लेखक- एडवोकेट अमजद बेग
‘‘मकतूल के शौहर ने मक्कारी और चालबाजी से मुलजिम के एक लाख रुपए अपने घर की ऊपरी मंजिल बनवाने में खर्च करवाए. यह रकम मुलजिम ने बैंक से कर्ज ली थी. जब काजी का मकसद पूरा हो गया तो उस ने एक खूबसूरत साजिश कर के मुलजिम को घर छोड़ने पर राजी कर लिया और फिर अपनी बीवी के कत्ल में फंसा कर पुलिस के हवाले कर दिया.’’
दोनों तरफ से बहस और दलीलें चलती रहीं. जज ने जमानत रद्द करते हुए फुरकान को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. अगली तारीख 15 दिन बाद की थी. मुझे अदालत में फुरकान के घर के लोग नजर नहीं आए.
अली मुराद जीजान से दामाद की मदद कर रहा था. मैं ने अली मुराद से कहा, ‘‘अली मुराद, केस बहुत उलझा हुआ है. फुरकान को तब तक रिहाई नहीं मिल सकती जब तक कि ऊपरी मंजिल बनाने में काजी वहीद झूठा साबित न हो जाए. इस के लिए कई लोगों से तुम्हें अंदर की हकीकत मालूमात करनी पड़ेगी.’’
मैंने उसे कुछ लोगों के नाम बताए और काम बता दिए. अली मुराद ने मुझ से वादा किया कि वह जरूरी जानकारी ले कर आएगा.
अगली पेशी पर जज ने मुलजिम का जुर्म पढ़ कर सुनाया. मुलजिम ने जुर्म से साफ इनकार कर दिया था. विपक्ष का वकील तरहतरह के सवाल करता रहा, पर फुरकान अपनी बात पर डटा रहा कि वह बेकसूर है. अपनी बारी पर मैं ने जिरह की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘तुम जनवरी से ले कर मार्च तक 3 महीने मकतूला रशीदा के घर किराएदार की हैसियत से रहे. उस के बाद क्या हुआ?’’
‘‘जी हां, यह सही है. हम 3 महीने एक साथ एक परिवार की तरह रहे. मार्च में वहीद काजी ने कुछ रकम खर्च कर के छत पर छोटा सा घर बनाने की औफर दी. मैं ने बैंक से लोन ले कर उस के औफर पर अमल कर डाला.’’
‘‘तुम ने बैंक से कितना कर्ज लिया था?’’
‘‘मैं ने बैंक से एक लाख कर्ज लिया था. 75 हजार वहीद काजी को 2 कमरे बनाने को दिए. 25 हजार वुडवर्क में खर्च हुए. मुझे 2 कमरे पूरे एक लाख रुपए में पडे़ थे.’’
‘‘तुम कौमर्स पढ़ेलिखे आदमी हो. बैंक में काम करते हो, उस के बावजूद तुम ने इतनी बड़ी डील बिना किसी लिखतपढ़त के कैसे कर ली?’’
‘‘आप सही कह रहे हैं, पर उस वक्त काजी की मोहब्बत भरी बातों ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था. मैं उस के फ्रौड को समझ नहीं सका और बिना कागजी काररवाई के एक लाख रुपया खर्च कर दिया.’’
उस जमाने में एक लाख रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी. मैं वहीद काजी की चालाकी और मक्कारी जज के सामने लाना चाहता था. इसलिए मैं ने अपने सवालों का रुख बदल दिया.
‘‘तुम्हें पहली बार काजी के फ्रौड का अहसास कब हुआ?’’
‘‘सितंबर के आखिर में काजी ने मुझ से कहा कि मकान खरीदने के लिए एक पार्टी मिल गई है, जो 6 लाख रुपए देने को तैयार है. काजी ने मकान पर 2 लाख खर्च किए थे और मैं ने एक लाख. उस ने मुझे 2 लाख देने की औफर दी और मुझे उस की बात माननी पड़ी. क्योंकि ऊपरी मंजिल के मालिकाना हक के कागजात मेरे पास नहीं थे.
‘‘2 कमरों के बारे में काजी ने जितने वादे किए थे, सब जुबानी थे. जब भी मैं लिखित की बात करता वह बहाने बना कर टाल देता. इसलिए उस के औफर को मानने के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था.’’
मैं ने देखा जज बहुत ध्यान से सारी बात सुन रहा था और नोट भी करता जा रहा था. मैं ने कहा, ‘‘काजी ने मकान की बिक्री की स्कीम के बारे में क्या कहा?’’
‘‘उस ने मुझे सलाह दी कि मैं कुछ अरसे के लिए अपनी ससुराल में शिफ्ट हो जाऊं. मकान बिकते ही वो मुझे 2 लाख दे देगा, जिस से मैं नए घर का बंदोबस्त कर सकता था.’’
विपक्ष का वकील काफी देर से चुप था. उस ने ऐतराज उठाया, ‘‘अदालत में रशीदा मर्डर केस की सुनवाई हो रही है. मकान की नहीं.’’
मैं ने कहा, ‘‘जनाबे आली, रशीदा मर्डर केस मकान और एक लाख रुपए से इस तरह जुड़ा हुआ है कि उसे अलग नहीं किया जा सकता. यहीं से मर्डर केस का राज खुलेगा.’’ जज ने ऐतराज खारिज कर दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘जिरह जारी रखी जाए.’’
मैं ने आगे पूछा, ‘‘उस के बाद काजी ने क्या कहा?’’
‘‘एक बार फिर काजी ने मुझे धोखा देना चाहा कि हम एक बड़ा मकान खरीद लेंगे और फिर साथ रहेंगे. पर अब मुझे अक्ल आ चुकी थी. मैं ने साफ इनकार कर दिया. अक्तूबर के पहले हफ्ते में मैं अपनी ससुराल में शिफ्ट हो गया. उस के बाद 10-12 दिन तक मैं लगभग रोज ही अपनी रकम की मांग करता रहा. पर काजी टस से मस नहीं हुआ. हर बार कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता.
‘‘14 अक्तूबर की शाम मेरी काजी से तेज झड़प हुई. मैं ने उस से 2 लाख की रकम की डिमांड की. काजी ने मुझे पुराने अहसान याद दिलाए और एक तकरीर कर डाली. आखिर तंग आ कर मैं ने कहा, ‘मुझे 2 लाख नहीं चाहिए, आप मेरे पैसे ही लौटा दीजिए.’
‘‘उस ने गुस्से से कहा कि जब तुम खुद अपना नुकसान कर रहे हो और एक लाख छोड़ रहे हो तो कल शाम घर आ जाना. मैं तुम्हें पैसे लौटा दूंगा. आज मेरे पास मेरे मकान का एक लाख रुपया बयाना आने वाला है. क्योंकि मकान का सेल एग्रीमेंट हो जाएगा. कल शाम 8 बजे तुम आ जाओ, तुम्हारे पैसे मैं तुम्हारे मुंह पर दे मारूंगा.’’
‘‘तो क्या दूसरे दिन तुम्हें तुम्हारे पैसे मिल गए थे?’’
‘‘नहीं जनाब, जब 15 अक्तूबर की शाम 8 बजे मैं उस के घर पहुंचा तो वह घर पर नहीं मिला. देर तक घंटी बजाने, दरवाजा पीटने और पुकारने पर भी कोई बाहर नहीं आया. मैं मायूस हो कर वहां से लौट आया.’’
‘‘क्या घंटी बजाते या वापसी पर तुम्हें किसी ने देखा था?’’
‘‘रशीदा के शौहर काजी वहीद ने फुरकान को अपने घर में किराएदार की हैसियत से रखा था. कुछ दिनों बाद उन्होंने उसे ऊपरी मंजिल पर शिफ्ट कर दिया. बाद में घर बेचने के बहाने उसे बेदखल कर दिया. जब फुरकान ने हिसाब मांगा तो उसे कत्ल के इलजाम में बंद करवा दिया.’’
‘‘ओह, बहुत अफसोसनाक बात है. आप के कहे मुताबिक 2 दिन पहले यानी 15 अक्तूबर को उसे गिरफ्तार किया गया और 16 अक्तूबर को पुलिस ने फुरकान को अदालत में पेश कर के रिमांड ले लिया होगा. मतलब इस वक्त वह पुलिस कस्टडी में है.’’ मैं ने कागज पर लिखते हुए कहा.
‘‘जी, आप ठीक कह रहे हैं.’’
‘‘अच्छा यह बताइए कौन से थाने में बंद है और हां मुझे सही तरीके से बताएं कि आप के दामाद फुरकान और काजी वहीद के बीच कैसे ताल्लुकात थे. इस मुसीबत के वक्त फुरकान के घर वाले कहां हैं?’’
उस ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘घर वालों ने उस का बायकाट कर रखा है. वे लोग फुरकान और मेरी बेटी की शादी के सख्त खिलाफ थे. शादी के मौके पर फुरकान ने खुशामद कर के उन्हें शामिल कर लिया था. शादी के बाद करीब 3 महीने मेरी बेटी असमत ससुराल में रही, पर लड़ाईझगड़े और तनाव इस हद तक बढ़ गए कि उन्हें किराए पर घर ले कर अलग होना पड़ा.’’