Crime Story: परफेक्ट बैंक रौबरी

Crime Story: “क्या बात है रघुनंदन शर्माजी, बड़े परेशान नजर आ रहे हैं?” बैंक मैनेजर ओपी मेहरा ने कैशियर से पूछा.

“सर, वह हैड औफिस से जो मेल आया है, उसे देखा आप ने?” शर्माजी अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोले.

“नहीं, मैं दूसरे अकाउंट में बिजी था. जिस तरह से आप परेशान हैं, उसे देख कर तो लगता है कि निश्चित ही कोई गंभीर बात है,” मेहराजी मुसकराते हुए बोले.

“सर, उस में लिखा है कि 20 मार्च से हमारा एन्युअल आडिट चालू होगा,” शर्माजी के स्वर में कुछ घबराहट सी थी.

“तो उस में कौन सी नई बात है शर्माजी? आडिट तो हर साल ही होता है न?” मेहराजी के चेहरे पर हलकी सी मुसकान अभी भी कायम थी.

“मेहराजी, या तो आप सचमुच भूल गए हैं या फिर भूलने का नाटक कर रहे हैं. याद है आप ने और मैं ने पिछले साल इन्हीं दिनों में यहीं पर बैठ कर यह योजना बनाई थी कि आप के बेटे राज और मेरे बेटे सुनीति कुमार को बेहतर भविष्य बनाने के लिए विदेश भेज देना चाहिए.

“इसी सिलसिले में हम ने कई एजेंटों से बात भी की थी. आखिरकार पिछले साल जून में हम ने एक नामी एजेंट से बात कर सबकुछ पक्का भी कर लिया था. उस ने यह शर्त रखी थी कि अगर एक हफ्ते के भीतर दोनों बच्चों के लिए 15-15 लाख रुपए जमा करवा दें तो वह तुरंत उन के एडमिशन की कार्यवाही चालू कर देगा.

“उस ने हमें यह भी बताया था कि अगर हम तुरंत पैसा दे देते हैं तो वह वीजा समेत सारे कागजात तत्काल बनवा देगा और दोनों बच्चे अक्तूबर के महीने से भाषा प्रवीणता क्लासेस जौइन कर अगले साल से नियमित कोर्स जौइन कर पाएंगे.

“हम दोनों पर ही पहले से 2-2 विभागीय लोन चल रहे हैं, ऐसे में तुरंत तीसरा लोन मिलना मुमकिन नहीं होगा. तब आप ने सुझाया था कि अभी हम बैंक के कैश में से पैसा निकाल कर फीस भर देते हैं, भविष्य में जैसे ही ब्रांच के पास होम लोन, ह्वीकल लोन या बिजनैस लोन के लिए प्रपोजल आते हैं, तो हम उन में प्रोसैसिंग ऐंड डाक्यूमैंटेशन फीस के नाम पर लाख 2 लाख रुपए हर प्रपोजल में एडजस्ट करते रहेंगे.

“इस तरह बैंक को उस के पैसों का अच्छाखासा ब्याज मिल जाएगा और हमारा काम भी हो जाएगा. मेरे खयाल से 20-25 केस में सारा अमाउंट एडजस्ट हो जाएगा.

“पर कोरोना और लौकडाउन के चलते न तो हमें मनमुताबिक कस्टमर ही मिल पाए, न ही प्रतिबंधों के चलते हमारे बच्चे ही विदेश जा पाए. अगले 10 दिनों में इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना नामुमकिन है,” यह सब कहते हुए शर्माजी का चेहरा लाल हो गया और सांसें भी तेज चलने लगीं.

“हां शर्माजी, मेरे दिमाग से तो यह बात एकदम से निकल ही गई थी. अब अगर आडिट हो गया तो हम बुरी तरह से फंस जाएंगे,” अब मेहराजी के चेहरे पर भी शिकन आने लगी थी.

“अगर आडिट पार्टी ने पकड़ लिया तो नौकरी तो जाएगी ही, साथ ही भविष्यनिधि में जो पैसा है उसे भी जब्त कर लिया जाएगा,” यह सब कहते समय शर्माजी के माथे पर दोबारा पसीने की बूंदें चमकने लगीं.

“कुछ तो करना ही पड़ेगा,” मेहराजी सोचते हुए बोले.

“जल्दी कीजिए मेहराजी, कहीं ऐसा न हो सोचतेसोचते ही सारा समय निकल जाए,” शर्माजी परेशान होते हुए बोले.

“अगर पुराना समय होता बैंक में आग ही लगवा देते और सब रिकौर्ड जलवा देते, मगर इस समय तो पलपल की रिपोर्ट कंप्यूटर के जरीए कई जगह पहुंच जाती है,” मेहराजी ने कहा.

“आज की बातें कीजिए सर. आज इस समस्या से कैसे छुटकारा पाया जाए…” शर्माजी के स्वर में घबराहट बरकरार थी.

“रात को आप भी सोचिए और मैं भी सोचता हूं. कोई न कोई हल जरूर ही निकल जाएगा,” मेहराजी उठे और अपना केबिन लौक करते हुए बोले.

“आज तो रातभर नींद ही नहीं आई. आंखों में आडिट पार्टी ही दिखाई देती रही,” जैसे ही अगले दिन मेहराजी केबिन का लौक खोल कर अंदर घुसे, तो शर्माजी भी पीछेपीछे आ गए और घबराते हुए स्वर में बोले.

“परेशान तो मैं भी रहा रातभर…” मेहराजी बोले, “कोई हल सूझा क्या?”

“अगर हल मिल जाता तो मैं इस तरह आप के पीछेपीछे नहीं आता,” शर्माजी को लगा शायद मेहराजी उन का मजाक उड़ा रहे हैं, फिर मौके की नजाकत को देखते हुए वे कुछ नरम स्वर में बोले, “आप के दिमाग में कोई आइडिया आया क्या?”

“हां, आया तो है, मगर रिस्क लेना होगा,” मेहराजी के गंभीर स्वर में चेतावनी थी.

“अजी साहब, नौकरी सलामत रहे तो कितना भी बड़ा रिस्क क्यों न हो ले लेंगे,” कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दी तो शर्माजी के स्वर में जोश आ गया.

“मतलब आप भी मेरी तरह रिस्क लेने को तैयार हैं?” मेहराजी ने सवालिया निगाहों से शर्माजी की तरफ देखा.

“हां, हम लोग मरता क्या न करता वाली हालत में हैं. रिस्क तो लेना ही पड़ेगा. वैसे आप का हल है क्या?” शर्माजी ने उत्सुकता से पूछा.

“रौबरी, ब्रांच में रौबरी करानी होगी,” मेहराजी शांत और संयत स्वर में बोले.

“क्या… रौबरी?” शर्माजी एकदम कुरसी से ऐसे उछले जैसे बिजली का कोई करंट लग गया हो, “अरे साहब, ऐसे में तो हम और भी ज्यादा फंस जाएंगे. ऐसा करने से हमारा राज औरों को भी पता चल जाएगा और वे हमेशा हमें ब्लैकमेल करता रहेंगे, सो अलग,” शर्माजी की घबराहट अब और भी ज्यादा बढ़ गई थी.

“शर्माजी, आप की कमजोरी यही है कि आप बात को पूरी तरह सुने बिना ही उस पर राय देने लगते हैं. अरे भाई, पहले योजना तो सुन लीजिए. अगर कुछ कमी होगी, तो उसे भी हम फुलप्रूफ कर लेंगे,” मेहराजी बोले.

“अच्छाअच्छा, योजना बताइए,” शर्माजी अनमने मन से बोले. उन के हावभाव से साफ दिख रहा था कि वे इस तरह का हल कतई नहीं चाहते थे.

“मुझे एक बात बताइए शर्माजी, यह सब बखेड़ा, झूठसच हम लोगों ने किया किस के लिए, बताइएबताइए…” मेहराजी ने जोर दे कर पूछा.

“अपने बच्चों के लिए,” शर्माजी बुझे हुए स्वर में बोले.

“तो क्या उन बच्चों की जवाबदारी नहीं है कि वे हमें आज इस मुसीबत से बचाएं. वैसे भी इस वारदात को हम इस तरह से अंजाम देंगे कि कोई हम पर शक करेगा ही नहीं,” मेहराजी फुसफुसाते स्वर में बोले.

“मतलब लूट की इस करतूत को हमारे बच्चे अंजाम देंगे?’ शर्माजी बातों का मतलब समझते हुए बोले.

“सौ फीसदी सही. यही योजना है हमारी. और मैं ने इस बारे में अपने बेटे राज से भी बात कर ली है. राज तो मान गया है. आप भी अपने दोनों लड़कों सुनीति कुमार और सुकर्म कुमार से बात कर उन्हें समझाइए. अगर वे न समझें तो रात को मेरे पास ले कर आइए. उन के विदेश जाने की योजना तभी पूरी हो पाएगी, जब हम बाहर और उन के साथ होंगे. आप को उन्हें इसी हकीकत को समझाना होगा,” मेहराजी योजना का खुलासा करते हुए बोले.

“साहब, यह तो बहुत बड़ा रिस्क होगा. कोई दूसरा जुगाड़ नहीं हो सकता?” शर्माजी ने हताश स्वर में पूछा.

“लाइए अपने हिस्से के 15 लाख रुपए, मैं भी कहीं से मांगता हूं या अपनी बीवी के गहने गिरवी रखता हूं. मगर इतनी बड़ी रकम का इंजाम इतनी जल्दी भी नहीं होगा,” मेहराजी बोले.

“मगर जो पैसा हम ने यहां से निकाला था, वह तो हम विदेश भेजने वाले कंसलटैंट को दे चुके हैं. अगर उस से पैसा वापस मांगते हैं तो वह 50 परसैंट से भी कम वापस करेगा और बच्चों को विदेश भेजने का मिशन भी पूरा नहीं होगा,” मजबूर और निराश स्वर में शर्माजी ने कहा.

“इसीलिए तो मैं कहता हूं शर्माजी कि बचाव का सब से बढ़िया रास्ता है हमला. अगर कोई कोशिश ही नहीं की गई तो निश्चित रूप से पकड़े जाएंगे और उस सूरत में हम बच्चों को कभी भी बेहतर भविष्य नहीं दे पाएंगे. अभी बस थोड़ी सी हिम्मत करनी है, तभी आगे का भविष्य सुखद होगा,” मेहराजी अपने शब्दों में शहद सी मिठास घोलते हुए बोले, “और फिर बच्चे अकेले थोड़े ही हैं, हम भी तो हैं उन के पीछे.”

“बताइए क्या योजना है? जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसली से क्या डरना,” मेहराजी की बातों से शर्माजी का हौसला कई गुना बढ़ गया था.

“यह हुई न मर्दों वाली बात. देखिए, इस समय हमारे इलाके में लौकडाउन चल रहा है. ग्राहकों की भीड़ वैसे भी नहीं है. ऊपर से हम 50 परसैंट स्टाफ के साथ ही काम कर रहे हैं. मतलब 6 की जगह पर सिर्फ 3 लोग.

“आप ब्रांच के एकलौते कैशियर और मैं मैनेजर… मतलब हम दोनों को तो रोज आना ही है. तीसरा स्टाफ वारदात वाले दिन ऐसा रखेंगे जो एकदम से नया और अनुभवहीन हो. मेरे विचार से जो नई मैडम आई हैं उन की बारी परसों है, इसलिए इस योजना को अंजाम परसों ही दिया जाएगा.

“अभी जो एकमात्र सिक्योरिटी गार्ड है, वह चाय बनाने और हम लोगों को पानी पिलाने का काम भी खुशीखुशी कर देता है. परसों भी जब सिक्योरिटी गार्ड शाम को 4 बजे चाय बनाने के लिए जाएगा, उसी समय इस वरदात को अंजाम दिया जाएगा. कुलमिला कर 10 से 15 मिनट में सब काम हो जाएगा.

“रही बात पुलिस की तो वह तो उसी आधार पर चलेगी जो हम बयान देंगे. 30 लाख तो हमारा हो ही जाएगा एकदम कानूनी तरीके से और लूट में जो पैसा मिलेगा, वह आधाआधा कर लेंगे. इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आए,” कहते हुए मेहराजी मुसकराने लगे.

“वाह, योजना तो शानदार लगती है. मुझे बिंदुवार समझाइए कि कबकब, क्याक्या करना है,” शर्माजी सहमति में सिर हिलाते हुए बोले.

“यह हुई न कुछ बात. वैसे भी लौकडाउन चल रहा है तो बाजार बंद है, सड़कें सुनसान हैं और इसी के चलते हमारा काम ज्यादा आसान है.

हम लोग रोजाना की तरह नियमित समय पर ही आएंगे. कस्टमर्स के लिए ट्रांजैक्शन दोपहर को 3 बजे बंद कर देंगे, मतलब ज्यादा से ज्यादा साढ़े 3 बजे तक ब्रांच में हम 4 ही लोग होंगे. आप, मैं, मैडम और सिक्योरिटी गार्ड.

“मैं शाम 4 बजे रोजाना की तरह सिक्योरिटी गार्ड को चाय बनाने के लिए बोलूंगा. जाहिर है कि इस समय मतलब 4 बजे ब्रांच का ऐंट्री गेट सूना रहेगा और आनेजाने वालों पर कोई रोकटोक नहीं रहेगी.

“ठीक इसी समय मैं अपने लड़के राज को फोन करूंगा और पूछूंगा कि शाम को खाने में क्या बन रहा है? असलियत में यह उन तीनों के लिए संकेत होगा कि वारदात को अंजाम देने के लिए रास्ता साफ है.

“यहां पर सोने पे सुहागा यह कि ब्रांच की यह बिल्डिंग अंडरकंस्ट्रक्शन है और बेसमैंट की पार्किंग में अभी तक न कोई गार्ड है, न कोई सीसीटीवी कैमरे ही लगे हैं. यहां पर वे तीनों मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच चुके होंगे.

“कोरोना हमारे लिए एक बार फिर वरदान बनेगा, क्योंकि सभी लोगों को इस से बचाव के लिए मास्क लगाना अनिवार्य है. इस से आधा चेहरा तो कवर हो ही जाता है, बाकी का भाग पार्किंग में आ कर रूमाल से कवर करना है.

“मेरे पास एक लाइसैंसी रिवाल्वर है और 2 गुप्तियां भी हैं, जो राज अपने साथ लेता आएगा और आप के लड़कों को दे देगा. इस के बाद मेरा इशारा मिलते ही वे तीनों ब्रांच में घुस जाएंगे और पूरी घटना को अपने अंजाम तक पहुंचा देंगे.

“चूंकि आप के दोनों बेटे एक ही मोटरसाइकिल पर आएंगे, इसलिए रुपयों से भरा बैग ले कर दोनों जाएंगे और बाद में हम पैसा आधाआधा बांट लेंगे.

“अभी जो कैश विड्रा का ट्रैंड चल रहा है, उस के अनुसार औसतन 2 लाख रुपए रोज की निकासी हो रही है. आज हमारे पास तकरीबन 18 लाख रुपए हैं. इस का मतलब उस दिन तकरीबन 14 लाख रुपयों की लूट होगी, जिसे हमें 44 लाख रुपए दिखाना है,” मेहराजी अच्छी तरह समझाते हुए बोले.

“यहां तक तो बिलकुल ठीक है, मगर इस पर ऐक्शन कैसे होगा?’ शर्माजी ने पूछा.

“मेरा इशारा पाते ही तीनों बच्चे ब्रांच में घुस जाएंगे और राज मेरे माथे पर रिवाल्वर रख कर आप तीनों को हाईजैक कर के एक केबिन में बंद कर देगा, फिर 2 लोग मुझे स्ट्रांगरूम में ले जाएंगे और पासवर्ड के जरीए उसे खुलवा कर सारा कैश अपने हवाले कर लेंगे.

“ऐसा ही कुछ वे लोग आप के साथ भी कर के कैश बौक्स भी लूट लेंगे. हमारे पास पूरा हिसाब होगा ही, इसलिए मौका मिलते ही मेरा हिस्सा मुझ तक पहुंचा देना,” मेहराजी बोले.

”बहुत खूब मेहराजी. एकदम परफैक्ट प्लानिंग है. इस से हमारे पिछले पाप तो धुल ही जाएंगे और खर्चे के लिए कुछ पैसे हाथ में भी आ जाएंगे,” शर्माजी तारीफ करते हुए बोले.

और तय दिन को योजना के मुताबिक बैंक लूट लिया गया. कुल लूट की रकम 46 लाख रुपए से ज्यादा दिखाई गई.

”बधाई हो मेहरा साहब, आप की परफैक्ट प्लानिंग काम कर गई और हमारा मिशन पूरा हुआ,” वारदात के 2 दिन बाद शर्माजी गर्मजोशी से मेहराजी से हाथ मिलाते हुए बोले.

”शर्माजी, जरा धीरे बोलिए, दीवारों के भी कान होते हैं,” मेहराजी विजयी भाव से मुसकराते हुए बोले.

“दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते, बल्कि आंख, नाक, मुंह और हाथों में हथकड़ियां पहनाने के लिए हाथ सभी कुछ होते हैं,” पुलिस इंस्पैक्टर मेहराजी के केबिन में दाखिल होते हुए बोला.

“क्या मतलब?” मेहराजी अचकचाते हुए बोले.

“मतलब यह कि मेहराजी, प्रोफैशनल क्रिमिनल भी गलती कर देते हैं, फिर तो आप अभी नौसिखिया ही हैं,” इंस्पैक्टर बोला.

“गलती? कौन सी गलती?” मेहराजी ने हैरान होते हुए पूछा.

“बहुत ज्यादा आत्मविश्वास इनसान को गलतियां करने पर मजबूर कर देता है. आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ मिस्टर मेहरा. आप शुरू से ही यह मान कर चल रहे थे कि आप का प्लान फुलप्रूफ है और आप को कोई पकड़ नहीं सकता.

“हकीकत में यह प्लान था भी बहुत जोरदार और शुरू में तो हम पुलिस वाले भी गच्चा खा गए थे, लेकिन आप की जल्दबाजी और हद से ज्यादा आत्मविश्वास ने आप को एक नहीं, बल्कि 3-3 गलतियां करने के लिए मजबूर कर दिया.

“गलती नंबर एक यह कि आप ने अपने हैड औफिस को तुरंत सूचना देने के चक्कर में इस वारदात का ड्राफ्ट दोपहर को 12 बजे ही कंप्यूटर में तैयार कर लिया था. वह कहते हैं न कि मशीनों का दिल, दिमाग और जबान नहीं होता, इस वजह से वे न बोलते हुए भी सबकुछ बोल देती हैं. आप का यह ड्राफ्ट भी कंप्यूटर में दोपहर को 12 बजे ही सेव हो गया था.

“दूसरी गलती यह कि आप ने उम्मीद की थी कि ट्रांजैक्शन नियमित ट्रैंड के मुताबिक तकरीबन 2 लाख रुपए तक का ही होगा, मगर उस दिन ट्रांजैक्शन बहुत कम हुआ. आप ने अपने ड्राफ्ट में 44 लाख रुपयों की लूट की सूचना दी, जब असली अमाउंट 46 लाख रुपयों से ज्यादा का था. यहां पर पुलिस को दिए गए बयान और हैड औफिस को दी गई सूचना में फर्क पाया गया, जिस से हमारा शक बढ़ गया.

“तीसरी गलती यह कि जैसे ही प्रायोजित लुटेरे बैंक लूटने पहुंचे आप ने बिना किसी विरोध के अपने हाथ ऊपर कर दिए और लुटेरों के कहे बिना ही स्ट्रांगरूम की तरफ चले गए.

“ऐसा शायद बापबेटों के रिश्तों के चलते हुआ वरना तो लुटेरे आते ही सब से पहले मारपीट कर आतंक मचाते हैं, फिर वारदात को अंजाम देते हैं.

“गलती तो शर्माजी आप ने भी की. आप ने सोचा कि आप के बेटों की उम्र इतनी नहीं है कि वे इतनी बड़ी रकम को मोटरसाइकिल पर महफूज तरीके से ले जा सकेंगे और यही वजह रही कि वे लोग आए तो मोटरसाइकिल से, मगर गए आप की कार से.

“शायद आप भूल गए थे कि उस दिन सुबह जब बैंक आए थे, तो अपनी पानी की बोतल कार में ही भूल गए थे, जिसे लेने सिक्योरिटी गार्ड पार्किंग में गया था. उसी सिक्योरिटी गार्ड ने जब आप को मोटरसाइकिल से घर वापस जाते देखा तो इस की सूचना पुलिस को दे दी.

“इन्हीं सब चीजों के तार जोड़ने में 2 दिन का समय लगा और आप ने समझा कि आप की बैंक रौबरी परफैक्ट हो गई है. चलिए, आप लोगों के बेटे थाने में आप का इंतजार कर रहे है. उन्होंने अपना अपराध कुबूल कर लिया है,” इंस्पैक्टर ने तफसील से सबकुछ बताया.

Hindi Crime Story: विरासत – क्यों कठघरे में खड़ा था विनय

Hindi Crime Story: कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था. पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

Crime Story: अपनी शर्तों पर – जब खूनी खेल में बदली नव्या-परख की कहानी

Crime Story: नव्या लाइब्रेरी में बैठी नोट्स लिख रही थी तभी कब परख उस के पास आ कर बैठ गया उसे पता ही नहीं चला. ‘‘मुझ से इतनी बेरुखी क्यों नव्या, मैं सह नहीं पाऊंगा. वैसे कान खोल कर सुन लो, तुम मेरी नहीं हो सकीं तो और किसी की नहीं होने दूंगा. कितने दिनों से मैं तुम से मिलने का प्रयत्न कर रहा हूं पर तुम कन्नी काट कर निकल जाती हो,’’ वह बोला.

‘‘मेरा पीछा छोड़ दो परख, हमारी राहें और लक्ष्य अलग हैं,’’ नव्या ने उत्तर दिया. दोनों को बातें करता देख कर लाइब्रेरियन ने उन्हें बाहर जाने का इशारा करते हुए द्वार पर लगी चुप रहने का इशारा करने वाली तसवीर दिखाई.

‘‘देखो नव्या, मैं आज तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूं. तुम मुझे दूसरों की तरह समझने की भूल मत करना, नहीं तो बहुत पछताओगी. उपभोग करो और फेंक दो की नीति मेरे साथ नहीं चलेगी. पिछले 2 वर्षों में मैं ने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया? पानी की तरह पैसा बहाया मैं ने और इस चक्कर में मेरी पढ़ाई चौपट हो गई सो अलग,’’ परख ने धमकी ही दे डाली.

‘‘क्यों किया यह सब? मैं ने तो कभी नहीं कहा था कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान मत दो. घूमनेफिरने का शौक तुम्हें भी कम नहीं है. मैं तो बस मित्रता के नाते तुम्हारा साथ दे रही थी.’’ ‘‘किस मित्रता की बात कर रही हो तुम? एक युवक और युवती के बीच मित्रता नहीं केवल प्यार होता है,’’ परख की आंखों से चिनगारियां निकल रही थीं. लाइब्रेरी से बाहर निकल कर दोनों कुछ देर वादविवाद करते हुए साथ चले. फिर नव्या ने परख से आगे निकलने का प्रयत्न करते हुए तेजी से कदम बढ़ाए. वह सचमुच डर गई थी. तभी परख ने जेब से छोटा सा चाकू निकाला और दीवानों की तरह नव्या पर वार करने लगा. नव्या बदहवास सी चीख रही थी. चीखपुकार सुन कर वहां भीड़ जमा हो गई. कुछ विद्यार्थियों ने कठिनाई से परख को नियंत्रित किया. फिर वे आननफानन नव्या को अस्पताल ले गए. कालेज में यह समाचार आग की तरह फैल गया. सब अपने ढंग से इस घटना की विवेचना कर रहे थे.

नव्या मित्रोंसंबंधियों से घिरी इस सदमे से निकलने का प्रयत्न कर रही थी. हालांकि उस के जख्म अधिक गहरे नहीं थे, पर उसे अस्पताल में भरती कर लिया गया था. नव्या की फ्रैंड निधि ने उस के स्थानीय अभिभावक मौसी और मौसा को फोन कर के सारी घटना की जानकारी दे दी, तो नव्या की मौसी नीला और उस के पति अरुण तुरंत आ पहुंचे. नव्या नीला के गले लग कर फूटफूट कर रोई व आंसुओं के बीच बारबार यह कहती रही, ‘‘मौसी, मुझे यहां से ले चलो. यह खूंख्वार लोगों की बस्ती है. परख मुझे जान से मार डालेगा.’’ नीला नव्या को सांत्वना दे कर धीरज बंधाती रही. पर नव्या हिचकियां ले कर रो रही थी. उसे सपने में भी आशा नहीं थी कि परख उस से ऐसा व्यवहार करेगा. अगले दिन ही नीला उसे अपने घर ले गई. सूचना मिलते ही नव्या के मातापिता आ पहुंचे. सारा घटनाक्रम सुन कर वे स्तब्ध रह गए.

