भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 3

16 फरवरी, 2022 की रात साढ़े 9 बजे नीरज घर पर खाना खा कर मोबाइल देख रहा था, तभी राजू की फोन काल देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. राजू ने उसे खुला आमंत्रण देते हुए कहा, ‘‘आज मेरा मन तुम्हारे साथ कुछ करने का हो रहा है. जल्दी से आ जाओ.’’अंधा क्या चाहे 2 आंखें. नीरज ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं आता हूं तू चौक पर मिलना.’’

इतना कहते ही फोन डिसकनेक्ट कर उस ने घर से जूट के 2 बोरे स्कूटी की डिक्की में रखे और पत्नी से कुछ देर में आने की बोल कर घर से निकल पड़ा. करीब पौने 10 बजे राजू उसे चौक पर ही मिल गया.
नीरज उसे स्कूटी पर बिठा कर शगुन वाटिका मैरिज गार्डन के पीछे रेलवे स्टेशन के नजदीक सुनसान जगह पर ले गया. स्कूटी खड़ी कर अंधेरे का फायदा उठा कर झाडि़यों के बीच घुस कर अपने साथ लाए जूट के बोरे बिछा कर दोनों पास में बैठ गए.

अमावस्या की रात के स्याह अंधेरे का पूरा लुत्फ नीरज उठाना चाहता था, इसलिए अपने कपड़े घुटने के नीचे सरका कर वह राजू के साथ प्रेमालाप करने लगा. मगर उसे पता नहीं था कि आज वह राजू को नहीं, अपनी मौत को सुनसान जगह ले कर आया है.नीरज और राजू का सैक्स गेम चल ही रहा था कि मनोज उन का पीछा करते हुए दबेपांव वहां पहुंच गया. मनोज ने देखा कि नीरज राजू के ऊपर था, तभी उस ने पीछे से नीरज का गला पकड़ लिया.

नीरज कुछ समझ पाता, इस के पहले राजू भी मनोज का साथ देने लगा. दोनों पूरी ताकत से नीरज का गला दबाने लगे. कुछ ही देर में नीरज छटपटा कर ढेर हो गया. इस के बाद दोनों ने उस के हाथ की नस काट कर और गले को चाकूनुमा कटर से गोद कर इस बात की पूरी तसदीक कर ली कि नीरज जिंदा तो नहीं है.नीरज की हत्या करने के बाद मनोज और राजू ने उस के शव को उठा कर घनी झाडि़यों के बीच फेंक दिया और नीरज का मोबाइल ले कर उसी की स्कूटी पर सवार हो कर दोनों भाग खड़े हुए.
रात में ही दोनों होशंगाबाद पहुंचे, जहां वे मनोज की बहनबहनोई के घर पर रुके. सुबह होते ही मनोज अपनी बहन से बोला, ‘‘दीदी, हम लोग जरूरी काम से भोपाल जा रहे हैं.’’

स्कूटी वहीं छोड़ कर दोनों बस में सवार हो भोपाल पहुंच गए. दोनों भोपाल के नादिरा बस स्टैंड से कहीं दूर भागने की फिराक में थे, तभी औबेदुल्लागंज थाने के टीआई संदीप चौरसिया की टीम ने उन्हें दबोच लिया.पकड़े जाने पर उन के पास नीरज की हत्या कुबूल करने के अलावा कोई चारा नहीं था. दोनों ने नीरज की हत्या के पीछे यही कारण बताया कि नीरज उन के सैक्स संबंधों का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर राजू को ब्लैकमेल कर बारबार संबंध बनाने का दबाव डाल रहा था. यह बात मनोज को नागवार गुजरी.

दोनों की निशानदेही पर नीरज की स्कूटी, मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकूनुमा कटर भी बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को भादंवि धारा 302,120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से मनोज को जेल और राजू को बाल सुधार गृह भेज दिया गया.गे सैक्स के शौक ने एक शादीशुदा रईस कारोबारी नीरज को मौत की नींद सुला दिया तो मनोज और राजू जैसे नौजवानों को अपराध करने पर मजबूर
कर दिया. द्य
—कथा मीडिया रिपोर्ट और पुलिस सूत्रों पर आधारित

पिता का दोस्त : भाग 2

इश्कइश्क की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.
पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.

भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.

वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.

योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’

‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.

पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.

अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.

राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी. की अठखेलियां खेलती हुई कनिका पिता के दोस्त के साथ प्यार के अनोखे रिश्ते का जो धागा बुन रही थी, वह निहायत ही घटिया और बदबूदार रिश्तों का धागा था, जिस की कोई उम्र नहीं थी. उस में दोष कनिका का नहीं बल्कि उस की उम्र का था, जिस उम्र के दौर से वह गुजर रही थी.

पिता का दोस्त पिता जैसा ही होता है. कनिका ने इस रिश्ते की मर्यादा को तो भुला ही दिया था, इस से कमतर गुनहगार कनिका के पिता का दोस्त वेदप्रकाश आंतिल भी नहीं था. जो सामाजिक मानमर्यादा को ताख पर रख बेटी समान कनिका से इश्क की गोटियां खेल रहा था.भ्रष्ट मानसिकता के उस कमबख्त इंसान ने यह भी नहीं सोचा कि जब उन के इश्क के परदे उठेंगे तो उन की समाज में कितनी बदनामी हो सकती है. लोग उन के बारे में कैसीकैसी धारणाएं रखेंगे. क्या सामाजिक तिरस्कार और बहिष्कार की मार से वे जिंदा रह सकेंगे. दोनों ने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस नीले आसमान के तले अपने प्यार की पींगें भरते रहे.

बहरहाल, कनिका और वेदप्रकाश का रिश्तों की आड़ वाला यह खेल ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहा. आखिरकार, एक दिन विजयपाल के सामने यह भेद खुल ही गया. जब उस के सामने बेटी और वेदप्रकाश के बीच चल रहे नाजायज रिश्तों से परदा उठा तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

वेदप्रकाश की हरकतों से उस के तनबदन में आग लग गई थी. वह इस सोच में डूब गया था कि माना बेटी नादान थी, नादानी में उस के पांव बहक गए लेकिन वह तो नादान नहीं था. बेटी को समझाने या ऊंचनीच का आईना दिखाने जैसा काम कर सकता था. फिर भी वह न मानती तो मुझ से आ कर कहता, मुझे बताता. मैं उस का सही तरीके से इलाज करता.बजाय इस के वह खुद उस पर लट्टू हो गया और उस से नाजायज रिश्ता जोड़ लिया. वेदप्रकाश ने ऐसी गिरी और घिनौनी हरकत कर के अच्छा नहीं किया. विजयपाल ने तय कर लिया कि वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

उस दिन के बाद से वेदप्रकाश का विजयपाल के घर आनाजाना बंद हो गया. कनिका पर विजयपाल और उस की पत्नी की चारों पहर नजर कड़ी हो गई थी. कनिका की मां ने सामाजिक मानसम्मान और नैतिकता की दुहाई दी लेकिन बेटी के दिलोदिमाग में वेदप्रकाश के प्यार का ऐसा रंग चढ़ गया था कि मां की सीख का रंग एकदम फीका पड़ गया था.भले ही मांबाप ने अपनी नजरों का पहरा बेटी पर बिठा दिया था, लेकिन वह छिप कर प्रेमी वेदप्रकाश से फोन पर बात कर लेती थी.

बात दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह की है. जिस बात का डर मांबाप को सता रहा था, आखिरकार वह सच हो गया. घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर कनिका वेदप्रकाश के साथ घर से
भाग गई.बेटी की करतूतों से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. जवान बेटी का किसी पुरुष के साथ भाग जाना कितनी जगहंसाई वाली बात होती है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

बहरहाल, वेदप्रकाश और कनिका भाग कर मेरठ पहुंचे. वहां वेदप्रकाश का एक जानने वाला रहता था, वहीं उस के घर में दोनों ने शरण ली और 20 दिसंबर, 2020 को दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज करने के बाद वेदप्रकाश और कनिका अपने घर मुकीमपुर लौट आए.वेदप्रकाश और कनिका घर लौट तो आए लेकिन लेकिन गांव वालों ने उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया. गांव में पंचायत बिठा कर पंचों ने कनिका को वेदप्रकाश से छीन कर उस के घर वालों के हवाले कर दिया और उस की शादी को अमान्य घोषित कर दिया.

यही नहीं, वेदप्रकाश को अपमानित कर के गांव से निकाल बाहर कर दिया था. गांव से निष्कासित किए जाने के बाद वेदप्रकाश अपना गांव छोड़ कर रोहतक जिले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.
पंचों के हुक्म से प्रेमी से पतिपत्नी बने दंपति को अलग तो कर दिया था, लेकिन एकदूसरे के दिलों में उन्होंने जो जगह बनाई थी, न तो उसे मिटा सके और न ही हटा सके. सामाजिकता के कड़े चाबुक की चोट से भले ही दोनों अलग हो गए थे, लेकिन उन के सीने में धड़कने वाला दिल एक था. दोनों अलग हो कर भी एक थे, उन्हें कोई जुदा नहीं कर सका था. उन के दिलों से और खयालों से भी.

कनिका वेदप्रकाश से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकी. 3 जून, 2021 को वह फिर वेदप्रकाश के साथ घर से भाग गई. दोबारा घर से भाग कर कनिका ने मांबाप का नाम खाक में मिला दिया था.
बेटी के इस दुस्साहस से विजयपाल गुस्से से एकदम पागल हो गया. आलम तो यह था कि यदि सामने बेटी पड़ जाती तो उस के इतने टुकडे़ कर डालता, वह खुद नहीं जानता था. लेकिन करता भी क्या, वह तो अपनों से हारा था.वक्त के सामने विजयपाल कुछ देर के लिए रुक गया था लेकिन वह टूट कर बिखरा नहीं था. सामाजिक रुसवाई का जो जख्म कनिका ने अपने बाप को दिया था, वह सूद समेत उसे लौटाने की योजना बना रहा था. इस योजना में उस ने इस बार अपनी बुआ के पोते वीरेंद्र को शामिल कर लिया था और दोनों सावधानी से आगे बढ़ रहे थे.

विजयपाल की योजना बेटी कनिका को मौत के घाट उतार कर मानसम्मान बचाने और हत्या का सारा दोष नीच दोस्त वेदप्रकाश के सिर मढ़ उसे जेल भिजवाने की थी.
योजना के अनुसार, 5 जुलाई 2021 को विजयपाल ने बेटी कनिका को फोन किया, ‘‘हैलो बेटी कनिका, मैं तुम्हारा बदनसीब बाप बोल रहा हूं.’’ कराहते हुए विजयपाल बोला.
‘‘नमस्ते पापा,’’ कनिका असमंजस में डूबी आगे बोली, ‘‘आप कैसे हैं?’’

‘‘और कैसा हो सकता हूं, जब से तुम घर से गई हो तब से मैं सदमे में पड़ा रहता हूं. तुम्हारे ऐसे चले जाने से घर काटने को दौड़ता है.’’ विजयपाल की बात सुन कर कनिका कोई उत्तर नहीं देती तो विजयपाल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, जो होना था सो हो गया. हम सब ने सोचा है कि अब हम तुम्हारी शादी को सामाजिक मान्यता दिला दें ताकि अपने पति के साथ सिर ऊंचा कर के तुम भी जी सको.’’
‘‘सच पापा?’’ पिता के मुंह से यह सुन कर कनिका खुशी से झूम उठी, ‘‘अभीअभी मेरे कानों ने जो सुना, क्या वह सच है पापा?’’

‘‘हां बेटा, वो सब सच है. इसीलिए तो में ने 7 जुलाई, 2022 को अपने जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी देने का फैसला किया है. दामादजी को साथ ले कर तुम घर आओगी तो मुझे और घर वालों को बड़ी खुशी होगी.’’‘‘हां पापा, मैं उन्हें साथ ले कर आप के जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगी.’’
‘‘अच्छा, अब मैं फोन रखता हूं.’’‘‘नमस्ते पापा.’’‘‘खुश रहो बेटा, घर जरूर आना मेरे जन्मदिन पर.’’
कह कर विजयपाल ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विजयपाल ने अपनी भावनाओं का जाल फेंक कर बेटी को चंगुल में फांसने की कोशिश की थी और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया.
कनिका ने जब ये सारी बातें पति वेदप्रकाश आंतिल से कही तो वह चौंक गया कि विजयपाल उन की शादी को सामाजिक मान्यता दिलाना चाहता है. तुरंत उस की छठी इंद्री जाग गई और उसे दोस्त से ससुर बने विजयपाल की बातों से साजिश की बू महसूस होने लगी थी.

कनिका की रगों में विजयपाल का खून दौड़ रहा था तो वह पिता की बात क्यों नहीं सुनती. वेदप्रकाश ने कनिका को बहुत समझाया कि वह अपने घर मुकीमपुर न जाए, उसे विजयपाल की नीयत पर भरोसा नहीं है. वह जहरीले सांप की तरह पलट कर कभी भी वार कर सकता है.पति की बात सुन कर कनिका ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर घड़ी चौकस रहेगी. क्या पता मेरे वहां जाने से रिश्तों में फिर से बदलाव आ जाए, मांबाप का आशीर्वाद मिल जाए और हमारे जीवन की गाड़ी सुखमय चलने लगे.

वेदप्रकाश का मन पत्नी को मायके भेजने का नहीं हो रहा था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ा. 7 जुलाई को जन्मदिन वाले दिन सुबह के समय कनिका ने अपने पिता विजयपाल को फोन कर के बताया कि वह अकेले घर आ रही है. राई थाने के पास आ कर वह उसे रिसीव कर लें.
अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. जैसा उस ने सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा था. इधर जब वेदप्रकाश कनिका को गाड़ी में बैठा कर छोड़ने जा रहा था तो कनिका ने चालाकी करते हुए पति के मोबाइल फोन में अपना बयान रिकौर्ड कर लिया था. बयान में उस ने यह कहा था कि अगर मुझे कुछ होता है तो उस के लिए मेरे पिताजी विजयपाल और उन के 4 साथी दोषी होंगे जो बराबर उन के साथ मंडराते रहते हैं.
कनिका ने अपना बयान रिकौर्ड करने के बाद फोन वेदप्रकाश को दे दिया ताकि किसी अनहोनी पर भविष्य में काम आ सके. दोपहर एक बजे के करीब वेदप्रकाश राई थाने पहुंचा. थाने से थोड़ी दूर आगे विजयपाल कार लिए खड़ा था. वेदप्रकाश ने कनिका को वहीं उतार दिया तो कनिका बाप के पास पहुंच गई.

बेटी को देख कर विजयपाल के चेहरे पर कुटिल मुसकान फैल गई. उस ने कनिका को कार में पीछे वाली सीट पर बिठाया और खुद भी उसी के बगल में बैठ गया. गाड़ी वीरेंद्र चला रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी कनिका को विजयपाल के साथ कार में बैठते हुए देखा. कार जब वहां से चली गई तो वह निश्चिंत हो कर घर लौट आया था.

सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. कनिका डरीसहमी बैठी मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि सब कुछ ठीक रहे और वह कुशल से मां के पास पहुंच जाए. कार के भीतर उसे खतरा महसूस हो रहा था.
राई थाने से 2-3 किलोमीटर कार आगे बढ़ी थी कि सुनसान जगह देख कर खेड़ी दमकन के पास विजयपाल ने वीरेंद्र से गाड़ी रोकने को कहा तो उस ने कार एक किनारे ले जा कर रोक दी.

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 2

23 साल का मनोज कटारे बरखेड़ा पुलिस चौकी क्षेत्र के पिपलिया गांव का रहने वाला है. वह रेलवे स्टेशन रोड पर स्थित एक नमकीन की दुकान पर काम करता है. इसी दुकान पर 17 साल का राजू भी काम करता था. राजू देखने में गोरा, चिकना और लड़कियों की तरह शरमीला था.दुकान पर काम के दौरान खाली समय में मनोज राजू को पकड़ कर उस के शरीर के नाजुक अंगों को छूने की काशिश करता तो राजू को अजीब सा लगता. राजू किशोरावस्था की दहलीज पर था, उसे अच्छेबुरे का ज्यादा इल्म नहीं था.

मनोज के इस तरह छूने से उसे अच्छा लगता. मनोज तो राजू का दीवाना हो गया था, उसे छूते ही मनोज को कुछ इस तरह का अहसास होता था जैसे वह किसी लड़की के बदन को छू रहा हो. जब दोनों के बीच दोस्ती हो गई तो मनोज राजू को अपने घर ले जाने लगा.
एक दिन काम से छुट्टी मिलने पर अपने ही घर में दोपहर के समय एकांत पा कर मनोज ने राजू से कहा, ‘‘राजू, तू बहुत खूबसूरत है. यदि तू लड़की होता तो मैं तुझ से ही शादी कर लेता.’’
इतना कह कर मनोज ने राजू को चूमना शुरू कर दिया. मनोज के हाथ कभी उस के गालों पर, कभी उस की छाती पर तो कभी उस के प्राइवेट पार्ट को टच करने लगे. राजू के पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई.
उसे मनोज का इस तरह छूना अच्छा लग रहा था. लिहाजा राजू ने भी मनोज पर प्यार जताते हुए कहा, ‘‘मनोज, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. जी चाहता है जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहूं.’’
मनोज ने धीरेधीरे राजू के बदन से कपड़े उतारने शुरू कर दिए और राजू का हाथ अपने निजी अंग पर ले जा कर रख दिया. और राजू से बोला, ‘‘राजू, तू हमेशा इसी तरह मेरे साथ रहे तो मैं किसी लड़की से कभी शादी नहीं करूंगा.’’
मनोज की बात सुन कर राजू ने भी मनोज से वादा किया कि वह हमेशा जीवनसाथी बन कर उसी के साथ रहेगा.
धीरेधीरे राजू ने भी मनोज के कपड़े उस के शरीर से हटाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते दोनों निर्वस्त्र हो कर अप्राकृतिक सैक्स का आनंद लेने लगे. दोनों के संबंध इतने मजबूत हो गए थे कि एक दिन भी दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया था.
दोनों के बीच गे रिलेशनशिप अब रोज की बात हो गई थी. दुकान से छूटते ही जब भी उन्हें मौका मिलता, वे आनंद के सागर में डूब कर गोता लगाते.

दोनों गे सैक्स का भरपूर आनंद लेने के लिए बदलबदल कर प्रेमीप्रेमिका की भूमिका निभाते थे. कभी राजू मनोज की प्रेमिका का रोल निभाता तो कभी मनोज राजू की प्रेमिका बन कर उस से संबंध बना कर उसे भी खुश कर देता.
एक दिन नीरज कोठारी शाम के वक्त नमकीन लेने उन की दुकान पर आया था, तभी राजू और मनोज के बीच हंसीमजाक देख कर उस का ध्यान राजू की तरफ गया. राजू लड़कियों की शक्लसूरत जैसा खूबसूरत लड़का था.
कुछ ही दिनों में नीरज को इस बात का पता चल गया कि मनोज और राजू के बीच समलैंगिक संबंध हैं. इस के बाद तो नीरज राजू से मिलने को बेताब हो उठा.
दरअसल, नीरज भी गे सैक्स का शौकीन था. नीरज इसी फिराक में रह कर किसी भी तरह वह राजू से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था, मगर राजू मनोज के प्रेम में इस तरह पागल था कि वह नीरज को भाव नहीं दे रहा था.
एक दिन नीरज ने राजू और मनोज को संबंध बनाते देख लिया और अपने मोबाइल फोन से वीडियो बना ली. इस के बाद वह राजू को वीडियो दिखा कर धमकाने लगा.

राजू डर के मारे नीरज के फैलाए जाल में फंस गया. नीरज अकसर ही नमकीन की दुकान पर आने लगा. वह राजू को स्कूटी पर घुमाने के बहाने अपने साथ ले जाने लगा. राजू को मनोज के साथ रहते गलत कामों की लत पड़ चुकी थी, ऐसे में नीरज की संगत पा कर उसे भी वही मजा मिलने लगा.
धीरेधीरे राजू और नीरज रोजरोज ही मिलने लगे. वे आपस में एकदूसरे को चूमते तो कभी मोबाइल से फोटो लेते. नीरज राजू से उम्र में काफी बड़ा था. राजू को मनोज के साथ संबंध बनाने में जो मजा आता था, वह नीरज के साथ नहीं आता था. यही वजह थी कि वह नीरज से दूरियां बनाने लगा था.
मगर नीरज वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर उस से बारबार संबंध बनाने की जिद करता था. किसी लव ट्रायंगल फिल्मी स्टोरी की तरह राजू के नीरज के साथ घूमनेफिरने से मनोज के अंदर शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

मनोज ने जब एक दिन राजू से नीरज के साथ नजदीकियों के बारे में पूछा तो नीरज की हरकतों की सच्चाई राजू ने मनोज को बता दी, ‘‘नीरज मुझे खेत पर बुला कर जबरन संबंध बनाता है और मना करने पर हम दोनों का वीडियो वायरल करने की धमकी देता है.’’
यह सुन कर मनोज का खून खौल उठा. जैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका का किसी गैर से संबंध बरदाश्त नहीं कर पाता, वैसे ही मनोज के दिल में नीरज के प्रति नफरत की आग जलने लगी.
मनोज को जब पता चला कि नीरज उस के दोस्त राजू को ब्लैकमेल कर रहा है और जबरदस्ती संबंध बना रहा है तो उस ने नीरज को रास्ते से हटाने की सोची.
नीरज के पास उन का अश्लील वीडियो था, इस वजह से मनोज को डर था कि उस की दोस्तों में बदनामी हो जाएगी. चारों तरफ से निराश हो कर मनोज ने नीरज की हत्या करने की योजना बनाई. मनोज की बनाई योजना के मुताबिक, राजू ने 16 फरवरी की रात साढ़े 9 बजे नीरज को फोन कर के मिलने को बुलाया.
नीरज यूं तो करोड़पति बाप का इकलौता बेटा था, मगर अपने हमउम्र लड़कों के साथ अवैध संबंध रखने के शौक की वजह से वह किशोरास्था में ही बदनाम हो गया था.
नीरज के जवान होते ही उस के पिता ने उस की शादी कर दी. वक्त गुजरने के साथ नीरज का बेटा भी 15 साल का हो गया था, मगर नीरज का लड़कों से सैक्स संबंध बनाने का शौक खत्म नहीं हुआ था.

कांग्रेसी नेता का शक बना नासूर

6जून, 2022 का वाकया है. रात के तकरीबन 3 बजे थे. थाटीपुर के अत्यंत पौश इलाके रामनगर में सन्नाटा पसरा हुआ था. गरमी के चलते लोग घरों के भीतर एसी, कूलर चला कर गहरी नींद में सोए हुए थे. इन्हीं में एक परिवार कृष्णकांत भदौरिया का भी था, जो एक आलीशान कोठी में रहता था. इसी कोठी में उन का बेटा ऋषभ, पुत्रवधू भावना अपने 2 मासूम बच्चों के साथ रहती थी.

परिवार संपन्न और खुशहाल था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण ऋषभ को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी थी, अत: वह कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले कर नेतागिरी करने लगा था. इस के साथ ही जोड़जुगत बैठा कर पार्टी का प्रदेश प्रवक्ता तक बन बैठा था.
इस के अलावा वह वक्त गुजारने और पैसा कमाने के मकसद से प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम भी करने लगा था, इसलिए दिन में उस का वक्त घर के बाहर ही गुजरता था. ऐसी स्थिति में घर की सारी जिम्मेदारियां उस की पत्नी भावना निभाती थी. दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद घर पर भावना दिन भर अकेली रहती थी, जिस से उसे बोरियत सी होने लगी थी.

टाइम पास करने के लिए उस की सहेली ने उसे मोबाइल पर रिश्तेदारों और सहेलियों से बातचीत कर वक्त बिताने की सलाह दी. यह सलाह भावना को बेहद पसंद आई.अब भावना का ज्यादातर समय मोबाइल फोन पर बातचीत में बीतने लगा. कभीकभी वह मोबाइल फोन पर बातचीत में इतना खो जाती कि उसे पति ऋषभ की भी चिंता नहीं रहती. पति का फोन आता तो कई बार वह उठाती ही नहीं.
उधर बारबार फोन करने पर भी जब भावना काल रिसीव नहीं करती तो ऋषभ के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. उसे लगता कि कहीं भावना कौशलेंद्र से तो बात नहीं कर रही. यही सोच कर वह परेशान हो उठता. शहर के हर्षनगर में रहने वाला कौशलेंद्र ऋषभ के बचपन का दोस्त था.

काफी देर बाद जब वह पति को फोन लगा कर बताती कि मैं अपने पिताजी से बात कर रही थी, इसलिए आप का फोन नहीं उठा सकी तब कहीं जा कर ऋषभ को तसल्ली मिलती. ऋषभ ने भावना से स्पष्ट तौर पर कह रखा था कि 1-2 घंटी बजने के बाद वह उस का फोन जरूर उठा लिया करे, क्योंकि फोन नहीं उठने पर उसे घबराहट होने लगती है.लेकिन भावना ने ऋषभ की इस बात पर कतई ध्यान नहीं दिया. वह अपनी सहेलियों और नातेदारों से मोबाइल पर घंटों बातें करने में मशगूल रहती. इस बीच जब कभी ऋषभ का फोन आता, वह उसे कबाब में हड्डी सा लगता.

भावना की इस हरकत से ऋषभ को शक हो गया कि भावना उस से छिपा कर किसी और से बतियाती है. ऋषभ को भावना का इस तरह मोबाइल पर बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन भावना पति की नसीहत को जरा भी अहमियत नहीं देती थी.वह पति की बात को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती थी. वैसे भी शक की फांस बहुत खतरनाक होती है, इसे जल्द ही दूर न किया जाए तो वह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.

भावना अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रही थी, जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर उस की पति से अकसर नोकझोंक होने लगी. इस की वजह यह थी कि ऋषभ घर से बाहर होने पर जब कभी भी पत्नी के मोबाइल पर फोन लगाता, हर बार उस का फोन व्यस्त ही मिलता था.

ऐसा अनेक बार होने पर ऋषभ के मन में शक बैठ गया कि वह जरूर उस के बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र से बतियाती होगी. बाद में जब घर लौट कर ऋषभ भावना से मोबाइल फोन के बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि सहेली से बात कर रही थी. इस तरह ऋषभ के मन में शक की जो फांस लगी थी, वह नासूर बनती जा रही थी.

धीरेधीरे भावना और ऋषभ के बीच दूरियां बढ़ती चली जा रही थीं, जिस की वजह से ऋषभ उखड़ाउखड़ा सा रहता था. इस तनाव की वजह से पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध नाममात्र के थे. दूरियां बढ़ने की अहम वजह सिर्फ इतनी थी कि ऋषभ अपनी पत्नी पर शक करने लगा था कि उस का झुकाव कहीं उस के बचपन के मित्र कौशलेंद्र की ओर है.इसी शक के चलते उसे जब भी मौका मिलता, वह पत्नी के मोबाइल की काल हिस्ट्री चैक करता रहता था. कोई भी नंबर उसे अनजान लगता तो वह उसे ले
कर भावना के साथ झगड़ा और मारपीट करता था.

इन सब के पीछे एक खास वजह यह भी थी कि वह यह भी समझ चुका था कि उस की हकीकत पत्नी के सामने खुल चुकी है. यानी वह उस की आपराधिक छवि को भी जान चुकी है.भावना को जैसे ही पता चला कि उस का पति आपराधिक छवि का है तो उस के दिल को काफी ठेस पहुंची. उस ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की कि वह गुनाह के रास्ते छोड़ कर अच्छे रास्ते पर चले, पर वह भावना की बात को महत्त्व नहीं देता था. जब भावना यही बात बारबार कहती तो वह उस की पिटाई कर देता.
भावना पति के तुनकमिजाज और शक्की स्वभाव से आजिज आ कर अकसर गुस्से में दोनों बच्चों को ले कर मायके चली जाती थी और अपने पिता महेश सिंह को सारी बात बता देती थी.

बेटी की बात सुन कर महेश सिंह को काफी आघात पहुंचता था, तब महेश सिंह नाराज होते हुए दामाद ऋषभ को कड़ी फटकार लगाते थे. ऐसा कई बार हुआ था. हालांकि इस के बाद भी महेश सिंह 10-15 दिन बाद ही बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज देते थे.6 जून, 2022 की रात को भी ऋषभ और भावना के बीच कहासुनी हुई. भावना ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन ऋषभ उस पर कुछ ज्यादा ही भड़क गया. उन दोनों के बीच तकरार इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसी दौरान ऋषभ ने पत्नी पर पिस्टल तान दी.

भावना समझ गई कि पति के सिर पर खून सवार है, वह बचने के लिए बैडरूम से बाहर निकल कर लान की तरफ भागी. वह चीखती, उस के पहले ही ऋषभ ने उस के सिर को निशाना बना कर फायर कर दिया. वह इतना ज्यादा गुस्से में था कि रिश्तों की गहराई और परिवार की मर्यादा को भूल कर एक के बाद एक 3 गोलियां पत्नी के सिर में मार दीं.गोलियां लगने से भावना लान में ही ढेर हो गई. इस के बाद वह हथियार और अपनी जरूरत का सामान ले कर वहां से फरार हो गया. ऋषभ ने अनायास ही एक ऐसी घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा कांप उठा.

रात 3 बजे जब इलाके के सभी लोग सो रहे थे, तभी चीखनेचिल्लाने के शोर से लोगों की आंखें खुल गईं. शोरगुल सुन कर घबराए लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए तो कृष्णकांत भदौरिया को बदहवास हाल में रोतेबिलखते देख कर हैरान रह गए.वह ऋषभ के दोनों मासूम बच्चों की अंगुली पकड़े हुए जोरजोर से रोते हुए कह रहे थे, ‘‘मेरी मदद करो, मेरे बेटे ऋषभ ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

कृष्णकांत भदौरिया जो कुछ कह रहे थे, उसे सुन कर लोगों के होश उड़ गए.इसी दौरान किसी ने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी. कुछ देर में वहां थाना थाटीपुर पुलिस भी आ गई. पुलिस के आने पर कुछ लोग हिम्मत कर के उन की आलीशान कोठी में दाखिल हुए तो वहां की स्थिति देख कर उन सभी की आंखें हैरत से फटी रह गईं. भावना की लाश कोठी में कमरे के बाहर लान में खून से लथपथ पड़ी हुई थी.
हत्या का मामला था, अब तक पूरी रामनगर सोसाइटी के लोग घटनास्थल पर एकत्रित हो चुके थे. इस बीच ऋषभ के पिता कृष्णकांत भदौरिया ने घटना की सूचना अपने समधी महेश सिंह को दे दी.

मामला शहर के पौश इलाके रामनगर के रहने वाले बहुचर्चित कांग्रेसी नेता से जुड़ा हुआ था, जिस में उस ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी थी. हत्या कर के वह फरार हो गया था. सीएसपी ऋषिकेश मीणा और टीआई पंकज त्यागी घटनास्थल पर जांच कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद ही एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया फोरैंसिक एक्सपर्ट व डौग स्क्वायड की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और क्राइम सीन को समझा. पुलिस टीम के पहुंचने तक रामनगर के बाशिंदे काफी बड़ी संख्या में भदौरिया के घर के सामने जुट गए थे. सभी लोग भावना के मासूम बच्चों के बारे में सोचसोच कर परेशान थे.
इधर हत्यारे के पिता कृष्णकांत भदौरिया की हालत सदमे के कारण कुछ ज्यादा ही खराब हो रही थी. पड़ोसी उन्हें सांत्वना दे कर जैसेतैसे संभाल रहे थे.

पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
पुलिस को यह तो पता लग ही चुका था कि भावना की हत्या उस के पति ऋषभ ने की है. इसलिए ऋषभ के खिलाफ उस के सुसर महेश सिंह की तहरीर पर थाना थाटीपुर में धारा 302 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हत्यारोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी थी.

इसी बीच एसपी अमित सांघी को मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि पत्नी की हत्या के मामले में फरार चल रहे ऋषभ भदौरिया को उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के बेवर कस्बे में देखा गया है.यह सूचना मिलने के बाद एसपी ने बिना देर किए एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर संतोष यादव व थाटीपुर टीआई पंकज त्यागी को शामिल किया गया. उन्होंने टीम मैनपुरी रवाना कर दी.

आखिर पुलिस टीम द्वारा ऋषभ भदौरिया को हत्या के 21 दिन बाद उस के ही रिश्तेदार के घर से हिरासत में ले लिया गया. वह अपने रिश्तेदार के घर पर रह कर फरारी काट रहा था.उस ने बताया कि पुलिस द्वारा उस की गिरफ्तारी पर 10 हजार का ईनाम घोषित किए जाने के बाद से उसे एनकाउंटर का भय सता रहा था. पुलिस टीम उसे बेवर से ग्वालियर ले आई. उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल व खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए.

इस के अलावा पुलिस ने उस के पास से वह क्रेटा कार भी बरामद कर ली, जिस में बैठ कर वह पत्नी की हत्या के बाद फरार हुआ था.प्रारंभिक जांच में ही पुलिस को पता चला कि 10 मई, 2022 की रात को भी ऋषभ ने अपने बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र कुशवाहा पर 5 राउंड फायर किए थे. ऋषभ के खौफ के चलते वह थाने में रिपोर्ट लिखवाने का साहस नहीं जुटा सका था. लेकिन जैसे ही ऋषभ अपनी पत्नी को मार कर फरार हुआ और उस पर ईनाम घोषित हुआ तो हर्ष नगर निवासी कौशलेंद्र कुशवाहा थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंच गया था.

हत्या के आरोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ भदौरिया पर पहले से हत्या व हत्या के प्रयास सहित 14 मामले दर्ज हैं.उस के खिलाफ 2 बार जिला बदर की काररवाई भी की गई थी. अब पुलिस उस पर एनएसए लगाने की तैयारी में लगी हुई थी.ऋषभ को सुंदर और सुशील पत्नी मिली थी. सुसराल भी अच्छी थी. 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शक के नासूर ने उस की बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ कर रख दिया. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के मासूम बच्चे अनाथ हो गए.

ऋषभ के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक ऋषभ भदौरिया के
दोनों बच्चे अपने नाना महेश सिंह के
पास थे.

पिता का दोस्त : भाग 1

उस दिन 22 अप्रैल, 2022 की तारीख थी और सुबह के 10 बज रहे थे. जिला न्यायालय, सोनीपत (हरियाणा) केअधिकांश वकील अपनेअपने चैंबर में आ चुके थे और उस दिन की मुकदमे की समरी अपनी डायरी खोल कर पढ़ रहे थे. उन वकीलों में एक नाम अमरीश कुमार का भी शुमार था.
उस दिन की तारीख में अमरीश कुमार के खास मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल की गवाही होनी थी. अदालत में उस की पत्नी कनिका की हत्या के मुकदमे की तारीख पड़ी थी. अदालत परिसर में मुकदमे से संबंधित गवाहों के नाम पुकार का समय होने वाला था, इसलिए अमरीश कुमार मुकदमे की फाइल पर सरसरी निगाह डाल अपने मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल को साथ ले कर कोर्ट की ओर निकले. परिसर मुवक्किलों और प्राइवेट गाडि़यों से भरा हुआ था.

एडवोकेट अमरीश कुमार तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे. उन के पीछेपीछे वेदप्रकाश भी चल रहा था. जैसे ही वह चैंबर से निकल कर कुछ दूर आगे बढ़ा था, अचानक से गोली चलने की आवाज आई. उसे ही निशाना साध कर किसी ने गोली चलाई थी. गोली उस के बहुत पास से हो कर एक कार के पिछले शीशे में जा धंसी थी.अभी वेदप्रकाश कुछ समझ पाता, तब तक देखा 2 युवक सामने पिस्टल ताने खड़े थे. उन्होंने उस पर गोलियां दाग दीं. 2 गोलियां उस के सीने में जा धंसीं और वह घायल हो कर जमीन पर गिर कर तड़पने लगा.

गोलियों की आवाज सुन कर वकील अमरीश कुमार पलटे तो देखा उस के मुवक्किल को 2 युवक गोली मार कर बाइक से भाग रहे थे. उन्होंने हमलावरों की बाइक रोकने की कोशिश की, लेकिन वह रोक नहीं पाए. हमलावर उन पर भी पिस्टल ताने भीड़ को चीरते हुए वहां से निकल गए.गोली चलते ही अदालत परिसर में अफरातफरी मच गई थी. लोग एकदूसरे से धक्कामुक्की करते हुए भाग रहे थे. फिलहाल गोली से घायल वेदप्रकाश को लादफांद कर जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था.

घटना की सूचना मिलते ही नवागत एसपी हिमांशु गर्ग, एएसपी निकिता खट्टर, डीएसपी विपिन कादियान और सिटी थाने के इंसपेक्टर वजीर सिंह घटनास्थल पर पहुंच कर मौके का जायजा लेने में व्यस्त हो गए थे.घटनास्थल से फायरशुदा 3 खोखे बरामद किए गए. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले लिया. पते की बात यह रही कि जिला मुख्यालय परिसर के मुख्यद्वार पर एसएलआर हथियार लिए पुलिसकर्मी खड़ा मूकदर्शक बना रहा, उस ने बदमाशों से टक्कर लेने की कोशिश तनिक भी नहीं की थी.

सुरक्षाकर्मी ने तनिक भी सक्रियता दिखाई होती तो बदमाश पकड़े जा सकते थे, लेकिन वे अपना टारगेट पूरा कर के मौके से फरार हो गए थे.उधर वेदप्रकाश की हत्या की खबर जैसे ही घर वालों को मिली, घर में रोनापीटना शुरू हो गया था. छोटा भाई विनय प्रकाश सरकारी अस्पताल पहुंचा, जहां वेदप्रकाश की लाश रखी हुई थी. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई पूरी की. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

कागजी खानापूर्ति के बाद इंसपेक्टर वजीर सिंह सिटी थाना पहुंचे. मृतक के छोटे भाई विनय से लिखित तहरीर ले कर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 एवं आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के जांच शुरू कर दी.

पुलिस की जांचपड़ताल में शक के दायरे में सोनीपत जेल में सलाखों के पीछे कैद दोस्त से ससुर बने विजयपाल का नाम आया. विजयपाल उसे कनिका की हत्या में गवाही देने से रोक रहा था.
उस ने वेदप्रकाश को धमकी दी थी कि तेरी वजह से मुझे जेल जाना पड़ा. तेरी वजह से बेटी की हत्या करनी पड़ी थी और तेरी ही वजह से मेरा घरपरिवार बरबाद हुआ था. अगर तू बेटी की हत्या की गवाही देना बंद कर दे तो हम तेरी जान बख्श देंगे, नहीं तो तेरी जान लेने में तनिक भी संकोच नहीं होगा.
वेदप्रकाश ने भी विजयपाल को दोटूक जवाब दिया था, ‘‘आप से जो बन पड़े, कर लें. मैं गवाही देने आऊंगा और पत्नी को इंसाफ दिलाने के लिए अगर मुझे सूली पर चढ़ना भी पड़े तो वह भी करने के लिए तैयार हूं. मगर गवाही देने से पीछे नहीं हटूंगा.’’

पुलिस को जब यह बात पता चली तो केस का इतिहास भूगोल समझने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड बिलकुल साफ हो चुका था. पत्नी की हत्या
की गवाही देने से रोकने के लिए हीहत्या करवाई गई थी कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
पुलिस ने जेल में बंद विजयपाल को प्रोडक्शन वारंट पर ले कर हत्या की पूछताछ करने की योजना बनाई ताकि तसवीर का रुख साफ हो सके कि घटना को अंजाम देने वाले शूटर कौन थे. उन के पास असलहे कहां से आए.वैसे, वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड की कहानी 24 नवंबर, 2020 को ही लिख दी गई थी, जब उस ने दोस्त की इज्जत की धज्जियां उड़ाते हुए बेटी समान कनिका के गले में फूलों का हार डाल मंदिर में सात फेरे लिए थे.

कनिका भी पिता की जगहंसाई में बराबर की हिस्सेदार थी. बाप की उम्र के व्यक्ति को जीवनसाथी चुनने में उस ने जरा भी संकोच नहीं किया. घर वालों की इज्जत की परवाह किए बिना उस ने वेदप्रकाश आंतिल के साथ घर बसा लिया.19 वर्षीया कनिका विजयपाल की बेटी थी. सोनीपत के मुकीमपुर गांव में विजयपाल अपने परिवार के साथ रहता था. यह गांव थाना राई के अंतर्गत पड़ता है.कुल 5 सदस्यों का विजयपाल का परिवार था, जिन में पतिपत्नी और 3 बच्चे थे. उस की बेटी कनिका बच्चों में सब से बड़ी और समझदार थी, जबकि 2 बेटे कनिका से छोटे थे. अपनी छोटी सी दुनिया में वह बेहद खुश था. विजयपाल के घर में सभी आधुनिक सुखसुविधाएं थीं. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.
परिवार की जीविका चलाने के लिए उस के पास खेती की जमीन थी. उन खेतों में इतनी फसल पैदा हो जाती थी कि अपने खाने के लिए रखने के बाद बचे हुए अनाज को बाजार में बेच कर आमदनी कर लेता था. उसी आमदनी से मजे से घर का खर्च चलता था और बच्चों की अच्छी शिक्षा भी उन्हीं पैसों से पूरी होती थी.

विजयपाल के मकान से 2-4 मकान आगे वेदप्रकाश आंतिल रहता था. वह विजयपाल का लंगोटिया यार था. लंगोटिया यार के साथ वह उस का सगा पट्टीदार था.लेकिन दोनों के बीच पट्टीदार कम दोस्ताना रिश्ता ज्यादा चलता था, इसलिए उन दोनों की एकदूसरे के घरों के भीतर तक पहुंच थी. विजयपाल वेदप्रकाश के वहां चायपानी पीता था तो वेदप्रकाश विजयपाल के वहां उठताबैठता, खातापीता और सो जाया करता था.

तब विजयपाल की बेटी कनिका बहुत छोटी थी. अकसर वह वेदप्रकाश की गोद में जा कर बैठ जाया करती थी. बड़े लाड़प्यार से वह कभी उस के सिर पर हाथ फेरता था तो कभी उस के गालों पर थपकियां दे कर उस पर अपना प्यार लुटाता था.उसे कनिका चाचाचाचा कह कर पुकारती थी. वेदप्रकाश को देख कर कनिका खुश हो जाया करती थी. वह भी तो पिता के समान दोस्त के बच्चों पर अपना प्यार बरसाता था.

तब कौन जानता था कि पिता के समान कनिका पर प्यार लुटाने वाला वह शख्स अपना चरित्र पापी शैतान के हाथों गिरवी रख, एक दिन पति बन कर उस पर अपना अधिकार जमा लेगा. वह कनिका की और अपनी मौत का कारण बनेगा. यही नहीं विजयपाल का हंसताखेलता परिवार उजड़ जाएगा और उस की जिंदगी नरक से भी ज्यादा बदतर बन जाएगी.विजयपाल की बेटी का जहां 15वां वसंत लगा तो उस के अंगअंग का विकास हो चुका था. उस के अंगअंग से जवानी की खुशबू महक रही थी. सुंदर और गोरीचिट्टी तो वह थी ही. गांव के आशिकों की नजर जब उस पर पड़ती तो वो आहें भरने से नहीं रोक पाते थे.

किंतु एक ऐसा भी भौंरा था, जो इस के इर्दगिर्द मंडरा रहा था, बरसों से कालीकाली जुल्फों के बीच कैद जिस ने उस के दिल में अपना घर बना लिया था. वह कोई और नहीं बल्कि वेदप्रकाश आंतिल था, कनिका के पिता विजयपाल के बचपन का लंगोटिया दोस्त, जो उम्र में कनिका से ढाई गुना बड़ा था.
वेदप्रकाश की गिरफ्त में कनिका पूरी तरह से आ चुकी थी. उस के दिल के बगीचे में वेदप्रकाश नामक आशिक बैठ चुका था.

मुकम्मल तौर पर वेदप्रकाश ने कनिका को अपने दिल के शीशे में उतार लिया था तो कनिका भी अपने दिल के कोरे कागज पर प्यार की रोशनाई से वेदप्रकाश का नाम लिख चुकी थी. टूट कर प्यार करती थी वह उस से. वेदप्रकाश भी महासागर की गहराइयों से भी ज्यादा गहरा प्यार करता था. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर लगी हुई थी.

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे- भाग 3

अखिलेश पहले ही अपनी पत्नी की बेवफाई से टूटा हुआ था. उस के बाद आए दिन भाइयों से मनमुटाव रहने लगा. इतना होने के बावजूद भी उसे पता चला कि उस की पत्नी अभी भी उस के छोटे भाई से फोन पर बात करती है.
उस के बाद उस की दिमागी स्थिति खराब हो गई. उस ने कई बार पत्नी को भाई से बात करने से मना किया, लेकिन वह उस की एक सुनने को तैयार न थी.

घटना से 2 दिन पहले ही अखिलेश देर रात घर पहुंचा. उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने कई बार आवाज लगाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. तभी उस ने दरवाजे के झरोखे से झांक कर देखा तो अंजलि मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी.
अखिलेश दरवाजा पीटता रहा, लेकिन मोबाइल पर बात करने के कारण अंजलि ने उस की आवाज नहीं सुनी. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अखिलेश आगबबूला हो गया, ‘‘कर ली अपने यार से बात. लगता है तू इतनी जल्दी सुधरने वाली नहीं.’’
उस दिन अंजलि घर में अकेली थी. उस की चीखपुकार सुनने वाला भी कोई नहीं था. अखिलेश ने अंजलि को बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद भी वह हैवान बन बैठा. वह घर में रखा बांका निकाल लाया. गुस्से में उस ने बांके से काट कर पत्नी की हत्या कर दी.
पत्नी की हत्या करने के बाद उस की लाश पौलीथिन में लपेट कर बोरों के बीच छिपा दी. पत्नी को मौत की नींद सुलाने के बाद भी वह 2 दिनों तक पागलों की तरह ही इधरउधर भटकता रहा.
पत्नी की हत्या के बाद उस ने सोचा कि अब इस दुनिया में कुछ नहीं बचा. एक पत्नी ही जीने का सहारा थी. जब वही दगा दे गई तो भाई उस का क्या साथ देंगे. उस के भाई उस की खरीदी जमीन में से भी हिस्सा मांग रहे थे. जबकि वह उस में से उन्हें कुछ भी हिस्सा देने को तैयार न था.
उस ने कई बार उस जमीन पर अपना घर बनाने की कोशिश की. लेकिन उस के भाई बारबार पुलिस को बुला कर उसे रुकवा देते थे. जिस के कारण वह अपने भाइयों से नफरत करने लगा था. उसी नफरत के चलते उस ने प्लान बनाया कि वह एकएक कर अपने भाइयों को भी मौत की नींद सुला देगा.

उसी योजना के तहत उस ने 15 जुलाई, 2022 को भूमि विवाद को हल करने वाली बात कहते हुए भाई अजय, अनिल और पिता को घर बुला लिया.
जब तीनों इकट्ठा हो गए तो उस ने छोटे भाई अनिल को कोल्डड्रिंक लाने दुकान पर भेज दिया.
हालांकि उस का सब से पहला दुश्मन उस का छोटा भाई अनिल ही था. लेकिन अजय शुक्ला जमीन के मामले में ज्यादा ही टांग अड़ा रहा था. अजय को सामने देखते ही उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने मौका पाते ही अजय पर बांके से हमला बोल दिया.
इस से पहले कि अजय कुछ समझ पाता, उस ने उसे बुरी तरह से बांके से लहूलुहान कर दिया था. उस के पिता बचाव में आगे आए तो उन्हें भी बुरी तरह से घायल कर दिया था.
अजय की मौके पर ही मौत हो गई थी. जब तक अनिल कोल्डड्रिंक ले कर वापस आया, वह घर का दरवाजा अंदर से बंद कर तमंचा ले कर छत पर चढ़ चुका था.
कथा लिखे जाने तक अखिलेश और उस के पिता राजनारायण शुक्ला की हालत स्थिर बनी हुई थी. दोनों का एक साथ इलाज चल रहा था. पुलिस अखिलेश की पत्नी अंजलि और उस के भाई अनिल के संबंधों के साथसाथ जमीन बंटवारे को ले कर विस्तृत जांच में लगी हुई थी.
अजय की मौत हो जाने के बाद से पत्नी आरती गहरे सदमे में थी. क्योंकि पति की हत्या के बाद उस के 4 बच्चे बेसहारा हो गए थे. जबकि अखिलेश के अभी तक कोई संतान नहीं थी.

पिता का दोस्त : भाग 3

कार रोक कर वीरेंद्र खुद भी पिछली सीट पर कनिका के दाईं ओर जा बैठा. फिर क्या था? दोनों मिल कर कनिका का दुपट्टा खींचने लगे और उस का गला कस कर हत्या कर दी.
हत्या करने के बाद लाश मेरठ की गंगनहर में फेंक कर वापस लौट आए और आराम से सो गए. अगले दिन वीरेंद्र अपने घर लौट गया था.उधर वेदप्रकाश सोच रहा था कि कनिका को मायके गए 24 घंटे बीत चुके थे लेकिन उस ने एक बार भी फोन नहीं किया था. जब वेदप्रकाश से रहा नहीं गया तो उस ने कनिका को फोन किया. काल खुद विजयपाल ने रिसीव की. उस ने विजयपाल को नमस्कार किया और कनिका से बात कराने का आग्रह किया तो विजयपाल ने कहा कि अभी वह सो रही है. इतना कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

अगले दिन फिर वेदप्रकाश ने फोन किया और पत्नी से बात कराने के लिए कहा तो विजयपाल ने कह दिया कि वह बुआ के घर गई है, आते ही बात करा
दी जाएगी.इस के बाद उस ने 2 दिन बाद फिर से फोन कर के कनिका से बात कराने के लिए कहा लेकिन उसे हर बार टाल दिया जाता था.

इस पर वेदप्रकाश को कुछ शक हो गया तो इसी शक के आधार पर उस ने राई थाने जा कर पत्नी के साथ अनहोनी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.रिपोर्ट दर्ज करने के बाद राई थाने की पुलिस मुकीमपुर पहुंची और विजयपाल से कनिका के बारे में पूछताछ की. तब वह इधरउधर की बातें करने लगा. शक होने पर पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थानाप्रभारी वजीर सिंह ने जब उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पुलिस के सामने सारी सच्चाई उगल दी कि उस ने अपने बुआ के पोते वीरेंद्र के साथ मिल कर कनिका की हत्या कर दी है और उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया है.

विजयपाल द्वारा अपना जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने दूसरे आरोपी वीरेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस लाश बरामद करने के लिए उन्हें गंगनहर, मेरठ ले गई.
पुलिस ने उन के द्वारा बताई गई जगह और अन्य जगहों पर जाल डाल कर और गोताखोरों के द्वारा कनिका की लाश ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस की लाश नहीं मिल सकी. फिर पुलिस ने दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

अदालत में कनिका हत्याकांड का मुकदमा चल रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए दिनरात एक कर दिया था. इधर विजयपाल वेदप्रकाश अदालत की पैरवी से बुरी तरह डर गया था कि कहीं उस के चलते उसे फांसी की सजा न हो जाए.

जेल में रहते हुए विजयपाल ने वेदप्रकाश को भी रास्ते से हटाने की योजना बनाई और उस ने इस काम के लिए अपने भांजे अंकुश और गांव के लड़के राहुल को लगा दिया.
राहुल ने मुजफ्फरनगर के एक परिचित से एक देशी तमंचा और एक पिस्टल खरीदा. इन असलहों को खरीदने के लिए पैसे की व्यवस्था विजयपाल ने ही की थी. फिर इन्हीं असलहों से राहुल और अंकुश ने 22 अप्रैल, 2022 को कोर्ट परिसर में उस समय गोली मार कर हत्या कर दी, जब वेदप्रकाश मुकदमे में गवाही देने जिला न्यायालय पहुंचा था.

इस तरह एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने दोनों आरोपियों अंकुश और राहुल को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. दोनों आरोपियों से हत्या में प्रयुक्त देशी तमंचा और पिस्टल बरामद कर ली थी.
पुलिस पूछताछ में विजयपाल ने वेदप्रकाश की हत्या कराने का अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. चारों आरोपी विजयपाल, वीरेंद्र, राहुल और अंकुश जेल में बंद थे. द्य

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 1

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज में रहने वाले पुराने कपड़ा व्यापारी देवेंद्र कोठारी का 45
वर्षीय एकलौता बेटा नीरज उर्फ मोनू रात को साढ़े 9 बजे अपनी स्कूटी से घर से यह कह कर निकला था कि ‘कुछ देर में घूम कर आता हूं.’मगर रात के 12 बज गए और नीरज घर नहीं लौटा. इंतजार करतेकरते नीरज की पत्नी शिवांजलि ने जब नीरज को फोन लगाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ था.
शिवांजलि समझ नहीं पा रही थी कि पति का फोन बंद क्यों है. पति के बारे में सोचसोच कर बुरा हाल था. परेशान हो कर शिवांजलि ने अपने 15 वर्षीय बेटे को यह बात बताने के लिए अपने ससुर के कमरे में भेजा.

पोते से नीरज के अभी तक घर न पहुंचने की बात सुनते ही 70 साल के देवेंद्र कोठारी बेचैन हो गए. उन्हें यह बात समझ नहीं आ रही थी कि इतनी रात गए नीरज आखिर कहां गया होगा.निशांत भी पिता के दोस्तों को फोन लगा कर उन की जानकारी जुटाने की कोशिश करने लगा. काफी मशक्कत के बाद जब नीरज के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आधी रात को ही दादा और पोते नीरज को खोजने निकल पड़े. यह बात 16 फरवरी, 2022 की है.

पूरी रात शहर में कई जगहों पर खोजबीन के बाद भी नीरज के बारे में कोई खबर नहीं मिली तो देवेंद्र कोठारी दूसरे दिन 17 फरवरी की सुबह औबेदुल्लागंज थाने पहुंच गए.उन्होंने टीआई संदीप चौरसिया को पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए नीरज की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कुछ ही घंटों में नीरज के गायब होने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी.नीरज के पिता शहर के पुराने कपड़ा व्यापारी थे. उन की अपनी खेती की जमीन होने के साथ ही नीरज प्रौपर्टी डीलर के तौर पर काम कर रहा था. नीरज के इस तरह गायब होने से लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

शहर में एक चर्चा यह भी थी कि नीरज जमीन में छिपी दौलत को खोजने के चक्कर में कहीं गया होगा. लोगों का यह अनुमान इसलिए भी था कि नीरज तंत्रमंत्र और ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ कर बिना मेहनत किए दौलत कमाना चाहता था.कुछ साल पहले सड़क किनारे बैठने वाले किसी ज्योतिषी ने नीरज को बताया था कि उसे जमीन में गड़ा अकूत धन मिलेगा. तभी से नीरज इसी चक्कर में पड़ा रहता था. वह अकसर यही सोचता था कि कभी तो ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच निकलेगी.

नीरज के इस तरह गायब होने की यह चर्चा बेवजह नहीं थी. 16 फरवरी को अमावस्या की रात थी और नीरज को घर से जूट के बोरे स्कूटी में रखते हुए उस के बेटे ने देखा था. इस वजह से लोगों का अनुमान था कि तंत्रमंत्र के जरिए जमीन में गड़े धन को बोरे में भर कर लाया जाएगा.नीरज की गुमशुदगी को टीआई संदीप चौरसिया ने गंभीरता से लेते हुए घटना की जानकारी रायसेन जिले के एसपी विकास कुमार सेहवाल, एडीशनल एसपी अमृत मीणा, एसडीपीओ मलकीत सिंह को दे दी और खुद नीरज की खोजबीन में जुट गए.

पुलिस अधिकारियों को यह भी शक था कि नीरज का कहीं अपहरण तो नहीं हो गया. क्योंकि नीरज के पिता औबेदुल्लागंज के करोड़पति कारोबारी हैं. पुलिस ने नीरज की गुमशुदगी की सूचना समीप के भोपाल, होशंगाबाद और विदिशा जिले के पुलिस थानों को भी दे दी. शहर में इस घटना को ले कर चर्चाओं का बाजार गर्म था और पुलिस अलगअलग एंगिल से मामले की जांच कर रही थी. औबेदुल्लागंज के एसडीपीओ मलकीतसिंह ने 4 पुलिस थानों की एक टीम जांच के लिए गठित की.

टीम को इलाके की तलाशी के दौरान 18 फरवरी को होशंगाबाद रोड पर बने शगुन वाटिका मैरिज गार्डन के पीछे रेल पटरियों के किनारे झाडि़यों में एक लाश मिल गई. लाश को आवारा कुत्तों ने नोच दिया था, जिस की वजह से पुलिस को शिनाख्त करने में मुश्किल हो रही थी.पुलिस टीम ने जब नीरज के घर वालों को घटनास्थल पर बुलाया तो कपड़ों के आधार पर घर वालों ने शव की पहचान कर बताया कि शव नीरज का ही है. नीरज की पत्नी और बेटे का रोरो कर बुरा हाल था. नीरज के पिता भी दुखी मन से बहू और पोते को ढांढस बंधा रहे थे. घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

नीरज का शव अर्द्धनग्न अवस्था में मिला था, उस की पेंट और अंडरवियर कमर के नीचे घुटनों तक सरके हुए थे. शव की हालत देख कर पुलिस का शक अवैध संबंधों की वजह से हत्या की ओर जा रहा था.
नीरज का शव बरामद होने की सूचना मिलते ही रायसेन के एसपी के निर्देश पर एडीशनल एसपी अमृत मीणा घटनास्थल पर आ चुके थे. लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. औबेदुल्लागंज थाने के टीआई संदीप चौरसिया को जांच के दौरान कुछ लोगों ने बताया कि नीरज छोटी उम्र के लड़कों से दोस्ती रखने का शौकीन था और उन के साथ गे रिलेशनशिप रखता था. कुछ ही घंटों में पुलिस को कई लड़कों के नाम मिल गए, जिन से नीरज के गे संबंध थे.

शक के आधार पर कुछ लड़कों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि पिछले कुछ महीनों से नीरज की दोस्ती 23 साल के मनोज कटारे और 17 साल के राजू (परिवर्तित नाम) से चल रही थी.
राजू को अकसर ही नीरज की स्कूटी पर बैठे देखा जाता था. मनोज और राजू रेलवे स्टेशन के पास एक नमकीन की दुकान पर काम करते थे. पुलिस ने जब मनोज और राजू की तलाश शुरू की तो पता चला कि 16 फरवरी के बाद वे दुकान ही नहीं पहुंचे.

पुलिस ने साइबर सेल की मदद से मनोज और राजू की मोबाइल लोकेशन की जांच की तो राजधानी भोपाल के नादिरा बसस्टैंड की मिल रही थी. पुलिस को अब पूरा यकीन हो गया था कि दोनों नीरज की हत्या कर भागने की फिराक में हैं.पुलिस की एक टीम तुरंत भोपाल के नादिरा भेजी गई, जहां से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सख्ती से की गई पूछताछ में दोनों ने नीरज की हत्या करने की बात कुबूल कर ली. उस के बाद जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह ट्रायंगल गे रिलेशनशिप पर रचीबसी निकली

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे- भाग 2

इस मामले की हकीकत जानने के लिए पुलिस ने अखिलेश के छोटे भाई अनिल से पूछताछ की. तब अनिल ने बताया कि उस के भाई की दिमागी हालत सही नहीं थी. वह बहुत पहले से ही भाभी पर शक करता था.

कुछ समय पहले वह अखिलेश के साथ ही रहता था. देवरभाभी पर शक के कारण ही उस ने उसे अलग कर दिया था. जिस के बाद उस का उन से कोई लेनादेना नहीं था. उस के बाद पतिपत्नी के बीच ऐसी कौन सी बात हुई, जिस के कारण अखिलेश ने उसे मौत के घाट उतार दिया.अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अंजलि की हत्या की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की सब से ज्यादा बात अनिल से ही होना पाई गई.

जिस से साफ जाहिर था कि अंजलि का अपने देवर के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं था. लेकिन अनिल के खिलाफ कोई ऐसा केस नहीं बनता था, जिस के आधार पर उस पर काररवाई की जा सके.इस मामले को ले कर अनिल ने भाई को भाभी की हत्या का आरोपी मानते हुए उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि अखिलेश का इलाज चल रहा था. फिर भी पुलिस ने उस के छोटे भाई की लिखित तहरीर पर अखिलेश के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था.

पुलिस पूछताछ और परिवार वालों से मिली जानकारी से इस मामले की जो सच्चाई उभर कर सामने आई, वह जर, जोरू और जमीन वाली कहावत से काफी मिलती हुई थी.अखिलेश ने जिस तरह से अपने बड़े भाई अजय और पत्नी अंजलि की हत्या करने के बाद खुद को गोली मारी थी, उस से क्षेत्र में यह काफी सनसनीखेज मामला बन गया था.एक पुरानी कहावत है, ‘जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो किसी और की.’ अर्थात धन, स्त्री और जमीन एक बलवान व्यक्ति ही रख सकता है. धन के मामले में यह कहावत सच हो न हो, लेकिन स्त्री और जमीन के मामले में तो यह अखिलेश पर सटीक बैठती है.

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना सुबेहा अंतर्गत एक गांव है शुकुलपुर. राजनारायण शुक्ला इसी गांव के मूल निवासी हैं. राजनारायण शुक्ला की गांव में 5 बीघा जमीन थी, जिस पर वह खुद ही खेतीबाड़ी करते आ रहे थे. इस के अलावा राजनारायण शुक्ला लखनऊ शहर में लोगों के घरों में पूजापाठ करने का काम भी करते थे.राजनारायण की पत्नी का काफी समय पहले किसी बीमारी के चलते निधन हो गया था. उन के 4 बेटे थे. इन में सब से बड़ा बेटा राघव शरण गांव में अलग मकान बना कर रहने लगा था. जबकि दूसरा अजय शुक्ला व सब से छोटा अनिल लखनऊ में ही प्राइवेट नौकरी करते थे.
तीसरे नंबर का बेटा अखिलेश काफी समय से दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. अखिलेश की शादी अब से लगभग 3 साल पहले अमेठी जिले के शुकुल बाजार थाना क्षेत्र के ग्राम बूबूपुर मजरा पाली निवासी अंजलि से हुई थी.

उस समय तक अनिल अखिलेश के साथ ही रहता था. शादी के बाद अंजलि ससुराल में ही रही. उस की सास पहले ही खत्म हो चुकी थी. घर पर 3 प्राणी थे. अखिलेश, उस के पापा राजनारायण शुक्ला और छोटा भाई अनिल.

घर में खाना बनाने की दिक्कत थी. इसी कारण शादी के बाद से ही अंजलि अपनी ससुराल की हो कर रह गई थी. अखिलेश शादी से पहले से ही दिल्ली में रह कर काम करता था. उस के पिता राजनारायण शुक्ला पुजारी का काम करते थे, जिस के चलते आए दिन उन्हें बाहर ही रहना पड़ता था.
हालांकि अनिल भी लखनऊ में नौकरी करता था. लेकिन घर पर भाभी के अकेला रहने के कारण वह अकसर गांव आताजाता रहता था. अंजलि देखनेभालने में जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा स्मार्ट अनिल भी था. फिर दोनों के बीच देवरभाभी का प्यार भरा रिश्ता.

कभीकभी अनिल अपनी भाभी के चेहरे पर उदासी देखता तो परेशान हो कर कहता, ‘‘लगता है भाभी को भैया की याद सता रही है.’’‘‘याद क्यों नहीं सताएगी देवरजी, अब तुम्हारे भैया तो मुझे घर में कैद कर के दिल्ली में मौजमस्ती कर रहे हैं. घर पर मन लगाने के लिए एक देवर ही तो है, जो कभी भाभी के दुखदर्द को महसूस ही नहीं करता.’’ अंजलि उलाहना देते हुए बोली.‘‘भाभी, ऐसी दिल तोड़ने वाली बात क्यों करती हो. मैं लखनऊ से तुम्हारी सेवा के लिए ही तो आता हूं. अगर तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो तो बिना किसी झिझक के बता देना.’’ अनिल ने उसे आश्वस्त किया.

अंजलि ने कई बार अनिल से बात करने की कोशिश की थी. लेकिन शर्म के मारे वह पहल नहीं कर पा रही थी. अनिल की तरफ से इशारा मिलते ही उस के दिल की ट्रेन रेंगनी शुरू हो गई थी. फिर वह ऐसे अवसर की तलाश में जुट गई, जब वह अनिल से खुल कर बात कर सके.एक दिन ऐसा ही मौका आया. राजनारायण शुक्ला को किसी काम से लखनऊ में रुकना पड़ा. उस दिन अनिल घर पर ही आया हुआ था. अंजलि ने खाना बनाया और देवरभाभी ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. उस दिन जैसे की अंजलि अपना कामकाज निपटा कर कमरे में पहुंची, उस के पैरों में दर्द होने लगा.

भाभी के पैर में दर्द होने पर अनिल परेशान हो उठा. अनिल ने डाक्टर से दवाई लाने की बात कही तो भाभी ने डाक्टर के पास जाने से साफ मना कर दिया. अंजलि बोली, ‘‘आप परेशान मत हो. मैं पैरों की तेल से मालिश कर लूंगी.’’फिर वह तेल की शीशी उठा कर लाई और अनिल के सामने ही पैरों की मालिश करने लगी. भाभी को मालिश करते देख अनिल से रहा नहीं गया.अनिल बोला, ‘‘भाभी, आप लेट जाओ. आप के नाजुक हाथों से मालिश करने से कुछ नहीं होने वाला. मैं आप के पैरों की मालिश कर देता हूं.’’

अंजलि भी यही चाहती थी. अनिल के कहते ही उस ने झट से शीशी उस के हाथ में थमाते हुए बोली, ‘‘देवरजी, अपने हाथ से मालिश करने में वह मजा कहां जो दूसरों के हाथों में आता है.’’पलभर में ही उस के तेल लगे हाथ अंजलि की पिंडलियों पर फिसलने लगे थे. जैसेजैसे अनिल के हाथ भाभी के पैरों की ऊंचाइयों पर बढ़ते गए, अंजलि का पेटीकोट भी ऊपर को सरकते गया. अनिल की जिंदगी में एक औरत के शरीरे को छूने का पहला अहसास था. एक औरत के गर्म शरीर की गरमी पा कर अनिल मदहोश हो गया.

भाभी की गोरीगोरी पिंडलियां देख कर वह अपना आपा खो बैठा. देखते ही देखते उस के हाथ पैरों के ऊपरी हिस्से पर भी पहुंच गए. अंजलि कब से इन्हीं पलों के इंतजार में थी.पलभर में ही एक तूफान आया और गुजर गया. जब अनिल अपने होशोहवास में आया तो वह निर्वस्त्र था. उस का सारा शरीर पसीनापसीना था. अंजलि सामने पड़ी ठंडी आहें भर रही थी.अनिल के संपर्क में आने के बाद अंजलि को पहली बार किसी की मर्दानगी का अहसास हुआ था. उस दिन देवरभाभी के रिश्तों की मर्यादाओं की सीमा टूटी तो यह सिलसिला बन गया.

अखिलेश दिल्ली से कभीकभार आता और एकदो दिन रुकने के बाद फिर से वापस चला जाता. लेकिन उस दौरान भी अंजलि अखिलेश की चोरीछिपे फोन पर अनिल से बात करती रहती थी.धीरेधीरे अंजलि की शादी को 2 साल बीत गए, लेकिन वह मां नहीं बन सकी. उस के बाद उस का झुकाव अनिल की तरफ हो गया था. वह हर समय अनिल से ही फोन पर बात करती रहती थी.अखिलेश अंजलि के फोन बिजी रहने से परेशान हो चुका था. जब कभी भी वह उसे फोन मिलाता तो उस का नंबर बिजी ही आता था. अखिलेश समझ नहीं पा रहा था कि वह हर वक्त किस से बात करती है.

इसी सच्चाई को जानने के लिए उस ने एक दिन उस का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह घंटोंघंटों उस के छोटे भाई अनिल से ही बात करती थी. अखिलेश समझ गया कि उस की बीवी और भाई के बीच जरूर कुछ चक्कर चला रहा है.देवरभाभी पर शक होने के बाद वह सच्चाई जानने के लिए एक ऐसे अवसर की तलाश में जुट गया, जब वह दोनों को रंगेहाथों पकड़ सके. जब कभी भी अनिल लखनऊ से घर आता तो वह दोनों पर गहरी नजर रखता था.

एक दिन अनिल लखनऊ से घर आया तो अखिलेश कहीं काम का बहाना बना कर घर से निकल गया. घर से निकलते ही उस ने दारू पी और फिर अपने दोस्तों में बैठ गया. उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. उस दौरान कई बार अंजलि ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन हर बार उस का मोबाइल बंद ही आया.

देर रात वह घर पहुंचा तो घर के मेनगेट का दरवाजा खुला था. अखिलेश सीधा अपने कमरे में पहुंचा. अंजलि अपने कमरे से गायब थी. उस के बाद वह अपने भाई के कमरे के पास पहुंचा. उस ने कान लगा कर सुना तो अंदर से दोनों के बातचीत की आवाज आ रही थी.अखिलेश भले ही नशे में था, लेकिन वह इतना तो समझ ही गया था कि उस की बीवी उस के भाई के साथ मौजमस्ती कर रही है. यह सब देख कर उस का गुस्सा बढ़ गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो उस के भाई ने दरवाजा खोला.

दरवाजा खुलते ही उस ने अंजलि के बारे में पूछा तो अनिल ने कहा कि भाभी अपने कमरे में होंगी. भाभी के बारे में उसे कुछ पता नहीं. भाई का लिहाज करते हुए उस समय अखिलेश अपने कमरे में चला गया. लेकिन उस की निगाहें भाई के कमरे पर ही टिकी हुई थीं.अनिल और अंजलि को विश्वास था कि अखिलेश अब तक नशे की हालत में सो चुका होगा. तभी मौका पाते ही अंजलि अनिल के कमरे से निकल कर छत पर चली गई. छत पर कुछ देर टहलने के बाद वह अपने कमरे में आ गई.
अंजलि के आते ही अखिलेश ने उस से पूछा, ‘‘इतनी रात गए कहां गई थी?’’

तब अंजलि ने बताया, ‘‘मैं ने कई बार तुम्हारा मोबाइल मिलाया. लेकिन वह स्विच्ड औफ आ रहा था. मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसी कारण मैं छत पर घूमने चली गई थी.’’अखिलेश अंजलि से बहुत प्यार करता था. लेकिन उस दिन उस का प्यार नफरत में बदल चुका था. अखिलेश नशे में था. उस ने तभी अंजलि को मारनापीटना शुरू कर दिया.

अनिल बचाव में आया तो उसे भी भलाबुरा कहा. अखिलेश ने उसी समय अनिल को चेतावनी दी, ‘‘आज से तेरेमेरे बीच भाई का रिश्ता खत्म. आज के बाद तू मेरे घर में मत आना.’’अगले दिन सुबह होते ही अखिलेश ने अनिल को अपने घर से अलग कर दिया था. उस के बाद अनिल भी अलग रहने लगा था. कुछ समय पहले ही अखिलेश ने अपने घर के सामने 3 बिस्वा जमीन खरीदी थी. भाइयों के बीच मनमुटाव होने के कारण उस के तीनों भाई भी उस जमीन पर अपना हक जमाते हुए उस में से अपने हिस्से की मांग करने लगे थे. जिसे ले कर कई बार चारों भाइयों में विवाद भी हुआ था.

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