हुई होती. रात का समय था. जाड़े का मौसम होने की वजह से सड़क पर दूरदूर तक सन्नाटा था.

श्वेता से बात करते हुए काला टैक्सी चला जरूर रहा था, मगर उस का मन कहीं और भटक रहा था. उस के साथ गोरी रंग की जवान और हसीन लड़की थी, जिस के जिस्म से भीनीभीनी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.

काला पर एक अजीब सा नशा हावी होता जा रहा था. काला ने एक बेहद घटिया और भयानक फैसला कर लिया.

उस रात काला ड्राइवर से दरिंदा बन गया था. उस ने टैक्सी एक सुनसान जगह पर रोक दी थी. इस से पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती, काला कार के अंदर ही उस पर टूट पड़ा था. श्वेता तो जैसे एकदम से हैरान ही रह गई थी. उसे काला से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं थी.

श्वेता रोते हुए काला से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी थी, पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का असर काला पर नहीं हुआ था. फिर श्वेता रोनागिड़गिड़ाना छोड़ काला का विरोध करने लगी थी.

अचानक काला ने सीट के नीचे रखा चाकू निकाल लिया और बोला था, ‘सुन लड़की, अगर ज्यादा फड़फड़ाएगी तो इसी चाकू से तेरी गरदन काट डालूंगा. इस सुनसान जगह पर कोई तुझे बचाने नहीं आएगा. जान प्यारी है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही कर.’

श्वेता पर इस धमकी का असर फौरन हुआ था. वह मासूम लड़की मौत के डर से बुत सी बन गई थी.

अपनी इच्छा पूरी करने के बाद काला बेहोशी की हालत में श्वेता और उस के सामान को सड़क के किनारे छोड़ कर रफूचक्कर हो गया था.

आज बहुत दिनों बाद काला को सुनहरा मौका मिला था, जिसे वह हाथ से नहीं जाने देना चाहता था. उस लड़की को अपना शिकार बनाने से पहले काला उस के और उस के घरपरिवार के बारे में जानना चाहता था.

काला ने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की, पर लड़की ने उस के किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘न’ से ज्यादा शब्दों में नहीं दिया.

पहले वाली लड़की श्वेता हंसमुख, चंचल और मिलनसार थी, जबकि यह उस के बिलकुल उलट, गंभीर, मगरूर और नकचढ़ी थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद काला ने फैसला किया कि लड़की का संबंध चाहे किसी भी घर से हो, वह उस के साथ मनमानी जरूर करेगा, बाद में चाहे जो कुछ भी होता रहे.

सड़क पर सन्नाटा था. काला मन ही मन लड़की की इज्जत से खेलने का तानाबाना बुनने लगा था. विजय नगर से एक किलोमीटर पहले एक दूसरे शहर को सड़क जाती थी. वह सड़क ज्यादातर सुनसान रहती थी. काला ने टैक्सी उसी सड़क पर मोड़ दी थी.

कार में बैठी लड़की को अपने रास्ते का पता था, इसलिए उस ने फौरन काला से गलत रास्ता होने की बात की, पर काला ने उस की बात अनसुनी कर दी.

खतरा महसूस कर के लड़की विरोध करने लगी, तो काला ने एक जगह टैक्सी रोक दी और सीट के नीचे से चाकू निकाल कर दहाड़ा, ‘‘सुन लड़की, अगर जरा सी भी आनाकानी की तो पेट फाड़ दूंगा.’’

काला की भयानक आंखों में वासना के लाललाल डोरे तैर रहे थे. लड़की को धमकी दे कर काला उस पर टूट पड़ा.

अगले दिन जब काला को होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में देख कर वह चौंक पड़ा. दर्द से उस का पूरा बदन दुख रहा था. कल रात के सीन उस के जेहन में घूमे तो उस का पूरा जिस्म कांप उठा. वह 2 बार दरिंदा बना था, एक बार उस दिन जिस दिन उस ने मासूम श्वेता की इज्जत लूटी थी और दूसरी बार कल रात.

कल रात वह दरिंदा बना जरूर था, लेकिन कामयाब नहीं हो सका था, क्योंकि कल रात वाली लड़की पहले वाली लड़की की तरह कमजोर नहीं थी. वह लड़की मुक्केबाजी और कराटे में माहिर थी. उस लड़की ने काला को बहुत पीटा था.

लड़की ने एक जोरदार लात काला की दोनों टांगों के बीच मारी थी. इस के बाद उसे कुछ होश नहीं था. वह अस्पताल कैसे पहुंचा? कब पहुंचा और किस ने पहुंचाया? इस का उसे कुछ पता नहीं था.

काला ने डाक्टरों से जब यह खबर सुनी तो मानो उस की जान ही निकल गई. डाक्टरों ने उसे बताया कि उन्होंने उस की जान तो बचा ली, मगर अब वह कभी दरिंदा नहीं बन सकता था, क्योंकि टांगों के बीच चोट लग जाने से वह हमेशा के लिए नामर्द बन चुका था.

बाबा का सच : अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं.

हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था.

लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी.

मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया.

इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका. मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी.

जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’

उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी.

यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा.

एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया.

जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा.

मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी.

मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं?

मैडमजी: गीता ने किसे सबक सिखाया

‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोली.

‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.

‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’

‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…

‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन समझाए.’’

प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.

छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी. पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है. आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.

‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर झूठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?

‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझ रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.

जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.

मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.

‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’

घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.

अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.

मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.

‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’

‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चला गया.

समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’

‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है…अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.

मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थी. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोद को भी सबक मिल जाए.

अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ समझाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.

फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.

वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ समझाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.

अब इंतजार था प्रमोदजी का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.

दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अलग पल्लू ठीक कर लिया.

‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.

‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.

उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले, ‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’

‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.

मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आया.

‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’

‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’

‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.

‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.

‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.

प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.

‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.

मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.

मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.

प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…

‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.

‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’

प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.

‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’

प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.

‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मुझे इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मुझ पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’

इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.

‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.

शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.

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