अंधविश्वास की बलिवेदी पर : रूपल क्या बचा पाई इज्जत

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अपूर्ण: मंदार के आने के बाद क्या हुआ धारिणी की जिंदगी में

‘‘धारिणीआज पहली बार नौकरी के लिए बाहर निकली थी. रुद्र के गुजरने के बाद वाह बहुत अकेली ही थी. समीरा की जिम्मेदारी निभाते हुए वह थक जाती थी. समीरा के जिंदगी में पिता रुद्र की खाली जगह भी धारिणी को ही पूरी करनी पड़ती थी. नौकरी के कारण धारिणी की समस्याएं और भी बढ़ गईं. मगर घर में ऐसे कितने दिन बीतते? इसलिए नौकरी धारिणी की जरूरत बन गई थी. एक होस्टल में उसे रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली थी. रोज रेल से आनाजाना सब से बड़ी समस्या थी, क्योंकि उसे इस की आदत नहीं थी. पहले दिन धारिणी का भाई सारंग साथ आया.’’

सारंग ने उस की अपने दोस्तों से पहचान करा दी, ‘‘दीदी, ये सब आप को मदद करेंगे… किसी को भी पुकारो.’’

‘‘जरूर, टैंशन मत लो मैडम,’’ दोस्तों के गु्रप से आवाज आई.

‘‘दीदी, ये मंदार शेटे. ये और आप ट्रेन से साथसाथ ही उतरोगे. शाम को भी यह आप के साथ ही रहेंगे. चलो, मैं अब निकलता हूं.’’

‘‘हां, जाओ,’’ धारिणी थोड़ी नाराजगी

से बोली.

2 मिनट में ट्रेन आई. धारिणी महिलाओं के डब्बे में चढ़ने की कोशिश कर रही थी. सारंग के सभी दोस्त उसी डब्बे में चढ़ गए.

‘‘अरे, यह तो लेडीज डब्बा है… आप लोग इस डब्बे में कैसे?’’

‘‘ओ मैडम, हम यही रहते हैं. अपने गांव की ट्रेन में सबकुछ चलता है. यह मुंबई थोड़ी है,’’ मंदार बोला.

धारिणी चुप हो गई. मन ही मन आज का दिन अच्छा गुजरे ऐसी कामना करने लगी. जैसे

ही सावरगांव आया धारिणी और मंदार ट्रेन से नीचे उतरे, ‘‘चलो मैडम मैं आप को होटल तक छोड़ता हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आप को क्यों परेशानी…’’

‘‘अरे, इस में किस बात की परेशानी. आप सारंग की बहन… सारंग मेरा अच्छा दोस्त है… मैं छोड़ता हूं आप को…’’

धारिणी का भी पहला दिन था. वह भी घबरा रही थी. मंदार के कारण उस ने खुद को थोड़ा हलका महसूस किया. इसलिए वह मंदार की गाड़ी में बैठ गई. वैसे दिन अच्छा ही गया. शाम रेलवे में उसे फिर मंदार मिला.

‘‘कैसा गया आज का दिन धारिणी… सौरी मैं जरा जल्द ही नाम से पुकारने लगा.’’

‘‘नहीं इट्स ओके. आप पुकारें नाम से. मैं गुस्सा नहीं होऊंगी.’’

दोनों घर पहुंचे. दूसरे दिन वही किस्सा. धीरेधीरे धारिणी और मंदार अच्छे दोस्त

बने. सुबहशाम मंदार और धारिणी रेल में मिलते थे. कभीकभार मंदार धारिणी को होटल तक छोड़ने के लिए भी आता था, तो कभी लेने के लिए आता था. रातबेरात व्हाट्सऐप पर उन का चैटिंग भी चलता था. धारिणी सभी समस्याएं मंदार के साथ शेयर करती थी.

‘‘जाने भी दो, कुछ नहीं होगा…’’ इन लफ्जों में मंदार धारिणी को समझता था.

धारिणी के लिए मंदार उस की स्ट्रैस रिलीफ की दवा था, समीरा, मांपिताजी, सारंग ये सभी रुद्र की खाली जगह भरने के लिए असमर्थ थे. लेकिन मंदार रुद्र की तरह मानसिक सहारा देता था. मंदार के कारण धारिणी फिर से संजनेसवरने लगी, हंसने लगी, अच्छे कपड़े पहन के घूमने लगी. उस के लिए वह अच्छा दोस्त था. बाइक पर कभीकभी वह उस के कंधे पर हाथ रखती थी. बोलतेबोलते अनजाने में पीठ पर चपत मारती थी. मगर ये सब एक अच्छा दोस्त होने के नाते ही होता था. 6-7 महीने अच्छे बीत गए. एक दिन सावरगांव उतर दोनों ने चाय पी.

‘‘तुम बहुत बातें करती हो मुझ से. ऐसा क्यों?’’

‘‘तुम अच्छे लगते हो मुझे. मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है. मुझे तुम्हारी पर्सनैलिटी भी बहुत अच्छी लगती है. रेल में नहीं बोल सकती सब के सामने. इस वक्त हम दोनों ही हैं, इसलिए बता रही हूं.’’

‘‘अरे बाप रे, क्या खा कर निकली हो

घर से?’’

‘‘कुछ नहीं, जो सच है वही बता रही हूं,

तुम से जो लड़की ब्याह करेगी वह सचमुच खुशहाल रहेगी.’’

‘‘हां, यहां से 35 किलीमीटर पर गुफाएं हैं. चलोगी देखने?’’

‘‘पागल हो गए क्या? मैं ने घर पर नहीं बताया. किसी कारण विलंब हुआ तो मांबाबूजी चिंता करेंगे.’’

‘‘नहीं, विलंब नहीं होगा, ट्रेन से तुम रात

9 बजे तक  घर पहुंच जाएगी.’’

‘‘मांबाबूजी क्या कहेंगे?’’

‘‘तुम मेरे साथ गुफा देखने जा रही हो यह मत बताना उन को. एक दिन झठ बोलेगी तो क्या फर्क पड़ने वाला है. पिछले 6 महीनों से मैं ने कुछ मांगा तुम से? थोड़ा घूम के आएंगे… तुम्हें चेंज मिलेगा. तुम्हारे लिए कह रहा हूं… मैं तो हजारों बार गया हूं वहां.’’

‘‘नहीं, मैं काम पर जाती हूं.’’

‘‘हां जाओ. अभी कह रही थी कि तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है. जब वक्त आया तो घबरा रही हो.’’

‘‘अरे, मुझे अच्छा लगता है तो क्या मैं तुम्हारे साथ पूरे गांव में कहीं भी घुमूं क्या?’’

‘‘ठीक है, यहां मेरा और सारंग का एक दोस्त रहता है. शाम को उस के बच्चे को देखने तो चलोगी न?’’

‘‘ट्रेन जाएगी फिर?’’

‘‘मैं छोड़ दूंगा तुम्हें तुम्हारे घर पर मेरी मां… इस बारे में पहले ही सोचा है मैं ने.’’

‘‘ठीक है, हो के आएंगे,’’ धारिणी ने मंदार नाराज न हो, इसलिए हामी भर दी.

‘‘1 घंटा जल्दी निकलना ताकि तुम्हें घर पहुंचने में देर न हो.’’

‘‘हां बाबा, कोशिश करूंगी.’’

शाम को धारिणी हमेशाकी तरह 4 बजे होटल के बाहर आ कर खड़ी हो गई. मंदार उस का ही इंतजार कर रहा था.

धारिणी ने बाइक पर बैठते हुए पूछा, ‘‘कहां रहता है तुम्हारा दोस्त?’’

आखिरकार गाड़ी एक घर के पास रुकी. घर को ताला लगा था. आसपास खेत फैले थे. जगह सुनसान थी. लोगों की बस्ती नहीं थी और चहलपहल भी नहीं थी.

‘‘इस घर को ताला क्यों लगा है मंदार?’’

‘‘चाबी मेरे पास है. आओ अंदर चलते हैं.’’

‘‘मगर क्यों? मुझे घर छोड़ दो.’’

‘‘बावली हो क्या? कभी न मिलने वाला एकांत मिला है हमें. आधा घंटा बैठेंगे, फिर निकलेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाउंगी अंदर.’’

‘‘देखो, तुम पहले आंखें बंद कर के खड़ी रहो. मैं सिर्फ एक जीभर के किस लूंगा और फिर निकलेंगे. तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है क्या?’’

‘‘देखो मंदार, तुम मुझे दोस्त की हैसीयत से अच्छे लगते हो. लेकिन इस बात के लिए मेरी नजदीकी सिर्फ रुद्र से थी और मरते दम तक उस से ही रहेगी.’’

‘‘लेकिन मुझे भी तुम अच्छी लगती हो और अगर मुझे तुम्हें स्पर्श करने को दिल करता है, तो इस में गलत क्या है?’’

‘‘शायद मेरी ही गलती… मुझे तुम से दूर रहना चाहिए था.’’

‘‘अरे सुनो तो, खाली 1/2 घंटा है हमारे पास. क्यों वक्त जाया कर रही हो? ऐसी कौन सी धनदौलत मांग रहा हूं तुम से…’’

‘‘माफ करना… मैं अगर अपनी मर्यादा समझती तो शायद तुम्हें गलतफहमी

न होती अपनी रिलेशनशिप पर… अब तो मेरी ट्रेन भी छूट गई होगी… मुझे सहीसलामत घर पहुंचा दो.’’

‘‘ओह मेरी मां. तुम टैंशन मत ले. तुम्हारी रजामंदी के सिवा मैं कुछ नहीं करूंगा,’’ कह मंदार ने जल्दी बाइक को किक लगाई. 8 बजे गाड़ी घर के सामने खड़ी थी. बाइक की स्पीड और मंदार का गुस्सा साथसाथ चल रहे थे. मगर रास्ते में दोनों एकदूसरे से एक लफ्ज तक नहीं बोले. घर आते ही धारिणी जल्दीजल्दी चलने लगी.

‘‘ओ मैडम, आप को बिना स्पर्श किए घर तक छोड़ा है मैं ने. आप जीत गईं, मैं हारा. मैं ही पागल था, जो हर वक्त आगेपीछे घूमता था. मेरी एक इच्छा पूरी करती, तो कौन सा पहाड़ टूट जाता… मैं कुछ सोने के लिए नहीं कह रहा था मेरे साथ. मैं भी अपनी मर्यादा जानता हूं मैडम.’’

‘‘मंदार, प्लीज इस तरह मुझ से बात मत करो. आखिरकार संस्कार भी कोई चीज होती है या नहीं? इस बात के लिए मेरा मन कभी भी राजी नहीं होगा. तुम्हारे कारण रुद्र के जाने के बाद मैं ने फिर से जीना सीखा. मगर तुम्हें अगर सिर्फ मेरा स्पर्श ही चाहिए, तो मुझ से फिर कभी मत मिलना.’’

‘‘यह भी कहती हो कि तुम मुझे अच्छे लगते हो… पगली स्पर्श करने से ही प्यार व्यक्त होता है.’’

‘‘मंदार मेरे तन पर केवल रुद्र का अधिकार था और रहेगा. तुम जो कह रहे हो वह मेरे संस्कार में कभी नहीं बैठेगा… मेरी सोच कुछ ऐसी ही है.’’

‘‘फिर एक बार गौर करना मेरे कहने पर… मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा.’’

‘‘मंदार, तुम्हारी इस साल शादी होने वाली है. तुम्हारी पत्नी को क्या मुंह दिखाऊंगी मैं? तुम मेरे दोस्त हो. शायद उस से भी बढ़ कर हो. मगर हर चीज पूरी होनी ही चाहिए ऐसा नहीं होता. मेरे दोस्त, इसलिए आज से मैं तुम्हें कभी भी परेशान नहीं करूंगी… हम दोनों इस के बाद कभी नहीं मिलेंगे. अगर मेरे कारण तुम्हारा दिल टूट गया होगा, तो मुझे माफ कर देना.’’

सोने की पौलिश : जब एक प्रेमी की उतर गई कलई

ना हर और चिया में इश्क की रवानगी अपनी हद पर थी और आज चिया अपनी स्कृटी को लगातार एक उड़ान दिए जा रही थी. रफ्तार बढ़ाने के साथसाथ उस के चेहरे की बादामी चमक भी बढ़ती जा रही थी. यह फेशियल की चमक नहीं थी, बल्कि यह तो रोड पर मर्दों की भीड़ को पीछे छोड़ देने से उमड़े फख्र की रौनक थी.

चिया के बाल अब भी हलके से गीले थे और उस के बालों से उठती हुई नैचुरल गंध पीछे की सीट पर बैठे नाहर को बहुत भा रही थी. कभीकभी नाहर जानबूझ कर अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर देता, जिस से चिया के बाल उस के चेहरे को छू जाते थे. 28 साल का नाहर रोमांचित हुए बिना नहीं रह पा रहा था.

चिया ने आज हलके पीले रंग का सूट पहन रखा था. अनजाने में ही उस ने यह कलर नहीं चुन लिया था, बल्कि इसे तो आज इसलिए पहना था, क्योंकि यह नाहर का पसंदीदा रंग था.

नाहर लखनऊ यूनिवर्सिटी से हिंदी भाषा में पीएचडी कर रहा था, तो चिया एमकौम की छात्रा थी. नाहर अकसर यूनिवर्सिटी के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था और उन्हीं कार्यक्रमों में चिया कौमर्स फैकल्टी की नुमाइंदगी करती थी. बस यहीं से 2 नौजवान दिल एकदूसरे के लिए धड़कने लगे थे.

नाहर ‘वीर भारत’ नामक एक पार्टी का सदस्य था और आगे चल कर वह इस पार्टी का बड़ा नेता बनना चाहता था, जबकि चिया चाहती थी कि वह कोई अच्छी नौकरी करे.

‘‘पर, तुम ने यहां स्कूटी क्यों रोकी? मुझे तो यहां नहीं जाना…’’ चिया ने अपनी स्कूटी रैजीडैंसी के सामने रोकी, तो नाहर ने बिना सीट से उतरे हुए पूछा.

चिया ने इशारे से अंदर चल कर बैठ कर समय बिताने को कहा, तो नाहर ने साफ मना कर दिया. नाहर का कहना था कि वह किसी ऐसी जगह नहीं जाना चाहता, जहां पर उसे अपने और अपने देश की गुलामी की झलक मिलती हो और यह ‘रैजीडैंसी’ उसे ऐसा ही महसूस कराती है, जैसे वे अब भी अंगरेजों के गुलाम हों.

‘‘ये विदेशी हमलावर, जिन्होंने हमारे देश को तोड़ा और लूटा, मैं इन की हर चीज से नफरत करता हूं. अंगरेजों और मुगलों ने हमारी संस्कृति को बरबाद किया है…’’ नाहर ने भड़ास निकाली.

चिया नाहर की बात सुन रही थी और उसे नाहर की बातें बच्चों जैसी लग रही थीं, ‘अगर हम गुलाम रहे तो इस में हमारी आपसी फूट और बुजदिली जिम्मेदार रही होगी और फिर नाहर को विदेशी संस्कृति से इतनी ही परेशानी है तो वह पैंट और शर्ट क्यों पहनता है? यह भी तो विदेशी पहनावा है. वह क्यों नहीं कुरता और धोती पहन लेता…’ चिया ने अपने मन में सोचा, पर नाहर के गुस्से को देखते हुए कुछ नहीं कहा.

उन दोनों में कुछ देर के बाद शहीद पार्क में जा कर बैठने की बात पर राजीनामा हुआ, तो चिया ने कुछ दूरी पर ही बने शहीद पार्क की तरफ स्कूटी दौड़ा दी.

शहीद पार्क पहुंच कर चिया और नाहर ने अपने भविष्य को ले कर बातचीत शुरू कर दी थी. चिया के मन में आज कुछ ऐसी बातें हुए थीं, जो वह नाहर को बताना चाह रही थी, पर नाहर तो पार्क में आ कर भी चिया की बात पर कम ध्यान दे रहा था. वह शहीद पार्क में बने ऊंचे स्तंभों के पास जाता, उन्हें छूता और लंबीलंबी सांसें लेता, जैसे उस के अंदर देशभक्ति की भावना जाग रही हो.

नाहर के अंदर का यह बदलाव चिया से छिपा नहीं था, पर कई बार 2 लोगों के बीच पनपा हुआ प्रेम एकदूसरे की बड़ी से बड़ी कमी भी देख नहीं पाता और यही हाल चिया का भी था. नाहर को आर्टिफिशियल गहने पसंद थे, तो चिया को खालिस सोने के गहनों का शौक था.

‘‘इन पर सोने की पौलिश होती है, उतर जाए तो अंदर का जंग लगा हुआ लोहा ही रह जाता है,’’ चिया ने एक लौकेट नाहर को लौटाते हुए कहा था. उस की इस बात पर नाहर नाराज भी हुआ था, पर शांत ही रहा था.

चिया तो आज नाहर को यह बताना चाह रही थी कि अब उन दोनों को शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए, क्योंकि वह पेट से थी.

कुछ महीने पहले जब यूनिवर्सिटी का सालाना जलसा था, तब कार्यक्रम के दौरान हुई बारिश चिया और नाहर के प्रेमाग्नि की गवाह बनी थी और उन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए थे और उस के बाद कई बार बने थे. बच्चा ठहर जाने की बात चिया आज नाहर को बता देना चाह रही थी.

‘‘अरे वाह… चिया… तुम ने मुझे यह सब बता कर एक नया अनुभव दिया है. भले ही समाज इसे एक भूल कहे, पर तुम्हारा यह तोहफा मैं कभी नहीं भूलूंगा,’’ कहते हुए नाहर ने चिया का माथा चूम लिया था.

चिया को नाहर का इस तरह प्रेम प्रदर्शन अच्छा लग रहा था. अब इस शादी को अमलीजामा पहनाने के लिए जरूरी था कि नाहर और चिया के घर वाले एकदूसरे से बात कर लें. इसी दिशा में पहला कदम खुद नाहर ने बढ़ाया था.

नाहर को अपने मांबाप को ले कर चिया का हाथ मांगने के लिए उस के घर जाना था. ऐसा हुआ भी. दरवाजा चिया ने ही खोला था. हलकी सी शर्म की चमक लिए हुए वह हाथ से बैठने का इशारा कर के आगे बढ़ गई.

नाहर का परिवार ड्राइंगरूम में आ गया. दरवाजे पर सजी हुई कलाकृतियां चिया के कलाप्रेमी होने का सुबूत दे रही थीं और चिया के इस हुनर को नाहर अच्छी तरह जानता भी था.

चिया के पापा सामने आ कर बैठ गए और कुछ औपचारिक बातें होने लगीं. चिया कुछ देर बाद चाय ले कर आ गई.

नाहर की मां ने चिया को अपने पास बुलाया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा. चिया को फूलों का बुके दिया. शायद चिया उन्हें पसंद आ गई थी.

‘‘आंटी नहीं दिख रही हैं?’’ नाहर ने पूछा, तो चिया ने बताया कि अम्मी अभी अपना रोजा खोल रही हैं. वे कुछ देर बाद उन्हें जौइन करेंगी.

चिया के ये शब्द नाहर के कानों में पिघलते हुए सीसे की तरह उतरते चले गए. हजार सवाल नाहर के चेहरे पर तैरने लगे, ‘रोजा… तो क्या चिया की मां मुसलिम हैं?’ नाहर के मन में एकसाथ हैरानी और नफरत के भाव आते चले गए.

‘‘हां नाहर, मेरी मां एक मुसलमान परिवार से हैं, जबकि मेरे पिता हिंदू हैं… और मैं ने तुम से यह बात छिपाने की कोशिश नहीं की. इनफैक्ट, तुम्हारे सामने मैं ने अपनी मां को हमेशा ‘अम्मी’ ही कहा था.’’

‘इस इंटरनैट की दुनिया में लोग अपने मांबाप को किसी भी नाम से पुकारते हैं और फिर तुम्हारे जैसी अच्छी हिंदी बोलने वाली लड़की की मां एक मुसलिम होगी, यह बात मेरी समझ में नहीं आती…’ नाहर बहुतकुछ कहना चाह रहा था. शायद वह चिल्लाना भी चाह रहा था, पर ज्यादा गुस्से के चलते ऐसा कर नहीं सका और जब उसे कुछ समझ नहीं आया, तब वह उठ कर चला गया. मौके की नजाकत देख कर नाहर के मांबाप भी वहां से चले गए.

चिया को नाहर का बरताव बड़ा अजीब सा लगा था. उधर नाहर लगातार यह सोच कर परेशान था कि क्यों वह चिया की सचाई पहचान नहीं पाया था. चिया की मां मुसलिम है और पिता भले ही हिंदू है, पर चिया भी तो मुसलिम ही हुई. कैसे उस ने चिया के हाथों से उसी के घर का बना खाना खा लिया और आज तक वह कितनी बार तो चिया की मां से मिला था, पर उन के मुसलिम होने की बात आज ही उस के सामनेक्यों आई?

कहीं यह चिया द्वारा जानबूझ कर तो नहीं किया गया? यकीनन ही ऐसा किया गया होगा, तभी तो चिया ने उस दिन उसे शारीरिक संबंध बनाने से नहीं रोका और इस का मतलब तो यह भी है कि चिया ने जानबूझ कर उस का धर्म भ्रष्ट होने दिया और अब वह खुद को पेट से हो कर बता कर उस से शादी करना चाहती है.

‘‘ओह, एक गहरी और सोचीसमझी साजिश का शिकार हो गया मैं…’’ बुदबुदा उठा था नाहर. उसे अपने शरीर से भी घिन आ रही थी. वह बारबार अपनेआप को पानी से धो रहा था और सवालजवाब किए जा रहा था.

चिया से फोन पर बात करना मुमकिन नहीं था, इसलिए उस ने मोबाइल फोन पर मैसेज टाइप किया, ‘मुझे धोखे में क्यों रखा? गैरजाति की होते हुए मेरे साथ धोखा किया. मेरे लिए अब तुम से शादी करना मुमकिन नहीं.

‘और हां, होने वाले बच्चे की धमकी देने की कोशिश मत करना, क्योंकि तुम्हारे चरित्र का क्या भरोसा? जिस तरह तुम मेरे साथ सोई, उसी तरह किसी और के साथ सोई होगी…’ और नाहर मैसेज लिखता ही चला गया, जिस में उस ने जीभर कर चिया के चरित्र पर सवाल उठाए थे.

नाहर की तरफ से ऐसी बातें भी कही जा सकती हैं, यह चिया ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. एक कमजोर और टूटे हुए दिल के सच्चे दोस्त उस के आंसू होते हैं. चिया अपनेआप को रोक न सकी और आंसुओं में बह गई.

‘‘तो क्या तू खुदकुशी करने को सोच रही है?’’ चिया की अम्मी शबनम ने उस के विचारों को पढ़ लिया था. कुछ न कह पाई चिया, बस अम्मी के सीने से चिपक कर रह गई.

एक समय में चिया की मां ने भी तो प्रेम ही किया था और चिया के पापा से शादी करने के लिए जातपांत के बंधनों को तोड़ कर और अपने परिवार को ठुकरा कर उस ने शादी रचाई थी, पर चिया के प्रति नाहर का प्रेम प्रेम नहीं कहा जा सकता.

‘‘अच्छा हुआ, जो समय रहते नाहर की हकीकत पता चला गई. ऐसी सोच जितनी जल्दी उजागर हो जाए, उतना अच्छा,’’ अम्मी ने चिया को समझाया कि उस ने तो नाहर से प्रेम किया था, पर नाहर जाति के फेर में उलझा हुआ एक साधारण सा लड़का निकला, इसलिए चिया को न ही परेशान होना चाहिए और न ही उसे कोई गलत कदम उठाने की जरूरत है.

‘‘तो फिर क्या करूं मैं? क्या इस बच्चे को दुनिया में आने से पहले ही मार दूं?’’ चिया फुसफुसाई तो अम्मी भी उस के पेट से होने की बात सुन कर ठिठक गईं, पर अगले ही पल उन्होंने कहा कि बेशक, वह बच्चे को मार सकती है, पर अगर वह ऐसा करेगी तो यह बच्चा जो नाहर और चिया के प्रेम की निशानी है, वह एक पाप की निशानी बन जाएगा.

अम्मी की बातें सुन कर चिया को ज्यादा कुछ समझ नहीं आया. वह अपने कमरे में चली गई.

कुछ दिनों बाद चिया के मोबाइल पर नाहर की मां ने बात की. उन्होंने चिया से परेशान न होने को कहा. साथ ही, यह भी कहा कि वे नाहर से खुल कर बात करेंगी और उसे इंसाफ दिला कर रहेंगी.

इंसाफ का नाम सुन कर चिया ने कुछ कहना चाहा, पर तब तक फोन कट चुका था.

‘‘तुम्हें एक लड़की से प्रेम हो जाता है और तुम उस के साथ घूमतेफिरते हो, संबंध भी बना लेते हो, फिर उस की मां के मुसलिम होने से तुम्हें एतराज हो जाता है,’’ मां नाहर से तीखे सुर में बोल रही थीं. बदले में नाहर ने भी गरमी से जवाब दिया कि उस के साथ धोखा हुआ है और उस से सही बात छिपाई गई है.

‘‘पर, क्या फर्क पड़ता है अगर उस की मां मुसलिम है, बचपन में तुम्हारे कई दोस्त थे जो मुसलिम थे और उन का घर पर भी आनाजाना था,’’ मां ने कहा.

‘‘बचपन की बात और थी मां, आगे चल कर मुझे नेता बनना है. इस के लिए मेरी हिंदूवादी छवि का बना रहना जरूरी है,’’ नाहर का रूखा जवाब था.

मां कुछ देर सोचती रहीं और फिर बोलीं, ‘‘और अगर मैं तुम्हें यह बता दूं कि तुम से पहले भी यह परिवार जाति का दंश झेल चुका है, तब तुम पर क्या बीतेगी?’’

मां ने कहा, तो नाहर बिफर उठा, ‘‘आप को जो कहना है कहो, पर सचाई तो यह है कि एक दूसरे धर्म की लड़की से शादी नहीं करूंगा मैं.’’

‘‘ठीक है तो सुनो, तुम्हारी बूआ ने भी एक मुसलिम से शादी कर ली थी और फिर उन्हें इस परिवार ने कभी नहीं स्वीकार किया. उन दोनों को जान से मार देने की कोशिश भी की गई थी. उन दोनों ने शहर छोड़ कर अपनी जान बचाई.

‘‘बूआ परिवार से अलग हो जाने का सदमा नहीं सहन कर पाई और उन्होंने खुदकुशी कर ली…’’ मां लगातार बोले जा रही थीं, पर आज यह सचाई सुन कर नाहर को भरोसा नहीं हो रहा था.

मां की बातें सुन कर दुविधा में पड़ गया था नाहर, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह जातपांत के चक्कर में पड़ कर इतना बेगैरत कैसे हो गया था. उस ने भी तो चिया की जाति बिना जाने प्रेम ही किया था, फिर उस की मां की जाति और धर्म जानने के बाद उस का चिया के लिए प्रेम कैसे खत्म हो गया? और जो

इस तरह से खत्म हो जाए, वह प्रेम नहीं हो सकता.

सच में नाहर एक बड़ी गलती करने जा रहा था. आज उसे आईना दिखाया गया तो उसे अपना असली चेहरा दिखाई दिया. सच ही तो है कि प्रेम और शादी एक निजी मामला है, जो जाति देख कर नहीं किया जाता.

‘‘ओह, तो क्या मुझे चल कर चिया से माफी मांगनी चाहिए और चिया से शादी की बात भी फाइनल कर लेनी चाहिए…’’ नाहर पसोपेश में था और यह सब बुदबुदाते हुए बाहर निकल गया. अगले आधे घंटे के बाद ही वह चिया के सामने खड़ा था.

‘‘पर, अब बहुत देर हो गई है नाहर… अब हम एक नहीं हो सकते. और अच्छा हुआ, जो तुम्हारे अंदर बैठे जातपांत का मैल मेरे सामने पहले ही निकल कर आ गया. अगर तुम्हारी यह सचाई मुझे बाद में पता चलती, तो शायद मैं कुछ न कर पाती…’’ मानो चिया बहुतकुछ कह देना चाहती थी और उस ने नाहर को खूब लताड़ा.

‘‘नहीं, पर अब मेरी आंखों पर पड़ा परदा हट गया है. अब मैं तुम्हें स्वीकारने को तैयार हूं,’’ नाहर ने कहा.

‘‘मुझे स्वीकार कर के मुझ पर एहसान करने जैसी कोई जरूरत नहीं, क्योंकि आज अगर मैं तुम्हारी ये बातें भूल भी जाऊं तो क्या गारंटी है कि तुम इन सब बातों को भविष्य में नहीं दोहराओगे?’’ चिया ने कहा.

नाहर चुप था. शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, ‘‘पर, इस बच्चे की जिम्मेदारी और खर्चा मैं उठाने को तैयार हूं,’’ नाहर ने कहा.

‘‘नहीं. तुम्हें उस के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बच्चे के लिए मां भी बनूंगी और पापा भी, और मेरी पूरी जिंदगी में यह कोशिश रहेगी कि मैं उसे ऐसी सीख देने में कामयाब रहूं, जहां वह हिंदूमुसलमान के भेदभाव से ऊपर उठ सके,’’ चिया पर नाहर की चिकनीचुपड़ी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था.

यह बात सच थी कि नाहर ने चिया से प्रेम किया था, मगर यह प्रेम का कैसा रूप था, जो चिया की मां के मुसलिम होने से नफरत में बदल गया? नाहर के चरित्र पर चढ़ी सोने की पौलिश हट रही थी और उस के अंदर का जंग लगा हुआ लोहा सामने आ रहा था.

वैंटिलेटर : कोरोना में दांव पर लगी जिंदगी

सरकार कहती है कि उस ने कोरोना महामारी का सामना बहुत अच्छी तरह से किया है, लौकडाउन ने लोगों को बरबाद होने से बचा लिया, पर कोरोना ने कितना नुकसान किया, यह या तो बलि चढ़ने वाला या फिर बलि लेने वाला बता सकता है.कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया.

हमारे हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया. हमारी जिंदगी को वैंटिलेटर बना दिया. कोरोना ने मुझे सिविल सर्विस प्रतियोगी से दूर कर के कारपोरेट वेश्या बना दिया.आज मैं अपनी यानी पूर्णिमा की कहानी आप को सुनाती हूं. मेरे पिताजी फलों के ठेले की फेरी लगा कर आराम से 800 से 1,200 रुपए रोजाना बचा लेते थे. उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और यही सीख हम बच्चों को भी मिली थी.

12वीं क्लास में उत्तर प्रदेश की मैरिट लिस्ट में नाम आने के बाद पापा की इच्छा थी कि मैं आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली चली जाऊं और मां की इच्छा थी कि मेरे छोटे भाई विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराऊं.मैं जानती थी कि दोनों सपने एकसाथ पूरे नहीं हो सकते, इसलिए मैं ने शहर के एक कालेज में एडमिशन ले लिया और विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराने के लिए हम सब पाईपाई जोड़ने लगे.सरकार की गलत नीतियों के चलते महंगाई और बेरोजगारी वैसे ही हद पर थी.

पापा की कमाई तो घरखर्च में भी कम पड़ जाती थी. मेरी और मां की ट्यूशन की कमाई थी, जिस से थोड़ीबहुत बचत हो रही थी.अपने सरकारी कालेज के एक फंक्शन में मेरी मुलाकात शहर के सब से बड़े उद्योगपति के बिगड़ैल लड़के राजीव से हुई थी. मैं ने उस फंक्शन में रानी झांसी का किरदार निभाया था. मेरी बहुत तारीफ हुई थी. राजीव ने मुख्य अतिथि की हैसियत से मुझे पुरस्कार दिया था.राजीव एक बहुत ही महंगी कार से आया था. उस के गोरे, क्लीन शेव चेहरे पर क्रीम कलर का सूट बहुत अच्छा लग रहा था. उस के काले चश्मे में अपना अक्स देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी.

कालेज की बिगड़ी हुई लड़कियां पीछे की लाइन में बैठ कर राजीव के लिए तरहतरह की गंदीगंदी बातें करते हुए अफवाह फैला रही थीं. कुछ लड़कियां राजीव को शहर का सब से काबिल बैचलर बताते हुए उस के लिए ठंडी आहें भरने लगी थीं, तो एक सीनियर लड़की ने बताया कि वह पहले से शादीशुदा है.पता नहीं क्यों इस बात से मुझे भी बुरा लग गया. इस बीच राजीव को अपनी ओर घूरता देख मेरे शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो गई. उस दिन के बाद राजीव से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई.मार्च, 2020 में कोरोना महामारी के चलते पूरे भारत में लौकडाउन हो गया.

हम सब की कमाई खत्म हो गई. डेढ़ महीने तो घर बैठ कर अपनी बचत इस्तेमाल करते रहे, उस के बाद पापा ने दोबारा ठेला लगाना शुरू कर दिया. सरकार ने फलसब्जियों की कीमत तो कंट्रोल कर दी थी, लेकिन यह तय नहीं हुआ था कि वह फुटकर में बेची जाएगी कि थोक में यानी दुकानदार 100 रुपए प्रति किलो से महंगे सेब नहीं बेच सकता, चाहे थोक हो या फुटकर.

इस का नतीजा यह हुआ कि मार्जन बहुत घट गया और अब उन्हें रोजाना 200-300 रुपए कमाने में दिक्कत हो रही थी.हमारे पड़ोस की कमला आंटी, जो बड़े लोगों के घरों में बरतन मांजती थीं, अनपढ़ होने के बावजूद उन की जिंदगी अब हम से कहीं बेहतर चल रही थी. उन की मालकिन ने दोबारा उन्हें काम पर बुलाना चालू कर दिया था. 2 महीने उन्हें घर बैठे के पैसे दिए थे, सो अलग.

कमला आंटी के बच्चों को उन की मालकिन के बच्चों की उतरन मिल जाती थी, जो हमारे नए कपड़ों से भी अच्छे होते थे. अब तो कई महीने से हमारे कपड़े खरीदे ही नहीं गए थे. विनोद कमला आंटी के बच्चों के कपड़ों पर ललचाता था, तो अकसर मैं अपने हिस्से के पैसों से भी उसी के लिए कपड़े खरीद देती थी.लड़कियों के कपड़े लड़कों से पहले छोटे हो जाते हैं, क्योंकि वे लंबाई के साथ चौड़ाई में भी बढ़ती हैं. लौकडाउन में मेरे सारे कपड़े छोटे पड़ने लगे थे.

सब से ज्यादा गुस्सा मुझे अपने सीने के साइज को ले कर था. हर सुबह इस का साइज मुझे कुछ बढ़ा हुआ महसूस होता था. मेरी सब से बड़ी साइज की कुरती भी सीने के पास से छोटी हो गई थी. मेरे तकरीबन सारे कपड़े कांख के पास से फटने शुरू हो चुके थे.कमला आंटी को समाजसेवियों के मुफ्त भंडारे का पता चल जाता था. उन्होंने साथ चलने को कहा, तो मैं ने बहुत आनाकानी की, पर मजबूरी में विनोद को ले कर उन के साथ फ्री राशन लेने जाना पड़ा. मैं ने जानबूझ कर और भी खराब कपड़े पहने थे, ताकि मदद देने वाले कुछ गलत न बोलने लगें.शरमाते हुए मैं भीख मांगने की लाइन में लगी ही थी कि धक्के की आवाज के साथ मेरे दिल की धड़कन रुक गई. सामने राजीव सर थे…

मेरे ड्रीम बौयफ्रैंड, जिन के बारे में सपने देखते हुए मैं ने दर्जनों बार मधुर मिलन किया था. मेरा चेहरा शर्म से लाल पड़ गया और मुझे रोना आ गया.जल्द मुझे अहसास हुआ कि दुनिया इतनी बुरी नहीं जितना मैं मानती थी. मदद बांटने वाले लड़के और राजीव सर ने मुझे लाइन तोड़ कर सामान दे दिया. इस से थोड़ी सी वीआईपी वाली फीलिंग आई, लेकिन भीख तो भीख ही होती है.अगले दिन राजीव सर ने दोबारा मुझे कसम दे कर बुलाया था. आज मैं अपने सब से अच्छे कपड़े पहन कर गई थी. राजीव सर थोड़ी देर से आए थे. भीख के लालच में जनता बेसब्री से उन का और उन की टीम का इंतजार कर रही थी.राजीव सर अपनी बड़ी शाही कार से आने के बाद सीधे मेरे पास आ कर रुके.

वे आज मेरे भाई विनोद के लिए एक बहुत बड़ी चौकलेट ले कर आए थे. वे मुझ में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. मुझे इस बात से शर्मिंदगी भी हो रही थी, तो दूसरी ओर मैं रोमांचित भी हो रही थी.राजीव सर बहुत देर से मेरे सीने को ही देखे जा रहे थे. तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी नई कुरती भी कांख के पास से फट चुकी थी. मैं जब तक संभलती, तब तक राजीव सर मेरे ‘ताजमहल’ को अच्छी तरह ताड़ चुके थे.अगले दिन राजीव सर मेरे लिए टौप लाए थे और उन्होंने जबरदस्ती गाड़ी के अंदर जा कर नया टौप पहनने को मुझे मजबूर कर दिया.

मैं बाहर निकली, तो टौप से कंपनी का टैग निकालने के बहाने उन का मुंह मेरे बेहद करीब था. उन की सांस को मैं अपनी आंखों पर महसूस कर रही थी. उन के गुलाब की खुशबू का परफ्यूम बेहद मस्त था.अचानक उन्होंने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ते हुए अपनी ओर खींचना शुरू किया, तो घबरा कर मैं ने उन्हें धक्का दे दिया. उन से दूर भागते हुए दूर से ही उन्हें ‘थैंक्यू’ बोला और उन्हें ‘बाय’ बोलते हुए वहां से दौड़ निकली.विनोद ने बहुत पूछा कि दीदी हुआ क्या है, लेकिन मैं ने जवाब में सिर्फ विनोद का सिर चूमा. उस दिन के बाद विनोद ने बहुत जिद की, लेकिन मैं फ्री का राशन लेने नहीं गई. उस दिन से फिर मेरी राजीव सर से तीसरी बार मुलाकात नहीं हुई.अगस्त महीने में कोरोना का असर थोड़ा कम होने लगा था. मुफ्त का भोजन बंटना अब बंद हो चुका था.

मेरा कालेज दोबारा खुल गया था. मैं ने पूरा मन बना लिया था कि कोई नौकरी कर लूंगी. घर के माली हालात के हिसाब से मुझे अब अपने छोटे भाई को डाक्टर बनाने का सपना नामुमकिन सा लग रहा था.हमारे कालेज में सोशल डिस्टैंस, मास्क, सैनेटाइजर, कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए कोई न कोई कार्यक्रम होता रहता था. कालेज की सब से मेधावी छात्र होने के चलते इवैंट मैनेजमैंट की जिम्मेदारी मेरी रहती थी. मेरी आंखें हर मास्क के पीछे राजीव सर को ही तलाशती रहती थीं.

जिंदगी में पहली बार मुझे गरीब होने का दुख था. अगर कुछ अच्छे कपड़े होते, अगर मैं भी उन के साथ गरीबों को दान कर रही होती, तब हमारी दोस्ती के कुछ और माने होते. रोतेरोते मेरी आंख लग चुकी थी. राजीव सर सपने में मेरे सीने और जांघों को मसलते हुए मेरे होंठ चूम रहे थे. उन्होंने मेरे कपड़े उतारते हुए मुझे अपनी औफिस की टेबल पर लिटा दिया, उस के बाद वे मुझे प्यार करने लगे. जैसे ही वे मुझ में समाने लगे, तो मैं चौंक कर उठ गई. यह सिर्फ एक सपना होने पर मुझे तसल्ली हुई.कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के चलते बाजार बंद किए जाने लगे. पापा ने तय कर लिया था कि इस बार कुछ भी हो जाए, वे फेरी लगाना बंद नहीं करेंगे. यह फैसला हमारी जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई.

पापा को कोरोना हो गया. बुखार, खांसी और थकान के साथसाथ उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. जाहिर था कि वे कोरोना की दूसरी अवस्था में थे. शाम होतेहोते पापा का औक्सीजन लैवल बहुत घट गया और उन्हें वैंटिलेटर की जरूरत महसूस होने लगी. सरकारी अस्पताल में वैंटिलेटर की कमी हो रही थी.कमला आंटी ने बताया, ‘‘एक बार सरकारी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड में जाने के बाद मुरदे ही बाहर आ रहे हैं.’’रिश्तेदारों ने भी निजी अस्पताल का सुझाव दिया.

मम्मी ने डेढ़ लाख रुपए जोड़ रखे थे. यह रकम हम लोगों के लिए बहुत बड़ी थी. मम्मी को लगता था कि इस के बूते वे किसी भी समस्या से बाहर आ जाएंगी. पापा का निजी अस्पताल में इलाज शुरू हो गया. आरटीपीसीआर और एंटीजन टैस्ट पौजिटिव आया था. सीटी स्कैन में 19/24 इंफैक्शन पाया गया. अस्पताल के कमरे का एक दिन का चार्ज 1950 रुपए, नर्स का चार्ज 900 रुपए, डाक्टर की एक विजिट के 900 रुपए थे.रेडियोलौजी टैस्ट के लिए… ऐक्सरे चैस्ट पीए व्यू 550 रुपए, अल्ट्रासाउंड 2,000 रुपए, सीटी चैस्ट एचआरसीटी 7,150 रुपए. खून की जांच के लिए, एंटी एचसीबी टैस्ट 1,450 रुपए, ब्लड कल्चर 1,100 रुपए, डीडाईमर 1,600 रुपए और ब्लड शुगर 100 रुपए प्रति जांच.मैं ने पूछा, ‘‘मेरे पापा को तो शुगर नहीं है, तो टैस्ट क्यों?’’डाक्टर ने बताया कि मरीज को रैबजोल, लोपारिन, टेजिन वगैरह जो भी दवाएं दी जा रही हैं, सभी में ग्लूकोज है. कोरोना प्रोटोकाल में जरूरी है.

इन दवाओं के बाद मरीज को शुगर रिपोर्ट के मुताबिक इंसुलिन दिया जा रहा है.इन सारी बातों के बीच सिस्टर रोजी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. वे जींसटौप में स्कूटी से अस्पताल आती थीं. एक घंटा उन्हें अस्पताल की ड्रैस पहनने और मेकअप में लगता था. इस बीच अगर कोई उन्हें टोक दे तो उन्हें बहुत गुस्सा आता था. मुझे समझ नहीं आता था कि इस प्रोफैशन में मेकअप की क्या जरूरत? सिस्टर रोजी ने बताया कि औरत को हर प्रोफैशन में मेकअप की जरूरत होती है. औरत कितनी भी बुद्धिमान क्यों न हो, उसे अच्छा दिखना होता है.

मुझे उन की जौब बहुत अच्छी लगती थी. मैं उन से कई बार उन के जैसी जौब दिलाने को कह चुकी थी.सिस्टर रोजी मुसकरा कर कहती, ‘‘उस के लिए कुछ कंप्रोमाइज करना होता है. हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं…’’ और बात खत्म हो जाती थी.एक दिन रोजी मैडम ने अपनी मेकअप किट से मुझे लिपस्टिक लगा दी. मैं ने जिंदगी में पहली बार लिपस्टिक लगाई थी और केवल इस वजह से मैं आईने में बेहद खूबसूरत लगने लगी थी. रोजी मैडम ने बताया कि मेरे चेहरे की बनावट बहुत अच्छी है. सीने, कमर और नितंबों का अनुपात बहुत अच्छा है. अगर मैं कोशिश करूंगी, तो मुझे अच्छी नौकरी मिल जाएगी. अस्पताल में चौथे दिन ही हमारे सारे पैसे वैंटिलेटर की भेंट चढ़ गए.

डाक्टर ने प्लाज्मा थैरेपी के लिए 20,000 रुपए अलग से मांगे. मम्मी के ट्यूशन के बच्चों से उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आधे बच्चे तो फ्री में ही ट्यूशन पढ़ते थे, बाकी भी गरीब परिवारों से थे. हमारे महल्ले में ज्यादातर गरीब लोग रहते थे.मेरे कालेज के बहुत से दोस्त पापा को देखने आए थे. जिन लड़कों से मैं सीधे मुंह कभी बात नहीं करती थी, उन्होंने भी हमारी मदद की थी.

इन सब को जोड़ कर कुल 8,000 रुपए हुए थे.मैं ने दोबारा कातर निगाह से दोस्तों को देखा. जितेंद्र मेरी मदद करने को तैयार हो गया, लेकिन वह कुछ रिटर्न चाहता था. जितेंद्र हमारे कालेज का सब से अमीर, बिगड़ा हुआ और स्टूडैंट यूनियन का नेता था. अगर मुझे यही सब करना होता, तो जितेंद्र का औफर मैं ने तुरंत स्वीकार कर लिया होता, पर उस की मदद लेने से मैं ने साफ इनकार कर दिया.रोजी मैडम ने हमें इलाज के खर्च में छूट दिला दी. कुछ रिश्तेदारों से मदद हो गई.

इस तरह मैं इस मुसीबत से तो बाहर आ गई, लेकिन अगले ही दिन एक नई मुसीबत आ पड़ी. डाक्टर अब रेमडेसिवीर खरीदने को कह रहे थे. मैं पूरी तरह लाचार हो चुकी थी.तभी मुझे अस्पताल के गेट से राजीव सर आते दिखे. सफेद खादी के कुरते और ग्रीन सनग्लास में वे फिल्मी हीरो की तरह लग रहे थे. इतने बुरे हालात में उन के सामने आने की मेरी जरा भी हिम्मत नहीं थी.

मैं ने दीवार की ओर सिर कर के उन से छिपने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे देख लिया.चिरपरिचित गुलाब की खुशबू महसूस होते ही मुझे पीछे मुड़ कर देखने की इच्छा होने लगी. एक परिचित आवाज में मेरा नाम ‘पूर्णिमा’ सुनते ही मेरा सब्र जवाब दे गया. मैं राजीव सर से लिपट कर देर तक रोती रही. काउंटर पर जा कर उन्होंने कुछ बात की, तो अकाउंटैंट हैरानी से मुझे देखने लगी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी जैसी सीधीसादी, देहाती लड़की राजीव सर की दोस्त है.

राजीव सर उस अस्पताल के मालिक के बेटे थे.फिर उस के बाद 2 दिन और मेरे पापा वैंटिलेटर पर रहे, उस के बाद सामान्य औक्सीजन पर आ गए. अब अस्पताल में मुझ से पैसे मांगे ही नहीं जा रहे थे.रोजी मैडम को जब मेरी और राजीव सर की दोस्ती के बारे में पता चला, तो वे खुशी से फूली नहीं समा रही थी. उन्होंने मुझे दोपहर में स्टाफरूम में बुला कर गेट बंद कर लिया. मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद उन्होंने मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया.

मेरे एकएक अंग की खास बनावट के बारे में मुझे समझाने लगीं. मेरे सीने की नाप की तुलना में उभारों की माप कुछ ज्यादा थी और वे आम की तरह पिलपिले नहीं, सेब की तरह सख्त थे. उस पर निप्पल बटन की तरह न हो कर खूंटी की तरह थे. वे काले नहीं, सुर्ख गुलाबी थे. इसी तरह मेरे नितंबों का आकार भी कमर की तुलना में ज्यादा था और वे गीली मिट्टी की तरह लचर न हो कर रबड़ की तरह तने से थे. गोरा रंग और चेहरे की उभरी हुई बनावट मुझे आकर्षक और ग्लैमरस बनाते थे.

मतलब, मैं एक खास प्रोफैशन के लिए परफैक्ट थी. पर मुझे रोजी मैडम की बेहूदा बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही थीं. उन्हें भलाबुरा बोल कर मैं बाहर निकल गई.कुदरत की मरजी को कोई नहीं समझ सका है. पापा के ठीक हो कर घर लौटते ही एक दिन राजीव सर का बुलावा आया. उन के एहसान का बदला चुकाने और उन की प्रेमिका बनने के लिए मैं पहले से तैयार बैठी थी. एक महीने में एक दर्जन जगहों पर बुला कर उन्होंने मुझे भरपूर भोगा, उस के बाद मुझे मेरी औकात समझा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया.अपनी इज्जत गंवाने के बाद अब मेरे पास रोजी मैडम के बताए रास्ते पर चलने के अलावा कोई रास्ता न था.

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मान न मान : मर्यादा की तरकीब

मर्दों के दबदबे वाले समाज की यह खासीयत होती है कि वे औरतों पर अपनी मरजी थोपने की कोशिश करते हैं. कोई औरत माने या न माने, जबरदस्ती वे उस के दिल में घुसने की कोशिश करने लगते हैं. मर्दों को यह सोचना चाहिए कि वे कितने भी बलशाली क्यों न हों, औरतें कितनी भी लाचार क्यों न हों, कभी उन की मरजी के खिलाफ उन्हें हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

औरत भले ही अबला की तरह लाचार नजर आती है, लेकिन मौका मिलने पर वह किसी घायल नागिन की तरह पलट कर हमला कर सकती है. कभी वह छुईमुई नजर आती है, तो कभी मर्यादा की दहलीज लांघ कर मर्द को सबक सिखाने के लिए मजबूर हो जाती है.

दूसरे बच्चों की तरह मर्यादा को भी पढ़लिख कर अपना कैरियर बनाना था और उस के बाद किसी अमीर लड़के से शादी कर के ऐश की जिंदगी जीनी थी.

मर्यादा की मौसी ने उसे समझाया कि अगर वह सचमुच अमीर पति चाहती है, तो उसे खुद ही किसी अमीर लड़के को अपने प्यार के झांसे में लेना होगा, वरना उस के मांबाप दहेज के पैसे नहीं दे सकेंगे. मर्यादा ने मौसी की बात गांठ बांध ली थी.

मर्यादा लखनऊ शहर के एक कालेज से एमबीए कर रही थी, पढ़ाई के लिए घर से भेजा हुआ खर्च पूरा नहीं पड़ता था, मजबूरी में उस ने लोगों के घर जा कर ब्राइडल मेकअप और मेहंदी लगाने का पार्टटाइम काम शुरू कर दिया.

पढ़ाई के अलावा मर्यादा दुलहनों को सजाने के साथ खुद भी सजनेसंवरने में बिजी रहती थी. उस का सीना पूरी तरह से नहीं उभरा था, फिर भी पैडेड ब्रा पहन कर वह बहुत ही मस्त दिखने लगी थी. उस के पेशे में मस्त दिखना बहुत जरूरी था. मर्यादा को अपनी क्लास के सिर्फ 2 लड़के अच्छे लगते थे. पहला खानदानी रईस राकेश था. उस का खुद का बिजनैस था. दूसरा संतोष पढ़ने में बहुत ही होशियार था. उस की सरकारी नौकरी लगना तय था. स्टूडैंट यूनियन का नेता अर्जुन बेवजह उस के पीछे पड़ा रहता था.

लेकिन जिंदगी में सबकुछ इनसान की योजना के मुताबिक नहीं होता. अर्जुन भले ही एक बैक बैंचर था, लेकिन उस ने मर्यादा को शादी के कई घरों में मेकअप आर्टिस्ट का काम दिलाया था.

एक दिन मर्यादा को साइट पर छोड़ने के बहाने अर्जुन ने रास्ते में पड़ने वाली खंडहर हवेली में ले जा कर जबरदस्ती उस का कुंआरापन लूट लिया.

भैंस जैसे सख्त उस लौंडे ने मर्यादा को दिन में तारे दिखा दिए थे. खून बहने के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी. उस की जांघों के बीच की हड्डियां ककड़ी की तरह चटक गई थीं.

मर्यादा अपने बलात्कारी का खून कर देना चाहती थी, लेकिन जिस लड़के से वह अपनी इज्जत नहीं बचा सकी थी, उस की जान लेना इतना आसान नहीं था.

अगले दिन कालेज में मर्यादा अपने साथ हुई घटना की शिकायत किसी से नहीं कर सकी. अगर बाबूजी को पता चल गया तो उन्हें उस की पढ़ाई बंद करा कर घर बैठा देना था और फिर किसी चने बेचने या रिकशा चलाने वाले से उस की शादी करा देनी थी. उस ने खुदकुशी करनी चाही, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.

मर्यादा द्वारा खामोशी से इतना सब सह लेने के चलते अर्जुन के चमचों का हौसला और ज्यादा बढ़ गया. अगले दिन कालेज में मर्यादा नाम के पोस्टर चिपके हुए थे. उन्होंने मर्यादा को अर्जुन की मंगेतर और अपनी भाभी के नाम से बदनाम कर दिया.

राकेश और सुरेश ने मर्यादा के चरित्र पर लांछन लगा कर उसे रिजैक्ट कर दिया था. हर जगह उस की बदनामी हो चुकी थी. चुनरी से चेहरा छिपाए बगैर उस का होस्टल से बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

अर्जुन के अलावा हर इनसान मर्यादा को आवारा, बदचलन, बिगड़ी हुई लड़की समझने लगा. उस के पास एकमात्र रास्ता अर्जुन बचा था, फिर भी वह उसे कोई मौका नहीं दे रही थी.

अगले 3 महीनों तक अकेले कहीं ले जाने, मिलने, छूने, बोलने का कोई भी मौका मर्यादा ने अर्जुन को नहीं दिया, जिस से मर्यादा पर उस का क्रश बहुत बढ़ गया. अर्जुन अपनी बलात्कार की ज्यादती को भावनाओं का बहाव बता कर अपने प्यार की कसम खा रहा था.

इधर मौसी ने भी मर्यादा को समझाया था कि जो मर्द अपने पहले प्यार में ही किसी लड़की का खून निकाल कर उसे एक पूरी औरत बना देता है, वही सच्चा मर्द होता है. अर्जुन ने वह कर दिखाया था.

मर्यादा को अब अर्जुन के प्यार में कोई शक नहीं बचा था, लेकिन उस के पास पैसों की कड़की थी. उस की आमदनी का जरीया नहीं था, इसलिए वह उस से पीछा छुड़ाना चाहती थी.

इसी उधेड़बुन से तंग आ कर एक दिन मर्यादा ने अर्जुन को साफ शब्दों में समझा दिया कि अगर वह शादी के बाद मेरे लिए पैसे कमा कर नहीं ला सकता, तो उसे मेरा पीछा करने की कोई जरूरत नहीं है.

अर्जुन तैश में वहां से निकल गया. वह खुदकुशी कर सकता था. मर्यादा को मार सकता था. पर मर्यादा उस समय तक उस से इतना तंग आ चुकी थी कि वह क्या करेगा, इस की उसे कोई चिंता नहीं थी.

4 दिन बाद अर्जुन मर्यादा के लिए 4 लाख रुपए ले कर लौटा. मर्यादा ने कभी इतने सारे नोट एकसाथ नहीं देखे थे. उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

अब अर्जुन के सच्चे प्यार को स्वीकारने के अलावा मर्यादा के पास कोई उपाय नहीं बचा था. उस के पैसों की शर्त को अर्जुन ने पूरा कर दिया था और जिंदगीभर प्यार से रखने का भरोसा दिलाया था. वह सच्चे आशिक की तरह मर्यादा के जिस्म के हर रोम को प्यार करता था. घंटों उस के नंगे बदन को निहारता था. बिस्तर पर वह गुलाम की तरह बरताव करता था.

4 दिनों तक एकदूसरे की बांहों में पड़े हुए उन दोनों के सारे गिलेशिकवे खत्म हो चुके थे. उस घटना के लिए उस ने मर्यादा से बारबार और रोरो कर माफी मांगी थी. मर्यादा ने उसे माफ कर दिया.

अभी मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा घटना शुरू हुआ ही था कि अर्जुन को पुलिस ने पकड़ लिया. दरअसल, अर्जुन ने पैट्रोल पंप के कैशियर को लूटा था. इस खबर से एक बार फिर मर्यादा की जिंदगी में भूचाल आ गया.

बहरहाल, अर्जुन ने मर्यादा का नाम नहीं बताया. उस ने भी अर्जुन को पहचानने से इनकार कर दिया. शायद अर्जुन बेहद प्यार करने के चलते मर्यादा को किसी परेशानी में डालना नहीं चाह रहा था या फिर पैसे बरामद करा कर अपना जुर्म कबूल करना नहीं चाह रहा था. मर्यादा ने सुना कि थाने में अर्जुन की खूब कुटाई हुई, फिर भी उस ने उस का नाम नहीं बताया.

अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए ले कर मर्यादा गांव भाग आई. रुपयों को उस ने बहुत अच्छी तरह से कपड़े में बांध कर भूसा रखने वाले कच्चे मकान के छप्पर में छिपा दिया. यहां भी डर के चलते वह 2 दिन तक खाना नहीं खा सकी. घर के बाहर से किसी गाड़ी की आवाज आती तो लगता कि पुलिस उसे पकड़ने आ गई है.

इस बीच मर्यादा को एक शानदार मौका हासिल हुआ. उस के एक दूर के रिश्तेदार ने बायोडाटा के आधार पर उसे शादी के लिए चुन लिया था. मर्यादा का होने वाला मंगेतर सरकारी नौकरी में था और खानदानी रईस था. उसे मर्यादा की शक्ल और उस का बायोडाटा मर्यादा को तो पसंद आ गया था, लेकिन वह दहेज भी मांग रहा था. इस से पहले कि कोई उसे मर्यादा के कालेज के कांड के बारे में बताए, उसे शादी कर के यहां से हजार किलोमीटर दूर अपनी ससुराल नरसिंहपुर भाग जाना चाहिए.

तय योजना के मुताबिक, अर्जुन को उस के हाल पर छोड़ कर अपने सारे कौंटैक्ट नंबर मिटा कर, मोबाइल फोन की सिम बदल कर, सोशल मीडिया एकाउंट डिलीट कर मर्यादा रविंद्र से शादी कर के अपनी ससुराल भाग गई. अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए से उसे दहेज की रकम जुटाने में बहुत मदद मिली थी.

ससुराल पहुंचते ही मर्यादा ने रविंद्र को पूरी तरह से अपने काबू में ले लिया था. मौसी की सिखाई हुई तरकीब के मुताबिक सुहागरात के दिन बेवजह चीखचिल्ला कर उस ने अपने पति को अहसास करा दिया कि वह अभी तक कुंआरी थी.

मर्यादा के वे 6 महीने बहुत मजे से गुजरे. इस के बाद वह अपने गांव लौटी थी. कुनकुनी धूप में अपने ब्रा को सुखाने के लिए डालते समय मर्यादा रविंद्र के विचारों में मगन थी. रविंद्र मर्यादा का बहुत ध्यान रखता था. जवानी का पूरा मजा लेने के लिए वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे.

मर्यादा रविंद्र के विचारों में डूबी ही थी कि ‘मर्यादा’ नाम पुकारे जाने से वह चौंक गई. उस ने बगल की छत पर झांका, तो धक की आवाज के बाद उस का दिल धड़कना बंद सा हो गया.

सामने अर्जुन खड़ा हुआ था. पहले से ज्यादा डरावना. उस के हाथ में देशी तमंचा देख कर मर्यादा को यकीन हो गया कि आज वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

मुसीबत के समय जिस की जैसी बुद्धि काम कर जाए. मर्यादा ने तुरंत ही अर्जुन को अपनी बांहों में भर लिया और झूठे आंसू बहाने लगी, ‘‘अर्जुन, तुम कहां थे इतने दिन? देखो तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल हुआ? घर वालों ने जबरदस्ती मेरी शादी करा दी…’’ कहते हुए वह उस के सीने से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी.

अपनी चालाकी का असर होते देख कर मर्यादा अर्जुन की पैंट में हाथ डाल कर उसे अपने साथ सैक्स के लिए उकसाने लगी.

मर्द तो चौबीस घंटे सैक्स के लिए भूखे रहते ही हैं. खुले आसमान के नीचे, कुनकुनी धूप में, पानी की टंकी के पीछे लेट कर जिस्मानी संबंध बनाने लगे.

अर्जुन ने मर्यादा के हर झूठ को सच मान लिया. अब तो वह उस से लपेटलपेट कर और भी बहुत सारे झूठ बोलने लगी, ‘‘मैं ने अपने पति के साथ सिर्फ सात फेरे लिए हैं, अपना शरीर नहीं छूने दिया… मुझे प्यार करने का हक सिर्फ तुम्हें हैं अर्जुन…

‘‘रविंद्र मेरे शरीर को जीत सकता है, लेकिन आत्मा को नहीं… मैं जल्द ही रविंद्र को तलाक दे कर हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी…’’

आज मर्यादा को इस अर्जुन नाम के मूर्ख प्राणी से जरा भी डर नहीं लग रहा था. एक महीना, जब तक वह अपने मायके रही, अर्जुन से अपनी और अपने परिवार की भरपूर सेवा कराई.

अर्जुन एक बार फिर कहीं से 2 लाख रुपए लूट कर उस के लिए ले आया, ताकि इन पैसों से वह अपने पति को तलाक दे सके.

वे 2 लाख रुपए एक पुलिस वाले को अर्जुन के ऐनकाउंटर के नाम पर देने के बाद मर्यादा अपनी ससुराल भाग गई. वह मर्द का बच्चा अर्जुन जबरदस्ती मर्यादा की जिंदगी को ड्रामा बनाने की कोशिश कर रहा था.

बारिश : फुहार इश्क की

मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

उस ने अपनी साइकिल एक ओर खड़ी की और मेरे पास आ कर बोली, ‘माफ कीजिए, मु?ा से गलती हो गई.’
यह सुन कर मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, मानो ब्लडप्रैशर बढ़ गया हो. फिर उस ने जब अपनी गोरी हथेली से मेरी कलाई को पकड़ा, तो मैं उस में खोता चला गया.

दूसरे दिन वह दोबारा मु?ो चौराहे पर मिली. उस ने अपना नाम अंबाली बताया. मेरा दिल अब उस की ओर खिंचता जा रहा था.

प्यार की आग जलती है, तो दोनों ओर बराबर लग जाती है. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. इस बीच हमारी मुहब्बत रंग लाई.

एक दिन हम दोनों एक ही साइकिल पर शहर से दूर मस्ती में ?ामते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. आकाश में बादलों की दौड़ शुरू हो चुकी थी. मौसम सुहावना था. हर जगह हरियाली बिछी थी.

अचानक आसमान में काले बादल उमड़ने लगे, जिसे देख कर मैं परेशान होने लगा. मु?ो अपनी उतनी फिक्र नहीं थी, जितना मैं अंबाली के लिए परेशान हो उठा था, क्योंकि कभी भी तेज बारिश शुरू हो सकती थी.

मैं ने अंबाली से कहा, ‘‘आओ, अब घर लौट चलें.’’

‘‘जल्दी क्या है? बारिश हो गई, तो भीगने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘अगर बारिश हो गई, तो इस कच्ची और सुनसान सड़क पर कहीं रुकने का ठिकाना नहीं मिलेगा.’’
‘‘पास में ही एक गांव दिखाई पड़ रहा है. चलो, वहीं चल कर रुकते हैं.’’

‘‘गांव देखने में नजदीक जरूर है, लेकिन उधर जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. पतली पगडंडी पर पैदल चलना होगा.’’

‘‘अब तो जो परेशानियां सामने आएंगी, बरदाश्त करनी ही पड़ेंगी,’’ अंबाली ने हंसते हुए कहा.

हम ने अपनी चाल तेज तो कर दी, लेकिन गांव की पतली पगडंडी पर चलना उतना आसान न था. अभी हम लोग सोच ही रहे थे कि एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर घासफूस की एक झोपड़ी दिखाई दी. हम लोग उस ओर दौड़ पड़े. वहां पहुंचने पर उस में एक टूटाफूटा तख्त दिखाई पड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था.

हम दोनों भीग चुके थे. झोपड़ी में शरण ले कर सोचा कि कुछ आराम मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

अंबाली ठंड से बुरी तरह कांपने लगी. जब उस के दांत किटकिटाने लगे, तो वह बोली, ‘‘मैं इस ठंड को बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे अपने आगोश में ले लो. अपने सीने में छिपा लो, तुम्हारे जिस्म की गरमी से कुछ राहत मिलेगी,’’ अंबाली ने कहा. ‘‘अंबाली, हमारा प्यार अपनी जगह है, जिस पर मैं धब्बा नहीं लगने दूंगा, लेकिन तुम्हारी हिफाजत तो करनी होगी,’’ कह कर मैं ने अपनी कमीज उतार दी और उसे अपने सीने से चिपका लिया.
जब अंबाली मेरी मजबूत बांहों और चौड़े सीने में जकड़ गई, तो उस के होंठ जैसे मेरे होंठों से मिलने के लिए बेताब होने लगे थे.

मैं ने उस के पीछे अपनी दोनों हथेलियों को एकदूसरे पर रगड़ कर गरम किया और उस की पीठ सहलाने लगा, ताकि उस का पूरा बदन गरमी महसूस करे. तब मुझे ऐसा लगा, जैसे गुलाब की कोमल पंखुडि़यों पर ओस गिरी हो. मेरी उंगलियां फिसलने लगी थीं.

आधे घंटे के बाद बारिश कम होने लगी थी.

अंबाली मेरी बांहों में पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुकी थी. मैं ने उसे जगाना ठीक नहीं सम?ा.
एक घंटे बाद मैं ने उसे जगाया, तब तक बारिश बंद हो चुकी थी.

अंबाली ने अलग हो कर अपने कुरते की चेन चढ़ाई और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मेरे साथ कोई शैतानी तो नहीं की?’’

मैं हंसा और बोला, ‘‘हां, मैं ने तुम्हारे होंठों पर पड़ी बारिश की बूंदों को चूम कर सुखा दिया था.’’
‘‘धत्त…’’ थोड़ा रुक कर वह कहने लगी, ‘‘तुम्हारा सहारा पा कर मुझे नई जिंदगी मिली. ऐसा मन हो रहा था कि जिंदगीभर इसी तरह तुम्हारे सीने से लगी रहूं.’’

‘‘हमारा प्यार अभी बड़ी नाजुक हालत में है. अगर हमारे प्यार की जरा सी भी भनक किसी के कान में पड़ गई, तो हमारी मुहब्बत खतरे में तो पड़ ही जाएगी और हमारी जिंदगी भी दूभर हो जाएगी,’’ मैं ने कहा.
‘‘जानते हो, मैं तुम्हारे आगोश में सुधबुध भूल कर सपनों की दुनिया में पहुंच गई थी. मेरी शादी धूमधाम से तुम्हारे साथ हुई और विदाई के बाद मैं तुम्हारे घर पहुंची. वहां भी खूब सजावट थी.

‘‘रात हुई. मुझे फूलों से सजे हुए कमरे में पलंग पर बैठा दिया गया. तुम अंदर आए, दरवाजा बंद किया और मेरे पास बैठे.

‘‘हम दोनों ने वह पूरी रात बातें करते हुए और प्यार करने में गुजार दी,’’ इतना कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हवा का एक बवंडर आया और मेरा सपना टूट गया. मैं ने महसूस किया कि मैं तुम्हारी बांहों में
हूं. मेरा जिस्म तुम्हारे सीने में समाया था,’’ इतना कहतेकहते वह मुझसे चिपक गई.

‘‘अंबाली, बारिश बंद हो चुकी है. अंधेरा घिरने लगा है. अब हमें अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. तुम्हारे घर वाले चिंता कर रहे होंगे. कहीं हमारा राज न खुल जाए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. हमें चलना ही होगा.’’

कुछ दिन कई वजहों से हम दोनों नहीं मिल सके. लेकिन एक शाम अंबाली मेरे पास सहमी हुई आई. मैं ने उस के चेहरे को देखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम बहुत उदास हो?’’

‘‘आज मेरा मन बहुत भारी है. मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगी, कहीं मैं खुदकुशी न कर बैठूं, क्योंकि उस के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता,’’ कह कर अंबाली रो पड़ी.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार के बारे में मालूम हो गया. अब मेरी शादी तय हो चुकी है. लड़का पढ़ालिखा रईस घराने का है. अगले महीने की तारीख भी तय कर ली गई. अब मुझे बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं मिलेगी,’’ अंबाली रोते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे घर वाले जो कर रहे हैं, वह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक होगा. मेरातुम्हारा कोई मुकाबला नहीं. उन के अरमानों पर जुल्म मत करना. हमारा प्यार आज तक पवित्र है, जिस में कोई दाग नहीं लगा. सम?ा लो कि हम दोनों ने कोई सपना देखा था.’’

‘‘यह कैसे होगा?’’

‘‘अपनेआप को एडजस्ट करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मेरे लिए कई रिश्ते आए, पर मैं ने किसी को पसंद नहीं किया. उस के बाद मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी, अब तुम मु?ो भूल जाने के लिए कहते हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं, मेरा प्यार मत छीनो. मैं तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. क्या तुम मुझे तड़पते देखते रहोगे? मैं तुम्हें हर कीमत पर हासिल करना चाहूंगी.’’

कुछ दिन हम लोग अपना दुखी मन ले कर समय बिताते रहे. किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती थी. अंबाली की मां से उस की हालत देखी नहीं गई. वह एकलौती लाड़ली थी. उन्होंने अपने पति को बहुत सम?ाया.

अंबाली के पिता ने एक दिन हमारे यहां संदेशा भेजा, ‘आप लोग किसी दूसरे किराए के मकान में दूर चले जाइए, ताकि दोनों लड़केलड़की का भविष्य खराब न हो.’

हमें दूसरे मकान में शिफ्ट होना पड़ा. 3 महीने तक हम एकदूसरे से नहीं मिले. चौथे महीने अंबाली के पिता मेरे पिता से मिलने आए और साथ में मिठाई भी लाए थे.

बाद में उन्होंने कहा, ‘‘रिश्ता वहीं होगा, जहां अंबाली चाहेगी, इसलिए

2 साल में उस की पढ़ाई पूरी हो जाने पर विचार होगा. आप लोग दूर चले आए. हम दोनों की इज्जत नीलाम होने से बच गई, वरना ये आजकल के लड़केलड़की मांबाप की नाक कटा देते हैं.’’

मेरे पिता ने उन की बातों को सुना और हंस कर टाल दिया.

एक साल बीत जाने पर मेरा चुनाव एक सरकारी पद पर हो गया और मेरी बहाली दूसरे शहर में हो गई. मेरी शादी के कई रिश्ते आने लगे और मैं बहाने बना कर टालता रहा.

आखिर में मेरे पिता ने झला कर कहा, ‘‘अब हम लोग खुद लड़की देखेंगे, क्योंकि तुम्हें कोई लड़की पसंद नहीं आती. अगर तुम ने हमारी पसंद को ठुकरा दिया, तो हम लोग तुम्हें अकेला छोड़ कर चले जाएंगे.’’
मुझे उन के सामने झकना पड़ा और कहा, ‘‘आप लोग जैसा ठीक समझे, वैसा करें. मुझे कोई एतराज नहीं होगा.’’

शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं, लेकिन मुझे कोई दिलचस्पी न थी.
बरात धूमधाम से एक बड़े होटल में घुसी, जहां बताया गया कि लड़की के पिता बीमार होने के चलते द्वारचार पर नहीं पहुंच सके. उन के भाई बरात का स्वागत करेंगे.

लड़की को लाल घाघराचोली में सजा कर स्टेज तक लाया गया, पर उस के चेहरे से आंचल नहीं हटाया गया था.

लड़की ने मेरे गले में जयमाल डाली और मैं ने उस के गले में. तब लोग शोर करने लगे, ‘अब तो लड़की का घूंघट खोल दिया जाए, ताकि लोग उस की खूबसूरती देख सकें.’

लड़की का घूंघट हटाया गया, जिसे देख कर मैं हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, मानो उसे जबरदस्ती बांधा गया था.

मैं ने एक उंगली से उस की ठुड्डी को ऊपर किया. उस की नजरें मुझे से टकराईं, तो वह बेहोश होतेहोते बची.

सुहागरात में अंबाली ने मेरे आगोश में समा कर अपनी खुशी का इजहार किया. उस का प्यार जिंदा रह गया. मैं ने उस के गुलाबी गाल पर अपने होंठ रख कर प्यार से कहा, ‘‘अंबाली, तुम्हारे गालों पर अभी तक बारिश की बूंदें मोतियों जैसी चमक रही हैं. थोड़ा मुझे अपने होंठों से चूम लेने दो.’’

यह सुन कर अंबाली खिलखिला कर हंस पड़ी, जैसे वह कली से फूल बन गई हो.

औनर किलिंग: आखिर क्यों हुई अतुल्य की हत्या?

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