Story in Hindi

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अचानक तभी डिंपल भी जोरजोर से चीखने और हंसने लगी. उस के बाल खुल कर बिखर गए. अब तो गांव वाले और हैरानपरेशान हो गए. इस गांव के ही नहीं, बल्कि आसपास के बीसियों गांवों में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी औरत में देवी आई हो. डिंपल की आवाज में भी फर्क आ गया था. एक बुढि़या ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस सीधीसादी लड़की में प्रवेश कर गए हो?
हे महाराज, आप देव हैं या देवी?’’ डिंपल भी चीखतीउछलती लटूरी देवता की पिंडी के पास पहुंच गई थी. वह जोर से बोली, ‘‘मैं महाकाली हूं. आज मैं पाखंडियों को सजा दूंगी. अब काली और महाकाली आ गई हैं, अब दुष्टों को दंड जरूर मिलेगा,’’ कह कर उस ने पिंडी के पास से दराट उठाया और बकरे का सींग पकड़े छांगू के हाथ पर दे मारा. छांगू चेले की उंगलियों की 2 पोरें कट कर नीचे गिर गईं.
वह दर्द के मारे चिल्लाने और तड़पने लगा. ‘‘बकरे, जा अपने घर, तु?ो कोई नहीं काट सकता. जा, घर जा,’’ डिंपल ने उछलतेकूदते कहा. बकरा भी माधो के घर की तरफ दौड़ गया. यह सब देख कर लोग जयजयकार करने लगे. अब तक तो सभी ने हाथ भी जोड़ लिए थे.
बच्चे तो अपनी मां से चिपक गए थे. डिंपल ने दराट लहराया, फिर चीखते और उछलते हुए बोली, ‘‘बहन काली, गुर और उस के ?ाठे साथियों से पूछ कि सच क्या है, वरना इन्हें काट कर मैं इन का खून पीऊंगी.’’ ‘‘जो आज्ञा. खालटू गुर, जो पूछूंगी सच कहना. अगर ?ाठ कहा, तो खाल खींच लूंगी.
आज सारे गांव के सामने सच बोल.’’ डिंपल ने एक जोर की लात खालटू को दे मारी. दूसरी लात कांता ने मारी, तो वह गिरतेगिरते बचा. गलत आदमी भीतर से डराडरा ही रहता है. डर के चलते ही खालटू ने सीधीसादी लड़कियों में काली और महाकाली का प्रवेश मान लिया था. छांगू की कटी उंगलियों से बहते खून ने उसे और ज्यादा डरा दिया था,
जबकि वह खुद में तो ?ाठमूठ का देवता ला देता था. लातें खा कर वह डर के मारे उन के पैर पड़ गया और गिड़गिड़ाया, ‘‘मु?ो माफ कर दीजिए माता कालीमहाकाली, मु?ो माफ कर दीजिए.’’ दर्द से तड़पते छांगू चेले ने अपनी उंगलियों पर रूमाल कस कर बांध लिया था.
गुर को देख कर डर और दर्द के मारे वह भी रोते हुए उन के पैर पड़ गया, ‘‘मु?ो भी माफी दे दो माता.’’ डिंपल ने गुर की पीठ पर कस कर लात मारी और बोली, ‘‘मैं महाकाली खप्पर वाली हूं. सच बता रे खालटू, या फिर तेरी गरदन काट कर तेरा सारा खून पी जाऊं,’’
डिंपल ने हाथ में पकड़ा दराट लहराया, तो वह डर के मारे कांप गया. ‘‘बताता हूं माता, सच बताता हूं. गांव वालो, माधो का बकरा खाने के लिए हम ने ?ाठमूठ की अफवाहें फैला कर माधो और डिंपल पर ?ाठा आरोप लगाया था. मु?ा में कोई देवता नहीं आता है. मैं, चेला छांगू, मौहता भागू, कारदार सब से ठग कर माल ऐंठते थे. ‘‘हम सारे दूसरों की औरतों पर बुरी नजर रखते थे.
मु?ो माफ कर दीजिए. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा. मु?ो माफ कर दीजिए.’’ डिंपल और कांता की 2-4 लातें और खाने से वह रो पड़ा. अब तो कारदार भी उन दोनों के पैरों में लौटने लगे थे. ‘‘तू सच बता ओ छांगू चेले, नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा,’’ कांता ने जोर की ठोकर मारी तो वह नीचे गिर पड़ा, फिर उठ कर उस के पैर पकड़ लिए.
‘‘गांव के भाईबहनो, मैं तो चेला बन कर तुम सब को ठगता था. कई लड़कियों और औरतों को अंधविश्वास में डाल कर मैं ने उन से कुकर्म किया, उन से रुपएपैसे ऐंठे. मु?ो माफ कर दीजिए माता महाकाली. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा.’’ गुर, चेले, मौहता और कारदारों ने सब के सामने सच उगल दिया. डिंपल और कांता ने उछलतेचीखते उन्हें लातें मारमार कर वहां से भागने पर मजबूर कर दिया. एक नौजवान ने पेड़ से एक टहनी तोड़ कर कारदार और मौहता भागू को पीट दिया.
डिंपल और जोर से चीखी, ‘‘जाओ दुष्टो, भाग जाओ, अब कभी गांव मत आना.’’ वे सारे सिर पर पैर रख कर भाग गए और 2 मील नीचे लंबा डग नदी के तट पर जीभ निकाले लंबे पड़ गए. उन की पूरे गांव के सामने पोल खुल गई थी. वे एकदूसरे से भी नजरें नहीं मिला पा रहे थे. कांता ने उछलतेचीखते जोर की किलकारी मारते हुए गुस्से से कहा, ‘‘गांव वालो, ध्यान से सुनो. खशलोहार के नाम पर रास्ते मत बांटो, वरना मैं अभी तुम सब को शाप दे दूंगी.’’
‘माफी काली माता, शांत हो जाइए. आप की जय हो. हम रास्ते नहीं बांटेंगे. माफीमाफी,’ सैकड़ों मर्दऔरत एक आवाज में बोल उठे. बच्चे तो पहले ही डर के मारे रोने लगे थे. काली और महाकाली के डर से अब खश खश न थे और लोहार लोहार न थे, लेकिन वे सारे गुर खालटू, चेले, मौहता व कारदारों से ठगे जाने पर दुखी थे. ‘माफी दे दो महाकाली माता. आप दोनों देवियां शांत हो जाइए.
हमारे मन का मैल खत्म हो गया है. शांत हो जाइए माता,’ कई औरतें हाथ जोड़े एकसाथ बोलीं. ‘‘क्या माफ कर दें बहन काली?’’ ‘‘हां बहन, इन्हें माफ कर दो. पर ये सारे भविष्य में ?ाठे और पाखंडी लोगों से सावधान रहें.’’ ‘हम सावधान रहेंगे.’ कई आवाजें एकसाथ गूंजीं. कुछ देर उछलतेचीखते और दराट लहराने के बाद डिंपल ने कहा, ‘‘काली बहन, अब लौट चलें अपने धाम.
हमारा काम खत्म.’’ ‘‘हां दीदी, अब लौट चलें.’’ डिंपल और कांता कुछ देर उछलींचीखीं, फिर ‘धड़ाम’ से धरती पर गिर पड़ीं. काफी देर तक चारों ओर सन्नाटा छाया रहा. सब की जैसे बोलती बंद हो गई थी. जब काफी देर डिंपल और कांता बिना हिलेडुले पड़ी रहीं, तो कांता की दादी ने मंदिर के पास से पानी भरा लोटा उठाया और उन के चेहरे पर पानी के छींटें मारे. वे दोनों धीरेधीरे आंखें मलती हुई उठ बैठीं. वे हैरानी से चारों ओर देखने लगी थीं, फिर कांता ने बड़ी मासूमियत से अपनी दादी से पूछा, ‘‘दादी, मु?ो क्या हुआ था?’’ ‘‘और मु?ो दादी?’’ डिंपल ने भी भोलेपन से पूछा.
‘‘कुछ नहीं. आज सच और ?ाठ का पता चल गया है. लूट और पाखंड का पता लग गया है. जाओ भाइयो, सब अपनेअपने घर जाओ,’’ दादी बोलीं. धीरेधीरे लोग अपने घरों को लौटने लगे. दादी कांता का हाथ पकड़ कर बच्ची की तरह उसे घर ले गईं. डिंपल को उस की मां और बापू घर ले आए. शाम गहराने लगी थी और हवा खुशबू लिए सरसर बहने लगी थी. एक बार फिर डिंपल और कांता सुनसान मंदिर के पास बैठ कर ठहाके लगने लगी थीं. ‘‘बहन महाकाली.’’
‘‘बोलो बहन काली.’’ ‘‘आज कैसा रहा सब?’’ ‘‘बहुत अच्छा. बस, अब कदम रुकेंगे नहीं. पहली कामयाबी की तुम्हें बधाई हो कांता.’’ ‘‘तुम्हें भी.’’ दोनों ने ताली मारी, फिर वे अपने गांव और आसपास के इलाकों को खुशहाल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगीं. आकाश में चांद आज कुछ ज्यादा ही चांदनी बिखेरने लगा था.
कार्यक्रम छोटा था. 2-4 लोगों ने माला पहनाई और सविता मैम ने उन के माथे पर तिलक लगाया. वे उन के साथ हो रहे गलत बरताव को जानती थीं, पर खामोश ही रहती थीं.रिटायरमैंट के समय ही गंगाधर शास्त्री को एक लिफाफा दिया गया, जिस में उन की कुल जमापूंजी का चैक था. छोटा बेटा वहां आया और मां को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गया.
चैक भी अपने बाबूजी से तकरीबन छीन कर ले गया.सविता मैम कुछ दूर तक गंगाधर शास्त्री के साथ पैदल चलीं, फिर वे भी लौट गईं. वे पैदल चलते हुए गांव के बाजार से निकले. गांव के लोगों ने उन्हें देखा और मुंह फेर लिया. अब तो उन्हें इस की आदत ही पड़ चुकी है.
गुडि़या के लिए ही तो उन्होंने सबकुछ झेला था. उन का कदम सही था या गलत, यह तो वे खुद भी नहीं जानते, पर इतना जरूर जान गए थे कि भलाई करने का फल इतना कड़वा नहीं होता.पैदल चलते हुए गंगाधर शास्त्री के सामने उन की पूरी जिंदगी किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी. गुडि़या से मिलने के पहले तक उन की जिंदगी एकदम शांत और इज्जत से भरी थी.
वे आंखें उठा कर भी किसी को देख लेते तो सामने वाला घबरा जाता था. पर समय ने ऐसा पलटा खाया कि आज उन्हें कोई घर तक छोड़ने नहीं जा रहा था.गंगाधर शास्त्री के घर के आंगन में दोनों बेटे बैठे थे. पत्नी अंदर थीं शायद. उन के कदम गेट के सामने आते ही रुक गए.
उन्हें अहसास हुआ कि उन के बेटों के चेहरों पर गुस्से के भाव थे और उन की आंखें ज्वाला पैदा कर रही थीं. बेटों के हाथ में वही चैक था, जो उन्हें रिटायरमैंट के समय मिला था. वे समझ गए कि उन के बेटों को पता चल गया है कि उन्हें उतने पैसे नहीं मिले हैं, जितना बेटे हिसाब लगाए बैठे थे. इस वजह से वे नाराज दिख रहे थे.गंगाधर शास्त्री ने धीरे से गेट खोला.
आज गेट खोलते समय उन्हें लग रहा था जैसे वे किसी पराए घर में दाखिल होने जा रहे हैं. यह गेट ही क्यों यह मकान भी उन्होंने कितने अरमानों के साथ बनवाया था. स्कूल से छुट्टी ले कर खुद दिनभर धूप में खड़े रहते थे और मजदूरों से कहते थे, ‘देखो भाई, मकान मजबूत बनाना.
मेरे बेटों के काम आ जाए बस. हमारा क्या है, हम ने तो अपनी जिंदगी जी ली.’आज गंगाधर शास्त्री को यह मकान पराया लग रहा था. उन्होंने गहरी सांस ली और अंदर दाखिल हो गए. उन्हें देख कर बेटों की आंखों में खून उतर आया. वे बहुत देर से अपने पिताजी की राह देख रहे थे.
अपने पिता को अंदर आता देख कर छोटा बेटा उबल पड़ा, ‘‘सारा पैसा अपनी ऐयाशी में उड़ा दिया… अब यहां क्यों आए हो…’’‘‘अपनी जबान संभाल छोटे…
क्या ऐयाशी बोले जा रहा है…’’ उन्हें भी गुस्सा आ गया.
‘‘क्या जबान संभालूं… आप ने जबान संभालने लायक छोड़ा ही कहां है…
ऐयाशी करते समय यह भी याद नहीं रहा कि आप ने 2 बेटों को पहले ही पैदा कर रखा है…’’ बड़े बेटे की जबान आग उगल रही थी.गंगाधर शास्त्री को समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या जबाव दें…
‘‘देखो बेटा, यह जो मुझे पैसा मिला है न, वह सारा तुम लोगों का ही है…’’‘‘इतना सा पैसा… अहसान जता रहे हो… इस से ज्यादा पैसा तो अपनी नाजायज औलाद गुडि़या पर लुटा चुके हो…’’ छोटे बेटे ने कहा.‘‘बकवास मत करो…’’
गंगाधर शास्त्री ने भी तेज आवाज में कहा. इस बात ने गुस्से से उबल रहे बेटों के लिए जैसे आग में घी डाल दिया. वे उठे और गंगाधर को धक्का दे कर गिरा दिया.‘‘जाओ यहां से, हमें आप से कोई मतलब नहीं है… जाओ अपनी ऐयाशी करो…’’
बड़े बेटे ने कहा.एकाएक धक्का लगने से गिरे गंगाधर शास्त्री की कराह निकल गई. उन के आंसू बह निकले. उन की चेतना शून्य होने लगी. चेतना शून्य होने के पहले उन के कानों ने किसी गाड़ी के रुकने की आवाज सुनी.
गुडि़या को पता था कि आज उस के बाबूजी रिटायर होने वाले हैं. वैसे तो वह उन के रिटायरमैंट कार्यक्रम में ही पहुंचना चाहती थी और कार्यक्रम में सब को बताना चाहती थी कि देखो, दलित होने के बाद भी बाबूजी ने उसे अपनाया और ढेर सारा रुपया खर्च कर के उसे पढ़ाया…
वह बाबूजी का अहसान कभी नहीं चुका सकती, पर वह समय पर नहीं पहुंच पाई.गाड़ी रुकते ही गुडि़या धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गई.
गेट के सामने ही उस ने बाबूजी को जमीन पर गिरा देखा. उस के कानों में उन के कराहने की आवाज पहुंची. वह हैरान हो गई और ‘बाबूजी’ कहते हुए उस ने गंगाधर शास्त्री के सिर को अपनी गोद में रख लिया.गुडि़या को समझते देर नहीं लगी कि बाबूजी के बच्चों ने ही उन पर हमला किया है.
वह बिफर पड़ी, ‘‘किस ने गिराया है बाबूजी को…
बोल दो नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा…’’
उस का गुस्सा देख कर सारे लोग सहम गए. साथ आए पुलिस के जवान भी गुडि़या की आवाज सुन कर गेट के अंदर आ गए.गुडि़या चिल्लाई,
‘‘इन्हें जल्दी अस्पताल ले चलो…
और इन से तो मैं वापस आ कर निबटती हूं…
’’गंगाधर शास्त्री ने जब अपनी आंखें खोलीं, तो वे अस्पताल के बिस्तर पर थे. गुडि़या उन के सिर को सहला रही थी. उन्होंने गुडि़या को देखा, पर पहचान नहीं पाए.‘‘मैं कहां हूं?’’
गंगाधर शास्त्री ने पूछा.‘‘बाबूजी, आप अस्पताल में हैं…’’
‘बाबूजी…’ उन्हें यह आवाज सुनी सी लगी. उन्होंने फिर से उस ओर देखा और बोले,
‘‘गुडि़या…’’ उन की आवाज में दम आ गया था.‘‘हां बाबूजी, आप की बेटी…’’
कह कर गुडि़या उन के गले से लग गई. दोनों के आंसू बह रहे थे.
‘‘देखो बाबूजी, आप की गुडि़या कलक्टर बन गई है…’’
‘‘कलक्टर…’’ उन्होंने हैरत से उस की ओर देखा.‘‘हां बाबूजी…
यह सरप्राइज देने के लिए ही तो मैं ने आप को उस दिन कुछ बताया नहीं था और बीच में भी इसी वजह से फोन नहीं किया था.’’गंगाधर शास्त्री की आंखों से बहने वाले आंसुओं की रफ्तार तेज हो गई थी.
‘‘बाबूजी, आप ने मुझे यहां तक पहुंचाया है…
पिता बन कर मेरी देखभाल की है…
मैं आप का कर्ज तो कभी चुका ही नहीं सकती…’’
गुडि़या के आंसुओं ने भी रफ्तार पकड़ ली थी.‘‘मैं जानती हूं बाबूजी,
आप ने मेरे लिए क्याक्या नहीं सहा… मैं दलित जो थी.
सविता मैम मुझे सबकुछ बताती रहती थीं. पर बाबूजी, अब आप की बेटी आ गई है न…
आप के साथ हुई बेइज्जती का बदला मैं लूंगी…’’
कहते हुए गुडि़या ने अपने दांत भींच लिए थे.‘‘नहीं बेटी, ऐसा नहीं कहते. तू मेरी बेटी हो कर ऐसी बात कर रही है…’’‘‘नहीं बाबूजी…
आप की बेइज्जती का बदला तो मैं लूंगी ही. उन्होंने जिंदगीभर मेरी बेइज्जती की वह मुझे बरदाश्त है, पर कोई मेरे पिता समान बाबूजी की बेइज्जती करे, एक बेटी उसे कैसे सहन कर सकती है बाबूजी…’’
कहते हुए गुडि़या ने गंगाधर शास्त्री को अपनी बांहों में भींच लिया.‘‘तू तो पागल हो गई है… मेरी बेटी, ऐसा जिंदगी में कभी न सोचना और न ही करना.
किसी से बदला नहीं लिया जाता, बल्कि उसे बदलने की कोशिश की जाती है पगली…’’
गुडि़या कुछ नहीं बोली. वह खुद को अपने बाबूजी की बांहों में समेटे हुए थी. अस्पताल के मुलाजिम और गुडि़या के साथ आया स्टाफ बापबेटी के इस मिलन का गवाह बन रहा था. दूर कोने में गंगाधर शास्त्री की पत्नी और दोनों बेटे सिर झुकाए खड़े थे.
रवि कमरे से निकल गया. मगर उस की आंखों के पटल से मोनाली का वह दृश्य मिट नहीं पाया था. रवि ने भी फोन पर तनु को सम झाया कि जो कुछ उस ने देखा है वह ऐक्सिडैंटल एनकाउंटर मात्र था. एक दिन मोनाली ने रवि के कमरे में अपना मनपसंद रूम फ्रैशनर स्प्रे किया था. रवि कमरे में घुसते के साथ बोल पड़ा, ‘‘आज कोई स्पैशल खुशबू आ रही है कमरे में.’’
मोनाली वहीं कमरे में कुछ सजावट के सामान रख रही थी. उस ने कहा, ‘‘हां, मैं ने नया स्प्रे किया है. अच्छा नहीं लगा?’’
‘‘नो, नो. तुम्हारी चौइस लाजवाब है. बहुत अच्छा लगा.’’
उसी समय तनु वहां से गुजर रही थी और उस ने उन की बात सुनी. उसे पहली बार भय हुआ कि कहीं शायद अब वह रवि की प्रेमिका नहीं रही.
अगले दिन नए साल का पहला दिन था. नए मेहमान, मोनाली के पिता सुजीत अपनी पत्नी के साथ आए थे. प्रतीक ने रवि से उन का परिचय कराया. फिर प्रतीक और सुजीत दंपती आपस में बातें करने लगे.
सुजीत बोले, ‘‘क्यों न हम नए साल के दिन नए रिश्ते की बात करें? हम लोगों को और मोनाली को तो रवि बहुत पसंद है. आगे आप लोगों की क्या राय है?’’
प्रतीक बोले, ‘‘हम दोनों को तो मोनाली बहुत प्यारी लगी. एक बार रवि से बात कर सगाई की डेट रख लेते हैं.’’
उसी समय तनु चायनाश्ता ट्रे में ले कर आई और टेबल पर सजा गई. उस ने उन लोगों की बातें भी सुनी थीं. उस के दिल में बिजली सी कौंध गई. प्रतीक ने बेटे को आवाज दे कर बुलाया और सुजीत से परिचय करा उन के आने का मकसद बताया.
सुजीत ने रवि से कहा, ‘‘बेटे, तुम को पता है, हम लोग मोनाली के रिश्ते के बारे में तुम्हारी राय जानना चाहते हैं. सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. निसंकोच बताना.’’
रवि बोला, ‘‘मु झे थोड़ा वक्त चाहिए.’’
सुजीत बोले, ‘‘हां, कोई जल्दी नहीं. सोच कर अपने पापा को बता देना. वैसे, शुभस्य शीघ्रं.’’
प्रतीक ने बेटे से कहा, ‘‘रात में न्यू ईयर की आतिशबाजी मोनाली को दिखा लाओ.’’
रवि का मन नहीं था, मगर सभी लोगों की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा था. आतिशबाजी की जगह तनु भी अपने मातापिता के साथ गई थी. दोनों ने एक दूसरे को देखा, पर कोई बात नहीं हुई थी.
रवि बोला, ‘‘तो क्या हुआ? हम अमेरिकी हैं. यहां कर्म ही धर्म है. और तनु का परिवार भी एक तरह से हिंदू ही है, वे सब शाकाहारी भी हैं.’’
‘‘तुम्हें पता है कि मोनाली भी पांडे की इकलौती संतान है. वह परिवार भी काफी धनी है. उस पूरे परिवार की संपत्ति भी तुम्हीं लोगों को मिलेगी.’’
‘‘वाह पापा, अब धर्म से धन पर उतर आए. मैं नहीं मानता यह सब.’’
प्रतीक चिल्ला उठे, ‘‘तुम मानो, न मानो. तनु से शादी के पहले तुम्हें अपने मातापिता का क्रियाकर्म करना होगा.’’
दूसरे दिन प्रभा ने तनु की मां आशा को बुला कर उस से कहा कि वह उसे सम झाए कि वह रवि के रास्ते से हट जाए. आशा ने कहा, ‘‘मैं खुद नहीं चाहती कि दोनों की शादी हो. हमारे धर्म, रीतिरिवाज बिलकुल अलग हैं. अपनी बिरादरी में ही हम लोग शादी करते हैं. तनु के पापा भी यही चाहते हैं. वैसे, आप हमारी ओर से क्या चाहती हैं?’’
‘‘आशा, कुछ दिनों के लिए तनु हमारे घर नहीं आए. तुम ही कुछ समय निकाल कर काम कर दिया करो.’’
आशा बोलीं, ‘‘मुश्किल वक्त में आप ने हमें काम दिया था. मैं पहले जितना काम तो नहीं कर सकती, पर आप के कुछ जरूरी काम कर दिया करूंगी.’’
आशा ने घर जा कर तनु को सारी बातें बताईं. उसे सुन कर बहुत बुरा लगा. रवि को अगले दिन लौटना था. उस ने फोन कर तनु से मिलने को कहा.
रवि ने उस से कहा, ‘‘जो कुछ हम दोनों के घर में हो रहा है, तुम्हें पता ही होगा. मेरे मातापिता का कहना है कि उन के जीतेजी मैं तुम से शादी नहीं कर सकता हूं. पर मैं तुम्हें भी खोना नहीं चाहता. मु झ पर भरोसा करो, मोनाली में मेरी कोई रुचि नहीं है. वह मु झ पर थोपी जा रही है.’’
तनु बोली, ‘‘हर प्यार करने वाले को मनचाहा अंजाम मिले, जरूरी नहीं.’’
‘‘पर मैं खोना नहीं चाहता. 4-5 महीनों में दोनों की पढ़ाई पूरी हो रही है. मु झे फ्रीमौंट के विश्वविख्यात इलैक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी टेस्ला में प्लेसमैंट मिल गया है. मेरा मन करता है विद्रोह कर तुम्हारे साथ घर बसा लूं. क्या तुम तैयार हो?’’
‘‘हरगिज नहीं. दोनों में से किसी परिवार में प्यार या आदर नहीं मिलेगा, न मु झे न तुम्हें. और तुम पुरुष हो, धनी भी हो, साहस कर सकते हो, पर मैं क्या करूं? मां ने मेड का काम कर के हमें पालपोस कर बड़ा किया है. उन की भी कुछ अपेक्षाएं होंगीं. और हम दोनों अपने परिवार की इकलौती संतान हैं. मैं मां की उपेक्षा नहीं कर सकती, भले ही अपने प्यार की बलि देनी पड़े.’’
रवि बोला, ‘‘तुम ने, तुम्हारे मातापिता ने संघर्ष किया है और इस की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, मैं मानता हूं. पर मेरे मम्मीपापा तो बस पुरानी सोच और रूढि़वादिता के शिकार हैं.’’
तनु ने कहा, ‘‘जैसे भी हों, हैं तो हमारे जन्मदाता. प्यार में जीतना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए. मेरे कुछ खोने से किसी को खुशी मिले, तो मु झे दोगुनी खुशी मिलती है.’’
रवि ने तनु का एक हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम अब उपदेश देने लगीं. मैं तो चाहता था कि यह हाथ कभी न छोड़ूं.’’
‘‘दोनों के परिवार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हमें कुछ त्याग करना होगा. विडंबना है कि हम अमेरिकी हो कर इतने दिनों बाद भी पुरानी सोच और ढोंग से उबर नहीं सके हैं. उम्मीद करो कि हम से आगे की पीढ़ी को ऐसी स्थिति का सामना न करना पडे़,’’ तनु बोली.
थोड़ी देर दोनों खामोश रहे. फिर तनु ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘एक खुशखबरी है. मेरा भी प्लेसमैंट टेस्ला के अकाउंट डिपार्टमैंट में हो गया है. पिछले वर्ष इंडियन प्राइम मिनिस्टर भी इस प्लांट में आए थे, तुम्हें याद होगा.’’
रवि बोला, ‘‘यह तो बहुत अच्छा है, तुम से मुलाकात तो होती ही रहेगी.’’
तनु बोली, ‘‘मैं कभी तुम्हारी मानिनी प्रियतमा थी, मानिनी पत्नी होने के सपने देखा करती थी. मौजूदा हालात में मु झे बहुत खुशी होगी अगर तुम मु झे आजीवन मानिनी मित्र सम झोगे. यह मेरे लिए सुकून की बात होगी.’’
तनु ने अपनी दोस्ती का दूसरा हाथ भी रवि की ओर बढ़ा दिया.
‘‘मतलब? क्या तुम शारीरिक रूप से भी…’’
अनिरुद्ध ने उस की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘चलो आज बताता हूं तुम्हें. असल में गौरा बहुत अच्छी है. वह हमेशा पहले भी अपनी मर्यादा में रहने वाली लड़की थी और आज भी वह बहुत अच्छी पत्नी और मां है. हम जब शुरू में मिले तो बातें बहुत आम सी होती रहीं. एक दिन जब गौरा मुझ से मिलने मेरे फ्लैट पर आई तो मैं ने पहली बार उस का हाथ पकड़ा. मुझे अचानक एक शेर याद आया था जो मैं ने उसे सुनाया भी था. उस का हाथ छुआ तो लगा, काश, सारी दुनिया उस के हाथ की तरह गरम और सुंदर होती. फिर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाया था और मैं ने उसे बांहों में भर लिया. उस ने खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश की थी, लेकिन फिर वह सब हो गया जो होना नहीं चाहिए था. चाहत के उन पलों में उस ने खुद स्वीकार कर लिया कि उन पलों में वैसी चाहत, प्यार, सरसता उसे अपने पति के साथ अब नहीं मिलती.
उस ने बताया उस का पति है तो बहुत अच्छा इनसान पर अंतरंग पलों में उसे उस का मशीनी अंदाज उतना नहीं छूता जितना उसे मेरा स्पर्श अनोखे उत्साह से भर जाता है. उन पलों की मेरी चाहत में वह खो सी जाती है. उस का पति तो उन पलों को भी जरूरी काम समझता है. वह अंतरंग संबंधों का 1-1 पल जीना चाहती है, एक खुशनुमे माहौल में रोमांटिक समर्पण चाहती है. वह अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती, वह अपने पति को बहुत प्यार करती है पर उस के मन के किसी कोने में बसी एक अधूरी सी कसक मेरे साथ मिटती है. कभीकभी पल भर में भी जीवन के अनंत पलों को एकसाथ जीया जा सकता है.
गौरा उस पल यही महसूस करती है जब मेरे साथ होती है,’’ अनिरुद्ध कहे जा रहा था, खाना कब से सर्व हो कर ठंडा हो रहा था. शेखर बिलकुल सांस रोके अनिरुद्ध की बातें सुन रहा था, जो बताता जा रहा था, ‘‘गौरा जैसे एक प्यासा रेगिस्तान है और शायद उस का पति खुल कर बरसने की कला नहीं जानता. उस के जीवन में साथ रहना, सोना, खाना, पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर प्यार की उष्णता न जाने कहां खो गई है… अपने पति का साथ गौरा को किसी महोत्सव से कम नहीं लगता, उस का पति स्नेही भी है पर भावनाओं के प्रदर्शन में अत्यंत अनुदार वह अकसर भूल जाता है कि बच्चों और घर की अन्य जिम्मेदारियों के बीच चक्करघिन्नी सी नाचती गौरा भी प्यार चाहती है.’’ शेखर जो अब तक स्वयं को जीने की कला में पारंगत मानता था आज उसे एहसास हुआ कि उस से चूक हुई है.
‘‘आज तो मैं ने तुम्हें सब बता दिया, मेरे दिल पर भी एक बोझ सा है कि मैं भी सीमा के साथ गलत कर रहा हूं पर क्या करूं, अपने कैरियर के चलते मुझ से दूर रह कर भी उसे मेरी कमी नहीं खलती और यहां गौरा अपने पति के साथ रह कर भी चाहत भरे पल खोजती ही रह जाती है. शायद हमारे जीवन में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है. मुझे लगता है गौरा को जब यह पता चलेगा कि मेरा ट्रांसफर कभी भी हो सकता है तो वह बहुत दुखी होगी.’’
शेखर चौंका, ‘‘क्या? तुम्हारा ट्रांसफर?’’
‘‘हां, कोशिश कर रहा हूं, सीमा तो आएगी नहीं, बच्चे भी तो हैं. मुझे ही जाने की कोशिश करनी पड़ेगी. घरगृहस्थी सिर्फ सीमा की जिम्मेदारी तो नहीं है न.’’ सामने बैठा व्यक्ति शेखर को अचानक अपने से ज्यादा समझदार लगा. बिल शेखर ने
ही दिया. फिर दोनों अपनेअपने घर लौट आए. शेखर घर आया, बच्चे नहीं दिखे तो पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं?’’
‘‘एक बर्थडे पार्टी में गए हैं.’’
‘‘तो इस का मतलब हम दोनों अकेले हैं घर में.’’
गौरा ने ‘हां’ में सिर हिलाया. रास्ते भर शेखर को गुस्सा तो बहुत आ रहा था गौरा पर, नफरत भी हो रही थी पर गौरा को देखते ही वह उस से नाराज नहीं हो पाया. उस ने गौरा को बांहों में उठा लिया. गौरा हैरान हुई, फिर उस के गले में बांहें डाल दीं. शेखर खुद पर हैरान था. वह कैसे यह सब कर रहा है. उस ने गौरा पर प्यार की बरसात कर दी. गौरा हैरान सी मुसकराते हुए उस बरसात में नहाती रही. शेखर ने खुद नोट किया, सचमुच सालों हो गए थे गौरा के साथ ऐसा समय बिताए, सालों से वह मशीन बन कर ही तो करता है सारे काम. गौरा के चेहरे पर फैला संतोष और सुख पता नहीं क्याक्या समझा गया शेखर को.
बहुत देर तक शेखर ने गौरा को अपनी बांहों से आजाद नहीं किया तो गौरा हंस पड़ी, ‘‘आप को क्या हो गया आज?’’
‘‘क्यों, अच्छा नहीं लगा?’’
‘‘मैं तो इन पलों को ढूंढ़ती ही रह जाती हूं, मुझे क्यों नहीं अच्छा लगेगा?’’ शेखर के कानों में अनिरुद्ध की आवाज गूंज गई. वह बहुत देर तक गौरा से बातें करता रहा, बहुत समय बाद दोनों ने बहुत ही अच्छा समय साथ बिताया. बच्चे आ गए तो दोनों उन से बातें करने में व्यस्त हो गए.
अगले 2 दिन शेखर अनिरुद्ध से कोई बात नहीं कर पाया. सैर पर भी नहीं जा पाया. वह बहुत व्यस्त था. तीसरे दिन सैर करते समय अनिरुद्ध मिला तो उस ने बताया, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है. मैं अगले हफ्ते चला जाऊंगा.’’
शेखर चौंका, ‘‘तुम्हारी दोस्त? उसे पता है?’’
‘‘नहीं, आज शाम को फोन पर बताऊंगा.’’
‘‘क्यों? वह आई नहीं मिलने?’’
‘‘नहीं, उस के बच्चों की परीक्षाएं हैं. वह व्यस्त है.’’
‘‘तो क्या उस से मिले बिना ही चले जाओगे?’’
‘‘शायद.’’
शेखर जब शाम को औफिस से आया तो उस ने गौरा का चेहरा पढ़ने की कोशिश की. क्या वह जानती है अनिरुद्ध जा रहा है, क्या वह उदास है? उसे कुछ अंदाजा नहीं हुआ. गौरा बच्चों को पढ़ा रही थी. शेखर फ्रैश हो कर आया तो बच्चों से कहने लगी, ‘‘अब तुम दोनों पढ़ो, मैं पापा के लिए चाय बनाती हूं.’’ बच्चे ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चले गए. शेखर ने चाय पीते हुए थोड़ीबहुत इधरउधर की बातें करने के बाद कहा, ‘‘अरे, वह जो तुम्हारा दोस्त था, क्या नाम है उस का?’’
‘‘अनिरुद्ध.’’
‘‘हां, क्या हाल हैं उस के?’’
‘‘ठीक है, उस का ट्रांसफर हो गया है, वह जा रहा है.’’
‘‘अच्छा?’’
‘‘हां, 2 दिन बाद,’’ शेखर को गौरा के चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं दिखी, वह हैरान हुआ जब गौरा ने मुसकराते हुए आगे बात की, ‘‘और बताओ, दिन कैसा रहा?’’
‘‘ठीक रहा. तो वह जा रहा है?’’
‘‘तो उसे तो जाना ही था न. उस का परिवार है वहां. चलो, अब आप टीवी देखो, मैं जल्दी से खाने की तैयारी कर बच्चों की पढ़ाई देखती हूं,’’ कहते हुए गौरा उस के बाल छेड़ती मुसकरा दी. शेखर समझ ही नहीं पाया कि वह अनिरुद्ध के जाने पर खुल कर चैन की सांस ले, ठहाका लगाए या गौरा को सीने से लगा ले. पलभर की देर किए बिना शेखर ने उठ कर जाती गौरा को पीछे से बांहों में भर लिया.
‘‘नहीं, नाराज होतीं तो तुम्हारे लिए दुखद समाचार क्यों होता. वे आधुनिक मां हैं न, तुम्हारे गले में मुझ से जयमाला डलवा रही थीं. बड़ी मुश्किल से उन को समझा पाई हूं कि हम लोग आपस में शादी नहीं करेंगे,’’ यह सोनल का स्वर था.
‘‘यह तो वास्तव में हमारे लिए दुखद समाचार था. कौन करता तुम जैसी बेवकूफ लड़की से शादी?’’ सुमित का स्वर था.
‘‘अच्छा, तो मैं बेवकूफ हूं,’’ सोनल बोली.
‘‘खैर, छोड़ो, हम लोग इस बंधन में बंधने से बच गए, इसलिए इस खुशी को चल कर किसी कौफी हाउस में मनाते हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आओ,’’ यह सुमित का स्वर था. नई पीढ़ी के प्यार की परिभाषा सुन कर माधुरी को एकदम चक्कर सा आ गया और उस के हाथ से ट्रे छूट कर जमीन पर गिर गई. वह वहीं जमीन पर बैठ गई. उस के चारों तरफ फैली चाय, कप और केतली के टुकड़े उसे उस की मूर्खता का उपहासउड़ाते प्रतीत हो रहे थे.
फिर 40वां आया (40 दिन बाद की रस्म) एक दिन पहले ही सास और ननद जुबेदा के पास आ कर बड़ी मुहब्बत से बातें करने लगीं. उस की सेहत की फिक्र करने लगीं. फिर सास धीरे से बोलीं, ‘‘जुबेदा बेटी, कल इमरान की 40वें की रस्म है. यह बहुत धूमधाम से करनी होती है. यह आखिरी काज है. तुम 40 हजार का एक चैक भर दो ताकि यह प्रोग्राम भी शानदार तरीके से हो जाए. करीब 200 लोगों को बुलाना पड़ेगा. रिश्तेदार भी फलमिठाई वगैरह लाएंगे, पर खाना तो अपने को पकाना पड़ेगा.’’
जुबेदा ने सोचते हुए कहा, ‘‘अम्मां, ऐक्सीडैंट के वक्त मैं ने 1 लाख का चैक सुभान भाई को दिया था. उस में से कर लीजिए 40वें का इंतजाम. अब बैंक में मुश्किल 70-80 हजार होगें जो मेरी बड़ी मेहनत से की गई बचत है. इमरान का वेतन तो घर खर्च व उन के अपने खर्च में ही खत्म हो जाता था.’’
‘‘हां तुम ने 1 लाख दिए थे. उन में से 35-40 हजार तो अस्पताल का बिल बना. 12-13 हजार बाइक ठीक होने में लगे. बाकी पैसे सियूम की फातेहा में खर्च हो गए.’’
जुबेदा ने धीमे से कहा, ‘‘अम्मां मरने वाला तो मर गया… यह गम कितना बड़ा है मेरा दिल जानता है पर इस गम में लोगों को बुला कर खानेपिलाने में खर्च करने का क्या फायदा?’’
‘‘अपना ज्ञान अपने पास रखो. यह 40वां करना जरूरी है. इस से इमरान की रूह को शांति मिलेगी और जितने लोग खाएंगे सब उस के लिए दुआ भी करेंगे.’’
जुबेदा को मजबूरन एक चैक भर कर देना पड़ा पर उस ने सिर्फ 30 हजार भरे. सास व ननद का मुंह बन गया. अभी उस के सामने कई खर्चे थे. एक साल पहले उस ने एक फ्लैट बुक किया था. उस की किस्त भी भरनी थी. अभी और भी कई काम थे.
2 दिन बाद 40वां हुआ. दूरदूर के रिश्तेदार और दूसरे लोग जमा हुए. खूब हंगामा रहा. जुबेदा तटस्थ अपने कमरे में रही. औरतें उस से मिलने आती रहीं.
वक्त गुजरता रहा. इद्दत भी पूरी हो गई. उस के बाद अम्मां ने मिन्नत कर के भारी बनारसी साडि़यां बेटी के लिए मांग लीं. जेवरों की भी डिमांड करने लगीं. उस ने एक सोने का सैट दे कर जान छुड़ाई. यह सैट उसे अम्मां ने ही दिया था. इस तरह जिंदगी थोड़ी आसान हो गई.
एक दिन जब जुबेदा स्कूल से वापस आई तो रूना भाभी का चेहरा उतरा हुआ था.
आंखें खूब रोईरोई लग रही थीं. उस ने बहुत पूछा क्या हुआ पर रूना भाभी ने कोई जवाब नहीं दिया. उस के बाद रूना ने जुबेदा से बातचीत भी करीबकरीब खत्म कर दी. उस की समझ में नहीं आया कि आखिर बात क्या हुई है? ऐसा क्या हुआ कि ऐसी बेरूखी दिखा रही हैं? आखिर राज एक छुट्टी के दिन खुल गया. वह नाश्ते के बाद सब्जी काट रही थी कि अम्मां ने बात छेड़ी, ‘‘देखो जुबेदा बेटी तुम बहुत कम उम्र में बेवा हो गई. अभी तुम्हारी उम्र सिर्फ 27 साल है. पहाड़ जैसी जिंदगी बिना किसी मर्द के सहारे के गुजारना बड़ा मुश्किल काम है. हमारा क्या है आज हैं कल नहीं रहेंगे. यह दुनिया बड़ी जालिम है. तुम्हें तनहा जीने नहीं देगी. अकेली औरत सब के लिए एक आसान शिकार होती है. मेरी सलाह यह है कि अब तुम शादी कर लो.’’
जुबेदा ने अपने गुस्से को दबा कर कहा, ‘‘अम्मां, मुझे शादी नहीं करनी है. आप तो हिना (ननद) की शादी की फिक्र करें.’’
अम्मां ने मीठे लहजे में कहा, ‘‘जुबेदा, हम हिना के लिए लड़का तलाश कर रहे हैं. तुम्हारे लिए तो रिश्ता घर में ही मौजूद है. सुभान है न इमरान से 4 साल ही बड़ा है, अच्छा कमाता है. फिर मजहब भी 4 शादियों की इजाजत देता है. जरूरत पड़ने पर भाई भाई की बेवा का सहारा बन सकता है. उस से निकाह कर सकता है. कम से कम मजबूरी में वह 2 शादियां तो कर सकता है. तुम्हारे सिर पर एक सायबान हो जाएगा. तुम्हें शौहर के रूप में एक मददगार मिल जाएगा. मैं ने सुभान से बात कर ली है, वह तुम से निकाह करने को राजी है. बस, तुम हां कर दो.’’
जुबेदा तैश से उबल पड़ी, ‘‘अम्मां, आप कैसी बेहूदा बातें कर रही हैं? ऐसा कभी नहीं हो सकता है. वे मेरे लिए बड़े भाई की तरह हैं और मैं उन्हें भाई ही समझती हूं. मैं कभी भी रूना भाभी का घर नहीं उजाड़ूंगी. आप इस बात को यहीं खत्म कर दीजिए.’’ कह कर वह गुस्से में उठ कर अपने कमरे में चली गई. उस के दिमाग में जैसे लावा उबल रहा था. सास के अल्फाज उस के कानों में हथोड़े की तरह बज रहे थे. ‘सुभान तुम से निकाह करने को राजी है.’ वह तो राजी ही होगा शादी करने के लिए कम उम्र, कमाऊ, खूबसूरत औरत जो मिल रही है. उन्हें जरा भी शर्म नहीं आई… 2 बच्चे हैं, रूना भाभी जैसी प्यार करने वाली बीवी है, फिर भी दूसरी बीबी के ख्वाब देख रहे हैं. अब उसे समझ में आया कि रूना भाभी क्यों उस से उखड़ीउखड़ी रह रही थीं. घर में शादी की बातें चल रही होंगी. ये सब सुन कर रूना भाभी दुखी हो रही होंगी. जुबेदा खूब समझ रही थी. सुभान भाई की कोई खास आमदनी नहीं थी. अब उस की तनख्वाह पर नजर है. फिर कुछ सालों में फ्लैट भी मिल जाएगा. उस पर हक जमाएंगे और साथ ही जवान खूबसूरत नई बीवी मिल जाएगी. उस ने पक्का फैसला कर लिया कि वह किसी भी कीमत पर सुभान भाई से शादी नहीं करेगी. वह सोच में डूब गई कि उस का अगला कदम क्या होना चाहिए, क्योंकि वह जानती थी कि ये लोग अपनी जिद पूरी करने की हर संभव कोशिश करेंगे. शादी से बहुत फायदा है उन्हें.
दूसरे दिन जुबेदा ने स्कूल पहुंच कर अपनी सारी परेशानी प्रिंसिपल को बता दी.
प्रिंसिपल बहुत समझदार व जुबेदा की हमदर्द थीं. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘जुबेदा बेटा, मेरी समझ में तो इस का एक ही हल है कि तुम इन लोगों से कहीं दूर चली जाओे… तभी तुम इस अनचाही शादी से बच सकती हो. यहां से करीब 200 किलोमीटर दूर पहाड़ी कसबे सहदपुर में गर्ल्स स्कूल खुला है. उन्हें वहां अच्छी उत्साही टीचर्स की जरूरत है. वहां गर्ल्स होस्टल भी है. उस के वार्डन के लिए एक जिम्मेदार व अनुभवी टीचर की जरूरत है. मेरे पास भी नोटिस आया है. जो टीचर्स रुचि लें, उन्हें प्रेरित कर के मैं इस स्कूल में भेजूं. छोटा है पर अच्छा व सुरक्षित है. तुम्हारा नाम होस्टन वार्डन के तौर पर भिजवा देती हूं. तुम्हारे लिए होस्टल वार्डन क्वार्टर भी है और खाने का मेस भी. तुम्हें सारी सहूलतें मिलेंगी, वेतनवृद्धि भी अच्छी मिलेगी. तुम कहो तो मैं तुम्हारा नाम होस्टल वार्डन के लिए भेज देती हूं, साथ में लैटर भी लिख दूंगी. वहां की प्रिंसिपल मेरी कुलीग रह चुकी हैं. 3-4 साल बाद सही मौका देख कर तुम ट्रांसफर भी ले सकती हो. मेरी राय में तुम्हारी प्रौब्लम का यही उचित हल है.’’
जुबेदा को बात एकदम ठीक लगी. यही हल उस की परेशानी दूर कर सकता है. उस ने उसी वक्त अपना नाम दे दिया. प्रिंसिपल ने ट्रांसफर फार्म भरवा कर, सारी काररवाई पूरी कर अच्छी रिपोर्ट के साथ उस का फार्म विभाग को भिजवा दिया. जुबेदा ने सुकून की सांस ली.
जुबेदा ने कहकशां को फोन कर सारे हालात बताए. जबरन शादी की बात सुन कर वह भी परेशान हो गई. फिर ट्रांसफर की बात उसे भी पसंद आई. उस ने कहा, ‘‘जुबेदा, तुम जल्दी वहां से निकलने की कोशिश करो. जैसे ही तुम्हारा जौइनिंग और्डर आता है मुझे खबर कर देना. मैं तुम्हारे दूल्हाभाई अरशद के साथ गाड़ी ले कर आ जाऊंगी. तुम्हें जौइन करवा कर, वहां सैट कर के ही हम दोनों वापस आएंगे.’’
जुबेदा ने घर में किसी को इस बात की भनक नहीं लगने दी. सब से नौर्मल व्यवहार रखा. चुपचाप अपनी तैयारी करती रही. उसे कुछ खास तो साथ ले जाना न था. कुछ कपड़े, जरूरी चीजें और कागजात संभाल कर रख लिए. 15 दिनों के बाद ही उस का ट्रांसफर और्डर आ गया. स्कूल से उसे रिलीव कर दिया गया. रात को उस ने पूरी तैयारी कर ली. दूसरे दिन सुबह ही कहकशां और अरशद गाड़ी ले कर आ गए. नाश्ता करने के बाद उस ने सासससुर को बताया कि उस का ट्रांसफर सहदपुर हो गया है. उसे कल ही जौइन करना है, इसलिए वह कहकशां व अरशद के साथ जा रही है. आज ही निकलना जरूरी है.
ट्रांसफर की सुन कर सब सकते में आ गए. सुभान कहने लगा, ‘‘तुम मत जाओ. मैं कुछ दे दिला कर ट्रांसफर रुकवा दूंगा. तुम लंबी छुट्टी ले लो. ऐसा सब तो होता है. मैं सब ठीक कर दूंगा.’’
सासससुर ने भी खूब समझाया. तरहतरह की दलीलें दे कर उसे रोकना चाहा. पर उस ने दोटूक कह दिया, ‘‘मुझे प्रमोशन मिल रही है… मेरे भविष्य का सवाल है. मैं ने जाने का निर्णय कर लिया है. आप लोग परेशान न हों.’’
जुबेदा सोच चुकी थी इस बार इंतहाई कदम उठाना है. इस पार या उस पार. उस के सख्त रवैए को देख कर सब की बोलती बंद हो गई.
जुबेदा ने जाते वक्त रूना भाभी से गले मिलते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप ने मुझे गलत समझा. मैं कभी आप की दुनिया नहीं उजाड़ती. मैं एक औरत का दर्द समझती हूं. मैं अब आप से दूर जा रही हूं. आप बेफिक्र हो कर खुश रहना.’’
रूना भाभी ने रुंधे गले से कहा, ‘‘जुबेदा मुझे माफ कर दो. मुझ से तुम्हें जानने में भूल हुई. पर तुम्हारा अकेलापन देख कर मेरा जी दुखता है…’’
‘‘आप मेरी फिक्र न करें. मैं काम में व्यस्त रहती हूं. वहां तो और भी तनहाई महसूस न होगी. होस्टल वार्डन बन कर जा रही हूं. मैं यह नहीं कहती कि मैं कभी शादी नहीं करूंगी पर अगर मुझे मेरा हमखयाल, हमदर्द, हमसफर मिल गया तो जरूर शादी करूंगी और मुझे उम्मीद है ऐसा मुखलिस बंदा मुझे मिल जाएगा.’’
जुबेदा सब से मिल कर मजबूत कदमों से जिंदगी के नए सफर के लिए रवाना हो गई. एक खुशनुमा जिंदगी उस की मंतजिर थी.
प्रबंधक ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कुछ भूल गए आप?’’
‘‘हां, जो काम सब से पहले करना था, वह सब से बाद में याद आया,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘मुझे एक बहुत अच्छा गुलदस्ता चाहिए और एक केक… जन्मदिन का.’’
‘‘किस का जन्मदिन है?’’ प्रबंधक ने पूछा.
गुलशन ने उदास हो कर कहा, ‘‘वैसे तो कल था, पर गलती सुधर जाए, कोशिश करूंगा.’’
‘‘फूलों की दुकान तो खुलवानी पड़ेगी,’’ प्रबंधक ने कहा, ‘‘इस समय तो कोई फूल लेता नहीं. वैसे किस का जन्मदिन है?’’
‘‘मेरी पत्नी का,’’ गुलशन के मुंह से निकल पड़ा.
‘‘ओह, तब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा,’’ प्रबंधक ने कहा.
गुलशन इस होटल का पुराना ग्राहक था. साल में कई बार कंपनी का खानापीना यहां ही होता था. आधे घंटे बाद प्रबंधक बहुत बड़ा गुलदस्ता ले कर उपस्थित हुआ. सहायक के हाथ में केक था.
‘‘हमारी ओर से मैडम को भेंट,’’ प्रबंधक ने हंस कर कहा.
गुलशन का हाथ जेब में था. पर्स निकालता हुआ बोला, ‘‘नहीं, आप दाम ले लें.’’
‘‘शर्मिंदा न करें हम को,’’ प्रबंधक ने मुसकरा कर कहा.
घंटी की मधुर आवाज भी गहरी नींद में सोई सुमन को बड़ी कर्कश लगी. धीरेधीरे जैसे नींद की खुमारी की परतें उतरने लगीं तो उसे होश आने लगा. प्रेमलता तो बाहर पिछवाड़े में अपने कमरे में सो रही थी. वैसे भी उसे जाने के लिए कह रखा था. वह दरवाजा खोलने कहां से आएगी.
उसे अचानक हंसी भी आई, ‘‘लगता है, एक और गुलदस्ता आ गया.’’
दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘‘कौन है?’’
‘‘गुल्लर, तुम्हारा गुल्लर. देर आया, पर दुरुस्त आया,’’ गुलशन ने विनोद से कहा.
सुमन के चेहरे पर लकीरें तन गईं. हंसी लुप्त हो गई और क्रोध झलक आया. दरवाजा खोला तो गुलशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो. हर साल, हर साल, हर साल इसी तरह आता रहे. यह भेंट स्वीकार करिए.’’
सुमन ने मुंह बना दिया और बिना कुछ लिए अंदर आ गई. नाराजगी बढ़ती जा रही थी. इतनी देर से डब्बे में बंद गुबार बाहर आ गया.
‘‘भई, क्षमा कर दो, बड़ी भूल हो गई,’’ गुलशन ने केक मेज पर रखा और गुलदस्ता सुमन की ओर बढ़ा दिया.
‘‘नहीं चाहिए मुझे,’’ सुमन ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’
‘‘इतनी नाराज मत हो,’’ गुलशन ने खुशामदी स्वर में कहा, ‘‘जन्मदिन की खुशी में अगले महीने तुम्हें जरमनी की सैर कराने ले जाऊंगा.’’
‘‘कहा न, न मुझे कुछ चाहिए और न ही कहीं जाना है,’’ सुमन ने दूर हटते हुए कहा.
अचानक गुलशन की निगाह कार्निस व कोने में सजे हुए गुलदस्तों पर पड़ी. उस ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, इतने सारे गुलदस्ते… कहां से आए? किस ने दिए?’’
‘‘इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो तुम्हारी तरह लापरवाह और बेगैरत नहीं हैं,’’ सुमन ने कड़वाहट से कहा.
‘‘देखूं तो सही, वे महान लोग कौन हैं?’’ गुलशन पास जा कर कार्ड पढ़ने लगा…केवलकिशन…अनवर…हरनाम सिंह…स्वरूप…डेविड…’’
फिर गुलशन ठठा कर हंस पड़ा. सुमन आश्चर्य से उस को देखने लगी. जब वह हंसता ही रहा तो सुमन ने गुस्से से पूछा, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’
‘‘तुम्हें याद है, पिछले महीने हम कहां गए थे?’’ गुलशन ने पूछा.
‘‘हां, याद है.’’
‘‘वहां तुम तो अपनी महिला समिति में तल्लीन हो गईं और मैं अपने दोस्तों के साथ कौफी पी रहा था. अरे, यही लोग तो थे,’’ गुलशन ने कहा.
‘‘तो फिर?’’
‘‘बस, बातों ही बातों में जन्मदिन की बात निकल आई. सब का एक ही मत था कि कभी न कभी ऐसी बात हो जाती है जब जन्मदिन, वह भी पत्नी का, बड़ा बदमजा हो जाता है,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘और मैं ने कहा कि मैं अकसर जन्मदिन भूल जाता हूं.’’
‘‘तो फिर?’’ सुमन ने दोहराया.
‘‘तो फिर क्या, मैं ने उन सब से तुम्हारा जन्मदिन उन की डायरी में लिखवाया और कहा कि अगर हमेशा की तरह मैं भूल जाऊं तो वे जरूर मेरी ओर से तोहफा भिजवा दें,’’ गुलशन ने स्पष्ट किया.
‘‘पर उन्होंने यह तो नहीं कहा,’’ सुमन ने शिकायत की.
‘‘यह उन की शरारत है,’’ गुलशन हंसा, ‘‘पर हम इतनी छोटी सी बात पर लड़ेंगे तो नहीं.’’
अब तो सिवा हंसने के सुमन के पास और कोई रास्ता न था.
कुछ पलों तक अंजलि ने प्रशांत के चेहरे को ध्यान से देखा और फिर बोली, ‘‘तुम्हें 3 महीने पुरानी वह रात याद है जब मैं अपनेआप बिना किसी काम के तुम से मिलने डाक्टरों के आराम करने वाले कमरे में पहुंची थी?’’
‘‘जिस दिन किसी इनसान की लाटरी खुले उस दिन को वह भला कैसे भूल सकता है?’’
‘‘अपने प्रेमी के रूप में तुम्हें चुनने के बाद उस रात तुम्हारे साथ सोने का फैसला मैं ने अपनी खुशी व इच्छा को ध्यान में रख कर लिया था और अब तक सैकड़ों पुरुषों ने मुझ से शादी करने की इच्छा जाहिर की है पर
कभी शादी न करने का चुनाव भी मेरा अपना है.’’
‘‘ऐसा कठिन फैसला क्यों किया है तुम ने?’’
‘‘अपने स्वभाव को ध्यान में रख कर. मैं उन औरतों में से नहीं हूं जो किसी एक पुरुष की हो कर सारा जीवन गुजार दें. मेरी जिंदगी में प्रेमी सदा रहेगा. पति कभी नहीं.’’
‘‘तुम्हारी विशेष ढंग की सोच ही शायद तुम्हें और औरतों से अलग कर तुम्हारी खास पहचान बनाती है, जानेमन. मैं तुम्हारी जैसी आकर्षक स्त्री के संपर्क में पहले कभी नहीं आया हूं. प्रशांत की आंखों में उस के लिए प्रशंसा के भाव उभरे.’’
‘‘शायद कभी आओगे भी नहीं,’’ अंजलि उठ कर उस के पास आ बैठी, ‘‘क्योंकि अपने व्यक्तित्व को पुरुषों की नजरों में गजब का आकर्षक बनाने के लिए मैं ने खासी मेहनत की है. अपने प्रेमी के शरीर, दिल और दिमाग तीनों को सुख देने की कला मुझे आती है न?’’
अंजलि ने झुक कर प्रशांत का कान हलके से काटा तो उस के पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया. अंजलि ने उसे अपने होंठों का भरपूर चुंबन लेने दिया. प्रशांत की सांसें फिर से उखड़ गईं.
प्रशांत के आवारा हाथों को अपनी गिरफ्त में ले कर अंजलि ने आगे कहा, ‘‘अपने प्रेमी मैं बदलती आई हूं और बदलती रहूंगी, फिर भी मैं खुद को बदचलन नहीं समझती हूं क्योंकि एक वक्त में मेरा सिर्फ एक प्रेमी होता है जिस के प्रति मैं पूरी तरह से वफादार रहती हूं. और ऐसी ही आशा मुझे अपने प्रेमी से भी रहती है.’’
‘‘तब यह बताओ कि मेरे जैसे शादीशुदा प्रेमी की पत्नी से तुम्हें चिढ़ नहीं होती है, ऐसा क्यों, अंजलि? तुम्हें उस पत्नी की अपने प्रेमी के जीवन में मौजूदगी क्यों स्वीकार है? वफादारी महत्त्वपूर्ण है तो तुम अविवाहित पुरुषों को ही अपना प्रेमी क्यों नहीं चुनती
हो?’’ अंजलि के मनोभावों को समझने की उत्सुकता प्रशांत के मन में बढ़ गई.
‘‘प्रेमी चुनते हुए मैं विवाहित- अविवाहित के झंझट में न पड़ कर सिर्फ अपने मन की पसंद को ध्यान में रखती
हूं. जनाब, जो विवाहित पुरुष मेरा होने को तैयार है वह अपनी पत्नी के प्रति बेवफा या उस से ऊबा हुआ तो साबित हो ही गया. जो पत्नी अपने पति को अपने आकर्षण में बांध कर रखने में अक्षम है, उस से मुझे भला
क्यों ईर्ष्या होगी. लेकिन…’’
‘‘लेकिन क्या?’’ प्रशांत ने साफ देखा कि अंजलि की आंखों में कठोरता के भाव पैदा हो गए थे.
‘‘लेकिन मैं अपने वर्तमान प्रेमी के प्रति सदा वफादार रहती हूं, इसलिए उस का पत्नी के अलावा कहीं इधरउधर मुंह मारना भी मुझे पसंद नहीं. मैं ने आज तक किसी पुरुष के सामने उस के प्रेम को पाने के लिए हाथ नहीं फैलाए हैं. अपने प्रेम संबंधों को शुरू भी मैं करती हूं और उन का अंत भी. ‘‘अपनी जीवनशैली मैं ने खुद चुनी है. पापपुण्य, सहीगलत व नैतिकअनैतिक को नहीं बल्कि अपनी खुशियों को मैं ने अपने जीवन का आधार बनाया है और अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट व सुखी हूं,’’ आवेश भरे अंदाज में बोलते हुए अंजलि का मुंह लाल हो उठा.
‘‘यों तनावग्रस्त हो कर तुम यह सब बातें मुझे क्यों सुना रही हो?’’ प्रशांत ने माथे पर बल डाल कर पूछा.
‘‘तुम्हें यह एहसास कराने के लिए कि तुम कितने खुशकिस्मत हो,’’ अंजलि की आवाज और सख्त हो गई, ‘‘मैं तुम्हें खुश रखने में एक्सपर्ट हूं, डाक्टर प्रशांत. मेरा रूप और जिस्म अनूठा है. तुम्हारे मन को समझ कर उसे सुखी रखने की कला मुझे बखूबी आती है. लोग तुम से इस कारण ईर्ष्या करते हैं कि मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं…चाहे मुंह से वह मुझे चरित्रहीन कहें पर दिल से वे भी मुझ पर लट्टू हुए रहते हैं. इतना सबकुछ पा कर भी तुम ने सिस्टर सीमा के प्रेमजाल में फंसने की मूर्खतापूर्ण इच्छा को अपने मन में क्यों पनपने दिया?’’
‘‘तुम्हें जबरदस्त गलतफहमी…’’
‘‘डा. प्रशांत, अगर तुम इस वक्त झूठ बोलोगे, तो तुम्हारी मुझ से जुडे़ रहने की सारी संभावना समाप्त हो जाएगी,’’ अंजलि ने साफ शब्दों में उसे धमकी दी.
‘‘सीमा के साथ थोड़ाबहुत हंसी- मजाक करने का यों बुरा मत मानो जानेमन. तुम चाहोगी तो मैं उस से बिलकुल बात करना छोड़ दूंगा,’’ अंजलि का गुस्सा कम करने के लिए प्रशांत ने फौरन सुलह का प्रयास शुरू किया.
कुछ देर गंभीरता से उस का चेहरा निहारने के बाद अंजलि ने उसे चेतावनी दी, ‘‘आज पहली और आखिरी वार्निंग मैं तुम्हें दे रही हूं. मुझे ‘डबलक्रौस’ करने की कोशिश कभी की तो फिर मुझे सदा के लिए भूल जाना. अपनी पत्नी से जितनी खुशियां पा सकते हो पा लेना लेकिन किसी सीमा जैसी की तरफ आंख उठा कर देखा तो पछताओगे.’’
‘‘मैं तुम्हारी बात समझ गया और अब तुम ये किस्सा समाप्त भी करो,’’ प्रशांत ने पास आ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.
अंजलि का मूड फौरन बदला. उस ने गर्मजोशी के साथ प्रशांत की इस पहल का स्वागत किया.
चंद मिनटों का आनंद देने के बाद अंजलि ने उसे कठिनाई से अलग कर के हलकेहलके अंदाज में कहा, ‘‘टे्रलर यहीं खत्म होता है जानेमन. पूरी फिल्म कल रात पर छोड़ो.’’
‘‘क्या मतलब?’’ प्रशांत चौंका.
‘‘मतलब यह कि अब तुम रीना मैडम के पास अपने घर चले जाओ.’’
‘‘पर क्यों?’’
‘‘क्योंकि मैं तुम्हें सोचने का समय दे रही हूं. अगर कल मेरे आगोश में लौटने की इच्छा तुम्हारे मन में हो तो मेरी शर्तों को ध्यान रखना नहीं तो गुडबाय.’’
अंजलि की बात सुन कर एक बार तो प्रशांत की आंखों में तेज गुस्सा झलका लेकिन जब अपने दिल को टटोला तो पाया कि जादूगरनी अंजलि से दूर वह नहीं रह सकता.
‘‘कम से कम एक कप चाय तो पिला कर विदा करो,’’ प्रशांत की बेमन वाली मुसकान में उस की हार छिपी थी और अपनी जीत पर अंजलि दिल खोल कर हंसने लगी.
‘‘जब हम ने गुनाह किया ही नहीं, तो बलि और माफी किस बात की?’’ डिंपल ने गुस्से में कहा, पर माधो की बोलती बंद थी. ‘‘माधो, इस से पहले कि देवता गुस्सा हो जाएं, तू अपने बकरे की बलि और धाम दे कर लटूरी देवता को खुश कर ले. इस से पूरा गांव प्रकोप से बच जाएगा. तुम्हारा परिवार भी देवता की नाराजगी से बच जाएगा. देख, तु?ो देव गुर कह रहा है.’’
‘‘हांहां, बकरे की बलि दे कर ही रास्ते और मंदिर की शुद्धि होगी. लटूरी देवता खुश हो जाएंगे और गांव पर कोई मुसीबत नहीं आएगी,’’ छांगू चेले ने आंगन में बंधे बकरे और डिंपल को देख कर मुंह में आई लार को गटकते हुए कहा. उसे डिंपल और कांता के थप्पड़ भूले नहीं थे.
‘‘हां, धाम न लेने के लिए मैं देवता को राजी कर दूंगा, पर बकरे की बलि तो तय है माधो,’’ गुर ने फिर कड़कती आवाज में कहा. डिंपल और उस की मां ने बकरा देने की बहुत मनाही की, पर गुर खालटू और देव कारकुनों के डराने पर माधो को मानना पड़ा.
उस ने एक बार फिर सभी को बताया कि वह अपने रास्ते चल कर ही घर आया था और उस की बेटी ने मंदिर छुआ ही नहीं, पर उस की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. मौहता भागू ने ?ाट बकरा खोला और मंदिर की ओर ले चला. फिर सभी मंदिर की ओर शान से चल दिए.
चलतेचलते गुर खालटू ने माधो को बेटी समेत लटूरी देवता के मैदान में पहुंचने का आदेश दिया. लटूरी देवता के मैदान में पूरे गांव वाले इकट्ठा हो गए. देवता के गुर खालटू ने धूपदान में रखी गूगल धूप को जला कर एक हाथ में चंबर लिए मंदिर की 3 बार बड़बड़ाते हुए परिक्रमा की. देवता की पिंडी बाहर निकाल कर पालकी में रख दी गई.
सब से पहले गुर ने पिंडी की पूजा की, फिर दूसरे खास लोगों को पूजा करने को कहा गया. चेला और मौहता व दूसरे कारदार जोरजोर से जयकारा लगाते थे. ढोलनगाड़ातुरही बजने लगे थे. गुर खालटू कनखियों से चारों ओर भी देख लेता था और गंभीर चेहरा बनाए खास दिखने की पूरी कोशिश करता था. माधो डिंपल के साथ मंदिर से थोड़ी दूर अपराधी की तरह खड़ा था.
कांता भी अपनी दादी के साथ एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. माधो के बकरे को पिंडी के पास लाया गया था. उस की पीठ पर गुर ने पानी डाला, तो बकरे ने जोर से पीठ हिलाई. चारों ओर से लटूरी देवता की जयजयकार गूंज गई.
छांगू चेले ने सींगों से बकरे को पकड़ा था. एक मोटे गांव वाले ने दराट तेज कर पालकी के पास रखा था. उसे बकरा काटने के लिए गुर के आदेश का इंतजार था. अचानक कांता जोरजोर से चीखने लगी और गरदन हिलाते हुए उछलने भी लगी. उस के बाल बिखर गए.
दुपट्टा गिर गया था. सभी लोग उस की ओर हैरानी से देखने लगे थे. कांता की दादी बड़े जोर से बोलीं, ‘‘लड़की में कोई देवी या फिर कोई देवता आ गया है. अरे, कोई पूछो तो सही कि कौन है, जो लड़की में प्रवेश कर गया है?’’
गुर, चेला और दूसरे कारदार बड़ी हैरानी और कुछ डरे से कांता की ओर देखने लग गए. गुर पूजापाठ करना भूल गया था. एक बूढ़े ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस लड़की में आ गए हैं? कहिए महाराज…’’ ‘‘मैं काली हूं. कलकत्ते वाली. लटूरी देवता से बड़ी. सारे मेरी बात ध्यान से सुनो. आदमी के चलने से रास्ते कभी अपवित्र नहीं होते, न कोई देवता नाराज होता है.
‘‘आज मैं ?ाठों को दंड दूंगी. माधो और उस की बेटी पर ?ाठा इलजाम लगाया गया है. सुनो, लटूरी देवता कोई बलि नहीं ले सकता. अभी मेरी बहन महाकाली भी आने वाली हैं. आज सब के सामने सच और ?ाठ का फैसला होगा,’’ कांता उछलतीकूदती, चीखतीचिल्लाती पिंडी के पास पहुंच गई.