‘‘नव्या, हम ने तो बड़े विश्वास से तुम को यहां पढ़ने के लिए भेजा था. पर तुम्हारे तो यहां पहुंचते ही पंख निकल आए. और नीला, तुम ने ही कहा था न कि छात्रावास में, वह भी देश की राजधानी में रह कर इस की प्रतिभा निखर आएगी पर हुआ इस का उलटा ही. पूरे परिवार की कितनी बदनामी हुई है यह सब जान कर. अब कौन इस से विवाह करेगा?’’ नव्या के पिता गिरिजा बाबू का दर्द उन की आंखों में छलक आया.

‘‘अब तो हम नव्या को अपने साथ ले जाएंगे. कोई और रास्ता तो बचा ही नहीं है,’’ नव्या की मां लीला ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘दीदी, जीजाजी, सच कहूं तो जैसे ही मुझे परख से संबंध के बारे में पता चला मैं ने नव्या को घर बुला कर समझाया था. इस ने वादा भी किया था कि यह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. पर इसी बीच यह घटना घट गई,’’ नीला ने स्पष्ट किया. ‘‘मैं ने तो उस दिन भी कहा था कि सारी सूचना आप लोगों को दे दें पर नव्या अपनी सहेली निधि को साथ ले कर आई और अपनी मौसी को समझा ही लिया कि वह आप दोनों को सूचित न करे,’’ तभी अरुण ने पूरे प्रकरण पर अपनी चुप्पी तोड़ी.

‘‘मैं ने भी कहां सोचा था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं ने तो नव्या को कई बार चेताया भी था कि इस तरह किसी के साथ अकेले घूमनाफिरना ठीक नहीं है पर नव्या ने अनसुना कर दिया,’’ निधि ने अपना बचाव किया. ‘‘ठीक है, मैं ही बुरी हूं और सब तो दूध के धुले हैं,’’ नव्या निधि की बात सुन कर चिहुंक उठी. ‘‘आप लोग व्यर्थ ही चिंतित हो जाओगी इसीलिए आप लोगों को सूचित नहीं किया था. मुझे लगा कि हम इस स्थिति को संभाल लेंगे. निधि ने भी नव्या की ओर से आश्वस्त किया था. पर कौन जानता था कि ऐसा हादसा हो जाएगा,’’ नीला समझाते हुए रोंआसी हो उठी.

अभी यह विचारविमर्श चल ही रहा था कि अरुण ने परख के मातापिता के आने की सूचना दी. ‘‘अब क्या लेने आए हैं? हमारी बेटी की तो जान पर बन आई. इन का यहां आने का साहस कैसे हुआ?’’ लीला बहुत क्रोध में थीं. अरुण और नीला ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया. ‘‘हम तो उस अप्रिय घटना के प्रति अपना खेद प्रकट करने आए हैं. परख भी बहुत शर्मिंदा है. आप लोगों से माफी मांगनी चाहता है,’’ परख के पिता धीरज आते ही बोले.

‘‘क्या कहने आप के बेटे की शर्मिंदगी के. यहां तो जीवन का संकट उत्पन्न हो गया. बदनामी हुई सो अलग.’’ ‘‘मैं यही विनती ले कर आया हूं कि यदि हम मिलबैठ कर समझौता कर लें तो कोर्टकचहरी तक जाने की नौबत नहीं आएगी,’’ धीरज ने किसी प्रकार अपनी बात पूरी की.

‘‘चाहते क्या हैं आप?’’ अरुण ने प्रश्न किया.

‘‘यही कि नव्या परख के पक्ष में अपना बयान बदल दे. हम तो इलाज का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं,’’ धीरज ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘ऐसा हो ही नहीं सकता. यह हमारी बेटी के सम्मान का प्रश्न है,’’ गिरिजा बाबू बहुत क्रोध में थे.

‘‘आप की बेटी हमारी भी बेटी जैसी है. मानता हूं इस में हमारा स्वार्थ है पर यह बात उछलेगी तो दोनों परिवारों की बदनामी होगी, बल्कि मेरे पास तो एक और सुझाव भी है. गलत मत समझिए. मैं तो मात्र सुझाव दे रहा हूं. मानना न मानना आप के हाथ में है,’’ परख के पिता शांत और संयत स्वर में बोले.

‘‘क्या सुझाव है आप का?’’

‘‘हम दोनों का विवाह तय कर देते हैं. सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.’’ ‘‘यह दबाव डालने का नया तरीका है क्या? बेटा हमला करता है और उस का पिता विवाह का प्रस्ताव ले कर आ जाता है. कान खोल कर सुन लीजिए, जान दे दूंगी पर इस दबाव में नहीं आऊंगी,’’ घायल अवस्था में भी नव्या उठ कर चली आई और पूरी शक्ति से चीख कर फूटफूट कर रोने लगी. नव्या को इस तरह बिलखता देख कर सभी स्तब्ध रह गए. किसी को कुछ नहीं सूझा तो बगलें झांकने लगे और परख के पिता हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.

‘‘आप लोग बच्ची को संभालिए हम फिर मिलेंगे,’’ परख के पिता अपनी पत्नी के साथ तेजी से बाहर निकल गए. ‘‘देखा आप ने? अभी भी ये लोग मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे. मेरा दोष क्या है? यही न कि लड़की होते हुए भी मैं ने घर से दूर आ कर पढ़ने का साहस किया. पर ये होते कौन हैं मेरे लिए ऐसी बातें कहने वाले?’’ नव्या का प्रलाप जारी था. गिरिजा बाबू अभी भी क्रोध में थे. जो कुछ हुआ उस के लिए वे नव्या को ही दोषी मान रहे थे और कोई कड़वी सी बात कहनी चाहते थे पर नव्या की दशा देख कर चुप रह गए. परख और उस के मातापिता अगले दिन फिर आ धमके. परख भी उन के साथ था. उस के लिए उन्होंने जमानत का प्रबंध कर लिया था.

‘‘ये लोग तो बड़े बेशर्म हैं. फिर चले आए,’’ गिरिजा बाबू उन्हें देखते ही भड़क उठे.

‘‘जीजाजी, यह समय क्रोध में आने का नहीं है. बातचीत करने में कोई हानि नहीं है.हमें तो केवल यह देखना है कि इस मुसीबत से बाहर कैसे निकला जाए,’’ नीला ने उन्हें शांत करना चाहा. ‘‘इतना निरीह तो मैं ने स्वयं को कभी अनुभव नहीं किया. सब नव्या के कारण. सोचा था परिवार का नाम ऊंचा करेगी पर इस ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखा,’’ गिरिजा बाबू परेशान हो उठे. ‘‘ऐसा नहीं कहते. वह बेचारी तो स्वयं संकट में है. चलिए बैठक में चलिए. वे लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस मसले को बातचीत से ही सुलझाने का यत्न करिए,’’ नीला और लीला समवेत स्वर में बोलीं.

अरुण गिरिजा बाबू को ले कर बैठक में आ बैठे. परख ने दोनों का अभिवादन किया.

‘‘यही है परख,’’ अरुण ने गिरिजा बाबू से परिचय कराया.

‘‘ओह तो यही है सारी मुसीबत की जड़,’’ गिरिजा बाबू का स्वर बहुत तीखा था. ‘‘देखिए, ऐसी बातें आप को शोभा नहीं देतीं. इस तरह तो आप कड़वाहट को और बढ़ा रहे हैं. हम तो संयम से काम ले रहे हैं पर आप उसे हमारी कमजोरी समझने की भूल कदापि मत करिए,’’ धीरज ने भी उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘अच्छा, नहीं तो क्या करेंगे आप? हमें भी चाकू से मारेंगे? सच तो यह है कि आप की जगह यहां नहीं जेल में है.’’

‘‘कोई चाकूवाकू नहीं मारा. छोटा सा पैंसिल छीलने का ब्लेड था जिस से जरा सी खरोंच लगी है. आप लोगों ने बात का बतंगड़ बना दिया,’’ परख बड़े ठसके से बोला मानो उस ने नव्या पर कोई बड़ा उपकार किया हो.

‘‘देखा तुम ने अरुण? कितना बेशर्म है यह व्यक्ति. इसे अपनी करनी पर तनिक भी पश्चाताप नहीं है. ऊपर से हमें ही रोब दिखा रहा है,’’ गिरिजा बाबू आगबबूला हो उठे.

‘‘लो भला, मैं क्यों पश्चाताप करूं? मैं कहता हूं बुलाइए न अपनी बेटी को. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा,’’ परख बोला.

‘‘लो आ गई मैं. कहो क्या कहना है? मुझे कितनी चोट लगी है इस का हिसाबकिताब हो चुका है. उस के लिए तुम्हारे प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी. अब जब कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओगे तो सारी चतुराई धरी की धरी रह जाएगी.’’ ‘‘मैं ने तो कभी अपनी चतुराई का दावा नहीं किया. चतुर तो तुम हो. मुझे कितनी होशियारी से 2 साल मूर्ख बनाती रहीं. बड़े होटलों, रिजोर्ट में खानापीना, सिनेमा देखना और कपड़े धुलवाने से ले कर प्रोजैक्ट बनवाने तक का काम बड़ी होशियारी से करवाया.’’

‘‘तो क्या हुआ? तुम तो मेरे सच्चे मित्र होने का दावा करते थे. अब बिल चुकाने का रोना रोने लगे. भारतीय संस्कृति में ऐसा ही होता है. बिल सदा युवक ही चुकाते हैं, युवतियां नहीं.’’ ‘‘तुम्हारे मुंह से भारतीय संस्कृति की दुहाई सुन कर हंसी आती है. हमारी संस्कृति में तो लड़कियों को युवकों के साथ सैरसपाटा करनेकी अनुमति ही नहीं है. पर तुम तो भारतीय संस्कृति का उपयोग अपनी सुविधा के लिएकरने में विश्वास करती हो. युवक भी अपनापैसा उन्हीं पर खर्च करते हैं जिन से उन की मित्रता हो, हर ऐरेगैरे पर नहीं. वैसे भी तुम्हारे जैसी लड़की क्या जाने प्रेम, मित्रता जैसे शब्दों के अर्थ. तुम तो न जाने मेरे जैसे कितने युवकों को मूर्ख बना रही थीं. पर मैं उन लोगों में से नहीं हूं कि इस अपमान को चुप रह कर सह लूं,’’ परख भी क्रोध से बोला.

‘‘इसीलिए मुझे जान से मारने का इरादा था तुम्हारा? तो ठीक है अब ये सब बातें तुम अदालत में कहना,’’ नव्या ने धमकी दी.

‘‘देख लिया न आप ने? यह है आज की पीढ़ी. इन्हें हम ने यहां पढ़ने के लिए भेजा था. ये दोनों यहां मस्ती कर रहे थे. बड़ों के सामने भी कितनी बेशर्मी से बातें कर रहे हैं,’’ अब परख की मां रीता ने अपना मत प्रकट किया. ‘‘आप को बुरा लगा हो तो क्षमा कीजिए आंटी. पर मैं भी इक्कीसवीं सदी की लड़की हूं. अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेना मुझे भी आता है.’’ ‘‘अत्याचार तो मुझ पर हुआ है, मुझे कौन न्याय दिलाएगा? 2 वर्षों तक अपना पैसा और समय मैं ने इस लड़की पर लुटाया. अब यह कहती है कि हमारी राहें अलग हैं. इस के चक्कर में मेरी तो पढ़ाई भी चौपट हो गई,’’ परख के मन का दर्द उस के शब्दों में छलक आया.

‘‘अब समझ में आया कि एक युवक और युवती के बीच सच्ची मित्रता हो ही नहीं सकती. मैं जिसे अपना सच्चा मित्र समझती थी वह तो कुछ और ही समझ बैठा था,’’ नव्या अपनी ही बात पर अड़ी थी. ‘‘जब बड़े विचारविमर्श कर रहे हों तो छोटों का बीच में बोलना शोभा नहीं देता. अब केवल हम बोलेंगे और तुम दोनों केवल सुनोगे. दोष तुम दोनों का ही है. तुम्हारा इसलिए परख कि तुम अपनी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर प्रेम की पींगें बढ़ाने लगे और नव्या तुम्हें नईनई आजादी क्या मिली तुम तो सैरसपाटे में उलझ गईं. या तो तुम परख के इरादे को भांप नहीं पाईं या फिर जान कर भी अनजान बनने का नाटक करती रहीं. तुम तो सारी बातें अपनी मौसी से भी तब तक छिपाती रहीं जब तक तुम्हारी मौसी ने बलात सब कुछ उगलवा नहीं लिया,’’ अरुण के स्वर की कड़वाहट स्पष्ट थी.

