माफी : तलाक के बाद का ट्विस्ट

शिफाली और प्रमोद को आज कोर्ट से तलाक के कागज मिल गए थे. लंबी प्रक्रिया के बाद आज कुछ सुकून मिला. शिफाली और प्रमोद तथा उनके परिजन साथ ही कोर्ट से बाहर निकले, उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे. चार साल की लंबी जदोजहद के बाद आज फैसला हो गया था.

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ 6 साल ही रह पाए थे.

चार साल तो तलाक की कार्यवाही में ही बीत गये गए.

शेफाली के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी प्रमोद के घर से लेना था और प्रमोद के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो उसने शेफाली से लेने थे.

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि प्रमोद शेफाली को  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त देगा.शेफाली और प्रमोद दोनो एक ही  औटो में बैठकर प्रमोद के घर आये.  आज ठीक 4 साल बाद आखिरी बार ससुराल जा रही थी शेफाली, अब वह कभी इन रास्तों से इस घर तक नहीं आएगी. यह बात भी उसे कचोट रही थी कि जहां वह 4 साल तक रही आज उस घर से उसका नाता टूट गया है. वह  दहेज के सामान की लिस्ट लेकर आई थी, क्योंकि सामान की निशानदेही तो उसे ही करनी थी.

सभी रिश्तेदार अपनेअपने घर जा चुके थे. बस, तीन प्राणी बचे थे. प्रमोद,शेफाली और उस की मां. प्रमोद यहां अकेला ही रहता था, क्योंकि उसके पेरेंट्स गांव में ही रहते थे.

शेफाली और प्रमोद की इकलौती 5 साल की बेटी जो कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक शेफाली के पास ही रहेगी. प्रमोद महीने में एक बार उससे मिल सकता है.

घर में  घुसते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गईं. कितनी मेहनत से सजाया था शेफाली ने इसे. एक एक चीज में उसकी जान बसती थी. सबकुछ उसकी आंखों के सामने बना था. एकएक ईंट से उसने धीरेधीरे बनते घरौदे को पूरा होते देखा था. यह उसका सपनो का घर था. कितनी शिद्दत से प्रमोद ने उसके सपने को पूरे किए थे.

प्रमोद थकाहारा सा सोफे पर पसर गया और शेफाली से बोला, “ले लो जो कुछ भी तुम्हें लेना है, मैं तुम्हें नही रोकूंगा.”

शेफाली बड़े गौर से प्रमोद को देखा और सोचने लगी 4 साल में कितना बदल गया है प्रमोद. उसके बालों में  अब हल्की हल्की सफेदी झांकने लगी थी. शरीर पहले से आधा रह गया है. चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई थी.

शेफाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी, जहां उसके दहेज का समान पड़ा था. कितना था उसका सामान. प्रेम विवाह था दोनो का. घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे.

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की. क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है.

बस एक बार पीकर बहक गया था प्रमोद. हाथ उठा बैठा था उस पर. बस तभी वो गुस्से में मायके चली गई थी.

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर. इधर प्रमोद के भाईभाभी और उधर शेफाली की माँ. नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और आखिर तलाक हो गया. न शेफाली लौटी और न ही प्रमोद लेने गया.

शेफाली की मां जो उसके साथ ही गई थीं,बोली, ” कहां है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता. बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”

“चुप रहो मां,” शेफाली को न जाने क्यों प्रमोद को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा.

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट से मिलाया गया.

बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया.

शेफाली ने सिर्फ अपना सामान लिया प्रमोद के समान को छुआ तक नही.  फिर शेफाली ने प्रमोद को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया.

प्रमोद ने बैग वापस शेफाली को ही दे दिया, ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में .”

गहनों की किम्मत 15 लाख रुपये से कम नही थी.

“क्यों, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था.”

“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, शेफाली. वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है.”

सुनकर शेफाली की मां ने नाकभों चढ़ा दीं.

“मुझे नही चाहिए.

वो दस लाख रुपये भी नही चाहिए.”

“क्यों?” कह कर प्रमोद सोफे से खड़ा हो गया.

“बस यूं ही” शेफाली ने मुंह फेर लिया.

“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएंगे.”

इतना कह कर प्रमोद ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया. शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था.

शेफाली की मां गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी.

शेफाली को मौका मिल गया. वो प्रमोद के पीछे उस कमरे में चली गई.

वो रो रहा था. अजीब सा मुंह बना कर.  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने  की जद्दोजहद कर रहा हो. शेफाली ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था. आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला.

मग़र वह ज्यादा भावुक नही हुई.

सधे अंदाज में बोली, “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक प्रमोद?”

“मैंने नही तलाक तुमने दिया.”

“दस्तखत तो तुमने भी किए.”

“माफी नही मांग सकते थे?”

“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने. जब भी फोन किया काट दिया.”

“घर भी तो आ सकते थे”?

“मेरी हिम्मत नही हुई थी आने की?”

शेफाली की मां आ गई. वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई. “अब क्यों मुंह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया.”

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी.

शेफाली के भीतर भी कुछ टूट रहा था. उसका दिल बैठा जा रहा था. वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी. जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी. कैसे कैसे बचत कर के उसने और प्रमोद ने वो सोफा खरीदा था. पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था.”

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई. कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी. उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई.

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई. माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया. प्रमोद बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था. एक बार तो उसे दया आई उस पर. मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है.

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा. अस्त व्यस्त हो गया था पूरा कमरा. कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे थे.

कभी कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वह प्रमोद से लिपट कर मुस्करा रही थी.

कितने सुनहरे दिन थे वो.

इतने में मां फिर आ गई. हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई.

बाहर गाड़ी आ गई थी. सामान गाड़ी में डाला जा रहा था. शेफाली सुन सी बैठी थी. प्रमोद गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया.

अचानक प्रमोद कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया.

बोला,” मत जाओ…माफ कर दो.”

शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी. सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए. शेफाली ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया .

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई प्रमोद से. साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे.

दूर खड़ी शेफाली की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही.

काश, उनको पहले मिलने दिया होता?

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच  जाएं, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

खरीदी हुई दुलहन : डर के साए में एक लड़की

38 साल के अनिल का दिल अपने कमरे में जाते समय 25 साल के युवा सा धड़क रहा था. आने वाले लमहों की कल्पना ही उस की सांसों को बेकाबू किए दे रही थी, शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर रही थी. आज उस की सुहागरात है. इस रात को उस ने सपनों में इतनी बार जिया है कि इस के हकीकत में बदलने को ले कर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा.

बेशक वह मंजू को पैसे दे कर ब्याह कर लाया है, तो क्या हुआ? है तो उस की पत्नी ही. और फिर दुनिया में ऐसी कौन सी शादी होती होगी जिस में पैसे नहीं लगते. किसी में कम तो किसी में थोड़े ज्यादा. 10 साल पहले जब छोटी बहन वंदना की शादी हुई थी तब पिताजी ने उस की ससुराल वालों को दहेज में क्या कुछ नहीं दिया था. नकदी, गहने, गाड़ी सभी कुछ तो था. तो क्या इसे किसी ने वंदना के लिए दूल्हा खरीदना कहा था. नहीं न. फिर वह क्यों मंजू को ले कर इतना सोच रहा था. कहने दो जिसे जो कहना था. मुझे तो आज रात सिर्फ अपने सपनों को हकीकत में बदलते देखना है. दुनिया का वह वर्जित फल चखना है जिसे खा कर इंसान बौरा जाता है. मन में फूटते लड्डुओं का स्वाद लेते हुए अनिल ने सुहागरात के लिए सजाए हुए अपने कमरे में प्रवेश किया.

अब तक उस ने जो फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखा था उस के ठीक विपरीत मंजू बड़े आराम से सुहागसेज पर बैठी थी. उस के शरीर पर शादी के जोड़े की जगह पारदर्शी नाइटी देख कर अनिल को अटपटा सा लगा क्योंकि उस का तो यह सोचसोच कर ही गला सूखे जा रहा था कि वह घूंघट उठा कर मंजू से बातों की शुरुआत कैसे करेगा. मगर यहां का माहौल देख कर तो लग रहा है जैसे कि मंजू तो उस से भी ज्यादा उतावली हो रही है.

अनिल सकुचाया सा बैड के एक कोने में बैठ गया. मंजू थोड़ी देर तो अनिल की पहल का इंतजार करती रही, फिर उसे झिझकते देख कर खुद ही उस के पास खिसक आई और उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया. यंत्रवत से अनिल के हाथ मंजू के इर्दगिर्द लिपट गए. मंजू ने अपनेआप को हलका सा धक्का दिया और वे दोनों ही बैड पर लुढ़क गए. मंजू ने अनिल के ऊपर झुकते हुए उस के होंठ चूमने शुरू कर दिए तो अनिल बावला सा हो उठा. उस के बाद तो अनिल को कुछ भी होश नहीं रहा. प्रकृति ने जैसे उसे सबकुछ एक ही लमहे में सिखा दिया.

मंजू ने उसे चरम तक पहुंचाने में पूरा सहयोग दिया था. अनिल का यह पहला अनुभव ऐसा था जैसे गूंगे को गुड़ का स्वाद, जिस के स्वाद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बयान नहीं. एक ही रात में अनिल तो जैसे जोरू का गुलाम ही हो गया था. आज मंजू ने उसे वह तोहफा दिया था जिस के सामने सारी बादशाहत फीकी थी.

सुबह अनिल ने बेफिक्री से सोती हुई मंजू को नजरभर कर देखा. सबकुछ सामान्य ही था उस में. कदकाठी, रंगरूप और चेहरामोहरा सभी कुछ. मगर फिर भी रात जो खास बात हुई थी उसे याद कर के अनिल मन ही मन मुसकरा दिया और सोती हुई पत्नी को प्यार से चूमता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.

मंजू जैसी भी थी, अनिल से तो इक्कीस ही थी. अनिल का गहरा सांवला रंग, मुटाया हुआ सा शरीर, कम पढ़ाईलिखाई सभीकुछ उस की शादी में रोड़ा बने हुए थे. अब तो सिर के बाल भी सफेद होने लगे थे. बहुत कोशिशों के बाद भी जब जानपहचान और अपनी बिरादरी में अनिल के रिश्ते की बात नहीं जमी तो उस की बढ़ती हुई उम्र को देखते हुए उस की बूआ ने उस की मां को सलाह दी कि अगर अपने समाज में बात नहीं बन रही है तो किसी गरीब घर की गैरबिरादरी की लड़की के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है. और तो और, आजकल तो लोग पैसे दे कर भी दुलहन ला रहे हैं. बूआ की बात से सहमत होते हुए भी अनिल की मां ने एक बार उस की कुंडली मंदिर वाले पंडितजी को दिखाने की सोची.

