मजुरिया : मजदूर मां का सपना जीती उस की लाड़ली

‘‘बहनजी, इन का भी दाखिला कर लो. सुना है कि यहां रोज खाना मिलता है और वजीफा भी,’’ 3 बच्चों के हाथ पकड़े, एक बच्चा गोद में लिए एक औरत गांव के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने आई थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तुम परेशान मत हो,’’ मैडम बोली.

‘‘बहनजी, फीस तो नहीं लगती?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘नहीं. फीस नहीं लगती. अच्छा, नाम बताओ और उम्र बताओ बच्चों की. कौन सी जमात में दाखिला कराओगी?’’

‘‘अब बहनजी, लिख लो जिस में ठीक समझो.

‘‘बड़ी बेटी का नाम मजुरिया है. इस की उम्र 10 साल है. ये दोनों दिबुआ और शिबुआ हैं. छोटे हैं मजुरिया से,’’ बच्चों की मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नाम मंजरी. उम्र 8 साल. देव. उम्र 7 साल और शिव. उम्र 6 साल. मजुरिया जमात 2 में और देव व शिव का जमात एक में दाखिला कर लिया है. अब मैं तुम्हें मजुरिया नहीं मंजरी कह कर बुलाऊंगी,’’ मैडम ने कहा.

मजुरिया तो मानो खुशी से कूद पड़ी, ‘‘मंजरी… कितना प्यारा नाम है. अम्मां, अब मुझे मंजरी कहना.’’

‘‘अरे बहनजी, मजुरिया को मंजरी बना देने से वह कोई रानी न बन जाएगी. रहेगी तो मजदूर की बेटी ही,’’ मजुरिया की अम्मां ने दुखी हो कर कहा.

‘‘नहीं अम्मां, मैं अब स्कूल आ गई हूं, अब मैं भी मैडम की तरह बनूंगी. फिर तू खेत में मजदूरी नहीं करेगी,’’ मंजरी बनते ही मजुरिया अपने सपनों को बुनने लगी थी.

मजुरिया बड़े ध्यान से पढ़ती और अम्मां के काम में भी हाथ बंटाती.

मजुरिया पास होती गई. उस के भाई धक्का लगालगा कर थोड़ाबहुत पढ़े, पर मजुरिया को रोकना अब मुश्किल था. वह किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी और अपनी मैडम की चहेती बन गई थी.

‘‘मंजरी, यह लो चाबी. स्कूटी की डिक्की में से मेरा लंच बौक्स निकाल कर लाना तो. पानी की बोतल भी है,’’ एक दिन मैडम ने उस से कहा.

मजुरिया ने आड़ीतिरछी कर के डिक्की खोल ही ली. उस ने बोतल और लंच बौक्स निकाला. वह सोचने लगी, ‘जब मैं पढ़लिख कर मैडम बनूंगी, तो मैं भी ऐसा ही डब्बा लूंगी. उस में रोज पूरी रख कर लाया करूंगी.

‘मैं अम्मां के लिए साड़ी लाऊंगी और बापू के लिए धोतीकुरता.’

मजुरिया मैडम की बोतल और डब्बा हाथ में लिए सोच ही रही थी कि मैडम ने आवाज लगाई, ‘‘मंजरी, क्या हुआ? इतनी देर कैसे लगा दी?’’

‘‘आई मैडम,’’ कह कर मजुरिया ने मैडम को डब्बा और बोतल दी और किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई.

अब मजुरिया 8वीं जमात में आ गई थी. वह पढ़ने में होशियार थी. उस के मन में लगन थी. वह पढ़लिख कर अपने घर की गरीबी दूर करना चाहती थी.

उस की मां मजुरिया को जब नए कपड़े नहीं दिला पाती, तो वह हंस कर कहती, ‘‘तू चिंता मत कर अम्मां. एक बार मैं नौकरी पर लग जाऊं, फिर सब लोग नएनए कपड़े पहनेंगे.’’

‘‘अरे, खुली आंख से सपना न देख. अब तक तो तेरी फीस नहीं जाती है. कौपीकिताबें मिल जाती हैं. सो, तू पढ़ रही है. इस से आगे फीस देनी पड़ेगी.’’

अम्मां मजुरिया की आंखों में पल रहे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी, पर उस के मजबूत इरादों को थोड़ा कम जरूर करना चाहती थी. वह जानती थी कि अगर सपने कमजोर होंगे, तो टूटने पर ज्यादा दर्द नहीं देंगे.

और यही हुआ. मजुरिया की 9वीं जमात की फीस उस की मैडम ने अपने ही स्कूल के सामने चल रहे सरकारी स्कूल में भर दी.

मजुरिया तो खुश हो गई, लेकिन कोई भी मजुरिया आज तक इस स्कूल में पढ़ने नहीं आई थी. एक दिन जब मजुरिया स्कूल पढ़ने गई और वहां के टीचरों ने उस की पढ़ाई की तारीफ की, तो वहां के ठाकुर बौखला गए.

‘‘ऐ मजुरिया की अम्मां, उधार बहुत बढ़ गया है. कैसे चुकाएगी?’’

‘‘मालिक, हम दिनरात आप के खेत पर काम कर के चुका देंगे.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर अकेले तू कितना पैसा जमा कर लेगी? मजुरिया को क्यों पढ़ने भेज रही है? वह तुम्हारे काम में हाथ क्यों नहीं बंटाती है?’’ इतना कह कर ठाकुर चले गए.

मजुरिया की अम्मां समझ गई कि निशाना कहां था. लेकिन इन सब से बेखबर मजुरिया अपनी पढ़ाई में खुश थी. पर कोई और भी था, जो उस के इस ख्वाब से खुश था.

पल्लव, बड़े ठाकुर का बेटा, जो मजुरिया से एक जमात आगे गांव से बाहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. वह मजुरिया को उस के स्कूल तक छोड़ कर आगे अपने स्कूल जाता था.

‘‘तू रोज इस रास्ते से क्यों स्कूल जाता है? तुझे तो यह रास्ता लंबा पड़ता होगा न?’’ मजुरिया ने पूछा.

‘‘हां, सो तो है, पर उस रास्ते पर तू नहीं होती न. तू उस रास्ते से आने लगे, तो मैं भी उसी से आऊंगा,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘न बाबा न, वहां तो सारे ठाकुर रहते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें, बाहर निकली हुई आंखें,’’ मजुरिया ने हंस कर कहा.

‘‘अच्छा, तो तू ठाकुरों से डरती है?’’ पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, पर मुझे ठकुराइन अच्छी

लगती हैं.’’

‘‘तू ठकुराइन बनेगी?’’

‘‘मैं कैसे बनूंगी?’’

‘‘मुझसे शादी कर के,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तू पागल है. जा, अपने स्कूल. मेरा स्कूल आ गया है,’’ मजुरिया ने पल्लव को धकेलते हुए कहा और हंस कर स्कूल भाग गई.

उस दिन मजुरिया के घर आने पर उस की अम्मां ने कह दिया, ‘‘आज से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है. ठाकुर का कर्ज बढ़ता जा रहा है. अब तो तुझे स्कूल में खाना भी नहीं मिलता है. कल से मेरे साथ काम करने खेत पर चलना.’’

मजुरिया टूटे दिल से अम्मां के साथ खेत पर जाने लगी.

वह 2 दिन से स्कूल नहीं गई, तो पल्लव ने खेत पर आ कर पूछा, ‘‘मंजरी, तू स्कूल क्यों नहीं जा रही है? क्या मु?ा से नाराज है?’’

‘‘नहीं रे, ठाकुर का कर्ज बढ़ गया है. अम्मां ने कहा है कि दिनरात काम करना पड़ेगा,’’ कहते हुए मजुरिया की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तू परेशान मत हो. मैं तुझे घर आ कर पढ़ा दिया करूंगा,’’ पल्लव ने कहा, तो मजुरिया खुश हो उठी.

अम्मां जानती थी कि ठाकुर का बेटा उन के घर आ कर पढ़ाएगा, तो हंगामा होगा. पर वह छोटे ठाकुर की यह बात काट नहीं सकी.

पल्लव मजुरिया को पढ़ाने घर आने लगा. लेकिन उन के बीच बढ़ती नजदीकियों से अम्मां घबरा गई. अम्मां ने अगले दिन पल्लव से घर आ कर पढ़ाने से मना कर दिया.

मजुरिया कभीकभी समय मिलने पर स्कूल जाती थी. पल्लव रास्ते में उसे मिलता और ढेर सारी बातें करता. कब 2 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज मजुरिया का 10वीं जमात का रिजल्ट आएगा. उसे डर लग रहा था.

पल्लव तेजी से साइकिल चलाता हुआ गांव में घुसा, ‘‘मजुरिया… मजुरिया… तू फर्स्ट आई है.’’

मजुरिया हाथ में खुरपी लिए दौड़ी, उस का दुपट्टा उस के कंधे से उड़ कर दूर जा गिरा. उस ने पल्लव के हाथ से अखबार पकड़ा और भागते हुए अम्मां के पास आई, ‘‘अम्मां, मैं फर्स्ट आई हूं.’’

अम्मां ने उस के हाथ से अखबार छीना और हाथ पकड़ कर घर ले गई. पर उस की आवाज बड़े ठाकुर के कानों तक पहुंच ही गई.

‘‘मजुरिया की मां, तेरी लड़की जवान हो गई है. अब इस से खेत पर काम मत करवा. मेरे घर भेज दिया कर…’’ ठाकुर की बात पूरी नहीं हो पाई थी, उस से पहले ही अम्मां ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मालिक, हम खेतिहर मजदूर हैं. किसी के घर नहीं जाते,’’ इतना कह कर अम्मां घर चली गई.

घर पर अम्मां मजुरिया को कमरे में बंद कर प्रधान के घर गई. उन की पत्नी अच्छी औरत थीं और उसे अकसर बिना सूद के पैसा देती रहती थीं.

‘‘मालकिन, मजुरिया के लायक कोई लड़का है, तो बताओ. हम उस के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’

प्रधानजी की पत्नी हालात भांप गईं.

‘‘हां मजुरिया की अम्मां, मेरे मायके में रामदास नौकर है. पुरखों से हमारे यहां काम कर रहे हैं. उस का लड़का है. एक टांग में थोड़ी लचक है, उस से शादी करवा देते हैं. छठी जमात पास है.

‘‘अगर तू कहे, तो आज ही फोन कर देती हूं. मेरे पास 2-3 कोरी धोती रखी हैं. तू परेशान मत हो, बाकी का इंतजाम भी मैं कर दूंगी.’’

मजुरिया की अम्मां हां कह कर घर आ गई. 7वें दिन बैलगाड़ी में दूल्हे समेत 3 लोग मजुरिया को ब्याहने आ गए. बिना बाजे और शहनाई के मजुरिया को साड़ी पहना कर बैलगाड़ी में बैठा दिया गया.

मजुरिया कुछ समझ पाती, तब तक बैलगाड़ी गांव से बाहर आ गई. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई और बैलगाड़ी से कूद कर गांव के थाने में पहुंच गई.

‘‘कुछ लोग मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं,’’ मजुरिया ने थानेदार को बताया.

पुलिस ने मौके पर आ कर उन्हें बंद कर दिया. मजुरिया गांव वापस आ गई. जब सब को पता चला, तो उसे बुराभला कहने लगे. मां ने उसे पीट कर घर में बंद कर दिया.

मजुरिया के घर पर 2 दिन से न तो चूल्हा जला और न ही वे लोग घर से बाहर निकले.

पल्लव छिप कर उस के लिए खाना लाया. उस ने समझाया, ‘‘देखो मंजरी, तुम्हें ख्वाब पूरे करने के लिए थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी. बुजदिल हो कर, रो कर तुम अपने सपने पूरे नहीं कर सकोगी…’’

पल्लव के इन शब्दों ने मजुरिया को ताकत दी. वह अगले दिन अपनी मैडम के घर गई. उन्होंने उसे 12वीं जमात का फार्म भरवाया. इस के बाद पल्लव मंजरी को रास्ता दिखाता रहा और उस ने बीए कर लिया. पल्लव की नौकरी लग गई.

‘‘मंजरी, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं. क्या तुम मु?ा से शादी कर के मेरी ठकुराइन बनोगी?’’ पल्लव ने मंजरी का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘अगर मैं ने दिल की आवाज सुनी और तुम्हारे साथ चल दी, तो फिर कभी कोई मजुरिया दोबारा मंजरी बनने का ख्वाब नहीं देख पाएगी. फिर कभी कोई टीचर किसी मजुरिया को मंजरी बनाने की कोशिश नहीं करेगी.

‘‘एक मंजरी का दिल टूटने से अगर हजार मजुरियों के सपने पूरे होते हैं, तो मुझे यह मंजूर है,’’ मजुरिया ने कड़े मन से अपनी बात कही.

पल्लव समझ गया और उसे जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे कर वहां से चला गया.

विश्वासघात: सीमा के कारण कैसे टूटा प्रिया का घर

प्रिया ने पालने में सोई अपनी नवजात बच्ची को मुसकराते देखा तो वह भी मुसकरा दी. प्रिया उस में अपना और निर्मल का अक्स ढूंढ़ने की कोशिश करने लगी. निर्मल को एक बेटी की चाह थी जबकि वह बेटा चाहती थी, क्योंकि वह निर्मल के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी.

प्रिया एक छोटे शहर में पलीबढ़ी थी. इकलौती संतान होने के कारण मातापिता की दुलारी थी. निर्मल की बूआ उन के पड़ोस में रहती थीं. वे ही निर्मल का रिश्ता उस के लिए लाई थीं. निर्मल मुंबई में मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. उन के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. उन के जाने के बाद बूआ ने ही उन की परवरिश की थी. प्रिया के मातापिता को निर्मल पसंद थे, इसलिए चट मंगनी और पट ब्याह कर दिया.

शादी के 1 हफ्ते बाद प्रिया निर्मल के साथ मुंबई आ गई. निर्मल एक अपार्टमैंट में 7वीं मंजिल पर 3 कमरों के फ्लैट में रहते थे. शादी के बाद दोनों ने फ्लैट को बड़े जतन से सजाया. निर्मल अपने नाम के अनुसार स्वभाव से बहुत ही निर्मल थे. उन में बिलकुल बनावटीपन नहीं था.

कुछ ही समय बाद प्रिया ने निर्मल को 2 से 3 होने की खुशखबरी सुना दी. दोनों बहुत खुश थे. अब निर्मल उस का बहुत ध्यान रखने लगे थे. उसी दौरान निर्मल के प्रमोशन ने उन की खुशी को दोगुना कर दिया. परंतु काम की जिम्मेदारी बढ़ने की वजह से अब वे ज्यादा व्यस्त रहने लगे.

प्रिया दिन भर अकेले काम करते थक जाती थी, इसलिए दोनों ने एक बाई रखने का फैसला किया. महानगर मुंबई में लोग बहुत व्यस्त रहते हैं. किसी को किसी से कोई लेनादेना नहीं होता. अंतर्मुखी होने के कारण प्रिया भी ज्यादातर घर में ही रहती थी. इसीलिए उन्होंने बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड से बाई ढूंढ़ने के लिए मदद मांगी. कुछ ही दिन बाद उस ने एक बाई को भेजा.

लगभग 30 साल की दुबलीपतली रमा बाई को उन्होंने मामूली पूछताछ के बाद काम पर रख लिया. रमा बाई ने बताया कि वह पास की बिल्डिंग में और 3 घरों में काम करती है. उसके 2 बच्चे हैं. पति स्कूल में चपरासी है. इस से अधिक जानने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी.

रमा बाई सुबह 8 बजे काम पर आती और करीब 10 बजे तक काम निबटा कर चली जाती. जब वह काम करने आती तब निर्मल के औफिस जाने का समय होता था, इसलिए प्रिया ज्यादातर निर्मल के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करने में व्यस्त होती थी. धीरेधीरे रमा बाई घर की सदस्य जैसी बन गई. वह प्रिया के छोटेमोटे कामों जैसे बाजार से दूधसब्जी लाने में मदद करने लगी.

अब अकसर प्रिया का मौर्निंग सिकनैस की वजह से जी मचलाने लगा और उस के लिए खाना बनाना मुश्किल होने लगा. यह देख कर एक दिन रमा बाई ने उस के आगे एक प्रस्ताव रखा. बोली, ‘‘मैडमजी, मेरी एक छोटी बहन है. बेचारी गूंगी है, शादी नहीं हो पाई, इसलिए हमारे साथ ही रहती है.

अगर आप कहें तो जब तक आप की डिलिवरी नहीं हो जाती आप उसे खाना बनाने और दूसरे कामों के लिए रख लें. आप को जो ठीक लगे उसे दे देना. सुबह मैं साथ ले आया करूंगी और शाम को साथ ले जाया करूंगी.’’

प्रिया और निर्मल को उस की बात जंच  गई, इसलिए उन्होंने हां कह दिया. अगले ही दिन रमा बाई अपने साथ 22-23 वर्ष की लड़की को ले आई. उस ने उस का नाम सीमा बताया. सीमा देखने में बहुत सुंदर थी. प्रिया को उस के गूंगे होने पर बहुत तरस आया. सीमा उन के घर खाना बनाने का काम करने लगी. वह सभी काम बहुत अच्छे तरीके से व समय से पहले कर देती.

वह प्रिया को समय से फल काट कर खिलाती, समय पर खाना खिलाती. पतिपत्नी दोनों सीमा के काम से बेहद खुश थे. कभीकभी निर्मल को औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता. तब प्रिया सीमा को रात को घर पर रोक लेती. सीमा निर्मल का कुछ विशेष ही ध्यान रखती थी, परंतु प्रिया को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई, इसलिए उस ने उस पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. फिर उन दिनों अकसर तबीयत खराब रहने के कारण वह परेशान भी रहती थी.

हालांकि प्रिया को सीमा का निर्मल के बूट पौलिश करना और बाथरूम में कपड़े रखना शुरू से अखरता था, परंतु दूसरे ही क्षण वह इसे नारीसुलभ जलन समझ कर भूल जाती. कभीकभी तो उसे अपने इस विचार पर खुद पर शर्म महसूस होती कि एक गूंगी लड़की पर शक कर रही है.

इस बीच प्रिया का चौथा महीना शुरू हो गया था. उस दिन निर्मल औफिस की फाइलें घर ले आए थे और आते ही ड्राइंगरूम में टेबल पर सभी फाइलें फैला कर काम करने बैठ गए. प्रिया की तबीयत सुबह से ही ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने सीमा को रात को घर पर रोक लिया. खाना खा कर वह बैडरूम में आराम करने लगी और निर्मल अपना काम निबटाने में व्यस्त हो गए.

करीब रात के 1 बजे कुछ आवाजों से उस की नींद टूट गई. निर्मल बिस्तर पर नहीं थे. उन के तेजतेज बोलने की आवाज आ रही थी. वह ड्राइंगरूम की ओर तेज कदमों से भागी. वहां का दृश्य देख कर अवाक रह गई. सीमा एक ओर खड़ी रो रही थी.

उस के कपड़े अस्तव्यस्त और कई जगह से फटे थे. प्रिया को देख कर निर्मल हकबका कर सफाई देने लगे, ‘‘प्रिया, मैं ने कुछ नहीं किया. यह अचानक आ कर मुझ से लिपट गई. जब मैं ने इसे पीछे धकेला तो इस ने अपने कपड़ों को फाड़ना शुरू कर दिया.’’

सीमा लगातार रोए जा रही थी. वह प्रिया के गले से लिपट गई. उस की हालत देख कर प्रिया का चेहरा तमतमा उठा. उस के अंदर की औरत जैसे जाग उठी. बोली, ‘‘मुझे आप से कतई यह उम्मीद नहीं थी कि आप इतना गिर जाएंगे.’’

‘‘प्रिया, यह झूठी है… मैं सच कह रहा हूं… मैं ने कुछ नहीं किया,’’ निर्मल लगातार अपनी सफाई दे रहे थे. ‘‘सचाई सामने है और फिर भी आप…छि:,’’ कहते हुए वह सीमा को अपने बैडरूम में ले आई. प्रिया ने उसे पानी पिलाया और किसी तरह चुप करवाया.

‘‘सीमा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं…प्लीज मुझे माफ कर दो,’’ प्रिया ने सीमा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा.

प्रिया मन ही मन खुद को उस का कुसूरवार मान रही थी, क्योंकि उसी के कहने पर उस पर विश्वास कर सीमा रात को रुकी थी. फिर उस ने उसे अपने साथ ही सुला लिया. अगले दिन रमा बाई के आते ही सीमा ने रोरो कर और इशारों से उसे सब कुछ बता दिया.

वह बारबार निर्मल की ओर इशारा कर के रो रही थी. उस की हालत देख कर रमा बाई ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने उन के सामने ही पुलिस को फोन कर दिया. प्रिया और निर्मल ने उसे रोकने का भरसक प्रयत्न किया. ‘‘क्या मैडमजी, तुम भी अपने आदमी को बचाना चाहती हो? सीमा की जगह तुम्हारी बहन होती तब क्या करतीं?’’ रमा बाई गुस्से से बोली.

10 मिनट में पुलिस की वरदी में 1 आदमी उन के सामने खड़ा था. निर्मल उसे और रमा बाई को अपनी सफाई देते रहे, पर दोनों ने उन की एक न सुनी. प्रिया दोनों हाथों से सिर पकड़े वहीं सोफे पर चुपचाप बैठी रही. पुलिस वाले ने निर्मल को थाने चलने को कहा. निर्मल बहुत घबरा गए. वे मिन्नत करने लगे. आखिर उस पुलिस वाले ने 50 हजार पर रमा बाई और निर्मल में समझौता करवा दिया.

अचानक बच्ची के रोने की आवाज से प्रिया की तंद्रा भंग हो गई. वह भूतकाल से वर्तमान में लौट आई. वह उठ कर बैठने का प्रयास करने लगी. तभी बाहर से निर्मल उस के मातापिता के साथ कमरे में दाखिल हुए और उन्होंने लपक कर बच्ची को गोद में उठा लिया. अपने मातापिता को देख कर प्रिया के पीले पड़े चेहरे पर खुशी फैल गई.

‘‘अरे हमारी गुडि़या अपने नानानानी के पास आने के लिए रो रही है,’’ प्रिया की मां ने निर्मल से बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए कहा.

‘‘प्रिया, कैसी हो?’’ बाबूजी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बिलकुल ठीक हूं,’’ प्रिया ने मुसकरा कर उत्तर दिया.

‘‘तुम ने जूस नहीं लिया…यह लो जूस पी लो,’’ निर्मल ने जूस का गिलास उस के हाथ में थमा दिया.

प्रिया धीरेधीरे जूस पीने लगी. निर्मल के माथे पर बालों की एक लट झूलती बड़ी अच्छी लग रही थी. पिछले 2 दिनों से वे अकेले भाग दौड़ कर रहे थे. नर्स बता रही थी कि एक क्षण के लिए भी उन्होंने पलक नहीं झपकी. मां की गोद में गुडि़या सो गई थी. उसे पालने में लिटा कर मां ने उस के हाथ से जूस का खाली गिलास ले लिया.

‘‘नींद आ रही है…तू भी सो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बना कर लाती हूं,’’ फिर उस के बाबूजी से बोली, ‘‘आप भी नहा लीजिए. निर्मल बेटा, तुम किचन में सामान निकालने में मेरी मदद कर दो. मैं नाश्ता बनाती हूं. फिर सब साथ मिल कर बैठेंगे,’’ कहते हुए मां कमरे से बाहर निकल गईं. प्रिया को बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी. पिछले 5 महीने उस ने बड़े ही कष्ट से काटे थे.

वह मानसिक और शारीरिक यातना से गुजरी थी. सीमा वाले हादसे के बाद वह निर्मल के साथ एक छत के नीचे रहना नहीं चाहती थी, परंतु आने वाले बच्चे के भविष्य और मांबाबूजी के खयाल से उस ने चुप्पी साध ली. आज भी वह यह सोच कर कांप जाती है कि अगर उस ने अलग होने का फैसला कर लिया होता और अपने मायके लौट जाती तब कितना बड़ा अनर्थ हो जाता.

वह तो गनीमत थी कि डाक्टर की सलाह मान कर उस ने रोज पार्क जाना शुरू कर दिया था. वहीं उस की मुलाकात तनु से हुई. तनु उस के साथ स्कूल में पढ़ती थी. एक दिन उस ने बताया कि उस ने घर के काम के लिए एक लड़की रख ली है जो गूंगी है, तो प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा.

‘‘क्या नाम है उस का?’’ कांपते होंठों से प्रिया ने पूछा.

‘‘सीमा, बेचारी बोल नहीं सकती. मेरी बाई को बहन है,’’ तनु ने जवाब दिया.

प्रिया का दिल अनजाने डर से कांप उठा. उसे लगा कि अगर तनु को पता चल गया तो क्या सोचेगी उस के पति के चरित्र को ले कर. प्रिया ने तनु से मेलजोल कम कर दिया. तनु का फोन भी वह नहीं उठाती. लगभग 2 महीने बीत गए.

फिर एक दिन कैमिस्ट की दुकान पर तनु उस से टकरा गई. उस का रंग पीला हो गया था. वह कुछ बुझीबुझी सी थी. उस ने पहले की तरह उस से बातचीत करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. औपचारिकता के नाते उस ने उस से बातचीत की.

उस के होंठों से हंसी जैसे गुम ही हो गई थी. 2 ही दिन बाद तनु उसे फिर से पार्क में मिल गई. वह बहुत उदास और बीमार सी लगी. प्रिया इस का कारण पूछे बिना रह नहीं सकी. थोड़ी सी नानुकर के बाद तनु टूट गई. उस ने रोतेरोते अपना दुख बांटा जिसे सुन कर प्रिया सकते में आ गई.

तनु ने उसे जो कुछ बताया वह हूबहू उस की कहानी से मिलता था. तनु के मोबाइल में सीमा का फोटो था, इसलिए उस के प्रति उस का संदेह गहरा हो गया.

उस ने अपनी आपबीती तनु को सुनाई. तब दोनों ने तय किया कि वे सीमा के बारे में पता लगाएंगी और फिर एक दिन वे दोनों सीमा और रमा बाई के बारे में पूछतेपूछते उन के घर जा पहुंचीं. बाहर गली में ही उन्होंने भीड़ लगी देखी. पानी भरने के लिए औरतें आपस में लड़ रही थीं.

‘‘तुम दोनों बहनें अपने को समझती क्या हो?’’ पानी की बालटी पकड़े एक औरत बोली.

‘‘खबरदार, जो कोई आगे आया, काट कर फेंक दूंगी सब को,’’ दूसरी आवाज आई. तनु और प्रिया वहीं रुक उन की लड़ाई देखने लगीं. दोनों यह देख कर हैरान रह गईं कि सीमा फर्राटे से बोल रही थी.

‘‘सब से पहले हम दोनों पानी भरेंगी. तुम सब चुडै़लें सुबहसुबह हमारा दिमाग क्यों खराब कर रहीं,’’ सीमा चिल्ला रही थी.

तनु प्रिया का हाथ पकड़ उसे खींचते हुए गली से बाहर ले आई.

‘‘यह सीमा गूंगी नहीं है. देखा कैसे फर्राटे से बोल रही है,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘हां प्रिया, इस का मतलब इन दोनों ने जो हमारे साथ किया वह सोचीसमझी साजिश के तहत किया,’’ तनु ने गुस्से से कहा.

‘‘हमें इन्हें सबक सिखाना होगा, लेकिन कैसे, समझ नहीं आ रहा ,’’ प्रिया बोली.

‘‘चलो हम इन्हें पुलिस के हवाले करते हैं,’’ तनु ने प्रिया का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘लेकिन इस से पहले हमें इन के खिलाफ सुबूत इकट्ठे करने होंगे.’’ घर आ कर उन्होंने अपनेअपने पतियों को सारा माजरा समझाया. फिर सब ने मिल कर फैसला किया कि वे पुलिस के साथ मिल कर उस के सहयोग से इन्हें पकड़वाएंगे.

फिर चारों थाने में गए और अपने साथ हुई ठगी की आपबीती सुनाई. पुलिस ने सब से पहले मालूम किया कि वे दोनों फिलहाल कहां काम कर रही हैं. उन्हें पता चला कि वे अभी किसी नवदंपती के घर पर ही काम कर रही हैं. तब पुलिस ने उस दंपती के साथ मिल कर उन का भांडा फोड़ने की योजना बनाई. संयोग से उन के घर में सीसीटीवी कैमरा लगा था.

कुछ ही दिनों में रमा बाई और सीमा ने वहां भी ऐसा ही खेल खेला, परंतु कैमरे में उन की सारी हरकत कैद हो गई और जो आदमी पुलिस की वरदी में आया वह रमा बाई का शराबी पति था जो पहले दंपती को डराताधमकाता था और फिर पैसे ले कर समझौता करवाता था. उन तीनों को ठगी करने के जुर्म में जेल हो गई. प्रिया की मां उस के लिए नाश्ता ले आई थीं. उन्होंने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो प्रिया मुसकरा दी.

मोबाइल गरम हो गया : सोनू और रेखा की चुहलबाजी

सोनू एक गरीब घर का बेरोजगार नौजवान था. वह थोड़ाबहुत पढ़ालिखा था. काफी कोशिशों के बाद भी उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो मजबूरन अपना गांव छोड़ कर एक शहर में आ गया और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा.

शहर में सोनू किराए के मकान में रहता था. कुछ दिन बाद वहां मकान मालिक की एक रिश्तेदार रेखा रहने के लिए आई. वह बहुत खूबसूरत थी. गोरा रंग, कसा बदन, काले व घुंघराले बाल, बड़ीबड़ी आंखें, कोई भी देखे तो देखता ही रह जाए.

सोनू सुबह उठ कर खाना बनाता, बरतन मांजता और काम पर चला जाता. यह उस का रोज का काम था.

यह देख कर रेखा को बहुत तकलीफ होती थी. कुछ दिन बीत जाने के बाद रेखा ने उस से कहा, ‘‘सोनू, मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूं.’’

यह बात सोनू को बहुत अच्छी लगी और अब वह रेखा के साथ खाना खाने लगा.

रेखा सोनू से खूब बतियाती थी और मस्ती भी करती थी, लेकिन सोनू कुछ नहीं कहता था. वह सिर्फ हंस कर रह जाता था.

अब सोनू को रेखा बहुत अच्छी लगने लगी थी. एक दिन उस ने हिम्मत कर के रेखा के गाल को छू दिया.

रेखा हंस कर रह गई और कुछ नहीं बोली. सोनू को यह देख कर बहुत अच्छा लगा.

एक दिन जब सोनू काम से वापस आया, तो रेखा ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और खूब जोर से उस के गाल पर काट लिया.

सोनू सिहर कर रह गया और बाहर चला गया. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं.

एक दिन की बात है. सोनू काम से लौटा, तो उस ने देखा कि रेखा दरवाजे पर खूब सजधज कर खड़ी थी. वह सोनू को अंदर नहीं जाने दे रही थी.

सोनू ने भी सोचा कि जो होगा देखा जाएगा. उस ने रेखा को अपनी बांहों में भर कर उस के गाल पर ऐसा काटा कि दांत के निशान बन गए.

रेखा का गाल इतना लाल हो गया कि उस से खून निकल आएगा. उस की आंखों से आंसू निकलने लगे.

रेखा ने सोनू को बहुत डांटा, ‘‘मैं तो तुम्हें दोस्त सम?ाती थी और तुम एकदम निर्दयी निकले.’’

यह सुन कर सोनू शर्मिंदा हो गया. उस ने अपना बिस्तर उठाया और सोने के लिए छत पर जाने लगा.

जातेजाते उस ने रेखा से कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं अब दोबारा तुम्हें कभी नहीं छुऊंगा.’’

छत पर लेटे सोनू की आंखों से नींद कोसों दूर थी. यह कहावत भी सच है कि आग और फूस जब नजदीक होंगे, तो कभी न कभी आग जरूर लगेगी.

रात बीत रही थी. रात के तकरीबन 11 बज रहे थे. रेखा ने अपना मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए स्विच बोर्ड में लगाया.

थोड़ी देर बाद रेखा ने सोचा कि क्यों न वह मोबाइल चार्जर से निकाल कर अपने पास रख कर सो जाए. जब वह मोबाइल फोन निकालने लगी, तो उस ने देखा कि वह गरम हो गया था.

रेखा अंदर से दरवाजा धीरेधीरे पीटने लगी. छत पर लेटा सोनू जाग रहा था. वह सीढि़यों से उतर कर दरवाजे के पास आया और बोला, ‘‘रेखा, क्या बात है? इतनी रात को तुम जोरजोर से दरवाजा क्यों पीट रही हो?’’

रेखा ने कहा, ‘‘तुम अंदर आओ, तो बताऊं कि क्या बात है.’’

सोनू अंदर गया, तो रेखा ने कहा, ‘‘सोनू, मेरा मोबाइल फोन बहुत गरम हो गया है.’’

सोनू ने मोबाइल फोन को चार्जर से निकाल कर मेज पर रख दिया और कहा, ‘‘मोबाइल तो ज्यादा गरम नहीं है. थोड़े समय में ठंडा हो जाएगा.’’

फिर वे दोनों एकदूसरे को देखते रहे. सोनू बोला, ‘‘क्या अब मैं छत पर सोने जाऊं?’’

रेखा ने अंगड़ाई ली और कहने लगी, ‘‘अगर तुम नामर्द हो, तो जाओ. अगर मर्द हो, तो मेरा मोबाइल ठंडा कर के जाओ.’’

यह सुन कर सोनू ने दरवाजा अंदर से बंद किया और रेखा को बांहों में भर कर बिस्तर पर ले गया. फिर वे दोनों प्यार के सागर में इतनी बार डूबे कि सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला. रेखा का बदन इतना टूट गया था कि उस में उठने की ताकत भी नहीं रही थी.

कुछ दिनों के बाद रेखा अपने गांव चली गई और सोनू को उसी मोबाइल फोन से फोन किया, जो उस रात गरम हो गया था.

फोन पर ही रेखा ने शादी करने का इरादा जताया. उस ने कहा, ‘‘प्यारे सोनू, अब तुम घर चले आओ.’’

सोनू उस के गांव गया और दोनों ने एक मंदिर में जा कर शादी कर ली. इस के बाद वे हंसीखुशी अपनी जिंदगी बिताने लगे.

सपनों का सफर : परिणीता के सपनों में जीता रवि

उस ने आज फिर शाम होते ही खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया. मुझे उलझन होने लगी. मैं खुद को रोक नहीं पाया और अब मैं उस के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.

थोड़ी देर में उस ने दरवाजा खोला, ‘‘क्या है अजय, मैं कुछ देर अकेले रहना चाहता हूं. प्लीज, मुझे छोड़ दो…’’ वह अजीब सी दर्दभरी सूरत बना कर एक तरह से मुझ से गुजारिश करने लगा.

मुझे यह देख कर घबराहट होने लगी. मैं ने उस के कमरे में तकरीबन दाखिल होते हुए पूछा, ‘‘क्यों इतनी परेशानी हो रही है? मैं दोस्त हूं तुम्हारा. मुझे अपना दर्द बताओ. कहने से दर्द कम हो जाता है.

‘‘अकेले घुटघुट कर सहने से अच्छा है कि दर्द को कह दिया जाए,’’ मैं देख रहा था कि उस की आंखें भर आई थीं और लग रहा था कि अभी वह रो देगा.

मैं ने उस की बांह पकड़ कर सोफे पर बैठा दिया और खुद उस के पास ही बैठ गया, ‘‘रवि, मुझे बताओ कि ऐसा क्या है, जिस ने तुम्हें इतना अकेला बना दिया है? ऐसी कौन सी बात है, जो तुम अपने बचपन के दोस्त से भी नहीं बताना चाहते? इस तरह से घुटते रहोगे, तो बीमार पड़ जाओगे. मुझे अपना सारा दर्द बताओ,’’ मैं ने उसे समझाया.

रवि इतना सुनते ही बच्चों की तरह फूटफूट कर रोते हुए लिपट गया, ‘‘अजय, मैं जीना नहीं चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब कुछ नहीं बचा है. मेरे जीने का मकसद ही खत्म हो गया है.’’

‘‘मुझे बताओ कि आखिर बात क्या है?’’ मैं ने उसे सहलाते हुए कहा.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद रवि कुछ संभलते हुए बोला, ‘‘अजय, मेरी जिंदगी में तूफान है और मैं एक ऐसी जगह खड़ा हूं, जहां से न तो पीछे जा सकता हूं और न आगे…’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद रवि ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अजय,  पहली बार मुझे जिंदगी में परिणीता से मिलने के बाद ऐसा लगा था कि कोई अनजानी सी ताकत है, जो हमें करीब लाने की कोशिश कर रही है. यह सही था कि मुझे उस से प्यार हो गया था, लेकिन धीरेधीरे हम कब एकदूसरे के होते चले गए, हमें खुद ही पता न चला.

‘‘परिणीता मेरी जिंदगी में एक खूबसूरत सपने की तरह थी और हम दोनों इस सपने को जीना चाहते थे, लेकिन जैसा कि हमेशा होता रहा है, परिणीता के घर वालों को हमारे बारे में पता चला और परिणीता पर पहरा लगा दिया गया. शादी के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी गई. फिर एक दिन मैं शाम को घर लौट रहा था कि गली के मोड़ पर परिणीता की आवाज सुनाई दी.

‘‘मैं ठिठक गया. वह बोली, ‘रवि, मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है. मेरे साथ चलो.’

‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘ऐसी क्या बात है, जो तुम यहां नहीं कह सकतीं?’

‘‘वह बोली, ‘मेरे साथ चलो, मैं यहां नहीं कह सकती.’

‘‘यह बात उस ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए कही. मैं चल पड़ा.

‘‘नवीन पार्क पहुंच कर उस ने कहना शुरू किया, ‘रवि, मैं यहां से कहीं दूर जाना चाहती हूं…’

‘‘मैं ने घबरा कर कहा, ‘क्यों परी, किसी ने कुछ कहा क्या?’

‘‘वह बोली, ‘रवि, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी, लेकिन मेरे घर वाले न तुम्हें पसंद करते हैं और न ही मेरा आगे पढ़ना पसंद करते हैं. आज ही पता चला है कि किसी गांव में बहुत रूढि़वादी परिवार में मेरी शादी तय हो रही है. मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी…’

‘‘मैं ने उसे समझाया, ‘परी, तुम परेशान मत हो. कोई न कोई उपाय निकल जाएगा.’

‘‘वह बोली, ‘नहीं रवि, कोई मदद नहीं करेगा. तुम तैयारी कर लो. हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे और यहां से बहुत दूर चले जाएंगे.’

‘‘परिणीता एक बहुत ही होनहार लड़की है. उस का सपना एक कामयाब मैनेजर बनने का है. पर मुझे डर लग रहा है कि उस के घर वाले जबरदस्ती उस की शादी कहीं भी करा देंगे और उस के सपने पूरे नहीं हो पाएंगे. मेरे लिए इस से बड़ी हार और कुछ नहीं हो सकती…

‘‘अजय, तुम उस के पिता से मिलो और उन्हें समझाओ. वे परी के सपनों के साथ इस तरह की नाइंसाफी न

करें. मैं खुद को रोक लूंगा. वे कहेंगे तो मैं कहीं दूर चला जाऊंगा, लेकिन परिणीता को उसे अपना सपना पूरा करने दें…’’ इतना कह कर रवि चुप

हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.

मैं ने उसे तसल्ली दी और कहा कि मैं कोशिश करूंगा परिणीता के पिता से मिलने की, लेकिन दिक्कत यह थी कि मैं इस के पहले कभी परिणीता के पिता से मिला नहीं था और मेरा उन से पहले से कोई ज्यादा परिचय भी नहीं था.

बहरहाल, मैं ने रवि से वादा तो कर ही लिया था और उस की घबराहट देखने के बाद इस के अलावा और कोई चारा भी नहीं था. उसे उस के घर छोड़ कर मैं लौट आया और सोचने लगा कि कैसे परिणीता के पिता से मिला जाए और इस मसले पर किस तरह बात की जाए कि परिणीता की पढ़ाई न रुके और वह अपने सपने को पूरा कर सके.

अगले दिन मैं अपने औफिस जाने के लिए निकला और सोचा कि आज शाम को लौटते हुए परिणीता के पिता से मिलने जाऊंगा.

औफिस पहुंच कर मैं अपने काम में बिजी हो गया था और लौटने के समय एक डिपार्टमैंटल स्टोर में कुछ जरूरी सामान खरीदने लगा.

इसी बीच मुझे लगा कि कोई बहुत गौर से मुझे देख रहा है. मैं ने ध्यान दिया तो मुझे लगा कि कुछ दूरी पर शायद परिणीता ही खड़ी थी और उस के साथ उस की मां भी थीं.

मैं ने बिना समय गंवाए उस की मां के पास पहुंच कर कहा, ‘‘नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं आंटी.’’

‘‘परी, तुम कैसी हो?’’ मैं ने धीरे से परिणीता से पूछा.

‘‘ठीक हूं,’’ उस ने उदास लहजे में जवाब दिया.

मैं ने जानबूझ कर पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई ठीक से चल रही है या नहीं? देखो, अगले महीने यूनिवर्सिटी के मैनेजमैंट कोर्स का इम्तिहान है, फार्म भर देना और तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.’’

‘‘जी, ठीक है,’’ वह औपचारिक रूप से बोली.

‘‘आंटी, आप की तबीयत ठीक है न?’’ मैं ने बात को बढ़ाने के लिए उस की मां

से पूछा.

‘‘अब क्या तबीयत ठीक रहेगी बेटा, उम्र भी हो गई है बस. परी की चिंता लगी है, इस

के हाथ पीले हो जाएं तो मन को

आराम मिले.’’

‘‘अरे आंटी, ऐसी भी क्या जल्दी है. परी एक बहुत ही होनहार लड़की है. उसे आगे पढ़ाइए. शादी तो हो ही जाएगी,’’ मैं ने उस की मां को अपने मतलब की तरफ ले जाने की कोशिश की.

‘‘मैं तो चाहती ही हूं, क्योंकि शादी में भी आजकल लड़के वाले नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, पर इस के पापा जिद किए हुए हैं और जल्दी शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘आंटी, ऐसी क्या बात है कि अंकल जैसे समझदार आदमी भी इस तरह जिद कर बैठे हैं?’’

‘‘असल में इस के पापा रवि को पसंद नहीं करते और परी को यहां से दूर भेजना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन आंटी, रवि की वजह से परी की जिंदगी, उस का भविष्य बरबाद करना क्या सही है? रवि से ज्यादा अहम परी की पढ़ाई, उस का भविष्य है, उस के सपने हैं और हर मांबाप की सब से बड़ी जिम्मेदारी अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने में मदद करना है, न कि किसी छोटी समस्या को ले कर बच्चों के भविष्य को निराशा में धकेल देना,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं समझ सकती हूं और लड़के वाले भी हर जगह नौकरी वाली लड़की की मांग करते हैं, इसलिए भी मैं नहीं चाहती कि परी की पढ़ाई रुके.’’

‘‘आंटी, आप कहें तो मैं अंकल से बात करूं?’’

‘‘कोशिश कर लो, मगर मुझे नहीं लगता कि वे मानेंगे,’’ परी की मां की आवाज में निराशा झलक रही थी.

‘‘ठीक है आंटी, मैं बात करूंगा. लेकिन जब मैं बात करूं तो आप भी मौजूद रहेंगी. मैं कल सुबह ही आऊंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ इतना कह कर मां आगे बढ़ गईं और परिणीता थोड़ा पीछे रही. मैं ने उसे देख कर कहा, ‘‘बिलकुल परेशान मत होना. सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरी बातें सुन कर परिणीता को थोड़ी तसल्ली हुई.

अगले दिन मैं परिणीता के पिता से मिलने उस के घर पहुंचा तो देखा कि वे कहीं बाहर जा रहे थे.

‘‘नमस्ते अंकल,’’ मैं उन के सामने पहुंच कर बोला.

‘‘नमस्ते बेटा, क्या हाल है? अब तो कम ही दिखाई देते हो,’’ वे बोले.

‘‘अंकल, काम बहुत बढ़ गया है. औफिस में जल्दी जाना होता है और लौटने में भी देर हो जाती है, इसलिए कहीं भी चाह कर नहीं जा पाता,’’ मैं ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘देखो बेटा, अकेले रहोगे तो ऐसे ही परेशान रहोगे. या तो घर से किसी को बुला लो और नहीं तो बेहतर होगा कि शादी कर लो, सब सही हो जाएगा.’’

‘‘अंकल, मेरी सगाई हो चुकी है और शादी अगले साल होगी. तब तक मेरी होने वाली वाइफ की भी बीएड पूरी हो जाएगी. हालांकि मेरे मातापिता चाहते थे कि इसी साल शादी हो जाए, लेकिन ऋचा यानी मेरी होने वाली पत्नी से पता चला कि वह बीएड करना चाहती है, तो मेरे मातापिता और मैं ने इसे मान लिया,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों बेटा, शादी के बाद भी वह बीएड कर सकती है?’’ अंकल ने अपना नजरिया बताया.

‘‘अंकल, शादी हो जाने के बाद हर लड़की के हालात बदल जाते हैं और मानसिकता में बदलाव आ जाता है. लड़की ससुराल में रह कर पढ़ाई कर सकती है, लेकिन उसे बहुतकुछ खोने का डर भी रहता है और अपने मातापिता के यहां रह कर वह अपनी पढ़ाई अच्छी

तरह से बिना किसी दबाव के आसानी

से पूरी कर सकती है,’’ मैं ने अंकल

को प्रैक्टिकल तरीके से समझाने की कोशिश की.

‘‘हां, तुम्हारी बात कुछ सही है. चलो, ठीक है, बीएड कर लेने के बाद वह तुम्हारे लिए भी मददगार साबित होगी,’’ हम लोग बात करते हुए थोड़ी दूर बाजार तक आ गए थे.

‘‘अंकल, बुरा मत मानना, पर आप परी को आगे पढ़ने से क्यों मना कर रहे हैं? जब वह एमबीए करना चाहती है, तो उसे करने दीजिए. शादी तो बाद में भी हो जाएगी,’’ अपने मुद्दे पर आते हुए मैं ने कहा.

‘‘देखो अजय, परी का मामला कुछ अलग है. मेरी भी इच्छा थी कि परी एमबीए करने के बाद ही अपने घर से विदा हो, लेकिन कुछ हालात बदल

गए हैं.’’

‘‘शायद रवि के बारे में आप कुछ कहना चाहते हैं. मेरे विचार से इस मसले पर भी समझदारी से काम लेना ही मुनासिब होगा. जहां तक परी की पढ़ाई की बात है, तो मुझे पूरा यकीन है कि रवि का मसला कोई बाधा नहीं बनेगा,’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, रवि एक समझदार लड़का है, लेकिन उस ने परी के साथ रिश्ता बनाया, यह सोच कर मुझे बहुत झटका लगा.’’

‘‘अंकल, आप की चिंता जायज है. लेकिन परी मेरे लिए बहन की तरह है और इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि सिर्फ रवि ही नहीं, बल्कि परी भी बहुत समझदार है और ये दोनों ही बहुत भावुक हैं, इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है, जिस से दोनों के परिवारों को कोई चिंता हो,’’ हम बात करते हुए एक पार्क में बैंच पर बैठ गए थे.

‘‘अजय, यह कैसे मुमकिन है कि परी इन हालात में पढ़ाई को एकाग्रता से पूरी कर पाएगी?’’ अंकल ने काफी सावधानी के साथ कहा.

‘‘इसलिए कि रवि खुद चाहता है कि परी को आगे एमबीए करने में कोई बाधा नहीं आए. वह तो जब तक परी की पढ़ाई पूरी न हो जाए, अपना ट्रांसफर कहीं दूर करा लेना चाहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों… रवि इतनी परेशानी किसलिए उठाएगा? उसे ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अंकल, इसलिए कि ऐसा करना जरूरी है. सच तो यह है कि जब 2 लोग आपस में सच्चा प्यार करते हैं, तो वे सिर्फ और सिर्फ एकदूसरे को खुश देखना चाहते हैं, चाहे इस के लिए उन्हें अपनी खुशी, अपनी भावनाओं को आहत ही क्यों न करना पड़े और इस में कोई शक नहीं है कि उन दोनों का प्यार एक हकीकत है…’’

‘‘अजय, यह प्यार नहीं है. यह इस उम्र की भावनाओं का उभार है. यह अकसर होता है.’’

‘‘मैं आप को अपनी समझ से कह रहा हूं. आप को मानने के लिए कोई दबाव नहीं दे रहा हूं. अगर आप को बुरा लगा तो मुझे माफ कर दें.’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे बुरा नहीं लगा. तुम इसे गलत मत समझना,’’ अंकल की आवाज में भर्राहट सुनाई दे रही थी.

‘‘अंकल, आप भी मेरे पिता समान हैं. मैं आप की किसी बात का बुरा नहीं मान सकता और मैं परी को भी अपनी बहन समझता हूं, इसलिए इस हक से ही कुछ कहने की हिम्मत कर सका,’’ मैं ने अंकल को संभालने की कोशिश की.

अचानक ही अंकल ने मुझे अपने गले से लगा लिया और बुरी तरह से फूटफूट कर रोने लगे, ‘‘बेटा, मैं क्या करूं. परी मेरी एकलौती बेटी है और कभी भी मैं ने उसे किसी बात के लिए मना नहीं किया, उस की हर इच्छा पूरी की, पर आजकल मुझे क्या हुआ… मैं कैसे इतना कठोर हो गया…’’

मैं अंकल को समझाने और संभालने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर में मैं अंकल को घर छोड़ कर चला गया. हालांकि देर हो गई थी. औफिस में बौस को भी देरी की वजह समझानी पड़ी, पर मन में एक संतोष हो रहा था कि सबकुछ अच्छे तरीके से मैं ने उन लोगों को समझा दिया.

शाम को घर आने के बाद फोन बजने लगा, ‘‘हैलो…’’

‘अजय, मैं परी का पापा बोल रहा हूं. तुम घर आ गए?’

‘‘जी अंकल, मैं घर आ गया हूं.’’

‘बेटा, कुछ बात करनी थी. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. क्या मैं इस समय तुम से मिलने आ सकता हूं?’

‘‘जी, बिलकुल आ सकते हैं, लेकिन आप परेशान न हों, मैं खुद आ रहा हूं.’’

‘नहीं बेटा, मैं आ रहा हूं,’ अंकल ने फोन रख दिया. थोड़ी देर में वे मेरे घर आए और अंदर आ कर बैठ गए.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है अंकल? कुछ परेशानी है?’’

‘‘नहीं अजय, मैं ने काफी सोचा और परी की मम्मी से भी बात की. परी की पढ़ाई पूरी कराने के बाद ही हम उस की शादी करेंगे, यह हम लोगों ने तय कर लिया है.’’

‘‘अंकल, यह तो बहुत ही अच्छी बात है. आजकल लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाने में मांबाप को पूरा सहयोग देना चाहिए. बहुत ही होनहार लड़की है परी. मुझे बहुत खुशी हुई कि अब परी अपने सपनों को पूरा कर पाएगी,’’ मैं बहुत खुश हुआ. मुझे लगा कि मेरी कोशिश और रवि का पवित्र प्यार सफल हो गया.

‘‘बेटा, तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं ने परी को काफी टैंशन दी है. मैं

उस से माफी मांगूंगा. पर बेटा, तुम्हें

परी को एडमिशन दिलाने में मदद करनी होगी.’’

‘‘जरूर अंकल, मैं पूरी तरह से मदद करूंगा. आखिर वह मेरी भी बहन ही तो है. आप चिंता न करें.’’

‘‘अगर बहन मानते हो, तो एक जिम्मेदारी और निभानी पड़ेगी. कर सकोगे?’’

‘‘आप बोलिए तो सही, मैं हर जगह परी के भाई होने की जिम्मेदारी निभाऊंगा और मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘तो तुम्हें रवि को बताना होगा कि भले हम परी की शादी उस के एमबीए पूरा करने पर करेंगे, लेकिन सगाई हम इस महीने में ही कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है अंकल, लेकिन क्या किसी लड़के को देखा है और बातचीत पक्की हुई है?’’

‘‘हां देखा और समझा भी है. परी को पसंद भी है, इसलिए रवि से कहना कि अपने मातापिता को मुझ से मिलवा दे, ताकि सगाई की तारीख जल्द ही तय कर ली जाए,’’ अंकल मुसकरा रहे थे और उन के चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था.

दरार : जब हुई शायना और शौहर के बीच तकरार

शायना के अम्मीअब्बू ने उस की शादी में कई लाख रुपए खर्च किए थे. खूब दहेज, जेवर और कैश दे कर उन्होंने सोचा था कि शायना की जिंदगी बेहतर हो जाएगी, ससुराल में इज्जत मिलेगी, इतना दहेज और कैश देने से उस का सुसराल में राज रहेगा, वह अपनी मनमानी करेगी और सब को उस की बात माननी पड़ेगी, क्योंकि वह एक बड़े घर के बेटी है, जो दहेज के साथ लाखों रुपए नकद लाई है…

शायना के अम्मीअब्बू की इस सोच ने शायना और उस के शौहर के बीच ऐसी दरार डाल दी, जो कभी नहीं भरी जा सकी और दोनों एक महीने के अंदर ही अलगअलग रह कर जीने के लिए मजबूर हो गए. शायना के जाने के बाद उस के शौहर शाहिद ने कई बार उसे फोन भी किया, पर उस के अम्मीअब्बू ने न तो शायना से शाहिद की बात होने दी और न ही शाहिद को शायना को अपने साथ ले जाने दिया.

वे इसी घमंड में रहे कि शाहिद उन की सारी बातें मानेगा और शायना वहां पर राज करेगी, पर उन का यह भरम उस वक्त टूट गया, जब शाहिद ने दूसरी शादी कर ली. शायना की शादी की बात शाहिद से तय हो गई थी. शाहिद के अब्बा का कपड़ों का कारोबार था.

शाहिद अपने अब्बा के साथ ही काम करता था. शाहिद के अलावा उस का एक और भाई था, जो कैंसर से पीडि़त होने की वजह से हर वक्त बीमार रहता था. सारे कारोबार की बागडोर शाहिद के हाथों में ही थी.  शाहिद ऊंची कदकाठी का एक खूबसूरत नौजवान था.

यही वजह थी कि शाहिद को पहली ही नजर में देख कर शायना के अम्मीअब्बू ने शाहिद के रिश्ते के लिए हां कर दी थी. शायना भी खूबसूरती की मलिका थी. ऊंचा कद, गदराए बदन के साथसाथ वह खूबसूरती की बेमिसाल मूर्ति थी.

गुलाबी होंठ और सुर्ख गाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे. जो भी शाहिद और शायना की जोड़ी को देखता था, बस देखता ही रह जाता था. उन दोनों की तारीफ करने के लिए लोगों के पास अल्फाज कम पड़ जाते थे.

शायना की शादी के अभी 4 महीने बाकी थे. उस के अम्मीअब्बू ने उस के दहेज का सामान खरीदना शुरू कर दिया था. हर सामान ब्रांडेड खरीदा जा रहा था. अगर कोई सामान उन के शहर में न मिलता तो वह दूसरे शहर से मंगाया जाता था.

शायना के लिए लाखों रुपए का सोना खरीदा गया था. सोना सिर्फ सायना के लिए ही नहीं, बल्कि सायना की सास के लिए भी खरीदा गया था. इस तरह महीनों तक शायना की शादी की तैयारी चलती रही, फिर वह दिन भी आ गया जब शायना का निकाह शाहिद से होना था.

शाहिद बरात ले कर शायना के घर आ गया. बरातियों का स्वागत बड़ी धूमधाम से किया गया. कई तरह के खानों का इंतजाम किया गया. निकाह के बाद विदाई के समय भी लाखों रुपया नकद दिया गया और इस तरह लाखों रुपया खर्च होने के बाद शायना और शाहिद की शादी हो गई. शायना बड़ी धूमधाम के साथ अपनी ससुराल पहुंच गई. शायना और शाहिद एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे.

अभी शादी को कुछ दिन ही गुजरे थे कि शायना ने शाहिद से महंगे मोबाइल फोन की मांग की.  शाहिद बोला, ‘‘अभी रुक जाओ. तुम्हें जिस से भी बात करनी है, मेरे मोबाइल फोन से बात कर लिया करो. कुछ दिनों में मैं अब्बा से बात कर के तुम्हें नया मोबाइल फोन दिला दूंगा.’’

शायना को शाहिद की यह बात पसंद नहीं आई. अभी शायना की मोबाइल फोन की बात तो कबूल हुई नहीं थी कि शायना ने शाहिद से बोला, ‘‘अगले हफ्ते मैं अपने मायके जाऊंगी. लेकिन मुझे इस पुरानी कार से नहीं जाना.

तुम मेरी पसंद की नई कार ले लो, उसी से मैं अपने मायके जाऊंगी.’’ शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘यह कार भी तो सही है. इस में क्या खराबी है? क्यों फालतू की जिद कर रही हो…’’ शायना को शाहिद की यह बात बहुत नागवार गुजरी.

उस ने अगले ही दिन फोन पर अपनी अम्मी से शाहिद की शिकायत कर दी और बोला, ‘‘मुझे तुम से बात करने को दिल करता है, तो मैं तुम से बात भी नहीं कर सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक मुझे मोबाइल फोन  नहीं दिलाया.

‘‘मैं तुम से मिलने भी नहीं आ सकती, क्योंकि इन्होंने अभी तक नई कार भी नहीं खरीदी. कैसे फटीचर लोगों से तुम ने मेरी शादी करा दी.’’ अगले दिन शायना की अम्मी का फोन शाहिद के पास आ गया. वे छूटते ही बोलीं, ‘‘हमारे लेनदेन में कौन सी कमी रह गई थी, जो तुम मेरी बेटी शायना की ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकते? तुम्हारी जगह किसी और को इतना सबकुछ देते तो मेरी बेटी के पैर धो कर पीता.’’

शाहिद को शायना की एक तो यह बात बुरी लगी कि शायना ने घर की बात अपनी अम्मी को बताई और उन से अपनी सुसराल की बुराई की, दूसरे शायना की अम्मी ने अपनी दौलत का रुआब दिखाते हुए उसे जलील किया. शाहिद ने शायना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें अपनी अम्मी से घर की बात नहीं करनी चाहिए थी.’’

शायना फौरन तड़क कर बोली, ‘‘मैं अपनी परेशानी अपने अम्मीअब्बा को नहीं बताऊंगी, तो किसे कहूंगी…’’ और वह ऐंठ कर अपने बिस्तर पर  पड़ गई. शाहिद ने शायना को काफी समझाने की कोशिश की, पर वह न खाना खाने को तैयार हुई और न अपने कमरे से बाहर निकली.

शाम को फिर शाहिद के मोबाइल फोन पर शायना की अम्मी का फोन आया, तो शाहिद ने शायना को मोबाइल फोन देते हुए कहा, ‘‘लो, आप की अम्मी का फोन आया है.’’ शायना ने फोन लेते ही रोना शुरू कर दिया और शाहिद के सामने  ही अपनी अम्मी से शाहिद की बुराई करने लगी.

उस की अम्मी ने शायना को कहा, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं आज ही तुम्हारे भाई को भेजती हूं. तुम उस के साथ घर आ जाओ. जब तक ये तेरी बात नहीं मानेंगे, तुम हमारे पास ही रहना.’’ कुछ ही देर में शायना का भाई उस की ससुराल पहुंच गया और शाहिद के मना करने पर भी शायना को अपने साथ ले आया. शाहिद को शायना की यह बात बहुत बुरी लगी.

जब इस झगड़े का पता  शाहिद के अम्मीअब्बू को पता चला तो अब्बू ने शाहिद को डांटा, ‘‘हमें क्यों नहीं बताया. हम उसे समझाते. तुम कल ही अपनी सुसराल जाओ और शायना को  ले कर आओ. घर की बात घर में ही रहनी चाहिए.’’ उधर जब शायना घर पहुंची, तो उस ने अपनी सुसराल की तमाम बुराइयां की और कहा, ‘‘शाहिद तो अपने अब्बा के ही कहने पर चलता है.

छोटीछोटी चीज के लिए अपने अब्बा के सामने हाथ फैलाता है. मैं ने जब उस से मोबाइल फोन खरीदने को कहा तो बोला कि अब्बा से बोलता हूं. जब  वे पैसे देंगे, तब मोबाइल फोन दिला दूंगा. कार के लिए कहा, तो बहाने बनाने लगा.’’ शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘तू फिक्र मत कर. जब तक शाहिद और उस के अब्बू तेरी बात नहीं मानेंगे, मैं तुझे वहां नहीं भेजूंगी.’’ अगले दिन शाहिद ने शायना की अम्मी को फोन किया, ‘‘मैं शायना को लेने आ रहा हूं…’’ इस पर शायना की अम्मी बोलीं, ‘‘अपने अब्बा को साथ ले कर आना. जब तक वह सायना की बात नहीं मानेंगे, हम उसे नहीं भेजेंगे.

जब उन्हें फुरसत मिल जाए, तब दोनों साथ आना. हमारी बेटी की जिंदगी का मामला है. हमें  क्या पता था कि हमें तुम जैसे घटिया रिश्तेदार मिलेंगे.’’ शाहिद ने अपने अब्बा को बताया,  तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने भी फैसला कर लिया था कि वे उसे लेने वहां नहीं जाएंगे.

शाहिद ने अगले दिन फिर फोन किया और शायना से बात करने की कोशिश की, मगर शायना की अम्मी ने ऐसा नहीं होने दिया.  शायना की अम्मी को यह घमंड था कि ससुराल वालों को शायना जैसी खूबसूरत और पैसे वाली लड़की मिली है, वे जरूर हाथ जोड़ कर आएंगे और शायना की सारी बातें मानेंगे. इधर शाहिद के छोटे भाई की अचानक तबीयत खराब हो गई.

घर के सब लोग उस की फिक्र करने लगे, क्योंकि उस का कैंसर लास्ट स्टेज पर पहुंच गया था. वह कुछ हफ्ते का ही मेहमान था. शाहिद ने शायना से बात करने की कोशिश की, पर उस ने उस से बात नहीं की. शाहिद ने उस की अम्मी को बताया, ‘‘भाई की तबीयत बहुत खराब है.

मैं शायना को लेने आ रहा हूं. अब्बा के पास अभी टाइम नहीं है. वे बहुत ज्यादा परेशान हैं.’’ शायना की अम्मी ने साफ मना कर दिया, ‘‘हम तब तक शायना को नहीं भेजेंगे, जब तक तुम्हारे अब्बू नहीं आएंगे.’’ शाहिद यह सुन कर दंग रह गया, फिर भी वह हिम्मत कर के शायना को लेने अपनी सुसराल पहुंच ही गया.

उस ने शायना से बात करनी चाही, मगर उस की सास ने उसे बात करने से मना कर दिया और उसे शाहिद के साथ भी भेजने से इनकार कर दिया. शाहिद निराश हो कर खाली हाथ वहां से वापस आ गया. जब शाहिद के अम्मीअब्बू को इस बात का पता चला, तो उन्हें बहुत बुरा लगा.

इधर वह दिन भी आ गया, जब शाहिद का छोटा भाई यह दुनिया छोड़ कर चला गया, जिस से पूरे घर वालों  को काफी दुख हुआ. घर में मातम  पसर गया. इतना सबकुछ होने के बाद भी शायना के घर वालों को जब इस बात की खबर मिली, तो उन में से कोई भी इस गमगीन माहौल में शाहिद के घर वालों को दिलासा देने नहीं गया. वक्त गुजरता गया.

कुछ रिश्तेदारों ने शायना के अम्मीअब्बू को यह दिलासा दी थी कि शाहिद जरूर अपने अब्बा के साथ शायना को लेने आएगा. शायना की अम्मी ने भी उसे यह कह रखा था कि तुम अपनी जिद पर डटी रहना. अभी वह वक्त है, जब शौहर को अपने इशारों पर नचाया जा सकता है.

अगर तुम हिम्मत हार गई, तो जिंदगीभर उस के और उस के घर वालों के इशारों पर तुम्हें नाचना पड़ेगा. इस तरह उन दोनों के रिश्ते में दरार बढ़ती गई. वक्त तेजी से गुजर रहा था.

शायना को अकेलापन अब खाने को दौड़ रहा था, लेकिन अपनी मां की जिद की वजह से वह सही फैसला नहीं ले पा रही थी. उसे लग रहा था कि पता नहीं कब  तक यों अकेले जिंदगी बितानी पड़ेगी? क्या शाहिद उसे लेने वापस आएगा भी या नहीं? उधर शाहिद ने मुसलिम पर्सनल ला के तहत दूसरी शादी कर ली और अपनी जिंदगी खुशीखुशी गुजारने लगा.

जब शायना और उस के अम्मीअब्बू को शाहिद की दूसरी शादी का पता चला, तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि शाहिद ऐसा भी कर सकता है. गुस्से में आ कर उन्होंने शाहिद से फैसला करने के बजाय उस पर दहेज लेने के अलावा और भी कई केस कर दिए, पर इस से कोई हल नहीं निकला. केस चल रहा है.

शायना घर पर बैठी है. जब तक उस का तलाक या कोई और फैसला नहीं होता, उसे यों ही बिना निकाह के घर पर ही रहना पड़ रहा है. इस केस को एक साल हो गया है, पर अभी तक शायना के अम्मीअब्बू कोई रास्ता नहीं निकाल पाए हैं. उन्होंने अपनी जिद के चक्कर में शायना की जिंदगी बरबाद कर दी और उन दोनों के रिश्ते में एक ऐसी दरार डाल दी जो कभी नहीं भरी जा सकती.

शायना आज अपने घर पर एक जीतीजागती मूर्ति बन कर रह गई थी और सोच रही थी कि काश, मैं अपने घर को खुद ही संभाल कर चलती तो आज यह दिन न देखना पड़ता. उस की उम्र ढलने लगी, पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है.  शायना कर भी क्या सकती है, वह खुद एक जिंदा लाश बन कर रह गई है. उन के रिश्तों की इस दरार की वजह उस की मां और खुद शायना है. अगर वक्त रहते वह सही फैसला ले लेती, तो उसे आज यह दिन न देखना पड़ता.

इमामुद्दीन : जिंदगी का मुश्किल सफर

इमामुद्दीन काफी देर तक पार्क में टहलता रहा और फिर कोने की एक बैंच पर बैठ गया. वह बीचबीच में गहरी सांस लेता और ‘उफ’ कहता हुआ छोड़ देता. उस के भीतर चिंताओं के काले बादल उमड़घुमड़ रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे यही बादल इमामुद्दीन की आंखों से आंसू बन कर बरस पड़ेंगे.

इधर इमामुद्दीन की बीवी आयशा बानो घर पर अपने शौहर का इंतजार कर रही थी, उधर इमामुद्दीन कुछ सोच रहा था. पार्क में जब थोड़ी चहलपहल बढ़ने लगी, तो वह और ज्यादा बेचैन हो उठा. अब भूख से उस का पेट भी कुलबुलाने लगा था और जब प्यास लगने लगी तो वह अपने घर की तरफ लौटने लगा.

आयशा बानो दरवाजे पर ही खड़ी थी, बोली, ‘‘कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘कहीं नहीं… बस, ऐसे ही पार्क तक. कुछ खाने को हो तो दे दो, प्यास भी लगी है.’’

आयशा बानो पानी ले आई और फिर रोटी बनाने लगी. इमामुद्दीन का सोचना अभी जारी था. वह खाना खातेखाते कई बार रुक जाता. आयशा उसे देख रही थी, लेकिन कुछ बोली नहीं थी. उसे मालूम था कि इमामुद्दीन के मन में क्या चल रहा है.

इमामुद्दीन ने आयशा से पूछा, ‘‘गंगाजी को होश आया कि नहीं?’’

‘‘नहीं,’’ आयशा ने छोटा सा जवाब दिया और रोटी इमामुद्दीन के आगे रख दी.

इमामुद्दीन और आयशा चंद्रभान तिवारी के घर में पिछले 24 साल से किराए पर रह रहे थे. चंद्रभान की कोई औलाद नहीं थी. वे अपनी पत्नी गंगा के साथ अकेले ही रहते थे. उन के घर से लगा हुआ 2 कमरे का एक और मिट्टी का कच्चा घर था, जिस में इमामुद्दीन किराए पर रहता था.

एक दिन चंद्रभान तिवारी की अचानक मौत हो गई और उन की पत्नी गंगा देवी बेसहारा हो गईं. इतना ही नहीं, एक दिन गंगा देवी को लकवा मार गया. अब तो उन की जिंदगी एक चारपाई पर सिमट गई थी.

कुछ दिनों तक नातेरिश्तेदार, पासपड़ोस के लोग गंगा देवी को देखने आते रहे, कुछ समय बाद उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

इमामुद्दीन जब चंद्रभान तिवारी के घर में किराए पर रहने आया था, उस के पहले वह ईदगाह महल्ले में रहता था. उस के सिर से बचपन में ही उस की अम्मी नसरीन का साया उठ गया था. उस की खाला भी तब ईदगाह के पास ही रहती थीं.

इमामुद्दीन के अब्बू फैजान अली के इंतकाल के बाद इमामुद्दीन शहर आ गया और मजदूरी करने लगा. उस समय उस की उम्र रही होगी 20-22 साल. जब से ही वह चंद्रभान तिवारी के मकान में रह रहा था.

इमामुद्दीन को गंगा देवी में अपनी मां दिखाई देती थीं. इमामुद्दीन और आयशा दोनों मजदूर थे, पर उन के दिल में दूसरों के प्रति करुणा और इज्जत का अटूट भाव था. वे दोनों अनपढ़ थे. खास बात तो यह थी कि वे अनुभवी और समझदार थे. दोनों के दिल में दूसरों के लिए खूब जगह थी.

गंगा देवी जब लकवे के चलते खाट पर पड़ी थीं, तब इमामुद्दीन और आयशा ने ही उन की खूब सेवा की थी. गंगा देवी के इलाज में इमामुद्दीन ने अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी भी खर्च कर दी थी. आयशा गंगा देवी को नहलाती, उन के कपड़े बदलती और इमामुद्दीन दवा खत्म होने पर दवा लाता और उन्हें समय पर खिलाता.

धीरेधीरे यह रिश्ता और गाढ़ा होता चला गया. आयशा बहू की तरह बाकायदा गंगा देवी का खयाल रखती, उन के पैर दबाती, इमामुद्दीन उन्हें ह्वीलचेयर में बिठा कर थोड़ाबहुत बाहर घुमा कर ले आता.

समय बीतता गया. इमामुद्दीन पास में ही अपना छोटा सा घर बनवा रहा था. चंद्रभान तिवारी का घर धीरेधीरे खंडहर होता जा रहा था. आखिर घर की मरम्मत कराए तो कौन कराए? धीरेधीरे इमामुद्दीन का नया घर तैयार हो गया.

इमामुद्दीन और आयशा गंगा देवी को अपने नए घर में ले आए. भले ही इमामुद्दीन ने नया घर बनवा लिया था, लेकिन चंद्रभान तिवारी के खंडहर घर से उस का भावनात्मक रिश्ता हो गया था.

चंद्रभान तिवारी के घर को देख कर वह सोचा करता था, ‘भले ही यह घर अब खंडहर होता जा रहा है, लेकिन इसी घर ने ही मुझे छत्रछाया दी, पनाह दी.’

पड़ोस के कुछ लोगों ने तो इमामुद्दीन से कहा भी कि तेरी अक्ल मारी गई है, जो एक बीमार अपाहिज औरत को भी अपने नए घर में ले आया है. जितने मुंह उतनी बातें. जो आता इमामुद्दीन को अपनीअपनी समझ के हिसाब से पट्टी पढ़ाने लगता.

इमामुद्दीन सब लोगों की बातें सुनता और कहता कि बात मकान मालिक और किराएदार की नहीं है भाई, इन 23 सालों में जितना अपनापन चंद्रभान तिवारी और गंगा देवी ने मुझे दिया है, वह मैं कभी भूल नहीं सकता. मैं अब गंगा देवी की सूरत में अपनी मां नसरीन को देखता हूं.

इमामुद्दीन पुरानी यादों से लौट आया. उसी रात गंगा देवी की मौत हो गई. इमामुद्दीन ने हिंदू धर्म के हिसाब से गंगा देवी का क्रियाकर्म किया.

गंगा देवी अब शून्य में विलीन हो चुकी थीं, पर इमामुद्दीन और आयशा भी उन के बिना अजीब सा खालीपन महसूस कर रहे थे.

मजाक: झूठे इश्तिहार वाली नौटंकी

आ ज सुबहसुबह जब पूरब दिशा से सूरज उगा और लोग अपने डब्बों जैसे छोटे घरों से निकल कर बाहर आने लगे, तो सब की नजर पूरे शहर में लगे एक नए इश्तिहार पर पड़ी.

उस इश्तिहार में 3 तरह के लोगों की तसवीरें थीं. पहले वे कुछ लोग, जिन को सब पहचानते थे. उस से छोटी तसवीरों वाले दूसरी तरह के वे लोग थे, जिन की शक्लें केवल इधरउधर की जानकारी रखने वाले लोग पहचानते थे. सब से छोटी तीसरी तरह की तसवीरें उन लोगों की थीं, जिन को उन के परिवार के बाहर

2-4 लोग ही पहचानते थे. इन्हीं तीसरी तरह के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर के इश्तिहार लगवाने के लिए पैसे जुटाए थे. ‘बाप बड़ा न भईया, सब से बड़ा रुपईया’ वाली कहावत में ऊपर वाले से भी ज्यादा गहरा विश्वास रखने वाले लोग इस ‘महंगे इश्तिहार और सस्ते विज्ञापन’ पर बिना वजह पैसा खर्च नहीं करते हैं.

इन में से जिन सब से छोटी तसवीरों वालों को मैं पहचानता हूं, इन के बारे में एक बात कमाल की है. इन के धंधे गोरे हैं या काले, यह तो किसी को ठीक से नहीं पता, लेकिन इन के धंधे करामाती जरूर हैं. इन सब की दिखने वाली आमदनी अठन्नी और दिखने वाला खर्चा रुपईया है.

छोटी तसवीरों वाले लोग अपने से बड़े साइज की तसवीरों वाले लोगों के भरोसे बैठे हैं और मझोले साइज की तसवीरों वाले लोग बड़ी तसवीरों वालों की मेहरबानी पर जिंदा हैं.

छोटी तसवीरों वाले लोगों के लिए बड़ी तसवीरों वाले लोग ऊपर वालों से कम नहीं हैं. इन ऊपर वालों के चलते ही इन का लोक सुरक्षित है, परलोक की चिंता करता ही कौन है?

ये सब से छोटी तसवीरों वाले लोग गारंटी से मूर्ख होते हैं. इन को चापलूसी के अलावा जिंदगी जीने का और कोई रास्ता आता भी नहीं है.

ये लोग दो टके के फायदे के चक्कर में रोज घपला करते हैं. छोटी तसवीरों वालों का रिस्क ज्यादा होता है. फायदा होने पर फायदा कम और नुकसान होने पर इन की बलि ही सब से पहले चढ़ती है. कोई भी गलती हो जाए, छोटी तसवीरों वाले बेचारे लोग अपनेअपने ऊपर वालों द्वारा बुरी तरह से रगड़े जाते हैं.

इश्तिहारों में तसवीर जितनी छोटी होगी, तसवीर को पोस्टरों से गायब करना उतना ही आसान होगा. हवा बदलते ही तसवीर जितनी छोटी होगी, वे लोग पोस्टर से उतनी जल्दी उड़ भी जाते हैं.

ये छोटी तसवीरों वाले लोग बेचारे तो हैं, लेकिन शरीफ कतई नहीं हैं. तिकड़मी हैं, तभी तो इश्तिहार लगवाते फिरते हैं. इन थर्ड कैटेगरी लोगों का आमतौर पर कोई एक फिक्स ऊपर वाला होता नहीं है. बदलते मौसम के हिसाब से इन के ऊपर वाले भी बदलते रहते हैं.

उस इश्तिहार में सचाई का रंग छोड़ कर बाकी सारे रंगों का बड़े करीने से इस्तेमाल किया गया था. इस इश्तिहार में ऐसेऐसे दावे किए गए हैं, जो बातें केवल दूसरों को मूर्ख समझने वाले मूर्ख ही कह सकते हैं. इश्तिहार में वादे ऐसेऐसे, जिन को ऊपर वाला भी चाहे तो इतने कम समय में पूरा नहीं कर पाएगा.

शब्द, शब्द हैं साहब, इन से कुछ भी कह दो. शब्दों में कहां इतनी ताकत कि झूठों को झूठ कहने से रोक लें. शब्द कब झूठों की कलम या जबान से बाहर आने से इनकार कर पाते हैं. शब्द अगर चाहें भी तो समझने वालों को अपनी सुविधा से मतलब निकालने से रोक नहीं पाएंगे.

इन इश्तिहारों का फायदा सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को होगा, जिन की तसवीरें इन में छपी हैं. झूठे इश्तिहार को सच मानने वालों का फायदा इश्तिहार लगवाने वाले उठाएंगे. झूठ को सच मानने वाले पहले से मूर्ख हों या न हों, अब मूर्ख कहलाएंगे.

खुल गई आंखें : रवि के सामने आई कैसी हकीकत – भाग 3

गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.

गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.

आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.

रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.

एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.

इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.

शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.

पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.

मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.

रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.

रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.

रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.

मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.

मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.

जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.

रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी समझ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूं.

‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’

‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं समझा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.

सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को समझाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.

‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.

‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’

इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.

रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.

सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.

सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बोझ हलका कर दिया था.

आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.

 

फिर क्यों: क्या था दीपिका का फैसला – भाग 3

तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता. दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.

मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.

तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी.

दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया.

कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

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