क्रौसिंग की बत्ती

कीया को आज अमर की याद आ गई थी. अमर के साथ बिताया वक्त वह भूल नहीं पाई थी लेकिन उसे भूल जाना ही अच्छा था.

सिंग पर लालबत्ती यानी ठहरने का सिग्नल होने से पहले ही कीया अपनी गाड़ी निकाल लेना चाहती थी. लेकिन उसी क्षण रैड सिग्नल हो गया, गाड़ी रुक गई और उस के पीछे वाहनों की लंबी कतार. कीया ने अनुभव किया, जब कभी भी वह डेली रूटीन में 2-4 मिनट की चूक करती है, उसे मंजिल तक पहुंचने में देर हो जाती है, ‘लेट लतीफ’ का टाइटल कीया ने दूसरों के लिए संजो रखा है, वह तो ‘मिस राइट टाइम’ के नाम से जानी जाती है.

ट्रैफिक में फंसी कीया की नजर अपनी ही कंपनी द्वारा प्रायोजित एक होर्डिंग पर पड़ी जिस में दूधिया सफेदी लिए एक बच्ची साबुन का विज्ञापन कर रही है, जिस के नीचे लिखे स्लोगन पर कीया के अपने व्यक्तित्व की छाप है, ‘सुबह की कच्ची धूप भी काफी होती है उजाले के लिए. पर तुम तो पूरा सूरज ही उतार देती हो.’

दरअसल, यह स्लोगन अमर ने कीया के संदर्भ में कहा था. दोनों की पहली मुलाकात कुछ कम रोचक नहीं थी.

उस दिन थिएटर के हौल में अंधेरा था. परदे पर गब्बर दहाड़ रहा था, ‘अरे ओ सांभा, कितना मैल था कपड़ों में?’

बदले में सांभा मिमिया रहा था. मैल और साबुन की फाइटिंग चल रही थी, इतने में कोई अजनबी कीया के कानों में फुसफुसाया. रोशनी होने पर उस ने बड़ी ही शालीनता से अपना परिचय दिया, ‘मैं अमर हूं. आप की ही एड कंपनी में पोस्ंिटग हुई है मेरी.’

कीया की अजनबी आंखों में पहचान उभारने के लिए वह आगे भी बोल रहा था, ‘आप से मेरा परिचय नहीं हुआ, पर मैं आप को पहले से ही जानता हूं. बौस आप की बेहद तारीफ करते हैं. क्या आप वाकई उतनी फंटास्टिक वर्कर हैं?’

अमर का शरारती अंदाज कीया को भा गया. मूवी के बाद उस ने कीया को अपनी क्रेटा में साथ चलने का आग्रह किया.

‘ओह सौरी, मेरी गाड़ी सामने ही खड़ी है,’ कीया ने मना करते हुए कहा.

‘उसे बाद में मंगवा लेंगे. हमारी मंजिल एक है, मंसूबे भी एक ही होने चाहिए. आप कंपनी के सेवेंथ ब्लौक में रहतीं हैं न? मु?ो भी वहीं फ्लैट एलौट हुआ है,’ अमर कहने लगा.

कीया को थोड़ी उल?ान होने लगी.

इस बीच अमर आगे बोला, ‘आप को सचमुच अपनी गाड़ी की फिक्र है या आप किसी अजनबी पुरुष के साथ जाना नहीं चाहतीं?’

कीया को लगा अमर के इस वाक्य ने संपूर्ण नारी जाति को चुनौती दे दी है. अगले ही पल अमर कंपनी की मार्केटिंग एग्जीक्युटिव औफिसर मिस कीया के लिए अपनी क्रेटा कार का दरवाजा खोल रहा था. रास्ते में कीया ने जाना कि अमर ने अमेरिका स्थित हार्वर्ड से बिजनैस मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की है और यहां मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर उस की पोस्ंिटग हुई है. कंपनी द्वारा बिजनैस कंसलटैंसी की शिक्षा देने के लिए संचालित ट्रेनिंग सैंटर में अकसर अमर के लैक्चर होते रहते हैं.

काम के प्रति लगन और दायित्वबोध ने कुछ ही दिनों में अमर और कीया के रिश्ते को जहां प्रगाढ़ किया, वहीं उन का कैरियर बुलंदी को छूने लगा. यह खुशी अमर कीया के साथ किसी फाइवस्टार होटल में सैलिब्रेट करना चाहता था, पर कीया ने बिना बताए, पहल कर के होटल में टेबल बुक करवा ली. डिनर के बाद अमर ने हमेशा की तरह कार का दरवाजा खोला, तो थैंक्स कहने के बजाय कीया चुपचाप जा कर कार सीट पर बैठ गई. उस की बगल में बैठे अमर के कानों में अपने मित्रों के शब्द गूंज रहे थे, ‘देखो तो, कैसे मर्द बनने की कोशिश कर रही है.’ पर दूसरे ही पल प्रशंसाभरी नजरें उस पर उकेर कर बोला, ‘कीया, तुम्हारा स्टाइल गजब का है. तुम्हारी पलकें गजब की हैं.’

कीया बदले में मुसकराने लगी.

‘तुम कहीं कोई बिजनैस मैनेजमैंट कोर्स क्यों नहीं जौइन कर लेतीं?’

‘क्यों?’

‘अरे बाबा, शादी के बाद घरद्वार संभालना है कि नहीं?’

कीया शरमा गई. उस ने महसूस किया कि अमर उस के प्यार में दीवाना हो रहा है. एक दिन तो हद हो गई जब अमर कह रहा था, ‘कीया, तुम बाल खुले मत रखा करो. दूसरे भी आकर्षित होते हैं.’

‘बस,’ कीया ने खिजाने के लिए कहा.

‘मु?ो द्रौपदी की याद आती है.’

‘वो…वो, उस ने तो पुरुषों को चुनौती देने के लिए बाल खोल रखे थे, पर मैं…मैं… जाने दो… बांध लेती हूं,’ कीया ने ?ोंपते हुए बाल बांध लिए थे.

कभीकभी कीया को लगता कि जैसे अमर के व्यक्तित्व में एक असुरक्षा की भावना पनप रही है, क्योंकि बिजनैस की बात पर बहस करतेकरते अमर अप्रासंगिक बात छेड़ देता. ‘आज की औरत स्वतंत्र नहीं, स्वच्छंद हो गई है.’

सुन कर कीया चिढ़ जाती, ‘तुम्हारे जैसे मर्द, औरत के तन की सुंदरता तो सम?ाते हैं, पर उन की दिमागी श्रेष्ठता को बरदाश्त नहीं कर पाते.’

अमर तमतमा कर उस समय तो चुप हो जाता लेकिन दोचार दिन बाद ऐसी ही किसी बात को ले कर फिर दोनों में बहस छिड़ जाती.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे, तभी एकसाथ 2 सुखद घटनाएं घटीं. एक तो अमर को कंपनी द्वारा लंदन टूर पर जाने का औफर मिला, दूसरे कीया को बेस्ट मार्केटिंग का अवार्ड मिला. पर अमर इस खबर में शरीक होने से पहले अपने घरवालों से मिलने अचानक अपने गांव चला गया. कीया को अकेलापन बुरी तरह सता रहा था. उस ने सोचा शायद जाने से पहले अमर कोई मैसेज छोड़ गया हो. उस ने फोन चैक किया तो मैसेज उभरा, ‘जल्दी लौटूंगा. मां चाहती हैं लंदन जाने से पहले मैं शादी कर लूं.’

कीया शरमा गई. उस ने सोचा अमर प्रपोज कर रहा है. वह बेसब्री से अमर की प्रतीक्षा करने लगी. लगभग 2 सप्ताह बाद अमर किसी लड़की के साथ दरवाजे पर खड़ा था.

‘कहां थे अब तक,’ कीया का धीरज जवाब दे रहा था.

‘इन से मिलो, ये हैं रानी.’

इतने में रानी ने आगे बढ़ कर कीया को गले लगा लिया.

‘अरे, अरे, यह क्या कर रही हो?’

‘रानी बहुत अच्छा खाना बना लेती है. आप कहें तो चाय के साथ नाश्ता भी बना लाएगी. आप तब तक अपना अवार्ड दिखाइए,’ अमर ने मुसकराते हुए कहा.

‘कौन है ये, तुम्हारी रिश्तेदार या…?’

‘मां की पसंद है रानी.’

कीया ने जैसे कुछ नहीं सुना. रानी उस की पत्नी है तो क्या अमर गांव शादी करने गया था? लेकिन, कीया ने तो ऐसा नहीं सोचा था, वह तो यही सोचती रही कि अमर उसे प्यार करता है, उस के साथ शादी करना चाहता है.

‘खाना बना देगी, देखभाल करेगी, घर में रहेगी. आखिर हमारा व्यवसाय तो एक ही है. हम अब भी गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड तो रह ही सकते हैं?’

अचानक कीया उठ खड़ी हुई, ‘मिस्टर अमर, हमारा व्यवसाय एक हो सकता है, पर व्यक्तित्व एक नहीं है. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे व्यक्तित्व को व्यवसाय बनाओ. मैं सम?ा गई तुम मु?ो अपनी गर्लफ्रैंड नहीं मिस्ट्रैस बनाना चाहते हो. गेट आउट… गेट लौस्ट,’ कीया दहाड़ रही थी, ‘तुम लोग बुद्धिमान महिला से मिलना तो चाहते हो, पर शादी रसोइए, बावर्चिन से करते हो. बाजार का हिसाबकिताब करती पत्नी तुम्हें अच्छी लगती है, पर शेयर मार्केट का हिसाब अपने कब्जे में रखना चाहते हो.’

अकेले में नाराज कीया को तो अमर कैसे भी मना लेता, पर नवविवाहित पत्नी के सामने वह अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर पाया. गुस्से में बोला, ‘आश्चर्य की बात है. आप ने ऐसा कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करूंगा? आप गलतफहमी की शिकार हुई हैं. जैसा कि महिलाएं अकसर हो जाती हैं. मेरी पत्नी भी एक नारी है. आप उसे रसोइया, बावर्चिन कह रही हैं? आप पुरुषों का तो क्या, नारियों का सम्मान करना भी नहीं जानतीं.’ अमर का स्वर तल्ख हो उठा था.

‘पश्चिम में आप जैसी महिलाओं द्वारा वुमेंस लिबरेशन का दौर चलाया गया था. आप लोग पुरुषों से मिलना तो चाहती हैं मगर समानता के स्तर पर नहीं. आप पुरुषों को हीन बनाना चाहती हैं. घरगृहस्थी दो पहियों पर चलती है. आप लोग दूसरा पहिया बनना नहीं चाहती हैं.   मैं 4 साल अमेरिका में रहा हूं. पश्चिम की औरत स्वतंत्र है. मगर आप जैसी महिलाओं की तरह स्वच्छंद नहीं है.’ और पैर पटकते हुए अमर बाहर निकल आया.

गुस्से में कीया ने अपने बालों के रिबन खोल डाले. कभी अमर कहा करता था कि बाल खोल कर वह द्रौपदी सी लगती है, यही सही. पर वह मिस्ट्रैस नहीं बन सकती, कभी नहीं. अचानक अपनी तंद्रा से बाहर आई कीया ने हरी बत्ती देखी और कार आगे बढ़ा ली.

बदचलनी का ठप्पा – भाग 4 : क्यों भागी परबतिया घर से?

यह सुन कर अर्जुन को कुछ उम्मीद बंधी. भीड़ भी एकमत थी बलदेव प्रसाद से. और लोगों की भी बीवियां तो खूबसूरत हैं कोलियरी में. अगर बदमाशों को न रोका गया तो न जाने कितने अर्जुन होंगे और कितनी परबतिया. देवेंद्रजी बोले, ‘‘भाइयो, आप सब की मदद से हम ने आज तक कई मामले निबटाए हैं. कभी बदनामी नहीं उठानी पड़ी. पर इस तरह के मियांबीवी वाले मामले में हम ने अब तक कभी हाथ नहीं डाला है, क्योंकि ऐसे मामलों में बड़ा जोखिम उठाना पड़ता है,’’

देवेंद्रजी भीड़ पर अपना रुतबा जमाते हुए बोले. भीड़ खुश हो गई. अर्जुन को उम्मीद बंधी कि अब देवेंद्रजी इस मामले को हाथ में ले रहे हैं तो वह जरूर कामयाब होें. पर खतरा? यह खतरे वाली बात कहां से पैदा हो गई. अर्जुन को थोड़ा शक हुआ. भीड़ के कान खड़े हो गए. ‘‘कैसा खतरा?’’

लगा कि बलदेव प्रसाद भी चकित था. ‘‘हम अगर जल्दबाजी में कोई कदम उठाएंगे तो हो सकता है कि वह बदमाश परबतिया को कोई नुकसान पहुंचा दे,’’ देवेंद्रजी ने कहा, ‘‘इसलिए हमें कतई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.’’ भीड़ को देवेंद्रजी की बातों में कुछ सार नजर आया.

उम्मीद बंधी. पर अर्जुन फिर निराशा से घिरने लगा था. गया प्रसाद उस की परबतिया को नुकसान पहुंचा सकता है, यह बात उस के दिमाग में घूम रही थी. उस का खून खौलने लगा.  अगर उस का बस चले तो… जैसे वह जंगल में लकड़ी काटा करता है, वैसे ही गया प्रसाद की गरदन पर कुल्हाड़ी चला दे.

पर, क्या करे?  नहींनहीं… वह बदमाश परबतिया को कोई नुकसान न पहुंचाए. वह दुष्ट तो उस के बच्चे को भी नुकसान पहुंचा सकता है. देवेंद्रजी शायद ठीक कह रहे हैं. कोई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. मौका आने पर वह खुद ही निबट लेगा गया प्रसाद से.

अर्जुन का मन हुआ कि वह चिल्ला कर देवेंद्रजी से कह दे कि उसे कोई जल्दी नहीं है. बस, पार्वती और उस का बच्चा सहीसलामत रहे. ‘‘हांहां, आप ठीक ही कह रहे हैं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘उस जैसे दुष्टों का कोई भरोसा नहीं. लेकिन ऐसे दुष्टों को बताना ही होगा कि वे बसीबसाई घरगृहस्थी नहीं उजाड़ सकते. हां भाइयो, हम ऐसी धांधली नहीं चलने देंगे,’’ उस ने भीड़ को देखा. देवेंद्रजी के मुंह से अब एक नेता की आवाज उभरी, ‘‘हम गया प्रसाद को चेतावनी देना चाहते हैं कि वह अर्जुन की घरवाली परबतिया को बाइज्जत घर पहुंचाए और अपनी इस हरकत के लिए अर्जुन से माफी मांगे.’’

देवेंद्रजी के कहने के ढंग से लगा मानो गया प्रसाद वहीं भीड़ में दुबका हुआ उन की बातें सुन रहा हो. ‘बाइज्जत’ शब्द सभी के सामने एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा हो गया.  परबतिया एक रात तो गया प्रसाद के घर में बिता ही चुकी है. अब भी उस की इज्जत बची होगी भला?

यह बात तो अर्जुन को भीतर ही भीतर मथे डाल रही थी. एक दर्द उभरा अर्जुन के मन में. यह क्या सोच गया वह? नहीं, परबतिया कैसी भी हो, उसे उस शैतान के चंगुल से छुड़ाना ही होगा. ‘‘और हम बता देना चाहते हैं कि…’’ देवेंद्रजी ने धमकी भरी आवाज में कहा, ‘‘अगर एक हफ्ते के भीतर इस बात पर अमल नहीं किया गया तो हमें कोई कड़े से कड़ा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’’

बलदेव प्रसाद ने भी अर्जुन को ढांढस बंधाया, ‘‘अब एक हफ्ते तक इंतजार करना ही पड़ेगा अर्जुन भाई, इसलिए अपने मन को कड़ा करो और जा कर नहाओ, खाओ. रात की ड्यूटी किए हो, थक गए होगे. हम सब तुम्हारा दुख समझते हैं.’’ भीड़ को एक बार फिर लगा कि देवेंद्रजी और बलदेव बड़े दयालु और दूसरों के दुख को अपना दुख समझने वाले इनसान हैं.

पहली बार अर्जुन ने कुछ कहा, ‘‘जो मरजी हुजूर. बस, आप लोगों का सहारा है. गरीब हूं, माईबाप,’’ कहतेकहते अर्जुन का गला भर आया. आगे बढ़ कर उस ने देवेंद्रजी के पैर छू लिए. ‘‘ठीक है, ठीक है,’’ देवेंद्रजी की आवाज में दया थी, करुणा थी,

‘‘अब, तुम निश्चिंत हो कर जाओ अर्जुन.’’ ‘‘हांहां, अर्जुन, अब चिंता की कोई बात नहीं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘अब तो देवेंद्रजी ने तुम्हारे मामले को अपने हाथों में ले ही लिया है. अब तो  हमारी और देवेंद्रजी की इज्जत का भी सवाल है.’’

देवेंद्रजी उठ कर अपने घर के भीतर चले गए. तमाशा खत्म हुआ तो भीड़ भी छंटने लगी. कुछ लोग देवेंद्रजी की प्रशंसा कर रहे थे. कुछ गया प्रसाद को कोस रहे थे. सभी जल्दीजल्दी अपने घरों की ओर बढ़ने लगे थे इस डर से कि कहीं इसी बीच उन की घरवालियां  भी किसी बदमाश के घर जा कर न बैठ गई हों.  न जाने कितने गया प्रसाद छिपे पड़े होंगे इस कोलियरी में. न जाने कितने निहत्थे अर्जुन, न जाने कितनी खूबसूरती का शाप झेलती औरतें. फिर देवेंद्र की वही चौपाल,

भीड़, तमाशा और सरेआम उछलती किसी मजदूर की इज्जत. एक हफ्ते के भीतर ही गया प्रसाद परबतिया को उस के बच्चे समेत बाइज्जत अर्जुन के घर पहुंचाने गया था. पर अर्जुन ने पार्वती को बहुत भलाबुरा कहा और उसे अपने घर पर रखने से इनकार कर दिया. इस अफवाह ने देवेंद्रजी की इज्जत को तो बढ़ाया, पर अर्जुन को सभी धिक्कारने लगे कि वह फिर बेवकूफी कर बैठा.

कुछ लोगों के विचार से अर्जुन ने जो किया वह ठीक ही किया. ऐसी बदचलन औरत को तो जिंदा ही जमीन में गाड़ देना चाहिए. गहनेकपड़े, रुपएपैसे सबकुछ तो वह गया प्रसाद के घर ही छोड़ आई थी. अर्जुन की जिंदगीभर की कमाई उस बदमाश को भेंट कर आई थी. अर्जुन को परबतिया का अचार तो डालना नहीं था, सो उस ने बिलकुल ठीक किया. परंतु एक खबर पूरी कोलियरी में बड़ी तेजी से फैली. कुछ लोग इसे अफवाह कह रहे थे, तो कुछ सौ फीसदी सच होने का दावा कर रहे थे.

दूसरी पार्टी के मजदूर नेता इस बात का जोरशोर से प्रचार कर रहे थे कि परबतिया जो गहनेकपड़े और रुपए अपने साथ लाई थी, उस में से देवेंद्रजी और बलदेव प्रसाद ने अपनेअपने हिस्से ले लिए हैं. यही नहीं, कुछ तो यहां तक कहते सुने गए कि भरी रात बलदेव प्रसाद और देवेंद्रजी गया प्रसाद के घर से मुंह काला कर के निकलते हुए भी देखे गए.

सचाई जो हो, पर इतना सच है कि परबतिया को अर्जुन ने अपने घर में घुसने तक नहीं दिया. बच्चे को भी नहीं रखा. बेचारी परबतिया बच्चे को साथ लिए कहां जाए? गया प्रसाद के यहां वह खुद गई थी या जबरन ले जाई गई थी, यह  भी किसी ने नहीं पूछा. उस पर क्या गुजरी, यह जानने की किसी ने जरूरत ही नहीं समझी.  अर्जुन के साथ हमदर्दी जताने के लिए तो अच्छीखासी भीड़ इकट्ठी हो गई थी, पर ‘परबतिया’ को कौन पूछे? औरत जो ठहरी बेचारी. और उस पर भी बदचलन होने का ठप्पा जो लग चुका था.

अब पता चलेगा – भाग 3 : राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

फंक्शन से फ्री हो कर जब सब साथ बैठे, मधु ने कहा,”मुझे आप लोगों से कुछ जरूरी बात करनी है.”

सुनते ही राधा ने विकास को इशारा किया, “देखो, मैं ने कहा था न…”

राधा ने कहा,”जी कहिए.”

”देखिए, पैसे की हमारे यहां कोई कमी है नहीं, बस मेरा मन तो अपने बच्चों की खुशी में खुश होता है, मेरी इच्छा है कि शादी अब जल्दी ही कर दें, घर में रौनक हो, हमारी बेटी कोई है नहीं और मुझे संदली के साथ रहने की बहुत इच्छा है, मुझ से अब इंतजार नहीं होगा, शादी अब बहुत जल्दी हो जाए, बस यही मान लीजिए.

“तैयारी भी मैं सब कर लूंगी और हां, संदली ने जो लोन लिया है, वह भी हम चुका देंगे, अब संदली यहां फैमिली बिजनैस संभाल लेगी. उसे वहां अकेली रह कर जौब करने की जरूरत है ही नहीं. अब बच्चे मिल कर बिजनैस संभालें, हमारे पास रहें और क्या…”

विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, हम तैयार हैं. लोन चुकाने की बात आप न सोचें प्लीज, हमारा एक फ्लैट किराए पर चढ़ा है, उसे संदली को देने के लिए ही इन्वेस्ट किया था. अब उसे बेच देंगे तो लोन चुक जाएगा, कोई प्रौब्लम नहीं है. शादी जब आप कहें, हो जाएगी.”

मधु ने खुश हो कर उठ कर संदली को गले लगा लिया. खूब प्यार करते हुए बोलीं,”बस मेरी बहू अब जल्दी घर आ जाए. संदली, अब एक बार जाना और वहां से अपना सब सामान ले आओ, बस अब तो आर्यन के साथ ही घूमने जाना.”

आगे का प्रोग्राम तय होने लगा था. राधा हैरान थी कि इतनी जल्दी यह सब… ये कैसे लोग हैं? कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

मुंबई लौटते हुए संदली ने पूछा,”मम्मी, सब ठीक लगा न आप को?”

”देखते हैं, कुछ ज्यादा ही अच्छा परिवार लग रहा है. देखते हैं कि तुम कितना खुश रहती हो इन के साथ.अब पता चलेगा…’’

संदली चुप ही रही. राधा ने फिर विकास से कहा,”आप ने सब बात खुद ही कर ली उन से, मुझ से कुछ पूछा ही नहीं.”

”पूछना क्या था, सब अच्छा ही लग रहा था, अच्छे लोग हैं.”

दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. 2 महीने बाद ही शादी थी. प्रिया भी सपरिवार आने वाली थी. संदली ने रिजाइन कर दिया और वहां से सब क्लियर कर लौट आई. मधु फोन पर ही उस से पूछपूछ कर उस की पसंद की तैयारी करने लगीं. मधु एक से बढ़ कर एक चीजें उस की पसंद से बनवा रही थीं.

राधा ने कहा,”मुझे पता ही है कि इन अमीरों के 4 दिन के चोंचले हैं, थोड़े ही दिनों में असलियत सामने आएगी, पहले तो सब अच्छा ही दिखता है.”

संदली मन ही मन बहुत उदास थी. शादी का समय था उस पर भी मां की अजीबोगरीब बातें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. जो भी तैयारी राधा कर रही थीं, बोझ समझ कर कर रही थीं, उस में बेटी को अच्छा परिवार मिलने की कोई खुशी नहीं थी. हर समय किसी न किसी बात पर आर्यन के परिवार को ले कर कुछ ऐसा कह देतीं कि संदली का चेहरा मुरझा जाता.

विकास सब समझ रहे थे पर क्या करते, राधा को कुछ कह कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहते थे. प्रिया भी आ चुकी थी, उस के पति विशाल और दोनों बच्चे सोनू,पिंकी मौसी की शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे.

सब खुश थे पर राधा का स्वभाव अकसर रंग में भंग डाल देता. विकास ने अपने बजट के अनुसार सारा पैसा अनिल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. सब इंतजाम आर्यन का परिवार ही देख रहा था.

शादी से 4 दिन पहले संदली अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची तो आर्यन की तरफ से कई गाड़ियां उन्हें लेने आई हुई थीं.

अनिल और मधु ने खुद एअरपोर्ट पर सब का स्वागत किया और उन्हें पानीपत के ही एक होटल में ले गए, जहां सारा इंतजाम बहुत शानदार था.

रस्में बहुत खुशी से पूरी की गईं. विवाह का आयोजन शानदार रहा. सबकुछ अच्छी तरह से संपन्न हुआ. राधा परिवार सहित मुंबई लौट आईं. कुछ दिन बाद प्रिया भी वापस चली गई.

विकास औफिस के काम में व्यस्त हो गए. राधा का पुराना रवैया चलता रहा. हर बात में अब भी अपने को ही सही ठहरातीं. संदली जब फोन करती, राधा खोदखोद कर पूछतीं कि ससुराल का क्या हाल है?

संदली तारीफ करती तो कहतीं,”मुझे पता है, यह सब प्यारव्यार थोड़े दिनों की बात है. आगे पता चलेगा.”

संदली ने घर का बिजनैस संभालना शुरू कर दिया था. एक नया शोरूम खोला जा रहा था जिस की देखरेख संदली और आर्यन पर छोड़ दी गई थी, उस के लिए एक कार और ड्राइवर हमेशा रहता. वह बहुत खुश रहती. उसे सारी सुविधाएं और ढेर सारा प्यार मिल रहा था.

कुछ ही दिनों में अभय की शादी भी उस की गर्लफ्रैंड तारा के साथ तय हो गई.

राधा ने सुनते ही कहा,”संदली, अब पता चलेगा तुम्हें जब देवरानी घर आएगी और प्यार बंटेगा.”

संदली चुप रही. अभय के विवाह में राधा और विकास भी गए. अब की बार भी उन्हें बहुत सम्मान दिया गया. सब कुछ पहले की तरह अच्छी तरह से हुआ. संदली की अपनी देवरानी तारा से खूब जम रही थी. दोनों खूब मस्ती कर रही थीं.

राधा ने मुंबई आने के बाद संदली से देवरानी के हाल पूछे तो वह खूब उत्साह से तारा और अपनी खूब अच्छी दोस्ती के बारे में बताने लगी. संदली और तारा का आपस में बहनों जैसा प्यार हो गया था.

राधा ने कहा,”बेटा, मैं ने देखे हैं ऐसे रिश्ते, अब पता चलेगा थोड़े दिनों में जब यही प्यार तकरार में बदलेगा, देखना.”

आज संदली का धैर्य जवाब दे गया. विकास भी वहीं बैठे थे, फोन स्पीकर पर था, संदली फट पड़ी थी आज,”हां, मुझे पता चल चुका है कि आप के लिए हर रिश्ता बेकार है. आप को कहां किसी रिश्ते में प्यार दिखता है? मम्मी, पता नहीं क्यों आप के लिए सब बुरा ही होने वाला होता है. मुझे तो इस घर में आने के बाद यह पता चला है कि शांति से रहना कितना आसान है, प्यार दो, प्यार लो, काश कि आप को भी यह पता रहता.

“बस, यहां जो मुझे पता चला है, वह सब आप के साथ रह कर कभी पता ही नहीं चला. आप मुझे अब कभी मत बताना कि मुझे क्या पता चलेगा? मुझे जो पता चलना था, चल चुका. इतना प्यार है यहां पर, मैं कितनी खुश हूं,आगे भी खुश ही रहूंगी, मुझे तो यह पता है.”

राधा का चेहरा देखने लायक था. संदली ने कभी इस तरह बात नहीं की थी. आज अपनी बात कह कर फोन ऐसे रखा था कि राधा शर्मिंदा सी बैठी रह गई थीं. विकास तो अपनी हंसी रोकने की कोशिश में आज चुपचाप वहां से उठ कर दूसरे रूम में जा चुके थे.

चौखट – भाग 3 : प्रेम को तरसती रेशमी

‘‘तुम जितनी जल्द घर खाली कर कहीं चले जाओ. अगर तुम नहीं गए तो अंजाम भुगतने को तैयार रहना,’’ धीरेन को धमका कर प्रकाश अपने गुरगों के साथ चला गया.

धीरेन बेहद डर गया था. अगर वह यहां से घर खाली कर के नहीं गया, तो प्रकाश उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. अगर वह चला जाता है, तो रेशमी अकेली हो जाएगी. अकेली औरत को गुंडेमवाली खैरात का माल समझ कर तंग करते हैं.

धीरेन यही सब सोचता हुआ काम पर चला गया, लेकिन उस का मन काम में नहीं लग रहा था. वह अजीब उदासी में घिर गया था. उसे लग रहा था कि वह एक चक्रव्यूह में फंस गया है, जहां से निकलना मुमकिन नहीं है.

रात हो गई थी. गली में अंधेरा था. धीरेन काम पर से घर लौट आया था. वह कमरे में गुमसुम बैठा था. उस की अक्ल काम नहीं कर रही थी.

धीरेन एक बड़े से बैग में घर का सामान रखने लगा. एकएक कर अपना सामान वह बैग में रखता जा रहा था. यही एक रास्ता बचा था कि वह घर खाली कर कहीं और मकान ले कर रहने चला जाए.

धीरेन जाने के लिए अपना बैग पैक कर चुका था, तभी रेशमी उस के कमरे में आई और बोली, ‘‘धीरेन, मुझे छोड़ कर कहां जा रहे हो?’’

‘‘रेशमी, अगर मैं यहां से नहीं गया, तो प्रकाश और उस के पालतू गुंडे मुझे मार डालेंगे,’’ धीरेन ने कहा.

‘‘धीरेन, जीने के लिए लड़ना पड़ता है. भागने से कुछ नहीं मिलता है. हिम्मत से मंजिल मिलती है,’’ रेशमी ने उस का हौसला बढ़ाया.

‘‘लेकिन रेशमी, मैं अकेला क्या कर सकता हूं,’’ धीरेन ने चिंतित हो कर कहा.

‘‘धीरेन, तुम अकेले कहां हो. मैं हरपल तुम्हारे साथ हूं,’’ रेशमी ने कहा.

रेशमी अपने कमरे में चली गई. जब वह लौटी, तब उस की मुट्ठी में एक छोटी सी डिबिया थी.

रेशमी ने अपनी मुट्ठी धीरेन के सामने खोल दी, ‘‘इस डिबिया में सिंदूर भरा है. इस सिंदूर से मेरी मांग भर दो.’’ धीरेन ने डिबिया से एक चुटकी सिंदूर ले कर रेशमी की मांग भर दी थी.

रेशमी विधवा से सुहागन हो गई थी. धीरेन ने रेशमी को बांहों में भर कर कहा, ‘‘अब कोई हम लोगों को जुदा नहीं कर सकता है.’’

‘‘हां धीरेन, अब हम लोग एकसाथ मिल कर जी सकेंगे,’’ रेशमी की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

सुबह रेशमी दरवाजे की चौखट से पीठ टिकाए धीरेन के इंतजार में बैठी थी. वह सब्जी मंडी से दुकान के लिए सब्जियां लाने गया था.

टैंपो दरवाजे पर आ कर रुक गया था. धीरेन टैंपो से उतर कर सब्जियों की टोकरी दुकान में रखने लगा. रेशमी भी सब्जियों की टोकरी उठा कर रखने लगी थी.

उसी समय प्रकाश अपने गुरगों के साथ कहीं जा रहा था. वह रेशमी की दुकान के पास आ कर रुक गया. रेशमी की मांग में सिंदूर देख वह मुसकराते हुए चला गया.

दोपहर में सब्जी खरीदने सुधा और गीता रेशमी की सब्जी दुकान पर आईं और सुहागन बनी रेशमी को देख वे दोनों हैरान हो गईं. सुधा और गीता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘बहुत अच्छा किया रेशमी, बहुत अच्छा.’’ यह सुन कर रेशमी खिलखिला कर हंसने लगी.

जीवन की नई शुरुआत – भाग 3 : कोरोना का साइड इफैक्ट

रात में सब के सो जाने के बाद रघु को फोन लगा कर कितना रोई थी वह. उस के जाने के बाद उस के साथ क्याक्या हुआ, सब बताया और यह भी कि अगर वह उस की नहीं हो सकी, तो किसी की भी नहीं हो सकेगी. फिर कई बार रघु ने फोन लगाया, पर बंद ही आ रहा था.

कहते हैं, सारी मुसीबतें एक बार में आ धमकती हैं इंसान की जिंदगी में और यह बात आज रघु को सही प्रतीत हो रही थी.

कोरोना महामारी के कारण एक तो कामकाज और शहर छूटा, फिर पता चला कि वहां मां बीमार हैं और अब यह सब. कहीं मुन्नी ने कुछ कर लिया तो… सोच कर ही रघु का खून सूखा जा रहा था. लेकिन क्या करे वह भी? यहां से भाग भी तो नहीं सकता है.  इसलिए उस ने भी अपनी जान खत्म करने की सोच ली थी. न जिएगा, न इतनी मुसीबत ?ोलनी पड़ेगी.

आज उसे मुन्नी का वह उदास चेहरा और थकी आंखें याद आ रही थीं. मन कर रहा था, करीब होती तो उस के अधरों पर अपने होंठ रख सारी उदासी सोख लेता.

मुसकरा भी पड़ा था वह दिन याद कर के, जब पहली बार मुन्नी को आलिंगन में भर कर उस के अधरों को चूम लिया था और लजा कर वह रघु के सीने में सिमट गई थी. जीवन में पुरुष के साथ उस का यह पहला भरपूर आलिंगन था. मुन्नी की रीढ़ में हलकी सी ?ार?ारी दौड़ गई थी. दोनों को एकदूसरे की छूती हुई परस्पर आकर्षण की हिलोरों का एहसास था, तभी तो दोनों एकदूसरे के करीब आते चले गए थे बिना जमाने की परवा किए. लतावितान के भीतर यह अनुभूति गहराई थी, जब रघु ने उस के होंठों पर तप्त दबाव बढ़ाया था. यौवन वेग के अनेक स्पंदन अचानक देह में चमक उठे थे. इस आलिंगन और चुंबन की अवधि दिनप्रतिदिन बढ़ती ही चली गई थी. लेकिन जमाने ने और कुछ इस कोरोना ने उन्हें जुदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

रघु की कहानी सुन कर जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई कि क्या एक गरीब इंसान को प्यार करने का भी हक नहीं होता? ‘बु?ाबु?ा सी उम्मीदों पर कोरोना का खौफ सब की आंखों में साफ दिखाई दे रहा था. ख्वाहिशों व उम्मीदों को समेटे लोग खुश हो कर दूसरे शहरों में कमानेखाने गए थे. लेकिन एक वायरस ने इन का सबकुछ छीन लिया. इन गरीब मजदूरों ने जिस शहर को सजायासंवारा, उसी ने इन्हें गैर बना दिया. अब तो बस दर्द ही याद है,’ अपने मन में ही सोच मनोज को उन मजदूरों पर दया आ गई कि आखिर गरीब लोग ही हमेशा क्यों मारे जाते हैं? वे ही क्यों दरदर भटकने को मजबूर हो जाते हैं? सब से ज्यादा तो उन्हें रघु पर दया आ रही थी कि उस का प्यार भी छिन गया. लेकिन उन्होंने भी सोच लिया कि जहां तक हो सकेगा, वे इन मजदूरों की सहायता जरूर करेंगे.

इधर मोहन से शादी के जोर पड़ने पर मुन्नी धीरेधीरे टूटने लगी थी. कुछ सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे, कैसे इस शादी को रोके? मन तो कर रहा था कि धतूरे का बीज खा कर अपनी जान खत्म कर ले. लेकिन ऐसा भी वह नहीं कर सकती थी. क्योंकि मरना तो कायरता है. किसी चीज को हासिल करने के लिए लड़ना पड़ता है और वह लड़ेगी अपने मांबाप से भी और इस जमाने से भी. सोच लिया उस ने और अपने मन में ही एक फैसला ले लिया. रात में सोने से पहले उस ने तकिए में मुंह छिपा कर रघु का नाम लिया. उस का चुंबन याद आया और वह पुरानी सिहरन शरीर में ?ान?ाना गई.

अपने प्लान के अनुसार, सुबह मुंहअंधेरे ही वह घर से निकल गई और पैदल चल रहे मजदूरों के संग हो ली. जानती थी पैदल चल कर रघु से मिलना इतना आसान नहीं होगा. पर अपने प्यार के लिए वह कुछ भी करेगी. हजारों क्या, लाखों किलोमीटर चलना पड़े तो चल कर अपने प्यार को पा कर रहेगी. यह भी जानती थी कि उसे घर में न पा कर गुस्से से सब बौखला जाएंगे. जहां तक होगा, उसे ढूंढ़ने की कोशिश की जाएगी. लेकिन कोई फायदा नहीं, क्योंकि तब तक वह काफी दूर निकल चुकी होगी. रघु के गांवघर का पता तो उसे मालूम ही था, फिर डर किस बात का था.

5 दिनों बाद थकेहारे कदमों से, मगर विजयी मुसकान के साथ वह अपने रघु के सामने खड़ी थी. रघु को तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था. उसे तो लग रहा था, जैसे वह कोई सपना देख रहा हो. मगर यह सच था, मुन्नी उस के सामने खड़ी थी. दोनों बालिग थे, इसलिए उन की शादी में रुकावट की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. क्वारंटीन अवधि पूरी होते ही जिलाधिकारी मनोज ने अपनी देखरेख में दोनों की शादी ही नहीं करवाई, बल्कि एक भाई की तरह मुन्नी को विदा भी किया. रघु को उन्होंने रोजगार दिलाने में भी मदद की, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके और अपनी जिंदगी अपने अनुसार जिए.

इस कोरोनाकाल में रघु ने बहुत मुसीबतें ?ोलीं, पर कहते हैं न, अंत भला तो सब भला. रघु और मुन्नी के जीवन की नई शुरुआत हो चुकी थी.

राजनीति नकाब की – भाग 3

उन 50 हजार रुपयों में से 10 हजार रुपए तो निहाल ने मिनी को दे दिए और बाकी के सारे पैसे मां को. अपने पास निहाल ने कुछ भी नहीं रखा. उस के लिए यह संतोष ही काफी था कि उस ने 50 हजार रुपए कमाए हैं. कुल मिला कर वह अपने किए इस काम से खुश था, पर उस की यह खुशी ज्यादा समय नहीं टिक पाई.

वीरेंद्र के अपहरण के 2 दिनों बाद ही उस की लाश एक नाले के पास नग्न हालत में पाई गई और मीडिया में प्रशासन पर जल्दी कार्रवाई करने का दबाव डाला जा रहा था. सारे समाचारपत्रों में आज इसी मर्डर की बात को प्रमुखता से जगह दी गई थी. दहशत में आ गया था निहाल. देवराज ने तो सिर्फ उसे उठा लाने को कहा था और वह उस का मर्डर कर देगा, ऐसा तो नहीं बताया गया था. वह सोचने लगा, ‘अगर मु?ो ऐसा बोला होता तो शायद मैं कभी उस का अपहरण नहीं करता, उफ्फ्फ, यह मु?ा से क्या हो गया.’

घबराई हालात में वह देवराज के पास पहुंचा. देवराज अपने चमचों के साथ जश्न मनाने में लगा हुआ था. निहाल ने उस से बात करनी चाही पर देवराज कहां सुनने वाला था. वह तो दुश्मन की मौत पर शराब उड़ाने में लगा हुआ था.

निहाल जब कुछ ज्यादा ही बात करने की जिद करने लगा तो देवराज ने पूरी की पूरी एक बोतल ही उस के मुंह में लगा दी.

अब से कुछ देर पहले जो निहाल डरा हुआ था वह अब शराब के असर से शेर बन गया और उस जश्न में शामिल हो गया.

अकसर किसी वारदात के बाद कुछ दिन मीडिया में बड़ी गरमागरमी रहती है, बड़ीबड़ी बहसें होती हैं, विशेषज्ञों के पैनल बिठाए जाते हैं पर जैसेजैसे समय बीतता है, वैसे ही सब सामान्य हो जाता है. वीरेंद्र के केस में भी ऐसा ही कुछ हुआ. सब भूल चुके थे उस मर्डर को, और इस बात ने बहुत हद तक निहाल को भी राहत दी और वह फिर से सामान्य ढंग से जीने लगा.एक दिन फिर देवराज का फोन आया और उस ने निहाल को अपने होस्टल में बुलाया.

जब निहाल वहां पहुंचा तो वह यह देख कर थोड़ा चौंका भी था कि आज देवराज एकदम अकेला बैठा है, उस के साथ कोई भी चमचा नहीं है.

‘‘आओ निहाल, बैठो. दरअसल, मु?ो तुम से कुछ जरूरी काम है, इसीलिए मैं ने तुम्हें यहां आने का कष्ट दिया, और काम थोड़ा विश्वास वाला भी है इसलिए मैं ने अपने चमचों को भी यहां से हटा दिया. अब यहां पर बस मैं हूं और तुम हो,’’ देवराज ने निहाल से फुसफुसाते हुए आगे कहा, ‘‘तुम्हारे लिए एक और काम है निहाल और मेरी आशा है तुम इसे मना भी नहीं करोगे.’’

‘‘हां देवराज, पर वो तुम ने वीरेंद्र को मार कर ठीक नहीं किया,’’ निहाल आज पुराने विषय पर बात कर लेना चाहता था.

‘‘अरे, वो सब छोड़ो यार. उस घटना को बीते हुए तो बहुत समय हो गया. अब नए काम पर फोकस करो.’’

‘‘क्या है नया काम?’’ निहाल थोड़ा रुखा हो गया था.

‘‘अरे, कुछ नहीं यार, वही वैन होगी, वही राजू होगा और वही तुम होंगे. बस, शिकार नया होगा.’’

‘‘मतलब? मु?ो और किसी का किडनैप करना होगा,’’ निहाल ने चौंक कर कहा.

‘‘अरे नहीं, यार निहाल, वो सब नहीं, वो पुराना खेल हो गया, पहले उठवाओ, फिर मरवाओ. इस बार तो फैसला औन द स्पौट ही करना होगा,’’ देवराज संदिग्ध होता जा रहा था.

‘‘मतलब?’’ निहाल चौंकता जा रहा था.

‘‘इस बार तुम्हें मैं एक गन दूंगा और एक लड़की की फोटो. बस, तुम्हें वैन में बैठे रहना है और जब वह लड़की तुम्हारे पास से गुजरे तब तुम को ट्रिगर दबाना है और वहां से फुर्र हो जाना है.’’

‘‘नहीं देवराज, मैं यह काम नहीं कर सकता. मैं किसी का खून नहीं कर सकता. तुम तो अपराधी होते जा रहे हो. मैं तुम से यही कहूंगा कि लौट आओ इस रास्ते से,’’ निहाल खड़ा हो गया था यह कहते हुए.

‘‘सोच लो निहाल, इस काम के तुम को पूरे 5 लाख रुपए दूंगा और वो भी आज ही,’’ देवराज ने फिर लालच दिया.

‘‘5 लाख, यह तो काफी बड़ी रकम है और अगर मैं हां करता हूं तो मैं मिनी की आगे की पढ़ाई भी अच्छे ढंग से करवा सकता हूं और उस की शादी के लिए भी कुछ पैसे जोड़ सकता हूं. पर किसी की जान लेना कहां तक उचित है. नहीं देवराज, मु?ा से यह नहीं होगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो निहाल,’’ देवराज लगभग गुर्रा रहा था.

‘‘हांहां, मु?ा से नहीं हो पाएगा. मैं किसी निर्दोष की जान नहीं ले सकता और न ही मैं गन चलाना जानता हूं,’’ निहाल ने कहा.

‘‘अगर तुम यह काम नहीं कर सकते तो जरा मेरे मोबाइल पर चल रही इस वीडियो को तो देखो,’’ इतना कह कर देवराज ने उसे अपना मोबाइल पकड़ा दिया. जो वीडियो उस में चल रही थी उसे देख कर निहाल के पैरोंतले जमीन ही खिसक गई. यह निहाल का वह वीडियो था जिस में वह वीरेंद्र का अपहरण करने वैन के पास पहुंचता है और चेहरे पर नकाब लगा लेता है और फिर कैसे वह वीरेंद्र को वैन में खींचता है. हर कदम का एकदम साफ वीडियो था.

‘ओह्ह… यह मैं कहां फंस गया. दोस्त ने मु?ो धोखा दिया. मेरी वीडियो बना ली गई. देवराज की नीयत ठीक नहीं लगती. पर अब मैं कुछ भी नहीं कर सकता. ओह, बड़ी भूल हो गई है. मु?ो देवराज की बात माननी होगी,’ अपने को संयत करते हुए निहाल सोचने लगा. उस के मन में उथलपुथल मच गई.

‘‘अरे यार, तुम्हारे पास तो मेरे खिलाफ बहुत पुख्ता सुबूत हैं. अब भला मैं तुम्हें कैसे मना कर सकता हूं,’’ निहाल ने अपने स्वर में एक लापरवाही का अंदाज भर कर कहा था.

‘‘यह हुई न मर्दों वाली बात. मैं चाहूं तो इस वीडियो के दम पर तुम से मुफ्त में भी काम करवा सकता हूं. पर मैं तुम्हारा दोस्त हूं, इसलिए इतना घटिया काम नहीं करूंगा. तुम्हें पूरा मेहनताना दिया जाएगा और वह भी काम से पहले,’’ कहने के साथ ही हंस पड़ा था देवराज.

एक बार फिर सबकुछ वैसा ही था. एक जगह खड़ी वैन, वही राजू और उस के साथ 2 बंदे और खुद निहाल एक गन के साथ. यहां आने से पहले उसे निशानेबाजी के कुछ खास गुर बता दिए गए थे. फिर कुछ देर बाद जैसे ही वह लड़की सामने से वैन के पास आई तो उन दोनों गुंडों ने लड़की के हाथों को पकड़ लिया. नकाब पहने निहाल ने ट्रिगर दबा दिया और उस लड़की को छोड़ कर वैन फिर से वहां से फरार हो गई.

निहाल के खाते में 5 लाख रुपए आ चुके थे जिन्हें उस ने अपने प्लान के अनुरूप घर वालों को दे दिए. निहाल के मन में काफी अपराधबोध आ रहा था. वह लगातार यह सोच रहा था कि उस ने उस लड़की को क्यों मार दिया. उसे देवराज को मना कर देना चाहिए था.

फिर निहाल अपने ही मन को सम?ाता कि अगर वह नहीं मारता तो देवराज किसी और से मरवा देता. इस से तो अच्छा है कि 5 लाख रुपए तो उस के खाते में आए. और फिर यह तो दुनिया है, जीनामरना तो चलता रहता है. दुनिया का नियम है कि जब आप खुश होते हैं तो दुनिया का हर शख्स आप को खुश ही नजर आता है. ऐसा ही कुछ निहाल के साथ हो रहा था. वह खुश था, उस के घर में पैसा था, देवराज का साथ था और सब से बड़ी बात अब उस पर से बेरोजगारी का बिल्ला हट चुका था. उस ने घर वालों को यह बता रखा था कि वह एक विदेशी कंपनी के साथ काम करता है जो एकसाथ ही सारा पेमैंट करती है.

उधर विश्वविद्यालय की राजनीति में भी देवराज का नाम ऊंचा उठता जा रहा था. मिनी भी उसी विश्वविद्यालय में पढ़ती थी जिस में देवराज पढ़ाई कर रहा था, सो, मिनी की सुरक्षा को ले कर निहाल निश्ंिचत था.

देशभर में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा था. ऐसे में विश्वविद्यालय भी 2 धड़ों में बंट चुका था. देशहित के कई मुद्दों पर उन धड़ों में विवाद था और बात मारपीट व पुलिस थाने तक पहुंच चुकी थी. निहाल के मोबाइल पर देवराज की कौल आई, ‘‘हां निहाल, अभी के अभी हमारे विश्वविद्यालय चलना है, साला वहां लफड़ा हो गया है, पार्र्टी फौर पुअर्स के लड़कों ने हमारी पार्टी के लड़के को मारा है. अब उन लोगों से बदला लेना है. जहां भी हो आ जाओ, जैसे भी हो आ जाओ, बाकी तुम खुद सम?ादार हो,’’ इतना कह कर फोन कट गया था.

निहाल के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह तैयार हो कर देवराज के होस्टल पहुंच गया. वहां उस ने देखा कि देवराज के पास कई लड़के हाथों में डंडा ले कर खड़े हैं और हमले की योजना बना रहे हैं. उस योजना में निहाल से कहा गया कि वह हौकी ले कर सीधे विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाए और जो भी वहां पर दिखाई दे, सब को अंधाधुंध मारे. इतना कह कर उसे एक हौकी और सुरक्षा के लिए एक नकाब दे दिया गया. निहाल का मन उधेड़बुन में फंस गया था कि भला निर्दोष लोेगों को क्यों मारे. पर देवराज देर करने के चक्कर में नहीं था.

वे सब गेट पर बैठे गार्ड को धक्का देते हुए अंदर दाखिल हुए और मारपीट शुरू कर दी. निहाल ने देवराज से कुछ कहना चाहा तो बदले में देवराज चिल्ला कर बोला, ‘‘यह छात्रों की राजनीति है निहाल, अब समय नहीं है. या तो मारो या मर जाओ,’’ आखिरी के शब्द उस ने ऐसे कहे थे जैसे वह देश पर बलिदान होने की बात कर रहा हो.

सामने से दूसरी पार्टी के छात्र भी हथियारों से लैस हो कर आ रहे थे. देवराज ने निहाल से लाइब्रेरी में जा कर मारकाट करने को कहा.

निहाल लाइब्रेरी की ओर बढ़ा, उस के साथ राजू और 2 गुंडे और भी थे. लाइब्रेरी में छात्रछात्राएं अब भी बैठे पढ़ रहे थे. जाहिर था कि बाहर हो रहे दंगे की उन्हें खबर नहीं थी.

राजू और दोनों गुंडों ने छात्रों को मारना शुरू कर दिया. उन्हें देख कर निहाल के शरीर में भी हरकत हुई. उस की हौकी का वार कहीं किसी पढ़ रही लड़की के सिर पर लगता तो कहीं किसी लड़के के सिर पर.

अंधाधुंध मारपीट के बाद पुलिस का हूटर सुनाई दिया तो निहाल और राजू की पार्टी सब छोड़ कर भाग खड़ी हुई. बाहर निकलते समय निहाल इतना देख पाया था कि देवराज का सिर फूटा हुआ था और पुलिस उसे गिरफ्तार कर के ले जा रही थी.

निहाल दिनभर के बाद छिपतेछिपाते शाम को घर पहुंचा तो बाहर तक भीड़ देख कर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा. हिम्मत कर के वह घर के अंदर गया तो सामने मिनी की लाश पड़ी थी. चीख पड़ा था निहाल, ‘‘मां…ये…ये…कैसे हुआ मां… मिनी तो ठीक थी, फिर अचानक कैसे?’’

मां और पापा दोनों शून्य थे. जब निहाल बहुत चीखपुकार मचा कर सब से पूछने लगा कि मिनी को अचानक क्या हुआ तब पड़ोस के चाचा ने उस से कहा, ‘‘पढ़ने गई थी, बताते हैं लाइब्रेरी में दंगे वाले घुस आए थे और एक नकाब पहने आदमी ने मिनी के सिर पर हौकी से वार किया और यह बेचारी वहीं ढेर हो गई.’’

निहाल के पैर कांपने लगे. उसे लगा कि ये सारी दुनिया घूम रही है. वह अपना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया.

बदचलनी का ठप्पा – भाग 3: क्यों भागी परबतिया घर से?

‘‘किसी की घरवाली कोई दूसरा खसम कर ले, तो इस में हम क्या करें?’’

देवेंद्रजी थोड़ा नाराज हो कर बोले, ‘‘क्या सभी की समस्याएं सुलझाने का हम ने ठेका ले रखा है? किसी से अपनी घरवाली नहीं संभाली जाती तो कोई क्या करेगा?’’ भीड़ ने अर्जुन महतो की ओर देखा, देवेंद्रजी शायद ठीक ही कह रहे हैं. अर्जुन ने शर्म से अपना सिर झुका लिया.

‘‘वही तो हम भी कह रहे हैं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘पार्वती के रंगढंग कई दिनों से ठीक नहीं चल रहे थे. मैं ने सुना तो मैं ने समझाया भी था अर्जुन को. समझाना फर्ज बनता था हमारा. है कि नहीं अर्जुन?’’

अर्जुन ने रजामंदी में अपना सिर हिलाया.

‘‘बलदेवा, तुम चाहे जो करवा दो यहां,’’ देवेंद्रजी ने फिर मजाक किया, ‘‘बेचारी धनिया को भी लुटवा दिए थे ऐसे ही,’’ भीड़ फिर हंस पड़ी. बलदेव प्रसाद झेंपने का नाटक करते हुए बोला, ‘‘आप तो मजाक करने लगे. मुझे क्या पड़ी है कि मैं हर जगह टांग अड़ाऊं. वह तो ऐसे गरीबों का दुख नहीं देखा जाता इसीलिए. अब देखिए न, परबतिया गई सो गई, साथ में गहनेकपड़े, रुपयापैसा सबकुछ ले गई. अब इस बेचारे अर्जुन का क्या होगा?’’ ‘‘हां… माईबाप…’’

अर्जुन महतो फिर सिसकने लगा. देवेंद्रजी नाराजगी से बोले, ‘‘मरो भूखे अब. ये लोग अपनी सब कमाई तो खिला देते हैं ब्याज वालों को या दारू पी कर उड़ा देते हैं. चंदा भी देंगे तो दूसरे नेताओं को. और अब घरवाली भाग गई तो चले आए मेरे पास. जैसे देवेंद्र सब का दुख दूर करने का ठेका ले रखे हैं.’’

‘‘वही तो मैं भी कहता हूं,’’ बलदेव प्रसाद ने कहा, ‘‘लेकिन, ये लोग मानते कहां हैं. और अगर घरवाली खूबसूरत हुई तो हवा में उड़ने लगते हैं. वह तो आप जैसे दयालु हैं, जो सब सहते हैं.

पर सच पूछिए, तो एक गरीब के साथ ऐसी ज्यादती भी तो देखी नहीं जाती. आप के रहते यहां यह सब हो, यह तो अच्छी बात नहीं है न?’’ बलदेव प्रसाद के चेहरे पर देवेंद्रजी के लिए तारीफ के भाव थे. भीड़ ने सोचा कि देवेंद्रजी हैं तो कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे. अर्जुन को घबराना नहीं चाहिए. वह सही जगह पर आया है. ‘‘यही मस्का मारमार कर तो तुम ने हमें बरबाद करवा दिया है बलदेवा,’’ देवेंद्रजी मानो बलदेव को मीठा उलाहना देते हुए बोले. ‘‘खैर, यह तो बताओ कि अर्जुन और पार्वती की शादी को कितने दिन हुए थे?’’ उन्होंने जैसे भीड़ से सवाल किया. अर्जुन को कुछ उम्मीद बंधी.

देवेंद्रजी मामले में दिलचस्पी लेने लगे हैं. बस, वह एक बार हाथ तो धर दें सिर पर, फिर तो उस गया प्रसाद की ऐसीतैसी… यह सोच कर अर्जुन का खून जोश मारने लगा. बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘अरे, भली कही आप ने. यही तो मुसीबत है. इस ने अगर परबतिया से शादी की ही होती तो वह भागती क्यों? पर यहां तो फैशन है. या तो रिश्ता बना लेते हैं या खूबसूरत औरत के मांबाप को 200-400 रुपए  दे कर उस औरत को घर बैठा लेते हैं. तभी तो…’’ अर्जुन ने बलदेव प्रसाद की बात का विरोध करना चाहा. वह चीखचीख कर कहना चाहता था कि पार्वती उसी की ब्याहता है, पर उस के बोलने के पहले ही देवेंद्रजी बोल पड़े, ‘‘तब तो मामला हाथ से गया, समझो. जब ब्याह नहीं रचाया तो कहां की घरवाली और कैसी परबतिया? कौन मानेगा भला?  ‘‘अरे, मैं कहता हूं कि परबतिया अर्जुन की घरवाली नहीं थी.

तो है कोई माई का लाल, जो यह दावा करे?’’ देवेंद्रजी ने जैसे भीड़ को ललकार दिया था.  भीड़ में सनाका खिंच गया. यह तो सोचने वाली बात है. क्या दावा है अर्जुन के पास? बेचारा अब क्या करे? कहां से लाए अपनी और परबतिया की शादी का कागजी सुबूत? ‘‘तभी तो मैं भी कहता हूं कि अब कौन गया प्रसाद जैसे बदमाश से कहने जाए कि उस ने बड़ा गलत किया है. सभी जानते हैं कि वह कैसा आदमी है?’’ बलदेव प्रसाद ने कहा. ‘‘हांहां, जाओ,’’ देवेंद्र तैश में आ कर बोले,

‘‘कौन सा मुंह ले कर जाओगे उस बदमाश के घर? लाठी मार कर घर से निकाल न दे तो कहना.

‘‘अपने ऊपर हाथ भी नहीं धरने देगा वह बदमाश. क्या मैं कुछ गलत कह रहा हूं, बलदेवा?’’ उन्होंने बलदेव प्रसाद की ओर देखा. ‘‘अरे, आप और गलत बोलेंगे?’’

चमचागीरी करते हुए बलदेव प्रसाद ने नहले पर दहला मारा, ‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. वह बदमाश गया प्रसाद तो मुंह पर कह देगा कि किस की बीवी और कैसी परबतिया? खुलेआम दावा करेगा कि यह तो मेरी बीवी है.

ज्यादा जोर लगाएंगे तो जमा देगा 2-4 डंडे. इस तरह अपना सिर भी फुड़वाओ और हाथ भी कुछ न आए.’’ देवेंद्रजी अपने दाहिने हाथ बलदेव प्रसाद की बातों से मन ही मन खुश हुए. भीड़ को भी लगा कि बलदेव प्रसाद की बातों में दम है. गया प्रसाद जैसे गुंडे से उलझना आसान काम नहीं.  अर्जुन फिर एक बार मानो किसी अंधेरी कोठरी में छटपटाने लगा. ‘तो क्या अब कुछ नहीं हो सकता?’

मन ही मन उस ने सोचा. अब देवेंद्रजी ने सधासधाया तीर चलाया,

‘‘भाइयो, एक मिनट के लिए मान भी लें कि गया प्रसाद कुछ नहीं कहेगा. पर क्या पार्वती ताल ठोंक कर कह सकती है कि वह अर्जुन की घरवाली है और गया प्रसाद उसे बहका कर लाया है? ‘‘बोलो लोगो, क्या ऐसा कह पाएगी परबतिया? क्या उस की अपनी मरजी न रही होगी गया प्रसाद के साथ जाने की? वह कोई बच्ची तो है नहीं, जो कोई उसे बहका ले जाए?’’

भीड़ फिर प्रभावित हो गई देवेंद्रजी से. कितनी जोरदार धार है उन की बातों में? सभी बेचारे अर्जुन के बारे में सोचने लगे. लगता है, बेचारा अपनी घरवाली को सदा के लिए गंवा ही बैठा.

देवेंद्रजी ठीक ही तो कह रहे हैं. क्या परबतिया की अपनी मरजी न रही होगी? अब तो अर्जुन को उम्मीद छोड़ ही देनी चाहिए. भूल जाए पार्वती को. जिंदगी रहेगी तो उस जैसी कई मिल जाएंगी.

बलदेव प्रसाद ने देवेंद्रजी की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं. यह औरत जात ही आफत की पुडि़या है. और यह अर्जुन तो बेकार रो रहा है ऐसी धोखेबाज और बदचलन औरत के लिए.’’

यह क्या सुन रहा था अर्जुन? परबतिया और बदचलन? नहीं, वह ऐसी औरत नहीं है. अर्जुन ने सोचा. फिर उस के मन में चोर उभरा. पार्वती उस का घर छोड़ कर गई ही क्यों? क्या कमी थी उस को? क्या नहीं किया उस ने पार्वती के लिए? फिर भी धोखा दे गई. जगहंसाई करा गई.

बदचलन कहीं की.  अर्जुन के मन में गुस्सा उमड़ने लगा. वह कुलटा मिल जाए तो वह उस का गला ही घोंट दे. पर कैसे करेगा ऐसा वह? जिन हाथों से उस ने परबतिया को प्यार किया, क्या उन्हीं हाथों से वह उस का गला दबा पाएगा? और परबतिया नहीं रहेगी तो उस के मासूम बच्चे का क्या होगा?

बच्चे का मासूम चेहरा घूम गया अर्जुन की आंखों में. कितना प्यार करता था वह अपने बच्चे को. कोयला खदान की हड्डीतोड़ मेहनत के बाद जब वह घर लौटता तो अपने बच्चे को गोद में उठाते ही उस की थकान दूर हो जाती. एक हूक सी उठी उस के मन में. बीवी भी गई, बच्चा भी गया. वह फिर पिघलने लगा. गुस्सा आंसू बन कर दोगुने वेग से बह चला था.

इस बार देवेंद्रजी ने अर्जुन को ढांढस देते हुए कहा, ‘‘अर्जुन रोओ मत. रोने  से तो समस्या सुलझेगी नहीं, इंसाफ अभी एकदम से नहीं उठा है धरती से. पुलिस है, अदालत है, कचहरी है. कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा, ताकि तुम्हें इंसाफ मिले.’’ बलदेव प्रसाद ने उन्हें टोका, ‘‘नहीं, नहीं. आप को ही कुछ करना पड़ेगा. पुलिस को तो आप जानते ही हैं.

वह दोनों तरफ से खापी कर चुप्पी मार जाएगी, इसलिए आप ही कोई उपाय बताइए.  ‘‘गया प्रसाद जैसा अकेला बदमाश यहां की जुझारू जनता को नहीं हरा सकता. हमें ऐसे लोगों को रोकना है और जोरजुल्म से इन गरीबों की हिफाजत करनी है.’’

जुम्मन और अलगू का बदला – भाग 3

अलगू ने सुना, तो तुरंत फोन काट कर जुम्मन के पास भागा हुआ आया और उस से पूछने लगा कि आखिर वह ऐसा क्यों कहा रहा है. तो जुम्मन ने उसे हंसते हुए बताया कि जिगलान ने टौप के मेकैनिक से पंगा लिया है न, तो मैं ने भी उसे अपना जलवा दिखा दिया.

जुम्मन ने अलगू को बताया कि उस ने चुपके से उस गाड़ी का ब्रेक औयल निकाल दिया था और ब्रेक सिस्टम में गड़बड़ी कर दी थी, जिस से कि गाड़ी जब तेज स्पीड में जाएगी, तब चाह कर भी ड्राइवर ब्रेक नहीं लगा पाएगा और कार का ऐक्सीडैंट हो जाएगा.

‘‘पर, इन महंगी गाडि़यों में तो वह सीट के आगे गुब्बारे वाली सुविधा भी तो होती है… जिगलनवा बच जाएगा भाई उस बेहया को कुछ नहीं होगा,’’ अलगू ने शक जाहिर किया, तो जुम्मन मुसकरा उठा, ‘‘घबरा मत अलगू, एक मेकैनिक गाड़ी के सारे फंक्शन खराब कर सकता है… सोचो, अगर गुब्बारे उस के अंदर से हटा ही दिए गए हों तो…’’

जुम्मन यह बात कह ही रहा था कि तभी अचानक ठाकुर जिगलान के बंगले के बाहर जैसे कुछ उथलपुथल सी महसूस हुई. ठाकुर जिगलान के चमचों की कई गाडि़यां शहर की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ पड़ी थीं.

जुम्मन और अलगू की नजरें एकदूसरे से टकराईं और दोनों मुसकरा उठे.‘‘उस की गाडि़यों के आसपास तो कई आदमी रहते हैं और गाड़ी की चाभी वगैरह?’’ एकसाथ कई सवाल पूछ लेना चाहता था अलगू.

जुम्मन ने सारे सवालों का जवाब एक शराब की बोतल दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे देख दोस्त, सारा खेल इस बला का है.’’

अलगू समझ गया था कि अपना रास्ता बनाने के लिए जुम्मन ने शराब का इस्तेमाल किया है. शाम तक गांव में खबर फैल गई थी कि ठाकुर जिगलान की महंगी वाली गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया है और वह शहर के अस्पताल में भरती है.

कुछ समय बाद जुम्मन और अलगू के परिवारों ने रन्नो और सलमा से शादी करने की बात उठाई, तो गांव के बहुत सारे लोगों के विरोध के स्वर गूंजे. उन लोगों की समझ में सभी लड़केलड़कियों की शादी कैसे हो और किस से हो, इस बात का ठेका उन लोगों के ही पास है.

सब लोगों ने कहा कि मामला गंभीर है, इसलिए पंचायत बुलाई गई. पंच लोग बैठे और बाकी गांव के लोग भी जमा हो गए. पंचों ने कहा कि अगर कोई मुसलिम लड़का सलमा से निकाह करना चाहे तो इसी वक्त अपना नाम आगे करे, पर अफसोस, एक बलात्कार पीडि़ता सलमा से शादी करने के लिए कोई भी आगे नहीं आया. ठीक ऐसा ही रन्नो के केस में किया गया, पर कोई हिंदू लड़का रन्नो से शादी करने को आगे नहीं आया.

काफी देर तक इंतजार के बाद भी जब कोई आगे नहीं आया, तब पंचायत ने जुम्मन और अलगू के हक में फैसला दे दिया और कहा कि एक शर्त यह रहेगी कि शादी कर के उन्हें यह गांव छोड़ कर शहर जाना होगा, क्योंकि पंचायत नहीं चाहती कि भविष्य में हिंदू और मुसलिमों में शादियां हों.

जुम्मन और अलगू ने बिना देर किए हां कर दी. अब दोनों जोड़े एकसाथ बैंगलुरु में रहते हैं. जुम्मन ने वहां एक कंपनी में मेकैनिक की नौकरी कर ली है और अलगू भी उसी के साथ असिस्टैंट का काम करता है.

दोनों जोड़े समयसमय पर अपने मांबाप से मिलने गांव आते हैं. अब वहां ठाकुर जिगलान की तूती नहीं बोलती है, क्योंकि उस दिन सड़क हादसे में उस की जान तो बच गई, पर पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था. उस के पास उस के शरीर की मक्खियां उड़ाने को भी कोई नहीं था. उस के सारे चमचे उसे छोड़ कर भाग चुके थे.

अब बगिया में चूल्हा नहीं जलता, मांस नहीं पकता और न ही शराब की बोतलें खुलती हैं. लकवाग्रस्त ठाकुर जिगलान अब खेत में काम कर रही किसी औरत का चाह कर भी रेप नहीं कर सकता.

ठाकुर जिगलान के पास न तो जानकीदास है और न ही उस की खामोश रहने वाली ठकुराइन. ठाकुर जिगलान के जुल्मोसितम के चलते 30 साल की ठकुराइन और

25 साल के जानकीदास में ऐसा प्रेम पनपा कि दोनों का अलग रहना मुश्किल हो गया. कार हादसे के बाद उन दोनों ने गांव से भाग कर शादी कर ली और एकसाथ रहने लगे.जुम्मन और अलगू ने सोचसमझ कर ठाकुर जिगलान से अपना बदला ले लिया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें