जन्मदिन के अगले ही दिन क्षितिज ने बड़े नाटकीय अंदाज में उस के सामने विवाह प्रस्ताव रख दिया था.
‘तुम होश में तो हो, क्षितिज? तुम मुझ से कम से कम 3 वर्ष छोटे हो. तुम्हारे मातापिता क्या सोचेंगे?’
‘मातापिता नहीं हैं, भैयाभाभी हैं और उन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं. मैं मना लूंगा उन्हें. तुम अपनी बात कहो.’
‘मुझे तो लगता है कि हम मित्र ही बने रहें तो ठीक है.’
‘नहीं, यह ठीक नहीं है. पिछले 2 सालों में हर पल मुझे यही लगता रहा है कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है,’ क्षितिज ने स्पष्ट किया था.
प्राची ने अपनी मां और पिताजी को जब इस विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया तो मां देर तक हंसती रही थीं. उन की ठहाकेदार हंसी देख कर प्राची भौचक रह गई थी.
‘इस में इतना हंसने की क्या बात है, मां?’ वह पूछ बैठी थी.
‘हंसने की नहीं तो क्या रोने की बात है? तुम्हें क्या लगता है, वह तुम से विवाह करेगा? तुम्हीं कह रही हो कि वह तुम से 3 साल छोटा है.’
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‘क्षितिज इन सब बातों को नहीं मानता.’
‘हां, वह क्यों मानेगा. वह तो तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह कर ही लेगा पर यह विवाह चलेगा कितने दिन?’
‘क्या कह रही हो मां, क्षितिज की कमाई मुझ से कम नहीं है, और क्षितिज आयु के अंतर को खास महत्त्व नहीं देता.’
‘तो फिर देर किस बात की है. जाओ, जा कर शान से विवाह रचाओ, मातापिता की चिंता तो तुम्हें है नहीं.’
‘मुझे तो इस प्रस्ताव में कोई बुराई नजर नहीं आती,’ नीरज बाबू ने कहा.
‘तुम्हें दीनदुनिया की कुछ खबर भी है? लोग कितने स्वार्थी हो गए हैं?’ मां ने यह कह कर पापा को चुप करा दिया था.
क्षितिज नहीं माना. लगभग 6 माह तक दोनों के बीच तर्कवितर्क चलते रहे थे. आखिर दोनों ने विवाह करने का निर्णय लिया था, लेकिन विवाह कर प्राची के घर जाने पर दोनों का ऐसा स्वागत होगा, यह क्षितिज तो क्या प्राची ने भी नहीं सोचा था.
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जाने अभी और कितनी देर तक प्राची अतीत के विचारों में खोई रहती अगर क्षितिज ने झकझोर कर उस की तंद्रा भंग न की होती.
‘‘क्या हुआ? सो गई थीं क्या? लीजिए, गरमागरम कौफी,’’ क्षितिज ने जिस नाटकीय अंदाज में कौफी का प्याला प्राची की ओर बढ़ाया उसे देख कर वह हंस पड़ी.
‘‘तुम कौफी बना रहे थे? मुझ से क्यों नहीं कहा. मैं भी अच्छी कौफी बना लेती हूं.’’
‘‘क्यों, मेरी कौफी अच्छी नहीं बनी क्या?’’
‘‘नहीं, कौफी तो अच्छी है, पर तुम्हारे घर पहली कौफी मुझे बनानी चाहिए थी,’’ प्राची शर्माते हुए बोली.
‘‘सुनो, हमारी बहस में तो यह कौफी ठंडी हो जाएगी. यह कौफी खत्म कर के जल्दी से तैयार हो जाओ. आज हम खाना बाहर खाएंगे. हां, लौट कर गांव जाने की तैयारी भी हमें करनी है. भैयाभाभी को मैं ने अपने विवाह की सूचना दी तो उन्होंने तुरंत गांव आने का आदेश दे दिया.’’
‘‘ठीक है, जो आज्ञा महाराज. कौफी समाप्त होते ही आप की आज्ञा का अक्षरश: पालन किया जाएगा,’’ प्राची भी उतने ही नाटकीय स्वर में बोली थी.
दूसरे ही क्षण दरवाजे की घंटी बजी और दरवाजा खोलते ही सामने प्राची और क्षितिज के सहयोगी खड़े थे.
‘बधाई हो’ के स्वर से सारा फ्लैट गूंज उठा था और फिर दूसरे ही क्षण उलाहनों का सिलसिला शुरू हो गया.
‘‘वह तो मनोहर और ऋचा ने तुम्हारे विवाह का राज खोल दिया वरना तुम तो इतनी बड़ी बात को हजम कर गए थे,’’ विशाल ने शिकायत की थी.
‘‘आज हम नहीं टलने वाले. आज तो हमें शानदार पार्टी चाहिए,’’ सभी समवेत स्वर में बोले थे.
‘‘पार्टी तो अवश्य मिलेगी पर आज नहीं, आज तो मुंह मीठा कीजिए,’’ प्राची और क्षितिज ने अनुनय की थी.
उन के विदा लेते ही दरवाजा बंद कर प्राची जैसे ही मुड़ी कि घंटी फिर बज उठी. इस बार दरवाजा खोला तो सामने राजा, प्रवीण, निधि और वीणा खड़े थे.
‘‘दीदी, जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण क्षण में आप ने हमें कैसे भुला दिया?’’ प्रवीण साथ लाए कुछ उपहार प्राची को थमाते हुए बोला था. राजा, निधि और वीणा ने भी दोनों को बधाई दी थी.
‘‘हम सब आप दोनों को लेने आए हैं. पापा ने बुलावा भेजा है. आप तो जानती हैं, वह खुद यहां नहीं आ सकते,’’ राजा ने आग्रह किया था.
‘‘भैया, हम दोनों आशीर्वाद लेने घर गए थे, पर मां ने तो हमें श्राप ही दे डाला,’’ प्राची यह कहते रो पड़ी थी.
‘‘मां का श्राप भी कभी फलीभूत होता है, दीदी? शब्दों पर मत जाओ, उन के मन में तो आप के लिए लबालब प्यार भरा है.’’
प्राची और क्षितिज जब घर पहुंचे तो सारा घर बिजली की रोशनी में जगमगा रहा था. व्हील चेयर पर बैठे नीरज बाबू ने प्राची और क्षितिज को गले से लगा लिया था.
‘‘यह क्या, प्राची? घर आ कर पापा से मिले बिना चली गई. इस दिन को देखने के लिए तो मेरी आंखें तरस रही थीं.’’
प्राची कुछ कहती इस से पहले ही यह मिलन पारिवारिक बहस में बदल गया था. कोई फिर से विधि विधान के साथ विवाह के पक्ष में था तो कोई बड़ी सी दावत के. आखिर निर्णय मां पर छोड़ दिया गया.
‘‘सब से पहले तो क्षितिज बेटा, तुम अपने भैयाभाभी को आमंत्रित करो और उन की इच्छानुसार ही आगे का कार्यक्रम होगा,’’ मां ने यह कह कर अपना मौन तोड़ा. प्राची को आशीर्वाद देते हुए मां की आंखें भर आईं और स्वर रुंध गया था.
‘‘हो सके तो तुम दोनों मुझे क्षमा कर देना,’’