Crime Story: धोखाधड़ी- फ्रैंडशिप क्लब सैक्स और ठगी का धंधा

लेखक- बृहस्पति कुमार पांडेय

इन इश्तिहारों में बिना पता लिखे कुछ मोबाइल नंबर भी दिए होते हैं जिन में कुछ घंटों में ही हजारों रुपए कमाने के दावे भी किए जाते हैं.

मैं ने भी इस तरह के तमाम इश्तिहार कई बार अखबारों में देखे हैं, लेकिन एक दिन मेरी नजर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के रेलवे स्टेशन रोड के कुछ मकानों पर चिपके पोस्टरों पर पड़ी. उन पोस्टरों पर मेरा ध्यान इसलिए चला गया क्योंकि उन में भी अखबारों में छपने वाले फ्रैंडशिप क्लब जैसा ही कुछ लिखा था.

मैं ने जब नजदीक जा कर उन पोस्टरों को देखा तो उन में ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ के बारे में लिखा था और उन में उन बेरोजगार नौजवानों को रिझाने वाली कुछ लाइनें भी लिखी थीं जो बिना कुछ किएधरे अमीर बनने के सपने देखते हैं.

पोस्टरों में कुछ इस तरह से लिखा था कि हाई प्रोफाइल लड़कियों के साथ दोस्ती और मीटिंग कर के कुछ ही घंटों में कमाएं 1,500 से ले कर 3,500 रुपए रोजाना.

मैं ने इस क्लब की असलियत जानने के लिए अपने मोबाइल फोन का काल रिकौर्डर औन कर उन में से एक नंबर पर फोन मिला दिया. कुछ देर घंटी बजने के बाद जब उधर से फोन उठा तो एक मर्दाना आवाज आई और बोला गया कि ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ में आप का स्वागत है. बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?

मैं ने उस शख्स से कहा कि मैं ने उस के पोस्टर में से यह नंबर देख कर उसे फोन किया है और मैं भी हाई प्रोफाइल लड़कियों से दोस्ती गांठ कर ढेर सारे पैसे कमाना चाहता हूं तो उधर से उस शख्स ने बड़े ही खुले शब्दों में कहा कि मुझे इस के लिए 800 रुपए जमा करा कर इस क्लब की मैंबरशिप लेनी होगी. इस के बाद मुझे एक कोड दिया जाएगा और फिर मेरे पास बड़े घरों की लड़कियों और औरतों के फोन आने शुरू हो जाएंगे.

ये वे लड़कियां और औरतें होंगी जो अकेली रहती हैं या जिन के पति बिजनैस के सिलसिले में अकसर घर से बाहर टूर पर रहते हैं या फिर वे औरतें होंगी जो विधवा हैं.

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उस आदमी ने आगे कहा कि मुझे ऐसी औरतों के फोन भी आएंगे जो एक से ज्यादा मर्दों के साथ संबंध रखती हैं. उस के बाद उधर से सैक्स से जुड़ी ऐसी बातें बताई जाने लगीं कि मेरे अंगअंग में जोश आने लगा.

मैं उस शख्स की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था और जब वह अपने क्लब के बारे में बहुतकुछ बता चुका था तो मैं ने उस से कहा कि क्या उसे फोन पर ऐसी बातें बताते हुए पुलिस में पकड़े जाने का डर नहीं है?

यह सुन कर उस शख्स ने बिना वजह पूछे कहा कि इस में जो भी नौजवान औरतें, लड़कियां या लड़के शामिल होते हैं, वे सब अपनी मरजी से आते हैं. ऐसे में पुलिस का डर किस बात का?

मैं ने उस से कहा कि उस ने इतनी सैक्सी बातें फोन पर की हैं, क्या उसे काल रिकौर्ड होने का डर नहीं है? तो उस आदमी ने जो बताया उस से मेरा चौंकना लाजिमी था, क्योंकि उस ने कहा कि उस ने ऐसा सौफ्टवेयर लगा रखा

है कि उस के मोबाइल पर होने वाली कोई भी बातचीत रिकौर्ड नहीं की जा सकती है.

इस के बाद उस आदमी ने मुझ से कहा कि वह मैंबरशिप के लिए कुछ देर में एक बैंक अकाउंट नंबर सैंड करेगा, फिर उधर से फोन कट गया.

फोन कटने के बाद मैं ने जब अपनी रिकौर्डिंग लिस्ट देखी तो सचमुच उस नंबर से हुई बातचीत का कोई भी अंश रिकौर्ड नहीं हुआ था.

मैं ने दोबारा जांचने के लिए अपने परिचित के मोबाइल पर हालचाल लेने के बहाने फोन किया और बाद में उस काल की रिकौर्डिंग चैक की, तो उस बातचीत की रिकौर्डिंग मौजूद थी.

फैल रहा कारोबार

फ्रैंडशिप के नाम पर नौजवानों को फांसने का धंधा पूरे देश में फैला हुआ है. आप किसी भी शहर में चले जाएं वहां के लोकल अखबारों से ले कर दीवारों तक पर इन के इश्तिहार मिल जाएंगे. फ्रैंडशिप क्लब का धंधा करने वालों में औरतें और मर्द दोनों शामिल हैं.

फ्रैंडशिप के नाम पर सैक्स और ठगी का धंधा करने वाले अकसर पुलिस से बचने के लिए एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाने बदलते रहते हैं, जिस से अगर कोई शिकायत भी करे तो फंसने के चांस कम हो जाएं.

इसी तरह के एक गिरोह का परदाफाश नागपुर पुलिस ने एक आदमी की शिकायत पर तब किया था, जब उसे इस गिरोह के लोगों ने सवा लाख रुपए का चूना लगा दिया था. इस के बाद पुलिस ने इस गिरोह के लोगों को दबिश डाल कर गिरफ्तार किया था.

इन गिरफ्तार लोगों में ‘निशा फ्रैंडशिप क्लब’ चलाने वाले गिरोह में मुखिया रितेश उर्फ भैरूलाल भगवानलाल, सुवर्णा मिनेश निकम, पल्लवी, विनायक पाटिल, शिल्पा समीर साखरे और निशा सचिन साठे शामिल थे. ये लोग महाराष्ट्र के ठाणे से राजस्थान तक अपना जाल फैलाए हुए थे. ये लोग सैकड़ों सिम रखते थे और जिस सिम से ये लोग ग्राहक को फांसते थे उसे ठगी के बाद बंद कर देते थे.

पुलिस गिरफ्त में आने के बाद इन के अलगअलग बैंकों में 20 खातों की जांच की गई तो उन में हर रोज बड़ेबड़े ट्रांजैक्शन सामने आने के बाद बीसियों खातों को सीज कर दिया गया.

दोस्ती के नाम पर ठगी

जो लोग इस तरह के गिरोह के चक्कर में पड़ते हैं उन से पहले क्लब की मैंबरशिप फीस के नाम पर अमूमन 1000 रुपए से ले कर 10,000 रुपए तक ऐंठ लिए जाते हैं. फिर इन से मैडिकल जांच और एचआईवी जांच के नाम पर 10,000 रुपए तक अलग से जमा कराए जाते हैं.

इन के चक्कर में फंसे नौजवान इस भरम में पैसे जमा करा देते हैं कि उन्हें तो हाई प्रोफाइल लोगों से दोस्ती के साथ ही कुछ घंटों के मजे के एवज में मोटी रकम हर रोज मिलनी ही है, पर जैसे

ही इन अकाउंट पैसे जमा करने की जानकारी दी जाती है उस के बाद क्लब के जिस मोबाइल नंबर से बात होती है, वह स्विच औफ हो जाता है.

इन क्लबों के शिकार नौजवान शर्मिंदगी के चलते अपने ठगे जाने की बात न तो परिवार वालों को बताते हैं और न ही पुलिस के पास जाते हैं, इसलिए इन क्लबों का यह धंधा फलताफूलता रहता है.

सैक्स और ब्लैकमेलिंग

फ्रैंडशिप क्लब में मैंबरशिप लेने के बाद क्लब की तरफ से एक कोड दिया जाता है. उस के बाद कुछ मोबाइल नंबर दिए जाते हैं.

मैंबरशिप लेने वाले को यह बताया जाता है कि ये नंबर उन के हैं जो नएनए लोगों के साथ बिस्तर गरम करने की चाहत रखते हैं. कुछ मामलों में तो फ्रैंडशिप क्लब की मैंबरशिप लेने वाले लोगों को आपस में ही फ्रैंड बना कर उन्हें सैक्स करने के लिए उकसाया जाता है और फिर जब बात संबंध बनने तक पहुंचती है तो ये लोग सैक्स के लिए महफूज जगह के नाम पर कमरे भी मुहैया कराते हैं, जहां इन के जाल में फंसे लोगों के सैक्स के दौरान के वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है.

कई बार इस गिरोह की औरतें सैक्स के शौकीन लोगों से किसी अमीर घर की औरत बन कर बातें करती हैं. जब मैंबर को पूरी तरह से यकीन हो जाता है तो वह उन के साथ बिस्तर गरम करने की इच्छा रख देता है.

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गिरोह की लड़कियां इन लोगों को ऐसी जगह पर बुलाती हैं जहां इन के साथ आसानी से वीडियो बनाया जा सके. इस के बाद ऐसे वीडियो के जरीए इस गिरोह के लोग मैंबर को लूटने लगते हैं. जब तक लुटने वाले लोगों को बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

कोड के जरीए धंधा

ये लोग अपने इश्तिहार के जरीए बड़े घरों की औरतों को फांसते हैं और फिर मैंबर बने नौजवानों को दिए गए कोड से उन औरतों से बात कराते हैं. फिर तय रकम में से 70 से 80 फीसदी कमीशन इस गिरोह वाले खुद ले लेते हैं, बाकी पैसा उस नौजवान को मिल जाता है.

लेकिन इस तरह के क्लबों के चक्कर में पड़ कर अकसर बड़े घरों की औरतें अपने पतियों की गाढ़ी कमाई तो लुटाती ही हैं साथ ही अपनी इज्जत भी गंवाती हैं. जो नौजवान

इन क्लबों के चक्कर में पड़ते हैं वे अपना कैरियर और अपने मांबाप के सपनों को दांव पर लगा देते हैं.

इन क्लबों की शिकार बड़े घरों की औरतें ज्यादा होती है, क्योंकि खुला जीवन जीने की चाहत इन्हें इस तरह से अपनी गिरफ्त में लेती है कि जल्दी ये उस से उबर नहीं पाती हैं. जो औरतें हिम्मत दिखाती हैं उन के चलते कई बार ऐसे गिरोह के लोग जेल भी गए हैं.

इस के साथसाथ आम लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा खासकर नौजवान तबके को, क्योंकि ऐसे क्लब उन की दुखती रग पर हाथ रखते हैं. वे जानते हैं कि नौजवान पीढ़ी को सैक्स के नाम पर भरमाया जा सकता है. मीठीमीठी बातों से उस से पैसे ऐंठे जा सकते हैं.

क्या कहते हैं जानकार

फ्रैंडशिप क्लबों द्वारा की जाने वाली ठगी से बचने के मामले को ले कर सामाजिक कार्यकर्ता विशाल पांडेय का कहना है कि आज के नौजवान शौर्टकट से अमीर बनने के सपने देखते हैं. साथ ही नईनई औरतों के साथ हमबिस्तरी की चाहत रखने वाले भी इस तरह के गिरोहों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं, जिस के चलते ये नौजवान लंबे समय तक ब्लैकमेलिंग और ठगी के शिकार होते हैं.

शौर्टकट से पैसे कमाने के ऐसे सपने देखना सलाखों के पीछे पहुंचने की वजह बन जाता है, इसलिए अपनी काबिलीयत से पैसे कमाएं और अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदार रहें, नहीं तो इज्जत तो जाएगी ही, यह लत आप को कंगाल भी कर देगी.

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सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका उर्मिला वर्मा का कहना है कि अगर आप फ्रैंडशिप क्लबों के जाल में गलती से भी फंस जाएं तो हिम्मत दिखाएं और अपने परिवार वालों के साथ ही पुलिस में रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएं. इस से दूसरे लोग ऐसे गिरोहों के चक्कर में पड़ने से बचेंगे, साथ ही इन का परदाफाश होने से लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी.

Best of Crime Stories : 5 सालों का रहस्या

लेखक- हरमिंदर खोजी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

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बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

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थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक हत्या ऐसी भी

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमीखबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था. मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.  मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

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अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

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2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया.

मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था.

न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तोंयारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौनकौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरनेमारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गालीगलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरीशराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

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आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा मंजूरे, ‘‘मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलगअलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

 

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

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उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेनादेना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

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रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई. मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है.

मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सचसच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारीबारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सचसच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यारमोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

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कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

 

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

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मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था.

कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.  द्य

 

संबंधों की टेढ़ी लकीर

उत्तर प्रदेश का शहर फिरोजाबाद चूड़ी उद्योग के रूप में पूरे विश्व में जाना जाता है. इस शहर के
लाइनपार इलाके की लेबर कालोनी में 42 वर्षीय दिलीप शर्मा अपनी पत्नी आरती और बेटी के साथ रहता था. निहायत सीधासादा और मेहनती दिलीप एक चूड़ी कारखाने में काम करता था. इस से उस के परिवार की ठीक से गुजरबसर हो जाती थी.

30 दिसंबर, 2018 को वह रोजाना की तरह खाना खाने के बाद रात करीब 10 बजे टहलने के लिए घर से निकला. पति के जाते समय आरती ने कहा कि सर्दी हो रही है जल्दी घर आ जाना. इस बीच आरती लिहाफ ओढ़ कर बिस्तर पर लेट गई. लिहाफ की गर्माहट में उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.
अचानक आरती की आंखें खुलीं तो देखा पति बिस्तर पर नहीं है. दिलीप को टहलने गए हुए काफी देर हो चुकी थी. उस के घर न लौटने पर उसे चिंता हुई. उस ने फोन कर यह बात अपने जेठ अनिल शर्मा को बता दी. अनिल भाजपा का यूथ अध्यक्ष था. वह शहर की ही नई बस्ती में रहता था.

देर रात तक दिलीप के घर नहीं लौटने पर भाई व उस के परिवार के लोग चिंतित हो गए. उन्होंने मिल कर रात में ही दिलीप की तलाश शुरू कर दी. रात ढाई बजे तक वे उसे इधरउधर खोजते रहे. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

अगले दिन सुबह लगभग साढे़ 7 बजे कुछ लोगों ने लेबर कालोनी के पीछे रेलवे लाइन के किनारे एक युवक की खून से सनी लाश पड़ी देखी. उन्होंने इस की सूचना जीआरपी और थाना लाइनपार को दे दी. सूचना मिलने पर फिरोजाबाद रेलवे स्टेशन से जीआरपी पुलिस वहां पहुंच गई. कुछ देर बाद थाना लाइन पार के थानाप्रभारी संजय सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने रेलवे लाइनों के पास पड़ी युवक की लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर किसी नुकीले हथियार के घाव मिले. हत्यारों ने उस के गुप्तांग के साथ हाथ की उंगली भी काट दी थी. पुलिस ने जब मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब से उस का आधार कार्ड मिला. इस से उस की पहचान दिलीप शर्मा पुत्र रामप्रकाश शर्मा, निवासी लेबर कालोनी फिरोजाबाद के रूप में हुई.

पुलिस ने यह सूचना दिलीप के घर भिजवाई तो रोतेबिलखते उस के घर वाले लाइन किनारे पहुंच गए. घर वालों ने उस की शिनाख्त दिलीप शर्मा के रूप में की. चूंकि मामला भाजपा कार्यकर्ता के भाई की हत्या का था. इसलिए स्थानीय विधायक से ले कर पार्टी के कई पदाधिकारी वहां पहुंच गए.

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सूचना मिलने पर एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ (सदर) अजय सिंह चौहान भी वहां आ गए. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया.

पुलिस ने जब मृतक के घर वालों से बातचीत की तो भाई ललित शर्मा ने पुरानी रंजिश के चलते 5 लोगों राजू, पवन, हरिओम निवासी नई बस्ती, फिरोजाबाद, डब्बू उर्फ दीनदयाल और गोपाल निवासी बीमलपुर, जनपद इटावा पर शक जताया. पुलिस ने ललित शर्मा की तरफ से इन 5 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 148, 149, 302 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. ललित शर्मा ने भाई की हत्या की वजह रंजिश बताई थी. जबकि लाश का मुआयना कर पुलिस को मामला अवैध संबंधों का लग रहा था. नामजद आरोपियों के बारे में कोई सूचना नहीं मिल रही थी, इसलिए पुलिस ने दूसरे एंगल से केस की जांच शुरू कर दी.

सदर विधायक मनीष असीजा ने केस का जल्द खुलासा करने के लिए एसएसपी सचिंद्र पटेल से भी मुलाकात की. दिलीप की हत्या का मामला पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गया था. एसएसपी ने केस खोलने के लिए तेजतर्रार पुलिस कर्मियों के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. एसएसपी सचिंद्र पटेल खुद इस केस का सुपरविजन कर रहे थे.

पुलिस ने दिलीप की पत्नी आरती के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स से एक नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. जब पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो हैरानी और बढ़ गई.

जांच में वह नंबर जिला मैनपुरी के गांव रामपुरा कुर्रा निवासी गौरव का निकला. पुलिस ने गौरव की जांच की तो जानकारी मिली कि गौरव आरती की मैनपुरी में रहने वाली बुआ की ननद का बेटा है, जो रिश्ते में आरती का भाई लगता है.

पुलिस को यह भी पता चला कि गौरव का दिलीप के घर काफी आनाजाना था. लेकिन रिश्ता भाईबहन का होने के चलते पुलिस पूरी तरह संतुष्ट होना चाहती थी. इस के लिए पुलिस ने आरती की निगरानी बढ़ा दी. साथ ही वह आरती और गौरव की गहराई से जांच करने लगी. जांच में पुलिस को पता चला कि मृतक दिलीप की पत्नी आरती के गौरव से अवैध संबंध थे.

थानाप्रभारी (लाइनपार) संजय सिंह को 15 जनवरी, 2019 की सुबह मुखबिर से सूचना मिली कि आरती और उस का प्रेमी गौरव कहीं भागने की फिराक में रेलवे स्टेशन पर खड़े हैं.

इस सूचना पर थानाप्रभारी संजय सिंह कांस्टेबल प्रदीप कुमार, शिवप्रकाश व महिला कांस्टेबल प्रभादेवी को ले कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए. मुखबिर की सूचना सही निकली. आरती व गौरव रेलवे स्टेशन पर बुकिंग विंडो के पास मिल गए.

पुलिस दोनों को ले कर थाने आ गई. थानाप्रभारी ने आरती व गौरव से पूछताछ की. दोनों पुलिस को कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे. चूंकि पुलिस के पास इन के खिलाफ ठोस सबूत थे, इसलिए उन से सख्ती से पूछताछ की. साथ ही उन्हें कालडिटेल्स भी दिखाई.

अंतत: गौरव ने स्वीकार कर लिया कि उस के आरती से अवैध संबंध हैं. दिलीप की हत्या क्यों की गई, इस बारे में दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने हत्या की जो कहानी बताई इस प्रकार निकली—

करीब 9 साल पहले दिलीप शर्मा की शादी फिरोजाबाद जनपद के कस्बा आसफावाद की रहने वाली आरती के साथ हुई थी. दिलीप और आरती की उम्र में काफी अंतर था. दूसरी ओर शादी से पहले से ही गौरव के साथ आरती के शारीरिक संबंध बन गए थे, जो शादी के बाद भी बने रहे.

आरती ने पति को बता रखा था कि गौरव उस का भाई है, इस के बावजूद दिलीप यही सोचता था कि आखिर वह उस के घर डेरा क्यों डाले रहता है. उस ने बातों ही बातों में कई बार गौरव को टोका भी था पर गौरव पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा था.

पति के ज्यादा टोकाटाकी करने पर आरती समझ गई कि अब दिलीप को उन पर शक हो गया है. इस बात को ले कर दिलीप ने एक दिन घर में काफी हंगामा भी किया.

तब आरती ने अपनी सफाई में कहा, ‘‘यह मेरा भाई है, कभीकभी घर आ जाता है तो इस में गलत क्या है?’’ इस पर दिलीप शांत हो गया. उस ने सोचा कि आरती जो कह रही है हो सकता है सच हो और वह जो सोच रहा है, वह गलत हो.

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अब आरती कोई ऐसा उपाय खोजने लगी कि किसी न किसी बहाने से गौरव वहां रहता रहे. लिहाजा उस ने एक दिन गौरव से कहा, ‘‘देखो गौरव तुम्हारे बिना मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता. ऐसा करो कि तुम अपने जीजा से कह कर यहीं कोई नौकरी कर लो. इस से हमें मिलने में भी आसानी रहेगी.’’

एक दिन बातोंबातों में गौरव ने दिलीप से कह दिया, ‘‘जीजाजी, मेरे लायक कोई काम हो तो दिलवा दो.’’
दिलीप ने कहा कि वह कोशिश करेगा. दिलीप के सामने ही गौरव कई बार आरती से हंसीमजाक करता था. भाईबहन होने के नाते दिलीप ने इस पर ध्यान नहीं दिया.

लेकिन एक दिन किसी काम से दिलीप अचानक घर आ गया. उस समय गौरव और आरती दुनिया से बेखबर एकदूसरे में समाए हुए थे. उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख कर दिलीप सन्न रह गया.

उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि भाईबहन के बीच ऐसा नाजायज रिश्ता भी होगा. उस का खून खौल उठा. वह चीखा तो दोनों के होश उड़ गए. इस बीच गौरव तेजी से वहां से भाग गया.

दिलीप ने गुस्से में पत्नी की पिटाई कर दी और हिदायत दी कि यदि उस ने गौरव को दोबारा घर में देख लिया तो परिणाम अच्छा नहीं होगा. आरती ने माफी मांग कर बात खत्म कर दी.

अब दिलीप पत्नी पर निगाह रखने लगा. वह बिना बताए कभी भी घर आ जाता था. इस से आरती परेशान हो उठी. क्योंकि अब उसे गौरव से मिलने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन पति के शहर से बाहर जाने पर आरती ने गौरव को फोन कर बुला लिया.

आरती ने गौरव को बताया, ‘‘गौरव, अब दिलीप हम लोगों को कभी मिलने नहीं देगा. लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. वह जबतब मेरी पिटाई कर देता है. अब हमें कुछ करना पड़ेगा, नहीं तो यह पीटपीट कर मेरी जान ही ले लेगा.’’

गौरव कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘बताओ, इस का उपाय क्या है?’’

‘‘करना क्या है, इसे रास्ते से हटाना पड़ेगा, नहीं तो वह हम दोनों को जुदा कर देगा.’’ आरती ने कहा.

‘‘ठीक है इस का इंतजाम कर लेंगे.’’ गौरव ने भरोसा दिया.

इस के बाद आरती और गौरव ने दिलीप को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार 30 दिसंबर, 2018 को आरती ने फोन पर गौरव को बुला लिया.

दिलीप खाना खाने के बाद करीब 10 बजे रोज की तरह टहलने के लिए निकला. योजना के अनुसार गौरव उसे वहीं मिल गया.

दिलीप गौरव से खुंदक खाए हुए था, लिहाजा उस ने दिलीप के पैर पकड़ कर उस से माफी मांग ली. दिलीप शांत हो गया. गौरव उसे अपनी बातों में उलझा कर लेबर कालोनी के पीछे रेलवे ट्रैक के पास ले गया. इस बीच योजना के अनुसार दिलीप के पीछेपीछे आरती भी वहां पहुंच गई.

मौका देखते ही गौरव ने आरती के सामने ही दिलीप पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. जान बचने के लिए दिलीप ने जब भागने की कोशिश की तो आरती ने उस के बाल पकड़ कर गिरा दिया. ट्रेनों की आवाजाही में दिलीप की चीख गुम हो गई.

हत्या के बाद घटना को दूसरा रूप देने के लिए गौरव ने उस का लिंग और हाथ की अंगुली भी काट ली. उस की लाश वहीं रेलवे लाइन के पास डालने के बाद गौरव मैनपुरी भाग गया जबकि आरती अपने घर चली गई.

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आरती और गौरव से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल छुरी और हत्या के वक्त पहने हुए दस्ताने बरामद कर लिए.उन से पूछताछ के बाद पुलिस जब उन्हें जेल ले कर जा रही थी तो आरती रोने लगी. वह बोली, ‘‘हम दोनों को जेल में साथसाथ ही रखना. हम अलग नहीं रह पाएंगे.’’
आरती ने जिस के साथ सात फेरे लिए साजिश के तहत उसे ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर मौत की नींद सुला दिया. एक सीधासादा पति अपनी पत्नी के अवैध संबंधों की भेंट चढ़ गया. आरती और गौरव ने भाईबहन के रिश्ते को कलंकित कर दिया.

साथ ही अपना बसाबसाया घर भी उजाड़ लिया. आरती के इस कृत्य से उस की बेटी को मांबाप का प्यार नहीं मिल सकेगा. फिलहाल ननिहाल वाले उसे अपने साथ ले गए.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बहन निकली भाई की कातिल

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में एक गांव है बनकट, जो थाना बेलघाट के क्षेत्र में आता है. पश्चिम बंगाल में कोयले की खदान में काम करने वाला रामसिधारे अपने परिवार के साथ बनकट गांव में रहता था.

रामसिधारे के परिवार में पिता वंशराज के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. उस की पत्नी विमला की करीब 5 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस ने अपनी बड़ी बेटी माधुरी की शादी पत्नी की मौत के कुछ दिनों बाद पड़ोस के गांव बरपरवा बाबू के रहने वाले जितेंद्र के साथ कर दी थी. रामसिधारे के कंधों पर 3 बच्चों की जिम्मेदारी बची थी.

चूंकि रामसिधारे पश्चिम बंगाल में रहता था, इसलिए बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उस के पिता वंशराज के ऊपर थी. वह ही उन की परवरिश कर रहे थे.

रामसिधारे के घर पर न रहने के बावजूद तीनों बच्चे ठीक पढ़ रहे थे. बेटा अरुण और बेटी साधना हाईस्कूल में थे और मंझली बेटी पूजा स्नातक पास कर चुकी थी. घर में रह कर वह कंपीटिशन की तैयारी कर रही थी.

बीचबीच में रामसिधारे बच्चों की कुशलक्षेम लेने घर आता रहता था, ताकि बच्चों को मां की कमी न खले. कुछ दिन बच्चों के बीच बिता कर वह फिर नौकरी पर लौट जाता था. पिता के प्यार और दुलार से बच्चों को कभी मां की कमी नहीं खली थी.

31 जनवरी, 2019 की बात है. रात 10बजे घर के सभी लोगों ने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

बच्चों के दादा वंशराज दालान में सो रहे थे, जबकि पूजा, साधना और अरुण अलगअलग कमरों में सो रहे थे.

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अगली सुबह पूजा और साधना रोजाना की तरह सुबह 6 बजे उठीं. घर का मुख्यद्वार खोल कर उन्होंने बाहर जाना चाहा तो दरवाजा नहीं खुला. किसी ने शायद बाहर से दरवाजे पर कुंडी लगा दी थी.

काफी प्रयास के बाद जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों बहनें यह सोच कर भाई अरुण के कमरे में गईं कि उस से कह कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास करेंगी.

लेकिन अरुण अपने कमरे में नहीं मिला. यह देख दोनों बहनें हैरान रह गईं कि बिना किसी को कुछ बताए इतनी सुबह वह कहां चला गया. उन्होंने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन अरुण कहीं नहीं मिला.

तब दोनों बहनें दालान में सो रहे दादा वंशराज के पास पहुंचीं, उन्हें जगा कर दोनों ने अरुण के बारे में पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही उसे बाहर जाते हुए देखा. बुजुर्ग वंशराज भी पोते के अचानक गायब होने से स्तब्ध थे.

अरुण के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से घर वाले परेशान हो गए. ऊपर से मकान का मेनगेट भी बाहर से बंद था. अंतत: साधना ने पड़ोस में रहने वाले चचेरे बाबा नंदू को फोन किया और बाहर से लगी मेनगेट की कुंडी खोलने को कहा. उस ने नंदू बाबा को यह भी बताता कि किसी ने शरारतवश कुंडी लगा दी होगी. कुछ देर में वह दरवाजे की कुंडी खोल कर अंदर आए.

उन्हें अरुण के गायब होने की बात पता चली तो वह भी परेशान हो गए. घर के सभी लोग अरुण को गांव में ढूंढने लगे. कुछ ही देर में पूरे गांव में अरुण के गायब होने की बात फैल गई. यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि घर में सोया अरुण आखिर गायब कैसे हो गया?

अरुण की तलाश में दादा वंशराज, नंदू, पूजा और साधना अलगअलग दिशाओं में निकल गए. इस से पहले पूजा और साधना ने अपने रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को फोन कर के अरुण का पता लगा लिया था.

बहरहाल, अरुण की तलाश करतेकरते 3 घंटे बीत गए. उस के न मिलने से सभी परेशान थे. उसे ले कर उन के मन में बुरे खयाल आ रहे थे. पता नहीं नंदू के मन में क्या आया कि वह अपने आलू के खेत की तरफ मुड़ गए. आलू का वह खेत वंशराज के घर से मात्र 50 मीटर दूर था.

नंदू आलू के खेत में पहुंचे तो उन्हें खेत के बीचोबीच कोई औंधे मुंह पड़ा दिखा. जब वह उस के नजदीक पहुंचे और ध्यान से देखा तो चौंके. क्योंकि वह अरुण का शव था. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी थी. नंदू दौड़ेदौड़े गांव पहुंचे और यह जानकारी बड़े भाई वंशराज को दी.

अरुण की हत्या की बात सुन कर घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वंशराज और उन की दोनों पौत्रियां पूजा और साधना रोतेबिलखते आलू के खेत में पहुंचीं, जहां अरुण की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. अरुण की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले भी मौके पर पहुंच गए. इसी बीच किसी ने इस घटना की सूचना बेलघाट थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने सीओ (गोला) सतीशचंद्र शुक्ला और एसपी (दक्षिण) विपुल कुमार श्रीवास्तव को भी सूचना दे दी. सूचना मिलने पर दोनों पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने घटनास्थल की जांच की तो पता चला हत्यारों ने अरुण की हत्या किसी तेज धारदार हथियार से गला रेत कर की थी. उस का कसरती बदन देख कर लगता था कि हत्यारों की संख्या 2 से 3 रही होगी क्योंकि वह अकेले आदमी के वश में नहीं आ सकता था. खेत में संघर्ष का कोई निशान भी नहीं मिला था. इस बात ने मामले को और भी पेचीदा बना दिया था.

पुलिस ने मौके की और गहराई से जांच की. जिस जगह पर अरुण की लाश पड़ी थी, वहां खून सूख कर काला पड़ चुका था. इस से यही अनुमान लगाया जा रहा था कि घटना को 8-10 घंटे पहले अंजाम दिया गया होगा. लाश के अलावा पुलिस को मौके पर कुछ और नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दी. मृतक अरुण की बड़ी बहन पूजा उर्फ सोनाली ने गांव के ही 5 व्यक्तियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम को नामजद तहरीर दी.

पूजा की तहरीर के आधार पर पुलिस ने अशोक मौर्या, चंद्रशेखर मौर्या, इंद्रजीत मौर्या, विनोद मौर्या और दशरथ मौर्या के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 149, 302, 506, 120बी और 3(1) एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि यह मामला एससीएसटी एक्ट से जुड़ा था, इसलिए जांच की जिम्मेदारी सीओ सतीशचंद्र शुक्ला को सौंप दी गई. सीओ साहब ने सब से पहले वादी पूजा उर्फ सोनाली से अरुण की हत्या के संबंध में जानकारी ली.

पूजा ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले अरुण को दशरथ मौर्या ने जेल भिजवाया था. वह उस की बेटी कंचन से प्यार करता था. कंचन भी उस से प्रेम करती थी. एक दिन दोनों ही घर छोड़ कर भाग गए थे.

दशरथ मौर्या ने नाबालिग बेटी कंचन को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट बेलघाट थाने में दर्ज करा दी थी. पुलिस ने कोशिश कर के अरुण और कंचन को ढूंढ निकाला और अरुण को जेल भेज दिया था. जुलाई, 2018 में वह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आया था.

भाई के जेल से आने के बाद से ही ये लोग उस की जान के पीछे पड़े थे. पूजा ने उन्हें बताया कि दशरथ मौर्या ने अपने चारों बेटों अशोक, चंद्रशेखर, इंद्रजीत और विनोद के साथ मिल कर अरुण की हत्या कर दी है.

सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने पूजा के बयान की पड़ताल की तो उस की बात सच निकली. इस के बाद सतीशचंद्र पुलिस टीम के साथ दशरथ मौर्या के घर पहुंच गए. मौके से अशोक, चंद्रशेखर और इंद्रजीत दबोच लिए गए. विनोद और उस का पिता दशरथ पुलिस के पहुंचने से पहले फरार हो गए थे. तीनों को हिरासत में ले कर वह थाने आ गए.

सीओ शुक्ला ने हिरासत में लिए गए अशोक मौर्या से दशरथ और विनोद के ठिकाने के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, अरुण की हत्या हम ने नहीं की और न ही मेरे पिता फरार हैं. वह तो छोटे भाई विनोद के साथ घटना से 2 दिन पहले कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज चले गए थे.’’

अशोक मौर्या ने आगे बताया, ‘‘साहब, अरुण पिछले साल मेरी बहन कंचन को बहलाफुसला कर घर से भगा ले गया था. उस के खिलाफ बेलघाट थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जुलाई में अरुण जमानत पर जेल से आ गया. उस के बाद से हम खुद ही कंचन की निगरानी करते रहे. फिर दोबारा वह कंचन से कभी नहीं मिला और हम ने भी यह बात भुला दी. फिर हम उस की हत्या भला क्यों करेंगे?’’

अशोक के बयान ने सीओ शुक्ला को सोचने पर विवश कर दिया था. इधर 2 फरवरी को अरुण की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस की हत्या पहले गला दबा कर की गई. फिर किसी तेज धार हथियार से उस का गला रेता गया था.

उधर जांच में यह बात भी सामने आ गई कि दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद मौर्या वाकई घटना से 2 दिन पहले यानी 29 जनवरी को कुंभ स्नान करने प्रयागराज गए थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पढ़ने और घटना की पड़ताल करने के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला के गले से यह बात नीचे नहीं उतरी कि जब आरोपी दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद 2 दिन पहले ही घटनास्थल से 200 किलोमीटर दूर प्रयागराज चले गए थे तो वह भला हत्या कैसे कर सकते थे? इस में जरूर कोई बड़ा पेंच था.

इस के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने एक बार फिर से पूजा को थाने बुला कर पूछताछ की और जांचपड़ताल के लिए उस का मोबाइल फोन मांगा. सीओ शुक्ला के फोन मांगने पर पूजा सकपका गई और फोन देने में आनाकानी करने लगी.

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पूजा की यह हरकत सतीश शुक्ला को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने पूछताछ कर के उसे घर भेज दिया. इस के बाद उन्होंने पूजा के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेलस की जांच में पता चला कि उस के फोन पर घटना वाली रात में 11 बज कर 58 मिनट तक बातचीत हुई थी. फिर उसी नंबर पर सुबह करीब सवा 7 बजे भी बात हुई थी.

पूजा की जिस फोन नंबर पर बात हुई थी, पुलिस ने उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. वह नंबर बेलघाट थाने के बरपरवा बाबू निवासी धर्मेंद्र कुमार का निकला.

धर्मेंद्र मृतक अरुण के सगे बहनोई का छोटा भाई था. पुलिस ने धर्मेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई. धर्मेंद्र कोई पेशेवर अपराधी नहीं था, इसलिए उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने पुलिस को बताया कि अरुण की हत्या उस ने अपने प्रेमिका पूजा उर्फ सोनाली के साथ मिल कर की थी. धर्मेंद्र के बयान के बाद पुलिस उसे जीप में बैठा कर पूजा को गिरफ्तार करने बनकट गांव पहुंची.
दरवाजे पर पुलिस को आया देख पूजा के दादा वंशराज ने पुलिस से अरुण के हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो पुलिस ने उन्हें भरोसा दिया कि पुलिस अपना काम कर रही है. हत्यारे जल्द ही सलाखों के पीछे होंगे. फिर उन्होंने उन से पूजा के बारे में पूछताछ की. पूजा उस समय घर में ही थी.

पुलिस के वहां आने की जानकारी होते ही पूजा भी कमरे से बाहर निकल आई. तभी महिला कांस्टेबल ने पूजा को जीप में बैठा लिया. यह देख कर वंशराज हैरान रह गए. वह भी नहीं समझ पाए कि पुलिस पूजा को अपने साथ क्यों और कहां ले जा रही है.

लेकिन जैसे ही पूजा की नजरें जीप में बैठे युवक पर पड़ीं तो वह चौंक गई. क्योंकि वह उस का ही प्रेमी था. अब पूजा को यह समझते देर नहीं लगी कि उस की रची हुई कहानी से परदा उठ चुका है. पुलिस अरुण के कातिलों तक पहुंच चुकी थी.

पुलिस ने थाने में पूजा और धर्मेंद्र को आमनेसामने बैठा कर अरुण की हत्या के बारे में पूछताछ की तो पूजा ने खुद पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उस ने प्रेमी धर्मेंद्र के साथ मिल कर अपने एकलौते भाई को मार डाला. पूजा के बयान से उस के भाई अरुण की रूह कंपाने वाली जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली –

21 वर्षीय पूजा थी तो इकहरे बदन और साधारण शक्लसूरत की, लेकिन उस के नैननक्श तीखे थे. पूजा के पिता पश्चिम बंगाल में नौकरी करते थे. दादा वंशराज ही बच्चों की देखभाल करते थे. पूजा की बड़ी बहन माधुरी को शादी बनकट से थोड़ी दूर बरपरवा बाबू के जितेंद्र के साथ 5 साल पहले हुई थी.

जितेंद्र सीआरपीएफ में नौकरी करता था. जितेंद्र से छोटे 4 भाई और थे. इन में तीसरे नंबर का भाई धर्मेंद्र था. ग्रैजुएशन करने के बाद धर्मेंद्र ने पुलिस में भरती होने की तैयारी शुरू कर दी थी. पिता पंजाब में काम करते हैं.

बड़े भाई की ससुराल आतेजाते 4 साल पहले धर्मेंद्र और पूजा के बीच नजदीकी बढ़ गई थी. धर्मेंद्र पूजा की खूबसूरती पर मर मिटा था. चूंकि दोनों के बीच रिश्ता भी मजाक का था, इसलिए मजाकमजाक में वह खूबसूरत साली पूजा को छेड़ता रहता था. इसी छेड़छाड़ के दौरान दोनों में कब प्यार के अंकुर फूटे, न पूजा ही जान सकी और न ही धर्मेंद्र.

पूजा से प्यार होने के बाद धर्मेंद्र का भाई की ससुराल में आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया था. पूजा के गांव के बगल वाले गांव में धर्मेंद्र की ननिहाल थी. वह जब भी अपनी ननिहाल आता तो पूजा से मिलने जरूर आता था. धर्मेंद्र को देखते ही पूजा का चेहरा खुशी से खिल उठता था. उसे देख कर वह भी खुशी से झूम उठता था.

पूजा और धर्मेंद्र यह जान कर बेहद खुश रहते थे कि पिछले 4 सालों से उन के प्यार पर किसी की नजर नहीं गई थी. पर शायद यह दोनों की बहुत बड़ी भूल थी. पूजा के छोटे भाई अरुण को बहन और जीजा के भाई धर्मेंद्र के रिश्तों पर शक हो गया था.

वह समझ गया था कि दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है. लेकिन वह यह सोच कर चुप हो जाता था कि दोनों के बीच मजाक का रिश्ता है, ऐसा थोड़ाबहुत तो चलता ही है जबकि उन के बीच तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी.

जब से अरुण को धर्मेंद्र पर शक हुआ था, तब से वह उसे देखते ही अंदर ही अंदर जलभुन जाता था. वह नहीं चाहता था कि धर्मेंद्र वहां आए. अरुण पूजा को भी उस से दूर रहने के लिए समझाता था. उस के हावभाव से पूजा समझ गई थी कि अरुण को उस पर शक हो गया है. ये बात उस ने प्रेमी धर्मेंद्र को बता कर सतर्क कर दिया था.

उस दिन के बाद से धर्मेंद्र जब भी पूजा से मिलने भाई की ससुराल आता तो अरुण को देख कर सतर्क हो जाता और पूजा से कम ही बातचीत करता, जिस से अरुण को लगे कि उन के बीच कोई ऐसीवैसी बात नहीं है.

धर्मेंद्र और पूजा को अब अरुण प्यार के बीच का कांटा लगने लगा था. इतना ही नहीं, प्यार में अंधी पूजा धर्मेंद्र के साथ मिल कर एकलौते भाई को रास्ते से हटाने का तानाबाना बुनने लगी थी. ऐसी खतरनाक योजना बनाते हुए उसे एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि जिस भाई की कलाई पर वह राखी बांधती रही, उसी भाई की जान लेने पर क्यों तुली हुई है.

बहरहाल, बात 31 जनवरी, 2019 की है. रात 10 बजे के करीब घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सो रहे थे. उस रोज भाई की ससुराल में धर्मेंद्र भी रुका था. वह अपनी ननिहाल आया था. वहां से वह रात में पैदल ही ससुराल पहुंच गया.

धर्मेंद्र अपने साले अरुण के साथ उसी के बिस्तर पर सो रहा था. रात 2 बजे के करीब अरुण की अचानक आंखें खुल गईं. उसे किसी के खुसरफुसर की आवाजें आ रही थीं. उस ने जब अपने बिस्तर पर देखा तो चौंका क्योंकि उस के साथ सो रहा धर्मेंद्र वहां नहीं था.

दबे पांव अरुण पूजा के कमरे में पहुंच गया. कमरे के अंदर का नजारा देख का उस का खून खौल उठा. धर्मेंद्र पूजा को अपनी बांहों में भरे आलिंगनबद्ध था. यह देख कर अरुण जोर से धर्मेंद्र को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा.

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अरुण को वहां देख कर दोनों घबरा गए और डर भी गए कि कहीं घर वाले जाग गए तो उन की पोल खुल जाएगी और बदनामी होगी. तभी धर्मेंद्र ने अरुण के मुंह पर कस कर हाथ रख लिया. यह देख घबराती हुई पूजा बोली, ‘‘तुम चिल्लाओ मत, हम दोनों जल्द ही एकदूसरे से शादी करने वाले हैं.’’
यह सुन कर अरुण उस पर भड़कते हुए बोला, ‘‘मैं अपने जीते जी ऐसा नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने भाई को बातों में उलझा कर उस के गले में अपना दुपट्टा डाल दिया. फिर धर्मेंद्र और पूजा फुरती से उस दुपट्टे को पकड़ कर खींचने लगे, जिस से गला घुट कर अरुण की मौत हो गई.

अरुण मर चुका है. यह सोच कर दोनों के हाथपांव फूल गए. पूजा और धर्मेंद्र लाश को ठिकाने लगाने को ले कर परेशान थे. दोनों सोच रहे थे कि सुबह होते ही भाई की अचानक मौत हो जाने से घर वाले परेशान हो जाएंगे. बात पुलिस तक पहुंच गई तो पकड़े भी जा सकते हैं.

तभी पूजा को अरुण और दशरथ मौर्या की बेटी कंचन की प्रेम कहानी याद आ गई. खुद को बचाने के लिए पूजा ने यह कहानी बना डाली. इस कहानी से वह 2 निशाने साध रही थी.

पहला अरुण की हत्या का दोष दशरथ और उस के परिवार पर लग जाता. क्योंकि कंचन और अरुण को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद चल रहा था. दूसरा उन दोनों पर किसी को शक भी नहीं होता.
खैर, पूजा की मदद से अरुण की लाश को ठिकाने लगाने के लिए धर्मेंद्र ने उसे अपनी पीठ पर उठा लिया और घर से 50 मीटर दूर नंदू के आलू के खेत में फेंक आया. कहीं भाई जीवित तो नहीं रह गया, यह जानने के लिए पूजा ने अरुण की नब्ज टटोली, उसे शक हुआ कि उस की सांस चल रही है.

फिर क्या था, वह दौड़ीदौड़ी कमरे में आई और डिब्बे में रखा ब्लेड निकाल कर खेत पर पहुंच गई. अपने ही हाथों से उस ने भाई का गला रेत दिया. फिर दोनों घर आ गए. खून से सने हाथपैर धो कर दोनों निश्चिंत हो गए. सुबह होते ही धर्मेंद्र घर लौट गया. घर जाते समय वह पूजा के घर के मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद कर गया था ताकि लोगों को यही लगे कि दशरथ और उस के घर वालों ने उसे धोखे से बुला कर हत्या कर लाश आलू के खेत में फेंक दी.

केस का खुलासा हो जाने के बाद पुलिस ने दशरथ मौर्या और उस के बेटों के नाम रोजनामचे से हटा कर पूजा और धर्मेंद्र को आरोपी बनाते हुए उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कंचन नाम परिवर्तित है.

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दूसरी शादी जुर्म है!

पेशे से वीडियोग्राफर 32 वर्षीय सुरेंद्र सिंह दांगी मूलत: सीहोर जिले का रहने वाला था और नौकरी के सिलसिले में भोपाल के शंकराचार्य नगर में किराए के मकान में रहता था. शादीविवाह में वीडियोग्राफी से उसे खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन दूसरों की खुशियों के माहौल को कैमरे में कैद करने वाले सुरेंद्र सिंह की अपनी जिंदगी नर्क जैसी बनी हुई थी.

पहली बीवी की मौत के बाद उस ने अपने गांव दोराहा की ही एक लड़की सविता (परिवर्तित नाम) से शादी कर ली थी. जिस से 2 साल पहले उसे एक बेटी भी हुई थी. बेटी हुई तो सुरेंद्र को मानो जीने का मकसद मिल गया, लेकिन वह चाह कर भी पहली बीवी को नहीं भूल पा रहा था.

इस पर आए दिन उस की तनातनी सविता से होने लगी थी. अंतत: नाराज सविता उसे अकेला छोड़ कर बेटी को ले कर मायके चली गई तो तनाव में जी रहे सुरेंद्र ने बीते 1 अक्तूबर को फांसी का फंदा लगा कर जान दे दी.

मरने से पहले उस ने अपने सुसाइड नोट में सविता को लिखा कि मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि कभी सही और गलत का फैसला नहीं कर पाया. अब मुझे पता चला है कि तुम ने कभी मुझे प्यार ही नहीं…मैं तुम से नफरत करता हूं.

केस्सा-2

56 साल के सुरेश सिंह भोपाल के ही कमलानगर इलाके में रहते थे. वे केंद्र सरकार के एक महकमे के मुलाजिम थे. सुरेश की पहली बीवी सीमा की मौत सन 2002 में हो गई थी, जिस से उन्हें एक बेटा भी था. साल 2004 में उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी. दूसरी बीवी का नाम भी इत्तफाक से सीमा ही था.

शादी के बाद से ही इन मियांबीवी में खटपट होने लगी थी. सीमा का दुखड़ा यह था कि शौहर के पास खासी जायदाद और पैसा है, जिस में से वे उसे कुछ नहीं दे रहे. सुरेश बेटे पर ज्यादा ध्यान देते थे जो जबलपुर के एक इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था.

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सीमा आए दिन पति से पैसा और जायदाद अपने नाम कर देने की जिद पर अड़ी रहती थी. जैसे ही उसे पता चला कि सुरेश ने अपने जीपीएफ की 80 फीसदी रकम पहली बीवी से पैदा हुए बेटे के नाम कर दी है तो वह मारे गुस्से के आपा खो बैठी और भोपाल आ कर उन से झगड़ने लगी.

ऐसे ही एक झगड़े में उस ने बीती 28 अगस्त की अलसुबह शौहर की हत्या कर दी और अपना जुर्म छिपाने के लिए पड़ोसियों से यह बताया कि सुरेश की मौत सांप के काटने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि सुरेश की मौत गला दबाने से हुई थी. आखिर सीमा को अपना जुर्म स्वीकार करना पड़ा. पुलिस हिरासत में होते हुए भी वह पति पर ये आरोप लगाती रही कि उस ने उसे पाईपाई का मोहताज बना दिया था और जायदाद में से कुछ नहीं दिया था.

इन दोनों ही मामलों में मर्दों ने दूसरी शादी की थी, जोकि कतई गुनाह नहीं था. लेकिन एक बड़ी दिक्कत यह थी कि दूसरी बीवी से इन की पटरी नहीं बैठी थी. इस की एक अहम वजह यह भी थी कि ये दोनों पहली बीवी को भूल नहीं पा रहे थे और पहली बीवी की चाहत को अलग तरीके से जाहिर कर रहे थे. सुरेश अपने बेटे से लगाव के जरिए तो सुरेंद्र पहली बीवी की यादों के सहारे.

गुनाह या गलती

यह एक गलती थी, क्योंकि दूसरी बीवी कतई नहीं चाहती कि उस का शौहर उस का ध्यान न रख कर किसी भी तरह पहली बीवी को इतना याद करता रहे कि उसे अपनी अहमियत दोयम दरजे की और जिस्मानी जरूरत पूरी करने की गुडि़या सरीखी लगने लगे. ऐसे में उन्होंने वही किया, जो ज्यादा से ज्यादा वे कर सकती थीं. सविता अपने जज्बाती शौहर को अकेला छोड़ कर मायके चली गई तो सीमा ने पति का काम ही तमाम कर डाला.

ये मामले तो वे थे, जिन में शौहर की पहली बीवी मर चुकी थी पर उन मामलों में भी जिंदगी दुश्वार हो जाती है जब शौहर पहली बीवी से तलाक ले कर दूसरी शादी करता है और बारबार उस का जिक्र दूसरी बीवी से कर के उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है. ऐसे में दूसरी का कलपना कुदरती बात है.

एक दास्तां

भोपाल के ही एक सरकारी स्कूल की 44 वर्षीय टीचर निर्मला (बदला नाम) का कहना है कि उस की उम्र 40 साल की थी, जब उस ने एक सरकारी मुलाजिम नरेश (बदला नाम) से शादी की थी. नरेश का अपनी पहली बीवी से तलाक हुआ था. चूंकि निर्मला की उम्र बढ़ रही थी, इसलिए घर वालों ने तलाकशुदा से उस का रिश्ता तय कर दिया था.

बकौल निर्मला शादी के 2 साल तो ठीकठाक गुजरे. इस दौरान अकसर नरेश पहली बीवी के बारे में बताता रहता था कि वह कितनी झगड़ालू, जालिम, बेगैरत और बिगड़े चालचलन की थी, जिस के चलते उस की जिंदगी नर्क बन गई थी. शौहर की आपबीती सुन कर निर्मला को उस से हमदर्दी होती थी और वह हर मुमकिन कोशिश करती थी कि उसे इतना प्यार दे कि वह पहली बीवी और ज्यादतियों को भूल जाए.

भले ही निर्मला की शादी देर से हुई थी, पर शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के अपने अरमान और ख्वाहिशें थीं. दोनों की पगार अच्छी थी, इसलिए वह चाहती थी कि वह और नरेश अच्छी जिंदगी जिएं. प्यारमोहब्बत की बातें करें, गृहस्थी जमाएं और घूमेंफिरें. पर नरेश अकसर पहली बीवी की कहानी ले कर बैठ जाता था, जिस से कुछ ही दिनों में उसे खीझ होने लगी थी.

इस बाबत उस ने शौहर को समझाया कि जो हुआ उसे भूल जाओ, अब क्या फायदा. अब क्यों न हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करें. लेकिन नरेश अपने गुजरे कल से बाहर नहीं आ पा रहा था, जिस से आए दिन कलह होने लगी. जब भी निर्मला रोमांटिक और सैक्सी मूड में होती थी और नरेश को लुभाती थी, तब वह पहली बीवी का पुराण खोल कर बैठ जाता था, जिस से उस का मूड औफ हो जाता था.

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निर्मला ने अपनी तरफ से ईमानदारी से कोशिश की थी, लेकिन यहां नरेश गलती करते अनजाने में उस से ज्यादती कर रहा था. वह बीवी के जज्बातों, जरूरतों, ख्वाहिशों और अरमानों को समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसे में एक दिन निर्मला ने गुस्से में कह ही दिया कि जब उसे नहीं भूल पा रहे तो मुझ से शादी क्यों की.

इस से नरेश की मर्दानगी को ठेस लगी और वह यह सोचते हुए फिर मायूस रहने लगा कि पहली बीवी ने तो ज्यादती की ही थी, अब दूसरी भी उसे नहीं समझ रही. उस की नजर में दूसरी बीवी की जिम्मेदारी यह थी कि वह अपने अरमानों का गला घोंट कर उस की रामायण सुनती रहे, तभी अच्छी है.

दरअसल, होता यह है कि अकसर मर्द की दूसरी शादी उस औरत से होती है जो पहली बार शादी करती है. इसलिए उस की ख्वाहिशें अलग होती हैं जबकि इस के उलट शौहर के लिए यह नई बात नहीं होती. दूसरी बीवी उस के लिए जिस्मानी जरूरत पूरी करने का जरिया भर होती है, जिस से वह उसे समझ नहीं पाता और दूसरी शादी भी टूटने के कगार पर पहुंच जाती है. समाज और परिवार के दबाव के चलते न भी टूटे तो दोनों एक छत के नीचे अजनबी बन कर रह जाते हैं.

शौहर और बीवी दोनों यह सोच कर जिंदगी का लुत्फ नहीं उठा पाते कि शादी कर के आखिर उन्हें क्या मिला.

शौहर ध्यान दें

अगर मर्द दूसरी शादी करे तो एक अच्छी और नई जिंदगी के लिए यह जरूरी है कि वह इन बातों पर ध्यान दे-

दूसरी बीवी केवल सैक्स जरूरतें पूरी करने का जरिया नहीं है, यह सोच कर उसे ही सब कुछ माने और उस की ख्वाहिशों और अरमानों को पूरा करने की कोशिश करने की कोशिश करे.

यदि पहली बीवी के बच्चे हों तो दूसरी बीवी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, उसे उस के तमाम हक देना जरूरी है.

उस के सामने बारबार पहली बीवी की याद या जिक्र नहीं करते रहना चाहिए, इस से उसे खीझ ही होगी.

अगर पहली बीवी से औलाद है तो उसे शादी के बाद किसी भरोसेमंद रिश्तेदार के यहां या फिर हौस्टल में रखने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन बीवी उस का पूरा ध्यान रखे तो ऐसा करना जरूरी भी नहीं और इस बाबत उस का शुक्रगुजार होना चाहिए.

अगर उम्र 40 के लगभग हो जाए और बच्चे 8-10 साल के हों तो दूसरी शादी करने से बचना चाहिए. आमतौर पर दूसरी बीवी उतना ध्यान बच्चे का नहीं रख पाती, जितनी यानी सगी मां की तरह उस से उम्मीद की जाती है.

खुद को दूसरी बीवी के मुताबिक ढालने की कोशिश करना चाहिए.

उस की जरूरतों और पैसों का पूरा खयाल रखना चाहिए.

जरूरी नहीं कि हर दूसरी शादी नाकाम हो, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर नई जिंदगी को खुशनुमा बनाएं. इसलिए बीवी को भी चाहिए कि वह शौहर को इस बात का अहसास न कराए कि उस ने दूसरी शादी कर के उस पर कोई अहसान किया है.

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पहली बीवी को ले कर शौहर पर ताने मारते रहना भी अक्ल की नहीं, बल्कि कलह को न्यौता देने वाली बात है.

दूसरी बीवी को कोशिश यह करनी चाहिए कि वह धीरेधीरे पति का दिल जीते और उसे पुरानी जिंदगी से बाहर निकलने में मदद करे. बेशक यह बेहद कठिन और सब्र वाला काम है, लेकिन बिना इस के शादी कामयाब भी नहीं होती.

Best of Manohar Kahaniya: हवस की खातिर मिटा दिया सिंदूर

ढेलाणा गांव के बहुचर्चित संतोष हत्याकांड की अदालत में करीब 2 साल तक चली सुनवाई के बाद  माननीय न्यायाधीश ने 10 जुलाई, 2017 को फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर कर दिया. लिहाजा उस दिन जोधपुर के अपर सेशन न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत की अदालत दर्शकों से खचाखच भरी हुई थी.

जज साहब के अदालत में बैठने के बाद लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. जज साहब ने अपने सामने रखे फैसले के नोट्स व्यवस्थित किए तो फुसफुसाहटें थम गईं और अदालत में एक पैना सन्नाटा छा गया. सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को क्या सजा मिलेगी.

इन दोनों ने जिस तरह का अपराध किया था, उसे देखते हुए लोग चाह रहे थे कि उन्हें फांसी होनी चाहिए. आखिर रामेश्वरी और भोम सिंह ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस की सजा को जानने के लिए तमाम लोग अदालत में समय से पहले ही पहुंच गए थे. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

राजस्थान के जिला जोधपुर के लोहावट थाने में 12 फरवरी, 2015 को कुनकुनी दोपहरी में अच्छीखासी गहमागहमी थी. एडिशनल एसपी सत्येंद्रपाल सिंह एसडीएम राकेश कुमार के साथ थाने के दौरे पर थे. उस समय दोनों अधिकारी थाने में एक जरूरी मीटिंग ले रहे थे. मीटिंग इलाके में बढ़ती आपराधिक वारदातों को ले कर बुलाई गई थी.

मीटिंग में सीओ सायर सिंह तथा लोहावट के थानाप्रभारी निरंजन प्रताप सिंह भी मौजूद थे. मीटिंग के दौरान ही थाने के बाहर हो रहे शोर की ओर अचानक अधिकारियों का ध्यान गया. शोर थमने के बजाय तेज होता जा रहा था. एडिशनल एसपी ने थानाप्रभारी को शोर के बारे में पता लगाने का इशारा किया. थानाप्रभारी तुरंत यह कहते हुए बाहर की तरफ लपके, ‘‘सर, मैं पता करता हूं.’’

कुछ ही मिनटों में थानाप्रभारी बड़ी अफरातफरी में लौट आए. उन्होंने बताया, ‘‘सर, बाहर सुतारों की बस्ती के कुछ लोग हैं, जो किसी के कत्ल की रिपोर्ट लिखाने आए हैं. जब उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा तो वे बुरी तरह उखड़ गए. वे मीटिंग से पहले रिपोर्ट लिखाने की मांग कर रहे हैं.’’

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थानाप्रभारी की बात सुनने के बाद एडिशनल एसपी के चेहरे पर उत्सुकता जाग उठी. सहमति जानने के लिए उन्होंने एसडीएम राकेश कुमार की ओर देखा और फिर थानाप्रभारी से बोले, ‘‘ठीक है, उन में से 1-2 खास लोगों को बुला लाओ.’’

थानाप्रभारी भीड़ में से एक आदमी को बुला लाए. एएसपी ने उस अधेड़ शख्स को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस के बैठने के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘बताओ, क्या मामला है?’’

उस आदमी ने अपना नाम कैलाश बता कर बोला कि वह ढेलाणा गांव की सुतार बस्ती में रहता है. उस के घर के पास ही उस के चाचा संतोष का मकान है, जहां वह अपनी पत्नी रामेश्वरी और 3 बेटियों व एक बेटे के साथ रहते थे. चाची रामेश्वरी उर्फ बीबा के नाजायज संबंध गांव के ही भोम सिंह के साथ हो गए थे. इस की जानकारी संतोष को भी थी.

6 फरवरी से चाचा संतोष रहस्यमय तरीके से गायब हैं. चाचा के खून से सने अधजले कपड़े ग्रेवल रोड के पास पड़े हैं. इस से मुझे लगता है कि चाची ने भोम सिंह के साथ मिल कर चाचा की हत्या कर लाश को कहीं ठिकाने लगा दिया है.

एएसपी सत्येंद्रपाल सिंह कुछ देर तक फरियादी को इस तरह देखते रहे, जैसे उस की बातों की सच्चाई जानने का प्रयास कर रहे हों. इस के बाद एसडीएम राकेश कुमार से निगाहें मिला कर अपने मातहतों की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘चलो, ग्रेवल रोड की ओर चल कर देखते हैं.’’

लगभग आधे घंटे में ही एएसपी पूरे अमले के साथ कैलाश द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए. कैलाश ने हाथ का इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, वो देखिए, वहां पड़े हैं कपड़े.’’

एएसपी समेत पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़ कर नजदीक से देखा तो उन्हें यकीन आ गया कि कैलाश ने गलत नहीं कहा था. वास्तव में ग्रेवल रोड की ढलान पर खून सने अधजले कपड़े पड़े थे. खून आलूदा कपड़ों से जाहिर था कि मामला हत्या का न भी था तो जहमत वाला जरूर था.

पुलिस को देख कर वहां गांव वालों की भीड़ लगनी शुरू हो गई. एएसपी ने थानाप्रभारी से कपड़ों को सील करने के आदेश दिए. इस के बाद कैलाश को करीब बुला कर तसल्ली करनी चाही, ‘‘तुम पूरे यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि ये कपड़े तुम्हारे चाचा संतोष के ही हैं?’’

‘‘साहब, आप एक बार रामेश्वरी और भोम सिंह से सख्ती से पूछताछ करेंगे तो हकीकत सामने आ जाएगी. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ कैलाश ने हाथ जोड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘आप रामेश्वरी की बेटियों से पूछताछ करेंगे तो इस मामले में और ज्यादा जानकारी मिल सकती है.’’

थाने पहुंच कर एएसपी ने रामेश्वरी और उस की बेटियों मनीषा, भावना और अंकिता को थाने बुलवा लिया. पुलिस ने रामेश्वरी को अलग बिठा कर उस की बेटियों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने पिता की नृशंस हत्या किए जाने का आंखों देखा हाल बयां कर दिया. उन्होंने बताया कि पापा की हत्या मम्मी और भोम सिंह ने की थी. तीनों बहनों की बात सुन कर सभी अधिकारी सन्न रह गए.

रामेश्वरी थाने में ही बैठी थी. एएसपी के आदेश पर थानाप्रभारी भोम सिंह के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया. वह उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आए. थाने में रामेश्वरी और उस के बच्चों को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह समझ गया कि इन लोगों ने पुलिस को सब कुछ बता दिया होगा, इसलिए उस ने पुलिस पूछताछ में सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि उसी ने तलवार से काट कर संतोष की हत्या की थी. भोम सिंह से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

संतोष कुमार लकड़ी के इमारती काम का हुनरमंद कारीगर था. इस छोटी सी ढाणी में या आसपास उसे उस के हुनर के अनुरूप मजदूरी नहीं मिल पाती थी, इसलिए 2 साल पहले वह एक जानकार के बुलाने पर मुंबई चला गया था, जहां उसे अच्छाखासा काम मिल गया था.

संतोष के परिवार में पत्नी रामेश्वरी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. बेटा सब से छोटा था, जबकि बड़ी बेटी मनीषा 13 साल की है, भावना 10 साल की और अंकिता 8 साल की. संतोष काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था.

इसी दौरान गांव के ही 28 साल के भोम सिंह के साथ 50 साल की रामेश्वरी का चक्कर चल गया. उस का रामेश्वरी के यहां आनाजाना बढ़ गया. भोम सिंह एक आवारा युवक था, इसलिए रामेश्वरी के ससुराल वालों ने उस के बारबार घर आने पर आपत्ति जताई. मोहल्ले के लोग भी तरहतरह की बातें करने लगे.

डर की वजह से कोई भी सीधे भोम सिंह से कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था. संतोष कुमार जब मुंबई से लौटा, तब उसे लोगों के द्वारा पत्नी के कदम बहक जाने की जानकारी मिली. नतीजा यह हुआ कि संतोष ने रामेश्वरी की जम कर खबर ली.

इत्तफाक से भोम सिंह एक दिन ऐसे वक्त में रामेश्वरी से मिलने उस के घर आ टपका, जब घर में संतोष मौजूद था. संतोष तो पहले ही उस से खार खाए बैठा था. उस ने भोम सिंह को बुरी तरह आड़े हाथों लिया और उसे चेतावनी दे दी कि आइंदा वह इस घर की ओर रुख करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

अच्छीखासी लानतमलामत होने के बावजूद भी भोम सिंह ने उस के घर आना न छोड़ा और न ही रामेश्वरी ने उसे घर आने से मना किया. संतोष की मजबूरी थी कि वह ज्यादा दिन छुट्टी नहीं ले सकता था और मुंबई में रिहायशी दिक्कत के कारण परिवार को साथ नहीं ले जा सकता था. लिहाजा उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे.

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एक बार संतोष ने पत्नी और भोम सिंह को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन भोम सिंह फुरती से वहां से भाग गया. जातेजाते वह कह गया कि वह इस बेइज्जती का बदला ले कर रहेगा.

फरवरी, 2015 में संतोष मुंबई से घर लौटा. उस के आने के बाद रामेश्वरी की इश्क की उड़ान में व्यवधान पैदा हो गया. रास्ते में रोड़ा बने पति से छुटकारा पाने के बारे में उस ने प्रेमी से बात की. फिर दोनों ने संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन्होंने तय कर लिया कि इस बार वे संतोष को ठिकाने लगा कर ही रहेंगे.

योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2015 की आधी रात को भोम सिंह छिपतेछिपाते संतोष के घर पहुंच गया. उस समय संतोष गहरी नींद में सो रहा था, जबकि रामेश्वरी प्रेमी के आने के इंतजार में जाग रही थी. उसी समय भोम सिंह ने सोते संतोष के ऊपर तलवार से वार कर दिया.

संतोष की मर्मांतक चीख सुन कर तीनों बेटियां हड़बड़ा कर उठ बैठीं. वे भाग की भीतरी चौक में पहुंचीं और जो भयानक नजारा देखा तो उन्हें जैसे काठ मार गया. भोम सिंह उन के पिता पर तलवार से वार कर रहा था और वह गिरतेपड़ते छोड़ देने की मिन्नतें कर रहे थे. लेकिन उस शैतान का दिल नहीं पसीजा.

रामेश्वरी पास में खड़ी सब कुछ देख रही थी. मनीषा ने पिता को बचाने की कोशिश की तो भोम सिंह ने धमका कर उसे परे धकेल दिया और कहा कि अगर किसी को भी बताया तो तीनों को तलवार से काट देगा.

संतोष की हत्या के बाद भोम सिंह ने उस के कपड़े उतार दिए और लाश एक पौलीथिन में लपेट कर बोरी में भर दी. बाद में उस बोरी को एक ड्रम में डाल कर कमरे में रख दी.

इस के बाद भोम सिंह चला गया. अगले दिन रात को वह बैलगाड़ी ले कर आया, तब रामेश्वरी और भोम सिंह ने मिल कर ड्रम को गाड़ी में डाला. वे लाश को शिवपुरी रोड पर घने जंगल में दफन कर आए. रामेश्वरी ने घर लौटने के बाद रात को पति के खून सने कपड़े चूल्हे में डाल कर जलाने की कोशिश की, लेकिन कपड़े खून से गीले होने के कारण पूरी तरह से जल नहीं पाए. फिर 11 फरवरी की रात को रामेश्वरी अधजले कपड़ों को ग्रेवल रोड पर फेंक आई.

बाद में वह शोर मचाने लगी कि मेरे भरतार (पति) के खून सने कपड़े ग्रेवल रोड पर पड़े हैं, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा है. उस की चीखपुकार सुन कर अड़ोसीपड़ोसी भी आ गए. उसी दौरान संतोष का भतीजा कैलाश भी आ गया. उस ने ग्रेवल रोड पर चाचा के खून सने अधजले कपड़े देखे तो उसे शक हो गया.

इस से पहले कैलाश व अन्य पड़ोसियों को संतोष कई दिनों तक दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों ने भी रामेश्वरी से पूछा. पर रामेश्वरी ने यह कह कर टाल दिया कि यहीं कहीं होंगे. पर उस के जवाब से कोई संतुष्ट नहीं था. बच्चों ने बताया कि डर की वजह से उन्होंने भी मुंह नहीं खोला.

भोम सिंह और रामेश्वरी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर संतोष की लाश और तलवार बरामद कर ली. पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर दोनों अभियुक्तों के खिलाफ भादंवि की धारा 450, 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया.

पुलिस ने फोरैंसिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट व अन्य साक्ष्यों के अलावा निर्धारित समय में आरोपपत्र तैयार कर कोर्ट में पेश कर दिया. करीब 2 सालों तक अदालत में केस की सुनवाई चली. तमाम साक्ष्य पेश करने के साथ गवाह भी पेश हुए. 10 जुलाई, 2017 को न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत ने केस का फैसला सुनाने का दिन निश्चित किया.

सजा सुनाने के पहले माननीय न्यायाधीश नरेंद्र सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्यों, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं बरामदगियों से इस घटना की कड़ी से कड़ी जोड़ने में सफल रहा है. इसी प्रकार घटना से ताल्लुक रखती फोरैंसिक रिपोर्ट में मकतूल की पत्नी अभियुक्ता रामेश्वरी के कपड़ों पर पाए गए खून के छींटे भी मकतूल संतोष कुमार के खून से मिलते पाए गए.

ऐसी स्थिति में अभियुक्तों का बचाव संभव नहीं है. एक पल रुकते हुए विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मौकाएवारदात पर मौजूद मकतूल की तीनों बेटियां अंकिता, भावना और मनीषा प्रत्यक्षदर्शी थीं.

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‘‘अंकिता और भावना ने अभियोजन पक्ष की कहानी की पूरी तस्दीक की है, इसलिए बचाव पक्ष की इस दलील पर घटना को झूठा नहीं माना जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने मनीषा को पेश नहीं किया. लड़कियां मुलजिम भोम सिंह की इस धमकी से बुरी तरह डरी हुई थीं. उन्होंने पुलिस के आने के बाद ही मुंह खोला.’’

विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कोर्ट इस सच्चाई से वाकिफ है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मकतूल की मौत की वजह सिर तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर घातक चोटें आना बताया गया है. वारदात में इस्तेमाल की गई तलवार की बरामदगी भी मुलजिम के कब्जे से होना उस के आपराधिक षडयंत्र को पुख्ता करती है.

‘‘हालांकि यह मामला विरल से विरलतम की श्रेणी में नहीं आता, किंतु ऐसे गंभीर अपराध की दोषसिद्धि में अपराधियों को कोई रियायत देना उचित नहीं है. इसलिए तमाम सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर अदालत मृतक की पत्नी रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.’’

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने दोनों मुजरिमों को अपनी कस्टडी में ले लिया. अदालत में मौजूद लोगों और मृतक की बेटियों ने इस सजा पर तसल्ली व्यक्त की.

जब बीच रास्ते दुल्हन को लूटा

40 साल पहले सन 1979 में बौलीवुड की एक हौरर थ्रिलर फिल्म आई थी ‘जानी दुश्मन’. निर्देशक राजकुमार कोहली की इस फिल्म में उस जमाने के फिल्मी सितारों की पूरी फौज थी. ‘जानी दुश्मन’ में संजीव कुमार, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, विनोद मेहरा, अमरीश पुरी और प्रेमनाथ के अलावा 4 हीरोइनें थीं रीना राय, रेखा, नीतू सिंह और योगिता बाली.

इस सुपरहिट फिल्म में सस्पेंस भी था और भयावह दृश्य भी. कहानी के अनुसार फिल्म में ज्वाला प्रसाद का करेक्टर प्ले करने वाले रजा मुराद ने अपने सपनों की शहजादी से शादी की थी. लेकिन उस दुल्हन ने सुहागरात को ही ज्वाला प्रसाद को जहर मिला दूध पिला कर उस की जान ले ली.

मृत्यु के बाद ज्वाला प्रसाद ने दैत्य का रूप धारण कर लिया. उसे लाल जोड़े में सजी दुल्हनों से नफरत हो गई. वह दूसरों के शरीर में समा कर लाल जोड़े में सजी दुलहनों को डोली से उठा ले जाता था. इस फिल्म का गीत ‘चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की ऋतु आई…’ आज भी शादियों में दुल्हन की विदाई के समय बजाया जाता है.

जानी दुश्मन नाम से बाद में भी कई फिल्में बनीं. राजकुमार कोहली ने ही 2002 में ‘जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी’ नाम से फिल्म बनाई. इस में राज बब्बर, सनी देओल, रजत बेदी, शरद कपूर, मनीषा कोइराला, आदित्य पंचोली, अमरीश पुरी आदि कलाकार थे. लेकिन यह फिल्म 1979 वाली फिल्म जैसी कामयाबी हासिल नहीं कर सकी.

फिल्म ‘जानी दुश्मन’ का जिक्र हम ने इसलिए किया क्योंकि इस कहानी का घटनाक्रम भी काफी कुछ ऐसा ही है. दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की यह कहानी राजस्थान के सीकर जिले की है.

बीते 16-17 अप्रैल की आधी रात के बाद सात फेरे लेने के बाद ढाई पौने 3 बजे नागवा गांव में गिरधारी सिंह के घर से 2 बेटियों की बारातें विदा हुईं. ये बारातें मोरडूंगा गांव से आई थीं. मोरडूंगा निवासी भंवर सिंह की शादी गिरधारी सिंह की बड़ी बेटी सोनू कंवर से हुई थी और राजेंद्र सिंह की शादी छोटी बेटी हंसा कंवर से.

दोनों दुल्हनें और उन के दूल्हे एक सजी-धजी इनोवा कार में सवार थे. कार में दूल्हों के रिश्तेदार कृष्ण सिंह, शानू और दुल्हन का भाई करण सिंह भी थे. ये लोग धोंद हो कर मोरडूंगा जा रहे थे. बारात में आए अन्य रिश्तेदार और गांव के लोग पहले ही दूसरे वाहनों से जा चुके थे. केवल दूल्हादुल्हन और उन के 3 रिश्तेदार ही वैवाहिक रस्में पूरी कराने के लिए रुके रहे थे.

दूल्हादुल्हन विदा हो कर नागवा गांव से करीब 4 किलोमीटर दूर ही आए थे, तभी रामबक्सपुरा स्टैंड के पास एक बोलेरो और पिकअप में आए बदमाशों ने अपनी गाडि़यां दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार के आगेपीछे लगा दीं. इनोवा में सवार दोनों दूल्हे और उन के रिश्तेदार कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बोलेरो और पिकअप से 7-8 लोग लाठीसरिए ले कर उतरे. इन्होंने इनोवा कार को घेर कर तोड़फोड़ शुरू कर दी.

कार से दुल्हन का अपहरण

मायके से विदा होने पर जैसा कि होता है दोनों बहनें घूंघट में सुबक रही थीं. उन्होंने तोड़फोड़ की आवाज सुन कर अपने चेहरे से घूंघट उठाया, लेकिन अंधेरा होने की वजह से उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. इनोवा कार के अंदर जल रही मद्धिम रोशनी में बाहर कुछ नजर नहीं आ रहा था. तोड़फोड़ होती देख दोनों दुल्हन बहनें सहम कर अपनेअपने दूल्हों के हाथ पकड़ कर बैठ गईं.

इनोवा के शीशे तोड़ने के बाद हमलावरों में से एक बदमाश ने पिस्तौल निकाल कर हवा में लहराते हुए कहा, ‘‘कोई भी हरकत की तो गोली मार देंगे.’’ इस के बाद वे कार में बैठे पुरुषों से मारपीट करने लगे. दोनों दूल्हों भंवर सिंह और राजेंद्र सिंह ने बदमाशों से मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन हथियारबंद बदमाशों के आगे उन के हौसले पस्त हो गए.

इस बीच एक बदमाश ने इनोवा का दरवाजा खोल कर दुल्हन हंसा कंवर को बाहर खींच लिया. हंसा चीखनेचिल्लाने लगी. यह देख हंसा की बहन सोनू ने बदमाशों से उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वह उन से मुकाबला नहीं कर सकी. बदमाशों ने नईनवेली दुल्हन सोनू कंवर से भी मारपीट की.

दूल्हों के रिश्तेदार मौसेरे भाई करण सिंह ने मोबाइल निकाल कर फोन करने की कोशिश की तो बदमाशों ने उस से मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. बदमाशों ने हंसा कंवर को अपनी गाड़ी में बैठाया और दूल्हों व दुल्हन सोनू कंवर के साथ उन के रिश्तेदारों को पिस्तौल दिखा कर धमकी दी. बदमाशों ने इनोवा कार की चाबी भी निकाल ली थी. इस के बाद बदमाश अपनी दोनों गाडि़यां दौड़ाते हुए वहां से चले गए.

यह सब मुश्किल से 10 मिनट के अंदर हो गया. बदमाशों के जाने के बाद दूल्हों ने मोबाइल फोन से नागवा गांव में अपनी ससुराल वालों को सूचना दी. कुछ ही देर में नागवा के कई लोग मोटरसाइकिलों पर वहां पहुंच गए. पुलिस को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर बाद धोद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने आसपास के इलाके में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का कोई पता नहीं चला.

दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की खबर कुछ ही घंटों में आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. जिस ने भी इस वारदात के बारे में सुना, सहम गया. ससुराल पहुंचने से पहले ही दुल्हन को डोली से उठा ले जाने की ऐसी वारदात किसी ने न तो देखी थी और न सुनी थी. अलबत्ता लोगों ने फिल्मों में ऐसी घटनाएं जरूर देखी थीं.

इस घटना को ले कर 17 अप्रैल को सुबह से ही राजपूत समाज के लोगों में आक्रोश छा गया. नागवा गांव के कृष्ण सिंह ने धोद पुलिस थाने में अपने ही गांव के अंकित सेवदा और भड़कासली गांव के रहने वाले मुकेश रेवाड़ को नामजद करते हुए 5-6 अन्य लोगों के खिलाफ हंसा कंवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा गया कि हंसा कंवर ने करीब 5 लाख रुपए के गहने पहन रखे थे, साथ ही उस के पास कन्यादान के 20 हजार रुपए नकद भी थे. आरोपी हंसा कंवर के साथ उस के गहने और नकदी भी ले गए. डोली से दुल्हन को उठा ले जाने का मामला गंभीर था. पुलिस ने नामजद आरोपियों के परिजनों से पूछताछ की. उन से कुछ जानकारियां मिलने पर पुलिस ने 2 टीमें बना कर जयपुर और गाजियाबाद के लिए रवाना कर दीं.

पूरा राजपूत समाज एक साथ खड़ा हो गया

पुलिस की टीमें अपने तरीके से जांचपड़ताल में जुट गईं. मुख्य आरोपी चूंकि नागवा गांव का था, इसलिए गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अनहोनी न हो. इस बीच यह मामला सीकर से ले कर जयपुर तक गरमा गया. दुल्हन के अपहरण की सूचना मिलने पर उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा सीकर के राजपूत छात्रावास आ गए. वहां राजपूत समाज के प्रमुख लोगों की बैठक हुई.

इस के बाद लोगों ने सीकर कलेक्टर सी.आर. मीणा को ज्ञापन दे कर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी का अल्टीमेटम दे कर कहा कि अगर काररवाई नहीं हुई तो पूरा राजपूत समाज कलेक्ट्रैट के सामने धरने पर बैठ जाएगा. साथ ही लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा.

बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने सीकर में कलेक्टर और एसपी के बंगले के सामने प्रदर्शन किया. लोगों ने कहा कि 18 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों का पता नहीं लगा सकी है. प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जाम लगा कर नारेबाजी की. इस दौरान उदयपुरवाटी के विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने पैट्रोल छिड़क कर आत्मदाह करने का प्रयास किया. लेकिन समाज के लोगों ने विधायक को बचा लिया.

सूचना मिलने पर डीएसपी सौरभ तिवाड़ी, कोतवाल श्रीचंद सिंह और उद्योग नगर थानाप्रभारी वीरेंद्र शर्मा मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने विधायक को समझाया. राजपूत समाज के लोगों ने सीकर कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की शर्त पुलिस को भी बता दी कि अगर 18 अप्रैल को सुबह साढ़े 10 बजे तक दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो कलेक्ट्रैट के बाहर धरनाप्रदर्शन किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद लोगों ने जाम हटाया और प्रदर्शन समाप्त कर दिया.

दुल्हन के अपहरण का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान हुई इस वारदात ने पुलिस के सामने चुनौती खड़ी कर दी थी. पुलिस के लिए चिंता की बात यह थी कि पूरा राजपूत समाज इस घटना को ले कर लामबंद होने लगा था.

पुलिस के सामने एक समस्या यह भी थी कि दुल्हन के अपरहण का कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस तरह की वारदात किसी पुरानी रंजिश, लूट, दुष्कर्म या प्रेम प्रसंग के लिए की जाती हैं.

लेकिन इस मामले में स्पष्ट रूप से ऐसा कारण उभर कर सामने नहीं आ रहा था. पुलिस को जांचपड़ताल में इतना जरूर पता चला कि आरोपी अंकित सेवदा और दुल्हन हंसा कंवर के परिवार के खेत आसपास हैं. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग जैसा कोई सबूत सामने नहीं आया.

वारदात का तरीका भयावह था. पुलिस ने कई जगह दबिश दे कर 2-4 लोगों को हिरासत में लिया. दरजनों लोगों से पूछताछ की गई. इस के अलावा आरोपी अंकित सेवदा के मोबाइल नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया गया.

18 अप्रैल को सीकर में सुबह से ही भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया. अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने से नाराज राजपूत समाज के लोगों ने सुबह 10 बजे सड़क पर जाम लगा दिया और नारेबाजी करते हुए कलेक्टर के बंगले के बाहर एकत्र हो गए.

सुबह से शाम तक करीब 7 घंटे प्रदर्शन जारी रहा. प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे राजपूत समाज के नेता पहले बैरीकेड्स पर चढ़ कर अपनी मांग करते रहे. बाद में वे जेसीबी मशीन पर चढ़ कर लोगों को संबोधित करने लगे. एकत्र लोग सड़क पर बैठ गए. एडीएम जयप्रकाश और एडीशनल एसपी देवेंद्र शास्त्री व तेजपाल सिंह ने उन्हें समझायाबुझाया.

इस दौरान जिला प्रशासन और पुलिस ने राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बात कर के आरोपियों को पकड़ने और दुल्हन को बरामद करने के लिए 3 दिन का समय मांगा.

प्रदर्शन में उदयपुरवाटी के विधायक

राजेंद्र गुढ़ा, राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत समाज के अनेक गणमान्य लोग शामिल रहे.

हालात पर नजर रखने के लिए जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर पहुंच गए थे. वे रानोली थाने में बैठ कर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों पर नजर रखते रहे. बाद में शाम को राजपूत समाज के लोगों ने राजपूत छात्रावास के पास टेंट लगा कर धरना देना शुरू कर दिया.

पुलिस पूरी कोशिश में जुटी थी

राजपूत समाज के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने दुल्हन की बरामदगी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस की 5 टीमें 3 राज्यों में भेजी गईं. इस बीच पुलिस ने दुल्हन का अपहरण करने के मामले में एक नामजद आरोपी भड़कासली निवासी मुकेश जाट के अलावा नेतड़वास के महेंद्र सिंह जाट, दुगोली निवासी राजेश बगडि़या उर्फ धौलिया और भड़कासली निवासी अशोक रेवाड़ को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में पता चला कि दुल्हन का अपहरण करने के बाद वे लोग अंकित और उस के साथियों से अलग हो गए थे. ये चारों धोद में छिपे थे. पुलिस ने इन से मुख्य आरोपी अंकित सेवदा के छिपने के संभावित ठिकानों के बारे में पूछताछ की. इसी के आधार पर पुलिस की टीमें विभिन्न स्थानों पर भेजी गईं.

19 अप्रैल को भी पुलिस अपहृत दुल्हन की बरामदगी और आरोपियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर राजपूत समाज के आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए. सीकर शहर के सभी प्रवेश मार्गों पर सशस्त्र पुलिस तैनात की गई.

पुलिस को जांचपड़ताल में यह बात साफ हो गई थी कि दुल्हन हंसा कंवर के अपहरण की साजिश उसी के गांव नागवा के अंकित ने रची थी. उस ने हंसा और उस की बड़ी बहन की शादी के दिन 16 अप्रैल की शाम अपने दोस्तों मुकेश रेवाड़, विकास भामू, महेंद्र फौजी, राजेश व अशोक आदि को तलाई पर बुलाया था. वहां उस ने सभी दोस्तों को शराब पिलाई.

योजनानुसार अंकित ने अपने एक साथी को गिरधारी सिंह के घर के बाहर बैठा दिया था. वह मोबाइल पर अंकित को शादी के हर कार्यक्रम की जानकारी दे रहा था. फेरे लेने के बाद रात ढाई पौने 3 बजे जैसे ही सोनू कंवर और हंसा कंवर अपने दूल्हों के साथ घर से विदा हुईं तो अंकित के साथी ने मोबाइल पर उसे यह खबर दे दी.

इस के बाद तलाई पर बैठे अंकित और उस के दोस्तों ने बोलेरो और पिकअप से दूल्हेदुलहनों की इनोवा कार का पीछा किया. रामबक्स स्टैंड पर इन लोगों ने उन की इनोवा को आगेपीछा गाड़ी लगा कर घेर लिया गया. अंकित ने हंसा को बाहर निकाला और वे सभी साथी बोलेरो में उस का अपहरण कर ले गए.

जांच में पुलिस को पता चला कि हंसा का अपहरण करने के बाद अंकित के दोस्त रास्ते में उतरते गए. अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू हंसा को साथ ले कर नागौर जिले के जायल गांव गए. वहां से वे छोटी खाटू पहुंचे. फिर उन्होंने एक व्यक्ति से हिमाचल प्रदेश जाने के लिए इनोवा गाड़ी किराए पर मांगी.

लेकिन उस दिन ज्यादा शादियां होने के कारण इनोवा नहीं मिली. इस के बाद हंसा कंवर को साथ ले कर अंकित और विकास भामू छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर चले गए. महेंद्र फौजी बोलेरो ले कर नागवा आ गया था.

पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों मुकेश रेवाड़, महेंद्र सिंह, राजेश बगडि़या और अशोक रेवाड़ को अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

बिना लड़े आमनेसामने थे

राजपूत समाज के नेता और पुलिस दुल्हन के अपहरण की घटना को ले कर राजपूत समाज तीसरे दिन भी आंदोलित रहा. कलेक्टर के बंगले के सामने लगातार दूसरे दिन भी राजपूत समाज के लोग धरना देते रहे. समाज के नेताओं ने कहा कि धरना आरपार की लड़ाई तक जारी रहेगा.

विधायक राजेंद्र गुढ़ा के अलावा राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव गोगामेड़ी, राजपूत करणी सेना के महीपाल मकराना, पूर्व विधायक मनोज न्यांगली सहित राजपूत महासभा व करणी सेना के तमाम नेता धरने पर बैठे रहे. उधर दुल्हन के अपहरण को ले कर नागवा गांव और उस की ससुराल मोरडूंगा में दोनों परिवारों में घटना के बाद से ही सन्नाटा पसरा रहा. दोनों परिवारों की शादियों की खुशियां काफूर हो गई थीं. नागवा में दुल्हन के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला था. दुल्हन की मां बारबार बेहोश हो जाती थी.

पूरे परिवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया. दुल्हन के पिता गिरधारी सिंह ने संदेह जताया कि आरोपी उस की बेटी की हत्या कर सकते हैं. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारियों ने नागवा में पीडि़त परिवार से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और दोषियों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिया.

इस बीच एक हिस्ट्रीशीटर कुलदीप झाझड़ ने दुल्हन के अपहरण के मामले में एक वीडियो जारी कर प्रशासन को धमकी दे डाली. कई आपराधिक मामलों में फरार कुलदीप ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती है. अगर पुलिस आरोपियों को नहीं पकड़ सकती तो वह खुद उन्हें तलाश कर गोली मार देगा. उस के कई साथी आरोपियों की तलाश कर रहे हैं.

राजपूत समाज के आक्रोश को देखते हुए कानूनव्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने 20 अप्रैल को सीकर में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं. हालांकि इस की सूचना मीडिया के माध्यम से पुलिस व प्रशासन ने एक दिन पहले ही दे दी थी. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन के अधिकारी राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से बराबर संपर्क में रहे.

इंटरनेट बंद होने से दिन भर बवाल मचता रहा. पुलिस ने राजपूत छात्रावास की बिजली बंद करा दी. इस से माइक बंद हो गया तो राजपूत युवा भड़क गए. इस के बाद विधायक गुढ़ा ने कलेक्टर आवास में घुस कर वहां कब्जा करने की चेतावनी दे दी. इस से पुलिस के हाथपैर फूल गए.

पुलिस ने वहां घेराबंदी कर बड़ी तादाद में सशस्त्र बल तैनात कर दिया. इस बीच विधायक गुढ़ा युवाओं के साथ मौन जुलूस निकालने लगे तो पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सख्ती से रोक दिया. दिन भर आंदोलनकारी और पुलिस आमनेसामने होते रहे.

आईजी एस. सेंगाथिर ने मोर्चा संभाल कर प्रदर्शनकारियों को बताया कि जयपुर से एटीएस और एसओजी सहित 11 टीमें जांच में जुटी हुई हैं. पुलिस अपराधियों के निकट पहुंच चुकी है और जल्द से जल्द हंसा कंवर को बरामद कर लिया जाएगा.

चौथे दिन 20 अप्रैल की शाम तक यह सूचना सीकर पहुंच गई कि पुलिस ने देहरादून से दुल्हन हंसा कंवर को बरामद कर लिया है और 2 आरोपी पकड़े गए हैं. इस के बाद राजपूत समाज ने आंदोलन समाप्त करने की घोषणा कर दी.

दुल्हन हंसा को देहरादून से बरामद करने की कहानी बड़ी रोचक है. हंसा का अपहरण कर अंकित, महेंद्र फौजी और विकास भामू जायल हो कर छोटी खाटू पहुंचे. वहां वे आरिफ से मिले. आरिफ किराए पर गाडि़यां चलाता है.

अंकित ने आरिफ से देहरादून जाने के लिए किराए की गाड़ी मांगी, लेकिन उस समय उस की सभी गाडि़यां शादियों की बुकिंग में गई हुई थीं. आरिफ ने अंकित को शादी के रजिस्ट्रेशन के बारे में बताया था. पुलिस को आरिफ से ही यह सुराग मिला कि अंकित दुल्हन हंसा को ले कर देहरादून जा सकता है.

अंकित अपने दोस्त विकास भामू और दुल्हन हंसा के साथ छोटी खाटू से बस में बैठ कर जयपुर पहुंचा और जयपुर से सीधे देहरादून चला गया. देहरादून में ये लोग एक गेस्टहाउस में रुके. ये लोग गेस्टहाउस पर बाहर से ताला लगवा देते थे.

जानकारी मिलने पर सीकर से सबइंसपेक्टर सवाई सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. पुलिस दोनों आरोपियों और दुल्हन हंसा की फोटो ले कर होटल और गेस्टहाउसों में तलाश कर रही थी. 19 अप्रैल को पुलिस उस गेस्टहाउस पर भी पहुंची, जहां अंकित और विकास ने हंसा को ठहरा रखा था, लेकिन वहां बाहर ताला लगा देख कर पुलिस लौट गई.

कैसे पता लगा हंसा कंवर का

इस बीच पुलिस टीम ने हाथों में मेहंदी लगी लड़की के दिखाई देने पर सूचना देने की बात कह कर काफी लोगों को अपने मोबाइल नंबर दिए. 20 अप्रैल को एक वकील ने पुलिस टीम को फोन कर बताया कि एक युवती के हाथों में मेहंदी लगी हुई है और उस के साथ 2 युवक हैं.

पुलिस टीम ने वाट्सऐप पर वकील को दुल्हन और आरोपियों की फोटो भेजी, तो कंफर्म हो गया कि हंसा उन्हीं युवकों के साथ है. वकील ने बताया कि ये लोग कोर्ट के पास हैं और एक वकील उन की शादी के कागजात बनवाने गया है.

सीकर से गई पुलिस टीम ने एक मिनट की देरी करना भी उचित नहीं समझा. वे गाड़ी ले कर पूछते हुए कोर्ट की तरफ भाग लिए. लेकिन रास्ते में निकलती एक शोभायात्रा की वजह से सीकर पुलिस की गाड़ी जाम में फंस गई. इस पर पुलिसकर्मी मोटरसाइकिलों पर लिफ्ट ले कर कोर्ट के पास पहुंचे.

वहां सादे कपड़ों में गए पुलिसकर्मियों ने अंकित और उस के साथी विकास भामू को फोटो से पहचान कर दबोच लिया. दुल्हन हंसा कंवर भी वहीं मिल गई. इस पर देहरादून के वकील एकत्र हो कर सीकर पुलिस से बहस करने लगे. हाथ में आई बाजी पलटती देख सबइंसपेक्टर सवाई सिंह ने जयपुर आईजी सेंगाथिर को फोन पर सारी बात बताई. जयपुर आईजी ने राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) बी.एल. सोनी से बात की. सोनी ने देहरादून के पुलिस अधिकारियों से फोन कर बात कर पूरी घटना बता दी.

इस के करीब डेढ़ घंटे बाद देहरादून पुलिस वहां पहुंची. देहरादून पुलिस ने वकीलों को दुल्हन हंसा के अपहरण की घटना के बारे में बताया. इस के बाद सीकर पुलिस हंसा और दोनों आरोपियों को कोर्ट से बाहर ले आई.

देहरादून से 20 अप्रैल की रात को पुलिस दल तीनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हुआ. पुलिस को आरोपियों पर हमले या दुल्हन के दोबारा अपहरण की आशंका थी इसलिए कई रास्ते बदल कर और कई जगह एस्कार्ट ले कर पुलिस टीम 21 अप्रैल को उन्हें ले कर सीकर पहुंची.

सीकर में पुलिस ने दुल्हन हंसा कंवर से पूछताछ के आधार पर अंकित सेवदा और उस के दोस्त विकास भामू को गिरफ्तार कर लिया. दुल्हन हंसा कंवर ने पुलिस और मजिस्ट्रैट को दिए बयान में मां के साथ बुआ के घर जाने की इच्छा जताई.

इस के बाद हंसा को उस के घर वालों को सौंप दिया. हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथी उस का अपहरण कर ले गए थे. अंकित देहरादून में उस से जबरन शादी करना चाहता था. इसीलिए वह कोर्ट पहुंचा था और वकील के माध्यम से कागजात तैयार करवा रहा था. पुलिस ने 22 अप्रैल को आरोपी अंकित और विकास का मैडिकल कराया. इस के बाद दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सच्चाई नहीं आई सामने

बरामद दुल्हन हंसा ने प्रारंभिक बयानों में अंकित और उस के साथियों पर जबरन अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया है. गिरफ्तार हुए मुख्य आरोपी अंकित सेवदा ने भी पुलिस को हंसा के अपहरण का स्पष्ट कारण नहीं बताया.

पुलिस की प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि हंसा और अंकित एक ही गांव के हैं और उन के खेत भी आसपास हैं. गांव के नाते अंकित पहले से ही हंसा को जानता था. अंकित मन ही मन हंसा से प्यार करता था. यह उस का एकतरफा प्यार था. न तो उस ने कभी हंसा से यह बात कही और न ही हंसा ने कभी इस बारे में सोचा. अंकित जबरन उस से शादी करना चाहता था.

एक कारण और सामने आया. इस में अंकित के विदेश में रहने वाले दोस्त गंगाधर से बातचीत के दो औडियो वायरल हो रहे हैं. इस में कहा गया है कि अंकित का हंसा के परिवार से कुछ समय पहले झगड़ा हुआ था. इसलिए अंकित बदला लेना चाहता था. बदला लेने के लिए उस ने हंसा का अपहरण करने की योजना बनाई.

अंकित का मकसद लूट का भी हो सकता है, क्योंकि हंसा या अंकित के पास से पुलिस को कोई भी जेवर या नकदी नहीं मिले हैं. पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के मुताबिक हंसा ने शादी में विदाई के समय 5 लाख रुपए के जेवर पहन रखे थे. उस के पास 20 हजार रुपए नकद भी थे.

हंसा ने पुलिस को बताया कि अंकित और उस के साथियों ने उस के जेवर व रुपए ले लिए थे. पुलिस के सामने भी यह बात आई है कि अपहरण में शामिल अंकित के दोस्तों ने हंसा के जेवर बेच दिए.

पुलिस इन गहनों को खरीदने वालों की तलाश कर उन्हें बरामद करने का प्रयास कर रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी कडि़यों को जोड़ कर हंसा के अपहरण के असली मकसद का पता लगाने में जुटी थी.

चाहे पुलिस हो, चाहे हंसा के परिवार वाले या फिर अंकित सेवदा, इस मामले का सच अभी तक सामने नहीं आया है. आएगा ऐसा भी नहीं लगता. अगर आम आदमी की तरह सोचें तो एक इज्जतदार परिवार और उस परिवार की लड़की के लिए ऐसे किसी भी सच का सामने आना ठीक नहीं है, जो उन्हें प्रभावित करे.

हां, यह जरूर कह सकते हैं कि अंकित ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर जो किया, वह बड़ा अपराध तो है ही.

इसी बीच जाट समुदाय के लोगों ने गिरफ्तार किए गए लड़कों को छोड़ने और अपहरण की सच्चाई को सामने लाने के लिए 25 अप्रैल को कलक्टे्रट पर धारना दिया.

बुराडी में चल रहा था औनलाइन जिस्मफरोशी का धंधा, इस हिसाब से लगाया जाता था रेट

बुराडी के संतनगर में ’18+ ब्यूटी टेंपल’ बाहर से आमतौर पर शांत दिखता था. सामने से यह स्पा सैंटर जितना छोटा दिखता था अंदर उस से कहीं बड़ा और आलीशान बनाया गया था. स्पा सैंटर के अंदर एक तहखाना बना हुआ था जिस में ग्राहकों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी.

दिन ढलते बढ जाती थी हलचल

स्पा सैंटर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आमतौर पर दिन भर शांत रहने वाले इस स्पा सैंटर में दिन ढलते ही हलचल बढ जाती थी. लोगों की आवाजाही ज्यादा होने लगती थी. इस सैंटर में जब स्मार्ट ड्रैस पहनी कालेज जाने वाली लडकियां और लोगों का ज्यादा आनाजाना होने लगा तो अगलबगल रहने वाले लोगों को शक हुआ.

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दिल्ली महिला आयोग को मिली शिकायत

लोगों की शिकायत पर दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के साथ बुराड़ी स्थित इस स्पा सैंटर में छापा मारा. छापे के बाद मीडिया में आई खबर के बाद स्थानीय लोगों को सहसा यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यहां औनलाइन सैक्स रैकेट चल रहा था.

दिल्ली महिला आयोग स्पा सेंटर से 4 लड़कियों को बचाया गया. इस मामले में 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली महिला आयोग की सदस्य प्रोमिला गुप्ता ने सरस सलिल से बातचीत करते हुए बताया,” देखिए, दिल्ली महिला आयोग के पास एक शिकायत आई थी, जिस में एक वैबसाइट के बारे में बताया गया था. हमें सूचना मिली थी कि इस की आड में यहां सैक्स रैकेट चलाया जा रहा है. शिकायत में कहा गया था कि बुराड़ी में एक स्पा में सैक्स रैकेट चल रहा है. शिकायत पर जब हम ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से कार्यवाई की तो वहां का नजारा देख कर हैरान रह गए. दरअसल, वैबसाइट पर वहां लड़कियों की फोटो और रेट कार्ड डाल रखे थे. जब महिला आयोग ने जगह का निरीक्षण कराया तो पता चला कि बहुत बड़ा रैकट है और स्पा में बाउंसर और तहखाने हैं”

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कस्टमर की वेशभूषा में गए अधिकारी ने की तहकीकात

प्रोमिला गुप्ता ने आगे बताते हुए कहा, “दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस बारे में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच से तुरंत बात की. क्राइम ब्रांच ने अपनी एक टीम भेजी. तब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल, सदस्य प्रोमिला गुप्ता, किरण नेगी व फिरदौस दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम के साथ बुराड़ी स्थित ‘18 प्लस ब्यूटी टेंपल’ स्पा पहुंचीं. “अपराध शाखा का एक औफिसर और डीसीडब्ल्यू का स्टाफ पहले कस्टमर बन कर स्पा में घुसा. उन को वहां लड़कियों की फ़ोटो और सैक्स के लिए रेट कार्ड स्क्रीन पर दिखाया गया. तभी डीसीडब्ल्यू की पूरी टीम और क्राइम ब्रांच की पूरी टीम स्पा सैंटर जा पहुंची. उन्होंने एकसाथ सभी कमरों का निरीक्षण किया.”

तहखाने के अंदर कई कमरे थे

प्रमिला गुप्ता बताती हैं, “वहां 3 फ्लोर पर छोटेछोटे तहखाने बने मिले, जहां पर बिस्तर थे. वहां से भारी मात्रा में कंडोम्स और अश्लील मैनू कार्ड मिले. 3 लड़कों ने बताया कि वे कस्टमर हैं और यहां सैक्स रैकट चल रहा है. वहां पर बड़े लोहे के गेट हैं जिन्हें बटन द्वारा खोला जाता है। 4 लड़कियां 3 कस्टमर और इस रैकेट को चलाने वाले 3 व्यक्तियों को पुलिस वाले स्थानीय थाने ले गए.

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“आगे की तफ्तीश पुलिस कर रही है. महिला आयोग पुलिस के संपर्क में है और जो भी दोषी होगा उस पर कडी कार्यवाई की जाएगी।”

अंधविश्वास से अपराध : वह डायन नहीं थी

अफवाहें बेलगाम होती हैं. उन की कोई सरहद नहीं होती. लेकिन ये जब हदों को लांघ जाती हैं, तो लोगों और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाती हैं. ऐसी ही अफवाह ने एक 65 साला गरीब दलित औरत की जान ले ली.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के मुटनई गांव की रहने वाली दलित मान जाटव के लिए 2 अगस्त, 2017 जिंदगी की आखिरी तारीख बन गई. मान जाटव तड़के शौच के लिए खेतों में गई थीं. उन्हें कम दिखाई देता था. अंधेरे की वजह से वे रास्ता भटक कर बघेल समाज की बस्ती में निहाल सिंह के घर के बाहर पहुंच गईं.

इसी बीच एक लड़की ने उन्हें देख कर शोर मचा दिया, जिस के बाद लोग जाग गए और पहली ही नजर में मान जाटव को चोटी काटने वाली ‘डायन’ करार दे दिया गया.

इस के बाद मान जाटव के साथ रूह कंपा देने वाली हैवानियत हुई. निहाल सिंह के बेटे मनीष व सोनू समेत दूसरे लोगों ने उन्हें लाठीडंडों से पीटना शुरू कर दिया. वे चिल्ला रहे थे कि चोटी काटने वाली ‘डायन’ पकड़ी गई है, जबकि मान जाटव बचने की हरमुमकिन कोशिश कर रही थीं और उन्हें बता रही थीं कि वे ‘डायन’ नहीं हैं, बल्कि उन्हीं के गांव की हैं.

गुस्से के गुबार में मान जाटव की कोई भी सुनने को तैयार नहीं था. अंधविश्वास के चश्मे ने लोगों को एक बेकुसूर औरत को बेरहमी से पीटने वाला मर्द बना दिया था.

पीटने वाले लोग अंधविश्वास में बुरी तरह अंधे थे. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे मान जाटव को यह कह कर पीपल के पेड़ के पास ले गए कि वहां पीटने से पीपल पर रहने वाले भूतप्रेत भी कभी किसी को परेशान नहीं करेंगे.

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उन्होंने मान जाटव को अधमरा कर के उन्हें दूसरी जगह ले जा कर पटक दिया. शोरशराबा होने पर मान जाटव के परिवार वालों को पता चला, तो वे वहां पहुंचे और उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन चोटें इतनी गंभीर थीं कि उन की मौत हो गई.

अंधविश्वास की इस भेंट से गांव में तनाव पैदा हो गया. पुलिस पहुंची, तो आरोपी अपने घरों से फरार हो गए.

जांच में पता चला कि इलाके में औरतों व लड़कियों की चोटी काटने वाले कथित साए की अफवाह व दहशत थी. आरोपी परिवार की एक औरत की चोटी एक दिन पहले कट गई थी. इसी से उन्हें लगा कि ‘डायन’ चोटी काटने आई है.

अंधविश्वास ने मान जाटव को हमेशाहमेशा के लिए उन के परिवार से दूर कर दिया. उन का बेटा गुलाब कहता है, ‘पीटने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मां बुजुर्ग हैं. ऐसे तो कोई भी किसी को ‘डायन’ बता कर मार डालेगा.’

वैसे, इस बात में कोई दोराय नहीं है कि अगर मान जाटव का ताल्लुक किसी दबंग परिवार या ऊंची जाति से होता, तो शायद ही उन पर हमला होता. जब सामने वाले से ईंट का जवाब पत्थर से मिलने का डर हो, तो सारा गुरूर हवा हो जाता है.

यह वारदात कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर गई. अगर कानून का डर होता, तो शायद ऐसा करने से लोग डरते.

एसएसपी दिनेश चंद्र दुबे कहते हैं, ‘घटना के कुसूरवार बख्शे नहीं जाएंगे. लोगों को समझना चाहिए कि चुड़ैल, डायन या भूतप्रेत जैसा कुछ नहीं होता है. अफवाह फैलाने वालों की सूचना पुलिस को देनी चाहिए.’

दरअसल, ‘चोटीकटवा’ की यह अफवाह नए किरदार के रूप में आई. इस से पहले साल 2001 में ‘मंकी मैन’ ने भी खूब दहशत फैलाई थी. इस के बाद ‘मुंहनोचवा’ आ गया था. कभी ‘काली बिल्ली’, कभी ‘बच्चा चोर’, तो कभी लोगों के घरों में आग लगने के किस्से सुने जाते रहे थे.

हैरानी की बात यह है कि किसी का भी कभी ठोस नतीजा सामने नहीं आया. समय के साथ ऐसी घटनाएं और किस्से थम जाते हैं. ऐसी अफवाहों को वैज्ञानिक अंधविश्वास और मनोचिकित्सक ‘आईडैंटिटी डिसऔर्डर’ नामक बीमारी का नाम देते हैं.

अफवाहें और अंधविश्वास जिस तेजी से अपना काम करते हैं, वे कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन जाते हैं. इस के चक्कर में कभी किसी बेकुसूर को पीटा जाता है, तो कभी किसी की हत्या कर दी जाती है.

मान जाटव भी इसी का शिकार हुईं. ऐसी अफवाहों से जादूटोना व तंत्रमंत्र करने वालों की दुकानें जरूर चालू हो जाती हैं, क्योंकि समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास का शिकार हो कर हर मर्ज का इलाज ऐसी जगहों पर खोजते हैं. अंधविश्वास का फायदा उठा कर उन्हें जम कर लूटा

जाता है.

डायन या चुड़ैल जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं होती, लेकिन ज्यादातर मामलों में अपढ़ व दलित औरतें ही इस का शिकार होती हैं.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में यह बुराई फैली हुई है.

साल 2000 से साल 2012 के बीच ही जादूटोना करने के आरोप में देशभर में 2 हजार से ज्यादा लोगों की हत्याएं हुईं. इन में ज्यादातर औरतें ही थीं. बांझ, कुंआरी या विधवा औरतों को शिकार बनाना आसान होता है. ऊंची जाति वाले व दबंग लोग गरीब व आदिवासियों को डायन के रूप में बदनाम कर देते हैं.

संपत्ति का अधिकार छीनने, तंत्रमंत्र के काम को आबाद करने व भेदभाव के चलते भी ऐसी वारदातें होती हैं. यह लोगों की ओछी सोच को दिखाती है कि वे भूतप्रेत, डायन या चुड़ैल के नाम पर किसी की हत्या तक कर देते हैं.

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एक साल पहले झारखंड राज्य के रांची के मांडर गांव में डायन बता कर अलगअलग परिवार की 5 औरतों की हत्या कर दी गई थी. इस राज्य में हत्याओं का आंकड़ा 12 सौ के पार है.

बिहार के भागलपुर जिले में भी एक महिला को ‘डायन’ बता कर मार डाला गया. दरभंगा जिले के पीपरा में तो दबंगों ने एक दलित औरत को डायन बता कर न सिर्फ उस के साथ मारपीट की, बल्कि मूत्र पिलाने की कोशिश भी की.

दहशत में परिवार ने गांव ही छोड़ दिया. इस राज्य की 418 औरतें चंद सालों में ऐसे ही अंधविश्वास की भेंट चढ़ गईं.

असम में ‘डायन’ बता कर एक औरत का सिर काट दिया गया. समाज की ऐसी हैवानियत यह बताने के लिए काफी है कि अंधविश्वास का आईना कितना खौफनाक है.

इस बात में कोई दोराय नहीं है

कि अंधविश्वास से होने वाली घटनाएं सभ्य समाज को कलंकित करती हैं. लोगों को इस से बाहर निकलना चाहिए. अंधविश्वास और अफवाहें न फैलें,

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इस के उपाय सरकार को भी करने होंगे, ताकि फिर कोई मान जाटव अंधविश्वासों के गुस्से का शिकार न हो.

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