‘‘इन सब बातों का अब कोई अर्थ नहीं है. परख की ओर से मैं आप को नव्या बेटी की सुरक्षा का विश्वास दिलाता हूं और चाहता हूं कि आप इस अध्याय को यहीं समाप्त कर दें,’’ धीरज ने आग्रह किया. ‘‘परख ने जो किया वह क्षमा के योग्य नहीं है. अत: इस बात को समाप्त करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. हम अपनी बेटी के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं,’’ गिरिजा बाबू क्रोधित स्वर में बोले. धीरज गिरिजा बाबू और अरुण को कक्ष के एक कोने में ले गए. वहां कुछ देर के वादप्रतिवाद के बाद वे सहमत हो गए कि इस बात को समाप्त करने में ही दोनों परिवारों की भलाई है. नव्या ने सुना तो भड़क उठी, ‘‘कोई और परिवार होता तो परख को जीवन भर चक्की पिसवाता पर हमारे परिवार में मेरी औकात ही क्या है, लड़की हूं न,’’ नव्या ने रोने का उपक्रम किया.

‘‘अब रहने भी दो मुंह मत खुलवाओ. कोई दूसरा परिवार तुम से कैसा व्यवहार करता इस बारे में हम कुछ न कहें इसी में सब की भलाई है,’’ नीला ने अपनी नाराजगी दिखाई.

‘‘ठीक है, यदि सभी अपनी जिद पर अड़े हैं तो मेरी भी सुन लें. मैं कहीं नहीं जा रही. यहीं रह कर पढ़ाई करूंगी,’’ नव्या बड़ी शान से बोली. ‘‘अवश्य, तुम यहां रह कर पढ़ोगी अवश्य, पर अकेले नहीं. अपनी मां के साथ रहोगी उन की छत्रछाया में. अपनी मां के नियंत्रण में रहोगी हमारी शर्तों पर,’’ गिरिजा बाबू तीखे स्वर में बोलते हुए बाहर निकल गए, जिस से थोड़ी सी ताजा हवा में सांस ले सकें. बगीचे में पड़ी बैंच पर बैठ कर व दोनों हाथों में मुंह छिपा कर देर तक सिसकते रहे.

4 महीने के बाद उन्होंने सुना कि परख और नव्या फिर दोस्तों के बीच मिल रहे हैं. उन के दोस्तों ने उन के बीच सुलह करा दी. 6 महीने बाद दोनों ने फिर अपने मातापिता को बुलाया और इस बार दोनों ने शर्माते हुए कहा, ‘‘हम शादी करना चाहते हैं.’’ गिरिजा बाबू और अरुण दोनों एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे और यह समझ में नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या कहें, क्या न कहें.

Crime Story: जिस्म के सौदागर

Crime Story, लेखक- अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

इंटर में पढ़ने वाली प्रिया तो खूबसूरत थी ही, उस की 35 साल की मां चंपा भी कम हसीन नहीं थी. प्रिया का एक 8 साल का छोटा भाई भी था. पिता रामेश्वर के पास खेतीबारी तो कोई खास नहीं थी, पर प्राइवेट नौकरी की वजह से घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

रामेश्वर अपनी तनख्वाह में से ही घरखर्च के लिए पैसे भेजा करता था और बैंक में भी जमा कराता था. वह जानता था कि अगर आज पैसे नहीं बचाएगा, तो कल प्रिया की शादी कैसे होगी? उस की शादी में भी तो 5-7 लाख रुपए लग ही जाएंगे.

रामेश्वर के बाहर रहने की वजह से चंपा को बच्चों के साथ अकेले ही घर संभालना होता था, मतलब हाटबाजार के लिए भी चंपा को ही जाना पड़ता था, जबकि उस का गांव राज्य के कद्दावर मंत्री का गांव था, इसलिए वहां बिजली, सड़क जैसी सुविधाएं शहरों से कम नहीं थीं.

किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए चंपा भी हमेशा शहरी औरत की तरह ही दिखती थी. उस के बच्चे भी गांव के अच्छे घरानों के बच्चों से कम नहीं दिखते थे.

चंपा के खूबसूरत होने और पति से दूर रहने की वजह से गांव के कई जिस्म के सौदागर उस पर गिद्ध की नजरें लगाए रहते थे. बगल के ही एक नौजवान राकेश के चंपा के यहां आनेजाने से दूसरे मर्द जलतेभुनते रहते थे. उन्हें लगता था कि रामेश्वर की गैरहाजिरी में राकेश जरूर चंपा का नाजायज फायदा उठाता होगा और इस वजह से वह उन के जाल में नहीं फंस रही है. चंपा भी उन लोगों की नीयत को अच्छी तरह समझने लगी थी, इसलिए वह हमेशा सावधान रहती थी.

पिछले कोरोना काल में जब कंपनी बंद हो गई, तो एकाध महीना तो रामेश्वर गुजरात में जैसेतैसे रहा था, पर जैसे ही सुविधाओं की कमी होने लगी, वैसे ही वह अपने गांव आ गया था.

रामेश्वर घर तो जरूर आ गया था, पर आते ही कोरोना का शिकार हो गया था और अस्पताल ले जाने में ही उस की मौत हो गई थी.

अब तो चंपा पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था, पर करती भी तो क्या? तनाव में ही किसी तरह जिंदगी बसर करती जा रही थी. उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताती जा रही थी. इस वजह से वह दिल से जुड़ी बीमारी का शिकार हो गई थी, जबकि डाक्टरों ने बताया भी था कि अगर वह बेवजह की चिंता करना छोड़ दे, तो उसे काफी राहत मिल सकती है.

इधर गांव के मनचले नौजवानों को लगने लगा था कि अब चंपा घर की समस्याओं से जूझती चली जाएगी. कटी हुई घास आखिर कितने दिनों तक काम आएगी, इसलिए चंपा अब उन के बुने जाल में आसानी से फंस सकती है.

तब तक प्रिया भी जवानी की दहलीज पर पहुंच चुकी थी. वह भी अपनी मां की तरह ही हसीन दिखती थी. अब लंपट लोगों की नजरें कभी मां से गिरतीं, तो बेटी पर अटक जातीं और बेटी से गिरतीं, तो मां पर अटक जातीं, पर उन की दाल गल नहीं पाती थी, जिस की वजह से उन्हें काफी खीज भी होती थी, फिर भी वे मौके की तलाश में रहते थे.

अगले साल जब फिर कोरोना की दूसरी लहर आई, तो चंपा उस से बच नहीं सकी, क्योंकि जब दोनों बच्चों को बुखार आया, तो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था, जिस की वजह से चंपा को बारबार कभी डाक्टर, तो कभी मैडिकल स्टोर की दौड़ लगानी पड़ रही थी. उसे बस यही लग रहा था कि किसी तरह उस के बच्चे ठीक हो जाएं.

कुछ दिन के बाद बच्चे तो ठीक हो गए, पर चंपा की तबीयत बिगड़ गई. कुछ दिनों तक तो वह घर पर ही दवा खाती रही, पर बुखार में कोई सुधार नहीं हुआ.

एक दिन चंपा को देखने गांव का ही मृत्युंजय नामक नौजवान आया और पड़ोस के लोगों को जमा कर के बोला, “एक गांव का होने के नाते हम लोगों का भी तो कुछ फर्ज बनता है. आखिर गांवघर का आदमी होता किसलिए है? इन्हें ले चलिए. पटना के एक अच्छे अस्पताल में मेरी जानपहचान के कई लोग हैं. वहां का चार्ज तो बहुत ज्यादा है, पर मैं चलूंगा तो काफी कम पैसों में इलाज हो जाएगा.”

ऐसे हालात में चंपा की भी मजबूरी हो गई. भला जान किस को लिए प्यारी नहीं होती. वह मृत्युंजय के साथ चल दी, तो प्रिया भी साथ हो ली. मृत्युंजय मन ही मन काफी खुश हुआ.

मृत्युंजय ने चंपा को अस्पताल में भरती करवा दिया और वहीं रहने भी लगा, जबकि प्रिया को कहा गया कि यहां मरीज की देखभाल अस्पताल वाले ही करते हैं, इसलिए आप को वार्ड से बाहर ही रहना पड़ेगा. हां, चौबीस घंटे में एक बार थोड़ी देर के लिए मिल सकती हो.

प्रिया अस्पताल के बाहर रह रही थी, पर रोज सुबह अपनी मां से मिलने जाती थी. चंपा की हालत में थोड़ा सुधार भी होता जा रहा था. प्रिया को लगा 2-3 दिनों के अंदर ही उस की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी, पर अगले दिन जब प्रिया उस से मिलने गई, तो देखा कि मां के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

मां ने बताया, “मेरे साथ 5 लोगों ने बारीबारी से जबरदस्ती की है.”

प्रिया ने अपनी मां के बयान का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. अस्पताल वाले सफाई देते रहे कि चंपा की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी, इसलिए उस के हाथपैर बांध दिए थे.

चंपा ने प्रिया से कहा, “बेटी, मुझे इस अस्पताल से बाहर निकालो वरना ये भेड़िए मुझे नोंच खाएंगे. यहां तो जिस्म के सौदागर भरे पड़े हैं.”

प्रिया ने अपनी मां को दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा, तो अस्पताल वालों ने जो बिल बनाया, उसे देख कर प्रिया के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

प्रिया ने मृत्युंजय को फोन लगाया, तो वह बोला, ‘मैं घर वापस आ गया हूं. मेरे जीजाजी की तबीयत खराब है. मैं दिल्ली जा रहा हूं…’ और उस ने फोन काट दिया.

प्रिया को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सुबहसुबह अस्पताल से फोन आया कि चंपा की हालत ज्यादा बिगड़ गई थी, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. वह किसी तरह अपनी मां के बिस्तर के पास पहुंची. मां सचमुच मर चुकी थी. जब वह जोरजोर से रोने लगी, तो अस्पताल वालों ने उसे रोने से मना कर दिया.

वैसे तो अस्पताल में मरे मरीजों को उन के परिवार वालों को सुपुर्द कर दिया जाता था, पर चंपा की लाश को पहले से ही बाहर खड़ी एंबुलैंस में डाला गया और उस में प्रिया को बिठाया गया. पीछेपीछे पुलिस की गाड़ी थी.

चंपा की लाश को श्मशान घाट पहुंचाया गया और झटपट दाह संस्कार करवा दिया गया, ताकि प्रिया के पास कोई सुबूत न रहे.

Crime Story: लुटेरी दुल्हन – 4 शादियां और लाखों की ठगी

Crime Story: छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक उलझे हुए और चौंकाने वाले मामले का परदाफाश किया है, जिस में एक जवान लड़की और उस की मां को 4 अलगअलग मर्दों से शादी कर के उन्हें ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

यह मामला राजधानी रायपुर का है. पुलिस अफसर लाल उम्मेद सिंह के मुताबिक, आरोपी जवान लड़की, जिस की पहचान पूजा देवांगन उर्फ गीतांजलि के रूप में हुई है, ने अपनी मां गायत्री देवांगन के साथ मिल कर कई मर्दों को अपने रूपजाल में फंसाया और उन से लाखों रुपए के गहने और नकदी ठग ली.

सोशल मीडिया से शिकार

पुलिस को जांच में पता चला है कि पूजा देवांगन सोशल मीडिया प्लेटफार्म और औनलाइन वैवाहिक साइटों का इस्तेमाल कर के अपने भावी दूल्हों (शिकारों) को ढूंढती थी. वह आकर्षक प्रोफाइल बना कर और खुद को एक संस्कारी और सुशील लड़की के रूप में पेश कर के मर्दों को अपनी ओर खींचती थी. इस के बाद वह उनसे दोस्ती करती थी और धीरेधीरे उन्हें अपने प्रेमजाल में फंसा लेती थी.

एक बार जब मर्द पूजा देवांगन के जाल में फंस जाते थे, तो वह उन से शादी करने का दबाव डालती थी. शादी के बाद पूजा और उस की मां पीड़ितों से दहेज की मांग करती थीं और तथाकथित पति और उन के परिवारों को सताती थीं. कुछ मामलों में पूजा देवांगन पीड़ितों के घरों से कीमती गहने और नकदी चुरा कर फरार हो जाती थी.

कई पीड़ित आए सामने

पुलिस के मुताबिक, जांच में यह भी पता चला है कि पूजा देवांगन ने साल 2015 से साल 2023 के बीच 4 अलगअलग मर्दों से शादी की थी. उस के पहले पतियों के नाम उमेश देवांगन, पुरुषोत्तम देवांगन और लोकनाथ देवांगन हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि पूजा देवांगन ने अपने पहले पतियों से तलाक लिए बिना ही शुभम देवांगन से चौथी शादी की थी.

इस मामले का खुलासा तब हुआ जब शुभम देवांगन ने मुजगहन थाने में पूजा देवांगन और उस की मां के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. शुभम देवांगन के मुताबिक, पूजा देवांगन ने शादी के बाद उस से दहेज की मांग की और उसे और उस के परिवार को सताया. उस ने यह भी आरोप लगाया कि पूजा देवांगन ने उस के घर से तकरीबन 5 लाख रुपए के गहने चुरा लिए थे और फरार हो गई थी.

पुलिस ने शिकायत के आधार पर जांच शुरू की और पूजा देवांगन और उस की मां को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उन के पास से चोरी किए गए गहने और नकदी भी बरामद की.

पुलिस ने लोगों से अपील की है कि वे औनलाइन वैवाहिक साइटों और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अजनबियों से सावधान रहें और किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचें.

Love Crime: इश्क में डूबा शादाब, विवाहिता के इश्क ने ले ली जान!

Love Crime: सुबह के 10 बज रहे थे. बरसात का मौसम होने के कारण उस दिन सुबह से ही उमस भरी गरमी पड़ रही थी. अफजाल उस समय अपने ड्राईंगरूम में बैठा चाय पी रहा था. जैसे ही उस ने चाय का प्याला खाली कर के रखा तो अचानक उस के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी.

कौन है?’’ अफजाल ने पूछा

मैं हूं भाईजान, सावेज.’’ बाहर से आवाज आई.

अरे सावेज, तुम? अंदर आ जाओ.’’ यह कहते हुए अफजाल ने दरवाजा खोल दिया था.

इस के बाद सावेज अंदर आ कर अफजाल के पास बैठ गया था. सावेज अफजाल का छोटा भाई था. अफजाल की बीवी मरजीना ने जब सावेज को आया देखा था तो वह उस के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थी. इस के बाद अफजाल व सावेज एकदूसरे का हालचाल पूछने लगे थे और आपस में बातें भी करने लगे थे.

अचानक सावेज बोला, ”भाई, तुम ने भाभी मरजीना के बारे में कुछ सुना है?’’

हां सावेज, रिश्तेदारी और मोहल्ले में जो बातें फैल रही हैं, मैं उस से बाकायदा वाकिफ हूं. पड़ोसी कस्बे मंगलौर के रहने वाले शादाब द्वारा समाज व रिश्तेदारी में हमें बदनाम किया जा रहा है, जिस से हम समाज में सिर उठा कर जी न सकें.’’ अफजाल बोला. 

मगर यह बात भी भाभी मरजीना द्वारा ही शुरू की गई थी. भाभी को रील बनाने की और उसे फेसबुक पर लोड करने की आदत थी तथा वह अपनी आदत के चलते पड़ोस के युवक शादाब से दिल लगा बैठी थी. इस के बाद भाभी उस के साथ लिवइन में रहने लगी थी.’’ सावेज बोला.

तेरी भाभी के शादाब के साथ लिवइन में रहने के कारण हमें कस्बा मंगलौर छोडऩा पड़ा था. इसी कारण हमें वहां से 10 किलोमीटर दूर यहां रुड़की में आ कर रहना पड़ रहा है. मैं जानता हूं कि तेरी भाभी पहले रंगीली तबियत की थी, मगर अब तो शादाब हमें लगातार बदनाम करने में लगा है. अब हम कैसे अपनी इज्जत बचाएं?’’ अफजाल बोला.

तुम इस की चिंता मत करो भाईजान, मैं ने इस का रास्ता ढूंढ लिया है. हमें शादाब को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाना पड़ेगा. भाभी मरजीना से कहेंगे कि वह फोन कर के शादाब को अपने घर बुला ले. इस के बाद हम उसे घेर लेंगे. फिर हम तीनों उस की गला दबा कर हत्या कर देंगे. फिर यह मामला खुद ही शांत हो जाएगा.’’ सावेज बोला.

मगर शादाब की हत्या के बाद उस की लाश को हम लोग कहां छिपाएंगे? ”अफजाल ने पूछा.

तुम उस की चिंता मत करो. यह काम मुझ पर छोड़ दो भाईजान. शादाब की लाश को हम बोरे में डाल कर पास में बह रही गंगनहर में रात में ही फेंक देंगे. इस के बाद किसी को भी पता नहीं चलेगा कि शादाब कहां चला गया.’’

कैसे रची मौत की साजिश

सावेज की इस योजना पर अफजाल व मरजीना ने अपनी मुहर लगा दी थी और वे तीनों अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में लग गए थे. शादाब के साथ लिवइन में पहले तो मरजीना रहती थी, मगर मंगलौर में अपनी हो रही बदनामी की वजह से वह रुड़की रेलवे स्टेशन के पास की कालोनी तेलीवाला में अपने पति व देवर के साथ आ कर रहने लगी थी. मरजीना का शौहर बिजली मैकेनिक था.

वह 23 अगस्त, 2024 की सुबह थी. उस वक्त सुबह के 11 बज रहे थे. कोतवाली मंगलौर के कोतवाल शांति कुमार उस वक्त अपने औफिस में बैठे फाइलों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. उस वक्त मंगलौर के मोहल्ला मलकपुरा निवासी 55 वर्षीय मुस्तकीम कोतवाल से मिलने पहुंचा था. उस वक्त मुस्तकीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और वह घबराया हुआ सा लग रहा था. मुस्तकीम ने कोतवाल को बताया कि उस का 24 वर्षीय बेटा शादाब आसपास के क्षेत्र में फेरी लगाकर कपड़े बेचता है. गत दिवस वह किसी से मिलने के लिए घर से निकला था, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटा है. उस का मोबाइल नंबर भी स्विचऔफ चल रहा है.

जब कोतवाल शांति कुमार ने मुस्तकीम से पूछा कि शादाब की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी तो मुस्तकीम ने बताया कि शादाब का सभी से अच्छा व्यवहार था. मुझे उस के अपहरण की भी आशंका नहीं है. मुझे शक है कि शादाब किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गया. इस के बाद शांति कुमार ने मुस्तकीम को शादाब की गुमशुदगी की तहरीर लिख कर उस का फोटो ले कर कोतवाली आने को कहा था. 

मलकपुरा मोहल्ला एसआई रफत अली के हलके में आता था, अत: शांति कुमार ने शादाब की गुमशुदगी का मामला रफत अली को ही सौंप दिया था. शादाब की गुमशुदगी का मामला हाथ में आते ही रफत अली सक्रिय हो गए. सब से पहले उन्होंने कांस्टेबल मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप को मोहल्ला मलकपुरा में भेजा तथा उन से शादाब के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने को कहा. इस के बाद रफत अली ने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह से संपर्क कर के उन से इस मामले में उन का निर्देशन मांगा.

स्वप्न किशोर सिंह ने तत्काल गुमशुदा शादाब के मोबाइल की काल डिटेल्स एसओजी से निकलवाने के निर्देश रफत अली को दिए. अगले दिन पुलिस को शादाब की काल डिटेल्स भी मिल गई थी. शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर एसआई रफत अली के शक की सूई अटक गई थी. उधर सिपाही मनोज वर्मा व पप्पू कश्यप ने शादाब के बारे में जो जानकारी हासिल की तो वह चौंकाने वाली थी. पता चला कि शादाब की कई महीनों से मरजीना नामक महिला से दोस्ती थी. मरजीना शादीशुदा थी, लेकिन वह शादाब के साथ लिवइन में रहती थी. शादाब उस पर रुपए उड़ाता था. शादाब के घर वालों ने उसे काफी समझाया, लेकिन वह उस का साथ छोडऩे को तैयार नहीं था.

घर बुला कर क्यों की हत्या

अपने शौहर की बदनामी की वजह से मरजीना ने मंगलौर कस्बा छोड़ दिया था और रुड़की के रेलवे स्टेशन से सटी कालोनी तेलीवाला में आ कर रहने लगी थी. दोनों सिपाहियों ने एसआई रफत अली को बताया कि शादाब के लापता होने में मरजीना का हाथ हो सकता है. यह जानकारी पा कर रफत अली ने मरजीना से पूछताछ करने का विचार बनाया. यह भी पता चला कि शादाब के मोबाइल पर आई अंतिम काल भी मरजीना के ही फोन से की गई थी.

वह 26 अगस्त, 2024 का दिन था. रफत अली ने शादाब के लापता होने के बारे में पूछताछ करने के लिए मरजीना व उस के पति अफजाल को कोतवाली मंगलौर में बुलाया था. शाम को जब मरजीना अपने शौहर अफजाल के साथ कोतवाली पहुंची तो उस समय वहां पर सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार भी मौजूद थे. सीओ विवेक कुमार ने शादाब के बारे में मरजीना से पूछताछ की तो मरजीना व अफजाल के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया. पहले तो दोनों ने पुलिस को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर वे दोनों सीओ विवेक कुमार के प्रश्नों के जवाब में ही उलझ गए थे. 

अंत में मरजीना ने पुलिस के सामने शादाब की हत्या की बात कुबूल कर ली थी. मरजीना ने पुलिस को बताया कि गत 22 अगस्त, 2024 को मैं ने ही शादाब को फोन कर के अपने घर पर बुलाया था. शादाब द्वारा हमारे परिवार को बदनाम करने के कारण हम उस से बदला लेना चाहते थे. जब शादाब मरजीना के घर पर पहुंचा तो मरजीना और उस के पति अफजाल ने शादाब के हाथ व पैर पकड़ लिए थे. इस के बाद सावेज ने शादाब का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. रात को 2 बजे तीनों ने शादाब के शव को एक बोरे में डाल लिया. फिर उस बोरे को बाइक पर ले जा कर अफजाल व सावेज ने शव गंगनहर में डाल दिया था.

पुलिस ने मरजीना के ये बयान रिकौर्ड कर लिए थे. इस के बाद सावेज को भी हिरासत में ले लिया गया. सावेज की निशानदेही पर शादाब का मोबाइल फोन व उस की चप्पलें भी बरामद कर ली गईं. अफजाल व सावेज ने मरजीना के दिए बयानों का समर्थन किया था. फिर एसएसपी प्रमेंद्र डोवाल ने मंगलौर कोतवाली पहुंच कर शादाब हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया था.

कथा लिखे जाने तक मंगलौर पुलिस व जल पुलिस द्वारा गंगनहर के अथाह जल में शादाब के शव को तलाश किया जा रहा था. मरजीना, अफजाल व सावेज रुड़की जेल में बंद थे. शादाब हत्याकांड की विवेचना थानेदार रफत अली द्वारा की जा रही थी. रफत अली शीघ्र ही आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य जुटा कर चार्जशीट अदालत में भेजे जाने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Murder Story : सगाई तोड़ने का लिया बदला, भरे बाजार उतारा मौत के घाट

Murder Story : 17 अप्रैल, 2023 को रोशनी का डिजिटल मार्केटिंग का पेपर था. वह जालौन जिले के एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल डिग्री कालेज में बीए (द्वितीय वर्ष) की छात्रा थी. इसी कालेज में उस की बड़ी बहन शीलम भी पढ़ती थी. वह बीए फाइनल में थी. उस का हिंदी साहित्य का पेपर था. सुबह 8 बजे उन दोनों को उन का भाई श्रीचंद्र अपनी बाइक से कालेज गेट पर छोड़ कर चला गया था.

लगभग साढ़े 10 बजे रोशनी और शीलम परीक्षा दे कर कालेज से निकलीं. हाथों में प्रवेश पत्र थामे दोनों बहनें अपने घर की तरफ चल दीं. चलतेचलते दोनों आपस में बातचीत भी करती जा रही थी. जैसे ही वे कोटरा तिराहे की ओर बढ़ीं, तभी रोशनी एकाएक ठिठक कर रुक गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर देखा. पीछे एक बजाज पल्सर बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई. क्योंकि वह बाइक पर पीछे की सीट पर बैठे युवक को जानती थी. रोशनी ने तुरंत अपनी बड़ी बहन शीलम का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ”जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

शीलम ने रोशनी को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा मामला समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

 

चेहरे पर हलकी दाढ़ी और सख्त चेहरे वाला युवक राज उर्फ आतिश था, जो रोशनी का मंगेतर था, पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. राज व उस के साथी को देख कर दोनों बहनों की चाल में लडख़ड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर रोशनी ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही राज बाइक से उतर कर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए रोशनी का गला दबोच लिया. गले पर कसते सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए रोशनी ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, राज ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रोशनी के सिर पर सटा कर फायर कर दिया.

गोली लगते ही रोशनी चीखी और सड़क पर बिछ गई. उस के सिर से खून की धार बह निकली. कुछ देर छटपटाने के बाद रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. बदहवास शीलम ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. इसी बीच कुछ लोगों को आते देख कर राज डर गया. हड़बड़ाहट में वह भागा तो उस का तमंचा हाथ से छूट गया. वह बिना तमंचा उठाए ही अपने साथी के साथ बाइक पर सवार हो कर फरार हो गया.

हत्यारे फरार हो गए, तब शीलम जोरजोर से चीखने लगी. उस ने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन सभी ने मुंह फेर लिया. उस के बाद उस ने हिम्मत जुटा कर मोबाइल फोन से अपने घर वालों को जानकारी दी.

सामने हुई हत्या तमाशबीन क्यों रहे लोग

रोशनी की हत्या की खबर सुनने के बाद घर में कोहराम मच गया. कुछ ही देर बाद मृतका के मम्मीपापा, भाई व परिवार के अन्य लोग वहां पहुंच गए और खून से लथपथ रोशनी की लाश देख कर दहाड़ मार कर रोने लगे.

रोशनी की हत्या दिनदहाड़े कस्बे के कोटरा तिराहे के भीड़ भरे बाजार में की गई थी, लेकिन हत्यारों का सामना करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा सका था. दुकानदार तो इतने दहशत में आ गए थे कि वे अपनी दुकानों के शटर गिरा कर तमाशबीन बन गए थे.

 

दरअसल, दहशत इसलिए थी कि एक दिन पहले ही कुख्यात माफिया अतीक व उस के भाई की हत्या प्रयागराज में गोली मार कर की गई थी. लोगों के दिमाग में भय था कि इस हत्या का कनेक्शन कहीं उस वारदात से तो नहीं जुड़ा है.

घटनास्थल से एट कोतवाली की दूरी मात्र 200 मीटर थी. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह चौहान को वारदात की खबर लगी तो वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पहुंच गए. पुलिस के पहुंचते ही भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा. कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर निरीक्षण में जुट गए.

21 वर्षीया रोशनी की हत्या सिर में गोली मार कर की गई थी. शव के पास ही .315 बोर का तमंचा पड़ा था, जिस से उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने तमंचे को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. मृतका का मोबाइल फोन व प्रवेशपत्र भी वहीं पड़ा था. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया.

अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अफसरों के आते ही चीखपुकार बढ़ गई. मृतका की मम्मी सुनीता, पापा मानसिंह तथा भाई श्रीचंद्र दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह उन्हें शव से अलग किया, फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल पर मृतका की बहन शीलम मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों को उस ने बताया कि उस की बहन रोशनी की हत्या उस के मंगेतर राज उर्फ आतिश ने की है. वह कंदौरा थाने के गांव जमरेही का रहने वाला है. रोशनी और राज आपस में प्रेम करते थे. मम्मीपापा ने दोनों का रिश्ता भी तय कर दिया था.

लेकिन जब रोशनी को पता चला कि राज गुस्से वाला, शक्की व सनकी स्वभाव का है तो रोशनी ने उस से शादी करने से इंकार कर दिया. इस से वह नाराज हो गया और रोशनी को डराने धमकाने लगा. रोशनी नहीं मानी तो आज उस ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी. उस के साथी को वह जानती पहचानती नहीं है.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतका रोशनी के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही मृतका की बड़ी बहन शीलम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत राज उर्फ आतिश तथा एक अज्ञात व्यकित के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने ऐसे ढूंढ निकाला आरोपी

एसपी डा. ईरज राजा ने छात्रा रोशनी हत्याकांड को बड़ी गंभीरता से लिया. अत: आरोपियों को पकडऩे के लिए उन्होंने पुलिस की 4 टीमें गठित कीं. एक टीम सीओ (कोंच) शैलेंद्र बाजपेई तथा दूसरी टीम कोतवाल अवधेश कुमार सिंह की अगुवाई में गठित की.

एसओजी तथा सर्विलांस टीम को भी सहयोग के लिए शामिल किया. इन चारों टीमों ने आरोपितों के हरसंभावित ठिकानों, हमीरपुर, कंदौरा, जमरेही, विवार तथा धनपुरा में ताबड़तोड़ दबिशें दीं, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.

शाम 5 बजे कोतवाल अवधेश कुमार सिंह को मुखबिर के जरिए पता चला कि आरोपी राज एट थाने के गांव सोमई में किसी परिचित के घर छिपा है. इस सूचना पर पुलिस टीम ने सोमई गांव में दबिश डाल कर और उसे दबोच लिया. पुलिस टीम ने उस की बिना नंबर प्लेट वाली बजाज पल्सर बाइक भी बरामद कर ली. पूछताछ के लिए उसे थाना एट लाया गया.

थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और रोशनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि रोशनी उस की प्रेमिका थी. वह उस से शादी करना चाहता था. घर वाले भी राजी हो गए थे, लेकिन रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया. उस ने उसे प्यार से भी समझाया और धमकाया भी. लेकिन जब वह नहीं मानी तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

”तुम्हारे साथ जो अन्य युवक था, उस से तुम्हारा क्या संबंध है?’’ कोतवाल अवधेश सिंह ने पूछा.

”सर, वह मेरा  ममेरा भाई रोहित उर्फ गोविंदा था. वह हमीरपुर जिले के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला है. हमारे और रोशनी के बारे में उसे सब पता था. हम ने जब उसे प्रेमिका की बेवफाई और उसे सबक सिखाने की बात कही तो वह साथ देने को राजी हो गया.’’

”तुम्हारी बाइक की नंबर प्लेट नहीं है. क्या वह चोरी की है?’’ श्री सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, बाइक चोरी की नहीं है. हम ने पहचान छिपाने के लिए नंबर प्लेट जंगल में छिपा दी तथा खून से सने कपड़े चिकासी गांव के पास बेतवा नदी में फेंक दिए थे.’’

चूंकि सबूत के तौर पर खून से सने कपड़े तथा नंबर प्लेट बरामद करना जरूरी था, अत: कोतवाल अवधेश कुमार सिंह ने आरोपी राज की निशानदेही पर कपड़े व प्लेट बरामद करने पुलिस टीम के साथ निकल पड़े. अब तक अंधेरा छा चुका था. राज जब पचखौरा नहर पुलिया के पास पहुंचा तो उस ने पुलिस जीप रुकवा दी.

वह नीचे उतरा और बताया कि यहीं नहर झाडिय़ों में उस ने नंबर प्लेट छिपाई थी. पुलिस के साथ राज झाडिय़ों की तरफ बढ़ा, तभी अचानक उस ने कोतवाल अवधेश कुमार सिंह के हाथ से सरकारी पिस्टल छीन ली और फायर झोंकने की धमकी दे कर भागने लगा. पुलिस टीम ने भी उस की घेराबंदी कर जवाबी काररवाई शुरू कर दी.

राज ने एक फायर किया, तभी पुलिस ने भी गोली चला दी. पुलिस की गोली राज के पैर में लगी, जिस से वह जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. घायल राज को तुरंत जिला अस्पताल में इलाज हेतु भरती कराया गया.

पुलिस की अन्य टीमें दूसरे आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा को पकडऩे के लिए अथक प्रयास में जुटी रहीं, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस जांच में एक ऐसे शक्की व सनकी प्रेमी की कहानी सामने आई, जिस ने एक होनहार छात्रा की सांसें छीन लीं और स्वयं का जीवन भी अंधकारमय बना लिया.

मौसी के घर ऐसे बढ़ी प्रेम की बेल

उत्तर प्रदेश का एक जिला है जालौन. इसी जिले के एट थाना अंतर्गत ऐंधा गांव में मानसिंह अहिरवार सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे हरीश कुमार, श्रीचंद्र और 4 बेटियां रजनी, मोहनी, शीलम तथा रोशनी थी. मानसिंह किसान था.

खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस का बड़ा बेटा हरीश कुमार उरई में प्राइवेट जौब करता था, जबकि छोटा बेटा श्रीचंद्र खेती के काम में हाथ बंटाता था. 2 बेटियों रजनी व मोहनी के जवान होते ही मानसिंह ने उन का विवाह कर दिया था.

मानसिंह की सब से छोटी बेटी का नाम रोशनी था. वह बहुत चंचल थी. इसलिए वह किसी से भी बातचीत में नहीं झिझकती थी. रोशनी से बड़ी शीलम थी. वह भी बातूनी व हंसमुख थी. दोनों बहनें सुंदर तो थीं ही, पढऩे में भी तेज थी.

दोनों एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय में पढ़ती थीं और साथसाथ कालेज जाती थीं. कालेज में लड़के लड़कियां साथ पढ़ते थे, लेकिन कभी किसी लड़के की हिम्मत नहीं हुई कि वह इन दोनों बहनों से पंगा ले.

रोशनी की मौसी अनीता, कदौरा थाने के गांव जमरेही में ब्याही थी. वह रोशनी को बहुत चाहती थी. बात उन दिनों की है, जब रोशनी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. मौसी के बुलावे पर वह जमरेही गांव पहुंची. वहां मौसी ने उस की खूब आवभगत की और कुछ दिनों के लिए उसे अपने घर रोक लिया था.

मौसी के घर पर ही एक रोज रोशनी की मुलाकात राज उर्फ आतिश से हुई. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. राज उर्फ आतिश, रोशनी की मौसी अनीता का पड़ोसी था और उस की जातिबिरादरी का था.

चूंकि राज का अनीता के घर बेरोकटोक आनाजाना था, इसलिए उस की मुलाकातें बढऩे लगीं. उन मुलाकातों ने दोनों के दिलों में प्रेम के बीज बो दिए. धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत भी होने लगी. खूबसूरत रोशनी जहां राज के दिल में समा गई थी, वहीं स्मार्ट राज से बातचीत करना रोशनी को भी अच्छा लगने लगा था.

एक रोज राज अनीता के घर गया तो वह घर में नहीं दिखी. इस पर राज ने पूछा, ”रोशनी, आंटी नहीं दिख रहीं, क्या वह कहीं गई हैं?’’

”हां, मौसी खेत पर गई हैं. घंटे-2 घंटे बाद ही आएंगी.’’ रोशनी ने जवाब दिया.

रोशनी की बात सुन कर राज मन ही मन खुश हुआ. उसे लगा कि आज उसे अपने दिल की बात कहने का अच्छा मौका मिला है. अत: वह बोला, ”रोशनी आओ, मेरे पास बैठो. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. लेकिन..?’’

”लेकिन क्या?’’ रोशनी ने आंखें नचा कर पूछा.

”यही कि डर लगता है कि कहीं तुम मेरी बात का बुरा न मान जाओ.’’

”तुम मुझे गाली तो दोगे नहीं, फिर भला मैं बुरा क्यों मान जाऊंगी?’’

”रोशनी, तुम मेरे जीवन को भी रोशनी से भर दो.’’ कहते हुए राज ने रोशनी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. फिर बोला, ”रोशनी, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है. मैं तुम्हें अपने घर की रोशनी बनाना चाहता हूं.’’

रोशनी कुछ क्षण मौन रही फिर बोली, ”राज, मुझे तुम्हारा प्यार तो कुबूल है, लेकिन शादी का वादा नहीं कर सकती. क्योंकि एक तो मैं अभी पढ़ रही हूं, दूसरे शादी विवाह की बात घर वाले ही तय करेंगे. मैं ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहती, जिस के टूटने से तुम्हारे दिल को ठेस लगे.’’

इस के बाद रोशनी और राज का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था, अत: उन की बात देरसवेर फोन पर भी होने लगी थी. ज्यादा देर बात करने को मौसी टोकती तो वह कालेज की सहेली से बात करने का बहाना बना देती. कभीकभी मां या बड़ी बहन से बात करने की बात कहती. अनीता उस की बातों पर सहज ही विश्वास कर लेती.

लेकिन अनीता के विश्वास को ठेस तब लगी, जब उस ने एक शाम धुंधलके में राज और रोशनी को आपस में छेड़छाड़ करते देख लिया. दूसरे रोज अनीता ने रोशनी को प्यार से समझाया, ”बेटी, लड़की की इज्जत सफेद चादर की तरह होती है. भूल से भी उस पर दाग लग जाए तो वह दाग जीवन भर नहीं जाता.’’

रोशनी समझ गई कि मौसी को उस पर शक हो गया है. उस ने अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा. लेकिन अनीता ने यकीन नहीं किया. उस ने राज को भी फटकार लगाई. इसी के साथ वह दोनों पर निगरानी रखने लगी. लेकिन फिर भी दोनों फोन पर बतिया लेते थे और दिल की लगी बुझा लेते थे.