पंडितजी ने कुंडली देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बहनजी, शादी का योग तो हर किसी की कुंडली में होता ही है. किसीकिसी की शादी जल्दी तो किसी की थोड़ी देर से, मगर समझदार लोग आजकल कुंडली के फेर में नहीं पड़ते. आप तो कोई ठीकठाक सी लड़की देख कर बच्चे का घर बसा दीजिए. चाहे कुंडली मिले या न मिले. बस, लड़की मिल जाए और शादी के बाद दोनों के दिल.’’

अनिल की मां को बात समझ में आ गई और उन्होंने अपने मिलने वालों व रिश्तेदारों के बीच में यह बात फैला दी कि उन्हें अनिल के लिए किसी भी जातबिरादरी की लड़की चलेगी. बस, लड़की संस्कारी और दिखने में थोड़ी ठीकठाक हो.

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. एक दिन अनिल की मां से मिलने एक व्यक्ति आया जो शादियां करवाने का काम करता था. उसी ने उन्हें मंजू के बारे में बताया और अनिल से उस की शादी करवाने के एवज में 20 हजार रुपए की मांग की. अनिल अपनी मां और बूआ के साथ मंजू से मिलने उस के घर गया. बेहद गरीब घर की लड़की मंजू अपने 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर पर थी. उस से छोटा एक भाई और भाई से छोटी एक बहन रीना. मंजू की 2 बड़ी बहनें भी उस की ही तरह खरीदी गई थीं.

25 साल की युवा मंजू उम्र में अनिल से लगभग 12-13 साल छोटी थी. एक कमरे के छोटे से घर में इतने प्राणी कैसे रहते होंगे, यह सोच कर ही अनिल हैरान हो रहा था. उसे तो यह सोच कर हंसी आ रही थी कि कैसी परिस्थितियों में ये बच्चे पैदा हुए होंगे.

खैर, मंजू को देखने के बाद अनिल ने शादी के लिए हां कर दी. अब यह तय हुआ कि शादी का सारा खर्चा अनिल का परिवार ही उठाएगा और साथ ही, मंजू के परिवार को 2 लाख रुपए भी दिए जाएंगे ताकि उन का जीवनस्तर कुछ सुधर सके. 50 हजार रुपए एडवांस दे कर अनिल और मंजू की शादी का सौदा तय हुआ और जल्दी ही घर के 4 जने जा कर मंजू को ब्याह लाए. बिना किसी बरात और शोरशराबे के मंजू उस की पत्नी बन गई.

मंजू निम्नवर्गीय घर से आई थी, इसलिए अनिल के घर के ठाटबाट देख कर वह भौचक्की सी रह गई. बेशक उस का स्वागत किसी नववधू सा नहीं हुआ था मगर मंजू को इस का न तो कोई अफसोस था और न ही उस ने कभी इस तरह का कोई सपना देखा था. बल्कि वह तो इस घर में आ कर फूली नहीं समा रही थी. जितना खाना उस के मायके में दोनों वक्त बनता था उतना तो यहां एक वक्त के खाने में बच जाता है और कुत्तों को खिलाया जाता है. ऐसेऐसे फल और मिठाइयां उसे यहां देखने और खाने को मिल रहे थे जिन के उस ने सिर्फ नाम ही सुने थे, देखे और चखे कभी नहीं.

‘अगर मैं अनिल के दिल की रानी बन गई तो फिर घर की मालकिन बनने से मुझे कोई नहीं रोक सकता’, मंजू ने मन ही मन सोच लिया कि आखिरकार उसे घर की सत्ता पर कब्जा करना ही है.

‘सुना था कि पुरुष के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. नहीं. पेट से हो कर नहीं, बल्कि उस की भूख की आनंददायी संतुष्टि से हो कर जाता है. फिर भूख चाहे पेट की हो, धन की हो या फिर शरीर की हो. यदि मैं अनिल की भूख को संतुष्ट रखूंगी तो वह निश्चित ही मेरे आगेपीछे घूमेगा. और फिर, तू मेरा राजा, मैं तेरी रानी, घर की महारानी’, यह सोचसोच कर मंजू खुद ही अपने दिमाग की दाद देने लगी.

‘बनो दिल की रानी’ अपने इस प्लान के मुताबिक, मंजू रोज दिन में 2 बार अनिल को ‘आई लव यू स्वीटू’ का मैसेज भेजने लगी. लंचटाइम में उसे फोन कर के याद दिलाती कि खाना टाइम पर खा लेना. वह शाम को सजधज कर अनिल को उस के इंतजार में खड़ी मिलती.

रात के खाने में भी वह अनिल को गरमागरम फुल्के अपने हाथ से बना कर ही खिलाती थी चाहे उसे घर आने में कितनी भी देर क्यों न हो जाए और खुद भी उस के साथ ही खाती थी. यानी हर तरह से अनिल को यह महसूस करवाती थी कि वह उस की जिंदगी में सब से विशेष व्यक्ति है. और हर रात वह अनिल को अपने क्रियाकलापों से खुश करने की पूरी कोशिश करती थी. उस ने कभी अनिल को मना नहीं किया बल्कि वह तो उसे प्यार करने को प्रोत्साहित करती थी. उम्र में छोटी होने के कारण अनिल उसे बच्ची ही समझता था और उस की हर नादानी को नजरअंदाज कर देता था.

कहने को तो अनिल अपने मांबाप का इकलौता बेटा था मगर कम पढ़ेलिखे होने और अतिसाधारण शक्लसूरत के कारण अकसर लोग उसे कोई खास तवज्जुह नहीं दिया करते थे. वहीं, उस की शादी भी नहीं हो रही थी. सो, अनिल हीनभावना का शिकार होने लगा था. मगर मंजू ने उसे यह एहसास दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह कितना काबिल और खास इंसान है बल्कि वह तो कहती थी कि अनिल ही उस की सारी दुनिया है.

मंजू के साथ और प्यार से अनिल का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा. मंजू को पा कर अनिल ऐसे खुश था जैसे किसी भूखे व्यक्ति को हर रोज भरपेट स्वादिष्ठ भोजन मिलने लगा हो.

एक दिन मंजू की मां का फोन आया. वे उस से मिलना चाह रही थीं. रात में मंजू ने अनिल की शर्ट के बटन खोलते हुए अदा से कहा, ‘‘मुझे कुछ रुपए चाहिए. मां ने मिलने के लिए बुलाया है. पहली बार जा रही हूं. अब इतने बड़े बिजनैसमैन की पत्नी हूं, खाली हाथ तो नहीं जा सकती न.’’

‘‘तो मां से ले लो न,’’ अनिल ने उसे पास खींचते हुए कहा.

‘‘मां से क्यों? मैं तो अपने हीरो से ही लूंगी. वह भी हक से,’’ कहते हुए मंजू ने अनिल के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

‘‘कितने चाहिए? अभी ये रखो. और चाहिए तो कल दे दूंगा,’’ अनिल ने निहाल होते हुए उसे 20 हजार रुपए थमा दिए और फिर मंजू को बांहों में कसते हुए लाइट बंद कर दी.

मंजू 15 दिनों के लिए मायके गईर् थी. मगर 5 दिनों बाद ही अनिल को उस की याद सताने लगी. मंजू की शहदभरी बातें और मस्तीभरी शरारतें उसे रातभर सोने नहीं देतीं. उस ने अगले ही दिन मंजू का तत्काल का टिकट बनवा कर आने के लिए कह दिया. मंजू भी जैसे आने के लिए तैयार ही बैठी थी. उस के वापस आने के बाद अनिल की दीवानगी उस के लिए और भी बढ़ गई. अब मंजू हर महीने अनिल से

10-15 हजार रुपए ले कर अपने मायके भेजने लगी. मंजू ने अनिल से उस का एटीएम कार्ड नंबर और पिन आदि ले लिया. जिस की मदद से वह अपनी बहनों और भाई के लिए कपड़े, घरेलू सामान आदि भी औनलाइन और्डर कर के भेज देती. मंजू के प्यार का नशा अनिल के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. ‘सैयां भए कोतवाल तो अब डर काहे का.’ घर में मंजू का ही हुक्म चलने लगा.

बेटे की इच्छा को देख अनिल की मां को न चाहते हुए भी तिजोरी की चाबियां बहू को देनी पड़ीं. सामाजिक लेनदेन आदि भी सबकुछ उसी की सहमति या अनुमति से होता था. अनिल की मां उसे कुछ नहीं कह पाती थीं क्योंकि मंजू ने उन्हें भी यह एहसास करवा दिया था कि उस ने अनिल से शादी कर के अनिल सहित उन के पूरे परिवार पर एहसान किया है.

‘‘सुनिए न, मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरा नाम हर जगह आप के नाम के साथ जुड़ा हो,’’ एक दिन मंजू ने अनिल से बड़े ही अपनेपन से कहा.

‘‘अरे, इस में इच्छा की क्या बात है? वह तो जुड़ा ही है. देखो, तुम मेरी अर्धांगिनी हो यानी मेरा आधा हिस्सा. इस नाते मेरी हर चलअचल संपत्ति पर तुम्हारा आधा हक हुआ न,’’ अनिल ने प्यार से मंजू को समझाया.

‘‘वह तो ठीक है, मगर यह सब अगर कानूनी रूप से भी हो जाता तो कितना अच्छा होता. मगर उस में तो कई पेंच होंगे न. चलो, रहने दो. बिना मतलब आप परेशान हो जाएंगे,’’ मंजू ने बालों की लट को उंगलियों में लपेटते हुआ कहा.

‘‘मेरी जान, मेरे तन, मन और धन… सब की मालकिन हो तुम,’’ अनिल ने उसे बांहों में भरते हुए कहा और फिर एक दिन वकील और सीए को बुला कर अपने घरदुकान, बैंक अकाउंट व अन्य चलअचल प्रौपर्टी में मंजू को कानूनन अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

इधर एक बच्चे की मां बन कर जहां मंजू ने अनिल के खानदान को वारिस दे कर सदा के लिए उसे अपना कर्जदार बना लिया वहीं मां बनने के बाद मंजू के रूप और यौवन में आए निखार ने अनिल की रातों की नींद उड़ा दी. अनिल को अब अपनी ढलती उम्र का एहसास होने लगा था. वह यह महसूस करने लगा था कि अब उस में पहले वाली ऊर्जा नहीं रही और वह मंजू की शारीरिक जरूरतें पहले की तरह पूरी नहीं कर पाता. अपनी इस गिल्ट को दूर करने के लिए वह मंजू की हर भौतिक जरूरत पूरी करने की कोशिश में लगा रहता. अनिल आंख बंद कर के मंजू की हर बात मानने लगा था.

मंजू बेशक अनिल की प्रौपर्टी की मालकिन बन गई थी मगर उस ने भी अपने दिल का मालिक सिर्फ और सिर्फ अनिल को ही बनाया था. वह यह बात कभी नहीं भूल सकी थी कि जब उस के आसपड़ोस के लोेग उसे ‘खरीदी हुई दुलहन’ कह कर हिकारत से देखते थे तब यही अनिल कैसे उस की ढाल बन कर सामने खड़ा हो जाता था और उसे दुनिया की चुभती हुई निगाहों से बचा कर अपने दिल में छिपा लेता था. उस की सास ने उसे कभी अपने खानदान की बहू जैसा सम्मान नहीं दिया था मगर फिर भी अपनी स्थिति से आज वह खुश थी.

उस ने बहुत ही योजनानुसार अपने परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल लिया था. मंजू ने मोमबत्ती की तरह खुद को जला कर अपने परिवार को रोशन कर दिया था. मंजू ने दुकान के काम में मदद करने के लिए अपने भाई को अपने पास बुला लिया. इसी बीच अनिल की मां चल बसीं, तो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए मंजू ने अपने मांपापा और छोटी बहन रीना को भी अपने पास ही बुला लिया.

एक दिन वही दलाल अनिल के घर आया जिस ने मंजू से उस की शादी करवाई थी. रीना को देखते ही उस की मां से बोला, ‘‘क्या कीमत लगाओगे लड़की की? किसी को जरूरत हो तो बताना पड़ेगा न?’’

‘‘मेरी बहन किसी की खरीदी हुई दुलहन नहीं बनेगी,’’ मंजू ने फुंफकारते हुए कहा.

‘‘खरीदी हुई दुलहन, बड़ी जल्दी पर निकल आए. अपनी शादी का किस्सा भूल गई क्या?’’ दलाल ने मंजू पर ताना कसते हुए मुंह बनाया.

‘‘मेरी बात और थी. मैं तो बिना सहारे की बेल थी जिसे किसी न किसी पेड़ से लिपटना ही था. मगर रीना के साथ ऐसा नहीं है. देर आए दुरुस्त आए. कुदरत ने उसे अनिल के रूप मे सिर पर छत दे दी है और पांवों के नीचे जमीन भी. अभी मैं जिंदा हूं और अपनी बहन की शादी कैसे करनी है, यह हम खुद तय कर लेंगे. आप जा सकते हैं. लेकिन हां, अनिल को मेरी जिंदगी में लाने के लिए मैं सदा आप की कर्जदार रहूंगी, धन्यवाद,’’ मंजू ने दलाल से हाथ जोड़ते हुए आभार जताया. वहीं पीछे खड़ा अनिल मुसकरा रहा था. आज उस के दिल में मंजू के लिए प्यार के साथसाथ इज्जत भी बढ़ गई थी.

अंधविश्वास की बलिवेदी पर : रूपल क्या बचा पाई इज्जत

Story in Hindi

अपूर्ण: मंदार के आने के बाद क्या हुआ धारिणी की जिंदगी में

‘‘धारिणीआज पहली बार नौकरी के लिए बाहर निकली थी. रुद्र के गुजरने के बाद वाह बहुत अकेली ही थी. समीरा की जिम्मेदारी निभाते हुए वह थक जाती थी. समीरा के जिंदगी में पिता रुद्र की खाली जगह भी धारिणी को ही पूरी करनी पड़ती थी. नौकरी के कारण धारिणी की समस्याएं और भी बढ़ गईं. मगर घर में ऐसे कितने दिन बीतते? इसलिए नौकरी धारिणी की जरूरत बन गई थी. एक होस्टल में उसे रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली थी. रोज रेल से आनाजाना सब से बड़ी समस्या थी, क्योंकि उसे इस की आदत नहीं थी. पहले दिन धारिणी का भाई सारंग साथ आया.’’

सारंग ने उस की अपने दोस्तों से पहचान करा दी, ‘‘दीदी, ये सब आप को मदद करेंगे… किसी को भी पुकारो.’’

‘‘जरूर, टैंशन मत लो मैडम,’’ दोस्तों के गु्रप से आवाज आई.

‘‘दीदी, ये मंदार शेटे. ये और आप ट्रेन से साथसाथ ही उतरोगे. शाम को भी यह आप के साथ ही रहेंगे. चलो, मैं अब निकलता हूं.’’

‘‘हां, जाओ,’’ धारिणी थोड़ी नाराजगी

से बोली.

2 मिनट में ट्रेन आई. धारिणी महिलाओं के डब्बे में चढ़ने की कोशिश कर रही थी. सारंग के सभी दोस्त उसी डब्बे में चढ़ गए.

‘‘अरे, यह तो लेडीज डब्बा है… आप लोग इस डब्बे में कैसे?’’

‘‘ओ मैडम, हम यही रहते हैं. अपने गांव की ट्रेन में सबकुछ चलता है. यह मुंबई थोड़ी है,’’ मंदार बोला.

धारिणी चुप हो गई. मन ही मन आज का दिन अच्छा गुजरे ऐसी कामना करने लगी. जैसे

ही सावरगांव आया धारिणी और मंदार ट्रेन से नीचे उतरे, ‘‘चलो मैडम मैं आप को होटल तक छोड़ता हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आप को क्यों परेशानी…’’

‘‘अरे, इस में किस बात की परेशानी. आप सारंग की बहन… सारंग मेरा अच्छा दोस्त है… मैं छोड़ता हूं आप को…’’

धारिणी का भी पहला दिन था. वह भी घबरा रही थी. मंदार के कारण उस ने खुद को थोड़ा हलका महसूस किया. इसलिए वह मंदार की गाड़ी में बैठ गई. वैसे दिन अच्छा ही गया. शाम रेलवे में उसे फिर मंदार मिला.

‘‘कैसा गया आज का दिन धारिणी… सौरी मैं जरा जल्द ही नाम से पुकारने लगा.’’

‘‘नहीं इट्स ओके. आप पुकारें नाम से. मैं गुस्सा नहीं होऊंगी.’’

दोनों घर पहुंचे. दूसरे दिन वही किस्सा. धीरेधीरे धारिणी और मंदार अच्छे दोस्त

बने. सुबहशाम मंदार और धारिणी रेल में मिलते थे. कभीकभार मंदार धारिणी को होटल तक छोड़ने के लिए भी आता था, तो कभी लेने के लिए आता था. रातबेरात व्हाट्सऐप पर उन का चैटिंग भी चलता था. धारिणी सभी समस्याएं मंदार के साथ शेयर करती थी.

‘‘जाने भी दो, कुछ नहीं होगा…’’ इन लफ्जों में मंदार धारिणी को समझता था.

धारिणी के लिए मंदार उस की स्ट्रैस रिलीफ की दवा था, समीरा, मांपिताजी, सारंग ये सभी रुद्र की खाली जगह भरने के लिए असमर्थ थे. लेकिन मंदार रुद्र की तरह मानसिक सहारा देता था. मंदार के कारण धारिणी फिर से संजनेसवरने लगी, हंसने लगी, अच्छे कपड़े पहन के घूमने लगी. उस के लिए वह अच्छा दोस्त था. बाइक पर कभीकभी वह उस के कंधे पर हाथ रखती थी. बोलतेबोलते अनजाने में पीठ पर चपत मारती थी. मगर ये सब एक अच्छा दोस्त होने के नाते ही होता था. 6-7 महीने अच्छे बीत गए. एक दिन सावरगांव उतर दोनों ने चाय पी.

‘‘तुम बहुत बातें करती हो मुझ से. ऐसा क्यों?’’

‘‘तुम अच्छे लगते हो मुझे. मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है. मुझे तुम्हारी पर्सनैलिटी भी बहुत अच्छी लगती है. रेल में नहीं बोल सकती सब के सामने. इस वक्त हम दोनों ही हैं, इसलिए बता रही हूं.’’

‘‘अरे बाप रे, क्या खा कर निकली हो

घर से?’’

‘‘कुछ नहीं, जो सच है वही बता रही हूं,

तुम से जो लड़की ब्याह करेगी वह सचमुच खुशहाल रहेगी.’’

‘‘हां, यहां से 35 किलीमीटर पर गुफाएं हैं. चलोगी देखने?’’

‘‘पागल हो गए क्या? मैं ने घर पर नहीं बताया. किसी कारण विलंब हुआ तो मांबाबूजी चिंता करेंगे.’’

‘‘नहीं, विलंब नहीं होगा, ट्रेन से तुम रात

9 बजे तक  घर पहुंच जाएगी.’’

‘‘मांबाबूजी क्या कहेंगे?’’

‘‘तुम मेरे साथ गुफा देखने जा रही हो यह मत बताना उन को. एक दिन झठ बोलेगी तो क्या फर्क पड़ने वाला है. पिछले 6 महीनों से मैं ने कुछ मांगा तुम से? थोड़ा घूम के आएंगे… तुम्हें चेंज मिलेगा. तुम्हारे लिए कह रहा हूं… मैं तो हजारों बार गया हूं वहां.’’

‘‘नहीं, मैं काम पर जाती हूं.’’

‘‘हां जाओ. अभी कह रही थी कि तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है. जब वक्त आया तो घबरा रही हो.’’

‘‘अरे, मुझे अच्छा लगता है तो क्या मैं तुम्हारे साथ पूरे गांव में कहीं भी घुमूं क्या?’’

‘‘ठीक है, यहां मेरा और सारंग का एक दोस्त रहता है. शाम को उस के बच्चे को देखने तो चलोगी न?’’

‘‘ट्रेन जाएगी फिर?’’

‘‘मैं छोड़ दूंगा तुम्हें तुम्हारे घर पर मेरी मां… इस बारे में पहले ही सोचा है मैं ने.’’

‘‘ठीक है, हो के आएंगे,’’ धारिणी ने मंदार नाराज न हो, इसलिए हामी भर दी.

‘‘1 घंटा जल्दी निकलना ताकि तुम्हें घर पहुंचने में देर न हो.’’

‘‘हां बाबा, कोशिश करूंगी.’’

शाम को धारिणी हमेशाकी तरह 4 बजे होटल के बाहर आ कर खड़ी हो गई. मंदार उस का ही इंतजार कर रहा था.

धारिणी ने बाइक पर बैठते हुए पूछा, ‘‘कहां रहता है तुम्हारा दोस्त?’’

आखिरकार गाड़ी एक घर के पास रुकी. घर को ताला लगा था. आसपास खेत फैले थे. जगह सुनसान थी. लोगों की बस्ती नहीं थी और चहलपहल भी नहीं थी.

‘‘इस घर को ताला क्यों लगा है मंदार?’’

‘‘चाबी मेरे पास है. आओ अंदर चलते हैं.’’

‘‘मगर क्यों? मुझे घर छोड़ दो.’’

‘‘बावली हो क्या? कभी न मिलने वाला एकांत मिला है हमें. आधा घंटा बैठेंगे, फिर निकलेंगे.’’

‘‘मैं नहीं जाउंगी अंदर.’’

‘‘देखो, तुम पहले आंखें बंद कर के खड़ी रहो. मैं सिर्फ एक जीभर के किस लूंगा और फिर निकलेंगे. तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है क्या?’’

‘‘देखो मंदार, तुम मुझे दोस्त की हैसीयत से अच्छे लगते हो. लेकिन इस बात के लिए मेरी नजदीकी सिर्फ रुद्र से थी और मरते दम तक उस से ही रहेगी.’’

‘‘लेकिन मुझे भी तुम अच्छी लगती हो और अगर मुझे तुम्हें स्पर्श करने को दिल करता है, तो इस में गलत क्या है?’’

‘‘शायद मेरी ही गलती… मुझे तुम से दूर रहना चाहिए था.’’

‘‘अरे सुनो तो, खाली 1/2 घंटा है हमारे पास. क्यों वक्त जाया कर रही हो? ऐसी कौन सी धनदौलत मांग रहा हूं तुम से…’’

‘‘माफ करना… मैं अगर अपनी मर्यादा समझती तो शायद तुम्हें गलतफहमी

न होती अपनी रिलेशनशिप पर… अब तो मेरी ट्रेन भी छूट गई होगी… मुझे सहीसलामत घर पहुंचा दो.’’

‘‘ओह मेरी मां. तुम टैंशन मत ले. तुम्हारी रजामंदी के सिवा मैं कुछ नहीं करूंगा,’’ कह मंदार ने जल्दी बाइक को किक लगाई. 8 बजे गाड़ी घर के सामने खड़ी थी. बाइक की स्पीड और मंदार का गुस्सा साथसाथ चल रहे थे. मगर रास्ते में दोनों एकदूसरे से एक लफ्ज तक नहीं बोले. घर आते ही धारिणी जल्दीजल्दी चलने लगी.

‘‘ओ मैडम, आप को बिना स्पर्श किए घर तक छोड़ा है मैं ने. आप जीत गईं, मैं हारा. मैं ही पागल था, जो हर वक्त आगेपीछे घूमता था. मेरी एक इच्छा पूरी करती, तो कौन सा पहाड़ टूट जाता… मैं कुछ सोने के लिए नहीं कह रहा था मेरे साथ. मैं भी अपनी मर्यादा जानता हूं मैडम.’’

‘‘मंदार, प्लीज इस तरह मुझ से बात मत करो. आखिरकार संस्कार भी कोई चीज होती है या नहीं? इस बात के लिए मेरा मन कभी भी राजी नहीं होगा. तुम्हारे कारण रुद्र के जाने के बाद मैं ने फिर से जीना सीखा. मगर तुम्हें अगर सिर्फ मेरा स्पर्श ही चाहिए, तो मुझ से फिर कभी मत मिलना.’’

‘‘यह भी कहती हो कि तुम मुझे अच्छे लगते हो… पगली स्पर्श करने से ही प्यार व्यक्त होता है.’’

‘‘मंदार मेरे तन पर केवल रुद्र का अधिकार था और रहेगा. तुम जो कह रहे हो वह मेरे संस्कार में कभी नहीं बैठेगा… मेरी सोच कुछ ऐसी ही है.’’

‘‘फिर एक बार गौर करना मेरे कहने पर… मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा.’’

‘‘मंदार, तुम्हारी इस साल शादी होने वाली है. तुम्हारी पत्नी को क्या मुंह दिखाऊंगी मैं? तुम मेरे दोस्त हो. शायद उस से भी बढ़ कर हो. मगर हर चीज पूरी होनी ही चाहिए ऐसा नहीं होता. मेरे दोस्त, इसलिए आज से मैं तुम्हें कभी भी परेशान नहीं करूंगी… हम दोनों इस के बाद कभी नहीं मिलेंगे. अगर मेरे कारण तुम्हारा दिल टूट गया होगा, तो मुझे माफ कर देना.’’

सोने की पौलिश : जब एक प्रेमी की उतर गई कलई

ना हर और चिया में इश्क की रवानगी अपनी हद पर थी और आज चिया अपनी स्कृटी को लगातार एक उड़ान दिए जा रही थी. रफ्तार बढ़ाने के साथसाथ उस के चेहरे की बादामी चमक भी बढ़ती जा रही थी. यह फेशियल की चमक नहीं थी, बल्कि यह तो रोड पर मर्दों की भीड़ को पीछे छोड़ देने से उमड़े फख्र की रौनक थी.

चिया के बाल अब भी हलके से गीले थे और उस के बालों से उठती हुई नैचुरल गंध पीछे की सीट पर बैठे नाहर को बहुत भा रही थी. कभीकभी नाहर जानबूझ कर अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर देता, जिस से चिया के बाल उस के चेहरे को छू जाते थे. 28 साल का नाहर रोमांचित हुए बिना नहीं रह पा रहा था.

चिया ने आज हलके पीले रंग का सूट पहन रखा था. अनजाने में ही उस ने यह कलर नहीं चुन लिया था, बल्कि इसे तो आज इसलिए पहना था, क्योंकि यह नाहर का पसंदीदा रंग था.

नाहर लखनऊ यूनिवर्सिटी से हिंदी भाषा में पीएचडी कर रहा था, तो चिया एमकौम की छात्रा थी. नाहर अकसर यूनिवर्सिटी के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था और उन्हीं कार्यक्रमों में चिया कौमर्स फैकल्टी की नुमाइंदगी करती थी. बस यहीं से 2 नौजवान दिल एकदूसरे के लिए धड़कने लगे थे.

नाहर ‘वीर भारत’ नामक एक पार्टी का सदस्य था और आगे चल कर वह इस पार्टी का बड़ा नेता बनना चाहता था, जबकि चिया चाहती थी कि वह कोई अच्छी नौकरी करे.

‘‘पर, तुम ने यहां स्कूटी क्यों रोकी? मुझे तो यहां नहीं जाना…’’ चिया ने अपनी स्कूटी रैजीडैंसी के सामने रोकी, तो नाहर ने बिना सीट से उतरे हुए पूछा.

चिया ने इशारे से अंदर चल कर बैठ कर समय बिताने को कहा, तो नाहर ने साफ मना कर दिया. नाहर का कहना था कि वह किसी ऐसी जगह नहीं जाना चाहता, जहां पर उसे अपने और अपने देश की गुलामी की झलक मिलती हो और यह ‘रैजीडैंसी’ उसे ऐसा ही महसूस कराती है, जैसे वे अब भी अंगरेजों के गुलाम हों.

‘‘ये विदेशी हमलावर, जिन्होंने हमारे देश को तोड़ा और लूटा, मैं इन की हर चीज से नफरत करता हूं. अंगरेजों और मुगलों ने हमारी संस्कृति को बरबाद किया है…’’ नाहर ने भड़ास निकाली.

चिया नाहर की बात सुन रही थी और उसे नाहर की बातें बच्चों जैसी लग रही थीं, ‘अगर हम गुलाम रहे तो इस में हमारी आपसी फूट और बुजदिली जिम्मेदार रही होगी और फिर नाहर को विदेशी संस्कृति से इतनी ही परेशानी है तो वह पैंट और शर्ट क्यों पहनता है? यह भी तो विदेशी पहनावा है. वह क्यों नहीं कुरता और धोती पहन लेता…’ चिया ने अपने मन में सोचा, पर नाहर के गुस्से को देखते हुए कुछ नहीं कहा.

उन दोनों में कुछ देर के बाद शहीद पार्क में जा कर बैठने की बात पर राजीनामा हुआ, तो चिया ने कुछ दूरी पर ही बने शहीद पार्क की तरफ स्कूटी दौड़ा दी.

शहीद पार्क पहुंच कर चिया और नाहर ने अपने भविष्य को ले कर बातचीत शुरू कर दी थी. चिया के मन में आज कुछ ऐसी बातें हुए थीं, जो वह नाहर को बताना चाह रही थी, पर नाहर तो पार्क में आ कर भी चिया की बात पर कम ध्यान दे रहा था. वह शहीद पार्क में बने ऊंचे स्तंभों के पास जाता, उन्हें छूता और लंबीलंबी सांसें लेता, जैसे उस के अंदर देशभक्ति की भावना जाग रही हो.

नाहर के अंदर का यह बदलाव चिया से छिपा नहीं था, पर कई बार 2 लोगों के बीच पनपा हुआ प्रेम एकदूसरे की बड़ी से बड़ी कमी भी देख नहीं पाता और यही हाल चिया का भी था. नाहर को आर्टिफिशियल गहने पसंद थे, तो चिया को खालिस सोने के गहनों का शौक था.

‘‘इन पर सोने की पौलिश होती है, उतर जाए तो अंदर का जंग लगा हुआ लोहा ही रह जाता है,’’ चिया ने एक लौकेट नाहर को लौटाते हुए कहा था. उस की इस बात पर नाहर नाराज भी हुआ था, पर शांत ही रहा था.

चिया तो आज नाहर को यह बताना चाह रही थी कि अब उन दोनों को शादी के बंधन में बंध जाना चाहिए, क्योंकि वह पेट से थी.

कुछ महीने पहले जब यूनिवर्सिटी का सालाना जलसा था, तब कार्यक्रम के दौरान हुई बारिश चिया और नाहर के प्रेमाग्नि की गवाह बनी थी और उन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए थे और उस के बाद कई बार बने थे. बच्चा ठहर जाने की बात चिया आज नाहर को बता देना चाह रही थी.

‘‘अरे वाह… चिया… तुम ने मुझे यह सब बता कर एक नया अनुभव दिया है. भले ही समाज इसे एक भूल कहे, पर तुम्हारा यह तोहफा मैं कभी नहीं भूलूंगा,’’ कहते हुए नाहर ने चिया का माथा चूम लिया था.

चिया को नाहर का इस तरह प्रेम प्रदर्शन अच्छा लग रहा था. अब इस शादी को अमलीजामा पहनाने के लिए जरूरी था कि नाहर और चिया के घर वाले एकदूसरे से बात कर लें. इसी दिशा में पहला कदम खुद नाहर ने बढ़ाया था.

नाहर को अपने मांबाप को ले कर चिया का हाथ मांगने के लिए उस के घर जाना था. ऐसा हुआ भी. दरवाजा चिया ने ही खोला था. हलकी सी शर्म की चमक लिए हुए वह हाथ से बैठने का इशारा कर के आगे बढ़ गई.

नाहर का परिवार ड्राइंगरूम में आ गया. दरवाजे पर सजी हुई कलाकृतियां चिया के कलाप्रेमी होने का सुबूत दे रही थीं और चिया के इस हुनर को नाहर अच्छी तरह जानता भी था.

चिया के पापा सामने आ कर बैठ गए और कुछ औपचारिक बातें होने लगीं. चिया कुछ देर बाद चाय ले कर आ गई.

नाहर की मां ने चिया को अपने पास बुलाया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा. चिया को फूलों का बुके दिया. शायद चिया उन्हें पसंद आ गई थी.

‘‘आंटी नहीं दिख रही हैं?’’ नाहर ने पूछा, तो चिया ने बताया कि अम्मी अभी अपना रोजा खोल रही हैं. वे कुछ देर बाद उन्हें जौइन करेंगी.

चिया के ये शब्द नाहर के कानों में पिघलते हुए सीसे की तरह उतरते चले गए. हजार सवाल नाहर के चेहरे पर तैरने लगे, ‘रोजा… तो क्या चिया की मां मुसलिम हैं?’ नाहर के मन में एकसाथ हैरानी और नफरत के भाव आते चले गए.

‘‘हां नाहर, मेरी मां एक मुसलमान परिवार से हैं, जबकि मेरे पिता हिंदू हैं… और मैं ने तुम से यह बात छिपाने की कोशिश नहीं की. इनफैक्ट, तुम्हारे सामने मैं ने अपनी मां को हमेशा ‘अम्मी’ ही कहा था.’’

‘इस इंटरनैट की दुनिया में लोग अपने मांबाप को किसी भी नाम से पुकारते हैं और फिर तुम्हारे जैसी अच्छी हिंदी बोलने वाली लड़की की मां एक मुसलिम होगी, यह बात मेरी समझ में नहीं आती…’ नाहर बहुतकुछ कहना चाह रहा था. शायद वह चिल्लाना भी चाह रहा था, पर ज्यादा गुस्से के चलते ऐसा कर नहीं सका और जब उसे कुछ समझ नहीं आया, तब वह उठ कर चला गया. मौके की नजाकत देख कर नाहर के मांबाप भी वहां से चले गए.

चिया को नाहर का बरताव बड़ा अजीब सा लगा था. उधर नाहर लगातार यह सोच कर परेशान था कि क्यों वह चिया की सचाई पहचान नहीं पाया था. चिया की मां मुसलिम है और पिता भले ही हिंदू है, पर चिया भी तो मुसलिम ही हुई. कैसे उस ने चिया के हाथों से उसी के घर का बना खाना खा लिया और आज तक वह कितनी बार तो चिया की मां से मिला था, पर उन के मुसलिम होने की बात आज ही उस के सामनेक्यों आई?

कहीं यह चिया द्वारा जानबूझ कर तो नहीं किया गया? यकीनन ही ऐसा किया गया होगा, तभी तो चिया ने उस दिन उसे शारीरिक संबंध बनाने से नहीं रोका और इस का मतलब तो यह भी है कि चिया ने जानबूझ कर उस का धर्म भ्रष्ट होने दिया और अब वह खुद को पेट से हो कर बता कर उस से शादी करना चाहती है.

‘‘ओह, एक गहरी और सोचीसमझी साजिश का शिकार हो गया मैं…’’ बुदबुदा उठा था नाहर. उसे अपने शरीर से भी घिन आ रही थी. वह बारबार अपनेआप को पानी से धो रहा था और सवालजवाब किए जा रहा था.

चिया से फोन पर बात करना मुमकिन नहीं था, इसलिए उस ने मोबाइल फोन पर मैसेज टाइप किया, ‘मुझे धोखे में क्यों रखा? गैरजाति की होते हुए मेरे साथ धोखा किया. मेरे लिए अब तुम से शादी करना मुमकिन नहीं.

‘और हां, होने वाले बच्चे की धमकी देने की कोशिश मत करना, क्योंकि तुम्हारे चरित्र का क्या भरोसा? जिस तरह तुम मेरे साथ सोई, उसी तरह किसी और के साथ सोई होगी…’ और नाहर मैसेज लिखता ही चला गया, जिस में उस ने जीभर कर चिया के चरित्र पर सवाल उठाए थे.

नाहर की तरफ से ऐसी बातें भी कही जा सकती हैं, यह चिया ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. एक कमजोर और टूटे हुए दिल के सच्चे दोस्त उस के आंसू होते हैं. चिया अपनेआप को रोक न सकी और आंसुओं में बह गई.

‘‘तो क्या तू खुदकुशी करने को सोच रही है?’’ चिया की अम्मी शबनम ने उस के विचारों को पढ़ लिया था. कुछ न कह पाई चिया, बस अम्मी के सीने से चिपक कर रह गई.

एक समय में चिया की मां ने भी तो प्रेम ही किया था और चिया के पापा से शादी करने के लिए जातपांत के बंधनों को तोड़ कर और अपने परिवार को ठुकरा कर उस ने शादी रचाई थी, पर चिया के प्रति नाहर का प्रेम प्रेम नहीं कहा जा सकता.

‘‘अच्छा हुआ, जो समय रहते नाहर की हकीकत पता चला गई. ऐसी सोच जितनी जल्दी उजागर हो जाए, उतना अच्छा,’’ अम्मी ने चिया को समझाया कि उस ने तो नाहर से प्रेम किया था, पर नाहर जाति के फेर में उलझा हुआ एक साधारण सा लड़का निकला, इसलिए चिया को न ही परेशान होना चाहिए और न ही उसे कोई गलत कदम उठाने की जरूरत है.

‘‘तो फिर क्या करूं मैं? क्या इस बच्चे को दुनिया में आने से पहले ही मार दूं?’’ चिया फुसफुसाई तो अम्मी भी उस के पेट से होने की बात सुन कर ठिठक गईं, पर अगले ही पल उन्होंने कहा कि बेशक, वह बच्चे को मार सकती है, पर अगर वह ऐसा करेगी तो यह बच्चा जो नाहर और चिया के प्रेम की निशानी है, वह एक पाप की निशानी बन जाएगा.

अम्मी की बातें सुन कर चिया को ज्यादा कुछ समझ नहीं आया. वह अपने कमरे में चली गई.

कुछ दिनों बाद चिया के मोबाइल पर नाहर की मां ने बात की. उन्होंने चिया से परेशान न होने को कहा. साथ ही, यह भी कहा कि वे नाहर से खुल कर बात करेंगी और उसे इंसाफ दिला कर रहेंगी.

इंसाफ का नाम सुन कर चिया ने कुछ कहना चाहा, पर तब तक फोन कट चुका था.

‘‘तुम्हें एक लड़की से प्रेम हो जाता है और तुम उस के साथ घूमतेफिरते हो, संबंध भी बना लेते हो, फिर उस की मां के मुसलिम होने से तुम्हें एतराज हो जाता है,’’ मां नाहर से तीखे सुर में बोल रही थीं. बदले में नाहर ने भी गरमी से जवाब दिया कि उस के साथ धोखा हुआ है और उस से सही बात छिपाई गई है.

‘‘पर, क्या फर्क पड़ता है अगर उस की मां मुसलिम है, बचपन में तुम्हारे कई दोस्त थे जो मुसलिम थे और उन का घर पर भी आनाजाना था,’’ मां ने कहा.

‘‘बचपन की बात और थी मां, आगे चल कर मुझे नेता बनना है. इस के लिए मेरी हिंदूवादी छवि का बना रहना जरूरी है,’’ नाहर का रूखा जवाब था.

मां कुछ देर सोचती रहीं और फिर बोलीं, ‘‘और अगर मैं तुम्हें यह बता दूं कि तुम से पहले भी यह परिवार जाति का दंश झेल चुका है, तब तुम पर क्या बीतेगी?’’

मां ने कहा, तो नाहर बिफर उठा, ‘‘आप को जो कहना है कहो, पर सचाई तो यह है कि एक दूसरे धर्म की लड़की से शादी नहीं करूंगा मैं.’’

‘‘ठीक है तो सुनो, तुम्हारी बूआ ने भी एक मुसलिम से शादी कर ली थी और फिर उन्हें इस परिवार ने कभी नहीं स्वीकार किया. उन दोनों को जान से मार देने की कोशिश भी की गई थी. उन दोनों ने शहर छोड़ कर अपनी जान बचाई.

‘‘बूआ परिवार से अलग हो जाने का सदमा नहीं सहन कर पाई और उन्होंने खुदकुशी कर ली…’’ मां लगातार बोले जा रही थीं, पर आज यह सचाई सुन कर नाहर को भरोसा नहीं हो रहा था.

मां की बातें सुन कर दुविधा में पड़ गया था नाहर, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह जातपांत के चक्कर में पड़ कर इतना बेगैरत कैसे हो गया था. उस ने भी तो चिया की जाति बिना जाने प्रेम ही किया था, फिर उस की मां की जाति और धर्म जानने के बाद उस का चिया के लिए प्रेम कैसे खत्म हो गया? और जो

इस तरह से खत्म हो जाए, वह प्रेम नहीं हो सकता.

सच में नाहर एक बड़ी गलती करने जा रहा था. आज उसे आईना दिखाया गया तो उसे अपना असली चेहरा दिखाई दिया. सच ही तो है कि प्रेम और शादी एक निजी मामला है, जो जाति देख कर नहीं किया जाता.

‘‘ओह, तो क्या मुझे चल कर चिया से माफी मांगनी चाहिए और चिया से शादी की बात भी फाइनल कर लेनी चाहिए…’’ नाहर पसोपेश में था और यह सब बुदबुदाते हुए बाहर निकल गया. अगले आधे घंटे के बाद ही वह चिया के सामने खड़ा था.

‘‘पर, अब बहुत देर हो गई है नाहर… अब हम एक नहीं हो सकते. और अच्छा हुआ, जो तुम्हारे अंदर बैठे जातपांत का मैल मेरे सामने पहले ही निकल कर आ गया. अगर तुम्हारी यह सचाई मुझे बाद में पता चलती, तो शायद मैं कुछ न कर पाती…’’ मानो चिया बहुतकुछ कह देना चाहती थी और उस ने नाहर को खूब लताड़ा.

‘‘नहीं, पर अब मेरी आंखों पर पड़ा परदा हट गया है. अब मैं तुम्हें स्वीकारने को तैयार हूं,’’ नाहर ने कहा.

‘‘मुझे स्वीकार कर के मुझ पर एहसान करने जैसी कोई जरूरत नहीं, क्योंकि आज अगर मैं तुम्हारी ये बातें भूल भी जाऊं तो क्या गारंटी है कि तुम इन सब बातों को भविष्य में नहीं दोहराओगे?’’ चिया ने कहा.

नाहर चुप था. शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, ‘‘पर, इस बच्चे की जिम्मेदारी और खर्चा मैं उठाने को तैयार हूं,’’ नाहर ने कहा.

‘‘नहीं. तुम्हें उस के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बच्चे के लिए मां भी बनूंगी और पापा भी, और मेरी पूरी जिंदगी में यह कोशिश रहेगी कि मैं उसे ऐसी सीख देने में कामयाब रहूं, जहां वह हिंदूमुसलमान के भेदभाव से ऊपर उठ सके,’’ चिया पर नाहर की चिकनीचुपड़ी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था.

यह बात सच थी कि नाहर ने चिया से प्रेम किया था, मगर यह प्रेम का कैसा रूप था, जो चिया की मां के मुसलिम होने से नफरत में बदल गया? नाहर के चरित्र पर चढ़ी सोने की पौलिश हट रही थी और उस के अंदर का जंग लगा हुआ लोहा सामने आ रहा था.

वैंटिलेटर : कोरोना में दांव पर लगी जिंदगी

सरकार कहती है कि उस ने कोरोना महामारी का सामना बहुत अच्छी तरह से किया है, लौकडाउन ने लोगों को बरबाद होने से बचा लिया, पर कोरोना ने कितना नुकसान किया, यह या तो बलि चढ़ने वाला या फिर बलि लेने वाला बता सकता है.कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया.

हमारे हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया. हमारी जिंदगी को वैंटिलेटर बना दिया. कोरोना ने मुझे सिविल सर्विस प्रतियोगी से दूर कर के कारपोरेट वेश्या बना दिया.आज मैं अपनी यानी पूर्णिमा की कहानी आप को सुनाती हूं. मेरे पिताजी फलों के ठेले की फेरी लगा कर आराम से 800 से 1,200 रुपए रोजाना बचा लेते थे. उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और यही सीख हम बच्चों को भी मिली थी.

12वीं क्लास में उत्तर प्रदेश की मैरिट लिस्ट में नाम आने के बाद पापा की इच्छा थी कि मैं आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली चली जाऊं और मां की इच्छा थी कि मेरे छोटे भाई विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराऊं.मैं जानती थी कि दोनों सपने एकसाथ पूरे नहीं हो सकते, इसलिए मैं ने शहर के एक कालेज में एडमिशन ले लिया और विनोद को डाक्टरी की तैयारी कराने के लिए हम सब पाईपाई जोड़ने लगे.सरकार की गलत नीतियों के चलते महंगाई और बेरोजगारी वैसे ही हद पर थी.

पापा की कमाई तो घरखर्च में भी कम पड़ जाती थी. मेरी और मां की ट्यूशन की कमाई थी, जिस से थोड़ीबहुत बचत हो रही थी.अपने सरकारी कालेज के एक फंक्शन में मेरी मुलाकात शहर के सब से बड़े उद्योगपति के बिगड़ैल लड़के राजीव से हुई थी. मैं ने उस फंक्शन में रानी झांसी का किरदार निभाया था. मेरी बहुत तारीफ हुई थी. राजीव ने मुख्य अतिथि की हैसियत से मुझे पुरस्कार दिया था.राजीव एक बहुत ही महंगी कार से आया था. उस के गोरे, क्लीन शेव चेहरे पर क्रीम कलर का सूट बहुत अच्छा लग रहा था. उस के काले चश्मे में अपना अक्स देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी.

कालेज की बिगड़ी हुई लड़कियां पीछे की लाइन में बैठ कर राजीव के लिए तरहतरह की गंदीगंदी बातें करते हुए अफवाह फैला रही थीं. कुछ लड़कियां राजीव को शहर का सब से काबिल बैचलर बताते हुए उस के लिए ठंडी आहें भरने लगी थीं, तो एक सीनियर लड़की ने बताया कि वह पहले से शादीशुदा है.पता नहीं क्यों इस बात से मुझे भी बुरा लग गया. इस बीच राजीव को अपनी ओर घूरता देख मेरे शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो गई. उस दिन के बाद राजीव से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई.मार्च, 2020 में कोरोना महामारी के चलते पूरे भारत में लौकडाउन हो गया.

हम सब की कमाई खत्म हो गई. डेढ़ महीने तो घर बैठ कर अपनी बचत इस्तेमाल करते रहे, उस के बाद पापा ने दोबारा ठेला लगाना शुरू कर दिया. सरकार ने फलसब्जियों की कीमत तो कंट्रोल कर दी थी, लेकिन यह तय नहीं हुआ था कि वह फुटकर में बेची जाएगी कि थोक में यानी दुकानदार 100 रुपए प्रति किलो से महंगे सेब नहीं बेच सकता, चाहे थोक हो या फुटकर.

इस का नतीजा यह हुआ कि मार्जन बहुत घट गया और अब उन्हें रोजाना 200-300 रुपए कमाने में दिक्कत हो रही थी.हमारे पड़ोस की कमला आंटी, जो बड़े लोगों के घरों में बरतन मांजती थीं, अनपढ़ होने के बावजूद उन की जिंदगी अब हम से कहीं बेहतर चल रही थी. उन की मालकिन ने दोबारा उन्हें काम पर बुलाना चालू कर दिया था. 2 महीने उन्हें घर बैठे के पैसे दिए थे, सो अलग.

कमला आंटी के बच्चों को उन की मालकिन के बच्चों की उतरन मिल जाती थी, जो हमारे नए कपड़ों से भी अच्छे होते थे. अब तो कई महीने से हमारे कपड़े खरीदे ही नहीं गए थे. विनोद कमला आंटी के बच्चों के कपड़ों पर ललचाता था, तो अकसर मैं अपने हिस्से के पैसों से भी उसी के लिए कपड़े खरीद देती थी.लड़कियों के कपड़े लड़कों से पहले छोटे हो जाते हैं, क्योंकि वे लंबाई के साथ चौड़ाई में भी बढ़ती हैं. लौकडाउन में मेरे सारे कपड़े छोटे पड़ने लगे थे.

सब से ज्यादा गुस्सा मुझे अपने सीने के साइज को ले कर था. हर सुबह इस का साइज मुझे कुछ बढ़ा हुआ महसूस होता था. मेरी सब से बड़ी साइज की कुरती भी सीने के पास से छोटी हो गई थी. मेरे तकरीबन सारे कपड़े कांख के पास से फटने शुरू हो चुके थे.कमला आंटी को समाजसेवियों के मुफ्त भंडारे का पता चल जाता था. उन्होंने साथ चलने को कहा, तो मैं ने बहुत आनाकानी की, पर मजबूरी में विनोद को ले कर उन के साथ फ्री राशन लेने जाना पड़ा. मैं ने जानबूझ कर और भी खराब कपड़े पहने थे, ताकि मदद देने वाले कुछ गलत न बोलने लगें.शरमाते हुए मैं भीख मांगने की लाइन में लगी ही थी कि धक्के की आवाज के साथ मेरे दिल की धड़कन रुक गई. सामने राजीव सर थे…

मेरे ड्रीम बौयफ्रैंड, जिन के बारे में सपने देखते हुए मैं ने दर्जनों बार मधुर मिलन किया था. मेरा चेहरा शर्म से लाल पड़ गया और मुझे रोना आ गया.जल्द मुझे अहसास हुआ कि दुनिया इतनी बुरी नहीं जितना मैं मानती थी. मदद बांटने वाले लड़के और राजीव सर ने मुझे लाइन तोड़ कर सामान दे दिया. इस से थोड़ी सी वीआईपी वाली फीलिंग आई, लेकिन भीख तो भीख ही होती है.अगले दिन राजीव सर ने दोबारा मुझे कसम दे कर बुलाया था. आज मैं अपने सब से अच्छे कपड़े पहन कर गई थी. राजीव सर थोड़ी देर से आए थे. भीख के लालच में जनता बेसब्री से उन का और उन की टीम का इंतजार कर रही थी.राजीव सर अपनी बड़ी शाही कार से आने के बाद सीधे मेरे पास आ कर रुके.

वे आज मेरे भाई विनोद के लिए एक बहुत बड़ी चौकलेट ले कर आए थे. वे मुझ में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे. मुझे इस बात से शर्मिंदगी भी हो रही थी, तो दूसरी ओर मैं रोमांचित भी हो रही थी.राजीव सर बहुत देर से मेरे सीने को ही देखे जा रहे थे. तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी नई कुरती भी कांख के पास से फट चुकी थी. मैं जब तक संभलती, तब तक राजीव सर मेरे ‘ताजमहल’ को अच्छी तरह ताड़ चुके थे.अगले दिन राजीव सर मेरे लिए टौप लाए थे और उन्होंने जबरदस्ती गाड़ी के अंदर जा कर नया टौप पहनने को मुझे मजबूर कर दिया.

मैं बाहर निकली, तो टौप से कंपनी का टैग निकालने के बहाने उन का मुंह मेरे बेहद करीब था. उन की सांस को मैं अपनी आंखों पर महसूस कर रही थी. उन के गुलाब की खुशबू का परफ्यूम बेहद मस्त था.अचानक उन्होंने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ते हुए अपनी ओर खींचना शुरू किया, तो घबरा कर मैं ने उन्हें धक्का दे दिया. उन से दूर भागते हुए दूर से ही उन्हें ‘थैंक्यू’ बोला और उन्हें ‘बाय’ बोलते हुए वहां से दौड़ निकली.विनोद ने बहुत पूछा कि दीदी हुआ क्या है, लेकिन मैं ने जवाब में सिर्फ विनोद का सिर चूमा. उस दिन के बाद विनोद ने बहुत जिद की, लेकिन मैं फ्री का राशन लेने नहीं गई. उस दिन से फिर मेरी राजीव सर से तीसरी बार मुलाकात नहीं हुई.अगस्त महीने में कोरोना का असर थोड़ा कम होने लगा था. मुफ्त का भोजन बंटना अब बंद हो चुका था.

मेरा कालेज दोबारा खुल गया था. मैं ने पूरा मन बना लिया था कि कोई नौकरी कर लूंगी. घर के माली हालात के हिसाब से मुझे अब अपने छोटे भाई को डाक्टर बनाने का सपना नामुमकिन सा लग रहा था.हमारे कालेज में सोशल डिस्टैंस, मास्क, सैनेटाइजर, कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए कोई न कोई कार्यक्रम होता रहता था. कालेज की सब से मेधावी छात्र होने के चलते इवैंट मैनेजमैंट की जिम्मेदारी मेरी रहती थी. मेरी आंखें हर मास्क के पीछे राजीव सर को ही तलाशती रहती थीं.

जिंदगी में पहली बार मुझे गरीब होने का दुख था. अगर कुछ अच्छे कपड़े होते, अगर मैं भी उन के साथ गरीबों को दान कर रही होती, तब हमारी दोस्ती के कुछ और माने होते. रोतेरोते मेरी आंख लग चुकी थी. राजीव सर सपने में मेरे सीने और जांघों को मसलते हुए मेरे होंठ चूम रहे थे. उन्होंने मेरे कपड़े उतारते हुए मुझे अपनी औफिस की टेबल पर लिटा दिया, उस के बाद वे मुझे प्यार करने लगे. जैसे ही वे मुझ में समाने लगे, तो मैं चौंक कर उठ गई. यह सिर्फ एक सपना होने पर मुझे तसल्ली हुई.कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के चलते बाजार बंद किए जाने लगे. पापा ने तय कर लिया था कि इस बार कुछ भी हो जाए, वे फेरी लगाना बंद नहीं करेंगे. यह फैसला हमारी जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई.

पापा को कोरोना हो गया. बुखार, खांसी और थकान के साथसाथ उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. जाहिर था कि वे कोरोना की दूसरी अवस्था में थे. शाम होतेहोते पापा का औक्सीजन लैवल बहुत घट गया और उन्हें वैंटिलेटर की जरूरत महसूस होने लगी. सरकारी अस्पताल में वैंटिलेटर की कमी हो रही थी.कमला आंटी ने बताया, ‘‘एक बार सरकारी अस्पताल के इमर्जैंसी वार्ड में जाने के बाद मुरदे ही बाहर आ रहे हैं.’’रिश्तेदारों ने भी निजी अस्पताल का सुझाव दिया.

मम्मी ने डेढ़ लाख रुपए जोड़ रखे थे. यह रकम हम लोगों के लिए बहुत बड़ी थी. मम्मी को लगता था कि इस के बूते वे किसी भी समस्या से बाहर आ जाएंगी. पापा का निजी अस्पताल में इलाज शुरू हो गया. आरटीपीसीआर और एंटीजन टैस्ट पौजिटिव आया था. सीटी स्कैन में 19/24 इंफैक्शन पाया गया. अस्पताल के कमरे का एक दिन का चार्ज 1950 रुपए, नर्स का चार्ज 900 रुपए, डाक्टर की एक विजिट के 900 रुपए थे.रेडियोलौजी टैस्ट के लिए… ऐक्सरे चैस्ट पीए व्यू 550 रुपए, अल्ट्रासाउंड 2,000 रुपए, सीटी चैस्ट एचआरसीटी 7,150 रुपए. खून की जांच के लिए, एंटी एचसीबी टैस्ट 1,450 रुपए, ब्लड कल्चर 1,100 रुपए, डीडाईमर 1,600 रुपए और ब्लड शुगर 100 रुपए प्रति जांच.मैं ने पूछा, ‘‘मेरे पापा को तो शुगर नहीं है, तो टैस्ट क्यों?’’डाक्टर ने बताया कि मरीज को रैबजोल, लोपारिन, टेजिन वगैरह जो भी दवाएं दी जा रही हैं, सभी में ग्लूकोज है. कोरोना प्रोटोकाल में जरूरी है.

इन दवाओं के बाद मरीज को शुगर रिपोर्ट के मुताबिक इंसुलिन दिया जा रहा है.इन सारी बातों के बीच सिस्टर रोजी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी. वे जींसटौप में स्कूटी से अस्पताल आती थीं. एक घंटा उन्हें अस्पताल की ड्रैस पहनने और मेकअप में लगता था. इस बीच अगर कोई उन्हें टोक दे तो उन्हें बहुत गुस्सा आता था. मुझे समझ नहीं आता था कि इस प्रोफैशन में मेकअप की क्या जरूरत? सिस्टर रोजी ने बताया कि औरत को हर प्रोफैशन में मेकअप की जरूरत होती है. औरत कितनी भी बुद्धिमान क्यों न हो, उसे अच्छा दिखना होता है.

मुझे उन की जौब बहुत अच्छी लगती थी. मैं उन से कई बार उन के जैसी जौब दिलाने को कह चुकी थी.सिस्टर रोजी मुसकरा कर कहती, ‘‘उस के लिए कुछ कंप्रोमाइज करना होता है. हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं…’’ और बात खत्म हो जाती थी.एक दिन रोजी मैडम ने अपनी मेकअप किट से मुझे लिपस्टिक लगा दी. मैं ने जिंदगी में पहली बार लिपस्टिक लगाई थी और केवल इस वजह से मैं आईने में बेहद खूबसूरत लगने लगी थी. रोजी मैडम ने बताया कि मेरे चेहरे की बनावट बहुत अच्छी है. सीने, कमर और नितंबों का अनुपात बहुत अच्छा है. अगर मैं कोशिश करूंगी, तो मुझे अच्छी नौकरी मिल जाएगी. अस्पताल में चौथे दिन ही हमारे सारे पैसे वैंटिलेटर की भेंट चढ़ गए.

डाक्टर ने प्लाज्मा थैरेपी के लिए 20,000 रुपए अलग से मांगे. मम्मी के ट्यूशन के बच्चों से उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आधे बच्चे तो फ्री में ही ट्यूशन पढ़ते थे, बाकी भी गरीब परिवारों से थे. हमारे महल्ले में ज्यादातर गरीब लोग रहते थे.मेरे कालेज के बहुत से दोस्त पापा को देखने आए थे. जिन लड़कों से मैं सीधे मुंह कभी बात नहीं करती थी, उन्होंने भी हमारी मदद की थी.

इन सब को जोड़ कर कुल 8,000 रुपए हुए थे.मैं ने दोबारा कातर निगाह से दोस्तों को देखा. जितेंद्र मेरी मदद करने को तैयार हो गया, लेकिन वह कुछ रिटर्न चाहता था. जितेंद्र हमारे कालेज का सब से अमीर, बिगड़ा हुआ और स्टूडैंट यूनियन का नेता था. अगर मुझे यही सब करना होता, तो जितेंद्र का औफर मैं ने तुरंत स्वीकार कर लिया होता, पर उस की मदद लेने से मैं ने साफ इनकार कर दिया.रोजी मैडम ने हमें इलाज के खर्च में छूट दिला दी. कुछ रिश्तेदारों से मदद हो गई.

इस तरह मैं इस मुसीबत से तो बाहर आ गई, लेकिन अगले ही दिन एक नई मुसीबत आ पड़ी. डाक्टर अब रेमडेसिवीर खरीदने को कह रहे थे. मैं पूरी तरह लाचार हो चुकी थी.तभी मुझे अस्पताल के गेट से राजीव सर आते दिखे. सफेद खादी के कुरते और ग्रीन सनग्लास में वे फिल्मी हीरो की तरह लग रहे थे. इतने बुरे हालात में उन के सामने आने की मेरी जरा भी हिम्मत नहीं थी.

मैं ने दीवार की ओर सिर कर के उन से छिपने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे देख लिया.चिरपरिचित गुलाब की खुशबू महसूस होते ही मुझे पीछे मुड़ कर देखने की इच्छा होने लगी. एक परिचित आवाज में मेरा नाम ‘पूर्णिमा’ सुनते ही मेरा सब्र जवाब दे गया. मैं राजीव सर से लिपट कर देर तक रोती रही. काउंटर पर जा कर उन्होंने कुछ बात की, तो अकाउंटैंट हैरानी से मुझे देखने लगी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी जैसी सीधीसादी, देहाती लड़की राजीव सर की दोस्त है.

राजीव सर उस अस्पताल के मालिक के बेटे थे.फिर उस के बाद 2 दिन और मेरे पापा वैंटिलेटर पर रहे, उस के बाद सामान्य औक्सीजन पर आ गए. अब अस्पताल में मुझ से पैसे मांगे ही नहीं जा रहे थे.रोजी मैडम को जब मेरी और राजीव सर की दोस्ती के बारे में पता चला, तो वे खुशी से फूली नहीं समा रही थी. उन्होंने मुझे दोपहर में स्टाफरूम में बुला कर गेट बंद कर लिया. मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद उन्होंने मुझे शीशे के सामने खड़ा कर दिया.

मेरे एकएक अंग की खास बनावट के बारे में मुझे समझाने लगीं. मेरे सीने की नाप की तुलना में उभारों की माप कुछ ज्यादा थी और वे आम की तरह पिलपिले नहीं, सेब की तरह सख्त थे. उस पर निप्पल बटन की तरह न हो कर खूंटी की तरह थे. वे काले नहीं, सुर्ख गुलाबी थे. इसी तरह मेरे नितंबों का आकार भी कमर की तुलना में ज्यादा था और वे गीली मिट्टी की तरह लचर न हो कर रबड़ की तरह तने से थे. गोरा रंग और चेहरे की उभरी हुई बनावट मुझे आकर्षक और ग्लैमरस बनाते थे.

मतलब, मैं एक खास प्रोफैशन के लिए परफैक्ट थी. पर मुझे रोजी मैडम की बेहूदा बातें जरा भी पसंद नहीं आ रही थीं. उन्हें भलाबुरा बोल कर मैं बाहर निकल गई.कुदरत की मरजी को कोई नहीं समझ सका है. पापा के ठीक हो कर घर लौटते ही एक दिन राजीव सर का बुलावा आया. उन के एहसान का बदला चुकाने और उन की प्रेमिका बनने के लिए मैं पहले से तैयार बैठी थी. एक महीने में एक दर्जन जगहों पर बुला कर उन्होंने मुझे भरपूर भोगा, उस के बाद मुझे मेरी औकात समझा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया.अपनी इज्जत गंवाने के बाद अब मेरे पास रोजी मैडम के बताए रास्ते पर चलने के अलावा कोई रास्ता न था.

अब पता चलेगा: राधा क्या तोड़ पाई बेटी संदली की शादी

Story in Hindi

मान न मान : मर्यादा की तरकीब

मर्दों के दबदबे वाले समाज की यह खासीयत होती है कि वे औरतों पर अपनी मरजी थोपने की कोशिश करते हैं. कोई औरत माने या न माने, जबरदस्ती वे उस के दिल में घुसने की कोशिश करने लगते हैं. मर्दों को यह सोचना चाहिए कि वे कितने भी बलशाली क्यों न हों, औरतें कितनी भी लाचार क्यों न हों, कभी उन की मरजी के खिलाफ उन्हें हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

औरत भले ही अबला की तरह लाचार नजर आती है, लेकिन मौका मिलने पर वह किसी घायल नागिन की तरह पलट कर हमला कर सकती है. कभी वह छुईमुई नजर आती है, तो कभी मर्यादा की दहलीज लांघ कर मर्द को सबक सिखाने के लिए मजबूर हो जाती है.

दूसरे बच्चों की तरह मर्यादा को भी पढ़लिख कर अपना कैरियर बनाना था और उस के बाद किसी अमीर लड़के से शादी कर के ऐश की जिंदगी जीनी थी.

मर्यादा की मौसी ने उसे समझाया कि अगर वह सचमुच अमीर पति चाहती है, तो उसे खुद ही किसी अमीर लड़के को अपने प्यार के झांसे में लेना होगा, वरना उस के मांबाप दहेज के पैसे नहीं दे सकेंगे. मर्यादा ने मौसी की बात गांठ बांध ली थी.

मर्यादा लखनऊ शहर के एक कालेज से एमबीए कर रही थी, पढ़ाई के लिए घर से भेजा हुआ खर्च पूरा नहीं पड़ता था, मजबूरी में उस ने लोगों के घर जा कर ब्राइडल मेकअप और मेहंदी लगाने का पार्टटाइम काम शुरू कर दिया.

पढ़ाई के अलावा मर्यादा दुलहनों को सजाने के साथ खुद भी सजनेसंवरने में बिजी रहती थी. उस का सीना पूरी तरह से नहीं उभरा था, फिर भी पैडेड ब्रा पहन कर वह बहुत ही मस्त दिखने लगी थी. उस के पेशे में मस्त दिखना बहुत जरूरी था. मर्यादा को अपनी क्लास के सिर्फ 2 लड़के अच्छे लगते थे. पहला खानदानी रईस राकेश था. उस का खुद का बिजनैस था. दूसरा संतोष पढ़ने में बहुत ही होशियार था. उस की सरकारी नौकरी लगना तय था. स्टूडैंट यूनियन का नेता अर्जुन बेवजह उस के पीछे पड़ा रहता था.

लेकिन जिंदगी में सबकुछ इनसान की योजना के मुताबिक नहीं होता. अर्जुन भले ही एक बैक बैंचर था, लेकिन उस ने मर्यादा को शादी के कई घरों में मेकअप आर्टिस्ट का काम दिलाया था.

एक दिन मर्यादा को साइट पर छोड़ने के बहाने अर्जुन ने रास्ते में पड़ने वाली खंडहर हवेली में ले जा कर जबरदस्ती उस का कुंआरापन लूट लिया.

भैंस जैसे सख्त उस लौंडे ने मर्यादा को दिन में तारे दिखा दिए थे. खून बहने के चलते उस पर बेहोशी छाने लगी. उस की जांघों के बीच की हड्डियां ककड़ी की तरह चटक गई थीं.

मर्यादा अपने बलात्कारी का खून कर देना चाहती थी, लेकिन जिस लड़के से वह अपनी इज्जत नहीं बचा सकी थी, उस की जान लेना इतना आसान नहीं था.

अगले दिन कालेज में मर्यादा अपने साथ हुई घटना की शिकायत किसी से नहीं कर सकी. अगर बाबूजी को पता चल गया तो उन्हें उस की पढ़ाई बंद करा कर घर बैठा देना था और फिर किसी चने बेचने या रिकशा चलाने वाले से उस की शादी करा देनी थी. उस ने खुदकुशी करनी चाही, लेकिन हिम्मत नहीं हुई.

मर्यादा द्वारा खामोशी से इतना सब सह लेने के चलते अर्जुन के चमचों का हौसला और ज्यादा बढ़ गया. अगले दिन कालेज में मर्यादा नाम के पोस्टर चिपके हुए थे. उन्होंने मर्यादा को अर्जुन की मंगेतर और अपनी भाभी के नाम से बदनाम कर दिया.

राकेश और सुरेश ने मर्यादा के चरित्र पर लांछन लगा कर उसे रिजैक्ट कर दिया था. हर जगह उस की बदनामी हो चुकी थी. चुनरी से चेहरा छिपाए बगैर उस का होस्टल से बाहर निकलना मुश्किल हो गया.

अर्जुन के अलावा हर इनसान मर्यादा को आवारा, बदचलन, बिगड़ी हुई लड़की समझने लगा. उस के पास एकमात्र रास्ता अर्जुन बचा था, फिर भी वह उसे कोई मौका नहीं दे रही थी.

अगले 3 महीनों तक अकेले कहीं ले जाने, मिलने, छूने, बोलने का कोई भी मौका मर्यादा ने अर्जुन को नहीं दिया, जिस से मर्यादा पर उस का क्रश बहुत बढ़ गया. अर्जुन अपनी बलात्कार की ज्यादती को भावनाओं का बहाव बता कर अपने प्यार की कसम खा रहा था.

इधर मौसी ने भी मर्यादा को समझाया था कि जो मर्द अपने पहले प्यार में ही किसी लड़की का खून निकाल कर उसे एक पूरी औरत बना देता है, वही सच्चा मर्द होता है. अर्जुन ने वह कर दिखाया था.

मर्यादा को अब अर्जुन के प्यार में कोई शक नहीं बचा था, लेकिन उस के पास पैसों की कड़की थी. उस की आमदनी का जरीया नहीं था, इसलिए वह उस से पीछा छुड़ाना चाहती थी.

इसी उधेड़बुन से तंग आ कर एक दिन मर्यादा ने अर्जुन को साफ शब्दों में समझा दिया कि अगर वह शादी के बाद मेरे लिए पैसे कमा कर नहीं ला सकता, तो उसे मेरा पीछा करने की कोई जरूरत नहीं है.

अर्जुन तैश में वहां से निकल गया. वह खुदकुशी कर सकता था. मर्यादा को मार सकता था. पर मर्यादा उस समय तक उस से इतना तंग आ चुकी थी कि वह क्या करेगा, इस की उसे कोई चिंता नहीं थी.

4 दिन बाद अर्जुन मर्यादा के लिए 4 लाख रुपए ले कर लौटा. मर्यादा ने कभी इतने सारे नोट एकसाथ नहीं देखे थे. उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

अब अर्जुन के सच्चे प्यार को स्वीकारने के अलावा मर्यादा के पास कोई उपाय नहीं बचा था. उस के पैसों की शर्त को अर्जुन ने पूरा कर दिया था और जिंदगीभर प्यार से रखने का भरोसा दिलाया था. वह सच्चे आशिक की तरह मर्यादा के जिस्म के हर रोम को प्यार करता था. घंटों उस के नंगे बदन को निहारता था. बिस्तर पर वह गुलाम की तरह बरताव करता था.

4 दिनों तक एकदूसरे की बांहों में पड़े हुए उन दोनों के सारे गिलेशिकवे खत्म हो चुके थे. उस घटना के लिए उस ने मर्यादा से बारबार और रोरो कर माफी मांगी थी. मर्यादा ने उसे माफ कर दिया.

अभी मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा घटना शुरू हुआ ही था कि अर्जुन को पुलिस ने पकड़ लिया. दरअसल, अर्जुन ने पैट्रोल पंप के कैशियर को लूटा था. इस खबर से एक बार फिर मर्यादा की जिंदगी में भूचाल आ गया.

बहरहाल, अर्जुन ने मर्यादा का नाम नहीं बताया. उस ने भी अर्जुन को पहचानने से इनकार कर दिया. शायद अर्जुन बेहद प्यार करने के चलते मर्यादा को किसी परेशानी में डालना नहीं चाह रहा था या फिर पैसे बरामद करा कर अपना जुर्म कबूल करना नहीं चाह रहा था. मर्यादा ने सुना कि थाने में अर्जुन की खूब कुटाई हुई, फिर भी उस ने उस का नाम नहीं बताया.

अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए ले कर मर्यादा गांव भाग आई. रुपयों को उस ने बहुत अच्छी तरह से कपड़े में बांध कर भूसा रखने वाले कच्चे मकान के छप्पर में छिपा दिया. यहां भी डर के चलते वह 2 दिन तक खाना नहीं खा सकी. घर के बाहर से किसी गाड़ी की आवाज आती तो लगता कि पुलिस उसे पकड़ने आ गई है.

इस बीच मर्यादा को एक शानदार मौका हासिल हुआ. उस के एक दूर के रिश्तेदार ने बायोडाटा के आधार पर उसे शादी के लिए चुन लिया था. मर्यादा का होने वाला मंगेतर सरकारी नौकरी में था और खानदानी रईस था. उसे मर्यादा की शक्ल और उस का बायोडाटा मर्यादा को तो पसंद आ गया था, लेकिन वह दहेज भी मांग रहा था. इस से पहले कि कोई उसे मर्यादा के कालेज के कांड के बारे में बताए, उसे शादी कर के यहां से हजार किलोमीटर दूर अपनी ससुराल नरसिंहपुर भाग जाना चाहिए.

तय योजना के मुताबिक, अर्जुन को उस के हाल पर छोड़ कर अपने सारे कौंटैक्ट नंबर मिटा कर, मोबाइल फोन की सिम बदल कर, सोशल मीडिया एकाउंट डिलीट कर मर्यादा रविंद्र से शादी कर के अपनी ससुराल भाग गई. अर्जुन के दिए हुए 4 लाख रुपए से उसे दहेज की रकम जुटाने में बहुत मदद मिली थी.

ससुराल पहुंचते ही मर्यादा ने रविंद्र को पूरी तरह से अपने काबू में ले लिया था. मौसी की सिखाई हुई तरकीब के मुताबिक सुहागरात के दिन बेवजह चीखचिल्ला कर उस ने अपने पति को अहसास करा दिया कि वह अभी तक कुंआरी थी.

मर्यादा के वे 6 महीने बहुत मजे से गुजरे. इस के बाद वह अपने गांव लौटी थी. कुनकुनी धूप में अपने ब्रा को सुखाने के लिए डालते समय मर्यादा रविंद्र के विचारों में मगन थी. रविंद्र मर्यादा का बहुत ध्यान रखता था. जवानी का पूरा मजा लेने के लिए वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे.

मर्यादा रविंद्र के विचारों में डूबी ही थी कि ‘मर्यादा’ नाम पुकारे जाने से वह चौंक गई. उस ने बगल की छत पर झांका, तो धक की आवाज के बाद उस का दिल धड़कना बंद सा हो गया.

सामने अर्जुन खड़ा हुआ था. पहले से ज्यादा डरावना. उस के हाथ में देशी तमंचा देख कर मर्यादा को यकीन हो गया कि आज वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

मुसीबत के समय जिस की जैसी बुद्धि काम कर जाए. मर्यादा ने तुरंत ही अर्जुन को अपनी बांहों में भर लिया और झूठे आंसू बहाने लगी, ‘‘अर्जुन, तुम कहां थे इतने दिन? देखो तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल हुआ? घर वालों ने जबरदस्ती मेरी शादी करा दी…’’ कहते हुए वह उस के सीने से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी.

अपनी चालाकी का असर होते देख कर मर्यादा अर्जुन की पैंट में हाथ डाल कर उसे अपने साथ सैक्स के लिए उकसाने लगी.

मर्द तो चौबीस घंटे सैक्स के लिए भूखे रहते ही हैं. खुले आसमान के नीचे, कुनकुनी धूप में, पानी की टंकी के पीछे लेट कर जिस्मानी संबंध बनाने लगे.

अर्जुन ने मर्यादा के हर झूठ को सच मान लिया. अब तो वह उस से लपेटलपेट कर और भी बहुत सारे झूठ बोलने लगी, ‘‘मैं ने अपने पति के साथ सिर्फ सात फेरे लिए हैं, अपना शरीर नहीं छूने दिया… मुझे प्यार करने का हक सिर्फ तुम्हें हैं अर्जुन…

‘‘रविंद्र मेरे शरीर को जीत सकता है, लेकिन आत्मा को नहीं… मैं जल्द ही रविंद्र को तलाक दे कर हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी…’’

आज मर्यादा को इस अर्जुन नाम के मूर्ख प्राणी से जरा भी डर नहीं लग रहा था. एक महीना, जब तक वह अपने मायके रही, अर्जुन से अपनी और अपने परिवार की भरपूर सेवा कराई.

अर्जुन एक बार फिर कहीं से 2 लाख रुपए लूट कर उस के लिए ले आया, ताकि इन पैसों से वह अपने पति को तलाक दे सके.

वे 2 लाख रुपए एक पुलिस वाले को अर्जुन के ऐनकाउंटर के नाम पर देने के बाद मर्यादा अपनी ससुराल भाग गई. वह मर्द का बच्चा अर्जुन जबरदस्ती मर्यादा की जिंदगी को ड्रामा बनाने की कोशिश कर रहा था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें