Story in Hindi

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12वीं पास कर के पूजा ने कालेज में दाखिला लिया था. ट्यूशन पढ़ा कर वह अपनी फीस और कालेज के दूसरे खर्चे पूरे कर लेती थी और अपनी पढ़ाई के लिए भी समय निकाल लेती थी.
घर में कुल 6 लोगों का परिवार एक कमरे में रहता था. सब के तौलिएसाबुन एक ही थे. घर में दोनों समय भोजन मिलता था. नाश्ता सिर्फ रात की बची रोटी होती थी.
ऐसे में कभीकभार पूजा के चाचाचाची के आने पर उन के घर का माहौल किसी त्योहार से कम नहीं होता था. उन दिनों में परांठों की खुशबू, मिठाई के डब्बे और गरम चाय और पकौड़े घर के रूटीन को भंग करते थे. कभीकभी सारा परिवार चाचाचाची के साथ घूमनेफिरने या सिनेमा देखने भी चला जाता था.
पूजा की चाची का मायका इसी शहर में ही था, इसलिए चाची आतीजाती रहती थीं. वे बहुत अमीर कारोबारी की बेटी थीं और पूजा के चाचा का ब्याह चाची से इसीलिए हुआ था, क्योंकि चाचा का चयन एक पीसीएस के पद पर हो गया था.
पूजा भी अपने चाचा की तरह सरकारी अफसर बन कर अपने घर का कायाकल्प करना चाहती थी. अब उस की साधना पूरी होने का समय आ रहा था. वह बीए के आखिरी साल के इम्तिहान दे चुकी थी और प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही थी.
इसी बीच चाची आई थीं और वे बहुत चिंतित दिख रही थीं. वजह, उन के मायके में ब्याह की तैयारी चल रही थी. उन का भतीजा अमेरिका से भारत लड़की देखने आ रहा था और उन के मायके का पुराना कुक अपने गांव चला गया था. अब उस परिवार को एक कुशल रसोइए की जरूरत थी, जो घर वालों के लिए उन की पसंद का खाना बना सके, साथ ही भरोसेमंद भी हो.
चाची ने पूजा की मां से कहा, ‘‘दीदी, पूजा को मेरे साथ भेज दो. पूजा अपने इम्तिहान की तैयारी वहां भी कर सकती है. कुछ दिनों की बात है. इस बीच जो भी रसोइया आएगा, उसे पूजा अपनी देखरेख में उस घर के हिसाब से ट्रेंड कर देगी.’’
पूजा की मां चाची को मना नहीं कर सकीं.
पूजा भी मन ही मन खुश हो गई कि कम से कम कुछ दिन के लिए उसे एक अलग कमरा मिल सकेगा, तो शायद वह देर रात तक जाग कर पढ़ सकती है. यहां तो सब की निगाहें टिकी रहती हैं कि कब लाइट बंद हो तो वे गहरी नींद में सो सकें.
पूजा चाची के साथ उन के मायके चल दी. रास्ते में चाची ने उसे कुछ कपड़े दिला दिए और घर का रूटीन और घर वालों की खानेपीने की पसंदनापसंद भी बता दी.
चाची का मायका किसी राजसी हवेली से कम ना था. पूजा को लगा कि उस के पूरे महल्ले जितना बड़ा तो उन का गार्डन ही था.
गरीब घर की लड़कियां खाना बनाना तो ऐसे सीख जाती हैं, जैसे चिडि़या के बच्चे उड़ना. पूजा ने खुशीखुशी किचन संभाल ली और जो रैसिपी उस ने कभी किताबों में पढ़ी थीं, उन्हें एकएक कर आजमाने लगी. 3 दिन में ही वह घर के सभी लोगों की पसंद से वाकिफ हो गई और इज्जत से बात करने के चलते नौकरों की फौज की भी चहेती बन गई.
आज रविवार था. सभी लोग आलोक को लेने एयरपोर्ट गए थे और घर में पूजा सब के लिए दोपहर का खाना बना रही थी, जिस में आलोक की पसंद के सब व्यंजन शामिल थे.
इतने में घंटी बजी और पूजा ने दरवाजे पर एक बहुत ही हैंडसम लड़के को देखा. उस नौजवान को वह नहीं पहचानती थी और लड़के ने भी खुद के घर में एक अजनबी लड़की को अपना परिचय देना ठीक नहीं समझा. पुराने माली को उस ने इशारे से कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया, जो पूजा को उस का परिचय देना चाह रहा था.
उस नौजवान को बाहर की बैठक में बैठने को कह कर पूजा अपने काम में बिजी हो गई. हां, उस ने मेहमान को चाय और नाश्ता भेज दिया था.
वह नौजवान आलोक था, जिसे इस खेल में मजा आने लगा था और उस ने सोचा कि इस सस्पैंस को बरकरार रखने में ज्यादा मजा है. घर वाले जब उसे यहां देखेंगे, तो वह एक अलग खुशी होगी. जो एयरपोर्ट से फ्लाइट कैंसिल हो जाने से उस के न आ पाने से दुखी हो कर लौट रहे होंगे.
हुआ भी बिलकुल वैसा ही. सब लोग आलोक को घर पर देख कर खुशी से झूम उठे, लेकिन चाची ने अकेले में पूजा की अच्छी खबर ली कि वह कितनी बेवकूफ है, जो घर के राजकुमार को पहचान नहीं सकी. वैसे, आलोक के फोटो जगहजगह लगे थे, पर शायद पूजा ने ही कभी गौर नहीं किया था.
अगले दिन आलोक को चाय देने गई पूजा ने अपनी कल की गलती
की माफी मांगी और फिर आलोक के पूछने पर उस ने अपना एक छोटा सा परिचय दिया.
उस के बाद पूजा ने गौर किया कि घर में किसी बात पर बड़ी संजीदगी से कोई चर्चा चल रही है. घर के सारे बड़े एक कमरे में शाम से जमे हुए थे.
देर रात चाची पूजा के कमरे में आईं. पूजा पढ़ रही थी. चाची बोलीं, ‘‘पूजा, आलोक ने तुझे पसंद किया है. वह तुझ से ब्याह कर के तुझे अमेरिका ले जाना चाहता है.’’
पूजा इम्तिहान के बीच में ऐसी किसी बात के लिए सोच भी नहीं सकती थी. आलोक जैसे अमीर लड़के को जीवनसाथी के रूप में देखना तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.
चाची बोले ही चली जा रही थीं कि अगले शनिवार को वे लोग सगाई करना चाहते हैं. दीदी और भाई साहब को तेरे चाचाजी ने बता दिया है. और भी बहुतकुछ चाची ने बोला, पर पूजा कुछ सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी. उस का दिमाग शून्य हो गया था.
तय कार्यक्रम के मुताबिक उन सब लोगों को पूजा के घर आना था और वहीं एक छोटे से समारोह में सगाई कर के वे पूजा को अपने साथ ले जाने वाले थे. बाद में मुंबई में धूमधाम से शादी और 20 दिन में पासपोर्टवीजा के साथ पूजा का आलोक के साथ अमेरिका जाना तय हुआ था.
सबकुछ परीकथा जैसा था. सखियां पूजा से जल रही थीं. पड़ोसी मन में कुढ़ रहे थे, पर सामने से बधाई देते नहीं थक रहे थे.
शाम 5 बजे तक उन्हें आना था, पर धीरेधीरे 9 बज गए और वे लोग पहुंचे ही नहीं. अब पूजा के पिताजी को चिंता होने लगी. फिर चाचा ने चाची को फोन किया तो पता चला कि वे लोग एक होटल में ठहरे हुए हैं. इस संकरी गली में फैली गंदगी को देख कर लौट गए हैं. अब वे लोग चाहते हैं कि पूजा का परिवार होटल में आ जाए, ताकि सगाई समारोह वहीं हो जाए.
पूजा के पिता कुछ दुखी हुए, फिर पूजा और उस की मां को बताने आए. सब सुन कर पूजा ने एक फैसला किया कि वह इस रिश्ते के लिए रजामंद नहीं है. जो इनसान पूजा के घर एक घंटे भी नहीं रुक सकता, वह उस इनसान के घर सारी जिंदगी कैसे रह सकती है. उसे समझते देर न लगी कि यह कोई रिश्ता नहीं हो रहा, बल्कि उसे उस के ही घर से अलग करने की साजिश है.
पूजा ने एक स्वाभिमानी की तरह इस रिश्ते के लिए न बोला और कपड़े बदल कर सब भाईबहनों को खाना परोसा. बेचारे बच्चे इतने स्वादिष्ठ भोजन को खाने के लिए कब से उतावले थे और पूजा मन ही मन सोच रही थी कि इस रिश्ते को ठुकरा कर उस ने अपना और अपने पिता का स्वाभिमान बचा लिया.
‘‘आप तो बीए पास हैं चचा, फिर मजदूरी क्यों करने लगे? कोई अच्छी सी नौकरी तलाशने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ साथ में काम कर रहे एक नौजवान मजदूर के इस सवाल का बुजुर्ग हो रहे रघु ने कोई जवाब नहीं दिया.
छत की ढलाई के लिए लग रहे तख्ते की कील पर निशाना टिका कर जोर से हथौड़ा चलाते हुए रघु को लगा कि उस ने हथौड़ा कील पर नहीं, बल्कि खुद पर चला लिया हो. ऐसे सवाल उसे कील से चुभते थे.
बीए पास होने का अहम रघु के अंदर अपनी जवानी में आ गया था. पढ़लिख लेने के बाद तो वह लोगों को कुछ समझता ही नहीं था. इस अहम में उस ने अपने मांबाप को कभी यह नहीं कहा कि पढ़लिख कर अगर उसे कोई नौकरी मिली तो वह उन्हें कभी मजदूरी नहीं करने देगा, बल्कि उलटे उन के मजदूरी करने पर हमेशा उन्हें कोसता कि वह भूखा मर जाएगा, पर जिंदगी में कभी मजदूरी नहीं करेगा.
पढ़ालिखा होने के अहम में रघु ने कोई हुनर भी नहीं सीखा. शादी हो गई, बच्चे हो गए, फिर तो जिंदगी जीने के लिए कुछ न कुछ करना ही था. उसी अहम और मांबाप की नाराजगी की वजह से रघु की कोई नौकरी नहीं लगी और आखिर में जिंदगी गुजारने के लिए उसे भी मजदूरी करनी पड़ी.
‘‘देखो बेटा, बात ऐसी है कि जब जैसा तब तैसा, नहीं किया तो इनसान कैसा? अभी समय की यही मांग है कि मैं मजदूरी कर के अपने परिवार का पेट पालूं, तो वह मैं कर रहा हूं और तू अपने काम से काम रख,’’ रघु ने अभी भी अपने पढ़ेलिखे होने का सुबूत दार्शनिक बातों से दिया.
‘‘चचा, ननकू ने तो मैट्रिक कर ली है. अब उस को भी क्यों नहीं ले आते हो काम पर? सारा दिन घूमता रहता है.’’
‘‘अरे, उस को भी अहम ने घेर लिया है. कहता है कि परदेश जाएगा, हुनर सीखेगा. मेरी तरह मजदूरी नहीं करेगा. बिलकुल अपने बाप पर गया है,’’ गहरी सांस लेते हुए रघु ने कहा.
‘‘सही तो कहता है चचा, यहां मजदूरी करने में कोई इज्जत नहीं है. न काम का ठिकाना, न मजदूरी का. ऊपर से तुम ने इतना कर्जा ले लिया है कमेटी से ब्याज पर, हर हफ्ते किस्त देनी पड़ती है. उस को परदेश भेजो. वहां कुछ कमाएगा, तो आप का ही बोझ हलका होगा.’’
शाम को मिली मजदूरी ले कर रघु घर की ओर चला, तो ननकू रास्ते में ही दिख गया. बस, फिर क्या था. दिन में कील से चुभे सवालों की भड़ास गांव वालों के सामने ही ननकू पर निकाल दी.
नतीजतन, रात के 10 बज गए, पर ननकू घर नहीं आया. मां का दिल बैठा जाता था और धीरेधीरे रघु को भी घबराहट होने लगी. उस ने डर के मारे घर में बताया भी नहीं कि रास्ते में उस ने ननकू को डांटा था. रातभर मांबाप सोए नहीं.
चाहे जो भी हो जाए, देरसवेर ननकू घर जरूर आ जाया करता था, पर इस बार वह घर नहीं आया. सब परेशान. गांव के उस के दोस्तयारों से पता चला कि उस के कुछ दोस्त परदेश जाने वाले थे, रात में वह उन्हीं के साथ था.
मां का कलेजा धक से रह गया. पक्का वह चला गया अपने दोस्तों के साथ. रघु के अंदर मिलेजुले भाव उमड़घुमड़ रहे थे. थोड़ा डर था कि इतनी कम उम्र और गुस्से में परदेश चला गया. थोड़ी खुशी इसलिए थी कि कुछ कमाएगा तो घर के हालात थोड़े अच्छे होंगे.
ट्रेन के जनरल डब्बे में खिड़की की तरफ बैठा ननकू पौ फटने के साथ आ रही सूरज की रोशनी में नई उम्मीदें देख रहा था. अंदर से वह इतना खुश था मानो जैसे किसी जेल की कैद से रिहा हुआ हो. आज उस का अपना ही बापू दुनिया का सब से जालिम आदमी लग रहा था.
ट्रेन की तेज रफ्तार की तरह उस के सपने भी तेजी से बढ़े चले जा रहे थे. घर के हालात और बापू की किचकिच की वजह से वह हमेशा घर से भाग जाना चाहता था.
हिंदी फिल्मों की दुनिया में खोया रहने वाला ननकू हमेशा यही सोचता था कि घर से भागने के बाद वह तब तक घर वापस नहीं आएगा, जब तक कि बहुत बड़ा आदमी नहीं बन जाता.
बड़ा आदमी बनने के बाद अपनी बड़ी सी गाड़ी में शहर से गांव आएगा, अपने दरवाजे पर उतरेगा, जब बापू दौड़ कर उस के पास आएंगे तो वह उन्हें नजरअंदाज करते हुए मां के पास चला जाएगा. आज उसे ऐसा लग रहा था कि उस के सपने सच होने की ओर यह पहला कदम है.
इधर गांव में सुबहसुबह घर का माहौल एकदम गुमसुम था, कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था. सब खामोशी से खुद ही खुद को तसल्ली दे रहे थे. सब यही कह रहे थे कि जहां भी जाए अच्छे से रहे. 4 बहनों के बाद पैदा हुआ ननकू घर का सब से छोटा था. धीरेधीरे समय के थपेड़ों ने ननकू के भाग जाने का दुख थोड़ा कम कर दिया था.
साल बीतने को था, पर ननकू गांव नहीं लौटा. रघु का कर्ज दिनबदिन वैसे ही बढ़ता चला गया, जैसे ननकू का घर लौट आने या घर के लिए कुछ पैसे भेज देने का इंतजार. दोस्तों के फोन से ननकू घर पर सब से बातें करता, पर रघु से नहीं. इच्छा दोनों बापबेटे की होती थी एकदूसरे से बात करने की, पर ननकू डर से नहीं करता था और रघु अहम से.
सालभर तो ननकू को काम सीखने में ही लग गया. इधर घर की हालत सुधर नहीं पा रही थी. रघु को गांव में कभी काम मिलता, कभी नहीं मिलता था. कर्ज का मूल तो वैसे का वैसा ही रहा, सूद दिनबदिन बढ़ता चला गया.
आखिर में रघु ने भी फैसला किया कि वह भी परदेश चला जाएगा, कम से कम वहां रोज काम और समय पर मजदूरी तो मिल जाएगी. गांव के कुछ लोग कमाने के लिए किसी और परदेश जा रहे थे, रघु भी उन्हीं के साथ हो लिया.
वहां जाते ही रघु को अच्छी पगार वाला काम मिल गया और इधर ननकू भी कुछ पैसे भेजने लगा, जिस से जिंदगी थोड़ीथोड़ी पटरी पर आने लगी.
इधर ननकू को उस परदेश की आबोहवा कभी रास नहीं आई. जो सपने वह ट्रेन में संजो कर लाया था, वे ट्रेन में ही कहीं छूट गए थे. यहां कभी उस की मासूमियत छूटी तो कभी बचपना, कभी उस की नींद छूटी तो कभी उस की थकान और जो सब से ज्यादा छूटी, वह थी भूख. अब वह 2-2 वक्त भूखा रह सकता था.
तकनीक की इस दौड़ में जहां अमीर परिवार के बच्चे मोबाइल फोन और लैपटौप की वजह से समय से पहले बड़े हो रहे हैं, वहीं ननकू जैसा किशोर जिंदगी की भागदौड़ वाली भीड़ की वजह से समय से पहले बड़ा हो गया.
एक बात ननकू की समझ में अच्छे से आ गई थी कि रातोंरात अमीर आदमी सिर्फ 2-3 घंटे की फिल्मों में ही बना जा सकता है, असल जिंदगी में नहीं. गुस्से में वह अपने दोस्तों के साथ परदेश आ तो गया था, पर यहां हर कदम पर पैसे चाहिए थे. इसी चिंता में उस की सेहत दिनबदिन बिगड़ती चली जा रही थी.
इधर कुछ दिनों से ननकू के पेट में अजीब सा दर्द शुरू हो गया था. इस सब के बावजूद दिनरात मेहनत कर उस ने खुद के लिए एक मोबाइल फोन लिया और घर जाने को ले कर पैसे जोड़ने लगा, पर पेट का दर्द उसे बेचैन कर जाता था और फिर एक दिन बेतहाशा दर्द उठा.
सब दोस्तों ने मिल कर किसी तरह ननकू को सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया. आननफानन में सर्जरी हुई, पर ननकू को होश नहीं आया और 2 दिन बाद वह जिंदगी की जंग हार गया. डाक्टरों ने आननफानन में ननकू को डिस्चार्ज कर दिया मानो किसी अनहोनी को छिपाने की कोशिश की जा रही हो.
दोस्तों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें. कैसे गांव में खबर करें. ननकू का क्रियाकर्म यहीं कर दें या गांव ले जाएं और ले जाएं तो कैसे ले जाएं. फिर सोचविचार कर सब से पहले रघु को ननकू के ही मोबाइल से फोन किया.
ननकू का फोन आया देख रघु को समझ ही नहीं आया कि वह खुश हो या हमेशा की तरह गुस्सा करे. उस के हाथ थरथराने लगे, दिल तेज धड़कने लगा मानो जैसे रघु बेटा हो और ननकू उस का पिता हो. उस समय रघु ऐसा महसूस करने लगा कि फोन पर पिता के रूप में उसे ननकू से डांट पड़ने वाली है.
इतने में फोन कट गया. पिता होने के अहम में रघु सोच में पड़ गया कि वापस इधर से फोन लगाए या नहीं, तब तक दूसरी बार फोन बज उठा. बगैर एक पल गंवाए उस ने फोन उठा लिया और मिलेजुले भाव के साथ ‘हैलो’ कहा.
जब रघु को लगा कि दूसरी तरफ ननकू नहीं है, तो उस की घबराहट थोड़ी कम हो गई और फिर उस के अंदर जो भाव उभरे, उस बारे में उस ने सोचा ही नहीं था. पर जो खबर उस ने फोन पर सुनी, उस की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
पत्थर तो रघु पहले से था, पर ऐसा लगा कि उस पत्थर को बर्फ की वादियों में कोई अकेला छोड़ आया हो. उस की आंखों से आंसू नहीं निकले मानो आंसू अपना रास्ता भूल कर आंख के बदले खून की नसों में चले गए हों और वहां पर खून के साथ लड़ाई कर पूरे शरीर में एक भूचाल सा ला दिया हो, जो उस के बदन में थरथराहट पैदा कर रहा था.
‘‘उसे ले कर गांव आ जाओ. पैसे मैं भेज देता हूं,’’ इतना कह कर रघु ने फोन काट दिया.
गांव में ऐसा माहौल था मानो जैसे कोई जलजला आ गया हो. ननकू के दुनिया से चले जाने की खबर आसपास के गांवों में आग की तरह फैल गई. सारे नातेरिश्तेदार भी घर पर जमा होने लगे, पर अभागा रघु कैसे आए, सौ लोग सौ मशवरे जारी थे.
इधर रघु जल बिन मछली जैसे छटपटा रहा था मानो कोई जादू की छड़ी मिल जाए, जिस के सहारे वह झट से अपने लाल के पास पहुंच जाए. उस की पिछले 6 महीने की कमाई एंबुलैंस के किराए में चंद मिनटों में पहले ही खत्म हो चुकी थी. अमीर लोगों के लिए तो सब मुमकिन है, पर गरीब के जिंदगीरूपी शब्दकोश में कुछ शब्द नहीं होते हैं, ‘मुमकिन’ शब्द उसी में से एक है.
मीलों दूर इस परदेश से अपने गांव समय पर पहुंचना रघु के लिए कहां मुमकिन था. ऐसे में उस के साथ काम करने वाले लोगों ने उस की मदद की और उसे हवाईजहाज से गांव भेजने का इंतजाम कर दिया. उसी हवाईजहाज में सफर कर रहे एक सहयात्री को ढूंढ़ उस से मदद के लिए बोल कर रघु को हवाईअड्डे के अंदर भेज दिया गया.
जिंदगी में पहली बार रघु का पढ़ालिखा होना उस के काम आया. हवाईजहाज के 2 घंटे के सफर में आसमान की ऊंचाइयों के बीच रघु को अपनी जिंदगी की सारी गलतियां घड़ी की सूई की तरह घूमती दिखाई देने लगीं. ननकू के इन हालात के लिए वह खुद को जिम्मेदार मानने लगा.
विद्यार्थी जीवन के कुछ भूलेबिसरे सपने भी याद आने लगे, जिन में से हवाईजहाज पर चढ़ना भी एक था…
हवाईजहाज की तेज आवाज के बीच रघु खुशी और गम में फर्क नहीं कर पा रहा था. ऐसा लग रहा था कि सारे फर्क मिट गए हों. लोग अपनी चाहत को पाने के लिए क्या कुछ नहीं करते, लेकिन कभी सब दांव पर लगा कर भी कुछ मिले तो लगता है कि हम ने जिंदगी से यह तो नहीं मांगा था. रघु ननकू का शव आने से पहले ही गांव पहुंच गया था.
ननकू का बड़ी गाड़ी से गांव आना और रघु का हवाईजहाज पर चढ़ना… दोनों के सपने पूरे हो गए, पर इस कीमत पर पूरे होंगे, ऐसा उस ने कभी नहीं सोचा था. अधूरे सपने तो अधूरे रह ही गए. जवान बेटे की लाश देखने की हिम्मत रघु के अंदर नहीं थी.
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इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरा कहर ढाया है. इस से पूर्व भी एक बार यह कंपनी अस्तव्यस्त हो चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कर्मचारी स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ रहे हैं. उस की बोटीबोटी नोचते आ रहे हैं और यह सब महज शादी का लालच दे कर होता रहा है और अब वे शादी से मुकर रहे हैं. उस का इतना भर कहना था कि सबकुछ सुलग उठा था, धूधू करके.
ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, योग्य नहीं. उस ने बीटैक और एमटैक की डिगरियां ले रखी थीं. वह अपने कार्य में पूर्ण दक्ष थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक भी थी. उस ने अपने आकर्षक व्यक्तित्व और भरसक प्रयासों से कंपनी को देश ही में नहीं, बल्कि विदेशों में भी उपलब्धियां अर्जित कराई थीं.
इस प्रकार वह स्वयं भी प्रगति करती गईर् थी. एक के बाद एक प्रमोशन पाती गई थी और उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. हरदम चहचहाती रहती थी. चेहरे पर रौनक छाई रहती. उस के व्यक्तित्व के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे. परंतु अचानक वह बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी अचीव नहीं होते थे.
इसी डिप्रैशन में उस ने यह कदम उठाया था. वह कभी यह कदम न उठाती, लेकिन एक स्त्री सबकुछ बरदाश्त कर सकती है पर अपने प्यार को साझा करना हरगिज नहीं.
जी हां, उस की कंपनी में वैसे तो तमाम सुंदर बालाएं थीं, परंतु हाल ही में एक नई भरती हुई थी. यह उच्च शिक्षित एवं प्रशिक्षित नवयुवती निहायत सुंदर व आकर्षक थी. उस ने सौंदर्य और आकर्षण में स्नेहा को पीछे छोड़ दिया था.
इसी सौंदर्य और आकर्षण के कारण वह अपने बौस की प्रिय हो गईर् थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून झुलस रहा था.
आखिरकार उस ने आपत्ति की, ‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’
‘क्या ठीक नहीं है?’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.
‘आप अपने वादेइरादे भूल बैठे हैं.’
‘कौन से वादेइरादे?’
‘मु झ से शादी के?’
‘नौनसैंस, पागल हो गई हो तुम. मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’
‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस बिच के साथ रंगरेलियां मनाते रहते हैं…’
बौस ने हिम्मत से काम लिया. अपना तेवर बदला, ‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मोहब्बत करता हूं जितनी कि कल करता था. इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान मत दो. तुम कहां से कहां पहुंच गई हो. इतना अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’
‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’
‘यही तो कह रहा हूं मैं. स्नेहा, तुम समझने की कोशिश तो करो. मैं किस से मिल रहा हूं, क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो. जो कुछ भी मैं करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं. तुम्हारे मानसम्मान और प्रगति में कोई बाधा आए तो मु झ से शिकायत करो. खुद लाइफ को एंजौय करो और दूसरों को भी करने दो.’
परंतु स्नेहा नहीं मानी, उस ने स्पष्ट रूप से बौस से कह दिया, ‘मुझे कुछ नहीं पता. मैं बस यह चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’
‘स्नेहा, मुझे अफसोस हो रहा है तुम्हारी सम झ पर. तुम एक मौडर्न लेडी हो, अपने पैरों पर खड़ी हुई. यू शुड नौट पे योर अटैंशन टू दिस रबिश.’
‘तीन बार आप मुझे हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं. पर मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है. आप वर्षा को इतनी इंपोर्टैंस न दें. नहीं तो…’
‘नहीं तो क्या?’
‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि तुम पिछले कई वर्षों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’
बौस अपना धैर्य खो बैठे, ‘जाओ, जो करना चाहती हो करो. चीखो, चिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’
और स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह समाचारपत्रों के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टीवी चैनल्स मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.
यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी मध्य कुछ ऐसा घटित हुआ कि सभी सकते में आ गए. हुआ यह कि वर्षा का मर्डर हो गया. वर्षा का मर्डर क्यों हुआ? किस ने कराया? यह रहस्य, रहस्य ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा प्र्रैग्नैंट थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के मालिक का था.
इस सारे प्रकरण से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. स्नेहा के बौस का निलंबन तो पहले ही हो चुका था.
आखिरकार कंपनी ने राहत की सांस ली. उस ने एक नोटिफिकेशन जारी किया कि कंपनी में कार्यरत सारी लेडी कर्मचारी शालीन हो कर कंपनी में आया करें. जींसटौप जैसे अतिआधुनिक परिधान धारण कर के कदापि न आएं. बांहेंकटे जंपर, फ्रौक, ब्लाउज और पारदर्शी आस्तीनों वाले गारमैंट्स से परहेज करें. भड़काऊ मेकअप से बचें.
कंपनी के फरमान में जैंट्स कर्मचारियों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न गारमैंट्स से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट की मनाही की गई.
इन निर्देशों का पालन भी हुआ. लेडी कर्मचारी बड़ी शालीनता एवं शिष्टता से आनेजाने लगीं. जैंट्स भी सलीके से रहने लगे. सभी बड़ी तन्यमता से अपनेअपने काम को अंजाम देने लगे. परंतु फिर भी कर्मचारियों के मध्य पनप रहे प्रेमप्रंसगों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.
एक बार फिर एक अद्भुत निर्णय लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से एकदो कर के जबतब लेडीज कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को अन्यत्र शिफ्ट किया जाने लगा. कुछेक महिलाएं परिस्थितियां भांप कर स्वयं इधरउधर खिसकने लगीं.
दूसरी जानिब लड़कियों के स्थान पर कंपनी में लड़कों की नियुक्ति की जाने लगी. इस का एक सुखद परिणाम यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की नियुक्ति हो गई. इस कंपनी की देखादेखी यही कदम अन्य मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की संख्या कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.
पहले आप इस कंपनी की किसी शाखा में जाते तो रिसैप्शन पर आप को मुसकराती, लुभाती, आप का स्वागत करती हुई युवतियां ही मिलतीं. उन के वुमन परफ्यूम और मेकअप से आप के रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती. आप नजर दौड़ाते तो आप को चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछेक इधरउधर आतेजाते, कुछ डीलिंग करते हुए.
परंतु अब मामला उलट था. अब आप का रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर आप दंग रह जाते. कुछ हृष्टपुष्ट, कुछ सींकसलाई से. कुछेक के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछेक के बहुत ही छोटेछोटे बेतरतीब खड़े हुए.
वे सब आप से बड़े प्यार से बात करते. कंपनी के प्रोडक्ट्स पर खुल कर बोलते. उन की विशेषताएं गिनाते और आप मजबूर हो जाते उन के प्रोडक्ट्स को खरीदने पर.
इन नौजवानों की अथक मेहनत और कौशल से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह 10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाई जहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर से कंपनी में जान डाल दी थी. अब कंपनी का कारोबार आसमान छूने लगा था.
इसी मध्य एक बार फिर कंपनी को आघात लगा. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे विगत 2 वर्षों से उस का यौनशोषण करते आ रहे हैं.
उस कर्मचारी के बौस भी खुल कर सामने आ गए. कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के मध्य ऐसा होता रहा है. परंतु यह सब हमारी परस्पर सहमति से होता रहा है.’’
उन्होंने उस कर्मचारी को बुला कर सम झाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’
‘‘नादानी, नादानी तो आप कर रहे हैं.’’
‘‘मैं?’’
‘‘हां, और कौन? आप अपने वादेइरादे भूल रहे हैं.’’
‘‘कैसे वादेइरादे?’’
‘‘मेरे साथ जीनेमरने के. मु झ से शादी करने के.’’
‘‘नौनसैंस, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.’’
‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया, जो आप मु झ से नहीं, एक छोकरी से शादी करने जा रहे हैं.’’
शामका समय था. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. दिव्या अपने बगीचे में बैठी थी. चाय की चुसकियों के साथ दिव्या एक उपन्यास पढ़ रही थी. तभी उस के फोन पर सोशल साइट पर फ्रैंड रिक्वेस्ट का नोटिफिकेशन आया. दिव्या ने उपन्यास एक तरफ रखा और मोबाइल देखने लगी.
रोहित नाम के किसी व्यक्ति की रिक्वैस्ट थी. दिव्या ने रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. जैसे ही उस ने रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर के मोबाइल रखा. तभी उस व्यक्ति यानी रोहित का मैसेज आया, ‘‘हाय.’’
दिव्या ने मैसेज देखा और फिर अपना उपन्यास उठा लिया. उस ने उपन्यास पढ़ना शुरू किया. दोबारा फिर रोहित का मैसेज आया. दिव्या ने अब मैसेज नहीं देखा.
वह उपन्यास पढ़ने में तल्लीन हो गई. तब तक फिर मैसेज का नोटिफिकेशन आया तो उस ने मोबाइल उठा लिया. दिव्या ने देखा रोहित के ही 3 मैसेज थे. पहला मैसेज था, ‘‘मैडम रिप्लाई तो कर दो.’’
उस के बाद फिर उस का मैसेज था, ‘‘मैं अपने मैसेज के रिप्लाई का इंतजार कर रहा हूं.’’
अब दिव्या ने रिप्लाई किया, ‘‘हाय.’’
‘‘मैं चंडीगढ़ से रोहित हूं. मैं एक बिजनैस मैन हूं,’’ रोहित ने मैसेज किया.
‘‘ओके नाइस,’’ दिव्या ने बेमन से उस का जवाब दिया.
‘‘दिव्याजी, क्या आप मेरी फ्रैंड बनेंगी,’’ रोहित ने पूछा.
दिव्या ने कोई रिप्लाई नहीं किया और मोबाइल का नैट औफ कर के उपन्यास पढ़ने लगी. दिव्या एक शादीशुदा महिला थी. वह एक स्कूल में शिक्षिका थी. उस के पति पुणे में एक कंपनी में मैनेजर थे. दिव्या चंडीगढ़ में अकेली रहती थी.
रात को जैसे ही दिव्या ने अपने मोबाइल का नैट औन किया तो उस ने देखा कि रोहित के बहुत सारे मैसेज थे. दिव्या के औनलाइन होते ही उस के मैसेज फिर आने शुरू हो गए.
‘कैसा पागल है यह, इसे कोई काम नहीं है क्या?’ दिव्या सोचने लगी.
‘‘आप को कोई काम नहीं है क्या?’’ दिव्या ने रिप्लाई किया.
‘‘जी काम तो बहुत हैं पर आप के मैसेज के इंतजार में सारे काम रह गए,’’ रोहित ने लिखा.
‘‘कहिए क्या कहना है आप को?’’ दिव्या ने मैसेज किया.
‘‘क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी?’’ रोहित ने पूछा.
‘‘बन तो गई हूं तभी तो आप बात कर रहे हैं,’’ दिव्या ने लिखा.
‘‘ऐसे नहीं, आप वादा करो कि आप रोज मु झ से बात किया करेंगी,’’ रोहित ने मैसेज किया.
‘‘ठीक है,’’ दिव्या ने मैसेज किया.
‘‘धन्यवादजी,’’ रोहित ने मैसेज किया.
फिर उस ने दिव्या को एक चुटकुला भेजा. दिव्या चुटकुला पढ़ कर हंसने लगी और उस ने हंसी की इमोजी भेजी. अब रोहित ने उस को और 2-3 चुटकुले भेजे.
उस के चुटकुले पढ़ कर दिव्या को हंसी आ रही थी. अब दिव्या भी रोहित को चुटकुले भेजने लगी. इस तरह उन दोनों के बीच बातों का सिलसिला बन गया. दिव्या को अब रोहित से बात करना अच्छा लगने लगा था. उन दोनों ने एकदूसरे से अपने मोबाइल नंबर भी शेयर कर लिए थे.
जब भी दिव्या को फुरसत मिलती वह रोहित से बात करती रहती. बातों का यह सिलसिला इतना बढ़ा कि दोनों मिलने भी लगे. अब बात सिर्फ दोस्ती तक नहीं थी. दोस्ती से बहुत आगे बढ़ चुकी थी. रोहित दिव्या के घर आनेजाने लगा था और जो उन दोनों के बीच एक सीमा रेखा थी वह भी टूट चुकी थी. रोहित को दिव्या के बारे में सब पता था.
कुछ दिन बाद दिव्या का पति विदेश से आने वाला था. लेकिन रोहित हर दिन उस से मिलने आता था.
एक दिन दिव्या आदित्य से फोन पर बात कर रही थी. उस को एहसास हुआ कि वह
आदित्य से कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है. उसे स्वयं से घृणा होने लगी. उस ने सोचा कि अब वह रोहित से मिलना बंद कर देगी.
अगले दिन उस ने रोहित को घर पर आने से यह कह कर मना कर दिया कि कुछ दिनों के लिए उस की रिश्तेदार रहने आ रही है. उस ने रोहित से बात करना भी कम कर दिया. रोहित उसे कौल करता तो वह नहीं उठाती. उस के मैसेज का भी रिप्लाई नहीं करती.
एक दिन अचानक रोहित ने उसे एक वीडियो भेजा. दिव्या वीडियो देख कर अवाक रह गई. रोहित ने उस का और अपना वीडियो उसे भेजा था.
‘‘तुम ने यह वीडियो कब बनाया और क्यों बनाया,’’ दिव्या ने तुरंत उसे कौल कर पूछा.
‘‘क्यों तुम्हें पसंद नहीं आया? देखो हम दोनों कितने अच्छे लग रहे हैं,’’ रोहित बोला, ‘‘और हां वह तुम्हारी रिश्तेदार कहां हैं? उन को भी दिखाओ न यह वीडियो,’’ रोहित हंसते हुए बोला.
‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ दिव्या बोली.
‘‘मैं बस तुम्हें चाहता हूं. तुम रोज मु झ से मिलो और मेरे कुछ दोस्त भी तुम से मिलना चाहते हैं,’’ रोहित हंसते हुए बोला.
‘‘रोज तो मिलती हूं अभी 3 दिन से ही तो नहीं मिली हूं,’’ दिव्या ने गुस्से में कहा.
‘‘मैं एक दिन भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाता. मु झे तुम्हारी आदत हो गई है,’’ रोहित बोला.
‘‘हां तो किसी पब्लिक प्लेस में मिल लूंगी. पर यह वीडियो डिलीट करो,’’ दिव्या गुस्से में बोली.
‘‘कितने वीडियो डिलीट करूं बेबी? बहुत सारे हैं मेरे दोस्तों ने भी देखे हैं.’’
‘‘तुम्हे शर्म नहीं आई अपना और मेरा वीडियो अपने दोस्तों को दिखाते हुए?’’ दिव्या गुस्से में बोली.
‘‘शर्म आती तो वीडियो क्यों बनाता? छोड़ो ये सब. कल तुम मु झ से मिलने आओ,’’ रोहित एक कड़वी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘एक कौफी शौप में मिलते हैं.’’
दिव्या को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उस ने यह सोच कर मिलने को कह दिया कि एक बार वह रोहित से मिल कर उस के मोबाइल से अपनी सारे वीडियो डिलिट कर देगी.
‘‘नहीं कौफी शौप में नहीं मैं तुम्हारे घर आऊंगा,’’ रोहित बोला.
‘‘नहीं मैं अब घर नहीं मिल सकती,’’ दिव्या ने कहा.
‘‘तो किसी होटल में मिलते हैं. मैं शाम को तुम्हें लेने आ जाऊंगा,’’ रोहित बोला.
‘‘क्यों होटल में क्यों?’’ दिव्या बोली.
‘‘तुम्हें पता नहीं है क्या कि मैं होटल में क्यों बुला रहा हूं?’’ रोहित बोला.
‘‘नहीं, मैं होटल में नहीं आ सकती,’’ दिव्या ने कहा.
‘‘आना तो पड़ेगा मेरी जान नहीं तो तुम्हारे ये वीडियो नैट पर अपलोड हो सकते हैं,’’ रोहित बोला.
‘‘तुम इतने गिरे हुए हो. यदि मु झे यह पता होता तो तुम से बात भी नहीं करती,’’ दिव्या गुस्से में चिल्ला कर बोली.
‘‘नहीं जान, मैं बिलकुल गिरा हुआ नहीं हूं. वह तो मेरे दोस्त ऐसा बोल रहे हैं. अगर तुम कल नहीं आई तो मेरे दोस्त ये वीडियो नैट पर अपलोड कर देंगे,’’ रोहित ठहाका लगाते हुए बोला.
दिव्या ने फोन काट दिया. अब वह सोचने लगी कि वाकई उस से बहुत बड़ी गलती हो गई. वह थरथर कांप रही रही थी कि रोहित के पास उस के वीडियो हैं.
अगर वह रोहित से नहीं मिलेगी तो वह वीडियो नैट पर अपलोड कर देगा. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वह फूटफूट कर रोने लगी.
उस ने अपनी एक दोस्त अर्पिता को फोन किया और उसे सारी बात बताई. अर्पिता ने उसे सम झाया कि तू सुबह ही मेरे घर आ जा, फिर कुछ सोचते हैं. दिव्या ने रात में ही अपने कपड़े और जरूरी सामान पैक किया और सुबह अपनी दोस्त अर्पिता के घर पहुंच गई.
उस ने अर्पिता के घर की डोरबैल बजाई. जैसे ही अर्पिता ने डोर खोला, दिव्या उस से गले लग कर रोने लगी. अर्पिता ने उसे चुप कराया. दिव्या को रोते देख अर्पिता के पति शिवम ने अर्पिता से इशारे में पूछा कि दिव्या क्यों रो रही है? शिवम को दिव्या के बारे में कुछ पता न था.
यह 2 सहेलियों की आपस की बात थी. अर्पिता ने शिवम को कुछ नहीं बताया था. अर्पिता दिव्या को अपने कमरे में ले गई और दोनों बातें करने लगीं.
‘‘दिव्या, तू फोन पर बहुत घबराई हुई थी इसलिए मैं ने यहां बुला लिया. मु झे डर था कि कहीं तू कोई गलत कदम न उठा ले,’’ अर्पिता बोलीप्त
‘‘हां मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा था. मैं सोच रही थी कि मैं कुछ खा कर मर जाऊं,’’ दिव्या रोते हुए बोली.
‘‘ऐसी कायरों वाली बातें मत कर. मरना तु झे नहीं उसे चाहिए और तू ऐसे किसी भी अनजान आदमी से बात मत किया कर, अब फंस गई न,’’ अर्पिता दिव्या को डांटते हुए बोली.
‘‘बस इस बार मु झे इस मुसीबत से निकाल ले. फिर कभी किसी से बात नहीं करूंगी,’’ दिव्या अपने आंसू पोंछते हुए बोली.
‘‘लेकिन तेरे यहां आने से मुसीबत टली नहीं है वह तेरा वीडियो कभी भी अपलोड कर सकता है,’’ अर्पिता ने कहा.
‘‘फिर क्या करूं मैं?’’ दिव्या डरते हुए बोली.
‘‘हमें पुलिस में शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी,’’ अर्पिता ने कहा.
‘‘पुलिस? नहींनहीं पुलिस से बात सब जगह फैल जाएगी,’’ दिव्या बोली.
‘‘वह तो वीडियो अपलोड होने के बाद वैसे भी तू कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेगी. इस से तो पुलिस में शिकायत करवा दे तो वह पकड़ा जाएगा और किसी को नहीं फंसा पाएगा,’’ अर्पिता ने दिव्या को सम झाया.
‘‘ठीक है पर शिवम को तूने बता दिया क्या?’’ दिव्या ने पूछा.
‘‘नहीं अभी मैं ने कुछ नहीं बताया. लेकिन बताना पडे़गा,’’ अर्पिता ने कहा.
‘‘तू नहा के आ जल्दी. खाना तैयार है. खाना खा कर फिर बात करते है,’’ अर्पिता ने दिव्या से कहा.
दिव्या नहाने चली गई. अर्पिता ने शिवम को दिव्या के बारे में सब बताया. तब तक दिव्या नहा के आ गई थी. सब ने खाना खाया और फिर तीनों पुलिस स्टेशन चल दिए. पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. इधर दिव्या के फोन पर रोहित के फोन बारबार आ रहे थे.
इंस्पैक्टर के कहने पर दिव्या ने रोहित से बात की. पुलिस ने उस का नंबर ट्रैक कर लिया. जल्द ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. रोहित के लैपटौप में पुलिस को लड़कियों के कई वीडियो मिले. पुलिस ने दिव्या का वीडियो डिलीट कर दिया. दिव्या वापस अपने घर आ गई.
दिव्या अब किसी भी अनजान की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट नहीं करती. कुछ दिनों बाद उस का पति आदित्य घर आ गया.
‘‘आदित्य, अब मैं अकेली नहीं रह सकती,’’ दिव्या ने कहा.
‘‘अब मैं तुम्हें अकेले रहने भी नहीं दूंगा,’’ आदित्य बोला.
‘‘क्यों? क्या मु झे अब अपने साथ ले जाओगे?’’ दिव्या ने खुश होते हुए कहा.
‘‘नहीं. अब मैं यहीं तुम्हारे साथ रहूंगा. अब जब भी कभी जाऊंगा तो तुम्हें साथ ले जाऊंगा,’’ आदित्य ने कहा.
‘‘अच्छा आज अचानक इतना प्यार कैसे आ गया?’’ दिव्या आदित्य को छेड़ते हुए बोली.
‘‘हां अब बहुत दिन हो गए अकेले रहते रहते. अगर ऐसे ही अलगअलग रहे तो हमारे बीच तीसरा कैसे आएगा,’’ आदित्य ने दिव्या को बांहों में भरते हुए कहा.
‘‘मतलब?’’ दिव्या आश्चर्य से बोली.
‘‘अरे मैं हम दोनों के बेबी की बात कर रहा हूं,’’ आदित्य ने बोला और लाइट बंद कर दी. दिव्या आदित्य के साथ थी, लेकिन उस के दिमाग में उथलपुथल हो रही थी. वह रोहित के बारे में आदित्य को सबकुछ बता देना चाहती थी. लेकिन उसे डर था कि कहीं आदित्य और उस के रिश्ते में दरार न पड़ जाए.
अगले दिन सुबहसुबह ही दिव्या आदित्य से बोली, ‘‘आदित्य मु झे तुम से
कोई जरूरी बात करनी है.’’
‘‘क्या बात करनी है बोलो,’’ आदित्य ने कहा.
‘‘आदित्य…’’ दिव्या कहतेकहते रुक गई.
‘‘बोलो न क्या कहना है,’’ आदित्य बोला.
‘‘मु झ से एक गलती हो गई,’’ दिव्या ने कहा और रोहित वाली सारी बात उसे बता दी.
पूरी बात सुनते ही आदित्य गुस्से में चिल्लाया, ‘‘तुम सम झती क्या हो अपनेआप को? तुम कुछ भी करोगी मैं सब सह कर लूंगा. अब जाओ उसी रोहित के पास. मेरी जिंदगी में अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं.’’
‘‘आदित्य मु झ से गलती हो गई. प्लीज मु झे माफ कर दो,’’ दिव्या रोतेरोते बोली.
‘‘यह गलती माफी के लायक नहीं है दिव्या,’’ कह कर आदित्य कमरे से बाहर चला गया.
‘‘आदित्यआदित्य प्लीज,’’ दिव्या आवाज देती रही, लेकिन आदित्य ने नहीं सुना और वह बाहर चला गया. दिव्य रोती रही.
देर रात आदित्य घर आया. दिव्या खाना ले कर उस के पास आई. उस को देखते ही आदित्य ने अपना मुंह मोड़ लिया.
‘‘आदित्य खाना खा लो,’’ दिव्या बोली.
‘‘मु झे नहीं खाना कुछ भी और तुम मु झ
से बात करने की कोशिश भी मत करो,’’
आदित्य बोला.
‘‘आदित्य मु झ से बहुत बड़ी गलती हो गई. एक बार मु झे माफ कर दो प्लीज,’’ दिव्या ने रोते हुए कहा.
‘‘नहीं, अब मु झे तुम से कोई मतलब नहीं रखना है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,’’ रोहित गुस्से
में बोला.
‘‘मैं जानती हूं कि मु झ से बहुत बड़ी गलती हुई है, लेकिन तुम्हें तलाक देने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मैं खुद ही तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी,’’ दिव्या रोतेरोते दूसरे रूम में चली गई. उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. वह सोचने लगी कि अब उस के जीवन का कोई मतलब ही नहीं है. उसे अपना जीवन खत्म कर लेना चाहिए.
इधर कमरे में बैठ कर आदित्य सोच रहा था कि इतनी बड़ी बात हो गई. दिव्या चाहती तो उसे कुछ नहीं बताती. लेकिन उस ने उसे सबकुछ बता दिया. अगर ऐसी गलती आदित्य से हो जाती तो क्या दिव्या उसे छोड़ देती. वह उठा और दिव्या के कमरे की तरफ बढ़ा. उस ने आवाज दी, ‘‘दिव्यादिव्या दरवाजा खोलो.’’
दिव्या कुछ न बोली. आदित्य के बारबार आवाज देने पर भी जब दिव्या की आवाज नहीं आई तो आदित्य ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो हैरान रह गया. दिव्या एक साड़ी को पंखे पर डालने की कोशिश कर रही थी.
‘‘दिव्या, दरवाजा खोल, अगर तुम ने ऐसा कुछ किया तो मैं भी मर जाऊंगा,’’ आदित्य बोला.
‘‘दिव्या फिर भी कुछ नहीं बोली और पंखे पर साड़ी डालने की कोशिश करने में लगी रही. उस की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे.
‘‘दिव्या रुको…’’ आदित्य जल्दी से कमरे से दूसरी चाबी ले कर आया. वह कमरा खोल कर अंदर गया और दिव्या को अपने गले से लगा लिया.
‘‘तुम क्या करने जा रही थी. मैं ने गुस्से में तुम्हें तलाक देने को कह दिया था.
लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता,’’ आदित्य भी रोते हुए बोला.
‘‘आदित्य मु झे माफ कर दो,’’ दिव्या रोतेरोते बस यही कहे जा रही थी.
‘‘चुप वह सब भूल जाओ कि तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हुआ था. तुम मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी,’’ कहतेकहते आदित्य भी रो पड़ा.
आदित्य और दिव्या सबकुछ भूल कर अब एक नई जिंदगी की तरफ बढ़ गए थे. एक गलती ने एक हंसताखेलता परिवार तबाही के रास्ते पर ला दिया था. हमें किसी भी अनजान व्यक्ति से बात करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए. जहां तक हो सके अनजान लोगों से बात करने से भी बचना चाहिए.
‘‘आज से हमारा पतिपत्नी का रिश्ता खत्म हो गया.’’
‘‘क्यों? उस में मेरा क्या कुसूर था?’’
‘‘कुसूर नहीं था, पर तुम्हारे दामन पर कलंक तो लग ही गया है.’’
‘‘तुम मेरे पति थे. तुम्हारे सामने ही मेरी इज्जत लुटती रही और तुम चुपचाप देखते रहे.’’
‘‘उस समय तुम्हारे पिता भी तो थे.’’
‘‘उन्होंने तो मु झे तुम्हें सौंप दिया था.’’
‘‘मैं अकेला क्या कर सकता था? वे लोग गिरोह में थे और सब के पास हथियार थे.’’
‘‘तो तुम मर तो सकते थे.’’
‘‘मेरे मरने से क्या होता?’’
‘‘तुम अमर हो जाते.’’
‘‘नहीं, यह खुदकुशी कहलाती.’’
‘‘अब मेरा क्या होगा?’’
‘‘मुझे 10 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. हर महीने 5 हजार रुपए तुम्हें दे दिया करूंगा. इस के लिए तुम्हें कोई कानूनी लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी. तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’
‘‘क्या तुम करोगे दूसरी शादी?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो फिर तुम मु झे दूसरी शादी करने की क्यों सलाह दे रहे हो?’’
‘‘यह मेरा अपना विचार है.’’
‘‘मैं जाऊंगी कहां?’’
‘‘तुम अपने पिता के साथ मायके चली जाओ.’’
‘‘और तुम?’’
‘‘मैं अकेला रह लूंगा.’’
‘‘क्या, मेरा कलंक अब कभी नहीं मिटेगा?’’
‘‘मिटेगा, जरूर मिटेगा. लेकिन कैसे और कब, नहीं बता सकता.’’
‘‘फिर क्या तुम मु झे अपना लोगे?’’
‘‘यह मेरे जिंदा रहने पर निर्भर करता है. अब तुम मायके जाने की तैयारी करो. बाबूजी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’
तारा अपने पिता के साथ मायके चली गई.
उस के पति विक्रम ने उस के जाने के बाद अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. वह गहरी सोच में पड़ गया.
घर की हर चीज तारा की यादों को ताजा करने लगी थी. तारा की जब इज्जत लूटी जा रही थी, तब विक्रम हथियारों के घेरे में बिलकुल कमजोर खड़ा था.
वह नजर उस के दिलोदिमाग को बो िझल बना रही थी. उसे अपने ठंडे खून पर गुस्सा आ रहा था.
तारा ने ठीक ही कहा था, ‘कम से कम मर तो सकते थे.’
क्यों नहीं मरा? वह मौत से क्यों डर गया था?
बहुत से लोगों को उस ने मरते देखा था, फिर भी मौत के डर से छूट नहीं सका. बलात्कारी परशुराम का अट्टहास करता चेहरा बारबार उस की आंखों के सामने घूम रहा था.
डर की एक तेज लहर विक्रम के भीतर से उठी. वह कांप उठा था. सारा शरीर पसीने से गीला हो गया. उसे ऐसा लगने लगा था कि परशुराम का खौफनाक चेहरा उसे जीने नहीं देगा.
बहुत कोशिशों के बावजूद भी विक्रम की आंखों के सामने से उस का चेहरा हट नहीं रहा था. वह चेहरा जैसे हर जगह उस का पीछा करने लगा था, बलात्कार का वह घिनौना नजारा भी उस के साथ ही उभरने लगा था.
तारा का डर और शर्म से भरा चेहरा भी परशुराम के खौफनाक चेहरे के साथ उभरता रहा. उसे याद आया कि किस तरह तारा मदद के लिए बारबार उस की तरफ देखती और वह हर बार उस से अपनी आंखें चुरा लेता था. परशुराम और उस के साथियों की हंसी अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.
तकरीबन एक घंटे बाद बदमाश जा चुके थे. इस के बाद 1-1 कर के धीरेधीरे भीड़ जमा होने लगी थी. सब लोग डरेसहमे बेजान से लग रहे थे. विक्रम पहले की तरह खड़ा रहा, मानो उस के पैर जमीन से चिपक गए हों.
अचानक बाहर शोर सुनाई दिया, तो विक्रम धीरे से उठा. उस ने देखा कि बलात्कारी परशुराम अपने साथियों के साथ फूलमालाओं से लदा मस्ती में जा रहा है.
विक्रम चुपचाप उस भीड़ में शामिल हो गया. कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया. उन के चेहरों पर कुटिल हंसी दिखाई दे रही थी.
भीड़ में से एक आदमी बोला, ‘‘इसी की बीवी के साथ बलात्कार हुआ था, इस की आंखों के सामने. और इस के ससुर भी वहीं थे. इस ने अपनी बीवी से संबंध तोड़ लिया है. अब मौज से दूसरी शादी करेगा. इस की बीवी जिंदगीभर अपना कलंक ढोती रहेगी.’’
‘‘पैसे में बड़ी ताकत होती है. पैसे के बल पर ही तो परशुराम को जमानत मिली है.’’
‘‘तारा से ऐसेऐसे सवाल पूछे जाएंगे, जो दूसरे बलात्कार जैसे ही होंगे. एक बार परशुराम ने तारा के पति और पिता के सामने उस के साथ बलात्कार किया, दूसरी बार बचाव पक्ष के वकील भरी अदालत में जज की मौजूदगी में तारा से उलटेसीधे सवाल पूछेंगे, जिस से उसे दूसरे बलात्कार का एहसास होगा.’’
‘‘गवाही देने की भी हिम्मत कौन करेगा? समाज ही तो पालता है परशुराम जैसे लोगों को.’’
जितने मुंह उतनी बातें.
धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी थी. परशुराम के घर पहुंचतेपहुंचते थोड़े ही लोग रह गए थे. विक्रम अभी भी सिर झुकाए उसी भीड़ में चल रहा था. परशुराम को उस के घर पहुंचा कर भीड़ वापस चली गई थी. विक्रम वहीं डरासहमा खड़ा रहा.
परशुराम जैसे ही अंदर जाने लगा, विक्रम ने धीरे से कहा, ‘‘कुछ मेरी भी सुन लो परशुराम दादा.’’
आवाज सुन कर परशुराम पीछे मुड़ा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’
‘‘यहां नहीं दादा, उस बाग में चलो,’’ विक्रम बोला.
परशुराम ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘वहां क्यों?’’
‘‘दादा, बात ही कुछ ऐसी है.’’
‘‘अच्छा चलो,’’ घमंड से भरा परशुराम विक्रम के साथ बाग तक गया. उस ने सोचा कि यह डरासहमा आदमी उस का क्या कर लेगा.
उस ने अंदर की जेब में रखे अपने कट्टे को टटोला. वहां पहुंच कर उस ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ?’’
‘‘दादा, मैं ने अपनी बीवी को छोड़ दिया है.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘वह दागी हो गई थी न दादा.’’
परशुराम के होंठों पर मुसकान उभर आई. वह बोला, ‘‘मु झे तुम से हमदर्दी
है विक्रम, पर क्या करता तुम्हारी बीवी चीज ही ऐसी थी.’’
उस का इतना ही कहना था कि विक्रम गुस्से से तमतमा गया, मानो उस के जिस्म में कई हाथियों की ताकत आ गई हो. उस ने परशुराम को अपने हाथों में उठा लिया और उसे जमीन पर तब तक उठाउठा कर पटकता रहा, जब तक कि वह मर नहीं गया.
आसपास के सभी लोग यह नजारा देखते रहे, मगर कोई भी उसे बचाने नहीं आया.
परशुराम की चीखें चारों तरफ गूंजती रहीं, मगर किसी पर उस का असर नहीं हुआ.
परशुराम की हत्या कर विक्रम सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा, जहां उस ने सारी बातें दोहरा दीं. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
तारा को जब इस बात का पता चला, तो वह उस से मिलने जेल आई. विक्रम ने उसे बड़े ही गौर से देखा और मुसकरा कर कहा, ‘‘तारा, तुम्हारा कलंक मिट गया है. जेल से छूटने के बाद तुम्हें आ कर ले जाऊंगा. मेरा इंतजार करना. करोगी न?’’
‘‘हां, जिंदगीभर,’’ कहतेकहते तारा रो पड़ी.
जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’
लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.
वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके.
उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?
औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं.
घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.
अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और सम झ कहां होती है.
पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब सम झने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न सम झ में आने वाली बातें भी सम झ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.
15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…
मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी.
मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’
कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मु झे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया.
कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बो झ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.
मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई.
बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.
मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली.
गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए.
वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.
उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें.
मगनाबाई को कहा गया था कि
वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी.
तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?
क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था?
चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था.
यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…
बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झक झोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’
मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.
‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मु झ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा.
‘‘चला तो तु झ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’
लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं.
डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.
भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’