अनीता नहीं चाहती थी कि उस के घर पर रहते रोशनी कोई गलत कदम उठाए और वह बदनाम हो जाए. अत: उस ने रोशनी को उस के घर ऐंधा भेज दिया. रोशनी प्रेम रोग ले कर घर वापस आई थी. अत: उस का मन न तो पढ़ाई मेंं लगता था और न ही घर के दूसरे काम में.

वह खोईखोई सी रहने लगी थी. बड़ी बहन शीलम ने उस से कई बार पूछा कि वह खोईखोई सी क्यों रहती है? लेकिन रोशनी ने उसे कुछ नहीं बताया. वह बुत ही बनी रही.

बड़ी बहन को ऐसे पता लगा रोशनी के अफेयर का

एक रोज रोशनी बाथरूम में थी, तभी उस के फोन पर काल आई. काल शीलम ने रिसीव की और पूछा, ”आप कौन और किस से बात करनी है?’’

इस पर दूसरी ओर से आवाज आई, ”मैं राज बोल रहा हूं. मुझे रोशनी से बात करनी है. जब वह मौसी के घर जमरेही आई थी, तभी उस से जानपहचान हुई थी.’’

”ठीक है, अभी वह घर पर नहीं है.’’ कह कर शीलम ने काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर सोचने लगी कि कहीं रोशनी किसी लड़के के प्यार के चक्कर में तो नहीं पड़ गई. कहीं रोशनी उसी के प्यार में तो नहीं खोई रहती. यदि ऐसा कुछ है तो वह आज भेद खोल कर ही रहेगी.

कुछ देर बाद रोशनी बाथरूम से बाहर आई तो शीलम ने पूछा, ”रोशनी, यह राज कौन है? तू उसे कैसे जानती है?’’

”दीदी, मैं किसी राज को नहीं जानती.’’ रोशनी धीमी आवाज में सफेद झूठ बोल गई.

”देखो रोशनी, अभी कुछ देर पहले जमरेही से राज का फोन आया था. वैसे तो उस ने मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है. लेकिन मैं सच्चाई तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

रोशनी समझ गई कि उस की आशिकी का भेद खुल गया है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. अत: वह बोली, ”दीदी, जब हम मौसी के घर गए थे तो वहां हमारी मुलाकात मौसी के पड़ोस में रहने वाले अशोक अहिरवार के बेटे राज उर्फ आतिश से हुई थी. कुछ दिनों बाद ही हमारी मुलाकातें प्यार में बदल गईं और हम दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दीदी, राज पढ़ालिखा स्मार्ट युवक है. परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक है. राज मुझे बेहद प्यार करता है और शादी करना चाहता है.’’

सच्चाई जानने के बाद शीलम ने सारी बात अपनी मम्मी सुनीता तथा पापा मानसिंह को बताई तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उन दोनों ने पहले प्यार से फिर डराधमका कर रोशनी को समझाने की कोशिश की, लेकिन रोशनी नहीं मानी. दोनों भाइयों ने भी रोशनी को समझाया. पर रोशनी ने राज से बातचीत करनी बंद नहीं की. वह कालेज आतेजाते तथा देर रात में राज से बातें करती रहती.

रोशनी की दीवानगी देख कर घर वालों को लगा कि यदि रोशनी पर ज्यादा सख्ती की गई तो कहीं ऐसा न हो कि रोशनी पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर अपने प्रेमी के साथ फुर्र न हो जाए. इसलिए मानसिंह ने अपने परिवार के साथ इस गहन समस्या पर मंथन किया. फिर निर्णय हुआ कि रोशनी की शादी राज के साथ तय कर दी जाए. लेकिन शर्त होगी कि शादी बीए फाइनल करने के बाद ही होगी.

इस के बाद सुनीता अपने पति मानसिंह के साथ अपनी बहन अनीता के घर जमरेही पहुंची. उस ने बहन को राज और रोशनी के प्रेम संबंधों के बारे में बताया और दोनों की शादी तय करने की बात कही. अनीता को दोनों के संबंधों के बारे में पहले से ही पता था सो वह राजी हो गई. अनीता ने कहा कि राज पढ़ालिखा है. संपन्न किसान का बेटा है. सब से बड़ी बात जातबिरादरी का है. अत: रिश्ता हर मायने में सही है.

सब को रिश्ता उचित लगा तो मानसिंह ने अशोक अहिरवार से उन के बेटे राज उर्फ आतिश के रिश्ते की बात चलाई. अशोक भी तैयार हो गया. उस के बाद रोशनी का रिश्ता राज के साथ तय हो गया. शर्त यह रखी गई कि रोशनी जब बीए पास कर लेगी, तब दोनों की शादी होगी. इस शर्त को राज व उस के घर वालों ने मान लिया.

शादी तय हो जाने के बाद राज का रोशनी के घर आनाजाना शुरू हो गया. वह हर सप्ताह बाइक से रोशनी के घर पहुंच जाता, रोशनी उस के साथ घूमने फिरने निकल जाती. फिर शाम को ही वापस आती. इस बीच दोनों खूब हंसते बतियाते, रेस्तरां में खाना खाते और जम कर लुत्फ उठाते. उन पर घर वालों की कोई पाबंदी न थी. अत: उन्हें किसी प्रकार का कोई डर भी न था. इस तरह एक साल बीत गया.

रोशनी अब तक बीए (प्रथम वर्ष) पास कर द्वितीय वर्ष में पढऩे लगी थी. जबकि उस की बड़ी बहन शीलम तृतीय वर्ष में पढ़ रही थी. दोनों बहनें एट कस्बा स्थित रामलखन पटेल महाविद्यालय की छात्रा थीं. वह घर से कालेज साथ ही आतीजाती थीं. रोशनी को फोन पर बतियाने का बहुत शौक था. कालेज से निकलते ही वह बतियाने लगती थी. जबकि शीलम गंभीर थी. उसे फालतू बकवास पसंद न थी.

मंगेतर को ऐसे हुआ रोशनी पर शक

एक रोज राज ने रोशनी को काल की तो उस का नंबर व्यस्त बता रहा था. कई बार कोशिश करने पर भी जब रोशनी से बात नहीं हो पाई तो राज के मन में शक बैठ गया कि रोशनी उस के अलावा किसी और से भी प्यार करती है. जिस से वह घंटों बतियाती है. इसलिए उस का फोन व्यस्त रहता है. उस रोज वह बेहद परेशान रहा और कई तरह के विचार उस के मन में आते रहे.

राज के मन में शक समाया तो वह दूसरे रोज सुबह 11 बजे कालेज गेट पहुंच गया. रोशनी कालेज से निकली तो वह उस का पीछा करने लगा. उस रोज रोशनी कालेज अकेले ही आई थी. कुछ दूर पहुंचने पर रोशनी फोन पर किसी से हंसहंस कर बातें करने लगी. राज का शक यकीन में बदल गया कि रोशनी का कोई और भी यार है.

गुस्से से भरा राज रोशनी के पास जा पहुंचा और मोबाइल छीन कर बोला, ”तुम हंसहंस कर किस से बात कर रही थी. क्या मेरे अलावा कोई और भी दिलवर है?’’

राज को सामने देख कर रोशनी घबरा गई और बोली, ”मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी. वह आज कालेज आई नहीं थी. लेकिन तुम यह बहकीबहकी बातें क्यों कर रहे हो?’’

”क्योंकि मुझे सच्चाई पता है. तुम सहेली से नहीं, अपने यार से बात कर रही थी.’’

”लगता है तुम शक्की और सनकी इंसान हो. मुझ पर यकीन नहीं तो मिलने क्यों आते हो. लगता है तुम्हारा प्यार छलावा है. तुम तो प्यार के काबिल ही नहीं हो.’’

उन दोनों के बीच उस दिन जम कर बहस हुई. इस बहस से रोशनी का दिल टूट गया. राज के प्रति उस की जो मोहब्बत थी, वह घायल हो गई. वह सोचने को मजबूर हो गई कि ऐसे शक्की इंसान के साथ वह जीवन कैसे गुजार सकेगी. रोशनी इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. जबकि बड़ी बहन शीलम उसे समझाती कि वह चिंता न करे. सब ठीक हो जाएगा.

कहते हैं कि शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. राज के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस का शक दिनबदिन बढ़ता ही गया. वह जब भी रोशनी को किसी से फोन पर बात करते देख लेता तो वह बात करने से रोकता, साथ ही उसे डांटता व अपशब्द भी कहता.

रोशनी को यह नागवार गुजरता था. फिर भी उस ने कई बार राज को समझाया भी कि वह अपनी दोस्त सहेलियों से ही बात करती है. लेकिन राज रोशनी की कोई बात सुनने को तैयार न था. कई बार समझाने पर भी जब राज के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया तो रोशनी उस से दूरी बनाने लगी. उस ने उस से मिलना भी कम कर दिया.

राज के दुव्र्यवहार से अब रोशनी चिंतित रहने लगी थी. सुनीता ने बेटी के माथे पर चिंता की लकीरें पढ़ीं तो उस ने एक रोज रोशनी से पूछा, ”बेटी, आजकल तू गुमसुम रहती है. चेहरे से हंसी भी गायब है, खाना भी समय पर नहीं खाती. आखिर बात क्या है?’’

मां की सहानुभूति पा कर रोशनी की आंखों में आंसू आ गए. बोली, ”मां, मैं राज को ले कर चिंतित हूं. वह शक्की इंसान है. फोन पर किसी से बात करते देखता है तो शक करता है. मैं ने उस से दिल लगा कर भूल की है. मैं ऐसे शक्की इंसान से शादी नहीं कर सकती.’’

बेटी के दर्द से सुनीता भी तड़प उठी. उस ने यह बात पति मानसिंह को बताई तो उस का पारा भी चढ़ गया. इस के बाद मानसिंह ने अपनी पत्नी व बेटों से विचारविमर्श किया और शादी तोड़ देने का निश्चय किया. रिश्ता खत्म करने की जानकारी मानसिंह ने अशोक अहिरवार व उस के बेटे राज को भी दे दी.

राज क्यों नहीं चाहता था रोशनी से रिश्ता तोडऩा

रिश्ता टूटने से राज उर्फ आतिश बौखला गया. उस ने रोशनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने काल रिसीव ही नहीं की. दूसरे रोज राज रोशनी के कालेज पहुंच गया. रोशनी कालेज के बाहर आई तो उस ने पूछा, ”रोशनी, रिश्ता तुम ने तोड़ा है या तुम्हारे घर वालों ने?’’

”मैं ने अपनी व घर वालों की मरजी से खूब सोचसमझ कर रिश्ता तोड़ा है.’’

”क्यों तोड़ा है?’’ राज ने पूछा.

”इसलिए कि तुम शक्की व सनकी इंसान हो. तुम जैसे इंसान के साथ मैं जीवन नहीं बिता सकती.’’

”सोच लो. कहीं तुम्हारा यह फैसला भारी न पड़ जाए.’’ राज ने धमकी दी.

”मैं ने अच्छी तरह सोचसमझ कर ही फैसला लिया है. तुम्हारी धमकी से मैं डरने वाली नही हूं. और हां, आज के बाद मुझ से मिलने कालेज में मत आना.’’

लेकिन रोशनी की बात पर राज ने गौर नहीं किया. वह अकसर कालेज आ जाता और रोशनी को धमकाता कि वह उस से शादी करे. यही नहीं राज रोशनी के मम्मीपापा व भाइयों को भी फोन पर धमकाने लगा था कि रिश्ता तोड़ कर तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया. अब भी समय है रिश्ता जोड़ लो. वरना परिणाम अच्छा न होगा.

अप्रैल, 2023 के दूसरे सप्ताह से रोशनी और शीलम की वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी. दोनों बहनें साथसाथ परीक्षा देने आतीजाती थीं. 14 अप्रैल, 2023 को रोशनी व शीलम पेपर दे कर निकलीं तो कालेज गेट से कुछ दूरी पर राज ने रोशनी को रोक लिया और बोला, ”रोशनी, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि मुझ से रिश्ता जोड़ोगी या नहीं?’’

रोशनी गुस्से से बोली, ”मैं तुम से एक बार नहीं, सौ बार कह चुकी हूं कि तुम जैसे शक्की और सनकी इंसान से मैं शादी हरगिज नहीं करूंगी.’’

”यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ राज ने आंखें तरेर कर पूछा.

”हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रोशनी ने भी आंखें तरेर कर ही जवाब दिया.

