जेठानी की आशिकी

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के रहने वाले शिवराज सिंह और देशराज सिंह में काफी प्यार था. दोनों भाई मकान बनवाने का ठेका लेते थे. उन का संयुक्त परिवार था. देशराज अविवाहित और शिवराज शादीशुदा. शादी के बाद शिवराज की पत्नी प्रियंका ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम सुजाता रखा गया.

देशराज की अपनी भाभी प्रियंका से खूब पटती थी. देवरभाभी में हलकीफुलकी मजाक भी होती रहती थी. भाभी होने के नाते प्रियंका उस की बातों का बुरा भी नहीं मानती थी. शिवराज सीधासादा था, जबकि देशराज तेजतर्रार और दबंग था. वह बनठन कर रहता था, इसलिए प्रियंका को अच्छा लगता था. प्रियंका को जब कभी बाजार या और कहीं जाना होता तो वह अपने साथ देशराज को ही ले जाती थी.

देवरभाभी के इस तरह साथ रहने से कभीकभी शिवराज को शक होता तो मजाकिया लहजे में वह कह देती, ‘‘बड़े ईर्ष्यालु हो तुम. छोटे भाई की खुशी बरदाश्त नहीं होती? अरे, जैसे वह तुम्हारा छोटा भाई है, वैसे ही मेरा भी छोटा भाई है.’’

शिवराज सोचता कि शायद प्रियंका सही कह रही है. उसे क्या पता था कि उस का यह विश्वास आगे चल कर कोई बड़ी मुसीबत बन जाएगा.

देशराज का भाभी के प्रति झुकाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस कर रही थी. भाभी को लुभाने के लिए देशराज आए दिन उस की पसंद की खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा.

प्रियंका ने मना किया तो देशराज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘भाभी ये तो मामूली बातें हैं, मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूं. किसी दिन कह कर तो देखो.’’

इस पर प्रियंका ने उसे चौंक कर देखा. तभी देशराज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘भाभी क्या कहूं, तुम तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं देती हो.’’

‘‘अरे मेरे ऊपर तुम यह कैसा इलजाम लगा रहे हो. देखो मैं तुम्हें खाना बना कर देती हूं, तुम्हारे कपड़े धोती हूं, अब और क्या चाहिए तुम्हें.’’

देशराज ने प्रियंका के पास आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस के द्वारा अकेले में हाथ पकड़ने से प्रियंका सिहर उठी. वह अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो? क्या चाहते हो?’’

‘‘भाभी, तुम्हारी चंचलता और खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर रखा है. मैं तुम्हारे करीब आना चाहता हूं.’’

‘‘देखो देशराज, अब तुम जाओ. मुझे घर के और भी काम करने हैं.’’

‘‘मैं जा तो रहा हूं लेकिन सीधेसीधे पूछना चाहता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो या नहीं?’’

देशराज वहां से चला तो गया, लेकिन उस की बातों और अहसासों ने प्रियंका को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. देशराज ने भी जज्बातों में आ कर प्रियंका को अपने प्यार का अहसास करा दिया था, लेकिन बाद में उसे इस बात का डर लगा था कि कहीं भाभी यह बात भैया से न कह दे.

रात को प्रियंका और देशराज अपनेअपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन दोनों की ही आंखों में नींद नहीं थी. देशराज को डर सता रहा था तो प्रियंका के दिमाग में देवर की कही बातें घूम रही थीं. लेटे ही लेटे वह पति की तुलना देवर से करने लगी. उस का पति शिवराज काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्दी ही खर्राटे लेने लगता. उस की तरफ अब वह पहले की तरह बहुत ध्यान नहीं दे रहा था.

अकसर भाभी से चुहलबाजी करने वाला देशराज अगले दिन उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस भी कर रही थी. शिवराज के जाने के बाद देशराज भी जाने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम रुको देशराज, आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, तुम मेरे साथ डाक्टर के यहां चलना.’’

‘‘भाभी, आज मुझे भी जल्दी जाना है, इसलिए तुम अकेली ही चली जाओ,’’ कह कर देशराज जब घर से निकलने लगा तो प्रियंका उस का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. देशराज डर रहा था कि भाभी अकेले में अब उसे डांटेगी. उस ने अपना चेहरा नीचे कर रखा था. प्रियंका बोली, ‘‘कल तुम बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे, लेकिन तुम तो बहुत डरपोक निकले. प्यार करने वाले अंजाम की चिंता नहीं करते.’’

यह सुन कर देशराज का डर थोड़ा कम हुआ. वह अचंभे से भाभी की तरफ देखने लगा. प्रियंका आगे बोली, ‘‘देशराज, तुम्हारी बातों ने मेरे ऊपर ऐसा असर किया है कि रात भर मैं तुम्हारे ही खयालों में बेचैन रही. मुझे भी तुम से प्यार हो गया है. लेकिन मेरे सामने एक समस्या है. मैं शादीशुदा हूं, इसलिए इस बात से डर रही हूं कि अगर तुम्हारे भैया को पता चल गया तो क्या होगा? वह तो मुझे घर से ही निकाल देंगे.’’

‘‘भाभी, मैं हूं न. मेरे होते हुए तुम्हें कोई कुछ नहीं कह सकता.’’ देशराज ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा तो प्रियंका ने उस के भरेपूरे जिस्म को गौर से देखा और सीने से लग गई. देशराज ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. उन के कदम गुनाह की तरफ बढ़ गए और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया. शिवराज के काम पर जाने के बाद देशराज किसी न किसी बहाने घर पर रुक जाता और भाभी के साथ मौजमस्ती करता.

देशराज अकसर घर में भाभी के साथ रहने लगा तो पड़ोसियों को शक होने लगा. सब सोचने लगे कि दाल में कुछ काला जरूर है.

गलत काम की खबरें जल्दी फैलती हैं, इसलिए मोहल्ले भर में यह खबर फैल गई कि प्रियंका का अपने देवर के साथ चक्कर चल रहा है. मगर शिवराज को इस बात की भनक तक न लगी. वह तो कमाई में ही लगा रहता था.

एक दिन एक शुभचिंतक ने शिवराज से कहा, ‘‘शिवराज, तुम कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दे दिया करो. तुम्हें पता नहीं कि तुम्हारे घर में क्या चल रहा है? अब बेहतर यही होगा कि तुम देशराज की शादी कर दो.’’

यह सुन कर शिवराज सन्न रह गया. वह अपने भाई को सीधासादा समझता था. और तो और देशराज उस के सामने ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था. एक बार तो उसे भाई के बारे में कही बात पर विश्वास नहीं हुआ.

वह घर पहुंचा तो देशराज घर पर ही मिला. छूटते ही उस ने कहा, ‘‘दिनभर घर में चारपाई तोड़ना अच्छा लगता है क्या? कल से मेरे साथ ही काम पर चलना. चार पैसे कमाएगा तो तेरी शादी में ही काम आएंगे. मैं तेरी जल्दी ही शादी कराना चाहता हूं.’’

पति के मुंह से देवर की शादी की बात सुन कर प्रियंका को कुछ खटका सा हुआ. लेकिन वह बोली कुछ नहीं. उधर शिवराज ने पत्नी से कुछ कहने के बजाए नजर रखने लगा. प्रियंका को इस बात का अहसास हो गया तो उस ने भी देवर से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी.

रात को पति के सो जाने के बाद वह देशराज के पास आ जाती और मौजमस्ती करती. देशराज अपनी सारी कमाई प्रियंका के हाथ पर ही रखता था. शिवराज भाई के लिए अच्छा रिश्ता देखने लगा.

एक दिन प्रियंका ने देशराज से कहा, ‘‘जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब तुम मुझे भूल जाओगे?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो भाभी? मेरी शादी भले ही हो जाए, लेकिन तुम से मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’’

उसी बीच देशराज की शादी के लिए जिला मैनपुरी के गांव चितायन से एक रिश्ता आया. चितायन के रहने वाले रामअवतार ने अपनी सब से छोटी बेटी राजकुमारी की शादी देशराज से करने की बात शिवराज से की. राजकुमारी हाईस्कूल पास कर चुकी थी. शिवराज को रिश्ता पसंद आया और दोनों तरफ से बात होने के बाद निश्चित तिथि पर राजकुमारी और देशराज की शादी हो गई. यह वर्ष 2007 की बात है.

शादी के बाद राजकुमारी ससुराल आ गई, लेकिन सुहागरात को खुशी की बजाय उस की आंखों से आंसू ही बहे. हुआ यह कि सुहागसेज पर बैठी राजकुमारी पति के कमरे में आने का इंतजार करती रही, लेकिन देशराज अपनी नईनवेली दुलहन के पास पहुंचा नहीं. सुबह 4-5 बजे राजकुमारी की नींद टूटी तो भी उसे कमरे में पति दिखाई न दिया. उसी दौरान उसे जेठानी के कमरे से पति और जेठानी की हंसीठिठोली की आवाज सुनाई दी.

राजकुमारी भी कोई नादान नहीं थी. वह समझ गई कि पति का भाभी के साथ चक्कर है. तभी तो सुहागरात को भी पत्नी के बजाय वह भाभी के साथ मौजमस्ती कर रहा है. थोड़ी देर बाद देशराज जब अपने कमरे में पहुंचा तो उस ने पत्नी को सुबकते हुए देखा. वह बोला, ‘‘तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’

‘‘तुम यह बताओ कि रात भर कहां थे?’’ राजकुमारी ने पूछा.

‘‘मैं यहीं भाभी से बातें कर रहा था. जब मैं कमरे में आया तो तुम सो रही थी. मैं ने सोचा कि तुम थक गई होगी, इसलिए जगाया नहीं.’’ कह कर देशराज ने तौलिया उठाई और गुसलखाने में घुस गया.

राजकुमारी को पति का रवैया कुछ अजीब सा लगा. वह पति से बहस कर के बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने खुद को समझाया और मन को शांत किया. दिन धीरेधीरे गुजरा. घर पर जो नजदीकी मेहमान थे, वे भी घर से विदा हो गए.

शाम का खाना खा कर राजकुमारी अपने कमरे में थी, तभी प्रियंका और देशराज भी वहां पहुंच गए. प्रियंका देर तक राजकुमारी के पास बैठी रही. आखिर तंग आ कर राजकुमारी ने कहा, ‘‘भाभी मुझे नींद आ रही है.’’

राजकुमारी 4 दिनों तक ससुराल में रही. इन 4 दिनों में उस ने महसूस किया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. फिर पिता उसे विदा करा कर ले गए.

मायके आने पर उस ने मां को जब सारी बात बताई तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुझे कुछ वहम हो गया है. देवरभाभी में प्यार होना कोई हैरानी की बात नहीं है. तू एक समझदार और पढ़ीलिखी लड़की है. अपने परिवार को बिखरने न देना.’’

कुछ दिनों बाद वह पति के साथ फिर ससुराल आ गई. इस बार उस ने तय किया कि वह सच्चाई का पता लगा कर रहेगी. इसलिए उस ने पति और जेठानी पर नजर रखनी शुरू कर दी. काम से आने के बाद देशराज सीधा भाभी के कमरे में जाता और सारी कमाई उस के हाथ पर रख देता था.

राजकुमारी को यह सब अच्छा नहीं लगा. उस ने पति से कहा, ‘‘तुम्हारी कमाई पर मेरा हक है, किसी और का नहीं. अब जो भी कमा कर लाओगे मुझे देना, किसी और को नहीं.’’

प्रियंका ने देवरानी की यह बात सुन ली थी. लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘लेकिन भाभी क्या सोचेंगी?’’ देशराज ने कहा.

‘‘वह जो भी सोचती हैं, सोचती रहें. हमारा परिवार बढ़ेगा, खर्चे बढ़ेंगे तो हम किस से मांगेंगे?’’

प्रियंका समझ गई कि राजकुमारी तेज दिमाग की है. उस के सामने उस की दाल अब नहीं गलेगी. इसलिए उस ने देशराज को समझा दिया कि अब मिलने में होशियारी बरती जाए.

राजकुमारी अब काफी सतर्क हो गई थी. जिस से देशराज और प्रियंका परेशान से रहने लगे. घर में भी तनाव रहने लगा. देशराज गुस्से में कभीकभी राजकुमारी की पिटाई करने लगा.

राजकुमारी गर्भवती हो गई तो देशराज और प्रियंका को मिलने का मौका मिल गया. लेकिन राजकुमारी ने पति और जेठानी को रंगेहाथों पकड़ लिया. पोल खुलने पर देशराज और प्रियंका के होश उड़ गए. देशराज ने पत्नी से माफी मांगी और उसे भरोसा दिलाया कि आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.

प्रियंका ने भी उस से अनुरोध किया कि यह बात वह किसी को न बताए. राजकुमारी का शक सही साबित हुआ. उस समय समझदारी दिखाते हुए उस ने कोई शोरशराबा नहीं किया, शाम को शिवराज घर लौटा तो उस ने उस से कहा, ‘‘जेठजी, मैं अब इस घर में नहीं रह सकती. आप हमें अलग कर दें.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम, यहां तुम्हें कोई परेशानी है?’’ शिवराज ने कहा तो राजकुमारी बोली, ‘‘आप को तो पता नहीं कि घर में क्या हो रहा है? पर जो मैं देख रही हूं, उस का अंजाम अच्छा नहीं हो सकता. इसलिए मैं अलग होना चाहती हूं.’’

शिवराज राजकुमारी का इशारा समझ गया. इस के बाद उस ने घर का बंटवारा कर दिया. राजकुमारी ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि अब देशराज का भाभी के पास आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के पेट में पल रहा बच्चा 8 महीने का हो चुका था. ऐसे में राजकुमारी को देखभाल की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन ससुराल में अब वह अकेली थी. घर के काम करने में उसे परेशानी हुई तो वह मायके चली गई. उस ने पति और जेठानी के अवैध संबंधों की बात मां से भी बता दी.

मां ने उसे फिर समझाया कि वह देशराज को समझाए. लेकिन राजकुमारी के मन में जेठानी के प्रति नफरत भर चुकी थी.

राजकुमारी ने मायके में ही बेटे को जन्म दिया. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह ससुराल चली आई. वह बड़ी जेठानी अविता से मिली और उन्हें प्रियंका की बदचलनी की बात बताई. अविता ने भी प्रियंका को काफी समझाया, लेकिन उस ने देशराज से मिलना बंद नहीं किया.

राजकुमारी धीरेधीरे निराश होने लगी. अपने वैवाहिक जीवन में उस ने जिस सुख की कल्पना की थी, वह पति और जेठानी की वासना की ज्वालामुखी में खाक हो चुका था. न तो उसे अपने मायके से कोई राहत मिल रही थी और न ही ससुराल से. देशराज भाभी के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं था. नतीजतन आए दिन घर में झगड़ा होने लगा. रोजाना के झगड़े को देख कर मोहल्ले के लोग यही सोचने लगे कि राजकुमारी एक तेजतर्रार और लड़ाकू औरत है.

आखिर एक दिन राजकुमारी ने तय किया कि वह पति को प्यार से समझाने की कोशिश करेगी. उस दिन उस ने अपने पति की पसंद का खाना बनाया. शाम को जब देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘हाथमुंह धो लो और खाना खा लो. आज मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’

देशराज गुसलखाने में घुस गया. नहाधो कर बाहर आते ही बोला, ‘‘मैं आज खाना नहीं खाऊंगा. मुझे कहीं जाना है.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे सुबह तो बताई नहीं. मैं ने जब खाना बना लिया तो तुम खाने से मना कर रहे हो.’’

‘‘बनाया है तो तुम्हीं खा लो.’’ कह कर देशराज घर से बाहर निकल गया. पति की इस उपेक्षा ने राजकुमारी को तोड़ कर रख दिया. वह देर तक रोती रही.

देशराज रात भर घर से बाहर रहा. राजकुमारी चारपाई पर पड़ी करवटें बदतली रही और रोती रही. उसे अपनी बेचारगी का अहसास भी हो रहा था. उसी दौरान दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने कुंडी खोली तो सामने पति खड़ा था. उसे देखते ही वह बोली, ‘‘रात भर भाभी के पास रहे होगे?’’

‘‘हां, मैं वहीं था. अब बता तू क्या कर लेगी मेरा.’’ देशराज ने गुस्से में कहा.

कड़वा सच सुन कर राजकुमारी कुछ न बोली, क्योंकि अगर वह कुछ कहती तो देशराज उस की पिटाई कर देता. दोपहर के समय वह बड़ी जेठानी अविता के घर गई तो उसे पता चला कि दोनों जेठ अवधेश और शिवराज पड़ोस के किसी गांव गए हुए थे.

राजकुमारी की समझ में आ गया कि भाई की गैरमौजूदगी में देशराज रात भर भाभी के साथ रहा होगा. यह जान कर उस का खून खौलने लगा. तभी उसे एक झटका और लगा, जब अविता ने बताया कि प्रियंका गर्भवती है.

राजकुमारी को अब पक्का यकीन हो गया कि प्रियंका के गर्भ में देशराज का ही बच्चा है. यह बात उसे बरछी की तरह चुभी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब उसे कुछ नहीं सहना, चाहे इस के लिए उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े और मन ही मन उस ने एक योजना बना ली.

अपनी योजना को साकार करने के लिए प्रियंका का विश्वास हासिल करना जरूरी था. अत: एक दिन वह प्रियंका के घर जा पहुंची. उसे देख कर प्रियंका चौंकी. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’

‘‘अरे दीदी मुझे पता चला कि तुम्हें बच्चा होने वाला है तो सोचा कि तुम्हारी कुछ मदद कर दिया करूं.’’

प्रियंका को राजकुमारी के इस व्यवहार पर हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम परेशान मत हो. सब ठीक है, तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘हां दीदी, मैं ही गलत थी. बेकार ही अलग हो गई. हम साथसाथ रहते तो अच्छा होता. खैर अब अलग तो हो ही गए हैं, पर आपस में मिलजुल कर रहने में हर्ज ही क्या है.’’ कह कर राजकुमारी ने खूनी नजरों से प्रियंका को देखा. राजकुमारी वहां थोड़ी देर बैठ कर चली गई.

10 जुलाई, 2013 को गांव में एक गमी हो गई. अवधेश और शिवराज वहीं गए हुए थे. देशराज काम पर गया हुआ था. उसी समय राजकुमारी प्रियंका के घर गई और बातों ही बातों में वह उसे अपने घर बुला लाई. वह प्रियंका से बातें करने लगी. प्रियंका राजकुमारी के मन से अनजान थी. उसे मौत की दस्तक भी सुनाई नहीं दी. बातें करतेकरते उस ने पास रखी कुल्हाड़ी उठाई और प्रियंका के सिर पर दे मारी.

सिर पर कुल्हाड़ी का वार होते ही प्रियंका लुढ़क गई. सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़पने के बाद प्रियंका का शरीर शांत हो गया. राजकुमारी को जब विश्वास हो गया कि वह मर चुकी है तो उसे तसल्ली हुई. फिर सारे कमरे को लीप कर खून के निशान मिटा दिए.

शाम के समय देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘बेटा ऊपर है, उसे जगाओ मैं खाना वहीं लाती हूं. देशराज चुपचाप ऊपर चला गया. राजकुमारी भी वहीं खाना ले कर पहुंच गई. खाना खाने के बाद वह सोने की तैयारी करने लगे, तभी शिवराज ने आवाज दी. राजकुमारी ने दरवाजा खोला. शिवराज ने पूछा, ‘‘यहां प्रियंका आई है क्या?’’

‘‘नहीं, वह तो शाम को थैले में कपड़े डाल कर कहीं जा रही थीं.’’ राजकुमारी की बात सुन कर शिवराज परेशान हो गया कि बेटी को घर में छोड़ कर वह कहां चली गई? ऐसे तो कहीं नहीं जाती थी. उस ने उसी समय अपनी ससुराल फोन किया. पता चला कि वहां भी नहीं पहुंची थी.

रात में कुछ नहीं हो सकता, यह सोच कर शिवराज घर चला गया. पूरी रात चिंता में कटी. लेकिन सुबह उठते ही गांव में होहल्ला हो गया. शिवराज के घर से कुछ दूरी पर गड्ढे में एक औरत के पैर दिखाई दे रहे थे. शिवराज का दिल धड़कने लगा, कहीं प्रियंका तो नहीं… देशराज भी वहां पहुंचा. तब तक किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था.

कुछ ही देर में थाना किशनी के थानाप्रभारी भूपेंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. कुछ ही देर में पुलिस क्षेत्राधिकारी रामानंद कुशवाहा भी वहां पहुंच गए. पुलिस के आदेश पर गड्ढे की मिट्टी हटाई गई तो उस में प्रियंका की लाश निकली. बीवी की लाश देख कर शिवराज दहाड़े मार कर रोने लगा और देशराज डरासहमा एक ओर जा खड़ा हुआ.

 

देशराज ने कुछ सोचा और घर की तरफ गया. लेकिन घर से राजकुमारी गायब थी. अब उस की समझ में सब कुछ आ गया. वह वापस शिवराज के पास आ गया और उसे बताया कि राजकुमारी गायब है. पुलिस ने शिवराज से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस के छोटे भाई की बीवी राजकुमारी ने की है और वह फरार हो गई है.

पुलिस देशराज के घर पहुंची. वहां ताला लगा हुआ था. वहां खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. लाश की शिनाख्त हो चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दोनों भाइयों को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. इस बीच प्रियंका का पिता वीरेंद्र भी थाने आ पहुंचा. उस ने भादंवि की धारा 302, 316, 201 के तहत राजकुमारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

 

पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला कि देशराज और प्रियंका के बीच लंबे समय से अवैध संबंध थे. लेकिन यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अकेली औरत हत्या कर के प्रियंका को गड्ढे तक कैसे ले आई और उस ने अकेले ही कैसे दफना दिया? पुलिस की एक टीम राजकुमारी की तलाश में उस के मायके के लिए रवाना हुई. लेकिन राजकुमारी रास्ते में ही मिल गई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई.

पूछताछ के दौरान राजकुमारी ने कुबूल किया कि प्रियंका की हत्या उस ने ही की थी. प्रियंका ने उस के वैवाहिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया था. इसी मजबूरी के चलते उस ने इस खतरनाक योजना को अंजाम दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि प्रियंका 7 माह की गर्भवती थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने राजकुमारी को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

लव, सैक्स और मर्डर

उस दिन तारीख थी 31 जुलाई, 2017. भोर का समय था. नित्य मौर्निंग वौक करने वाले इक्का- दुक्का लोग सड़कों पर आ गए थे. खेतरपाल मंदिर के सामने से गुजरने वाले मेगा हाईवे पर वाहनों की आवाजाही जारी थी. मेगा हाईवे पर बाईं तरफ सड़क किनारे एक युवा महिला की औंधी लाश पड़ी थी. लाश देख कर एक राहगीर ठिठका और स्थिति को समझ कर मोबाइल से थानापुलिस को इस की सूचना दे दी. अज्ञात लाश की सूचना थानाप्रभारी सीआई विजय सिंह को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक राष्ट्रीय अखबार के प्रतिनिधि नरेश असीजा अखबार वितरण व्यवस्था का जायजा ले कर घर लौट रहे थे. उन्हें लाश मिलने की सूचना मिली तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस मृतका की पहचान का प्रयास कर रही थी. नरेश ने उस की पहचान कर दी. बरसों पहले मृतका उन की बिल्डिंग में किराएदार के रूप में रही थी. पत्रकार ने मृतका की पहचान समेस्ता पत्नी श्रवण कुमार के रूप में की. पहचान होने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

प्रथमदृष्टया यह मामला दुर्घटना का लग रहा था. संभवत: मृतका किसी वाहन की टक्कर से हाईवे पर गिर गई थी, जिस से उस का सिर फट गया था. लेकिन घटनास्थल पर मिले हुए साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे.

जिस जगह पर समेस्ता का शव मिला था, उस के पास मिट्टी में छोटे वाहन के टायरों के निशान दिख रहे थे. समेस्ता के शरीर पर टक्कर का कोई निशान नहीं था. पुलिस को लगा कि मृतका की हत्या कहीं और कर के लाश को यहां फेंक दिया गया है, ताकि मामला सड़क दुर्घटना का लगे.

समेस्ता की मौत का मामला संदिग्ध लग रहा था. बाल की खाल निकालने वाले माने जाने वाले सीआई विजय सिंह मीणा ने इस मामले को एक चैलेंज के रूप में लिया. विजय सिंह ने मामले के खुलासे के लिए एसआई छोटूराम तिवाड़ी, कांस्टेबल सुखदेव सिंह बेनीवाल, रीडर अमर सिंह, लक्ष्मीनारायण, अमनदीप व सुभाष को शामिल कर के एक टीम बना ली.

सुखदेव बेनीवाल का शहर में ही नहीं, देहात क्षेत्र में भी मुखबिरों का सशक्त नेटवर्क था. एसआई छोटूराम व सुखदेव ने मेगा हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू कर दिए. अथक प्रयासों के बाद एक हार्डवेयर शौप पर लगे कैमरे में समेस्ता दिखाई दी. वह संभल कर सड़क  पार कर रही थी. कैमरे के इस दृश्य को दोनों पुलिसकर्मियों ने जांच अधिकारी से साझा किया. जांच टीम ने विचारविमर्श के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि समेस्ता ने जितनी सावधानी से सड़क पार की थी. ऐसे में वह सड़क हादसे की शिकार नहीं हो सकती थी.

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पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाने के लिए मेगा हाईवे के 2 किलोमीटर के लंबे दायरे को खंगालना शुरू किया. एक वर्कशाप में लगे कैमरे की फुटेज में एक पिकअप गाड़ी दिखाई दी. 10 मिनट के अंतराल में 3-4 बार आनेजाने से पिकअप संदिग्ध के दायरे में आ गई. एक बार पिकअप एक झाड़ी के पास रुकी तो झाडि़यों में छिपा एक शख्स पिकअप के पास आता दिखाई दिया. यह दृश्य भी कैमरे में कैद हो गया था.

सुखदेव का एक मुखबिर जो समेस्ता के ही मोहल्ले में रहता था, ने भी जांच टीम को एक सुराग दिया. सुराग के मुताबिक समेस्ता और उस के पति की जरा भी नहीं बनती थी. उस का पति श्रवण कुमार सूरतगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह कभीकभार अपने 2 बच्चों के लिए रावतसर आ जाता था.

उधर दुर्घटनास्थल पर समेस्ता के शव की पहचान करने वाले पत्रकार नरेश असीजा घटनास्थल से सीधे समेस्ता के घर गए. श्रवण और समेस्ता का सगा भाई कालूराम घर में ही मिले. उन्होंने पूछा, ‘‘अरे श्रवण, समेस्ता दिखाई नहीं दे रही, कहां गई है वह?’’

‘‘अंकल, वह मंदिर गई थी, आती ही होगी.’’ श्रवण ने जवाब दिया.

नरेश असीजा समेस्ता के भाई कालूराम को साथ ले कर सीधे मोर्चरी पहुंचे. कालूराम ने मृतका की पहचान अपनी बहन समेस्ता के रूप में कर दी. कालूराम की तहरीर पर थाने में अज्ञात के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. श्रवण 4 दिनों से रावतसर में ही था, जबकि कालूराम 2 दिन पहले ही रावतसर आया था.

समेस्ता कौन थी और बेमौत क्यों मारी गई, यह जानने के लिए हमें डेढ़ दशक पीछे लौटना पड़ेगा. समेस्ता श्रीगंगानगर निवासी पृथ्वीराज की बेटी थी. सन 2001 में समेस्ता की शादी हनुमानगढ़ जिले के मसीतावाली गांव निवासी हरलाल टाक के बेटे सीताराम टाक से हुई थी. सीताराम का ममेरा भाई था श्रवण कुमार.

श्रवण कुमार रातवसर तहसील के गांव सरदारपुरा खालसा में रहता था. कानून की पढ़ाई कर रहे श्रवण कुमार के परिवार की माली हालत अच्छी थी. श्रवण एक दिन अपने भाई सीताराम से मिलने बाइक से मसीता वाली आया. उस वक्त सीताराम खेतों पर गया हुआ था. दरवाजा समेस्ता ने खोला.

‘‘जी कहिए.’’ समेस्ता ने पूछा.

‘‘सीताराम भैया से मिलना था, मैं सरदारपुरा से आया हूं. मेरा नाम श्रवण है.’’ जवाब में श्रवण ने बताया.

‘‘आइए बैठिए, आप के भैया खेतों पर गए हैं. आते ही होंगे.’’

श्रवण आंगन में पड़ी कुरसी खिसका कर किचन के सामने ही बैठ गया. सुगठित देह, उभरे वक्षस्थल वाली समेस्ता सुंदर लग रही थी. मीठे बोल और सलीके का उच्चारण करने वाली समेस्ता श्रवण के दिल को छू गई. वह बैठाबैठा समेस्ता के सौंदर्य का रसपान करता रहा. तभी समेस्ता 2 प्यालों में चाय ले कर आ गई. ‘‘लीजिए चाय पीजिए.’’

श्रवण चाय पीने लगा. समेस्ता भी प्याला उठा कर पालाथी मार कर श्रवण के सामने बैठ गई. श्रवण चाय समाप्त करते ही बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी, आप ने तो बड़ी गड़बड़ कर दी, यह आप के हाथों का कमाल है या आप की भावनाओं का, मैं आप की चाय का मुरीद हो गया हूं. लगता है, अब चाय पीने हर रोज आना पड़ा करेगा.’’

‘‘मना किस ने किया है देवरजी, मेरा दरवाजा आप के लिए 24 घंटे खुला रहेगा.’’ समेस्ता ने कहा.

समेस्ता से उस का मोबाइल नंबर ले कर श्रवण लौट गया. उस से हुई संक्षिप्त मुलाकात के आगे श्रवण ने भाई से मिलना जरूरी नहीं समझा.

एक साल बीततेबीतते समेस्ता बिलकुल बदल गई. प्यारमोहब्बत तो दूर, वह पति सीताराम की उपेक्षा तक करने लगी. नतीजतन घर में कलह रहने लगी. इस कलह में श्रवण की चाहत और उस की वकालत ने आग में घी का काम किया. शादी के 2 साल बाद ही श्रवण के उकसाने पर समेस्ता ने सीताराम के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न व दहेज मांगने का आरोप लगा कर अदालत में मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के बाद समेस्ता अपने मायके लौट गई.

इन हालात में समेस्ता व श्रवण के बीच पनपे प्यार ने अपनी राह पकड़ ली थी. श्रवण की चाहत पर समेस्ता उस के बुलाए स्थान पर पहुंच जाती थी. सामाजिक व पारिवारिक वर्जनाएं उन दोनों के सरेआम मिलन में बाधक बन रही थीं. आखिर श्रवण और समेस्ता एक दिन अपनेअपने घरों से फुर्र हो गए. जब पास का पैसा खत्म हो गया तो 10 दिन बाद दोनों घर लौट आए. लेकिन दोनों के घर वालों ने उन से नाता तोड़ लिया. इसी बीच अदालत से सीताराम और समेस्ता का विधिवत तलाक हो गया. तब तक समेस्ता एक बच्ची की मां बन गई थी.

समेस्ता व श्रवण अब निरंकुश हो गए थे. दोनों लिव इन रिलेशनशिप में पतिपत्नी की तरह रावतसर में रहने लगे. श्रवण बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर का खर्च चला रहा था. इस के साथसाथ वह अपनी वकालत की पढ़ाई भी कर रहा था. इसी बीच समेस्ता एक बेटे की मां और बन गई. दूसरी ओर श्रवण ने एलएलबी तथा एलएलएम की डिग्री हासिल कर ली.

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मात्र सैक्स को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले श्रवण और समेस्ता का प्यार अब धीरेधीरे ठंडा पड़ने लगा था. बच्चों की ट्यूशन से होने वाली आय में उस के खर्चे मुश्किल से पूरे होते थे. महंगाई के जमाने में तंगहाली से 2-4 हुए समेस्ता और श्रवण खुदगर्ज बन गए थे. तब सन 2014 में श्रवण समेस्ता को रावतसर में ही छोड़ कर सूरतगढ़ चला गया और वहीं रह कर बैंकिंग सर्विस की कोचिंग लेने लगा.

समेस्ता रावतसर में अपने 2 बच्चों के साथ किराए के एक कमरे में तंगहाली में जीवन गुजार रही थी. बाद में मजबूरी में उस ने विवाह शादियों में बरतन साफ करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही दोनों बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा दिया.

आर्थिक हालात में मामूली सुधार होते ही उस ने घर में ही खाने के टिफिन तैयार करने का काम शुरू कर दिया, साथ ही अकेले रह रहे 2-3 अधिकारियों और कर्मचारियों के यहां दोनों समय का खाना भी बना आती थी. अब तक समेस्ता 35 साल की हो चुकी थी. हालातों से लड़ने के जज्बे ने उसे शालीन बना दिया था.

बता दें कि सूरतगढ़ में रह रहे श्रवण ने समेस्ता से अभी अपने संबंध खत्म नहीं किए थे. वह 2-4 महीने में चक्कर लगा कर समेस्ता को संभाल जाता था. श्रवण को यह पता चला कि समेस्ता अधिकारियों के घर जा कर खाना बनाती है तो वह बिफर पड़ा. समेस्ता के रहनसहन में आए बदलाव ने उस के मन में शक का जहर पैदा कर दिया.

श्रवण ने एक दिन उस से कह ही दिया, ‘‘समेस्ता, अब तू किसी के घर खाना बनाने नहीं जाएगी. मुझे पता चल गया है कि खाना बनाने की ओट में तू अधिकारियों के यहां गुलछर्रे उड़ाती है.’’

गुस्से में कांपते श्रवण ने गालियों के साथ समेस्ता को चेतावनी दे डाली.

‘‘देख श्रवण, तूने मुझे अकेली छोड़ कर डांटने या कोई बंदिश लगाने का अधिकार खो दिया है. तूने कभी जानने की कोशिश की है कि मैं किन हालात में जी रही हूं. और हां, वैसे भी अगर मैं किसी के साथ मस्ती करती हूं तो तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? अगर तूने भविष्य में मुझे टोका तो मैं तुझे काट कर फेंक दूंगी.’’ गुस्से में समेस्ता ने श्रवण को खरीखोटी सुना दी.

समेस्ता के तेवर देख कर श्रवण उलटे पैरों सूरतगढ़ लौट गया. यह बात 4-5 महीने पहले की है.

समेस्ता श्रवण की विवाहिता नहीं थी. फिर भी वह उस पर पाबंदी लगाना चाहता था. चूंकि समेस्ता अपने पैरों पर खड़ी हो कर संभल चुकी थी, इसलिए उस ने श्रवण की उपेक्षा करनी शुरू कर दी. जो भी हो, वह श्रवण के बच्चे की मां तो थी ही, वह नहीं चाहता था कि उस के बच्चे की मां पराए मर्दों की रातें गुलजार करे.

इस सब से श्रवण का दिमाग घूम गया. उस ने जुलाई, 2017 में रावतसर के एकदो चक्कर लगाए. वह घर पहुंचता तो बच्चे बताते कि मां फलां अधिकारी के यहां खाना बनाने गई है. श्रवण समेस्ता से बिना मिले ही लौट जाता. उस के मन में स्वयं को मिटाने या समेस्ता को मार डालने के विचार आने लगे.

वकालत की पढ़ाई वह पूरी कर चुका था. अंत में उस ने समेस्ता को मिटाने का मन बना लिया. वह वकील था और उस की सोच थी कि वह फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को ठिकाने लगाएगा, ताकि पुलिस या कानून को उस की करतूत का पता नहीं चल सके.

2 दिनों तक योजना बनाने के बाद श्रवण ने समेस्ता को सड़क दुर्घटना में मारने की योजना बना ली. पर इस योजना को हकीकत में बदलने के लिए उसे एक विश्वसनीय साथी की जरूरत थी. उस ने विचार कर के अपने साथी अमरजीत सिंह को राजदार बनाने का निश्चय किया. अमरजीत सिंह मूलरूप से रायसिंनगर क्षेत्र के चक 38 एनपी का निवासी था. वह सूरतगढ़ में रह कर ट्रांसपोर्ट का काम करता था.

अजरजीत सिंह श्रवण का खास दोस्त था. श्रवण ने अपने मन की बात अमरजीत सिंह को बताई. अमरजीत सिंह जानता था कि श्रवण कानून का अच्छा जानकार है, जो भी योजना बनाएगा, वह फूलप्रूफ होगी. वह श्रवण का साथ देने को तैयार हो गया. वह श्रवण की योजना पर सहमत हो गया. यह बात 26 जुलाई, 2017 की है.

योजना के अनुरूप अमरजीत, जो एक कुशल वाहनचालक था, को किराए की गाड़ी ले कर रावतसर आना था. भोर में समेस्ता जब खेतरपाल मंदिर जाती थी, उसी समय उसे मेगा हाईवे पर गाड़ी चढ़ा कर कुचल डालना था. 27 जुलाई की सुबह श्रवण रावतसर आ गया. अमरजीत भी रात में पिकअप ले कर आ गया.

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अगली सुबह मेगा हाईवे पर निकली समेस्ता इसलिए बच गई, क्योंकि उसी समय जयपुर से आने वाली वीडियो बस खेतरपाल मंदिर बसस्टैंड पर पहुंच गई. अगले 2 दिनों तक अमरजीत रावतसर आता रहा. पर कभी हाईवे पर यात्रियों के आगमन या मौर्निंग वौक वालों के जमघट के कारण योजना सिरे नहीं चढ़ पाई.

30 जुलाई की रात श्रवण समेस्ता व बच्चों के साथ सो गया. सुबह वह भोर से पहले ही उठ कर मेगा हाईवे पर आ गया. भोर में साढ़े 3 बजे अमरजीत सिंह भी पिकअप ले कर आ गया. 4 बजे के आसपास समेस्ता मंदिर जाने के लिए मेगा हाईवे पर पहुंच गई. झाडि़यों में छिपे श्रवण ने उसी क्षण अमरजीत को घंटी मार दी.

सुनसान गली में खड़ी पिकअप का चालक अमरजीत सिंह जल्दी से मेगा हाईवे पर पहुंच गया. सुनसान मेगा हाईवे पर शिकार नजर आते ही अमरजीत ने एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ा दिया. तेजी से आई पिकअप की टक्कर से समेस्ता हवा में उछल कर सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी. समेस्ता की खोपड़ी फट गई थी, जिस से उस का ज्यादा तादाद में खून निकल गया और उस ने उसी समय दम तोड़ दिया.

कुछ दूरी जा कर अमरजीत पिकअप ले कर लौट आया. तब तक झाडि़यों से निकल कर श्रवण भी मेगा हाईवे पर आ गया था. अमरजीत ने श्रवण को गाड़ी में बिठाया और उसे मोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गया. दोनों ने गाड़ी से उतर कर समेस्ता का जायजा लिया. निश्चल पड़ी समेस्ता की मौत हो चुकी थी. श्रवण दबे पांव अपने घर पहुंच कर बिस्तर में दुबक गया. जबकि अमरजीत पिकअप ले कर सूरतगढ़ लौट गया.

फूलप्रूफ योजना के तहत समेस्ता को मौत की नींद सुलाने वाले श्रवण व अमरजीत योजना के क्रियान्वयन से खुश थे. दोनों को उम्मीद थी कि उन का जघन्य अपराध कभी भी जगजाहिर नहीं होगा. लेकिन वकालत की पढ़ाई कर चुका श्रवण इस तथ्य से अनजान था कि उन का कृत्य सीसीटीवी कैमरे में रिकौर्ड हो रहा था.

यह एक ऐसा अकाट्य साक्ष्य था जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. इसी कैमरे की फुटेज से श्रवण के कृत्य का भंडाफोड़ हुआ. समेस्ता व श्रवण के बीच बढ़ी दूरियों से श्रवण संदिग्ध बन कर पुलिस रिकौर्ड पर आ चुका था.

समेस्ता के अंतिम संस्कार के बाद श्रवण भूमिगत हो गया था. पर कांस्टेबल सुखदेव बेनीवाल के मुखबिरों के नेटवर्क के आगे वह बौना साबित हुआ. 10 अगस्त को पुलिस ने श्रवण को अमरजीत के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने षडयंत्रपूर्वक समेस्ता को मार देने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

रावतसर के सीजेजेएम रविकांत सोनी की अदालत ने पुलिस की मांग पर दोनों हत्यारोपियों का 4 दिनों का पुलिस रिमांड दे दिया. पुलिस ने इस केस की प्राथमिकी में भादंवि की धारा 302, 120बी और जोड़ दी. इस अवधि में आरोपी अमरजीत सिंह ने वारदात में प्रयुक्त पिकअप गाड़ी पुलिस को बरामद करवा दी. पूछताछ में पता चला कि अमरजीत का आपराधिक रिकौर्ड रहा है. पूर्व में भी उस के खिलाफ हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था. लेकिन अदालत ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया था.

16 अगस्त, 2017 को पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. वकालत की पढ़ाई कर चुके नासमझ श्रवण ने समेस्ता को मिटा कर अपना और अमरजीत सिंह का भविष्य तो अंधकारमय बना ही दिया, समेस्ता के दोनों बच्चे भी बेसहारा हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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हत्यारा प्रेमी : प्यार की आड़ में कर डाला ऐसा काम

राजस्थान के जिला नागौर में एक कस्बा है. मेड़ता सिटी. इसी कस्बे में कभी मीराबाई जन्मी थीं. मीरा का मंदिर भी यहां बना हुआ है. मेड़ता सिटी की गांधी कालोनी में दीपक उर्फ दीपू रहता था. दीपक के पिता बंशीलाल डिस्काम कंपनी में नौकरी करते थे. उन की पोस्टिंग सातलावास जीएसएस पर थी. पिता की सरकारी नौकरी होने की वजह से घर में किसी तरह का अभाव नहीं था. जिस से दीपक भी खूब बनठन कर रहता था.

मेड़ता सिटी में नायकों की ढाणी की रहने वाली इंद्रा नाम की युवती से उसे प्यार हो गया था. दीपक चाहता था कि वह अपनी प्रेमिका पर दिल खोल कर पैसे खर्च करे पर उसे घर से जेब खर्च के जो पैसे मिलते थे उस से उस का ही खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था. चाह कर भी वह प्रेमिका इंद्रा को उस की पसंद का सामान नहीं दिलवा पाता था.

तब दीपक ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और वह पिता के साथ डिस्काम में ही काम करने लगा. वहां काम करने से उसे अच्छी आय होने लगी. अपनी कमाई के दम पर वह इंद्रा को अपनी मोटरसाइकिल पर घुमाताफिराता. अपनी कमाई का अधिकांश भाग वह प्रेमिका इंद्रा पर ही खर्च करने लगा.

इंद्रा एक विधवा युवती थी. दरअसल इंद्रा की शादी करीब 3 साल पहले बीकानेर में हुई थी पर शादी के कुछ दिन बाद ही उस के पति की अचानक मौत हो गई. पति की मौत का उसे बड़ा सदमा लगा.

ऊपर से ससुराल वाले उसे ताने देने लगे कि वह डायन है. घर में आते ही उस ने पति को डस लिया. ससुराल में दिए जाने वाले तानों से वह और ज्यादा दुखी हो गई और फिर एक दिन अपने मायके आ गई.

मायके में रह कर वह पति की यादों को भुलाने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे उस का जीवन सामान्य होता गया. वह बाजार आदि भी आनेजाने लगी. उसी दौरान उस की मुलाकात दीपक उर्फ दीपू से हुई. बाद उन की फोन पर भी बात होने लगी. बातों मुलाकातों से बात आगे बढ़ते हुए प्यार तक पहुंच गई. इस के बाद तो वह दीपक के साथ मोटरसाइकिल पर घूमनेफिरने लगी.

यह काम इंद्रा के घर वालों को पता नहीं थी. उन्हें तो इस बात की चिंता होने लगी कि विधवा होने के कारण बेटी का पहाड़ सा जीवन कैसे कटेगा. वह उस के लिए लड़का तलाशने लगे.

आसोप कस्बे में एक रिश्तेदार के माध्यम से पंचाराम नाम के युवक से शादी की बात बन गई. फिर नाताप्रथा के तहत इंद्रा की पंचाराम से शादी कर दी. यह करीब 8 माह पहले की बात है.

दूसरी शादी के बाद इंद्रा ससुराल चली गई तो दीपक बुझा सा रहने लगा. उस के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. वह कभीकभी इंद्रा से फोन पर बात कर लेता था. कुछ दिनों बाद इंद्रा आसोप से मायके आई तो वह दीपक से पहले की तरह मिलने लगी. दूसरे पति पंचाराम से ज्यादा वह दीपक को चाहती थी. क्योंकि वह उसे हर तरह से खुश रखता था.

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मार्च 2017 में दीपक के घर वालों ने अपने ही समाज की लड़की से दीपक की शादी कर दी. दीपक ने अपनी शादी की बात इंद्रा से काफी दिनों तक छिपाए रखी पर इंद्रा को किसी तरह अपने प्रेमी की शादी की बात पता चल गई. यह बात इंद्रा को ठीक नहीं लगी. तब इंद्रा ने दीपक से बातचीत कम कर दी.

जब दीपक उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह बेमन से उस से मिलने जाती थी. अक्तूबर, 2017 के तीसरे हफ्ते में दीपक और इंद्रा की मुलाकात हुई तो इंद्रा ने कहा, ‘‘दीपू, ससुराल से पति का बुलावा आ रहा है. मैं 2-4 दिनों में ही चली जाऊंगी.’’

‘‘इंद्रा प्लीज, ऐसा मत करो. तुम चली जाओगी तो मैं तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊंगा. याद है जब तुम शादी के बाद यहां से चली गई थी तो मेरा मन नहीं लग रहा था.’’ दीपक बोला.

‘‘मेरी दूसरी शादी हुई है. मैं पति को खोना नहीं चाहती. मुझे माफ करना. मुझे ससुराल जाना ही होगा.’’ इंद्रा ने कहा.

दीपक उसे बारबार ससुराल जाने को मना करता रहा. पर वह जाने की जिद करती रही. इसी बात पर दोनों में काफी देर तक बहस होती रही. इस के बाद दोनों ही मुंह फुला कर अपनेअपने घर चले गए.

उस रोज 27 अक्तूबर, 2017 का दिन था. मेड़ता सिटी थाने में किसी व्यक्ति ने सूचना दी कि एक युवती की अधजली लाश जोधपुर रोड पर स्थित जय गुरुदेव नगर कालोनी के सुनसान इलाके में पड़ी है. सुबहसुबह लाश मिलने की खबर से थाने में हलचल मच गई.

थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई पुलिस टीम के साथ सूचना में बताए पते पर पहुंच गए. घटनास्थल के आसपास भीड़ जमा थी. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, मगर अधजले शव के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से मृतका की पहचान हो पाती.

थानाप्रभारी की सूचना पर सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर भी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी मौके का निरीक्षण कर वहां खड़े लोगों से पूछताछ की. कोई भी उस शव की शिनाख्त नहीं कर सका.

नायकों की ढाणी का रहने वाला रामलाल नायक भी लाश मिलने की खबर पा कर जय गुरुदेव नगर कालोनी पहुंच गया. उस की बेटी  इंद्रा भी 26 अक्तूबर से लापता थी. झुलसी हुई लाश को वह भी नहीं पहचान सका. लाश की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मरने वाली युवती की शिनाख्त हुए बिना जांच आगे बढ़नी संभव नहीं थी. सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर और थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई इस बात पर विचारविमर्श करने लगे कि लाश की शिनाख्त कैसे हो. उसी समय उन के दिमाग में आइडिया आया कि यदि मृतका के अंगूठे के निशान ले कर उन की जांच कराई जाए तो उस की पहचान हो सकती है क्योंकि आधार कार्ड बनवाते समय भी फिंगर प्रिंट लिए जाते हैं. हो सकता है कि इस युवती का आधार कार्ड बना हुआ हो.

पुलिस ने आधार कार्ड मशीन में मृतका के अंगूठे का निशान लिया तो पता चला कि मृतका का आधार कार्ड बना हुआ है. इस जांच से यह पता चल गया कि मृतका का नाम इंद्रा पुत्री रामलाल नायक है. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने रामलाल नायक को सिटी थाने बुलाया और उस की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस ने रामलाल नायक से पूछताछ की तो उस ने बताया कि इंद्रा करीब डेढ़ महीने पहले गांधी कालोनी निवासी अपने दोस्त दीपक के साथ बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी. उन दिनों गणपति उत्सव चल रहा था. वह 7-8 दिन बाद वापस घर लौट आई थी. इस बार भी सोचा था कि उसी के साथ कहीं चली गई होगी. मगर उस का मोबाइल बंद होने के कारण उन्हें शंका हुई.

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रामलाल ने शक जताया कि इंद्रा की हत्या दीपक ने ही की होगी. रामलाल से पुलिस को पता चला कि इंद्रा के पास मोबाइल फोन रहता था जो लाश के पास नहीं मिला था. अब दीपक के मिलने पर ही मृतका के फोन के बारे में पता चल सकता था.

28 अक्तूबर को डा. बलदेव सिहाग, डा. अल्पना गुप्ता और डा. भूपेंद्र कुड़ी के 3 सदस्यीय मैडिकल बोर्ड ने इंद्रा के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

केस को सुलझाने के लिए सीओ राजेंद्र प्रसाद दिवाकर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम  बनाई गई. टीम में थानाप्रभारी (मेड़ता) अमराराम बिश्नोई, थानाप्रभारी (कुचेरा) महावीर प्रसाद, हैडकांस्टेबल भंवराराम, कांस्टेबल हरदीन, सूखाराम, अकरम, अनीस, हरीश, साबिर खान और महिला कांस्टेबल लक्ष्मी को शामिल किया गया. दीपक की तलाश में पुलिस ने इधरउधर छापेमारी की. तब कहीं 5 दिन बाद पहली नवंबर, 2017 को दीपक उर्फ दीपू पुलिस के हत्थे चढ़ पाया.

पुलिस ने थाने ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछा तो वह थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा लेकिन थोड़ी सख्ती के बाद उस ने इंद्रा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

पुलिस ने उसी रोज दीपक को मेड़ता सिटी कोर्ट में पेश कर के 5 दिन के रिमांड पर ले लिया और कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में इंद्रा मर्डर की जो कहानी प्रकाश में आई वह इस प्रकार निकली.

दीपक और इंद्रा एकदूजे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. लेकिन उन के संबंधों में दरार तब आई जब इंद्रा को दीपक की शादी होने की जानकारी मिली. इंद्रा को दीपक की यह बात बहुत बुरी लगी कि उस ने शादी करने की बात उस से छिपाए क्यों रखी. इंद्रा को यह महसूस हुआ कि दीपक उसे छल रहा है. इसलिए उस ने दीपक से संबंध खत्म कर पति के पास जाने का फैसला कर लिया. यही बात उस ने दीपक को साफसाफ बता दी.

दीपक ने उसी रोज तय कर लिया था कि अगर इंद्रा ने ससुराल जाने का कार्यक्रम नहीं बदला तो वह उसे जान से मार डालेगा. इंद्रा को यह खबर नहीं थी कि दीपक उस की जान लेने पर आमादा है. जब 26 अक्तूबर को दीपक ने इंद्रा को फोन कर के बुलाया तो उसे पता नहीं था कि प्रेमी के रूप में उसे मौत बुला रही है.

उसे 27 अक्तूबर को ससुराल जाना था इसलिए सोचा कि जाने से पहले एक बार दीपक से मिल ले. इसलिए उस के बुलावे पर वह उस से मिलने पहुंच गई. इंद्रा ने जब उसे बताया कि वह कल ससुराल जाएगी तो दीपक ने ससुराल जाने से उसे फिर मना किया. वह नहीं मानी तो वह उसे बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल से सातलावास डिस्काम जीएसएस पर बने कमरे में ले गया.

ससुराल जाने के मुद्दे पर फिर इंद्रा से बहस हुई. दीपक को गुस्सा आ गया. उस ने पहले से बनाई योजनानुसार इंद्रा की चुन्नी उसी के गले में लपेट कर उस की हत्या कर दी. गला घोंटने से इंद्रा की आंखें बाहर निकल गईं और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

इस के बाद उस की लाश को एक बोरे में डाला और बाइक पर रख कर उसे मेड़ता सिटी से बाहर जोधपुर रोड पर जय गुरुदेव कालोनी में सुनसान जगह पर ले गया.

इस के बाद अपनी मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर रात के अंधेरे में लाश को आग लगा दी. उस ने सोचा कि अब शव की शिनाख्त नहीं हो पाएगी और वह बच जाएगा. लेकिन आधार मशीन पर मृतका के अंगूठे का निशान लेते ही लाश की शिनाख्त हो गई और फिर पुलिस दीपक तक पहुंच गई.

पुलिस ने दीपक की निशानदेही पर उस की बाइक भी जब्त कर ली, जो इंद्रा की लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त की गई थी. पूछताछ पूरी होने पर दीपक उर्फ दीपू को 5 नवंबर, 2017 को पुन: कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी अमराराम बिश्नोई कर रहे थे. कथा लिखे जाने तक दीपक की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देशभर में फैला शातिर ठगों का जाल

भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बीमा पौलिसी कराना आम बात है. अपनी अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से ज्यादातर लोग बीमा पौलिसी खरीदते हैं. इस के लिए सरकारी, गैरसरकारी कंपनियां और बैंक अपने नियमों के हिसाब से पौलिसी करते हैं. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के पल्लवपुरम निवासी अंबरीश गुप्ता ने भी एक नामी प्राइवेट बैंक से 14 बीमा पौलिसी करा रखी थीं, जिन की कीमत 54 लाख रुपए थी. 16 सितंबर, 2016 की एक शाम अंबरीश घर पर ही थे. अचानक उन के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से फोन आया. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो गुड इवनिंग सर, आप अंबरीशजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘जी हां, आप कौन?’’

‘‘सर, मैं आईसीआईसीआई के फंड डिपार्टमैंट से औफीसर राहुल बात कर रहा हूं.’’ फोनकर्ता ने अपना परिचय दिया तो वह थोड़ा सतर्क हो गए, क्योंकि उन की बीमा पौलिसी इसी कंपनी में थी. उन्होंने जिज्ञासावश पूछा, ‘‘बताइए, राहुलजी.’’

‘‘सर, आप को बताना चाहता हूं कि आप की पौलिसी की कीमत अब 75 लाख रुपए हो गई है. अब आप को पूरे 21 लाख रुपए का मुनाफा होगा.’’ उस ने गर्मजोशी से बताया तो अंबरीश के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आए.

‘‘धन्यवाद, यह तो मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.’’

‘‘लेकिन एक प्रौब्लम है सर.’’

‘‘कैसी प्रौब्लम?’’ अंबरीश को एकाएक झटका सा लगा.

‘‘दरअसल सर, हमें आज रात शेयर मार्केट में गिरावट आने के संकेत मिले हैं. अगर ऐसा हुआ तो पौलिसी की वैल्यू 75 लाख से गिर कर केवल 43 लाख रह जाएगी. आप समझ सकते हैं कि शेयर बाजार का उतारचढ़ाव किसी के हाथ में नहीं होता.’’

‘‘यह तो वाकई परेशानी की बात है.’’

‘‘बिलकुल सर, लेकिन आप हमारे रौयल कस्टमर हैं. आप को सूचना देना हम ने अपना फर्ज समझा. हम चाहते हैं, आप को पौलिसी से भरपूर फायदा हो. आप अपनी पौलिसी को तत्काल बंद करने की अनुमति दें तो इस नुकसान से बच सकते हैं. 3 महीने के अंदर कंपनी आप को पूरे 75 लाख रुपए देगी.’’

उस की बात सुन कर अंबरीश ने तेजी से दिमाग दौड़ाया. इस में कोई बुराई नहीं थी. उन्हें 54 लाख के बदले 75 लाख रुपए मिल जाने थे. यानी उन्हें शुद्ध 21 लाख रुपए का फायदा हो रहा था. कुछ पल की खामोशी के बाद वह बोले, ‘‘पैसा तो मुझे मिल जाएगा, लेकिन मैं पौलिसी भी जारी रखना चाहता हूं.’’

‘‘आप इस की फिक्र न करें सर, हम आप को नई पौलिसी दे देंगे. बैंक से आप को कल फोन आ जाएगा.’’

‘‘ओके.’’ अंबरीश ने फोन रख दिया.

बैंक के औफीसर ने खुद काल की थी, जिस से यह बात साफ थी कि बैंक उन का हित चाहता था. वह सोच कर मन ही मन खुश हुए कि घाटे से बच गए. वाकई यह खुशी की ही बात थी.

अगले दिन बैंक से एक लड़की का फोन आया तो उस ने उन्हें कुछ आकर्षक लाभ वाली पौलिसियों के बारे में समझाया. साथ ही यह भी बताया कि उन्हें 21 लाख का जो मुनाफा होने जा रहा है, उतने रुपए उन्हें जमा कराने होंगे. यह रकम बैंक द्वारा उन्हें 3 महीनों में लौटा दी जाएगी. इस के बाद कई दिनों तक बातों का सिलसिला चलता रहा. मुनाफे के लालच में अंबरीश मोटी रकम का ख्वाब देख रहे थे. उन्होंने न केवल 21 लाख रुपए फोनकर्ताओं द्वारा बताए गए खातों में जमा किए बल्कि नई पौलिसी के रुपए भी जमा कर दिए.

अलगअलग समय पर कभी इनकम टैक्स, कभी सिक्योरिटी मनी तो कभी पौलिसी के नाम पर अंबरीश ने करीब 80 लाख रुपए जमा करा दिए. 2 महीने बाद दिसंबर में रकम वापसी की बात आई तो फोनकर्ता आश्वासन देने वाला अंदाज अपनाने लगे. जिन लोगों के फोन उन के पास आते रहे थे, उन्होंने धीरेधीरे उन से संपर्क करना छोड़ दिया. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अंबरीश ने कई लोगों से विचारविमर्श किया. जिस के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें ठगा गया है.

इस बात का अहसास होते ही उन की रातों की नींद उड़ गई. मामला मोटी रकम का था. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह ठगी का शिकार हो जाएंगे. उन्होंने इस बारे में एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ से मुलाकात कर के शिकायत की.

मामला साइबर अपराध से जुड़ा हुआ था. निस्संदेह वह किसी पेशेवर रैकेट का शिकार हुए थे. यह भी तय था कि अंबरीश जैसे न जाने कितने लोग इस तरह ठगी का शिकार हुए होंगे. मामला गंभीर था, लिहाजा उन्होंने मुकदमा दर्ज कर के तत्काल काररवाई करने के निर्देश दिए. एसएसपी के निर्देश पर अंबरीश की तरफ से पल्लवपुरम थाने में ठगी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अंबरीश ने जिन खातों में पैसा जमा किया था उन की और उन मोबाइल नंबरों की डिटेल्स थानाप्रभारी सतेंद्र प्रकाश को उपलब्ध करा दी, जिन पर उन की बात होती रही थी.

मामला चूंकि साइबर क्राइम का था लिहाजा एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी व सीओ (क्राइम) ज्ञानवती देवी के निर्देश पर यह केस साइबर सेल को स्थानांतरित कर दिया गया. साइबर सेल के प्रभारी कर्मवीर सिंह ने अपने साथी पुलिसकर्मियों सोनू कुमार, उमेश वर्मा, कपिल कुमार, विजय कुमार व केस के जांच अधिकारी विनोद कुमार त्रिपाठी के साथ मामले की जांच शुरू कर दी.

पुलिस बैंक खातों के जरिए धोखाधड़ी करने वालों तक आसानी से पहुंच सकती थी, लिहाजा इसी दिशा में जांच आगे बढ़ाई गई. जिन खातों के जरिए पैसे लिए गए थे, उन में एक खाता गाजियाबाद जिले की बैंक शाखा में किसी हरलीन कौर के नाम पर था.

पुलिस टीम गाजियाबाद पहुंची और हरलीन का पता हासिल करने के साथ ही खाते की डिटेल्स भी प्राप्त कर ली. हरलीन के खाते में लाखों के लेनदेन का ब्यौरा दर्ज था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह रैकेट बड़े पैमाने पर लोगों को अपना शिकार बना रहा था.

पुलिस ने उन सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स और पते हासिल कर लिए जिन से अंबरीश को फोन किए जाते थे. हालांकि ऐसे सभी नंबर बंद हो चुके थे. ये सभी नंबर फरजी आईडी पर लिए गए थे, लेकिन जिन मोबाइल हैंडसेट में वे नंबर इस्तेमाल हुए थे, उन पर अब दूसरे नंबर चल रहे थे. सर्विलांस की मदद से पुलिस ने ऐसे सभी नंबरों का इस्तेमाल करने वालों का ब्यौरा हासिल कर लिया.

6 जनवरी, 2017 को पुलिस टीम गाजियाबाद जा पहुंची. सादे कपड़ों में कुछ पुलिसकर्मी राजनगर स्थित एक औफिस में पहुंचे. वहां कई युवक व एक युवती काम कर रहे थे. उन के अंदर दाखिल होते ही कुरसी पर बैठे एक युवक ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

‘‘हमें आप के बौस से मिलना है?’’ एक पुलिस अफसर ने कहा.

‘‘क्या काम है?’’

‘‘काम बड़ा है, इसलिए हम उन्हें ही बताएंगे. वैसे क्या नाम है आप के बौस का?’’

‘‘जी, शमशेर सर.’’

कुछ ही देर में उस युवक ने उन लोगों को एक केबिन में भेज दिया. अंदर बैठे एक युवक ने रिवौल्विंग चेयर पर झूलते हुए पूछा, ‘‘बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘हमें अपने रुपए वापस चाहिए.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

‘‘हम मेरठ से आए हैं और अंबरीश के रिश्तेदार हैं. बीमा पौलिसी का रुपया है, इतना तो आप समझ ही गए होंगे.’’ यह सुन कर उस युवक को बिजली जैसा झटका लगा. वह उन्हें अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगा. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ सा नजर आ रहा था.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं…’’ उस ने अंजान बनने का नाटक किया.

‘‘हमारे साथ चलिए, हम सब समझा देंगे.’’ कहने के साथ ही पुलिस ने उसे और वहां मौजूद उस के साथियों को हिरासत में ले लिया. इस बीच वर्दीधारी पुलिसकर्मी भी वहां आ गए थे.

औपचारिक पूछताछ में पुलिस ने सभी के नामपते मालूम किए. उन की बातों से यह साफ हो गया था कि वे लोग ठगी की कंपनी चला रहे थे. गिरफ्तार लोगों में शमशेर उर्फ बबलू, पंकज धरेजा, राज सिंघानिया, सुधांशु उर्फ रोहित, अजय शर्मा व हरलीन कौर शामिल थे. इन में शमशेर दिल्ली के मालवीय नगर, पंकज फरीदाबाद, हरियाणा और अन्य सभी गाजियाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने मौके से कई लैपटौप, 7 मोबाइल फोन, बैंकों की पासबुक, चैकबुक, कई एटीएम कार्ड और अन्य कई दस्तावेज बरामद किए.

पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर के मेरठ ले आई और उन से विस्तार से पूछताछ की. पूछताछ में एक ऐसे गिरोह की कहानी निकल कर सामने आई जो बीमा कराने वाले लोगों को सपने दिखा कर ठगी का गोरखधंधा कर रहा था. एक दसवीं पास युवक ने अपने साथियों के साथ मिल कर सपनों का ऐसा जाल बुना कि उस में कई लोग फंस गए.

दरअसल, शमशेर उर्फ बबलू महज 10वीं पास युवक था. समाज में ऐसे युवाओं की कोई कमी नहीं है, जो आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित हो कर सोचने लगते हैं कि वे थोड़ी कोशिश करें तो बहुत कम समय में सफलताओं की इमारत खड़ी कर सकते हैं. उन की चाहत होती है कि उन के पास सभी भौतिक सुविधाएं और ढेर सारी दौलत हो. महत्त्वाकांक्षाओं की हवाएं जब दिलोदिमाग में सनसनाती हैं तो सोच खुदबखुद बदल जाती है. सोच की यह चाहत उन्हें इसलिए बुरी नहीं लगती, क्योंकि इसी के चलते उन्हें ख्वाबों में कल्पनाओं के खूबसूरत महल नजर आने लगते हैं.

शमशेर भी कुछ ऐसी ही सोच का शिकार था. उस का ख्वाब था कि किसी भी तरह उस के पास इतनी दौलत हो कि जिंदगी ऐशोआराम से बीते. वक्त के दरिया में तैराकी करते हुए उस ने दिनरात बहुत दिमाग दौड़ाया. यह अलग बात थी कि उसे कुछ समझ नहीं आया. नौकरी के लिए भी उस ने कई जगह हाथपैर मारे.

जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक फाइनैंस कंपनी में बतौर क्लर्क नौकरी शुरू कर दी. यह कंपनी लोगों को बैंकों से लोन दिलाने का काम करती थी. इस के बदले वह उन लोगों से तयशुदा कमीशन लेती थी, जिन का लोन पास कराया जाता था. दरअसल, यह कंपनी लोगों को सपने दिखा कर ठगती थी. कुछ समय शमशेर ने एक बीमा कंपनी में भी नौकरी की.

शमशेर को ठगी की राह आसान लगी. उस ने कुछ ऐसा ही करने की ठान ली और नौकरी छोड़ दी. इंसान जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग भी मिल जाते हैं. शमशेर ने इस मुद्दे पर कुछ दोस्तों से बात की तो उन लोगों ने बीमा पौलिसी कराने वाले लोगों को ठगने की योजना बनाई.

उस ने अपने साथी आशीष, सुमित, दिनेश, संजू चौहान के साथ मिल कर बीमा एजेंटों को लालच दे कर कुछ बीमा पौलिसी धारकों का ब्यौरा हासिल किया. इस के बाद वे उन्हें फोन कर के लालच के जाल में फंसाते और अपने खातों में पैसा जमा करा लेते. उन्हें कामयाबी मिली तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

बाद में उन्होंने अपने साथी राज सिंघानिया, पंकज धरेजा, सुधांशु, अजय व हरलीन कौर को भी अपने साथ जोड़ लिया. सभी महत्त्वाकांक्षी थे और करोड़पति बनने का सपना संजोए हुए थे. इन में पंकज ने बीकौम व हरलीन ने बीटेक की शिक्षा हासिल की हुई थी. जबकि बाकी सभी 10वीं या 12वीं तक पढ़े थे. राज सिंघानिया खुद भी बीमा एजेंट था.

खास बात यह भी थी कि सुमित व दिनेश एक ऐसी कंपनी में नौकरी कर चुके थे, जिस के पास एक दरजन से ज्यादा पौलिसी करने वाली कंपनियां जुड़ी हुई थीं. इन लोगों ने शातिराना अंदाज में वहां से डाटा चोरी कर लिया.

शुरुआत में गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोगों ने ठगी की शिकायत पुलिस से नहीं की तो उन के हौसले बढ़ गए. उन्हें लगा कि देश में लोगों को लालच दे कर ठगने का काम सब से आसान है. उन्होंने गाजियाबाद में अपना औफिस बना लिया. साथ ही फरजी पतों पर कई मोबाइल नंबर हासिल कर लिए. फिर वे फोन कर के अपने शिकार से बेहद लुभावनी बातें करते और उन्हें दिन में ही उन के ही पैसे से  जिंदगी को जन्नत बनाने के सुनहरे ख्वाब दिखाते. स्वार्थसिद्धि के लिए उन की बातें व योजनाएं इतनी लच्छेदार होती थीं कि अच्छेभले आदमी की सोच कुंद हो जाए.

उन का ठगी का धंधा चल निकला. उन का शिकार हुआ जो व्यक्ति अपनी रकम वापस पाने के लिए फोन कर के परेशान करता था, उस नंबर को वे हमेशा के लिए बंद कर देते थे. ऐसा कर के उन्हें मोबाइल नंबरों से पकड़े जाने का डर नहीं रहता था. कई बीमा पौलिसी धारक ऐसे भी होते थे जो 2 नंबर की रकम से मोटी पौलिसी खरीदते थे. भेद खुलने के डर से वे ठगी का शिकार हो कर भी चुप रह जाते थे. गिरोह के निशाने पर ऐसे लोग ही ज्यादा होते थे, जिन की पौलिसी लाखों में होती थी. इन ठगों ने खूब कमाई की. सभी लोग लग्जरी लाइफ जीते थे.

राज सिंघानिया जिस फ्लैट में रहता था, उस का किराया ही 20 हजार रुपए महीना था. इतना ही नहीं, वह अपने नौकर को 8 हजार रुपए महीना वेतन देता था. उस ने गाजियाबाद के पौश एरिया में अपना साइबर कैफे भी खोल लिया. दूसरी ओर शमशेर ने दिल्ली में भी अपना औफिस बना लिया. वह शानदार जिंदगी जीता था. शिकार बने लोगों का पैसा हरलीन के खाते में जमा कराया जाता था.

हरलीन कुल जमा रकम का 35 फीसदी कमीशन लेती थी. ठगी के खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज सिंघानिया के खाते में करीब एक साल में 4 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ था. इन लोगों का धंधा अनवरत चलता रहता, लेकिन अंबरीश ने शिकायत की तो इन की करतूतों का भंडाफोड़ हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने लिखापढ़ी कर के सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस शेष आरोपियों की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हवस के दरिंदों की करतूत

उत्तर प्रदेश का जाट बहुल जिला बागपत जिस रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदात से रूबरू हुआ, उसे वहां के बाशिंदे शायद ही कभी भुला सकें. कई धरनेप्रदर्शनों के बाद पुलिस के शिकंजे में गुनाहगार आ गए थे, लेकिन जो हकीकत खुल कर सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया.

10वीं जमात में पढ़ने वाली छात्रा साक्षी चौहान अपने पिता ईश्वर सिंह की हत्या के बाद अमीनगर सराय कसबे के नजदीक खिंदौड़ा गांव में अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. 31 दिंसबर को वह स्कूल गई, लेकिन इस के बाद उस का कहीं पता नहीं चला, तो परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

आखिरकार 10 जनवरी को साक्षी की लाश नजदीक के गांव पूठड़ में ईंख के खेत में पड़ी मिली. वारदात वाली जगह पर हत्या का कोई निशान नहीं था. साक्षी स्कूली कपड़ों में थी. ऐसा लगता था कि उस की लाश को वहां ला कर फेंक दिया गया था.

साक्षी चौहान का अपहरण भले ही कई दिन पहले किया गया था, लेकिन उस की हत्या लाश मिलने से 24 घंटे पहले ही की गई थी. इस से  लोगों का गुस्सा और भी भड़क गया और पुलिस पर साक्षी चौहान की बरामदगी में तेजी न बरतने का आरोप लगाया.

पोस्टमार्टम के दौरान साक्षी के शरीर पर नोचे जाने और अंदरूनी हिस्सों पर चोटों के निशान पाए गए. चंद रोज की जांचपड़ताल में पुलिस ने इस मामले में 4 नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों में सैड़भर गांव के बिट्टू, मोनू, सौरभ व अन्नु शामिल थे. इन सभी की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी. स्कूल जाते समय वे साक्षी को मोटरसाइकिल पर बैठा कर बिट्टू के घर ले गए. इस के बाद चारों आरोपियों ने उसे बंधक बना कर दरिंदगी की थी.

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यह सिलसिला 10 दिनों तक चला. वे साक्षी को नशीली चीज देते थे, ताकि वह बेहोश रहे. उन्हें डर था कि अगर साक्षी को छोड़ दिया गया, तो वे सभी फंस जाएंगे. पकड़े जाने के डर से उन्होंने गला दबा कर उस की बेरहमी से हत्या कर दी और मारुति कार में उस की लाश रख कर ईंख के खेत में फेंक गए.

उन चारों के सिर पर हवस का फुतूर सवार था. वे अकसर आनेजाने वाली छात्राओं पर फब्ति यां कसते थे और उन्हें अपना शिकार बनाने का घिनौना ख्वाब देखते थे.

इस तरह के मामलों में लड़कियां अकसर ऊंची जाति के लोगों की हैवानियत और हवस का शिकार होती हैं. हरियाणा के सोनीपत में कुछ दबंगों ने एक दलित लड़की को खेत में खींच कर उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में पीडि़ता ने मौत को गले लगा लिया देहात के इलाकों में दलित बेचारे बेसहारा होते हैं. बैकवर्ड क्लासों में  दबंगों का बोलबाला होता है. लिहाजा, पुलिस भी ऐसे मामलों में लचीला बरताव करती है. होहल्ला होने पर कुरसी बचाने तक की सख्ती दिखाई जाती है. कितने मामले ऐसे भी होते हैं, जब दबंगों के डर से पीडि़त परिवार पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते.

पिछले साल हरदोई जिले में एक दलित लड़की के साथ हैवानियत की गई. मौत का मामला उछलने के बाद पुलिस हरकत में आई.

दबंगों की इस दरिंदगी का शिकार साक्षी चौहान कोई अकेली शिकार नहीं थी. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर जनपद में भी एक दहलाने वाली वारदात हुई.

लेबर कालोनी की रहने वाली 11 साल की दलित लड़की तान्या 5 जनवरी को लापता हो गई. 2 दिन बाद तान्या की लाश पुलिस को झाडि़यों में मिली. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और उस के साथ रेप किया गया था.

इस मामले में 3 नौजवानों को गिरफ्तार किया गया. दरअसल, अंबेडकर कालोनी के रहने वाले इंद्रजीत, धर्मवीर और शिवकुमार शराब की लत के शिकार थे. उन तीनों ने खेतों में बनी एक झोंपड़ी को शराब का अड्डा बनाया हुआ था. वे अकसर वहां बैठ कर शराब पीते थे और सैक्स से जुड़ी बातें करते थे.

धीरेधीरे वे यह सोचने लगे कि किसी को अपना शिकार बनाया जाए. एक शाम उन तीनों ने जम कर शराब पी और तान्या को मोटरसाइकिल से अगवा कर लिया.

इंद्रजीत तान्या को पहले से जानता था. वह चाट खिलाने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. झोंपड़ी में ले जा कर तीनों ने बारीबारी से उसे अपना शिकार बनाया. तान्या चीखीचिल्लाई, तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को पुआल में छिपा दिया.

अगले दिन उन्होंने तान्या की लाश को तकरीबन 2 सौ मीटर दूर झाडि़यों में फेंक दिया. आरोपियों तक पहुंचने में ट्रैकर कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई. लाश पर मिले फूस और गीली मिट्टी के सहारे ही कुत्ता झोंपड़ी तक पहुंच पाया.

बकौल एसएसपी आरपी सिंह, ‘‘आरोपियों पर पाक्सो ऐक्ट के तहत कार्यवाही की गई है. फौरैंसिक जांच के सुबूतों से भी आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी.’’

बरेली में 29 जनवरी को घुमंतू जाति की एक दलित लड़की के साथ सारी हदों को लांघ दिया गया. नवाबगंज इलाके के गांव आनंदापुर में महावट जाति की बस्ती है. हेमराज की बेटी आशा अपनी मां के साथ खेत में चारा लेने गई थी. आशा को चारा ले कर घर भेज दिया गया, पर घर में चारा रख कर वह दोबारा खेत पर जा रही थी, तो लापता हो गई.

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खोजबीन के बाद महेंद्रपाल नामक आदमी के खेत में आशा की बिना कपड़ों की लाश मिली. गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई थी और अंग में लकड़ी ठूंस दी गई थी. उस के शरीर को भी नोचा गया था. मौके पर उसे घसीटे जाने के निशान भी थे.

पुलिस ने इस मामले में गांव के बिगड़ैल नौजवान की तलाश की, तो एक नौजवान मुरारी गंगवार का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे उठा कर सख्ती से पूछताछ की, तो मामला खुल गया.

मुरारी और उस का दोस्त उमाकांत शराब पी कर खेतों की तरफ निकले थे. उन की नजर लड़की पर पड़ी, तो सिर पर हैवानियत सवार हो गई. वे दोनों उसे खेत में खींच कर ले गए. उस का मुंह दबा कर पहले उमाकांत ने उस के साथ बलात्कार किया और फिर मुरारी ने. उन दोनों ने उस के नाजुक अंगों पर हमला भी किया. उन के बीच काफी खींचतान हुई. लड़की मुरारी को पहचानती थी, इसलिए गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई.

मुरारी पहले भी गांव के एक बच्चे और पशुओं के साथ गलत काम करने की कोशिश कर चुका था, जिस के बाद उस की पिटाई हुई थी.

जबरन सैक्स और हत्या के मामले समाज और कानून दोनों को ही दहलाने का काम करते हैं. हवस के ऐसे अपराधी हर जगह हैं, जो कब किस को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता.

इस तरह के मामलों में सामने आता है कि ऐसे नौजवान किसी लड़की को भोगने के बाद 2 वजह से हत्या करते हैं. पहली, अपने पहचाने जाने के डर से. दूसरी, चीखनेचिल्लाने और पकड़े जाने के डर से. इस तरह के नौजवान समाज और कानून के लिए खतरा बन जाते हैं.

डाक्टर आरवी सिंह कहते हैं कि ऐसा करने वाले सैक्सुअल डिसऔर्डर बीमारी का शिकार होते हैं. विरोध करने पर उन में गुस्सा पैदा हो जाता है. वे अपनी कुंठा को मनमुताबिक शांत करना चाहते हैं. ऐसे लोग सैडेस्टिक टैंडैंसी से भी पीडि़त होते हैं. ऐसे शख्स को किसी का खून बहता देख कर खुशी होती है. यह एक तरह की दिमागी बीमारी है.

दबंगों ने शराब पिला कर बनाया शिकार

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 27 जनवरी को कुछ दबंगों के सिर पर हवस का फुतूर सिर चढ़ कर बोला. कांधला थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली दलित किशोरी अपनी मां के साथ चारा लेने खेत पर गई थी. किसी बात पर नाराजगी हुई, तो मां ने उसे वापस घर चले जाने को कहा. जब वह रास्ते में पहुंची, तो गांव के ही 3 दबंग नौजवानों ने उसे दबोच लिया. वे उसे खींच कर खेत में ले गए. पहले उन्होंने उसे जबरन शराब पिलाई और फिर उस के साथ रेप किया. रेप करने के बाद सभी आरोपी जान से मारने की धमकी देते हुए फरार हो गए.

किशोरी जब शाम तक घर नहीं पहुंची, तो परिवार वालों ने उस की तलाश की. वह खेत में पड़ी मिली. होश में आने पर उस ने आपबीती सुनाई. बात यहीं खत्म नहीं हुई. आरोपी नौजवान ने दबंगई दिखाते हुए पुलिस कार्यवाही न करने का दबाव भी बनाया, लेकिन इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. बाद में पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि उस के साथी फरार थे.

सावधान : सुरक्षित नहीं है आपके बच्चे

देशभर में जिस समस्या को ले कर आएदिन चर्चा होती रहती है और चिंता जताई जाती है उसे ले कर भोपाल के अभिभावक लंबे वक्त तक दहशत से उबर पाएंगे, ऐसा लग नहीं रहा. मार्च के महीने में एक के बाद एक 3 बड़े हादसे हुए जिन में मासूम बच्चियों को पुरुषों ने अपनी हवस का शिकार बनाया. ऐसे में शहर में हाहाकार मचना स्वाभाविक था. हालत यह थी कि मांएं अपनी बच्चियों को बारबार बेवजह अपने सीने से भींच रही थीं तो पिता उन्हें सख्ती से पकड़े थे. समानता बस इतनी थी कि मांबाप देनों किसी पर भरोसा नहीं कर रहे थे. चिड़ियों की तरह चहकने वाली बच्चियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्यों मम्मीपापा एकाएक इतना लाड़प्यार जताते उन की निगरानी कर रहे हैं. समस्या देशव्यापी है. कहीं कोई चिड़िया किसी गिद्ध का शिकार बनती है तो स्वभाविक तौर पर सभी का ध्यान सब से पहले अपनी बच्ची पर जाता है और लोग तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाते हैं. बच्चियों के प्रति दुष्कर्म एक ऐसा अपराध है जिस से बचने का कोई तरीका कारगर नहीं होता है.

कैसे सुलझेगी और क्या है समस्या, इसे समझने के लिए भोपाल के हालिया मामलों पर गौर करना जरूरी है कि वे किन हालात में और कैसे हुए.

किडजी स्कूल

भोपाल के कोलार इलाके का प्रतिष्ठित स्कूल है किडजी. किडजी में अपने बच्चों को दाखिला दिला कर मांबाप उन के भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्ंिचत हो जाते हैं.

उस प्ले स्कूल की संचालिका हेमनी सिंह हैं. एक छोटी बच्ची के मांबाप ने उस का नर्सरी में 8 फरवरी को ही ऐडमिशन कराया था. इस बच्ची का बदला नाम परी है. परी जब स्कूल यूनिफौर्म पहन पहली दफा स्कूल गई तो मांबाप दोनों ने उसे लाड़ से निहारा.

पर परी पर बुरी नजर लग गई थी हेमनी सिंह के पति अनुतोष प्रताप सिंह की, जो खुद एक ऐसी ही छोटी बच्ची का पिता है. 24 फरवरी को परी के पिता ने कोलार थाने में अनुतोष के खिलाफ परी के साथ दुष्कर्म किए जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई. परी के भविष्य, मांबाप की प्रतिष्ठा और कानूनी निर्देशों के चलते यहां पूरा विवरण नहीं दिया जा सकता पर परी के पिता की मानें तो परी दर्द होने की शिकायत कर रही थी.

परी एक पढ़ेलिखे और खुद को सभ्य समाज का नुमाइंदा व हिस्सा कहने वाले की हैवानियत का शिकार हुई है. अनुतोष प्रताप सिंह ने अपने रसूख और पहुंच के दम पर मामले को रफादफा करने और करवाने की कोशिश की.

उस के एक आईपीएस अधिकारी से पारिवारिक संबंध हैं, इसलिए पुलिस ने फौरन कोई कार्यवाही नहीं की. उलटे, थाने में उसे राजकीय अतिथियों जैसा ट्रीटमैंट दिया.

इस कांड पर हल्ला मचा और अखबारबाजी हुई, तब कहीं जा कर पुलिस हरकत में आई. उसे ससम्मान हिरासत में लिया गया. शुरुआत में पुलिस यह कह कर आरोपी को बचाने की कोशिश करती रही कि जांच चल रही है, मैडिकल परीक्षण हो गया है, सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं लेकिन चूंकि आरोप साबित नहीं हुआ है, इसलिए आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की गई है.

जब परी की मैडिकल जांच में दुष्कर्म की आधिकारिक पुष्टि हुई तो 28 फरवरी को पहली दफा पुलिस ने इस वहशी को यौनशोषण का आरोपी माना और उसे कोलार क्षेत्र के गिरधर परिसर स्थित किडजी प्ले स्कूल से गिरफ्तार किया.

परी के नाना ने मीडिया को बताया कि उन की नातिन के गुनहगार को महज इसलिए गिरफ्तार नहीं किया गया क्योंकि वह कोलार थाना प्रभारी गौरव सिंह बुंदेला का अच्छा दोस्त है. दबाव बढ़ता देख पुलिस विभाग को इस थाना प्रभारी को लाइन अटैच करना पड़ा.

आरोपी को अदालत में संदेह का लाभ मिले, इस बात के भी पूरे इंतजाम पुलिस वालों ने किए. मसलन, एफआईआर में आरोपी की पहचान व्हाट्सऐप के जरिए करवाई गई. 3 साल की एक बच्ची मुमकिन है घबराहट या डर के चलते पहचान में गड़बड़ा जाए और दुष्कर्मी को कानूनी शिकंजे से बचने का मौका मिल जाए, इस के लिए पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी जिसे ले कर पुलिस विभाग और सरकार आम लोगों के निशाने पर हैं.

अवधपुरी स्कूल

भोपाल के ही अवधपुरी इलाके के एक सरकारी स्कूल का 56 वर्षीय शिक्षक मोहन सिंह पिछले 4 महीनों से एक 11 वर्षीय छात्रा बबली (बदला नाम) का शारीरिक शोषण कर रहा था. इस का खुलासा 15 मार्च को हुआ.

बकौल बबली, उस के सर (मोहन सिंह) उसे बुलाते थे, फिर कान उमेठते थे और पीठ पर मारते थे. बबली ने यह बात मां को बताई थी पर उन्होंने यह कहते उस की बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह पढ़ाई से जी चुराती होगी, इसलिए सर ऐसा करते हैं. बबली की मां मोहन सिंह के यहां नौकरानी थी, इसलिए उस ने कोई बात उन से नहीं की.

एक दिन सर ने बबली को अपने कमरे में झाड़ू लगाने के लिए बुलाया तो वह हैरान हुई कि जब इस काम के लिए मां हैं तो सर उसे क्यों बुला रहे हैं. वह तो पहले से ही उन्हें ले कर दहशत में थी. चूंकि मजबूरी थी, इसलिए वह डरतेडरते मोहन सिंह के कमरे में गई. पर साथ में एक सहेली को भी ले गई. लेकिन मोहन सिंह ने उस सहेली को भगा दिया.

सहेली चली गई तो मोहन सिंह ने अपना वहशी रंग दिखाते हुए कमरा अंदर से बंद कर लिया और जबरदस्ती बबली के कपड़े उतार दिए. इस के पहले वह अपने कपड़े उतार चुका था. इस के बाद उस ने बबली को अपनी तरफ खींच लिया. इसी दौरान किसी ने दरवाजा खटखटाया तो मोहन सिंह ने बबली को धमकी दी कि किसी को कुछ बताया तो स्कूल से निकाल दूंगा. डरीसहमी बबली खामोश रही क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी.

मां ने बात नहीं सुनी तो बबली ने बूआ को सारी बात बताई. उन्होंने भाभी को समझाया तो दोनों बबली को ले कर मोहन सिंह के घर गईं जो भांप चुका था कि पोल खुल चुकी है, इसलिए इन्हें देखते ही भाग गया.

जब मामला उजागर हुआ तो पुलिस ने मोहन सिंह के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 376 और 342 के तहत मामला दर्ज कर लिया. 5 बच्चों के पिता मोहन सिंह की बड़ी बेटी की उम्र 30 साल है. अवधपुरी के प्राइमरी स्कूल में 15 बच्चियां पढ़ती हैं और 10 लड़के हैं. मोहन सिंह स्कूल का सर्वेसर्वा था. यह स्कूल 2 साल पहले शुरू हुआ है जिस में पढ़ने वाले छात्र गरीब घरों के हैं. बबली के पिता की मौत हो चुकी है और 7 भाईबहनों में यह छठे नंबर की है.

मोहन सिंह का मैडिकल देररात हुआ जबकि बबली और उस की मां, बूआ दोपहर साढ़े 4 बजे से देररात तक अवधपुरी थाने में भूखीप्यासी बैठी रहीं.

यानी पुलिस ने इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाई तो उस की मंशा पर सवालिया निशान लगना स्वभाविक है. दूसरी कक्षा में पढ़ रही छात्रा के साथ उस का शिक्षक अश्लील हरकतें करता था और दुष्कर्म भी किया, यह बात भी संवेदनशील पुलिस की निगाह में कतई नहीं थी.

शातिर दुष्कर्मी

15 मार्च के दिन एक और मासूम बच्ची, नाम आफिया, उम्र 6 वर्ष, ने फांसीं लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. आफिया की 3 बड़ी बहनों के मुताबिक, हादसे की शाम मम्मी सब्जी लेने बाजार गई थीं तब उस ने ऊपर कमरे में जा कर फांसी लगा ली.

भोपाल के लालघाटी इलाके के नजदीक के गांव बरेला निवासी अफजल खान मंगलवारा इलाके में चिकन शौप चलते हैं. घर में उन की पत्नी और 4 बेटियां रहती हैं.

एक 6 साल की बच्ची फांसी लगा कर जान दे सकती है, यह बात किसी के गले उतरने वाली नहीं थी. मौके पर पुलिस पहुंची तो कमरे में बहुत से कपड़े बिखरे पड़े थे. लोगों का यह शक सच निकला कि परी और बबली की तरह आफिया भी दुष्कर्म की शिकार हुई है और जुर्म छिपाने की गरज से उस की हत्या कर दी गई है.

शौर्ट पीएम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट में जख्म हैं और उस के साथ प्राकृतिक व अप्राकृतिक कृत्य हुआ है. जाहिर है उस की मौत को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश की गई थी जबकि 6 साल की बच्ची फांसी के फंदे की उतनी मजबूत गांठ नहीं लगा सकती जितनी की लगी हुई थी और दरवाजा खोल कर खुदकुशी नहीं करती.

आफिया के मामले में भी पुलिस की कार्यप्रणाली लापरवाहीभरी और शक के दायरे में रही. 15 मार्च को पुलिस की तरफ से कहा गया कि संभवतया उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ है क्योंकि उस के प्राइवेट पार्ट पर कोई जख्म नहीं था.

4 दिनों में रिपोर्ट बदल गई तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मासूमों के असुरक्षित होने की बहुत सी वजहों में से एक, पुलिस की भूमिका भी है. 22 मार्च को पुलिस वालों ने साबित भी कर दिखाया कि इस अबोध ने खुदकुशी की थी. उस की हत्या नहीं की गई थी. और न ही किसी तरह का दुष्कर्म उस के साथ हुआ था.

इन तीनों मामलों से उजागर यह भी हुआ कि लड़कियां कहीं सुरक्षित नहीं हैं, किसी ब्रैंडेड स्कूल में भी नहीं, न ही सरकारी स्कूल में और उस जगह भी जो सुरक्षा की गारंटी माना जाता है यानी घर में.

अबोध लड़कियां मुजरिमों के लिए सौफ्ट टारगेट होती हैं और हैरत की बात है कि अधिकांश दुष्कर्मी अधेड़ होते हैं और बच्ची अकसर इन के नजदीक होती हैं. इन्हें जरूरत एक अदद मौके की होती है जिस के लिए वे किसी इमारत को ज्यादा महफूज मानते हैं. खुले पार्क, सुनसान या फिर हाइवे पर बच्चियों के साथ दुष्कर्म के हादसे अपेक्षाकृत कम होते हैं.

एकांत इस तरह के हादसों में एक बड़ा फैक्टर है तो जाहिर है भेडि़ए की तरह घात लगाए ये दुष्कर्मी काफी पहले अपने दिमाग में बलात्कार का नक्शा खींच चुके होते हैं.

जब भी एकांत मिलता है तब वे अपनी हवस पूरी कर डालते हैं. साफ यह भी दिख रहा है कि अबोध लड़कियों के दुष्कर्मियों को किसी श्रेणी में रखा जा सकता. वे सूटेडबूटेड सभ्य से ले कर गंवारजाहिल कहे और माने जाने वाले तक होते हैं. कुत्सित मानसिकता के स्तर पर इन में कोई फर्क नहीं किया जा सकता.

क्या करें 

भोपाल के हादसों से स्पष्ट हुआ कि मांबाप ने सावधानियां भी रखीं और लापरवाहियां भी की. परी और बबली के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अगर बच्ची किसी शिक्षक या दूसरे पुरुष के बाबत शिकायत कर रही है तो उसे किसी भी शर्त पर अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए.

भोपाल में मार्च के पूरे महीने इन मामलों की चर्चा रही पर कोई हल नहीं निकला. सारी बहस पुलिस की कार्यप्रणाली और दुष्कर्मियों की मानसिकता के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई.

एक गृहिणी वंदना रवे की मानें तो वे 2 बेटियों की मां हैं और इन हादसों के बाद से व्यथित हैं. पर उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा.

क्या सरकार सभी बच्चियों की हिफाजत की गारंटी ले सकती है, इस सवाल का जवाब भी शीशे की तरह साफ है कि नहीं ले सकती. इस मसले पर सरकार के भरोसे रहना व्यावहारिक नहीं है.

एक व्यवसायी रितु कालरा का कहना है कि बलात्कारियों को तुरंत फांसी पर चढ़ाया जाना जरूरी है जिस से दूसरे लोगों में खौफ पैदा हो और वे दुष्कृत्य करने से डरें.

लेखिका विनीता राहुरकर इस बात से सहमति जताते कानूनी सख्ती पर जोर देती यूएई की मिसाल देती हैं कि वहां इस तरह के मामले न के बराबर होते हैं जबकि हमारे देश क्या, शहर में ही, यह आएदिन की बात हो चली है. कुछ महिलाओं ने पौर्न साइट्स के बढ़ते चलन को इस की वजह माना तो कइयों ने पुरुषों के कामुक स्वभाव को इस के लिए जिम्मेदार ठहराया.

एक कठिनाई यह है कि अब एकल परिवारों के चलते कामकाजी मांबाप हमेशा चौबीसों घंटे बच्चों से चिपके नहीं रह सकते. इसी बात का फायदा दुष्कर्मी उठाते हैं. उन में और घात लगाए बैठे हिंसक शिकारियों में वाकई कोई फर्क नहीं होता, इसलिए रितु और विनीता की बात में दम है.

अगर अनुतोष प्रताप सिंह को अपराध साबित होने के 72 घंटों के अंदर फांसी दे दी गई होती तो क्या मोहन सिंह की हिम्मत बबली के साथ दुष्कर्म करने की होती. हालांकि निर्णायक तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता पर संभावना इस बात की ज्यादा है कि हां, वह हिचकता.

3 साल की परी को क्यों अदालत ला कर बयान देना पड़े, यह बात भी विचारणीय है कि दुष्कर्म के ऐसे मामलों में मां के बयान ही काफी हों.

क्या यह सभ्य समाज की निशानी है कि 3 साल की एक मासूम बच्ची, जो दुष्कर्म जैसे घृणित अपराध का शिकार हुई, को ही मुजरिमों की तरह अदालत में जाना पड़ा जहां वह दीनदुनिया से बेखबर, कागज की नाव से खेलते प्रतीकात्मक तौर पर यह बताती रही कि औरत की जिंदगी तो दुनिया में आने के बाद से ही कागज की नाव सरीखी होती है. पुरुष की कुत्सित मानसिकता का जरा सा प्रवाह ही उसे डुबो देने के लिए काफी है.

अपराधी को अपनी बात कहने, बचाव करने या सफाई का मौका ही न देना मुमकिन है कानूनन और मानव अधिकारों के तहत ज्यादती लगे पर यह हर्ज की बात नहीं. एकाध बेगुनाह फांसी चढ़ भी जाए तो बात ‘कोई बात नहीं’ की तर्ज पर हुई मानी जानी चाहिए. बजाय इस के कि बच्ची का बलात्कार होने के बाद ‘ऐसा तो होता रहता है’ कह कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली जाए. एक मासूम के प्रति यह विचार नहीं रखना चाहिए कि वह किसी बदले, प्रतिशोध या किसी तरह के लालच के लिए पुरुष को फंसाने की बात सोच पाएगी.

कमजोरी, धर्म और महिलाएं

लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं, इस का सीधा सा मतलब यह शाश्वत सत्य है कि औरतें शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. भोपाल की महिलाएं मानने को तैयार नहीं और देश की अधिसंख्य महिलाएं भी इस बात से सहमत नहीं होंगी कि महिलाओं के प्रति असम्मान और अपमान की शाश्वत मानसिकता में धर्म का बड़ा हाथ है. औरतों को तरहतरह से बेइज्जत करने के मर्द के डीएनए धर्म की देन हैं.

धर्म कहता है, स्त्री भोग्या है, पांव की जूती है, शूद्र है. फिर यही धर्म नारीपूजा का ढोंग करने लगता है. उसे देवी बताने लगता है. बात छोटी बच्चियों की करें तो नवरात्र के दिनों में घरघर में उन का पूजन होता है. उन्हें हलवापूरी खिलाया जाता है और उपहार व नकदी भी दी जाती है.

यह विरोधाभास देख लगता है कि बलि का बकरा तैयार किया जा रहा है. भोपाल के दुष्कर्म के मामलों के संदर्भ में यही धर्मशोषित महिलाएं चाहती हैं कि कृपया धर्म को बीच में न घसीटें, क्योंकि यह आस्था का विषय है.

पारिवारिक, सामजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक वजहों से परे महिलाओं को अपनी दुर्दशा को धर्म के मद्देनजर भी देखना होगा, तभी बच्चियों की सुरक्षा को ले कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.

आस्था की दुहाई देने वाली महिलाएं खुद दोयम दरजे की जिंदगी जी रही हैं तो क्या खाक  वे बच्चियों की सुरक्षा पर ठोस कुछ बोल पाएंगी. असल दोष पुरुष की मानसिकता का है जो कानून या राजनीति से नहीं, बल्कि धर्म से होते हुए समाज में आई है.

लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था और अब तकनीक होने के चलते कोख में ही उन की कब्र बना दी जाती है. इन बातों की धर्म के मद्देनजर खूब आलोचना हुई कि लोग लड़का इसलिए चाहते हैं कि वह तारता है. अब बारी यह सोचने की है कि अब कहीं ऐसा इसलिए तो नहीं किया जा रहा कि मांबाप में यह डर बैठ गया हो कि जब वे बच्ची को सुरक्षित नहीं रख सकते तो उसे दुनिया में क्यों लाएं.

औरतें शिक्षित तो हुई हैं पर पर्याप्त जागरूक नहीं हो पाई हैं. अपने अधिकारों की उन की लड़ाई 8 मार्च के दिन ही शबाब पर होती है. वह भी शोपीस जैसी ही. न तो वे स्वाभिमानी हो पाई हैं और न ही आत्मनिर्भर हो गई हैं.

भोपाल के हादसों को ले कर कोई धरनाप्रदर्शन नहीं हुआ. खुद को मुख्यधारा में मानने वाली महिलाएं क्लबों और किटी पार्टी में व्यस्त रहीं. ऐसे में इन से क्या उम्मीद की जाए, सिवा इस के कि उन्हें इस समस्या से कोई सरोकार नहीं.

बच्चियां इस सांचे में इस लिहाज से फिट बैठती हैं कि उन्हें हिफाजत देने वाला पुरुष खुद बागड़ बन कर खेत को खा रहा है और कानून के नाम पर हायहाय मचाई जाती है जो आंशिक तौर पर सच भी है. पुरुष की सामंती और उद्दंड मानसिकता का धर्म के आगे नतमस्तक होना, मासूम बच्चियों को वासना की खाई में ढकेलने जैसी ही बात है.

कैसे हो हिफाजत 

क्या मासूमों को हवस के इन शिकारियों से बचाया जा सकता है, यह सवाल बेहद गंभीर है जिस का जवाब यह निकलता है कि नहीं, आप कुछ भी कर लें, पूरे तौर पर बच्चियों को इन से बचाया नहीं जा सकता.

यह निष्कर्ष जाहिर है बेहद निराशाजनक है. पर ऐसे हादसों की संख्या कम की जा सकती है, इस के लिए इन टिप्स को ध्यान में रखना चाहिए :

– बच्ची को अकेला कभी न छोड़ें.

– किसी परिचित या अपरिचित पर कतई भरोसा न करें.

– स्कूल में वक्तवक्त पर जा कर बच्ची की निगरानी करें.

– बच्ची भयभीत या गुमसुम दिखे तो तुरंत उसे भरोसे में ले कर प्यार से उसे टटोलने की कोशिश करें कि माजरा क्या है. ऐसी हालत में उस के प्राइवेट पार्ट देखे जाना भी हर्ज की बात नहीं.

– चाचा ने भतीजी से या मामा ने किया भांजी का बलात्कार, जैसी हिला देने वाली खबरें अब बेहद आम हैं. जिन के चलते नजदीकी रिश्तेदारों पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है कि कहीं उन की निगाह बच्ची पर तो नहीं. उन की बौडी लैंग्वेज और हरकतें देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं इस तरह का कोई कीड़ा उन के दिमाग में तो नहीं कुलबुला रहा.

– उसे अकेला न खेलने दें, निगरानी करते रहें, अंधेरा होने के बाद घर से बाहर न जाने दें, जैसी सावधानियों के साथ अहम बात यह है कि स्कूल में उस की 6-8 घंटे की जिंदगी है. इसलिए स्कूल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, यह जरूर सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वहां महिला कर्मचारियों की संख्या ज्यादा हो और इमारत में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हों.

– स्कूल बस के कंडक्टर और ड्राइवरों की इस लिहाज से निगरानी करते रहना चाहिए कि इन्हें लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स से छेड़छाड़ करने का पूरा मौका मिलता है. अब जरूरत महसूस होने लगी है कि लड़कियां जिस वाहन में जाएं उस में एक महिला कर्मचारी की नियुक्ति अनिवार्य हो.

– लड़की को अगर होस्टल या झूलाघर में छोड़ना पड़े, तो उस की सतत निगरानी जरूरी है. बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था जिस में होस्टल या अनाथाश्रम में एक महिला एक छोटी बच्ची को जानवरों की तरह पीट रही थी. यह किस देश की घटना है, वीडियो से स्पष्ट नहीं है पर महिला बेहद व्याभिचारी भी है, यह भी दिखता है कि परपीड़न में उसे सुख मिलता है.

कलयुगी गुरु जो खेलता था बच्चों की इज्जत से

फरवरी, 2017 के पहले सप्ताह में जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से कुछ लोगों ने जो बताया, सुन कर वह दंग रह गए. उन से मिलने आए उन लोगों में से एक अधेड़ ने चिंतित स्वर में कहा था, ‘‘सर, रामगंज इलाके का एक टीचर काफी समय से उन बच्चों का यौनशोषण कर रहा है, जो उस के पास ट्यूशन पढ़ने आते थे. उस ने बच्चों की वीडियो क्लिपिंग भी बना रखी थी. वह बच्चों को धमकी देता था कि अगर उन्होंने किसी को यह बात बताई तो वह वीडियो सार्वजनिक कर देगा.’’

संजय अग्रवाल कुछ कहते, उस के पहले ही उस ने आगे कहा, ‘‘सर, उस टीचर ने वाट्सऐप के एक ग्रुप पर एक अश्लील वीडियो डाल दी है, जो वायरल हो रही है.’’

उस अधेड़ ने इतना कहा था कि उस के साथ आए एक अन्य आदमी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे की वीडियो वायरल हो रही है, वह हमारे परिवार का है. उस वीडियो को देख कर बच्चे की मानसिक स्थिति काफी खराब हो गई है. बच्चा घर से बाहर नहीं निकल रहा है. साहब, हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं.’’

इस के बाद उस आदमी ने जेब से स्मार्ट फोन निकाल कर कमिश्नर साहब को वह अश्लील वीडियो दिखा दी. वीडियो देख कर संजय अग्रवाल ने पूछा, ‘‘वह टीचर इस तरह की गंदी हरकतें कब से कर रहा है?’’

‘‘सर, हमारे खयाल से यह गंदा खेल करीब 3 सालों से चल रहा है. इस की जानकारी हमें तब हुई, जब इस वीडियो के वायरल होने के बाद बच्चे से पूछा गया.’’ उसी आदमी ने कहा.

संजय अग्रवाल ने उन लोगों से टीचर का नामपता आदि पूछ कर डायरी में नोट करते हुए कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मामला है. अगर ऐसा हुआ है तो हम ऐसी हैवान मानसिकता वाले टीचर को कतई नहीं छोड़ेंगे. आप लोग थाना रामगंज जा कर रिपोर्ट दर्ज कराइए. मैं रामगंज थानाप्रभारी को आप की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहे देता हूं.’’

इसी के साथ उन्होंने इंटरकौम पर पीए से कहा, ‘‘रामगंज एसएचओ से बात कराओ.’’

पीए ने पलभर बाद लाइन मिला कर कहा, ‘‘सर, रामगंज थानाप्रभारी लाइन पर हैं.’’

इस के बाद संजय अग्रवाल ने थाना रामगंज के थानाप्रभारी से कहा, ‘‘कुछ लोग आप के पास जा रहे हैं. इन की रिपोर्ट दर्ज कर के तुरंत काररवाई करें और मुझे रिपोर्ट करें.’’

संजय अग्रवाल ने उन लोगों को अपना मोबाइल नंबर दे कर थाना रामगंज भेज दिया और कहा कि अगर कोई परेशानी हो तो वे सीधे उन से बात कर लें. उस पीडि़त बच्चे के चाचा ने थाना रामगंज में बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज कर लिया. यह 7 फरवरी, 2017 की बात है.

रिपोर्ट दर्ज कर के थाना रामगंज के थानाप्रभारी अशोक चौहान ने इस बात की जानकारी पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी तो मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त उत्तर (प्रथम) समीर कुमार दुबे, सहायक पुलिस आयुक्त रामगंज बाघ सिंह राठौड़ तथा थानाप्रभारी अशोक चौहान के नेतृत्व में 6 पुलिस टीमें बना कर आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

पुलिस ने आरोपी टीचर रमीज के घर दबिश दी तो वही नहीं, उस का पूरा परिवार घर से फरार मिला. घर पर ताला लगा था. पड़ोसी भी रमीज तथा उस के घर वालों के बारे में कुछ नहीं बता सके. इस से पुलिस ने यही अनुमान लगाया कि वाट्सऐप पर वीडियो के वायरल होने के बाद रमीज और उस के घर वाले फरार हो गए हैं.

रमीज की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के साथी टीचरों तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा पीडि़त बच्चे से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच में पता चला कि टीचर रमीज ने कई अन्य बच्चों को भी उसी बच्चे की तरह शिकार बनाया था. उन बच्चों की भी रमीज ने वीडियो क्लिपिंग बना रखी थी. इसी के साथ यह भी पता चला कि उन्हीं वीडियो क्लिपिंग्स की बदौलत रमीज बच्चों से पैसे भी ऐंठता था.

मामला बेहद गंभीर था. इस तरह का शर्मनाक और हैवानियत भरा काम मानसिक रूप से विकृत आदमी ही कर सकता है. रमीज ने गुरु और शिष्य के रिश्ते को तारतार किया था, इसलिए पुलिस ऐसे टीचर को पकड़ने के लिए जीजान से जुट गई.

आखिर 9 फरवरी की शाम पुलिस ने उसे जयपुर से ही दिल्ली बाइपास रोड से पकड़ लिया. रमीज को थाना रामगंज ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्कूली बच्चों के यौनशोषण का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूछताछ में बच्चों के यौनशोषण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

26 साल के रमीज का पूरा नाम रमीज राजा था. एमए, बीएड रमीज सन 2011 में जयपुर के रामगंज के 12वीं कक्षा तक के एक नामचीन प्राइवेट स्कूल में टीचर के रूप में नियुक्त हुआ तो उसे जल्दी ही स्कूल का वाइस प्रिंसिपल बना दिया गया था. कोएजुकेशन वाले इस स्कूल में वह अंगरेजी पढ़ाता था.

स्कूल में पढ़ाते हुए रमीज बच्चों को फेल करने की धमकी दे कर ट्यूशन पढ़ने का दबाव डालता था. फेल होने के डर से बच्चे उस के घर ट्यूशन पढ़ने आते थे. रामगंज में रहने वाला रमीज बच्चों को अपने घर के एक कमरे में अंदर से दरवाजा बंद कर के ट्यूशन पढ़ाता था. कुछ देर पढ़ाने के बाद वह उन्हें अश्लील वीडियो दिखाता था. इस के बाद वह बच्चों से कुकर्म करता था. खासतौर से वह 5 से 15 साल तक के बच्चों को अपना शिकार बनाता था.

पिछले 4-5 सालों से रमीज यह घृणित काम कर रहा था. वह बच्चे का यौनशोषण करते हुए मोबाइल फोन से वीडियो बना लेता था. इस के बाद वह वीडियो दिखा कर उसे सार्वजनिक करने की धमकी दे कर बच्चों का यौनशोषण तो करता ही था, साथ ही पैसे भी मंगवाता था. यही नहीं, वह उस बच्चे से दूसरे बच्चे के साथ यौनशोषण की वीडियो भी बनवाता था. बदनामी के डर से कई बच्चों ने घर से पैसे चोरी कर के उसे दिए तो कुछ ने सामान बेच कर दिए.

जनवरी, 2017 में कुछ पीडि़त बच्चों ने रमीज के कंप्यूटर की वह हार्डडिस्क निकाल ली, जिस में उन के कारनामे कैद थे. उस हार्डडिस्क को बच्चों ने स्कूल प्रशासन को सौंप दिया. स्कूल प्रशासन ने हार्डडिस्क में कैद उस के कारनामे को देख कर उसे 23 जनवरी को स्कूल से निकाल दिया. उन्होंने इस मामले की पुलिस को सूचना देने के बजाए दबा दिया.

रमीज की हरकतों से परेशान छात्र कई दिनों तक स्कूल प्रशासन से उस की शिकायतें करते रहे, लेकिन स्कूल प्रशासन ने उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. तब कुछ बच्चे अपने घर वालों के साथ घोड़ा निकास रोड स्थित रमीज के घर पहुंचे, जहां इस बात को ले कर रमीज के घर वालों से उन लोगों का झगड़ा हो गया.

पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई तो थाना रामगंज पुलिस मौके पर पहुंची. इस बीच रमीज भाग गया. पुलिस मामला शांत करा कर सभी को थाने ले आई. बच्चों और उन के घर वालों ने मामला दर्ज कराना चाहा, पर पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. जांच की बात कह कर सभी को घर भेज दिया गया. इस के बाद लोग पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से मिले थे.

जांच में पता चला है कि इस से पहले रमीज को 2 स्कूलों से निकाला जा चुका था. उस के पिता प्रौपर्टी डीलिंग और नगीनों का काम करते थे. रमीज की गिरफ्तारी के बाद कई बच्चों ने हिम्मत कर के अपने घर वालों से अपने साथ हुए कुकर्म के बारे में बताया तो वे पुलिस थाने पहुंचे और रमीज के कुकृत्य की शिकायत की. 10 फरवरी की रात उस के खिलाफ दूसरा मुकदमा दर्ज किया गया था.

पुलिस ने रमीज से एक मोबाइल फोन और 2 पैन ड्राइव बरामद किए. उस के मोबाइल फोन से 76 क्लिपिंग्स बरामद हुई थीं. इस से पता चला है कि उस ने 5 से 15 साल के करीब 25 बच्चों का यौनशोषण किया था. उन में से कई बच्चे अब वयस्क होने वाले हैं. वैसे उस ने 11 बच्चों के यौनशोषण की बात स्वीकार की थी.

रमीज के मोबाइल में मिली क्लिपिंग्स देखने से साफ लग रहा था कि वे किसी अन्य व्यक्ति की मदद से बनाई गई थीं. ऐसे में पुलिस को इस बात की भी आशंका है कि रमीज का संबंध किसी पोर्नसाइट से हो सकता है. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि वह अश्लील क्लिपिंग्स बेचता तो नहीं था.

इस मामले में पुलिस की ओर से कोताही बरतने और स्कूल प्रशासन की ओर से मामला दबाए जाने के विरोध में 11 फरवरी को स्कूली बच्चों के घर वालों ने अन्य लोगों के साथ मिल कर थाना रामगंज पर प्रदर्शन किया. इन लोगों का आरोप था कि बच्चों के यौनशोषण का खुलासा होने के बाद भी पुलिस ने समय पर काररवाई नहीं की थी, इसलिए आरोपी टीचर ने तमाम सबूत नष्ट कर दिए हैं.

प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि अब इस मामले की जांच एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. से कराई जाए. उन का कहना था कि बच्चों ने जनवरी में ही रमीज के कंप्यूटर से हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंप दी थी, लेकिन स्कूल प्रबंधन ने मामले की सूचना पुलिस या बच्चों के घर वालों को देने के बजाए मामले को दबा दिया था. स्कूल से निकाले जाने के बाद 20 दिनों में आरोपी रमीज ने सबूतों को नष्ट कर दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज की करतूतों को छिपाने के मामले में 11 फरवरी को स्कूल के डायरेक्टर सरवर आलम को गिरफ्तार कर लिया था. इसी के साथ रमीज के कंप्यूटर से बच्चों ने जो हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंपी थी, उसे बरामद करने के साथ स्कूल से कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी बरामद की गई थी.

पुलिस ने रमीज से बरामद मोबाइल, पैन ड्राइव तथा स्कूल से बरामद हार्डडिस्क और स्कूल से जब्त कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी को जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि रमीज की करतूतों की जानकारी उस के घर वालों को थी या नहीं? इस बारे में पीडि़त बच्चों का कहना था कि रमीज के घर वालों को उस की इस करतूत की जानकारी थी.

पुलिस ने रमीज को कई बार रिमांड पर ले कर पूछताछ की. अंत में 20 फरवरी, 2017 को अदालत ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया था. डायरेक्टर सरवर आलम को भी पुलिस ने 14 फरवरी तक रिमांड पर रखा था. फिर उसी दिन उसे जमानत मिल गई थी.

इस मामले में आरोपी रमीज और सरवर आलम को कानून क्या सजा देगा, यह तो समय बताएगा. लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस टीचर पर भरोसा कर के लोग अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उसे सौंप देते हैं, अगर वही इस तरह की हरकत करे तो लोग बच्चों को कहां ले जाएं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुलिस वाले ने पुलिस से परेशान हो कर खुदकुशी की

राजस्थान के नागौर जिले के सुरपालिया थाने के तहत आने वाले एक गांव बाघरासर में रविवार, 21 जनवरी, 2018 की सुबह डीडवाना एएसपी दफ्तर के ड्राइवर कांस्टेबल गेनाराम मेघवाल ने अपनी पत्नी संतोष और बेटे गणपत व बेटी सुमित्रा के साथ फांसी के फंदे पर झूल कर जान दे दी.

21 जनवरी, 2018 को सुबह के 4 बजे गेनाराम के लिखे गए सुसाइड नोट को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया. उस सुसाइड नोट पर गेनाराम समेत परिवार के सभी सदस्यों के दस्तखत थे.

5 पन्नों के उस सुसाइड नोट में एक पुलिस एएसआई राधाकिशन समेत 3 पुलिस वालों पर चोरी के आरोप में फंसाने, सताने व धमकाने को ले कर यह कदम उठाने का आरोप लगाया गया था.

सुसाइड नोट में लिखा था कि मार्च, 2012 में नागौर पुलिस लाइन में रहने वाले एएसआई राधाकिशन सैनी के घर में चोरी हुई थी. राधाकिशन ने गेनाराम, उस के बेटे गणपत और बेटे के दोस्तों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.

उन दिनों गेनाराम नागौर में तैनात था. इस मामले में 2 बार एफआईआर हो चुकी थी. लेकिन तीसरी बार यह मामला फिर खुलवा लिया गया. इस के बाद गेनाराम ने कोर्ट में एफआईआर रद्द करने की याचिका लगाई, मगर वह कोर्ट से खारिज हो गई थी.

गेनाराम अपने आखिरी समय में एएसपी दफ्तर, डीडवाना में तैनात था. वहां वह दफ्तर के पास बने सरकारी क्वार्टर में परिवार के साथ रहता था.

जांचपड़ताल में यह भी सामने आया  कि गेनाराम और राधाकिशन के बीच गांव ताऊसर में 18 बीघा जमीन को ले कर भी झगड़ा चल रहा था. इस मामले में भी अजमेर पुलिस के अफसरों ने जांच की थी. गेनाराम और उस के परिवार के तनाव की एक खास वजह यह भी थी.

गेनाराम का पिछले कुछ सालों में कई बार तबादला हुआ था. इस के चलते भी वह परेशान था. अपने सुसाइड नोट में उस ने एएसआई राधाकिशन सैनी पर बेवजह परेशान करने का आरोप लगाया था.

गेनाराम के खिलाफ चोरी के मामले की जांच कर रहे नागौर सीओ ओमप्रकाश गौतम का कहना है कि मार्च, 2012 के इस मामले की जांच पहले भी सीओ लैवल के कई अफसर कर चुके थे. 2 बार एफआईआर भी कराई गई थी, लेकिन पिछले दिनों यह मामला फिर से खुलवाया गया था.

गेनाराम ने हाईकोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कराने के लिए भी याचिका लगाई थी, लेकिन 8 जनवरी, 2018 को कोर्ट ने उस की यह याचिका खारिज कर दी थी.

अपने सुसाइड नोट में गेनाराम ने परेशान करने के लिए जिस भंवरू खां का जिक्र किया है, वह रिटायर हो चुका है. गेनाराम के परिवार वालों ने राधाकिशन, उस की पत्नी, भंवरू खां और रतनाराम समेत 3-4 दूसरे लोगों के खिलाफ खुदकुशी करने के लिए उकसाने और दलित उत्पीड़न अधिनियम की धाराओं में मामला दर्ज कराया था.

लोगों ने इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराने और ताऊसर की 18 बीघा जमीन को सीज करने की मांग की है.

यहां यह भी बताना जरूरी है कि राधाकिशन के घर में मार्च, 2012 में जब पुलिस लाइन, नागौर में चोरी हुई थी. तब राधाकिशन को गेनाराम की पत्नी संतोष ने ही चोरी होने की खबर दी थी. पर राधाकिशन और उस के परिवार ने गेनाराम और उस के बेटे गणपत व उस के साथियों पर ही चोरी करने का आरोप लगा दिया और मुकदमा दर्ज करा दिया.

जुर्म साबित नहीं होने के बाद भी दुराचरण रिपोर्ट भेजी गई. गेनाराम ने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘हमारी किसी ने नहीं सुनी.’

इस मामले में तब सीओ द्वारा तलबी लैटर जारी किया गया था. दफ्तर पहुंचने पर राधाकिशन ने गेनाराम को फिर धमकाया. राधाकिशन कई सालों से एक ही दफ्तर में तैनात है.

गेनाराम एएसपी दफ्तर में ड्राइवर था. नागौर जिला एसपी दफ्तर में मीटिंग होती थी, तो वही एएसपी को ले कर जाता था. एसपी दफ्तर में ही एएसआई राधाकिशन का दफ्तर था. वह गेनाराम को देखते ही धमकाता था. गेनाराम इस वजह से परेशान हो गया था.

गेनाराम और उस के बीवीबच्चे पढ़ेलिखे थे. उन्होंने क्यों नहीं कानूनी लड़ाई लड़ी? शायद उन की उम्मीद जवाब दे गई थी, तभी उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने में ही भलाई समझी और जहर पीने के बाद फांसी के फंदे पर झूल कर मौत के मुंह में जा पहुंचे.

सुसाइड नोट में लिखी बातें पढ़ कर लोग हैरान रह गए कि पुलिस वाला भी पुलिस के कहर से नहीं बच सका. ऐसे पुलिस वालों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई इस तरह पूरा परिवार खत्म न हो.

गेनाराम के बेटे गणपत और बेटी सुमित्रा ने सीकर से पौलीटैक्निक का कोर्स किया था. इस के बाद से वे दोनों मातापिता के साथ डीडवाना में ही रह रहे थे. इस परिवार के बाकी सदस्यों का कहना है कि सुमित्रा की सगाई गांव धीरजदेसर में हुई थी, जबकि बेटे गणपत की सगाई गांव सोमणा में की गई थी.

कांस्टेबल गेनाराम के 10 सवाल, जो उस ने अपने सुसाइड नोट में लिखे थे, अब जवाब मांग रहे हैं :

* चोरी का सारा सामान मिल जाना और एफएसएल भी नहीं उठाना घटना का बनावटी होना जाहिर करता है.

* तांत्रिक के कहने, कांच में चेहरा देखने की बात के आधार पर अनुसंधान करना क्या सही है?

* जांच अधिकारी के सामने राधाकिशन द्वारा गणपत के साथ मारपीट की गई. गवाह होने के बाद भी एफआईआर दर्ज करा देना.

* एसपी दफ्तर में नियम विरुद्ध नौकरी करना.

* पुत्र के साथ मारपीट और बिना वारंट 2 दिन थाने में रखना सचाई पर कुठाराघात है.

* पुत्र गणपत अपराधी था तो उसे थाने में रख कर छोड़ा क्यों गया?

* अनुसंधान अधिकारी राजीनामे का दबाव बनाने में जुटे थे. मामला इसी के चलते पैंडिंग रखा गया.

* जांच में पहले पुत्र और फिर पूरे परिवार पर आरोप लगाना शक पैदा करता है.

* चोरी के सामान में मंगलसूत्र गायब बताया जो महिला हमेशा पहने रहती है.

* महिला ने मंगलसूत्र पहन रखा था तो उसे चोरी हो जाना क्यों बताया?

गेनाराम के पूरे परिवार समेत खुदकुशी करने का पता चला तो राधाकिशन, भंवरू खां और रतनाराम फरार हो गए.

कांग्रेस के संसदीय सचिव रह चुके गोविंद मेघवाल ने बताया, ‘‘दलितों पर जोरजुल्म बढ़ रहे हैं. समाज को एकजुट होना पड़ेगा. यह पुलिस और वसुंधरा सरकार की नाकामी है. हमारा समाज इस पर विचार कर रहा है.’’

दहेज नहीं मिला तो तलाक दे दिया

22 अगस्त, 2017 को सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं. क्योंकि उस दिन सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने वाला था. आखिर 12 बजे के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए मुसलिमों में एक साथ 3 तलाक को अमान्य और असंवैधानिक करार दे दिया.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के खिलाफ माना.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को जब कानपुर के पौश इलाके में रहने वाली सोफिया ने सुना तो उन्हें बहुत खुशी हुई, क्योंकि उन्हें भी इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था. दरअसल, सोफिया भी 3 तलाक से पीडि़त थीं. उन के शौहर ने भी दहेज की मांग पूरी न होने पर उन्हें प्रताडि़त कर नशे की हालत में 3 बार तलाक कह कर घर से निकाल दिया था.

इस के बाद सोफिया पति और उस के घर वालों के खिलाफ तलाक सहित दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश करती रहीं, लेकिन शौहर की बहन सत्ता पक्ष की विधायक थीं, इसलिए उन के दबाव में पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सोफिया ने अपने घर वालों से सलाह की और शौहर तथा उस के घर वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराने थाना स्वरूपनगर पहुंच गईं.

थानाप्रभारी राजीव सिंह थाने में ही मौजूद थे. सोफिया ने उन्हें सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया तो वह थोड़ा झिझके. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उन्हें पता था. लेकिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी का भी नाम इस मामले में आ रहा था, इसीलिए वह झिझक रहे थे.

गजाला लारी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेहद करीबी थीं. राजीव सिंह सोफिया को मना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए अधिकारियों की राय ले कर उन्होंने सोफिया की तहरीर पर अपराध संख्या 110/2017 पर भादंवि की धारा 498ए, 323, 506 तथा दहेज उत्पीड़न की धारा 3(4) के तहत पति शारिक अहमद, सास महजबीं बेगम, ससुर तैयब कुरैशी, ननद गजाला लारी और उन के बेटे मंजर लारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर कपिल दुबे को सौंप दी.

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मामला दर्ज होते ही सोफिया सुर्खियों में आ गईं. इस की वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने के बाद देश में पहली रिपोर्ट कानपुर में सोफिया द्वारा दर्ज कराई गई थी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया वाले सोफिया का बयान लेने उमड़ पड़े. सोफिया ने मीडिया को जो बताया और तहरीर में जो लिख कर दिया था, उस के अनुसार क्रूरता की पराकाष्ठा की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर के मुसलिम बाहुल्य वाले मोहल्ले कर्नलगंज में तैयब कुरैशी परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी महजबीं के अलावा 5 बेटियां और 2 बेटे थे. बच्चों में शारिक सब से छोटा था. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे. टेनरी उन का कारोबार था. उन की एक बेटी गजाला लारी समाजवादी पार्टी से विधायक थी.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का उस पर वरदहस्त था. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भी वह करीबी थी. गजाला का निकाह मुराद लारी से हुआ था. वह देवरिया की सलेमपुर सीट से बीएसपी के विधायक थे. लेकिन उन की मौत हो गई तो गजाला ने सलेमपुर से चुनाव लड़ा और वह 4 हजार वोटों से जीत गईं.

उसी बीच गजाला की मुलाकात चौधरी बशीर से हुई. वह भी विधायक थे. जैसेजैसे दोनों की मुलाकातें बढ़ीं, उन के बीच दूरियां घटती गईं. 4 दिसंबर, 2011 को गजाला ने चौधरी बशीर से निकाह कर लिया. उन्होंने सन 2012 में देवरिया की रामपुर कारखाना सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. गजाला लारी कानपुर के जाजमऊ में रहती हैं. उन का एक बेटा मंजर लारी है, जो उन्नाव में पैट्रोल पंप चलाता है.

तैयब कुरैशी के बड़े बेटे का विवाह हो चुका था, जबकि छोटा बेटा शारिक अभी अविवाहित था. शारिक शरीर से हृष्टपुष्ट और खूबसूरत था. तैयब कुरैशी उस के लिए लड़की तलाश रहे थे. उसी बीच उन के यहां सोफिया का रिश्ता आया. सोफिया मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के पिता समीर अहमद की मौत हो चुकी थी. उस का ननिहाल कानपुर के पौश इलाके स्वरूपनगर में था. वह भाई और बहन के साथ नाना के साथ रहती थी. वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए नानानानी उस के लिए लड़का देख रहे थे.

ऐसे में उन के किसी रिश्तेदार ने उन्हें तैयब कुरैशी के बेटे शारिक के बारे में बताया. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे, लड़का भी ठीकठाक था, इसलिए सोफिया के नानानानी तैयब कुरैशी के घर जा पहुंचे. लड़का सोफिया के नाना को पसंद आ गया. इस के बाद तैयब कुरैशी ने भी पत्नी के साथ जा कर सोफिया को देखा. पहली ही नजर में दोनों को सोफिया पसंद आ गई.

इस के बाद रिश्ता पक्का हो गया. भाई की शादी तय होने की बात विधायक गजाला लारी को पता चली तो उन्हें भी खुशी हुई. भाई की शादी को वह यादगार बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित कानपुर के विधायक इरफान सोलंकी, सतीश निगम और मुनींद्र शुक्ला को भी आमंत्रित किया.

12 जून, 2015 को कानपुर के स्टेटस क्लब में धूमधाम से सोफिया का निकाह शारिक के साथ हो गया. इस विवाह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित तमाम मंत्रियों और विधायकों ने भाग लिया था. सोफिया की शादी में एक बीएमडब्ल्यू कार, 10 लाख रुपए नकद तथा 20 लाख के गहने दहेज में दिए गए थे. कुल मिला कर 75 लाख का दहेज दिया गया था. शादी के बाद सोफिया मन में रंगीन सपने लिए ससुराल आ गई.

ससुराल में सोफिया के कुछ दिन तो ठीकठाक गुजरे, पर जल्दी ही उसे लगने लगा कि वह जो सपने ले कर ससुराल आई थी, वे बिखरने लगे हैं. सास महजबीं का व्यवहार सोफिया के प्रति रूखा हो गया था. वह बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने के साथ मायके वालों को ताने मारती रहती थी. सोफिया यह सब बरदाश्त करती रही.

2 महीने बीते थे कि शौहर शारिक का व्यवहार भी बदल गया. वह भी बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने लगा. कभीकभी मां के कहने पर उसे मार भी बैठता. धीरेधीरे यह सिलसिला बढ़ता ही गया. ससुराल वालों के इस रवैए से सोफिया परेशान रहने लगी. सास हमेशा कम दहेज लाने का ताना मारती रहती.

सास की जलीकटी सुन कर सोफिया की आंखों में आंसू आ जाते. पर उस के आंसुओं को वहां कोई देखने वाला नहीं था. ससुराल में घर का काम करने के लिए नौकरनौकरानियां थे, लेकिन सोफिया को अपना सारा काम खुद करना पड़ता था. सास ने सभी नौकरों को उस का काम करने से मना कर रखा था.

सोफिया ने सास और शौहर द्वारा परेशान करने की बात कई बार ससुर तैयब कुरैशी से बताई, पर उन्होंने पत्नी और बेटे का ही पक्ष लिया. इस तरह ससुर भी उसे परेशान करने लगे. सोफिया ने परेशान करने वाली बात ननद गजाला लारी को बताई  तो उस ने भी मां और भाई का ही पक्ष ले कर सोफिया से अपना मुंह बंद रखने को कहा.

इस तरह की परेशानी में सोफिया गर्भवती हुई तो ससुराल वाले खुश होने के बजाय उन्हें जैसे सांप सूंघ गया. दरअसल, सोफिया के ससुराल वाले नहीं चाहते थे कि वह मां बने. इसलिए वे उसे और परेशान करने लगे. उसे मारापीटा तो जाता, मानसिक रूप से परेशान भी किया जाता. इस तरह परेशान करने के बावजूद भी सोफिया ने अपने गर्भ पर आंच नहीं आने दी.

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31 मई, 2016 को सोफिया ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पैदा होने से सोफिया जहां खुश थी, वहीं ससुराल वाले परेशान थे. सोफिया का बेटा अभी एक महीने का भी नहीं हुआ था कि शारिक, उस की मां महजबीं और पिता तैयब कुरैशी ने सोफिया से मायके से एक करोड़ रुपए तथा एक लग्जरी स्पोर्ट्स कार लाने को कहा.

शारिक का कहना था कि उसे अपना कारोबार बढ़ाने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हर हाल में वह मायके से एक करोड़ रुपए ले आए. सोफिया ने ससुराल वालों की इस मांग को ठुकराते हुए कहा कि उस के घर वाले पहले ही महंगी कार, नकदी और काफी गहने दे चुके हैं, इसलिए अब और कुछ मांगना ठीक नहीं है.

सोफिया की इस बात पर शारिक ने उस की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद रुपए और कार लाने के लिए सोफिया को प्रताडि़त किया जाने लगा. उसी बीच सोफिया को कहीं से पता चला कि शारिक के किसी लड़की से मधुर संबंध हैं. उस ने सच्चाई का पता लगा लिया और वह पति के इस संबंध का विरोध करने लगी तो उसे और ज्यादा प्रताडि़त किया जाने लगा.

जुलाई, 2016 में परेशान हो कर सोफिया ननिहाल आ गई. ननिहाल में आने के कुछ दिनों बाद ही उस के बेटे की तबीयत खराब हो गई, वह उसे दिखाने के लिए डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कहा कि वह अपने शौहर को साथ लाए, तभी बच्चे का इलाज संभव है. सोफिया ने घर आ कर शारिक को फोन किया तो उस ने कहा कि वह शहर से बाहर है.

सोफिया ने किसी परिचित को शारिक के बाहर होने की बात कह कर मदद मांगी तो उस परिचित ने बताया कि शारिक शहर से बाहर नहीं है, वह रेव थ्री मौल में घूम रहा है. सोफिया तुरंत मौल पहुंच गई. शारिक सचमुच वहां एक लड़की के साथ घूमता मिल गया. वह उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शौहर को लड़की के साथ देख कर सोफिया को गुस्सा आ गया. वह लड़की को खरीखोटी सुनाने लगी तो शारिक ने विरोध किया. इस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगा. गुस्से में सोफिया ने शारिक को थप्पड़ मार दिया. झगड़ा होते देख भीड़ जुट गई. मामला थाना कोहना पहुंचा.

सोफिया ने रिपोर्ट लिखानी चाही. लेकिन शारिक ने अपना परिचय दे कर बताया कि वह सत्तापक्ष की विधायक गजाला लारी का भाई है तो पुलिस ने पतिपत्नी का झगड़ा बता कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस के बाद सोफिया का ससुराल में उत्पीड़न और बढ़ गया. उस ने गजाला लारी से शिकायत की तो घर की इज्जत की बात कर गजाला ने उस का मुंह बंद करा दिया.

बहन के दखल से शारिक के हौसले और बढ़ गए. वह सोफिया को और ज्यादा परेशान करने लगा. 13 अगस्त, 2016 को शारिक शराब पी कर आया और सोफिया से गालीगलौज करने लगा. सोफिया ने विरोध किया तो उस ने मारनापीटना शुरू कर दिया.

इस के बाद नशे में ही शारिक ने ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रात 3 बजे मासूम बच्चे के साथ सोफिया को घर से निकाल दिया. सोफिया ने ननिहाल जाने से मना किया तो जबरन कार में बैठा कर सुनसान इलाके में ले जा कर सोफिया और बच्चे को जान से मारने की कोशिश की. सोफिया ने शोर मचा दिया तो कुछ लोग आ गए, जिस से सोफिया बच गई. खुद को फंसता देख कर शारिक कार ले कर भाग गया.

शारिक को शक था कि सोफिया पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएगी, इसलिए उस ने पूरी बात विधायक बहन गजाला लारी को बता दी. गजाला ने सोफिया से बात की और रिपोर्ट दर्ज कराने से मना किया. गजाला के बेटे मंजर ने भी सोफिया को धमका कर किसी भी तरह की काररवाई करने से मना किया.

लेकिन किसी भी तरह के दबाव में न आ कर सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई. लेकिन पुलिस ने विधायक से जुड़ा मामला जान कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. सोफिया थाने से बाहर निकली तो रास्ते में शारिक मिल गया. उस ने एक बार फिर उस के साथ मारपीट की. यह स्थान थाना कोहना के अंतर्गत आता था.

सोफिया थाना कोहना पहुंची और शौहर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहा. यहां भी विधायक की वजह से रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई. हताश हो कर सोफिया घर लौट आई. इस के बाद भी गजाला और उस का बेटा मंजर उसे धमकाते रहे. काफी प्रयास के बाद भी जब सोफिया का तलाक और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज नहीं हुआ तो सोफिया ने भाजपा के कुछ नेताओं से संपर्क किया.

उन नेताओं को अपनी व्यथा बता कर मदद मांगी तो उन की मदद से सितंबर, 2016 में थाना कर्नलगंज पुलिस ने सोफिया की तहरीर पर घरेलू हिंसा का मामला मामूली धाराओं में दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन सत्ता पक्ष की विधायक गजाला लारी के दबाव में कोई काररवाई नहीं की. इस तरह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.

चूंकि भाजपा नेताओं ने सोफिया की मदद की थी, इसलिए सोफिया ने उन के कहने पर 13 दिसंबर, 2016 को भाजपा के क्षेत्रीय कार्यालय में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. इस के बाद वह भाजपा की सक्रिय सदस्य बन गई. सोफिया उत्पीड़न के खिलाफ लड़ ही रही थी कि 3 तलाक का मुद्दा उठा और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 18 महीने तक सुनवाई की और 22 अगस्त, 2017 को 3 तलाक के खिलाफ फैसला सुना दिया.

इस फैसले के चंद घंटे बाद ही सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई और ससुराल वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. सोफिया को भरोसा है कि अब सपा सरकार नहीं है, इसलिए उस की ननद गजाला लारी का सिक्का नहीं चलेगा और उन्हें न्याय मिलेगा.

इस सब के बारे में जब सपा की पूर्व विधायक गजाला लारी, उन के मातापिता तथा भाई शारिक से बात की गई तो उन्होंने सोफिया के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सोफिया अपने मन से मायके गई थी. उस से कभी दहेज नहीं मांगा गया. उसे कभी प्रताडि़त भी नहीं किया गया, बल्कि वह खुद ही उन लोगों को परेशान करती रही थी.

गजाला का कहना था कि सोफिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है, इसलिए भाजपा नेताओं के उकसाने पर दहेज उत्पीड़न और अन्य धाराओं में उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है. जांच में सच्चाई सामने आ जाएगी. उन के बेटे मंजर लारी का भी इस मामले से कोई संबंध नहीं है. परेशान करने के लिए उसे भी आरोपी बना दिया गया है.

बहरहाल, मामले की जांच चल रही है. सबइंसपेक्टर कपिल दुबे कई बार छापा मार चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई भी पकड़ा नहीं जा सका है. पुलिस पकड़ने का प्रयास कर रही है.

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धोखे से तलाकनामे पर हस्ताक्षर

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूरमार क्षेत्र के टीकर गांव के रहने वाले मोहम्मद इसलाम के बेटे आजम का निकाह 17 मार्च, 2016 को अंबेडकर जिले के भीटी थाना क्षेत्र के रेऊना गांव के रहने वाले शाकिर अली की बेटी रोशनजहां से हुआ था. निकाह के बाद से ससुराल वाले रोशनजहां को दहेज के लिए ताना देने लगे थे.

उन लोगों की मांग थी कि रोशनजहां के घर वाले एक लाख रुपया नकद और सोने की अंगूठी दें. दहेज न मिलने पर रोशनजहां के साथ मारपीट शुरू हो गई. एक दिन वह भी आया, जब रोशनजहां को मारपीट कर घर से निकाल दिया गया. रोशन के पिता ने बेटी का घर बचाने के लिए सुलह का प्रयास किया. 16 अप्रैल, 2017 को धर्म के कुछ संभ्रांत लोगों की मौजूदगी में पंचायत हुई.

इसी दौरान रोशन के शौहर आजम ने उसे धोखे से बहलाफुसला कर तलाकनामे पर हस्ताक्षर करा लिए. जब यह बात रोशनजहां को पता चली तो सदमे में आ गई.

कोई रास्ता न देख उस ने थाने जा कर पति मोहम्मद आजम, ससुर मोहम्मद इसलाम, सास आयशा बेगम, ननद गुडि़या और देवर गुड्डू के खिलाफ तहरीर दे कर काररवाई की मांग की.

थानाप्रभारी नंदकुमार तिवारी ने पांचों आरोपियों के विरुद्ध भादंवि की धारा 498ए और 323 व 3/4 दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कर के सभी को गिरफ्तार कर लिया.

वे देश जहां 3 तलाक पर पाबंदी है

देश को आजाद हुए 70 साल हो गए हैं, लेकिन मुसलिम महिलाओं को असली आजादी 22 अगस्त को तब मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने 3 तलाक पर रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार दे दिया. एक तरह से 3 तलाक पर अब प्रतिबंध लग गया है. यह प्रतिबंध लगाने में देश को 70 साल लग गए, जबकि दुनिया के ऐसे तमाम देश हैं, जहां इस पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं—

पाकिस्तान : सन 2015 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान की जनसंख्या 19,90,85,847 है. यह दुनिया का दूसरा सब से अधिक मुसलिम आबादी वाला देश है. वहां ज्यादातर सुन्नी हैं, लेकिन शिया मुसलमानों की संख्या भी काफी है. पाकिस्तान ने सन 1961 में ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया था.

पाकिस्तान में एक कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 3 तलाक को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए थे. वहां 3 तलाक लेने के लिए पहले पति को सरकारी संस्था (चेयरमैन औफ यूनियन काउंसिल) के यहां नोटिस देनी पड़ती है. इस के 30 दिनों बाद काउंसिल दोनों के बीच समझौता कराने की कोशिश करती है. इस के बाद 90 दिनों तक इंतजार किया जाता है. इस बीच अगर समझौता हो गया तो ठीक, वरना तलाक मान लिया जाता है.

अल्जीरिया : अफ्रीकी महाद्वीप के देश अल्जीरिया में मुसलिम आबादी 3.47 करोड़ है. यहां भी 3 तलाक पर प्रतिबंध है. अगर कोई दंपत्ति तलाक लेना चाहत है तो उसे कोर्ट की शरण में जाना पड़ता है. कोर्ट पहले दोनों के बीच सुलह की कोशिश करता है, इस के लिए 3 महीने का समय मिलता है. इस बीच अगर सुलह नहीं होती तो कोर्ट कानून के मुताबिक ही तलाक मिलता है.

मिस्र : 7.70 करोड़ से ज्यादा की मुसलिम आबादी वाला देश मिस्र, ऐसा पहला देश है, जहां सन 1929 में कानून-25 के द्वारा घोषणा की गई थी कि एक साथ 3 तलाक कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा और उसे वापस भी लिया जा सकता है.

सामान्य तौर पर जल्दी से जल्दी तलाक लेने का तरीका यह होता है कि पति अपनी पत्नी से 3 तलाक अलगअलग बार जब मासिक चक्र न चल रहा हो, कह कर तलाक ले सकता है. लेकिन मिस्र में इसे 3 तलाक का पहला चरण माना गया है. इस के बाद वहां तलाक के लिए 90 दिन का इंतजार करना पड़ता है.

ट्यूनीशिया : उत्तरी अफ्रीकी महाद्वीप के ट्यूनीशिया देश की मुसलिम आबादी 1.09 करोड़ से ज्यादा है. यहां सन 1956 में तय कर दिया गया था कि तलाक कोर्ट के जरिए ही होगा. कोर्ट पहले दोनों पक्षों में सुलह कराने की कोशिश करता है. जब दोनों में सुलह नहीं होती तो तलाक मान लिया जाता है.

बांग्लादेश : भारत के पड़ोसी और सन 1971 में आजाद हुए बांग्लादेश में मुसलिम आबादी करीब 13.44 करोड़ है. 3 तलाक पर बांग्लादेश में भी प्रतिबंध है. सन 1971 से ही बांग्लादेश में 3 तलाक कोर्ट में मान्य नहीं है.

इंडोनेशिया : दुनिया का सब से ज्यादा मुसलिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है. यहां मुसलमानों की कुल आबादी 20.91 करोड़ से ज्यादा है. इंडोनेशिया में मैरिज रेग्युलेशन एक्ट के आर्टिकल 19 के तहत तलाक कोर्ट के जरिए ही दिया जा सकता है. 3 तलाक वहां मान्य नहीं है.

श्रीलंका : श्रीलंका में कुल आबादी का 10 फीसदी मुसलमान हैं. यहां के नियमों के मुताबिक, कोई मुसलिम पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे मुसलिम जज काजी को नोटिस देना होता है. इस के बाद जज के साथसाथ दोनों परिवारों के सदस्य उन्हें समझाते हैं. अगर  ?      ?दोनों किसी की बात नहीं मानते तो उन्हें नोटिस दी जाती है. इस के 30 दिनों बाद युवक पत्नी को तलाक दे सकता है. इस के लिए उसे एक मुसलिम जज और 2 गवाहों की भी जरूरत पड़ती है.

यहां शादी और तलाक मुसलिम कानून, 1951 जो 2006 में संशोधित हुआ था, के मुताबिक तुरंत दिया गया 3 तलाक किसी भी नियम के तहत मान्य नहीं है.

तुर्की : तुर्की ने सन 1926 में स्विस सिविल कोड अपना लिया था. यह यूरोप में सब से प्रगतिशील और सुधारवादी कानून माना जाता है. इस के बाद 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया के द्वारा ही दिया जा सकता है.

साइप्रस : साइप्रस में मुसलिम आबादी 2.64 लाख है. साइप्रस में भी 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया द्वारा ही दिया जाता है.

इराक : एक साथ 3 तलाक को एक ही तलाक माना जाता है. यह ऐसा देश है, जहां पतिपत्नी दोनों ही तलाक दे सकते हैं. इस बीच अदालत झगड़े की वजह की जांच कर सकती है. अदालत सुलह के लिए 2 लोगों की नियुक्ति भी कर सकती है. उस के बाद वह मध्यस्थता कर अंतिम निर्णय सुनाती है.

सूडान : सन 1935 में कुछ प्रावधानों के साथ सूडान ने भी इसी कानून को अपना लिया.

मलेशिया : मलेशिया के सारावाक प्रांत में बिना जज के सलाह के पति तलाक नहीं दे सकता. उसे अदालत में तलाक का कारण बताना होता है. वहां शादी राज्य और न्यायपालिका के अंतर्गत होती है.

ईरान : शिया कानूनों के तहत 3 तलाक को मान्यता नहीं दी गई है.

संयुक्त अरब अमीरात, कतर, जोर्डन: 3 तलाक के मुद्दे पर तैमिया के विचार को स्वीकार कर लिया है.

सीरिया : सन 2014 की जनगणनना के मुताबिक यहां 74 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन यहां 1953 से ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर

19 जून, 2017 को मनोज चौधरी की बेटी की शादी थी. वह रीयल एस्टेट के एक बड़े कारोबारी हैं. गुड़गांव में उन का औफिस है. उन्होंने बेटी की शादी एक संभ्रांत परिवार में तय की थी. अपनी और वरपक्ष की हैसियत को देखते हुए उन्होंने शादी के लिए दक्षिणपश्चिम दिल्ली के बिजवासन स्थित आलीशान फार्महाउस ‘काम्या पैलेस’ बुक कराया था.

बेटी की शादी के 3 दिनों बाद ही उन के बेटे की भी शादी थी. बेटे की लगन का दिन भी 19 जून को ही था, इसलिए उस का कार्यक्रम भी उन्होंने वहीं रखा था.

मनोज चौधरी की राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक क्षेत्र के लोगों से अच्छी जानपहचान थी, इसलिए बेटे की लगन और बेटी की शादी में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. मेहमानों के लिए उन्होंने बहुत अच्छी व्यवस्था कर रखी थी. वह आने वाले मेहमानों का बड़ी ही गर्मजोशी से स्वागत कर रहे थे.

बारात के काम्या पैलेस में पहुंचने से पहले ही उन्होंने बेटे की लगन का कार्यक्रम निपटा दिया था. इस के बाद जैसे ही बारात पहुंची, मनोज चौधरी और उन के घर वालों ने धूमधाम से उस का स्वागत किया. रीतिरिवाज के अनुसार शादी की सभी रस्में पूरी होती रहीं. रात करीब पौने 12 बजे फेरे की रस्में चल रही थीं. उस समय तक बारात में आए ज्यादातर लोग सो चुके थे. ज्यादातर मेहमान खाना खा कर जा चुके थे. फेरों के समय केवल कन्या और वरपक्ष के खासखास लोग ही मंडप में बैठे थे. मंडप के नीचे बैठा पंडित मंत्रोच्चारण करते हुए अपना काम कर रहा था. जितने लोग मंडप में बैठे थे, पंडित ने सभी की कलाइयों में कलावा बांधना शुरू किया. वहां बैठे मनोज चौधरी ने भी अपना दाहिना हाथ पंडित की ओर बढ़ा दिया. कलावा बंधवाने के बाद उन्होंने पंडित को दक्षिणा दी. तभी उन का ध्यान बगल में रखे सूटकेस की तरफ गया. सूटकेस गायब था.

सूटकेस गायब होने के बारे में जान कर मनोज चौधरी हडबड़ा गए. वह इधरउधर सूटकेस को तलाशने लगे, क्योंकि उस सूटकेस में 19 लाख रुपए नकद और ढेर सारे गहने थे.

कलावा बंधवाने में उन्हें मात्र 4 मिनट लगे थे और उतनी ही देर में किसी ने उन का सूटकेस उड़ा दिया था. परेशान मनोज चौधरी मंडप से बाहर आ कर सूटकेस तलाशने लगे. इस काम में उन के घर वाले भी उन का साथ दे रहे थे. सभी हैरान थे कि जब मंडप में दरजनों महिलाएं और पुरुष बैठे थे तो ऐसा कौन आदमी आ गया, जो सब की आंखों में धूल झोंक कर सूटकेस उड़ा ले गया.

बहरहाल, वहां अफरातफरी जैसा माहौल बन गया. जब उन का सूटकेस नहीं मिला तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देने के साथ लैपटौप से औनलाइन रिपोर्ट दर्ज करा दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुुंच गई. पुलिस कंट्रोल रूम से मिली सूचना के बाद थाना कापसहेड़ा से भी पुलिस काम्या पैलेस पहुंच गई. मनोज चौधरी ने पूरी बात पुलिस को बता दी.

चूंकि मामला एक अमीर परिवार का था, इसलिए पुलिस अगले दिन से गंभीर हो गई. दक्षिणपश्चिम जिले के डीसीपी सुरेंद्र कुमार ने थाना कापसहेड़ा पुलिस के साथ एंटी रौबरी सेल को भी लगा दिया. उन्होंने औपरेशन सेल के एसीपी राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर सतीश कुमार, सुबीर ओजस्वी, एसआई अरविंद कुमार, प्रदीप, एएसआई राजेश, महेंद्र यादव, राजेंद्र, हैडकांस्टेबल बृजलाल, उमेश कुमार, विक्रम, कांस्टेबल सुधीर, राजेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले फार्महाउस काम्या पैलेस में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इन में एक फुटेज में एक छोटा बच्चा मनोज चौधरी के पास से सूटकेस उठा कर बाहर गेट की ओर ले जाता दिखाई दिया. इस के कुछ सैकेंड बाद दूसरा बच्चा भी उस के पीछेपीछे जा रहा था. उस के बाद काले रंग की टीशर्ट पहने एक अन्य लड़का सीट से उठ कर उन दोनों के पीछे जाता दिखाई दिया. सभी फुरती से बाहरी गेट की तरफ जाते दिखाई दिए थे.

पुलिस ने उन तीनों बच्चों के बारे में मनोज चौधरी और उन के घर वालों से पूछा. सभी ने बताया कि ये तीनों लड़के उन के परिवार के नहीं थे. ये शाम 8 बजे के करीब काम्या पैलेस में आए थे. कार्यक्रम में ये बहुत ही बढ़चढ़ कर भाग ले रहे थे. डीजे पर भी ये ऐसे नाच रहे थे, जैसे शादी इन के परिवार में हो रही है. जब ये परिवार की लड़कियों और महिलाओं के डीजे पर जाने के बावजूद भी वहां से नहीं हटे तो परिवार के एक आदमी ने इन से डीजे से उतरने के लिए कहा था.

मनोज ने पुलिस को बताया कि छोटा वाला बच्चा महिलाओं के कमरे के पास भी देखा गया था. वह समझ रहे थे कि ये बच्चे शायद किसी मेहमान के साथ आए होंगे. बहरहाल, उन्होंने उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया था और उसी बच्चे ने उन का सूटकेस साफ कर दिया था. उन के कार्यक्रम में जो फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर थे, उन के द्वारा खींचे गए फोटो में भी वे बच्चे दिखाई दिए थे.

पुलिस टीम ने उन्हीं फोटो की मदद से सूटकेस चोरों का पता लगाना शुरू किया. पुलिस ने वे फोटो अलगअलग लोगों को दिखाए. उन फोटो को पहचान तो कोई नहीं सका, पर कुछ लोगों ने यह जरूर बता दिया कि ये बच्चे मध्य प्रदेश के हो सकते हैं.

इस के अलावा पुलिस की सर्विलांस टीम 19-20 जून की रात के डंप डाटा की जांच में जुट गई. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि काम्या पैलेस का इलाका किनकिन मोबाइल टावरों के संपर्क में आता है. इस के बाद यह जानकारी हासिल की गई कि उस टावर के संपर्क में उस रात कितने फोन थे. पता चला कि उस रात कई हजार फोन वहां के फोन टावरों के संपर्क में थे. इसी को डंप डाटा कहा जाता है.

पुलिस को पता लग चुका था कि चोरी करने वाले लड़के मध्य प्रदेश के हो सकते हैं, इसलिए उस डंप डाटा से उन मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया गया, जो उस रात मध्य प्रदेश के नंबरों के संपर्क में थे. ऐसे 300 फोन नंबर सामने आए. सर्विलांस टीम ने उन फोन नंबरों की जांच की. अब तक पुलिस को एक  नई जानकारी यह मिल गई थी कि मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना पचौड और बोड़ा के गुलखेड़ी और कडि़या ऐसे गांव हैं, जहां के गैंग बच्चों के सहयोग से शादी समारोह आदि के मौकों पर चोरियां करते हैं.

यह जानकारी मिलते ही एसीपी (औपरेशन) राजेंद्र सिंह ने 26 जून, 2017 को एक टीम मध्य प्रदेश के लिए भेज दी. टीम में इंसपेक्टर सतीश कुमार, एसआई अरविंद कुमार, एएसआई महेंद्र यादव आदि को शामिल किया गया था. टीम ने सब से पहले राजगढ़ जिले में रहने वाले मुखबिर को चोरों के फोटो दिखाए. उस मुखबिर ने 2-3 घंटे में ही पता लगा कर बता दिया कि ये लड़के गुलखेड़ी और कडि़या गांव के हैं और ये दोनों गांव थाना बोड़ा के अंतर्गत आते हैं.

यह जानकारी टीम के लिए अहम थी. इस जानकारी से उन्होंने एसीपी राजेंद्र सिंह को अवगत करा दिया. उन के निर्देश पर टीम थाना बोड़ा पहुंची. वहां के थानाप्रभारी को टीम ने दिल्ली में हुई घटना के बारे में बताते हुए अभियुक्तों को गिरफ्तार करने में मदद मांगी. थानाप्रभारी ने बताया कि यहां पर कभी मुंबई की तो कभी पंजाब की तो कभी उत्तराखंड तो कभी यूपी की पुलिस आती रहती है. पर चाह कर भी वह इन गांवों में दबिश डालने नहीं जा सकते.

इस की वजह यह है कि इन गांवों में सांसी रहते हैं. जब पुलिस इन के यहां पहुंचती है तो गांव के आदमी और औरतें यहां तक कि बच्चे भी इकट्ठा हो कर पुलिस पर हमला कर देते हैं. महिलाएं पुलिस से भिड़ जाती हैं. कभीकभी ये लोग आपस में ही किसी के पैर पर देसी तमंचे से गोली चला देते हैं. इसलिए इन गांवों में पुलिस नहीं जाती.

थानाप्रभारी ने बताया कि कुछ दिनों पहले पंजाब पुलिस भी आई थी. पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार की शादी में किसी ने नकदी और ज्वैलरी का बैग उड़ा दिया था. पंजाब पुलिस भी ऐसे ही वापस लौट गई थी.

स्थानीय पुलिस की मदद के बिना किसी भी राज्य की पुलिस सीधे दबिश नहीं दे सकती. दिल्ली पुलिस की टीम असमंजस में पड़ गई कि ऐसी हालत में क्या किया जाए? सीधे दबिश दे कर दिल्ली पुलिस कोई लफड़ा नहीं करना चाहती थी. पुलिस टीम को यह तो पता चल ही गया था कि सूटकेस चुराने वाले बच्चे किस गांव के हैं. अब पुलिस टीम ने उसी मुखबिर की सहायता से उन चोरों के बारे में अन्य जानकारी निकलवाई.

मुखबिर ने बताया कि इन गांवों में चोरों के अनेक गैंग हैं. चूंकि बच्चों पर कोई शक नहीं करता, इसलिए ये लोग अपने रिश्तेदारों या गांव के दूसरे लोगों के बच्चों को साल भर या 6 महीने के कौंट्रैक्ट पर ले लेते हैं. यह कौंट्रैक्ट लाखों रुपए का होता है. उन बच्चों को ट्रेनिंग देने के बाद उन के सहयोग से ही विवाह पार्टियों में चोरियां करते हैं. दिल्ली में जिन बच्चों ने सूटकेस चुराया था, वे बच्चे राका और नीरज के गैंग में काम करते हैं और राका इस समय अपने घर पर नहीं है. वह दिल्ली के पौचनपुर में कहीं किराए पर रहता है.

यह जानकारी ले कर पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पौचनपुर गांव दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका सेक्टर-23 के पास है. अपने स्तर से पुलिस राका को खोजने लगी. कई दिनों की मशक्कत के बाद पहली जुलाई, 2017 को पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला.

राका को हिरासत में ले कर पुलिस ने उस से काम्या पैलेस में हुई चोरी के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे राका ने अपना मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि काम्या पैलेस की शादी में उसी की गैंग के बच्चों ने सूटकेस चुराया था. बच्चों के अलावा नीरज भी गैंग में शामिल था. इस के बाद उस ने चोरी की जो कहानी बताई, वह दिलचस्प कहानी इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना बोड़ा के अंतर्गत स्थित हैं कडि़या और गुलखेड़ी गांव. दोनों ही गांव की आबादी करीब 5-5 हजार है. राका गुलखेड़ी गांव का रहने वाला था, जबकि नीरज गांव कडि़या में रहता था. इन दोनों गांवों की विशेषता यह है कि यहां पर सांसी जाति के लोग रहते हैं. बताया जाता है कि यहां के ज्यादातर लोग चोरी करते हैं. इन के निशाने पर अकसर शादी समारोह होते हैं. एक खास बात यह होती है कि इन के गैंग में छोटे बच्चे या महिलाएं भी होती हैं.

चूंकि समारोह आदि में बच्चे आसानी से हर जगह पहुंच जाते हैं, जो आराम से बैग या सूटकेस चोरी कर गेट के बाहर पहुंचा देते हैं. ये बच्चे कोई ऐसेवैसे नहीं होते, उन्हें बाकायदा चोरी करने की ट्रेनिंग दी जाती है. जिन बच्चों को गैंग में रखा जाता है, उन के चुनाव का तरीका भी अलग है.

गैंग का मुखिया सब से पहले अपनी रिश्तेदारी या फिर जानने वाले के बच्चे को तलाशने की कोशिश करता है. वहां न मिलने पर गांव के ही किसी बच्चे का चुनाव करता है. गांव के लोग बचपन से ही अपने बच्चे को छोटीमोटी चोरी करने की प्रैक्टिस कराते हैं. चोरी की प्राथमिक पढ़ाई घर वालों से पढ़ने के बाद हाथ आजमाने के लिए घर वाले इन्हें गैंग के लोगों को 6 महीने या साल भर के लिए सौंप देते हैं.

इन बच्चों के हुनर के अनुसार, उन का पैकेज 6 लाख से 12 लाख रुपए तक होता है. बच्चों के घर वालों को 25 प्रतिशत धनराशि एडवांस में नकद दे दी जाती है, बाकी की हर महीने की किस्तों में. इस तरह यहां के बच्चे बड़े पैकेज पर काम करते हैं.

राका ने पुलिस को बताया कि काम की शुरुआत करने से पहले उन्हें 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में उन्हें सिखाया जाता है कि लड़की या लड़के की शादी में ज्वैलरी या कैश का बैग किस तरह उड़ाना है.

राका और नीरज, दोनों साझे में काम करते थे. नीरज ने गैंग में अपने बेटे को भी शामिल कर रखा था. इन्होंने गांव के ही बच्चे चीमा (परिवर्तित नाम) को 10 लाख रुपए साल के पैकेज पर अपने गैंग में शामिल किया था. इस के बाद इन्होंने चीमा को बातचीत करने, खानेपीने, कपड़े पहनने, डांस करने की ट्रेनिंग दी. उस की मदद के लिए इन्होंने गांव के ही कुलजीत को अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

ये दिल्ली के अलगअलग इलाकों में किराए का कमरा ले कर रहते थे. ये अकसर मोटा हाथ मारने की फिराक में रहते थे. इन्हें पता था कि पैसे वाले लोग अपने बच्चों की शादियां कहां करते हैं. बच्चों को महंगे कपड़े पहना कर ये शाम होते ही औटोरिक्शा से छतरपुर, कापसहेड़ा, महरौली स्थित फार्महाउसों की तरफ घूम कर तलाश करते थे कि शादी कहां हो रही है. फार्महाउसों में ज्यादातर रईसों के बच्चों की ही शादियां होती हैं.

जिस फार्महाउस में शादी हो रही होती, उस के बाहर ही एक साइड में ये औटोरिक्शा खड़ा कर देते और तीनों बच्चे शादी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अंदर चले जाते, जबकि राका और नीरज औटो में ही बैठे रहते. औटो वाले को ये मुंहमांगा पैसा देते थे, इसलिए वह भी कुछ नहीं कहता था.

19 जून को भी इन्होंने ऐसा ही किया. राका और नीरज काम्या पैलेस के बाहर औटो में बैठे रहे और कुलजीत, चीमा तथा नीरज का बेटा मनोज चौधरी की बेटी की शादी समारोह में शामिल होने अंदर चले गए. वे उन के बेटे की लगन के कार्यक्रम में शामिल हुए.

लगन चढ़ने के बाद तीनों को 100-100 रुपए शगुन के तौर पर भी मिले थे. बेटी की शादी की वजह से मनोज चौधरी सूटकेस में अपने घर से कैश और ज्वैलरी ले आए थे. उस समय उन के सूटकेस में ज्वैलरी के अलावा 19 लाख रुपए नकद थे, इसलिए वह उस सूटकेस को अपने हाथ में ही लिए हुए थे.

तीनों बच्चों की टोली ने ताड़ लिया था कि माल इसी सूटकेस में है, इसलिए वे उस सूटकेस पर हाथ साफ करने के लिए उन के इर्दगिर्द ही मंडराते रहे.

शादी में आए मेहमानों की तरह उन्होंने खाना खाया और डीजे पर डांस भी किया. उन की गतिविधियां देख कर कोई शक भी नहीं कर सकता था कि बिन बुलाए मेहमान के रूप में ये चोर हैं.

जब कुलजीत डीजे पर डांस कर रही लड़कियों के साथ डांस कर रहा था, तब कन्यापक्ष के लोगों ने जरूर उस से डीजे से उतर जाने को कहा था. वह मनोज चौधरी का सूटकेस उड़ाने का मौका तलाशते रहे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

रात साढ़े 11 बजे के बाद जब फेरों का कार्यक्रम शुरू हुआ तो उस समय भी वे उन के मेहमानों के बीच बैठ गए तो चीमा मंडप के इर्दगिर्द घूमता रहा. उसी दौरान जैसे ही मनोज ने हाथ में कलावा बंधवाने के लिए हाथ पंडित के आगे किया, तभी चीमा उन के सूटकेस को ले कर फुरती से निकल गया. उस के पीछे कुलजीत और फिर नीरज का बेटा भी निकल गया.

काम्या पैलेस से निकल कर वे सीधे औटो के पास पहुंचे, जहां राका और नीरज इंतजार कर रहे थे. इस के बाद वे औटो से द्वारका स्थित अपने कमरे पर गए और अगले दिन मध्य प्रदेश स्थित अपने घर चले गए. उन्होंने चुराए पैसे आपस में बांट लिए. राका के हिस्से में 4 लाख रुपए आए थे. कुछ दिन गांव में रह कर राका पैसे ले कर दिल्ली में अपने कमरे पर लौट आया.

वारदात करने के बाद ये किसी दूसरे इलाके में कमरा ले लेते थे. पूछताछ में राका ने बताया कि उस ने मुंबई के एक कार्यक्रम में शिल्पा शेट्टी का बैग चुराया था. उस ने बताया कि उस के गांव के लोग देश के तमाम बड़े शहरों में यही काम करते हैं. किसी गैंग में छोटे बच्चों के साथ महिला को भी रखा जाता है. लेकिन सारा कमाल ये बच्चे ही करते हैं.

राका से विस्तार से पूछताछ के बाद एंटी रौबरी सेल ने उस की निशानदेही पर 4 लाख रुपए कैश और कुछ ज्वैलरी बरामद कर ली. इस के बाद उसे कापसहेड़ा थाना पुलिस के हवाले कर दिया गया, क्योंकि इस मामले की रिपोर्ट उसी थाने में दर्ज थी.

इस मामले की जांच एसआई प्रदीप को सौंपी गई थी. एसआई प्रदीप ने राका से पूछताछ की तो उस ने गुड़गांव की एक घटना का खुलासा किया है. कथा संकलन तक पुलिस उस से पूछताछ कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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