‘‘तब तो रघु जानता होगा इसे…’’
‘‘जानता तो होगा, पता लग जाएगा कि कौन है.’’
दूसरे दिन जब प्रमोद जयंती को औफिस में छोड़ कर घर लौट रहा था, तो वहीं गेट के सामने झाड़ू लगाते पूरनराम ने उसे देख लिया और जब वह चला गया, तो लपक कर पूरनराम जयंती के सामने आ कर पूछ बैठा, ‘‘जयंती मैडम, वह आदमी जो आप को छोड़ कर गया है, क्या आप का आदमी है?’’
‘‘हां, पर क्यों?’’
‘अगर यह जयंती मैडम का पति है, तो फिर वह औरत कौन थी, जो उस दिन इस आदमी के हाथ पर हाथ धरे मेघदूत सिनेमाघर के अंदर हंसते हुए जा रही थी?’ पूरनराम सोचने लगा.
‘‘क्या हुआ? किस सोच में पड़ गया तू?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ मैडम. एक आदमी कितने रंग बदल सकता है, वही सोच रहा था. इसी से मिलताजुलता एक आदमी है, जो पिछले कुछ दिनों से उधर बाहर के सामने वाले पेड़ों पर चढ़ कर औफिस के बरामदे की ओर ताकता रहता है. कल करमचंद बाबू ने टोका तो उस से लड़ बैठा. मैं समझा वही था…’’ सिनेमाघर वाली बात पूरनराम ने छिपा ली.
‘‘अरे नहीं, यह मेरा पति है. वह ऐसा क्यों करेगा? कोई दूसरा होगा…’’ जयंती ने यह बात पूरनराम से बड़ी सफाई से कह तो दी, लेकिन खुद किसी गहरी सोच में पड़ गई कि अगर वह प्रमोद ही है तो ऐसा क्यों कर रहा है? यह जान लेना जयंती के लिए बहुत जरूरी हो गया.
पूरनराम वाली बात की जयंती ने प्रमोद से चर्चा तक नहीं की और मन ही मन एक योजना बना डाली.उधर इतने दिन माथा खपाने के बाद भी प्रमोद को जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा, तो वह सब्र खो बैठा और एक दिन उस ने औफिस में ही धावा बोल दिया.
तकरीबन 22 साल से जयंती को लाने और ले जाने का काम करने वाले प्रमोद ने कभी उस के औफिस में कदम नहीं रखा था. उस दिन अचानक आधा घंटा पहले अपने औफिस में पति को आया देख जयंती एकदम से चौंक उठी थी. उस घड़ी वह राजेश बाबू के साथ किसी जरूरी काम में लगी हुई थी.
जयंती के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘क्या हुआ? इस तरह अचानक से?’’
‘‘एक जरूरी काम से मुझे एक जगह जाना है, सोचा तुम्हें घर छोड़ता जाऊं.’’
जयंती ने राजेश बाबू की ओर देखा. राजेश बाबू बोल पड़े, ‘‘ठीक है, कोई जरूरी काम होगा. तुम जाओ. यह काम हम लोग कल पूरा कर लेंगे.’’
जयंती ने अपना हैंडबैग उठाया और औफिस से निकल गई.
इस बात को बीते अभी महज 2 दिन ही हुए थे. तीसरे दिन साढ़े 10 बजे प्रमोद फिर औफिस में घुस गया. तब जयंती और राजेश बाबू दोनों चाय पी रहे थे और थोड़ी दूरी पर मंजूबाई भी बैठी चाय पी रही थी. मंजूबाई औफिस में चाय पिलाने का काम करती थी.
‘‘बैंक से फोन आया था. तुम्हारे आधारकार्ड और पैनकार्ड की जिरौक्स कौपी मांग रहे हैं,’’ प्रमोद ने बताया.
‘‘अभी अप्रैल में ही केवाईसी जमा की है न?’’ जयंती को बैंक वालों की यह ज्यादती अच्छी नहीं लगी थी.
‘‘कुछ काम होगा. यहां है तो दे दो, जमा कर आएगा,’’ राजेश बाबू आज फिर बीच में बोल पड़े.
जयंती ने प्रमोद को कागज दे दिए. वह चला गया. मंजूबाई भी बगल वाले औफिस में चली गई तो जयंती बोल पड़ी, ‘‘मुझे लगता है कि यह हमारा पीछा कर रहा है.’’
‘‘मुझे लगता है कि यह किसी बड़ी दुविधा में पड़ा है. अच्छा होगा कि यह कंफर्म हो जाए, किसी तरह के कंफ्यूजन में न रहे.’’
अकसर आदमी उस जगह धोखा खाता है, जहां भरोसा डगमगाता है. प्रमोद को जयंती और राजेश बाबू को ले कर इश्कविश्क का कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस के चलते वह अपना सब्र खो बैठा था.
तब एक रात उस ने जयंती पर सीधे हमला कर दिया, ‘‘तुम उस जगह से ट्रांसफर ले लो, राजेश बाबू के साथ तुम्हारा काम करना मुझे अच्छा नहीं लगता है. टेबल के नीचे पैर पर पैर फंसा कर कोई काम करता है भला. दीवार की भी आंखें होती हैं.’’
‘‘और कुछ?’’ जयंती ने अपने उमड़ते जज्बातों को जबरन रोकते हुए कहा, ‘‘उन के साथ मैं 22 साल से काम कर रही हूं. तुम्हारे मन में इस तरह का खयाल कभी नहीं आया. जब वे मेरे प्रमोशन को ले कर एरिया अफसर से हाथापाई पर उतर आए थे, तब तो तुमने ‘तुम्हारा बड़ा बाबू मर्द आदमी है’ कहा था…
‘‘उन्हीं की वजह से आज तक औफिस में किसी की मेरी तरफ आंख उठा कर देखने की कभी हिम्मत नहीं हुई और तुम कहते हो कि मैं उन के साथ काम करना छोड़ दूं… कभी नहीं…’’ जयंती चीख ही पड़ी थी.
इस के बाद जयंती ने करवट बदल ली और सो गई. प्रमोद कमरे से बाहर निकल गया, पर जयंती टस से मस नहीं हुई. प्रमोद अभी तक वाशरूम से बाहर नहीं निकला था. यह देख कर जयंती ने जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरे, अब क्या वहां सो कर रात की नींद पूरी करनी है?’’
‘‘सौरी जयंती…’’ सामने आ कर प्रमोद बोला, ‘‘तुम सही थी, मैं गलत साबित हो गया. मैं पिछले एकडेढ़ महीने से तुम्हारा पीछा कर रहा था.’’
‘‘मालूम है मुझे.’’
‘‘मैं रघु चपरासी के बहकावे में आ गया था. मैं बेहद शर्मिंदा हूं,’’ प्रमोद पछाड़ खाए पहलवान की तरह चित हो गया था, ‘‘जब तुम्हें सबकुछ मालूम हो चुका था, तो कभी विरोध क्यों नही किया?’’
‘‘विरोध गलत नीतियों का किया जाता है, पर जिस की सोच ही गलत हो, जिसे अपनी पत्नी पर भरोसा न हो, जो गैरऔरत के साथ सिनेमाघर में जाता हो, वैसी नीयत वाले आदमी का विरोध क्या करना, उस से छुटकारा पा लेना ही बेहतर है. फिर तुम तो खुद भ्रमित आदमी हो. मैं हैरान हूं कि इतने सालों से तुम्हारे साथ बिस्तर साझा करती रही और तुम्हें जान न पाई.
‘‘अब जब तुम्हारी असलियत सामने आ चुकी है, तब तुम्हारे इस शक के चक्कर में मैं अपना जीने का अंदाज क्यों बदल लूं…’’
‘‘तुम कितनी अच्छी हो जयंती डार्लिंग. मुझे माफी दे दो.’’
‘‘दूर रहो, यह हक अब तुम खो चुके हो…’’ जयंती ने प्रमोद को झिड़क दिया, ‘‘22 साल के हमारे गाढ़े प्यार को तुम ने गंदे नाले में बहा दिया. ‘जयंती का पति छिपछिप कर उस का पीछा कर रहा है’ इस शब्द ने मुझे अपने ही औफिस में बदनाम करा दिया. डेढ़ महीने से औफिस के आसपास तुम ने जो तमाशा किया, लोगों ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा है, वह क्या कम है…’’
जयंती ने कहना जारी रखा, ‘‘तुम जैसे मर्दों से कोई औरत मां तो बन सकती है, पर इज्जत की जिंदगी कभी नहीं जी सकती है. अब तुम मेरी एक बात सुनो कि मैं मीरा नहीं, जयंती हूं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का सलीका जान चुकी हूं.
‘‘वैसे, मीरा ने भी नौकरी से रिजाइन नहीं दिया है, वह 3 महीने की मैटरनिटी लीव पर है. मीरा मां बनने वाली है. ऐसे निकम्मे मर्दों के आगे हम कामकाजी औरतों ने घुटने टेकने छोड़ दिए हैं. हमें अपनी जिंदगी कैसे जीनी है, वह तरीका हमें समझ में आ चुका है.
‘‘हर बार पत्नी ही अग्निपरीक्षा क्यों दे? मर्द क्यों नहीं देता? आखिर एक जिस्म के लिए औरतें कब तक मर्दों के जुल्म सहेंगी? आखिर कब तक?’’
‘‘बाबूजी, आप मां का पीछा कर रहे थे? अपनी ही पत्नी की जासूसी करने लगे थे? हम ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन आप का यह रूप भी देखना पड़ेगा…’’ एक आवाज ने जयंती और प्रमोद को चौंकाया. देखा कि बड़ा बेटा बगल के कमरे के दरवाजे की ओट में छिप कर जाने कब से उन की बातें सुन रहा था.