”तो तुम मेरा फैसला भी सुन लो, यदि तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन भी नहीं बनने दूंगा.’’ धमकी दे कर राज चला गया.

राज उर्फ आतिश का ममेरा भाई था रोहित उर्फ गोविंदा. वह हमीरपुर जनपद के विवार थाने के गांव धनपुरा का रहने वाला था. राज की रोहित से खूब पटती थी. रोहित को रोशनी और राज के रिश्तों की बात पता थी. प्यार में जख्मी राज रोहित के पास पहुंचा और उसे बताया कि रोशनी ने शादी से इंकार कर दिया है. वह उस को बेवफाई का सबक सिखाना चाहता है. उस की मदद चाहिए.

रोहित मदद को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने मिल कर तमंचा व कारतूस का इंतजाम किया और एट आ गए.

17 अप्रैल, 2023 को शीलम और रोशनी अपनाअपना पेपर दे कर कालेज से निकलीं तो बाइक से राज व रोहित ने उन का पीछा करना शुरू किया. शीलम व रोशनी जैसे ही कोटरा तिराहा पहुंचीं, तभी राज व रोहित ने उन्हें घेर लिया. फिर बिना कुछ कहे राज ने रोशनी के सिर में तमंचा सटा कर फायर कर दिया. रोशनी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

पूछताछ करने के बाद 19 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी राज उर्फ आतिश को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. दूसरा आरोपी रोहित उर्फ गोविंदा फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : प्रेमिका के मोबाइल की बिजी कौल ने प्रेमी को बना दिया हत्यारा

Love Crime : त्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी. 16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी. दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दीमामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो. पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था. चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुरमऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया. कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए. कुछ ही देर में बहरियाबादचिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

 गांव वालों का विरोध प्रदर्शन पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा. पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी. चंदना हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. जांच अधिकारी के लिए यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. उधर चंदना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. उस की मौत का कारण अत्यधिक खून बहना बताया गया था.

थानाप्रभारी शमीम अली ने चंदना हत्याकांड का खुलासा करने के लिए कई मुखबिर लगा दिए थे. इसी बीच जांच के दौरान उन्हें पता चला कि चंदना अपने पास मोबाइल फोन रखती थी और सब से छिपछिपा कर किसी से अकसर बातें करती थी. यह बात वंदना के अलावा कोई नहीं जानता था. वंदना काफी छोटी थी. थानाप्रभारी शमीम ने सोचा अगर उस से डराधमका कर पूछताछ की गई तो वह डर जाएगी और फिर शायद ही कुछ बता पाए. इसलिए उस से बड़े प्यार और मनोवैज्ञानिक तरीके से बात करनी जरूरी थी. क्या करना है, यह फैसला कर के वह दीपचंद के घर जा पहुंचे.

पुलिस के हत्थे लगा चंदना का मोबाइल फोन उन्होंने वंदना के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘वंदना.’’ वंदना ने डरते हुए जवाब दिया.

‘‘किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘चौथी क्लास में.’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी दीदी अपने पास एक मोबाइल रखती थी? वह मोबाइल कहां है?’’

‘‘जी सर, मुझे पता है दीदी अपने पास एक मोबाइल फोन रखती थी. यह भी पता है कि वह उसे कहां छिपा कर रखती थी.’’ वंदना ने कांपते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो बताओ वह मोबाइल कहां छिपा कर रखती थी?’’ थानाप्रभारी ने बडे़ प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘मैं अभी लाती हूं.’’ वंदना ने जवाब दिया. फिर वह भागती हुई कमरे में गई और बक्से से मोबाइल फोन निकाल कर ले आई. उस ने मोबाइल थानाप्रभारी के हाथों में दे दिया. यह देख कर दीपचंद और उस की पत्नी भौचक्के रह गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उन की बेटी उन की नाक के नीचे क्या गुल खिला रही थी. घर वालों को पता ही नहीं था कि छोटी बेटी भी उस के साथ मिली हुई थी. मांबाप माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बहन चंदना किस से बात करती थी?’’ जांच अधिकारी ने वंदना से अगला सवाल किया.

‘‘सर, मुझे उस का नाम तो नहीं पता लेकिन मैं इतना जानती हूं कि दीदी छिपछिप कर किसी से बात करती थी. मैं ने उसे कई बार बातें करते हुए देखा था.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम जा सकती हो. इस के आगे का पता मैं खुद लगा लूंगा.’’ उन्होंने कहा और चंदना का मोबाइल फोन ले कर चले गए. थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी के पास हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए मोबाइल ही आखिरी सहारा था. उन्होंने चंदना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 16 मार्च की सुबह चंदना के फोन पर साढ़े 9 बजे के करीब आखिरी काल आई थी. मोबाइल से पहुंची कातिल तक पुलिस उस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. जिस नंबर से चंदना को आखिरी काल आई थी, उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि वह नंबर मऊनाथ भंजन जिले के मुहम्मदाबाद गोहना थाना क्षेत्र के गांव उमनपुर निवासी विवेक कुमार चौहान का था.

उस नंबर पर चंदना की काफी लंबीलंबी बातें होती थीं. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम प्रसंग का था. इसी प्रेम प्रसंग के चक्कर में उस की हत्या हुई थी. जांच अधिकारी शमीम अली ने दीपचंद को थाने बुलवा कर विवेक कुमार चौहान के बारे में पूछताछ की तो दीपचंद विवेक का नाम सुन कर चौंक गया. उस ने बताया कि विवेक उस के पड़ोस में रहने वाले रामधनी का नाती है. वह अकसर अपने नानानानी से मिलने ननिहाल आता रहता था. वह जब भी यहां आता था, मेरे घर पर भी सब से मिल कर जरूर जाता था. वह बहुत सीधासादा लड़का है.

काल डिटेल्स के आधार पर विवेक शक के दायरे में चुका था. घटना वाले दिन से उस का भी फोन बंद था. लेकिन घटना वाले दिन उस के सेलफोन की लोकेशन घटनास्थल पर ही थी. इसी वजह से विवेक शक के दायरे में गया. 19 मार्च, 2018 को थानाप्रभारी शमीम अली गाजीपुर से पुलिस फोर्स ले कर मऊनाथ भंजन पहुंचे. मुहम्मदाबाद गोहना थाने की पुलिस की मदद से उन्होंने उमनपुर स्थित विवेक के घर पर दबिश दी. संयोग से विवेक घर पर ही था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर गाजीपुर ले आई. फिर पुलिस ने उसे बहरियाबाद थाने ले जा कर उस से कड़ाई से पूछताछ की

सख्ती से घबरा कर उस ने सब कुछ बता दिया. अपना जुर्म कबूलते हुए उस ने पुलिस को बताया कि चंदना उस की प्रेमिका थी और उसी ने चाकू से गोद कर उस की हत्या की थी. उस ने यह भी बताया कि उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू छिपा दिया था. विवेक ने सिलसिलेवार पूरी कहानी बता दी. थानाप्रभारी ने विवेक की निशानदेही पर लल्लन के खेत से चाकू बरामद कर लिया. आरोपी विवेक से पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह पता चली. चंदना विवेक से लड़ा बैठा था नैना 21 वर्षीय चंदना खूबसूरत तो थी ही, ऊपर से चंचल भी थी. चंदना के पड़ोस में रामधनी चौहान का घर था. रामधनी भले ही दीपचंद की जाति के नहीं थे, लेकिन रामधनी के घर से दीपचंद के परिवार जैसे प्रगाढ़ संबंध थे.

रामधनी के घर जब भी कोई मेहमान आता था तो दीपचंद उसे बुला कर अपने घर ले आता और जम कर स्वागत करता. दीपचंद के मेहमाननवाजी से मेहमानों का दिल खुश रहता था. रामधनी की बेटी का एक बेटा था जिस का नाम विवेक कुमार चौहान था. 21-22 वर्षीय विवेक कभीकभार नानानानी के घर बघांव आया करता था. वह मऊनाथ भंजन जिले के उमनपुर गांव में अपने मांबाप के साथ रहता था. उस के पिता का नाम था विजय बहादुर चौहान. वह सरकारी नौकरी में थे. उसी से 5 सदस्यों वाले परिवार का भरणपोषण होता था. विवेक ने स्नातक तक पढ़ाई कर के नौकरी करने का मन बना लिया था.

3 साल पहले यानी सन 2015 में बात तब की है जब विवेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उन्हीं दिनों उस के ननिहाल बघांव में शादी थी. परिवार के साथ विवेक भी बघांव आया था. वहां उसे मामा के घर सप्ताह भर रहना था. घर वालों के साथ चंदना भी शादी में शामिल हुई. चंदना खूबसूरत तो थी ही, जब वह सफेद रंग के कपड़े पहन लेती थी तो और भी सुंदर लगती थी. उस दिन भी चंदना ने सफेद रंग की पोशाक पहनी थी. इस पोशाक में वह सब से अलग और बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस पर विवेक की नजर पड़ गई तो वह उसे कुछ देर अपलक निहारता रह गया. थोड़ी देर बाद चंदना उस की नजरों के सामने से ओझल हो गई तो उस की आंखें उसे इधरउधर ढूंढने लगीं. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी

प्यार में दोनों हो गए दीवाने पहली ही नजर में चंदना विवेक के दिल में घर कर गई थी. उस दिन के बाद से विवेक चंदना के करीब जाने के लिए बेताब रहने लगा. वैसे भी उस के लिए दीपचंद के घर आनेजाने की पूरी छूट थी. जब भी मौका मिलता, वह दीपचंद के घर चला जाता और घंटों चंदना के साथ बिताता. चूंकि चंदना के पिता दीपचंद अध्यापक थे, इसलिए उन का दिन स्कूल में ही बीतता था. बच्चे स्कूल चले जाते थे. चंदना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए वह और उस की मां सुमन घर पर ही रहती थी. सुमन को विवेक के चंदना से मिलने पर कोई ऐतराज नहीं था. वह सोचती थी कि विवेक बहुत सीधासादा और नेकदिल युवक है. वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिस से दोनों परिवारों की बदनामी हो.

विवेक जब भी चंदना के पास बैठता था, उसे दीवानगी भरी नजरों से निहारता था. चंदना को विवेक का ऐसा देखना अच्छा लगता था. उस के मन के भीतर एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. धीरेधीरे चंदना भी विवेक को प्यार भरी नजरों से देखने लगी थीआंखों के रास्ते दोनों ने एकदूसरे के दिलों में अपना मुकाम बना लिया था. यह भी कह सकते हैं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. जब दिलों की बातें हुईं तो मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर लिया. एक हफ्ते बाद विवेक अपने परिवार के साथ घर लौट गया.

विवेक अपने घर तो लौट आया, लेकिन उस का दिल, उस का चैन, उस का करार सब कुछ चंदना के पास रह गया था. चंदना के बगैर विवेक का मन नहीं लग रहा था. वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा था. विवेक यही सोच रहा था कि चंदना से कैसे मिले, कैसे बातें करे. उधर चंदना का भी यही हाल था. विवेक के लिए वह तड़प रही थी. चंदना के पास सेलफोन भी नहीं था जो फोन कर के विवेक से बात कर लेती. मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. दोनों विरह की अग्नि में जल रहे थे. विवेक से जब चंदना की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो वह मांबाप से झूठ बोल कर नानानानी से मिलने के बहाने बघांव चला आया. बघांव आते हुए रास्ते में उस ने चंदना को उपहार में देने के लिए एक मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोचा कि चंदना के पास सेलफोन होगा तो बात करने में आसानी रहेगी.

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया. घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई. मुंह से भले ही सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया. फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा. वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. तो चंदना काल रिसीव करती थी और ही मिस्ड काल करती थीचंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दीबाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है. विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया. 16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत हैसाढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई.

मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’ विवेक ने किया चाकू से वार चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया. प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : प्रेमी ने ही प्रेमिका को उतारा मौत के घाट

Love Crime : गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी. उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है.

बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी. रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया.

कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.

नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी. लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लम खुल्ला घूमता फिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

—पंकज द्विवेदी

Sexual Abuse : भतीजी से अवैध संबंध बनाने के लालच में फूफा का हुआ कत्ल

Sexual Abuse : ‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करतीमिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था. ‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोलाइस के बाद रजनी अपने घर गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी. ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग 38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी. उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’ रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात कहेंयह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की. ‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है. रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था. बह होते ही उस का फोन गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी. अपने आप बुलाई मौत 18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है. गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित बच सकेपुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी. उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी. गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया. दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं.

पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.                        

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें